खुल कर करें पार्टी ऐंजौय

आधुनिकीकरण के दौर में पार्टियां मेलमिलाप का ट्रैंड भी हैं और फैशन भी. अकसर ऐसी पार्टियों का भी हिस्सा बनना पड़ता है, जहां इक्कादुक्का चेहरों के अलावा सारे अजनबी ही नजर आते हैं. इस स्थिति में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं खुद को ज्यादा असहज महसूस करने लगती हैं और पार्टी फोबिया का शिकार हो जाती हैं. इस फोबिया का शिकार न बनें, बल्कि प्रैजेंटेबल दिखने की कोशिश करें और आत्मविश्वास बनाए रखें, फिर लोग स्वयं आ कर आप से पहचान बढ़ाने की कोशिश करेंगे.

आत्मविश्वास बनाए रखें

जब से पुनीता का फोन आया था, मनोरमा बहुत उत्साहित थी. इतने बरसों बाद पुनीता ने न जाने कहां से उस का नंबर ढूंढ़ कर उस से कौंटैक्ट किया था. दोनों स्कूल और कालेज में साथसाथ पढ़ी थीं. फिर विवाह हो जाने के बाद अलगअलग शहरों में चले जाने के कारण उन का संपर्क टूट गया था.

मनोरमा अकसर उसे याद करती रहती और अपने पति को उस के और अपने किस्से सुनाती थी कि कैसे वे दोनों हमेशा मस्ती और शरारतों के मूड में रहती थीं.

पुनीता इन दिनों इसी शहर में पति का ट्रांसफर हो जाने के कारण आ गई थी और पति की तरक्की हो जाने की खुशी में उस ने अपने घर पर एक पार्टी रखी थी. मनोरमा तो उस के शहर में आ जाने की बात से ही खुश हो गई थी और पार्टी के आमंत्रण की बात से तो वह और प्रफुल्लित हो गई थी. मिलने का इस से अच्छा बहाना और क्या हो सकता था.

दिल्ली के एक पौश इलाके में रहने वाले एक उच्च पदाधिकारी के घर पार्टी हो और लोगों की भीड़ न हो, ऐसा तो मुमकिन नहीं. पुनीता उस से आ कर गले मिली, कुछ देर सालोें न मिलने के गिलेशिकवे हुए और फिर वह अन्य मेहमानों का स्वागत करने में व्यस्त हो गई.

मनोरमा एक कोने में खड़ी कोल्डड्रिंक पीने लगी. उसे अकेला खड़ा रहना बहुत अजीब लग रहा था. उस की निगाहें इतनी भीड़ में किसी परिचित को ढूंढ़ने लगीं, लेकिन उसे कोई जानापहचाना चेहरा नजर नहीं आया.

पहले तो वह थोड़ी नर्वस हुई, लेकिन फिर जल्द ही उस ने खुद को संभाल लिया. आत्मविश्वास भरी मुसकान के साथ जब उस ने स्वयं लोगों से  पहचानबनाने की शुरुआत की तो थोड़ी ही देर में वह भी पार्टी में घुलमिल गई.

दायरा हुआ विस्तृत

लोगों की भीड़ में भी पार्टी के दौरान स्वयं को अकेला महसूस करने की ऐसी स्थिति से आजकल मनोरमा जैसी अनेक महिलाएं गुजरती हैं और यह भी सच है कि ऐसी स्थिति महिलाओं को ही ज्यादा झेलनी पड़ती है, क्योंकि पुरुष तो फिर भी बातचीत का सिलसिला कायम कर ही लेते हैं. महिलाएं अपने संकोची स्वभाव के कारण अनजान लोगों के बीच स्वयं को बहुत असहज महसूस करती हैं.

शहरीकरण ने जहां एक ओर पार्टियों के ट्रैंड को हवा दी है, वहीं समाज का फैलाव व लोगों का दायरा भी विस्तृत हो जाने की वजह से अपरिचित लोगों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है. ऐसी स्थिति की कल्पना कर के कई महिलाएं पार्टी के नाम से कतराने लगती हैं. पार्टियां भी एक माध्यम हैं आपसी पहचान बनाने व सामाजिक दायरा बढ़ाने का. मनोरमा जैसा आत्मविश्वास व खुलापन अपना कर देखें, फिर न तो खुद को अकेला महसूस करेंगी और न ही बोरियत होगी.

जब पड़ जाएं अलगथलग

आज पार्टी देना अगर एक ओर स्टेटस सिंबल बन गया है, तो उस में शामिल होना भी लोगों को किसी शान से कम नहीं लगता. पार्टी किसी होटल में हो या फार्महाउस में, बड़े गर्व से लोगों को बताया जाता है कि हम वहां आमंत्रित हैं. फिर चाहे वहां पहुंच कर यह एहसास ही क्यों न हो कि मेजबान के सिवा और तो कोई जानकार वहां है ही नहीं. मेजबान आखिर कितनी देर तक आप को कंपनी दे सकता है, बस बैठे रहिए किसी कोने में स्नैक्स लेते हुए.

अशोक के एक मित्र के घर पार्टी थी, जिस में उन की पत्नी साक्षी भी आमंत्रित थीं. हालांकि साक्षी ने जाने से मना कर दिया कि वह वहां जा कर क्या करेगी, पर अशोक नहीं माने.

दोनों वहां पहुंचे तो पत्नी ने देखा कि उन का परिचित तो वहां कोई भी नहीं है, यहां तक कि मित्र की पत्नी से भी वे पहली बार मिल रही थीं. पार्टी में अशोक के औफिस के लोग ही ज्यादा थे. कुछ देर बाद अशोक तो उन लोगों के साथ इतने व्यस्त हो गए कि उन्हें याद भी नहीं रहा कि उन की पत्नी अकेली बैठी बोर हो रही हैं.

ऐसे में बोर या परेशान होने के बजाय साक्षी ने समझदारी से काम लिया. उन्होंने पति अशोक से आग्रह किया कि वे उन्हें दोस्तों की पत्नियों से मिलवा दें. इस के बाद वे हमउम्र महिलाओं में इतनी मशगूल हो गईं कि पार्टी कब खत्म हुई, उन्हें पता भी न चला.

प्रैजेंटेबल दिखना भी जरूरी

जब खूबसूरत चेहरे के साथसाथ सजनेसंवरने का सही तौरतरीका भी मिल जाता है तो रूप में चार चांद लग जाते हैं. सारिका खूबसूरत भी है और उस के सजनेसंवरने का तरीका भी आकर्षक है. वह किसी भी पार्टी में जाती है, तो लोग उसे ‘सैंटर औफ अट्रैक्शन’ ही कहते हैं.

जब आप ट्रैंडी लुक के साथ खूबसूरती से खुद को संवारेंगी तो सैकड़ों की भीड़ वाली पार्टी में भी सब से अलग दिखेंगी और हर कोई आप से एक बार जरूर मिलना चाहेगा.

