Best Hindi Stories : बारिश – मां और नेहा दीदी के टेढ़े मामलों का क्या हल निकला

Best Hindi Stories :  कभी-कभी आदमी बहुत कुछ चाहता है, पर उसे वह नहीं मिलता जबकि वह जो नहीं चाहता, वह हो जाता है. नेहा दीदी द्वारा बारबार कही जाने वाली यह बात बरबस ही इस समय मृदु को याद आ गई. याद आने का कारण था, नेहा दीदी का मां से अकारण उलझ जाना. वैसे तो नेहा दीदी, उस से कहीं ज्यादा ही मां का सम्मान करती थीं, पर कभी जब मां गुस्से में कुछ कटु कह देतीं तो नेहा दीदी बरदाश्त भी न कर पातीं और न चाहने पर भी मां से उलझ ही जातीं. नेहा दीदी का यों उलझना मां को भी कब बरदाश्त था. आखिर वे इस घर की मुखिया थीं और उस से बड़ी बात, वे नेहा दीदी की सहेली या बहन नहीं, बल्कि मां थीं. इस नाते उन्हें अधिकार था कि जो चाहे, सो कहें, पलट कर जवाब नहीं मिलना चाहिए. पर नेहा दीदी जब पट से जवाब देतीं, तो मां का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचता.

उस दिन भी मां का पारा आसमान की बुलंदियों पर ही था. उन के एक हाथ में चाबियों का गुच्छा था. उन्होंने धमकाने के लिए उस गुच्छे को ही अस्त्र बना रखा था, ‘अब चुप हो जाओ, जरा भी आवाज निकाली तो यही गुच्छा मुंह में घुसेड़ दूंगी, समझी.’ मृदु को डर लगा कि कहीं सच में मां अपना कहा कर ही न दिखाएं. नेहा दीदी को भी शायद वैसा ही अंदेशा हुआ होगा. वह तुरंत चुप हो गईं, पर सुबकना जारी था. कोई और बात होती तो मां उस को चुप करा देतीं या पास जा कर खड़ी हो जातीं, पर मामला उस वक्त कुछ टेढ़ा सा था.

वैसे देखा जाए तो बात कुछ भी नहीं थी, पर एक छोटे से शक की वजह से बात तूल पकड़ गई थी. मां जब भी कभी नेहा दीदी को घर छोड़ कर मृदु के साथ खरीदारी पर चली जातीं तो दीदी का मुंह फूल जाता. वैसे भी समयअसमय वे मां पर आरोप लगाया करतीं, ‘मुझ से ज्यादा आप मृदु को प्यार करती हैं. वह जो कुछ भी चाहती है उसे देती हैं जो करना चाहती है, करती है, पर आप…’ ऐसे नाजुक वक्त पर मां अकसर हंस कर नेहा दीदी को मना लेतीं, ‘अरे, पगली है क्या  मेरे लिए तो तुम दोनों ही बराबर हो, इन 2 आंखों की तरह. मैं क्या तेरी इच्छाएं पूरी नहीं करती  मृदु तुझ से छोटी है, उसे कुछ ज्यादा मिलता है तो तुझे तो खुश होना चाहिए.’

अगर नेहा इस पर भी न मानती तो मां दोनों को ही बाजार ले जातीं. नेहा दीदी को मनपसंद कुछ खास दिलवातीं, चाटवाट खिलवातीं और फिर उन्हीं की पसंद की फिल्म का कोई कैसेट लेतीं व घर आ जातीं. मां की इस सूझ से घर का वातावरण फिर दमक उठता, पर यह चमकदमक ज्यादा दिन ठहर न पाती. नेहा दीदी उसे ले कर फिर कोई हंगामा खड़ा कर देतीं. बदले में मां थक कर उन्हें 2-4 चपत रसीद कर देतीं.मृदु को यह सब अच्छा नहीं लगता था. अपनी जिद्दी प्रवृत्ति और बचपने के कारण वह दीदी को नीचा दिखा कर खुश जरूर होती थी, पर वह उन्हें व मां को दुख नहीं देना चाहती थी.

पर उस दिन की बात, उस की समझ में न आई. यह बात जरूर थी कि मां उस दिन भी उसे अकेली ही बाजार ले कर गई थीं. सारे रास्ते वे उस की जरूरत की मनपसंद चीजें दिलाती और खिलाती रही थीं, पर हमेशा की तरह नेहा दीदी के लिए कुछ नहीं लिया था  मृदु को आश्चर्य भी हुआ था. उस ने मां से कहा तो उन्होंने झिड़क दिया, ‘तू क्यों मरी जा रही है. तुझे जो लेना है, ले, उसे लेना होगा तो खुद ले लेगी ’ ‘पर मां,’ मृदु ने कुछ कहना चाहा तो उन्होंने आंखें तरेर कर उस की ओर देखा. घबरा कर मृदु चुप हो गई. सारे रास्ते वह फिर कुछ न बोली. पर मां बुदबुदाती रहीं, ‘अब पर निकल आए हैं न, जो चाहे, सो करेगी. जब सबकुछ छिपाना ही है तो अपना साजोसामान भी अपनेआप खरीदे. अरे, मैं भी तो देखूं कि कितनी जवान ह गई है. हम तो अभी तक बच्ची समझ कर गलतियों को माफ करते रहे, पर अब… ’

मृदु को अब भी सारी बातें अनजानी सी लग रही थीं. यों रास्ते में अपने बच्चों से दुनियाजहान की बातें करते जाना मां की आदत थी पर इस तरह गुस्से में बुदबुदाना  उस ने उन्हें दोबारा छेड़ने की हिम्मत न की. यहां तक कि घर भी आ गई, तब भी खामोश रही. अपना लाया सामान भी हमेशा की तरह चहक कर न खोला. मां काफी देर तक सुस्ताने की मुद्रा में चुप बैठी रही थीं. फिर उस का सामान खोल कर ज्यों ही उस के आगे किया, नेहा दीदी का सब्र का बांध टूट ही गया, ‘मेरे लिए कुछ नहीं लाईं  सबकुछ इसी को दिला दिया ’

‘हां, दिला दिया, तेरा डर है क्या ’ रास्ते से ही न जाने क्यों गुस्से में भरी आई मां नेहा द्वारा उलाहना दिए जाने पर फूट पड़ीं, ‘क्या जरूरत है तुझे अब मुझ से सामान लेने की  अरे, अपने उस यार से ले न, जिस के साथ घूम रही थी.’ मां की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि अचानक जैसे बिजली सी कड़क उठी. मृदु ने नेहा दीदी की इतनी तेज आवाज कभी नहीं सुनी थी और मां को भी कभी इतने उग्र रूप में नहीं देखा था. मां की बात ने शायद नेहा दीदी को भीतर तक चोट पहुंचाई थी, तभी तो वे पूरी ताकत से चीख पड़ी थीं. ‘मां, जरा सोचसमझ कर बोलो.’ दीदी की इस अप्रत्याशित चीख से पहले तो मां भी हकबका गईं, फिर अचानक ‘चटाक’ की आवाज करता उन का भरपूर हाथ नेहा दीदी के गाल पर पड़ा. नेहा दीदी के साथसाथ मृदु भी सकपका गई थी. फिर माहौल में एक गमजदा सन्नाटा फैल गया. थोड़ी देर बाद वह सन्नाटा टूटा था, मां के अलमारी खोलने और नेहा दीदी की बुदबुदाहट से. मां अलमारी से साड़ी निकाल कर बदलने को मुड़ी ही थीं कि हिचकियों के बीच निकली नेहा दीदी की बुदबुदाहट ने उन के कदम फिर रोक लिए थे, ‘आप जितना चाहें मुझे मार लीजिए  पर आप की यह बेबुनियाद बात मैं बरदाश्त कभी नहीं करूंगी.’

‘नहीं करेगी तो क्या करेगी  मुझ से लड़ेगी  जबान लड़ाएगी  बोल, क्या करेगी ’

मां किसी कुशल योद्धा की तरह दीदी के सामने फिर जा खड़ी हुई थीं. मृदु कोे डर लगा कि इस बार अगर नेहा दीदी ने जवाब दिया तो मां जम कर उन की ठुकाई कर ही देंगी. फिर चाहे चोट भीतर लगे या बाहर, मां का गुस्सा अगर चढ़ गया तो उतरना मुश्किल है. पर उस समय ऐसा कुछ भी न हुआ. नेहा दीदी भी शायद डर के मारे बुदबुदाते हुए ही जवाब दे रही थीं. उधर, मां भी बस धमका कर रह गई थीं, वैसे भी नेहा दीदी जब होंठों में बुदबुदाती थीं तो उन की बात ही समझ में न आती थी. उस सारे गरम नजारे की गवाह वही तीनों थीं. पिताजी तो औफिस में थे. वैसे भी घर पर होते तो क्या कर लेते. अपने व दोनों बच्चों के बीच मां किसी तीसरे की दखलंदाजी पसंद नहीं करती थीं, फिर चाहे वे पिताजी ही क्यों न हों. वैसे भी उन दोनों की सारी जरूरतें, घर की देखभाल, मेहमानों की आवभगत से ले कर बीमारीहारी, सभी कुछ मां अकेली ही संभालती थीं. मृदु को आश्चर्य हुआ, शिकायत करने पर मां हमेशा मामला संभाल लेतीं या घूस के तौर पर दीदी को कुछ दे कर शांत कर देतीं. कभी बाजार जाते समय दीदी अगर मौजूद रहतीं तो उन्हें घर देखने की हिदायत दे जातीं, पर तब ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

नेहा दीदी को बाजार न ले जाने के बाद भी अकसर जब मां उस के साथ घर लौटतीं, थोड़ी देर बाहर वाले कमरे में सोफे पर बैठ कर सुस्ताती जरूर थीं. उस वक्त थोड़ा मुंह फुलाए रहने के बावजूद दीदी, मां को बिस्कुट और पानी ला कर जरूर देतीं. वे जानती थीं कि मां उच्च रक्तचाप की मरीज हैं, और बड़ी जल्दी थक जाती हैं. पर उस दिन तो मां ने बड़ी रुखाई से नेहा को मना कर दिया. आमतौर से मां, दीदी के इस व्यवहार से अपनी सारी थकान भूल जातीं और कभीकभी पछताती भी कि बेकार में नेहा को नहीं ले गईं. पर वह पछतावा बस थोड़ी ही देर का होता. घर को अकेला छोड़ने का भय मां को फिर बाध्य कर देता कि किसी न किसी को घर छोड़ कर जाएं. मृदु छोटी थी, इसी से बाजी अकसर वही मार लेती. फिर घर लौट कर नेहा दीदी को तरहतरह से मुंह बिगाड़ कर छेड़ती, ‘लेले, तुम्हें मां नहीं ले गईं. आज बाजार में खूब चाट खाई.’

उम्र में 4-5 साल बड़ी होने के बावजूद नेहा दीदी उस का मुंह चिढ़ाना बरदाश्त न कर पातीं. जबकि वे भी अच्छी तरह जानती थीं कि प्यार के समय मां दोनों को बराबर समझती हैं. मृदु और नेहा दोनों ही जानती थीं कि मां बहुत अच्छी हैं. उन का व्यवहार भी उन दोनों के साथ एक बहन जैसा ही होता और वह भी ऐसी बहन, जो एक अच्छी दोस्त भी हो. वे हमेशा कहतीं, ‘मां को हमेशा अपने बच्चों का दोस्त होना चाहिए, तभी तो बच्चे खुल कर अपने मन की बात कह सकते हैं.’ मृदु, नेहा और मां वीसीआर पर जब भी कोई फिल्म देखतीं तो एक दोस्त की तरह नजर आतीं. तीनों की पसंद का हीरो एक होता, हीरोइन एक होती, यहां तक कि कहानी की पसंद भी लगभग एकजैसी होती.लेकिन यह बात दूसरी थी कि जब कोई अश्लील सीन फिल्म में आता तो मां उसे रिमोट से आगे कर देतीं. यद्यपि भीतर से मृदु और नेहा दीदी का मन होता कि देखें, उस सीन में आखिर ऐसा क्या है.

एक बार नेहा दीदी ने मां को काफी खुश देख कर पूछ भी लिया था, ‘आप तो आधुनिका हैं और यह भी कहती हैं कि आप अपने बच्चों की अच्छी दोस्त हैं और दोस्त से कुछ छिपावदुराव नहीं होता. फिर आप ये सब दृश्य आगे क्यों कर देती हैं ’नेहा दीदी की बात सुन कर मां काफी देर असमंजस की स्थिति में बैठी रहीं. फिर बोलीं, ‘हां, मैं काफी उदार हूं. तुम दोनों की अच्छी दोस्त भी हूं पर यह मत भूलो कि तुम्हारी मां भी हूं. दोस्त बनने के समय भला ही चाहूंगी, पर मेरे भीतर की मां यह तय करेगी कि तुम्हारे लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा.’

‘पर इन दृश्यों में ऐसी क्या बुराई है, मां ’ नेहा दीदी की नकल मृदु ने भी की तो मां ने उस के गाल पर हलकी चपत लगाई पर संबोधित दीदी को किया, ‘देखो, वक्त से पहले कुछ बातें जानना ठीक नहीं होता. अभी तुम दोनों काफी छोटी हो, बड़ी हो जाओगी तो ये दृश्य भी आगे करने की जरूरत नहीं रहेगी.’ आगे नेहा दीदी ने कुछ नहीं पूछा था. जानती थीं कि मां को ज्यादा बहसबाजी पसंद नहीं. मजाक में बहस हो जाए, यह बात अलग थी पर किसी गंभीर मसले पर बहस हो तो बाप रे बाप, तुरंत उन के भीतर की ‘मां’ जाग जाती. फिर उन के उपदेश में कोई बाधा डालता तो उस को डांटफटकार सुननी पड़ती. मां के इस अजीब रूप की मृदु को ज्यादा समझ नहीं थी, पर नेहा दीदी अकसर हतप्रभ रहतीं. खूब जी खोल कर बातें करने वाली, बातबात पर खिलखिलाने वाली मां को यह अकसर क्या हो जाता है  पिताजी के अनुसार, उन दोनों के बिगड़ जाने का भय मां को सताता है, जबकि मां इस बात को साफ नकार जातीं, ‘इस तरह की बातें बच्चों के सामने मत किया करो. अभी इन की उम्र ही क्या है. मृदु अभी 12 की भी नहीं हुई और नेहा तो 16 ही पूरे कर रही है.’

‘तो क्या हुआ ’ पिताजी बीच में ही उन की बात काट देते, ‘इस उम्र में तो तुम्हारी शादी हो गई थी और तुम…’

पिताजी की बात पर मृदु और नेहा दीदी हंसने लगतीं और फिर मां के पीछे पड़ जातीं कि वे अपनी पुरानी बातें बताएं. मां भी सारी बहस भूल कर पुरानी बातों में खो जातीं और फिर धाराप्रवाह वह सब भी बता जातीं, जिसे न बताने की हिदायत थोड़ी ही देर पहले उन्होंने पति को ही दी होती थी. मां की कहानी पर वे दोनों भी खूब मजे लेतीं. मसलन, उन्होंने कैसे चुपके से साड़ी पहन कर अपनी सहेलियों के साथ एक बालिग फिल्म देखी, किसी लड़के को छेड़ा, कौन सा लड़का उन के पीछे पड़ा था, और भी बहुत सी मजेदार बातें…

मां के सुनाने का ढंग इतना मजेदार होता था कि वे दोनों तो एकदम ही भूल जाती थीं कि वे उन्हीं की बेटियां हैं. मां भी शायद उस वक्त भूल ही जातीं, पर थोड़ी देर बाद जब याद आता तो तुरंत चेहरे पर कठोरता का आवरण डाल देतीं, ‘अरे, मैं भी कैसी भुलक्कड़ हूं, तुम दोनों से तो बिलकुल सहेलियों की ही तरह बात करने लगी. चलो, भागो यहां से.’ वे शायद झेंप भी जातीं, ‘अरे, इस तरह तो तुम बिगड़ ही जाओगी ’ वे दोनों भी हंसती हुई भाग खड़ी होतीं और फिर समयसमय पर मां को छेड़तीं. एक बार मृदु ने अपनी मां के बारे में अपनी सहेलियों को बताते हुए कहा था, ‘मेरी मां तो बहुत अच्छी हैं, वे हम से दोस्तों जैसा व्यवहार करती हैं.’

