Hair Style : हर ड्रेस के साथ बनाएं ये हेयरस्टाइल, लगेंगी काफी अट्रैक्टिव

Hair Style :  जब डेट पर जाना हो या पार्टी में सोचसोच कर परेशान होना कि कैसे और कौन सा हेयरस्टाइल बनाएं जो ड्रेस के साथ अच्छा लगे तो यह सिर्फ आपकी नहीं हर लड़की और महिला की सबसे बड़ी परेशानी है क्योंकि अधिकतर हम दूसरों की हेयरस्टाइल बना पाते हैं लेकिन अपनी नहीं और अंत में स्ट्रैट या कर्ल कर के चले जाते हैं लेकिन यदि थोड़ी सी सूझबूझ से काम करें तो आप भी आसानी से ये हेयरस्टाइल बना सकती हैं जो कि हर स्टाइल की ड्रेस के साथ अच्छे लगते हैं इन्हें अपना कर अट्रैक्टिव लुक पा सकती हैं.

मेसी फिशटेल

अपने बालों को एक मेसी फिशटेल में स्टाइल करें. अगर आपके बालों में वाल्यूम ज्यादा है तो यह हेयरस्टाइल खूब पसंद किया जाएगा.

फ्रंट फ्रेंच ब्रेड

यदि आप हेयरस्टाइल बनाने की शौकीन हैं तो आपको फ्रेंच ब्रेड बनाना जरूर आना चाहिए क्योंकि इस एक स्टाइल को आप इंडियन व वेस्टर्न किसी भी ड्रेस के साथ स्टाइल कर सकती हैं आप फ्रंट ब्रेड बना कर बचे हुए बालो से ओपन हेयर ,पोनीटेल बन किसी के साथ भी बला की खूबसूरत लग सकती हैं

डच ब्रेड्स विद फ्लोरल ट्विस्ट

कुछ नया ट्राई करना चाहती हैं तो डच ब्रेड्स विद फ्लोरल ट्विस्ट वाला स्टाइल इंडियन गर्ल्स के लिए बेस्ट है. ये हर तरह के आउटफिट के साथ बहुत ही अच्छा लगने वाला स्टाइल है. इसके लिए, आप पहले बालों की साइड पार्टिंग करें. इसके बाद, आप एक साइड से बाल लेकर फ्रंट से ही डच ब्रेड बनाती जाएं. अब आप पीछे अपनी ब्रेड ले जाकर बचे हुए बालों से भी ब्रेड बना लें और अंत में इसे रबर की मदद से सिक्योर कर लें. अब आप इस ब्रेड को ट्विस्ट करते हुए बन बनाएं और पिन की मदद से इसे फिक्स करें. बस आपका डच ब्रेड बन हेयरस्टाइल बनकर तैयार है.

कर्ल विथ एक्सेसरीज

इसके लिए आप खुद ही घर पर कर्लर का इस्तेमाल कर यह हेयरस्टाइल बना सकती हैं इसमें यदि हेयर एक्सेसरीज या फिर फूल लगाएं तो ये आपके लुक को परफेक्ट बनाने का काम करेंगे.

हाफ अप एंड हाफ डाउन

यह हेयर स्टाइल देखने में बेहद सिंपल लगता है, इसे बनाने के लिए फ्रंट से बालों को लेकर पीछे की तरफ पिनअप करें और पीछे से बालों को ओपन रखे या लौ पोनीटेल भी बना सकती हैं . लुक को ग्रेसफुल बनाने के लिए बालों में फ्रंट से हल्का सा पफ लुक नजर आता है.

Ex Girlfriend : मैं अपनी एक्स से हद से ज्यादा परेशान हो गया हूं, क्या करूं?

Ex Girlfriend : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं अपनी एक्स से हद से ज्यादा परेशान हूं. उस ने कसम खा रखी है कि वह मेरी इज्जत का फालूदा कर के ही छोड़ेगी. असल में हुआ यों कि 2 हफ्ते पहले मेरा और मेरी गर्लफ्रैंड का ब्रेकअप हो गया है. उस ने तब से ही इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप पर अजीबअजीब से पोस्ट डालने शुरू कर दिए हैं. जो भी पोस्ट वह डालती है या तो वह दुख से भरा हुआ होता है या मु झे कुछ सुनाने के मोटिव से डाला गया होता है. ब्रेकअप की वजह साफ थी कि मु झे लगा हम दोनों के बीच कुछ सही नहीं चल रहा है. तब उस ने भी हामी भरी थी लेकिन इन सब के बावजूद अब उस का इस तरह का व्यवहार मेरे लिए रोजरोज का सिरदर्द बना हुआ है. मु झे सम झ नहीं आता आखिर करूं तो करूं क्या.

 जवाब-

ब्रेकअप आमतौर पर इसी तरह के होते हैं जहां एक व्यक्ति दूसरे को किसी न किसी तरह से दोष देता ही है. आप की ऐक्स गर्लफैं्रड भी कुछ ऐसा ही कर रही है. मैं इस में पूरी तरह से आप की ऐक्स गर्लफ्रैंड को गलत नहीं कहूंगी क्योंकि हो सकता है कि इस ब्रेकअप से वह सच में बहुत ज्यादा परेशान हो और इसी के चलते इस तरह के पोस्ट्स कर रही हो. आप को उस से एक बार बात कर के देखना चाहिए, यह बताना चाहिए कि ब्रेकअप जब दोनों की मरजी से हुआ है तो उस के बाद इस तरह का व्यवहार करना सही नहीं है. वह आप की बात जरूर सम झेगी.

अगर बात करने के बाद भी वह न सम झे तो ब्लौक करने से बेहतर है कि आप उसे म्यूट कर दें. इस के अलावा उस के पोस्ट देखने से जितना ज्यादा बच सकते हैं, बचें. सोशल मीडिया पर कम से कम समय बिताएं. इस से न आप को तकलीफ होगी और न ही फर्क पड़ेगा.

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दक्षिणी दिल्ली के छतरपुर इलाके में 25 साल के एक युवक ने अपनी गर्लफ्रेंड  की हत्या कर खुद को भी खत्म कर लिया.  वजह महज इतनी थी कि कुछ दिनों से गर्लफ्रेंड उस की अनदेखी कर रही थी और युवक को शक था कि वह किसी और के साथ इनवौल्व हो गई है.

घटना गत 26 नवंबर की है. अभिषेक नाम का यह 25 वर्षीय युवक नोएडा में एक कंपनी में काम करता था. उस की गर्लफ्रेंड आयुष्मा नेहरू प्लेस में ग्राफिक डिजाइनर थी.  दोनों करीब 6 साल पहले कोलकाता से दिल्ली आए थे और एक साथ ही रहते थे. अनबन होने के बाद दोनों अलगअलग रहने लगे थे.

अभिषेक को शक था कि आयुष्मा की दोस्ती किसी और लड़के के साथ हो गई है. दोनों में इस बात को ले कर झगड़े होते थे. अभिषेक वापस कोलकाता चलने की जिद कर रहा था पर आयुष्मा जाना नहीं चाहती थी. आजिज आ कर आयुष्मा ने उस के मैसेजेज  के जवाब देने बंद कर दिए और उसे इग्नोर करने लगी. इसी से क्षुब्ध हो कर प्यार में पागल बने अभिषेक ने आयुष्मान का गला काट डाला और फिर खुद भी फांसी लगा ली.  मरने से पहले उस ने शीशे और दीवार पर मार्कर से सुसाइड नोट लिखा.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Hindi Kahani : अंत – क्या हुआ था मंगल के साथ

Hindi Kahani : मेरे घर वालों को जिस बात का डर था, अंत में वही हुआ- मंगल पांडे हत्याकांड के सिलसिले में पुलिस पूछताछ करने के लिए मेरे घर भी आ धमकी थी- मंगल पांडे से मेरा कोई विशेष वास्ता न था, सिवा इस के कि वह मेरा बचपन का दोस्त और सहपाठी था- बाद में हम नदी के दो किनारों की तरह हो गए- मैं नियमित पढा़ई करता हुआ एक कालिज में प्राध्यापक हो गया और वह माफिया गिरोहों के साथ लग कर करोडों में खेलने लगा था- तथापि यह कहना गलत नहीं होगा कि मेरी उस से यदाकदा भेंट हो ही जाती थी- मगर मैं ने यह नहीं सोचा था कि यही यदाकदा की मुलाकात एक दिन मेरे गले की फांस बन जाएगी-

मैं पहले ही कहती थी कि उस मंगल से ज्यादा मेलजोल ठीक नहीं, मां बड़बडा़ रही थीं, खुद तो मर गया पर हमारी जान को सांसत में डाल गया-

अब चुप भी रहो, मैं झुंझला कर कमीज बदलते हुए मां से बोला, फ्घर में पुलिस आई है तो क्या हुआ- थोडी़बहुत पूछताछ की औपचारिकता पूरी करेगी और क्या- हमारे घर में कोई हीरेजवाहरात हैं या नोटों की गड्डियां भरी पडी़ हैं, जो डरने की जरूरत है-

घर में पुलिस आ धमकी और तू कहता है कि डरने की क्या जरूरत, मां गुर्राईं, पुलिस हमारे घर की तलाशी लेगी- हमारी महल्ले में क्या इज्जत रह जाएगी?

इस समय घर में हीलहुज्जत न करना ठीक था- पुलिस इंस्पेक्टर के पास पूछताछ करने और घर की तलाशी लेने का वारंट भी था- उस ने सब से पहले मुझ पर एक गहरी नजर डाली और फिर बैठक का सरसरी नजरों से मुआयना किया- मैं ने देखा उस की जीप बाहर खडी़ थी, जिस में ड्राइवर बैठा था- 2 सिपाही अंदर खडे़ थे, जबकि 3 अपनी राइफलों को साथ लिए बाहर खडे़ थे- पहले तो उन्हें देख कर मुझे पसीना आ गया- फिर मैं ने खुद को अंदर से संयत और मजबूत किया- यह सोच कर कि जब मैं कहीं से भी गलत नहीं, तो फिर डरने की क्या बात- फिर भी जरा सी भी ढिलाई अथवा प्रश्नोत्तरों में गड़बडी़ होते ही मैं फंस सकता हूं, इस का अंदाजा मुझे था- पुलिस इंस्पेक्टर ने छूटते ही सवाल दागा, फ्आप मंगल पांडे को कब से जानते थे?

फ्वह मेरे बचपन का दोस्त और सहपाठी था, मैं ने शांत रहने की कोशिश करते हुए कहा, फ्वह मेरे महल्ले का ही रहने वाला था- बाद में हमारे रास्ते अलगअलग हो गए थे-

उस का आप से क्या व्यावसायिक संबंध था?

फ्मुझ से, मेरा मुंह खुला का खुला रह गया, फ्उस से भला मेरा क्या व्यावसायिक संबंध हो सकता था- वह किसी भी तरीके से अमीर और प्रभावशाली आदमी बनना चाहता था, जबकि मैं थोडे़ में ही खुश रहने वाला आदमी हूं- क्या आप को ऐसा नहीं लगता?

लगता तो है, इंस्पेक्टर व्यंग्य से बैठक के कोने में रखी खटारा मोपेड को देख कर मुसकराया, फ्आप को पता है कि हमारे पास आप के घर की तलाशी का वारंट भी है और हम आप को गिरपतार भी कर सकते हैं- लेकिन अगर आप सचसच जवाब देंगे, तो आप इन से बच सकते हैं- वैसे भी यह आप का फर्ज है कि आप भारतीय नागरिक होने के नाते हमारी खोजबीन में मदद करें-

घर की तलाशी के नाम पर मेरा माथा घूम गया- फौरन ही आंखों के सामने एक दृश्य आया, जिस में पुलिस मुझे हथकडी़ पहना कर ले जा रही है और सारा महल्ला मुझे घूरघूर कर देखते हुए कह रहा है, ‘देख लो, मंगल पांडे का एक और साथी पकडा़ गया-’ मगर यह इंस्पेक्टर दोहरी बात क्यों कर रहा है- एक तरफ धमकी भी दे रहा है, दूसरी तरफ मदद की बात भी कह रहा है- मुझे लगा कि शायद इंस्पेक्टर को भी यह अजीब लगता हो कि मंगल मेरा कैसा दोेस्त था, जिस के घर की हालत बस, औसत दरजे की है- इस से मुझ में थोडा़ साहस का संचार हुआ-

फ्आप मुझ से जो मदद चाहेंगे, वह मैं अवश्य करूंगा- फिर भी मंगल जैसे माफिया को मैं ठीक से नहीं जानता- माफिया शब्द का सही अर्थ क्या है, आप विश्वास करें, मैं ठीक से नहीं जानता- मैं तो उसे बस, एक साधारण दोस्त के रूप में ही जानता रहा-

आप उस से आखिरी बार कब मिले थे?

यह सवाल थोडा़ गड़बडा़ने वाला था और मैं गड़बडा़या भी- अपनी स्मृति पर जोर देते हुए मैं ने बताया कि लगभग 3 महीने पहले एक साधारण होटल के पास उस से मुलाकात हुई थी और वहीं होटल की बेंच पर बैठ कर साथसाथ चाय पी थी- वह भी मुझे इस कारण याद है, क्योंकि वह दुकान वाला तो मुझे अच्छी तरह जानता था, मगर मारुति से उतरे लकदक कपडे़ पहने उस मनमोहक मंगल को देख कर अवाक था जो 4 निजी सुरक्षादस्तों से घिरा था और मुझ जैसे अदना आदमी के साथ सड़क की पटरी पर ही खडे़खडे़ कांच के साधारण गिलास में चाय पीने लगा था- मैं ने इस बात को हलके रूप में लिया था- मगर उस चाय वाले की नजर में मेरी इज्जत बढ़ गई थी-

आप की उस से क्या बातें हुईं?

कुछ खास नहीं- भला मैं उस से क्या बात करता, वह भी सड़क के फुटपाथ पर- हां, वह मेरे मध्यवर्गीय जीवन जीने पर व्यंग्य अवश्य कर रहा था- कुछ हंसीमजाक की बात हुई- बाद में चाय के पैसे चुकाने को कहा-

फ्और उस ने एक नोटों की गड्डी भी दी-

मैं अंदर से थोडा़ भयभीत तो था ही मगर अब चौंकने की बारी थी- तो इस इंस्पेक्टर को सबकुछ जानकारी है- फिर यह पूछताछ क्यों कर रहा है- मैं ने थोडा़ कडे़ लहजे में कहा, फ्दी नहीं, देना चाहता था- मगर मैं ने ली नहीं-

फ्क्यों?