बचें पार्टी फोबिया से

जिन महिलाओं के पति शराब पीने के शौकीन होते हैं, उन्हें अनजान लोगों की पार्टी किसी बुरे सपने से कम नहीं लगती है. पति तो शराब के बहाने लोगों से घुलमिल जाते हैं और पत्नी सैकड़ों की भीड़ में भी अकेली बैठी बोर होती रहती है. आज के समय में कोई भी किसी से बेवजह परिचय करने को इच्छुक नहीं होता है. कोई काम होगा तभी आप से हायहैलो होगी अन्यथा सब अपनी ही दुनिया में मस्त रहना पसंद करते हैं. यही वजह है कि कुछ महिलाओं के लिए पार्टी किसी फोबिया से कम नहीं होती है. उस में जाने के नाम से उन के मन में डर पैदा हो जाता है. लेकिन अपनी तरफ से परिचय करने की पहल कर आप इस फोबिया से निकल सकती हैं.

यदि आप की कोई परिचित किसी ग्रुप में खड़ी है और आप उस ग्रुप में किसी और को नहीं जानतीं तो यह प्रतीक्षा न करें कि आप की वह परिचित आप का परिचय दूसरों से कराएगी. खुद आगे बढ़ कर अपना नाम बताएं और बातचीत आरंभ करें. विषय करेंट अफेयर्स से ले कर किसी की साड़ी या नौकरी के बारे में कोई भी हो सकता है. बस आप को दुनिया में क्या चल रहा है, इस की खबर रखनी होगी.

अपने अकेलेपन को दूर करना है, तो दूसरे की बात को भी ध्यान से सुनें, चाहे आप की उस में दिलचस्पी हो या न हो. इस से बातचीत का क्रम बना रहेगा और सामने वाला भी आप से बात करने को उत्सुक होगा.

कौंट्रासेप्टिव सैक्सुअल : आनंद की चाबी

‘‘नहीं, आज नहीं,’’ अजय ने जैसे ही भारती को अपने करीब खींचने की कोशिश की, भारती ने झट से उसे पीछे धकेल दिया.

‘‘यह क्या है? कुछ समय से देख रहा हूं कि जब भी मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूं, तुम कोई न कोई बहाना बना कर दूर भागती हो. क्या अब मुझ में दिलचस्पी खत्म हो गई है?’’ अजय ने क्रोधित स्वर में पूछा.

‘‘मुझे डर लगता है,’’ भारती ने उत्तर दिया.

‘‘2 बच्चे हो गए, अब किस बात का डर लगता है?’’ अजय हैरान था.

‘‘इसीलिए तो डर लगता है कि कहीं फिर से प्रैग्नैंट न हो जाऊं. तुम से कहा था कि मैं औपरेशन करा लेती हूं, पर तुम माने नहीं. तुम गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करना पसंद नहीं करते, इसलिए मैं किसी किस्म का रिस्क नहीं लेना चाहती हूं.’’

भारती की बात सुन कर अजय दुविधा में पड़ गया कि पत्नी कह तो ठीक रही है, लेकिन वह भी क्या करे? उसे कंडोम का इस्तेमाल करना पसंद नहीं था. उसे लगता था कि इस से सहवास का मजा बिगड़ जाता है, जबकि भारती को लगता था कि अगर वे कोई कौंट्रासेप्टिव इस्तेमाल कर लेंगे तो यौन संबंधों का वह पूरापूरा आनंद उठा सकेगी.

अब सुजाता की ही बात लें. उस का बेटा 8 महीने का ही था कि उसे दोबारा गर्भ ठहर गया. उसे अपने पति व स्वयं पर बहुत क्रोध आया. वह किसी भी हालत में उस बच्चे को जन्म देने की स्थिति में नहीं थी, न मानसिक न शारीरिक रूप से और न ही आर्थिक दृष्टि से. पहले बच्चे के जन्म से पैदा हुई कमजोरी अभी तक बनी हुई थी, उस पर उसे गर्भपात का दर्द झेलना पड़ा. वह शारीरिक व मानसिक तौर पर इतनी टूट गई कि उस ने पति से एक दूरी बना ली, जिस की वजह से उन के रिश्ते में दरार आने लगी. जब पति कंडोम का इस्तेमाल करने को राजी हुए तभी उन के बीच की दूरी खत्म हुई.

प्रैग्नैंसी का डर नहीं रहता

अगर पति या पत्नी दोनों में से एक भी किसी गर्भनिरोधक का प्रयोग करता है, तो महिला के मन में प्रैग्नैंट हो जाने का डर नहीं होता, जिस से वह यौन क्रिया का आनंद उठा पाती है. अगर पत्नी इस क्रिया में खुशी से पति का सहयोग देती है, तो दोनों को ही संतुष्टि मिलती है. अगर इस दौरान पत्नी तनाव में रहे और बेमन से पति की बात माने तो पति का असंतुष्ट रह जाना स्वाभाविक है. गर्भ ठहर जाने के डर से पत्नी का ध्यान उसी ओर लगा रहता है. यही नहीं, उस के बाद भी जब तक उसे मासिकधर्म नहीं हो जाता, वह तनाव में ही जीती है. पति से जितनी दूरी हो सके वह बनाए रखने की कोशिश करती है. वह जानती है कि गर्भवती होने पर बारबार गर्भपात करवाने का झंझट कितना तकलीफदेह होता है. बारबार गर्भपात कराने से उस की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है.

तनावमुक्त संबंध

इंडियाना यूनिवर्सिटी के किसी इंस्टिट्यूट के नए आंकड़े बताते हैं कि अधिकांश औरतों का मानना है कि गर्भनिरोधक तरीके चाहे वे हारमोनल कौंट्रासेप्टिव हों या कंडोम, यौन संतुष्टि व उस के आनंद में कई गुना बढ़ोतरी कर देते हैं. तनावमुक्त यौन संबंध आपसी रिश्तों में तो उष्मा बनाए ही रखते हैं, साथ ही आनंद की चरम सीमा तक भी पहुंचा देते हैं.

दिल्ली के फोर्टिस एस्कौर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट की सीनियर क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डा. भावना बर्मी के अनुसार, अवरोध या किसी तरह का तनाव या फिर दबाव एक तरह का मनोवैज्ञानिक भय होता है, जिस के चलते हमारा मन ही नहीं, शरीर भी असहज हो जाता है. खासकर यौन संबंधों को ले कर मन व शरीर दोनों को ही ऐसे में कुछ अच्छा नहीं लगता है और तब वे अपने को हर तरह के आनंद से दूर कर लेते हैं. अगर शरीर चाहता भी है तो मन का अवरोध उसे रोक लेता है. तनाव के न होने पर जिस स्थिति को हम ‘कंडीशंड रिफलैक्स औफ द बौडी’ कहते हैं, वह यौन संबंधों को आनंददायक बना देता है. जाहिर सी बात है कि अगर गर्भवती होने या गर्भपात करवाने का तनाव न हो तो महिला उन्मुक्त हो कर यौन संबंधों का आनंद उठा सकती है.

रहती है बेफिक्री

गर्भनिरोधकों का प्रयोग करने से युगल को इस बात का डर नहीं रहता कि उन्हें अनचाही प्रैग्नैंसी का सामना करना पड़ेगा. चूंकि ये कौंट्रासेप्टिव एक सुरक्षाकवच की तरह काम करते हैं, इसलिए सैक्स के दौरान एक बेफिक्री औरत में रहती है, जो उस के हावभाव व पति को दिए जा रहे सहयोग में नजर आती है.

