Imlie होगी किडनैप, क्या बचा पाएगा आर्यन

स्टार प्लस के सीरियल इमली (Imlie) की कहानी में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां आर्यन (Fehmaan Khan) से शादी के बाद इमली (Sumbul Tauqeer Khan) के सामने नई मुसीबतें शुरु हो गई हैं तो वहीं आदित्य अकेला हो गया है. इसी बीच अपकमिंग एपिसोड में इमली पर मुसीबत आने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Imlie Latest Update) …

इमली के लिए आर्यन उठाएगा कदम

 

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अब तक आपने देखा कि इमली और आर्यन को अलग करने के लिए नीला कुंडली का दोष बताती है. लेकिन आर्यन उसे करारा जवाब देते हुए बहुत सारे पंडित लेकर आता है नीला की बातों को झूठ साबित करता है. वहीं आदित्य की मां सगाई के लिए नर्मदा से कहती नजर आती है, जिसके कारण आदित्य काफी दुखी नजर आता है.

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आर्यन करेगा वादा

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि इमली और आर्यन की सगाई के लिए त्रिपाठी परिवार उसके घर पहुंचेगा. जहां इमली, अपर्णा को शादी का सच बताने की कोशिश करेगी. लेकिन नहीं बता पाएगी. वहीं अपर्णा, आर्यन से वादा लेगी की वह इमली का पूरा ख्याल रखेगा और उसे किसी भी तरह की मुसीबत में नहीं पड़ने देगा. वहीं आर्यन और इमली को साथ देखकर गुड़िया जलन महसूस करेगी और नीला से अपने दिल की बात कहती नजर आएगी.

किडनैप होगी इमली

इसके अलावा आप देखेंगे कि आर्यन से गुड़िया की शादी करवाने के लिए नीला चाल चलेगी और इमली को किडनैप करने का प्लान बनाएगी, जिसके चलते वह इमली को एक बक्से में बंद कर देगी. हालांकि देखना होगा कि आर्यन कैसे इमली की जान बचाता है.

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62 की Neena Gupta ने शेयर की बोल्ड ड्रैस में वीडियो, ट्रोलर्स को दिया जवाब

बॉलीवुड एक्ट्रेस नीना गुप्ता (Neena Gupta ) आए दिन सुर्खियों में रहती हैं. जहां उनका फैशन चर्चा का विषय बन जाता है तो वहीं ट्रोलर्स को करारा जवाब देते हुए वह सोशल मीडिया पर छाई रहती हैं. इसी बीच नीना गुप्ता ने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह बेझिझक बातें करती हुई नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो की झलक….

ट्रोलर्स के लिए कही ये बात

 

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हाल ही में नीना गुप्ता ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह अपनी हौट ड्रैस के बारे में बेझिझक मन की बातें फैन्स से शेयर करती नजर आ रही हैं. वहीं वीडियो में कहती नजर आ रही हैं कि ‘मुझे ये इसलिए पोस्ट करना है क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि जो ऐसे सेक्सी टाइप कपड़े पहनती हैं, जैसे मैंने अभी पहने हैं लोगों को लगता है कि वो ऐसे ही बेकार के होते हैं. लेकिन मैं बता दूं कि मैंने संस्कृत में एमफिल की हुई है और भी बहुत कुछ किया हुआ है. तो कपड़े से किसी को जज नहीं करना चाहिए, ट्रोल करने वालो समझ लो.’

 

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सिंगल मदर हैं नीना

 

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नीना गुप्ता ने पर्सनल लाइफ के बारे में बात करें वह क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स के साथ रिलेशनशिप में रह चुकी हैं, जिनसे उनकी बेटी मसाबा गुप्ता हैं. हालांकि उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा है कि सिंगल मदर बनने का फैसला कोई बहादुरी वाला नहीं है, जिसे सुनकर फैंस को झटका लगा था. वहीं अपनी एक बुक में भी वह कई खुलासे करती हुई नजर आ चुकी हैं.

बता दें, नीना गुप्ता बौलीवुड की कई फिल्मों में काम कर चुकी हैं वहीं बधाई हो, शुभ मंगल सावधान जैसी फिल्मों के चलते वह सुर्खियों में रही हैं. हालांकि वह अपने फैशन के चलते सोशलमीडिया पर अक्सर छाई रहती हैं.

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Holi का जश्न मनाती दिखीं Disha Parmar, फोटोज वायरल

सीरियल ‘बड़े अच्छे लगते हैं 2’ एक्ट्रेस दिशा परमार सोशलमीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वहीं उनके हर एक पोस्ट को फैंस काफी पसंद करते हैं. इसी बीच दिशा परमार का होली लुक सोशलमीडिया पर वायरल हो गया है. आइए आपको दिखाते हैं दिखा परमार के होली लुक की झलक…

सेट पर होली मनाएंगी दिशा

 

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हाल ही में दिशा परमार ने एक पोस्ट शेयर किया है, जिसमें वह पर्पल और वाइट कलर की साड़ी में फोटोज शेयर की है, जिसमें उनका लुक होली सेलिब्रेशन का नजर आ रहा है. दरअसल, बड़े अच्छे लगते हैं 2 के सेट पर होली सेलिब्रेशन होने वाला है, जिसमें दिशा परमार का लुक बेहद खूबसूरत लग रहा है.

