Anushka Sharma की तरह Kajal Aggarwal ने किया प्रैग्नेंसी वर्कआउट, वीडियो वायरल

साउथ इंडियन और बौलीवुड एक्ट्रेस काजल अग्रवाल (Kajal Aggarwal) इन दिनों अपनी प्रैग्नेंसी के चलते सुर्खियों में हैं. जहां बीते दिनों उनकी गोदभराई की फोटोज वायरल हुई थीं तो वहीं अब उनकी हैवी वर्कआउट (Kajal Aggarwal Pregnancy Workout)करते हुए वीडियो सोशलमीडिया पर छा गई हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर….

एक्सरसाइज करती दिखीं काजल

हाल ही में एक्ट्रेस काजल अग्रवाल (Kajal Aggarwal) ने अपनी प्रेग्नेंसी के दूसरे ट्राइमेस्टर में हैवी वर्कआउट वाली मुश्किल एक्सरसाइज की एक वीडियो शेयर की हैं, जिसमें उन्होंने प्रैग्नेंसी एक्सरसाइज को करने की सलाह के साथ-साथ सावधानी रखने के लिए कहा है. कैप्शन में एक्ट्रेस ने इस एक्सरसाइज की पूरी जानकारी शेयर की है. वहीं काजल की ये एक्सरसाइज देखकर फैंस उनकी तारीफ करते नजर आ रहे हैं और उन्हें अपना ख्याल रखने के लिए कहते नजर आ रहे हैं.

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वजन के चलते हो चुकी हैं ट्रोल

बीते दिनों एक्ट्रेस काजल अग्रवाल (Kajal Aggarwal) अपनी प्रैग्नेंसी में बढ़ते वजन के कारण ट्रोल हो चुकी हैं. हालांकि एक्ट्रेस ने सोशलमीडिया पर अपने एक पोस्ट के जरिए प्रैग्नेंसी के इस सफर की तारीफ की थी. वहीं ट्रोलर्स को करारा जवाब भी दिया था. इसके साथ ही वह फैंस के साथ अपनी गोदभराई की फोटोज भी शेयर करते हुए नजर आईं थीं, जिसमें एक्ट्रेस के चेहरे का ग्लो साथ नजर आ रहा था. फैंस ने काजल के गोदभराई फोटोज पर जमकर प्यार लुटाया था.

 

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बता दें, एक्ट्रेस काजल अग्रवाल (Kajal Aggarwal) के अलावा अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma) भी अपना प्रैग्नेंसी वर्कआउट पति विराट कोहली (Virat Kohli) के साथ शेयर कर चुकी हैं. हालांकि उन्हें सोशलमीडिया पर इसी कारण ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा था. लेकिन कपल ने ट्रोलर्स को करारा जवाब दिया था.

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नीड़ का निर्माण फिर से: भाग 1- क्या मानसी को मिला छुटकारा

लेखक- श्रीप्रकाश

मानसी का मन बेहद उदास था. एक तो छुट्टी दूसरे चांदनी का ननिहाल चले जाना और अब चांदनी के बिना अकेलापन उसे काट खाने को दौड़ रहा था. मानसी का मन कई तरह की दुश्ंिचताओं से भर जाता. सयानी होती बेटी वह भी बिन बाप की. कहीं कुछ ऊंचनीच हो गया तो. चांदनी की गैरमौजूदगी उस की बेचैनी बढ़ा देती. कल ही तो गई थी चांदनी. तब से अब तक मानसी ने 10 बार फोन कर के उस का हाल लिया होगा. चांदनी क्या कर रही है? अकेले कहीं मत निकलना. समय पर खापी लेना. रात देर तक टीवी मत देखना. फोन पर नसीहत सुनतेसुनते मानसी की मां आजिज आ जाती.

‘‘सुनो मानसी, तुम्हें इतना ही डर है तो ले जाओ अपनी बेटी को. हम क्या गैर हैं?’’ मानसी को अपराधबोध होता. मां के ही घर तो गई है. बिलावजह तिल का ताड़ बना रही है. तभी उस की नजर सुबह के अखबार पर पड़ी. भारत में तलाक की बढ़ती संख्या चिंताजनक…एक जज की इस टिप्पणी ने उस की उदासी और बढ़ा दी. सचमुच घर एक स्त्री से बनता है. एक स्त्री बड़े जतन से एकएक तिनका जोड़ कर नीड़ का निर्माण करती है. ऐसे में नियति उसे जब तहसनहस करती है तो कितनी अधिक पीड़ा पहुंचती है, इस का सहज अनुमान लगा पाना बहुत मुश्किल होता है. आज वह भी तो उसी स्थिति से गुजर रही है. तलाक अपनेआप में भूचाल से कम नहीं होता. वह एक पूरी व्यवस्था को नष्ट कर देता है पर क्या नई व्यवस्था बना पाना इतना आसान होता है. नहीं…जज की टिप्पणी निश्चय ही प्रासंगिक थी.

पर मानसी भी क्या करती. उस के पास कोई दूसरा रास्ता न था. पति घर का स्तंभ होता है और जब वह अपनी जिम्मेदारी से विमुख हो जाए तो अकेली औरत के लिए घर जोड़े रखना सहज नहीं होता. मानसी उस दुखद अतीत से जुड़ गई जिसे वह 10 साल पहले पीछे छोड़ आई थी. उस का अतीत उस के सामने साकार होने लगा और वह विचारसागर में डूब गई. उस की सहकर्मी अचला ने उस दिन पहली बार मानसी की आंखों में गम का सागर लहराते देखा. हमेशा खिला रहने वाला मानसी का चेहरा मुरझाया हुआ था. कभी सास तो कभी पति को ले कर हजार झंझावातों के बीच अचला ने उसे कभी हारते हुए नहीं देखा था. पर आज वह कुछ अलग लगी. ‘मानसी, सब ठीक तो है न?’ लंच के वक्त उस की सहेली अचला ने उसे कुरेदा. मानसी की सूनी आंखें शून्य में टिकी रहीं. फिर आंसुओं से लबरेज हो गईं.

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‘मनोहर की नशे की लत बढ़ती ही जा रही है. कल रात उस ने मेरी कलाई मोड़ी…’ इतना बतातेबताते मानसी का कंठ रुंध गया. ‘गाल पर यह नीला निशान कैसा…’ अचला को कुतूहल हुआ. ‘उसी की देन है. जैकेट उतार कर मेरे चेहरे पर दे मारी. जिप से लग गई.’ इतना जालिम है मानसी का पति मनोहर, यह अचला ने सपने में भी नहीं सोचा था.  मानसी ने मनोहर से प्रेम विवाह किया था. दोनों का घर आसपास था इसलिए अकसर उन दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. एक रोज मनोहर मानसी के घर आया तो मानसी की मां पूछ बैठीं, ‘कौन सी क्लास में पढ़ते हो?’ ‘बी.ए. फाइनल,’ मनोहर ने जवाब दिया था. ‘आगे क्या इरादा है?’ ‘ठेकेदारी करूंगा.’ मनोहर के इस जवाब पर मानसी हंस दी थी. ‘हंस क्यों रही हो? मुझे ढेरों पैसे कमाने हैं,’ मनोहर सहजता से बोला. उधर मनोहर ने सचमुच ठेकेदारी का काम शुरू कर दिया था. इधर मानसी भी एक स्कूल में पढ़ाने लगी.

24 साल की मानसी के लिए अनेक रिश्ते देखने के बाद भी जब कोई लायक लड़का न मिला तो उस के पिता कुछ निराश हो गए. मानसी की जिंदगी में उसी दौरान एक लड़का राज आया. राज भी उसी के साथ स्कूल में पढ़ाता था. दोनों में अंतरंगता बढ़ी लेकिन एक रोज राज बिना बताए चेन्नई नौकरी करने चला गया. उस का यों अचानक चले जाना मानसी के लिए गहरा आघात था. उस ने स्कूल छोड़ दिया. मां ने वजह पूछी तो टाल गई. अब वह सोतेजागते राज के खयालों में डूबी रहती.

करवटें बदलते अनायास आंखें छलछला आतीं. ऐसे ही उदासी भरे माहौल में एक दिन मनोहर का उस के घर आना हुआ. डूबते हुए को तिनके का सहारा. मानसी उस से दिल लगा बैठी. यद्यपि दोनों के व्यक्तित्व में जमीनआसमान का अंतर था पर किसी ने खूब कहा है कि खूबसूरत स्त्री के पास दिल होता है दिमाग नहीं, तभी तो प्यार में धोखा खाती है. मनोहर से मानसी को तत्काल राहत तो मिली पर दीर्घकालीन नहीं.