दिल्ली के फोर्टिस एस्कौर्ट्स हौस्पिटल की गाइनेकोलौजिस्ट डा. निशा कपूर कहती हैं, ‘‘इन के इस्तेमाल से औरत के दिमाग में एक सिक्योरिटी से रहती है कि अवांछित प्रैग्नैंसी या गर्भपात से उस का बचाव हो रहा है. इस कारण सैक्सुअल आनंद में बढ़ोतरी होती है और सहवास करने से पहले उसे सोचना नहीं पड़ता या इस से बचने के बहाने नहीं सोचने पड़ते. वैवाहिक जीवन को सुखी व सैक्स जीवन को आनंदमय बनाने के लिए इन का इस्तेमाल किया जा सकता है.’’

कौंट्रासेप्टिव चाहे पति इस्तेमाल करे या पत्नी, यह निर्णय तो उन दोनों का होता है, पर यह सही है कि कौंट्रासेप्टिव सैक्स के आनंद की चाबी होते हैं. सहवास करते समय दोनों के मन में अगर किसी तरह की टैंशन हो तो सिवा मनमुटाव के कोई परिणाम  सामने नहीं आता है. लेकिन बेफिक्री और सहर्ष बनाए गए यौन संबंध वैवाहिक जीवन में तो दरार डालने से बचाते ही हैं, साथ ही सैक्स के आनंद को भी दोगुना कर देते हैं

सैफ की आराधना

छोटे नवाब सैफ अली खान अपनी मम्मी और राजेश खन्ना के साथ आई 1969 की सुपरडुपर हिट फिल्म ‘आराधना’ का रीमेक बनाना चाहते हैं. सैफ की यह पसंदीदा फिल्म है. इस फिल्म के निर्माण को ले कर वे काफी दिलचस्पी ले रहे हैं. पर सैफ इस फिल्म में बतौर निर्माता ही रहेंगे. वे फिल्म में अभिनय नहीं करेंगे. राजेश खन्ना वाले रोल के लिए सैफ का मानना है कि यह रोल किसी और अभिनेता को निभाना चाहिए. लेकिन शर्मिला वाली भूमिका में वे अपनी बेगम करीना कपूर खान को लेना चाहते हैं. ऐसा सूत्रों का कहना है. ऐसा शायद इसलिए है, क्योंकि सैफकरीना की जोड़ी का हिट फिल्में देने का रिकौर्ड ठीक नहीं है.

Wedding Special: पार्टियों में दिखें टीवी बहुओं सी ग्लैमरस

दर्शकों के मानसपटल पर इन का गहरा असर होता है. वे उठतेबैठते, सोतेजागते इन के ही बारे में बातें करते हैं. चाहे इन का फैशनस्टाइल, हेयरस्टाइल हो या इन के परफैक्ट ब्लैंड इमोशंस, इन की हर बात को वे खुद से जोड़ते हैं.

बात है टीवी सीरियलों के पात्रों की, जिन का फैशनस्टाइल रोजमर्रा की जिंदगी में दर्शक अपनाते हैं और उन के जैसे दिखने का प्रयास करते हैं.

बदलते वक्त के साथ बड़े परदे व छोटे परदे के बीच का अंतर काफी कम हो गया है, जिस के चलते टीवी स्टार्स भी बौलीवुड स्टार्स की तरह पौपुलर हो रहे हैं और दर्शक इन के हर स्टाइल को फौलो करने लगे हैं. फिर चाहे ‘यह रिश्ता क्या कहलाता है’ की अक्षरा का चूड़ीदार अनारकली सूट हो या ‘बालिका वधू’ की आनंदी का वाइब्रैंट लहंगाचोली व जड़ाऊ ज्वैलरी.

आइए, एक नजर डालते हैं टीवी सीरियल्स के लेटैस्ट डै्रसिंग स्टाइल पर जो आजकल पौपुलर हो रहा है:

पौपुलर ड्रैसिंग स्टाइल

एअरहोस्टेस से स्मौल स्क्रीन का पौपुलर चेहरा बनीं सिमर यानी दीपिका सैमसन, जो इन दिनों कलर्स के धारावाहिक ‘ससुराल सिमर का’ में नजर आ रही हैं, का कहना है कि फैशन ट्रैंड को प्रचलित करने में टीवी सीरियल्स महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इन में महत्त्वपूर्ण किरदारों द्वारा पहने जाने वाली ड्रैसेज को युवकयुवतियां सब से पहले अपनाते हैं. फिर चाहे वे मौडर्न ड्रैसेज हों या ट्रैडिशनल. जहां ‘प्यार का दर्द है मीठामीठा’ धारावाहिक की अवंतिका अपनी साड़ी के ड्रैपिंग स्टाइल और स्टाइलिश ब्लाउज से ग्लैमरस लुक में आधुनिक युवतियों को आकर्षित कर रही हैं. वहीं ‘एक हसीना थी’ धारावाहिक की दुर्गा ठाकुर अपने वाइब्रैंट कलर की चूड़ीदार स्लीवलेस व फुलस्लीव्स फ्लोरलैंथ अनारकली सूट से युवतियों को आकर्षित कर रही हैं.

इसी तरह कलर्स पर प्रसारित हो रहे ‘बालिका वधू’ की आनंदी की लहंगाचोली, गोटापट्टी वर्क का दुपट्टा, जड़ाऊ वर्क की हैवी ज्वैलरी, रत्नजडि़त अंगूठियां और कलरफुल स्टोन स्टडेड ज्वैलरी भी दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बना रही है. आप को जान कर हैरानी होगी कि स्टारप्लस के धारावाहिक ‘मधुबाला एक इश्क एक जनून’ की दृष्टि धामी यानी मधुबाला के विवाह समारोह का लहंगा प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर नीता लुल्ला ने डिजाइन किया था.

स्टारप्लस पर ही प्रसारित हो रहे धारावाहिक ‘एक हसीना थी’ में अभिनेत्री सिमोन सिंह शिफौन की साडि़यों के साथ थ्रीफोर्थ लैस वाले ब्लाउज व पर्ल के नैकलैस के साथ पुराने फैशन को नए रूप में प्रस्तुत कर मध्य आयुवर्ग की महिलाओं को यह ड्रैसिंग स्टाइल अपनाने को प्रेरित कर रही हैं.

‘सरस्वती चंद्र’ धारावाहिक की कुमुद ने मार्केट में फिर से फुलस्लीव्स, लौंग और लैस वाली कुरती का चलन शुरू किया है, जो युवतियों की पहली पसंद बन गई है.

टीवी धारावाहिकों की इन अभिनेत्रियों का युवतियों पर इतना प्रभाव है कि वे खुद को अक्षरा, कुमुद जैसी दिखाना चाहती हैं. आज जो फैशन धारावाहिक में दिखता है, कुछ दिनों बाद बड़ेछोटे शहरों से ले कर गांवों कसबों तक में दिखने लगता है.

धारावाहिक ‘कबूल है’ की जोया ने कालेज की युवतियों में जींस टक इन टौप व जैकेट के साथसाथ शौर्ट कुरती का चलन भी शुरू किया, जो काफी पौपुलर है.

सैलिब्रिटी कलैक्शन: छोटे परदे की सैलिब्रिटी स्टार्स की फैशन पौपुलरिटी का ही कमाल है कि आप को यह सैलिब्रिटीज स्टाइल कलैक्शन औन लाइन भी मिल जाएगा. जहां आप अपनी पसंद के स्टार का ड्रैसिंग स्टाइल व ज्वैलरी की औनलाइन शौपिंग कर सकती हैं.

