Short Kahani 2025 : पिया की चिट्ठी देख क्यों खुश नहीं थी सुधा

Short Kahani 2025 : आज फिर वही चिट्ठी मनीआर्डर के साथ देखी, तो सुधा मन ही मन कसमसा कर रह गई. अपने पिया की चिट्ठी देख उसे जरा भी खुशी नहीं हुई.

सुधा ने दुखी मन से फार्म पर दस्तखत कर के डाकिए से रुपए ले लिए और अपनी सास के पास चली आई और बोली ‘‘यह लीजिए अम्मां पैसा.’’

‘‘मुझे क्या करना है. अंदर रख दे जा कर,’’ कहते हुए सासू मां दरवाजे की चौखट से टिक कर खड़ी हो गईं. देखते ही देखते उन के चेहरे की उदासी गहरी होती चली गई.

सुधा उन के दिल का हाल अच्छी तरह समझ रही थी. वह जानती थी कि उस से कहीं ज्यादा दुख अम्मां को है. उस का तो सिर्फ पति ही उस से दूर है, पर अम्मां का तो बेटा दूर होने के साथसाथ उन की प्यारी बहू का पति भी उस से दूर है.

यह पहला मौका है, जब सुधा का पति सालभर से घर नहीं आया. इस से पहले 4 नहीं, तो 6 महीने में एक बार

तो वह जरूर चला आता था. इस बार आखिर क्या बात हो गई, जो उस ने इतने दिनों तक खबर नहीं ली?

अम्मां के मन में तरहतरह के खयाल आ रहे थे. कभी वे सोचतीं कि किसी लड़की के चक्कर में तो नहीं फंस गया वह? पर उन्हें भरोसा नहीं होता था.

हो न हो, पिछली बार की बहू की हरकत पर वह नाराज हो गया होगा. है भी तो नासमझ. अपने सिवा किसी और का लाड़ उस से देखा ही नहीं जाता. नालायक यह नहीं समझता, बहू भी तो उस के ही सहारे इस घर में आई है. उस बेचारी का कौन है यहां?

सोचतेसोचते उन्हें वह सीन याद आ गया, जब बहू उन के प्यार पर अपना हक जता कर सूरज को चिढ़ा रही थी और वह मुंह फुलाए बैठा था.

अगली बार डाकिए की आवाज सुन कर सुधा कमरे में से ही कहने लगी, ‘‘अम्मां, डाकिया आया है. पैसे और फार्म ले कर अंदर आ जाइए, दस्तखत कर दूंगी.’’

सुधा की बात सुन कर अम्मां चौंक पड़ीं. पहली बार ऐसा हुआ था कि डाकिए की आवाज सुन कर सुधा दौड़ीदौड़ी दरवाजे तक नहीं गई… तो क्या इतनी दुखी हो गई उन की बहू?

अम्मां डाकिए के पास गईं. इस बार उस ने चिट्ठी भी नहीं लिखी थी. पैसा बहू की तरफ बढ़ा कर अम्मां रोंआसी आवाज में कहने लगीं, ‘‘ले बहू, पैसा अंदर रख दे जा कर.’’

अम्मां की आवाज कानों में पड़ते ही सुधा बेचैन निगाहों से उन के हाथों को देखने लगी. वह अम्मां से चिट्ठी मांगने को हुई कि अम्मां कहने लगीं, ‘‘क्या देख रही है? अब की बार चिट्ठी भी नहीं डाली है उस ने.’’

सुधा मन ही मन तिलमिला कर रह गई. अगले ही पल उस ने मर जाने के लिए हिम्मत जुटा ली, पर पिया से मिलने की एक ख्वाहिश ने आज फिर उस के अरमानों पर पानी फेर दिया.

अगले महीने भी सिर्फ मनीआर्डर आया, तो सुधा की रहीसही उम्मीद भी टूट गई. उसे अब न तो चिट्ठी आने का भरोसा रहा और न ही इंतजार.

एक दिन अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई. पहली बार तो सुधा को लगा, जैसे वह सपना देख रही हो, पर जब दोबारा किसी ने दरवाजा खटखटाया, तो वह दरवाजा खोलने चल दी.

दरवाजा खुलते ही जो खुशी मिली, उस ने सुधा को दीवाना बना दिया. वह चुपचाप खड़ी हो कर अपने साजन को ऐसे ताकती रह गई, मानो सपना समझ कर हमेशा के लिए उसे अपनी निगाहों में कैद कर लेना चाहती हो.

सूरज घर के अंदर चला आया और सुधा आने वाले दिनों के लिए ढेर सारी खुशियां सहेजने को संभल भी न पाई थी कि अम्मां की चीखों ने उस के दिलोदिमाग में हलचल मचा दी.

अम्मां गुस्सा होते हुए अपने बेटे पर चिल्लाए जा रही थीं, ‘‘क्यों आया है? तेरे बिना हम मर नहीं जाते.’’

‘‘क्या बात है अम्मां?’’ सुधा को अपने पिया की आवाज सुनाई दी.

‘‘पैसा भेज कर एहसान कर रहा था हम पर? क्या हम पैसों के भूखे हैं?’’ अम्मां की आवाज में गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा था.

‘‘क्या बात हो गई?’’ आखिर सूरज गंभीर हो कर पूछ ही बैठा.

‘‘बहू, तेरा पति पूछ रहा है कि बात क्या हो गई. 2 महीने से बराबर खाली पैसा भेजता रहता है, अपनी खैरखबर की छोटी सी एक चिट्ठी भी लिखना इस के लिए सिर का बोझ बन गया और पूछता है कि क्या बात हो गई?’’

सूरज बिगड़ कर कहने लगा, ‘‘नहीं भेजी चिट्ठी तो कौन सी आफत आ गई? तुम्हारी लाड़ली तो तुम्हारे पास है, फिर मेरी फिक्र करने की क्या जरूरत पड़ी?’’

सुधा अपने पति के ये शब्द सुन कर चौंक गई. शब्द नए नहीं थे, नई थी उन के सहारे उस पर बरस पड़ी नफरत. वह नफरत, जिस के बारे में उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

सुधा अच्छी तरह समझ गई कि यह सब उन अठखेलियों का ही नतीजा है, जिन में वह इन्हें अम्मां के प्यार पर अपना ज्यादा हक जता कर चिढ़ाती रही है, अपने पिया को सताती रही है.

इस में कुसूर सिर्फ सुधा का ही नहीं है, अम्मां का भी तो है, जिन्होंने उसे इतना प्यार किया. जब वे जानती थीं अपने बेटे को, तो क्यों किया उस से इतना प्यार? क्यों उसे इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि वह इस घर की बेटी नहीं बहू है?

अम्मां सुधा का पक्ष ले रही हैं, यह भी गनीमत ही है, वरना वे भी उस का साथ न दें, तो वह क्या कर लेगी. इस समय तो अम्मां का साथ देना ही बहुत जरूरी है.

अम्मां अभी भी अपने बेटे से लड़े जा रही थीं, ‘‘तेरा दिमाग बहुत ज्यादा खराब हो गया है.’’

अम्मां की बात का जवाब सूरज की जबान पर आया ही था कि सुधा बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘यह सब अच्छा लगता है क्या आप को? अम्मां के मुंह लगे चले जा रहे हैं. बड़े अच्छे लग रहे हैं न?’’

‘‘चुप, यह सब तेरा ही कियाधरा है. तुझे तो चैन मिल गया होगा, यह सब देख कर. न जाने कितने कान भर दिए कि अम्मां आते ही मुझ पर बरस पड़ीं,’’ थोड़ी देर रुक कर सूरज ने खुद पर काबू करना चाहा, फिर कहने लगा, ‘‘यह किसी ने पूछा कि मैं ने चिट्ठी क्यों नहीं भेजी? इस की फिक्र किसे है? अम्मां पर तो बस तेरा ही जादू चढ़ा है.’’

‘‘हां, मेरा जादू चढ़ा तो है, पर मैं क्या करूं? मुझे मार डालो, तब ठीक रहेगा. मुझ से तुम्हें छुटकारा मिल जाएगा और मुझे तुम्हारे बिना जीने से.’’

अब जा कर अम्मां का माथा ठनका. आज उन के बच्चों की लड़ाई बच्चों का खेल नहीं थी. आज तो उन के बच्चों के बीच नफरत की बुनियाद पड़ती नजर आ रही थी. बहू का इस तरह बीच में बोल पड़ना उन्हें अच्छा नहीं लगा.

वे अपनी बहू की सोच पर चौंकी थीं. वे तो सोच रही थीं कि उन के बेटे की सूरत देख कर बहू सारे गिलेशिकवे भूल गई होगी.

अम्मां की आवाज से गुस्सा अचानक काफूर गया. वे सूरज को बच्चे की तरह समझाने लगीं, ‘‘इस को पागल कुत्ते ने काटा है, जो तेरी खुशियां छीनेगी? तेरी हर खुशी पर तो तुझ से पहले खुश होने का हक इस का है. फिर क्यों करेगी वह ऐसा, बता? रही बात मेरी, तो बता कौन सा ऐसा दिन गुजरा, जब मैं ने तुझे लाड़ नहीं किया?’’

‘‘आज ही देखो न, यह तो किसी ने पूछा नहीं कि हालचाल कैसा है? इतना कमजोर कैसे हो गया तू? तुम को इस की फिक्र ही कहां है. फिक्र तो इस बात की है कि मैं ने चिट्ठी क्यों नहीं डाली?’’ सूरज बोला.

अम्मां पर मानो आसमान फट पड़ा. आज उन की सारी ममता अपराधी बन कर उन के सामने खड़ी हो गई. आज यह हुआ क्या? उन की समझ में कुछ न आया.

अम्मां चुपचाप सूरज का चेहरा निहारने लगीं, कुछ कह ही न सकीं, पर सुधा चुप न रही. उस ने दौड़ कर अपने सूरज का हाथ पकड़ लिया और पूछने लगी, ‘‘बोलो न, क्या हुआ? तुम बताते क्यों नहीं हो?’’

‘‘मैं 2 महीने से बीमार था. लोगों से कह कर जैसेतैसे मनीआर्डर तो करा दिया, पर चिट्ठी नहीं भेज सका. बस, यही एक गुनाह हो गया.’’

सुधा की आंखों से निकले आंसू होंठों तक आ गए और मन में पागलपन का फुतूर भर उठा, ‘‘देखो अम्मां, सुना कैसे रहे हैं? इन से तो अच्छा दुश्मन भी होगा, मैं बच्ची नहीं हूं, अच्छी तरह जानती हूं कि भेजना चाहते, तो एक नहीं 10 चिट्ठियां भेज सकते थे.

‘‘नहीं भेजते तो किसी से बीमारी की खबर ही करा देते, पर क्यों करते ऐसा? तुम कितना ही पीछा छुड़ाओ, मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाली.’’

अम्मां चौंक कर अपनी बहू की बौखलाहट देखती रह गईं, फिर बोलीं, ‘‘क्या पागल हो गई है बहू?’’

‘‘पागल ही हो जाऊं अम्मां, तब भी तो ठीक है,’’ कहते हुए बिलख कर रो पड़ी सुधा और फिर कहने लगी, ‘‘पागल हो कर तो इन्हें अपने प्यार का एहसास कराना आसान होगा. किसी तरह से रो कर, गा कर और नाचनाच कर इन्हें अपने जाल में फंसा ही लूंगी. कम से कम मेरा समझदार होना तो आड़े नहीं आएगा,’’ कहतेकहते सुधा का गला भर आया.

सूरज आज अपनी बीवी का नया रूप देख रहा था. अब गिलेशिकवे मिटाने की फुरसत किसे थी? सुधा पति के आने की खुशियां मनाने में जुट गई. अम्मां भी अपना सारा दर्द समेट कर फिर अपने बच्चों से प्यार करने के सपने संजोने लगी थीं.

Emotional Story In Hindi : अपनी मंजिल

Emotional Story In Hindi : “मां, मैं आप से बारबार कह चुकी हूं कि अभी शादी नहीं करूंगी. मुझे अभी आगे पढ़ाई करनी है,” सुदीपा ने मां के समीप जा कर बड़े प्यार से कहा.

“सुदीपा बेटा, क्या खराबी है लड़के में? इंजीनियर है, ऊंचे खानदान और रसूख वाला है. तेरे पापा के मित्र का लड़का है और अच्छी आमदनी है उस की. शुक्र मनाओ कि जिस शानदार और आरामदायक जिंदगी जीने के लिए अधिकतर लड़कियां केवल सपने देखती आई हैं, वे सारी खुशियां तुम्हें बिना मांगे ही मिल रहा है. 2 हजार गज में बनी शानदार कोठी है उन की…

“दसियों नौकरचाकर वहां एक आवाज पर हाथ बांधे खडे रहते हैं. इतने योग्य और गुणवान लड़के का रिश्ता खुद चल कर तुम्हारे पास आया है. सारे सुख व ऐश्वर्य हैं उस घर में. और क्या चाहिए तुम्हें…” मां ने नाराजगी जाहिर करते हुए सुदीपा के गाल पर हलकी सी चपत लगाई .

मां के गले से लिपटती सुदीपा बोली,”मेरी प्यारी मां, मुझे आगे बढ़ने के लिए पढ़ाई करनी है अभी. मुझे अभी योग्य शिक्षिका बनना है, जिस से कि अपने भीतर समाए ज्ञान को अन्य को बांट सकूं,” सुदीपा मां को मनाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही थी, क्योंकि मां के इनकार करने पर ही यह रिश्ता टल सकता था.

“सुदीपा, तुम एक बार उस लड़के से मिल कर देख तो लो,” सुदीपा को विचार में डूबा देख कर मां ने उस पर आखिरी बात छोड़ते हुए कहा.

एमए की हुई सुदीपा गोरीचिट्टी, लंबी, छरहरी काया वाली आकर्षक युवती थी. संगीत विशारद में विशेष योगदान हेतु गोल्ड मैडलिस्ट थी. उस के पड़ोसी, परिचित, नातेरिश्तेदार आदि सभी सुदीपा के सुंदर व्यक्तित्व एवं हंसमुख व्यवहार की प्रशंसा किए
बिना नहीं रहते थे. जैसे अधिकतर लोग रूपसौंदर्य और सुगढ़ता को देख कर अनायास ही कह उठते हैं कि कुदरत ने इसे बहुत फुरसत में गढ़ा होगा, ऐसे ही रूपवती सुदीपा जब गजगामिनी चाल की मंथर गति से चलती थी तब अनेक चाहने वाले उसे पाने की तमन्ना रखते थे.

मन ही मन उसे चाहने वाले आहें भरते थे और सुदीपा से मिलने के बहाने ढूंढ़ा करते थे. वह तो अपनेआप में खुश रहने वाली मस्त लड़की थी. सुदीपा की कमर तक लहराते बाल बिजलियां गिराती थीं. पतलीपतली और लंबी उंगलियां जब सितार पर राग छेड़तीं तो उसे देखनेसुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते.

मां का कहना मान कर एक दिन सुदीपा समीर नाम के उस लड़के से मिली. वह लड़का उसे सुंदर लगा. रूपरंग, व्यक्तित्व के अनुसार वह सुदर्शन नवयुवक था. 2-4 मुलाकातों के बाद सुदीपा को समीर पसंद आ गया था. संयोग से तभी सुदीपा को कालेज में अध्यापिका की नौकरी भी मिल गई थी.

सुदीपा के मम्मीपापा सगाई कर के ही उसे नौकरी पर जाने देने की जिद कर रहे थे. इसलिए मम्मीपापा का दिल रखने के लिए उस ने सगाई की हामी भर दी. नौकरी पर जाने से पहले ही दोनों की धूमधाम से सगाई हो गई थी.

कोमल कुआंरे मन में सुंदर जीवन के अनेक रंगीन सपने सजाए सुदीपा कालेज में पहुंच गई. वह दिल्ली शहर की एक सोसायटी फ्लैट में किराए पर रहने लगी. सगाई हो जाने के कारण समीर काम के सिलसिले में जब दिल्ली आता तो सुदीपा से मिलने चला आता था. दोनों तरफ से रिश्ते की डोर मजबूत हो जाए, एकदूसरे को अच्छी तरह से जानसमझ लें,
इस के लिए वे किसी रेस्तरां में कौफी पीने या कभी डिनर करने चले जाते थे. कभीकभी कोई अच्छी और नई मूवी साथ देखने के लिए मौल भी चले जाते थे.

ऐसे ही उन के बीच प्यार भरी मेलमुलाकातों का सिलसिला जारी था. अब सुदीपा और समीर के बीच घनिष्ठता भरे संबंध पनपने लगे थे. मगर इधर कुछ दिनों से सुदीपा ने एहसास किया था कि समीर में शिष्टाचार और विनम्रता जैसे संस्कारी गुण बहुत कम थे. उस ने कई बार समीर को फोन पर अपनी बात मनवाने के लिए सामने वाले को दबंग टाइप से हड़काते हुए भी सुना था.सुदीपा के साथ होने पर भी लापरवाह सा समीर फोन पर अकसर गालीगलौच कर दिया करता था. सुदीपा आधुनिक और खुले विचारों को दिल में जगह देने वाली संस्कारी और मृदुभाषी लडकी थी.

एक दिन सुदीपा कुछ खरीदारी कर के सोसायटी में प्रवेश कर रही थी. उस के दोनों हाथों में सामान था कि तभी अचानक हाई हील सैंडिल के कारण उस का संतुलन बिगड़ गया और वह डगमगा कर नीचे गिर पड़ी.तभी अचानक एक हाथ ने सहारा दे कर उसे उठाया,”अरे, आप को तो काफी चोटें लगी हैं. मैं आप का सामान समेट देता हूं…” अपने सामने गोरेचिट्टे, लंबे कद के सुंदर नाकनक्श वाले लड़के की आवाज सुन कर वह अचकचा गई.

उस की कुहनियां छिल गई थीं. पैर में मोच आ गई थी. उस लड़के ने अपने कंधे पर उस का हाथ पकड़ कर सहारा दिया,”आइए, मैं आप को कमरे तक छोड़ देता हूं,” वह चुपचाप लगंडाते हुए उस के साथ चल पड़ी.

टेबल पर सामान रख कर लड़के ने कहा,”मैं फस्ट ऐड बौक्स ला कर पट्टी बांध देता हूं,” अब वह लड़का ड्रैसिंग कर रहा था.

वह अब तक स्वयं को काफी संभाल चुकी थी. अकेले कमरे में अनजान लड़के के हाथ में अपना हाथ देख कर सुदीपा के मन को भारतीय संस्कार और परंपराएं घेरने लगीं. लेकिन वह लड़का बड़ी सहजता से उस के हाथ पर दवा लगा कर पट्टी बांध रहा था. उस लड़के के स्पर्श से सुदीपा असहज और रोमांचित हो रही थी,”अब तुम आराम करो मैं चाय बना लाता हूं,” थोड़ी देर में वह ट्रै में चाय और बिस्कुट ले आया.

वे दोनों कुछ देर एकदूसरे के परिवार के बारे में बात करते रहे. चलते समय उस ने एक गहरी नजर डाली और अपना फ्लैट नंबर बता कर बोला,”कोई भी जरूरत हो तो मुझे बता देना. संकोच मत करना…”

जब तक उस के पैर की मोच ठीक नहीं हो गई तब तक वह रोज उस के लिए कभी चाय बना कर लाता, तो कभी सैंडविच ले आता. बाहर से एकसाथ खाना भी और्डर कर देता फिर दोनों साथ ही खाना खाते.

सुदीपा के के मन में प्रेम का पहला एहसास फूटा था. एक अनजान कोमल स्पर्श दिल में तरंगित हो कर रमने लगा था. वह अपने घरसमाज की वर्जनाएं जानती थी. संस्कारित परंपराओं के बंधन में बंधने के बाद भी रूमानियत से भीगा एहसास बंजर मरूस्थल में हरा होने लगा था. समीर का साथ पा कर उस ने कभी ऐसा स्पर्श, स्नेह व अपनेपन का एहसास नहीं जाना था.

सुदीपा के मन की भीतरी परतों में शेखर के प्रति रोमांस का बीज पनपने लगा. शेखर बहुत अपनेपन से उस की देखभाल कर रहा था. उस का साथ मिलने के कारण उसे किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई थी .
अब वह ठीक हो कर कालेज जाने लगी थी.

रात के 8 बज रहे थे. गुलाबी रंग की कैप्री के साथ मैंचिग टौप में लंबी खुली केशराशि के बीच सुदीपा ऐसी लग रही थी जैसे श्यामल घटाओं के बीच दूधिया चांद खिला हो. उस ने मैंचिग ईयर टौप्स के साथ गले में छोटे मोतियों की माला पहनी थी. आज वह बहुत खुश थी. उस का गुलाब की तरह खिला खिला रूप सौंदर्य चित्ताकर्षक था. खुद को आईने में देख कर वह स्वयं ही लजा गई. वह रसोईघर में जा रही थी कि अचानक से बेल बजी. दरवाजा खोल कर देखा तो सामने समीर खडा था,”अरे, समीर तुम?” अकस्मात समीर को सामने देख कर वह अचकचा गई.

“हां मेरी जान, तुम्हारा समीर…” कहतेकहते समीर ने उसे बांहों में उठा कर 3-4 गोल चक्कर से घुमा दिया.

“आज तो तुम बेहद खूबसूरत और रूप की रानी लग रही हो. किस पर बिजली गिराओगी,” समीर ने रोमांटिक अंदाज में कहते हुए खींच कर उसे अपने सीने से लगाना चाहा.

तेज शराब के भभके से सुदीपा का तनमन जलने लगा. वह चिहुंक कर दूर जा खडी हुई. समीर ने आगे बढ़ कर उस की कलाई पकड़ ली. उस ने हाथ छुड़ा कर दूर जाने का प्रयत्न किया, लेकिन समीर की पकड़ से छूट नहीं सकी. समीर जोरजबरदस्ती करने लगा. यों अचानक ऐसे किसी हालात का सामना करना पड़ेगा, उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.सुदीपा का दिलदिमाग सुन्न हो गया. समीर की बांहों में कसमसा कर दरवाजा खोलते हुए बोली,”समीर, अभी तुम होश में नहीं हो, जाओ.अभी होटल चले जाओ और कल आना.”

“क्यों, कल क्यों मेरी जान, जो होना है आज ही होने दो न. अब तो हम दोनों की शादी भी होने वाली है. इसलिए तुम तो मेरी हो.”

शादी होने वाली है, हुई तो नहीं है न.
फिलहाल, मैं तुम से कोई बात नहीं करना चाहती. प्लीज, तुम यहां से चले जाओ,” सुदीपा ने संयत स्वर में उसे समझाने की कोशिश की.

मगर अपनी मनमरजी पर उतारू समीर ने उस की एक नहीं सुनी. पुरुषत्व के दर्प में चूर, शराब के नशे में मदहोश, समीर के भीतर का जानवर जनूनी हो गया. अपने मंसूबे पूरे न होते देख अब समीर बदतमीजी पर उतर आया. उस के हाथ में सुदीपा का टौप आ गया. जबरदस्ती खींचते हुए टौप चर्रचर्र… कर फटता चला गया.

“यू ब्लडीफूल, तेरी इतनी हिम्मत. तू मुझे मना करती है… अरे, तेरे जैसी पचासों लड़कियां मेरे आगेपीछे घूमती हैं. तू समझती क्या है अपनेआप को…मैं जिस चीज पर हाथ रख देता हूं, वह मेरी हो जाती है…” नशे में समीर की लड़खड़ाती जबान से अंगार बरसने लगे.

जैसे ही वह सुदीपा को पकड़ने के लिए बढ़ा नशे की झोंक में लहराते हुए पीछे को गिर पड़ा. अपनी अस्मिता पर प्रहार होता देख सुदीपा रणचंडी बन गई. उस में न जाने कहां से इतनी शक्ति आ गई कि त्वरित ताकत से मेज पर रखा चाकू हाथ में ले कर डगमगाते समीर को पूरी शक्ति से बाहर धकेल दिया और बिजली की फुरती से दरवाजा बंद कर लिया. समीर बहुत देर तक दरवाजे पर आवाजें देता रहा, लेकिन उस के कान जैसे बहरे हो चुके थे. वह दरवाजे से लगी फूटफूट कर रोने लगी.

वह स्वयं को संयत कर उठी और कटे पेड़ की भांति पलंग पर गिर पड़ी. बिस्तर पर लेटी तो लगा जैसे समीर की ओछी सोच में लिपटे हाथ लंबे हो कर उस की ओर बढ़ रहे हैं. उस ने घबरा कर आंखे बंद कीं तो समीर की लाल घूरती आंखें देख सूखे पत्तों सी कांपने लगी.

