इक घड़ी दीवार की- भाग 3: क्या थी चेष्ठा की कहानी

सात्वत ने जेब से चाबी निकाल कर चेष्टा की ओर बढ़ा दी. दरवाजा खोल कर दोनों अंदर बैठ गए तो गाड़ी स्टार्ट करते हुए चेष्टा ने पूछा, ‘‘कहां जाना है? पहले अस्पताल चलें, ड्रेसिंग करवाने?’’

सात्वत जल्दी से बोला, ‘‘नहींनहीं, मेरे फ्लैट में ड्रेसिंग का सामान है. मैं कर लूंगा…अभी मुझे तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाना है.’’ कुछ पल की खामोशी रही. चेष्टा बिना कुछ बोले सामने की ओर देखती कार चलाती रही तो सात्वत ने पूछा, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो? तुम तो पूना में थीं?’’

चेष्टा ने उस की ओर तीखी निगाहों से देखा फिर लंबा निश्वास ले कर उस ने कार को आगे बढ़ा दिया. लालबत्ती पार कर के कार सफदरजंग अस्पताल पहुंची. लेकिन चेष्टा ने वहां कार नहीं रोकी. उस ने आगे बढ़ कर सफदरजंग एनक्लेव में एक दोमंजिला भवन के गेट के अंदर जा कर पोर्टिको में कार रोकी. सात्वत इस बीच सीट पर पीछे सिर टिकाए खामोश बैठा रहा. केवल बीचबीच में वह 1-2 पल के लिए तिरछी निगाहों से चेष्टा की ओर देख लेता था.

चेष्टा ने कार का दरवाजा खोल कर बाहर आते हुए कहा, ‘‘चलो,’’ तो सात्वत चौंक कर दरवाजा खोल कर बाहर निकला. चेष्टा ने सीढि़यां चढ़ते हुए आने का इशारा किया. दोनों पहली मंजिल में बरामदे के दाईं ओर एक आफिस के बाहर पहुंचे. चपरासी ने झट से दरवाजा खोला और चेष्टा के पीछे सात्वत अंदर गया. थोड़ा आश्चर्यचकित सा, हलका सा लंगड़ाता हुआ.

छोटा सा आफिस का कमरा था. एक मेज, कई कुरसियां, स्टूल, अलमारी, फाइलिंग कैबिनेट, एक टेलीफोन और एक कंप्यूटर आदि.

चेष्टा ने अपनी कुरसी पर बैठते हुए इशारा किया तो सात्वत भी सामने पड़ी दूसरी कुरसी खींच कर बैठ गया. चेष्टा ने जाते वक्त चपरासी से कहा कि डे्रसिंग का सामान और 2 कप चाय भेज देना. सात्वत ने सोचा कि चेष्टा यहां दिल्ली में इस आफिस में क्या कर रही है?

एक औरत तुरंत डे्रसिंग का सामान टे्र में ले कर आई. चेष्टा के इशारा करने पर उस ने सात्वत का जख्म साफ कर के दवा लगा कर पट्टी बांध दी. सात्वत ने लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘थैंक यू.’’

तब तक चाय आ गई और दोनों खामोश चाय पीने लगे, अपनेअपने खयालों में घिरे हुए.

सात्वत ने चेष्टा के सिर की ओर देखते हुए चौंक कर पूछा, ‘‘तुम्हारे हसबैंड?’’

चेष्टा ने सात्वत की ओर व्यथित नजरों से देखा, फिर अपने सूने सीमंत पर हाथ फेरती हुए, मुसकराने की नाकाम कोशिश करते हुए मंद स्वर में बोली, ‘‘मेरे पति जिंदा हैं, यानी जब तक जानती हूं तब तक थे, अब पता नहीं.’’

‘‘डाइवोर्स?’’

चेष्टा ने नकारात्मक सिर हिलाया और बिना जवाब दिए चाय की प्याली में कुछ तलाशती हुई सी खामोश बैठी रही.

‘‘सौरी, आई एम सौरी,’’ सात्वत को लगा कि उसे यह व्यक्तिगत प्रश्न नहीं पूछना चाहिए था.

चाय खत्म हो गई तो सात्वत ने बातों का सूत्र पुन: जोड़ने के लिए पूछा, ‘‘तुम पूना से यहां कब आईं? रहती कहां हो? अपना पता और टेलीफोन नंबर दे दो.’’

चेष्टा एक पल उस की ओर देख कर फिर नीचे देखने लगी, मानो पलकों के कोरों पर आए आंसुओं को वापस ढकेलने की कोशिश कर रही हो. फिर अचानक उस ने हंस कर कहा, ‘‘मेरी शादी के बारे में तो तुम्हें मालूम ही होगा?’’

‘‘हां, मैं पटना गया था मिलने.  तुम्हारी ही एक सहेली ने बताया कि शादी हो गई.’’

‘‘मालूम है,’’ चेष्टा बोली, ‘‘शायद तुम्हारे फोन कौल्स ने ही ममीडैडी को मेरी शादी करने के लिए फोर्स किया. उन्हें हम दोनों के प्रेम के बारे में मालूम हो गया था. शायद वे नहीं चाहते थे…कह नहीं सकती,’’ चेष्टा के चेहरे पर गहरी पीड़ा और वेदना की छाया उभरी. उस ने सात्वत के मन में उठते प्रश्नों को जान लिया और आगे बोली, ‘‘इनकार करना बहुत मुश्किल होता है. खासकर उन मांबाप की बात जिन्होंने जिंदगी में कुछ भी इनकार नहीं किया, कभी डांटा तक नहीं, हमेशा पूरी तरह से सपोर्ट किया. केवल एक के अलावा. वे तो मन में अच्छा ही चाहते होंगे. लेकिन हमेशा अच्छा नहीं होता. हजारों शादियां ऐसे ही होती हैं.’’

चेष्टा चुप हो गई मानो उस ने कुछ गलत कह दिया हो. सात्वत भी खामोश रहा क्योंकि उस के पास शब्द नहीं थे. कुछ क्षण गहरी खामोशी छाई रही. चेष्टा ने अचानक सात्वत की ओर देखा और बोली, ‘‘लंच का समय हो गया है,’’ मानो वह चेतना पर बोझ बनती इस खामोशी को दूर हटाना चाहती हो.

सात्वत चौंका फिर उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं लंच नहीं करता. हैवी ब्रेकफास्ट कर के निकलता हूं. दिन में कभीकभार कुछ स्नैक्स ले लेता हूं.’’

चेष्टा ने कौल बेल बजाई और चपरासी के अंदर आते ही उस से कहा, ‘‘2 कप चाय और कुछ बिस्कुट ले आओ.’’

दोनों थोड़ा सहज हुए. चेष्टा ने सात्वत की ओर देख कर उस की आंखों में उभरे प्रश्न को पढ़ लिया और बोली, ‘‘डैडी ने तुरंत रिश्ता तय कर दिया और 15 दिन बाद शादी कर दी.

‘‘मैं पूना आ गई. पति एक फर्म में एग्जीक्यूटिव थे. ससुर डी.जी. पुलिस थे. अब रिटायर्ड हैं. समाज की नजरों में तो सबकुछ परफेक्ट था. शिकायत की कोई वजह नहीं थी. पति ऊंची पोस्ट पर, अच्छी तनख्वाह. मैं शादी के 3 महीने बाद ही गर्भवती हो गई. डिलिवरी हुई तो बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ.’’

चेष्टा चुप हो गई और चाय पीने लगी. सात्वत व्यथित, अवाक् उस की ओर देखता रहा. फिर चेष्टा के इशारा करने पर वह बिस्कुट और चाय पीने लगा.

चेष्टा ने आगे कहा, ‘‘1 साल के बाद मैं दोबारा गर्भवती हो गई,’’ वह कुछ देर रुकी फिर फुसफुसा कर बोली, ‘‘वह भी मरा हुआ पैदा हुआ.’’

सात्वत के अंतर में पीड़ा का ऐसा वेग उभरा कि उस की जबान जड़ हो गई, सांत्वना के शब्द भी नहीं निकले और वह चुपचाप नीचे देखता रहा. चेष्टा ने सहज स्वर में आगे कहा, ‘‘तब डाक्टर ने ब्लड टेस्ट किया…इमैजिन, गर्भावस्था में नहीं किया और मैं एच.आई.वी. पाजिटिव थी.’’

‘‘ह्वाट?’’ सात्वत ने वेदना से अभिभूत हो कर चेष्टा की ओर देखा. उस के बदन में कंपकंपी सी दौड़ गई.

चेष्टा धीरे से मुसकराई, मानो वह सात्वत को ढाढ़स दे रही हो. वह बोली,  ‘‘एड्स नहीं, केवल एच.आई.वी. पाजिटिव. मैं ने जिंदगी में कभी कोई इंजेक्शन नहीं लिया था. कभी ब्लड ट्रांसफ्यूजन नहीं लिया था, कभी किसी पुरुष के साथ संबंध बनाने का कोई प्रश्न ही नहीं था. फिर शादी के बाद एच.आई.वी. पाजिटिव कैसे हो गई? समझ सकते हो?

‘‘उस डाक्टर को पहली बार गर्भवती होने पर टेस्ट कराना चाहिए था. मेरे पति का भी ब्लड टेस्ट कराना चाहिए था…उस ने टेस्ट की रिपोर्ट मेरे पति, सासससुर को दे दी और उन लोगों ने मुझे घर से निकाल दिया, बिना कुछ पूछे, बिना कुछ जाने, बिना अपने बेटे के बारे में कुछ पता लगाए.’’