पुराने जमाने के पिटारे से निकला फैशन

वह ज्वैलरी जिसे कभी हमारी दादीनानी पहना करती थीं आज राजस्थानी बैकग्राउंड के सभी धारावाहिकों की महिला किरदारों की फैशन ज्वैलरी बन गई है. बाजूबंद, कमरबंद, मांगटीका, जड़ाऊ गहने आज टीवी सीरियल के चलते घरघर की पहचान बन गए हैं.

सोने की बढ़ती कीमत के कारण टीवी सीरियलों में आर्टिफिशियल ज्वैलरी का के्रज भी महिला दर्शकों के सिर चढ़ कर बोल रहा है. सोनेचांदी के मुकाबले सस्ती होने के कारण यह ज्वैलरी महिलाओं की फैशन डिमांड को पूरा कर रही है.

टीवी धारावाहिक ‘जोधा अकबर’ व ‘महाराणा प्रताप’ के गहनों की डिमांड महिलाओं में ज्यादा है. पुराने फैशन की ज्वैलरी को दोबारा फैशन में लाने का क्रैडिट टीवी धारावाहिकों को ही जाता है.

टीवी सैलेब्स का स्टाइल अपनाने में पुरुष भी पीछे नहीं. टीवी धारावाहिकों में पुरुषों का स्टबल यानी छोटी दाढ़ी रखने का फैशन भी आज युवाओं को काफी भा रहा है, जो वास्तव में हौट स्टेटमैंट है. इस में खर्च भी कम आता है और यह स्टाइल लड़कियों को भी आकर्षित कर रहा है.

कई बार टीवी धारावाहिकों के फैशन व डै्रसिंग स्टाइल से दर्शक इतना प्रभावित होते हैं कि बिना सोचेसमझे उसे अपना लेते हैं, जो उन्हें हंसी का पात्र बना देता है. इसलिए उत्सव के इस सीजन में टीवी सितारों का ड्रैसिंग स्टाइल तो जरूर फौलो करें पर थोड़ा ध्यान से.

असली सुख बचत में ही

एक सेमी बैंकिंग कंपनी ने टैलीविजन विज्ञापन जारी किए हैं जिन में मुख्य किरदार बारिश में या तो पैदल चल कर काम पर निकलता है या पैसा बचाने के लिए औटो की जगह बस लेता है. कंपनी का दावा है कि ऐसे ही लोगों को कंपनी आसानी से कर्ज देती है.

इस में शक नहीं है कि असली सुख बचत में है. कम खर्चों में है. ज्यादातर विज्ञापनबाजी कहती है कि सुख पाने के लिए खर्च करो, ज्यादा खर्च करो जबकि विज्ञापनों का असल उद्देश्य है सही दाम पर अच्छा सामान दिलवाना और ग्राहकों को उन की चौइस देना. आजकल होड़ लगी है कि लोग खरीदें, ज्यादा खरीदें पर यह कोई नहीं बता रहा कि पैसा बचाइए ताकि कल सुरक्षित रहे.

ऐसा नहीं कि पैसा बचाने के चक्कर में कंजूस मक्खीचूस बन जाएं. इस से और ज्यादा नुकसान होता है. जीवन स्तर खराब हो जाता है. सही जगह खर्च करने में भी हिचक होने लगती है. पढ़नेलिखने तक में पैसा खर्च करना बंद कर दिया जाता है. बचत के नाम पर दूसरों का पैसा हड़पना शुरू कर दिया जाता है और घर वालों पर एक उदासी छा जाती है.

पर दूसरी तरफ जो दोपहर में 2 टोस्ट सेंक कर खाने की कोशिश कर रहा हो, उसे बाजार का महंगा सैंडविच डिलीवर करा करपत्नी दफ्तर में काम कर के भी पैसा बचाने वाली बात नहीं कर रही, बरबादी की बात कर रही है, जो अनावश्यक है और जिस का विरोध होना चाहिए. मौजमस्ती के लिए 500 भी खर्च करें पर जहां 5 में काम चल सकता हो वहां 50 याक्व500 खर्च कराना ऐश करना नहीं मूर्खता है.

बचत के बल पर ही चीन, जापान जैसे देशों ने उन्नति की है. बचत के बल पर ही अमीर देशों में गए गरीब देशों के मजदूरों ने साम्राज्य खड़े किए हैं. इन में भारतीय, चीनी, नाइजीरियाई, यहूदी, व इरानी शामिल हैं, जो अमेरिका में जा कर खाली हाथ बसे थे पर 2 पीढ़ी बाद अमेरिका में अमीरों में गिने जाने लगे हैं.

हर घर को बचत करना सीखना चाहिए. खुद काम करना चाहिए, ज्यादा से ज्यादा और खाली हाथ बैठना नहीं चाहिए, न टैलीविजन स्क्रीन के आगे न मोबाइल की स्क्रीन पर.

पल भर का जनून, छीने जीवन का सुकून

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1 दिन में लगभग 92 महिलाएं बलात्कार का शिकार बनती हैं. साल 2012 में दर्ज किए गए रेप केसेज की संख्या 24,923 थी, जो कि साल 2013 में बढ़ कर 33,707 हो गई. रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया कि ज्यादातर बलात्कार पीडि़तों की उम्र 14 से 18 वर्ष (8,877 मामले) और 18 से 30 वर्ष (15,556 मामले) के बीच थी.

यू. एन. क्राइम ट्रैंड सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार बलात्कार के मामलों में भारत का स्थान विश्व में तीसरा है. एनसीआरबी की रिपोर्ट में इस से भी ज्यादा चौंकाने वाला तथ्य दिया गया है कि भारत में दर्ज किए गए बलात्कार के मामलों में ज्यादातर ऐसे हैं जिन में बलात्कार करने वाला या तो पीडि़ता का कोई रिश्तेदार, पड़ोसी था या फिर उस का कोई बेहद करीबी व्यक्ति था.

मेरे जैसी शायद ही कोई और लड़की होगी. न बैंडबाजा, न मेहंदी की रस्म, न संगीत की रात. न वरमाला पड़ी, न फेरे हुए. फिर भी मैं कन्या से औरत बन गई. क्या कोई मेरे दुख को महसूस कर सकता है? नहीं, क्योंकि जा के पांव न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर परायी. मौखिक सहानुभूति प्रकट करने वाले तो बहुत आए, लेकिन हार्दिक संवेदना महसूस करने वाला कोई नहीं. कुदरत का यह कैसा न्याय है? करे कोई भरे कोई. नारी की क्या गलती है? उसे क्यों इतना कमजोर बनाया? उस पर ज्यादतियां क्यों होती हैं? जबरदस्ती करने वाला शान से छुट्टा घूमता है और जिस के साथ

जबरदस्ती हुई होती है वह सिर नीचा किए, अपराधबोध से ग्रस्त घर में छिपती है.

मैं एक मध्यवर्गीय परिवार की लाडली बेटी हूं. मातापिता की तीसरी संतान. लड़के की चाह में परिवार में 4 लड़कियां हो गईं. फिर भी लड़कियां मातापिता की लाडली तो होती ही हैं, क्योंकि वे यह जानते हैं कि ये पराया धन हैं. मैं भी अपने मातापिता की लाडली थी, खासतौर पर इसलिए कि अपने परिवार में सब से सुंदर थी. मेरी पढ़ाई पूरी हो गई थी. मातापिता को मेरी शादी की चिंता थी. मुझ से 2 बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी. अब मेरी बारी थी. वे लड़का ढूंढ़ रहे थे, लेकिन दहेज का दानव दाल नहीं गलने देता था. इसलिए जब तक शादी नहीं होती तब तक के लिए पिताजी ने एक गारमैंट ऐक्सपोर्ट हाउस में नौकरी दिलवा दी. सुंदर लड़कियों को नौकरी मिलने में कहां मुश्किल होती है, फिर मैं तो पोस्ट गै्रजुएट थी. ड्राइंग अच्छा बनाती थी. सिलाई का भी ज्ञान था.

