फैमिली के लिए बनाएं मखाना मूंगफली कचौरी

अगर आप अपनी फैमिली के लिए घर पर कचौरी बनाना चाहती हैं तो मखाना मूंगफली कचौरी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. मखाना और मूंगफली की फिलींग के चलते ये कचौरी और हेल्दी है, जिसे आसानी से फैमिली के लिए बनाया जा सकता है.

सामग्री

– 1/2 कप मूंगफली

– 1/2 कप मखाना

– 1 छोटा चम्मच धनिया साबूत

– 1 छोटा चम्मच जीरा साबूत

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– 1/4 छोटा चम्मच हींग

– 1/4 छोटा चम्मच कश्मीरी मिर्च पाउडर

– 1 छोटा चम्मच काजूबादाम कतरे

– रिफाइंड तलने के लिए

– 1 पाव मैदा – नमक स्वादानुसार.

विधि

1 बड़े चम्मच रिफाइंड में मूंगफली और मखाने को सुगंध आने तक भूनें. धनिया, जीरा, हींग, कश्मीरी मिर्च पाउडर व नमक डाल कर अच्छी तरह मिक्स कर लें. आखिर में काजूबादाम व 2-3 बूंदें रिफाइंड डाल कर फिर से मिलाएं. मैदे में नमक व मोयन डाल कर मिक्स करें. पानी डाल कर कड़ा आटा गूंध लें. 10 मिनट के लिए सैट होने दें. अब मैदे के छोटे पेड़े बना कर स्टफिंग डालें व हाथ से दबा कर कचौड़ी बना लें. धीमी आंच पर करारा होने तक तलें. चाय के साथ सर्व करें या एयरटाइट कंटेनर में रख भी सकते हैं.

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इन टिप्स से बदलें Festive Season में घर का लुक

परिवर्तन प्रकृति का नियम है जिस प्रकार एक जैसा भोजन खाकर मन ऊब जाता है उसी प्रकार एक जैसी घर की सेटिंग देखकर भी हम बोर हो जाते हैं.  यही नहीं घर की सेटिंग या लुक में किया गया परिवर्तन हमारे मन में सकारात्मकता भी लाता है.  कई बार कमरे का लुक बदलने की इच्छा भी होती है परन्तु समझ नहीं आता कि क्या किया जाए कि लुक में कुछ बदलाव भी हो जाये और हमारा बजट भी न गड़बड़ाए.  आज हमको ऐसे ही कुछ टिप्स बता रहे हैं जिनका प्रयोग करके आप आसानी से अपने ही बजट में घर का लुक बदल सकतीं हैं.

1. कमरे में सफेद या हल्के रंग से पेंट करवाने के स्थान पर गहरे रंग का प्रयोग करें, यह सही है कि हल्के रंगों के प्रयोग से छोटा कमरा भी बड़ा प्रतीत होता है परन्तु हल्के रंग कमरे के लुक को डल कर देते हैं जब कि डार्क रंग कमरे में उठाव लाते हैं.  आवश्यक नहीं है कि आप पूरे घर में ही पेंट करवाएं बल्कि कुछ कम गन्दी जगहों पर आप टचअप करवाकर केवल ड्राइंग रूम में ही पेंट करवा सकते हैं इससे आप अतिरिक्त खर्च से बच जाएंगे.

2. कमरे की दीवारों पर एक जैसे पैटर्न के स्थान पर अलग अलग पैटर्न का प्रयोग करें इससे कमरा विविधता पूर्ण लगेगा.  मसलन दीवारें स्ट्रिप्स, पर्दे फ्लोरल और कोई दीवार एकदम प्लेन रखें इससे कमरा रंगों से भरपूर और सुंदर लगेगा.  हर कमरे में अलग अलग पैटर्न  भी रखा जा सकता है.  यदि आपका बजट पर्दे बदलने का नहीं है तो आप कमरे के पर्दों को मिक्स मैच करके या अदल बदल कर लगाएं इससे कम बजट में ही आपके घर का लुक एकदम बदल जायेगा.

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3. कमरे के शो पीस, पर्दे, बेडशीट और रग्स आदि को मैच करने के स्थान पर विविधता पूर्ण रखें कमरा एकदम कलरफुल लगेगा.  पीतल, कांसे के शोपीस को इमली, नीबू, य दही के पानी से धोकर साफ करके नए फूल लगाकर जगह बदल दें इससे आपको शोपीस एकदम नए से लगने लगेंगे.

4. बाथरूम में लकड़ी का कवर्ड या वालपेपर बाथरूम का पूरा लुक बदल देते हैं.  इसके लिए हाफ दीवार पर वाल पेपर लगाकर नीचे की साइड में लकड़ी लगवाए.  नमी से बचाने के लिए किसी वाटरप्रूफ अधेसिव का प्रयोग करें.  यहां पर आप चीजों की जगह चेंज करके और मग बाल्टी आदि बदलकर नया लुक प्राप्त कर सकतीं हैं.

5. किचेन में रग्स और वालपेपर का प्रयोग करें इससे किचिन एकदम स्टाइलिश लगने लगेगी.  वाल पेंटिंग डेकोरेटिव पौधों का  प्रयोग भी किया जा सकता है.  हां यहां के रग्स को अतिरिक्त साफ सफाई की आवश्यकता होती है इसके लिए आप इसे सप्ताह में एक बार अवश्य धोएं. किचिन की टॉवल और कपड़ों को अवश्य चेंज करें.

6. यदि आपका बजट है तो घर की सीलिंग सफेद के स्थान पर किसी डार्क शेड या वुड से करवाएं इससे आपके घर को एकदम नवीन लुक मिलेगा. आजकल लकड़ी पर कारविंग करके छत पर लगाने का भी बहुत चलन है परन्तु आम पेंट के मुकाबले यह थोड़ी महंगी होती है.

