सुषमा: भाग 1- क्या हुआ अचला के साथ

लेखिका- लीला रूपायन

मेरी कोठी की तीसरी मंजिल की बरसाती आज एक फ्लैट का रूप ले चुकी है. यह वही छत है जिस पर मैं अपना बोनसाई गार्डन प्लान कर रही थी पर कभी बनाया नहीं था. मैं वहां किसी को पांव नहीं रखने देती थी, इसलिए कि यह अपनी खूबसूरती न खो बैठे. आज उसी के एक तरफ मैं ने एक छोटा सा फ्लैट, इस को मैं ने खुद पास खड़े हो कर बनवाया है. सुषमा से मैं ने कितनी बार पूछा था, ‘‘सुषमा, तू भी तो कुछ बता, इस में कोई और काम करवाना हो तो? वरना जब मिस्त्री लोग चले जाएंगे तो कुछ भी नहीं हो सकेगा.’’

‘‘बस, मैडम, बहुत हो गया. कहां हम लोग झुग्गीझोंपड़ी में खस्ताहाल जीवन जीने वाले और कहां आप ने अपने घर की छत पर मेरे लिए कमरा बनवा दिया,’’ वह हाथ जोड़ कर बोली थी.

‘‘हाथ मत जोड़ा कर, सुषमा, मैं ने कितनी बार कहा है. यह तो मेरे लिए खुशी की बात है कि मुझे तुझ जैसी नेक, रहमदिल, समझदार साथिन मिली. नरक तो मैं भुगत रही थी. अगर तू मेरे जीवन में न आती तो ये महकी हुई बहारें मेरे जीवन में कहां से आतीं?’’ मैं ने सुषमा के हाथ पकड़ लिए थे.

‘‘आप तो मुझे शर्मिंदा करती हैं, मैडम. मैं ने ऐसा क्या किया है आप के लिए? बाकी सब बात छोडि़ए, इन हाथों से आप की सेवा तक नहीं कर पाई,’’ सुषमा नतमस्तक हो गई थी.

‘‘तू कभी नहीं जान सकेगी, सुषमा कि तू ने मेरे लिए क्या किया है, और जब जान जाएगी तो उसे छोटी सी बात कह कर तू उस का महत्त्व कम कर देगी. बस, अब तो यही वादा कर कि तू मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. मेरी बात को गलत मत समझना, सुषमा. तू अपने कर्तव्य को पूरी तरह निभाएगी, उस के लिए तू स्वतंत्र है. अब तो मैं भी तेरे साथ हूं न,’’ मैं ने हंसते हुए उस के कंधे पर हाथ रख दिया था.

‘‘मेरी दुनिया में और है ही कौन, मालकिन. न बालबच्चा, न पति. न पीहर, न ससुराल. किसी की झोंपड़ी में किराया दे कर रहती थी. सारे दिन की मेहनतमजदूरी कर के वापस आ कर वहां पड़ जाती थी. बस, इसी तरह जिंदगी की गाड़ी खिंच रही थी. न जाने कैसे आप के पांवों तक पहुंच गई. अब आप के कदमों में प्राण निकल जाएं, बस यही इच्छा है. चार बालिश्त कफन तो मिल जाएगा. झुग्गीझोंपड़ी में मरती तो पासपड़ोस वाले पुलिस की गाड़ी में मेरी लाश अस्पताल में चीरफाड़ के लिए भेज देते. जिन्हें एक जून पेट भर खाना भी नसीब नहीं होता, वे कहां से मेरे लिए लकड़ी का जुगाड़ करते?’’ सुषमा की आंखें भर आई थीं.

ये भी पढ़ें- जलन: क्या बहू के साथ सुधर पाया रमा का रिश्ता

18 साल पहले मेरी खुद की शादी हुई थी. अच्छे खातेपीते परिवार में डोली से जब उतरी थी तो अपनेआप से स्वयं ही वह ईर्ष्या करने लग गई थी. मांबाप की खुशी का ठिकाना ही नहीं था. उन्होंने कभी सपने में भी न सोचा होगा कि उन की बेटी इस तरह राजरानी बन जाएगी.

जैसे ही मैं ने बीए किया था, पिताजी ने आगे पढ़ाने से इनकार कर दिया था. मैं ने नौकरी के लिए हाथपांव मारने शुरू कर दिए थे, ताकि घर के खर्चों में हाथ बंटा सकूं. वह किसी भी तरह का काम करने को तैयार थी. भले ही वह ट्यूशन हो या कोई और छोटामोटा काम. जैसे ही पता चलता कि अमुक जगह काम मिल सकता है, वह वहां जा कर हाथ पसार कर खड़ी हो जाती. कितने ही दिन ठोकरें खाने के बाद जब सफलता मिली तो ऐसे रूप में कि नौकरी तो मिली ही, बाद में पति भी मिल गया.

एक दिन मेरे पिता ने ही कहा था, ‘हमारे डायरैक्टर के कोई रिश्तेदार हैं. उन का अपना व्यापार है. उन्हें एक कंप्यूटर औपरेटर की जरूरत है. तू तो कंप्यूटर भी सीख रही है, बेटी. मैं ने डायरैक्टर से आग्रह तो किया है. अगर वे सिफारिश कर देंगे तो शायद यह नौकरी तुम्हें मिल जाए. तुम दफ्तर में काम कर सकोगी?’

‘हां, पापा, जरूर करूंगी,’ मैं ने बड़े विश्वास से कहा.

सेठजी ने पत्र दे दिया था. जब उस फर्म के मालिक ने उस पत्र को पढ़ा था तो मुझे सिर से ले कर पांवों तक गौर से देखा था. जैसे मुझे तौला जा रहा हो, इतनी छोटी उम्र में मैं क्या नौकरी कर सकूंगी? जाने वह कैसी दृष्टि थी जिसे मैं सहन नहीं कर पा रही थी. और मेरी आंखें जमीन की ओर झुकती ही चली गई थीं. तभी मेरे कानों में उन की गंभीर आवाज पड़ी थी, ‘बहुत जरूरत है इस नौकरी की?’

‘जी हां,’ मैं ने डरतेडरते कहा था.

‘घर में और कौन है कमाने वाला?’

‘केवल मेरे पापा. हम 3 भाईबहन हैं. सब से बड़ी मैं ही हूं. पापा के वेतन से घर का पूरा खर्चा नहीं चलता. इसी लिए मेरी पढ़ाई भी रुक गई है. आप मुझे यह नौकरी दे देंगे तो मेरे पापा की बहुत सहायता हो जाएगी,’ मेरी आवाज भय से कांप रही थी.

‘तुम जानती हो यहां देर तक काम होता है. इसीलिए ज्यादा पुरुष हैं. इतने पुरुषों में काम कर सकोगी? देर हो जाने पर डरोगी तो नहीं?’

‘जी नहीं. आदमी अपने चरित्र पर दृढ़ रहे, कर्तव्य का बोझ कंधों पर हो तो उसे किसी से डर नहीं लगता. मैं आप को वचन देती हूं, मैं आप का काम लगन और ईमानदारी से करूंगी. आप को मुझ से कभी कोई शिकायत नहीं होगी,’ मैं ने दृढ़ता से कहा था.

ये भी पढ़ें- हिजड़ा: क्यों वह बनीं श्री से सिया

‘ठीक है, तुम कल से आ सकती हो,’ और उन्होंने अपने अधीनस्थ कर्मचारी को बुला कर कहा था, ‘यह अचला है. कल से इन की मेज इसी कमरे के बाहर करनी होगी. मुझे उम्मीद है यह मेरा काम संभाल लेगी.’

मुझे वह नौकरी मिल गई थी. आमतौर पर मैं सलवारसूट या साड़ी पहनती थी. एक दिन टौप व जींस पहन कर गई थी तो उन्होंने यह कह कर मुझे दफ्तर से वापस भेज दिया, ‘ऐसा लिबास पहन कर आया करो जिस में गंभीर और शालीन नजर आओ. ऐसा नहीं कि सब लोगों के लिए तुम तमाशा बन जाओ.’

‘साड़ी एक ही थी, छोटी बहन पहन कर कालेज फंक्शन में गई. सलवारकमीज के दोनों जोड़े धुलने गए थे इसीलिए,’ मैं घबरा गई थी.

‘जाओ, कैशियर से एडवांस ले लो और एक और साड़ी खरीद लो. मुझे उम्मीद है भविष्य में तुम हर बात का ध्यान रखोगी. मुझे सस्तापन बिलकुल पसंद नहीं,’ और मुझे एडवांस देने के लिए उन्होंने कैशियर को टैलीफोन कर दिया था.

फिर मैं ने उन्हें शिकायत का कभी मौका नहीं दिया था. मैं बड़ी लगन और मेहनत से काम करती थी. वे मेरा काम देखते और मुसकरा देते. इस से मेरा उत्साह बढ़ जाता.

उन का नाम हर्ष था. वे मेरे काम से इतने खुश थे कि अब वे कई कामों में मेरी सलाह भी ले लेते थे. उन के मोबाइल का नंबर सेव रहता था मेरे दिल में. घर में एक ही मोबाइल था जिसे सब इस्तेल करते थे. हमारे बीच चुप्पी की वह दीवार न जाने कब गिर गई थी जो नौकर और मालिक के बीच होती है. कई बार वे हंस कर कहते, ‘अचला, तुम तो अब मेरी सलाहकार हो गई हो, और सलाहकार अच्छे दोस्त भी होते हैं.’

मेरे सुखदुख और जरूरत का वे हमेशा ध्यान रखते थे. एकदो बार मुझे वे अपने घर भी ले गए थे. वहां उन की मम्मी का मुझे भरपूर स्नेह मिला था. वे ब्लडप्रैशर की मरीज थीं, लेकिन बहुत हंसमुख थीं और यह महसूस ही नहीं होने देती थीं कि वे बीमार हैं.

आगे पढ़ें- मैं कुछ पत्र टाइप कर रही थी और…

ये भी पढ़ें- जड़ों से जुड़ा जीवन: क्यों दूर गई थी मिली

40 साल की Shama Sikander करेंगी शादी, प्री वेडिंग फोटोज वायरल

टीवी एक्ट्रेस शमा सिकंदर (Shama Sikander) आज यानी 14 मार्च को गोवा में बौयफ्रेंड जेम्स मिलीरन (James Milliron) से शादी करने वाली हैं. इसी बीच शादी से पहले उनके प्री वेडिंग फोटोज (Pre Wedding Photoshoot) सोशलमीडिया पर वायरल हो रहे हैं. वहीं फोटोज देखते ही सेलेब्स और फैंस उन्हें बधाई देते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं एक्ट्रेस के प्री वेडिंग फोटोज की झलक (Shama Sikander pre-wedding photos)…

प्री वेडिंग फोटोज हुई वायरल

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shama Sikander (@shamasikander)

हाल ही में एक्ट्रेस शमा सिकंदर ने सोशलमीडिया पर अपनी प्री वेडिंग फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह अपने होने वाले पति जेम्स मिलीरन के साथ रोमांस करती नजर आ रही हैं. लुक की बात करें तो वाइट गाउन में शमा बेहद खूबसूरत लग रही हैं. वहीं जेम्स ब्लैक सूट में नजर आ रहे हैं. इसके अलावा कुछ फोटोज में शमा फ्लोरल ड्रैस पहनें पति संग एंट्री करते हुए नजर आ रही हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shama Sikander (@shamasikander)

ये भी पढ़ें- ‘नागिन 6’ से TV पर वापसी करेगी Kumkum Bhagya की ‘आलिया’

गोवा में होगी शादी

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shama Sikander (@shamasikander)

हाल ही में एक्ट्रेस शमा सिकंदर अपने मंगेतर और फैमिली के साथ गोवा में पहुंची हैं. जहां पर उनकी वेडिंग होने वाली है. वहीं शादी की थीम की बात करें तो शमा इंडियन नहीं बल्कि वाइट वेडिंग करने वाली हैं. इसके अलावा हाल ही में वह अपनी बैचलर पार्टी भी एन्जौय करती हुई नजर आईं थीं, जिसकी फोटोज और वीडियो एक्ट्रेस ने सोशलमीडिया पर शेयर भी की थीं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shama Sikander (@shamasikander)

बता दें, कई सीरियल और फिल्मों में काम कर चुकीं एक्ट्रेस शमा सिकंदर ने अपनी वेडिंग प्लानिंग के बारे में इंटरव्यू में खुलासा कर चुकी हैं कि वह जल्द ही शादी करने वाली हैं. इसी के चलते फैंस उनके वेडिंग लुक को देखने के लिए बेताब हैं.