उस समय मेरा 26वां वर्ष चल रहा था. यौवन की इस अवस्था में हर लड़की सुंदर लगती है. फिर मैं तो पैदाइशी सुंदर थी. यौवन खुद सब से बड़ा शृंगार है, उसे और विशेष शृंगार की जरूरत नहीं होती. पर इस उम्र में सजनेसंवरने की नैसर्गिक चाह होती है ताकि जो देखे, तारीफ करे और हम गर्व महसूस करें. चूंकि मैं गारमैंट ऐक्सपोर्ट कंपनी में काम करती थी, इसलिए अच्छे कपड़े पहनने का शौक हो गया. कंपनी में कुल 10 लोगों का स्टाफ था. बौस और गार्ड को छोड़ कर स्टाफ में 3 फीमेल थीं. बाकी सब मेल. मेरा काम लेडीज गारमैंट्स की डिजाइनिंग का था. डिजाइन तैयार होने पर कपड़े बनते थे. सारा स्टाफ अपने काम में लगा रहता था. केवल सुबह की चाय सब लोग साथ पीते थे. तभी आपस में कुछ बातचीत होती थी. मेरे साथ की 2 लड़कियां जो मेरी सहेलियां भी बन चुकी थीं तो मेल स्टाफ के साथ जल्दी घुलमिल जाती थीं, पर मुझे ऐसा करना असहज लगता था. सहेलियां मुझे रूपगर्विता कहती थीं. चाय के समय मैं अधिकतर चुप ही रहती थी. नीचे मुंह कर के सब की बातें सुनती रहती थी.

उस दिन मैं 3 दिन की छुट्टी के बाद औफिस पहुंची. सप्ताह का आखिरी दिन था. अधिकतर लोग छुट्टी पर थे. मैं सपरिवार एक शादी में गई थी और उसी दिन शादी से लौटी थी अत: साड़ी पहने ही औफिस आ गई. जिस ने भी देखा तारीफ की कि बहुत अच्छी लग रही हो.

दोपहर बाद जो थोड़ाबहुत स्टाफ आया था, वह भी चला गया. मुझे 3-4 दिन का काम पूरा करना था. अत: कुछ डिजाइन बनाए. फिर सोचा बौस को दिखा कर स्वीकृति ले लूं ताकि गारमैंट्स सिलने चले जाएं. यह काम खत्म कर के मैं भी घर 1 घंटा पहले ही चली जाऊंगी, सोच कर मैं 4 डिजाइनें हाथ में ले कर बौस के कैबिन में पहुंची.

हमारे बौस लंबे कद के स्वस्थ, बलिष्ठ व्यक्ति थे. उम्र होगी करीब 30 वर्ष. अभी अविवाहित थे. कुछ शर्मीले थे. खासतौर पर लेडी स्टाफ के साथ. जब मैं कैबिन में गई तो अकेले थे. मुझे देख कर मेरी ड्रैस की तारीफ करने लगे. अपनी तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती. मुझे भी अच्छी लगी. मैं ने नई डिजाइंस के चार्ट उन्हें देखने के लिए दिए तो मेरा हाथ उन के हाथ से छू गया. मुझे सिहरन सी हुई.

उन्होंने कहा कि सौरी, बट इट इज माई प्लेजर. मैं शरमा गई. उन्होंने डिजाइंस को गौर से देखना शुरू किया. मैं सामने बैठी रही. तभी पंखे की हवा से एक डिजाइन का चार्ट उड़ कर उन की कुरसी से दूर जा गिरा. शिष्टाचार के नाते मैं उठी और झुक कर उसे उठाने लगी. तभी मेरी साड़ी का पल्लू कंधे से खिसक कर नीचे गिर गया. मैं ने पल्लू ठीक कर आंखें ऊपर उठाईं तो देखा बौस मुझे ही आंखें फाडे़ देख रहे हैं. मुझे शर्म आई, इसलिए डिजाइन का चार्ट टेबल पर रख कर बाहर जाने लगी. बौस ने मुझे रोकने के लिए हाथ बढ़ाया और मेरा हाथ पकड़ लिया, परंतु मैं ने झटके से छुड़ा लिया. जब मैं दरवाजे की तरफ बढ़ी तो बौस ने झपट कर मुझे पकड़ने की कोशिश की. उन के हाथ में मेरे ब्लाउज का पिछला हिस्सा आ गया. आजकल ब्लाउज होते भी कितने बड़े हैं. बित्ते भर का ब्लाउज उस झपट्टे में आ कर फट गया. मैं तो शर्म के मारे जमीन में गड़ गई. मेरे दोनों हाथ अपनेआप मेरी लज्जा को ढकने में लग गए. बौस तो पागल हो चुके थे. उन्होंने अपनी बलिष्ठ भुजाओं में मुझे कस लिया. मैं छटपटाई पर कुछ न कर सकी. मेरी चेतना न जाने कहां चली गई. दिमाग शून्य से भर गया. मेरा विरोध ढीला पड़ता गया. मुझे लगा कि मैं तेज आंधी में किसी सूखे पत्ते कि तरह कहीं उड़ी जा रही हूं. बरसात में जिस तरह कागज की नाव पानी के बहाव के साथ बहती है, मेरी भी वही हालत थी. धीरेधीरे मेरी आंखें मुंद गईं. मैं बिलकुल होश खो बैठी. सच कहूं तो मुझे उस समय अवर्णनीय आनंद की अनुभूति हुई थी. हालांकि अब तो सोच कर भी ग्लानि होती है.

जब सब कुछ खत्म हो गया तो बौस उठे और बोले कि आई एम सौरी और फिर बाथरूम में चले गए. मैं ने कपड़े ठीक किए और अपने कमरे में आ कर रोने लगी. फिर चुपचाप बैग ले कर लुटी हुई अपने घर आ गई. घर वालों ने मुझे बेहाल देख कर पूछना शुरू किया तो मुझे फिर रोना आ गया. बहुत देर तक रोती रही फिर सब कुछ बता दिया. सब ने मिल कर तय किया कि थाने में एफआईआर लिखवाते हैं.

आगे हुआ यह कि बौस को 3 साल की सजा हो गई. लेकिन मुझ बेकुसूर को तो जिंदगी भर की सजा मिली. कौन मुझ से शादी करेगा? क्या कभी मेरी डोली उठेगी? क्या सुंदर होना कोई अपराध है? इस पुरुषप्रधान समाज में बलात्कार की सजा इतनी कम क्यों है? क्यों नहीं ऐसे व्यक्ति को कालापानी भेज देते? क्यों नहीं उसे फांसी पर लटकाया जाता ताकि अन्य किसी पुरुष की ऐसा करने की हिम्मत न हो?

बलात्कारी का आत्ममंथन

मनुष्य कितना ही बड़ा क्यों न हो, समय के सामने वह कुछ भी नहीं है. अच्छा समय व्यक्ति को जहां आसमान में पहुंचा देता है, वहीं बुरा समय उसे धरती पर पटकने में देर नहीं करता.

मैं एक छोटे कसबे के साधारण परिवार में जन्मा पुरुष हूं. कुदरत ने अच्छा शरीर दिया, लंबाचौड़ा और बलिष्ठ. पढ़ाई में भी अच्छा था. लगन और मेहनत की मदद से कार्यक्षेत्र में सफलता और तरक्की मिलती गई. मैं कार्य में इतना व्यस्त रहता था कि पता ही नहीं चलता था कि कब दिन हुआ और कब रात. कुछ सोचने का समय ही नहीं मिलता था. नतीजा यह हुआ कि मैं 30 साल का हो गया, पर अभी तक कुंआरा था.

यह मेरी तीसरी नौकरी थी. गारमैंट ऐक्सपोर्ट हाउस का मैं बौस था. प्राइवेट नौकरी में जितना अच्छा काम करो उतना ही पैसा और प्रमोशन दोनों मिलते हैं. व्यस्तता के कारण शादी के बारे में सोचने का कभी वक्त ही नहीं मिला. लेकिन इस कंपनी में एक लड़की गारमैंट डिजाइनर थी, जिसे बारबार देखने को जी चाहता था.

स्त्रियों की मानसिकता को समझ पाना बहुत मुश्किल है. शायद इसीलिए नारी को पहेली कहा गया है, जिसे समझना मुश्किल है. हमारी कंपनी की गारमैंट डिजाइनर भी इस का अपवाद नहीं थी. वह न केवल आधुनिकता का पुट लिए फैशनेबल कपड़े डिजाइन करती थी बल्कि पहनती भी थी. आज चाय के समय उसे देखा तो देखता रह गया. नीचे बंधी पारदर्शी साड़ी, लो कट व स्लीवलेस ब्लाउज जो पीठ पर नाममात्र की उपस्थिति दर्ज करवा रहा था, देख कर मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगा. खून का दौरा बहुत तेज हो गया. चाय पी कर मैं अपने कमरे में आ गया, परंतु उत्तेजना कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी.

अचानक कमरे का दरवाजा खुला और उस ने प्रवेश किया. मैं अभी भी उत्तेजित अवस्था में था. वह ड्रैस डिजाइंस दिखाने आई थी, परंतु मेरा ध्यान तो कहीं और था. बातोंबातों में मेरा हाथ उस के हाथ से छू गया. कितना मृदु स्पर्श था. मन में आया जीवन भर उस का हाथ थामे रहूं. तभी हवा से उड़ कर एक डिजाइन का चार्ट नीचे गिर गया. वह उसे उठाने के लिए झुकी तो उस की साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया. मुझे लगा मेरे दिमाग में कोई विस्फोट हुआ है और मेरी सोचने की शक्ति खत्म हो गई. मैं इंसान से शैतान बन गया. मेरा पूरा शरीर ज्वालामुखी की तरह अंदर ही अंदर फूट पड़ने के लिए सुलग रहा था. अंत में ज्वालामुखी फूट पड़ा, लावा निकल गया और सब कुछ शांत हो गया. 

मगर अब इतने दिनों बाद मुझे अपने किए पर पछतावा हो रहा है और अपनेआप से ग्लानि भी. मुझे क्या हक था किसी की जिंदगी बिगाड़ने का. पुलिस रिपोर्ट हुई, अदालत में केस हुआ, मुझे सजा हुई. एक क्षण की कमजोरी ने मुझे कहां से कहां पहुंचा दिया. मैं सोचता हूं मेरी जो बदनामी हुई क्या वह मृत्यु से कम है? इस से तो अच्छा था मौत ही आ जाती.

मनोविश्लेषक का दृष्टिकोण

हमारे समाज की संरचना ही ऐसी है कि पुरुष और नारी की सामाजिक स्थिति बहुत भिन्न है. जो स्वतंत्रता पुरुष संतान को उपलब्ध है वह स्वतंत्रता स्त्री संतान को दुर्लभ है. शुरू से ही लड़कों और लड़कियों को अलगअलग रखा जाता है. अलग परवरिश, अलग परिवेश, अलग स्कूल, अलग कालेज. हालांकि बड़े शहरों में यह स्थिति बदल रही है, लेकिन उस की भी अपनी समस्याएं हैं. किशोरवय और युवावस्था में विपरीत सैक्स के व्यक्ति के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है. समस्या तब आती है जब यह आकर्षण सामाजिक मान्यताओं और वर्जनाओं को तोड़ता है. ऐसा न हो इस के लिए स्त्री व पुरुष दोनों में कामभावना के जागरण, उत्तेजना व उस की अनुक्रिया का अंतर समझना होगा. पुरुषों की कामभावना मुख्य रूप से उन के देखनेसुनने पर निर्भर रहती है. वे स्त्री या उस के शरीर को देखने भर से चाहे स्वप्न में या चित्र में या फिर वास्तव में बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं और यह उत्तेजना अपनी तृप्ति चाहती है. शिखर पर पहुंच कर क्षरण के चरमआंनद की प्राप्ति के बाद उत्तेजना उतनी ही जल्दी ढल जाती है, इसलिए पुरुष बाद में काम से अनासक्त हो जाते हैं.

लड़कियों और स्त्रियों को पुरुष का यह मनोविज्ञान समझना बहुत जरूरी है, क्योंकि जानेअनजाने वे ऐसी ड्रैस पहन लेती हैं, जो शरीर की नुमाइश करती है. उस का प्रभाव पुरुषों पर कई बार क्षणिक उत्तेजना व आवेश का कारण बनता है. मानसिक तौर पर हर पुरुष बलात्कारी है. वह सपनों या खयालों में परायी स्त्रियों को भोग चुका होता है. पर वास्तविकता में वह किसी का बलात्कार करेगा या नहीं, यह कई बातों पर निर्भर करता है. जैसे उस समय एकांत है या नहीं, उत्तेजना का कारण, व्यक्ति विशेष का मानसिक चरित्र एवं परिवारिक संस्कार आदि.

जज का फैसला

हमारे देश की न्याय प्रणाली मुख्यतया गवाहों के बयानों पर निर्भर करती है. गवाह सच्चा हो या झूठा उस की बात मान ली जाती है. लेकिन उस समय क्या किया जाए जब कोई चश्मदीद गवाह ही न हो? बलात्कार यानी रेप इसी श्रेणी का अपराध है, जिस में कोई गवाह नहीं होता. गवाहों के अभाव में जज को अपना फैसला परिस्थितिगत साक्ष्य एवं मैडिकल जांच के आधार पर देना होता है. अत: ऐसे मसलों में फैसला देना बहुत मुश्किल होता है. इस के अलावा बलात्कार पीडि़ता और उस के परिवार वालों की झिझक, पुलिस व समाज का नजरिया, बलात्कारी की ऊंची पहुंच अथवा उस की मनी पावर, ये सभी अंतत: मुकदमे के सही फैसले में बाधक बनते हैं. नतीजतन बलात्कारी छूट जाते हैं या सजा कम करवा लेते हैं. इस मुकदमे में मुझे फैसला देना था. पीडि़ता के प्रति संवेदनशील होते हुए भी फैसला तो कानूनसम्मत देना था. बलात्कार के मामले में हमारा कानून बहुत लचर है और अधिकतम 7 साल की सजा होती है. पीडि़ता की मैडिकल रिपोर्ट तथा दोनों के कपड़ों पर लगे धब्बों की डीएनए व अन्य जांचों से बलात्कार की पुष्टि तो हुई, परंतु बचाव पक्ष बलात्कारी की पूर्व छवि, पीडि़ता से पूर्व पहचान और अन्य तर्कों से यह साबित करने में सफल रहा कि पीडि़ता का रवैया सहयोगात्मक था. इस वजह से मुझे सजा कम कर के 3 साल की कैद की सजा सुनानी पड़ी. काश, हमारे कानून अधिक कड़े होते.

पुलिस अफसर का कथन

मुझे पुलिस महकमे में काम करते हुए 25 साल हो गए है. मैं ने अपने कार्यकाल में बलात्कार अथवा रेप के केसेज बहुत देखे. गांवों के अधिकतर मामलों में तो एक अजीब बात देखने को मिली. आरोपी शादी करने का वादा कर के या बहलाफुसला कर भगा कर लड़की के साथ लगातार सैक्स संबंध बनाता रहता है. लड़की भी शादी के नाम पर वह सब करने को तैयार हो जाती है, जो शादी के बाद करना चाहिए. यह सिलसिला चलता रहता है. कभीकभी तो महीनों तक. दिक्कत तब आती है जब आरोपी शादी से मुकर जाता है. तब यह सैक्स संबंध रेप बन जाता है.

मेरे कार्यकाल में यह केस तो ऐसा आया जो इन सब से अलग था. यह केस तो यह बता रहा था कि परिस्थितिवश कैसे एक सामान्य व्यक्ति रेप कर बैठता है. यह व्यक्ति पढ़ालिखा एक कंपनी में अच्छे ओहदे पर था. पीडि़ता उसी के औफिस में काम करने वाली सुंदर, सुशील, फैशनेबल कन्या थी. औफिस में दोनों अकेले थे. जबकि किसी भी लड़की को परपुरुष के साथ अकेले नहीं रहना चाहिए. और रहना ही पड़े तो सावधान रहना चाहिए. विपरीतलिंगी जवान सहकर्मियों में आवेश में क्या कुछ घटित नहीं हो जाता है. लड़की की तरफ से एफआईआर दर्ज की गई. नतीजतन लड़के को 3 साल की सजा हुई. उस की अच्छीखासी नौकरी भी हाथ से चली गई और समाज में बदनामी हुई वह अलग.

कहते हैं बद अच्छा बदनाम बुरा. रेप केस में तो यह अक्षरश: सत्य है. ऐसी बातों को लोग मजा ले ले कर कहते सुनते हैं. लड़की की भी बदनामी हुई. उस का परिवार शहर छोड़ कर चला गया. पता नहीं उस की शादी हुई या नहीं. लड़का सजा काट कर आ गया है, परंतु नौकरी नहीं मिल रही है. जहां भी जाता है उस की बदनामी पहले पहुंच जाती है. दोनों को 3 मिनट के लिए जीवन भर का कर्ज चुकाना पड़ रहा है.

जीवन को आसान बनाए बीमा पौलिसी

भारत जैसे बढ़ती आबादी वाले देश में जीवन बीमा को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता, जितना दिया जाना चाहिए. जबकि जीवन बीमा सिर्फ आप के पैसों को ही सुरक्षा प्रदान नहीं करता, बल्कि आप का भविष्य भी सुरक्षित करता है.

आज आमदनी के नए स्रोत की आवश्यकता है. यही वजह है कि सरकारी और निजी कंपनियों ने इस ओर दिलचस्पी दिखाई है. फलस्वरूप आज बैंकों की करीब 90 हजार शाखाएं भारत में हैं, जिन में से 15 से 20% बीमा का व्यवसाय भी कर रही हैं. इसलिए बैंक बीमा पौलिसी का सरल माध्यम बन गए हैं. समझना यह है कि आप अपने बैंक से बीमा पौलिसी कैसे लें :

हर बैंक का बीमा अधिकारी ग्राहक को पूरी जानकारी के साथ सभी कागजात व फार्म भी उपलब्ध करवाता है. बीमा राशि अधिक होने पर बैंक अधिकारी बीमा कंपनी की सहायता से मैडिकल परीक्षण का भी प्रबंध करवाता है. ग्राहकों का बैंक के साथ लंबा संबंध रहता है. सभी सहकारी क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के कई बड़े बैंक भी इंश्योरैंस का काम कर रहे हैं. बस, समझना यह है कि आप बैंक से बीमा कैसे लें. आईआरडीए के अनुसार बैंक की शाखाओं में एक बीमा अधिकारी होता है, जिसे ‘स्पेसिफइडपर्सन’ भी कहते हैं. वह व्यक्ति बैंक की शाखाओं में ग्राहक की पूरी जानकारी उपलब्ध करवाता है. बीमा कराने से पहले उस के सभी पहलुओं पर अच्छी तरह गौर कर लें.

अब जानिए एक खास पौलिसी के बारे में

रिवर्स मौडगेज

5 साल पहले रिवर्स मौडगेज स्कीम बैंकों द्वारा बाजार में लाई गई, लेकिन यह अधिक लोकप्रिय नहीं हो पाई. 3 साल पहले सैंट्रल बैंक औफ इंडिया के चेयरमैन और नैशनल हाउसिंग बैंक के चेयरमैन के साथ स्टार यूनियन दाईची लाइफ इंश्योरैंस के मैनेजिंग डायरैक्टर और सीईओ के. सहाय की बैठक हुई. इस बैठक में रिवर्स मौडगेज विषय पर चर्चा हुई.

के. सहाय ने सुझाव दिया कि रिवर्स मौडगेज लोन स्कीम को बीमा कंपनी के लाइफ एन्यूनिटी स्कीम के साथ जोड़ दिया जाए तो ग्राहकों के लिए यह अधिक आकर्षक होने के साथसाथ बैंक के द्वारा दिया गया पैसा सुरक्षित रहेगा. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए जनवरी 2009 में एक रिवर्स मौडगेज लोन एनेवल एन्वीटी प्लान को लौंच किया गया. इस के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं :

कोई भी व्यक्ति जिस के पास अच्छा मकान है, पर उस की बुढ़ापे में कोई नियमित आय नहीं है. वह इस मकान के मूल्यांकन के आधार पर नियमित मासिक आय प्राप्त कर सकता है.

रिवर्स मौडगेज लोन के तहत मकान का स्वामित्व आजीवन पति या पत्नी के पास रहता है. किसी भी स्थिति में वे मकान से बाहर नहीं होते.

एन्यूनिटी की रकम व्यक्ति की उम्र पर निर्भर करती है. 60 साल की उम्र वाले व्यक्ति के मकान की कीमत अगर 50 लाख है जिस में से 30 लाख इंश्यारैंस कंपनी को मिला है, तो आज के हिसाब से उस रकम में से करीब 20 हजार रुपए प्रति महीने तक उस व्यक्ति को मिलते हैं. इसे लोगों तक पहुंचाने के लिए स्टार यूनियन दाईची इंश्योरैंस कंपनी ने आसान शर्तें रखी हैं.

धन सुरक्षा प्लैटिनम

इस बारे में के. सहाय आगे कहते हैं कि यह सिंगल प्रीमियम पौलिसी है, जिस के अंतर्गत बीमा राशि पूरी तरह गारंटीड होती है. ग्राहक को इस पौलिसी को खरीदते समय पूरी सूचना लिखित रूप में दी जाती है. 1 लाख रुपए तक की रकम पर इनकम टैक्स की छूट है. 5 करोड़ तक का रिस्क इस में कवर किया जा सकता है. ये रिस्क फ्री है. अगर बीच में पैसे की आवश्यकता है तो सरेंडर करने की आवश्यकता नहीं पड़ती. लोन लेने की भी इस में व्यवस्था है.

फरवरी में स्टार यूनियन दाइची लाइफ इंश्योरैंस 3 साल पूरे करेगी, 3 साल में कपंनी ने साढ़े 3 लाख लोगों को बीमा पौलिसी बेची है. पिछले साल 933 करोड़ प्रीमियम हासिल कर कंपनी को इस साल 15 सौ करोड़ प्रीमियम प्राप्त करने की संभावना है. 34 साल से इस क्षेत्र में काम कर रहे के. सहाय का मानना है कि बीमा योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी कम है, इसलिए वे महिलाओं के लिए छोटे पैमानों पर एजेंसी चैनल बनाने वाले हैं.

मैं जैसा था वैसा ही हूं : रणवीर सिंह

29 वर्षीय अभिनेता रणवीर सिंह ने अलगअलग भूमिका निभा कर उस मुकाम को हासिल कर लिया जहां पहुंचना आसान न था. फिल्मों में आने की इच्छा उन्हें शुरू से थी. लेकिन जिस तरह फिल्म इंडस्ट्री में फिल्मी परिवारों के बच्चों को लौंच किया जा रहा था उसे देख कर उन के लिए कोई जगह होगी या नहीं, यह सोच कर उन्होंने क्रिएटिव राइटिंग की तरफ गंभीरता से सोचना शुरू किया. इसी उद्देश्य से उन्होंने इंडियाना यूनिवर्सिटी से क्रिएटिव राइटिंग की कला सीखी. लेकिन उन्हें तो फिल्मों में काम करना था. अत: वापस मुंबई आ गए. इसी बीच उन्हें यशराज बैनर तले काम करने का मौका मिला और फिर वे फिल्म इंडस्ट्री में रम गए.

रणवीर को बनावटी लोग पसंद नहीं. वे किसी भी बात को कहने में कभी संकोच नहीं करते. पिछले दिनों उन से बातचीत हुई. पेश हैं, उस के कुछ खास अंश:

आप अपने कैरियरग्राफ को कैसे देखते हैं?

मैं अपने काम से बहुत संतुष्ट हूं. मैं ने हमेशा अलगअलग भूमिकाएं निभाई हैं. जोया अख्तर की फिल्म ‘दिल धड़कने दो’ का काम चल रहा है. यह बहुत ही वास्तविक और फ्रैश फिल्म है. यह संपूर्ण फिल्म है. इस तरह की फिल्में बहुत कम मिलती हैं. पहले मुझे शक था कि अभिनय के क्षेत्र में मैं सफल हो पाऊंगा या नहीं. पर अब लगता है कि ठीक जा रहा हूं, क्योंकि हर बार एक नया किरदार करने का औफर मिलता है. ‘बैंड, बाजा, बारात’ से ले कर ‘लेडीज वर्सेस रिकी बहल’, ‘लुटेरा’, ‘रामलीला’, ‘गुंडे’, ‘किल दिल’, ‘दिल धड़कने दो’ आदि फिल्में अपनेआप में अलग और बेहतरीन फिल्में हैं. मेरा काम दर्शकों को पसंद आ रहा है तो मैं सफल हूं. मैं आगे भी अच्छा काम करने की इच्छा रखता हूं.

आप बहुत ऐनर्जेटिक ऐक्टर माने जाते हैं. इस का राज क्या है?

कई बार लोग मुझे ऐसा कहते हैं पर यह ऐनर्जी मुझे लोगों से ही मिलती है, जो मुझे देखते हैं और मेरे बारे में अपनी प्रतिक्रिया देते हैं. मैं हमेशा लोगों को कुछ अधिक देना चाहता हूं. फिल्म ‘लुटेरा’ के समय मेरी पीठ की हड्डी टूट गई थी. 3 महीने मैं बैड पर पड़ा रहा. तब सोचता था कि पता नहीं ठीक होने पर दोबारा ऐक्शन, डांस कर पाऊंगा या नहीं. इस के बाद डेंगू हुआ. उस वक्त भी मुझे काम छोड़ कर आराम करना पड़ा. मैं अपने जीवन के हर काम को लास्ट समझ कर उसे पूरी तरह जी लेने की कोशिश करता हूं. फिर चाहे वह मां से मिलना हो या फिल्म की शूटिंग. शायद मैं इसी वजह से इतना ऐनर्जेटिक दिखता हूं.

अभी आप विज्ञापनों में भी काफी पौपुलर हो रहे हैं. क्या किसी स्क्रिप्ट में अपनी क्रिएटिविटी डालते हैं?

मैं किसी से कहता नहीं हूं कि मैं कुछ नया करूंगा या करना चाहता हूं. अगर कोई मुझ से मेरी राय मांगता है, तो मैं उसे अवश्य राय देता हूं. कई विज्ञापनों के क्रिएटिव औस्पैक्ट को मैं ने ही बनाया है. निर्देशक शाद अली हमेशा कुछ भी बनाते समय मुझ से परामर्श अवश्य लेते हैं. मैं 16 वर्ष की उम्र से उन से मिलता आ रहा हूं. वे मेरे भाई की तरह हैं. उन के साथ रह कर मैं ने काम सीखा, उन के साथ मैं ने असिस्टैंट डाइरैक्टर बन कर कई फिल्में बनाईं. उन्होंने ही मुझ में अभिनय कला को देख कर फिल्मों में काम करने की सलाह दी थी.

विज्ञापनों या फिल्मों को चुनते वक्त किस बात का खास ध्यान रखते हैं?

मेरा मानना है कि विज्ञापनों के जरीए गलत मैसेज नहीं जाना चाहिए. मैं नैगेटिव विज्ञापन नहीं करता. फिल्म वही चुनता हूं जिस में कुछ नयापन हो, जो अलग लगे और दर्शक मुझे याद रखें.

फिल्मों में आने के बाद आप की जिंदगी कितनी बदली है?

समय कम हो गया है. जिम्मेदारी बढ़ गई है. परिवार के साथ समय कम बिता पाता हूं. लेकिन अच्छी कहानियों पर काम करने की भूख बढ़ गई है. इस के अलावा कुछ अधिक बदलाव नहीं आया है. मैं जैसा था वैसा ही हूं.

आने वाली फिल्म कौन सी है?

‘किल दिल’ मेरी आने वाली फिल्म है, जिस में परिणीति चोपड़ा मेरे साथ है. उस ने अपनेआप को काफी निखारा है. बहुत प्रोफैशनल अभिनेत्री है.

आप किसे अपना आदर्श मानते हैं?

शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान आदि सभी ने मुझे प्रभावित किया है. इस के अलावा गोविंदा की सभी परफौर्मैंस मेरे लिए खास हैं. उन के साथ फिल्म ‘किल दिल’ में अभिनय करना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है. वे जबरदस्त अभिनेता हैं. हर किरदार में फिट हो जाते हैं.

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