फैमिली और जौब के बीच कैसे बनाएं बैलेंस, जानें क्या कहती हैं यंग Working Mothers

Working Mothers : २५ साल की नेहा नोएडा की एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती है. शादी और प्रैगनैंसी के बाद जब उस की गोद में प्यारा सा बेटा आया तो उसे लगा जैसे जीवन की सारी खुशियां उसे हासिल हो गईं. मैटरनिटी लीव खत्म होने के बाद जब वह दोबारा जौब पर लौटी तो वहां सब का यह सवाल था कि अब आप कैसे मैनेज करेंगी? पहले जैसा काम अब कर सकेंगी या नहीं? घर वाले भी नहीं चाहते थे कि वह बच्चे को छोड़ कर जौब पर जाए. इधर बेबी को घर पर छोड़ने की गिल्ट उसे खुद भी महसूस होने लगी थी. चीजों को खुल कर सामने रख पाना मुश्किल लगने लगा था. इस बीच बच्चे की तबीयत खराब हुई तो आखिर उस ने हिम्मत हार दी और घर पर बैठ गई.

कई साल बाद जब बेटा स्कूल और पढ़ाई में बिजी हो गया और अपनी दुनिया में मगन रहने लगा तो नेहा को जीवन में खालीपन का एहसास हुआ. दिनभर उस के पति औफिस में रहते थे, बेटा अपनी पढ़ाई और दोस्तों में व्यस्त रहता और सास ऊपर जा चुकी थीं. आज नेहा के पास न अपनी पहचान थी और न ही अपने कमाए रुपए. घर में किसी के पास उस के लिए समय भी नहीं था. नेहा को अब जौब छोड़ने के अपने उस फैसले पर बहुत पछतावा होने लगा था. वह सोचने लगी थी कि काश उस समय उस ने थोड़ी हिम्मत दिखाई होती और नौकरी न छोड़ती तो कहां की कहां पहुंच चुकी होती.

अकसर महिलाओं के साथ ऐसा ही होता है. दरअसल, एक वर्किंग वूमन की लाइफ में शादी और बच्चे दोनों अहम भूमिका निभाते हैं. शादी के बाद घर की जिम्मेदारी संभालना और परिवार आगे बढ़ाने के लिए बच्चे को जन्म देना स्त्री का कर्तव्य माना जाता है. बच्चे के जन्म के बाद उसे संभालना और परवरिश करना महिला की प्राथमिकता बन जाती है. ऐसे में जब वह कैरियर और परिवार में से किसी एक चुनने को मजबूर हो जाती है तो अकसर वह परिवार और बच्चे को ही चुनती है. घर वाले भी उसे ऐसा करने को मजबूर करते हैं.

मां बनने के बाद कैरियर

आज के समय में महिलाएं या लड़कियां पुरुषों से किसी बात में कम नहीं हैं. पहले के समय में महिलाएं कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में काम ही किया करती थीं जैसेकि टीचर की नौकरी या फिर बैंक इत्यादि में काम करना. लेकिन अब महिलाएं हर फील्ड में आगे आ रही हैं और अपनी काबिलीयत भी दिखा रही हैं.

उन के काम करने की क्षमता यकीनन पुरुषों से कहीं अधिक है. वह न सिर्फ औफिस या बिजनैस बखूबी संभालती हैं वहीं घर की उन जिम्मेदारियों से भी मुंह नहीं मोड़तीं जो औरत होने की वजह से उन पर लादी जाती हैं. मसलन, बच्चों को संभालना, उन्हें पढ़ाना, बीमार पड़ने पर दिनरात सेवा करना, खाना बनाना, घर के बुजुर्गों की देखभाल, घर साफसुथरा रखना और ऐसी ही और तमाम जिम्मेदारियां. मगर यह सब एकसाथ निभाना इतना आसान नहीं.

एक चुनौती

किसी भी कामकाजी महिला के लिए अपने काम या कैरियर में सब से बड़ी समस्या होती है मां बनने के बाद औफिस में उसी जोश और एकाग्रता के साथ काम करना. मां बनना कोई सरल काम नहीं होता है और इस के लिए महिला को केवल शुरू के 9 महीने ही नहीं अपितु शिशु होने के लगभग 1 से 2 साल तक कड़ी मेहनत व बदलते जीवन से गुजरना होता है. वैसे भी बच्चों के बाद उस की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं.

घर के बुजुर्ग भी उसे काम के बजाय घर और बच्चों को संभालने में अधिक ध्यान देने की बात करते रहते हैं खासकर जो महिलाएं निजी नौकरी करती हैं या अपने खुद का व्यवसाय चलाती हैं उन के लिए मां बनने के बाद अपने कैरियर को मैनेज करना एक चुनौती बन कर सामने आता है. महिला के लिए इन बदलावों को अपनाना और उन के साथ ही अपने कैरियर पर ध्यान देना बहुत मुश्किल हो जाता है.

अशोका यूनिवर्सिटी के जेनपैक्ट सैंटर फौर वूमंस लीडरशिप के सर्वे की मानें तो 27त्न महिलाएं ही बच्चे को जन्म देने के बाद अपने कैरियर को आगे बढ़ा पाती हैं. वहीं देश में

50त्न वर्किंग महिलाओं को 30 साल की उम्र में अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए नौकरी छोड़नी पड़ती है. मैटरनिटी लीव खत्म होने के बाद उन महिलाओं के लिए सिचुएशन ज्यादा टफ हो जाती है जो बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग करा रही होती हैं.

मां बनने के बाद नौकरी छोड़ देना आसान है मगर यह एक गलत फैसला साबित होता है क्योंकि स्त्री का वजूद केवल घरगृहस्थी में सिमट कर रह जाता है. वह अपनी काबिलीयत का उपयोग नहीं करती तो इस बात की गिल्ट मन में रहने लगती है. घर में भी उसे वह सम्मान नहीं मिलता जो एक कमाऊ स्त्री को मिलता है.

बच्चे जब थोड़े बड़े हो जाते हैं तो उन की अपनी दुनिया बन जाती है और तब मांएं अपने उस फैसले पर पछताती हैं जो उन्होंने बच्चों के जन्म के बाद कैरियर छोड़ कर घर में रहने को अहमियत दी थी. यही नहीं बच्चे की बेहतर परवरिश और घर की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने के लिए वर्किंग वूमन को कभी अपना काम नहीं छोड़ना चाहिए. आप की जौब आप के सम्मान और आत्मविश्वास के लिए जरूरी है.

कुछ बातों का खयाल रख कर आप परिवार और काम में बैलेंस बना सकती हैं:

खाली समय का करें सदुपयोग

अब जब आप मां बनने वाली हैं तो अवश्य ही आप ने औफिस से कई महीनों की छुट्टियां ली होंगी या वहां से त्यागपत्र दे दिया होगा. कई महिलाएं कुछ महीनो की छुट्टी पर चली जाती हैं तो किसीकिसी को रिजाइन करना पड़ता है. फिर वे लगभग 1 से 2 वर्ष का गैप ले कर फिर से अपने कैरियर पर लौटती हैं.

ऐसे में यदि आप भी अपनी गर्भावस्था और मां बनने के बाद कुछ समय के लिए घर पर हैं और अपनी और बच्चे की देखभाल करने में लगी हैं तो क्यों न उस समय का सदुपयोग किया जाए. इस के लिए आप कुछ न कुछ क्रिएटिव करती रहें. आप को जो कुछ आता है उस में कुछ नया और बेहतर करने का प्रयास करें.

जब भी समय मिले तो अपनी स्किल्स पर काम करें. अब जो लोग निरंतर नौकरी पर जा रहे हैं उन्हें तो कुछ न कुछ सीखने को मिल ही जाता है. ऐसे में आप घर बैठे ही अपनी स्किल को अपडेट करेंगी तो यह आप के लिए बहुत ही सही रहेगा. यह आप को अपने काम से भी जोड़े रखेगा और निरंतर आप को कुछ न कुछ नया सिखाता भी रहेगा.

औफिस के पास हो डे केयर

औफिस जौइन करने के बाद बच्चे की चिंता बनी रहती है. जो महिलाएं फैमिली के साथ रहती हैं उन्हें अपनी गैरमौजूदगी में बच्चे को घर पर रखने की चिंता नहीं होती है. मगर अगर घर पर बच्चे के साथ रहने वाला कोई नहीं है तो औफिस के नजदीक ही अच्छा सा डे केयर चुन लें ताकि बच्चे को अच्छी नर्सिंग मिल सके. लंच ब्रेक में आप बच्चे को फीड कराने या इमरजैंसी में आसानी से वहां जा सकती हैं.

औफिस में कंफर्टेबल फील करें

मां बनने के बाद कई शारीरिक बदलावों का होना नौर्मल है. ऐसे में औफिस में कंफर्टेबल फील करें. पहनावा भी कंफर्टेबल ही रखें. अगर आप बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग कराती हैं तो डाइट में शामिल सभी फूड आइटम्स को भी बैग में रखें ताकि आप को अंदर से कमजोरी महसूस न हो. अपनी सेहत का पूरा खयाल रखें.

विकल्प के रूप में वर्क फ्रौम होम

आज के समय में वर्क फ्रौम होम का कल्चर काफी पसंद किया जाने लगा है. कोरोना के बाद से ही बहुत से बदलाव इस दुनिया में देखने को मिले हैं. इन्हीं में एक बहुत बड़ा बदलाव है वर्क फ्रौम होम का. ऐसा बहुत सा काम है जो घर बैठे ही आसानी से किया जा सकता है.

अगर मां बनने के बाद कुछ साल आप प्रौपर औफिस जा कर 9 से 5 की जौब नहीं कर पा रही हैं तो इस के लिए बौस से वर्क फ्रौम होम की सिफारिश करें. यही नहीं आप बड़ीबड़ी कंपनियों की वैबसाइट पर जा कर विजिट करें जैसेकि ग्लो ऐंड लवली, टाटा, एचसीएल, विप्रो इत्यादि. वहां पर समयसमय पर कई तरह की वर्क फ्रौम होम नौकरियों के बारे में अवसर आते रहते हैं जिन्हें आप ट्राई कर सकती हैं.

पति की सहायता लें

आप मां बनी हैं तो आप के पति भी तो पिता बने हैं. ऐसे में जरूरी नहीं कि कैरियर से जुड़े सारे सैक्रिफाइस आप ही करें. आप अपने पति की भी इस में सहायता ले सकती हैं. अब यह सहायता किसी भी तरह की हो सकती है. उदाहरण के तौर पर आप अपने पति से कभीकभी घर के काम निबटाने का आग्रह कर सकती हैं.

कभी बच्चा बीमार है और आप के लिए औफिस जाना जरूरी है तो आप पति से छुट्टी ले कर बच्चे को संभाल लेने को कहें. कभी पति काम से छुट्टी लें तो कभी आप. इस तरह से कई चीजों में आप अपने पति का सहयोग ले सकती हैं. इस से सब आसानी से मैनेज होगा और पति के सहयोग से आप बैलेंस बना सकेंगी.

क्या कहती हैं यंग वर्किंग मदर्स

यंग वर्किंग मदर्स किस तरह परिवार और काम एकसाथ मैनेज कर सकती हैं इस पर हम ने कुछ खास वर्किंग मदर्स से बात की. उन्होंने अपने अनुभव और बातें हम से शेयर कीं:

औफिस और घर दोनों संभालना आसान नहीं होता

-गजल अलघ, मामाअर्थ की को फाउंडर

होनासा कंज्यूमर कंपनी की को फाउंडर गजल अलघ एक ऐसी यंग मदर और सक्सैसफुल बिजनैस वूमन हैं जिन्होंने अपने बेटे को बीमारी से बचातेबचाते एक बड़ी कंपनी खड़ी कर दी. दरअसल, उन के बच्चे की स्किन बहुत सैंसिटिव थी और टौक्सिन वाले प्रोडक्ट इस्तेमाल करते ही उसे समस्या हो जाती थी. ऐसे में गजल अलघ को जब मार्केट में अपने बेटे के लिए टौक्सिन फ्री प्रोडक्ट नहीं मिले तो उन्हें टौक्सिन फ्री बेबी प्रोडक्ट्स बनाने का आइडिया आया.

इस के बाद उन्होंने अपने पति वरुण के साथ मिल कर 2016 में होनासा कंज्यूमर प्राइवेट लिमिटेड नाम से स्टार्टअप शुरू कर दिया. इस तरह उन्होंने प्रौब्लम का न सिर्फ सौल्यूशन निकाला बल्कि इस से एक बड़ा बिजनैस भी खड़ा कर दिया. ब्यूटी प्रोडक्ट्स की मार्केट में मामाअर्थ आज जानामाना नाम है.

मामाअर्थ की मूल कंपनी होनासा कंज्यूमर प्राइवेट लिमिटेड ही है. किस तरह घर और बिजनैस का काम एकसाथ मैनेज करती हैं? इस सवाल के जवाब में गजल अलघ कहती हैं, ‘‘औफिस और घर दोनों संभालना आसान नहीं होता लेकिन अच्छा सपोर्ट सिस्टम हो तो काम थोड़ा आसान हो जाता है. मेरे 2 बच्चे हैं, एक 10 साल का और दूसरा 3 साल का. मेरे पति वरुण और मुझे अपने परिवार का पूरा साथ मिलता है जो बच्चों का खयाल रखने में मदद करता है. इस से हम काम पर भी ध्यान दे पाते हैं और बच्चों की देखभाल भी अच्छे से हो जाती है.

‘‘हम घर पर कोशिश करते हैं कि बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. हर महीने उन के साथ कुछ खास करते हैं जैसे उन के फैवरिट गेम्स खेलना, बिना फोन और इंटरनैट के पूरा दिन साथ बिताना या फिर पिकनिक पर जाना. ये छोटेछोटे पल हमें खुशी देते हैं और यह भी याद दिलाते हैं कि असल में सब से जरूरी क्या है.

‘‘औफिस में मैं वर्किंग मांओं की दिक्कतें समझती हूं. इसलिए हम ने फीडिंगरूम्स और जरूरी सैनिटरी प्रोडक्ट्स की सुविधा दी है. मेरी बाकी मांओं से यही कहना है कि अपने सपोर्ट सिस्टम पर भरोसा करें. जो सब से जरूरी है उसे पहले रखें और मदद मांगने से पीछे न हटें. घर और औफिस दोनों संभालना मुश्किल है लेकिन सही सपोर्ट और प्लानिंग से यह मुमकिन है.’’

मेरा बच्चा मेरी सब से बड़ी प्रेरणा है

-गार्गी मलिक, पब्लिक रिलेशंस प्रोफैशनल

गार्गी मलिक एड फैक्टर्स पीआर में पब्लिक रिलेशंस प्रोफैशनल के रूप में काम करती हैं. घर के साथ औफिस का काम मैनेज करना उन के लिए आसान नहीं था.

गार्गी बताती हैं कि यह और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है जब आप बिना परिवार और रिश्तेदारों के एक बिलकुल नए शहर में सबकुछ अकेले संभाल रही होती हैं.

