आज फिर से नई ऊर्जा का संवरण हो चुका था. उस ने स्वयं से वादा किया कि अब वह अपने सपनों को साकार करेगी. 4-5 दिन पंख लगा कर उड़ गए. वही पुरानी सुरभि अपने अंदर उसे नजर आने लगी, जिस ने कभी भी हिम्मत नहीं हारी. आज खुद से किया वादा उसे आत्मविश्वास से परिपूर्ण कर नए नजरिए से समझने के लिए प्रेरित कर रहा था.
दिल्ली घर वापस आने तक सुरभि का जैसे दोबारा जन्म हो गया था.
राहुल की बातों ने सोई हुई लालसा को जगा दिया था. आज उस के अंतस में सुरभि महक रह थी. कालेज के दिनों में जन्में उस के शौक व अपनी पसंद को उस ने फिर से अपने जीवन में शामिल कर लिया था. उसे अब किसी बात की परवाह नहीं थी न ही किसी के शक का भय था. अपने सपनों को जीवंत कर के सुरभि जैसे महकने लगी थी व उस की महक फिजां में भी महकने लगी. सुरभि ने फिर से रंगों को अपने जीवन में उतार कर जीना सीख लिया था. उस के शौक अब उस का आसमान बन गए थे.
विनोद भी उस के इस परिवर्तन से हैरान था. एक दिन चाय पीते हुए विनोद अचानक बोला, ‘‘क्या बात है सुरभि बहुत बदलीबदली नजर आ रही हो, कहां क्या किया, किसकिस से मिली… कुछ बताया नहीं? आजकल खूब जलवे बिखेर रही हो…’’
सुरभि ने बात काट कर कहा, ‘‘कुछ नहीं अपना बचपन जी रही हूं. तुम ने मुझे कभी देखा ही कहां है… कितना जानते हो मेरे बारे में व मेरे शौक के बारे में?’’ सुरभि की आवाज में ऐसी तलखी थी कि आज विनोद चुप हो कर उसे देखने लगा आगे कुछ कहने का साहस उसे नहीं हुआ.
एक समय के बाद नदी का प्रवाह भी पत्थर से टकरा कर अपने निशान उस पर अंकित कर देता है. आज सुरभि के मन की कोमल संवेदनाएं पत्थर से टकरा कर चूर हो गई थीं. उस ने उन्हें सहेजने का प्रयास नहीं किया.
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वक्त ने जीवन की करवट बदल दी थी. अपने नाम को सार्थक करती हुई सुरभि फिर से अपने सपनों के साथ महकने लगी. उस के भावों का संसार रंगों के माध्यम से अपना एक आसमान तैयार कर रहा था. विनोद बस चुपचाप उसे बदलते हुए देखता रहा. सुरभि अपने संसार में धीरेधीरे डूबने लगी.
काम में तल्लीन सुरभि आज भी फोन की घंटी बजते ही फोन में कुछ तलाशने लगती. सुरभि की आंखें हर पल किसी की आहट का इंतजार करती थीं. कान अब भी राहुल को सुनने के लिए बेकरार थे. राहुल के फोन का इतजार उसे रहने लगा. उस ने 1-2 बार राहुल को संदेश भी भेजा पर कोई उस का कोई जवाब नहीं आया. राहुल अपनी सीमा जानता था.
इंतजार सप्ताह से बढ़ कर महीने फिर साल में
परिवर्तित होता चला गया पर राहुल का फोन नहीं आया. उस के साथ व्यतीत हुए 6-7 घंटों ने सुरभि को जीने का मकसद सिखा दिया, किंतु उस के उपेक्षित व्यवहार ने सुरभि का पुरुषों के प्रति नजरिया बदल दिया था. उसे अचानक उस के शब्द याद आने लगे. राहुल ने कहा था खून से बढ़ कर नमक का रिश्ता नहीं होता है. हर बात की एक मर्यादा होती है.
सुरभि समझ गई थी कि सब पुरुष एकजैसे ही होते हैं. शायद कथनी व करनी में अंतर होता है. पुरुषों की सोच का दायरा ही सीमित होता है. स्त्री के प्रति उन का नजरिया नहीं बदलता है. पुरुष उस पर एकछत्र राज्य ही करना चाहते हैं, अपने घर के बाहर मर्यादा की रेखा खींच कर दोहरा व्यक्तित्व जीते है. स्त्रीपुरुष की मित्रता वे सामान्य तरीखे से लेना कब सीखेंगे, नारी के लिए लकीर खींचने का हक पुरुषों को किस ने दिया है? ये सीमाएं तय करने वाले वे कौन है. दोनों अलग व्यक्तित्व हैं फिर हर फैसला लेने का अधिकार पुरुषों को कैसे हो सकता है? मन के भाव शब्दों व लाल रंगों के माध्यम से अपनी बात बेखौफ कहने लगे. तूफान गुजरने के बाद घर का नजारा कुछ बिखरा सा था. उस का कमरा ही उस की दुनिया बन गई. कमरे में रंगों को सहेज कर वह बाहर आ गई.
आज मन शांत हो गया था. शायद विनोद को समझना उस के लिए अब सरल हो गया था कि पुरुषों की सोच का दायरा ही ऐसा होता है, जिसे बदला नहीं जा सकता है. तूलिका रंगों के माध्मम से जीवन को सफेद कागज पर जीवंत करने लगी. सुप्त मन के भाव अपना आकार लेने लगे. उस का मन उस चंचल हिरणी के समान हो गया था जो अपने ही जंगल में विचरण का पूर्ण आनंद लेती है.
अपने रंगों व अनुभूतियों में डूबी सुरभि आज अपने पिंजरे में भी खुश थी. पिंजरे के साथ ही उस ने उड़ना सीख लिया था. मेज पर रखा आधा भरा गिलास भी खाली नहीं लग रहा था. उस आधे हिस्से में हवा थी जो गिलास के कोरों पर चिपकी पानी की बूंदों को आत्मसाध करना चाहती थी. खिड़की से आ रही शीतल हवा पास में रखे चाय के कप की खुशबू को उड़ाने का प्रयास कर रही थी. मेज पर रखा हुआ चाय का कप भी आधा भरा था.
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हालांकि सुरभि को पूरा कप भर के चाय पीना पसंद है, पर आज वह आधा कप चाय भी सुकून का एहसास दे रही थी. यह देखने वालों का ही नजरिया होता है कि किसी को कप खाली लगता है किसी को आधा भरा हुआ. उस के जीवन में अब खालीपन का स्थान नहीं था. चाय से निकलती हुई भाप हवा में अपने अस्तित्व का संकेत दे कर विलय हो रही थी. इलायची की खुशबू वातावरण को महका रही थी.
चाय पीने की तलब ने हाथों को कप की तरफ बढ़ा कर कप को होंठों से लगा लिया. चाय की चुसकियां व बंजर होते जीवन में वसंत ने अपने रंग भर दिए थे. रेडियो पर बज रहा गाना गुनगुनाने को मजबूर कर रहा था. ‘मेरे दिल में आज क्या है तू कहे तो में बता दूं…’ दिल आज भी उस आवाज को सुन कर धन्यवाद देना चाहता है जिस ने अनजाने ही सूखे गुलाब में इत्र की कुछ बूंदों को छिड़क दिया था. आज भी सुरभि को राहुल के फोन का इंतजार है, शायद कभी तो हवा का रुख बदले.