इंटीरियर डेकोरेटर आशीष मालवीय से की गई बातचीत पर आधारित

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खेद है लोकतंत्र नहीं रहा

धर्म व राजसत्ता का गठजोड़ फासीवाद व अंधवाद पैदा करता है. धर्म को सत्ता से दूर करने के लिए ही लोकतंत्र का उद्भव हुआ था. रोम को धराशायी करने में सब से बड़ा योगदान समानता, संप्रभुता व बंधुत्व का नारा ले कर निकले लोगों का था. ये लोग धर्म के दुरूपयोग से सत्ता पर कब्ज़ा कर के बैठे लोगों को उखाड़ कर फेंकने को मैदान में उतरे थे व राजशाही को एक महल तक समेट कर ब्रिटेन में लोकतंत्र की और आगे बढे.

बहुत सारे यूरोपीय देश इस से भी आगे निकल कर राजतन्त्र को दफन करते हुए लोकतंत्र की और बढे और धर्म को सत्ता के गलियारों से हटा कर एक चारदीवारी तक समेट दिया, जिसे नाम दिया गया वेटिकन सिटी.

आज किसी भी यूरोपीय देश में धर्मगुरु सत्ता के गलियारों में घुसते नजर नहीं आएंगे. ये तमाम बदलाव 16वीं शताब्दी के बाद नजर आने लगे, जिसे पुनर्जागरण काल कहा जाने लगा अर्थात पहले लोग सही राह पर थे फिर धार्मिक उन्माद फैला कर लोगों का शोषण किया गया और अब लोग धर्म के पाखंड को छोड़ कर उच्चता की और दुबारा अग्रसर हो चुके है.

आज यूरोपीय समाज वैज्ञानिक शिक्षा व तर्कशीलता के बूते दुनियां का अग्रणी समाज है. मानव सभ्यता की दौड़ में कहीं ठहराव आता है तो कहीं विरोधाभास पनपता है, लेकिन उस का तोड़ व नई ऊर्जा वैज्ञानिकता के बूते हासिल तकनीक से हासिल कर ली जाती है.

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आज हमारे देश में सत्ता पर कब्ज़ा किये बैठे लोगों की सोच 14वीं शताब्दी में व्याप्त यूरोपीय सत्ताधारी लोगों से ज्यादा जुदा नहीं है. मेहनतकश लोगों व वैज्ञानिकों के एकाकी जीवन व उच्च सोच के कारण कुछ बदलाव नजर तो आ रहे है, लेकिन धर्मवाद व पाखंडवाद में लिप्त नेताओं ने उन को इस बात का कभी क्रेडिट नहीं दिया.

जब किसी मंच पर आधुनिकता की बात करने की मज़बूरी होती है तो इन लोगों की मेहनत व सोच को अपनी उपलब्धि बताने की कोशिश करने लगते है. ये ही लोग दूसरे मंच पर जाते है तो रूढ़िवाद व पाखंडवाद में डूबे इतिहास का रंगरोगन करने लग जाते है.

धर्मगुरुओं का चोला पहन कर इन बौद्धिक व नैतिक भ्रष्ट नेताओं के सहयोगी पहले तो लोगों के बीच भय व उन्माद का माहौल पैदा करते है और फिर सत्ता मिलते ही अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता के केंद्र बन बैठते है.

सरकारे किसी भी दल की हो, यह कारनामा करने से कोई नहीं हिचकता. पंडित नेहरू से ले कर नरेंद्र मोदी तक हर प्रधानमंत्री की तस्वीरें धर्मगुरुओं के चरणों में नतमस्तक होते हुए नजर आ जायेगी.

गौरतलब है कि जब धर्मगुरु जनता द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री से ऊपर होते है तो लोकतंत्र सिर्फ दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं होता और बेईमान लोग इसी लोकतंत्र नाम की दुहाई दे कर मख़ौल उड़ाते नजर आते है.

इसी रोगग्रस्त लोकतंत्र की चौपाई का जाप करतेकरते अपराधी संसद में बैठने लगते है तो धर्मगुरु लोकतंत्र के संस्थानों को मंदिर बता कर पाखंड के प्रवचन पेलने लग जाते है और नागरिकों का दिमाग चक्करगिन्नी की तरह घूमने लग जाता है. नागरिक भ्रमित होकर संविधान भूल जाते है और टुकड़ों में बंटी सत्ता के टीलों के इर्दगिर्द भटकने लग जाते है.जहाँ जाने के दरवाजे तो बड़े चमकीले होते है लेकिन लौटने के मार्ग मरणासन्न तक पहुंचा देते है.

इस प्रकार लोकतंत्र समर्थक होने का दावा करने वाले लोग प्राचीनकालीन कबायली जीवन जीने लग जाते है, जहांं हर 5-7 परिवारों का मुखिया महाराज अधिराज कहलाता था. आजकल लोकतंत्र में यह उपाधि वार्डपंच, निगमपार्षद व लगभग हर सरकारी कर्मचारी ने हासिल कर ली है.जिनको नहीं मिली वो कोई निजी संगठन का मनगढ़त निर्माण कर के हासिल कर लेता है. इस प्रकार मानव सभ्यता वापिस पुरातनकाल की ओर चलने लग गई व लोकतंत्र अपने पतन की ओर.

जहां सत्ता धर्म से सहारे की उम्मीद करने लगे व धर्म सत्ता के सहारे की तो लोकतंत्र का पतन नजदीक होता है, क्योंकि लोकतंत्र का निर्माण ही इन उम्मीदों पर पानी फेरने के लिए ही हुआ है.

