10 गैजेट्स ले आएं स्मार्ट हाउसवाइफ बन जाएं

पुराना साल विदा लेने को तैयार है, तो नया साल खुली बांहों से स्वागत के लिए. ऐसे में मन में जन्म ले रही है नई आशाएं, नई उमंगें और जिंदगी को आसान व सुखद बनाने का विचार. जी हां, नए साल में स्मार्ट गैजेट्स के जरीए आप कर सकती हैं अपने जीवन में खुशियों की बरसात.

स्मार्ट कुकिंग विद एअरफ्रायर

नए साल में आप और आप का परिवार रहे हैल्दी, इस के लिए अपने किचन में शामिल कीजिए एअरफ्रायर. एअरफ्रायर के जरीए आप कर सकती हैं औयल फ्री, फैट फ्री कुकिंग. कम तेल में फ्रैंच फ्राइज, वेजर्स, चिकन नगेट्स के साथसाथ और ढेर सारी डिशेज बना कर आप परिवार वालों का दिल जीत सकती हैं. औयल ड्रेन बास्केट और इंसुलेटेड साइड हैंडल्स वाला एअरफ्रायर न केवल आप के किचन को स्मार्ट बनाएगा, बल्कि आप को भी देगा स्मार्ट कुकिंग का औप्शन.

हैल्दी कुकिंग विद इलैक्ट्रिक तंदूर

खाना टेस्टी होने के साथसाथ हैल्दी भी हो तो फिर क्या कहने. आप भी ऐसा कर सकती हैं, इलैक्ट्रिक तंदूर को अपने किचन का हिस्सा बना कर. इलैक्ट्रिक तंदूर की मदद से आप बेकिंग, बार्बेक्यू, ग्रिलिंग, रोस्टिंग व डिफ्रौस्टिंग सभी कुछ आसानी से कर सकती हैं. इलैक्ट्रिक तंदूर आप की कुकिंग को नए लैवल पर पहुंचाएगा और घरपरिवार, दोस्त आप के हाथों के बने खाने की तारीफ करते नहीं थकेंगे. कम समय में आसानी से नईनई डिशेज बनाने वाले इलैक्ट्रिक तंदूर में फैदर टच कंट्रोल पैनल है. यह लाइट वेट है. इसे साफ करना भी आसान है. औयल फ्री कुकिंग का यह बेहतरीन गैजेट है, जो आप की जिंदगी को बनाएगा स्मार्ट और आसान.

पर्यावरण फ्रैंडली इंडक्शन कुकटौप

नो स्मोक, नो गैस, नो फायर के सिद्धांत पर आधारित इंडक्शन कुकटौप को शामिल कीजिए नए वर्ष की गैजेट शौपिंग में और बनाइए अपनी जिंदगी को सहज और सरल. इंडक्शन कुकटौप पर आप बौयलिंग, फ्राइंग के अलावा रोटियां और सब्जी भी बना सकती हैं. 7 मल्टीपल कुकिंग औप्शन वाला इंडक्शन कुकटौप ईको फ्रैंडली भी है, क्योंकि यह बिजली से चलता है और अलगअलग तरह की कुकिंग के लिए इस में तापमान को घटाने व बढ़ाने का औप्शन भी है. औटोमैटिक पैन डिटक्शन की सुविधा वाले इंडक्शन कुकटौप में चाइल्ड लौक औप्शन के अलावा टाइमर फंक्शन भी है, जिस से आप निश्चिंत हो कर कुकिंग के साथसाथ मल्टी टास्किंग भी कर सकती हैं. कुला मिला कर यह गैजेट नए साल में आप की जिंदगी को पूरी तरह रिफ्रैश कर देगा और देगा स्मार्ट कुकिंग का औप्शन.

वाटर प्यूरीफायर

नए साल में आप का परिवार रहे सेहतमंद, इस के लिए ले आइए घर में वाटर प्यूरीफायर बाजार में आरओ वाटर प्यूरीफायर. मूवी वाटर प्यूरीफायर मौजूद हैं, जो पानी से बैक्टीरिया हटा कर उसे पूरी तरह शुद्ध बनाते हैं और आप के परिवार को पानी से जुड़ी बीमारियों से बचाते हैं. नए प्यूरीफायर में ठंडेगरम दोनों तरह के पानी का औप्शन होता है.

टाइम सेविंग डिशवाशर

नए साल में अगर आप अपने घरपरिवार को ज्यादा से ज्यादा समय देना चाहती हैं, साथ ही चाहती हैं कामवाली की टैंशन से मुक्ति तो डिशवाशर को बनाइए अपने किचन का हिस्सा. चमकते बरतनों के लिए अब आप को सिर्फ एक बटन प्रैस करने की जरूरत होगी और साफ चमकते बरतन बाहर आ जाएंगे.

ईको वाश फीचर व बरतनों के साइज के अनुसार ऐडजस्टेबल रौक्स वाले अनेक डिशवाशर बाजार में मौजूद हैं, जो आप की किचन को बनाएंगे स्मार्ट और हाईटैक किचन. डिशवाशर में मौजूद जैट वाश मोड और स्टीम ड्राइंग औप्शन बरतनों को जर्म फ्री बनाने के साथसाथ साफ व चमकदार भी रखता है.

डिशवाशर गैजेट की वजह से किचन से बचने वाले समय को जब आप अपने घरपरिवार को देंगी तो नया साल आप के लिए ले आएगा खुशहाली और नजदीकी का उपहार.

वैक्यूम क्लीनर यानी मौडर्न लाइफस्टाइल

नए साल में घर की साफसफाई का स्टाइल भी नया होना चाहिए. इसलिए नए साल में भूल जाइए झाड़ूपोंछे को और मौडर्न गैजेट्स से कीजिए हाउस क्लीनिंग. घर ले आइए मल्टीपल क्लीनिंग वैक्यूम क्लीनर. पावरफुल सक्शन टैक्नीक वाला अलगअलग ऐक्सैसरीज के साथ आने वाला मौडर्न वैक्यूम क्लीनर आप के घर के कोनेकोने को चमका देगा और आप बन जाएंगी पति की नजरों में स्मार्ट होम मेकर. बाजार में वैरिएबल पावर कंट्रोल वाले तथा डस्ट बैग फुल इंडिकेटर वाले वैक्यूम क्लीनर मौजूद हैं, जो गीली व सूखी दोनों तरह की सफाई करते हैं.

टेबलेट और स्मार्टफोन

बदलती तकनीक के साथ अब डैस्कटौप व लैपटौप का स्थान स्मार्ट फोन्स और टेबलेट ने ले लिया है. नए साल में आप भी बन जाइए स्मार्ट फोन व टेबलेट के जरीए स्मार्ट फाइनैंसर और दिल जीत लीजिए पति का. स्मार्ट फोन में मौजूद ढेरों स्मार्ट ऐप्लीकेशन के जरीए आप न केवल औनलाइन शौपिंग, बैकिंग, बिल पेमैंट कर सकती हैं, बल्कि ध्यान रख सकती हैं घरपरिवार की सेहत व अपनी ब्यूटी का भी. सुरक्षित भविष्य के लिए आप मार्केट में मौजूद अनेक सेविंग्स स्कीम्स की जानकारी ले सकती हैं व तुलनात्मक अध्ययन द्वारा उन में निवेश कर बन सकती हैं स्मार्ट व इंटैलिजैंट फाइनैंसर.

बनिए हाइटेक मौम

बच्चों का होमवर्क कराना हो, प्रोजैक्ट सबमिट करना हो तो ऐसे में बारबार मार्केट जाने के बजाय घर में ले आइए प्रिंटर और बन जाइए स्मार्ट मौम. बच्चे आप की इस हाइटेक गैजेट की शौपिंग की दिल से तारीफ करेंगे. बाजार में ब्लैक ऐंड व्हाइट, लेजर प्रिंटर, मल्टीपर्पज ब्लैक ऐंड व्हाइट प्रिंटर, प्लेन, कलर्ड लेजर प्रिंटर की बहुत वैराइटी मौजूद है. प्लेन लेजर प्रिंटर मल्टीपर्पज प्रिंटर की अपेक्षा सस्ता होता है. इस में एक बार में 3,000 के करीब प्रिंटआउट निकाले जा सकते हैं. जबकि मल्टीपर्पज प्रिंटर में स्कैन, फोटो कौपी, फैक्स का भी औप्शन रहता है.

हैल्थ गैजेट्स

निरोगी काया को आधार मानते हुए इस साल हैल्थ गैजेट्स को शामिल कीजिए अपनी गैजेट्स शौपिंग में, क्योंकि बेहतरीन तकनीक से लैस ये गैजेट्स न केवल आप के लाइफस्टाइल पर पैनी नजर रखते हैं, बल्कि इन की मदद से आप बढ़ा सकती हैं फिटनैस की ओर पहला कदम. बाजार में मौजूद ग्लूकोमीटर गैजेट का प्रयोग शरीर में ब्लड ग्लूकोज की स्तर की जांच के लिए किया जा सकता है और हैल्थ व फिटनैस को काफी हद तक नियंत्रण में रखा जा सकता है. इसी तरह ब्लडप्रैशर मौनिटरिंग मशीन से आप घर बैठे ब्लडप्रैशर की जांच कर सकती हैं और अपने परिवार के दिल का हाल जान सकती हैं. इस से लाइफस्टाइल को बेहतर बना सकती हैं.

