बहकते कदम: भाग 4- रोहन के लिए नैना ने मैसेज में क्या लिखा था

लेखक- अरुण गौड़

नैना शादी के बाद से अकेली थी. लेकिन ऐसा नहीं कि उस की लाइफ में कोई आया नहीं. शादी के बाद उस की लाइफ में कृष्ण, वरुण और 4 वर्षों पहले तुषार आया था. उन से नैना के संबध तो थे जो शारीरिक तक पहुंचे लेकिन दिल तक नहीं. उन्होंने भी नैना को अपना बनाना चाहा लेकिन नैना सिर्फ अपनी ही बनी रही. कृष्ण ने तो शादी का प्रस्ताव भी दिया लेकिन नैना एक बार शादी कर के खुद को बांध चुकी थी. अब वह फिर से ऐसी गलती नहीं करना चाहती थी. वरुण भी उसे ले कर सीरियस था लेकिन नैना बस नौर्मल थी. हां, तुषार जरूर उस के साथ टाइमपास कर रहा था लेकिन उसे पता नहीं था कि नैना भी बस टाइमपास ही कर रही है. जैसे ही दोनों का वह टाइम पास हुआ, दोनों अलग हो गए.

पता नहीं क्यों तब से नैना ने किसी को अपनी लाइफ में आने की इजाजत ही नहीं दी. लेकिन इस बार यह दरवाजा रोहन के लिए हलका सा खुल चुका था. लेकिन मन में अभी भी संशय बना हुआ था कि रोहन, यार अगर संध्या को पता चल गया तो वह क्या सोचेगी… लोग क्या सोचेंगे…

इसी संशय के बीच झूलती हुई नैना का वह दिन कट चुका था. आज उस ने कई बार अपना फोन चैक किया लेकिन रोहन का एक भी मैसेज नहीं था. उस के दिल में हलकी सी बेचैनी थी. वह अपने घर पहुंची. आज उस की जिंदगी में कुछ अलग सा, कुछ नया सा हो रहा था. वह रोहन को मैसेज कर चुकी थी. लेकिन फिर उस का कोई रिप्लाई नहीं आया. आज उसे अपने अंदर कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी. रात के 10 बज चुके थे. उस ने अपनी बेचैनी को कम करने के लिए नहाने का इरादा किया. वह काफी देर तक बाथटब में लेटी नहाती रही. लेकिन उसे पानी से ठंडक नहीं मिल रही थी. वह नहा कर बाहर आई. अपने शरीर पर टौवल ढके हुए आईने के सामने थी. उस ने खुद को देखा, और कहा, ‘हां नैना, कुछ तो बात है तुझ में.’ उस ने अपने बाल सुलझाए और ऐसे ही आ कर बिस्तर पर लेट गई. फोन उठाया और व्हाटसऐप चैक किया. सभी के मैसेज थे लेकिन रोहन का कोई मैसेज न था. उस ने रोहन की डीपी खोली और उसे देखने लगी. न जाने उसे क्या हुआ कि उस ने रोहन की डीपी को चूम लिया. उसे लगा कि रोहन उस के पास है. उस का नशा उस पर छा रहा था. वह अंगड़ाइयां लेने लगी. उस का टौवल खुल चुका था. और उस का खुद पर अब कोई काबू न था. उस का हाथ शरीर पर घूमते हुए नीचे की तरफ जा रहा था. वह आज खुद को रोक न पाई. वह रोहन को अपनी आगोश में इमेजिन कर के खुद को तृप्त करने लगी. एक अरसे के बाद आज उसे ऐसा नशा हुआ था. और कुछ समय बाद यह नशा अपने चरम पर पहुच कर शांत हो गया. नैना को सुकून सा मिल रहा था. और इस सूकन में खलल डाले बिना वह ऐसे ही सो गई.

ये भी पढ़ें- वे नौ मिनिट: लौकडाउन में निम्मी की कहानी

सुबह नैना की आंखें खुलीं. खुद की ऐसी अस्तवयस्त हालत देख कर उसे हंसी आने लगी. उस ने आईना देखा और खुद को देख कर मुसकरा कर बोली, ‘पागल…’ लेकिन यह पागलपन नैना के ऊपर लगातार हावी होता जा रहा था. वह रोहन से मिलना चाहती थी. लेकिन अभी कल ही तो उस के घर गई थी. आज फिर से वहां जाने का कोई बहाना नहीं था उस के पास. वह अपना दिल मसोस कर रह गई. लेकिन शायद कुदरत उस की निराशा को समझ रही थी, सो उस ने उसे रोहन के घर जाने का एक मौका दे दिया. संध्या का कौल आया, “हैलो नैना, अरे यार, एक काम था तुझ से.”

नैना बोली, “बोलो, क्या काम था?”

संध्या बोली, “अरे यार, मुझे आज एक फंक्शन में जाना है. कोई नई साड़ी है नहीं. जो हैं उन्हें मैं पहले ही पहन कर जा चुकी हूं. क्या तू मुझे अपनी औरेंज साड़ी दे सकती है, मैं कल ही उसे लौटा दूंगी?”

नैना ने कहा, “हांहां, क्यों नहीं, बिलकुल दे सकती हूं. कब है फंक्शन?”

संध्या ने कहा, “फंक्शन तो आज दिन में ही है, इसलिए साड़ी आज ही चाहिए थी.”

नैना बोली, “ठीक है, मैं तुम्हारे घर की तरफ ही आ रही थी, कुछ काम था, मैं ही साड़ी ले आऊंगी.”

संध्या बोली, “थैंक यू डियर, जल्दी आ जाना, मैं वेट कर रही हूं तुम्हारा.” और संध्या ने कौल काट दी.

नैना को बहाना मिल गया रोहन से मिलने का, उसे देखने का. वह जल्दी से तैयार हुई, औरेंज साड़ी ली और अपनी कार से चल दी संध्या के घर, नहीं रोहन के घर. अब संध्या तो उस के लिए एक बहाना है.

आज वह संध्या को साड़ी देने ही उस के घर आई थी. संध्या उस से बातें कर रही थी. लेकिन उस का ध्यान संध्या पर नहीं था. वह तो महसूस कर रही थी कि रोहन कहीं न कहीं से चोरीछिपे उसे देख रहा है. वह रोहन की ख्वाहिश पूरी करने के लिए तैयार थी और इस तरह बैठी थी कि रोहन उसे देखे तो देखता ही रहे. उस के खास अंगों से उस की नजर हटे ही न.

उस की चाय खत्म हो चुकी थी लेकिन तब भी रोहन उसे नहीं दिखा. वह खुद संध्या से पूछ नहीं सकती थी कि रोहन कहां है. लेकिन वह बिना जाने रह भी तो नहीं सकती थी. तभी संध्या ने कहा, “अच्छा, मैं साड़ी पहन कर दिखाती हूं कि कैसी लगती हूं.” और वह साड़ी चेंज करने लगी.

नैना को एक बहाना मिल गया था और इस बहाने को लपके हुए वह बोली, “अरे, यहीं चेंज करोगी क्या, कोई आ गया तो, रोहन भी घर पर होगा, वह भी आ सकता है.”

ये भी पढे़ं- परी हूं मैं: आखिर क्या किया था तरुण ने

“अरे नहीं, कोई नहीं आएगा. रोहन भी यहां नहीं है. कल रात उस के दोस्त के यहां पार्टी थी, वहीं गया हुआ है. अभी कौल किया था, तो बोला कि थोड़ा लेट आएगा,” संध्या ने कहा.

“ओह,” नैना के मुंह से निकला. जिस के लिए वह आई थी, जिस की नजरों से काफी देर से खुद को देख रही थी वह तो यहां था ही नहीं. नैना के मन में हलकी सी उदासी आ गई. अब उसे यहां रुकने का कोई फायदा नहीं था. वह सोफे से खड़ी हुई और बोली, “ओके संध्या, मुझे कहीं जाना है, तुम अपनी पार्टी एंजौय करो.”

“ओके, काम है तो जाओ, मैं कल साड़ी पहुंचवा दूंगी तुम्हें,” संध्या ने कहा.

“कोई नहीं यार, आराम से पहुंचा देना, कोई जल्दी नहीं है,” नैना ने कहा और वह अपने औफिस चली गई.

नैना सुबह किस मूड से उठी थी, लेकिन रोहन को न पा कर उस का मूड दिनभर खराब ही रहा.

आगे पढ़ें- नैना ने तो आज उलझन में…

बहकते कदम: भाग 3- रोहन के लिए नैना ने मैसेज में क्या लिखा था

लेखक- अरुण गौड़

उस ने रात बहुत मुश्किल से काटी थी, इसलिए उस ने अब वक्त जाया करना सही नहीं समझ, अपनी कार ले कर वह रोहन के घर चल दी. वह न जाने कितनी बार उस घर गई थी. लेकिन आज पहली बार रोहन से मिलने के लिए जा रही थी.

आज फिर से नैना को देख कर संध्या सरप्राइज्ड थी क्योंकि कल ही तो वह घर आई थी. अधिकतर वह हफ्ते में एकदो बार ही आती थी. लेकिन इस तरह से अगले ही दिन आना आज पहली बार था. इसलिए संध्या का आश्चर्यचकित होना बनता था. खैर, नैना आई तो किसी और काम से थी लेकिन वह संध्या को तो यह नहीं बता सकती थी, सो बोली, “अरे यार, आज औफिस की छुट्टी थी और घर पर मन नहीं लग रहा था, इसलिए तेरे पास आ गई. चल, चाय तो पिला.”

“हां, क्यों नहीं. चल किचन में, साथ में चाय भी बन जाएगी और गपें भी मार लेंगे,” संध्या ने खुश होते हुए कहा.

वे दोनों किचन में चली गईं और बातें करने लगीं. लेकिन नैना का मन बातों में नहीं, कहीं और था. उस की नजरें बारबार रोहन को ढूंढ रही थीं. लेकिन वह उसे कहीं दिख नहीं रहा था. आखिर उस ने संध्या से पूछ ही लिया, “तुम्हारे पतिदेव आए नहीं अभी तक औफिस टूर से?”

“नहीं, अभी नहीं, कौल आया था, शायद परसों तक आएंगे,” संध्या ने कहा.

“और रोहन भी नहीं दिख रहा, कहीं गया है क्या?” नैना ने घूमफिर कर अपने काम की बात पूछी.

“नहीं, गया तो कहीं नहीं है. आज भी छुट्टी है उस की. उस के पापा घर पर नहीं हैं तो आज पंक्षी बन रहा है. रात को दोस्तों के साथ घूमने गया था, देर से वापस आया और अभी तक सो रहा है. अभी चाय ले कर जाती हूं, फिर जगाती हूं उसे,” संध्या ने कहा.

ये भी पढ़ें- पछतावा : आखिर दीनानाथ की क्या थी गलती

“अरे रुको, तुम अपना काम निबटाओ, मैं रोहन को चाय दे आती हूं. वैसे, तुम तो रोज जगाती हो उसे, आज मैं जाती हूं चाय ले कर, देखती हूं मुझे देख कर कैसे सरप्राइज होता है,” नैना ने संध्या को रोक कर कहा.

“हां, ठीक है, तुम ही जा कर जगा लो उसे. मैं इतने में बाकी काम खत्म करती हूं,” संध्या ने कहा और चाय का कप नैना को थमा दिया.

