रिश्ते दिल से निभाएं या दिमाग से

बरखा जब शादी के बाद अपने ससुराल आई तो बेहद खुश थी. उसे अपनी ननद श्रेया के रूप में एक बेहद अच्छी सहेली जो मिल गई थी. बरखा के  इस नए घर में बस श्रेया ही एक ऐसी थी जो उस की हर बात को सुनती थी और अपने घर वालों की निजी बातें भी बरखा को बताती थी.

जब श्रेया ने बरखा को एक विवाहित पुरुष से अपने संबंधों के बारे में बताया तो बरखा ने उसे रोकना चाहा, परंतु श्रेया ने कहा, ‘‘भाभी प्यार तो प्यार है, आप के भी तो शादी से पहले कितने अफेयर थे क्या मैं ने कभी किसी के साथ यह बात शेयर की?’’

बरखा चुप लगा गई. बाद में जब बरखा के परिवार को यह पता चला कि श्रेया के अफेयर के बारे में बरखा पहले से जानती थी तो उसे खूब खरीखोटी सुनाई गई.

अनु की मम्मी सिंगल मदर हैं. वे घरबाहर सब संभालती हैं और अनु की हर जरूरत को पूरा करती हैं, परंतु अनु जैसे ही अपने हिसाब से कुछ करने की कोशिश करती है तो उस की मम्मी का लैक्चर शुरू हो जाता है, ‘‘मैं अकेली कमाने वाली हूं, पूरी जिंदगी तेरे कारण स्वाहा कर दी है, परंतु तू फिर भी मनमानी करने लगी है.’’

अनु के शब्दों में ऐसा लगता है कि मम्मी ने उसे पाल कर कोई एहसान किया है?

‘‘मुझे खुश होने या अपने हिसाब से काम करने का कोई हक नही है,’’ अनु अपनी मम्मी की जोड़तोड़ वाली आदत से परेशान हो चुकी है.

प्रिया के पति पंचाल जब मरजी होती है प्रिया को इग्नोर करने लगते हैं और जब इच्छा होती है प्रिया से लाड़ लड़ाने लगते हैं. प्रिया के कुछ कहने पर पंचाल का एक ही राग होता है कि प्रिया ये मेरा वर्कप्रैशर इस के लिए जिम्मेदार है.’’

पंचाल इतना अधिक विक्टिमप्ले करती है कि बहुत बार प्रिया खुद ही गिल्टी महसूस करने लगती है.

उधर राधा का हाल ही अलग है. वह हर घटना, हर चीज को अपने हिसाब से मैनीपुलेट करती हैं. अगर राधा का मन करता है तो वह रातदिन काम करती हैं और बेटेबहू के कहने पर बोलती हैं कि अरे काम करते रहने से मेरे हाथपैर चलते रहेंगे और अगर मन नहीं करता तो बेटेबहू को ताने देने लगतीं कि इस उम्र में भी उन्हें खटना पड़ रहा है.

अगर गहराई से सोचा जाए तो ऐसे लोग हमारे घरपरिवार में बड़ी आसानी से मिल जाएंगे. ऐसे लोग हर रिश्ते को जोड़तोड़ के साथ निभाने में यकीन करते हैं. उन्हें सामने वाले के दुखदर्द से कोई मतलब नहीं होता है. उन्हें मतलब होता है बस अपनेआप से. ऐसे लोग रिश्तों में इस तरह सेंध लगाते हैं कि धीरेधीरे वे खोखले हो जाते हैं.

‘‘मैं ही सबकुछ करता या करती हूं.’’

‘‘मेरे पास पैसे कम हैं न तभी तुम मुझ से कतराते हो.’’

‘‘लोग मेरे लिए नहीं, मेरे काम के लिए

रोते हैं.’’

‘‘तुम्हें तो मैं अपना सबकुछ मानती हूं.’’

इस तरह के कितने ही जैसे कितने ही जुमले हैं जो आप ने पहले भी सुने होंगे. इन्हें किस तरह से जोड़तोड़ कर के अपने फायदे के लिए यूज करे यह लोग अच्छी तरह से जानते हैं.

आप को ही बोलने का मौका देना:

अगर आप के इर्दगिर्द ऐसा कोई करीबी है तो सावधान हो जाएं. मैनीपुलेटर ज्यादा से ज्यादा आप को ही बोलना का मौका देते हैं क्योंकि जितना आप बोलेंगे उतने ही अपने दिल के राज खोलेंगे. वे आप की हर बात को बहुत ध्यान से सुनेंगे, आप को इतना खास महसूस करवाएंगे कि आप उन्हें अपना हितैषी समझ कर अपनी जिंदगी की कुछ ऐसी बातें भी उन से शेयर कर लेते हैं जो बाद में ही भारी पड़ सकती हैं.

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आप के बेहद करीब होना:

ऐसे व्यक्तित्व वाले लोग आप के बेहद करीब होने के लिए कुछ अपनी बेहद निजी बातें भी शेयर कर सकते हैं. वे आप को भरसक यह विश्वास दिलाने का प्रयास करेंगे कि वे आप के ऊपर कितना भरोसा करते हैं. अगर आप उन से दूरी बना कर रखना भी चाहेंगे तो भी वे ऐसे व्यवहार करेंगे जैसे आप उन के साथ बहुत अन्याय कर रहे हैं. आप के अलावा उन के लिए कोई भी व्यक्ति अधिक महत्त्वपूर्ण नही है.

विक्टिम कार्ड खेलना:

मैनीपुलेटिव लोग पहले कुछ गलत करते हैं और अगर आप उन से इस बारे में सवालजवाब करते हैं तो वे लोग ऐसा बीहेव करते हैं जैसे गलत उन्होंने नहीं आप ने उन के साथ किया हो. उन से तो जो भी हुआ अनजाने में हुआ पर आप बारबार सवालजवाब कर के उन्हें परेशान करना चाहते हैं या नीचा दिखाना चाहते हैं. अंतत: ऐसे लगने लगता है कि आप ही गलत हैं और आप ही उन की माफी के लिए गिड़गिड़ाने लगते हैं.

पैसिवअग्रैशन:

मैनीपुलेटिव व्यक्तियों की एक खास पहचान यह होती है कि वे कभी भूल कर भी सामने से अटैक नहीं करते हैं. अगर आप की कोई बात उन्हें बुरी लगती है या आप उन का कहना नहीं मानते है तो वे अपने में चले जाते हैं. आप चाह कर भी उन से बातचीत नहीं कर पाते हैं और न ही यह जान पाते है कि उन के दिमाग के अंदर क्या चल रहा है. ऐसे लोग एक अलग सी पावर गेम खेलते हैं, इस पावर गेम में वे चुप रह कर अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं. पैसिव अग्रैशन रिश्तों के गणित के लिए ज्यादा तकलीफदेह होता है. यह चुप्पी इतना अधिक तनाव देती है कि सामने वाला इंसान खुद को ही दोषी मान कर झक जाता है.

आप तो ऐसे न थे:

अगर आप कोई काम उन के हिसाब से नहीं करते हैं या उन की बात नहीं सुनते हैं तो बारबार आप को यह एहसास दिलाया जाता है कि आप कितने बदल गए या गई हैं. यह बात इतनी बार दोहराई जाती है कि आप खुद पर ही शक करने लगते हैं. आप को लगने लगता है कि जरूर आप के अंदर ही कुछ नकारात्मक बदलाव आ गए हैं जो उन के लिए बेहद तकलीफदेह हैं.