‘‘तुम ने केस नहीं किया?’’

‘‘केस…मुकदमा?’’ वह हंसी, जिस में केवल असीम व्यथा और निराशा की झलक और ध्वनि थी, ‘‘उस समय मुझे कुछ नहीं सूझा. मैं गहरे अंधकार में चली गई. बस, एक ही बात मन में आ रही थी, आत्महत्या…लेकिन उस समय मेरे मम्मीडैडी ने बहुत सहारा दिया. वे मुझे अपने साथ पटना ले आए. मुझे उस गहरे अंधकार से निकलने में महीनों लग गए. मैं धीरेधीरे सहारा ले कर, झिझकते, रुकते इस राह पर चल पड़ी. मैं ने एक एन.जी.ओ. ज्वाइन किया, डब्लू.एच.ओ. का सपोर्ट है. मैं ने एच.आई.वी. एड्स की टे्रनिंग ली. काउंसलर बनी. पूरे देश में घूमती हूं, टे्रनिंग और काउंसलिंग के लिए. समय कट जाता है, अब मन लग गया है. अब लगता है कि इस जीवन में कोई लक्ष्य है, कोई काम है.’’

लुकाछिपी- भाग 3: क्या हो पाई कियारा औक अनमोल की शादी

कियारा अपने अनुभाग में आते ही फौरन सलोनी के पास जा पहुंची और उसे अपना हाले दिल व अनमोल के बारे में बताने लगी.

यह सुनते ही सलोनी हंसती हुई बोली, ‘‘वाऊ… आखिर तु झे भी प्यार हो ही गया. अनमोल और तु झे मिलाने में मैं तेरी मदद कर सकती हूं.’’

यह सुनते ही कियारा बोली, ‘‘प्लीज बता न कैसे?’’

तब सलोनी थोड़ा इतराती हुई बोली, ‘‘मैं अनमोल के रूममेट को जानती हूं. पहले

वह तेरा दीवाना था और आजकल मेरा है.’’

कियारा आश्चर्य से बोली, ‘‘कौन?’’

सलोनी मुसकराती हुई बोली, ‘‘अजय.’’

कियारा मुंह बनाती हुई बोली, ‘‘वह… अजय.’’

‘‘हां अजय… अजय और अनमोल रूममेट भी हैं और फ्रैंड भी. अनमोल से तो मैं उस के रूम में कई बार मिल चुकी हूं. जब भी अजय से मिलने जाती हूं अकसर मेरी मुलाकात अनमोल से होती है और अनमोल तो तु झे भी अच्छी तरह से जानता है.’’

यह सुन कर कियारा को थोड़ा अजीब सा लगा क्योंकि अनमोल से बातें करते हुए उसे एक क्षण के लिए भी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि अनमोल उसे जानता है.

वह यह सोच ही रही थी की कियारा के क्लासमेट संदीप का फोन आ गया. संदीप उस का स्कूल फ्रैंड था, उस के शहर दिल्ली से था और वह भी यहां बैंगलुरु की ही एक आईटी कंपनी में था. अकसर संदीप वीकैंड पर या फिर जब भी फ्री होता कियारा के साथ समय स्पैंड करने आ जाता या कियारा उस के पास चली जाती. दोनों के बीच इतना अच्छा तालमेल था कि लोगों को संदेह होता कि शायद संदीप और कियारा के बीच संबंध है.

कियारा के फोन रिसीव करते ही संदीप बोला, ‘‘हाय? किया क्या कर रही हो?’’

यहां बैंगलुरु में संदीप ही था जो कियारा को किया नाम से पुकारता था. उस के केवल कुछ खास दोस्त ही थे जो उसे किया पुकारते थे. उन में से एक संदीप भी था.

‘‘कुछ नहीं बस औफिस में हूं.’’

‘‘आज शाम मैं फ्री हूं डिनर पर चलोगी? बहुत दिनों से हम ने साथ डिनर नहीं किया है,’’ संदीप खुश होते हुए बोला.

कियारा डिनर के लिए मना कर देना चाहती थी क्योंकि उस का मन विचलित था, लेकिन वह संदीप को दुखी नहीं करना चाहती थी इसलिए बोली, ‘‘हां ठीक है. कहो मु झे कहां आना है?’’

‘‘अरे यार तुम्हें कहीं आने की जरूरत नहीं. मैं आ जाऊंगा तु झे लेने फिर साथ चलेंगे,’’ संदीप आत्मीयता और अपना पूरा हक जताते हुए बोला.

‘‘ओके आई विल वेट,’’ कह कर कियारा ने फोन रख दिया.

कियारा के फोन रखते ही सलोनी शरारती अंदाज में मुसकराती हुई बोली, ‘‘संदीप का फोन था?’’

कियारा के हां कहने पर सलोनी उसे छेड़ती हुई बोली, ‘‘क्या बात है कहां चलने को कह रहा है हीरो… तेरी तो ऐश है यार, संदीप जैसा हैंडसम लड़का भी तु झ पर ही मरता है और मु झ से ठीक से बात भी नहीं करता.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है वी आर जस्ट ए गुड फ्रैंड. तू भी साथ चलना… मजा आएगा.’’

डेढ़ साल पहले जब सलोनी संदीप से मिली थी तब से वह संदीप को आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी, लेकिन विफल ही रही. उसे इस बात से बहुत चिढ़ है कि संदीप का ध्यान केवल कियारा की ओर ही रहता है, लेकिन उस ने कभी कियारा को इस बात का आभास नहीं होने दिया.

‘‘ठीक है तू कह रही है तो मैं भी चलती हूं वरना संदीप के साथ कहीं जाना मु झे पसंद नहीं.’’

सलोनी के ऐसा कहने पर कियारा ने कोई जवाब नहीं दिया और फिर दोनों अपनेअपने काम में लग गईं.

शाम को औफिस से लौटने के बाद कियारा डिनर पर जाने के लिए तैयार होने लगी.

तभी उस ने देखा सलोनी हैडफोन लगा कर शांत बैठी हुई है. यह देख कियारा ने कहा, ‘‘अरे संदीप आने ही वाला है तू रैडी कब होगी?’’

‘‘नहीं मैं नहीं चल रही, मेरा मन नहीं कर रहा. तुम जाओ मेरी वजह से तुम अपना प्रोग्राम ड्राप मत करो,’’ सलोनी गंभीर होती हुई बोली.

‘‘क्या हुआ? कुछ है तो बता न मैं संदीप को डिनर के लिए मना कर दूंगी,’’ कियारा बोली.

‘‘अरे कुछ नहीं तू जा न… आई विल मैनेज,’’ सलोनी के ऐसा कहने पर कियारा अकेले ही संदीप के साथ डिनर पर चली गई.

जब वह डिनर से लौटी तो उस ने देखा सलोनी काफी खुश लग रही थी. कियारा को कुछ सम झ नहीं आया कि आखिर इन 2 घंटों में ऐसी क्या बात हो गई जो शांत उदास सलोनी अचानक इतनी खुश लग रही है. कियारा उस से यह जानना चाहती थी लेकिन चुप रही.

अगले दिन औफिस में अभी कियारा ने अपना डैस्कटौप खोला ही था कि वहां अनमोल आ गया. अनमोल को देखते ही सलोनी की धड़कनें तेज हो गईं. ऐसा पहली बार हुआ था

जब कियारा का दिल किसी के लिए इतना अधीर हुए जा रहा था. कियारा अपनी सीट से उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘अनमोल तुम? कहो कुछ काम है?’’

अनमोल ने सपाट सा जवाब दिया, ‘‘नहीं बस यों ही तुम से मिलने आ गया.’’

यह सुनते ही कियारा के आंखों में चमक आ गई और औफिस के बाकी लोगों के कान खड़े हो गए, कियारा थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘ प्लीज हेव ए सीट.’’

कियारा के ऐसा कहते ही अनमोल बैठ गया और थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच गहरी शांति ने स्थान ले लिया जिसे तोड़ते हुए अनमोल ने कहा, ‘‘कियारा कल रात मैं तुम से मिलने तुम्हारे फ्लैट पर आने वाला हूं यह जानते हुए भी तुम किसी संदीप के साथ डिनर पर चली गई, अगर तुम्हें मु झ से नहीं मिलना था तो फोन कर के मु झे बता भी सकती थी. सलोनी के पास तो मेरा और मेरे रूममेट अजय हम दोनों का नंबर है, लेकिन तुम इस तरह बिना बताए.

कियारा बीच में ही अनमोल को रोकती हुई बोली, ‘‘एक मिनट. एक मिनट. तुम ने मु झ से कब कहा कि तुम मु झ से मिलने आ रहे हो?’’

‘‘अरे… मैं ने सलोनी से फोन कर के कहा तो था कि मैं आ रहा हूं… तुम्हारा मोबाइल नंबर मेरे पास नहीं था, इसलिए मैं ने सलोनी से कहा था,’’ अनमोल थोड़ा हैरान होते हुए बोला.

कियारा को बात सम झने में देर नहीं लगी कि कल सलोनी उन के साथ डिनर पर क्यों नहीं गई और वह इतनी खुश क्यों लग रही थी.

कियारा के चेहरे पर दुख के भाव आ गए और वह बोली, ‘‘आई एम सौरी अनमोल मु झे नहीं पता था तुम आने वाले हो, सलोनी मु झे बताना भूल गई होगी.’’