सूरज चढ़ आया था. पूरी रात आंखों में कट गई. वह उस दिन को कोस रही थी जब समीर के साथ उस की सगाई हुई थी. लगाव रूमानियत से भीगे मीठे एहसास का प्रेममयी भाव सोच कर शेखर का चेहरा उस की आंखों के समक्ष तैर उठा. उसे इन दोनों की जेहनी सोचसमझ में जमीनआसमान का फर्क नजर आ रहा था.

मोबाइल की घंटी बजने पर न चाहते हुए भी देखा तो मां का फोन था,”मां खुशी से चहकते हुए बता रही थीं,”बेटा, सुबह तुम्हारे पापा के पास समीर के पापा का फोन आया था. वह इसी महीने शादी करने के लिए जोर डाल रहे हैं. कहते हैं कि अगले माह समीर विदेश जा रहा है. वह जल्दी ही तुम दोनों को विवाह बंधन में बांधना चाहते हैं.”

“नहींनहीं… मां, मैं समीर से शादी नहीं करूंगी. मैं उस की शक्ल भी देखना नहीं चाहती. आप मुझे समीर के साथ विवाह की सूली पर मत टांगना. मैं जी नहीं सकूंगी,” कहतेकहते उस की रुलाई फूट पड़ी.

“क्या बात है बेटा? तुम बहुत परेशान लग रही हो,” मां के स्वर में चिंता झलकने लगी.

“हां मां, यहां बहुत कुछ घटा है,” और
उस ने मां को रात की सारी घटना बता दी,”मां, पत्नी का दिल जीतने के लिए पति के मन में भावनात्मक लगाव होता है. पर समीर केवल वासना का लिजलिजा कीडा़ निकला.उसे बस मेरा जिस्म चाहिए था, जिसे वह जबरदस्ती हासिल कर के अपनी मर्दानगी की मुहर लगाना चाहता था. उसे मेरी खुशियों से कोई सरोकार नहीं है…

“मेरी अपनी मंजिल समीर कभी नहीं हो सकता,” कह कर वह बच्चों की तरह बिलखने लगी.

सारी सचाई जान कर मां की आंखों से समीर के गुणी और लायक वर होने का परदा हट चुका था,”अच्छा सुदीपा… बेटा… तू रोना बंद कर और बिलकुल चिंता मत कर. अच्छा ही हुआ कि हमें उस की औकात शादी से पहले पता चल गई,”मां ने बेटी को धीरज बंधाया,” मैं और पापा आज तुम्हारे पास आ रहे हैं. मैं हूं न… तुम्हारी मां अब सब संभाल लेगी…”

सुदीपा ने इत्मीनान की सांस ले कर फोन रख दिया.

Online Best Kahani : सुबह अभी हुई नहीं थी

Online Best Kahani : सूरज निकलने में अभी कुछ वक्त और था. रात के कालेपन और सुबह के उजालेपन के बीच जो धूसर होता है वह अपने चरम पर चमक रहा था. चारों तरफ एक सर्द खामोशी छाई हुई थी. इस मुरदा सी खामोशी का हनन तब हुआ जब मीनल एकाएक हड़बड़ा कर उठ बैठी. वह कुछ इस तरह कांप रही थी जैसे उस के शरीर के भीतर बिजली सी कौंधी हो. उस की सांसें लगभग दौड़ रही थीं.

अपने आसपास देख उसे कुछ राहत हुई और उस ने तसल्ली जैसी किसी चीज की ठंडी आह भरी. वह एक बुरा सपना था. उसे अपने सपने पर खीज हो आई. ज्यादा खीज शायद इस बाबत कि आज भी कोई बुरा सपना आने पर वह बच्चों सी सहम जाती है. उस ने घड़ी की और देखा तो एक नई निराशा ने उसे घेर लिया. वह घंटों का जोड़भाग करती कि उसे याद हो आया की कमरे में वह अकेली नहीं है. उसे हैरत हुई कि जो कुछ सामने हो उसे कितनी आसानी से भूला जा सकता है. वह धीमे कदमों से हौल की तरफ बढ़ी. उसे यह देख राहत हुई की उस की हलचल से रजत की नींद में कोई खलल नहीं पड़ा था.

वह अपना सपना भूल एकटक रजत को निहारने लगी. जिसे आप प्रेम करते हों उसे चैन से सोते हुए देखना भी अपनेआप में एक बहुत बड़ा सुख होता है. वह खड़ी हुई और धीमे कदमों से, पूरी सावधानी बरतते हुए ताकि कोई शोर न हो, कमरे में टहलने लगी. अनायास ही कांच की लंबी खिड़की के सामने आ कर उस के कदम ठिठक गए. उस की नजर कांच की लंबी खिड़की से बाहर पड़ी तो उस की आखों में जादू भर आया.

खूब घने पाइन और देवदार के पेड़. हर जगह बर्फ और धीमी पड़ती बर्फबारी. दूर शून्य में दिखती हुई पहाड़ों की एक धुंधली सी परछाई. उसे ऐसा लग रहा था जैसे यह लैंडस्केप वास्तविकता में न हो कर किसी महान चित्रकार की उस के सामने की गई कोई पेंटिंग हो. यह नायाब नजारा धीरेधीरे उस के भीतर उतरने लगा.

अब उस के और इस अद्भुत नजारे के बीच बस कांच का एक टुकड़ा था, जैसे वह अपनी पूरी ताकत लगा बाहर की दुनिया के खुलेपन को मीनल के भीतर के बंद से मैला होने से बचाने की जद्दोजेहद में हो. मीनल को लगा जैसे उस की अपनी इस दुनिया से केवल 2 कदम दूर कोई दूसरी, बहुत ही खूबसूरत दुनिया बसती है, जैसे पहली बार उस की अपनी दुनिया और वह जिस दुनिया में होना चाहती है उन के बीच एक ऐसा फासला है जिसे वह सचमुच तय कर सकती है. उस ने मन ही मन कुछ निश्चय किया और शायद वहीं कुछ एक चिट में लिख शीशे पर चिपका कर और ठंड के मुताबिक कपड़े पहन अपने कमरे से बाहर आ गई.

मीनल को इस वक्त कोई जल्दी नहीं थी. वह बर्फ की फिसलन से बचते हुए, धीमे और सधे कदमों से आगे बढ़ने लगी. उस का बस चलता तो वह वक्त की धार को रोक इसी पल में सिमट जाती. शायद वह खुद को पूरा सोख लेना चाहती थी.

चलतेचलते उसे लगा कि यह वही समय है जब सबकुछ बहुत दूर नजर आता है, हमारी पहुंच से बिलकुल बाहर. रह जाते हैं केवल हम और बच जाता है हमारा नितांत अकेलापन या मीठा एकांत. वही समय है जो हमें परत दर परत खोलते हुए खुद ही के सामने उधेड़ कर रख देता है. हम अपने भीतर झांकते हैं, साहस से या किसी मजबूरीवश और खुद को आरपार देखते हैं.

पहले घड़ी देखने के बाद जो घंटों का हिसाब करना रह गया था, वह अब सालों के हिसाब का रूप ले चुका था. शायद सच ही है, जो कुछ भी हम सोचते हैं, करते हैं वह हम तक वापस लौटता है और वह भी इसी जीवन में.

मीनल चलते हुए बहुत दूर जा पहुंची थी और अब आसपास कोई जगह देखने लगी थी. जिस जगह वह बैठी वहां से दूर की पहाड़ियां भी एकदम साफ दिख रही थीं. शायद इसलिए ही उस ने यह जगह चुनी. उसे पहाड़ों से एक लगाव हमेशा से रहा था.

दूर पहाड़ियों की चोटियों पर पड़ी बर्फ की सफेद चादर उसे इस कदर आकर्षित करने लगी कि उस ने वह बर्फ नजदीक से देखने की जगह अगले जन्म बर्फ की चादर हो जाने की कामना की. होने को तो जिस पगडंडी पर चल कर वह इस जगह तक आई थी ढेर सारा बर्फ वहां भी जमा था, लेकिन उस की सतह से वह साफ सफेद होने की जगह धूल से मटमैली हो दागदार सी प्रतीत होती थी. यही कारण रहा होगा जिस की वजह से इस बर्फ ने उसे इस कदर प्रभावित नहीं किया. न ही उस ने इस बर्फ से गोले बना हाथों से कुछ खेलने की कोशिश की और न ही इस की छुअन के ठंडेपन को महसूस तक किया. वह उस के होने को जैसे नकार कर बिना कोई दिलचस्पी दिखाए आगे बढ़ती गई थी.

शायद जब हम किसी चीज को दूर से देखते हैं तो उस अनजान के झुरमुट में भी कुछ सुखद होने की आशा ही हमें विस्मित करती है. जब तक हम उस अनजान को नहीं जानते और उस के पास नहीं पहुंच जाते हमारा यह भ्रम बना रहता है और जैसे ही हम उस अनजान के नजदीक पहुंचते हैं हमारा यह भ्रम कुछ यों बिखरता है मानों भीतर बहुत कुछ टूट गया हो, ऐसा टूट जो किसी की नजर में आने का मोहताज नहीं होता. जिस टूट को केवल हम देख सकते हैं, जिस की पीड़ा केवल और केवल हम खुद महसूस कर सकते हैं.

पहाड़ों के सौंदर्य और सुनहले पुराने दिनों के बीच जरूर कोई अदृश्य लेकिन घनिष्ठ रिश्ता होता है, एक ऐसा रिश्ता जिस में कभी गांठें नहीं पड़तीं. मीनल को भी पहाड़ों की गोद में बैठ बीते किस्से याद हो आए. जीवन भले ही गंदे पानी के तलाब की तरह ही क्यों न रहा हो, उस गंदे से गंदे कीचड़ के बीच भी कुछ हसीन यादें दिलकश कमल की तरह उग आती हैं और यादें भी वे जिन के गुजरते वक्त हम अनुमान भी नहीं लगा सकते कि ये हमारे जेहन का हिस्सा बन हमारे अंत तक साथ रहेंगी और जिन से लिपट कर हम अपना सारा जीवन गुजार देना चाहेंगे.

याद आए किस्से अमूमन किसी बीते हुए प्रेम के होने चाहिए थे, किसी प्रेमी के होने चाहिए थे. लेकिन बादलों में मीनल को जो आकृति दिखाई दी वह बड़की दीदी की थी. उस ने एक गहरी सांस अंदर खींची और कस कर आंखें भींच लीं लेकिन इस के बाद भी पलकों के घने अंधेरेपन में जब बड़की दीदी नजर आईं तो वह कुछ कांप गई. उस ने कुछ धीरे से आंखें खोलीं.
यों बड़की दीदी को याद करने की कोई खास वजह नहीं थी. और इस वक्त तो बिलकुल भी नहीं. पर शायद हमारी जिंदगी के कुछ चुनिंदा खास लोग हमें इसी तरह याद आते हैं, बेवजह और बेवक्त.

बड़की दीदी से उस की 1 अरसे से मुलाकात नहीं हुई है. उसे अचरज हुआ कि इतना समय बीत जाने पर भी उन की छोड़ी छाप अमिट थी. बीते हुए दिन और ज्यादा पुरजोर तरीके से उस के सामने तैरने लगे थे. अतीत और वर्तमान के बीच की रेखा मद्धिम होती हुई एकदम धुंधली पड़ चुकी थी. वह बड़की दीदी को घर की कोई बात बता रही थी. जरूर कोई ऐसी बात रही होगी जिस के लिए मां ने उसे कहा होगा कि यह किसी को मत कहना. हर परिवार के अपने कुछ राज होते हैं. लेकिन बड़की दीदी भी तो उस परिवार में शामिल थीं. बड़की दीदी को वह बात कहते हुए उस की आवाज में कोई संकोच नहीं था और न ही कोई लागलपेट थी. वह बेधड़क हो धड़ल्ले से बोल रही थी.

बड़की दीदी एकमात्र इंसान थीं जिन के सामने वह अपनी हर बात रख सकती थी. जिन के सामने वह खुल कर रो सकती थी और जिंदगी में किसी ऐसे इंसान का होना जिस के सामने आप खुल कर रो सकें, किसी वरदान से कम नहीं हुआ करता.