‘अरे यार, फिर तो तू बहुत सुखी है. मेरी मां तो पूरी जेलर हैं,’ निशा ने निराश स्वर में कहा था. मृदु सोच रही थी कि वह जेलर वाला रूप मां के भीतर कैसे समा गया  वे नेहा दीदी से किसी जेलर की तरह ही तो जिरह कर रही थीं. हाथ में डंडे की जगह चाबियों का गुच्छा था, पर उस से कहीं खतरनाक अस्त्र, ‘‘बोल, कौन था वह मुस्टंडा  किस के साथ गई थी कल स्कूल से ’’ मां के अप्रत्याशित गुस्से की वजह अब शायद नेहा दीदी की समझ में आई थी. दरअसल, दीपा को एक समारोह के लिए सूट खरीदना था. उस ने नेहा दीदी से भी बाजार चलने को कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया. मां से पूछे बगैर नेहा दीदी कभी कहीं अकेली नहीं गई थीं, पर दीपा की जिद के कारण वे छुट्टी के बाद चलने को तैयार हो गईं, सोचा, उधर से ही घर चली जाएंगी और मां को सब बता देंगी तो वे कुछ नहीं कहेंगी.

सूट खरीद कर दीपा अपने घर चली गई तो नेहा दीदी रिकशा का इंतजार करने लगीं. पर चिलचिलाती धूप में कोई रिकशा नजर नहीं आ रहा था. नेहा को सड़क के किनारे खड़े करीब आधा घंटा हो गया था. आखिर निराश हो कर वे पैदल ही आगे बढ़ीं कि तभी स्कूटर पर शक्ति आता दिखा. वह नेहा दीदी से एक क्लास आगे था और पढ़ाई में तेज होने के कारण अकसर उन की मदद कर दिया करता था. बातोंबातों में नेहा दीदी ने मृदु और मां को एक बार शक्ति के बारे में बताया भी था. तब मां ने कहा था, ‘लड़कों से एक सीमा के भीतर बोलना बुरा नहीं है, पर उस से आगे…’

परंतु मां उस बात को कैसे भूल गईं, जबकि नेहा दीदी बारबार उन की ही बात को दोहरा रही थीं, ‘‘आप ही ने तो कहा था…’’

‘‘हां, कहा था,’’ गुस्से में मां का चेहरा एकदम लाल हो रहा था, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि तू मेरी ही बात को बड़ा कर के मेरे ही मुंह पर दे मारे.’’ ‘‘पर मैं ने ऐसा तो नहीं किया है,’’ नेहा दीदी किसी तरह मां को अपनी बात समझाना चाह रही थीं, ‘‘धूप में कहीं रिकशा नहीं मिल रहा था, सो उस के स्कूटर पर बैठ गई. मैं ने तो कल आप को बताना भी चाहा था, पर…’’

‘‘और उस की कमर में हाथ क्यों डाल रखा था ’’ मां दीदी की बात काट कर इतनी जोर से चीखीं कि मृदु की धड़कनें भी तेज हो गईं. मां की तेज आवाज से पलभर के लिए शायद नेहा दीदी भी सकपका गईं, पर जल्दी ही संभल भी गईं, ‘‘मैं गिरने लगी थी, इसीलिए उसे पकड़ लिया था. भूल हो गई, आइंदा ऐसा नहीं होगा.’’ दीदी ने कातर निगाहों से मां की ओर देखा पर वे तो उस वक्त बिलकुल पत्थर बन गई थीं. वही तो अकसर कहती थीं, ‘कभीकभी मुझे न जाने क्या हो जाता है. मेरे आधुनिक रूप पर अनजाने ही एक पारंपरिक मां ज्यादा हावी हो जाती है. शायद, अपने बच्चों का भविष्य बिगड़ने के भय से.’ मां अपने उस रूप के हाथों जैसे अवश हो गई थीं. तभी तो नेहा दीदी की दी गई सफाई भी उन्हें आश्वस्त नहीं कर पा रही थी. नेहा दीदी के बारबार माफी मांगने, रोने के बावजूद उन पर आरोप लगाए जा रही थीं.

‘‘तो ठीक है,’’ नेहा दीदी भी जैसे आखिर थक ही गईं, ‘‘आप जो चाहें, समझ लीजिए. मैं यही समझूंगी कि मैं ने कोई गलती नहीं की. हां, सच में, कुछ गलत नहीं किया मैं ने. मैं ने वही किया जो आप ने अपनी जवानी में किया.’’ मृदु एकदम सन्नाटे में आ गई. जैसे बरसों से दबी कोई चिनगारी सहसा भड़क कर बाहर निकले और सीधे सूखी घास पर जा गिरे, उसे कुछ ऐसा ही लगा. मां पथराई सी चुपचाप पलंग के एक कोने में बैठी बेमकसद एक दिशा में ताक रही थीं. मृदु ने मां के कंधों पर सांत्वना भरा हाथ रखना चाहा, पर उन्होंने आहिस्ता से उस का हाथ झटक दिया. दुविधाग्रस्त मृदु बिना कुछ कहे खिड़की के पास जा कर खड़ी हो गई. बाहर का आकाश अपना रंग बदल चुका था. धुंधलाई नजरों को देख कर कोई भी समझ सकता था, एक धूल भरी आंधी सबकुछ अपने भीतर छिपा लेने की फिराक में है. उस ने जल्दी से आगे बढ़ कर खिड़की बंद कर दी और शीशे से ही बाहर का मंजर देखने लगी. जल्दी ही तेज, धूलभरी आंधी ने सारा माहौल अपनी गिरफ्त में ले लिया. उस पार स्पष्ट देख पाने में असमर्थ मृदु को सबकुछ साफ करने के लिए बड़ी शिद्दत से बारिश की जरूरत महसूस हो रही थी.

Famous Hindi Stories : प्यार के फूल – धर्म के बीच जब पनपा प्यार

Famous Hindi Stories : हिंदुस्तान में कर्फ्यू की खबर टीवी पर देख कर मैं ने अपने मातापिता को फोन किया और उन की खैरियत पूछते हुए कहा, ‘‘पापा, आखिर हुआ क्या है, कर्फ्यू क्यों?’’

पापा बोले, ‘‘क्या होना है, वही हिंदूमुसलिम दंगे. हजारों लोग मारे गए, इसलिए घर से बाहर न निकलने की हिदायत दी गई है.’’

मैं मन ही मन सोचने लगी भारत व पाकिस्तान को अलग हुए कितने वर्ष हो गए लेकिन ये दंगे न जाने कब खत्म होंगे. क्यों धर्म की दीवार दोनों मुल्कों के बीच खड़ी है. और बस, यही सोचते हुए मैं 8 वर्ष पीछे चली गई. जब मैं पहली बार सिडनी आई थी और वहां लगे एक कर्फ्यू में फंसी थी. पापा अपने किसी सैमिनार के सिलसिले में सिडनी आने वाले थे और मेरे जिद करने पर उन्होंने 2 दिन की जगह 7 दिन का प्लान बनाया और मम्मी व मुझे भी साथ में सिडनी घुमाने ले कर आए. उस प्लान के मुताबिक, पापा के 2 दिन के सैमिनार से पहले हम 5 दिन पापा के साथ सिडनी घूमने वाले थे और बाकी के 2 दिन अकेले. मुझे अच्छी तरह याद है उस समय मैं कालेज में पढ़ रही थी और जब मैं ने सिडनी की जमीन पर कदम रखा तो हजारों सपने मेरी आंखों में समाए थे. मेरी मम्मी पूरी तरह से शाकाहारी हैं, यहां तक कि वे उन रैस्टोरैंट्स में भी नहीं जातीं जहां मांसाहारी खाना बनता है. जबकि वहां ज्यादातर रैस्टोरैंट्स मांसाहारी भोजन सर्व करते हैं.

विदेश में यह एक बड़ी समस्या है. इसलिए पापा ने एअर बीएनबी के मारफत वहां रहने के लिए न्यू टाउन में एक फ्लैट की व्यवस्था की थी. सिडनी में बहुत से मकानमालिक अपने घर का कुछ हिस्सा इसी तरह किराए पर दे देते हैं जिस में सुसज्जित रसोई, बाथरूम और कमरे होते हैं. ताकि लोग वहां अपने घर की तरह रह सकें. एअरपोर्ट से घर जाते समय रास्ते को देख मैं समझ गई थी कि सिडनी एक साफसुथरा और डैवलप्ड शहर है. एक दिन हम ने जेटलेग के बाद आराम करने में गुजारा और अगले दिन ही निकल पड़े डार्लिंग हार्बर के लिए, जो कि सिडनी का मुख्य आकर्षण केंद्र है. समुद्र के किनारेकिनारे और पास में वहां देखने लायक कई जगहें हैं. जनवरी का महीना था और उन दिनों वहां बड़े दिनों की छुट्टियां थीं. सो, डार्लिंग हार्बर पर घूमने वालों का हुजूम जमा था. फिर भी व्यवस्था बहुत अच्छी थी. हम ने वहां ‘सी लाइफ’ के टिकट लिए और अंदर गए. यह एक अंडरवाटर किंग्डम है, जिस में विभिन्न प्रकार के समुद्री जीवों का एक्वेरियम है. छोटीबड़ी विभिन्न प्रजातियों की मछलियां जैसे औक्टोपस, शार्क, वाइट रीफ, पोलर बेयर, सी लायन और पैंगुइन और न जाने क्याक्या हैं वहां. सभी को बड़ेबड़े हालनुमा टैंकों में कांच की दीवारों में बंद कर के रखा गया है. देखने वालों को आभास होता है जैसे समुद्र के अंदर बनी किसी सुरंग में भ्रमण कर रहे हों. खास बात यह कि दुलर्भ प्रजाति मैमल डगोंग भी वहां मौजूद थी जिसे ‘सी पिग’ के नाम से भी जाना जाता है.

पूरा दिन उसी में बीत गया और शाम को हम बाहर खुली हवा का लुत्फ उठाने के लिए पैदल ही रवाना हो गए. वहीं फ्लाईओवर के ऊपर पूरे दिन सैलानियों को सिडनी में घुमाती मोनोरेल आतीजाती रहती हैं जो देखने में बड़ी ही आकर्षक लगती हैं. शायद कोई विरला ही हो जो उस ट्रेन में बैठ कर सफर करने की ख्वाहिश न रखे. खैर, पहला दिन बड़ा शानदार बीता और हम शाम ढलते ही घर आ गए. बड़े दिनों का असली मतलब तो मुझे वहां जा कर ही समझ आया. वहां सुबह 5 बजे हो जाती और सांझ रात को 9 बजे ढलती. शाम 6 बजे पूरा बाजार बंद हो जाता. दूसरे दिन हम ने फिर डार्लिंग हार्बर के लिए कैब पकड़ ली. वहां पर ‘मैडम तुसाद’, जोकि एक ‘वैक्स म्यूजियम’ है, देखा. उस में विश्व के नामी लोगों के मोम के पुतले हैं जोकि हुबहू जीवित इंसानों जैसे प्रतीत होते हैं. उन में हमारे महानायक अमिताभ बच्चन, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भी पुतले हैं. वहां माइकल जैक्सन के साथ हाथ में सिल्वर रंग का दस्ताना पहन उसी की मुद्रा में मैं ने भी फोटो खिंचवाया. ‘कोई मिल गया’ फिल्म का ‘जादू’, जोकि एक साइकिल की टोकरी में बैठा था, बच्चों की भीड़ वहां जमा थी. खैर, पूरा दिन हम ने वेट वर्ल्ड कैप्टेन कुक का जहाज और समुद्री पनडुब्बी का म्यूजियम देखने में बिता दिया. मैं मन ही मन सोच रही थी कहां मिलती हैं ये सब जगहें हिंदुस्तान में देखने को. और सिर्फ मैं नहीं, मम्मी भी बहुत रोमांचित थीं इन सब को देख कर. वहीं डार्लिंग हार्बर से ही दूर देखने पर सिडनी हार्बर ब्रिज और ओपेरा हाउस भी नजर आते हैं.

तीसरे दिन हम ने स्काई टावर व टोरंगा जू देखने का प्लान बनाया. स्काई टावर से तो पूरा सिडनी नजर आता है. यह सिडनी का सब से ऊंचा टावर है जो 360 डिगरी में गोल घूमता है और उस के अंदर एक रैस्टोरैंट भी है. कांच की दीवारों से सिडनी देखने का अपना ही मजा है. उस के ऊपर स्काई वाक भी होता है यानी कि घूमते टावर के ऊपर चलना. वहां चलना मेरे बस की बात नहीं थी. सो, हम ने टोरंगा जू की तरफ रुख किया. यहां विश्व के बड़ेबड़े जीवजंतुओं के अलावा अनोखे पक्षी देखने को मिले और बर्ड शो तो अपनेआप में अनूठा था. मुझे अच्छी तरह याद है, वहां मुझे सनबर्न हो गया था. आस्ट्रेलिया के ऊपर ओजोन परत सब से पतली है. मैं वहां रोज सनस्क्रीन लगाती. लेकिन उसी दिन बादल छाए देख, न लगाया. और कहते हैं न कि सिर मुंडाते ही ओले पड़ना. बस, वही हुआ मेरे साथ. हौल्टर नैक ड्रैस पहनी थी मैं ने, तो मेरे कंधे बुरी तरह से झुलस गए थे. एक शाम हम ने बोंडाई बीच के लिए रखी थी. वहां जाने के लिए कैब ली और जैसे ही बीच नजदीक आया, आसपास के बाजार में बीच संबंधी सामान जैसे सर्फिंग बोर्ड, स्विमिंग कौस्ट्यूम, वाटर ट्यूब और कपड़े बिक रहे थे. बीच पर पहुंचते ही नीले समुद्र पर आतीजाती लहरों को देख कर मैं बहुत रोमांचित हो गई और वहां की साफसुथरी सुनहरी रेत, मन करता था उस में लोटपोट हो जाऊं. लहरों पर सर्फिंग करते लोग तो फिल्मों में ही देखे थे, यहां हकीकत में देखे.

विदेशों में थोड़ा खुलापन ज्यादा है. सो, रंगबिरंगी चटख बिकनी पहनी लड़कियां बीच पर अपने साथियों के कमर में हाथ डाले घूम रही थीं और मुझे पापा के साथ वह सब देख झिझक हो रही थी. अगले 2 दिन पापा का सैमिनार था, सो उन्होंने कहा, ‘अब 2 दिन मैं अपने काम में बिजी और तुम से फ्री, तुम दोनों मांबेटी आसपास का बाजार घूम लेना.’ सो, पापा के जाते ही मम्मी और मैं निकल पड़े आसपास की सैर को. न्यू टाउन की मार्केट बहुत अच्छी थी. स्टोर्स के शीशे से डिस्प्ले में नजर आते इवनिंग गाउन मन को बहुत लुभा रहे थे. 2 घंटे में बाजार देखा, सबकुछ डौलर में बिकता है वहां. सो, भारत से बहुत महंगा था. छोटीमोटी शौपिंग की और फिर मैं ने मम्मी से कहा, ‘चलिए न मम्मी, ओपेरा हाउस को नजदीक से देख कर आते हैं और टाउन साइड की मार्केट भी देखेंगे.’