आप के शब्द आप के खिलाफ इस्तेमाल करना:

अगर आप उन्हें किसी गलत बात पर टोकते हैं तो वे अपनी गलती मनाने के बजाय आप की कोई पुरानी बात ढूंढ़ कर ले आएंगे कि आप ने भी फलां घटना में ऐसे ही व्यवहार किया था. आप के गुस्से को भड़का कर वे खुद शांत हो जाएंगे. जब आप भड़क कर उन्हें भलाबुरा कह देंगे तो वे घडि़याली आंसू बहा कर खुद को निर्दोष साबित कर देते हैं.

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कड़वी बातों को मजाक की चाशनी में परोसना:

यह मैनीपुलेटिव लोगों का एक अनोखा गुण होता है कि कड़वी और तीखी बात कह कर वे यह बोल देते हैं, ‘‘अरे मैं तो मजाक कर रहा था या थी. तुम्हें सच लग रहा हैं तो मैं क्या करूं?’’

सामने वाले के दिल को दुखाने में उन्हें असीम आनंद आता है पर वे दिल दुखा कर भी बड़ी साफगोई से बच निकलते हैं.

ऐसे लोग दोस्त, साथी या रिश्तेदार के रूप में आप के आसपास अवश्य होंगे. जरूरत है उन की बातों या कृत्यों से खुद को दोषी न मानें. आप अपनी जगह बिलकुल सही हैं. उन के हिसाब से खुद को बदलने के उन्हें बदलने को कहें. रिश्तों को जोड़तोड़ से नहीं बल्कि समझदारी और प्यार से निभाया जाता है.

सपनों की उड़ान: क्या हुआ था शांभवी के साथ

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Winter Special: ब्रेकफास्ट में बनाएं Egg Sandwich

ब्रेकफास्ट करना बहुत जरूरी है लेकिन यह अक्सर मिस हो जाता है क्योंकि सुबह-सुबह इतना टाइम नहीं मिल पाता. पर ऐग सैंडविच की इस टाइम सेवर रेसिपी से आप इस समस्या से निबट सकती हैं.

2 सैंडविच बनाने के लिए

सामग्री

ब्रेड स्लाइस- 4 (ब्राउन ब्रेड भी ले सकती हैं)

उबले अंडे-2 (अच्छे से चॉप किए हुए)

मेयोनिज(Mayonnaise)या बटर- 4 टेबलस्पून

रेड चिली फ्लेक्स- 1/2 टेबलस्पून

नमक- स्वादानुसार

काली मिर्च पाउडर- स्वादानुसार

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घी- 2 बड़े चम्मच

हरी मिर्च- 4(बारीक कटी हुई)

सलाद के लिए

टमाटर- 1( पतली स्लाइस)

हरा प्याज- 1/4 (बारीक कटा हुआ)

प्याज- 1 (पतली स्लाइस)

विधि

– उबले अंडे, मेयोनिज, रेड चिली फ्लेक्स, स्वादानुसार नमक, हरी मिर्च (अगर आपको तीखा पसंद है) और स्वादानुसार काली मिर्च पाउडर को एक कटोरे में डालकर मिक्स कर लें.

– इस मसाले को 2 ब्रेड स्लाइसेस पर फैलाएं

– स्टफिंग के ऊपर टमाटर, प्याज और हरे प्याज की स्लाइस लगाएं.

– अब दूसरी स्लाइस से स्टफिंग को कवर कर लें.

– मंद आंच पर तवा गर्म करें.

– सैंडविच को तवे पर रखिए और किनारों पर हल्का सा घी लगाएं.

– सैंडविच को टेस्ट के अनुसार सेंके और फिर प्लेट में रख लें. सॉस के साथ खायें.

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Sunrise Pure स्वाद और सेहत उत्सव में आज बनाते हैं वेज बिरयानी

अगर आप डिनर में कुछ टेस्टी और हेल्दी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो सर्दियों में वेज बिरयानी आपके लिए अच्छा औप्शन है. वेज बिरयानी की ये रेसिपी टेस्टी की साथ-साथ आसानी से बनने वाली रेसिपी है. आप इसे कभी भी अपनी फैमिली के लिए बना सकती हैं.

हमें चाहिए

– गाजर व बींस कटी

– प्याज टुकड़ों में कटा

– थोड़े से मटर के दाने

– आलू कटा

– 1 छोटा चम्मच हलदी

– 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– थोड़ी सी

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी

– 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

पत्तागोभी बारीक कटी

– 2 बड़े चम्मच तेल

– 1 छोटा चम्मच जीरा

– थोड़ा सा अदरकलहसुन का पेस्ट

– थोड़ा सा साबूत गरममसाला

– 3-4 टमाटरों की प्यूरी

2 चम्मच Sunrise Pure बिरयानी मसाला

– थोड़ा सा पानी

– 1 गिलास चावल

– थोड़ी किशमिश व भुने काजू

– केवड़ा जल में भीगा केसर

– 1/2 कप दही

– नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

कूकर में तेल डाल कर जीरा चटकाएं, फिर उस में प्याज को तब तक भूनें जब तक वह सुनहरा न हो जाए. अब इस में Sunrise Pure मसाला डाल कर अच्छी तरह चलाएं. जब मसाले अच्छी तरह भुन जाएं तब इन में सब्जियां, चावल और पानी डाल कर कूकर में 3-4 सीटियां लगाएं. पकने पर नट्स, थोड़ा सा केवड़ा जल व दही से सजा कर गरमगरम सर्व करें.

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7 TIPS: ताकि शिफ्टिंग न बनें सिरदर्द

कुछ कार्डबोर्ड बॉक्स, पैकिंग रोप, बबल रैप और हो गई पैकिंग. पर काश पैकिंग इतनी आसान होती. घर शिफ्ट करना बहुत बड़ा काम है, पर यह उतना भी मुश्किल नहीं है. बस अच्छे मैनेजमेंट से यह पहाड़ जैसा काम आप आराम से कर सकती हैं.

ट्रांसफ्रेबल जॉब हो या न हो पर घर तो बदलना ही पड़ता है. बेचलर्स को घर बदलने में और ज्यादा दिक्कतें आती हैं. पर ये काम आप बिना मूवर्स और पैक्सर्स की सहायता के आसानी कर सकती हैं. कुछ लोग तो मूविंग और पैकिंग को भी आर्ट मानते हैं.

ये टिप्स अपनाकर करें आसानी से शिफ्टिंग-

1. न बनायें सामान का पहाड़ 

अपने सामान को एक जगह इकट्ठा कर पहाड़ न बनायें. ऐसा करने से आप और ज्यादा कन्फ्यूज हो जाएंगी. कौन सी चीज कहां रखी है, यह ढूंढने में ही आपका किमती वक्त बर्बाद होगा.

2. बनायें चीजों की लिस्ट

आप अपने घर में मौजूद चीजों और सामानों की लिस्ट बना लें. इसमें 1 से ज्यादा दिन का वक्त लगेगा, क्योंकि कई बार हम खुद ही भूल जाते हैं कि हमारे घर में क्या है और क्या नहीं है.

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3. अलग कर लें सामान

लिस्ट तैयार होने के बाद आप ये तय करें कि कौन से सामान आपको डोनेट करने हैं, कौन से बेचने हैं और कौन से दोस्तों को देने हैं. आमतौर पर यह काम लोग बाद में करने के लिए टाल देते हैं. पर यह काम सबसे पहले करने में ही समझदारी है. इससे आपके सामान का पहाड़ भी नहीं बनेगा और आपके पास वही सामान रहेगा जो आपको चाहिए. इससे पैकिंग करने में भी आसानी होगी. डोनेट करना एक अच्छा तरीका है, इससे किसी जरूरतमंद की मदद भी हो जाती है और साथ ही आपके पास ज्यादा सामान भी इकट्ठा नहीं होता.