एक बार उस ने बड़की दीदी से कहा था,”काश, इंसान ने कोई ऐसी वाशिंग मशीन भी बनाई होती जिस में मैले हुए रिश्तों को चमकाया जा सकता, उस के सारे दागधब्बे साफ किए जा सकते और सारी गिरहें खोली जा सकतीं…”

बड़की दीदी उस से सहमत नहीं थीं. उन्होंने कहा था,”बिना गिरहों का रिश्ता कभी मुकम्मल नहीं होता. जब तक 2 लोग उन गिरहों को खोलने का खुद तकल्लुफ न उठाएं या उन गिरहों के साथ भी अपने रिश्तों को न सहेज पाएं वह रिश्ता मुकम्मल कैसे होगा…”

कई बार मीनल ने सोचा था कि बड़की दीदी उन के रिश्ते की गिरहें खोलने का प्रयास क्यों नहीं करतीं? पर उन के रिश्ते में दूरियां किस दिन या किस बाबत आईं इस पर ठीकठीक उंगली रखना मुमकिन नहीं है. कई बार रिश्तों में किसी की कोई गलती नहीं होती, वह रिश्ता धीरेधीरे स्वयं खोखला हो जाता है या समय की बली चढ़ जाता है. क्या प्रयास कर एक मरे हुए रिश्ते को जिंदा किया जा सकता है…

मीनल ने खुद को झंझोरा,’बड़की दीदी कहां सोचती होंगी मेरे बारे में, कहां मुझे याद करती होंगी? इतने सालों में एक फोन नहीं, एक मैसेज नहीं. क्या उन्हें कभी मेरी कमी महसूस नहीं हुई? मैं कैसी हूं यह जानने की इच्छा नहीं हुई? इतनी खट्टीमीठी स्मृतियां, साथ बिताए साल क्या सबकुछ… ‘

सवाल खुद से था, तो जवाब भी खुद ही देना था,’लेकिन मैं ने भी कहां किया उन से संपर्क? शायद उन्होंने भी कई दफा सोचा हो पर न कर सकी हों. अकसर रोजमर्रा की जिम्मेदारियां पुराने रिश्तों पर हावी हो जाया करती हैं…’ उस ने खुद ही को समझाने की कोशिश की.

उस ने अपने फोन में वह मैसेज खोला, जो वह लिख कर कई बार पढ़ चुकी है. वह मैसेज जो उस ने बड़की दीदी को लिखा तो था लेकिन कभी भेज नहीं सकी. वह यह सब सोचते हुए बर्फ में ही लेट गई. फिर अचानक लगा कि वह कुछ निश्चय करती इतने मे उसे रजत की आवाज करीब आती सुनाई दी,”मीनल, यह क्या… तुम्हारी सफेद जैकेट तो धूल में सन गई है. चलो, अब जल्दी इसे बदल लो फिर घूमने भी जाना है…”

Family Short Story : पति जो ठहरे

Family Short Story :  सलोनी की शादी के पीछे सब हाथ धो कर पड़े थे. कुछ तो अंधविश्वासी टाइप के लोग मुफ्त की सलाह भी देते,” देखो, शादी समय से होनी चाहिए नहीं तो बड़ी मुसीबत होगी और अच्छा पति भी नहीं मिलेगा. इसलिए 16 सोमवार का व्रत करो, वैभव लक्ष्मी का 11 शुक्रवार भी, शादी आराम से हो जाएगी…”

सलोनी ने सारे व्रतउपवास कर लिए. अब इंतजार था कि कोई राजकुमार आएगा और उसे घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा और जिंदगी हो जाएगी सपने जैसी. प्रतीक्षा को विराम लगा और आ गए राजकुमार साहब, मगर घोड़ा नहीं कार पर चढ़ कर.

अब शादी के पहले का हाल भी बताना जरूरी है…

सगाई के बाद ही सलोनी को यह राजकुमार साहब लगे फोन करने. घंटों बतियाते, चिट्ठी भी लिखतेलिखाते. सलोनी के तो पौ बारह, पढ़ालिखा बांका जवान जो मिल गया था. खैर, शादी धूमधाम से हुई. सलोनी के पैर जमीन पर नहीं पङ रहे थे.

राजकुमार साहब भी शुरुआत में हीरो की माफिक रोमांटिक थे पर पति बनते ही दिमाग चढ़ गया सातवें आसमान पर,”मैं पति हूं…” सलोनी भी हक्कीबक्की कि इन महानुभाव को हुआ क्या? अभी तक तो बड़े सलीके से हंसतेमुसकराते थे, लेकिन पति बनते ही नाकभौं सिकोड़ कर बैठ गए. प्रेम के महल में हुक्म की इंतहा…. यह बात कुछ हजम नहीं हुई पर शादी की है तो हजम करना ही पड़ेगा. फिर तो सलोनी ने अपना पूरा हाजमा ठीक किया पर पति को यह कैसे बरदाश्त कि पत्नी का हाजमा सही हो रहा है, कुछ तो करना पड़ेगा वरना पति बनने का क्या फायदा?

“कपड़े क्यों नहीं फैलाए अभी तक?” पति महाशय ने हेकङी दिखाते हुए पूछा.

बेचारी सलोनी ने सहम कर कहा,”भूल गई थी.”

“कैसे भूल गईं? फेसबुक, व्हाट्सऐप, किताबें याद रहती हैं… यह कैसे भूल गईं?”

‘अब भूल गई तो भूल गई. भूल सुधार ली जाएगी,’ सलोनी मन ही मन बोली.

“कितनी बड़ी गलती है यह तो. अब जाओ, आइंदे से मेरा कोई काम मत करना, मैं खुद कर लूंगा,” पति महाशय ने ऐलान कर दिया.

‘ठीक है जनाब, कर लो… बहुत अच्छा. ऐसे भी मुझे कपड़े फैलाने पसंद नहीं,’ सलोनी ने मन में सोचा.

पति महाशय ने मुंह फुला लिया तो अब बात नहीं करेंगे. बात नहीं करेंगे तो वह भी कुछ घंटों नहीं बल्कि पूरे 3-4 दिनों तक. अब सलोनी का हाजमा कहां से ठीक हो, अब तो ऐसिडिटी होना ही है फिर सिरदर्द.

एक बार सलोनी पति महाशय के औफिस के टूअर पर साथ आई थी. पति महाशय ने रात को गैस्ट हाउस के कमरे में साबुन मांगा. सलोनी ने साबुनदानी पकड़ाई पर यह क्या, उस में तो पिद्दी सा साबुन का टुकड़ा था. पति महाशय का गुस्सा सातवें आसमान पर. फिर तो पूरे 1 हफ्ते बात नहीं की. औफिस के टूअर में घूमने आई सलोनी की घुमाई गैस्ट हाउस में ही रह गई, आखिर इतनी बड़ी भूल जो कर दी थी.

उस के बाद से सलोनी कभी साबुन ले जाना नहीं भूली. पति महाशय गर्व से सीना तान लिए कि सलोनी की इस गलती को उन्होंने सुधार दी. सलोनी ने भी सोचा कि पति के इस तरह मुंह फुलाने की गलती को सुधारा जाए पर पति कहां सुधरने वाले. उन का मुंह गुब्बारे जैसा फूला तो जल्दी पिचकेगा नहीं, आखिर पति जो ठहरे.

सलोनी एक बार घूमने गई थी बड़े शौक से. पति महाशय ने ऊंची एड़ी की सैंडिल खरीदी. सलोनी सैंडिल पहन कर ज्यों ही घूमने निकली कि ऊंची एड़ी की चप्पल गई टूट और पति महाशय गए रूठ. उस पर से ताना भी मार दिया,”कभी इतनी ऊंची एड़ी की चप्पलें पहनी नहीं तो खरीदी क्यों? अब चलो, बोरियाबिस्तर समेट वापस चलो. सलोनी हो गई हक्कीबक्की कि इतनी सी बात पर इतना बवाल? आखिर चप्पल ही है दूसरी ले लेंगे. पति महाशय का मुंह तिकोना हो गया तो सीधा होने में समय लगता है पर सलोनी को भी ऐसे आड़ेतिरछे सीधा करना खूब आता है. फिर तो “सौरी…” बोल कर मामला रफादफा किया.

कभीकभी पति महाशय का स्वर चाशनी में लिपटा होता है पर ऐसा बहुत कम ही होता है. एक बार बड़े प्यार से सलोनी को जन्मदिन पर घुमाने का वादा कर औफिस चले गए और लौटने पर सलोनी के तैयार होने में सिर्फ 5 मिनट की देरी पर बिफर पड़े. नाकभौं सिकोड़ कर ले गए मौल लेकिन मुंह से एक शब्द भी नहीं फूटा… सलोनी ने अपनी फूटी किस्मत को कोसा कि ऐसे नमूने पति मिले थे उसे.

सलोनी पति की प्रतीक्षा में थी कि पति टूअर से लौट कर आएंगे तो साथ में खाना खाएंगे. पति महाशय लौटे 11 बजे. जैसे ही सुना कि सलोनी ने खाना नहीं खाया तो बस जोर से डपट दिया और पूरी रात मुंह फुलाए लेटे रहे. सलोनी ने फिल्मों में कुछ और ही देखा था पर हकीकत तो कुछ और ही था.

वह दिन और आज का दिन सलोनी ने पति की प्रतीक्षा किए बगैर ही खाने का नियम बना लिया. अब भला कौन भूखे पेट को लात मारे और भूखे रह कर कौन से उसे लड्डू मिलने वाले थे.

कभीकभी भ्रम का घंटा मनुष्य को अपने लपेटे में ले ही लेता है. सलोनी को लगा कि पति महाशय का त्रिकोण अब सरलकोण में तब्दील होने लगा है पर भरम तो भरम ही होता है सच कहां होता है? सलोनी को प्रतीत हुआ कि उस का इकलौता पति भी सलोना हो गया है पर सूरत और सीरत में फर्क होता है न… सूरत से सलोना और सीरत… व्यंग्यबाण चला दिया,”आजकल बस पढ़तीलिखती ही रहती हो, घर का काम भी मन से कर लिया किया करो. नहीं तो कोई जरूरत नहीं करने की…”

सलोनी ने कुछ ऊंचे स्वर में कहा,”दिखता नहीं है कि मैं कितना काम करती हूं…” इतना कहना था कि पति जनाब ने फिर से मुंह फुला लिया. इस बार सलोनी ने भी ठान लिया कि वह पति को नहीं मनाएगी. पर हमेशा की तरह सलोनी ने ही मनाया.

सलोनी ने एक दिन अपनी माता से अपनी व्यथा कथा कह डाली,”मां, पापा तो ऐसे हैं नहीं?”

मां मुसकराईं,”बेटी, तुम्हारे पापा बहुत अच्छे हैं पर पति कैसे हैं उस का दुखड़ा अब तुम से क्या बताऊं…मेरी दुखती रग पर तुम ने हाथ रख दिया….दरअसल, यह पति नामक प्रजाति होती ही ऐसी है. इस प्रजाति में कोई भी जैविक विकास की अवधारणा लागू नहीं होती, इसलिए जो है जैसा है, इन्हीं से उलझे रहो. ये कभी सुलझने वाले नहीं. लड़के प्रेमी, भाई, मित्र, पिता सब रूप में अच्छे हैं पर पति बनते ही बौरा जाते हैं. सलोनी को वह गाना याद आने लगा, ‘भला है, बुरा है, जैसा भी है मेरा पति मेरा…’

“पर मां, स्त्री के अधिकारों का क्या और स्त्री विमर्श का प्रश्न?” सलोनी ने पूछा.

“सलोनी, तुम्हारा पति त्रिकोण ही सही पर तिकोना समोसा खिलाता है न…”

“हां, वह तो खिलाते हैं…”

“बस, फिर कोई बात नहीं, उस की बातें एक कान से सुनो और दूसरे से निकाल दो. अपना काम धीरेधीरे करते चलो…”

सलोनी ने एक ठंडी आह भरी और मुंह से निकला,”ओह, पति जो ठहरे.”

Online Story Telling : यह मेरी मंजिल नहीं

Online Story Telling :  “अंजली, तुम से आखिरी बार पूछ रही हूं, तुम मेरे साथ साइबर कैफे चल रही हो या नहीं?’ लहर ने जोर दे कर पूछा.

अंजली झुंझला उठी, ‘नहीं चलूंगी, नहीं चलूंगी, और तुम भी मत जाओ. दिन में 4 घंटे बैठी थीं न वहां, वे क्या कम थे. महीना भर भी नहीं बचा है परीक्षा के लिए और तुम…’

‘रहने दो अपनी नसीहतें. मैं अकेली ही जा रही हूं,’ अंजली आगे कुछ कहती, इस से पहले लहर चली गई.