फ्क्योंकि मैं मुपत की कमाई को हाथ नहीं लगाता-

फ्खूब फिलासफी झाड़ लेते हो-

फ्अपनीअपनी सोच है-

फ्हम आप से ज्यादा छेड़छाड़ न कर के वापस जा रहे हैं, इंस्पेक्टर उठते हुए बोला, फ्वैसे तो हमें नियमतः आप के घर की तलाशी लेनी थी, मगर फिलहाल, आप पर संदेह करने का कोई कारण नहीं बनता- तथापि आप को यह भी बता दें कि आजकल तथाकथित शरीफ और सफेदपोश लोग ही ज्यादा गड़बडि़यां करते हैं- मुझे ऐसा लग रहा है कि आप मंगल पांडे के बारे में कुछ खास बातें जानते हैं- फिर भी बताना नहीं चाहते. घ्यह आप की मरजीघ्है. घ्मगर जब भी मैं आप को तपतीश के लिए थाने बुलाऊं, आप अवश्य आएंगे-

फ्मुझे आप से सहयोग कर खुशी होगी इंस्पेक्टर साहब, मैं पिजरे से मुक्त पक्षी की तरह मुक्ति का एहसास करते हुए बोला, फ्वैसे मैं आप से फिर कहता हूं कि मंगल के बारे में मेरी जानकारी सिर्फ अखबारों और पत्रिकाओं तक ही सीमित है-

इंस्पेक्टर मेरी बात अनसुनी करता हुआ जीप में बैठ गया- जीप के जाते ही मैं ने महल्ले में नजर दौडा़ई- उधर घरों के दरवाजों और खिड़कियों के पास से मेरे घर की ओर निगाह टिकाए उत्सुक आंखों में कुछ न देख पाने का गम महसूस किया- मुझे देख मेरे घर के लोग इस तरह से संतोष की सांस ले रहे थे मानो मैं फांसी पर चढ़तेचढ़ते बालबाल बच गया हूं-

मगर मेरे मन में पुलिस इंस्पेक्टर के आनेजाने का आतंक जैसे अभी तक कायम था- अगर वह नहीं मानता और अनापशनाप सवाल ही करता तो मैं क्या करता- भले ही घर में कुछ न मिलता, मगर तलाशी के बहाने पूरे घर की उलटपलट कर देता तो क्या होता- हथकडी़ न भी पहनाता, पर सिर्फ जीप में बैठा कर पूछताछ के लिए थाने ले जाता, तो भी महल्ले में क्या कुछ नहीं अफवाह फैलती. और यह सब किस की वजह से हुआ, उस मंगल पांडे की वजह से, जो संयोग से मेरा सहपाठी था और माफिया गिरोह का मुखिया बन गया था-

ऐसी बात न थी कि मेरा मंगल पांडे से बिलकुल ही मेलजोल और उठनाबैठना न था- एकाध माह में तो मैं उस से मिल ही लिया करता था- उस का एक खास कारण यह था कि मुझे सिर्फ उस के कारण अपने ऐसे किराएदार से मुक्ति मिली थी जो हमारे घर के आधे हिस्से पर लगभग कब्जा ही जमा चुका था- बाद में मैं ने उस के खानेपीने का इंतजाम एक होटल में किया था-

उस का मकान हमारे महल्ले में मेरे घर से थोडी़ ही दूर पर उस जगह था, जहां सड़क और गली मिलती थी- उस के पिता एक साधारण सिपाही थे- 4 भाईबहनों में वह सब से छोटा था- शुरू से ही वह सीधासादा था- फिर भी जब कभी वह कोई बात ठान लेता तो वह उस के लिए पत्थर की लकीर के समान हो जाती थी- इसलिए उस के पिताजी अकसर कहा करते, ‘ऐसी सूखी हड्डी ले कर इतना गुस्सा करेगा तो कैसे काम चलेगा-’

कदकाठी में ही नहीं, बल्कि पढा़ईलिखाई में भी हम दोनों साधारण थे- हम दोनों के घर की माली हालत भी ठीक न थी- बस, घर किसी तरह चल रहा था और हम पढ़ रहे थे- फिर भी एक सीधासादा लड़का, जिस की पारिवारिक पृष्ठभूमि और संस्कार अच्छे रहे हों, आखिर अपराध की दुनिया में चला कैसे गया, यह आश्चर्य की बात थी- और फिर मंगल पांडे वहां गया नहीं बल्कि वहां का शहंशाह भी बन गया, यह घोर आश्चर्य की बात थी-

अपने छोटे से आपराधिक जीवनकाल में वह फटाफट सफलता की सीढि़यां चढ़ते दौलत से खेलने लगा- हत्याएं और अपहरण करनेकरवाने लगा और सत्ता की सीढि़यां चढ़ने केघ्मंसूबे बांधने लगा- यह सब सोचना काफी अजीब सा लगता है, मगर फिर भी यह सच तो था ही-

बात सिर्फ छोटी सी थी- पर उस छोटी सी घटना ने मंगल की जीवनधारा को बदल दिया था-

उस वक्त हम इंटर के छात्र थे- नई उम्र थी इसलिए जोश से सराबोर रहते थे- उन्हीं दिनों हमें गली के चाय एवं पान की दुकानों पर घूमनेबैठने और गप्पें मारने का शौक भी चर्राया हुआ था- हम अपनी आधीअधूरी जानकारियों का आदानप्रदान कर परमज्ञानी होने का दंभ भी पाले हुए थे- उसी समय की घटना थी वह-

घटना कुछ यों हुई कि मंगल पांडे की बहन के साथ महल्ले के एक दादानुमा लड़के ने छेड़छाड़ कर दी थी- मंगल उस से भिड़ गया था- उस झगडे़ में मंगल उस से पिट गया था- दूसरे दिन उस लड़के ने उस पर कुछ फब्तियां भी कसीं- पूरे दिन मंगल गुस्से में उबलता रहा-

शाम को उस ने उस लड़के को एक दुकान के पास घेरा और जाने कहां से जुगाड़ किया गया चाकू उस के पेट में उतार दिया- तमाशबीन भाग खडे़ हुए- मंगल ने उस लड़के को ताबड़तोड़ कई चाकू मारे और गलियों के रास्ते गुम हो गया-

घटना कुछ इस तेजी से घटी कि हम सभी ठगे से देखते रह गए- इस के बाद हम दोनों परिवारों में बढ़ते तनाव और पुलिसकर्मियों का आनाजाना देखते रहे- मंगल पांडे का कोई अतापता न था- फिर धीरेधीरे सभी कुछ सामान्य होने लगा था-

उस घटना के बाद स्थानीय अखबारों की सुर्खियों में रहने वाला मंगल पांडे एक बार फिर तब अखबारों की सुर्खियों में आया जब पडो़सी प्रदेश के एक मंत्री के मारे जाने में उस का हाथ बताया गया- उस का बडा़ भाई अब प्राइवेट फर्म की नौकरी छोड़ कर सड़क और रेलवे की ठेकेदारी लेने लगा था और इसी के साथ मंगल का वह साधारण सा घर देखतेदेखते आलीशान कोठी में बदल गया- महल्ले में यह आम चर्चा थी कि वह एक स्थानीय माफिया गिरोह से जुड़ गया है और वह अपने घर भी आताजाता है- वह अब ‘शेर सिह’ के नाम से कुख्यात हो गया था, जिस के पीछे पुलिस लगी थी- मगर वह अब राजनीतिबाजों के संरक्षण में उन का संरक्षक था-

जब मेरी प्राध्यापक की नौकरी लगी तो मैं ने खुद ही मिठाई ले कर पूरे महल्ले में घरघर जा कर बांटी थी- उसी क्रम में मैं जब उस के भी घर गया तो वहां की साजसज्जा देख कर अवाक रह गया- मंगल पांडे का मकान एक भव्य भवन के रूप में बदल गया है, यह हम सभी जानते थे- मगर वह अंदर से इतना आकर्षक और ठाटबाट वाला होगा, इस का हमें पता न था- उस के घर में गाडी़ थी और उस के भाइयों के पास दरजन भर ट्रकों का बेडा़ था- उस की बहन मुझे अंदर के एक कमरे में बैठा गई- थोडी़ देर में जो मेरे सामने खडा़ था, उसे देख कर मैं हतप्रभ था- वह मंगल पांडे था-

उस से हाथ मिलाते वक्त मेरे हाथ कांप से गए. क्या यह वही साधारण हाथ है जिस ने हत्या की है- भड़कीली पोशाक में सजा वह मुझे देख मुसकरा रहा था.

‘यह कौन सी मास्टरी की नौकरी कर ली- मुझ से कहा होता यार, तो मैं तुझे कोई अच्छी सी नौकरी दिलवाता,’ मंगल ने कहा था।

‘तुम मुझे नौकरी दिलवाते,’ मैं हंस पडा़, ‘तुम कौन सेे मंत्री बन गए हो-’

‘इन तथाकथित मंत्रियों को तो मैं अपनी जेब में रखता हूं,’ वह लापरवाही भरे अंदाज में बोला, ‘और बडे़बडे़ अधिकारियों को तो मैं चुटकी बजाते एक कोने से दूसरे कोने में स्थानांतरित करा सकता हूं-’

अचानक उस कमरे में उस के पिताजी आए और उसे देखते ही चीखे, ‘तू यहां फिर आ गया- क्यों आया यहां? मैं तेरी सूरत नहीं देखना चाहता-’

‘चला जाऊंगा,’ वह बेरुखी भरे शब्दों में बोला, ‘आप इतना चिल्लाते क्यों हैं?’

‘नहीं, जाओ यहां से- नहीं तो मैं खुद फोन कर पुलिस द्वारा तुम्हें पकड़वा दूंगा-’

‘पुलिस, और वह मुझे पकडे़गी,’ वह व्यंग्य से मुसकराया, ‘उसे मैं पैसा देता हूं- कहिए तो मैं ही उसे बुलवा दूं,’ उस ने जेब से मोबाइल फोन निकाला- तब तक उस के पिताजी जा चुके थे- उस ने फोन पर किसी को कार भेजने को कहा- फिर फोन बंद कर मुझ से बोला, ‘तुम मुझे सिविल लाइंस वाले घर पर मिलना- यहां पिताजी अब भी मुझ से चिढ़ते हैं- यह रहा मेरा पता। और तुम्हें कोई जरूरत हो तो मुझ से मिलना- अरे हां, मैं ने तुम्हारी खुशी की मिठाई तो खाई ही नहीं,’ और उस ने मिठाई का एक टुकडा़ अपने मुंह में रख लिया था-

कुछ दिन बाद ही उस का एक आदमी मुझे उस के घर ले गया, जहां वह अकेला रहता था- मगर वह वहां अकेला नहीं था- वहां उस के कुछ नौकरों, आदमियों के साथ उस की रखैल पूजा भी थी- उस के कमरे की अलमारियां विभिन्न ब्रांडों वाले शराब से सजी थीं-

‘आज तुम मेरी सफलता का स्वाद चखो,’ डाइनिग टेबल के पास मुझे ले जा कर वह बोला, ‘यहां वह सबकुछ है जिसे तुम खा सकते हो और पी भी सकते हो-’

उस ने एक उन्मुक्त ठहाका लगाया, तो मैं सहम गया- अजीबोगरीब हथियारों से लैस अपने आदमियों से घिरा और अपनी जेब में एक विदेशी रिवाल्वर रखे अपनी रखैल के साथ जो बैठा है, क्या यह वही मंगल पांडे है जिसे मैं बचपन से जानता हूं, जो कभी मेरा दोस्त था और जिसे मैं देखना चाहता था- मजबूरन मुझे उस के साथ भोजन करना ही पडा़- इस आधे घंटे के दौरान उस ने अपनी उपलब्धियों और सफलताओं का कच्चा चिट्ठा मेरे सामने रख दिया था- उस की पहुंच किनकिन राजनेताओं और उच्चाधिकारियों तक थी और कैसेकैसे वह काम करता था, यह जानना मेरे लिए किसी अजूबे से कम नहीं था- इसी बीच उस के एक आदमी ने एक अटैची उस के पास रख दी, जो रुपयों से भरी थी- उस ने लापरवाही से अटैची खोली- रुपयों के 2-3 बंडलों को देखा और अटैची को बंद कर दिया-

‘इतना कुछ पा कर भी क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि कहीं कोई चीज खो भी गई है,’ मैं शांत स्वर में बोला, ‘मंगल, सच बताना, क्या ऐसा नहीं लगता?’

‘मैं ने अपनी सामाजिकता खोई है- अपना निजत्व खोया है,’ उस के स्वर में थोडा़ रूखापन था, ‘सब से बडी़ बात, मैं ने अपने पिताजी को खो दिया- मगर तुम्हीं बताओ, जब यह समाज ही ऐसा है कि सभी मुखौटे लगाए बैठे हैं तो मैं क्या करता- अपने बचाव का रास्ता सभी अख्तियार करते हैं और मैं ने भी किया, तो क्या बुरा किया.’

‘मगर यह कैसा रास्ता चुना तुम ने, जो अपराध की अंधेरी सुरंग से हो कर गुजरता है और आगे का तुम्हारा क्या भविष्य है?’

‘मेरा भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है,’ वह गर्व से बोला, ‘अगले चुनाव में मैं भी एक उम्मीदवार बन कर तुम्हारे सामने आऊंगा, तब तुम देखना- मगर उस के लिए कुछ रुपयों का जुगाड़ तो कर लूं-’

‘रुपया तो तुम्हारे पास बहुत है,’ मैं उस की तिजोरी की ओर इशारा कर बोला, ‘और कितना चाहिए?’

‘करोडों़ रुपए,’ वह हंस पडा़, ‘तुम नहीं जानते, और जानने की कोशिश भी न करना- बहुत बुरा है यह रास्ता- इस रास्ते का अंत सिर्फ मौत है- चूंकि मैं इस रास्ते पर चल पडा़ हूं, पीछे हटने का मतलब सिर्फ मौत ही है-’

‘और आगे क्या है?’

‘सुरक्षा, सफलता और सत्ता का स्वाद है-’

वापसी के वक्त मैं यही सोचता रह गया कि अपनी इज्जत बचाने की खातिर अपनी बहन के साथ छेड़खानी करने वाले जिस गुंडे की मंगल हत्या करता है, आज वही रखैलें रखने और गुंडागर्दी करने पर उतर आया है- गाडि़यों और रखैलों को कपडों़ की तरह बदलता और शाही ठाट से रहता है- इस शहर के 3 घरों पर कब्जा जमाए हुए है और ऊंची पहुंच रखता है- मगर फिर याद आता है उस के पिता और बहन का चेहरा- चाहे वह कितनी भी सफलता की सीढि़यां तय कर ले, वह उन तक पहुंच नहीं सकता। और यहीं उस की पराजय है-

बाद में अपनी नई नौकरी और पारिवारिक परेशानियों में मैं उलझ कर रह गया- हम अपने ही एक ऐसे किराएदार से उलझे थे जो दबंग तो था ही, मुकदमेबाजी में भी उलझा कर रख दिया था- अंततः जब मुझे समझ में आ गया कि मकान का वह हिस्सा, जिस में वह रहता है, हमारे हाथ से निकल जाएगा, तो मैं ने मंगल पांडे की शरण ली और उस ने उस मकान को दूसरे ही दिन खाली करवा लिया, तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा था-

‘जो व्यक्ति ठेके पर हत्याएं करता हो, उस के लिए यह मामूली बात है,’ वह मुसकरा कर बोला था, ‘कभी जरूरत हो तो आना- यह काम तो मैं ने दोस्ती के नाते मुपत में कर दिया और यह तो मेरे बाएं हाथ का खेल है-’

मैं सिहर पडा़- उस किराएदार को निकालने के लिए मैं ने जो तरीका अपनाया था उसी से मैं अपराधबोध से ग्रस्त था- आज तो उस ने उसे भगा दिया, मगर कल मंगल पांडे नहीं रहा और वह आ जाए, तो क्या होगा- यही मैं सोचता था- वैसे अनुभव ने मुझे यह तो सिखाया ही कि अपनी सुरक्षा आप करनी चाहिए- मगर क्या मेरे लिए यह संभव है?

