family story in hindi
family story in hindi
अक्सर सुर्खियों में रहने वाली लोकसभा सांसद और एक्ट्रेस नुसरत जहां (Nusrat Jahan) का फैशन फैंस के बीच चर्चा में रहता है. इंडियन हो या वेस्टर्न हर लुक में नुसरत जहां का अंदाज काफी खूबसूरत लगता है. लेकिन अब मां बनने के बाद नुसरत जहां का नया अंदाज सामने आया है, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं. आइए आपको दिखाते हैं नुसरत जहां (Nusrat Jahan Looks) के लुक्स की झलक…
साड़ी लुक की शेयर की फोटो
View this post on Instagram
हाल ही में बेटे को जन्म देने वाली पर्सनल लाइफ को लेकर नुसरत जहां सुर्खियों में हैं. इसी बीच नुसरत जहां ने अपनी साड़ी अंदाज फैंस के साथ शेयर किया है. दरअसल, नुसरत जहां ने अपने औफिशियल सोशल मीडिया अकाउंट पर कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह साड़ी पहने नजर आ रही हैं. वहीं फैंस उनके इस लुक की तारीफें कर रहे हैं.
View this post on Instagram
ये भी पढ़ें- Neil-Aishwarya के वेडिंग रिसेप्शन में ‘सई’ ने बिखेरे जलवे, ‘पाखी’ को दी कड़ी टक्कर
लुक था खास
View this post on Instagram
दरअसल, नुसरत जहां ने हरे रंग की साड़ी कैरी की थी, जिस पर सीक्वेंस का काम किया गया था, जो बेहद खूबसूरत लग रहा था. वहीं इस लुक के साथ हैवी एंब्रॉइडरी ब्लाउज और हरी चूड़ियां, हैवी ईयररिंग्स कैरी की थी. इसके साथ खूबसूरत मेकअप नुसरत जहां के लुक्स पर चार चांद लगा रहा था. वहीं फैंस उनके फिटनेस और फैशन की तारीफ कमेंट्स में करते नजर आ रहे हैं.
इंडियन लुक से जीतती हैं फैंस का दिल
View this post on Instagram
नुसरत जहां की फिटनेस और फैशन दोनों ही फैंस को पसंद करते हैं. साड़ी से लेकर वेस्टर्न अंदाज देखने लायक होता है, जिसे सोशलमीडिया पर वह शेयर करती रहती हैं. इस लुक को देखकर फैंस जहां तारीफें करते हैं तो वहीं उनके फैशन टिप्स को कैरी भी करती हैं.
ये भी पढ़ें- Neil-Aishwarya Wedding: हमेशा के लिए एक हुए GHKKPM के विराट-पाखी, Photos Viral
धर्म और संस्कृति के नाम पर जो शोषण सदियों से औरतों का हुआ है वह जनतंत्र या लोकतंत्र के आने के बाद ही रुका था पर अब फिर षड्यंत्रकारी धर्म के दुकानदार अपनी विशिष्ट अलग प्राचीन संस्कृति के नाम पर पुरातनी सोच फिर शोप रहे हैं जिस में औरतें पहली शिकार होती है. अफगानिस्तान में तालिबानी शासन में तो यह साफ ही है. पर भारत में भी अनवरत यत्र, हवन, प्रवचनों, तीर्थ यात्राओं, पूजाओं, श्री, आरतियों, धाॢमक त्यौहारों के जरिए लोकतंत्र की दी गई स्वतंत्रता को जमकर छीना जा रहा है. अमेरिका भी आज बख्शा नहीं जा रहा जहां चर्चा की जमकर वकालत की वजह गर्भधत पर नियंत्रण लगाया जा रहा है जो असल में औरत के सेक्स सुख का नियंत्रण है और जो औरत को केवल बच्चे पैदा करने की मशीन बनाता है, एक कर्मठ नागरिक नहीं.
कल्चरल रिवाइवलिज्म के नाम पर भारत में देशी पोशाक, देशी त्यौहार, जाति में विवाह, कुंडली, मंगल देव, वास्तु, आरक्षण के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है जो धर्म के चुंगल से निकालने वाले लोकतंत्र को हर कमजोर कर रही है और मंदिरमसजिद गुरुद्वारे धर्म को मजबूर कर रही हैं. इन सब धर्म की दुकानों में औरतों को पल्ले की कमाई तो चढ़ानी ही होती है उन्हें हर बार अपनी लोकतांत्रिक संपत्ति का हिस्सा भी धर्म के दुकानदार को देकर अपना पड़ता है. यह चाहे दिखवा नहीं है क्योंकि ये सारे धर्म की दुकानें पुरुषों द्वारा अपने बनाए नियमों और तौरतरीकों से चलती है और इस में मुख्य जना जो पूजा जाता है. वह या तो पुरुष होता है या हिंदू धर्म किसी पुरुष की संतान या पत्नी होने के कारण पूजा जाता है. भाभी औरत का वजूद नहीं रहता और यह मतपेटियों तक पहुंचता है.
ये भी पढ़ें- जीवन की चादर पर आत्महत्या का कलंक क्यों?
लोकतंत्र सिर्फ वोट देने का अधिकार नहीं है. लोकतंत्र का अर्थ है सरकार और समाज को चलाने का पुरुष के बराबर का सा अधिकार. इस देश में इंदिरा गांधी, जयललिता और ममता बैनर्जी जैसी नेताओं के बावजूद देश का लोकतंत्र पुरुषों को गुलाम रहा है और धर्म के आवरण में फिर उसी रास्ते पर हर रोज बढ़ रहा है.
नरेंद्र मोदी की सरकार में औरतों की उपस्थिति न के बराबर है. 2014 में सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री पर ये चाह रखी थी तो उन्हें न चुने जाने के बाद उन को विदेश मंत्री की जगह वीजा मंत्री बना कर दर्शा दिया गया कि औरतों की कोई जगह नहीं है. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन अपने हर वाक्य में जय श्री राम नहीं जय नरेंद्र मोदी बोलती हैं ताकि उन की गद्दी बची रहे. यह एक पढ़ीलिखी, सुघड़, सुंदर, स्मार्ट और हो सकता है कमाऊ पत्नी की तरह जो हर बात में उन से पूछ कर बताऊंगी का उत्तर देती हैं. लोकतंत्र का आखिरी अर्थ है कि हर औरत चाहे दफ्तर में हो, राजनीति में हो, स्कूल में हो या घर में आप फैसले खुद ले सकें.
लोकतंत्र का लाभ औरतों को मिले इस की लंबी लड़ाई स्त्री और पुरुष विचारकों ने 18वीं व 19वीं शताब्दी में लड़ी पर 20वीं के अंत में व 21वीं के प्रारंभ की शताब्दी में यह लड़ाई कमजोर हो गई है. आज अमेरिका की औरतें गर्भपात केंद्रों पर धरने दे रही हैं और भारत की कर्मठ आजाद गुजराती औरतें अपना सकें. पुरुष गुरुओं के नव रही हैं.
लोकतंत्र का अर्थ आॢथक आजादी भी है जो शून्य होती जा रही है. हर उस औरत की महिमा गाई जाती है जिस ने ऊंचा स्थान पाया हो पर यह भी बता दिया जाता है कि यह उस के पिता या पत्नी के कारण मिला है. जिन महिला अधिकारियों के खिलाफ आजकल कुछ आॢथक अपराध के मामले चल रहे हैं उन की परतें खोलने पर साफ दिख रहा है कि असल बागडोर तो पतियों के हाथों में ही थी.
