Hindi Kahani : राघव की इतनी अच्छी कमाई का क्या था जरिया?

Hindi Kahani : जनवरी में कड़ाके की ठंड और कोहरे के चलते दोपहर के बाद ही लगता है दिन ढल गया. पिछले एक महीने से कोहरे की यही स्थिति है. लगता है इस बार सर्दी पिछले सारे रिकार्ड तोड़ देगी.

शव यात्रा की बस जैसे ही श्मशान घाट पहुंची, कई लोगों ने आ कर बस को घेर लिया. बस के साथ 20-25 गाडि़यों का काफिला भी था. लगता था कि किसी बड़े आदमी का श्मशान पर आना हुआ है वरना आजकल 10-15 आदमी भी मुश्किल से जुट पाते हैं. अब किसे फुरसत है जो दो कदम जाने वाले के साथ चल सके.

अपनीअपनी गाडि़यों में से निकल कर लोग शव वाहन के पास आ कर जमा हो गए. अच्छी दक्षिणा मिलने की उम्मीद में राघव की आंखों में चमक आ गई. वह पिछले 20 सालों से अपने पूरे परिवार के साथ यहां है. अब तो उस का बेटा भी उस के काम में सहयोग करता है. बड़े बेटे खिल्लू ने तो चाय की गुमटी में एक छोटामोटा होटल ही खोल लिया है. अंदर बैठने की भी व्यवस्था है. 8-10 लोग कुरसियों पर बैठ कर आराम से चाय पी सकते हैं. दुकान में बीड़ी, सिगरेट, माचिस और बिस्कुट सभी कुछ मिलता है.

दुकान के करीब एक नल भी है. लोग हाथमुंह धो कर अकसर चाय की फरमाइश कर ही देते हैं. गरमियों में ठंडा भी मिलता है. कई बार भीड़ ज्यादा हो तो खिल्लू आवाज लगा कर जीवन को भी बुला लेता है. जीवन 14-15 साल का उस का छोटा भाई है. मां भी अकसर हाथ बंटाती रहती हैं. एक नौकर भी दुकान पर है. आजकल ठंड के कारण लोग भट्ठी के पास सिमट आते हैं और हाथ सेंकते रहते हैं. चाय का आर्डर भी खूब मिलता है. एक मुर्दे को जलाने में 3 साढ़े 3 घंटे तो लग ही जाते हैं.

राघव हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया, ‘‘बाबूजी, इधर आइए. यह शेड खाली है.’’

शव वाहन के साथ आए आदमियों में से एक जा कर शेड देख आया. लोग अरथी को उठा कर कंधों पर रखते तभी एक लाला टाइप आदमी ने टोक दिया :

‘‘बाबूजी, 10 मन लकडि़यां काफी होंगी?’’

तभी राघव चीखा, ‘‘अरे, पूछता क्या है? तुझे नहीं पता कि एक मुर्दे के लिए कितनी लकडि़यां चाहिए. बाबूजी क्या मोलभाव करेंगे? कौन रोजरोज मरने आता है. बस, यही एक अंतिम खर्चा है.’’

राघव की बातें सुन कर वह आदमी जाने लगा. राघव ने फिर कहा, ‘‘रज्जो, ध्यान रखना लकडि़यां सूखी हों.’’

‘‘और बाबूजी,’’ राघव बोला, ‘‘फूल, बताशे, घी, गंगाजल आदि?’’

‘‘नहीं, हमारे पास सब हैं,’’ शव के साथ आए एक अन्य व्यक्ति ने उत्तर दिया.

‘‘और पंडित?’’

एक व्यक्ति ने गाड़ी में अंदर झांक कर मालूम किया तो पता चला कि पंडित साथ नहीं आया था.

‘‘घबराने की बात नहीं है बाबूजी,’’ राघव बोला, ‘‘यहां सब व्यवस्था हो जाएगी,’’ फिर आवाज लगाई, ‘‘अरे, जीवन, जा जरा पंडितजी को बुला ला.’’

सबकुछ पल भर में तैयार. एक आवाज पर हर काम में पारंगत आदमी मिल जाता है. कोई झंझट नहीं. बस, कुछ पैसे चाहिए. पंडित भी कुछ मिनटों में हाजिर हो गया.

अरथी को एक टिन शेड के नीचे ले जाया गया. पंडित ने जमीन पर गंगाजल छिड़का, थोड़ा दूध भी छिड़का, कुछ फूलों की पंखडि़यां और बताशे डाले. फिर अरथी को नीचे रखने का इशारा किया. इस दौरान वह मंत्रों जैसा कुछ संस्कृत में बुदबुदाता रहा. इसी समय लकडि़यां भी आ गईं. साथ आए लोग चिता तैयार करने के लिए आगे बढ़े तभी 2 लोगों ने टोका :

‘‘बाबूजी, यह हमारा काम है. अभी किए देते हैं.’’

उन दोनों ने टिन शेड के एक कोने में चिता तैयार कर दी. अरथी खोल कर उस पर पड़ी चादर, कफन, रूमाल, गोले, रुपए चिता तैयार करने वालों ने समेट लिए. पंडित ने फिर गंगाजल छिड़का, फूल चढ़ाए और साथ आए लोगों से अरथी को चिता पर रखने को कहा. पंडित कर्मकांड कराता रहा और कपाल क्रिया तक वहीं बना रहा. साथ आए लोग चिता के पूरी तरह जलने के इंतजार में इधरउधर छिटक कर बैठ गए. कुछ चाय की गुमटी पर रुक गए. ठंड भी खूब पड़ रही है. कोहरा भी खूब छाया है. चाय की भट्ठी पर कुछ लोग हाथ सेंकने लगे. राघव घूमघूम कर देखता कि चिता की आग कहीं से धीमी तो नहीं पड़ गई. हाथ में पकड़े बांस से जलते लट्ठों को कुरेद देता. आग और तेज हो जाती. शेड के दूसरे कोने में भी चिता जल रही थी. राघव उधर भी जा कर देख आता और वहां भी उलटपुलट कर देता.

5 बड़ेबड़े शेड थे और सभी में 2-2, 3-3 चिताएं जल रही थीं. वैसे भी एक शेड में 5-6 चिताएं आराम से जल सकती थीं. चिताओं की लपटों की गरमी से ठंड में ठंड का एहसास नहीं होता. राघव की तरह ही बनवारी, श्यामू, जग्गू और काले खां के भी शेड्स हैं. किसी को पलक झपकाने की भी फुरसत नहीं है.

कोहरे के कारण खूब ऐक्सीडैंट हो रहे हैं. खूब चिताएं जल रही हैं. ठंड या बीमारी से जाड़ों में अधिक मौत नहीं होतीं, लेकिन इस बार सभी पर लक्ष्मी की अपार कृपा बरस रही है. लगता है पूरे साल की कमाई कुछ ही दिनों में हो जाएगी. इन सब के लिए मरने वाला आदमी 1,000-500 का नोट है. कोई मोहममता नहीं. अपने काम में मोहममता कैसी? आदमी अपना व्यवसाय देखता है. वे सभी व्यवसाय से बंधे हैं. पंडित को भी पूजा कराने की फुरसत नहीं. सभी के रेट निश्चित हैं. चाय की गुमटी के बाहर की दीवार पर रेटलिस्ट लगी है. मुर्दे के घरवाले उसी के मुताबिक सब के पैसे गिन कर खिल्लू को थमा देते हैं. वही सब का हिसाब चुकता कर देता है.

खिल्लू ने एक मोटरसाइकिल भी ले ली है. राघव का पक्का दोमंजिला मकान बन गया है. पत्नीबच्चे अब भूख से नहीं बिलखते. चिता की आग में उन की भूख जल गई है. कितना कुछ बदल गया है. शुरूशुरू में मुर्दे को छूते राघव के हाथ कांपे थे, दिल रोया था. सारा दिन मन खराब रहा कि मुर्दे की कमाई खाएगा. कफन ओढ़ेगा बिछाएगा, लेकिन धीरेधीरे आदत बन गई.

कफन और चादरें साप्ताहिक बाजार में बिक जाती हैं. सोच को एक तरफ झटक राघव जल्दीजल्दी बांस चलाने लगा. मुर्दा पूरा फूंकने की गारंटी उसी की है. परसों अस्थियां चुनी जाएंगी. राघव पूरी तरह चुस्तदुरुस्त है. तभी ‘राम-नाम-सत्य है’ की आवाज कानों में पड़ी. एक और अरथी आ कर रुक गई. पहली अरथी के लोग धीरेधीरे खिसकने लगे. राघव भी बांस एक तरफ टिका आने वाली अरथी की ओर लपक लिया.

Couple Goals : पत्नी का ज्यादा कमाना रिश्तों में ला देता है खटास

Couple Goals : सदियों से माना जाता रहा है कि पुरुष घर का मालिक होता है. वही कमा कर लाता है और घर चलाता है. स्त्री को हमेशा अपने पति के पीछे चलना चाहिए और उस की हर बात माननी चाहिए. स्त्री के लिए पति ही परमेश्वर है और उस का काम पति की सेवा करना है. इस तरह की तमाम बातें हमारे धर्मग्रंथों में लिखी हैं . पुरुष को महिला से ज्यादा कमाई करनी चाहिए यह भी पितृसत्तात्मक समाज का एक पुराना सामाजिक नियम सा रहा है.

पहले शादी के वक्त लड़के और लड़की की पढ़ाई पूछी जाती थी. अगर लड़की ज्यादा पढ़ी लिखी होती तो रिश्ता आगे नहीं बढ़ता था. अब ऐसा नहीं है. लड़का लड़की दोनों बराबर पढ़ रहे हैं और कमा रहे हैं. दरअसल ज्यादातर लोगों का मानना है कि महंगाई के इस जमाने में घर अच्छे से चलाने और बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए दोनों का कमाना जरूरी है.

यही वजह है कि हालात बदल रहे हैं. ज्यादातर क्षेत्रों में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं. पुरुषों के बराबर काम कर रही हैं और उनके बराबर वेतन भी मांग रही हैं. फिल्मों में हीरो-हीरोइन की फीस के बीच का अंतर अक्सर चर्चा में रहता है. ये सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं है. हर क्षेत्र में महिलाएं अपने काम के हिसाब से वेतन मांग रही हैं. यह महिलाओं के आत्मनिर्भर और स्वतंत्र जीवन के लिए मददगार है. लेकिन एक अध्ययन के मुताबिक इसका असर वैवाहिक जीवन पर पड़ रहा है.

पत्नी का ज्यादा कमाना रिश्तों में ला देता है खटास

स्वीडन में हुए एक अध्ययन के मुताबिक रिश्ते को मजबूत बनाने में सैलरी भी अहम भूमिका निभाती है. पाया गया कि पति से ज्यादा कमाने वाली पत्नियों की संख्या दुनिया भर में बढ़ रही है. अमेरिका और स्वीडन जैसे देशों में अध्ययन करने वाली टीम ने पाया कि इसका मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है. 2000 के दशक से पति से ज्यादा कमाने वाली पत्नियों की संख्या में 25% की बढ़ोतरी हुई है. डरहम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने स्वीडन में रहने वाले विपरीत लिंगी जोड़ों पर अध्ययन किया . 2021 में शादी करने वाले जोड़ों पर ध्यान केंद्रित किया गया. औसतन 37 साल के जोड़ों पर 10 साल तक अध्ययन चला. पाया गया कि जब पत्नी अपने पति से ज्यादा कमाती है तो दोनों पार्टनर खासकर पति मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करते हैं.

नतीजा यह होता है कि पत्नी से कम कमाने वाले पति नशे से जुड़ी बीमारियों का शिकार ज़्यादा होते हैं. उन के अंदर आत्मविश्वास की कमी होने लगती है. वहीं पत्नी भी तनाव में रहती है. वैसे तो आम जीवन में कमाई और मानसिक स्वास्थ्य के बीच सकारात्मक संबंध होता है. कमाई बढ़ने पर मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है. ज्यादा पैसा आने से जीवनशैली बेहतर होती है. इससे रोज़मर्रा की ज़िंदगी आसान हो जाती है. लेकिन जब सिर्फ पत्नी की कमाई को देखा जाता है तो यह नकारात्मक हो जाता है और पुरुष के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर पड़ता है. यह सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि पुरुषों की ताकत पर भी असर डालता है. जब पत्नी उनसे ज्यादा कमाने लगती है तो पुरुष मन से थकने लगते हैं. उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है. असुरक्षा की भावना उन्हें नशे की ओर धकेलती है. ऐसी महिलाओं के दिल पर क्या बीतती होगी जिन का वेतन अपने जीवनसाथी से अधिक होता है और वे अपने घर के अच्छी आर्थिक के लिए जिम्मेदार होती हैं. लेकिन ख़ुशी मनाने और इसका फायदा उठाने के बजाय उनके जीवनसाथी को इस स्थिति में रहने और खुद को संभालने में कठिनाई होने लगती है.