क्या बात है, आज कालिज नहीं जाना क्या?

मैं ने चौंक कर पीछे देखा- पीछे मां खडी़ पूछ रही थीं, अब उस की चिता क्या करना, जो मर गया- जैसी करनी, वैसी भरनी- मौत से खेलेगा तो मौत ही तो मिलेगी- इस पर इतना सोचविचार क्या करना.

Best Kahani : हम बिकाऊ नहीं

Best Kahani : ‘‘सर,आज उस औनलाइन कंपनी में आप की मीटिंग है. उस के बाद दोपहर का खाना कंपनी के स्टाफ के साथ. हमारे गहनों को उन की वैबसाइट में डालने के सिलसिले में आज आप सौदा पक्का कर रहे हैं और दस्तखत भी करेंगे. यही आज का आप का प्रोग्राम है,’’ रामनाथ के निजी सचिव दया ने उन की डायरी को देख कर कहा और फिर संबंधित फाइल उन्हें दे दी.

रामनाथ ने उस फाइल को देख कर पूछा, ‘‘उस औनलाइन कंपनी की तरफ से कौन आ रहा है?’’ यह सवाल पूछते ही उन के मन में एक अजीब सा एहसास हुआ.

‘‘सर, पहले दिन से ही उस कंपनी की तरफ से हम से बातचीत करती आ रही वह लड़की प्रिया ही आएगी सौदा पक्का करने.’’

यह सुनते ही रामनाथ के मन में खुशी फैल गई. न जाने क्यों जब से प्रिया को पहली बार देखा या तब से रामनाथ का मन उस के प्रति आकर्षित हो गया था.

जब रामनाथ ने यह तय किया था कि वे एक अंतर्राष्ट्रीय औनलाइन कंपनी के साथ मिल कर अपने गहनों के व्यापार को नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगे तो 1 महीना पहले जब दया ने कहा था कि उस कंपनी की ओर से एक लड़की आई है तो रामनाथ ने उसे हलके में लिया था.

रामनाथ उस शहर के ही नहीं, बल्कि देश के सब से बड़े व्यवसायियों में से एक थे. उन की वार्षिक आय करोड़ों में थी. उन के कई सारे कारोबार हैं जैसे सैटेलाइट टीवी, दैनिक और मासिक पत्रिकाएं, सोने, हीरे और प्लैटिनम के गहने तैयार कर अपने ही शोरूम में बेचना, 3-4 फाइवस्टार होटल, रियल ऐस्टेट. खासकर उन के गहने ग्राहकों के बीच बहुत लोकप्रिय थे. यह देख कर रामनाथ ने अपने कारोबार को और आगे बढ़ाने के लिए औनलाइन व्यापार में दाखिल होने का निर्णय लिया. उसी सिलसिले में उस अंतर्राष्ट्रीय कंपनी की ओर से प्रिया को पहली बार देखा था.

रामनाथ की आयु लगभग 50 साल थी. लंबा कद, सांवला रंग. उसी उम्र के अन्य लोगों की तरह तोंद नहीं. संक्षिप्त में कहें तो कोई भी उन्हें न तो सुंदर और न ही बदसूरत कह सकता था. अपने माथे पर कुमकुम का टीका लगाते थे और यह कुमकुम ही उन की अलग पहचान बन गई.

रामनाथ ने दया से कहा, ‘‘अंदर भेजो उस लड़की को,’’ और फिर फाइल में मग्न हो गए.

तभी सुरीली आवाज आई, ‘‘मे आई कम इन सर?’’

सुन कर फाइल से नजरें हटा कर आवाज की दिशा की ओर देखा. वहां सामने 22-23 उम्र की एक लड़की मुसकराती नजर आई. उसे देख कर रामनाथ की भौंहें खिल उठीं, फिर तुरंत खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘कम इन’’ और फिर फाइल बंद कर दी.

लड़की लंबे कद की थी. आज के जमाने की युवतियों की तरह एक चुस्त जीन्स और स्लीवलैस ढीला टौप पहने थी. वातानुकूलित कमरे में बड़े ही अंदाज के साथ अंदर आई. हाथ में एक लैपटौप था. बाल कटे थे, कलाई पर महंगी घड़ी और कीमती फ्रेमवाले चश्मे के अलावा और कोई गहना नहीं था. उसे देख रामनाथ ने एक पल को सोचा कि इस लड़की को सुंदर बनाने के लिए किसी अन्य चीज की जरूरत ही नहीं है.

‘‘मैं हूं प्रिया. मैं अपनी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी की ओर से आप से सौदा पक्का करने आई

हूं. मैं अपने बारे में कुछ कहना चाहती हूं. आईआईएम, अहमदाबाद से एमबीए खत्म करने के बाद कैंपस इंटरव्यू में इस कंपनी ने मुझे चुना. पिछले 6 महीनों से यहीं काम कर रही हूं. यह है मेरा बिजनैस कार्ड,’’ कह प्रिया ने रामनाथ से हाथ मिलाया.

उस का हाथ बहुत ही कोमल था. उस की आवाज में रामनाथ को एक संगीत सा लगा. जब लड़की अपनी कुरसी पर बैठी तो ऐसा लगा कि पूरा कमरा ही नूर से भर गया हो.

प्रिया ने अपनी कंपनी के बारे में बहुत कुछ कहा. अकसर इस तरह के सौदे को रामनाथ बस 1-2 मिनट बात कर के अपने किसी चुनिंदा अधिकारी को उस सौदे की जिम्मेदारी सौंप देते थे. मगर न जाने क्यों इस बार उन्होंने ऐसा नहीं किया. 20 मिनट की बातचीत के बाद प्रिया अपनी कुरसी से उठ कर बोली, ‘‘सर आप से मिल कर बेहद खुशी हुई. इस सौदे को आगे ले चलने के लिए आप अपनी कंपनी की ओर से अपने किसी भरोसेमंद अधिकारी को मुझ से मिलवाइएगा.’’

यह सुन कर रामनाथ ने कहा, ‘‘नहीं, इस मामले को मैं खुद संभालना चाहता हूं. लीजिए यह मेरा कार्ड, रात 9 बजे के बाद फोन कीजिएगा. आमतौर पर मैं उस समय अपने दफ्तर का काम बंद कर देता हूं. तब हम आराम से बात कर सकते हैं.’’

यह सुन कर प्रिया को ताज्जुब हुआ और उस के चेहरे में यह आश्चर्य साफ नजर आया और उस ने आधुनिक अदा में अपने कंधों को उठा कर नीचे कर के इसे प्रकट भी किया.

उस पहली मुलाकात के बाद 2 बार दोनों मिले. 3-4 बार फोन पर भी बात हुई. रामनाथ को पता नहीं था, मगर उन का मन अपनेआप उस लड़की की ओर चला गया. उन की निरंतर गर्लफ्रैंड कोई नहीं. काम हो जाने के बाद उसी वक्त पैसा दे कर मामले को रफादफा करने की आदत है उन में. किसी को रखनेबनाने की दिलचस्पी नहीं है उन में. उन के मुताबिक ऐसा करना बेवकूफी है और कोई भी औरत उन के लायक नहीं है. औरतों के लिए इतना ही आदर है उन के मन में. औरतों को आम की तरह चूसना और उस के बाद फेंकना रामनाथ यही करते आए आज तक. उन का मानना है कि पैसा फेंक कर किसी को भी खरीद सकते हैं. बस अंतर इतना ही कि कौन कितना मांग रही है.

ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि  उन्होंने प्रिया को भी उसी नजरिए से देखा हो. प्रिया की कोमलता और सुंदरता उन के मन को विचलित कर रही थी. ऊपर से उस लड़की के चालचलन और अकलमंदी ने रामनाथ के मन को पागल ही बना दिया. उन्होंने उस लड़की को किसी न किसी प्रकार हासिल करने की मन ही मन ठान ली.

‘उस दिन सौदा पक्का कर दस्तखत करने के बाद उस लड़की को लंच पर ले

जाऊंगा तो उस लड़की की कमजोरी का पता चल जाएगा जिस से काम आसानी से हो जाएगा,’ सोच कर रामनाथ के चेहरे पर मुसकराहट फैल गई और फिर उस पल का बेसब्री से इंतजार

करने लगे.

उस दिन उन के अपने फाइवस्टार होटल के डाइनिंगहौल के मंद प्रकाश में प्रिया और भी सुंदर लगी. प्रिया ने एक ऐसा टौप पहना थी कि उस के प्रति रामनाथ का आकर्षण और बढ़ता गया. बहुत प्रयास कर के अपने जज्बातों को काबू में रखा.

‘‘हाउ कैन आई हैल्प यू सर,’’ विनम्र भाव से पूछा वेटर ने.

रामनाथ ने अपने लिए एक कौकटेल का और्डर दिया.

फिर वेटर ने प्रिया से पूछा, ‘‘ऐंड फौर द लेडी सर,’’

सुनते ही प्रिया ने बेझिझक कहा, ‘‘गौडफादर फौर मी.’’

इस नाम को सुनते ही रामनाथ चौंक गए. यह लड़की इतना सख्त कौकटेल पीएगी, वे सोच भी नहीं सकते थे कि इतनी छोटी उम्र की लड़की ऐसा कौकटेल पी सकती है जो आदमी पर भी भारी पड़ सकता है.

कौकटेल आने के बाद दोनों पीने लगे. रामनाथ सोच रहे थे कि बात

कैसे शुरू की जाए. तभी प्रिया खुद बोली, ‘‘जी रामनाथ… हम ने डील साइन करा दी. मेरा काम यहीं तक है. इस के आगे हमारी कंपनी की तरफ से कोई और आएगा,’’ कहते वह बड़ी अदा के साथ कौकटेल पीने लगी. उस के पीने का अंदाज देख कर यह स्पष्ट हुआ कि यह लड़की इसे अकसर पीती है.

एक राउंड के बाद रामनाथ ने प्रिया के हाथ पकड़ कर उस के चेहरे को गौर से देखा ताकि उस की भावना को समझ सकें. प्रिया ने धीरे से रामनाथ के हाथों को हटा कर उन की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तो रामनाथ आप मेरे साथ सोना चाहते हैं?’’

प्रिया का यह सवाल सुन कर रामनाथ हैरान रह गए. उन की जिंदगी में प्रिया पहली लड़की है जो इस तरह सीधे मुद्दे पर आई. इतनी छोटी उम्र में इतनी हिम्मत… रामनाथ को सच में एक झटका सा लगा.

गौडफादर को सिप करते हुए प्रिया बोली, ‘‘मैं इतनी भी भोली नहीं हूं कि आप का इरादा न समझ सकूं… पहले दिन ही मुझे पता चल गया था कि आप के मन में क्या चल रहा है… आप जैसे बड़ेकारोबारी मुझ जैसी चुटकी लड़कियों के साथ व्यवसाय के मामले में बात नहीं करते और इस काम को अपने किसी अधिकारी को ही देते लेकिन आप ने ऐसानहीं किया. और तो और आप अपना पर्सनल कार्ड भी मुझे दे कर मुझ से बात करने लगे… और यह लंच मेरी जैसी एक मामूली लड़की के साथ… मैं बेवकूफ नहीं हूं. आप के मन में क्या चल रहा है यह आईने की तरह मुझे साफ दिख रहा है. इट इज ओब्वियस… आप को कुछ बोलने की जरूरत ही नहीं.’’

रामनाथ सच में अवाक रह गए थे. उन्होंने अब तक कई लड़कियों को अपने जाल में फंसा लिया था, मगर किसी लड़की में इस तरह बात करनेझ्र की जुर्रत होगी यह उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था.

अपने कोमल हाथों से कांच के गिलास को इधरउधर घुमा कर प्रिया ही बोली, ‘‘मेरा इस तरह सीधे मुद्दे पर आना आप को चौंका गया पर गोलगोल बातें करना मेरी आदत ही नहीं… मेरे खयाल से आप का यह इरादा गलत नहीं है… आप ने अपने मन की इच्छा प्रकट की और अब अपनी राय बताने की मेरी बारी है.’’

‘‘सच कहूं तो मुझे कोई एतराज नहीं, मगर मेरी कुछ शर्तें हैं, जिन्हें आप को मानना पड़ेगा. जब बात जिस्म की होती है तो दोनों तरफ से एक लगाव का होना जरूरी है. मेरी खूबसूरती खासकर मेरा यौवन आप को मेरी ओर आकर्षित कर गया, मगर आप को अपने करीब आने की मंजूरी देने के लिए आप में ऐसा क्या है, जब मैं ने सोचा तो पता चल ही गया पैसा… बहुत ज्यादा पैसा जो मेरे पास नहीं है… वह पैसा जिसे पाने का जनून है मुझ में.’’

रामनाथ ने प्रिया की ओर देख कर कहा, ‘‘क्या तुम यह चाहती हो कि मैं तुम से शादी करूं?’’

रामनाथ की बात सुन कर प्रिया जोर से हंसने लगी. उस की हंसी से यह

साफ दिख रहा था कि उस के अंदर के गौडफादर ने अपना काम करना शुरू कर दिया है.

‘‘ओ कमऔन आप इतने बेवकूफ कैसे बन सकते हैं… शादी और आप से सच में आप मजाक ही कर रहे होंगे. आप किस जमाने में जी रहे हैं… शादी के बारे में तो मैं दूरदूर तक नहीं सोच सकती. अभीअभी मैं ने आप से कहा कि आप के पास मुझे आकर्षित करने वाली सिर्फ एक ही चीज है और वह है पैसा और आप मुझे अपने साथ रिश्ता जोड़ने की बात कर रहे हैं. हाउ द हेल कैन यू थिंक लाइक दिस?’’

‘‘आज की दुनिया में हम जैसी युवतियों का जीना ही मुश्किल है. हमारे आगे बहुत सारी चुनौतियां हैं, हमारी नौकरी में भी ढेर सारी दिक्कतें हैं. आप लोगों को इस के बारे में पता नहीं. अगर हम अमेरिका जाएं तो वहां भी जिंदगी आसान नहीं है. इन सभी कठिनाइयों को दूर करने का एक ही रास्ता है पैसा… बहुत सारा पैसा.’’

प्रिया क्या कहना चाहती है, रामनाथ को सच में पता नहीं चला.

‘‘मैं आप के इस प्रस्ताव को मानती हूं, मगर इस के बदले में आप अन्य औरतों को जिस तरह 3 या 4 लाख फेंकते हैं वे मेरे लिए पर्याप्त नहीं. आप के बारे में बहुत सारे अध्ययन करते समय मुझे पता चला कि आप के सभी कारोबारों में यह सोने और हीरे का व्यवसाय बहुत ही लाभदायक है. मैं आप के सामने 2 विकल्प रखती हूं. आप इस व्यवसाय को मेरे नाम कर दीजिए वरना आप के कारोबारों में जिन 3 बिजनैस को मैं चुनती हूं उन में मुझे 51% भागीदारी बनाइए और उस के बाद हमारा रिश्ता शुरू.