ये भी पढ़ें- जेवर हवाई अड्डा और भारत की प्रगति
लोकतंत्र की भावना को कुचलने में धर्म का ही बड़ा स्थान है क्योंकि पूंजीवाद तो औरतों को बड़ा ग्राहक मानता है. इज्जत देता है और इसलिए लोकतंत्र की रक्षा करता है. धर्म को वेवकूद औरतें चाहिए जिन्हें हांका जा सके और वे अपने एजेंट धरधर भेजते है. लोकतंत्र का कोई एजेंट नहीं है, लोकतंत्र को छलनी करने के सैनिकों की पूरी फौज है. कब तक बचेगा लोकतंत्र और कब तक आजाद रहेंगी औरतें, देखने की बात है. अभी तो क्षितिज पर अंधियारे बादल दिख रहे हैं.
प्यार वाकई आदमी को अंधा बना देता है. इस के चलते आदमी इतना भावुक, भयभीत और संवेदनशील हो जाता है कि फिर व्यावहारिकता और दुनियादारी नहीं सीख पाता. यही ऋषीश के साथ हुआ, जिस ने नेहा से लव मैरिज की थी. प्रेमिका को पत्नी के रूप में पा कर वह बहत खुश था. पेशे से फुटबाल कोच और ट्रेनर ऋषीश की खुशी उस वक्त और दोगुनी हो गई जब करीब डेढ़ साल पहले नेहा ने प्यारी सी गुडि़या को जन्म दिया. भोपाल के कोलार इलाके में स्थित मध्य भारत योद्धाज क्लब को हर कोई जानता है, जिस का कर्ताधर्ता ऋषीश था. हंसमुख और जिंदादिल इस खिलाड़ी से एक बार जो मिल लेता था वह उस का हो कर रह जाता था. मगर कोई नहीं जानता था कि ऊपर से खुश रहने का
नाटक करने वाला यह शख्स कुछ समय से अंदर ही अंदर बेहद घुट रहा था. ऋषीश की जिंदगी में कुछ ऐसा हो गया जिस की उम्मीद शायद खुद उसे भी न थी. गत 3 जुलाई को 32 साल के ऋषीश दुबे ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली तो जिस ने भी सुना वह खुदकुशी की वजह जान कर हैरान रह गया. ऋषीश ने पत्नी वियोग में जान दे दी. उस के मातापिता दोनों बैंक कर्मचारी हैं. उस शाम जब वे घर लौटे तो ऋषीश घर में बेहोश पड़ा था.
घबराए मातापिता तुरंत बेटे को नजदीक के अस्पताल ले गए जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. मौत संदिग्ध थी इसलिए पुलिस को बुलाया गया तो पता चला कि ऋषीश ने जहर खाया था. उस की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. मगर मरने से पहले ऋषीश ने अपनी यादों का जो पोस्टमार्टम कलम से कागज पर किया वह शायद ही कभी मरे, क्योंकि वह जिस्म नहीं एहसास है. तो मैं नहीं रहूंगा
परिवार, समाज और दुनिया से विद्रोह कर नेहा से शादी करने वाला ऋषीश यों ही 3 जुलाई को हिम्मत नहीं हार गया था. हिम्मत हारने की वजह थी कभी उस की हिम्मत रही नेहा जो कुछ महीनों से उस का साथ छोड़ मायके रह रही थी. पति से विवाद होने पर पत्नी का मायके जा कर रहने लगना कोई नई बात नहीं, बल्कि एक परंपरा सी हो चली है, जिस का निर्वाह नेहा ने भी किया और जातेजाते नन्हीं बेटी को भी साथ ले गई, जिस में ऋषीश की सांसें बसती थीं.
2 महीने पहले किसी बात पर दोनों में विवाद हुआ था. यह भी कोई हैरत की बात नहीं थी, लेकिन नेहा ने ऋषीश की शिकायत थाने में कर दी. अपने सुसाइड नोट में ऋषीश ने नेहा को संबोधित करते हुए लिखा कि तुम साथ छोड़ती
हो तो मैं नहीं रहूंगा और मैं साथ छोड़ूंगा तो तुम नहीं रहोगी. 4 पेज का लंबाचौड़ा सुसाइड नोट भावुकता और विरह से भरा है, जिस का सार इन्हीं 2 पंक्तियों में समाया हुआ है. दोनों ने एकदूसरे से वादा किया था कि कुछ भी हो जाए कभी एकदूसरे के बिना नहीं रहेंगे यानी बात मिल के न होंगे जुदा आ वादा कर लें जैसी थी.
ये भी पढ़ें- कामवाली बाई से निभाना है रिश्ता? जरुर जान लें ये बातें
वादा नेहा ने तोड़ा और इसे पुलिस थाने जा कर सार्वजनिक भी कर दिया तो ऋषीश का दिल टूटना स्वाभाविक बात थी. यह वही पत्नी थी जो कभी उस के दिल का चैन और रातों की नींद हुआ करती थी. एक जरा सी खटपट क्या हुई कि वह सब भूल गई. अलगाव से आत्महत्या तक
तुम ने मुझे धोखा दिया धन्यवाद… पत्नी को शादी के पहले के वादे याद दिलाने वाला ऋषीश क्या वाकई पत्नी को इतना चाहता था कि बिना उस के जिंदा नहीं रह सकता था? इस सवाल का जवाब अच्छेअच्छे दार्शनिक और मनोविज्ञानी भी शायद ही दे पाएं. ऋषीश की आत्महत्या की वजह का एक पहलू जो साफ दिखता है वह यह है कि उसे पत्नी से यह उम्मीद नहीं थी. मगर ऐसा तो कई पतियों के साथ होता है कि पत्नी किसी विवाद या झगड़े के चलते मायके जा कर रहने लगती है. लेकिन सभी पति तो पत्नी वियोग में आत्महत्या नहीं कर लेते?
तो क्या आत्महत्या कर लेने वाले पति पत्नी को इतना चाहते हैं कि उस की जुदाई बरदाश्त नहीं कर पाते? इस सवाल के जवाब हां में कम न में ज्यादा मिलते हैं, जिन की अपनी व्यक्तिगत पारिवारिक और सामाजिक वजहें हैं जो अब बढ़ रही हैं, इसलिए पत्नी वियोग के चलते पतियों द्वारा आत्महत्या करने के मामले भी बढ़ रहे हैं. सामाजिक नजरिए से देखें तो वक्त बहुत बदला है. कभी पत्नी तमाम ज्यादतियां बरदाश्त करती थी, लेकिन मायके वालों की यह नसीहत याद रखती थी कि जिस घर में डोली में बैठ कर जा रही हो वहां से अर्थी में ही निकलना.
इस नसीहत के कई माने थे, जिन में पहला अहम यह था कि बिना पति और ससुराल के औरत की जिंदगी दो कौड़ी की भी नहीं रह जाती. दूसरी वजह आर्थिक थी. समाज और रिश्तेदारी में उन महिलाओं को अच्छी निगाहों से नहीं देखा जाता था जो पति को छोड़ देती थीं या जिन्हें पति त्याग देता था. अब हालत उलट है. अब उन पतियों को अच्छी निगाहों से नहीं देखा जाता जिन की पत्नियां उन्हें छोड़ कर चली जाती हैं. पति को छोड़ना आम बात
पत्नी वियोग पहले की तरह सहज रूप से ली जाने वाली बात नहीं रह गई कि गई तो जाने दो दूसरी शादी कर लेंगे. ऐसा अब नहीं होता है, तो यह भी कहा जा सकता है कि हम एक सभ्य, अनुशासित और रिश्तों के समर्पित समाज में रहते हैं. इसी सभ्य समाज का एक उसूल यह भी है कि पत्नी अगर पति को छोड़ कर चली जाए तो पति का रहना दूभर हो जाता है. उसे कठघरे में खड़ा कर तमाम ऐसे सवाल पूछे जाते हैं कि वह घबरा उठता है. ऐसे ही कुछ कमैंट्स इस तरह हैं:
क्या उसे संतुष्ट नहीं रख पा रहे थे? क्या उस का कहीं और अफेयर था? क्या घर वाले उसे परेशान करते थे? क्या उस में कोई खोट आ गई थी? क्या यार एक औरत नहीं संभाल पाए, कैसे मर्द हो? आजकल औरतें आजादी और हालात का फायदा इसी तरह उठाती हैं. जाने दो चली गई तो भूल कर भी झुक कर बात मत करना. अब फंसो बेटा पुलिस, अदालत के चक्करों में. सुना है उस ने रिपोर्ट लिखा दी? अब कैसे कटती हैं रातें? कोई और इंतजाम हो गया क्या? कोई भी पति इन और ऐसे और दर्जनों बेहूदे सवालों से बच नहीं सकता. खासतौर से उस वक्त जब पत्नी किसी भी शर्त पर वापस आने को तैयार न हो.