‘शायद इसीलिए प्यार को पागलपन कहते हैं. वाकई अंधे हो जाते हैं लोग प्यार में,’ अंजली ने मन ही मन सोचा. फिर वह नोट्स बनाने में जुट गई, पर मन था कि आज किसी विषय पर केंद्रित ही नहीं हो रहा था. उस ने घड़ी पर नजर डाली.  शाम के 6 बजने को थे. आज लहर की मम्मी से फिर झूठ बोलना पडे़गा. 4 दिन से लगातार लहर के घर से फोन आ रहा था, शाम 6 से 8 बजे तक का समय तय था, जब होस्टल में लड़कियों के घर वाले फोन कर सकते थे. लहर की गैरमौजूदगी में रूममेट के नाते अंजली को ही लहर की मम्मी को जवाब देना पड़ता था. कैसे कहती वह उन से कि लहर किसी कोचिंग क्लास में नहीं बल्कि साइबर कैफे में बैठी अपने किसी बौयफे्रंड से इंटरनेट पर चैट कर रही है, समय व पैसे के साथसाथ वह खुद को भी इस आग में होम करने पर तुली है.

आग ही तो है जो एक चैट की चिंगारी से सुलगतेसुलगते आज लपट का रूप ले बैठी है, जिस में लहर का झुलसना लगभग तय है.

क्या अपनी प्रिय सखी को यों ही जल कर खाक होने दे? समझाने की सारी कोशिशें तो अंजली कर चुकी थी. पर अगर कोई डूबने पर आमादा हो जाए तो उसे किनारे कैसे लाया जाए. क्या वह लहर की मम्मी को सारी सचाई बयान कर दे? पर सचाई जानने के बाद लहर का क्या होगा. यह तो तय था कि सचाई पता चलते ही लहर के मम्मीपापा उस की पढ़ाई व होस्टल छुड़वा कर उसे वापस गांव ले जाएंगे. गांव में कैद होने का मतलब था लहर के लिए भविष्य के सारे रास्ते बंद. अंजली सोच में पड़ गई.

अपनी बचपन की सहेली के साथ ऐसा हो, यह तो अंजली कतई नहीं चाहती थी. पर दोनों के स्वभाव में शुरू से ही विरोधाभास था. लहर चुलबुली, अल्हड़ सी लड़की थी तो अंजली गंभीर और व्यावहारिक. इसलिए अकसर दोनों में बहस भी हो जाया करती. पर अगले ही पल वे दोनों एक हो जातीं.

इंटर पास कर के अंजली का शहर जा कर पढ़ना तय था. गांव में कालिज नहीं था और पढ़नेलिखने में तेज अंजली की महत्त्वाकांक्षा आसमान छू लेने की थी. मांबाप भी यही चाहते थे.

इस से उलट लहर के परिवार वाले उसे शहर में अकेले होस्टल में रखने के हक में कतई न थे. पर रोधो कर लहर ने घर वालों को मना ही लिया था, शहर भेजने के लिए. लहर हमेशा से औसत दरजे की छात्रा थी. भविष्य संवारने से बढ़ कर उसे आकर्षित कर रही थी शहरी चमकदमक, आजादी व मनमौजी जीवनशैली, जो गांव में मांबाप की छत्रछाया में संभव नहीं थी.

शहर आ कर दोनों ने बी.आई.टी. में प्रवेश ले लिया. दोनों ही लगन से कंप्यूटर की बारीकियां सीखने में लग गईं. कालिज में फ्री इंटरनेट सुविधा थी. लड़कियां कई बार समय काटने के लिए नेट चैट करती रहतीं. अंजली व लहर भी कभीकभार इस तरह समय काटा करती थीं.

पर कुछ समय बाद अंजली ने महसूस किया कि लहर किसी नेटफे्रंड को ले कर कुछ सीरियस हो रही है. उठतेबैठते, सोते- जागते, उसी की चर्चा. उसी के खयाल, हर वक्त, चैट करने का उतावलापन. अंजली उसे कई बार समझा चुकी थी कि किसी अनजान से इतना लगाव ठीक नहीं. माना कि तुम्हारी दोस्ती है पर इतना अधिक पजेसिव होने की जरूरत नहीं. ये नेट चैट तो आजकल लोगों के लिए टाइमपास है. आधी से ज्यादा बातें तो इस पर लोग झूठी ही करते हैं.

अंजली के समझाने पर लहर जाने कहांकहां की प्रेम कहानियां सुनाने लगती. ढेरों उदाहरण पेश कर देती, जिस में प्रेमी भारत का तो प्रेमिका न्यूजीलैंड की, कभी प्रेमी आस्ट्रेलिया का तो प्रेमिका भारत की होती. फिर लहर का तर्क होता, ‘इन की शादियां क्या यों ही हो गईं? रिश्ते तो विश्वास पर ही बनते हैं.’

‘वह तो ठीक है लहर, फिर भी सिर्फ बातों से किसी की सचाई का पता नहीं चल जाता,’ अंजली उसे समझाती, पर लहर ने तो जैसे ठान ही लिया था कि वह जो कर रही है वही ठीक है.

कालिज के बाद का फ्री टाइम लहर साइबर कैफे में बैठ कर गुजारने लगी, जहां प्रति घंटे की दर से कुछ पैसे ले कर इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराई जाती है. अंजली की बातों पर जब लहर ने ध्यान नहीं दिया तो उस ने भी कुछ कहना छोड़ दिया. वह जानती थी कि नेटचैट का भूत किसी नशे से कम नहीं होता. जिस दिन नशा उतर जाएगा, उस दिन लहर खुद राह पर आ जाएगी.

पर धीरेधीरे लहर का नशा उतरने के बजाय चढ़ता ही जा रहा था. दिन में 4-4 घंटे तो कभी 6-6 घंटे साइबर कैफे में बैठ कर चैट करने की लत लहर का पर्स 15 दिन में खाली कर देती. महीने के बाकी बचे 15 दिनों के लिए वह अंजली से उधार मांगती व कहती कि पहली तारीख को घर से मनीआर्डर आने पर पैसे लौटा देगी. 1-2 बार अंजली ने दोस्ती की खातिर रुपए उधार दे दिए. पहली तारीख को लहर ने लौटा भी दिए. पर फिर अगले माह उसे पैसे की तंगी हो जाती. अंजली के मना करने पर वह किसी दूसरी लड़की से पैसे उधार ले लेती. धीरेधीरे होस्टल की सभी लड़कियां उस की उधारी वाली आदत से परेशान हो गईं. सभी कोई न कोई बहाना बना कर उसे टाल देतीं.

अब लहर ने घर फोन कर और पैसे मांगने शुरू कर दिए, कभी यह कह कर कि मेरे पैसे रास्ते में कहीं गिर गए, तो कभी नया बहाना होता कि मुझे किसी विषय की ट्यूशन लगवानी है.

लहर अपनी लत में लगी रही. नतीजा तय था. परीक्षा में जहां अंजली अच्छे नंबरों से पास हो गई वहीं लहर सभी विषयों में फेल थी.

रोधो कर लहर ने अंजली को मजबूर कर दिया, एक और झूठ बोलने के लिए, ‘अंजली प्लीज, मेरे घर पर यही कहना कि परीक्षा के दिनों में मुझे तेज बुखार था. इसी वजह से रिजल्ट खराब रहा.’

फेल होने के बावजूद लहर को कोई अफसोस नहीं था बल्कि वह तो फिर यह सोच कर चैन की सांस लेने लगी थी कि चलो, मम्मीपापा को उस की असफलता को ले कर कोई शंका नहीं है. पर अंजली परेशान थी. उस ने लहर की खातिर सिर्फ यह सोच कर झूठ बोला था कि ठोकर खा कर वह अब सही राह पर चलेगी.

अंजली लहर से एक क्लास आगे हो गई थी. अब उन का साथसाथ आना कम हो गया था. अंजली होस्टल से सुबह निकलती तो लहर उस के 2 घंटे बाद. दोनों ही अपनीअपनी तरह जी रही थीं. अंजली का पढ़ाई में लगाव बढ़ता जा रहा था. लेकिन लहर का मन पढ़ाई से पूरी तरह उचट चुका था.

अंजली ने भी उसे समझाने की कोशिशें छोड़ दीं, पर एक दिन अचानक अंजली पर जैसे गाज गिरी. अटैची में रखे 1 हजार रुपए गायब देख कर उस के होश उड़ गए. ‘तो अब लहर इस हद तक गिर गई है,’ अंजली को यकीन नहीं हो रहा था. होस्टल के कमरे में उन दोनों के अलावा कोई तीसरा आता नहीं था. ‘लहर को पैसे की तंगी तो हमेशा ही रहती थी. पैसों के लिए जब वह अपने मांबाप से झूठ बोल सकती है तो चोरी भी कर सकती थी,’ अंजली ने सोचा, पर सीधा इलजाम लगाने से बात बिगड़ सकती है. कोई ठोस सुबूत भी तो नहीं, जो साबित कर सके कि पैसे लहर ने ही निकाले हैं.

अंजली मन ही मन बहुत दुखी थी. अचानक उसे ध्यान आया कि लहर का पासवर्ड वह जानती है. क्यों न उस के पासवर्ड को कंप्यूटर में डाल कर लहर का ईमेल अकाउंट जांचा जाए. आखिर 6-6 घंटे साइबर कैफे में बैठ कर चैट करने के पीछे कारण क्या हैं.

अंजली ने साइबर कैफे में जा कर लहर के पासवर्ड से उस का ईमेल अकाउंट खोला. लहर के नाम आए मेल पढ़ कर उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. ये सारे मेल लहर के उसी दोस्त के थे जिस के पीछे वह दीवानी हो गई थी. नाम था साहिल खान. वह सऊदी अरब में काम करने वाला भारतीय था. साहिल खान के भावुकता के रस में डूबे प्रेम से सराबोर पत्रों से पता चला कि लहर तो उस के साथ भाग कर शादी करने का वादा भी कर चुकी है, वह शादी के बाद उस के साथ सऊदी अरब में रहने के सपने देख रही है. 3 माह बाद साहिल ने उस से भारत आने का वादा किया है.

अंजली ने अपनी एक नई आई.डी. बनाई फिर साहिल खान से दोस्ती गांठने के लिए ‘जिया’ नाम से उस से संपर्क किया. अंजली को ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. साहिल उस वक्त आनलाइन ही था. वह ‘जिया’ बनाम अंजली से चैट करने लगा. अंजली ने भी बातों में उलझा कर उस से दोस्ती बढ़ाने की कोशिश की. साहिल ने अंजली को अपनी उम्र लगभग वही बताई जो लहर को बताई थी, पर लहर के लिए वह कंप्यूटर इंजीनियर था तो ‘जिया’ बनाम अंजली को उस ने बताया कि वह पिछले ही साल भारत से सऊदी अरब में 2 वर्ष के कांट्रैक्ट पर एक अस्पताल में चीफ मेडिकल आफिसर बन कर आया है. अंजली ने जिया के नाम से महीने भर लगातार साहिल से चैट किया. उस ने 2-4 भावुक प्रेमपत्र ईमेल से भेजे. जवाब में आए प्रेम से सराबोर लंबेचौडे़ वादे. भावभीने प्रेमरस में डूबे प्रेमपत्रों में साहिल ने कांटै्रक्ट खत्म होते ही अगले वर्ष भारत पहुंच कर जिया से शादी करने का वादा किया.

अंजली अपनी योजना के मुकाम पर पहुंच चुकी थी. लहर ने अपने नेटफें्रड के किस्से अंजली को सुनाने लगभग बंद कर दिए थे, क्योंकि उस की बातों पर अंजली बिफर पड़ती थी. इसी वजह से दोनों के बीच तनातनी सी हो जाती थी.

गांव से शहर में आ कर होस्टल में रह कर पढ़ाई करने के बीते हुए दिनों को याद कर अंजली अतीत में खो गई थी. तंद्रा भंग हुई तो उसे याद आया कि अब क्या करना है, अपनी प्रिय सहेली लहर को भटकने से कैसे बचाना है. आज अंजली ने लहर से कहा, ‘‘लहर, आज समय हो तो प्लीज मेरे साथ साइबर कैफे चलो न, बहुत जरूरी काम है.’’

‘‘तुम्हें, साइबर कैफे में काम है?’’ लहर हैरान हो गई.

‘‘हां, पर तुम्हारे जैसा नहीं. कुछ इनफार्मेशन कलेक्ट करनी है, टर्म पेपर के लिए,’’ अंजली ने कहा.

