इंसाफ: कौन था मालती और कामिनी का अपराधी

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4 Tips: डेयरी प्रोडक्ट्स को ऐसे रखें सेफ

कई बार ऐसा होता है कि आप बाहर से दूध का पैकेट खरीदकर लाते हैं और जब अगले दिन उसे इस्तमाल करने के लिए उबालने जाते हैं तो दूध फट जाता है. ये बहुत ही सामान्य बात है. खासकर गर्मियों में दूध और दूध से बनीं चीजें खराब हो जाती हैं. ऐसे में ये बहुत जरूरी हो जाता है कि हमें दूध और दूसरे डेयरी प्रोडक्ट्स को स्टोर करने का सही तरीका पता हो.

1. तापमान का हमेशा ख्याल रखें

डेयरी प्रोडक्ट्स को कूल टेंपरेचर में ही स्टोर करना चाहिए. हालांकि डेयरी प्रोडक्ट्स को नमी से बचाकर ही रखें. कूल एंड ड्राई जगह पर रखने से डेयरी प्रोडक्ट्स और दूध लंबे समय तक सही रहते हैं. इसी तरह गर्म तापमान में भी ये चीजें आसानी से खराब हो जाती हैं. दरअसल, नमी और गर्मी में बैक्टीरिया ज्यादा पनपते हैं, जिससे डेयरी प्रोडक्ट खराब हो जाते हैं.

2. उबालकर ही करें इस्तेमाल

अगर आप रोजाना दूध पीते हैं तो ये सुनिश्चि‍त करें कि उबाले बिना दूध न पिएं. दूध को उबालकर पीने से इसमें मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं. हल्का गुनगुना दूध पीना, ठंडा दूध पीने से कहीं अधि‍क फायदेमंद है.

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3. मैन्युफेक्चरिंग डेट देखकर ही खरीदें

ये बात न केवल दूध ओर डेयरी प्रोडक्ट्स पर लागू होती है बल्क‍ि हर चीज पर लागू होती है जो बाहर से खरीदी जाती है. दूध और दूसरे डेयरी प्रोडक्ट्स खरीदते समय हमेशा उस पर लिखी तारीख देख लें. बेस्ट बीफोर में तारीख चेक कर लें. साथ ही अगर पैकेट कहीं से फटा हो तो उसे गलती से भी न खरीदें.

4. धूप से बचाकर रखें

दूध को धूप से बचाकर रखें. इससे दूध में मौजूद पौष्ट‍िक तत्व नष्ट हो जाते हैं. विटामिन डी और रिबोफ्लेविन जैसे पोषक तत्व सूरज की रोशनी में नष्ट हो जाते हैं.

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दिल के रिश्ते- भाग 1: कैसा था पुष्पा और किशोर का प्यार

फूलपुर गांव के एक तरफ तालाब के किनारे मंदिर था तो दूसरी तरफ ऐसा स्थल जहां साल में एक बार 9 दिनों का मेला लगता था. मंदिर के आगे गांव वालों के खेत शुरू हो जाते थे. खेतों की सीमा जहां खत्म होती थी वहां से शुरू होता था एक विशाल बाग. इस बाग के दूसरी तरफ एक पतली सी नदी बहती थी. आमतौर पर बाग के बीच के खाली मैदान का प्रयोग गांव वाले खलिहान के लिए किया करते थे पर साल में एक बार यहां बहुत बड़ा मेला लगता था. मेले की तैयारी महीनों पहले से होने लगती. मेला घूमने लोग बहुत दूरदूर से आते थे.

आज बरसों बाद पुष्पा मेले में कदम रख रही थी. तब में और आज में बहुत फर्क आ गया था. तब वह खेतों की मेंड़ पर कोसों पैदल चल के सखियों के साथ मेले में घूमती थी. आज तो मेले तक पहुंचने के लिए गाड़ी की सुविधा है. पुष्पा पति व बच्चों के साथ मेला घूमने लगी. थोड़ी देर घूमने के बाद वह बरगद के एक पेड़ के नीचे बैठ गई. पति व बच्चे पहली बार मेला देख रहे थे, सो, वे घूमते रहे.

पुष्पा आराम से पेड़ से पीठ टिका कर जमीन की मुलायम घास पर बैठी थी कि उस की नजर ऊपर पेड़ पर पड़ी. उस ने देखा, पेड़ ने और भी फैलाव ले लिया था, उस की जटाएं जमीन को छू रही थीं. बरगद की कुछ डालें आपस में ऐसी लिपटी हुई थीं जैसे बरसों के बिछड़े प्रेमीयुगल आलिंगनबद्ध हों. पक्षियों के झुंड उन पर आराम कर रहे थे. उस ने अपनी आंखें बंद करनी चाहीं, तभी सामने के पेड़ पर उस की नजर पड़ी जो सूख कर ठूंठ हो गया था. उस की खोह में कबूतरों का एक जोड़ा प्रेम में मशगूल था. उस ने एक लंबी सांस ले कर आंखें बंद कर लीं.

आंखें बंद करते ही उस के सामने एक तसवीर उभरने लगी जो वक्त के साथ धुंधली पड़ गई थी. वह तसवीर किशोर की थी जिस से उस की पहली मुलाकात इसी मेले में हुई थी और आखिरी भी. किशोर की याद आते ही उस से जुड़ी हर बात पुष्पा को याद आने लगी.

उस दिन वह 4 सहेलियों के साथ सुबह ही घर से निकल पड़ी थी ताकि तेज धूप होने से पहले ही सभी मेले में पहुंच जाएं. सुबह के समय मंदमंद चलती ठंडी हवा, आसपास पके हुए गेंहू के खेत और मेला देखने की ललक, बातें करती, हंसतीखिलखिलाती वे कब मेले में पहुंच गईं, उन्हें पता ही न चला.

वे मेला घूमने लगीं. मेले में घूमतेघूमते पुष्पा को लगा कि कोई उस का पीछा कर रहा है. थोड़ी देर तक तो उस ने सोचा कि उस का वहम है पर जब काफी समय गुजर जाने के बाद भी पीछा जारी रहा तब उस ने पीछे मुड़ कर देखा. एक पतलादुबला, गोरा, सुंदर सा युवक उस के पीछेपीछे चल रहा था. उस ने किशोर को कड़ी नजरों से देखा था लेकिन जवाब में किशोर ने हलके से मुसकरा आंखों ही आंखों से अभिवादन किया था. उस का मासूम चेहरा देख कर क्षणभर में ही पुष्पा का गुस्सा जाता रहा. किशोर की आंखों की भाषा पुष्पा के दिल तक पहुंच गई थी. एक अजीब सा एहसास उस के दिल को धड़का गया था. शाम तक किशोर पुष्पा के साथसाथ घूमता रहा बिना किसी बातचीत किए हुए.

पुष्पा जहां जाती, वह उस के पीछेपीछे जाता. पुष्पा को अच्छे से एहसास था इस बात का पर उसे भी न जाने क्यों उस का साथ अच्छा लग रहा था. पूरा दिन घूमने के बाद शाम को वापसी के समय वह अपनी सहेलियों से थोड़ा अलग हट कर चूडि़यों की दुकान पर खड़ी हो गई. इतने में उस ने आ कर भीड़ का फायदा उठाते हुए एक कागज का टुकड़ा पुष्पा की हथेली में पकड़ा दिया. पुष्पा का दिल जोर से धड़क उठा. उस ने उस की आंखों में देखते हुए अपनी मुट्ठी बंद कर ली. दोनों ने आंखों ही आंखों में एकदूसरे से विदा ली और वापस अपनेअपने घर की तरफ चल दिए. पर अकेला कोई भी नहीं था, दोनों ही एकदूसरे के एहसास में बंध गए थे. एकदूसरे के खयालों में खोए दोनों अपनी मंजिल की तरफ बढ़े जा रहे थे.

घर पहुंचतेपहुंचते अंधेरा हो चुका था. सभी सहेलियां अपनेअपने घर चली गईं. मां ने हलकी सी डांट लगाई, ‘कितनी देर कर दी पुष्पी, मेले से थोड़ा पहले नहीं निकल सकती थी? पर तुझे समय का खयाल कहां रहता है, सहेलियों के साथ घूमने को मिल जाए, बस.’ अब पुष्पा कैसे बताती मां को कि सच में उसे समय का खयाल नहीं रहा. उसे तो लग रहा था कि थोड़ी देर और रह जाए मेले में उस अजनबी के साथ. मां कमरे के बाहर चली गईं. पुष्पा ने दरवाजा बंद किया और वह मुड़ातुड़ा कागज का टुकड़ा निकाल कर पढ़ने लगी जिस में लिखा था :

‘मुझे नहीं पता आप का नाम क्या है, जानने की जरूरत भी नहीं समझता, क्योंकि शायद ही हम दोबारा मिल पाएं. पर हां, अगर परिस्थितियों ने साथ दिया तो अगले साल इसी दिन मैं मेले में आप का इंतजार करूंगा. किशोर.’

पत्र पढ़ कर पुष्पा की आंखें न जाने क्यों भीग गईं. उस से तो उस की बात भी नहीं हुई, सिर्फ कुछ घंटों का साथभर था. पर उस के एहसास से वह भीतर तक भर गई थी. ऊपर से उस के शब्दों में एक कशिश थी जिस में वह बंधी जा रही थी. उसे तो यह भी नहीं पता था कि वह किस गांव का है? कौन है? उसी के खयालों में डूबी हुई वह न जाने कब सो गई. सुबह उठ कर उस ने सब से पहले वह पर्चा अपनी डायरी में दबा कर डायरी को बक्से में छिपा दिया.

धीरेधीरे समय बीतने लगा. पर्चा डायरी में दबा रहा और किशोर का एहसास दिल में दबाए पुष्पा अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी करने लगी.

कभीकभी अकेले में डायरी निकाल कर वह पर्चा पढ़ लेती. अब तक न जाने कितनी बार पढ़ चुकी थी. 12वीं के बाद घर में उस की शादी की चर्चा चलने लगी थी. जब भी वह मांबाबूजी को बात करते सुनती, उसे किशोर की याद आ जाती और उस का दिल रो पड़ता. तब वह खुद ही खुद को समझाती कि  किशोर से उस का क्या नाता है? मेले में ही तो मिला था. न जाने कितने लोग मिलते हैं मेले में. न जाने कौन है. अब वह जाने कहां होगा. मैं क्यों सोचती हूं उस के बारे में. उसे मैं याद हूं भी कि नहीं? उस का एक पर्चा ले कर बैठी हूं मैं. नहीं, अब नहीं सोचूंगी उस के बारे में, कभी नहीं सोचूंगी.

पुष्पा ने अपने मन में सोचा पर यह सब इतना भी आसान न था. उस ने अनजाने में ही अपने दिल के कोरे कागज पर किशोर का नाम लिख लिया था. अब यह नाम मिटाना आसान नहीं था उस के लिए.

देखतेदेखते साल बीत गया और मेले का समय नजदीक आ गया. जैसेजैसे वह दिन नजदीक आ रहा था, पुष्पा के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थी. उसे किशोर से मिलने की ललक मेले की ओर खींच रही थी.

मेले में जाने की तैयारी हो गईर् थी पुष्पा की. इस साल उस के साथ सिर्फ

2 ही सहेलियां थी, क्योंकि 2 सहेलियों की शादी हो गई थी. इन दोनों की भी शादी तय हो चुकी थी. घर वालों ने भी इजाजत दे दी कि न जाने शादी के बाद फिर कब मेला घूमना नसीब हो इन्हें. तीनों सुबह ही निकल पड़ीं मेले के लिए.

मेले में पहुंचने के बाद दोनों तो अपनी शादी के लिए शृंगार का सामान खरीदने में लग गईं जबकि पुष्पा की निगाहें किसी को ढूंढ़ रही थीं. उस का मेला घूमने में मन नहीं लग रहा था. मन बेचैन था. वह सोचने लगी, ‘पता नहीं उसे याद भी है कि नहीं. बेकार ही मैं परेशान हो रही हूं. इतनी छोटी सी बात उसे क्यों याद होगी? उसे तो मेरा नाम भी नहीं पता.’ पुष्पा को अपनी बेबसी पर रोना आ गया. उसे लगा कि  वह अभी रो देगी.

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REVIEW: जानें कैसी है मोरबियस

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताःकोलम्बिया पिक्चर्स,मार्वल और सोनी पिक्चर्स

निर्देशकः डेनियल एस्पिनोसा

कलाकारःजैरेड लेटो, मैट स्मिथ, एड्रिया अर्जोना, माइकल कीटन,जैरिड हैरिस,अल मैड्गिल,टायरिस गिब्सन व अन्य.

निर्देशकः डेनियल एस्पिनोसा

अवधिः एक घंटा 45 मिनट

पूरे विश्व में मार्वल कौमिक्स और उसके किरदार काफी लोकप्रिय हैं. इन पर कई फिल्में बन चुकी हैं. मार्वल का अपना सिनेमाई संसार है. मार्वल कौमिक्स के अति लोकप्रिय किरदार मोरबियस पर अब ‘‘कोलम्बिया पिक्चर्स’’ व ‘‘मार्वल’’ ने फिल्म ‘‘मोरबियस’’ का निर्माण किया है.  फिल्म डॉक्टर माइकल मॉर्बियस पर आधारित है, जो एक दुर्लभ रक्त रोग के उपचार के प्रयास में स्वयं को एक प्रकार के राक्षस@ पिशाच में बदल देते हैं. डेनियल एस्पिनोसा निर्देशित यह अमरीकन सुपर हीरो वाली फिल्म एक अप्रैल को पूरे विश्व के साथ भारत में भी सिनेमाघरों मंे प्रदर्शित हुई है. फिल्म की कहानी का मुख्य केंद्र ‘‘विज्ञान ः अभिशाप या वरदान’’ही है. इस फिल्म की कमजोर कड़ी यह है कि यह मुख्य संघर्ष से इतर हर चीज पर ध्यान केंद्रित करती है.

कहानीः

अधिकांश मार्वल फिल्मों की तरह ‘मोरबियस’ भी अच्छाई बनाम बुराई की कहानी है. वैज्ञानिक व डॉक्टर माइकल मोरबियस (जैरेड लेटो) का दिल काफी कमजोर है. वह बचपन से ही अपंग और दुर्लभ रक्त रोग से पीड़ित हैं. बचपन में वह अपने दोस्त लोसिअल क्राउन उर्फ मिलो(मैट स्मिथ ) से वादा करते हैं कि वह उसकी बीमारी का इलाज अवश्य खोजने में सफल होंगे. फिर अपने गुरू (जैरेड हैरिस ) की सलाह पर डाक्टरी की पढ़ाई करने के लिए ब्रिटिश विश्वविद्यालय में जाते हैं,जहंा उन्नीस साल की उम्र में वह डाक्टरी की डिग्री हासिल कर लेते हैं. उन्हे नोबल पुरसकार से भी नवाजा जाता है. फिर वह अपनी बीमारी का इलाज ढूढ़ने की बजाय दोस्त के साथ  किए गए वादे को पूरा करने के लिए दोस्त की बीमारी का इलाज खोजने में पूरी जिंदगी लगा देते हैं. इतना ही नही वह अपनी खुद की बीमारी का इलाज खोजने में सफल होते हैं,जो लाखों लोगों की मदद कर सकता है, लेकिन यह जल्द ही एक अभिशाप बन जाता है, क्योंकि यह उसे खून के प्यासे पिशाच यानी कि वैम्पायरवाद में बदल देता है. सुपर हीरो जैसी शक्तियां हासिल करने के बाद एक जहाज पर मौजूद हर किसी की हत्या कर देते हैं. हालाँकि डॉ. मोरबियस इस संबंध में अधिक जागरूक हैं कि वह कौन है. लेकिन मोरबियस जैसी ही बीमारी से पीड़ित मिलो (मैट स्मिथ) इतना विकसित नहीं हुआ है. बचपन में अपने साथ हुए दुब्र्यवहार ये नाराज मिलो नए ‘इलाज‘ की राक्षसी शक्तियों को गले लगाता है और शहर में आतंक का शासन शुरू करता है. मिलो इस खोज का दुरूपयोग कर पूरी दुनिया का विनाश करना चाहता है,पर मोरबियस ऐसा नही होने देना चाहते. आखिर होगा क्या?मिलो को रोकने की ताकत महज डॉ.  मोरबियस में हैं.

लेखन व निर्देशनः

बेहतरीन प्रोडक्शन वैल्यू के बावजूद फिल्मकार कहानी को बांधने में असफल रहे हैं. उनका सारा ध्यान घटनाक्रम के इर्द गिर्द माहौल को गढ़ने में ही रहा. जी हॉ!फिल्म ‘‘मोरबियस’’की कहानी में मूल भावनाएं चरम पर हैं. क्योंकि उसका प्यार दांव पर है.  लेकिन लेखक और निर्देशक इस भावना को उकेरने पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय अन्य चीजों को गति देने की कोशिश करते हैं,जो कि फिल्म का कमजोर बनाती है. फिल्म की कहानी के केंद्र में दो दोस्त हैं. दोस्त को किए गए वायदे को पूरा करने के लिए मोरबियस का जीवन ही बदल जाता है,मगर अफसोस फिल्मकार इन दोनों दोस्तों के वयस्क होने पर इनके बीच दोस्ती व प्यार को चित्रित नहीं कर पाए. यानी कि कहानी की नींव ही कमजोर है. मोरबियस अपनी असीमित शक्तियों के बल पर कई अजूबे कारनामे करते हैं. मगर फिल्मकार इस बात को उकेरने में असफल रहे हैं कि मोरबियस को यह असीमित शक्तियां कैसे मिली? इतना ही नही जब वह पिशाच बन जाता है तो उसका चेहरा खोपड़ी में तब्दील हो जाता है,ऐसा क्यों होता है,इसे बताने में भी लेखक व निर्देशक असफल रहे हैं. फिल्म में बेवजह का एक्शन व खूनखराबा परोसा गया है.  फिल्म में कई ऐसे दृश्य हैं जो कि तर्क की कसौटी पर बहुत ही गलत हैं.  डॉ.  मोरबियस और मिलो अपनी पिशाच शक्तियों के साथ चमगादड़ की तरह धुएँ के रंग के साइकेडेलिक निशान छोड़ते हुए जिस तरह से छतों पर कूदते हैं और ऊंची इमारतों से गिरते हैं,वह सब बच्चों को जरुर पसंद आ सकता है. इसमें कुछ रोमांचकारी क्षणों के अलावा  गुरुत्वाकर्षण-विरोधी स्टंट भी हैं.

कुल मिलाकर कमजोर लेखन व कमजोर निर्देशन ने इस रोमाचंक,एक्शन फिल्म का पूरा बंटाधार कर दिया.

अभिनयः

डॉक्टर मारबियस के किरदार में जैरेड लेटो ने कई दृश्यों में कमाल का अभिनय किया है.  भ्रमित कर देने वाली पटकथा के बावजूद जैरेड लेटो ने अपनी तरफ से फिल्म में जान फॅूंकने की पूरी कोशिश की है. लेकिन नीरस लेखन व निर्देशन के चलते जैरेड लेटो की सारी मेहनत जाया हो जाती है. \ लालची मिलो के किरदार को मैट स्मिथ ने पूरे दृढ़ विश्वास के साथ निभाया है. पैसे का लालच एक मानव स्वभाव है,जिसे अभिव्यक्त करने में वह सफल रहे हैं. एड्रिया अर्जोना मॉर्बियस के आसपास के माहौल को बहुत अच्छे तरीके से संतुलित करती है.

रिश्तों की परख: भाग 3- स्नेह और कमल की कहानी

लेखक- शैलेंद्र सिंह परिहार

हमेशा ठंडे दिमाग से काम लेने वाली मम्मी क्रोधित हो गई थीं, ‘नहीं करना किसी के फोनवोन का इंतजार, दूसरा लड़का देखना शुरू कर दीजिए.’

‘पागल न बनो,’ पापा ने समझाया था, ‘अपनी बेटी को यह सपना तुम ने ही दिखाया था, पल भर में उसे कैसे तोड़ दोगी? कभी सोचा है उस के दिल को कितनी ठेस लगेगी?’

एक दिन मां ने मुझ से कहा था, ‘बेटी, कमल शादी के लिए तैयार नहीं है. कहता है कि यदि उस की जबरन शादी की गई तो वह आत्महत्या कर लेगा, अब तू ही बता, हम लोग क्या करें?’

मैं इतना ही पूछ पाई थी, ‘वह इस समय कहां है?’

‘कहां होगा…वहीं…इलाहाबाद में मर रहा है,’ मम्मी ने गुस्से से कहा था.

‘मैं उस से एक बार मिलूंगी…एक बार मां…बस, एक बार,’ मैं ने रोते हुए कहा था.

पापा मुझे ले कर इलाहाबाद गए थे. वह अपने कमरे में ही मिला था. बाल बिखरे हुए, दाढ़ी बढ़ी हुई, कपड़े अस्तव्यस्त, हालत पागलों की तरह लग रही थी. पापा मुझे छोड़ कर कमरे से बाहर चले गए. औपचारिक बातचीत होने के बाद वह मुझ से बोला था, ‘तुम लड़कियों को क्या चाहिए, बस, एक अच्छा सा पति, एक सुंदर सा घर, बालबच्चे और घरखर्च के लिए हर महीने कुछ पैसे. लेकिन मेरे सपने दूसरे हैं. अभी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकता. तुम जहां मन करे शादी कर लो.’

कमल की बातें सुन कर मुझे भी क्रोध आ गया था, ‘तुम मुझे अपने पास न रखो, लेकिन शादी तो कर सकते हो, मेरे मांबाप भी चिंतामुक्त हों, कब तक वह लोग तुम्हारे आई.ए.एस. बन जाने का इंतजार करते रहेंगे?’

मेरी बात सुनते ही वह गुस्से से चीख पड़ा, ‘इंतजार नहीं कर सकती हो तो मर जाओ लेकिन मेरा पीछा छोड़ो…प्लीज…’

उस की बात सुन मैं सन्न रह गई थी. एक ही पल में 10 सालों से संजोया हुआ स्वप्न बिखर गया था. सोच रही थी, क्या यह वही कमल है? मन से निकली हूक तब शब्दों में इस तरह फूटी थी कि मरूंगी तो नहीं लेकिन एक बात कहती हूं, जब किसी बेबस की ‘आह’ लगती है तो मौत भी नसीब नहीं होती मिस्टर कमलकांत वर्मा, और इसे याद रखना.

घर आ कर मैं मम्मी से बोली थी, ‘आप लोग जहां भी मेरी शादी करना चाहें कर सकते हैं, लेकिन जिस से भी कीजिएगा उसे मेरी पिछली जिंदगी के बारे में पता होना चाहिए.’

1 वर्ष के अंदर ही मेरी शादी सुप्रीम कोर्ट के वकील गौरव के साथ हो गई. एक जमाने में उन के पापा वहीं के जानेमाने वकील थे. हम लोग दिल्ली में ही रहने लगे. गौरव जैसा चाहने वाला पति पा कर मैं कमल को भूल सी गई. साल भर में एक बार ही मायके जाना हो पाता था. इस बार तो अकेली ही जा रही थी. गौरव को कोर्ट का कुछ आवश्यक काम निकल आया था.

मैं ने घड़ी की तरफ देखा, रात के 3 बज रहे थे. ट्रेन अपनी गति से चली जा रही थी कि अचानक कर्णभेदी धमाका हुआ और आंखों के सामने अंधेरा सा छाता चला गया. जब होश आया तो खुद को अस्पताल में पाया. गौरव भी आ चुके थे. एक ही ट्रैक पर 2 ट्रेनें आ गई थीं. आमनेसामने की टक्कर थी. कई लोग मारे गए थे. सैकड़ों लोग घायल हुए थे. मैं जिस बोगी में थी वह पीछे थी इसलिए कोई खास क्षति नहीं हुई थी फिर भी बेटे की हालत गंभीर थी. उसे 5-6 घंटे बाद होश आया था. 2 दिन बाद जब मैं डिस्चार्ज हो कर जा रही थी तो नर्स ने मुझे एक खत ला कर यह कहते हुए दिया कि मैडम, यह आप के लिए है…देना भूल गई थी…माफ कीजिएगा.

मैं ने आश्चर्य से पूछा था, ‘‘किस ने दिया?’’

‘‘वही, जो आप लोगों को यहां तक ले कर आया था. क्या आप नहीं जानतीं?’’

‘‘नहीं?’’

‘‘कमाल है,’’ नर्स आश्चर्य से बोल रही थी, ‘‘उस ने आप की मदद की, आप के बेटे को अपना खून भी डोनेट किया और आप कहती हैं कि आप उस को नहीं जानतीं?’’

मैं आतुरता से खत को पढ़ने लगी :

‘स्नेह,

सोचा था कि अपने किए की माफी मांग लूंगा लेकिन मृत्यु के इस तांडव ने मौका ही नहीं दिया. रिजर्वेशन टिकट पर ही गौरव का मोबाइल नंबर था. उन्हें फोन कर दिया है. वह जब तक नहीं आते मैं यहां रहूंगा. हो सके तो मुझे माफ कर देना. तुम्हारा गुनाहगार कमल.’

पत्र को गौरव ने भी पढ़ा था. ‘‘अच्छा तो वह कमल था…’’

गौरव खोएखोए से बोले थे, ‘‘सचमुच उस ने बड़ी मदद की, हमारे बेटे को एक नया जीवन दिया है.’’

बात आईगई हो गई. पीछे गौरव को एक केस में काफी व्यस्त पाया था. पूछने पर बस यही कहते, ‘‘समझ लो स्नेह, एक महत्त्वपूर्ण केस है. यदि जीत गया तो बड़ा आत्मिक सुख मिलेगा.’’

1 वर्ष तक केस चलता रहा, फैसला हुआ, गौरव के पक्ष में ही. वह उस दिन खुशी से पागल हो रहे थे. शाम को आते ही बोले, ‘‘यार, जल्दी से अच्छी- अच्छी चीजें बना लो, मेरा एक दोस्त आ रहा है, आई.ए.एस. है.’’

‘‘कौन दोस्त?’’ मैं ने पूछा था.

‘‘जब आएगा तो खुद ही उसे देख लेना, मैं उसी को लेने जा रहा हूं.’’

कुछ देर बाद गौरव वापस आए थे और अपने साथ जिसे ले कर आए थे उसे देख कर मैं अवाक् रह गई. यह तो ‘कमल’ है लेकिन यह कैसे हो सकता है?

‘‘स्नेह,’’ गौरव ने प्यार से कहा था, ‘‘तुम्हें आहत कर के इस ने भी कोई सुख नहीं पाया है. हमारी शादी के 1 साल बाद इस का आई.ए.एस. में चयन हुआ था. लेकिन तब तक लगातार मिलती असफलताओं ने इसे विक्षिप्त कर दिया था. यह पागलों की तरह हरकतें करने लगा था. इस कारण आयोग ने इस की नियुक्ति को भी निरस्त कर दिया था.

‘‘3 साल तक मेंटल हास्पिटल में रहने के बाद जब यह ठीक हुआ तो सब से पहले तुम्हारे ही घर गया, तुम से माफी मांगने के लिए. लेकिन पापाजी ने इसे हमारा पता ही नहीं दिया था और फिर जीवन से निराश, जीवनयापन के लिए इस ने टी.सी. की नौकरी कर ली. आज मैं इसी का केस जीता हूं, अदालत ने इस की पुन: नियुक्ति का फैसला दिया है. आज यह फिर तुम से माफी मांगने ही आया है.’’

वर्षों बाद मुझे वही कमल दिखा था, जिस से मैं पहली बार मिली थी, शर्मीला और संकोची. उस ने अपने दोनों हाथ मेरे सामने जोड़ दिए थे. मुझ से नजर मिलाने का साहस नहीं कर पा रहा था. उस की आंखों से प्रायश्चित्त के आंसू बह निकले, ‘‘स्नेह, मैं तुम्हारा अपराधी हूं, एक लक्ष्य पाने के लिए जीवन के ही लक्ष्य को भूल गया था…आप के कहे शब्द…आज भी मेरे हृदय में कांटे की तरह चुभते हैं…लगता है आज भी एक आह मेरा पीछा कर रही है…हो सके तो मुझे माफ कर दो.’’

‘‘कमल,’’ मैं ने भरे गले से कहा, ‘‘मैं ने तो तुम्हें उसी दिन माफ कर दिया था जिस दिन तुम ने मेरी ममता की रक्षा की थी. अब तुम से कोई शिकायत नहीं…तुम जहां भी रहो खुश रहो, यह मेरे मन की आवाज है.’’

‘‘हां, कमल,’’ गौरव भी उसे समझाते हुए बोले थे, ‘‘कल तुम ने एक रिश्ते को परखने में भूल की थी, आज फिर से वही भूल मत करना, मातापिता को खुश रखना, अपना घरसंसार बसाना और अपनी शादी में हमें भी बुलाना…भूल तो न जाओगे?’’

वह गौरव के गले लग रो पड़ा. निर्मल जल के उस शीतल प्रवाह ने हमारे हृदय के सारे मैल को एक ही पल में धो दिया.

‘‘7 वर्षों तक दिशाहीन और पागलों सा जीवन व्यतीत किया है मैं ने, मर ही चुका था, आप ने तो मुझे नया जीवन ही दिया…कैसे भूल जाऊंगा.’’

कमल के जाने के बाद मैं गौरव के सीने से लगते हुए बोली थी, ‘‘गौरव, सचमुच मुझे आप पर गर्व है…लेकिन यह क्या, आप की आंखों में भी आंसू.’’

‘‘हां…खुशी के हैं, जानती हो सच्चा प्रायश्चित्त वही होता है जब आंसू उस की आंखों से भी निकलें जिन के लिए प्रायश्चित्त किया गया हो, आज कमल का प्रायश्चित्त पूरा हुआ.’’

पति की बात सुन कर स्नेह भी अपनेआप को रोने से न रोक सकी.

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रिश्तों की परख: भाग 2- स्नेह और कमल की कहानी

लेखक- शैलेंद्र सिंह परिहार

वार्षिक परीक्षा समाप्त होते ही मैं नानीजी के पास आ गई. रिजल्ट आया तो मैं फर्स्ट डिवीजन में पास हुई थी. गणित में अच्छे नंबर मिले थे. मैं अपने रिजल्ट से संतुष्ट थी. कुछ दिनों बाद कमल का भी रिजल्ट आया था. उसे मैरिट लिस्ट में दूसरा स्थान मिला था. उसे बधाई देने के लिए मेरा मन बेचैन हो रहा था. मैं जल्द ही नानी के घर से वापस लौट आई थी. कमल से मिली लेकिन उसे प्रसन्न नहीं देखा. वह दुखी मन से बोला था, ‘नहीं स्नेह, मैं पीछे नहीं रहना चाहता हूं, मुझे पहली पोजीशन चाहिए थी.’

वह कालिज पहुंचा और मैं 11वीं में. मैं ने अपनी सुविधानुसार कामर्स विषय लिया और उस ने आर्ट. अब उसे आई.ए.एस. बनने की धुन सवार थी.

‘आप को इस तरह विषय नहीं बदलना चाहिए था,’  मौका मिलते ही एक दिन मैं ने उसे समझाना चाहा.

‘मैं आई.ए.एस. बनना चाहता हूं और गणित उस के लिए ठीक विषय नहीं है. पिछले सालों के रिजल्ट देख लो, साइंस की तुलना में आर्ट वालों का चयन प्रतिशत ज्यादा है.’

मैं उस का तर्क सुन कर खामोश हो गई थी. मेरी बला से, कुछ भी पढ़ो, मुझे क्या करना है लेकिन मैं ने जल्द ही पाया कि मैं उस की तरफ खिंचती जा रही हूं. धीरेधीरे वह मेरे सपनों में भी आने लगा था, मेरे वजूद का एक हिस्सा सा बनता जा रहा था. अकेले में मिलने, उस से बातें करने को दिल चाहता था. समझ नहीं पा रही थी कि मुझे उस से प्यार होता जा रहा है या फिर यह उम्र की मांग है.

वह मेरे सपनों का राजकुमार बन गया था और एक शाम तो मेरे सपनों को एक आधार भी मिल गया था. आंटीजी बातों ही बातों में मेरी मम्मी से बोली थीं, ‘मन में एक बात आई थी, आप बुरा न मानें तो कहूं?’

‘कहिए न,’ मम्मी ने उन्हें हरी झंडी दे दी.

‘आप अपनी बेटी मुझे दे दीजिए, सच कहती हूं मैं उसे अपनी बहू नहीं बेटी बना कर रखूंगी,’ यह सुन मम्मी खामोश हो गई थीं. इतना बड़ा फैसला पापा से पूछे बगैर वह कैसे कर लेतीं. उन्हें खामोश देख कर और आगे बोली थीं, ‘नहीं, जल्दी नहीं है, आप सोचसमझ लीजिए, भाई साहब से भी पूछ लीजिएगा, मैं तो कमल के पापा से पूछ कर ही आप से बात कर रही हूं. कमल से भी बात कर ली है, उसे भी स्नेह पसंद है.’

उस रात मम्मीपापा में इसी बात को ले कर फिर तकरार हुई थी.

‘क्या कमी है कमल में,’ मम्मी पापा को समझाने में लगी हुई थीं, ‘पढ़नेलिखने में होशियार है, कल को आई.ए.एस. बन गया तो अपनी बेटी राज करेगी.’

‘तुम समझती क्यों नहीं हो,’ पापा ने खीजते हुए कहा था, ‘अभी वह पढ़ रहा है, अभी से बात करना उचित नहीं है. वह आई.ए.एस. बन तो नहीं गया न, मान लो कल को बन भी गया और उसे हमारी स्नेह नापसंद हो गई तो?’

‘आप तो बस हर बात में मीनमेख निकालने लगते हैं, कल को उस की शादी तो करनी ही पड़ेगी, दोनों बच्चों को पढ़ालिखा कर सेटल करना होगा, कहां से लाएंगे इतना पैसा? आज जब बेटी का सौभाग्य खुद चल कर उस के पास आया है तो दिखाई नहीं पड़ रहा है.’

पापा हमेशा की तरह मम्मी से हार गए थे और उन का हारना मुझे अच्छा भी लग रहा था. वह बस, इतना ही बोले थे, ‘लेकिन स्नेह से भी तो पूछ लो.’

‘मैं उस की मां हूं. उस की नजर पहचानती हूं, फिर भी आप कहते हैं तो कल पूछ लूंगी.’

दूसरे दिन जब मम्मी ने पूछा तो मैं शर्म से लाल हो गई थी, चाह कर भी हां नहीं कह पा रही थी. मैं ने शरमा कर अपना चेहरा झुका लिया था. वह मेरी मौन स्वीकृति थी. फिर क्या था, मैं एक सपनों की दुनिया में जीने लगी थी. जब भी वह हमारे घर आता तो छोटे भाई मुझे चिढ़ाते, ‘दीदी, तुम्हारा दूल्हा आया है.’

देखते ही देखते 2 साल का समय गुजर गया, मैं ने भी हायर सेकंडरी पास कर उसी कालिज में दाखिला ले लिया था जिस में कमल पढ़ता था. 1 साल तक एक ही कालिज में पढ़ने के बावजूद हम कभी अकेले कहीं घूमनेफिरने नहीं गए. बस, घर से कालिज और कालिज से सीधे घर. ऐसा नहीं था कि मैं उसे मना कर देती, लेकिन उस ने कभी प्रपोज ही नहीं किया. और मुझे लड़की का एक स्वाभाविक संकोच रोकता था.

ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद उसे कंपीटीशन की तैयारी के लिए इलाहाबाद जाना था. सुनते ही मैं सकते में आ गई. उसे रोक भी नहीं सकती थी और जाते हुए भी नहीं देख सकती थी. जिस शाम उसे जाना था उसी दोपहर को मैं उस के घर पहुंची थी. वह जाने की तैयारी कर रहा था. आंटीजी रसोई में थीं. मैं ने पूछा था, ‘मुझे भूल तो न जाओगे?’

उस ने कोई जवाब नहीं दिया था, जैसे मेरी बात सुनी ही न हो. उस की इस बेरुखी से मेरी आंखें भर आई थीं. उस ने देखा और फिर बोला था, ‘यदि कुछ बन गया तो नहीं भूलूंगा और यदि नहीं बन पाया तो शायद…भूल भी जाऊंगा,’ सुनते ही मैं वहां से भाग आई थी.

लगभग 4 माह बाद वह इलाहाबाद से वापस आया था. बड़ा परिवर्तन देखा. हेयर स्टाइल, बात करने का ढंग, सबकुछ बदल गया था. एक दिन कमल ने कहा था, ‘मेरे साथ फिल्म देखने चलोगी?’

‘क्या,’ मुझे आश्चर्य हुआ था. मन में एक तरंग सी दौड़ गई थी.

‘लेकिन बिना पापा से पूछे…’

‘ओह यार, पापा से क्या पूछना… आफ्टर आल यू आर माई वाइफ…अच्छा ठीक है, मैं पूछ भी लूंगा.’

कमल ने पापा से क्या कहा मुझे नहीं मालूम पर पापा मान गए थे. वह शाम मेरी जिंदगी की एक यादगार शाम थी. 3 से 6 पिक्चर देखी. ठंड में भी हम दोनों ने आइसक्रीम खाई. लौटते समय मैं ने उस से कहा था, ‘तुम्हें इलाहाबाद पहले ही जाना चाहिए था.’

समय गुजरता गया. मैं भी ग्रेजुएट हो गई. सुनने में आया कि कमल का चयन मध्य प्रदेश पी.सी.एस. में नायब तहसीलदार की पोस्ट के लिए हो गया था, लेकिन उस ने नियुक्ति नहीं ली. उस का तो बस एक ही सपना था आई.ए.एस. बनना है. 2 बार उस ने मुख्य परीक्षा पास भी की लेकिन इंटरव्यू में बाहर हो गया.

मेरे पापा का ग्वालियर तबादला हो गया. एक बार फिर हम लोगों को अपना पुराना शहर छोड़ना पड़ा. अंकल और आंटी दोनों ही स्टेशन तक छोड़ने आए थे.

मेरी पोस्ट गे्रजुएशन भी हो चुकी थी, अब तो पापा को सब से अधिक चिंता मेरी शादी की थी. जब भी यू.पी.एस.सी. का रिजल्ट आता वह पेपर ले कर घंटों देखा करते थे. मम्मी उन्हें समझातीं, ‘जहां इतने दिनों तक सब्र किया वहां एकाध साल और कर लीजिए.’

पापा गुस्से में बोले थे, ‘ये सब तुम्हारी ही करनी का फल है. बड़ी दूरदर्शी बनती थीं न…अब भुगतो.’

‘आप वर्माजी से बात तो कीजिए, कोई अपनी जबान से थोड़े ही फिर जाएगा, शादी कर लें, लड़का अपनी तैयारी करता रहेगा.’

‘तुम मुझे बेवकूफ समझती हो,’ पापा गुस्से से चीखे थे, ‘उस सनकी को अपनी बेटी ब्याह दूं, अच्छीखासी पोस्ट पर सलेक्ट हुआ था, लेकिन नियुक्ति नहीं ली. यदि कल को कुछ नहीं बन पाया तो?’

‘ऐसा नहीं है. वह योग्य है, कुछ न कुछ कर ही लेगा. आप की बेटी भूखी नहीं मरेगी.’

पापा दूसरे दिन आफिस से छुट्टी ले कर जबलपुर चले गए. मैं धड़कते हृदय से उन की प्रतीक्षा कर रही थी. 2 दिन बाद लौट कर आए तो मुंह उतरा हुआ था. आते ही आफिस चले गए. पूरे दिन मां और मैं ने प्रतीक्षा की. पापा शाम को आए तो चुपचाप खाना खा कर अपने बेडरूम में चले गए. उन के पीछेपीछे मम्मी भी. मैं उन की बात सुनने के लिए बेडरूम के दरवाजे के ही पास रुक गई थी.

‘क्या हुआ? क्या उन्होंने मना कर दिया?’

‘नहीं…’  पापा कुछ थकेथके से बोले थे, ‘वर्माजी तो आज भी तैयार हैं, लेकिन लड़का नहीं मान रहा है, कहता है आई.ए.एस. बनने के बाद ही शादी करूंगा. हां, वर्माजी ने थोड़े दिनों की और मोहलत मांगी है, लड़के को समझा कर फोन करेंगे.

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रिश्तों की परख: भाग 1- स्नेह और कमल की कहानी

लेखक- शैलेंद्र सिंह परिहार

हर रिश्ते की एक पहचान होती है. हर रिश्ते का अपना एक अलग एहसास होता है और एक अलग अस्तित्व भी. इन में कुछ कायम रहते हैं, कुछ समय के साथ बिखर जाते हैं. बस, उन के होने का एक एहसास भर रह जाता है. समय की धूल परत दर परत कुछ इस तरह उन पर चढ़ती चली जाती है कि वे धुंधले से हो जाते हैं. और जब भी कोई ऐसा रिश्ता अचानक सामने आ कर खड़ा हो जाता है तो इनसान को एक पल के लिए कुछ नहीं सूझता. उसे क्या नाम दें? कुछ ऐसी ही हालत मेरी भी हो रही थी. मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि 7 वर्ष बाद वह अचानक ही मेरे सामने आ खड़ा होगा.

‘‘टिकट,’’ उस ने हाथ बढ़ाते हुए मुझ से पूछा था. उसे देखते ही मैं चौंक पड़ी थी. चौंका तो वह भी था किंतु जल्दी ही सामान्य हो खाली बर्थ की तरफ देखते हुए उस ने पूछा, ‘‘और आप के साथ…’’

मैं थोड़ा गर्व से बोली थी, ‘‘जी, मेरे पति, किसी कारण से साथ नहीं आ सके.’’

‘‘यह बच्चा आप के साथ है,’’ उस ने मेरे 5 वर्षीय बेटे की तरफ इशारा करते हुए पूछा.

‘‘मेरा बेटा है,’’ मैं उसी गर्व के साथ बोली थी.

वह कुछ देर तक खड़ा रहा, जैसे मुझ से कुछ कहना चाहता हो लेकिन मैं ने ध्यान नहीं दिया, उपेक्षित सा अपना मुंह खिड़की की तरफ फेर लिया. मेरे मन में एक सवाल बारबार उठ रहा था कि नायब तहसीलदार की पोस्ट को तुच्छ समझने वाला कमलकांत वर्मा टी.सी. की नौकरी कैसे कर रहा है?

बड़ी अजीब बात लग रही थी. कभी अपने उज्ज्वल भविष्य…अपनी जिद के लिए अपने प्यार को ठुकराने वाला, क्या अपनी जिंदगी से उस ने समझौता कर लिया है? क्या यह वही आदमी है जिसे मैं लगभग 17 वर्ष पहले पहली बार मिली थी…10 वर्षों का साथ…ढेर सारे सपने…और फिर लगभग 7 वर्ष पूर्व आखिरी बार मिली थी?

17 साल पहले मेरे पापा का तबादला जबलपुर में हुआ था. आयकर विभाग में आयकर निरीक्षक की पोस्ट पर तरक्की हुई थी. नयानया माहौल था. एक अजनबी शहर, न कोई परिचित न कोई मित्र. वह दीवाली का दिन था, अपने घर के बरामदे में ही मैं और मेरे दोनों छोटे भाई फुलझड़ी, अनार और चकरी जला कर दीवाली मना रहे थे कि गेट पर एक लड़का खड़ा दिखाई दिया. पहले तो मैं ने सोचा कि राह चलते कोई रुक गया होगा, लेकिन जब वह काफी देर तक वहीं खड़ा रहा तो मैं ने जा कर उस से पूछा था, ‘जी, कहिए…आप को किस से मिलना है?’

मुझे देख कर वह नर्वस हो गया था, ‘जी…वह आयकर विभाग वाले निगमजी का घर यही है…’

‘हां, क्यों?’ मैं ने उस की बात भी पूरी नहीं होने दी थी.

‘जी…मैं ये प्रसाद लाया था…मुझे उन से…’ वह रुकरुक कर बोला था.

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैं ने पापा से ही मिलवाने में भलाई समझी. उस ने पापा को ही अपना परिचय दिया था. पापा के आफिस में कार्यरत वर्माजी का बेटा था वह. वर्माजी पापा के मातहत क्लर्क थे. वह लगभग 10 मिनट तक रुका था. मां ने उसे प्रसाद और मिठाइयां दीं लेकिन वह प्लेट को छू तक नहीं रहा था. मैं उस के सामने बैठी थी. उस का लजानासकुचाना बराबर चालू था. मैं ने मन ही मन कहा था, ‘लल्लू लाल.’

‘आप किस क्लास में पढ़ते हैं?’ मैं ने ही पूछा था.

‘जी…मैं…’ वह घबरा सा गया था, ‘जी हायर सेकंडरी में…’

उस समय मैं हाईस्कूल में पढ़ रही थी. इस के बाद न तो मैं ने उस से कुछ पूछा और न ही उस ने मुझ से बात की. जातेजाते पापा से कह गया था, ‘अंकल, आप को पापा ने कल लंच पर पूरे परिवार के साथ बुलाया है.’

‘हूं…’ पापा ने कुछ सोचते हुए कहा था, ‘ठीक है, मैं वर्माजी से फोन पर बात कर लूंगा, पर बेटा, अभी कुछ निश्चित नहीं है.’

उस के जाते ही मम्मीपापा में बहस शुरू हो गई थी कि निमंत्रण स्वीकार करें या न करें. पापा को ज्यादा मेलजोल पसंद नहीं था. पापा ने ही बताया था कि वर्माजी बड़े ही ‘पे्रक्टिकल’ इनसान हैं. कलम भर न फंसे, शेष सब जायज है.

पापा ठहरे ईमानदार, ‘केरबेर’ का संग कैसे निभे? पापा के साथ वर्माजी की हालत नाजुक थी. पापा न तो खाते थे न ही वर्माजी को खाने का मौका मिलता था.

पापा ने मां को समझाया, ‘देखो, यह निमंत्रण मुझे शीशे में उतारने का एक जरिया है.’ लेकिन मां के तर्क के सामने पापा के विचार ज्यादा समय के लिए नहीं टिक पाते थे.

‘इस अजनबी शहर में हमारा कौन है? आप तो दिन भर के लिए आफिस चले जाते हैं, बच्चे स्कूल और मैं बचती हूं, मैं कहां जाऊं? जब कहती थी कि कुछ लेदे कर तबादला ग्वालियर करा लीजिए तो उस समय भी यही ईमानदारी का भूत सवार था, मैं नहीं कहती कि ईमानदारी छोड़ दीजिए, लेकिन हर समय हर किसी पर शक करने का क्या फायदा? आफिस की बात आफिस तक रखिए, हो सकता है मुझे एक अच्छी सहेली मिल जाए.’

मम्मी की बात सही निकली. उन्हें एक अच्छी सहेली मिल गई थी. आंटी का स्वभाव बहुत ही सरल लगा था. हम बच्चों को देख कर तो वह खुशी से पागल सी हो रही थीं. मुझे अपनी बांहों में भरते हुए कहा था, ‘कितनी प्यारी बेटी है, इसे तो मुझे दे दीजिए,’ फिर उन की आंखों में आंसू आ गए थे, ‘बहनजी, जिस घर में एक बेटी न हो वह घर, घर नहीं होता.’

हम लोगों को बाद में पता चला कि उन की कमल से बड़ी एक बेटी थी जिस की 3-4 साल पहले ही मृत्यु हुई थी. आंटीजी ने मुझे अपने हाथ से कौर खिलाए थे.

‘मैं खा लूंगी न आंटीजी,’ मैं ने प्रतिरोध किया था.

और उन्होंने स्नेह से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा था, ‘अपने हाथ से तो रोज ही खाती होगी, आज मेरे हाथ से खा ले बेटी.’

हम लोग लगभग 2 घंटे तक उन के घर में रुके थे, इस बीच मुझे कमल की सूरत तक देखने को नहीं मिली थी. मैं ने सोचा था, हो सकता है घर के बाहर हो. जब हम लोग चलने लगे तो अंकल और आंटीजी हमें छोड़ने गेट तक आए थे.

‘अब आप लोग कब हमारे यहां आ रहे हैं?’ मम्मी ने पूछा था.

‘आप को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी बहनजी,’ आंटीजी ने हंसते हुए कहा था, ‘जब भी अपनी बेटी से मिलने का मन होगा, आ जाऊंगी.’

हमारा घर पास में ही था, अत: पैदल ही हम सब चल पड़े थे. अनायास ही मेरी नजर उन के घर की तरफ गई थी तो देखा कमल खिड़की से हमें जाते हुए देख रहा था. जब तक उस के घर में थे तो जनाब बाहर ही नहीं आए, और अब छिप कर दीदार कर रहे हैं. मेरे मुख से अचानक ही निकल गया था, ‘लल्लू कहीं का.’

फिर तो आनेजाने का सिलसिला सा शुरू हो गया था. दोनों घर के सदस्य एकदूसरे से घुलमिल गए थे. कमल का शरमानासकुचाना अभी भी पूरी तरह से नहीं गया था. हां, पहले की अपेक्षा अब वह छिपता नहीं था. सामने आता और कभीकभी 2-4 बातें भी कर लेता था. आंटीजी का स्नेह तो मुझ पर सदैव ही बरसता रहता था.

छमाही परीक्षा में गणित में मेरे बहुत कम अंक आए थे. पापा कुछ परेशान से थे कि कहीं मैं सालाना परीक्षा में गणित में फेल न हो जाऊं. यह बात जब आंटीजी तक पहुंची तो उन्होंने कहा था, ‘इसे कमल गणित पढ़ा दिया करेगा, वह गणित से ही तो हायर सेकंडरी कर रहा है और वैसे भी उस की गणित बहुत अच्छी है. देख लीजिए, यदि स्नेह की समझ में न आए तो फिर किसी दूसरे को रख लीजिएगा.’

‘लेकिन बहनजी, उस की भी तो बोर्ड की परीक्षा है, उसे भी तो पढ़ना होगा?’ पापा ने अपनी शंका जताई थी पर दूसरे दिन ठीक 6 बजे कमल मुझे पढ़ाने के लिए हाजिर हो गया था. मैं भी अपनी कापीकिताब ले कर बैठ गई. 3-4 दिन तक तो मुझे कुछ समझ में नहीं आया था कि वह क्या पढ़ा रहा है. कोई सवाल समझाता तो ऐसा लगता जैसे वह मुझे नहीं बल्कि खुद अपने को समझा रहा है. लेकिन धीरेधीरे उस की भाषा मुझे समझ में आने लगी थी. वह स्वभाव से लल्लू जरूर था लेकिन पढ़ने में होशियार था.

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लिली: भाग 3- अमित ने क्या किया था

दोनों को एकसाथ रहते हुए सालभर से ऊपर हो चुका था. न लिली अमित को अपने मांबाप से मिलवाती, न ही शादी के लिए उस के मन में कोई  खयाल आता.

आजिज आ कर एक दिन अमित ने साफसाफ लफ्जों में शादी करने के  लिए कहा.

‘‘ठीक है, मैं शादी करने के लिए तैयार हूं, मगर हम रहेंगे कहां? क्या हमारे पास कोई अपना फ्लैट है?’’

‘‘शादी से फ्लैट का क्या ताल्लुक?’’ अमित के सवाल पर लिली तुनक उठी, ‘‘जब तक अपना फ्लैट नहीं होगा, मैं शादी नहीं करूंगी.’’

अमित की लिली के बगैर जिंदगी की कल्पना भी बेमानी थी. वह उस के दिलोदिमाग पर छा चुकी थी. उस ने काफी दिमाग दौड़ाया. बनारस में पुश्तैनी मकान था. क्यों न उसे बेच कर मुंबई में फ्लैट खरीद लिया जाए? विचार बुरा नहीं था. लिली को अमित का आइडिया पसंद आया.

अमित अगले दिन औफिस से छुट्टी ले कर बनारस आया.

‘‘तुम ने कैसे सोच लिया कि हम पुश्तैनी मकान बेच कर मुंबई में रहने लगेंगे? रही शादी की बात, तो यहीं कोई लड़की देख कर शादी कर लो. मु झे वह लड़की बिलकुल पसंद नहीं है,’’ अमित के पापा ने साफ शब्दों में कहा.

‘‘पापा, हम कई महीनों से लिव  इन रिलेशनशिप में हैं,’’ सुनते ही पापा भड़क गए.

‘‘शर्म नहीं आती ऐसी बातें करते हुए. कैसी बेशर्म लड़की है, जो बिना शादी किए तुम्हारे साथ रहती है? और कैसे मांबाप हैं उस के, जो लड़की को बिना शादी किए किसी गैर लड़के के साथ रहने की इजाजत दे दी?’’

अमित अपनी मां की तरफ देख कर लाचार भरे लहजे में बोला, ‘‘मम्मी, तुम्हीं पापा को सम झाओ. आजकल ऐसे ही चलता है. पहले हम साथ रह कर एकदूसरे को सम झते हैं, फिर ठीक लगता है तो शादी करते हैं, वरना एकदूसरे से अलग हो जाते हैं.’’

‘‘ऐसे तो वह और कइयों से साथ रही होगी?’’ अमित के पापा ने सच ही कहा था, मगर अमित के दिमाग में घुसे तब न. उस के ऊपर तो लिली का भूत सवार था. आखिरकार अमित की मां के आगे पापा को झुकना पड़ा. मकान का एक हिस्सा बेच कर उन्होंने अमित को रुपए दे दिए. जातेजाते एक नसीहत दी कि देखना, तुम एक दिन पछताओगे.

अमित रुपए पा कर मुंबई लौट आया.

फ्लैट लिली के नाम खरीदा. लिली का कहना था कि जब शादी करनी है, तो चाहे तुम अपने नाम खरीदो या फिर मेरे, बात तो एक ही है.

अब दोनों निश्चिंत थे. एक हफ्ते बाद अमित ने लिली से कोर्ट मैरिज करने के लिए कहा. वह टालती रही.

आजिज आ कर एक दिन अमित ने तल्ख शब्दों में कहा, ‘‘लिली, अब देर किस बात की है?’’

‘‘अमित, शादी कर के घरगृहस्थी में तो फंसना ही है. क्यों न कुछ दिन और मजे ले लें,’’ लिली की यह बात उसे अच्छी नहीं लगी.

दूसरे दिन औफिस के काम से अमित अहमदाबाद चला गया. 2 दिन बाद लौटा तो देखा कि एक आदमी उस के फ्लैट के अंदर था.

‘‘यह कौन है?’’ अंदर घुसते ही उस ने सब से पहले लिली से सवाल किया.

‘‘मेरा फुफेरा भाई. आज ही आया है.’’

अमित दूसरे कमरे में आया. पीछेपीछे लिली भी आई.

‘‘पहले तो तुम ने इस के बारे में कोई जिक्र नहीं किया था. अब यह कहां से आ गया?’’

उस रोज किसी तरह लिली ने बहाना कर के फुफेरे भाई का मामला  टाला. मगर अमित इस से संतुष्ट नहीं था. वह अकसर उस से शादी की जिद करने लगा.

लिली के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. एक दिन उस ने भी त्योरियां चढ़ा लीं.

‘‘मान लो कि मैं तुम से शादी के लिए तैयार नहीं होती हूं, तो तुम क्या कर लेगे?’’ इस सवाल ने अमित को सकते में डाल दिया.

‘‘तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती  हो लिली? हम काफी दूर निकल  चुके हैं.’’

‘‘तुम्हारी गंवई सोच है, वरना तुम्हारे साथ रह कर मैं तो ऐसा नहीं सोचती?’’

‘‘मतलब…?’’

‘‘‘मतलब साफ है. मैं किसी और से शादी करना चाहती हूं.’’

अमित को काटो तो खून नहीं. उसे सपने में भी भान नहीं था कि लिली के मन में उस के प्रति इतना छल भरा है. उसे पापा की बात याद आने लगी, जब उन्होंने कहा था कि देखना, तुम एक  दिन पछताओगे.

लिली ने खुद बताया था कि उस के और भी कई अफेयर हैं. इस के बावजूद अमित नहीं चेता. अब सिवा पछतावे के उस के पास कोई रास्ता नहीं रहा.

फ्लैट लिली के नाम से था. अमित की तनख्वाह का ज्यादातर हिस्सा लिली के ऊपर खर्च होता रहा. वह यही सोचता रहा कि जिस के साथ जिंदगी गुजारनी है, उस से क्या हिसाब ले?

‘‘लिली, तुम मजाक तो नहीं कर रही हो?’’ अमित का स्वर डूबा था.

‘‘बिलकुल नहीं. जिस लड़के को  मैं फुफेरा भाई कह रही थी, वही मेरा पति होगा.’’

‘‘लिली, तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा छल किया?’’

लिली के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई, ‘‘मैं तुम्हें एक हफ्ते की मोहलत दे रही हूं. इस फ्लैट को खाली कर दो,’’ लिली ने अपना फैसला सुना दिया.

‘‘नहीं छोड़ूंगा. यह मेरा फ्लैट है,’’ अमित की बात पर लिली ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

‘‘एक साल तक मेरे जिस्म पर तुम्हारा हक रहा. क्या उस की कीमत नहीं दोगे? थोड़ी सी नकदी, कुछ गहने और यह फ्लैट. इतना ही तो लिया है तुम से. क्या इतना भी नहीं देना चाहोगे  माई डियर…?’’

अमित के पास इस का कोई जवाब नहीं था. गलती तो उस से हुई है, सो दंड भुगतना ही होगा.

‘‘यही कीमत है लिव इन रिलेशनशिप की. मुफ्त में तुम्हें क्यों दूं? एक वेश्या भी अपने शरीर का सौदा करती है, वह भी कुछ घंटों के लिए.

मैं ने तो कई महीने तुम्हारे साथ  गुजार दिए.’’

अमित की आंखों से आंसू निकल पड़े. उसे यही चिंता खाने लगी कि वह अपने मांबाप को क्या मुंह दिखाएगा?

अगली सुबह भरे मन से अमित ने लिली का फ्लैट छोड़ कर वापस बनारस जाने का फैसला ले लिया. लिली के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी. वह खुश थी. चलो, छुटकारा तो मिला. अब किसी और को फांस कर वह लिव इन रिलेशनशिप का खेल खेलेगी.

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लिली: भाग 2- अमित ने क्या किया था

अब लिली खुश थी. तकरीबन  2 महीने हो गए दोनों की दोस्ती को. बातोंबातों में लिली ने बताया था कि वह मुंबई में अकेली रहती है. मातापिता पूना में रहते हैं. क्यों न हम एकसाथ रहें?

अमित को यह अटपटा लगा. इस से अच्छा है कि दोनों शादी कर लें.  अमित यही चाहता था, मगर लिली तैयार नहीं हुई.

‘‘अमित, शादी कोई गुड्डेगुड्डी का खेल नहीं. पहले हम एकदूसरे को सम झ लें, फिर शादी कर लेंगे. लिव इन रिलेशनशिप में रहेंगे, तो एकदूसरे को सम झने में आसानी होगी,’’ दोटूक कह कर लिली ने अपनी मंशा जाहिर कर दी.

अब अमित को फैसला लेना था कि वह इसे स्वीकार करता है या नहीं.

अमित लिली को खोना नहीं चाहता था, वहीं उस के संस्कार बिना शादी किसी लड़की के साथ रहने की इजाजत नहीं दे रहे थे.

‘‘यह कैसा संबंध लिली? बिना शादी हम एकदूसरे के साथ रहें? क्या रह जाएगा हमारेतुम्हारे बीच? ऐसे ही  साथ रहना है, तो शादी कर लेने में क्या बुराई है?’’

‘‘कैसी दकियानूसी बात कर रहे हो? मैं बर्फ  नहीं, जो तुम्हारे साथ रह कर पिघल जाऊंगी? साल 6 महीने साथ  रह लेंगे तो क्या बिगड़ जाएगा?’’  लिली ने उलाहना दिया, ‘‘तुम कौन  सी दुनिया में रह रहे हो अमित. यह  नई दुनिया है. पुराने रिवाज टूट रहे  हैं,’’ लिली के प्रस्ताव के आगे  अमित ने हाथ खड़े कर दिए.

लिली कुछ कपड़े और एक सूटकेस ले कर अमित के पास रहने चली आई. लिली रविवार को अपने मांबाप से मिलने पूना जाती थी. अमित भी जाना चाहता था, मगर वह मना कर देती. पर क्यों, यह उस की सम झ से परे था.

लिली के रूपरंग में पूरी तरह डूबे अमित को लिली के सिवा कुछ नहीं सू झता. आहिस्ताआहिस्ता लिली अमित के हर मामले में दखल देने लगी. अमित पूरी तरह से लिली पर निर्भर हो गया.

अपने महीने की तनख्वाह लिली के हाथ में सौंप कर अमित निश्चिंत रहता. एक दिन लिली पूना गई, तो 3 दिन  बाद लौटी.

अमित परेशान हो गया. लिली को फोन लगाता, तो स्विच औफ  मिलता.  3 दिनों के बाद लिली लौट आई.

अमित ने शिकायत भरे लहजे में उस से हुई देरी की वजह पूछी, तो वह नाराज हो गई. वह बोली, ‘‘अमित, मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूं. हम दोस्त हैं. बेहतर होगा, मेरे बारे में ज्यादा खोजबीन न किया करो.’’

यह सुन कर अमित को बुरा लगा. मगर यह सोच कर चुप रहा कि लिली ने सही कहा कि वे सिर्फ  दोस्त हैं.

अमित के बिगड़े मूड को लिली ने भांप लिया. सो, गलती सुधारने की नीयत से वह अमित के करीब आ कर बैठ गई. उस के बालों पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘डार्लिंग, नाराज मत होना. मां की तबीयत ठीक नहीं थी. उन्होंने रोक लिया, तो रुकना पड़ा.’’

लिली की सफाई पर अमित का मूड बदल गया.

‘‘तुम नहीं जानती कि मैं कितना परेशान था,’’ बच्चे सरीखा बरताव था अमित का. लिली उस की कमजोरी जानती थी.

सुबह दोनों अपनेअपने काम पर निकल गए. शाम को दोनों ने फिर से बाहर खाने की योजना बनाई. रात 10 बजे लौट कर आए. जैसे ही आराम करने के लिए बिस्तर पर गए, तभी लिली के मोबाइल फोन की घंटी बजी. वह बरामदे में आई. वह 15 मिनट बाद वापस आई. आते ही बिस्तर पर पड़ गई.

अमित ने इस बार कोई सवाल नहीं किया, क्योंकि वह जान चुका था कि लिली इसे अपना पर्सनल मामला कह कर चुप करा देगी.

अमित सोचने लगा यह कैसा संबंध है कि मेरी हर चीज पर लिली का हक है. बदले में कुछ पूछता हूं तो यह कह कर मुंह बंद करा देती है कि मैं तुम्हारी बीवी नहीं?

एकबारगी अमित का मन हुआ कि वह लिली से साफ साफ  कह दे कि या तो वह उस से शादी कर ले, नहीं तो अपना बोरियाबिस्तर समेट कर चली जाए.

ऐसा करने की वह सोच ही रहा था कि अगली शाम लिली ने उसे एक शर्ट खरीद कर तोहफे में दी.

‘‘यह क्या…?’’ अमित ने सवाल किया.

‘‘आज तुम्हारा जन्मदिन है,’’ लिली बोली, तो अमित जज्बाती हो गया.  उस ने लिली को बांहों में भर लिया. अमित का सवाल सवाल ही रह गया.

अगले दिन रविवार था. लिली अपनी मां के पास जाने लगी.

‘‘क्या मैं तुम्हारी मां से नहीं मिल सकता?’’ अमित बोला, तो लिली सकपका गई.

‘‘अभी समय नहीं आया है,’’ कह कर लिली चली गई. एक ही छुट्टी मिलती थी, वह भी लिली अपनी मां के पास गुजार देती थी. अमित दिनभर बोर होता. आज उस ने अकेले ही घूमने का मन बनाया. मरीन ड्राइव पर बैठा वह समुद्र की लहरों को निहार रहा था कि लिली का फोन आया.

‘अमित मु झे एक लाख रुपए की सख्त जरूरत है. अभी और इसी वक्त मेरे खाते में डाल दो. सारी बातें आने पर बताऊंगी,’ कह कर लिली ने फोन काट दिया. लिली ने अपने एकाउंट की डिटेल भेजी थी.

अमित ने बिना देर किए उतने रुपए ट्रांसफर कर दिए.

लिली जब लौटी, तो बदहवास थी मानो किसी बहुत बड़ी मुसीबत से छूट कर आई हो.

‘‘तबीयत तो ठीक है न…?’’ अमित ने पूछा.

‘‘नहीं, आज मैं औफिस नहीं जाऊंगी,’’ कह कर लिली सो गई.

अमित अकेले ही काम पर चला गया. शाम को वह लौटा, तो लिली के लिए पिज्जा लेता आया. पिज्जा देख कर लिली खुश हो गई.

दोनों पिज्जा खाने लगे. बीच में अमित ने रुपयों की बात छेड़ी.

‘‘रुपए तुम को वापस मिल जाएंगे,’’ लिली के इस कथन से अमित संतुष्ट नहीं था. लिली ने भांप लिया. उस ने उस के मुंह में पिज्जा डालते हुए कहा, ‘‘डार्लिंग, क्यों परेशान होते हो? क्या अपनी लिली के लिए इतना भी नहीं कर सकते?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं सोच रहा था कि ऐसे कब तक चलेगा?’’

‘‘मैं सम झी नहीं?’’ लिली बोली.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘फिर वही शादी का रोना. अमित तुम सम झने की कोशिश करो. जब तक हम दोनों एकदूसरे को सम झ नहीं लेते, शादी का कोई मतलब नहीं है.’’

तभी लिली के मोबाइल की घंटी बजी. वह पिज्जा बीच में खाना छोड़ कर बरामदे में आई. अमित सोफे पर बैठा लिली का इंतजार करने लगा. तकरीबन 15 मिनट बाद वह आई.

‘‘किस का फोन था?’’ अमित से रहा न गया.

‘‘मेरे एक्स बौयफ्रैंड का फोन था.’’

‘‘क्या तुम्हारा किसी और से भी संबंध था?’’

‘‘हां, यह तो आम बात है. मैं उस के साथ एक साल तक रिलेशन में थी.’’

अमित को यह जान कर धक्का  सा लगा.

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लिली: भाग 1- अमित ने क्या किया था

लिली की बिंदास पहल ने अमित को मुश्किल में डाल दिया. एक दिन वह हंस कर बोली, ‘‘क्या तुम मुझसे दोस्ती करना पसंद करोगे?’’

उस रोज अमित  झेंप गया. उसे कोई जवाब नहीं सू झा. बस, मुसकरा दिया.

रातभर वह लिली के ही बारे में सोच रहा था. कल जब उस से मुलाकात होगी, तो वह क्या जवाब देगा? क्या उस के प्रस्ताव को ठुकरा देगा?

लिली पहली लड़की थी, जिस ने उसे प्रपोज किया. एक अदने से शहर  से जब वह मुंबई नौकरी करने  आया था, तब सिवा नौकरी के उसे

कुछ नहीं पता था. न ही यहां की लड़कियों के तौरतरीके, न ही इस शहर का मिजाज.

लिली अमित को एक रैस्टोरैंट में मिली थी, जहां वह अकसर खाना खाने जाता था. यहीं से दोनों में जानपहचान शुरू हुई.

लिली ने उसे अपना ह्वाट्सएप का नंबर दिया और कहा, ‘‘अगर हां हो, तो जरूर संदेश देना.’’

लिली खूबसूरत थी. छोटे शहर की लड़कियों से अलग उस का रूपरंग बहुत अच्छा. वह फैशनेबल थी.

अमित के लिए यह बिलकुल नया अनुभव था. सोचविचार कर उस ने फैसला लिया कि वह लिली की पहल को नहीं ठुकराएगा.

अगले दिन जब अमित रैस्टोरैंट गया, तो सब से पहले उस की नजर लिली की चेयर पर गई. यही समय होता था लिली के आने का.

अमित ने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं, मगर वह नहीं दिखी. वह बेचैन हो गया. आज उस के दिल में एक खालीपन का अनुभव हुआ. कुरसी पर बैठ कर वह खाने का इंतजार करने लगा. रहरह कर उस की नजर दरवाजे पर चली जाती.  तभी लिली आती दिखी. अमित का चेहरा खिल गया.

लिली ने मुसकरा कर उसे विश किया. उस के बाद अपनी चेयर पर बैठ कर लिली मोबाइल पर उंगलियां फेरने लगी. अमित से रहा न गया. उस ने तत्काल उसे मैसेज दिया, ‘शाम को खाली हो?’

लिली ने मैसेज का तुरंत जवाब दिया, ‘हां.’

इस तरह दोनों ने शाम को साथ बिताने का फैसला लिया. एक तय जगह पर दोनों मिले. मोटरसाइकिल पर बैठ कर मरीन ड्राइव पर आए. समुद्र के किनारे लगे चबूतरे पर बैठ कर दोनों आपस में बातचीत करने लगे.

‘‘तुम किस कंपनी में हो?’’ लिली ने पूछा.

‘‘मैं यहीं एक सौफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी में इंजीनियर हूं.’’

‘‘अकेले हो? मेरा मतलब शादी से है,’’ लिली ने पूछा.

‘‘अभी कुंआरा हूं,’’ कह कर अमित हंसा.

कुछ सोच कर अमित ने लिली से भी यही सवाल किया. जवाब में लिली ने बतलाया कि वह कुंआरी है. एक कुरियर कंपनी में नौकरी करती है.

इस तरह जब भी समय मिलता, वे दोनों एकदूसरे के साथ बिताना पसंद करते. धीरेधीरे दोनों के संबंध गाढ़े  होते गए.

एक रोज लिली गले में सुंदर सी चेन पहन कर आई थी. अमित ने देखा, तो तारीफ किए बिना न रह सका.

‘‘मां ने दी है. आज मेरा बर्थडे है,’’ लिली की इस बात से अमित को शर्मिंदगी हुई. बौयफ्रैंड होने के नाते यह हक सब से पहले उसे जाता था. काश, पहले पता होता, तो वह निश्चय  ही लिली को सरप्राइज दे कर निहाल  कर देता.

अमित कुछ सोच कर बोला, ‘‘देर से ही सही, आज तुम्हारा बर्थडे मेरे फ्लैट पर धूमधाम से मनेगा. मां से बोल दो कि आने में देर होगी.’’

अमित बहुत खुश था. लिली के साथ वह एक अच्छी सी दुकान में गया. वहां उस की पसंद के सोने के  झुमके दिलवाए. 40,000 रुपए का बिल चुकता किया.

लिली ने मना किया, मगर अमित के लिए अपने पहले प्यार का तोहफा था. उस के बाद केक और पिज्जा ले कर अपने फ्लैट पर आया. दोनों ने खूब मजे किए. रात 11 बजने को हुए. ‘‘अच्छा तो मैं चलती हूं,’’ कह कर लिली ने अपना पर्स संभाला.

अमित का मन तो नहीं था उसे छोड़ने का, मगर कैसे कहे. जुमाजुमा चार दिनों की मुलाकात थी. कहीं वह बुरा न मान ले.

लिली अमित के करीब आई. उस के गालों को हलके से चूम लिया. अमित का रोमरोम खिल उठा.

लिली के जाने के बाद अमित उस के ही ख्वाबों और खयालों में डूबा रहा. रहरह कर गालों पर अपनी उंगलियां फेरता तो ऐसा लगता लिली अब भी उस के करीब है. एक अजीब सी मादकता उस के ऊपर हावी हो गई. तभी मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन लिली का था.

‘‘पहुंच गई?’’ अमित ने पूछा.

‘हां,’ लिली का जवाब था, ‘क्या कर रहे हो? सोए नहीं?’ उस ने पूछा.

‘‘नींद नहीं आ रही,’’ अमित का जवाब था.

‘रात के 2 बज रहे हैं. औफिस नहीं जाना है?’

‘‘यार, तुम तो अभी से मेरी चिंता करने लगी?’’

‘क्या करूं. दिल के हाथों मजबूर हूं.’

‘‘ऐसा क्या देखा मु झ में?’’ पूछ कर अमित हंसा.

लिली सोच कर बोली, ‘कभीकभी भावनाओं के आगे शब्द कम पड़ जाते हैं,’ वह आगे बोली, ‘तुम ने मु झ में क्या देखा?’

अमित थोड़ा शरमाते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे होंठ. जब गुलाबी लिपस्टिक लगा कर आती हो, तो ऐसा लगाता है मानो गुलाब की 2 पंखुडि़यां एकदूसरे को चूम रही हों.’’

‘ऐसा था तो पहल क्यों नहीं की?’ लिली ने शरारत की.

‘‘डरता था, कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

‘मन तो नहीं कर रहा, पर क्या करें नौकरी जो करनी है. अच्छा, गुडनाइट,’ लिली ने मोबाइल का स्विच औफ कर दिया.

आज लिली सफेद कपड़े पर गुलाब रंग के फूल बने छींटे वाला पहन कर आई थी. बालों को खास तरीके से गूंथा था. लट चेहरे पर  झूल रही थी. गोरा रंग उस पर सुर्ख गुलाबी होंठ कयामत ढा रहे थे. अमित उसे देखता ही रह गया.

आज शाम दोनों ने फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया. सिनेमाघर का सन्नाटा पा कर अमित की भावनाएं कुछ ज्यादा उबाल लेने लगीं. रहा न गया तो उस के होंठों को चूम लिया. लिली पहले तो सकपकाई, पर बाद में सहज हो गई.

यह सिलसिला अब ऐसे ही चलता रहा. अब दोनों के बीच कुछ भी परदा नहीं रहा.

एक रोज लिली परेशान थी. अमित ने उस की परेशानी की वजह पूछी, तो वह बोली, ‘‘मु झे 50,000 रुपए की सख्त जरूरत है.’’

यह पहला मौका था, जब लिली ने उस से रुपयों की डिमांड की. इज्जत का सवाल था, इसलिए वह मना न कर सका. तुरंत उस के खाते में 50,000 रुपए ट्रांसफर कर दिए.

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