क्या करे बेचारा पत्नी के वापस न आने की स्थिति में पति के पास करने के नाम पर कोई खास विकल्प नहीं रह जाते. पहला रास्ता कानून से हो कर जाता है जिस पर कोई पढ़ालिखा समझदार तो दूर अनपढ़, गंवार पति भी नहीं चलना चाहता. इस रास्ते की दुश्वारियों को झेल पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती. पत्नी को वापस लाने का कानून वजूद में है, लेकिन वह वैसा ही है जैसे दूसरे कानून हैं यानी वे होते तो हैं, लेकिन उन पर अमल करना आसान नहीं होता.
दूसरा रास्ता पत्नी को भूल जाने का है. ज्यादातर पति इसे अपनाते भी हैं, लेकिन इस विवशता और शर्त के साथ कि जब तक रिश्ता पूरी तरह यानी कानूनी रूप से टूट न जाए तब तक भजनमाला जपते रहो यानी तमाम सुखों से वंचित रहो.
तीसरा व चौथा रास्ता भी है, लेकिन वे भी कारगर नहीं. असल दिक्कत उन पतियों को होती है जो वाकई अपनी पत्नी से प्यार करते हैं. ये रास्ता नहीं ढूंढ़ते, बल्कि सीधे मंजिल पर आ पहुंचते हैं यानी खुदकुशी कर लेते हैं जैसे भोपाल के ऋषीश ने की और जैसे राजस्थान के उदयपुर के विनोद मीणा ने की थी. आत्महत्या और प्रतिशोध भी
गत 14 जुलाई को उदयपुर के गोवर्धन विलास थाना इलाके में रहने वाले विनोद का भी किसी बात पर पत्नी से विवाद हुआ तो वह भी मायके चली गई. 5 दिन विनोद ने पत्नी का इंतजार किया पर वह नहीं आई तो कुछ इस तरह आत्महत्या की कि सुनने वालों की रूह कांप गई. कोल माइंस में काम करने वाले विनोद ने खुद को डैटोनेटर बांध लिया यानी मानव बम बन गया और खुद में आग लगा ली. विनोद के शरीर के इतने चिथड़े उड़े कि उस का पोस्टमार्टम करना मुश्किल हो गया.
ये भी पढ़ें- घर को रखें वैक्यूम क्लीन
विनोद के उदाहरण में प्यार कम दबाव ज्यादा है, जिस का बदला उस ने खुद से लिया. मुमकिन है विनोद को भी दूसरे आत्महत्या करने वाले पतियों की तरह पुरुषोचित अहम पर चोट लगी हो या स्वाभिमान आहत हुआ हो अथवा वह भी दुनियाजहान के संभावित सवालों का सामना करने से डर रहा हो. जो भी हो, लेकिन पत्नी वियोग में इतने घातक और हिंसक तरीके से आत्महत्या कर लेने का यह मामला अपवाद था, जिस में ऋषीश की तरह काव्य या भावुकता नहीं थी. थी तो एक खीज और बौखलाहट जो हर उस पति में होती है, जिस की पत्नी उसे घोषित तौर पर छोड़ जाती है. क्या पति इतने पजैसिव हो सकते हैं कि पत्नी वियोग में जान ही दे दें? इस का सवाल रोजाना ऐसे मामले देखने के चलते न में तो कतई नहीं दिया जा सकता.
तो फिर जाने क्यों देते हैं पत्नी वियोग में आत्महत्या मध्य प्रदेश के सागर जिले के 21 वर्षीय ब्रजलाल ने भी की थी. लेकिन यहां वजह जुदा थी. ब्रजलाल की शादी को अभी 3 महीने ही हुए थे कि उस की पत्नी अपने प्रेमी के साथ भाग गई.
ब्रजलाल के सामने चिंता या तनाव यह था कि अब किस मुंह से वह रिश्तेदारों और समाज के चुभते सवालों का सामना करेगा. हालांकि चाहता तो कर भी सकता था, लेकिन 21 साल के नौजवान से ऐसी उम्मीद लगाना व्यर्थ है कि वह दुनिया से लड़ पता. यहां वजह वियोग नहीं, बल्कि कहीं नाक थी. ब्रजलाल के पास मुकम्मल वक्त और मौका था कि वह अपनी पत्नी की करतूत और उस के मायके वालों की गलती लोगों को बताता और फिर तलाक ले कर दूसरी शादी कर लेता. यह भी लंबी प्रक्रिया होती, लेकिन इस के लिए उस के पास समय तो था पर हिम्मत, सब्र और समझदारी नहीं थी.
समय उन के पास नहीं होता जिन की पत्नियां कुछ या कईर् साल प्यार से गुजार चुकी होती हैं, लेकिन फिर एकाएक छोड़ कर चली जाती हैं, ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जो पति बगैर पत्नियों के नहीं रह सकते वे आखिर उन्हें जाने ही क्यों देते हैं? यह एक दुविधाभरा सवाल है, जिस में लगता नहीं कि पत्नी को चाहने वाला कोई पति जानबूझ कर उसे भगाता या जाने देता हो. तूतू, मैंमैं आम है और दांपत्य का हिस्सा भी है, लेकिन यहां आ कर पतियों की वकालत करने को मजबूर होना ही पड़ता है कि पत्नियां अपनी मनमानी के चलते जाती हैं. वे अपनी शर्तों पर जीने की जिद करने लगें तो पति बेचारे क्या करें सिवा इस के कि पहले उन्हें जाता हुए देखते रहें, फिर विरह के गीत गाएं और फिर पत्नी को बुलाएं. इस पर भी वे न आएं तो उन की जुदाई में खुदकुशी कर लें.
क्या कुछ पत्नियां पति के प्यार को हथियार की तरह इस्तेमाल करती हैं? इस सवाल का जवाब भी साफ है कि हां करती हैं, जिस की परिणीति कभीकभी पति की आत्महत्या की शक्ल में सामने आती है. कोई पत्नी इस जिद पर अड़ जाए कि शादी के 5 साल हो गए अब मांबाप या परिवार से अलग रहने लगें तो पति का झल्लाना स्वाभाविक है कि जब सबकुछ ठीकठाक चल रहा है तो अलग क्यों होएं? इस पर पत्नी जिद करते यह शर्त थोप दे कि ठीक है अगर मांबाप से अलग नहीं हो सकते तो मैं ही चली जाती हूं. जब अक्ल ठिकाने आ जाए तो लेने आ जाना. और वह सचमुच सूटकेस उठा कर बच्चों सहित या बिना बच्चों के चली भी जाती है. पीछे छोड़ जाती है पति के लिए एक दुविधा जिस का कोई अंत या इलाज नहीं होता.