मांबाप ने प्रतिरोध किया. हड़बड़ी में शादी का फैसला लेना उन्हें तनिक भी अच्छा न लगा. पर इकलौती बेटी की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा. मानसी की सास भी इस विवाह से नाखुश थीं इसलिए थोड़े ही दिनों बाद उन्होंने रंग दिखाने शुरू कर दिए. मानसी का जीना मुश्किल हो गया. वह अपना गुस्सा मनोहर पर उतारती. एक रोज तंग आ कर मानसी ने अलग रहने की ठानी. मनोहर पहले तो तैयार न हुआ पर मानसी के लिए अलग घर ले कर रहने लगा.

यहीं मानसी ने एक बच्ची चांदनी को जन्म दिया. बच्ची का साल पूरा होतेहोते मनोहर को अपने काम में घाटा शुरू हो गया. हालात यहां तक पहुंच गए कि मकान का किराया तक देने के पैसे न थे. हार कर उन्हें अपने मांबाप के पास आना पड़ा. मानसी ने दोबारा नौकरी शुरू कर दी. मनोहर ने लगातार घाटे के चलते काम को बिलकुल बंद कर दिया. अब वह ज्यादातर घर पर ही रहता. ठेकेदारी के दौरान पीने की लत के चलते मनोहर ने मानसी के सारे गहने बेच डाले.

यहां तक कि अपने हाथ की अंगूठी भी शराब के हवाले कर दी. एक दिन मानसी की नजर उस की उंगलियों पर गई तो वह आपे से बाहर हो गई, ‘तुम ने शादी की सौगात भी बेच डाली. मम्मी ने कितने अरमान से तुम्हें दी थीं.’ मनोहर ने बहाने बनाने की कोशिश की पर मानसी के आगे उस की एक न चली. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा. तभी मानसी की सास की आवाज आई, ‘शोर क्यों हो रहा है?’ ‘आप के घर में चोर घुस आया है.’

वह जीने से चढ़ कर ऊपर आईं. ‘कहां है चोर?’ उन्होंने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं. मानसी ने मनोहर की ओर इशारा किया, ‘पूछिए इन से… अंगूठी कहां गई.’ सास समझ गईं. वह कुछ नहीं बोलीं. उलटे मानसी को ही भलाबुरा कहने लगीं कि अपने से छोटे घर की लड़की लाने का यही नतीजा होता है. मानसी को यह बात लग गई. वह रोंआसी हो गई. आफिस जाने को देर हो रही थी इसलिए जल्दीजल्दी तैयार हो कर इस माहौल से वह निकल जाना चाहती थी.

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शाम को मानसी घर आई तो जी भारी था. आते ही बिस्तर पर निढाल पड़ गई. अपने भविष्य और अतीत के बारे में सोचने लगी. क्या सोचा था क्या हो गया. ससुर कभीकभार मानसी का पक्ष ले लेते थे पर सास तो जैसे उस के पीछे पड़ गई थीं. एक दिन मनोहर कुछ ज्यादा ही पी कर आया था. गुस्से में पिता ने उसे थप्पड़ मार दिया. ‘कुछ भी कर लीजिए आप, मैं  पीना  नहीं  छोड़ूंगा. मुझे अपनी जिंदगी की कोई परवा नहीं. आप से पहले मैं मरूंगा. फिर नाचना मानसी को ले कर इस घर में अकेले.’ शराब अधिक पीने से मनोहर के गुरदे में सूजन आ गई थी. उस का इलाज उस के पिता अपनी पेंशन से करा रहे थे. डाक्टर ने तो यहां तक कह दिया कि अगर इस ने पीना नहीं छोड़ा तो कुछ भी हो सकता है. फिर भी मनोहर की आदतों में कोई बदलाव नहीं आया था. मानसी ने लाख समझाया, बेटी की कसम दी, प्यार, मनुहार किसी का भी उस पर कोई असर नहीं हो रहा था.

बस, दोचार दिन ठीक रहता फिर जस का तस. मानसी लगभग टूट चुकी थी. ऐसे ही उदास क्षणों में मोबाइल की घंटी बजी. ‘हां, कौन?’ मानसी पूछ बैठी. ‘मैं राज बोल रहा हूं. होटल अशोक के कमरा नं. 201 में ठहरा हूं. क्या तुम किसी समय मुझ से मिलने आ सकती हो,’ उस के स्वर में निराशा का भाव था. राज आया है यह जान कर वह भावविह्वल हो गई. उसे लगा इस बेगाने माहौल में कोई एक अपना हमदर्द तो है. वह उस से मिलने के लिए तड़प उठी.

आफिस न जा कर मानसी होटल पहुंची. दरवाजे पर दस्तक दी तो आवाज आई, ‘अंदर आ जाओ.’ राज की आवाज पल भर को उसे भावविभोर कर गई. वह 5 साल पहले की दुनिया में चली गई. वह भूल गई कि वह एक शादीशुदा है.  मानसी की अप्रत्याशित मौजूदगी ने राज को खुशियों से भर दिया. ‘मानसी, तुम?’ ‘हां, मैं,’ मानसी निर्विकार भाव से बोली, ‘कुछ जख्म ऐसे होते हैं जो वक्त के साथ भी नहीं भरते.’ ‘मानसी, मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं.’ ‘पर क्या तुम मुझे वह वक्त लौटा सकते हो जिस में हम दोनों ने सुनहरे कल का सपना देखा था?’ राज खामोश था.

आगे पढ़ें- अचला के घर आ कर मानसी ने…

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सस्ती बिजली गरीबों का हक है

विधानसभा चुनावों में बिजली के दाम बड़ी चर्चा में रहे हैं. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का 200 यूनिट तक मुक्त बिजली देने का प्रयोग इतना सफल हुआ है कि पंजाब को तो छोडि़ए जहां अरविंद केजरीवाल की पार्टी सत्ता की मजबूत दावेदार है, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भी भारतीय जनता पार्टी 10 मार्च के बाद फिर सत्ता में आने पर बिजली सस्ती करने को मजबूर हो गई है.

बिजली को सस्ता या मुफ्त करना घरों के लिए एक वरदान है क्योंकि बिजली अब धूप और हक की तरह की हवा है. अमीर तो इसे सह लेते हैं पर गरीब घरों के लिए भी बत्ती, पंखा, टीवी, वाटर पंप और फ्रिज आवश्यकता है. क्योंकि आज बाहर का वातावरण इतना खराब, जहरीला और शोर से भरा है कि सुकून तो बंद कमरों में ही मिलता है. समाज की प्रगति आज घरों को जेलोंं में बदल चुकी है. मकान 5–10 मंजिला हो गए हैं. पानी का प्रेशर इतना नहीं होता कि ऊंचे तक चढ़ सके. खुले में सोने के लायक छत है ही नहीं. इस पर भी बिजली मंहगी हो और हर समय बिल न दे पाने की तलवार सिर पर लटकती रहे तो यह बेहद तनाव की बात है.

जहां पैसे की किल्लत है, वहां एक बत्ती, एक पंखा और एक फ्रिज लायक बिजली मिलती रहे तो ङ्क्षजदगी चल सकती है. इस बिजली का बिल कितने का आता है, अगर उसे जमा करना हो तो उतना ही खर्च बिजली कंपनी का हो जाएगा.

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बड़े घरों में एसी, 20-25 लाइटें जले, यह उन की आय पर निर्भर है. वे इस सस्ती बिजली की कीमत नहीं दे रहे क्योंकि 50 से 200 यूनिट तक बिजली इस्तेमाल करने वाले यदि बिजली ले तो भी उन के घर के पास तार गुजरेगा ही, खंबे खड़े होंगे ही. ज्यादा खर्च तो बिजली के वितरण का है, बनाने का नहीं.

अमीर यह न सोचें कि सस्ती बिजली उन की जेबे काट रही हैं, उल्टे गरीबों को मिली बिजली अमीरों को निरंतर बिना रूकावट बिजली मिलती रहेगी की गारंटी है. पहले जब बिजली मंहगी थी, अक्सर घंटों गायब रहती थी. शोर मचाने वालों की कोई सुनता नहीं था. अब ये मुक्त बिजली पाने वाले तुरंत धरना प्रदर्शन देना शुरू कर देंगे, जो काम अमीर नहीं कर सकते.

विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और कुछ तीर मार सके या नहीं, उस ने बिजली को चुनावी इश्यू बना कर यह गारंटी सरकारों से दिलवा दी कि बिजली मिलेगी और पैट्रोल व डीजल की तरह उस के दाम हर 24 घंटे में नहीं बढ़ेंगे.