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आज ये दोनों ताकत के केंद्र आपस में मिल गए है तो लोकतंत्र असल में अपना वजूद खो चुका है. अब हर अपराधी, भ्रष्ट, बेईमान, धर्मगुरु, लुटेरे आदि हर कोई अपनेअपने हिसाब से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल करने लग गया है.

जब सत्ता में इन लोगों का बोलबाला होने लग गया तो लोकतंत्र आम नागरिकों से दूर हो चूका है. संवैधानिक प्रावधान चमत्कार का रूप ले चुके है, जिस को सुना जाए तो बहुत ही सुहावने लगते है लेकिन कभी हकीकत में नहीं बदल सकते.

किसान आंदोलन के प्रति राजनैतिक व धार्मिक दोनों सत्ता के केंद्रों का रवैया दुश्मनों जैसा है. अपने ही देश के नागरिकों व अपने ही धर्म के अनुयायियों के प्रति यह निर्लज्ज क्रूरता देख कर प्रतीत होता है कि अब लोकतंत्र नहीं रहा.

Imlie के हाथ लगेगा मालिनी के खिलाफ सबूत! देखें वीडियो

सीरियल इमली (Imlie) की कहानी में नए मोड़ आ रहे हैं. जहां आदित्य झूठे इल्जाम से परेशान है तो वहीं इमली पूरी कोशिश कर रही है कि सच सामने आ सके. इसी बीच मालिनी का हर सपना पूरा होता नजर आ रहा है. लेकिन जल्द ही इमली के हाथ कुछ सबूत लगने वाले हैं, जिसके चलते सीरियल की कहानी में नया ट्विस्ट आ जाएगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

आदित्य हुआ इमली से नाराज

अब तक आपने देखा कि मालिनी के चलते इमली को जहां कॉलेज से निकाल दिया  है तो वहीं आदित्य की जॉब और उसका नाम हाथ से जा चुका है. वहीं देव पूरी कोशिश करता है और इमली को रोककर उससे केस को वापस ले लेने की बात कहता है. दूसरी तरफ आदित्य, इमली पर भड़कते हुए कहता है ति जबसे उसने मालिनी पर केस किया है, तबसे त्रिपाठी परिवार की मुश्किलें बढ़ चुकी हैं. वहीं उसे भला बुरा कहता है, जिसे सुनकर मालिनी बेहद खुश होती है.

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इमली के हाथ लगेगा सबूत

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि आदित्य की बातों को सुनकर इमली टूट जाएगी और वह खूब रोएगी. लेकिन सुंदर और उसकी नकली नानी उसे केस जीतने के लिए हिम्मत बढ़ाएंगे. वहीं इमली के कौलेज से निकाले जाने की बात से आदित्य हैरान रह जाएगा. इसी के साथ इमली के हाथ मालिनी के खिलाफ सबूत लगेंगे, जिसे देखकर इमली हैरान रह जाएगी. हालांकि मालिनी अपनी जीत का जश्न मनाती हुई नजर आएगी.

 

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बता दें, मालिनी के कारण इमली और आदित्य की जिंदगी में गलतफहमियां देखने को मिल रही है, जिसके चलते सीरियल की कहानी में आए दिन नए ट्विस्ट आ रहे हैं. फैंस भी इस कहानी में कौन सा नया मोड़ आएगा यह जानने के लिए बेताब हैं.

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Anupamaa: वनराज ने किया बहू किंजल के साथ रोमांटिक डांस, फैंस ने किया जमकर ट्रोल

सीरियल अनुपमा इन दिनों टीआरपी चार्ट्स पर धमाल मचा रहा है. वहीं सीरियल की कहानी भी एक के बाद एक नया मोड़ ले रही है. इसी के चलते सीरियल के सितारे आए दिन सेट पर मस्ती करते नजर आ रहे हैं, जिसकी झलक वह सोशलमीडिया पर दिखा रहे हैं. लेकिन सीरियल के सेट से वायरल हुआ एक वीडियो फैंस के बीच सुर्खियों में आ गया है. वहीं कुछ लोग इस वीडियो के चलते वनराज और बहू किंजल को ट्रोल भी कर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

ट्रोल हुए वनराज-किंजल

 

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दरअसल, सीरियल अनुपमा के सेट पर से वायरल हुए वीडियो में वनराज का रोल निभा रहे एक्टर सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) अपनी ऑनस्क्रीन बहू किंजल यानी निधि शाह (Nidhi Shah) के साथ साउथ इंडियन गाने पर रोमांटिक डांस कर रहे हैं, जिसे देखकर कुछ लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं. ट्रोल करते हुए एक यूजर ने लिखा, ‘लोग क्या कहेंगे मिस्टर शाह?’ तो वहीं दूसरे यूजर का कहना है कि भाई तेरे बेटे की बहू है कुछ तो शर्म करो.

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अनुज संग जाएगी अनुपमा

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुज के कहने पर अनुपमा उसके साथ हवाई जहाज में बिजनेस ट्रिप पर जाएगी. लेकिन बा इसके खिलाफ होंगे. दरअसल, बा अकेले अनुपमा को अनुज के साथ जाने के लिए मना करते हुए कहेगी कि वह गैर मर्द के साथ जा रही है कुछ ऊंच नीच हो गई तो फिर क्या होगा, जिसके जवाब में अनुपमा कहेगी कि ऐसा कुछ नही होगा उसकी मर्जी के बिना. वहीं वह वनराज को भी ताना देती है. इसी के साथ काव्या अनुपमा की बढ़ती कामयाबी से जलती नजर आएगी.