ऐसी और कई वजहें होती हैं, जिन के चलते पत्नियां आगापीछा कुछ नहीं सोच पातीं सिवा इस के कि चार दिन अकेला रहेगा तो पत्नी की कीमत समझ आ जाएगी. ये पत्नियां यह नहीं सोचतीं कि उन की कीमत तो पहले से ही पति की जिंदगी में है जिसे यों वसूला जाना घातक सिद्घ हो सकता है. इस पर भी पति न माने तो पुलिस थाने और कोर्टकचहरी की नौबत लाना पति को आत्महत्या के लिए उकसाने जैसी ही बात है.
बचें दोनों पत्नी को हाथोंहाथ लेने को तैयार बैठे मायके वाले भी बात की तह तक नहीं पहुंच पाते. बेटी या बहन जो कह देती है उसे ही सच मान बैठते हैं और उस का साथ भी यह कहते हुए देते हैं कि अच्छा यह बात है, तो हम भी अभी मरे नहीं हैं.
मरता तो वह पति है जो ससुराल वालों से यह झूठी उम्मीद लगाए रहता है कि वे बेटी की गलती को शह नहीं देंगे, बल्कि उसे समझाएंगे कि वह अपने घर जा कर रहे. वहां पति और उस के घर वालों को उस की जरूरत है. ऐसी कहासुनी तो चलती रहती है. इस की वजह से घर छोड़ आना बुद्धिमानी की बात नहीं. मगर जब ऐसा होता नहीं तो पति की रहीसही उम्मीदें भी टूट जाती हैं. भावुक किस्म के पति जो वाकई पत्नी के बगैर नहीं रह सकते उन्हें अपनी जिंदगी बेकार लगने लगती है और फिर वे जल्द ही सब का दामन छोड़ देते हैं, इसलिए थोड़े गलत तो वे भी कहे जाएंगे. पत्नी के चले जाने
पर पति थोड़ी सब्र रखें तो उन की जिंदगी बच सकती है. कई मामलों में देखा गया है कि पति अहं, स्वाभिमान या जिद को छोड़ पत्नी के मायके जा कर उस से घर चलने के लिए मिन्नतें करता है तो पत्नी के भाव और बढ़ जाते हैं और वह वहीं उस का तिरस्कार या अपमान कर देती है. ऐसी हालत में अच्छेअच्छे का दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है तो फिर ऋषीश जैसों की गलती या हैसियत क्या जो प्यार के हाथों मजबूर होते हैं.
क्या करे पत्नी पत्नियों को चाहिए कि समस्या वाकई अगर कोईर् है तो उसे पति के साथ रहते ही सुलझाने की कोशिश करें, वजह पतिपत्नी दोनों वाकई एक गाड़ी के 2 पहिए होते हैं, जिन्हें घर के बाहर की लड़ाई संयुक्तरूप से लड़नी होती है. पति अगर आर्थिक, भावनात्मक या व्यक्तिगत रूप से पत्नी पर ज्यादा निर्भर है या असामान्य रूप से संवेदनशील है तो जिम्मेदारी पत्नी की बनती है कि वह उसे छोड़ कर न जाए.
ये भी पढ़ें- कुछ सच शादी के बारे में
क्या किसी ऐसी जिद की सराहना की जानी चाहिए जिस के चलते पत्नी खुद अपनी ही वजह से विधवा हो रही हो. कोई भी हां नहीं कहेगा. मातापिता की भूमिका पति के घर वालों खासतौर से मांबाप को भी चाहिए कि वे ऐसे वक्त में बेटे का खास खयाल रखें बल्कि वह भावुक हो तो नजर रखें और बहू न आ रही हो तो बेटे को समझाएं कि इस में कुछ खास गलत नहीं है और न ही प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है और हो भी रही हो तो उस की कीमत बेटे की खुशी के आगे कुछ नहीं. इस तरह की बातें उसे हिम्मत देने वाली साबित होंगी. अगर इतना भी नहीं कर सकते तो उस पर ताने तो बिलकुल न कसें. पतियों को छोड़ कर चली जाने वाली पत्नियां और दुविधा में पड़े विरह में जी रहे पतियों को फिल्म ‘आप की कसम’ का यह गाना जरूर गुनगुना लेना चाहिए- ‘जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वे फिर नहीं आते…’
पत्नी विरह प्रधान इस फिल्म में नायक बने राजेश खन्ना ने आत्महत्या तो नहीं की थी पर उस की जिंदगी किस तरह मौत से भी बदतर हो गई थी, यह फिल्म में खूबसूरती से दिखाया गया है. इसलिए पतियों को भी इस गाने का यह अंतरा याद रखना चाहिए- ‘कल तड़पना पड़े याद में जिन की, रोक लो उन को रूठ कर जाने न दो…’
आजकल जौब के कारण घर से दूर रहने की वजह से महिला हो या पुरुष किसी के पास इतना समय नहीं होता कि वह किचन में घंटों खड़े रह कर खाना बनाए, साथ ही आज परिवार का हर सदस्य हैल्थ कौंशस हो गया है. ऐसे में जरूरत है टाइम सेव करते हुए हैल्दी डिशेज बनाने की. इस के लिए पेश है किचन कुकवेयर आइटम्स की रेंज.
इंडक्शन
देखने में आकर्षक होने के साथसाथ इस में खाना बनाना काफी आसान होता है, क्योंकि इस में किचन में ही खाना बनाने जैसे झंझटों का सामना जो नहीं करना पड़ता. जहां मन करा वहीं खाना बनाने बैठ गए. इस से समय की भी काफी बचत होती है. इंडक्शन पर इस्तेमाल होने वाले बरतन बिलकुल इंडक्शन से लगे होने के कारण जल्दी खाना पकाने में सक्षम होते हैं. इन में दाल, सब्जी, चावल आदि चीजें तो मिनटों में तैयार हो जाती हैं यानी अब मेहमानों के आने पर नो टैंशन.
ये भी पढ़ें- घर को रखें वैक्यूम क्लीन
सैंडविच टोस्टर
गैस के मुकाबले टोस्टर में सैंडविच बनाना आसान ही नहीं, बल्कि स्वाद के लिहाज से भी काफी बेहतर होता है, क्योंकि इस में ज्यादा क्रिस्पीनैस जो होती है और बारबार पलटने के झंझट से भी छुटकारा मिलता है. बच्चे हों या बड़े सभी इस में बने सैंडविच बड़े चाव से खाते हैं.
ब्लैक ऐल्यूमिनियम तवा
डोसा बनाना हो या फिर चीला, आप नौर्मल तवे पर बनाने लगीं तो ज्यादा समय लगने के साथसाथ इन के खराब होेने का भी डर बना रहता है. ऐसे में ब्लैक ऐल्यूमिनियम तवे पर ये चीजें आराम से बनाई जा सकती हैं और इस तवे पर इन्हें बनाने के लिए तेल भी न के बराबर लगता है यानी ये चीजें पूरी तरह सेहतमंद भी होंगी.
ये भी पढे़ं- टाइल्स फ्लोरिंग: खूबसूरत भी किफायती भी
बेबी कड़ाही इंडक्शन
बेबी कड़ाही इंडक्शन का आप मल्टीपर्पज यूज कर सकते हैं यानी दालसब्जी बनाने के अलावा यह तड़का लगाने, मैगी बनाने आदि के भी काम आती है और वजन में हलकी होने के कारण इसे हैंडल करना भी काफी आसान होता है, साथ ही छोटी होने के कारण आप को इसे कैरी करने में भी कोई दिक्कत नहीं होगी.
यकीन मानिए आप इन सभी कुकवेयर आइटम्स को प्रयोग कर कम समय में कुकिंग आराम से कर सकती हैं और इन में बना खाना सेहतमंद भी होगा.
लेखिका- दीप्ति गुप्ता
दिनभर की थकान के बाद हर कोई सोचता है कि रात में अच्छी नींद आ जाए. लेकिन कुछ लोगों को चैन और सुकून की नींद नसीब नहीं होती. तमाम कोशिशों के बाद भी रात में घंटों बिस्तर पर करवटे बदलते रहते हैं. एक दो दिन ऐसा होना सामान्य है. लेकिन लगातार आपके साथ ये हालात बन रहे हैं, तो यह चिंता की विषय है. क्योंकि नींद की कमी आपको थका हुआ और सुस्त बना देती है. इतना ही नहीं अगले दिन आप ऊर्जा में कमी का अनुभव भी कर सकते हैं. कई रिसर्च बताती हैं कि खराब नींद का असर आपके हार्मोन और मास्तिष्क के काम करने पर पड़ता है. तो अगर आप भी उन लोगों में से हैं, जिनकी स्लीपिंग साइकिल डिस्टर्ब हो रही है या नींद की कमी के कारण लो एनर्जी जैसा फील कर रहे हैं, तो यहां कुछ तरीके हैं, जिन्हें अपनाकर आप रात में स्वभाविक रूप से बेहतर नींद ले पाएंगे.
1. सही रूटीन बनाएं-
यदि आपको स्वभाविक रूप से नींद नहीं आती, तो इसका मतलब है कि आपका स्लीपिंग रूटीन गड़बड़ है. बता दें कि आपकी बायोलॉजिकल क्लॉक शरीर की सभी चीजों को निर्धारित करती है. इसलिए आपको सोने का एक समय फिक्स करना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि जब एक बार आप अपने शरीर को ये बता देते हैं कि आप इसे किस समय आराम करने देंगे , तो यह आपके मास्तिष्क को रिलेक्स करने और आपको सोने में मदद करने के लिए उन संकेतों को किक करना शुरू कर देता है. इसलिए अगर आपको घंटों तक बिस्तर पर लेटे रहने के बाद भी नींद न आए, तो सबसे पहले साने और जागने का समय फिक्स करें.
2. दिनभर एक्टिव रहें-
जब आप पूरे दिन एक्टिव रहते हैं, तो शरीर थक जाता है और अंत में इसे आराम की जरूरत होती है. कई लोग एक्टिव रहने के लिए व्यायाम भी करते हैं. व्यायाम करने से शरीर एंडोर्फिन हार्मोन रिलीज करता है, जिससे आपको बहुत जल्दी नींद नहीं आती और आप जागे हुए रहते हैं. इसलिए वर्कआउट करते समय एक बात का ध्यान रखें कि इसे सोने के दो घण्टे के भीतर बिल्कुल न करें. यदि आप रोजाना व्यायाम नहीं करते हैं तो आप तेज चलने या एरोबिक करने की कोशिश करें. इससे आपका सोने का समय बढ़ जाएगा और आपको गहरी नींद भी आ जाएगी.
ये भी पढ़ें- जब बच्चों के पेट में हो कीड़े की शिकायत
3. गर्म पानी से नहाएं-
शायद आप न जानते हों, लेकिन शाम ढलने के बाद सोने से कुछ घण्टे पहले आपके शरीर का प्राकृतिक तापमान कम हो जाता है और सुबह 5 बजे के करीब फिर से ज्यादा हो जाता है. इसलिए सोने से दो घ्ंाटे पहले गर्म पानी से नहाएं. ऐसा करने से आपके शरीर का तापमान बढ़ जाएगा. इसके तुंरत बाद तेजी से ठंडा होने की अवधि आपके शरीर को तुरंत आराम देती है. जब आप ऐसा करते हैं, तो शरीर के तापमान में गर्म से लेकर ठंडी तक की तेज गिरावट से नींद आने लगती है. इसलिए अगर आपको सोने में परेशानी हो रही है तो साने से 90 मिनट पहले गर्म पानी से नहाने की कोशिश करें.
4. चाय पीएं-
वैसे तो कहा जाता है कि चाय पीने से नींद उड़ जाती है, लेकिन जिन लोगों को नींद की समस्या है, डॉक्टर्स उन्हें सोने से पहले कैफीन फ्री चाय पीने की सलाह देते हैं. ऐसे में कैमोमाइल टी बढ़िया विकल्प है. यह मास्तिष्क में रिसेप्टर्स के साथ बातचीत करने के लिए जानी जाती है. इसके नियमित सेवन से आपको स्वस्थ और लगातार नींद की दिनचर्या बनाने में बहुत मदद मिलती है.
नींद आपके स्वास्थ्य में अहम भूमिका निभाती है. अपर्याप्त नींद बच्चों और वयस्कों में मोटापे के जोखिम को बढ़ाती है. साथ ही इससे हृदय रोग और मधुमेह का खतरा भी बढ़ता है. ऐसे में यहां बताए गए टिप्स आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं.
सवाल
मैं विवाहित पुरुष हूं. मेरा विवाह हुए 4 वर्ष हो गए हैं. शादी के बाद से ही पत्नी का मेरे प्रति व्यवहार क्रूरतापूर्ण था. वह बात बात पर मुझे परेशान करती थी. हर समय कोई न कोई डिमांड करती और कहती, मांग पूरी करो वरना तुम्हें व तुम्हारे परिवार को दहेज विरोधी कानून में फंसवा दूंगी. बातबात पर पुलिस स्टेशन में झूठी शिकायत कर के परेशान करना उस की दिनचर्या बनने लगी. परेशान हो कर मैं ने तलाक का केस फाइल कर दिया तो उस ने सचमुच में हमें झूठे दहेज कानून में फंसा दिया. मुझे समझ नहीं आ रहा, क्या करें, इस मुसीबत से कैसे निकलूं? सलाह दें.
जवाब
दरअसल, 498ए दहेज प्रताड़ना कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया था लेकिन आज यह कानून, कवच बनने के बजाय हथियार बन गया है जो कानूनी आातंक का रूप ले रहा है. आप की पत्नी की तरह अनेक पत्नियां इस कानून का दुरुपयोग पतिपत्नी के बीच के अहं, पारिवारिक विवाद, अलग रहने की इच्छा, संपत्ति में हक की चाहत आदि के लिए करती हैं. झूठे मुकदमे दर्ज करवाने के मामले अब बहुत सुनने में आ रहे हैं जो न केवल निराधार होते हैं बल्कि उन के पीछे गलत इरादे होते हैं. ऐसे मुकदमे दर्ज कराने का मकसद पैसा कमाना भी होता है. लेकिन अगर आप सही हैं तो डरे नहीं और पत्नी के खिलाफ सुबूत इकट्ठा करें. वैसे भी,
2 जुलाई, 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने दहेज से जुड़े श्वेता किरन के मामले में निर्णय सुनाते हुए कहा है कि 498ए कानून के अंतर्गत की गई शिकायत में कोई भी गिरफ्तारी तब तक नहीं हो सकती जब तक कोई 2 सुबूत या गवाह उपलब्ध न हों. ऐसा निर्णय इसलिए दिया गया ताकि असंतुष्ट व लालची पत्नियां इस कानून का दुरुपयोग न कर सकें और न ही पति को ब्लैकमेल कर सकें.
ये भी पढ़ें- सास हमारी शादीशुदा जिंदगी में रोकटोक करती हैं, मैं क्या करुं?
अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे… गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem
हर महिला के भीतर दर्पण निहारते समय नारी सौष्ठव, चिकनी मुलायम त्वचा और बालों रहित मुलायम बगलों की इच्छा बलवती हो उठती है.
कई बार तो इन छोटीछोटी बातों के कारण रिश्ता भी दरक जाता है. सामने वाला शर्म के चलते यह कह नहीं पाता कि आप के पसीने से बदबू आती है और आप हैं कि यह मानने को तैयार ही नहीं होतीं कि आप के पसीने से बदबू आती है, क्योंकि आप को स्वयं इस बात का एहसास ही नहीं होता.
