College Romance : इंसान की जिंदगी के कुछ लम्हें ऐसे होते है कि उसे आजीवन भुला पाना संभव नहीं. शेखर काफी मेहनत से अपनी पढ़ाई कर एक अच्छा मुकाम तो हासिल कर लिया पर उस का प्यार, उस की जिंदगी उसे नहीं मिल सकी.
शेखर इस नए शहर में अपनी जिंदगी की नए सिरे से शुरुआत करने आ पहुंचा. आईएएस कंप्लीट करने के बाद उस की पोस्टिंग इसी शहर में हुई. वैसे भी अमृतसर आ कर वह काफी खुश है. इस शहर में वह पहली बार आया है पर ऐसा लगता वह अरसे से इस शहर को जानता हो. आज वह बाजार निकला ताकि अपनी जरूरत की कुछ चीजें खरीद सके.
अचानक एक डिपार्टमैंटल स्टोर में एक चेहरा नजर आया. हां, वह संगीता ही थी और साथ में था उस का पति. शेखर गौर से उसे देखता रहा. संगीता शायद उसे देख नहीं सकी या जानबूझ कर देख कर भी अनदेखी कर दी. वह जब तक संगीता के करीब पहुंचता, संगीता स्टोर से निकल कर अपनी कार में बैठी और चली गई. तब शेखर अपने अतीत में खो गया…
नयानया शहर, नया कालेज, शेखर के लिए सब अपरिचित एवं अजनबी थे. वह क्लास की पीछे वाली बैंच पर बैठ गया. कालेज की चहलपहल काफी अच्छी लगी. पुस्तकें ही उस की साथी थीं और उस का जीवन. बस मन में उठे भावों को कागज पर उतारता और स्वयं ही पढ़ कर काफी खुश होता.
कालेज के वार्षिक सम्मेलन में जब उस की कविता को प्रथम पुरस्कार मिला तो वह सब का चहेता बन गया. प्रोग्राम खत्म होते ही एक लड़की आ कर बोली, ‘‘बधाई हो. तुम तो छिपे रुस्तम निकले. इतना अच्छा लिख लेते हो. तुम्हारी रचना काफी अच्छी लगी. इस की एक कौपी दोगे?’’
शेखर तब उस के आग्रह को टाल न सका. पहली बार गौर से उस की खूबसूरती को निहारा. गोरा रंग, गुलाबी गाल, मदभरे एवं मुसकराते अधर और सब से खूबसूरत लगी उस की आंखें. उस की आंखें बिना काजल के कजरारी लगीं. आंखें भरपूर शोख एवं शरारत भरी थीं. फिर भी शेखर के लिए यह सब कुछ माने नहीं रखता. शेखर ने तो उस की खूबसूरती को शब्दों में कैद कर गीत का रूप दे डाला और संगीता की खिलखिलाहट ने उस के गीत को संगीत का रूप दे डाला. पर यह सब तो कालेज के सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा था. संगीता के स्वर में एक अजीब सी कशिश, एक अजीब सा जादू दिखा.
शेखर जीवन में बहुत बडे़ एवं सुनहरे सपने देखता रहता. पढ़ाई और लेखन बस 2 ही उस के साथी. एक मध्यवर्गीय परिवार में पलाबढ़ा शेखर सदा यही सोचता कि खूब पढ़लिख कर एक काबिल इंसान बने एवं सब की झोली खुशियों से भर दे.
शेखर कालेज की लाइब्रेरी में बैठा अध्ययन कर रहा था. तभी संगीता उस के सामने आ कर बैठ गई. शेखर को ठीक नहीं लगा. उसे पढ़ाई के वक्त किसी का डिस्टर्ब करना अच्छा नहीं लगता. संगीता का पढ़तेपढ़ते धीरेधीरे गुनगुनाना भी अच्छा नहीं लगा. वह गुस्से से उठा और जोर से पुस्तक बंद कर चल पड़ा.
तभी एक मधुर खिलखिलाहट सुनाई पड़ी. पीछे मुड़ कर देखा संगीता की शरारत भरी मुसकान. गुस्सा तो कम हो गया पर अपने अहंकार में डूबा शेखर चला गया.
दूसरे दिन भी वह लाइब्रेरी में बैठा अपनी पढ़ाई कर रहा था. पर आज उस के मन में अजीब हलचल मची थी. बारबार ऐसा आभास होता कि संगीता आ कर बैठेगी, बारबार निगाहें दरवाजे की तरफ उठ जातीं.
थोड़ी देर के बाद संगीता आती दिखाई पड़ी पर आज वह किसी और टेबल पर बैठी. तब चाह कर भी कुछ न कहा. पर आज उस का पढ़ने में दिल न लगा फिर उठ कर गुस्से से पुस्तक बंद कर दी और लाइब्रेरी से उठ कर जाने लगा.
तभी संगीता उठ कर सामने आ गई और घूरघूर कर ऊपर से नीचे तक निहारती रही, मुसकराती रही.
शेखर का पारा और चढ़ने लगा. संगीता तब बहुत ही सहज भाव से बोली, ‘‘मां शारदे का अपमान करना ठीक नहीं पुस्तक की कद्र करोगे तभी मंजिल मिलेगी. मैं ईर्ष्या से नहीं मुसकराती तुम्हारी नादानी पर हंसी आ जाती है. वैसे सदा मुसकराते रहना ही मेरी फितरत है.’’
फिर वह थोड़ी सीरियस हो कर आंखों में आंखें डाल कर उस ने इस कदर निहारा कि शेखर चुपचाप पीछे खिसकता गया और संगीता आगे बढ़ती रही. अतंत: शेखर पुन: उसी बैंच पर बैठ गया और वह सामने बैठ गई. दोनों बस खामोश रहे. शेखर संगीता के इशारे पर पुस्तक खोल कर पढ़ने लगा और संगीता अपने चेहरे के सामने पुस्तक खोल कर मुसकराने लगी.
शेखर संगीता की समीपता भी चाहता और घबराहट भी होती. कालेज के कुछ लोग उस की सुंदरता के इस कदर दीवाने थे कि शेखर उन्हें खटकने लगा. उन की नफरतभरी नजरों से डर लगने लगा. कभीकभी सोचता कि संगीता हालात की असलियत को क्यों नहीं समझती?
शेखर कालेज के गार्डन में अकेला बैठा विचारों में खोया था. तभी संगीता आ पहुंची. बिलकुल करीब बैठ गई और उलाहने भरे स्वर में बोली, ‘‘मैं लाइब्रेरी का चक्कर लगा कर आ रही हूं. लगता है आज पढ़ने का नहीं, लिखने का मूड है तभी गार्डन में आ कर बैठे हो.
शेखर जिस की चिंता से परेशान था उस का करीब आना उसे अच्छा लगा. संगीता ने बैग खोल कर टिफिन बौक्स निकाला और शरारती अंदाज में बोली, ‘‘आ मुंडे, आल दे परांठे खाएं. तुसी तबीयत चंगी हो जाएगी.’’
तब शेखर वाकई में खुल कर हंस पड़ा. उस के सामने जब संगीता ने टिफिन बौक्स खोला तो परांठों की महक से ही शेखर खुश हो गया. दोनों ने जीभर कर परांठे खाए. परांठे खाने के बाद संगीता बोली, ‘‘चलो, अब लस्सी पिलाओ.’’
शेखर सकुचाते हुए बोला, ‘‘अभी क्लास चालू होने वाली है. लस्सी कल पी लेंगे.’’
संगीता तब बेधड़क बोली, ‘‘बडे़े कंजूस बाप के बेटे हो. लस्सी पीने का मन है आज और पिलाना अगले जन्म में. मेरी कुछ कदर है कि नहीं. अभी एक आवाज दूं तो लस्सी की दुकान से ले कर यहां तक लस्सी लिए लड़कों की लाइन लग जाए.’’
शेखर फिर मुसकरा कर रह गया. संगीता तब टिफिन बौक्स समेटती हुई बोली, ‘‘ठीक है चलो मैं ही पिलाती हूं. मेरा बाप बड़ा दिलवाला है. मिलिटरी औफिसर है. एक बार पर्स में हाथ डालते हैं तो जितना नोट निकल आते मुझे दे देते हैं. मुझ पर काफी भरोसा है. वे तो मेरे लिए लस्सी का ड्रम ला दे. किसी की इच्छा पूरी करना सीखो. बस किताबी कीड़ा बने रहते हो. लाइफ आलवेज नीड सम चेंज.’’
‘‘ठीक है, चलो पिलाता हूं लस्सी. अब भाषण देना बंद करो,’’ शेखर आग्रह भरे स्वर में बोला.
‘‘नहीं पीनी है अब,’’ संगीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘जिस ने पी तेरी लस्सी वह समझ फंसी. मैं तो नहीं ऐसी.’’
फिर कालेज के कंपाउंड से निकल कर दोनों बाजार की ओर चल पड़े. चौक पर ही लस्सी की दुकान थी. कुरसी पर बैठते ही संगीता ने एक लस्सी का और्डर दिया. शेखर तब कुतुहल भरी दृष्टि से संगीता को निहारने लगा. संगीता ने टेबल पर सर्व किए गए लस्सी के गिलास को देखा और फिर शेखर को, फिर जोर से हंस पड़ी.
शेखर धीरेधीरे उस की शोखी एवं शरारत से वाकिफ हो गया था. अत: वह लस्सी के गिलास को न देख कर दुकान की छत को निहारने लगा.
संगीता उस के चेहरे के सामने चुटकी बजाते हुए बोली, ‘‘लस्सी इधर टेबल पर है आसमान पर नहीं. अभी देखो एक मजा,’’ कह उस ने आवाज दे कर मैनेजर को बुलाया. उस के करीब आते ही बरस पड़ी, ‘‘इस टेबल पर कितने लोग बैठे है?’’
‘‘2?’’ मैनेजर ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.
‘‘फिर लस्सी 1 ही क्यों भेजी? तुम्हारे आदमी को सम?ा में नहीं आता है?’’ संगीता के तेवर गरम हो गए.
मैनेजर तब गरजते हुए बोला, ‘‘अरे ओ मंजीते. तेरा ध्यान किधर है? कुड़ी द खयाल कर और एक लस्सी और ला.’’
मंजीत यह कह पाता कि मैडम ने 1 ही और्डर दी थी पर कह न सका और उसे काफी डांट खानी पड़ी.
शेखर को यह सब पसंद नहीं आया. संगीता से नाराजगी भरे लहजे में बोला, ‘‘तुम ने और्डर तो 1 ही लस्सी का दिया था फिर उसे डांट क्यों खिलवाई?’’
संगीता तब शरारती लहजे में बोली, ‘‘तुम्हें क्यों इतना बुरा लगा? वह तेरा कोई सगा लगता है क्या? तुम्हें मालूम है, मैं जब भी अकेले लस्सी पीने आती हूं तो या तो वह घूरघूर कर देखता है या फिर लस्सी देर से देता है अथवा फिर लस्सी हाथ में पकड़ाने की कोशिश करता है. आज उसे सबक मिला. अब लस्सी पीयो और दिमाग बिलकुल कूल करो.’’
शेखर ने तब लस्सी पीते हुए कहा, ‘‘तुम हो ही इतनी खूबसूरत कि लोग तुझे निहारे बिना रह नहीं सकते.’’
‘‘फिर चौराहे पर खड़ा कर के नोच डालो न. यह समाज तो मर्दों का है न. खूबसूरत होना गुनाह है?’’ संगीता गुस्से से बोली.
शेखर तब उसे बहलाने के खयाल से बोला, ‘‘अरे लस्सी पी कर लोग कूल होते हैं पर तुम तो गरम हो रही हो.’’
फिर शांत मन से लस्सी पीती हुए बोली, ‘‘एक बार अगर मुझे कुदरत मिल जाए तो यह वर मांगूं कि तुम्हें सिर्फ एक दिन के लिए लड़की बना दे तब तुम सब की नजरों को देखो, उन के चेहरों के भावों को सम?ा, उन की नीयत को पहचानो क्योंकि अभी तो तुम्हें सिर्फ कजरारे नयन और मधुर मुसकान नजर आती है.’’
शेखर एक कड़वी सचाई को सुन कर बिलकुल चुप हो गया.
कई दिनों से संगीता कालेज में नजर नहीं आई. शेखर काफी परेशान हो गया. न कालेज में, न घर में, न अकेले में कही भी दिल लगा.
किसी तरह उस की एक सहेली से पता चला कि वह बीमार है और नर्सिंगहोम में भरती है. वह दौड़ पड़ा नर्सिंगहोम की ओर. संगीता बैड पर लेटी थी. नर्स से पता चला अभी दवा खा कर सोई है. कई रातों से सो न सकी,
नर्स ने शेखर की बदहवासी देख पूछा, ‘‘जगा दूं क्या?’’
पर शेखर का मन बोला कि सोने दो मेरी जान को कितनी हसीन लग रही है. नींद में भी चेहरे पर मुसकान थी. शायद कुदरत ने उसे जी खोल कर ‘मुसकान’ दे डाली. वह नर्स को एक गुलदस्ता एवं एक छोटी सी डायरी दे कर बोला, ‘‘जब नींद से जागे तो दे देना.’’
‘‘आप का नाम?’’ नर्स ने पूछा.
‘‘कहना तुम्हारा मीत आया था. कल फिर आऊंगा.’’
दूसरे दिन भी गया. पता चला कि संगीता को ‘ऐक्सरे रूम’ में ले जाया गया है. वहां उस के मम्मीपापा और काफी रिश्तेदार आ गए. अब शेखर को रुकना उचित नहीं लगा. उस ने पुन: फल, रजनीगंधा के फूल और मैगजीन सब नर्स को सौंपते हुए कहा, ‘‘मेरा कालेज का टाइम हो गया है. ये सब उसे दे दीजिएगा और…’’
‘‘और कह दूंगी तुम्हारे मीत ने दिया है,’’ नर्स ने मुसकराती हुए वाक्य पूरा किया.
शेखर गर्व से मुसकराते हुए लौट गया.
2 दिन के बाद शेखर पुन: हौस्पिटल आया. संगीता अपने बैड पर बैठी थी. शेखर को देखते ही उस के चेहरे पर मुसकान खिल उठी.
शेखर बैड के करीब आ कर बोला, ‘‘सौरी, मैं 2-3 बार आया पर…’’
संगीता बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘मु?ो सब मालूम है. यह डायरी, ये फल, रजनीगंधा के फूल सब मेरे मीत के ही हैं. वैसे भी मैं तुम से सदा अकेले में ही मिलना चाहती हूं. भीड़ में गर तुम न ही मिलो तो ठीक है. वैसे भी मम्मीडैडी तुम्हें लाइक नहीं करते, धर्म के पक्के अनुयायी हैं.’’
शेखर ने उस की खैरियत जाननी चाही.
संगीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘अरे मुझे कुछ नहीं हुआ. बिलकुल ठीक हूं. थोड़ा फीवर हुआ था. तुम्हें बहुत परेशान करती रहती हूं इसीलिए भुगतना पड़ा.’’
‘‘पर तेरी खबर सुन कर तो मेरी नींद ही उड़ गई,’’ शेखर चिंता भरे लहजे में बोला.
संगीता तब इठलाती हुई बोली, ‘‘नींद के मामले में मैं बहुत लकी हूं. जहां भी रहूं सोने से पहले जिस आखिरी इंसान से मेरी मुलाकात होती है. वह तुम हो. बस आंखें बंद कर लेती और सो जाती,’’ कह कर उस ने उसे बहुत ही मस्त नजरों से निहारा.
शेखर भी तब भावुकता में बहते हुए बोला, ‘‘मैं सुबह उठ कर सब से पहले बंद आंखों से जिस का चेहरा देखता हूं. वह हो सिर्फ तुम.’’
बातों ही बातों में संगीता ने बताया, ‘‘आज सुबह ही मम्मीपापा आए थे. डाक्टर ने डिस्चार्ज करने को कहा. दरअसल, वे लोग किसी रिश्तेदार के यहां फंक्शन में गए हैं सुबह लेने आएंगे.’’
‘‘मतलब एक रात और तुम्हें मरीज बन कर यहां रहना पडे़गा,’’ शेखर ने कहा.
‘‘नहीं, अब तुम आ गए न. अब डाक्टर से इजाजत ले लेती हूं. पेपर वगैरह सब रैडी हैं.’’
‘‘पर डाक्टर पूछेगा कि कौन लेने आया है तो क्या बोलोगी?’’ शेखर ने जिज्ञासा प्रकट की.
‘‘हां बोलूंगी कि मेरी सगी बहन के सगे भाई के जीजाजी आए हैं?’’
‘‘मतलब? ’’ शेखर ने आश्चर्यचकित हो पूछा.
‘‘मतलब तुम सम?ो मैं चली डाक्टर से मिलने.’’
संगीता फौरन डाक्टर से इजाजत ले कर
आ गई और अपना सामान समेटने लगी. फिर शेखर ने बैग उठाया और दोनों हौस्पिटल से बाहर निकल पडे़.
रिकशा बुलाने से पहले संगीता ने पूछा, ‘‘कहां चल रहे?’’
‘‘तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा और मैं उसी रिकशे से वापस आ जाऊंगा,’’ शेखर ने सहज भाव से कहा.
‘‘नहीं कहीं घूमने चलो न,’’ संगीता का आग्रह भरा स्वर था.
‘‘अभी तुम्हारी तबीयत नाजुक है. चुपचाप घर चलो,’’ शेखर ने सम?ाते हुए कहा.
‘‘अच्छा, चलो लस्सी पिला दो,’’ वह बच्चे की तरह जिद करती हुई बोली.
शेखर तब भड़क गया, ‘‘तेरा दिमाग तो ठीक है. अभी फीवर से उठी हो और लस्सी?’’
संगीता तपाक से बोली, ‘‘जब तक तुम नहीं मिलते दिमाग ठीक रहता है.’’
‘‘अगर मैं कभी न मिलूं तब तो बिलकुल ठीक रहोगी न?’’ शेखर ने जानबुझ कर सवाल किया.
तब संगीता घबराती हुए बोली, ‘‘अरे, ऐसा सोचना भी मत वरना तुम आगरा में मुमताज का ताजमहल निहारते रहोगे और मैं आगरा के पागलखाने में रहूंगी. वैसे भी आजीवन साथ रहना मुश्किल है, मेरे डैडी बहुत ही सख्त हैं… कुछ लमहे तो जी लूं.’’
शेखर उस की बकबक से तंग आ कर बोला, ‘‘प्लीज, अब रिकशे में बैठो. रास्ते में
थोड़ी देर ‘जूली पार्क’ में बैठेंगे फिर तुम्हें घर
छोड़ दूंगा.’’
थोड़ी देर के बाद दोनों ‘जूली पार्क’ में थे. शाम गहरा गई थी. सूरज की लालिमा अंतिम चरण में थी. अंधकार गहराता जा रहा था. शेखर पेड़ से टिक कर बैठा और संगीता उस की गोद में सिर रख लेट गई.
शेखर की ऊंगलियां संगीता की काली घनी जुल्फों से अठखेलियां करने लगीं. शेखर बिना बोले अपनी नई रचना सुनाता रहा और संगीता उस की गोद में सुकून से लेटी रही. वह वाकई में सो जाती उस से पहले ही शेखर ने उसे जगाते हुए चलने को कहा.
दोनो पुन: रिकशे में बैठ गए. संगीता काफी खुश थी. उस का सारा रोग काफूर हो गया था. शेखर भी संगीता से मिलने के बाद अपनेआप को काफी तरोताजा महसूस करने लगा.
शेखर ने संगीता को उस के घर के सामने ड्रौप करने के लिए रिकशा रुकवाया. सामने संगीता के मम्मीपापा दिखे. आंखों में भरपूर आक्रोश और नफरत दिखी. कुछ कहने के पहले ही संगीता के पापा आगे बढ़ने लगे. पर उस की मां ने उन्हें रोक लिया. संगीता भी माहौल को देखते हुए बिलकुल खामोश रही. रिकशे से उतर कर चुपचाप घर में चली गई.
शेखर का रिकशा आगे बढ़ गया. रास्ते में मजाक में कही संगीता की बात बारबार कचोटती रही… दोनों का प्यार धर्म की भेंट चढ़ जाएगा.
दूसरे दिन शेखर डरतेडरते संगीता के घर के सामने गया. पड़ोसियों से पता चला सारे लोग पंजाब चले गए हैं. शेखर ठगा सा रह गया. उस के पास अब रह गई थीं बस संगीता की यादें और कुछ खूबसूरत लमहे.
अचानक उस के बौडी गार्ड ने उसे खयालों की दुनिया से बाहर निकाला. शेखर को तब अपनी उपस्थिति का एहसास हुआ और थोड़ा झेंप गया. उस की पलकें गीली हो गईं पर गुजरे खूबसूरत लमहों के साथ जीने के लिए आगे बढ़ गया.