‘‘वह तो मैं जानती हूं. तुम जैसी नीरस लड़की को भला और कोई काम हो भी नहीं सकता. अच्छा चलती हूं.’’

‘‘तुम्हारे नेटफ्रेंड का क्या हालचाल है? बहुत दिनों से तुम ने कुछ सुनाया नहीं उस के बारे में,’’ अंजली ने बात छेड़ी, ‘‘गाड़ी कहां तक आ गई है?’’

‘‘बस, समझो स्टेशन आने वाला है. 3 माह बाद ही साहिल भारत आ रहा है. कह रहा था कि मम्मीपापा से बात कर के पहले उन्हें मनाने की कोशिश करेगा. नहीं तो शादी तो हर हाल में करनी ही है. उस के बाद वह मुझे सीधे सऊदी अरब ले जाएगा. तुम तो मेरी पक्की सहेली हो. तुम तो साथ दोगी न मेरा?’’ लहर ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं. तुम्हारी पक्की सहेली हूं. तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हूं,’’ अंजली ने कहा.

बात करतेकरते दोनों साइबर कैफे पहुंच गईं. अगले ही पल सऊदी अरब में बसे लहर के तथाकथित प्रेमी साहिल खान बनाम कंप्यूटर इंजीनियर का कच्चा चिट्ठा अंजली ने लहर के सामने खोल कर रख दिया.

वही साहिल जो लहर के लिए कंप्यूटर इंजीनियर था, वही ‘जिया’ बनाम अंजली के लिए डाक्टर था, जो 3 माह बाद लहर को ब्याहने आने वाला था. वही साल भर बाद भारत आ कर जिया से भी शादी करने के वादे कर रहा था. अब समझनेसमझाने के लिए कुछ भी बाकी नहीं था.

लहर के जीवन का लक्ष्य अचानक धराशायी हो गया. उसे एहसास हो गया कि यह मंजिल नहीं है. कटी डाल की तरह टूट कर लहर, अंजली की गोद में सिर रख कर बिलख पड़ी, ‘‘अंजली, मैं तो भूल गई थी कि लहर की मंजिल कभी साहिल तो हो ही नहीं सकता. साहिल से टकरा कर लहर को वापस लौटना पड़ता है.’’

‘‘रो ले, जी भर कर रो ले, मन का सारा दुख आज बह जाने दे, ताकि आने वाले दिनों में बीती बातों की कोई कसक बाकी न रहे,’’ अंजली ने लहर के सिर पर प्यार से हाथ फेरा.

आज अंजली भी खुद को हलका महसूस कर रही थी. उसे याद आया कि शहर आने से पहले लहर की मम्मी ने कितने विश्वास के साथ उस से कहा था, ‘बेटी, लहर का ध्यान रखना. तुम तो जानती हो न इस का स्वभाव. मन की भोली है. बड़ी जल्दी किसी की भी बातों में आ जाती है. तुम साथ हो इसलिए हम ब्रेफिक्र हो कर इसे शहर भेज रहे हैं.’

आज लहर को गुमराह होने से बचा कर अंजली ने उस के मांबाप का विश्वास भी सहेज लिया था.

Story In Hindi 2025 : गर्भपात

Story In Hindi 2025 : सुबह उठते ही रमा की नजर कैलेंडर पर पड़ी. आज 7 तारीख थी. उस के मन ने अपना काम शुरू कर दिया. झट से रमा के मन ने गणना की कि आज उस के गर्भ का तीसरा महीना पूरा और चौथा शुरू होता है जबकि रमा इसी गणना को मन में नहीं लाना चाहती थी क्योंकि मन में इस विचार के आते ही उस पर उस का पुराना भय हावी हो जाता और वह इस भय से बचना चाहती थी.

रमा डरतेडरते बाथरूम गई. वेस्टर्न स्टाइल की सीट पर बैठते ही उस का गला सूखना शुरू हो गया. उसे लग रहा था कि यदि उसे जल्दी से पानी नहीं मिला तो उस का दम घुट जाएगा. सामने ही नल था और वह पूरा जोर लगा कर उठने की कोशिश करने लगी. फिर भी उस से उठा नहीं गया.

तभी अचानक उस के पेट में दर्द उठा और नीचे पूरा पाट खून से भर गया. ऐसा उस के साथ दूसरी बार हो रहा था. रमा की रुलाई फूट पड़ी और वह अपनी प्यास भूल गई. उस ने किसी तरह से उठ कर दरवाजा खोला और अपने पति को पुकारा. उस की दर्द भरी आवाज सुन कर रवि बिस्तर छोड़ कर भागे. किसी तरह रमा को संभाला और उसे कार में डाल कर अस्पताल ले गए. डाक्टर ने रमा के गर्भ को साफ किया और घर भेज दिया. रमा फिर से खाली हाथ घर लौट आई थी.

रमा की शादी को 3 साल बीत चुके थे और इन 3 सालों में दूसरी बार उस का गर्भपात हुआ था. जब वह पहली बार गर्भवती हुई थी तो घर में खुशी की लहर दौड़ गई थी. पति रवि और सास मीना खुशी से झूम उठे थे. पर तब भी कहीं भीतर से रमा उदास हो गई थी. एक अनजाना सा डर तब भी उस के मन में था. उस के मन में यही डर था कि कहीं बच्चे के जन्म के समय उस की मृत्यु न हो जाए. इस डर के कारण उस की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रही थी. उस का खानापीना भी कम हो गया था. दूध और फल उसे हजम ही नहीं होते थे. केवल पेट भरने के लिए वह सूखी चपाती खाती थी.

रमा के इस व्यवहार को देख कर उस की सास मीना सोचतीं कि शुरूशुरू में ऐसा सभी औरतों के साथ होता है पर धीरेधीरे सब ठीक हो जाता है लेकिन तीसरा महीना खत्म होते ही जब रमा का गर्भपात हो गया था तो उस का रोना देख कर मांबेटा दोनों ही घबरा गए. डाक्टर ने जांच के बाद गर्भाशय साफ किया और उसे घर भेज दिया.

इस घटना के बाद कुछ दिनों तक रमा उदास रही थी लेकिन सास का अपनापन भरा व्यवहार और पति के प्यार में वह इस हादसे को भूल गई. 8 महीने बाद फिर रमा ने गर्भ धारण किया. इस बार रवि उसे ले कर डा. प्रेमा के पास पहुंच गए.

डा. प्रेमा स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं. उन्होंने दोनों को तसल्ली दी, ‘‘देखिए, डरने की कोई बात नहीं है. मैं ने ठीक से जांच कर ली है. रमा के गर्भाशय की स्थिति जरा ठीक नहीं है. वह थोड़ा नीचे की ओर खिसका हुआ है. ऐसे में उन को फुल बेडरेस्ट की जरूरत है. ज्यादा समय लेटे ही रहना है. पैरों के नीचे भी तकिया लगा कर रखना है और केवल शौच जाने के लिए उठना है. शौच जाते समय भी ध्यान रखें कि जोर नहीं लगाना है.’’

‘‘देखो रमा, जैसे डाक्टर बता रही हैं वैसे ही करना है और खुश रहना है,’’ रवि ने प्यार से कहा.

‘‘हां, खुश रहना बहुत जरूरी है,’’ डा. प्रेमा ने भी सलाह दी, ‘‘अच्छी किताबें पढ़ो, मधुर संगीत सुनो और सुखद भविष्य की कल्पना कर के खुश रहो,’’ रवि ने प्यार से कहा.

‘‘डाक्टर, मेरी जान को तो खतरा नहीं है?’’ रमा ने डरतेडरते पूछा था.

‘‘तुम ने ऐसा क्यों सोचा?’’

डा. प्रेमा ने पूछा.

‘‘मुझे डर लगता है.’’

‘‘किस बात का?’’

‘‘मैं दर्द सहन नहीं कर पाऊंगी और मर जाऊंगी.’’

‘‘सभी औरतें मर जाती हैं क्या?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो आप इस तरह का क्यों सोच रही हैं?’’

रमा और रवि खुशीखुशी वापस घर आए. मां को सारी बातें बताईं. रवि मां से बोले, ‘‘मां, अब रमा का ध्यान आप को ही रखना है. मैं तो सारा दिन बाहर रहता हूं.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है. रमा तो मेरी बेटी है. अब मैं इस की सहेली भी बन जाऊंगी और इसे खुश रखूंगी.’’

मीना अब जीजान से रमा के साथ हो लीं. उसे बिस्तर से बिलकुल उठने नहीं देतीं. सहारा दे कर शौचालय ले जातीं. टानिक और विटामिन की गोलियां समय पर देतीं. बातबात पर उसे हंसाने की कोशिश करतीं. 3 महीने ठीक से निकले. पर चौथा शुरू होते ही शौचालय में फिर से रमा का गर्भपात हो गया. रवि फिर उसे ले कर अस्पताल गए और रमा इस बार फिर वहां से खाली हो कर घर आ गई.

रवि एक दिन अकेले जा कर डाक्टरसे मिले, ‘‘डाक्टर, अब की बार क्या हुआ? ऐसा बारबार क्यों होता है?’’

‘‘सब ठीक चल रहा था,’’ डा. प्रेमा ने बताया, ‘‘मैं नहीं जानती, ऐसा क्यों हुआ. अगली बार जब यह गर्भवती हों तो आप शुरू में ही मुझ से संपर्क करें. इन के कुछ टैस्ट करवाने पड़ेंगे, उस के बाद ही गर्भपात के कारणों का पता चलेगा.’’

दूसरी बार गर्भपात होने के बाद से रमा की उदासी और भी बढ़ गई. उस का शरीर काफी कमजोर हो गया था. इस बार रवि ने मन ही मन फैसला कर लिया कि यह तमाशा और अधिक नहीं चलेगा. रमा मानसिक और शारीरिक रूप से संतुलित हो जाए उस के बाद ही बच्चे की बात सोची जाएगी. जरूरत पड़ी तो वह किसी बच्चे को गोद ले लेंगे.

जीवन अपनी गति से चलने लगा. धीरेधीरे रमा सामान्य हो चली. इस बीच वह अपने भाई की शादी के लिए अपने मायके गई तो 2 महीने रह कर वापस लौटी.

मायके से लौटने पर रमा बहुत प्रसन्नचित्त थी. घर के कामकाज में वह अपनी सास के साथ लगातार हाथ बंटाती. खाली समय में ‘जिम’ भी जाती. उस की सहेलियों का दायरा भी बढ़ गया था. एक बड़े पुस्तकालय की वह सदस्य भी बन गई थी. एक बार माइंड पावर नामक एक पुस्तक उस के हाथ लगी. उस पुस्तक में जब उस ने पढ़ा कि हमारा मन हमारा कितना बड़ा मित्र बन सकता है और उतना ही बड़ा शत्रु भी बन सकता है तो वह हैरान रह गई. अपने मन में बैठे डर का उस ने विश्लेषण किया और सोचा, क्या उस का मन ही उसे मां  नहीं बनने दे रहा है? क्या उस का मन ही हर तीसरे माह के समाप्त होते ही उस का गर्भपात करवा रहा है? एक दिन उस ने रवि से इस बारे में बात की.

‘‘रवि, इस किताब में जो भी लिखा है क्या वह सच है?’’

‘‘इतने बड़े मशहूर लेखक की किताब है, उस की यह किताब बेस्ट सैलर भी है. कितने ही लोग इसे पढ़ कर अपना जीवन सुधार चुके हैं.’’

‘‘मैं नहीं मानती. मैं ने तो हमेशा ही बच्चा चाहा है, फिर गर्भपात क्यों हुआ? अगर मेरा मन बच्चा नहीं चाहता तो मुझे भी गर्भनिरोधक गोलियों का प्रयोग करना आता था.’’

‘‘मुझे लगता है तुम्हारा मन 2 भागों में बंटा हुआ है. एक मन तो मां बनना चाहता है और दूसरा प्रसव पीड़ा से डरता है.’’

‘‘हां, तुम ठीक कहते हो पर मुझे बताओ, मैं क्या करूं?’’

