लाइफस्टाइल डिसऔर्डर से होती बीमारियां

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में महिलाएं अपनी सेहत के प्रति लापरवाह होती जा रही हैं. इस से घर और कैरियर दोनों के बीच तालमेल बैठाए रखना उन के लिए चुनौती बनता जा रहा है. सेहत का ध्यान न रखने की वजह से महिलाएं कम उम्र में ही कई बीमारियों की शिकार हो जाती हैं, जिन्हें लाइफस्टाइल डिसऔर्डर बीमारियां भी कहा जा सकता है. इस के बारे में मुंबई के फोर्टिस हौस्पिटल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञा डा. वंदना सिन्हा बताती हैं कि बीमारियां कभी भी अचानक नहीं होतीं. उन का अलार्म तो पहले ही बज चुका होता है, जिसे महिलाएं नजरअंदाज करती रहती हैं. ये बीमारियां तो दरअसल युवावस्था से ही शुरू हो जाती हैं.

महिलाओं के बदले लाइफस्टाइल की वजह से उन का मोटापा भी खूब बढ़ा है, जिस की वजहें जंक फूड का अत्यधिक सेवन, समय से भोजन न करना, डाइटिंग करना आदि हैं. इन से हारमोनल बैलेंस बिगड़ता है. आजकल करीब 40% महिलाओं में पौलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम भी पाया जाता है. इस में ओवरीज ठीक से काम नहीं करतीं और हारमोनल संतुलन बिगड़ता है, जिस से चेहरे और बौडी पर अधिक हेयर ग्रो होने लगता है. त्वचा रफ हो जाती है और ऐक्ने का प्रभाव दिखता है.

एक सर्वे के मुताबिक, आज के दौर में 75% महिलाओं का कोई न कोई लाइफस्टाइल डिसऔर्डर है. इस से 42% को पीठ दर्द, मोटापा, डिप्रैशन, डायबिटीज, हाइपरटैंशन की शिकायत है. ऐसा न हो इस के लिए लड़कियों को किशोरावस्था से ही लाइफस्टाइल में परिवर्तन करना आवश्यक है, जिस के लिए सही व्यायाम, सही डाइट, मोटापे को न बढ़ने देना आदि सभी विषयों पर मातापिता को ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि ये आदतें ऐसी हैं, जिन्हें उन्हें कम उम्र से ही अभ्यास में लाना जरूरी है.

कम उम्र में दिल का दौरा

डा. वंदना बताती हैं कि दिल की बीमारी का खतरा भी महिलाओं में तेजी से बढ़ रहा है. आजकल 24-25 साल की उम्र में भी लड़कियों को दिल का दौरा पड़ जाता है, जो चिंता का विषय है. अगर लड़कियां ओवरवेट हैं, तो वे पतला होने के लिए खाना छोड़ देती हैं. तब जरूरत से कम खाना खाने पर वे ऐनीमिया और हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने से बारबार इन्फैक्शन की शिकार होती हैं.

इस के अलावा जब लड़कियों का स्वास्थ्य खराब रहने लगता है, तो वे मानसिक बीमारी की शिकार हो जाती हैं, जिस में डिप्रैशन, सुसाइडल टैंडैंसी आदि प्रमुख हैं. दरअसल, इस उम्र में पीयर प्रैशर अधिक होता है, जिस से बौयफ्रैंड या रिलेशनशिप न होने पर वे अपनेआप को कमतर समझना आदि को अपने अंदर पाल लेती हैं. क्या सही क्या गलत है यह समझना उन के लिए मुश्किल हो जाता है, तो वे दोस्तों की संगत में जाती हैं, जहां सही राय नहीं मिल पाती. ऐसे में मातापिता ही उन्हें सही दिशानिर्देश दे सकते हैं. युवावस्था में स्ट्रैस लैवल बढ़ने की वजह से नींद में कमी आती है, जिसे स्लीपिंग डिसऔर्डर कहते हैं. आजकल की लड़कियों में स्मोकिंग, ड्रिंकिंग की आदत भी बढ़ चुकी है, जो उन के लिए खतरनाक है.

विटामिन डी की कमी

विटामिन डी की कमी भी आजकल की युवतियों और महिलाओं में कौमन है. डा. वंदना का कहना है कि इस से महिलाओं में मैंस्ट्रुअल समस्या बढ़ रही है और शहरी क्षेत्रों में इस की संख्या अधिक है. विटामिन डी की कमी से महिलाओं को और भी कई गंभीर बीमारियों की शुरुआत हो जाती है. मसलन इम्यूनिटी का कम हो जाना, इनफर्टिलिटी का बढ़ना, मधुमेह की बीमारी, पीरियड की अनियमितता, स्तन कैंसर आदि. ओवरी के सही फंक्शन के लिए विटामिन डी जरूरी है. अत्यधिक दर्द के साथ पीरियड होने पर ऐंड्रोमैट्रियौसिस का खतरा रहता है, जिस में ओवरी में सिस्ट बन जाता है, जिस से आगे चल कर इनफर्टिलिटी बढ़ती है. यह समस्या आजकल 15 से 25 वर्ष की लड़कियों में अधिक देखने को मिल रही है, जो विटामिन डी की कमी की वजह से हो रही है. ये सभी बीमारियां लाइफस्टाइल की वजह से हैं, जिस का परिणाम स्ट्रैस है. विटामिन डी पूरे शरीर के लिए जरूरी है. यह हमारे शरीर में कैल्सियम के स्तर को नियंत्रित करता है.

संक्रमण का खतरा

संक्रमण की बीमारी भी आजकल महिलाओं में अधिक है. आजकल के युवा कम उम्र में अनप्रोटैक्टेड सैक्स में लिप्त होते हैं, तो उन के मल्टीपल सैक्सुअल पार्टनर्स भी होते हैं. ऐसे में हाइजीन पर ध्यान न देने से वे इन्फैक्शन के शिकार हो जाते हैं. जबकि पर्सनल हाइजीन पर अधिक ध्यान देना आवश्यक है. महिलाएं आजकल जेनाइटल ट्यूबरकुलोसिस की शिकार भी हो रही हैं. इस बीमारी की जब तक सही जांच न हो पता नहीं चलता. इस बीमारी के तहत वे मां नहीं बन पातीं. अगर गर्भधारण करती भी हैं, तो बच्चा पूरे 9 महीने नहीं ठहरता. बायोप्सी से इस का पता चलता है. कई जगह पर तो इस की जांच भी संभव नहीं होती. लाइफस्टाइल से जुड़ी सब से खतरनाक बीमारी हार्ट डिजीज है. अधिकतर महिलाएं शहरों में कामकाजी हैं. उन के खाने में फैट अधिक होता है और वे व्यायाम नहीं करतीं, इसलिए उन का कोलैस्ट्रौल लैवल बढ़ जाता है. इस से कम उम्र में ही हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, थायराइड आदि सब दिखने लगता है. डा. वंदना कहती हैं कि पहले जो बीमारी 45 वर्ष के बाद दिखती थी अब 27-28 साल की उम्र में ही दिखने लगी है. कामकाजी महिलाओं में स्ट्रैस लैवल काफी बढ़ चुका है.

मेनोपौज के बाद बीमारी बढ़ने की वजह कम उम्र में अपना ध्यान न रखना है. कुछ बीमारियां आनुवंशिक होती हैं. पर अधिकतर हमारे लाइफस्टाइल की वजह से ही होती हैं. मैटाबौलिज्म ठीक न रहने की वजह से रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. इस से बीमारियां दिनोंदिन बढ़ती जाती हैं. अगर शुरू से ही कुछ खास बातों पर ध्यान दिया जाए तो इन बीमारियों से काफी हद तक बचा जा सकता है. डा. वंदना के अनुसार, इस के लिए कुछ टिप्स निम्न हैं:

  1. 30 मिनट फिजिकल ऐक्टिविटी हर दिन करें.
  2. 10 मिनट ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज अवश्य करें. सुबह 5 मिनट शाम को 5 मिनट.
  3. रोज 10 से 15 गिलास पानी अवश्य पीएं.
  4. शुगर वाले खाद्यपदार्थ कम खाएं, प्रोटीन अधिक लें.
  5. फाइबर, कार्बोहाइड्रेट और कौंप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट को डाइट में जरूर शामिल करें. फैट को कम से कम लें.
  6. चाय, कौफी अधिक न पीएं. ग्रीन टी का सेवन करें, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छी है.
  7. स्ट्रैस लैवल कम करने के लिए अपने लिए समय निकालें. अपनी मनपसंद की किताबें व पत्रिकाएं पढ़ें और मूवी आदि देखें, जिस से आप को खुशी मिले.
  8. सर्वाइकल कैंसर का वैक्सिन 11-12 साल की उम्र में अवश्य लगवाएं.
  9. मोटापे को बढ़ने से रोकना बेहद जरूरी है. अगर यह समस्या आनुवंशिक है, तो डाक्टर की सलाह के आधार पर दिनचर्या बनाएं और फिट रहें.

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GHKKPM: सई करेगी प्यार का इजहार तो पाखी और भवानी को लगेगा झटका

स्टार प्लस के सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisi Ke Pyaar Mein) की कहानी इन दिनों दर्शकों का दिल जीत रही है, जिसका कारण मेकर्स का सीरियल में नया ट्विस्ट कहा जा रहा है. वहीं अपकमिंग एपिसोड में जहां फैंस को सई (Ayesha Singh) और विराट (Neil Bhatt) का रोमांस दिखने वाला है तो वहीं पाखी (Aishwarya Sharma) का गुस्सा दर्शकों को हैरान करेगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Ghum Hai Kisi Ke Pyaar Mein Serial Update).

सई से रिश्ता खत्म करता है विराट

 

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अब तक आपने देखा कि विराट सई से अपने सारे रिश्ते खत्म करने का ऐलान करते हुए परिवार के सामने अपने ट्रांसफर लेने का ऐलान करता है, जिसके चलते सई परेशान हो जाती है. हालांकि शिवानी की शादी के लिए दोनों साथ में नजर आते हैं. वहीं सई और विराट के बीच दूरियां देखकर पाखी खुश होती हुई नजर आती है.

शिवानी की शादी में प्यार का इजहार करेगी सई

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि राजीव की बारात शिवानी के घर पहुंचेगी. जहां पर उसका स्वागत होगा. वहीं सई ढ़ोल नगाड़ों के साथ महाराष्ट्रियन लुक में तैयार होकर डांस करते हुए पहुंचेगी. इसी के साथ सई, विराट के सामने जाकर खूबसूरत अंदाज में अपने प्यार का इजहार करेगी, जिसे सुनकर विराट हैरान नजर आएगा. हालांकि सई के प्यार को जानकर वह बेहद खुश होगा.

पाखी को लगेगा झटका

जहां विराट, सई की सारी गलतियां माफ करेगा तो वहीं चौह्वाण परिवार के सामने सई, विराट को गाल पर किस करेगी, जिसे देखकर भवानी और पाखी को गुस्सा आएगा और दोनों सई को खरी खोटी सुनाती नजर आएंगी. इसी बीच खबरे हैं कि सई को माफ करते ही दोनों के बीच जहां रिश्ता सुधरेगा तो वहीं सई घर से गायब हो जाएगी, जिसके बाद विराट पागलों की तरह उसे ढूंढता नजर आएगा.

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आदित्य के बाद Imlie के इस किरदार ने कहा सीरियल को अलविदा

स्टार प्लस के सीरियल ‘इमली’ (Imlie) की कहानी में जहां नई एंट्री देखने को मिल रही है तो वहीं आदित्य यानी मनस्वी विशिष्ठ के शो छोड़ने के बाद सीरियल के एक और एक्टर ने अलविदा कह दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

शो छोड़ने पर लिखी ये बात

 

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सीरियल में आर्यन और इमली की लव स्टोरी शुरु करने के बाद अब आदित्य की फैमिली पर मेकर्स कम ध्यान देते नजर आ रहे हैं, जिसके चलते अब सीरियल इमली में निशांत त्रिपाठी के रोल में नजर आने वाले एक्टर अरहम अब्बासी ने सीरियल ‘इमली’ को अलविदा कर दिया है. एक्टर ने सोशलमीडिया के जरिए ऐलान करते हुए एक सीरियल इमली के सेट पर एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा, पता ही नहीं चला कि कब ये सफर खत्म हो गया. मुश्किल था लेकिन आप सभी लोगों के प्यार ने इसे आसान बना दिया. शुक्रगुजार हूं आप सभी लोगों का जिन्होंने मेरे किरदार को इतना प्यार दिया. निशांत त्रिपाठी से कोई गलती हुई हो तो माफ करना. अजीब से लग रहा है ये पोस्ट शेयर करते हुए… लेकिन ये किस्सा अब यहीं खत्म होने जा रहा है. लव यू ऑल…. मैं आप सभी से गुजारिश करता हूं कि आप ‘इमली’ को देखना बंद मत करना. इस शो को इसी तरह अपना प्यार देते रहना.

सीरियल के बंद होने की आ रही हैं खबरें

जहां एक के बाद एक सीरियल इमली के किरदार शो को अलविदा कह रहे हैं तो वहीं खबरें हैं कि सीरियल बंद होने की कगार पर पहुंच गया है. हालांकि मेकर्स का कहना है कि वह सीरियल की कहानी में नया मोड़ लाने वाले हैं, जिसके चलते सीरियल बंद नहीं होगा.

बता दें, सीरियल में इन दिनों इमली और आर्यन की फैमिली पर फोकस किया जा रहा है. जहां अर्पिता की दूसरी शादी को लेकर घर में बवाल होता नजर आ रहा है तो वहीं सीरियल में नए विलेन की एंट्री होती नजर आ रही है.

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बेहद स्टाइलिश हैं Sachin Tendulkar की बेटी Sara, बौलीवुड में रखेंगी कदम!

क्रिकेट वर्ल्ड के सुपरस्टार सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) की बेटी सारा तेंदुलकर  (Sara Tendulkar) सोशलमीडिया पर छाई रहती हैं. वहीं उनकी बौलीवुड के स्टार किड्स के साथ दोस्ती सुर्खियों में रहती है. इसी बीच खबरें हैं कि जल्द ही वह बौलीवुड की दुनिया में कदम रखने वाली हैं. हालांकि अभी इस खबर की पुष्टि नही हुई है. लेकिन सारा तेंदुलकर के बौलीवुड में नजर आने के चलते उनकी सोशलमीडिया पर फैन फौलोइंग बढ़ गई है. इसी के चलते आज हम सारा तेंदुलकर के फैशन की झलक आपको दिखाएंगे, जिससे आपको उनकी खूबसूरत का अंदाजा लग जाएगा.

स्टाइलिश हैं सारा

 

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मेडिसिन की पढ़ाई करने वाली सारा तेंदुलकर फैशन के मामले में बेहद स्टाइलिश हैं. वह आए दिन नई नई ड्रैसेस में नजर आती हैं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लगती हैं. वहीं फैंस उनके वेस्टर्न अवतार को काफी पसंद करते हैं.

 

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इंडियन लुक में भी लगती हैं खास

 

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वेस्टर्न ही नहीं सारा तेंदुलकर इंडियन लुक में भी नजर आती हैं. दोस्त या फैमिली के साथ फंक्शन में इंडियन अवतार कैरी करती हैं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लगती हैं. वहीं इन लुक्स में वह बौलीवुड हसीनाओं को फैशन के मामले में टक्कर देती नजर आती हैं.

 

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फिटनेस का रखती हैं ख्याल

 

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सारा तेंदुलकर पेशे से एक मॉडल हैं, जिसके चलते कई विज्ञापनों में नजर आ चुकीं हैं. वहीं अपने लुक्स को फ्लौंट करने के साथ-साथ फिटनेस का भी ख्याल रखती हैं, जिसकी फोटोज और वीडियोज वह फैंस के साथ सोशलमीडिया पर शेयर करती रहती हैं.