नियमित साफसफाई
हमारे शरीर में पसीना निकालने वाली अनेक ग्रंथियां हैं, जो शरीर के तापमान को नियंत्रित करने का काम करती हैं. कौस्मैटिक डर्मेटोलौजिस्ट डा. अमरजीत रेखी के अनुसार, पसीने की ये ग्रंथियां शरीर के अन्य भागों के मुकाबले बगलों में कई गुना अधिक होती हैं.
चिलचिलाती गरमी, अनजाना भय, कुतुहल या ऐसी किसी अन्य स्थिति के चलते बगलों से पसीना अधिक निकलने लगता है. घबराहट से चेहरे, हथेलियों, माथे पर भी पसीना आता है, लेकिन बगलों में आने वाले पसीने में बदबू भी आती है.
ऐसे में यदि आर्मपिट्स की ढंग से साफसफाई न हो, तो पसीने में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं, जो कई बार फंगस का भी कारण बनते हैं. आर्मपिट्स शरीर के बाकी रंग की जगह गहरी या काली दिखाई देने लगती हैं.
कोलंबिया अस्पताल की डर्मेटोलौजिस्ट डा. नवदीप के अनुसार, बहुत टाइट कपड़े पहनने से पैदा हुई नमी शरीर के इन भागों से निकलते पसीने के वाष्पीकरण में बाधक होती है, जिस से त्वचा में मौजूद बैक्टीरिया पसीने में मिल कर दुर्गंध पैदा करते हैं और बगलों की त्वचा काली होने लगती है.
ये भी पढे़ं- जब खुबसूरत चेहरे से नजर हटाना हो मुश्किल
दुर्गंधयुक्त पसीना
टोटल हैल्थ की आहार विशेषज्ञा एवं संस्थापिका अंजलि मुखर्जी का कहना है कि आहार में विशेष पौष्टिक तत्त्वों की कमी जैसे मैग्नीशियम या जिंक की कमी से भी पसीने की गंध प्रभावित होती है. जिस प्रकार मधुमेह का रोग या कब्ज कई बार दुर्गंध का कारण भी बनती है, ठीक उसी प्रकार मांसाहारी भोजन के अत्यधिक सेवन के कारण भी पसीना दुर्गंधयुक्त हो जाता है. मांसाहारी पदार्थों में पाए जाने वाले प्रोटीन में कोलीन नामक तत्त्व प्रचुर मात्रा में होता है. यदि किसी व्यक्ति विशेष में विशेष प्रकार का ऐंजाइम मौजूद न हो और वह कोलीन मांसाहारी भोजन का अधिक सेवन करता रहे, तो ऐसे में उस के पसीने के बदबूयुक्त होने की संभावना बढ़ जाती है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
मोटापे के कारण आर्मपिट्स में सलवटों के कारण, बारबार वैक्सिंग करना, बारबार बगलों की शेव करते रहने या हेयर रिमूवल क्रीम के कैमिकल के कारण, किसी विशेष डियोड्रैंट से, पाउडर के अत्यधिक छिड़काव, मौसम में बदलाव के कारण काफी हद तक आर्मपिट्स काली हो जाती हैं. यह लगभग सभी त्वचा रोग विशेषज्ञों का मानना है.
डाक्टर अमरजीत रेखी के अनुसार, यह कोई रोग नहीं जिस का उपचार न हो सके. निम्न छोटीछोटी बातों को ध्यान रख कर आर्मपिट्स की इस परेशानी से बचा जा सकता है:
– शरीर के हिस्से की साफसफाई का विशेष ध्यान रखें.
– स्नान करते समय लूफ का प्रयोग करें. आर्मपिट्स को उस से अच्छी तरह रगड़ कर धोएं. फिर अच्छी तरह पोंछ लें.
– अंडरआर्म्स को हमेशा किसी अच्छे नैचुरल मौइश्चराइजर से नम रखें.
– टाइट कपड़े न पहनें.
– ज्यादातर सूती कपड़े ही पहनें. पौलिएस्टर, नायलौन, सिंथैटिक कपड़े कम से कम पहनें.
– बाजार में उपलब्ध ग्लाइकोलिक या ऐजेलिक ऐसिड युक्त क्रीम का इस्तेमाल करें.
– बाहर निकलते समय पूरी बाजू के ढीलेढाले कपड़े ही पहनें.
– कौस्मैटिक सर्जरी करवाएं. किसी अच्छे डर्मेटोलौजिस्ट से ट्रीटमैंट लें.
ये भी पढे़ं- जैसी Skin वैसा Face Pack
– परमानैंट लेजर हेयर रिमूवर एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है. यह पसीने की दुर्गंध और कालेपन से छुटकारा दिलवाता है. इस का कोई साइडइफैक्ट भी नहीं होता.
– केसर में त्वचा को साफ करने के गुण मौजूद रहते हैं. केसर की कुछ पत्तियां 2 चम्मच लोशन में मिक्स कर अंडरआर्म्स पर कुछ देर लगाए रखें. कुछ दिनों तक नियमित ऐसा करने पर धीरेधीरे त्वचा का कालापन दूर हो जाएगा और पसीने की बदबू से भी छुटकारा मिलेगा.
– हरे सेब को हलका सा स्टीम कर अच्छी तरह मसल लें. अब इस गूदे को अंडरआर्म्स में कुछ दिन नियमित लगाएं. कालापन धीरेधीरे दूर हो जाएगा.
– सप्ताह में 1 बार औलिव औयल की कुछ बूंदें चीनी में डाल कर उसे अंडरआर्म्स वाले एरिया में फेशियल की तरह लगा कर रगड़ें. नतीजा कुछ ही दिनों में दिखने लगेगा.
– दही का लेप करें. फिर अच्छी तरह रगड़ें और धो कर पोंछ लें.
– बगलों के कालेपन को दूर करने के लिए इमली का पेस्ट भी अच्छा नतीजा देता है.
– खीरे के रस में कुछ बूंदें नीबू का रस डाल कर काली त्वचा पर लगाएं. ध्यान रहे शेविंग या वैक्सिंग करने के पूर्व या बाद में कुछ भी सिट्रिक न लगाएं. कई बार अधिक शेव करने से फौलिक्यूलाइटिस की स्थिति बन जाती है, जिस से त्वचा पर छोटेछोटे दाने उभर आते हैं. इसलिए सिट्रिक ऐसिड से गुरेज करें. शेव या वैक्सिंग से पहले या बाद में नीबू का प्रयोग भी न करें.
– आर्मपिट्स को सुंदर बनाने के लिए सफेद चने के आटे में कुछ बूंदें नीबू का रस, थोड़ी सी हलदी डाल कर पेस्ट बना कर बगलों में लगाएं. निरंतर प्रयोग से फायदा होगा.
– शलगम का रस भी कालापन दूर करता है.
– संतरे के सूखे छिलकों को पीस कर उस पाउडर में गुलाबजल मिला कर पेस्ट बनाएं और अंडरआर्म्स में 10 मिनट लगाए रखें. धीरेधीरे संतरे में मौजूद विटामिन सी त्वचा को ब्लीच कर देगा और आर्मपिट्स नर्ममुलायम हो जाएंगी.
बगलों में दाने, फफोले, खुजली, जलन न हो, इसलिए इन नुसखों के साथ ही शरीर की साफसफाई पर भी पूरा ध्यान दें. साथ ही भोजन की पौष्टिकता का भी ध्यान रखें.
यूपी में 12 दिसम्बर से राशन वितरण के महा अभियान की शुरुआत होने जा रही है. सरकार इस अभियान के तहत 15 करोड़ से अधिक राशन कार्ड धारकों को बूस्टर डोज के रूप में दोगुना मुफ्त राशन देगी. देश में अब तक का यह सबसे बड़ा राशन वितरण अभियान है.
सरकार की योजना का सीधा लाभ अंत्योदय और पात्र घरेलू राशन कार्ड धारकों को मिलेगा. गरीबों,मजदूरों और किसानों को बड़ा सहारा देने के लिए शुरू हो रहे इस अभियान की निगरानी अफसरों के साथ ही सांसद और विधायक भी करेंगे.
12 दिसम्बर से शुरू होने जा रही राशन वितरण के महा अभियान की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. योजना के तहत अंत्योदय राशन कार्डधारकों और पात्र परिवारों को दोगुना राशन वितरित किया जाना है. अंत्योदय अन्न योजना के तहत लगभग 1,30,07,969 इकाइयां और पात्र घरेलू कार्डधारकों की 13,41,77,983 इकाइयां प्रदेश में हैं.
महामारी के दौर में शुरू हुई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना नवंबर में खत्म हो रही थी इसको देखते हुए सीएम योगी ने 3 नवंबर को अयोध्या में राज्य सरकार की ओर से होली तक मुफ्त राशन वितरण की घोषणा की थी. जिसके बाद से यूपी के पात्र कार्ड धारकों को हर महीने 10 किलो राशन मुफ्त दिया जा रहा है.
केंद्र ने भी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को मार्च 2022 तक बढ़ा दिया है. इतना ही नहीं यूपी सरकार राशन कार्ड धारकों को महीने में दो बार गेहूं और चावल मुफ्त दे रही है. राशन दुकानों से दाल, खाद्य तेल और नमक भी मुफ्त दिया जा रहा है. बता दें कि प्रदेश सरकार ने कोरोना काल में भी गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद की. 80 हजार कोटेदारों के माध्यम से राशन वितरण अभियान को हर गरीब तक पहुंचाने का बड़ा काम किया है.
लेखक- प्रमोद कुमार शर्मा
लगभग 1 साल तक पाल को कहीं नौकरी न मिली. सुषमा ने एक दुकान में काम करना शुरू कर दिया था. पाल को कुछ पैसे ‘स्टेट’ से सहायता के रूप में मिलते थे. सो, उन दोनों के खर्च के लिए काफी थे. परंतु उन पर जो पुराने बिल चढ़े हुए थे, उन का भुगतान बहुत ही मुश्किल था. जब 4 महीने तक पाल ने कार की किस्त न दी तो बैंक ने कार ले ली. पाल बहुत ही निरुत्साहित सा हो गया था. मैं इधर कंपनी के काम से बाहर रहने लगा था. कभी महीने में 1-2 बार ही उस से बातें हो पाती थीं.
पिछली बार जब उस से फोन पर बातें हुईं तो उस ने बताया कि अरुण भी अब उन के पास ही रहने लगा है. खाना वगैरा तो वह बाहर ही खाता है, रात में केवल सोने के लिए आता है. किराए का आधा पैसा देता है. इसलिए कुछ राहत मिली है. उन के पास 2 शयनकक्ष थे, सो परेशानी की कोई बात नहीं थी.
अरुण पढ़ने में बहुत तेज था. उस ने डेढ़ वर्ष में ही एमएस कर ली. यूनिवर्सिटी की तरफ से ही उसे एक कंपनी में जूनियर इंजीनियर की नौकरी मिल गई. अब वह कहीं और जा कर रहने लगा.
एक बार शनिवार को हम खरीदारी करने गए तो हमें सुषमा और अरुण साथसाथ नजर आए. हम ने जब उन्हें पुकारा तो वे ऐसे हड़बड़ाए जैसे कि कोई चोरी करते पकड़े गए हों.
‘‘रेणु, तुम आजकल हमारे घर नहीं आतीं?’’ सुषमा ने बनावटी गुस्से से कहा.
‘‘ये आजकल औफिस के काम से बाहर बहुत जाते हैं. जब शनिवार, रविवार की छुट्टी होती है तो बहुत थक जाते हैं,’’ रेणु ने उत्तर दिया.
हम चूंकि खरीदारी कर चुके थे, इसलिए रेणु ने कहा, ‘‘सुषमा, मैं तुम्हें फोन करूंगी और फिर मिलने का प्रोग्राम बनाएंगे.’’
हम वापस घर आ गए. कोई विशेष काम था नहीं, सो रेणु ने कहा, ‘‘चलो, आज सुषमा के घर बिना सूचना दिए ही चलते हैं.’’
शाम हो चली थी और हम पाल के यहां जा पहुंचे. घंटी बजाई तो पाल ने ही दरवाजा खोला. अंदर कहीं जब सुषमा नजर न आई तो रेणु ने पूछा, ‘‘सुषमा अभी तक नहीं आई?’’
पाल बोला, ‘‘भाभीजी, वह शनिवार व रविवार को देर तक काम करती है.’’ पाल के मुख से यह सुन कर बड़ा अजीब सा लगा. मैं ने रेणु को आंख से कुछ भी न बोलने का इशारा किया.
ये भी पढ़ें- जातपात : क्या नाराज परिवार को मना पाई निर्मला
पाल ने हमें बैठने को कहा और चाय बनाने चला गया. इतने में ही फोन आया तो पाल ने उठाया. उस के बात करने से पता चला कि वह सुषमा का ही फोन है. उस ने उस से मुश्किल से 1 मिनट बात की होगी. हमें चाय देते हुए बोला, ‘‘सुषमा का ही फोन था. उसे अभी आने में 2 घंटे और लगेंगे.’’ पाल ने हम से बहुत कहा कि हम खाने के लिए रुकें, पर हम ने मना कर दिया.
रास्ते में रेणु ने कहा, ‘‘यह माजरा क्या है?’’
मैं ने कहा, ‘‘दूसरों के मामलों में हमें दखल नहीं देना चाहिए.’’
रेणु इस बार बहुत गुस्से में बोली, ‘‘पाल तुम्हारा गहरा दोस्त है, अपनी आंखों से आज तुम ने सबकुछ देखा है. उस का घर, परिवार बरबाद हुआ जा रहा है और तुम कह रहे हो कि हमें दूसरों के मामलों में दखल नहीं देना चाहिए. कैसे दोस्त हो तुम?’’
रेणु की बात में दम था. मैं ने जब उस से पूछा कि हमें क्या करना चाहिए तो इस का उत्तर उस के पास भी नहीं था. वह बोली, ‘‘जो कुछ भी हो, हमें पाल से बात करनी चाहिए.’’
‘‘हां, पर कैसे?’’
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि पाल से कैसे बात करूं? कोई प्रत्यक्ष प्रमाण भी नहीं था कि उस से सुषमा और अरुण के नाजायज संबंध बताऊं. मैं ने रेणु से कहना चाहा कि जो हम ने देखा है, वह गलत भी तो हो सकता है, पर हिम्मत न हुई. रेणु उस समय गुस्से में थी.
लगभग 1 सप्ताह यों ही बीत गया. अगले शनिवार को 10-11 बजे पाल का फोन आया कि हम खरीदारी करने जाएं तो उसे भी साथ लेते जाएं.
मैं ने उस से 3-4 बजे तैयार रहने को कह दिया. हम उसे ले कर सुपर मार्केट गए तथा पूरे सप्ताह का राशन खरीदा. पाल ने भी अपना सामान खरीदा.
‘‘जहां सुषमा काम करती है, वहां चलते हैं. मुझे वहां से कुछ सामान खरीदना है,’’ रेणु ने कहा.