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वेकेशन पर दिखा था दिशा का ये अंदाज

 

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इसके अलावा बीते दिनों एक्ट्रेस दिशा परमार पति राहुल वैद्य (Rahul Vaidya) संग वेकेशन मनाने उदयपुर पहुंची थीं. वहीं इस दौरान दिशा परमार पीले सूट में बोट पर पोज देती हुई नजर आईं थीं. फैंस को जहां दिशा परमार का ये लुक काफी पसंद आया था तो वहीं दिशा खुद अपने लुक को सरसों का खेत बताती दिखीं थीं.

इंडियन लुक में लगती हैं खूबसूरत

 

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दिशा परमार का इंडियन लुक फैंस के बीच चर्चा में रहता है. साड़ी हो या सूट, दिशा अपने लुक के कारण फैंस को बेहद पसंद आती है. वहीं दिशा के ये लुक फेस्टिव सेलिब्रेशन के लिए बेहद खूबसूरत हैं.

 प्रैग्नेंसी को लेकर सुर्खियों में हैं दिशा

 

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बीते दिनों एक्ट्रेस दिशा परमार प्रैग्नेंसी की खबरों को लेकर काफी सुर्खियों में रही थीं. दरअसल, एक ओवरसाइज ड्रैस पहनने के कारण फैंस उनके प्रैग्नेंट होने के कयास लगा रहे था, जिसके कारण फैंस काफी खुश हुए थे. हालांकि दिशा परमार और राहुल वैद्य ने इन खबरों को अफवाह बताया था. बावजूद इसके कपल ने फैंस को शुक्रिया कहा था.

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मेरे पति को डायबिटीज के कारण खाने पीने में परेशानी हो रही है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरे पति की उम्र 48 साल है. उन्हें शुगर है. कुछ दिनों से उन के सामने के दांत हिलने लगे हैं. इस कारण उन्हें खानेपीने में काफी परेशानी हो रही है. कृपया कोई समाधान बताएं ताकि वे इस समस्या से छुटकारा पा सकें?

जवाब-

डायबिटीज होने पर शुगर का कंट्रोल बिगड़ने से मसूढ़ों के स्वास्थ्य पर उलटा असर पड़ता है. मसूढ़ों में इन्फैक्शन हो जाने से सूजन हो जाती है और दांत हिलने लगते हैं. मसूढ़ों का यह विकार पायरिया कहलाता है. इस स्थिति में पहली जरूरत शुगर पर कंट्रोल करने की है. अच्छा होगा कि इस के लिए आप के पति अपने डायबिटोलौजिस्ट से मिलें. खानपान में संयम बरतने, नियमित शारीरिक कसरत करने और डाक्टरी सलाह पर समय से दवा लेने से ब्लड शुगर पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं. यह संभव है कि उन की ब्लड शुगर बहुत बढ़ी हुई हो और स्थिति को भांपते हुए डायबिटोलौजिस्ट उन्हें इंसुलिन लेने की सलाह दें. इस सूरत में आप के पति का इंसुलिन से कतराना ठीक नहीं होगा. यकीन मानिए जब तक उन की ब्लड शुगर कंट्रोल नहीं होगी तब तक पायरिया कंट्रोल में नहीं आने वाला. मगर ब्लड शुगर के साथसाथ उन्हें मसूढ़ों की तंदुरुस्ती पर भी ध्यान देने की सख्त जरूरत है. मसूढ़ों और दांतों की सुबह नाश्ते के बाद और रात में सोने से पहले सौफ्ट टूथब्रश से सफाई व हर भोजन करने के बाद ऐंटीसैप्टिक माउथवाश से कुल्ला करने, डैंटल हाईजीनिस्ट से मसूढ़ों और दांतों की सफाई और डैंटल सर्जन की देखरेख में ली गई दवा पायरिया से छुटकारा दिलाने में सहायक है.

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बिना चीनी वाला भोजन न केवल कई तरह की गंभीर बीमारियों से बचाता है, बल्कि वजन कम करने में भी मदद करता है. लेकिन ऐसे भोजन लेना शुरू करने से पहले कुछ चीजों को समझ लेना बेहद जरूरी है.

शुगरफ्री भोजन क्या है

शुगरफ्री भोजन का मतलब है कि उस में हर तरह की जरूरत से ज्यादा या छिपी चीनी का सेवन बंद. इस में सिंपल कार्बोहाइडे्रट भी शामिल हैं. रोजाना 350 कैलोरी से अधिक शुगर लेने से मोटापा, मधुमेह और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

इस के अलावा जरूरत से ज्यादा शुगर लेना शरीर के इम्यून सिस्टम को भी कमजोर बनाता है. कुछ लोग सोचते हैं कि शुगरफ्री भोजन का अर्थ है हर तरह की चीनी लेना बंद कर देना. लेकिन ऐसा नहीं है. इस में अनाज और फलों की मात्रा को कम करना चाहिए, लेकिन बंद बिलकुल नहीं करना चाहिए.

कैसे करता है काम

शुगरफ्री भोजन करने से ब्लड शुगर में अचानक बदलाव नहीं आता. इस में ज्यादा ग्लाइसेमिक से युक्त खाने वाली चीजें शामिल होती हैं, जिन का सीधा असर ब्लड शुगर और ग्लूकोज के स्तर पर पड़ता है. कम ग्लाइसेमिक से युक्त चीजें पचाने में ज्यादा मुश्किल होती हैं. इन्हें लेने से मैटाबोलिक रेट में सुधार होता है और आप पेट भरा हुआ महसूस करते हैं. आप के शरीर में प्रोटीन और वसा से ऊर्जा पैदा होती है. इस से धीरेधीरे वजन भी कम होने लगता है.