सिक्योरिटी सिस्टम

आप की जिंदगी में आप के घरपरिवार की सुरक्षा से जरूरी भला और क्या होगा. इसलिए नए साल की शुरुआत में सिक्योरिटी सिस्टम गैजेट्स को शामिल कीजिए और पाइए पूरे परिवार की सुरक्षा का तोहफा. स्मोक इंडिकेटर, फायर से सुरक्षा, अनजान लोगों की घर में ऐंट्री से सुरक्षा देने वाले वीडियो डोर फोन, फिंगर प्रिंट लौक्स, टूवी कम्यूनिकेशन, स्पीकर सिस्टम जैसे मौडर्न गैजेट्स लगवा कर आप रह सकती हैं टैंशन फ्री और निभा सकती हैं अपनी जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक.

स्टेम सैल्स : सेहतमंद भविष्य के लिए

जन्म लेने के बाद से अंतिम सांस लेने तक मनुष्य को सैकड़ों बीमारियों से गुजरना पड़ता है. ये बीमारियां जानलेवा भी हो सकती हैं. इन के चंगुल से निकलने के लिए स्टेम सैल्स एक कवच का काम करते हैं. स्टेम सैल्स के जरीए मैडिकल साइंस के क्षेत्र में कई ऐसे कामों को अंजाम दिया जाने लगा है जिन्हें अंजाम देने के बारे में करीब 50 वर्ष पूर्व तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.

स्टेम सैल्स ने मैडिकल साइंस की तसवीर ही बदल डाली है. आइए, जानते हैं कि स्टेम सैल्स क्या हैं और बीमारी को दूर भगाने में इन का कैसे इस्तेमाल किया जाता है.

स्टेम सैल्स

स्टेम सैल्स मनुष्य के शरीर के मास्टर सैल्स होते हैं. इन्हें मां सैल्स के नाम से भी जाना जाता है. इन सैल्स द्वारा अन्य कई प्रकार के सैल्स का सृजन होता है, जो मनुष्य के शरीर में मौजूद विभिन्न ऊतकों और अंगों की मरम्मत करते हैं. स्टेम सैल्स गर्भनाल और गर्भनाल के रक्त में पाए जाते हैं. ये मनुष्य के शरीर में रक्त की भरपाई और इम्यून सिस्टम की प्रतिरक्षा करते हैं. स्टेम सैल्स में मानव शरीर में पाए जाने वाली विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में अंतर करने की अद्वितीय क्षमता होती है.

कौर्ड ब्लड और कौर्ड ब्लड स्टेम सैल्स

कौर्ड ब्लड का आशय उस रक्त से है, जो गर्भनाल को काटने के बाद उस में शेष रह जाता है. अधिकतर इसे चिकित्सा अपशिष्ट के रूप में खारिज कर दिया जाता है, जबकि शिशु का गर्भनाल रक्त हिमैटोपोइटिक स्टेम सैल्स का महत्त्वपूर्ण स्रोत है, जो रक्त और प्रतिरक्षा प्रणाली कोशिकाओं की भरपाई करता है. गर्भनाल रक्त स्टेम कोशिकाओं को कई तरह के कैंसर और रक्तविकारों सहित अन्य कई बीमारियों के सफल इलाज के लिए भी महत्त्वपूर्ण और फायदेमंद माना गया है.

शिशु की गर्भनाल बैंक में रखने का फायदा

डाक्टर ल्यूकेमिया और लिम्फोमा सहित अन्य कई रोगों का इलाज करने के लिए इन स्टेम सैल्स का इस्तेमाल करते हैं.

गर्भनाल टिशूज स्टेम सैल्स

गर्भावस्था के दौरान मां और बच्चे के बीच गर्भनाल एक जीवनरेखा के रूप में कार्य करता है. बच्चे के जन्म के बाद इस नाल को काट दिया जाता है और सामान्य रूप से चिकित्सा अपशिष्ट समझ कर फेंक दिया जाता है. जबकि गर्भनाल ऊतक स्टेम सैल्स को विविधता प्रदान करता है, जिस से बीमारियों की एक व्यापक रेंज का इलाज करने की क्षमता बढ़ जाती है, इन में से कुछ मैसेनकाइमल और ऐपिथेलिअल स्टेम सैल्स होते हैं. मैसेनकाइमल स्टेम सैल्स विभिन्न रोगों के उपचार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

एक अध्ययन से पता चलता है कि इन स्टेम सैल्स में हड्डियों, मांसपेशियों और तंत्रिका कोशिकाओं को पुनर्नियोजित करने का गुण होता है. एक अध्ययन में पाया गया कि ये स्टेम सैल्स रीढ़ की हड्डी की चोटों और मस्तिष्क आघात का हर संभव इलाज कर सकते हैं. एपिथेलिअल स्टेम सैल्स नाजुक होते हैं और ये त्वचा और लिवर के आसपास पाए जाते हैं.

शिशु के कौर्ड ब्लड का इस्तेमाल

शिशु की गर्भनाल का इस्तेमाल केवल उस के बीमार होने पर ही नहीं, बल्कि परिवार के दूसरे सदस्यों के बीमार पड़ने पर भी किया जा सकता है. खासतौर पर शिशु की गर्भनाल में मौजूद ब्लड यूनिट उस के भाईबहन के लिए इस्तेमाल किए जाने पर 60% अधिक तेजी से उपचार होता है.

स्टेम सैल्स के लाभ

हर 200 लोगों में से एक को अपने जीवनकाल में स्टेम सैल्स प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है.  भारत में उच्च 10 सामान्य कर्क रोगों में से 1 रोग गैर हौजकिंस लिम्फोमा नामक रोग का इलाज स्टेम सैल्स द्वारा किया जा सकता है.

भारत में उच्च 5 सामान्य बाल अवस्था में होने वाले कर्क रोगों में से 2 रोग ल्यूकेनिया और लिम्फोमा नामक बीमारी का इलाज भी स्टेम सेल्स द्वारा किया जा सकता है.

दुनिया में 500 शिशुओं में से 1 शिशु सेरेब्रल पलसी का शिकार होता है, जो जन्म के समय का एक मस्तिष्क संबंधी विकार है, सैल्युलर चिकित्सा के साथ सेरेब्रल पलसी का उपचार किया जा सकता है.

अमेरिका में पैदा हुए हर 68 बच्चों में से 1 औटिज्म स्पैक्ट्रम विकार से ग्रस्त होता है, जिस का उपचार क्लीनिकल ट्रेल के द्वारा ही संभव है. 

5+5 मेकअप ऐंड हेयरस्टाइल

कारपोरेट मेकअप

कारपोरेट औफिस में काम करने वाली महिलाओं का लुक ऐसा होना चाहिए जो उन में कौन्फिडैंस पैदा करे.

कैसे करें मेकअप: सब से पहले चेहरे को अच्छी तरह साफ करें. फिर पूरे चेहरे पर मौइश्चराइजर लगाएं. फिर एसपीएफ-18 फ्लूड टिंट लोशन लगाएं. अगर फेस पर दागधब्बे हों तो कंसीलर का प्रयोग करें. बेस अपनी स्किन मैचिंग का ही चुनें और कौंपैक्ट पाउडर लगाएं.

आईज मेकअप: स्मोकी आईज मेकअप करें. उस के लिए ब्राउन ग्रे शैडो का प्रयोग करें. ड्रैस से मिलते रंग का लाइनर लगाएं. आईलैशेज पर मसकारे का प्रयोग अच्छी तरह करें. वाटरबेस मसकारे का चुनाव करें.

लिप, चिक मेकअप: रिसैप्शनिस्ट और एअरहोस्टेस ग्लौसी डार्क लिपस्टिक का चुनाव करें और चीक्स पर पिंक ब्लशर लगा कर उसे अच्छी तरह मर्ज करें. औफिस की दूसरी महिलाएं लाइट कलर की लिपस्टिक का प्रयोग करें.

हेयरस्टाइल

कारपोरेट औफिस में काम करने वाली महिलाओं के हेयरस्टाइल में नीड लुक ही होना चाहिए. छोटे बालों के लिए आधे बालों को उठा कर पिन से सैट करें और आधे बालों को खुला छोड़ दें. लंबे बालों की ऊंची पोनी बनाएं. सिंपल सा जूड़ा भी बना सकती हैं. एअरहोस्टेस व रिसैप्शनिस्ट अपने बालों का आगे से डिफरैंट स्टाइल बना कर अलग लुक दे सकती हैं.

करैक्टिव मेकअप

यह मेकअप ज्यादातर ऐंकर, न्यूज रीडर के लिए ही बैस्ट माना जाता है, जो उन्हें कैमरे में बैस्ट लुक प्रदान करता है. बेस का चुनाव: फेस को क्लीन कर के पूरे चेहरे पर ब्रश से प्राइमर लगाएं. स्किन के अनुसार डर्मा बेस कलर का चुनाव करें. डर्मा बेस हार्ड होता है. इसे सौफ्ट बनाने के लिए इस में 1 बूंद मेकअप ब्लंड की डाल कर लिक्विड बनाएं. बेस हमेशा चेहरे पर डैबडैब कर लगाएं. डर्मा के कंटूरिंग कलर से चेहरे की कटिंग करें जैसे, फोरहैड, चीक्स, चिन आदि की. इस के अलावा ब्राउन आईशैडो से भी कंटूरिंग की जा सकती है. फिर ट्रांसलूशन पाउडर से पफिंग करें.

आईज मेकअप: आईशैडो लगाने से पहले आईशैडो प्राइमर की 1 बूंद लगाएं. इस से ब्लैंडिंग अच्छी तरह होती है. ब्रश के बजाय इसे उंगलियों से लगा कर ब्लंड करें. फिर इस पर कौपर या गोल्डन ब्राउन शैडो लगाएं. आंखों के कौर्नर्स पर डार्क ब्राउन शैडो लगा कर अंदर की तरफ ब्लैंड करें. आईब्रोज के नीचे हाईलाइटर सिल्वर या गोल्डन कोई भी लगा सकती हैं. फिर आईब्रोज को ब्लैक या ब्राउन पैंसिल से या फिर ब्रश में कलर लगा कर हाइरेस्ट पौइंट से लगाते हुए अंदर की तरफ आएं. अब ब्रश से आईलाइनर लगाएं. आंखों के आकार के अनुसार काजल का प्रयोग अगर जरूरत है तो करें वरना नीचे की तरफ लाइनर भी लगा सकती हैं. फिर आईलैशेज पर मसकारे का 1 कोट लगाएं.

लिप मेकअप: लिप पर मौइश्चराइजर लगा कर फिर आउटलाइन ब्रश या पैंसिल से लगाएं. इसे लिपस्टिक से फिल करें. लिपस्टिक ज्यादा डार्क कलर की नहीं होनी चाहिए.

चीक्स मेकअप: चीक्सबोन पर पीच या पिंक ब्लशर लगाएं. अंदर से बाहर की तरफ ब्रश के स्ट्रोक दें.

हेयरस्टाइल

ऐंकर हेयरस्टाइल में ज्यादातर खुले स्ट्रेट बाल ही रखे जाते हैं. अगर हेयर कर्ली हैं तो उन्हें अच्छी तरह से ब्लो ड्रायर करें. फ्रंट के बालों में सिंपल और शोबर स्टाइल हलका पफ ही बनाएं.

पार्टी मेकअप: डे मेकअप के लिए स्किन मूज से चेहरा तरोताजा दिखाई देता है. अगर पार्टी मेकअप की बात करें तो सिलिकौन बेस फाउंडेशन सर्दी के मौसम में त्वचा पर बेहतर काम करता है. आप मिनरल मेकअप प्रोडक्ट ही लगाएं, क्योंकि इस मौसम में त्वचा खिंचीखिंची सी लगती है. मौइश्चराइजर में फाउंडेशन मिक्स कर के भी लगा सकती हैं. डार्कसर्कल्स के लिए कंसीलर स्टिक का प्रयोग करें. बेस को अच्छी तरह मर्ज करें ताकि वह फेस स्किन में जा कर शाइन करे. हलका सा फेस पाउडर का टच दें. मेकअप शुरू करने से पहले व बाद में फेस मिस्ट का प्रयोग करें ताकि स्किन खिंचीखिंची सी प्रतीत न हो.

आई मेकअप: आंखों को बेहतर लुक देने के लिए ग्लिटरी व मेटैलिक आईशैडो लगाएं. अपनी आंखों के अनुसार मोटा या पतला कलरफुल लाइनर लगाएं. आंखों के वाटरलाइन एरिया में काजल लगाएं. फिर आंखों पर थोड़ा गोल्ड, ब्रौंज या ग्रे मेटैलिक शिमर लगाएं. आंखों के बाहरी हिस्सों पर गहरे ब्राउन या ब्लैक आईशैडो से स्मोकी आईज बनाएं. इस के अलावा मल्टीकलर का शैडो भी लगा सकती हैं.

लिप कलर: मैट कलर की लिपस्टिक के बजाय लिप्स पर रैड वाइन या डीप पिंक कलर लिपस्टिक लगाएं. सुबह व रात के मेकअप के लिए अलगअलग कलर का इस्तेमाल करें. लेकिन दोनों ही समय शाइन व ग्लौस का इस्तेमाल करें. दिन में मोव, पिंक रोज व लाइलैक शेड्स ही चुनें. सर्दी के मौसम में सिर्फ लिपग्लौस की जगह विटामिन ई-वैलवेट, क्रीम मैट और मौइश्चराइजरयुक्त लिपस्टिक का चुनाव करें.

चीक्स मेकअप: गालों की खूबसूरती के लिए शाइनिंग वाले ब्लशर का प्रयोग करें. पिंक शाइनिंग ब्लशर ज्यादा बैस्ट लगता है. नौर्मल ब्लशर लगा कर उस पर शाइनिंग का 1 कोट दें.

हेयरस्टाइल

पार्टी हेयरस्टाइल कुछ ऐसा हो जो आप के पूरे लुक को खास बना दे. इस के लिए साइड की मांग निकाल कर पीछे टौप के बालों की एक पोनी बना लें. नीचे के बालों को छोड़ कर एक लट ले कर रबड़बैंड को अच्छी तरह से कवर कर दें. फिर फ्रंट के बालों की बैककौंबिंग करें और पफ बनाते हुए पोनी के पास ही पिन से सैट करें. फिर आगे से बालों की 1-1 लट ले कर ट्विस्ट करते हुए सैट करें. बाकी बालों को भी ऐसे ही सैट करें और पफ तक ला कर सैट करें फिर पीछे से एक सैक्शन ले कर नौट लगाएं और स्प्रे करें. ऐसे ही 6 सैक्शन बनाएं. फिर रोल करते हुए जूड़ा बना कर ऐक्सैसरीज से सजाएं.

कौकटेल मेकअप: फेस को क्लीन कर के क्राइलोन का आइवरी शेड लगाएं. यह काफी थिन बेस होता है. इसे ब्रश से गोलगोल घुमाते हुए लगाएं. फिर गीला स्पौंज ले कर फेस पर थपथपाएं. इसे टैंपल एरिया में ज्याद प्रयोग करें. क्राइलोन के 070 प्योर व्हाइट क्रीम बेस को चीक्स पर ब्रश से लगाएं. इसे हाईलाइटिंग एरिया पर लगाया जाता है. जैसे फोरहैड, चीक्स और चिन. फिर इस की ब्रश से अच्छी तरह ब्लैंडिंग में करें ताकि शाइनिंग आ जाए.

व्हाइट और पिंक टोन के ट्रांसलूशन पाउडर को मिक्स कर के पाउडर ब्रश से फेस पर लगाएं और फेस टोनर से फेस पर स्प्रे करें. इन से मेकअप वाटरपू्रफ हो जाएगा. फिर इसे पफ की सहायता से सुखाएं. बेस पूरा होने पर आई मेकअप शुरू करें.

आई मेकअप: ब्रश की सहायता से फीरोजी कलर का आईशैडो आंख के एक कोने से लगाना शुरू करें. फिर आई सौकेट के बीच का हिस्सा छोड़ कर बाकी एरिया में पर्पल आईशैडो लगाएं. फिर आईलैशेज पर मसकारा लगाएं. फिर मैक का काजल लगाएं. ब्लैंडिंग ब्रश से आईब्रोज पर ब्लैक शैडो से हाईलाइटिंग करें. मेकअप स्टूडियो का लाइनर ब्रश की सहायता से लगाएं. सीलर में ब्रश को डिप कर के आईशैडो मिड से ब्लैक शैडो लें और उसे आंखों के बाहरी कोनों में लगाएं. फिर फैन ब्रश से ऐक्स्ट्रा प्रोडक्ट को हटा दें. आईज के नीचे वाटरलाइन एरिया के बाहर पतले ब्रश से फीरोजी कलर का लाइनर लगाएं.

अब आंखों के ऊपर न्यूट्रल सिमर लगाएं. इसे जैल लगाने के बाद लगाएं. फिर आईलैशेज पर मसकारा के 2 कोट लगाएं.

लिप मेकअप: आप लिप कलर के कई शेडोज को मिला कर भी न्यू शेड्स बना सकती हैं. सब से पहले लिप पर बेस कलर लगाएं. फिर कोई ब्राइट कलर की लिपस्टिक लगाएं. फिर उस पर सिल्वर कलर का वीओवी का पाउडर लगाएं. इस से लिप्स स्पैशल हाईलाइट होंगे.

मेकअप स्टूडियो किड से ब्लशर ले कर चीक्सबोन पर लगाएं. इसे ब्रश से अंदर से बाहर की तरफ ले जाते हुए अच्छी तरह लगाएं.

हेयरस्टाइल

कौकटेल लुक के साथ हेयरस्टाइल भी डिफरैंट होना चाहिए. बालों में अच्छी तरह कंघी कर के लैफ्ट साइड में ‘वी’ शेप में कुछ बाल ले कर पोनी बनाएं और स्प्रे करें. दूसरी साइड भी वैसी ही पोनी बनाएं और स्प्रे करें. अब बचे हुए बालों की सैंटर में रबड़बैंड से हाई पोनी बनाएं. पोनी के बालों को अच्छी तरह कंघी कर के रबड़बैंड के किनारे बौल पिन लगाएं. सैंटर पोनी में एक लट उठा कर बैककौंबिंग कर के स्प्रे करें. ऐसे ही 3 पोनी की 3 लटें बनाएं उन में स्प्रे कर उन्हें अंदर की तरफ रोल कर दें और पिन से सैट करें. 2 अगलबगल और 1 बीच में राइट साइड के बालों की एक पतली लट निकाल कर उसे कर्ल मशीन से कर्ल करें और पूरे बालों में स्प्रे करें.

अब बालों को सजाने के लिए आर्टिफिशियल फ्लौवर लगाएं और हर रोल के ऊपर स्पार्कल लगाएं.

