Relationship Tips : बदलती पीढ़ी में रिश्तों के कई नाम, जानें आप किस रिश्ते को निभा रहे हैं

Relationship Tips : आज की जनरेशन में रिश्तों के कई नाम हैं.यह पीढ़ी जी जनरेशन और मिलेनियम के नाम से जानी जाती है.आएदिन रिश्तों को अलगअलग नाम मिलता है.आज की पीढ़ी जरूरत के अनुसार उन रिश्तों को निभाना व पुकारना पसंद करती है.

पहले के समय में रिश्ते दादीदादा के घर से होते हुए नानीनाना के दुलार से जाने जाते थे तब सिर्फ पतिपत्नी, दोस्त, प्रेमीप्रेमिका के नाम से जाने जाते थे लेकिन आज रिश्ते जरूरत के हिसाब से बनाए जाते हैं.

आज हम ऐसे ही कुछ रिश्तों के नाम की जानकरी दे रहे हैं जिस से आप अपने रिश्ते की पहचान कर सकते हैं कि आप किस रिश्ते में हैं :

कमिटेड रिलेशनशिप

जिस रिश्ते में दोनों पार्टनर एकदूसरे के प्रति समर्पित होते हैं.एकदूसरे की खुशियों और परेशानियों में साथ खड़े रहते हैं.भविष्य की योजनाएं जैसे शादी, कैरियर और फैमिली को ले कर दोनों मिल कर साथ निर्णय लेते हैं.यह रिश्ता विश्वास, ईमानदारी और स्थायित्व की नींव पर टिका होता है.

सिचुएशनशिप

न तो यह रिश्ता पूरी तरह डेटिंग कहलाता है और न ही कमिटेड रिलेशनशिप.इस में 2 लोग एकदूसरे के साथ भावनात्मक या शारीरिक रूप से तो जुड़े होते हैं, लेकिन इस रिश्ते को वह भविष्य में निभा पाएंगे या नहीं यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं होता.

इस में भावनात्मक जुड़ाव बहुत कम व सिर्फ दोस्ती और आकर्षण अधिक होता है.ऐसे रिश्ते मानसिक तनाव को बढ़ा सकते हैं.यह रिश्ता देखा जाए तो परिस्थिति के अनुसार चलता है.

लिव इन रिलेशनशिप

इस रिश्ते में 2 वयस्क व्यक्ति शादी किए बिना दांपत्य जीवन व्यतीत करते हैं लेकिन इस में पारंपरिक विवाह के कानूनी बंधन नहीं होते।हालांकि कानूनी रूप से इसे वैध माना गया है, लेकिन भारतीय समाज में इसे ले कर दोहरी राय है.

ओपन रिलेशनशिप

इस रिश्ते में 2 पार्टनर एकदूसरे की इच्छा से अन्य लोगों के साथ भी रोमांटिक या शारीरिक संबंध रख सकते हैं.इस रिश्ते में अधिक आजादी और ईमानदारी होती है.

मैरिज रिलेशनशिप

यह रिश्ता अधिकतर हर समुदाय में पाया जाने वाला रिश्ता है.यह सामाजिक, कानूनी और भावनात्मक संबंधों के मेल का प्रतीक होता है.

लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप

जब 2 लोग एकदूसरे से भौगोलिक रूप से दूर होते हैं, लेकिन भावनात्मक रूप से जुड़े रहते हैं, तो उसे लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप कहते हैं जैसे पार्टनर का पढ़ाई, नौकरी के कारण घर से दूर रहना.

ओपन मैरिज रिलेशनशिप

इस रिश्ते में शादी के बाद अपने पार्टनर की रजामंदी से किसी और के साथ रिश्ता रखना जैसे शादी के बाद भी ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर बनाए रखना.यह पारंपरिक एकनिष्ठ विवाह से अलग होता है.

Summer Special Recipe : इस वीकेंड ट्राई करें दूध की पूड़ी, स्वाद है लाजवाब

Summer Special Recipe : आज तक आपके कई तरह की पूड़ियां खाई होगी. पूड़ी एक ऐसी चीज है कि सभी को खाना बहुत ही पसंद है. कोई सिंपल पूड़ी, मेथी की पूड़ी, बेसन की पूड़ी या फिर बथुए की पूड़ी खाई होगी. सभी खाने में बहुत  ही स्वादिष्ट होती है. इनको खाने का अपना ही मजा है, लेकिन कभी आपने दूध की पूड़ी खाई है.

सुन के चौंक गए न कि कहीं दूध की भी पूड़ी होती है. तो हम आपको बता दें कि हां जी दूध की पूड़ी भी एक डिश है. यह खाने में बहुत ही टेस्टी और पोषण से भरपूर होती है. तो फिर आज बनाइए एक नए तरह की पूड़ी का. इस रेसिपी का नाम है दूध की पूड़ी.

सामग्री

1. दो कप गेंहू का आटा

2. स्वादनुसार चीनी

3, एक चौथाई चम्मच इलायची पाउडर

4. चार कप दूध

5. स्वादनुसार नमक

6. आवश्कतानुसार रिफाइंड

7.आवश्कतानुसार घी

8. थोड़े बारीक कटे हुए बादाम

ऐसे बनाए दूध की पूड़ी

सबसे पहले एक बड़े बाउल में गेंहू का आटा, घी, नमक मिलाए और पानी डालकर अच्छी तरह से मुलायम-मुलायम आटा गूंथ लें. इसके बाद इसे हल्का गीला एक कपड़ा डाल दें. जिससे कि ये सुखे न. इसके बाद एक पैन में दूध लेकर इसे गर्म करें और तब तक गर्म करें जब तक कि ये आधा न हो जाए. इसके बाद इसमें इलायची और चीनी डालकर अच्छी तरह से मिलाकर घोल लें. इसके बाद गैस बंद करें.

अब एक कड़ाई में तेल डालिए और जब यह अच्छी तरह से गर्म हो जाए. तब आटा की छोटीछोटी  लोई लेकर पूड़ी बनी लें. और इसे गर्म तेल में सेक लें. इसी तरह एक-एक करके सारे आटा की पूडिया बना लें. इसके बाद पहले से तैयार दूध में इसे डाल दें और ऊपर से उसमें बादाम डाल दें. आपका दूध की पूड़ी बन कर तैयार है. और इसे गरमागरम सर्व करें.

Women’s Health : यंग ऐज में ओवरी प्रौब्लम्स

Women’s Health :  युवावस्था जिस में टीनएज से ले कर 20-30 की उम्र की लड़कियां शामिल की जाती हैं, इस उम्र में उन के शरीर में प्यूबर्टी के समय कई तरह के हारमोनल बदलाव होते हैं जो उन की सेहत पर गहरा प्रभाव डालते हैं. इस दौरान बहुत सी लड़कियों को ओवरी यानी बच्चादानी से संबंधित गंभीर बीमारियां भी हो जाती हैं, जिन में कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जो उन की रिप्रोडक्टिव हैल्थ को प्रभावित कर सकती हैं और भविष्य में प्रैगनैंसी में दिक्कतें पैदा कर सकती हैं.

आइए, उन बीमारियों के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं जो लड़कियों में आम होती हैं:

पौलीसिस्टिक ओवरी डिसऔर्डर (पीसीओडी) और पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस).

पीसीओडी और पीसीओएस इन बीमारियों का नाम आप ने जरूर सुना होगा. दोनों ही ओवरी से जुड़ी बीमारियां हैं और विभिन्न सर्वे की रिपोर्ट्स बताती हैं भारत में 10 में 1 महिला इन बीमारियों से जू?ा रही है. लेकिन इन में कुछ अंतर होता है.

पीसीओडी: इस में ओवरीज कई अपरिपक्व या अधूरे विकसित हुए अंडाणु रिलीज करती है, जो ओवरी में छोटेछोटे सिस्ट के रूप में जमा हो जाते हैं. यह समस्या अकसर खराब खानपान और लाइफस्टाइल की वजह से होती है. यदि आप अधिक जंक फूड खा रही हों, ज्यादा शुगर वाले ड्रिंक्स का सेवन कर रहे हों या अत्यधिक कैफीन का सेवन भी आप के हारमोंस को गड़बड़ा सकता है.

पीसीओएस: यह पीसीओडी से अधिक गंभीर स्थिति होती है, जिस में ओवरीज में हारमोनल असंतुलन की वजह से सिस्ट बनने लगते हैं. इस समस्या में शरीर में मेल हारमोन (ऐंड्रोजन) का स्तर अधिक बढ़ जाता है, जिस से चेहरे पर मूंछ और दाढ़ी आना, आवाज मर्दों की तरह भारी होना, वजन बढ़ना, बच्चा कंसीव करने में परेशानी, मिसकैरेज जैसे दिक्कतें आती हैं. यदि पीसीओएस का समय पर इलाज नहीं किया जाता है तो यह गर्भाशय के कैंसर का कारण भी बन सकता है.

इन बीमारियों के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे-

हारमोनल असंतुलन (ऐंड्रोजन यानी मेल हारमोन का बढ़ना).

इंसुलिन रिजिस्टैंस (शरीर में शुगर को प्रोसैस करने की क्षमता कम हो जाना).

अनहैल्दी लाइफस्टाइल (ज्यादा जंक फूड, कम ऐक्सरसाइज).

जेनेटिक कारण (यदि परिवार में पहले किसी को यह समस्या रही हो).

लक्षण

अनियमित पीरियड्स या पीरियड्स का नहीं आना अथवा समय से पहले बंद हो जाना.

चेहरे, छाती और पीठ पर अत्यधिक बाल आना.

वजन बढ़ना खासकर पेट के आसपास चरबी जमा होना.

मुंहासे और औयली स्किन.

बालों का पतला होना या झड़ना

थकान और डिप्रेशन.

बांझपन की समस्या पीसीओएस जोकि गंभीर स्थिति है. इस में फीमेल बौडी पर क्या प्रभाव पड़ते हैं और इस के कारण क्या बीमारियां हो सकती हैं इस पर चर्चा भी जरूरी है.

द्य फर्टिलिटी पर असरर् पीसीओएस वाली महिलाओं में ओव्यूलेशन की समस्या होने के कारण गर्भधारण में कठिनाई होती है. कई मामलों में आईवीएफ ट्रीटमैंट या हारमोनल थेरैपी काम आ सकती है लेकिन यह भी संभव है कि इस से जूझ रही लड़कियां कभी मां न बन पाएं.

डायबिटीज का खतरा: इंसुलिन रिजिस्टैंस बढ़ने से टाइप-2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है.

दिल की बीमारी: हाई ब्लड प्रैशर और कोलैस्ट्रौल बढ़ने की संभावना रहती है.

मैंटल हैल्थ पर असर: लगातार हारमोनल बदलाव से डिप्रैशन और ऐंगजाइटी हो सकती है.

इलाज

लाइफस्टाइल में सुधार: हैल्दी डाइट और नियमित ऐक्सरसाइज से पीसीओडी को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है, लेकिन पीसीओएस में आप को अपना लाइफस्टाइल बदलने के साथ ही दवाओं का सहारा भी लेना पड़ता है.

 डाइट: ज्यादा फाइबर, प्रोटीन और हैल्दी फैट वाला भोजन लें. प्रोसैस्ड और शुगरयुक्त फूड से बचें.

वजन नियंत्रित करें: वजन कम करने से पीरियड्स नियमित होने लगते हैं और फर्टिलिटी में सुधार आता है.

दवाइयां: डाक्टर की सलाह से हारमोनल दवाइयां, इंसुलिन-सैंसिटाइजिंग मैडिसिन ली जा सकती हैं.

तनाव कम करें: योग, मैडिटेशन और पर्याप्त नींद लेने से हारमोन बैलेंस में मदद मिलती है.

ऐंडोमैट्रिओसिस

ऐंडोमैट्रिओसिस एक दीर्घकालिक बीमारी है, जिस में गर्भाशय की अंदरूनी परत ओवरी के बाहर बढ़ने लगती है. यह टिशू आमतौर पर अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब, पेल्विक क्षेत्र या आंतों तक फैल सकता है.

कारण

हारमोनल असंतुलन.

अनुवंशिकता (जेनेटिक कारण).

इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी.

रैट्रोग्रेड मैंस्ट्रुएशन (पीरियड ब्लड का उलटा बहना): आमतौर पर जब पीरियड्स के दौरान ब्लीडिंग होती है तो वह रक्त गर्भाशय से हो कर योनि के माध्यम से बाहर निकल जाता है. लेकिन कुछ मामलों में, यह ब्लड फैलोपियन ट्यूब्स के जरीए उलटा बह कर पेल्विक कैविटी में चला जाता है. इस में मौजूद ऐंडोमीट्रियल सैल्स शरीर के अन्य अंगों पर चिपक सकते हैं और वहीं बढ़ने लगते हैं, जिस से ऐंडोमीट्रिओसिस विकसित हो सकता है.

सर्जरी के बाद ऐंडोमीट्रियल सैल्स का फैलना.

लक्षण

बहुत तेज और लंबे समय तक चलने वाला दर्दनाक पीरियड (डिसमेनोरिया).

असामान्य ब्लीडिंग और स्पौटिंग.

सैक्स के दौरान दर्द (डिसपेरुनिया).

कब्ज या डायरिया जैसी पाचन संबंधी समस्याएं.

थकान और कमजोरी.

बांझपन (इनफर्टिलिटी) की समस्या.

थायराइड डिसऔर्डर (हाइपोथायरोडिज्म और हाइपरथायरोडिज्म)

हाइपोथायरोयडिज्म और हाइपरथायरोयडिज्म, थायराइड ग्रंथि से जुड़े 2 तरह के डिसऔर्डर हैं. हाइपोथायरायडिज्म में थायराइड ग्रंथि कम थायराइड हारमोन बनाती है, जबकि हाइपरथायरोयडिज्म में थायराइड ग्रंथि ज्यादा थायराइड हारमोन बनाती है.

हाइपोथायरायडिज्म में बहुत सी परेशानियां होती हैं जैसे-

अनियमित या बहुत कम पीरियड्स.

ओव्यूलेशन की समस्या, जिस से गर्भधारण मुश्किल हो सकता.

बारबार गर्भपात होने की संभावना.

वजन तेजी से बढ़ना.

बालों का झड़ना और त्वचा का रुखा होना.

थकान और सुस्ती महसूस होना.

सैक्स ड्राइव में कमी.

वहीं हाइपरथायरेयडिज्म में बहुत हलके और छोटे समय के लिए पीरियड्स होना, ओव्यूलेशन में असंतुलन, गर्भधारण में कठिनाई, अचानक वजन घटना, दिल की धड़कन तेज होना, बारबार घबराहट और बेचैनी महसूस होना, ज्यादा गरमी महसूस करना और अत्यधिक पसीना आना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं.

फाइब्रौयड: इसे यूटराइन फाइब्रायड भी कहा जाता है, ये महिलाओं के गर्भाशय में विकसित होने वाली गांठें होती हैं. बहरहाल कई महिलाओं में इस के लक्षण नहीं देखने को मिलते लेकिन यह बेबी कंसीव करने में काफी दिक्कतें पैदा कर सकता है.