 

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बता दें, सारा तेंदुलकर कई बौलीवुड फंक्शन में नजर आ चुकी हैं. वह अपने पिता सचिन तेंदुलकर और मां के साथ कई बार डिनर डेट पर भी स्पॉट हो चुकी हैं, जिसके चलते वह खबरों में छाई रहती हैं. हालांकि बौलीवुड में कदम रखने की खबर से फैंस काफी एक्साइटेड हैं. लेकिन अभी वह बौलीवुड का हिस्सा बनेंगी या नहीं ये देखना होगा.

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बेदाग सुंदरता के नए ट्रीटमैंट्स

ब्यूटी करैक्शन के लिए ऐसे बहुत सारे ट्रीटमैंट्स और सर्जरी आ गई हैं जो कुछ वक्त के लिए ही सही लेकिन बेदाग खूबसूरती देने के लिए कारगर हैं:

स्किन ग्लोइंग ऐंड मार्क्स रिमूवल ट्रीटमैंट

चेहरे की स्किन चमकदार और ग्लोइंग दिखे इस के लिए लड़कियां न जाने क्याक्या चेहरे पर लगाती रहती हैं, लेकिन अवलीन की माने तो घर से बाहर निकलते ही स्किन को धूप और प्रदूषण का सामना करना पड़ता है खासतौर पर सूर्य की अल्ट्रावायलट किरणों से स्किन पर जमा होने वाला मैलानिन स्किन की मासूमियत को छीन लेता है. लेकिन स्किन को नयापन देने और बच्चों की स्किन जैसी कोमलता देने के लिए अब निम्न ट्रीटमैंट्स उपलब्ध हैं:

सुपर फेशियल कैमिकल पील्स

गोरा होना हर लड़की का ख्वाब होता है. इस बाबत कौस्मैटोलौजिस्ट अवलीन खोकर कहती हैं कि भारतीय महिलाओं में बहुत कम प्रतिशत में स्किन का रंग पेल व्हाइट पाया जाता है. ज्यादातर का रंग डस्की या व्हीटिश होता है. लेकिन बौलीवुड अभिनेत्रियों के हैवी मेकअप को देख कर सभी लड़कियों पर गोरा होने का जनून सवार रहता है, जबकि बायोलौजिकल कलर को कभी भी नहीं बदला जा सकता, हां उसे 2 लैवल बेहतर जरूर बनाया जा सकता है. कैमिकल पील्स ऐसा ही एक ट्रीटमैंट है, जो स्किन में उम्र के 25 वर्षों में आई हारमोनल खराबी से स्किन पर पड़े फर्क को सुधार देता है.

दरअसल इस ट्रीटमैंट में एलका हाइड्रौक्सी ऐसिड्स द्वारा स्किन की ऊपरी लेयर को जल्दीजल्दी निकाला जाता है, जिस से नई स्किन आती है. इस से स्किन को अच्छा कौंप्लैक्शन भी मिलता है. लेकिन इस ट्रीटमेंट के बाद स्किन का बहुत अधिक ध्यान रखने की आवश्यकता होती है. द स्किन सैंटर, दिल्ली में कंसलटैंट डर्मैटोलौजिस्ट एवं कौस्मैटोलौजिस्ट डाक्टर वरुण कत्याल कहते हैं कि ट्रीटमैंट के बाद स्किन बहुत पतली हो जाती है, इसलिए उसे सूर्य की रोशनी से तब तक बचा कर रखना चाहिए जब तक उस पर सुरक्षित स्किन की परत न चढ़ जाए.

यदि सुरक्षित स्किन के आने के इंतजार में खुद को 2-3 दिन के लिए एक कमरे में बंद भी करना पड़े तो कर लेना चाहिए क्योंकि जरा सी भी लापरवाही स्किन को संक्रमित कर सकती है. साथ ही ट्रीटमैंट के बाद ऐंटीबायोटिक, ऐंटीबैक्टीरियल एवं ऐंटीफंगल क्रीम लगानी चाहिए. ट्रीटमैंट के बाद जो नई स्किन आती है उस में बच्चों की स्किन जैसी कोमलता और चमक रहती है.

अवलीन आगे कहती हैं कि कैमिकल पील कराने के साइड इफैक्ट्स भी कभीकभी देखने को मिलते हैं, इसलिए शादी की तारीख से ठीक 6 माह पहले यह ट्रीटमैंट कराना चाहिए क्योंकि कभीकभी इस ट्रीटमैंट के बाद जलने के निशान और संक्रमण होने का खतरा रहता है.

– कैमिकल पील में स्किन की ऊपर की लेयर को ट्रीट किया जाता है. इसे ऐपिडर्मिस लेयर कहते हैं.

– ट्रीटमैंट के बाद लगभग 2 दिन तक स्किन में खिंचाव और जलन महसूस होती है, इसलिए सनस्क्रीन का प्रयोग करना चाहिए.

– इस ट्रीटमैंट के लिए 6 से 12 सिटिंग्स लेनी पड़ती हैं और खर्चा लगभग ₹15 हजार से ₹30 हजार तक आता है.

लेजर फोटो फेशियल

यह थेरैपी फेशियल का एक नया स्वरूप है. इस ट्रीटमैंट में इंटेंस पलस्ड लेजर लाइट के द्वारा स्किन के उस हिस्से का ट्रीट किया जाता है जहां सन डैमेजेस, डिसकलरेशन, एज स्पौट या फिर इनलार्ज्ड पोर्स होते हैं. बकौल अवलीन आईपीएल लेजर के द्वारा इफैक्टेड एरिया पर विजिबल ब्रौडबैंड लाइट से स्पार्क मारते हैं. स्पार्क के स्किन पर स्पर्श के दौरान चींटी के काटने जैसा एहसास भी होता है, लेकिन यह पेनफुल नहीं है.

यह ट्रीटमेंट ज्यादातर लड़कियां अपने पिगमैंटेशन सैल्स को डिस्ट्रौय करने और दागधब्बों को मिटाने के लिए भी करवाती हैं. चूंकि इस में इफैक्टेड एरिया को बिजली का शौट दिया जाता है, इसलिए उस स्थान की स्किन पर जलन या खुजली की समस्या होने की संभावना रहती है. ट्रीटमैंट के बाद ट्रीट किए गए स्थान पर आइसिंग की जानी चाहिए और सनस्क्रीन लगाने के बाद ही बाहर निकलना चाहिए.

इस ट्रीटमैंट को शादी से 6 महीने पहले करवाएं. इस की एक सिटिंग के चार्जेस ₹3,500 से ₹5 हजार हैं.

माइक्रोडर्माब्रेशन

स्किन की मृत कोशिकाओं को हटाने के लिए यह बहुत ही सेफ  ट्रीटमैंट है. इस ट्रीटमैंट के बाद स्किन के रंग और टैक्स्चर दोनों में ही सुधार आता है. थेरैपी के बारे में डाक्टर वरुण का कहना है कि इस थेरैपी में मशीनों के माध्यम से स्किन की ग्राइंडिंग की जाती है. यह एक स्ट्रौंग ऐक्सफौलिएशन प्रोसैस है. इस थेरैपी द्वारा स्किन पर पड़े स्कार्स और कालेपन को दूर किया जा सकता है. इस के लिए मृतकोशिकाओं को हटाने के लिए ऐपिडर्मिक स्किन को पतला किया जाता है.

वैसे कभीकभी इस प्रोसैस में स्किन से खून भी आ जाता है. इस थेरैपी में मशीनों में ऐल्यूमिनियम और डायमंड पाउडर भरा जाता है और उसी से स्किन का ट्रीटमैंट किया जाता है. इस ट्रीटमैंट के लिए 6 से 8 सिटिंग्स की जरूरत पड़ती है. इस थेरैपी को कराने में लगभग ₹20 हजार से ₹25 हजार तक का खर्च आ जाता है.

फेशियल लाइंस, बोंस एनहैंसमैंट और डिंपल्स: हंसते वक्त चेहरा कैसा लग रहा है? कहीं अनवौंटेड लाइंस तो नहीं दिख रहीं? डिंपल पड़ रहे हैं या नहीं? शादी के पहले लड़कियां अचानक इन सब पर ध्यान देना शुरू कर देती हैं. इस की वजह भी खास होती है क्योंकि शादी में ब्राइड पर ही सब की नजरें टिकी होती हैं. कैमरामैन भी ज्यादा तसवीरें ब्राइड की ही लेता है. ऐसे में फेशियल लाइंस और अनबैलेंस्ड स्माइल दुलहन का चेहरा बिगाड़ सकती है. इस से बचने के लिए आजकल की ब्राइड्स में बोटोक्स, फिलर्स और डिंपल सर्जरी आम हो गई है. आइए, जानते हैं इन ट्रीटमैंट्स के बारे में:

बोटोक्स

कई महिलाओं के हंसते वक्त नाक की दोनों ओर से होंठों तक लकीरें बनने लगती हैं जिन्हें लाफिंग लाइंस कहते हैं. इसी तरह बातचीत करते वक्त कई लोगों की आंखों के कोनों पर क्रो लाइंस बन जाती हैं या फिर माथे पर ऐक्सप्रैशन लाइंस दिखने लगती हैं, जो बेहद भद्दी लगती हैं. इन्हें बोटोक्स ट्रीटमैंट के द्वारा मिटाया जा सकता है.

डाक्टर वरुण का इस ट्रीटमैंट के बारे में कहना है कि बोटोक्स बोट्यूलियन टौक्सिन टाइप ए का प्यूरिफाइड और डिल्यूटेड फौर्म है, जो चेहरे की मसल्स को रिलैक्स कर के फेशियल क्रीज को मिटाता है. इस ट्रीटमैंट में इंजैक्शन द्वारा बोटोक्स को इफैक्टेड एरिया में इंजैक्ट किया जाता है. इस का असर 4 से 6 महीने तक रहता है. लेकिन यदि यह गलत तरीके से इंजैक्ट किया जाए तो चेहरा इंबैलेंस हो जाता है, साथ ही इंजैक्ट किए गए एरिया में सूजन भी आ जाती है.

फिलर

आजकल सब को पाउटी लिप्स चाहिए. यह ट्रैंड सा बन चुका है खासतौर पर बौलीवुड ऐक्ट्रैसेज में यह ट्रैंड बहुत आम है. अब उन्हीं को देख कर ब्राइड बनने जा रही लड़कियों को भी अपने लिप्स पाउटी चाहिए. इस ट्रीटमैंट को करवाने में कोई जोखिम भी नहीं. पतले होंठों वाली लड़कियों के लिए यह ट्रीटमैंट किसी वरदान से कम नहीं. लेकिन अवलीन की माने तो फिलर ब्यूटी इंडस्ट्री में अब बहुत कौमन हो चुके हैं. लेकिन इस का असर इफैक्टेड एरिया में जबरदस्त दिखता है. इस लिए इस ट्रीटमैंट को तब ही करवाया जाए जब आप पूरी तरह से बदलाव के लिए तैयार हों. थेरैपी और इसे किसी अच्छे कौस्मैटोलौजिस्ट से ही करवाएं.

इस थेरैपी द्वारा अंडर आई बैग्स को कंट्रोल करने, लिप्स को शेप देने और चीकबोंस को उठाने के लिए फिलर लिपिड्स होते हैं जो पानी की कमी को पूरा करते हैं और बैठी हुई स्किन को उभारते हैं. इस थेरैपी पर ₹25 हजार से ₹30 हजार तक खर्चा आता है.

आर्टिफिशियल डिंपल सर्जरी

फोर्टिस अस्पताल की कौस्मैटिक सर्जन रश्मि तनेजा का कहना है, ‘‘आजकल बहुत सी लड़कियां डिंपल सर्जरी के लिए आती हैं.

लेकिन इस के लिए हमें उन के चेहरे की प्रौपर सर्जरी करनी पड़ती है. इस के लिए हम स्किन को काट कर मसल्स से जोड़ देते हैं. सर्जरी से हुए घाव को भरने में लगभग 3 हफ्ते लग जाते हैं. लेकिन यह जरूरी नहीं कि सर्जरी सक्सैसफुल हो. कई बार सर्जरी के बाद भी डिंपल नहीं बनता बल्कि ऐसा भी होता है कि हंसने पर या न हंसने भी सर्जरी की जगह क्रीज बन जाती है, जबकि प्राकृतिक तौर पर बनने वाले डिंपल स्किन पर क्रीज नहीं बनाते.

इस सर्जरी को शादी से 8 माह पूर्व करवाना चाहिए. इसे करवाने में लगभग ₹50 हजार से ₹60 हजार तक लग सकते हैं और इस का असर भी 6 महीने तक ही रहता है.

हेयर रिमूवल थेरैपी

इस बाबत अवलीन कहती हैं कि चेहरे पर बाल होना न होना हारमोंस पर निर्भर करता है. कई लड़कियों में लड़कों वाले हारमोंस का लैवल ज्यादा होता है. उस केस में चेहरे पर लड़कों की तरह बाल आ जाते हैं. अब इन बालों की शेव तो की नहीं जा सकती है, इसलिए कई लड़कियां थ्रैड से बाल हटवा लेती हैं. लेकिन इस से दोबारा निकलने वाले बाल कड़े जो जाते हैं और उन की संख्या भी बढ़ जाती है. उन्हें हटाने के लिए हेयर रिमूवल लेजर थेरैपी का सहयोग लिया जा सकता है. इस के लिए स्पार्क्स द्वारा बालों को जलाया जाता है.

इस थेरैपी में एनडीयोग लेजर, डायर्ड लेजर और आईपीएल लेजर का इस्तेमाल होता है. लेकिन एक बार इस थैरेपी को करवाने के बाद चेहरे पर ब्लीच नहीं किया जा सकता. थेरैपी का असर खत्म होने के बाद बालों की डैंसिटी और मोटाई दोनों ही कम हो जाती हैं. कभीकभी इस थेरैपी के रिएक्शन भी देखने को मिलते हैं. कई बार इस थेरैपी के बाद स्किन पर रैशेज, इरीटेशन हो जाती है. इस थेरैपी के लिए मल्टीपल स्टिंग (12-20) भी लेनी होती हैं. थेरैपी को कराने में खर्च ₹2 हजार से ₹2,500 तक आता है.

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आदित्य नारायण ने की वाइफ और बेटी संग फोटो शेयर, पढ़ें खबर

टीवी के पौपुलर होस्ट और सिंगर आदित्य नारायण ने बीते महीने अपनी न्यू बौर्न बेटी के साथ वक्त बिताने के लिए सोशलमीडिया से ब्रेक ले लिया था. वहीं हाल ही में उन्होंने एक बार फिर सोशलमीडिया पर वापसी की है. इसी के चलते उन्होंने अपनी बेटी और वाइफ संग फोटो शेयर की है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

फैमिली फोटो की शेयर

दो महीने आदित्य नारायण पहले बेटी के पिता बने थे, जिसके बाद उन्होंने बेटी संग फोटो शेयर की थी औऱ सोशलमीडिया से ब्रेक लिया था. इसी के साथ सोशलमीडिया पर वापसी पर उन्होंने एक फोटो शेयर की है, जिसमें आदित्य नारायण और श्वेता अग्रवाल अपनी बेटी के साथ पोज देते हुए नजर आ रहे हैं. कपल की इस फैमिली फोटो पर फैंस जमकर प्यार बरसा रहे हैं. वहीं सेलेब्स भी अपना रिएक्शन देते दिख रहे हैं.

बेटी का नाम किया शेयर

फैंस के साथ अपनी फैमिली फोटो शेयर करने के साथ-साथ सिंगर ने अपनी बेटी का नाम भी फैंस के साथ शेयर करते हुए लिखा, ‘दो महीने पहले हमारी छोटी सी खुशी की बंडल, त्विषा इस दुनिया में आई.’ बेटी का नाम जानते ही फैंस दोनों की तारीफ कर रहे हैं.

कोरोना में की थी शादी

आदित्य नारायण ने साल 2020 में अपनी लौंग टाइम गर्लफ्रेंड एक्ट्रेस श्वेता अग्रवाल से शादी की थी, जिसके बाद साल 2022 फरवरी में दोनों पेरेंट्स बने थे, जिसके बाद सिंगर ने फैंस के साथ बेटी की पहली फोटो शेयर की थी. वहीं प्रोफेशनल लाइफ की बात करें तो सिंगर औऱ एक्टर आदित्य नारायण एक बार फिर होस्टिंग करते हुए नजर आ रहे हैं. इसी के साथ उनका गाना मंगता है क्या गाना रिलीज हुआ है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं सोशलमीडिया पर गाना वायरल हो रहा है.

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टीवी के बाद OTT पर भी हिट हुआ Anupamaa Namaste America, फैंस ने कही ये बात

सीरियल अनुपमा (Anupama) जहां टीवी की टीआरपी में धमाल मचा रहा है तो वहीं ओटीटी की दुनिया में भी अपना कमाल दिखा रहा है. हाल ही में सीरियल ‘अनुपमा’ का प्रीक्वल ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ (Anupamaa Namaste America) डिजनी हॉट स्टार पर रिलीज किया गया है, जिसका पहला एपिसोड फैंस का दिल जीत रहा है. आइए आपको दिखाते हैं पूरी खबर…

 प्रीक्वल का पहला एपिसोड हुआ हिट

 

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‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ में अनुपमा के 17 साल पहले की कहानी फैंस को काफी पसंद आ रही है. सीरियल के पहले एपिसोड में मोटी बा और अनुपमा की बौंडिंग जहां फैंस का दिल जीता है तो वहीं वनराज और बा की कैमेस्ट्री भी फैंस को पसंद आ रही है. दरअसल, अनुपमा के डांस के चलते उसे अमेरिका जाने का प्रपोजल मिलता है, जिसे सुनकर वह बेहद खुश होती है. हालांकि अब उसका ये सपना पूरा होता है कि नहीं ये कहानी देखने लायक है.

 

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फैंस को पसंद आई कहानी

 

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‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ के पहले एपिसोड के औनएयर होते ही फैंस ने तारीफों की बौछार कर दी है. जहां एक फैन ने अनुपमा और मोटी बा की बौंडिग की तारीफ करते हुए लिखा, ‘रुपाली गांगुली के शो ने तो मेरा दिन ही बना दिया है. सरिता जोशी और रुपाली गांगुली ने तो धमाल मचा दिया है. मुझे इन दोनों का बॉन्ड काफी पसंद आया’.’ वहीं फैंस रुपाली गांगुली और सुधांशू पांडे की एक्टिंग की तारीफ करते नजर आ रहे हैं.

टीवी सीरियल भी फैंस को आ रहा पसंद

 

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सीरियल की बात करें तो इन दिनों अनुपमा-अनुज की खुशी देखकर फैंस बेहद खुश हैं. हालांकि बा और वनराज की जलन से सभी परेशान नजर आ रहे हैं. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में बा के बाद वनराज, अनुपमा को बद्दुआ देता हुआ नजर आने वाला है. हालांकि इस बार अनुपमा चुप ना रहते हुए उसे करारा जवाब देते हुए नजर आएगी. वहीं अपनी अनुपमा और अनुज अपनी सगाई की तैयारियां करते हुए एक दूसरे के करीब आएंगे.

 

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बिजी हैं तो ईजी रहें

सरला सुबह उठते ही भागना शुरू कर देती हैं. वे सुबह 4 बजे उठ कर रात के 10 बजे तक घर के कामों में लगी रहती हैं. पर काम है कि खत्म ही नहीं होता है. वे जितनी मेहनत करती हैं उस हिसाब से उन का आउटपुट काफी कम रहती है.

सरला समझ नहीं पाती हैं कि इतनी मेहनत के बाद भी वे कभी पूरी तरह से संतुष्ट क्यों नहीं हो पाती हैं?

‘मैं बिजी हूं, मेरे पास टाइम नही है, ये शब्द सरला के मुंह पर सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक रहते हैं.

दूसरी तरफ कनिका सुबह उठ कर घर का काम करती हैं, फिर दफ्तर जा कर 8 घंटे काम में व्यस्त रहती हैं परंतु न कनिका कभी थकती हैं और न ही कभी स्ट्रैस्ड रहती हैं. कनिका सरला से अधिक काम करती हैं परंतु वे बिजी नहीं इजी रहती हैं. शायद यह वाक्य आप को कुछ अजीब लगे कि कोई बिजी रह कर ईजी या रिलैक्स कैसे रह सकता है? मगर यह एकदम सही है कि हम 24 घंटे काम कर के भी इजी रह सकते हैं.

आप के आसपास ऐसे बहुत से लोग होंगे जो रिटायरमैंट के बाद भी हर समय बिजी रहते हैं.

चाहे 6 साल का बच्चा हो या 60 साल का आदमी, हम शारीरिक से अधिक बिजी मानसिक होते हैं. यह मानसिक थकान ही हमें बिना किसी काम के शारीरिक रूप से भी थका देती है.

रूपा का सुबह सवेरे का एक ही रूटीन है. वे दिन की शुरुआत ही इस बात से करती हैं कि बहुत काम है, बहुत काम है.

रूपा इस बात को इतनी बार दोहराती हैं कि एक छोटा सा कार्य ही उन्हें भार जैसे लगता है. जो नाश्ता हम आराम से 30 मिनट में बना सकते हैं रूपा उसे बनाने में 60 मिनट लगाती हैं क्योंकि वे मन ही मन हर काम को भार की तरह लेती हैं, इसलिए छोटे से छोटा काम भी रूपा के लिए बहुत बड़ा बन जाता है.

हम अपने जीवन में बिजी रहेंगे या ईजी रहेंगे यह इस बात पर निर्भर करता है कि अपने जीवन को ले कर हमारा नजरिया कैसा है. हमारी उम्र, हमारी परिस्थिति से अधिक हमारी सोच हमारी मनोस्थिति को कंट्रोल करती है. और इसी मनोस्थिति से वशीभूत हो कर हम सारा दिन बिजी या ईजी रह सकते हैं.

आइए, सब से पहले रोशनी डालते हैं उन कारणों पर जिन से हम हमेशा बिजी रहते हैं:

ठीक से प्लानिंग न करना

यह प्रमुख कारण है जिस के कारण अधिकतर लोग हमेशा बिजी रहते हैं. सुबह उठते ही नाश्ता बनाने के बजाय कपड़ों की अलमारी खोल कर बैठ जाना. अपने कामों को हमेशा प्राथमिकता के हिसाब से करें तो आप हमेशा ईजी रहेगी. सब से पहले जरूरी काम पूरा करें और फिर दूसरे कार्य निबटाए. बहुत सारे लोगों की आदत होती है कि जब वे शौपिंग के लिए जाते हैं तो जो खरीदना होता है वे उस के बजाय दूसरी चीजके देखने लगते हैं. फिर जल्दबाजी में

शौपिंग करते हुए खुद को बिजी और स्ट्रैस्ड महसूस करते हैं.

हर काम को भार की तरह लेना

काम को काम की ही तरह लें. अगर आप इसे अपने दिल और दिमाग पर हावी करेंगे तो हर काम आप को भार की तरह लगेगा. हर काम को कर ने का एक तरीका होता है, कुछ काम को हम स्टैपवाइज करते हैं तो कुछ काम एक बार में ही हो जाते हैं. अगर आप ऐसा नही करती हैं तो हर काम भार जैसा ही लगेगा.

नकारात्मक शब्दावली का प्रयोग

शब्दों का हमारे ऊपर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है. जितनी बार दिन में बिजीबिजी शब्द का प्रयोग करेंगे आप उतनी ही उलझती चली जाएंगी. सोचसमझ कर बोलें और बिजी नहीं ईजी शब्द का प्रयोग करें.

ऐक्सैप्ट करें रिजिस्ट न करें

हम 24 घंटे तभी बिजी रहते हैं जब हम हर नए काम को देख कर रिजिस्ट करते हैं. कैसे करेंगे, कितना समय लगेंगे, हो भी पाएगा. न जाने ऐसी कितनी बातें सोचसोच कर हम काम को करे बिना भी बिजी रहते हैं. जैसे ही हम अपनी परिस्थिति को ऐक्सैप्ट करते हैं हम इजी रह कर भी काम कर सकते हैं.

सब को खुश रखने की कोशिश करना

अगर आप सब को खुश रखना चाहती हैं तो किसी के काम को न नही बोल पाएंगे. न बोलने की कला को सीखिए क्योंकि सब को आप कभी भी खुश नहीं कर पाएंगी. सब को खुश करने के चक्कर में आप अपनी बहुत सारी ऊर्जा को बेवजह ही बरबाद कर देती हैं.

अगर हमें अपनी जिंदगी खुशीखुशी गुजारनी है तो अपने जीवन में ये छोटेछोटे बदलाव कर सकते हैं.

हंसतेमुसकराते रहें: काम पसंद हो या नहीं हंसतेमुसकराते रहें. हंसने से, मुसकराने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है. काम का भार हर समय सिर पर सवार कर के मत चलिए. जो भी जिंदगी में आए उसे खुल कर स्वीकार करें. छोटीछोटी बातों पर मुंह बना कर रखने की जरूरत नही है. अगर आप मुसकराते रहेंगी तो समस्याओं का समाधान अपनेआप ही हो जाएगा. जिंदगी को हलकाफुलका रखिए.

अधिक न सोचें: जो लोग अधिक सोचते हैं वे हर समय विचारों के जाल में फंसे रहते हैं. रातदिन सोचने के कारण वे बिना किसी काम के भी बिजी रहते हैं. जब हमारा मन बिजी रहता है तो हम अपने कार्यों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दे पाते हैं. इसलिए कम सोचें और सकारात्मक सोचें.

काम को विभाजित करें: हर काम को अगर छोटेछोटे टुकड़ों में बांट कर करेंगे तो काम बड़े आराम से हो जाएगा. ऐसा करने से आप बिजी होते हुए भी ईजी रह सकती हैं क्योंकि काम अगर स्टैप्स में करा जाएगा तो वह बड़े आराम से पूरा हो जाता है.

शिकायत नहीं शुक्रिया अदा करें: अगर आप बिजी हैं, आप के पास करने के लिए काम है तो शिकायत नहीं शुक्रिया अदा कीजिए. ऐसे बहुत से लोग होंगे जिन के पास काम नहीं होगा उन्हें अपने परिवार के पालन के लिए काम की आवश्यकता होगी परंतु उन के पास काम नहीं होगा. इसलिए अगर आप बिजी हैं तो ईजी रहें क्योंकि हर किसी के पास बिजी रहने के लिए भी काम नहीं होता है.

खुद को भी दें थोड़ी स्पेस: ईजी रहने के लिए खुद को भी थोड़ी स्पेस अवश्य दें. काम करें, खूब दिल लगा कर, मगर बीचबीच में थोड़ा ब्रेक अवश्य लें. ऐसा करने से आप की रचनात्मकता भी बनी रहेगी और आप रिलैक्स्ड भी रहेंगी. अपनेआप के साथ समय बिताएं जो काम पसंद हो उस के लिए कुछ समय अवश्य निकालें.

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जब घर आएं माता पिता

मैं अपनी पड़ोसिन कविता को कुछ दिनों से बहुत व्यस्त देख रही थी. वह बाजार के भी खूब चक्कर लगा रही थी. हर दिन शाम की वाक हम साथ करती थीं पर अपनी व्यस्तता के कारण वह आजकल नहीं आ रही थी, तो पार्क में खेलती उस की बेटी काव्या को बुला कर मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘काव्या, बहुत दिनों से तुम्हारी मम्मी नहीं दिख रही हैं. सब ठीक तो है?’’

‘‘आंटी, दादादादी आने वाले हैं मेरे घर. मम्मी उन की आने की तैयारी में ही लगी हैं,’’ काव्या ने बताया.

पता नहीं क्यों ‘मेरे घर’ शब्द सुन देर तक हथौड़े से बजते रहे मेरे मन में. फिर दूसरे ही दिन कविता के पति कामेश को देखा. शायद वह अपने मातापिता को स्टेशन से ले कर आ रहा था. उस के बाद करीब 10 दिनों तक कविता बिलकुल नहीं दिखी. दफ्तर से भी उस ने छुट्टी ले रखी थी. शाम की वाक बंद थी ही उस की.

एक दिन मैं उस के सासससुर और उस से मिलने उस के घर जा पहुंची. सासससुर ड्राइंगरूम में बैठे थे. कविता अस्तव्यस्त सी रसोई और अन्य कमरों के बीच दौड़ लगा रही थी. मैं उस के सासससुर से बातें करने लगी.

भेदभाव क्यों

‘‘हमारे आने से कविता का काम बढ़ जाता है. मुझे बुरा लगता है,’’ उस के ससुर ने कहा.

‘‘सच, मुझेभी कोई काम करने नहीं देती, बिलकुल मेहमान बना कर रख दिया है,’’ उस की सासूमां ने कहा.

उन लोगों की बातचीत से लगा कि वे जल्दी चले जाएंगे ताकि कविता अपने दफ्तर जा सके. मैं लौटने लगी तो कविता मुझे गेट तक छोड़ने आई. तब मैं ने पूछा, ‘‘क्यों मेहमानों जैसा ट्रीट कर रही उन के साथ, जबकि वे दोनों अभी इतने भी बूढ़े या लाचार नहीं हैं?’’

‘‘नहीं बाबा, मुझे अपने सासससुर से कुछ भी नहीं कराना है. मेरी बहन ने अपनी सास को जब वे उस के साथ रहने आई थीं, कुछ करने को कह दिया था तो बात का बतंगड़ बन गया था. फिर मेरे पति की भी यही इच्छा रहती है कि मैं उन्हें हाथोंहाथ रखूं पर यह अलग बात है कि मैं अब इंतजार करने लगी हूं इन के लौटने का,’’ कविता ने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए कहा.

मैं मजबूर हो गई कि क्यों बोझ बना दिया है कविता ने सासससुर की विजिट को. वे लोग अपने बेटे और बहू के साथ रहने आए हैं अपना घर समझते हुए, परंतु उन के साथ मेहमानों जैसा सुलूक किया जा रहा है. मुझे याद आया उस की बेटी काव्या का वह कथन ‘मेरे घर’ दादादादी आ रहे हैं, जबकि वास्तव में घर तो उन का ही है यानी सब का है.

एक अलग संरचना

वहीं तसवीर का एक और पहलू भी होता है, जब बहू सासससुर के आगमन को अपनी कलह और कटुता से रिश्तों में कड़वाहट भर लेती है. मेरी मौसी को जोड़ों में दर्द रहता था. रोजमर्रा के काम करने में भी उन्हें दिक्कत आने लगी तो वे मौसाजी के साथ अपने बेटे के पास चली गईं. मगर महीना पूरा होतेहोते वे वापस अपने घर का ताला खोलते दिख गईं. वहां बेटे के तीसरी मंजिल के घर की सीढि़यां चढ़नाउतरना और कष्टकर था. फिर वे उतना घरेलू कार्य करने में भी अक्षम थीं जितनी कि उन से वहां उम्मीद की जा रही थी.

विकसित देशों में वृद्धों के लिए सरकार की तरफ से बहुत कुछ होता है ताकि वे अपने बच्चों के बगैर भी अच्छी जिंदगी जी सकें, पर विदेशों से उलट हमारे देश में मातापिता बच्चों की काफी बड़ी उम्र तक देखभाल करते हैं. मध्यवर्गीय पेरैंट्स के जीवन का मकसद ही होता है बच्चों को सैटल करना. वही बच्चे जब सैटल हो जाते हैं, उन का अपना घरसंसार बस जाता है तो मातापिता को बाहर वाला समझने लगते हैं.  बेटाबहू हो या बेटीदामाद क्या वे सहजता से मातापिता के आगमन को स्वीकार नहीं कर सकते? हो सकता है रहने का ढंग कुछ अलग हो पर क्या उन्हें अपनी दिनचर्या के हिसाब से इज्जत के साथ नहीं रखा जा सकता है? ये वही होते हैं, जो बिना बोले आप की जरूरतों को समझ लिया करते थे.

हमारे यहां सामाजिक ढांचा ही कुछ ऐसा होता है कि सब आपस में जुड़े ही रहते हैं. संयुक्त परिवारों की एक अलग संरचना होती है. यहां हम वैसे मातापिता का जिक्र कर रहे हैं, जो साल 6 महीनों में अपने बच्चों से मिलने जाते हैं. कुछ दिन या महीने 2 महीने के लिए. ऐसे में बच्चे इन बातों का ध्यान रख लें तो आपस में मिलनाजुलना, साथ रहना सुखद हो जाएगा:

– मिलतेजुलते रहना चाहिए वरना एकदूसरे के बिना जीने की आदत हो जाएगी. हमेशा मिलते रहने से दोनों ही एकदूसरे की आदतों से परिचित रहेंगे.

खुद भी सोचिए

– यह बात सही है कि वे अपने स्थान पर खुश हैं, फिर भी बच्चों का यह फर्ज बनता है कि वे मातापिता को जल्दीजल्दी बुलाएं, कम से कम जब तक वे स्वस्थ हैं. 3-4 साल में 1 बार बुलाने की जगह 3-4 महीनों में बुलाते रहें, भले ही कम दिनों के लिए ही सही, क्योंकि निरंतर मेलजोल से प्यार बना रहता है. फिर 5-6 दिनों के आगमन हेतु उन्हें कोई विशेष तैयारी भी नहीं करनी पड़ेगी.

– वे ‘आप के घर’ नहीं वरन ‘अपने घर’ आते हैं. इस सोच का आभास उन्हें भी कराएं और अपने बच्चों को भी. घर के छोटे या बड़े होने से उतना फर्क नहीं पड़ता जितना दिलों के संकुचन से पड़ता है. अकसर सुना जाता है पोतेपोती/नातीनातिन कहेंगे दादाजी मेरे कमरे में सोते हैं. कितनी बार देर रात तक बत्ती जलाए रखने पर दादी द्वारा टोकने पर पोती कह देगी उफ, तुम कब जाओगी दादी? सोचिए कि आप के मातापिता के दिल पर क्या गुजरेगी जब आप के बच्चे ऐसा बोलेंगे. यह आप ही की गलती है, जो आप ने अपने बच्चों के मन में ऐसे विचार डाले हैं कि दादादादी/नानानानी बाहर वाले हैं और घर सिर्फ आप और आप के बच्चों का है. सोच कर देखिए कल को इसी तरह आप भी अपने बच्चों के जीवन में हाशिए पर होंगे.

खयाल रखें

यदि आप सुनते हैं कि बच्चों ने ऐसा कहा है तो तुरंत मातापिता के समक्ष ही उन्हें सही बात समझाएं कि आप अपने मातापिता के घर में नहीं दादादादी के घर में रह रहे हैं.

उन के आने पर अपने रूटीन को न बदलें, बल्कि उन्हें भी अपने रूटीन के हिसाब से सैट कर लें अन्यथा उन का आना और रहना जल्दी बोझ महसूस होने लगेगा.

आप जो खाते हैं जैसा खाते हैं वही उन्हें भी खिलाएं. हां, यदि स्वास्थ्य की समस्या हो तो आप को उसी हिसाब से कुछ बदलाव करना चाहिए. नई पीढ़ी का खानपान अपनी पुरानी पीढ़ी से बिलकुल बदल चुका है. रोटीसब्जी, दालचावल खाने वाले मातापिता कभीकभी ही बर्गरपिज्जा खा सकेंगे. अत: उन के स्वाद और स्वास्थ्य के अनुसार भोजन का प्रबंध अवश्य करें. यह आप का फर्ज भी है. तय करें कि बढ़ती उम्र के साथ उन्हें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्त्व मिल रहे हों.

यदि वे स्वेच्छा से कुछ करना चाहें तो अवश्य करने दें. जितनी उन की सेहत आज्ञा दे उन्हें गृहस्थी में शामिल करें. इस से उन का मन भी लगेगा, व्यस्त भी महसूस करेंगे और भागीदारी की खुशी भी महसूस करेंगे.

समझदारी से काम लें

न अति चुप भली न ही अति बोलना. जब मातापिता साथ हों तो उन के लिए कुछ समय अवश्य रखें, क्योंकि वे उसी के लिए आप के पास आए हैं. साथ टहलने जाएं या छुट्टी वाले दिन साथ कहीं घूमने जाएं. कुछ अपनी रोजमर्रा की बातें शेयर करें तो कुछ उन की सुनें.

उन की बदलती आदतों को गौर से देखें. कहीं किसी बीमारी के लक्षण तो नहीं. जरूरत हो तो डाक्टर को दिखाएं. याद करें कि कैसे मां आप के चेहरे को देख आप की तकलीफों को भांप लेती थी.

यदि मिलना जल्दीजल्दी होता रहेगा तो आप समय पूर्व ही उन की बीमारियों को भांप लेंगे और इस से पहले कि उन की तकलीफें ज्यादा बढ़ें आप वक्त पर उन का इलाज करा सकेंगे.

अपने बच्चों को उन के नानानानी/दादादादी से जुड़ने दें. यह बहुत जरूरी है कि बच्चे बूढ़े होते ग्रैंड पेरैंट्स को जानें. वे उन के प्रति संवेदनशील बनें. यह बात उन्हें एक बेहतर इनसान बनने में मदद करेगी. कल आप के बुढ़ापे को भी आप के बच्चे सहजता से ग्रहण कर लेंगे.

जो बच्चे अपने ग्रैंड पेरैंट्स से जुड़े रहते हैं वे अधिक समझदार व परिपक्व होते हैं. उन बच्चों की तुलना में जो इन से महरूम होते हैं. अकसर एकल परिवारों के बच्चे बेहद स्वार्र्थी और आत्मलीन प्रवृत्ति के हो जाते हैं.

कुछ बातों को नजरअंदाज करें. जब 2 बरतन साथ होंगे तो उन का टकराव स्वाभाविक है. छोटी बातों को छोटी समझ दफन कर देना ही समझदारी है.

सुमेधा के पति उस के पापा को बिलकुल पसंद नहीं करते थे, परंतु इस के बावजूद सुमेधा ने पापा को बुलाना नहीं छोड़ा. न चाहते हुए भी मिलतेजुलते रहने से दोनों धीरेधीरे एकदूसरे को समझने लगे. सुमेधा को एक बार 3 महीनों के लिए विदेश जाना पड़ा. उस के पीछे उस के पति की टांग में फ्रैक्चर हो गया. तब उस के ससुर ने  ही आ कर उसे संभाला.

दूरियां मिटाएं

सासबहू के रिश्ते को सब से ज्यादा बदनाम किया जाता है जबकि सचाई यह है कि ये दोनों एक ही व्यक्ति को प्यार करती हैं और इस तरह यह वर्चस्व की लड़ाई बन जाती है. बेटे की समझदारी और सूझबूझ से आए दिन की टकराहट को टाला जा सकता है. पर इस के चलते मिलनाजुलना बंद कर देना रिश्तों का कत्ल है. साथ रहने से, मिलतेजुलते रहने से धीरेधीरे एकदूजे को समझने में मदद मिलेगी. मिलते रहने से ही समस्या सुलझेगी, दूरियों के मिटने से ही अंतरंगता बढ़ेगी.

मातापिता वे इनसान हैं जिन्होंने आप को पालपोस कर बड़ा किया. जब वे आप की परवरिश कर सकते हैं तो खुद की भी कर सकते हैं. अभी जब वे स्वस्थ हैं, अकेले रहने में सक्षम हैं तो आप का यह फर्ज है कि आप हमेशा मिलतेजुलते रहने का मौका तलाश करते रहें. उन्हें हमेशा अपने पास बुलाएं और इज्जत और स्नेह दें. कल को जब वे आशक्त हों, आप के साथ रहने को मजबूर हो जाएं तो उन्हें तालमेल बैठाने में कोई दिक्कत न हो. स्नेहपूर्वक बिताए हुए ये छोटेछोटे पल तब उन की जड़ों के लिए खादपानी का काम करेंगे.

रिश्ते कठपुलियों की तरह होते हैं, जिन की डोर हमारी आपसी सोच, समझदारी, सामंजस्य और सहजता में होती है. भारतीय सामाजिक संरचना भी कुछ ऐसी ही है कि दूर रहें या पास सब रहते एकदूसरे के दिल और दिमाग में ही हैं हमेशा.

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REVIEW: जानें कैसी है फिल्म Operation Romeo

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः शीतल भाटिया व नीरज पांडे

निर्देशकः शशांत शाह

कलाकारःवेदिका पिंटो, भूमिका चावला, सिद्धांत गुप्ता, शरद केलकर,  किशोर कदम

अवधिः दो घंटे 15 मिनट

मलयालम फिल्मकार अनुराज मनोहर ने अपने निजी जीवन के अनुभवों पर फिल्म ‘‘इश्कः नॉट ए लव स्टोरी’’ का निर्माण किया था. जिसने 2019 में सफलता दर्ज करायी थी. उसी का हिंदी रीमेक लेकर निर्देशक शशांत शाह आ रहे हैं.  इस फिल्म का निर्माण नीरज पांडे ने किया है, जो कि ‘ए वेडनेस्डे’, ‘स्पेशल 26’, ‘बेबी’, ‘एम एस धोनीःअनटोल्ड स्टोरी’ व अय्यारी जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके हैं. वह ‘रूस्तम’,  ‘नाम शबाना’ व ‘मिसिंग’जैसी फिल्मों का निर्माण भी कर चुके हैं. 2018 में नीरज पांडे ने ‘आदर्श सोसायटी घोटाले’पर आधारित फिल्म ‘अय्यारी’ का निर्देशन किया था, जिसे बाक्स आफिस पर सफलता नही मिली थी और उनके नाम पर ऐसा धब्बा लगा कि उसके बाद से आज तक वह फिल्म निर्देशन से दूरी बनाए हुए हैं. इसी वजह से ‘आपरेशन रोमियो’ के निर्देशन की जिम्मेदारी शशांत शाह को सौपी. मगर अफसोस समय की मांग के अनुरूप ‘मौरल पौलीसिंग’’पर आधारित फिल्म ‘‘आपरेशन रोमियो’’ निराश करती है.

कहानीः

फिल्म की कहानी के केंद्र में आई टी कंपनी में कार्यरत आदित्य उर्फ आदी (सिद्धांत गुप्ता ) व उनकी प्रेमिका नेहा (वेदिका पिंटो )  है. नेहा जयपुर के एक अति रूढ़िवादी परिवार की लड़की है, जो कि मंुबई में होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही है. उसका जन्मदिन आ गया है. आदित्य , नेहा के जन्मदिन को मनाने के लिए नेहा के साथ अपनी कार में डेट पर निकलता है. वह दोनों दक्षिण मुंबई शहर पहुंच जाते हैं. आदित्य की कामेच्छा बढ़ जाती है और वह आधी रात को सुनसान सड़क पर कार के अंदर एक दूसरे को ‘किस’ करने का फैसला करते हैं. तभी खुद को पुलिस इंस्पेक्टर बताने वाला कए गबरू इंसान मंगेश जाधव (शरद केलकर) उन्हे पकड़ लेता है. मंगेश का सहयोगी हवलदार (किशोर कदम) भी आ जाता है. मंगेश व उनका साथ इस प्रेमी युगल को ब्लैकमेल करना शुरू करता है. जिससे एक ट्रौमा की शुरूआत होती है. पर जब  आदी, मगेश व उसके साथी से छुटकारा पाता है, तब नेहा का तंज आदी बर्दाश्त नहीं कर पाता. उसके बाद आदित्य पूरे मामले की थाह लेने निकलता है, तो एक अलग सच सामने आता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म की कमजोर कड़ी  रतीश रवि और अरशद सय्यद लिखित पटकथा है. लेखकद्वय ने मौरल पौलीसिंग नैतिक पुलिसिंग के विषय को रोमांच का रूप देने के प्रयास में पूरी फिल्म को ही भ्रमित बना डाला. निर्देशक भी इस विषय को संजीदगी से नहीं ले पाए. फिल्म की कहानी की पृष् ठभूमि मंुबई रखकर लेखक व निर्देशक ने गलत नींव रख दी. क्योकि फिल्म में प्रेमी युगल के साथ जो कुछ घटता है, उसकी कल्पना लोग कर ही नही सकते.  परिणामतः फिल्म देखने के बाद दर्शक निराश होने के साथ ही अपना माथा पीट लेता है. फिल्म में बार बार याद दिलाया जाता है कि पुरूष मानसिकता मंे बदलाव आया या नही और हम महिलाओें लड़कियों के लिए कितना सुरक्षित समाज का निर्माण कर पाए हैं. फिल्म के शुरूआत के 15 मिनट तो इसी पर हैं. उसके बाद लेखक व निर्देशक कहानी को रोमांचक रूप देते हुए दर्शक को शिक्षा देने के प्रयास में जुट जाते हैं, जिसमें वह बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म के क्लामेक्स में अजीबोगरीब तरीके से ‘नारीसशक्तिकरण’ की बात की गयी है. जो कि फिल्म की मूल कॉसेप्ट से अलहदा है. इससे दर्शक भ्रमित व ठगा हुआ महसूस करता है कि उसने जिस कहानी के लिए अपना समय व पैसा बर्बाद किया, वह तो यह है ही नही. क्लायमेक्स बहुत ही घटिया व गड़बड़ है. इंटरवल से पहले फिल्म को बेवजह खींचा गया है. इसे एडीटिंग टेबल पर कसा जा सकता था. इंटरवल के बाद कुछ रोमांचक दृश्य हैं.

शशांत शाह का निर्देशन काफी औसत व भ्रमित करने वाला है. कागज पर कहानी ऐसी लगती है कि वह नैतिक पुलिसिंग को एक ऐसे व्यक्ति की नजर से देखना चाहती है, जो खुद एक नैतिक पुलिस है,  लेकिन एक दुःखद स्थिति में फंस गया है. पर परदे पर वह उस बच्चे की तरह नजर आता है, जिसे समझ में नही आता कि कब गुस्सा आना चाहिए. कुल मिलाकर यह फिल्म एक थका देने वाले अनुभव के अतिरिक्त कुछ नही है.

अभिनयः

आदित्य उर्फ आदी के किरदार में सिद्धांत गुप्ता अपने शिल्प को लेकर पूरी तरह से इमानदार नजर आते हैं. उनके अंदर अभिनय की काफी संभावनाएं हैं, बशर्ते उन्हे अच्छी पटकथा व बेहतरीन निर्देशक मिल जाएं. सिद्धांत ने फिल्म के कई दृश्यों में बेबसी व कश्मकश को बेहतर तरीके से उकेरा है.

मंगेश जाधव के किरदार में शरद केलकर ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि उन्हे पटकथा की मदद मिले या न मिले, वह अपने काम को सही ढंग से अंजाम देने में सक्षम हैं.

किशोर कदम का अभिनय ठीक ठाक है.

नेहा के किरदार में वेदिका पिंटो ने अपने चेहरे और आंखों के हाव भाव से काफी कुछ कहने का प्रयास किया है. मगर लेखक ने उनके किरदार को सही ढंग से विकसित नही किया है. वैसे वेदिका को अपने अभिनय को निखारने के लिए काफी मेहनत करने की जरुरत है. महाराष्ट्यिन पत्नी के छोटे से किरदार में भूमिका चावला अपनी छाप छोड़ जाती हैं. अफसोस भूमिका चावला के किरदार को भी ठीक से विकसित करने में लेखक व निर्देशक विफल रहे हैं.

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