हम वहां गए. जिस काउंटर पर सुषमा काम करती थी, वह वहां नहीं थी. पाल ने उस के बौस से जा कर पूछा तो पता चला कि सुषमा तो पिछले 2 महीने से शनिवार व रविवार को काम करने ही नहीं आ रही है. पाल को यह जान कर बड़ा धक्का लगा. वह बोला, ‘‘यदि वह यहां काम करने नहीं आती है तो फिर कहां अपना मुंह काला करवाने जाती है?’’
मैं ने पाल को धैर्य बंधाते हुए कहा, ‘‘हो सकता है, उस ने कहीं और पार्टटाइम नौकरी ढूंढ़ ली हो.’’
‘‘पर मुझे तो बताना चाहिए था.’’
मैं ने उसे समझाया कि उसे घर जा कर सुषमा से प्यार से बात करनी चाहिए. हम ने उसे उस के फ्लैट पर छोड़ा.
वापसी में कार में बैठते ही रेणु मुझ पर बिफर पड़ी, ‘‘कैसे दोस्त हो तुम. सबकुछ पता होते हुए भी चुप क्यों रहे?’’
मैं ने उस से केवल इतना ही कहा, ‘‘आज की रात इन दोनों पर बड़ी भारी पड़ेगी.’’
अगले दिन सुबह 10 बजे के आसपास मैं ने पाल को फोन किया. मैं ने पूछा, ‘‘तुम ने रात सुषमा से बात की?’’
वह बोला, ‘‘हां, वह मुझे छोड़ कर चली गई है.’’
‘‘कहां?’’ मैं ने हैरानी से पूछा तो वह बोला, ‘‘अपने नए खसम के पास और कहां?’’
‘‘पाल, जरा शांत हो कर बताओ,’’ मैं ने कहा तो वह बोला, ‘‘मैं शांति से ही बात कर रहा हूं. उस ने मुझे तलाक देने का फैसला कर लिया है. वह अरुण के साथ नई शादी रचाएगी.’’
‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’
‘‘मैं बिलकुल वही कह रहा हूं जो उस ने रात में मुझ से कहा था,’’ पाल बोलता ही रहा, ‘‘जब रात को 10 बजे वह घर आई और मैं ने उस से पूछा कि यह सब क्या हो रहा है तो उस ने बड़े सहज स्वर में कह दिया कि वह मुझ जैसे बेकार व निकम्मे आदमी के साथ नहीं रह सकती.’’
ये भी पढ़ें- माहौल: क्या 10 साल बाद सुलझी सुमन की आत्महत्या की गुत्थी
पाल बोला, ‘‘मैं ने उसे फोन किया था, पर वह बात करने को ही तैयार नहीं. अरुण ने भी साफ शब्दों में कह दिया कि अब मेरे और सुषमा के बीच में बात करने के लिए कुछ भी शेष नहीं बचा है, और मैं उस के यहां फोन न करूं.’’
पाल बहुत टूटा सा लग रहा था. मुझे उस की हालत पर बहुत दुख हो रहा था, पर मैं कुछ भी नहीं कह पा रहा था.
दोपहर में भोजन के समय मैं ने उसे फोन किया, ‘‘यदि तुम्हें कुछ पैसों की जरूरत हो तो मांगने में संकोच न करना.’’
शाम को मैं उसे फिर अपने घर ले आया तथा एक हजार डौलर का चैक दे दिया.
एक दिन अरुण व सुषमा दोनों पाल की अनुपस्थिति में उस के फ्लैट में आए तथा फर्नीचर वगैरा सब उठवा कर ले गए. पाल के पास अब कुछ नहीं बचा था.
3-4 सप्ताह बाद पाल के पास सुषमा के वकील से तलाक के कागज आए और उस ने बिना किसी शर्त के उन पर हस्ताक्षर कर के भेज दिए. चूंकि तलाक दोनों को स्वीकार था, इसलिए कोर्ट से बिना देरी के उन का तलाक स्वीकार हो गया. यह सब इतना जल्दी घटित हुआ कि विश्वास ही नहीं हुआ.
अभी 1 सप्ताह ही बीता था कि एक दिन पाल का मेरे पास औफिस में फोन आया, ‘‘दिनेश, मुझे कल तुम्हारी कार चाहिए.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘मेरा कल सुबह एक कंपनी में 9 बजे इंटरव्यू है. यदि मैं समय पर नहीं पहुंचा तो नौकरी हाथ से निकल जाएगी.’’
‘‘ठीक है. तुम सुबह मुझे औफिस छोड़ जाना और मेरी कार ले जाना,’’ मैं ने उस से यह कह फोन बंद कर दिया.
अगले दिन वह मुझे औफिस छोड़ कर मेरी कार ले गया तथा शाम को जब आया तो बोला, ‘‘यार, तुम लोगों की मदद से नौकरी मिल गई.’’
मैं ने उसे बहुतबहुत बधाई दी. 1 महीने तक मैं उसे हर सुबह उस के नए औफिस में छोड़ आता. जैसे ही उसे पहली तनख्वाह मिली, उस ने एक कार खरीद ली और धीरेधीरे सामान्य सा होने लगा. वह अब अकसर शाम को हमारे यहां आने लगा. रात 9-10 बजे तक बैठता, खाना खाता और अपने घर लौट जाता.
6 महीने ऐसे ही गुजर गए. पाल की आर्थिक स्थिति सुधरने लगी. जिस कंपनी में वह काम करता था, उस के मालिक कंपनी की एक शाखा भारत में खोलने की सोच रहे थे. उन्होंने पाल को 1 महीने के लिए दिल्ली जाने को कहा तो वह वहां चला गया.
लगभग 1 महीने बाद जब वह वापस आया तो मुझे फोन किया कि उस ने फिर से शादी कर ली है और उस की पत्नी उस के साथ ही आई है. उस ने अगले शनिवार को हमें घर आने को कहा.
‘‘भाईसाहब, थोड़ी और पकौड़ी लीजिए. आप ने तो कुछ खाया ही नहीं. मैं ने स्वयं बनाई हैं. क्या अच्छी नहीं बनीं?’’ पाल की पत्नी ऊषा ने जब मुझ से यह कहा तो मैं अचानक उस दुखद स्मृति से चौंका, जो पाल की पुरानी विवाहित जिंदगी से जुड़ी थी और मैं उसी में खोया हुआ था.
‘‘नहींनहीं, बहुत अच्छी बनी हैं,’’ मैं ने कहा तो पाल ऊषा से बोला, ‘‘दिनेश को यदि पकौडि़यों के साथ बियर मिल जाती तो यह और भी खाता.’’
‘‘यह सब इस घर में नहीं होगा. यह घर मेरे प्यार का प्रेरणा स्थल है. ऐसे स्थान पर मादक द्रव्य नहीं लाए जाते,’’ ऊषा ने तपाक से कहा तो पाल कुछ न बोला.
थोड़ी देर में फोन की घंटी बजी. पाल ने रिसीवर उठाया, ‘‘हां, मैं धर्मपाल बोल रहा हूं,’’ उस के बाद उस ने फोन पर कुछ बातें कीं. जब हमारे पास आया तो रेणु बोली, ‘‘आप का नाम फिर से धर्मपाल हो गया क्या?’’
‘‘हां, भाभीजी, ऊषा को यही पसंद है.’’
खाना खा कर जब हम घर चले तो कार में बैठते ही रेणु ने कहा, ‘‘अब मुझे तुम्हारे मित्र के बारे में कोई चिंता नहीं है. ऊषा उसे आदमी बना कर ही छोड़ेगी.’’
मैं ने कहा, ‘‘जैसे तुम ने मुझे बना दिया.’’
वह कुछ न बोली तो मैं ने कहा, ‘‘चलो, अब कल देर तक सोएंगे.’’
‘‘तुम कभी नहीं बदलोगे,’’ कहते हुए वह मुसकरा पड़ी.