शुगरफ्री डाइट प्लान

ऐसे भोजन में कई खाने वाली चीजों को पूरी तरह बंद कर दिया जाता है. कुछ को ही शामिल किया जाता है. खट्टे फल ज्यादा खाए जाते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- क्यों जरूरी है शुगर फ्री भोजन

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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जब पत्नी हो कमाऊ

आजकल के विवाह विज्ञापनों से पता चलता है कि नौजवान कमाऊ पत्नी ही चाहते हैं. ऐसे लोग पतिपत्नी की कमाई से शादी के बाद जल्दी साधनसंपन्न होना चाहते हैं. अगर कमाऊ लड़की को शादी करने के बाद अपने पति के परिवार के सदस्यों के साथ रहना पड़े तो संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों के विचार और धारणाएं अलगअलग होने की वजह से उस को नए माहौल में ढलना पड़ता है. वह स्वावलंबी होने के साथसाथ अगर स्वतंत्रतापसंद होगी, तो उसे जीवन में नई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. कुछ परिवारों में सभी कमाऊ सदस्य अपनीअपनी कमाई घर के मुखिया को सौंपते हैं. मुखिया घरेलू खर्च को वहन करता है. ऐसी स्थिति में कमाऊ नववधू को भी अपनी पूरी कमाई घर के मुखिया को सौंपनी पड़ेगी. लेकिन स्वतंत्र स्वभाव वाली युवती ऐसा नहीं करना चाहेगी. उस अवस्था में नववधू और परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव पैदा होगा. पति और पत्नी के बीच मनमुटाव भी हो सकता है, जो उन के जीवन में जहर घोल देगा. ऐसे जहर को विवाहविच्छेद में परिवर्तित होते देखा गया है.

क्या करे पति

अगर परिवार वाले अपनी कमाऊ बहू से उस की कमाई नहीं लेते तो कमाऊ नववधू खुश रहती है और स्वतंत्ररूप से अपने दोस्तों के साथ घूमती है. अगर पतिपत्नी के विचारों में समन्वय होता है तब तक जीवन की गाड़ी ठीक चलती है, लेकिन अगर कहीं पति अपनी पत्नी को शक की निगाह से देखने लगे तो समस्या गंभीर बन जाती है. शादी के पहले कोई लड़का अपनी होने वाली कमाऊ पत्नी से नहीं पूछता कि वह अपनी कमाई उसे देगी या नहीं. अगर पूछ ले तो शादी के बाद कोई समस्या खड़ी न हो. एक प्राचार्य ने एक लैक्चरर से शादी की. प्राचार्य की इतनी कमाई थी कि घर का खर्च आराम से चलता था. ऐसी स्थिति में लैक्चरर पत्नी ने अपनी कमाई अपने पति को नहीं दी और कहा कि घर का खर्च तो आराम से चल ही रहा है. धीरेधीरे प्राचार्य को शक होने लगा कि उस की पत्नी अपने साथियों को खिलानेपिलाने में खर्च कर रही है और उसे एक नया पैसा नहीं दे रही है. अत: धीरेधीरे मनमुटाव ने विकराल रूप धारण कर लिया और उन दोनों में विवाहविच्छेद हो गया.

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ऐसा भी होता है

कुछ गुलछर्रे उड़ाने के लिए ही कमाऊ पत्नी चाहते हैं. ऐसे लड़के अपनी कमाई और अपनी बीवी की कमाई को मिला कर ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहते हैं. शादी के पहले ऐसे लड़कों का पता नहीं चलता. लेकिन शादी के बाद वे गुल खिलाने लगते हैं. कई बार तो अपनी बीवी की कमाई भी उन के लिए कम पड़ने लगती है. पतिपत्नी के बीच पैसों के लिए झगड़ा होने लगता है. कुछ अधिक संपन्न लड़कियां स्त्रीशासित परिवार बनाने के लिए अपने से कमाई में कमजोर पर प्रसिद्ध पुरुषों को उन की पत्नी से तलाक दिला कर शादियां करती हैं ताकि ऐसा पुरुष उन का जीवन भर कहना मानता रहे. ऐसी लड़कियां दकियानूसी परिवार के सदस्यों के साथ समझौता नहीं कर सकतीं.

होना क्या चाहिए

कमाऊ बहू या तो परिवार के सदस्यों की भावनाओं से समझौता करे या शांति से पतिपत्नी अपने परिवार से अलग रहें. इतना ही नहीं पुरुषशासित समाज में जहां पुरुषों की चलती है वहां कमाऊ बहू नाराज रहेगी इसलिए समाज के बदलते आयाम में कमाऊ बहू को घर के सभी आर्थिक खर्चों में राय देने का अधिकार होना चाहिए. आजकल पति और पत्नी को समान अधिकार है, इसलिए दोनों को अपने परिवार के माहौल में मिलजुल कर रहना चाहिए अन्यथा पारिवारिक परिवेश में अशांति रहेगी. 