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मैडिकल टैस्ट क्यों जरूरी

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब लोग अपने शरीर का अच्छे से ध्यान नहीं रख पाते, तो कई बीमारियां उन के शरीर में घर कर जाती हैं, जिन्हें समय रहते अगर पकड़ लिया जाए, तो आने वाले जीवन में तकलीफों से बचा जा सकता है. लोगों का यह सोचना है कि रैग्युलर मैडिकल चैकअप सिर्फ बड़ी उम्र के लोगों के लिए होता है, लेकिन सच तो यह है कि 25 की उम्र होते ही इंसान को एक बार अपने पूरे शरीर का चैकअप करवा लेना चाहिए.

मैडिकल टैस्ट करवाने से हमें क्या फायदे होते हैं आइए उसे भी जानते हैं:

ब्लड टैस्ट: किसी भी बीमारी के इलाज से बेहतर होती है उस की रोकथाम. यदि समय से उस की रोकथाम कर ली जाए, तो आने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है. इस के लिए सब से जरूरी होता है ब्लड टैस्ट. एक ब्लड टैस्ट हमें होने वाली बहुत सी बीमारियों के बारे में बता सकता है. कई लोग साल में 3 बार अपना रूटीन चैकअप करवाना पसंद करते हैं ताकि उन को आने वाली किसी भी बीमारी के बारे में पता चल जाए. यही नहीं, यदि आप मां बनने वाली हैं तो उस समय भी आप के लिए ब्लड टैस्ट करवाना बहुत जरूरी है ताकि आप की और आप के आने वाले बच्चे की सेहत का अच्छे से खयाल रखा जा सके.

हीमोग्राम: हीमोग्राम या कंप्लीट ब्लड काउंट कई बीमारियों की जांच में मदद करता है जैसे ऐनीमिया, संक्रमण आदि. यह टैस्ट विकारों की जांच करने के लिए एक व्यापक स्क्रीनिंग परीक्षा के रूप में प्रयोग किया जाता है. यह वास्तव में रक्त के विभिन्न भागों को जांचने में मदद करता है.

किडनी फंक्शन टैस्ट: अगर हमारे शरीर में हमारी दोनों किडनियां सही ढंग से काम कर रही हों तो वे हमारे खून में मिल रही गंदगी को साफ कर देती हैं. लेकिन अगर वे खराब हो जाएं, तो हमारे शरीर में कई सारी दिक्कतें आ जाती हैं. किडनी फंक्शन टैस्ट से हमें पता चलता है कि वे सही ढंग से काम कर रही हैं या नहीं.

लिवर फंक्शन टैस्ट: लिवर फंक्शन टैस्ट एक टाइप का ब्लड टैस्ट होता है, जिस के द्वारा लिवर में हो रही सभी दिक्कतों का पता लगाया जाता है.

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ब्लड काउंट: यह एक ऐसा टैस्ट होता  है जिस के द्वारा हमारे शरीर के व्हाइट ब्लड सैल्स और रैड ब्लड सैल्स को काउंट किया जाता है.

ब्लड शुगर टैस्ट: यह टैस्ट मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत जरूरी है. इस के लक्षण बहुत ही आम हैं जैसे कमजोरी आना, पैरों में दर्द, वजन कम होना, हड्डियां कमजोर होना. अगर मधुमेह के किसी रोगी को चोट लगे तो वह जल्दी ठीक नहीं हो पाती. अगर समय से टैस्ट करवा लिया जाए तो व्यक्ति अपने खानेपीने का ध्यान रख सकता है.

चैस्ट ऐक्सरे: चैस्ट का ऐक्सरे करवाने से हमें छाती से जुड़ी प्रौब्लम्स का पता चलता है जैसे फेफड़ों की तकलीफ, दिल से जुड़ी बीमारियां आदि.

टोटल लिपिड प्रोफाइल: टोटल लिपिड प्रोफाइल भी एक प्रकार का ब्लड टैस्ट होता है, जिस के द्वारा कई बीमारियों का पता लगाया जाता है जैसे कोलैस्ट्रौल, जैनेटिक डिसऔर्डर, कार्डियोवैस्क्यूलर डिजीज, पैंक्रिआइटिस आदि.

यूरिन और स्टूल रूटीन ऐग्जामिनेशन: यूरिन और स्टूल रूटीन ऐग्जामिनेशन से मधुमेह जैसे रोगों का भी पता चलता है.

ई.सी.जी.: ई.सी.जी. के द्वारा हमें दिल की कई बीमारियों का पता चलता है.

सभी टैस्ट करवाने से पहले एक बार डाक्टर की सलाह जरूर लें और अगर डाक्टर कहे तो पेट का अल्ट्रासाउंड और थायराइड प्रोफाइल टैस्ट भी जरूर करवाएं. यदि किसी का ब्लडप्रैशर कम रहता हो, भूख न लगती हो और पेट में दर्द रहता हो तो उसे तुरंत ही डाक्टर से संपर्क करना चाहिए, चाहे वह किसी भी उम्र का हो. एक बार ये सभी टैस्ट करवाने के बाद 5 साल में एक बार इन सभी टैस्ट को दोबारा करवाना चाहिए और बीमारी या बीमारी से जुड़ा कोई भी लक्षण हो तो तुरंत ही डाक्टर से संपर्क करना चाहिए. खुद ही डाक्टर बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

इस के बाद 40 की उम्र में प्रवेश करते ही ये सभी टैस्ट हर 2 वर्ष में करवाने चाहिए, क्योंकि इस उम्र में शरीर थोड़ा कमजोर होने लगता है और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इस के साथ ही जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है हमारी हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, इसलिए औरतों को बोन डैंसिटी चैकअप करवाना शुरू कर देना चाहिए. इस उम्र में अपने सभी रैग्युलर टैस्ट के साथसाथ टे्रडमिल टैस्ट (टी.एम.टी) और ईको कार्डियोग्राफी (ईको) करवाना भी आवश्यक है, क्योंकि इस उम्र में हमारी हड्डियों के साथसाथ हमारा दिल भी कमजोर होने लगता है.

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औरतों को 40 से 45 की उम्र में अपना हारमोनल टैस्ट भी करवा लेना चाहिए, क्योंकि इस उम्र में बहुतों को मेनोपौज आ जाता है, जिस के साथ शरीर के हारमोंस में भी कई तरह के बदलाव आते हैं. ऐसे ही जब 50 की उम्र में आ जाए तो ये सब टैस्ट हर वर्ष करवाने चाहिए. इन सभी टैस्ट के साथसाथ पुरुषों के लिए इस उम्र में प्रोस्टेट टैस्ट करवाना भी जरूरी है. अपना रूटीन चैकअप करवाने से हम आने वाली बीमारियों के प्रति सतर्क तो रहते ही हैं, भविष्य में होने वाली कई तकलीफों से भी बच जाते हैं.                 

  -डा. अनुराग सक्सेना प्राइमस सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल

वैक्सिंग कराने के बाद खुजली और दानों की प्रौब्लम हो जाती है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी उम्र 21 साल है. मेरी बाजुओं पर बहुत सारे बाल हैं जिन्हें रिमूव करने के लिए मैं वैक्सिंग कराती हूं. पर हर बार वैक्सिंग कराने पर मुझे इचिंग होने लगती है और कभीकभी दाने भी हो जाते हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

वैक्सिंग से इचिंग होती है तो इस का कारण वैक्सिंग से ऐलर्जी होना होता है. अगर आप को वैक्सिंग से ऐलर्जी है तो वैक्सिंग से पहले आप कोई ऐंटीऐलर्जिक गोली खा सकती हैं ताकि ऐलर्जी न हो. अगर वैक्सिंग के बाद दाने निकल आते हैं तो चांसेज हैं कि वैक्सिंग करने वाला सही नहीं है या वह सफाई से काम नहीं कर रहा. वैक्सिंग के लिए हाइजीन का ध्यान रखना बहुत जरूरी है.

वैक्सिंग करने के लिए डिस्पोजेबल पट्टी का इस्तेमाल करवाएं. वैक्सिंग करने से पहले फ्री वैक्स जैल और करने के बाद पोस्ट वैक्स जैल दोनों का इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है. इन बातों का ध्यान रखा जाए तो दाने होने के चांसेज बहुत कम हो जाते हैं. आप चाहें तो इन बालों से हमेशा के लिए छुटकारा पा सकती हैं. इस के लिए पल्स लाइट ट्रीटमैंट या लेजर ट्रीटमैंट ले सकती हैं. यह बहुत सेफ और पेनलैस है और इस से हमेशा के लिए बालों से छुटकारा पाया जा सकता है.

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टीनऐजर्स की स्किन सौफ्ट होती है, छोटी उम्र में वैक्सिंग बिलकुल नहीं, हाथपैर खराब हो जाएंगे, सैंसिटिव स्किन पर रैशेज पड़ने का डर रहेगा, वैक्स करवाने से स्किन लटक जाएगी आदि बातें की जाती हैं.