मम्मी परदेस में अकेले जाने के नाम से ही डर गई थीं. पर मैं ने कहा, ‘मेरे पास सिडनी का नक्शा है, आप चिंता न कीजिए.’ मेरे ज्यादा जिद करने पर मम्मी मान गईं और मैं ने बोटैनिकल गार्डन के लिए टैक्सी ले ली. यह समुद्र के किनारे अपनेआप में एक बड़ा गार्डन है जिस में वर्षों पुराने कई तरह के पेड़ हैं और बस, उसी के अंदरअंदर चलते हुए ओपेरा हाउस आ जाता है. तकरीबन 20 मिनट में वहां पहुंच हम ने गार्डन की सैर की और पहुंच गए ओपेरा हाउस जहां शहर के बड़ेबडे़ शो होते हैं. नीले समुद्र में कमल की पत्तियों की आकृति लिए सफेद रंग का यह औडिटोरियम कई हिंदी फिल्मों में दर्शाया गया है. वहां मैं ने कुछ फोटो खींचे और पैदल चलने लगी. मुझे अपने पर गर्व महसूस हो रहा था. मैं वहीं थी जहां ‘दिल चाहता है’ फिल्म में आमिर खान और प्रीति जिंटा पर एक गाना फिल्माया गया है ‘जाने क्यूं लोग प्यार करते हैं…’ बस, उस के बाद हम आ गए गार्डन के बाहर और पैदल ही गए जौर्ज स्ट्रीट और पिटर्स स्ट्रीट. ऊंचीऊंची बिल्डिंगों के बीच इस बाजार में दुनिया की हर चीज मौजूद थी.

हलकीहलकी बारिश होने लगी थी और उस के साथ अंधेरा भी. मम्मी ने कहा, ‘अब हमें घर चलना चाहिए’. मैं ने ‘हां’ कहते हुए एक कैब को रुकने का इशारा किया और न्यू टाउन चलने को कहा. टैक्सी ड्राइवर 23-24 वर्ष का हिंदीभाषी लड़का था. मम्मी ने पूछ लिया, ‘आप भी भारतीय हैं?’ वह कहने लगा, ‘नहीं, मैं पाकिस्तानी मुसलिम हूं?’ और बस, अभी कुछ दूरी तक पहुंचे थे कि देखा आगे पुलिस ने ट्रैफिक डाइवर्ट किया हुआ था, पूछने पर मालूम हुआ शहर में दंगा हो गया है. सो, पूरे शहर में कर्फ्यू लगा है. सभी को अपनेअपने घरों में पहुंचने के लिए कहा जा रहा था. यह बात सुन कर मेरे और मम्मी के माथे पर चिंता की रेखाएं उभर आई थीं. मम्मी ने टैक्सी ड्राइवर से पूछा, ‘कोई और रास्ता नहीं है क्या न्यू टाउन पहुंचने का?’ उस ने कहा, ‘नहीं, पर आप चिंता मत कीजिए. मैं आप को अपने घर ले चलता हूं. यहीं पास में ही है मेरा घर. जैसे ही कर्फ्यू खुलेगा, मैं आप को न्यू टाउन पहुंचादूंगा.’

मम्मी और मैं दोनों एकदूसरे के चेहरे को देख रहे थे और टैक्सी ड्राइवर ने हमारे चेहरों को पढ़ते हुए कहा, ‘चिंता न कीजिए, आप वहां बिलकुल सुरक्षित रहेंगी, मेरे अब्बाअम्मी भी हैं वहां.’ खैर, परदेस में हमारे पास और कोई चारा भी न था. 5 मिनट में ही हम उस के घर पहुंच गए. वहां उस ने हमें अपने अब्बाअम्मी से मिलवाया और उन्हें हमारी परेशानी के बारे में बताया. उस की अम्मी ने हमें चाय देते हुए कहा, ‘इसे अपना ही घर समझिए, कोई जरूरत हो तो जरूर बताइए. और आप किसी तरह की फिक्र न कीजिए. यहां आप बिलकुल सुरक्षित हैं.’ मैं ने सोचा मैं पापा को फोन कर बता दूं कि हम कहां हैं लेकिन फोनलाइन भी ठप हो चुकी थी. सो, बता न सकी. बातबात में मालूम हुआ वह ड्राइवर वहां अपनी मास्टर्स डिगरी कर रहा है. उस के अब्बा टैक्सी ड्राइवर हैं और आज किसी निजी कारण से वह टैक्सी ले कर गया था और यह हादसा हो गया. खैर, 2 दिन उस की अम्मी ने हमारी बहुत खातिरदारी की. खास बात यह कि मुसलिम होते हुए भी उन्होंने 2 दिनों में कुछ भी मांसाहारी खाना नहीं बनाया क्योंकि हम शाकाहारी थे. जब उन्हें मालूम हुआ कि मुझे सनबर्न हुआ है तो वे मुझे दिन में 4 बार ठंडा दूध देतीं और कहतीं, ‘कंधों पर लगा लो, थोड़ी राहत मिलेगी.’ मैं उस परिवार से बहुत प्रभावित हुई और स्वयं उस से भी जो मास्टर्स करते हुए भी टैक्सी चलाने में कोई झिझक नहीं करता. जैसे ही फोनलाइन खुली, मैं ने पापा को फोन कर कहा, ‘पापा हम सुरक्षित हैं.’ और कर्फ्यू हटते ही वह टैक्सी ड्राइवर हमें न्यू टाउन छोड़ने आया.

पापा ने उस से कहा, ‘बेटा, परदेस में तुम ने जो मदद की है उस का मैं शुक्रगुजार हूं. तुम्हारे कारण ही आज मेरा परिवार सुरक्षित है. न जाने कभी मैं तुम्हारा यह कर्ज उतार पाऊंगा भी या नहीं.’ वह बोला, ‘मैं इमरान हूं और यह तो इंसानियत का तकाजा है, इस में कर्ज की क्या बात?’ और इतना कह वह टैक्सी की तरफ बढ़ गया. मैं पीछे से उसे देखती रह गई और अनायास ही मेरा मन बस इमरान और उस की बातों में ही खोया रहा. मुझ से रहा न गया और मैं ने उसे फेसबुक पर ढूंढ़ कर फ्रैंड बना लिया. अब हम कभीकभी चैट करते. उस से बातें कर मुझे बड़ा सुकून मिलता. शायद, मेरे मन में उस के लिए प्यार के फूल खिलने लगे थे. खैर, 3 वर्ष इसी तरह बीत गए. मैं इमरान से चैट के दौरान अपनी हर अच्छी और बुरी बात साझा करती. मैं समझ गई थी कि वह एक नेक और खुले विचारों का लड़का है. वक्त का तकाजा देखिए, 3 साल बाद मैं मास्टर्स करने सिडनी गई और एअरपोर्ट पर मुझे लेने इमरान आ गया. उसे देख मैं उस के गले लग गई. मुझ से रहा न गया और मैं ने कह दिया, ‘आई लव यू, इमरान’ वह कहने लगा, ‘आई नो डार्लिंग, ऐंड आई लव यू टू.’ इमरान ने मुझे बांहों में कसा हुआ था और वह कसाव धीरेधीरे बढ़ता जा रहा था.

मैं तो सदा के लिए उसी घेरे में कैद हो जाना चाहती थी. सो, मैं ने पापा को फोन कर कहा, ‘पापा, मैं सुरक्षित पहुंच गई हूं और इमरान लेने आया है मुझे और एक खास बात यह कि आप मेरे लिए शादी के लिए लड़का मत ढूंढि़ए. मेरा रिश्ता तय हो गया है इमरान के साथ.’ मेरी पसंद भी पापा की पसंद थी, इसलिए उन्होंने भी कहा, ‘हां, मैं इमरान के मातापिता से बात करता हूं.’ और बस कुछ महीनों में हमारी सगाई कर दी गई और फिर शादी. एक बार तो रिश्तेदारों को बहुत बुरा लगा कि मैं एक हिंदू और मुसलिम से विवाह? लेकिन पापा ने उन्हें अपना फैसला सुना दिया था कि वे अपनी बेटी का भलाबुरा खूब समझते हैं. आज मुझे इमरान से विवाह किए पूरे 5 वर्ष बीत गए हैं, मैं हिंदू और वह मुसलिम लेकिन आज तक धर्म की दीवार की एक भी ईंट हम दोनों के बीच नहीं आई. हम दोनों तो जियो और जीने दो की डोर से बंधे अपना जीवन जी रहे हैं. सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते हैं, रिश्तेदारों के साथ. दोनों परिवार एकदूसरे की भावनाओं का खयाल रखते हुए एक हो गए हैं. मुझे कभी एहसास ही नहीं हुआ कि मैं एक मुसलिम परिवार में रह रही हूं. अपनी बेटी को भी हम ने धर्म के नाम पर नहीं बांटा.

मैं ने तो अपना प्यार पा लिया था. हमारे भारत के जब से 2 हिस्से क्या हुए, धर्म के नाम पर लोग मारनेकाटने को तैयार हैं. आएदिन दंगे होते हैं. कितने प्रेमी इस धर्म की बलि चढ़ा दिए जाते हैं. लोगों को अपने बच्चों से ज्यादा शायद धर्म ही प्यारा है या शायद एक खौफ भरा है मन में कि गैरधर्म से रिश्ता रखा तो अपने धर्म के लोग उन से किनारा कर लेंगे. धर्म के नाम पर दंगों में लड़कियों और महिलाओं के साथ बलात्कार होते हैं, उन्हें घरों से उठा लिया जाता है. मैं सोच रही थी, कैसा धर्मयुद्ध है ये, जो इंसान को इंसान से नफरत करना सिखाता है या फिर धर्म के ठेकेदार इस युद्ध का अंत होने ही नहीं देना चाहते और धर्म की आड़ में नफरत के बीज बोए जाते हैं, जिन में सिर्फ नश्तर ही उगते हैं. न जाने कब रुकेगी यह धर्म की खेती और बोए जाएंगे भाईचारे के बीज और फिर खिलेंगे प्यार के फूल.

Hindi Kahaniyan : अहसास – क्या था प्रिया का रहस्य

Hindi Kahaniyan : सुबहसुबह मैं लौन में व्यायाम कर रहा था. इस वक्त दिमाग में बस एक ही बात चल रही थी कि प्रिया को अपना कैसे बनाऊं. 7 साल की प्रिया जब से हमारे घर में आई है हम दोनों पतिपत्नी की यही मनोस्थिति है. हमारे दिलोदिमाग में बस प्रिया ही रहती है. साथ ही डर भी रहता है कि कोई उसे हम से छीन कर न ले जाए.

आज से 2 महीने पहले तक प्रिया हमारी जिंदगी में नहीं थी. कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के शुरू होने के करीब 1 सप्ताह बाद की बात है. उस दिन रात में अचानक हमारे दरवाजे पर तेज दस्तक हुई. वैसे लॉकडाउन की वजह से लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना बंद था. रात के 11बजे थे. सड़कें सुनसान थीं. मोहल्ला वीरान था. ऐसे में तेज घंटी की आवाज सुन कर मेरी पत्नी निभा थोड़ी सहम गई. मैं ने उठ कर दरवाजा खोला. सामने 2 पुलिस वाले खड़े थे. उन में से एक ने एक बच्ची का हाथ थामा हुआ था.

मासूम सी वह बच्ची बड़ीबड़ी आंखों से एकटक मुझे देख रही थी. मैं ने सवालिया नजरों से पुलिस वाले की तरफ देखा,”जी कहिए?”

“कुछ दिनों के लिए इस बच्ची को अपने घर में पनाह दे दीजिए.  इस के मांबाप को कोरोना हो गया है. उन की हालत गंभीर है. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है. इस लड़की का कोई रिश्तेदार इधर नहीं रहता. अकेली है बिचारी.”

“पर हम क्यों रखें? मतलब मेरे बारे में किस ने बताया आप को ?””

“दरअसल इस के घर में एक डायरी थी. जिस में आप का पता लिखा हुआ था. जब किसी और परिचित का पता नहीं चला तो हम इसे आप के पास ले कर आ गए. इस मासूम की सूरत देखिए. इस की सुरक्षा का ख्याल रखना जरूरी है. इस के मांबाप कोरोना पौजिटिव हैं मगर इस की रिपोर्ट नेगेटिव आई है. इसलिए डरने की कोई बात नहीं. प्लीज रख लीजिए इसे.”

मैं ने निभा की तरफ देखा तो उस ने स्वीकृति में सिर हिलाया.

मैं ने कहा,” ओके रख लेता हूं. मुझे अपना नंबर दे दीजिए.”

“जरूर. यह मेरा कार्ड है और इस में नंबर है मेरा. कभी जरूरत पड़े तो मुझे फोन कर लीजिएगा.” पुलिस वाले ने कार्ड के साथ बच्ची का हाथ मेरे हाथों में दिया और चला गया.

निभा ने बच्ची को अंदर लाते हुए प्यार से पूछा,” बेटा आप का नाम क्या है?”

“प्रिया”

अच्छा घर कहां है आप का ?”

बच्ची ने इस सवाल सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप एक कोने में खड़ी हो गई. निभा उस के लिए पानी ले आई और अपना एक पुराना टौप दे कर उसे नहाने को भेज दिया. फिर मेरी तरफ देख कर बोली,” हमारी कोई संतान नहीं. चलो कुछ दिन इस बच्ची के ही पेरेंट्स बन जाते हैं.”

मैं भी मुस्कुरा उठा. इस तरह प्रिया हमारी जिंदगी में शामिल हो गई. वह काफी शांत और गुमसुम सी रहती. हमारे सवालों का संक्षेप में जवाब दे कर अपनी दुनिया में खोई रहती. मगर एक खूबी थी उस में कि इतनी कम उम्र में भी काफी समझदार और काम में एक्टिव थी. अपना सारा काम बिना नखरे किए आराम से कर लेती. यही नहीं घर के कामों में निभा की मदद करने का भी पूरा प्रयास करती. वह स्टूल पर चढ़ कर गैस जला लेती और चाय बना देती. सब्जियां काट देती. काफी चीजें बनानी भी आती थीं उसे.

प्रिया को आए करीब चारपांच दिन बीत चुके थे. इस बीच हम जब भी प्रिया से उस के मांबाप के बारे में या गांव के बारे में पूछते तो वह खामोश रह जाती. ऐसा नहीं था कि उसे बोलना नहीं आता था या समझ की कमी थी. वह हर बात बखूबी समझती थी और निभा के आगे कभीकभी ऐसी बात भी बोल जाती जो उस की उम्र के देखे अधिक समझदारी वाली बात होती. उस ने अपनी नानी के गांव का नाम लिया मगर जब भी उस के मांबाप के बारे में पूछा जाता तो वह खामोश हो जाती.

एक दिन वह मेरे करीब आ कर बैठ गई और धीमे से बोली,” अंकल पुलिस वाले अंकल से मेरी मम्मी के बारे में पूछो न.”