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खाने से जुड़े मिथक और सचाई

95 फीसदी से ज्यादा बीमारियां पोषक तत्त्वों की कमी और शारीरिक श्रम में कमी होने के चलते होती हैं. आइए, भोजन से जुड़े कुछ मिथकों की सचाई के बारे में जानते हैं.

1. मिथक: चीनी की जगह शहद से अपने खाने को मनचाहे तरीके से मीठा कर सकत हैं.

सचाई: रासायनिक लिहाज से शहद और चीनी बिलकुल बराबर हैं. यहां तक कि नियमित चीनी के सेवन के मुकाबले शहद में ज्यादा कैलोरी हो सकती है. इसलिए बिलकुल चीनी की ही तरह शहद का भी कम मात्रा में ही इस्तेमाल करें.

2. मिथक: किसी वक्त का भोजन न करने पर अगले भोजन में उस की कमी पूरी हो जाती है.

सचाई: किसी भी समय का भोजन मिस करना ठीक नहीं माना जाता है और इस की कमी अगले वक्त का भोजन करने से पूरी नहीं होती. 1 दिन में 3 बार संतुलित भोजन लेना जरूरी होता है.

3. मिथक: यदि खाने के पैकेट पर ‘सब प्राकृतिक’ लिखा हो तो वह खाने में सेहतमंद होता है.

सचाई: अगर किसी चीज पर ‘सब प्राकृतिक’ का लेबल चस्पा हो तो भी उस में चीनी, असीमित वसा या फिर दूसरी चीजें शामिल होती हैं, जो सेहत के लिए खतरनाक हो सकती हैं. ‘सब प्राकृतिक’ लेबल वाले कुछ स्नैक्स में उतनी ही वसा शामिल होती है जितनी कैंडी बार में. पैकेट के पिछले हिस्से पर लिखी हिदायतों को पढ़ना जरूरी होता है जो आप से सब कुछ बयां कर देती है.

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4. मिथक: जब तक हम प्रत्येक दिन विटामिन का सेवन कर रहे हों, हम क्या खा रहे हैं उस के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है.

सचाई: कुछ पोषण विशेषज्ञों का कहना है कि विटामिन की गोलियां लेना अच्छी बात है, लेकिन ये गोलियां हर उस चीज को पूरा कर देंगी जिस की लंबे समय से आप को जरूरत है, जरूरी नहीं. सेहतमंद खाना आप को रेशे, प्रोटीन, ऊर्जा और बहुत सारी ऐसी जरूरी चीजें मुहैया कराता है जो विटामिन की गोलियां नहीं करा सकतीं. इसलिए विटामिन और चिप्स का 1 बैग अभी भी एक खतरनाक लंच है. इस की बजाय आप को संतुलित और पोषक तत्त्वों वाले भोजन की जरूरत है.

5. मिथक: अगर वजन जरूरत से ज्यादा नहीं है तो अपने खाने के बारे में परवाह करने की जरूरत नहीं है.

सचाई: अगर आप को अपने वजन से समस्या नहीं है तो भी हर दिन सेहतमंद भोजन का चुनाव करना जरूरी होता है. अगर आप अपने शरीर को एक मशीन की तरह से देखते हैं तो यह भी जानते होंगे कि मशीन को पूरी मजबूती के साथ चलाने के लिए अच्छे ईंधन का इस्तेमाल करना होता है. जंक फूड से दूर रहने का भी यही मकसद है. अगर आप खराब खाने की आदतें विकसित कर लेंगे तो आप को भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

6. मिथक: विटामिन और खनिज की जरूरत को पूरा करने के लिहाज से ऐनर्जी बार सब से बेहतर रास्ता हैं.

सचाई: ऐनर्जी बार कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के बेहतर स्रोत हो सकते हैं. लेकिन दूसरे खाने की तरह उन का भी बेजा इस्तेमाल हो सकता है. उन्हें ज्यादा खाने का मतलब है आप अपने शरीर को उतना ही नुकसान पहुंचा रहे हैं जितना कैंडी, केक और कूकी के खाने से होता है.

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7. मिथक: चीनी आप को ऊर्जा देती है. अगर आप को दोपहर या फिर खेल खेलने से पहले ऊर्जा बढ़ाने की जरूरत है तो एक कैंडी बार खाइए.

सचाई: चौकलेट, कूकी, कैंडी और केक जैसी खाद्य सामग्री में चीनी की सामान्य मात्रा पाई जाती है जो यकीनन आप के खून में शर्करा बढ़ा ला देगी और फिर इस के जरीए आप के शरीर की प्रणाली में जल्द ही ऊर्जा के संचार का एहसास होगा. लेकिन बाद में ब्लड शुगर में बहुत तेजी से गिरावट आती है और फिर आप को ऐसा महसूस होगा कि शुरू के ऊर्जा के स्तर में भी कमी आ गई है.

8. मिथक: कार्बोहाइड्रेट आप को मोटा करता है.

सचाई: अगर आप औसत और संतुलित मात्रा में इस का सेवन करते हैं तो आप के शरीर के लिए ये सब से बेहतर ऊर्जा के स्रोत साबित हो सकता है.                    