सचाई यह है कि प्यूबर्टी के कारण शारीरिक व मानसिक रूप से काफी परिवर्तन होते हैं. खासकर, बालों की ग्रोथ तेजी से बढ़ती है. इस का कारण हार्मोनल चैंजेस होते हैं. ऐसे में टीनऐजर्स अपने शरीर में हुए इन बदलावों को स्वीकार नहीं कर पाते हैं और खुद की तुलना दूसरी लड़कियों से कर के कौंपलैक्स के शिकार होने लगते हैं. वैक्सिंग व उन की स्किन की सही जानकारी ले कर उन की इस समस्या का समाधान करें.

कैसी है स्किन

आप की स्किन की सौफ्टनैस व लचीलापन सिर्फ इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि आप कैसा प्रोडक्ट इस्तेमाल करती हैं, बल्कि इस के लिए एक्स्टर्नल व इंटरनल दोनों कारण जिम्मेदार होते हैं.

जैसे, स्किन की इलास्टिसिटी कितना वाटर रिटेन करने में सक्षम है इस बात पर डिपैंड करती है तो वहीं सीबम के उत्पादन पर स्किन की सौफ्टनैस निर्भर करती है. स्किन की सैंसिटिविटी के लिए हमारा खानपान व हार्मोंस जिम्मेदार होते हैं, इसलिए स्किन टाइप को ध्यान में रख कर ही हमेशा वैक्सिंग करवानी चाहिए ताकि किसी तरह के रिऐक्शन का डर न हो. लेकिन ऐसा तभी हो पाएगा जब आप को इस की जानकारी होगी.

स्किन टाइप के हिसाब से वैक्सिंग

नौर्मल स्किन : नौर्मल स्किन वालों में वाटर व लिपिड कंटैंट काफी अच्छा होता है, जिस के कारण उन की स्किन ड्राई नहीं होती. यह अतिरिक्त सीबम का उत्पादन भी करता है. इस से स्किन पर किसी भी तरह का रिऐक्शन नहीं होता. ऐसी स्किन वाले टीनऐजर्स के लिए सौफ्ट व हार्ड वैक्स बैस्ट विकल्प है, जो उन की स्किन को नरिश करने का काम करता है.

तलाक के बाद बदला Samantha Ruth Prabhu का अंदाज, देखें फोटोज

साउथ इंडियन फिल्मों की जानी मानी एक्ट्रेसेस में से एक सामंथा रुथ प्रभु (Samantha Ruth Prabhu) बौलीवुड में भी अपना नाम कमा चुकी हैं. वहीं तलाक के बाद से वह सुर्खियों में रहने लगी हैं. इसी बीच एक्ट्रेस (Samantha Ruth Prabhu) ने कुंछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह नई बहू की तरह पोज देती नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं लेटेस्ट फोटोज की झलक…

साड़ी में दिए खूबसूरत पोज

 

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एक्ट्रेस समांथा रुथ प्रभु (Samantha Ruth Prabhu) ने हाल ही में गोल्डन कलर की साड़ी में पोज देती नजर आईं. पीले कलर के हैवी एम्ब्रौयडरी वाले ब्लाउज के साथ प्रिंटेड साड़ी में समांथा प्रभु का लुक बेहद खूबसूरत लग रहा है. वहीं इसके साथ मैचिंग ज्वैलरी स्टाइलिश लुक दे रहा है.

 

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 साड़ियों में लगती हैं खूबसूरत

 

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बात करें एक्ट्रेस समांथा (Samantha Ruth Prabhu) के फैशन की तो वह वेस्टर्न लुक के अलावा इंडियन लुक में भी फोटोज शेयर करती रहती हैं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लगती हैं. बनारसी साड़ी हो या प्रिंटेड लुक. हर लुक में वह बेहद खूबसूरत लगती हैं. वहीं फैंस एक्ट्रेस के अंदाज की फोटोज की तारीफ करते रहते हैं.

 

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शादी के बाद बदला अंदाज

 

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एक्ट्रेस समांथा प्रभु (Samantha Ruth Prabhu) ने साल 2017 में साउथ के एक्टर नागा चैतन्य से शादी की थी, जिसके बाद साल 2021 में दोनों ने तलाक लेने का फैसला किया है. तलाक के बाद जहां वह बौलीवुड में अपनी एक्टिंग से पहचान बना पाई तो वहीं तलाक के बाद एक्ट्रेस का फैशन भी बदल गया. इसी के साथ इंडस्ट्री में 12 साल पूरे भी किए, जिसके लिए फैंस उन्हें बधाई देते नजर आ रहे हैं.

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प्यार की जीत: भाग 3- निशा ने कैसे जीता सोमनाथ का दिल

निशा इस प्रस्ताव के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. वह गहरी सोच में पड़ गई. दिल की बात किसी के साथ बांटने के लिए निशा की कोई करीबी सहेली भी नहीं थी.

निशा रातदिन इस बारे में सोचने लगी. निशा ने सोचा कि अगर उस के पिता ने उस की शादी करवाई तो वे जरूर एक ऐसे लड़के व परिवार को ढूंढ़ निकालेंगे जो औरत को इंसान नहीं मानते. उस से भी नहीं पूछेंगे कि वह लड़का उसे पसंद है या नहीं.

बहुत सोचने के बाद निशा को यह एहसास हुआ कि मन ही मन में वह बिलाल से प्यार करने लगी है. बस, अपने दिल की बात समझ नहीं पाई और बिलाल ने अपने दिल की बात कह कर  उस के अंदर सोए हुए प्यार को जगा दिया. बिलाल एक नेक और अच्छा इंसान है. अच्छे खानदान का है. निशा को ऐसा लगा कि बिलाल से अच्छा पति ढूंढ़ने पर भी कहीं नहीं मिलेगा. काफी कशमकश के बाद निशा ने फैसला लिया कि जिस परिवार ने उसे प्यार और इज्जत नहीं दी उस परिवार के लिए वह अपने प्यार की बलि क्यों चढ़ाए.

निशा ने 15 दिनों के बाद बिलाल से अपने प्यार का इजहार किया. उसी दिन बिलाल उसे अपने घर ले गया.?

बिलाल की गाड़ी एक आलीशान बंगले के सामने आ कर रुक गई. गाड़ी से उतर कर झिझकती हुई निशा अंदर गई.  ‘आजा मेरी बहूरानी’ एक प्यारभरी पुकार सुन कर निशा ने उस तरफ देखा तो वहां एक और मुसकराती हुई औरत खड़ी थी. ‘मेरी अम्मीजान जुबैदा बेगम,’ बिलाल ने कहा और वहां 2 और औरतें खड़ी थीं और उन में से एक औरत को ‘मेरी भाभीजान जीनत और सूट पहने एक लड़की को ‘मेरी छोटी व इकलौती बहन शबनम, कालेज में पढ़ रही है,’ कह कर बिलाल ने सब से परिचय करवाया. निशा ने अपने संस्कार के अनुसार बिलाल की मां के पैर छुए, मगर बिलाल की मां ने निशा को उठा कर अपने सीने से लगाया और कहा, ‘नहीं, मेरी बेटी, तुम्हारी जगह यहां नहीं बल्कि यहां मेरे दिल में है. आ कर यहां आराम से बैठो. डर क्यों रही हो, मैं भी एक मां हूं.’ यह सुनते ही निशा का मनोबल बढ़ गया.

ऐसे में शबनम बोली, ‘अरे, मेरी नई भाभी, आप क्यों इतनी टैंशन में हैं. अपनी टैंशन कम करने के लिए यह ठंडा पानी पीजिए.’ निशा ने भी हंसते हुए उस से पानी का गिलास ले लिया.

इसी दौरान उस घर की बहू जीनत एक प्लेट में कुछ मिठाई और नमकीन ले कर आई, ‘लीजिए, मेरी नई देवरानीजी, इसे खाइए.’

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इतने में बिलाल के बड़े भाई और पापा आ गए. बिलाल ने अपने पिताजी से निशा का परिचय करवाया. उस की आवाज में डर बिलकुल नहीं था. उस ने प्यार और इज्जत के साथ अपने पिताजी से बात की. ‘अब्बूजान, मैं ने आप से कहा था न कि मैं एक लड़की से प्यार करता हूं, यही वह लड़की है निशा.’ बिलाल की बातें सुनते ही पिताजी ने मुसकराते हुए निशा के पास आ कर कहा, ‘हमेशा खुश रहो बेटी.’

बिलाल को अपने पिता से बातें करते हुए देख कर निशा को ऐसा लगा कि बापबेटे नहीं, बल्कि 2 भाई आपस में बातें कर रहे हैं. फिर बिलाल ने अपने भाई को निशा से मिलवाया. अपने भाई से एक दोस्त की तरह पेश आया बिलाल.