अनमोल मुसकराते हुए बोला, ‘‘इट्स ओके अच्छा अब मैं चलता हूं.’’

अनमोल जैसे ही जाने लगा कियारा ने कहा ‘‘अनमोल फिर कभी आना हो तो…’’ ऐसा कहते हुए एक कागज का टुकड़ा उस की ओर बढ़ा दिया, जिस पर उस का फोन नंबर लिखा था. उस के बाद क्या था अनमोल और कियारा की प्यार की गाड़ी सुपरफास्ट ऐक्सप्रैस की तरह दौड़ने लगी. औफिस में भी अफसाने बनने लगे. किसी को कुछ सम झ नहीं आ रहा था. सभी के सम झ से परे थी यह बात कि आखिर किस का रिश्ता किस के साथ है.

कियारा का रिश्ता संदीप के संग है या अनमोल के संग, सलोनी कभी अजय के साथ नजर आती तो कभी अनमोल के साथ, लोगों को यह अंदाजा लगाना मुश्किल था. आखिर इन सभी पांचों में किस का संबंध किस के साथ. कियारा पहले की ही तरह संदीप के साथ आउटिंग पर जाती उस के साथ मूवी जाती और कभीकभी डिनर पर भी जाती, लेकिन जब संदीप और कियारा साथ जाते उन के साथ कोई तीसरा नहीं होता क्योंकि कोई भी संदीप के साथ कहीं जाना पसंद नहीं करता, लेकिन जब कियारा अनमोल के साथ कहीं जाती संदीप को छोड़ कर सलोनी और अजय भी साथ होते.

काला अतीत- भाग 2: क्या देवेन का पूरा हुआ बदला

मर्द गलती कर माफी मांगने को अपना हक समझता है, लेकिन औरत की एक गलती पर सजा देने को आतुर रहता है. मर्द पराई औरतों को घूर सकता है, सिगरेटशराब पी सकता है, शराब के नशे में पत्नी को पीट सकता है, बातबात पर उस के मायके वालों को कोस सकता है, लेकिन अगर यही सब एक औरत करे तो वह बदचलन, बदमाश और न जाने क्याक्या बन जाती है.

कहने को तो जमाना बदल रहा है, लोगों की सोच बदल रही है, पर कहीं न कहीं आज भी औरतें मर्दों की पांव की जूती ही समझी जाती हैं. उन की जगह पति के पैरों में होती है. लेकिन मैं जानती हूं, मेरे देवेन ऐसे नहीं हैं बल्कि उन का तो कहना है कि पति और पत्नी दोनों गाड़ी के 2 पहिए की तरह होते हैं, एकदम बराबर. लेकिन अगर मैं कहूं कि उस महिला की तरह कभी मेरा भी बलात्कार हुआ था, तो क्या देवेन इस बात को हलके से ले सकेंगे? कहने को भले ही कह दिया कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन पड़ता है. हर मर्द को पड़ता है.

जब एक धोबी के कहने पर मर्यादापुरुषोत्तम राम ने ही अपनी पत्नी सीता को घर से निकाल दिया था वह भी तब जब वह उन के बच्चे की मां बनने वाली थीं तो फिर देवेन पर मैं कैसे भरोसा कर लूं कि वे मुझे माफ कर देंगे? नहीं, मुझ में इतनी ताकत नहीं और इसलिए मैं ने अपना काला अतीत हमेशा के लिए अपने अंदर ही दफन कर लिया. भरेपूरे परिवार में मैं एकलौती बेटी थी. मैं घर में सब की प्यारी थी. दादी का प्यार, मां का दुलार और पापा का प्यार हमेशा मुझ पर बरसता रहता. लेकिन इस प्यार का मैं ने कभी नाजायज फायदा नहीं उठाया. पढ़ने में मैं हमेशा होशियार रही थी.

स्कूल में मेरे अच्छे नंबर आते थे. लेकिन औरों की तरह कभी मुझे डाक्टरइंजीनियर बनने का शौक नहीं रहा. मैं तो आईएएस बनना चाहती थी. जब भी किसी लड़की के बारे में पढ़ती या सुनती कि वह आईएएस बन गई, तो सोचती मैं भी आईएएस बनूंगी एक दिन.

दिनरात मेरी आंखों में बस एक ही सपना पलता कि मुझे आईएएस बनना है. पापा से बोल भी दिया था कि 12वीं कक्षा के बाद मैं यहां गोरखपुर में नहीं पढ़ूंगी. मुझे अपनी आगे की पढ़ाई दिल्ली जा कर करनी है. उस पर पापा ने कहा था कि जहां मेरा मन करे जा कर पढ़ाई कर सकती हूं, पर मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि आईएएस बनना कोई बच्चों का खेल नहीं है. उस पर मैं ने कहा था कि हां पता है मुझे और मैं खूब मेहनत करूंगी.

एक दिन जब मैं ने यह बात अपने दोस्त मोहन का बताया, जो की मेरे साथ मेरे ही क्लास में पड़ता था, तो उस का चेहरा उतर आया. कहने लगा कि वह मेरे जैसा पढ़ने में होशियार नहीं है. लेकिन उस का भी मन करता है दिल्ली जा कर पढ़ाई करने का. पढ़ाई क्या करनी थी, उसे तो बस मस्ती करने दिल्ली जाना था और यह बात उस के बाबूजी भी अच्छे से समझ रहे थे. तभी तो कहा था कि पैसे की बरबादी नहीं करनी है उन्हें. अभी 2-2 बेटियां ब्याहने को हैं और जब पता है कि लड़का पढ़ने वाला ही नहीं है, फिर गोबर में घी डालने का क्या फायदा.

उस की बात पर मुझे हंसी आ गई थी. सो छेड़ते हुए कह दिया, ‘‘हां, सही तो कह रहे हैं चाचाजी. गोबर में घी डालने का क्या फायदा. गोबर कहीं का. इस से तो अच्छा तू अपने बाबूजी का चूडि़यों का बिजनैस संभाल ले. पढ़ने से भी बच जाएगा और डांट भी नहीं पड़ेगी तुझे,’’ बोल कर मैं खिलखिला कर हंस पड़ी थी. लेकिन मुझे नहीं पता था कि मेरी बातें उसे इतनी बुरी लग जाएंगी कि वह मेरे साथ स्कूल जाना ही छोड़ देगा.

मोहन का और मेरा घर आसपास ही थे. उस की मां और मेरी मां की आपस में खूब बनती थी. हम दोनों साथ ही स्कूल आयाजाया करते थे. मोहन के साथ स्कूल जाने से मां के मन को एक तसल्ली रहती कि साथ में कोई है, रक्षक के तौर पर. लेकिन उस दिन की बात को ले कर मोहन मुझ से गुस्सा था. मुझे भी लगा, मैं ने गलत बोल दिया, ऐसे नहीं बोलना चाहिए था मुझे.

मैं उस से माफी मांगने उस के घर गई तो उस के सामने ही उस के मांबाबूजी उसे ताना मारते हुए कहने लगे कि एक सुमन को देखो, पढ़ने में कितनी होशियार है और एक तुम. किसी काम के नहीं हो.

मुझे बुरा भी लगा कि बेचारा, बेकार में डांट खा रहा है. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि इस बार अगर वह 12वीं कक्षा में पास नहीं हुआ, तो उसे चूडि़यों की दुकान पर बैठा देंगे. और हुआ भी वही. मोहन 12वीं कक्षा में फेल हो गया और वहीं मैं 96% अंक ला कर पूरे स्कूल में टौपर बन गई.

मेरे इतने अच्छे अंकों से पास होने पर मोहन मुझ से इतना जलभुन गया कि उस ने मुझ से बात करना ही छोड़ दिया. लेकिन इस में मेरी क्या गलती थी. फिर भी मैं उसे धैर्य बंधाती कि कोई बात नहीं, मेहनत करो, इस बार पास हो जाओगे.

मेरा दिल्ली के एक अच्छे कालेज में एडमिशन हो गया था और 2 दिन बाद ही मुझे दिल्ली के लिए निकलना था. इसलिए सोचा बाजार से थोड़ीबहुत खरीदारी कर लेती हूं. पीछे से किसी का स्पर्श पा कर चौंकी तो मोहन खड़ा था. वह मुझे देख कर मुसकराया तो मैं भी हंस पड़ी.

राहत की सांस ली कि अब यह मुझ से गुस्सा नहीं है. दोस्त रूठा रहे, अच्छा लगता है क्या?

‘‘क्या बात है बहुत खरीदारी हो रही है. वैसे क्याक्या खरीदा?’’

मेरे बैग के अंदर झांकते हुए उस ने पूछा, तो मैं ने कहा कि कुछ खास नहीं, बस जरूरी सामान है. वह कहने लगा कि अब तो मैं चली ही जाऊंगी इसलिए उस के साथ चाटपकौड़ी खाने चलूं. चाटपकौड़ी के नाम से ही मेरे मुंह में पानी आ गया और फिर मोहन जैसे दोस्त को मैं खोना नहीं चाहती थी. इसलिए बिना मांपापा को बताए उस के साथ चल पड़ी. एक हाथ से बैग थामे और दूसरा हाथ उस के कंधे पर रख मैं बस बोलती जा रही थी कि दिल्ली के अच्छे कालेज में मेरा एडमिशन हो गया और 2 दिन बाद जाना है. लेकिन मेरी बात पर वह बस हांहूं किए जा रहा था. उस ने जब अपनी बाइक चाटपकौड़ी की दुकान पर न रोक कर कहीं और मोड दी, तो थोड़ा अजीब लगा. टोका भी कि कहां ले जा रहे हो मुझे? तब हंसते हुए बोला कि क्या मुझे उस पर भरोसा नहीं है.