– डा. नीलम मोहन
पीडिएट्रिक गैस्ट्रोऐंटरोलौजिस्ट और यकृत प्रत्यारोपण विशेषज्ञ, मेदांता मैडिसिटी

शहरीकरण और औरतें

भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने एक नेशनल लैंड मोनेटाइजेशन कौरपोरेशन बनाई है जिस काम होगा देश भर में फैली केंद्र सरकार की जमीनों का हिसाब रखना और उन्हें बेच देना सरकार आजकल जनता से पैसे इकट्ठे करने में लगी है और पिछले कानूनों के बल पर कौढिय़ां में पिछली सरकारों की खरीदी जमीन को अब मंहगे दाम पर बेचना चाह रही है. यह पक्का है कि अब जो जमीनें बिकेंगी उन में घने कंक्रीट के जंगल उगेंगे और इन में से ज्यादातर शहरों, कस्बों में होंगे.

सरकारी जमीन फालतू पड़ी रहे, यह सोचना वाजिब है पर उस की जगह कंक्रीट के ऊंचे मकान, दफ्तर या फैक्ट्रियां आ जाएं, यह गलत होगा. आज सभी शहर भीड़भाड़ व प्रदूषण से कराह रहे हैं और सरकार इस में धूएं देने वाली मशीनें लगाने की योजना बना रही है. जो लोग शहरों कस्बों में रहते हैं उन्हें राहत देने की जगह, ये कदम आफत देंगे.

अच्छा तो यह रहेगा कि इन सब जमीनों पर पेड उगा कर इन्हें छोटेबड़े जंगलों में बदल दिया जाए. सरकार जंगलों का रखरखाव नहीं कर पा रही है और न ही खेती की जमीन आज के भाव से मुआवजा देकर वहां जंगल मार्ग उगा पा रही है. इसलिए जो जमीन उस के पास है चाहे 100-200 मीटर हो या लाख दो लाख मीटर, वहां बने बाग बेहद सुकून देंगे.

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अब शहरीकरण तो देश का होना ही है और कंक्रीट और जमीन का बढ़ता भाव देख कर लोगों को दड़बों में रहना पड़ेगा. उन्हें वहीं सांस लेने की जगह मिल जाए तो यह सुकून वाली बात होगी. इन छोटे बड़े जंगलों से पोल्यूशन निकलेगा नहीं, खत्म होगा.

यह भाव देश की औरतों पर निर्भर है कि वे इस मुद्दे को कितना समझें और कितना लैंड मोनेटाइजेशन का अर्थ समझें. आज तो यह समझ लें कि सरकारी दफ्तर के आगे पीछे खाली जगह उन्हें सांस देती है, बिक जाने के बाद गलाघोंट जहर उगलेगी. आदमियों को अब फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उन्हें बच्चे नहीं पालने होते, उन के खेलने की जगह नहीं ढूंढ़ती होती. सरकार लैंड मोनेटाइजेशन नहीं कर रही, लैंडपाइजनेशन कर रही है जिस का सीधा शिकार औरतें और बच्चे होंगे.

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सुषमा: भाग 3- क्या हुआ अचला के साथ

लेखिका- लीला रूपायन

हर्ष की मां की तबीयत खराब रहने लग गई थी. मैं तो अपनी बीमारी का कंबल ओढ़े पड़ी रहती थी. किसी को क्या तकलीफ है, मुझे इस से कोई मतलब नहीं था. घर में एक औरत रखी गई, जो माताजी की दिनरात सेवा करती थी. उस का नाम था सुषमा. मैं देखती, कुढ़ती, मां के लिए हर्ष कितना चिंतित हैं, मेरी कोई परवा नहीं, लेकिन मैं यह देख कर भी हैरान होती कि यह सुषमा किस माटी की बनी है. सुबह से ले कर देर रात तक यह कितनी फुरती से काम करती है. थकती तक नहीं. मुंह पर शिकन तक नहीं आती. हमेशा  हंसती रहती.

एक दिन मैं लौन में बैठी थी तो सुषमा भी मेरे पास आ कर बैठ गई. बड़े प्यार और हमदर्दी से बोली थी, ‘आप को क्या तकलीफ है, मैडम?’

‘कुछ समझ में नहीं आता,’ मैं ने थके स्वर में कहा था.

‘डाक्टर क्या बताते हैं?’

‘किसी की समझ में कुछ आए तो कोई बताए. किसी काम में मन नहीं लगता, किसी से बात करना अच्छा नहीं लगता. हर समय घबराहट घेरे रहती है.’

‘मेरी बात का बुरा मत मानना, मैडम, एक बात कहूं?’ सुषमा ने डरतेडरते पूछा था.

‘कहो.’

‘आप अपने को व्यस्त रखा करिए. कई बार इंसान के सामने कोई काम नहीं होता तो वह इसी तरह अनमना सा बना रहता है. बच्चों को भी आप ने होस्टल में भेज दिया, वरना तो उन्हीं का कितना काम हो जाता. आप अपने घर की देखभाल खुद क्यों नहीं करतीं?’

‘एक बात बता, सुषमा, तू रोज दोपहर को 2-3 घंटे के लिए कहां जाती है?’ मैं ने उत्सुकता से पूछा था.

‘कहीं भी चली जाती हूं, मालकिन. कमला को बच्चा हुआ, उस की मालिश करनी होती है. 28 नंबर वाले जगदीशजी की मां बीमार है, उस की मदद करने चली जाती हूं. निम्मी भाभी हैं न…’

‘यह निम्मी भाभी कौन हैं?’