अपने बच्चे के जन्म के साथ उन्होंने खुद से एक वादा किया कि मैं एक मां के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए कभी भी अपना कैरियर नहीं छोड़ूंगी.

गार्गी कहती हैं, ‘‘ऐसे दिन होते हैं जब घर, एक छोटे बच्चे और काम की प्रतिबद्धताओं को संभालना बहुत मुश्किल लगता है खासकर हमारा पेशा 9 से 5 की टाइमिंग नहीं मानता. लेकिन किसी तरह मैं ने अपने अंदर एक ऐसी ताकत खोज ली है, एक ऐसी प्रेरणा जो मुझे आगे बढ़ने की शक्ति देती है. इतनी छोटी उम्र में भी मेरा बच्चा महसूस कर लेता है कि कब मुझे उस के सहयोग की जरूरत है और मुझे वह ताकत देता है जो मुझे जरूरी चीजों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. दोनों में संतुलन बनाना आसान नहीं है लेकिन हम माताओं का प्यार और दृढ़ता सच में पहाड़ों को हिला सकती है. मेरा बच्चा मेरी सब से बड़ी प्रेरणा है जो मुझे हर दिन याद दिलाता है कि मैं यह सब क्यों कर रही हूं.’’

गार्गी को अपने परिवार का कोई सहयोग नहीं मिलता क्योंकि वे उन से दूर रहती हैं. हालांकि उन के सहकर्मी सब से बड़ी ताकत हैं और दूसरे परिवार जैसे बन गए हैं. वे हमेशा हर परिस्थिति में जब भी जरूरत होती है अपना सहयोग देने के लिए तैयार रहते हैं. वे कहती हैं कि एक वर्किंग मदर को परफैक्शन की सोच को छोड़ देना ठीक है. आप के बच्चे को एक परफैक्ट मां की नहीं एक खुश और प्यार करने वाली मां की जरूरत है. मातृत्व और कैरियर के बीच संतुलन बनाते हुए अपनी खुद की कीमत कभी न भूलें. औरत के अंदर पहाड़ों को हिलाने की ताकत है जब वे अपना मन बना लें.

अपनी समस्याओं के बारे में बात करते हुए गार्गी कहती हैं, ‘‘सब से बड़ी चुनौती जो मैं एक मां के रूप में महसूस करती हूं वह यह है कि मैं अपने बच्चे की छोटीछोटी जरूरतों के लिए हमेशा उपलब्ध नहीं हो पाती. हर रोज जब मैं काम पर जाती हूं तो एक अपराधबोध महसूस करती हूं जैसे मैं कोई बड़ी गलती कर रही हूं. ऐसे क्षण आते हैं जब मेरी नौकरी और मेरा बच्चा दोनों मेरा ध्यान चाहते हैं और अकसर मु?ो काम को चुनना पड़ता है. कई महीनों से मैं ठीक से सो नहीं पाई हूं क्योंकि मेरा बच्चा रात को खेलना चाहता है. कभीकभी मैं थकी हुई घर आती हूं, बस आराम करना चाहती हूं लेकिन मेरा बच्चा खेलना चाहता है और मैं थकी होने के बावजूद खुश रहने की कोशिश करती हूं. ये क्षण मेरे सामने आई सब से कठिन चुनौतियों में से कुछ हैं.

‘‘दूसरी मांएं भी ऐसी समस्याओं से जूझती हैं. ऐसे में जरूरी है कि आप शांत, धैर्यवान और सकारात्मक रहें. हमेशा खुद को याद दिलाएं कि आप जो भी चुनाव कर रही हैं चाहे वह काम हो या आप का बच्चा वह उस पल में आप दोनों के लिए सही है. जब जरूरी हो काम को प्राथमिकता देना या जब जरूरत हो बच्चे पर ध्यान केंद्रित करना कोई अपराध नहीं है. इन चुनौतियों से पार पाने की कुंजी मानसिक खुशी है. एक खुश और मानसिक रूप से मजबूत मां किसी भी परिस्थिति से निबट सकती है और अपने बच्चे के लिए खुद का सब से अच्छा रूप पेश कर सकती है.’’

काम और बच्चों की परवरिश के बीच बैलेंस बना कर रखती हूं

-आराधना डालमिया, फाउंडर, आर्टेमिस्ट

आर्ट कंसल्टैंट आराधना डालमिया जो द आर्टेमिस्ट नाम की कंपनी की फाउंडर हैं बताती हैं कि उन के 2 बच्चे हैं 1 बेटा और 1 बेटी. बेटा 4 साल का है जबकि बेटी की उम्र 2 साल है. वह अपने काम और बच्चों की परवरिश के बीच बैलेंस बना कर रखती हैं. सुबह बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर के औफिस के लिए निकल जाती हैं. जब बच्चों के स्कूल में कोई प्रोग्राम होता है तो उस में जरूर शामिल होती हैं. बच्चों के स्कूल आदि से जुड़ी हर गतिविधि एवं कार्यक्रम का पूरा ध्यान रखती हैं. शाम को औफिस से लौटने के बाद बच्चों को खाना खिलाना और फिर उन के साथ वक्त बिताना उन्हें पसंद है. उन्हें अपने परिवार से पूरा सहयोग मिलता है.

जब बच्चे बीमार पड़ते हैं तो हर मां की तरह उन को भी असुविधा और टैंशन होती है खासतौर से उस समय परेशानी और भी बढ़ जाती है जब घर पर बच्चे बीमार हों और औफिस में भी कोई बड़ा प्रोजैक्ट या जरूरी काम चल रहा हो जिसे आप को करना ही है. ऐसी स्थिति में परिवार ही उन का सहारा बनता है.

मैं क्वालिटी टाइम पर फोकस करती हूं, भले ही वह समय कम हो मगर खूबसूरत हो

-शिप्रा भूटाडा यूजर कनैक्ट कंसल्टैंसी

की फाउंडर

शिप्रा भूटाडा यूजर कनैक्ट कंसल्टैंसी की फाउंडर हैं. यह एक रिसर्च और इनोवेशन स्टूडियो है. शिप्रा संयुक्त परिवार में रहती हैं जिस में सासससुर, पति और

2 बेटियां शामिल हैं. वे कहती हैं कि घर और औफिस का काम मैनेज करना चुनौतीपूर्ण जरूर है लेकिन प्राथमिकताओं और समय प्रबंधन पर ध्यान दे कर इसे संतुलित करना सीखा है. परिवार के सभी सदस्यों का सहयोग इसे आसान बनाता है.

गिल्ट फीलिंग: शिप्रा कहती हैं कि मां होने के नाते कभीकभी ऐसा लगता है कि मैं बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पा रही. ऐसे में मैं क्वालिटी टाइम पर फोकस करती हूं, भले ही वह समय कम हो मगर खूबसूरत और ब्यूटीफुल हो.

शिप्रा के अनुसार, वर्किंग मदर्स को चाहिए कि अपने परिवार और बच्चों को अपनी जर्नी का हिस्सा बनाएं. एक सहायक और खुले संवाद वाले माहौल में काम और घर दोनों संतुलित करना आसान हो जाता है. कई बार थकावट या तनाव महसूस होता है. इस से निबटने के लिए रैग्युलर ऐक्सरसाइज और एंटरटेनमैंट ब्रैक्स लें. इन से न केवल ऐनर्जी मिलती है बल्कि मूड भी रिफ्रैश होता है. वर्किंग मदर्स को परिवार के साथ काम बांटने और सहयोग मांगने में झिझकना नहीं चाहिए.

परफैक्शन का प्रैशर नहीं लेना चाहिए. हर दिन परफैक्ट नहीं होगा लेकिन हर दिन महत्त्वपूर्ण होता है. बच्चों को जिम्मेदारी सिखा कर उन्हें स्वतंत्र बनने में मदद करनी चाहिए. खुद के लिए समय निकालना नहीं भूलना चाहिए. एक खुश और आत्मनिर्भर मां ही बच्चों और परिवार के लिए सब से अच्छा उदाहरण होती है.

Divorce : क्या बेवफा पति से तलाक लेना है मुश्किल?

Divorce : हमेशा हंसती रहने वाली नलिनी का उदास चेहरा सभी को खटक रहा था. सब उस की उदासी की वजह जानना चाहते थे. मेरे बारबार पूछने पर उस की आंखों में आंसू तैरने लगते. उस ने अपनी एक कलीग को बताया, ‘‘सुनील मेरे पति का अपनी बड़ी भाभी से शारीरिक रिश्ता है. मैं ने उन दोनों को कई बार बड़ी ही अजीब स्थिति में पकड़ा है. पूछने पर सुनील कहता है मैं जो हूं, जैसा हूं वैसा ही रहूंगा. वैसे ही तुझे रहना होगा.’’

यह किसी पत्नी को भी स्वीकार नहीं होता. आंखों देख कर मक्खी नहीं निगली जाती है. नलिनी ने अपने पति की सारी कहानियां सुनाईं कि कबकब उस ने कैसेकैसे देखा. साफ जाहिर था कि सुनील नलिनी के साथ रहना नहीं चाहता.

तो छोड़ क्यों नहीं देती सुनील को नलिनी? क्यों नहीं तलाक ले ले?

आसान या मुश्किल

यह कहना आसान है पर करना मुश्किल क्योंकि नलिनी असल मैं सुनील को चाहती है. मगर क्या प्रेम जबरदस्ती पाया जा सकता है? अगर किसी का मन आप से पलट गया है तो आप के लाख चाहने से भी कुछ नहीं होगा. नलिनी के साथ भी यही हुआ. वह गर्भवती हो गई. हादसा ही कहेंगे उसे क्योंकि पति को जब लगा कि  थोड़ा सा प्यार देना भी उस के लिए जी का जंजाल बन गया है तो बहाने से अपनी 8 महीने की गर्भवती पत्नी को मायके भिजवा दिया और तलाक के पेपरों पर सहमति करवा ली.

4 साल नलिनी तलाक को रोकती रही पर पति साथ रहने को राजी नहीं हुआ. आज बच्चा 6 साल का है, 2 साल हो गए तलाक हुए पर दूसरी शादी में यही बच्चा रोड़ा बन रहा है क्योंकि तलाकशुदा महिला मगर बिना बच्चे के हो तो कोई भी उसे पत्नी बनाना स्वीकार कर लेता है मगर बच्चे को कोई स्वीकार नहीं करता. आज न वह बच्चे की परवरिश ढंग से कर पा रही है, न शादी ही हो पा रही है. अगर नलिनी पति की बेवफाई का पता चलते ही उसे पहले दिन ही छोड़ देती तो कहीं भी दूसरी जगह शादी कर सकती थी. 6-7 साल भी बरबाद नहीं होते नलिनी के.

शादी टूटने की नौबत

विवाह प्यार और विश्वास की नींव पर टिका होता है. हकीकत में दोनों में से एक की भी कमी होने पर विवाह टूटने की नौबत आ जाती है. जो पति बेवफा हो ही गया है, उस से प्यार करते रहना या उस का विश्वास करना अपने पांवों पर खुद कुल्हाड़ी मारने जैसा है क्योंकि बेवफा होने से पहले साथी ने ही अपने मन से पत्नी के लिए प्यार और विश्वास को समाप्त कर दिया है. तो ऐसे व्यक्ति से उम्मीद क्या कर रही हैं आप? उस का इंतजार करना वक्त की बरबादी ही तो है.

भारत में ही नहीं, विदेशों में भी जहां तलाक ज्यादा आसानी से मिलता है बेवफा पति के लिए जान छिड़कने वालों की कमी नहीं है. चीन में हौंगकौंग के शुआनदोग प्र्रांत की शाओगुआन ने अपने पति की बेवफाई से दुखी हो कर अपने 9 वर्षीय बेटे के साथ नदी में कूद गई. मगर कुछ लोगों ने दोनों को बचा लिया. शाओगुआन के उस 9 वर्षीय बेटे ने अपनी मां पर अदालत में मुकदमा दायर कर दिया कि उस की मां ने उस से जीने का अधिकार छीनने की कोशिश की. वह मरना नहीं चाहता था पर उस की मां उसे जबरदस्ती पकड़ कर नदी में कूद गई.

बेवफाई का अंदाज

स्थिति हास्यास्पद भी है, दयनीय भी और शिक्षाप्रद भी. बच्चा अपना जिंदगी जीना चाहता है जबकि मां के पास भविष्य के लिए कुछ भी उम्मीद नहीं है. ऐसी सोच से तो महिलाओं को शिक्षा लेनी चाहिए कि एक व्यक्ति ने बेवफाई की है तो वह सारी दुनिया क्यों छोड़ना चाहती है? उस व्यक्ति को ही क्यों नहीं छोड़ देती?

बेवफाई का एक अंदाज और भी है पुरुषों का. विदेश में बसने के इच्छुक भारतीय लड़के यहां ब्याह कर के दहेज के पैसों से विदेश बस जाते हैं और वहीं दूसरी शादी रचा लेते हैं. पत्नियां पतियों के इंतजार में बुढ़ा जाती हैं. अत: इस से अच्छा है कि तलाक ले कर निडर और शांत जिंदगी जी जाए. चाहे तलाक में कितने ही समझौते क्यों न करने पड़ें.

Hairstyle : कर्ली बालों को कैसे सीधा कर सकते है?

सवाल

Hairstyle : मेरे बाल कर्ली हैं जो देखने में अच्छे नहीं लगते और उन को बांधने का कोई नया स्टाइल भी नहीं बन पाता. उन को सीधा करने का उपाय बताएं?

जवाब

परमानैंट स्ट्रेटनिंग करवाना आप के लिए सही रहेगा. इस के लिए नैनोप्लास्टी टैक्नीक एक लेटैस्ट टेक्नीक है जिस में नैनो टेक्नोलौजी का इस्तेमाल होता है. कर्ली बालों को टैंपरेरी स्ट्रेटनिंग करने पर उसे आप को रोजरोज करना पड़ेगा और उस से बारबार हीट लगने से बाल खराब भी हो जाएंगे जबकि नैनौप्लास्टीव में यूज होने वाले प्रोडक्ट बालों को न्यूट्रिशन प्रदान करेंगे और बाल लंबे समय के लिए सीधे रहने के साथसाथ खूबसूरत भी दिखेंगे.

सवाल

मेरी उम्र 37 साल है. मेरे हाथ और बाजू टैनिंग ग्रस्त हैं. सबकुछ कर के देख लिया पर कोई फर्क नहीं पड़ा. स्किन स्पैशलिस्ट से भी मिल चुकी हूं. उन से भी निराशा ही हाथ लगी. हाथ देखने में बहुत बुरे लगते हैं. कृपया कोई उपाय बताएं?

जवाब

आप किसी कौस्मैटिक क्लीनिक से ऐंटीटैन या फिर स्किन पौलिशिंग ट्रीटमैंट ले सकती हैं. यह टैनिंग को रिमूव कर के स्किन पर पौलिश यानी चमक लाता है. इस के अलावा आप जब भी धूप में बाहर निकलें अपनी बौडी के खुले भागों पर एसपीएफ और पीए+++ युक्त सनस्क्रीन लगाएं. घरेलू उपाय के तौर पर संतरे के सूखे छिलके, सूखी गुलाब व नीम की पत्तियां सभी समान मात्रा में लें और सब को दरदरा पीस लें. अब इस 1 चम्मच पाउडर में 1 चम्मच कैलेमाइन पाउडर, आधा चम्मच चंदन पाउडर और ऐलोवेरा जैल मिला कर पेस्ट बना लें और रोजाना अपनी बांहों पर इस से स्क्रब करें. इस स्क्रब को करने से त्वचा साफ, चिकनी और निखरी रहती है.

सवाल

मेरी उम्र 26 वर्ष है. समस्या यह है कि मेरे सिर में रूसी हो गयी है. सिर की त्वचा पर कई जगह खुश्की जमा हो गई है. मैं डैंड्रफ पू्रफ शैंपू इस्तेमाल कर रही हूं फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ा. कोई उपाय बताएं?

जवाब

अपने बालों को स्वच्छ रखने के लिए सप्ताह में कम से कम बार किसी अच्छे ऐंटीडैंड्रफ शैंपू से बाल अवश्य धोएं और जब भी बाल धोएं तब अपनी कंघी, तौलिया व तकिए को भी किसी अच्छे ऐंटीसैप्टिक के घोल में डुबो कर धोएं और धूप में सुखा कर ही दोबारा इस्तेमाल कीजिए. इस के अलावा नारियल के तेल में कपूर मिला कर बालों की जड़ों में मालिश करें. 4-5 घंटे बाद बाल धो दें. यदि फिर भी कोई लाभ न मिले तो किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक में जा कर ओजोन ट्रीटमैंट या बाईओप्ट्रोन की सिटिंग ले सकती हैं. इस से डैंड्रफ तो कंट्रोल होगा ही साथ ही डैंड्रफ की वजह से हो रहें हेयर फौल में भी नियंत्रण होगा. रूसी की समस्या से बचने के लिए घरेलू उपचार के लिए सेब कद्दूकस कर के रस निकाल लें. रूई के फाहे से उसे बालों की जड़ों में लगाएं. सूख जाने पर बालों को धो दें.

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा  पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से भी अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Suicide के लिए मजबूर करने वाला अपराधी होता है…

Suicide  : घरेलू विवादों में पत्नी के आत्महत्या कर लेने के बाद पतियों को जेलों में बंद कर देना एक रिवाज बन गया है. मृत पत्नी के मातापिता तरहतरह के आरोप लगाते हैं कि उन की बेटी को पति और उस के घर वालों ने इतना सताया है कि  उसे सुसाइड करने पर मजबूर होना पड़ा. पुराने इंडियन पीनल कोड की धारा 306 के अनुसार आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाला या उकसाने वाला अथवा उस की आत्महत्या करने में हैल्प करने वाला अपराधी होता है.

सैकड़ों पति आज देश की जेलों में बंद हैं और कुछ में उन के माता, पिता, भाई, बहन, भाभी, जीजा, दादी तक भी बंद हैं कि पत्नी ने तंग आ कर सुसाइड कर लिया. सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबर, 2024 को एक फैसले में धारा 306 का ऐक्सप्लेन करते हुए कहा कि सिर्फ सताने का सुबूत आत्महत्या के लिए फोर्स करने के लिए पूरा नहीं है. आरोपी ने कुछ ऐसा किया हो कि मरने वाले को सुसाइड करना ही पड़ा हो.

सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा वह ठीक है क्योंकि पतिपत्नी डिस्प्यूट में अकसर कमजोर औरतें सुसाइड कर के पति से बदला लेने की धमकी सदियों से देती रही हैं और अब इस कानून का इस्तेमाल ज्यादा उस के मातापिता करने लगे हैं. यह धमकी ही कि कुएं में कूद जाऊंगी किसी भी पति को अंदर तक डरा देने लायक है. अपने ऊपर तेल छिड़क कर हवा में माचिस की तीली जला कर आज कोई भी पत्नी किसी भी बात को मनवा सकती है.

दफ्तरों में, कालेजों में, महल्लों में किसी की डांट, छेड़छाड़ इस कानून को किसी पर थोपने के लिए काफी है.

सुसाइड कमजोर लोग करते हैं जो जिंदा रह कर आफत नहीं सहना चाहते. हिटलर जैसे क्रूर, कट्टर, बलशाली, तानाशाह ने अपने को गिरफ्तार होने से बचाने के लिए 1945 में सुसाइड कर लिया था. उस के लिए ब्रिटेन, रूस या अमेरिकी फोर्सेस को गुनहगार तो नहीं माना जा सकता. उस सुसाइड के लिए लाखों बेगुनाहों की जानें लेने वाला अचानक एक कदम से बेचारा नहीं बन जाता.

कानून का इस्तेमाल इस तरह किया जा रहा है कि सुसाइड करने वाला तो दूध का धुला है और गलती किसी और की है, पति की है या पति के रिश्तेदारों की है जबकि पत्नी के पास हमेशा ही घर छोड़ कर चले जाने का औप्शन था. सुप्रीम कोर्ट ने शर्तें लगा कर ठीक किया है पर एफआईआर लिखने वाला थानेदार और पहला मजिस्ट्रेट क्या इस फैसले की चिंता करेगा? अगर पिछले मामलों को देखें, जो हजारों में हैं, हरगिज नहीं. पुलिस वाला और पहला सरकारी वकील और पहला मजिस्ट्रेट मामला खारिज करना तो दूर जमानत तक पर आरोपी को नहीं छोड़ने देता.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला तो सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने पर ही लागू होता है. तब तक सुसाइड की हुई पत्नी का पति कितने साल जेल में गुजार चुका होगा, पता नहीं.

Love Of My Life : मेरा बौयफ्रैंड सैक्स करना चाहता है, लेकिन मैं तैयार नही हूं…

Love Of My Life :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 17 वर्षीय युवती हूं, 20 वर्षीय युवक से प्यार करती हूं. समस्या यह है कि वह विवाह से पूर्व शारीरिक संबंध कायम करना चाहता है लेकिन मैं ऐसा हरगिज नहीं चाहती. मैं उसे कैसे मना करूं. क्या शारीरिक संबंध के लिए मना करना सही होगा, कहीं इस से हमारे संबंधों में कड़वाहट तो नहीं आ जाएगी? सलाह दें.

जवाब
सब से पहली बात अभी आप की उम्र छोटी है. यह उम्र कैरियर व शिक्षा पर ध्यान देने की है. आप का निर्णय बिलकुल सही है और आप अपनी बात अपने बौयफ्रैंड से साफसाफ बिना किसी हिचकिचाहट के कह दें. अगर वह आप से सच्चा प्यार करता है तो आप की बात को अवश्य समझेगा और अगर उसे आप के निर्णय से कोई परेशानी होगी तो इस का अर्थ साफ होगा कि उस की आप में रुचि सिर्फ सैक्स संबंध बनाने तक है. सैक्स संबंध दोनों की आपसी सहमति व चाहत पर ही बनने चाहिए और दोनों को उस के जोखिमों को साथ सहने का संकल्प लेना चाहिए.

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शादी के बाद इसलिये धोखा देते हैं पति-पत्नी

इंसान की फितरत है धोखा देना. दरअसल इसे कमजोरी भी कहा जा सकता है. लोग दोस्ती में धोखा देते हैं, रिश्तों में धोखा देते हैं, प्यार में धोखा देते हैं और यहां तक कि शादी के बाद भी धोखा देते हैं.

देखा गया है कि शादी के बाद लोग धोखा कई कारणों से देते हैं. कई बार ये धोखा जानबूझकर दिया जाता है तो कई बार धोखा का बदला लेने के लिये धोखा दिया जाता है. कई बार तलाक का मुख्‍य कारण धोखा ही होता है.

हम यहां आपको बताने जा रहे हैं कि शादीशुदा लोग क्यों एक दूसरे को धोखा देते हैं.

पति का शादी के बाद धोखा देने के कारण

संतुष्टि न मिलना

कई बार पति को अपनी पति से सेक्स से वो संतुष्टि नहीं मिलती जो वो चाहता और तब वह शादी के बाहर इस संतुष्टि की तलाश करने लगता है और दूसरी महिलाओं के संपर्क में आ जाता है.

ओपन सोसाइटी

आधुनिकता की वजह से समाज में आ रहे बदलाव यानी खुलेपन की कारण भी पति अपनी पत्नी को धोखा देने लगता है. दरअसल, नयी आब-ओ-हवा में समाज में खुलापन तेज़ी से आ रहा है और इसकी वजह से लोगों की मानसिकता भी खुलती जा रही है और वे शादी के बाहर संबंध बनाने में अब कम हिचकते हैं. इस मामले में महिलाएं भी बहुत बोल्ड हो गई हैं. ज़ाहिर है ऐसे रिश्ते की बुनियाद धोखे पर ही रखी जाती है.

सोशल मीडिया का फैलाव

आजकल विवाहेत्तर संबंध बनने की संभावनाएं अधिक हो गई हैं क्योंकि आप सोसल मीडिया के ज़रिये आसानी से दोस्त बना लते हैं जो पहले इतना आसान नहीं था.

आपसी संवाद का अभाव

पति और पत्नी के बीच नियमित रुप से संवाद कई समस्याओं को पैदा होने से रोक देता है लेकिन देखा गया है कि जिस दंपत्ति में आपसी संवाद नहीं होता या बहुत कम होता है वहां भी धोखे की संभावना बढ़ जाती है. संवाद न होने से दोनों में कई बार ग़लतफ़हमी हो जाती है जो फिर कड़वाहट में बदल जाती है.

प्रयोगवादी होना

लोग आजकल अपनी सेक्ल-लाइफ को और दिलचस्प बनाने के लिये नए-नए प्रयोग करने की सोचते हैं. पति को अगर पति को सेक्स का सुक नहीं मिल रहा हो या फिर ऊब गया हो तो तो वह एक्सपेरिमेंट करने से नहीं चूकता. लेकिन जब पत्नी इसमें सहयोग नहीं देती तो पुरूष धोखा देने लगते हैं.

महिलाओं का शादी के बाद धोखा देने के कारण

अफेयर होना

आमतौर पर कोई पत्नी शादी के बाद पति को या तो इसलिए धोखा देने लगती हैं क्योंकि उसका शादी से पहले किसी से अफेयर होता है या फिर उसका पहला प्रेमी उसे परेशान और ब्लैकमेल कर रहा हो.

पति का शक़्की मिजाज

कई हार पत्नी अपने पति को इसलिए धोखा देने लगती है क्योंकि उसका पति शक्की होता है और बात-बात पर उस पर शक़ करता है.

अकेलापन और बोरियत होना

कई बार पत्नि घर में अकेली रहकर या फिर एक ही तरह के रूटीन से बोर हो जाती है और ऐसे में वह बाहरी दुनियां की तरफ आकर्षित हो जाती है नतीजन उसका अफेयर चलने लगता है.

पति से विचार ना मिलना

कई बार पति से विचार ना मिलना या फिर हर समय घर के झगड़े के कारण भी पत्नी बाहर किसी पराये मर्द की तरफ आकर्षित हो जाती है.

इसके अलावा भी बहुत से कारण हैं जिससे महिलाएं और पुरूष शादी के बाद भी अपने साथी को धोखा देने लगती हैं.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Hindi Kahani 2025 : एक सवाल

Hindi Kahani 2025 : ‘‘आकाश तुम अपनी सेहत का बिलकुल खयाल नहीं रखते हो. शादी के 10 साल बाद भी रिंकू मिंकू से ज्यादा मुझे तुम्हारा खयाल रखना पड़ता है,’’ जल्दीजल्दी टिफिन तैयार करती कोमल बोले जा रही थी और आकाश फोन आने पर बदहवास सा भागने लगा.

‘‘उफ, टिफिन तो लेते जाओ,’’ कहते हुए हाथों में टिफिन पकड़े कोमल उस के पीछे लगभग दौड़ ही पड़ी.

टिफिन लेते ही आकाश की गाड़ी धुआं उड़ाती चली गई.

कोमल को अब जा कर फुरसत से चाय पीने का मौका मिला. शादी के 5 साल तक उन के कोई संतान नहीं थी. तब सुबह की चाय कोमल और आकाश हमेशा साथ पीते थे. पड़ोस में रहने वाली शीला मौसी का जिक्र छिड़ते हुए कोमल उदास हो कर जब कभी बताती कि पता है आकाश, शीला मौसी के दोनों बेटे विदेश में बस गए हैं, पर वे अकेली रहते हुए भी शान से कहती हैं कि साथ नहीं रह सकते तो क्या हुआ. कुदरत ने उन्हें 2-2 बेटे तो दिए. यह बतातेबताते जब कोमल लगभग रोआंसी सी हो जाती. तब आकाश प्यार से उस का हाथ थाम कर कहता, ‘‘डाक्टर ने कहा है न कि जल्द ही हमारे घर भी प्यारा सा बच्चा आ जाएगा. तुम बिलकुल परेशान न हो.’’

यह सुन कोमल शीघ्र ही सहज हो जाती. आकाश का अपनत्वपूर्ण स्पर्श उसे एक नए आत्मविश्वास से भर देता.

कोमल की पड़ोसिन दिव्या रेडियो आर जे की नौकरी करती थी. उस की नन्ही बेटी मिन्नी कोमल को बड़ी प्यारी लगती. एक दिन कोमल दोपहर को बालकनी में खड़ी थी. दिव्या के घर पर नजर पड़ी तो देखा नन्ही मिन्नी अपना स्कूल बैग लिए दरवाजे के बाहर बैठी है. कोमल का दिल ममता से भर आया. अत: मिन्नी को घर बुला कर कुछ स्नैक्स खाने को दिए. फिर दिव्या को फोन किया तो पता चला कि अचानक किसी मीटिंग की वजह से उसे आज आने में देर हो जाएगी. तब कोमल ने उसे मिन्नी का ध्यान रखने का आश्वासन दिया.

दिव्या जब औफिस से आई तो अपनी बेटी का ध्यान रखने के लिए कोमल का आभार व्यक्त किया.

‘‘आगे से तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. दोबारा कभी ऐसा हुआ तो मैं खुशी से मिन्नी को अपने पास बुला लूंगी.’’

कोमल के यह कहने पर दिव्या बोली, ‘‘धन्यवाद कोमल, लेकिन अब आगे से ऐसा कभी नहीं होगा, क्योंकि मैं ने एक प्ले स्कूल में बात कर ली है. अपने स्कूल से मिन्नी सीधे वहां पहुंच जाया करेगी. फिर शाम को औफिस से लौटते हुए मैं उसे ले आया करूंगी.’’

‘‘तो तुम्हें मिन्नी का मेरे साथ रहना पसंद नहीं,’’ कोमल उदास होते हुए बोली तो दिव्या प्यार से उस के कंधे पर हाथ रखती हुई बोली, ‘‘ऐसा बिलकुल नहीं है कोमल. तुम जब चाहो मिन्नी को अपने साथ ले जा सकती हो. लेकिन मेरा मानना है कि अपनी जरूरतों के लिए हमें स्वयं जिम्मेदारी लेनी चाहिए. मेरे पति के 3-3 फार्महाउस हैं. उन का ज्यादातर समय उन की देखरेख में ही बीत जाता है. मैं चाहूं तो नौकरी छोड़ कर आराम से घर पर रह सकती हूं, लेकिन मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं. अपनी कमाई का जो सुख होता है मैं उसे खोना नहीं चाहती.’’

कोमल दिव्या की बातों से बड़ी प्रभावित हुई. उस के मन में भी अपनी कमाई का सुख पाने की इच्छा बलवती होने लगी. फिर उसे जल्द ही इस का मौका भी मिल गया.

दिव्या के औफिस में कोई सहकर्मी अचानक बीमार पड़ गई. दिव्या ने कोमल को अस्थाई तौर पर अपने औफिस में काम करने का प्रस्ताव दिया तो कोमल ने तुरंत स्वीकार लिया.

आत्मविश्वास से भरी कोमल की आवाज से दिव्या के बौस प्रभावित हुए. कुछ ही दिनों में कोमल की आवाज रेडियो पर लोकप्रिय होने लगी. कोमल को जल्द ही स्थाई तौर पर काम करने का प्रस्ताव मिला. वह बेहद खुश थी. आकाश से उसे प्रोत्साहन मिला तो वह रेडियो की दुनिया में अपनी पहचान बनाती चली गई. इसी बीच कोमल की खुशी का तब ठिकाना न रहा जब उसे पता चला कि वह मां बनने वाली है.

कोमल ने अपने परिवार को प्राथमिकता दी. जब उसे पता चला कि उसे जुड़वां बच्चे पैदा होने वाले हैं, तो विनम्रता के साथ अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया. वक्त के साथ 2 नन्हे राजकुमार उस के जीवन में आए, तो वह निहाल हो उठी.

2-2 बच्चों की एकसाथ देखभाल से कोमल थक कर चूर हो जाती. लेकिन आकाश बच्चों की देखभाल में उस की मदद करने के बजाय अपना ज्यादातर समय औफिस को देता था. वह जब कभी आकाश को अपने बच्चों की किलकारियां सुनाने की कोशिश करती, आकाश उसे उतना ही दूर भागता महसूस होता. वह जितना ज्यादा आकाश के करीब जाना चाहती आकाश उस से उतना ही दूर जाता रहा. वह समझ नहीं पाती कि जुड़वां बच्चे पैदा कर के आखिर उस ने ऐसा कौन सा अपराध कर दिया कि आकाश उसे अपने से दूर करना चाहता है.

धीरेधीरे कोमल समझने लगी कि आकाश को अब उस का स्पर्श पसंद नहीं आता. अब आकाश जबतब औफिस के दौरे पर रहने लगा. अपने दोनों बच्चों की परवरिश की पूरी जिम्मेदारी कोमल के कंधों पर आ पड़ी. कुछ ही दिन पहले तो उस ने अपने बच्चों का चौथा जन्मदिन मनाया था. आकाश उस दिन भी मेहमानों की तरह आखिर में आया था.

उस दिन कोमल ने कुछ लोगों को आकाश के बारे में कुछ कानाफूसी करते सुना. मगर उस ने लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया. लेकिन कुछ दिनों बाद एक ऐसी घटना घटी कि उस ने कोमल का नजरिया ही बदल दिया.

हुआ यह कि एक दिन अचानक दिव्या उस के लिए एक इन्विटेशन कार्ड ले कर आई. रेडियो स्टेशन के लोग पूर्व कर्मचारियों के लिए एक पार्टी रख रहे थे, जिस में कोमल भी आमंत्रित थी. आकाश औफिस के दौरे पर गया हुआ था. बच्चों को प्ले स्कूल में छोड़ कर कोमल अतिथि होटल में पार्टी में शामिल होने गई. वहां उस ने आकाश को एक लड़की के साथ जाते देखा, तो हैरान हो आकाश के पीछे भागी. उन दोनों ने रूम नं. 512 में जा कर कमरा बंद कर लिया. उस ने होटल की रिसैप्शनिस्ट से कह कर रजिस्टर में देखा तो रूम नं. 512 के आगे ‘मिस्टर ऐंड मिसेज आकाश’ लिखा नाम उसे मुंह चिढ़ा रहा था. कोमल को तो जैसे काटो तो खून नहीं.

इसी बीच दिव्या उसे ढूंढ़ती हुई वहां आ कर उसे पार्टी में ले गई.

दिव्या के पुराने बौस कह रहे थे, ‘‘कोमल, तुम्हारी आवाज को लोग आज भी याद करते हैं. तुम जब चाहो वापस आ सकती हो. यू आर मोस्ट वैलकम.’’

कोमल अन्यमनस्क सी वहां बैठी थी. जैसेतैसे पार्टी से निकल कर वह घर पहुंची. घर पहुंचते ही वह फूटफूट कर रो पड़ी. उसे पलपल छले जाने का एहसास कचोटने लगा. आज पहली बार उसे अपने नारी होने पर दुख हुआ. उस ने आकाश को फोन किया पर उस का फोन बंद मिला.

आकाश अगले दिन आया. कोमल ने उस से दौरे के बारे पूछताछ की तो वह हड़बड़ा गया. कोमल ने अतिथि होटल का नाम लिया तो आकाश गुस्से में कोमल को भलाबुरा कहता हुआ घर से बाहर चला गया.

कोमल को अब समझ में आने लगा कि क्यों आकाश उस से दूर रहना चाहता है. उसे लगता था कि पिता बनने का जो गौरव वह आकाश को दे रही है उस के बाद आकाश उसे पलकों पर बैठा कर रखेगा, लेकिन आकाश ने तो उसे अपनी जिंदगी से ही निकला फेंका. उस ने आकाश से बात करने की कोशिश की, लेकिन आकाश उस की कोई बात सुनने को तैयार ही न हुआ. कोमल ने बहुत मिन्नतें कीं, अपने बच्चों की दुहाई भी दी, लड़ाईझगड़ा भी किया, लेकिन आकाश पर कोई असर न हुआ. उस ने दोटूक जवाब दिया कि वह उसे और बच्चों के खर्च देता रहेगा, लेकिन निजी जीवन में वह क्या करता है, इस से उसे मतलब नहीं होना चाहिए.

कोमल ने मायके वापस जाने की सोची, लेकिन फिर सोचने लगी कि जब उस के मासूम बच्चों पर दुनिया की जबानें तलवार की तरह बरसेंगी तो वह किसकिस का मुंह बंद करती फिरेगी. वह उदासी में डूब गई. अब दिनरात सोच में डूबी रहती. अपनेआप को इतना ज्यादा अपमानित उस ने कभी महसूस नहीं किया था.

अचानक कोमल को अपने बौस का ‘यू आर मोस्ट वैलकम’ कहा वाक्य याद आया तो वह उठ खड़ी हुई. उस ने फोन कर के फिर से औफिस आने की बौस से इजाजत मांगी, तो जवाब में यही सुनने को मिला कि ‘यू आर मोस्ट वैलकम.’

कोमल अपमान की दुनिया से निकलना चाहती थी. वह अपनी जिंदगी के फटतेबिखरते पन्नों को समेट रही थी.

दिल के किसी कोने में आज भी कोमल को यह उम्मीद है कि शायद कभी आकाश को अपनी गलती का एहसास होगा. लेकिन एक सवाल यह भी है कि क्या वह उसे माफ कर पाएगी?

Best Short Story : बिना कुछ कहे

Best Short Story : दिसंबर की वह शायद सब से सर्द रात थी, लेकिन कुछ था जो मुझे अंदर तक जला रहा था और उस तपस के आगे यह सर्द मौसम भी जीत नहीं पा रहा था.

मैं इतना गुस्सा आज से पहले स्नेहा पर कभी नहीं हुआ था, लेकिन उस के ये शब्द, ‘पुनीत, हमारे रास्ते अलगअलग हैं, जो कभी एक नहीं हो सकते,’ अभी भी मेरे कानों में गूंज रहे थे. इन शब्दों की ध्वनि अब भी मेरे कानों में बारबार गूंज रही थी, जो मुझे अंदर तक झिंझोड़ रही थी.

जो कुछ भी हुआ और जो कुछ हो रहा था, अगर इन सब में से मैं कुछ बदल सकता तो सब से पहले उस शाम को बदल देता, जिस शाम आरती का वह फोन आया था.

आरती मेरा पहला प्यार थी. मेरी कालेज लाइफ का प्यार. कोई अलग कहानी नहीं थी, मेरी और उस की. हम दोनों कालेज की फ्रैशर पार्टी में मिले और ऐसे मिले कि परफैक्ट कपल के रूप में कालेज में मशहूर हो गए.

मैं आरती को बहुत प्यार करता था. हमारे प्यार को पूरे 5 साल हो चुके थे, लेकिन अब कुछ ऐसा था, जो मुझे आरती से दूर कर रहा था. मेरी और आरती की नौकरी लग चुकी थी, लेकिन अलगअलग जगह हम दोनों जल्दी ही शादी करने के लिए भी तैयार हो चुके थे. आरती के पापा के दोस्त का बेटा विहान भी आरती की कंपनी में ही काम करता था. वह हाल ही में कनाडा से यहां आया था. मैं उसे बिलकुल पसंद नहीं करता था और उस की नजरें भी साफ बताती थीं कि कुछ ऐसी ही सोच उस की भी मेरे प्रति है.

‘‘देखो आरती, मुझे तुम्हारे पापा के दोस्त का बेटा विहान अच्छा नहीं लगता,‘‘ मैं ने एक दिन आरती को साफसाफ कह दिया.

‘‘तुम्हें वह पसंद क्यों नहीं है?‘‘ आरती ने मुझ से पूछा.

‘‘उस में पसंद करने लायक भी तो कुछ खास नहीं है आरती,‘‘ मैं ने सीधीसपाट बात कह दी.

‘तो तुम्हें उसे पसंद कर के क्या करना है,‘‘ यह कह कर आरती हंस दी.

मेरे मना करने का उस पर खास फर्क नहीं पड़ा, तभी तो एक दिन वह मुझे बिना बताए विहान के साथ फिल्म देखने चली गई और यह बात मुझे उस की बहन से पता चली.

मुझे छोटीछोटी बातों पर बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है, शायद इसीलिए उस ने यह बात मुझ से छिपाई. उस दिन मेरी और उस की बहुत लड़ाई हुई थी और मैं ने गुस्से में आ कर उस को साफसाफ कह दिया था कि तुम्हें मेरे और अपने उस दोस्त में से किसी एक को चुनना होगा.

‘‘पुनीत, अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई है और तुम ने अभी से मुझ पर अपना हुक्म चलाना शुरू कर दिया है. मैं कोई पुराने जमाने की लड़की नहीं हूं, कि तुम कुछ भी कहोगे और मैं मान लूंगी. मेरी भी खुद की अपनी लाइफ है और खुद के अपने दोस्त, जिन्हें मैं तुम्हारी मरजी से नहीं बदलूंगी.‘‘

सीधे तौर पर न सही, लेकिन कहीं न कहीं उस ने मेरे और विहान में से विहान की तरफदारी कर मुझे एहसास करा दिया कि वह उस से अपनी दोस्ती बनाए रखेगी.

आरती और मैं हमउम्र थे. उस का और मेरा व्यवहार भी बिलकुल एकजैसा था. मुझे लगा कि अगले दिन आरती खुद फोन कर के माफी मांगेगी और जो हुआ उस को भूल जाने को कहेगी, लेकिन मैं गलत था, आरती की उस दिन के बाद से विहान से नजदीकियां और बढ़ गईं.

मैं ने भी अपनी ईगो को आगे रखते हुए कभी उस से बात करने की कोशिश ही नहीं की और उस ने भी बिलकुल ऐसा ही किया. उस को लगता था कि मैं टिपिकल मर्दों की तरह उस पर अपना फैसला थोप रहा हूं, लेकिन मैं उस के लिए अच्छा सोचता था और मैं नहीं चाहता था कि जो लोग अच्छे नहीं हैं, वे उस के साथ रहें. एक दिन उस की सहेली ने बताया कि उस ने साफ कह दिया है कि जो इंसान उस को समझ नहीं सकता, उस की भावनाओं की कद्र नहीं कर सकता, वह उस के साथ अपना जीवन नहीं बिता सकती.

आरती और मेरे रास्ते अब अलगअलग हो चुके थे. मैं उसे कुछ समझाना नहीं चाहता था और वह भी कुछ समझना नहीं चाहती थी.

मुझे बस हमेशा यह उम्मीद रहती थी कि अब उस का फोन आएगा और एक माफी से सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा, लेकिन शायद कुछ चीजें बनने के लिए बिगड़ती हैं और कुछ बिगड़ने के लिए बनती हैं.

हमारी कहानी तो शायद बिगड़ने के लिए ही बनी थी. 5 साल का प्यार और साथ सबकुछ खत्म सा हो गया था.

मेरे घर में अब मेरे रिश्ते की बात चलने लगी थी, लेकिन किसी और लड़की से. मां मुझे रोज नएनए रिश्तों के बारे में बताती थीं, लेकिन मैं हर बार कोई न कोई बहाना या कमी निकाल कर मना कर देता था.

मुझे भीड़ में भी अकेलापन महसूस होता था. सब से ज्यादा तकलीफ जीवन के वे पल देते हैं, जो एक समय सब से ज्यादा खूबसूरत होते हैं. वे जितने मीठे पल होते हैं, उन की यादें भी उतनी ही कड़वी होती हैं.

धीरेधीरे वक्त बीतता गया. मेरे साथ आज भी बस, आरती की यादें थीं. मुझे क्या पता था आज मैं किसी से मिलने वाला हूं. आज मैं स्नेहा से मिला. हम दोनों की मुलाकात मेरे दोस्त की शादी में हुई थी.

स्नेहा आरती की चचेरी बहन थी. साधारण नैननक्श वाली स्नेहा शादी में बिना किसी की परवा किए, सब से ज्यादा डांस कर रही थी. 21-22 साल की वह लड़की हरकतों से एकदम 10-12 साल की बच्ची लग रही थी.

‘‘बेटा, तुम्हारी गाड़ी में जगह है?‘‘ मेरे जिस दोस्त की शादी थी, उस की मम्मी ने आ कर मुझ से पूछा.

‘‘हां आंटी, क्यों?‘‘ मैं ने पूछा.

‘‘तो ठीक है, कुछ लड़कियों को तुम अपनी गाड़ी में ले जाना. दरअसल, बस में बहुत लोग हो गए हैं. तुम घर के हो तो तुम से पूछना ठीक समझा.‘‘

सजीधजी 3 लड़कियां मेरी कार में पीछे की सीट पर आ कर बैठ गईं. एक मेरे बराबर वाली सीट पर आ कर बैठ गई.

मेरे यह कहने से पहले कि सीट बैल्ट बांध लो, उस ने बड़ी फुर्ती से बैल्ट बांध ली. वे सब अपनी बातों में मशगूल हो गईं.

मुझे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे मैं इस कार का ड्राइवर हूं, जिस से बात करने में किसी को कोई दिलचस्पी नहीं थी.

तभी स्नेहा ने मुझ से पूछा, ‘‘आप रजत या के दोस्त हैं न.‘‘

‘‘जी,‘‘ मैं ने बस, इतना ही उत्तर दिया.

न तो इस से ज्यादा हमारी कोई बात हुई और  ही मुझे कोई दिलचस्पी थी.

आजकल के हाईटैक युग में जिस से आप आमनेसामने बात करने से हिचकें उस के लिए टैक्नोलौजी ने एक नया नुसखा कायम किया है, जो आज के समय में काफी कारगर है, और वह है चैटिंग. स्नेहा ने मुझे फेसबुक पर रिक्वैस्ट भेजी और मैं ने भी स्वीकार कर ली.

हम दोनों धीरेधीरे अच्छे दोस्त बन गए. बातोंबातों में उस ने मुझे बताया कि उसे अपने कालेज के सैमिनार में एक प्रोजैक्ट बनाना है. मैं ने कहा, ‘‘तो ठीक है, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूं.‘‘

इतने सालों बाद मैं ने उस के लिए दोबारा पढ़ाई की थी उस का प्रोजैक्ट बनवाने के लिए. कभी वह मेरे घर आ जाया करती थी तो कभी मैं उस के घर चला जाता. दरअसल, वह अपने कालेज की पढ़ाई की वजह से रजत के घर ही रहती थी. जब भी वह प्रोजैक्ट बनवाने के लिए आती तो बस, बोलती ही जाती थी. मेरे से बिलकुल अलग थी, वह.

एक दिन बातोंबातों में उस ने पूछा, ‘‘आप की कोई गर्लफ्रैंड नहीं है?‘‘

मैं उस को न कह कर बात वहीं पर खत्म भी कर सकता था, लेकिन मैं ने उस को अपने और आरती के बारे में सबकुछ सचसच बता दिया.

‘‘ओह,‘‘ स्नेहा ने दुख जताते हुए कहा, ‘‘मुझे सच में बहुत दुख हुआ यह सब सुन कर. क्या तब से आप दोनों की एक बार भी बात नहीं हुई?‘‘ स्नेहा ने पूछा.

मैं ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘नहीं, और अब करनी भी नहीं है,‘‘ यह कह कर हम दोनों प्रोजैक्ट बनाने लग गए.

आज जब स्नेहा आई तो कुछ बदलीबदली सी लग रही थी. आते ही न तो उस ने जोर से आवाज लगा कर डराया और न ही हंसी.

मैं ने पूछा, ‘‘सब ठीक तो है न?‘‘

वह बोली, ‘‘कुछ बताना था आप को, आप मुझे बताना कि सही है या गलत.‘‘

हम अच्छे दोस्त बन गए थे. मैं ने उस से कहा, ‘‘हांहां जरूर, क्यों नहीं,‘‘ बोलो.

उस ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मुझे किसी से प्यार हो गया है.‘‘

मैं ने कहा, ‘‘कौन है वह और क्या वह भी तुम से प्यार करता है?‘‘

उस ने कहा, ‘‘मालूम नहीं?‘‘

‘‘ओह, तुम्हारे ही कालेज में है क्या?‘‘ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं,‘‘ उस ने बस छोटा सा जवाब दिया.

‘‘वह मेरा दोस्त है जो मुझ से 7 साल बड़ा है. उस की पहले एक गर्लफ्रैंड थी, लेकिन अब नहीं है. उस को गुस्सा भी बहुत जल्दी आता है.

‘‘वह मेरे बारे में क्या सोचता है, पता नहीं, लेकिन जब वह मेरी मदद करता है, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. उस का नाम…‘‘ यह कह कर वह रुक गई.

‘‘उस का नाम,‘‘ स्नेहा ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘बहुत मजा आ रहा है न आप को. सबकुछ जानते हुए भी पूछ रहे हो और वैसे भी इतने बेवकूफ आप हो नहीं, जितने बनने की कोशिश कर रहे हो.‘‘

मैं बहुत तेज हंसने लगा.

उस ने कहा, ‘‘अब क्या फिल्मों की तरह प्रपोज करना पड़ेगा?‘‘

मैं ने कहा, ‘‘नहींनहीं, उस की कोई जरूरत नहीं है. यह जानते हुए भी कि मैं उम्र में तुम से 7 साल बड़ा हूं और मेरे जीवन में तुम से पहले कोई और थी, तब भी..‘‘

‘‘हां, और वैसे भी प्यार में उम्र, अतीत ये सबकुछ भी माने नहीं रखते.‘‘

मैं ने उस को गले लगा लिया और कहा, ‘‘हमेशा मुझे ऐसे ही प्यार करना.‘‘

वह खुश हो कर मेरी बांहों में आ गई. अब मेरे जीवन में भी कोई आ गया था जो मेरा बहुत खयाल रखता था. कहने को तो उम्र में मुझ से 7 साल छोटी थी, लेकिन मेरा खयाल वह मेरे से भी ज्यादा रखती थी. हम दोनों आपस में सारी बातें शेयर करते थे. अब मैं खुश रहने लगा था.

उस शाम मैं और स्नेहा साथ ही थे, जब मेरा फोन बजा. फोन पर दूसरी तरफ से एक बहुत धीमी लेकिन किसी के रोने की आवाज ने मुझे अंदर तक हिला दिया. वह कोई और नहीं बल्कि आरती थी.

वह आरती जिस को मैं अपना अतीत समझ कर भुला चुका था या फिर स्नेहा के प्यार के आगे उस को भूलने की कोशिश कर रहा था.

‘‘हैलो, कौन?‘‘

‘‘मैं आरती बोल रही हूं पुनीत,‘‘ आरती ने कहा.

‘‘आज इतने दिन बाद तुम्हारा फोन…‘‘ इस से आगे मैं और कुछ कहता, वह बोल पड़ी, ‘‘तुम ने तो मेरा हाल भी जानने की कोशिश नहीं की. क्या तुम्हारा अहंकार हमारे प्यार से बहुत ज्यादा बड़ा हो गया था?‘‘

‘‘तुम ने भी तो एक बार फोन नहीं किया, तुम्हें आजादी चाहिए थी. कर तो दिया था मैं ने तुम्हें आजाद. फिर अब क्या हुआ?‘‘

‘‘तुम यही चाहते थे न कि मैं तुम से माफी मांगू. लो, आज मैं तुम से माफी मांगती हूं. लौट आओ पुनीत, मेरे लिए. मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है.‘‘

मैं बस उस की बातों को सुने जा रहा था बिना कुछ कहे और स्नेहा उतनी ही बेचैनी से मुझे देखे जा रही थी.

‘‘मुझे तुम से मिलना है,‘‘ आरती ने कहा और बस, इतना कह कर आरती ने फोन काट दिया.

‘‘क्या हुआ, किस का फोन था?‘‘ स्नेहा ने फोन कट होते ही पूछा.

कुछ देर के लिए तो मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. स्नेहा के दोबारा पूछने पर मैं ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आरती का फोन था.‘‘

‘‘ओह, तुम्हारी गर्लफ्रैंड का,‘‘ स्नेहा ने कहा.

मैं ने स्नेहा से अब तक कुछ छिपाया नहीं था और अब भी मैं उस से कुछ छिपाना नहीं चाहता था. मैं ने सबकुछ उस को सचसच बता दिया.

सारी बात सुनने के बाद स्नेहा ने कहा, ‘‘मुझे लगता है आप को एक बार आरती से जरूर मिलना चाहिए. आखिर पता तो करना चाहिए कि अब वह क्या चाहती है.‘‘

यह जानते हुए भी कि वह मेरा पहला प्यार थी. स्नेहा ने मुझे उस से मिल कर आने की इजाजत और सलाह दी.

अगले दिन मैं आरती से मिला और आरती ने मुझे देख कर कहा, ‘‘तुम बिलकुल नहीं बदले, अब भी ऐसे ही लग रहे हो जैसे कालेज में लगा करते थे.‘‘

‘‘आरती अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है,‘‘ मैं ने जवाब दिया.

‘‘क्यों?‘‘ आरती ने पूछा, ‘‘कोई आ गई है क्या तुम्हारे जीवन में?‘‘

‘‘हां, और उस को सब पता है. उसी के कहने पर मैं यहां तुम से मिलने आया हूं.‘‘

‘‘क्या तुम उसे भी उतना ही प्यार करते हो जितना मुझे करते थे, क्या तुम उस को मेरी जगह दे पाओगे?‘‘

मैं शांत रहा. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘हां, वह मुझे बहुत प्यार करती है.‘‘

‘‘ओह, तो इसलिए तुम मुझ से दूर जाना चाहते हो. मुझ से ज्यादा खूबसूरत है क्या वह?‘‘

‘‘आरती,‘‘ मैं गुस्से में वहां से उठ कर चल दिया. मुझे लग रहा था कि अब वह वापस क्यों आई? अब तो सब ठीक होने जा रहा था.

उस रात मुझे नींद नहीं आई. एक तरफ वह थी, जिस को कभी मैं ने बहुत प्यार किया था और दूसरी तरफ वह जो मुझ को बहुत प्यार करती थी.

अगली सुबह मैं स्नेहा के घर गया, तो वह कुछ उदास थी. उस ने मुझ से कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हम एकदूसरे के लिए नहीं बने हैं और हमारे रास्ते अलग हैं,‘‘ यह कह कर वह चुपचाप ऊपर अपने कमरे में चली गई.

मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि इतना प्यार करने वाली लड़की इस तरह की बातें कैसे कर सकती है.

आरती का फोन आते ही मैं अपने खयालों से बाहर आया. मुझे स्नेहा पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

‘‘आरती, इस समय मेरा बात करने का बिलकुल मन नहीं है. मैं तुम से बाद में बात करता हूं,‘‘ मेरे फोन रखने से पहले ही आरती बोली, ‘‘क्यों, क्या हुआ?‘‘

‘‘आरती, मैं स्नेहा को ले कर पहले से ही बहुत परेशान हूं,‘‘ मैं ने कहा.

‘‘वह अभी भी बच्ची है, शायद इन सब बातों का मतलब नहीं जानती, इसलिए कह दिया होगा.‘‘

उस के इतना कहते ही मैं ने फोन रख दिया और उसी समय स्नेहा के घर के लिए निकल गया.

मैं ने स्नेहा के घर के बाहर पहुंच कर स्नेहा से कहा, ‘‘सिर्फ एक बार मेरी खुशी के लिए बाहर आ जाओ,‘‘ स्नेहा ना नहीं कर पाई और मुझे पता था कि वह ना कर भी नहीं सकती, क्योंकि बात मेरी खुशी की जो थी.

स्नेहा की आंखों में आंसू थे. मैं ने स्नेहा को गले लगा लिया और कहा, ‘‘पगली, मेरे लिए इतना बड़ा बलिदान करने जा रही थी.‘‘

स्नेहा ने चौंक कर मेरी तरफ देखा.

‘‘तुम मुझ से झूठ बोलने की कोशिश भी नहीं कर सकती. अब यह तो बताओ कि आरती ने क्या कहा, तुम से मिल कर.‘‘

स्नेहा ने रोते हुए कहा, ‘‘आरती ने कहा कि अगर मैं तुम से प्यार करती हूं और तुम्हारी खुशी चाहती हूं तो…. मैं तुम से कभी न मिलूं, क्योंकि तुम्हारी खुशी उसी के साथ है,‘‘ यह कह कर स्नेहा फूटफूट कर रोने लगी.

मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘ओह, मेरा बच्चा मेरे लिए इतना बड़ा बलिदान करना चाहता था. इतना प्यार करती हो तुम मुझ से.‘‘

उस ने एक छोटे बच्चे की तरह कहा,  ‘‘इस से भी ज्यादा.‘‘

मैं ने उस को हंसाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘कितना ज्यादा?‘‘

वह मुसकरा दी.

‘‘लेकिन तुम्हें कैसे पता चला कि वह मुझ से मिली? क्या उस ने तुम्हें बताया?‘‘

‘‘नहीं,‘‘ मैं ने कहा.

‘‘फिर,‘‘ स्नेहा ने पूछा.

मैं ने जोर से हंसते हुए कहा, ‘‘उस ने तुम्हें बच्ची बोला,‘‘ इसीलिए.

इतने में ही मेरा फोन दोबारा बजा, वह आरती का फोन था. मैं ने अपने फोन को काट कर मोबाइल स्विच औफ कर दिया और स्नेहा को गले लगा लिया. बिना कुछ कहे मेरा फैसला आरती तक पहुंच गया था.

Best Kahani : एक हसीं भूल…

Best Kahani : हर बार की तरह आज भी बड़ी बेसब्री के बाद ये त्योहार वाला दिन आया है. पूरा औफिस खाली है जैसे लगता हो कोई बड़ा सा गुल्लक, लेकिन उस में एक भी चिल्लर न हों.

आज मैं भी बहुत खुश हूं. आखिर पूरे 8 महीने बाद घर जा रहा हूं, जहां मां, पत्नी और अपने ससुराल से अगर दीदी आई होगी तो मेरा इंतजार कर रही होंगी.

सब से प्रमुख बात त्योहार भी दीवाली का ही है. हर तरफ रंगबिरंगी झालर कोई लाल, पीली, हरी, नीली सब अलग ही छटा बिखेरी हुई हैं. हलकी सी हवा में वे हिल कर अजब ही सौंदर्य का बोध कराती हैं और दुकानों पर रंगबिरंगे पटाखों की लड़ी लगी है. कोई छोटा, कोई बड़ा, कोई हलकी आवाज और कोई घर हिला देने वाला सुतली बम.

बच्चों का झुंड भूखे भेड़ के झुंड की तरह पटाखों पर टूट पड़ा है. अद्भुत दृश्य है और मन ही मन में आनंद की लहरें हृदय के सागर में गोता लगा रही हैं. इन सब को देख कर अपना बचपना किसी चलचित्र की तरह सामने चलने लगता है.

ये देखतेदेखते अपने क्वार्टर पर पहुंचा. भागदौड़ के साथ जल्दबाजी में एक बैग में कपड़े, चार्जर, लैपटौप वगैरह रख स्टेशन के लिए आटोरिकशा पकड़ने भागा.

आटो वाला मिला. मैं ने कहा, ‘‘चल भाई, झटपट स्टेशन पहुंचा दे.‘‘

आटो वाला अपने चिरपरिचित रफ्तार में आटो ले कर चलने लगा और हमेशा की तरह मुंबई की सब से तकलीफ ट्रैफिक जाम सुरसा राक्षसी की तरह रास्ते में मुहं फैलाए खड़ी थी.

आज ट्रैफिक जाम बिलकुल वैसे लग रहा है, जैसे किसी प्रेयसी को सावन की ठंडी बूंदें भी तपती ज्वाला की भांति प्रतीत होती हैं. हौलेहौले बढ़ता आटो मानो लग रहा है कि हर सेकंड में 24 घंटे का समय बिता दे.

ट्रैफिक खुला और आटो सरपट भागा. अपने गंतव्य को पा कर ही आटो रुका. मैं ने पैसे पहले ही निकाल कर रखे थे रोज के अनुमान से. मैं ने झट से उसे पैसे थमाए और अंदर की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए, तभी पीछे से आटो वाले की आवाज आई, ‘‘भाई बाकी पैसे ले लो.’’

मैं ने हाथ उठाते हुए कहा, ‘‘भैया दीवाली का शगुन समझ कर रख लो.‘‘

वह मुसकराया और वापस मुड़ गया.

मैं ने स्टेशन के अंदर प्रवेश किया और गाड़ी का पता किया, जो पूरे एक घंटे देरी से थी. चूंकि मेरी वातानुकूलित कंपार्टमैंट में सीट थी, तो कोई समस्या होने से रही.

स्टेशन पर ही बगल की दुकान से मैं ने एक मासिक पत्रिका ली और समय बिताने के लिए वेटिंग रूम में आराम से बैठ गया.

मैं ने पत्रिका खोली और नएनए मुद्दों पर लिखे लंबेचौड़े लेख पढ़ने लगा और बड़ी गूढ़ता से अपने विचारों में उसे आलोचित और समयोजित करने लगा.

खाली बैठने पर अकसर लोग यही करते हैं. वहां मुश्किल से 8 या 10 लोग होंगे और सब अपने फोन में व्यस्त दिख रहे थे. आजकल डिजिटलीकरण के दौर में उम्मीद भी यही की जा सकती है.

मैं डिजिटल मीडिया का प्रयोग कम ही करता हूं. मैं किताबों का बड़ा शौकीन हूं. बचपन से मुझे पढ़ना बहुत पसंद है और समय मिलते ही मैं कोई न कोई पत्रिका या किताब में खो जाता हूं और उसे समझने का प्रयास करता हूं.

मैं काफी देर से ही पत्रिका पढ़ रहा था, तभी मेरी नजर अचानक सामने वाले कौर्नर पर बैठी एक लड़की पर पड़ी. मैं उसे ही देखता रह गया. वह बेहद खूबसूरत थी, जिस की उम्र तकरीबन 25 साल रही होगी. कपूर माफिक गोरा बदन, मृगनयनी, सुंदर होंठ सुर्ख गुलाबी मूंगे जैसे चमक रहे थे. वह अपने फोन में व्यस्त थी. शायद वह कुछ देख रही थी या सुन रही हो, हैडफोन जो लगाया था उस ने.

गुलाबी टौप और नीली जींस उस ने पहनी हुई थी, जो उस के बदन की कसावट में खुद को कसे जा रहे थे. उस के यौवन गुलाबी पंखुड़ियों की भांति आकर्षणयुक्त थे.

मैं किताब से छुपछुप कर उसे देखता रहा, तभी अचानक रेलवे की सूचना ध्वनि ने मेरी तंद्रा तोड़ी. मेरी ट्रेन प्लेटफार्म पर आ गई थी और मैं अपनी सीट पर जा कर बैठ गया. अभी ट्रेन चलने में 15 मिनट बाकी थे. मैं ने उतर कर पानी की बोतल खरीदी और चढ़ने लगा. बोगी में तभी वह लड़की मेरी तरफ आती दिखी. मैं डब्बे में लगे हैंडल को पकड़े उसे निहारने लगा. वह मेरे एकदम करीब आ कर बोली, ‘‘हैलो, रास्ता देंगे आप ‘‘.

मैं अचानक खयालों की दुनिया से बाहर आया और उसे रास्ता दिया. वह मेरे ही कंपार्टमेंट में चढ़ गई और मेरे ही सीट के ठीक सामने वाली सीट पर बैठ गई. सच बताऊं, मैं तो मन ही मन बहुत खुश हुआ.

अब हमारे साथ सिर्फ रात और एक लंबा सा सफर था.

मैं भी अपनी सीट पर आ कर बैठ गया. थोड़ी देर बाद ट्रेन चल दी और मैं ने हिम्मत कर के उस का नाम पूछा. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘प्रिया.‘‘

उस की मीठी आवाज ने मन को अजब ही सुकून दिया, फिर हमारी औपचारिक बात शुरू हो गई जैसे काम, छुट्टी, मुंबई की आदि. बातों ही बातों में पता चला कि वह यहां फैशन मौडलिंग की पढ़ाई और मौडलिंग दोनों करती है.

मैं ने उस से बोल दिया कि आप बेहद खूबसूरत हो. मन करता है, देखता रहूं.

यह सुन कर वह मुसकरा दी. हमारी बातें आगे बढ़ीं और मुझे ऐसा लग रहा था, वह भी मेरे करीब आ रही है. तभी खाने का और्डर लेने वाला आया और हम ने और्डर दिया.

अब मैं फिर उस से बातें करने लगा और धीरेधीरे हम मुंबई को पीछे छोड़ रहे थे, लेकिन एकदूसरे के करीब आ रहे थे. मैं घरपरिवार, अपनी सीमाओं को दिमाग में न याद आने वाले हिस्से में छोड़ कर पुराने समय में जब मैं कुंआरा था, वहां प्रवेश कर चुका था. उस से पता चला, वह मेरे शहर में उस की दीदी के यहां जा रही है. वह उन से 5 साल बाद मिल रही है, जो उन की बूआ की बेटी हैं.

धीरेधीरे हम दोनों में अच्छी बौंडिंग बन गई. हम ने खुल कर बातें करनी शुरू कर दीं और कई बार मैं ने उसे नौनवेज चुटकुले सुनाए, जिस पर उस ने कंटीली मुसकान दी.

मैं ने मौडलों के बारे में सुना था कि वे बड़ी तेज होती हैं और आज देख भी लिया.

उस ने यह भी बताया कि उस का एक बौयफ्रैंड था, जिस से उस का अब ब्रेकअप हो गया है, क्योंकि वह किसी और को भी डेट कर रहा था.

मैं ने उस से झूठ बोल दिया कि मैं तो सिंगल हूं.

उस की खूबसूरती में इतना डूबा था कि अपना अस्तित्व ही भूल गया था कि मेरा तो सबकुछ वह है, जो घर पर मेरा इंतजार कर रही है.

तभी अचानक बोगी के बाहर आवाज हुई. खाने वाला आया था. हम दोनों ने खाना खाया. उस के बाद हम ने सोने की तैयारी की और अपनीअपनी सीट पर लेटेलेटे हम दोनों बातों में फिर मशगूल हो गए.

बातोंबातों में कभीकभी मैं अपने हाथ पीठ पर छू देता था, लेकिन उस ने कभी बुरा नहीं माना. वह भी मेरे साथ कर रही थी.

धड़धड़ की आवाज से रेल अपने चरम गति में पटरियों को पीछे धकेल रही थी और बाहर कितने गांव, गली, शहर पीछे छूट जा रहे थे.

हम दोनों बाहरी दुनिया में बिलकुल अनभिज्ञ थे. बस अपनीअपनी दुनिया में व्यस्त थे. रात के 1 बज गए थे, लेकिन दिनभर के काम और भागदौड़ के बाद भी आंखों में नींद का अतापता नहीं था. उसे भी नींद नहीं आ रही थी. हम दोनों लेकिन करीब जरूर आ रहे थे.

लगभग एक घंटा और बीता होगा यानी आधी रात कट चुकी थी. रात पूरे शबाब पर थी और रेल की चाल भी.

वह अब अपनी सीट से उठ कर मेरी सीट पर थी. हम दोनों एकदूसरे के अंतर्मन में उतर रहे थे. जैसेजैसे रात बढ़ी हमारी दूरियों में कमी आई.

उस की सांसों की बढ़ती तेजी मेरी सांसों को पूरी तरह से स्पर्श कर रही थी. उस के जिस्म और यौवन का प्रवाह मुझ पर अपनी पूरी ताकत से अधिकार और वार कर रहा था, जैसे समुद्र के किनारे बैठे किसी शख्स को उस की तेज लहरें नहला कर चली जाती हैं. लेकिन वह भीग कर आनंद की प्राप्ति करता है, ठीक वैसे ही मैं भी हर पल आनंद में डूब रहा था. मेरे मन में यही था कि ये वक्त यहीं पर ठहर जाए.

उस के साथ हो रही प्रेम हवन में दोनों के जिस्म अपनीअपनी आहूति पूरे मन से दे रहे थे. न वक्त की परवाह और न ही जगह, न ही सफर. बस अजीब सी मंजिल की तलाश में दो यात्री चल रहे थे.

हम दोनों एकदूसरे में उतर गए थे और अब दोनों के चेहरे पर अलग मुसकान थी. उस ने प्यार से मेरे गालों पर चूमा और फिर मेरे सीने पर सिर रख कर किसी बच्चे की भांति सोने लगी.

मैं भी उस के सिर पर हाथ फेरने लगा और दोनों नींद की गोद में आ गए.
सुबह हुई, हमारा स्टेशन आया और हम दोनों आखिरी बार गले मिले और अपनेअपने गंतव्य को निकल लिए.

हम इतने करीब आए, लेकिन मैं ने न उस का फोन नंबर लिया और न ही उस का कोई सोशल मीडिया का पता. शायद ये मेरी मूर्खता भी थी.

मैं स्टेशन से सीधे बाजार गया मिठाई व कुछ अन्य सामान लेने, फिर लगभग 2 घंटे देरी से घर पहुंचा. अमूमन मुझे स्टेशन से घर आने में आधे घंटे का समय लगता है.

घर पहुंचने पर मातापिता के पैर छुए और फिर पत्नी भी मिली. मैं अपने कमरे में आया, तभी मेरी पत्नी ने थोड़ी देर रुक कर कहा, ‘‘सुनोजी, मुझे आप को किसी से मिलाना है. मेरी बहन जो शादी में न आ पाई थी, मैं ने उसे त्योहार पर घर बुलाया है.‘‘

“जी…” मैं ने भी सहमति दी.

तभी उस ने आवाज लगाई. आवाज सुन कर एक लड़की पीले सूट में कमरे में आई. उसे देखते ही मैं चौंक गया, क्योंकि ये कोई और नहीं बल्कि वही थी, जो रातभर मेरी सहयात्री थी.

उस ने मुझे देखा, मुसकराई और नमस्ते बोल कर चली गई.

उसे देख कर मेरी तो जैसे जबान ही बंद थी.

लगभग एक घंटे बाद मैं उस से मिला अकेले में, तब मैं ने उस से कहा, ‘‘सौरी, हम से शायद भूल हो गई.’’

उस ने कहा, ‘‘भूल हम दोनों से हुई जीजाजी और अब भूल को भी भूल कर त्योहार का आनंद लीजिए. एक हसीं सपना समझ कर उसे भूल जाइए और मैं भी. दीदी को कुछ पता न चले, वरना वे बहुत दुखी होंगी.‘‘

इतना कह कर वह अपनी दीदी के पास चली गई.

मैं अकेले बैठ कर उसी हसीं भूल के बारे में सोचता रहा.

लेखक – शुभम पांडेय गगन

Emotional Love Story : थोड़ी सी जमीन, सारा आसमान

Emotional Love Story : फरहा 5 सालों के बाद अपने शहर आ रही थी. प्लेन से बाहर निकलते ही उस ने एक लंबी सांस ली मानों बीते 5 सालों को इस एक सांस में जी लेगी. हवाईअड्डा पूरी तरह बदला दिख रहा था. बाहर निकल उस ने टैक्सी की और पुश्तैनी घर की तरफ चलने को कहा, जो हिंदपीढ़ी महल्ले में था.

5 सालों में शहर ने काफी तरक्की कर ली, यह देख फरहा खुश हो रही थी. रास्ते में कुछ मौल्स और मल्टीप्लैक्स भी दिखे. सड़कें पहले से साफ और चौड़ी दिख रही थीं. जींस और आधुनिक पाश्चात्य कपड़ों में लड़कियों को देख उसे सुखद अनुभूति होने लगी. कितना बदल गया है उस का शहर. उसे रोमांच हो आया.

रेहान सो चुका था. फरहा ने भी पीठ सीट पर टिका टांगों को थोड़ा फैला दिया. लंबी हवाईयात्रा की थकावट महसूस हो रही थी. आज सुबह ही सिडनी, आस्ट्रेलिया से वह अपने बेटे के साथ दिल्ली पहुंची थी. आना भी जरूरी था. 1 हफ्ते पहले ही अब्बू रिटायर हो कर अपने घर लौटे थे. अब सब कुछ एक नए सिरे से शुरू करना था. भले शहर अपना था पर लोग तो वही थे. इसी से फरहा कुछ दिनों के लिए अम्मांअब्बू के पास रहने चली आई थी ताकि घरगृहस्थी को नए सिरे से जमाने में उन की मदद कर सके.

तभी टैक्सी वाले ने जोर से ब्रेक लगाए तो उस की तंद्रा भंग हुई. उस ने देखा कि टैक्सी हिंदपीढ़ी महल्ले में प्रवेश कर चुकी है. बुरी तरह से टूटीफूटी सड़कों पर अब टैक्सी हिचकोले खा रही थी. उस ने खिड़की के शीशे को नीचे किया. एक अजीब सी बू टैक्सी के अंदर पसरने लगी. किसी तरह अपनी उबकाई को रोकते हुए उस ने झट से शीशा चढ़ा दिया. शहर की तरक्की ने अभी इस महल्ले को छुआ भी नहीं है. सड़कें और संकरी लग रही थीं. इन सालों में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए छोटेछोटे घरों ने भूलभुलैया बना दिया था महल्ले को. उस के अब्बा का दोमंजिला मकान अलबत्ता सब से अलग दिख रहा था.

अब्बा और अम्मां बाहर ही खड़े थे.

‘‘तुम ने अपना फोन अभी बंद कर रखा है. राकेश तब से परेशान है कि तुम पहुंची या नहीं?’’ मिलते ही अब्बू ने पहले अपने दामाद की ही बातें कीं.

अचानक महसूस हुआ कि बंद खिड़कियों की दरारों से कई जोड़ी आंखें झांकने लगी हैं.

फ्रैश हो कर फरहा आराम से हाथ में चाय का कप पकड़े घर का, महल्ले का और रिश्तेदारों का मुआयना करने लगी.

एक 22-23 साल की लड़की सलमा फुरती से सारे काम निबटा रही थी.

‘‘कैसा लग रहा है अब्बू अपने घर में आ कर? अम्मां पहले से कमजोर दिख रही हैं. पिछले साल सिडनी आई थीं तो बेहतर थीं,’’ फरहा ने पूछा.

एक लंबी सांस लेते हुए अब्बू ने कहा, ‘‘कुछ भी नहीं बदला यहां. पर हां घर में बच्चे न जाने कितने बढ़ गए हैं… लोफर कुछ ज्यादा दिखने लगे हैं गलियों में. लड़कियां आज भी उन्हीं बेडि़यों में कैद हैं, जिन में उन की मांएं या नानियां जकड़ी रही होंगी. तुम्हारी शादी की बात अलबत्ता लोग अब शायद भूल चले हैं.’’

फरहा ने कमरे में झांका. नानीनाती आपस में व्यस्त दिखे.

‘‘अब्बू, मुझे लग रहा था न जाने रिश्तेदार और महल्ले वाले आप से कैसा व्यवहार करें. मुझे फिक्र हो रही थी आप की, इसलिए मैं चली आई. अगले हफ्ते राकेश भी आ रहे हैं.’’

फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोली, ‘‘फूफी के क्या हाल हैं?’’ और फिर फरहा अब्बू के पास आ कर बैठ गई.

‘‘अब छोड़ो भी बेटा. जो बीत गई सो बात गई. जाओ आराम करो. सफर में थक गई होगी,’’ कह अब्बू उठने लगे.

फरहा जा कर अम्मां के पास लेट गई. बीच में नन्हा रेहान नींद में मुसकरा रहा था.

पर आज नींद आ रही थी. कमरे में चारों तरफ जैसे यादों के फूल और शूल उग आए हों… जहां मीठी यादें दिल को सहलाने लगीं, वहीं कड़वी यादें शूल बन नसनस को बेचैन करने लगीं…

अब्बा सरकारी नौकरी में उच्च पद पर थे. हर कुछ सालों में तबादला निश्चित था. काफी छोटी उम्र से ही फरहा को होस्टल में रख दिया गया था ताकि उस की पढ़ाई निर्बाध चले. अम्मां हमेशा बीमार रहती थीं पर अब्बूअम्मां में मुहब्बत गहरी थी. अब्बू उस वक्त पटना में तैनात थे. उन्हीं दिनों फूफी उन के पास गई थी. अब्बू का रुतबा और इज्जत देख उस के दिल पर सांप लोट गया और फिर फूफी ने शुरू किया अब्बू के दूसरे निकाह का जिक्र, अपनी किसी रिश्ते की ननद के संग. अम्मां की बीमारी का हवाला दे पूरे परिवार ने तब खूब अपनापन दिखा, रजामंदी के लिए दबाव डाला था. अब्बू ने बड़ी मुश्किल से इन जिक्रों से पिंड छुड़ाया था. भला पढ़ालिखा आदमी ऐसा सोच भी कैसे सकता है. ये सारी बातें अम्मां ने फरहा को बड़ी होने पर बताई थीं. उसे फूफी और घर वालों से नफरत हो गई थी कि कैसे वे उस के वालिद और वालिदा का घर उजाड़ने को उतारू थे.

फरहा के घर का माहौल उस के रिश्तेदारों की तुलना में बहुत भिन्न था. उस के अब्बू की सोच प्रगतिशील थी. वह अकेली संतान थी और उस के अब्बू उस के उच्च तालीम के जबरदस्त हिमायती थे. उस से छोटी उस की चचेरी और मौसेरी बहनों का निकाह उस से पहले हो गया था. जब भी कोई पारिवारिक आयोजन होता उस के निकाह के चर्चे ही केंद्र में होते. यह तो अब्बू की ही जिद थी कि उसे इंजीरियरिंग के बाद नौकरी नहीं करने दी, बल्कि मैनेजमैंट की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया.

जब वह इंजीनियरिंग के फाइनल वर्ष में था तो फूफी फिर घर आई थी. आते ही अम्मां से फरहा की बढ़ती उम्र का जिक्र शुरू कर दिया, ‘‘भाभी जान, मैं कहे देती हूं कि फरहा की उम्र इतनी हो गई है कि अब जानपहचान में उस के लायक कोई कुंआरा लड़का नहीं मिलेगा. भाईजान की तो अक्ल ही मारी गई है… भला लड़कियों को इतनी तालीम की क्या जरूरत है? असल मकसद उन की शादी है. अब देखो मेरा बेटा फीरोज कितना खूबसूरत और गोराचिट्टा है. जब से दुबई गया है खूब कमा भी रहा है… दोनों की जोड़ी खूब जमेगी.’’

बेचारी अम्मा रिश्तेदारों की बातों से पहले ही हलकान रहती थीं, फूफी की बातों ने उन के रक्तचाप को और बढ़ा दिया. वह तो अब्बूजी ने जब सुना तो फूफी को खूब खरीखटी सुनाई.

‘‘क्यों रजिया तुम ने क्या मैरिज ब्यूरो खोल रखा है… कभी मेरी तो कभी मेरी बेटी की चिंता करती रहती हो? इतनी चिंता अपने बड़े लाड़ले की की होती तो उसे 10वीं फेल हो दुबई में पैट्रोल पंप पर नौकरी नहीं करनी पड़ती. फरहा की तालीम अभी अधूरी है. मेरी प्राथमिकता उस की शादी नहीं तालीम है.’’

फूफी उस के बाद रुक नहीं पाई थी. हफ्तों रहने की सोच कर आने वाली फूफी शाम की ही बस से लौट गई.

सोचतेसोचते फरहा को कब नींद आ गई उसे पता नहीं चला.

सुबह रेहान की आवाज से उस की नींद खुली.

‘‘फरहा बाजी आप उठ गईं? चाय लाऊं?’’ मुसकराती सलमा ने पूछा.

चाय का कप पकड़े सलमा उस के पास ही बैठ गई. फरहा ने महसूस किया कि वह उसे बड़े ध्यान से देख रही है.

‘‘बाजी, अब तो आप सिंदूर लगाने लगी होंगी और बिंदिया भी? क्या आप अभी भी रोजे रखती हैं? क्या आप ने अपने नाम को भी बदल लिया है?’’

सलमा की इन बातों पर फरहा हंस पड़ी. बोली, ‘‘नहीं, मैं तो बिलकुल वैसी ही हूं जैसी थी. वही करती हूं जो बचपन से करती आ रही… तुम्हें ऐसा क्यों लगा?’’

‘‘जी, कल मैं जब काम कर लौटी तो महल्ले में सब पूछ रहे थे… आप ने काफिर से शादी की है?’’ सलमा ने मासूमियत से पूछा.

फरहा के अब्बू ने फूफी को तो लौटा दिया था. पर विवाद थमा नहीं था. आए दिन उस की तालीम बढ़ती उम्र और निकाह पर चर्चा होने लगी. धीरेधीरे अब्बू ने अपने पुश्तैनी घर आना कम कर दिया. फरहा अपनी मैनेजमैंट की पढ़ाई के लिए देश के सर्वश्रेष्ठ कालेज के लिए चुनी गई. अब्बू के चेहरे का सुकून ही उस का सब से बड़ा पारितोषिक था. कालेज में यों ही काफी कम लड़कियां थीं पर मुसलिम लड़की वह अकेली थी अपने बैच में. फरहा काफी होनहार थी. कालेज में बहुत सारी गतिविधियां होती रहती थीं और वह सब में काफी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती. सब उस के कायल थे.

इसी दौरान राकेश के साथ उसे कई प्रोजैक्ट पर काम करने को मिला. उस की बुद्धिमानी और शालीनता धीरेधीरे फरहा को आकर्षित करने लगी. संयोग से दोनों साथ ही समर इंटर्नशिप के लिए एक ही कंपनी के लिए चुने गए. नए शहर में उन 2 महीनों में दिल की बातें जबान पर आ ही गईं. दुनिया इतनी हसीं कभी न थी.

इंटर्नशिप के बाद फरहा 1 हफ्ते के लिए अब्बूअम्मां से मिलने दिल्ली चली गई. अब्बू की पोस्टिंग उस वक्त वहीं थी. अब्बू काफी खुश दिख रहे थे.

‘‘फरहा कुछ महीनों में तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो जाएगी. मेरे मित्र रहमान अपने सुपुत्र के लिए तुम्हारा हाथ मांग रहे हैं. मुझे तो उन का बेटा और परिवार सब बहुत ही पसंद है. पर मैं ने कह रखा है कि फैसला मेरी बेटी ही लेगी.’’

उस एक पल में फरहा की नसनस में तूफान सा गुजर गया. फिर खुद को संयत करते हुए उस ने कहा, ‘‘आप जो फैसला लेंगे वह सही होगा अब्बूजी.’’

‘‘शाबाश बेटा, तुम ने मेरी लाज रख ली. सब कहते थे कि इतना पढ़लिख कर तुम भला मेरी बात क्यों मानोगी. मैं जानता था कि मेरी बेटी मुझ से अलग नहीं है. मैं कल ही रहमान को परिवार के साथ खाने पर बुलाता हूं.’’

सपना देखना अभी शुरू भी नहीं हुआ था कि नींद खुल गई. फरहा रात भर रोती रही.

बहते अश्कों ने बहुत सारे संशय सुलझा लिए. राकेश और वह नदी के 2 किनारे हैं. फरहा ने सोचा कि यह तो अच्छा हुआ कि उस ने अब्बूजी को अपनी भावनाओं के बारे में नहीं बताया. वैसे ही वे घरसमाज से लड़ मुझे उच्च तालीम दिला रहे हैं. अगर मैं ने एक हिंदू काफिर से ब्याह की बात भी की, तो शायद आने वाले वक्त में अपनी बेटीबहन को मेरी मिसाल दे उन से शिक्षा का हक भी छीना जाए. उसे सिर्फ अपने लिए नहीं सोचना चाहिए… फरहा मन को समझाने लगी.

दूसरे दिन ही रहमान साहब अपने सुपुत्र और बीबी के साथ तशरीफ ले आए. ऐसा लग रहा था मानो सिर्फ औपचारिकता ही पूरी हो रही है. सारी बातें पहले से तय थीं.

‘‘समीना, आज मुझे लग रहा है कि मैं ने फरहा के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियों को लगभग पूरा कर लिया है… आज मैं बेहद खुश हूं. निकाह फरहा की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही करेंगे. तभी सारे रिश्तेदारों को बताएंगे,’’ अब्बू अम्मां से कह रहे थे.

2 दिन बाद फरहा अपने कालेज अहमदाबाद लौट गई. लग रहा था राकेश मिले तो उस के कंधे पर सिर रख खूब रोए. पर राकेश सामने पड़ा तो वह भी बेहद उदास और उलझा हुआ सा दिखा. फरहा अपना गम भुला राकेश के उतरे चेहरे के लिए परेशान हो गई.

‘‘फरहा, मैं ने घर पर तुम्हारे बारे में बात की. पर तुम्हारा नाम सुनते ही घर में बवाल मच गया. मैं ने भी कह दिया है कि मैं तुम्हें छोड़ किसी और से शादी कर ही नहीं सकता.

इस बार सब से लड़ कर आया हूं,’’ राकेश ने कहा तो फरहा ने भी कहा कि उस की हालत भी बकरीद पर हलाल होने वाले बकरे से बेहतर नहीं.

वक्त गुजरा. फरहा और राकेश दोनों की नौकरी दिल्ली में ही लगी. दोनों अब तक मान चले थे कि एक हिंदू लड़का और मुसलिम लड़की की शादी मुकम्मल हो ही नहीं सकती.

फरहा के निकाह की तारीख कुछ महीनों बाद की ही थी. एक दिन फरहा अपने अब्बू और अम्मां के साथ कार से गुड़गांव की तरफ जा रही थी कि सामने से आते एक बेकाबू ट्रक ने जोर से टक्कर मार दी. तीनों को गंभीर चोटें आईं. बेहोश होने से पहले फरहा ने राकेश को फोन कर दिया था.

अब्बू और अम्मां को तो हलकी चोटें आईं पर फरहा के चेहरे पर काफी चोटें आई थीं. नाक और ठुड्डी की तो हड्डी ही टूट गई थी. पूरे चेहरे पर पट्टियां थीं.

रहमान साहब और उन का परिवार भी आया हौस्पिटल उसे देखने. सब बेहद अफसोस जाहिर कर रहे थे. उस के होने वाले शौहर ने जब सब के सामने ही डाक्टर से पूछा कि क्या फरहा पहले की तरफ ठीक हो जाएगी तो डाक्टर ने कहा कि इस की उम्मीद बहुत कम है कि वह पहले वाला चेहरा वापस पा सकेगी. हां, शरीर का बाकी हिस्सा बिलकुल स्वस्थ हो जाएगा… प्लास्टिक सर्जरी के बाद कुछ बदलावों के साथ वह एक नया चेहरा पा सकेगी, जिस में बहुत वक्त लगेगा.

वह दिन और आज का दिन रहमान परिवार फिर मिलने भी नहीं आया, अलबत्ता निकाह तोड़ने की खबर जरूर फोन पर दे दी.

दुख की घड़ी में उन का यों रिश्ता तोड़ देना बेहद पीड़ादायक था. अब्बू अम्मां उतना दुर्घटना से आहत नहीं हुए थे, जितना उन के व्यवहार से हुए. यह तो अच्छा था कि किसी रिश्तेदार को खबर नहीं हुई थी वरना और भद्द होती. फिलहाल, सवाल फरहा के ठीक होने का था. इस बीच राकेश उन का संबल बना रहा. हौस्पिटल, घर, औफिस और फरहा के अब्बू अम्मां सब को संभालता. वह उन के घर का एक सदस्य सा हो गया.

उस दिन अब्बू ने हौस्पिटल के कमरे के बाहर सुना, ‘‘फरहा प्लीज रो मत. तुम्हारी पट्टियां कल खुल जाएंगी. मैं हूं न. मैं तुम्हारे लिए जमीन आसमान एक कर दूंगा. जल्द ही तुम औफिस जाने लगोगी.’’

‘‘अब मुझ से कौन शादी करेगा?’’ यह फरहा की आवाज थी.

‘‘बंदा सालों से इंतजार कर रहा है. अब तो मां भी हार कर बोलने लगी हैं कि कुंआरा रहने से बेहतर है जिस से मन हो कर लो शादी… पट्टियां खुलने दो… एक दिन मां को ले कर आता हूं.’’

राह के कांटे धीरेधीरे दूर होते गए. राकेश के घर वाले इतनी होनहार और उच्च शिक्षित बहू पा कर निहाल थे. उस के गुणों ने उस के दुर्घटनाग्रस्त चेहरे के ऐब को ढक दिया था. पहले से तय निकाह की तारीख पर ही दोनों की कोर्ट मैरिज हुई और फिर हुआ एक भव्य रिसैप्शन समारोह, जिस में दोनों तरफ के रिश्तेदारों को बुलाया गया. दोनों ही तरफ से लोग न के ही बराबर शामिल हुए. हां, दोस्त कुलीग सब शामिल हुए. कुछ ही दिनों के बाद राकेश की कंपनी ने उसे सिडनी भेज दिया. दोनों वहीं चले गए और खूब तरक्की करने लगे.

फरहा की शादी के बाद अब्बू एक बार अपने शहर, अपने घर गए थे. महल्ले के लोगों ने उन की खूब खबर ली. कुछ बुजुर्ग लोगों ने उन्हें डांटा भी. रात में उन के घर पर पथराव भी किया. किसी तरह पुलिस बुला अब्बू और अम्मां घर से निकल पाए थे.

‘‘अब्बूजी, आप किस से बातें कर रहे थे?’’ फरहा ने पूछा.

‘‘अरे, तुम्हारी फूफी जान थी. बेचारी आती रहती है मुझ से मदद लेने. बेटे तो उस के सारे नालायक हैं. कोई जेल में तो कोई लापता. बेचारी के भूखों मरने वाले दिन आ गए हैं,’’ अब्बूजी ने कहा.

‘‘फरहा उस रात हमारे घर पर इसी ने पथराव करवाया था… अपने लायक बेटों से. हम ने तुम्हारी शादी इस के बेटे से जो नहीं कराई थी. सारे महल्ले वालों को भी इस ने ही उकसाया था. बहुत साजिश की इस ने हिंदू लड़के से तुम्हारी शादी करने के हमारे फैसले के खिलाफ,’’ अम्मा ने हंसते हुए कहा.

‘‘यह जो सलमा है न. इस वर्ष वह 10वीं कक्षा की परीक्षा दे रही है. वह भी तुम्हारी तरह तालीमयाफ्ता होने की चाहत रखती है.’’

‘‘सिर्फ मैं ही क्यों महल्ले की हर लड़की आप के जैसी बनना चाहती है,’’ यह सलमा थी, ‘‘काश, सब के अब्बू आप के अब्बू जितने समझदार होते,’’ कह सलमा फरहा के गले लग गई.

Online Story : बस इतनी सी बात थी

Online Story : ‘‘साहिल,मेरी किट्टी पार्टी 11 बजे की थी… मैं लेट हो गई. जाती हूं, तुम लंच कर लेना. सब तैयार है… ओके बाय जानू्,’’ कह मौज ने साहिल को फ्लाइंग किस किया और फिर तुरंत दरवाजा खोल चली गई. ‘‘एक दिन तो मुझे बड़ी मुश्किल से मिलता है… उस में भी यह कर लो वह कर लो… चैन से सोने भी नहीं देती यह और इस की किट्टी,’’ साहिल ने बड़बड़ाते हुए उठ कर दरवाजा बंद किया और फिर औंधे मुंह बिस्तर पर जा गिरा. ‘‘उफ यह तेज परफ्यूम,’’ उस ने पिलो को अपने चेहरे के नीचे दबा लिया. शादी के पहले जिस परफ्यूम ने उसे दीवाना बना रखा था आज वही सोने में बाधा बन रहा था.

शाम 5 बजे मौज लौटी तो अपनी ही मौज में थी. किट्टी में की गई मस्ती की ढेर सारी बातें वह जल्दीजल्दी साहिल से शेयर करना चाहती थी.

‘‘अरे सुनो न साहिल… तरहतरह के फ्लेवर्ड ड्रिंक पी कर आई हूं वहां से… कितनी रईस हैं राखी… कितनी तरह की डिशेज व स्नैक्स थे वहां… कितने गेम्स खेले हम ने तुम्हें पता है?’’ ‘‘अरे यार मुझे कहां से पता होगा… तुम भी कमाल करती हो,’’ साहिल ने चुटकी ली.

‘‘हम सब ने रैंप वाक भी किया… मेरी स्टाइलिंग को बैस्ट प्राइज मिला.’’ ‘‘अच्छा… उन के घर में रैंप भी बना हुआ है?’’ वह मुसकराया.

‘‘घर में कहां थी पार्टी… इंटरनैशनल क्लब में थी.’’ ‘‘अरे तो इतनी दूर गाड़ी ले कर गई

थीं? नईनई तो चलानी सीखी है… कहीं ठोंक आती तो?’’ ‘‘माई डियर, अपनी गाड़ी से मैं सिर्फ राखी के घर तक ही गई थी. वहां से सब उन की औडी में गए थे. क्या गाड़ी है. मजा आ गया… काश, हम भी औडी ले सकते तो क्या शान होती हमारी भी… पर तुम्हारी क्व40-50 हजार की सैलरी में कहां संभव है,’’ मौज थोड़ी उदास हो गई.

उधर साहिल थोड़ा आहत. मौज जबतब, जानेअनजाने ऐसी बातों से साहिल का दिल दुखा दिया करती. वह हमेशा पैसों की चकाचौंध से बावली हो जाती है, साहिल यह अच्छी तरह जानने लगा था. कभीकभी वह कह भी देता है, ‘‘तुम्हें शादी करने से पहले अपने पापा से मेरी सैलरी पूछ ली होती तो आज यह अफसोस न करना पड़़ता.’’ ‘‘सौरीसौरी साहिल मेरा यह मतलब बिलकुल नहीं था. तुम्हें तो मालूम ही है कि मैं हमेशा बिना सोचेसमझे उलटासीधा बोल जाती हूं… आगापीछा कुछ नहीं सोचती हूं… सौरी साहिल माफ कर दो,’’ कह वह आंखों में आंसू भर कान पकड़ कर उठकबैठक लगाने लगी तो साहिल को उस की मासूमियत पर हंसी आ गई. बोला, ‘‘अरे यार रोनाधोना बंद करो. तुम भी कमाल हो… दिलदिमाग से बच्ची ही हो अभी. जाओ अभी सपनों की दुनिया में थोड़ा आराम कर लो… मेरा मैच आने वाला है… शाम को ड्रैगन किंग में डिनर करने चलेंगे.’’ ‘‘सच?’’ कह मौज ने आंसू पोंछ साहिल को अपनी बांहों में भर लिया.

साहिल ने मौज को ड्रैगन किंग में डिनर खिला दिया, पर मन ही मन सोचने लगा कि हर तीसरे दिन इसी तरह चलता रहा तो उस के लिए हर महीने घर चलाना मुश्किल हो जाएगा… क्या करूं किसी और तरीके से खुश भी तो नहीं होती… सिर्फ पैसा और कीमती चीजें ही उसे भाती हैं… साल भर

भी तो नहीं हुआ शादी हुए… अकाउंट बैलेंस बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहा… एक ड्रैस खरीद लेती तो उस से मैचिंग के झुमके, कंगन, सैंडल, जूतियां सभी कुछ चाहिए उसे वरना उस की सब सहेलियां मजाक बनाएंगी… भला ऐसी कैसी सहेलियां जो दोस्त का ही मजाक बनाएं… तो उन से दोस्ती ही क्यों रखनी? कुछ समझ नहीं आता… इन औरतों का क्या दिमाग है… कामधाम कुछ नहीं खाली पतियों के पैसों पर मौजमस्ती. वह कैसे मौज को समझाए कि उन के पति ऊंची नौकरी वाले या फिर बिजनैसमैन हैं… वह कैसे पीछा छुड़वाए मौज का इन गौसिप वाली औरतों से… इसे भी बिगाड़ रही हैं… कुछ तो करना पड़ेगा…

‘‘अरे साहिल क्यों मुंह लटकाए बैठा है. अभी तो साल भर भी नहीं हुआ शादी को… घर आ कभी… मौज को नीलम भी याद कर रही थी,’’ कह कर मुसकराते हुए उस का सीनियर अमन कैंटीन में साहिल की बगल में बैठ गया और फिर पूछा, ‘‘कुछ और्डर किया क्या?’’ ‘‘नहीं, बस किसी का फोन था,’’ कह साहिल, समोसों और चाय का और्डर दे दिया.

‘‘और बता मौज कैसी है? कहीं घुमानेफिराने भी ले जाता है या नहीं… छुट्टी ले कहीं घूम क्यों नहीं आता… दूर नहीं जयपुर या आगरा ही हो आ. मैं हफ्ता भर पहले गायब था न तो मैं और नीलम किसी शादी में जयपुर गए थे. वहां फिर 3 दिन रुक कर खूब घूमे… नीलम ने खूब ऐंजौय किया.’’ ‘‘हां मैं भी सही सोच रहा हूं कि उस की बोरियत कैसे अपने बजट से दूर की जाए.’’

‘‘अरे यार, क्या बात कर रहा है… सस्तेमहंगे हर तरह के होटल हैं वहां… अबे इतनी कंजूसी भी कैसी… अभी तो तुम 2 ही हो… न बच्चा न उस की पढ़ाई का खर्च…’’ ‘‘हां यह तो है पर…’’ तभी वेटर समोसे व चाय रख गया.

‘‘छोड़ परवर यह देख पिक्स पिंक सिटी की… कितनी बढि़या हैं… एक बार दिखा ला मौज को.’’ ‘‘अमन यह बताओ, नीलम भाभी क्या इतनी सिंपल ही रहती हैं… ज्यादातर वही जूतेचप्पल, टीशर्ट, ट्राउजर… बाल कभी रबड़बैंड से बंधे तो कभी खुले… न गहरा मेकअप, न तरहतरह की ज्वैलरी…. मौज को तो भाभी से ट्रेनिंग लेनी चाहिए… उस की सोच का स्टैंडर्ड कुछ ज्यादा ही ऊंचा व खर्चीला हो गया है.’’

‘‘मतलब?’’ चाय का सिप लेते हुए अमन ने पूछा. ‘‘मतलब, जाएगी तो गोवा, सिंगापुर, बैंकौक इस से कम नहीं. हर तीसरे दिन नई ड्रैस के साथ सब कुछ मैचिंग चाहिए… उन के साथ जाने कौनकौन से मेकअप से लिपेपुते चेहरे में वह मेरी पत्नी कम शोकेस में सजी गुडि़या अधिक लगने लगी है अपनी कई रईस सहेलियों जैसी… वह सादगी भरी सुंदर सौम्य प्रतिमा जाने कहां खो गई… महीने में 5-6 बार तो उसे ड्रैगन किंग

में खाना खाना है. अब आप समझ लो, यह सब से महंगा रैस्टोरैंट है. एक बार के खाने के क्व2-3 हजार से नीचे का तो बिल बनने से रहा… अब बताओ अब भी कंजूस कहोगे?’’

‘‘तो यार इतनी रईस सहेलियां कहां से बना लीं मौज ने?’’ ‘‘बात समझो. मौज ने ब्यूटीशियन का

कोर्स किया हुआ है. अत: अपना ज्ञान जता कर इतराने का शौक है… बस वे चिपक जाती हैं. इस से फ्री में टिप्स मिल जाते हैं उन्हें. उस पर उसे गाने का भी शौक है. बस अपनी सुरीली आवाज से सब की जान बन चुकी है. उन के

हर लेडीज संगीत, पार्टी का उसे आएदिन निमंत्रण मिल जाता है. अब हाई सोसायटी में जाना है तो उन्हीं के स्टैंडर्ड का दिखना भी है. अब तो गाड़ी भी औडी ही पसंद आ रही है… इसी सब में मेरी सारी सैलरी स्वाहा हो रही है.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है… अरे तो तू भी तो पागल ही है,’’ कह अमन हंसने लगा, ‘‘अरे अक्लमंद आदमी पहले मेरी बात सुन… मुझे तो लगता है मौज का स्किल जिस में है इस के लिए उसे खुद को तैयार हो कर रहना ही चाहिए… दूसरा मौज बाहर काम करना चाहती है… तूने काम करने को मना किया है क्या?’’ ‘‘नहीं… उसे बस शौक है, ऐसा ही लगता है. फिर 2 व्यक्तियों के लिए अभी क्व40-50 हजार मुझे मिल रहे हैं… काफी नहीं हैं क्या? फिर कल को बेबी होगा

तो उस की देखभाल कौन करेगा? मांपापा भी नहीं रहे.’’ ‘‘कैसी नासमझों वाली बातें कर रहा है… बेबी होगा तो जानता नहीं उस के सौ खर्चे होंगे. आजकल अकेले की सैलरी कितनी भी बढ़ जाए कम ही रहती है… फिर कुछ सीखा है तो वह दूसरों तक पहुंचे तो भला ही है… खाली बैठने से दिमाग को खुश भी कैसे रखेगा कोई?

‘‘वैसे भी खाली दिमाग शैतान का घर सुना ही है तूने… तू तो सुबह 9 बजे घर से निकल शाम को 6-7 बजे घर पहुंचता है… सारा वक्त तो काम होता नहीं घर का फिर वह क्या करे, यह क्यों नहीं सोचता तू. खाली घर काटने को दौड़ता होगा… किसी से बात तो करना चाहेगी… आफ्टर आल मैन इज सोशल ऐनिमल…’’

‘‘मैं ने उसे मिलने को मना नहीं कर रखा है, पर उन का उलटीसीधी आदतें तो न अपनाए. असर तो न ले. बनावटी लोगों से नहीं सही लोगों से मिले.’’ ‘‘अरे उसे शौक है तो उसे चार्ज करने की सलाह दे. जो उस के स्किल से वाकई फायदा उठाना चाहती हैं वे उस के लिए पे करेंगी… इस फील्ड में बहुत पैसा है समझे… नीलम भी कभीकभी कहती है कि काश, उस ने भी टीचिंग सैंटर की जगह ब्यूटीपार्लर खोल लिया होता तो बढि़या रहता.’’

‘‘अच्छा?’’ ‘‘और क्या… अब तो वे दिन दूर नहीं, जब तुम दोनों जल्द ही अपनी औडी में हम दोस्तों के साथ ड्रैगन किंग में दावतें किया करोगे… और गोवा क्या सीधे बैंकौक जाएंगे,’’ कह अमन हंसते हुए उठ खड़ा हुआ.

‘‘मौज, आगे वाला कमरा मां के जाने के बाद से खाली पड़ा है. तुम उस में चाहो तो ब्यूटीपार्लर खोल सकती हो.’’ ‘‘सच?’’ मौज खुशी से उछल पड़ी, ‘‘मैं भी कब से तुम से यही कहना चाहती थी, पर डरती थी तुम्हें बुरा लगेगा… आखिर मांबाबूजी की यादें बसी हैं उस में.’’

‘‘अच्छी यादें तो दिल में बसी हैं मौज. वे हमेशा हमारे साथ रहती हैं… छोड़ो ये सब तुम घर पर अपना शौक पूरा कर सकोगी और तुम्हारी इनकम भी होगी. सुंदर दिखने की शौकीन लड़कियां, औरतें चल कर खुद तुम्हारे पास आएंगी… बातें करने को कोई होगा तो खुश भी बहुत रहोगी. और तो और जल्दी आने

वाले नन्हे मेहमान का भी ध्यान रख सकोगी… उस के साथ भी रह सकोगी… मुझे भी कोई चिंता नहीं होगी,’’ कह साहिल ने मौज के गाल को चूम लिया.

थोड़ी देर बाद साहिल फिर बोला, ‘‘तुम्हारी आसपास रईस महिलाओं से इतनी दोस्ती हो गई है… अपना शौक पूरा करने के लिए तुम्हें उन के पास नहीं उन्हें ही तुम्हारे पास आना होगा. खूब चलेगा तुम्हारा पार्लर… उन के काम से जाना भी हो तो विजिटिंग चार्ज लिया करना… तुम्हारा दिल भी लगेगा और इनकम भी होगी… यह समझो, थोड़ी मेहनत करोगी तो बस तुम्हारी भी औडी आ सकती है. तुम भी गोवा, बैंकौक घूमने जा सकती हो.’’ ‘‘औडी, बैंकौक… सच में साहिल ऐसा होगा?’’ मौज आंखें फाड़े साहिल को देखने लगी.

जवाब में साहिल ने पलकें झपकाईं तो वह बेहोशी का नाटक करते हुए साहिल की बांहों में झूल कर मुसकरा उठी. आज साहिल को सादगी भरी सुंदर, सौम्य मौज दिखाई दे रही थी आठखेलियां करती बच्चों जैसी मासूम. ‘‘बस इतनी सी बात थी… क्यों नहीं यह पहले समझ आया,’’ उस ने अपने माथे पर हाथ मारा.

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