Healthy Sex Life : मैरिड लाइफ से हो गए हैं बोर, तो ऐसे करें ऐंजौय

Healthy Sex Life :  आजकल की भागदौड़ वाले लाइफस्टाइल और तनाव के कारण हम कम उम्र में ही बीमारियों से घिर रहे हैं जिस का असर हमारी सैक्स लाइफ पर भी पड़ रहा है. सैक्स लाइफ जल्द ही खत्म हो रही है. यदि आप अपनी सैक्स लाइफ को लंबे समय तक कैरी करना चाहते हैं तो फरमाएं इन बातों पर गौर:

रखें खुद को स्वस्थ

एक स्वस्थ शरीर ही खुश रह सकता है. यदि हम बीमार हैं तो न ही हम खुश रह सकते हैं और न ही किसी भी चीज का मजा ले सकते हैं, फिर चाहे बात सैक्स लाइफ की ही क्यों न हो. एक अस्वस्थ शरीर सैक्स लाइफ का मजा नहीं ले सकता. इस के लिए शरीर की सही देखभाल और खुद को स्वस्थ रखना आवश्यक है ताकि लंबे समय तक अपनी सैक्स लाइफ का भरपूर मजा ले सकें. स्वस्थ रहने के लिए नियमित ऐक्सरसाइज करने के साथसाथ अपने खानपान पर नियंत्रण रखना, तनाव से दूर रहना भी आवश्यक है ताकि असमय होने वाली बीमारियों से शरीर को दूर रख सकें.

रखें शरीर को फिट ऐंड फाइन

हर कपल चाहता है कि उस का पार्टनर खूबसूरत हो या दिखे. इस के लिए शरीर को मोटापे से दूर रखना आवश्यक है ताकि शरीर सुडौल रहे. शरीर को फिट ऐंड फाइन रखना आवश्यक है ताकि आप अपनी खूबसूरती से पार्टनर को आकर्षित कर सकें और अपनी सैक्स लाइफ को लंबे समय तक जारी रख सकें. इस के लिए आप को नियमित ऐक्सरसाइज करने और अपनी डाइट पर ध्यान देने की जरूरत है. इस के लिए अपने आहार में लो कैलोरी फूड शामिल करें ताकि अपने वजन को नियंत्रण में रख सकें एवं अपने शरीर को फिट ऐंड फाइन रख सकें.

उम्र के अनुसार रखें डाइट प्लान

दांपत्य जीवन को लंबे समय तक तरोताजा रखने के लिए सैक्स लाइफ का एक अहम रोल होता है. इस के लिए सब से जरूरी है खुद को स्वस्थ एवं हमेशा ऊर्जा से भरा हुआ रखना. चाहे महिला हो या पुरुष अपना खानपान उम्र के अनुसार करना चाहिए ताकि खुद को स्वस्थ रख सके खासकर महिलाओं को अपनी डाइट को ले कर कौंशस होना चाहिए क्योंकि उन्हें घर से ले कर औफिस तक की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है. इस के लिए आवश्यक है कि वे खुद पूरी तरह से फिट और स्ट्रौंग रहें. उन का खानपान सही एवं नूट्रियस होना अति आवश्यक है. महिलाओं को उम्र के हर पड़ाव पर अलगअलग नूट्रियस हैल्दी डाइट की आवश्यकता होती है क्योंकि 40-45 की उम्र में महिलाओं के शरीर में हारमोनल बदलाव एवं उन के इंसुलिन लैवल में भी बदलाव आता है और हड्डियों से संबंधित, मेनोपौज एवं और भी कई तरह की समस्याएं शुरू होने लगती हैं. इस उम्र में उन्हें खानपान के ऊपर विशेष ध्यान देने की आवस्यकता होती है. ज्यादा फाइबर, प्रोटीन युक्त प्रोडक्ट, हरी सब्जिया, कैल्शियम युक्त डायरी प्रोडक्ट्स, नट्स अपनी डाइट में शामिल करने चाहिए ताकि वे शरीर को स्वस्थ रख सके.

पहले एकदूसरे से करें बातचीत

आज आप रोमांटिक मूड में हैं और पार्टनर संग अच्छा समय बिताना चाहते हैं तो इस के लिए आप एकदूसरे से अपने दिल की बातचीत कर लें ताकि समय पर अपने सारे कामों को निबटा लें और पहले से ही मूड बना लें कि आज आप पार्टनर के साथ कुछ रोमांचक और प्यारभरे पल बिताने वाले हैं वरना कहीं ऐसा न हो कि आप किसी तनाव में परेशान हैं तो तब आप सैक्स का पूरा मजा नहीं ले पाएंगे.

बनाएं सुखद माहौल

सैक्स लाइफ को ऐंजौय करने के लिए माहौल का शांत और खुशनुमा होना भी बहुत ही आवश्यक है. इस के लिए सही जगह और समय का चुनाव करें. आप रूम में हलकी रोशनी जलाएं और लाइट म्यूजिक बजाएं ताकि आप रोमांटिक मूड में आ जाएं और शांति का अनुभव हो. फिर आप उन सुखद पलों का पार्टनर संग भरपूर मजा लें.

अच्छे से हों मेकओवर

हर पार्टनर की यह इच्छा होती है कि उस का साथी हमेशा खूबसूरत लगे. अत: पार्टनर की  पसंद की ड्रैस का चयन करें, सजेसंवरे और मेकअप करें ताकि आप उन्हें आकर्षित कर सकें.

शेयर करें अपनी फीलिंग्स

सैक्स के दौरान एकदूसरे से खुल कर बातचीत करना एक सुखद अनुभव हो सकता है ताकि पार्टनर को यह सम झना आसान हो कि उस के क्या करने से आप उत्तेजित हो रहे हैं या आनंद का अनुभव कर रहे हैं अथवा आप इस ऐक्टिविटी को ऐंजौय नहीं कर पा रहे हैं इसलिए सैक्स के दौरान पार्टनर संग बातचीत कर अपनी फीलिंग्स को अवश्य शेयर करें. यदि कोई परेशानी हो रही है तो बिना किसी हिचकिचाहट के खुल कर पार्टनर से कहें.

तनाव को करें कम

महिलाएं हों या पुरुष, दोनों में ही सैक्स क्षमता में कमी का कारण हारमोंस की गड़बड़ी, रोजमर्रा का तनाव और उम्र के साथ घटता ऐनर्जी लैवल है. वैसे तो सैक्स तनाव को कम करता है मगर कई बार रोजमर्रा की जिंदगी की टैंशन और तनाव दोनों आप पर इतने हावी हो जाते हैं कि आप की सैक्स लाइफ को प्रभावित करने लगते हैं. इस के लिए आप पर्याप्त नींद ले कर तनाव और चिंता को कम कर के रोजाना योग एवं ध्यान की मदद से अपनी सैक्स की इच्छा को बरकरार रख सकते हैं और अपने ऐनर्जी लैवल को बढ़ा सकते हैं.

मोबाइल आदि गैजेट्स को रखें औफ

आजकल हर वक्त मोबाइल हमारे आसपास ही रहता है और फिर इस पर हर वक्त आते नोटिफिकेशन, अलर्ट और मैसेस हमें किसी काम पर एकाग्र नहीं होने देते. इस से बचने के लिए आप सैक्स के दौरान अपने मोबाइल को स्विच औफ या साइलैंट मोड कर लें ताकि बिना किसी रुकावट के पार्टनर संग सैक्स का भरपूर मजा ले सकें.

लाएं कुछ नयापन

ऐसा कहा जाता है कि नयापन लाने में ही जीवन जीने का असली मजा है इसलिए अपनी सैक्स लाइफ में भी हर बार कुछ नयापन लाएं ताकि सैक्स लाइफ में बोरियत न आए. इस के लिए अपने पार्टनर के साथसाथ नईनई पोजीशन ट्राई कर उसे सरप्राइज करें. अकसर मैरिड लाइफ में एक समय के बाद सबकुछ रूटीन जैसा ही हो जाता है फिर कुछ भी नया नहीं रहता जिस के कारण हम बोर हो जाते हैं और सैक्स लाइफ जल्द ही खत्म हो जाती है. इसलिए सैक्स लाइफ को रोमांचक बनाए रखने के लिए हर बार कुछ नया आवश्यक है ताकि लंबी सैक्स लाइफ का मजा ले सकें.

शरीर को बनाएं फ्लैक्सिबल

सैक्स का भरपूर मजा लेना हो या नईनई सैक्स पोजीशन ट्राई करनी हों इस के लिए शरीर का फ्लैक्सिबल और मांसपेशियों का मजबूत होना आवश्यक है ताकि आप सैक्स के दौरान कंफर्टेबल रहें. अत: आप योग की मदद लें और ऐक्सरसाइज को अपने डेली रूटीन का हिस्सा बनाएं. इस से आप की मांसपेशियां मजबूत रहेंगी और आप सैक्स का भरपूर मजा लेंगे.

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सवाल-

मैं कालेज टाइम में किसी लड़के से बहुत प्यार करती थी. मगर कभी उस से अपने प्यार का इजहार नहीं कर सकी. बाद में मेरी अरेंज्ड मैरिज हो गई. पति काफी अंडरस्टैंडिंग और केयरिंग नेचर के हैं. मैं अपनी जिंदगी में काफी खुश थी, मगर एक दिन अचानक जिंदगी में तूफान आ गया. दरअसल, फेसबुक पर उसी लड़के का मैसेज आया कि वह मुझ से बात करना चाहता है. मेरे मन में दबा प्यार फिर से जाग उठा. मैं ने तुरंत उस के मैसेज का जवाब दिया. फेसबुक पर हमारी दोस्ती फिर से परवान चढ़ने लगी. मैं अपना खाली समय उस से बातें करने में गुजारने लगी. धीरेधीरे शर्म और संकोच की दीवारें गिरने लगीं. फिर एक दिन उस ने मुझे अकेले में मिलने बुलाया. मैं उस के इरादों से वाकिफ हूं, इसलिए हिम्मत नहीं हो रही कि इतना बड़ा कदम उठाऊं या नहीं. उधर मन में दबा प्यार मुझे यह कदम उठाने की जिद कर रहा है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

यह बात सच है कि पहले प्यार को इंसान कभी नहीं भूल पाता, मगर जब जिंदगी आगे बढ़ चुकी हो तो लौट कर उस राह जाना मूर्खता होगी. वैसे भी आप को कोई अपने पति से शिकायत नहीं है. ऐसे में प्रेमी से रिश्ता जोड़ कर नाहक अपनी परेशानियां न बढ़ाएं. उस लड़के को स्पष्ट रूप से ताकीद कर दें कि आप उस से केवल हैल्दी फ्रैंडशिप की उम्मीद रखती हैं, जो आप के जीवन की एकरसता दूर कर मन को सुकून और प्रेरणा दे. मगर शारीरिक रूप से जुड़ कर आप इस रिश्ते के साथसाथ अपने वैवाहिक रिश्ते के साथ भी अन्याय करेंगी. इसलिए देर न करते हुए बिना किसी तरह की दुविधा मन में लिए अपने प्रेमी से इस बारे में बात कर उसे अपना फैसला सुनाएं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें-

submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

गीतकार और लेखक Javed Akhtar ने आज की फिल्मों की तुलना की शीरीं फरहाद की लव स्टोरी से…

Javed Akhtar : 80 वर्षीय लेखक और गीतकार जावेद अख्तर का सेंस औफ ह्यूमर आज भी उतना ही पावरफुल है जितना कि आज से 40 -50 साल पहले था. इस बात का जीता जागता उदाहरण हाल ही में आमिर खान के लिए की गई उनकी फिल्मों की फिल्म फेस्टिवल प्रेस कौन्फ्रेंस में देखने को मिली. जावेद अख्तर आमिर खान के लिए बतौर गेस्ट उपस्थित हुए थे. जहां पर जावेद अख्तर से आज की फिल्में न चलने को लेकर सवाल किया गया, जिसके जवाब में जावेद अख्तर ने अपने मजाकिया अंदाज में एक मौके की बात कह दी.