‘जहां मैं पहले काम करती थी. उन के पास नौकरानी है तो सही, लेकिन उन्हें मुझ से बड़ा प्रेम है. उन के छोटेछोटे बालबच्चे हैं. शाम को स्कूल से आते हैं तो निम्मी भाभी की जा कर मदद कर देती हूं. वे खुद भी पढ़ाने जाती हैं, थकीहारी आती हैं.’

‘फिर ये रुपए किस के लिए ले जाती है तू?’ मैं हैरान थी.

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‘कितने ही जरूरतमंद ऐसे हैं जिन्हें सेवा और पैसे की जरूरत होती है. मेरे पीछे कौन खाने वाला है जिस के लिए इकट्ठा करूं? सोचती हूं, चार पैसे किसी जरूरतमंद के काम आ जाएं तो अच्छा ही है.’

‘तुम्हें पता रहता है किसे पैसे की या सेवा की जरूरत है?’

‘दुनिया बहुत बड़ी है, मैडम. बाहर निकल कर आप देखेंगी तो जान पाएंगी कि किस को क्या चाहिए. कौन दुख का मारा रास्ता देख रहा है कि कोई आए और उस के दुख बांट ले,’ सुषमा कितने उत्साह से बोल रही थी, ‘मैडम, बड़ा फायदा है दूसरों का दुख बांटने में. मन को कितना संतोष मिलता है, सुख मिलता है. जब हम बाहर निकल कर दूसरों की तकलीफों को देखते हैं तो सच मानिए, अपनी तकलीफ अपनेआप ठीक हो जाती है.’

‘तू थकती नहीं, सुषमा?’

‘नहीं, मैम. यह काम ही तो है जिस ने मुझे इस उम्र में भी तंदुरुस्त रखा हुआ है. फिर इस शरीर को इतना भी क्या संभाल कर रखें, यह हमारे किस काम आएगा? जानवरों का तो चाम भी काम आ जाता है. अपनी चमड़ी तो उस काम भी नहीं आती. फिर क्यों न इस से जीभर के मेहनत की जाए? संभाल कर रखने से तो इसे जंग खा जाएगा, जैसे मशीन बंद पड़ी रहे तो उस में जंग लग जाता है.’

‘सच, सुषमा?’ जैसे मैं सपने से जगी थी.

‘हां, मालकिन, दूसरों का दुख बांट लो तो अपना खुद ही कम हो जाएगा. फिर कैसी सुस्ती, कैसी उदासी और कैसी बीमारी? मैं तो अपने शरीर को हरामखोरी नहीं करने देती, मैडम,’ सुषमा कितने विश्वास से यह बात कह गई थी.

सुषमा उठ कर चली गई थी मेरे लिए प्रश्नचिह्न छोड़ कर. बिहार के उस लगभग अनपढ़ गांव की औरत ने कितने बड़े राज की बात कह दी थी. उस की बातें मुझे कहीं भीतर तक चीरती हुई निकल गई थीं. यह सुषमा, जिस के पास मुट्ठीभर पूंजी है, उसे बांट कर कितने सुखसंतोष का अनुभव करती है. दूसरों की सेवा में कितना इसे आनंद मिलता है, और मैं अपने शरीर को लिए ही चिंतित हूं. मैं क्या किसी के लिए कुछ नहीं कर सकती? अब मैं किसी निश्चय पर पहुंच चुकी थी.

हर्ष को सुबह उठते ही एक कप कौफी लेने की आदत थी. मेरी तबीयत खराब होने से यह काम नौकर करने लगा था, क्योंकि मैं तो देर तक बिस्तर पर पड़ी रहती थी. यह मेरा काम था जिसे मैं भूल गई थी. जब उस रोज सुबह में कौफी ले कर पहुंची तो हर्ष बड़ी हैरानी से मुझे देखते रह गए, ‘तुम, मनसुख कहां गया?’

‘यह मेरा काम था. मैं भूल गई थी,’ मैं ने निगाह नीची किए कहा था.

‘लेकिन तुम्हारी तबीयत?’ वे हैरान थे.

‘वह अब ठीक हो जाएगी. मुझे पता लग गया है, मुझे क्या बीमारी थी,’ मैं शरारत से मुसकरा दी थी.

‘क्या थी?’

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‘मेरी बीमारी का नाम हरामखोरी था. मेरे डाक्टर ने मुझे समझा दिया है.’

‘कौन सा डाक्टर?’ वे जानने को उत्सुक थे.

‘सुषमा…सच, मैं तो यह भूल ही गई थी कि दूसरों को भी मेरी जरूरत है. मैं इतनी स्वार्थी हो गई थी कि बस यही चाहती थी सब मेरी चिंता करें. सब का दुखदर्द समझती तो न खुद मैं परेशान रहती, न ही इतनी बोरियत सताती. सुषमा ने मुझे सोते से जगा दिया है.

‘इस के बाद वह मेरी आदर्श बन गई, मेरी गुरु, जिस ने मुझे जीने की राह बताई है, मेरी झोली में खुशियां भर दी हैं, मुझे मेरा परिवार लौटा दिया है,’ मेरी आंखों में कितनी ही खुशी के आंसू आ गए थे. मेरे बच्चे मेरे पास वापस आ गए. कहने लगे होस्टल में मन नहीं लगता. हर्ष और मां खुश हैं. मैं कितनी खुश हूं सुषमा को पा कर जिस ने मेरा इतना काम बढ़ा दिया है. लगता है, दिन खत्म हो गया पर काम तो पूरा हुआ नहीं. वह भी तो जुटी रहती है सब के दुख बांटने में. मैं ने सोच लिया है कि अब सुषमा को अपने से दूर नहीं करूंगी. कहीं मैं फिर न भटक जाऊं. उसे देख कर हमेशा यही खयाल आता है कि जो सुख दूसरों के दुख मिटाने में है वह अपने को सहेज कर रखने में कहां है. हम दूसरों का दुख कम करेंगे तो हमारा दुख अपनेआप कम हो जाएगा.

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सुषमा: भाग 2- क्या हुआ अचला के साथ

लेखिका- लीला रूपायन

हर्ष ने कभी ऐसी कोई हरकत नहीं की थी जिस से मेरे मन को ठेस लगे, कोई मर्यादा भंग हो या हम किसी के उपहास का पात्र बनें.

एक दिन मेरी तबीयत बहुत खराब थी. दफ्तर का काम निबटाना जरूरी था, इसीलिए मैं चली गई थी. मैं कुछ पत्र टाइप कर रही थी और मुझे महसूस हो रहा था कि हर्ष की निगाहें बराबर मेरा पीछा कर रही हैं. मैं घबराहट से सुन्न होती जा रही थी. तभी उन्होंने पुकारा था, ‘अचला, लगता है आज तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं. तुम्हें नहीं आना चाहिए था. जाओ, घर जाओ. यह काम इतना जरूरी नहीं है, कल भी हो सकता है.’

‘बस, सर, थोड़ा काम और रह गया है, फिर चली जाऊंगी.’

‘जरा इधर आओ. यहां बैठो,’ उन्होंने सामने वाली कुरसी की ओर इशारा किया.

मेरे बैठने पर पहले तो वे कुछ देर चुप रहे, लेकिन थोड़ी देर बाद सधे स्वर में बोले थे, ‘बहुत दिनों से मैं तुम्हें एक बात कहने की सोच रहा था. मैं जो कुछ भी कहूंगा, भावुकता में नहीं कहूंगा और इस का गलत अर्थ भी मत लगाना. मैं ने तुम से शादी करने का निश्चय किया है. तुम से ‘हां’ या ‘न’ में उत्तर नहीं चाहता, बात तुम्हारे पापा से होगी. केवल अपना परिचय देना चाहता था, ताकि तुम उस पर गौर से सोच सको और जब तुम्हारे पापा तुम से शादी के विषय में बात करें तो अपना निर्णय दे सको.

‘यह तो तुम ने देख ही लिया है, मेरा बिजनैस है और परिवार के नाम पर सिर्फ मेरी मां हैं. मां को भी तुम ने देखा है, बीमार रहती हैं. तुम सोच रही होगी कि मैं ने अभी तक शादी क्यों नहीं की. मैं चाहता था, मुझे ऐसी लड़की मिले, जो विनम्र हो, कर्तव्यनिष्ठ हो, जिस में हर काम कर गुजरने की लगन हो, जो विवेकशील हो, तब शादी करूंगा. कभी यह इच्छा नहीं हुई कि संपन्न घराने की लड़की मिले. इतना तो हमारे पास है ही कि सारी उम्र किसी के आगे हाथ पसारने की जरूरत नहीं. इतने दिनों में मैं ने तुम्हें बहुत परखा है. मैं जान गया हूं, तुम्हीं वह लड़की हो, जिस की मुझे तलाश थी. तुम्हारे साथ शादी मैं दयावश नहीं कर रहा हूं. मुझे तुम्हारी जरूरत है. मैं तुम्हारे पापा से जल्दी ही बात करूंगा. ‘हां’ या ‘न’ का फैसला तुम्हें करना है और उस के लिए तुम स्वतंत्र हो.’

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पापा से उन्होंने बाद में बात की थी. मैं ने पहले ही सबकुछ बता दिया था, क्योंकि मैं पापा से कभी कोई बात नहीं छिपाती थी.

पापा ने उन की आयु का सवाल उठाया था. लेकिन मां ने यही कहा था, ‘आयु तो गौण बात है. जीनामरना किसी के हाथ में थोड़े ही है.’

जब हर्ष ने बाबा से बात की तो बाबा ने बस यही कहा था, ‘मेरी परिस्थिति से आप परिचित हैं. इस के बाद भी आप अचला का हाथ मांग रहे हैं तो मुझे इनकार नहीं है. कौन मांबाप अपनी संतान को सुखी नहीं देखना चाहता?’

हमारी शादी हो गई थी. एक साल कैसे निकल गया, पता ही नहीं लगा. मैं ने घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल लीं. हर्ष और मां मेरे व्यवहार से बहुत खुश थे. मेरे पापा हमेशा कहते, ‘बेटी, तू बड़े घर ब्याही गई है, लेकिन बाप की हालत को मत भूलना. पुराने दिन याद रहें तो आदमी भटकन से बचा रहता है. अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक रहोगी तो सब से प्यार और सम्मान मिलता रहेगा.’