‘‘हां, यह मत समझना कि पैसे देने से आप मुझ पर किसी प्रकार का हुकम चला सकते हैं. हर महीने सिर्फ 10 दिन हम इस फाइवस्टार होटल में 1 घंटे के लिए मिल सकते हैं, बस. अगर आप को यह डील मंजूर है तो मुझे फोन कर दीजिएगा वरना अलविदा,’’ और फिर प्रिया अपना हैंडबैग ले कर वहां से चली गई.

रामनाथ का सारा नशा उतर गया. लौटती प्रिया को एकटक देखते रह गए. एक पल को पता ही नहीं चला कि वे भारत में हैं या किसी पश्चिमी देश में.

होटल से बाहर आई प्रिया को नशे की वजह से चक्कर आने लगा तो

अपनेआप को संभालने की कोशिश करने लगी तभी एक गाड़ी उस के पास आ कर रुकी. गाड़ी से एक हाथ बाहर आया और फिर प्रिया को खींच कर गाड़ी में बैठा लिया. वह और कोई नहीं प्रिया का जिगरी दोस्त रोशन था. कुछ दूर चलने के बाद गाड़ी को किनारे खड़ा कर उस ने प्रिया के चेहरे पर पानी के छींटे मारे और फिर एक बोतल नीबू पानी पीने को दिया. नीबू पानी पीते ही प्रिया उलटी करने लगी. कुछ देर में होश में आ गई.

‘‘बहुत खूब प्रिया. जैसे हम ने योजना बनाई थी बिलकुल उसी तरह तुम ने बोल कर उस आदमी को अच्छा सबक सिखाया. अच्छा हुआ कि तुम ने उस के मंसूबे को सही वक्त पर पहचान लिया और उस कामुक व्यक्ति को अपनी औकात दिखा दी. उस जैसे आदमी यह सोचते हैं कि अपने पैसों, शान, शोहरत, रुतबे आदि से किसी भी लड़की को अपने बिस्तर तक ले जा सकते हैं.

‘‘उन के मन में औरत के लिए इज्जत नहीं. उन के लिए औरत एक खिलौना है, जिस के साथ मन चाहे समय तक खेले और फिर चंद रुपए दे कर फेंक दिया. यह लोग इंसान के रूप में समाज में भेडि़यों की तरह औरत को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं. वह अब हैरान हो कर बैठा होगा और समझ गया होगा कि औरत बिकाऊ नहीं है. उस की संकीर्ण सोच पर पड़ा पर्दा हट गया होगा.’’

प्रिया के थके चेहरे पर हलकी सी मुसकराहट फैल गई जो औरत की जीत की मुसकराहट थी.

Storytelling : नसबंदी – क्या उसकी नसबंदी हो पाई?

Storytelling : साल 1976 की बात रही होगी. उन दिनों मैं मेडिकल कालेज अस्पताल के सर्जरी विभाग में सीनियर रैजीडैंट के पद पर काम कर रहा था. देश में आपातकाल का दौर चल रहा था. नसबंदी आपरेशन का कोहराम मचा हुआ था. हम सभी डाक्टरों को नसबंदी करने का लक्ष्य निर्धारित कर दिया गया था, और इसे अन्य सभी आपरेशन के ऊपर प्राथमिकता देने का भी निर्देश था. लक्ष्य पूरा न होने पर वेतन वृद्धि और उन्नति रोकने की चेतावनी दे दी गई थी. हम लोगों की ड्यूटी अकसर गावों में आयोजित नसबंदी कैंप में भी लग जाया करती थी.

कैंप के बाहर सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की भीड़ लगी रहती थी. उन्हें प्रेरक का काम दे दिया गया था और निर्धारित कोटा न पूरा करने पर उन की नौकरी पर भी खतरा था. कोटा पूरा करने के उद्देश्य से वृद्धों को भी वे पटा कर लाने में नहीं हिचकते थे.

कुछ व्यक्ति तो बहुत युवा रहते थे, जिन का आपरेशन करने में अनर्थ हो जाने की आशंका बनी रहती थी. कैंप इंचार्ज आमतौर पर सिविल सर्जन रहा करते थे. रोगियों से हमारी पूछताछ उन्हें अच्छी नहीं लगती थी.

बुजुर्ग शिक्षकों की स्थिति बेहद खराब थी. उन से प्रेरक का काम हो नहीं पाता था, लेकिन अवकाशप्राप्ति के पूर्व कर्तव्यहीनता के लांछन से अपने को बचाए रखना भी उन के लिए जरूरी रहता था. वे इस जुगाड़ में रहते थे कि यदि कोई रोगी स्वयं टपक पड़े तो  प्रेरक के रूप में अपना नाम दर्ज करवा लें या कोटा पूरा कर चुके शिक्षक की आरजूमिन्नत से शायद काम बन जाए. जनसंख्या नियंत्रण के लिए नसबंदी का यह तरीका कितना उपयुक्त था, यह तो आपातकाल के विश्लेषकों का विषय है.

एक दिन हमारे आउटडोर में एक ग्रामीण बुजुर्ग एक नवयुवक को दिखाने लाए. उस युवक का नाम रमेश था और उम्र 20-22 साल के आसपास रही होगी. उसे वह अपना भतीजा बता रहे थे. उसे हाइड्रोसिल की बीमारी थी. हाइड्रोसिल बड़ा तो नहीं था, लेकिन आपरेशन किया जा सकता था.

चाचा आपरेशन कराने पर बहुत जोर दे रहे थे, इसलिए यूनिट इंचार्ज के आदेशानुसार उसे भरती कर लिया गया.

आपरेशन से पहले की जरूरी जांच की प्रक्रिया पूरी की गई और 4 दिन बाद उस के आपरेशन की तारीख तय की गई. इस तरह के छोटे आपरेशनों की जिम्मेदारी मेरी रहती थी.

आपरेशन के 2 दिन पहले मुझे खोजते हुए चाचा मेरे आवास तक पहुंच गए. वे मिठाई का एक डब्बा भी साथ लाए थे, जिसे मैं ने स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया और उन्हें जाने को कहा. फिर भी वे बैठे रहे. फिर धीरे से उन्होंने पूछा कि रमेश को 3 बच्चे हो चुके हैं, साथ में नसबंदी भी करवा देना चाहते हैं.

जातेजाते उन्होंने रमेश से इस बात का जिक्र नहीं करने का आग्रह किया. वजह, उसे नसबंदी से डर लगता है.

मेरे यह कहने पर कि अनुमति के लिए तो उसे हस्ताक्षर करना पड़ेगा, तो उन्होंने कहा कि कागज उन्हें दे दिया जाए, वह उसे समझा कर करवा लेंगे.

आपरेशन सफल होने पर वे मेरी सेवा से पीछे नहीं हटेंगे. मैं ने उन्हें घर से बाहर करते हुए दरवाजा बंद कर दिया.

उस दिन रात को मुझे अस्पताल से लौटते समय रास्ते में रमेश सिगरेट पीता हुआ दिखाई दे गया. मुझे देखते ही उस ने सिगरेट फेंक दी.

सिगरेट न पीने की नसीहत देने के खयाल से मैं ने उस से कहा कि अपने तीनों बच्चों का खयाल करते हुए वह इस लत को तुरत छोड़ दे.

आश्चर्य जाहिर करते हुए उस ने पूछा, ‘‘कौन से तीन बच्चे?’’

‘‘तुम्हारे और किस के?’’

मेरे इस उत्तर को सुन कर वह हैरान रह गया और बोला, ‘‘डाक्टर साहब, मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है, फिर बच्चे कहां से…?

“अभी तो छेंका हुआ है और फिर 6 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. इसीलिए चाचा को उस ने अपनी इस बीमारी के बारे बताया था, तो वे यहां लेते आए.’’

अब चौंकने की बारी मेरी थी. उस की बातों को सुन कर मुझे दाल में कुछ काला लगा और रहस्य जानने की इच्छा होने लगी.

मेरे पूछने पर उस ने अपने परिवार का पूरा किस्सा सुनाया.

वे लोग गांव के बड़े किसान हैं. उन लोगों की तकरीबन 20 एकड़ की खेती है. यह चाचा उस के स्वर्गवासी पिता के सब से बड़े भाई हैं. बीच में 4 बूआ भी हैं, जो अपनेअपने घर में हैं.

चाचा के 4 लड़के हैं. सबों की शादी, बालबच्चे हैं. वह अपने पिता की अकेली संतान है. बचपन में ही उस के पिता ट्रैक्टर दुर्घटना में मारे गए थे. वे सभी संयुक्त परिवार में रहते हैं.

चाचा और चाची उसे बहुत मानते हैं. पढ़ालिखा कर मजिस्ट्रेट बनाना चाहते थे, लेकिन आईए में 2 बार फेल कर जाने के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी और खेती में जुट गया. चाचा घर के मुखिया हैं. गांव में उन की अच्छी धाक है.

पूरी बात सुन कर मेरा कौतूहल और बढ़ गया कि आखिर इस लड़के की वह शादी होने के पहले ही नसबंदी क्यों कराना चाहते हैं?

कुछ सोचते हुए मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हारे हिस्से में कितनी जमीन आएगी?’’

थोड़ा सकपकाते हुए वह बोला, ‘‘तकरीबन 10 एकड़.’’

पूछने में मुझे अच्छा तो नहीं लग रहा था, फिर भी पूछ ही लिया, ‘‘मान लो, तुम्हें बालबच्चे न हों और मौत हो जाए, तो वह हिस्सा कहां जाएगा?’’

थोड़ी देर सोचने के बाद वह बोला, ‘‘फिर तो वह सब चाचा के हिस्से में ही जाएगा.’’

मेरे सवालों से वह थोड़ा हैरान था और जानना चाहता था कि मुझ से यह सब क्यों पूछा जा रहा है.

बात टालते हुए सवेरे अस्पताल के अपने कक्ष में अकेले आने को कहते हुए मैं आगे बढ़ गया. रोकते हुए उस ने कहा, ‘‘चाचा जरूरी काम से गांव गए हैं. गांव में झगड़ा हो गया है.

‘‘मुखिया होने के नाते उन्हें वहां जाना जरूरी था. कल शाम तक वे लौट आएंगे. यदि कोई खास बात है, तो उन के आने का इंतजार वह कर ले क्या?’’

‘‘तब तो और अच्छी बात है, तुम्हें अकेले ही आना है,’’ कहते हुए मैं चल पड़ा.

इस पूरी बात से मैं इस नतीजे पर पहुंच चुका था कि इस के चाचा ने एक गंदे खेल की योजना बना ली है. वे इसे निःसंतान बना कर आने वाले दिनों में इस के हिस्से की संपत्ति को अपने बेटों के लिए रखना चाहते थे.

मैं ने ठान लिया कि मुझे इस अनर्थ से इसे बचाना होगा. साथ ही, मैं उस संयुक्त परिवार में एक नए महाभारत का सूत्रपात भी नहीं होने देना चाहता था.

सवेरे अस्पताल में मेरे कक्ष के आगे रमेश मेरी प्रतीक्षा में खड़ा था. मैं ने फिर से परीक्षण का नाटक करते हुए उसे बताया, ‘‘अभी तुम्हें आपरेशन की कोई जरूरत नहीं है. इस में नस इतनी सटी हुई है कि आपरेशन में उस के कट जाने का खतरा है. साथ ही, तुम्हारे ब्लड की रिपोर्ट के अनुसार खून ज्यादा बहने का भी खतरा है.

‘‘इतना छोटा हाइड्रोसिल तो दवा से भी ठीक हो जाएगा. अगर तुम्हारे चाचा आपरेशन कराने के लिए फिर किसी दूसरे अस्पताल में तुम्हें ले जाएं तो हरगिज मत जाना.

‘‘इस नसबंदी के दौर में तुम्हारा भी शिकार हो जाएगा,’’ झूठ का सहारा लेते हुए मैं ने उस से कहा, ‘‘शादी के बाद भी कई बार छोटा हाइड्रोसिल अपनेआप ठीक हो जाता है. दवा की यह परची लो और चुपचाप तुरंत भाग जाओ.

‘‘बस से तुम्हारे गांव का 2 घंटे का रास्ता है. चाचा के निकलने के पहले ही तुम वहां पहुंच जाओगे.’’

मेरी बात उस ने मान ली. सामान बटोर कर उसे जाते  देख मुझे तसल्ली हुई.

बात आईगई हो गई. प्रोन्नति पाते हुए, विभागाध्यक्ष के पद से साल 2003 में मैं रिटायरमैंट के बाद अपने निजी अस्पताल के माध्यम से मरीजों की सेवा में जुड़ गया था.

एक दिन एक अर्द्धवयस्क व्यक्ति एक बूढ़ी को दिखाने मेरे कक्ष में दाखिल हुआ. वह बूढ़ी धवल वस्त्र में, तुलसी की माला पहनी हुई, साध्वी सी लग रही थीं.

अपना परिचय देते हुए उस पुरुष ने 28 साल पहले की वह घटना याद दिलाई.

याद दिलाते ही सारी घटना मेरी आंखों के सामने तैर गई और आगे की घटना जानने की उत्सुकता जग गई.

रमेश ने बताया कि अस्पताल से जाने के बाद चाचा ने उस का आपरेशन कराने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन न करवाने की उस की जिद के आगे उन की एक न चली.

चाचा उसे बराबर अपने साथ रखते थे. शादी के पहले उस के ऊपर जानलेवा हमला भी हुआ था. उस ने वहां से भाग कर किसी तरह जान बचा ली. हल्ला था कि चाचा ने ही करवाया था. 4 साल बाद ही चाचा की किसी ने हत्या कर दी थी. वह पार्टीपौलिटिक्स में बहुत उलझ गए थे. उन्होंने बहुतों से दुश्मनी ले ली थी.

उन दिनों, उस गांव में आयोजित नसबंदी कैंप में मुझे कई बार जाने का मौका मिला था. मुझे वह गांव बहुत अच्छा लगता था. संपन्न किसानों की बस्ती थी. खूब हरियाली थी. सारे खेत फसलों से लहलहाते रहते थे, इसलिए उत्सुकतावश वहां का हाल पूछा.

रमेश ने कहना शुरू किया, ‘‘वह अब गांव नहीं रहा, बल्कि छोटा शहर बन गया है. पहले वर्षा अनुकूल रहती थी. अब मौसम बदल गया है. सरकारी सिंचाई की कोई व्यवस्था अभी तक नहीं हो पाई है. पंप है तो बिजली नहीं. जिस किसान के पास अपना जेनरेटर, पंप जैसे सभी साधन हैं, उस की पैदावार ठीक है. खेती के लिए मजदूर नहीं मिलते, सभी का पलायन हो गया है. उग्रवाद का बोलबाला हो गया है. उन के द्वारा तय लेवी दे कर छुटकारा मिलता है. जो थोड़ा संपन्न हैं, वे अपने बच्चों को पढ़ने बाहर भेज देते हैं और फिर वे किसी शहर में भले ही छोटीमोटी नौकरी कर लें, लेकिन गांव आना नहीं चाहते.’’

आश्चर्य प्रकट करते हुए मैं ने कहा, ‘‘मुझे तो तुम्हारा गांव इतना अच्छा लगा था कि मैं ने सोचा था कि रिटायरमैंट के बाद वहीं आ कर बसूंगा.’’

सुनते ही रमेश चेतावनी देने की मुद्रा में बोला, ‘‘भूल कर भी ऐसा नहीं करें सर, डाक्टरों के लिए वह जगह बहुत ही खतरनाक है. ब्लौक अस्पताल तो पहले से था ही, बाद में रैफरल अस्पताल भी खुल गया है.‘‘शुरू में सर्जन, लेडी डाक्टर सब आए थे, पर माहौल ठीक न रहने से अब कोई आना नहीं चाहता है. जो भी डाक्टर आते हैं, 2-4 महीने में बदली करवा लेते हैं या नौकरी छोड़ कर चल देते हैं.

“सर्जन लोगों के लिए तो फौजदारी मामला और मुसीबत है. इंज्यूरी रिपोर्ट मनमाफिक लिखवाने के लिए उग्रवादी लोग डाक्टर को ही उड़ा देने की धमकी देते हैं. वहां ढंग का कोई डाक्टर नहीं है. दो बैद्यकी पास किए हुए डाक्टर हैं, वे ही अंगरेजी दवाओं से इलाज करते हैं.

‘‘हम लोगों को बहुत खुशी हुई थी, जब हमारे गांव के ही एक परिवार का लड़का डाक्टरी पढ़ कर आया था. उन की पत्नी भी डाक्टर थी. दोनों में ही सेवा का भाव बहुत ज्यादा था. सब से ज्यादा सुविधा महिलाओं को हो गई थी. 2 साल में ही उन का बहुत नाम हो गया था.

‘‘मां तो उन की पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी थीं और बाद में पिता भी नहीं रहे. जमीन बेच कर, अपने मातापिता की स्मृति में एक अस्पताल भी बनवा रहा था. लेकिन उन से भी लेवी की मांग शुरू हो गई कि वे औनेपौने दाम में सबकुछ बेच कर विदेश चले गए.’’

शहर के नजदीक, इतने अच्छे गांव को भी चिकित्सा सुविधा की कमी का दंश झेलने की बात सुन कर सिवा अफसोस के मैं और कर भी क्या सकता था?

बात बदलते हुए मैं ने कहा, ‘‘अच्छा, घर का हाल बताओ.’’

उस ने बताया, ‘‘चाचा के जाने के बाद घर में कलह बहुत बढ़ गई थी. हम लोगों के हिस्से की कमाई भी वे ही लोग उठा रहे थे, इसलिए संपत्ति का बंटवारा वे नहीं चाहते थे. मामा वकील हैं. उन के दबाव से बंटवारा हुआ. चाचा ने धोखे से मां के हस्ताक्षर के कुछ दस्तावेज भी बनवा लिए थे. उस के आधार पर मेरे हिस्से में कम संपत्ति आई.’’

मां अब तक आंखें बंद कर चुपचाप सुन रही थीं, लेकिन अब चुप्पी तोड़ते हुए वे बोलीं, ‘‘हां डाक्टर साहब, वे मेरे पिता के समान थे. मुझे बेटी की तरह मानते थे. बैंक का कागज, लगान का कागज, तो कभी कोई सरकारी नोटिस वगैरह आता रहता था. मैं मैट्रिक पास हूं, फिर भी मैं उन का सम्मान करते हुए जहां वे कहते, हस्ताक्षर कर देती थी. कब उन्होंने उस दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवा लिया, पता नहीं.

‘‘मैं ने अपने बेटे को उस समय शांत रखा, नहीं तो कुछ भी हो सकता था. उसे बराबर समझाती थी कि संतोष धन से बड़ा कुछ नहीं होता है, और डाक्टर साहब, किए का फल यहीं इसी लोक में मिलता है.

“वह है तो मेरा ही परिवार, लेकिन कहने में दुख लगता है कि चारों बेटे जरा भी सुखी नहीं हैं. पूरे परिवार में दिनरात कलह रहती है. उन में भी आपस में हिस्से का बंटवारा हो गया है. उन के खेतघर वगैरह सब चौपट हो गए हैं. उन के बालबच्चे भी कोई काम करने लायक नहीं निकले. एक पोता राशन की कालाबाजारी के आरोप में जेल में है. वहीं एक तो घर से भाग कर उग्रवादी बन गया है.

‘‘कहने में मुझे शर्म आती है कि एक पोती भी घर से भाग गई है. मुझे कोई बैरभाव नहीं है उन से. मैं उन के परिवार के अभिभावक का कर्तव्य सदा निभाती हूं. जो बन पड़ता है, हम लोग बराबर मदद करते रहते हैं. सब से छोटा बेटा, जो रमेश से 3 साल बड़ा है. हम लोगों से बहुत सटा रहता था. वह बीए तक पढ़ा भी है. उस को हम लोगों ने कृषि सामान की दुकान खुलवा दी है.’’

फिर उन्होंने मुझे नसीहत देते हुए कहा, ‘‘डाक्टर साहब, सुखी रहने के लिए 3 बातों पर ध्यान देना जरूरी है. कभी भी किसी का हक नहीं मारना चाहिए. दूसरे का सुख छीन कर कभी कोई सुखी नहीं हो सकता.

‘‘दूसरी बात, किसी दूसरे का न तो बुरा सोचो और न ही बुरा करो. आखिर में तीसरी बात, स्वस्थ जीवनचर्या का पालन. स्वस्थ व्यक्ति ही अपने लिए, समाज के लिए और देश के लिए कुछ कर सकता है,’’ कह कर वे चुप हो गईं.

आपरेशन के बारे में मेरे पूछने पर रमेश ने बताया कि अभी तक उस ने नहीं कराया है, लेकिन अब कराना चाहता है. पहले धीरेधीरे बढ़ रहा था, लेकिन पिछले 2 साल में बहुत बड़ा हो गया है. उस के 3 बच्चे भी हैं- एक बेटे और 2 बेटी. सभी सैटल हो चुके हैं. बेटा एग्रीकल्चर पास कर के उन्नत वैज्ञानिक खेती में जुट गया है. पत्नी का बहुत पहले ही बंध्याकरन हो चुका है. फिर हंसते हुए वह बोला, ‘‘अब नस कट जाने की भी कोई चिंता नहीं है.’’

मेडिकल कालेज अस्पताल से मेरे बारे में जानकारी ले कर वह अपनी मां को दिखाने यहां आया है. उस की मां लगभग 70 साल की थीं. उन्हें पित्त में पथरी थी, जिस का सफलतापूर्वक आपरेशन कर दिया गया.

छुट्टी होने के बाद खुशीखुशी मांबेटा दोनों धन्यवाद देने मेरे कक्ष में आए. रमेश ने अपने आपरेशन के लिए समय तय किया, फिर उस समय आपरेशन न करने और कड़ी हिदायत देने का कारण जानने की जिज्ञासा प्रकट की.

मैं ने कहा, ‘‘तो सुनो, तुम्हारे चाचा उस आपरेशन के साथ तुम्हारी नसबंदी करने के लिए मुझ पर दबाव डाल रहे थे. काफी प्रलोभन भी दिया था. उन्होंने मुझे गलत जानकारी दी थी कि तुम्हारे 3 बच्चे हैं.

‘‘उस शाम तुम से बात होने के बाद मुझे अंदाजा हो गया था कि उन की नीयत ठीक नहीं थी. वे तुम्हें निःसंतान बना कर तुम्हारे हिस्से की संपत्ति हड़पने की योजना बना रहे थे.’’

मेरी बात सुन कर दोनों ही हैरान रह गए. माताजी तो मेरे पैरों पर गिर पड़ीं, ‘‘डाक्टर साहब, आप ने मेरे वंश को बरबाद होने से बचा लिया. आप तो मेरे लिए…”

मैं ने उन्हें उठाते हुए कहा, ‘‘बहनजी, आप मेरे से बड़ी हैं, पैर छू कर मुझे पाप का भागी न बनाएं. लेकिन मुझे खुशी है कि एक चिकित्सक का सामाजिक दायित्व निभाने का मुझे मौका मिला और आप के आशीर्वाद से मैं सफल हो पाया.’’

Online Hindi Story : जाग सके तो जाग – क्या हुआ था साध्वी के साथ

Online Hindi Story : घर के ठीक सामने वाले मंदिर में कोई साध्वी आई हुई थीं. माइक पर उन के प्रवचन की आवाज मेरे घर तक पहुंच रही थी. बीचबीच में ‘श्रीराम…श्रीराम…’ की धुन पर वे भजन भी गाती जा रही थीं. महिलाओं का समूह उन की आवाज में आवाज मिला रहा था.

अकसर दोपहर में महल्ले की औरतें हनुमान मंदिर में एकत्र होती थीं. मंदिर में भजन या प्रवचन की मंडली आई ही रहती थी. कई साध्वियां अपने प्रवचनों में गीता के श्लोकों का भी अर्थ समझाती रहती थीं.

मैं सरकारी नौकरी में होने की वजह से कभी भी दोपहर में मंदिर नहीं जा पाती थी. यहां तक कि जिस दिन पूरा भारत गणेशजी की मूर्ति को दूध पिला रहा था, उस दिन भी मैं ने मंदिर में पांव नहीं रखा था. उस दिन भी तो गांधीजी की यह बात पूरी तरह सच साबित हो गई थी कि भीड़ मूर्खों की होती है.

एक दिन मंदिर में कोई साध्वी आई हुई थीं. उन की आवाज में गजब का जादू था. मैं आंगन में ही कुरसी डाल उन का प्रवचन सुनने लगी. वे गीता के एक श्लोक का अर्थ समझा रही थीं…

‘इस प्रकार मनुष्य की शुद्ध चेतना उस के नित्य वैरी, इस काम से ढकी हुई है, जो सदा अतृप्त अग्नि के समान प्रचंड रहता है. मनुस्मृति में उल्लेख है कि कितना भी विषय भोग क्यों न किया जाए, पर काम की तृप्ति नहीं होती.’ थोड़ी देर बाद प्रवचन समाप्त हो गया और साध्वीजी वातानुकूलित कार में बैठ कर चली गईं.

दूसरे दिन घर के काम निबटा, मैं बैठी ही थी कि दरवाजे की घंटी बजी, मन में आया कि कहला दूं कि घर पर नहीं हूं. पर न जाने क्यों, दूसरी घंटी पर मैं ने खुद ही दरवाजा खोल दिया.

बाहर एक खूबसूरत युवती और मेरे महल्ले की 2 महिलाएं नजर आईं. उस खूबसूरत लड़की पर मेरी निगाहें टिकी की टिकी रह गईं, लंबे कद और इकहरे बदन की वह लड़की गेरुए रंग की साड़ी पहने हुए थी.

उस ने मोहक आवाज में पूछा, ‘‘आप मंदिर नहीं आतीं, प्रवचन सुनने?’’

मैं ने सोचा, यह बात उसे मेरी पड़ोसिन ने ही बताई होगी, वरना उसे कैसे पता चलता.

मैं ने कहा, ‘‘मेरा घर ही मंदिर है. सारा दिन घर के लोगों के प्रवचनों में ही उलझी रहती हूं. नौकरी, घर, बच्चे, मेरे पति… अभी तो इन्हीं से फुरसत नहीं मिलती. दरअसल, मेरा कर्मयोग तो यही है.’’

वह बोली, ‘‘समय निकालिए, कभी अकेले में बैठ कर सोचिए कि आप ने प्रभु की भक्ति के लिए कितना समय दिया है क्योंकि प्रभु के नाम के सिवा आप के साथ कुछ नहीं जाएगा.’’

मैं ने कहा, ‘‘साध्वीजी, मैं तो साधारण गृहस्थ जीवनयापन कर रही हूं क्योंकि मुझे बचपन से ही सृष्टि के इसी नियम के बारे में सिखाया गया है.’’

मालूम नहीं, साध्वी को मेरी बातें अच्छी लगीं या नहीं, वे मेरे साथ चलतेचलते बैठक में आ कर सोफे पर बैठ गईं.

तभी एक महिला ने मुझ से कहा, ‘‘साध्वीजी के चरण स्पर्श कीजिए और मंदिरनिर्माण के लिए कुछ धन भी दीजिए. आप का समय अच्छा है कि साध्वी माला देवी स्वयं आप के घर आई हैं. इन के दर्शनों से तो आप का जीवन बदल जाएगा.’’

मुझे उस की बात बड़ी बेतुकी लगी. मैं ने साध्वी के पैर नहीं छुए क्योंकि सिवा अपने प्रियजनों और गुरुजनों के मैं ने किसी के पांव नहीं छुए थे.

धर्म के नाम पर चलाए गए हथकंडों से मैं भलीभांति परिचित थी. इस से पहले कि साध्वी मुझ से कुछ पूछतीं, मैं ने ही उन से सवाल किया, ‘‘आप ने संन्यास क्यों और कब लिया?’’

साध्वी ने शायद ऐसे प्रश्न की कभी आशा नहीं की थी. वे तो सिर्फ बोलती थीं और लोग उन्हें सुना करते थे. इसलिए मेरे प्रश्न के उत्तर में वे खामोश रहीं, साथ आई महिलाओं में से एक ने कहा, ‘‘साध्वीजी ने 15 बरस की उम्र में संन्यास ले लिया था.’’

‘‘अब इन की उम्र क्या होगी?’’ मेरी जिज्ञासा बराबर बनी हुई थी, इसीलिए मैं ने दूसरा सवाल किया था.

‘‘साध्वीजी अभी कुल 22 बरस की हैं,’’ दूसरी महिला ने प्रवचन देने के अंदाज में कहा.

मैं सोच में पड़ गई कि भला 15 बरस की उम्र में साध्वी बनने का क्या प्रयोजन हो सकता है? मन को ढेरों सवालों ने घेर लिया कि जैसे, इन के साथ कोई अमानुषिक कृत्य तो नहीं हुआ, जिस से इन्हें समाज से घृणा हो गई या धर्म के ठेकेदारों का कोई प्रपंच तो नहीं.

कुछ माह पहले ही हमारे स्कूल की एक सिस्टर (नन) ने विवाह कर लिया था. कुछ सालों में उस का साध्वी होने का मोहभंग हो गया था और वह गृहस्थ हो गई थी. एक जैन साध्वी का एक दूध वाले के साथ भाग जाने का स्कैंडल मैं ने अखबारों में पढ़ा था.

‘जिंदगी के अनुभवों से अनजान इन नादान लड़कियों के दिलोदिमाग में संन्यास की बात कौन भरता है?’ मैं अभी यह सोच ही रही थी कि साध्वी उठ खड़ी हुईं, उन्होंने मुझ से दानस्वरूप कुछ राशि देने के लिए कहा. मैं ने 100 रुपए दे दिए.