“हां बेटा, अभी पूछता हूं.” मैं ने पुलिस वाले द्वारा दिया गया कार्ड निकाला और नंबर लगाने लगा. मगर कई दफा कोशिश करने के बावजूद नंबर नहीं लग सका. हर बार नौट रीचेबल आता रहा. फिर प्रिया ने अपनी फ्राक की जेब से निकाल कर एक कागज दिया जिस में एक नंबर लिखा था. मैं ने उस नंबर को भी ट्राई किया. मगर वह भी नौट रीचेबल आ रहा था.

मैं ने निभा की तरफ देखा. हम दोनों ही बहुत असमंजस की स्थिति में थे. अगले दिन फिर से प्रिया ने फोन करने को कहा. नंबर फिर से नौट रीचेबल आया. यह बात हमें बहुत अजीब सी लग रही थी. मैं ने सामने की पुलिस चौकी में जा कर पता करने का निश्चय किया.

मैं नजदीकी पुलिस चौकी पहुंच गया और थाना इंचार्ज से जा कर मिला. वह बिजी था. आधा घंटा इंतजार करने के बाद उस ने मुझे बुलाया. सारी कहानी सुनाई तो उस ने 2- 3 नंबर मिलाए, बात की. मगर कोई सही बात पता नहीं चल पाई. उस ने फिर आने को कह कर मुझे टरका दिया.

मैं ने घर जा कर प्रिया को समझाया,”देखो बेटा अभी आप के मम्मीपापा का पता नहीं चल रहा है. पर आप परेशान न हो. हम दोनों भी आप के मम्मीपापा की तरह ही हैं. हम आप का हमेशा ध्यान रखेंगे. हमें अपना मम्मीपापा समझो. ओके बेटा.”

प्रिया ने हां में सिर हिलाया और चली गई. इस के बाद उस ने कभी भी अपने मम्मीपापा के बारे में नहीं पूछा. अब वह हम दोनों से थोड़ाथोड़ा घुलनेमिलने लगी थी.

इधर मैं और निभा उसे पा कर काफी प्रसन्न थे. कुछ दिनों में ही वह हमें अपने घर की सदस्य लगने लगी. दरअसल हमें उस से प्यार हो गया था. उस की आदत सी हो गई थी. अब हम दिल से चाहने लगे थे कि उसे वापस लेने कोई न आए. उस के मांबाप भी नहीं.

एक दिन मैं सुबहसुबह एक्सरसाइज कर घर में घुसा तो प्रिया कहीं नजर नहीं आई. वरना वह रोज सुबह 5 बजे उठ जाती है और मेरे साथ एक्सरसाइज भी करती है. आज वह एक्सरसाइज के लिए भी नहीं आई थी.

मैं ने तीनों कमरों में देखा. वह कहीं नहीं थी. इस के बाद मैं ने किचन में झांका. वहां निभा नाश्ता बना रही थी. प्रिया वहां भी नहीं थी. मैं ने निभा से पूछा,”प्रिया को देखा है? कहीं दिख नहीं रही.”

“वह तो सुबह में आप के साथ ही होती है.”

“पर आज आई ही नहीं.” मैं घबड़ा गया था.

“देखो कहीं छत पर तो नहीं.” निभा ने कहा तो मैं दौड़ता हुआ छत पर पहुंचा.

प्रिया एक कोने में बैठी कागज पर चित्र उकेर रही थी. मैं दंग रह गया. उस ने बेहद खूबसूरत पेंटिंग बनाई थी. मैं ने उसे गोद में ले कर चूम लिया. आज उस की एक नई खूबी का पता चला था. मैं ने उसे अपने पास रखी पेंटिंग से जुड़ी चीजें जैसे कैनवस और कलर्स निकाल कर दिए तो वह हौले से मुस्कुरा उठी.

अब तो वह अक्सर ही पेंटिंग करने बैठ जाती. उस के चित्रों का विषय प्रकृति होती थी. साथ ही कई बार दर्द का चित्रांकन भी किया करती. उस की हर तस्वीर में एक अकेली लड़की भी जरूर होती.

एक दिन रात में 8 बजे के करीब फिर से घंटी बजी. हमारा दिल धड़क उठा. मुझे लगा कहीं पुलिस वाले तो नहीं आ गए प्रिया को लेने. निभा ने भी कस कर प्रिया का हाथ पकड़ लिया. हम दोनों ही अब प्रिया को वापस करने के पक्ष में नहीं थे. प्रिया जैसी बच्ची को पा कर हमें अपने जीवन का मकसद मिल गया था. मैं ने मन ही मन यह तय करते हुए दरवाजा खोला की पुलिस वालों को किसी भी तरह समझा-्बुझा कर वापस भेज दूंगा. दरवाजा खोला तो सामने पड़ोस के नीरज जी को देख कर मेरे दिमाग की सारी टेंशन काफूर हो गई. वह हमारे पास सिरका लेने आए थे. निभा ने एक छोटी शीशी में सिरका डाल कर उन्हें दे दिया और हम दोनों ने चैन की सांस ली.

वैसे जैसेजैसे हमारा प्यार प्रिया के लिए बढ़ रहा था हमारे दरवाजे पर होने वाली हर दस्तक हमें अंदर से हिला देती. हम सहम जाते. धड़कनें बढ़ जातीं. जब सायरन की आवाज आती तो भी हमारा दिल बैठ जाता. डर लगता की विदाई का समय तो नहीं आ गया है. पर शुक्र है कि इतने दिनों में प्रिया पर हक जताने कोई नहीं आया था.

कहीं न कहीं हम दिल ही दिल में यह तमन्ना भी करने लगे थे कि प्रिया के मांबाप न बचें ताकि प्रिया हमेशा के लिए हमारी हो जाए.

एक दिन निभा ने मुझ से कहा,” क्यों न हम प्रिया को प्रॉपर गोद ले लें. फिर हमारे मन का यह भय भी जाता रहेगा कि कोई उसे ले न जाए. हम प्रिया को एक बेहतर जिंदगी भी दे पाएंगे.”

निभा का यह सुझाव मुझे बेहद पसंद आया. अगले ही दिन मैं ने अपने एक वकील दोस्त अभिनव को फोन लगाया और उस से प्रिया के बारे में सब कुछ बताता हुआ बोला,” यार मैं प्रिया को गोद लेना चाहता हूं. तू बता, फॉर्मेलिटीज कैसे पूरी करें.”

मेरी बात सुन कर वह हंसता हुआ बोला,”यार यह सब इतना आसान नहीं. बहुत लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. बच्चा गोद लेने में दो-तीन साल तक लग जाते हैं.”

“पर यार प्रिया तो हमारे पास ही है. ”

“याद रखो वह तुम्हारे पास है पर तुम्हारी है नहीं. अभी तुम्हें यह भी नहीं पता कि उस के मांबाप कौन हैं, कहां हैं, जिंदा हैं या नहीं. उस के घर में और कौनकौन हैं, दादा, चाचा, मामा, बुआ आदि. वे लोग बच्ची को गोद देना चाहते भी हैं या नहीं. बिना किसी अप्रूवल तुम इस तरह किसी अनजान बच्ची को गोद नहीं ले सकते. तुम्हें पहले इस बच्ची को पुलिस वालों को सौंप देना चाहिए.”

“अच्छा सुन, निभा से बात कर के बताता हूं.” कह कर मैं ने फोन रख दिया.

अभिनव को सारी बात बता कर मैं पछता रहा था. उस ने मुझे और भी ज्यादा उलझन में डाल दिया था. मैं इस बात को ले कर कुछ सोचना नहीं चाहता था. बस प्रिया के साथ बीत रहे इस समय को महसूस करना चाहता था. यही हाल निभा का भी था.

भले ही प्रिया ने अपने चारों तरफ रहस्य का घेरा बना रखा था, भले ही प्रिया हमें मिलेगी या नहीं इस बात को ले कर अभी भी अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई थी मगर फिर भी उस का साथ हमें हर पल एक नए खूबसूरत और संतुष्ट जीवन का अहसास दे रहा था और हमें यह अहसास बहुत पसंद आ रहा था.

Latest Hindi Stories : प्यार चढ़ा परवान

Latest Hindi Stories : प्रमिला और शंकर के बीच अवैध संबंध हैं, यह बात रामनगर थाने के लगभग सभी कर्मचारियों को पता था. मगर इन सब से बेखबर प्रमिला और शंकर एकदूसरे के प्यार में इस कदर खो गए थे कि अपने बारे में होने वाली चर्चाओं की तरफ जरा भी ध्यान नहीं जा रहा था.

शंकर थाने के इंचार्ज थे तो प्रमिला एक महिला कौंस्टेबल थी. थाने के सर्वेसर्वा अर्थात इंचार्ज होने के कारण शंकर पर किसी इंस्पैक्टर, हवलदार या स्टाफ की उन के सामने चूं तक करने की हिम्मत नहीं होती थी.

थाने की सब से खूबसूरत महिला कौंस्टेबल प्रमिला थाने में शेरनी बनी हुई थी, क्योंकि थाने का प्रभारी उस पर लट्टू था और वह उसे अपनी उंगलियों पर नचाती थी.

जिन लोगों के काम शंकर करने से मना कर देते थे, वे लोग प्रमिला से मिल कर अपना काम करवाते थे.

प्रमिला और शंकर के अवैध रिश्तों से और कोई नहीं मगर उन के परिजन जरूर परेशान थे. प्रमिला 1 बच्चे की मां थी तो शंकर का बड़ा बेटा इस वर्ष कक्षा 10वीं की परीक्षा दे रहा था.

मगर कहते हैं न कि प्रेम जब परवान चढ़ता है तो वह खून के रिश्तों तक को नजरअंदाज कर देता है. प्रमिला के घर में अकसर इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच झगड़ा होता था मगर प्रमिला हर बार यही दलील देती थी कि लोग उन की दोस्ती का गलत अर्थ निकाल रहे हैं. थाना प्रभारी जटिल केस के मामलों में या जहां महिला कौंस्टेबल का होना बहुत जरूरी होता है तभी उसे दौरों पर अपने साथ ले जाते हैं. थाने की बाकी महिला कौंस्टेबलों को यह मौका नहीं मिलता है इसलिए वे लोग मेरी बदनामी कर रहे हैं. यही हाल शंकर के घर का था मगर वे भी बहाने और बातें बनाने में माहिर थे. उन की पत्नी रोधो कर चुपचाप बैठ जाती थीं.

शंकर किसी न किसी केस के बहाने शहर से बाहर चले जाते थे और अपने साथ प्रमिला को भी ले जाते थे. अपने शहर में वे दोनों बहुत कम बार साथसाथ दिखाई देते थे ताकि उनके अवैध प्रेम संबंधों को किसी को पता न चलें. लेकिन कहते हैं न कि खांसी और प्यार कभी छिपाए नहीं छिपता, इन के साथ भी यही हो रहा था.

एक दिन शाम को प्रमिला अपने प्रेमी शंकर के साथ एक फिल्म देख कर रात देर से घर पहुंची तो उस के पति ने हंगामा खड़ा कर दिया. दोनों में जम कर हंगामा हुआ.

प्रमिला के घर में घुसते ही अमित ने गुस्से से कहा,”प्रमिला, तुम्हारा चालचलन मुझे ठीक नहीं लग रहा है. पूरे मोहल्ले में तुम्हारे और डीएसपी शंकर के अवैध संबंधों के चर्चे हो रहे हैं. तुम्हें शर्म आनी चाहिए. 1 बच्चे की मां हो कर तुम किसी पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो…”

अमित की बात बीच में ही काटती हुई प्रमिला ने शेरनी की दहाड़ती हुई बोली,”अमित, बस करो, मैं अब और नहीं सुन सकती… तुम मेरे पति हो कर मुझ पर ऐसे घिनौने लांछन लगा रहे हो, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. मेरे और थाना प्रभारी के बीच दोस्ताने रिश्ते हैं. कई बार जटिल और महिलाओं से संबंधित मामलों में जब दूसरी जगह जाना पड़ता है तब वे मुझे अपने साथ ले जाते हैं, जिस के कारण बाकी के लोग मुझ से जलते हैं और मुझे बदनाम करते हैं.

“अमित, तुम्हें एक बात बता दूं कि तुम्हारी यह दो टके की मास्टर की नौकरी से हमारा घर नहीं चल रहा है. तुम्हारी तनख्खाह से तो राजू के दूध के 1 महीने का खर्च भी नहीं निकलता है…समझे. फिर तुम्हारे बूढ़े मांपिता भी तो हमारी छाती पर बैठे हुए हैं, उन की दवाओं का खर्च कहां सा आता है, यह भी सोचो.

“अमित, पैसे कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, कई पापड़ बेलने पड़ते हैं. थाना प्रभारी के साथ मेरे अच्छे संबंधों की बदौलत मुझे ऊपरी कमाई में ज्यादा हिस्सा मिलता है, फिर मैं उन के साथ अकसर दौरे पर जाती हूं तो तब टीएडीए आदि का मोटा बिल भी बन जाता है. यह सब मैं इस परिवार के लिए कर रही हूं. तुम कहो तो मैं नौकरी छोड़ कर घर पर बैठ जाती हूं, फिर देखती हूं तुम कैसे घर चलाते हो?“

अमित ने ज्यादा बात बढ़ाना उचित नहीं समझा. वह जानता था कि प्रमिला से बहस करना बेकार है. वह प्रमिला को जब तक रंगे हाथों नहीं पकड़ लेता तब तक वह उस पर हावी ही रहेगी. अमित के बुजुर्ग पिता ने भी उसे चुप रहने की सलाह दी. वे जानते थे कि घर में अगर रोजाना कलह होते रहेंगे तो घर का माहौल खराब हो जाता है और घर में सुखशांति भी नहीं रहती है.

उन्होंने अमित को समझाते हुए कहा,”बेटा अमित, बहू से झगड़ा मत करो, उस पर अगर इश्क का भूत सवार होगा तो वह तुम्हारी एक भी बात नहीं सुनेगी. इस समय उलटा चोर कोतवाल को डांटने वाली स्थिति बनी हुई है. जब उस की अक्ल ठिकाने आएगी तब सबकुछ ठीक हो जाएगा.

“बेटा, वक्त बड़ा बलवान होता है. आज उस का वक्त है तो कल हमारा भी वक्त आएगा.“

अपने उम्रदराज पिता की बात सुन कर अमित ने खामोश रहने का निर्णय ले लिया.

एक दिन जब प्रमिला अपने घर जाने के लिए रवाना हो रही थी, तभी उसे शंकर ने बुलाया.

“प्रमिला, हमारे हाथ एक बहुत बड़ा बकरा लगने वाला है. याद रखना किसी को खबर न हो पाए. कल सुबह 4 बजे हमारी टीम एबी ऐंड कंपनी के मालिक के घर पर छापा डालने वाली है. कंपनी के मालिक सुरेश का बंगला नैपियंसी रोड पर है. हम आज रात उस के बंगले के ठीक सामने स्थित होटल हिलटोन में ठहरेंगे. मैं ने हम दोनों के लिए वहां पर एक कमरा बुक कर दिया है. टीम के बाकी सदस्य सुबह हमारे होटल में पहुंचेंगे, इस के बाद हमारी टीम आगे की काररवाई के लिए रवाना हो जाएगी. तुम जल्दी से अपने घर चली जाओ और तैयारी कर के रात 9 बजे सीधे होटल पहुंच जाना, मैं तुम्हें वहीं पर मिलूंगा.“

“यस सर, मैं पहुँच जाऊंगी…” कहते हुए प्रमिला थाने से बाहर निकल गई.

सुबह ठीक 4 बजे सायरन की आवाज गूंज उठी. 2 जीपों में सवार पुलिसकर्मियों ने एबी कंपनी के बंगले को घेर लिया. गहरी नींद में सो रहे बंगले के चौकीदार हडबड़ा कर उठ गए. पुलिस को गेट पर देखते ही उनकी घिग्घी बंध गई. चौकीदारों ने गेट खोल दिया. कंपनी के मालिक सुरेश के घर वालों की समझ में कुछ आता इस से पहले पुलिस ने उन सब को एक कमरे में बंद कर के घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

प्रमिला को सुरेश के परिवार की महिला सदस्यों को संभालने का जिम्मा सौंपा गया था.

करीब 2 घंटे तक पूरे बंगले की तलाशी जारी रही. छापे के दौरान पुलिस ने बहुत सारा सामान जब्त कर लिया.

कंपनी का मालिक सुरेश बड़ी खामोशी से पुलिस की काररवाई को देख रहा था. वह भी पहुंचा हुआ खिलाड़ी था, उसे पता था कि शंकर एक नंबर का भ्रष्ट पुलिस अधिकारी है. उसे छापे में जो गैरकानूनी सामान मिला है उस का आधा तो शंकरऔर उस के साथी हड़प लेंगे, फिर बाद में शंकर की थोड़ी जेब गरम कर देगा तो वह मामले को रफादफा भी कर देगा.

बंगले पर छापे के दौरान मिले माल के बारे में सुन कर थाने के अन्य पुलिस वालों के मुंह से लार टपकने लगी. शंकर ने सभी के बीच माल का जल्दी से बंटवारा करना उचित समझा. बंटवारे को ले कर उन के अर्दली और कुछ कौंस्टबलों में झगड़ा भी शुरू हो गया. शंकर ने अपने अर्दली और अन्य कौंस्टबलों को समझाया मगर उन के बीच लड़ाई कम होने के बजाय बढ़ती ही गई.

शंकर ने छापे में मिला हुआ कुछ महंगा सामान उसी होटल के कमरे में छिपा कर रखा था. इधर बंटवारे से नाराज अर्दली और 2 कौंस्टेबल शंकर से बदला लेने की योजना बनाने लगे.

उन्होंने तुरंत अपने इलाके के एसपी आलोक प्रसाद को सारी घटना की जानकारी दी. उन्हें यह भी बताया कि शंकर और प्रमिला हिलटोन होटल में रूके हुए हैं.

उन्हें रंगे हाथ पकड़ने का यह सुनहरा मौका है. एसपी आलोक प्रसाद को यह भी सूचना दी गई कि कंपनी मालिक के घर पर पड़े छापे के दौरान बरामद माल का एक बड़ा हिस्सा शंकर और प्रमिला ने अपने कब्जे में रखा था, जो उसी होटल में रखा हुआ है.

एसपी आलोक प्रसाद अपनी टीम के साथ तुरंत होटल हिलटोन पर पहुंच गए. इस मौके पर कंपनी के मालिक के साथसाथ शंकर की पत्नी और प्रमिला के पति को भी होटल पर बुला लिया गया ताकि शंकर और प्रमिला के बीच के अवैध संबंधों का पर्दाफाश हो सके.

एसपी आलोक प्रसाद ने डुप्लीकैट चाबी से होटल के कमरे का दरवाजा खुलवाया, तो कमरे में शंकर और प्रमिला को बिस्तर पर नग्न अवस्था में सोए देख कर सभी हैरान रह गए.

एसपी को सामने देख कर शंकर की हालत पतली हो गई. वह बिस्तर से कूद कर अपनेआप को संभालते हुए उन्हें सैल्यूट करने लगा.

शंकर के सैल्यूट का जवाब देते हुए आलोक प्रसाद ने व्यंग्य से कहा,”शंकर पहले कपड़े पहन लो, फिर सैल्यूट करना. यह तुम्हारे साथ कौन है? इसे भी कपड़े पहनने के लिए कहो…”

प्रमिला की समझ में कुछ नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है. वह दौड़ कर बाथरूम में चली गई.

कुछ देर के बाद आलोक प्रसाद ने सभी को अंदर बुलाया. शंकर की पत्नी तो भूखी शेरनी की तरह शंकर पर झपटने लगी. वहां मौजूद लोगों ने किसी तरह बीचबचाव किया.

आलोक प्रसाद ने प्रमिला के पति की ओर मुखातिब होते हुए कहा,”अमित, अपनी पत्नी को बाथरूम से बाहर बुला दो, बहुत देर से अंदर बैठी है, पसीने से तरबतर हो गई होगी…”

“प्रमिला बाहर आ जाओ, अब अपना मुंह छिपाने से कोई फायदा नहीं है, तुम्हारा मुंह तो काला हो चुका है और तुम्हारी करतूतों का पर्दाफाश भी हो चुका है,“ अमित तैश में आ कर कहा.

प्रमिला नजरें और सिर झुकाते हुए बाथरूम से बाहर आई. उसे देखते ही अमित आगबबूला हो उठा और वह प्रमिला पर झपटने के लिए आगे बढ़ा, मगर उसे भी समझा कर रोक दिया गया.

“अमित, अब पुलिस अपना काम करेगी. इन दोनों को इन के अपराधों की सजा जरूर मिलेगी…” कहते हुए आलोक प्रसाद शंकर के करीब पहुंचे  और उन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,”शंकर, कंपनी मालिक के घर छापे के दौरान जब्त माल कहां है? जल्दी से बाहर निकालो. कोई भी सामान छिपाने की तुम्हारी कोशिश नाकाम होगी, क्योंकि इस वक्त हमारे बीच कंपनी का मालिक भी मौजूद है.”

शंकर ने प्रमिला को अंदर से बैग लाने को कहा. प्रमिला चुपचाप एक बड़ा सूटकेस ले कर आई.

भारीभरकम सूटकेस देख कर आलोक प्रसाद ने एक इंस्पैक्टर से कहा,”सूटकेस अपने कब्जे में ले लो और इन दोनों को पुलिस स्टैशन ले कर चलो. अब आगे की काररवाई वहीं होगी.“

सिर झुकाए हुए शंकर और प्रमिला एक कौंस्टेबल के साथ कमरे से बाहर निकल गए हैं.

एसपी आलोक प्रसाद शंकर और प्रमिला को रोक कर बोले,”आप दोनों एक बात याद रखना, जो आदमी अपने परिवार को धोखे में रख कर उस के साथ अन्याय करता है, अनैतिक संबंधों में लिप्त हो कर अपने परिवार की सुखशांति भंग करता है और जो अपनी नौकरी के साथ बेईमानी करता है, उसे एक न एक दिन बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है.”

वे दोनों सिर झुकाए चुपचाप खङे थे. उन्हें पता था कि अब आगे न सिर्फ उन की नौकरी छिन जाएगी, बल्कि जेल भी जाना होगा.

लालच और वासना ने दोनों को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था.

Health Patches ट्राई किए क्या, क्या यह सेहत के लिए फायदेमंद है ?

Health Patches : पिछले कुछ सालों में हैल्थ और न्यूट्रिशन इंडस्ट्री में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं. पहले विटामिन कैप्सूल्स का दौर था, फिर विटामिन गमीज ने बाजार में दस्तक दी और अब स्ट्रिप्स ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है. मल्टीविटामिन और बायोटिन स्ट्रिप्स के साथ गट हैल्थ पैचेस तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं और सोशल मीडिया पर इन का ट्रैंड भी खूब चल रहा है.

मगर सवाल यह उठता है कि क्या ये वास्तव में सेहत के लिए फायदेमंद हैं या फिर सिर्फ एक नया मार्केटिंग ट्रैंड? क्या इन्हें डाक्टर की सलाह के बिना लेना सही है और अगर इन का गलत इस्तेमाल किया जाए तो क्या ये हमारे शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं? आइए, इस नए हैल्थ ट्रैंड को गहराई से सम?ाते हैं.

कैसे काम करती हैं विटामिन स्ट्रिप्स

मल्टीविटामिन और बायोटिन स्ट्रिप्स पतली, घुलनशील फिल्म्स होती हैं, जिन्हें जीभ पर रख कर तुरंत खाया जा सकता है. ये मुंह में रखते ही घुल जाती हैं और सीधे ब्लडस्ट्रीम में जा कर असर दिखाने लगती हैं. ऐसा दावा किया जाता है कि ये स्ट्रिप्स सामान्य कैप्सूल्स और टैबलेट्स की तुलना में तेजी से असर करती हैं और इन्हें लेने में भी आसानी होती है.

मगर गमीज में उन का स्वाद बढ़ाने के लिए काफी मात्रा में एडिड शुगर होती है, जोकि हमारे स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है. अगर बाकी मल्टीविटामिन के तुलना में स्ट्रिप्स या पैचेस पर चर्चा करें तो ये कैप्सूल्स और टैबलेट्स के मुकाबले आसानी से पच जाती हैं, शरीर में तेजी से अवशोषित होती हैं, कैरी करना और खाना आसान होता और अलगअलग फ्लेवर्स में उपलब्ध होती हैं.

नुकसान (गलत तरीके से इस्तेमाल करने पर)

शरीर में विटामिन की अधिकता हो सकती है, जिस से दुष्प्रभाव हो सकते हैं.

पाचन संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

शरीर के नैचुरल प्रोसैस को बाधित कर सकती हैं.

अब इसी तरह गट हैल्थ पैचेस भी लोगों की दिलचस्पी का नया विषय बन रहे हैं. आइए, जानते हैं कि ये क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं.

क्या होते हैं गट हैल्थ पैचेस और कैसे काम करते हैं?

गट हेल्थ पैचेस एक प्रकार के ट्रांसडर्मल पैच होते हैं, जिन्हें त्वचा पर लगाया जाता है. ये त्वचा के माध्यम से शरीर में प्रोबायोटिक्स, प्रीबायोटिक्स और अन्य जरूरी पोषक तत्त्वों को पहुंचाने का दावा करते हैं.

इन का उद्देश्य पाचनतंत्र यानी गट हैल्थ  को स्वस्थ रखना है. कहा जाता है कि ये सीधे रक्त प्रवाह में अवशोषित हो कर गट हैल्थ को सुधारते हैं और पाचन में सुधार, सूजन को कम करने और माइक्रोबायोम को संतुलित करने में मदद करते हैं.

इस के फायदे ये बताए जाते हैं:

द्य पेट की समस्याओं को कम करने में मदद कर सकते हैं.

प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स की पूर्ति कर सकते हैं.

पाचन प्रक्रिया को बेहतर बना सकते हैं.

नुकसान (अगर बिना सोचेसमझे इस्तेमाल किया जाए)

शरीर के नैचुरल गट बैक्टीरिया बैलेंस को प्रभावित कर सकते हैं.

लंबे समय तक उपयोग करने से शरीर प्राकृतिक रूप से प्रोबायोटिक्स बनाने में कमी कर सकता है.

हर किसी की बौडी को एकजैसा फायदा नहीं होता लेकिन क्या वास्तव में ये शरीर के लिए जरूरी हैं?

क्यों हो गया है स्ट्रिप्स और पैचेस का चस्का?

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और फिटनैस ट्रेनर्स मल्टीविटामिन खाने पर अत्यधिक जोर देते हैं. लोगों के मन में यह डर पैदा किया जाता है कि अगर वे इन का सेवन नहीं करेंगे तो हैल्थ की दौड़ में कहीं पीछे रह जाएंगे. इसलिए ये कभी कैप्सूल्स को तो स्ट्रिप्स को प्रमोट करते हैं. इंस्टाग्राम,

यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स पर यह ट्रैंड खूब देखने को मिल रहा है. आकर्षक पैकेजिंग, चमकदार एडवरटाइजिंग और इंस्टैंट रिजल्ट का दावा लोगों को इन की तरफ आकर्षित कर रहा है.

विशेष रूप से महिलाओं में बायोटिन स्ट्रिप्स का क्रेज अधिक बढ़ा है क्योंकि ये बालों और त्वचा के लिए फायदेमंद बताई जाती हैं. इसी तरह जिम जाने वालों में मल्टीविटामिन स्ट्रिप्स का ट्रैंड तेजी से बढ़ रहा है.

मगर क्या इन स्ट्रिप्स का सेवन बिना डाक्टर की सलाह के करना ठीक है?

बिना डाक्टर की सलाह से न करें:

किसी भी सप्लिमैंट का सेवन बहुत से लोग बिना ब्लड टैस्ट कराए या डाक्टर से संपर्क किए बिना ही इन स्ट्रिप्स का सेवन करने लगते हैं. वे यह भी नहीं जानते कि उन के शरीर को इन की जरूरत है भी या नहीं. हो सकता है आप की बौडी नीड आप के खाने से ही पूरी हो रही हो. ऐसे में बिना अपने शरीर की कंडीशन को समझे इन का सेवन एक गंभीर गलती हो सकती है. हमारे शरीर को किन विटामिंस की कमी है, यह सिर्फ एक हैल्थ चैकअप से ही पता चल सकता है. अगर शरीर में पहले से ही पर्याप्त विटामिंस मौजूद हैं और फिर भी आप इन का सेवन कर रहे हैं तो ऐसा करना नुकसान भी पहुंचा सकता है. उदाहरण के लिए:

विटामिन डी की अधिकता हड्डियों और किडनी पर असर डाल सकती है.

विटामिन सी की अधिकता ज्यादा मात्रा में लेने से पेट में गैस, डायरिया और किडनी स्टोन्स की समस्या हो सकती है.

गट हैल्थ पैचेस का बेवजह उपयोग करने से प्राकृतिक गट बैक्टीरिया का संतुलन बिगड़ सकता है, जिस से पाचन संबंधी परेशानियां हो सकती हैं.

बायोटिन स्ट्रिप्स का अधिक सेवन स्किन ऐलर्जी, पेट खराब और हारमोनल असंतुलन का कारण बन सकता है.

मल्टीविटामिन स्ट्रिप्स बिना जरूरत के लेने से शरीर में कुछ विटामिंस की अधिकता हो सकती है जो लिवर और किडनियों पर असर डाल सकती है. इसलिए केवल किसी जिम ट्रेनर, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर या दोस्तों की देखादेखी इन का सेवन करना खतरनाक हो सकता है.

सोशल मीडिया ट्रैंड्स के जाल में न फंसें

आज की आधी आबादी सिर्फ सोशल मीडिया ट्रैंड्स को देख कर सप्लिमैंट्स का सेवन कर रही है. कई कंपनियां इन उत्पादों को बड़ेबड़े दावों के साथ बेच रही हैं. लोग बिना रिसर्च किए इन का सेवन शुरू कर देते हैं, जिस से बाद में दुष्प्रभाव झंलने पड़ सकते हैं.

आजकल बच्चों को ले कर भी बहुत सारी ऐसी मल्टीविटामिन गमीज मार्केट में आ रही हैं जिन्हें सैलिब्रिटिज प्रोमोट करते दिखते हैं, लेकिन क्या वास्तव में वो अपने बच्चों को ये खाने के लिए देते हैं यह कोई नहीं जानता. इस बात को ऐसे भी समझें कि बड़ेबड़े फिल्मी सितारे चीनी से भरपूर ड्रिक्स बेचने के लिए स्क्रीन पर दिखते हैं लेकिन खुद और अपने बच्चों को चीनी का एक कण खाने से तक परहेज करते हैं, उसे जहर बताते हैं.