ये भी पढ़ें- Anupama के एक बुलावे पर शाह हाउस आएगा अनुज, वनराज को लगेगा झटका

REVIEW: पैन इंडिया सिनेमा के नाम पर सिर दर्द है ‘राधे श्याम’

रेटिंगः आधा स्टार

निर्माताः यू वी क्रिएशंस और टीसीरीज

लेखक व निर्देशकः राधा कृष्णा कुमार

कलाकारः प्रभास, मुरली शर्मा, सचिन खेड़ेकर, भाग्यश्री, पूजा हेगड़े जगापति बाबू, सत्यराज व अन्य.

अवधिः दो घंटा बाइस मिनट

फिल्मकार राधा कृष्णा कुमार की 11 मार्च को हिंदी के अलावा तेलगू व तमिल भाषा में सिनेमाघरों में पहुॅची फिल्म ‘राधे श्याम ’’ देखकर समझ में आ जाता है कि पिछले कुछ समय से जो हो हल्ला मचाया जा रहा था कि ‘बौलीवुड खत्म हो गया’ और दक्षिण का सिनेमा बौलीवुड पर कब्जा कर रहा है. . ’’ उसकी हवा निकल चुकी है. यह हो हल्ला भी महज जुमला ही साबित हुआ. ‘राधे श्याम’से यह बात साबित हो गयी कि बौलीवुड पर दक्षिण के सिनेमा का कब्जा नही हो सकता. इससे पहले ‘साहो’,  ‘मास्टर’, ‘खिलाड़ी’का हिंदी वर्जन,  ‘वालीमाई’ का हिंदी वर्जन बुरी तरह से असफल हुए हैं. इसी के चलते ‘विमलाबाई’ का हिंदी वर्जन आने से पहले ही बंद कर दिया गया.  अब ‘‘राधे श्याम’’ का हिंदी वर्जन देखकर लोग दक्षिण सिनेमा को हिंदी में लेकर नही आएंगे.

कहानीः

फिल्म की कहानी सत्तर के दशक की है. मशहूर हस्तरेखा ज्योतिषी विक्रमादित्य उर्फ आदित्य( प्रभास), प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी का हाथ देखकर आपातकाल की भविष्य वाणी करते हैं. इसके बाद उन्हे भारत छोड़कर विदेश यानी कि रोम में जाकर बसना पड़ता है. रोम ही नही पूरे यूरोप में उनके हस्तज्योतिष के चमत्कारों की खूब चर्चा हो रही है. विक्रमादित्य एक पोलीटीशियन का हाथ देखकर भविष्य वाणी करते है कि वह सफल राजनेता नही सफल उद्योगपति बनने वाले हैं. यहां तक कि वह जिस तारीख की बात करते हैं, वह भी सच साबित होता है. वह ट्ेन के एक्सीडेंट और उसके यात्रियों की मौत की भविष्यवाणी करते हैं. यानी कि उनकी हर भविष्यवाणी सच साबित होती है. फिर नाटकीय अंदाज में वह एक अस्पताल में डॉ प्रेरणा(पूजा हेगड़े) से टकराते हैं और उनसे उन्हे प्यार हो जाता है. हस्तरेखाविद् विक्रमादित्य उर्फ आदित्य (प्रभास) भाग्य में यकीन करते हैं, जबकि डॉक्टर प्रेरणा (पूजा हेगड़े) की अलग मान्यता है. डॉ.  प्रेरणा  विज्ञान और तर्क के नियमों में यकीन करती हैं. लेकिन उनका प्यार सभी तर्कों को धता बताता है.

डॉ.  प्रेरणा को पता है कि उनकी जिंदगी के चंद माह ही बचे हैं. क्योंकि वह दुर्लभ ब्रेन ट्यूमर नुमा कैंसर रोग से पीड़ित हैं. डॉ.  प्रेरणा के चाचा(सचिन खेड़ेकर), जो चालिस वर्ष से डाक्टरी पेशे में हैं, जिनका अपना एक नाम है, वह भी मानते हैं कि मेडीकल साइंस में डॉ.  प्रेरणा की बीमारी का कोई इलाज नही है. मगर डां.  प्रेरणा के प्यार में आकंठ डूबे विक्रमादित्य उनका हाथ देखकर 74 वर्ष तक जीने की भविष्यवाणी करते हैं. पर उन्हे यह नही पता चलता कि डॉं प्रेरणा कैंसर की मरीज है. जब प्रेरणा के चाचा डॉ. आदित्य को बताते हैं कि प्रेरणा की बीमारी का मेडिकल साइंस में कोई इलाज नही है, तब आदित्य कहते हैं कि मेडिकल साइंस बेकार है. प्रेरणा 74 साल तक जिएंगी. इतना ही नहीं मृत लोगों के हाथों के कागज पर प्रिंट देखकर उनकी उम्र, पुरूष या स्त्री, मौत का कारण वगैरह बताते हैं. फिर अपने अपने प्यार को जीतने की बात होती है. इसके बाद कहानी एक अलग ढर्रे पर चलती है.

लेखन व निर्देशनः

जिन्हे मनोरंजन की बजाय सिर दर्द मोल लेकर क्रोसीन या अन्य सिर दर्द की दवा का सेवन करना हो, उन्हे ही ‘बाहुबली’ फेम अभिनेता प्रभास की फिल्म ‘‘राधे श्याम ’’ देखनी चाहिए. फिल्म की धीमी गति और कहानी के चलते यह अति बोरिंग व सिरदर्द वाली फिल्म है. फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इसकी पटकथा है.  इसमें हस्तज्योतिष को महान बताने के लिए विज्ञान को ही नेस्तानाबूद कर डाला गया. इतना ही नही हस्तरेखाविद् विक्रमादित्य उर्फ आदित्य (प्रभास) भाग्य में यकीन करते हैं, जबकि डॉक्टर प्रेरणा (पूजा हेगड़े) की अलग मान्यता है. डॉ.  प्रेरणा  विज्ञान और तर्क के नियमों में यकीन करती हैं. लेकिन प्यार को जिताने के चक्कर में फिल्मकार आदित्य व प्रेरणा के विरोधाभासी यकीन को नजरंदाज कर पूरी फिल्म को तहस नहस कर डाला. फिल्मकार अपने किसी भी तर्क ्रपर टिके ही नहीं. पूरी फिल्म देखकर यह सोचना भी मूर्खता ही होगी कि फिल्म का नाम ‘राधे श्याम’ क्यों है?

अफसोस की बात यह है कि फिल्मकार को यही नही पता कि वह हस्त ज्योतिष को महान,  मेडीकल साइंस को बेकार  बताना चाहते हैं अथवा टाइटैनिक वाली प्रेम कहानी बताना चाहते हैं या हाथ की रेखाएं नही बल्कि कर्म से तकदीर बनती है. आखिर उन्हे दर्शकांे को कौन सी कहानी बतानी है, यही नही पता. पूजा हेगड़े और प्रभास के बीच जो रोमांस फिल्माया गया है, वह दो ंइंसानों की बजाय दो लकड़ियों की कठपुतली का रोमांस नजर आता है. पूजा और प्रभास के बीच कोई केमिस्ट्ी ही नजर नही आती. फिल्म में पूजा हेगड़े का परिचय वाला शुरूआती दृश्य हूबहू उस स्टंट की नकल है,  जो कि चलती लोकल ट्ेन में नई पीढ़ी के लड़के व लड़कियां करते नजर आने पर पुलिस उन पर जुर्माना लगाकर सजा देती है. और हमारे फिल्मकार उसी स्टंट का महिमा मंडन करते हुए युवा पीढ़ी को गलत राह पर ढकेलने का काम किया है. अफसोस तो इस बात का है कि जिसे भारतीय रेलवे गैर कानूनी मानता है, उस स्टंट को सेंसर बोर्ड ने पारित कर दिया. इतना ही नहीं विक्रमादित्य अपने ज्योतीषीय ज्ञान से देख लेता है कि ट्ेन का एक्सीडेंट होगा और सभी यात्री मारे जाएंगे, फिर वह बाहुबली बनकर पेड़ को उखाड़कर फेंकते हुए तेज गति से भाग रही ट्ेन का एक्सीडेंट रोकने के लिए भागता है, जबकि ट्ेन का एक्सीडेंट हो जाता है. यह पूरा दृश्य ही अति बनावटी है. इस तरह के दृश्य कहानी को मजबूती प्रदान नही करते.

फिल्म का क्लायमेक्स अति घटिया है. अस्पताल के अंदर दो मिनट के ‘डेथ प्रैक्टिस’ के दृश्य न सिर्फ घटिया हैं, बल्कि सेंसर बोर्ड पर सवाल उठाते हैं कि उसने ऐसे दृश्य को पारित कैसे कर दिया?

फिल्म में सारा वीएफएक्स  बहुत घटिया है. माना कि कैमरामैन मनोज परमहंस ने इटली और जॉर्जिया के भव्य स्थानों और गलियों को सबसे असाधारण तरीके से कैद किया है. प्रत्येक दृश्य एक दृश्य तमाशा है, जो दर्शकों को इसकी पृष्ठभूमि से मंत्रमुग्ध कर देता है. यहां तक कि फिल्म के मुख्य किरदारों के घर और बेडरूम भी आलीशान हैं. काश इतना ही ध्यान इसकी पटकथा लेखन पर भी दिया गया होता.

फिल्म के अंतिम दृश्य के साथ अमिताभ बच्चन की आवाज में संवाद गूंजता है-‘किस्मत तुम्हारे हाथों की लकीरें नहीं,  तुम्हारे कर्मों का नतीजा है. ’तो सवाल उठता है कि फिल्मकार सवा दो घंटे से भी अधिक समय तक दर्शकों को क्या मूर्ख  बना रहे थे.

350 करोड़ की लागत से बनी फिल्म ‘राधे श्याम’ को लेकर लंबे समय से ‘साइंस फिक्शन’ के नाम पर जो हौव्वा खड़ा किया गया था, इसमें वैसा कुछ भी नही है.