‘‘ऐसी बात नहीं है मोहन… वह मांपापा चिंता करेंगे न,’’ मैं ने कहा.

वह कहने लगा कि वह मुझे एक अच्छी जगह ले जा रहा है. लेकिन मुझे नहीं पता था कि मुझे ले कर उस की नीयत में खोट आ चुका है. वह हीनभावना से इतना ग्रस्त हो चुका था कि उस ने मुझे बरबाद करने की सोच ली थी. वह मुझे शहर से दूर एक खंडहरनुमा घर में ले गया और बोला कि इस घर से बाहर का नजारा बहुत ही सुंदर दिखता है. मैं ने कहा कि मुझे डर लग रहा है मोहन, चलो यहां से. लेकिन वह कहने लगा कि जब वह साथ है, तो डर कैसा.

जैसे ही हम खंडहर के अंदर गए और जब तक मैं कुछ समझ पाती उस ने मेरा मुंह दबा दिया और मेरे साथ यह कह कर वह मेरा बलात्कार करता रहा कि बहुत घमंड है न तुझे अपनी पढ़ाई पर. बड़ा आईएएस बनना चाहती हो तो देखते हैं कैसे बनती हो आईएएस. कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं छोड़ूंगा तुझे. वह मेरे शरीर को नोचता रहा और मैं दर्द से कराहती रही. मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जिस मोहन को मैं ने अपना भाई माना वह मेरे साथ ऐसा कर सकता है. उस ने मेरी दोस्ती का ही नहीं बल्कि मेरे विश्वास का भी गला घोंट दिया था. मेरा बलात्कार करने के बाद वह मुझे वहीं छोड़ कर भाग गया. मेरा सारा सामान मेरे सपनों की तरह बिखर चुका था. मैं उठ भी नहीं पा रही थी. किसी तरह खुद को घसीटते हुए कपड़ों को अपनी तरफ खींचा और अपने बदन को ढकने लगी.

Shehnaaz का मजेदार रिएक्शन, Salman की फिल्म से बाहर होने पर कही ये बात

‘बिग बॉस 13’ फेम शहनाज गिल (Shehnaaz Gill) इन दिनों अपने बौलीवुड डेब्यू को लेकर सुर्खियों में बनी हुईं हैं. इन दिनों खबरें थीं कि एक्ट्रेस शहनाज गिल अपने फेवरेट स्टार सलमान खान (Salman Khan) की फिल्म ‘कभी ईद कभी दिवाली’ (Kabhi Eid Kabhi Diwali) में नजर आने वाली है. हालांकि अब खबरें आ रही हैं कि एक्ट्रेस को फिल्म से बाहर कर दिया गया है. हालांकि अब इस खबर पर एक्ट्रेस शहनाज गिल का मजेदार रिएक्शन सामने आया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

स्टोरी शेयर करके कही ये बात

हाल ही में ‘कभी ईद कभी दिवाली’ से बाहर होने की अफवाहों पर एक्ट्रेस शहनाज गिल ने मजेदार रिएक्शन देते हुए इंस्टाग्राम पर एक स्टोरी शेयर की है, जिसमें उन्होंने लिखा, ‘बीते कुछ हफ्तों से इस तरह की अफवाहों हर दिन मुझे एंटरटेन करती हैं. मैं लोगों के फिल्म को देखने के लिए बेकरार हूं. इतना ही नहीं मैं खुद को भी उस फिल्म में देखना चाहती हूं.’ शहनाज गिल के इस पोस्ट ने जहां अफवाहों पर विराम लगा दिया है तो वहीं शहनाज गिल की फिल्म का इंतजार कर रहे लोगों को राहत मिली है.

 

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जस्सी गिल संग दिखेंगी एक्ट्रेस

 

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खबरों की मानें तो आयुष शर्मा की बजाय एक्ट्रेस शहनाज गिल पंजाबी एक्टर जस्सी गिल के अपोजिट दिखेंगी. वहीं सलमान खान फिल्म में पूजा हेगड़े संग औनस्क्रीन रोमांस करते हुए दिखने वाली हैं, जिसके चलते फैंस फिल्म देखने के लिए बेताब हैं.

बता दें, एक्ट्रेस शहनाज गिल इन दिनों अपनी प्रौफेशनल लाइफ के चलते सुर्खियों में रहती हैं. बीते दिनों वह एक अवौर्ड शो में डांस करती हुई दिखीं थीं, जिसे फैंस ने काफी पसंद किया था. वहीं टीवी पर एक्ट्रेस को देखने के लिए फैंस काफी एक्साइटेड रहते हैं.

वनराज के लिए सच छिपाएगी काव्या, Anupama और परिवार से कहेगी झूठ

सीरियल अनुपमा (Anupama) में वनराज का गुस्सा देखकर बा और काव्या डर गए हैं. वहीं अपकमिंग एपिसोड में वनराज, अनुज को सबक सिखाने की बात कहता दिख रहा है. हालांकि एक एक्सीडेंट ने अनुपमा और काव्या की पूरी जिंदगी बदलकर रख दी है, जिसके बाद अब काव्या, वनराज की खातिर झूठ बोलती दिखने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

वनराज-अनुज का पीछा करेगा काव्या

 

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अब तक आपने देखा कि वनराज के कारण अनुपमा से झूठ बोलकर अनुज मंदिर से जाता है और वनराज से मिलता है. वहीं बरखा के कहने पर अंकुश, अनुज का हर कदम पर पीछा करता हुआ दिखता है. दूसरी तरफ, काव्या को वनराज के बदले व्यवहार पर शक होता है. इसी के चलते वह अनुज को वनराज के साथ जाते हुए देखती है और दोनों का पीछा करती है.

काव्या से अंकुश पूछेगा सवाल

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि पुलिस अनुपमा को फोन करेगी और एक्सीडेंट की खबर बताएगी, जिसके कारण अनुपमा के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी. वहीं पूरा परिवार एक्सीडेंट वाली जगह पर पहुंचेंगे. जहां अनुज की गाड़ी देखकर अनुपमा टूट जाएगी. तो वहीं अंकुश, काव्या से सवाल करेगा कि उनकी गाड़ी जब यहां है तो वह खाई में कैसे गिर गए, जिसके जवाब में काव्या चुप्पी साधे हुए नजर आएगी.

 

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वनराज के लिए बोलेगी झूठ

 

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इसके अलावा अनुज और वनराज को अस्पताल ले जाया जाएगा. जहां उनकी हालत गंभीर होगी. वहीं अनुज और वनराज के बीच क्या हुआ यह बताने के लिए हर कोई काव्या से सवाल करता दिखेगा. इसी के चलते काव्या घटना को याद करती दिखेगी. खबरों की मानें तो काव्या, वनराज की गलती छिपाने के लिए परिवार और अनुपमा से झूठ बोलेगी. दरअसल, वनराज और अनुज की लड़ाई होगी, जिसके कारण दोनों अनजाने में खाई से गिर जाएंगे. वहीं इस वनराज को बचाने के लिए काव्या झूठ बोलती दिखेगी.

बता दें, अनुज और वनराज के एक्सीडेंट के पीछे अंकुश की साजिश होती हुई दिखने वाली है. वहीं खबरों की मानें तो वह प्रौपर्टी के लिए चाल चलता दिखेगा.

संयोगिता पुराण: संगीता को किसका था इंतजार- भाग 3

‘‘आजक्या हुआ मालूम है?’’ उस दिन घर लौटते ही संगीता का उत्साह छलक पड़ा.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘पृथ्वी अचानक ही कहने लगा कि तुम्हारा नाम संयोगिता होना चाहिए था. क्या जोड़ी बनती हमारी.’’

‘‘अच्छा? फिर तूने क्या कहा?’’

‘‘मैं क्या कहती? मेरे मन की बात उस की जबान पर? मैं तो दंग रह गई. सच मन को मन से राह होती है. फिर तो मैं ने उसे सब कुछ विस्तार से बताया कि मैं अपना नाम बदल कर संयोगिता रखना चाहती थी पर पापा नहीं माने. वह मेरी बात तुरंत समझ गया. कहने लगा कि वह आगे से मुझे संयोगिता ही बुलाएगा. फिर मैं ने भी कह दिया कि मेरा भी एक सपना है कि मेरा पृथ्वीराज मुझे इतिहास वाले पृथ्वीराज की तरह घोड़े पर उठा कर ले जाए और सब देखते रह जाएं.’’

‘‘हाय, फिर क्या बोला वह?’’ सपना अपनी स्वप्निल आंखों को नचाते हुए बोली.

‘‘एक क्षण को तो वह चुप रह गया. फिर बोला कि उसे तो घुड़सवारी आती ही नहीं. पर मेरे लिए वह कुछ भी करेगा. वह घुड़सवारी भी सीखेगा और मुझे उठा कर भी ले जाएगा. लोग तो प्यार में आकाश से तारे तक तोड़ लाने तक की बात करते हैं. वह क्या इतना भी नहीं कर सकता?’’

अगले दिन संगीता ने हमें पृथ्वीराज से मिलवाया. उस का सुदर्शन व्यक्तित्व देख कर हम तीनों ठगे से रह गए.

‘‘तो आप तीनों हैं संगीता की अंतरंग सहेलियां. आप तीनों के बारे में संगीता ने इतना कुछ बताया है कि मैं बिना किसी परिचय के भी आप तीनों को पहचान लेता,’’ उस ने हमें हमारे नामों से बुला कर हैरान कर दिया.

‘‘इस में खूबी मेरी नहीं संगीता की है. उस ने जिस तरह मुझे आप के नामों से परिचित कराया उस में भ्रमित होने का कोई अवसर ही नहीं था,’’ उस ने हंसते हुए कहा. पता नहीं उस के व्यक्तित्व में कैसा आकर्षण था कि हमें लगा ही नहीं कि हम उस से पहली बार मिले.

‘‘संगीता को बचपन से ही पृथ्वीराज से बहुत लगाव रहा है. अच्छा हुआ जो उसे आप मिल गए.’’

‘‘जी हां, बताया था उस ने. वह तो अपना नाम भी बदल कर संयोगिता रखना चाहती थी पर सफल नहीं हुई. मैं ने उसे समझाया कि मेरे लिए तो संयोगिता ही रहेगी. वह इतने से ही प्रसन्न हो गई.’’

‘‘आप तो उस के लिए घुड़सवारी भी सीख रहे हैं. हम ने तो दांतों तले उंगली दबा ली,’’ सपना ने उस की प्रशंसा की.

‘‘मैं तो बस प्रयास कर रहा हूं. पर काम मुश्किल है. सच तो यह है कि मुझे घोड़ों से बहुत डर लगता है.’’

‘‘दाद देनी ही पड़ेगी कि संगीता की पसंद की जो आप उस के लिए इतना कठिन कार्य भी करने को तैयार हो गए,’’ सपना अपनी स्वप्निल आंखों को दूर कहीं टिकाते हुए बोली.

‘‘मैं भी कम खुश नहीं हूं जो मेरी भेंट संगीता से हो गई,’’ अपने मनभावन को खोजतेखोजते पृथ्वीराज भी सिर से पांव तक संगीतामय हुआ प्रतीत हुआ हमें.

हम कौफीहाउस में साथ कौफी पी कर लौट आए. पर संगीता और पृथ्वीराज एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले वहीं बैठे रहे.

घर में मम्मी हमारी प्रतीक्षा कर रही थीं, ‘‘कहां थीं तुम तीनों? मैं कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूं? यह समय है घर लौटने का? और संगीता कहां रह गई? मुझे तो तुम लोगों के लक्षण कुछ ठीक नहीं लग रहे?’’

‘‘आ जाएगी अभी. आज उस की ऐक्स्ट्रा क्लास है. कुछ कह रही थी न वह आज सुबह?’’ मैं ने सपना और नीरजा से प्रश्न करने का दिखावा किया.

‘‘आप पार्क में घूम आइए न. तब तक संगीता भी आ जाएगी,’’ मैं ने मां के गले में बांहें डाल कर उन्हें शांत करना चाहा.

‘‘तू नहीं समझेगी. बेटियों की जिम्मेदारी कंधों पर हो तो पार्क में मन लगेगा? मेरा काम केवल तुम्हारे खानेपीने का प्रबंध करना ही नहीं है, बल्कि तुम्हारी गतिविधियों पर नजर रखना भी है,’’ मां को इतना गंभीर मैं ने पहले कभी नहीं देखा था.

‘‘ठीक कहा आप ने आंटी. इन तीनों के लक्षण तो मुझे भी ठीक नहीं लगते. पर आप चिंता न कीजिए, मैं इन पर कड़ी नजर रखती हूं,’’ संगीता मम्मी के पीछे खड़ी मंदमंद मुसकराते हुए उन की हां में हां मिला रही थी.

‘‘कहां थी अब तक? मेरी तो जान ही सूख गई थी,’’ मां अब भी नाराज थीं.

‘‘कालेज के अलावा और कहां जाऊंगी आंटी? मैं तो आप के डर से दौड़ती हुई घर आई हूं.’’

‘‘तू तो मेरी प्यारी बेटी है. तू तो कुछ गलत कर ही नहीं सकती. पर क्या करूं, मन में सदा डर लगा रहता है. अब तू आ गई है तो मैं पार्क में घूमने जा रही हूं,’’ कह मां सैर करने चली गईं.

नीरजा आगबबूला हो उठी, ‘‘सुन लिया तुम दोनों ने? प्रेमरस में डुबकी संगीता लगाए और डांट हम खाएं. यह सब मुझ से नहीं सहा जाएगा. संगीता सुधर जा नहीं तो मैं आंटी को सब कुछ बता दूंगी. फिर तू जाने और तेरा काम,’’ नीरजा ने धमकी दी.

‘‘उस की जरूरत नहीं पड़ेगी. आज से ठीक 4 दिन बाद पृथ्वीराज मुझे घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा. बिलकुल इतिहास की संयोगिता की तरह और तुम सब देखती रह जाओगी. अब वह घुड़सवारी में दक्ष हो गया है. समझ में नहीं आ रहा कि मेरे सपनों का राजकुमार जब पूरी तरह सजधज कर मेरे सामने आ खड़ा होगा तो मैं उस का स्वागत कैसे करूंगी? मैं तो रहस्यरोमांच से भावविभोर हो उठी हूं,’’ संगीता आंखें मूंदे अपने स्वप्नलोक में खो गई. पर हमें लगा मानों कमरे की हवा थम गई हो. कुछ क्षणों के लिए हम में से किसी के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला. ‘‘बहुत हो गया. मैं अब चुप नहीं रहूंगी. अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है. मैं तो अब तक सब कुछ इस का बचपना समझ कर चुप थी. पर अब मैं आंटी को सब कुछ सचसच बता दूंगी. फिर वे जानें और संगीता,’’ नीरजा क्रोधित हो उठी.

‘‘तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी. तुम क्या समझती हो कि मैं तुम्हारे अंकुश के विषय में कुछ नहीं जानती जिस के साथ तुम घंटों लाइब्रेरी में बैठी रहती हो… और क्लासें बंक कर के सिनेमा देखने जाती हो?’’ संगीता भी उतने ही क्रोधित स्वर में बोली.

‘‘कौन है यह अंकुश?’’ मैं और सपना दंग रह गए.

‘‘नीरजा से पूछो न, जो सदा मुझे उपदेश देती रहती है.’’

‘‘मैं कौन सा डरती हूं. अंकुश दोस्त है मेरा.’’

‘‘पृथ्वीराज भी मेरा दुश्मन तो नहीं है?’’ संगीता ने तर्क दिया.

‘‘तुम दोनों अपनी बहस बंद करो तो मैं कुछ बोलूं?’’ मैं ने दोनों को टोका.

‘‘कहो, क्या कहना है तुम्हें?’’ दोनों ने कहा.

‘‘यही कि मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे कारण मेरी मम्मी को दुख पहुंचे. मैं उन्हें सब सच बता दूंगी.’’

‘‘तू चिंता न कर मैं स्वयं उन्हें सब बता दूंगी,’’ संगीता ने आश्वासन दिया. उस के बाद हम सांस रोक कर उस घड़ी की प्रतीक्षा करने लगे जब संगीता पृथ्वीराज का राज मां को बताने वाली थी.

2 दिन बाद संगीता कालेज से लौटी तो बड़ी गमगीन थी.‘‘क्या हुआ?’’ उसे दुखी देख कर हम ने पूछा तो उत्तर में संगीता फफक उठी.

‘क्या हुआ?’’ सपना दौड़ कर पानी ले आई. हम ने किसी प्रकार उसे शांत किया.

‘‘कल घुड़सवारी करते समय पृथ्वीराज घोड़े से गिर पड़ा… बहुत चोट आई है,’’ संगीता ने हिचकियों के बीच बताया.

‘‘है कहां वह?’’ हम ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘नर्सिंगहोम में. उस के मातापिता भी आ गए हैं. पता नहीं उन्हें कैसे मेरे और पृथ्वीराज के संबंध के बारे में पता चल गया. उन्होंने मुझे बहुत बुराभला कहा,’’ उस के आंसू थम ही नहीं रहे थे.

एक अधूरा लमहा- भाग 3: क्या पृथक और संपदा के रास्ते अलग हो गए?

एक दिन चाय पी कर एकदम मेरे पास बैठ गई. उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कंधे से सिर टिका कर बैठ गई. मैं ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. कभी उस का हाथ तो कभी बाल सहलाता रहा. यह बड़ी स्निग्ध सी भावना थी. तभी मैं उठने लगा तो वह लिपट गई मुझ से. पिंजरे से छूटे परिंदे की तरह. एक अजीब सी बेचैनी दोनों महसूस कर रहे थे. मैं ने मुसकरा कर उस का चेहरा अपने हाथों में लिया और कुछ पल उसे यों ही देखता रहा और फिर धीरे से उसे चूम लिया और घर आ गया.