आमने-सामने आए वनराज- अनुज

अब तक आपने देखा कि गणेश चतुर्थी के सेलिब्रेशन में अनुपमा (Anupama) कॉलेज के दिनों में पंजा लड़ाने के बारे में याद करते हुए अनुज की तारीफ करती है, जिसे देखकर वनराज जलन के कारण पंजा लड़ाने के लिए तैयार हो जाता है. लेकिन इस कौप्टीशन में वनराज (Sudhanshu Pandey) जीत जाएगा. दरअसल, कौम्पटिशन के दौरान अनुज, अनुपमा की तरफ देखता है कि वह वनराज को जीतते हुए देखना चाहती है, जिसके चलते वह हारने का फैसला करता है.

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फैमिली के लिए बनाएं राजमा कबाब

कबाब के काफी सारे औप्शन मार्केट में मौजूद हैं. वहीं वेजीटेरियन लोगों के लिए कबाब की वैरायटी की बात करें तो औप्शन काफी कम हैं. लेकिन आज हम आपको राजमा कबाब की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली के लिए आसानी से बना सकते हैं.

सामग्री

– 1 कप राजमा उबले

– 1/2 कप सोया चूरा उबला

– 1 आलू उबला

– 1/2 कप घिसा पनीर

– 4 छोटे चम्मच जिंजर व गार्लिक पेस्ट

– 1/2 कप धनियापत्ती बारीक कटी

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– 4 छोटे चम्मच अमचूर

– 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी

– 1 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर

– 4 बड़े चम्मच रिफाइंड

– 1 पैक मैगी मसाला

– नमक स्वादानुसार.

विधि

राजमा का पानी छान कर मिक्स्चर में पीस लें. सोया चूरा को भी निचोड़ कर मिला लें. आलू को मैश या घिस कर मिलाएं. अब जिंजर व गार्लिक पेस्ट, धनियापत्ती, अमचूर, लालमिर्च पाउडर, नमक, हलदी, मैगी मसाला व कालीमिर्च पाउडर डाल कर मिक्स कर लें. अब इस में 1 बड़ा चम्मच रिफाइंड डाल कर थोड़ी देर लगभग 10 मिनट के लिए सैट होने छोड़ दें. कबाब को मनचाहा आकार देते हुए फ्राइंग पैन में रिफाइंड गरम कर के मध्यम आंच पर सैलो फ्राई करें. प्याज के लच्छों व चटनी के साथ सर्व करें.

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अस्थमा में मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल-

मेरी उम्र 28 वर्ष है. पिछले कुछ महीनों से मुझे सांस लेने में तकलीफ महसूस हो रही है. दवा लेने पर ठीक हो जाती है, लेकिन यह परेशानी बारबार हो जाती है. क्या मुझे अस्थमा है और मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

सांस लेने में तकलीफ होना अस्थमा का लक्षण हो सकता है परंतु अकेला एक लक्षण अस्थमा नहीं घोषित किया जा सकता है. अगर सांस लेने में तकलीफ है तो डाक्टर से अपनी जांच कराएं क्योंकि यह लक्षण आप के अन्य स्वास्थ्य कारणों से भी हो सकता है. अस्थमा में केवल सांस लेने में दिक्कत ही नहीं बल्कि खांसी, घबराहट तथा सीने में जकड़न भी होती है.

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अस्थमा की बीमारी एक सामान्य और लंबे समय तक रहने वाली बीमारी है. वेस्ट इंडिया के लोगों में ये बीमारी हर 10 में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है. एक शोध से पता चला है कि अस्थमा मोटे लोगों को ज्यादा होता है. यदि ठीक से व्यायाम किया जाए और रोज के खाने में प्रोटीन, फलों और सब्जियों का सेवन किया जाए तो अस्थमा के रोगियों की हालत में सुधार लाया जा सकता है.

अस्‍थमा या दमा फेफड़ो को प्रभावित करती है. यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें फेफड़ो तक सही मात्रा में आक्सीजन नहीं पंहुच पाता और सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है. आस्थमा अटैक कभी भी कहीं भी हो सकता है. आस्थमा अटैक तब होता है जब धूल के कण आक्सीजन ले जाने वाली नलियों को बंद कर देते हैं. आस्थमा के अटैक से बचने के लिए जितनी जल्‍दी हो सके दवाईयों या इन्‍हेलर का प्रयोग किया जाना चाहिए.

दमे के दौरान अपनाएं ये उपाय

दमे के मरीजों को चावल, तिल, शुगर और दही जैसे कफ या बलगम बनाने वाले पदार्थ, तले हुए खाद्य पदार्थ खाने से बचना चाहिए. ताजे फलों का रस दमे को रोगी के लिए बेहद फायदेमंद है. उन्हें हरी सब्जियां और अंकुरित चने जैसे खाद्य पदार्थ भरपूर मात्रा में ले और भूख से कम ही खाना खाये. दिनभर में कम से कम दस गिलास पानी पीये. तेज मसाले, मिर्च अचार, अधिक चाय-काफी के सेवन से बचें. मरीज को रोजाना योगासन और प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए. रोगी को एनीमा देकर उसकी आंतों की सफाई करनी चाहिए.

चेज़ योर ड्रीम्स

अभी हाल ही में मिसेज शाह से मिलना हुआ तो कहने लगी “क्या करें बेटी को समय ही नहीं मिलता”.

कहाँ व्यस्त रहती है इतना वह ? मैं ने पूछा.

क्या बताऊँ आजकल ऑनलाइन पर्सनैलिटी डवलपमेंट और सेल्फ ग्रूमिंग कोर्स जॉइन किया हुआ है. उसके अलावा एक घंटा एरोबिक्स एवं योगा. इतने समय से जिम बंद थे अब वे भी खुल गए सो एक घंटा सुबह जिम जाती है. इसके अलावा पढाई तो है ही सही.