रमा परेशान हो उठी थी. शादी हुए 7 साल बीत चुके थे. वे दोनों अब बच्चे की बात ही नहीं करते. पर मन ही मन रमा के अंदर एक संघर्ष चल रहा था. वह उस संघर्ष पर विजय पाना चाहती थी. उस का एक ही तरीका था कि वह पूरी सच्ची बात रवि को बताए. एक रात वह रवि से बोली, ‘‘रवि, मैं तुम्हें एक बात बताना चाहती हूं जोकि मैं ने आज तक तुम्हें नहीं बताई है. जब मैं 10 साल की थी तो मेरी बूआ प्रसव के लिए मायके आई थीं. जिस दिन उन्हें प्रसव पीड़ा शुरू हुई उस दिन घर में कोई नहीं था. केवल मैं और बूआ ही थीं. मां और पिताजी बाहर गए हुए थे.

‘‘डाक्टर के अनुसार बूआ के प्रसव में अभी 10-15 दिन बाकी थे पर अचानक ही उन्हें दर्द शुरू हो गया. भयानक दर्द से बूआ तड़पती रहीं और मैं उन्हें देख कर रोती रही. तड़पतेतड़पते बूआ बिस्तर से नीचे उतर आई थीं. दर्द के कारण चिल्लाने से उन का गला सूख गया था. उन्होंने मुझ से पानी मांगा पर मैं इतनी डर गई कि ऐसा लगा जैसे मैं वहां से हिल नहीं पाऊंगी.

‘‘बूआ ‘पानीपानी’ चिल्लाती रहीं पर मैं उन्हें पानी नहीं दे पाई और कुछ देर बाद सब शांत हो गया. बूआ खून और पानी के ढेर में शांत सी हो कर सो गईं. तभी मां आ गईं. उन्हें देख कर मैं जहां डर कर बैठी थी वहीं चिल्लाई,  ‘मां,’ देखो तो बूआ को क्या हुआ? उन्हें पानी दो.’

‘‘मां ने बूआ को देखा तो पाया कि वह सदा के लिए ही शांत हो गई थीं, पर मेरे नन्हे मन में यह बैठ गया कि अगर मैं बूआ को पानी दे देती तो शायद वह बच जातीं, मेरा मन अपराधबोध से भर गया.

‘‘तीसरा महीना शुरू होते ही वह अपराधबोध मुझ पर इस कदर हावी हो जाता है कि मैं रात में कितनी बार उठ कर पानी पीती हूं. बूआ का पानी मांगना मेरे दिलोदिमाग में छा जाता है. मेरी बूआ मेरे कारण ही बिना मां बने ही इस दुनिया से चल बसीं. इसलिए मैं सोचती हूं कि शायद अतीत का अपराधबोध और प्रसव पीड़ा का वह भयावह दृश्य ही मुझे डराता है और डर के मारे मेरा गर्भपात हो जाता है.’’

‘‘पहले क्यों नहीं बताया यह सब,’’ रवि बोले ‘‘बूआ की मौत की जिम्मेदार तुम नहीं हो. यह अपराधबोध तो मन से बिलकुल ही निकाल दो. एक 10 साल की बच्ची किसी की मौत का कारण कैसे बन सकती है और तुम्हारा दूसरा डर तो बिलकुल बेकार है. उस का सामना तो हम आसानी से कर सकते हैं. हम पहले से ही डाक्टर से बात कर लेंगे कि तुम्हारा बच्चा आपरेशन द्वारा ही हो. तुम्हें प्रसव पीड़ा होगी ही नहीं.’’

‘‘अगर डाक्टर नहीं मानी तो?’’

‘‘जरूर मानेंगी, जब तुम्हारी कहानी सुनेगी तो उन्हें मानना ही पड़ेगा.’’

दूसरे दिन ही रमा और रवि डा. कांता के पास पहुंचे. डा. कांता एक प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं. उन के पास जच्चाबच्चा से संबंधित एक से एक कठिन केस आते थे. अनुभवों के आधार पर वह इतना ज्ञान प्राप्त कर चुकी थीं कि जब रमा और रवि उन के पास सलाह के लिए आए तो उन्होंने सब से पहले रमा के पिछले सभी गर्भपातों के बारे में जानकारी हासिल की और रमा के लिए कुछ जरूरी टैस्ट लिख दिए. जब टैस्टों की रिपोर्ट आई तो उन्हें पता चला कि रमा को टोक्सो प्लाज्मा है. डा. कांता ने बताया कि रुबैला और टोक्सो प्लाज्मा ये 2 ऐसी बीमारियां हैं जो किसी गर्भवती महिला के लिए घातक होती हैं.

रुबैला अगर गर्भवती स्त्री को हो तो उस के कीटाणु पेट में पल रहे शिशु तक पहुंच कर उसे नुकसान पहुंचाते हैं. पर रमा के खून की जांच के बाद पता चला कि उसे टोक्सो प्लाज्मा हुआ है. यह खून में फैला हुआ इन्फेक्शन है जो ज्यादातर चूहों और बिल्लियों में पाया जाता है, पर कई बार यह मनुष्यों में भी आ जाता है और गर्भवती स्त्री के गर्भ में पल रहे शिशु के लिए घातक होता है. रमा के साथ भी यही हो रहा था. डाक्टर ने रमा को सलाह दी कि अगली बार गर्भ का निश्चय होते ही वह तुरंत अस्पताल में भर्ती हो जाए.

रमा गर्भ ठहरते ही डा. कांता के नर्सिंग होम में दाखिल हो गई. डा. कांता ने शुरू से ही रमा को उचित दवाइयां देनी शुरू कर दीं. रमा को बिलकुल बेडरेस्ट पर रखा. देखते ही देखते 4 महीने सही से निकल गए. अब तो रमा पूरी तरह आशा से भर गई थी.

डाक्टर की निगरानी, उचित दवाओं और अपने सकारात्मक विचारों और भावनाओं के कारण रमा के 9 महीने पूरे हुए. पूर्वनिश्चित समय पर डाक्टर ने आपरेशन किया और जीताजागता, रोताचिल्लाता प्यारा सा बच्चा उसकी गोद में थमा दिया.

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सवाल

मेरी शादी को 6 महीने हो चुके हैं. मेरी बीवी मायके में रह कर अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती है. उस की कई लड़कों से दोस्ती है. मुझे लगता है कि कहीं वह किसी लड़के से प्यार न करने लगे. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

शादी की बुनियाद यकीन पर टिकी होती है. आप को अपनी बीवी पर भरोसा करना चाहिए. उसे किसी से प्यार करना होता, तो शादी से पहले ही कर लेती. वैसे, आप उसे अपने पास रख कर भी पढ़ाई पूरी करा सकते हैं, पर वजह प्यार होनी चाहिए न कि शक.

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19 जनवरी, 2017 को उत्तर प्रदेश के जिला सिद्धार्थनगर के थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह औफिस में बैठे मामलों की फाइलें देख रहे थे, तभी उन की नजर करीब 4 महीने पहले सोनिया नाम की एक नवविवाहिता की संदिग्ध परिस्थितियों में ससुराल में हुई मौत की फाइल पर पड़ी. सोनिया की मां निर्मला देवी ने उस के पति अर्जुन और उस की जेठानी कौशल्या के खिलाफ उस की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. घटना के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. उन की तलाश में पुलिस जगहजगह छापे मार रही थी. लेकिन कहीं से भी उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी.

आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर एसपी राकेश शंकर का शमशेर बहादुर सिंह पर काफी दबाव था, इसीलिए वह इस केस की फाइल का बारीकी से अध्ययन कर आरोपियों तक पहुंचने की संभावनाएं तलाश रहे थे. संयोग से उसी समय एक मुखबिर ने उन के कक्ष में आ कर कहा, ‘‘सरजी, एक गुड न्यूज है. अभी बताऊं या बाद में?’’

‘‘अभी बताओ न कि क्या गुड न्यूज है,ज्यादा उलझाओ मत. वैसे ही मैं एक केस में उलझा हूं.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘जो भी गुड न्यूज है, जल्दी बताओ.’’

इस के बाद मुखबिर ने थानाप्रभारी के पास जा कर उन के कान में जो न्यूज दी, उसे सुन कर थानाप्रभारी का चेहरा खिल उठा. उन्होंने तुरंत हमराहियों को आवाज देने के साथ जीप चालक को फौरन जीप तैयार करने को कहा. इस के बाद वह खुद भी औफिस से बाहर आ गए. 5 मिनट में ही वह टीम के साथ, जिस में एसआई दिनेश तिवारी, सिपाही जय सिंह चौरसिया, लक्ष्मण यादव और श्वेता शर्मा शामिल थीं, को ले कर कुछ ही देर में मुखबिर द्वारा बताई जगह पर पहुंच गए. वहां उन्हें एक औरत और एक आदमी खड़ा मिला.

पुलिस की गाड़ी देख कर दोनों नजरें चुराने लगे. पुलिस जैसे ही उन के करीब पहुंची, उन के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं. शमशेर बहादुर सिंह ने उन से नाम और वहां खड़े होने का कारण पूछा तो वे हकलाते हुए बोले, ‘‘साहब, बस का इंतजार कर रहे थे.’’

‘‘क्यों, अब और कहीं भागने का इरादा है क्या?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, आप क्या कह रहे हैं, हम समझे नहीं, हम क्यों भागेंगे?’’ आदमी ने कहा.

‘‘थाने चलो, वहां हम सब समझा देंगे.’’ कह कर शमशेर बहादुर सिंह दोनों को जीप में बैठा कर थाने लौट आए. थाने में जब दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम अर्जुन और कौशल्या देवी बताए. उन का आपस में देवरभाभी का रिश्ता था.

अर्जुन अपनी पत्नी सोनिया की हत्या का आरोपी था. उस की हत्या में कौशल्या भी शामिल थी. हत्या के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. थानाप्रभारी ने सीओ महिपाल पाठक के सामने दोनों से सोनिया की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने सारी सच्चाई उगल दी. सोनिया की जितनी शातिराना तरीके से उन्होंने हत्या की थी, वह सारा राज उन्होंने बता दिया. नवविवाहिता सोनिया की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले का एक थाना है जोगिया उदयपुर. इसी थाने के अंतर्गत मनोहारी गांव के रहने वाले जगदीश ने अपने छोटे बेटे अर्जुन की शादी 4 जुलाई, 2013 को पड़ोस के गांव मेहदिया के रहने वाले रामकरन की बेटी सोनिया से की थी. शादी के करीब 3 सालों बाद 25 अप्रैल, 2016 को गौने के बाद सोनिया ससुराल आई थी.

पति और ससुराल वालों का प्यार पा कर सोनिया बहुत खुश थी. अपने काम और व्यवहार से सोनिया घर में सभी की चहेती बन गई. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक सोनिया ने पति अर्जुन में कुछ बदलाव महसूस किया. उस ने गौर करना शुरू किया तो पता चला कि अर्जुन पहले उसे जितना समय देता था, अब वह उसे उतना समय नहीं देता.

पहले तो उस ने यही सोचा कि परिवार और काम की वजह से वह ऐसा कर रहा होगा. लेकिन उस की यह सोच गलत साबित हुई. उस ने महसूस किया कि अर्जुन अपनी भाभी कौशल्या के आगेपीछे कुछ ज्यादा ही मंडराता रहता है. वह भाभी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताता है.

जल्दी ही सोनिया को इस की वजह का भी पता चल गया. अर्जुन के अपनी भाभी से अवैध संबंध थे. भाभी से संबंध होने की वजह से वह सोनिया की उपेक्षा कर रहा था. कमाई का ज्यादा हिस्सा भी वह भाभी पर खर्च कर रहा था. यह सब जान कर सोनिया सन्न रह गई.

कोई भी औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन यह हरगिज नहीं चाहती कि उस का पति किसी दूसरी औरत के बिस्तर का साझीदार बने. भला नवविवाहिता सोनिया ही इस बात को कैसे बरदाश्त करती. उस ने इस बारे में अर्जुन से बात की तो वह बौखला उठा और सोनिया की पिटाई कर दी. उस दिन के बाद दोनों में कलह शुरू हो गई.

सोनिया ने इस बात की जानकारी अपने मायके वालों को फोन कर के दे दी. उस ने मायके वालों से साफसाफ कह दिया था कि अर्जुन का संबंध उस की भाभी से है. शिकायत करने पर वह उसे मारतापीटता है. यही नहीं, उस से दहेज की भी मांग की जाती है. सोनिया की परेशानी जानते हुए भी मायके वाले उसे ही समझाते रहे.