मेरा पहला बेटा जब हुआ था तब तक तो सब ठीक था. लेकिन दूसरे बेटे के पैदा होने पर न जाने मुझे क्या हो गया था कि मैं बीमार रहने लग गई थी. तबीयत की वजह से मेरा किसी काम में मन नहीं लगता था. हर्ष के और मां के जिस काम को करने से मुझे हार्दिक संतोष मिलता था, अब मैं उस से भी कतराने लग गई थी.

कभी हर्ष कहते, ‘यह तुम्हें क्या होता जा रहा है? तुम पहले तो ऐसी नहीं थीं?’ तो बजाय सीधी बात करने के, मैं गुस्सा करने लगती.

कितने ही डाक्टरों को दिखाया गया. सब का एक ही उत्तर होता, ‘शरीर तो बिलकुल स्वस्थ है, कोई बीमारी नजर ही नहीं आती, क्या इलाज किया जाए? हां, इन्हें अपनेआप को व्यस्त रखना चाहिए.’

जब यही बात हर्ष मुझ से कहते तो मैं बिगड़ उठती, ‘मैं और कैसे व्यस्त रहूं? जितना काम हो सकता है, करती हूं. तुम सोचते हो, मैं झूठ बोलती हूं. तुम्हारे पास तो इतना भी वक्त नहीं, जो आराम से पलभर मेरे पास बैठ कर मेरा सुखदुख जान सको.’

‘तुम क्या चाहती हो, दफ्तर का काम छोड़ कर तुम्हारे दुख में आंसू बहाया करूं? पहले क्या मैं सारा दिन तुम्हारे पास बैठा करता था, जो अब तुम्हें शिकायत है कि मैं बैठता नहीं? मेरे लिए मेरा काम पहला फर्ज है, बाकी सबकुछ बात में, इसे तुम अच्छी तरह जानती हो,’ वे सख्त आवाज में बोले थे, ‘और फिर तुम्हें बीमारी क्या है?’

‘बस, अमीर लोगों के यही तो चोंचले होते है. गरीब की लड़की ले आना ताकि ईमानदार नौकरानी बनी रहे. गरीब की सांस भी उखड़ने लगे तो अमीर समझता है, तमाशा कर रहा है,’ मैं सुबक पड़ी थी.

‘अचला, इस से पहले कि मैं कोई सख्त बात कहूं, तुम यह याद रखना आज के बाद तुम्हारे मुंह से कोई गलत बात न निकले. तुम जानती हो बदतमीजी मुझे बिलकुल पसंद नहीं है,’ और वे गुस्से में चले गए थे.

हर्ष ने मुझ से बोलना कम कर दिया था. मैं और कुढ़ने लग गई थी. बदतमीजी भी मैं ही करती थी और उन से शिकायत भी मुझे ही रहती थी. यह तो मैं आज सोचती हूं न. तब किसे जानने की फुरसत थी? पापा के समझाने पर उन से भी तो मैं ने अनापशनाप कह दिया था.

मेरा चिड़चिड़ापन बढ़ता गया था. बच्चों पर गुस्सा निकालती थी. नौकर की जरा सी लापरवाही पर उसे फटकार देती. हर्ष देर से आते तो तकरार करने लग जाती. एक दिन मैं ने कितने अविश्वास से उन से बात की थी. आज सोचती हूं तो लज्जित हो उठती हूं. कितनी नीचता थी मेरे शब्दों में. शायद उस दिन हर्षजी को कुछ ज्यादा देर हो गई थी. मैं ने उन से कहा था, ‘आज नई कंप्यूटर औपरेटर के साथ कोई प्रोग्राम था?’

‘क्या कहना चाहती हो?’ वे कठोरता से बोले थे.

‘यही कि इतनी देर फिर तुम्हें कहां हो जाती है?’

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‘मैं नहीं समझता था, तुम इतनी नीच भी हो सकती हो. देर क्यों होती है. सब सुनना चाहती हो? इस घर में आने की बात दूर, इस घर की याद भी जाए, अब यह भी मुझ से बरदाश्त नहीं होता. मैं ने क्या सोचा था, क्या हो गया. मेरे सपनों को तुम ने चूरचूर कर दिया है,’ वे तड़प कर बोले थे.

कभीकभी मुझे अपने व्यवहार पर बहुत पछतावा होता. मैं सोचती, ‘ये सब लोग क्या कहते होंगे? आखिर है तो छोटे घर की. स्वभाव कैसे बदलेगी,’ लेकिन यह विचार बहुत थोड़ी देर रहता.

बच्चों को हर्ष ने होस्टल में डाल दिया था. अब वे मेरी ओर से और भी लापरवाह हो गए थे. मैं अब कितना अकेलापन महसूस करने लगी थी. एक दिन मैं ने उन से कहा था, ‘तुम दिनभर औफिस में रहते हो. बच्चों को तुम ने होस्टल में डाल दिया है. दिनभर अकेली मैं बोर होती रहती हूं. इस तरह मैं पागल हो जाऊंगी.’

‘बच्चों को इस उम्र में अपने घर से दूर रहना पड़ा है, इस की वजह भी तो तुम्हीं हो. पहले अपनेआप को बदलो, बच्चे फिर घर आ जाएंगे. जिंदगी में कितने काम होते हैं, आदमी करने लगे तो यह जिंदगी छोटी पड़ जाए उन कामों के लिए, और एक तुम हो जो यह सोचे बैठी हो, कितना काम करूं,’ वे तलखी से बोले थे.

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