गंगूबाई काठियावाड़ी: शांतनु माहेश्वरी और आलिया भट्ट के सॉन्ग ‘मेरी जान’ ने बनाया सबको दिवाना

अभिनेता शांतनु माहेश्वरी, संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से बड़े पर्दे पर कदम रखने के लिए पूरी तरह से तैयार है . इस फिल्म में आलिया भट्ट और शांतनु पर फिल्माया गाना ‘जब सैंया’ रिलीज होते ही दर्शकों के दिल में घर कर चुका है . अब एक बार फिर वो अपने दूसरे गाने ‘मेरी जान’ से दर्शकों को अपना दीवाना बना रहे है .

इस मदमस्त गाने को नीति मोहन ने गाया है जो कि आलिया भट्ट द्वारा अभिनीत किरदार गंगूबाई और शांतनु के खूबसूरत प्यार को गाडी की पिछली सीट पर बैठे हुए दर्शता है . यह बिल्कुल नई जोड़ी अपनी शानदार केमिस्ट्री और अपने चेहरें के हाव-भाव से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रही है.

‘मेरी जान’ की धुन आपके पैर को थिरकने पर मजबूर कर देगी . इस गाने में एक-दूसरे को चिढ़ाते हुए, आलिया और शांतनु गाने की शुरुआत में संकेतों और हाथों के इशारों से एक-दूसरे से बात करते दिख रहे है. गाने की शुरुआत को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि प्यार को शब्दों की आवश्यकता नहीं होती है और दोनों कलाकार जिस प्रकार अपनी आंखों से बोल रहे है, सच मानिए काबिले तारिफ़ है . प्यार का एक शानदार चित्रण करते हुए आलिया और शांतनु दर्द, भय, घुटन, निराशा और सबसे अधिक तड़प को व्यक्त करते है.

इस गाने के रिलीज होने की खुशी में शांतनु ने कहा कि  ” ‘मेरी जान’ में दिखाया गया है कि संजय लीला भंसाली सर जैसा फिल्म निर्माता दो किरदारों के समीकरण को इतनी काव्यात्मक ढंग से सामने लाने के लिए क्या कर सकते है . गाने में आलिया भट्ट का किरदार गंगूबाई मुझे गले लगाना चाहती है लेकिन वह डरती है. वह केवल प्यार करना चाहती है और जब उसे अंत में प्यार मिलता है तो आप देख सकते है कि उसकी आँखों में एक अलग ख़ुशी नज़र आती है . यह रोमांस से बहुत अधिक है. यह गाना दिखाता है कि किस प्रकार दो व्यक्ति अपने इतिहास को भूला कर एक दूसरे में खो जाते है .”

संजय लीला भंसाली और डॉ. जयंतीलाल गड़ा (पेन स्टूडियोज ) द्वारा निर्मित यह फिल्म 25 फरवरी 2022 को सिनेमाघरों में रिलीज होने के लिए पूरी तरह तैयार है.

बिग बॉस 15 फेम प्रतीक सहजपाल के नए सॉन्ग ‘रंग सोनेया’ ने मचाया धमाल, देखें Video

देसी म्यूजिक फैक्ट्री द्वारा निर्मित प्यार के रंगों से भरा हुआ गाना ‘रंग सोनेया’ रिलीज से पहले ही काफी सुर्खियां बटोरने के बाद आखिरकार दर्शकों के सामने आ गया है . इस गाने के माध्यम से  बिग बॉस सीजन 15 के फर्स्ट रनर-अप प्रतीक सहजपाल और अरूब खान प्यार का देसी स्वाद दर्शकों के लिए लेकर आये हैं . इस गाने को अरूब खान ने अपनी सुरीली आवाज़ में गाया है और बब्बू ने गीत के बोल लिखे है तथा  ब्लैक वायरस ने संगीत से सजाया है . गाने के पोस्टर में इस नई जोड़ी की केमिस्ट्री देखने लायक है और  ऐसा लग रहा है कि यह गाना चार्टबस्टर बनने के लिए तैयार हैं.

 

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गाने के रिलीज को लेकर उत्साहित  प्रतीक सहजपाल कहते है कि  “इस गाने को दर्शकों के सामने लाते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है और अब मैं उनकी प्रतिक्रिया जानने का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं. मुझे विश्वास है कि इसे श्रोताओं से बहुत प्यार मिलेगा.  देसी म्यूजिक फैक्ट्री की प्रतिभाशाली टीम के साथ काम करके बहुत अच्छा लगा .”

इस गाने के रिलीज पर अरूब खान कहती है कि  “आखिरकार  ‘रंग सोनेया’ रिलीज हो गया है, मुझे इस पॉवरफुल और रोमांटिक संगीत हिस्सा का बनने पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है. इस तरह के शानदार प्रस्तुतकर्ताओं के साथ इस प्रोजेक्ट के लिए सहयोग करना एक कमाल का अनुभव रहा . मैं उत्साहित हूं यह जानने के लिए कि श्रोता इस गाने को कितना प्यार देते है .”

देसी म्यूजिक फैक्ट्री के फाउंडर और सीईओ अंशुल गर्ग कहते हैं, ” ‘रंग सोनेया’ के लिए अरूब और प्रतीक के साथ जुड़कर बेहद खुशी हो रही है. गाने के निर्माण की यात्रा कमाल की रही है. हम इस प्यार के महीने में एक देसी रंग में लिपटा हुआ प्यार से भरा गाना लाने के लिए बेहद खुश है.”

‘रंग सोनेया’ देसी म्यूजिक फैक्ट्री के यूट्यूब चैनल पर आ गया हैं .

कभी-कभी ऐसा भी: पूरबी के साथ क्या हुआ

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औरत एक पहेली: संदीप और विनीता के बीच कैसी थी दोस्ती- भाग 1

संदीप बाहर धूप में बैठे सफेद कागजों पर आड़ीतिरछी रेखाएं बनाबना कर भांतिभांति के मकानों के नक्शे खींच रहे थे. दोनों बेटे पंकज, पवन और बेटी कामना उन के इर्दगिर्द खड़े बेहद दिलचस्पी के साथ अपनीअपनी पसंद बतलाते जा रहे थे.

मुझे हमेशा की भांति अदरक की चाय और कोई लजीज सा नाश्ता बनाने का आदेश मिला था.

बापबेटों की नोकझोंक के स्वर रसोईघर के अंदर तक गूंज रहे थे. सभी चाहते थे कि मकान उन की ही पसंद के अनुरूप बने. पवन को बैडमिंटन खेलने के लिए लंबेचौड़े लान की आवश्यकता थी. व्यावसायिक बुद्धि का पंकज मकान के बाहरी हिस्से में एक दुकान बनवाने के पक्ष में था.

कामना अभी 11 वर्ष की थी, लेकिन मकान के बारे में उस की कल्पनाएं अनेक थीं. वह अपनी धनाढ्य परिवारों की सहेलियों की भांति 2-3 मंजिल की आलीशान कोठी की इच्छुक थी, जिस के सभी कमरों में टेलीफोन और रंगीन टेलीविजन की सुविधाएं हों, कार खड़ी करने के लिए गैराज हो.

संदीप ठठा कर हंस पड़े, ‘‘400 गज जमीन में पांचसितारा होटल की गुंजाइश कहां है हमारे पास. मकान बनवाने के लिए लाखों रुपए कहां हैं?’’

‘‘फिर तो बन गया मकान. पिताजी, पहले आप रुपए पैदा कीजिए,’’ कामना का मुंह फूल उठा था.

‘‘तू क्यों रूठ कर अपना भेजा खराब करती है? मकान में तो हमें ही रहना है. तेरा क्या है, विवाह के बाद पराए घर जा बैठेगी,’’ पंकज और पवन कामना को चिढ़ाने लगे थे.

बच्चों के वार्त्तालाप का लुत्फ उठाते हुए मैं ने मेज पर गरमगरम चाय, पकौड़े, पापड़ सजा दिए और संदीप से बोली, ‘‘इस प्रकार तो तुम्हारा मकान कई वर्षों में भी नहीं बन पाएगा. किसी इंजीनियर की सहायता क्यों नहीं ले लेते. वह तुम सब की पसंद के अनुसार नक्शा बना देगा.’’

संदीप को मेरा सुझाव पसंद आया. जब से उन्होंने जमीन खरीदी थी, उन के मन में एक सुंदर, आरामदेह मकान बनवाने की इच्छाएं बलवती हो उठी थीं.

संदीप अपने रिश्तेदारों, मित्रों से इस विषय में विचारविमर्श करते रहते थे. कई मकानों को उन्होंने अंदर से ले कर बाहर तक ध्यानपूर्वक देखा भी था. कई बार फुरसत के क्षणों में बैठ कर कागजों पर भांतिभांति के नक्शे बनाएबिगाड़े थे, परंतु मन को कोई रूपरेखा संतुष्ट नहीं कर पा रही थी. कभी आंगन छोटा लगता तो कभी बैठक के लिए जगह कम पड़ने लगती.

परिवार के सभी सदस्यों के लिए पृथकपृथक स्नानघर और कमरे तो आवश्यक थे ही, एक कमरा अतिथियों के लिए भी जरूरी था. क्या मालूम भविष्य में कभी कार खरीदने की हैसियत बन जाए, इसलिए गैराज बनवाना भी आवश्यक था. कुछ ही दिनों बाद संदीप किसी अच्छे इंजीनियर की तलाश में जुट गए.

एकांत क्षणों में मैं भी मकान के बारे में सोचने लगती थी. एक बड़ा, आधुनिक सुविधाओं से पूर्ण रसोईघर बनवाने की कल्पनाएं मेरे मन में उभरती रहती थीं. अपने मकान में गमलों में सजाने के लिए कई प्रकार के पेड़पौधों के नाम मैं ने लिख कर रख दिए थे.

एक दिन संदीप ने घर आ कर बतलाया कि उन्होंने एक भवन निर्माण कंपनी की मालकिन से अपने मकान के बारे में बात कर ली है. अब नक्शा बनवाने से ले कर मकान बनवाने तक की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं की होगी.

सब ने राहत की सांस ली. मकान बनवाने के लिए संदीप के पास कुल डेढ़दो लाख की जमापूंजी थी. घर के खर्चों में कटौती करकर के वर्षों में जा कर इतना रुपया जमा हो पाया था.

संदीप एक दिन मुझे भवन निर्माण कंपनी की मालकिन विनीता से मिलवाने ले गए.

मैं कुछ ही क्षणों में विनीता के मृदु स्वभाव, खूबसूरती और आतिथ्य से कुछ ऐसी प्रभावित हुई कि हम दोनों के बीच अदृश्य सा आत्मीयता का सूत्र बंध गया.

हम उन्हें अपने घर आने का औपचारिक निमंत्रण दे कर चले आए. मुझे कतई उम्मीद नहीं थी कि वह हमारे घर आ कर हमारा आतिथ्य स्वीकार करेंगी. लेकिन एक शाम आकस्मिक रूप से उन की चमचमाती विदेशी कार हमारे घर के सामने आ कर रुक गई. मैं संकोच से भर उठी कि कहां बैठाऊं इन्हें, कैसे सत्कार करूं.

विनीता शायद मेरे मन की हीन भावना भांप गई. मुसकरा कर स्वत: ही एक कुरसी पर बैठ गईं, ‘‘रेखाजी, क्या एक गिलास पानी मिलेगा.’’

मैं निद्रा से जागी. लपक कर रसोई- घर से पानी ले आई. फिर चाय की चुसकियों के साथ वार्त्तालाप का लंबा सिलसिला चल निकला. इस बीच बच्चे कालिज से आ गए थे, वे भी हमारी बातचीत में शामिल हो गए. फिर विनीता यह कह कर चली गईं, ‘‘मैं ने आप की पसंद को ध्यान में रख कर मकान के कुछ नक्शे बनवाए हैं. कल मेरे दफ्तर में आ कर देख लीजिएगा.’’

विनीत के जाने के बाद मेरे मन में अनेक अनसुलझे प्रश्न डोलते रह गए थे कि उस का परिवार कैसा है? पति कहां हैं और क्या करते हैं? इन के संपन्न होने का रहस्य क्या है?

कभीकभी ऐसा लगता है कि मैं विनीता को जानती हूं. उन का चेहरा मुझे परिचित जान पड़ता, लेकिन बहुत याद करने पर भी कोई ऐसी स्मृति जागृत नहीं हो पाती थी.

कभी मैं सोचने लगती कि शायद अधिक आत्मीयता हो जाने की वजह से ऐसा लगता होगा. अगले दिन शाम को मैं और संदीप दोनों उन के दफ्तर में नक्शा देखने गए. एक नक्शा छांट कर संतुष्ट भाव से हम ने वैसा ही मकान बनवाने की अनुमति दे दी.

बातों ही बातों में संदीप कह बैठे, ‘‘रुपए की कमी के कारण शायद हम पूरा मकान एकसाथ नहीं बनवा पाएंगे.’’

विनीता झट आश्वासन देने लगीं, ‘‘आप निश्चिंत रहिए. मैं ने आप का मकान बनवाने की जिम्मेदारी ली है तो पूरा बनवा कर ही रहूंगी. बाकी रुपए मैं अपनी जिम्मेदारी पर आप को कर्ज दिलवा दूंगी. आप सुविधानुसार धीरेधीरे चुकाते रहिए.’’

संदीप उन के एहसान के बोझ से दब से गए. मुझे विनीता और भी अपनी सी लगने लगीं.

नक्शा पास हो जाने के पश्चात मकान का निर्माण कार्य शुरू हो गया.

अब तक विनीता का हमारे यहां आनाजाना बढ़ गया था. अब वह खाली हाथ न आ कर बच्चों के लिए फल, मिठाइयां और कुछ अन्य वस्तुएं ले कर आने लगी थीं.

आते ही वह सब के साथ घुलमिल कर बातें करने लग जातीं. रसोईघर में पटरे पर बैठ कर आग्रह कर के मुझ से दाल- रोटी ले कर खा लेतीं.

मैं संकोच से गड़ जाती. उन्हें फल, मिठाइयां लाने को मना करती, परंतु वह नहीं मानती थीं. संदीप मुझ से कहते, ‘‘विनीताजी जो करती हैं, उन्हें करने दिया करो. मना करने से उन का दिल दुखेगा. उन के अपने बच्चे नहीं हैं इसलिए वह हमारे बच्चों पर अपनी ममता लुटाती रहती हैं.’’

औरत एक पहेली: संदीप और विनीता के बीच कैसी थी दोस्ती- भाग 2

मैं परेशान सी हो उठती. भरेपूरे शरीर की स्वामिनी विनीता के अंदर ऐसी कौन सी कमी है, जिस ने उन्हें मातृत्व से वंचित कर दिया है. मैं उन के प्रति असीम सहानुभूति से भर उठती थी. एक दिन मन का क्षोभ संदीप के सामने प्रकट किया तो उन्होंने बताया, ‘‘विनीताजी के पति अपाहिज हैं. बच्चा पैदा करने में असमर्थ हैं. एक आपरेशन के दौरान डाक्टरों ने गलती से उन की शुक्राणु वाली नस काट दी थी.’’

मैं और अधिक सहानुभूति से भर उठी.

संदीप बताते रहे, ‘‘विनीताजी के पति की प्रथम पत्नी का एक पुत्र उन के साथ रहता है, जिसे उन्होंने मां की ममता दे कर बड़ा किया है. इतनी बड़ी फर्म, दौलत, प्रसिद्धि सबकुछ विनीताजी के अटूट परिश्रम का सुखद परिणाम है.’’

अचानक मेरे मन में खयाल आया, ‘विनीता की गुप्त बातों की जानकारी संदीप को कैसे हो गई? कब और कैसे दोनों के बीच इतनी अधिक घनिष्ठता हो गई कि वे दोनों यौन संबंधों पर भी चर्चा करने लगे.’

मैं ने इस विषय में संदीप से प्रश्न किया तो वह झेंप कर खामोश हो गए.

मेरे अंतर में संदेह का कीड़ा कुलबुला उठा था. मुझे लगने लगा कि विनीता अकारण ही हम लोगों से आत्मीयता नहीं दिखलाती हैं. वह हमारे बच्चों पर खर्च कर के हमारे घर में अपना स्थान बनाना चाहती हैं. कोई ऐसे ही तो किसी को हजारों का कर्जा नहीं दिलवा सकता. इन सब का कारण संदीप के प्रति उन का आकर्षण भी तो हो सकता है.

संदीप 50 वर्ष के होने पर भी स्वस्थ, सुंदर थे. शरीर सौष्ठव के कारण अपनी आयु से कई वर्ष छोटे दिखते थे. किसी समआयु की महिला का उन की ओर आकर्षित हो जाना आश्चर्य की बात नहीं थी.

मैं सोचने लगी, ‘विनीता जैसी सुंदर महिला एक अपाहिज आदमी के साथ संतुष्ट रह भी कैसे सकती है?’ मुझे अपना घर उजड़ता हुआ लगने लगा था.

अब जब भी विनीता मेरे घर आतीं, मेरा मन उन के प्रति कड़वाहट से भर उठता था. उन की मधुर मुसकराहट के पीछे छलकपट दिखाई देने लगता. ऐसा लगता जैसे विनीता अपनी दौलत के कुछ सिक्के मेरी झोली में डाल कर मुझ से मेरी खुशियां और मेरा पति खरीद रही हैं. मुझे विनीता, उन की लाई गई वस्तुओं और उन की दौलत से नफरत होती चली गई.

मैं ने उन के दफ्तर जाना बंद कर दिया. वह मेरे घर आतीं तो मैं बीमारी या व्यस्तता का बहाना बना कर उन्हें टालने का प्रयास करने लगती थी. मेरे बच्चे और संदीप उन के आते ही उन की आवभगत में जुटने लगते थे. यह सब देख मुझे बेहद बुरा लगने लगता था.

मैं विनीता के जाने के पश्चात बच्चों को डांटने लगती, ‘‘तुम सब लालची प्रवृत्ति के क्यों बनते जा रहे हो? क्यों स्वीकार करते हो इन के लाए उपहार? इन से इतनी अधिक घनिष्ठता किसलिए? कौन हैं यह हमारी? मकान बन जाएगा, फिर हमारा और इन का रिश्ता ही क्या रह जाएगा?’’

बच्चे सहम कर मेरा मुंह देखते रह जाते क्योंकि अभी तक मैं ने उन्हें अतिथियों का सम्मान करना ही सिखाया था. विनीता के प्रति मेरी उपेक्षा को कोई नहीं समझ पाता था. सभी  मेरी मनोदशा से अनभिज्ञ थे. मकान के किसी कार्यवश जब भी संदीप मुझ से विनीता के दफ्तर चलने को कहते, मैं मना कर देती. वह अकेले चले जाते तो मैं मन ही मन कुढ़ती रहती, लेकिन ऊपर से शांत बनी रहती थी.

मैं संदीप को विनीता के यहां जाने से नहीं रोकती थी. सोचती, ‘मर्दों पर प्रतिबंध लगाना क्या आसान काम है? पूरा दिन घर से बाहर बिताते हैं. कोई पत्नी आखिर पति का पीछा कहां तक कर सकती है?’

मेरे मनोभावों से बेखबर संदीप जबतब विनीता की प्रशंसा करने बैठ जाते. अकसर कहते, ‘‘विनीताजी से मुलाकात नहीं हुई होती तो हमारा मकान इतनी जल्दी नहीं बन पाता.’’

कभी कहते, ‘‘विनीताजी दिनरात परिश्रम कर के हमारा मकान इस प्रकार बनवा रही हैं जैसे वह उन का अपना ही मकान हो.’’

कभी ऐसा भी हो जाता कि विनीता अपने किसी निजी कार्यवश संदीप को कार में बैठा कर कहीं ले जातीं. संदीप घंटों के पश्चात प्रसन्न मुद्रा में वापस लौटते और बताते कि वह किसी बड़े होटल में विनीता के साथ भोजन कर के आ रहे हैं.

मेरे अंदर की औरत यह सब सहन नहीं कर पा रही थी. मैं यह सोच कर ईर्ष्या से जलतीभुनती रहती कि विनीता की खूबसूरती ने संदीप के मन को बांध लिया है. अब उन्हें मैं फीकी लगने लगी हूं. उन के मन में मेरा स्थान विनीता लेती जा रही है.

कभी मैं क्षुब्ध हो कर सोचने लगती, इस शहर में मकान बनवाने से मेरा जीवन ही नीरस हो गया. एक शहर में रहते हुए संदीप और विनीता का साथ कभी नहीं छूट पाएगा. अब संदीप मुझे पहले की भांति कभी प्यार नहीं दे पाएंगे. विनीता अदृश्य रूप से मेरी सौत बन चुकी है, हो सकता है दोनों हमबिस्तर हो चुके हों. आखिर होटलों में जाने का और मकसद भी क्या हो सकता है?’

हमारा मकान पूरा बन गया तो मुहूर्त्त करने के पश्चात हम अपने घर में आ कर रहने लगे.

विनीता का आनाजाना और संदीप के साथ घुलमिल कर बातें करना कम नहीं हो पाया था.

एक दिन मेरे मन का आक्रोश जबान पर फूट पड़ा, ‘‘अब इस औरत के यहां आनाजाना बंद क्यों नहीं कर देते? मकान कभी का बन कर पूरा हो चुका है, अब इस फालतू मेलजोल का समापन हो जाना ही बेहतर है.’’

‘‘कैसी स्वार्थियों जैसी बातें करने लगी हो. विनीताजी ने हमारी कितनी सहायता की थी, अब हम उन का तिरस्कार कर दें, क्या यह अच्छा लगता है?’’

‘‘तब क्या जीवन भर उसे गले से लगाए रहोगे.’’

‘‘तुम्हें जलन होती है उस की खूबसूरती से,’’ संदीप मेरे क्रोध की परवा न कर के मुसकराते रहे. फिर लापरवाही से बाहर चले गए.

क्रोध और उत्तेजना से मैं कांप रही थी. जी चाह रहा था कि अभी जा कर उस आवारा, चरित्रहीन औरत का मुंह नोच डालूं.

अपने अपाहिज पति की आंखों में धूल झोंक कर पराए मर्दों के साथ गुलछर्रे उड़ाती फिरती है. अब तक न मालूम कितने पुरुषों के साथ मुंह काला कर चुकी होगी.

मुझे उस अपरिचित अनदेखे व्यक्ति से गहरी सहानुभूति होने लगी, जिस की पत्नी बन कर विनीता उस के प्रति विश्वासघात कर रही थी.

मैं सोचने लगी, ‘अगर यह कांटा अभी से उखाड़ कर नहीं फेंका गया तो मेरा मन जख्मी हो कर लहूलुहान हो जाएगा. इस से पहले कि मामला और आगे बढ़े मुझे विनीता के पति के पास जा कर सबकुछ साफसाफ बता देना चाहिए कि वे अपनी बदचलन पत्नी के ऊपर अंकुश लगाना शुरू कर दें. वह दूसरों के घर उजाड़ती फिरती है.’

उन के घर का पता मुझे मालूम था. एक बार मैं संदीप के साथ घर के बाहर तक जा चुकी थी. उस वक्त विनीता घर पर नहीं थीं. नौकर के बताने पर हम बाहर से ही लौट आए थे.

घर के सभी काम बच्चों पर छोड़ कर मैं विनीता के घर जाने के लिए तैयार हो गई. एक रिकशे में बैठ कर मैं उन के घर पहुंच गई.

विनीता घर में नहीं थीं. नौकर से साहब का कमरा पूछ कर मैं दनदनाती हुई सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंची.

नौकर ने कमरे के अंदर जा कर साहब को मेरे आगमन की सूचना दे दी. फिर मुझे अंदर जाने का इशारा कर के वह किसी काम में लग गया.

Sunrise Pure स्वाद और सेहत उत्सव में बनाइए टेस्टी राजमा

घर हो या बाहर राजमा हर किसी का फेवरेट होता है, लेकिन अगर राजमा सही ढंग से न बनायै जाए तो ये टेस्ट भी बिगाड़ देता है आज हम आपको Sunrise Pure मसालों के साथ राजमा बनाने की टेस्टी रेसिपी बताएंगे, जिसे आप लंच या डिनर में कभी भी बना सकते हैं और अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को खिला सकते हैं. आइए आपको बताते हैं राजमा की आसान रेसिपी…

हमें चाहिए

– राजमा (200 ग्रा.)

– खाने का सोडा (1/2 टी स्पून)

– टमाटर (250 ग्रा.)

– 3-4 हरी मिर्च

– 1 टुकड़ा अदरक

–  2 टी स्पून तेल

– 1 टुकड़ा हींग

–  जीरा (1/2 टी स्पून)

–  Sunrise Pure हल्दी पाउडर (1/4 टी स्पून)

–  Sunrise Pure धनिया पाउडर  (1 टी स्पून)

–  Sunrise Pure लाल मिर्च पाउडर (1/2 टी स्पून)

–  Sunrise Pure गरम मसाला (1/4 टी स्पून)

–   नमक (स्वादानुसार)

बनाने की विधि

– सबसे पहले राजमा ले और एक रात पहले भिगोने के लिए रख दें.

– जिस दिन राजमा बनाना है उसदिन भिगोए हुए राजमा को साफ पानी से धोले.

– इतना करने के बाद एक कुकर ले उसमे भीगा हुआ राजमा और खाने का सोडा डाले. आवश्यकता अनुसार पानी डाले और गैस पर रख दें.

– गैस पर कुकर रखने के बाद ४-५ सिटी आने दे ताकि राजमा अच्छे से उबल जाए और कच्चे ना रहें.

–  जब सिटी आजाए तो प्रेशर निकलने का इंतज़ार करे और फिर देखले राजमा कच्चे ना रह गए हो.

– इतना करने के बाद एक कढ़ाई ले उसमे तेल डालकर उसमे जीरा डाले जब वो गरम हो जाए तब उसमे तेज पत्ता डाले उसके बाद प्याज़ डालकर भूने जब उसका रंग हल्का सुनहरा हो जाए तब उसमे अदरक लहसून हरी मिर्च आदि डालकर भूने.

–  जब भुन जाए तब उसमे Sunrise Pure की हल्दी, धनिया, नमक, गरम मसाला डालें और भूनें.

– अब सारे मसलो को अच्छे से मिलाए और उसमे टमाटर डाले तब तक भूने जब तक टमाटर गल ना जाए.

– जब टमाटर गल जाए और मिश्रण अच्छे से भुन जाए तब उसमे उबले हुए राजमा डाल दें और मिश्रण       के साथ अच्छे से मिक्स कर दें.

-जब इतना हो जाए तब उसको थोड़ी देर गैस पर पकने के लिए छोड़ दे साथ ही उसमे कुछ बटर या क्रीम भी डाल दें. आपका गरमा गरम राजमा तैयार है.

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Serial Story: अब बहुत पीछे छूट गया

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मन की आवाज सुन कर ही फिल्म बनाता हूं- सुमन मुखोपाध्याय

सुमन मुखोपाध्याय 20 वर्षों से रंगमच व फिल्मों के निर्माण से जुड़े हुए हैं. हाल ही में उन हुई नाटकों व फिल्मों पर सरकारों के अंकुश, बंगाल की राजनीति, सिविल सोसायटी मूवमैंट, टीएमसी के चलते सिविल सोसायटी मूवमैंट के खात्मे, भाजपा की हार की वजह, कम्यूनिस्ट पार्टी के पतन की वजह, भाजपा ने बंगाल को किस तरह से नुकसान पहुंचाया व उन की फिल्म ‘नजरबंद’ को ले कर ऐक्सक्लूसिव बातचीत के कुछ अंश पेश हैं:

आप के पिता का थिएटर ग्रुप था, आप ने भी थिएटर से शुरुआत की. बंगला थिएटर काफी समृद्ध और लोकप्रिय रहा है. वर्तमान समय में बंगला थिएटर की क्या स्थिति है?

पश्चिम बंगाल में थिएटर, रंगमच के हालात हमेशा अच्छे रहे हैं. पूरे प्रदेश में बंगला रंगमंच हावी रहा है. लेकिन पिछले डेढ़ वर्ष से कोरोना महामारी की वजह से सारे समीकरण गड़बड़ा गए हैं. सबकुछ गड़बड़ चल रहा है. डेढ़ वर्ष से थिएटर बंद है. लेकिन महामारी से पहले कोलकाता के साथ ही पूरे पश्चिम बंगाल में जगहजगह नाटकों के शो चलते रहते थे. पश्चिम बंगाल में कई थिएटर ग्रुप हैं.

मेरी राय में 60-70 व 80 के दशक में पश्चिम बंगाल में साहित्य, थिएटर, संगीत, सिनेमा सब मिला कर जो कल्चरल, सांस्कृतिक माहौल था, वातावरण था, वह वातावरण इलैक्ट्रीफाइंग था. वह कुछ हद तक कम हुआ. सीपीआई शासन का अंतिम प्रहर और लैफ्ट ने शासन किया और फिर तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आते ही सबकुछ गड़बड़ हो गया. कल्चरल डिसकनेक्षन, सांस्कृतिक वियोग हो गया.

क्या आप मानते हैं कि केंद्र या राज्य सरकार के बदलने का प्रभाव संस्कृति, सिनेमा, थिएटर, कला पर पड़ता है?

बहुत ज्यादा पड़ता है. समाज पूरी सांस्कृतिक गतिविधियों, राजनीतिक गतिविधियों का एक हिस्सा है, यह सामाजिक, राजनीतिक आदानप्रदान है, जो संस्कृति को घटित करता है. कोई भी संस्कृति कल्चर अलगाव में विकसित या पनपती नहीं है. संस्कृति, सामाजिक व राजनीतिक वातावरण की उपज है. इसलिए मेरा मानना है कि देश या राज्य में राजनीतिक स्तर पर जो कुछ घटित होता है, उस का जबरदस्त प्रभाव संस्कृति पर पड़ता है.

पहले भी सभी बंगाली कलाकारों में राजनीतिक जागरूकता थी. उत्पल दत्त के नाटकों में ‘स्ट्रीट पौलिटिक्स’ हावी रही, वहीं शोमू मित्रा के नाटकों में कुछ अलग तरह का प्रभाव था. तो सभी जानते कि उन का जुड़ाव सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्र से रहा. लेकिन जैसेजैसे लैफ्ट फ्रंट शासन का पतन होता गया, वैसेवैसे बहुत कुछ बदलता गया. फिर तृणमूल सरकार आ गई. अब संस्कृति को ले कर हम लोगों का संघर्ष चल रहा है. इस से हम अभी तक निकल नहीं पाए हैं.

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10-12 वर्षों के अंदर कलाकार व फिल्मकार राजनीति में ज्यादा, कला में कम रुचि रखने लगे हैं?

आप ने एकदम सही कहा. जिस वक्त आप किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य या कार्यकर्ता बनते हैं, आप कला के प्रति ईमानदार नहीं रह सकते क्योंकि राजनीतिक पार्टी के मुखिया चाहेंगे कि आप अपनी कला के माध्यम से उन की पार्टी के ही विचारों को लोगों तक पहुंचाएंगे आप की कलात्मक प्रतिभा से जो कुछ निकले, जबकि कला व कलाकार को हमेशा स्वतंत्र रहना चाहिए और दर्शकों के हित की सोचनी चाहिए.

कलाकारों व फिल्मकारों को चाहिए कि वे हमेशा अपने दर्शकों को ऐसी चीजें परोसें, जिन से दर्शकों में जागरूकत बनी रहे, उन के अंदर एक ‘थौट प्रोसैस’ सोचने की प्रक्रिया सतत चलती रहे. जब भी किसी कलाकार से कोई राजनीतिक दल कुछ करने के लिए कहे, तो कलाकार उसे साफतौर इनकार करते हुए कहे कि वह कलाकार है, कृपया उस पर नियंत्रण न करे.

बंगाल में कम्यूनिस्ट पार्टी के शासनकाल में ‘सिविल सोसायटी मूवमैंट’ को खुली छूट थी. लेकिन तृणमूल सरकार के आने के बाद ‘सिविल सोसायटी मूवमैंट’ उसी ढर्रे पर चल पा रहा है?

देखिए जब सिविल सोसायटी मूवमैंट का कोई बड़ा आंदोलन होता है, तो लोग इकट्ठा हो जाते हैं, सड़कों पर उतर आते हैं जब सीएए और एनआरसी के खिलाफ मूवमैंट चला तो पूरा भारत सड़कों पर उतर आया. जब पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में कांड हुआ था, तब आम लोग, मध्यवर्गीय, बुद्धिजीवी, नौकरीपेशा यानी हर क्षेत्र से जुड़े लोग सड़कों पर उतर पड़े थे. मगर ये सभी अपनेअपने क्षेत्र के प्रोफैशनल व नौकरीपेशा हैं, इसलिए ऐसे आंदोलन की स्थिरता को ले कर सवाल उठने स्वाभाविक हैं क्योंकि सभी को अपना काम भी करना है.

आप सिर्फ बंगाल ही नहीं पूरे विश्व में देख लीजिए कि सिविल सोसायटी मूवमैंट का हश्र क्या हुआ. टर्की में क्या हुआ? यहां तक कि ब्लैक जैसे मुद्दे पर अमेरिका में सिविल सोसायटी मूवमैंट का क्या हुआ. इजिप्ट में क्या हुआ? लोग अपने प्रोफैशन को छोड़ कर लंबे समय तक सिविल सोसायटी मूवमैंट को जिंदा नहीं रख पाते. हर सिविल सोसायटी मूवमैंट की स्थिरता के लिए परोक्ष या अपरोक्ष रूप से राजनीतिक यूनिट का जुड़ाव आवश्यक है.

पश्चिम बंगाल में चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने 5 वर्ष के दौरान बंगाल में जो काम किए उन से बंगाल को क्या नुकसान हुआ?

आज की तारीख में आकलन करें तो सारा नुकसान भाजपा से जुड़े लोगों का ही हुआ. आम इंसान का नुकसान नहीं हुआ. हां, इस राजनीतिक हिंसा में कुछ बेगुनाह लोगों की जानें गईं. इस के लिए सभी दोषी हैं. भाजपा ने सोचा था कि गलत बातें कर के, कुछ जुमलेबाजी कर के लोगों को खरीद कर या कुछ बेच कर बंगाल को जीत लेंगे, जोकि नहीं हो पाया.

बंगाल का अपना सांस्कृतिक इतिहास है. बंगाल सदियों से अपने अंदाज में बढ़ता रहा है. आप अचानक आ कर उस की अवहेलना नहीं कर सकते. भाजपा के नेताओं ने जो बातें कहीं, उन से लोगों को एहसास हुआ कि ये लोग हमारी भाषा में बात नहीं करते हैं. ये अपनी मिट्टी के लोग नहीं है. यह बात हर इंसान के दिमाग में मजबूती के साथ पैदा हुई.

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बंगाल में कम्यूनिस्ट पार्टी ने 30 सालों तक शासन किया. कम्यूनिस्ट पार्टी सिविल सोसायटी मूवमैंट को भी प्रश्रय दे रही थी. रंगमंच व इप्टा जैसी कई संस्थाओं को प्रश्रय दे रही थी, तो फिर उस का पतन क्यों हो गया?

मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि पश्चिम बंगाल की कम्यूनिस्ट पार्टी और केरला की कम्यूनिस्ट पार्टी में बहुत बड़ा अंतर है. केरला में कम्यूनिस्ट पार्टी शासन में आतीजाती रहती है. मगर पश्चिम बंगाल में ऐसा नहीं था. पश्चिम बंगाल में कम्यूनिस्ट पार्टी 34 वर्ष लगातार शासन में रही. कम्यूनिस्ट पार्टी का आधार एक विचारधारा है.

उस की विचारधारा का अपना एक इतिहास है. मगर अगर आप एक सोच प्रक्रिया में ही फंस कर रह जाएंगे, तो विकास नहीं होगा. आप आज किसी भी कम्यूनिस्ट नेता से बात कीजिए, तो वह वही बात करेगा, जो बातें लोग 25 वर्ष पहले किया करते थे. उन की बातों में समसामयिकता का कोई संबंध नजर नहीं आता तो वे समसामयिक लोगों के साथ कैसे जुड़ेंगे? उन्हें यही नहीं पता कि आज का इंसान क्या सोचता है? उन्हें समसामयिक आंदोलन की भी समझ नहीं है.

आज का इंसान किस तरह से सोचता है आज की तारीख में समाज का चलन क्या है? वे अपनी पुरानी ‘आईडियोलौजी’ में ही जकड़े हुए हैं.

‘सिविल सोसायटी मूवमैंट’ से जुड़े होने के चलते रंगकर्मी या फिल्मकार होने पर किस तरह का असर पड़ता है?

जहां तक फर्क या असर का सवाल है, तो पता नहीं. मगर मैं सामाजिक मुद्दों पर बात करने के लिए सदैव तैयार रहता हूं. परिणामवय हमेशा हम पर एक तलवार लटकती रहती है. चुनाव के समय हम कुछ कलाकारों ने एक म्यूजिक वीडियो बनाया था. इस पर एक राजनीतिक दल ने हमें ‘दोगले लोग’ की संज्ञा दी. तो इस तरह के कमैंट आहत करते हैं. अच्छा हुआ कि वह पार्टी सत्ता में नहीं आई अन्यथा हम सभी को ढूढ़-ढूढ़ कर प्रताडि़त करना शुरू करती. मैं कभी डरा नहीं. यदि मैं ने कुछ कहा है, तो उस के परिणाम भुगतने  के लिए हमेशा तैयार रहता हूं.

किसी भी विषय पर फिल्म बनाने का निर्णय आप किस तरह से लेते हैं? आप के अंदर की कोई आवाज होती

है या किसी सामाजिक, राजनीतिक बात को कहने के मकसद से फिल्म बनाते हैं?

मैं हमेशा अपने मन की आवाज सुन कर ही फिल्म बनाने का निर्णय लेता हूं. मैं किसी भी फिल्म को बनाने का निर्णय इस आधार पर कभी नहीं लेता कि यह सोसियो पौलीटिकली महत्त्वपूर्ण है. इस तरह विषय चुनने पर फिल्म की लंबी जिंदगी नहीं होती. समसामयिक विषय से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह होती है कि एक फिल्मकार के तौर पर हम उस में जान किस तरह से डालते हैं.

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सादगी से Vikrant Massey का दिल जीत चुकीं हैं वाइफ Sheetal Thakur, देखें फोटोज

अपनी एक्टिंग से टीवी से लेकर बौलीवुड की दुनिया में नाम कमाने वाले एक्टर विक्रांत मैसी (Vikrant Massey) ने बीते दिनों अपनी गर्लफ्रेंड और एक्ट्रेस शीतल ठाकुर (Sheetal Thakur) से शादी कर ली. वहीं अचानक शादी से फैंस को चौंका दिया. हालांकि एक्ट्रेस शीतल के बारे में जानने के लिए बेताब हैं. इसीलिए आज हम आपको एक्टर विक्रांत मैसी की वाइफ शीतल ठाकुर (Sheetal Thakur Fashion) के बारे में बताएंगे, जिनका इंडियन लुक फैंस का दिल जीत रहा है.

शादी का लुक था खास

 

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18 फरवरी को शीतल ठाकुर ने अपने होमटाउन हिमाचल प्रदेश में विक्रांत मैसी से शादी की. इस दौरान उन्होंने रेड कलर का हैवी लहंगा कैरी किया. वहीं इस लुक के साथ उन्होंने ट्रैडिशनल ज्वैलरी यानी नथ और हार कैरी किया था, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

हल्दी की रस्म में था कुछ ऐसा लुक

 

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हाल ही में मैसी कपल ने अपनी हल्दी की फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह हल्दी लगाने से पहले साथ में फोटोज क्लिक करवाते नजर आ रहे हैं. हल्दी लुक के लिए शीतल सिंपल पीले रंग के सूट में नजर आईं. वहीं इस लुक के साथ एक्ट्रेस ने फूल की ज्वैलरी कैरी की.

 

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मेहंदी में दिखीं खूबसूरत

 

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इसके अलावा मेहंदी सेरेमनी के लिए लहंगा कैरी करने की बजाय एक्ट्रेस ने सिंपल रेड कलर का सूट का चुनाव किया. इस लुक में वह बेहद सिंपल लग रही थीं, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं.

 

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सूट की शौकीन हैं शीतल

 

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2019 में विक्रांत मैसी से सगाई करने वाली शीतल ठाकुर इंडियन लुक की काफी शौकीन हैं, जिसका अंदाजा उनके इंस्टाग्राम अकाउंट को देखकर लगाया जा सकता है. एक से बढ़कर एक सूट और साड़ी में शीतल बेहद खूबसूरत लगती हैं. वहीं शीतल की सादगी को फैंस काफी पसंद कर रहे हैं.

 

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