वे हमेशा उस के और अर्जुन के संबंध को सामान्य करने की कोशिश करते रहे, पर अर्जुन ने भाभी से दूरी नहीं बनाई, जिस से सोनिया की उस से कहासुनी होती रही, पत्नी की रोजरोज की किचकिच से अर्जुन परेशान रहने लगा. उसे लगने लगा कि सोनिया उस के रास्ते का रोड़ा बन रही है. लिहाजा उस ने भाभी कौशल्या के साथ मिल कर एक खौफनाक योजना बना डाली.

24-25 सितंबर, 2016 की रात अर्जुन और कौशल्या ने साजिश रच कर सोनिया के खाने में जहरीला पदार्थ मिला दिया. अगले दिन यानी 25 सितंबर की सुबह जब सोनिया की हालत बिगड़ने लगी तो अर्जुन उसे जिला अस्पताल ले गया.

उसी दिन सुबह सोनिया के पिता रामकरन को मनोहारी गांव के किसी आदमी ने बताया कि सोनिया की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, वह जिला अस्पताल में भरती है. यह खबर सुन कर वह घर वालों के साथ सिद्धार्थनगर स्थित जिला अस्पताल पहुंचा. तब तक सोनिया की हालत बहुत ज्यादा खराब हो चुकी थी. डाक्टरों ने उसे कहीं और ले जाने को कह दिया था.

26 सितंबर की सुबह 4 बजे पता चला कि सोनिया की मौत हो चुकी है. बेटी की मौत की खबर मिलते ही रामकरन अपने गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बेटी की ससुराल मनोहारी गांव पहुंचा तो देखा सोनिया के मुंह से झाग निकला था. कान और नाक पर खून के धब्बे थे. हाथ की चूडि़यां भी टूटी हुई थीं. लाश देख कर ही लग रहा था कि उस के साथ मारपीट कर के उसे कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया था.

बेटी की लाश देख कर रामकरन की हालत बिगड़ गई. उन के साथ आए गांव वालों ने पुलिस कंट्रोल रूम को हत्या की सूचना दे दी. सूचना पा कर कुछ ही देर में थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सोनिया के शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

बेटी की मौत से रामकरन को गहरा सदमा लगा था, जिस से उन की तबीयत खराब हो गई थी. उन्हें आननफानन में इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया. इस के बाद पुलिस ने सोनिया की मां निर्मला की तहरीर पर अर्जुन और उस की भाभी कौशल्या के खिलाफ भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 3/4 डीपी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था.

2 दिनों बाद जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि सोनिया के साथ मारपीट कर के उसे खाने में जहर दिया गया था. घटना के तुरंत बाद अर्जुन और कौशल्या फरार हो गए थे. लेकिन पुलिस उन के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. उन दोनों की गिरफ्तारी न होने से लोगों में आक्रोश बढ़ रहा था.

आखिर 4 महीने बाद मुखबिर की सूचना पर अर्जुन और कौशल्या गिरफ्तार कर लिए गए थे. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे तक दोनों की जमानतें नहीं हो सकी थीं.पुलिस अधीक्षक राकेश शंकर ने घटना का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की हौसलाअफजाई करते हुए 2 हजार रुपए का नकद इनाम दिया है.

भाभी के चक्कर में अर्जुन ने अपना घर तो बरबाद किया ही, भाई का भी घर बरबाद किया. इसी तरह कौशल्या ने देह की आग को शांत करने के लिए देवर के साथ मिल कर एक निर्दोष की जान ले ली.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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46 की उम्र में Urvashi Dholakia के बच्चे करवाना चाहते हैं उनकी दूसरी शादी

Urvashi Dholakia : प्रसिद्ध टीवी सीरियल कसौटी जिंदगी की में कोमोलिका की भूमिका निभाने वाली उर्वशी ढोलकिया की पर्सनल जिंदगी रोलर कोस्टर जैसी रही है. 16 साल की उम्र से ही उनकी जिंदगी में कई सारे भयंकर उतार चढ़ाव आए. जिसका ऐक्ट्रैस ने डटकर सामना किया. 6 साल की उम्र में साबुन के विज्ञापन के साथ ग्लैमर वर्ल्ड में प्रवेश करने वाली उर्वशी ढोलकिया ने अपने ऐक्टिंग करियर में घर एक मंदिर, कभी सौतन कभी सहेली, कहीं तो होगा, जैसे कई प्रसिद्ध सीरियलों में काम किया और ढेर सारा नाम भी कमाया, टीवी के अलावा उर्वशी ने कुछ फिल्मों में भी काम किया जैसे बाबुल, कब तक चुप रहोगी के अलावा बी ग्रेड फिल्म किस ओर स्वप्नम में भी काम किया.

उर्वशी ने छोटी उम्र में शुरू किये लंबे करियर में करीबन हर तरह के किरदार निभाए बोल्ड सीन भी दिए. काम को लेकर कभी उन्होंने आनाकानी नहीं की. उनकी प्रोफैशनल लाइफ जहां व्यस्तता से भरी हुई थी वहीं पर्सनल लाइफ में भी काफी सारे प्रौब्लम्स थे. जैसे कि उर्वशी ने 15 साल की उम्र में शादी की थी और 16 साल की उम्र में दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया.

लेकिन शादी के डेढ़ साल बाद ही उनका रिश्ता टूट गया. उर्वशी दो बेटो की मां है और अकेले के दम पर उर्वशी ने अपने दोनों बेटों को पाल पोस कर बड़ा किया और अब उनके दोनों बेटे जवान हो चुके हैं, जो चाहते हैं कि 46 की उम्र में उर्वशी दूसरी शादी करके सैटल हो जाए. पूरी उम्र अकेले रहने वाली उर्वशी शादी को लेकर बिलकुल भी श्योर नहीं है. क्योंकि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अकेले ही गुजार दी है, इसलिए उन्हें खुद नहीं पता कि वह दूसरी शादी का मन बना पाएंगी कि नहीं. बहरहाल उन के दोनों बेटे जरूर अपनी मां को दूसरी शादी करवा के सैटल और खुश देखना चाहते हैं.

Serum Vs Cream : क्रीम या सीरम, स्किन के लिए कौन है बेस्ट ?

Serum Vs Cream : हर युवती और महिला की इच्छा होती है कि उनकी स्किन स्पौटलेस, रिंकल फ्री, टाइट और ग्लोइंग हो. उम्र, प्रदूषण, खानपान, टेंशन, हार्मोन चेंज का असर उनकी स्किन पर नजर न आए. महिलाओं की इसी डिमांड का नतीजा है कि अब मार्केट में ब्यूटी प्रोडक्ट्स की बाढ़ आ गई है. तरह-तरह की फेस क्रीम और सीरम अब फेस केयर रूटीन का हिस्सा बन गए हैं. हालांकि अभी भी कई महिलाएं ऐसी हैं, जो इनके अंतर, उपयोग और फायदे नहीं जानती हैं और अक्सर कंफ्यूज रहती हैं कि उनके लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं. अगर आप भी सीरम और क्रीम को लेकर इसी दुविधा में हैं तो हम दे रहे हैं आपको वो सभी जानकारियां जो आपके लिए जरूरी हैं.

ये है सीरम और क्रीम में अंतर

सीरम के मुकाबले क्रीम गाढ़ी होती हैं. अधिकांश क्रीम औयल बेस होती हैं, जो आपकी स्किन की नमी को बनाए रखती हैं. ये आपकी स्किन को हाइड्रेट रखकर उसे लंबे समय तक पोषण देती है. रूखी त्वचा के लिए क्रीम बेस्ट मानी जाती है. हालांकि कई बार औयली स्किन के लिए ये पिंपल्स का कारण बन सकती है. वहीं सीरम मुख्य रूप से वाटर बेस वाले होते हैं. ये काफी लाइट होते हैं और स्किन की परेशानियों को जल्दी दूर करते हैं.

इन परेशानियों को दूर करेगा सीरम

इन दिनों सीरम ट्रेंड में हैं. इसका बड़ा कारण यह है कि ये स्किन पर बहुत तेजी से अपना असर दिखाना शुरू कर देते हैं. सीरम स्किन की कई प्रौब्लम्स दूर करते हैं. इनके नियमित उपयोग से फाइन लाइंस, झुर्रियां, ओपन पोर्स, पिंपल्स, एक्ने, हाइपरपिग्मेंटेशन और ड्राईनेस खत्म होती है. आप अपनी स्किन की जरूरत के अनुसार सीरम चुन सकती हैं. सीरम कई प्रकार के एंटीऔक्सीडेंट, विटामिन और पेप्टाइड्स का मिश्रण होता है, यही कारण है कि ये स्किन पर किसी जादू की तरह काम करता है. यह आपके स्किन टोन को भी सुधारता है. पतला और हल्का होने के कारण यह स्किन में आसानी से चला जाता है और अपना काम करता है.

क्रीम नहीं है किसी से कम

क्रीम स्किन को बेहतरीन तरीके से हाइड्रेट करती है. यह स्किन की नमी को लौक कर उसे सुरक्षित रखती है. क्रीम का असर लंबे समय तक आपकी स्किन पर रहता है. अगर आपकी स्किन रूखी है तो क्रीम आपके लिए और भी जरूरी हो जाती है. अगर स्किन ऑयली है तो आप बहुत ज्यादा औयल बेस क्रीम यूज न करें.

ये है आपके लिए बेस्ट

अब सवाल यह है कि आखिर आपको स्किन पर क्या यूज करना चाहिए, सीरम या क्रीम. इसका जवाब आपकी जरूरत और चाहत पर निर्भर है. अगर आप वाकई अपनी स्किन टोन में सुधार करके उसकी सभी परेशानियों को दूर करना चाहती हैं तो आपको नियमित रूप से फेस सीरम और क्रीम दोनों अप्लाई करने चाहिए. इसे आप अपने रूटीन में शामिल करें. फेस को साफ करने के बाद आप सीरम लगाएं और उसके बाद एक अच्छी क्रीम अप्लाई करें. ध्यान रखें दोनों का चुनाव आप अपनी स्किन टाइप और प्रॉब्लम के अनुसार करें.

इंटरव्यू के दौरान मां श्रीदेवी को याद कर इमोशनल हुईं Khushi Kapoor

Khushi Kapoor : प्रसिद्ध अभिनेत्री श्रीदेवी जो आज भी मरने के बाद अपनी खूबसूरती और बेहतरीन अभिनय के लिए याद की जाती हैं, उन्हीं की दूसरी बेटी खुशी कपूर आमिर खान के बेटे जुनैद खान के साथ लवयापा नामक फिल्म से मुख्य भूमिका के साथ ऐक्टिंग में प्रवेश कर रही हैं यह कौमेडी रोमांटिक फिल्म जल्द ही रिलीज होने जा रही है. इसी फिल्म के इंटरव्यू के दौरान चेहरे से दुखी नजर आ रही खुशी कपूर से जब उनकी मां श्रीदेवी के साथ बिताए गए यादगार पलों के बारे में पूछा गया, तो श्रीदेवी के बारे में बात करते हुए खुशी कपूर इतनी भावुक हो गई कि उनकी आंखें डबडबा गई और कुछ समय बाद ही उनकी आंखों से आंसू बहने लगे.

खुशी कपूर ने अपनी मां को याद करते हुए बताया कि बचपन में हम दोनों बहने जाहन्वी और मैं मम्मी के साथ शूटिंग पर जाया करते थे और वहां मम्मी की शूटिंग की वेनिटी वेन के इर्दगिर्द घूम कर बहुत मस्ती करते हुए खेला करते थे. उस दौरान मम्मी के साथ बहुत मजा आता था. एक बार हम लोग जाहन्वी और मैं मम्मी के साथ न्यूयार्क भी गए थे तो वहां पर भी हम दोनों बहनों ने मम्मी के साथ बहुत मजा किया था.

अपनी मां के साथ बिताया हर पल मेरे मन में हमेशा के लिए बस हुआ है. मुझे अपनी मां की फिल्में देखने का बहुत शौक था लेकिन वह हमें फिल्में नहीं देखने नहीं देती थी, क्योंकि उनको शर्म महसूस होती थी. इसलिए हम अपनी मम्मी की सारी फिल्में छिपकर एक कमरे में बैठकर देखा करते थे. मैंने अपने मम्मी की सारी फिल्में देखी हैं. मुझे उनकी ऐक्टिंग बहुत अच्छी लगती थीं, वर्क फ्रंट की बात करें तो खुशी कपूर और जुनैद खान की फिल्म लवयापा 7 फरवरी को सिनेमाघर में रिलीज हो रही है. खुशी कपूर अपनी इस फिल्म को लेकर बहुत ऐक्साइटेड हैं.

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