मिनरल मेकअप

इसे न्यूड मेकअप भी कहा जाता है. इस मेकअप के लिए पहले फेस को सीटीएम (क्लींजिंग, टोनिंग, मौइश्चराइजिंग) करें. फिर चेहरे पर प्राइमर लगाएं. अगर कहीं जा रही हैं तो शाइनिंग वाले स्ट्रोक क्रीम प्राइमर का इस्तेमाल करें और इसे उंगलियों से ही लगाएं. अगर डार्क सर्कल्स हों तो कंसीलर का प्रयोग करें. ज्यादा डीप डार्क सर्कल्स के लिए औरेंज कंसीलर को पहले अंडरआईज फिर फोरहैड पर लगाएं. फिर इस पर बेस लगाएं. क्राइलोन का बेस 626सी+बी को मिक्स कर के लगाएं. इस से स्किनटोन बेहतर लगता है. बेस के लैक्मे का क्रीम बेस ब्लश चीक्सबोन पर लगाएं. इसे उंगलियों से थपथपाते हुए लगाएं. अगर ज्यादा फेयर लुक देना है तो डियो का फाउंडेशन ब्रश से लगाएं. अब क्राइलोन का पी5 डर्मा लूज पाउडर लगाएं. चिन से शुरू करते थपथपाते हुए ऊपर तक जाएं. अब ऐक्स्ट्रा पाउडर को ब्रश से हटा कर डर्मा फिक्सर से बेस को लौक कर दें.

आई मेकअप: सब से पहले आंखों पर लूज पाउडर लगाएं, क्राइलौन के रैंबो शैडो में गोल्डन शैडो उंगली या ब्रश से लगाएं. आईब्रोज के नीचे गोल्ड में सिल्वर हाईलाइटर मिक्स कर के लगाएं. आईपैंसिल से लाइनर लगाएं. इसे आईज के अनुसार आगे से पतला पीछे से मोटा लगाएं. आईब्रोज को पैंसिल से क्लीन कर शेप दें. वाटरलाइन एरिया में काजल लगाएं. फिर आईलैशेज पर मसकारे के 2 कोट लगाएं. अब नोज की हलकी सी कंटूरिंग ब्राउन बेस से करें. इस से नोज शार्प हो जाएगी.

हेयरस्टाइल

पूरे बालों को वन साइड कर के बैककौंबिंग करें, फिर साइड पोनी बनाएं. फिर कर्ल रौड से पोनी के बालों की 1-1 लट ले कर कर्ल करें. फिर कर्ली किए बालों को टेल कौंब की सहायता से पोनी में बौब पिन से सैट करें. यह एक फंकी जूड़ा बन जाएगा. ऐसे ही बाकी सभी कर्ल की गई लटों को करें. आप चाहें तो इसे खुला भी छोड़ सकती हैं, दोनों ही लुक बेहतर लगते हैं. अब इसे मैचिंग ऐक्सैसरीज से सजाएं.

लिप्स मेकअप: होंठों को क्लीन कर के आउटलाइन बनाएं. फिर इस में ब्रश की सहायता से मैक की हौट पिंक लिपस्टिक फिल करें. इस के ऊपर लिप कोट सीलर जरूर लगाएं. मेकअप को फिक्स करने के लिए पूरे फेस पर डर्मा फिक्सचर स्प्रे करें.

कमाई का पाखंडी तरीका

कुरुक्षेत्र हरियाणा प्रांत का एक जिला है, जिसे तीर्थस्थान का दर्जा भी प्राप्त है. ऐसा माना जाता है कि यहां महाभारत का धर्मयुद्ध हुआ था. अब युद्ध को भी धर्म से जोड़ देना हिंदुओं का ही कौशल है. बहरहाल, इस लेख में मुद्दा यह नहीं है. मैं तो उस अजूबे की बात कर रहा हूं, जो मैं ने कुरुक्षेत्र की यात्रा में देखा. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुरुक्षेत्र के लिए रात 8 बजे के करीब ट्रेन पकड़ी. डब्बा खचाखच भरा हुआ था.

अचानक मुझे बोगी के अंदर कीर्तन की आवाजें सुनाई देने लगीं. देखा तो 8-10 लोग डफली, खड़ताल, मजीरा और तालियां पीटपीट कर कीर्तन कर रहे थे. ‘हरेराम हरेराम रामराम हरेहरे, हरेकृष्ण हरेकृष्ण, कृष्णकृष्ण हरेहरे’ का शोर यात्रा की थकान को और बोझिल बना रहा था. लेकिन कीर्तन करने वाले तो आम आदमी के मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझते हैं. कीर्तन शुरू हुआ तो गाड़ी में बैठे यात्री भी स्वर में स्वर मिला कर झूमने लगे. कोई 40 मिनट तक यह कीर्तन चलता रहा.

यह अजूबा यहीं खत्म नहीं हो गया. इस के बाद कीर्तन मंडली ने आरती शुरू कर दी. इन के पास लकड़ी के एक छोटे से फ्रेम में मंदिर था. घी और दीपक का भी इंतजाम था. ट्रेन के डब्बे में ही आरती हुई और फिर आरती थाली में रख कर सभी के पास पहुंचाई गई.

यह हम सब जानते हैं कि जलते हुए दीपक की लौ का हाथ से स्पर्श कर सिर पर लगाने की क्रिया को ‘आरती लेना’ कहा जाता है. यह भी लोगों के दिलों में बैठा हुआ एक डर है कि वे अगर खाली आरती लेंगे, तो यह अधर्म होगा और इस वजह से भगवान नाराज भी हो सकते हैं. इसलिए शायद ही कोई ऐसा हिंदू होगा, जो आरती के सामने आ जाने पर थाली में कुछ न चढ़ाए.

जब ट्रेन में यात्रियों के समक्ष आरती घुमाई गई तो फटाफट थाली नोटों और सिक्कों से भर गई. धंधेबाजों का मकसद पूरा हो गया था. पैसा बटोर कर ये लोग बीच में ही कहीं उतर गए.

मैं ने कुरुक्षेत्र में कुछ लोगों से इस घटना का जिक्र किया तो सभी के लिए यह सहज बात थी. पता चला कि इन कीर्तनबाजों ने दिल्ली से कुरुक्षेत्र तक की एमएसटी बनवा रखी है. ये लोग रोज ही किसी न किसी ट्रेन में चढ़ जाते हैं और कीर्तन का धंधा करते हैं. अफसोस की बात तो यह रही कि किसी को भी इस धंधे पर कोई एतराज नहीं था.

कमाई का आसान तरीका

धर्म के नाम पर कमाई के बहुत से तरीके चल रहे हैं. इन में बेहद आसान तरीके कीर्तन और आरती हैं. आज आम आदमी अपनी जिंदगी में काफी व्यस्त हो गया है. वह सुबह तो मंदिर जाने का समय निकाल लेता है, लेकिन शाम को दूसरे कामों में व्यस्त भी हो जाता है. इस का नतीजा यह हो रहा है कि शहरों में जो बड़े मंदिर हैं, वहां तो आरती के समय शाम को भीड़ जमा हो जाती है, लेकिन गलीमहल्लों के छोटे मंदिरों में उतने लोग नहीं पहुंच पाते.

आसपास के जो दुकानदार होते हैं, वे दुकानें छोड़ कर शाम की आरती में शामिल हो ही नहीं सकते. इसलिए इन मंदिरों के पुजारियों ने तरीका यह निकाला है कि इन्होंने शाम की आरती को मोबाइल बना दिया है. हम सब रोज ही यह नजारा छोटेबड़े शहरों में देखते हैं कि मंदिरों के पुजारी अपनी शाम की आरती की थाली ले कर दुकानदुकान और घरघर घूमते हैं. आरती लेने वाला हरेक श्रद्धालु कम से कम 1 रुपया तो चढ़ाता ही है. इस तरह एकएक पुजारी, एकएक दिन में कम से कम क्व4-5 सौ तो कमाता ही है.

‘आरती’ पैसा हड़पने का एक शानदार फंडा है. तभी तो हर धार्मिक कार्यक्रम के समापन में आरती का आयोजन किया जाता है. चाहे कोई कथा हो, प्रवचन हो या फिर कीर्तन, सभी का समापन चढ़ावा प्राप्त करने के लिए आरती से किया जाता है.

प्रवचन और कथा बांचने वाले साधुमहात्मा कहते हैं कि जहां भगवान की चर्चा की जाती है, वहां भगवान उपस्थित हो जाते हैं. भगवान को विदा करने के लिए आरती जरूर की जानी चाहिए. कथावाचक उस ग्रंथ रामायण, श्रीमद्भागवत, गीता आदि की ही आरती उतरवा देते हैं. उन का तर्क होता है कि आरती कर हम उस ग्रंथ के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं.

धर्म के नाम पर कमाई का एक और आसान तरीका है- कीर्तन. यह भी पूरी तरह से एक पाखंड भरा काम है. पाखंड इसलिए क्योंकि यह कीर्तन करने वाले भी जानते हैं कि इस से किसी के जीवन में कोई शुभ परिवर्तन होने वाला नहीं है. अलबत्ता कीर्तनबाजों का आर्थिक भला जरूर होता रहता है.

पंडेपुजारी चैतन्य महाप्रभु और मीराबाई का नाम ले कर दलील देते हैं कि ऐसे कई भक्त कीर्तन करतेकरते कथित रूप से भगवान के धाम को प्राप्त हो गए थे. पंडेपुजारी और कथावाचक कीर्तन के बारे में कहते हैं कि जितने समय तक हम कीर्तन में रमे रहते हैं उतने समय तक हम दुनिया को भूल कर अपने गमों से दूर रहते हैं. धीरेधीरे भगवान की कृपा हमें प्राप्त होती जाती है.

कृपालु महाराज को परोक्ष रूप में हिंसक महात्मा कहा जाए तो गलत न होगा. इसी की वजह से 4 मार्च, 2010 को प्रतापगढ़ के इस के आश्रम में भगदड़ में 63 बेगुनाह लोग मारे गए थे. यह हिंसक महात्मा कीर्तन के बारे में कहता है कि कीर्तन करने से हमारी परेशानियां भगवान की हो जाती हैं. कीर्तन के बारे में इसी तरह के भ्रम फैलाने का यह नतीजा है कि आम आदमी मनोवैज्ञानिक रूप से इस से प्रभावित होता जाता है. एक समय था, जब कीर्तनों का दायरा बहुत ज्यादा नहीं था. कभीकभी मंदिरों में या खास अवसरों पर घरों में कीर्तन हो जाया करते थे. लेकिन जैसजैसे धर्म के धंधेबाजों का ध्यान इस तरफ गया, तो इन धूर्तों ने कीर्तन को आभामंडित करना शुरू कर दिया.

नोटों की बरसात

धर्म की इस विधा कीर्तन में अब बड़े अजीब से बदलाव दिखाई देते हैं, कीर्तन के बीच में अकसर ऐसा तो होता ही है कि लोग विभोर हो कर भजन गायक पर रुपयों की बौछार करते हैं. भजन गाने वाला उन का नाम बोल कर उन के अहंकार को और बढ़ाता रहता है.

अब कीर्तनों में एक और स्वांग रचा जाने लगा है. भजनमंडली की ही तरफ से कोई लड़की राधा या गोपी बन कर नाचती है. इस तरह कीर्तन सुनने वालों की धार्मिक भावनाएं और भड़कती हैं. वे इस स्वरूप पर खूब नोट बरसाते हैं. यह बरसात एक तरह से होड़ भी बन जाती है. इस तरह कमाई का यह पाखंडी तरीका आजकल कीर्तनों में खूब कामयाब हो रहा है.                

डिजाइनर ब्लाउज : परंपरा को दे नया लुक

युवा हो या वयस्क हर कोई सुंदर दिखना चाहता है और सौंदर्य बढ़ाने में फैशन का बड़ा योगदान होता है. फैशन में भी सब से अहम होते हैं परिधान. वस्त्रों का आकर्षक होना बेहद आवश्यक है. पारंपरिक परिधान की बात करें तो साड़ी का नाम सब से ऊपर आता है. यह हमेशा नए ट्रैंड में शामिल रहती है और इसे आकर्षक बनाता है इस का ब्लाउज.

आजकल डिजाइनर ब्लाउज का क्रेज है. कोलकाता के फैशन डिजाइनर देवारुन मुखर्जी पिछले 16 सालों से इस क्षेत्र में हैं और हर साल ब्लाउजों के नएनए कलैक्शन बाजार में उतारते हैं.

बचपन से ही फैशन के क्षेत्र में आने की इच्छा रखने वाले देवारुन ने लंदन कालेज औफ फैशन से अपनी फैशन डिजाइनिंग की शिक्षा पूरी की. इस के बाद मुंबई के एक ऐक्सपोर्ट हाउस में 4 साल काम करने के दौरान विश्व के कई प्रसिद्ध डिजाइनर हाउसों जैसे यूरोपियन, कोरियन, अमेरिकन आदि के साथ काम किया. उस दौरान उन्हें लगा कि सभी परिधान बदलते रहते हैं पर साड़ी का क्रेज कभी खत्म नहीं होता. ब्लाउजों में थोड़ा चेंज कर उसे हमेशा पहना जाता है. तभी विदेशों में रहने वाले भारतीय ब्लाउजों की अधिक खरीदारी करते हैं.

2007 में उन्हें लैक्मे फैशन वीक में पहली बार चुना गया. उसी दौरान उन्होंने अपना ब्रैंड ‘देवारुन’ नाम से स्थापित किया, जिस का प्रमुख उद्देश्य भारतीय परंपरा को नए से नया लुक देने का रहा.

अवसर व मौसम का भी खयाल

देवारुन कहते हैं कि आजकल महिलाएं साड़ी कम पहनती हैं पर खास अवसर या त्योहारों पर वे हमेशा साड़ी पहनती हैं. इस का बाजार कभी खत्म नहीं होता. हालांकि आजकल कंट्रास्ट पहनने का चलन है, लेकिन ब्लाउज के चयन से पहले कुछ बातों पर गौर जरूर फरमाएं:

यदि काले रंग के शिफौन ब्लाउज पर गोल्डन कढ़ाई की गई है, तो उसे किसी भी रंग की साड़ी के साथ पहना जा सकता है.

त्योहारों के समय गहरे रंग का ब्लाउज अधिक पौपुलर होते हैं, जिन में लाल, नीला, औरेंज, हरा, एमरल्ड ग्रीन, बैगनी आदि सभी रंगों के ब्लाउज बाजार में उतारे जाते हैं.

गरमी के मौसम में हलके रंग, जिन में पिंक के ऊपर सिल्वर वर्क, मुक्कैश का काम, सफेद, औफ व्हाइट, टरक्वायज के ऊपर सिल्वर वर्क अधिक पौपुलर है. इन ब्लाउजों को आप सिल्क, शिफौन, जौर्जेट आदि सभी साडि़यों के साथ पहन सकती हैं.

अधिकतर ब्लाउज पारंपरिक और ऐथनिक लुक लिए होते हैं जिन्हें तैयार करने में समय लगता है. इन का मूल्य क्व4 हजार से ले कर क्व लाखों में होता है. अगर कढ़ाई अधिक है तो मूल्य अधिक और अगर कढ़ाई कम है तो मूल्य भी कम होता है. इस के अलावा ब्लाउज में प्रयोग किए गए कपड़े के आधार पर भी मूल्य निर्धारित किया जाता है.

देवारुन के अनुसार इन कीमती ब्लाउजों का रखरखाव भी बड़ी सावधानी से करना पड़ता है. उन के अनुसार-

इन्हें मलमल के कपड़े में लपेट कर अलमारी में रखें.

अगर ब्लाउज पसीने से गीला हो जाए तो हवा में सुखा कर ही स्टोर करें.

डिजाइनर ब्लाउज को हमेशा ड्राईवाश कराएं.

क्लासिक कलेक्शन का सिलेक्शन

अगर सजतेसंवरते समय कुछ टिप्स ध्यान में रखें तो महफिल में बस आप ही आप नजर आएंगी:

यदि आप का कद छोटा है, तो चोकर न पहनें. इस से कद और छोटा लगेगा.

सोने की चूडि़यां या ब्रैसलेट 1 इंच से ज्यादा मोटा न हो.

लटकता नेकलेस न पहनें. नेकलेस गले से चिपका हुआ ही अच्छा लगता है.

सादी सोने की बालियां जहां अच्छी लगती हैं, वहीं गोल्डन बटन जैसी बालियां भी कानों की सुंदरता बढ़ाती हैं. लंबी बालियां सभी पर सूट करती हैं.

छमछम करते आभूषण न पहनें.

नथुनी और करधनी न पहनें.

यदि आप की साड़ी या सूट पर गोल्डन वर्क है तो गोल्डन ज्वैलरी पहनें और यदि सिल्वर वर्क हो तो सिल्वर ज्वैलरी अच्छी लगेगी.

यदि परिधानों पर काठचोबी, रंगबिरंगे रेशम या रंगबिरंगे सलमासितारों का काम हो तो नगों या मीनाकारी वाली ज्वैलरी अच्छी लगेगी.

सफेद या काले परिधानों के साथ मोती की ज्वैलरी सूट करेगी.

बीडवर्क के साथ मेटल की ज्वैलरी या बीड्स वाली ज्वैलरी सूट करेगी.

मल्टीकलर बालियां चेहरे पर ग्लो बढ़ाती हैं.

ड्रैस से मेल खाती, चमचमाती बालियां चेहरे की रौनक बढ़ाती हैं. लाल, नीले, पीले, गाढ़े रंग सब पर खिलते हैं.

गोलाकार बालियां सभी प्रकार के हेयरस्टाइल पर सूट करेंगी.

क्रिस्टल के टौप्स और बालियां सब पर अच्छी लगेंगी.

चेहरे के अनुसार सुझाव

ओवल शेप: ओवल शेप वाली महिलाएं कुछ भी पहन सकती हैं. हर डिजाइन इस शेप पर सूट करेगी.

राउंड शेप: गोल चेहरे पर गले की सुंदरता बढ़ाने के लिए चोकर पहन सकती हैं, इस से आप की गरदन सुराही की तरह लंबी लगेगी.

हार्ट शेप: यदि आप का चेहरा हार्ट शेप है, तो आप 2 या 3 लटों वाला चोकर या नेकलेस पहन सकती हैं. आंखों की सुंदरता चौड़ा लाइनर लगा कर बढ़ा सकती हैं.

कैसा हो पर्स

पतला और आयताकार पर्स सभी पर सूट करता है.

पर्स कपड़ों से मेल खाता हो, तो सोने में सुहागे का काम करता है. जैसे- पिंक आउटफिट के साथ पिंक पर्स अच्छा लगेगा.

कंट्रास्ट पर्स भी अच्छे लगते हैं, जैसे ब्लैक आउटफिट के साथ व्हाइट पर्स अच्छा लगाता है. इसी प्रकार सफेद पोशाक के साथ ब्लैक पर्स अच्छा लगेगा.

गोल्डन वर्क वाला पर्स गोल्डन आउटफिट के साथ स्मार्ट लगता है.

सिल्वर वर्क वाला पर्स सिल्वर आउटफिट के साथ स्मार्ट लगता है.

बीड वर्क वाला पर्स बीड वर्क वाली ज्वैलरी के साथ अच्छा लगता है.

पर्ल वर्क के साथ पर्ल वर्क का पर्स बेहतर लगेगा.

ब्लैक और ब्राउन पर्स सभी रंगों के आउटफिट के साथ जंचते हैं.

गोलाकार पर्स स्मार्टनेस कम करता है. इसलिए गोल पर्स की जब तक फिनिशिंग अच्छी न हो, नहीं लेना चाहिए.

एलीगेंट लुक के लिए ब्लैक कलर पर यदि गोल्डन वर्क हो रहा हो तो अच्छा लगता है.

गजब का पैशन है परफ्यूम

परफ्यूम की खूशबू हर किसी को आकर्षित करती है और नई ताजगी देती है. ऐसा कोई विरला ही होगा जिस का परफ्यूम के प्रति झुकाव न हो. जो खुशबू के कायल हैं, वे इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि परफ्यूम तैयार करने की प्रक्रिया से मशक्कत के अलावा कई तरह के रसायन और रासायनिक रहस्य जुड़े हैं. इस के कद्रदानों में अपने खास ब्रांड के परफ्यूम के लिए गजब का पैशन होता है. परफ्यूम पैशन को जन्म देता है, बल्कि कह सकते हैं कि परफ्यूम अपनेआप में एक अलग किस्म का पैशन है. वहीं परफ्यूम तैयार करने वालों में भी खास तरह का परफ्यूम तैयार करने का पैशन होता है.

कायाकल्प हुआ कई बार

आदिकाल से ले कर आज तक परफ्यूम का कई बार कायाकल्प हो चुका है और अब तो डिजाइनर परफ्यूम का जमाना है. इसीलिए तो यह अब पैशन बन गया है. जानकार बताते हैं, परफ्यूम का मुख्य उपादान खुशबूदार तेल होता है. इस के अलावा कुछ और उपादानों के मिश्रण के साथ 75 से ले कर 95% तक अलकोहल में द्रवीभूत हो कर परफ्यूम बनता है. परफ्यूम में खुशबूदार तेज का कंसंट्रेशन 22% तक होता है, जो ओडी परफ्यूम में 15 से 22%, ओडी टौयलेट में 8 से 15% और डाइल्यूट कोलन में 5% से भी कम होता है. किसी परफ्यूम की खुशबू का जादू इस औयल कंटेंट में छिपा होता है. त्वचा के संपर्क में आने पर यह औयल धीरेधीरे हवा में घूम कर खुशबू फैलाता है.

भारत ही एक ऐसा देश है जहां खुशबू को 21 श्रेणियों में बांटा गया है. इस का कारण यह है कि हमारे यहां खुशबू की एक अलग ही परंपरा रही है. उन के नाम प्रकृति के अनुरूप दिए गए हैं. 1989 को भारत सरकार ने सुंगध का साल घोषित किया था. इसी साल खुशबू विशेषज्ञों का एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन भी हुआ. सम्मेलन में भारत के 500 वर्ष के सुगंध के इतिहास पर चर्चा हुई. कह सकते हैं कि परफ्यूम के बिना शृंगार अधूरा है. यह आज की बात नहीं, सदियों पुरानी है. इसीलिए ब्यूटी वर्ल्ड में आज खुशबू का खासा बोलबाला है.

आजकल तो मोमबत्तियां भी परफ्यूम वाली आती हैं. बाथ सोप से ले कर टेलकम पाउडर तक डिओडरेंट वाले आते हैं. इस के अलावा देशीविदेशी परफ्यूम से खूबसूरती का पूरा बाजार महक रहा है. लेकिन बैठेठाले कभी न कभी यह सवाल दिमाग में कौंधता ही है कि खुशबू का सफर आखिर कब और कैसे शुरू हुआ होगा? इस का जवाब ठीकठीक शायद ही मिल पाए, लेकिन संभवतया खुशबू के इस सफर की शुरुआत तपती माटी में वर्षा की बूंदों से ही हुई होगी. माटी की सोंधी महक को पहचानने के साथ फूलों और कस्तूरी मृग से खुशबू का कारवां बढ़ता ही गया.

प्राचीन काल में खुशबू का चलन

दरअसल, सिंधु सभ्यता से ले कर गुप्तकाल, मौर्यकाल में विभिन्न मौकों पर खुशबू के प्रयोग का चलन रहा है. ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ और ‘मेघदूत’ में कालिदास ने नायिका के सुगंध उपयोग का विस्तृत वर्णन किया है. कालिदास की नायिका चंदन, कस्तूरी और जटामानसी से केश और वसन को सुगंधित किया करती थीं. 10वें दशक में खरोटी भाषा में लिखे गए शिलालेखों में बौद्धों के गंध कुटीर का उल्लेख मिलता है. कुषाण काल में भी रत्नखचित सुगंध पेटिका का जिक्र मिलता है.

यही नहीं, लंदन के एक म्यूजियम की ग्रीक गैलरी में एक रत्नजडि़त कुंडल का जोड़ा है. बताया जाता है कि इस में सुगंधित द्रव रखने का ऐसा इंतजाम है कि ग्रीवा के हिलने से उस से खुशबू निकल कर माहौल को सुगंधित कर देती है. वात्स्यायन ने ‘कामशास्त्र’ में भी भारतीय परंपरा की सुगंधि का उल्लेख किया है. उन का ‘कामशास्त्र’ कहता है कि पुरुष के शरीर से निकलने वाली गंध से नारी सम्मोहित होती है और यह सम्मोहन आकर्षण पैदा करता है. पुरुष की देह की इसी गंध को आज सैक्स अरोमा का नाम दिया गया है.

यूरोप में खूशबू का चलन

सैक्स अरोमा की बात हो और प्राचीन इजिप्ट की महारानी क्लियोपेट्रा का जिक्र न हो हो तो बात कुछ अधूरी सी रह जाती है. क्लियोपेट्रा में खुशबू के लिए गजब का पैशन था. उन का जीवन विभिन्न किस्म की खुशबुओं से ओतप्रोत था. क्लियोपेट्रा न सिर्फ इजिप्ट की महारानी थीं, बल्कि उन्हें तो किंवदंतियों की महारानी भी कहा जाता है. सौंदर्य और सैक्स की महारानी क्लियोपेट्रा के जीवन में प्रेम और खुशबू का बड़ा महत्त्व रहा है. कहा जाता है कि नितनए प्रेमी की तरह क्लियोपेट्रा खुशबू भी बदला करती थीं.

वैसे क्लियोपेट्रा मूल रूप से मिस्र की थीं और मिस्र में खुशबू के इस्तेमाल की एक अलग परंपरा रही है. इसी परंपरा के तहत बालों में एक खास तरह की खुशबू लगाई जाती थी जिस की भीनीभीनी खुशबू आहिस्ताआहिस्ता हवा में तैर कर पूरे माहौल में ताजगी भर देती थी.

बताया जाता है कि मिस्र के पूर्वी अफ्रीका के देशोें से खुशबूदार राल यानी लोबान और भारत से अदरक ले जा कर परफ्यूम तैयार करता था. मिस्र के फराओ यानी राजा और उन का राजपरिवार हमेशा खुशबुओं से घिरा रहता था. यहां तक कि उन के ताबूत में भी परफ्यूम का इंतजाम किया जाता था. कहा जाता है कि

3 हजार साल बाद भी जब तूतन खामेन की समाधि से उन का ताबूत निकाला गया तो फिजां में खुशबू फैल गई थी. 7वें दशक में यूरोप में फ्रांस के ग्राफी प्रदेश में फूलों की खुशबू से सेंट बनाने की परंपरा रही है. बताया जाता है कि फ्रांस के राजा 15वें लुइस की प्रेयसी मादाम पांपिदू ने लाखों की मुद्रा खर्च कर के खुशबू का एक बैंक भी बनवाया था. शायद इसीलिए आज भी फ्रेंच खुशबू का मुकाबला शायद ही कोई कर सकता है.

बहरहाल, 1760 में इटली के एक परिवार ने जरमनी के कोलोन शहर में खुशबू बनाना शुरू किया. कोलोन शहर के नाम पर ही इस का नाम यूडी कोलोन पड़ा. आज भी परफ्यूम में कोलोन का अपना स्थान है. यूडी कोलोन यानी कोलोन नदी का पानी. आज यूडी कोलोन बनाने वाली बहुत सारी कंपनियां बाजार में हैं, पर इस के जनक थे गिवमानी फारिना.

शैनेल फाइव

विदेशी परफ्यूम की बात की जाए और शैनेल फाइव का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. लगभग 80 सालों से लगातार लोकप्रियता के सिंहासन पर बैठा है शैनेल फाइव. यह परफ्यूम वाकई लगाने की चीज नहीं, बल्कि ‘वेयर’ करने की चीज है, ऐसा ही कुछ कहना था मार्लिन मुनरो का. अकेले मुनरो ही नहीं, सोफिया लारेन से ले कर माइकल जैकसन तक का पसंदीदा परफ्यूम रहा है यह.

इस परफ्यूम का इतिहास भी बड़ा अनोखा है. इस के सृजनकर्ता का नाम है कोको शैनेल. बताया जाता है ये कोको एक फेरी वाले की अवैध संतान थे. 12 साल की उम्र में माता का साया सिर से उठ चुका था और तभी पिता ने भी मुंह फेर लिया. तब अनाथाश्रम में कोको को शरण लेनी पड़ी. कहते हैं, बचपन में प्यार, स्नेह की खुशबू भले ही कोको शैनेल को नहीं मिली, लेकिन खुशबू बनाने की प्रेरणा उन्हें इस कमी से मिली.

उन का मानना था कि किसी महिला के बदन की खुशबू के आगे फूलों की खुशबू भी म्लान है, कृत्रिम है. इसलिए उन्होंने फूलों की खुशबू को महिलाओं के बदन की स्वाभाविक खुशबू जैसी बनाने के काम में खुद को झोंक दिया. परफ्यूम की जन्मभूमि फ्रांस के ग्रासे में कोको की मुलाकात हुई एक परफ्यूमर आर्नेस्त व्यू से. आर्नेस्त के साथ उन के सहयोगी के रूप में कोको काम करने लगे. परफ्यूम लैबोरेटरी में काम करने के दौरान उन्हें एक उपादान का मिश्रण करने के लिए कहा गया.

कोको ने उस उपादान को 10 गुना अधिक मात्रा में दे डाला. इस बीच एक दिन आर्नेस्त ने 10 किस्म का परफ्यूम को परखा तो उन्हें 5वें नंबर वाला परफ्यूम पसंद आया. वह वही परफ्यूम था, जिस में कोको शैनेल ने एक खास उपादान एलडीहाइड 10 गुना ज्यादा मिला दिया था. तब से इस परफ्यूम का नाम पड़ गया शैनेल फाइव. इस परफ्यूम में ग्रासे के जेस्मिन, गुलाब और चंदन के साथ और भी उपादानों का मिश्रण है.

बहरहाल, यह परफ्यूम हिट हो गया. आज भी दुनिया के 5 सब से बेहतरीन परफ्यूमों में शैनेल फाइव एक है. इस का जन्म हुआ था ग्रासे में. पर पहली बार यह पेरिस के बाजार में बिक्री के लिए पहुंचा.

भारतीय परंपरा में खुशबू

हमारे प्राचीन गं्रथों में सुगंध का जो उल्लेख मिलता है, उस के अनुसार राजा के दिन की शुरुआत सुगंध से ही होती थी. अग्नि पुराण में लगभग 150 से भी ज्यादा किस्म के सुगंधित पदार्थों से स्नान, ध्यान, पूजा, भोजन और शयन जैसी राजा की दिनचर्या संपन्न हुआ करती थी. सुगंध की सब से ज्यादा खपत राजा के अंत:पुर या हरम में होती थी और इसे तैयार करने के लिए महिलाओं और पुरुषों की एक बड़ी फौज लगी रहती थी. मगर इन में महिलाओं की ही संख्या ज्यादा हुआ करती थी, जिन्हें गंधकारिका या गंधहादिका कहा जाता था. ये सुगंध इत्र के रूप में ही जाने जाते थे. प्राचीन ग्रंथों में फूलों और चंदन से इत्र निर्माण का वर्णन मिलता है. सन 840 में माहुक के लिखे ग्रंथ ‘हरमेखला’ में इत्र के बारे में बहुत सारी जानकारी है. इस में वैज्ञानिक विधि से इत्र बनाने की विधियां भी बताई गई हैं. भारतीय इत्र का व्यापार मिस्र, अरब, ईरान, तुर्की, अफगानिस्तान में हुआ करता था. लेकिन जहां तक मिस्र का सवाल है, वहां तो इत्र वैदिक काल में ही पहुंच चुका था.

मुगल काल में इत्र

मुगलकाल में इत्र का शबाब खूब परवान चढ़ा. मल्लिका नूरजहां इत्र की शौकीन थीं. उन्होंने इत्रे हिना तैयार किया था. इस के बाद इत्रे गुलाब जिस में 30 किस्म के गुलाब के अर्क में 5 तरह के चंदन का तेल मिला कर 5 सेर इत्र तैयार होता था. यह 5 सेर इत्र नूरजहां के कुछ ही दिनों की खपत थी. मुगल बादशाह का पारिवारिक रिश्ता चूंकि राजस्थान से भी था, इसलिए बतौर तोहफा इत्र राजस्थान रजवाड़ों में पहुंचा और शौकीनों के घरघर तक पहुंच गया. धीरेधीरे यह धंधा राजस्थान में खूब फलाफूला. मुगल बादशाह ने गंधियों यानी खुशबू तैयार करने वालों को जमींदारियां सौंप कर उन्हें वहीं बसा लिया. आज भी राजस्थान के कुछ इलाकों में खासतौर पर मालवा की सीमा में गुलाबों की बड़े पैमाने पर खेती होती है. मुगल काल में राजस्थान से होता हुआ इत्र अवध पहुंचा.

इस के अलवा बंजर रेगिस्तानी मिट्टी, जो कि खिल कहलाती है, से भी खुशबू निकालने का असाध्य काम कर लिया गया. रेगिस्तानी मिट्टी में उपजी खस से इत्र बनाया गया. कहते हैं, भारत में खुशबू का जन्म हुआ, लेकिन यह फलाफूला विदेश की मिट्टी में.

एक घुमक्कड़ ईरानी व्यापारी को रेगिस्तान की बंजर भूमि से खुशबू तैयार करने की जानकारी मिलने पर उसे हैरानी हुई और इस विधि को वह अपने देश ले गया. इस प्रक्रिया में उस ने इत्रगिल तैयार किया जिसे ईरान के शाह ने बहुत पसंद किया. इस के बाद गंध पारखियों ने भारत में सुगंध की खोज शुरू की. भारतीय सुगंध शास्त्र खैरम दर्रे से होते हुए अफगानिस्तान और फिर बौद्ध भिक्षुओं के जरिए चीन जा पहुंचा. जब यह इत्र फ्रांस पहुंचा तो इसे चंदन के तेल के बजाय अलकोहल में तैयार किया जाने लगा. यही सेंट कहलाया.

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के इत्र का भी दुनिया भर में बोलबाला रहा है. मुगल जमाने में मुर्शिदाबाद के आजगढ़ के हुसैन के गुलाब इत्र का नाम ऐसा विख्यात हुआ कि आज मुसलिम विवाह गुलाब का इत्र के बिना पूरा नहीं माना जाता. यहां के इत्र की खासीयत यह रही है कि गुलाब के साथ कस्तूरी की खुशबू का मिश्रण कर के इसे तैयार किया जाता है. इस के अलावा कन्नौज और जौनपुर में भी इत्र तैयार किया जाता था. यहां चंदन से खुशबू के अर्क में विशेष प्रक्रिया से कस्तूरी और दूसरे कई तरह की सुगंधि के मिश्रण से इत्र तैयार किया जाता था. इत्र में अगर इत्र, बेला इत्र, गुलाब इत्र, चमेली इत्र के अलावा शमामा, दरबार, खस, सुहाग नाम इत्र का आज भी बोलबाला है.

भारत में विदेशी परफ्यूम

भारत में विदेशी परफ्यूम की धूम है. 19वीं सदी के आखिर में भारतीय बाजार में विदेशी परफ्यूम याडले, लैवेंडर, वेनोलियार, वाइट रोज, टस्कर, यूडी कोलोन ने घुसपैठ की.   इस के बाद फ्रेंच परफ्यूम ओरिगा, लांबा, रिगो, गुयर लां, ओरपेज, ज्यां पाको, शैनल नंबर फाइव आदि का बोलबाला रहा. इस के अलावा ईवनिंग इन पेरिस, शालीमार, मित्सुको, मूगेमी, अमेरिकी कंपनी एवन का अनफौरगेटेबल, मून वींड, हीयर इज माई हार्ट, चैरिस्मा, औस्कर, स्वीट एनेस्टी, वाइल्ड कंट्री, ब्रोकेड फ्लावर, लिलि आफ दि वैली, हनी सर्कल भी पसंद किए जाते रहे हैं.

माना जाता है कि शैनेल फाइव की लोकप्रियता में चार चांद लगा मर्लिन मुनरो के कारण. क्रिस्तियां डी का पियाजें या पायजन, इव सां लरां, ओपियम, एसटी लाडर, रेवेलान का चार्ली, कैलविन क्लाइंन का इटर्निटी, पाको और इटली का जर्जियो अर्मिनो खूब लोकप्रिय ब्रांड हुआ करता था. इस के अलावा रिचि क्लब, नीना रिचि, लेज वाल्स दि रिची, ल्यार ड्यू टेंपस, बारबेरी, वीक एंड बरबेरीज, करिजिया, स्पाजिओ, फेंडी, फेंटेस्ला, एक्काडा, मोनोटाने भी लोकप्रिय थे. अब भी कुछ लोग इन्हें पसंद करते हैं.

क्वालिटी खुशबू की

आज भी अच्छी क्वालिटी का परफ्यूम वही है, जो ज्यादा से ज्यादा समय तक बरकरार रहता है और दूरदूर तक जिस की पहुंच होती है. इसीलिए क्वालिटी परफ्यूम तैयार करने में एसेंशियल औयल की बड़ी भूमिका होती है. एक खास किस्म की खुशबू तैयार करने में काफी मेहनतमशक्कत के बाद उस खुशबू का अर्क बहुत थोड़ा ही मिल पाता है.

मसलन, 880 पाउंड संतरे के फूलों से मात्र 1 पाउंड एसेंशियल औयल मिलता है. 4 हजार पाउंड गुलाब की पंखुडि़यों से केवल 1 पाउंड गुलाब का तेल मिलता है. इस की खुशबू लंबे समय तक बरकरार रखने के लिए इस में कुछ जैविक उपादान का मिश्रण करना पड़ता है. मसलन, मृग कस्तूरी, बीवर कस्तूरी.

आज कई तरहतरह के परफ्यूम बाजार में हैं-लिक्विड परफ्यूम, स्प्रे, क्रीम, कोलोन और तेल. आजकल स्प्रे कोलोन के रूप में परफ्यूम का चलन ज्यादा है. स्प्रे अधिक समय तक खुशबू बिखेरता है. क्रीम परफ्यूम डियोडरेंट स्टिक के रूप में उपलब्ध हैं. ये ऐंटीसेप्टिक भी होते है. वैसे डियोडरेंट ज्यादा समय तक स्थायी नहीं होते. इस की वजह यह है कि शरीर की गरमी से क्रीम पिघल कर खुशबू बिखेरती है, अगर गरमी नहीं मिली तो यह डियोडरेंट काम नहीं करता. कोलोन आमतौर पर नहाने के बाद ही इस्तेमाल किया जाता है. 1 मग पानी में 10-12 बूंदें कोलोन मिला कर पूरे शरीर में डाल लेने से काम चल जाता है.

खुशबू की थेरैपी

खुशबू यानी अरोमा. अरोमा माहौल को महकाने के साथसाथ इसे खुशगवार भी बनाता है. खुशबू का सुखद एहसास आदमी की स्फूर्ति में भी इजाफा करता है. शोध से पता चला है कि खुशबू स्नायविक दृढ़ता पैदा करने में सहायक है. खुशबूदार तेल से मलिश करने व खुशबू की कुछ बूंदें पानी में डाल कर नहाने से कई रोगों का इलाज संभव हुआ है. यही अरोमाथेरैपी कहलाई. इसीलिए खुशबू का इस्तेमाल मन और शरीर दोनों को चंगा बनाने में किया जाने लगा. अनिद्रा, तनाव, थकान के लिए नेचर थेरैपिस्ट अरोमा थेरैपी की सलाह देते हैं. आजकल यह बहुत चलन में है. लेकिन एक तरह से यह प्राचीन उपचार पद्धति है.

अरोमाथेरैपी में जिस एसेंशियल औयल का इस्तेमाल किया जाता है वह मानव सभ्यता के शुरुआती काल से अस्तित्व में है. इस का लगभग ईसा पूर्व 3,000 साल पुराना इतिहास है. इस एसेंशियल औयल का इस्तेमाल, खुशबू, सौंदर्य प्रसाधन के रूप में ही नहीं किया जाता था, बल्कि उस समय के गंध विशेषज्ञों ने इस एसेंशियल औयल में संरक्षण और उपचार के तत्त्व भी खोज निकाले थे और इसीलिए यह तेल उन की जिंदगी में शुमार हो गया. मिस्र की ममियों में शवों पर विभिन्न द्रव का लेप उन के संरक्षण के लिए किया जाता था. लेकिन इस पुरानी उपचार पद्धति को समय के साथ भुला दिया गया. पर आज फिर से अरोमाथेरैपी के रूप में चल पड़ा है.

परफ्यूम लगाने का शौक पालने वाले बहुत से लोग मिल जाएंगे. लेकिन परफ्यूम के इस्तेमाल करने का सही तरीका कम ही लोगों को आता है. परफ्यूम का चुनाव समय, काल और पात्र के अनुरूप होना चाहिए. परफ्यूम और माहौल का एक खास संबंध है. किसी ने ठीक ही कहा है कि राग बसंत सुनते समय गुलमोहर का लाल रंग, मेघ मल्हार के साथ कोयल की कुहुक, बािरश की रिमझिम और बिजली की चमक सुरूर जगाती है. उसी तरह खास मौके ही नहीं, खास मौसम में भी खुशबू का चुनाव माने रखता है. गरमी की दोपहरी में थोड़ा तेज परफ्यूम, वसंती मौसम में फूलों की भीनी खुशबू वाला और सर्दी के मौसम की शाम हो तो रोमांटिक खुशबू वाला परफ्यूम मादकता जगाता है.

परफ्यूम का इस्तेमाल उन के लिए निहायत जरूरी है, जिन के पसीने में बदबू होती है. शोध से पता चला है कि महिलाओं में पुरुषों के पसीने की गंध अलगअलग होती है. इसीलिए परफ्यूम भी महिलाओं और पुरुषों के लिए अलगअलग बनाए गए हैं. महिलाओं के लिए गुलाब, जूही, लिली के मीठी खुशबू और पुरुषों के लिए तंबाकू, मिर्ची, जंगली फूलों की खुशबू. पर आजकल परफ्यूम के मामले में भी तमाम भेद मिट गए हैं. महिलाएं भी आज पुरुषों के लिए बने परफ्यूम का इस्तेमाल कर रही हैं. इसीलिए यूनीसैक्स परफ्यूम का ज्यादा चलन है.

आफिस और ड्रैसकोड

कुछ नौकरियों में ड्रैसकोड अनिवार्य है. जैसे, एअरहोस्टेस, पुलिस कर्मचारी, होटलों के शैफ, रेलवे के टीटीई आदि को प्रतिदिन यूनिफार्म पहन कर ही जाना होता है. ऐसे में यूनिफार्म का ध्यान रखना जरूरी हो जाता है, विशेषकर लड़कियों को. उन्हें अपनी यूनिफार्म, चाहे वह साड़ी हो, सूट हो या फिर पैंटशर्ट का खास ध्यान रखना चाहिए.

मेरी बेटी सरकारी कार्यालय में कार्यरत है. उसे 26 जनवरी, 15 अगस्त जैसे विशेष आयोजनों के तहत या फिर किसी बड़े अधिकारी के आने पर ही यूनिफार्म पहन कर जाना होता है. ऐसे ही एक दिन मेरी बेटी के साथ काम करने वाली एक लड़की घर आई तो आते ही बोली, ‘‘जल्दी से एक हलकी सी डै्रस दे, इसे (पहनी गई पैंटशर्ट को दिखाते हुए) पहन कर तो दम घुट रहा है. बस में चढ़ कर जाना मुश्किल हो जाएगा.’’

उस की बेतरतीब डै्रस को देख कर मैं उस से पूछ बैठी, ‘‘बेटी, तुम्हारी यूनिफार्म तो बड़ी कसी लग रही है?’’

वह बोली, ‘‘आंटी, रोजाना यूनिफार्म में नहीं जाना होता. आज 3 महीने बाद पहनी है. लगता है, मैं थोड़ी मोटी हो गई हूं, इसलिए कमर में पैंट का बटन ही नहीं लग रहा है, बैल्ट के नीचे उसे खुला ही रखना पड़ा है.’’ उस की बातें सुन कर लगा, सच में शरीर तोे बढ़ताघटता रहता है. ऐसे में रखी हुई यूनिफार्म के बारे में कैसे सोचा जाए कि वह काफी दिनों बाद पहनने पर फिट रहेगी या नहीं.

जब पहनें यूनिफार्म

जिन नौकरियों में रोजाना ड्रैसकोड में नहीं जाना होता है उन के लिए यूनिफार्म बनवा तो ली जाती है, लेकिन उस की उचित देखभाल नहीं की जाती, क्योंकि मन में विश्वास रहता है कि वह बहुत कम पहनी जाती है, इसलिए अच्छी ही रहेगी. फिर जब पहनने की जरूरत पड़ती है तो वह निकाल कर पहन ली जाती है.

उस यूनिफार्म को देखने का आप के पास टाइम ही नहीं होता. इस से आप यह देख ही नहीं पातीं कि ड्रैस में कहीं कोई दागधब्बा तो नहीं, उस का बटन या हुक टूटा हुआ तो नहीं, कहीं से सिलाई खुली हुई तो नहीं, बैल्ट का लूप निकल तो नहीं गया है या वह बदन में कस तो नहीं रही. बस, मजबूरीवश यूनिफार्म पहननी है तो पहन ली. यह नहीं देखा कि वह आप पर कैसी लग रही है या उसे पहन कर आप कितनी अनकम्फर्टेबल हैं.

जब आप को अपनी ड्रैस से आराम नहीं मिलेगा, तो आप का व्यक्तित्व आफिस में सब के बीच शिथिल नजर आएगा. फिर काम में होशियार होने के बाद भी आप सुस्त कर्मचारी मानी जाएंगी. अत: ध्यान रख कर यूनिफार्म पहनें, जिस से आप तरोताजा रहें. यह ताजगी ही आप को प्रफुल्लित रखेगी और आप चुस्त व स्मार्ट नजर आएंगी.

जब भी यूनिफार्म पहन कर निकलें शरमाएं नहीं. कुछ लड़कियां यूनिफार्म पहन कर घर से झेंपती हुई सी जाती हैं. आफिस में भी किसी परिचित को देख कर शरमा जाती हैं. ऐसा न करें, क्योंकि आप का ड्रैसकोड आप की क्षमताओं को दर्शाता है. आप उस पर गर्व महसूस करें और सब से खुले दिल से मिलें.   

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