नैना रोहन के कमरे मे गई. वह निश्चिन्त सो रहा था. रूम की लाइट औन होने पर उस ने अपनी आंखों पर हाथ धर लिया और बोला, “मम्मी, अभी नहीं उठना मुझे, प्लीज थोड़ी देर और सोने दो.”

“अच्छा, नहीं उठना तो सोते रहो, लेकिन कोई तुम से मिलने आया है, फिर उसे ऐसे ही जाना पड़ेगा,” नैना ने चाय का कप साइड में रखते हुए कहा.

नैना की आवाज सुनते ही रोहन की नींद उड़ गई. उस ने जल्दी से आंखें खोलीं. उस के सामने नैना थी, बाल खुले हुए, चेहरे पर मुसकान लिए. उसे देखते ही रोहन एकदम खड़ा हो गया और बोला, “नैनाजी, सौरी, मैम आप, यहां!”

“हां मैं, तुम्हारी मम्मी के पास आई थी, पता चला जनाब अभी तक सो रहे हैं तो सोचा कि आप को जगा दूं,” नैना ने रोहन की तरफ मुसकरा कर कहा.

रोहन, जो खुद के बाल और आलस से भरे चेहरे को ठीक करने की कोशिश कर रहा था, नैना से नजरें नहीं मिला पा रहा था.

“बहुत देर हो गई है डियर, अब उठ भी जाओ,” नैना ने कहा.

“हां, जी, उठ गया,” रोहन ने नजरें चुराते हुए कहा.

“दोस्तों के साथ इतना भी बिजी मत हुआ करो कि फोन भी चैक नहीं करते, कोई कौल या मैसेज भी करता होगा आप को,” नैना ने फोन की तरफ इशारा करते हुए कहा.

रोहन ने कुछ नहीं कहा. वह चुपचाप बैठा रहा.

“और तुम फ्रैश हो कर बहार आ जाओ, थोड़ी सी बातें हम से भी कर लेना,” नैना ने कहा और वह रूम से बाहर को चल दी.

नैना की कमर रोहन की तरफ थी. रोहन की नजरें ऊपर उठ चुकी थीं. उस बाडीफिट शौर्ट में नैना पीछे से बहुत हौट दिख रही थी. रोहन की नजरें उस के खास अंग पर थीं. नैना यह जानती थी कि रोहन के लिए ही तो वह यह ड्रैस पहन कर आई थी.

नैना बाहर आ कर सोफे पर बैठ गई और संध्या से बातें करने लगी लेकिन उस की नजरें रोहन के दरवाजे पर थीं. कुछ देर बाद रोहन बाहर आया. नैना उस के इंतजार में ही बैठी थी. उस के पैर एकदूसरे के ऊपर थे, इसलिए उस की शौर्ट मिडी थोड़ी और शौर्ट हो गई थी. उस की भरी हुई जांघें साफ दिख रही थीं. नैना का ध्यान रोहन पर था लेकिन उस ने नजरें उस से हटा रखी थीं क्योंकि वह जानती थी अगर रोहन को वह देखेगी तो वह उस की तरफ नहीं देख पाएगा.

रोहन उसे देख रहा था. नजरें उस पर जम चुकी थीं. नैना को यह पता था. फिर उस ने अचानक से रोहन की तरफ देखा. उस की नजरों को पकड़ लिया और मुसकराई, “आओ रोहन, उठ गए. बहुत लेट!”

“जी, जी हां, कल थोड़ा लेट सोया था. बस, इसलिए लेट हो गया,” रोहन ने कहा.

“अच्छा, तुम आंटी के पास बैठो, मैं दो मिनट में किचन से आई,” संध्या ने कहा और चली गई.

रोहन नैना के सामने बैठा था, नजरें नीची थीं उस की.

नैना ने उस का हाथ थामा और बोली, “क्या हुआ रोहन?”

“सौरी मैम उस रात के लिए, प्लीज, मम्मी से कुछ मत कहना.”

ये भी पढ़ें- खुद के लिए एक दिन

“पागल हो तुम, ऐसा कुछ नहीं है यार. तुम दोस्त हो मेरे. और दोस्तों की बात दोस्तों के बीच ही रहनी चाहिए, समझे. अच्छा, यह बताओ मैं कैसी लग रही हूं?” संध्या ने रोहन की आंखों में देखते हुए पूछा.

“हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत,” रोहन ने कहा.

“अरे यार, फौर्मल लाइन मत बोलो, वो बताओ जो मुझे देख कर तुम्हारे दिल में पहला खयाल आता है?”

नैना की बातों से रोहन अब नौर्मल हो चुका था. वह बोला, “मैं बताऊं, आप नाराज मत होना.”

“ओके, पक्का, नहीं नाराज होऊंगी. अब बोलो.”

“आप एकदम ‘सैक्स बम’ लग रही हो,” रोहन ने मुसकराते हुए कहा.

“ओह शैतान, झूठी तारीफ,” नैना ने हंस कर कहा.

“अरे, बहुत खिलखिलाने की आवाज आ रही है. क्या बात चल रही है आंटी-बेटे में,” संध्या ने आ कर कहा.

आंटी-बेटा… रोहन और नैना ने एकदूसरे की तरह देख कर सोचा और नैना ने धीरे से कहा, ‘बेस्ट फ्रैंड्स में…’ और दोनों हंसने लगे.

“अच्छा, मैं चलती हूं. मुझे कहीं जाना है, टाइम हो गया है,” नैना ने कहा और रोहन को बाय कर के चल दी. अपनी कार में बैठी नैना न जाने क्यों मुसकरा रही थी, उसे खुद भी मालूम नहीं था कि यह पागलपन वह क्यों कर के आई है.

आगे पढ़ें- नैना शादी के बाद से अकेली थी. लेकिन…

ये भी पढ़ें-अनकही पीड़: क्या थी अजय की आपबीती

बहकते कदम: भाग 2- रोहन के लिए नैना ने मैसेज में क्या लिखा था

लेखक- अरुण गौड़

रोहन ने एक नशे में यह सब कह तो दिया लेकिन नैना का गुस्से से भरा रिऐक्शन देख कर उस का सारा नशा उड़ गया. अब उसे लगा कि नैना को पाने के चक्कर में उस की दोस्ती भी खत्म हो गई, और हो सकता है कि वे मम्मी को यह सब बोल दें. क्या बेवकूफी कर दी उस ने. उस ने एकदो बार सोचा कि वह कौल कर के नैना से माफी मांग ले, लेकिन इस सब के बाद उस की हिम्मत न हुई कि वह कौल करे. उस का मन बहुत परेशान था. परेशानी में वह इधरउधर करवट बदलता रहा. पर पूरी रात उसे नींद न आई. वह रातभर अपनी इस बेवकूफी पर खुद पर गुस्सा करता रहा.

अगले दिन वह घर पर ही था. रात की घटना को ले कर उस का मन परेशान था. वह उदास सा अपने कमरे में पड़ा था. तभी उसे घर में किसी के आने की आवाज सुनाई दी. उस ने ध्यान से देखा, ये तो नैना हैं. ओह्ह गौड, ये रात वाली बात मम्मी को बोलने आई होंगी. इन के फोन में मेरे मैसेज भी होंगे. अब क्या होगा… सोच कर रोहन घबराने लगा.

खुद को कैसे भी कर के बचाने के इरादे से वह बाहर आया. नैना ने उसे देखा. लेकिन रोहन की हिम्मत न हुई कि वह उस से नजर मिला सके. उस ने नजरें चुरा लीं.

“अरे रोहन, नैना आंटी आई हैं, तुम ने हैलो भी नहीं बोला उन्हें,” रोहन की मम्मी ने कहा.

आंटी, ओह मेरी मम्मा, मेरे लिए ये आंटी नहीं हैं, रोहन ने मन में यह सोचा लेकिन कुछ कहा नहीं. बस, नजरें नीचे किए हुए ही बोला, “हैलो.”

“हैलो रोहन, कैसे हो,” नैना ने चेहरे पर गंभीरता ओढ़े हुए कहा.

ये भी पढ़ें-दादी अम्मा : आखिर कहां चली गई थी दादी अम्मा

“जी, ठीक हूं,” रोहन ने कहा और उस ने डरी सी आंखों से नैना को उस के मोबाइल की तरफ इशारा किया और अपने रूम में चला गया. रूम में जाते ही रोहन ने मैसेज टाइप किया, “सौरी नैनाजी, मुझ से गलती हो गई. प्लीज, मम्मी से मत कहना. आज के बाद ऐसा कभी नहीं होगा. आप ने मुझे अपना दोस्त कहा था, प्लीज एक बार मुझे दोस्त समझ कर माफ कर दो.”

अगले ही पल नैना के फोन पर मैसेज था. उस ने मैसेज पढ़ा और कुछ पल में ही उस के चेहरे पर गंभीरता की जगह मुसकान आ गई. रोहन उस की मुसकान देख रहा था, लेकिन आज उसे नैना की मुसकान से ज्यादा उस के रिप्लाई का इंतजार था. नैना ने कोई रिप्लाई नहीं किया. बस, वह संध्या के साथ बैठ कर बातें करती रही.

रोहन के कान लगातार उन की बातों पर लगे थे. लेकिन नैना ने उस के बारे में कुछ नहीं कहा. और थोड़ी देर गपशप करने के बाद वह वापस अपने घर चली गई. हमेशा नैना के आने का इंतजार करने वाले रोहन ने आज उस के जाने पर थोड़ी राहत की सांस ली.

नैना गुस्से से भरी रोहन के घर गई थी लेकिन मन में हलकी सी मुसकान ले कर वापस आई. सच तो यह है कि वह सोच कर गई थी कि कल रात जो हुआ, वह पूरा तो नहीं लेकिन थोड़ाबहुत तो रोहन की मम्मी को बताएगी ताकि वह उसे डांटे और उस के बिगड़ते कदमों को कुछ लगाम लगे. लेकिन रोहन की मुरझाई शक्ल, आंखों में डर और उस का इस तरह मैसेज कर के माफी मांगना… नैना का सारा गुस्सा खत्म हो गया. उसे लगा कि वह बच्चा है, यह सब बचपना है, एक बच्चे की तरह डर रहा है वह. इसलिए उस ने इस बचपने को खुद ही माफ कर दिया.

नैना ने रोहन की पिछले एक महीने की चैट पढ़ी. उसे महसूस हुआ कि रोहन की हर बात, हर तारीफ में उस के मन में क्या है, यह दिख रहा था. बस, मैं ही अनजान थी. और शायद उस के साथ मैं भी अपने पुराने समय का लुत्फ ले रही थी.

शाम को नैना बाथरूम से नहा कर बहार आई. वह टौवल में आईने के सामने खड़ी थी. अचानक से उसे रोहन की रात वाली पंक्तिया याद आईं जो रोहन ने उस की तारीफ में लिखी थीं. नैना आईने में खुद को देखने लगी, और बोली, ‘क्या सच में इतनी हसीन हूं मैं, एक एक जवान लड़का मेरे लिए शायरी करता है, मुझे अपनी आगोश में लेना चाहता है… कुछ तो बात है नैना तुझ में,’ उस ने खुद से कहा और खिलखिला कर हंसने लगी.

वह आ कर बैड पर लेट गई. उस ने रोहन की खिलखिलाती मुसकान वाली पिक देखी और फिर आंखें बंद कर के उस का उदास चेहरा याद किया. उसे लगा कि एक मुसकराते लड़के के चेहरे पर उस ने बिना मतलब उदासी के रंग भर दिए हैं. चलो, उसे फिर से खुश करते हैं.

नैना ने रोहन को अनब्लौक कर दिया और उसे मैसेज दिया, “हैलो रोहन.”

रोहन ने कोई रिप्लाई नहीं दिया, वह औनलाइन भी नहीं था.

नैना ने फिर कहा, “हैलो, कहां हो रोहन?”

लेकिन फिर कोई रिप्लाई नहीं था. नैना को लगा कि शायद कहीं बिजी होगा, इसलिए औनलाइन नहीं है, फ्री हो कर औनलाइन आ जाएगा. नैना अपना काम करने लगी. थोड़ी देर बाद उस ने फिर से मोबाइल चैक किया. रोहन अभी तक औनलाइन नहीं था. नैना अपने दोस्तों से बातें करने लगी. बीचबीच में वह रोहन का अकाउंट भी चैक करती रही. लेकिन रोहन आज औनलाइन ही नहीं आया.

ये भी पढे़ं- शेष जीवन: विनोद के खत में क्या लिखा था

अब नैना को थोड़ा खालीपन सा महसूस होने लगा. उस का मन चाह रहा था किसी से भी बात करने का. उस का मन किया कि रोहन को कौल करें. लेकिन फिर उस के बढ़ते हाथ रुक जाते थे. अपने अलावा किसी और के लिए न सोचने वाली नैना को पता नहीं क्या हो रहा था. वह बेचैन सी होने लगी.

आधी रात यानी 12 बजे के आसपास का समय था. आखिर उस ने रोहन को कौल किया. कौलरिंग जा रही थी. लेकिन रोहन ने कौल रिसीव नहीं की. नैना ने फिर से ट्राई किया. लेकिन फिर ऐसा ही हुआ. आखिर में उस ने अपना फोन साइड में रख दिया. अब वह न जाने क्याक्या सोचने लगी और न जाने कब उस की आंखें लग गईं, उसे पता ही न चला.

अगले दिन वह सुबह अपना काम खत्म कर के तैयार हुई. अधिकतर दोस्तों के यहां वह फौर्मल कपड़ों में जाती थी. लेकिन आज उस ने कुछ अगल कपड़े पहने. ब्लैक शौर्ट मिडी जो उस के घुटनों तक थी और पूरी तरह बाडीफिट थी, को पहना. उस ड्रैस में वह बहुत हौट लगती थी. ऐसा लगता कि वह ड्रैस उस के लिए ही बनी है. उस के बाल खुले थे, क्योंकि उसे याद था एक बार रोहन ने कहा था, ‘मैम, आप खुलेबालों में ज्यादा अच्छी लगती हैं.’

आगे पढ़े- आज फिर से नैना को देख कर…

ये भी पढ़ें- ऑडिट: कौनसे इल्जामों में फंस गई थी महिमा

बहकते कदम: भाग 1- रोहन के लिए नैना ने मैसेज में क्या लिखा था

लेखक- अरुण गौड़

नैना बातें तो सामने बैठी अपनी दोस्त संध्या से कर रही थी लेकिन उस का ध्यान कहीं और था. वह जानती थी कि किसी की आंखें लगातार उसे देख रही हैं, उस के बदन पर घूम रही हैं. वह यह जान कर भी अंजान बन रही थी क्योंकि वे आंखें रोहन की थीं. रोहन उस की फ्रैंड संध्या का बेटा था.

उम्र और रिश्तों की बात की जाए और अगर नैना की भी फैमिली होती तो उस का बेटा भी आज लगभग रोहन का हमउम्र ही होता. लेकिन यहां बात उम्र और रिश्तों की नहीं थी. यहां बात थी चाहत की. रोहन अपनी मम्मी की सहेली नैना को बहुत पंसद करता था. जवानी में प्रवेश करने की उम्र में मैच्योर लेडी की तरफ झुकाव आज की पीढ़ी में आम है. रोहन इसी पीढ़ी का लडका था. सो, वह अपने नएनए आवारा हुए मन को काबू में न रख सका. अब इसे चाहत समझें या जवानी का भटकाव. जो भी था, बहरहाल, रोहन नैना की तरफ झुक रहा था. जबकि, नैना के मन में ऐसा कुछ था या नहीं, यह वह खुद भी नहीं जानती थी.

नैना, लगभग 40 साल की एक सफल लेकिन सिंगल महिला, की जिंदगी में सफलता तो थी लेकिन प्यार नहीं. उस की जिंदगी में प्यार की उम्मीदों के साथ परिवार वालों ने सात फेरों के बंधन में उसे जिस से बांधा था, उस ने उस की जिंदगी को खुशियों से भरने की जगह, बस, बंधनों से बांध दिया था.

नैना आजादखयाल की पढ़ीलिखी लड़की थी. कुछ समय तक तो सामाज, इज्जत, रिश्तों के दबाव में उस ने अपने आजादखयालों को दबाए रखा लेकिन वक्त के साथसाथ बंधन और बढ़ते गए.

ये भी पढ़ें- अहंकारी: क्या हुआ था कामना के साथ

नैना ज्यादा समय तक बंधन सहन न कर पाई और उस ने सामाजिक प्रतिष्ठा को ठुकरा कर अपनी आजादी चुनी. आज वह आजाद है और सफल भी. सफलता के साथ प्रतिष्ठा, इज्जत खुद ही चल कर आ जाती है, यह उस ने साबित कर दिया था क्योंकि जो परिवार वाले अपने पति से रिश्ता तोड़ने के कारण शुरू में उस से बोलने से कतराते थे, आज खुशीखुशी उसे फिर से अपना बताते हैं.

नैना 40 वर्ष की उम्र के आसपास थी. उम्र के नंबर के हिसाब से तो जवानी उसे अलविदा कह चुकी थी, लेकिन वास्तविकता देखें तो जवानी शायद उसे छोड़ कर कहीं जाना ही नहीं चाहती थी. जब उस के साथ की लगभग सभी महिलाएं बुढ़ापे में प्रवेश कर चुकी थीं तब भी नैना अपनी खूबसूरती और यौवन को बनाए हुई थी. उस का भरा हुआ शरीर, बेदाग सा चेहरा, उभरे हुए स्तन, सपाट सी कमर और थोड़े भारी निंतम्ब मिल कर एक ऐसा यौवन तैयार करते थे कि हमउम्र पुरुष तो दूर, एक नया लड़का भी उस के लिए आंहें भरने लगे.

उस का ड्रैसिंग सैंस भी गजब का था. जब भी वह किसी शादी या फंकशन में जाती, तो हरेक नजर का उस पर ठहरना एक नियम सा बन जाता. कुछ नजरें दूर से ही उसे देख कर अपने अरमानों के पंख लगा लेती थीं तो कुछ पास आ कर नजदीक से उस के श्रृंगार के रस का रसपान करने की कोशिश करती थीं. ऐसी थी नैना के रूप की दीवानगी. रोहन भी शायद इसी दीवानगी का शिकार हो गया था, तभी तो उस की आंखें लगातार उस में कुछ ढूंढती रहती थीं. 19 साल का रोहन स्कूलिंग की पढ़ाई पूरी कर कालेज में गया ही था. नईनई जवानी थी. उम्र का यह मोड़ मन में न जाने कैसेकैसे खयाल ले आता है. शायद इसी जवानी के बहकावे में आ कर वह नैना की तरफ बह रहा था.

नैना, जिसे वह कुछ समय पहले तक आंटी कहता था, आज उस के लिए स्वपनसुंदरी बन चुकी थी. न जाने कितनी ही रातें उस ने नैना की डीपी वाली फोटो देख कर खुद को उस की आगोश में महसूस किया था.

नैना, जो रोहन के लिए आंटी थी, उसे एक बच्चे की तरह ही ट्रीट करती थी. जबकि रोहन उस के नजदीक होना चाहता था लेकिन उस में अपनी तरफ से पहल करने की हिम्मत न थी, इसलिए उसे फौर्मल बैटन से आगे बढ़ने का मौका न मिला. लेकिन फिर दोनों के बीच में आया व्हाटसऐप.

यह व्हाटसऐप बहुत कमीनी चीज है, आसपास न हो कर भी हमें फील होता है कि हम साथ ही हैं. और इसी फीलिंग में जब बातों का दौर शुरू होता है तो पता ही नहीं चलता कि बातों ही बातों में इस ने रिश्तों को कहां से कहां पहुंचा दिया. शुरूशुरु में थोड़े डर, थोड़ी झिझक के साथ हायहैलो हुआ, फिर नौर्मल गुडमौर्निंग, गुडनाइट का खेल चला, और फिर फनी जोक्स आए. रोहन 10 जोक्स भेजता, तब नैना एकदो जोक्स भेजती. फिर आया थोड़ा बोल्ड जोक्स. बोल्ड जोक समझते हो न, जिसे आम भाषा में नौनवेज जोक कहते हैं. रोहन ने बहुत हिम्मत कर के फनी सा नौनवेज जोक भेजा और थोड़ी देर बाद ही मैसेज भेज दिया, “सौरी, गलती से आप को सैंड हो गया है, मैं अपने फ्रैंड्स को भेज रहा था. प्लीज, आप यह न पढ़ें, सौरी.”

रोहन नैना की जिंदगी में अपने लिए एक दरवाजा खोलना चाहता था – खुलेपन का – इसलिए उस ने यह मैसेज भेजा था…और कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए, नैना गुस्सा न हो जाए, इसलिए खुद के बचाव में उस ने ‘गलती से चला गया’ वाला भी मैसेज भेज दिया. दिमाग के साथ चल रहा था रोहन.

ये भी पढ़ें- हवस का नतीजा : राज ने भाभी के साथ क्या किया

नैना तो सिंगल थी लेकिन उस की फ्रैंडलिस्ट काफी बड़ी थी. उस के लिए ऐसा मैसेज कोई नई बात न थी. वह खुद अपने दोस्तों को इस से भी बोल्ड जोक्स भेजती थी और कभीकभी वीडियो भी. वह जानती थी कि रोहन नई उम्र का लड़का है, सभी ऐसे मैसेज भेजते हैं अपने दोस्तों को, इसलिए उस ने कह दिया- “कोई नहीं रोहन, परेशान मत हो बच्चे. आगे से ध्यान रखना.”

“बच्चा… मैम, मैं बच्चा नहीं हूं. अब मैं जवान हो गया हूं. प्लीज, अब तो बच्चों जैसा ट्रीट मत करो,” रोहन ने मैसेज किया.

“ओके मेरे जवान मुंडे,” नैना ने हंस कर जवाब दिया.

“मैम, थैंक यू, आप नाराज नहीं हुईं. मैं तो डर गया था कि आप आज मुझ पर खूब गुस्सा करने वाली हो. लेकिन आप बाकी महिलाओं की तरह पुराने खयालों की नहीं हैं, बहुत फौरवर्ड हैं, बहुत इंटैलिजैंट हैं. क्या आप मेरी दोस्त बनेंगी?” रोहन ने थोड़ी सी तारीफ के साथ अपनी मम्मी की दोस्त की तरफ अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाया.

“मैं, अरे यार, मैं तो तुम्हारी मम्मी की दोस्त हूं. अगर उन्हें पता चला तो शायद नाराज हो जाएं वो,” नैना ने कहा.

“नहीं, नहीं. उन्हें कुछ पता नहीं चलेगा, आई प्रौमिस. अब बताओ, लेट्स फ्रैंड?”

“रोहन, तुम बहुत छोटे हो, तुम से दोस्ती करूंगी तो… अरे यार, मैं ने कभी बच्चों से दोस्ती नहीं की है,” नैना ने थोड़ी हिचक के साथ मैसेज किया.

“‘मैम, मैं ने अभी कहा था न कि बच्चा नहीं हूं मैं, कालेज में आ गया हूं. और हमारी जनरेशन से दोस्ती नहीं की है तो अब कर लो, इस में क्या है. लाइफ में कभीकभी कुछ नया भी करना चाहिए,” रोहन ने थोड़ा कौन्फिडैन्स दिखाते हुए कहा.

“हम्म, कह तो तुम सही रहो हो, ओके, लेट्स फैंड. अब खुश मेरे लिटिल फ्रैंड,” नैना ने कहा.

“खुश नहीं, बहुत खुश,” रोहन ने एक स्माइल के साथ जवाब दिया. और उस दिन से 2 अलगअगल पीढ़ियों की दोस्ती का चैप्टर शुरू हो गया.

बातें चलती रहीं. नजदीकियां बढ़ती रहीं. नैना के मन में दोस्ती थी, बाकी कुछ नहीं. लेकिन रोहन के मन में तो बहुतकुछ चल रहा था.

नैना जब भी रोहन के घर आती तो रोहन उस दिन पूरा तैयार हो कर बैठ जाता था और छिपछिप कर चोर नजरों से नैना को देखता था.

एक दिन… नैना ने व्हाटसऐप डीपी पर अपनी एक कोलाज जिस में फ्रंट और बैक दोनों साइड से शो कर रही नई तसवीर लगाई थी साड़ी में. स्टाइल में साड़ी बांधी हुई थी उस ने. कमर पर काफी नीचे की तरफ. और ब्लाउज भी थोड़ा ऊपर था. उस पर काफी बड़ा गला और बैक साइड में फुल बैकलैस. इस अंदाज में काफी हौट दिख रही थी वह. अपने बिस्तर पर लेटा हुआ रोहन तो एकटक उसे देखता ही रहा. उसे नैना के इस अंदाज का नशा सा होने लगा था.

नैना का नशा तो रोहन को बहुत समय से था लेकिन आज कुछ ज्यादा हो रहा था. और आज वह अपने अरमानों को सीने में दबा कर नहीं रख सका था. उस ने नैना को मैसेज किया, “नाइस पिक.”

नैना ने रिप्लाई दिया, “थैंक यू.”

“मैं कुछ और कहूं इस पिक के बारे में…” रोहन ने कहा.

“हां, कहो न,” नैना ने कहा.

“इश्क टपका है बादलों से

मेरे खूबसूरत इश्क

अब तू भी आ जा

मेरी आगोश में समा जा,” रोहन ने कहा.

“वाऊ, शायरी बढ़िया है. लेकिन इस का मतलब क्या है शायर साहब,” नैना ने हंसते हुए पूछा.

“‘आप इस पिक में बहुत हौट लग रही हो. काश, आप इस समय मेरे पास होतीं, तो आप को अपनी बांहों में भर लेता,” रोहन ने अपने अरमान नैना के सामने रखते हुए कहा.

ये भी पढ़ें- खुल गई आंखें : रवि के सामने आई हकीकत

“क्या…क्या कह रहे हो तुम, पता है न किस से बात कर रहे हो तुम,” नैना ने कहा.

“मैं मजाक नहीं कर रहा, नैनाजी. सच में. अगर ऐसी ड्रैस में आप मेरे पास होतीं, तो…मैं खुद पर कंट्रोल न कर पाता,” रोहन ने हिम्मत कर फिर से अपने दिल की बात कही.

“आर यू मैड, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो? आज के बाद मुझ से बात मत करना. मैं तुम्हें एक दोस्त समझती थी और तुम यह सोचते हो मेरे बारे में!” नैना ने कहा और गुस्से में पहले अपनी पिक हटाई और फिर रोहन को ब्लौक कर दिया.

आगे पढ़ें- अगले दिन वह घर पर ही था. रात की…

REVIEW: कमजोर कथा व पटकथा है फिल्म शिद्दत

फिल्म समीक्षाः

रेटिंग : ढाई स्टार

निर्माताः भूषण कुमार , दिनेश विजन

निर्देशकः कुणाल देशमुख

कलाकारः सनी कौशल, राधिका मदान, मोहित रैना, डायना पेंटी, च्रिस विल्सन, अल्फ्रेडो तवारेस, दिलजॉन सिंह, अतुल शर्मा, रिचा प्रकाश व अन्य

अवधि : दो घंटे 26 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म : डिज्नी प्लस हॉट स्टार

इंटरनेट व मोबाइल के युग में जी रही नई पीढ़ी को नब्बे के दशक के रोमांस का अहसास कराने वाली फिल्म ‘‘शिद्दत’’लेकर फिल्मसर्जक कुणाल देशमुख आए हैं, जो कि एक अक्टूबर से ‘डिज्नी प्लस हॉट स्टार ’पर स्ट्रीम हो रही है. जिन्हे नब्बे के दशक के रोमांस का अहसास करना हो, वह इस फिल्म को देख सकते हैं.

कहानीः

फिल्म ‘‘शिद्दत” दो समानांतर प्रेम कहानियां हैं. जिसमें इस बात का चित्रण है कि कैसे पूरे दिल से विश्वास करने से प्यार मिलता है. इसमें एक प्रेम कहानी फ्रांस में भारतीय राजदूत गौतम(मोहित रैना   )और ईरा(डायना पेंटी)की है. अपनी शादी की रिसेप्षन पार्टी में गौतम एक लक्की अंगूठी और अपने प्यार को लेकर दार्षनिक बाते करते हुए कहता है कि ‘अगर मैं आपसे लंदन में नहीं मिला होता, तो यह पेरिस या एम्स्टर्डम होता. क्योंकि तुम मेरी किस्मत हो. तुम मेरी नियति हो. और वह षिद्दत की बात करता है. गौतम की इन बातों से उस पार्टी में बिना निमंत्रण अपने दो साथियों संग पहुॅचे हाकी खिलाड़ी जग्गी (सनी कौशल )प्रभावित हो़ता है. मोबाइल, इंटरनेट व इंस्टाग्राम युग में जी रहे जग्गी को प्यार के नए मायने समझ में आते हैं. कुछ समय बाद हाकी खिलाड़ी जग्गी और तैराक कार्तिका( राधिका मदान )की प्रेम कहानी षुरू होती है. दो षुद्ध आत्माएं मिलती हैं, नोकझोक करते करते प्यार में पड़ जाती हैं, मगर तकदीर उन्हे जुदा कर देती है. जग्गी पंजाब, भारत में ही रह जाता है, जबकि कार्तिका लंदन चली जाती है और तीन माह बाद लंदन में कार्तिका की शादी है. कार्तिका के लंदन जाने से पहले जग्गी उससे शादी करना चाहता है और

वह कार्तिका से कह देता है कि वह अपने प्यार को पाने के लिए लंदन आएगा. कार्तिका, जग्गी से कहती है कि सिर्फ प्यार के लिए शादी नहीं होती, शादी होती है सैटल होने के लिए. वह जग्गी के प्यार को ठुकराते हुए भरी जवानी में अपने बुढ़ापे तक की रील पे कर देती है. जग्गी के ज्यादा जोर देने पर कहती है कि अगर तुझमें तीन महीने तक प्यार की यही शिद्दत भरी फीलिंग बनी रहे तो लंदन आ जाना. अब जग्गी निर्णय कर लेता है कि वह कार्तिका को इस जमाने में सच्चा प्यार दिखाएगा. इसलिए अब जग्गी लंदन जाना चाहता है. पर उसे वीसा नही मिलता. तब वह गैर कानूनी तरीके से लंदन के लिए रवाना होता है और आठ देषों की सीमाएं पार कर फ्रांस पहुॅच जाता है, जहां जग्गी पकड़ा जाता है. तब वहां उसकी मुलाकात गौतम से हो जाती है. इस बीच गौतम व ईरा के बीच वैचारिक मतभेद के चलते दूरियां पैदा हो चुकी हैं. क्योंकि गौतम गौतम हर काम कानून के हिसाब से करना पसंद करता है. जग्गी, गौतम को बताता है कि वह तो प्यार को लेकर उनकी दार्षनिक बातों से प्रभावित होकर ही अपने प्यार को पाने के लिए इस कठिन डगर पर पूरी षिद्दत के साथ निकला है और अब उसे उसकी मदद करनी चाहिए. तब गौतम उसे ईरा से दूरी की कहानी सुनाकर उसे अपने प्रयासों से भारत वापस भेजने का प्रयास करता है. मगर जग्गी एअरपोर्ट पर गौतम को चकमा देकर भागता है, पर अस्पातल पहुॅच जाता है. जहां फिर गौतम उसकी मदद के लिए पहुंचता है. अब गौतम , जग्गी को सुरक्षित भारत भेजना चाहता है. तो जग्गी एनकेन प्रकारेण लंदन पहुॅचना चाहता है. जग्गी इंग्लिश चैनल यानी कि समुद्र को तैर कर लंदन पहुॅचने का भी असफल प्रयास करता है. अंततः गौतम उसकी मदद करने का प्रयास करता है, तो वहीं जग्गी, गौतम व ईरा को पुनः मिलाने का प्रयास करता है. अब इन दो प्रेम कहानियां कहां पहुंचती हैं, इनके साथ क्या क्या होता है, इसके लिए फिल्म देखनी पड़ेगी.

 

लेखन व निर्देशनः

रोमांटिक फिल्म ‘‘शिद्दत’’ प्रेम नाम की पहेली के पीछे पागलपन, जुनून और दर्द को बयां करती है. मगर लेखक और निर्देशक के सिर पर शाहरुख खान अभिनीत

पुरानी फिल्म ‘‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’’ का भूत इस कदर सवार रहा कि उन्होने पूरी फिल्म का बंटाधार कर दिया. फिल्म का क्लायमेक्स काफी घटिया है. तो वहीं ‘षिद्दत’ देखकर अहसास होता है कि निर्देशक कुणाल देशमुख लगभग तेरह वर्ष बाद भी खुद को अपनी पहली फिल्म‘‘जन्नत’’से अलग नही कर पाए हैं. लेखक ने दो प्रेम कहानियां पेश की हैं, मगर दोनों में विरोधाभास है. कहानी में गहराई की बजाय उथलापन है. हॉकी खिलाड़ी और अप्रवासी भारतीय कार्तिका, जिसकी लंदन में शादी तय हो चुकी है, वह क्यों जग्गी की तरफ आकर्षित होती है, यह स्पष्ट नहीं होता. उपर से लेखक व निर्देशक दिखा रहे है कि कार्तिका को जग्गी के साथ ‘वन नाइट स्टैंड’में आपत्ति नही है, मगर शादी में है. प्यार को लेकर बड़ी-बड़ी बातें जरुर की गयी हैं. निर्देशक ने प्यार के बहाने फिल्म में यूरोप में अवैध प्रवासियों की समस्या की भी झलक दिखाने की असफल कोषिश की है. वह इस मुद्दे को भी सही ढंग से नही पेश कर पाए.

अभिनयः

जग्गी के किरदार में सनी कौशल ठीक ठाक ही हैं. पर उनका अंदाज रोमांटिक हीरो वाला नहीं है. कार्तिका के किरदार में राधिका मदान अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहीं. उनके चेहरे पर प्रेम के सहज भाव उभरते ही नही है. उनकी बॉडी लैंग्वेज रोमांटिक हीरोइनों वाली नहीं हैं. युवा राजनयिक गौतम के किरदार में मोहित रैना का अभिनय शानदार है. उन्होने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. ईरा के किरदार में डायना पेंटी, मोहित का कंधे से कंधा मिला कर साथ देती हैं, जबकि लेखक ने उनके किरदार को सही ढंग से लिखा नही है. अन्य सहायक कलाकार ठीकठाक हैं.

इस Festival में ट्राय करें ये ब्यूटी ट्रिक्स

त्योहारों के दौरान हर महिला की चाहत होती है कि वह सब से  सुंदर दिखे. अगर आप भी ऐसा ही चाहती हैं तो आप के लिए बेहद जरूरी होगा कि आप कुछ बेसिक रूटीन फौलो करें. इस से त्वचा और शरीर को प्रभावित करने वाली अशुद्धियों को दूर करने में मदद मिलेगी. आमतौर पर महिलाएं स्किन और हेयर केयर के नियमों की बात तो करती हैं पर ऐसे प्रोडक्ट्स को अपने रूटीन में शामिल कर लेती हैं जो महंगे कैमिकल्स वाले होते हैं. इन से स्किन और बालों को फायदा मिले न मिले, नुकसान होना तय है.

ऐसे में जरूरी है कि आप यह समझें कि आप के शरीर को फायदा और नुकसान पहुंचाने वाले, दोनों ही तरह के रसायनों का प्राकृतिक भंडार मौजूद है. यह कितनी मात्रा में है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप क्या खाती हैं और अपने शरीर पर क्या लगाती हैं. इस वजह से जब आप स्किन और हेयर केयर की बात करती हैं तो आप को बेसिक नियम बनाने की जरूरत होती है यानी आप को अपने शरीर के साथ केवल प्राकृतिक चीजों का ही इस्तेमाल करना है.

लैपटौप और मोबाइल से निकलने वाली किरणों तथा बड़ी मात्रा में प्रदूषण के भी हम संपर्क में आते हैं. ये हमारी स्किन और बालों पर बुरा असर डालते हैं. इस वजह से हम अपनी त्वचा और बालों की देखभाल के बारे में कितनी भी लापरवाह क्यों न हों, हमें अधिक प्रभावी जीवनशैली के लिए कम से कम कुछ प्रयास तो करने ही होंगे.

त्योहारों से पहले त्वचा की देखभाल के नियम

निम्न बातों पर आप को त्योहार से करीब 1 हफ्ता पहले ही अमल करना चाहिए. अगर आप ऐसा कर लेती हैं तो त्योहार के दिन आप की चमक किसी के सामने फीकी नहीं रहेगी.

ऐक्सफोलिएशन: त्योहारों से पहले कब ऐक्सफोलिएट करना है? महिलाओं से आम होने वाली गलती यह होती है कि वे त्योहार के ठीक पहले अपनी त्वचा को ऐक्सफोलिएट करती हैं. ऐक्सफोलिएट करना यानी स्किन में डैड सैल्स को हटाना. अगर आप त्योहार के ठीक पहले त्वचा को ऐक्सफोलिएट करती हैं तो रोमछिद्र खुले रह जाते हैं, जिस से मेकअप और प्रदूषक उस में घर बना लेते हैं. ये आप के मेकअप को पैची लुक देते हैं. ऐसी स्थिति में मुंहासों की संभावना बढ़ जाती है. इस का कारण होता है खुले रोमछिद्रों के जरीए मेकअप का त्वचा में प्रवेश कर जाना.

ये भी पढ़ें- 5 Festive Makeup टिप्स

त्योहार से कम से कम 3 दिन पहले अपनी त्वचा को ऐक्सफोलिएट करना बेहतर कदम साबित होगा. आप एक ऐक्सफोलिएटिंग स्क्रब या मास्क का उपयोग कर सकती हैं, जो हानिकारक रसायनों से मुक्त हो और आप की त्वचा पर प्राकृतिक रूप से असर दिखाए. आप संतरे के छिलकों की मदद से भी अपना स्क्रब तैयार कर सकती हैं. उस में ऐलोवेरा मिला सकती हैं. याद रखें कि अगर आप चेहरे के बाल हटा रही हैं, तो ऐक्सफोलिएट से 2 दिन पहले ऐसा करें. चेहरे के बालों को हटाने के ठीक बाद टोनर और फेस औयल लगाएं.

इस से खुले रोमछिद्र बंद हो जाते हैं और आप की त्वचा फिर से जीवंत हो जाती है. अपने चेहरे के बालों को हटाने के ठीक बाद मेकअप न करें. इस से त्वचा को नुकसान हो सकता है. मेकअप रोमछिद्रों को बंद कर देता है और इस की वजह से ब्लैकहैड्स और व्हाइटहैड्स की वजह बनता है.

अगर त्वचा औयली है

अगर आप की त्वचा औयली है, तो चेहरे पर तेल लगाते समय सावधानी बरतें क्योंकि इस से त्वचा में तेल की मात्रा बढ़ सकती है. ऐक्सफौलिएट करने के बाद टोनर और प्राकृतिक ऐलोवेरा जैल का उपयोग करें.

सफाई एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा जरूर है, पर यह याद रखें कि आप की त्वचा को दिन में कम से कम 2 बार मौइस्चराइज करना आवश्यक है. अगर आप की त्वचा औयली है तो भी मौइस्चराइजिंग जरूरी है. अपनी त्वचा को निखारने के लिए नौनऔयली मौइस्चराइजर का इस्तेमाल करें. त्योहार खत्म होने के बाद भी इन नियमों का पालन अवश्य करें.

त्योहार से पहले अमल के लिए टिप्स

–  त्योहार से 2 दिन पहले अपनी त्वचा से टैनिंग हटाने के लिए डीटैन मास्क लगाएं.

–  त्योहार से 1 दिन पहले अपनी त्वचा को मेकअप मुक्त रखें ताकि आप सभी स्किनकेयर ट्रीटमैंट जैसेकि फेशियल, स्क्रब, मास्क आदि

के बाद त्वचा को फिर से भरने और जीवंत करने के लिए समय दे सकें.

ये भी पढ़ें- घर पर ही इस तरह करें बालों में कलर

–  अपनी आंखों के अंदर के हिस्से और होंठों की देखभाल न भूलें. अपने शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए ढेर सारा पानी पीएं और आंखों के नीचे खीरा और होंठों पर चुकंदर लगाने से बहुत चमक मिलती है.

–  त्योहार से पहले की रात को अच्छी नींद लें ताकि त्योहार के दिन आप की त्वचा अपनी सर्वश्रेष्ठ स्थिति में दिख सके.

–  अपने चेहरे पर अच्छी क्वालिटी के मेकअप का इस्तेमाल करें क्योंकि असंवेदनशील मेकअप प्रोडक्ट आप की त्वचा को बुरी तरह नुकसान पहुंचाते हैं.

त्योहार से पहले हेयरकेयर: बाल कब धोने हैं/हेयर मास्क कब लगाना है आदि जितना जरूरी स्किन केयर है, उतना ही आवश्यक हेयरकेयर भी है. अपने बालों के स्वास्थ्य की उपेक्षा न करें क्योंकि यही आप के लुक में चार चांद लगाते हैं. त्योहार से कम से कम 4 घंटे पहले अपने बालों को धोना महत्त्वपूर्ण है. ऐसा करना आप के बालों को आसानी से सूखने और स्टाइल में मदद करता है.

बालों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए कुछ चीजें जो अनिवार्य रूप से आप के बालों पर होनी चाहिए, वे हैं:

–  कंडीशनिंग के लिए आप ऐलोवेरा, अंडे का सफेद भाग और चावल का पानी लगा सकती हैं. तीनों में से किसी एक को चुनें. इस के अलावा अपने बालों को नियमित रूप से तेल लगाना याद रखें जो आप के बालों को मजबूती प्रदान करता है और उन्हें सफेद/ग्रे होने से रोकता है.

हेयर मास्क के लिए: यदि आप के बाल बहुत ज्यादा क्षतिग्रस्त हैं, तो आप हेयर मास्क लगा सकती हैं.

हालांकि, रासायनिक हेयर मासक की सिफारिश नहीं की जाती है. बालों को फिर से ग्रेस और शाइन करने के लिए आप दही को अपने बालों में लगा सकती हैं.       –

दामिनी चतुर्वेदी

मेकअप कलाकार 

यदि आप के बाल रंगीन हैं तो क्या करें

यदि आप ने अपने बालों में रंग लगाया है, तो संभावना है कि अगर ठीक से देखभाल नहीं की गई तो आप के बाल रूखे दिखाई दे सकते हैं.  इस वजह से नियमित रूप से तेल लगाएं और ऐसे मामलों में कंडीशनिंग जरूरी है. साथ ही जब भी आप अपने बालों को कलर करवाएं, कैमिकल प्रोडक्ट्स का कम से कम इस्तेमाल करें. यह सुनिश्चित करें कि रंग स्कैल्प या आप के बालों की जड़ों तक न पहुंचे वरना बालों के सफेद होने की संभावना ज्यादा होती है.

धर्म हो या सत्ता निशाने पर महिलाएं क्यों?

अफगानिस्तान में मजहबी और सियासती लड़ाई जारी है. मूल में उस का धर्म इसलाम है. कट्टरपंथी तालिबान शरिया कानून का सख्त हिमायती है. वह इंसान के पहनावे से ले कर व्यवहार तक को अपने मुताबिक चलाना चाहता है. वह पुरुष से दाढ़ी रखने व टोपी लगाने और स्त्री से हिजाब ओढ़ने का सख्ती से पालन करवाने वाला है. औरतों के मामले में उस के विचार बेहद कुंठित हैं.

तालिबान औरतों को सैक्स टौय से ज्यादा कुछ नहीं समझता. यही वजह है कि पढ़ीलिखी, दफ्तरों में काम करने वाली और तरक्की पसंद अफगान औरतों में निजाम बदलने से बहुत ज्यादा बेचैनी है. उन्हें मालूम है तालिबान अभी भले यह ऐलान कर रहा हो कि वह औरतों की पढ़ाई और काम पर रोक नहीं लगाएगा, मगर जैसे ही पूरा अफगानिस्तान उस के कब्जे में होगा और तालिबानी सत्ता कायम होगी, औरतों की स्थिति सब से पहले बदतर होने वाली है. उन्हें एक बार फिर अपना कामधंधा और पढ़ाईलिखाई छोड़ कर घरों में कैद रहना होगा. खुद को हिजाब में  लपेट कर शरिया कानून का सख्ती से पालन करना होगा.

इस वक्त अफगानिस्तानी गायक, फिल्मकार, अदाकारा, डांसर, प्लेयर किसी तरह अफगान से निकल भागने की फिराक में हैं. तालिबान के कब्जे के बाद से बड़ी संख्या में कलाकारों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया है. वजह यह कि तालिबान ने उन्हें शरिया कानून के अनुसार अपने पेशे का मूल्यांकन करने और उस के बाद पेशे को बदलने का फरमान सुना दिया है.

अगर उन्होंने नाफरमानी की तो वे गोलियों का निशाना बनेंगे क्योंकि तालिबान अपना उदारवादी मुखौटा बहुत देर तक अपने चेहरे पर नहीं संभाल सकता है. अमेरिकी सेनाओं की  पूरी तरह वापसी के बाद वह अपने असली रंग में आ जाएगा.

अब सिर्फ यादें

जो अफगान औरतें 60 के दशक में अपनी किशोरावस्था में थीं या जवानी की दहलीज पर पांव रख रही थीं, वे अब बूढ़ी हो चली हैं, मगर उस दौर के अफगानिस्तान की याद उन की आंखों में चमक पैदा कर देती है. पहले ब्रितानी संस्कृति और फिर रूसी कल्चर के प्रभाव के चलते 60 के दशक में अफगान महिलाओं की लाइफ बहुत ग्लैमरस हुआ करती थी.

ये भी पढ़ें- लड़कियों के बचकानेपन का लाभ

आज जहां वे बिना परदे के बाहर नहीं निकल सकतीं, उस अफगान की जमीन पर कभी फैशन शो आयोजित हुआ करते थे. महिलाएं शौर्ट स्कर्ट, बैलबौटम, मिडी, लौंग स्कर्ट, शौर्ट टौप जैसी पोशाकों पर रंगीन स्कार्फ और मफलर लपेटे दिखाई देती थीं. ऊंची हील पहनती थीं. बालों को स्टाइलिश अंदाज में कटवाती थीं. खुलेआम मर्दों की बांहों में बांहें डाले शान से घूमती थीं. क्लब, स्पोर्ट्स, पिकनिक का लुत्फ उठाती थीं.

काबुल की सड़कों पर अफगानी महिलाओं का फैशनेबल स्टाइल हौलीवुड की अभिनेत्रियों से कम नहीं था. वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर बड़े ओहदों पर काबिज होती थीं. 1960 से ले कर 1980 के बीच के फोटो देखें तो पाएंगे कि अफगानिस्तान में महिलाएं कितनी स्वच्छंद और आजाद थीं. वे फैशन सहित हर फील्ड में आगे थीं. तब के काबुल की तसवीरें ऐसा आभास देती हैं कि  जैसे आप लंदन या पैरिस की पुरानी तसवीरें  देख रहे हैं.

फोटोग्राफर मोहम्मद कय्यूमी के फोटो उस दौर का सारा हाल बयां करते हैं. चाहे मैडिकल हो या एयरोनौटिकल, अफगान महिलाएं हर फील्ड में अपनी जगह बना चुकी थीं. 1950 के आसपास अफगानी लड़केलड़कियां थिएटर और यूनिवर्सिटीज में साथ घूमते और मजे करते थे. औरतों की लाइफ बहुत खुशनुमा थी.

हर क्षेत्र में आगे थीं

उस समय अफगान समाज में महिलाओं की अहम भूमिका थी. वे घर के बाहर काम करने और शिक्षा के क्षेत्र में मर्दों के कंधे से कंधा मिला कर चलती थीं. 1970 के दशक के मध्य में अफगानिस्तान के तकनीकी संस्थानों में महिलाओं का देखा जाना आम बात थी. काबुल के पौलिटैक्निक विश्वविद्यालय में तमाम अफगानी छात्राएं मर्दों के साथ शिक्षा पाती थीं. 1979 से 1989 तक अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के दौरान कई सोवियत शिक्षक अफगान विश्वविद्यालयों में पढ़ाते थे. तब औरतों पर मुंह को ढकने का कोई दबाव नहीं था. वे अपने पुरुष दोस्तों के साथ काबुल की सड़कों पर आराम से घूमती और मस्ती करती थीं.

मगर 1990 के दशक में तालिबान का प्रभाव बढ़ने के बाद महिलाओं को बुरका पहनने की सख्त ताकीद की गई और उन के बाहर निकलने पर भी रोक लगा दी गई.

अफगानिस्तान हो या भारत, धर्म ने सब से ज्यादा नुकसान औरतों का ही किया है. सब से ज्यादा जुल्म औरतों पर ढाया है. सब से ज्यादा गुलामी की जंजीरों में औरतों को जकड़ा है. अगर कोई पुरुष भी धर्म के हाथों मारा जाता है तो उस की पीड़ा भी औरत ही उठाती है. एक पुरुष के मरने पर कम से कम 4 औरतें तकलीफ से गुजरती हैं और ताउम्र उस तकलीफ को झेलती हैं. वे हैं उस पुरुष की मां, बहन, बीवी और बेटी. धर्म औरत का सब से बड़ा दुश्मन है. धर्म की जंजीरों को काटने का फैसला औरत को ही लेना होगा. यह हौसला उस में कब जागेगा, फिलहाल कहना मुश्किल है.

धर्म तो एक बहाना है

अभी तो अफगानिस्तान में इसलाम मजबूत हो रहा है और भारत में हिंदुत्व. कोई ज्यादा फर्क नहीं है. वे इसलाम के नाम पर मारकाट करते हैं, ये हिंदुत्व के नाम पर करते हैं. धर्म के ठेकेदार सत्ताधारियों को अपनी मनमरजी पर चलाते हैं और उन के हाथों ये गुनाह करवाते हैं. फिर चाहे वे अफगानिस्तान में हों या हिंदुस्तान में. सत्ता की जबान से औरतों को जलील करवाया जाता है.

बीते एक दशक में जब से हिंदुस्तान में हिंदुत्व का पारा चढ़ना शुरू हुआ है सत्ताशीर्ष पर बैठे लोग औरत की गरिमा को तारतार करने में लगे हैं. औरत की बेइज्जती कर के वे खुद को ताकतवर दिखाने की कोशिश में हैं. भारतीय राजनीतिक विमर्श में कांग्रेस की विधवा, बार बाला, इटैलियन डांसर, भूरी काकी, वेश्या, चुड़ैल, कुतिया, दीदी ओ दीदी, ताड़का जैसे स्वर्णिम शब्दों से औरत का महिमामंडन करने का काम हिंदू हृदय सम्राट अकसर करते हैं. इस का विराट उद्घाटन ‘पचास करोड़ की गर्लफ्रैंड’ जुमले के साथ हुआ था जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख से कांग्रेस नेता शशि थरूर की मृतक पत्नी सुनंदा पुष्कर के लिए 29 अक्तूबर, 2012 को झरे थे.

ये भी पढ़ें- तालिबानी ऐसा क्यों कर रहे हैं?

इतनी कुंठा किसलिए

प्रियंका गांधी जब चुनावी दौर में प्रचार के लिए उतरती हैं तो उन के कपड़ों से ले कर उन के नैननक्श तक पर राजनेताओं द्वारा टिप्पणी की जाती है. प्रियंका को ले कर ये बातें भी खूब कही गईं कि खूबसूरत महिला राजनीति में क्या कर पाएगी. वहीं शरद यादव का वसुंधरा राजे पर किया गया कमैंट भी याद होगा जब उन्होंने उन के मोटापे पर घटिया टिप्पणी की थी कि वसुंधरा राजे मोटी हो गई हैं, उन्हें आराम की जरूरत है.

महिलाओं के संबंध में ये अनर्गल बातें करने वालों को धर्म की घुड़की कभी नहीं मिलती. धर्म के ठेकेदार ऐसी बातों पर हंसते हैं और सत्ता में बैठे ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करते हैं. हैरानी की बात है कि सत्ता की ताकत हासिल करने वाली महिलाओं में भी महिलाओं के प्रति ऐसी जलील बातें करने वालों का विरोध करने या उन्हें फटकारने का साहस नहीं उपजता.

वो नीली आंखों वाला: भाग 3- वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी

लेखिका- पारुल हर्ष बंसल

“आप… आप हैं …मिस्टर वरुण शर्मा.”

वरुण बोला, “इफ आई एम नोट रौंग, यू आर छुटकी.”

“एंड… आप वो नीली आंखों वाले लड़के…”

यह बोलतेबोलते मालिनी की जबान पर ताला सा लग गया… उस की आंखों के नीले समुंदर में, वो फिर से ना खो जाए,

“हां, हां…”

मालिनी उन्हें पुष्पगुच्छ दे कर उन का स्वागत करने के साथसाथ दिल की गहराइयों से मन ही मन धन्यवाद ज्ञापन करती है, जो इतने बरसों में ना कर सकी.

जैसे आज भगवान उस पर मेहरबान हो गए हो और कोई बरसों पुराना काम आज पूरा हो गया हो.

आज उस के दिल से उस नीली आंखों वाले लड़के को धन्यवाद ना कर पाने का अपराधबोध समाप्त हो चुका था.

“क्या आप एकदूसरे को जानते हैं…?” शशांक ने पूछा.

“जी… मालिनी जी मेरी जूनियर थीं…”

आज मालिनी का “समय पर किसी का अधिकार नहीं, किंतु समय की दयालुता पर विश्वास” पेड़ की जड़ों की तरह गहरा हो गया था.

“ओह दैट्स ग्रेट…” इतना कह कर मिस्टर शशांक दूसरे कामों में व्यस्त हो गए, जैसे उन्होंने मन ही मन स्वीकार कर लिया था कि अब उन के मेहमान मालिनी के भी हैं, तो वह उन की बढ़िया आवभगत कर लेगी.

मालिनी और वरुण की आंखों में न जाने कितने मूक संवाद तैर रहे थे, जिन में अनेकों प्रश्न, उत्तर की नोक पर भटक रहे थे. जैसे नदी का बांध खोल देने पर सबकुछ प्रवाहित होने लगता है.

दोनों इतने वर्षों बाद भी औपचारिक बातों के अलावा और कुछ नहीं कह पा रहे थे. शायद वह माहौल उन के अंतर्मन में उठते प्रश्नों के जवाब के लिए उपयुक्त ना था, किंतु वर्षों बाद वरुण के मन की तपती बंजर भूमि पर आज मालिनी से मिलन एक बरखा समान बरस रहा था और साथ ही वरुण इस के विपरीत भाव मालिनी के चेहरे पर पढ़ रहा था.

ये भी पढ़ें- नव प्रभात: क्या था रघु भैया के गुस्से का अंजाम

पूरे कार्यक्रम के दौरान वरुण ने अनेकों बार चोर निगाहों से मालिनी को निहारा. उस के दिल का वायलिन जोरजोर से बज रहा था, किंतु उस की भनक सिर्फ शशांक को ही महसूस हो रही थी.

कार्यक्रम के उपरांत सभी ने रात्रिभोज एकसाथ किया और तभी बारिश होने लगी. वरुण की फ्लाइट खराब मौसम के कारण कुछ घंटों के लिए स्थगित कर दी गई.

मिस्टर वरुण शशांक से एयरपोर्ट के लिए विदा लेने लगे, तो शशांक ने उन्हें कुछ देर घर पर ही चल कर आराम करने को कहा.

वरुण तो जैसे अपने प्रश्नों के जवाब हासिल करने को बेताब हुआ जा रहा था और ऐसे में शशांक के घर पर रुकने का न्योता…

पर, इस बात से मालिनी कुछ असहज सी होने लगी, जिसे वरुण ने भांप लिया.

खैर, सभी घर पहुंचे और वरुण को मेहमानों के कमरे में शशांक ही पहुंचा कर आया और यह भी कहा कि इसे अपना ही घर समझें. कुछ चीज की आवश्यकता हो तो मुझे या मालिनी को अवश्य बताएं.

“जी, जरूर… आप बेतकल्लुफ हो रहे हैं.”

शशांक अपने कमरे में आते ही मालिनी से कहता है कि आज मैं सब देख रहा था…

“जी, क्या?”

“वही…”

“क्या..?”

“ज्यादा भोली न बनो. मिस्टर वरुण तुम्हें टुकुरटुकुर निहार रहे थे.
पर, मैं तो नहीं…”

“क्या इस का अंदाजा तुम्हें नहीं कि वह तुम्हें…”

“छी:.. छी:, कैसी बात करते हैं आप? मेरे जीवन में आप के सिवा कोई दूसरा नहीं.”

“अरे, मैं ने कब कहा ऐसा… मैं तो पहले की बात कर रहा हूं.”

मालिनी गुस्से से तमतमाते हुए…. “नहीं, हमारे बीच पहले भी कभी ऐसी कोई बात नहीं हुई.”

“तो फिर मिस्टर वरुण की आंखों में मैं ने जो देखा, वह क्या…?”

शशांक की इन बातों ने मालिनी के दिल में नश्तर चुभो दिए और वह चुपचाप जा कर सो गई.

वह सुबह उठी, तो मिस्टर वरुण जा चुके थे और शशांक अपने औफिस.
तभी हरिया चाय के साथ मालिनी के कमरे में दाखिल होता है.

“बीवीजी… वह साहब जो रात को यहां ठहरे थे, आप के लिए यह चिट्ठी छोड़ गए हैं. बोले, मैं आप को दे दूं…”

मालिनी की आंखों में छाई सुस्ती क्षणभर के लिए जिज्ञासा में परिवर्तित हो गई कि क्या है इस में… ऐसा क्या लिखा है…” मालिनी ने कांपते हाथों से वह चिट्ठी खोली और पढ़ने लगी.

‘प्रिय छुटकी,

‘मैं जानता हूं कि तुम्हारे मन में अनगिनत सवाल उमड़ रहे होंगे कि मैं तुम्हें कभी कालेज के बाद क्यों नहीं मिला?

‘क्यों तुम से कभी अपने दिल की बात नहीं कही. जबकि मैं ने कई बार महसूस किया कि तुम मुझ से कुछ कहना चाहती थी.

‘किंतु वह शब्द हमेशा तुम्हारे गले में ही अटके रहे. उन्हें कभी जबान का स्पर्श नसीब नहीं हुआ. मैं वह सुनना चाहता था, किंतु मेरी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. मैं आशा करता हूं कि मेरे इस पत्र में तुम्हें अपने सभी सवालों के जवाब के साथसाथ मेरे दिल का हाल भी पता लग जाएगा.

‘मालिनी, मैं तुम्हारे काबिल ही नहीं था, इसलिए तुम से बाद में चाह कर भी नहीं मिला, क्योंकि मैं तुम्हें वह सारी खुशियां देने में शारीरिक रूप से पूर्ण नहीं था. मेरे साथ तुम तो क्या कोई भी लड़की खुश नहीं रह सकती.’

पढ़तेपढ़ते मालिनी की आंखों से गिरते आंसू इन अक्षरों को अपने साथ बहाव नहीं दे पा रहे थे. वह फिर पढ़ने लगी.

‘मेरी उस कमी ने मुझे तुम से दूर कर दिया, किंतु तुम आज भी मेरे मनमंदिर में विराजमान हो. तुम्हारे अलावा आज तक उस का स्थान कोई और नहीं पा सका है.

ये भी पढ़ें- घुटन: मीतू ने क्यों अपनी खुशियों का दरवाजा बंद किया था

‘बचपन में क्रिकेट खेलते वक्त गेंद इतनी तेजी से मेरे अंग में लगी, जिस ने मेरे पौरूष को जबरदस्त चोट पहुंचाई और मेरे आत्मविश्वास को भी… किंतु मेरा तुम से वादा है कि मैं तुम्हें यों ही बेइंतहा चाहता रहूंगा और एक दिन तुम्हें भी अपने प्यार का एहसास करा कर रहूंगा….

‘तुम्हारा ना हो सका
वरुण.’

मालिनी कुछ पछताते हुए सोचने लगी, “तुम ने मुझ से कहा तो होता… क्या सैक्स ही एक खुशहाल जिंदगी की नींव होता है? क्या एकदूसरे का साथ और असीम प्यार जीवन के सफर को सुहाना नहीं बना सकता?”

आज फिर से वह सवालों के घेरे में खुद को खड़ा महसूस कर रही है.

मालिनी की नजर बगीचे में पड़ी तो देखा…

अनगिनत टेसू के फूल झड़े पड़े थे और संपूर्ण वातावरण केसरिया नजर आ रहा था.

ये भी पढ़ें- एनिवर्सरी गिफ्ट: कैसा था दिनेश और सुधा का परिवार

वो नीली आंखों वाला: भाग 2- वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी

लेखिका- पारुल हर्ष बंसल

इतना ही नहीं, वरुण ने स्कूल में होने वाली रैगिंग से भी कई बार मालिनी को बचाया. और तो और रैगिंग को स्कूल से खत्म ही करवा दिया, क्योंकि वह हैडब्वौय था और उस के एक प्रार्थनापत्र ने प्रधानाचार्य को उस की बात स्वीकार करने के लिए राजी कर लिया, क्योंकि बात काफी हद तक सभी विद्यार्थियों के हितार्थ की थी.

अगले दिन मालिनी उस नीली आंखों वाले लड़के का स्वेटर स्कूल में लौटाती है, किंतु हिचक के कारण वही दो शब्द गले में फांस से अटके रह जाते हैं, जिस की टीस उस के मन में बनी रहती है.

शीघ्र ही स्कूल में बोर्ड के पेपर शुरू होने वाले हैं. सभी का ध्यान पूरी तरह से पढ़ाई पर केंद्रित हो जाता है, क्योंकि अच्छे अंक प्राप्त करना हर विद्यार्थी का लक्ष्य होता है.

बस मालिनी की वह वरुण से आखिरी मुलाकात बन कर रह गई, क्योंकि 9वीं और 11वीं के पेपर खत्म होते ही उन की छुट्टी कर दी गई थी, क्योंकि पूरे विद्यालय में 10वीं व 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के लिए उचित व्यवस्था की जा रही थी.

फिर मालिनी चाह कर भी वरुण से नहीं मिल पाई, क्योंकि वह विद्यालय 12वीं तक ही था, जिस के बाद वरुण ने कहीं और दाखिला ले लिया होगा.

समय के साथसाथ मालिनी भी आगे की पढ़ाई में व्यस्त होती चली गई और वह 12वीं क्लास वाला लड़का उस के मन में एक सम्मानित व्यक्ति की छाप छोड़ कर जा चुका था.

धीरेधीरे मालिनी का ग्रेजुएशन पूरा हो गया और उस के पापा ने बड़े ही भले घर में उस का रिश्ता तय कर दिया. बड़े ही सफल बिजनेसमैन मिस्टर गुप्ता, उन्हीं के बेटे शशांक के साथ बात पक्की हो जाती है और आज अपनी खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के 20 बरस बिता चुकी है. उस के 2 बेटे और एक प्यारी सी बेटी भी है.

ये भी पढ़ें- खड़ूस मकान मालकिन : क्या था आंटी का सच

“अरे मालिनी, कहां हो… जल्दी इधर आओ…” तब मालिनी की तंद्रा टूटती है, जो घंटों से खिड़की के पास खड़ेखड़े 20 बरस से हो रही हृदय की बारिश संग उन पुराने पलों को याद कर सराबोर हो रही होती है.

“हां, आती हूं. अरे, आप…
इतना कहां भीग गए…?”

“आज कार रास्ते में ही बंद हो गई. बस, फिर वहां से पैदल ही…”

“आप भी बच्चों की तरह जिद करते हैं… फोन कर के औफिस से दूसरी कार या टैक्सी ले लेते.”

“अरे भई, हम बड़ों को भी तो कभीकभी नादानी कर अपने बचपन से मुलाकात कर लेनी चाहिए. वो मिट्टी की सोंधी सी सुगंध, महका रही थी मेरा तन और मन… याद आ रही थीं वो कागज की नावें…”

मालिनी शशांक को चुटकी काटते हुए बोली, “हरसिंगार सी महक उठ रही है…”

“अरे मैडम, आप का आशिक यों ही थोड़ी देर और ऐसे ही खड़ा रहा, तो सच मानिए आप का मरीज हो जाएगा…”

“आप को तो बस हर पल इमरान हाशमी (रोमांस) सूझता है. बच्चे बड़े हो गए हैं…”

“तो क्या हम बूढ़े हो गए हैं… हा… हा… हा…
कभी नहीं मालिनी…
मेरा शरीर बूढ़ा भले ही हो जाए, पर दिल हमेशा जवान रहेगा… देख लेना… उम्र पचपन की और दिल बचपन का…”

“अब बातें ही होंगी …मेम साहब या गरमागरम चायपकौड़ी भी…”

“बस, अभी लाई…”

“लीजिए हाजिर है… आप के पसंदीदा प्याज के पकौड़े.”

“वाह… मालिनी वाह… मजा आ गया. आज बहुत दिनों बाद ऐसी बारिश हुई और मैं जम कर भीगा…”

वह मन ही मन बोली, ” मैं भी…”

“अरे, एक बात तो तुम्हें बताना ही भूल गया कि कल हमारे औफिस की न्यू ब्रांच का उद्घाटन है, तो हमें सुबह 10 बजे वहां पहुंचना है. काफी चीफ गेस्ट आ रहे हैं. मैं ने खासतौर पर एक बहुत बड़े उद्योगपति हैं, मिस्टर शर्मा… उन्हें आमंत्रित किया है…

“देखो, वे आते भी हैं या नहीं.. बहुत बड़े आदमी हैं…”

मालिनी चेहरे पर प्यारी सी मुसकान लिए शशांक को अपनी बांहों का बधाईरूपी हार पहना देती है.

मालिनी को बांहों में भरते हुए शशांक भी अपना हाल ए दिल बयां करने से पीछे नहीं रहता. वह कहता है, “यह सब तुम्हारे शुभ कदमों का ही प्रताप है.

“मैं बुलंदी की कितनी ही सीढ़ियां हर पल चढ़ता चला गया… न जाने कितनी ख्वाहिशों को होम होना पड़ा. मैं चलता चला चुनौती भरी डगर पर… पाने को आसमां अपना, पूरी उम्मीद के साथ मिलेगा साथ अपनों का, ख्वाब आंखों में संजोए कि किसी दिन उन बिजनेस टायकून के साथ होगा नाम अपना…

ये भी पढ़ें- ध्रुवा: क्या आकाश के माता-पिता को वापस मिला बेटा

“सच अगर तुम मेरी जिंदगी में ना होती, तो मेरा क्या होता…”

मालिनी हंसते हुए बोली, “हुजूर, वही जो मंजूरे खुदा होता…”

“हा… हा… हा.. हा… हाय, मैं मर जावा…”

अगली सुनहरी सुबह मालिनी और शशांक की राह में पलकें बिछाए खड़ी थी. वह कह रहा था, “कमाल लग रही हो… लगता है, सारी कायनात आज मेरी ही नजरों में समाने को आतुर है.
इस लाल सिल्क की कांजीवरम साड़ी में तो तुम नई दुलहन को भी फीका कर दो…”

“चलिए… अब बस भी कीजिए… बच्चे सुन लेंगे…”

“अरे ,सुनने दो… सुनेंगे नहीं तो सीखेंगे कैसे…”

“चलें अब..?”

“वाह, जी वाह, अपना तो सज लीं. अब जरा इस नाचीज पर भी थोड़ा रहम फरमाइए और यह टाई लगाने में हमारी मदद कीजिए.”

“जी, जरूर…”

“सच कहूं मालिनी, आज तुम्हारी आंखों में देख कर फिर मुझे वही 20 साल पुरानी बातें याद आ रही हैं…

“किस तरह मैं ने तुम्हें घुटने के बल बैठ कर गुलाब के साथ प्रपोज किया था…”

“जनाब, अब ख्वाबों की दुनिया से बाहर निकलिए… कहीं आप के चीफ गेस्ट आप के इंतजार में वहीं सूख कर कांटा ना हो जाए…”

“तो आइए, मोहतरमा तशरीफ लाइए…”

ये भी पढ़ें- पति जो ठहरे: शादी के बाद कैसा था सलोनी का हाल

शशांक और मालिनी उद्घाटन समारोह के लिए निकलते हैं. वहां पहुंच कर दोनों अपने मुख्य अतिथि मिस्टर शर्मा का स्वागत करने के लिए गेट पर ही पलकें बिछाए खड़े रहते हैं.
जैसे ही मि. शर्मा गाड़ी से उतरते हैं, उन्हें देखते ही मालिनी तो जैसे जड़ सी हो जाती है…

उधर मिस्टर शर्मा भी…

“आइएआइए मिस्टर वरुण शर्मा… आप ने आज यहां आ कर हमारा सम्मान बढ़ा दिया.”

“अरे नहीं, आप बेतकल्लुफ हो रहे हैं…”

“बाय द वे माय वाइफ मालिनी…”

मालिनी तो सिर्फ उन्हें देख कर ही 20 बरस पीछे लौट गई. नाम तो सुनने की उसे आवश्यकता ही नहीं रही.

आगे पढें- मालिनी की जबान पर ताला सा लग गया…

वो नीली आंखों वाला: भाग 1- वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी

लेखिका- पारुल हर्ष बंसल

मधुमास के बाद लंबी प्रतीक्षा और सावनराजा के धरती पर कदम रखते ही हर जर्रा सोंधी सी सुगंध में सराबोर हो रहा है… मानो सब को सुंदर बूंदों की चुनरिया बना कर ओढ़ा दी हो. लेकिन अंबर के सीने से खुशी की फुलझड़ियां छूट रही हैं… जैसे वह अपने हृदय में उमड़ते अपार खुशी के सागर को आज ही धरती से जा आलिंगन करना चाहता है. बरखा रानी हवाई घोड़े पर सवार हैं, रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं. ऐसे बरस रही हैं, जैसे अब के बाद फिर कभी उसे धरती का सीना तरबतर करने और समस्त धरा को अपने स्नेह का कोमल स्पर्श करने आना ही नहीं है. हर पत्ता, हर डाली, हर फूल खुद को वैजयंती माल समझ इतरा रहा हो और इस धरती के रैंप पर मानो कैटवाक कर रहा हो….

घर की दुछत्ती यह सारा मंजर आंखें फाड़फाड़ कर देख रही है मानो ईर्ष्या से दरार पड़ गई हो, और उस का रुदन मालिनी के दिल को भी छलनी कर रहा है, जैसे एक बहन दूसरे के दुख में पसीज रही हो.

ऐसी बारिश जबजब पड़ी, उस ने मालिनी को हर बार उन बीती यादों की सुरंग में पीछे ले जा कर धकेल दिया.

उन यादों के खूबसूरत झूलों के झोटे तनमन में स्पंदन पैदा कर देते हैं.

वह खूबसूरत सा दिखने वाला, नीलीनीली आंखों वाला, लंबा स्मार्ट (कामदेव की ट्रू कौपी) वो 12वीं क्लास वाला लड़का आंखों के आगे घूम ही जाता.

ये भी पढ़ें- प्रमाण दो: यामिनी और जीशान के रिश्ते की कहानी

मालिनी ने जब 9वीं कक्षा में स्कूल बदला तो वहां सिर्फ एक वही था, उन सभी अजनबियों के बीच… जिस ने उस की झिझक को समझा कि किस प्रकार एक लड़की को नए वातावरण में एडजस्ट होने में वक्त तो लगता ही है. पर साथ ही साथ किसी अच्छे साथी के साथ की भी आवश्यकता होती है. उस ने हिंदी मीडियम से अंगरेजी मीडियम में प्रवेश जो लिया था, इसी कारण सारी लड़कियां मालिनी को बैकवर्ड और लो क्लास समझ भाव ही नहीं देती थीं.
वह जबजब इंटरवल या असेंबली में वरुण को दिख जाती, वही उस की खोजखबर लेता रहता.

“और बताओ… ‘छोटी’,
कोई परेशानी तो नहीं…?”
उस ने कभी मालिनी का नाम जानने की कोशिश ही नहीं की.

एक तो वह जूनियर थी और ऊपर से कद में भी छोटी और सुंदर.

वो उसे प्यार से छोटी ही पुकारता और उस के अंदर हमेशा “मैं हूं ना” कह कर उसे आतेजाते शुक्ल पक्ष के चतुर्थी के चांद सी, छोटी सी मुसकराहट से सराबोर कर जाता. मालिनी का हृदय इस मुसकराहट से तीव्र गति से स्पंदित होने लगता… लेकिन ना जाने क्यों…?

उस को वरुण का हर समय हिफाजत भरी नजरों से देखना… कुछकुछ महसूस कराने लगा था. किंतु क्या…?

वह यह समझ ही नहीं पा रही थी. क्या यही प्रेम की पराकाष्ठा थी? या किसी बहुत करीबी के द्वारा मिलने वाला स्नेह और दुलार था…?

किंतु इस सुखद अनुभूति में लिप्त मालिनी भी अब नि:संकोच हो कर मन लगा कर पढ़ने लगी. उसे जब भी कोई समस्या होती, उसी नीली आंखों वाले लड़के से साझा करती. हालांकि इतनी कम उम्र में लड़केलड़कियों में अट्रैक्शन तो आपस में रहता ही है, चाहे वह किसी भी रूप में हो…

सिर्फ दोस्त या सिर्फ प्रेमी या एक भाई जैसा संबोधन…

शायद भाई कहना गलत होगा, क्योंकि इस रिश्ते का सहारा ज्यादातर लड़केलड़कियां स्वयं को मर्यादित रखने के चक्कर में लेते हैं.

मालिनी अति रूढ़िवादी परिवार में जनमी घर की दूसरे नंबर की बेटी थी. उस के 2 भाई और 2 बहनें थीं. वह देखने में अति सुंदर गोरी और पतली. सहज ही किसी का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की काबिलीयत रखती थी.

एक दिन मालिनी स्कूल से लौटते वक्त बस स्टाप पर चुपचाप खड़ी थी. बस के आने में अभी टाइम था. खंभे से सट कर वह खड़ी हो गई, तभी वरुण वहां से साइकिल पर अपने घर जा रहा था कि उस की नजर मालिनी पर पड़ी और पास आ कर बोला, “छोटी, अभी बस नहीं आई…”

“नहीं…”

“चलो, मैं तुम्हारे साथ वेट करता हूं… बस के आने का..”

वह चुप ही रही. उस के मुंह से एक शब्द न फूटा.

सर्दियों की शाम में 4 बजे बाद ही ठंडक बढ़ने लगती है. आज बस शायद कुछ लेट थी. वह बारबार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखता, तो कभी बस के इंतजार में आंखें फैला देता.

पर, इतनी देर वह चुपचाप वहीं खड़ी रही जैसे उस के मुंह में दही जम रहा हो… टस से मस नहीं हुई…
दूर से आती बस को देख वह खुश हुआ. बोला, “चलो आ गई तुम्हारी बस. मैं भी निकलता हूं, ट्यूशन के लिए लेट हो रहा हूं.”

स्टाप पर आ कर बसरुक जाती है और सभी लड़कियां चढ़ जाती हैं, किंतु मालिनी वहीं की वहीं…

यह देख वरुण आश्चर्यचकित हो अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगता है. बस आगे बढ़ जाती है.

वरुण थोड़ी देर सोचने के बाद… फौरन अपना स्वेटर उतार कर मालिनी को दे देता है. वह कहता है, “यह लो छोटी… इसे कमर पर बांध लो…”

ये भी पढ़ें- सुबह अभी हुई नहीं थी: आखिर दीदी को क्या बताना चाहती थी मीनल

“और…”

“पर, आप… यह क्यों…”

“ज्यादा चूंचपड़ मत करो…
मैं समझ सकता हूं तुम्हारी परेशानी…”

“पर, आप कैसे…?”

“मेरे घर में 2 बड़ी बहनें हैं. जब वे इस दौर से गुजरी, तभी मेरी मां ने उन दोनों को इस बारे में शिक्षित करने के साथसाथ मुझे भी इस बारे में पूरी तरह निर्देशित किया… जैसे गुलाब के साथ कांटों को भी हिदायत दी जाती है कि कभी उन्हें चुभना नहीं…

“क्योंकि मेरी मां का मानना था कि तुम्हारी बहनों को ऐसे समय में कोई लड़का छेड़ने के बजाय मदद करे,
तो क्यों न इस की शुरुआत अपने घर से ही करूं…

“तो मुझे तुम्हारी स्थिति देख कर समझ आ गया था. चलो, अब जल्दी करो…
और घर पहुंचो. तुम्हारी मां तुम्हारा इंतजार कर रही होंगी.”

मालिनी उस वक्त धन्यवाद के दो शब्द भी ना बोल पाई. उन्हें गले में अटका कर ही वहां से तेज कदमों से घर की ओर रवाना हुई.

फिर उसे अगले स्टाप पर घर जाने वाली दूसरी बस मिल गई.

उस के घर में दाखिल होते ही उस का हुलिया देख मां ऊपर वाले का लाखलाख धन्यवाद देने लगती है कि जिस बंदे ने आज मेरी बच्ची की यों मदद की है, उस की झोली खुशियों से भर दे. जरूर ही उस की मां देवी का रूप होगी.

आगे पढ़ें- अगले दिन मालिनी उस नीली आंखों वाले…

ये भी पढ़ें- मोहिनी : कौनसी गलती ने बर्बाद कर दिया परिवार

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें