REVIEW: कमजोर कथा व पटकथा है फिल्म शिद्दत

फिल्म समीक्षाः

रेटिंग : ढाई स्टार

निर्माताः भूषण कुमार , दिनेश विजन

निर्देशकः कुणाल देशमुख

कलाकारः सनी कौशल, राधिका मदान, मोहित रैना, डायना पेंटी, च्रिस विल्सन, अल्फ्रेडो तवारेस, दिलजॉन सिंह, अतुल शर्मा, रिचा प्रकाश व अन्य

अवधि : दो घंटे 26 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म : डिज्नी प्लस हॉट स्टार

इंटरनेट व मोबाइल के युग में जी रही नई पीढ़ी को नब्बे के दशक के रोमांस का अहसास कराने वाली फिल्म ‘‘शिद्दत’’लेकर फिल्मसर्जक कुणाल देशमुख आए हैं, जो कि एक अक्टूबर से ‘डिज्नी प्लस हॉट स्टार ’पर स्ट्रीम हो रही है. जिन्हे नब्बे के दशक के रोमांस का अहसास करना हो, वह इस फिल्म को देख सकते हैं.

कहानीः

फिल्म ‘‘शिद्दत” दो समानांतर प्रेम कहानियां हैं. जिसमें इस बात का चित्रण है कि कैसे पूरे दिल से विश्वास करने से प्यार मिलता है. इसमें एक प्रेम कहानी फ्रांस में भारतीय राजदूत गौतम(मोहित रैना   )और ईरा(डायना पेंटी)की है. अपनी शादी की रिसेप्षन पार्टी में गौतम एक लक्की अंगूठी और अपने प्यार को लेकर दार्षनिक बाते करते हुए कहता है कि ‘अगर मैं आपसे लंदन में नहीं मिला होता, तो यह पेरिस या एम्स्टर्डम होता. क्योंकि तुम मेरी किस्मत हो. तुम मेरी नियति हो. और वह षिद्दत की बात करता है. गौतम की इन बातों से उस पार्टी में बिना निमंत्रण अपने दो साथियों संग पहुॅचे हाकी खिलाड़ी जग्गी (सनी कौशल )प्रभावित हो़ता है. मोबाइल, इंटरनेट व इंस्टाग्राम युग में जी रहे जग्गी को प्यार के नए मायने समझ में आते हैं. कुछ समय बाद हाकी खिलाड़ी जग्गी और तैराक कार्तिका( राधिका मदान )की प्रेम कहानी षुरू होती है. दो षुद्ध आत्माएं मिलती हैं, नोकझोक करते करते प्यार में पड़ जाती हैं, मगर तकदीर उन्हे जुदा कर देती है. जग्गी पंजाब, भारत में ही रह जाता है, जबकि कार्तिका लंदन चली जाती है और तीन माह बाद लंदन में कार्तिका की शादी है. कार्तिका के लंदन जाने से पहले जग्गी उससे शादी करना चाहता है और

वह कार्तिका से कह देता है कि वह अपने प्यार को पाने के लिए लंदन आएगा. कार्तिका, जग्गी से कहती है कि सिर्फ प्यार के लिए शादी नहीं होती, शादी होती है सैटल होने के लिए. वह जग्गी के प्यार को ठुकराते हुए भरी जवानी में अपने बुढ़ापे तक की रील पे कर देती है. जग्गी के ज्यादा जोर देने पर कहती है कि अगर तुझमें तीन महीने तक प्यार की यही शिद्दत भरी फीलिंग बनी रहे तो लंदन आ जाना. अब जग्गी निर्णय कर लेता है कि वह कार्तिका को इस जमाने में सच्चा प्यार दिखाएगा. इसलिए अब जग्गी लंदन जाना चाहता है. पर उसे वीसा नही मिलता. तब वह गैर कानूनी तरीके से लंदन के लिए रवाना होता है और आठ देषों की सीमाएं पार कर फ्रांस पहुॅच जाता है, जहां जग्गी पकड़ा जाता है. तब वहां उसकी मुलाकात गौतम से हो जाती है. इस बीच गौतम व ईरा के बीच वैचारिक मतभेद के चलते दूरियां पैदा हो चुकी हैं. क्योंकि गौतम गौतम हर काम कानून के हिसाब से करना पसंद करता है. जग्गी, गौतम को बताता है कि वह तो प्यार को लेकर उनकी दार्षनिक बातों से प्रभावित होकर ही अपने प्यार को पाने के लिए इस कठिन डगर पर पूरी षिद्दत के साथ निकला है और अब उसे उसकी मदद करनी चाहिए. तब गौतम उसे ईरा से दूरी की कहानी सुनाकर उसे अपने प्रयासों से भारत वापस भेजने का प्रयास करता है. मगर जग्गी एअरपोर्ट पर गौतम को चकमा देकर भागता है, पर अस्पातल पहुॅच जाता है. जहां फिर गौतम उसकी मदद के लिए पहुंचता है. अब गौतम , जग्गी को सुरक्षित भारत भेजना चाहता है. तो जग्गी एनकेन प्रकारेण लंदन पहुॅचना चाहता है. जग्गी इंग्लिश चैनल यानी कि समुद्र को तैर कर लंदन पहुॅचने का भी असफल प्रयास करता है. अंततः गौतम उसकी मदद करने का प्रयास करता है, तो वहीं जग्गी, गौतम व ईरा को पुनः मिलाने का प्रयास करता है. अब इन दो प्रेम कहानियां कहां पहुंचती हैं, इनके साथ क्या क्या होता है, इसके लिए फिल्म देखनी पड़ेगी.

 

लेखन व निर्देशनः

रोमांटिक फिल्म ‘‘शिद्दत’’ प्रेम नाम की पहेली के पीछे पागलपन, जुनून और दर्द को बयां करती है. मगर लेखक और निर्देशक के सिर पर शाहरुख खान अभिनीत

पुरानी फिल्म ‘‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’’ का भूत इस कदर सवार रहा कि उन्होने पूरी फिल्म का बंटाधार कर दिया. फिल्म का क्लायमेक्स काफी घटिया है. तो वहीं ‘षिद्दत’ देखकर अहसास होता है कि निर्देशक कुणाल देशमुख लगभग तेरह वर्ष बाद भी खुद को अपनी पहली फिल्म‘‘जन्नत’’से अलग नही कर पाए हैं. लेखक ने दो प्रेम कहानियां पेश की हैं, मगर दोनों में विरोधाभास है. कहानी में गहराई की बजाय उथलापन है. हॉकी खिलाड़ी और अप्रवासी भारतीय कार्तिका, जिसकी लंदन में शादी तय हो चुकी है, वह क्यों जग्गी की तरफ आकर्षित होती है, यह स्पष्ट नहीं होता. उपर से लेखक व निर्देशक दिखा रहे है कि कार्तिका को जग्गी के साथ ‘वन नाइट स्टैंड’में आपत्ति नही है, मगर शादी में है. प्यार को लेकर बड़ी-बड़ी बातें जरुर की गयी हैं. निर्देशक ने प्यार के बहाने फिल्म में यूरोप में अवैध प्रवासियों की समस्या की भी झलक दिखाने की असफल कोषिश की है. वह इस मुद्दे को भी सही ढंग से नही पेश कर पाए.

अभिनयः

जग्गी के किरदार में सनी कौशल ठीक ठाक ही हैं. पर उनका अंदाज रोमांटिक हीरो वाला नहीं है. कार्तिका के किरदार में राधिका मदान अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहीं. उनके चेहरे पर प्रेम के सहज भाव उभरते ही नही है. उनकी बॉडी लैंग्वेज रोमांटिक हीरोइनों वाली नहीं हैं. युवा राजनयिक गौतम के किरदार में मोहित रैना का अभिनय शानदार है. उन्होने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. ईरा के किरदार में डायना पेंटी, मोहित का कंधे से कंधा मिला कर साथ देती हैं, जबकि लेखक ने उनके किरदार को सही ढंग से लिखा नही है. अन्य सहायक कलाकार ठीकठाक हैं.

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त्योहारों के दौरान हर महिला की चाहत होती है कि वह सब से  सुंदर दिखे. अगर आप भी ऐसा ही चाहती हैं तो आप के लिए बेहद जरूरी होगा कि आप कुछ बेसिक रूटीन फौलो करें. इस से त्वचा और शरीर को प्रभावित करने वाली अशुद्धियों को दूर करने में मदद मिलेगी. आमतौर पर महिलाएं स्किन और हेयर केयर के नियमों की बात तो करती हैं पर ऐसे प्रोडक्ट्स को अपने रूटीन में शामिल कर लेती हैं जो महंगे कैमिकल्स वाले होते हैं. इन से स्किन और बालों को फायदा मिले न मिले, नुकसान होना तय है.

ऐसे में जरूरी है कि आप यह समझें कि आप के शरीर को फायदा और नुकसान पहुंचाने वाले, दोनों ही तरह के रसायनों का प्राकृतिक भंडार मौजूद है. यह कितनी मात्रा में है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप क्या खाती हैं और अपने शरीर पर क्या लगाती हैं. इस वजह से जब आप स्किन और हेयर केयर की बात करती हैं तो आप को बेसिक नियम बनाने की जरूरत होती है यानी आप को अपने शरीर के साथ केवल प्राकृतिक चीजों का ही इस्तेमाल करना है.

लैपटौप और मोबाइल से निकलने वाली किरणों तथा बड़ी मात्रा में प्रदूषण के भी हम संपर्क में आते हैं. ये हमारी स्किन और बालों पर बुरा असर डालते हैं. इस वजह से हम अपनी त्वचा और बालों की देखभाल के बारे में कितनी भी लापरवाह क्यों न हों, हमें अधिक प्रभावी जीवनशैली के लिए कम से कम कुछ प्रयास तो करने ही होंगे.

त्योहारों से पहले त्वचा की देखभाल के नियम

निम्न बातों पर आप को त्योहार से करीब 1 हफ्ता पहले ही अमल करना चाहिए. अगर आप ऐसा कर लेती हैं तो त्योहार के दिन आप की चमक किसी के सामने फीकी नहीं रहेगी.

ऐक्सफोलिएशन: त्योहारों से पहले कब ऐक्सफोलिएट करना है? महिलाओं से आम होने वाली गलती यह होती है कि वे त्योहार के ठीक पहले अपनी त्वचा को ऐक्सफोलिएट करती हैं. ऐक्सफोलिएट करना यानी स्किन में डैड सैल्स को हटाना. अगर आप त्योहार के ठीक पहले त्वचा को ऐक्सफोलिएट करती हैं तो रोमछिद्र खुले रह जाते हैं, जिस से मेकअप और प्रदूषक उस में घर बना लेते हैं. ये आप के मेकअप को पैची लुक देते हैं. ऐसी स्थिति में मुंहासों की संभावना बढ़ जाती है. इस का कारण होता है खुले रोमछिद्रों के जरीए मेकअप का त्वचा में प्रवेश कर जाना.

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त्योहार से कम से कम 3 दिन पहले अपनी त्वचा को ऐक्सफोलिएट करना बेहतर कदम साबित होगा. आप एक ऐक्सफोलिएटिंग स्क्रब या मास्क का उपयोग कर सकती हैं, जो हानिकारक रसायनों से मुक्त हो और आप की त्वचा पर प्राकृतिक रूप से असर दिखाए. आप संतरे के छिलकों की मदद से भी अपना स्क्रब तैयार कर सकती हैं. उस में ऐलोवेरा मिला सकती हैं. याद रखें कि अगर आप चेहरे के बाल हटा रही हैं, तो ऐक्सफोलिएट से 2 दिन पहले ऐसा करें. चेहरे के बालों को हटाने के ठीक बाद टोनर और फेस औयल लगाएं.

इस से खुले रोमछिद्र बंद हो जाते हैं और आप की त्वचा फिर से जीवंत हो जाती है. अपने चेहरे के बालों को हटाने के ठीक बाद मेकअप न करें. इस से त्वचा को नुकसान हो सकता है. मेकअप रोमछिद्रों को बंद कर देता है और इस की वजह से ब्लैकहैड्स और व्हाइटहैड्स की वजह बनता है.

अगर त्वचा औयली है

अगर आप की त्वचा औयली है, तो चेहरे पर तेल लगाते समय सावधानी बरतें क्योंकि इस से त्वचा में तेल की मात्रा बढ़ सकती है. ऐक्सफौलिएट करने के बाद टोनर और प्राकृतिक ऐलोवेरा जैल का उपयोग करें.

सफाई एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा जरूर है, पर यह याद रखें कि आप की त्वचा को दिन में कम से कम 2 बार मौइस्चराइज करना आवश्यक है. अगर आप की त्वचा औयली है तो भी मौइस्चराइजिंग जरूरी है. अपनी त्वचा को निखारने के लिए नौनऔयली मौइस्चराइजर का इस्तेमाल करें. त्योहार खत्म होने के बाद भी इन नियमों का पालन अवश्य करें.

त्योहार से पहले अमल के लिए टिप्स

–  त्योहार से 2 दिन पहले अपनी त्वचा से टैनिंग हटाने के लिए डीटैन मास्क लगाएं.

–  त्योहार से 1 दिन पहले अपनी त्वचा को मेकअप मुक्त रखें ताकि आप सभी स्किनकेयर ट्रीटमैंट जैसेकि फेशियल, स्क्रब, मास्क आदि

के बाद त्वचा को फिर से भरने और जीवंत करने के लिए समय दे सकें.

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–  अपनी आंखों के अंदर के हिस्से और होंठों की देखभाल न भूलें. अपने शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए ढेर सारा पानी पीएं और आंखों के नीचे खीरा और होंठों पर चुकंदर लगाने से बहुत चमक मिलती है.

–  त्योहार से पहले की रात को अच्छी नींद लें ताकि त्योहार के दिन आप की त्वचा अपनी सर्वश्रेष्ठ स्थिति में दिख सके.

–  अपने चेहरे पर अच्छी क्वालिटी के मेकअप का इस्तेमाल करें क्योंकि असंवेदनशील मेकअप प्रोडक्ट आप की त्वचा को बुरी तरह नुकसान पहुंचाते हैं.

त्योहार से पहले हेयरकेयर: बाल कब धोने हैं/हेयर मास्क कब लगाना है आदि जितना जरूरी स्किन केयर है, उतना ही आवश्यक हेयरकेयर भी है. अपने बालों के स्वास्थ्य की उपेक्षा न करें क्योंकि यही आप के लुक में चार चांद लगाते हैं. त्योहार से कम से कम 4 घंटे पहले अपने बालों को धोना महत्त्वपूर्ण है. ऐसा करना आप के बालों को आसानी से सूखने और स्टाइल में मदद करता है.

बालों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए कुछ चीजें जो अनिवार्य रूप से आप के बालों पर होनी चाहिए, वे हैं:

–  कंडीशनिंग के लिए आप ऐलोवेरा, अंडे का सफेद भाग और चावल का पानी लगा सकती हैं. तीनों में से किसी एक को चुनें. इस के अलावा अपने बालों को नियमित रूप से तेल लगाना याद रखें जो आप के बालों को मजबूती प्रदान करता है और उन्हें सफेद/ग्रे होने से रोकता है.

हेयर मास्क के लिए: यदि आप के बाल बहुत ज्यादा क्षतिग्रस्त हैं, तो आप हेयर मास्क लगा सकती हैं.

हालांकि, रासायनिक हेयर मासक की सिफारिश नहीं की जाती है. बालों को फिर से ग्रेस और शाइन करने के लिए आप दही को अपने बालों में लगा सकती हैं.       –

दामिनी चतुर्वेदी

मेकअप कलाकार 

यदि आप के बाल रंगीन हैं तो क्या करें

यदि आप ने अपने बालों में रंग लगाया है, तो संभावना है कि अगर ठीक से देखभाल नहीं की गई तो आप के बाल रूखे दिखाई दे सकते हैं.  इस वजह से नियमित रूप से तेल लगाएं और ऐसे मामलों में कंडीशनिंग जरूरी है. साथ ही जब भी आप अपने बालों को कलर करवाएं, कैमिकल प्रोडक्ट्स का कम से कम इस्तेमाल करें. यह सुनिश्चित करें कि रंग स्कैल्प या आप के बालों की जड़ों तक न पहुंचे वरना बालों के सफेद होने की संभावना ज्यादा होती है.

धर्म हो या सत्ता निशाने पर महिलाएं क्यों?

अफगानिस्तान में मजहबी और सियासती लड़ाई जारी है. मूल में उस का धर्म इसलाम है. कट्टरपंथी तालिबान शरिया कानून का सख्त हिमायती है. वह इंसान के पहनावे से ले कर व्यवहार तक को अपने मुताबिक चलाना चाहता है. वह पुरुष से दाढ़ी रखने व टोपी लगाने और स्त्री से हिजाब ओढ़ने का सख्ती से पालन करवाने वाला है. औरतों के मामले में उस के विचार बेहद कुंठित हैं.

तालिबान औरतों को सैक्स टौय से ज्यादा कुछ नहीं समझता. यही वजह है कि पढ़ीलिखी, दफ्तरों में काम करने वाली और तरक्की पसंद अफगान औरतों में निजाम बदलने से बहुत ज्यादा बेचैनी है. उन्हें मालूम है तालिबान अभी भले यह ऐलान कर रहा हो कि वह औरतों की पढ़ाई और काम पर रोक नहीं लगाएगा, मगर जैसे ही पूरा अफगानिस्तान उस के कब्जे में होगा और तालिबानी सत्ता कायम होगी, औरतों की स्थिति सब से पहले बदतर होने वाली है. उन्हें एक बार फिर अपना कामधंधा और पढ़ाईलिखाई छोड़ कर घरों में कैद रहना होगा. खुद को हिजाब में  लपेट कर शरिया कानून का सख्ती से पालन करना होगा.

इस वक्त अफगानिस्तानी गायक, फिल्मकार, अदाकारा, डांसर, प्लेयर किसी तरह अफगान से निकल भागने की फिराक में हैं. तालिबान के कब्जे के बाद से बड़ी संख्या में कलाकारों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया है. वजह यह कि तालिबान ने उन्हें शरिया कानून के अनुसार अपने पेशे का मूल्यांकन करने और उस के बाद पेशे को बदलने का फरमान सुना दिया है.

अगर उन्होंने नाफरमानी की तो वे गोलियों का निशाना बनेंगे क्योंकि तालिबान अपना उदारवादी मुखौटा बहुत देर तक अपने चेहरे पर नहीं संभाल सकता है. अमेरिकी सेनाओं की  पूरी तरह वापसी के बाद वह अपने असली रंग में आ जाएगा.

अब सिर्फ यादें

जो अफगान औरतें 60 के दशक में अपनी किशोरावस्था में थीं या जवानी की दहलीज पर पांव रख रही थीं, वे अब बूढ़ी हो चली हैं, मगर उस दौर के अफगानिस्तान की याद उन की आंखों में चमक पैदा कर देती है. पहले ब्रितानी संस्कृति और फिर रूसी कल्चर के प्रभाव के चलते 60 के दशक में अफगान महिलाओं की लाइफ बहुत ग्लैमरस हुआ करती थी.

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आज जहां वे बिना परदे के बाहर नहीं निकल सकतीं, उस अफगान की जमीन पर कभी फैशन शो आयोजित हुआ करते थे. महिलाएं शौर्ट स्कर्ट, बैलबौटम, मिडी, लौंग स्कर्ट, शौर्ट टौप जैसी पोशाकों पर रंगीन स्कार्फ और मफलर लपेटे दिखाई देती थीं. ऊंची हील पहनती थीं. बालों को स्टाइलिश अंदाज में कटवाती थीं. खुलेआम मर्दों की बांहों में बांहें डाले शान से घूमती थीं. क्लब, स्पोर्ट्स, पिकनिक का लुत्फ उठाती थीं.

काबुल की सड़कों पर अफगानी महिलाओं का फैशनेबल स्टाइल हौलीवुड की अभिनेत्रियों से कम नहीं था. वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर बड़े ओहदों पर काबिज होती थीं. 1960 से ले कर 1980 के बीच के फोटो देखें तो पाएंगे कि अफगानिस्तान में महिलाएं कितनी स्वच्छंद और आजाद थीं. वे फैशन सहित हर फील्ड में आगे थीं. तब के काबुल की तसवीरें ऐसा आभास देती हैं कि  जैसे आप लंदन या पैरिस की पुरानी तसवीरें  देख रहे हैं.

फोटोग्राफर मोहम्मद कय्यूमी के फोटो उस दौर का सारा हाल बयां करते हैं. चाहे मैडिकल हो या एयरोनौटिकल, अफगान महिलाएं हर फील्ड में अपनी जगह बना चुकी थीं. 1950 के आसपास अफगानी लड़केलड़कियां थिएटर और यूनिवर्सिटीज में साथ घूमते और मजे करते थे. औरतों की लाइफ बहुत खुशनुमा थी.

हर क्षेत्र में आगे थीं

उस समय अफगान समाज में महिलाओं की अहम भूमिका थी. वे घर के बाहर काम करने और शिक्षा के क्षेत्र में मर्दों के कंधे से कंधा मिला कर चलती थीं. 1970 के दशक के मध्य में अफगानिस्तान के तकनीकी संस्थानों में महिलाओं का देखा जाना आम बात थी. काबुल के पौलिटैक्निक विश्वविद्यालय में तमाम अफगानी छात्राएं मर्दों के साथ शिक्षा पाती थीं. 1979 से 1989 तक अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के दौरान कई सोवियत शिक्षक अफगान विश्वविद्यालयों में पढ़ाते थे. तब औरतों पर मुंह को ढकने का कोई दबाव नहीं था. वे अपने पुरुष दोस्तों के साथ काबुल की सड़कों पर आराम से घूमती और मस्ती करती थीं.

मगर 1990 के दशक में तालिबान का प्रभाव बढ़ने के बाद महिलाओं को बुरका पहनने की सख्त ताकीद की गई और उन के बाहर निकलने पर भी रोक लगा दी गई.

अफगानिस्तान हो या भारत, धर्म ने सब से ज्यादा नुकसान औरतों का ही किया है. सब से ज्यादा जुल्म औरतों पर ढाया है. सब से ज्यादा गुलामी की जंजीरों में औरतों को जकड़ा है. अगर कोई पुरुष भी धर्म के हाथों मारा जाता है तो उस की पीड़ा भी औरत ही उठाती है. एक पुरुष के मरने पर कम से कम 4 औरतें तकलीफ से गुजरती हैं और ताउम्र उस तकलीफ को झेलती हैं. वे हैं उस पुरुष की मां, बहन, बीवी और बेटी. धर्म औरत का सब से बड़ा दुश्मन है. धर्म की जंजीरों को काटने का फैसला औरत को ही लेना होगा. यह हौसला उस में कब जागेगा, फिलहाल कहना मुश्किल है.

धर्म तो एक बहाना है

अभी तो अफगानिस्तान में इसलाम मजबूत हो रहा है और भारत में हिंदुत्व. कोई ज्यादा फर्क नहीं है. वे इसलाम के नाम पर मारकाट करते हैं, ये हिंदुत्व के नाम पर करते हैं. धर्म के ठेकेदार सत्ताधारियों को अपनी मनमरजी पर चलाते हैं और उन के हाथों ये गुनाह करवाते हैं. फिर चाहे वे अफगानिस्तान में हों या हिंदुस्तान में. सत्ता की जबान से औरतों को जलील करवाया जाता है.

बीते एक दशक में जब से हिंदुस्तान में हिंदुत्व का पारा चढ़ना शुरू हुआ है सत्ताशीर्ष पर बैठे लोग औरत की गरिमा को तारतार करने में लगे हैं. औरत की बेइज्जती कर के वे खुद को ताकतवर दिखाने की कोशिश में हैं. भारतीय राजनीतिक विमर्श में कांग्रेस की विधवा, बार बाला, इटैलियन डांसर, भूरी काकी, वेश्या, चुड़ैल, कुतिया, दीदी ओ दीदी, ताड़का जैसे स्वर्णिम शब्दों से औरत का महिमामंडन करने का काम हिंदू हृदय सम्राट अकसर करते हैं. इस का विराट उद्घाटन ‘पचास करोड़ की गर्लफ्रैंड’ जुमले के साथ हुआ था जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख से कांग्रेस नेता शशि थरूर की मृतक पत्नी सुनंदा पुष्कर के लिए 29 अक्तूबर, 2012 को झरे थे.

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इतनी कुंठा किसलिए

प्रियंका गांधी जब चुनावी दौर में प्रचार के लिए उतरती हैं तो उन के कपड़ों से ले कर उन के नैननक्श तक पर राजनेताओं द्वारा टिप्पणी की जाती है. प्रियंका को ले कर ये बातें भी खूब कही गईं कि खूबसूरत महिला राजनीति में क्या कर पाएगी. वहीं शरद यादव का वसुंधरा राजे पर किया गया कमैंट भी याद होगा जब उन्होंने उन के मोटापे पर घटिया टिप्पणी की थी कि वसुंधरा राजे मोटी हो गई हैं, उन्हें आराम की जरूरत है.

महिलाओं के संबंध में ये अनर्गल बातें करने वालों को धर्म की घुड़की कभी नहीं मिलती. धर्म के ठेकेदार ऐसी बातों पर हंसते हैं और सत्ता में बैठे ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करते हैं. हैरानी की बात है कि सत्ता की ताकत हासिल करने वाली महिलाओं में भी महिलाओं के प्रति ऐसी जलील बातें करने वालों का विरोध करने या उन्हें फटकारने का साहस नहीं उपजता.

वो नीली आंखों वाला: भाग 3- वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी

लेखिका- पारुल हर्ष बंसल

“आप… आप हैं …मिस्टर वरुण शर्मा.”

वरुण बोला, “इफ आई एम नोट रौंग, यू आर छुटकी.”

“एंड… आप वो नीली आंखों वाले लड़के…”

यह बोलतेबोलते मालिनी की जबान पर ताला सा लग गया… उस की आंखों के नीले समुंदर में, वो फिर से ना खो जाए,

“हां, हां…”

मालिनी उन्हें पुष्पगुच्छ दे कर उन का स्वागत करने के साथसाथ दिल की गहराइयों से मन ही मन धन्यवाद ज्ञापन करती है, जो इतने बरसों में ना कर सकी.

जैसे आज भगवान उस पर मेहरबान हो गए हो और कोई बरसों पुराना काम आज पूरा हो गया हो.

आज उस के दिल से उस नीली आंखों वाले लड़के को धन्यवाद ना कर पाने का अपराधबोध समाप्त हो चुका था.

“क्या आप एकदूसरे को जानते हैं…?” शशांक ने पूछा.

“जी… मालिनी जी मेरी जूनियर थीं…”

आज मालिनी का “समय पर किसी का अधिकार नहीं, किंतु समय की दयालुता पर विश्वास” पेड़ की जड़ों की तरह गहरा हो गया था.

“ओह दैट्स ग्रेट…” इतना कह कर मिस्टर शशांक दूसरे कामों में व्यस्त हो गए, जैसे उन्होंने मन ही मन स्वीकार कर लिया था कि अब उन के मेहमान मालिनी के भी हैं, तो वह उन की बढ़िया आवभगत कर लेगी.

मालिनी और वरुण की आंखों में न जाने कितने मूक संवाद तैर रहे थे, जिन में अनेकों प्रश्न, उत्तर की नोक पर भटक रहे थे. जैसे नदी का बांध खोल देने पर सबकुछ प्रवाहित होने लगता है.

दोनों इतने वर्षों बाद भी औपचारिक बातों के अलावा और कुछ नहीं कह पा रहे थे. शायद वह माहौल उन के अंतर्मन में उठते प्रश्नों के जवाब के लिए उपयुक्त ना था, किंतु वर्षों बाद वरुण के मन की तपती बंजर भूमि पर आज मालिनी से मिलन एक बरखा समान बरस रहा था और साथ ही वरुण इस के विपरीत भाव मालिनी के चेहरे पर पढ़ रहा था.

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पूरे कार्यक्रम के दौरान वरुण ने अनेकों बार चोर निगाहों से मालिनी को निहारा. उस के दिल का वायलिन जोरजोर से बज रहा था, किंतु उस की भनक सिर्फ शशांक को ही महसूस हो रही थी.

कार्यक्रम के उपरांत सभी ने रात्रिभोज एकसाथ किया और तभी बारिश होने लगी. वरुण की फ्लाइट खराब मौसम के कारण कुछ घंटों के लिए स्थगित कर दी गई.

मिस्टर वरुण शशांक से एयरपोर्ट के लिए विदा लेने लगे, तो शशांक ने उन्हें कुछ देर घर पर ही चल कर आराम करने को कहा.

वरुण तो जैसे अपने प्रश्नों के जवाब हासिल करने को बेताब हुआ जा रहा था और ऐसे में शशांक के घर पर रुकने का न्योता…

पर, इस बात से मालिनी कुछ असहज सी होने लगी, जिसे वरुण ने भांप लिया.

खैर, सभी घर पहुंचे और वरुण को मेहमानों के कमरे में शशांक ही पहुंचा कर आया और यह भी कहा कि इसे अपना ही घर समझें. कुछ चीज की आवश्यकता हो तो मुझे या मालिनी को अवश्य बताएं.

“जी, जरूर… आप बेतकल्लुफ हो रहे हैं.”

शशांक अपने कमरे में आते ही मालिनी से कहता है कि आज मैं सब देख रहा था…

“जी, क्या?”

“वही…”

“क्या..?”

“ज्यादा भोली न बनो. मिस्टर वरुण तुम्हें टुकुरटुकुर निहार रहे थे.
पर, मैं तो नहीं…”

“क्या इस का अंदाजा तुम्हें नहीं कि वह तुम्हें…”

“छी:.. छी:, कैसी बात करते हैं आप? मेरे जीवन में आप के सिवा कोई दूसरा नहीं.”

“अरे, मैं ने कब कहा ऐसा… मैं तो पहले की बात कर रहा हूं.”

मालिनी गुस्से से तमतमाते हुए…. “नहीं, हमारे बीच पहले भी कभी ऐसी कोई बात नहीं हुई.”

“तो फिर मिस्टर वरुण की आंखों में मैं ने जो देखा, वह क्या…?”

शशांक की इन बातों ने मालिनी के दिल में नश्तर चुभो दिए और वह चुपचाप जा कर सो गई.

वह सुबह उठी, तो मिस्टर वरुण जा चुके थे और शशांक अपने औफिस.
तभी हरिया चाय के साथ मालिनी के कमरे में दाखिल होता है.

“बीवीजी… वह साहब जो रात को यहां ठहरे थे, आप के लिए यह चिट्ठी छोड़ गए हैं. बोले, मैं आप को दे दूं…”

मालिनी की आंखों में छाई सुस्ती क्षणभर के लिए जिज्ञासा में परिवर्तित हो गई कि क्या है इस में… ऐसा क्या लिखा है…” मालिनी ने कांपते हाथों से वह चिट्ठी खोली और पढ़ने लगी.

‘प्रिय छुटकी,

‘मैं जानता हूं कि तुम्हारे मन में अनगिनत सवाल उमड़ रहे होंगे कि मैं तुम्हें कभी कालेज के बाद क्यों नहीं मिला?

‘क्यों तुम से कभी अपने दिल की बात नहीं कही. जबकि मैं ने कई बार महसूस किया कि तुम मुझ से कुछ कहना चाहती थी.

‘किंतु वह शब्द हमेशा तुम्हारे गले में ही अटके रहे. उन्हें कभी जबान का स्पर्श नसीब नहीं हुआ. मैं वह सुनना चाहता था, किंतु मेरी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. मैं आशा करता हूं कि मेरे इस पत्र में तुम्हें अपने सभी सवालों के जवाब के साथसाथ मेरे दिल का हाल भी पता लग जाएगा.

‘मालिनी, मैं तुम्हारे काबिल ही नहीं था, इसलिए तुम से बाद में चाह कर भी नहीं मिला, क्योंकि मैं तुम्हें वह सारी खुशियां देने में शारीरिक रूप से पूर्ण नहीं था. मेरे साथ तुम तो क्या कोई भी लड़की खुश नहीं रह सकती.’

पढ़तेपढ़ते मालिनी की आंखों से गिरते आंसू इन अक्षरों को अपने साथ बहाव नहीं दे पा रहे थे. वह फिर पढ़ने लगी.

‘मेरी उस कमी ने मुझे तुम से दूर कर दिया, किंतु तुम आज भी मेरे मनमंदिर में विराजमान हो. तुम्हारे अलावा आज तक उस का स्थान कोई और नहीं पा सका है.

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‘बचपन में क्रिकेट खेलते वक्त गेंद इतनी तेजी से मेरे अंग में लगी, जिस ने मेरे पौरूष को जबरदस्त चोट पहुंचाई और मेरे आत्मविश्वास को भी… किंतु मेरा तुम से वादा है कि मैं तुम्हें यों ही बेइंतहा चाहता रहूंगा और एक दिन तुम्हें भी अपने प्यार का एहसास करा कर रहूंगा….

‘तुम्हारा ना हो सका
वरुण.’

मालिनी कुछ पछताते हुए सोचने लगी, “तुम ने मुझ से कहा तो होता… क्या सैक्स ही एक खुशहाल जिंदगी की नींव होता है? क्या एकदूसरे का साथ और असीम प्यार जीवन के सफर को सुहाना नहीं बना सकता?”

आज फिर से वह सवालों के घेरे में खुद को खड़ा महसूस कर रही है.

मालिनी की नजर बगीचे में पड़ी तो देखा…

अनगिनत टेसू के फूल झड़े पड़े थे और संपूर्ण वातावरण केसरिया नजर आ रहा था.

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वो नीली आंखों वाला: भाग 2- वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी

लेखिका- पारुल हर्ष बंसल

इतना ही नहीं, वरुण ने स्कूल में होने वाली रैगिंग से भी कई बार मालिनी को बचाया. और तो और रैगिंग को स्कूल से खत्म ही करवा दिया, क्योंकि वह हैडब्वौय था और उस के एक प्रार्थनापत्र ने प्रधानाचार्य को उस की बात स्वीकार करने के लिए राजी कर लिया, क्योंकि बात काफी हद तक सभी विद्यार्थियों के हितार्थ की थी.

अगले दिन मालिनी उस नीली आंखों वाले लड़के का स्वेटर स्कूल में लौटाती है, किंतु हिचक के कारण वही दो शब्द गले में फांस से अटके रह जाते हैं, जिस की टीस उस के मन में बनी रहती है.

शीघ्र ही स्कूल में बोर्ड के पेपर शुरू होने वाले हैं. सभी का ध्यान पूरी तरह से पढ़ाई पर केंद्रित हो जाता है, क्योंकि अच्छे अंक प्राप्त करना हर विद्यार्थी का लक्ष्य होता है.

बस मालिनी की वह वरुण से आखिरी मुलाकात बन कर रह गई, क्योंकि 9वीं और 11वीं के पेपर खत्म होते ही उन की छुट्टी कर दी गई थी, क्योंकि पूरे विद्यालय में 10वीं व 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के लिए उचित व्यवस्था की जा रही थी.

फिर मालिनी चाह कर भी वरुण से नहीं मिल पाई, क्योंकि वह विद्यालय 12वीं तक ही था, जिस के बाद वरुण ने कहीं और दाखिला ले लिया होगा.

समय के साथसाथ मालिनी भी आगे की पढ़ाई में व्यस्त होती चली गई और वह 12वीं क्लास वाला लड़का उस के मन में एक सम्मानित व्यक्ति की छाप छोड़ कर जा चुका था.

धीरेधीरे मालिनी का ग्रेजुएशन पूरा हो गया और उस के पापा ने बड़े ही भले घर में उस का रिश्ता तय कर दिया. बड़े ही सफल बिजनेसमैन मिस्टर गुप्ता, उन्हीं के बेटे शशांक के साथ बात पक्की हो जाती है और आज अपनी खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के 20 बरस बिता चुकी है. उस के 2 बेटे और एक प्यारी सी बेटी भी है.

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“अरे मालिनी, कहां हो… जल्दी इधर आओ…” तब मालिनी की तंद्रा टूटती है, जो घंटों से खिड़की के पास खड़ेखड़े 20 बरस से हो रही हृदय की बारिश संग उन पुराने पलों को याद कर सराबोर हो रही होती है.

“हां, आती हूं. अरे, आप…
इतना कहां भीग गए…?”

“आज कार रास्ते में ही बंद हो गई. बस, फिर वहां से पैदल ही…”

“आप भी बच्चों की तरह जिद करते हैं… फोन कर के औफिस से दूसरी कार या टैक्सी ले लेते.”

“अरे भई, हम बड़ों को भी तो कभीकभी नादानी कर अपने बचपन से मुलाकात कर लेनी चाहिए. वो मिट्टी की सोंधी सी सुगंध, महका रही थी मेरा तन और मन… याद आ रही थीं वो कागज की नावें…”

मालिनी शशांक को चुटकी काटते हुए बोली, “हरसिंगार सी महक उठ रही है…”

“अरे मैडम, आप का आशिक यों ही थोड़ी देर और ऐसे ही खड़ा रहा, तो सच मानिए आप का मरीज हो जाएगा…”

“आप को तो बस हर पल इमरान हाशमी (रोमांस) सूझता है. बच्चे बड़े हो गए हैं…”

“तो क्या हम बूढ़े हो गए हैं… हा… हा… हा…
कभी नहीं मालिनी…
मेरा शरीर बूढ़ा भले ही हो जाए, पर दिल हमेशा जवान रहेगा… देख लेना… उम्र पचपन की और दिल बचपन का…”

“अब बातें ही होंगी …मेम साहब या गरमागरम चायपकौड़ी भी…”

“बस, अभी लाई…”

“लीजिए हाजिर है… आप के पसंदीदा प्याज के पकौड़े.”

“वाह… मालिनी वाह… मजा आ गया. आज बहुत दिनों बाद ऐसी बारिश हुई और मैं जम कर भीगा…”

वह मन ही मन बोली, ” मैं भी…”

“अरे, एक बात तो तुम्हें बताना ही भूल गया कि कल हमारे औफिस की न्यू ब्रांच का उद्घाटन है, तो हमें सुबह 10 बजे वहां पहुंचना है. काफी चीफ गेस्ट आ रहे हैं. मैं ने खासतौर पर एक बहुत बड़े उद्योगपति हैं, मिस्टर शर्मा… उन्हें आमंत्रित किया है…

“देखो, वे आते भी हैं या नहीं.. बहुत बड़े आदमी हैं…”

मालिनी चेहरे पर प्यारी सी मुसकान लिए शशांक को अपनी बांहों का बधाईरूपी हार पहना देती है.

मालिनी को बांहों में भरते हुए शशांक भी अपना हाल ए दिल बयां करने से पीछे नहीं रहता. वह कहता है, “यह सब तुम्हारे शुभ कदमों का ही प्रताप है.

“मैं बुलंदी की कितनी ही सीढ़ियां हर पल चढ़ता चला गया… न जाने कितनी ख्वाहिशों को होम होना पड़ा. मैं चलता चला चुनौती भरी डगर पर… पाने को आसमां अपना, पूरी उम्मीद के साथ मिलेगा साथ अपनों का, ख्वाब आंखों में संजोए कि किसी दिन उन बिजनेस टायकून के साथ होगा नाम अपना…

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“सच अगर तुम मेरी जिंदगी में ना होती, तो मेरा क्या होता…”

मालिनी हंसते हुए बोली, “हुजूर, वही जो मंजूरे खुदा होता…”

“हा… हा… हा.. हा… हाय, मैं मर जावा…”

अगली सुनहरी सुबह मालिनी और शशांक की राह में पलकें बिछाए खड़ी थी. वह कह रहा था, “कमाल लग रही हो… लगता है, सारी कायनात आज मेरी ही नजरों में समाने को आतुर है.
इस लाल सिल्क की कांजीवरम साड़ी में तो तुम नई दुलहन को भी फीका कर दो…”

“चलिए… अब बस भी कीजिए… बच्चे सुन लेंगे…”

“अरे ,सुनने दो… सुनेंगे नहीं तो सीखेंगे कैसे…”

“चलें अब..?”

“वाह, जी वाह, अपना तो सज लीं. अब जरा इस नाचीज पर भी थोड़ा रहम फरमाइए और यह टाई लगाने में हमारी मदद कीजिए.”

“जी, जरूर…”

“सच कहूं मालिनी, आज तुम्हारी आंखों में देख कर फिर मुझे वही 20 साल पुरानी बातें याद आ रही हैं…

“किस तरह मैं ने तुम्हें घुटने के बल बैठ कर गुलाब के साथ प्रपोज किया था…”

“जनाब, अब ख्वाबों की दुनिया से बाहर निकलिए… कहीं आप के चीफ गेस्ट आप के इंतजार में वहीं सूख कर कांटा ना हो जाए…”

“तो आइए, मोहतरमा तशरीफ लाइए…”

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शशांक और मालिनी उद्घाटन समारोह के लिए निकलते हैं. वहां पहुंच कर दोनों अपने मुख्य अतिथि मिस्टर शर्मा का स्वागत करने के लिए गेट पर ही पलकें बिछाए खड़े रहते हैं.
जैसे ही मि. शर्मा गाड़ी से उतरते हैं, उन्हें देखते ही मालिनी तो जैसे जड़ सी हो जाती है…

उधर मिस्टर शर्मा भी…

“आइएआइए मिस्टर वरुण शर्मा… आप ने आज यहां आ कर हमारा सम्मान बढ़ा दिया.”

“अरे नहीं, आप बेतकल्लुफ हो रहे हैं…”

“बाय द वे माय वाइफ मालिनी…”

मालिनी तो सिर्फ उन्हें देख कर ही 20 बरस पीछे लौट गई. नाम तो सुनने की उसे आवश्यकता ही नहीं रही.

आगे पढें- मालिनी की जबान पर ताला सा लग गया…

वो नीली आंखों वाला: भाग 1- वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी

लेखिका- पारुल हर्ष बंसल

मधुमास के बाद लंबी प्रतीक्षा और सावनराजा के धरती पर कदम रखते ही हर जर्रा सोंधी सी सुगंध में सराबोर हो रहा है… मानो सब को सुंदर बूंदों की चुनरिया बना कर ओढ़ा दी हो. लेकिन अंबर के सीने से खुशी की फुलझड़ियां छूट रही हैं… जैसे वह अपने हृदय में उमड़ते अपार खुशी के सागर को आज ही धरती से जा आलिंगन करना चाहता है. बरखा रानी हवाई घोड़े पर सवार हैं, रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं. ऐसे बरस रही हैं, जैसे अब के बाद फिर कभी उसे धरती का सीना तरबतर करने और समस्त धरा को अपने स्नेह का कोमल स्पर्श करने आना ही नहीं है. हर पत्ता, हर डाली, हर फूल खुद को वैजयंती माल समझ इतरा रहा हो और इस धरती के रैंप पर मानो कैटवाक कर रहा हो….

घर की दुछत्ती यह सारा मंजर आंखें फाड़फाड़ कर देख रही है मानो ईर्ष्या से दरार पड़ गई हो, और उस का रुदन मालिनी के दिल को भी छलनी कर रहा है, जैसे एक बहन दूसरे के दुख में पसीज रही हो.

ऐसी बारिश जबजब पड़ी, उस ने मालिनी को हर बार उन बीती यादों की सुरंग में पीछे ले जा कर धकेल दिया.

उन यादों के खूबसूरत झूलों के झोटे तनमन में स्पंदन पैदा कर देते हैं.

वह खूबसूरत सा दिखने वाला, नीलीनीली आंखों वाला, लंबा स्मार्ट (कामदेव की ट्रू कौपी) वो 12वीं क्लास वाला लड़का आंखों के आगे घूम ही जाता.

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मालिनी ने जब 9वीं कक्षा में स्कूल बदला तो वहां सिर्फ एक वही था, उन सभी अजनबियों के बीच… जिस ने उस की झिझक को समझा कि किस प्रकार एक लड़की को नए वातावरण में एडजस्ट होने में वक्त तो लगता ही है. पर साथ ही साथ किसी अच्छे साथी के साथ की भी आवश्यकता होती है. उस ने हिंदी मीडियम से अंगरेजी मीडियम में प्रवेश जो लिया था, इसी कारण सारी लड़कियां मालिनी को बैकवर्ड और लो क्लास समझ भाव ही नहीं देती थीं.
वह जबजब इंटरवल या असेंबली में वरुण को दिख जाती, वही उस की खोजखबर लेता रहता.

“और बताओ… ‘छोटी’,
कोई परेशानी तो नहीं…?”
उस ने कभी मालिनी का नाम जानने की कोशिश ही नहीं की.

एक तो वह जूनियर थी और ऊपर से कद में भी छोटी और सुंदर.

वो उसे प्यार से छोटी ही पुकारता और उस के अंदर हमेशा “मैं हूं ना” कह कर उसे आतेजाते शुक्ल पक्ष के चतुर्थी के चांद सी, छोटी सी मुसकराहट से सराबोर कर जाता. मालिनी का हृदय इस मुसकराहट से तीव्र गति से स्पंदित होने लगता… लेकिन ना जाने क्यों…?

उस को वरुण का हर समय हिफाजत भरी नजरों से देखना… कुछकुछ महसूस कराने लगा था. किंतु क्या…?

वह यह समझ ही नहीं पा रही थी. क्या यही प्रेम की पराकाष्ठा थी? या किसी बहुत करीबी के द्वारा मिलने वाला स्नेह और दुलार था…?

किंतु इस सुखद अनुभूति में लिप्त मालिनी भी अब नि:संकोच हो कर मन लगा कर पढ़ने लगी. उसे जब भी कोई समस्या होती, उसी नीली आंखों वाले लड़के से साझा करती. हालांकि इतनी कम उम्र में लड़केलड़कियों में अट्रैक्शन तो आपस में रहता ही है, चाहे वह किसी भी रूप में हो…

सिर्फ दोस्त या सिर्फ प्रेमी या एक भाई जैसा संबोधन…

शायद भाई कहना गलत होगा, क्योंकि इस रिश्ते का सहारा ज्यादातर लड़केलड़कियां स्वयं को मर्यादित रखने के चक्कर में लेते हैं.

मालिनी अति रूढ़िवादी परिवार में जनमी घर की दूसरे नंबर की बेटी थी. उस के 2 भाई और 2 बहनें थीं. वह देखने में अति सुंदर गोरी और पतली. सहज ही किसी का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की काबिलीयत रखती थी.

एक दिन मालिनी स्कूल से लौटते वक्त बस स्टाप पर चुपचाप खड़ी थी. बस के आने में अभी टाइम था. खंभे से सट कर वह खड़ी हो गई, तभी वरुण वहां से साइकिल पर अपने घर जा रहा था कि उस की नजर मालिनी पर पड़ी और पास आ कर बोला, “छोटी, अभी बस नहीं आई…”

“नहीं…”

“चलो, मैं तुम्हारे साथ वेट करता हूं… बस के आने का..”

वह चुप ही रही. उस के मुंह से एक शब्द न फूटा.

सर्दियों की शाम में 4 बजे बाद ही ठंडक बढ़ने लगती है. आज बस शायद कुछ लेट थी. वह बारबार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखता, तो कभी बस के इंतजार में आंखें फैला देता.

पर, इतनी देर वह चुपचाप वहीं खड़ी रही जैसे उस के मुंह में दही जम रहा हो… टस से मस नहीं हुई…
दूर से आती बस को देख वह खुश हुआ. बोला, “चलो आ गई तुम्हारी बस. मैं भी निकलता हूं, ट्यूशन के लिए लेट हो रहा हूं.”

स्टाप पर आ कर बसरुक जाती है और सभी लड़कियां चढ़ जाती हैं, किंतु मालिनी वहीं की वहीं…

यह देख वरुण आश्चर्यचकित हो अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगता है. बस आगे बढ़ जाती है.

वरुण थोड़ी देर सोचने के बाद… फौरन अपना स्वेटर उतार कर मालिनी को दे देता है. वह कहता है, “यह लो छोटी… इसे कमर पर बांध लो…”

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“और…”

“पर, आप… यह क्यों…”

“ज्यादा चूंचपड़ मत करो…
मैं समझ सकता हूं तुम्हारी परेशानी…”

“पर, आप कैसे…?”

“मेरे घर में 2 बड़ी बहनें हैं. जब वे इस दौर से गुजरी, तभी मेरी मां ने उन दोनों को इस बारे में शिक्षित करने के साथसाथ मुझे भी इस बारे में पूरी तरह निर्देशित किया… जैसे गुलाब के साथ कांटों को भी हिदायत दी जाती है कि कभी उन्हें चुभना नहीं…

“क्योंकि मेरी मां का मानना था कि तुम्हारी बहनों को ऐसे समय में कोई लड़का छेड़ने के बजाय मदद करे,
तो क्यों न इस की शुरुआत अपने घर से ही करूं…

“तो मुझे तुम्हारी स्थिति देख कर समझ आ गया था. चलो, अब जल्दी करो…
और घर पहुंचो. तुम्हारी मां तुम्हारा इंतजार कर रही होंगी.”

मालिनी उस वक्त धन्यवाद के दो शब्द भी ना बोल पाई. उन्हें गले में अटका कर ही वहां से तेज कदमों से घर की ओर रवाना हुई.

फिर उसे अगले स्टाप पर घर जाने वाली दूसरी बस मिल गई.

उस के घर में दाखिल होते ही उस का हुलिया देख मां ऊपर वाले का लाखलाख धन्यवाद देने लगती है कि जिस बंदे ने आज मेरी बच्ची की यों मदद की है, उस की झोली खुशियों से भर दे. जरूर ही उस की मां देवी का रूप होगी.

आगे पढ़ें- अगले दिन मालिनी उस नीली आंखों वाले…

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घर को डिक्लटर करने के 5 टिप्स

बारिश का मौसम लगभग जा चुका है त्यौहारों ने अपनी दस्तक दे दी है. इन दिनों घरों की साफ सफाई और रंगाई पुताई का काम जोरों पर होता है. हर कोई अपने घर को कुछ नए ढंग से सजाना चाहता है, वर्ष भर एक जैसे घर को देखते हुए कुछ नयापन देना चाहता है. दीवाली पर तो यूं भी नया सामान लाया जाता है. अक्सर हम नया सामान तो ले आते हैं परन्तु पुराने बेकार हुए सामान को हटाते नहीं है जिससे घर में उथल पुथल और अव्यवस्था होनी शुरू हो जाती है.

घर के कमरे ही नहीं यह बात हमारे कपड़ों की कवर्ड पर भी लागू होती है क्योंकि नए कपड़े आने और पुराने के न हटने से कवर्ड की क्षमता भी अंतिम सांसे गिनने लगती है. कोई भी नया सामान लाने से पूर्व घर को डिक्लटर करना बेहद आवश्यक है ताकि नया सामान अपनी जगह बना सके और घर अस्तव्यस्त के स्थान पर सुव्यवस्थित लगे. घर को डिक्लटर करते समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाना अत्यंत आवश्यक है-

1. बारीकी से करें निरीक्षण

घर के प्रत्येक कमरे और रसोई का अच्छी तरह निरीक्षण करें और जो भी वस्तु या बर्तन पिछले एक वर्ष से उपयोग में नहीं आयी है उसे घर से बाहर कर दें क्योंकि जिस वस्तु की आवश्यकता एक वर्ष तक नहीं पड़ी है इसका सीधा सा तात्पर्य है कि वह वस्तु आपके लिए अनुपयोगी है और वह व्यर्थ में जगह घेरे है.  इस सामान में मिठाई के खाली डिब्बे, पेपर, पुरानी घड़ियां,  अनुपयोगी कपड़े और बर्तन आदि को शामिल करें.

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2. कवर्ड पर भी डालें नजर

अनीता ने बाजार जाने के लिए जैसे ही साड़ी निकालनी चाही, उसमें से सारे कपड़े भरभराकर नीचे गिर पड़े उस पर भी जो साड़ी उसे पहननी थी उसका ब्लाउज नहीं मिल पाया. दरअसल हम नए कपड़े खरीदते जाते हैं और पुरानों को हटाते नहीं है जिससे कवर्ड ओवरलोड हो जाती है. जिन कपड़ों का आपने बहुत लंबे समय से उपयोग नहीं किया है और आगे भी उनके प्रयोग करने की संभावना नहीं है उन्हें किसी जरूरतमंद को दे दें. पुराने कपड़ों को हटाकर ही नए लाएं इससे आपकी कवर्ड व्यवस्थित रहेगी.

और आपको कपड़े खोजने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी.

3. बास्केट बनाएं

एक साथ पूरे घर की सफाई करके डिक्लटरिंग करने के स्थान पर आप एक एक कमरे की सफाई करें. जब भी सफाई करें तो तीन बास्केट या कार्टून अपने पास रखें. सफाई करते समय अक्सर काम आने वाली, माह दो माह में कभी कभी काम आने वाली तथा पिछले 1 वर्ष में एक बार भी काम न आने वाली चीजों को अलग अलग डिब्बे में डालती जाएं. जिस कार्टून में आपने वर्ष भर में प्रयोग न आने वाली वस्तुएं रखीं है उन पर एक बार पुनः नजर डालें, यदि बहुत अधिक उपयोगी कोई वस्तु हो तो उसे अलग कर लें अन्यथा इस सामान को बिना लालच किये हटा दें. यह सिद्धांत घर के प्रत्येक कमरे ड्रेसिंग टेबल, किचन आदि सब पर लागू करें. कभी काम आएगी इस सोच को त्याग दें.

4. किताबें और पेपर्स

हमारे घरों में किताबों और पेपर्स का भंडार होता है. इनकी छंटाई करना बहुत मुश्किल होता है. इनकी छंटाई बहुत फुर्सत में समय लेकर करें ताकि कोई जरूरी कागज इधर उधर न हो जाये. अखबारों को सहेजकर कतई न रखें क्योंकि एक तो यह हर दिन आते हैं, दूसरे अनावश्यक जगह भी घेरते हैं. आमतौर पर घरों में बड़े बच्चे की किताबों से ही छोटा बच्चा पढ़ता है इसलिए यदि आपके कोई दूसरा बच्चा पढ़ने वाला है तो ही कोर्स की किताबें रखें अन्यथा किसी जरूरतमंद को दे दें. सभी जरूरी कागजों की फाइल बनाकर रखें इससे जरूरत पड़ने पर खोजना काफी आसान हो जाएगा.

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5. जूते चप्पल

जूते चप्पल भी घर के बहुत जरूरी सामान हैं. इनकी संख्या भी काफी होती है. क्योंकि डेली वीयरिंग, ओकेजनल और फॉर्मल वीयरिंग के अलग अलग जूते चप्पल होते हैं. इसके अतिरिक्त कई बार हम ड्रेस की मैचिंग के भी फुटवीयर खरीदते हैं यहां पर साल भर से प्रयोग में न आने वाला सामान अनुपयोगी है वाला सिद्धांत लागू नहीं हो सकता. इन्हें छांटने का सबसे अच्छा तरीका है कि ऐसे फुटवीयर जिन्हें आप पहनना पसंद नहीं करते या आप नए ले आये हैं अथवा जो टूटे फटे अनुपयोगी से हैं उन्हें हटा दें… ताकि आपकी शू रैक में जगह हो सके. जूतों के साथ साथ मोजों को भी छांटे जिनकी इलास्टिक लूज हो गयी है या जो फट गए हैं, रोएं निकल आये हैं उन सबको शू रैक से बाहर कर दें .

इस प्रकार आप अभी से अपने घर की डिक्लटरिंग करना प्रारम्भ कर दें ताकि नए सामान के लिए जगह भी बन सके और घर व्यवस्थित भी हो सके.

राखी दवे को घर से निकालेगी Anupama, तोड़ेगी मां-बेटी का रिश्ता

स्टार प्लस के सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) की कहानी में अनुज कपाड़िया की एंट्री से दर्शक बेहद खुश हैं, जिसका अंदाजा टीआरपी चार्ट्स की लिस्ट से लगाया जा सकता है. फैंस को अनुपमा की जिंदगी में मची उथल पुथल और वनराज की जलन काफी पसंद आ रही है. वहीं जल्द ही शो की कहानी में अनुपमा का एक और दुश्मन  कदम रखने वाल है, जिससे अनुज और अनुपमा का रिश्ता और मजबूत होता नजर आएगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

अनुपमा ने की वनराज की बेइज्जती


अब तक आपने देखा कि वनराज और अनुज नशे में होटल पहुंचते हैं. जहां काव्या वनराज का ख्याल रखती है तो वहीं अनुपमा अपने दोस्त होने का फर्ज निभाते हुए अनुज की मदद करती है. लेकिन अगली सुबह वनराज दोनों के साथ में रात बिताने पर तंज कसता नजर आता है, जिसके जवाब में अनुपमा, वनराज को आइना दिखाते हुए कहती है कि ‘मिस्टर शाह आप मुझे अपने ऑफिस की पार्टी में नहीं ले जाते थे क्योंकि आपको मेरे हाथों से मसालों की बदबू आती थी. लेकिन अब आपकी बातों और विचारों से घटिया सोच और ओछेपन की बदबू आती है. इसलिए मेहरबानी करके मेरे काम की जगह से दूर ही रहिएगा.’, अनुपमा का ये रुप देखकर वनराज और काव्या का मुंह खुला का खुला रह जाता है.

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किंजल का सुनाएगी फैसला

 

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दूसरी तरफ बा, अनुपमा को लेकर परेशान नजर आती है. इसी बीच किंजल की मां राखी दवे आकर बा को अनुपमा के खिलाफ भड़काती है. वहं अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि राखी दवे शाह हाउस में अपना हक जमाती नजर आएगी और बा का नेकलेस फेंक देगी, जिसे बा और किंजल उठा रहे होंगे. इसी बीच मुंबई से शाह हाउस लौटते ही अनुपमा और वनराज ये सब देख लेंगे, जिसे देखते ही अनुपमा का सब्र का बांध टूट जाएगा और वह राखी दवे के नाम की नेम प्लेट के साथ उसे पैसे वापस करते हुए चेक देगी, जिसे देखकर राखी दवे हैरान रह जाएगी. वहीं अनुपमा फैसला करेगी कि ना ही किंजल उनके घर जाएगी और ना ही वो कभी भी शाह हाउस लौटेंगी. इसी के साथ वनराज, अनुपमा का साथ देते हुए राखी दवे को घर से बाहर निकाल देगा.

 

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राखी दवे लेगी बदला

खबरों की मानें तो अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए राखी दवे अनुपमा और अनुज के रिश्ते पर लांछन लगाती नजर आएगी.

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रूह का स्पंदन: भाग 3- क्या था दीक्षा ने के जीवन की हकीकत

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह

अचानक सुदेश की नजर दक्षा पर पड़ी तो दोनों की नजरें मिलीं. ऐसा लगा, दोनों एकदूसरे को सालों से जानते हों और अचानक मिले हों. दोनों के चेहरों पर खुशी छलक उठी थी.

खातेपीते दोनों के बीच तमाम बातें हुईं. अब वह घड़ी आ गई, जब दक्षा अपने जीवन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें उस से कहने जा रही थी. वहां से उठ कर दोनों एक पार्क में आ गए थे, जहां दोनों कोने में पेड़ों की आड़ में रखी एक बेंच पर बैठ गए. दक्षा ने बात शुरू की, ‘‘मेरे पापा नहीं हैं, सुदेश. ज्यादातर लोगों से मैं यही कहती हूं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है, पर यह सच नहीं है. हकीकत कुछ और ही है.’’

इतना कह कर दक्षा रुकी. सुदेश अपलक उसे ही ताक रहा था. उस के मन में हकीकत जानने की उत्सुकता भी थी. लंबी सांस ले कर दक्षा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं मम्मी के पेट में थी, तब मेरे पापा किसी और औरत के लिए मेरी मम्मी को छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए चले गए थे.

‘‘लेकिन अभी तक मम्मीपापा के बीच डिवोर्स नहीं हुआ है. घर वालों ने मम्मी से यह कह कर उन्हें अबार्शन कराने की सलाह दी थी कि उस आदमी का खून भी उसी जैसा होगा. इस से अच्छा यही होगा कि इस से छुटकारा पा कर दूसरी शादी कर लो.’’

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दक्षा के यह कहते ही सुदेश ने उस की तरफ गौर से देखा तो वह चुप हो गई. पर अभी उस की बात पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उस ने नजरें झुका कर आगे कहा, ‘‘पर मम्मी ने सभी का विरोध करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ, उस में पेट में पल रहे इस बच्चे का क्या दोष है. यानी उन्होंने गर्भपात नहीं कराया. मेरे पैदा होने के बाद शुरू में कुछ ही लोगों ने मम्मी का साथ दिया. मैं जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे सब शांत होता गया.

‘‘मेरा पालनपोषण एक बेटे की तरह हुआ. अगलबगल की परिस्थितियां, जिन का अकेले मैं ने सामना किया है, उस का मेरी वाणी और व्यवहार में खासा प्रभाव है. मैं ने सही और गलत का खुद निर्णय लेना सीखा है. ठोकर खा कर गिरी हूं तो खुद खड़ी होना सीखा है.’’

अपनी पलकों को झपकाते हुए दक्षा आगे बोली, ‘‘संक्षेप में अपनी यह इमोशनल कहानी सुना कर मैं आप से किसी तरह की सांत्वना नहीं पाना चाहती, पर कोई भी फैसला लेने से पहले मैं ने यह सब बता देना जरूरी समझा.

‘‘कल कोई दूसरा आप से यह कहे कि लड़की बिना बाप के पलीबढ़ी है, तब कम से कम आप को यह तो नहीं लगेगा कि आप के साथ धोखा हुआ है. मैं ने आप से जो कहा है, इस के बारे में आप आराम से घर में चर्चा कर लें. फिर सोचसमझ कर जवाब दीजिएगा.’’

सुदेश दक्षा की खुद्दारी देखता रह गया. कोई मन का इतना साफ कैसे हो सकता है, उस की समझ में नहीं आ रहा था. अब तक दोनों को भूख लग आई थी. सुदेश दक्षा को साथ ले कर नजदीक की एक कौफी शौप में गया. कौफी का और्डर दे कर दोनों बातें करने लगे तभी अचानक दक्षा ने पूछा था, ‘‘डू यू बिलीव इन वाइब्स?’’

सुदेश क्षण भर के लिए स्थिर हो गया. ऐसी किसी बात की उस ने अपेक्षा नहीं की थी. खासकर इस बारे में, जिस में वह पूरी तरह से भरोसा करता हो. वाइब्स अलौकिक अनुभव होता है, जिस में घड़ी के छठें भाग में आप के मन को अच्छेबुरे का अनुभव होता है. किस से बात की जाए, कहां जाया जाए, बिना किसी वजह के आनंद न आए और इस का उलटा एकदम अंजान व्यक्ति या जगह की ओर मन आकर्षित हो तो यह आप के मन का वाइब्स है.

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यह कभी गलत नहीं होता. आप का अंत:करण आप को हमेशा सच्चा रास्ता सुझाता है. दक्षा के सवाल को सुन कर सुदेश ने जीवन में एक चांस लेने का निश्चय किया. वह जो दांव फेंकने जा रहा था, अगर उलटा पड़ जाता तो दक्षा तुरंत मना कर के जा सकती थी. क्योंकि अब तक की बातचीत से यह जाहिर हो गया था. पर अगर सब ठीक हो गया तो सुदेश का बेड़ा पार हो जाएगा.

सुदेश ने बेहिचक दक्षा से उस का हाथ पकड़ने की अनुमति मांगी. दक्षा के हावभाव बदल गए. सुदेश की आंखों में झांकते हुए वह यह जानने की कोशिश करने लगी कि क्या सोच कर उस ने ऐसा करने का साहस किया है. पर उस की आंखो में भोलेपन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया. अपने स्वभाव के विरुद्ध उस ने सुदेश को अपना हाथ पकड़ने की अनुमति दे दी.

दोनों के हाथ मिलते ही उन के रोमरोम में इस तरह का भाव पैदा हो गया, जैसे वे एकदूसरे को जन्मजन्मांतर से जानते हों. दोनों अनिमेष नजरों से एकदूसरे को देखते रहे. लगभग 5 मिनट बाद निर्मल हंसी के साथ दोनों ने एकदूसरे का हाथ छोड़ा. दोनों जो बात शब्दों में नहीं कह सके, वह स्पर्श से व्यक्त हो गई.

जाने से पहले सुदेश सिर्फ इतना ही कह सका, ‘‘तुम जो भी हो, जैसी भी हो, किसी भी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा किए बगैर मुझे स्वीकार हो. रही बात तुम्हारे पिछले जीवन के बारे में तो वह इस से भी बुरा होता तब भी मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. बाकी अपने घर वालों को मैं जानता हूं. वे लोग तुम्हें मुझ से भी अधिक प्यार करेंगे. मैं वचन देता हूं कि बचपन से ले कर अब तक अधूरे रह गए सपनों को मैं हकीकत का रंग देने की कोशिश करूंगा.’’

सुदेश और दक्षा के वाइब्स ने एकदूसरे से संबंध जोड़ने की मंजूरी दे दी थी.

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आशा की नई किरण

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