जावेद अख्तर का कहना था कोई भी चीज अगर आसानी से मिल जाती है तो उसकी वैल्यू नहीं होती, जैसे कि आज अगर फिल्में थिएटर में रिलीज होती है तो कुछ हफ्ते बाद ही ओटीटी के जरिए लोगों के मोबाइल तक पहुंच जाती है . ऐसे में जब कोई चीज आसानी से मिलती है जिसको देखने के लिए कोई मेहनत मुश्शकत नहीं करनी पड़ती, भला उसकी वैल्यू कैसे बढ़ेगी जैसे कि अगर आज के जमाने में शीरीं फरहाद होते तो उनकी भी प्रेम कहानी इतनी दिलचस्प नहीं होती, क्योंकि आज के जमाने में अगर उनके पास स्मार्टफोन होता तो शीरीं को देखने के लिए फरहाद को घंटों बारिश में या धूप में भीगते और तपते शीरी का इंतजार ना करना पड़ता, बल्कि वह वीडियो कौल के जरिए आसानी से बात कर लेता.

ऐसे में शीरीं फरहाद को एक दूसरे के लिए बेचैनी या इंतजार ना होता. कहने का मतलब यह है कि आज फिल्में फिल्मों को देखने को लेकर दर्शकों के पास बहुत औप्शंस है , जिस वजह से फिल्म चाहे कितनी ही अच्छी हो या बुरी हो वह वो फिल्म आराम से देख लेते है. ओटीटी उनके लिए आसान माध्यम हो गया है. इसलिए आज फिल्में भी पहले के मुकाबले कम चलती है क्योंकि वह आसानी से देखने को मिल जाती है.

Grihshobha Inspire: आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मूर्म के राष्‍ट्रपति बनने से इंस्‍पायर हैं संगीता चौरसिया

Grihshobha Inspire : वूमंस डे 2025 के खास मौके पर यह सूचित करते हुए खुशी हो रही है कि सशक्‍त महिलाओं की परिभाषा गढ़ने वाली पत्रिका गृहशोभा की ओर से 20 मार्च को ‘Grihshobha Inspire Awards’ इवेंट का नई दिल्‍ली में आयोजन हो रहा है. यहां उन महिलाओं को सम्‍मानित किया जाएगा, जिनके उल्‍लेखनीय योगदान लाखों लड़कियों और महिलाओं को Inspire कर रहे हैं. एक सर्वे के माध्‍यम से हमने सैकड़ों महिलाओं से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की है कि वे ‘किस महिला से इंस्‍पायर होती हैं’?, ‘सरकार से महिलाओं को लेकर उनकी क्‍या उम्‍मीदें हैं’ और ‘एक आम महिला को इंस्‍पायरिंंग वुमन बनने की राह में क्‍या बाधाएं आती हैं ’? 49 वर्षीय संगीता चौरसिया ने अपने विचारों को कुछ इस तरह से हमारे सामने रखा.

डिफेंस रिसर्च एंड डेवलमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) में कार्यरत संगीता की दुनिया उस समय पल भर को ठहर जाती है जब उन्‍हें पता चलता है तक उनके बेटे को सेलिब्रल पाल्‍सी है. बेटे की देखभाल करने के लिए संगीता को एक भारत सरकार की एक प्रतिष्ठित संस्‍था की जॉब छोड़नी पड़ती है. संगीता का कहना है कि मैंने हार मान कर जॉब नहीं छोड़ी थी, मेरे सामने एक नई चुनौती थी, जिसका सामना मुझे करना था. थोड़ी देर बातचीत करने के बाद यह महसूस होता है कि संगीता खुद ही एक इंस्पिरेशन हैं लेकिन संगीता से जब उनके इंस्पिरेशन के बारे में पूछा गया, तो उन्‍होंने बताया कि भारत की महिला राष्‍ट्रपति द्रौपदी र्मूमू उनको इंस्‍पायर करती हैं. संगीता का मानना है कि द्रौपदी मूर्मू बेहद साधारण पृष्‍ठभूमि से आती हैं, अनुसूचित जनजाति से होने के बावजूद उन्‍होंने यह साबित किया कि महिलाओं अगर चाहे, तो सर्वोच्‍च पद पर भी अपनी जगह बना सकती हैं. द्रौपदी र्मूमू के अलावा मुझे सुधा मूर्ति भी बहुत इंस्‍पायर करती हैं.

महिलाओं की राह की बाधा

महिलाओं की राह में ढेरों बाधाएं हो सकती है लेकिन अगर महिला ही महिला की सपोर्ट करे, तो वह आधी जंग जाती है. यह महिला उसकी मां, बहन, भाभी, ननद, सास, सहेली कोई भी हो सकती है. मेरे दो बेटे हैं. मैंने सोचा है कि जब मेरी बहुएं आएंगी, तो मैं भी उनके करियर को लेकर उनका खुल कर सपोर्ट करूंगी. आज बहुत सारी युवतियां शादी के बाद न्यूक्लियर फैमिली में रह रही हैं, ऐसे में वह अपने मन से निर्णय लेने को आजाद होती हैं.

सोने पे सुहागा

अगर सरकार की तरफ से महिलाओं को स्किल ट्र‍ेनिंग दी जाए, तो बहुत सारी महिलाएं अपने सपनों को पूरा कर पाएंगी और अपने पैरों पर खड़ी हो पाउंगी. स्किल ट्रेनिंग के बाद बात आती है, फाइनैंस से जुड़ी मदद की. फाइनेंशियल हेल्‍प, जरूरतमंद लड़कियों के लिए जरूरी है. कमजोर घरों की स्किल्‍ड लड़कियों के लिए यह मदद बहुत जरूरी होती है.

बोल्‍ड है आज की वुमन

आज लड़कियां काफी बोल्‍ड हो गई है और इसे मैं सकारात्‍मक अंदाज में लेती हूं. अस्‍सी के दशक की तो बात ही छोड़ दें, नब्‍बे के दशक में भी महिलाओं में समाज से लड़ने का दम नहीं था. वह फैमिली और सोसाइटी के वैल्‍यूज में जकड़ी होती थीं और इस वजह से उन्‍हें क्‍या करना है, कहां जाना है, उन्‍हें पैसे क्‍यों चाहिए जैसी बातों को अपने घरों में अपने माता पिता को भी शेयर नहीं कर पाती थी. वह हमेशा यह सोचती रहती थी कि अपने लक्ष्‍य तक पहुंचने के उनके कदम को समाज किस तरह से देखेगी? बचपन से ही वह सामाजिक मान्‍यताओं की जंजीरों में जकड़ी होती थी. आज के पेरेंट्स का नजरिया भी बदला है, वो अपनी बेटी पर रोकटोक का शिकंजा नहीं कसते. वह अपनी बेटी पर उठने वाली उंगुली का जवाब देने को तैयार हैं

‘गृहशोभा इंस्‍पायर अवार्ड्स’ इवेंट में रजिस्‍टर करने के लिए लिंक क्लिक करें – grihshobha.in/inspire/register

Alia Bhatt की इंस्पिरेशन हैं ऐश्वर्या राय बच्चन

Alia Bhatt : बाल कलाकार के रूप में अभिनय के क्षेत्र में आई अभिनेत्री आलिया भट्ट से कोई अपरिचित नहीं. उनका सिर्फ खूबसूरत चेहरा ही नहीं, बल्कि पिछले कुछ सालों में इस अभिनेत्री ने जो तरक्की की है, वह वाकई अविश्वसनीय है. आज वह एक मां हैं, जो काम और मातृत्व के बीच सहजता से संतुलन बनाए हुए हैं. वह एक आधुनिक भारतीय महिला का बेहतरीन उदाहरण है.

इंडस्ट्री में सदियों से चली आ रही कहावत के विपरीत उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि एक अभिनेत्री गर्भावस्था और शादी के बाद नीचे चली नहीं जाती, बल्कि फिर से आसमान छू सकती है. दिलचस्प बात यह भी है कि उनकी कुछ फिल्में उसी स्वतंत्र और उन्मुक्त लड़की का बहुत अच्छा उदाहरण पेश करती हैं, जो वह स्क्रीन के बाहर भी हैं.

उनके कुछ किरदारों को दर्शकों ने खूब सराहा है, मसलन 2 स्टेट्स में अनन्या स्वामीनाथन, बद्रीनाथ की दुल्हनियां में आशा, डियर जिंदगी में कायरा, रौकी और रानी की प्रेम कहानी में रानी चैटर्जी इन सभी भूमिका से आज की एक लड़की इन्सपायर होती है, यही वजह है कि आलिया को हर फिल्म में दर्शकों का प्यार मिला. आलिया को यहां तक पहुंचने में काफी मेहनत करनी पड़ी.

इसके आगे आलिया उन महिलाओं से अधिक प्रेरित होती है, जिन्होंने अपना रास्ता खुद चुना है और उसे वे वैश्विक स्तर पर ले गई. उन्होंने एक जगह कहा है कि मैं ऐश्वर्या राय बच्चन से प्रेरित महसूस करती हूं, जिन्होंने अपना रास्ता खुद चुना और अपनी यात्रा को ग्लोबल लेवल पर ले गईं, जब कोई इसके बारे में सोच भी नहीं रहा था. अभिनेत्री करीना कपूर खान जो हर तरह से प्रतिष्ठित हैं, उन्होंने भी मेहनत कर अपनी मुकाम खुद हासिल की है. सिंगर श्रेया घोषाल, जिनकी आवाज़ से दिए गए हर शब्द और लय, श्रोता के लिए कर्णप्रिय बन जाता है. ये सभी महिलाएं अपने सफर को मेहनत और लगन से अपना चुकी है, जिससे मैं बहुत प्रेरित होती हूं और इसी प्रामाणिकता को मैं अपने अभिनय में भी लाने की कोशिश करती हूं.

इसके अलावा आलिया मां सोनी राजदान और बहन शाहीन भट्ट से बहुत प्रेरित होती है. मां ने उन्हे हर परिस्थिति में साथ दिया है, जिसके परिणामस्वरूप वह अभिनेत्री बन सकी. बहन शाहीन के मानसिक स्वास्थ्य से जूझने के संघर्ष से प्रेरणा ले कर ही आलिया ने फिल्म डियर जिंदगी और औस्कर ड्रीम्स की कहानियों से जुड़ाव महसूस किया.

रोजलिन खान

स्टेज 4 की कैंसर सर्वाइवर अभिनेत्री और यूट्यूबर रोजलिन खान के लिए इन्स्पाइयरिंग वुमन कई है. वह कहती है कि मैं बहुत ज्यादा इंदिरा गांधी से प्रेरित हुई हूं, उनकी लाइफ में बहुत चुनौती थी, लेकिन वह एक पावरफुल महिला रही है. लोगों ने उनकी कई गलतियों को गिनाया, लेकिन वह मजबूती से खड़ी रही. बाहर से जो दिखता है, रियल में बहुत अलग होता है, जो लोगों को पता नहीं चलता. मैंने उनके हर काम को पसंद किया है. फिल्म इंडस्ट्री की बात करें, तो मैं अभिनेत्री और मिस वर्ल्ड प्रियंका चोपड़ा से बहुत अधिक इंसपायर्ड हूं, क्योंकि हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री ने जब उन्हे अचानक बाहर निकाल दिया, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और इंटरनेशनल लेवल पर अपनी पहचान बनाई. वह एक ग्रेट स्पीकर और टैलन्टिड एक्ट्रेस होने के बाद भी इंडस्ट्री ने ग्रुप बनाकर उन्हे बाहर निकाला, वह एक मजबूत महिला है, यही वजह है कि उन्होंने अपनी पहचान बनाकर आज भी अच्छा काम कर रही है.

कोई भी महिला किसी को इंस्पायर करने के लिए रास्ता नहीं चुनती, इसके लिए न तो कोई कोर्स करना पड़ता है, ये खुदबखुद होता है, जिंदगी के रास्ते में परिस्थितियां ऐसी आती है कि आपको उसमें सही रिएक्ट कर आगे बढ़ना पड़ता है, ऐसे में उनकी इस काबिलियत को लोग सराहने लगते है, क्योंकि अंत में वह अपनी मकसद में कामयाब हो जाती है. ये सारी चीजें अचानक जीवन में होती चली जाती है. कई बार लोग आपको आगे बढ़ने नहीं देते, आपत्ति जताते है, ऐसे में उस महिला को अधिक मजबूती से टिके रहना पड़ता है, जो बहुत कठिन होता है. बहुत कम ऐसी स्ट्रौंग हे महिलाएं होती हैं, जो किसी भी परिस्थिति में अपने उद्देश्यों तक पहुंच कर दम लेती है.

शादी एक बुरा सपना है : Adah Sharma

Adah Sharma : अदा शर्मा उन हीरोइनों में से हैं जिन्होंने कंगना रनौत की तनु वेड्स मनु और आलिया भट्ट की गंगूबाई काठियावाड़ी के कलेक्शन को बौक्स औफिस में पछाड़कर 2023 में कंट्रोवर्शियल फिल्म द केरल स्टोरी के जरिए घरेलू बौक्स औफिस पर 242 करोड़ की नेट कमाई की जिसका कलेक्शन कंगना की तनु वेड्स मनु और आलिया की गंगूबाई से कहीं ज्यादा है.

द केरल स्टोरी के अपार सफलता के बाद अदा शर्मा रातों रात स्टार बन गई हालांकि 2008 की हौरर फिल्म 1920 से अदा शर्मा ने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था लेकिन सफलता पाने में उनको काफी संघर्ष करना पड़ा. अदा शर्मा ने अपने अभिनय कैरियर में बेहतरीन फिल्में की है. लेकिन जहां तक शादी की बात है तो अदा शर्मा ने इंटरव्यू में शादी को एक बुरा सपना बताया है, अदा शर्मा के अनुसार वह कभी भी शादी नहीं करना चाहती. क्योंकि उन्हें इस रिलेशनशिप में विश्वास नहीं है. फिल्मों में रील लाइफ में ही फिल्मों में शादीशुदा जिंदगी की इतनी बर्बादी देख ली है कि असल जिंदगी में उनको शादी करने की कोई इच्छा ही नहीं है.

अदा शर्मा के अनुसार कहीं भूले भटके अगर उनकी शादी हो गई तो वह किसी बुरे सपने से काम नहीं होगी. अगर फिर भी मुझे शादी करनी पड़ी तो मैं ऐसे ही इंसान से शादी करूंगी जो मेरी तरह आजाद ख्यालों का हो दकियानूसी बिल्कुल ना हो. अदा शर्मा के वर्क फ्रंट की अगर बात करें तो वह जल्दी ही फिल्म तुमको मेरी कसम में दिखाई देंगी जो की 21 मार्च को रिलीज हो रही है और इसका निर्देशन विक्रम भट्ट ने किया है. विक्रम भट्ट डायरेक्टर जो अब तक 1920 ,गुलाम, राज, आवारा पागल दीवाना, और दीवाने हुए पागल जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं.उन्होंने ही अदा शर्मा की फिल्म तुमको मेरी कसम का निर्देशन किया है.

Grihshobha Inspire : भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से इंस्पायर्ड है श्रूति टंडन

Grihshobha Inspire : वूमंस डे 2025 के खास मौके पर यह सूचित करते हुए खुशी हो रही है कि  सशक्‍त महिलाओं की परिभाषा गढ़ने वाली पत्रिका गृहशोभा की ओर से 20 मार्च को ‘Grihshobha Inspire Awards’ इवेंट का नई दिल्‍ली में आयोजन हो रहा है. यहां उन महिलाओं को सम्‍मानित किया जाएगा, जिनके उल्‍लेखनीय योगदान लाखों लड़कियों और महिलाओं को Inspire कर रहे हैं. एक सर्वे के माध्‍यम से हमने सैकड़ों महिलाओं से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की है कि वे ‘किस महिला से इंस्‍पायर होती हैं’ ?, ‘सरकार से महिलाओं को लेकर उनकी उम्‍मीदें क्‍या है’ और ‘एक आम महिला को इंस्‍पायरिंंग वुमन बनने की राह में क्‍या बाधा है’?  एक चर्चित कंपनी में कंसल्‍टेंट श्रूति टंडन की इंस्‍प‍िरेशन हैं, भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, ‘इंस्पायरिंग वुमन’ को लेकर उनकी सोच यहां दी जा रही है.

इंदिरा गांधी ही क्‍यों

श्रूति टंडन का मानना है कि लोगों को ऐसा महसूस हो सकता है कि इंदिरा गांधी, देश के पहले प्रधानमंत्री की बेटी थी इसलिए उनके लिए पीएम बनना बहुत आसान रहा होगा. पर मेरा मानना है कि महिलाओं के लिए चुनौतियां हमेशा से रही है, चाहे वो पारिवारिक हो या सामाजिक. श्रूति बताती है कि जिस समय मिसेज गांधी प्रधानमंत्री बनी, उस समय उनके सामने भी ढेरों चुनौती रही होगी. भारत जैसे विशाल देश की पीएम एक महिला हो, इसे एक्‍सेप्‍ट करने में लोगों को काफी समय लगा होगा, तभी तो उन दिनों उनको भी पुरुषों से भरे राजनीति में अपनी जगह बनाने के लिए काफी मजबूत रुख अपनाना पड़ा . उन्‍हें भी गूंगी गुडिया कहा गया लेकिन बाद में उनके भाषणों को सुनने के लिए लंबी भीड़ उमड़ने लगी. मेरा मानना है कि महिला किसी भी वर्ग की हो उसे अगर समाज में जगह बनानी है, तो संघर्ष करना ही पड़ेगा.

खुद से लड़ना होगा

जहां तक परिवार और समाज के रोकटोक की बात है, तो श्रूति ऐसा नहीं मानती. उनका कहना है कि महिलाओं की लड़ाई खुद से होती है. अपनी क्षमता को लेकर अगर उनके मन में संदेह रहेगा, तो कोई भी उनकी मदद नहीं कर सकता है. उन्‍हें अपने अंदर का बैरियर तोड़ना होगा. महिलाओं को कई तरह के विषयों पर परामर्श देने का काम कर रही श्रूति बताती हैं कि बहुत सारी महिलाएं खुद की जिंदगी को लेकर स्‍पष्‍ट सोच नहीं रखती हैं. कुछ अधेड़ उम्र की महिलाएं काम करना चाहती हैं, कुछ महिलाएं बच्‍चों की खातिर जौब से ब्रेक लेती हैं और दोबारा नौकरी करना चाहती हैं, कुछ अपना रोजगार शुरू करना चाहती हैं पर यही सोचती रहती हैं कि इससे उनकी फैमिली तो डिस्‍टर्ब नहीं होगी, ये सभी महिलाओं की चाहत है लेकिन वह पहला कदम उठाने को लेकर खुद पर संदेह कर रही होती है. जब महिलाएं खुद पर भरोसा करेंगी तभी लोग उन पर भरोसा करेंगे.

नीतियों को प्रभावशाली बनाना होगा

आज सरकार की तरफ से मदद तो दी जा रही है लेकिन बहुत कम लोगों तक यह पहुंच पा रही है. गर्वनमेंट को चाहिए कि वह अधिक से अधिक जरूरतमंद लड़कियों तक अपनी मदद पहुंचाएं, उनको स्किल्‍स सिखाएं, उनकी आर्थिक मदद करें. अब बहुत सारी लड़कियां आगे आ रही है इसलिए उनकी संख्‍या के अनुपात को देखते हुए मदद की जानी चाहिए. हर लड़की तक सरकारी मदद पहुंचनी जरूरी है.

‘गृहशोभा इंस्‍पायर अवार्ड्स’ इवेंट में रजिस्‍टर करने के लिए लिंक क्लिक करें
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Hindi Kahaniyan : झलक – मीना के नाजायज संबंधों का क्या था असली राज?

Hindi Kahaniyan :  सुबह 10 बजे के करीब मीना बूआ अचानक घर आईं और मुझे देखते ही जोशीले लहजे में बोलीं, ‘‘शिखा, फटाफट तैयार हो जा. तू और मैं बाहर घूमने चल रहे हैं.’’

‘‘कहां?’’ मैं ने फौरन खुश हो कर पूछा.

‘‘घर से निकलने के बाद मालूम हो जाएगा. तू जल्दी से तैयार तो हो जा.’’

‘‘क्या मोहित को भी साथ ले चलूं?’’

मैं ने अपने 3 वर्षीय बेटे के बारे में पूछा.

‘‘अरी, उसे उस की नानी संभाल लेंगी.’’

मैं ने सवालिया नजरों से मां की तरफ देखा.

cookery

मोहित को रखने के लिए ‘हां’ कहते हुए मां कई दिनों के बाद मेरी तरफ देख कर मुसकराईं.

मीना बूआ के साथ मेरी हमेशा से बहुत अच्छी पटती रही है. स्मार्ट, सुंदर और समझदार होने के साथसाथ उन का स्वभाव भी मस्ती भरा है. फूफाजी को जब से दिल की बीमारी ने पकड़ा है, वे ही उन का बिजनैस सलीके से संभाल रही हैं.

‘‘बूआ, आज फैक्टरी जाना कैसे टाल दिया?’’ घर से बाहर निकलते ही मैं ने पूछा.

‘‘मैं ने सोचा 2-4 दिनों में तू ससुराल लौट जाएगी, तो तेरे साथ घूमने का मौका कहां मिलेगा. तेरे फूफाजी की बीमारी के कारण कभीकभी उदास हो जाती हूं. सोचा, आज तेरे साथ घूमफिर कर गपशप करूंगी, तो मन बहल जाएगा.’’

सचमुच बूआ ने 2 घंटे तक मुझे खूब ऐश कराई. हम ने एक अच्छे रेस्तरां में खायापिया और शौपिंग की.

मैं सोच रही थी कि अब हम घर लौटेंगे, पर बूआ ने एक बहुमंजिला इमारत के सामने गाड़ी रोकी. मेरे कुछ पूछने से पहले ही बूआ झेंपे से अंदाज में मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘हम दोनों एक पुराने जानकार से मिलने चल रहे हैं. इस व्यक्ति से आज मैं करीब 15 साल बाद मिलूंगी.’’

‘‘कौन हैं ये व्यक्ति?’’

‘‘राकेश नाम है उन का. वे मेरे साथ कालेज में पढ़े भी हैं और 15 साल पहले हम पड़ोसी भी थे.’’

‘‘फिर क्या ये कहीं बाहर चले गए थे, जो 15 साल तक आप की इन से मुलाकात नहीं हुई?’’ मैं ने कार से उतरते हुए पूछा.

‘‘ये बाहर तो नहीं गए थे, पर हमारे परिवारों के बीच संपर्क नहीं रहा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह तुम हमारी बातें सुन कर समझ जाओगी,’’ बूआ की आंखों में शरारत भरी चमक उभरी, ‘‘बस, तुम राकेश के सामने एक बात का ध्यान रखना.’’

‘‘किस बात का, बूआ?’’

‘‘इस का कि तुम मेरी भतीजी नहीं, बल्कि पड़ोसिन की बेटी हो. तभी वे और मैं खुल कर बातें कर पाएंगे. मैं उन की लच्छेदार बातें सुनने ही इतने सालों बाद आई हूं.’’

‘‘बूआ, चक्कर क्या है, जरा खुल कर बताओ न,’’ मेरी यह बात सुन कर बूआ जिस शोख अदा से हंसीं, वह मुझे उलझन का शिकार बना गई थी. बूआ के करीब हमउम्र 42 साल के राकेश से हम दोनों उन के औफिस में मिलीं.

‘‘माई डियर मीना, व्हाट ए ग्रेट सरप्राइज,’’ उन्होंने खड़े हो कर बूआ का स्वागत किया, ‘‘तुम्हें अचानक सामने देख कर बड़ी खुशी हो रही है. कैसे बना रखा है तुम ने अपने को 15 साल पहले जैसा खूबसूरत, फिट और स्मार्ट?’’

‘‘राकेश, तुम्हारे सिर के बाल कम जरूर हुए हैं, पर झूठी तारीफ कर के किसी भी स्त्री को खुश करने की आदत अभी भी कायम है. कैसी गुजर रही है, जनाब?’’ बूआ ने उन का हाथ हलके से पकड़ कर छोड़ दिया और खुल कर मुसकराती हुई कुरसी पर बैठ गईं.

मेरे झूठे परिचय पर जरा सा ध्यान देने के बाद राकेश मुझे जैसे भूल सा गए. उन की प्रशंसा भरी दृष्टि का केंद्र पूरी तरह से बूआ ही थीं.

उन के बीच पुरानी घटनाओं व पिछले 15 साल की जानकारियों का आदानप्रदान शुरू हो गया. मेरे लिए यह अंदाजा लगाना बिलकुल कठिन नहीं था कि राकेश आज भी बूआ के जबरदस्त प्रशंसक हैं.

‘क्या इन दोनों के बीच में पहले कभी कोई प्यार का चक्कर था?’ यह प्रश्न मेरे मन

में अचानक उभरा, तो मैं मुसकराए बिना नहीं रह सकी.

औफिस में लंचटाइम चल रहा था. राकेश ने हमारे लिए बढि़या कौफी व स्वादिष्ठ पेस्ट्री मंगवाई. उन का बस चलता तो वे मारे उत्साह के अपने हाथ से जबरदस्ती उन्हें पेस्ट्री खिलाने लगते.

‘‘अजय के क्या हाल हैं?’’ राकेश ने फूफाजी के बारे में सवाल पूछा, तो बूआ गंभीर नजर आने लगीं.

बूआ ने उदास स्वर में उन्हें फूफाजी की दिल की बीमारी के बारे में बताया. बिजनैस में इस कारण जो परेशानियां आई थीं, उन की भी चर्चा की.

‘‘अपनी हिम्मत और समझदारी के कारण तुम ने काफी बिजनैस संभाल लिया है, यह सचमुच खुशी की बात है. मैं आता हूं किसी दिन अजय से मिलने,’’ आखिरी वाक्य बोलते हुए राकेश ने बेचैनी भरे अंदाज में बूआ की तरफ देखा.

बूआ ने कोई जवाब नहीं दिया, तो राकेश ने भावुक लहजे में कहा, ‘‘मीना, आगे कोई भी कठिनाई आए, तो तुम मुझे जरूर याद करना. मुझे लगता है कि हमें अब आपस में संपर्क बनाए रखना चाहिए.’’

‘‘श्योर. अब चलने की इजाजत दो.’’

‘‘अपना मोबाइल नंबर तो दे दो और जल्द ही फिर मिलने का वादा कर के जाओ,’’ राकेश ने आगे झुक कर बूआ से हाथ मिलाया और जल्दी से छोड़ा नहीं.

‘‘कुदरत को मंजूर होगा तो जल्द मिलेंगे.’’

‘‘देखो, लंबे समय के लिए फिर से गायब मत हो जाना. पुरानी दोस्ती की जड़ें हमें फिर से मजबूत करनी हैं,’’ बड़े अपनेपन से अपनी इच्छा जाहिर करने के बाद राकेश ने बूआ का मोबाइल नंबर नोट कर लिया.

लिफ्ट से नीचे आते हुए मैं ने बूआ को छेड़ा, ‘‘बूआ, यह बंदा तो आज भी आप पर पूरी तरह से फिदा है. था न आप दोनों के बीच प्यार का चक्कर कभी?’’

‘‘ऐसी बातें किसी और के सामने कभी मत करना, शिखा.’’

‘‘मेरा अंदाजा सही है न?’’

‘‘चुप कर,’’ बूआ ने मुझे प्यार से डपटा.

बूआ की जिंदगी में अजय फूफाजी के अलावा एक अन्य पुरुष भी कभी प्रेमी के रूप में मौजूद रहा है, इस बात को सोच कर मन ही मन अचंभा महसूस करती मैं बूआ की बगल में बैठ गई.

कार को घर की दिशा में न जाते देख मैं ने बूआ से पूछा, ‘‘अब हम कहां जा रहे हैं?’’

‘‘अतीत के एक दोस्त से तुम मिल चुकी हो. अब एक पुरानी सहेली से मिलवाने ले जा रही हूं तुम्हें,’’ बूआ अजीब ढंग से मुसकराईं.

मैं ने उन से वार्त्तालाप करने की कोशिश की पर वे अचानक ‘हूं, हां’ में जवाब देने लगीं. उन के यों अचानक गंभीर हो जाने से मैं ने अंदाजा लगाया कि शायद वे राकेश या अपनी इस पुरानी सहेली के बारे में बातें करने में उत्सुक नहीं हैं.

बूआ ने एक बड़े बंगले के सामने कार रोकी. कुछ देर उन्होंने स्टेयरिंग व्हील पर उंगलियों से इस अंदाज में तबला बजाया मानो सोच रही हों कि उतरूं या नहीं.

फिर उन्होंने मेरे चेहरे को कुछ पलों तक ध्यान से देखने के बाद गंभीर लहजे में कहा, ‘‘चलो, मेरी पड़ोसिन की बिटिया रानी, मेरे अतीत के एक और पृष्ठ को पढ़ने के लिए मेरे साथ चलो.’’

घंटी बजाने पर जिस स्त्री ने दरवाजा खोला वे भी मुझे बूआ की उम्र की ही लगीं. उन के माथे पर पड़े बल और भिंचे होंठ शायद उन के स्वभाव की सख्ती की तरफ इशारा कर रहे थे.

पहली नजर में वे बूआ को पहचान नहीं पाईं. फिर आंखों में पहचान के भाव उठने के साथसाथ पहले हैरानी और फिर नफरत व गुस्से के भाव उभरे.

मैं ने बूआ की तरफ देखा तो पाया कि वे एक मशीनी मुसकराहट होंठों पर बनाए रखने का पूरा प्रयास कर रही हैं.

‘‘पहचाना मुझे, अनीता?’’ बूआ ने असहज लहजे में वार्त्तालाप आरंभ किया.

‘‘तुम मेरे घर किसलिए आई हो?’’

‘‘क्या अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ बूआ ने सवाल पूछने से पहले एक गहरी सांस ली थी.

‘‘सौरी, अपने घर के दरवाजे मैं ने बहुत पहले तुम्हारे लिए बंद कर दिए थे.’’

‘‘आज 15 साल बाद भी मुझ से तुम्हारी नाराजगी खत्म नहीं हुई?’’

‘‘जो जख्म तुम ने मुझे दिया था, वह कभी नहीं भरेगा.’’

‘‘शायद मेरे माफी मांगने से भर जाए और यही काम करने मैं आज यहां आई हूं.’’

‘‘जीतेजी तो मैं तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकती हूं, मीना.’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘दोस्ती की आड़ में तुम ने मेरे वैवाहिक जीवन की खुशियों को नष्ट करने की कोशिश की थी. मेरे साथ विश्वासघात किया था तुम ने.’’

‘‘मैं अपना अपराध स्वीकार करती हूं. मेरी 15 साल पुरानी गलती को भुला कर मुझे माफ कर दो, अनीता. प्लीज, तुम्हारे माफ कर देने से मेरे दिलोदिमाग को बहुत शांति मिलेगी,’’ बूआ ने उन के सामने हाथ जोड़ दिए.

‘‘मैं चाह कर भी तुम्हें माफ नहीं कर सकती हूं,’’ अनीता की आवाज गुस्से और नफरत की अधिकता के कारण कांप उठी, ‘‘मेरे पति के साथ अवैध संबंध बना कर तुम ने हम पतिपत्नी के प्रेम व विश्वास की नींव को सदा के लिए खोखला कर दिया था. तुम्हारी उस भूल के कारण हम आज तक फिर कभी एकदूसरे के दिल में प्यार की जगह नहीं बना पाए. तुम चली जाओ यहां से. आई हेट यू.’’

अनीता की ऊंची आवाज सुन कर एक किशोर लड़की घर के अंदर से हमारे पास आ पहुंची. उस का चेहरा अनीता की बातें सुन लेने के कारण गुस्से से तमतमा रहा था.

इस वक्त बूआ और अनीता की आंखों में आंसू थे. बूआ ने सहानुभूतिपूर्ण, कोमल अंदाज में अनीता के कंधे पर हाथ रखना चाहा, तो उस लड़की ने बूआ का हाथ झटके से दूर कर दिया.

‘‘मेरी मां को अपने नापाक हाथों से मत छुओ, गंदी औरत,’’ वह लड़की गुस्से से फट पड़ी, ‘‘मैं सब जानती हूं तुम्हारे बारे में. तुम्हारे चक्कर में फंसने के बाद पापा न कभी अच्छे पति बने, न अच्छे पिता. हम तुम्हारी शक्ल कभी नहीं देखना चाहते हैं. भाग जाओ यहां से.’’

‘‘नेहा बेटी, तुम शांत रहो. मैं निबट लूंगी तुम्हारी इस मीना आंटी से,’’ नेहा की पीठ सहलाने के बाद अनीता ने फिर से बूआ को नफरत भरे अंदाज में घूरना शुरू कर दिया.

‘‘नेहा बेटी, तुम्हें मैं ने बहुत लाड़प्यार से अपनी गोद में खिलाया है. हम बड़ों के बीच में बोल कर तुम तो मेरा अपमान करने की कोशिश मत करो,’’ बूआ रोआंसी हो उठीं.

‘‘अगर अपमानित नहीं होना चाहती हो, तो हमारी आंखों के सामने आने से बचना. अगर पापा के साथ मैं ने कभी तुम्हें देख लिया, तो तुम्हारी खैर नहीं.’’

‘‘राकेश के पास अब क्या लौटोगी तुम. अब तक तो दसियों प्रेमी पाल कर छोड़ चुकी होगी तुम,’’ अनीता का स्वर बेहद जहरीला हो गया, ‘‘तुम्हारी तो कोई बेटी नहीं है, तो यह लड़की कौन है? कहीं पुरुषों को फांसने की अपनी कुशलता के बल पर लड़कियों से धंधा तो नहीं…’’

‘‘शटअप,’’ मैं एकाएक चीख पड़ी, ‘‘मेरी बूआ माफी मांगने आई हैं और आप हैं कि बेकार की बकवास करती ही जा रही हैं. ऐसा घटिया व्यवहार आप को शोभा नहीं देता है.’’

‘‘मैं ने तुम्हारी बूआ को 15 साल पहले ही मेरे घर की दहलीज कभी न लांघने को आगाह कर दिया था. अब ले क्यों नहीं जाती हो तुम इन्हें यहां से?’’ मुझ से भी ज्यादा जोर से वह मुझ पर चिल्लाईं और फिर धड़ाम की आवाज के साथ उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया.

वापस कार में आ कर बैठने तक हम दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई. फिर मैं ने बूआ की आंखों में झांका तो वहां मुझे दुख से ज्यादा हैरानी के भाव नजर आए.

‘‘मुझे इन पतिपत्नी व बेटी का ध्यान कभीकभी आता है, पर इन के दिलों में कितना गुस्सा… कितनी नफरत भरी हुई है आज भी मेरे प्रति,’’ बूआ के होंठों पर थकी सी मुसकान उभरी.

‘‘आप को क्या जरूरत थी इन से मिलने आने की?’’ मैं अभी भी तेज गुस्से का शिकार बनी हुई थी.

‘‘तुम्हें साथ ले कर मेरा राकेश व अनीता से मिलने आना मुझे जरूरी लगा था,’’ बूआ ने अर्थपूर्ण अंदाज में मेरी तरफ देखा.

‘‘ऐसा क्यों कह रही हो, बूआ?’’ अपराधबोध की एक तेज लहर अचानक मेरे मन में उठ कर मुझे सुस्त सा कर गई.

‘‘शिखा बेटी, 15 साल पहले मैं ने राकेश से अवैध संबंध बनाने की नासमझी की थी. इस कारण मैं ने अनीता की दोस्ती खो कर उसे सदा के लिए अपना दुश्मन बना लिया. आज उस की बेटी भी मुझ से नफरत करती है.

‘‘तू ने देखा न कि राकेश की दिलचस्पी आज भी मेरे साथ अवैध प्रेम का चक्कर फिर से शुरू करने में है. कुछ पुरुषों का स्वभाव ऐसा ही होता है… शायद तुम्हारा दोस्त नवीन भी इसी श्रेणी का एक दिलफेंक खिलाड़ी है.’’

बूआ की पैनी नजरों का सामना न कर पाने के कारण मैं ने नजरें झुका लीं.

मुझे चुप देख कर बूआ ने मुझे समझाया, ‘‘देख शिखा, तुम्हारी अच्छी सहेली वंदना का भाई तुम्हारी ही तरह शादीशुदा है. कभी तुम दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे, पर अब उस प्यार को जिंदा करने की नासमझी मत करो, प्लीज.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है, बूआ,’’ झूठ बोलने के कारण मेरी आवाज बेहद भारी सी हो गई थी.

‘‘मुझ से असलियत छिपाने का क्या फायदा है, शिखा? तुम मायके आती हो, तो उस से मिलने जाती हो. वंदना को तुम्हारी ससुराल में लाने व छोड़ने के बहाने नवीन तुम्हारे पति संजय का भी दोस्त बन गया है. बिलकुल ऐसी ही परिस्थितियां 15 साल पहले तब थीं जब मैं ने मर्यादाओं को तोड़ कर राकेश से अवैध संबंध कायम कर लिए थे.’’

मैं ने अपनी सफाई में कुछ बोलने के लिए मुंह खोला ही था कि बूआ उत्तेजित लहजे में आगे बोलीं, ‘‘पहले मुझे अपनी बात पूरी कर लेने दो शिखा. राकेश और मैं भी यही सोचते थे कि हम अपने संबंधोंके बारे में अजय या अनीता को कभी कुछ पता नहीं लगने देंगे, पर ऐसे चक्कर कभी छिपाए नहीं छिपते.

‘‘हमारे उस एक गलत कदम के परिणाम की ही झलक तुम्हें अनीता व नेहा के व्यवहार में दिखी ही है. कहीं सारी बात तुम्हारे फूफाजी को मालूम हो जाती, तो मेरे वैवाहिक जीवन की खुशियों व सुरक्षा की नींव भी जरूर खोखली हो जाती. अपने जीवनसाथी के चरित्र पर लगे धब्बे को भुलाना आसान नहीं होता. नवीन से संबंध बनाए रखने की मूर्खता कर के अपने व उस के वैवाहिक जीवन की खुशियों को दांव पर लगाने का खतरा मत मोल ले, मेरी बच्ची.’’

बूआ ने झुक कर मुझे अपनी छाती से लगाया, तो मेरी आंखों से आंसू बह निकले. मेरा मन अजीब से डर का शिकार हो गया था. रहरह कर अनीता और नेहा की गुस्से व नफरत भरी आंखें याद आ रही थीं. संजय को नवीन और मेरे संबंध की जानकारी लग गई, तो क्या होगा, इस सवाल का जवाब सोचना शुरू करते ही बदन कांप उठा.

‘‘मां ने आप को सब बता कर अच्छा ही किया, बूआ. आप की हिम्मत व समझदारी के कारण, जो मुझे देखनेसुनने को मिला, उस ने मेरी आंखें खोल दी हैं. मैं वादा करती हूं कि गलत राह पर अब मेरा एक कदम भी और नहीं उठेगा,’’ बूआ को यह वादा देते हुए मेरा आत्मविश्वास लौट आया था और निडर भाव से उन की आंखों में देख पाना मेरे दृढ़ निश्चय की घोषणा कर रहा था.

Inspirational Hindi Stories : पहल – क्या तारेश और सोमल के ‘गे’ होने का सच सब स्वीकार कर पाए?

Inspirational Hindi Stories : ‘‘तारेश. यह क्या नाम रखा है मां तुम ने मेरा? एक तो नाम ऐसा और ऊपर से सर नेम का पुछल्ला तिवाड़ी… पता है स्कूल में सब मुझे कैसे चिढ़ाते हैं?’’ तारेश ने स्कूल बैग को सोफे पर पटकते हुए शिकायत की.

‘‘क्या कहते हैं?’’

‘‘तारू तिवाड़ी…खोल दे किवाड़ी…’’ तारेश गुस्से में बोला.

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मां मुसकरा दीं. बोलीं, ‘‘तुम्हारा यह नाम तुम्हारी दादी ने रखा था, क्योंकि जब तुम पैदा हुए थे उस वक्त भोर होने वाली थी और आसमान में सिर्फ भोर का तारा ही दिखाई दे रहा था.’’

‘‘मगर नाम तो मेरा है न और स्कूल भी मुझे ही जाना पड़ता है दादी को नहीं. मुझे यह नाम बिलकुल पसंद नहीं… आप मेरा नाम बदल दो बस,’’ तारेश जैसे जिद पर अड़ा था.

‘‘तारेश यानी तारों का राजा यानी चांद… तुम तारेश हो तभी तो चांद सी दुलहन आएगी…’’ मां ने प्यार से समझाते हुए कहा.

‘‘नहीं चाहिए मुझे चांद सी दुलहन… मुझे तो तेज धूप और रोशनी वाला सूरज पसंद है,’’ तारेश गुस्से में चीखा. मगर तब तारेश खुद भी कहां जानता था कि उसे सूरज क्यों पसंद है.

‘‘बधाई हो, बेटी हुई है,’’ नर्स ने आ कर कहा तो तारेश जैसे सपने से जागा.

‘‘क्या मैं उसे देख सकता हूं, उसे छू सकता हूं?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ तारेश का उतावलापन देख कर नर्स मुसकरा दी.

‘‘नर्ममुलायम… एकदम रुई के फाहे सी… इतनी छोटी कि उस की एक हथेली में ही समा गई. बंद आंखों से भी मानो उसे ही देख रही हो,’’ तारेश ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा.

‘‘तुम्हारी यह निशानी बिलकुल तुम पर गई है सोमल…’’ तारेश बुदबुदाया. फिर उस ने हौले से नवजात को चूमा और उस की सैरोगेट मां की बगल में लिटा दिया.

स्कूल के दिनों से ही तारेश सब से अलग था. हालांकि वह पढ़ने में बहुत तेज था, मगर उसे लड़कियों के प्रति कोई आकर्षण नहीं था. हां, उस के स्पोर्ट्स टीचर अशोक सर उसे बहुत अच्छे लगते थे. खासकर उन का बलिष्ठ शरीर…जब वे ग्राउंड में प्रैक्टिस करवाते थे तो तारेश किनारे बैठ कर उन के चौड़े सीने और लंबी मजबूत भुजाओं को निहारा करता था. वैसे तो उस की स्पोर्ट्स में कोई खास रुचि नहीं थी, फिर भी सिर्फ अशोक सर का सानिध्य पाने के लिए वह गेम्स पीरियड में जिमनास्टिक सीखने जाने लगा. जब अशोक सर प्रैक्टिस करवाते समय उस के शरीर को यहांवहां छूते थे तो तारेश के पूरे बदन में जैसे बिजली सी दौड़ जाती थी. उस की सांसें अनियंत्रित हो जाती थीं. वह आंखें बंद कर अपने शरीर को ढीला छोड़ देता था और अशोक सर की बांहों में झूल जाता था. सब हंसने लगते तब उसे होश आता और वह शरमा कर प्रैक्टिसहौल से बाहर निकल जाता.

कालेज में भी जहां सब लड़के अपनी मनपसंद लड़की को पटाने के चक्कर में रहते, वह बस अपनेआप में ही खोया रहता. लेकिन सोमल में कुछ ऐसा था कि बस उसे देखा तो उस में डूबता ही चला गया. सोमल को भी शायद तारेश का साथ पसंद आया और जल्दी दोनों बहुत अच्छे साथी बन गए. दोनों क्लास में पीछे की सीट पर बैठ कर पूरा पीरियड न जाने क्या खुसरफुसर करते रहते. तारेश तो उस का दीवाना ही हो गया. कालेज में एक दिन की छुट्टी भी उसे नागवार लगती. वह तो शाम से ही अगली सुबह होने का इंतजार करने लगता.

कालेज खत्म कर के दोनों ने ही बिजनैस मैनेजमैंट में मास्टर डिग्री करना तय किया. दोनों साथ ही रहेंगे, सोच कर दोनों के ही घर वालों ने खुशीखुशी जाने की इजाजत दे दी. तारेश को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई. दिल्ली के एक बड़े कालेज में दोनों को ऐडमिशन मिल गया और 1 कमरे का फ्लैट दोनों ने मिल कर किराए पर ले लिया.

सब कुछ सामान्य चल रहा था. दोनों साथसाथ कालेज जाते, साथसाथ घूमतेफिरते और मजे करते. कभी खाना बाहर खाते, कभी बाहर से मंगवाते, तो कभीकभी दोनों मिल कर रसोई में हाथ आजमाते… दोनों की जोड़ी कालेज में ‘रामलखन’ के नाम से मशहूर थी.

देखते ही देखते लास्ट सैमैस्टर आ गया और कालेज में कैंपस इंटरव्यू शुरू हो गए. लगभग सभी स्टूडैंट्स का अच्छीअच्छी कंपनियों में प्लेसमैंट हो गया. तारेश को बैंगलुरु की कंपनी ने चुना तो सोमल को हैदराबाद की कंपनी ने. पैकेज से तो दोनों ही बेहद खुश थे, मगर एकदूसरे से जुदा होना अब दोनों को ही गवारा नहीं था. घर आ कर दोनों देर तक गुमसुम बैठे रहे. क्या करें क्या न करें की स्थिति थी. मगर एक को तो छोड़ना ही पड़ेगा… चाहे नौकरी चाहे साथी.

दोनों एकदूसरे से लिपट कर देर तक रोते रहे. वे जुदा नहीं होना चाहते… आज रात तारेश और सोमल को पता चल गया कि वे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं. इस एक रात ने उन्हें समझा दिया कि क्यों उन्हें एकदूसरे का साथ इतना अच्छा लगता. आज रात दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर अपने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया, जो दुनिया की निगाहों में धर्मविरोधी था, अप्राकृतिक था… हां, वे गे थे और उन्हें इस बात पर कोई शर्म नहीं थी.

दोनों ने अपनाअपना प्लेसमैंट कैंसिल कर तय किया कि वे दिल्ली में ही रह कर काम तलाश करेंगे. कुछ दिनों के प्रयास के बाद तारेश को एक मल्टी नैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई. फिर कुछ दिन बाद सोमल को भी. दोनों की जिंदगी फिर से पटरी पर आ गई. सब कुछ पहले जैसा ही चलता रहा.

तारेश की मां अब उस पर शादी के लिए दबाव बनाने लगी थीं और सोमल के घर वाले भी यही चाहते थे कि उस का घर बस जाए. दोनों घरों में जोरशोर से लड़कियां देखी जा रही थीं. मगर वे दोनों लव बर्ड्स इन सब बातों से बेखबर अपने में ही खोए थे. उन की एक अलग ही दुनिया थी. उन्हें बिलकुल अंदेशा नहीं था कि कोई तूफान आने वाला है.

जब बारबार बिना किसी ठोस कारण के लड़कियां रिजैक्ट होने लगीं तो तारेश की मां का माथा ठनका कि कहीं किसी लड़की का चक्कर तो नहीं…

यही हाल सोमल के घर पर भी था. हकीकत जानने के लिए एक दिन बिना बताए तारेश की मां दिल्ली उन के फ्लैट पहुंच गईं. दोनों के हावभाव से उन्हें दाल में कुछ काला लगा. उन्होंने फोन कर के तारेश के पापा और सोमल के घर वालों को भी बुला लिया.

दोनों लड़कों ने साफसाफ कह दिया कि वे एकदूसरे के साथ जिंदगी बिताना चाहते हैं और किसी को भी उन के लिए लड़की ढूंढ़ने की जरूरत नहीं है. पहले तो दोनों के घर वालों ने उन्हें समाज में अपनी इज्जत का हवाला दे कर बहुत समझाया. सोमल की मां ने बहन की शादी में आने वाली परेशानी का वास्ता दिया. वंश बेल के खत्म होने का डर भी दिखाया, मगर जब दोनों अपने फैसले से टस से मस नहीं हुए तो तारेश की मां ने सोमल को और सोमल के घर वालों ने तारेश को जी भर कर कोसा. खूब हंगामा हुआ. मामला फ्लैट से बिल्डिंग में फैला और फिर पूरी सोसाइटी में वायरल हो गया. मकानमालिक ने फ्लैट खाली करने का नोटिस दे दिया.

बात धीरेधीरे दोनों के औफिस में भी पहुंच गई. हर व्यक्ति उन्हें ऐसे देख रहा था जैसे वे किसी दूसरे ही ग्रह के प्राणी हों. कल तक जो साथी उन के साथ काम करते, खातेपीते, उठतेबैठते, पार्टियां करते थे आज अचानक उन से कन्नी काटने लगे, अछूतों सा व्यवहार करने लगे. दोनों को ही घुटन होने लगी.

सोमल के तो बौस ने उसे एकांत में बुला कर समझा भी दिया, ‘‘देखो सोमल, तुम्हारे कारण औफिस का माहौल खराब हो रहा है. कर्मचारी अपने काम पर कम, तुम्हारी स्टोरी पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. बेहतर होगा तुम इस्तीफा दे दो. अगर रिमार्क के साथ निकाले जाओगे तो तुम्हारे भविष्य के लिए घातक होगा.’’

तूफानों में बहने वालों के लिए वक्त कभी आसान नहीं होता. हार कर दोनों ने शहर छोड़ने का फैसला कर लिया और मुंबई शिफ्ट हो गए. इस बीच सोमल की बहन राखी की भी शादी हो गई. मगर उसे खबर तक नहीं की गई.

घर वालों ने तो पहले ही किनारा कर लिया था. सभी पुराने दोस्त भी छूट चुके थे. बस सोमल की एक चचेरी भाभी लीना ही थी, जिस ने इतना कुछ होने के बाद भी उस से संपर्क बनाए रखा था. अब इस नए शहर में दोनों को कोई नहीं जानता था. फिर से एक नई जिंदगी की शुरुआत हुई.

एक दिन अचानक लीना भाभी ने फोन पर बताया कि सोमल राखी के पति की ऐक्सीडैंट में डैथ हो गई. सोमल तड़प उठा. बहुत प्यार करता था अपनी बहन से.

‘उसे इस मुश्किल घड़ी में अपनी बहन के पास होना चाहिए,’ सोच कर तत्काल में ट्रेन के टिकट ले सोमल पहुंच गया अपनी बहन के पास.

उसे देखते ही राखी दौड़ कर लिपट गई भाई से. तभी उस की सास आई और उसे खींचते हुए भीतर ले गई. साथ ही सोमल को भी एहसास करवा गई कि उस का आना उन्हें जरा भी नहीं भाया. बस यही आखिरी मुलाकात थी सोमल की अपने अपनों से. इस के बाद उस की और तारेश की दुनिया एकदूसरे तक ही सिमट कर रह गई.

एक दिन दोनों फुरसत के पलों में टीवी पर ‘हे बेबी’ फिल्म देख रहे थे, जिस में 3 पुरुष साथी मिल कर एक बच्ची की परवरिश करते हैं.

सोमल ने कहा, ‘‘तारु, क्या हमारा भी बच्चा हो सकता है?’’

‘‘पता नहीं… मगर बच्चा तो मां के गर्भ में ही पलता है न… फिर कैसे होगा?’’ तारेश ने कहा.

‘‘विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है, कोई तो रास्ता होगा… क्या हम सैरोगेसी तकनीक का सहारा नहीं ले सकते?’’

‘‘हो सकता है यह संभव हो, मगर इस में कई कानूनी अड़चनें भी आ सकती हैं. क्या कानून हम जैसे लोगों को सैरोगेसी की इजाजत देता है और सब से बड़ी बात यह कि हम सैरोगेट मां कहां से लाएंगे? हमारे तो सब रिश्तेदार भी हम से किनारा कर चुके हैं. खैर अभी तुम ये सब बातें छोड़ो… किसी दिन किसी विशेषज्ञ से मिलते हैं,’’ कह कर तारेश ने एक बार तो चर्चा को विराम दे दिया, मगर बात उस के दिमाग से निकली नहीं. उस ने ठान लिया कि अगर संभव हुआ तो वह सोमल की इस इच्छा को जरूर पूरा करेगा.

एक दिन तारेश किसी काम से एक नामी हौस्पिटल गया. वहां आईवीएफ सैंटर देख कर उस के पांव ठिठक गए. उसे सोमल का सपना याद आ गया. उस ने वहां की हैड डा. सरोज से अपौइंटमैंट लिया और सोमल के साथ उन से मिलने पहुंच गया.

डा. सरोज ने उन की पूरी बात ध्यान से सुनी और बताया कि सोमल का सपना आईवीएफ और सैरोगेसी तकनीक के माध्यम से पूरा हो सकता है.

दोनों के चेहरे पर आई उम्मीद की रोशनी को परखते हुए वे आगे बोलीं, ‘‘देखिए, सरकार ने हाल ही में सैरोगेसी बिल पास किया है जिस के अनुसार सिंगल पेरैंट और समलैंगिक जोड़ों को इस की इजाजत नहीं होगी. हालांकि अभी यह कानून नहीं बना है, लेकिन निकट भविष्य में यह परेशानी आ सकती है. वैसे आप ने सुना होगा कि पिछले दिनों ही फिल्म अभिनेता तुषार कपूर इसी तकनीक के माध्यम से पहले सिंगल पिता बने हैं. हमारे पास और भी कई सिंगल महिलाओं और पुरुषों ने मातापिता बनने के लिए रजिस्ट्रेशन करा रखा है. आप भी करवा सकते हैं.’’

‘‘किराए की कोख का इंतजाम कैसे होगा?’’

‘‘इस के लिए आप को अपनी किसी नजदीकी रिश्तेदार की मदद लेनी होगी.’’

‘‘मगर हमारे रिश्तेदारों ने हमारा सामाजिक बहिष्कार कर रखा है.’’

‘‘अब इतनी मेहनत तो आप लोगों को करनी ही होगी,’’ कह कर डा. ने अगले विजिटर को बुलवा लिया.

सोमल को लीना भाभी याद आ गईं. उस ने उन्हें फोन लगाया, ‘‘हाय भाभी, कैसी हैं आप?’’

‘‘सोमल बाबू को आज हमारी याद कैसे आ गई?’’ लीना ने अपनेपन से पूछा तो सोमल मुद्दे पर आ गया और कहा, ‘‘मुझे इस काम के लिए तुम्हारी मदद की जरूरत है.’’

‘‘माफ करना सोमल, मगर इस मसले पर मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती. तुम्हारे भैया इस के लिए कभी राजी नहीं होंगे और मेरे लिए अपना परिवार बहुत महत्त्वपूर्ण है.’’

लीना के टके से जवाब से सोमल की एकमात्र उम्मीद भी खत्म हो गई.

अब जो आखिरी उम्मीद उन्हें नजर आ रही थी वह था इंटरनैट. कहते हैं यहां खोजो तो सब मिल जाता है. दोनों साथी जोरशोर से इंटरनैट खंगालने लगे. इसी कवायद में उन्हें एक समाचारपत्र रिपोर्टर की कवर स्टोरी पढ़ने को मिली, जिस में उस ने लिखा था कि गुजरात में स्थित आणंद एक ऐसी जगह है जहां सैरोगेट मदर आसानी से उपलब्ध हैं और यही नहीं यहां अब तक सैरोगेसी से लगभग 1,100 बच्चों का जन्म हो चुका है. पढ़ते ही दोनों खिल उठे. फिर क्या था पहुंच गए दोनों आणंद, जहां उन के सपने पर सचाई की मुहर लगने वाली थी. यहां एक टैस्ट ट्यूब बेबी क्लिनिक के बाहर उन का संपर्क एक दलाल से हुआ जोकि सैरोगेसी के लिए किराए की कोख का इंतजाम करता था. उन की स्थिति और बच्चा पाने की प्रबल इच्छा को देखते हुए दलाल ने उन की मजबूरी का पूरापूरा फायदा उठाया और कानूनी अड़चनों का हवाला देते हुए मुंहमांगी कीमत में उन के लिए एक औरत को कोख किराए पर देने के लिए तैयार कर लिया. 2 ही दिन में सभी आवश्यक औपचारिकताएं भी पूरी करवा दीं.

1 महीने बाद उन्हें वापस आना था ताकि आगे की कार्यवाही को अंजाम दिया जा सके. दोनों खुशीखुशी वापस मुंबई आ गए.

तभी अचानक एक दिन यह हादसा हुआ और तारेश की दुनिया में अंधेरा छा गया. दोनों साथी पिता बनने की खुशी सैलिब्रेट करने और मौसम की पहली बारिश में भीगने का मजा लेने खंडाला जा रहे थे. तभी हाईवे पर तेज गति से आ रहे एक ट्रक ने अनियंत्रित हो कर उन की कार को टक्कर मार दी. दोनों को जख्मी हालत में हौस्पिटल ले जाया जा रहा था, मगर रास्ते में सोमल जिंदगी की जंग हार गया. सोमल की मौत पर भी उस के घर से कोई नहीं आया.

1 महीना बीतने पर दलाल का फोन आया तो तारेश ने उसे अपने साथ हुए हादसे के बारे में बताया और सोमल के संरक्षित शुक्राणुओं की मदद से पिता बनने की इच्छा जाहिर की. दलाल ने इस बाबत कुछ और रकम का इंतजाम करने के लिए कहा. तारेश ने अपनी सारी जमापूंजी इस प्रोजैक्ट पर खर्च कर दी.

सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद महिला के अंडाणु और सोमल के स्पर्म बैंक में सुरक्षित रखे शुक्राणुओं को प्रयोगशाला में निषेचित करवा कर भ्रूण को सैरोगेट मदर के गर्भ में सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया गया और निश्चित समय पर उस बच्ची का जन्म हुआ जिस का जैनेटिक पिता सोमल था.

तारेश जानता था कि इस बच्ची को अकेले पालना आसान काम नहीं है. मगर सोमल का सपना पूरा करना ही अब उस का एकमात्र सपना था और इस के लिए वह किसी नहीं भी हालात का सामना करने के लिए मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार था.

कौंट्रैक्ट के अनुसार 1 महीने तक बच्ची को सैरोगेट मां ने अपना दूध  पिलाया और फिर बच्ची को तारेश के अनाड़ी हाथों में सौंप कर चली गई.

1 महीने की कोमल काया को ले कर तारेश सोमल के घर गया. जब उस ने सोमल के मम्मीपापा को बताया कि यह बच्ची सोमल की है तो राखी उसे गोद में लेने आगे बढ़ी. मगर मम्मीपापा के विरोध के कारण उस के बढ़ते कदम रुक गए.

तारेश ने कहा, ‘‘मैं जानता हूं आप लोग मुझ से नफरत करते हैं, मगर इस बच्ची में तो आप का अपना अंश है… हालांकि मैं अकेला ही इसे बेहतर परवरिश दे सकता हूं, मगर आज अगर सोमल जिंदा होता तो वह भी यही चाहता कि उस की बच्ची को उस के दादादादी का आशीर्वाद और बूआ का स्नेह मिले…’’ कह कर तारेश कुछ देर खड़ा रहा. मगर सामने से कोई पौजिटिव जवाब न पा कर वह बच्ची को गोद में लिए बाहर की ओर पलट गया.

अभी दरवाजे से बाहर नहीं निकला था कि सोमल की मां की आवाज आई, ‘‘रुको.’’

तारेश ने मुड़ कर देखा तो बच्ची के दादादादी अपनी आंखें पोंछते हुए उस की तरफ बढ़ रहे थे.

दादा ने कहा, ‘‘बेटा तो चला गया, लेकिन उस की निशानी को हम अपने से दूर नहीं जाने देंगे. इस बच्ची को हम पालेंगे और हां, मूल न सही सूद ही सही… हम तुम्हारा एहसान नहीं भूलेंगे…’’

‘‘मगर यह बच्ची हम दोनों का सपना है,’’ तारेश को लगा मानो वह बच्ची को हमेशा के लिए खो देगा.

‘‘हांहां, तुम्हीं इस के पिता रहोगे. मगर अभी इसे एक मां की ज्यादा जरूरत है… अगर तुम्हें एतराज न हो तो यह जिम्मेदारी राखी निभा सकती है.’’

‘‘मगर आप लोग तो सचाई जानते हैं… मैं राखी को कभी पति का सुख नहीं दे पाऊंगा.’’

‘‘मैं पत्नी का नहीं मां बनने का सुख चाहती हूं,’’ इस बार राखी ने कहा और बच्ची को अपनी गोद में ले लिया. तारेश को लगा जैसे बच्ची की मासूम मुसकराहट में सोमल खिलखिला रहा है.

Latest Hindi Stories : गरम लोहा – बबिता ने पति और बच्चों के साथ कहीं न जाने की प्रतिज्ञा क्यों ली थी

Latest Hindi Stories : अपूर्व और बच्चों को मेरी टांग खींचने का अच्छा मौका मिल गया था. सब से पहले छोटे बेटे ऋतिक ने मोबाइल हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘लाओ मम्मा, मैं नानी को फोन कर के बता देता हूं कि आप मामा की शादी में नहीं आ पाएंगी, क्योंकि आप ने भीष्म प्रतिज्ञा की है कि आप हम लोगों के साथ अब कहीं नहीं जाओगी.’’

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ऋतिक की बात पूरी होते ही अपूर्व ने उस के हाथ से फोन लेते हुए कहा, ‘‘अरे बेटा, मेरे होते हुए तुम नानी से बात करो यह मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है. लाओ फोन मुझे दो. मैं नानी को ठीक से समझा देता हूं कि वे साले साहब की शादी की सारी तैयारी अकेले ही कर लें, क्योंकि उन की लाडली ने कहीं भी न जाने की प्रतिज्ञा कर ली है.’’

मेरे दिमाग के गरम पारे पर मां के फोन से पानी की जो ठंडी फुहार पड़ी थी वह पुन: इन लोगों की चुहलबाजी से ज्वलंत होने लगी.

हुआ यों था कि शिमला में 1 सप्ताह तक छुट्टियां बिता कर हम बस घंटा भर पहले ही घर आए थे. घर में घुसते ही अपूर्व और बच्चे एसी और टीवी औन कर के बैठ गए और फिर 1-1 कर के फरमाइशें शुरू कर दीं, ‘‘बबीता, फटाफट 1 कप चाय पिलाओ… होटल की चाय पी कर मन खराब हुआ पड़ा है.’’

‘‘मम्मा, प्लीज साथ में प्याज के पकौड़े भी बना देना. रास्ते में कहीं पकौड़े बन रहे थे. उन की महक मेरी नाक में ऐसी समाई कि मैं ने वहीं तय कर लिया था कि घर पहुंच कर सब से पहले मम्मा से पकौड़े बनवाऊंगा, बड़े बेटे गौरव ने अपनी इच्छा जताई.’’

‘‘मम्मा, आप ने मुझ से वादा किया था कि घर पहुंचते ही मुझे नूडल्स खिलाओगी. अब मुझ से सब्र नहीं हो रहा है. फटाफट अपना वादा पूरा करो,’’ छोटे बेटे ऋतिक ने भी उन दोनों के सुर में सुर मिलाया.

मेरे कानों में उन तीनों की बातें पड़ तो रही थीं पर ध्यान घर में बिखरे काम पर था.

बालकनी में सप्ताह भर के पेपर्स के बंडल बिखरे पड़े थे, जिन्हें हमारी गैरमौजूदगी में भी पेपर वाला डालता गया था, क्योंकि उसे हम मना करना भूल गए थे. उन्हें उठा कर खोल कर अलमारी में रखना था. सामने और पीछे दोनों तरफ की बालकनियों के गमलों के पौधे 1 सप्ताह में पानी के अभाव में झुलस से गए थे. उन में पानी डालना था. घर में इतनी धूल दिखने लगी थी कि फर्श पर चप्पलों के निशान बन रहे थे. कामवाली तो कल सुबह ही आएगी. अत: झाड़ूपोंछा भी करना ही पड़ेगा. सारे कमरों की बैडशीटें बदलनी हैं. किचन समेत पूरे घर की डस्टिंग करनी पड़ेगी. सूटकेस और बैग्स को खाली कर के धूप दिखा कर ऊपर की अलमारी में रखना है. सब से बढ़ कर तो गंदे कपड़ों के अंबार से निबटना है. कपड़े मशीन में धुलने डालने हैं. धुलने के बाद सूखने डालना और फिर सूखने के बाद उठा कर अंदर लाने हैं.

इस सब के अलावा सप्ताह भर बाहर का खाना खा कर ऊब चुके अपूर्व और बच्चों की दिली तमन्ना कि आज घर का बना स्वादिष्ठ खाना खाने को मिलेगा, बिना कहे ही मैं समझ रही थी.

2-4 दिन के लिए भी घर छोड़ कर कहीं चले जाओ तो आने के बाद काम का अंबार देख कर मन इतना घबरा जाता है कि यह सोचने लग जाती हूं कि गई ही क्यों? अपूर्व और बच्चे तो बस सूटकेस और बैग्स को घर के अंदर पहुंचा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं. उन्हें किसी और काम से मतलब नहीं रह जाता. मैं अकेली सारे काम निबटातेनिबटाते अधमरी हो जाती हूं.

अपूर्व और बच्चे तो अपनीअपनी फरमाइशें मुझे सुना कर टीवी के सामने बैठ गए और मैं किचन में खड़ी सोचने लगी कि कहां से काम शुरू करूं.

मुझे पता था कि जब तक तीनों की खानेपीने की फरमाइशें पूरी नहीं कर दूंगी तब तक ये शोर मचाते रहेंगे और मैं कोई भी काम ढंग से नहीं कर पाऊंगी. हालांकि लंबे सफर से आने के बाद नहाए बिना कुछ करने का मन नहीं कर रहा था, पर नहाने का इरादा त्याग कर जल्दीजल्दी प्याज काटने में जुट गई. गैस पर एक तरफ 2 कप चाय चढ़ा दी और दूसरी तरफ भगौने में नूडल्स बनने रख दी. तीसरे आंच पर कड़ाही में तेल गरम होते ही फटाफट पकौड़े तल कर सारा सामान ट्रे में लगा कर उन के पास पहुंच गई.

सब के साथ खुद भी सफर की थकान कम करने के इरादे से बैठ कर मैं ने भी चाय पी और उस के बाद पल्लू कमर में ठूंस कर काम निबटाने उठ गई.

सोचा सब से पहले कपड़ों को मशीन में डाल दूं. मशीन में कपड़े अपनेआप धुलते रहेंगे और मैं उस दौरान दूसरे काम करती रहूंगी.

मशीन लगाने के नाम पर मुझे पानी का खयाल आया कि पता नहीं टंकी में कितना पानी है? पर जब मैं ने ऋतिक से कहा कि जा कर देख कर आ कि टंकी में कितना पानी है ताकि मैं अपना काम उसी हिसाब से शुरू करूं तो वह मुंह तक चादर ओढ़ कर सो गया और अपने बड़े भाई की ओर इशारा कर के मुझे सलाह दे डाली कि इसे भेज दो.

उस की हरकत पर गुस्सा तो बहुत आया पर मैं बिना कुछ कहे चुपचाप वहां से बाहर निकल आई.

गौरव ने शायद मेरी नाराजगी को महसूस कर लिया. अत: उस ने बिना मेरे कुछ कहे ही उठते हुए कहा, ‘‘मम्मा, मैं देख कर आता हूं.’’

‘शुक्र है, किसी को तो दया आई मुझ पर,’ सोचते हुए मैं ने सूटकेस और बैग खाली करना शुरू कर दिए.

‘‘मम्मा, टंकी पूरी भरी हुई है… अब प्लीज कम से कम 1 घंटे तक आप मुझ से कोई काम करने को मत कहिएगा,’’ कहते हुए वह फिर से टीवी के सामने बैठ गया.

मैं अकेली इतने सारे कामों को ले कर परेशान हो रही हूं पर मेरे पति और बच्चों को इस की कोई परवाह नहीं है. कोई झूठमूठ भी मदद के लिए नहीं उठ रहा है. कहीं जाने का प्रोग्राम बनाने में तो तीनों ही बहुत तेज रहते हैं पर जाने से पहले की तैयारी में न कोई हाथ बंटाने को तैयार होता है और न ही वापस आने के बाद फैले कामों को समेटने में.

‘बस अब बहुत हो गया. ये सब मेरे सीधेपन का ही नतीजा है. मैं तो हरेक की सुविधा के लिए खटती रहती हूं पर इन्हें मेरी रत्ती भर भी परवाह नहीं रहती. अब तो इन्हें इन की गलती का और घर के प्रति जिम्मेदारियों का एहसास कराना ही पड़ेगा,’ यह सोचते हुए मैं कमरे में पहुंच गई.

‘‘मैं भी तुम सब के साथ ही लंबा सफर कर के आई हूं. मैं भी इनसान हूं, इसलिए थकान मुझे भी होती है, पर तुम लोगों के हिसाब से आराम करने का हक मुझे नहीं है. तुम लोगों की सोच यह है कि बाहर बिखरे सारे काम निबटाना मुझ अकेली की जिम्मेदारी है. इसलिए मैं ने भी अब तय कर लिया है कि अब आगे से मैं तुम लोगों के साथ कहीं भी आनेजाने का प्रोग्राम नहीं बनाऊंगी. प्रोग्राम बनाने में तो तुम तीनों आगे रहते हो पर जाने के समय की तैयारी में न कोई हाथ बंटाने को तैयार होता है और न ही आने के बाद बिखरे कामों को समेटने में. जाते वक्त अपने कपड़े तक छांट कर नहीं देते हो तुम सब कि कौनकौन से रखूं. ऊपर से वहां पहुंच कर नखरे दिखाते हो कि मम्मा, यह शर्ट क्यों रख ली. यह तो मुझे बिलकुल पसंद नहीं, यह जींस क्यों रख ली यह तो टाइट होती है. वापस आने के बाद इस समय कितने काम हैं करने को, जिन में तुम लोग मेरी मदद कर सकते हो पर तुम में से किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही है. तुम सब को आराम चाहिए. तुम सब को एसी चाहिए पर क्या मुझे जरूरत महसूस नहीं हो रही इन चीजों की?’’

मेरी बात का तीनों पर तुरंत असर पड़ा. गौरव तुरंत टीवी बंद कर के उठ गया. पति भी एसी बंद कर बाहर आ गए. उन दोनों की देखादेखी छोटा भी अनमना सा चादर फेंक कर हाल में आ कर खड़ा हो गया.

तीनों ही अपने करने लायक काम की तलाश में इधरउधर नजर डाल ही रहे थे कि अचानक मेरा सेलफोन बज उठा. गुस्से की वजह से मेरा फोन उठाने का मन नहीं कर रहा था पर मम्मी का नाम देख कर फोन उठाने को मजबूर हो गई.

‘‘हैलो बबीता, तुझे खुशखबरी देनी थी. आयूष की शादी पक्की हो गई है. लड़की वाले अभी यहीं बैठे हैं. हम सगाई और शादी की तारीख तय कर रहे हैं. तय होते ही तुम्हें दोबारा फोन करूंगी. तारीख बहुत जल्दी की तय करेंगे, इसलिए बस तुम फटाफट आने की तैयारी शुरू कर दो, क्योंकि जब तक तुम नहीं आओगी मैं कोई भी काम ठीक से नहीं कर पाऊंगी,’’ कह कर मम्मी ने फोन रख दिया.

मम्मी के फोन रखते ही मैं चहक उठी, ‘‘सुनो, आयूष की शादी पक्की हो गई है और शादी की बहुत जल्दी की तारीख भी निकलने वाली है. मम्मी ने हमें तैयारी शुरू कर देने को कहा है.’’

‘‘पर मम्मा आप जाएंगी क्या मामा की शादी में?’’ छोटे बेटे ने बड़ी मासूमियत से कहा.

‘‘हां, क्यों नहीं जाऊंगी? क्या तुम लोगों को नहीं जाना मामा की शादी में?’’ मैं ने आश्चर्य से ऋतिक की ओर देखा.

‘‘जाना तो था पर अभीअभी तो आप ने भीष्म प्रतिज्ञा की है कि अब आप हम लोगों के साथ कहीं आनेजाने का प्रोग्राम नहीं बनाएंगी, तो मैं नानी को फोन कर के बता देता हूं कि मम्मा मामा की शादी में नहीं आ पाएंगी. आप हम लोगों का इंतजार न करें.’’

बस फिर क्या था. अपूर्व को भी मौका मिल गया बच्चों के साथ मिल कर मेरी टांग खींचने का. उन्होंने ऋतिक के हाथ से फोन ले लिया और कहने लगे कि बेटा मेरे होते हुए तुम नानी को यह खबर दो, कुछ ठीक नहीं लगता. लाओ, मैं ठीक से समझा कर बता देता हूं नानी को कि वे अपनी प्यारीदुलारी बेटी का इंतजार न करें शादी में.

थोड़ी देर पहले ही मेरे गुस्से का जो असर तीनों पर पड़ा था और तीनों ही मेरी मदद के लिए आ गए थे उस पर मम्मी के फोन से पानी फिर गया.

मेरा मूड अच्छा हुआ देख थोड़ाबहुत इधरउधर कर के दोबारा फिर सब टीवी के सामने जा बैठे. अब दोबारा चीखनेचिल्लाने के बजाय मैं ने अकेले ही काम में जुट जाना बेहतर समझा.

दूसरे दिन से अपूर्व अपने औफिस और बच्चे स्कूल में व्यस्त हो गए. मैं भी बिखरे काम समेटने के साथसाथ आयूष की शादी की कल्पना में जुट गई.

लेकिन जब आयूष की शादी में जाने और शादी की तैयारी के बारे में सोचना शुरू किया तो जाने के पहले की तैयारी और आने के बाद के बिखरे काम के बारे में सोच कर मेरा मानसिक तनाव फिर से बढ़ गया.

अपूर्व और बच्चों के असहयोगात्मक रवैए के कारण कहीं आनेजाने के नाम पर सचमुच मुझे घबराहट होने लगी थी. मुझे दिलोजान से चाहने वाले मेरे पति और बच्चे कहीं भी आनेजाने की तैयारी में कोई भी मदद नहीं करते थे. सब से अधिक परेशानी मुझे होती है सब के कपड़ों के चयन में. कब और किस अवसर पर तीनों कौनकौन से कपड़े पहनेंगे यह भी मुझे अकेले ही तय करना पड़ता है. बच्चों को साथ बाजार चल कर पसंद के कपड़े लेने को कहती हूं तो जवाब मिलता है, ‘‘प्लीज मम्मा, तुम ले आओ. हमें शौपिंग पर जाना बिलकुल पसंद नहीं है. जब कहती हूं कि बेटा मुझे तुम लोगों की पसंदनापसंद समझ में नहीं आती है तो कहते हैं कि आप व्हाट्सऐप पर फोटो भेज देना हम बता देंगे कि पसंद हैं या नहीं.’’

मैं जब हार कर अपनी पसंद के कपड़े ले जाती तो कभी किसी को रंग पसंद नहीं आता तो कभी डिजाइन. मैं गुस्सा हो कर कहती कि इसीलिए कहती हूं कि अपने कपड़े खरीदने मेरे साथ चला करो पर कोई मेरी बात नहीं मानता. अब कल चलो मेरे साथ और इन्हें बदल कर अपनी पसंद के लेना.

उन्हें क्या पता कि मां जब तक अपने बच्चों को नए कपड़े नहीं पहना लेती खुद अपने तन पर नए कपड़े नहीं डालती. बच्चों का पहनावा और संस्कार मां की परवरिश और सुघड़ता को उजागर करते हैं, इसलिए मेरे बच्चे और पति का पहनावा हर अवसर पर सलीकेदार हो, इस का मैं विशेष ध्यान रखती हूं.

बच्चे छोटे थे तो ठीक था. जो भी खरीद कर लाती थी खुशीखुशी पहन लेते थे. पर बड़े हो जाने पर पहनते वही हैं जो उन्हें पूरी तरह से पसंद हो. मगर शौपिंग के लिए साथ हरगिज नहीं जाएंगे. कई बार खीज कर कह बैठती कि तुम दोनों की जगह अगर 2 बेटियां होतीं मेरी तो वे मेरे साथ शौपिंग के लिए भी जातीं और घर के कामों में भी मेरा हाथ बंटातीं.

सब से अधिक असमंजस और परेशानी वाली स्थिति मेरे लिए तब बन जाती है जब कहीं जाने पर वहां पहुंच कर दूसरेतीसरे दिन पहनने के लिए कपड़े निकाल कर देती हूं और वे यह कह कर पहनने से इनकार कर देते कि यह तो अब टाइट होने लगा है या इस की तो चेन खराब है. तब मेरे पास अपना सिर पीटने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता. कई बार तो इस वजह से नई जगह में मुझे टेलर और कपड़ों की दुकान तक के चक्कर लगाने पड़ गए थे.

मैं ने मन ही मन तय किया कि मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए, जिस से इन्हें मेरी स्थिति का अंदाज लगे और ये अपनी जिम्मेदारियां समझने लगें. मैं ने मन ही मन प्लान बनाया और फिर उस पर अमल करना शुरू कर दिया.

मुझे पता था कि इकलौते साले और इकलौते मामा की शादी के लिए अपूर्व और बच्चे भी बहुत उत्साहित हैं, साथ ही उन्हें मेरे उत्साह का भी अंदाजा है, बस इसी बात को हथियार बना कर मैं अपने प्लान पर अमल करने में जुट गई.

आयूष की शादी 1 महीने के बाद होनी तय हुई थी, इसलिए मुझे तैयारी ज्यादा करनी थी और समय कम था.

मैं ने तय यह किया कि मैं अपूर्व के औफिस और बच्चों के स्कूल जाने के बाद बाजार जाऊंगी पर मैं शादी के लिए कोई तैयारी कर रही हूं, इस की भनक तीनों को नहीं लगने दूंगी. खरीदे सारे कपड़े और बाकी सारा सामान मैं लाने के बाद अलमारियों में रख देती. सब के सामने सामान्य रहने का नाटक करती. शादी के प्रति न ही सब के सामने अपनी खुशी और उत्साह को प्रकट करती और न ही शादी की कोई चर्चा उन के सामने करती.

10-15 दिन तो सभी अपनेअपने काम में मशगूल रहे. किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि मैं शादी के मसले पर शांत बैठी हूं. फिर एक दिन डिनर पर अपूर्व ने जब शादी का जिक्र छेड़ा तो मेरी ठंडी प्रतिक्रिया ने सब को चौकन्ना कर दिया. मैं ने कनखियों से देखा कि तीनों की सवालियां नजरें एकदूसरे से टकराईं.

‘‘क्या बात है बबीता आयूष की शादी के नाम पर तुम इतनी चुपचाप बैठी हो… अभी तक तुम ने कोई तैयारी भी शुरू नहीं की… सब कुछ ठीक तो है न?’’

‘‘हां ठीक है,’’ मैं ने जानबूझ कर संक्षिप्त जवाब दिया पर यह जवाब उन के कान खड़े करने के लिए पर्याप्त था.

‘‘कोई परेशानी है?’’ मेरी खामोशी से अपूर्व विचलित नजर आए.

तीर निशाने पर लगता देख मैं अपने प्लान की कामयाबी के प्रति आश्वस्त होते हुए गंभीर मुद्रा बना कर बोली, ‘‘मैं नहीं जा रही शादी में.’’

‘‘क्यों? क्या हो गया?’’ तीनों बुरी तरह चौंके.

‘‘भूल गए मेरी भीष्म प्रतिज्ञा?’’ मैं ने ऋतिक की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘अरे मम्मा, मामा की शादी हो जाने दो, फिर ले लेना प्रतिज्ञा,’’ नटखट ऋतिक अपनी शैतानी से बाज नहीं आ रहा था. पर मैं ने अपनी हंसी पर पूर्ण नियंत्रण रखा था.

‘‘मैं सीरियस हूं. मेरी बात को कौमेडी बनाने की जरूरत नहीं है,’’ कह कर मैं जल्दीजल्दी अपना खाना खत्म कर प्लेट सिंक में रख बैडरूम में चली गई.

‘‘पापा, लगता है मम्मा नाराज हैं हम लोगों से,’’ गौरव की फुसफुसाती आवाज सुनाई दी मुझे.

‘‘तुम लोग चिंता न करो, अगर वह नाराज होगी तो मैं संभाल लूंगा,’’ अपूर्व ने बच्चों से कहा.

दूसरे ही दिन दोपहर में औफिस से अपूर्व का फोन आया. मेरे हैलो बोलते ही कहने लगे, ‘‘बबीता, आज सोच रहा हूं शाम को घर जल्दी आ जाऊं. आयूष की शादी की शौपिंग कर लेते हैं. मेरी भी सारी पैंटशर्ट्स पुरानी हो गई हैं.

2-4 जोड़ी कपड़े नए ही ले लेता हूं और तुम भी अपने लिए नईनई साडि़यां ले लो. आखिर इकलौते भाई की शादी है, पुरानी साडि़यां थोड़े ही जंचेंगी तुम पर.’’

बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी पर काबू रख पाई थी मैं अपूर्व से बात करते समय. सोचने लगी जब तक प्यार से मिन्नतें करती थी कि अपनेअपने कपड़ों की खरीदारी में तो कम से कम मेरा साथ दिया करो तुम सब तब तक किसी के ऊपर मेरी बात का असर नहीं हुआ पर जरा सी टेढ़ी हुई नहीं कि एक झटके में जिम्मेदारी का एहसास हो गया जनाब को.

उधर कालेज से आते ही गौरव ने कहा, ‘‘मम्मा, कल रात मैं ने नैट पर सर्च किया. औनलाइन बड़ी अच्छीअच्छी शर्ट्स मिल रही हैं. सोच रहा हूं मामा की शादी के लिए इस बार औनलाइन ही कपड़े मंगवा लूं. ख्वाहमख्वाह ही तुम्हें हम लोगों के कपड़ों के लिए बाजार के कई चक्कर लगाने पड़ते हैं.’’

मेरा तीर निशाने पर लगा था. अपूर्व और बच्चे दोनों ही अपनेअपने कपड़ों के इंतजाम में जुट गए तो मुझे भी लगा कि अपना रुख थोड़ा ढीला कर देना चाहिए.

एक दिन जब अपूर्व ने सूटकेस निकाल कर उस में कपड़े डालते हुए कपड़े पैक करने की पहल की तो मुझ से रहा नहीं गया. मैं हंसते हुए बोली, ‘‘अब बस रहने दो. यह सब काम तुम्हारे वश का नहीं है. तुम लोगों ने अपने कपड़े अपनी पसंद के खरीद लिए और यह तय कर लिया कि किस अवसर पर क्या पहनोगे यही मेरे लिए बहुत है. कहीं जाने की तैयारी के लिए इस से अधिक की अपेक्षा नहीं करती मैं तुम लोगों से.’’

‘सच लोहा जब गरम हो तब वार करने पर वस्तु को मनपसंद आकार दिया जा सकता है.

कहने को उसके पास सब कुछ है अच्छी नौकरी, दिल्ली जैसे शहर में अपना घर, एक लाइफ पार्टनर, लेकिन फिर भी वह अकेली है पास बैठे पति से बात करने के बजाय वह सोशल साइट्स पर ऐसा कोई ढूँढती रहती है जिससे अपनी फीलिंग्स शेयर कर सके.

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