समय रहते करवाएं Alzheimer का इलाज

मुंबई की कांदिवली ईस्ट में स्टेशन के पास 70 साल का एक कमजोर बुजुर्ग आने-जाने वालों से कांपते हुए दोनों हाथ फैलाकर खाने के पैसे मांग रहा था, पर उसका पहनावा भिखारी जैसी नहीं थी, हल्के रंग की फुल शर्ट और डार्क ब्लू कलर की पेंट उसने पहन रखी थी. आने-जाने वाले सभी उसे कुछ पैसे देते रहे और वह उसे जोड़कर अपनी बैग में भर रहा था कि एक 15 साल का मवाली लड़का उसके पास आया और उससे पैसे छिनने लगा,बुजुर्ग व्यक्ति रोते हुए उसे ऐसा न करने के लिए कह रहा था. आने-जाने वाले लोग इसे देखकर हँसते हुए चले जा रहे थे. मुझे गुस्सा आया और मैंने उसे डांटकर भगाने की कोशिश की, पहले उसने मेरी बात सुनने से मना किया, पर कई और महिलाओं को शामिल होता देख भाग खड़ा हुआ. सभी के जाने के बाद उस रोते हुए बुजुर्ग से उसकी इस हालात के बारें में पूछने पर पता चला कि उसे उसका बेटा रोज यहाँ छोड़कर जाता है और शाम को ले जाता है. इसके अलावा वह कुछ नहीं बता पाया.

ये सही है कि अल्ज़ाइमर्स डिसीज़ मेंडिमेंशिया 60 से 70 प्रतिशतलोगों में होता है. असल में डिमेंशिया मस्तिष्क के कार्य जैसे मेमरी, भाषा, प्लानिंग, ऑर्गेनाइज़ेशन और बिहेवियर को प्रभावित करता है. उम्र के बढ़ने के साथ-साथ डिमेंशिया का खतरा अधिक होता है.इतना ही नहीं ऐसे व्यक्ति कुछ नयी सूचना को ग्रहण नहीं कर सकते मसलन टीवी की रिमोट का संचालन, मोबाइल चलाना या किचन की सामग्री को सही ढंग से प्रयोग करना आदि. यह बीमारी हर व्यक्ति को उम्र बढ़ने से नहीं होता. डिमेंशिया के कुछ मेटाबोलिक कारणों (विटामिन बी 12 की कमी, हाइपोथायरायडिज्म) को जल्दी इलाज करने पर इससे रिवर्स किया जा सकता है.

इस बारें में मुंबई की ग्लोबल हॉस्पिटल की मनोचिकित्सक डॉ संतोष बांगरअल्ज़ाइमर्स डे पर जागरूकता फ़ैलाने के उद्देश्य से कहते है कि लोग कई बार इस बीमारी को न समझ कर झाड़-फूंक या इस बीमारी से पीड़ित पेरेंट्स को बाहर छोड़ देते है, जो बहुत दुखदायी है और डॉक्टर के पास बहुत देर से आते है, जिससे उन्हें ठीक करना मुश्किल हो जाता है. इसके कुछ शुरूआती लक्षण निम्न है,

शुरूआती लक्षण

  • उम्र बढ़ने के साथ-साथ भाषा अस्पष्ट होना,
  • कम समय के लिए मेमोरी लॉस होना,
  • जीवन की महत्वपूर्ण बातों को भूल जाना
  • एक बात को बार-बार पूछना या याद करने की कोशिश करना
  • अपने परिवारजन को भूल जाना आदि है.

इसके अलावा कभी-कभी मानसिक स्वास्थ्य में बदलाव मसलन एंग्जायटी, डिप्रेशन, हैल्युसिनेशन, नींद की गड़बड़ी आदि जल्दी दिखने वाली विशेषता हो सकती है.

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उपचार

इलाज के बारें में पूछने पर डॉ. संतोष कहते है कि अल्ज़ाइमर की बीमारी एक सदी से अधिक पुराना है, लेकिन इसका कोई सटीक इलाज नहीं है, लेकिन इस रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है. एंटी-डिमेंशिया दवाओं को अल्ज़ाइमर, मिक्स्ड डिमेंशिया, लेवी बॉडी डिमेंशियाऔर पार्किंसन डिसीज़ डिमेंशिया के इलाज को सरकार की तरफ से वैध घोषित किया गया है, लेकिन एसिटाइलकोलाइनरसायन की कम आपूर्ति से रोगी को समय पर दवा नहीं मिल पाता. वास्क्युलर डिमेंशिया का इलाज उच्च बीपी, बढे हुए लिपिड, ब्रेन स्ट्रोक आदि की रोकथाम के लिए धूम्रपान बंद करने और नियमित व्यायाम करने से इसके रिस्क फैक्टर को कम किया जा सकता है. सामान्य उपाय मसलन हेल्दी फ़ूड , नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, मेडिटेशन से स्ट्रेस मनेजमेंट, स्मरण थिरेपी,पेट्स थिरेपी, संगीत चिकित्सा सभी डिमेंशिया को कम करने में प्रभावशाली होते है. इसके अलावा क्रॉसवर्ड, सुडोकू, आर्ट थेरेपी जैसी व्यक्तिकेंद्रित गतिविधियों की मदद से कॉग्निटिव स्टिम्युलेशन थेरपी (सीएसटी) फायदेमंद हो सकती है.

