प्यार को लेकर क्या कहती है एक्ट्रेस निकिता रावल, पढ़ें इंटरव्यू

मुंबई की डॉक्टर के परिवार में जन्मी निकिता रावल को हमेशा से अभिनय का शौक था, लेकिन पहले उन्होंने कथक डांस सीखा और इंडिया को इंटरनेशनल स्तर पर प्रस्तुत कर अवार्ड जीते. उन्होंने पूरे विश्व में बहुत सारे परफोर्मेंस किये है. कुल मिलकर 478शोज निकिता ने किये है.उन्हें इंडिया की डांस इंडस्ट्री में शकीरा के नाम से जाना जाता है.साल 2007 की फिल्म ‘मिस्टर हॉट मिस्टर कूल’ और 2009 की फिल्म ‘द हीरो-अभिमन्यु’ में निकिता ने  काम किया है, इसके बाद उन्होंने अरशद वारसी की फिल्म ‘रोटी कपड़ा और रोमांस’ में भी अभिनय की है. उन्हें हमेशा लीक से हटकर फिल्म करना पसंद है और मदर अर्थ को बचाने के लिए कुछ प्रभावशाली काम करना चाहती है. एक वेब सीरीज की शूटिंग के बाद उन्होंने गृहशोभा के लिए खास बातें की, आइये जाने निकिता की कुछ बातें,

सवाल – कोविड के बाद आपका कैरियर कैसा चल रहा है?

जवाब – कोविड के बाद मैं आफताब शिवदासानी के साथ एक वेब सीरीज ‘मास्टर पीस’ की शूटिंग कर रही हूं, जो पूरा होने वाला है. इससे पहले मैंने फिल्म ‘रोटी कपडा और रोमांस’ फिल्म अरशद वारसी और चंकी पांडे के साथ पूरा किया है. उसमें मेरी भूमिका कॉमिक है और दोनों अभिनेताओं की मैं एकलौती पसंद हूं. ये एक रोमांटिक कॉमेडी है.

सवाल –अभिनय में आने की प्रेरणा आपको कैसे मिली?

जवाब – मेरा परिवार फ़िल्मी माहौल से जुड़ा है. अभिनेता मुकेश रावल मेरे चाचा है. कई सारे परिवार के सदस्य इस क्षेत्र में है. इस तरह अभिनय मेरे ब्लड में है. बचपन से एक्टिंग की प्रेरणा रही, क्योकि कई सारे लोगों ने मुझे प्रेरित किया है. सबको देखते हुए ही मैं बड़ी हुई हूं और मुझे एक्ट्रेस ही बनना था, ये मैने शुरू से सोच रखा था,

सवाल – क्या परिवार के सदस्य इंडस्ट्री में होने की वजह से आपको काम मिलने में आसानी हुई ?

जवाब – ऐसा कुछ नहीं था, मैंने कभी उनका परिचय नहीं दिया, क्योंकि अंजान रहने पर फायदा अधिक होता है और मैं अपनी बलबूते पर कुछ करना चाहती थी. कठिनाई अधिक नहीं आई, क्योंकि फिल्म ‘गरम मसाला’ में अक्षय कुमार फिर अनिल कुमार के साथ मैंने अभिनय किया. इसके अलावा साउथ में बहुत सारा काम किया है,इसलिए इंडस्ट्री में आने के लिए अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा.

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सवाल –  टीन एज में आपके शौक क्या थे?

जवाब – टिन एज में मेरा शौक मध्रुरी दीक्षित और श्रीदेवी के डांस को देखना था . मेरे सारी चीजे एक तरफ और डांस एक तरफ हो जाता था, जिससे मुझे पढाई में मन नहीं लगता था. मैं डांस पर बहुत अधिक फोकस्ड थी और बचपन से ही मुझे एक अच्छी परफ़ॉर्मर बनने की इच्छा था. इस लगन ने मुझे कथक डांस में कई जगह विदेश में परफॉर्म करने का मौका दिया और बहुत सारे अवार्ड्स मिले.

सवाल –  आप प्रोड्यूसर कैसे बनी?

जवाब – पहले मैंने छोटे- छोटे वीडियोज बनाये, अब मैं वेब सीरीज की ओर बढ़ रही हूं, इसके अलावा मैं बड़ी कमर्शियल फिल्म बनाने की कोशिश भी कर रही हूं. मुझे रॉ स्टोरी और रॉ एक्टर्स बहुत पसंद है. वैसी ही फिल्मे बनाने की इच्छा है और मैं वैसी फिल्मे बना भी रही हूं.

सवाल –  आप एक डांसर, एक्ट्रेस और प्रोड्यूसर है, इन तीनो में किसे करने में अधिक मेहनत महसूस करती है?

जवाब – मेहनत तीनों में है, लेकिन एक ऐक्ट्रेस बने रहने के लिए अपनी स्टाइल, फिगर, ब्यूटी आदि पर अधिक ध्यान देना पड़ता है, डांस में घंटों की रिहर्सल, रिदम को पकड़ना, परफोर्मेंस के तरीकों को समझना होता है, लेकिन अगर आप के पास पैसे है, तो आप आसानी से प्रोड्यूसर बन सकते है, क्योंकि इसमें सही स्क्रिप्ट होने पर फिल्म या वेब सीरीज चल जाती है. मैं दिल से एक डांसर ही हूं, इसलिए मैं अभी भी डांस प्रैक्टिस करती हूं और किसी भी इवेंट पर बुलाये जाने पर परफॉर्म भी करती हूं.

सवाल –  परिवार का सहयोग कितना रहा?

जवाब – परिवार ने हमेशा मुझे सहयोग दिया है, मेरे आज तक यहाँ पहुँचने में उनका सहयोग सबसे अधिक है. हर कदम पर उन्होंने साथ दिया है, मुझे जो भी बनना है, उसमेंउन्होंने खुले दिल से सहयोग किया है. मेरा परिवार डॉक्टर की बैकग्राउंड से हूं,लेकिन मेरे पेरेंट्स ने मुझमे डांस की रूचि को देखा, उन्हें समझ में आया कि मेरा टेस्ट थोडा आर्टिस्टिक है. मैं खून, काटपीट इस चीजो को देख नहीं सकती, जो मुझे डॉक्टर की प्रोफेशन में देखना पड़ेगा.

सवाल –  किस शो ने आपकी जिंदगी बदली?

जवाब – मैंने कथक की एक शो कनाडा में किया था, बहुत सारे देशों से लोग परफॉर्म करने आये थे, लेकिन मेरी परफोर्मेंस ख़त्म होने पर मैने भारत के झंडे को ओढ़कर स्टेज से स्टेडियम चली गयी, सभी ने इसकी तारीफ की और वह क्लिप बहुत वाइरल हुई थी, जिससे लोग मुझे पहचानने लगे थे.

सवाल – कोई ड्रीम है ?

जवाब – देश को रिप्रेजेंट करना, एक अच्छी मूवी करना और एक्टिंग करना सब हो चुका है. बायोग्राफी में मैं झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका करना चाहती हूं.

सवाल – आपके हिसाब से पहले और आज के प्यार में अंतर क्या है?

जवाब – मुझे आज का प्यार बड़ा टेक्निकल लगता है. शार्ट टाइम प्यार और इमोशन भी दिखता है. वीडियो कालिंग या व्हाट्स एप परसभी बात करते हुए दिखते है. फिर अचानक सुनने में आता है कि ब्रेक अप हो गया. ये उनके लिए कहना बहुत आसान लगता है, जो रियल प्यार को नहीं दर्शाती.

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सवाल – कभी तनाव होने पर उससे कैसे निकल पाती है?

जवाब – मैं अपने परिवार के साथ समय बिताती हूं. इसके अलावा मैं परिवार को कही घूमने या डिनर पर ले जाती हूं, इससे तनाव चला जाता है.

सवाल – आपको कोई सुपर पॉवर मिलने पर क्या बदलना चाहती है?

जवाब – सुपर पॉवर मिलने पर मैं मदर अर्थ को उन लोगों से बचाना चाहती हूं, जो इसका  सत्यानाश कर रहे है. लॉक डाउन होने पर गाड़ियाँ नहीं चलती थी, लोग बाहर प्लास्टिक नहीं फेंकते थे, चारों तरफ चिड़ियों की चहचाहट सुनाई पड़ती थी, अभी काम तो चल रहा है, पर कोई वातावरण पर ध्यान नहीं देता. हालांकि इस पेंडेमिक में लोगों के काम छूट गए है, पर मौसम की बदलाव से मुझे ख़ुशी मिली. सभी ने इसको नुकसान पहुँचाया है. इसलिए सुपर पॉवर से मैं इस पूरे मदर अर्थ को बचाना चाहती हूं,

सवाल –  आप कितनी फूडी और फैशनेबल है?

जवाब – मैं बहुत फूडी हूं, हर तरीके की डिश मुझे पसंद है. दाल बाटी और चूरमा बहुत पसंद है.फैशनेबल भी हूं, अच्छी तरह से बन ठनकर रहना मुझे पसंद है.

सवाल –  आपके सपनो का राजकुमार कैसा हो?

जवाब – मेरे सपनों का राजकुमार अच्छी समझ के साथ, अपना कुछ काम करता हो, आत्मनिर्भर हो और महिलाओं का सम्मान करता हो.

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आदित्य के लिए आर्यन से शादी करेगी Imlie, सामने आया New Promo

सीरियल इमली (Imlie) में मालिनी (Mayuri Deshmukh) का सच आदित्य और उसके परिवार के सामने आ गया है. वहीं आर्यन (Fehmaan Khan) को इमली (Sumbul Tauqeer Khan) से प्यार का एहसास हो गया है. इसी के चलते अपकमिंग एपिसोड (Imlie Upcoming Episode) में आर्यन, इमली से शादी करने वाला है. आइए आपको दिखाते हैं शो के नए प्रोमो की झलक(Imlie New Promo)…

शो के नए प्रोमों में दिखी शादी की झलक

 

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दरअसल, शो के मेकर्स ने नया प्रोमो रिलीज कर दिया है, जिसमें इमली दुल्हन बने नजर आ रही है और कहती दिख रही है कि यह शादी नहीं समझौता है. वहीं आदित्य उसे आर्यन से शादी करने के लिए कहता नजर आ रहा हैं. हालांकि आर्यन बेहद खुश नजर आ रहा है.

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आदित्य बुलाता है पुलिस

 

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अब तक आपने देखा कि सच जानने के बाद आदित्य, मालिनी को घर से बाहर निकाल देता है. वहीं सत्यकाम से माफी मांगते हुए कहता है कि अगर उसने इमली पर भरोसा किया होता तो वह आज उसके साथ होती. वहीं आदित्य, अनु को पुलिस से गिरफ्तार करवा देता है. हालांकि मालिनी उससे अपनी मां को छोड़ने की गुहार लगाती है. लेकिन आदित्य नहीं मानता. वहीं अनु त्रिपाठी परिवार से बदला लेने की बात कहती है.

 

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आर्यन से नौकरी मांगेगा आदित्य

अपकमिंग एफिसोड में आप देखेंगे कि आदित्य, इमली को मनाने का फैसला करेगा और आर्यन से नौकरी मांगने के लिए जाएगा. जहां आर्यन उसे रखने के लिए तैयार हो जाएगा. वहीं आर्यन, इमली को धमकी देगा कि अगर वह आदित्य को बचाना चाहती है तो उसे उससे शादी करनी पड़ेगी. हालांकि इमली कहकी है कि यह शादी और शादी का प्रमाणपत्र दोनों फर्जी होंगे. लेकिन आदित्य,इमली को पूरे रस्मों रिवाज से आर्यन से शादी करने के लिए कहेगा.

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शेरनी बनकर वनराज पर भड़केगी अनु, बनेगी अनुज की Anupama

सीरियल अनुपमा (Anupamaa) की कहानी इन दिनों दिलचस्प होती जा रही है. जहां वनराज, मालविका को भड़काने में लगा हुआ है तो वहीं अनुज और अनुपमा के बीच प्यार बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते अनुपमा शादी के बारे में सोचने के लिए भी तैयार हो गई है. इसी बीच अनुपमा का शेरनी रुप वनराज के सामने आने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

बापूजी को शादी के बारे में बताएगी अनुपमा

 

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अब तकआपने देखा कि अनुपमा के जन्मदिन के लिए समर और बापूजी पार्टी की तैयारी करते नजर आते हैं. वहीं अनुपमा, अनुज से शादी करने के डर को बापूजी के साथ शेयर करती है. हालांकि बापूजी, अनुपमा को वनराज और अनुज में फर्क होने की बात कहेंगे. दूसरी तरफ वनराज, अनुज के खिलाफ चाल चलता नजर आएगा.

 

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वनराज चलेगा नई चाल

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज अखबारों में कपाड़िया अंपायर से अनुज को निकालने की खबर छपवा देगा, जिसे देखकर अनुज को झटका लगेगा. हालांकि अनुपमा, अनुज को समझाएगी कि यह वनराज की एक नई चाल है, जिसमें मालविका का कोई हाथ नही होगा. दूसरी तरफ, मालविका को भड़काते हुए वनराज कहेगा कि यह सब अनुज ने किया है.

वनराज को सुनाएगी खरी खोटी

इसके अलावा आप देखेंगे कि वनराज की नई चाल पर अनुपमा गुस्से में औफिस जाएगी. जहां पर मालविका भी मौजूद होगी. वहीं  वनराज की घटिया हरकत के लिए वनराज को खरी खोटी सुनाते हुए कहेगी वनराज को उसके नाम से पुकारेगी, जिसे सुनकर वनराज हैरान हो जाएगा और गार्ड्स से धक्के मारकर अनुपमा को औफिस से निकालने के लिए कहेगा. लेकिन अनुपमा शेरनी की तरह वनराज से कहेगी कि इतना किसी में दम नहीं है कि अनुज की अनुपमा को हाथ भी लगा सके. अनुपमा का ये रुप देखकर वनराज जहां गुस्से में नजर आएगा तो वहीं मालविका हैरान होगी.

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जब कोरोना ने छीन लिया पति

लेखक व लेखिका -शैलेंद्र सिंह, भारत भूषण श्रीवास्तव, सोमा घोष, नसीम अंसारी कोचर, पारुल भटनागर 

कोरोना महामारी की पहली लहर इतनी भयावह नहीं थी, मगर दूसरी लहर ने देशभर में लाखों परिवारों को पूरी तरह उजाड़ दिया. कई परिवार ऐसे हैं, जहां जवान औरतों ने अपने पति खो दिए हैं. कई महिलाएं 30-40 साल की उम्र की हैं, जिन के छोटे छोटे मासूम बच्चे हैं. कई ऐसी हैं जो आर्थिक रूप से पूरी तरह पति पर निर्भर थीं.

पति की मौत के बाद उन के सामने अपने बच्चों के लालनपालन की समस्या खड़ी हो गई है. आर्थिक जरूरतें और अनिश्चित भविष्य उन्हें डरा रहा है. बच्चों के कारण दूसरी शादी का फैसला भी आसान नहीं है.

गृहशोभा के रिपोर्टर्स की टीम ने ऐसी अनेक महिलाओं के दुखों और परेशानियों को जानने की कोशिश की:

पति के नाम को जिंदा रखना चाहती हैं ऐश्वर्या लखीमपुर खीरी जिले के गोला की रहने वाली ऐश्वर्या पांडेय की शादी 2009 में हुई थी. उन के पति पीयूष बैंक में कार्यरत थे. ऐश्वर्या एमबीए के बाद जौब करने लगी थी, मगर शादी के बाद ससुराल की जिम्मेदारियों और बेटे पार्थ के जन्म के कारण जौब छोड़नी पड़ी.

ऐश्वर्या और पीयूष बेटे पार्थ के भविष्य को ले कर सुनहरे सपने देख रहे थे. मगर काल के क्रूर चक्र को कुछ और ही मंजूर था.

11 मई, 2021 को पीयूष कोरोना की चपेट में आ गए. बैंक स्टाफ और अस्पताल के लोगों ने ऐश्वर्या का साथ दिया. अस्पताल में पीयूष का औक्सीजन लैवल घटने पर उन्हें आईसीयू में शिफ्ट किया गया. 8 जून को उन्हें जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया.

मगर उन का कोविड टैस्ट लगातार पौजिटिव ही आ रहा था. 9 जून को उन का पल्स रेट फिर बिगड़ने लगा तो उन्हें फिर से आईसीयू में ले जाया गया, मगर 10 जून की सुबह ऐश्वर्या के जीवन में अंधेरा बन कर आई यानी पीयूष इस दुनिया से हमेशा के लिए दूर चले गए. ऐश्वर्या डिप्रैशन में चली गई.

ऐश्वर्या कहती है, ‘‘मेरे लिए सब से अधिक महत्त्वपूर्ण बेटे को संभालना था. मैं ने यह सोच कर हिम्मत बांधी कि अगर मुझे कुछ हो गया होता तो पीयूष कैसे बेटे को संभाल रहे होते? इस सोच ने मुझे हिम्मत दी. बेटे को ले कर मैं लखनऊ लौटी. उस का स्कूल में एडमिशन कराया. घर वालों ने सहयोग किया. अभी भी मैं पूरी तरह से उस दुख से उबर नहीं पाई हूं.

पहले घर किराए का था अब जिंदगी

दिल्ली में रहने वाली कंचन माथुर अपने पति शिशिर माथुर के साथ बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंच चुकी थीं. उम्र के 55 साल पूरे हो गए थे. पति भी 58 के थे. 2 बेटियां थीं, जिन की शादियां हो चुकी थीं. घर में अब ये 2 ही बचे थे. शुरू से ही कंचन और उन के पति शिशिर किराए के मकान में रहे. अपना घर नहीं खरीदा. वजह थी 2 बेटियां. शिशिर सोचते थे कि बेटियां शादी कर के अपनेअपने घर चली जाएंगी तो अपना घर ले कर क्या करना.

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कोरोना की दूसरी लहर ने शिशिर को जकड़ लिया. 2 हफ्ते होम क्वारंटाइन रहे. बड़ी बेटी, जो दिल्ली में ही ब्याही थी, उस ने देखभाल के लिए अपने बड़े लड़के को भेज दिया. मगर शिशिर का बुखार नहीं उतर रहा था. उन्हें डायबिटीज भी थी. एक शाम जब शिशिर का औक्सीजन लैवल 86 हो गया तो बेटीदामाद घबरा कर औक्सीजन सिलैंडर लेने के लिए गए, मगर कहीं नहीं मिला और न ही किसी अस्पताल में बैड खाली मिला.

दूसरे दिन नोएडा के एक अस्पताल में जगह मिली. मगर 4 दिन के इलाज के बाद ही शिशिर चल बसे. उन के दोनों फेफड़े संक्रमण के कारण नष्ट हो चुके थे. अस्पताल से ही उन का शव अस्पताल के कर्मचारियों के द्वारा श्मशान ले जाया गया और उन्होंने ही उन का क्रियाकर्म किया. घर के किसी सदस्य ने अंतिम समय में उन्हें नहीं देखा.

गहरा धक्का

इस बात का सब से ज्यादा धक्का उन की पत्नी कंचन को लगा है. पति के अचानक चले जाने से वे बिलकुल बेसहारा हो गई हैं. बड़ी बेटी किसी तरह अपने ससुराल वालों को राजी कर के उन्हें अपने साथ ले तो गई है, मगर अजनबी लोगों के बीच कंचन की वैसी देखभाल नहीं हो पा रही है जैसी उन के पति के रहते अपने घर में होती थी.

उन के दामाद ने उन का किराए का घर खाली कर दिया है. सारा सामान बेच दिया. बैंक में जो पैसा था वह अपने अकाउंट में ट्रांसफर करवा लिया.

घर का सामान बिकते देख कंचन के दिल पर जो गुजरी उस दर्द को कोई और नहीं समझ सकता है. पति की जोड़ी गई 1-1 चीज उन की आंखों के सामने कबाड़ में बेच दी गई. पहले घर किराए का था, मगर घर में रहने वाला अपना था, पर अब उन की पूरी जिंदगी किराए की हो गई है.

फिट इंसान के साथ ऐसा होगा सोचा न था

37 वर्षीय रेशमा राजेश पाटिल और उन के 12 वर्षीय बेटे रितेश राजेश पाटिल की जिंदगी कोरोना ने वीरान कर दी. कोविड की दूसरी लहर में मां ने अपना पति और बेटे ने अपने पिता को खो दिया है.

मुंबई के नजदीक अलीबाग के रहने वाले 42 वर्षीय तंदुरुस्त राजेश पाटिल सरकारी दफ्तर में काम करते थे. कोरोना की दूसरी लहर ने राजेश के बुजुर्ग पिता को कोरोना हो गया. राजेश पिता को रोजाना खाना पहुंचाने अस्पताल जाने लगा. एक दिन उसे भी बुखार हो गया. टैस्ट करवाने पर वह भी कोरोना पौजिटिव पाया गया. राजेश तुरंत होम क्वारंटाइन में चला गया. उस की पत्नी रेशमा ने अपने बेटे को मामा के पास मायके भेज दिया.

रेशमा अपने आंसू पोछती हुई कहती हैं, ‘‘होम क्वारंटाइन में राजेश डाक्टर से पूछ कर दवा ले रहे थे. लेकिन एक दिन उन्हें सांस लेने में ज्यादा दिक्कत होने लगी तो मैं तुरंत उन्हें सिविल अस्पताल ले गई. डाक्टर ने जांच की और बताया कि उन का औक्सीजन लैवल 97 है, इसलिए उन्हें यहां भरती नहीं कर सकते. तब मैं उन्हें प्राइवेट अस्पताल में ले गई. वहां जांच करने पर पता चला कि उन्हें निमोनिया हो गया है. डाक्टर ने एक इंजैक्शन शुरू करने की बात कही, जो 40 हजार रुपए का था. मैं ने पैसा अरेंज किया और इंजैक्शन ला कर दिए. मगर इंजैक्शन का उन पर कोई असर नहीं हुआ और 20 दिन अस्पताल में रहने के बाद उन का देहांत हो गया.

‘‘अभी रेशमा किराए के मकान में रहती हैं. उन्हें पति की पैंशन नहीं मिल सकती है क्योंकि उन्होंने 2009 में सरकारी नौकरी जौइन की थी. कुछ पैसे उन्हें राज्य सरकार और संस्था की तरफ से जरूर मिले हैं. बाल संगोपन संस्था के अंतर्गत उन्हें राज्य सरकार की तरफ से 50 हजार रुपए की रकम फौर्म भरने के 4 दिन बाद मिल गई. इस के अलावा बाल संगोपन संस्था के द्वारा बेटे की पढ़ाई के लिए प्रति माह 11 सौ रुपए और मुफ्त में थोड़ा राशन मिल जाता है, जिस से गुजारा हो रहा है. लेकिन आगे उन्हें खुद अपने पैरों पर खड़ा होना होगा.’’

रेशमा कहती हैं, ‘‘मैं ने पति के औफिस में नौकरी के लिए अर्जी दी है, लेकिन मेरे लायक कोई पद खाली होने पर ही मुझे नौकरी मिलेगी. गांव में पढ़ाई अच्छी न होने की वजह से मुझे बेटे की शिक्षा के लिए अलीबाग में ही रहना है. मेरे ससुराल में मेरे सासससुर भी हैं.’’

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जैसे जिंदगी से रोशनी चली गई

भोपाल के गांधी मैडिकल कालेज में टैक्नीशियन पद पर कार्यरत रवींद्र श्रीवास्तव की पत्नी रश्मि शहर के सरकारी स्कूल बाल विद्या मंदिर में प्राध्यापिका थीं. 18 साल पहले दोनों

की शादी हुई थी. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि गत 9 मई को कोरोना रश्मि को अपने साथ ले गया.

‘‘मुझे अभी तक यकीन नहीं होता कि रश्मि अब नहीं रही,’’ रवींद्र कहते हैं, ‘‘औफिस से घर लौटता हूं तो लगता है वह मेरा चाय पर इंतजार कर रही है. सच को स्वीकारने की बहुत कोशिश करता हूं, लेकिन उस की याद किसी न किसी बहाने आ ही जाती है.

रश्मि के जाने के बाद रवींद्र का सूनापन अब शायद ही कभी भर पाए. 17 साल का बेटा ऋषि भी अकसर उदास रहता है. रवींद्र पूरी तरह टूट गए हैं, मगर बेटे के लिए जैसेतैसे खुद को संभाले हुए हैं.

परिवार के लिए कमाना है

‘‘27 अप्रैल, 2021 को मेरे पति विकास ने कोविड की दूसरी लहर में अपनी जान गवां दी. मैं और मेरे दोनों बच्चे इस दुनिया में अकेले रह गए…’’ कहती हुई 40 वर्षीय नयना विकास की आवाज भारी हो गई.

नैना के पति विकास छत्तीसगढ़ के जिले के रायगढ़ के अंतर्गत सासवाने गांव में नयना और 2 बच्चों के साथ रहते थे. उन का बिल्डिंग मैटीरियल सप्लाई करने का व्यवसाय था, जिसे अब नयना संभाल रही हैं. मददगार प्रवृत्ति के विकास कोविड-19 के दूसरी लहर के दौरान लोगों की मदद कर रहे थे. उन्हें कुछ हो जाएगा, इस बारे में उन्होंने सोचा नहीं था.

नयना कहती हैं, ‘‘एक दिन उन्हें बुखार आया पर उन्होंने बताया नहीं. बुखार के साथ ही काम करते रहे. वे 100 से 150 लोगों को खाना खिलाते थे, जिसे मैं खुद बनाती थी. जो भी पैसा उन्हें अपने व्यवसाय से मिलता था, उन्हें जरूरतमंदों के लिए खर्च कर देते थे. 14 अप्रैल से उन्हें बुखार था. 19 अप्रैल को राशन बांटने के उद्देश्य से उन्होंने गांव के सरपंच के साथ मीटिंग रखी थी. मीटिंग खत्म होते ही वे घर आ गए. बुखार तेज था. मैं उन्हें सिविल अस्पताल ले गई, जहां टैस्ट करवाने पर रिपोर्ट पौजिटिव आई. मगर वहां अस्पताल में कोई बैड नहीं मिला. फिर मैं ने उन्हें प्राइवेट अस्पताल में ले गई जहां उन की मौत हो गई.

नयना के 2 बच्चे हैं. बेटी 8वीं कक्षा में और बेटा 5वीं कक्षा में पढ़ रहा है. दुख से उबरने के बाद नयना ने पति का व्यवसाय संभाल लिया है. काम में थोड़ी मुश्किलें भी हैं क्योंकि वे पहले इस काम से जुड़ी नहीं थीं. पति का बैंक खाता बिलकुल खाली है और किसी प्रकार का हैल्थ इंश्योरैंस भी नहीं है. नयना पर काफी कर्ज हो गया है.

पति की मृत्यु के बाद बाल संगोपन संस्था की तरफ से नयना को 50 हजार रुपए तथा राज्य सरकार की तरफ से बच्चों को पढ़ाई का खर्च मिल रहा है. लेकिन आगे नयना को ही परिवार की गाड़ी खींचनी है बिलकुल अकेले.

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बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं आने दूंगी -विना दुब

कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में कुहराम मचा रखा है. लाखों परिवारों ने इस में अपने लोगों को खो दिया है. किसी ने बेटा, किसी ने पति, किसी ने पिता तो किसी ने पत्नी, बहन, बेटी या मां को खो दिया है. कुछ बच्चे तो ऐसे हैं जिन्होंने इस महामारी में अपने मातापिता दोनों को ही खो दिया है.

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की विना दुबे ने कोरोना की दूसरी लहर में अपने पति को खो दिया. उन के दर्द को शब्दों में बयां करना मुश्किल है, लेकिन विना ने हिम्मत नहीं हारी. दर्द से उबर कर जीवन को फिर वापस पटरी पर ले आई हैं और बच्चों का पालनपोषण कर रही हैं.

विना नहीं चाहतीं कि उन के बच्चों को कोई कमी हो या उन की पढ़ाई और कैरियर में किसी प्रकार की रुकावट पैदा हो. विना ने गृहशोभा से अपनी आपबीती साझ की:

जब आप को पता चला कि कोरोना से आप के पति की मृत्यु हो गई है तो उस समय आप को क्या लग रहा था?

मेरे पति अखिल कुमार दुबे मेरे लिए मेरे आदर्श, मेरे मार्गदर्शक, मेरे सबकुछ थे. लेकिन जब मुझे पता चला कि 6 दिन हौस्पिटल में इलाज करवाने के बाद भी वे नहीं रहे, तो मुझे एक पल को तो विश्वास ही नहीं हुआ कि वे हमें छोड़ कर चले गए हैं. लेकिन हकीकत यही थी कि वे अब नहीं रहे. मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि आगे अब जिंदगी कैसे गुजारूंगी, क्या करूंगी, बच्चों का, खुद का जीवनयापन कैसे करूंगी? मेरे कदमों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई हो. कुछ समझ में नहीं आ रहा था. सामने ढेरों परेशानियां थीं. लेकिन बच्चों की खातिर मैं ने पति के जाने के दुख को अपने अंदर छिपा कर उन के लिए आगे बढ़ने का निर्णय लिया.

किस तरह का संघर्ष करना पड़ा?

एक तो पति के जाने का गम और दूसरा आर्थिक तंगी. उस समय खुद को कैसे स्ट्रौंग बनाऊं, यही मेरे लिए सब से बड़ा संघर्ष था. 2 बच्चों की परवरिश, ऐजुकेशन की जिम्मेदारी अकेले मेरे कंधों पर आ गई है. भले ही मैं पहले से वर्किंग हूं, लेकिन बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए सिंगल हैंड से काम नहीं चलता बल्कि मातापिता दोनों का कमाना बहुत जरूरी है. मगर मैं अकेली रह गई हूं. ऐसे में मैं इस संघर्ष के सामने हिम्मत तो नहीं हारूंगी क्योंकि मेरे बच्चों के भविष्य का सवाल जो है.

आप कैसे अपने परिवार का जीवनयापन कर रही हैं?

मैं बीए पास वर्किंग वूमन हूं. मुझे अपने बच्चों की हर जरूरत को पूरा करना है, इसलिए कोई भी काम करना पड़े, मैं पीछे नहीं हटूंगी. जौब के कारण बच्चे उपेक्षित न हों, इस बात का भी मैं पूरा ध्यान रखती हूं. उन के साथ वक्त गुजारती हूं, उन की प्रोब्लम सुनती हूं, पढ़ाई में उन्हें पूरा सहयोग देती हूं क्योंकि अब मैं ही उन की मां और पिता दोनों हूं.

पति के न रहने पर समाज व रिश्तेदारों का क्या योगदान रहा?

समाज का तो कुछ नहीं कह सकती क्योंकि वो दौर ही ऐसा था जब सभी एकदूसरे से दूरी बनाए हुए थे. सब अपनों को बचाने के लिए, अपनेअपने बारे में सोच रहे थे. लेकिन ऐसे वक्त में मेरे जेठ अमित दुबे और जेठानी रीना दुबे ने तनमनधन हर तरह से सहयोग दिया. समाजसेविका नीतूजी की मैं दिल से आभारी हूं. उन्होंने जो बन पड़ा वह हमारे लिए किया. मेरे भाई मेरी हिम्मत बन कर खड़े हुए हैं, जिस के कारण मुझे आगे बढ़ने का हौसला मिला है.

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हादसे के बाद जीवन के लिए सीख?

मैं सभी से यही कहना चाहूंगी कि जीवन में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता. कब हंसतीखेलती जिंदगी में सन्नाटा छा जाए, किसी को नहीं मालूम. इसलिए परिवार में जब तक संभव हो सके पति पत्नी मिल कर काम करें. चाहे आप ज्यादा शिक्षित न भी हों तो भी जो भी आप में करने की योग्यता है, जैसे कुकिंग, बुनाई आदि तो उसे कर के न सिर्फ खुद सैल्फ डिपेंडैंट बनें, बल्कि उस से होने वाली आय को भविष्य के लिए जोड़ कर रखें ताकि कभी भी मुसीबत आने पर आप अपने परिवार की हिम्मत बन कर कठिन परिस्थितियों से लड़ पाने में सक्षम हों. फुजूलखर्ची छोड़ कर सेविंग करने की आदत को बढ़ाएं, साथ ही कभी भी हिम्मत न हारें.

प्रेजेंटेबल होने से बढता है कॉन्फिडेंस, कैसे, जानें एक्सपर्ट से

फेस्टिवल कोई भी हो हेयर स्टाइल और मेकअप सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि सही हेयर स्टाइल से व्यक्ति का व्यक्तित्व बदल जाता है और वह उस पार्टी की सबसे आकर्षक बन जाता है. केशों की सुंदरता में सिल्की और शाइनी होना बहुत जरुरी है. इस समय अधिकतर महिलाएं घर से काम कर रही है और वे अपने केशों और मेकअप पर ध्यान नहीं दे पा रही है, लेकिन अपने चेहरे और केशों का ध्यान हमेशा रखने की जरुरत होती है.

मुसीबत में है ब्यूटी इंडस्ट्री 

कोरोना की वजह से ब्यूटी इंडस्ट्री काफी मुसीबतों का सामना कररही है, क्योंकि अभी आधे से अधिक लोग घर से काम कर रहे है बाहर निकलने पर मास्क लगाना पड़ता है. मेकअप केवल आँखों का ही किया जाना संभव होता है. इस बारें में कोस्मोप्रूफ़ और वेलनेस एक्सपर्ट समीर श्रीवास्तव कहते है कि ये समय निश्चित रूप से अच्छा नहीं है.पिछले 2 साल में इम्पैक्ट बहुत अधिक था, पर अभी कुछ हद तक ठीक हो गया है. कई राज्यों में तो पूरी तरह से अब ब्यूटी सैलून खुल चुके है. महाराष्ट्र में अभी भी कुछ सावधानियां है. मेरे हिसाब से ब्यूटी एक हायजिन से जुड़ा शब्द है, इसमें हेयर कट से शुरू कर पूरा मेकओवर होता है. अच्छा हेयर कट, ब्लो ड्रायर और अच्छा कलर मिल गया, तो व्यक्ति अंदर से खुशियों को पा लेता है. किसी ने अगर आपके चेहरे और केशो की तारीफ़ की है, तो व्यक्ति मानसिक रूप से बहुत अधिक खुश हो जाते है.ब्यूटी इंडस्ट्री में उतार-चढ़ाव हमेशा रहेगी, ये कम नहीं हो सकती.

पुरुष भी करते है मेकअप

समीर आगे कहते है किमैं करीब 20 साल से इस क्षेत्र में हूँ. ब्यूटी की खपत धीरे-धीरे बढती ही जा रही है और केवल महिलाएं ही नहीं, आज पुरुष भी अपनी ब्यूटी, मेकअप के द्वारा बढाते है. इस क्षेत्र में कोई भी पैसे खर्च करने में कंजूसी नहीं करते, इसलिए दिनोदिन ये व्यवसाय बढती ही जा रही है.

आयुर्वेद को ब्यूटी में जोड़ना

इसके अलावा इंडिया में ब्यूटी के क्षेत्र में उत्पादों की भरमार हो चुकी है, जिसमें आजकल आयुर्वेदिक प्रोडक्ट, वेगन प्रोडक्ट और न जाने क्या- क्या है. आयुर्वेद को सभी कंपनी महत्व दे रही है, जिसमें हल्दी, एलोवेरा, नीम, तुलसी और न जाने क्या-क्या प्रयोग करते है. इससे ये पता लग रहा है कि पूरानी रूट्स मॉडर्न फॉर्म में बाहर निकल रही है. इसके अलावा जिन कंपनियों ने ब्यूटी प्रोडक्ट को छोड़ दिया था, वे वापस आ रहे है.

खुद करें मेकअप

खुद मेकअप करने की चाहत केवल यहाँ नहीं, विश्व में हर जगह पर है. इसके लिए सुविदाएं भी खूब है, कोई इन्टरनेट पर तो कोई यूट्यूब पर देखकर खुद का मेकअप करते है. लेकिन इसमें देखना ये जरुरी है कि मेकअप सीखाने वाला कोई एक्सपर्ट हो.कई अच्छे-अच्छे मेक अप आर्टिस्ट आजकल सोशल मीडिया पर सिखाते है.

असली मेकअप के लिए हेयर कट और चेहरे की आकृति अधिक मायने रखती है. सही मेकअप लगाने के लिए उसकी सही जानकारी होना बहुत जरुरी है. कुछ बातें ध्यान देने योग्य निम्न है,

  • मेकअप का स्किन से मैच करना,
  • फेस कट मसलन ओवल, पतला, छोटा आदि को देखना,
  • हेयर कट जैसे केशों का रंग, हाईलाईट कलर, लम्बे केश, छोटे केश, कर्ली हेयर आदि के आधार पर मेकअप लगाने से किसी की भी पर्सोनालिटी खिलती है.

ट्रेंड में न्यूड मेकअप है, जिसमें अलग तरीके की लिपस्टिक्स, नेलपॉलिश और मेकअप होती है. इसे मेकअप करने पर किसी को पता नहीं लग पाता और व्यक्ति सुंदर दिखता है. ये   हल्का मेकअप होने वजह से हर उम्र की महिलाए इसे लगा सकती है. मास्क की वजह से लिपस्टिक्स का प्रयोग पूरे विश्व में महिलाएं कम कर रही है, जबकि लिपस्टिक मूड को बदल सकती है. किसी की पर्सोनालिटी को अच्छा बनाये रखना आज बहुत जरुरी है, इससे कॉन्फिडेंस आता है. आज छोटे शहरों में काफी लोग अपनी ब्यूटी को लेकर जागरूक हो चुके है.

गंगूबाई काठियावाड़ी: शांतनु माहेश्वरी और आलिया भट्ट के सॉन्ग ‘मेरी जान’ ने बनाया सबको दिवाना

अभिनेता शांतनु माहेश्वरी, संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से बड़े पर्दे पर कदम रखने के लिए पूरी तरह से तैयार है . इस फिल्म में आलिया भट्ट और शांतनु पर फिल्माया गाना ‘जब सैंया’ रिलीज होते ही दर्शकों के दिल में घर कर चुका है . अब एक बार फिर वो अपने दूसरे गाने ‘मेरी जान’ से दर्शकों को अपना दीवाना बना रहे है .

इस मदमस्त गाने को नीति मोहन ने गाया है जो कि आलिया भट्ट द्वारा अभिनीत किरदार गंगूबाई और शांतनु के खूबसूरत प्यार को गाडी की पिछली सीट पर बैठे हुए दर्शता है . यह बिल्कुल नई जोड़ी अपनी शानदार केमिस्ट्री और अपने चेहरें के हाव-भाव से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रही है.

‘मेरी जान’ की धुन आपके पैर को थिरकने पर मजबूर कर देगी . इस गाने में एक-दूसरे को चिढ़ाते हुए, आलिया और शांतनु गाने की शुरुआत में संकेतों और हाथों के इशारों से एक-दूसरे से बात करते दिख रहे है. गाने की शुरुआत को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि प्यार को शब्दों की आवश्यकता नहीं होती है और दोनों कलाकार जिस प्रकार अपनी आंखों से बोल रहे है, सच मानिए काबिले तारिफ़ है . प्यार का एक शानदार चित्रण करते हुए आलिया और शांतनु दर्द, भय, घुटन, निराशा और सबसे अधिक तड़प को व्यक्त करते है.

इस गाने के रिलीज होने की खुशी में शांतनु ने कहा कि  ” ‘मेरी जान’ में दिखाया गया है कि संजय लीला भंसाली सर जैसा फिल्म निर्माता दो किरदारों के समीकरण को इतनी काव्यात्मक ढंग से सामने लाने के लिए क्या कर सकते है . गाने में आलिया भट्ट का किरदार गंगूबाई मुझे गले लगाना चाहती है लेकिन वह डरती है. वह केवल प्यार करना चाहती है और जब उसे अंत में प्यार मिलता है तो आप देख सकते है कि उसकी आँखों में एक अलग ख़ुशी नज़र आती है . यह रोमांस से बहुत अधिक है. यह गाना दिखाता है कि किस प्रकार दो व्यक्ति अपने इतिहास को भूला कर एक दूसरे में खो जाते है .”

संजय लीला भंसाली और डॉ. जयंतीलाल गड़ा (पेन स्टूडियोज ) द्वारा निर्मित यह फिल्म 25 फरवरी 2022 को सिनेमाघरों में रिलीज होने के लिए पूरी तरह तैयार है.

बिग बॉस 15 फेम प्रतीक सहजपाल के नए सॉन्ग ‘रंग सोनेया’ ने मचाया धमाल, देखें Video

देसी म्यूजिक फैक्ट्री द्वारा निर्मित प्यार के रंगों से भरा हुआ गाना ‘रंग सोनेया’ रिलीज से पहले ही काफी सुर्खियां बटोरने के बाद आखिरकार दर्शकों के सामने आ गया है . इस गाने के माध्यम से  बिग बॉस सीजन 15 के फर्स्ट रनर-अप प्रतीक सहजपाल और अरूब खान प्यार का देसी स्वाद दर्शकों के लिए लेकर आये हैं . इस गाने को अरूब खान ने अपनी सुरीली आवाज़ में गाया है और बब्बू ने गीत के बोल लिखे है तथा  ब्लैक वायरस ने संगीत से सजाया है . गाने के पोस्टर में इस नई जोड़ी की केमिस्ट्री देखने लायक है और  ऐसा लग रहा है कि यह गाना चार्टबस्टर बनने के लिए तैयार हैं.

 

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गाने के रिलीज को लेकर उत्साहित  प्रतीक सहजपाल कहते है कि  “इस गाने को दर्शकों के सामने लाते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है और अब मैं उनकी प्रतिक्रिया जानने का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं. मुझे विश्वास है कि इसे श्रोताओं से बहुत प्यार मिलेगा.  देसी म्यूजिक फैक्ट्री की प्रतिभाशाली टीम के साथ काम करके बहुत अच्छा लगा .”

इस गाने के रिलीज पर अरूब खान कहती है कि  “आखिरकार  ‘रंग सोनेया’ रिलीज हो गया है, मुझे इस पॉवरफुल और रोमांटिक संगीत हिस्सा का बनने पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है. इस तरह के शानदार प्रस्तुतकर्ताओं के साथ इस प्रोजेक्ट के लिए सहयोग करना एक कमाल का अनुभव रहा . मैं उत्साहित हूं यह जानने के लिए कि श्रोता इस गाने को कितना प्यार देते है .”

देसी म्यूजिक फैक्ट्री के फाउंडर और सीईओ अंशुल गर्ग कहते हैं, ” ‘रंग सोनेया’ के लिए अरूब और प्रतीक के साथ जुड़कर बेहद खुशी हो रही है. गाने के निर्माण की यात्रा कमाल की रही है. हम इस प्यार के महीने में एक देसी रंग में लिपटा हुआ प्यार से भरा गाना लाने के लिए बेहद खुश है.”

‘रंग सोनेया’ देसी म्यूजिक फैक्ट्री के यूट्यूब चैनल पर आ गया हैं .

कभी-कभी ऐसा भी: पूरबी के साथ क्या हुआ

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औरत एक पहेली: संदीप और विनीता के बीच कैसी थी दोस्ती- भाग 1

संदीप बाहर धूप में बैठे सफेद कागजों पर आड़ीतिरछी रेखाएं बनाबना कर भांतिभांति के मकानों के नक्शे खींच रहे थे. दोनों बेटे पंकज, पवन और बेटी कामना उन के इर्दगिर्द खड़े बेहद दिलचस्पी के साथ अपनीअपनी पसंद बतलाते जा रहे थे.

मुझे हमेशा की भांति अदरक की चाय और कोई लजीज सा नाश्ता बनाने का आदेश मिला था.

बापबेटों की नोकझोंक के स्वर रसोईघर के अंदर तक गूंज रहे थे. सभी चाहते थे कि मकान उन की ही पसंद के अनुरूप बने. पवन को बैडमिंटन खेलने के लिए लंबेचौड़े लान की आवश्यकता थी. व्यावसायिक बुद्धि का पंकज मकान के बाहरी हिस्से में एक दुकान बनवाने के पक्ष में था.

कामना अभी 11 वर्ष की थी, लेकिन मकान के बारे में उस की कल्पनाएं अनेक थीं. वह अपनी धनाढ्य परिवारों की सहेलियों की भांति 2-3 मंजिल की आलीशान कोठी की इच्छुक थी, जिस के सभी कमरों में टेलीफोन और रंगीन टेलीविजन की सुविधाएं हों, कार खड़ी करने के लिए गैराज हो.

संदीप ठठा कर हंस पड़े, ‘‘400 गज जमीन में पांचसितारा होटल की गुंजाइश कहां है हमारे पास. मकान बनवाने के लिए लाखों रुपए कहां हैं?’’

‘‘फिर तो बन गया मकान. पिताजी, पहले आप रुपए पैदा कीजिए,’’ कामना का मुंह फूल उठा था.

‘‘तू क्यों रूठ कर अपना भेजा खराब करती है? मकान में तो हमें ही रहना है. तेरा क्या है, विवाह के बाद पराए घर जा बैठेगी,’’ पंकज और पवन कामना को चिढ़ाने लगे थे.

बच्चों के वार्त्तालाप का लुत्फ उठाते हुए मैं ने मेज पर गरमगरम चाय, पकौड़े, पापड़ सजा दिए और संदीप से बोली, ‘‘इस प्रकार तो तुम्हारा मकान कई वर्षों में भी नहीं बन पाएगा. किसी इंजीनियर की सहायता क्यों नहीं ले लेते. वह तुम सब की पसंद के अनुसार नक्शा बना देगा.’’

संदीप को मेरा सुझाव पसंद आया. जब से उन्होंने जमीन खरीदी थी, उन के मन में एक सुंदर, आरामदेह मकान बनवाने की इच्छाएं बलवती हो उठी थीं.

संदीप अपने रिश्तेदारों, मित्रों से इस विषय में विचारविमर्श करते रहते थे. कई मकानों को उन्होंने अंदर से ले कर बाहर तक ध्यानपूर्वक देखा भी था. कई बार फुरसत के क्षणों में बैठ कर कागजों पर भांतिभांति के नक्शे बनाएबिगाड़े थे, परंतु मन को कोई रूपरेखा संतुष्ट नहीं कर पा रही थी. कभी आंगन छोटा लगता तो कभी बैठक के लिए जगह कम पड़ने लगती.

परिवार के सभी सदस्यों के लिए पृथकपृथक स्नानघर और कमरे तो आवश्यक थे ही, एक कमरा अतिथियों के लिए भी जरूरी था. क्या मालूम भविष्य में कभी कार खरीदने की हैसियत बन जाए, इसलिए गैराज बनवाना भी आवश्यक था. कुछ ही दिनों बाद संदीप किसी अच्छे इंजीनियर की तलाश में जुट गए.

एकांत क्षणों में मैं भी मकान के बारे में सोचने लगती थी. एक बड़ा, आधुनिक सुविधाओं से पूर्ण रसोईघर बनवाने की कल्पनाएं मेरे मन में उभरती रहती थीं. अपने मकान में गमलों में सजाने के लिए कई प्रकार के पेड़पौधों के नाम मैं ने लिख कर रख दिए थे.

एक दिन संदीप ने घर आ कर बतलाया कि उन्होंने एक भवन निर्माण कंपनी की मालकिन से अपने मकान के बारे में बात कर ली है. अब नक्शा बनवाने से ले कर मकान बनवाने तक की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं की होगी.

सब ने राहत की सांस ली. मकान बनवाने के लिए संदीप के पास कुल डेढ़दो लाख की जमापूंजी थी. घर के खर्चों में कटौती करकर के वर्षों में जा कर इतना रुपया जमा हो पाया था.

संदीप एक दिन मुझे भवन निर्माण कंपनी की मालकिन विनीता से मिलवाने ले गए.

मैं कुछ ही क्षणों में विनीता के मृदु स्वभाव, खूबसूरती और आतिथ्य से कुछ ऐसी प्रभावित हुई कि हम दोनों के बीच अदृश्य सा आत्मीयता का सूत्र बंध गया.

हम उन्हें अपने घर आने का औपचारिक निमंत्रण दे कर चले आए. मुझे कतई उम्मीद नहीं थी कि वह हमारे घर आ कर हमारा आतिथ्य स्वीकार करेंगी. लेकिन एक शाम आकस्मिक रूप से उन की चमचमाती विदेशी कार हमारे घर के सामने आ कर रुक गई. मैं संकोच से भर उठी कि कहां बैठाऊं इन्हें, कैसे सत्कार करूं.

विनीता शायद मेरे मन की हीन भावना भांप गई. मुसकरा कर स्वत: ही एक कुरसी पर बैठ गईं, ‘‘रेखाजी, क्या एक गिलास पानी मिलेगा.’’

मैं निद्रा से जागी. लपक कर रसोई- घर से पानी ले आई. फिर चाय की चुसकियों के साथ वार्त्तालाप का लंबा सिलसिला चल निकला. इस बीच बच्चे कालिज से आ गए थे, वे भी हमारी बातचीत में शामिल हो गए. फिर विनीता यह कह कर चली गईं, ‘‘मैं ने आप की पसंद को ध्यान में रख कर मकान के कुछ नक्शे बनवाए हैं. कल मेरे दफ्तर में आ कर देख लीजिएगा.’’

विनीत के जाने के बाद मेरे मन में अनेक अनसुलझे प्रश्न डोलते रह गए थे कि उस का परिवार कैसा है? पति कहां हैं और क्या करते हैं? इन के संपन्न होने का रहस्य क्या है?

कभीकभी ऐसा लगता है कि मैं विनीता को जानती हूं. उन का चेहरा मुझे परिचित जान पड़ता, लेकिन बहुत याद करने पर भी कोई ऐसी स्मृति जागृत नहीं हो पाती थी.

कभी मैं सोचने लगती कि शायद अधिक आत्मीयता हो जाने की वजह से ऐसा लगता होगा. अगले दिन शाम को मैं और संदीप दोनों उन के दफ्तर में नक्शा देखने गए. एक नक्शा छांट कर संतुष्ट भाव से हम ने वैसा ही मकान बनवाने की अनुमति दे दी.

बातों ही बातों में संदीप कह बैठे, ‘‘रुपए की कमी के कारण शायद हम पूरा मकान एकसाथ नहीं बनवा पाएंगे.’’

विनीता झट आश्वासन देने लगीं, ‘‘आप निश्चिंत रहिए. मैं ने आप का मकान बनवाने की जिम्मेदारी ली है तो पूरा बनवा कर ही रहूंगी. बाकी रुपए मैं अपनी जिम्मेदारी पर आप को कर्ज दिलवा दूंगी. आप सुविधानुसार धीरेधीरे चुकाते रहिए.’’

संदीप उन के एहसान के बोझ से दब से गए. मुझे विनीता और भी अपनी सी लगने लगीं.

नक्शा पास हो जाने के पश्चात मकान का निर्माण कार्य शुरू हो गया.

अब तक विनीता का हमारे यहां आनाजाना बढ़ गया था. अब वह खाली हाथ न आ कर बच्चों के लिए फल, मिठाइयां और कुछ अन्य वस्तुएं ले कर आने लगी थीं.

आते ही वह सब के साथ घुलमिल कर बातें करने लग जातीं. रसोईघर में पटरे पर बैठ कर आग्रह कर के मुझ से दाल- रोटी ले कर खा लेतीं.

मैं संकोच से गड़ जाती. उन्हें फल, मिठाइयां लाने को मना करती, परंतु वह नहीं मानती थीं. संदीप मुझ से कहते, ‘‘विनीताजी जो करती हैं, उन्हें करने दिया करो. मना करने से उन का दिल दुखेगा. उन के अपने बच्चे नहीं हैं इसलिए वह हमारे बच्चों पर अपनी ममता लुटाती रहती हैं.’’

औरत एक पहेली: संदीप और विनीता के बीच कैसी थी दोस्ती- भाग 2

मैं परेशान सी हो उठती. भरेपूरे शरीर की स्वामिनी विनीता के अंदर ऐसी कौन सी कमी है, जिस ने उन्हें मातृत्व से वंचित कर दिया है. मैं उन के प्रति असीम सहानुभूति से भर उठती थी. एक दिन मन का क्षोभ संदीप के सामने प्रकट किया तो उन्होंने बताया, ‘‘विनीताजी के पति अपाहिज हैं. बच्चा पैदा करने में असमर्थ हैं. एक आपरेशन के दौरान डाक्टरों ने गलती से उन की शुक्राणु वाली नस काट दी थी.’’

मैं और अधिक सहानुभूति से भर उठी.

संदीप बताते रहे, ‘‘विनीताजी के पति की प्रथम पत्नी का एक पुत्र उन के साथ रहता है, जिसे उन्होंने मां की ममता दे कर बड़ा किया है. इतनी बड़ी फर्म, दौलत, प्रसिद्धि सबकुछ विनीताजी के अटूट परिश्रम का सुखद परिणाम है.’’

अचानक मेरे मन में खयाल आया, ‘विनीता की गुप्त बातों की जानकारी संदीप को कैसे हो गई? कब और कैसे दोनों के बीच इतनी अधिक घनिष्ठता हो गई कि वे दोनों यौन संबंधों पर भी चर्चा करने लगे.’

मैं ने इस विषय में संदीप से प्रश्न किया तो वह झेंप कर खामोश हो गए.

मेरे अंतर में संदेह का कीड़ा कुलबुला उठा था. मुझे लगने लगा कि विनीता अकारण ही हम लोगों से आत्मीयता नहीं दिखलाती हैं. वह हमारे बच्चों पर खर्च कर के हमारे घर में अपना स्थान बनाना चाहती हैं. कोई ऐसे ही तो किसी को हजारों का कर्जा नहीं दिलवा सकता. इन सब का कारण संदीप के प्रति उन का आकर्षण भी तो हो सकता है.

संदीप 50 वर्ष के होने पर भी स्वस्थ, सुंदर थे. शरीर सौष्ठव के कारण अपनी आयु से कई वर्ष छोटे दिखते थे. किसी समआयु की महिला का उन की ओर आकर्षित हो जाना आश्चर्य की बात नहीं थी.

मैं सोचने लगी, ‘विनीता जैसी सुंदर महिला एक अपाहिज आदमी के साथ संतुष्ट रह भी कैसे सकती है?’ मुझे अपना घर उजड़ता हुआ लगने लगा था.

अब जब भी विनीता मेरे घर आतीं, मेरा मन उन के प्रति कड़वाहट से भर उठता था. उन की मधुर मुसकराहट के पीछे छलकपट दिखाई देने लगता. ऐसा लगता जैसे विनीता अपनी दौलत के कुछ सिक्के मेरी झोली में डाल कर मुझ से मेरी खुशियां और मेरा पति खरीद रही हैं. मुझे विनीता, उन की लाई गई वस्तुओं और उन की दौलत से नफरत होती चली गई.

मैं ने उन के दफ्तर जाना बंद कर दिया. वह मेरे घर आतीं तो मैं बीमारी या व्यस्तता का बहाना बना कर उन्हें टालने का प्रयास करने लगती थी. मेरे बच्चे और संदीप उन के आते ही उन की आवभगत में जुटने लगते थे. यह सब देख मुझे बेहद बुरा लगने लगता था.

मैं विनीता के जाने के पश्चात बच्चों को डांटने लगती, ‘‘तुम सब लालची प्रवृत्ति के क्यों बनते जा रहे हो? क्यों स्वीकार करते हो इन के लाए उपहार? इन से इतनी अधिक घनिष्ठता किसलिए? कौन हैं यह हमारी? मकान बन जाएगा, फिर हमारा और इन का रिश्ता ही क्या रह जाएगा?’’

बच्चे सहम कर मेरा मुंह देखते रह जाते क्योंकि अभी तक मैं ने उन्हें अतिथियों का सम्मान करना ही सिखाया था. विनीता के प्रति मेरी उपेक्षा को कोई नहीं समझ पाता था. सभी  मेरी मनोदशा से अनभिज्ञ थे. मकान के किसी कार्यवश जब भी संदीप मुझ से विनीता के दफ्तर चलने को कहते, मैं मना कर देती. वह अकेले चले जाते तो मैं मन ही मन कुढ़ती रहती, लेकिन ऊपर से शांत बनी रहती थी.

मैं संदीप को विनीता के यहां जाने से नहीं रोकती थी. सोचती, ‘मर्दों पर प्रतिबंध लगाना क्या आसान काम है? पूरा दिन घर से बाहर बिताते हैं. कोई पत्नी आखिर पति का पीछा कहां तक कर सकती है?’

मेरे मनोभावों से बेखबर संदीप जबतब विनीता की प्रशंसा करने बैठ जाते. अकसर कहते, ‘‘विनीताजी से मुलाकात नहीं हुई होती तो हमारा मकान इतनी जल्दी नहीं बन पाता.’’

कभी कहते, ‘‘विनीताजी दिनरात परिश्रम कर के हमारा मकान इस प्रकार बनवा रही हैं जैसे वह उन का अपना ही मकान हो.’’

कभी ऐसा भी हो जाता कि विनीता अपने किसी निजी कार्यवश संदीप को कार में बैठा कर कहीं ले जातीं. संदीप घंटों के पश्चात प्रसन्न मुद्रा में वापस लौटते और बताते कि वह किसी बड़े होटल में विनीता के साथ भोजन कर के आ रहे हैं.

मेरे अंदर की औरत यह सब सहन नहीं कर पा रही थी. मैं यह सोच कर ईर्ष्या से जलतीभुनती रहती कि विनीता की खूबसूरती ने संदीप के मन को बांध लिया है. अब उन्हें मैं फीकी लगने लगी हूं. उन के मन में मेरा स्थान विनीता लेती जा रही है.

कभी मैं क्षुब्ध हो कर सोचने लगती, इस शहर में मकान बनवाने से मेरा जीवन ही नीरस हो गया. एक शहर में रहते हुए संदीप और विनीता का साथ कभी नहीं छूट पाएगा. अब संदीप मुझे पहले की भांति कभी प्यार नहीं दे पाएंगे. विनीता अदृश्य रूप से मेरी सौत बन चुकी है, हो सकता है दोनों हमबिस्तर हो चुके हों. आखिर होटलों में जाने का और मकसद भी क्या हो सकता है?’

हमारा मकान पूरा बन गया तो मुहूर्त्त करने के पश्चात हम अपने घर में आ कर रहने लगे.

विनीता का आनाजाना और संदीप के साथ घुलमिल कर बातें करना कम नहीं हो पाया था.

एक दिन मेरे मन का आक्रोश जबान पर फूट पड़ा, ‘‘अब इस औरत के यहां आनाजाना बंद क्यों नहीं कर देते? मकान कभी का बन कर पूरा हो चुका है, अब इस फालतू मेलजोल का समापन हो जाना ही बेहतर है.’’

‘‘कैसी स्वार्थियों जैसी बातें करने लगी हो. विनीताजी ने हमारी कितनी सहायता की थी, अब हम उन का तिरस्कार कर दें, क्या यह अच्छा लगता है?’’

‘‘तब क्या जीवन भर उसे गले से लगाए रहोगे.’’

‘‘तुम्हें जलन होती है उस की खूबसूरती से,’’ संदीप मेरे क्रोध की परवा न कर के मुसकराते रहे. फिर लापरवाही से बाहर चले गए.

क्रोध और उत्तेजना से मैं कांप रही थी. जी चाह रहा था कि अभी जा कर उस आवारा, चरित्रहीन औरत का मुंह नोच डालूं.

अपने अपाहिज पति की आंखों में धूल झोंक कर पराए मर्दों के साथ गुलछर्रे उड़ाती फिरती है. अब तक न मालूम कितने पुरुषों के साथ मुंह काला कर चुकी होगी.

मुझे उस अपरिचित अनदेखे व्यक्ति से गहरी सहानुभूति होने लगी, जिस की पत्नी बन कर विनीता उस के प्रति विश्वासघात कर रही थी.

मैं सोचने लगी, ‘अगर यह कांटा अभी से उखाड़ कर नहीं फेंका गया तो मेरा मन जख्मी हो कर लहूलुहान हो जाएगा. इस से पहले कि मामला और आगे बढ़े मुझे विनीता के पति के पास जा कर सबकुछ साफसाफ बता देना चाहिए कि वे अपनी बदचलन पत्नी के ऊपर अंकुश लगाना शुरू कर दें. वह दूसरों के घर उजाड़ती फिरती है.’

उन के घर का पता मुझे मालूम था. एक बार मैं संदीप के साथ घर के बाहर तक जा चुकी थी. उस वक्त विनीता घर पर नहीं थीं. नौकर के बताने पर हम बाहर से ही लौट आए थे.

घर के सभी काम बच्चों पर छोड़ कर मैं विनीता के घर जाने के लिए तैयार हो गई. एक रिकशे में बैठ कर मैं उन के घर पहुंच गई.

विनीता घर में नहीं थीं. नौकर से साहब का कमरा पूछ कर मैं दनदनाती हुई सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंची.

नौकर ने कमरे के अंदर जा कर साहब को मेरे आगमन की सूचना दे दी. फिर मुझे अंदर जाने का इशारा कर के वह किसी काम में लग गया.

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