Short Social Story : विविध परंपरा

Short Social Story : नगरनिगम के विभिन्न विभागों में काम कर के रिटायर होने के बाद दीनदयाल आज 6 माह बाद आफिस में आए थे. उन के सिखाए सभी कर्मचारी अपनीअपनी जगहों पर थे. इसलिए सभी ने दीनदयाल का स्वागत किया. उन्होंने हर एक सीट पर 10-10 मिनट बैठ कर चायनाश्ता किया. सीट और काम का जायजा लिया और फिर घर आ कर निश्चिंत हो गए कि कभी उन का कोई काम नगरनिगम का होगा तो उस में कोई दिक्कत नहीं आएगी.

एक दिन दीनदयाल बैठे अखबार पढ़ रहे थे, तभी उन की पत्नी सावित्री ने कहा, ‘‘सुनते हो, अब जल्द बेटे रामदीन की शादी होने वाली है. नीचे तो बड़े बेटे का परिवार रह रहा है. ऐसा करो, छोटे के लिए ऊपर मकान बनवा दो.’’

दीनदयाल ने एक लंबी सांस ले कर सावित्री से कहा, ‘‘अरे, चिंता काहे को करती हो, अपने सिखाएपढ़ाए गुरगे नगर निगम में हैं…हमारे लिए परेशानी क्या आएगी. बस, हाथोंहाथ काम हो जाएगा. वे सब ठेकेदार, लेबर जिन के काम मैं ने किए हैं, जल्दी ही हमारा पूरा काम कर देंगे.’’

‘‘देखा, सोचने और काम होने में बहुत अंतर है,’’ सावित्री बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि आज ही आप नगर निवेशक शर्माजी से बात कर के नक्शा बनवा लीजिए और पास करवा लीजिए. इस बीच सामान भी खरीदते जाइए. देखिए, दिनोंदिन कीमतें बढ़ती ही जा रही हैं.’’

‘‘सावित्री, तुम्हारी जल्दबाजी करने की आदत अभी भी गई नहीं है,’’ दीनदयाल बोले, ‘‘अब देखो न, कल ही तो मैं आफिस गया था. सब ने कितना स्वागत किया, अब इस के बाद भी तुम शंका कर रही हो. अरे, सब हो जाएगा, मैं ने भी कोई कसर थोड़ी न छोड़ी थी. आयुक्त से ले कर चपरासी तक सब मुझ से खुश थे. अरे, उन सभी का हिस्सा जो मैं बंटवाता था. इस तरह सब को कस कर रखा था कि बिना लेनदेन के किसी का काम होता ही नहीं था और जब पैसा आता था तो बंटता भी था. उस में अपना हिस्सा रख कर मैं सब को बंटवाता था.’’

दीनदयाल की बातों से सावित्री खुश हो गई. उसे  लगा कि उस के पति सही कह रहे हैं. तभी तो दीनदयाल की रिटायरमेंट पार्टी में आयुक्त, इंजीनियर से ले कर चपरासी तक शामिल हुए थे और एक जुलूस के साथ फूलमालाओं से लाद कर उन्हें घर छोड़ कर गए थे.

दीनदयाल ने सोचा, एकदम ऊपर स्तर पर जाने के बजाय नीचे स्तर से काम करवा लेना चाहिए. इसलिए उन्होंने नक्शा बनवाने का काम बाहर से करवाया और उसे पास करवाने के लिए सीधे नक्शा विभाग में काम करने वाले हरीशंकर के पास गए.

हरीशंकर ने पहले तो दीनदयालजी के पैर छू कर उन का स्वागत किया, लेकिन जब उसे मालूम हुआ कि उन के गुरु अपना नक्शा पास करवाने आए हैं तब उस के व्यवहार में अंतर आ गया. एक निगाह हरीशंकर ने नक्शे पर डाली फिर उसे लापरवाही से दराज में डालते हुए बोला, ‘‘ठीक है सर, मैं समय मिलते ही देख लूंगा,. ऐसा है कि कल मैं छुट्टी पर रहूंगा. इस के बाद दशहरा और दीवाली त्योहार पर दूसरे लोग छुट्टी पर चले जाते हैं. आप ऐसा कीजिए, 2 माह बाद आइए.’’

दीनदयाल उस की मेज के पास खडे़ रहे और वह दूसरे लोगों से नक्शा पास करवाने पर पैसे के लेनदेन की बात करने लगा. 5 मिनट वहां खड़ा रहने के बाद दीनदयाल वापस लौट आए. उन्होंने सोचा नक्शा तो पास हो ही जाएगा. चलो, अब बाकी लोगों को टटोला जाए. इसलिए वह टेंडर विभाग में गए और उन ठेकेदारों के नाम लेने चाहे जो काम कर रहे थे या जिन्हें टेंडर मिलने वाले थे.

वहां काम करने वाले रमेश ने कहा, ‘‘सर, आजकल यहां बहुत सख्ती हो गई है और गोपनीयता बरती जा रही है, इसलिए उन के नाम तो नहीं मिल पाएंगे लेकिन यह जो ठेकेदार करीम मियां खडे़ हैं, इन से आप बात कर लीजिए.’’

रमेश ने करीम को आंख मार कर इशारा कर दिया और करीम मियां ने दीनदयाल के काम को सुन कर दोगुना एस्टीमेट बता दिया.

आखिर थकहार कर दीनदयालजी घर लौट आए और टेलीविजन देखने लगे. उन की पत्नी सावित्री ने जब काम के बारे में पूछा तो गिरे मन से बोले, ‘‘अरे, ऐसी जल्दी भी क्या है, सब हो जाएगा.’’

अब दीनदयाल का मुख्य उद्देश्य नक्शा पास कराना था. वह यह भी जानते थे कि यदि एक बार नीचे से बात बिगड़ जाए तो ऊपर वाले उसे और भी उलझा देते हैं. यही सब करतेकराते उन की पूरी नौकरी बीती थी. इसलिए 2 महीने इंतजार करने के बाद वह फिर हरीशंकर के पास गए. अब की बार थोडे़ रूखेपन से हरीशंकर बोला, ‘‘सर, काम बहुत ज्यादा था, इसलिए आप का नक्शा तो मैं देख ही नहीं पाया हूं. एकदो बार सहायक इंजीनियर शर्माजी के पास ले गया था, लेकिन उन्हें भी समय नहीं मिल पाया. अब आप ऐसा करना, 15 दिन बाद आना, तब तक मैं कुछ न कुछ तो कर ही लूंगा, वैसे सर आप तो जानते ही हैं, आप ले आना, काम कर दूंगा.’’

दीनदयाल ने सोचा कि बच्चे हैं. पहले भी अकसर वह इन्हें चायसमोसे खिलापिला दिया करते थे. इसलिए अगली बार जब आए तो एक पैकेट में गरमागरम समोसे ले कर आए और हरीशंकर के सामने रख दिए.

हरीशंकर ने बाकी लोगों को भी बुलाया और सब ने समोसे खाए. इस के बाद हरीशंकर बोला, ‘‘सर, मैं ने फाइल तो बना ली है लेकिन शर्माजी के पास अभी समय नहीं है. वह पहले आप के पुराने मकान का निरीक्षण भी करेंगे और जब रिपोर्ट देंगे तब मैं फाइल आगे बढ़ा दूंगा. ऐसा करिए, आप 1 माह बाद आना.’’

हारेथके दीनदयाल फिर घर आ कर लेट गए. सावित्री के पूछने पर वह उखड़ कर बोले, ‘‘देखो, इन की हिम्मत, मेरे से ही सीखा और मुझे ही सिखा रहे हैं, वह नक्शा विभाग का हरीशंकर, जिसे मैं ने उंगली पकड़ कर चलाया था, 4 महीने से मुझे झुला रहा है. अरे, जब विभाग में आया था तब उस के मुंह से मक्खी नहीं उड़ती थी और आज मेरी बदौलत वह लखपति हो गया है और मुझे ही…’’

सावित्री ने कहा, ‘‘देखोजी, आजकल ‘बाप बड़ा न भइया, सब से बड़ा रुपइया,’ और जो परंपराएं आप ने विभाग मेें डाली हैं, वही तो वे भी आगे बढ़ा रहे हैं.’’

परंपरा की याद आते ही दीनदयाल चिंता मुक्त हो गए. अगले दिन 5000 रुपए की एक गड्डी ले कर वह हरीशंकर के पास गए और उस की दराज में चुपचाप रख दी.

हरीशंकर ने खुश हो कर दीनदयाल की फाइल निकाली और चपरासी से कहा, ‘‘अरे, सर के लिए चायसमोसे ले आओ.’’

फिर दीनदयाल से वह बोला, ‘‘सर, कल आप को पास किया हुआ नक्शा मिल जाएगा.’’

Short Stories 2025 : तेरी मेरी जिंदगी

Short Stories 2025 : रामस्वरूप तल्लीन हो कर किचन में चाय बनाते हुए सोच रहे हैं कि अब जीवन के 75 साल पूरे होने को आए. कितना कुछ जाना, देखा और जिया इतने सालों में, सबकुछ आनंददायी रहा. अच्छेबुरे का क्या है, जीवन में दोनों का होना जरूरी है. इस से आनंद की अनुभूति और गहरी होती है. लेकिन सब से गहरा तो है रूपा का प्यार. यह खयाल आते ही रामस्वरूप के शांत चेहरे पर प्यारी सी मुसकान बिखर गई. उन्होंने बहुत सफाई से ट्रे में चाय के साथ थोड़े बिस्कुट और नमकीन टोस्ट भी रख लिए. हाथ में ट्रे ले कर अपने कमरे की तरफ जाते हुए रेडियो पर बजते गाने के साथसाथ वे गुनगुना भी रहे हैं ‘…हो चांदनी जब तक रात, देता है हर कोई साथ…तुम मगर अंधेरे में न छोड़ना मेरा हाथ …’

कमरे में पहुंचते ही बोले, ‘‘लीजिए, रूपा, आप की चाय तैयार है और याद है न, आज डाक्टर आने वाला है आप की खिदमत में.’

दोनों की उम्र में 5 साल का फर्क है यानी रामस्वरूप से रूपा 5 साल छोटी हैं पर फिर भी पूरी जिंदगी उन्होंने कभी तू कह कर बात नहीं की हमेशा आप कह कर ही बुलाया.

दोस्त कई बार मजाक बनाते कि पत्नी को आप कहने वाला तो यह अलग ही प्राणी है, ज्यादा सिर मत चढ़ाओ वरना बाद में पछताना पड़ेगा. लेकिन रामस्वरूप को कोई फर्क नहीं पड़ा. वे पढ़ेलिखे समझदार इंसान थे और सरकारी नौकरी भी अच्छी पोस्ट वाली थी. रिटायर होने के बाद दोनों पतिपत्नी अपने जीवन का आनंद ले रहे थे.

अचानक एक दिन सुबह बाथरूम में रूपा का पैर फिसल गया और उन के पैर की हड्डी टूट गई. इस उम्र में हड्डी टूटने पर रिकवरी होना मुश्किल हो जाता है. 4 महीनों से रामस्वरूप अपनी रूपा का पूरी तरह खयाल रख रहे हैं.

रूपा ने रामस्वरूप से कहा, ‘‘मुझे बहुत बुरा लगता है आप को मेरी इतनी सेवा करनी पड़ रही है, यों आप रोज सुबह मेरे लिए चायनाश्ता लाते हैं और बैठेबैठे पीने में मुझे शर्म आती है.’’

‘‘यह क्या कह रही हैं आप? इतने सालों तक आप ने मुझे हमेशा बैड टी पिलाई है और मेरा हर काम बड़ी कुशलता और प्यार के साथ किया है. मुझे तो कभी बुरा नहीं लगा कि आप मेरा काम कर रही हैं. फिर मेरा और आप का ओहदा बराबरी का है. मैं पति हूं तो आप पत्नी हैं. हम दोनों का काम हमारा काम है, आप का या मेरा नहीं. चलिए, अब फालतू बातें सोचना बंद कीजिए और चाय पीजिए,’’ रामस्वरूप ने प्यार से उन्हें समझाया.

4 महीनों में इन दोनों की दुनिया एकदूसरे तक सिमट कर रह गई है. रामस्वरूप ने दोस्तों के पास आनाजाना छोड़ दिया और रूपा का आसपड़ोस की सखीसहेलियों के पास बैठनाउठना बंद सा हो गया. अब कोई आ कर मिल जाता है तो ठीक है नहीं तो दोनों अपनी दुनिया में मस्त रहते हैं.

रामस्वरूप का काम सिर्फ रूपा का खयाल रखना है और रूपा भी यही चाहती हैं कि रामस्वरूप उन के पास बैठे रहें.

कामवाली कमला घर की साफसफाई और खाना बना जाती है जिस से घर का काम सही तरीके से हो जाता है. बस, कमला की ज्यादा बोलने की आदत है. हमेशा आसपड़ोस की बातें करने बैठ जाती है रूपा के पास. कभी पड़ोस वाले गुप्ताजी की बुराई तो कभी सामने वाले शुक्लाजी की कंजूसी की बातें और खूब मजाक बनाती है.

रामस्वरूप यदि आसपास ही होते तो कमला को टोक देते थे, ‘‘ये क्या तुम बेसिरपैर की बातें करती रहती हो. अच्छी बातें किया करो. थोड़ा रूपा के पास बैठ कर संगीत वगैरह सुना करो. पूरा जीवन क्या यों ही लोगों के घर के काम करते ही बीतेगा?’’ इस पर कमला जवाब देती, ‘‘अरे साबजी, अब हम को क्या करना है, यही तो हमारी रोजीरोटी है और आप जैसे लोगों के घर में काम करने से ही मुझे तो सुकून मिल जाता है.

‘‘आप दोनों की सेवा कर के मुझे सुख मिल गया है. अब आप बताएं और क्या चाहिए इस जीवन में?’’

रामस्वरूप बोले, ‘‘कमला, बातें बनाने में तो तुम माहिर हो, बातों में कोई नहीं जीत सकता तुम से. जाओ, अब खाना बना लो, काफी बातें हो गई हैं. कहीं आगे के काम करने में तुम्हें देर न हो जाए.’’

पूरा जीवन भागदौड़ में गुजार देने के बाद अब भी दोनों एकदूसरे के लिए जी रहे हैं और हरदम यही सोचते हैं कि कुदरत ने प्यार, पैसा, संपन्नता सब दिया है पर फिर भी बेऔलाद क्यों रखा?

काफी सालों तक इस बात का अफसोस था दोनों को लेकिन 2-4 साल पहले जब पड़ोस के वर्माजी का दर्द देखा तो यह तकलीफ भी कम हो गई क्योंकि अपने इकलौते बेटे को बड़े अरमानों के साथ विदेश पढ़ने भेजा था वर्माजी ने. सोचा था जो सपने उन की जवानी में घर की जिम्मेदारियों की बीच दफन हो गए थे, अपने बेटे की आंखों से देख कर पूरे करेंगे. पर बेटा तो वहीं का हो कर रह गया. वहीं शादी भी कर ली और अपने बूढ़े मांबाप की कोई खबर भी नहीं ली. तब दोनों ने सोचा, ‘इस से तो हम बेऔलाद ही अच्छे, कम से कम यह दुख तो नहीं है कि बेटा हमें छोड़ कर चला गया है.’

आज सुबह की चाय के साथ दोनों अपने जीवन के पुराने दौर में चले गए. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही परंपरागत तरीके से लड़कालड़की देखना और फिर सगाई व शादी कर के किस तरह से दोनों के जीवन की डोर बंधी.

जीवन की शुरुआत में घरपरिवार के प्रति सब की जिम्मेदारी होने के बावजूद रिश्तेनाते, रीतिरिवाज घरपरिवार से दूर हमारी दिलों की अलग दुनिया थी, जिसे हम अपने तरीके से जीते थे और हमारी बातें सिर्फ हमारे लिए होती थीं. अनगिनत खुशनुमा लमहे जो हम ने अपने लिए जीए वे आज भी हमारी जिंदगी की यादगार सौगात हैं और आज भी हम सिर्फ अपने लिए जी रहे हैं.

तभी रामस्वरूप बोले, ‘‘वैसे रूपा, अगर मैं बीमार होता तो आप को मेरी सेवा करने में कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि आप औरत हो और हर काम करने की आप की आदत और क्षमता है लेकिन मुझे भी कोई तकलीफ नहीं है आप की सेवा करने में, बल्कि यही तो वक्त है उन वचनों को पूरा करने का जो अग्नि को साक्षी मान कर फेरे लेते समय लिए थे.

‘‘वैसे रूपा, जिंदगी की धूप से दूर अपने प्यारे छोटे से आशियाने में हर छोटीबड़ी खुशी को जीते हुए इतने साल कब निकल गए, पता ही नहीं चला. ऐसा नहीं है कि जीवन में कभी कोई दुख आया ही नहीं. अगर लोगों की नजरों से सोचें तो बेऔलाद होना सब से बड़ा दुख है पर हम संतुष्ट हैं उन लोगों को देख कर जो औलाद होते हुए भी ओल्डएज होम या वृद्धाश्रमों में रह रहे हैं या दुखी हो कर पलपल अपने बच्चों के आने का इंतजार कर रहे हैं, जो उन्हें छोड़ कर कहीं और बस गए हैं.

‘‘उम्र के इस मोड़ पर आज भी हम एकदूसरे के साथ हैं, यह क्या कम खुशी की बात है. लीजिए, आज मैं ने आप के लिए एक खत लिखा है. 4 दिन बाद हमारी शादी की सालगिरह है पर तब तक मैं इंतजार नहीं कर सका :

हजारों पल खुशियों के दिए,

लाखों पल मुसकराहट के,

दिल की गहराइयों में छिपे

वे लमहे प्यार के,

जिस पल हर छोटीबड़ी

ख्वाहिश पूरी हुई,

हर पल मेरे दिल को

शीशे सी हिफाजत मिली

पर इन सब से बड़ा एक पल,

एक वह लमहा…

जहां मैं और आप नहीं,

हम बन जाते हैं.’’

रूपा उस खत को ले कर अपनी आंखों से लगाती है, तभी डाक्टर आते हैं. आज उन का प्लास्टर खुलने वाला है. दोनों को मन ही मन यह चिंता है कि पता नहीं अब डाक्टर चलनेफिरने की अनुमति देगा या नहीं.

डाक्टर कहता है, ‘‘माताजी, अब आप घर में थोड़ाथोड़ा चलना शुरू कर सकती हैं. मैं आप को कैल्शियम की दवा लिख देता हूं जिस से इस उम्र में हड्डियों में थोड़ी मजबूती बनी रहेगी.

‘‘बहुत अच्छी और आश्चर्य की बात यह है कि इस उम्र में आप ने काफी अच्छी रिकवरी कर ली है. मैं जानता हूं यह रामस्वरूपजी के सकारात्मक विचार और प्यार का कमाल है. आप लोगों का प्यार और साथ हमेशा बना रहे, भावी पीढ़ी को त्याग, पे्रम और समर्पण की सीख देता रहे. अब मैं चलता हूं, कभीकभी मिलने आता रहूंगा.’’

आज दोनों ने जीवन की एक बड़ी परीक्षा पास कर ली थी, अपने अमर प्रेम के बूते पर और सहनशीलता के साथ.

Short Best Story : उलझन

Short Best Story : ‘‘मम्मी, आप को फोटो कैसी लगी?’’ कनिका ने पूछा, ‘‘अभिषेक कैसा लगा, अच्छा लगा न, बताओ न मम्मी… अभिषेक अच्छा है न…’’

कनिका लगातार फोन पर पूछे जा रही थी पर प्रेरणा के मुंह में मानो दही जम गया हो. एक भी शब्द मुंह से नहीं निकल रहा था.

‘‘आप तो कुछ बोल ही नहीं रही हो मम्मी, फोन पापा को दो,’’ कनिका ने तुरंत कहा.

प्रेरणा की चुप्पी कनिका को इस वक्त बिलकुल भी नहीं भा रही थी. उसे तो बस अपनी बात का जवाब तुरंत चाहिए था.

‘‘पापा, अभिषेक कैसा लगा?’’ कनिका ने कहा, ‘‘मैं ने उस के पापा व मम्मी की फोटो ईमेल की थी…आप ने देखी, पापा…’’ कनिका की खुशी उस की बातों से साफ झलक रही थी.

‘‘हां, बेटे, अभिषेक अच्छा लगा है अब तुम वापस इंडिया आ जाओ, बाकी बातें तब करेंगे,’’ अनिकेत ने कनिका से कहा.

कनिका एम. टैक करने अमेरिका गई थी. वहीं पर उस की मुलाकात अभिषेक से हुई थी. दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला. 2 साल के बाद दोनों इंडिया वापस आ रहे थे. आने से पहले कनिका सब को अभिषेक के बारे में बताना चाह रही थी.

सच में नया जमाना है. लड़का हो या लड़की, अपना जीवनसाथी खुद चुनना शर्म की बात नहीं रही. सचमुच नई पीढ़ी है.

कनिका जिद किए जा रही थी, ‘‘पापा, बताइए न प्लीज, अभिषेक कैसा लगा…मम्मी तो कुछ बोल ही नहीं रही हैं, आप ही बता दो न…’’

‘‘कनिका, जिद नहीं करते बेटा, यहां आ कर ही बात होगी,’’ अनिकेत ने कहा.

पापा की आवाज तेज होती देख कनिका ने चुप रहना ही ठीक समझा.

‘‘तुम्हें अभिषेक कैसा लगा? लड़का देखने में तो ठीक लग रहा है. परिवार भी ठीकठाक है. इस बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’ अनिकेत ने फोन रखते हुए प्रेरणा से पूछा.

‘‘मुझे नहीं पता,’’ कह कर प्रेरणा रसोई में चली गई.

‘‘अरे, पता नहीं का क्या मतलब? परसों कनिका और अभिषेक इंडिया आ रहे हैं. हमें कुछ सोचना तो पड़ेगा न,’’ अनिकेत बोले जा रहे थे.

पर अनिकेत को क्या पता था कि जिस अभिषेक के परिवार के बारे में वे प्रेरणा से पूछ रहे हैं उस के बारे में वह कल रात से ही सोचे जा रही थी.

कल इंटरनैट पर प्रेरणा ने कनिका द्वारा भेजी गई अभिषेक और उस के परिवार की फोटो देखी तो एकदम हैरान हो गई. खासकर यह जान कर कि अभिषेक, कपिल का बेटा है. वह मन ही मन खीझ पड़ी कि कनिका को भी पूरी दुनिया में यही लड़का मिला था. उफ, अब मैं क्या करूं?

अभिषेक के साथ कपिल को देख कर प्रेरणा परेशान हो उठी थी.

‘‘अरे, प्रेरणा, देखो दूध उबल कर गिर रहा है, जाने किधर खोई हुई हो…’’ अनिकेत यह कहते हुए रसोई में आ गए और पत्नी को इस तरह खयालों में डूबा हुआ देख कर उन को भी चिंता हो रही थी.

‘‘प्रेरणा, तुम शायद कनिका की बात से परेशान हो. डोंट वरी, सब ठीक हो जाएगा,’’ कनिका के इस समाचार से अनिकेत भी परेशान थे पर आज के जमाने को देख कर शायद वे कुछ हद तक पहले से ही तैयार थे, फिर पिता होने के नाते कुछ हद तक परेशान होना भी वाजिब था.

अनिकेत को क्या पता कि प्रेरणा परेशान ही नहीं हैरान भी है. आज प्रेरणा अपनी बेटी से नाराज नहीं बल्कि एक मां को अपनी बेटी से ईर्ष्या हो रही थी. पर क्यों? इस का जवाब प्रेरणा के ही पास था.

किचन से निकल कर प्रेरणा कमरे में पलंग पर जा आंखें बंद कर लेटी तो कपिल की यादें किसी छायाचित्र की तरह एक के बाद एक कर उभरने लगीं. प्रेरणा उस दौर में पहुंच गई जब उस के जीवन में बस कपिल का प्यार ही प्यार था.

कपिल और प्रेरणा दोनों पड़ोसी थे. घर की दीवारों की ही तरह उन के दिल भी मिले हुए थे.

छत पर घंटों खड़े रहना. दूर से एकदूसरे का दीदार करना. जबान से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं होती थी. आंखें ही हाले दिल बयां करती थीं.

निश्चित समय पर आना और अनिश्चित समय पर जाना. न कुछ कहना न कुछ सुनना. अजब प्रेम कहानी थी प्रेरणा और कपिल की. बरसाती बूंदें भी दोनों की पलकें नहीं झपका पाती थीं. एक दिन भी एकदूसरे को देखे बिना वे नहीं रह सकते थे.

यद्यपि कपिल ने कई बार प्रेरणा से बात करने की कोशिश की पर संकोच ने हर बार प्रेरणा को आगे बढ़ने से रोक दिया. कभी रास्ते में आतेजाते अगर कपिल पे्ररणा के करीब आता भी तो प्रेरणा का दिल तेजी से धड़कने लगता और तुरंत वह वहां से चली जाती. जोरजबरदस्ती कपिल को भी पसंद नहीं थी.

प्रेरणा की अल्हड़ जवानी के हसीन खयालों में कपिल ही कपिल समाया था. सारीसारी रात वह कपिल के बारे में सोचती और उस की बांहों में झूलने की तमन्ना अकसर उस के दिल में रहती थी पर कपिल के करीब जाने का साहस प्रेरणा में न था. स्वभाव से संकोची प्रेरणा बस सपनों में ही कपिल को छू पाती थी.

वह होली की सुबह थी. चारोें तरफ गुलाल ही गुलाल बिखर रहा था. लाल, पीला, नीला, हरा…रंग अपनेआप में चमक रहे थे. सभी अपनेअपने दोस्तों को रंग में नहलाने में जुटे हुए थे. इस कालोनी की सब से अच्छी बात यह थी कि सारे त्योहार सब लोग मिलजुल कर मनाते थे. होली के त्योहार की तो बात ही अलग है. जिस ने ज्यादा नानुकर की वह टोली का शिकार बन जाता और रंगों से भरे ड्रम में डुबो दिया जाता.

प्रेरणा अपनी टोली के साथ होली खेलने में मशगूल थी तभी प्रेरणा की मां ने उसे आवाज दे कर कहा था :

‘प्रेरणा, ऊपर छत पर कपड़े सूख रहे हैं, जा और उतार कर नीचे ले आ, नहीं तो कोई भी पड़ोस का बच्चा रंग फेंक कर कपड़े खराब कर देगा.’

प्रेरणा फौरन छत की ओर भागी. जैसे ही उस ने मां की साड़ी को तार से उतारना शुरू किया कि किसी ने पीछे से आ कर उस के चेहरे को लाल गुलाल से रंग दिया.

प्रेरणा ने घबरा कर पीछे मुड़ कर देखा तो कपिल को रंग से भरे हाथों के साथ पाया. एक क्षण को प्रेरणा घबरा गई. कपिल का पहला स्पर्श…वह भी इस तरह.

‘‘यह क्या किया तुम ने? मेरा सारा चेहरा…’’ पे्ररणा कुछ और बोलती इस से पहले कपिल ने गुनगुनाना शुरू कर दिया…

‘‘होली क्या है, रंगों का त्योहार…बुरा न मानो…’’

कपिल की आंखों को देख कर लग रहा था कि आज वह प्रेरणा को नहीं छोड़ेगा.

‘‘क्या हो गया है तुम्हें? भांगवांग खा कर आए हो…’’ घबराई हुई प्रेरणा बोली.

‘‘नहीं, प्रेरणा, ऐसा कुछ नहीं है. मैं तो बस…’’ प्रेरणा का इस तरह का रिऐक्शन देख कर एक बार तो कपिल घबरा गया था.

पर आज कपिल पर होली का रंग खूब चढ़ा हुआ था. तार पर सूखती साड़ी का एक कोना पकड़ेपकड़े कब वह प्रेरणा के पीछे आ गया इस का एहसास प्रेरणा को अपने होंठों पर पड़ती कपिल की गरम सांसों से हुआ.

इतने नजदीक आए कपिल से दूर जाना आज प्रेरणा को भी गवारा नहीं था. साड़ी लपेटतेलपेटते कपिल और प्रेरणा एकदूसरे के अंदर समाए जा रहे थे.

कपिल के हाथ प्रेरणा के कंधे से उतर कर उस की कमर तक आ रहे थे…इस का एहसास उस को हो रहा था. लेकिन उन्हें रोकने की चेष्टा वह नहीं कर रही थी.

कपिल के बदन पर लगे होली के रंग धीरेधीरे प्रेरणा के बदन पर चढ़ते जा रहे थे. साड़ी में लिपटेलिपटे दोनों के बदन का रंग अब एक हो चला था.

शारीरिक संबंध चाहे पहली बार हो या बारबार, प्रेमीप्रेमिका के लिए रसपूर्ण ही होता है. जब तक प्रेरणा कपिल से बचती थी तभी तक बचती भी रही थी पर अब तो दोनों ही एक होने का मौका ढूंढ़ते थे और मौका उन्हें मिल भी जाता था. सच ही है जहां चाह होती है वहां राह भी मिल जाती है.

पर इस प्रेमकथा का अंत इस तरह होगा, यह दोनों ने नहीं सोचा था.

कपिल और प्रेरणा की लाख दुहाई देने पर भी कपिल की रूढि़वादी दादी उन के विवाह के लिए न मानीं और दोनों प्रेमी जुदा हो गए. घर वालों के खिलाफ जाना दोनों के बस की बात नहीं थी. 2 घर की छतों से शुरू हुई सालों पुरानी इस प्रेम कहानी का अंत भी दोनों छतों के किनारों पर हो गया था.

शायद यहीं आ कर नई पीढ़ी आगे निकल गई है. आज किसी कनिका और किसी अभिषेक को किसी से डरने की जरूरत नहीं है. अपना फैसला वे खुद करते हैं. मांबाप को सूचित कर दिया यही काफी है. यह तो कनिका और अभिषेक के भले संस्कारों का असर है जो इंडिया आ कर शादी कर रहे हैं. यों अगर वे अमेरिका में ही कोर्टमैरिज कर लेते तो भला कोई क्या कर लेता.

प्रेरणा की शादी अनिकेत से तय हो गई थी. न कोई शिकवा न गिला यों हुआ उन की प्रेमकथा का एक मूक अंत.

विदाई के समय प्रेरणा की नजरें घर की छत पर जा टिकीं, जहां कपिल को खडे़ देख कर उस के दिल में एक हूक सी उठी थी लेकिन चाहते हुए भी प्रेरणा की नजरें कुछ क्षण से ज्यादा कपिल पर टिकी न रह सकीं.

हर जख्म समय के साथ भर जाए यह जरूरी नहीं.

प्रेरणा को याद है. जब शादी के कुछ समय बाद कपिल से उस की मुलाकात मायके में हुई थी, वह कैसा बुझाबुझा सा लग रहा था.

‘कैसे हो कपिल?’ प्रेरणा ने कपिल के करीब आ कर पूछा.

न जाने कपिल को क्या हुआ कि वह प्रेरणा के सीने से चिपक कर रोने लगा. ‘काश, प्रेरणा हम समय पर बोल पाते. क्यों मैं ने हिम्मत नहीं दिखाई? पे्ररणा, इतनी कायरता भी अच्छी नहीं. तुम से बिछड़ कर जाना कि मैं ने क्या खो दिया.’

‘ओह कपिल…’ प्रेरणा भी रोने लगी.

चाहीअनचाही इच्छाओं के साथ प्रेरणा और कपिल का रिश्ता एक बार फिर से जुड़ गया. प्रेरणा के मायके के चक्कर ज्यादा ही लगने लगे थे.

अब प्रेरणा की दिलचस्पी फिर से कपिल में बढ़ती जा रही थी और अनिकेत में कम होती जा रही थी. पर अकसर टूर पर रहने वाले अनिकेत को प्रेरणा के बारबार मायके जाने का कारण अपनी व्यस्तता और उस को समय न देना ही लगता.

प्रेरणा और कपिल का यह रिश्ता उन्हें कहां ले जाएगा यह दोनों ही नहीं सोचना चाहते थे. बस, एक लहर के साथ वे बहते चले जा रहे थे.

शादी के पहले तो सब के अफेयर होते हैं, जो नाजायज तो नहीं पर जायज भी नहीं होते हैं. पर शादी के बाद के रिश्ते नाजायज ही कहलाएंगे. यह बात प्रेरणा को अच्छी तरह समझ में आ गई थी. कनिका के जन्म के बाद से ही प्रेरणा ने कपिल से संबंध खत्म करने का निर्णय ले लिया था. कनिका के जन्म के बाद पहली बार प्रेरणा अपने मायके आई थी. कमरे में प्रेरणा अपने और कनिका के कपड़े अलमारी में लगा रही थी कि अचानक कपिल ने पीछे से आ कर प्रेरणा को अपनी बांहों में भर लिया.

‘ओह, प्रेरणा कितने दिनों बाद तुम आई हो. उफ, ऐसा लगता है मानो बरसों बाद तुम्हें छू रहा हूं. प्रेरणा, तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो. तुम्हारा यह भरा हुआ बदन…सच में मां बनने के बाद तुम्हारी खूबसूरती और भी निखर गई है.’ और हर शब्दों के साथ कपिल की बांहों का कसाव बढ़ता जा रहा था.

इस वक्त घर में कोई नहीं है यह बात कपिल को पता थी, इस वजह से वह बिना डरे बोले जा रहा था.

प्रेरणा के इकरार का इंतजार किए बिना ही कपिल उस की साड़ी उतारने लगा. कंधे से पल्ला गिरते ही लाल रंग के ब्लाउज में प्रेरणा का बदन बहुत उत्तेजित लगने लगा जिसे देख कर कपिल मदहोश हुआ जा रहा था.

इस से पहले कि कपिल के हाथ प्रेरणा के ब्लाउज के हुक खोलते, एक झन्नाटेदार चांटा कपिल के गाल पर पड़ा. ‘यह क्या कर रहे हो कपिल, तुम्हें शर्म नहीं आती कि मेरी बेटी यहां पर लेटी है. अब मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता है.’ न जाने प्रेरणा में इतना परिवर्तन कैसे आ गया था, जो अपने ही प्यार का अपमान इस तरह से कर रही थी.

कपिल एक क्षण के लिए चौंक गया फिर बिना कुछ बोले, बिना कुछ पूछे वह तुरंत कमरे से बाहर निकल गया. शायद इतनी बेइज्जती के बाद उस ने वहां रुकना उचित न समझा. कपिल के जाते ही प्रेरणा फूटफूट कर रोने लगी. कपिल से रिश्ता खत्म करने का शायद उसे यही एक रास्ता दिखा था. कपिल से रिश्ता तोड़ना प्रेरणा के लिए आसान नहीं था पर आज प्रेरणा एक औरत बन कर नहीं बल्कि एक मां बन कर सोच रही थी. कल को उस के नाजायज संबंधों का खमियाजा उस की बेटी को न भोगना पड़े.

बच्चों को आदर्श की बातें बड़े तभी सिखा पाते हैं जब वे खुद उन के लिए एक आदर्श हों. जिन भावनाओं को प्रेरणा शादी के बाद भी नहीं छोड़ पाई, उन्हीं भावनाओं को अपनी औलाद के लिए त्यागना कितना आसान हो गया था.

उस के बाद प्रेरणा और कपिल की कोई मुलाकात नहीं हुई.

पर आज भी कपिल प्रेरणा के खयालों में रहता है और अनिकेत के साथ अंतरंग क्षणों में प्रेरणा को कपिल की यादों का एहसास होता है. वक्तबेवक्त कपिल की यादें प्रेरणा की आंखों को नम कर देती थीं.

कुछ रिश्ते यादों की धुंध में ही अच्छे लगते हैं. यह बात प्रेरणा अच्छी तरह जानती थी पर आज वही रिश्ते यादों की धुंध से निकल कर प्रेरणा को विचलित कर रहे थे.

जिस इनसान से प्रेरणा कभी प्रेम करती थी अब उसी का बेटा उस की बेटी के जीवन में आ गया था.

कैसे प्रेरणा कपिल का सामना कर पाएगी? कपिल के लिए जो भावनाएं आज भी उस के दिल में जीवित हैं उन भावनाओं को हटा कर एक नया रिश्ता कायम करना क्या उस के लिए संभव हो सकेगा? कैसे वह इन नए संबंधों को संभाल पाएगी? बरसों बाद अपने पहले प्यार की मिलनबेला का स्वागत करे या…

कैसे वह अपनी ही जाई बेटी की खुशियों का गला घोट डाले? कैसे अपने और कपिल के रिश्ते को सब के सामने खोले? क्या कनिका यह सहन कर पाएगी?

वैसे भी नई पीढ़ी जातिपांति को नहीं मानती. उस के लिए तो प्यार में सब चलता है. नई पीढ़ी तो इन बंधनों के सख्त खिलाफ है. जातपांति के मिटने में ही सब का भला है. आज की पीढ़ी यही समझ रही है, तब किस आधार पर अभिषेक और कनिका का रिश्ता ठुकराया जाए?

अपने ही खयालों के भंवर में प्रेरणा फंसती जा रही थी. सच में दुनिया गोल है. कोई सिरा अगर छूट जाए तो आगेपीछे मिल ही जाता है. पर ऐसे सिरे से क्या फायदा जो सुलझाने के बजाय और उलझा दे.

अभिषेक के मातापिता को देख कर कनिका का दिल शायद न धड़के पर कपिल का सामना करने के केवल खयाल से ही प्रेरणा का दिल आज पहले की तरह तेजी से धड़क रहा था. धड़कते दिल को संभालने के लिए अनायास ही उस के मुंह  से निकल गया.

‘रखा था खयालों में अपने

जिसे संभाल कर,

ताउम्र उस को निहारा, सब से छिपा कर,

पर आज,

वक्त के थपेड़ों से सब बिखरता नजर आता है,

छिप कर आज कहां जाऊं,

वही चेहरा हर तरफ नजर आता है.’?

‘तो क्या जिस तरह यादों के तीर मेरे सीने के आरपार होते रहे उसी तरह के तीरों का शिकार अपनी बेटी को भी होने दूं?’ खुद से पूछे गए इस एक सवाल ने प्रेरणा को ठीक फैसला ले सकने की प्रेरणा दे दी. ‘कनिका को वैसा कुछ न सहना पड़े जो मैं ने सहा, चाहे इस के लिए अब मुझे कुछ भी सहना पड़े’ यह सोच कर प्रेरणा के मन की सारी उलझन गायब हो गई.

Short Family Drama : अपराजिता

Short Family Drama : न्यूयार्क से 15 घंटे की लंबी यात्रा के बाद दिल्ली एअरपोर्ट पर डौलर को रुपए में चेंज करवा कर मैं गतिमान ऐक्सप्रैस द्वारा आगरा पहुंचा तो रेलवे स्टेशन पर तमाम टैक्सी और औटो वालों ने मुझे घेर लिया. सभी अंगरेजी में बात कर रहे थे, ‘‘सर, आप को अच्छे और हर सुखसुविधा युक्त होटल में ले चलते हैं बिलकुल ताजमहल के करीब… आप बालकनी से सुबहशाम ताज के दीदार कर सकते हैं.’’

मेरा आगरे का 1 माह का प्रवास था. ताजमहल पर एक किताब लिख रहा था. 1 माह के लिए मुझे सस्ते और अच्छे होटल की तलाश थी.

मैं ने उन टैक्सी/औटो चालकों से कहा, ‘‘प्लीज, मेरा रास्ता छोड़ो मैं खुद ही गूगल पर सर्च कर लूंगा,’’ क्योंकि मुझे पता था इन सब का होटल वालों से अच्छाखासा कमीशन होता है और ये विदेशी पर्यटकों को खूब लूटते हैं.

मुझे हिंदी बोलते देख कर वे सभी दंग रह गए. न्यूयौर्क में मेरे बहुत भारतीय मित्र थे और मैं उन के परिवारों से जुड़ा था है इसलिए मैं हिंदी बोल लेता था.

‘‘सर, मैं आप की मदद करूं?’’ एक बुजुर्ग व्यक्ति ने बहुत ही शालीनता और विनम्रता से मु?ा से पूछा.

‘‘आप क्या मदद करना चाहते हैं मेरी?’’

‘‘आप किसी महंगे होटल के बजाय हमारे घर रुकें तो आप को घर जैसा माहौल, शुद्ध और स्वादिष्ठ घर के भोजन के अतिरिक्त यहां का बहुत कुछ देखने को मिलेगा.’’

‘‘घर पर?’’

‘‘जी सर क्योंकि मेरी अपनी टैक्सी है. मेरा घर ताजमहल के बिलकुल नजदीक इलाके में है. हम अपने मेहमान पर्यटकों को घर के ऊपर वाले पोर्शन में ठहराते हैं. होटल जैसी आधुनिक सुविधाएं तो नहीं हैं लेकिन हम अपनी तरफ से अपने मेहमानों की हर सुखसुविधा का खयाल रखते हैं. टैरेस से ही ताजमहल का खूबसूरत नजारा दिखता है. मैं ने यह सेवा अभी शुरू करी है. आप मेरे पहले ग्राहक हैं. अगर आप को पसंद न आए तो कोई बात नहीं मैं आप को बाध्य नहीं करूंगा.’’

मु?ो उन का प्रस्ताव पसंद आ गया क्योंकि मुझे 1 माह आगरा रहना था. उन के साथ उन की टैक्सी में बैठ गया. स्टेशन से उस इलाके तक आने में लगभग 25 मिनट लगे होंगे. उन्होंने गाड़ी एक व्यस्त चौराहे पर रोक दी और बोले, ‘‘सर, आप को यहां से थोड़ा पैदल चलना होगा क्योंकि घर तक गाड़ी नहीं जा सकती.’’

गाड़ी से उतरते ही वहां का नजारा देख कर मैं अचरज से भर उठा. शोरशराबा, झंठ बने लोगों की मीटिंगनुमा वार्त्ता. मुझे देख कर बच्चे दौड़ते हुए आए और मुझ से ‘हैलोहैलो’ बोलने लगे उन की मासूमियत देख कर मैं मुसकरा उठा और उन के साथ सैल्फी ले ली.

टैक्सी वाले अंकल का घर एक संकरी लेकिन साफसुथरी गली में था. वे मुझे दूसरी मंजिल पर ले गए. टैरेस पर एक खुला और हवादार कमरा था. कमरे में 1 डबल बैड, एक कोने में मेजकुरसी और टेबललैंप था. मेज पर ताजे फूलों का एक गुलदस्ता रखा था. एक तरफ की दीवार पर लकड़ी की अलमारी थी. सामने दीवार पर एक बहुत ही खूबसूरत हाथ द्वारा बनाई गई राधाकृष्ण की सुंदर पेंटिंग टंगी थी. पूरा कमरा कलात्मक और सुरुचिपूर्ण ढंग से सुसज्जित था.

टैरेस के एक कोने में साफसुथरा वाशरूम था. पूरे टैरेस के चारों तरफ गमलों में गुलाब, गुड़हल और अन्य अनेक तरह के फूलों के पौधे लगे थे. वहीं बीच में लकड़ी की एक आरामकुरसी भी पड़ी थी. टैरेस से ताजमहल साफ नजर आ रहा था. उस टैरेस का प्राकृतिक और स्वच्छ वातावरण देख कर मेरा मन खुश हो गया और मैं ने हामी भर दी.

पैसों का पूछा तो अंकल ने हंस कर कहा,  ‘‘सर, आप चिंता मत करिए मैं मुनासिब पैसे

ही लूंगा और आप मेरे पहले ग्राहक भी हैं मोस्ट वैलकम.’’

‘‘प्लीज अंकल, आप मुझे फर्ज है आप मेरे नाम से ही संबोधित कीजिए मुझे. अच्छा लगेगा.’’

‘‘ओ के जौर्ज, आप फ्रैश हो जाइए, फिर हम आप को ब्रेकफास्ट में आगरा की मशहूर बेडई जलेबियां खिलाएंगे.’’

थोड़ी देर में अंकल गरमगरम बेडई जलेबियं ले आए. वास्तव में बहुत स्वादिष्ठ थीं.

‘‘आज आप आराम कीजिए. जब आप का दिल करे घूमने का तब मुझे बताइए.’’

नाश्ता करने के बाद में गहरी नींद में सो गया. शाम को 4 बजे के लगभग अंकल ने कहा, ‘‘जौर्ज, आप को 2-3 बार लंच के लिए बुलाने आया था लेकिन आप इतनी गहरी नींद में थे कि आप को जगाने की हिम्मत ही नहीं हुई. प्लीज, चलिए लंच तैयार है.’’

लंच के बाद मैं अपने कमरे में आ गया और अपनी किताब लिखने लगा. शाम को 7 बजे के लगभग मुंह पर कपड़ा बांधे एक लड़की टैरेस पर आई. पौधों को पानी देते हुए वह हर पौधे को बहुत ही अपनत्व भरी दृष्टि से निहार रही थी जैसे वे पौधे नहीं उस के अपने छोटे बच्चे हों.

वह लड़की रोज सुबहशाम नियमित रूप से पानी देती. एक मां की तरह उन की देखभाल करती. एक बार अंकल के साथ चायनाश्ता ले कर आई तब पता चला कि वह उन की बेटी अपराजिता है. मुझे लगा किसी स्किन ऐलर्जी की वजह से यह मुंह पर कपड़ा बांधती है मैं उसे रोज सुबहशाम देखता हालांकि मैं ने उस का चेहरा नहीं देखा था लेकिन पेड़पौधों के प्रति उस की आत्मीयता देख कर मैं मन ही मन उस से जुड़ गया. एक लगाव सा हो गया उस से. अगर उसे आने में जरा सी भी देर हो जाती तो मैं बेचैन सा हो जाता. ऐसा महसूस होने लगा कि मैं उस से प्रेम करने लगा हूं.

एक रोज जब वह पौधों को पानी दे रही थी तो मैं चुपके से उस के पीछे जा कर शरारत भरे लहजे में बोला, ‘‘प्लीज, अपने चेहरे से नकाब तो हटाओ जरा.’’

नकाब हटा दिया तो आप आसमान से सीधे धरती पर औंधे मुंह गिर पड़ोगे विदेशी बाबू,’’ वह व्यंग्य से बोली.

‘‘कोई बात नहीं गिरने दो मुझे.’’

‘‘तो देखो मेरा खूबसूरत चेहरा,’’ मुंह से कपड़ा हटाते हुए उस ने जोर से अट्टहास किया. उस का जला बीभत्स चेहरा देख कर मेरा सर्वांग कांप उठा और होठों से हलकी सी चीख निकल गई.

‘‘अब बस दीदार कर लिया न मेरे चेहरे का?’’ कहते हुए उस ने फिर से मुंह पर कपड़ा बांध लिया और सामान्य भाव से पौधों की देखभाल में पुन: रम गई.

मैं कमरे में आ कर बिस्तर पर धम्म से गिर पड़ा. इतने दिनों से परवान चढ़ रहा प्रेम एक गुब्बारे में पिन चुभाने पर फुस्स हो गया. हिम्मत ही नहीं हुई कि उस से पुंछूं कि यह सब कब, कैसे, किस ने और क्यों किया? अजीब सी मनोस्थिति हो गई थी मेरी.

उस से मानसिक धरातल से तो जुड़ चुका था मैं लेकिन शारीरिक तौर पर कदम अपनेआप ही पीछे लौट रहे थे. पता नहीं क्यों?

शायद यह सच है कि इंसान चेहरा देख कर ही प्यार करता है. बस चेहरा खूबसूरत और आकर्षक हो और मन कैसा भी हो चलेगा. उस रोज कुछ भी लिखने की इच्छा ही नहीं हुई.

रात को अंकल से पूछा, ‘‘अपराजिता के साथ किस ने ऐसा किया है?’’

यह सुन कर अंकल एकदम खामोश हो गए. आंखों में अनकहा दर्द उभर आया. ऐसा लगा जैसे मैं ने इन के किसी पुराने घाव को कुरेद दिया हो.

‘‘जौर्ज, मेरी बेटी अपराजिता मन से बहुत ही खूबसूरत स्वभाव और व्यवहार से बहुत ही सहज सरल और उदार है. वह चेहरे से भी बहुत खूबसूरत थी,’’ कहते हुए उन्होंने अपने मोबाइल में उस का पहले का फोटो दिखाया. वाकई में वह गजब की खूबसूरत थी.

‘‘लेकिन जौर्ज यही खूबसूरती उस के लिए अभिशाप बन गई.’’

‘‘ऐसा क्या हुआ अंकल?’’

‘‘हम दोनों भाई संयुक्त परिवार में रहते थे. साधारण रूपरंग की मेरी भतीजी को कोई भी लड़के वाला देखने आता तो उस के बजाय अपराजिता को पसंद कर लेता. अपराजिता तो लड़के वालों के सामने भी नहीं पड़ती थी लेकिन उस की सुंदरता, स्वभाव, व्यवहार और गुणों के चर्चे पूरी रिश्तेदारी में थे. इस वजह से मेरी भतीजी का कहीं भी संबंध नहीं हो पा रहा था. भाभी यह सह ना सकीं और एक दिन उन्होंने घर पर ही अपराजिता के चेहरे पर तेजाब डाल दिया.’’

‘‘उफ, तो आप ने अपनी भाभी के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखवाई?’’

‘‘मैं तो चाहता था लेकिन अपराजिता ने मना कर दिया. अपनी ताईजी को माफ करते हुए सभी को बोल दिया किसी सिरफिरे ने उस के साथ यह घिनौनी हरकत करी है. भाभी को अपनी गलती का बेहद पछतावा हुआ.

उस का चेहरा देख कर कोई उस से घृणा करता है तो कोई तरस खाता है. अपने नाम के अनुरूप उस ने हिम्मत नहीं हारी. ताजमहल से लगभग 3 किलोमीटर दूरी पर ‘शीरोज हैंग आउट कैफे’ से वह जुड़ गई. इस कैफे हाउस को ऐसिड अटैक की विक्टम युवतियां ही चलाती हैं. इस कैफे हाउस में कौफी के अलावा शाकाहारी व्यंजन, बुटीक और खूबसूरत कलाकृतियों का काउंटर भी है.

अपराजिता स्वभाव और व्यवहार से जितनी सहज, सरल, विनम्र और उदार है उतनी ही स्वाभिमानी भी है. किसी की दया और तरस की मुहताज नहीं है. ऐसा हो जाने के बावजूद उस के अंदर जीने की ललक है और भरपूर आत्मविश्वास भी है.’’

सारी बातें सुन कर मु?ो अपराजिता से सहानुभूति नहीं बल्कि उस के हौसले और जज्बे पर गर्व हुआ. दूसरे दिन मैं ‘शीरोज हैंग आउट’ पहुंच गया. वहां उस के जैसी बहुत सी युवतियां और महिलाएं थीं.

‘‘अपराजिता,’’ मैं ने आवाज लगाई तो वह तुरंत आ गई. उस के चेहरे पर कपड़ा नहीं बंधा था.

‘‘जौर्ज आप यहां कैसे?’’ उस ने आश्चर्य भाव से पूछा.

‘‘क्या मैं यहां नहीं आ सकता?’’ मैं ने मुसकरा कर जवाब दिया और 1 कप कौफी की मांग करी.

कौफी पीने के बाद जब मैं ने पैसे पूछे तो उस ने बेहद आत्मीयता से मुसकरा कर कहा, ‘‘सर पे एज यू विश.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘सर, हमारे शीरोज की यही तो खासीयत है. यहां पर एक गरीब से ले कर एक अमीर तक कौफी और व्यंजनों का लुत्फ ले सकता है.’’

अब मैं रोज वहां जाने लगा. मुझे लगने लगा कि अब मैं अपराजिता को समझने लगा

हूं. उस के व्यवहार, उस की सोच और समझ को भी. रोज शीरोज जाने और प्रतिदिन टैरेस पर मिलने से मैं धीरेधीरे उस के करीब आ गया. मानसिक रूप से मैं खुद को तैयार कर रहा था कि उस से अपने मन की बात कह सकूं लेकिन कुछ कहने से पहले ही उस का चेहरा मेरे सामने आ जाता और मेरा इरादा बदल जाता. मैं अजीब दुविधा में था. मुझे खुद ही नहीं पता था कि मैं उस से प्यार करता भी हूं या नहीं.

दिल और दिमाग में एक युद्ध चलता रहता था. दिल कहता जब उस से प्यार करता है तो उस का इजहार कर. प्रेम में बाहरी सौंदर्य नहीं आंतरिक खूबसूरती का महत्त्व होता है. दिमाग बुद्धिमतापूर्ण तर्क देता कि बेवकूफ, क्यों पड़ा है इस बीभत्स चेहरे वाली लड़की के पीछे. 24 घंटे जब इस का चेहरा देखेगा तो खुद के फैसले पर रोएगा. भाग ले यहां से.

नहींनहीं, मैं अपराजिता से प्यार करता हूं सच्चा प्यार. क्या सिर्फ चेहरे की खूबसूरती सर्वोपरि होती है? अगर खूबसूरत चेहरे वाली लड़की से शादी करने के बाद यह हादसा हो गया तो? यह सोच कर पसीनापसीना हो गया. चंचल मन और क्रियावान दिमाग ने तुरंत ठोस तर्क दे डाला. इस का इलाज भी है तलाक. दिल और दिमाग की सारी दलीलें, सु?ाव और तर्क से मेरी सोचनेसमझने की शक्ति क्षीण हो गई.

एक बार को लगा काश, अपराजिता का पहले जैसा ही खूबसूरत और आकर्षक चेहरा होता तो मैं एक पल भी न लगाता आई लव यू कहने में. खुद को अंदर से मजबूत किया प्रपोज करने के लिए. चंचल मन फिर डगमगा गया क्यों प्रपोज कर रहा हूं तेजाब पीडि़त लड़की को? मुझे तो बहुत खूबसूरत लड़कियां मिल जाएंगी क्योंकि मैं आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होने के साथसाथ बुद्धिजीवी प्राणी भी हूं.

तभी अंदर से आवाज आई क्या हुआ चेहरा ही तो कुरूप है बाकी देह तो हृष्टपुष्ट, आकर्षक और कमनीय है. चेहरे का क्या करना. अंतरंग पलों में तो वैसे भी अंधेरा होगा. चेहरा कहां व्यवधान उत्पन्न करेगा. हां, यही सही रहेगा.

‘‘अपराजिता, आई लव यू. शादी करना चाहता हूं मैं तुम से,’’ हिम्मत बटोर कर उसे बोल ही दिया.

वह जोर का ठहाका लगा कर बोली, ‘‘अच्छा मजाक कर लेते हैं जौर्ज आप.’’

‘‘अपराजिता, मैं मजाक नहीं कर रहा बल्कि सच बोल रहा हूं.’’

‘‘आखिर ऐसा क्या देख लिया आप ने मु?ा में जो मु?ा जैसी लड़की के साथ शादी जैसा महत्त्वपूर्ण फैसला ले लिया?’’ अपनी पारखी और अनुभवी नजरें जमाते हुए उस ने तुरंत पूछा.

‘‘मुझे कुछ नहीं पता सिर्फ यह पता है मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं,’’ कहते हुए मेरी जबान लड़खड़ा गई.

मेरी चंचल और अस्थिर मनोस्थिति को वह शायद भांप गई थी. मुसकराते हुए सामान्य भाव से बोली, ‘‘जौर्ज, यह प्यार नहीं है आप के चंचल और अस्थिर मन की भावनाएं हैं जो इस समय प्रबल वेग से अति उत्साहित हो कर कठोर और ठोस सत्य के पाषाण से टक्कर लेने के लिए मचल रही हैं जबकि वे स्वयं इस का परिणाम जानती हैं. प्लीज, शांत कर के इन्हें काबू में रखिए.’’

मगर मेरे अंदर तो एक जनून सवार था उस की आकर्षक, सुगठित और कमनीय देह को पाने का जिस की वजह से मैं संयम नहीं रख पा रहा था.

‘‘चाहे तुम कुछ भी कहो अपराजिता मैं ने फैसला ले लिया है. मैं तुम से ही शादी करूंगा यहीं इंडिया में और जल्द ही मैं आज ही इस संबंध में अंकल से बात करता हूं.’’ यह सुन कर अपराजिता भावात्मक स्तर पर थोड़ी

नम्र हो गई आखिर वह भी तो एक युवती ही थी. उस के अंदर भी तो चाहत और जज्बातों का समंदर था. जौर्ज की बात सुन कर उस समंदर में पूरे वेग से भावनाएं उफान मारने लगीं और वह रोमांचित हो उठी. लजाते हुए वहां से अपने कमरे में आ गई.

रातभर नींद नहीं आई. ढेरों सपने उस की आंखों में सजने लगे. हलदी, मेहंदी, ढोलक, बरात, जयमाला, फेरे, दूल्हा फिर… वह शर्म से दोहरी हो गई. अति उत्तेजनावश तकिए को अपनी छाती से भींच लिया और कंपकंपाते होंठ स्वयं ही बुदबुदा उठे, ‘‘लव यू जौर्ज लव यू सो मच.’’

रोज हसीन मुलाकातों का दौर शुरू हो गया. विवाह तिथि निश्चित हो गई. तैयारियां शुरू हो गईं.

जौर्ज के मन की मुराद पूरी होने वाली थी और अपराजिता के सुप्त और निस्तेज पड़े सपनों में एक नई जान, उत्साह, उमंग, जोश और रोमांच चरम पर आ गया था उस के साथ शीरोज वाली उस की सभी सखियां उस से ईर्ष्या कर रही थीं. परिजन, पासपड़ोसी और रिश्तेदार सभी हैरान थे कि ऐसी लड़की को खूबसूरत विदेशी युवक ने कैसे पसंद कर लिया?

शादी से चंद रोज पहले. एक सुबह अपराजिता चाय का कप ले कर समाचारपत्र देखने लगी. मुख्य पृष्ठ पर, ‘विदेशी युवक जौर्ज ने तेजाब पीडि़ता अपराजिता से किया शादी जैसा साहसिक फैसला,’ चित्र भी वही था जो ताजमहल में जौर्ज ने उस के साथ सैल्फी ली थी. पूरा अखबार जौर्ज की इस सराहनीय और प्रशंसनीय पहल से भरा पड़ा था. कहीं जौर्ज के प्यार का जिक्र नहीं था. वह एक तेजाब पीडि़ता के लिए मसीहा बन गया था.

उस का मन खिन्न हो गया. अखबार को तोड़मरोड़ कर फेंक दिया. मन शांत करने के लिए टीवी खोला. हर न्यूज चैनल पर वही खबर जौर्ज का साक्षात्कार उस के इस कदम की सराहना, प्रशंसा. पत्रकारों को बताते हुए उस का चेहरा गर्व से दमक रहा था कि वह एक तेजाब पीडि़ता से शादी कर के उस का जीवन संवारना चाहता है. प्यार का कहीं कोई जिक्र तक नहीं. अपराजिता को लगा जैसे वह शादी कर के उस पर दया कर रहा है. क्रोध से उस की मुट्ठियां भिंच गईं और तनबदन सुलग उठा.

‘‘जौर्जजौर्ज,’’ चीखते हुए उस के कमरे में आ गई, ‘‘जौर्ज यह खबर मीडिया तक कैसे पहुंची कि आप मु?ा से शादी कर रहे हैं.’’

‘‘मैं ने यह खबर खुद मीडिया को दी है,’’ जौर्ज गौरवान्वित स्वर में बोला.

‘‘लेकिन क्यों?’’ वह जोर से चीखी जिस से उस का चेहरा और भयानक हो उठा.

उस के चेहरे को गौर से देखते हुए जौर्ज उपेक्षा से बोला, ‘‘अरे, तुम जैसी ऐसिड पीडि़ता से शादी कर रहा हूं यह बात सब को पता तो चलनी चाहिए न,’’ उस के स्वर में अहंकार भाव आ गया था.

‘‘उफ, तो यह बात है मीडिया के जरीए हीरो बनने का शौक है आप को,’’ वह व्यंग्य से बोली.

‘‘अपराजिता, मेरा तो सिर्फ यह मकसद था कि मुझे देख कर अन्य लोग भी तुम जैसी लड़कियों से शादी करने के लिए आगे बढ़ें.

उन्हें भी प्यार और परिवार मिले जिस की वे हकदार हैं.’’

‘‘प्लीज जौर्ज, आप को सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है. आइ एम सौरी मैं आप से शादी नहीं कर सकती. यह मेरा फैसला है गुड बाय,’’ कह कर अपराजिता ने खुले आसमान में सांस ली. उस का तनमन स्वाभिमानी हवा के एक झंके से दमक उठा.

जौर्ज उसे बस देखता ही रहा. उस में साहस ही नहीं था कि वह अपराजिता से कुछ कहे.

College Romance : खूबसूरत लमहे

College Romance :  इंसान की जिंदगी के कुछ लम्हें ऐसे होते है कि उसे आजीवन भुला पाना संभव नहीं. शेखर काफी मेहनत से अपनी पढ़ाई कर एक अच्छा मुकाम तो हासिल कर लिया पर उस का प्यार, उस की जिंदगी उसे नहीं मिल सकी.

शेखर इस नए शहर में अपनी जिंदगी की नए सिरे से शुरुआत करने आ पहुंचा. आईएएस कंप्लीट करने के बाद उस की पोस्टिंग इसी शहर में हुई. वैसे भी अमृतसर आ कर वह काफी खुश है. इस शहर में वह पहली बार आया है पर ऐसा लगता वह अरसे से इस शहर को जानता हो. आज वह बाजार निकला ताकि अपनी जरूरत की कुछ चीजें खरीद सके.

अचानक एक डिपार्टमैंटल स्टोर में एक चेहरा नजर आया. हां, वह संगीता ही थी और साथ में था उस का पति. शेखर गौर से उसे देखता रहा. संगीता शायद उसे देख नहीं सकी या जानबूझ कर देख कर भी अनदेखी कर दी. वह जब तक संगीता के करीब पहुंचता, संगीता स्टोर से निकल कर अपनी कार में बैठी और चली गई. तब शेखर अपने अतीत में खो गया…

नयानया शहर, नया कालेज, शेखर के लिए सब अपरिचित एवं अजनबी थे. वह क्लास की पीछे वाली बैंच पर बैठ गया. कालेज की चहलपहल काफी अच्छी लगी. पुस्तकें ही उस की साथी थीं और उस का जीवन. बस मन में उठे भावों को कागज पर उतारता और स्वयं ही पढ़ कर काफी खुश होता.

कालेज के वार्षिक सम्मेलन में जब उस की कविता को प्रथम पुरस्कार मिला तो वह सब का चहेता बन गया. प्रोग्राम खत्म होते ही एक लड़की आ कर बोली, ‘‘बधाई हो. तुम तो छिपे रुस्तम निकले. इतना अच्छा लिख लेते हो. तुम्हारी रचना काफी अच्छी लगी. इस की एक कौपी दोगे?’’

शेखर तब उस के आग्रह को टाल न सका. पहली बार गौर से उस की खूबसूरती को निहारा. गोरा रंग, गुलाबी गाल, मदभरे एवं मुसकराते अधर और सब से खूबसूरत लगी उस की आंखें. उस की आंखें बिना काजल के कजरारी लगीं. आंखें भरपूर शोख एवं शरारत भरी थीं. फिर भी शेखर के लिए यह सब कुछ माने नहीं रखता. शेखर ने तो उस की खूबसूरती को शब्दों में कैद कर गीत का रूप दे डाला और संगीता की खिलखिलाहट ने उस के गीत को संगीत का रूप दे डाला. पर यह सब तो कालेज के सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा था. संगीता के स्वर में एक अजीब सी कशिश, एक अजीब सा जादू दिखा.

शेखर जीवन में बहुत बडे़ एवं सुनहरे सपने देखता रहता. पढ़ाई और लेखन बस 2 ही उस के साथी. एक मध्यवर्गीय परिवार में पलाबढ़ा शेखर सदा यही सोचता कि खूब पढ़लिख कर एक काबिल इंसान बने एवं सब की झोली खुशियों से भर दे.

शेखर कालेज की लाइब्रेरी में बैठा अध्ययन कर रहा था. तभी संगीता उस के सामने आ कर बैठ गई. शेखर को ठीक नहीं लगा. उसे पढ़ाई के वक्त किसी का डिस्टर्ब करना अच्छा नहीं लगता. संगीता का पढ़तेपढ़ते धीरेधीरे गुनगुनाना भी अच्छा नहीं लगा. वह गुस्से से उठा और जोर से पुस्तक बंद कर चल पड़ा.

तभी एक मधुर खिलखिलाहट सुनाई पड़ी. पीछे मुड़ कर देखा संगीता की शरारत भरी मुसकान. गुस्सा तो कम हो गया पर अपने अहंकार में डूबा शेखर चला गया.

दूसरे दिन भी वह लाइब्रेरी में बैठा अपनी पढ़ाई कर रहा था. पर आज उस के मन में अजीब हलचल मची थी. बारबार ऐसा आभास होता कि संगीता आ कर बैठेगी, बारबार निगाहें दरवाजे की तरफ उठ जातीं.

थोड़ी देर के बाद संगीता आती दिखाई पड़ी पर आज वह किसी और टेबल पर बैठी. तब चाह कर भी कुछ न कहा. पर आज उस का पढ़ने में दिल न लगा फिर उठ कर गुस्से से पुस्तक बंद कर दी और लाइब्रेरी से उठ कर जाने लगा.

तभी संगीता उठ कर सामने आ गई और घूरघूर कर ऊपर से नीचे तक निहारती रही, मुसकराती रही.

शेखर का पारा और चढ़ने लगा. संगीता तब बहुत ही सहज भाव से बोली, ‘‘मां शारदे का अपमान करना ठीक नहीं पुस्तक की कद्र करोगे तभी मंजिल मिलेगी. मैं ईर्ष्या से नहीं मुसकराती तुम्हारी नादानी पर हंसी आ जाती है. वैसे सदा मुसकराते रहना ही मेरी फितरत है.’’

फिर वह थोड़ी सीरियस हो कर आंखों में आंखें डाल कर उस ने इस कदर निहारा कि शेखर चुपचाप पीछे खिसकता गया और संगीता आगे बढ़ती रही. अतंत: शेखर पुन: उसी बैंच पर बैठ गया और वह सामने बैठ गई. दोनों बस खामोश रहे. शेखर संगीता के इशारे पर पुस्तक खोल कर पढ़ने लगा और संगीता अपने चेहरे के सामने पुस्तक खोल कर मुसकराने लगी.

शेखर संगीता की समीपता भी चाहता और घबराहट भी होती. कालेज के कुछ लोग उस की सुंदरता के इस कदर दीवाने थे कि शेखर उन्हें खटकने लगा. उन की नफरतभरी नजरों से डर लगने लगा. कभीकभी सोचता कि संगीता हालात की असलियत को क्यों नहीं समझती?

शेखर कालेज के गार्डन में अकेला बैठा विचारों में खोया था. तभी संगीता आ पहुंची. बिलकुल करीब बैठ गई और उलाहने भरे स्वर में बोली, ‘‘मैं लाइब्रेरी का चक्कर लगा कर आ रही हूं. लगता है आज पढ़ने का नहीं, लिखने का मूड है तभी गार्डन में आ कर बैठे हो.

शेखर जिस की चिंता से परेशान था उस का करीब आना उसे अच्छा लगा. संगीता ने बैग खोल कर टिफिन बौक्स निकाला और शरारती अंदाज में बोली, ‘‘आ मुंडे, आल दे परांठे खाएं. तुसी तबीयत चंगी हो जाएगी.’’

तब शेखर वाकई में खुल कर हंस पड़ा. उस के सामने जब संगीता ने टिफिन बौक्स खोला तो परांठों की महक से ही शेखर खुश हो गया. दोनों ने जीभर कर परांठे खाए. परांठे खाने के बाद संगीता बोली, ‘‘चलो, अब लस्सी पिलाओ.’’

शेखर सकुचाते हुए बोला, ‘‘अभी क्लास चालू होने वाली है. लस्सी कल पी लेंगे.’’

संगीता तब बेधड़क बोली, ‘‘बडे़े कंजूस बाप के बेटे हो. लस्सी पीने का मन है आज और पिलाना अगले जन्म में. मेरी कुछ कदर है कि नहीं. अभी एक आवाज दूं तो लस्सी की दुकान से ले कर यहां तक लस्सी लिए लड़कों की लाइन लग जाए.’’

शेखर फिर मुसकरा कर रह गया. संगीता तब टिफिन बौक्स समेटती हुई बोली, ‘‘ठीक है चलो मैं ही पिलाती हूं. मेरा बाप बड़ा दिलवाला है. मिलिटरी औफिसर है. एक बार पर्स में हाथ डालते हैं तो जितना नोट निकल आते मुझे दे देते हैं. मुझ पर काफी भरोसा है. वे तो मेरे लिए लस्सी का ड्रम ला दे. किसी की इच्छा पूरी करना सीखो. बस किताबी कीड़ा बने रहते हो. लाइफ आलवेज नीड सम चेंज.’’

‘‘ठीक है, चलो पिलाता हूं लस्सी. अब भाषण देना बंद करो,’’ शेखर आग्रह भरे स्वर में बोला.

‘‘नहीं पीनी है अब,’’ संगीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘जिस ने पी तेरी लस्सी वह समझ फंसी. मैं तो नहीं ऐसी.’’

फिर कालेज के कंपाउंड से निकल कर दोनों बाजार की ओर चल पड़े. चौक पर ही लस्सी की दुकान थी. कुरसी पर बैठते ही संगीता ने एक लस्सी का और्डर दिया. शेखर तब कुतुहल भरी दृष्टि से संगीता को निहारने लगा. संगीता ने टेबल पर सर्व किए गए लस्सी के गिलास को देखा और फिर शेखर को, फिर जोर से हंस पड़ी.

शेखर धीरेधीरे उस की शोखी एवं शरारत से वाकिफ हो गया था. अत: वह लस्सी के गिलास को न देख कर दुकान की छत को निहारने लगा.

संगीता उस के चेहरे के सामने चुटकी बजाते हुए बोली, ‘‘लस्सी इधर टेबल पर है आसमान पर नहीं. अभी देखो एक मजा,’’ कह उस ने आवाज दे कर मैनेजर को बुलाया. उस के करीब आते ही बरस पड़ी, ‘‘इस टेबल पर कितने लोग बैठे है?’’

‘‘2?’’ मैनेजर ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

‘‘फिर लस्सी 1 ही क्यों भेजी? तुम्हारे आदमी को सम?ा में नहीं आता है?’’ संगीता के तेवर गरम हो गए.

मैनेजर तब गरजते हुए बोला, ‘‘अरे ओ मंजीते. तेरा ध्यान किधर है? कुड़ी द खयाल कर और एक लस्सी और ला.’’

मंजीत यह कह पाता कि मैडम ने 1 ही और्डर दी थी पर कह न सका और उसे काफी डांट खानी पड़ी.

शेखर को यह सब पसंद नहीं आया. संगीता से नाराजगी भरे लहजे में बोला, ‘‘तुम ने और्डर तो 1 ही लस्सी का दिया था फिर उसे डांट क्यों खिलवाई?’’

संगीता तब शरारती लहजे में बोली, ‘‘तुम्हें क्यों इतना बुरा लगा? वह तेरा कोई सगा लगता है क्या? तुम्हें मालूम है, मैं जब भी अकेले लस्सी पीने आती हूं तो या तो वह घूरघूर कर देखता है या फिर लस्सी देर से देता है अथवा फिर लस्सी हाथ में पकड़ाने की कोशिश करता है. आज उसे सबक मिला. अब लस्सी पीयो और दिमाग बिलकुल कूल करो.’’

शेखर ने तब लस्सी पीते हुए कहा, ‘‘तुम हो ही इतनी खूबसूरत कि लोग तुझे निहारे बिना रह नहीं सकते.’’

‘‘फिर चौराहे पर खड़ा कर के नोच डालो न. यह समाज तो मर्दों का है न. खूबसूरत होना गुनाह है?’’ संगीता गुस्से से बोली.

शेखर तब उसे बहलाने के खयाल से बोला, ‘‘अरे लस्सी पी कर लोग कूल होते हैं पर तुम तो गरम हो रही हो.’’

फिर शांत मन से लस्सी पीती हुए बोली, ‘‘एक बार अगर मुझे कुदरत मिल जाए तो यह वर मांगूं कि तुम्हें सिर्फ एक दिन के लिए लड़की बना दे तब तुम सब की नजरों को देखो, उन के चेहरों के भावों को सम?ा, उन की नीयत को पहचानो क्योंकि अभी तो तुम्हें सिर्फ कजरारे नयन और मधुर मुसकान नजर आती है.’’

शेखर एक कड़वी सचाई को सुन कर बिलकुल चुप हो गया.

कई दिनों से संगीता कालेज में नजर नहीं आई. शेखर काफी परेशान हो गया. न कालेज में, न घर में, न अकेले में कही भी दिल लगा.

किसी तरह उस की एक सहेली से पता चला कि वह बीमार है और नर्सिंगहोम में भरती है. वह दौड़ पड़ा नर्सिंगहोम की ओर. संगीता बैड पर लेटी थी. नर्स से पता चला अभी दवा खा कर सोई है. कई रातों से सो न सकी,

नर्स ने शेखर की बदहवासी देख पूछा, ‘‘जगा दूं क्या?’’

पर शेखर का मन बोला कि सोने दो मेरी जान को कितनी हसीन लग रही है. नींद में भी चेहरे पर मुसकान थी. शायद कुदरत ने उसे जी खोल कर ‘मुसकान’ दे डाली. वह नर्स को एक गुलदस्ता एवं एक छोटी सी डायरी दे कर बोला, ‘‘जब नींद से जागे तो दे देना.’’

‘‘आप का नाम?’’ नर्स ने पूछा.

‘‘कहना तुम्हारा मीत आया था. कल फिर आऊंगा.’’

दूसरे दिन भी गया. पता चला कि संगीता को ‘ऐक्सरे रूम’ में ले जाया गया है. वहां उस के मम्मीपापा और काफी रिश्तेदार आ गए. अब शेखर को रुकना उचित नहीं लगा. उस ने पुन: फल, रजनीगंधा के फूल और मैगजीन सब नर्स को सौंपते हुए कहा, ‘‘मेरा कालेज का टाइम हो गया है. ये सब उसे दे दीजिएगा और…’’

‘‘और कह दूंगी तुम्हारे मीत ने दिया है,’’ नर्स ने मुसकराती हुए वाक्य पूरा किया.

शेखर गर्व से मुसकराते हुए लौट गया.

2 दिन के बाद शेखर पुन: हौस्पिटल आया. संगीता अपने बैड पर बैठी थी. शेखर को देखते ही उस के चेहरे पर मुसकान खिल उठी.

शेखर बैड के करीब आ कर बोला, ‘‘सौरी, मैं 2-3 बार आया पर…’’

संगीता बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘मु?ो सब मालूम है. यह डायरी, ये फल, रजनीगंधा के फूल सब मेरे मीत के ही हैं. वैसे भी मैं तुम से सदा अकेले में ही मिलना चाहती हूं. भीड़ में गर तुम न ही मिलो तो ठीक है. वैसे भी मम्मीडैडी तुम्हें लाइक नहीं करते, धर्म के पक्के अनुयायी हैं.’’

शेखर ने उस की खैरियत जाननी चाही.

संगीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘अरे मुझे कुछ नहीं हुआ. बिलकुल ठीक हूं. थोड़ा फीवर हुआ था. तुम्हें बहुत परेशान करती रहती हूं इसीलिए भुगतना पड़ा.’’

‘‘पर तेरी खबर सुन कर तो मेरी नींद ही उड़ गई,’’ शेखर चिंता भरे लहजे में बोला.

संगीता तब इठलाती हुई बोली, ‘‘नींद के मामले में मैं बहुत लकी हूं. जहां भी रहूं सोने से पहले जिस आखिरी इंसान से मेरी मुलाकात होती है. वह तुम हो. बस आंखें बंद कर लेती और सो जाती,’’ कह कर उस ने उसे बहुत ही मस्त नजरों से निहारा.

शेखर भी तब भावुकता में बहते हुए बोला, ‘‘मैं सुबह उठ कर सब से पहले बंद आंखों से जिस का चेहरा देखता हूं. वह हो सिर्फ तुम.’’

बातों ही बातों में संगीता ने बताया, ‘‘आज सुबह ही मम्मीपापा आए थे. डाक्टर ने डिस्चार्ज करने को कहा. दरअसल, वे लोग किसी रिश्तेदार के यहां फंक्शन में गए हैं सुबह लेने आएंगे.’’

‘‘मतलब एक रात और तुम्हें मरीज बन कर यहां रहना पडे़गा,’’ शेखर ने कहा.

‘‘नहीं, अब तुम आ गए न. अब डाक्टर से इजाजत ले लेती हूं. पेपर वगैरह सब रैडी हैं.’’

‘‘पर डाक्टर पूछेगा कि कौन लेने आया है तो क्या बोलोगी?’’ शेखर ने जिज्ञासा प्रकट की.

‘‘हां बोलूंगी कि मेरी सगी बहन के सगे भाई के जीजाजी आए हैं?’’

‘‘मतलब? ’’ शेखर ने आश्चर्यचकित हो पूछा.

‘‘मतलब तुम सम?ो मैं चली डाक्टर से मिलने.’’

संगीता फौरन डाक्टर से इजाजत ले कर

आ गई और अपना सामान समेटने लगी. फिर शेखर ने बैग उठाया और दोनों हौस्पिटल से बाहर निकल पडे़.

रिकशा बुलाने से पहले संगीता ने पूछा, ‘‘कहां चल रहे?’’

‘‘तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा और मैं उसी रिकशे से वापस आ जाऊंगा,’’ शेखर ने सहज भाव से कहा.

‘‘नहीं कहीं घूमने चलो न,’’ संगीता का आग्रह भरा स्वर था.

‘‘अभी तुम्हारी तबीयत नाजुक है. चुपचाप घर चलो,’’ शेखर ने सम?ाते हुए कहा.

‘‘अच्छा, चलो लस्सी पिला दो,’’ वह बच्चे की तरह जिद करती हुई बोली.

शेखर तब भड़क गया, ‘‘तेरा दिमाग तो ठीक है. अभी फीवर से उठी हो और लस्सी?’’

संगीता तपाक से बोली, ‘‘जब तक तुम नहीं मिलते दिमाग ठीक रहता है.’’

‘‘अगर मैं कभी न मिलूं तब तो बिलकुल ठीक रहोगी न?’’ शेखर ने जानबुझ कर सवाल किया.

तब संगीता घबराती हुए बोली, ‘‘अरे, ऐसा सोचना भी मत वरना तुम आगरा में मुमताज का ताजमहल निहारते रहोगे और मैं आगरा के पागलखाने में रहूंगी. वैसे भी आजीवन साथ रहना मुश्किल है, मेरे डैडी बहुत ही सख्त हैं… कुछ लमहे तो जी लूं.’’

शेखर उस की बकबक से तंग आ कर बोला, ‘‘प्लीज, अब रिकशे में बैठो. रास्ते में

थोड़ी देर ‘जूली पार्क’ में बैठेंगे फिर तुम्हें घर

छोड़ दूंगा.’’

थोड़ी देर के बाद दोनों ‘जूली पार्क’ में थे. शाम गहरा गई थी. सूरज की लालिमा अंतिम चरण में थी. अंधकार गहराता जा रहा था. शेखर पेड़ से टिक कर बैठा और संगीता उस की गोद में सिर रख लेट गई.

शेखर की ऊंगलियां संगीता की काली घनी जुल्फों से अठखेलियां करने लगीं. शेखर बिना बोले अपनी नई रचना सुनाता रहा और संगीता उस की गोद में सुकून से लेटी रही. वह वाकई में सो जाती उस से पहले ही शेखर ने उसे जगाते हुए चलने को कहा.

दोनो पुन: रिकशे में बैठ गए. संगीता काफी खुश थी. उस का सारा रोग काफूर हो गया था. शेखर भी संगीता से मिलने के बाद अपनेआप को काफी तरोताजा महसूस करने लगा.

शेखर ने संगीता को उस के घर के सामने ड्रौप करने के लिए रिकशा रुकवाया. सामने संगीता के मम्मीपापा दिखे. आंखों में भरपूर आक्रोश और नफरत दिखी. कुछ कहने के पहले ही संगीता के पापा आगे बढ़ने लगे. पर उस की मां ने उन्हें रोक लिया. संगीता भी माहौल को देखते हुए बिलकुल खामोश रही. रिकशे से उतर कर चुपचाप घर में चली गई.

शेखर का रिकशा आगे बढ़ गया. रास्ते में मजाक में कही संगीता की बात बारबार कचोटती रही… दोनों का प्यार धर्म की भेंट चढ़ जाएगा.

दूसरे दिन शेखर डरतेडरते संगीता के घर के सामने गया. पड़ोसियों से पता चला सारे लोग पंजाब चले गए हैं. शेखर ठगा सा रह गया. उस के पास अब रह गई थीं बस संगीता की यादें और कुछ खूबसूरत लमहे.

अचानक उस के बौडी गार्ड ने उसे खयालों की दुनिया से बाहर निकाला. शेखर को तब अपनी उपस्थिति का एहसास हुआ और थोड़ा झेंप गया. उस की पलकें गीली हो गईं पर गुजरे खूबसूरत लमहों के साथ जीने के लिए आगे बढ़ गया.

loveyapa : आमिर के बेटे जुनैद खान को कार से ज्यादा पसंद है ऑटो रिक्शा

loveyapa :  ग्लैमर वर्ल्ड में ज्यादातर लोगों को शो बिजनेस के तहत बड़ी-बड़ी कारों में ट्रैवल करना पसंद होता है . जिसकी वजह से टीवी इंडस्ट्री के कलाकार हो या ओटीटी और फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़े कलाकार ही क्यों ना हो , ज्यादातर लोगो को आलीशान कारों में यात्रा करना ही पसंद होता है .

लेकिन कुछ कलाकार ऐसे भी हैं जिन्हें शो ऑफ करना पसंद नहीं होता , शो ऑफ करने के बजाय वह ऐसे यात्रा करना पसंद करते हैं जिसमें समय की बचत हो सके . और मुंबई की ट्रैफिक में फंसने के बजाय ऐसी सवारी करे जो समय पर शूटिंग स्थल तक पहुंच सके. आमिर खान के बेटे जुनैद खान जो यश राज प्रोडक्शन की फिल्म फिल्म महाराजा से पहले ही काफी लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं , और आमिर खान के बेटे होने के चलते पहले से ही लाइमलाइट में है उसी जुनैद खान को कार के बजाय ओटो रिक्शे में ट्रेवल करना ज्यादा पसंद है ,

जुनैद खान जो कि आज कल अपनी जल्द ही रिलीज़ होने वाली फिल्म ‘लवयापा’ के प्रमोशन में व्यस्त हैं जो की 7 फरवरी 2025 को रिलीज हो रही है. जुनैद ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि उनको रिक्शा में ट्रेवल करना ज्यादा पसंद है. जुनैद के अनुसार कार में ट्रैवलिंग के टाइम समय की बर्बादी होती है . क्योंकि ऑटो रिक्शा कहीं से भी पतली गली से भी निकल जाता है जब कि कार चलाते वक्त बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है कार पार्किंग की भी प्रॉब्लम होती है. इसलिए रिक्शा बेस्ट है ,

जुनैद के अनुसार खुशी और वह एक ही समय में घर से निकले थे मैं बांद्रा से आ रहा था और खुशी लोकेशन के पास ही थी , बावजूद इसके मेरे पहुंचने के 10 मिनट बाद खुशी की कार लोकेशन पर पहुंची. इसलिए मेरी हमेशा यही कोशिश रहेगी कि जितना हो सके मैं रिक्शा में ट्रेवल करूं. गौरतलब है मुम्बई में कई सारे एक्टर अपना मुंह छुपा कर समय बचाने के लिए इन दोनों मेट्रो , बाइक या रिक्शे से ट्रेवल कर रहे हैं. ताकि उनको घंटो तक ट्रैफिक में ना फंसना पड़े. जैसे कि अक्षय कुमार हेलमेट पहनकर मोटरबाइक से शूटिंग स्थल पर पहुंचते हैं , ताकि वह समय पर भी पहुंचे और हेलमेट पहने होने से कोई उन्हें पहचान भी नही पाता.

Movie : राशा थडानी के क्रश का नाम सुनकर कियारा के छूटे पसीने

Movie : हाल ही में रवीना टंडन की बेटी राशा थडानी जो अपनी खूबसूरती के लिए फिल्मों में आने से पहले ही चर्चा में रह चुकी है . उसी राशा की पिछले हफ्ते ही रिलीज हुई फिल्म आजाद भले ही फ्लॉप हो गई ,लेकिन उस फिल्म में राशा पर फिल्माया आइटम सॉन्ग उई अम्मा सुपरहिट लिस्ट में शामिल हो गया, आजाद फिल्म भले ही खास नहीं चली लेकिन राशा थडानी अपनी खूबसूरती और डांस की वजह से डिमांड में रही .

आजाद फिल्म प्रमोशन के दौरान राशा ने जब अपने पहले सेलिब्रिटी क्रश के बारे में बताया तो सभी आश्चर्यचकित हो गए और उनका क्रश को लेकर बयान भी वायरल हो गया , क्योंकि राशा ने जिस सेलिब्रिटी का नाम लिया वह सुनकर कियारा आडवाणी तो जरूर टेंशन में आ जाएंगी. क्योंकि राशा का पहला सेलिब्रेटी क्रश कोई और नहीं बल्कि 40 वर्षीय एक्टर सिद्धार्थ मल्होत्रा है.

राशा को सिद्धार्थ बहुत ही क्यूट और हैंडसम लगते है. और राशा भविष्य में सिद्धार्थ के साथ एक फिल्म में काम करने की इच्छा रखती है. बहरहाल सिद्धार्थ मल्होत्रा की आखरी बार फिल्म योद्धा 2024 में रिलीज हुई थी जो जो बुरी तरह फ्लॉप रही.

Bollywood : सवाल सुन कर भड़क उठी थी ऐश्वर्या राय बच्चन

Bollywood :  मिस वर्ल्ड का खिताब पा चुकी ऐश्वर्या राय मॉडलिंग और अभिनय के चलते सिर्फ हिंदुस्तान तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने करियर के शुरुआत से ही हिंदी फिल्मों के साथ-साथ साउथ की फिल्मों में भी अपने अभिनय के जौहर दिखाएं, गौरतलब है सन 2000 में अपने अभिनय करियर की शुरुआत ऐश्वर्या राय ने साउथ की फिल्म से ही की थी.

उसके बाद ऐश्वर्या राय ने हिंदी में कई हिट फिल्में दी जैसे हम दिल दे चुके सनम, ताल .हिंदी फिल्मों के अलावा ऐश्वर्या राय ने हॉलीवुड फिल्मों में भी अपने अभिनय की छाप छोड़ी उसी दौरान यह खबर जोर पकड़ने लगी कि ऐश्वर्या राय भारत छोड़कर विदेश में बसने का प्लान कर रही हैं. और हॉलीवुड में बस कर वहीं पर अपना करियर बनाएंगी, इसी सिलसिले में जब ऐश्वर्या से मीडिया ने हॉलीवुड में सेटल होने को लेकर सवाल पूछा तो वह गुस्से में तिलमिला उठी , और वह पत्रकार पर भड़कते हुए बोली आपके पास क्या सबूत है कि मैंने ऐसा कोई स्टेटमेंट दिया है.

मुझे सबूत दिखाइए कि मैं ऐसा कुछ कहा है किसी इंटरव्यू में? आपको कोई सवाल पूछना है तो पूछे लेकिन इस बयान का श्रेय मुझे बिल्कुल ना दे. मैंने हिंदी के अलावा बंगाली फिल्मों में भी काम किया है तो मैं जाकर साउथ में शिफ्ट नहीं हुई. ऐसे में अगर मैं हॉलीवुड फिल्म कर रही हूं तो जरूरी नहीं कि मैं उस इंडस्ट्री का हिस्सा बन रही हूं . या वहां बसने जा रही हूं.

ऐश्वर्या राय का यह पुराना वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है , जिसमें उन्होंने देश प्रेम की भावना को खुलकर व्यक्त किया है , और ऐश्वर्या की जन्म भूमि और कर्म भूमि मुंबई को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी है. उन्होंने इस बात को साफ तौर पर जाहिर किया है कि भले ही वह किसी भी भाषा में या विदेशी हॉलीवुड फिल्मों में काम करें , लेकिन वह रहेंगी हमेशा इंडियन, और उनका अपना देश छोड़ने का कोई इरादा नहीं है. ना पहले था ना अभी है.

Emotional Story In Hindi : पतझड़ के बाद

Emotional Story In Hindi : ‘‘काजल बेटी, ड्राइवर गाड़ी ले कर आ गया है, बारिश थम जाने के  बाद चली जाती,’’ मां ने खिड़की के पास खड़ी काजल से कहा.

‘‘नहीं, मां, दीपक मेरा इंतजार करते होंगे. मुझे अब जाना चाहिए,’’ कह कर काजल ने मांबाबूजी से विदा ली और गाड़ी में बैठ गई.

बरसात अब थोड़ी थम गई थी और मौसम सुहावना हो चला था. कार में बैठेबैठे काजल के स्मृतिपटल पर अतीत की लकीरें फिर से खिंचने लगीं.

आज यह ड्रामा उस के साथ छठी बार हुआ था. वरपक्ष के लोग, जिन के लिए मांबाबूजी सुबह से ही तैयारी में लगे रहते, काजल से फिर वही जिद की जाती कि वह जल्दी से अच्छी तरह तैयार हो जाए. मेकअप से चेहरा थोड़ा ठीक कर ले पर काजल का कुछ करने का मन न करता. मां के तानों से दुखी हो वह बुझे मन से फिर भी एक आशा के साथ मेहमानों के लिए नाश्ते की ट्रे ले कर प्रस्तुत होती.

पिताजी कहते, ‘बड़ी सुशील व सुघड़ है हमारी काजल. बी.ए. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है.

मां भी काजल के बनाए व्यंजनों की तारीफ करना नहीं भूलतीं पर सब व्यर्थ. वर पक्ष के लोग काजल के गहरे काले रंग को देखते ही मुंह बिचका देते और बाद में जवाब देने का वादा कर मूक इनकार का प्रदर्शन कर ही जाते.

आज भी ऐसा ही हुआ और हमेशा की भांति फिर शुरू हुआ मां का तानाकशी का पुराण. बूआ भी काजल की बदसूरती का वर्णन अप्रत्यक्ष ढंग से करते हुए आग में घी डालने का कार्य करतीं. वैसे हमदर्दी का दिखावा करते हुए कहतीं, ‘बेचारी के भाग्य की विडंबना है. कितनी सीधी और सुघड़, हर कार्य में निपुण है, पर कुदरत ने इसे इतना कालाकलूटा तो बनाया ही अच्छे नाकनक्श भी नहीं दिए. ऐसे में भला कौन सा सुंदर नौजवान शादी के लिए इस के साथ हामी भरेगा. हां, कोई उस से उन्नीस हो तो कुछ बात बन जाए.’

काजल कुछ भी न कह पाती और अपनी किस्मत पर सिसकसिसक कर रो पड़ती. अब तो उस की आंखों के आंसू भी सूखने लगे थे. उस के साथ एक विडंबना यह भी थी कि पैदा होते ही उस की मां चिरनिद्रा में सो गईं. पिताजी ने घर वालों व बहनों के कहने पर दूसरी शादी कर ली.

नई मां जितनी खूबसूरत थी उतनी ही खूबसूरती से उस ने काजल के प्रति प्यार जताया था पर जब से उस ने सोनाली व सुंदरी जैसी खूबसूरत बेटियों को जन्म दिया था काजल के प्रति उस का प्यार लुप्त हो गया था.

काजल इस घर में मात्र काम करने वाली एक मशीन बन कर रह गई थी. छोटी बहनों को घर के काम करने से एलर्जी थी. घर की हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी लदती तो सिर्फ काजल पर. वैसे मां भी जानती थी कि काजल से उसे कितना सहारा है. कभीकभी तो वह कह देती कि काजल न हो तो घर का एक पत्ता भी न हिले पर ये सब औपचारिक बातें थीं.

मां को नाज था तो सिर्फ अपनी बेटियों पर कि उन्हें तो कोई भी राजकुमार स्वयं मुंह से मांग कर ले जाएगा और ऐसा हुआ भी.

बड़ी बेटी सोनाली अपनी सखी की शादी में गई और वहां कुंवर को पसंद आ गई. पिताजी ने तो कहा कि पहले काजल के हाथ पीले हो जाएं. मां के यह कहने पर कि बड़ी के चक्कर में वे अपनी दोनों बेटियों को कुंवारी नहीं रख सकती, वे थोड़ा आहत भी हो गए थे.

बड़ी बेटी सोनाली की शादी के बाद तो मां को बस छोटी बेटी सुंदरी की चिंता थी पर हुआ यह कि जब काजल को 7वीं बार दिखाया गया उस दौरान सुंदरी के रूप की आभा ने मनोहर का मन हर लिया और वह काजल के बजाय सुंदरी को अपनी घर की शोभा बना कर ले गया.

अब रह गई तो सिर्फ काजल. बाबूजी जब कहते कि काजल के हाथ पीले हो जाते तो इस की मां की आत्मा को शांति मिलती तो मां जवाब देने से न चूकती, ‘काजल का विवाह नहीं हुआ तो इस में मेरा क्या दोष. इस का भाग्य ही खोटा है. मैं ने तो कभी कोई कसर नहीं छोड़ी. इस के चक्कर में मैं अपनी बेटियों को उम्र भर कुंवारी तो नहीं रख सकती थी. 32 की तो यह हो गई. मुझे तो 40 तक इस के आसार नजर नहीं आते.’

फिर भी पिताजी काजल के लिए सतत प्रयत्नशील रहते. काजल भी पिता की सहनशक्ति के आगे चुप थी पर जब पिताजी ने फिर से यह ड्रामा एक बार दोहराने को कहा तो काजल में न जाने कहां से पिताजी का विरोध करने की शक्ति आ गई और जोर की आवाज में कह ही दिया, ‘नहीं, अब और नहीं. पिताजी, मुझ पर दया करो. अपमान का घूंट मैं बारबार न पी सकूंगी, पिताजी. मुझ अभागिन को बोझ समझते हो तो मैं नौकरी कर अपना निर्वाह खुद करूंगी.’

काजल ने इस बार किसी की परवा न करते हुए एक बुटीक में नौकरी कर ली. अब उस की दिनचर्या और भी व्यस्त हो गई. घर के अधिकांश कार्य वह सवेरे तड़के निबटा कर नौकरी पर जाती और शाम तक व्यस्त रहती. रात को सारा काम निबटा कर ही सोती.

अब उसे उदासी के लिए समय ही न मिलता. काम में व्यस्त रह कर वह संतुष्ट रहती. उस की कोई सखीसहेली भी नहीं थी जिस के साथ अपना सुखदुख बांटती. परिवार के सदस्यों के बीच उस ने अपने को हमेशा तनहा ही पाया था पर अब उसे विदुषी जैसी एक अच्छी सहेली मिल गई थी. विदुषी ने ही काजल को अपने यहां नौकरी पर रखा था. वह काजल की कार्य- कुशलता व उस के सौम्य स्वभाव से बहुत प्रभावित थी. उस ने काजल को प्रोत्साहित किया कि वह अपने में थोड़ा परिवर्तन लाए और जमाने के साथ चले.

उस ने काजल को चुस्त, स्मार्ट और सुंदर दिखने के सभी तौरतरीके बताए. काजल पर विदुषी की बातों का गहरा प्रभाव पड़ा. उस के व्यक्तित्व में गजब का बदलाव आया था.

एक दिन विदुषी ने काजल को अपने घर डिनर पर आमंत्रित किया. शाम को जब वह उस के घर पहुंची तो  बड़ी उम्र के एक बदसूरत से युवक ने दरवाजा खोला. तभी विदुषी की आवाज कानों में पड़ी, ‘अरे, महेश, काजल को बाहर ही खड़ा रखोगे या अंदर भी लाओगे… काजल, यह मेरे पति महेश और महेश, यह काजल,’ दोनों का परिचय कराते हुए विदुषी ने चाय की ट्रे मेज पर रख दी.

काजल थोड़ा अचंभित थी, इस विपरीत जोड़े को देख कर, ‘सच विदुषी कितनी खूबसूरत, कितनी स्मार्ट है और ऊपर से अपना खुद का व्यापार करती है. कितने खूबसूरत ड्रेसेज का प्रोडक्शन करती है, औरों को भी खूबसूरत बनाती है, और कहां उस का यह पति. काला, मुंह पर चेचक के दाग…’

काजल अभी सोच ही रही थी कि फोन की घंटी बजी. महेश ने फोन रिसीव कर विदुषी और काजल से जाने की इजाजत मांगी. अर्जेंट केस होने की वजह से वह फौरन गाड़ी ले कर रवाना हो गया.

उस के जाने के बाद खाना खाते हुए काजल ने विदुषी से कहा, ‘‘दीदी, क्या आप का प्रेम विवाह…’’

विदुषी ने बात काटते हुए कहा, ‘हां, मेरा प्रेम विवाह हुआ है. मेरे पति महेश भौतिक सुंदरता के नहीं, मन की सुंदरता के मालिक हैं और मुझे ऊंचा उठाने में मेरे पति का ही श्रेय है.  उन्होंने हर पल मेरा साथ दिया.’

विदुषी ने बताया कि एक एक्सीडेंट के दौरान उन का पूरा परिवार खत्म हो गया था और उन के बचने की भी कोई उम्मीद नहीं थी. ऐसे में उन्हें डाक्टर महेश ने ही संभाला और टूटने से बचाया. जहां मन मिल जाते हैं वहां सुंदरताकुरूपता का कोई अर्थ नहीं होता.

काजल यह सुन कर द्रवित हो उठी थी. खाना खत्म कर काजल ने जाने की इजाजत मांगी. विदुषी से विदा हो कर वह कुछ दूर ही चली थी कि उस ने देखा एक स्कूटर सवार तेजी से एक रिकशे को टक्कर मार कर आगे निकल गया. रिकशे में बैठे वृद्ध दंपती अपने पर नियंत्रण न रख सके और वृद्ध पुरुष रिकशे से गिर पड़ा. उस की पत्नी घबरा कर सहायता के लिए चिल्लाने लगी.

सड़क पर ज्यादा भीड़ नहीं थी. काजल भागीभागी उन के  पास पहुंची. उस ने वृद्धा को ढाढस बंधाते हुए उन की दवाइयां जो सड़क पर गिर गई थीं, समेटीं और वृद्ध को सहारा दे कर उठाया. उस की कुहनियां छिल गई थीं और खून बह रहा था. काजल ने पास में ही एक डाक्टर के क्लिनिक पर ले जा कर उस वृद्ध की ड्रेसिंग कराई.

उस वृद्धा ने काजल को आशीर्वाद देते हुए बताया कि वे कुछ ही दूरी पर रहते हैं. तबीयत खराब होने के कारण डाक्टर को दिखा कर घर वापस जा रहे थे. काजल ने उन्हें उन के घर के पास तक छोड़ कर विदा ली.

वृद्ध पुरुष ने, जिन का नाम उमाकांत था, कहा, ‘बेटी, तुम कल आने का वादा कर के जाओ.’

उन्होंने इतने प्यार से, विनम्रता से निवेदन किया था कि काजल इनकार न कर सकी.

घर में घुसते ही मां ने उसे आड़े हाथों लिया. पिताजी ने भी देरी का कारण न पूछते हुए मौन निगाहों से काजल को देखा और बिना कुछ कहे अपने कमरे में चले गए.

सुबह जब काजल ने पिताजी को रात की घटना बताई तो पिताजी बहुत खुश हुए और आफिस से लौटते हुए उमाकांत बाबू का हालचाल पूछ कर आने को कहा. काजल ने विदुषी से दोपहर में ही छुट्टी ले ली और उमाकांत बाबू के घर की ओर चल पड़ी.

काजल को उमाकांतजी और उन की पत्नी से इतना लगाव हो गया कि वह रोज उन से मिलने जाती. उन की सेवा से  उसे एक सुखद अनुभूति होती.

उस दिन वह आफिस जाने के लिए आधा घंटा पहले घर से निकली तो उस के कदम उमाकांतजी के घर की तरफ बढ़ गए. दरवाजा मांजी की बजाय एक लंबे और आकर्षक नौजवान ने खोला. भीतर से उमाकांत बाबू की आवाज आई, ‘अरे, काजल बेटी, चली आओ. मैं बरामदे में हूं.’

उन्होंने काजल से उस नौजवान का परिचय कराते हुए कहा, ‘यह हमारा बेटा दीपक है. आईएएस की ट्रेनिंग पूरी कर के मसूरी से कल ही लौटा है.’

काजल ने धीरे से दीपक से अभिवादन किया.

दीपक ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा, ‘मैं, आप का बहुत आभारी हूं. काजलजी, मेरी अनुपस्थिति में आप ने मेरे मांबाबूजी का खयाल रखा.’

तभी मांजी चाय ले कर आ गइर्ं और बोलीं, ‘दीपक बेटा, यही है मेरी बहू, क्या तुझे पसंद है? और हां, बेटी, तू भी इनकार नहीं करना. मेरा बेटा बड़ा अफसर है, तुझे बहुत खुश रखेगा.’

काजल को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है. उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे. वह रोते हुए बोली, ‘मांजी. आप यह क्या कह रही हैं? आप मेरे बारे में सब कुछ जानती हैं. कहां मैं और कहां दीपक बाबू? फिर मैं आप की पसंद हूं पर आप के बेटे की तो नहीं…’

दीपक, जो चुपचाप खड़े थे, धीमे से मुसकरा कर बोले, ‘देखिए, काजलजी, शादीविवाह की बात तो मांबाप ही तय करते हैं और मैं ने अपनी पसंद अपनी मां से कह दी. क्या आप को कोई आपत्ति है? मुझे आप जैसी ही लड़की की तलाश थी. यदि मैं आप को पसंद नहीं तो…’

‘नहीं, दीपक बाबू, दरअसल, बात यह नहीं…’

‘यह नहीं, तो कहो हां, बोलो हां.’

और फिर काजल भी सभी के साथ हंस पड़ी.

तब उमाकांत बाबू ने काजल को आदेशात्मक स्वर में कहा, ‘बेटी, आज आफिस नहीं, घर जाओ. हम सब शाम को तुम्हारे रिश्ते की बात करने आ रहे हैं.’

शाम को उमाकांत बाबू, दीपक और उस की मां के साथ आए. वे काजल की मंगनी दीपक के साथ तय कर शादी की तारीख भी पक्की कर गए. सभी तरफ खुशी का माहौल था. सभी रिश्तेदार, पासपड़ोसी काजल के भाग्य से चकित थे. मां भी इठला कर कह रही थीं कि मेरी काजल तो लाखों में एक है तभी तो दीपक जैसा उच्च पदस्थ दामाद मिला.

काजल भी सोच रही थी कि दुख के पतझड़ के बाद कभी न कभी तो सुख का वसंत आता है और यह वसंत उस के जीवन में इतने समय बाद आया….

तभी, गाड़ी का ब्रेक लगते ही काजल अतीत से निकल कर वर्तमान में लौट आई. उस ने देखा दीपक उस के इंतजार में बाहर ही खड़े हैं.

कहानी- अंजु गुप्ता ‘प्रिया’

Kahaniyan Tales : संजोग

Kahaniyan Tales : जीवन में कुछ परिवर्तन अचानक होते हैं जो जिंदगी में खुद के दृष्टिकोण पर एक प्रश्नचिह्न लगा जाते हैं. पुराना दृष्टिकोण किसी पूर्वाग्रह से घिरा हुआ गलत साबित होता है और नया दृष्टिकोण वर्षा की पहली सोंधी फुहारों सा तनमन को सहला जाता है. सबकुछ नयानया सा लगता है.

कुछ ऐसा ही हुआ विवेक के साथ. कौसानी आने से पहले मां से कितनी जिरह हुई थी उस की. विषय वही पुराना, विवाह न करने का विवेक का अडि़यल रवैया. कितना समझाया था मां ने, ‘‘विवेक शादी कर ले, अब तो तेरे सभी दोस्त घरपरिवार वाले हो गए हैं. अगर तेरे मन में कोई और है तो बता दे, मैं बिना कोई सवाल पूछे उस के साथ तेरा विवाह रचा दूंगी.’’

विवेक का शादी न करने का फैसला मां को बेचैन कर देता. पापा कुछ नहीं कहते, लेकिन मां की बातों से मूक सहमति जताते पापा की मंशा भी विवेक पर जाहिर हो जाती, पर वह भी क्या करे, कैसे बोल दे कि शादी न करने का निर्णय उस ने अपने मम्मीपापा के कारण ही लिया है. पतिपत्नी के रूप में मम्मीपापा के वैचारिक मतभेद उसे अकसर बेचैन कर देते. एकदूसरे की बातों को काटती टिप्पणियां, अलगअलग दिशाओं में बढ़ते उन के कदम, गृहस्थ जीवन को चलाती गाड़ी के 2 पहिए तो उन्हें कम से कम नहीं कहा जा सकता था.

छोटीबड़ी बातों में उन के टकराव को झेलता संवेदनशील विवेक जब बड़ा हुआ तो शादी जैसी संस्था के प्रति पाले पूर्वाग्रहों से ग्रसित होने के कारण वह विवाह न करने का ऐलान कर बैठा. मम्मीपापा ने शुरू में तो इसे उस का लड़कपन समझा, धीरेधीरे उस की गंभीरता को देख वे सचेत हो गए.

पापा अब मम्मी की बातों का समर्थन करने लगे थे. वे अकसर विवेक को प्यार से समझाते कि सही निर्णय के लिए एक सीमा तक वैचारिक मतभेद जरूरी है. यह जरूर है कि नासमझी में आपसी सवालजवाब सीमा पार कर लेने पर टकराव का रूप ले लेते हैं, पर सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है. समझदारी व आपसी सामंजस्य से विषम परिस्थितियों में भी तालमेल बिठाया जा सकता है.

विवाह जैसी संस्था की जड़ें बहुत गहरी व मजबूत होती हैं. छोटीमोटी बातें वृक्ष को हिला तो सकती हैं, पर उसे उखाड़ फेंकने का माद्दा नहीं रखतीं. उन की ये दलीलें विवेक को संतुष्ट न कर पातीं, लेकिन कौसानी आने पर अचानक ऐसा क्या हुआ कि दिल के जिस कोमल हिस्से को जानबूझ कर उस ने सख्त बना दिया था. उस के द्वारा बंद किए उस के दिल के दरवाजे पर कोई यों अचानक दस्तक दे प्रवेश कर जाएगा, किसी ने कहां सोचा था.

कौसानी में होटल के रिसैप्शन पर रजिस्टर साइन करते समय डा. विद्या के नाम पर उस की नजर पड़ी थी. उस शाम कैफेटेरिया में एक युवती ने बरबस ही उस का ध्यान खींचा.

सांवली सी, बड़ीबड़ी हिरनी सी बोलती आंखें, कमर तक लहराते केश, हलके नीले रंग की शिफान की साड़ी पहने वह सौम्यता की मूर्ति लग रही थी.

विवेक अपनी दृष्टि उस पर से हटा न पाया और बेखयाली में ही एक कुर्सी पर बैठ गया. तभी किसी ने आ कर कहा, ‘‘ऐक्सक्यूज मी, यह टेबल रिजर्व है…’’ उस ने झुक कर देखा तो नीचे लिखा था, डा. विद्या. वह जल्दी से खड़ा हो गया, तभी मैनेजर ने दूसरी टेबल की तरफ इशारा किया और वह उस तरफ जा कर चुपचाप बैठ गया.

‘डा. विद्या’ कितनी देर तक यह नाम उस के जेहन में डूबताउतराता रहा था. वह युवती डा. विद्या की जगह पर बैठ गई. कुछ ही देर में 2 अनजान मेहमान आए और वह उन से कुछ चर्चा करती रही. विवेक की नजरें घूमफिर कर उस पर टिक जातीं. उस के बाद तो यह सिलसिला सा बन गया था.

डा. विद्या के आने से पहले ही उस की महक फिजा में घुल कर उस के आने का संकेत दे देती. विवेक की बेचैन नजरें बढ़ी हुई धड़कन के साथ उसे खोजती रहतीं. उस पर नजर पड़ते ही उस का गला सूखने लगता और जीभ तालु से लग जाती.

वह सोचता कि यह क्या हो रहा है. ऐसा तो आज तक नहीं हुआ. सांवली सी, चंचलचितवन वाली इस लड़की ने जाने कौन सा जादू कर दिया, जिस ने उस का चैन छीन लिया है. कौसानी के ये 4-5 दिन तो जैसे पंख लगा कर उड़ गए. समय बीतने का एहसास तक नहीं हुआ.

कल विवेक के सेमिनार का अंतिम दिन था. उस दिन उस के दोस्त ध्रुव का फोन आया, वह काफी समय से विवेक को कौसानी बुला रहा था. इत्तेफाक से विवेक का सेमिनार कौसानी में आयोजित होने से उसे वहां जाने का मौका मिल गया, लेकिन अचानक ध्रुव को कुछ काम से दिल्ली जाना पड़ा.

इस होटल में ध्रुव ने ही विवेक की बुकिंग करवाई थी. ध्रुव दिल्ली में था, वरना तो वह अपने परम मित्र को कभी भी होटल में नहीं रहने देता. उस की नईनई शादी हुई थी, तो विवेक ने भी ध्रुव की अनुपस्थिति में उस के घर रहना ठीक नहीं समझा.

‘‘हैलो, धु्रव… कहां है यार, मुझे बुला कर तो तू गायब ही हो गया.’’

‘‘माफ कर दे यार, मुझे खुद इतना बुरा लग रहा है कि क्या बताऊं? मैं परसों तक कौसानी पहुंच जाऊंगा. ईशा भी तुझ से मिलना चाहती है. मैं ने उसे अपने बचपन के खूब किस्से सुनाए हैं. तब तक तुम अपना सेमिनार निबटा लो, फिर हम खूब मस्ती करेंगे,’’ ध्रुव ने फोन पर कहा.

दूसरे दिन विवेक का सेमिनार था. होटल आतेआते उसे शाम हो गई थी. वह थक गया था. फ्रैश हो कर वह कैफेटेरिया की तरफ गया. प्रवेश करते ही उस का सामना फिर डा. विद्या से हुआ. वह नाश्ता कर रही थी. हलके गीले बाल, जींस के ऊपर चिकन की कुरती पहने, वह ताजी हवा की मानिंद विवेक के दिल को छू गई.

वह असहज हो गया था. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं. जाने क्यों, उसे ऐसा लगा कि पाले के उस पार बैठी उस युवती के हृदय में भी कुछ ऐसा बवंडर उठा है. क्या वह भी अपने परिचय का दायरा विस्तृत करना चाहती है? वे दोनों ही अनजान बने बैठे थे. उन की नजरें जबतब इधरउधर भटक कर एकदूसरे पर पड़ जातीं. तभी वेटर ने आ कर पूछा, ‘‘आप कुछ लेंगे,’’ तो विवेक को मन मार कर उठना पड़ा. वह समझ गया कि यों अंधेरे में तीर चलाने का कोई फायदा नहीं है.

कमरे में आते ही उस ने अपना लैपटौप निकाला. अपना ईमेल अकाउंट खोला, तो उस में फेसबुक की तरफ से मां का मैसेज देखा. उस लिंक पर जाने पर मां की फ्रैंड्स लिस्ट में एक चेहरे पर उस की नजर पड़ी जिसे देख कर वह चौंक उठा, ‘‘ओ माई गौड, यह यहां कैसे?’’

मां की फ्रैंड्स लिस्ट में डा. विद्या की तसवीर देख उस की आंखें विस्मय से फैल गईं. शायद धोखा हुआ है, परंतु नाम देख कर तो विश्वास करना ही पड़ा. मां कैसे जानती हैं इसे. उस ने पहले तो कभी इस चेहरे पर ध्यान ही नहीं दिया.

विवेक चकरा गया था. शायद मां की मैडिकल एडवाइजर हों. उस ने तुरंत मां को फोन कर के डा. विद्या के बारे में पूछा, तो उन्होंने सहजता से बताया, ‘‘यह तो मेरी डाक्टर है. तुम्हारे दोस्त ध्रुव ने ही तो इस के बारे में बताया था. यह धु्रव की दोस्त है और काफी नामी डाक्टर है यहां की.’’

विवेक की जिज्ञासा चरम पर पहुंचने लगी. उस ने तुरंत फ्रैंड्स लिस्ट के माध्यम से विवेक का फेसबुक अकाउंट खोला, तो उस में भी उस युवती की तसवीर थी. ध्रुव के वालपोस्ट को चैक करने पर उस के द्वारा विद्या को दिया गया मैसेज देखा, जिस में ध्रुव ने विद्या को विवेक के कौसानी आने के बारे में बताया था.

विवेक ने डा. विद्या वाली उलझी गुत्थी को सुलझाने के लिए ध्रुव को फोन लगाया तो लगातार उस का फोन स्विच औफ आता रहा. ईशा भाभी से पूछना कुछ ठीक नहीं लगा. क्यों न हिम्मत कर डा. विद्या से ही बात करूं कि यह माजरा क्या है? पर अब रात बहुत हो चुकी थी. अभी जाना ठीक नहीं है. पूरी रात उस की करवटें बदलते बीती. सुबहसुबह ही उस ने रिसैप्शन से डा. विद्या के बारे में पता किया, तो पता चला मैडम सुबहसुबह ही कहीं निकल गई हैं.

ध्रुव का मोबाइल अभी भी स्विच औफ आता रहा. उस की बेचैनी व उत्कंठा बढ़ती ही जा रही थी. वह रिसैप्शन में ही डेरा डाल कर बैठ गया. अचानक ध्रुव ने प्रवेश किया, वह जैसे ही उस की ओर बढ़ता ईशा से बतियाती डा. विद्या भी साथ आती दिखी. विवेक के कदम वहीं थम गए. उसे पसोपेश में पड़ा देख ध्रुव शरारत से मुसकराया. विद्या एक औपचारिक ‘हैलो’ करती हुई बोली, ‘‘मैं अभी फ्रैश हो कर आती हूं, आज का डिनर तुम दोस्तों को मेरी तरफ से,’’ कह कर वह चली गई.

विवेक को चक्कर में पड़ा देख ध्रुव को हंसी आ गई.

‘‘तुम जानते हो इसे,’’ विवेक ने पूछा तो कंधे उचाकते हुए ध्रुव बोला, ‘‘हां, दोस्त है मेरी, मतलब हमारी पुरानी स्कूल की दोस्ती है.’’

‘‘ऐसी कौन सी दोस्त है तुम्हारी, जिसे मैं नहीं जानता,’’ विवेक बोला.

‘‘तुम नहीं जानते? क्या बात कर रहे हो.’’

‘‘ध्रुव, प्लीज साफसाफ बताओ कौन है ये? तुम ने इसे ईमेल के जरिए यह क्यों बताया कि मैं कौसानी आ रहा हूं.’’

‘‘कमाल है यार, एक दोस्त दूसरे दोस्त के बारे में पूछे तो क्यों न बताऊं,’’ ध्रुव ने कहा.

‘‘ओफ, ध्रुव, अब बस भी करो,’’ विवेक के चेहरे पर झुंझलाहट और उस की विचित्र मनोदशा का आनंद लेता हुआ ध्रुव आराम से सोफे पर बैठ गया और उस की आंखों को देखता हुआ बोला, ‘‘विवेक, तुझे अपनी क्लास टैंथ याद है. सहारनपुर से आई वह झल्ली सी लड़की, जिस के कक्षा में प्रवेश करते ही हम सब को हंसी आ गई थी. जिस से तेरा फ्रैंडशिप बैंड बंधवाना चर्चा का विषय बन गया था. सब ने कितनी खिल्ली उड़ाई थी तेरी.’’

विवेक के चेहरे का रंग बदलता गया और अचानक वह बोला, ‘‘ओ माई गौड, यह वह विद्या है, जिस के तेल से तर बाल चर्चा का विषय थे.

‘‘कितनी हंसती थी सारी लड़कियां. मीरा मैम ने जब डौली को घर से तेल लगा कर आने को कहा तो कैसे हंस कर वह बोली, ‘हम सब के हिस्से का तेल तो विद्या लगाती है न मैम…’ उस की इस बात पर सब कैसे ठहाका लगा कर हंस पड़े थे.’’

विद्या लगभग बीच सैशन में आई थी. मैम ने जब सब से कहा कि विद्या का काम पूरा करने के लिए सब उसे सहयोग करें. उस का काम पूरा करने के लिए अपने नोट्स उसे दे दें, तो विद्या कैसी मासूमियत से ध्रुव की ओर इशारा कर के बोली थी, ‘मैम, ये भैया, अपनी कौपी मुझे नहीं दे रहे हैं.’ उस के भैया शब्द पर पूरी क्लास ठहाकों से गूंज उठी थी. खुद मीरा मैम भी अपनी हंसी दबा नहीं पाई थीं. छोटे शहर की मानसिकता किसी से भी हजम नहीं होती. लड़कियों का तो वह सदा ही निशाना रहती थी.

विद्या पढ़ने में तो तेज थी, लेकिन अंगरेजी उस की सब से बड़ी प्रौब्लम थी. अंगरेजी माध्यम से पढ़ते हुए उसे खासी दिक्कत पेश आई थी. फिर उसे ‘फ्रैंडशिप डे’ का वह दिन याद आया, जब सभी एकदूसरे को फ्रैंडशिप बैंड बांध रहे थे, तो किसी ने विद्या पर कमेंट किया, ‘विद्या तुम से तो हम सब राखी बंधवाएंगे.’ उस की आंखों में आंसू आ गए. बेचारगी से उस ने अपनी मुट्ठी में रखे बैंड छिपा लिए थे.

विवेक को उस बेचारी सी लड़की पर बड़ा तरस आया. सब के जाने के बाद विवेक और धु्रव ने उस से फ्रैंडशिप बैंड बंधवाया, पर यह दोस्ती ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई थी.

एक साल बाद ही विद्या कोटा चली गई. ध्रुव ने बताया कि जुझारू विद्या का मैडिकल में चयन हो गया था.

विवेक मानो स्वप्न से जागा हो. जब उस ने आत्मविश्वास से भरी, मुसकराती हुई डा. विद्या को आते देखा. कोई इतना कैसे बदल सकता है. विद्या ने आते ही विवेक की आंखों में झांक कर पूछा, ‘‘अभी भी नहीं पहचाना तुम ने, मैं ने तो तुम्हें फेसबुक पर कब का ढूंढ़ लिया था, लेकिन तुम्हारी अतीत की स्मृति में बसी विद्या के रूप से डरती थी.’’

ध्रुव ने खुलासा किया कि हम सब ने विद्या को विस्मृत कर दिया था, लेकिन यह तुम्हें कभी भुला न पाई.

विद्या लरजते स्वर में बोली, ‘‘विवेक, तुम्हें तो मालूम भी नहीं होगा कि उम्र के उस नाजुक दौर में मैं अपना दिल तुम्हें दे बैठी थी. मुझे नहीं पता कि कच्ची उम्र में तुम्हारे प्रति मेरा वह एकतरफा तथाकथित प्यार था या महज आकर्षण, पर यह सच है कि स्वयं को तुम्हारे काबिल बनाने की होड़ व जनून ने ही मुझे कुछ कर दिखाने की प्रेरणा व हिम्मत दी. मुझे सफलता के इस मुकाम तक पहुंचाने का एक अप्रत्यक्ष जरिया तुम बने. किस ने सोचा था कि कभी तुम से यों मुलाकात भी होगी.’’

‘‘वह भी इतने नाटकीय तरीके से,’’ कहता हुआ ध्रुव हंस पड़ा, ‘‘पिछले 6 महीने से विद्या के साथ तुम्हारे बारे में ही बातें होती रहीं. तुम्हारी शादी न करने की बेवजह जिद से परेशान हो कर आंटी ने जब मैट्रीमोनियल साइट पर तुम्हारा बायोडाटा डाल दिया था तब आंटी को मैं ने ही विश्वास में ले कर विद्या के बारे में बताया. अब मुसीबत यह थी कि तुम्हारी आशा के अनुरूप तो कोई उतर ही नहीं रहा था. तो हम सब ने यह नाटक रचा.

‘‘तुम कौसानी आए, तो मैं ने झूठ बोला कि मैं दिल्ली जा रहा हूं, ताकि तुम होटल में रुको. विद्या तुम से मिलना चाहती थी, पर बिना किसी पूर्वाग्रह के, हालांकि हमें संदेह था कि कोई यों आसानी से तुम्हारे हृदय में अधिकार जमा भी पाएगी. शायद नियति को भी यह संजोग मंजूर था.’’

‘‘पर तुम मुझे एक बार बताते तो सही,’’ विवेक हैरानी से बोला.

ध्रुव बोल पड़ा, ‘‘ताकि तुम अपनी जिद के कारण अपने दिल के दरवाजे को स्वयं बंद कर देते.’’

तभी मां का फोन आया. उन के कुछ पूछने से पहले ही विवेक बोल उठा, ‘‘मां, तुम्हारी खोज पूरी हो गई है. जल्दी ही मैं एक डाक्टर बहू घर ले कर आ रहा हूं. आप पापा के साथ मिल कर शादी की पूरी तैयारी कर लेना.’’

मां भावुक हो उठी थीं, ‘‘विवेक समस्याएं तो हर एक के जीवन में आती हैं, पर उन से डर कर रिश्ते के बीजों को कभी बोया ही न जाए, यह सही नहीं है. हम ने नासमझी की, पर मेरा बेटा समझदार है और विद्या भी बहुत सुलझी हुई लड़की है. मुझे पूरा विश्वास है कि तुम दोनों समझदारी और संयम, इन 2 पहियों के सहारे अपनी गृहस्थी की गाड़ी चलाओगे.’’

तभी पीछे से ईशा ने विवेक को छेड़ते हुए कहा, ‘‘क्यों विवेक भैया, एक बार फिर एक विश्वामित्र की तपस्या टूट ही गई.’’

विवेक और ध्रुव उस की बात पर जोर से हंस पड़े. विवेक ने विद्या के हाथों को ज्यों ही अपने हाथों में थामा, उस की नारी सुलभ लज्जा व गरिमा ने उस के सौंदर्य को अपरिमित कर दिया.

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