4. शुरुआत हो जल्द से जल्द

पैकिंग की शुरुआत जितनी जल्दी होगी आप उतनी ही आसानी है शिफ्ट कर लेंगी. शिफ्ट करने के 3-4 हफ्ते पहले से ही इसकी तैयारियां शुरू कर दें. जिस कमरे के सामान को आप कम से कम इस्तेमाल करती हैं, पैकिंग की शुरुआत वहां से करें.

5. बॉक्स पर लगायें लेबल

अगर आप कार्टन में सामान पैक कर रही हैं तो उन पर लेबल लगाना न भूलें. लेबल में कार्टन के अंदर के सामान के बारे में लिखें और ये भी लिखें कि वो सामान कौन से कमरे में रखा जाएगा. इससे अनपैकिंग में सुविधा होगी.

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6. पैकिंग हो सही

पैकिंग के लिए सही कार्टन का चुनाव जरूरी है. टूटने वाली चीजों को बबल रैप कर पैक करें.

7. एक अलग बॉक्स में रखें जरूरी सामान

शिफ्टिंग के बाद नए घर आपको जिन चीजों की तुरंत जरूरत होगा उन्हें एक अलग बॉक्स में रखें. जैसे की बेडशीट्स, कपड़े, कंबल, दवाईयां आदि. इससे आपको जरूरत की चीजें ढूंढने में परेशानी नहीं होगी.

मेनोपोज और ब्रेस्ट कैंसर क्या अनुवांशिक है?

सवाल-

मेरे पिताजी को लिवर और मां को ब्रैस्ट कैंसर हो गया है. मैं ने सुना है कि यह आगे भी परिवार में हो सकता है. मेरी उम्र 32 वर्ष है. मुझे इस से बचने के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

जवाब-

यह सही है कि आनुवंशिक कारण कैंसर का एक प्रमुख रिस्क फैक्टर माना जाता है. अगर आप की मां को ब्रैस्ट कैंसर है तो आप के लिए खतरा 12 से 14% तक अधिक है. इसी तरह लिवर कैंसर में भी आनुवंशिक कारण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस से बचने के लिए आप कुछ जरूरी कदम उठा सकती हैं जैसे शारीरिक रूप से सक्रिय रहें, अपना वजन न बढ़ने दें, शराब का सेवन न करें, बच्चों को स्तनपान जरूर कराएं, गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन न करें विशेषकर 35 साल के बाद, मेनोपौज के बाद हारमोन थेरैपी न लें.

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सवाल-

मेरे परिवार में अर्ली मेनोपौज की समस्या रही है. मेरी नानी और मां को मेनोपौज 40 साल की उम्र से पहले हो गया था. मैं कैरियर के चलते अभी फैमिली प्लानिंग नहीं करना चाहती. मैं क्या करूं?

जवाब-

अर्ली मेनोपौज में आनुवंशिक कारक भी अहम भूमिका निभा सकता है. मेनोपौज की स्थिति में पहुंचने पर महिलाएं अंडोत्सर्ग नहीं कर पातीं. इस से गर्भधारण करना असंभव हो जाता है. ऐसे में आप असिस्टेड रिप्रोडक्टिव तकनीक (एआरटी) का सहारा ले सकती हैं या फिर आप अपने अंडे फ्रीज करा सकती हैं, जिन्हें आईवीएफ के दौरान इस्तेमाल किया जा सकता है अथवा आप डोनर एग का इस्तेमाल कर के भी आईवीएफ करवा सकती हैं.

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45 साल की रश्मि पिछले कुछ दिनों से अपने स्वास्थ्य में असहजता महसूस कर रही थी. इस वजह से उसे नींद अच्छी तरह से नहीं आ रही थी. ठण्ड में भी उसे गर्मी महसूस हो रही थी. पसीने छूट रहे थे. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. बात-बात में चिडचिडापन आ रहा था. डौक्टर से सलाह लेने के बाद पता चला कि वह प्री मेनोपौज के दौर से गुजर रही है. जो समय के साथ-साथ ठीक हो जायेगा.

दरअसल मेनोपौज यानी रजोनिवृत्ति एक नैचुरल बायोलौजिकल प्रक्रिया है,जो महिलाओं की 40 से 50 वर्ष के बीच में होता है. महिलाओं में कई प्रकार के हार्मोनल बदलाव इस दौरान आते है और मासिक धर्म रुक जाता है.  इस बारें में ‘कूकून फर्टिलिटी’ के डायरेक्टर, गायनेकोलोजिस्ट और इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ.अनघा कारखानिस कहती है कि अगर कोई महिला पूरे 12 महीने बिना किसी माहवारी के गुजारती है तो उसे मेनोपौज ही कही जाती है, ऐसे में कुछ महिलाओं को लगता है कि मेनोपौज से उनकी प्रजनन क्षमता समाप्त होने की वजह से वे ओल्ड हो चुकी है, जबकि कुछ महिलाओं को हर महीने की झंझट से दूर होना भी अच्छा लगता है. इतना ही नहीं इसके बाद किसी भी महिला को बिना चाहे माँ बनने की समस्या भी चली जाती है.

इसके आगे डौ.अनघा बताती है कि मेनोपौज एक सामान्य प्रक्रिया होने के बावजूद उसे लेकर कई भ्रांतियां महिलाओं में है, जबकि कुछ महिलाओं में मूड स्विंग और बेचैनी रहती भी नहीं है, लेकिन वे मेनोपौज के बारें में सोचकर ही परेशान रहने लगती है,जिससे न चाहकर भी उनका मनोबल गिरता है और वे डिप्रेशन की शिकार होती है. जबकि ये सब मिथ है और इसका मुकाबला आसानी से किया जा सकता है, जो निम्न है,

Winter Special: ऐसे बढ़ाएं शरीर की इम्यूनिटी

जाड़े के मौसम में अकसर जिन की इम्यूनिटी कमजोर होती है वे बीमार पड़ जाते हैं. इस मौसम में पौल्यूशन भी अपने चरम पर होता है. हवाओं की ठंडक अलग शरीर के काम करने की क्षमता घटा देती है. ऐसे में इम्यूनिटी का मजबूत होना बहुत जरूरी है.

क्या है इम्यूनिटी

दरअसल, इम्यूनिटी हमारे शरीर में मौजूद टौक्सिंस से लड़ने की क्षमता होती है. शरीर में टौक्सिन के बहुत सारे कारण हो सकते हैं, मसलन बैक्टीरिया, वायरस या फिर अन्य नुकसानदेह पैरासाइट्स. शरीर के आसपास बहुत सारे बैक्टीरिया और वायरस मौजूद होते हैं जो हमें कई तरह की बीमारियों से ग्रस्त कर देते हैं. वायु प्रदूषण की वजह से फेफड़े और सांस से जुड़ी समस्याएं भी परेशान कर सकती हैं.

शरीर को इन बाहरी संक्रमणों, प्रदूषण जनित तकलीफों और बीमारियों से बचा कर रखने के लिए शरीर के अंदर एक रक्षा प्रणाली होती है जिसे इम्यून सिस्टम या रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं. अगर आप की इम्यूनिटी मजबूत है तो आप बदलते मौसम और प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से बचे रहते हैं.

आइए, जानते हैं इम्यूनिटी मजबूत करने के तरीकों के बारे में:

शारीरिक सक्रियता है जरूरी

खुद को स्वस्थ रखने और अपनी इम्यूनिटी को सुधारने के लिए शरीर का सक्रिय रहना जरूरी है. शारीरिक गतिविधि से ऐंडोर्फिन नामक हारमोन का स्राव होता है जिस से तनाव दूर होता है, मन आनंदित रहता है और शरीर की क्षमता बढ़ती है. जब आप काम नहीं करते हैं और भूख लगने पर खाना खा लेते हैं तो आप पेट से जुड़े बहुत सारे रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं. शारीरिक निष्क्रियता आप के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करती है. इस से बचने के लिए नियमित व्यायाम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं.

व्यायाम करने से आप का स्टैमिना बढ़ता है. पाचन क्षमता दुरुस्त रहती है. नियमित व्यायाम से पुरानी बीमारियों जैसे मोटापा, टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग के साथसाथ वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण होने का खतरा भी कम होता है. अपने व्यायाम में योग और साइक्लिंग के साथ सैर को भी शामिल करें. वयस्कों को प्रति सप्ताह कम से कम ढाई घंटे मध्यम तीव्रता वाले.

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ऐरोबिक व्यायाम: जैसे चलना, टहलना और साइकिल चलाना और सवा घंटा, उच्च तीव्रता वाले ऐरोबिक व्यायाम जैसे दौड़ना चाहिए. इसी तरह हमें प्रतिदिन 4-5 मील चलने की आदत भी रखनी चाहिए. मार्च, 2020 में ‘जर्नल औफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन’ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक रोज आप जितना अधिक चलते हैं आप के समय से पहले मरने की संभावना उतनी ही कम हो जाती है. चलना और व्यायाम करना आप की जिंदगी बढ़ाते हैं.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार, सप्ताह में कम से कम 2 बार स्ट्रैंथ ट्रेनिंग भी आप के स्वास्थ्य के लिए वरदान है. यह आप की हड्डियों को मजबूत करती है, बीमारी को दूर रखती है और पाचन में सुधार करती है. क्लीनिकल ऐंड एक्सपैरिमैंटल मैडिसिन में जुलाई, 2020 में प्रकाशित एक समीक्षा के मुताबिक प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और कोविड-19 जैसे वायरल संक्रमणों से बचाने के लिए मसल्स बिल्डिंग सहित दूसरे व्यायाम भी जरूरी हैं.

भरपूर नींद लें

नींद एक ऐसा समय है जब आप का शरीर प्रमुख प्रतिरक्षा कोशिकाओं और अणुओं जैसे साइटोकिंस (एक प्रकार का प्रोटीन जो सूजन से लड़ सकता है, या बढ़ावा दे सकता है), टी कोशिका (एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिका जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित करती है) और इंटरल्यूकिन 12 को नियंत्रित करती है. पर्याप्त आराम पाने से हमारे शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा मजबूत हो जाती है.

जब आप पर्याप्त नींद नहीं लेते हैं तो प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक से अपने ये काम नहीं कर पाती और आप के बीमार होने की संभावना अधिक होती है.

बिहेवियरल स्लीप मैडिसिन के जुलाईअगस्त, 2017 अंक में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि स्वस्थ युवा वयस्कों की तुलना में (जिन्हें नींद की समस्या नहीं थी), अनिद्रा से पीडि़त स्वस्थ युवा वयस्कों में टीका लगवाने के बाद भी फ्लू की आशंका अधिक थी.

नींद की कमी भी कोर्टिसोल के स्तर को बढ़ाती है जो निश्चित रूप से इम्यून सिस्टम के लिए भी अच्छा नहीं है. नींद की कमी से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली खराब हो जाती है और हमारे पास बीमारी से लड़ने या ठीक होने की क्षमता कम हो जाती है.

‘नैशनल स्लीप फाउंडेशन’ सभी वयस्कों को अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रति रात 7 से 9 घंटे की नींद लेने की सलाह देता है. सोने से कम से कम 2 से 3 घंटे पहले इलैक्ट्रौनिक्स बंद करना, फोन से दूरी रखना और हिंसक या तनावपूर्ण सीरियल्स अथवा बातचीत से बचना जरूरी है.

खानपान में बदलाव

अपनी दिनचर्या और खानपान में थोड़ा बदलाव कर आप खुद को स्वस्थ रखने के साथसाथ अपनी इम्यूनिटी को भी सुधार सकते हैं. अपने आहार में उन चीजों को शामिल करें जो आप के शरीर को पोषण प्रदान करने के साथसाथ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली हों. चिप्स, मैगी, फ्रैंचफ्राइज, पास्ता, पिज्जा, डब्बाबंद आहार, सोडा ड्रिंक आदि को भूल कर भी शामिल न करें. उबले अंडे, मौसमी ताजे फल, दलिया, नट्स, अंकुरित अनाज, सीड्स, मेवे आदि के साथसाथ जूस, लस्सी वगैरह शामिल करें.

इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए अपने आहार में टमाटरों को जरूर शामिल करें. इन में मौजूद लाइकोपीन, विटामिन के, विटामिन सी और फाइबर इम्यूनिटी सुधारने में मददगार साबित होते हैं. इसी तरह संतरा, नीबू, आंवला जैसे खट्टे फलों में विटामिन सी की भरपूर मात्रा होती है, जो हर तरह के संक्रमण से लड़ने वाली श्वेत रक्त कणिकाओं का निर्माण करने में सहायक होती है.

इन सारी चीजों को अपने आहार का नियमित हिस्सा बनाएं. लहसुन भरपूर मात्रा में ऐंटीऔक्सिडैंट बना कर हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को बीमारियों से लड़ने की शक्ति देता है. इस में एलिसिन नामक ऐसा तत्त्व पाया जाता है जो शरीर को किसी भी प्रकार के संक्रमण और बैक्टीरिया से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है. इसी तरह पालक, मशरूम, स्प्राउट्स आदि भी आप को अंदर से मजबूत बनाते हैं.

खुश रहें

जब भी मौका मिले खुल कर हंसने का प्रयास करें. ऐसा करने से आप तनाव को कम कर सकती हैं और लंबे समय तक बीमारी के प्रति कम संवेदनशील हो जाते हैं. इस के अलावा अपने रिश्तों को समय दें. सामाजिक संबंधों से सामाजिक समर्थन की भावना बढ़ सकती है. दिल से खुश रहेंगे तो शरीर मजबूत रहेगा और वातावरण में मौजूद बीमारियों के वायरस आप पर आक्रमण नहीं कर सकेंगे.

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प्रकृति के साथ समय बिताएं

अपने इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए प्रकृति के साथ अधिक समय बिताएं. प्राकृतिक वातावरण हमें शुद्ध वायु और प्रसन्न मन देता है. पेड़पौधों का सामीप्य हमें कई तरह से रोगमुक्त करता है, हमारे श्वसनतंत्र को मजबूत बनाता है. रोजाना थोड़ी देर धूप में बैठें ताकि आप का सामना सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से हो. धूम विटामिन डी का बेहतरीन स्रोत होती है जो हड्डियों को मजबूती देने के साथसाथ प्रतिरक्षा प्रणाली को भी दुरुस्त करती है.

गंदगी से रहें दूर

अपने आसपास का वातावरण साफसुथरा रखने के अलावा अपनी शारीरिक स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें क्योंकि बहुत सारी बीमारियों का कारण गंदगी होती है.

और वक्त बदल गया: भाग 1- क्या हुआ था नीरज के साथ

लेखिका- शकीला एस हुसैन

नीरज की परेशानी दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी. स्कूल के इम्तिहान खत्म हो चुके थे. ट्यूशन क्लासेज भी बंद हो गई थीं. अभी उस के सामने कई खर्चे खड़े थे- कमरे का किराया, घर का सामान. उस के पास इतने पैसे न थे कि सारे खर्च एकसाथ निबट जाते. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. नीरज को एकाएक खयाल आया कि मकानमालकिन मिसेज रेमन से बात की जाए, शायद कोई हल निकल आए. मिसेज रेमन उस 2 कमरों के मकान में अकेली ही रहती थीं. छत पर उस का कमरा था. वहां एक कमरा वाशरूम के साथ था. बरामदे को घेर कर छोटी सी रसोई बना दी थी. नीरज के लिए कमरा ठीकठीक था. उस की अच्छी गुजर हो रही थी. पिछले दिनों उस की बीमारी की वजह से पैसों की समस्या खड़ी हो गई थी. इलाज में पैसा खर्च हो गया और बचत न हो सकी.

शाम को वह मिसेज रेमन के दरवाजे की घंटी बजा रहा था. उन्होंने दरवाजा खोला और मुसकरा कर बोलीं, ‘‘हैलो यंगमैन, कैसे हो?’’ उस के जवाब का इंतजार किए बगैर उन्होंने प्यार से उसे बिठाया. उस के न कहने के बावजूद वे चाय ले आईं. फिर पूछा, ‘‘बताओ, कैसे आना हुआ?’’ नीरज ने धीमे से कहा, ‘‘मैम, आप को तो पता है मैं एमई कर रहा हूं और ट्यूशन कर के अपना खर्च चलाता हूं. छुट्टियों में कोई काम कर लेता हूं पर इस बार बीमारी के इलाज में खर्च ज्यादा हो गया, इसलिए इस महीने का किराया वक्त पर नहीं दे पाऊंगा. मुझे थोड़ी मोहलत दे दीजिए.’’

इस से पहले कभी नीरज से मिसेज रेमन को कोई शिकायत न थी. बहुत शिष्ट और शालीन था वह. किराया हमेशा वक्त पर देता था. मिसेज रेमन अच्छी महिला थीं, बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं, जब तुम्हें सहूलियत हो तब किराया दे देना. तुम स्टूडैंट हो और बहुत अच्छे लड़के हो. इतनी रियायत तो मैं तुम्हें दे सकती हूं.’’

नीरज खुश हो गया, बोला, ‘‘बहुतबहुत शुक्रिया मैम.’’

वे बोलीं, ‘‘नीरज मेरे पास तुम्हारे लिए एक औफर है. मेरा एक स्टोर है. उस को मेरे एक पुराने मित्र मिस्टर जैकब देखते हैं. वे भी काफी उम्र के हैं. हिसाबकिताब में उन्हें परेशानी होती है. अगर तुम शाम को थोड़ा वक्त निकाल कर हिसाबकिताब देख लो तो तुम्हारे किराए के रुपए भी उसी में से कट जाएंगे और कुछ रुपए तुम्हें मिल भी जाएंगे.’’

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नीरज ने तुरंत कहा, ‘‘ठीक है मैम, मैं कल से यह काम शुरू कर दूंगा. इस से मुझे बहुत मदद मिल जाएगी. मैं आप का बहुत एहसानमंद हूं.’’

दूसरे दिन से नीरज 1-2 घंटे स्टोर पर हिसाबकिताब वगैरा देखने लगा. मिस्टर जैकब बहुत सुलझे हुए और सहयोग करने वाले इंसान थे. बड़े अच्छे से उस का काम चलने लगा. महीना पूरा होने पर किराए के पैसे काट कर उसे कुछ रकम भी मिलगई. नीरज के सैमेस्टर शुरू हो गए. परीक्षाएं खत्म होने पर उसे सुकून मिला. उस दिन वह अच्छे मूड में नीचे गार्डन में बैठा था कि मिसेज रेमन आ गईं. उस की परीक्षाएं खत्म होने की बात सुन कर वे बहुत खुश हुईं. उसे रात के खाने पर आमंत्रित किया. बहुत अच्छे माहौल में खाना खाया गया. उन्होंने बिरयानी बहुत अच्छी बनाई थी. बरसों बाद उसे किसी ने इतने प्यार से खाना खिलाया था. मिसेज रेमन ने छुट्यों में उसे 1-2 जगह और काम दिलाने का भी वादा किया.

रात को जब वह बिस्तर पर लेटा तो मिसेज रेमन के बारे में सोच रहा था. पर पता नहीं कैसे एक खूबसूरत चेहरा उस के खयालों में उभर आया. उस हसीन चेहरे को वह भूल जाना चाहता था. अपने अतीत को अपने जेहन से खुरच कर फेंक देना चाहता था. पर न जाने क्यों वह चेहरा बारबार उस की यादों में चला आता था. न चाहते हुए भी वह अतीत में डूब गया…

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उस समय वह करीब 6 साल का था. एक बहुत खूबसूरत औरत, जो उस की मम्मी थी, उसे प्यार करती, उस का खयाल रखती. उस के पापा भी बहुत हैंडसम और डैश्ंिग थे. वे उसे घुमाने ले जाते, खिलौने दिलाते. पर एक बात से वह बहुत परेशान रहता कि अकसर किसी न किसी बात पर उस के मातापिता के बीच लड़ाई हो जाती, खूब तकरार होती. वह सहम कर अपने कमरे में छिप जाता. उस का मासूम दिल यह समझ ही नहीं पाता कि उस के मम्मी-पापा क्यों झगड़ते हैं. फिर घर में खाना नहीं पकता. पापा गुस्से से बाहर चले जाते और खूब देर से घर लौटते. वह दूध और डबलरोटी खा कर सो जाता. इसी तरह दिन गुजर रहे थे. एक दिन दोनों के बीच बड़ी जोरदार लड़ाई हुई. फिर पापा जोरजोर से चिल्ला कर पता नहीं क्याक्या बक कर बाहर चले गए. मम्मी भी देर तक चिल्लाती रहीं. उस रात को पापा घर वापस लौट कर नहीं आए. दूसरे दिन आए तो फिर दोनों में तकरार शुरू हो गई. बीचबीच में उस का नाम भी ले रहे थे. फिर पापा सूटकेस में अपना सामान भर कर चले गए और कभी लौट कर नहीं आए. मम्मी का मिजाज बिगड़ा रहता.

3 महीने इसी तरह गुजर गए, फिर मम्मी एकदम, खुश दिखने लगीं. एक दिन एक बैग में उस का सामान पैक किया, फिर उस की मम्मी, जिस का नाम सोनाली था, ने कहा, ‘नीरज, मुझे विदेश में जौब मिल गई है. अब तुम मेरी कजिन नीता आंटी के साथ रहोगे. वे तुम्हारा बहुत खयाल रखेंगी. बेटा, तुम भी उन को तंग न करना.’ दूसरे दिन सोनाली उसे नीता आंटी के यहां छोड़ने गई. नीरज किसी भी हाल में मम्मी को छोड़ना नहीं चाहता था. रोरो कर उस की हिचकियां बंध गईं. मम्मी भी रो रही थीं पर फिर वे आंचल छुड़ा कर चली गईं. नीरज उदास सा, हालात से समझौता करने को मजबूर था. उस के पास और कोई रास्ता न था. उस का ऐडमिशन दूसरे स्कूल में हो गया. नीता आंटी का व्यवहार उस से अच्छा था. वे उसे प्यार भी करती थीं. अंकल बहुत कम बोलते, उसे अलग कमरे में अकेले सोना होता था. रात में सोते समय वह कई बार डर कर उठ जाता, तकिया सीने से लगाए रोरो कर रात काट देता. कोई ऐसा न था जो उसे उन काली रातों में उसे सीने से लगा कर प्यार करता. उसे समझ नहीं आता था, मां उसे छोड़ कर क्यों चली गईं? पापा कहां चले गए? दिन बीतते रहे. 10-12 दिनों बाद मम्मी उस से मिलने आईं. खिलौने, चौकलेट, कपड़े लाई थीं. उसे खूब प्यार किया और फिर उसे रोताबिलखता छोड़ कर मलयेशिया चली गईं.

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और वक्त बदल गया: भाग 3- क्या हुआ था नीरज के साथ

लेखिका- शकीला एस हुसैन

धीरे धीरे रेनू ने अंकल के कान भरने शुरू कर दिए. अब नीरज उन की नजरों में भी खटकने लगा. बेवजह के ताने व प्रताड़ना शुरू हो गई. उस दिन तो हद हो गई, उसे एक किताब की जरूरत थी, उस ने अंकल से पैसे मांगे. इस बात को ले कर इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया कि अतीत के सारे कालेपन्ने खोल कर उसे सुनाए गए. उस पर किए गए एहसान जताए गए, खर्च के हिसाब बताए गए. नीरज खामोश खड़ा सब सुनता रहा.  उस के पास कहने को क्या था? उस के मांबाप ने उसे ऐसी स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया था कि शरम से उस का सिर झुक जाता था. अच्छे मार्क्स लाने के बाद उस की न कोई कद्र थी, न कोई तारीफ. 10वीं में उस के 97 फीसदी नंबर आए थे. स्कौलरशिप मिल रही थी. पढ़ाई के सारे खर्चे उसी में से पूरे हो जाते. कभीकभार किताबें वगैरा के लिए कुछ पैसे मांगने पड़ते थे. उस पर भी हंगामा खड़ा हो जाता.

उस दिन वह अपने कमरे में आ कर बेतहाशा रोया. उस के मांबाप ने अपनी मुहब्बत व अपने ऐश, अपनी सहूलियतों, अपने स्वार्थ के लिए उस की जिंदगी बरबाद कर दी थी. अगर उन दोनों ने विधिवत शादी की होती, अपनी जिम्मेदारी समझी होती तो ननिहाल या ददिहाल में से कोई भी उसे रख लेता. उस की जिंदगी यों शर्मसार न हुई होती. उसी दिन रात को उस ने तय किया कि 12वीं पास होते ही वह यह घर छोड़ देगा. अपने बलबूते पर अपनी पढ़ाईर् पूरी करेगा. 12वीं उस ने मैरिट में उत्तीर्ण की. पर घर में कोई खुशी मनाने वाला न था. रूखीफीकी मुबारकबाद मिली. बस, बूआ ने बहुत प्यार किया. अपने पास से मिठाई मंगा कर उसे खिलाई. हां, उस के दोस्तों ने खूब सैलिब्रेट किया. 2-4 दिनों बाद उस ने घर छोड़ दिया. पढ़ाई के खर्चे की उसे कोई फिक्र न थी. स्कौलरशिप मिल रही थी. एक अच्छे स्टूडैंट के लिए कुछ मुश्किल नहीं होती.

उस की परफौर्मेंस बहुत अच्छी थी. उस का ऐडमिशन एक अच्छे कालेज में हो गया. उस ने अपने एक दोस्त के साथ मिल कर कमरा किराए पर ले लिया और ट्यूशन कर के निजी खर्च निकालने लगा. उस का पढ़ाने का ढंग इतना अच्छा था कि उसे 10वीं के बच्चों की ट्यूशन मिल गई. जिंदगी सुकून से गुजरने लगी. छुट्टियों में काम कर के कुछ और पैसे कमा लेता. बीई में उस ने पोजीशन ली. बीई के बाद उस के दोस्त ने जौब कर ली और दूसरे शहर में चला गया. मकानमालिक को कमरे की जरूरत थी, उसे वह घर छोड़ना पड़ा. फिर थोड़ी कोशिश के बाद उसे मिसेज रेमन के यहां कमरा मिल गया. यह खूब पुरसुकून व अच्छी जगह थी. उस ने दुनिया के सारे शौक, सारे मजे छोड़ दिए थे. उस की जिंदगी का बस एक मकसद था, पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई. यहां भी वह ट्यूशन कर के अपना खर्च चलाता था. अब स्टोर में भी काम मिल गया, ये सब पुरानी बातें सोचतेसोचते वह नींद की आगोश में चला गया.

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नीरज का यह फाइनल सैमेस्टर था. कैंपस सिलैक्शन में उसे एक अच्छी कंपनी ने चुन लिया. जीभर कर उस ने खुशियां मनाई. फाइनल होने के बाद उस ने वही कंपनी जौइन कर ली. शानदार पैकेज, बहुत सी सहूलियतें जैसे उस की राह देख रही थीं. मिसेज रेमन और मिस्टर जैकब को भी उस ने बाहर डिनर कराया. उन दोनों ने भी उसे तोहफे व दुआएं दे कर उस का हौसला बढ़ाया. मिसेज रेमन ने एक मां की तरह प्यार किया. बूआ को साड़ी व पैसे दिए. वक्त और हालात बदलते देर नहीं लगती. आज वह 6 साल का मजबूर व बेबस बच्चा न था, 24 साल का खूबसूरत, मजबूत और समृद्ध जवान था. एक शानदार घर में रह रहा था. दुनिया की सारी सुखसुविधाएं उस के पास थीं. पर फिर भी उस की आंखों में उदासी और जिंदगी में तनहाई थी. वह हर वीकैंड पर मिसेज रेमन से मिलने जाता. वही एकमात्र उस की दोस्त, साथी या रिश्तेदार थीं. अच्छा वक्त तो वैसे भी पंख लगा कर उड़ता है.

उस दिन शाम को वह लौन में बैठा चाय पी रहा था कि गेट पर एक टैक्सी आ कर रुकी. उस में से एक सांवली सी अधेड़ औरत उतरी और गेट खोल कर अंदर चली आई. नीरज उस महिला को पहचान न सका, फिर भी शिष्टाचार के नाते कहा, ‘‘बैठिए, आप कौन हैं?’’ उस औरत की आंखें गीली थीं. चेहरे पर बेपनाह मजबूरी और उदासी थी. उस ने धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘नीरज, तुम ने मुझे पहचाना नहीं. मैं सोनाली हूं, तुम्हारी मम्मी.’’ नीरज भौचक्का रह गया. कहां वह जवान और खूबसूरत औरत, कहां यह सांवली सी अधेड़ औरत. दोनों में बड़ा फर्क था. ‘मम्मी’ शब्द सुन कर नीरज के मन में कोई हलचल न हुई. उस की सारी कोमल भावनाएं बर्फ की तरह सर्द हो कर जम चुकी थीं. अब दिल पर इन बातों का कोई असर न होता था. उस ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘कहिए, कैसे आना हुआ? आप को मेरा पता कहां से मिला?’’