अभिनयः

‘राधे श्याम’ में प्रभास के अति स्तरहीन अभिनय को देखकर यह यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि प्रभास ने ही ‘बाहुबली’ में अभिनय किया था. ‘बाहबुली’ में प्रभास का जो करिश्माई व्यक्तित्व, अभिनय स्टाइल वगैरह नजर आया था, वह सब इस फिल्म में शून्य है. प्रभास की संवाद अदायगी बहुत ही कमजोर है. पूजा हेगड़े का अभिनय की बजाय उनकी खूबसूरती जरुर आंखे को सकून देती है. पर भावनात्मक दृश्यों को उन्होने  परिपक्वता के साथ निभाया है. जगापति बाबू, मुरली शर्मा, कुणाल रौय कपूर जैसे कलाकारों की प्रतिभा को पूरी तरह से जाया किया गया है.

Holi Special: मेहमानों के लिए घर पर बनाएं गुझिया

रंगों के त्योहार होली के अवसर पर घरों में गुझिया बनाई जाती है. कुछ लोगों को घर में गुझिया बनाना मुश्किल लगता है. लेकिन इसे बनाना बेहद आसान है. आइए जानें इसकी रेसिपी.

सामग्री

मैदा

घी पिघला हुआ

तलने के लिए घी या तेल

ये भी पढ़ें- Holi Special: फैमिली के लिए बनाएं भांग रबड़ी

भरने के लिए

500-600 ग्राम खोया

आधा छोटा चम्मच हरी इलायची पाउडर

25 ग्राम बारीक कटे बादाम

25 ग्राम किशमिश

25 ग्राम सूखा घिसा नारियल

350 ग्राम बूरा

विधि

घी में मैदा मिलाकर गूंद लें. ध्यान दें कि यह मैदा सॉफ्ट हो. इसे ढककर अलग रख दें. अब खोया मैश करके इसे कढ़ाई में फ्राई कर लें. इसे लाइट ब्राउन होने तक फ्राई करें.

खोये में इलायची पाउडर और बूरा मिलाकर अचछी तरह मिक्स कर लें. इसमें बादाम, नारियल, काजू और किशमिश मिला लें. इन्हें दो मिनट तक फ्राई करें. इसे ठंडा होने दें.

ये भी पढ़ें- Holi Special: बच्चों को बेहद पसंद आयेंगे ये ट्विस्ट वाले Traditional

गूंथे हुए आटे के छोटे बॉल्स बना लें, जिनका डायमीटर 4 इंच के करीब हो. अब गुझिया बनाने का सांचा लें. मैदा की बनाई गई लोई को बेल लें और इसकी आधी साइड में खोया मिक्सचर भर लें. अब इसे सांचे में रखें और उसे दबा दें. बाहर निकले एक्स्ट्रा पोर्शन को हटा दें.

इसी तरह दूसरी लोई को बना लें. सारी गुझिया बनाकर एक कपड़े पर रख लें. कढ़ाई में घी गर्म करके इसे डीप फ्राई कर लें. जब इसका कलर गोल्डन ब्राउन हो जाए, तो बाहर निकाल लें. इसे एयर टाइट ग्लासजार में स्टोर करके रखें.

Holi Special: रहने दो रिपोर्टर- क्या था विमल और गंगा का अतीत

लेखिका- नारायणी

वह आज पूरी तरह छुट्टी मनाने के मूड में था. सुबह देर से उठा, फिर धीरेधीरे चाय पीते हुए अखबार पढ़ता रहा था. अखबार पूरी तरह से चाटने के बाद उस का ध्यान घर में छाए सन्नाटे की तरफ गया. आज न पानी गिरने की आवाज, न बरतनों की खटरपटर, न झाड़ूपोंछे की सरसराहट, जबकि घर में कुल 2 छोटेछोटे कमरे हैं. वह एकाएक ही किसी आशंका से पीडि़त हो उठा. गंगा इतनी शांति से क्या कर रही है, वह उसे चौंकाने के विचार से ही नहीं उठा था.

बरामदे में पैर रखते ही वह सहम सा गया. गंगा वाशबेसिन के पास चुपचाप बैठी हुई थी और सामने रखी बोतल को ध्यान से देख रही थी.

‘‘गंगा, वह तेजाब की बोतल है,’’  उस ने आशंकित स्वर में कहा, ‘‘मैं बाथरूम साफ करने के लिए लाया था. काई जमी हुई है न, रोज तुम रगड़ती रहती हो. देखना, इसे जरा सा डाल कर रगड़ने से एकदम साफ हो जाएगा…किंतु तुम उसे नहीं छूना.’’

‘‘अच्छा,’’ उस ने कहा लेकिन अभी भी जैसे वह सोच में डूबी हुई थी.

‘‘क्या सोच रही हो, गंगा?’’ उस ने कंधा पकड़ कर उसे झकझोर दिया.

‘‘सोच रही हूं कि इस के लगाने से चेहरा बदल जाएगा, तब कोई

मुझे पहचान नहीं पाएगा, पहचान भी

ले तो…लेकिन तुम्हारी भावनाएं क्या होंगी?’’

‘‘मेरी भावनाओं का आदर करती हो तो अब से कभी यह विचार मन में न लाना.’’

‘‘पता नहीं क्यों, भय लगता है.’’

‘‘तुम भयभीत क्यों होती हो? मैं ने सबकुछ जानने के बाद ही तुम से विवाह किया है, हमारा विवाह कानूनसम्मत है, कोई हमें अलग नहीं कर सकता, समझीं.’’

तभी दरवाजे पर आहट हुई. विमल ने द्वार खोला. पड़ोसी जोशीजी की छोटी बेटी लतिका थी. बाहर से ही बोली, ‘‘काकी, आज हमारे घर में हलदी- कुमकुम होना है. मां ने  तुम को बुलाया है.  दिन में 2 से 5 बजे तक जरूर आ जाना. अच्छा, मैं जाती हूं. मुझे बहुत घरों में बोलने जाना है.’’

गंगा ने प्रश्न भरी आंखों से पति की ओर देखा, जैसे पूछ रही हो कि आज जोशीजी के घर क्या है?

‘‘सुहागिन महिलाओं को घर बुलाते हैं. टीका करने के बाद नाश्तापानी, गानाबजाना होता है. मेरे घर तो आज पहली बार इस तरह का बुलावा आया है और पहले आता भी कैसे, सुहागिन तो अभी आई है.’’

गंगा मुसकराई फिर गंभीर हो उठी. विमल ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा, ‘‘सोचा था दिनभर साथसाथ घूमते रहेंगे… जोशीजी को भी आज का ही दिन मिला.’’

‘‘मैं अपनी हाजिरी लगा कर शीघ्र ही आ जाऊंगी.’’

‘‘नहींनहीं, जब सब उठें तभी तुम भी उठना. पहली बार बुलाया है उन्होंने, मेरी चिंता न करो, तुम्हारे वापस आने तक मैं सोता रहूंगा.’’

‘‘कैसा रहा आज,’’ जोशी के घर से वापस आने पर विमल ने गंगा से पूछा.

‘‘बहुत अच्छा. बड़े अच्छे लोग हैं, मैं तो अभी किसी से मिली ही नहीं थी. आसपास की सभी महिलाएं आई थीं और सभी ने मुझ से खूब प्यार से बातें कीं..’’

‘‘अच्छा, सब की बोली समझ में आई?’’

‘‘हां, थोड़ीबहुत तो समझ में आ ही जाती है. वैसे मुझ से तो हिंदी में ही बोल रही थीं.’’

मेलमुलाकात का सिलसिला चल निकला तो बढ़ता ही रहा. विमल खुश था कि गंगा का मन बहल गया है.

अब वह पहले जैसी सहमीसहमी नहीं रहती बल्कि अब तो वह अपनी नईनई गृहस्थी की सुखद कल्पनाओं में खोई रहती है.

ये भी पढ़ें- यह जरूरी था: शैनल ने क्या कहा था विवेक से

एक दिन बेहद खुश हो कर गंगा ने  विमल से कहा, ‘‘सुनो, मैं भी सब को हलदीकुमकुम का बुलावा दे रही हूं. जोशी काकी ने कहा है कि वह सब तैयारी करवा देंगी. मैं ने सामान की सूची बना ली है.’’

‘‘ठीक है, हम कल शाम को बाजार चल कर सब सामान ले आएंगे.’’

बाजार में जाते हुए विमल फूलों की वेणी वाले को देख कर रुक गया. गंगा वेणी लगाने में सकुचाती थी. विमल ने हंस कर कहा, ‘‘अब तुम अपनी सहेलियों की तरह वेणी लगाया करो. हलदीकुमकुम करोगी, वेणी नहीं लगाओगी?’’

तभी विमल को  किसी ने टोकते हुए कहा, ‘‘नमस्ते, साहब. ऐसा लगता है, आप को कहीं देखा है…’’

‘‘मुझे…जी, मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘आप वही विमल साहब हैं न जिन्होंने अपना नाम समाचारपत्र में देने से मना किया था.’’

‘‘जी, जी…मैं आप को नहीं पहचानता,’’ और गंगा का हाथ पकड़ कर सामने से आते रिकशे को रोक कर उस पर बैठते हुए विमल ने कहा, ‘‘चलो गंगा, घर चलते हैं.’’

दूसरे दिन सुबह चाय का प्याला लिए विमल अपनी बालकनी में बैठा धूप की गरमाहट महसूस कर ही रहा था कि द्वार पर आहट हुई.

‘‘नमस्कार, मैं जयंत हूं.. आप जो समाचारपत्र पढ़ रहे हैं, मैं उसी का एक अदना सा रिपोर्टर हूं.’’

विमल का चेहरा बुझ गया. अनमने मन से स्वागत कर उन के लिए चाय मंगाई.

जयंत कहे जा रहा था, ‘‘कहते हैं कि बड़े लोग विनम्र होते हैं, आप तो साक्षात विनम्रता के अवतार लगते हैं. इतने उदार, समाज सुधारक, अभिमान तो नाम को नहीं…’’

विमल ने प्रतिवाद किया, ‘‘ऐसा लगता है आप किसी भ्रम में हैं. मुझे गलत समझ रहे हैं, मैं वह नहीं हूं जो आप समझ रहे हैं.’’

‘‘तभी तो मैं कह रहा हूं कि आप जैसा महान व्यक्ति प्रचार से दूर रहना चाहता है पर आप ने जो कुछ किया उसे जान कर मुझे गर्व का अनुभव हुआ.’’

‘‘मैं ने क्या किया…मैं तो किसी प्रशंसा के लायक नहीं…’’

‘‘आप संकोच न करें, गुप्ताजी ने मुझे सब बता दिया है. अरे, वही गुप्ताजी जो कल आप से मिले थे. आप ने उन्हें नहीं पहचाना हो पर वह तो आप को पहचान गए हैं. आप की पत्नी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की हैं न?’’

विमल मना न कर सका. रसोई के दरवाजे पर खड़ी गंगा का चेहरा उतरा हुआ था.

‘‘देखिए, मेरा कोई स्वार्थ नहीं,’’ रिपोर्टर जयंत ने कहा, ‘‘कोई लांछन का उद्देश्य नहीं, आप की इज्जत जितनी है वह आप को नहीं मिल रही है. मैं तो केवल इसलिए आप को प्रकाश में लाना चाहता हूं कि लोगों को आप से सबक मिले. ऐसा समाज सुधारक छिप कर नहीं बैठता है. इसलिए मैं आप को प्रकाश में लाना चाहता हूं कि लोगों को आप से प्रेरणा मिले. लोग जानेंगे कि पाप से घृणा करो पापी से नहीं, प्यार आदमी को बदल देता है.

‘‘यह चित्र विवाह के बाद का है न,’’ कमरे में कोने की मेज पर गंगा का चित्र रखा हुआ देख कर उस ने उठा लिया, ‘‘मैं अभी आप को दे जाऊंगा, यह सिगरेट लीजिए न, विदेशी है…मेरा पेशा ही ऐसा है भाई, लोग बहुत आवभगत करते हैं समाचारपत्र में अपना नाम देखने के लिए. मेरा रुतबा ही

इतना है…भाभी, आप का एक चित्र

लेना है, रसोई में काम करते हुए…लोग देखेंगे. वह, कैसी सुघड़ गृहिणी हैं,

कैसी सुंदर गृहस्थी है…हां, तो आप ने जानकी को गंगा नाम दिया. बहुत

ठीक, गंगा तो पवित्र है, गंगा मैली थोड़े होती है.

‘‘अच्छा, धन्यवाद, मैं चलता हूं,’’ वह कागजकलम समेट कर उठ गया. विमल नीचे तक पहुंचा कर आया तो गंगा वैसे ही दीवार से सटी खड़ी थी. मौन,  चिंतित, भयाक्रांत, प्रशंसा के मद से मस्त. विमल को देर हो रही थी, ध्यान नहीं दिया.

शाम को उस ने हलदीकुमकुम के लिए सामान लाने को कहा तो गंगा ने मना कर दिया, ‘‘अभी ठहर कर लाऊंगी.’’

तीसरे दिन समाचारपत्र के तीसरे पेज पर वही चित्र था जो उन के घर की मेज पर रखा था. दूसरा चित्र गंगा का रसोई में काम करते हुए. साथ में संक्षेप से उस की यातना की कहानी के साथ ही विमल की महानता की कहानी छपी थी.

विमल को उठने में देर हो गई थी. समाचारपत्र ऊपरऊपर से देख कर वह काम पर जाने के लिए तैयार होने लगा कि उस से मिलने वाले एकएक कर आने लगे. फ्लैट के सभी लोग आए और उस के उदार नजरिए पर बधाई दी.

‘‘प्रचारप्रसार से इतनी दूर कि आज का समाचार- पत्र तक नहीं देखा, जबकि अपने बारे में आप को छपने की आशा थी.’’

‘‘वाह, आप धन्य हैं. आप दोनों सुखी रहें, हमारी कामना है.’’

गंगा भोजन तैयार न कर सकी और न नाश्ते का डब्बा ही. वह अपने अंदर एक अज्ञात भय महसूस कर रही थी.

ये भी पढ़ें- दुख भरे दिन बीत रे

विमल तैयार हो कर आया तो बोला, ‘‘मैं वहीं कुछ खा लूंगा. तुम अपना ध्यान रखना.’’

पुरुषों के जाने के बाद महिलाओं की बारी आई. एकएक कर सब गंगा का हाल पूछने पहुंच गईं. सब में यह बताने की होड़ लगी थी कि सब से पहले किस ने समाचारपत्र देखा और कैसे एकदूसरे को जानकारी दी. फिर सभी ने एक स्वर से कहा कि हमें नहीं पता था कि आप का नाम जानकी है. वैसे नाम तो हम लोग भी पतिगृह का दूसरा रखते हैं. आप के गांव में ऐसा नहीं होता क्या?

‘‘जानकी तो पतिव्रता स्त्री का

नाम था,’’ एक के मुंह से निकला तो दूसरी ने कहा, ‘‘बेचारी औरत का क्या दोष.’’

इस तरह सभी ने गंगा से सहानुभूति दिखाई. खाली चौका देख कर कई घरों से खाना आ गया. जबरन कौरकौर खिलाया और आंसू पोंछे. अपने प्रति कोमल भावनाएं देख कर गंगा को लगा कि उस की आशंका निर्मूल थी, वह व्यर्थ ही इतनी भयभीत हो रही थी कि उस का अतीत जान कर कहीं लोग उस से घृणा न करने लगें, फिर भी वह आश्वस्त न हो पाई.

विमल ने सुबह कहा था कि शाम को तैयार रहना, डाक्टर को दिखाना है और बाजार भी जाना है. किंतु शाम को वह कहीं नहीं गई. 3 दिन हो गए वह घर से निकली ही नहीं.

काशी बाई 2 दिन बाद आई तो बाहर से ही बोली, ‘‘बाई, मेरी पगार जितनी बनती है दे दो.’’

गंगा चकित हो उस से काम न करने का कारण पूछने ही वाली थी कि तभी सुना, ‘‘जूठा साफ करते हैं तो क्या, हमारा धरमईमान तो बना है. छि:, ऐसी बाई के घर कौन काम करेगा.’’

कूड़ा फेंकने वाली मीनाबाई ने भी कहा, ‘‘गंदा साफ करते हैं तो क्या हुआ, हमारा भी धरम है, अपने मरद के लिए तो मैं सच्ची हूं.’’

भाजी वाला आया था. गंगा साहस कर के नीचे उतरी ताकि कुछ सब्जीभाजी खरीद ले. गोभी, मटर का भाव पूछते ही वह मुसकराया, ‘‘अजी, आप जो चाहे दे दें…’’

गंगा ने यथार्थ समझ लिया था. अंदर ही अंदर घुटती रही. एक घर से गीतों का बुलावा आया हुआ था. विमल ने कहा, ‘‘दिन में थोड़ी देर को चली जाना और शगुन दे देना.’’

गंगा कहीं जाने को तैयार नहीं थी. विमल समझाता रहा, ‘‘देखो, हमें कमजोर नहीं पड़ना है. हम ने कोई बुरा काम तो किया नहीं है. मजबूरी ने जो करा दिया उस के लिए लज्जित क्यों हों? तुम अवश्य जाओ और सब के बीच में मिलोजुलो अन्यथा लोग हमें गलत समझेंगे, दोषी समझेंगे, उन के घर लड़की का विवाह है. तुम को गीतों में बुलाया है. नहीं जाओगी तो कहीं वे लोग बुरा न मान जाएं कि पास में रह कर नहीं आई.

गंगा दुविधा में थी. जोशी काकी के मुख से सुन ही लिया था और लोग भी ऐसा ही कहें तब…उधर विमल का कहा भी मन में गूंजता रहा तो वह बड़ा साहस जुटा कर वहां गई थी.

गाना चल रहा था. कुछ महिलाएं नृत्य कर रही थीं. हंसीखुशी का वातावरण था, उसे देखते ही नृत्य थम गया, गाना बंद हो गया और सब की नजर उस की ओर थी. उसे याद आया जब पहले वह जोशी काकी के घर गई थी तो वहां भी गाना हो रहा था किंतु उस के जाते ही सब ने उस का स्वागत किया था और उन नजरों में कौतूहल था पहचान का, परिचय का किंतु स्नेह का भाव भी था.

आज पहले तो सब एकदूसरे की ओर देख कर मुसकराईं, घर की मालकिन ने उसे बैठने का संकेत किया तो पास की महिलाएं इस तरह सरक कर बैठीं जैसे उस के स्पर्श से बच रही हों.

परस्पर फुसफुसाहट हुई, पर उस से न बोलने की चुप्पी  का प्रहार इतना मुखर था कि गंगा अधिक देर वहां बैठ न सकी. शगुन का लिफाफा हाथ में ही रह गया. वह उठी तब भी उस से किसी ने बैठने को न कहा, न जल्दी जाने का कारण पूछा.

कुहराम मचा हुआ था. गंगा ने स्नान घर में मिट्टी का तेल छिड़क कर अपने को जला लिया था. विमल के नाम एक पत्र रखा था जिस में लिखा था :

‘‘औरत पर कलंक लग जाए तो कलंक के साथ ही जीना होता है. आप पुरुष हैं दूसरा विवाह कर लेंगे किंतु मेरे साथ रह कर आप भी कलंकित ही रहेंगे. मैं इस लांछन को सह भी लेती पर मैं मां बनने वाली हूं. बेटा होगा तो वह भी कलंक का टीका ले कर, बेटी होगी तो और भी विडंबना होगी.

‘‘आत्महत्या कर के मैं पाप कर रही हूं पर आप को इन सब से मुक्ति दे रही हूं.

‘‘मुझे क्षमा करना. समाचारपत्र वाले फिर पूछने आएंगे. उन्हें यह पत्र दे देना, शायद मेरा चित्र लेना चाहें तो ले लेंगे.’’

विमल से पढ़ा नहीं जा रहा था. पत्र हाथ से छूट गया, क्या लिखा है…क्या कारण है, कई लोग पत्र पढ़ चुके थे. अब पत्र पकड़ते हुए जिसे देखा, विमल आक्रोश से फट पड़ा.

‘‘तसवीर भी ले लो न, वह भी…’’

रिपोर्टर ने सहम कर देखा…पत्र उस के हाथ से छूट गया.

ये भी पढे़ं- तेजतर्रार तिजोरी: क्या था रघुवीर का राज

हम साथ साथ हैं: भाग 1- क्या जौइंट फैमिली में ढल पाई पीहू

‘‘बताओ न हर्ष, तुम मुझ से कितना प्यार करते हो?’’

‘‘पीहू, रोजरोज यह सवाल पूछ कर क्या तुम मेरा प्यार नापती हो,’’ हर्ष ने पीहू की आंखों में आंखें डाल कर जवाब दिया.

‘‘यस मिस्टर, मैं देखना चाहती हूं कि जैसेजैसे हमारी रोज की मुलाकातें बढ़ती जा रही हैं वैसेवैसे मेरे लिए तुम्हारा प्यार कितना बढ़ रहा है.’’

‘‘क्या तुम्हें नजर नहीं आता कि मैं तुम्हारे लिए पागल हुआ रहता हूं. तुम्हारे ही बारे में सोचता रहता हूं. अब तो यारदोस्त भी कहने लगे हैं कि तू पहले वाला हर्ष नहीं रहा. कुछ तो बात है. पहले तो तू व्हाट्सऐप ग्रुप में सब के साथ कितना ऐक्टिव रहता था. इंस्टाग्राम पर रोज तेरी स्टोरी होती थी.’’

‘‘तो तुम उन्हें क्या जवाब देते हो?’’ पीहू हर्ष के बालों में उंगलियां फेरते

हुए बोली.

हर्ष ने पीहू की कमर में हाथ डाला और उसे अपने और करीब लाते हुए बोला, ‘‘क्या जवाब दूं कि आजकल मेरे ध्यान में, बस, कोई एक छाई रहती है, जिस की कालीकाली आंखों ने मुझे दीवाना बना दिया है. जिस की हर अदा मुझे मदहोश कर देती है. अब तुम्हारा दोस्त किसी काम का नहीं रहा.’’

हर्ष का यह फिल्मी अंदाज पीहू के मन को गुदगुदा गया. हर्ष की ये प्यारभरी बातें उसे बहुत भातीं. मन करता था कि वह उस की तारीफ करता रहे और वह सुनती रहे. एक अजीब से एहसास से सराबोर हो जाता था उस का तनमन.

वाकई हर्ष ने उस की जिंदगी में आ कर उसे जीने का नया अंदाज सिखा दिया था. जिंदादिल, दूसरों की मदद करने में हमेशा आगे, दोस्तों का चहेता, दिल से रोमांटिक, स्मार्ट, इंटैलिजैंट, कितनी खूबियां हैं उस में. बहुत खुशनसीब समझती है वह अपनेआप को कि हर्ष जैसा लवर उसे मिला.

वह अकसर सीमा को थैंक्यू कहती है कि उस दिन उस ने घर में बोर होती उसे मौल घूमने का आइडिया दिया था. तभी तो हर्ष उस की जिंदगी में आया था. कुछ महीने पहले की बात है…

‘यार पीहू, मैं तेरे साथ चलती लेकिन पापा टूर पर गए हैं और मम्मी को ले कर डाक्टर के पास जाना है,’ सीमा ने अपनी मजबूरी जताई.

‘कोई बात नहीं, टेक केयर औफ आंटी. वैसे, तेरा आइडिया बुरा नहीं है कि मौल में शौपिंग करो क्या फर्क पड़ता है, अकेले हैं या किसी के साथ.’

‘वही तो, अब जल्दी तैयार हो जा. कुछ अच्छा दिखे तो मेरे लिए भी ले लेना. समझी,’ सीमा हंसते हुए बोली.

‘हां, बस, तू पहले अपना शुरू कर दे, फैशन की मारी,’ पीहू ने सीमा की टांग खींची और ‘बाय’ कह कर फटाफट तैयार हो कर अपनी कार स्टार्ट की व मौल की तरफ गाड़ी मोड़ दी.

ये भी पढ़ें- अस्तित्व: क्या प्रणव को हुआ गलती का एहसास

गाड़ी चलाते हुए अचानक उसे ध्यान आया कि शायद पर्स में कैश तो है ही नहीं. डैबिट कार्ड तो दोदो रखे थे लेकिन कैश तो होना ही चाहिए. ‘कोई बात नहीं एटीएम से निकाल लेती हूं,’ सोचते हुए एक एटीएम के आगे गाड़ी रोक दी. एटीएम के अंदर गई. नई एटीएम मशीन थी, टच स्क्रीन थी. पीहू ने 2 बार ट्राई किया लेकिन ट्रांजैक्शन नहीं हो पाया.

‘उफ, अब क्या करूं’ सोचतेसोचते उस ने एटीएम का दरवाजा जैसे ही खोला वैसे ही एक लड़का उस से ‘एक्सक्यूज मी’ कहता हुआ फटाफट अंदर घुस गया.

पीहू ने बाहर से ही देखा. लड़का बड़ा ही स्मार्टली मशीन औपरेट कर रहा था और उस ने कैश भी निकाल लिया.

‘क्यों न इस से मदद ले लूं,’ वह अभी सोच ही रही थी कि वह लड़का एटीएम से बाहर निकल कर अपनी बाइक पर बैठ गया.

‘एक्सक्यूज मी, कैन यू डू मी अ फेवर, आप जरा देखेंगे. मेरा ट्रांजैक्शन नहीं हो रहा है.’

‘ओह श्योर, चलिए,’ लड़के ने कहा.

पीहू ने उसे अपना कार्ड पकड़ाया तो वह बोला, ‘मैडम, इस तरह किसी को अपना कार्ड नहीं देते.’

‘यू आर राइट. लेकिन आप मुझे शरीफ लगते हैं, इसलिए आप पर भरोसा कर रही हूं,’ पीहू भी जवाब देने में पीछे नहीं रही.

लड़का मुसकरा पड़ा. फिलहाल उस लड़के की मदद से कैश उस के हाथ में आ गया और उसे ‘थैंक्स’ बोल कर वह जल्दी से अपनी गाड़ी में बैठ कर मौल की पार्किंग की तरफ निकल पड़ी व सीधा वहीं जा कर गाड़ी रोकी.

मौल में खासी रौनक थी. पीहू को वहां बहुत अच्छा महसूस हो रहा था. लोगों की चहलपहल, खूबसूरत शोरूम, फूडकोर्ट से आती तरहतरह की डिशेज की महक, सब उसे बेहद पसंद था. पीहू ने पहले शौपर्स स्टौप से अपने लिए टीशर्ट ली. एक सीमा के लिए भी ले ली, वरना ताने देदे कर वह उस की जान खा जाती.

शौपिंग करतेकरते और घूमते हुए फूडकोर्ट तक पहुंच गई तो भला अपनी पसंदीदा कोल्ड कौफी विद आइसक्रीम कैसे न लेती.

कौफी हाथ में लिए वह बैठने के लिए खाली टेबल देखने लगी. कोने में एक छोटी टेबल खाली थी. पीहू फटाफट वहां जा कर बैठ गई. इत्मीनान से कौफी का मजा लेने लगी.

‘हाय, इफ यू डोंट माइंड, मे आइ सिट हियर?’ आवाज सुन कर पीहू ने मुंह ऊपर उठाया तो वही लड़का हाथ में अपनी ट्रे लिए खड़ा था.

‘ओह, यू. प्लीज. आप को भी मौल आना था?’ पीहू को उस लड़के को देख कर न जाने कुछ अच्छा सा लगा.

‘मैं ने तो आप को शौपिंग करते हुए भी देखा था,’ उस लड़के के मुंह से अचानक निकल गया तो पीहू हलका सा हंस दी और वह लड़का कुछ झेंप सा गया.

‘अच्छा, तो फिर मेरा पीछा करते हुए आप यहां आए हैं?’ पीहू को उस लड़के से बात करना अच्छा लग रहा था.

‘मैडम, मैं शरीफ लड़का हूं, और आप ने खुद यह बात कही थी,’ वह लड़का भोला सा मुंह बनाते हुए बोला.

‘आई एम जस्ट किडिंग, आप तो सीरियस हो गए. एनी वे आई एम पीहू.’

‘पीहू मल्होत्रा, डैबिट कार्ड पर पढ़ लिया था,’ उस लड़के के मुंह से फिर निकला तो पीहू इस बार जोर से हंस पड़ी.

इस बार वह लड़का भी हंस दिया और बोला, ‘हर्ष, हर्ष नाम है मेरा. जनकपुरी में रहता हूं. एमबीए इसी साल कंप्लीट किया और पिछले महीने ही हिताची कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर की पोस्ट मिली है और…’

‘अरे बसबस, तुम तो अपना पूरा प्रोफाइल बताने लगे.’

इस तरह दोनों के बीच बातों का सिलसिला चल पड़ा. पीहू की कौफी खत्म हो गई तो वह बोली, ‘अच्छा हर्ष, अच्छा लगा तुम से मिल कर.’

‘सेम हियर. प्लीज कीप इन टच,’ हर्ष पीहू को गहरी नजरों से देखता हुआ बोला.

पीहू ने कुछ जवाब नहीं दिया. बस, मुसकरा भर दी.

घर पहुंचतेपहुंचते 8 बज गए थे. जैसे ही घर पहुंची, मम्मी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी, ‘कहां, क्यों, किस के साथ, अचानक कैसे, क्या खरीदा?’

‘मम्मी प्लीज, मैं बहुत थक गई हूं. भूख बिलकुल नहीं है, इसलिए डिनर नहीं करूंगी. बस, चेंज कर के मैं सोने जा रही हूं.’

‘लेकिन बेटा, कुछ तो खा ले. तेरा मनपसंद पुलाव बनाया है,’ रेखा मनुहार करती पीहू से बोली.

‘अच्छा, थोड़ी देर बाद भूख लगी, तो खा लूंगी, पर अभी मुझे रैस्ट करने दो.’

‘बड़ी अजीब लड़की है. कभी भी, कहीं भी चल देती है. बड़ी जल्दी बोर हो जाती है. हमेशा लोगों के बीच रहना चाहती है. अब जब फैमिली ही छोटी है तो क्या करूं,’ रेखा मन ही मन बुदबुदाती रही.

मम्मी रेखा और पापा विनय की इकलौती संतान है पीहू. दिल्ली के कीर्तिनगर बाजार में फर्नीचर का अच्छा शोरूम है उन का. कीर्तिनगर में ही 300 गज की दोमंजिली कोठी है उन की. कुल मिला कर पीहू अमीरी में पलीबढ़ी है. सारे ऐशोआराम मिले हैं उसे. मम्मीपापा की तो जान है वह.

ये भी पढ़ें- मिसेज अवस्थी इज प्रैग्नैंट: क्यों परेशान थी मम्मी

पीहू पढ़ाईलिखाई में ठीकठाक थी. रचनात्मकता की उस में कमी नहीं थी. इसलिए स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए के बाद जेडी इंस्टिट्यूट औफ फैशन टैक्नोलौजी से उस ने 2 साल का इंटीरियर डिजाइन का पीजी डिप्लोमा किया.

पीहू ने कई बड़ी कंपनियों में अपना सीवी पोस्ट किया था. अगले हफ्ते के लिए उसे गुरुग्राम स्थित एक बड़ी फर्म से इंटरव्यू कौल आई हुई थी. पीहू ने अभी तक तय नहीं किया कि वह जाएगी भी या नहीं.

खैर, पीहू ने अपने कमरे में आ कर कपड़े चेंज किए और बैड पर लेट गई. सच में, मौल घूम कर वह काफी थक गई थी. पता नहीं क्यों उस की आंखों के आगे बारबार हर्ष का चेहरा आ रहा था. थकावट के मारे नींद नहीं आ रही थी. वह उठ कर बैठ गई और अपना मोबाइल चैक करने लगी. मोबाइल पर ही फेसबुक देखने लगी. हर्ष ने फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी हुई थी. पीहू ने झट एक्सैप्ट कर ली. उस के बाद वह मोबाइल साइड में रख कर सो गई.

आगे पढें- घर लौटते हुए उस के पांव जमीं पर…

ये भी पढ़ें- नीड़ का निर्माण फिर से: क्या मानसी को मिला छुटकारा

जब बच्चे करें वयस्क सवाल

बहुत से बच्चे अभिभावकों से पूछते हैं, ‘मम्मी मैं कहां से आया’, ‘सैक्स क्या होता है?’ कल तक परियों व राजाओं की कहानियां सुनने वाले बच्चों के मुंह से ये सवाल सुन कर अभिभावक परेशान हो जाते हैं. जब मम्मी को नहीं सूझता कि वह इन सवालों के क्या जवाब दे या बच्चों को कैसे समझाए, तो वह उन्हें अभी आप छोटे हो कह कर या फिर डांट कर चुप करा देती है. मगर इस बारे में दिल्ली के अपोलो हौस्पिटल की चाइल्ड स्पैशलिस्ट डाक्टर रोशनी मेहता का कहना है कि बच्चों के ऐसे सवाल जिन के जवाब देने में आप सहज महसूस नहीं कर रही हैं, तो अभी आप की यह जानने की उम्र नहीं है, बड़े होगे तो खुद ही समझ जाओगे जैसे जवाब दे कर टालें नहीं, क्योंकि संचार क्रांति के युग के बच्चे इस से संतुष्ट नहीं होंगे.

अगर आप बात नहीं करेंगी तो वे इस की जानकारी अन्य माध्यमों, जैसे अपने दोस्तों, मीडिया, इंटरनैट या अन्य संचार माध्यमों से लेंगे. ऐसे में संभव है कि उन्हें सही जानकारी न मिले और उन के मन में यह बात बैठ जाए कि सैक्स एक ऐसा विषय है, जिस पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं की जाती है. यह वर्जित विषय है. इस से बेहतर है कि हम उन्हें घुमाफिरा कर, लेकिन सरल भाषा में जवाब दें.

जैसेकि 3-4 साल की उम्र का बच्चा यह पूछ सकता है कि उस के पास पेनिस है. लड़कियों के पास यह क्यों नहीं है? ध्यान रहे कि यह शरीर के अंगों के बारे में जानने की बच्चों की सहज और सामान्य उत्सुकता है, इसलिए मातापिता को चाहिए कि अपनी क्षमता के अनुसार वे बच्चे को भरसक संतुष्ट करने की कोशिश करें.

जैसे मातापिता अपनी स्थानीय भाषा में बच्चे को शरीर के हिस्सों के बारे में बताएं. लेकिन देरसवेर उन्हें बताना पड़ेगा कि लड़के के प्राइवेट पार्ट को पेनिस कहते हैं और लड़कियों के प्राइवेट पार्ट को वैजाइना. इस तरह बच्चे के मन में यह विश्वास जगाएं कि उस के सवालों के लिए आप हमेशा तैयार हैं. अगर उस के मन में कोई शंका है तो आप उस का निवारण करेंगे.

आइए जानें कुछ ऐसे ही सवाल और उन के जवाब जिन्हें बच्चों के लिए जानना जरूरी है ताकि वे जिम्मेदारी के साथ विकसित हों और साथ ही अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम.

4 से 9 साल के बच्चों के सवाल

मम्मी मैं कहां से आया?

यह सवाल इस उम्र के हर बच्चे के मन में उठना स्वाभाविक है और अगर पूछे जाने पर आप उसे सही जवाब नहीं देंगे और डांट देंगे तो यह गलत बात होगी. बच्चे से यह भी न कहें कि तुम भगवान या बाबा के घर से आए हो, बल्कि उसे सच बताएं. वरना बच्चा बचपन से अंधविश्वासी बन जाएगा और उसे लगेगा कि हर चीज भगवान के घर से मंगवाई जा सकती है. बच्चे इस उम्र में जानवरों या फूलपौधों के उदाहरणों से हर बात अच्छी तरह समझ जाते हैं, इसलिए उन के सवालों के जवाब उन्हें उन की इसी भाषा में समझाएं. फूलों का उदाहरण दे कर उन्हें बताएं कि वे कैसे पैदा होते हैं और फिर मां के शरीर से अलग हो कर कैसे अपनी बढ़ोतरी करते हैं. उन से यह भी कह सकते हैं कि मां के शरीर में एक खास अंग गर्भाशय होता है जहां से तुम आए हो. उन्हें जन्म की पूरी प्रक्रिया बिताने की जरूरत नहीं है.

ये भी पढ़ें- शादी का लड्डू बनी रहे मिठास

सैक्स क्या होता है?

इस सवाल के जवाब में कहा जा सकता है कि मम्मी और पापा एकदूसरे से खास तरह से प्यार करते हैं, जिसे सैक्स कहते हैं.

भैया और मेरे प्राइवेट पार्ट्स अलग क्यों हैं?

बच्ची को बताएं कि जिस तरह कुत्ते, हाथी, घोड़े, गाय इन सभी की शारीरिक बनावट अलगअलग होती है, उसी तरह लड़के और लड़की के शरीर की बनावट और उन के अंग भी अलगअलग होते हैं.

सैनिटरी नैपकिन क्या होता है?

टीवी में विज्ञापन देख कर यह सवाल बच्चे अकसर पूछते हैं? इस सवाल का घबरा कर उलटासीधा जवाब न दें, बल्कि उन्हें समझाएं कि जिस तरह नाक व हाथ पोंछने के लिए मम्मा तुम्हें नैपकिन देती हैं उसी तरह के ये नैपकिन भी हैं. बस फर्क इतना है कि ये नैपकिन सिर्फ प्राइवेट पार्ट्स पोंछने के लिए होते हैं और इन का इस्तेमाल बड़े होने पर किया जाता है. ये बच्चों के लिए नहीं होते. जिस तरह मम्मा और बच्चों के कपड़े और रूमाल अलगअलग होते हैं उसी तरह बच्चों और बड़ों के नैपकिन भी अलगअलग होते हैं.

कंडोम क्या होता है?

टीवी में विज्ञापन देख कर बच्चे यह सवाल भी पूछते हैं. इस स्थिति में बच्चे से कुछ छिपाएं नहीं, बल्कि बताएं कि जिस तरह हाथों को किसी बीमारी से बचाने के लिए हम दस्ताने पहन लेते हैं उसी तरह कंडोम भी एक तरह का दस्ताना ही होता है, जो पुरुषों को बीमारियों से बचाता है. हां, अगर बच्चा 10 साल से बड़ा है, तो उसे बता सकते हैं कि कंडोम सैक्स के दौरान पुरुषों को बीमारियों से बचाता है.

10-15 साल के बच्चों के सवाल

मेरी मूंछें और प्राइवेट पार्ट्स पर बाल क्यों आ रहे हैं? मेरी आवाज क्यों बदल रही है?

सब से पहले तो बच्चों को इस बात का विश्वास दिलाएं कि आवाज बदलना, मुंहासे होना, दाढ़ी आना आदि आम बात है. उन्हें कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह किशोरावस्था की सामान्य प्रक्रिया है. उन्हें तो खुश होना चाहिए कि वे बड़े हो रहे हैं. उन्हें बताएं कि आप भी ऐसे ही बड़े हुए थे. यह बदलाव लड़कों और लड़कियों में अलगअलग हो सकते हैं, इसलिए एकदूसरे के बदलाव को देख कर कन्फ्यूज न हों.

ये भी पढ़ें- जानें कैसी हो इकलौते की परवरिश

पीरियड्स क्या होते हैं?

पीरियड्स के बारे में हर मां को अपनी बेटी के पूछने से पहले ही बता देना चाहिए. 10 साल की उम्र में लड़की के पहुंचते ही उसे इस बारे में बता देना चाहिए. अगर उसे कहीं बाहर से पता चलेगा तो वह परेशान हो जाएगी. इसलिए बेटी को बताएं कि यह सामान्य प्रक्रिया है. हर लड़की को इस से गुजरना पड़ता है. आप उसे अपने पहले अनुभव के बारे में भी बताएं कि आप को भी दर्द हुआ था, पर धीरेधीरे आदत हो गई. इस समय की जाने वाली साफसफाई और अन्य बातें भी बेटी को समझाएं ताकि उसे कोई परेशानी न हो.

नाइटफाल क्या होता है?

बच्चे के इस तरह के सवाल पर सकपकाएं नहीं, क्योंकि हो सकता है कि वह इस उम्र से गुजर रहा हो, इसलिए उसे समझाएं कि यह बिलकुल नौर्मल बात है. जिस तरह हमारे शरीर में टौयलेट बनता रहता है और निकलता रहता है उसी तरह लड़कों के शरीर में हर वक्त सीमन बनता रहता है और जब यह ज्यादा इकट्ठा हो जाता है तो सोते वक्त निकल जाता है. इस में कुछ गलत नहीं है. इस से घबराएं नहीं.

मास्टरबेशन क्या होता है?

सीमन को जब खुद अपने प्राइवेट पार्ट को टच कर के निकाला जाता है तो उसे मास्टरबेशन कहते हैं. ऐसा करने पर शरीर में कोई कमजोरी नहीं आती है. हां, अति हर चीज की बुरी होती है. इसलिए अपना ध्यान पढ़ाई अथवा अन्य गतिविधियों में लगाएं. छोटे बच्चे को यह भी बताना जरूरी है कि शरीर के जो अंग ढके रहते हैं उन्हें छूने का हक सिर्फ मां को है. मां नहलाते वक्त ऐसा कर सकती है या फिर डाक्टर कर सकता है. लेकिन अगर इस के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा करता है फिर चाहे वह व्यक्ति आप के दादा, मामा, भाई ही क्यों न हो और यह कहता हो कि किसी को मत बताना तो तुम्हें यह बात अपने मम्मीपापा को जरूर बतानी चाहिए. बच्चे को यह भी सिखाइए कि अगर कोई उस के प्राइवेट पार्ट्स को छूने की कोशिश करता है तो उसे क्या करना चाहिए. आप उसे सिखा सकती हैं कि ऐसा होने पर वह यह कहे कि मुझे हाथ मत लगाना वरना मैं तुम्हारी शिकायत कर दूंगा या दूंगी. बच्चे को बताइए कि वह शिकायत करने से न डरे भले ही वह व्यक्ति डराएधमकाए.

रेप क्या होता है? अगर वह यह पूछे तो रेप शब्द को समझाने के लिए कहें कि जिस तरह आप अपनी गुडि़या को किसी दूसरे को छूने नहीं देतीं, वह आप की है, उसे प्यार करने का हक सिर्फ आप का है, उसी तरह आप हमारी गुडि़या हो. आप को सिर्फ मम्मापापा, दादादादी ही प्यार कर सकते हैं. यदि कोई अनजान व्यक्ति इस तरह छूता है या जानपहचान का व्यक्ति भी इस तरह छुए जो आप को खराब लगे तो उस जबरदस्ती और अच्छा न लगने वाले व्यवहार को रेप कह सकते हैं.

ये भी पढ़ें- जानें बेहतर मैरिड लाइफ से जुड़ी जानकारी

प्रैग्नेंसी से पहले कैंसर से जुड़ीं सावधानियां बताएं?

सवाल

मेरी मां को डिंबाशय का कैंसर था. लेकिन अब उपचार से ठीक हो चुकी हैं. हाल ही में मेरी चाची को भी डिंबाशय के कैंसर का पता चला है. मुझे यह जानकारी है कि डिंबाशय का कैंसर आनुवंशिक रोग है, जिस के कारण मुझे इस की चपेट में आने का खतरा है. मुझे किन लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए और क्या मुझे जल्द ही किसी प्रकार की जांच करानी चाहिए?

जवाब-

डिंबाशय के कैंसर के सभी मामलों में 5 से 10% मामले ही आनुवंशिक होते हैं. इस रोग का पारिवारिक इतिहास होने के कारण आप के समक्ष जीन के उत्परिवर्तित होने का खतरा है. कैंसर के शीघ्र डायग्नोसिस के लिए कुछ जांचें करवाना जरूरी है. आप जीवनशैली में कुछ परिवर्तन ला कर भी इस से बची रह सकती हैं. डिंबाशय के कैंसर के प्रारंभिक चरणों में कोई लक्षण प्रकट नहीं होता, लेकिन यदि आप श्रोणि क्षेत्र या आमाशय अथवा गैस, पेट फूलने जैसी आंत्रजठरीय समस्याओं जैसे लक्षणों को महसूस करती हैं, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें.

सवाल-

3 वर्ष पूर्व मेरे बाएं स्तन में कैंसर का पता चला था. चूंकि मुझ में बीआरसीए जीन पाया गया, इसलिए उस समय मेरे दोनों स्तनों को रिमूव कर दिया गया. मेरी 13 वर्ष की बेटी है. मुझे चिंता है कि कहीं वह भी स्तन कैंसर से ग्रस्त न हो जाए. हालांकि उस में कोई भी लक्षण प्रकट नहीं हुआ है, लेकिन मैं इस को ले कर आश्वस्त होना चाहती हूं. इस के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

प्राय: बच्चों में जो गांठें पाई जाती हैं उन के कैंसर के रूप में विकसित होने की संभावना बहुत कम होती है. स्तन कैंसर 15 से 39 वर्ष की महिलाओं में काफी कौमन एवं आक्रामक होता है. अपने इतिहास को जानने के बाद आप की चिंता स्वाभाविक है, लेकिन जब तक आप को कोई लक्षण न दिखाई दे तब तक भयभीत होने की जरूरत नहीं है. इस के लक्षणों में कांख अथवा स्तन क्षेत्र में गांठ, स्तनों के आकारप्रकार में परिवर्तन, उन से रक्त का डिस्चार्ज इत्यादि शामिल हैं. हालांकि ये लक्षण अन्य बीमारियों के भी हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में चिकित्सक से संपर्क करें. दोनों स्तनों का अल्ट्रासाउंड कराएं. यदि किसी तरह का संदेह हो तो एमआरआई कराएं.

ये भी पढे़ं- मुझसे कोई प्यार करता है, लेकिन मैं उससे प्यार नहीं करती, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 30 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मैं और मेरे पति 2 वर्षों से गर्भधारण के लिए प्रयास कर रहे हैं. मुझ में हाल ही में गर्भग्रीवा के कैंसर का पता चला है. क्या मैं भविष्य में गर्भवती हो सकती हूं? और अगर मैं गर्भवती हो जाती हूं, तो क्या कैंसर का उपचार बच्चे के लिए नुकसानदायक हो सकता है?

जवाब-

ऐसी स्थिति में गर्भधारण मुमकिन नहीं है. विकिरण चिकित्सा से आप के डिंबाशय काम करना बंद कर सकते हैं तथा आप के गर्भाशय को रिमूव कर दिए जाने के कारण गर्भधारण मुमकिन नहीं हो सकता. यदि 2 सैंटीमीटर से कम ग्रोथ वाले गर्भग्रीवा के कैंसर का पहला चरण है, तो लैप्रोस्कोपिक पैल्विक लिंफैडेनेक्टोमी के साथ वैजाइनल ट्रैचेलैक्टोमी की सर्जरी के द्वारा गर्भाशय को बचाया जा सकता है. इस औपरेशन के बाद गर्भधारण के मामले देखे गए हैं. यदि गर्भावस्था के आखिरी तिमाही में कैंसर का पता चलता है, तो इस के उपचार को प्रसव के बाद तक टाला जा सकता है.

सवाल-

मैं 27 वर्षीय युवती हूं. मैं स्वस्थ हूं और नियमित व्यायाम करती हूं. जहां तक मेरे मासिकचक्र का प्रश्न है तो यह नियमित रहता है, लेकिन इस की उत्तरावस्था में माह में मुझे कम से कम 2 बार रक्तस्राव होता है, जिस में से दूसरा रक्तस्राव लंबे समय तक नहीं होता. इस के अतिरिक्त योनि से सफेद डिस्चार्ज होता है. मुझे सहवास के दौरान हलका दर्द होता है, लेकिन प्रारंभिक प्रवेश के बाद समाप्त हो जाता है. क्या मुझे ऐंडोमैट्रियल कैंसर हो सकता है? इस का उपचार क्या है?

जवाब-

27 वर्ष की अवस्था में ऐंडोमैट्रियल कैंसर की संभावना काफी कम होती है. लक्षणों का कारण पैल्विक इन्फ्लैमेटरी डिजीज है, जिस का ऐंटीबायोटिक्स द्वारा आसानी से उपचार किया जा सकता है. यदि मासिकधर्म लंबे समय तक अनियमित रहता है, तो डायलेशन ऐंड क्यूरेटेज (डीएनसी) किया जा सकता है. इस से उपचार में सहायता मिलती है.

सवाल-

मैं 33 वर्षीय महिला हूं. 3 माह की गर्भवती हूं. मुझे लगभग 2 वर्ष पूर्व गर्भपात हो गया था. मेरे गर्भाशय का आकार सामान्य से बड़ा है. मैं ने कहीं पढ़ा है कि यह कैंसर का लक्षण है. क्या मुझे कैंसर है?

जवाब-

हालांकि ये जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (जीटीडी) के लक्षण हैं, लेकिन यदि आप का चिकित्सक यह सोचता है कि इस में चिंता की कोई बात नहीं है, तो फिर चिंता न करें. इस की अल्ट्रासाउंड से पुष्टि की जा सकती है. खून की कमी प्राय: गर्भावस्था के दौरान हो जाती है. आयरन से भरपूर भोजन करें. तनाव गर्भ में पल रहे शिशु के लिए ठीक नहीं है.

ये भी पढ़ें- मेरी आंखों के नीचे काले घेरे हो गए हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 22 वर्षीय युवती हूं. मेरी मां 3 माह पहले स्तन कैंसर से गुजर गई थीं. मैं स्वयं को भी कैंसर के खतरे के दायरे में मानती हूं. मैं यह जानना चाहती हूं कि मुझे कितनी पहले जांच करा लेनी चाहिए? मेरे लिए इस से बचने का कोई तरीका है?

जवाब-

आप जांच कराने में देरी न करें. अल्ट्रासाउंड किसी भी आयु में कराया जा सकता है, लेकिन मैमोग्राफी लगभग 40 वर्ष की अवस्था में कराई जानी चाहिए. बीआरसीए के उत्परिवर्तन के साथ महिलाओं के लिए सुनियोजित उपचार की अब भी खोज की जा रही है. तुरंत ओंकोलौजिस्ट से संपर्क करें.

– डा. एस. के. दास
ऐक्शन कैंसर हौस्पिटल, दिल्ली

ये भी पढ़ें- मेरे जीजाजी की हरकतों के कारण मैं परेशान हूं, मैं क्या करुं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कभी गरीबों की भी सुनो

शहरों को सुंदर बनाने में भी अब राजनीतिक दलों की रुचि होने लगी है. लखनऊ में गोमती के किनारे रिवर फ्रंट को ले कर अखिलेश यादव अपनी पीठ थपथपाते हैं तो नरेंद्र मोदी अहमदाबाद में साबरमती के रिवर फ्रंट को ले कर. नरेंद्र मोदी आजकल अपना बहुत समय दिल्ली के राजपथ के दोनों ओर सैंट्रल विस्टा और नया संसद भवन बनवाने में बिता रहे हैं और उन की रुचि राममंदिर में फिलहाल न के बराबर है जिस पर वैसे भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कब्जा है.

शहरी आबादी निरंतर बढ़ रही है और आमतौर पर सिर्फ बहुत महंगे इलाकों को छोड़ कर शहरों में रहने वाले खुली हवा व हरियाली को तरस रहे हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि राज्य सरकार व नगर निकाय अपने बजट का बड़ा हिस्सा आम जनता के लिए बड़ेबड़े बाग बनवाने व आसपास के खुले इलाकों को विकसित करने में खर्च करें. आजकल सरकारी 20-30 मंजिले सचिवालयों और कार्यालयों, अदालतों को बनवाने की जो होड़ लगी है वह असल में जनता पर शासकों का भय दर्शाने के लिए है.

जहां बाग और रिवर फ्रंट में आम आदमी और उस का परिवार राहत महसूस करता है, वहीं विशाल अदालत भवन, पुलिस मुख्यालय या दूसरी सरकारी इमारतें उस का दम घोंटती हैं. राजपथ के दोनों ओर पिछले 70 सालों से हराभरा मैदान एक राहत देने वाला स्थान रहा है, जहां दिल्ली की घनी बस्तियों वाले कभीकभार आ कर चैन महसूस करते थे. धीरेधीरे कर के इसे जनता से छीन कर सरकारी कब्जे में लिया जा रहा है. सी हैक्सागन पहले ही सैनिक स्मारक की तरह विकसित कर दिया गया है और उस में आम जनता नहीं जा सकती, केवल जनता के प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी ही जा सकते हैं.

ये भी पढ़ें- यूक्रेनी औरतों का बलिदान

नरेंद्र मोदी अपने लिए विशाल मकान और संसद भवन बनवा रहे हैं. सैंट्रल विस्टा आम जनता के लिए खुला रहेगा, इस में संदेह है. इस के विपरीत दिल्ली सरकार, जिस के पास आधेअधूरे हक हैं, कई जगह सड़कों को सुंदर कर रही है और यमुना के किनारे को विकसित करना चाह रही है पर केंद्र सरकार की एजेंसी, दिल्ली विकास प्राधिकरण, उस जमीन पर कुंडली मारे बैठी है. इस का श्रेय अरविंद केजरीवाल को न चला जाए, केवल इसलिए वह वहां कुछ नहीं होने दे रही. ऐसा ही कुछ हर राज्य, हर शहर में हो रहा है.

बढ़ती शहरी आबादी को जो ठंडी हवा चाहिए वह मौलिक अधिकार होने के साथसाथ उस की आवश्यकता भी है. शहरी आबादी अपने अधिकांश घंटे बंद दफ्तरों, कारखानों या घरों में बिताती है और उसे सप्ताह में मुश्किल से 3-4 घंटे मिलते हैं जब कहीं राहत की सांस ले सके. साफ हवा और पार्क वगैरह को विकसित करने को अब शासन का अहम हिस्सा मानना चाहिए. पेड़, बाग, झरने, खेलकूद के लिए स्थान, साफसुंदर सड़कें, पटरियां आज हिंदूमुसलिम विवादों, चीनपाकिस्तान, राममंदिर, काशी कौरिडोर, चारधाम यात्रा से ज्यादा महत्त्व की हैं. समाजवादी पार्टी और मायावती का चुनावों में गोमती रिवर फ्रंट का मुद्दा उठाना एक अच्छा संकेत है. यह अयोध्या के घाटों से कहीं ज्यादा जरूरी है जहां पंडों की बरात जमा हो जाएगी और भिखारियों का जमावड़ा हो जाएगा.

ये भी पढ़ें- लोकतंत्र और धर्म गुरु

नीड़ का निर्माण फिर से: भाग 3- क्या मानसी को मिला छुटकारा

लेखक- श्रीप्रकाश

एक रोज किसी बात पर दोनों में तकरार हो गई. पतिपत्नी की रिश्ते के लिहाज से ऐसी तकरार कोई माने नहीं रखती. मानसी के सासससुर दिल्ली गए थे. मनोहर को बहाना मिला. वह बाहर निकला तो देर रात तक आया नहीं. उस रात मानसी बेहद घबराई हुई थी. ‘अचला, मनोहर अभी तक घर नहीं आया. वह शाम से निकला है,’ वह फोन पर सुबकने लगी.

‘अकेली हो?’ अचला ने पूछा.

‘हां, घबराहट के मारे मेरी जान सूख रही है. उसे कुछ हो गया तो?’

अचला ने अपने पति को जगा कर सारा वाकया सुनाया तो वह कपड़े पहन कर मनोहर की तलाश में बाहर निकला. 10 मिनट बाद मानसी का फिर फोन आया, ‘अचला, मनोहर घर के बाहर गिरा पड़ा है. मुझे लगता है कि वह नशे में धुत्त है. अपने पति से कहो कि वह आ कर किसी तरह उसे अंदर कर दें.’

अगली सुबह मानसी आफिस आई तो वह अंदर से काफी टूटी हुई थी. मनोहर ने उस के विश्वास के साथ छल किया था जिस का उसे सपने में भी भान न था. कुछ कहने से पहले ही मानसी की आंखें डबडबा गईं. ‘बोल, अब मैं क्या करूं. सब कर के देख लिया. 5 साल कम नहीं होते. ठेकेदारी के चलते मेरे सारे गहने बिक गए. जिस पर मैं ने उसे अपनी तनख्वाह से मोटरसाइकिल खरीद कर दी कि कोई कामधाम करेगा…’

अचला विचारप्रक्रिया में डूब गई, ‘तुम्हें परिस्थिति से समझौता कर लेना चाहिए.’

अचला की इस सलाह पर मानसी बिफर पड़ी, ‘यानी वह रोज घर बेच कर पीता रहे और मैं सहती रहूं. क्यों? क्योंकि एक स्त्री से ही समझौते की अपेक्षा समाज करता है. सारे सवाल उसी के सामने क्यों खड़े किए जाते हैं?’

‘क्योंकि स्त्री की स्थिति दांतों के बीच फंसी जीभ की तरह होती है.’

‘पुरुष की नहीं जो स्त्री के गर्भ से निकलता है. स्त्री चाहे तो उसे गर्भ में ही खत्म कर सकती है,’ मानसी की त्योरियां चढ़ गईं.

‘हम ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि कोई भी स्त्री अपनी कृति नष्ट नहीं कर सकती.’

‘यही तो कमजोरी है हमारी जिस का नाजायज फायदा पुरुष उठाता रहा.’

‘तलाक ले कर तुझे मिलेगा क्या?’

ये भी पढ़ें- थोथी सोच: कौन थी शालिनी

‘एक स्वस्थ माहौल जिस की मैं ने कामना की थी. अपनी बेटी को स्वस्थ माहौल दूंगी. उसे पढ़ाऊंगी, स्वावलंबी बनाऊंगी,’ मानसी के चेहरे से आत्म- विश्वास साफ झलक रहा था.

‘कल वह भी किसी पुरुष का दामन थामेगी?’ अचला ने सवालिया निगाह से देखा.

‘पर वह मेरी तरह कमजोर नहीं होगी. वह झूठे आदर्श, प्रथा, परंपरा ढोएगी नहीं, बल्कि उस का आत्मसम्मान सर्वोपरि होगा.’

‘मानसी, तू जवान है, खूबसूरत है, कैसे बच पाएगी पुरुषों की कामुक नजरों से? भूखे भेडि़यों की तरह सब मौका तलाशेंगे.’

‘ऐसा कुछ नहीं होगा. अगर हम अंदर से अविचलित रहें तो मजाल है जो कोई हमारी तरफ नजर उठा कर भी देखे,’ मानसी के दृढ़निश्चय के आगे अचला निरुत्तर थी.

अदालत में मानसी ने जब तलाक की अरजी दी तो एक पल के लिए सभी स्तब्ध रह गए. किसी को भरोसा नहीं था कि मानसी इतने बड़े फैसले को साकार रूप देगी. उधर जब मनोहर को तलाक का नोटिस मिला तो वह भी सकते में आ गया.

‘आखिर उस ने अपनी जात दिखा ही दी. मैं तो पहले ही इस शादी के खिलाफ थी. जिस लड़की का माथा चौड़ा हो उस के पैर अच्छे नहीं होते,’ मनोहर की मां मुंह बना कर बोलीं.

‘तुम्हारे बेटे ने कौन सा अपनी जात का मान रखा,’ मनोहर के पिता उसी लहजे में बोले.

‘तुम तो उसी कुलकलंकिनी का पक्ष लोगे,’ वह तत्काल असलियत पर आ गई, ‘अच्छा है, इसी बहाने चली जाए. बेटे की शादी धूमधाम से करूंगी. मेरा बेटा उस के साथ कभी भी सुखी नहीं रहा,’ टसुए बहाते मनोहर की मां बोलीं.

‘इस गफलत में मत रहना कि तुम्हारा बेटा पुरुष है इसलिए उस के हर गुनाह को लोग माफ कर देंगे. मानसी पर उंगली उठेगी तो मनोहर भी अछूता नहीं रहेगा,’ मनोहर के पिता बोले.

‘मैं यह सब नहीं मानती. बेटा खरा सोना होता है. लड़की वाले दरवाजा खटखटाएंगे,’ मनोहर की मां ऐंठ कर बोलीं.

‘शादी तो बाद में होगी पहले इस नोटिस का क्या करें,’ मनोहर की ओर मुखातिब होते हुए उस के पिता बोले.

मनोहर किंकर्तव्यविमूढ़ बना रहा.

‘यह क्या बोलेगा?’ मनोहर की मां तैश में बोलीं.

‘तुम चुप रहो,’ मनोहर के पिता ने डांटा, ‘यह मनोहर और मानसी के बीच का मामला है.’

मनोहर बिना कुछ बोले ऊपर कमरे में चला गया. कदाचित वह भी इस अनपेक्षित स्थिति के लिए तैयार न था. रहरह कर उस के सामने कभी मानसी तो कभी चांदनी का चेहरा तैर जाता. उसे मानसी खुदगर्ज और घमंडी लगी. जिसे अपनी कमाई पर गुमान था. जब मानसी अलग रहने के लिए जाने लगी थी तो मनोहर और उस के पिता ने उसे काफी समझाया था. परिवार की मानमर्यादा का वास्ता दिया पर वह टस से मस न हुई.

10 रोज बाद मनोहर मानसी के घर आया.

‘मानसी, मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूं. घर चलो. लोग तरहतरह की बातें करते हैं.’

मनोहर के कथन को नजरअंदाज करते हुए मानसी की त्योरियां चढ़ गईं, ‘तुम यहां भी आ गए. मैं अब उस घर में कभी नहीं जाऊंगी.’

‘मैं शराब को हाथ तक नहीं लगाऊंगा.’

‘तुम ने आज भी पी है.’

‘क्या करूं, तुम सब के बगैर जी नहीं लगता,’ उस का स्वर भीग गया.

‘मैं हर तरह से देख चुकी हूं. अब कोई गुंजाइश नहीं,’ मानसी ने नफरत से मुंह दूसरी तरफ फेर लिया.

‘तो ठीक है, देखता हूं कैसे लेती हो तलाक,’ मनोहर पैर पटकते हुए चला गया.

कोर्ट के कई चक्कर काटने के बाद जिस दिन मानसी को फैसला मिलने वाला था उस रोज दोनों ही पक्ष के लोग थे. मनोहर व उस के मांबाप. इधर मानसी के मम्मीपापा. मनोहर की मां को छोड़ कर सभी के चेहरे लटके हुए थे. जज ने कहा, ‘अभी भी मौका है, आप अपने फैसले पर फिर से विचार कर सकती हैं.’

मानसी ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘सर, यह क्या बोलेगी. औरत पर हाथ उठाने वाला आदमी पति के नाम पर कलंक है. बेहतर होगा आप अपना फैसला सुनाएं,’ मानसी का वकील बोला.

ये भी पढ़ें- अपना घर: फ्लैट में क्या हुआ जिया के साथ

‘आप थोड़ी देर शांत हो जाइए. मुझे इन के मुख से सुनना है,’ जज ने हाथ से इशारा किया.

क्षणांश चुप्पी के बाद मानसी बोली, ‘सर, मनोहर और मेरे बौद्धिक स्तर नदी के दो किनारों की तरह हैं जो कभी भी एक नहीं हो सकते.’

जज ने अपना फैसला सुना दिया. यानी तलाक. मनोहर इस फैसले से खुश न था. उस का जी हुआ कि मानसी का गला घोंट दे. वह मानसी को थप्पड़ मारने जा रहा था कि उस के पिता बीच में आ गए. ‘खबरदार, जो हाथ लगाया. तेरा और उस का रिश्ता खत्म हो चुका है.’

तलाक की खबर पा कर मनोहर के बड़े भाईबहन, जो दूसरे शहरों में थे, आ गए.

‘तू ने जीतेजी हम सब को मार डाला,’ भाई राकेश बोला, ‘क्या मुंह दिखाएंगे समाज में.’

मनोहर की बहन प्रतिमा मानसी के घर आई. मानसी ने उन्हें ससम्मान बिठाया.

‘मानसी, मुझे इस फैसले से दुख है. न मेरा भाई ऐसा होता न ही तुम्हें ऐसा कठोर कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ता. मैं उस की तरफ से तुम से माफी मांगती हूं,’ प्रतिमा भरे मन से बोली.

‘दीदी, आप दिल छोटा मत कीजिए. मुझे किसी से कोई गिलाशिकवा नहीं.’

‘मुझे चांदनी की चिंता है. मेरा तो उस से रिश्ता खत्म नहीं हुआ,’ चांदनी के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए प्रतिमा बोली.

‘दीदी, खून के रिश्ते क्या आसानी से मिटाए जा सकते हैं,’ मानसी भी भावुक हो उठी.

प्रतिमा उठ कर जाने लगी तो मानसी बोली, ‘चांदनी के लिए आप हमेशा बूआ ही रहेंगी.’

दरवाजे तक आतेआते भरे मन से प्रतिमा बोली, ‘मानसी, कागज पर लिख या मिटा देने से रिश्ते खत्म नहीं हो जाते. तुम्हारे और मनोहर के बीच रिश्तों की एक कड़ी है जिसे मिटाया नहीं जा सकता.’

मनोहर प्राय: अपने कमरे में गुमसुम पड़ा रहता. न समय पर खाता न पीता. अब उस ने ज्यादा ही शराब पीनी शुरू कर दी. पैसा पिता से लड़झगड़ कर ले लेता. पहले जब कभी मानसी रोकटोक लगाती थी तो वह पीना कम कर देता. अब तो वह भी न रही. निरंकुश दिनचर्या हो गई थी उस की. एक दिन शराब पी कर आया तो अपनी मां से उलझ गया :

‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की है. तुम ने हमेशा मानसी से नफरत की है. उस के खिलाफ मुझे भड़काया.’

‘उलटा चोर कोतवाल को डांटे. मानसी मेरी नहीं तेरी वजह से गई है. बेटा, जो औरत ससुराल की देहरी लांघती है वह औरत नहीं वेश्या होती है. तेरे सामने तो एक लंबी जिंदगी पड़ी है. तेरा ब्याह अच्छे घराने में कराऊंगी,’ मनोहर की मां की आंखों में अजीब सी चमक थी.

‘नहीं करना है मुझे ब्याह,’ मनोहर धम्म से सोफे पर गिर पड़ा.

आगे पढ़ें- राकेश के कथन पर मनोहर बोला…

ये भी पढ़ें- जूही: क्या हुआ था आसिफ के साथ

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें