लेखक- अरुण गौड़
नैना शादी के बाद से अकेली थी. लेकिन ऐसा नहीं कि उस की लाइफ में कोई आया नहीं. शादी के बाद उस की लाइफ में कृष्ण, वरुण और 4 वर्षों पहले तुषार आया था. उन से नैना के संबध तो थे जो शारीरिक तक पहुंचे लेकिन दिल तक नहीं. उन्होंने भी नैना को अपना बनाना चाहा लेकिन नैना सिर्फ अपनी ही बनी रही. कृष्ण ने तो शादी का प्रस्ताव भी दिया लेकिन नैना एक बार शादी कर के खुद को बांध चुकी थी. अब वह फिर से ऐसी गलती नहीं करना चाहती थी. वरुण भी उसे ले कर सीरियस था लेकिन नैना बस नौर्मल थी. हां, तुषार जरूर उस के साथ टाइमपास कर रहा था लेकिन उसे पता नहीं था कि नैना भी बस टाइमपास ही कर रही है. जैसे ही दोनों का वह टाइम पास हुआ, दोनों अलग हो गए.
पता नहीं क्यों तब से नैना ने किसी को अपनी लाइफ में आने की इजाजत ही नहीं दी. लेकिन इस बार यह दरवाजा रोहन के लिए हलका सा खुल चुका था. लेकिन मन में अभी भी संशय बना हुआ था कि रोहन, यार अगर संध्या को पता चल गया तो वह क्या सोचेगी… लोग क्या सोचेंगे…
इसी संशय के बीच झूलती हुई नैना का वह दिन कट चुका था. आज उस ने कई बार अपना फोन चैक किया लेकिन रोहन का एक भी मैसेज नहीं था. उस के दिल में हलकी सी बेचैनी थी. वह अपने घर पहुंची. आज उस की जिंदगी में कुछ अलग सा, कुछ नया सा हो रहा था. वह रोहन को मैसेज कर चुकी थी. लेकिन फिर उस का कोई रिप्लाई नहीं आया. आज उसे अपने अंदर कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी. रात के 10 बज चुके थे. उस ने अपनी बेचैनी को कम करने के लिए नहाने का इरादा किया. वह काफी देर तक बाथटब में लेटी नहाती रही. लेकिन उसे पानी से ठंडक नहीं मिल रही थी. वह नहा कर बाहर आई. अपने शरीर पर टौवल ढके हुए आईने के सामने थी. उस ने खुद को देखा, और कहा, ‘हां नैना, कुछ तो बात है तुझ में.’ उस ने अपने बाल सुलझाए और ऐसे ही आ कर बिस्तर पर लेट गई. फोन उठाया और व्हाटसऐप चैक किया. सभी के मैसेज थे लेकिन रोहन का कोई मैसेज न था. उस ने रोहन की डीपी खोली और उसे देखने लगी. न जाने उसे क्या हुआ कि उस ने रोहन की डीपी को चूम लिया. उसे लगा कि रोहन उस के पास है. उस का नशा उस पर छा रहा था. वह अंगड़ाइयां लेने लगी. उस का टौवल खुल चुका था. और उस का खुद पर अब कोई काबू न था. उस का हाथ शरीर पर घूमते हुए नीचे की तरफ जा रहा था. वह आज खुद को रोक न पाई. वह रोहन को अपनी आगोश में इमेजिन कर के खुद को तृप्त करने लगी. एक अरसे के बाद आज उसे ऐसा नशा हुआ था. और कुछ समय बाद यह नशा अपने चरम पर पहुच कर शांत हो गया. नैना को सुकून सा मिल रहा था. और इस सूकन में खलल डाले बिना वह ऐसे ही सो गई.
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सुबह नैना की आंखें खुलीं. खुद की ऐसी अस्तवयस्त हालत देख कर उसे हंसी आने लगी. उस ने आईना देखा और खुद को देख कर मुसकरा कर बोली, ‘पागल…’ लेकिन यह पागलपन नैना के ऊपर लगातार हावी होता जा रहा था. वह रोहन से मिलना चाहती थी. लेकिन अभी कल ही तो उस के घर गई थी. आज फिर से वहां जाने का कोई बहाना नहीं था उस के पास. वह अपना दिल मसोस कर रह गई. लेकिन शायद कुदरत उस की निराशा को समझ रही थी, सो उस ने उसे रोहन के घर जाने का एक मौका दे दिया. संध्या का कौल आया, “हैलो नैना, अरे यार, एक काम था तुझ से.”
नैना बोली, “बोलो, क्या काम था?”
संध्या बोली, “अरे यार, मुझे आज एक फंक्शन में जाना है. कोई नई साड़ी है नहीं. जो हैं उन्हें मैं पहले ही पहन कर जा चुकी हूं. क्या तू मुझे अपनी औरेंज साड़ी दे सकती है, मैं कल ही उसे लौटा दूंगी?”
नैना ने कहा, “हांहां, क्यों नहीं, बिलकुल दे सकती हूं. कब है फंक्शन?”
संध्या ने कहा, “फंक्शन तो आज दिन में ही है, इसलिए साड़ी आज ही चाहिए थी.”
नैना बोली, “ठीक है, मैं तुम्हारे घर की तरफ ही आ रही थी, कुछ काम था, मैं ही साड़ी ले आऊंगी.”
संध्या बोली, “थैंक यू डियर, जल्दी आ जाना, मैं वेट कर रही हूं तुम्हारा.” और संध्या ने कौल काट दी.
नैना को बहाना मिल गया रोहन से मिलने का, उसे देखने का. वह जल्दी से तैयार हुई, औरेंज साड़ी ली और अपनी कार से चल दी संध्या के घर, नहीं रोहन के घर. अब संध्या तो उस के लिए एक बहाना है.
आज वह संध्या को साड़ी देने ही उस के घर आई थी. संध्या उस से बातें कर रही थी. लेकिन उस का ध्यान संध्या पर नहीं था. वह तो महसूस कर रही थी कि रोहन कहीं न कहीं से चोरीछिपे उसे देख रहा है. वह रोहन की ख्वाहिश पूरी करने के लिए तैयार थी और इस तरह बैठी थी कि रोहन उसे देखे तो देखता ही रहे. उस के खास अंगों से उस की नजर हटे ही न.
उस की चाय खत्म हो चुकी थी लेकिन तब भी रोहन उसे नहीं दिखा. वह खुद संध्या से पूछ नहीं सकती थी कि रोहन कहां है. लेकिन वह बिना जाने रह भी तो नहीं सकती थी. तभी संध्या ने कहा, “अच्छा, मैं साड़ी पहन कर दिखाती हूं कि कैसी लगती हूं.” और वह साड़ी चेंज करने लगी.
नैना को एक बहाना मिल गया था और इस बहाने को लपके हुए वह बोली, “अरे, यहीं चेंज करोगी क्या, कोई आ गया तो, रोहन भी घर पर होगा, वह भी आ सकता है.”
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“अरे नहीं, कोई नहीं आएगा. रोहन भी यहां नहीं है. कल रात उस के दोस्त के यहां पार्टी थी, वहीं गया हुआ है. अभी कौल किया था, तो बोला कि थोड़ा लेट आएगा,” संध्या ने कहा.
“ओह,” नैना के मुंह से निकला. जिस के लिए वह आई थी, जिस की नजरों से काफी देर से खुद को देख रही थी वह तो यहां था ही नहीं. नैना के मन में हलकी सी उदासी आ गई. अब उसे यहां रुकने का कोई फायदा नहीं था. वह सोफे से खड़ी हुई और बोली, “ओके संध्या, मुझे कहीं जाना है, तुम अपनी पार्टी एंजौय करो.”
“ओके, काम है तो जाओ, मैं कल साड़ी पहुंचवा दूंगी तुम्हें,” संध्या ने कहा.
“कोई नहीं यार, आराम से पहुंचा देना, कोई जल्दी नहीं है,” नैना ने कहा और वह अपने औफिस चली गई.
नैना सुबह किस मूड से उठी थी, लेकिन रोहन को न पा कर उस का मूड दिनभर खराब ही रहा.
आगे पढ़ें- नैना ने तो आज उलझन में…