मैं बदल गया था क्या? सारी रात सुबह के इंतजार में काट दी. सुबह संपदा औफिस आई. बदलीबदली सी लगी वह. कुछ शरमाती सी, कुछ ज्यादा ही खुश. उस के चेहरे की चमक बता रही थी कि उस के मन की कोमल जमीन को छू लिया है मैं ने. मुझे समझ में आ रही थी यह बात, यह बदलाव. उस से मिल कर मैं ने यह भी जाना था कि कोई भी रिश्ता मन की जमीन पर ही जन्म लेता और पनपता है. सिर्फ देह से देह का रिश्ता रोज जन्म लेता है और रोज दफन भी हो जाता है. रोज दफनाने के बाद रोज कब्र में से कोई कब तक निकालेगा उसे. इसलिए जल्द ही खत्म हो जाता है यह…

कितनी ठीक थी यह बात, मैं खुद ही मुग्ध था अपनी इस खोज से. फिर मन से जुड़ा रिश्ता देह तक भी पहुंचा था. कब तक काबू रखता मैं खुद पर. अब तो वह भी चाहती थी शायद… स्त्री को अगर कोई बात सब से ज्यादा पिघलाती है, तो वह है मर्द की शराफत. हां, अपनी जज्बाती प्रकृति के कारण कभीकभी वह शराफत का मुखौटा नहीं पहचान पाती.

उस का बदन तो जैसे बिजलियों से भर गया था. अधखुली आंखें, तेज सांसें, कभी मुझ से लिपट जाती तो कभी मुझे लिपटा लेती. यहांवहां से कस कर पकड़ती. संपदा जैसे आंधी हो कोई या कि बादलों से बिजली लपकी हो और बादलों ने झरोखा बंद कर लिया हो अपना, आजाद कर दिया बिजली को. कैसे आजाद हुई थी देह उस की. कोई सीपी खुल गई हो जैसे और उस का चमकता मोती पहली बार सूरज की रोशनी देख रहा हो. सूरज उस की आंखों में उतर आया और उस ने आंखें बंद कर लीं. जैसे एक मोती को प्रेम करना चाहिए वैसे ही किया था मैं ने. धीरेधीरे झील सी शांत हो गई थी वह. पर मैं जानता था कि वह अब इतराती रहेगी, कैद नहीं रह सकती…

इस वक्त तो मुझे खुश होना चाहिए था कि संपदा की देह मेरी मुट्ठी में है. उस के जिस्म की सीढि़यां चढ़ कर जीत हासिल की थी. ये मेरे ही शब्द थे शुरूशुरू में. पर नहीं, कुछ नहीं था ऐसा. संपदा बिलकुल भी वैसी नहीं थी. जैसा उस के बारे में कहा जाता था. यह रिश्ता तो मन से जुड़ गया था. मैं सोच रहा था कि क्यों पुरुष सुंदर औरत को कामुक दृष्टि से ही देखता है और जब स्त्री उन नजरों से बचने के लिए खुद को आवरण के नीचे छिपा लेती है तब वही पुरुष समाज उसे पा न सकने की कुंठा में कैसेकैसे बदनाम करता है. संपदा के साथ भी यही हुआ था. पर जब मैं ने उस के भीतर छिपी सरल, भोली और पवित्र औरत को जाना तब मैं मुग्ध था और अभिभूत भी…

संपदा ने धीरे से कहा, ‘‘अब तक तो खुले आसमान के नीचे रह कर भी उम्रकैद भुगत रही थी मैं. सारी खुशियां, सारी इच्छाएं इतने सालों से पता नहीं देह के किस कोने में कैद थीं? तुम्हारा ही इंतजार था शायद…’’

और यही संपदा जिस ने मुझे सिखाया कि दोस्ती के बीजों की परवरिश कैसे की जाती है वह जा रही थी.

उसी ने कहा था कि इस परवरिश से मजबूत पेड़ भी बनते हैं और महकती नर्मनाजुक बेल भी.

‘‘तो तुम्हारी इस परवरिश ने पेड़ पैदा किया या फूलों की बेल?’’ पूछा था मैं ने.

यही संपदा जो मेरे वक्त के हर लमहे में है. अब नहीं होगी मेरे पास. उस के पास आ कर मैं ने मन को तृप्त होते देखा है… मर्द के मन को देह कैसे आजाद होती है जाना… पता चला कि मर्द कितना और कहांकहां गलत होता है.

मुझे चुपचुप देख कर उस की दोस्त मीता ने एक दिन कहा, ‘‘उस से क्यों कट रहे हो पृथक? उसे क्यों दुख पहुंचा रहे हो? इतने सालों बाद उसे खुश देखा तुम्हारी वजह से. उसे फिर दुखी न करो.’’

दोस्ती का बरगद बन कर मैं बाहर आ गया अपने खोल से. मैं ने ही उस का पासपोर्ट, वीजा बनवाया. मकान व सामान बेचने में उस की मदद की. ढेरों और काम थे, जो उसे समझ नहीं आ रहे थे कि कैसे होंगे. मुझे खुद को भी अच्छा लगने लगा. वह भी खुश थी शायद…

उस दिन हम बाहर धूप में बैठे थे. टिनी इधरउधर दौड़ती हुई पैकिंग वगैरह में व्यस्त थी. संपदा चाय बनाने अंदर चली गई. बाहर आई तो वह एक पल मेरी आंखों में बस गया. दोनों हाथों में चाय की ट्रे पकड़े हुए, खुले बाल, पीली साड़ी में बिलकुल उदास मासूम बच्ची लग रही थी, पर साथ ही खूबसूरत और सौम्य शीतल चांदनी के समान.

‘‘बहुत याद आओगे तुम,’’ चाय थमाते हुए वह बोली थी.

मैं मुसकरा दिया. वह भी मुसकरा रही थी पर आंखें भरी हुई थीं दर्द से, प्यार से… कई दिन से उस की खिलखिलाहट नहीं सुनी थी. अच्छा नहीं लग रहा था. क्या करूं कि वह हंस दे?

चाय पीतेपीते मैं बोला, ‘‘चलो संपदा छोटी सी ड्राइव पर चलते हैं.’’

‘‘चलो,’’ वह एकदम खिल उठी. अच्छा लगा मुझे.

‘‘टिनी, चलो घूमने चलें,’’ मैं ने उसे बुलाया.

‘‘नहीं, अंकल, आप दोनों जाएं. मुझे बहुत काम है… रात को हम इकट्ठे डिनर पर जा रहे हैं, याद है न आप को?’’

‘‘अच्छी तरह याद है,’’ मैं ने कहा. फिर देखा था कि वह हम दोनों को कैसे देख रही थी. एक बेबसी सी थी उस के चेहरे पर. थोड़ा आगे जाने पर मैं ने संपदा का हाथ अपने हाथ में लिया, तो वह लिपट कर रो ही पड़ी.

मैं ने गाड़ी रोक दी, ‘‘क्या हो गया संपदा?’’

उस के आंसू रुक ही नहीं रहे थे. फिर बोली, ‘‘मुझे लगा कि तुम अब अच्छी तरह नहीं मिलोगे, ऐसे ही चले जाओगे. नाराज जो हो गए हो, ऐसा लगा मुझे.’’

‘‘तुम से नाराज हो सका हूं मैं कभी? नहीं रानी, कभी नहीं,’’ मैं जब उसे बहुत प्यार करता था तो यही कह कर संबोधित करता था, ‘‘प्रेम में नाराजगी तो होती ही नहीं. हां, रुठनामनाना होता है. मैं क्या तुम से तो कोई भी नाराज नहीं हो सकता. हां, उदास जरूर होंगे सभी. जरा जा कर तो देखो दफ्तर में, बेचारे मारेमारे फिर रहे हैं.’’

वह मुसकरा दी.

‘‘अब अच्छा लग रहा है रोने के बाद?’’ मैं ने मजाक में पूछा तो वह हंस दी.

‘‘संपदा तुम ऐसे ही हंसती रह… बिलकुल सब कुछ भुला कर समझीं?’’

उस ने बच्ची की तरह हां में सिर हिलाया. फिर बोली, ‘‘और तुम? तुम क्या करोगे?’’

‘‘मैं तुम्हें अपने पास तलाश करता रहूंगा. रोज बातें करूंगा तुम से. वैसे तुम कहीं भी चली जाओ, रहोगी मेरे पास ही… मेरे दिल का हिस्सा हो तुम… मेरा आधा भाग… तुम से मिल कर मुझ में मैं कहां रहा? तुम मिली तो लगा अज्ञात का निमंत्रण सा मिला मुझे…’’

‘‘और क्या करोगे?’’

‘‘और परवरिश करता रहूंगा उन रिश्तों की, जिन की जड़ें हम दोनों के दिलों में हैं.’’

‘‘एक गूढ़ अवमानना हो, कुछ जाना है कुछ जानना है. आदर्श हो, आदरणीय हो, चाहत हो स्मरणीय हो.’’

वह चुप रही.

मैं ने संपदा से कहा, ‘‘जानती हो, मैं तुम्हारे जाने के खयाल से ही डर गया था. प्यार में जितना विश्वास होता है उतनी ही असुरक्षा भी होती है कभीकभी… रोकना चाहता था तुम्हें… इतने दिनों तक घुटता रहा पर अब… अब सब ठीक लग रहा है…’’

संपदा शांत थी. फिर जैसे कहीं खोई सी बोली, ‘‘विवाहित प्रेमियों की कोई अमर कहानी नहीं है, क्योंकि विवाह के बाद काव्य खो जाता है, गणित शेष रहता है. गृहस्थी की आग में रोमांस पिघल जाता है. यदि सचमुच किसी से प्रेम करते हो, तो उस के साथ मत रहो. उस से जितना दूर हो सके भाग जाओ. तब जिंदगी भर आप प्रेम में रहोगे. यदि प्रेमी के साथ रहना ही है, तो एकदूसरे से अपेक्षा न करो. एकदूसरे के मालिक मत बनो, बल्कि अजनबी बने रहो. जितने अजनबी बने रहोगे उतना ही प्रेम ताजा रहेगा. यह जान लो कि रोमांस स्थाई नहीं होता. वह शीतल बयार की तरह है, जो आती है तो शीतलता का अनुभव होता है और फिर वह चली जाती है. प्रेम की इस क्षणिकता के साथ रहना आ जाए तो तुम हमेशा प्रेम में रहोगे.’’

मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया. वह मुसकरा दी.

संपदा ने कार रोकने के लिए कहा. फिर बोली, ‘‘हर रिश्ते की अपनी जगह होती है… अपनी कीमत… जो तुम्हें पहले लगा वह भी ठीक था, जो अब लग रहा है वह भी ठीक है. पर एक बात याद रखना यह प्यार की बेचैनी कभी खत्म नहीं होनी चाहिए. मुझे पाने की चाह बनी रहनी चाहिए दिल में… क्या पता संपदा कब आ टपके तुम्हारे चैंबर में… कभी भी आ सकती हूं अपना हिसाबकिताब करने,’’ और वह खिलखिला कर हंस दी, ‘‘पृथक, शुद्ध प्रेम में वासना नहीं होती, बल्कि समर्पण होता है. प्रेम का अर्थ होता है त्याग. एकदूसरे के वजूद को एक कर देना ही प्रेम है… प्रेम को समय नहीं चाहिए. उसे तो बस एक लमहा चाहिए… उस अधूरे लमहे में युगों की यात्रा करता है और वह लमहा कभीकभी पूरी जिंदगी बन जाता है.’’

मैं उसे एकटक देखता रह गया…

Top 10 Raksha Bandhan Fashion Tips In Hindi: राखी पर फैशन के टॉप 10 बेस्ट टिप्स हिंदी में

Top 10 Raksha Bandhan Fashion Tips in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Raksha Bandhan Fashion Tips in Hindi 2022. इन फैशन टिप्स से आप फेस्टिवल में अपने लुक को और भी खूबसूरत बना सकती हैं और फैमिली और फ्रैंडस की तारीफें बटोर सकती हैं. Raksha Bandhan की इन टॉप 10 Fashion Tips से अपने राखी लुक का चुनाव कर सकती हैं, जिसके लिए आपको कोई मेहनत नहीं करनी पड़ेगी. बौलीवुड से लेकर टीवी एक्ट्रेसेस के ये फैस्टिव लुक शादीशुदा से लेकर सिंगल महिलाओं के लिए परफेक्ट औप्शन है. अगर आप भी है फैशन की शौकीन हैं और फेस्टिव सीजन में अपने लुक को स्टाइलिश और फैशनेबल दिखाकर लोगों की तारीफ पाना चाहती हैं तो यहां पढ़िए गृहशोभा की Raksha Bandhan Fashion Tips in Hindi.

1. फेस्टिव सीजन के लिए परफेक्ट है नुसरत जहां के ये साड़ी लुक

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नुसरत साड़ियों की शौकीन हैं औऱ वह शादी के बाद अक्सर साड़ी पहनें नजर आती हैं. तो इसलिए आइए आपको दिखाते हैं नुसरत जहां के कुछ साड़ी लुक्स…

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2. फेस्टिवल स्पेशल: पहने सिल्क साड़ी और पाए रौयल लुक

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राजा-महाराजाओं का समय हो या आज काबदलता फैशन, सिल्क अभी भी लोगो की पहली पसंद है.सिल्क यानी रेशम एक ऐसा रेशा है जिसके बने कपड़े को पहनने के बाद पहनने वाले की खूबसूरती दोगुना निखर जाती है.सदाबाहर फैशन में शामिल सिल्क को महिलाएं हर फंक्शन में पहनना पसंद करती हैं. दरअसल, सिल्क एक ऐसा फेब्रिक है जिसकी खूबसूरती की तुलना  किसी अन्य फेब्रिक से नहीं कर सकते. एक समय था जब सिल्क सिर्फ रईसों के बदन पर ही चमकता था लेकिन 1990 के शुरुआती दौर में सैंडवाश्ड सिल्क के आगमन ने इसे मध्यवर्गीय लोगों तक पहुंचा दिया.इसके बाद सिल्क के क्षेत्र में कई प्रकार के बदलाव देखने को मिलें.

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3. Festive Special: फेस्टिवल के लिए परफेक्ट है ‘अनुपमा गर्ल्स’ के ये 5 लुक्स  

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अगर आप इस फेस्टिव सीजन रेड के कौम्बिनेशन से अपनी फैमिली के आउटफिट का थीम चुनने की सोच रहे हैं तो सीरियल ‘अनुपमा’ की लेडी गैंग के ये लुक ट्राय करना ना भूलें.

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4. Raksha Bandhan Special: फेस्टिवल में ट्राय करें ये ट्रेंडी झुमके

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ज्वैलरी महिलाओं की खूबसूरती निखारने का एक उम्दा जरिया है. दीवाली करीब है और इस त्यौहार में तो महिलाएं गहने खरीदती भी हैं और पहनती भी हैं. ऐसे में लेटैस्ट डिजाइन की जानकारी होना जरूरी है. आइए जानते हैं, कुछ ऐसे फैशनेबल और ट्रैंडी ज्वैलरी डिज़ाइन्स के बारे में जिन्हें पहनने के बाद आप बेहद खूबसूरत नजर आएंगी.

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5. फेस्टिव सीजन के लिए परफेक्ट हैं Bigg Boss 15 की Akasa Singh के ये लुक्स

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आज हम आपको अकासा सिंह के कुछ लुक्स दिखाएंगे, जिन्हें आप गरबा या फेस्टिव सीजन में ट्राय कर सकती हैं.

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6. ‘नागिन 4’ एक्ट्रेस सायंतनी के ये इंडियन लुक करें ट्राय

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आज हम आपको सायंतनी के कुछ ऐसे लुक बताएंगे, जिसे आप वेडिंग से लेकर फैमिली गैदरिंग में ट्राय कर सकती हैं.

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7. फेस्टिवल्स में ट्राय करें भोजपुरी क्वीन मोनालिसा के ये इंडियन लुक

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शार्ट ड्रेसेज में नजर आने वाली मोनालिसा (Monalisa) इंडियन आउटफिट में अपने फैंस का दिल जीत रही हैं. इसलिए आज हम मोनालिसा के कुछ इंडियन आउटफिट के बारे में आपको बताएंगे, जिसे आप इस फैस्टिवल पर घर बैठे आराम से ट्राय कर सकती हैं. आइए आपको दिखाते हैं मोनालिसा के कुछ इंडियन आउटफिट, जिसे हेल्दी गर्ल से लेकर शादीशुदा लेडिज ट्राय कर सकती हैं.

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8. डस्की स्किन के लिए परफेक्ट हैं बिपाशा के ये इंडियन आउटफिट

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अक्सर महिलाएं अपने स्किन के कलर के चलते कईं बार अपने फैशन पर ध्यान नही देती. वहीं डस्की यानी सांवले रंग वाली लड़कियों की बात करें तो उनको लगता है कि वह कोई भी कलर पहन ले वो अच्छी नही लगेंगी, लेकिन रिसर्च का मानना है कि गोरे लोगों से ज्यादा सांवले रंग वाले लोग ज्यादा अट्रेक्टिव लगते हैं. बौलीवुड की बात करें तो कई एक्ट्रेसेस डस्की स्किन के बावजूद अपने फैशन से लोगों को अपनी दिवाना बनाती हैं, जिसमें बिपाशा बासु का नाम भी आता है. बिपाशा पति करण सिंह ग्रोवर के साथ अक्सर नए-नए आउटफिट्स में नजर आती हैं, जिसमें वह बहुत खूबसूरत दिखती है. इसीलिए आज हम आपको सांवली स्किन वाली लड़कियों के लिए बिपाशा के लहंगो के बारे में बताएंगे, जिसे आप वेडिंग या फेस्टिवल में ट्राय कर सकती हैं.

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9. Festive Special: इंडियन फैशन में ट्राय करें नोरा फतेही के ये लुक

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आज हम नोरा के किसी कौंट्रवर्सी की नही बल्कि उनके इंडियन फैशन की करेंगे. हर फंक्शन या पार्टी में खूबसूरत लुक में नजर आती है. इसीलिए आज हम आपको कुछ इंडियन फैशन के कुछ औप्शन बताएंगे, जिसे फेस्टिव सीजन में ट्राय कर सकते हैं.

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10. Festive Special: इंडियन लुक के लिए परफेक्ट हैं बिग बौस 14 की जैस्मीन भसीन के ये लुक

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आज हम एक्ट्रेस जैस्मीन भसीन के किसी रिश्ते या शो की नही बल्कि उनके इंडियन लुक की बात करेंगे. सीरियल्स में सिंपल बहू के लुक में नजर आने वाली जैस्मीन के लुक्स आप फेस्टिव सीजन में आसानी से ट्राय कर सकती हैं. तो आइए आपको बताते हैं जैस्मीन भसीन के फेस्टिव इंडियन लुक्स.


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Top 10 Raksha Bandhan Makeup Tips In Hindi: राखी पर मेकअप के टॉप 10 बेस्ट टिप्स हिंदी में

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घर सजाने के चक्कर में कहीं आप भी तो नहीं करती ये 5 गलतियां

हर कोई अपने घर को अच्छे से सजा कर रखना चाहता है. पूरे जतन से घर को सजाने के बावजूद हमसे ऐसी गलतियां हो जाती हैं, जिसकी ओर लोगों का ध्यान बरबस चला जाता है.

आइए जानें, लोग घर की साज-सज्जा में कौन-सी आम गलतियां हैं और उन्हें कैसे सुधारा जा सकता है.

1. जरूरत से ज्यादा फोटो का इस्तेमाल

बेशक आपके पास कई ऐसी यादागार तस्वीरें होंगी, जो आपके दिल के करीब होंगी. उन्हें देखकर आपको अच्छा लगता होगा. आप चाहती होंगी कि घर आनेवाले मेहमान भी उन तस्वीरों को देखें. लेकिन यदि आप घर के हर कोने को उन यादगार तस्वीरों से पाट देंगी तो आपका घर बिखरा-बिखरा लगने लगेगा.

आप अपनी पसंदीदा फोटोज का कोलाज बनवाएं और केवल एक दीवार पर लगाएं. यह ध्यान रखें कि फोटोफ्रेम्स सिम्पल और मैचिंग हों.

2. मैचिंग रंगों का इस्तेमाल

यदि आप घर को कलर करवा रही हैं तो एक बाद दिमाग में बैठा लें कि घर की सारी दीवारों पर मैचिंग कलर करवाने का ट्रेंड बीते जमाने की बात है.

अलग-अलग हल्के रंगों के साथ प्रयोग करें. यदि आपको डार्क रंगों से विशेष प्यार हो तो किसी एक दीवार पर इसका इस्तेमाल करें. रंगों को और मोहक बनाने के लिए फर्नीचर और पर्दे के फैब्रिक कलर्स के साथ प्रयोग करें.

3. जरूरत से अधिक ट्रेंड्स का अनुसरण

कई लोग घर की सजावट के लिए नए ट्रेंड्स का आंख मूंदकर अनुसरण करते हैं. यदि आपकी भी यही आदत है तो आप परेशानी में पड़ सकती हैं. होम डेकोर कैटलाग्स की तरह घर सजाने से आपका अपना अलहदा अंदाज आपके घर की सजावट से गायब हो जाएगा.

अपने घर को अपने व्यक्तित्व का आइना बनाएं. उसकी सजावट में अपने मौलिक और अनूठे आइडियाज का इस्तेमाल करें. कौन जाने, कल आप ही ट्रेंड सेटर बन जाएं.

4. ऐंटीक चीजों का प्रदर्शन

घर की सज्जा में दशकों पुराने फर्नीचर्स और सजावटी वस्तुओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हो सकता है आपको खूब भाता हो, पर घर आनेवाले मेहमानों को भी रुचे यह जरूरी नहीं है. आपके जिंदगीभर के कलेक्शन के प्रदर्शन से आपका घर अस्त-व्यस्त लग सकता है.

यदि आपके पास ऐंटीक चीजों का बहुत बड़ा खजाना है तो उनका प्रदर्शन स्मार्ट तरीके से करें. लिविंग रूम को म्यूजियम बनाने के बजाय, घर की सजावट की थीम से मेल खाते पीसेस का ही प्रदर्शन करें. कुछ चीजों को रीडिजाइन करके भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

5. नकली फूलों का इस्तेमाल

घर को सजाने के लिए नकली फूलों के इस्तेमाल से बचना ही ठीक रहता है. नकली फूलों से सजावट हालिडे होम्स या बीच हाउसेस में ही अच्छी लगती है. यदि आप अपने घर में इनका इस्तेमाल करेंगी तो ये किसी सस्ते सलून सा एहसास दिलाएंगे.

यदि आप फूलों से घर सजाना चाहती हैं तो थोड़े पैसे खर्च करें और ताजे फूलों का इस्तेमाल करें.

इन 6 टिप्स से रखें बच्चों को टेंशन फ्री

हमारे पड़ोस में रहने वाली 8 वर्षीया अविका कुछ दिनों से बहुत परेशान सी लग रही थी. कल जब मैं उसके घर गयी तो उसकी मम्मी कहने लगीं,”आजकल पूरे समय एक ही बात कहती रहती है मुझे मिस वर्ल्ड बनना है जिसके लिए सुंदर होना होता है मम्मा मुझे बहुत सुंदर बनना है..आप मुझे गोरा करने के लिए ये वाली क्रीम लगा दो, वो वाला फेसपैक लगा दो.”

क्रिकेट का शौकीन 10 साल का सार्थक जब तब नाराज होकर घर से बाहर चला जाता है, अपनी बड़ी बहनों को मारने पीटने लगता है, मन का न होने पर जोरजोर से रोना प्रारम्भ कर देता है, उसे सचिन तेंदुलकर बनना है और वह बस क्रिकेट ही खेलना चाहता है.

कुछ समय पूर्व तक तनाव सिर्फ बड़ों को ही होता है ऐसा माना जाता है परन्तु आजकल बड़ों की अपेक्षा बच्चे बहुत अधिक तनाव में जीवन जी रहे हैं और उनके जीवन में समाया यह तनाव उनके स्वास्थ्य और पढ़ाई को भी प्रभावित कर रहा है. बच्चों में पनप रहे इस तनाव पर प्रकाश डालते हुए समाज कल्याण विभाग उज्जैन की वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक श्रीमती निधि तिवारी कहतीं हैं,”जिस उम्र में उन्हें मस्ती करते हुए जिंदगी का आनंद उठाना चाहिए उस उम्र में बच्चे तनाव झेल रहे हैं, बोर हो रहे हैं. बच्चों का इस तरह का व्यवहार बहुत चिंतनीय है.” उनके अनुसार बच्चों के इस प्रकार के व्यवहार के लिए काफी हद तक अभिभावक ही जिम्मेदार हैं. यहां पर प्रस्तुत हैं कुछ टिप्स जिन पर ध्यान देकर आप अपने बच्चों को इस तनाव से बचा सकते हैं-

-भरपूर समय दें

बच्चे चूंकि कच्ची मिट्टी के समान होते हैं, बाल्यावस्था से उन्हें जिस प्रकार के सांचे में ढाल दिया जाए वे स्वतः ढल जाते हैं परन्तु वर्तमान समय में जहां परिवार में माता पिता दोनों ही कामकाजी हैं, बच्चे के पास माता पिता के समय को छोड़कर सब कुछ है. उनके मन में पनप रही किसी भी प्रकार की भावना को आप केवल तभी समझ सकते हैं जब आप उन्हें अपना भरपूर समय दें. आज के वातावरण में उन्हें क्वालिटी नहीं क्वांटिटी टाइम की आवश्यकता है ताकि बच्चे को हरदम आपके साथ होने का अहसास हो सके.

-उन्हें सुनें

बच्चों के मन में हर पल कोई न कोई जिज्ञासा जन्म लेती है, अथवा वे हरदम अपने मन की बात शेयर करना चाहते हैं अक्सर देखा जाता है कि बच्चे जब भी अपने मन की बात पेरेंट्स को बताना चाहते हैं तो अभिभावक उन्हें”अरे बाद में बताना, या तुम क्या हरदम कुछ न कुछ बकबक करते रहते हो” जैसी बातें बोलकर उन्हें चुप करा देते हैं इससे बच्चा उस समय शांत तो हो जाता है परन्तु उसके मन की बात मन में ही रह जाती है जिससे अक्सर वे सही गलत में फर्क करना ही नहीं समझ पाते.

-तुलना न करें

सदैव ध्यान रखिये हर बच्चा खास होता है, उसकी अपनी विशेषताएं होतीं हैं, और प्रत्येक बच्चे में अलग तरह की प्रतिभा होती है इसलिए एक बच्चे की कभी भी किसी दूसरे बच्चे से तुलना नहीं की जा सकती. अक्सर पेरेंट्स अपने बच्चों की दूसरे बच्चों से तुलना करने लगते हैं  जिससे बच्चे का कोमल मन आहत होता है और वे मन ही मन घुटना प्रारम्भ कर देते हैं.

-प्रकृति से परिचित कराएं

बच्चों पर हर समय पढ़ाई करने का दबाब बनाने के स्थान पर उन्हें बाग बगीचा, फूल पौधे और आसपास की प्रकृति से परिचित कराएं ताकि पढ़ाई से इतर भी उनके  व्यक्तित्व का विकास हो सके.

-उनकी क्षमताओं को पहचानें

अक्सर माता पिता अपनी इच्छाओं का बोझ बच्चे पर थोपकर उसे अपने अनुसार चलाने का प्रयास करते हैं इसकी अपेक्षा अपने बच्चे की क्षमताओं को पहचानकर उस क्षेत्र में उसे आगे बढ़ाने का प्रयास करें. आजकल कॅरियर की अनेकों ऑप्शन मौजूद हैं इसलिए बच्चे पर अनावश्यक रूप से पढ़ाई का दबाब बनाने के स्थान पर उसे समझने का प्रयास करना बेहद जरूरी है.

-बच्चे के दोस्त बनें

छोटी छोटी बातों पर बच्चे को हर समय टोकते रहने के स्थान पर बच्चे के दोस्त बनने का प्रयास करें ताकि बच्चा अपने मन की हर दुविधा या समस्या का आपके सामने जिक्र कर सके. इंडोर गेम्स में उसके साथी बनें, घर के छोटे मोटे कार्यों में उसे अपना साझीदार बनाएं, साथ ही प्रतिदिन उसे घर से बाहर अपने दोस्तों के साथ कम से कम 1 घन्टा खेलने अवश्य भेजें.

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