इस के निम्न लक्षण हो सकते हैं-

भारी और दर्दनाक पीरियड्स.

इनफर्टिलिटी.

बारबार गर्भपात.

पेट और पीठ में दर्द.

प्रीमैच्योर ओवरी फेल्योर

कई बार महिलाओं में युवावस्था में ही मेनोपौज देखने को मिलता है यानी उन्हें तय उम्र से पहले मासिकधर्म बंद हो जाते हैं, जिस से उन्हें मां बनने में काफी दिक्कतें तथा अन्य हैल्थ रिलेटेड प्रौब्लम्स जैसे- चिड़चिड़ापन, वजन नियंत्रित करने में कठिनाई जैसी देखने को मिलती हैं.

पेल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज

पेल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज एक इन्फैक्शन है जो महिला के रिप्रोडक्टिव और्गन्स को प्रभावित करता है. इस में यूटरस, फैलोपियन ट्यूब, ओवरी और सर्विक्स में सूजन और संक्रमण हो सकता है. यह आमतौर पर यौन संचारित संक्रमणों जैसे क्लैमाइडिया और गोनोरिया के कारण होता है. इस बीमारी के कारण फैलोपियन ट्यूब में रुकावट, ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी (गर्भाशय के बाहर गर्भ ठहरना), ओव्यूलेशन में प्रौब्लम हो सकती है.

कई बार पेल्विक इनफ्लैमेटरी के लक्षण हलके होते हैं लेकिन कुछ महिलाओं में ये गंभीर हो सकते हैं:

पेट के निचले हिस्से में दर्द या पेल्विक पेन.

भारी, बदबूदार डिसचार्ज.

मासिकधर्म में अनियमितता.

सैक्स के दौरान दर्द.

पेनफुल यूरिनेशन.

थकान और बुखार.

कैसे बचें और अपनी हैल्थ को बेहतर कैसे बनाएं?

स्वस्थ आहार लें: हरी सब्जियां, फल, नट्स, और प्रोटीन से भरपूर चीजें खाएं.

व्यायाम करें: योग और ऐक्सरसाइज से हारमोन बैलेंस में मदद मिलती है.

तनाव से बचें: ज्यादा स्ट्रैस हारमोनल असंतुलन को बढ़ा सकता है.

नियमित चैकअप कराएं: समयसमय पर डाक्टर से जांच करवाएं.

पर्याप्त नींद लें: 7-8 घंटे की नींद सेहत के लिए बहुत जरूरी है.

Relationship Tips : मैं पति के साथसाथ प्रेमी को भी नहीं खोना चाहती हूं, मै क्या करूं?

Relationship Tips  : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 28 साल की महिला हूं. मैं और मेरे पति एक-दूसरे का बहुत खयाल रखते हैं, मगर इधर कुछ दिनों से मैं किसी दूसरे के प्रेम में पड़ गई हूं. हमारे बीच कई बार शारीरिक संबंध भी बन चुके हैं. मु झे इस में बेहद आनंद आता है. मैं अब पति के साथ-साथ प्रेमी को भी नहीं खोना चाहती हूं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप के बारे में यही कहा जा सकता है कि दूसरे के बगीचे का फूल तभी अच्छा लगता है जब हम अपने बगीचे के फूल पर ध्यान नहीं देते. आप के लिए बेहतर यही होगा कि आप अपने ही बगीचे के फूल तक सीमित रहें. फिर सचाई यह भी है कि यदि पति बेहतर प्रेमी साबित नहीं हो पाता तो प्रेमी भी पति के रहते दूसरा पति नहीं बन सकता. विवाहेतर संबंध आग में खेलने जैसा है जो कभी भी आप के दांपत्य को  झुलस सकता है. ऐसे में बेहतर यही होगा कि आग से न खेल कर इस संबंध को जितनी जल्दी हो सके खत्म कर लें. अपने साथी के प्रति वफादार रहें. अगर आप अपनी खुशियां अपने पति के साथ बांटेंगी तो इस से विवाह संबंध और मजबूत होगा.

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क्या आप अपने साथी से जो कुछ कहना चाहती हैं वो नहीं कह पा रही हैं. अगर आपके साथ ऐसा हो रहा है तो आपको इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है. एक अध्ययन के अनुसार बातचीत करना ना केवल किसी रिश्ते को स्वस्थ और खुशहाल रखने के लिए बल्कि इसे सफल बनाने के लिए भी जरुरी है.

बहुत से लोग अपने साथी से बात करने में झिझकते हैं या परेशानी महसूस करते हैं. आपको बता दें कि एक सुचारु और सार्थक बातचीत के लिए अधिक शब्दों की आवश्यकता नहीं होती. हम आपको कुछ आसान टिप्स बता रहे हैं जिनके जरिए आप अपने साथी से अच्छे से बातचीत कर सकती हैं और अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकती हैं.

1. छोटी-छोटी बातचीत

अपने साथी से जुड़ी छोटी-छोटी चीजों में दिलचस्पी दिखाएं. उनसे हर छोटी बात के बारे में पूछे लेकिन याद रहें कि उन्हे इस बात का एहसास ना कराएं कि आप उन पर नजर रखने की कोशिश कर रही हैं. बल्कि उन्हें महसूस कराएं कि आप उनकी चिंता करती हैं और जो चीजें उन्हें पसंद हैं उन्हें आप भी पसंद करती हैं.

2. सुनने की आदत डालें

किसी भी रिश्ते में बातचीत कम होने या खत्म होने के पीछे का बड़ा कारण यही होता है कि लोग एक-दूसरे की बात को धैर्य और शांति से सुनना नहीं चाहते. जिसके कारण आप ना तो खुद को व्यक्त कर पाती हैं और ना ही अपने साथी को समझ पाती हैं. आपके पार्टनर के लिए ये बेहतर अनुभव हो सकता है कि आप उनकी बात ध्यान से सुनती हैं और समझती भी हैं. आप अपने पार्टनर से बात कर रही हैं तो पहले उन्हें अच्छे से सुने उसके बाद ही प्रतिक्रिया दें. अगर आप किसी बात से असहमत हैं तो बीच में दखल देने की बजाय उनकी बात खत्म होने का इंतजार करें और फिर अपना पक्ष रखें.

Hindi Story Collection : रब ने बना दी जोड़ी

Hindi Story Collection : डांस एकैडमी से वापस आने पर नमिता ने देखा घर जैसा बिखरा हुआ छोड़ गई थी, उसी तरह पड़ा था. लगता है मेड दुलारी ने आज फिर से छुट्टी मार ली. उफ, अब क्या करूं, कैसे इस बिखरे घर को समेटूं. समेटना तो पड़ेगा उसे ही क्योंकि अभी यहां किसी को ज्यादा जानती भी तो नहीं है, नईनई तो आई है इस सोसायटी में रहने. सारा दिन तो काम की तलाश में ही निकल जाता है. वह तो अच्छा है कि दुलारी उसे मिल गई जो उस के लिए खाना बनाने से ले कर घर की साफसफाई तक मन लगा कर कर देती है.

मगर आज तो घर उसे ही साफ करना पड़ेगा. नमिता ने बड़बड़ाते हुए चाय बना कर पी और फिर ?ाड़ू लगाने लगी, साथ ही म्यूजिक भी औन कर लिया.

म्यूजिक व डांस बस 2 ही तो शौक थे उस के, जिन्हें वह भरपूर जीना चाहती थी, परंतु हमेशा मनचाहा पूरा हो ही जाए ऐसा संभव तो नहीं. वैसे भी उस के डांस व म्यूजिक के शौक को उस के मिडल क्लास मांबाबूजी अहमियत ही कहां देते थे. उस के उम्र के 28 वसंत पूरा करते उन का एक ही टेप चालू रहता, शादी कर के घर बसा लो, इस बेकार की उछलकूद व गानेबजाने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है. डांस ऐकैडमी से जब भी वापस आती, वही घिसापिटा रिकौर्ड चालू हो जाता. बहुत इरिटेट हो चुकी थी यह सब सुनसुन कर, शादीवादी कर के घर बसाने का कहीं दूर तक प्लान नहीं था उस की विश लिस्ट में, उसे तो बस डांस में ऐसा कुछ कर दिखाना था जो शायद अभी तक किसी ने न किया हो.

अपने इन्हीं सपनों को अंजाम देने के लिए ही लखनऊ से मुंबई आने का निर्णय कर लिया था नमिता ने मन में. मांबाबूजी को जब इस फैसले के बारे में बताया तो एकदम भड़क उठे थे कि पगला गई हो क्या, इतने बड़े शहर में अकेली रहोगी? कहीं कुछ ऊंचनीच हो गई तो लोगों को क्या मुंह दिखाएंगे हम लोग? घर वालों के विरोध के बावजूद उस ने अपना मुंबई का टिकट बुक कर लिया था. यहां मुंबई में उस की बचपन की दोस्त मिताली रहती थी. वह भी नमिता की तरह अकेली थी लेकिन उस के पास किसी मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी जौब थी. अपने मुंबई आने की खबर नमिता ने मिताली को फोन पर दे दी थी.

मिताली उसे स्टेशन पर रिसीव करने आ गई थी. मिताली ने काफी गरमजोशी से उस का स्वागत किया. कुछ टाइम दोनों सखियों ने अगलीपिछली यादें ताजा कर के खूब मस्ती की.

‘‘अच्छा बता तेरा प्लान क्या है, इस तरह अचानक घर छोड़ कर आने का कुछ तो कारण होगा. मिताली ने पूछा.

‘‘हां प्लान तो एकदम सौलिड है. यू नो, बिना किसी प्लान के तो मैं एक कदम भी आगे नहीं रखती. तु?ो तो याद ही होगा कि स्कूल में जब भी कोई कल्चरल प्रोग्राम होता था तो मैं उस में हमेशा डांस में परफौर्मैंस देती थी और मेरे डांस को टीचर्स बहुत ऐप्रीशिएट भी करती थीं. बस तभी से डांस मेरा पैशन बन गया.

‘‘यहां मुंबई में रह कर एक डांस ऐकैडमी खोलने का विचार है परंतु पहले यहां रह कर इस क्षेत्र में कुछ अनुभव जमा कर लूं.’’

मिताली ने उसे हौसला दिया कि मुंबई में काम हरेक को जरूर मिल जाता है बस हौसला बुलंद होना चाहिए. इतना ही नहीं मिताली ने तो उसे कुछ ऐसे लोगों से भी मिलवा दिया जो उस की मदद कर सकते थे.

मुंबई आने के 2 महीने के बाद ही नमिता को एक डांस ऐकैडमी में डांस सिखाने का औफर मिल गया. पैकेज भी अच्छा था सो नमिता ने तुरंत जौइन कर लिया

आखिर मिताली पर कब तक बोझ बनी रहती. अत: नमिता ने इस बीच अपने लिए एक फ्लैट का भी जुगाड़ कर लिया. पहले जौब फिर फ्लैट का मिलना इन दोनों समस्याओं के दूर होते ही उस के आत्मविश्वास में भी कुछ इजाफा हो गया. वह खुश थी अपने मुंबई आने के निर्णय को ले कर.

बस कुछ ही दिन हुए थे उसे इस फ्लैट में शिफ्ट हुए. दुलारी के मिलने से  घर के काम की समस्या भी सुलझ गई थी.

आज के दिन की शुरुआत भी हर रोज की तरह डांस व म्यूजिक के धूमधड़ाके के साथ ही हुई. नमिता अपना मनपसंद म्यूजिक लगा कर डांस करने में मगन थी कि तभी उस के दरवाजे की घंटी बजी. इस समय कौन डिस्टर्ब करने चला आया बड़बड़ाते हुए दरवाजे तक आई. दरवाजा खोला तो सामने एक छोटा बच्चा खड़ा था जिस की उम्र करीब 3-4 साल के बीच की रही होगी, दरवाजा खुलते ही बोला, ‘‘आंटी प्लीज म्यूजिक का वौल्यूम थोड़ा कम कर लीजिए.

उस बच्चे के आंटी कहने से नमिता बुरी तरह चिढ़ गई थी, बच्चा झटपट सीढि़यां उतर गया था. नमिता ने अपनी ही धुन में म्यूजिक और तेज कर दिया, तभी डोरबेल फिर से बजी, गुस्से में भुनभुनाती हुई दरवाजे तक आई, दरवाजा खोलते ही उस का मुंह खुला का खुला रह गया, उस के सामने एक 32-35 की उम्र का शख्स खड़ा था.

जी, मैं कल रात को ही आप के नीचे वाले फ्लैट में शिफ्ट हुआ हूं, पूरी रात सामान जमाने में ही बीत गई, अब कुछ देर सोना चाहता हूं, अगर आप को कोई तकलीफ न हो तो म्यूजिक का वौल्यूम थोड़ा कम कर लीजिए प्लीज.

नमिता ने म्यूजिक तुरंत बंद कर दिया और सोफे पर आ कर बैठ गई, उस सख्स की आवाज अभी तक उस के कानों में गूंज रही थी, उस की आवाज का जादू व चेहरे का आकर्षण उसे अनजाने ही अपनी ओर खींचने लगा गुजरे हुए पल का रीकैप उस के दिमाग में किसी चलचित्र सा घूमने लगा.

पहले वह बच्चा अव यह आदमी, क्या इन के घर में कोई फीमेल मेंबर नहीं है, उस की उत्सुकता इस फैमिली के बारे में जानने की बढ़ती जा रही थी.

फिर दिमाग को झटका, हुंह मुझे क्या? सोफे से उठी, शेष काम निबटाए और एकेडमी जाने को तैयार होने लगी. परंतु उस का मन न जाने क्यों आज अंदर से खुशी महसूस कर रहा था, मन में विचारों की उठापटक बराबर चल रही थी. नमिता ने अपने मन में उठ रहे विचारों को विराम दिया और एकेडमी जाने को सीढि़यां उतरने लगी, सीढि़यां उतरते ही नीचे वाले फ्लोर पर पहुंचते ही उस के पैरों की रफ्तार थम सी गई, वही सख्स खड़ा अपने दरवाजे को लौक कर रहा था.

तेज म्यूजिक की वजह से आप की नींद डिस्टर्ब हुई, उस के लिए सौरी, एक्चुअली, मुझे पता नहीं था कि इस फ्लोर पर कोई रहने आया है, आगे से ऐसी गलती नहीं होगी. फिर नमिता कुछ देर वहीं खड़ी रही

शायद सामने वाला सख्स कुछ कहे, उस की सौरी के जवाब में, लेकिन कोई जवाब न मिलने पर नमिता ने देखा वह सख्स सीढि़यों की तरफ बढ़ रहा था कि नमिता ने टोका, ‘‘सुनिए आप का नाम जान सकती हूं. वह बिना रूके सीढि़यों की तरफ बढ़ने लगा, हां जातेजाते अपना नाम जरूर बता गया था, निखिल. नमिता को ?ाल्लाहट महसूस हुई, उस ने सोचा अजीव इंसान है, न हाय न हैलो, बस अपनी ही धुन में मगन. जानपहचान बढ़ाने की नमिता की उम्मीदों पर पानी फिर गया.

नमिता अपनी डांस एकेडमी के लिए निकल गई. डांस क्लास में पैर तो उस के डांस की ताल पर थिरक रहे थे, परंतु उसका मन तो एक नई ताल पर ही थिरक रहा था, उस के मन में उस सख्स को ले कर अजीब सी हलचल मची हुई थी.

शाम को नमिता घर लौटी तो सोसाइटी के नीचे बने कंपाउंड में कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे, नमिता कानों में ईयरफोन लगाए गाना सुनते हुए गेट तक पहुंची ही थी कि एक बौल तेजी से आई और उस के हाथ पर लगी. हाथ में पकड़ा उस का मोबाइल गिर कर टूट गया.

नमिता अपना टूटा मोबाइल फोन व बाल हाथ में ले कर जैसे ही बच्चों की तरफ मुड़ी तो सारे बच्चे डर कर भाग गये, बस एक छोटा सा बच्चा डरा सहमा सा हाथ में बैट पकड़े खड़ा था, नमिता ने गुस्से से उसे घूरा, कहां भाग गये तुम्हारे नाटी दोस्त. फिर उस ने ध्यान से उस बच्चे की तरफ देखा, ‘‘अरे, तुम तो वही हो न जो कल मेरे घर म्यूजिक का वौल्यूम कम करवाने आए थे.’’

चलो तुम्हारी मम्मी से तुम्हारी शिकायत करती हूं, नमिता ने उस बच्चे का हाथ पकड़ा और उस के घर ले जाने लगी, डरे सहमे बच्चे ने अचानक जोरजोर से रोना शुरू कर दिया और बैट पटक कर दौड़ता हुआ उसी बिल्डिंग में घुसा जहां नमिता रहती हैं.

जब नमिता पहले फ्लोर पर पहुंची तो देखा बच्चा, निखिल के दरवाजे के पास खड़े हो कर रो रहा था. नमिता को पास आते देख कर वह और जोरजोर से रोने लगा, बच्चे की रोने की आवाज सुन कर जैसे ही निखिल ने दरवाजा खोला बच्चा दौड़ कर उस से लिपट गया.

चिंटू बेटा क्या हुआ, किसी ने तुम को मारा है या किसी ने कुछ कहा है, ‘‘निखिल के बारबार पूछने पर उस ने नमिता की ओर इशारा किया, तब निखिल का ध्यान नमिता की ओर गया जो हाथ में अपना टूटा मोबाइल ले कर खड़ी थी.

माफ कीजिएगा, मैं ने आप को देखा नहीं, क्या आप को मालूम है कि चिंटू क्यों रो रहा है? निखिल ने नमिता से सवाल पूछा, परंतु नमिता तो कहीं और ही खोई हुई थी उस वक्त, शायद अपने दिल को कोस रही थी जो बिना सोचेसमझे एक ऐसे इंसान की ओर खिंचा चला जा रहा था, जो एक बच्चे का पिता था, जाहिर है किसी का पति भी होगा.

आई एम सौरी, आप का मोबाइल टूट गया है, क्या मैं इसे ठीक करने की कोशिश कर सकता हूं, तब तक आप मेरे पास जो एक नया सैट हैं उस से काम चला लीजिए, आप प्लीज बैठिए, हो सकता है मैं इसे अभी ठीक कर के आप को दे दूं.

नमिता ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठ गई, उस की नजर दीवारों पर सजी ढेर सारी फोटोज पर पड़ीं, अधिकतर फोटो चिंटू व उस के पापा की ही थीं. नमिता के दिमाग की उलझन और बढ़ गई, बिना किसी लाग लपेट के उस ने निखिल की तरफ यह प्रश्न उछाल ही दिया, चिंटू आप का ही का बेटा है न और आप की वाइफ  नहीं है, बस निखिल ने छोटा सा जवाब पकड़ा दिया.

ओह, आई एम सौरी, वैसे क्या हुआ था उन्हें ‘‘नमिता, निखिल की पर्सनल लाइफ के पन्ने खंगालने की कोशिश कर रही थी.

नहींनहीं जैसा आप सम?ा रहीं हैं वैसा कुछ भी नहीं है, निखिल ने नमिता की सोच के घोड़ों को वही रोक दिया, ओह, आई एम सौरी अगेन ‘‘मुझे कुछ और ही लगा था, अच्छा शायद मायके गई हैं और चिंटू शायद स्कूल की छुट्टियां न होने के कारण उन के साथ नहीं जा पाया होगा,’’ पता नहीं क्यों नमिता निखिल के बारे में सबकुछ जान लेने को उत्सुक हो रही थी. उसे खुद भी समझ नहीं आ रहा था कि उस का मन निखिल की तरफ क्यों खिंचा चला जा रहा है. शायद इसे ही पहली नजर का प्यार कहते हैं.

तभी निखिल के स्वर ने उसे उस की सोच से बाहर निकाला, ‘‘मैं आप का मोबाइल रिपेयर करवा कर कल आप के पास पहुंचा दूंगा. बस, आप 1 मिनट रुकिए, मैं आप के लिए फोन ले कर आता हूं और चाय भी. चाय का तो टाइम भी हो चला है.’’

निखिल ने नमिता को फोन पकड़ाया और चाय बनाने किचन की ओर जाने लगा.

तभी नमिता की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘जी, फोन के लिए शुक्रिया और परंतु चाय तो मैं सिर्फ अपने हाथ की ही बनाई हुई पीती हूं,’’ और फोन ले कर नमिता दरवाजे की तरफ बढ़ गईं. मगर उस के कदम उस का साथ नहीं दे रहे थे. उस के मन में निखिल के प्रति अजीब सा आकर्षण महसूस हो रहा था.

घर पंहुच घर जैसे ही फ्रैश हुई, मां का फोन आ गया, ‘‘कैसी हो बेटा? कोई जौब मिली या नहीं?’’

‘‘हां मां जौब भी मिल गई है और मैं ने यहां एक फ्लैट भी खरीद लिया है आप लोगों के आशीर्वाद से. सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा है मां,’’ नमिता ने चहकते हुए कहा.

‘‘अरे बेटा जब सबकुछ ठीक है तो अब तो शादी के लिए सोचो.’’

‘‘हां मां मैं भी यही सोच रही थी.’’

‘‘तो हम लोग तुम्हारे लिए एक अच्छे घर, वर की तलाश करते हैं.’’

‘‘नहीं मां आप लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है, मुझे लगता है मेरी पसंद का पार्टनर मु?ो मिल गया है.’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? मुंबई जा कर तुम्हारे अंदर ऐसे कौन से सुरखाब के पर लग गए कि शादी जैसे मुद्दे का फैसला तुम खुद ही करने लगी. लड़का कौन है, किस जाति का है, उस का घर खानदान कैसा है आदिआदि बातें शादी के लिए जाननी जरूरी हैं.’’

‘‘अरे मेरी प्यारी मां, आप किस जमाने में जी रही हैं? आप के कितने सवाल हैं शादी को ले कर… आप की शादी तो नानाजी ने सबकुछ देख कर ही की होगी लेकिन जब से मैं ने होश संभाला है आप व बावूजी में आपसी मतभेद ही पाया है विचारों का. इंसान दिल का अच्छा होना चाहिए, जाति आदि आजकल कुछ माने नहीं रखता. अच्छा मां फोन रखती हूं, शायद चिंटू आ गया है. मुझे उसे ट्यूशन देनी है.’’

‘‘अब यह चिंटू कौन है?’’

‘‘चिंटू निखिल का बेटा है. अब आप पूछोगी कि यह निखिल कौन है? सो आप की जानकारी के लिए बता दूं कि निखिल मेरा होने वाला लाइफ पार्टनर है. हम लोग कई बार एकदूसरे से मिल चुके हैं. सच मां निखिल व चिंटू दोनों ही बहुत प्यारे हैं. आप भी जब उन दोनों से मिलोगी तो आप को भी उन से प्यार हो जाएगा.’’

‘‘तो क्या तुम अब 1 बच्चे के बाप से शादी करने की सोच रही हो?’’

‘‘अरे मां आजकल इंस्टैंट का जमाना है, जब सबकुछ मनचाहा मिल रहा हो तो बेवजह क्यों मीनमेख लिकालना.’’

‘‘जब तुम ने सबकुछ डिसाइड कर ही लिया है तो जो दिल में आए करो. वैसे भी आजकल की नई पीढ़ी के बच्चे बड़ों की सुनते ही कहां हैं.’’

सब से बड़ी बात निखिल बहुत कम बोलता है लेकिन उस की खामोशी उस की आंखों

से झलकती है. मैं ने उस की आंखों में अपने लिए प्यार देखा है.

नमिता निखिल से शादी करने का मन बना चुकी थी, बस उसे इंतजार था तो निखिल की हां का.

मां से बात कर के उस का मन हलका हो गया, जानती थी मांबाबूजी उस की पसंद को जरूर पसंद करेंगे.

1-2 छोटी सी मुलाकातों में ही निखिल उसे सदियों से जानापहचाना सा लग रहा था. उस रात नमिता की नींद पूरी तरह उड़ चुकी थी. पूरी रात वह सिर्फ निखिल के खयालों में ही खोई रही. यह जानते हुए भी कि निखिल शादीशुदा है और उस का 1 बेटा भी है, फिर भी उस के खयालों को अपने मन से दूर नहीं कर पा रही थी.

कई बार कुछ खास पल दिल व दिमाग दोनों को विचारों के ऐसे भंवर में बहां ले जाते हैं कि सहीगलत का ध्यान नहीं रहता.

नमिता भी सहीगलत की भी परवाह किए बिना उन पलों के साथ जीने लगी. नमिता की पूरी रात आंखों में ही बीती थी सो सुबह देर तक सोती रही. डोरबैल की आवाज से उस की नींद टूटी. शायद दुलारी होगी, यह सोचती हुई अलसाई सी उठी और दरवाजा खोला तो सामने निखिल को देखते ही नमिता की अधखुली आंखों में चमक आ गई, ‘‘अरे, गुडमौर्निंग, आप? आइए अंदर आइए,’’ नमिता ने आग्रह करते हुए कहा.

‘‘वह मैं आप का फोन लौटाने आया हूं,’’ निखिल ने साथ लाए मोबाइल को टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘अच्छा अब मैं चलता हूं, दरअसल, मुझे चिंटू के लिए एक ट्यूशन टीचर की तलाश है और औफिस भी जाना है.’’

निखिल वापस जाने को मुड़ा ही था कि नमिता का स्वर उस के कानों में पड़ा, ‘‘यदि मैं आप की यह समस्या हल कर दूं तो? यदि आप चाहें तो चिंटू को ट्यूशन मैं दे सकती हूं, मैं डांस ऐकैडमी से शाम 5 बजे तक वापस आ जाती हूं. उस के बाद खाली समय रहता है मेरे पास.’’

‘‘ठीक है चिंटू से कह दूंगा, आज शाम से ही आ जाएगा,’’ कह कर दरवाजे की तरफ मुड़ा.

‘‘अरे सुनिए, 1 कप चाय तो पीते जाइए.’’

‘‘जी, शुक्रिया, चाय तो मैं भी सिर्फ अपने हाथ की ही बनाई हुई पसंद करता हूं.’’

चिंटू रोज शाम को ट्यूशन के लिए आने लगा और कुछ ही दिनों में नमिता के साथ घुलमिल भी गया. एक दिन ट्यूशन के बाद नमिता ने चिंटू से पूछ ही लिया, ‘‘क्या तुम्हें अपनी मां की याद नहीं आती?’’

तब चिंटू ने कहा कि उस ने तो अपनी मां को कभी देखा ही नहीं है. यह जान कर नमिता के मन की उल?ान और बढ़ गई.

चिंटू के पास घर की एक चाबी रहती थी. वह नमिता के यहां जाते समय लैच खींच कर दरबाजा बंद कर देता और ट्यूशन से वापस आ कर ताला खोल कर घर के अंदर आ जाता. निखिल ने चिंटू को अच्छी तरह समझा दिया था कि घर से बाहर निकलते समय चाबी हमेशा अपने साथ रखनी है ताकि वापस आने पर दरवाजा खोल सके.

एक दिन चिंटू चाबी साथ लिए बिना ही बाहर निकला और लैच खींच कर दरवाजा बंद कर दिया. ट्यूशन से वापस जब दरवाजा खोलना चाहा तो एहसास हुआ कि चाबी तो आज उस से घर के अंदर ही छूट गई है. वापस नमिता के घर गया और सारी बात बताई.

नमिता ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं, जब तक तुम्हारे पापा नहीं आते तुम यहीं मेरे घर पर रहो.’’

उस दिन निखिल को भी औफिस से आने में काफी देर हो गई. साथ ही आज वह अपने पास की चाबी भी औफिस में ही भूल आया. निखिल के औफिस से आ कर कई बार डोरबैल बजाने के वाबजूद जब चिंटू ने दरवाजा नहीं खोला तो उस ने नमिता को फोन किया तो मालूम हुआ कि चिंटू भी आज घर की चाबी घर के अंदर ही भूल गया है. अत: मेरे यहां ही सो गया है.

‘‘नमिता मैं चिंटू को लेने आ रहा हूं, हम आज रात किसी होटल में रुक जाएंगे.’’

चिंटू काफी गहरी नींद में था. निखिल के बहुत कोशिश करने पर भी जब नहीं उठा तो नमिता ने चिंटू को जगाने की कोशिश करते हुए निखिल का हाथ पकड़ लिया और कहा इसे यहीं सोने दीजिए.

‘‘ठीक है मैं भी यहीं टैरस पर सो जाता हूं, वैसे भी ठंड ज्यादा नहीं है,’’ निखिल ने अपना हाथ छुड़ाया और टैरस पर चला आया.

निखिल को नींद नहीं आ रही थी. पता नहीं ठंड के कारण या मन में घुमड़ते नमिता के बारे में सोचते खयालों के कारण. वह टैरस पर ही टहलने लगा. तभी उस ने देखा सामने नमिता खड़ी थी हाथ में चादर ले कर, ‘‘ठंड इतनी भी कम नहीं हैं, इस की जरूरत पड़ेगी,’’ चादर पकड़ा कर नमिता जैसे ही वापस जाने को मुड़ी निखिल के स्वर ने उसे रोक लिया.

निखिल टैरस की जमीन पर बैठ गया. नमिता भी उस से कुछ दूरी पर बैठ गई. निखिल ने बोलना शुरू किया, ‘‘तुम चिंटू की मां के बारे में जानना चाहती थी न, तो सुनो, वह मुझ से उम्र में कई साल बड़ी थी, प्यार हुआ, घर वालों के विरुद्ध जा कर हम दोनों ने शादी कर ली, सबकुछ ठीक ही चल रहा था, हम दोनों बहुत खुश थे, लेकिन जब चिंटू आने वाला था, तब अचानक सबकुछ बदल गया. वह खुश नहीं थी, चिंटू के आने की खबर जान कर, शायद वह तैयार नहीं थी इस सब के लिए. जिंदगी उसे कैद लगने लगी थी. मैं ने उसे बहुत सम?ाया लेकिन नाकाम रहा.

‘‘जिस दिन चिंटू का जन्म हुआ, मैं बहुत खुश था परंतु वह कुछ परेशान सी लग रही थी. जब हौस्पिटल से डिस्चार्ज मिला तो घर आने तक एकदम नौर्मल लग रही थी. औफिस से अर्जेंट कौल आने पर मु?ो कुछ देर के लिए औफिस जाना पड़ा. जब लौट कर आया तो वह घर छोड़ कर जा चुकी थी. हां, जाने से पहले एक पत्र जरूर छोड़ा था कि मुझे वापस लाने की कोशिश मत करना प्लीज. कुछ सालों बाद पता चला कि उस ने शादी कर ली है और विदेश में सैटल है अपने ने पति के साथ.

‘‘उम्र चाहे कितनी भी हो, जीवनसाथी का जाना लाइफ में खालीपन लिख ही जाता है, काम नहीं रुकते, मौसम भी बदलते हैं, दिनरात आतेजाते हैं रोज की तरह लेकिन जिंदगी का सूनापन काटे नहीं कटता.

‘‘हां चिंटू तुम से काफी घुलमिल गया है, हमेशा तुम्हारी ही बातें करता है, शायद आप में वह अपनी मां की छवि महसूस करता है. मैं चिंटू को ले कर कहीं बाहर भी नहीं जा पाता. अब 2 दिनों की छुट्टी आ रही है सोचा है कहीं बाहर घूमने का प्रोग्राम बना लूं, क्या आप भी हमारे साथ चलना पसंद करोगी?’’

‘‘अरे वाह, आप ने तो मेरे दिल की बात कह दी, मैं भी अकेले कहीं नहीं जा पाती हूं.’’

‘‘तो फिर ठीक है हम लोग यहां पास में एक पिकनिक सौपट है वहीं चलते हैं, लंच बाहर से और्डर कर देंगे, शाम तक वापस आ जाएंगे, ठीक रहेगा न?’’

दूसरे दिन चिंटू, निखिल व नमिता सुबह ही निकल गए. घर से बाहर आने पर चिंटू बेहद खुश था. निखिल व नमिता ने भी खूब गप्पों कीं. इस बीच दोनों ने एकदूसरे की पसंदनापसंद के बारे में भी जाना. निखिल ने पूछा, ‘‘अब आगे आप का क्या प्लान है?’’

‘‘हां आप ने एकदम सही प्रश्न किया, मांबाप शादी के लिए दबाव बना रहे हैं. चिंटू से मिलती हूं तो मेरे दिल में भी इस बात का खयाल आता है कि घरपरिवार का सुख अलग ही होता है. पैसे से इस कमी को पूरा नहीं किया जा सकता.’’

मगर परिवार पूरा तो पतिपत्नी व बच्चों से होता है, सोचता हूं चिंटू के लिए नई मां ले ही आऊं. क्या आप इस में मेरी मदद करेंगी?’’

‘‘यह सुन कर नमिता के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए उस ने पूछा, ‘‘मैं भला इस में आप की मदद किस तरह कर सकती हूं?’’

‘‘चिंटू की मां बन कर,’’ कह कर निखिल कुछ देर चुप रहा नमिता के जबाव के इंतजार में.

कुछ पलों के बाद नमिता ने ही चुप्पी तोडी, ‘‘ठंड बढ़ती जा रही है. मेरे हाथों की चाय पीएंगे?’’

‘‘हां अब तो रोज चलेगी तुम्हारे हाथों की चाय,’’ कहते हुए निखिल ने नमिता की हथेली अपने हाथों में भींच ली. नमिता ने भी उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया.

Latest Hindi Stories : नीला दीप

Latest Hindi Stories : सुनीला गहरी नींद में थी कि उसे कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं. नींद की बेसुधी में उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह कहां है. फिर उसे हलकेहलके स्वर में ‘नीलानीला’ सुनाई देने लगा तो अचकचा कर नाइट लैंप जला दिया. तब उसे महसूस हुआ कि वह तो गोवा के एक होटल में है घर पर नहीं. पर किस की आवाज थी? कौन रात के 2 बजे थपथप कर रहा है?

मोबाइल में टाइम देखते हुए सुनीला ने सोचा, फिर थपथप की आवाज आई. आवाज की दिशा में उस ने घूम कर देखा कि बड़ी सी कांच की खिड़की को कोई बाहर से ठोक रहा है. सुनीला के बदन में सिहरन सी दौड़ गई जब देखा कि परदे खिसके हुए हैं और उस पार वही लड़का है जो उसे बीच पर मिला था.

‘‘हाऊ डेयर यू?’’ कहती सुनीला अपनी अस्तव्यस्त नाइटी को संभालने लगी, ‘‘गोगो… हैल्पहैल्प,’’ चिल्लाने लगी.

खिड़की के उस पार वह खड़ा कैसे है? यह सोच कर उस की धड़कनें तेज हो गईं. जल्दी से उस ने अपना चश्मा पहना और रिसैप्शन को फोन करने लगी.

इस बीच वह शीशे के पार से कुछ कह रहा था मानो कुछ इशारे भी कर रहा था और वही शौर्ट्स पहने हुए था जो शाम को उस ने पहना था. तभी दरवाजे पर बेल बजी, हलकी आवाज में कोई बोल रहा था, ‘‘आप ठीक तो हैं मैडम?’’

सुनीला ने जल्दी से दरवाजा खोल दिया. होटल का कोई कर्मचारी था. सुनीला ने आंख बंद कर खिड़की की तरफ इशारा किया.

‘‘यहां तो कोई नहीं है मैम, आप को कोई गलतफहमी हुई है. फिर वहां तो किसी के खड़े होने की जगह ही नहीं है,’’ कहते हुए होटल कर्मचारी ने परदे खींच दिए और न डरने की हिदायत दे कर चला गया.

सुनीला की आंखों से नींद उड़ चुकी थी. वह अब भी रहरह कर परदे खींचे खिड़की की तरफ देख रही थी और सहम रही थी. उसे महसूस हो रहा था कि वह अब भी वहीं खड़ा है. फिर चादर खींच, आंखें भींच सोने की असफल कोशिश करने लगी.

आज ही सुबह तो वह रांची से यहां अपनी दोस्त रमणिका के साथ पहुंची थी. गोवा आने का प्रोग्राम भी तो अचानक ही बना था. कुछ ही दिनों पहले रमणिका उस के घर आई हुई थी, घर में बहुत सारे मेहमान आए हुए थे जिन्हें सुनीला जानती भी नहीं थी. रमणिका को देखते ही वह खुश हो उठी.

‘‘अच्छा हुआ तुम आ गईं. मैं बिलकुल परेशान थी. न जाने कौनकौन लोग आए हुए हैं

2 दिनों से. बारबार मुझ से पूछ रहे हैं मुझे पहचाना बेटा? तंग हो कर मैं दरवाजा बंद कर बैठी हुई थी.’’

‘‘हां, मुझे तेरी मम्मी का फोन आया था कि तू परेशान है.’’

रमणिका ने कहा, ‘‘चल कहीं घूम कर आते हैं, तेरा मन बहल जाएगा.’’

‘‘हूं, रांची में अब क्या बचा है देखने को, बचपन से कई बार हर स्पौट पर जा चुकी हूं,’’ सुनीला ने रोंआसी हो कर कहा.

‘‘गोवा चलेगी?’’

रमणिका का ऐसा कहना था कि सुनीला खुशी से उछल पड़ी, ‘‘हां, वह तो सपना रहा है कि कभी गोवा जाऊंगी. मेरा तो मन था जब शादी होगी तो हनीमून मनाने वहीं जाऊंगी. चल अब जब शादी होगी तब की तब देखी जाएगी, अभी तो घर के इस दमघोटू माहौल से मुझे रिहाई चाहिए.’’

शाम होतेहोते उसी दिन होटल, हवाई टिकट सब बुक हो गए.

आज सुबह ही दोनों सहेलियां गोवा पहुंची थीं. होटल में सामान रख कर दोनों बीच पर गई ही थीं कि रमणिका को कोई जरूरी फोन आ गया. उस की मम्मी की तबीयत अचानक खराब हो गई और वह तुरंत रांची वापस जाना चाहती थी. सुनीला

का भी चेहरा उतर गया, पर रमणिका भी और सुनीला की मम्मी ने भी समझाया कि वह अकेले ही घूम ले.

‘‘बुकिंग बरबाद हो जाएगी, तू अकेले ही घूम ले. अपनी ही देश में है कोई विदेश में थोड़ी न हो. याद है क्वीन मूवी में तो कंगना ने अकेले ही घूम लिया था,’’ कहती हुई रमणिका वापस चली गई.

सच कहा जाए तो सुनीला को यह पसंद नहीं आया था पर सबकुछ इतनी जल्दीजल्दी हुआ कि वह विमुख सी खड़ी रह गई बीच पर.

कुछ देर समुद्र किनारे टहलने के बाद वह किनारों पर बने एक अच्छे से रेस्तरां की खुली जगह पर लगी कुरसी पर बैठ गई.

वहां से समुद्र का सुंदर नजारा दिख रहा था. उस का सिर अब तक भन्ना रहा था. न जाने कुछ महीनों से उसे क्यों ऐसा ही हर वक्त महसूस हो रहा था जैसे कुछ खो गया हो और दिल बेचैन सा रहता.

‘‘अरे आप अकेली क्यों बैठी हैं?’’ किसी की आवाज आई तो सुनीला ने पलट कर देखा.

एक हैंडसम सा लड़का यों कहें युवा रंगबिरंगे फूलों वाला शौर्ट्स पहन कर बड़ी धृष्टता से सामने की कुरसी खींच बैठ चुका था.

‘‘वह मेरी सहेली… अभीअभी कहीं गई है, आती ही होगी,’’ अचकचाते हुए सुनीला के मुंह से निकल पड़ा, फिर खुद को संभालते हुए बोल्ड फेस बनाते हुए कहा, ‘‘आप कौन हैं? यहां मेरे साथ क्यों बैठ रहे हैं?’’ उस के माथे पर पसीना छलछला गया था.

‘‘अरे आप घबरा क्यों रही हैं, बैठिएबैठिए. दरअसल, मैं आप की फ्रैंड को जानता हूं. मेरा नाम अनुदीप है आप चाहें तो दीप बुला सकती हैं. सुनीला क्या मैं तुम को नीला कह कर पुकारूं?’’

अचानक सुनीला के माथे पर सैकड़ों हथौडि़यां चलने लगीं और वह पीड़ा से छटपटाने लगी. जब होश आया तो खुद को उसी की बांहों में पाया जो पानी के छींटे मारते हुए बदहवास सा, ‘‘नीला… नीला…’’ कह रहा था.

खुद को संभालते हुए सुनीला उठ बैठी और अजनबियत निगाहों से तथाकथित अनुदीप को घूरते हुए अपने को उस से अलग किया और जाने का उपक्रम करने लगी.

‘‘नीला एक कप कौफी तो पीते जाओ, बेहतर महसूस करोगी.’’

सुनीला ने उस की यह बात मान ली. भयभीत हिरनी सी उस की आंखें अब भी सशंकित थीं.

‘‘नीला प्लीज डरो मत, मुझे ध्यान से देखो. क्या हम पहले कभी नहीं मिले हैं, ऐसा तुम्हें नहीं लग रहा?’’

सुनीला नजरें नीची कर कौफी पीती रही, ‘हूं…  बीच पर दारू पी कर खुद के होशहवास गुम हैं जनाब के और मजनूं बन रहे हैं, पर मेरा नाम इसे कैसे पता है? बातें गडमड होने लगीं, कहीं रमणिका ने…’ उस ने मन ही मन सोचा.

शाम की बातें सोचतेसोचते जाने कब वह फिर सो गई. सुबह देर तक सोती रही कौंप्लीमैंट्री ब्रेकफास्ट का वक्त निकल गया था.

रैस्टोरैंट में फिर वही सामने था, ‘‘नीला, लगता है तुम भी देर तक सोती रह गईं मेरी तरह.’’

व्हाइट शर्ट और ब्लू डैनिम में वह वाकई अच्छा दिख रहा था. सुनीला ने कनखियों से देखा. सहसा उसे रात की बात याद आ गई.

‘‘आप रात के वक्त मेरी खिड़की के सामने क्यों खड़े थे? मुझे तो लगा कि…’’ सुनीला ने बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘मैं तो तुम्हारा हाल पूछने आया था, पर तुम चिल्लाने क्यों लगीं और तुम्हें क्या लगा?’’

‘‘लगे तो तुम मुझे भूत थे और अब भी लग रहा है जैसे कोई भूत पीछे पड़ गया हो… हर जगह दिखाई दे रहे हो,’’ कहतेकहते सुनीला की आंखों में भय के डोरे पड़ने लगे क्योंकि सहसा ही वह वहां से गायब हो चुका था.

अगले कुछ क्षणों में सुनीला होटल के चौकीदार से गोआनी भूतों के किस्से सुन रही थी. डर से उस का रोआंरोआं कांप रहा था, भूतप्रेत पर वह पहले भी विश्वास करती ही थी. जब वह चौकीदार से बातें कर रही थी तो उसे दूर वह फिर फोन पर बाते करते हुए टहलता दिखा. अजीब असमंजस में सुनीला पड़ गई. उस ने चौकीदार से पूछा, ‘‘क्या आप को उधर सफेद शर्ट वाला व्यक्ति दिखाई दे रहा है?’’ उंगलियों से इंगित करते हुए उस ने पूछा, पर तब तक उस की ही आंखों से ओझल हो गया.

उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि क्या करे. इस बीच मम्मी के कई फोन आ चुके थे. दिन में क्या कर रही हो, किधर घूमने जा रही हो?

‘‘याद है न बेटा डाक्टर ने क्या कहा था,’’ मम्मी बोल रही थी.

इधर कुछ दिनों से रांची के कई चिकित्सकों से वह मिल चुकी थी. उस की पैर की हड्डी टूटी थी सो अस्पतालों के कई चक्कर लगे थे. कुछ दिन ऐडिमट भी रही थी, दिनभर तरहतरह के डाक्टर आते और उस से बातें करते. सुनीला कहती भी थी हड्डी टूटने पर इतने डाक्टर की क्या जरूरत. ठीक होने पर एक डाक्टर ने ही कहा था.

‘‘सुनीला कुछ दिन कहीं बाहर घूम आओ, मन को अच्छा लगेगा.’’

‘‘पर डाक्टर मैं कालेज में पढ़ाती हूं, ऐसे कैसे जा सकती हूं?’’

फिर घर में लोगों के जमघट से परेशान हो आखिर निकल ही गई. काश, रमणिका साथ होती.

सुनीला अपने कमरे की तरफ जाने लगी… तभी मैनेजर ने पूछा, ‘‘हमारी एक टूरिस्ट बस नौर्थ गोवा के पुराने पुर्तगाली घर घुमाने जाने वाली है, एक सीट ही खाली है. सोचा आप से पूछ लूं.’’

अनमनी सी सुनीला बस में चढ़ गई. बैठने से पूर्व उस ने अच्छे से मुआयना किया कि कहीं वह तो नहीं. न पा कर तसल्ली से बैठ गई और बाहर के सुंदर दृश्यों का आनंद लेने लगी.

एक के बाद एक कई पुराने पुर्तगाली घर घुमाया गया, हर घर के साथ एक रहस्यमयी रोमांचकारी या कोई भूतिया कहानी जुड़ी हुई थी. वह तो अच्छा था कि ढेरों टूरिस्ट साथ थे वरना सुनीला की हालत पतली ही थी.

एक बंगला घूमते वक्त सुनीला एक आदमकद शीशे के समक्ष खड़ी थी कि पीछे से उसी का अक्स दिखाई दिया. व्हाइट शर्ट और ब्लू डैनिम में. डर के मारे सुनीला चिल्लाने लगी, ‘‘भूतभूत… चेहरा का रंग पीला पड़ गया और थरथर कांपने लगी.

बेचारा गाइड घबरा गया, ‘‘मैडम ये सब कहानियां सुनीसुनाई हैं, पर्यटकों के मनोरंजन के लिए हम इन्हें सुनाते हैं,’’ बेचारा गाइड सफाई देते नहीं थक रहा था.

कुछ महिलाओं की मदद से उसे बस में बैठा दिया गया और फिर सब घूमने लगे. खड़ी बस में वह अकेले सामने वाली सीट पर झुक कर विचारों में मगन हो गई. क्यों वह बारबार उसे दिख रहा? क्या किसी और को भी दिखता है या सिर्फ उसे ही.

‘क्या सचमुच भूत है या पूर्व जन्म का नाता? फिर वह नीलानीला क्यों बोलता है?’

सुनीला जैसे किसी किसी चक्रव्यूह में फंस गई थी. अभी 2 दिन गोवा में और रहना है पर उस का मन ऊब चल था. शादी के बाद ही आना सही रहता, बेकार में घूम भी लिया और उस भूत के चलते मजा भी किरकिरा हो गया. कुछ देर के बाद आंसुओं से सिना चेहरा उस ने ऊपर किया तो उसे जैसे करंट लग गया. वह उस की सीट के बिलकुल सामने उस की ओर देखते हुए नारियल पानी पी रहा था. सुनीला इतनी बेबस कभी नहीं हुई थी. खाली बस वह अकेली, डर से उस का गला भी बंद हो गया. उस ने लगभग घिघयाते हुए बमुश्किल पूछा, ‘‘कौन हो तुम? क्या चाहते हो मुझ से?’’

वह बस मुसकराता रहा. टूरिस्ट बस में आने लगे थे. उस ने कहा, ‘‘मैं बस तुम को देखना चाहता हूं.’’

ड्राइवर से कुछ बात कर वह सुनीला की बगल वाली सीट पर बैठ गया. सुनीला को तो जैसे काटो तो खून नहीं. वह उठ कर जाने लगी तभी बस चल पड़ी.

‘‘यानी यह भूत तो कतई नहीं है, इस ने बातें करी दूसरों से.’’

सुनीला मन ही मन गुथ रही थी. भूतिया डर जाने के बाद उस का मन हलका हो गया था.

‘वैसे है हैंडसम यह,’ उस ने मन ही मन सोचा. फिर तो बातों का सिलसिला ही निकल चला.

‘‘आप मेरी फ्रैंड को कैसे जानते हैं?’’

‘‘क्योंकि वह मेरे ही शहर की है.’’

‘‘यानी आप रांची से हैं? मैं भी तो… ’’

‘‘हां, मैं तुम्हें जानता हूं, तुम्हारे पूरे परिवार को भी.’’

अब चौंकने की बारी सुनीला की थी.

वह 2 दिन जिन्हें काटने में उसे परेशानी हो रही थी जैसे फुर्र हो गए. अपने शहर का लड़का और कई समानताएं उसे आकर्षित कर रही थीं. आखिरी शाम सुनीला ने उस का हाथ थाम कर पूछ ही लिया, ‘‘क्या मुझ से शादी करोगे अनुदीप?’’

‘‘जरूरजरूर पर कितनी बार मुझ से शादी करोगी?’’ अनुदीप ने हंसते हुए पूछा.

‘‘हर जन्म में,’’ सुनीला ने भावुकता से कहा.

‘‘मैं इसी जन्म की बात कर रहा हूं.’’

सुनीला फिर चकित हो उसे देखने लगी. तभी रमणिका एक फोटो अलबम हाथ में लिए आते दिखी.

‘‘तुम कब आईं?’’ सुनीला ने पूछा.

‘‘मैं गई ही कब थी? मैं तुम्हें अपनी जिम्मेदारी पर यहां लाई थी. परंतु अब जरा ध्यान से सारी बातें सुनो. तुम्हारी शादी 1 साल पहले अनुदीप से हो चुकी है. यहीं गोवा में तुम ने हनीमून भी मनाया है. पर रांची लौटने के पश्चात पतरातू घाटी में एक दिन तुम्हारा ऐक्सीडैंट हो गया. कार में तुम दोनों ही थे. चोटें तुम दोनों को आईं पर तुम्हें कुछ अधिक आघात पहुंचा जिस में तुम अपनी शादी की बात बिलकुल भूल गई. कहीं गोआ में तुम्हें अपना विगत याद आ जाए, यही सोच हम ने यह प्लान बनाया. यह अलबम देखो,’’ उस ने कहा.

सुनीला पन्ने पलटने लगी, हां यह अनुदीप ही है और यह मैं. वह चकित थी.

घर पर उस दिन आए हुए लोग भी हैं इस में. सामने अश्रुसिक्त नयनों से अनुदीप बैठा था.

‘‘अनुदीप जब अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर लौटा, तब तक वह तुम्हारे लिए अजनबी हो चुका था. वह कई बार तुम से मिला भी, तुम्हारी अजनबियत निगाहें उस का हृदय तोड़ देती थीं. रांची के प्रसिद्ध मनोचिकित्सकों ने तुम्हारा कई महीने इलाज किया. तुम पहले से अब काफी बेहतर हो, अनुदीप ने फिर से तुम्हारे दिल को जीतने के लिए यह ड्रामा रचा.’’

‘‘पर तुम ने तो उसे भूत ही बना दिया. वह अकसर मुझ से या तुम्हारी मम्मी से बातें करने के लिए तुम से अलग होता था. अब तुम जब उस से शादी करने के लिए राजी हो गई तो हम ने सोचा कि अब पटाक्षेप किया जाए. आंटी से बातें करो बहुत कठिन दिन गुजारे हैं उन्होंने’’

सुनीला अपनी मम्मी की बातें सुन रही थी साथ ही साथ सामने बैठे अनुदीप के चेहरे के बनतेबिगड़ते भावों को महसूस कर रही थी.

‘‘याद तो मुझे अब भी नहीं है पर मुझे अनुदीप पसंद है और यही बात मेरे लिए माने रखती है. तुम आधिकारिक तौर पर मेरे पति हो पर तुम ने कभी ऐसा कोई अधिकार नहीं जताया. आई लव यू.’’

‘‘मैं तुम्हें नीला और तुम मुझे दीप कहती थी,’’ भर्राए गले से अनुदीप ने कहा.

‘‘आधी रात को तुम खिड़की पर आखिर लटके कैसे थे, तभी तो तुम्हें भूत समझती रही?’’ हंसती हुई सुनीला ने पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी बगल वाले कमरे में था, दोनों की बालकनी

जुड़ी हुई थी, सिंपल. मुझे नींद नहीं आ रही थी और मैं तुम्हें देखना चाहता था, वह कर्मचारी शायद उनींदा था.’’

फिजां में लाखों दीप जलने लगे और आसमान से नीले फूलों की बरसात होने लगी.

Best Hindi Stories : पासा पलट गया

Best Hindi Stories :  आभा गोरे रंग की एक खूबसूरत लड़की थी. उस का कद लंबा, बदन सुडौल और आंखें बड़ीबड़ी व कजरारी थीं. उस की आंखों में कुछ ऐसा जादू था कि उसे जो देखता उस की ओर खिंचा चला जाता. विक्रम भी पहली ही नजर में उस की ओर खिंच गया था.

उन दिनों विक्रम अपने मामा के घर आया हुआ था. उस के मामा का घर पटना से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर एक गांव में था.

विक्रम तेजतर्रार लड़का था. वह बातें भी बहुत अच्छी करता था. खूबसूरत लड़कियों को पहले तो वह अपने प्रेमजाल में फंसाता था, फिर उन्हें नौकरी दिलाने का लालच दे कर हुस्न और जवानी के रसिया लोगों के सामने पेश कर पैसे कमाता था. इसी प्लान के तहत उस ने आभा से मेलजोल बढ़ाया था.

उस दिन जब आभा विक्रम से मिली तो बेहद उदास थी. विक्रम कई पलों तक उस के उदास चेहरे को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘क्या बात है आभा, आज बड़ी उदास लग रही हो?’’

‘‘हां,’’ आभा बोली, ‘‘विक्रम, मैं अब आगे पढ़ नहीं पाऊंगी और अगर पढ़ नहीं पाई तो अपना सपना पूरा नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘कैसा सपना?’’

‘‘पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होने का सपना ताकि अपने मांबाप को गरीबी से छुटकारा दिला सकूं.’’

‘‘बस, इतनी सी बात है.’’

‘‘तुम बस इसे इतनी सी ही बात समझते हो?’’

‘‘और नहीं तो क्या…’’ विक्रम बोला, ‘‘तुम पढ़लिख कर नौकरी ही तो करना चाहती हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘वह तो तुम अब भी कर सकती हो.’’

‘‘लेकिन, भला कम पढ़ीलिखी लड़की को नौकरी कौन देगा? मैं सिर्फ इंटर पास हूं,’’ आभा बोली.

‘‘मैं कई सालों से पटना की एक कंपनी में काम करता हूं, इस नाते मैनेजर से मेरी अच्छी जानपहचान है. अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे बारे में उस से बात कर सकता हूं.’’

‘‘तो फिर करो न…?’’ आभा बोली, ‘‘अगर तुम्हारे चलते मुझे नौकरी मिल गई तो मैं हमेशा तुम्हारी अहसानमंद रहूंगी.’’

आभा विक्रम के साथ पटना आ गई थी. एक होटल के कमरे में विक्रम ने एक आदमी से मिलवाया. वह तकरीबन 45 साल का था.

जब विक्रम ने उस से आभा का परिचय कराया तो वह कई पलों तक उसे घूरता रहा, फिर अपने पलंग के सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

आभा ने एक नजर कुरसी के पास खड़े विक्रम को देखा, फिर कुरसी पर बैठ गई.

उस के बैठते ही विक्रम उस आदमी से बोला, ‘‘सर, आप आभा से जो कुछ पूछना चाहते हैं, पूछिए. मैं थोड़ी देर में आता हूं,’’ कहने के बाद विक्रम आभा को बोलने का कोई मौका दिए बिना जल्दी से कमरे से निकल गया.

उसे इस तरह कमरे से जाते देख आभा पलभर को बौखलाई, फिर अपनेआप को संभालते हुए तथाकथित मैनेजर को देखा.

उसे अपनी ओर निहारता देख वह बोला, ‘‘तुम मुझे अपने सर्टिफिकेट दिखाओ.’’

आभा ने उसे अपने सर्टिफिकेट दिखाए. वह कुछ देर तक उन्हें देखने का दिखावा करता रहा, फिर बोला, ‘‘तुम्हारी पढ़ाईलिखाई तो बहुत कम है. इतनी कम क्वालिफिकेशन पर आजकल नौकरी मिलना मुश्किल है.’’

‘‘पर, विक्रम ने तो कहा था कि इस क्वालिफिकेशन पर मुझे यहां नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘ठीक है, मैं विक्रम के कहने पर तुम्हें अपनी फर्म में नौकरी दे तो दूंगा, पर बदले में तुम मुझे क्या दोगी?’’ कहते हुए उस ने अपनी नजरें आभा के खूबसूरत चेहरे पर टिका दीं.

‘‘मैं भला आप को क्या दे सकती हूं?’’ आभा उस की आंखों के भावों से घबराते हुए बोली.

‘‘दे सकती हो, अगर चाहो तो…’’

‘‘क्या…?’’

‘‘अपनी यह खूबसूरत जवानी.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हैं आप?’’ आभा झटके से अपनी कुरसी से उठते हुए बोली, ‘‘मैं यहां नौकरी करने आई हूं, अपनी जवानी का सौदा करने नहीं.’’

‘‘नौकरी तो तुम्हें मिलेगी, पर बदले में मुझे तुम्हारा यह खूबसूरत जिस्म चाहिए,’’ कहता हुआ वह आदमी पलंग से उतर कर आभा के करीब आ गया. वह पलभर तक भूखी नजरों से उसे घूरता रहा, फिर उस के कंधे पर हाथ रख दिया.

उस आदमी की इस हरकत से आभा पलभर को बौखलाई, फिर उस के जिस्म में गुस्से और बेइज्जती की लहर दौड़ गई. वह बोली, ‘‘मुझे नौकरी चाहिए, पर अपने जिस्म की कीमत पर नहीं,’’ कहते हुए आभा दरवाजे की ओर लपकी.

पर दरवाजे पर पहुंच कर उसे झटका लगा. दरवाजा बाहर से बंद था. आभा दरवाजा खोलने की कोशिश करती रही, फिर पलट कर देखा.

‘‘अब यह दरवाजा तभी खुलेगा जब मैं चाहूंगा,’’ वह आदमी अपने होंठों पर एक कुटिल मुसकान बिखेरता हुआ बोला, ‘‘और मैं तब तक ऐसा नहीं चाहूंगा जब तक तुम मुझे खुश नहीं कर दोगी.’’

उस आदमी का यह इरादा देख कर आभा मन ही मन कांप उठी. वह डरी हुई आवाज में बोली, ‘‘देखो, तुम जैसा समझते हो, मैं वैसी लड़की नहीं हूं. मैं गरीब जरूर हूं, पर अपनी इज्जत का सौदा नहीं कर सकती. प्लीज, दरवाजा खोलो और मुझे जाने दो.’’

‘‘हाथ आए शिकार को मैं यों ही कैसे जाने दूं…’’ बुरी नजरों से आभा के उभारों को घूरता हुआ वह बोला, ‘‘तुम्हारी जवानी ने मेरे बदन में आग लगा दी है और मैं जब तक तुम्हारे तन से लिपट कर यह आग नहीं बुझा लेता, तुम्हें जाने नहीं दे सकता,’’ कहते हुए वह झपट कर आगे बढ़ा, फिर आभा को अपनी बांहों में दबोच लिया.

अगले ही पल वह आभा को बुरी तरह चूमसहला रहा था. साथ ही, वह उस के कपड़े भी नोच रहा था. ऐसे में जब आभा का अधनंगा बदन उस के सामने आया तो वह बावला हो उठा. उस ने आभा को गोद में उठा कर पलंग पर डाला, फिर उस पर सवार हो गया.

आभा रोतीछटपटाती रही, पर उस ने उसे तभी छोड़ा जब अपनी मनमानी कर ली. ऐसा होते ही वह हांफता हुआ आभा पर से उतर गया.

आभा कई पलों तक उसे नफरत से घूरती रही, ‘‘तू ने मुझे बरबाद कर डाला. पर याद रख, मैं इस की सजा दिला कर रहूंगी. तेरी काली करतूतों का भंडाफोड़ पुलिस के सामने करूंगी.’’

‘‘तू मुझे सजा दिलाएगी, पर मैं तुझे इस लायक छोड़ूंगा ही नहीं,’’ कहते हुए उस ने झपट कर आभा की गरदन पकड़ ली और उसे दबाने लगा.

आभा उस के चंगुल से छूटने की भरपूर कोशिश कर रही थी, पर थोड़ी ही देर में उसे यह अहसास हो गया कि वह उस से पार नहीं पा सकती और वह उसे गला घोंट कर मार डालेगा.

ऐसा अहसास करते ही उस ने अपने हाथपैर पटकने बंद कर दिए, अपनी सांसें रोक लीं और शरीर को शांत कर लिया.

जब तथाकथित मैनेजर को इस बात का अहसास हुआ तो उस ने आभा की गरदन छोड़ दी और फटीफटी आंखों से आभा के शरीर को देखने लगा. उसे लगा कि आभा मर चुकी है. ऐसा लगते ही उस के चेहरे से बदहवासी और खौफ टपकने लगा.

तभी दरवाजा खुला और विक्रम कमरे में आया. ऐसे में जैसे ही उस की नजर आभा पर पड़ी, उस के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकल गई. वह कांपती हुई आवाज में बोला, ‘‘यह क्या किया आप ने? इसे तो जान से मार डाला आप ने?’’

‘‘नहीं,’’ वह आदमी डरी हुई आवाज में बोला, ‘‘मैं इसे मारना नहीं चाहता था, पर यह पुलिस में जाने की धमकी देने लगी तो मैं ने इस का गला दबा दिया.’’

‘‘और यह मर गई…’’ विक्रम उसे घूरता हुआ बोला.

‘‘जरा सोचिए, मगर इस बात का पता होटल वालों को लगा तो वह पुलिस बुला लेंगे. पुलिस आप को पकड़ कर ले जाएगी और आप को फांसी की सजा होगी.’’

‘‘नहीं…’’ वह आदमी डरी हुई आवाज में बोला, ‘‘ऐसा कभी नहीं होना चाहिए.’’

‘‘वह तो तभी होगा जब चुपचाप इस लाश को ठिकाने लगा दिया जाए.’’

‘‘तो लगाओ,’’ वह आदमी बोला.

‘‘यह इतना आसान नहीं है,’’ कहते हुए विक्रम की आंखों में लालच की चमक उभरी, ‘‘इस में पुलिस में फंसने का खतरा है और कोई यह खतरा यों ही नहीं लेता.’’

‘‘फिर…?’’

‘‘कीमत लगेगी इस की.’’

‘‘कितनी?’’

‘‘5 लाख?’’

‘‘5 लाख…? यह तो बहुत ज्यादा रकम है.’’

‘‘आप की जान से ज्यादा तो नहीं,’’ विक्रम बोला, ‘‘और अगर आप को कीमत ज्यादा लग रही है तो आप खुद इसे ठिकाने लगा दीजिए, मैं तो चला,’’ कहते हुए विक्रम दरवाजे की ओर बढ़ा.

‘‘अरे नहीं…’’ वह हड़बड़ाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हें 5 लाख रुपए दूंगा, पर इस मामले में तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगा. तुम्हें सबकुछ अकेले ही करना होगा.’’ड्टविक्रम ने पलभर सोचा, फिर हां में सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘कर लूंगा, पर पैसे…?’’

‘‘काम होते ही पैसे मिल जाएंगे.’’

‘‘पर याद रखिए, अगर धोखा देने की कोशिश की तो मैं सीधे पुलिस के पास चला जाऊंगा.’’

‘‘मैं ऐसा नहीं करूंगा,’’ कहते हुए वह कमरे से निकल गया.

इधर वह कमरे से निकला और उधर उस ने बेसुध पड़ी आभा को देखा. वह उसे ठिकाने लगाने के बारे में सोच ही रहा था कि आभा उठ बैठी.

अपने सामने आभा को खड़ी देख विक्रम की आंखें हैरानी से फटती चली गईं. उस के मुंह से हैरत भरी आवाज फूटी, ‘‘आभा, तुम जिंदा हो?’’

‘‘हां,’’ आभा बोली, ‘‘पर, अब तुम जिंदा नहीं रहोगे. तुम भोलीभाली लड़कियों को नौकरी का झांसा दे कर जिस्म के सौदागरों को सौंपते हो. मैं तुम्हारी यह करतूत लोगों को बतलाऊंगी, तुम्हारी शिकायत पुलिस में करूंगी.’’

आभा का यह रूप देख कर पहले तो विक्रम बौखलाया, फिर उस के सामने गिड़गिड़ाता हुआ बोला, ‘‘ऐसा मत करना.’’

‘‘क्यों न करूं मैं ऐसा, तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी और कहते हो कि मैं ऐसा न करूं.’’

‘‘क्योंकि, तुम्हारे ऐसा न करने से मेरे हाथ एक मोटी रकम लगेगी जिस में से आधी रकम मैं तुम्हें दे दूंगा.’’

‘‘मतलब…?’’

विक्रम ने उसे पूरी बात बताई.

‘‘सच कह रहे हो तुम?’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘अपनी बात से तुम पलट तो नहीं जाओगे?’’

‘‘ऐसे में तुम बेशक पुलिस में मेरी शिकायत कर देना.’’

‘‘अगर तुम ने मुझे धोखा नहीं दिया तो मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मैं ऐसा करूंगी.’’

तीसरे दिन आभा के हाथ में ढाई लाख की मोटी रकम विक्रम ने ला कर रख दी. उस ने एक चमकती नजर इन नोटों पर डाली, फिर विक्रम की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘अगर दोबारा कोई ऐसा ही मोटा मुरगा फंसे तो मुझ से कहना. मैं फिर से यह सब करने को तैयार हो जाऊंगी,’’ कहते हुए आभा मुसकराई.

‘‘जरूर,’’ कहते हुए विक्रम के होंठों पर भी एक दिलफरेब मुसकान खिल उठी.

Famous Hindi Stories : मझधार – हमेशा क्यों चुपचाप रहती थी नेहा ?

Famous Hindi Stories :  पूरे 15 वर्ष हो गए मुझे स्कूल में नौकरी करते हुए. इन वर्षों में कितने ही बच्चे होस्टल आए और गए, किंतु नेहा उन सब में कुछ अलग ही थी. बड़ी ही शांत, अपनेआप में रहने वाली. न किसी से बोलती न ही कक्षा में शैतानी करती. जब सारे बच्चे टीचर की गैरमौजूदगी में इधरउधर कूदतेफांदते होते, वह अकेले बैठे कोई किताब पढ़ती होती या सादे कागज पर कोई चित्रकारी करती होती. विद्यालय में होने वाले सारे कार्यक्रमों में अव्वल रहती. बहुमखी प्रतिभा की धनी थी वह. फिर भी एक अलग सी खामोशी नजर आती थी मुझे उस के चेहरे पर. किंतु कभीकभी वह खामोशी उदासी का रूप ले लेती. मैं उस पर कई दिनों से ध्यान दे रही थी. जब स्पोर्ट्स का पीरियड होता, वह किसी कोने में बैठ गुमनाम सी कुछ सोचती रहती.

कभीकभी वह कक्षा में पढ़ते हुए बोर्ड को ताकती रहती और उस की सुंदर सीप सी आंखें आंसुओं से चमक उठतीं. मेरे से रहा न गया, सो मैं ने एक दिन उस से पूछ ही लिया, ‘‘नेहा, तुम बहुत अच्छी लड़की हो. विद्यालय के कार्यक्रमों में हर क्षेत्र में अव्वल आती हो. फिर तुम उदास, गुमसुम क्यों रहती हो? अपने दोस्तों के साथ खेलती भी नहीं. क्या तुम्हें होस्टल या स्कूल में कोई परेशानी है?’’

वह बोली, ‘‘जी नहीं मैडम, ऐसी कोई बात नहीं. बस, मुझे अच्छा नहीं लगता. ’’

उस के इस जवाब ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया जहां बच्चे खेलते नहीं थकते, उन्हें बारबार अनुशासित करना पड़ता है, उन्हें उन की जिम्मेदारियां समझानी पड़ती हैं वहां इस लड़की के बचपन में यह सब क्यों नहीं? मुझे लगा, कुछ तो ऐसा है जो इसे अंदर ही अंदर काट रहा है. सो, मैं ने उस का पहले से ज्यादा ध्यान रखना शुरू कर दिया. मैं देखती थी कि जब सारे बच्चों के मातापिता महीने में एक बार अपने बच्चों से मिलने आते तो उस से मिलने कोई नहीं आता था. तब वह दूर से सब के मातापिता को अपने बच्चों को पुचकारते देखती और उस की आंखों में पानी आ जाता. वह दौड़ कर अपने होस्टल के कमरे में जाती और एक तसवीर निकाल कर देखती, फिर वापस रख देती.

जब बच्चों के जन्मदिन होते तो उन के मातापिता उन के लिए व उन के दोस्तों के लिए चौकलेट व उपहार ले कर आते लेकिन उस के जन्मदिन पर किसी का कोई फोन भी न आता. हद तो तब हो गई जब गरमी की छुट्टियां हुईं. सब के मातापिता अपने बच्चों को लेने आए लेकिन उसे कोई लेने नहीं आया. मुझे लगा, कोई मांबाप इतने गैर जिम्मेदार कैसे हो सकते हैं? तब मैं ने औफिस से उस का फोन नंबर ले कर उस के घर फोन किया और पूछा कि आप इसे लेने आएंगे या मैं ले जाऊं?

जवाब बहुत ही हैरान करने वाला था. उस की दादी ने कहा, ‘‘आप अपने साथ ले जा सकती हैं.’’ मैं समझ गई थी कोई बड़ी गड़बड़ जरूर है वरना इतनी प्यारी बच्ची के साथ ऐसा व्यवहार? खैर, उन छुट्टियों में मैं उसे अपने साथ ले गई. कुछ दिन तो वह चुपचाप रही, फिर धीरेधीरे मेरे साथ घुलनेमिलने लगी थी. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं किसी बड़ी जंग को जीतने वाली हूं. छुट्टियों के बाद जब स्कूल खुले वह 8वीं कक्षा में आ गई थी. उस की शारीरिक बनावट में भी परिवर्तन होने लगा था. मैं भलीभांति समझती थी कि उसे बहुत प्यार की जरूरत है. सो, अब तो मैं ने बीड़ा उठा लिया था उस की उदासी को दूर करने का. कभीकभी मैं देखती थी कि स्कूल के कुछ शैतान बच्चे उसे ‘रोतली’ कह कर चिढ़ाते थे. खैर, उन्हें तो मैं ने बड़ी सख्ती से कह दिया था कि यदि अगली बार वे नेहा को चिढ़ाते पाए गए तो उन्हें सजा मिलेगी.

हां, उस की कुछ बच्चों से अच्छी पटती थी. वे उसे अपने घरों से लौटने के बाद अपने मातापिता के संग बिताए पलों के बारे में बता रहे थे तो उस ने भी अपनी इस बार की छुट्टियां मेरे साथ कैसे बिताईं, सब को बड़ी खुशीखुशी बताया. मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अपनी मंजिल का आधा रास्ता तय कर चुकी हूं. इस बार दीवाली की छुट्टियां थीं और मैं चाहती थी कि वह मेरे साथ दीवाली मनाए. सो, मैं ने पहले ही उस के घर फोन कर कहा कि क्या मैं नेहा को अपने साथ ले जाऊं छुट्टियों में? मैं जानती थी कि जवाब ‘हां’ ही मिलेगा और वही हुआ. दीवाली पर मैं ने उसे नई ड्रैस दिलवाई और पटाखों की दुकान पर ले गई. उस ने पटाखे खरीदने से इनकार कर दिया. वह कहने लगी, उसे शोर पसंद नहीं. मैं ने भी जिद करना उचित न समझा और कुछ फुलझडि़यों के पैकेट उस के लिए खरीद लिए. दीवाली की रात जब दिए जले, वह बहुत खुश थी और जैसे ही मैं ने एक फुलझड़ी सुलगा कर उसे थमाने की कोशिश की, वह नहींनहीं कह रोने लगी और साथ ही, उस के मुंह से ‘मम्मी’ शब्द निकल गया. मैं यही चाहती थी और मैं ने मौका देख उसे गले लगा लिया और कहा, ‘मैं हूं तुम्हारी मम्मी. मुझे बताओ तुम्हें क्या परेशानी है?’ आज वह मेरी छाती से चिपक कर रो रही थी और सबकुछ अपनेआप ही बताने लगी थी.

वह कहने लगी, ‘‘मेरे मां व पिताजी की अरेंज्ड मैरिज थी. मेरे पिताजी अपने मातापिता की इकलौती संतान हैं, इसीलिए शायद थोड़े बदमिजाज भी. मेरी मां की शादी के 1 वर्ष बाद ही मेरा जन्म हुआ. मां व पिताजी के छोटेछोटे झगड़े चलते रहते थे. तब मैं कुछ समझती नहीं थी. झगड़े बढ़ते गए और मैं 5 वर्ष की हो गई. दिनप्रतिदिन पिताजी का मां के साथ बरताव बुरा होता जा रहा था. लेकिन मां भी क्या करतीं? उन्हें तो सब सहन करना था मेरे कारण, वरना मां शायद पिताजी को छोड़ भी देतीं.

‘‘पिताजी अच्छी तरह जानते थे कि मां उन को छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. पिताजी को सिगरेट पीने की बुरी आदत थी. कई बार वे गुस्से में मां को जलती सिगरेट से जला भी देते थे. और वे बेचारी अपनी कमर पर लगे सिगरेट के निशान साड़ी से छिपाने की कोशिश करती रहतीं. पिताजी की मां के प्रति बेरुखी बढ़ती जा रही थी और अब वे दूसरी लड़कियों को भी घर में लाने लगे थे. वे लड़कियां पिताजी के साथ उन के कमरे में होतीं और मैं व मां दूसरे कमरे में. ‘‘ये सब देख कर भी दादी पिताजी को कुछ न कहतीं. एक दिन मां ने पिताजी के अत्याचारों से तंग आ कर घर छोड़ने का फैसला कर लिया और मुझे ले कर अपने मायके आ गईं. वहां उन्होंने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी भी कर ली. मेरे नानानानी पर तो मानो मुसीबत के पहाड़ टूट पड़े. मेरे मामा भी हैं किंतु वे मां से छोटे हैं. सो, चाह कर भी कोई मदद नहीं कर पाए. जो नानानानी कहते वे वही करते. कई महीने बीत गए. अब नानानानी को लगने लगा कि बेटी मायके आ कर बैठ गई है, इसे समझाबुझा कर भेज देना चाहिए. वे मां को समझाते कि पिताजी के पास वापस चली जाएं.

‘‘एक तरह से उन का कहना भी  सही था कि जब तक वे हैं ठीक है. उन के न रहने पर मुझे और मां को कौन संभालेगा? किंतु मां कहतीं, ‘मैं मर जाऊंगी लेकिन उस के पास वापस नहीं जाऊंगी.’

‘‘दादादादी के समझाने पर एक बार पिताजी मुझे व मां को लेने आए और तब मेरे नानानानी ने मुझे व मां को इस शर्त पर भेज दिया कि पिताजी अब मां को और नहीं सताएंगे. हम फिर से पिताजी के पास उन के घर आ गए. कुछ दिन पिताजी ठीक रहे. किंतु पिताजी ने फिर अपने पहले वाले रंगढंग दिखाने शुरू कर दिए. अब मैं धीरेधीरे सबकुछ समझने लगी थी. लेकिन पिताजी के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आया. वे उसी तरह मां से झगड़ा करते और उन्हें परेशान करते. इस बार जब मां ने नानानानी को सारी बातें बताईं तो उन्होंने थोड़ा दिमाग से काम लिया और मां से कहा कि मुझे पिताजी के पास छोड़ कर मायके आ जाएं. ‘‘मां ने नानानानी की बात मानी और मुझे पिताजी के घर में छोड़ नानानानी के पास चली गईं. उन्हें लगा शायद मुझे बिन मां के देख पिताजी व दादादादी का मन कुछ बदल जाएगा. किंतु ऐसा न हुआ. उन्होंने कभी मां को याद भी न किया और मुझे होस्टल में डाल दिया. नानानानी को फिर लगने लगा कि उन के बाद मां को कौन संभालेगा और उन्होंने पिताजी व मां का तलाक करवा दिया और मां की दूसरी शादी कर दी गई. मां के नए पति के पहले से 2 बच्चे थे और एक बूढ़ी मां. सो, मां उन में व्यस्त हो गईं.

‘‘इधर, मुझे होस्टल में डाल दादादादी व पिताजी आजाद हो गए. छुट्टियों में भी न मुझे कोई बुलाता, न ही मिलने आते. मां व पिताजी दोनों के मातापिता ने सिर्फ अपने बच्चों के बारे में सोचा, मेरे बारे में किसी ने नहीं. दोनों परिवारों और मेरे अपने मातापिता ने मुझे मझधार में छोड़ दिया.’’ इतना कह कर नेहा फूटफूट कर रोने लगी और कहने लगी, ‘‘आज फुलझड़ी से जल न जाऊं. मुझे मां की सिगरेट से जली कमर याद आ गई. मैडम, मैं रोज अपनी मां को याद करती हूं, चाहती हूं कि वे मेरे सपने में आएं और मुझे प्यार करें.

‘‘क्या मेरी मां भी मुझे कभी याद करती होंगी? क्यों वे मुझे मेरी दादी, दादा, पापा के पास छोड़ गईं? वे तो जानती थीं कि उन के सिवा कोई नहीं था मेरा इस दुनिया में. दादादादी, क्या उन से मेरा कोई रिश्ता नहीं? वे लोग मुझे क्यों नहीं प्यार करते? अगर मेरे पापा, मम्मी का झगड़ा होता था तो उस में मेरा क्या कुसूर? और नाना, नानी उन्होंने भी मुझे अपने पास नहीं रखा. बल्कि मेरी मां की दूसरी शादी करवा दी. और मुझ से मेरी मां छीन ली. मैं उन सब से नफरत करती हूं मैडम. मुझे कोई अच्छा नहीं लगता. कोई मुझ से प्यार नहीं करता.’’ वह कहे जा रही थी और मैं सुने जा रही थी. मैं नेहा की पूरी बात सुन कर सोचती रह गई, ‘क्या बच्चे से रिश्ता तब तक होता है जब तक उस के मातापिता उसे पालने में सक्षम हों? जो दादादादी, नानानानी अपने बच्चों से ज्यादा अपने नातीपोतों पर प्यार उड़ेला करते थे, क्या आज वे सिर्फ एक ढकोसला हैं? उन का उस बच्चे से रिश्ता सिर्फ अपने बच्चों से जुड़ा है? यदि किसी कारणवश वह बीच की कड़ी टूट जाए तो क्या उन दादादादी, नानानानी की बच्चे के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं? और क्या मातापिता अपने गैरजिम्मेदार बच्चों का विवाह कर एक पवित्र बंधन को बोझ में बदल देते हैं? क्या नेहा की दादी अपने बेटे पर नियंत्रण नहीं रख सकती थी और यदि नहीं तो उस ने नेहा की मां की जिंदगी क्यों बरबाद की, और क्यों नेहा की मां अपने मातापिता की बातों में आ गई और नेहा के भविष्य के बारे में न सोचते हुए दूसरे विवाह को राजी हो गई?

‘कैसे गैरजिम्मेदार होते हैं वे मातापिता जो अपने बच्चों को इस तरह अकेला घुटघुट कर जीने के लिए छोड़ देते हैं. यदि उन की आपस में नहीं बनती तो उस का खमियाजा बच्चे क्यों भुगतें. क्या हक होता है उन्हें बच्चे पैदा करने का जो उन की परवरिश नहीं कर सकते.’ मैं चाहती थी आज नेहा वह सब कह डाले जो उस के मन में नासूर बन उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है. जब वह सब कह चुप हुई तो मैं ने उसे मुसकरा कर देखा और पूछा, ‘‘मैं तुम्हें कैसी लगती हूं? क्या तुम समझती हो मैं तुम्हें प्यार करती हूं?’’ उस ने अपनी गरदन हिलाते हुए कहा, ‘‘हां.’’ और मैं ने पूछ लिया, ‘‘क्या तुम मुझे अपनी मां बनाओगी?’’ वह समझ न सकी मैं क्या कह रही हूं. मैं ने पूछा, ‘‘क्या तुम हमेशा के लिए मेरे साथ रहोगी?’’

जवाब में वह मुसकरा रही थी. और मैं ने झट से उस के दादादादी को बुलवा भेजा. जब वे आए, मैं ने कहा, ‘‘देखिए, आप की तो उम्र हो चुकी है और मैं इसे सदा के लिए अपने पास रखना चाहती हूं. क्यों नहीं आप इसे मुझे गोद दे देते?’’

दादादादी ने कहा, ‘‘जैसा आप उचित समझें.’’ फिर क्या था, मैं ने झट से कागजी कार्यवाही पूरी की और नेहा को सदा के लिए अपने पास रख लिया. मैं नहीं चाहती थी कि मझधार में हिचकोले खाती वह मासूम जिंदगी किसी तेज रेले के साथ बह जाए.

Hindi Kahaniyan : जिस्म का मुआवजा- क्या हुआ था मगनाबाई के साथ

Hindi Kahaniyan : जुलूस शहर की बड़ी सड़क से होता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था. औरतों के हाथों में बैनर थे, जिन में से एक पर मोटेमोटे अक्षरों में लिखा हुआ था, ‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमें भी जीने का हक है. औरत का जिस्म खिलौना नहीं है…’ लोग उन्हें पढ़ते, कुछ पढ़ कर चुपचाप निकल जाते, कुछ मनचले भद्दे इशारे करते, तो कुछ मनचले जुलूस के बीच घुस कर औरतों की छातियों पर चिकोटी काट लेते. औरतें चुपचाप सहतीं, बेखबर सी नारे लगाती आगे बढ़ती जा रही थीं.

वे सब मुख्यमंत्री के पास इंसाफ मांगने जा रही थीं. इंसाफ की एवज में अपनी इज्जत की कीमत लगाने, अपने उघड़े बदन को और उघाड़ने, गरम गोश्त के शौकीनों को ललचाने. शायद इसी बहाने उन्हें अपने दर्द का कोई मरहम मिल सके. उन के माईबाप सरकार को बताएंगे कि उन की बेटी, बहन, बहू के साथ कब, क्या और कैसे हुआ? करने वाला कौन था? उन की देह को उघाड़ने वाला, नोचने वाला कौन था?

औरतों के जिस्म का सौदा हमेशा से होता रहा है और होता रहेगा. ये वे अच्छी तरह जानती हैं, लेकिन वे सौदे में नुकसान की हिमायती नहीं हैं. घर वाले बतातेबताते यह भूल जाएंगे कि शब्दों के बहाने वे खुद अपनी ही बेटियोंऔरतों को चौराहों पर, सभाओं में या सड़कों पर नंगा कर रहे हैं. उन की इज्जत के चिथड़े कर रहे हैं, लेकिन जुलूस वालों की यह सोच कहां होती है? उन्हें तो मुआवजा चाहिए, औरत की देह का सरकारी मुआवजा.

अखबार के पहले पेज पर मुख्यमंत्रीजी के साथ छपी तसवीर ही शायद उन के दर्द का मरहम हो. चाहे कुछ भी हो, लेकिन लोग उन्हें देखेंगे, पढ़ेंगे और यकीनन हमदर्दी जताने के बहाने उन के घर आ कर उन के जख्म टटोलतेटटोलते खुद कोई चीरा लगा जाएंगे. भीड़ में इतनी सोच और समझ कहां होती है. पर मगनाबाई इतनी छोटी सी उम्र में भी सब समझने लगी थी. लड़की जब एक ही रात में औरत बना दी जाती है, तब न समझ में आने वाली बातें भी समझ में आने लगती हैं. मर्दों के प्रति उस का नजरिया बदल जाता है.

15 साल की मगनाबाई 8 दिन की बच्ची को कंधे से चिपकाए जुलूस में चल रही थी. उस के साथ उस जैसी और भी लड़कियां थीं. किसी की सलवार में खून लगा था, कपड़े फटे और गंदे थे. किसी के गले और मुंह पर खरोंचों के निशान साफ नजर आ रहे थे. अंदर जाने कितने होंगे. किसी का पेट बढ़ा था. क्या ये सब अपनीअपनी देह उघाड़ कर दिखाएंगी? कैसे बताएंगी कि उस रात कितने लोगों ने…

मगनाबाई का गला सूखने लगा. कमजोरी के चलते उसे चक्कर आने लगे. लगा कि कंधे से चिपकी बच्ची छूट कर नीचे गिर जाएगी और जुलूस उस को कुचलता हुआ निकल जाएगा. जो कुचली जाएगी, उस के साथ किसी की भी हमदर्दी नहीं होगी. मगनाबाई ने साथ चलती एक औरत को पकड़ लिया. उस औरत ने मगनाबाई पर एक नजर डाली, उस की पीठ थपथपाई, ‘‘बच्ची, जब इतनी हिम्मत की है, तो थोड़ी और सही. अब तो मंजिल के करीब आ ही गए हैं. भरोसा रख. कहीं न कहीं तो इंसाफ मिलेगा…’’

कहने वाली औरत को मगनाबाई ने देखा. मन हुआ कि हंसे और पूछे, ‘भला औरत की भी कोई मंजिल होती है? किस पर भरोसा रखे? भेडि़यों से इंसाफ की उम्मीद तुम्हें होगी, मुझे नहीं,’ नफरत से उस ने जमीन पर थूक दिया. कंधे से चिपकी बच्ची रोए जा रही थी. मगनाबाई का मन हुआ कि जलालत के इस मांस के लोथड़े को पैरों से कुचल जाने के लिए जमीन पर गिरा दे. उसे लगा कि बच्ची बहुत भारी होती जा रही है. उस के कंधे बोझ उठाने में नाकाम लग रहे थे. जुलूस के साथ पैरों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था.

मगनाबाई कुछ देर वहीं खड़ी रही. जुलूस को उस ने आगे बढ़ जाने दिया. सड़क खाली हुई, तो उस की नजर सड़क के किनारे लगे हैंडपंप पर पड़ी. उस ने दौड़ कर किसी तरह बच्ची को गोद में उठाए ही पानी पीया. फिर वह एक बंद दुकान के चबूतरे पर रोती बच्ची को लिटा कर दीवार की टेक लगा कर बैठ गई. बच्ची ने लेटते ही रोना बंद कर दिया. मगनाबाई को भी सुकून मिला. कुनकुनी धूप उसे भली लगी. वह भी बच्ची के करीब लेट गई. उस की आंखें मुंदने लगीं.

मगनाबाई इस जुलूस के साथ आना नहीं चाहती थी. गप्पू भाई और भोला चाचा ही उसे बिस्तर से घसीट कर जुलूस के साथ ले आए. उस की आंखों के सामने बस्ता ले कर स्कूल जाती चंपा, गंगा और जूही नाच उठीं, लेकिन अब उस का बस्ता छूट गया और बस्ते की जगह इस बच्ची ने ले ली. गप्पू भाई और भोला चाचा कहते थे कि मगनाबाई पहले की तरह स्कूल जा सकेगी. इस बच्ची को किसी अनाथालय में डाल देंगे. वह फिर पहले की तरह हो जाएगी. बस, मुख्यमंत्री से मुआवजा मिल जाए. वे दोनों इन औरतों को दलदल से निकालने वाली संस्था के पैरोकार थे. जब भी पुलिस की रेड पड़नी होती थी, वे दोनों और उन की रखैलें इन औरतों के साथ बदसलूकी न हो, इसलिए साथ होते. जब भी वे दोनों साथ होते, तो पुलिस वाले रहम से पेश आते थे. आमतौर पर प्रैस रिपोर्टर भी पहुंचे होते थे. वे दोनों कई बार गोरी चमड़ी वाली लड़कियों को भी लाते थे.

उन दोनों का खूब रोब था, क्योंकि दलालों को अगर डर लगता था, तो उन से ही. उन दोनों ने मुख्यमंत्री के सामने धरनेप्रदर्शन का प्रोग्राम बनाया था और पुलिस से मिल कर जुलूस का बंदोबस्त करा था. क्या मजाल है कि ये मिलीजुली जिस्म बेचने वाली थुलथुल लड़कियां इस तरह बाजार में निकल सकें. मगनाबाई को कहा गया था कि वे दोनों मुआवजा मांग रहे हैं. इस से स्कूल खुलवाएंगे. इन की जिंदगी खुशहाल होगी. तभी मगनाबाई के विचारों को झटका लगा. मुआवजा किस बात का? किसे मिलेगा? क्या इसलिए कि 9 महीने तक इस बच्ची को बस्ते की जगह पेट में लादे घूमती रही थी? बारीबारी से लोगों का वहशीपन सहती रही थी? या फिर मुआवजे के रूप में गप्पू और भोला की पीठ ठोंकी जाएगी कि उन्होंने बेटी और बहन को अपनी मर्दानगी से परिचित कराया? सरकार उस की भी पीठ ठोंकेगी कि वह स्कूल जाने की उम्र में मां बनना सीख गई?

क्या सरकार उस से पूछेगी कि उसे मां किस तरह बनाया गया? क्या वह बता पाएगी कि उस के भाई ने पहली बार उस के हाथपैर खाट की पाटियों से बांध कर उसे चाचा को सौंप दिया था? चाचा ने भी इस के बदले भाई को मुआवजा दिया था और फिर भाई ने भी चाचा की तरह वही सब उस के साथ दोहराया था. यही सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. उसे डर दिखाया जाता कि अगर किसी से इस बात का जिक्र किया, तो काट कर फेंक दिया जाएगा. मुआवजे के रूप में यह बच्ची उस की कोख में आ गई. पता नहीं, दोनों में से किस की थी? क्या इन तमाम औरतों के साथ भी इसी की तरह…

बच्ची दूध पी कर सो गई थी. तभी किसी ने बाल पकड़ कर मगनाबाई को झकझोरा, ‘‘तो यहां है नवाबजादी?’’ मगनाबाई ने मुड़ कर देखा. भोला चाचा जलती आंखों से उसे देख रहा था.

‘‘मैं नहीं जाऊंगी. अब मुझ से नहीं चला जाता,’’ मगनाबाई ने कहा. ‘‘चला तो तुझ से अभी जाएगा. चलती है या उतारूं सब के सामने…’’

लोग सुन कर हंस पड़े. वे चटपटी बात सुन कर मजेदार नजारा देखने के इच्छुक थे. उसे लगा कि यहां मर्द नहीं, महज जिस्मफरोश हैं. डरीसहमी मगनाबाई बच्ची को उठा कर धीरेधीरे उन के पीछे चल दी.

भोला चाचा ने मगनाबाई को पीछे से जोरदार लात मारी. उस के मुंह से निकला, ‘‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमारी मांगें पूरी करो… पूरी करो…’’

Hindi Stories Online : नेवी ब्लू सूट – दोस्ती की अनमोल कहानी

Hindi Stories Online :  मैं हैदराबाद बैंक ट्रेनिंग सैंटर आई थी. आज ट्रेनिंग का आखिरी दिन है. कल मुझे लौट कर पटना जाना है, लेकिन मेरा बचपन का प्यारा मित्र आदर्श भी यहीं पर है. उस से मिले बिना मेरा जाना संभव नहीं है, बल्कि वह तो मित्र से भी बढ़ कर था. यह अलग बात है कि हम दोनों में से किसी ने भी मित्रता से आगे बढ़ने की पहल नहीं की. मुझे अपने बचपन के दिन याद आने लगे थे.

उन दिनों मैं दक्षिणी पटना की कंकरबाग कालोनी में रहती थी. यह एक विशाल कालोनी है. पिताजी ने काफी पहले ही एक एमआईजी फ्लैट बुक कर रखा था. मेरे पिताजी राज्य सरकार में अधिकारी थे. यह कालोनी अभी विकसित हो रही थी. यहां से थोड़ी ही दूरी पर चिरैयाटांड महल्ला था. उस समय उत्तरी और दक्षिणी पटना को जोड़ने वाला एकमात्र पुल चिरैयाटांड में था. वहीं एक तंग गली में एक छोटे से घर में आदर्श रहता था. वहीं पास के ही सैंट्रल स्कूल में हम दोनों पढ़ते थे.

आदर्श बहुत सुशील था. वह देखने में भी स्मार्ट व पढ़ाई में अव्वल तो नहीं, पर पहले 5 विद्यार्थियों में था. फुटबौल टीम का कप्तान आदर्श क्रिकेट भी अच्छा खेलता था. इसलिए वह स्कूल के टीचर्स और स्टूडैंट्स दोनों में लोकप्रिय था. वह स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी भाग लेता था. मैं भी उन कार्यक्रमों में भाग लेती थी. इस के अलावा मैं अच्छा गा भी लेती थी. हम दोनों एक ही बस से स्कूल जाते थे.

आदर्श मुझे बहुत अच्छा लगता था. 10वीं कक्षा तक पहुंचतेपहुंचते हम दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे. स्कूल बस में कभीकभी कोई मनचला सीनियर मेरी चोटी को खींच कर चुपचाप निकल जाता था. इस बारे में एक बार मैं ने आदर्श से शिकायत भी की थी कि न जाने इन लड़कों को मेरे बालों से खिलवाड़ करने में क्या मजा आता है.

इस पर आदर्श ने कहा, ‘‘तुम इन्हें बौबकट करा लो… सच कहता हूं आरती, तुम फिर और भी सुंदर और क्यूट लगोगी.’’ मैं बस झेंप कर रह गई थी. कुछ दिन बाद मैं ने मां से कहा कि अब इतने लंबे बाल मुझ से संभाले नहीं जाते. इन पर मेरा समय बरबाद होता है, मैं इन्हें छोटा करा लेती हूं. मां ने इस पर कोई एतराज नहीं जताया था. कुछ ही दिन के अंदर मैं ने अपने बाल छोटे करा लिए थे. आदर्श ने इशारोंइशारों में मेरी प्रशंसा भी की थी. एक बार मैं ने भी उसे कहा था कि स्कूल का नेवीब्लू ब्लैजर उस पर बहुत फबता है. कुछ ही दिन बाद वह मेरे जन्मदिन पर वही नेवीब्लू सूट पहन कर मेरे घर आया था तो मैं ने भी इशारोंइशारों में उस की तारीफ की थी. बाद में आदर्श ने बताया कि यह सूट उसे उस के बड़े चाचा के लड़के की शादी में मिला था वरना उस की हैसियत इतनी नहीं है. शायद यहीं से हम दोनों की दोस्ती मूक प्यार में बदलने लगी थी.

लेकिन तभी आदर्श के साथ एक घटना घटी. आदर्श की 2 बड़ी बहनें भी थीं. उस के पिता एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. अचानक हार्ट फेल होने से उन का देहांत हो गया. उस के पिता के औफिस से जो रकम मिली, वही अब उस परिवार का सहारा थी. उन्होंने अपने हिस्से की गांव की जमीन बेच कर पटना में छोटा सा प्लाट खरीदा था. अभी बस रहने भर के लिए 2 कमरे ही बनवाए थे. उन का कहना था बाकी मकान बेटियों की शादी के बाद बनेगा या फिर आदर्श बड़ा हो कर इसे आगे बनाएगा. हम दोनों के परिवार के बीच तो आनाजाना नहीं था, पर मैं स्कूल के अन्य लड़कों के साथ यह दुखद समाचार सुन कर गई थी. हम लोग 10वीं बोर्ड की परीक्षा दे चुके थे. आदर्श ने कहा था कि वह मैडिकल पढ़ना चाहता है पर ऐसा संभव नहीं दिखता, क्योंकि इस में खर्च ज्यादा होगा, जो उस के पिता के लिए लगभग असंभव है. एक बार जब हम 12वीं की बोर्ड की परीक्षा दे चुके थे तो मैं ने अपनी बर्थडे पार्टी पर आदर्श को अपने घर बुलाया था. वह अब और स्मार्ट लग रहा था. मैं ने आगे बढ़ कर उस को रिसीव किया और कहा, ‘‘तुम ब्लूसूट पहन कर क्यों नहीं आए? तुम पर वह सूट बहुत फबता है.’’आदर्श बोला, ‘‘वह सूट अब छोटा पड़ गया है. जब सैटल हो जाऊंगा तो सब से पहले 2 जोड़ी ब्लूसूट बनवा लूंगा. ठीक रहेगा न?’’

हम दोनों एकसाथ हंस पड़े. फिर मैं आदर्श का हाथ पकड़ कर उसे टेबल के पास ले कर आई, जहां केक काटना था. मैं ने ही उसे अपने साथ मिल कर केक काटने को कहा. वह बहुत संकोच कर रहा था. फिर मैं ने केक का एक बड़ा टुकड़ा उस के मुंह में ठूंस दिया.केक की क्रीम और चौकलेट उस के मुंह के आसपास फैल गई, जिन्हें मैं ने खुद ही पेपर नैपकिन से साफ किया. बाद में मैं ने महसूस किया कि मेरी इस हरकत पर लोगों की प्रतिक्रिया कुछ अच्छी नहीं थी, खासकर खुद मेरी मां की. उन्होंने मुझे अलग  बुला कर थोड़ा डांटने के लहजे में कहा, ‘‘आरती, यह आदर्श कौन सा वीआईपी है जो तुम इसे इतना महत्त्व दे रही हो?’’मैं ने मां से कहा, ‘‘मा, वह मेरा सब से करीबी दोस्त है. बहुत अच्छा लड़का है, सब उसे पसंद करते हैं.’’

मा ने झट से पूछा, ‘‘और तू?’’

मैं ने भी कहा, ‘‘हां, मैं भी उसे पसंद करती हूं.’’

फिर चलतेचलते मां ने कहा, ‘‘दोस्ती और रिश्तेदारी बराबरी में ही अच्छी लगती है. तुम दोनों में फासला ज्यादा है. इस बात का खयाल रखना.’’

मैं ने भी मां से साफ लफ्जों में कह दिया था कि कृपया आदर्श के बारे में मुझ से ऐसी बात न करें.मैं ने महसूस किया कि आदर्श हमारी तरफ ही देखे जा रहा था, पर ठीक से कह नहीं सकती कि मां की बात उस ने भी सुनी हो, पर उस की बौडी लैंग्वेज से लगा कि वह कुछ ज्यादा ही सीरियस था.  बहरहाल, आदर्श मैथ्स में एमए करने लगा था. मैं ने बीए कर बैंक की नौकरी के लिए कोचिंग ली थी. दूसरे प्रयास में मुझे सफलता मिली और मुझे बैंक में जौब मिल गई. बैंक की तरफ से ही मुझे हैदराबाद टे्रनिंग के लिए भेजा गया. मैं आदर्श से ईमेल और फोन से संपर्क में थी. कभीकभी वह भी मुझे फोन कर लेता था. एक बार मैं ने उसे मेल भी किया था यह जानने के लिए कि क्या हम मात्र दोस्त ही रहेंगे या इस के आगे भी कुछ सोच सकते हैं. आदर्श ने लिखा था कि जब तक मेरी बड़ी बहनों की शादी नहीं हो जाती तब तक मैं चाह कर भी आगे की कुछ सोच नहीं सकता. मुझे उस का कहना ठीक लगा. आखिर अपनी दोनों बड़ी बहनों की शादी की जिम्मेदारी उसी पर थी, पर इधर मुझ पर भी मातापिता का दबाव था कि मेरी शादी हो जाए ताकि बाकी दोनों बहनों की शादी की बात आगे बढ़े. हम दोनों ही मजबूर थे और एकदूसरे की मजबूरी समझ रहे थे. आदर्श हैदराबाद की एक प्राइवेट कंपनी में अकाउंटैंट की पोस्ट पर कार्यरत था. उस की बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी. अपनी मां और दूसरी बहन के साथ वह भी हैदराबाद में ही था.

मैं ने उसे फोन किया और ईमेल भी किया था कि आज शाम की फ्लाइट से मैं पटना लौट रही हूं. उस ने जवाब में बस ओके भर लिखा था. वह सिकंदराबाद में कहीं रहता था. उस के घर का पता मुझे मालूम तो था, पर नए शहर में वहां तक जाना कठिन लग रहा था और थोड़ा संकोच भी हो रहा था. मेरी फ्लाइट हैदराबाद के बेगमपेट एयरपोर्ट से थी, मैं एयरपोर्ट पर बेसब्री से आदर्श का इंतजार कर रही थी. बेगमपेट एयरपोर्ट से सिकंदराबाद ज्यादा दूर नहीं था, महज 5 किलोमीटर की दूरी होगी. मैं सोच रही थी कि वह जल्दी ही आ जाएगा, पर जैसेजैसे समय बीत रहा था, मेरी बेसब्री बढ़ रही थी. चैक इन बंद होने तक वह नहीं दिखा तो मैं ने अपना टिकट कैंसिल करा लिया. मैं आदर्श के घर जाने के लिए टैक्सी से निकल पड़ी थी. जब मैं वहां पहुंची तो उस की बहन ने आश्चर्य से कहा, ‘‘आरती, तुम यहां. भाई तो तुम से मिलने एयरपोर्ट गया है. अभी तक तो लौटा नहीं है. शुरू में आदर्श संकोच कर रहा था कि जाऊं कि नहीं पर मां ने उसे कहा कि उसे तुम से मिलना चाहिए, तभी वह जाने को तैयार हुआ. इसी असमंजस में घर से निकलने में उस ने देर कर दी.’’

मैं आदर्श के घर सभी के लिए गिफ्ट ले कर गई थी. मां और बहन को तो गिफ्ट मैं ने अपने हाथों से दिया. थोड़ी देर बाद मैं एक गिफ्ट पैकेट आदर्श के लिए छोड़ कर लौट गई. इसी बीच, आदर्श की बहन का फोन आया और उस ने कहा, ‘‘भाई को ट्रैफिक जैम और उस का स्कूटर पंक्चर होने के कारण एयरपोर्ट पहुंचने में देर हो गई और भाई ने सोचा कि तुम्हारी तो फ्लाइट जा चुकी होगी. मैं उसे तुम्हारी फ्लाइट के बारे में बता चुकी हूं.’’ आदर्श की बहन ने फोन कर उसे कहा, ‘‘भाई, तुम्हारे लिए आरती ने अपनी फ्लाइट कैंसिल कर दी. वह तुम से मिलने घर आई थी, पर थोड़ी देर पहले चली भी गई है. अभी वह रास्ते में होगी, बात कर लो.’’ लेकिन आदर्श ने फोन नहीं किया और न मैं ने किया. आदर्श ने जब घर पहुंच कर पैकेट खोला तो देखा कि उस में एक नेवीब्लू सूट और मेरी शादी का निमंत्रण कार्ड था. साथ में मेरा एक छोटा सा पत्र जिस में लिखा था, ‘बहुत इंतजार किया. मुझे अब शादी करनी ही होगी, क्योंकि मेरी शादी के बाद ही बाकी दोनों बहनों की शादी का रास्ता साफ होगा. एक नेवीब्लू सूट छोड़ कर जा रही हूं. मेरी शादी में इसे पहन कर जरूर आना, यह मेरी इच्छा है.’

एयरपोर्ट से मैं ने उसे फोन किया, ‘‘तुम से मिलने का बहुत जी कर रहा था आदर्श, खैर, इस बार तो नहीं मिल सकी. उम्मीद है शादी में जरूर आओगे. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’ थोड़ी देर खामोश रहने के बाद आदर्श इतना ही कह पाया था, ‘‘हां… हां, आऊंगा.’’

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