इतना कुछ आखिर क्यूँ ?

अब ज़िंदगी में कुछ करना है तो मेहनत तो अभी से ही करनी होगी न.

मिसेज शाह का जवाब सुन मैं चुप रह गयी किन्तु मन  ही मन सोचने लगी “ऐसा भी क्या करना है इन्हें मेरी बेटी भी तो उसी के साथ पढ़ती है, उसे तो बहुत समय मिलता है”

बहुत कुछ इन्फार्मेटिव है इंटरनेट पर

घर आ कर मैं और मेरी बेटी जब रसोई में एक साथ काम कर रहे थे तो बातों ही बातों में मैं ने कहा “आज मिसेज शाह मिली थीं बता रही थीं कि उनकी बिटिया मायरा पूरा दिन कुछ न कुछ सीखती ही रहती है, बहुत व्यस्त रहती है और तुम हो कि इन्स्टा, यूं ट्यूब में समय गँवा रही हो”

ऐसा क्यूँ सोचती हैं आप मॉम ? मैं क्या सारा समय इन्स्टा और यू ट्यूब पर फ़ालतू समय बिताती हूँ ?

इंटरनेट पर भी बहुत सारे इन्फार्मेटिव वीडियों आते हैं वो देखती हूँ. इन्स्टा पर अपने पहचान के लोगों से मिलती हूँ आखिर मुझे भी तो अपनी ज़िंदगी जीनी है या टाइम मशीन बन कर रह जाऊं ?

तुलना करना उचित नहीं

उफ़ ! मॉम आप कम्पेयर क्यूँ कर रही हैं ? यह कोई नई बात नहीं कि मायरा हर समय व्यस्त रहती है हम सभी जानते हैं यह तो पहले से ही, पर उसकी ज़िंदगी कोई ज़िन्दगी है ?

क्या मतलब ? मैं ने पूछा.

मतलब यह कि मॉम न तो वह किसी से मिलती है और न ही किसी से कभी बात करने को फुर्सत है उसके पास ? और सबसे जरूरी बात यह कि क्या वह स्वयं खुश है ऐसी ज़िंदगी से.

“क्यूँ खुश होगी तभी तो इतना कुछ कर लेती है वह”

चक्की के दो पाटों में पिसती ज़िंदगी

नहीं मॉम  आपको कुछ भी नहीं पता वह तो चक्की के दो पाटों में पिस रही है.

कैसे ?

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कैसे क्या उसके डैड तो उसे सी.ऐ., एम्, बी. ऐ. करवा कर अफसर बनाना चाहते हैं और उसकी मॉम उसे मॉडलिंग करने को फ़ोर्स करती हैं. वो बेचारी अपने दिन का सारा समय सिर्फ उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने में बिताती है. जैसे उसकी तो कोई लाइफ ही नहीं.

पैरेंट्स बंदिश देते हैं

पर उसके पैरेंट्स भी तो उसी के भले के लिए सोचते हैं.

ह्म्म्म सोचते होंगे, पर पहले वे दोनों तो आपस में मिल-बैठ कर बातचीत कर तय कर लें कि उन्हें अपनी बेटी को क्या बनाना है. बेचारी दो नावों की कश्ती में सवार न तो हंस-बोल पाती है और न ही कुछ तय कर पाती है कि आखिर उसे अपनी ज़िंदगी में क्या करना है.

ज़रा वज़न बढे तो उसकी मॉम उसका घी-पनीर बंद कर देती हैं. दो नंबर भी कट जाएँ किसी विषय में तो डैड ट्यूशन टीचर के पीछे पड़ जाते हैं. उसकी एक्स्ट्रा वीकेंड क्लासेज़ शुरू करवा देते हैं और हरेक क्लास की फीस बताऊँ ?

“हाँ-हाँ बताओ तो” मैं ने कहा.

मॉम साढे बारह सौ रुपये प्रति घंटा. सोचो हर महीने उस की ट्यूशन पर कितना खर्च करते होंगे. उसके अलावा योगा, एरोबिक्स एवं अन्य कोर्सेज़ का खर्चा सो अलग.

तुम्हें किस ने बताया कि इतनी फीस  देते हैं वे.

उसी ने स्वयं ने बताया और यह भी बताया कि उसे ये सारे दिन के कोर्सेज़ और पढाई अच्छी भी नहीं लगती है, बोर हो जाती है वह ये सब करके.

पर उसके नंबर तो अच्छे ही आते हैं हमेशा और कितनी सुन्दर लगती है बिलकुल फिट एंड ग्लोइंग .

तो वो तो लगेगी ही न मॉम सारा ध्यान इन्हीं चीज़ों पर रखो हर वक़्त सोचो क्या खाऊँ क्या नहीं, चेहरे पर क्या लगाऊँ कि स्किन ग्लो करे . ननिहाल से पसंद की मिठाई आये पर उसे फ्रूट्स जूस पीने पड़ें. हम सभी पिज्जा खाएं पर उसे ग्रीन सैलेड खाना पड़े तो भूख तो खुद ही मर जायेगी न. कैसे बढेगा उसका वज़न ? फिट ही रहेगी न.

लेकिन ये सब सेहत के लिए फायदेमंद भी तो है अभी से ख्याल रखेगी तो चुस्त-तंदरुस्त रहेगी.

तन के साथ मन का स्वास्थ्य है जरूरी

वो ठीक है माँ पर सिर्फ तन ही तो सब कुछ नहीं होता मन की खुशी भी तो कोई चीज़ होती है न. आखिर कब तक वह अपने माता-पिता के अरमानों के बोझ तले दब कर ऐसी ज़िन्दगी जी सकेगी ?  जब कि वह स्वयं तो वाइल्ड लाइफ सफारी गाइड बनना चाहती है.

उसने स्वयं बताया तुम्हें कि वह गाइड बनना चाहती है ?

हाँ मॉम, कभी-कभी जब लेक्चर ख़त्म होने के बाद दूसरे लेक्चर के बीच गैप होता है तब वह हमसे बात करती है और अपने मन की बताती है.

ह्म्म्म , पर बेटी आज जो सैक्रिफाइस वह कर रही है इसका उसे भविष्य में फ़ायदा होगा.

मन मारकर कोई कैसे जिए

पर मॉम किसे पता वह जितनी मेहनत कर रही है इसका उसे फायदा ही न हो क्यूंकि उसका मन तो कुछ और करने का है, वह सिर्फ अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन कर रही है.  आखिर कब तक अपना मन मारकर यह सब सीखती रहेगी ? अभी तो समय कम पड़ रहा है वर्ना उसकी मॉम उसे कत्थक डांस क्लास और जॉइन करवाएंगी.

वो क्यूँ ?

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अरे ! मॉम माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय की छवि देखती हैं उसकी मॉम उसमें.

विद्रोह करना चाहिए

तो तुम्हारे हिसाब से उसे यह सब नहीं करना चाहिए ? अपने माता-पिता के सामने विद्रोह करना चहिये ?

हाँ बिलकुल करना चाहिए . माना कि उसके माता-पिता पढ़े-लिखे हैं, अच्छा कमाते हैं दोनों वर्किंग हैं, किसी चीज़ की कोई कमी नहीं लेकिन वे अपने सपनों का बोझ अपनी बेटी पर नहीं लाद सकते.

मैं ये कहूंगी कि वे पढ़े लिखे हैं, लेकिन समझदार नहीं.

ये क्या कह रही हो तुम ? मैं ने कहा.

छुप-छुप कर शौक पूरे करते हैं

मॉम यदि वे समझदार होते तो अपनी बेटीकी खूबियों को पहचानते. मालूम है वह फ्री पीरियड में लायब्रेरी जाती है और वहां अफ्रीका के जंगलों और जानवरों के बारे में पढ़ती है, हम लोगों से फोन लेकर इंटरनेट पर वाइल्ड लाइफ सर्फ़ करती है. वह सब करते समय उसके चेहरे पर अलग ही मुस्कराहट होती है. हम सभी सहेलियां उसकी इस मामले में बहुत मदद करती हैं. हम अपने फोन उसे दिया करते हैं ताकि वह इंटरनेट का इस्तेमाल कर सके. उसके पैरंट्स ने उसके फोन पर तो ट्रैकर लगा रखा है कहीं वह उनकी मर्जी के खिलाफ कुछ देख-पढ़ न ले.

ओह ! यह तो बहुत गलत है, आखिर वह भी तो फ्री पीरियड में अपनी मर्जी का कुछ तो करना  चाहती होगी.

वही तो मैं कह रही हूँ, मॉम आप कहती है कि वह सुन्दर है फिट है मैं कहती हूँ वह ताश के पत्तों में जो गुलाम का पत्ता है वह है. क्या आप उसके चेहरे की उदासी नहीं पढ़ पातीं ?

तो तुम क्या कहती हो उसे अपने माता-पिता से झगड़ा करना चाहिए ?

मेरी ज़िंदगी मेरी मर्जी

नहीं मॉम, उसे झगड़ा नहीं करना चहिये लेकिन उनके सपनों के बोझ तले अपने जीवन को नष्ट भी नहीं करना चाहिए.बल्कि अपने  पसंद के फील्ड की पूरी जानकारी लेकर अपने माता-पिता से बातचीत करनी चाहिए. वह जंगल और जानवरों से प्रेम करती है, माना कि यह फील्ड नया है जिसकी जानकारी उसके माता-पिता को नहीं. शायद हम जैसे लोग आमतौर पर इस फील्ड में नहीं जाते. पर वे स्वयं ही तो उसे खास बनाना चाहते हैं.

हर फील्ड में है स्कोप

नया है शायद इसलिए वे डरते हों कि भविष्य में वह क्या करेगी ? लेकिन हर फील्ड में कुछ न कुछ स्कोप तो होता ही है. फिर आजकल तो टूरिज्म इंडस्ट्री खूब फल-फूल रही है. नैशनल जियोग्राफिक चैनल, डिस्कवरी चैनल पर यह सब कितना आता है. वह किसी ख़ास विषय या जानवर पर रिसर्च भी कर सकती है. किन्तु आप लोगों को यह सब बताना फ़िज़ूल है. आप लोग तो  लकीर के फ़कीर बने रहना चाहते हैं. जैसे जो सब आपने किया या सोचा उसके अलावा दुनिया में कुछ और अच्छा है ही नहीं.

अच्छी लडकी की परिभाषा 

मुझे तो डर है कि मायरा कभी स्ट्रेस और फ्रस्टेशन में पढ़ना-लिखना ही न छोड़ दे.

नहीं वह अच्छी लडकी है वह ऐसा नहीं करेगी कभी.

“अच्छी लडकी माय फुट” मॉम बस पैरेंट्स कहें वो ही करो तब ही अच्छी लड़की होती है ? मैं क्या बुरी लडकी हूँ. लेकिन मेरी अपनी ओपिनियन होती है, मैं रेस्पेक्ट करती हूँ अपनी ओपिनियन और अपनी चॉइस को. मैं अपने सपनों को साकार करने के लिए जब आँखें मूंदती हूँ मन ही मन कहती हूँ “यस आय विल डू इट” और उसके लिए निरंतर प्रयासरत हूँ. लेकिन आप लोगों ने अपने सपने मुझ पर लादे नहीं. मैं जो पढना चाहती हूँ उसकी छूट दी, हकीकत तो यह है कि सबकुछ मैं ने ही तय किया. जो मुझे कॉलेज में पढ़ाया जाता है मैं उसे एक दिन पहले ही घर में पढ़ लेती हूँ क्यूंकि मुझे वह सब अच्छा लगता है. क्यूंकि मुझे अपने विषय को जानने के लिए क्युसिओसिटी भी है. मुझे अपने विषय में ज्यादा सर नहीं खपाना पड़ता. इसीलिए आपको मेरी मेहनत नज़र भी नहीं आती और मैं समय निकाल कर मौज-मस्ती भी कर लेती हूँ.

समझना होगा माता-पिता को

हम्म बात तो तुम्हारी सही है, तुम अपनी सहेली को क्यूँ नहीं  समझाती कि वह अपने माता-पिता से बात करे और उन्हें बताये कि वह अपने पसंद का करियर चुनना चाहती है.

उन्हें समझा कर कोई फ़ायदा नहीं मॉम क्यूंकि उसके माता और पिता दोनों आपस में ही नहीं समझा पाए एक दूसरे को. बस दोनों अपनी जिद पर अड़े हैं कि एक के अनुसार बेटी मॉडलिंग करे और दूसरे के अनुसार हर वक़्त किताबों में सर घुसाए रखे. पहले उन्हें आपस में समझना जरूरी है और यह जानना जरूरी है कि उनकी बेटी क्या करना चाहती है पर वे दोनों इतने नासमझ हैं कि इस विषय पर बेटी से बातचीत ही नहीं करते, बस उसके लिए एक पगडंडी बना दी है और जैसे घोड़े की आँखों पर कुछ बाँध दिया जाता है कि वह साइड में न देखे बस आगे देखे वैसे ही उसे अपने माता-पिता की ऑंखें लेकर उस पगडंडी पर चलना है.

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“ह्म्म्म बात तो तुम सही कहती हो” मैं ने कहा.

तुम्हें लगता है कि मैं सही कहती हूँ तो तुम ही समझाओ उसकी मॉम व डैड को वर्ना किसी दिन वह कुछ गलत न कर बैठे और यदि विद्रोह कर दिया तो फिर वह उन दोनों से बहुत दूर न चली जाये. हो सकता है वह मॉडल या अफसर बन जाए किन्तु उसके माता-पिता की आँखें कब तक उसे राह दिखाएंगी. वह तो छुप-छुप कर वाइल्ड लाइफ सफारी को सर्च करती है और सोचती है एक बार माँ-बाप का सपना पूरा कर दे फिर अपना सपना पूरा करेगी. एक बार मॉडलिंग में चली भी जायेगी तो छोड़ देगी. या फिर किसी बड़ी कंपनी में अफसर बन गयी तो नौकरी छोड़ देगी. और यदि ये भी न हुआ तो पूरी ज़िंदगी कसमसाती रहेगी अपने अधूरे ख़्वाबों के साथ.

अपने सपनों को जिओ

मैं तो कहूंगी आखिर ज़िंदगी उस की है और उसे ही जीनी है उसे अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रयास करना चाहिए न कि अपने माता-पिता के अरमानों को जीना चाहिए.

Adolescence में बदलते रहते हैं मूड

रमा कालेज में पढ़ती है और अपनी पढ़ाई व कैरियर के प्रति जितनी सजग है, उतनी ही अपने दायित्वों के प्रति गंभीर भी है. इसीलिए उस के पेरैंट्स को उसे न तो कभी किसी बात के लिए टोकना पड़ा, न ही उन्हें उस के व्यवहार से कोई शिकायत है, लेकिन फिर भी अचानक उसे कभीकभी न जाने क्या हो जाता है. वह पढ़ाई करतेकरते बीच में ही उठ जाती है, उस का खाना खाने का मन नहीं करता. बस, वह एकांत चाहती है और बिना किसी कारण के उस का रोने का मन करता है.

वह सुबह जब भी उठती है तो उस का मूड बहुत अच्छा रहता है, वह सारा दिन खिलखिलाती रहती है पर शाम को उसे लगता है कि कुछ भी ठीक नहीं हुआ. अब छोटीछोटी बातों को ले कर उसे गुस्सा आने लगता है. किसी ने कुछ पूछा नहीं कि वह झुंझला पड़ती है, मानो सब उसे तंग करना चाहते हैं. उसे लगता है कि कोई उसे समझना ही नहीं चाहता.

बदलाव की उम्र

ऐसा केवल रमा के साथ ही नहीं, हर टीनएजर के साथ होता है. किशोरावस्था उम्र ही ऐसी है इस दौरान शरीर और मन दोनों में इतने बदलाव आते हैं कि मूड बदलना यानी मूड स्विंग होना नैचुरल है. अपनी आइडैंटिटी को ले कर चिंता, कालेज का उन्मुक्त वातावरण, अचानक ढेर सारी आजादी मिलने से सारी सोच में बदलाव आना, अपनी फिटनैस और ब्यूटी को ले कर सजगता आना और फ्रैंडशिप को अलग ढंग से जीना कुछ ऐसी बातें हैं जो उस समय किशोरों पर हावी हो जाती हैं. उन के साथ हारमोंस में होने वाले परिवर्तन की वजह से भी उन के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है. कभी वे खूब प्रफुल्लित दिखते हैं तो कभी अकारण उदास.

किशोरावस्था जिंदगी का सब से उथलपुथल मचाने वाला समय होता है. जब सारे शारीरिक हारमोनल और इमोशनल बदलाव होते हैं और अगर इस समय उन पर उचित ध्यान न दिया जाए या उन के मूड को समझते हुए उन से व्यवहार न किया जाए तो इमोशनल इंबैलेंस हो जाता है.

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काउंसलर हरमन सैनी का मानना है कि किशोरावस्था एक बहुत ही खतरनाक उम्र है क्योंकि इस समय बच्चे न तो बच्चे रह जाते हैं न ही वयस्क हुए होते हैं. अपने शरीर में आने वाले शारीरिक, हारमोनल और इमोशनल परिवर्तनों को वे न तो समझ पाते हैं न ही पहचान पाते हैं और इसी वजह से मूड स्विंग होते हैं, जो एक तरह से प्राकृतिक प्रक्रिया है. इस उम्र में उन के व्यवहार में भी अजीब सा बदलाव आ जाता है. कभी वे निर्णय नहीं ले पाते तो कभी अत्यधिक अधीर हो जाते हैं. आत्मविश्वास की कमी महसूस होती है और दूसरों की कोईर् भी बात सुनना उन्हें अच्छा नहीं लगता.

अधिकांश अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि बायोलौजिकल व इमोशनल परिवर्तन किशोरों के बदलते स्वभाव के कारण होते हैं. अगर आप के किशोर बेटेबेटी के अंदर कुछ अंतर आ रहा है और वह घर देर से आने लगा है या उस के स्वभाव का कोईर् पता नहीं होता कि कब क्या हो जाए तो संभवत: यह भी हो सकता है कि उसे किसी से प्यार हो गया है. साइकियाट्रिक यूनिवर्सिटी क्लीनिक के स्विट्जरलैंड के अनुसंधानकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि जो किशोर रोमांटिक किस्म के होते हैं, उन में मूड स्विंग की समस्या ज्यादा रहती है,

उन्हें नींद भी कम आती है और एकाग्रता बनाए रखना भी मुश्किल होता है. उन्होंने यह भी पाया कि इस दौरान किशोरों के अंदर जो मनोवैज्ञानिक परिवर्तन आते हैं, उन से उन की हथेलियों पर पसीना आता है, दिल की धड़कनें बेकाबू रहती हैं और जब वे उस के साथ होते हैं, जिसे वे प्यार करते हैं, तो उन का एनर्जी लैवल घटताबढ़ता रहता है. इमोशनल लैवल पर उन में पजैसिवनैस, उस की हर बात जानने की इच्छा व उस के बारे में ही हर वक्त सोचते रहना अच्छा लगने लगता है. यहां तक कि वे उस पर भावनात्मक रूप से अत्यधिक निर्भर भी हो जाते हैं.

अलग पहचान बनाने की चाह

बच्चों और बड़ों में तनाव को कम करने वाले जिस हारमोन को शरीर पैदा करता है, वह एक नैचुरल नींद की दवा की तरह काम करता है, इस का किशोरों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. इस वजह से वे बहुत मूडी हो जाते हैं. यही नहीं इस दौरान जब शरीर सैक्स हारमोंस बनाता है तो शारीरिक बदलावों के कारण भी किशोर परेशान रहने लगते हैं. वे एक तरह की दुविधा में रहते हैं जो उन के अंदर सुरक्षा की भावना भर देती है, जिस से वे एक ओर तो अपनेआप से लड़ते हैं और दूसरी ओर वयस्कों के जवाबों से परेशान रहते हैं इसीलिए उन की मन:स्थिति पलपल बदलती रहती है.

किशोरावस्था वह अवस्था है जब वे वयस्कों की दुनिया से हट कर अपनी एक पहचान बनाने की चाह रखने लगते हैं, यह वजह भी उन के भीतर पैदा होने वाली दुविधा का एक कारण है. उन के आसपास की दुनिया लगातार बदलती रहती है और उस प्रैशर का सामना करना कठिन लगने लगता है तो परेशान रहने लगते हैं. मूड के बदलते रहने से उन्हें लगता है कि कुछ भी चीज उन के नियंत्रण में नहीं है जो किसी के लिए भी एक असहज स्थिति हो सकती है.

काउंसलर पल्लवी गिलानी का कहना है, ’’वयस्कों को किशोरों के सामने आदर्श व उदाहरण बनाना होगा. उन के साथ जैसे को तैसा वाली नीति वाला व्यवहार करना ठीक नहीं होगा. पानी की बनिस्बत उन के साथ बहें. उन्हें उचित व्यवहार करना सिखाएं और उन के अनुचित व्यवहार पर कोईर् गलत टिप्पणी न करें. टीनएजर जानते हैं कि क्या गलत है और क्या सही. केवल उन्हें ऐक्सपैरिमैंट करना पसंद होता है. इसलिए उन्हें ऐसा आजादी वाला माहौल दें कि वे अपने ऐक्सपैरिमैंट्स को आप के साथ बांटें. याद रखें कि यह एक अस्थायी दौर है और जल्द ही बीत जाएगा.’’

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पेरैंट्स के लिए यह समझना आवश्यक है कि किशोरावस्था में मूड स्विंग होना एक नैचुरल प्रक्रिया है. उन के लिए इस समय धैर्य रखना और समस्या की तह तक जाना आवश्यक है. उन्हें इस समय अपने बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए, हालांकि इस समय किशोर अकेला रहना या अपने मित्रों के साथ रहना ज्यादा पसंद करते हैं पेरैंट्स का उन से कुछ भी पूछना उन्हें किसी हस्तक्षेप से कम नहीं लगता. उन के साथ कम्यूनिकेशन बनाए रखें और बिना किसी विवाद में पड़े खुले मन से उन की बातों व विचारों को सुनें. इस समय उन के मन में क्या चल रहा है, यह जानना जरूरी है, तभी आप उन का विश्वास जीत कर उन से हर बात शेयर करने को कह सकते हैं.

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