इसलिए आप भी आंखें खोल कर, सोचसमझ कर ही किसी को फौलो करें, सोशल मीडिया पर ट्रैंडिंग होने का मतलब यह नहीं कि वह आप के लिए सही है. हर इंसान का शरीर अलग होता है, जरूरतें अलग होती हैं. अत: डाक्टर या न्यूट्रिशन ऐक्सपर्ट की सलाह लें न कि इन्फ्लुएंसर्स की.

Fashion : जरूरत या समय की बरबादी

Fashion :  लड़कियां फैशन की दुनिया में खुद को अपडेट रखने के लिए अपने समय का एक बड़ा हिस्सा इस में लगा रही हैं.लेकिन क्या इस फैशन के पीछे भागने से लड़कियां अपने असली टेलैंट को खो रही हैं? क्या वे अपने असली लक्ष्य और सपनों को नजरअंदाज कर रही हैं? फैशन और ट्रैंड्स को फोलो करना गलत नहीं है, लेकिन अगर यह महिलाओं को अपने असली टेलैंट और लक्ष्यों से दूर कर देता है, तो यह एक चिंता का विषय बन सकता है.महिलाओं को चाहिए कि वे फैशन को एक सैल्फ ऐक्सप्रेशंस के रूप में अपनाएं नकि इसे अपनी असली पहचान मानें.

असली सफलता और आत्मविश्वास उन के भीतर छिपी प्रतिभाओं, मेहनत और संघर्ष से आती है नकि केवल बाहरी दिखावे से.इसलिए, महिलाओं को अपने समय का सही इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि वे अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर सकें और अपनी असली पहचान बना सकें.

समय की बरबादी

आजकल के समय में युवतियां अधिकतर अपना आधा दिन अपने लुक्स और फैशन को ले कर सोचने, नए कपड़े खरीदने और नए ट्रैंड्स को अपनाने में बिता रही हैं.हर रोज नया फैशन ट्राई करना, इंस्टाग्राम और सोशल मीडिया पर खुद को अपडेट रखना और दूसरों से बेहतर दिखने की दौड़ में वे अपने महत्त्वपूर्ण कामों और असली टेलैंट पर ध्यान नहीं दे पातीं.इस तरह से उन का समय केवल बाहरी दिखावे पर खर्च हो रहा है, जबकि अंदर की असली प्रतिभा, जो किसी और क्षेत्र में हो सकती है, वह दब जाती है.

टेलैंट को न पहचानना

महिलाएं अकसर अपने वास्तविक टेलैंट को पहचानने के बजाय फैशन के दबाव में आती हैं.वे सोचती हैं कि उन की पहचान सिर्फ उन के लुक्स और पहनावे से है, जबकि उन की असली पहचान उन की कला, ज्ञान, और मेहनत से बननी चाहिए.इस सब के चलते उन्हें अपने भीतर छिपी प्रतिभाओं को विकसित करने का समय नहीं मिलता.यदि इस समय को वे अपनी शिक्षा, कैरियर, या किसी अन्य रचनात्मक कार्य में लगातीं, तो वे न केवल खुद को बेहतर बना सकती थीं, बल्कि समाज में भी एक उदाहरण पेश कर सकती थीं.

आत्मविश्वास की कमी

जब महिलाएं फैशन के दबाव में आती हैं और केवल बाहरी दिखावे पर ध्यान देती हैं, तो वे अपने आत्मविश्वास को कम महसूस करती हैं.उन्हें लगता है कि वे दूसरों की नजर में नहीं आ सकती हैं, अगर उन का लुक ट्रैंड के अनुसार नहीं है.लेकिन असल में एक महिला का असली आत्मविश्वास उस के ज्ञान, काम और कड़ी मेहनत से बनता है नकि उस के पहनावे से.

फैशन के चक्कर में वे अपने आत्मविश्वास को खोने लगती हैं, जो उन के असली टेलैंट को निखारने में मदद कर सकता था.

समाज में सही संदेश का अभाव

यदि महिलाएं केवल फैशन को ले कर अपना समय और ऊर्जा लगाती रहें, तो वे समाज को गलत संदेश देती हैं कि सफलता और आत्मसम्मान का मतलब केवल बाहरी दिखावा है जबकि असली सफलता खुद को जानने, अपने टेलैंट को पहचानने और अपने सपनों को पूरा करने में है.यह जरूरी है कि महिलाएं फैशन की बजाय अपने आत्मविकास पर अधिक ध्यान दें.

पौजिटिव चैंज जरूरी

महिलाओं को यह समझने की जरूरत है कि फैशन का मतलब केवल दिखावा नहीं होता, बल्कि यह एक सैल्फ ऐक्सप्रेशंस का तरीका हो सकता है.लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि वे अपनी मेहनत, प्रतिभा और विचारशीलता को नजरअंदाज करें.अगर महिलाएं अपने टेलैंट को पहचानें और उस पर काम करें, तो वे न केवल अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणा बन सकती हैं.

सच्ची सुंदरता आंतरिक होती है

हमारा बाहरी दिखावा जैसे कपड़े और मेकअप केवल अस्थायी होते हैं.फैशन के ट्रैंड्स बदलते रहते हैं, लेकिन हमारे विचार, ज्ञान और आत्मविश्वास हमेशा हमारे साथ रहते हैं.अगर आप अपने वार्डरोब को ले कर ज्यादा समय और ऊर्जा खर्च करती हैं, तो आप अपनी सच्ची सुंदरता और विचारशीलता को नजरअंदाज कर सकती हैं.ज्ञान और आंतरिक विकास ही वे चीजें हैं जो एक व्यक्ति को वास्तविक रूप से आकर्षक बनाती हैं.

वार्डरोब से ज्यादा जरूरी है आत्मविश्वास

कपड़े निश्चित रूप से हमारी पहचान का हिस्सा होते हैं, लेकिन यह केवल आत्मविश्वास को बढ़ाने का एक साधन है.एक अच्छा और आरामदायक ड्रैस आप को आत्मविश्वास दे सकता है, लेकिन यह आत्मविश्वास तभी टिकाऊ होता है जब वह आप की सोच और ज्ञान से आता है.अगर आप अपनी आंतरिक क्षमता पर ध्यान देंगी, तो आप के कपड़े और पहनावा खुद ब खुद आप की सकारात्मक ऊर्जा और आत्मविश्वास को प्रदर्शित करेंगे.

समय का सही इस्तेमाल करें

आजकल सोशल मीडिया और फैशन के माध्यम से महिलाओं को अधिक से अधिक फैशन ट्रैंड्स और स्टाइल्स के बारे में जानकारी मिलती रहती है.यह सही है कि एक अच्छा और सही स्टाइल आत्म अभिव्यक्ति का एक तरीका हो सकता है, लेकिन अगर आप हर समय अपने कपड़ों और दिखावे पर ध्यान केंद्रित करेंगे, तो आप अपने समय का सही उपयोग नहीं कर पाएंगे.समय का एक बड़ा हिस्सा अपने ज्ञान को बढ़ाने, अपनी क्षमताओं को निखारने और आत्मविकास पर खर्च करना कहीं ज्यादा फायदेमंद होगा.

ज्ञान का असर जीवन पर होता है

कपड़े और फैशन की दुनिया में भले ही आप स्टाइलिश दिखें, लेकिन असली प्रभाव तब आता है जब आप अपने विचारों, ज्ञान और कार्यों से समाज में फर्क डालें.ज्ञान आप को न केवल सफलता की दिशा में मार्गदर्शन करता है, बल्कि यह आप को अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं में सशक्त बनाता है.यदि आप का ध्यान केवल अपनी बाहर की दुनिया पर होगा, तो आप अपने भीतर की दुनिया को नजरअंदाज कर देंगी, जो कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है.

वास्तविक पहचान आप के विचारों में है

कपड़े और बाहरी दिखावा आप की पहचान का केवल एक छोटा सा हिस्सा होते हैं.आप की असली पहचान आप के विचारों, कार्यों और विचारशीलता में छिपी होती है.जब आप अपने ज्ञान और विचारों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, तो आप अपने वास्तविक स्व को पहचान पाएंगे और जीवन के हर पहलू में सफलता प्राप्त कर सकेंगे.

Lace Hairstyle : जूड़ा हो या चोटी हर स्टाइल में आप के लुक में लगा देगी चार चांद

Lace Hairstyle : करिश्मा कपूर कुछ दिन पहले अपने कजिन की शादी में रानी पिंक सूट के साथ बालों में परांदा के साथ लैस लगाए नजर आईं. उन के इस स्टाइल के सामने आलिया और बेबो की ड्रैस तक फीकी पड़ गई. लोगों ने भी इस लुक को खासा पसंद किया.

आप की खूबसूरती का दर्पण होते हैं आप के बाल, जबतक आप किसी आउटफिट के साथ अच्छा हेयर स्टाइल कैरी न करें तो आप के आउटफिट में जान नहीं आती. ऐसा भी हो सकता है कि आप का हेयर स्टाइल आप के गेटअप से मैच न हो तो आप की खूबसूरती को बढ़ाने के बजाए बिगाड़ ही दे. ऐसे में अगर आप किसी गेटटूगेदर, फंक्शन जैसे शादी पार्टी के लिए कोई सेफ और ब्यूटीफुल हेयरस्टाइल चुनना चाहती हैं तो आप भी बालों में भारीभरकम फूलों और मंहगी हेयर ऐक्सेसरीज के बजाए लैस को चुन सकती हैं. यह लैस स्टाइल आप की जेब भी हलकी रखेगी और आप को खूबसूरत और स्मार्ट दिखाएगी.

किरन जरी लैस

इन दिनों सभी पंजाबी दुप्पटों की शान किरन जरी लैस के दिवाने हुए जा रहे हैं. चाहे ब्राइडल दुपट्टा हो या फिर प्लेन सूट पर स्टेटमैंट दुपट्टा, हर जगह आप को जरी लैस का काम देखने को मिल जाएगा. इस का इस्तेमाल आप अपने बालों पर भी कर सकती हैं. बस, करना यह होगा कि आप अपने बालों को अच्छे से टाई कर के पहले बेसिक सी चोटी बना लें और ऊपर से अपने मनमुताबिक लैस को बालों पर लपेट लें. यह इफर्टलैस स्टाइल जितना आसानी से बन जाता है, उतना ही बालों की और आप के आउटफिट की खूबसूरती को बढ़ाने का काम करता है. आप चाहें तो बालों में चोटी पर लैस लगा कर फिर उस का जूड़ा भी बना सकती हैं. यह लाइट वेट बन होगा और आप की इंडियन ट्रैडिशन आउटफिट हो या इंडोवैस्टर्न, हर आउटफिट पर सूट करेगा.

पर्ल लैस

मोती किसे पसंद नहीं. पर्ल लैस के वर्सेटाइल इस्तेमाल और इस की ऐलिगेंस का भी कोई जवाब ही नहीं. आप को इस के लिए अलग से इनवैस्ट करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी. आप अपने पास पड़ी पुरानी पर्ल माला को बालों में इस्तेमाल कर के नया लुक क्रिएट कर सकती हैं या मार्केट से सस्ती लंबी पर्ल माला ले कर उसे चोटी के साथ ही गूंथ लें.

अब आप चाहें तो चोटी के आखिर में पर्ल हैंगिंग का इस्तेमाल करें या चोटी से ही बन को स्टाइल कर लें. यह हेयरस्टाइल हर आउटफिट में जान डाल देगा.

कौड़ी लैस

इन दिनों कौड़ी का चलन खूब हो गया है. चूड़ियां हों या कड़ा या फिर आप की सिंपल आउटफिट में जान डालनी हो, सभी कौड़ी को ही प्रेफरैंस दे रहे हैं. आप इस का इस्तेमाल अपने बालों को सजाने के लिए भी कर सकती हैं. इस के इस्तेमाल से आप अपनी चोटी को सजाएं या बन के ऊपर इस को लगाएं यह हर स्टाइल में सुंदर ही लगती है. अगर आप किसी फंग्शन में सब से हट के लगना चाहती हैं तो यह हेयरस्टाइल ट्राई करना बनता है. बैस्ट बात तो यह है कि यह लैस आप के यूज के बाद खराब नहीं होती. आप मल्टीपल टाइम इन को अलगअलग हेयरस्टाइल में इस्तेमाल कर सकती हैं और उस से अगर आप बोर हो जाएं तो इस लैस को आसानी से अपनी किसी ड्रैस में लगवा सकती हैं.

कटदाना लटकन लैस

कटदाना लटकन लैस आप को बहुत से स्टाइल और कलर में मिल जाएंगी। आप चाहें तो सिल्वर, गोल्डन या रोज गोल्ड कलर की लैस चुन सकती हैं. ये लटकन कटदाना लैस आप को बहुत से वैरिएशन में भी मिल जाएगी, जिस में आप को साथ में बिड्स का काम या व्टाइट मोती का काम भी मिल जाएगा. आप अपने ड्रैस के मुताबिक इसे चुन सकती हैं.

फ्रिंज लैस

मार्केट में ₹30 मीटर के सस्ते दामों में मिलने वाले ये लैस आप के बड़े काम आ सकती हैं. आप इस से आसानी से अपनी चोटी को सजा सकती हैं.

आप के लिए एक टिप हम और देना चाहते हैं. अगर आप की चोटी छोटी है तो आप एक चोटी स्टाइल हेयर ऐक्सटैंशन जरूर अपनी वैनिटी का हिस्सा बनाएं. आप परांदा भी ले सकती हैं. इस से आप को बालों को लैंथ मिलेगी और लैस को अच्छे से आप डैकोरेट कर पाएंगी.

सिक्का लैस

मार्केट में सिक्का लैस के भी बहुत से वैरिएशन मौजूद हैं. ये आप को हट कर लुक देगा और आप के आउटफिट में जान डाल देगा. फिर चाहे आप ब्राइट टू बी हों या पार्टी गेस्ट, हलदी मेहंदी फंक्शन हो या शादी यह हर आउटफिट में सूट करती है. आप चाहें तो 1-2 बार इसे बालों में इस्तेमाल कर के अपने ड्रैस में लगवा सकती हैं.

गोटा पट्टी लैस

गोटा पट्टी का ट्रैंड न सिर्फ कपड़ों में इन है बल्कि यह आप को बालों को सजाने के लिए भी बैस्ट है. गोटे से बने हुए फूल हों या फिर प्लेन गोटा पट्टी लैस, इन से आप आसानी से अपने बाल सजा सकती हैं. आप चाहें तो इसे चोटी के साथ अपने बालों में गूंथ लें या फिर ऊपर से अच्छे से लपेट कर बीचबीच में गोटा फूल से सजा लें. यह भी जरूरी नहीं है कि आप हेयरस्टाइल के लिए नया लैस खरीदें, आप के पास जो लैस मौजूद हों आप उस से भी ऐक्सपेरिमैंट कर सकती हैं.

सिर्फ ब्लाउज या सूट नहीं, बालों में लगाएं लटकन

मार्केट में मौजूद बड़े स्टाइल के स्टेटमैंट लटकन न सिर्फ आप के ड्रैस की खूबसूरती को बढ़ाते हैं, बल्कि आप इन्हें अपने बालों में इस्तेमाल कर सकती हैं. इन दिनों डिजाइनर्स बालों में लटकन लगाए खूब नजर आते हैं. बिग मिरर वर्क लटकन हों या लाइट वेट लैस लटकन, आप आसानी से उन्हें बालों में लगा सकती हैं.

मेरी दोस्त Depression की शिकार हो गई हैं, मैं क्या करूं?

Depression :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरी सहेली को बचपन में पिता का प्यार नहीं मिला. उस की मां ने मेहनत कर के उसे पढ़ायालिखाया. अब उस के पति को  ब्लड कैंसर है, जिस से वह मेरी सहेली से बहुत रूखा व्यवहार करता है. बचपन से अब तक उपेक्षा झेलतेझेलते वह डिप्रैशन का शिकार हो गई है. रातरात भर रोती है. नींद की 2-2 गोलियां खाने पर भी उसे नींद नहीं आती. उसे अपनी मां की परवाह है. उन्हें दुखी नहीं करना चाहती, इसीलिए खुदकुशी नहीं करना चाहती. वह क्या करे कि तनाव से बाहर आ कर खुशहाल जीवन जी सके?

जवाब-

जीवन में कमियों के साथ जीने की तो आदत डालनी ही होती है. अगर पति को ब्लड कैंसर है और मां अकेली हैं, तो आप की सहेली को दोगुनी मेहनत कर के दोनों को संभालना होगा वरना सभी नुकसान में रहेंगे, वह खुद भी. नींद की गोलियां खाना इलाज नहीं, क्योंकि इस से समस्या सुलझने वाली नहीं. समस्या तो और ज्यादा काम, चाहे वह घरों की सफाई का हो, दफ्तर का हो या खुद हाथ से मेहनत का, करना ही होगा.

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रीमा का सारा दिन चिड़चिड़ाना, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना और बेवजह रोने लग जाना, नींद न आना, किसी काम में मन न लगना और अकेले बैठना, उसके इस व्यवहार से घर के सारे लोग परेशान थे. पति चिल्लाता कि कोई कमी नहीं है, फिर भी यह खुश नहीं रह सकती है, सास अलग ताने मारती कि इसे तो काम न करने के बहाने चाहिए. जब देखो अपने कमरे में जाकर बैठ जाती है.

 भौतिकतावादी संस्कृति से उपजी समस्याएं

रीमा की तरह कितने लोग हैं जो आज ऐसे हालातों से गुजर रहे हैं और जानते तक नहीं कि वे डिप्रेशन का शिकार हैं. वक्त जिस तेजी से बदला है और भौतिकवादी संस्कृति और सोशल मीडिया ने जिस तरह से हमारे जीवन में पैठ बनाई है, उसने डिप्रेशन को बड़े पैमाने पर जन्म दिया है और हर उम्र का व्यक्ति चाहे बच्चा ही क्यों न हो, इससे जूझ रहा है. मानसिक रूप से एक लड़ाई लड़ने वाले इंसान को बाहर से देखने पर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि वह भीतर से टूट रहा है. यहां तक कि ऐसे लोग जिनकी जिंदगी रुपहले पर्दे पर चमकती दिखाई देती है, भी इसका शिकार हो चुके हैं, जैसे आलिया भट्ट, वरुण धवन, मनीषा कोईराला, शाहरुख खान, और प्रसिद्ध लेखक जे.के. ऱॉउलिंग, कुछ ऐसे नाम हैं जो डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं. सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से डिप्रेशन को लेकर समाज में चिंता और ज्यादा बढ़ गई है. केवल पैसे या स्टेट्स की कमी ही अब इसकी वजह नहीं रही है. भौतिकतावादी संस्कृति ने दिखावे की संस्कृति को बढ़ाया है डिसकी वजह से हर जगह प्रतिस्पर्धा बढ़ी है और जो इस प्रतिस्पर्धा में खुद को असफल या पीछे रह जाने के एहसास से घिरा पाता है, वह डिप्रेशन का शिकार हो जाता है. संघर्ष करने, चुनौतियों का सामना और सहनशीलता कम होने से केवल ‘अपने लिए’ जीने की चाह ने संबंधों में दूरियां पैदा कर दी हैं. यही वजह है कि व्यक्ति समाज से कटा हुआ अनुभव करता है और अकेलेपन का शिकार हो जाता है.

Hindi Movies : आज के समय में फिल्में क्यों नहीं होती हैं हिट

Hindi Movies :  आजकल फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों के बीच सब से बड़ी चर्चा चल रही है कि ऐसी क्या वजह है कि आज के समय में हिंदी फिल्में नहीं चल रहीं जैसी साल 2000 या यों कहें कि 1990 के दौर में चला करती थीं.

फिल्मी इतिहास गवाह है कि भारत ही नहीं भारत के बाहर भी बौलीवुड फिल्में और बौलीवुड स्टारों का क्रेज हमेशा से बना रहा है. लेकिन आज के दौर में हिंदी फिल्मों में 100 में से 1 फिल्म अच्छा बिजनैस करती है और वह भी किसी साउथ फिल्म की रीमेक होती है बाकी हिट स्टार्स हो या बिग बजट, दर्शकों को थिएटर तक लाने में असमर्थ साबित हो रहे हैं.

भारत पर राज करने वाली हिंदी फिल्में अपना वजूद खो रही हैं. बिग स्टार्स और बिग बजट फिल्म होने के बावजूद दर्शक थिएटर तक फिल्म देखने नहीं पहुंच रहे. इस बात के लिए भी साउथ इंडस्ट्री को जिम्मेदार ठहराया जाता है, तो कभी ओटीटी प्लेटफौर्म को. गीतकार लेखक जावेद अख्तर का भी मानना है कि आज के समय में क्योंकि दर्शकों को बड़ी से बड़ी फिल्में कुछ ही महीनों बाद लोगों के मोबाइलों पर या ओटीटी पर उपलब्ध हो जाती हैं इसलिए दर्शक थिएटर तक आने में दिलचस्पी नहीं रखते.

कुछ लोगों का मानना है कि मल्टीप्लैक्स थिएटर के महंगे टिकट और बड़े खर्च भी दर्शकों को थिएटर से दूर कर रहे हैं. अगर यह सच है तो अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘पुष्पा 2’, विकी कौशल की ‘छावां’, राजकुमार राव की ‘स्त्री 2’, शाहरुख खान की ‘जवान’ और ‘पठान’ देखने दर्शक थिएटर तक कैसे पहुंचे? और इन फिल्मों ने ₹500 करोड़ पार तक का बिजनैस कैसे किया?

अगर दर्शक ओटीटी तक ही सीमित हैं तो ये सारी फिल्में देखने थिएटर तक कैसे पहुंचे. ऐसे में सवाल यह उठता है कि ऐसी क्या वजह है कि 100 में से एक फिल्म ही अच्छी चल रही है? दर्शक थिएटर तक क्यों नहीं पहुंच रहे? एक अच्छी फिल्म का फौर्मूला क्या है? हिंदी फिल्मों के निर्माण को ले कर कहां गलतियां हो रही हैं? पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

फिल्मी इतिहास गवाह है कि अगर फिल्म अच्छी है तो वह जरूर चलती है. ज्यादातर लोगों का मानना है कि अगर फिल्म में बड़े स्टार हैं या फिल्म का बजट करोड़ों में है, आउटडोर शूंटिंग्स में विदेश की खूबसूरत लोकेशंस है, तो वे फिल्में जरूर चलती हैं क्योंकि अगर एक बार फिल्म की कहानी अच्छी न भी हो तो भी दर्शक अपने फेवरिट हीरो को देखने या खूबसूरत लोकेशंस देखने थिएटर तक आ ही जाते हैं. लेकिन अब ऐसा नहीं है। आज की पब्लिक फिल्मों की पसंद को ले कर चालाक हो गई है. आज के समय में दर्शकों को फिल्म का कंटेंट और मेकिंग अच्छी होना सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण लगता है. फिर उस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म में कोई हिट कलाकार है या नया कलाकार या फिल्म की शूटिंग किसी गांव में की गई है या विदेशों में.

इस का जीताजागता उदाहरण हाल ही में रिलीज हुई फिल्म क्रेजी का है जिस में न तो कोई बड़ा कलाकार है न ही विदेश की कोई लोकेशन है, बावजूद इस के कम बजट में बनी इस फिल्म ने 14 दिनों के अंदर अपनी लागत से ज्यादा का बिजनैस कर लिया. फिल्म को प्रचार के जरीए इतनी लोकप्रियता मिली कि इस फिल्म के मेकर्स को मुंबई के बाहर भी दूसरे शहरों में नए थिएटर में फिल्म के नए शोज बुक करने पड़े

इस के पीछे वजह सिर्फ एक ही थी कि फिल्म की कहानी, ऐक्टिंग डाइरैक्शन, म्यूजिक सभी कुछ फिल्म के हिसाब से और परफैक्ट था जिसे दर्शकों को पूरी फिल्म तक बांध कर रखा. इस के अलावा भी कई ऐसी फिल्में हैं जो कम बजट में बनी थीं लेकिन अच्छी फिल्म होने की वजह से फिल्म के निर्माता और ऐक्टर सभी को उस फिल्म से फायदा मिला. जैसे नाना पाटेकर अभिनीत अंकुश जिस में सब नए कलाकार थे, फिल्म का बजट ₹12 लाख था। फिल्म को रिलीज करने के लिए निर्माता एन चंद्रा को अपना घर तक गिरवी रखना पड़ा था, लेकिन बाद में अंकुश इतनी सुपरहिट हुई कि नाना पाटेकर उस फिल्म से रातोरात स्टार बन गए और निर्माता एन चंद्रा ने भी कई अच्छी फिल्में बनाईं.

गौरतलब है कि उस दौरान इस फिल्म ने करीबन ₹85 से 90 लाख के करीब कमाई की थी. इसी तरह अन्य फिल्मों ने जैसे आयुष्मान खुराना अभिनीत ‘विकी डोनर’ ₹10 करोड़ में बनी थी लेकिन फिल्म ने ₹50 करोड़ का बिजनैस किया. ’12वीं फेल’ फिल्म ₹20 करोड़ में बनी थी, मगर फिल्म ने ₹66 करोड़ तक का बिजनैस किया.

‘सीक्रेट सुपरस्टार’ फिल्म का बजट ₹81 करोड़ के करीब था लेकिन इस फिल्म ने ₹831 करोड़ का बिजनैस किया.

अमिताभ बच्चन अभिनीत ‘पिंक’ ₹23 करोड़ में बनी थी लेकिन फिल्म का बिजनेस ₹88 करोड़ हुआ। इसी तरह फिल्म ‘स्त्री’ ₹14 करोड़ में बनी थी लेकिन इस फिल्म ने ₹167 करोड़ की कमाई की। आयुष्मान खुराना अभिनीत ‘बधाई’ ₹23 करोड़ में बनी थी लेकिन इस फिल्म ने ₹176 करोड़ का बिजनैस किया। ₹25 करोड़ में बनी विकी कौशल अभिनीत फिल्म ‘ऊरी’ ने ₹293.75 करोड़ का बिजनैस किया. ₹23 करोड़ के बजट में बनी ‘हिंदी मीडियम’ ने ₹100 करोड़ का बिजनैस किया।

इसी तरह आलिया भट्ट अभिनीत फिल्म ‘राजी’ जोकि ₹38 करोड़ में बनी थी, इस फिल्म ने ₹158 करोड़ का बिजनैस किया.

कंगना रनौत अभिनित ‘क्वीन’ और ‘तनु वेड्स मनू’ भी कम बजट की फिल्म थी। इन दोनों ही फिल्मों ने न सिर्फ करोड़ों का बिजनैस किया बल्कि बेहतरीन फिल्मों की बदौलत आज याद भी की जाती हैं.

हिंदी फिल्मों के गिरते स्तर के पीछे क्या है वजह और आज के समय हिट फिल्मों का क्या है फौर्मूला

एक समय था जब हिंदी फिल्मों की कहानियां ओरिजनल हुआ करती थीं. न तो वह किसी साउथ फिल्म की रीमेक होती थी और न ही हौलीवुड फिल्म की नकल, न ही फिल्मों का बजट ज्यादा होता था और न ही फिल्मों को बेचने के नाम पर प्रोमोशन की नौटंकी, बावजूद इस के, पिछली कई फिल्में ऐसी हैं जिन्हें दर्शक आज भी देखना पसंद करते हैं और आज 25- 30 साल बाद भी वे यादगार फिल्में कहलाती हैं जिन्हें दर्शक फिर से सिनेमाघर में देखने को तैयार हैं. चाहे वह अमिताभ बच्चन धर्मेंद्र की फिल्म ‘शोले’ हो, सलमान खान की फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ हो, आमिर खान की फिल्म ‘रंगीला’ या ‘सरफरोश’ हो, शाहरुख खान की फिल्म ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’ या ‘कुछ कुछ होता है’ हो, ये सभी फिल्में न तो किसी हौलीवुड फिल्म की नकल थी और न ही साउथ की रीमेक. फिर भी ये सभी फिल्में आज भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय हैं. इस के पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह है कि अगर कोई फिल्म अच्छी बनी है तो उस को हिट होने से कोई नहीं रोक सकता. फिर चाहे वह नए कलाकारों की फिल्म हो या कम बजट की फिल्म हो.

आज के मेकर्स नई कहानी की खोज के बदले बिना मेहनत किए साउथ और हौलीवुड फिल्मों की नकल बनाने में जुटे हैं ताकि उन को फिल्म के फ्लौप होने का डर न रहे, क्योंकि जो फिल्म साउथ में औलरेडी हिट है तो वह यहां बौलीवुड में भी हिट हो ही जाएगी. आज के समय में मेकर्स पैसा कमाने के लालच में फिल्म निर्माण को लेकर न तो कोई रिस्क लेना चाहते हैं और न ही कोई नया प्रयोग करना चाहते हैं. दर्शक चाहे आज के हों या पुराने, अच्छी फिल्म और अच्छे कलाकारों को हमेशा सम्मान और सराहना मिलती है. फिल्म की कहानी अगर ओरिजिनल है या वह आम लोगों के जीवन पर केंद्रित है तो ऐसी फिल्में दर्शकों के दिलों तक आराम से पहुंच जाती हैं. यहां तक की ऐक्टर भी दर्शकों को वही ज्यादा पसंद आते हैं जिन में वह अपनी छवि देखते हैं, जैसे गोविंदा, आमिर खान, अक्षय कुमार, सलमान खान आदि ऐक्टरों ने जो भी फिल्में आम इंसान से जुड़ी कहानी पर केंद्रित फिल्मों में काम किया है वह सभी सुपर डुपर हिट हुई है. जैसे गोविंदा की ‘कुली’, ‘दूल्हे राजा’, ‘राजा बाबू’, ‘क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता’, सलमान खान की ‘दबंग’, ‘बजरंगी भाईजान’, आमिर खान की ‘रंगीला’, शाहरुख खान की ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’, अक्षय कुमार की ‘खिलाड़ी’ आदि ऐसी फिल्में हैं जो ओरिजिनल कहानियों पर बनीं और आम लोगों के जीवन पर केंद्रित जिसे दर्शकों ने हमेशा स्वीकार किया.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ बौलीवुड ही हौलीवुड या साउथ की कौपी करता है, बल्कि साउथ और हौलीवुड में भी कुछ फिल्में ऐसी बनी हैं जो हिंदी फिल्मों की नकल है. कहने का मतलब यह है कि नकल के लिए भी अक्ल की जरूरत होती है। सिर्फ फिल्म बनाने के नाम पर साउथ की फिल्मों की कौपी करना अच्छी फिल्म नहीं कहलाती. यानि ऐंटरटेनमैंट के नाम पर दर्शकों को आप कुछ भी परोस कर बेवकूफ नहीं बना सकते. अगर फिल्मों का स्तर ऊंचा करना है तो नकल के बजाय अक्ल का इस्तेमाल कर के दर्शकों को अच्छी फिल्में देनी होंगी तभी जा कर फिल्मों का स्तर न सिर्फ ऊंचा होगा बल्कि हिंदी फिल्मों को पहले की तरह पसंद भी किया जाएगा.

अभिनेता आमिर खान और तीसरी गर्लफ्रैंड : आम जनजीवन से क्या है कनैक्शन, जरूर जानिए

Aamir Khan Gf Gauri Spratt : बौलीवुड सुपरस्टार आमिर खान इन दिनों अपनी लव लाइफ को ले कर चर्चा में बने हुए हैं. पिछले दिनों प्री बर्थडे मीट ऐंड ग्रीट में उन्होंने अपनी गर्लफ्रैंड गौरी स्प्रैट से मीडिया को मिलवाया. इस के बाद तो उन के पब्लिसिटी की झड़ी लग गई. मीडिया इसे छापने में लग गए. लेकिन क्या यह इतना बड़ा खुलासा है, जो मिस्टर परफैक्शनिस्ट ने किया? क्या उन्होंने इस से पहले जो 2 लीगल शादियां की थीं, जिन का डिवोर्स फाइल भी उन के तरफ से ही हुआ है, उसे नजरअंदाज किया जा सकता है? आखिर किस वजह से इन पत्नियों ने आमिर को छोड़ा?

कुछ इन्हीं पहलुओं पर एक नजर डालने की कोशिश की गई है. आइए, सब से पहले जानते हैं कि आमिर की तीसरी गर्लफ्रैंड को ले कर लोग क्या कहते हैं :

मुंबई की पौश एरिया में रहने वाली सुषमा का कहना है कि जिस उम्र में आमिर को अपने बेटे जुनैद खान की गर्लफ्रैंड से परिचय करवाना था, उन्होंने खुद की गर्लफ्रैंड से परिचय करवाया, जो सही नहीं है. उन्होंने पैसे और रुतबे का गलत उपयोग किया है.

उसी क्षेत्र में रहने वाली रेशमा कहती है कि मैं तो आमिर खान की बहुत बड़ी फैन हूं। उन की हर फिल्म देखती हूं, लेकिन उन की तीसरी गर्लफ्रैंड की बात मुझे हजम नहीं हुई। मैं तो उन्हें बहुत ही सलीकेदार इंसान समझती रही और अगर प्यार है भी तो इतना शोरशराबा करने की जरूरत क्यों पड़ी, समझना मुश्किल है क्योंकि अधिकतर कलाकार आगे कोई फिल्म आने वाली हो, तो ही पब्लिसिटी के लिए ऐसा करते हैं.

वे कहती हैं कि आमिर की पिछली कई फिल्में बौक्स औफिस पर असफल रहीं, इसलिए उन्होंने तीसरी गर्लफ्रैंड का सहारा लिया है. नहीं तो मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर आमिर को रोजरोज जीवनसाथी बदलने की जरूरत क्यों पड़ती है, जबकि पहली पत्नी रीना दत्ता शांत दिखती हैं, दूसरी पत्नी किरण राव भी बहुत शांत स्वभाव की हैं. ऐसे में तीसरी गर्लफ्रैंड? मुझे लगता है कि आमिर मीडिया में जो कह रहे हैं, उस के पीछे की बात कुछ और होगी.

अफेयर कई बार

यह सही है कि आमिर का प्रोफैशनल कैरियर जितना सफल रहा है, उतना ही उन का निजी जीवन हमेशा चर्चा का विषय रहा, जिस में उन के अफेयर के चर्चे अधिक होते रहते हैं, इसलिए उन्होंने पहली शादी को ले कर कई बार बात की और कहा कि उन का रिश्ता काफी अच्छा था, लेकिन दोनों ने इस रिश्ते में इंट्रैस्ट खो दिया था और यही उन के अलग होने की वजह भी था.

वैसे, रीना दत्ता से शादी के बाद भी आमिर खान का नाम कई दूसरी हसीनाओं से जुड़ा. साल 1991 में आई फिल्म ‘दिल है कि मानता नहीं’ के सेट पर आमिर पूजा भट्ट के करीब आ गए थे. दोनों के बीच लवबेट वाला रिलेशनशिप था. लेकिन यह रिश्ता ज्यादा नहीं टिका. इस के बाद आमिर खान और जेसिका हाइंस के कथित अफेयर की चर्चा साल 1998 में हुई.

जेसिका एक ब्रिटिश अभिनेत्री, निर्देशक और लेखिका हैं. इन्होंने ‘द बिग बी : बौलीवुड बच्चन ऐंड मी’ किताब लिखी है.

कहा जाता है कि साल 1998 में फिल्म ‘गुलाम’ की शूटिंग के दौरान आमिर और जेसिका इतने करीब आए कि एकसाथ लिवइन में रहने लगे. इसी बीच जेसिका प्रैगनैंट हो गईं. जेसिका ने इस रिश्ते पर कई बार बात की, लेकिन आमिर हमेशा इसे स्वीकार करने से बचते रहे.

फिलहाल, जेसिका ने बच्चा नहीं गिराया और अकेले ही उसे बड़ा किया. रीना दत्ता से अलग होने के बाद आमिर खान को फिल्म ‘लगान’ के सेट पर अपना प्यार मिला था.

दरअसल, इस फिल्म में आमिर लीड हीरो थे और किरण राव इस की असिस्टेंट डाइरैक्टर थीं. आमिर खान और रीना दत्ता के तलाक के बाद दोनों काफी करीब आए और साल 2005 में शादी कर ली. यह रिश्ता भी नहीं टिका और साल 2021 में दोनों ने अपने तलाक का ऐलान कर दिया. अभी भी दोनों साथ मिल कर अपने बेटे आजाद को पाल रहे हैं.

आमिर खान के लव अफेयर्स का किस्सा यहीं नहीं थमा, अभी लिस्ट काफी लंबी है. फिल्म ‘दंगल’ और ‘ठग्स औफ हिंदुस्तान’ में आमिर खान के साथ ऐक्ट्रैस फातिमा सना शेख ने काम किया.

कहा जाता है कि दोनों इस दौरान काफी करीब आ गए थे. दोनों को अकसर साथ वक्त बिताते देखा जाता था. फातिमा, आमिर से उम्र में 27 साल छोटी थीं. दोनों ने इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं किया. अब ऐक्टर ने अपनी नई गर्लफ्रैंड से लोगों का परिचय करा दिया है. उन्हें 60 साल की उम्र में एक बार फिर प्यार हो गया है.

ऐक्टर की नई गर्लफ्रैंड का नाम गौरी स्प्रैट है, जो कर्नाटक के बैंगलुरु की रहने वाली है. आगे आने वाली कई प्रोजैक्ट में उन का हाथ बंटा रही है और वह 6 साल के एक बच्चे की मां भी है, जिसे आमिर 25 साल से जानते हैं.

आमिर खान जैसी स्थिति किसी छोटे शहर में होने पर

यहां यह समझना पड़ेगा कि आमिर की स्थिति अगर किसी छोटे शहर की किसी लड़की के साथ अगर हुआ होता, तो परिस्थितियां क्या होतीं? महाराष्ट्र के नासिक की रहने वाली सिमरन की शादी सागर से हुई, उसे बच्चा नहीं हो रहा था, इसलिए पति ने उसे शादी के 5 साल बाद तलाक दे दिया.

सिमरन एक फैक्टरी में काम कर पेट पाल रही थी। एक दिन उस ने पुराने पति को किसी दूसरी महिला के साथ देख लिया। उसे गुस्सा आया और उस ने पति को पहले 2 थप्पड़ मारे फिर उस की गर्लफ्रैंड के बालों को खींच कर, चप्पलों से यह कह कर पीटने लगी कि यह नामर्द है और इस ने मुझे छोड़ा है, कुछ दिन बाद तुझे भी छोड़ेगा.

बीचबचाव करने आए लोग पहले तो बात समझे नहीं कि गलती किस की है, लेकिन बाद में उन्हें समझ आने पर सभी ने सिमरन का साथ दिया और सागर अपनी गर्लफ्रैंड को बचाने के लिए सिमरन के हाथपांव जोड़ने लगा.

तलाक के बाद बच्चों को संभालना मुश्किल

यह सही है कि जब कोई पत्नी तलाक लेती है, तो उसे हर तरह के ताने बाहर से सुनने पड़ते हैं. आसपास के लोग पुरुष को नहीं, महिला को ही दोषी मानने लगते हैं कि उस ने अपने पति को पकड़ कर नहीं रख पाई, उस में ही कुछ खोट होगी, जिस से पति हाथ से निकल गया. तलाक के बाद आसपास के लोग और परिवार उस स्त्री की मानसिक स्थिति को कभी समझ नहीं पाते, जिस के साथ यह अलगाव हुआ है.

कई बार ये स्त्रियां बच्चे को साथ ले कर अलग होती हैं. ऐसे में उन्हें बच्चों की सही देखभाल करनी पड़ती है, ताकि वे मायूस न हों और टूटें नहीं, क्योंकि बच्चे एक पारिवारिक ढांचे से परिचित होते हैं, जहां उन्हें सही विकास के लिए मातापिता दोनों का प्यार एक छत के नीचे मिलना जरूरी होता है. इस के बिना कई बार वे डिप्रैशन में चले जाते हैं.

सूत्रों की मानें, तो जब आमिर और रीना का तलाक हुआ था, तो उन के बच्चे मैंटल ट्रामा से गुजरे थे, जिन्हें संभालने में रीना को काफी परेशानी हुई.

मीडिया सूत्रों के अनुसार, आमिर की बेटी मैंटल स्ट्रैस से गुजर रही है. उन्होंने एक बार कहा भी है कि वह पिछले 12 साल से थेरैपी ले रही है, जबकि आमिर खान डिवोर्स के बाद उन का रिश्ता पुराने पत्नियों और बच्चों के साथ अच्छा चल रहा है, इस बात को वे बारबार दोहराते रहे हैं.

इस कड़ी में अमृता सैफ की तलाक के बाद भी दोनों के बच्चों का मानसिक बल बहुत टूटा है, जिसे अमृता ने मजबूती से संभाला.

अभिनेत्री सारा अली खान ने एक इंटरव्यू में कहा है कि आज भी किसी काम को करने से पहले वह मां से सलाह लेती हैं. अभिनेत्री पूजा बेदी और फरहान फर्नीचरवाला ने जब तलाक लिया, तब भी उन की बड़ी बेटी अलाया एफ काफी दुखी हुई, जिसे पूजा कई बार अपने इंटरव्यू में कह चुकी हैं.

अर्जुन कपूर तो कई बार कह चुके हैं कि उन के पिता बोनी कपूर की श्रीदेवी के साथ शादी को ले कर वे बहुत दुखी थे और कई साल तक अपने पिता से बात तक नहीं किया था. इतना ही नहीं अर्जुन को जिंदगी में इस अलगाव से काफी कुछ झेलना पड़ा.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई बार उन्हें स्कूल में मातापिता के तलाक को ले कर चिढ़ाया भी जाता था. अभिनेत्री ईशा देओल और भरत तख्तानी के 12 साल साथ रह कर डिवोर्स के बाद आज ईशा को अपनी दोनों बेटियों की परवरिश में खास ध्यान देनी पड़ती है, जो आसान नहीं होता.

भले ही आर्थिक रूप से इन अभिनेत्रियों को सहायता पति से मिलती हो, लेकिन मानसिक स्थिरता बनाए रखना मुश्किल होता है.

बच्चों पर पड़ता है मानसिक दबाव

यह तो जगजाहिर है कि पतिपत्नी में हुए अलगाव को किसी भी परिवार के बच्चे आसानी से नहीं ले पाते, फिर चाहे वह धनी इंसान हो या गरीब बच्चों के मन पर गहरा और कई बार नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जो उन की उम्र और व्यक्तित्व पर निर्भर करता है. कई बार वे मानसिक रूप से सदमे में चले जाते हैं और आगे बढ़ने में असमर्थ रहते हैं.

डिवोर्स के बाद अधिकतर बच्चों में असुरक्षा, क्रोध, गुस्सा, उदासी, अकेलापन, आक्रामक व्यवहार, पढ़ाई में मन न लगना, नशे की लत आदि कई बातें देखी गई हैं.

एक सर्वे में यह पाया गया है कि करीब 25% ऐडल्ट बच्चे जिन के पेरैंट्स ने डिवोर्स लिया, सीरियस सोशल, इमोशनल, साइकोलौजिकल समस्या का सामना किया है.

पत्नी का हर्ट और गुस्सा होना स्वाभाविक

इस बारे में मनोवैज्ञानिक राशिदा कपाड़िया कहती हैं कि जब कोई महिला डिवोर्स लेती है, तो सब से पहले वह खुद बहुत हर्ट होती है, क्योंकि शादी एक कमिटमैंट है, जीवनभर साथ निभाने की होती है और इस के टूट जाने पर उस महिला को दुख होता है, अगर उस महिला के लिए दूसरी शादी की कोई उम्मीद न हो. खूबसूरत, आत्मनिर्भर होने पर भी वह औरत कई बार खुद को ही दोषी मानने लगती है। कई बार वह समझ नहीं पाती कि किस वजह से पति ने उन्हें किसी दूसरी लड़की के लिए छोड़ा, क्योंकि प्राकृतिक रूप से औरतें हमेशा से इमोशनल होती हैं.

किसी भी महिला के लिए पति का प्यार और रिस्पैक्ट बहुत अधिक मायने रखता है, जबकि पुरुष इमोशनल कम ही होते हैं। उन्हें डिवोर्स से कोई फर्क नहीं पड़ता.

एक महिला को डिवोर्स के बाद खुद को संभालने में काफी समय लगता है, क्योंकि उस ने जब शादी की होगी, तब उस ने डिवोर्स के बारे में नहीं सोचा होगा, पति का प्यार उसे भरपूर मिला होगा, लेकिन अचानक पति का किसी दूसरे से अफेयर को कई बार आज की पत्नी गुस्से और आक्रोश से भी लेती है, जिस से पत्नी मारपीट पर उतर आती है और यह कोई गलत नहीं है.

ऐसे में, अगर उस के बच्चे हों, तो समस्या अधिक बढ़ जाती है क्योंकि खुद के साथ बच्चों की मानसिक दशा को भी संभालना पड़ता है.

अपने अनुभव के बारे में राशिदा बताती हैं कि एक खूबसूरत महिला मेरे पास खुद को ग्रूम कराने के लिए आई थी, क्योंकि उस का पति दूसरी वूमन के साथ हमेशा फ्लर्ट करता था, लेकिन उस के साथ लड़ता था. वह डिवोर्स लेना चाहती थी। मैं ने उन दोनों को समझाया और रिश्ते को ठीक किया.

इस प्रकार आमिर खान अपने तीसरी गर्लफ्रैंड के रिश्ते को ले कर भले ही बहुत खुश नजर आ रहे हों और कहते हों कि उन की दोनों पत्नियां भी उन की इस निर्णय से खुश हैं, लेकिन आज की औरतें इस पर विश्वास नहीं कर सकतीं, क्योंकि एक पुरानी कहावत है ‘जर, जोरू और जमीन’ के लिए दुनिया में ज्यादातर लड़ाइयां होती हैं. अगर इस कहावत को बदल कर ‘जर, मर्द और जमीन’ कह दिया जाए, तो भी किसी को कोई हरज नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अगर कोई पत्नी, पति की प्रौपर्टी कहलाई जाती है, जिस के लिए मारपीट करने वाले पति को सही ठहराया जाता है, तो एक पति, पत्नी की प्रौपर्टी क्यों नहीं हो सकता? उस के लिए अगर वह लड़ती भी है, तो उस की लड़ाई या मारपीट जायज होनी चाहिए.

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