क्यों होता है ऐसा

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लोगों के अनुसार `कमाई सिर्फ पैसों की बात नहीं है बल्कि यह रिश्तों में ताकत की बात भी है. जब पत्नी ज्यादा कमाती है तो पति को लगता है कि उसकी अहमियत कम हो गई है या उसका आत्मविश्वास कम हो गया है. पति को लगता है कि उनकी पत्नी किसी भी समय उनसे अलग हो सकती है क्योंकि वे अब उनके लिए “अपरिहार्य” नहीं हैं. इसी वजह से वे नशीली चीजों का सहारा लेने लगते हैं. अब ऐसा नहीं है कि सिर्फ पुरुष ही परेशान रहते हैं महिलाएं भी परेशान रहती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके पति उनका उतना साथ नहीं दे रहे हैं जितना देना चाहिए. कहीं न कहीं यह सब पुरानी सोच की वजह से होता है जहां पितृसत्तात्मक मानसिकता की परछाई देखने को मिलती है.

एक और हालिया स्टडी में पति पत्नी की कमाई और तनाव का कनेक्शन सामने आया है. स्टडी के अनुसार अगर पत्नी घर की कुल आमदनी का 40 प्रतिशत से ज्यादा कमाती है तो पति तनाव में रहता है.

करीब 6 हजार अमेरिकी कपल्स पर किए गए इस रिसर्च में पाया गया कि पुरुष सबसे ज्यादा परेशान तब होते हैं जब वे घर का खर्च अकेला कमा कर चलाते हैं. अगर पत्नी भी घर खर्च का 40 प्रतिशत तक कमाती है तब पुरुष संतुष्ट होते हैं. वहीं अगर पत्नी की आमदनी घर खर्च के 40 प्रतिशत से ज्यादा हो जाए तो पति तनाव में रहने लगता है. इससे यह साफ है कि पुरुषों के घर खर्च कमाने की पारंपरिक सोच किस तरह से उनकी सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकती है. रिसर्चर्स का कहना है कि लगातार तनाव की वजह से कई और समस्याएं भी सामने आ सकती हैं. मेंटल हेल्थ का असर पुरुषों की सेहत और उनकी सोशल लाइफ पर भी पड़ता है.

सितंबर 2024 में प्रकाशित एक आईएनईडी अध्ययन से यह पता चलता है कि एक महिला जितनी अधिक अमीर होती जाती है उतना ही रोमांटिक रिश्ता कमजोर होता जाता है और वह अपनी भावनात्मक पूंजी खो देती है. उदाहरण के लिए जब कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के लिए प्रति माह 3,000 यूरो की तुलना में 2,000 यूरो कमाता है तो अलगाव का जोखिम 40% बढ़ जाता है.

मेल ईगो होता है हर्ट

दरअसल पुरुष अपने ईगो की वजह से यह बात सह ही नहीं पाते कि उनकी पत्नी उन से ज्यादा कमा रही है. अपनी पत्नी से कम वेतन पाना एक पुरुष को सबसे बड़ा अपमान लगता है. उन्हें लगता है कि पत्नी अब उन का सम्मान नहीं करेगी. दोस्तों और रिश्तेदारों की बातें भी उन्हें चुभने लगती है. उन्हें ताने मिलने लगते हैं. वे खुद को जिंदगी की दौड़ में हारा हुआ महसूस करने लगते हैं क्योंकि बचपन से उन के पुरुषवादी अहम् को तुष्ट किया जाता रहा है. अब जब पत्नी आगे बढ़ती है तो उन को अपनी मर्दानगी में कमी लगने लगती है. उन के ईगो और पितृसत्तात्मक सामाजिक सोच पर चोट लगती है. वे तिलमिला उठते हैं. यह ऐसा है मानो उनकी मर्दानगी उनके बैंक खाते और हर महीने लाए गए पैसे से मापी जाती है. जब महिलाएं पर्स की डोर पकड़ती हैं और खाते में अधिक पैसे डालती हैं तो ऐसे लोगों को अपनी मर्दानगी पर हमला महसूस होता है. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि समाज ने हमेशा उन्हें घर के मालिक की भूमिका निभाने का आदी बनाया है. ऐसे में जाहिर है जैसे ही एक महिला पति से ज्यादा अमीर बन जाती है पुरुषों का अहंकार प्रभावित होता है.

आज जब घरों में एक दो बच्चे होते हैं और मां बाप बेटियों को भी पूरी लगन से पढ़ाते हैं तो भला बेटियां अच्छी जगह जौब कर के अच्छी कमाई क्यों न करें? जब वे काबिल हैं और सक्षम भी हैं तो अपनी योग्यता के हिसाब से ऊँचे ओहदे तक क्यों न पहुंचे ? उस ने भी पढ़ाई की है , वह भी अपनी जिम्मेदारियां समझती है, उसे भी अपना वजूद साबित करना है , उसे भी नए मुकाम ढूंढने हैं. आखिर औरत को घर गृहस्थी और बच्चों की परवरिश तक सीमित रखने की साजिश कब तक होती रहेगी? आखिर एक महिला बॉस को पूरी रिस्पेक्ट देने में पुरुषों का जी क्यों जलता है? औरत के आदेशों को मानने में उन का पुरुषत्व क्यों चोट खाता है?

जरूरी है समाज की सोच बदली जाए. लड़कों को जो बचपन से बहनों का रक्षक और सब से इम्पोर्टेन्ट बना कर रखा जाता है उसे बदलना होगा. लड़कों को भी गलती होने पर डांटना होगा. उसे भी बहन या पत्नी को सॉरी कहना सीखना होगा. उसे भी बचपन से अपने काम खुद करने की आदत लगवानी होगी. लड़के कोई सुपर पावर नहीं जो उन्हें बैठे बिठाए राज गद्दी दे दी जाए. आज संपत्ति हो या और किसी भी तरह का अधिकार कानून ने स्त्री पुरुष को समान अधिकार दिए हैं. अगर कानून समान अधिकार दे सकता है तो समाज क्यों नहीं? घर परिवार में लड़के लड़कियों के बीच भेदभाव की दीवार क्यों खींची जाती है? पति को अपनी पत्नी को मारने पीटने का हक़ क्यों दिया जाता है? बचपन से इन सब पर रोक लगानी होगी और बेटे एवं बेटी को समान माहौल में परवरिश देनी होगी. तभी इस समस्या का समाधान निकल पाएगा और स्त्रियां आसमान छूने का सपना पूरा कर पाएंगी.

Family Bond : मेरी सास की रोकटोक के कारण मैं परेशान हो गई हूं…

Family Bond : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 25 वर्षीय महिला हूं. हाल ही में शादी हुई है. पति घर की इकलौती संतान हैं और सरकारी बैंक में कार्यरत हैं. घर साधनसंपन्न है. पर सब से बड़ी दिक्कत सासूमां को ले कर है. उन्हें मेरा आधुनिक कपड़े पहनना, टीवी देखना, मोबाइल पर बातें करना और यहां तक कि सोने तक पर पाबंदियां लगाना मु झे बहुत अखरता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप घर की इकलौती बहू हैं तो जाहिर है आगे चल कर आप को बड़ी जिम्मेदारियां निभानी होंगी. यह बात आप की सासूमां सम झती होंगी, इसलिए वे चाहती होंगी कि आप जल्दी अपनी जिम्मेदारी सम झ कर घर संभाल लें. बेहतर होगा कि ससुराल में सब को विश्वास में लेने की कोशिश की जाए. सासूमां को मां समान सम झेंगी, इज्जत देंगी तो जल्द ही वे भी आप से घुलमिल जाएंगी और तब वे खुद ही आप को आधुनिक कपड़े पहनने को प्रेरित कर सकती हैं.

घर का कामकाज निबटा कर टीवी देखने पर सासूमां को भी आपत्ति नहीं होगी. बेहतर यही होगा कि आप सासूमां के साथ अधिक से अधिक रहें, साथ शौपिंग करने जाएं, घर की जिम्मेदारियों को समझें, फिर देखिएगा आप दोनों एकदूसरे की पर्याय बन जाएंगी.

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अकसर देखा जाता है कि घर में सासबहू के झगड़े के बीच पुरुष बेचारे फंस जाते हैं और परिवार की खुशियां दांव पर लग जाती हैं. पर यदि रिश्तों को थोड़े प्यार और समझदारी से जिया जाए तो यही रिश्ते हमारी जिंदगी को खुशनुमा बना देते हैं.

जानिए, कुछ ऐसे टिप्स जो सासबहू के बीच बनाएं संतुलन रखेंगे.

कैसे बनें अच्छी बहू

1. मैरिज काउंसलर कमल खुराना के मुताबिक, बेटा, जो शुरू से ही मां के इतना करीब था कि उस का हर काम मां खुद करती थीं, वही शादी के बाद किसी और का होने लगता है. ऐसे में न चाहते हुए भी मां के दिल में असुरक्षा की भावना आ जाती है. आप अपनी सास की इस स्थिति को समझते हुए शुरू से ही उन से सदभाव का व्यवहार करेंगी तो यकीनन रिश्ते की बुनियाद मजबूत बनेगी.

2. बहू दूसरे घर से आती है. अचानक सास उसे बेटी की तरह प्यार करने लगे, यह सोचना गलत है. प्यार तो धीरेधीरे बढ़ता है. यदि आप धैर्य रखते हुए अपनी तरफ से सास को मां का प्यार और सम्मान देती रहेंगी, तो समय के साथ सास के मन में भी आप के लिए प्यार गहरा होता जाएगा.

3. सास के साथ कम्यूनिकेशन बनाए रखें. नाराज होने पर भी बातचीत बंद न करें.

4. यदि आप से कोई गलती हुई है, आप ने सास के प्रति गलत व्यवहार किया है या कोई काम गलत हो गया है तो सहजता से उसे स्वीकार करते हुए सौरी कह दें.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

रेड कार्पेट पर ट्रेंड में है स्टेटमेंट कोट फैशन, Sonam Kapoor के बाद सेलिब्रिटी Rick Roy भी किए फौलो

Sonam Kapoor : हाल ही में कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियों को बड़े और बोल्ड स्टेटमेंट कोट पहने देखा गया है, जो इस सर्दी के मौसम में एक प्रमुख ट्रेंड बन चुका है. ऐक्ट्रैस सोनम कपूर को पिछले हफ्ते एक इवेंट में यह ट्रेंड अपनाते देखा गया था, और इस हफ्ते सेलिब्रिटी डिजाइनर और स्टाइलिस्ट रिक राय भी एक अन्य इवेंट में इसी ट्रेंड को फौलो करते नजर आए. उन्होंने एक बड़ा और बोल्ड स्टेटमेंट कोट पहना था.

फैशन की दुनिया ट्रेंडसेटर

रिक राय हाल ही में फैशन की दुनिया में एक ट्रेंडसेटर बनकर उभरे हैं और हर रेड कार्पेट पर अपनी अनोखी स्टाइल से सुर्खियां बटोर रहे हैं. उनका फैशन सेंस अनोखा और रोमांचक होने के साथसाथ गहराई भी लिए हुए है. वह रीसायकल और री-यूज़ की फिलौसफी में विश्वास रखते हैं. रिक कहते हैं, “फैशन को रोमांचक और खुशियों से भरपूर होना चाहिए, लेकिन यह व्यर्थ नहीं होना चाहिए.”

रेड कार्पेट पर फैशन के नए आयाम

ऐसा कहा जा सकता है कि भारत में बड़े कोट का ट्रेंड आधिकारिक रूप से वापस आ गया है. रिक रॉय, जिन्होंने अक्षय कुमार, मलाइका अरोड़ा, विद्या बालन, सोनम कपूर, इमरान हाशमी, सोनाक्षी सिन्हा और अब इब्राहिम अली खान जैसे कई सेलेब्रिटीज के साथ काम किया है, न केवल फिल्मों में दिलचस्प किरदारों के लुक्स क्रिएट कर रहे हैं, बल्कि रेड कार्पेट पर भी फैशन के नए आया स्थापित कर रहे हैं.

59 की उम्र में Aamir Khan को फिर से हो गया प्यार, ऐक्टर कर सकते हैं तीसरी शादी?

Aamir Khan : कई लोगों का मानना है कि सच्चा प्यार जिंदगी में सिर्फ एक बार होता है और एक उम्र के बाद किसी लड़की से प्यार करने की भावना तो हमेशा के लिए दम तोड़ देती है. लेकिन इस बात को आमिर खान ने पूरी तरह झूठला दिया है. वह आज भी इसी बात को फौलो करते हैं कि दिल है कि मानता नहीं बारबार प्यार कर बैठता है.  वैसे देखा जाए तो प्यार करना कोई गलत बात नहीं है नफरत करना जरूर गलत है.

आमिर खान (Aamir Khan) ने अपनी जिंदगी में भले ही दो शादियां की दो तलाक दिए. लेकिन दोनों ही पत्नी से उन्होंने कभी भी नफरत नहीं की. किरण राव और आमिर खान के तलाक के बाद भी अच्छे रिश्ते बने हुए हैं. आमिर के अनुसार उन्होंने किरण को तलाक दिया ही इसलिए क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि अलग विचार होने की वजह से उनके बीच दोस्ती का रिश्ता भी ना रहे.

लिहाजा भले ही आमिर खान और किरण राव पति पत्नी नहीं है. लेकिन अच्छे दोस्त आज भी हैं. अपने प्यार की गाड़ी को आगे बढ़ाते हुए आमिर खान ने तीसरी बार फिर से प्यार कर लिया है. 59 की उम्र में रिपोर्ट्स के अनुसार आमिर खान की जिंदगी में फिर से प्यार की दस्तक हो गई है आमिर खान जिसके प्यार में पड़ चुके हैं वह बेंगलुरु की रहने वाली है आमिर ने उनको अपने परिवार से भी मिलाया है भले ही आमिर खान ने औफीशियली इस रिलेशनशिप को स्वीकार नहीं किया है लेकिन खबरों के अनुसार आमिर खान एक मिस्ट्री गर्ल के साथ सीरियस रिलेशनशिप में है.

आमिर खान इस लड़की के साथ शादी करेंगे या नहीं यह तो अभी सस्पेंस है. लेकिन इस लेडी लव को आमिर खान ने अपने पूरे परिवार से इंट्रोड्यूस करवाया है. आमिर की पहली शादी 1986 में रीना दत्ता के साथ हुई थी और उसके बाद 2005 में किरण राव के साथ दूसरी शादी हुई. आमिर की दोनों ही बीवियां उनसे अलग हो गई लेकिन बावजूद इसके आमिर खान ने हार नहीं मानी और तीसरी शादी की तैयारी में है.

हाल ही में आमिर खान की बेटी की भी शादी हुई थी. जिस वक्त वह पूरी तरह से ससुर का रोल निभा रहे थे. लेकिन ये किसी को नहीं पता था कि बेटी की शादी के बाद पिता आमिर खान तीसरी शादी भी कर सकते हैं. आमिर ने लोगों को एक बात तो सीखा सकते हैं कि उम्र कोई मायने में रखती बस दिल जवान होना चाहिए.

Emotional Story : मां की खुशबू

Emotional Story : ट्रिन…ट्रिन…ट्रिन…

प्रिया ने फोन उठाया, उधर सुशीला बूआ थीं.

‘‘हैलो बूआ, इतनी रात में फोन किया, कुछ खास बात है क्या?’’

‘‘खास ही है प्रिया, तुम से तो बताने में भी डर लग रहा है.’’

‘‘बूआ, पहेलियां मत बुझाओ, साफसाफ बताओ क्या हुआ?’’

वह घबरा कर बोली.

‘‘प्रिया, अभीअभी बनारस से उमा जीजी का फोन आया था, कह रही थीं कि बड़े भैया ने ब्याह कर लिया है.’’

‘‘क्या…’’

‘‘जीजी ने ही किसी तलाकशुदा से रिश्ता करवाया है.’’

सुनते ही प्रिया के हाथ से रिसीवर छूट गया. वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई. उसे शर्म भी आ रही थी. सास, जेठानी और ननदें सभी उस का मजाक बनाएंगी. वह किसी को अपना मुंह कैसे दिखाएगी. प्रपुंज से कैसे कहेगी कि पापा ने शादी कर ली है. वह अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रही थी.

अपनी शादी के समय भी बड़ी बूआ पर वह कितनी जोर से नाराज हो उठी थी जब उन्होंने कहा था, ‘अब रघुनाथ के लिए बड़ी मुश्किल आ जाएगी, उस का तो जीना भी दूभर हो जाएगा. उसे दूसरी शादी कर लेनी चाहिए.’

उसे याद आने लगा जब वह आगरा जाती थी तो कितने हक से मां के सारे सामान को सहेजती थी. पापा कहते भी थे, ‘अब इन्हें सहेजने का क्या फायदा? कौन सा जानकी अब दोबारा लौट कर आने वाली है? बिटिया, तुम्हें जो भी चाहिए वह तुम ले जाओ.’

‘नहीं पापा, प्रपुंज मेरा खयाल रखते हैं. मुझे ससुराल में बहुत आराम है. किसी चीज की कोई कमी नहीं है,’ वह कहती फिर भी आते समय पापा रुपयों की गड्डी उस की मुट्ठी में बंद कर देते थे. उस की शादी में भी पापा ने दिल खोल कर खर्च किया था. सिर से पैर तक जेवर दिए थे. उसे सबकुछ दिलवाया था.

अपनी शादी में प्रिया रोतेरोते विदा के समय बेहोश हो गई थी. ससुराल वाले भी परेशान हो गए थे कि कैसी लड़की उन के घर आ रही है? वह ससुराल जरूर आ गई थी परंतु मन उस का वहीं रहता था. वह सोचती थी कि उस के 2 नेत्रहीन विकलांग जवान भाई पापा के लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी हैं. अभी तक तो उस के कारण पापा, घर और भाइयों की तरफ से बिलकुल निश्ंिचत थे. अब तो घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी उन्हीं की होगी.

आमतौर पर दिन में 2-3 बार पापा से बात करे बिना वह नहीं रह पाती थी. पापा ने तो हवा भी नहीं लगने दी. कल ही तो बात हुई थी, यह तो बताया था कि उमा बूआ के यहां जरूरी काम से जा रहे हैं पर इतनी बड़ी बात छिपा गए. यह सोच कर वह खीज उठी और उस के आंसू निकल आए. रोतेरोते उसे अपनी मां की बातें याद आने लगीं.

छुटपन में प्यार से कहानी सुनाती हुई वे एकएक कौर उसे मुंह में खिलाती थीं. कितने प्यार भरे अच्छे दिन थे वे.

प्रपुंज के आने की आहट से वह चौंक गई. उस की ओर देखते हुए वे बोले, ‘‘क्या हुआ? बड़ी उदास लग रही हो, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’ प्रिया अपने को रोक न सकी. वह प्रपुंज से लिपट कर फफक पड़ी. प्रपुंज उसे चुप कराने का प्रयास कर रहे थे परंतु प्रिया की सिसकी रुक ही नहीं रही थी. काफी देर के बाद वह बोली, ‘‘प्रपुंज, पापा ने शादी कर ली है.’’

प्रपुंज आश्चर्य से बोले, ‘‘क्या? पापा को इस बुढ़ापे में क्या सूझी… प्रिया? पापा ने दूल्हा बनते समय बालों में डाई लगा ली होगी न, सफेद बालों में पापा दूल्हा बन कर कैसे लग रहे होंगे.’’

प्रिया फिर से सिसकने लगी.

‘‘छोड़ो यार, आओ हम दोनों भी पापा की शादी की खुशी मनाएं,’’ प्रपुंज ने माहौल थोड़ा हलका करने का प्रयास किया.

क्रोधित हो कर प्रिया पैर पटकती हुई कमरे से बाहर चली गई. काफी वादविवाद के बाद दोनों में तय हुआ कि वे पापा से सारे संबंध तोड़ लेंगे.

रात को सोते समय भी प्रिया सोचने लगी. महीने भर पहले ही तो वह चचेरी बहन रोली की शादी में गई थी, तो तभी बड़ी बूआ कह रही थीं, ‘भैया की जिंदगी में तो मुसीबत ही मुसीबत है. घरवाली के बिना घर सूना है. कोई थाली परोसने वाला तो चाहिए ही.’

सुनते ही प्रिया नाराज हो उठी थी, ‘आप कहना क्या चाह रही हैं? पापा क्या इस उम्र में शादी करेंगे?’

बूआ बोलीं, ‘तो क्या हुआ? आगे की जिंदगी आसान हो जाएगी, लड़कों को भी तो कोई देखभाल करने वाला चाहिए.’

उन का इशारा उस के नेत्रहीन विकलांग जवान भाइयों की ओर था. वह क्रोध से तिलमिलाती हुई पापा के पास पहुंची थी. सारी बात जान कर पापा ने उसे अपने पास बिठाया, प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा, परंतु उस की बात का कोई उत्तर नहीं दिया. उन की चुप्पी उसे चुभ गई थी. वह पापा से नाराज हो गई थी. प्रपुंज ने उस से रास्ते में कई बार पूछा भी कि वह क्यों नाराज है? लेकिन वह क्या बताती? वह गुमसुम हो गई थी. फिर भी उसे विश्वास था कि पापा ऐसा नहीं कर सकते.

लेकिन प्रश्न तो यह है कि अब यह बात वह सब को कैसे बताएगी, इसी उधेड़बुन में सुबह हो गई.

प्रिया संयुक्त परिवार में रहती थी. सास से उसे मां का प्यार मिला था. जेठानी रीता भाभी से भी उस की पटती थी. हां, बच्चों के कारण कभी- कभी आपस में खींचतान हो जाती थी. पापा जो सामान उसे देते थे उस को देख कर भाभी को ईर्ष्या अवश्य होती थी परंतु वे उस को चेहरे या व्यवहार पर नहीं आने देती, यह बात प्रिया जानती थी. रीता भाभी का मायका संपन्न नहीं था, जबकि प्रिया अपने पापा के पैसे पर थोड़ा घमंड भी करती थी. सब से ज्यादा चिंता उसे यह थी कि अब रीता भाभी उस के पापा का मजाक उड़ाएंगी.

वह उठी, नहाधो कर किचन में गई. वहां उस की सास शकुंतलाजी प्रिया के उतरे हुए चेहरे को देखते ही समझ गईं, कहीं कुछ गड़बड़ है. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या बात है, बहू? क्या तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है? तुम कमरे में जा कर आराम करो, मैं चाय बना कर तुम्हारे कमरे में भेज देती हूं.’’

‘‘नहीं, मां, मैं एकदम ठीक हूं,’’ उस ने कहा. जेठानी रीता भाभी ने भी कई बार जानने का प्रयास किया पर वह कुछ न बोली.

पलपल में ठहाके लगाने वाली प्रिया का रोना सा चेहरा घर में सभी को परेशान कर रहा था.

शकुंतलाजी ने प्रपुंज से भी पूछा, ‘‘प्रिया क्यों परेशान है? क्या तुम से झगड़ा हुआ है?’’

‘‘नहीं, मां,’’ प्रपुंज ने सकुचाते हुए बताया, ‘‘मां, आप किसी से मत कहना, उस के पापा ने दूसरी शादी कर ली है इसलिए प्रिया का मूड बहुत खराब है. वह अपने पापा से बहुत नाराज है.

‘‘मां, देखिए जरा, 60 साल की उम्र में सारे बाल सफेद हो चुके हैं, अब उन्हें शादी करने की सूझी?’’ प्रपुंज बोला.

शकुंतलाजी सुलझी हुई समझदार प्रौढ़ा थीं. वे सोचने लगीं तो उन्हें रघुनाथजी का निर्णय सही लगा, साथ ही प्रिया का क्रोध एवं अवसाद स्वाभाविक लगा. प्रपुंज के जाने के बाद उन्होंने स्वयं अपने हाथों से चाय बनाई. प्लेट में गरमागरम आलू के परांठे रखे. यह प्रिया का पसंदीदा नाश्ता था. वे स्वयं नाश्ता ले कर प्रिया के कमरे में पहुंचीं. प्रिया उदास लेटी थी. उन्हें देखते ही हड़बड़ा कर उठ बैठी.

उस की सूजी हुई लाल आंखें उस के मन का हाल बता रही थीं.

शकुंतलाजी बोलीं, ‘‘लो, पहले नाश्ता करो. फिर बात करेंगे.’’

प्रिया उन के आग्रह को ठुकरा न सकी. उस ने चुपचाप सिर झुका कर नाश्ता कर लिया. वह जब से ससुराल आई थी, सास से उस को मां का प्यार मिला था. निश्छल प्रिया अपने दिल की हर बात शकुंतलाजी से कह देती थी. जब वह नाश्ता कर चुकी तो उन्होंने उस से पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

प्रिया अपने को संभाल न पाई. वह फूटफूट कर रोने लगी. सिसकती हुई वह बोली, ‘‘मां, पापा ने शादी कर ली है.’’

शकुंतलाजी ने उसे गले से लगा लिया और प्यार से उस का सिर सहलाया. फिर बोलीं, ‘‘बेटी, धीरज रखो, यदि पापा ने शादी कर ली है तो तुम दुखी क्यों हो? तुम्हें तो खुश होना चाहिए. अपने पापा की स्थिति को समझने की कोशिश करो.

‘‘तुम्हारे पापा की ढलती उम्र है. उन के ऊपर तुम्हारे 2 नेत्रहीन विकलांग जवान भाइयों की जिम्मेदारी है, जो स्वयं कुछ भी करने लायक नहीं हैं. तुम स्वयं सोचो उन को वे किस तरह संभालेंगे. तुम ने मुझे कई बार बताया है कि आया सामान चुरा कर ले जाती है, अकसर छुट्टी भी कर लेती है इसलिए पापा को ब्रैड खा कर गुजारा करना पड़ता है. कभीकभी तो भूखे भी सो जाते हैं, कभी कच्चापक्का पका कर भाइयों को खिला देते हैं, कभी दूध पी कर ही सो जाते हैं. इन सब से छुटकारा पाने का इस से अच्छा उपाय हो ही नहीं सकता.

‘‘तुम्हारा क्रोध उचित है, यदि मैं तुम्हारी जगह होती तो शायद मेरी भी यही प्रतिक्रिया होती. परंतु बेटी, बचपना छोड़ो. अपने मन पर नियंत्रण रखो. क्रोध एवं पश्चात्ताप की कोई आवश्यकता ही नहीं है. तुम्हारे पिता ने तुम्हारे प्रति सारे कर्तव्य पूरे किए हैं. उन्हें अपनी तरह से जीने दो. शांत मन से विचार करो,’’ वे उसे तरहतरह से समझाती रहीं.

प्रिया के मन की क्रोध रूपी धूल थोड़ी साफ होने लगी थी. थकी हुई प्रिया को झपकी लग गई थी. उस ने स्वप्न में देखा कि मम्मी उस के सिर पर प्यार से हाथ फेर रही हैं, उस के आंसू पोंछ रही हैं.

वह चौंक कर उठ बैठी. अपने मन के बोझ को वह थोड़ा हलका महसूस कर रही थी. वह नीचे जा कर गृहस्थी के कामों में लग गई. पर अब वह उदास और गंभीर रहने लगी थी. बातबात में खिलखिलाने वाली प्रिया घरवालों से खिंचीखिंची रहती थी. बच्चों से भी ज्यादा बात नहीं करती थी. रीता भाभी ने उसे बड़े प्यार से समझाया, ‘‘प्रिया, तुम्हारी बूआ ने तो तुम्हारा बोझ हलका किया है. अब तुम्हें हर समय परेशान रहने की जरूरत नहीं है. तुम्हारे पापा और भाइयों की देखभाल करने वाला वहां कोई है. इस के लिए तुम्हें स्वयं पहल एवं प्रयास करना चाहिए था. खैर, अब अपने पापा से सामान्य रूप से बात करो. अपनी नई मां से मिलने जाओ. जो हो रहा है या हो चुका है उसे स्वीकार करो, इस के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है.’’

रीता भाभी की बातें उसे अच्छी तो लगीं परंतु वह पापा से बात करने का मन न बना सकी.

एक हफ्ते के बाद सुशीला बूआ उस से मिलने आईं. वह उन को देखते ही लिपट कर गले मिली. उस की आंखें भर आई थीं.

सुशीला बूआ से उस की बचपन से पटती थी. मां के देहांत के बाद उन्होंने ही उसे संभाला था. 2-3 महीने अपना घरद्वार छोड़ कर उस के साथ रही थीं. उस को प्यार से समझाती रहती थीं. उन की गोद में सिर रख कर वह घंटों आंसू बहाती रहती थी. बूआ ने ही उस की हिम्मत बंधाई थी, उसे जीना सिखाया था. सब से अधिक तो बूआ की इसलिए भी एहसानमंद है क्योंकि उन्होंने ही उस का रिश्ता प्रपुंज से करवाया था. उन से वह घंटों फोन पर बात करती थी, दिल की सारी बातें कह देती थी. घर भी पास में ही था इसलिए जबतब वह उन के घर भी जाती रहती थी.

‘‘अरे, पगली, क्या हुआ? तुम्हें तो खुश होना चाहिए. कल बड़े भैया का फोन आया था, कह रहे थे कि प्रिया से कैसे बात करूं, वह मुझ से बहुत नाराज है. बचपन से ही वह जिद्दी है.’’

‘‘और क्या कह रहे थे पापा?’’

‘‘बस, तुम सब के बारे में पूछ रहे थे, मुझ से बोले कि तुम प्रिया से मिल आओ. सब के हालचाल ले आओ. प्रिया को समझाने की कोशिश करो, वह अपना गुस्सा छोड़ दे,’’ बूआ ने बताया.

कुछ देर बैठ कर बूआ अपने घर लौट गईं. धीरेधीरे प्रिया ने अपने मन को समझा लिया. पापा की शादी की बात मन से निकाल अपनी गृहस्थी में रम गई थी.

लगभग 3 महीने हो चुके थे. न तो पापा का फोन उस के पास आया था न उस ने खुद किया था. वह उन्हें याद तो हर पल करती थी परंतु उस की जिद बापबेटी के बीच में बाधा बनी हुई थी.

एक दिन अचानक बड़ी बूआ उस के घर उस से मिलने आईं. मन ही मन वह बूआ से नाराज थी. उन्हें देख कर सोचा, सारा कियाधरा तो इन्हीं का है, अब आई हैं प्यार जताने को. बूआ उस के लिए बहुत सारा सामान लाई थीं.

प्रिया ने देखा, गोलू के लिए सुंदर सी ड्रैस थी. प्रपुंज के लिए भी शर्ट थी. उस के लिए साड़ी थी. एक पेटी आम की थी. घर के बने मेवे के लड्डू और मठरी. वह हैरानी से सब सामान देख रही थी. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह सब बूआ लाई हैं.

आज बूआ इतना लाड़ क्यों दिखा रही हैं? वह बूआ से पूछना चाह रही थी. अचानक ही उस की निगाह उस थैले पर पड़ गई जिस में से बूआ ने लड्डूमठरी का डब्बा निकाला था. क्षण भर में ही वह सब समझ गई. यह थैला वही है जिसे ले कर पापा हमेशा बाजार जाते थे. इस थैले में तो पापा की महक बसी थी, भला वह कैसे भूल सकती थी. उस के मुंह से अनायास निकल पड़ा, ‘‘बूआ, क्या पापा आए हैं?’’

‘‘हां, बिटिया, तुम्हारे सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. ये सब चीजें तो तुम्हारी नई मां ने ही तुम्हारे लिए भेजी हैं. तुम्हारे पापा तो तुम से मिलने के लिए तड़प रहे हैं.’’

मांपापा बाहर गाड़ी में ही थे. वह दौड़ कर नीचे गई. उसे देख पापा बोले, ‘‘बेटी, मुझे माफ कर दो, मैं ने तुम्हारी मां की जगह किसी और को दे दी है.’’

यह सुन प्रिया का क्रोध आंसुओं की धारा बन कर बहने लगा. वह भरे हुए गले से बोली, ‘‘नई मां कहां हैं? इस लड्डूमठरी से तो मेरी मां की खुशबू आ रही है.’’

सबकुछ भूल कर वह मां के गले से लिपट गई.

Short Story In Hindi : मेरे ससुर का श्राद्ध

Short Story In Hindi :  जब थकहार कर मैं अपने घर पहुंचा तो पत्नीजी ने गरमागरम पकौड़ों के साथ कौफी का प्याला हाथ में रख दिया. मुझे उन गरम पकौड़ों में कोई साजिश और चाय की जगह दी जा रही कौफी में स्लो पौयजन का अनुभव हुआ. शादी के 10 बरसों में जिस ने कभी पति के घर लौटने पर हंस कर स्वागत नहीं किया हो वह यदि नाश्ते के साथ सवा सेर की मुसकान चेहरे पर ले आए तो यकीन मानिए कि कोई न कोई साजिश रची होनी चाहिए. मैं ने कांपते मन से पकौड़ा उठाया, कौफी के साथ मुंह में डाला और विचार कर ही रहा था कि पत्नीजी अब अणु बम के रूप में कोई मांग हमारे ऊपर फेंकने वाली हैं, लेकिन हमारा अंदाज गलत साबित हुआ. उन्होंने कुछ भी मांग नहीं रखी और पास बैठी किसी नवयौवना चिडि़या की तरह फुदकती रहीं. हमारा मन अभी भी शंकाकुशंका से दूर नहीं हो पाया था.

रात भोजन में 3 तरह का मीठा और 4 तरह की सब्जियां बनी थीं. चावलदाल अतिरिक्त थे. शायद अब कुछ कहे, लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं मांगा. हमारे जीवन में ऐसा पहली बार हुआ था. रात हमें नींद नहीं आ रही थी, न जाने पत्नीजी के व्यवहार में ऐसा परिवर्तन क्यों और कहां से आ गया? मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि किसी के व्यवहार में अचानक परिवर्तन आ जाने का मतलब है कि उस की मृत्यु निकट है. तो क्या हमारी एकमात्र पत्नी जाने वाली है? सोच कर हमारी आंखें भर आईं. हम ने सोचा, उन्हें गले लगा कर जी भर कर रो लें लेकिन उन का साइज ऐसा था कि हिम्मत नहीं पड़ी.

वे किचन का काम निबटा कर हमारे बगल में आ कर बैठ गईं और तोप छोड़ती हुई बोलीं, ‘‘मैं ने तुम्हारा सामान भी जमा दिया है.’’

‘‘मेरा सामान जमा दिया है? मैं कहां जा रहा हूं?’’ हम ने किसी उल्लू की तरह देखते हुए प्रश्न किया.

‘‘तुम्हें मालूम नहीं क्या? बरस भर से कह रही हूं…’’ उन्होंने तनिक नाराजगी से कहा.

‘‘भूल गया हूं. दोबारा बता दो भाई,’’ हम ने विनम्रता से निवेदन किया.

‘‘बापू का श्राद्ध है. पूरा बरस बीत गया है,’’ कहतेकहते उन की आंखों से घडि़याली आंसू बहने लगे.

‘‘ओह, बापूजी का श्राद्ध है. हम तो भूल ही गए थे. कब निकलना है?’’

‘‘सुबह 6 बजे की बस है, फिर थोड़ा गांव तक पैदल भी जाना होगा,’’ उन्होंने बताया.

‘‘मैं औफिस में अभी फोन कर के छुट्टी को कह देता हूं,’’ पत्नीजी को खुश करने के उद्देश्य से मैं ने कहा.

वे खुश हो गईं. उन्होंने प्यार से हमारे सिर पर चुंबन लिया. उन्हें कोई दिक्कत भी नहीं हुई होगी क्योंकि वहां बाल बचे ही कहां थे. हवाई पट्टी की तरह चिकनी खोपड़ी जो हो चुकी थी.