थोड़ी सी राशि देख कर, साध्वी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम में तो इतनी सामर्थ्य है, चाहे तो अकेले मंदिर बनवा सकती हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘साध्वीजी, मैं नौकरीपेशा हूं. मेरी और मेरे पति की कमाई से यह घर चलता है. मुझे अपने बेटे का दाखिला इंजीनियरिंग कालेज में करवाना है. वहां मुझे 3 लाख रुपए देने हैं. यह प्रतियोगिता का जमाना है. यदि मेरा बेटा कुछ न कर पाया तो गंदी राजनीति में चला जाएगा और धर्म के नाम पर मंदिर, मसजिदों की ईंटें बजाता रहेगा.’’

तभी मेरी सहेली का बेटा उमेश घर में दाखिल हुआ. साध्वी को देखते ही उस ने उन के चरणों का स्पर्श किया.

साध्वी के जाने के बाद मैं ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘बेशर्म, उन के पैर क्यों छू रहा था?’’

‘‘अरे मौसी, तुम पैरों की बात करती हो, मेरा बस चलता तो मैं उस का…अच्छा, एक बात बताओ, जब भक्त इन साध्वियों के पैर छूते होंगे तो इन्हें मर्दाना स्पर्श से कोई झनझनाहट नहीं होती होगी?’’

मैं उमेश की बात का क्या जवाब देती, सच ही तो कह रहा था. जब मेरे पति ने पहली बार मेरा स्पर्श किया था तो मैं कैसी छुईमुई हो गई थी. फिर इन साध्वियों को तो हर आम और खास के बीच में प्रवचन देना होता है. अपने भाषणों से तो ये बड़ेबड़े नेताओं के सिंहासन हिला देती हैं, सारे राजनीतिक हथकंडे इन्हें आते हैं. भीड़ के साथ चलती हैं तो क्या मर्दाना स्पर्श नहीं होता होगा? मैं उमेश की बात पर बहुत देर तक बैठी सोचती रही.

त को कोई 8 बजे साध्वी माला देवी का फोन आया. वे मुझ से मिलना चाहती थीं. मैं उन के चक्कर में फंसना नहीं चाहती थी, इसलिए बहाना बना, टाल दिया. पर कोई आधे घंटे बाद वे मेरे घर पर आ गईं, उन्हीं गेरुए वस्त्रों में. उन का शांत चेहरा मुझे बरबस उन की तरफ खींच रहा था. सोफे पर बैठते ही उन्होंने उच्च स्वर में रामराम का आलाप छेड़ा, फिर कहने लगीं, ‘‘कितनी व्यस्त हो सांसारिक झमेलों में… क्या इन्हें छोड़ कर संन्यास लेने का मन नहीं होता?’’

मैं ने कहा, ‘‘माला देवी, बिलकुल नहीं, आप तो संसार से डर कर भागी हैं, लेकिन मैं जीवन को जीना चाहती हूं. आप के लिए जीवन खौफ है, पर मेरे लिए आनंद है. संसार के सारे नियम भी प्रकृति के ही बनाए हुए हैं. बच्चे के जन्म से ले कर मृत्यु, दुख, आनंद, पीड़ा, माया, क्रोध…यह सब तो संसार में होता रहेगा, छोटी सी उम्र में ही जिंदगी से घबरा गईं, संन्यास ले लिया… दुनिया इतनी बुरी तो नहीं. मेरी समझ में आप अज्ञानवश या किसी के छल या बहकावे के कारण साध्वी बनी हैं?’’

वे कुछ देर खामोशी रहीं. जो हमेशा प्रवचन देती थीं, अब मूक श्रोता बन गई थीं. वे समझ गई थीं कि उन के सामने बैठी औरत उन भेड़ों की तरह नहीं है जो सिर नीचा किए हुए अगली भेड़ों के साथ चलती हैं और खाई में गिर जाती हैं.

मेरे भीतर जैसे एक तूफान सा उठ रहा था. मैं साध्वी को जाने क्याक्या कहती चली गई. मैं ने उन से पूछा, ‘‘सच कहना, यह जो आप साध्वी बनने का नाटक कर रही हैं, क्या आप सच में भीतर से साध्वी हो गई हैं? क्या मन कभी बेलगाम घोड़े की तरह नहीं दौड़ता? क्या कभी इच्छा नहीं होती कि आप का भी कोई अपना घर हो, पति हो, बच्चे हों, क्या इस सब के लिए आप का मन अंदर से लालायित नहीं होता?’’

मेरी बातों का जाने क्या असर हुआ कि साध्वी रोने लगीं. मैं ने भीतर से पानी ला कर उन्हें पीने को दिया, जब वे कुछ संभलीं तो कहने लगीं, ‘‘कितनी पागल है यह दुनिया…साध्वी के प्रवचन सुनने के लिए घर छोड़ कर आती है और अपने भीतर को कभी नहीं खोज पाती. तुम पहली महिला हो, जिस ने गृहस्थ हो कर कर्मयोग का संन्यास लिया है, बाहर की दुनिया तो छलावा है, ढोंग है. सच, मेरे प्रवचन तो उन लोगों के लिए होते हैं, जो घरों से सताए हुए होते हैं या जो बहुत धन कमा लेने के बाद शांति की तलाश में निकलते हैं. इन नवधनाढ्य परिवारों में ही हमारा जादू चलता है. तुम ने तो देखा होगा, हमारी संतमंडली तो रुकती ही धनाढ्य परिवारों में है. लेकिन तुम तो मुझ से भी बड़ी साध्वी हो, तुम्हारे प्रवचनों में सचाई है क्योंकि तुम्हारा धर्म तुम्हारे आंगन तक ही सीमित है.’’

एकाएक जाने क्या हुआ, साध्वी ने मेरे चरणों को स्पर्श करते हुए कहा, ‘‘मैं लोगों को संन्यास लेने की शिक्षा देती हूं, पर तुम से अपने दिल की बात कह रही हूं, मैं संसारी होना चाहती हूं.’’

उन की यह बात सुन कर मैं सुखद आश्चर्य में डूब गई.

Stories : जानलेवा चुनौती – अमीर को कौनसा सबक मिला

Stories : यह कहानी बंटवारे से पहले अंगरेजी राज की है. उस समय लोगों के स्वास्थ्य बहुत अच्छे
हुआ करते थे. बीड़ीसिगरेट, वनस्पति घी का प्रयोग नहीं हुआ करता था. उस जमाने के लोग बहुत निडर होते थे. हत्या, डकैती की कोई घटना हो जाती थी तो पुलिस और जनता उस में रुचि लिया करती थी. गांवों में पुलिस आ जाती तो पूरे गांव में खबर फैल जाती कि थाना आया हुआ है.

एक अंगरेज डिप्टी कमिश्नर इंग्लैंड से रावलपिंडी स्थानांतरित हो कर आया था. जब भी कोई नया अंगरेज अधिकारी आता तो उसे उस इलाके की पूरी जानकारी कराई जाती थी, जिस से वह अच्छा कार्य कर के अपनी सरकार का नाम ऊंचा कर सके. उस अंगरेज डिप्टी कमिश्नर को बताया गया कि भारत में अनोखी घटनाएं होती हैं, जिन में डाके और चोरियां शामिल हैं. अपराधियों की खोज करना बहुत कठिन होता है. कई घटनाएं ऐसी होती हैं कि सुन कर हैरानी होती है.

नए अंगरेज डिप्टी कमिश्नर ने एसपी से कहा कि मेरे बंगले पर 24 घंटे पुलिस की गारद रहती है साथ ही 2 खूंखार कुत्ते भी. इस के अलावा मेरे इलाके में पुलिस भी रहती है. रात भर लाइट जलती है, क्या ऐसी हालत में भी चोर मेरे घर में चोरी कर सकता है?

एसपी ने जवाब दिया कि ऐसे में भी चोरी की संभावना हो सकती है. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर ने कहा, ‘‘मैं इस बात को नहीं मानता, इतनी सावधानी के बावजूद कोई चोरी कैसे कर सकता है?’’

एसपी ने कहा, ‘‘अगर आप आजमाना चाहते हैं तो एक काम करें. एक इश्तहार निकलवा दें, जिस में यह लिखा जाए कि अंगरेज डिप्टी कमिश्नर के बंगले पर अगर कोई चोरी कर के निकल जाए, तो उसे 500 रुपए का नकद ईनाम दिया जाएगा. अगर वह पुलिस या कुत्तों द्वारा मारा जाता है तो अपनी मौत का वह स्वयं जिम्मेदार होगा. अगर वह मौके पर पकड़ा या मारा नहीं गया तो पेश हो कर अपना ईनाम ले सकता है. उसे गिरफ्तार भी नहीं किया जाएगा और न ही कोई सजा दी जाएगी.’’

डिप्टी कमिश्नर ने एसपी की बात मान ली. इश्तहार छपा कर पूरे शहर में लगा दिए गए. इश्तहार निकलने के 2 महीने बाद यह बात उड़तेउड़ते चकवाल गांव भी पहुंची. उस जमाने में गांवों के लोग शाम को चौपालों पर एकत्र हो कर गपशप किया करते थे. चकवाल की एक ऐसी चौपाल पर अमीर नाम का आदमी बैठा हुआ था, जो 10 नंबरी था.

उस ने वहीं डिप्टी कमिश्नर के इश्तहार वाली बात सुनी. उस ने लोगों से पूछा कि 2 महीने बीतने पर भी वहां चोरी करने कोई नहीं आया क्या? एक आदमी ने उसे बताया कि पिंडी से आए एक आदमी ने बताया था कि उस बंगले में किसी की हिम्मत नहीं है जो चोरी कर सके. वहां चोरी करने का मतलब है अपनी मौत का न्यौता देना.

अमीर ने उसी समय फैसला कर लिया कि वह उस बंगले में चोरी जरूर करेगा. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर को वह ऐसा सबक सिखाएगा कि वह पूरी जिंदगी याद रखेगा. उस ने अपनी योजना के बारे में सोचना शुरू कर दिया.

कुत्तों के लिए उस ने बैलों के 2 सींग लिए और देशी घी की रोटियों का चूरमा बना कर उन सींगों में इस तरह से भर दिया कि कुत्ते कितनी भी कोशिश करें, रोटी न निकल सकें. उस जमाने में रेल के अलावा सवारी का कोई साधन नहीं था. गांव के लोग 30-40 मील तक की यात्रा पैदल ही कर लिया करते थे.
चूंकि अमीर 10 नंबरी था इसलिए कहीं बाहर जाने से पहले इलाके के नंबरदार से मिलता था. इसलिए अमीर सुबह जा कर उस से मिला, जिस से उसे लगे कि अमीर गांव में ही है. चकवाल से रावलपिंडी का रास्ता ज्यादा लंबा नहीं था. अमीर दिन में ही पैदल चल कर डिप्टी कमिश्नर की कोठी के पास पहुंच गया.
उस ने संतरियों को कोठी के पास ड्यूटी करते हुए देखा. बंगले के बाहर की दीवार आदमी की कमर के बराबर ऊंची थी. बंगले के अंदर संतरों के पेड़ थे, और बड़ी संख्या में फूलों के पौधे भी थे.

बंगले के चारों ओर लंबेलंबे बरामदे थे, बरामदे के 4-4 फुट चौड़े पिलर थे. अमीर को अंदर जा कर कोई भी चीज चुरानी थी और यह साबित करना था कि भारत में एक ऐसी भी जाति है, जो बहुत दिलेर है और जान की चिंता किए बिना हर चैलेंज कबूल करने के लिए तैयार रहती है.
जब आधी रात हो गई तो वह बंगले की दीवार से लग कर बैठ गया और संतरियों की गतिविधि देखने लगा. जिन सींगों में घी लगी रोटियों का चूरमा भरा था, उस ने वे सींग बड़ी सावधानी से अंदर की ओर रख दिए. वह खुद दीवार से 10-12 गज दूर सरक कर बैठ गया. कुत्तों को घी की सुगंध आई तो वे सींगों में से चूरमा निकालने में लग गए. फिर दोनों कुत्ते सींगों को घसीटते हुए काफी दूर अंदर ले गए.
अब अमीर ने संतरियों को देखा, वे 4 थे. बरामदे में इधर से उधर घूमते हुए थोड़ीथोड़ी देर के बाद एकदूसरे को क्रौस करते थे. संतरी रायफल लिए हुए थे और उन्हें ऐसा लग रहा था कि 2 महीने से भी ज्यादा बीत चुके हैं. अब किसी में यहां आने की हिम्मत नहीं है. वैसे भी वह थके हुए लग रहे थे.

अमीर दीवार फांद कर पौधों की आड़ में बैठ गया. वह ऐसे मौके की तलाश में था जब संतरियों का ध्यान हटे और वह बरामदे से हो कर अंदर चला जाए. उसे यह मौका जल्दी ही मिल गया. क्रौस करने के बाद जब संतरियों की पीठ एकदूसरे के विपरीत थी, अमीर जल्दी से कूद कर बरामदे के पिलर की आड़ में खड़ा हो गया.

अमीर फुर्तीला था. दौड़ता हुआ ऐसा लगता था, मानो जहाज उड़ा रहा हो. उसे यकीन था कि काम हो जाने के बाद अगर वह बंगले के बाहर निकल गया तो संतरियों का बाप भी उसे पकड़ नहीं पाएगा.
दूसरा अवसर मिलते ही वह कमरे का जाली वाला दरवाजा खोल कर कमरे में पहुंच गया. लकड़ी का दरवाजा खुला हुआ था. चारों ओर देख कर वह बंगले के बीचों बीच वाले कमरे के अंदर पहुंचा. उस ने देखा कमरे के बीच में बहुत बड़ा पलंग था. उस पर एक ओर साहब सोया हुआ था और दूसरी ओर उस की मेम सो रही थी. मध्यम लाइट जल रही थी.

कमरे में लकड़ी की 2-3 अलमारियां थीं, चमड़े के सूटकेस भी थे. उस ने एक सूटकेस खोला, उस में चांदी के सिक्के थे. उस ने एकएक कर के सिक्के अपनी अंटी में भरने शुरू कर दिए. जब अंटी भर गई तो उस ने मजबूती से गांठ बांध ली. वह निकलने का इरादा कर ही रहा था कि उस की नजर सोई हुई मेम के गले की ओर गई, जिस में मोतियों की माला पड़ी थी.

मध्यम रोशनी में भी मोती चमक रहे थे. उस ने सोचा अगर यह माला उतारने में सफल हो गया तो चैलेंज का जवाब हो जाएगा. मेम और साहब गहरी नींद में सोए हुए थे. उस ने देखा कि माला का हुक मेम की गरदन के दाईं ओर था. उस ने चुपके से हुक खोलने की कोशिश की. हुक तो खुल गया, लेकिन मेम ने सोती हुई हालत में अपना हाथ गरदन पर फेरा और साथ ही करवट बदल कर दूसरी ओर हो गई.
अब माला खुल कर उस की गरदन और कंधे के बीच बिस्तर पर पड़ी थी, अमीर तुरंत पलंग के नीचे हो गया. 5 मिनट बाद उसे लगा कि अब मेम फिर गहरी नींद में सो गई. उस ने पलंग के नीचे से निकल कर धीरेधीरे माला को खींचना शुरू कर दिया. माला निकल गई. उस ने माला अपनी लुंगी की दूसरी ओर अंटी में बांध ली.

अमीर जाली वाले दरवाजे की ओट में देखता रहा कि संतरी कब इधरउधर होते हैं. उसे जल्दी ही मौका मिल गया. वह जल्दी से खंभे की ओट में खड़ा हो कर बाहर निकलने का मौका देखने लगा. कुत्ते अभी तक सींग में से रोटी निकालने में लगे हुए थे.

उसे जैसे ही मौका मिला, वह दीवार फांद कर बाहर की ओर कूद कर भागा. संतरी होशियार हो गए और जल्दबाजी में अंटशंट गोलियां चलाने लगे. लेकिन उन की गोली अमीर का कुछ नहीं बिगाड़ सकीं. वह छोटे रास्ते से पगडंडियों पर दौड़ता हुआ रात भर चल कर अपने घर पहुंच गया.

बाद में अमिर को पता लगा कि गोलियों की आवाज सुन कर मेम और साहब जाग गए थे. जागते ही उन्होंने कमरे में चारों ओर देखा. सिक्कों की चोरी को उन्होंने मामूली घटना समझा. लेकिन जब मेम साहब ने अपनी माला देखी तो उस ने शोर मचा दिया. वह कोई साधारण माला नहीं थी, बल्कि अमूल्य थी.

एसपी साहब और नगर के सभी अधिकारी एकत्र हो गए. उन्होंने नगर का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन चोर का पता नहीं लगा. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर हैरान था कि इतनी सिक्योरिटी के होते हुए चोरी कैसे हो गई. उस ने कहा कि चोर हमारी माला वापस कर दे और अपनी 5 सौ रुपए के इनाम की रकम ले जाए. साथ में उसे एक प्रमाणपत्र भी मिलेगा.
इश्तहार लगाए गए, अखबारों में खबर छपाई गई लेकिन 6 माह गुजरने के बाद भी चोर सामने नहीं आया. दूसरी तरफ मेमसाहब तंग कर रही थी कि उसे हर हालत में अपनी माला चाहिए. माला की फोटो हर थाने में भिजवा दी गई. साथ ही कह दिया गया कि चोर को पकड़ने वाले को ईनाम दिया जाएगा.

उधर अमीर चोरी के पैसों से अपने घर का खर्च चलाता रहा, उस समय चांदी का एक रुपया आज के 2-3 सौ से ज्यादा कीमत का था. अमीर के घर में पत्नी और एक बेटी थी, बिना काम किए अमीर को घर बैठे आराम से खाना मिल रहा था. उस ने सोचा, पेश हो कर अपने लिए क्यों झंझट पैदा करे, हो सकता है उसे जेल में डाल दिया जाए.

उस की पत्नी ने माला को साधारण समझ कर एक मिट्टी की डोली में डाल रखा था. एक दिन उस ने उस माला के 2 मोती निकाले और पास के एक सुनार के पास गई. उस ने सुनार से कहा कि उस की बेटी के लिए 2 बालियां बना दे और उन में एक मोती डाल दे. सुनार ने उन मोतियों को देख कर अमीर की पत्नी से कहा, ‘‘यह मोती तो बहुत कीमती हैं. तुम्हें ये कहां से मिले?’’

उस ने झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘मेरा पति गांव के तालाब की मिटटी खोद रहा था, ये मोती मिट्टी में निकले हैं. मैं ने सोचा बेटी के लिए बालियां बनवा कर उस में ये मोती डाल दूं, इसलिए तुम्हारे पास आई हूं.’’ सुनार ने उस की बातों पर यकीन कर के बालियां बना दीं. उस ने अपनी बेटी के कानों में बालियां पहना दीं.
दुर्भाग्य से एक दिन अमीर की बेटी अपने घर के पास बैठी रो रही थी. तभी एक सिपाही जो किसी केस की तफ्तीश के लिए नंबरदार के पास जा रहा था, उस ने रास्ते में अमीर के घर के सामने लड़की को रोते हुए देखा. देख कर ही वह समझ गया कि किसी गरीब की बच्ची है, मां इधरउधर गई होगी. इसलिए रो रही होगी.

लेकिन जब उस की नजर बच्ची के कानों पर पड़ी तो चौंका. उस की बालियों में मोती चमक रहे थे. उसे लगा कि वे साधारण मोती नहीं हैं. उस ने नंबरदार से पूछा कि यह किस की लड़की है. उस ने बता दिया कि वह अमीर की लड़की है, जो दस नंबरी है.

हवलदार को कुछ शक हुआ. उस ने पास जा कर मोतियों को देखा तो वे मोती फोटो वाली उस माला से मिल रहे थे. जो थाने में आया था.

उस ने अमीर को बुलवा कर कहा कि वह बच्ची की बालियां थाने ले जा रहा है, जल्दी ही वापस कर लौटा देगा. थाने ले जा कर उस ने चैक किया तो वे मोती मेम साहब की माला के निकले. अमीर पहले से ही संदिग्ध था, नंबरी भी. उसे थाने बुलवा कर पूछा गया कि ऊपर से 10 मोती उसे कहां से मिले. सब सचसच बता दे, नहीं तो मारमार कर हड्डी पसली एक कर दी जाएगी.
पहले तो अमीर थानेदार को इधरउधर की बातों से उलझाता रहा, लेकिन जब उसे लगा कि बिना बताए छुटकारा नहीं मिलेगा तो उस ने पूरी सचाई उगल दी. उस के घर से माला भी बरामद कर ली गई.
थानेदार बहुत खुश था कि उस ने बहुत बड़ा केस सुलझा लिया है, अब उस की पदोन्नति भी होगी और ईनाम भी मिलेगा. अमीर को एसपी रावलपिंडी के सामने पेश किया गया. साथ ही डिप्टी कमिश्नर को सूचना दी गई कि मेम साहब की माला मिल गई है.

डीसी और मेम साहब ने उन्हें तलब कर लिया. मेम साहब ने माला को देख कर कहा कि माला उन्हीं की है. डिप्टी कमिश्नर ने अमीर के हुलिए को देख कर कहा कि यह चोर वह नहीं हो सकता, जिस ने उन के बंगले पर चोरी की है. क्योंकि उस जैसे आदमी की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती कि माला गले से उतार कर ले जाए.

एसपी ने अमीर से कहा कि अपने मुंह से साहब को पूरी कहानी सुनाए. अमीर ने पूरी कहानी सुनाई और बीचबीच में सवालों के जवाब भी देता रहा. उस ने यह भी बताया कि सोते में मेम साहब ने अपनी गरदन पर हाथ भी फेरा था. डिप्टी कमिश्नर ने उस की कहानी सुन कर यकीन कर लिया, साथ ही हैरत भी हुई.
उन्होंने कहा, ‘‘तुम ने हमें बहुत परेशान किया है, अगर तुम उसी समय हमारे पास आ जाते तो हमें बहुत खुशी होती, लेकिन हम चूंकि वादा कर चुके हैं, इसलिए तुम्हें तंग नहीं किया जाएगा. हम तुम्हें सलाह देते हैं कि बाकी की जिंदगी शरीफों की तरह गुजारो.’’

अमीर ने वादा किया कि अब वह कभी चोरी नहीं करेगा. वह एक साधू का चेला बन गया और उस की बात पर अमल करने लगा. लेकिन कहते हैं कि चोर चोरी से जाए, पर हेराफेरी से नहीं जाता. वह छोटीमोटी चोरी फिर भी करता रहा. धीरेधीरे उस में शराफत आती गई.

लेखक- एस.एम. खान

Kahaniyan : जय हो खाने वाले बाबा की

Kahaniyan :  घरपहुंचते ही हम ने देखा कि हमारी श्रीमतीजी अपने सामने छप्पन भोग की थाली लिए गपागप खाए जा रही थीं.

हम उन्हें देख कर खुशी से गुब्बारे की तरह फूल गए. हमारी श्रीमतीजी इतनी दुबलीपतली हैं कि एक बार उन्हें ले कर हम रेलवे स्टेशन पर गए तो वहां कमाल हो गया. वहां तोलने वाली मशीन पर उन्होंने अपना वजन जानने की जिद की तो हम ने मशीन में 1 रुपए का सिक्का डाला और उन को मशीन पर खड़ा कर दिया. थोड़ी देर में मशीन से टर्रटर्र की आवाज आई और एक टिकट निकल कर बाहर आया. उस पर लिखा था कि मुझ से मजाक मत करो. पहले मशीन पर खड़े तो हो जाओ. हम ने माथा ठोंक लिया.

श्रीमतीजी कहने लगीं, ‘‘यह मशीन झूठ बोलती है. आप खड़े हो जाइए, फिर देखते हैं कि मशीन क्या बोलती है.’’

हम ने 1 रुपए का सिक्का पुन: डाला. टर्रटर्र की आवाज के साथ एक टिकट निकला, जिस पर लिखा था कि 2 व्यक्ति एकसाथ खड़े न हों.

गुस्से में हम ने सोचा कि एक लात मशीन को मार दें, लेकिन हम जानते थे कि चोट हमारे ही पांव में लगेगी. इसलिए हम अपनी श्रीमतीजी को प्लेटफार्म घुमा कर लौट आए.

घर आ कर हम ने उन से खूब कहा कि आप खाना खाया करो, टौनिक पीया करो, लेकिन उन्होंने मुंह फेरते हुए कहा, ‘‘मेरी बिलकुल भी इच्छा नहीं होती है खाना खाने की.’’

हम उन के इस तरह दुबले होने से बेहद चिंतित थे लेकिन एक दिन जब हम शाम को घर आए और अपने सामने छप्पन भोग लगाए उन्हें गपागप खाते देखा तो हमारी बड़ी इच्छा हुई कि नाचने लगें, लेकिन शांति बनाए रहे.

प्रसन्न मुद्रा में हम ने श्रीमतीजी को देखा तो उन्होंने हमें भी छप्पन भोग खाने के लिए इशारा किया. हम ने शरीफ पति की तरह मना कर दिया. तभी परदे की ओट से किसी की हंसी की आवाज आई. हम तो डर ही गए. फिर देखा तो सामने सासूमां खड़ी थीं.

‘‘अरे, आप कब आईं?’’

‘‘आप जब सुबह औफिस गए थे, तब आई थी.’’

‘‘आप ने आने की खबर क्यों नहीं दी?’’

‘‘सोचा सरप्राइज दूंगी,’’ कह कर वे पुन: जोर से हंस पड़ीं.

‘‘अचानक कैसे आना हुआ?’’

‘‘अपने भाई के घर जा रही थी, सोचा सरला से भी मिलती चलूं… यह तो बहुत ही दुबली हो गई है.’’

‘‘फिर आप ने ऐसा क्या किया कि छप्पन भोग बनाते ही इन्हें भूख लग आई?’’ हम ने आगे बात को जोड़ते हुए कहा.

‘‘आप की यही बहुत बुरी बात है कि आप किसी की सुनते नहीं. हमारी बात खत्म तो हो जाने देते,’’ उन्होंने तनिक नाराजगी के साथ कहा.

‘‘आप ही बात पूरी कर लीजिए,’’ कहते हुए हम सोफे पर पसर गए.

सासूमां ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘मैं सुबह आई तो सरला को इतना दुबला देख कर

चकित रह गई. मैं ने इस से पूछा भी कि आखिर बात क्या है? तो इस ने कहा कि कुछ भी नहीं. मैं बड़ी परेशान थी. अचानक मुझे ध्यान आया कि आप के शहर में खाने वाले बाबा का बड़ा नाम है.’’

‘‘खाने वाले बाबा?’’ हम ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जी हां, खाने वाले बाबा. उन का बड़ा प्रताप है. उन के पास सभी प्रकार की समस्याओं के लिए एक ही इलाज होता है.

यदि किसी की ग्रहदशा खराब हो तो वे कुत्ते से ले कर सूअर तक को खाना खिलाने को कहते हैं…’’

वे कुछ और कहतीं कि हम ने बीच में बात काट दी, ‘‘सासूमां, कुत्ता तो गले से उतर रहा है, लेकिन सूअर वाली बात…’’

‘‘आप भी क्या दामादजी बाल की खाल निकालते हैं,’’ कह कर वे झेंप गईं. फिर कहने लगीं, ‘‘बस मैं सरला को ले कर बाबाजी के दरबार में गई. पूरे 2,100 रुपए की 2 रसीदें कटवाईं और उन के सामने हाजिर हो गई. उन्होंने हमें 3 मिनट का समय दिया. वाह, क्या दरबार भरा था. होंगे हजार लोग, सब हाथ जोड़े खाने वाले बाबा की महिमा का गुणगान कर रहे थे.

‘‘एक ने बताया कि बाबाजी आप ने कहा था कि कौओं को हलवा खिलाओ, इसलिए 1 दर्जन कौओं को खोज कर 3 किलोग्राम असली घी का हलवा खिला दिया. लेकिन बाबाजी सुबह वे सब मर गए.

‘‘बाबाजी जोर से हंस दिए और कहने लगे कि बेटा, तेरे दुखदरिद्र खत्म हो गए. अब तेरी विजय ही विजय है. वह भक्त वहीं खड़ाखड़ा कांपते हुए नाचने लगा.

‘‘अगले भक्त ने बताया कि बाबाजी आप ने मुझे पड़ोसी को भोजन कराने की सलाह दी थी. कहा था पकौड़े खिलाना.

‘‘‘खिलाए या नहीं?’

‘‘‘खिलाए बाबाजी.’

‘‘‘फिर क्या हुआ?’

‘‘‘बाबाजी उस ने सुबह आ कर खूब जूते मारे.’

‘‘‘क्यों?’

‘‘‘पूरे घर वालों को दस्त लग गए थे.

वह बहुत गुस्से में था. मैं ने चुपचाप जूते खा लिए बाबाजी.’

‘‘‘ठीक किया. बेटा, ये जूते तुझे नहीं उस प्रेत आत्मा को पड़े जो तुझे आगे बढ़ने से रोक रही थी. अब वह चली गई है. तेरा भाग्य उदय होने को है, समझा? वह भक्त भी तक धिना तक कह के नाचने लगा.

‘‘जब हमारी बारी आई तो मैं ने बताया कि मेरी बेटी सरला के पास सब कुछ है, फिर भी इसे भूख नहीं लगती. यह ठीक से कुछ खाती नहीं है.

‘‘बाबाजी ने मुझ से कहा कि माताजी पूरे छप्पन मीठे भोग बना कर 2 दिनों तक खिलाओ, उस के बाद प्रताप देखना.

‘‘बाबाजी की जय हो, कह कर हम मांबेटी ने 1 मिनट तक वहां भरतनाट्यम किया और फिर घर आ गईं.

‘‘घर आ कर मैं ने छप्पन भोग बनाए और बाबाजी का चमत्कार देखिए कि बेटी कैसे गपागप चट कर रही है. जय हो खाने वाले बाबाजी की,’’ कह कर सासूमां ने आंखें बंद कीं और हाथ जोड़ लिए.

‘‘तो 1 सप्ताह तक छप्पन भोग बनेंगे?’’

‘‘1 सप्ताह नहीं, मात्र 2 दिनों तक,’’ हमारी सासूमां ने कहा.

छप्पन भोग का सेवन करती हुई श्रीमतीजी को देख कर हमारी खुशी का ठिकाना न रहा. हमारा मन बारबार खाने वाले बाबा की जय करने को हो रहा था. वास्तव में देश में, परिवार में ऐसे चमत्कार बाबा और सिर्फ बाबा ही कर सकते हैं.

रात में सासूमां ने हमें नींद से जगाया और घबराए स्वर में कहने लगीं, ‘‘सरला बेटी अजीबोगरीब हरकतें कर रही है.’’

नागिन की तरह फर्श पर बलखाती श्रीमतीजी को देख कर हम दंग रह गए.

‘‘क्या हो गया प्रिय?’’ हम चीखे.

उन्होंने हमें फटीफटी आंखों से ऐसे देखा जैसे कोई इच्छाधारी नागिन हो. अचानक हमें ध्यान आया कि यही इच्छाधारी नागिन हमारी श्रीमतीजी के पेट में थी, जो खानेपीने नहीं दे रही थी. सासूमां अगरबत्ती जला लाई थीं. श्रीमतीजी अभी भी ऐंठ रही थीं.

हमें कुछ शक हुआ कि मामला कुछ उलटा है. हम ने अपने घर के फैमिली डाक्टर को फोन लगाया तो वे बेचारे तुरंत आ गए. श्रीमतीजी को अस्पताल में भरती कर जांच की गई. पता चला कि इतना खाने की आदत नहीं थी.

बाबाजी के आदेश के चलते जबरदस्ती खा लिया इसलिए बदहजमी हो गई. शुगर टैस्ट किया तो श्रीमतीजी डायबिटीज की मरीज भी निकलीं. मीठा खाने से शुगर लैवल अत्यधिक बढ़ गया था.

वह तो भला हो डाक्टर झटका का, जिन्होंने सही समय पर चिकित्सा कर दी. सब से बुरी स्थिति तो हमारी सासूमां की थी, जो एक ओर मुंह पर पल्ला किए खाने वाले बाबा को कोस रही थीं.

यदि उन की बेटी को कुछ हो जाता तो बाबा यही कहते कि प्रेत उसे ले गया. लेकिन हमारी श्रीमतीजी और एक मां की इतनी बड़ी, पलीपलाई बेटी खो जाती.

श्रीमतीजी पूरे 1 सप्ताह अस्पताल में रह कर लौटीं. अब हम ने कान पकड़ लिए हैं कि हमें कभी उन्हें ऐसे बाबाओं के चक्कर में हम उन्हें नहीं पड़ने देंगे.

कल टीवी पर देखा था कि ऐसे 1 दर्जन डायबिटीज के मरीजों ने थाने में खाने वाले बाबा के नाम शिकायतें दर्ज करवाई हैं. अब आएगा मजा जब बाबाजी थाने और जेल में अपनी ग्रहदशा को सुधारेंगे. सही कहा न हम ने?

Beetroot Rice Recipe : डिनर में बनाएं बीटरूट राइस और पनीर क्रम्बल

Beetroot Rice Recipe :  आजकल चुकंदर लगभग पूरे साल उपलब्ध रहते हैं. चुकंदर में एंटीऔक्सिडेंट, विटामिन्स और मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं इसीलिए इसे सुपरफूड माना जाता है. यह ब्लड सर्कुलेशन और पाचन तंत्र को दुरुस्त करने के साथ साथ शरीर में रक्त की कमी को भी दूर करके रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक होते हैं. इसलिए इसे भोजन में शामिल करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है. आजकल की जेन जी मूलत कामकाजी है इसीलिए काम के प्रेशर के चलते वे अपने भोजन पर ध्यान नहीं दे पाते और बीटरूट जैसी हैल्दी वेजटेबल्स को अपने भोजन में शामिल करना भी उनके लिए बहुत मुश्किल होता है.

परिणामस्वरूप जिससे कई बार उनके शरीर में पौष्टिक तत्वों की कमी हो जाती है. आज हम आपको चुकंदर और पनीर से बनने वाली एक बहुत ही हैल्दी रेसिपी बनाना बता रहे है जिसे आप बहुत आसानी से अपने भोजन में शामिल कर सकती हैं आप चाहें तो इसे गार्निश करके किसी भी औकेजन पर पार्टी में भी शामिल कर सकतीं हैं तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कितने लोगों के लिए 4

बनने में लगने वाला समय 20 मिनट

मील टाइप वेज

सामग्री (राइस के लिए)

चुकंदर ज्यूस 2 कप
बासमती राइस 1 कप
घी 1 टीस्पून
लंबा कटा प्याज 1
लंबी कटी हरी मिर्च 2
तेजपात पत्ता 1
बड़ी इलायची 2
दालचीनी टुकड़ा 1 इंच
लंबा कटा अदरक 1 छोटी गांठ
नमक स्वादानुसार

काली मिर्च पाउडर ¼ टीस्पून
काजू 4
नीबू का रस ½ टीस्पून
बारीक कटा हरा धनिया 1 टीस्पून
सामग्री (क्रम्बल के लिए)
पनीर 250 ग्राम
काला नमक ½ टीस्पून
बारीक कटी हरी मिर्च 1
बारीक कटा हरा धनिया 1 टीस्पून
चाट मसाला ½ टीस्पून
बारीक कटा टमाटर 1
भुना जीरा पाउडर ¼ टीस्पून
नीबू का रस ¼ टीस्पून

विधि

चावलों को धोकर चुकंदर के ज्यूस में भिगोकर 25 मिनट के लिए भिगोकर रख दें. अब प्रेशर कुकर में घी गरम करके तेजपात पत्ता, इलायची, दालचीनी भूनकर प्याज, अदरक, हरी मिर्च सौते कर लें और चुकंदर के जूस में भीगे चावल डालकर अच्छी तरह चलायें. नमक डालकर प्रेशर कुकर का ढक्कन लगा दें और तेज आंच पर एक प्रेशर लें लें. ठंडा होने पर नींबू का रस, काली मिर्च पाउडर और हरा धनिया डालें. काजू से गार्निश कर दें.

पनीर को हाथ से क्रम्बल कर लें. अब सभी मसाले, कटा टमाटर, हरी मिर्च और हरा धनिया डालकर अच्छी तरह मिलायें. सर्विंग ट्रे पहले पनीर क्रम्बल को फैलाएं और बीच में चुकंदर राइस रखकर गरमागरम सर्व करें. आप दही और पापड़ को भी साइड में रखकर सर्व कर सकते हैं.

सुन्दर लड़कियां Rejection से हैं निराश, तो इस तरह करें डील

Rejection : हम सभी को कभी न कभी रिजेक्शन का सामना करना ही पड़ता है फिर चाहे वह रिजेक्शन नौकरी में हो या फिर रिलेशनशिप में हो. लेकिन कई बार हम रिजेक्ट होने के बाद तनाव में आ जाते हैं. ऐसा सुन्दर लड़कियों के साथ कुछ ज्यादा ही होता है क्योंकि उन्हें शुरू से ही पैंपर करने वाले लोग ज्यादा मिलते हैं जोकि उनकी सुंदरता से प्रभावित होकर उनके हर अच्छे बुरे काम की तारीफ करने में लगे रहते हैं.

जिससे सुन्दर लड़कियों को ये गुमान होता है कि हमारे सारे रास्ते खुले हुए होते हैं. हमे तो किसी भी चीज के लिए कोई मना कर ही नहीं सकता. वहीं इसके विपरीत सीधी साधी कम सुन्दर लड़कियों को बचपन से ये मालूम होता है हम रिजेक्टेड माल है और वे उस हिसाब से एडजस्ट करना भी जानती है. सुन्दर लड़की चाहे वह 2 साल की ही क्यों ना हो सब उसकी तरफ आकर्षित होते है.

सब उसे बचपन से गोद में उठाना चाहते हैं, प्यार करते हैं, उसे तवज्जो देते हैं. इसके बदले अगर कोई काली लड़की हो और बेडोल हो तो उसे सब Ignore करते हैं. इन सुन्दर लड़कियों को इस वजह से 20-25 साल तक आतेआते बहुत अहम आ जाता है. अहंकार और ईगो इनका बढ़ जाता है. इनको रिजेक्शन बहुत गहरी चोट पहुंचता है क्योंकि ये उसकी आदि नहीं होती है.

लेकिन ये तरीका सही नहीं है इससे तो आप जिंदगी की दौड़ में बहुत पीछे रह जाएंगी. अभी भी समय है खुद के अहम को हटाकर खुद में बदलाव आएं. आपको रिजेक्शन को दिल से स्वीकार करने की जरूरत है, पर इसे दिल पर लेने की जरूरत नहीं हैं. आप रिजेक्‍शन को कैसे हैंडल करते हैं, इससे आपके जौब सर्च और रिलेशनशिप पर सकारात्‍मक या नकारात्‍मक प्रभाव पड़ेगा. इसलिए जहां तक हो सकें आपको रचनात्‍मक तरीके से इस मुद्दे को डील करना चाहिए. जानिए रिजेक्शन को डील करने के तरीके.

रिजेक्शन को स्वीकार करें

जिस वक्त आपको रिजेक्ट किया गया है जैसे कि आप जौब इंटरव्यू के लिए गए और इंटरव्यू लेने वाले पैनल ने कह दिया सौरी आप इस जौब के लायक नहीं है, कहीं और ट्राई करें तो इसे अना का मसला ना बनाये. बल्कि इस बात को स्वीकार करें कि आपको अभी खुद पर ओर काम करने की जरुरत है ताकि आप खुद को इस जौब के लायक बना सकें. इसके लिए आपको तैयारी करनी है नाकि रिजेक्ट करने वालो को कोसते हुए सिर्फ आंसू बहाने है.

रिजेक्शन को लर्निंग की तरह लें

रिजेक्शन को एक लर्निंग की तरह लें इससे बुरा नहीं लगेगा और आपका माइंडसेट ग्रो करेगा.

खुद में सुधार की गुंजाईश जरूर रखें

आप खुद को भले ही परफेक्ट समझती हो लेकिन जरूरी नहीं कि सामने वाले को जो चाहिए वह आपमें हो ही. अपनी निराशा को वास्‍तविक और व्‍यावहारिक प्रतिक्रिया के बीच न आने दें और कोशिश करें कि इससे आप यह सबक लें कि गलती कहां हुई हैं या कमी कहां है ताकि अगली बार आप इसे सही कर पाएं. रिजेक्‍शन के साथ डील करने का यह एक महत्‍वपूर्ण तरीका है. जो फीडबैक आपको मिला है उसे इम्प्लिमेंट करने पर आप अपना पर्सनल ब्रांड सुधार सकते हैं और भ‍विष्‍य में अपनी सफलता की दर बढ़ा सकते हैं. आप बेहिचक कंस्‍ट्रक्‍टिव फीडबैक के लिए गुजारिश कर सकते हैं.

जौब सर्च स्‍ट्रेटेजी बदलिए

आप यह सोचने के बजाए कि भला मुझे कोई कैसे रिजेक्ट कर सकता है ये सोचिये कि ऐसे क्या कारण थे जिनकी वजह से मुझे यह जौब नहीं मिली. जैसे कि हो सकता है आपका बायोडाटा इम्प्रेसिव न हो, हो सकता है आपको उस जौब से सम्बंधित किसी स्किल का ज्ञान ना हो जैसे कि आपको कंप्यूटर कोर्स सीखने की जरुरत हो या फिर मार्केटिंग के कौशल पर काम करने की जरूरत है या फिर हो सकता है आप सैलेरी की डिमांड अपनी क्षमता से ज्यादा कर रही हों इसलिए एक बार इन सब पौइंट पर खुद को परखें.

अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से बात करें

कई बार देखने में आता है कि रिजेक्ट होने पर लड़की इतना तनाव में आ जाती है कि सबसे दुरी बना लेती हैं. खुद को सबसे दूर कर अकेले रहना पसंद करने लगती है ये गलत अप्रोच है. ऐसे में आपको इन सब बातों से बाहर निकलने की जरूरत है. जब कभी आप ऐसी परिस्थिति से गुजरे तो अपने दोस्त अथवा परिवार वालों के साथ अधिक समय बिताएं. इससे आपका मन भी बहल जाएगा और आगे बढ़ने में मदद भी मिलेगी.

शर्म ना महसूस करें

यह आपके साथ होने वाली पहली और आखिरी घटना नहीं है. यह लाइफ का पार्ट है और हर कोई इस दौर से गुजरता है इसलिए इसके लिए शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं है.

नए नजरिए से देखें

आप यह देखने की कोशिश करें कि आप जो चाह रहे हैं उसके द्वारा रिजेक्ट कर दिया जाना आपके लिए एक अच्छी बात भी तो हो सकती है. फिर चाहे वो नौकरी का सवाल हो या रिश्ते का. हो सके कोई बेहतर औप्शन आपका इंतजार कर रहा हो.

इन बातों का भी धयान रखें

किसी भी सुन्दर लड़की को ये सोचकर नहीं चलना चाहिए कि मुझे हर चीज मिल जाएगी. बचपन से आपको चने के झाड़ पर चढ़ाने वाले बहुत लोग मिले होंगे लेकिन अब बचपन ख़तम हो चुका है और आप ज़िंदगी के एक नए सफर पर जाने वाली हैं इसलिए उसके challenge भी अलग ही होंगे.

आपके घर के आसपास जहां किसी को बदले में आपको कुछ नहीं देना होता वह तो भाव दे देता है. लेकिन शादी और नौकरी दोनों ही चीजे ऐसी हैं जहां दोनों ही पार्टी आपको बहुत कुछ देने वाली हैं. वो आपकी सिर्फ सुंदरता पर नहीं जाएगी और भी बहुत सारी चीजों पर जाएगी. अपनी जरुरत के हिसाब से आपको परखेंगे और देखेंगे कि आप उस खांचे में पूरी तरह से फिट हो रही है या नहीं.

शादी में भी लड़के वाला देखेगा कि आपका घर बार कैसा है. आपका व्यवहार कैसा है, आप इगोस्टिक तो नहीं हो, आपकी बोलचाल कैसी है, आप उसके घर या जिंदगी में एडजस्ट कर भी पाएंगी या नहीं.

नौकरी वाला भी देखेगा कि लड़की बस सुन्दर है या फिर इसका कुछ IQ leval भी है, काम करने लायक है या नहीं, काबिलियत भी है या नहीं, जिस काम के लिए रखा जा रहा है उसमे कितनी माहिर है.

जब कोई लड़की शादी के लिए किसी लड़के से मिलने जाती है और मिलने के बाद अगर लड़का उसे शादी के लिए मना कर देता है तो लड़की को लगता है मुझे कोई कैसे रिजेक्ट कर सकता है. जबकि आपके बायोडाटा को भी ओर कई लड़कों ने रिजेक्ट किया होगा लेकिन वो पता नहीं चलता क्योंकि अभी आप उनसे मिली नहीं थी. वो पता नहीं चलता तो दर्द नहीं देता. लेकिन मिलने के बाद इंकार होता है, तो दर्द देता है. वह रिजेक्शन फिर चाहे लड़के से मिलने के बाद हो या फिर इंटरव्यू के बाद दोनों ही सूरतों में तंग करता है.

लेकिन अब यहां यह बात मायने रखती है कि आप रिजेक्शन को लेकर बैठे रहती हैं या फिर उससे कुछ सीखते हुए आगे बढ़ती हैं.

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