डिमेंशिया और मानसिक स्वास्थ्य

डिमेंशिया के दौरान मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव सबसे अधिक होता है. डॉ. संतोष कहते है कि इसका इलाज दवा और मनोवैज्ञानिक थेरेपीको सम्मिलित कर किया जाना चाहिए. एक अच्छी रात की नींद इन मरीजों के लिए हो पाना मुश्किल होता है. अधिकतर इन्हेंसोने में कठिनाई, रात में बार-बार जागना,रात को भटकना, दिन में झपकी लेना या अत्यधिक नींद आना आदि है. वैज्ञानिक और शोधकर्ता आजतक पूरी तरह से निश्चित नहीं हो पाए है कि अल्ज़ाइमर डिसीज़ और अन्य डिमेंशिया वाले लोगों में नींद की समस्या का कारण क्या हो सकता है? असल में यह ब्रेन के अंदर परिवर्तन का होना है, जो शरीर की बॉडी क्लॉक में समस्या पैदा कर सकता है, जिससे यह जानना कठिन हो जाता है कि कब दिन और कब रात होते है. इसके अलावा, एक  उत्तेजक रसायन, एसिटाइलकोलाइन की कमी अत्यधिक नींद का कारण बन सकती है.

देखा जाय तो अधिकतर वृद्धों में कम नींद होती है और ये साधारण बात है, जिसके कारण वे अधिक बार जग जाते है. डिमेंशिया कई लोगों को वास्तविकता, पिछली यादों और सपनों को लेकर एक भ्रम फैला सकता है, ऐसा व्यक्ति सपने से जाग जाने पर उसको दिन मान लेते है.

चिकित्सीय समस्या

चिकित्सीय समस्या के बारें में डॉक्टर कहते है कि कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और दवाएं नींद को प्रभावित कर सकती है. इनमें रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम, स्लीप एपनिया (जोरदार खर्राटे लेना और दिन में नींद आना) और आरईएम स्लीप बिहेवियर डिसऑर्डर (साफ़ख़राब सपने देखना और उसका अभिनय करना) शामिल है. अन्य कारणों के अंतर्गत गतिविधि की कमी, डिप्रेशन और बोरडम भी अत्यधिक नींद का कारण बन सकते है. इस समस्या से निपटने के सुझाव निम्न है,

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  • सुनिश्चित करें कि सोने का वातावरण आरामदायक हो,
  • कमरे में ब्लाइंड्स या ब्लैकआउट पर्दे लगाने पर विचार करें, ताकि नीद से जागने पर अंधेरा देखे और फिर से सो जाय,
  • पलंग के बगल में घड़ी लगाएं,
  • सोने के समय के करीब आने पर कैफीन और शराब का सेवन न करें, क्योंकि इससे नींद में बाधा पड़ सकती है. अधिक मात्रा में भोजन और मीठा भोजन लेने से भी नींद आना कठिन हो सकता है,
  • बॉडी क्लॉक को नियंत्रित करने के लिए दिन के उजाले में अधिक समय तक जगे रहे,दिन की शुरुआत में हल्का व्यायाम नींद को प्रोत्साहित कर सकता है,
  • सोने से पहले आराम करें, गुनगुने पानी से नहाने की कोशिश करें, संगीत सुनें और उनके तकिये पर लैवेंडर की खुशबू लगायें, ताकि उन्हें अपने आसपास एक अच्छे माहौल का आभास हो.

एक मौका और : हमेशा होती है अच्छाई की जीत

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उलझन: भाग 3- टूटती बिखरती आस्थाओं और आशाओं की कहानी

लेखक-  रानी दर

शीला जीजी हाथ का झोला सोफे पर पटक कर स्वयं भी पसर गईं, ‘‘उफ, इन बसों का सफर तो जान सोख लेता है. पर क्या किया जाए, सुन कर बैठा भी तो नहीं गया. जैसे ही यह दफ्तर से आए, सीधे बस पकड़ कर चले आए. अपनों की मायाममता होती ही ऐसी है. भाई का जरा सा सुखदुख सुनते ही छटपटाहट सी होने लगती है. पर तुम पराए घर की लड़की, क्या जानो, हमारा भाईबहन का संबंध कितना अटूट है.’’

शीला जीजी के शब्द कांटों की तरह कलेजे को आरपार चीरे डाल रहे थे.

‘‘ला तो रश्मि, जरा दिखा तो तेरे ससुराल वालों ने क्या पहनाया तुझे? सुना है बड़े अच्छे लोग हैं…बड़े भले हैं…रज्जू ने फोन पर बताया. दूर के ढोल ऐसे ही सुहावने लगते हैं. अपने सगे तो तुम्हारे दुश्मन हैं.’’

‘‘अच्छा, मामीजी, जल्दी से पैसे निकालिए, बहन की सगाई हुई है. कम से कम मुंह तो मीठा करवा दीजिए सब का,’’ शीला जीजी के बेटे ने जैसे मुसीबतों के पहाड़ तले से खींच कर उबार लिया मुझे.

‘‘हां…हां, अरुण, एक मिनट ठहरो, मैं रुपए लाती हूं,’’ कहती हुई मैं वहां से उठ गई.

देखतेदेखते अरुण रुपयों के साथ इन का स्कूटर भी ले कर उड़ गया. लौटा तो मिठाई, नमकीन मेज पर रखते हुए बोला, ‘‘मामीजी, मिठाई वाले का उधार कर आया हूं. पैसे कम पड़ गए. आप बाद में आशु से भिजवा दीजिएगा 30 रुपए. पता लिखवा आया हूं यहां का.’’

मैं सकते में खड़ी थी. 50 का नोट भी कम पड़ गया था. कैसे? पर जब मेज पर नजर पड़ी तो कारण समझ में आ गया. एक से एक बढि़या मिठाइयां मेज पर बिखरी पड़ी थीं और शीला जीजी और मुकुल भैया अपने बच्चों सहित बड़े प्रेम से मुंह मीठा कर रहे थे. लड़की की सगाई जो हुई थी हमारी.

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‘‘अच्छा, तो अकेलेअकेले बिटिया रानी की सगाई की मिठाई उड़ाई जा रही है,’’ दरवाजे पर मेरे मझले मामामामी अपने बेटेबहुओं के साथ खड़े थे, ‘‘क्यों, सरला, तेरा नाम जरूर सरला है, पर निकली तू विरला. क्यों री, तेरे एक ही तो मामा बचे हैं लेदे के और उन्हें भी तू ने समधियों से मिलवाना जरूरी नहीं समझा? अरे बेटा, हम लोग बुजुर्ग हैं, तजरबेकार हैं, शुभ काम में अच्छी ही सलाह देते. याद है, तेरे ब्याह पर मैं ने ही तुझे गोद में उठा कर मंडप में बिठाया था?’’

उफ्, किस मुसीबत में फंस गए थे हम लोग. छोटाबड़ा कोई भी हम पर विश्वास करने को तैयार नहीं था. नाहक ही सब को फोन कर के दफ्तर से खबर करवाई. कल की खुशी की मिठाई मुंह में कड़वी सी हो गई थी.

‘‘मामाजी, बात यह हुई कि हमें खुद ही पता नहीं था. वे लोग रश्मि को देखने आए थे…’’ खीजा, झुंझलाया स्वर स्वयं मुझे अपने ही कानों में अटपटा लग रहा था.

पर मामाजी ने मेरी बात बीच में ही काट दी, ‘‘अरे, हां…हां, ये सब बहाने तो हम लोग काफी देर से सुन रहे हैं. पर बेटा, बड़ों की सलाह लिए बिना तुम्हें ‘हां’ नहीं कहनी चाहिए थी. खैर, अब जो हो गया सो हो गया. अच्छाबुरा जैसा भी होगा, सब की जिम्मेदारी तुम्हीं पर होगी.

‘‘पर आश्चर्य तो इस बात का है कि राजकिशोरजी ने भी हम से दुराव रखा. आज की जगह कल फोन कर लेते तो हम समधियों से बातचीत कर लेते, उन्हें जांचपरख लेते. खैर, तुम लोग जानो, तुम्हारा काम. हम तो सिर्फ अपना फर्ज निभाते आए हैं.

‘‘पुराने लोग हैं, उसूलों पर चलने वाले. तुम लोग ठहरे नए जमाने के आधुनिक विचारों वाले. चाहो तो शादी की सूचना का कार्ड भिजवा देना, चले आएंगे. न चाहो तो कोई बात नहीं. कोई गिला- शिकवा करने नहीं आएंगे उस के लिए.’’

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समझ में नहीं आ रहा था, यह क्या हो रहा है. सिर भन्ना गया था. बेटी की शादी की बधाई तथा उस के सुखमय भविष्य के लिए आशीषों की वर्षा की जगह हम पर झूठ, धोखेबाजी, दुरावछिपाव और न जाने किनकिन मिथ्या आरोपों की बौछार हो रही थी और हम इन आरोपों की बौछार तले सिर झुकाए बैठे थे…आहत, मर्माहत, निपट अकेले, निरुपाय.

सब को विदा करतेकराते रात के साढ़े 9 बज गए थे. मन के साथ तन भी एक अव्यक्त सी थकान से टूटाटूटा सा हो आया था. घर में मनहूस सी शांति पसरी पड़ी थी. मौन इन्होंने ही तोड़ा, ‘‘लगता है, रश्मि की सगाई की खबर सुन कर कोई खुश नहीं हुआ. अपनी सगी बहन…अपना भाई…’’ धीरगंभीर व्यथित स्वर.

घंटों से उमड़ताघुमड़ता अपमान और दुख आंखों की राह बह निकला.

‘‘ओफ्फोह, मां, आप भी बस, रोने से क्या वे खुश हो जाएंगे? सब के सब कुढ़ रहे थे कि दीदी का ब्याह इतनी आसानी से और इतने अच्छे घर में क्यों तय हो गया. बस, यही कुढ़न हमारे ऊपर उलटेसीधे तानों के रूप में उड़ेल गए. उंह, यह भी कोई बात हुई,’’ कुछ ही घंटों में आशु भावनाओं की काफी झलक पा गया था.

‘‘छि: बेटा, ऐसे नहीं कहते. वे हमारे बड़े हैं…अपने हैं…उन के लिए ऐसे शब्द नहीं कहने चाहिए.’’

‘‘उंह, बड़े आए अपने. 80 रुपए की मिठाइयां खा गए, ऊपर से न जाने क्या- क्या कह गए. ऐसे ही नाराज थे तो मिठाई क्यों खाई? क्यों मुंह मीठा किया? प्लेटों पर तो ऐसे टूट रहे थे जैसे मिठाई कभी देखी ही न हो. इतना गुस्सा आ रहा था कि बस, पर आप के डर से चुप रह गया कि बोलते ही सब के सामने मुझे डांट देंगी.’’

16 वर्षीय आशु भी अपना आक्रोश मुझ पर निकाल रहा था, ‘‘सब से अच्छा यही है कि दीदी की शादी में किसी को न बुलाया जाए. चुपचाप कोर्ट में जा कर शादी कर ली जाए.’’

मैं गुमसुम सी खड़ी थी. समझ नहीं आ रहा था कि क्या खून के रिश्ते इतनी आसानी से झुठलाए जा सकते हैं?

शायद नहीं…तो फिर?

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आशु के तमतमाए चेहरे पर एक दृष्टि डाल, मैं मेज पर फैली बिखरी प्लेटें समेटने लगी. कैसे हैं ये मन के बंधन, जो नितांत अनजान और अपरिचितों को एक प्यार भरी सतरंगी डोर से बांध देते हैं तो अपने ही आत्मीयों को पल भर में छिटका कर परे कर देते हैं.

कैसी विडंबना है यह? जो आज की टूटतीबिखरती आस्थाओं और आशाओं को बड़े यत्न से सहेज कर मन में प्रेम और विश्वास का एक नन्हा सा पौधा रोप गए थे. वे कल तक नितांत पराए थे और आज उस नवजात पौधे को जड़मूल से उखाड़ कर अपने पैरोंतले पूरी तरह कुचल कर रौंदने वाले हमारे अपने थे. सभी आत्मीय…

इन में से किसे अपना मानें, किसे पराया, कुछ भी तो समझ में नहीं आ रहा है. द्

 

Anupama के कारण वनराज से हारेगा अनुज कपाड़िया, आएगा नया ट्विस्ट

अनुज कपाड़िया की एंट्री से सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में आए दिन नए ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. सीरियल में जहां बा और वनराज, अनुपमा के फैसले से नाराज हैं तो वहीं अनुज कपाड़िया हर मुसीबत में अनुपमा के साथ खड़े रहने की बात कर रहा है. इसी बीच सीरियल में वनराज और अनुज के बीच मुकाबला देखने को मिलने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे….

काव्या के साथ है बा

अब तक आपने देखा कि अनुपमा के फैसले से नाराज बा, काव्या से सभी काम करने के लिए कहेगी. साथ ही बहू के फर्ज निभाने के लिए भी कहेगी. वहीं अनुपमा को ताना मारते हुए वनराज (Sudhanshu Pandey) उसे अनुज कपाड़िया (Anuj Kapadia) के घर जाकर गणेश चतुर्थी मनाने के लिए कहता है. हालांकि वनराज को अनुपमा करारा जवाब देगी.

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अनुज के घर जाएगी अनुपमा

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज और तोषू के अलावा पूरा परिवार अनुपमा के साथ अनुज कपाड़िया के घर पहुंचेगा. दूसरी तरफ काव्या भी अनुज को इंप्रेस करती नजर आएगी. इसके अलावा वह वनराज के खिलाफ जाकर अनुपमा का साथ देती भी नजर आएगी, जिसे देखकर शाह परिवार चौंक जाएगा. वहीं वनराज और परितोष के ना आने से अनुज दोनों को लेने खुद जाएगा, जिसे देखकर अनुपमा बेहद खुश होगी.

आमने-सामने आएंगे वनराज- अनुज

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि गणेश चतुर्थी के सेलिब्रेशन में अनुपमा (Anupama) कॉलेज के दिनों में पंजा लड़ाने के बारे में याद करते हुए अनुज की तारीफ करेगी, जिसे देखकर वनराज जल जाएगा और वह पंजा लड़ाने के लिए तैयार हो जाएगा. लेकिन इस कौप्टीशन में वनराज (Sudhanshu Pandey) जीत जाएगा. दरअसल, कौम्पटिशन के दौरन अनुज, अनुपमा की तरफ देखेगा कि वह वनराज को जीतते हुए देखना चाहती है, जिसके चलते वह हारने का फैसला करेगा.

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विराट से दूर घर छोड़कर जाएगी सई, पाखी के दिल पर पड़ेगी ठंडक

स्‍टार प्‍लस के सीरियल गुम है किसी के प्‍यार में की कहानी फैंस को काफी पसंद आ रही है. जहां फैंस सई का अगला कदम जानने के लिए बेताब हैं तो वहीं पाखी की हरकतों पर गुस्सा जताते नजर आ रहे हैं. इसी बीच दर्शक सई का नया कदम जानने के लिए बेताब हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

सई पर भड़का विराट


अब तक आपने देखा कि विराट (Neil Bhatt) और सई (Ayesha Singh) के बीच अनबन खत्‍म नहीं हो रही हैं, जिसके चलते पाखी बेहद खुश है. सई के मन में शक है कि विराट जो भी कर रहा है वह पाखी के कहने पर करता है, जिसके चलते दोनों के बीच कहासुनी होती है. दरअसल, जहां सई, विराट से दूर जा रही है तो वहीं विराट का व्यवहार उसके प्रति बदलता जा रहा है, जिसके चलते दोनों के बीच बहस होती है. इसी के चलते विराट गुस्से में सई पर बरस पड़ता है.

 

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सई करेगी नया फैसला

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि जहां विराट, सई के प्यार का इजहार करने के लिए इंतजार करेगा तो वहीं सई फैसला करेगी कि वो अब चौहान हाउस में नहीं रहेगी. दरअसल, सई अपने मेडिकल कौलेज का ट्रांसफर नागपुर करवा देगी. वहीं डिनर टेबल पर एक बार फिर सई और विराट के बीच नोंकझोंक होगी और वह कहेगी कि केवल एक दिन की बात है, जिस पर विराट कहेगा कि एक दिन बाद क्या तुम घर छोड़ कर चली जाओगी. इसी बीच सम्राट दोनों को शांत करवाने और तबीयत का ध्यान रखने के लिए कहेगा. लेकिन सई कहेगी कि उसने दवाई ले ली है और उस दवाई का असर एक दिन बाद होगा. वहीं ये प्रोमो देखकर फैंस जानने के लिए बेताब हैं कि सई कौनसा नया कदम उठाने वाली है.

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स्लिप डिस्क से हैं परेशान? अपनाएं ये Tips

स्लिप डिस्क यानी कि कमर के निचले हिस्से, रीढ़ की हड्डी या फिर कमर के बीच होने वाला दर्द. ऐसे बहुत से लोग हैं जो स्लिप डिस्क की समस्या से परेशान हैं. इस समस्या में सबसे पहले रीढ की हड्डी पर दर्द होना शुरू होता है. कई बार कमर का निचला हिस्सा सुन्न भी पड़ जाता है. धीरे-धीरे नसों पर दवाब भी महसूस होना शुरू हो जाता है. परेशानी बढ़ने पर जरा सा झुकना भी मुश्किल हो जाता है. इससे धीरे-धीरे कमजोरी भी आनी शुरू हो जाती है. ऐसी स्थिति में ज्यादा देर तक खड़े रहना मुश्किल हो जाता है और बैठ कर उठने में भी परेशानी होती है. आज हम आपको स्लिप डिस्क में काम आने वाले घरेलू उपचार के बारे में बताने जा रहे हैं लेकिन इससे पहले आप जानिए स्लिप डिस्क के कारण.

ये हो सकते हैं स्लिप डिस्क के कारण

लोगों को होने वाली छोटी-छोटी परेशानी स्लिप डिस्क का कारण बन सकती है. मांसपेशियों में कमजोरी, शरीर में कैल्शियम की कमी, जरूरत से ज्यादा वजन उठाना, लगातार झुकरकर बैठना और गलत पोजीशन में बैठना भी स्लिप डिस्क के कारण हो सकते हैं. इसके अलावा अधिक समय तक कंप्यूटर या लैपटाप के आगे बैठना, जादा देर तक लेट कर या झुक कर कोई काम करना स्लिप डिस्क के कारण हैं. वहीं प्रेग्नेंसी के दौरान प्रेग्नेंट महिलाओं को कमर दर्द की शिकायत हो सकती है. गर्भ में बच्चे के बढ़ने से कमर पर दबाव बढ़ता है जिससे स्लिप डिस्क की शिकायत हो सकती है.

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स्लिप डिस्क के लिए घरेलू उपचार

  • पांच लौंग और पांच काली मिर्च पीस लें और इसमें सुखी अदरक का पाउडर भी मिला लें. इस मिश्रण को चाय की तरह एक काढ़ा बना कर दिन में दो बार पिएं.
  • दो ग्राम दालचीनी पाउडर और एक चम्मच शहद मिला लें. दिन में दो बार इसका सेवन करें, इससे बैक पैन में राहत मिल सकेगी.
  • स्लिप डिस्क में भारी सामान बिल्कुल न उठाएं. कमर दर्द और स्लिप डिस्क की समस्या से बचने के लिए अपनी लाइफ स्टाइल में सुधार करें.
  • मांसपेशियां मजबूत करने और दर्द से छुटकारा पाने के लिए डाक्टर या आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से कुछ दर्द निवारक दवा (मेडिसिन) ले सकते हैं.
  • मोटापा बढ़ने का असर भी रीढ़ की हड्डी पर पड़ता है इसलिए अपना वजन नियंत्रण में रखे और पेट की चर्बी ना बढ़ने दे.
  • बड़ी हिल्स के जूते या सैंडल पहनने से बचें.
  • सोने के लिए स्प्रिंग वाले और मुलायम गद्दे की बजाय सख्त गद्दा प्रयोग करें इससे कमर सीधा रहेगा और पूरी कमर पर एक जैसा दबाव पड़ेगा.
  • व्यायाम करने से शरीर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं. जो लोग नियमित रूप से योगा या एक्सरसाइज करते हैं उन्हें स्लिप डिस्क में फायदा होता है.

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कुतुबमीनार से भी ऊंचा है ये किला, यहां से दिखता है पाकिस्तान

भारत में घूमने के लिए इतने खूबसूरत पर्यटन स्थल हैं, कि आपकी पूरी जिंदगी कम पड़ जाएगी.यहां ऐतिहासिक किलों को देखने के लिए आपको सालों-साल लग जाएंगे. आज हम आपको ऐसे ही दिलचस्प किले के बारे में बताने जा रहे हैं.

राजस्थान के जोधपुर और मेहरानगढ़ किला की स्थापना की कहानी बड़ी रोचक थी. जब राव जोधा जी को अपने पिता की मृत्यु के बाद मंडोर का राज्य खोना पड़ा तब वे लगातार पंद्रह सालों तक मेवाड़ की फौजों से युद्ध करते रहे और 1453 ई. में उन्होंने मंडोर पर अधिकार किया. जिसके लिए राव जोधा उत्तराधिकारी बने थे. उन्हें अपनी राजधानी के लिए एक किले का निर्माण करना था.

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इसी बीच उन्होंने एक जगह हिरण को शेर से लड़ते देखा और किले का निर्माण कराया. बता दें कि जोधपुर का मेहरानगढ़ किला 120 मीटर ऊंची एक पहाड़ी पर बना हुआ है. इस तरह से यह किला दिल्ली के कुतुब मीनार की ऊंचाई (73मीटर) से भी ऊंचा है. किले के परिसर में सती माता का मंदिर भी है.

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क्या है खास

इस किले के दीवारों की परिधि 10 किलोमीटर तक फैली है. इनकी ऊंचाई 20 फुट से 120 फुट तथा चौड़ाई 12 फुट से 70 फुट तक है. इसके परकोटे में दुर्गम रास्तों वाले सात आरक्षित दुर्ग बने हुए थे. घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं. किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार दरवाजे, जालीदार खिड़कियां हैं.

जोधपुर शासक राव जोधा ने 12 मई 1459 को इस किले की नींव डाली और महाराज जसवंत सिंह (1638-78) ने इसे पूरा किया. यानि इस किले का इतिहास 500 साल पुराना है.

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हो चुकी है हौलीवुड फिल्मों की शूटिंग

  • कामयाब अंग्रेजी फिल्म डार्क नाइट के कुछ हिस्से भी मेहरानगढ़ में फिल्माए जाने के बाद यह हौलीवुड के लिए भी एक शानदार डेस्टीनेशन बन गया.
  • यहां ब्रूस वेन को कैद करने, जेल पर हमला करने आदि के दृश्य फिल्माए गए थे.

किले से दिखता है पाकिस्तान

1965 में भारत-पाक के युद्ध में सबसे पहले मेहरानगढ़ के किले को टारगेट किया गया था. लेकिन माना जाता है कि माता की कृपा से यहां किसी का बाल भी बांका नहीं हुआ. यहां किले की चोटी से पाकिस्तान की सीमा दिखती है.

कैसे पहुंचे

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फ्लाइट से जा रहे हैं, तो आप जोधपुर एयरपोर्ट द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं. वहीं ट्रेन से जाने के लिए जोधपुर स्टेशन से ट्रेन सभी मुख्य शहरों के लिए टैक्सी या बस मिल जाएगी. आप यहां बस से भी पहुंच सकते हैं. नई दिल्ली  और आगरा से जयपुर के लिए कई सीधी बसें मिलती हैं. दिल्ली और आगरा के बीच का यह सड़क मार्ग गोल्डन ट्रैवल क्षेत्र का हिस्सा है.

घूमने के लिए बेस्ट टाइम : अक्टूबर से मार्च

कहां ठहरें : आपको यहां कई होटल, रिसौर्ट मिल जाएंगे. इसके अलावा अगर आपका बजट थोड़ा कम है तो यहां धर्मशालाएं भी बनाई गई हैं.

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नाखूनों को सही तरीके से रखें बैक्टीरिया से दूर

मानसून का सीजन हमें जितना ही सुहाना और खुशनुमा लगता है, लेकिन उस मौसम के खत्म होने के साथ ही नमी होने के कारण अलग अलग तरह के बीमारिया व बैक्टीरिया हमारे शरीर में आ सकते हैं. जिसके कारण हमें नॉर्मल खुजली से लेकर रैशेज तक और खांसी से लेकर टाइफाइड तक बहुत सारी बीमारियां सामना करना होता है.पर अधिकतर लोगों को मानते हैं कि बार-बार हाथ धोने से हम बीमारियों से बच सकते हैं और ये फैक्ट सही भी है क्योंकि हाथ धोने से 70% तक बैक्टीरिया मर सकते हैं, लेकिन हमारे नाखूनों का क्या? क्या को बैक्टीरिया फ्री रहते है, क्योंकि कई लोग जल्दबाजी में हाथ धोते हैं और नाखून साफ करना भूल जाते हैं. नाखूनों से भी बीमारियां हो सकती हैं और इसलिए ये जरूरी है कि हम नाखूनों की हाइजीन का भी उतना ही ख्याल रखें जितना हाथों का रखते हैं.

नाखूनों को सुखा के रखें-

हाथ धोने के बाद पोंछ लेना आसान है, लेकिन अगर आपके नाखून लंबे हैं तो अंदर की ओर वो गीले रह जाते हैं और ऐसे में नेल इन्फेक्शन का खतरा भी रहता है.

इसके साथ ही पैरों के नाखूनों के साथ तो ये समस्या बहुत ही ज्यादा रहती है और ह्यूमिडिटी के कारण वो डैमेज हो जाते हैं. इसलिए हाथों और पैरों के नाखूनों को हवा लगने दें और ज्यादा देर तक दस्ताने या बंद जूते न पहनें.

अगर हाथ पैर धो रहे हैं तो हल्के हाथों से नाखूनों के साइड में भी पोंछ लें. ओपन शूज या फ्लोटर्स पहनने की कोशिश करें जहाँ तक हो सके तो आप अपने नाखून छोटे रखें.

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एंटीफंगल पाउडर या क्रीम का प्रयोग करे-

आप अपने नाखूनों को हाइजीन रखने के लिए  एंटीफंगल पाउडर या क्रीम का भी इस्तेमाल कर सकती है. ये हाथों और पैरों के नाखूनों के लिए अच्छा साबित हो सकता है. दिन में एक बार आप ये एक बार कर लेते हैं तो आपके लिए ये फायदेमंद स्थिति साबित होगी. एंटीफंगल पाउडर आपके नाखूनों को ड्राई भी करेगा और क्रीम नमी देगा इसकेसाथ ही बैक्टीरियल और फंगल इन्फेक्शन से भी बचाएगा.

नाखूनों को यूँ करे साफ-

अक्सर गार्डन में पेड़ पौधे के साथ काम करते वक़्त हाथों और पैरों के नाखूनों में मिट्टी बहुत भर जाती है क्योंकि गार्डन में अधिकतर जगह की मिट्टी गीली होती है और इसलिए ये आसानी से नाखूनों के अंदर तक पहुंच सकती है. इसी के साथ, ह्यूमिड के कारण बैक्टीरिया काफी एक्टिव रहता है और ह्यूमिड का फायदा मिलता है इसलिए बेहतर होगा कि आप रोज़ाना अपने नाखूनों को साफ करें.

जिसे आप एक पुराने टूथब्रश की मदद से हाथों और पैरों के नाखूनों को साबुन से साफ करें साथ ही साइड से मिट्टी जमी है तो नाखूनों को थोड़ा ट्रिम करने की कोशिश करें.

अच्छे और सही प्रोडक्ट का उपयोग करें-

अक्सर हम नाखूनों में कोई भी नेल पॉलिश लगा लेते है या किसी भी रिमूवर से उन्हें साफ कर लेते है लेकिन ये गलत है आप नाखूनों के लिए भी सही प्रोडक्ट का उपयोग करें.अगर आप सही तरह के प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल नहीं करेंगे तो नाखूनों की ऊपरी लेयर टूटती जाएगी और इसके कारण आपके नाखून और खराब होंगे.

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नेलकटर का प्रयोग करें-

हमने अक्सर देखा है कि कई लोगों की आदत होती है कि वो अपने नाखूनों के साइड से निकलने वाले क्यूटिकल्स को मुंह से या हाथ से निकाल लेते हैं. लेकिन ऐसा करने से नेल इन्फेक्शन होने वाले सबसे बड़े कारणों में से एक ये भी हो सकता है. ऐसे क्यूटिकल्स निकालने में जब स्किन छिल जाती है तो बैक्टीरिया बहुत आसानी से एंटर कर सकता है.

नेलकटर के इस्तेमाल से नेल इन्फेक्शन से बचा जा सकता है और इसलिए ये जरूरी है कि आप इन बातों का ध्यान रखें.

नाश्ते में बनाएं स्टफ्ड मूंग इडली

नाश्ता हर गृहिणी के लिए रोज की ही समस्या होती है. आहार विशेषज्ञों के अनुसार रात के भोजन के बाद सुबह के नाश्ते के समय तक हमारे शरीर को कुछ भी ग्रहण किये काफी समय हो जाता है इसलिए सुबह का नाश्ता बहुत हैल्दी और अच्छा खासा होना चाहिए. आज हम आपको मूंग की धुली दाल से बनने वाले एक बहुत ही हैल्दी नाश्ते के बारे में बता रहे हैं जो बच्चे बड़ों सभी को बहुत पसन्द आएगा. मूंग में फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और अनेकों विटामिन्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं इसलिए इसका सेवन अवश्य करना चाहिए. ये बहुत सुपाच्य और भूख को बढ़ाने वाली होती है. तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं-

कितने लोंगों के लिए            6

बनने में लगने वाला समय     30 मिनट

मील टाइप                          वेज

सामग्री

धुली मूंग दाल                   1 कप

नमक                               1/4 टीस्पून

ईनो फ्रूट साल्ट                   1 सैशे

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सामग्री (भरावन के लिए)

उबले मैश किये आलू                2

हरी मिर्च                                4

नमक                                   1/4 टीस्पून

बारीक कटा प्याज                  1

जीरा                                   1 टीस्पून

गर्म मसाला                          1/2 टीस्पून

अमचूर पाउडर                     1/4 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर                1/2 टीस्पून

बारीक कटा हरा धनिया        1 टेबलस्पून

तेल                                   तलने के लिए

विधि

मूंग दाल को रातभर भिगोकर पानी निकाल कर मिक्सी में महीन पीस लें. पल्स मोड़ पर पीसें इससे दाल में कम पानी डालने की आवश्यकता होगी. इसमें नमक डालकर 15 मिनट के लिए रख दें.

एक पैन में 1 टीस्पून तेल गरम करके प्याज सौते करें और हरी मिर्च, जीरा डालकर सभी मसाले डालकर भून लें. अब आलू व नमक डालकर अच्छी तरह चलाएं. हरा धनिया डालकर ठंडा होने दें. ठंडा होने पर इसमें से 1 टेबलस्पून मिश्रण लेकर हथेली पर चपटा करके 6 टिकियां तैयार कर लें.

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पिसी मूंग दाल में नमक और ईनो साल्ट डालकर चलाएं. तैयार मिश्रण में से एक टेबलस्पून मिश्रण इडली के मोल्ड में डालें, इसके ऊपर आलू की टिकिया रखकर फिर से एक टेबलस्पून मूंग का मिश्रण डालकर अच्छी तरह कवर कर दें. इसी प्रकार सारे मोल्ड तैयार कर लें. मोल्ड को इडली पात्र में रखकर भाप में 20 मिनट पकाएं. जब ये तैयार मूंग इडली ठंडी हो जाएं तो मोल्ड से निकाल लें. अब एक पैन में बहुत अच्छी तरह तेल गरम कर लें. इसमें तैयार इडली को साबुत ही डालकर सुनहरा होने तक डीप फ्राई करें. ध्यान रखें कि तेल खूब गर्म हो और आंच तेज हो. इन्हें बटर पेपर पर निकाल कर बीच से काटकर चटनी या टोमेटो सॉस के साथ  सर्व करें.भ

समलैंगिकता और मिथक

कुछ दिनों पहले एक फ़िल्म आई थी शुभ मंगल ज़्यादा सावधान उसमें के समलैंगिक जोड़े को अपनी शादी के लिए परिवार समाज और माता पिता से संघर्ष करते हुए दिखाया था वो कहीं न कहीं हमारे समाज की सच्चाई और समलैंगिकों के प्रति होने वाले व्यवहार के बहुत करीब थी.

अब जबकि समलैंगिकता गैरकानूनी नहीं रही है ऐसे में समलैंगिक लोग खुलकर सामने आ रहे हैं . पहले अपने रिश्तों को स्वीकारने में ऐसे जोड़ों को जो झिझक होती थी अब वो कम हुई है. कानून कुछ भी कहे पर समाज में अभी भी ऐसे जोड़ों को स्वीकृति नहीं मिली है. लोग ऐसे जोड़ों को स्वीकारने में संकोच करते हैं क्योंकि उनके मन मे इन लोगों को लेकर कई प्रकार की धारणाएँ और पूर्वाग्रह हैं. कुछ ऐसे ही मिथकों के बारे में हम बता रहे हैं.

मिथक-ये वंशानुगत है

सच-समलैंगिकता वंशानुगत नहीं होती है इसके लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं. कई लोग बचपन से ही अपने माँ या पिता या भाई बहन पर भावनात्मक रूप से निर्भर रहते हैं इसके कारण उनकी रुचि पुरुष या महिलाओं में हो सकती है और वो समलैंगिकता अपना सकते हैं. जेंडर आइडेन्टिटी डिसऑर्डर भी इसकी एक वाजिब वजह है. ये एक ऐसी बीमारी है जो समलैंगिकता के लिए जिम्मेदार है. इस बारे में कई थ्योरी हैं जिनके आधार पर बात की जाती है. अभी सही सही कारणों का पता तो नहीं लग पाया है फिर भी ये मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि समान सेक्स के लिए शारीरिक आकर्षण अप्राकृतिक तो नहीं है.  वैसे भी स्वभाव से मनुष्य बाइसेक्सुअल होता है ऐसे में उसकी रुचि किसी मेभी हो सकती है. डॉ रीना ने बताया कि मेरे पास आने वाले जोड़ों में किसी के घर मे कोई समलैंगिक नही था. उनके अनुसार किसी को समलैंगिक बनाया नहीं जा सकता है . समलैंगिक होना भी उतना ही स्वाभाविक है जितना एक स्त्री और पुरुष के बीच का रिश्ता़ें.

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मिथक-ये लोग असामान्य होते हैं

सच-मनोचिकित्सकों की मानें तो ये लोग आपकी और हमारी तरह ही सामान्य बुद्धि के होते हैं बस अंतर है सेक्स की रुचि का. बाकी अगर देखा जाए तो बुद्धि इनकी भी सामान्य ही होती है. भावनाओं की बात करें तो ये बहुत अधिक भावुक होते हैं क्योंकि हर वक़्त इन्हें अपने स्वीकार्य को लेकर चिंता बनी रहती है. इनके लिए विरोध की पहली शुरुवात घर से ही हो जाती है क्योंकि माता पिता और परिवार समलैंगिकता को सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ के देखते हैं. हर एक के लिए सामान्य होने की अलग परिभाषा होती है पर समलैंगिकों की बात करें तो चूँकि इनके रिश्ते में संतानोत्पत्ति सामान्य तरीके से संभव नहीं इसलिए इस रिश्ते को समाज सामान्य नहीं मानता. वंश को आगे बढ़ना हमारी सामाजिक सोच का हिस्सा है जिसकी पूर्ति इस से संभव नहीं . पर मनोचिकित्सकों की माने तो यहाँ बात सामान्य होने की नहीं बल्कि सेक्स में उनकी रुचि की है. यदि कोई व्यक्ति समान सेक्स के प्रति आकर्षण महसूस करता है तो ये पूरी तरह सामान्य बात है. मुम्बई के हीरानंदानी अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ हरीश शेट्टी के अनुसार अपने ही सेक्स के व्यक्ति के रुचि रखना एक सामान्य बात है क्योंकि ऐसे लोगों को विपरीत सेक्स के प्रति कोई आकर्षण नहीं होता. मनोचिकित्सक कहते हैं कि एक समलैंगिकता स्वाभाविक तौर पर होती है जो खुद की चुनी हुई होती है और एक परिस्थितिजन्य होती है जिसमे किसी अनजान भय जैसे कि मैं विपरीत सेक्स वाले के साथ होने पर उसे संतुष्टि दे सकूँगा /सकूँगी या नहीं ये छद्म समलैंगिकता है.

मिथक- इन्हें यौन संक्रमण ज्यादा होता है

सच-कुछ लोगों का मत है कि सेक्स वर्कर्स , किन्नरों नशे के इंजेक्शन लेने वाले नशेड़ियों और समलैंगिकों में एड्स और अन्य यौन जनित रोग होने की संभावना अधिक होती है. अभी कुछ समय पहले हमारे यहाँ समलैंगिकता को कानूनी रुप से मान्यता न होने से एक ही साथी के साथ घर  बसा के नहीं रह पाते थे ऐसे में शारीरिक आवश्यकताओ के कारण एक से अधिक लोगों के साथ संबंध बन जाना भी इसका मुख्य कारण है. हालाँकि ऐसा नहीं है कि एस टी डी केवल समलैंगिकों को होती है ये तो हेट्रोसेक्सुअल लोगों में भी होती है. यौन संबंधों में सुरक्षा का खयाल न रखा जाए तो भी ऐसे रोगों का खतरा होता है. इसलिए ये एक मिथक ही है कि समलैंगिकों में सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिसीज़ ज्यादा होती हैं.

मिथक- शादी इसका हल है

सच-समलैंगिकों से जुड़ा सबसे बड़ा मिथक ये है कि इनकी शादी करा दी जाए तो सब ठीक हो जाएगा जबकि ऐसा बिल्कुल भी नही है. कई बार माता पिता दबाव डाल कर शादी कर देते हैं ऐसे में जिस से शादी होती है उसका जीवन तो खराब होता ही है बल्कि दूसरे का जीवन खडाब करने का अपराधबोध उनके बच्चे को भी अवसादग्रस्त कर देता है सब मिला कर शादी इसका हल नहीं है. यदि आपके बच्चे ने आपको अपनी सेक्सुअल वरीयता के बारे में बता रखा है तो ऐसे में उस पर दबाव डालकर शादी करने की भूल कभी न करें क्योंकि इस से दो जीवन खराब होंगे. ऐसी शादियाँ सिवाय असंतुष्टि के कुछ नहीं देतीं क्योंकि ऐसे लोगों में विपरीत सेक्स के प्रति कोई भावना नहीं पनप पाती ऐसे में वो अपने साथी के साथ रिश्ते बनाने में असमर्थ होता है नतीजतन शादी टूट जाती है.

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मिथक-ये वंश वृद्धि में असमर्थ होते हैं

सच-लोग कहते हैं कि अगर ऐसी शादी होगी तो वंश का क्या होगा क्योंकि प्राकृतिक तरीके से संतानोत्पत्ति संभव नहीं होगी. पर सच ये है कि यदि बच्चे की इच्छा है तो आजकल आई वी एफ के द्वारा ये किया जा सकता है . बच्चा गोद लेना भी एक अच्छा विकल्प है. यदि ऐसा व्यक्ति जो विपरीत सेक्स के प्रति झुकाव महसूस नहीं करता वो अपने साथी के साथ रहता है और अपना जैविक बच्चा चाहता है तो एग डोनेशन या स्पर्म डोनेशन और सरोगेसी इसका अच्छा उपाय है. मनोचिकित्सकों के अनुसार सेक्स सिर्फ़ बच्चा पैदा करने का जरिया नहीं है बल्कि ये भावनात्मक लगाव दर्शाने का और अपने साथी का प्यार पाने का तरीका भी है .

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