बिलाल के परिवार से मिलने के बाद निशा ने फैसला कर लिया कि चाहे जो भी हो बिलाल से शादी करने के अपने फैसले से वह पीछे नहीं हटेगी. अपने पिता से भी उस ने हिम्मत जुटा कर कहा, ‘मैं 21 साल की हूं. अपनी जिंदगी का अहम फैसला लेने की उम्र है मेरी. अगर आप अपने बेटों के साथ मेरे रास्ते में अड़चन डालेंगे तो मजबूरन मुझे कानून की मदद लेनी पड़ेगी. मैं आगे आने वाली किसी भी मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार हूं और मैं अपने फैसले पर अटल हूं.’

निशा की दृढ़ता देख कर सोमनाथ ने भी अपना निर्णय सुनाया, ‘‘मुझे तुम्हारी कोई परवा नहीं. तुम जियो या मरो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मगर एक बात कान खोल कर सुन लो, अगर तुम्हारी शादीशुदा जिंदगी में कोई समस्या आए तो मायका समझ कर इस घर में कदम रखने के बारे में सोचना मत. याद रहे, मेरे लिए तुम मर चुकी हो.’’ सोमनाथ ने एक बाप की तरह नहीं, बल्कि किसी दुश्मन की तरह निशा के साथ व्यवहार किया.

बिलाल और निशा की शादी हुए लगभग 2 महीने बीत गए. शादी के दिन निशा ने बिलाल से कहा, ‘‘बिलाल, यह मेरी जिंदगी का बहुत बड़ा फैसला है. अगर कुछ गलती हो जाए तो सिर छिपाने के लिए मेरे पास मेरा मायका भी नहीं है.’’ बिलाल ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘हमारे घर में तुम्हें इतना प्यार मिलेगा कि तुम्हें अपने मायके की याद कभी नहीं आएगी. यह मेरा वादा है तुम से.’’

निशा ने सोचा था कि बिलाल के घर वाले उन दोनों की शादी इसलामिक तौरतरीकों से करेंगे. मगर शादी के 2 दिन पहले ही बिलाल के मां और पापा ने निशा से इस के बारे में बात की. उन्होंने कहा, ‘‘तुम ने मेरे बेटे से प्यार किया है और शादी भी करने वाली हो, इस वजह से तुम्हारे ऊपर हम अपना मजहब नहीं थोपना चाहते. दबाव में पड़ कर एक मजहब को कोई अपना नहीं सकता. इसलिए अब तुम दोनों की कानूनी तौर से कोर्टमैरिज करवा देंगे. तुम हमारे साथ रह कर हमारे मजहब और रीतिरिवाज को जान लो. जब तुम्हारा मन पूरी तरह से इसलाम को कुबूल करना चाहे तब तुम अपना मजहब बदलना.’’ यह सुनते ही निशा को राहत मिली और उस ने अपनी सास को गले लगा लिया.

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उस घर का माहौल निशा को बहुत पसंद आया. निशा को ऐसा लगा कि उस घर के कोनेकोने में प्यार ही प्यार है. कोई भी किसी से बुरा सुलूक नहीं करता और ऊंची आवाज में भी नहीं बोलता था. खासकर, अपनी सास के प्यार से वह फूली न समाई. बिलाल की मां अपनी दोनों बहुओं को अपनी बेटी की तरह प्यार और सम्मान देती थीं.

बिलाल की मां को सिलाई व कढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी थी. वे उस बंगले के बाहर वाले एक बड़े कमरे में अपनी डिजाइनर साडि़यों का बुटीक चला रही थीं. निशा ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया था, इसलिए वह भी अपनी सास के साथ साडि़यां तैयार करने लगी और बुटीक में जा कर वहां भी काम संभालने लगी.

एक दिन जब निशा अपनी सास के साथ बुटीक में बैठी थी, उस वक्त एक छोटा सा पत्थर आ कर गिरा. उस पत्थर से बुटीक का एक शीशा टूट गया. सासबहू हैरान हो गईं. इतने में और भी बहुत सारे पत्थर आ कर गिरे. दोनों ने बाहर आ कर देखा तो वहां निशा के दोनों भाई खड़े थे. उन्हें देखते ही निशा को यह आभास हुआ कि यह हरकत इन दोनों की ही है. इस हरकत से निशा को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई. इस के बाद निशा के दोनों भाई सड़क पर खड़े हो कर बहन को गाली देने लगे.

‘‘यही है वह औरत जिस ने एक मुसलमान से शादी की. बेशरम कहीं की,’’ ऐसा कह कर निशा के भाई निशा का अपमान करने लगे. यह सुन कर निशा शर्म से पानीपानी हो गई. निशा अपना सिर पकड़ कर बैठ गई. निशा इस सोच में पड़ गई कि इस मामले को कैसे सुलझाए.

निशा को पता था कि उस के भाई लखनऊ शहर के बहुत बड़े गुंडे हैं और 2-3 बार जेल की हवा भी खा चुके हैं. उन के पिताजी ने उन्हें जेल से छुड़वाया और जब निशा की मां ने कुछ पूछने की कोशिश की तो सोमनाथ ने बात काट कर, ‘‘तुम औरत हो. यह मामला मर्दों का है और मेरे बेटों ने मर्दों जैसा काम किया है, तुम बीच में मत बोलो,’’ लक्ष्मी को चुप करा दिया.

आज उन दोनों भाइयों ने निशा के ससुराल वालों के सामने आ कर अपनी गुंडागर्दी दिखाई. इतने में 4-5 छोटेछोटे पत्थर और आ कर गिरे और उन में से एक पत्थर निशा की सास के माथे पर लगा और उन्हें चोट लग गई.

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हम साथ साथ हैं: भाग 2- क्या जौइंट फैमिली में ढल पाई पीहू

सीमा के ही बहुत कहने पर वह इंटरव्यू के लिए चली गई. मल्टीनैशनल कंपनी थी. पीहू का क्रिएटिव वर्क उन्हें बहुत पसंद आया. उन्होंने पीहू को अच्छा पैकेज औफर किया और कंपनी जौइन करने के लिए कहा. पीहू को ऐसी बिलकुल उम्मीद नहीं थी. अपने बलबूते पर पहले इंटरव्यू में ही सेलैक्शन हो जाना काफी बड़ी बात थी. पीहू ने हां कहने में देर नहीं लगाई.

घर लौटते हुए उस के पांव जमीं पर नहीं टिक रहे थे. पीहू कैब कर के ही यहां आई थी क्योंकि इतनी दूर ड्राइव करने का उस का मन नहीं था. कंपनी के बाहर आ कर वह कैब बुक करने लगी. पूरे आधे घंटे की वेटिंग आ रही थी. पीहू ने सोचा, आधा घंटा इंतजार करने के बजाय वह मैट्रो न ले ले. सामने ही मैट्रो स्टेशन नजर आ रहा था. ‘चलो, आज मैट्रो ही सही,’ सोचते हुए मैट्रो स्टेशन की ओर चल दी.

रोड क्रौस करने ही वाली थी कि एक बाइक ने जोर से हौर्न दिया. पीहू ने पीछे मुड़ कर देखा. बाइक पर बैठे युवक के चेहरे पर हैल्मेट का काला शीशा था, सो, वह शक्ल नहीं देख पा रही थी, लेकिन वह उसे हाथ हिला कर पास आने का इशारा कर रहा था. ‘कौन बदतमीज है’ पीहू जोर से बोलने ही वाली थी कि युवक ने अपना हैल्मैट उतार दिया. ‘अरे हर्ष, वाऊ व्हाट अ कोइंसिडैंट, कहां जा रहे हो?’

‘मैडम, जा नहीं रहा, औफिस से आ रहा हूं. बताया तो था कि गुरुग्राम के सैक्टर 26 में मेरा औफिस है. लेकिन तुम कहां से आ रही हो?’

‘हर्ष, आज मेरा इंटरव्यू था और आई गोट द जौब, बहुत खुश हूं मैं,’ पीहू ने चहकते हुए बताया.

‘वाऊ, फिर तो ट्रीट हो जाए इस खुशी में,’ हर्ष ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा.

‘बिलकुल, लेकिन आज नहीं. कल पक्का,’ पीहू ने कहा, ‘घर जाना है अभी. मम्मी इंतजार कर रही हैं. पापा घर पर नहीं हैं, वे अकेली हैं.’

‘यार, मैट्रो छोड़ो. मेरी बाइक पर बैठो. देखो कितनी जल्दी पहुंचाता हूं तुम्हें घर,’ हर्ष ने कहा तो पीहू भी मान गई और हर्ष की बाइक पर बैठ गई.

आज वह वैसे ही बहुत खुश थी. ऊपर से हर्ष का साथ उसे और प्रफुल्लित कर रहा था. स्पीड ब्रेकर आया तो झटके के कारण उस ने हर्ष को दोनों हाथों से पकड़ लिया. ‘मैडम जरा अच्छी तरह से बैठो. बाइक तेज चला रहा हूं, इसलिए कह रहा हूं. कोई गलत मतलब मत समझना,’ हर्ष हंसते हुए बोला.

‘और अगर गलत मतलब समझूं तो?’ पीहू ने जानबूझ कर मस्ती करने के लिए कहा.

‘तुम तो जानती हो, मैं कितना शरीफ लड़का हूं,’ हर्ष ने अपना वही पुराना डायलौग मारा तो दोनों हंस पड़े.

इस तरह से हर्ष और पीहू की जानपहचान बढ़ती गई. मुलाकातें पहले हफ्ते में एक, फिर 2 और अब तो रोज ही दोनों मिलते थे क्योंकि अब दोनों एकदूसरे के प्यार में अच्छी तरह से डूब गए थे.

‘‘हर्ष, तुम मुझ से हमेशा इसी तरह प्यार करते रहोगे?’’

‘‘पीहू, शादी करोगी मुझ से,’’ जवाब सुनाने के बजाय हर्ष का उस से एकदम से यह पूछना पीहू को चौंका गया. हर्ष आगे बोला, ‘‘बोलो न, जितना सीधा साफ मैं ने तुम से सवाल किया वैसा ही जवाब चाहता हूं?’’

‘‘घर कब आ रहे हो मम्मीपापा से मिलने?’’ पीहू ने शरारती नजरों से हर्ष को देखते हुए कहा.

‘‘यस, मुझे पता था, तुम इनकार क्यों करोगी भला. वह तो मैं ऐसे ही पूछ रहा था,’’ हर्ष ने पीहू को छेड़ा.

‘‘अच्छा, बताऊं तुम्हें. वैसे भी, मैं ने कब हां कहा. मैं ने तो ऐसे ही पूछा है कि मम्मीपापा से मिलने कब आ रहे हो. मेरे फ्रैंड्स क्या मेरे घर नहीं आते,’’ पीहू भी अकड़ कर बोली.

‘‘अच्छा… अच्छा, अब सब मजाक बंद. सच में पीहू, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं क्योंकि तुम मेरे परिवार के लिए फिट हो,’’ हर्ष गंभीर हो कर बोला.

‘‘परिवार के लिए फिट हूं, मतलब?’’ पीहू ने हैरानी से पूछा.

‘‘पीहू, तुम्हें शायद मैं ने बताया नहीं कि हमारी जौइंट फैमिली है,’’ हर्ष बोला.

‘‘हां, तो फिर क्या हुआ. मुझे तो अच्छी लगती है जौइंट फैमिली. हमारी न्यूक्लिर फैमिली रही है. इसलिए मैं तो चाहती थी कि मेरी शादी ऐसी जगह हो जहां घर में सब रिश्ते निभाने को मिलें,’’ पीहू हर्ष का हाथ अपने हाथ में ले कर बोली.

‘‘मेरे घर में तुम्हें इतने रिश्ते निभाने को मिलेंगे कि निभातेनिभाते थक जाओगी. माई डियर, छोटीमोटी जौइंट फैमिली नहीं है मेरी, अच्छाखासा भरापूरा बहुत बड़ा परिवार है हमारा.

‘‘ताऊजी उन के 2 बेटे, दोनों की शादी हो गई है और उन के 1-1 बच्चा है. 2 मामा जिन की 2-2 बेटियां हैं, अनमैरिड हैं. 3 मौसियां हैं, तीनों का परिवार यहीं दिल्ली में है. 2 बूआ हैं, एक अंबाला में रहती थीं, वे भी पिछले साल दिल्ली शिफ्ट हो गईं. दोनों चाचा तो साथ ही रहते हैं. पता है, मेरी दादी और नानी 80 वर्ष से ज्यादा की हो गईं. दोनों अभी भी अपने सारे काम खुद करती हैं. दादी हमारे साथ रहती हैं. एक तरह से उन्होंने ही मुझे बचपन में पाला है.

‘‘इतना ही नहीं, मेरी मम्मी की 4 मौसियां हैं और पापा के 3 मामा हैं. मेरे कजिंस से मिलोगी तो लगेगा किसी गैंग से मिल रही हो. सब एक से बढ़ कर एक हैं. लेकिन हम सब में बहुत प्यार है. व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया हुआ है हम ने. सभी अपनी सारी बातें सब से शेयर करते हैं. और वो…’’

‘‘अरे, अरे, और भी है अभी बताने को?’’ पीहू आंखें फैला कर बोली, ‘‘हर्ष, इतना बड़ा परिवार. बाप रे. कैसे संभालते हो सब रिश्तेनाते. रोज किसी का कुछ न कुछ लगा ही रहता होगा. याद कैसे रखते हो. और एक मेरी फैमिली है उंगली पर गिना सकती हूं सब को.’’

‘‘पीहू, तुम से मिल कर, तुम्हारी बातें, तुम्हारी आदतें सब देख कर मुझे लगा कि तुम मेरे लिए ही नहीं, मेरी फैमिली के लिए भी परफैक्ट हो.

‘‘अब बोलो, बनोगी मेरी फैमिली का हिस्सा?’’ हर्ष पीहू को अपनी बांहों में भरते हुए बोला.

‘‘बिलकुल बनूंगी. मैं आज ही तुम्हारे बारे में मम्मीपापा को बताती हूं,’’ पीहू ने हर्ष को प्यारभरा किस किया और फिर ‘बाय’ कहती हुई अपनी गाड़ी से घर चली गई.

पीहू ने घर आ कर हर्ष के बारे में मम्मीपापा को बताया. उन्हें सब ठीक लगा लेकिन सूई परिवार पर आ कर रुक गई.

मम्मी बोलीं, ‘‘पीहू, इतना बड़ा परिवार है, तेरे लिए सब निभाना मुश्किल हो जाएगा, बेटा. हर्ष तो तुझ से यही अपेक्षा रखता है कि तू उस के परिवार में आ कर उन जैसी बन जाए लेकिन बेटी, हमारे घर का माहौल और उन के घर का माहौल बिलकुल अलग होगा. तू कैसे सब निभाएगी?’’

‘‘हां पीहू, तुझे अभी सब अच्छा लग रहा है लेकिन शादी के बाद तुझे यह सब बंधन लगेगा. तुझे हम ने बहुत लाड़प्यार से पाला है और तुझे हम दुखी हरगिज नहीं देख सकते,’’ पीहू के पापा विनय बोले.

‘‘नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं होगा. बचपन से ही जब मेरे फ्रैंडस अपने मामा, चाचा, बूआ, कजिंस की बात बताते थे तो मैं सोचती थी कि काश, मैं भी ये रिश्ते महसूस कर पाती. समझ लीजिए, मेरी यह ख्वाहिश अब पूरी होने जा रही है,’’ पीहू ने पापा को समझाने की कोशिश की.

‘‘देख बेटा, तेरी खुशी में ही हमारी खुशी है. लेकिन फिर भी सोचसमझ ले. मेरा तो मन नहीं मान रहा,’’ मां बोलीं.

‘‘मम्मीपापा, कल आप हर्ष से मिल लीजिए, आप दोनों की सारी टैंशन दूर हो जाएगी. ओके, अब मैं सोने जा रही हूं. बहुत नींद आ रही है, गुड नाइट,’’ कहती हुई पीहू अपने कमरे में गई और बैड पर लेट कर हर्ष के मीठे सपने लेती हुई सो गई.

उधर रेखा और विनय बैडरूम में लेटे हुए हर्ष की ही बात कर रहे थे. विनय बोले, ‘‘रेखा, मैं ने अकसर देखा है बड़े परिवारों में मनमुटाव रहता है. संपत्ति, व्यापार, बच्चों को ले कर झगड़े हो ही जाते हैं. अरे, हमारी पीहू को तो हजारों लड़के मिल जाएंगे. किस बात में कम है वह. पता नहीं क्यों अपने को इतने बड़े परिवार के झमेले में फंसाना चाहती है.’’

‘‘अभी उस के दिमाग में हर्ष छाया हुआ है, हमारी कोई बात उसे समझ नहीं आएगी. चलो, कल हर्ष से मिल लेते हैं. फिर सोचेंगे आगे क्या करना है.’’

हर्ष से मिल कर रेखा और विनय बहुत खुश हुए. तय हुआ कि अगले रविवार को ही वह अपने मम्मीपापा के साथ आएगा शगुन ले कर.

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नजरिया: क्या श्रुति के बदलाव को रोक पाया उसका पति

सुरभिअपने भाई से मिलने दुबई जाने वाली फ्लाइट में बैठी विंडो के बाहर नजारों का आनंद ले रही थी. वह लंबे समय बाद अकेली सफर कर रही थी. अकेले सफर करना उसे रोमांचित कर रहा था.

उड़ते बादलों के संग उस का मन भी उड़ान भर रहा था. रूई के समान बिखरे हुए बादलों पर गिरती सुनहरी किरणें मानों सोना बरसा रही थीं. रंगों को नयनों में भर कर उस का दिल तूलिका पकड़ने के लिए मचलने लगा. उस के भाव उमड़ने लगे. इस नीले आसमान में डूबने की चाहत व विचारों की अनुभूति अपनी पराकाष्ठा तक पहुंचती कि अचानक एअर होस्टेस की आवाज ने सुरभि की तंद्रा भंग कर दी.

‘‘कृपया सभी यात्री ध्यान दें, खराब मौसम के कारण विमान को हमें टरमैक पर उतारना होगा. आप को हुई असुविधा के लिए हमें खेद है. मौसम साफ होते ही हम दोबारा उड़ान भरेंगे. तब तक यात्री अपनीअपनी सीट पर ही बैठे रहें.’’

विमान को टरमैक पर उतार दिया गया. सुरभि के बराबर वाली सीट पर एक बातूनी सा सभ्य दिखने वाला व्यक्ति बैठा था. विमान में बैठेबैठे लोग कर भी क्या सकते थे.

समय काटने के लिए उस ने स्वयं सुरभि से बात छेड़ दी, ‘‘हैलो, मैं राहुल हूं, आप दुबई से हैं?

सुरभि ने उसे प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो उस ने पलक झपकते ही कहा, ‘‘आप अन्यथा न लें, मौसम के व्यवधान के कारण हमें विमान में ही बैठना होगा. आप के हाथ में किताब देख कर लगा कि आप को पढ़ने का शौक है. सोचा आप से बात करतेकरते वक्त कट जाएगा. आप क्या करती हैं?’’

‘‘हां, आप ने सही कहा…’’ शांत मन से सुरभि ने भी जवाब दिया, ‘‘मैं थोड़ाबहुत लिखती हूं पर मुझे रंगों से ज्यादा लगाव है. चित्रकारी का भी बहुत शौक है.’’

‘‘अरे वाह, मुझे भी पहले लिखने का शौक था जो कहीं खो सा गया. समय के साथ सब बदल जाता है, जरूरतें भी. कितना अच्छा लगता है रंगों से खेलना… अच्छा आप के पसंदीदा राइटर?’’

फिर लेखकों व किताबों से शुरू हुई बातों का सिलसिला धीरेधीरे गहराता चला गया. एकजैसी पसंद व स्वभाव ने एकदूसरे के साथ को आसान बना दिया था. राहुल की आंखों में गजब की गहराई थी. गहरे बोलते नयन व बातों की कशिश ने जहां सुरभि को राहुल की तरफ आकर्षित किया, वहीं सुरभि के हंसमुख, सरल स्वभाव व सादगी ने राहुल के

मन को गुदगुदा दिया. दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षण महसूस कर रहे थे. सुरभि चेहरापढ़ना जानती थी. यह आकर्षण दैहिक न हो कर नए आत्मिक रिश्ते की शुरुआत जैसा लग रहा था. एकदूजे के प्रति सम्मानित भाव दोनों की नजरों में दिख रहे थे. शायद दोनों को दोस्त की जरूरत थी.

बातें करते हुए दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि अपने जीवन के पन्ने भी एकदूसरे के सामने खोलते चले गए. अपनी ही दुनिया में दोनों इतने मग्न थे कि कब विमान अपने गंतव्य तक पहुंच गया उन्हें खबर ही नहीं हुई.

इन 6-7 घंटों में दोस्ती इतनी गहराई कि फोन नंबरों के आदानप्रदान के साथ अनकहे शब्द भी नजरों ने बांच दिए थे. विदा लेने के क्षण धीरेधीरे करीब आ रहे थे.

तभी एअरहोस्टेस ने अनाउंस किया, ‘‘यात्रीगण कृपया सीट बैल्ट बांध लें. विमान अपने गंतव्य पर उतरने वाला है.’’

‘‘सुरभि, आप कब तक दुबई में हैं?’’ राहुल ने उत्सुकता से पूछा.

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‘‘मैं 4 दिनों के लिए आई हूं. फिर वापस दिल्ली चली जाऊंगी. आप कब तक हैं राहुलजी?’’

‘‘मुझे राहुल ही कहो, यह अपनेपन का एहसास देता है. मैं अपने काम से यहां आयाहूं. 2 दिन बाद दिल्ली फिर वहां से मुंबई चला जाऊंगा.’’‘‘ठीक है राहुल, वक्त कितनी जल्दी पंख लगा कर उड़ गया पता ही नहीं चला. अच्छा लगा तुम से मिल कर…’’

‘‘हां सुरभि, मुझे भी तुम से मिल कर बहुत अच्छा लगा. अब हम दोस्त हैं और यह

दोस्ती बनी रहेगी. एक बात और कहना चाहता हूं कि परिस्थिति कैसी भी हो, हमें उसे खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए, नहीं तो जीवन बोझिल प्रतीत होता है. हम सभी अपने कर्तव्यों से बंधे हुए हैं. हमें कर्म को प्राथमिकता देनी पड़ती है. विषम परिस्थितियों में भी अपनी प्यारभरी अनुभूतियों को याद कर के गुनगुनानाओ और हंस कर जीयो. तुम से मिल कर बहुत कुछ समेटा है अपने भीतर… यों ही हंसती रहना सुरभि,’’ राहुल एक ही सांस में बोल गया.

‘‘हां राहुल, मुझे भी यह छोटा सा साथ बहुत अच्छा लगा. दोबारा मिलना तो शायद न हो सकेगा, पर फोन पर बात जरूर होगी,’’ सुरभि ने उदास स्वर में कहा.

एकदूसरे से मन की बात कह दोनों विमान से बाहर आ गए. राहुल वहां सुरभि के परिजनों के आने तक रुका, फिर उन से मिल कर चला गया. सुरभि का मन उमंगों से भरा था, धड़कनें न जाने क्यों बढ़ी हुई थीं, मन न जाने क्यों गुदगुदा रहा था. साथ ही एक अजीब सी उलझन भी थी जैसे कुछ छूट रहा हो. वह जब तक घर नहीं पहुंच गई तब तक राहुल के फोन हालचाल के लिए आते रहे. उसे पहले अटपटा सा लगा, मगर राहुल का यह केयरिंग नेचर सुरभि के मन को रोमांचित करने लगा.

घर आ कर वह अपनों के साथ मस्ती में जैसे खुद को भूल गई थी. हंसीमजाक व ठहाकों के दौर शुरू थे. कालेज की बातें, पुराने दिन, सहेलियों से मस्ती, बचपन के सभी पल याद

आ गए. घर में भाई ने पार्टी रखी थी. सभी दोस्त आने वाले थे जो बचपन से साथ पढ़े थे और सुखद पहलू यह भी था कि कुदरत ने उन्हें फिर से मिला दिया था. सब से मिल कर सुरभि बहुत उत्साहित थी. पार्टी खत्म होने के बाद सब सोने चले गए, पर सुरभि की आंखों से नींद गायब थी.

सब के जाने के बाद सुरभि आसमान निहार रही थी कि कुछ काले बादल देख कर उसे अपने बीते दिन याद आने लगे…

उस के आसमान पर ही काले बादल क्यों मंडराते हैं? नींद उस की आंखों से कोसों दूर हो गई. रात में उस ने दिल्ली फोन लगा कर अपने सकुशल पहुंचने की सूचना दे दी थी. पर स्नेह की एक बूंद को तरसता उस का प्यासा मन रेगिस्तान के समान तपने लगा. विनोद का व्यवहार उसे अंदर तक सालता था. अनजाने ही मन को उदासी के बादल घेर रहे थे. राहुल ने उस के मन में दबी चिनगारी को अनजाने ही हवा दे दी थी. शायद उस चिनगारी का कारण विनोद ही थे.

विनोद बिलकुल उस के विपरीत स्वभाव के थी. जहां सुरभि खुले विचारों वाली हंसमुख व विनोदी स्वभाव की लड़की थी, वहीं पेशे से वकील विनोद की सोच पारंपरिक व संकीर्ण थी. आकर्षक व्यक्तित्व वाले इंसान की सोच इतनी छोटी होगी सुरभि को शादी के बाद ही पता चला. किसी से भी ज्यादा बातें करना विनोद को पसंद नहीं था. सुरभि का परपुरुष से बातें करना उसे नागवार गुजरता था, कोई राह चलता पुरुष भी यदि सुरभि को देखता तब भी विनोद की शक्की निगाहें व तीखे बाण सुरभि पर ही चलते कि फलां तुम्हें क्यों देख रहा था? जरूर तुम ने ही पहले उसे देखा होगा… शादी के बाद सुरभि के पारिवारिक संबंधी व मित्रों की संख्या कम होने लगी. विनोद कब किस के बारे में क्या समझ ले कहना मुश्किल था.

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सुरभि ने धीरेधीरे खुद को बदल कर विनोद के इर्दगिर्द समेट लिया था. कहते हैं इंसान प्यार में अंधा हो जाता है. सुरभि ने प्यार किया पर विनोद का प्यार जंजीर बन कर उसे जकड़ चुका था. बच्चे भी विनोद की मानसिकता के शिकार होने लगे. जब उस का मन करता सब से मेलजोल बढ़ाता पर जब पारिवारिक संबंध बनने लगते तो वहीं पर लगाम कसने लगता. गुस्सा आने पर मतभेद होने पर कई दिनों तक अकारण अबोलापन कायम रहना आम बात थी. घर में सीमित वार्त्तालाप अकेलेपन को जन्म दे चुका था.

घर का बोझिल वातावरण घुटनभरा होने लगा. जैसे हवा का दबाव सांस लेने के लिए अनुपयुक्त था. सासससुर, मामाभानजी, सालीसलहज जैसे रिश्ते भी विनोद के शक की आग में जल गए थे. डर का दानव अपना विकराल रूप लेने लगा. मन की कली रंगों से परहेज करने लगी थी.

सुरभि के पास ये सब सहने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं था. विनोद घर पर न हो तो सभी हंसतेबोलते थे, उस के सामने मजाक करना भी दुश्वार था. धीरेधीरे बच्चे भी अपनी जिंदगी में रम गए. अपना अकेलापन दूर करने के लिए सुरभि का समय सहेलियों के साथ ही व्यतीत होने लगा. पर मन आज भी प्यासा सा पानी की तलाश कर रहा है. विनोद ने कभी भूल से भी सुरभि से यह नहीं पूछा कि तुम्हें क्या पसंद है? रूठनामनाना तो बस फिल्मों में होता है. न कोई शौक न उत्साह. जब आधी उम्र गुजर जाने के बाद भी विनोद की सोच में परिवर्तन नहीं आया, तो मन उस से दूर भागने लगा. अब उस से दूर रहना ही मन को शांति देता था.

आज राहुल के अपनेपन ने कलेजे में ठंडक सी प्रदान की. दर्द बह कर निकल चुका था. सुरभि का मन हलका था. काश, विनोद उस का सच्चा हमसफर व एक दोस्त बन पाता जिस से वह खुल कर अपने सब रंग बांट सकती, जिंदगीके सारे चटक रंगों को अपने जीवन में भर सकती… सोचतेसोचते कब आंख लगी पता ही नहीं चला.

कोरों से निकले आंसू गालों पर रेखाचित्र बना कर अपने निशान छोड़ गए थे. मुख चूमती हुई भोर की किरणों ने उसे गुदगुदा कर उठा दिया. आईने में खुद को निहारते हुए होंठों पर तैर आई मुसकान ने आंखों में चमक पैदा कर दी थी. खुद को देख कर खुद के लिए जन्मा प्यार, मस्तीभरी जीवन के रंगों में भीगी शोख अदाएं जिस पर कालेज में सब मरमिटते थे, आज उसे अपने अंदर वही शोखी नजर आ रही थी. उस के अंदर नई ऊर्जा का संचार हो चुका था. 4 दिन पंख लगा कर उड़ गए. सुरभि खुद को बदलाबदला महसूस कर रही थी.

दिल्ली आने तक पुरानी सुरभि उस के अंदर वापस आ गई थी. राहुल की बातों ने उस की सोई हुई लालसा को जगा दिया था. आज उस के भीतर की सुरभि जाग गई थी. कालेज के दिनों के उस के शौक अब जीवन में नए रंग भरने के लिए तैयार थे. उस ने अपने जीवन को फिर से रंगों के इर्दगिर्द समेट लिया था. विनोद भी उस के इस परिवर्तन से हैरान था.

चाय पीते हुए विनोद अचानक बोले, ‘‘क्या बात है सुरभि, बहुत बदलीबदली नजर आ रही हो, इतने दिनों में किसकिस से मिली… क्याक्या नए जलवे बिखेरे?’’

‘‘कुछ नहीं, बस बचपन जी कर आ रही हूं. तुम ने मुझे कभी उस तरह देखा ही कहां है… कितना जानते हो मेरे शौक को?’’ सुरभि की आवाज में जाने क्या था कि आज विनोद चुप

हो गया.

एक समय के बाद नदी का प्रवाह भी पत्थर से टकरा कर अपनी दिशा बदल लेता है. आज वे कोमल संवेदनाएं पत्थर से टकरा कर चूरचूर हो गई थीं.

फिर से जीवन ने करवट बदल ली. अपने नाम को सार्थक करती हुई सुरभि फिर से महकने लगी. उस के रंगों ने अपना एक आसमान तैयार कर लिया था. विनोद ने कुछ कहा नहीं बस चुपचाप उसे बदलते हुए देखता रहा.

काम करते समय जब भी फोन की घंटी बजती सुरभि की आंखें फोन में कुछ तलाशने लगतीं. कानों को राहुल की आवाज का इंतजार था. उस ने 1-2 बार संदेश भी भेजा पर कोई जवाब नहीं आया.

राहुल अपनी सीमा जानता था. इंतजार सप्ताह से बढ़ कर महीना और फिर साल में परिवर्तित हो गया पर राहुल का फोन नहीं आया. उस के साथ बिताए 6-7 घंटों ने ऐसी चिनगारी भड़काई कि सुरभि दोबारा जी उठी थी. मगर उस के उपेक्षित व्यवहार से सुरभि का पुरुषों के प्रति नजरिया बदल गया था. राहुल ने कहा था खून से बढ़ कर नमक का रिश्ता नहीं होता. हर बात की एक मर्यादा होती है.

सब पुरुष एकजैसे ही होते हैं. स्त्री के प्रति उन का नजरिया नहीं बदलता. पुरुष उस

पर एकछत्र राज्य ही करना चाहता है. अपने घर के बाहर मर्यादा की रेखा खींच कर दोहरा व्यक्तित्व जीता है. स्त्रीपुरुष की मित्रता वह सामान्य तरीके से लेना कब सीखेगा? नारी के लिए लकीर खींचने का हक पुरुष को किस ने दिया? दोनों अलगअलग व्यक्तित्व हैं, फिर हर फैसला लेने का अधिकार एक को कैसे हो सकता है? मन के भाव शब्दों व रंगों के माध्यम से अपनी बात बेखौफ कहने लगे. तूफान गुजरने के बाद घर का नजारा कुछ बिखरा सा था.

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आज मन शांत हो गया. विनोद को समझना उस के लिए अब आसान हो गया था. शायद सभी पुरुषों की सोच ऐसी ही होती है. कूची जीवन को सफेद कागजों पर जीवंत करने लगी. सुप्त मन के भाव आकार लेने लगे. उस का मन चंचल हिरणी के समान हो गया था जो अपने ही जंगल में विचरण का पूर्ण आनंद लेती है. अपने रंगों व अनुभूतियों में डूबी सुरभि आज अपने पिंजरे में भी खुश थी. मेज पर रखा खाली गिलास भी उसे खाली नहीं लग रहा था. उस  में हवा थी जो चुपचाप पानी की बूंदों को आत्मसात कर के गिलास को सुखाने का प्रयत्न कर रही थी.

उस के जीवन में अब खालीपन का स्थान नहीं था. उस के चाय के कप से निकलती भाप हवा में अपने अस्तित्व का संकेत दे कर विलय हो रही थी. इलायची की खुशबू वातावरण को महका रही थी. चाय पीने की तलब ने हाथों को कप की तरफ बढ़ा कर होंठों से लगा लिया.

चाय की चुसकियां व बंजर से जीवन में वसंत ने अपने रंग भर दिए थे. रेडियो पर बज रहा गाना गुनगुनाने को मजबूर कर रहा था, ‘मेरे दिल में आज क्या है तू कहे तो मैं बता दूं…’ दिल आज भी उस आवाज को सुन कर धन्यवाद देना चाहता है, जिस ने अनजाने ही सूखे गुलाब में इत्र की कुछ बूंदें छिड़क दी थीं.

‘‘स्नेह की एक बूंद को तरसता उस का प्यासा मन रेगिस्तान के समान तपने लगा. विनोद का व्यवहार उसे अंदर तक सालता था…’’

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