‘‘बेटा, मैं दूर जरूर थी पर तुम से बेखबर न थी. तुम्हारा रिजल्ट, तुम्हारी कामयाबी, नौकरी सब की खबर रखती थी. इंटरनैट से दुनिया बहुत छोटी हो गई है. जीजाजी से मिसेज रेमन का पता चला. उन से तुम्हारे बारे में मालूम हो गया. इस तरह तुम तक पहुंच गई. मैं जानती हूं, मेरा तुम से माफी मांगना व्यर्थ है क्योंकि जो कुछ मैं ने किया है उस की माफी नहीं हो सकती. तुम्हारा बचपन, तुम्हारा लड़कपन, मेरी नादानी और मेरे स्वार्थ की भेंट चढ़ गया. मैं ने जज्बात में आ कर गलत फैसला किया. न मैं खुश रह सकी न तुम्हें सुख दे सकी. मैं ने वह खिड़की खुद ही बंद कर दी जहां से ताजी हवा का झोंका, मुहब्बत की ठंडी फुहार मेरे तपते वजूद की तपिश कम कर सकती थी. मैं ने थोड़े से ऐश की खातिर उम्रभर के दुखों से सौदा कर लिया. अब सिर्फ पछतावा ही मेरी जिंदगी है.’’

‘‘ठीक है, सोनाली मैम, जो आप ने किया, सोचसमझ कर किया था. आज से 30-32 साल पहले ‘लिवइन रिलेशनशिप’ इतनी आम बात न थी. बहुत कम लोग यह कदम उठाते थे. आप उस समय इतनी बोल्ड थीं, आप ने यह कदम उठाया. फिर उस को निभाना था. एक बच्चे को जन्म दे कर आप ने उस की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया. न मेरा कोई ननिहाल रहा, न ददिहाल. मैं ने कैसे खुद को संभाला, यह मैं जानता हूं. ‘‘जिस उम्र में बच्चे मां के सीने पर सिर रख कर सोते हैं उस उम्र में मैं ने तकिए से लिपट कर रोरो कर रातें काटी हैं. आप ने और पापा ने सिर्फ अपने ऐश देखे. एक पल को भी, उस बच्चे के बारे में न सोचा जिसे दुनिया में लाने के आप दोनों जिम्मेदार थे. अब मेरी मासूमियत, मेरा बचपन, मेरी कोमल भावनाएं सब बेवक्त मर चुकी हैं.’’

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‘‘नीरज, तुम जो भी कह रहे हो, एकदम सच है. मैं ने हर कदम सोचसमझ कर उठाया था. पर उस के अंजाम ने मुझे ऐसा सबक सिखाया है कि हर लमहा मैं खुद को बुराभला कहती हूं. मलयेशिया में मैं ने दूसरी शादी की थी. पर 6 साल तक मुझे औलाद न हुई तो उस ने मुझे तलाक दे दिया. उसे औलाद चाहिए थी और मैं मां न बन सकी. औलाद की बेकद्री की मुझे सजा मिल गई. मैं औलाद मांगती रही, मेरे बच्चा न हुआ. सारे इलाज कराए. यहां औलाद थी तो मैं ने दूसरों को दे दी. मेरे गुनाहों का अंत नहीं है. ‘‘मुझे कैंसर है. थोड़ा ही वक्त मेरे पास है. मैं अपने गुनाहों का, अपनी भूलों का प्रायश्चित्त करना चाहती हूं. अब मैं तुम्हारे पास रहना चाहती हूं. मैं तनहाई से तंग आ गई हूं. मुझे तुम्हारी तनहाई का भी एहसास है. पैसा है मेरे पास, पर उस से तनहाई कम नहीं होती. भले तुम मुझे खुदगर्ज समझो पर यह मेरी आखिरी ख्वाहिश है. एक बार मुझे मेरी गलतियां सुधारने का मौका दो. अपनी बेबस व मजबूर मां की इतनी बात रख लो.’’

नीरज सोच में पड़ गया. एक बार दिल हुआ, मां को माफ कर दे. दूसरे पल संघर्षभरे दिन, अकेले रोतेरोते गुजारी रातें याद आ गईं. उस ने धीमे से कहा, ‘‘सोनाली मैम, इतने सालों से मैं बिना रिश्तों के जीने का आदी हो गया हूं. रिश्ते मेरे लिए अजनबी हो गए हैं. मुझे थोड़ा वक्त दीजिए कि मैं अपने दिल को रिश्ते होने का यकीन दिला सकूं, अपनों के साथ जीने का तरीका अपना सकूं. ‘‘इतने सालों तक तपते रेगिस्तान में झुलसा हूं, अब एकदम से ठंडी फुहार बरदाश्त न कर सकूंगा. मुझे अपनेआप को ‘मां’ शब्द से मिलने का, समझने का मौका दीजिए. अभी मुझे नए तरीकों को अपनाने में थोड़ी हिचकिचाहट है. जैसे ही मुझे लगेगा कि मैं ने मां को पहचान लिया है, मैं आप को खबर कर के लेने आ जाऊंगा. आप अपना फोन नंबर और पता मुझे दे जाइए.’’

सोनाली ने एक उम्मीदभरी नजर से बेटे को देखा. उस की आंखें डबडबा गईं. वह थकेथके कदमों से गेट की तरफ मुड़ गई.

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और वक्त बदल गया: भाग 2- क्या हुआ था नीरज के साथ

लेखिका- शकीला एस हुसैन

जिंदगी एक ढर्रे पर चलने लगी. नीता आंटी उस का बहुत खयाल रखतीं. आंटी के यहां रहते हुए उसे कई बातें पता चलीं. आंटी की शादी को 8 साल हो गए थे. उन के यहां औलाद न थी. इसलिए उन्होंने उसे गोद लिया था. जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, उसे सारी बातें समझ में आती गईं. कुछ बातें उसे नीता आंटी से पता चलीं. कुछ बातें उन की पुरानी बूआ कमला से पता चलीं. उस के मांबाप की कहानी भी उन्हीं लोगों से मालूम पड़ीं. उस की मम्मी सोनाली बहुत खूबसूरत, चंचल और जहीन थीं. जब वे एमएससी कर रही थीं, उन की मुलाकात उस के पापा रवि से हुई. पहले दोस्ती, फिर मुहब्बत. दोनों के धर्म में फर्क था. दोनों के घरों से शादी का इनकार ही था. पर इश्के जनून कहां रुकावटों से रुकता है. दोनों की पढ़ाई पूरी होते ही उन दोनों ने सोचसमझ कर आपसी सहमति से अपना शहर छोड़ दिया और इस शहर में आ कर बस गए. सोनाली और रवि दोनों ही नए जमाने के साथ चलने वाले, ऊंची उड़ान भरने वाले परिंदे सरीखे थे. पुराने रीतिरिवाजों के विरोधी, नई सोच नई डगर, आजाद खयालों के हामी, उन दोनों ने ‘लिवइन रिलेशन’ में एकसाथ रहना शुरू कर दिया. विवाह उन्हें एक बंधन लगा.

उन का एजुकेशनल रिकौर्ड काफी अच्छा था. जल्द ही उन्हें अच्छी नौकरी मिल गई. जल्द ही उन्होंने जीवन की सारी जरूरी सुविधाएं जुटा लीं. एक साल फूलों की महक की तरह हलकाफुलका खुशगवार गुजर गया. फिर उन की जिंदगी में नीरज आ गया. शुरूशुरू में दोनों ने खुशी से जिम्मेदारी उठाई. दिन पंख लगा कर उड़ने लगे. सोनाली चंचल और आजाद रहने वाली लड़की थी. घर में सासससुर या कोई बड़ा होता तो कुछ दबाव होता, थोड़ा समझौता करने की आदत बनती. पर ऐसा कोई न था. रवि बेहद महत्त्वाकांक्षी और थोड़ा स्वार्थी था. खर्च और काम बढ़ने से दोनों के बीच धीरेधीरे कलह होने लगी. पहले तो कभीकभार लड़ाई होती, फिर अंतराल घटने लगा. दोनों में बरदाश्त और सहनशीलता जरा न थी. फिर हर दूसरे, तीसरे दिन लड़ाई होने लगी. रवि के अपने मांबाप, परिवार से सारे संबंध टूट चुके थे और वे लोग उस से कोई संबंध रखना भी नहीं चाहते थे. उन के रवि के अलावा एक बेटा और एक बेटी थी. उन्हें डर था कि कहीं रवि के व्यवहार का दोनों बच्चों पर बुरा प्रभाव न पड़ जाए. जो लड़का प्यार की खातिर घरपरिवार छोड़ दे, उस से उम्मीद भी क्या रखी जा सकती है.

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रिश्तेदारों से तो रवि पूरी तरह कट चुका था. कभी किसी दोस्त या सहयोगी के यहां कोई समारोह में शामिल होने का मौका मिलता, वहां भी कोई न कोई ऐसी बात हो जाती कि मन खराब हो जाता. कभी कोई इशारा कर के कहता, ‘यही हैं जो लिवइन रिलेशन में रह रहे हैं.’ या कोई कह देता, ‘इन लोगों की शादी नहीं हुई है, ऐसे ही साथ रहते हैं.’ उन दिनों लिवइन रिलेशन बहुत कम चलन में था. लोग इसे बहुत बुरा समझते थे. लोग खूब आलोचना भी करते थे. रवि भी इस बात को महसूस करता था कि अगर समाज में घुलमिल कर रहना है तो समाज के बनाए उसूलों के अनुसार चलना जरूरी है. पर अब इन सब बातों के लिए बहुत देर हो चुकी थी. जो जैसा चल रहा था, वही अच्छा लगने लगा था.

सोनाली अपने परिवार की बड़ी बेटी थी. उस से छोटी 2 बहनें थीं. उस ने घर से भाग कर रवि के साथ रहना शुरू कर दिया. इन सब बातों की उस के मांबाप को खबर हो गई थी. बिना शादी के दोनों साथ रहते हैं, इस बात से उन्हें बहुत धक्का लगा. ऐसी खबरें तो पंख लगा कर उड़ती हैं. उन की 2 बेटियां कुंआरी थीं. कहीं सोनाली की कालीछाया उन दोनों के भविष्य को भी ग्रहण न लगा दे, यह सोच कर उन लोगों ने सोनाली से कोई संबंध नहीं रखा, न उस की कोई खोजखबर ली. वैसे भी, एक आजाद लड़की को क्या समझाना. इस तरह सोनाली भी अपने परिवार से अलग हो गई थी. उस की रिश्ते की एक बहन नीता इसी शहर में रहती थी. उस से मेलमुलाकात होती रहती थी. उस की शादी को 8 साल हो गए थे. उस की कोई औलाद न थी. वह बच्चे के लिए तरसती रहती थी. इधर, रवि और सोनाली के बीच अहं का टकराव होता रहता. दोनों पढ़ेलिखे, सुंदर और जहीन थे. कोई झुकना न चाहता था. एक बात और थी, दोनों ही अपने परिवारों से कटे हुए थे. इस बात का एहसास उन्हें खटकता तो था पर खुल कर इस को कभी स्वीकार नहीं करते थे क्योंकि उन की ही गलती नजर आती. फिर सोशललाइफ भी कुछ खास न थी. इसी घुटन और कुंठा ने दोनों को चिड़चिड़ा बना दिया था.

नीरज की जिम्मेदारी और खर्च दोनों को ही भारी पड़ता. दोनों को अपनाअपना पैसा बचाने की धुन सवार रहती. नतीजा निकला रोजरोज की लड़ाई और अंजाम, रवि घर, नीरज और सोनाली को छोड़ कर चला गया. न कोई बंधन था, न कोई दवाब, न कोई कानूनी रोक. बड़ी आसानी से वह सोनाली और बच्चे को छोड़ चला गया. किसी से पता चला कि वह दुबई चला गया. इधर, सोनाली भी बहुत महत्त्वाकांक्षी थी. उस ने भी दौड़धूप व कोशिश की. उसे मलयेशिया में नौकरी मिल गई. अब सवाल उठा बच्चे का. उस का क्या किया जाए. सोनाली भी अकेले यह जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहती थी.

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अभी उस के सामने पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की कजिन नीता ने सुझाव दिया कि उस की कोई औलाद नहीं है, वह नीरज को अपने बेटे की तरह रखेगी. सोनाली ने नीरज को उसे दे दिया. एक मौखिक समझौते के तहत बच्चा उसे मिल गया. कोई कानूनी कार्यवाही की जरूरत ही नहीं समझी गई. इस तरह मासूम नीरज, नीता आंटी के पास आ गया. बिना मांबाप के एक मांगे की जिंदगी गुजारने की खातिर. नीता आंटी उस का खूब खयाल रखती थीं, पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी. जो बच्चे बचपन में दुख उठाते हैं, तनहाई और महरूमी झेलते हैं, वे वक्त से पहले सयाने और समझदार हो जाते हैं. नीरज ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया. एक ही धुन थी उसे कि कुछ बन कर दिखाना है. मेहनत और लगन से उस का रिजल्ट भी खूब अच्छा आता था.

दुख और हादसे कह कर नहीं आते. नीता आंटी का रोड ऐक्सिडैंट हो गया. 4-5 दिन मौत से संघर्ष करने के बाद वे चल बसीं. नीरज की तो दुनिया उजड़ गई. अब बूआ एकमात्र सहारा थीं. वे उस का बहुत ध्यान रखतीं. अंकल पहले से ही कटेकटे से रहते थे. अब और तटस्थ हो गए. धीरेधीरे हालात सामान्य हो गए. उस वक्त वह 10वीं में पढ़ रहा था. एक साल गुजर गया. आंटी की कमी तो बहुत महसूस होती पर सहन करने के अलावा कोई रास्ता न था. पहले भी वह अकेला था अब और अकेला हो गया. उस के सिर पर आसमान तो तब टूटा जब अंकल दूसरी शादी कर के दूसरी पत्नी को घर ले आए. दूसरी पत्नी रेनू 30-31 साल की स्मार्ट औरत थी. कुछ अरसे तक वह चुपचाप हालात देखती और समझती रही और जब उसे पता चला, नीरज गोद लिया बच्चा है, तो उस के व्यवहार में फर्क आने लगा.

नीरज ने अपनेआप को अपने कमरे तक सीमित कर लिया. खाने वगैरा का काम बूआ ही देखतीं. डेढ़ साल बाद जब रेनू का बेटा पैदा हुआ तो नीरज के लिए जिंदगी और तंग हो गई. अब तो रेनू उसे बातबेबात डांटनेफटकारने लगी थी. खानेपीने पर भी रोकटोक शुरू हो गई. बासी बचा खाना उस के लिए रखा जाता. वह तो गनीमत थी कि बूआ उसे बहुत प्यार करती थीं, छिपछिपा कर उसे खिला देतीं.

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