सुबह वे जल्दी उठ गईं. हमें भी उठाया. हम आटोरिकशा ले आए. बस स्टैंड पर पहुंचे और बस में बैठ कर ससुराल के लिए निकल पड़े. पूरे रास्ते हम सोचते रहे कि क्यों इतने सुदूर गांव में हमारे ससुरजी ने इस कुकन्या को जन्म दिया? मरने के बाद भी हमें चैन से नहीं जीने दे रहे हैं. इतनी बेकार सड़क पर गाड़ी हिचकोले लेते चल रही थी, पता नहीं कब हम से साक्षात बातें करने के लिए ससुरजी ड्राइवर से साजिश कर के हमें बुला लें.

आखिर दोपहर तक हम ससुराल पहुंच गए. एकमात्र सास ने हमारी ओर कम अपनी कन्या की ओर अधिक ध्यान दिया. हमें एक कमरे में बैठा दिया गया था.

अगले दिन श्राद्ध का कार्यक्रम था. गांव से कुछ लोग अगले दिन आ गए थे. वहीं रिश्तेदार भी माल खाने के लिए आ धमके थे. भोजन की लिस्ट 7 दिन पूर्व बन चुकी थी. रात में ही बनाने वाले आ गए थे. पत्नीजी और दोनों साले खाना बनवाने के लिए निर्देश दे रहे थे. श्राद्ध कम, किसी की शादी का आयोजन अधिक लग रहा था. पकवानों की महक चारों ओर फैल रही थी. हम भी श्राद्ध के चलते बड़े गंभीर बने हुए थे.

उधर पत्नी और उन की भाभियां सोलहशृंगार कर के स्वर्ण आभूषणों से लदी थीं. ऐसा लग रहा था जैसे वहां श्राद्ध न हो कर फैशन शो हो रहा हो. सास ने भी रेशम की सफेद साड़ी और असली सफेद मोती की माला व उसी से मेल खाते अन्य जेवर धारण कर रखे थे. आईब्रो और फेशियल, हेयर कलर वे 2-3 दिन पूर्व ही करा चुकी थीं. सच कहूं, हमें अपनी पत्नीजी सास के सामने बूढ़ी लग रही थीं और सास को ससुरजी देख लेते तो पुन:विवाह का प्रस्ताव रख देते.

कार्यक्रम स्थल पर ससुरजी का फोटो रखा था. गांव, महल्ले वाले बेशर्म, गेंदे के फूलों को ला कर उन की तसवीर पर चढ़ा रहे थे. थोड़ी देर बाद पंडितजी आ गए. उन्होंने न जाने क्याक्या मंगाई गई सामग्रियों को रखा, होमहवन के बाद पूजा की. पूजा की थाली में सब ने चंदा डाला. इस सब क्रियाकर्म को करतेकरते 1 बज गया था. सब को भूख लग आई थी. पंडितजी ने सास को आदेश दिया कि कौए, गाय, कुत्ते के लिए भोजन की थालियां सजाओ, पितृपक्ष में सब आ कर प्रसाद ग्रहण करेंगे. पत्नीजी ने 3 थालियों को सजा दिया था. पंडितजी ने थालियों की पूजा की और आदेश दिया कि इसे बाहर रख दिया जाए, जब कौआ प्रसाद ग्रहण कर लेगा तब भोजन प्रारंभ होगा.

थाली सजा कर रखी गई थी. कौए को आने में समय भी नहीं लगा क्योंकि दूर एक मरा हुआ जानवर पड़ा था, जिस के मांसचमड़ी का भोजन करतेकरते वह थक गया था, शायद इसीलिए टैस्ट बदलने के लिए आ गया. हम ने वहां खड़े एक व्यक्ति से प्रश्न किया, ‘‘यह कौआ कौन है?’’

‘‘मृत आत्मा इस में रहती है.’’

‘‘यानी पहलवान सिंह ठामरूलाल की आत्मा इस में है?’’ हम ने ससुरजी का नाम ले कर प्रश्न किया.

‘‘बिलकुल, 100 प्रतिशत,’’ उस ने समर्थन किया.

‘‘तो क्या भैया, यह कुछ देर पहले मरा जानवर खाने वाला कौआ हमारे ससुरजी हैं?’’ उस ने क्रोध से हमें देखा और चुप रहने का इशारा किया.

दूसरी थाली कुत्ते के लिए थी. वहां कुत्ता तो नहीं आया, एक कुतिया जरूर आई. हम ने मन ही मन विचार किया, ‘ससुरजी का लिंग परिवर्तन हो गया जो कुतिया का रूप धारण कर लिया.’ सब रिश्तेदार खुश थे कि मृत आत्मा धड़ाधड़ प्रसाद ग्रहण कर रही है.

तीसरा चढ़ावा गाय का था. थाली रख दी गई, गाय को खोजा जाने लगा. गाय न थी, न आ रही थी. सब रिश्तेदार प्रतीक्षा कर रहे थे. बाहर थाली परोस कर रख दी गई थी. थोड़ी देर में छोटा साला दौड़ता हुआ अंदर आया, ‘‘मम्मीजीमम्मीजी.’’

‘‘क्या हुआ?’’ हम ने प्रश्न किया.

‘‘बाहर, थाली के पास…’’

‘‘क्या हुआ? क्या गाय ने भी प्रसाद ग्रहण कर लिया?’’ हम ने प्रश्न किया.

‘‘नहीं, जीजाजी,’’ उस ने ठहर कर कहा.

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘वहां गाय की जगह एक गधा आ कर थाली का प्रसाद ग्रहण कर रहा है.’’

‘‘ऐं,’’ बरबस हमारे मुंह से निकला. बाहर दौड़ लगाई, सच में थाली में रखे गुलाबजामुन, रसगुल्लों को गधा फटाफट निबटा रहा था. पंडितजी ने घड़ी देखी और कहा, ‘‘कोई बात नहीं यजमान,

चार पांव वाला कोई भी जीव ग्रहण कर सकता है.’’

सासूजी बड़ी लजाते, शर्माते हुए जवान गधे को देख रही थीं.

हम समझ गए थे, हमारे ससुरजी गधा बन कर आए हुए हैं. अगर वे गधे नहीं होते तो ऐसी बुद्धिहंता स्त्री से विवाह कर के कन्या को जनम नहीं देते जो हमारे गले पड़ी हुई है. हम ने कहा कुछ नहीं. शर्माती, अपनी सास को देख रहे थे जो गधे को थाली खाली करते हुए देख रही थीं.

गधे कभी एहसानफरामोश नहीं होते हैं. भरपेट खा कर उस ने तत्काल वहीं लीद भी कर दी. हमारी सास और पत्नीजी लीद देख कर धन्यधन्य हो गईं.

हिंदू संस्कृति के प्रति हमारे मन में जो थोड़ीबहुत श्रद्धा थी वह भी समाप्त हो गई थी. गधे के भोजनोपरांत सब को भोजन करने की परमिशन पंडितजी ने दे दी और सब खाने पर टूट पड़े. पंडितजी बहुत सा खाना, पैसे, कपड़े बांध कर चलते बने. इस तरह हमारी पत्नीजी प्रेम, श्रद्धा के साथ पिताश्री का श्राद्ध कर हमारे साथ लौटीं. हम आज तक सोच नहीं पाए कि हमारे ससुरजी क्या थे, कौआ, कुतिया या गधा?

इस का उत्तर तो उन की पत्नी यानी हमारी सास ही बता सकती हैं. हम तो कुछ बोल कर घर की शांति बरबाद करना नहीं चाहते हैं.

Hindi Kahani : बृज की बीवी को सांवली ने कैसे सिखाया सबक?

Hindi Kahani :  यह-कहानी शुरू होती है एक साधारण सी लड़की से, जिसे शायद कुदरत रंगरूप देना भूल गई थी, या फिर यों कहिए कि कुदरत ने उस साधारण लड़की में कुछ असाधारण गुण जड़ दिए थे जो वक्त के साथ उभरते और निखरते रहे.

3 बहनों में दूसरे नंबर की सांवली का नाम शायद उस के मातापिता ने उस के रंग के कारण ही रखा था. एक तो सांवली ऊपर से दांत भी बाहर निकले हुए, एक नजर में कुरूपता की निशानी. बड़ी और छोटी बहनें गजब की खूबसूरत थीं.

दोनों बहनों में जैसे एक बदनुमा दाग की तरह दिखने वाली, मातपिता की सहानुभूति, रिश्तेदारों, परिचितों से मिली उपेक्षा ने सांवली में एक अद्भुत स्वरूप को उकेरना शुरू कर दिया था. वह था स्वयं से प्यार. बचपन से ही अंतर्मुखी सांवली का दिमाग उम्र से ज्यादा तेज था. छोटीमोटी उलझनों को चुटकी में सुलझा देना उस के नैसर्गिक गुणों से शुमार था. जहां एक ओर उस की दोनों बहनें घरघर खेलतीं, सजतींसंवरतीं, वहीं सांवली गणित के सवालों को हल करती दिखती. वक्त के साथ तीनों जवान हो गईं. सांवली पढ़ाई में हमेशा अव्वल रही. बहनों की खूबसूरती और निखर गई, सांवली अपना संसार बुनती रही, जहां उस के अपने सपने थे. अपने दम पर खुद को सिर्फ खुद के लिए साबित करना, उस की प्रतियोगिता किसी और से नहीं, स्वयं से थी. जूडो और बौक्सिंग उस के पसंदीदा खेल थे. स्कूल और कालेज स्तरीय कई प्रतियोगिताओं के मैडल उस ने अपने नाम कर लिए थे.

मातापिता को चिंता खाए जा रही थी कि तीनों का विवाह करना है और खासकर सांवली को ले कर चिंतित रहते थे कि कैसे होगा इस का विवाह, कौन इसे पसंद करेगा, ज्यादा दहेज देने की हैसियत नहीं है, क्या होगा? लेकिन सांवली इन सब बातों से बेफिक्र थी, उस की डिक्शनरी में अभी विवाह नाम का कोई शब्द नहीं था. उस ने तो ठान लिया था कि मरुस्थल में फूल खिलाना है.

‘‘पता नहीं, रिद्धिमा के पापा ने लड़के वालों से बात की होगी या नहीं?’’ सांवली की मां मालती ने अपनी सासुमां गिरिजा देवी से कहा.

‘‘अब तो आता ही होगा, आ कर बताएगा कि क्या बात हुई, फिक्र क्यों करती हो,’’ गिरिजा देवी ने कहा.

‘‘अम्मां, 3 जवान लड़कियां छाती पर बैठी हों तो फिक्र तो होती ही है,’’ मालती बोली.

‘‘अरे रिद्धिमा तो खूबसूरत है, निबट ही जाएगी, फिक्र तो सांवली की रहती है, इस का क्या होगा,’’ गिरिजा देवी माथे पर हाथ रखती हुई बोलीं.

‘‘हमारी फिक्र न करो दादी, हमारा लक्ष्य सिर्फ शादी नहीं है, हम तो वे करेंगे जो कोई दूसरा नहीं करता,’’ सांवली ने तपाक से कहा.

‘‘क्या मतलब, क्या तू लड़की नहीं है, लड़की की जात को चूल्हाचौका ही सुहाता है, समझी,’’ दादी ने आंखें तरेर कर कहा.

‘‘हां दादी, मैं तो समझी, पर आप नहीं समझीं,’’ कह सांवली हंस पड़ी.

तभी सांवली के पिता बलरामजी के खखारने की आवाज सुनाई दी.

‘‘अरी जा, देख पापा आ गए,’’ मालती ने सांवली से कहा और खुद भी दरवाजे की ओर दौड़ी.

मां पानी का गिलास ले आईं, बोलीं, ‘‘बताओ, लड़के वालों से क्या बात हुई आप की?’’

‘‘हां, परसों आ रहे हैं, समीक्षा को देखने,’’ बदलेव सिंह सोफे पर बैठते हुए बोले.

‘‘कौनकौन आएगा?’’ मां ने प्रश्न किया.

‘‘अब यह तो नहीं पूछा, 3-4 लोग तो होंगे ही,’’ बलदेव सिंह बोले.

‘‘अच्छा, कितने बजे तक आएंगे, यह तो पूछा होगा?’’ मां ने अगला प्रश्न किया.

‘‘दोपहर 1 बजे. रविवार है… सभी के लिए सुविधाजनक है,’’ बलदेव सिंह ने बताया.

‘‘सांवली ओ सांवली,’’ मां ने पुकारा.

‘‘हां, मां क्या बात है कहो,’’ सांवली ने बैठक में आते हुए पूछा.

‘‘सुन, परसों तेरी समीक्षा जीजी को लड़के वाले देखने आ रहे हैं, तो तू अभी तैयारी शुरू कर दे, क्या बनाएगी? उस के लिए क्या कुछ सामान बाजार से लाना है. एक लिस्ट बना ले, तेरे पापा शाम को ले आएंगे और सुन तू भी जरा बेसन का लेप लगा लेना, रंग थोड़ा खुला दिखेगा,’’ मां ने सांवली को देखते हुए कहा.

‘‘मां… अब इस में मुझे बेसन का लेप लगाने की क्या जरूरत आन पड़ी? वे लोग तो जीजी को देखने आ रहे हैं,’’ सांवली ने कंधे उचकाते हुए कहा.

‘‘अरे, ऐसे ही एक के बाद एक रस्ते खुलते हैं, हो सकता है उन की नजर में तेरे लायक भी कोई रिश्ता हो, चल अब जा, परसों की तैयारियां कर,’’ मां ने कहा.

तैयारियां शुरू हो गईं, समीक्षा फेशियल, साडि़यों के चयन आदि में व्यस्त रही और सांवली किचन की तैयारियों में, जो सूखा नाश्ता जैसे मठरी, गुझिया, चिवड़ा आदि उस ने एक दिन पहले ही बना कर तैयार कर लिए थे. रविवार सुबह से समोसे, मूंग का हलवा और बादाम की खीर की खूशबू से सारा घर महक रहा था. समीक्षा साडि़यों पर साडि़यां बदले जा रही थी, छोटी बहन सुनीति उस की मदद कर रही थी.

‘‘समीक्षा, तू कुछ भी पहन ले, सुंदर ही दिखेगी, तुझे तो एक नजर में पसंद कर लेंगे वे, चिंता मत कर, कुछ भी पहन ले,’’ मां ने पूर्ण विश्वास से कहा.

‘‘सांवली ओ सांवली,’’ मां ने सांवली को पुकारा.

‘‘क्या है मां,’’ किचन से निकलते हुए सांवली बोली.

‘‘सुन, तू भी अब मुंह धो ले, और अच्छी तरह पाउडर लगा कर, हलकेपीले रंग का जो सूट है न उसे पहन ले, उस में तेरा रंग खिला हुआ लगता है,’’ मां ने सांवली को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा.

‘‘मां… तुम भी न… आज तो समीक्षा जीजी को तैयार होने दो, क्यों जीजी…’’ सांवली ने समीक्षा से चुटकी ली.

‘‘जा, तू भी तैयार हो जा…’’ समीक्षा ने मुसकराते हुए सांवली से कहा.

‘‘ठीक है जीजी,’’ सांवली हंसते हुए बोली.

‘‘डेढ़ बजे के करीब लड़के वाले तशरीफ ले आए, मातापिता, लड़का और उस की छोटी बहन, कुल 4 लोग आए थे.’’

‘‘आइए भाई साहब, नमस्ते बहनजी, आओ बेटा आओ…’’ बलदेव सिंह सब का स्वागत करते हुए बोले.

‘‘बहनजी, आप का घर तो खाने की खुशबूओं से महक रहा है, कितने पकवान बनवा लिए आप ने?’’ लड़के की मां ने घर में घुसते ही कहा.

‘‘अरे बहनजी, बच्चियों से जो कुछ बन सका, बस यों ही थोड़ाबहुत…’’ मां ने मुसकान बिखेरते हुए कहा.

सभी को बैठक में बैठाया गया, जो सांवली की कलाकृतियों से बहुत ही करीने से सजासंवरा, छोटा सा कमरा था. सांवली पानी की ट्रे लिए बैठक में दाखिल हुईर्. लड़के की मां उसे कुछ ज्यादा ही ध्यान से देखने लगी.

‘‘बहनजी, यह मझली बेटी सांवली है, समीक्षा, जिसे आप देखने आई हैं, वह अभी अंदर है,’’ मां ने लड़के की मां की नजरों को ताड़ते हुए कहा.

‘‘ओह, अच्छा…’’ लड़के की मां सोफे से पीठ टिकाती हुई बोली.

सांवली ने सभी को नमस्ते कर ट्रे में पानी के गिलास रख दिए.

‘‘जा वांवली, जीजी को ले आ,’’ मां ने कहा.

‘‘ये वौल पीस, हैंगिंग और पेंटिंग्स तो बहुत जोरदार हैं, बिटिया ने बनाई हैं क्या?’’ लड़के की मां ने चारों तरफ नजर घुमाते हुए पूछा.

‘‘हं… हां… हां…’’ मां ने कहा, पर यह बात गोल कर दी कि किस बिटिया ने बनाई है, क्योंकि अभी तो समीक्षा को निबटाना था.

तभी सांवली अपनी समीक्षा जीजी के साथ बैठक में दाखिल हुई. लड़के की मां का चेहरा खिल उठा.

‘‘आओ… आओ, बिटिया… वाह… बहुत ही सुंदर, क्यों बेटा है न?’’ लड़के की मां ने अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा.

लड़के ने आंखें उठा कर देखा तो उस की नजर सांवली की नजर से टकराई, जो उस का रिएक्शन देखने के लिए उसे ही देख रही थी. लड़के ने झेंप कर नजर झुका ली.

‘‘भई मुझे तो बिटिया बहुत पसंद है, अब फैसला तो श्याम के हाथ में है, मेरे खयाल से हमें इन दोनों को भी एकदूसरे से खुल कर बातचीत करने के लिए अकेला छोड़ देना चाहिए, क्यों जी, सही न,’’ लड़के की मां ने लड़के के पिता से कहा.

‘‘हां बिलकुल ठीक है,’’ लड़के के पिता ने कहा.

‘‘सांवली, जाओ बेटा जीजी और श्याम बाबू को बगीचे की सैर करवा दो,’’ मां ने झट से कहा.

‘‘जी ठीक है मां, आइए जीजी…’’ सांवली ने समीक्षा और श्याम से चलने को कहा.

बगीचे में पहुंच कर सांवली ने कहा, ‘‘जीजी, आप लोग बात कीजिए, तब तक मैं नाश्ते का प्रबंध करती हूं,’’ और वह भीतर चली आई.

समीक्षा और श्याम करीब 15 मिनट बातचीत करते रहे, फिर वे भी भीतर बैठक में आ गए.

‘‘वाह भई, ऐसा स्वादिष्ठ नाश्ता कर के मजा आ गया, भई अब तो जी चाहता है सारा जीवन ऐसा ही नाश्ता मिलता रहे,’’ लड़के की मां ने कनखियों से समीक्षा को देखते हुए कहा. समीक्षा मुसकरा रही थी.

श्याम और समीक्षा की रजामंदी से विवाह पक्का हो गया.

इधर सांवली अपनी परीक्षा की तैयारियों में जुटी थी, उधर समीक्षा का विवाह भी हो गया.

सांवली ने एमबीए के कोर्स में प्रवेश ले लिया, मैनेजमैंट और अकाउंटैंसी दोनों में ही सांवली का कोई जोड़ नहीं था. एमबीए पूरा होतेहोते छोटी बहन भी ब्याह कर ससुराल चली गई. अब मातापिता को सांवली की चिंता थी, हालांकि वे यह भी जानते थे कि सारे घर का दारोमदार अब सांवली के कंधों पर ही है, पिता रिटायर हो चुके थे, उन की पैंशन और सांवली की कमाई से ही घर का खर्च चलता था, पिता के पैंशन का मैटर भी विभागीय मसले में उलझ गया था, जिसे सांवली ने ही अपनी सूझबूझ से निबटाया और पैंशन पक्की हो पाई. पिता तो सांवली के ऐसे कायल हो गए कि हर समस्या के समाधान के लिए उन की जबान पर एक ही नाम होता था सांवली.

‘‘अरे बेटा रो मत, सांवली घर आ जाए, मैं उस से बात करता हूं, दामादजी को वह इस मुश्किल से चुटकी में निकाल देगी, तू फिक्र मत कर,’’ पिता ने समीक्षा से फोन पर कहा.

‘‘ठीक है पापा, मैं कल श्याम के साथ घर आती हूं, सांवली को सारा मसला समझा देंगे,’’ समीक्षा ने कहा और फोन रख दिया.

अगले दिन सुबह ही समीक्षा अपने पति के साथ घर आ गई. सांवली को श्याम

ने अपने व्यापार में हुए घोटाले और घाटे से सड़क पर आ जाने का पूरा विवरण बताया.

सांवली बहुत ही गंभीर मुद्रा में हर बात सुनती रही, फिर उस ने श्याम से कुछ प्रश्न किए जिन के उत्तरों से उसे समझ में आ गया कि आखिर चूक कहां हुई है. उस ने कुछ सुझाव दिए और कहा कि तुम इन पर अमल करो, बाकी मैं संभाल लूंगी.

सांवली ने अपने तेज दिमाग से अपने जीजाजी का न केवल घाटा पूरा करवाया, बल्कि उस के बाद उन का बिजनैस जोर पकड़ता गया. अब तो श्याम जैसे सांवली का दीवाना हो गया, कभीकभी मजाक में कह भी देता था कि इस से तो मैं तुम से शादी करता तो ज्यादा अच्छा रहता. खैर, आधी घरवाली तो तुम हो ही.’’

इस पर सांवली कहती, ‘‘इस मुगालते में मत रहना जीजाजी, सांवली सिर्फ सांवली है, किसी की घरवाली नहीं, न आधी न पूरी.’’

जीजाजी जैसे मन मसोस कर रह जाते. कई बार कोशिश करने पर भी सांवली ने उन की दाल गलने न दी. सांवली जानती थी कि, उस का दिमाग और फिट फिगर पुरुषों को बेहद आकर्षित करता है, हर कोई चाहता है कि उस की बीवी खूबसूरत होने के साथ स्मार्ट माइंड भी रखती हो. वह अब यह भी जानती थी कि आज इस समय उस से कोई भी शादी करने के लिए तैयार हो जाएगा, लेकिन अब वह अपनी शर्तों पर जीवन जीना सीख चुकी थी, अब तो पुरुषों को अपनी उंगली पर नचाने में उसे मजा आता था. मन में एक भड़ास थी कि कभी उसे रूप के कारण कमतर आंका गया है, बहुत परिश्रम करना पड़ा है उसे यह मुकाम हासिल करने में.

‘‘हैलो, क्या मैं सांवलीजी से बात कर सकता हूं?’’ फोन पर किसी ने सांवली से कहा.

‘‘जी, कहिए, मैं सांवली बोल रही हूं,’’ सांवली ने जवाब दिया.

‘‘मैडम, आप से अपौइंटमैंट लेना था, एक प्रौपर्टी केस के सिलसिले में आप से कंसल्ट करना चाहता हूं, प्लीज बताइए, मैं आप से किस समय मिल सकता हूं?’’ अजनबी ने कहा.

‘‘आप सारे डौक्युमैंट्स ले कर परसों मेरे औफिस आ जाइए, बाइ दा वे, आप का शुभनाम?’’ सांवली ने पूछा.

‘‘ओह, आई एम सौरी, माई नेम इज बृज, मैं परसों मिलता हूं आप से, थैंक यू सो मच,’’ और फोन काट दिया गया.

नियत समय पर बृज सांवली के औफिस पहुंचा.

‘‘गुड मौर्निंग… सांवली,’’ बृज ने

अभिवादन किया.

‘‘वैरी गुड मौर्निंग बृज, टेक योर सीट,’’ सांवली ने मुसकान बिखेरते हुए कहा, ‘‘पेपर्स दिखाइए और केस की डिटेल्स बताइए.’’

‘‘ओके, ये लीजिए पेपर्स. दरअसल, मेरी पार्टनर मेरी वाइफ ही थी, उस ने अपनी खूबसूरती के जाल में उलझा कर मुझ से कहांकहां साइन करवा लिए, मुझे पता नहीं चला, मेरा सारा बिजनैस खुद के नाम कर के मुझे डिवोर्स पेपर्स भेज दिए, मैं चाहता हूं कि उसे इस की सजा मिले, मुझे किसी ने आप का नाम सजेस्ट किया, बताया कि ऐसे उलझे मामलों को आप ने बड़ी होशियारी से सुलझाया है. मैं चाहता तो किसी वकील के पास भी जा सकता था, लेकिन इस केस को कैसे डील करना है, वह अब आप ही देखिए, वकील तो जो आप कहेंगी उसे कर लेंगे,’’ बृज एक सांस में बोल गया.

‘‘ओके, डौंट वरी, आई विल मैनेज एवरीथिंग, मैं प्लान प्रोग्राम कर आप से कौंटैक्ट करती हूं,’’ सांवली ने फिर एक गहरी मुसकान बिखेरते हुए कहा.

‘‘ओके, थैंक्स,’’ कह कर बृज ने हाथ

आगे बढ़ाया, सांवली ने अपना हाथ बढ़ा कर शेक हैंड किया.

महीनेभर की मशक्कत के बाद आखिर सांवली केस को सुलझाने में सफल हो गई. बृज की बीवी को स्वीकार करना पड़ा कि उस ने जालसाजी से ये सब किया था, क्योंकि बृज को उस पर अंधाविश्वास था, इसलिए उन्हें आसानी से बेवकूफ बनाने में वह कामयाब रही, लेकिन जिन पौइंट्स पर वाह चूक गई थी, सांवली ने उन्हें पकड़ कर उस की जालसाजी पकड़ ली, बृज को अपनी प्रौपर्टी वापस मिल गई और महीनेभर की मुलाकातों ने उसे सांवली के व्यक्तित्व ने इतना प्रभावित किया कि उस ने फैसला कर लिया कि वह सांवली को अपना जीवनसाथी बनाएगा, यही सोच कर वह फूलों का बड़ा गुलदस्ता ले कर सांवली के औफिस पहुंचा.

‘‘हैलो मिस सांवली,’’ बृज ने सांवली से कहा.

‘‘हैलो बृज, बधाई हो आप को, अब तो आप खुश हैं न?’’ सांवली ने मुसकान बिखेरते हुए कहा.

‘‘हां, लेकिन यह खुशी दोगुना हो सकती है, अगर आप मेरी हमसफर बनने के लिए राजी हो जाएं?’’ बृज ने बिना किसी भूमिका के दिल की बात कह दी.

‘‘क्यों, एक धोखा खा कर तसल्ली नहीं हुई आप को, जो फिर ओखली में सिर डालने चले हो?’’ अभी तो मैं निकाल लाई आप को, मुझ से कौन बचाएगा आप को? सांवली ने खिलखिलाते हुए कहा.

‘‘अब तुम ने निकलना ही नहीं है. बिजनैस तुम ही संभालोगी, मुझे तो बस एक प्यार करने वाली बीवी चाहिए, जिस की मुसकराहट मेरी जिंदगी संवार दे और जो एक बेहतरीन दिल के साथ, शानदार दिमाग की भी मालिक हो, और वह हो तुम, तो कहो मेरी मलिका बनने को तैयार हो?’’ बृज ने दिल पर हाथ रख कर कुछ झुकते हुए कहा.

‘‘यस जहांपनाह, बाअदब, बामुलाहिजा, होशियार… मलिका ए दिमाग, आप के दिल में दाखिल होने जा रहा है.’’

‘‘दिमाग चाहे तो वह हर मुकाम हासिल कर सकता है, जो रूप के बूते मिलता है, लेकिन रूप चाह कर भी वह मुकाम हासिल नहीं कर सकता, जो दिमाग हासिल कर सकता है,’’ सांवली बृज की बांहों में झूल रही थी.

‘‘बृज की बीवी को स्वीकार करना पड़ा कि उस ने जालसाजी से ये सब किया था,

क्योंकि ब्रिज को उस पर अंधाविश्वास था, इसलिए उन्हें आसानी से बेवकूफ बनाने में वह

कामयाब रही…’’

लेखिका- नम्रता सरन ‘सोना’

Online Hindi Story : राजीव ने अंजू से क्यों की पैसों की डिमांड?

Online Hindi Story : उस शाम पहली बार राजीव के घर वालों से मिल कर अंजू को अच्छा लगा. उस के छोटे भाई रवि और उस की पत्नी सविता ने अंजू को बहुत मानसम्मान दिया था. उन की मां ने दसियों बार उस के सिर पर हाथ रख कर उसे सदा सुखी और खुश रहने का आशीर्वाद दिया होगा. वह राजीव के घर मुश्किल से आधा घंटा रुकी थी. इतने कम समय में ही इन सब ने उस का दिल जीत लिया था.

राजीव के घर वालों से विदा ले कर वे दोनों पास के एक सुंदर से पार्क में कुछ देर घूमने चले आए. अंजू का हाथ पकड़ कर घूमते हुए राजीव अचानक मुसकराया और उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘इनसान की जिंदगी में बुरा वक्त आता है और अच्छा भी. 2 साल पहले जब मेरा तलाक हुआ था तब मैं दोबारा शादी करने का जिक्र सुनते ही बुरी तरह बिदक जाता था लेकिन आज मैं तुम्हें जल्दी से जल्दी अपना हमसफर बनाना चाहता हूं. तुम्हें मेरे घर वाले कैसे लगे?’’

‘‘बहुत मिलनसार और खुश- मिजाज,’’ अंजू ने सचाई बता दी. ‘‘क्या तुम उन सब के साथ निभा लोगी?’’ राजीव भावुक हो उठा.

‘‘बड़े मजे से. तुम ने उन्हें यह बता दिया है कि हम शादी करने जा रहे हैं?’’ ‘‘अभी नहीं.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे घर वालों ने तो मेरा ऐसे स्वागत किया जैसे मैं तुम्हारे लिए बहुत खास अहमियत रखती हूं.’’ ‘‘तब उन तीनों ने मेरी आंखों में तुम्हारे लिए बसे प्रेम के भावों को पढ़ लिया होगा,’’ राजीव ने झुक कर अंजू के हाथ को चूमा तो वह एकदम से शरमा गई थी.

कुछ देर चुप रहने के बाद अंजू ने पूछा, ‘‘हम शादी कब करें?’’ ‘‘क्या…अब मुझ से दूर नहीं रहा जाता?’’ राजीव ने उसे छेड़ा.

‘‘नहीं,’’ अंजू ने जवाब दे कर शर्माते हुए अपना चेहरा हथेलियों के पीछे छिपा लिया. ‘‘मेरा दिल भी तुम्हें जी भर कर प्यार करने को तड़प रहा है, जानेमन. कुछ दिन बाद मां, रवि और सविता महीने भर के लिए मामाजी के पास छुट्टियां मनाने कानपुर जा रहे हैं. उन के लौटते ही हम अपनी शादी की तारीख तय कर लेंगे,’’ राजीव का यह जवाब सुन कर अंजू खुश हो गई थी.

पार्क के खुशनुमा माहौल में राजीव देर तक अपनी प्यार भरी बातों से अंजू के मन को गुदगुदाता रहा. करीब 3 साल पहले विधवा हुई अंजू को इस पल उस के साथ अपना भविष्य बहुत सुखद और सुरक्षित लग रहा था. राजीव अंजू को उस के फ्लैट तक छोड़ने आया था. अंजू की मां आरती उसे देख कर खिल उठीं.

‘‘अब तुम खाना खा कर ही जाना. तुम्हारे मनपसंद आलू के परांठे बनाने में मुझे ज्यादा देर नहीं लगेगी,’’ उन्होंने अपने भावी दामाद को जबरदस्ती रोक लिया था. उस रात पलंग पर लेट कर अंजू देर तक राजीव और अपने बारे में सोचती रही.

सिर्फ 2 महीने पहले चार्टर्ड बस का इंतजार करते हुए दोनों के बीच औपचारिक बातचीत शुरू हुई और बस आने से पहले दोनों ने एकदूसरे को अपनाअपना परिचय दे दिया था. उन के बीच होने वाला शुरूशुरू का हलकाफुलका वार्त्तालाप जल्दी ही अच्छी दोस्ती में बदल गया. वे दोनों नियमित रूप से एक ही बस से आफिस आनेजाने लगे थे.

राजीव की आंखों में अपने प्रति चाहत के बढ़ते भावों को देखना अंजू को अच्छा लगा था. अपने अकेलेपन से तंग आ चुके उस के दिल को जीतने में राजीव को ज्यादा समय नहीं लगा. ‘‘रोजरोज उम्र बढ़ती जाती है और अगले महीने मैं 33 साल का हो जाऊंगा. अगर मैं ने अभी अपना घर नहीं बसाया तो देर ज्यादा हो जाएगी. बड़ी उम्र के मातापिता न स्वस्थ संतान पैदा कर पाते हैं और न ही उन्हें अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पूरा समय मिल पाता है,’’ राजीव के मुंह से एक दिन निकले इन शब्दों को सुन कर अंजू के मन ने यह अंदाजा लगाया कि वह उस के साथ शादी कर के घर बसाने में दिलचस्पी रखता था.

उस दिन के बाद से अंजू ने राजीव को अपने दिल के निकट आने के ज्यादा अवसर देने शुरू कर दिए. वह उस के साथ रेस्तरां में चायकौफी पीने चली जाती. फिर उस ने फिल्म देख कर या खरीदारी करने के बाद उस के साथ डिनर करने का निमंत्रण स्वीकार करना भी शुरू कर दिया था. उस शाम पहली बार उस के घर वालों से मिल कर अंजू के मन ने बहुत राहत और खुशी महसूस की थी. शादी हो जाने के बाद उन सीधेसादे, खुश- मिजाज लोगों के साथ निभाना जरा भी मुश्किल नहीं होगा, इस निष्कर्ष पर पहुंच वह उस रात राजीव के साथ अपनी शादी के रंगीन सपने देखती काफी देर से सोई थी.

अगले दिन रविवार को राजीव ने पहले उसे बढि़या होटल में लंच कराया और फिर खुशखबरी सुनाई, ‘‘कल मैं एक फ्लैट बुक कराने जा रहा हूं, शादी के बाद हम बहुत जल्दी अपने फ्लैट में रहने चले जाएंगे.’’

‘‘यह तो बढि़या खबर है. कितने कमरों वाला फ्लैट ले रहे हो?’’ अंजू खुश हो गई थी. ‘‘3 कमरों का. अभी मैं 5 लाख रुपए पेशगी बतौर जमा करा दूंगा लेकिन बाद में उस की किस्तें हम दोनों को मिल कर देनी पड़ेंगी, माई डियर.’’

‘‘नो प्रौब्लम, सर, मुझ से अभी कोई हेल्प चाहिए हो तो बताओ.’’ ‘‘नहीं, डियर, अपने सारे शेयर आदि बेच कर मैं ने 5 लाख की रकम जमा कर ली है. मेरे पास अब कुछ नहीं बचा है. जब फ्लैट को सजानेसंवारने का समय आएगा तब तुम खर्च करना. अच्छा, इसी वक्त सोच कर बताओ कि अपने बेडरूम में कौन सा रंग कराना पसंद करोगी?’’

‘‘हलका आसमानी रंग मुझे अच्छा लगता है.’’ ‘‘गुलाबी नहीं?’’

‘‘नहीं, और ड्राइंग रूम में 3 दीवारें तो एक रंग की और चौथी अलग रंग की रखेंगे.’’ ‘‘ओके, मैं किसी दिन तुम्हें वह फ्लैट दिखाने ले चलूंगा जो बिल्डर ने खरीदारों को दिखाने के लिए तैयार कर रखा है.’’

‘‘फ्लैट देख लेने के बाद उसे सजाने की बातें करने में ज्यादा मजा आएगा.’’ ‘‘मैं और ज्यादा अमीर होता तो तुम्हें घुमाने के लिए कार भी खरीद लेता.’’

‘‘अरे, कार भी आ जाएगी. आखिर यह दुलहन भी तो कुछ दहेज में लाएगी,’’ अंजू की इस बात पर दोनों खूब हंसे और उन के बीच अपने भावी घर को ले कर देर तक चर्चा चलती रही थी. अगले शुक्रवार को रवि, सविता और मां महीने भर के लिए राजीव के मामा के यहां कानपुर चले गए. अंजू को छेड़ने के लिए राजीव को नया मसाला मिल गया था.

‘‘मौजमस्ती करने का ऐसा बढि़या मौका फिर शायद न मिले, स्वीटहार्ट. तुम्हें मंजूर हो तो खाली घर में शादी से पहले हनीमून मना लेते हैं,’’ उसे घर चलने की दावत देते हुए राजीव की आंखें नशीली हो उठी थीं. ‘‘शटअप,’’ अंजू ने शरमाते हुए उसे प्यार भरे अंदाज में डांट दिया.

‘‘मान भी जाओ न, जानेमन,’’ राजीव उत्तेजित अंदाज में उस के हाथ को बारबार चूमने लगा. ‘‘तुम जोर दोगे तो मैं मान ही जाऊंगी पर हनीमून का मजा खराब हो जाएगा. थोड़ा सब्र और कर लो, डार्लिंग.’’

अंजू के समझाने पर राजीव सब्र तो कर लेता पर अगली मुलाकात में वह फिर उसे छेड़ने से नहीं चूकता. वह उसे कैसेकैसे प्यार करेगा, राजीव के मुंह से इस का विवरण सुन अंजू का तनबदन अजीब सी नशीली गुदगुदी से भर जाता. राजीव की ये रसीली बातें उस की रातों को उत्तेजना भरी बेचैनी से भर जातीं. अपने अच्छे व्यवहार और दिलकश बातों से राजीव ने उसे अपने प्यार में पागल सा बना दिया था. वह अपने को अब बदकिस्मत विधवा नहीं बल्कि संसार की सब से खूबसूरत स्त्री मानने लगी थी. राजीव से मिलने वाली प्रशंसा व प्यार ने उस का कद अपनी ही नजरों में बहुत ऊंचा कर दिया था.

‘‘भाई, मां की जान बचाने के लिए उन के दिल का आपरेशन फौरन करना होगा,’’ रवि ने रविवार की रात को जब यह खबर राजीव को फोन पर दी तो उस समय वह अंजू के साथ उसी के घर में डिनर कर रहा था.

मां के आपरेशन की खबर सुन कर राजीव एकदम से सुस्त पड़ गया. फिर जब उस की आंखों से अचानक आंसू बहने लगे तो अंजू व आरती बहुत ज्यादा परेशान और दुखी हो उठीं. ‘‘मुझे जल्दी कानपुर जाना होगा अंजू, पर मेरे पास इस वक्त 2 लाख का इंतजाम नहीं है. सुबह बिल्डर से पेशगी दिए गए 5 लाख रुपए वापस लेने की कोशिश करता हूं. वह नहीं माना तो मां ने तुम्हारे लिए जो जेवर रखे हुए हैं उन्हें किसी के पास गिरवी…’’

‘‘बेकार की बात मत करो. मुझे पराया क्यों समझ रहे हो?’’ अंजू ने हाथ से उस का मुंह बंद कर आगे नहीं बोलने दिया. ‘‘क्या तुम मुझे इतनी बड़ी रकम उधार दोगी?’’ राजीव विस्मय से भर उठा.

‘‘क्या तुम्हारा मुझ से झगड़ा करने का दिल कर रहा है?’’ ‘‘नहीं, लेकिन…’’

‘‘फिर बेकार के सवाल पूछ कर मेरा दिल मत दुखाओ. मैं तुम्हें 2 लाख रुपए दे दूंगी. जब मैं तुम्हारी हो गई हूं तो क्या मेरा सबकुछ तुम्हारा नहीं हो गया?’’ अंजू की इस दलील को सुन राजीव ने उसे प्यार से गले लगाया और उस की आंखों से अब ‘धन्यवाद’ दर्शाने वाले आंसू बह निकले.

अपने प्रेमी के आंसू पोंछती अंजू खुद भी आंसू बहाए जा रही थी. लेकिन उस रात अंजू की आंखों से नींद गायब हो गई. उस ने राजीव को 2 लाख रुपए देने का वादा तो कर लिया था लेकिन अब उस के मन में परेशानी और चिंता पैदा करने वाले कई सवाल घूम रहे थे:

‘राजीव से अभी मेरी शादी नहीं हुई है. क्या उस पर विश्वास कर के उसे इतनी बड़ी रकम देना ठीक रहेगा?’ इस सवाल का जवाब ‘हां’ में देने से उस का मन कतरा रहा था. ‘राजीव के साथ मैं घर बसाने के सपने देख रही हूं. उस के प्यार ने मेरी रेगिस्तान जैसी जिंदगी में खुशियों के अनगिनत फूल खिलाए हैं. क्या उस पर विश्वास कर के उसे 2 लाख रुपए दे दूं?’ इस सवाल का जवाब ‘न’ में देते हुए उस का मन अजीब सी उदासी और अपराधबोध से भी भर उठता.

देर रात तक करवटें बदलने के बावजूद वह किसी फैसले पर नहीं पहुंच सकी थी. अगले दिन आफिस में 11 बजे के करीब उस के पास राजीव का फोन आया:

‘‘रुपयों का इंतजाम कब तक हो जाएगा, अंजू? मैं जल्दी से जल्दी कानपुर पहुंचना चाहता हूं,’’ राजीव की आवाज में चिंता के भाव साफ झलक रहे थे. ‘‘मैं लंच के बाद बैंक जाऊंगी. फिर वहां से तुम्हें फोन करूंगी,’’ चाह कर भी अंजू अपनी आवाज में किसी तरह का उत्साह पैदा नहीं कर सकी थी.

‘‘प्लीज, अगर काम जल्दी हो जाए तो अच्छा रहेगा.’’ ‘‘मैं देखती हूं,’’ ऐसा जवाब देते हुए उस का मन कर रहा था कि वह रुपए देने के अपने वादे से मुकर जाए.

लंच के बाद वह बैंक गई थी. 2 लाख रुपए अपने अकाउंट में जमा करने में उसे ज्यादा परेशानी नहीं हुई. सिर्फ एक एफ.डी. उसे तुड़वानी पड़ी थी लेकिन उस का मन अभी भी उलझन का शिकार बना हुआ था. तभी उस ने राजीव को फोन नहीं किया.

शाम को जब राजीव का फोन आया तो उस ने झूठ बोल दिया, ‘‘अभी 1-2 दिन का वक्त लग जाएगा, राजीव.’’ ‘‘डाक्टर बहुत जल्दी आपरेशन करवाने पर जोर दे रहे हैं. तुम बैंक के मैनेजर से मिली थीं?’’

‘‘मां को किस अस्पताल में भरती कराया है?’’ अंजू ने उस के सवाल का जवाब न दे कर विषय बदल दिया. ‘‘दिल के आपरेशन के मामले में शहर के सब से नामी अस्पताल में,’’ राजीव ने अस्पताल का नाम बता दिया.

अपनी मां से जुड़ी बहुत सी बातें करते हुए राजीव काफी भावुक हो गया था. अंजू ने साफ महसूस किया कि इस वक्त राजीव की बातें उस के मन को खास प्रभावित करने में सफल नहीं हो रही थीं. उसे साथ ही साथ यह भी याद आ रहा था कि पिछले दिन मां के प्रति चिंतित राजीव के आंसू पोंछते हुए उस ने खुद भी आंसू बहाए थे.

अगली सुबह 11 बजे के करीब राजीव ने अंजू से फोन पर बात करनी चाही तो उस का फोन स्विच औफ मिला. परेशान हो कर वह लंच के समय उस के फ्लैट पर पहुंचा तो दरवाजे पर ताला लटकता मिला. ‘अंजू शायद रुपए नहीं देना चाहती है,’ यह खयाल अचानक उस के मन में पैदा हुआ और उस का पूरा शरीर अजीब से डर व घबराहट का शिकार बन गया. रुपयों का इंतजाम करने की नए सिरे से पैदा हुई चिंता ने उस के हाथपैर फुला दिए थे.

उस ने अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के पास फोन करना शुरू किया. सिर्फ एक दोस्त ने 10-15 हजार की रकम फौरन देने का वादा किया. बाकी सब ने अपनी असमर्थता जताई या थोड़े दिन बाद कुछ रुपए का इंतजाम करने की बात कही. वह फ्लैट की बुकिंग के लिए दी गई पेशगी रकम वापस लेने के लिए बिल्डर से मिलने गया पर वह कुछ दिन के लिए मुंबई गया हुआ था.

शाम होने तक राजीव को एहसास हो गया कि वह 2-3 दिन में भी 2 लाख की रकम जमा नहीं कर पाएगा. हर तरफ से निराश हो चुका उस का मन अंजू को धोखेबाज बताते हुए उस के प्रति गहरी शिकायत और नाराजगी से भरता चला गया था. तभी उस के पास कानपुर से रवि का फोन आया. उस ने राजीव को प्रसन्न स्वर में बताया, ‘‘भाई, रुपए पहुंच गए हैं. अंजूजी का यह एहसान हम कभी नहीं चुका पाएंगे.’’

‘‘अंजू, कानपुर कब पहुंचीं?’’ अपनी हैरानी को काबू में रखते हुए राजीव ने सवाल किया. ‘‘शाम को आ गई थीं. मैं उन्हें एअरपोर्ट से ले आया था.’’

‘‘रुपए जमा हो गए हैं?’’ ‘‘वह ड्राफ्ट लाई हैं. उसे कल जमा करवा देंगे. अब मां का आपरेशन हो सकेगा और वह जल्दी ठीक हो जाएंगी. तुम कब आ रहे हो?’’

‘‘मैं रात की गाड़ी पकड़ता हूं.’’ ‘‘ठीक है.’’

‘‘अंजू कहां हैं?’’ ‘‘मामाजी के साथ घर गई हैं.’’

‘‘कल मिलते हैं,’’ ऐसा कह कर राजीव ने फोन काट दिया था. उस ने अंजू से बात करने की कोशिश की पर उस का फोन अभी भी बंद था. फिर वह स्टेशन पहुंचने की तैयारी में लग गया.

उसे बिना कुछ बताए अंजू 2 लाख का ड्राफ्ट ले कर अकेली कानपुर क्यों चली गई? इस सवाल का कोई माकूल जवाब वह नहीं ढूंढ़ पा रहा था. उस का दिल अंजू के प्रति आभार तो महसूस कर रहा था पर मन का एक हिस्सा उस के इस कदम का कारण न समझ पाने से बेचैन और परेशान भी था.

अगले दिन अंजू से उस की मुलाकात मामाजी के घर में हुई. जब आसपास कोई नहीं था तब राजीव ने उस से आहत भाव से पूछ ही लिया, ‘‘मुझ पर क्यों विश्वास नहीं कर सकीं तुम, अंजू? तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि मैं मां की बीमारी के बारे में झूठ भी बोल सकता हूं? रुपए तुम ने मेरे हाथों इसीलिए नहीं भिजवाए हैं न?’’ अंजू उस का हाथ पकड़ कर भावुक स्वर में बोली, ‘‘राजीव, तुम मुझ विधवा के मनोभावों को सहानुभूति के साथ समझने की कोशिश करना, प्लीज. तुम्हारे लिए यह समझना कठिन नहीं होना चाहिए कि मेरे मन में सुरक्षा और शांति का एहसास मेरी जमापूंजी के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है.

‘‘तुम्हारे प्यार में पागल मेरा दिल तुम्हें 2 लाख रुपए देने से बिलकुल नहीं हिचकिचाया था लेकिन मेरा हिसाबी- किताबी मन तुम पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं करना चाहता था. ‘‘मैं ने दोनों की सुनी और रुपए ले कर खुद यहां चली आई. मेरे ऐसा करने से तुम्हें जरूर तकलीफ हो रही होगी…तुम्हारे दिल को यों चोट पहुंचाने के लिए मैं माफी मांग रही…’’

‘‘नहीं, माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. तुम्हारे मन में चली उथलपुथल को मैं अब समझ सकता हूं. तुम ने जो किया उस से तुम्हारी मानसिक परिपक्वता और समझदारी झलकती है. अपनी गांठ का पैसा ही कठिन समय में काम आता है. हमारे जैसे सीमित आय वालों को ऊपरी चमकदमक वाली दिखावे की चीजों पर खर्च करने से बचना चाहिए, ये बातें मेरी समझ में आ रही हैं.’’ ‘‘अपने अहं को बीच में ला कर मेरा तुम से नाराज होना बिलकुल गलत है. तुम तो मेरे लिए दोस्तों व रिश्तेदारों से ज्यादा विश्वसनीय साबित हुई हो. मां के इलाज में मदद करने के लिए थैंक यू वेरी मच,’’ राजीव ने उस का हाथ पकड़ कर प्यार से चूम लिया.

एकदूसरे की आंखों में अपने लिए नजर आ रहे प्यार व चाहत के भावों को देख कर उन दोनों के दिलों में आपसी विश्वास की जड़ों को बहुत गहरी मजबूती मिल गई थी.

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