Story In Hindi 2025 : गर्भपात

Story In Hindi 2025 : सुबह उठते ही रमा की नजर कैलेंडर पर पड़ी. आज 7 तारीख थी. उस के मन ने अपना काम शुरू कर दिया. झट से रमा के मन ने गणना की कि आज उस के गर्भ का तीसरा महीना पूरा और चौथा शुरू होता है जबकि रमा इसी गणना को मन में नहीं लाना चाहती थी क्योंकि मन में इस विचार के आते ही उस पर उस का पुराना भय हावी हो जाता और वह इस भय से बचना चाहती थी.

रमा डरतेडरते बाथरूम गई. वेस्टर्न स्टाइल की सीट पर बैठते ही उस का गला सूखना शुरू हो गया. उसे लग रहा था कि यदि उसे जल्दी से पानी नहीं मिला तो उस का दम घुट जाएगा. सामने ही नल था और वह पूरा जोर लगा कर उठने की कोशिश करने लगी. फिर भी उस से उठा नहीं गया.

तभी अचानक उस के पेट में दर्द उठा और नीचे पूरा पाट खून से भर गया. ऐसा उस के साथ दूसरी बार हो रहा था. रमा की रुलाई फूट पड़ी और वह अपनी प्यास भूल गई. उस ने किसी तरह से उठ कर दरवाजा खोला और अपने पति को पुकारा. उस की दर्द भरी आवाज सुन कर रवि बिस्तर छोड़ कर भागे. किसी तरह रमा को संभाला और उसे कार में डाल कर अस्पताल ले गए. डाक्टर ने रमा के गर्भ को साफ किया और घर भेज दिया. रमा फिर से खाली हाथ घर लौट आई थी.

रमा की शादी को 3 साल बीत चुके थे और इन 3 सालों में दूसरी बार उस का गर्भपात हुआ था. जब वह पहली बार गर्भवती हुई थी तो घर में खुशी की लहर दौड़ गई थी. पति रवि और सास मीना खुशी से झूम उठे थे. पर तब भी कहीं भीतर से रमा उदास हो गई थी. एक अनजाना सा डर तब भी उस के मन में था. उस के मन में यही डर था कि कहीं बच्चे के जन्म के समय उस की मृत्यु न हो जाए. इस डर के कारण उस की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रही थी. उस का खानापीना भी कम हो गया था. दूध और फल उसे हजम ही नहीं होते थे. केवल पेट भरने के लिए वह सूखी चपाती खाती थी.

रमा के इस व्यवहार को देख कर उस की सास मीना सोचतीं कि शुरूशुरू में ऐसा सभी औरतों के साथ होता है पर धीरेधीरे सब ठीक हो जाता है लेकिन तीसरा महीना खत्म होते ही जब रमा का गर्भपात हो गया था तो उस का रोना देख कर मांबेटा दोनों ही घबरा गए. डाक्टर ने जांच के बाद गर्भाशय साफ किया और उसे घर भेज दिया.

इस घटना के बाद कुछ दिनों तक रमा उदास रही थी लेकिन सास का अपनापन भरा व्यवहार और पति के प्यार में वह इस हादसे को भूल गई. 8 महीने बाद फिर रमा ने गर्भ धारण किया. इस बार रवि उसे ले कर डा. प्रेमा के पास पहुंच गए.

डा. प्रेमा स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं. उन्होंने दोनों को तसल्ली दी, ‘‘देखिए, डरने की कोई बात नहीं है. मैं ने ठीक से जांच कर ली है. रमा के गर्भाशय की स्थिति जरा ठीक नहीं है. वह थोड़ा नीचे की ओर खिसका हुआ है. ऐसे में उन को फुल बेडरेस्ट की जरूरत है. ज्यादा समय लेटे ही रहना है. पैरों के नीचे भी तकिया लगा कर रखना है और केवल शौच जाने के लिए उठना है. शौच जाते समय भी ध्यान रखें कि जोर नहीं लगाना है.’’

‘‘देखो रमा, जैसे डाक्टर बता रही हैं वैसे ही करना है और खुश रहना है,’’ रवि ने प्यार से कहा.

‘‘हां, खुश रहना बहुत जरूरी है,’’ डा. प्रेमा ने भी सलाह दी, ‘‘अच्छी किताबें पढ़ो, मधुर संगीत सुनो और सुखद भविष्य की कल्पना कर के खुश रहो,’’ रवि ने प्यार से कहा.

‘‘डाक्टर, मेरी जान को तो खतरा नहीं है?’’ रमा ने डरतेडरते पूछा था.

‘‘तुम ने ऐसा क्यों सोचा?’’

डा. प्रेमा ने पूछा.

‘‘मुझे डर लगता है.’’

‘‘किस बात का?’’

‘‘मैं दर्द सहन नहीं कर पाऊंगी और मर जाऊंगी.’’

‘‘सभी औरतें मर जाती हैं क्या?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो आप इस तरह का क्यों सोच रही हैं?’’

रमा और रवि खुशीखुशी वापस घर आए. मां को सारी बातें बताईं. रवि मां से बोले, ‘‘मां, अब रमा का ध्यान आप को ही रखना है. मैं तो सारा दिन बाहर रहता हूं.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है. रमा तो मेरी बेटी है. अब मैं इस की सहेली भी बन जाऊंगी और इसे खुश रखूंगी.’’

मीना अब जीजान से रमा के साथ हो लीं. उसे बिस्तर से बिलकुल उठने नहीं देतीं. सहारा दे कर शौचालय ले जातीं. टानिक और विटामिन की गोलियां समय पर देतीं. बातबात पर उसे हंसाने की कोशिश करतीं. 3 महीने ठीक से निकले. पर चौथा शुरू होते ही शौचालय में फिर से रमा का गर्भपात हो गया. रवि फिर उसे ले कर अस्पताल गए और रमा इस बार फिर वहां से खाली हो कर घर आ गई.

रवि एक दिन अकेले जा कर डाक्टरसे मिले, ‘‘डाक्टर, अब की बार क्या हुआ? ऐसा बारबार क्यों होता है?’’

‘‘सब ठीक चल रहा था,’’ डा. प्रेमा ने बताया, ‘‘मैं नहीं जानती, ऐसा क्यों हुआ. अगली बार जब यह गर्भवती हों तो आप शुरू में ही मुझ से संपर्क करें. इन के कुछ टैस्ट करवाने पड़ेंगे, उस के बाद ही गर्भपात के कारणों का पता चलेगा.’’

दूसरी बार गर्भपात होने के बाद से रमा की उदासी और भी बढ़ गई. उस का शरीर काफी कमजोर हो गया था. इस बार रवि ने मन ही मन फैसला कर लिया कि यह तमाशा और अधिक नहीं चलेगा. रमा मानसिक और शारीरिक रूप से संतुलित हो जाए उस के बाद ही बच्चे की बात सोची जाएगी. जरूरत पड़ी तो वह किसी बच्चे को गोद ले लेंगे.

जीवन अपनी गति से चलने लगा. धीरेधीरे रमा सामान्य हो चली. इस बीच वह अपने भाई की शादी के लिए अपने मायके गई तो 2 महीने रह कर वापस लौटी.

मायके से लौटने पर रमा बहुत प्रसन्नचित्त थी. घर के कामकाज में वह अपनी सास के साथ लगातार हाथ बंटाती. खाली समय में ‘जिम’ भी जाती. उस की सहेलियों का दायरा भी बढ़ गया था. एक बड़े पुस्तकालय की वह सदस्य भी बन गई थी. एक बार माइंड पावर नामक एक पुस्तक उस के हाथ लगी. उस पुस्तक में जब उस ने पढ़ा कि हमारा मन हमारा कितना बड़ा मित्र बन सकता है और उतना ही बड़ा शत्रु भी बन सकता है तो वह हैरान रह गई. अपने मन में बैठे डर का उस ने विश्लेषण किया और सोचा, क्या उस का मन ही उसे मां  नहीं बनने दे रहा है? क्या उस का मन ही हर तीसरे माह के समाप्त होते ही उस का गर्भपात करवा रहा है? एक दिन उस ने रवि से इस बारे में बात की.

‘‘रवि, इस किताब में जो भी लिखा है क्या वह सच है?’’

‘‘इतने बड़े मशहूर लेखक की किताब है, उस की यह किताब बेस्ट सैलर भी है. कितने ही लोग इसे पढ़ कर अपना जीवन सुधार चुके हैं.’’

‘‘मैं नहीं मानती. मैं ने तो हमेशा ही बच्चा चाहा है, फिर गर्भपात क्यों हुआ? अगर मेरा मन बच्चा नहीं चाहता तो मुझे भी गर्भनिरोधक गोलियों का प्रयोग करना आता था.’’

‘‘मुझे लगता है तुम्हारा मन 2 भागों में बंटा हुआ है. एक मन तो मां बनना चाहता है और दूसरा प्रसव पीड़ा से डरता है.’’

‘‘हां, तुम ठीक कहते हो पर मुझे बताओ, मैं क्या करूं?’’

रमा परेशान हो उठी थी. शादी हुए 7 साल बीत चुके थे. वे दोनों अब बच्चे की बात ही नहीं करते. पर मन ही मन रमा के अंदर एक संघर्ष चल रहा था. वह उस संघर्ष पर विजय पाना चाहती थी. उस का एक ही तरीका था कि वह पूरी सच्ची बात रवि को बताए. एक रात वह रवि से बोली, ‘‘रवि, मैं तुम्हें एक बात बताना चाहती हूं जोकि मैं ने आज तक तुम्हें नहीं बताई है. जब मैं 10 साल की थी तो मेरी बूआ प्रसव के लिए मायके आई थीं. जिस दिन उन्हें प्रसव पीड़ा शुरू हुई उस दिन घर में कोई नहीं था. केवल मैं और बूआ ही थीं. मां और पिताजी बाहर गए हुए थे.

‘‘डाक्टर के अनुसार बूआ के प्रसव में अभी 10-15 दिन बाकी थे पर अचानक ही उन्हें दर्द शुरू हो गया. भयानक दर्द से बूआ तड़पती रहीं और मैं उन्हें देख कर रोती रही. तड़पतेतड़पते बूआ बिस्तर से नीचे उतर आई थीं. दर्द के कारण चिल्लाने से उन का गला सूख गया था. उन्होंने मुझ से पानी मांगा पर मैं इतनी डर गई कि ऐसा लगा जैसे मैं वहां से हिल नहीं पाऊंगी.

‘‘बूआ ‘पानीपानी’ चिल्लाती रहीं पर मैं उन्हें पानी नहीं दे पाई और कुछ देर बाद सब शांत हो गया. बूआ खून और पानी के ढेर में शांत सी हो कर सो गईं. तभी मां आ गईं. उन्हें देख कर मैं जहां डर कर बैठी थी वहीं चिल्लाई,  ‘मां,’ देखो तो बूआ को क्या हुआ? उन्हें पानी दो.’

‘‘मां ने बूआ को देखा तो पाया कि वह सदा के लिए ही शांत हो गई थीं, पर मेरे नन्हे मन में यह बैठ गया कि अगर मैं बूआ को पानी दे देती तो शायद वह बच जातीं, मेरा मन अपराधबोध से भर गया.

‘‘तीसरा महीना शुरू होते ही वह अपराधबोध मुझ पर इस कदर हावी हो जाता है कि मैं रात में कितनी बार उठ कर पानी पीती हूं. बूआ का पानी मांगना मेरे दिलोदिमाग में छा जाता है. मेरी बूआ मेरे कारण ही बिना मां बने ही इस दुनिया से चल बसीं. इसलिए मैं सोचती हूं कि शायद अतीत का अपराधबोध और प्रसव पीड़ा का वह भयावह दृश्य ही मुझे डराता है और डर के मारे मेरा गर्भपात हो जाता है.’’

‘‘पहले क्यों नहीं बताया यह सब,’’ रवि बोले ‘‘बूआ की मौत की जिम्मेदार तुम नहीं हो. यह अपराधबोध तो मन से बिलकुल ही निकाल दो. एक 10 साल की बच्ची किसी की मौत का कारण कैसे बन सकती है और तुम्हारा दूसरा डर तो बिलकुल बेकार है. उस का सामना तो हम आसानी से कर सकते हैं. हम पहले से ही डाक्टर से बात कर लेंगे कि तुम्हारा बच्चा आपरेशन द्वारा ही हो. तुम्हें प्रसव पीड़ा होगी ही नहीं.’’

‘‘अगर डाक्टर नहीं मानी तो?’’

‘‘जरूर मानेंगी, जब तुम्हारी कहानी सुनेगी तो उन्हें मानना ही पड़ेगा.’’

दूसरे दिन ही रमा और रवि डा. कांता के पास पहुंचे. डा. कांता एक प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं. उन के पास जच्चाबच्चा से संबंधित एक से एक कठिन केस आते थे. अनुभवों के आधार पर वह इतना ज्ञान प्राप्त कर चुकी थीं कि जब रमा और रवि उन के पास सलाह के लिए आए तो उन्होंने सब से पहले रमा के पिछले सभी गर्भपातों के बारे में जानकारी हासिल की और रमा के लिए कुछ जरूरी टैस्ट लिख दिए. जब टैस्टों की रिपोर्ट आई तो उन्हें पता चला कि रमा को टोक्सो प्लाज्मा है. डा. कांता ने बताया कि रुबैला और टोक्सो प्लाज्मा ये 2 ऐसी बीमारियां हैं जो किसी गर्भवती महिला के लिए घातक होती हैं.

रुबैला अगर गर्भवती स्त्री को हो तो उस के कीटाणु पेट में पल रहे शिशु तक पहुंच कर उसे नुकसान पहुंचाते हैं. पर रमा के खून की जांच के बाद पता चला कि उसे टोक्सो प्लाज्मा हुआ है. यह खून में फैला हुआ इन्फेक्शन है जो ज्यादातर चूहों और बिल्लियों में पाया जाता है, पर कई बार यह मनुष्यों में भी आ जाता है और गर्भवती स्त्री के गर्भ में पल रहे शिशु के लिए घातक होता है. रमा के साथ भी यही हो रहा था. डाक्टर ने रमा को सलाह दी कि अगली बार गर्भ का निश्चय होते ही वह तुरंत अस्पताल में भर्ती हो जाए.

रमा गर्भ ठहरते ही डा. कांता के नर्सिंग होम में दाखिल हो गई. डा. कांता ने शुरू से ही रमा को उचित दवाइयां देनी शुरू कर दीं. रमा को बिलकुल बेडरेस्ट पर रखा. देखते ही देखते 4 महीने सही से निकल गए. अब तो रमा पूरी तरह आशा से भर गई थी.

डाक्टर की निगरानी, उचित दवाओं और अपने सकारात्मक विचारों और भावनाओं के कारण रमा के 9 महीने पूरे हुए. पूर्वनिश्चित समय पर डाक्टर ने आपरेशन किया और जीताजागता, रोताचिल्लाता प्यारा सा बच्चा उसकी गोद में थमा दिया.

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सवाल

मेरी शादी को 6 महीने हो चुके हैं. मेरी बीवी मायके में रह कर अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती है. उस की कई लड़कों से दोस्ती है. मुझे लगता है कि कहीं वह किसी लड़के से प्यार न करने लगे. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

शादी की बुनियाद यकीन पर टिकी होती है. आप को अपनी बीवी पर भरोसा करना चाहिए. उसे किसी से प्यार करना होता, तो शादी से पहले ही कर लेती. वैसे, आप उसे अपने पास रख कर भी पढ़ाई पूरी करा सकते हैं, पर वजह प्यार होनी चाहिए न कि शक.

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19 जनवरी, 2017 को उत्तर प्रदेश के जिला सिद्धार्थनगर के थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह औफिस में बैठे मामलों की फाइलें देख रहे थे, तभी उन की नजर करीब 4 महीने पहले सोनिया नाम की एक नवविवाहिता की संदिग्ध परिस्थितियों में ससुराल में हुई मौत की फाइल पर पड़ी. सोनिया की मां निर्मला देवी ने उस के पति अर्जुन और उस की जेठानी कौशल्या के खिलाफ उस की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. घटना के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. उन की तलाश में पुलिस जगहजगह छापे मार रही थी. लेकिन कहीं से भी उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी.

आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर एसपी राकेश शंकर का शमशेर बहादुर सिंह पर काफी दबाव था, इसीलिए वह इस केस की फाइल का बारीकी से अध्ययन कर आरोपियों तक पहुंचने की संभावनाएं तलाश रहे थे. संयोग से उसी समय एक मुखबिर ने उन के कक्ष में आ कर कहा, ‘‘सरजी, एक गुड न्यूज है. अभी बताऊं या बाद में?’’

‘‘अभी बताओ न कि क्या गुड न्यूज है,ज्यादा उलझाओ मत. वैसे ही मैं एक केस में उलझा हूं.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘जो भी गुड न्यूज है, जल्दी बताओ.’’

इस के बाद मुखबिर ने थानाप्रभारी के पास जा कर उन के कान में जो न्यूज दी, उसे सुन कर थानाप्रभारी का चेहरा खिल उठा. उन्होंने तुरंत हमराहियों को आवाज देने के साथ जीप चालक को फौरन जीप तैयार करने को कहा. इस के बाद वह खुद भी औफिस से बाहर आ गए. 5 मिनट में ही वह टीम के साथ, जिस में एसआई दिनेश तिवारी, सिपाही जय सिंह चौरसिया, लक्ष्मण यादव और श्वेता शर्मा शामिल थीं, को ले कर कुछ ही देर में मुखबिर द्वारा बताई जगह पर पहुंच गए. वहां उन्हें एक औरत और एक आदमी खड़ा मिला.

पुलिस की गाड़ी देख कर दोनों नजरें चुराने लगे. पुलिस जैसे ही उन के करीब पहुंची, उन के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं. शमशेर बहादुर सिंह ने उन से नाम और वहां खड़े होने का कारण पूछा तो वे हकलाते हुए बोले, ‘‘साहब, बस का इंतजार कर रहे थे.’’

‘‘क्यों, अब और कहीं भागने का इरादा है क्या?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, आप क्या कह रहे हैं, हम समझे नहीं, हम क्यों भागेंगे?’’ आदमी ने कहा.

‘‘थाने चलो, वहां हम सब समझा देंगे.’’ कह कर शमशेर बहादुर सिंह दोनों को जीप में बैठा कर थाने लौट आए. थाने में जब दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम अर्जुन और कौशल्या देवी बताए. उन का आपस में देवरभाभी का रिश्ता था.

अर्जुन अपनी पत्नी सोनिया की हत्या का आरोपी था. उस की हत्या में कौशल्या भी शामिल थी. हत्या के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. थानाप्रभारी ने सीओ महिपाल पाठक के सामने दोनों से सोनिया की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने सारी सच्चाई उगल दी. सोनिया की जितनी शातिराना तरीके से उन्होंने हत्या की थी, वह सारा राज उन्होंने बता दिया. नवविवाहिता सोनिया की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले का एक थाना है जोगिया उदयपुर. इसी थाने के अंतर्गत मनोहारी गांव के रहने वाले जगदीश ने अपने छोटे बेटे अर्जुन की शादी 4 जुलाई, 2013 को पड़ोस के गांव मेहदिया के रहने वाले रामकरन की बेटी सोनिया से की थी. शादी के करीब 3 सालों बाद 25 अप्रैल, 2016 को गौने के बाद सोनिया ससुराल आई थी.

पति और ससुराल वालों का प्यार पा कर सोनिया बहुत खुश थी. अपने काम और व्यवहार से सोनिया घर में सभी की चहेती बन गई. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक सोनिया ने पति अर्जुन में कुछ बदलाव महसूस किया. उस ने गौर करना शुरू किया तो पता चला कि अर्जुन पहले उसे जितना समय देता था, अब वह उसे उतना समय नहीं देता.

पहले तो उस ने यही सोचा कि परिवार और काम की वजह से वह ऐसा कर रहा होगा. लेकिन उस की यह सोच गलत साबित हुई. उस ने महसूस किया कि अर्जुन अपनी भाभी कौशल्या के आगेपीछे कुछ ज्यादा ही मंडराता रहता है. वह भाभी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताता है.

जल्दी ही सोनिया को इस की वजह का भी पता चल गया. अर्जुन के अपनी भाभी से अवैध संबंध थे. भाभी से संबंध होने की वजह से वह सोनिया की उपेक्षा कर रहा था. कमाई का ज्यादा हिस्सा भी वह भाभी पर खर्च कर रहा था. यह सब जान कर सोनिया सन्न रह गई.

कोई भी औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन यह हरगिज नहीं चाहती कि उस का पति किसी दूसरी औरत के बिस्तर का साझीदार बने. भला नवविवाहिता सोनिया ही इस बात को कैसे बरदाश्त करती. उस ने इस बारे में अर्जुन से बात की तो वह बौखला उठा और सोनिया की पिटाई कर दी. उस दिन के बाद दोनों में कलह शुरू हो गई.

सोनिया ने इस बात की जानकारी अपने मायके वालों को फोन कर के दे दी. उस ने मायके वालों से साफसाफ कह दिया था कि अर्जुन का संबंध उस की भाभी से है. शिकायत करने पर वह उसे मारतापीटता है. यही नहीं, उस से दहेज की भी मांग की जाती है. सोनिया की परेशानी जानते हुए भी मायके वाले उसे ही समझाते रहे.

वे हमेशा उस के और अर्जुन के संबंध को सामान्य करने की कोशिश करते रहे, पर अर्जुन ने भाभी से दूरी नहीं बनाई, जिस से सोनिया की उस से कहासुनी होती रही, पत्नी की रोजरोज की किचकिच से अर्जुन परेशान रहने लगा. उसे लगने लगा कि सोनिया उस के रास्ते का रोड़ा बन रही है. लिहाजा उस ने भाभी कौशल्या के साथ मिल कर एक खौफनाक योजना बना डाली.

24-25 सितंबर, 2016 की रात अर्जुन और कौशल्या ने साजिश रच कर सोनिया के खाने में जहरीला पदार्थ मिला दिया. अगले दिन यानी 25 सितंबर की सुबह जब सोनिया की हालत बिगड़ने लगी तो अर्जुन उसे जिला अस्पताल ले गया.

उसी दिन सुबह सोनिया के पिता रामकरन को मनोहारी गांव के किसी आदमी ने बताया कि सोनिया की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, वह जिला अस्पताल में भरती है. यह खबर सुन कर वह घर वालों के साथ सिद्धार्थनगर स्थित जिला अस्पताल पहुंचा. तब तक सोनिया की हालत बहुत ज्यादा खराब हो चुकी थी. डाक्टरों ने उसे कहीं और ले जाने को कह दिया था.

26 सितंबर की सुबह 4 बजे पता चला कि सोनिया की मौत हो चुकी है. बेटी की मौत की खबर मिलते ही रामकरन अपने गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बेटी की ससुराल मनोहारी गांव पहुंचा तो देखा सोनिया के मुंह से झाग निकला था. कान और नाक पर खून के धब्बे थे. हाथ की चूडि़यां भी टूटी हुई थीं. लाश देख कर ही लग रहा था कि उस के साथ मारपीट कर के उसे कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया था.

बेटी की लाश देख कर रामकरन की हालत बिगड़ गई. उन के साथ आए गांव वालों ने पुलिस कंट्रोल रूम को हत्या की सूचना दे दी. सूचना पा कर कुछ ही देर में थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सोनिया के शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

बेटी की मौत से रामकरन को गहरा सदमा लगा था, जिस से उन की तबीयत खराब हो गई थी. उन्हें आननफानन में इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया. इस के बाद पुलिस ने सोनिया की मां निर्मला की तहरीर पर अर्जुन और उस की भाभी कौशल्या के खिलाफ भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 3/4 डीपी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था.

2 दिनों बाद जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि सोनिया के साथ मारपीट कर के उसे खाने में जहर दिया गया था. घटना के तुरंत बाद अर्जुन और कौशल्या फरार हो गए थे. लेकिन पुलिस उन के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. उन दोनों की गिरफ्तारी न होने से लोगों में आक्रोश बढ़ रहा था.

आखिर 4 महीने बाद मुखबिर की सूचना पर अर्जुन और कौशल्या गिरफ्तार कर लिए गए थे. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे तक दोनों की जमानतें नहीं हो सकी थीं.पुलिस अधीक्षक राकेश शंकर ने घटना का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की हौसलाअफजाई करते हुए 2 हजार रुपए का नकद इनाम दिया है.

भाभी के चक्कर में अर्जुन ने अपना घर तो बरबाद किया ही, भाई का भी घर बरबाद किया. इसी तरह कौशल्या ने देह की आग को शांत करने के लिए देवर के साथ मिल कर एक निर्दोष की जान ले ली.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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46 की उम्र में Urvashi Dholakia के बच्चे करवाना चाहते हैं उनकी दूसरी शादी

Urvashi Dholakia : प्रसिद्ध टीवी सीरियल कसौटी जिंदगी की में कोमोलिका की भूमिका निभाने वाली उर्वशी ढोलकिया की पर्सनल जिंदगी रोलर कोस्टर जैसी रही है. 16 साल की उम्र से ही उनकी जिंदगी में कई सारे भयंकर उतार चढ़ाव आए. जिसका ऐक्ट्रैस ने डटकर सामना किया. 6 साल की उम्र में साबुन के विज्ञापन के साथ ग्लैमर वर्ल्ड में प्रवेश करने वाली उर्वशी ढोलकिया ने अपने ऐक्टिंग करियर में घर एक मंदिर, कभी सौतन कभी सहेली, कहीं तो होगा, जैसे कई प्रसिद्ध सीरियलों में काम किया और ढेर सारा नाम भी कमाया, टीवी के अलावा उर्वशी ने कुछ फिल्मों में भी काम किया जैसे बाबुल, कब तक चुप रहोगी के अलावा बी ग्रेड फिल्म किस ओर स्वप्नम में भी काम किया.

उर्वशी ने छोटी उम्र में शुरू किये लंबे करियर में करीबन हर तरह के किरदार निभाए बोल्ड सीन भी दिए. काम को लेकर कभी उन्होंने आनाकानी नहीं की. उनकी प्रोफैशनल लाइफ जहां व्यस्तता से भरी हुई थी वहीं पर्सनल लाइफ में भी काफी सारे प्रौब्लम्स थे. जैसे कि उर्वशी ने 15 साल की उम्र में शादी की थी और 16 साल की उम्र में दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया.

लेकिन शादी के डेढ़ साल बाद ही उनका रिश्ता टूट गया. उर्वशी दो बेटो की मां है और अकेले के दम पर उर्वशी ने अपने दोनों बेटों को पाल पोस कर बड़ा किया और अब उनके दोनों बेटे जवान हो चुके हैं, जो चाहते हैं कि 46 की उम्र में उर्वशी दूसरी शादी करके सैटल हो जाए. पूरी उम्र अकेले रहने वाली उर्वशी शादी को लेकर बिलकुल भी श्योर नहीं है. क्योंकि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अकेले ही गुजार दी है, इसलिए उन्हें खुद नहीं पता कि वह दूसरी शादी का मन बना पाएंगी कि नहीं. बहरहाल उन के दोनों बेटे जरूर अपनी मां को दूसरी शादी करवा के सैटल और खुश देखना चाहते हैं.

Serum Vs Cream : क्रीम या सीरम, स्किन के लिए कौन है बेस्ट ?

Serum Vs Cream : हर युवती और महिला की इच्छा होती है कि उनकी स्किन स्पौटलेस, रिंकल फ्री, टाइट और ग्लोइंग हो. उम्र, प्रदूषण, खानपान, टेंशन, हार्मोन चेंज का असर उनकी स्किन पर नजर न आए. महिलाओं की इसी डिमांड का नतीजा है कि अब मार्केट में ब्यूटी प्रोडक्ट्स की बाढ़ आ गई है. तरह-तरह की फेस क्रीम और सीरम अब फेस केयर रूटीन का हिस्सा बन गए हैं. हालांकि अभी भी कई महिलाएं ऐसी हैं, जो इनके अंतर, उपयोग और फायदे नहीं जानती हैं और अक्सर कंफ्यूज रहती हैं कि उनके लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं. अगर आप भी सीरम और क्रीम को लेकर इसी दुविधा में हैं तो हम दे रहे हैं आपको वो सभी जानकारियां जो आपके लिए जरूरी हैं.

ये है सीरम और क्रीम में अंतर

सीरम के मुकाबले क्रीम गाढ़ी होती हैं. अधिकांश क्रीम औयल बेस होती हैं, जो आपकी स्किन की नमी को बनाए रखती हैं. ये आपकी स्किन को हाइड्रेट रखकर उसे लंबे समय तक पोषण देती है. रूखी त्वचा के लिए क्रीम बेस्ट मानी जाती है. हालांकि कई बार औयली स्किन के लिए ये पिंपल्स का कारण बन सकती है. वहीं सीरम मुख्य रूप से वाटर बेस वाले होते हैं. ये काफी लाइट होते हैं और स्किन की परेशानियों को जल्दी दूर करते हैं.

इन परेशानियों को दूर करेगा सीरम

इन दिनों सीरम ट्रेंड में हैं. इसका बड़ा कारण यह है कि ये स्किन पर बहुत तेजी से अपना असर दिखाना शुरू कर देते हैं. सीरम स्किन की कई प्रौब्लम्स दूर करते हैं. इनके नियमित उपयोग से फाइन लाइंस, झुर्रियां, ओपन पोर्स, पिंपल्स, एक्ने, हाइपरपिग्मेंटेशन और ड्राईनेस खत्म होती है. आप अपनी स्किन की जरूरत के अनुसार सीरम चुन सकती हैं. सीरम कई प्रकार के एंटीऔक्सीडेंट, विटामिन और पेप्टाइड्स का मिश्रण होता है, यही कारण है कि ये स्किन पर किसी जादू की तरह काम करता है. यह आपके स्किन टोन को भी सुधारता है. पतला और हल्का होने के कारण यह स्किन में आसानी से चला जाता है और अपना काम करता है.

क्रीम नहीं है किसी से कम

क्रीम स्किन को बेहतरीन तरीके से हाइड्रेट करती है. यह स्किन की नमी को लौक कर उसे सुरक्षित रखती है. क्रीम का असर लंबे समय तक आपकी स्किन पर रहता है. अगर आपकी स्किन रूखी है तो क्रीम आपके लिए और भी जरूरी हो जाती है. अगर स्किन ऑयली है तो आप बहुत ज्यादा औयल बेस क्रीम यूज न करें.

ये है आपके लिए बेस्ट

अब सवाल यह है कि आखिर आपको स्किन पर क्या यूज करना चाहिए, सीरम या क्रीम. इसका जवाब आपकी जरूरत और चाहत पर निर्भर है. अगर आप वाकई अपनी स्किन टोन में सुधार करके उसकी सभी परेशानियों को दूर करना चाहती हैं तो आपको नियमित रूप से फेस सीरम और क्रीम दोनों अप्लाई करने चाहिए. इसे आप अपने रूटीन में शामिल करें. फेस को साफ करने के बाद आप सीरम लगाएं और उसके बाद एक अच्छी क्रीम अप्लाई करें. ध्यान रखें दोनों का चुनाव आप अपनी स्किन टाइप और प्रॉब्लम के अनुसार करें.

इंटरव्यू के दौरान मां श्रीदेवी को याद कर इमोशनल हुईं Khushi Kapoor

Khushi Kapoor : प्रसिद्ध अभिनेत्री श्रीदेवी जो आज भी मरने के बाद अपनी खूबसूरती और बेहतरीन अभिनय के लिए याद की जाती हैं, उन्हीं की दूसरी बेटी खुशी कपूर आमिर खान के बेटे जुनैद खान के साथ लवयापा नामक फिल्म से मुख्य भूमिका के साथ ऐक्टिंग में प्रवेश कर रही हैं यह कौमेडी रोमांटिक फिल्म जल्द ही रिलीज होने जा रही है. इसी फिल्म के इंटरव्यू के दौरान चेहरे से दुखी नजर आ रही खुशी कपूर से जब उनकी मां श्रीदेवी के साथ बिताए गए यादगार पलों के बारे में पूछा गया, तो श्रीदेवी के बारे में बात करते हुए खुशी कपूर इतनी भावुक हो गई कि उनकी आंखें डबडबा गई और कुछ समय बाद ही उनकी आंखों से आंसू बहने लगे.

खुशी कपूर ने अपनी मां को याद करते हुए बताया कि बचपन में हम दोनों बहने जाहन्वी और मैं मम्मी के साथ शूटिंग पर जाया करते थे और वहां मम्मी की शूटिंग की वेनिटी वेन के इर्दगिर्द घूम कर बहुत मस्ती करते हुए खेला करते थे. उस दौरान मम्मी के साथ बहुत मजा आता था. एक बार हम लोग जाहन्वी और मैं मम्मी के साथ न्यूयार्क भी गए थे तो वहां पर भी हम दोनों बहनों ने मम्मी के साथ बहुत मजा किया था.

अपनी मां के साथ बिताया हर पल मेरे मन में हमेशा के लिए बस हुआ है. मुझे अपनी मां की फिल्में देखने का बहुत शौक था लेकिन वह हमें फिल्में नहीं देखने नहीं देती थी, क्योंकि उनको शर्म महसूस होती थी. इसलिए हम अपनी मम्मी की सारी फिल्में छिपकर एक कमरे में बैठकर देखा करते थे. मैंने अपने मम्मी की सारी फिल्में देखी हैं. मुझे उनकी ऐक्टिंग बहुत अच्छी लगती थीं, वर्क फ्रंट की बात करें तो खुशी कपूर और जुनैद खान की फिल्म लवयापा 7 फरवरी को सिनेमाघर में रिलीज हो रही है. खुशी कपूर अपनी इस फिल्म को लेकर बहुत ऐक्साइटेड हैं.

Hindi Short Story 2025 : दूर से सलाम

Hindi Short Story 2025 : जबमैं शौपिंग कर के बाहर निकली तो गरमी से बेहाल थी. इसलिए सामने के शौपिंग मौल की कौफी शौप में घुस गई. बच्चे आज देर से लौटने वाले थे, क्योंकि पिकनिक पर गए थे. इसीलिए मैं ने सोचा कि क्यों न कोल्ड कौफी के साथ वैज सैंडविच का मजा उठाया जाए.

वैसे मेरा सारा दिन बच्चों के साथ ही गुजर जाता. पति शशांक भी अपने नए बिजनैस में व्यस्त रहते. ऐसे में कई बार मन करता है कि अपनी व्यस्त दिनचर्या में से थोड़ा वक्त अपने लिए भी निकालूं, पर चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाती. पर आज मौका मिला तो लगा कि इस टाइम का भरपूर फायदा उठाऊं.

अभी मैं और्डर दे कर सुस्ता ही रही थी कि मेरा फोन बज उठा. फोन पर शशांक थे.

‘‘कहां हो?’’ वे शायद जल्दी में थे.

‘‘बस थोड़ी देर में घर पहुंच जाऊंगी,’’ मैं अटकते हुए बोली.

‘‘अच्छा, ऐसा करना कि करीब 4 बजे रामदीन आएगा, उसे वह फाइल दे देना, जिसे मैं गलती से टेबल पर भूल आया हूं,’’ और शशांक ने फोन काट दिया.

शशांक की यह बेरुखी मुझे अखरी तो सही पर फिर मैं ने तुरंत ही खुद को संभाल लिया. मैं मानती हूं कि काम भी जरूरी है पर इतनी भी क्या व्यस्तता कि कभी अपनी पत्नी से प्यार के दो बोल भी न बोल पाओ?

फिर मुझे वह समय याद आने लगा जब शशांक एक दिलफेंक आशिक की तरह मेरे आगेपीछे घूमा करते थे और अब काम की आपाधापी ने उन्हें लगभग खुश्क सा बना दिया है. पर दूसरे ही पल तब मेरी यह नीरसता झट से दूर हो गई जब मेरे सामने कौफी और सैंडविच रखा गया.

अभी मैं ने कौफी का पहला घूंट भरा ही था कि मेरे कानों में एक जानीपहचानी सी हंसी सुनाई दी. जब मैं ने पलट कर देखा तो हैरान रह गई. एक अधेड़ उम्र के पुरुष के साथ जो महिला बैठी थी, वह मेरे कालेज में मेरे साथ पढ़ती थी. उस महिला का नाम मानवी है.

जब मानवी को देखा तो मेरा मन एक अजीब से उल्लास से भर उठा. कालेज का बीता समय अचानक मेरी आंखों के आगे घूम गया…

सच, वह भी क्या समय था? बेखौफ, बिना किसी टैंशन के मैं और मेरी सहेलियां कालेज में घूमा करती थीं, पर मुझ में और मानवी में एक बुनियादी फर्क था.

जहां मैं पढ़ाई के साथसाथ मौजमस्ती को भी तवज्जो देती थी, वहीं मानवी सिर्फ मौजमस्ती और घूमनेफिरने का ही शौक रखती थी.

कालेज से बंक कर के वह सैरसपाटे पर निकल जाती थी, जिसे मैं ठीक नहीं मानती थी. अपनी बेबाकी के लिए मशहूर मानवी लड़कों पर जादू चलाना खूब जानती थी, शायद इसीलिए मैं उस से एक दूरी बना कर चलती थी.

मैं जब भी उस के घर जाती वह मुझे अपने चेहरे पर फेसपैक लगाए ही मिलती.

‘‘परीक्षा नजदीक है और तुझे फेसपैक लगाने की पड़ी है,’’ मैं उस से चुहल करती.

‘‘अरे मैडम, यही तो अंतर है तुम्हारी और मेरी सोच में,’’ फिर वह जोर से हंस देती, ‘‘तू तो आती है कालेज में पढ़ने के लिए पर अपनु तो आता है लड़कों को पटाने के लिए.

अरे भई, अपना तो सीधा फंडा है कि अगर माया चाहिए तो अपनी काया का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा.’’

उस की ये बातें जब मेरी समझ से बाहर हो जातीं तब मैं नोट्स बनाने के लिए लाईब्रेरी का रुख करती और ये मैडम कैंटीन में पहुंच जातीं, कोई नया मुरगा हलाल करने के लिए.

समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. इस बीच मानवी के कई प्रेमप्रसंग परवान चढ़े और कई बीच में ही दम तोड़ गए. पर बहती नदी सी मानवी इस सब से न कभी रुकी और न ही कोई उसे रोक पाया. आखिर अमीर परिवार की इकलौती बेटी की उड़ान भी तो ऊंची थी. उस का अमीर लड़कों को पटाना, उन से अपना उल्लू सीधा करना लगातार जारी रहा.

कई बार तो ऐसा भी होता था कि मानवी की बदौलत उस की कुछ मनचली सहेलियों को भी मुफ्त में पिक्चर देखने को मिल जाती थी या उस के आशिक की कार में घर तक लिफ्ट मिल जाती थी. तब सभी उस की प्रशंसा करते नहीं थकती थीं. अपनी प्रशंसा सुन मैडम मानवी का हौसला और बुलंद हो जाता.

इस बीच हमारी पढ़ाई पूरी हो गई और हमारा साथ छूट गया. पर मानवी के प्रेम के किस्से जबतब मुझे सुनने को मिलते रहे.

जब मानवी की शादी की खबर कानों में पड़ी तो लगा कि शायद अब उस की जिंदगी में एक स्थिरता आएगी, जिस का अभाव उस की जिंदगी में शुरू से ही रहा है.

बीतते समय के साथ मैं उसे पूरी तरह भूल गई, पर आज अचानक उसे देख कर लगा कि अब उन सहेलियों के संपर्कसूत्र मिल जाएंगे, जिन से मिलने की कब से तमन्ना थी.

मैं हमेशा यही सोचती थी कि हमारी कुछ सहेलियों में से कुछ तो जरूर ऐसी होंगी जिन का मायका और ससुराल यहीं दिल्ली शहर में होगी. अब मानवी मिली है तो शायद उन सहेलियों को ढूंढ़ने में आसानी होगी, जिन्हें मैं अकेली शायद ही ढूंढ़ पाती.

तभी मेरी नजर उस पुरुष पर पड़ी जो अब उठ चुका था और बाहर चलने की तैयारी में था. उस आदमी के जाते ही मानवी भी उठ खड़ी हुई. इस से पहले कि वह मेरी आवाज सुन कर मेरे पास आती, वह खुद ही मेरे पास आ गई.

‘‘अरे सुमिता, तू यहां कैसे?’’ वह मेरी तरफ आते हुए बोली.

‘‘बस, शौपिंग करने आई थी,’’ मैं पास पड़ी कुरसी उस की तरफ खिसकाते हुए बोली.

‘‘तू इतनी मोटी कैसे हो गई,’’ वह हंसते हुए मुझ से पूछ बैठी.

‘‘अब 2 बच्चों के बाद तो ऐसा ही होगा,’’ मैं थोड़ा झेंपते हुए बोली, ‘‘और तू सुना?’’

‘‘भई, अभी तक तो अपनी लाइफ ही सैट नहीं हुई है, बच्चे तो बहुत दूर की बात है.’’

‘‘पर तेरी शादी तो…’’

‘‘अरे, नाम मत ले उस शादी का. वह

शादी नहीं हादसा था मेरे लिए,’’ कह कर मानवी सुबक पड़ी.

‘‘पर हुआ क्या है? बता तो सही?’’ उसे परेशान देख कर मैं उस से पूछ बैठी.

‘‘शादी से पहले तो मेरा पति विरेन बहुत बड़ीबड़ी बातें करता था, पर शादी के बाद उस का व्यवहार बदलने लगा. तुझे तो पता है कि मैं शुरू से ही आजाद जिंदगी जीने की शौकीन रही हूं… अब क्लब जा कर ताश खेलूंगी तो हारूंगी भी… बस, धीरेधीरे यही कहने लगा कि मानवी तुम क्लब जाना छोड़ दो, क्योंकि मेरा बिजनैस घाटे में चल रहा है. अब उस का बिजनैस घाटे में चले या मुनाफे में, मुझे क्या? मुझे तो अपने खर्च के लिए एक तयशुदा रकम चाहिए ही, जिसे मैं चाहे ताश में उड़ाऊं या ब्यूटीपार्लर में फूंकूं,’’ कह व मेज पर रखे पानी के गिलास को झट से उठा कर पी गई.

पानी पी कर जब वह थोड़ी नौर्मल हुई तब बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा और वह मुझ से कहने लगी, ‘‘पर जब उस की हर बात में टोकाटाकी बढ़ने लगी तब माथा ठनक गया मेरा. बस, तब मैं ने अपने वकील दोस्त के साथ मिल कर पूरे 50 लाख का दहेज उत्पीड़न का केस कर दिया पति पर.

‘‘बच्चू को अब आटेदाल का भाव मालूम पड़ेगा. मैं ने अपनी याचिका दायर करते समय ऐसीऐसी धाराएं लगाई हैं कि अब बेचारा सारी उम्र कोर्ट के चक्कर लगाता रहेगा,’’ कहतेकहते मानवी के चेहरे पर कुटिल मुसकान तैर गई.

मानवी की ये बातें सुन कर मैं हैरान थी. पर उन मैडम के चेहरे पर तो शिकन तक नहीं थी. मानवी अपनी पूरी कहानी एक विजयगाथा की तरह बयान कर रही थी.

‘‘पर मानवी, क्लब जाना बुरा नहीं है, पर अगर घर की आर्थिक हालत बिगड़ रही हो तो ऐसे खर्चों पर रोक लगानी ही पड़ती है और फिर पत्नी के बेलगाम खर्च पर पति ही रोक लगाएगा न,’’ मैं उसे समझाते हुए बोली.

‘‘बस, जो भी मिलता है, तेरी तरह मुझे समझाने लगता है. यह मेरी लाइफ है और इस के साथ अच्छा या बुरा करना, इस का हक सिर्फ मुझे है,’’ मानवी अचानक आक्रामक हो उठी, ‘‘जब मेरी ममा ही मुझे नहीं समझ सकीं तो औरों की क्या बात करूं? मुझे तो यह बात समझ नहीं आती कि एक तरफ तो हम नारी सशक्तीकरण की बातें करते हैं और दूसरी तरफ अगर महिलाएं अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने की कोशिश करें तो उन के पांवों में पारिवारिक रिश्तों की दुहाई दे कर बेडि़यां डालने की कोशिश करते हैं,’’ मानवी अपनी रौ में बोले जा रही थी और मैं चुपचाप सुन रही थी.

अब यह बात मैं समझ चुकी थी कि जो लड़की अपनी मां की बात नहीं समझ पाई, वह मेरी बात क्या समझेगी? अत: मैं ने बातचीत का रुख बदलते हुए उस के लिए 1 कप कौफी का और्डर दे डाला

कौफी पी कर जब उस का दिमाग तरोताजा हुआ तब वह कहने लगी, ‘‘पता है, जो मेरे पास बैठा था, वह निकुंज है, हमारे शहर का जानामाना वकील. पता है वह बावला मेरे एक इशारे पर करोड़ों रुपए लुटाने को तैयार है.

‘‘बस, जब उसे पता चला कि मेरा पति मुझे तंग कर रहा है तो झट से बोला कि मानवी डार्लिंग, तुम्हें अपने पति की बेवजह की तानाशाही सहने की कोई जरूरत नहीं है.

अरे, तुम तो ऐसी बहती नदी हो, जिसे कोई नहीं बांध सकता, तो फिर तुम्हारे पति की क्या बिसात है?

‘‘वैसे तो मैं अपने तलाक के सिलसिले में ही निकुंज से मिली थी, पर मेरी व्यथा सुन कर दिल पिघल गया था बेचारे का. वह खुद ही मुझ से बोला था कि तुम्हारे पति को यों सस्ते में छोड़ देना ठीक नहीं होगा. जब बच्चू को कानूनी दांवपेंच में उलझाऊंगा तब जा कर उस के होश ठिकाने आएंगे.

‘‘बस, फिर उसी के कहने पर मैं ने अपने पति व सास पर दहेज उत्पीड़न का केस बनाया है. मेरी वही सास जो पहले मेरे क्लब जाने पर ऐतराज करती थी, वही सास आज मेरे आगे केस वापस लेने के लिए गिड़गिड़ाती है, पर मैं ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. मैडम को मुझ पर हाथ उठाने के झूठे आरोप में ऐसा उलझाया है कि शायद अब उसे आत्महत्या ही करनी पड़े. पर मुझे क्या? मुझे तो अपना बदला चाहिए और वह मैं ले कर ही रहूंगी,’’ इतना कह कर वह चुप हो गई.

यह सुन कर मेरा मन खिन्न हो उठा. रहरह कर मैं मानवी के पति व सास के लिए हमदर्दी महसूस कर रही थी.

‘‘अच्छा, मैं चलती हूं, बच्चे आने वाले होंगे,’’ मैं उठते हुए बोली.

‘‘मैं अभी ब्यूटीपार्लर जा रही हूं. रात को डिनर फिक्स है मेरा निकुंज के साथ,’’ कह उस ने अपनी एक आंख शरारत से दबा दी, ‘‘भई, आज रात के लिए निकुंज ने फाइवस्टार होटल का आलीशान कमरा बुक किया है. अब कुछ पाना है तो यू नो, कुछ करना ही पड़ेगा… पर हां, मैं परसों फ्री हूं. अपना नंबर दे, मैं तेरे घर आऊंगी, तेरे बच्चों से मिलने और फिर तेरे बच्चों की तो मौसी हूं मैं,’’ वह अपना मोबाइल फोन निकालते हुए बोली.

‘‘मेरा फोन तो खो गया था. उस का मिसयूज न हो, इसलिए मेरे पति ने उस नंबर को ब्लौक करा दिया है. अब नया फोन और नया नंबर ही लेना पड़ेगा,’’ मैं ने झूठा बहाना बनाया और तेजी से बाहर निकल आई.

आज के बाद मैं मानवी से नहीं मिलूंगी. यह मैं ने पक्का तय कर लिया था. ऐसे लोगों को दूर से सलाम जो अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. तभी सामने से आते औटोरिकशा को रोक मैं उस में बैठ कर घर लौट आई.

Hindi Thriller Stories : पिंजरे का पंछी

Hindi Thriller Stories : कामिनी दरवाजे के बाहर खड़ी थी. खूब सजधज कर. सामने उसे एक अधेड़ उम्र का आदमी आता दिखाई दिया. उसे लगा कि वह उस की ओर चला आ रहा है. पर यह क्या? वह उस के बगल में खड़ी लड़की के पास चला गया और उस से बातें करने लगा. कामिनी सोचने लगी, ‘अब मेरी जवानी ढलने लगी है, शायद इसीलिए लड़के तो दूर अधेड़ भी मेरे पास आने से कतराने लगे हैं. आज भी मैं कुछ कमा नहीं पाई. अब मैं दीदी को क्या जवाब दूंगी? यही हाल रहा तो एक दिन वे मुझे यहां से निकाल बाहर करेंगी.’

इस के बाद कामिनी पुरानी यादों में खो गई. कामिनी के मातापिता गरीब थे. उस की मां लोगों के बरतन साफ कर के घर का खर्चा चलाती थी.

मातापिता ने कामिनी को अपना पेट काट कर पढ़ाना चाहा और उसे शहर के एक स्कूल में भरती किया. उन का सपना था कि कामिनी भी पढ़लिख कर समाज में नाम कमाए.

एक दिन स्कूल से छुट्टी होने के बाद कामिनी घर आने के लिए आटोरिकशा का इंतजार करने लगी. तभी उस के सामने एक कार आ कर रुकी. उस कार से एक अधेड़ आदमी बाहर आया. वह कामिनी से बोला, ‘बेटी, यहां क्यों खड़ी हो?’

‘मुझे घर जाना है. मैं आटोरिकशा का इंतजार कर रही हूं.’

‘बेटी, तुम्हारा घर कहां है?’ वह आदमी बोला.

‘देवनगर,’ कामिनी बोली.

‘मुझे भी देवनगर जाना है. हमारे साथ कार में बैठ जाओ.’

उस आदमी की बात सुन कर कामिनी उस की कार में बैठ गई. कार में 2 आदमी और भी बैठे थे.

कार को दूसरी तरफ अनजानी जगह पर जाते देख कामिनी हैरानी से बोली, ‘अंकल, आप कह रहे थे कि आप को देवनगर जाना है, पर आप तो…’

‘बेटी, मुझे जरूरी काम याद आ गया. मैं किसी दोस्त से मिलने जा रहा हूं. तुम्हें ये लोग तुम्हारे घर छोड़ देंगे,’ कामिनी की बात पूरी होने से पहले ही वह आदमी बोला.

कार आगे दौड़ने लगी. कार को दूसरी दिशा में जाते देख कामिनी बोली, ‘अंकल, यह तो देवनगर जाने का रास्ता नहीं है. आप मुझे कहां ले जा रहे हैं?’

‘बेटी, हम तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देंगे. उस से पहले हम तुम से एक बात करना चाहते हैं. हम कोई गैर नहीं हैं. हम तुम्हें और तुम्हारे मातापिता को अच्छी तरह से जानते हैं.

‘एक दिन हम ने तुम्हें अपनी सहेली से कहते सुना था कि तुम हीरोइन बनना चाहती हो. तुम चाहो तो हम तुम्हें किसी फिल्म में हीरोइन का रोल दिला देंगे. तब दुनियाभर में तुम्हारा नाम होगा. तुम्हारे पास इतनी दौलत हो जाएगी कि तुम अपने मांबाप के सारे सपने पूरे कर सकोगी.

‘हीरोइन बनने के बाद तुम अपने मातापिता से मिलने जाओगी, तो सोचो कि वे कितने खुश होंगे? कुछ दिनों के बाद तुम्हें फिल्म में रोल मिल जाएगा, तब तक तुम्हें अपने मातापिता से दूर रहना होगा.’

कामिनी की आंखों में हीरोइन बनने का सपना तैरने लगा. वह ख्वाब देखने लगी कि उसे बड़े बैनर की फिल्म मिल गई है. पत्रपत्रिकाओं और टैलीविजन के खबरिया चैनलों में उस के नाम की चर्चा हो रही है. समाज में उस के मातापिता की इज्जत बढ़ गई है. उस के पुराने मकान की जगह पर अब आलीशान कोठी है. सब उसी में रह रहे हैं.

‘बेटी, क्या सोच रही हो?’ उस आदमी के सवाल ने कामिनी का ध्यान भंग किया.

‘अंकल, मैं फिल्म में हीरोइन बनने को तैयार हूं,’ कामिनी ने कहा.

2-3 घंटे के सफर के बाद वह कार शहर से दूर एक इलाके में पहुंच गई. कामिनी को इस जगह के बारे में पता नहीं था. कार से उतर कर वे दोनों आदमी कामिनी को ले कर एक मकान में गए.

दरवाजे पर खटखट करने पर एक मोटी औरत बाहर आई. वहां आसपास खड़ी लड़कियां उसे ‘दीदी’ कह कर पुकार रही थीं.

उन आदमियों को देख कर वह औरत बोली, ‘ले आए तुम नई को?’

‘बेटी, तुम्हें कुछ दिन यहीं रहना है. उस के बाद हम तुम्हें फिल्म बनाने वाले के पास ले चलेंगे,’ एक आदमीने कहा और वे दोनों वहां से चले गए.

दीदी ने कामिनी के रहने का इंतजाम एक अलग कमरे में कर दिया. वहां सुखसुविधाएं तो सभी थीं, पर कामिनी को वहां का माहौल घुटन भरा लगा.

3 दिन के बाद दीदी कामिनी से बोली, ‘आज हम तुम्हें एक फिल्म बनाने वाले के पास ले चलेंगे. वे जो भी कहें, सबकुछ करने को तैयार रहना.’

कुछ देर बाद एक कार आई. उस में 2 आदमी बैठे थे. दीदी के कहने पर कामिनी उस कार में बैठ गई. एक घंटे के सफर के बाद वह एक आलीशान कोठी में पहुंच गई. वहां वे आदमी उसे एक कमरे में ले गए.

उस कमरे में एक आदमी बैठा था. उसे वहां के लोग सेठजी कह रहे थे. कामिनी को उस कमरे में छोड़ वे दोनों आदमी बाहर निकले.

जाते समय उन में से एक ने कामिनी से कहा, ‘ये सेठजी ही तुम्हारे लिए फिल्म बनाने वाले हैं.’

सेठजी ने कामिनी को कुरसी पर बिठाया. इंटरव्यू लेने का दिखावा करते हुए वे कामिनी से कुछ सवालपूछने लगे. इसी बीच एक आदमी शरबत के 2 गिलास ले कर वहां आया. एक गिलास सेठजी ने पीया और दूसरा गिलास कामिनी को पीने को दिया.

शरबत पीने के बाद कामिनी पर बेहोशी छा गई. उसे जब होश आया, तो उस ने अपने सामने सेठजी को मुसकराते हुए देखा. वह दर्द से कराह रही थी.

‘मेरे साथ धोखा हुआ है. मैं तुम सब को देख लूंगी. मैं तुम्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दूंगी,’ कामिनी चिल्लाई.

‘तुम्हारे साथ कोई धोखा नहीं हुआ है. तुम फिल्म में हीरोइन बनना चाहती थीं. लो, देख लो अपनी फिल्म,’ कह कर सेठजी ने कंप्यूटर में सीडी डाल कर उसे दिखा दी.

सीडी को देख कर कामिनी सन्न रह गई. उस फिल्म में सेठजी उस की इज्जत के साथ खेलते दिखाई दिए. ‘वैसे तो यह फिल्म हम किसी को नहीं दिखाएंगे. अगर तुम ने हमारी शिकायत पुलिस से की, तो हम इसे सारी दुनिया में पहुंचा देंगे,’ कंप्यूटर बंद करते हुए सेठजी बोले.

कमिनी को इस घटना से सदमा पहुंच गया. वह बेहोश हो गई. कुछ देर बाद वे दोनों आदमी कामिनी को कार में बैठा कर दीदी के पास ले गए.

कामिनी गुमसुम रहने लगी. वह न कुछ खाती थी, न किसी से बातें करती थी.

एक दिन दीदी कामिनी के कमरे में आ कर बोली, ‘देखो, यहां जो भी लड़की आती है, वह अपनी इच्छा से नहीं आती. वह कुछ दिनों तक तेरी तरह गुमसुम रहती है, बाद में खुद को संभाल लेती है. इस दलदल में जो एक बार पहुंच गई, वह चाह कर भी वापस नहीं जा सकती.

‘अगर तुम यहां से चली भी गई, तो तुम्हारा समाज तुम्हें फिर से नहीं अपनाएगा, इसलिए तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम अब यहीं के समाज में रहने का मन बनाओ. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’

दूसरे दिन दीदी ने कामिनी को कार में बिठा कर दूसरे आदमी के पास भेजा. अब वह इसी तरह कामिनी को इधरउधर भेजने लगी. एक दिन दीदी ने कामिनी से कहा, ‘तुझे इधरउधर जाते हुए काफी समय हो गया है. अब मैं तुझे एक नया काम सिखाऊंगी.’

‘नया काम… मतलब?’ कामिनी चौंकते हुए बोली. ‘मतलब यह है कि अब तुझे किसी सेठ के पास नहीं जाना है. तुझे यहीं दुकान में रह कर ग्राहकों को अपनी ओर खींचना है.’

‘किस दुकान में?’

‘यहीं.’

‘लेकिन यह तो मकान है, दुकान कहां है?’

‘यही मकान तुम्हारे धंधे की दुकान है. जैसे शोरूम में अलगअलग डिजाइन के कपड़े सजा कर रखे रहते हैं, वैसे ही तुम्हें यहां सजधज कर आधे कपड़ों में रहना है. तुम्हें कुछ नहीं करना है. बस, यहां से गुजरने वाले मर्दों को ललचाई नजरों से देखना है.’

दीदी के समझाने पर कामिनी सोचने लगी, ‘यहां रहने वाली सभी लड़कियां इस शोरूम की चीजें हैं. शोरूम में रखी चीजों को ग्राहक देख कर पसंद करता है. खरीदने के बाद वे चीजें उसी की हो जाती हैं. ग्राहक उस चीज की इज्जत करता है. हम जिस्म के सौदे की वे चीजें हैं, जिन्हें ग्राहक कुछ देर के लिए खरीद कर मजा ले कर चला जाता है.

‘वासना के भूखे दरिंदे हमारे पास आ कर अपनी भूख मिटाते हैं. हम भी चाहते हैं कि हमारा दिल किसी के लिए धड़के. वह एक हो. वह हम पर मरमिटने को तैयार हो. हम भी समाज के रिश्तों की डोर से बंधें.’

पिंजरे में बंद पंछी की तरह कामिनी का मन फड़फड़ा रहा था.

एक दिन कामिनी ने सोच लिया कि वह इस दुनिया से बाहर आ कर रहेगी. ज्यादा से ज्यादा इस कोशिश में उस की जान चली जाएगी. जिस्म के शोरूम की चीज बने रहने से अच्छा है कि वह मौत को गले लगा ले. अगर वह बच गई, तो समाज का हिस्सा बन जाएगी.

कामिनी ने दीदी को भरोसे में ले लिया. अपने बरताव और काम से उस ने दीदी पर असर जमा लिया. दीदी को यकीन हो गया था कि कामिनी ने खुद को यहां की दुनिया में ढाल लिया है.

एक दिन मौका देख कर कामिनी वहां से भाग गई और ट्रेन में बैठ कर अपने घर चली गई. इतने सालों के बाद कामिनी को देख कर उस के भाई खुश हो गए. उन्होंने कामिनी को बताया कि मातापिता की मौत हो चुकी है. वह अपने भाई विनोद और सोहन के साथ रहने लगी.

भाइयों को दुख न पहुंचे, यह सोच कर उस ने अपने बीते दिनों के बारे में कुछ नहीं बताया. कामिनी का भाई विनोद एक कंपनी में काम करता था. उस कंपनी का मालिक रवींद्र नौजवान था. एक दिन वह विनोद के जन्मदिन की पार्टी में उस के घर आया. विनोद ने उस से कामिनी का परिचय कराया. उसे कामिनी पसंद आ गई. धीरेधीरे रवींद्र और कामिनी के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.

एक दिन दोनों ने प्रेमविवाह कर लिया. रवींद्र और कामिनी एकदूसरे को बहुत प्यार करते थे. शादी के बाद कामिनी रवींद्र के साथ शहर में किराए के मकान में रहने लगी.

एक दिन रवींद्र की कंपनी में बैठक चल रही थी. रवींद्र को याद आया कि उस की जरूरी फाइल तो घर पर ही रह गई है. रवींद्र ने सुपरवाइजर प्रदीप को वह फाइल लेने अपने घर भेज दिया.

रवींद्र के घर पहुंच कर प्रदीप ने दरवाजे पर खटखट की. थोड़ी देर बाद कामिनी बाहर आ गई. ‘कामिनी, तू यहां? तू ने मुझे पहचाना?’ कामिनी को देख कर प्रदीप बोला.

‘नहीं तो,’ कामिनी बोली.

‘वहां मैं तुम्हारे पास कई बार आया करता था. क्या तुझे यहां साहब किराए पर लाए हैं?’

प्रदीप की बात सुन कर कामिनी चुप रही. प्रदीप कामिनी को बांहों में भरने लगा. वह उसे चूमने की कोशिश करने लगा.

‘परे हट जाओ मेरे सामने से,’ कामिनी चिल्लाई.

‘जानम, मैं ने तुम्हें कई बार प्यार किया है. आज यहां तू और मैं ही तो हैं. मेरी इच्छा पूरी नहीं करोगी?’

‘नहीं, तुम्हें मुझ से तमीज से बात करनी चाहिए. मैं तुम्हारे साहब की बीवी हूं,’ कामिनी चिल्लाई.

‘तमीज से?’ प्रदीप हंस कर बोला.

‘मैं साहब को तुम्हारे बारे में सबकुछ बता दूंगा,’ प्रदीप बोला.

‘नहीं, तुम ऐसा नहीं करोगे. मेरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी.’

‘ठीक है. अगर तुम अपनी जिंदगी बरबाद होने से बचाना चाहती हो, तो मैं जब चाहूं तुम्हें मेरी इच्छा पूरी करनी होगी. तुम्हें यह काम आज और अभी से करना होगा. जिस दिन तुम ने मेरा कहा नहीं माना, मैं तुम्हारी पूरी कहानी साहब को बता दूंगा,’ जातेजाते प्रदीप कामिनी से बोला.

अब प्रदीप रवींद्र की गैरहाजिरी में समयसमय पर कामिनी से मिलने आने लगा.

एक दिन किसी काम से रवींद्र अपने घर समय से पहले आ गया. उस ने प्रदीप और कामिनी को एकसाथ देख लिया. उस ने प्रदीप और कामिनी को बुरी तरह डांटा. उस ने प्रदीप को नौकरी से हटाने की धमकी दी. प्रदीप ने रवींद्र को कामिनी के बारे में सबकुछ बता दिया. रवींद्र ने कामिनी का साथ छोड़ दिया. कामिनी के बारे में जब उस के भाइयों को पता चला, तो उन्होंने भी उसे अपने साथ रखने से मना कर दिया.

कामिनी के पास फिर उसी दुनिया में लौटने के सिवा कोई रास्ता नहीं रह गया था. ‘‘कामिनी, आज भी कुछ कमाया या नहीं?’’ दीदी की बात सुन कर कामिनी यादों से बाहर आ गई.

लेखक- डा. उमेश चमोला

Inspirational Stories : मालती

Inspirational Stories : कदमों के लड़खड़ाने और कुंडी खटखटाने की आवाज सुन कर मालती चौकन्नी हो उठी और बड़बड़ाई, ‘‘आज फिर…?’’

आंखों में नींद तो थी ही नहीं. झटपट दरवाजा खोला. तेजा को दुख और नफरत से ताकते हुए वह बुदबुदाई, ‘‘क्या करूं? इन का इस शराब से पिंड छूटे तो कैसे?’’

‘‘ऐसे क्या ताक रही है? मैं… कोई तमाशा हूं क्या…? क्या… मैं… कोई भूत हूं?’’ तेजा बहकती आवाज में बड़बड़ाया.

‘‘नहीं, कुछ नहीं…’’ कुछ कदम पीछे हट कर मालती बोली.

‘‘तो फिर… एं… तमाशा ही हूं… न? बोलती… क्यों नहीं…? ’’ कहता हुआ तेजा धड़ाम से सामने रखी चौकी पर पसर गया.

मालती झटपट रसोईघर से एक गिलास पानी ले आई.

तेजा की ओर पानी का गिलास बढ़ा कर मालती बोली, ‘‘लो, पानी पी लो.’’

‘‘पी… लो? पी कर तो आया हूं… कितना… पी लूं? अपने पैसे से पीया… अकबर ने भी पिला दी… अब तुम भी पिलाने… चली हो…’’

मालती कुछ बोलती कि तेजा ने उस के हाथ से गिलास झपट कर दीवार पर पटकते हुए चिल्लाया, ‘‘मजाक करती है…एं… मजाक करती है मुझ से… पति के साथ… मजाक करती है. …पानी… पानी… देती है,’’ तेजा उठ कर मालती की ओर बढ़ा.

मालती सहम कर पीछे हटी ही थी कि तेजा डगमगाता हुआ सामने की मेज से जा टकराया. मेज एक तरफ उलट गई. मेज पर रखा सारा सामान जोर की आवाज के साथ नीचे बिखर गया. खुद उस का सिर दीवार से जा टकराया और गुस्से में बड़बड़ाता हुआ वह मालती की ओर झपट पड़ा.

मालती को सामने न पा कर तेजा फर्श पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लगा.

तेजा के सामने से हट कर मालती एक कोने में दुबकी खड़ी थी. उसे काटो तो खून नहीं. वह एकटक नशे में धुत्त अपने पति को देख रही थी. उस का कलेजा फटा जा रहा था.

तेजा के रोने की आवाज सुन कर बगल के कमरे में सोए दोनों बच्चों की नींद टूट गई. आंखें मलती 10 साल की मुन्नी और उस के पीछे 8 साल का बेटा रमेश पिता की ऐसी हालत देख कर हैरानपरेशान थे.

पिता के इस तरह के बरताव के वे दोनों आदी थे. आज पिता के रोने से उन्हें बड़ी तकलीफ हो रही थी, पर मां के गालों से लुढ़कते आंसुओं को देख कर वे और भी दुखी हो गए.

बेटी मुन्नी मां का हाथ पकड़

कर रोने लगी. रमेश डरासहमा कभी बाप को देखता, तो कभी मां के आंसुओं को.

तेजा को लड़खड़ा कर खड़ा होता देख तीनों का कलेजा पसीज गया.

तभी तेजा मालती पर झपट पड़ा, ‘‘मुझे भूख नहीं लगती क्या?… तुझे मार डालूंगा… तुम ने मुझे नीचे… गिरा दिया और… आंसू बहा रही है… झूठमूठ

के आंसू… तुम ने मुझे मारा… मैं ने

तेरा क्या बिगाड़ा?… एं… क्या बिगाड़ा… बता…?’’

मालती के बाल उस के हाथों

की गिरफ्त में आ गए. वह उन्हें छुड़ाने की नाकाम कोशिश करने लगी. बेटी मुन्नी जोरों से रोने लगी. रमेश अपने पिता का हाथ अपने नन्हे हाथों से पकड़ कर हटाने की नाकाम कोशिश करने लगा.

मालती ने चिल्ला कर रमेश को मना किया, पर वह नहीं माना. इस बीच तेजा ने रमेश को धक्का दे कर नीचे गिरा दिया. उस का सिर फर्श से टकराया और देखते ही देखते खून का फव्वारा फूट पड़ा.

खून देख कर मालती बदहवास हो कर चिल्ला पड़ी, ‘‘खून… रमेश… मेरे बेटे के सिर से खून…’’

खून देख कर तेजा का हाथ ढीला पड़ा.

मालती और मुन्नी दहाड़ें मार कर रोने लगीं. पड़ोसियों ने आ कर सारा माजरा देखा और रमेश को अस्पताल ले जा कर मरहमपट्टी करवाई. खाना रसोईघर में यों ही पड़ा रहा. मालती रातभर रमेश को सीने से लगाए रोती रही. नींद आंखों से गायब थी.

अपनी औलाद के लिए घुटघुट कर जीने के लिए मजबूर थी मालती. मन ही मन उस ने तेजा से हार मान ली थी. हालात से समझौता कर मालती ने मान लिया था कि यही उस की किस्मत में लिखा है.

पर, तेजा ने शराब से हार नहीं मानी. रात के अंधेरे में तेजा राक्षस बन कर घर में कुहराम मचाता, तो दिन की रोशनी में भले आदमी की तरह मुसकान बिखेरता मालती और बेटीबेटे को लाड़प्यार करता. ऐसा लगता कि जैसे रात में कुछ हुआ ही नहीं. पर अंदर ही अंदर मालती की घुटन एक चिनगारी का रूप लेने लगी थी.

एक दिन तो मालती की खिलाफत ने अजीब रंग दिखाया. उस दिन मालती ने दोनों बच्चों को स्कूल जाने से रोक दिया.

तेजा ने पूछा, ‘‘क्या आज स्कूल बंद है? ये तैयार क्यों नहीं हो रहे हैं?’’

‘‘नहीं, मेरी तबीयत ठीक नहीं है. इसी वजह से इन्हें रोक लिया,’’ मालती गंभीर हो कर बोली.

‘‘तो मैं आज काम पर नहीं जाता. तुम्हारे पास रहूंगा. इन्हें जाने दो,’’ तेजा बोला.

‘‘नहीं, ये आज नहीं जाएंगे. मेरे पास ही रहेंगे,’’ मालती बोली.

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी. ज्यादा तबीयत खराब हो, तो मुझे बुलवा लेना. डाक्टर के  पास ले जाऊंगा,’’ तेजा बड़े प्यार से बोला.

मालती और बच्चों को छोड़ तेजा काम पर चला गया.

एक घंटे बाद मालती ने मुन्नी के हाथों शराब की भट्ठी से 4 बोतल शराब मंगवाई. दरवाजा बंद कर धीरेधीरे एक बोतल वह खुद पी गई. फिर मुन्नी व रमेश को पिलाने लगी. मुन्नी ज्यादा पीने की वजह से रोने लगी.

रमेश भी रोता हुआ बड़बड़ाने लगा, ‘‘मम्मी, अच्छी नहीं लग रही है. अब मत पिलाओ मम्मी.’’

‘‘पी लो, थोड़ी और पी लो… देखो, मैं भी तो पी रही हूं…’’ रुकरुक कर मालती बोली और दोनों के मुंह में पूरा गिलास उडे़ल दिया. दोनों ही फर्श पर निढाल हो कर गिर पड़े. मालती ने दूसरी बोतल भी पी डाली और वह भी फर्श पर लुढ़क गई.

थोड़ी देर बाद बच्चे उलटी करने लगे और चिल्लाने लगे.

बच्चों की दर्दभरी कराह और चिल्लाहट सुन कर पड़ोसी दरवाजा तोड़ कर घर में घुसे. वहां की हालत देख कर सभी हैरान रह गए. कमरे में शराब की बदबू पा कर उन्हें समझते देर नहीं लगी कि तेजा की हरकतों से तंग आ कर ही मालती ने ऐसा किया है.

पड़ोसियों ने तीनों को अस्पताल पहुंचाया.

खबर पा कर तेजा अस्पताल की ओर भागा. मालती और बच्चों का हाल देख कर वह पछाड़ खा कर गिर पड़ा और फूटफूट कर रोने लगा.

‘‘बचा लो भैया… इन्हें बचा लो… मेरी मालती को बचा लो… मेरे बच्चों को बचा लो…’’ कहता हुआ तेजा अपनी छाती पीट रहा था.

‘‘और शराब पियो तेजा… और पियो… और जुल्म करो अपने बीवीबच्चों पर… देख लिया…’’ एक पड़ोसी ने गुस्साते हुए कहा.

‘‘नहीं, नहीं… मैं कुसूरवार हूं… मेरी वजह से ही यह सब हुआ… उस ने कई बार मुझे समझाने की कोशिश की, पर मैं ही अपनी शराब की बुरी आदत की वजह से मामले को समझ नहीं पाया,’’ रोतेरोते तेजा बोला.

करीब एक घंटे बाद डाक्टर ने आ कर बताया कि दोनों बच्चे तो ठीक हैं, पर मालती ने दम तोड़ दिया है. उसे बचाया नहीं जा सका. उस पर शराब के  असर के अलावा दिमागी दबाव बहुत ज्यादा था.

तेजा फूटफूट कर रोने लगा. उसे अक्ल तो आ गई थी, पर इतनी अच्छी बीवी को खोने के बाद.

लेखक- हीरा लाल मिश्र

Hindi Moral Stories : जन्म समय

Hindi Moral Stories : रिसैप्शन रूम से बड़ी तेज आवाजें आ रही थीं. लगा कि कोई झगड़ा कर रहा है. यह जिला सरकारी जच्चाबच्चा अस्पताल का रिसैप्शन रूम था. यहां आमतौर पर तेज आवाजें आती रहती थीं. अस्पताल में भरती होने वाली औरतों के हिसाब से स्टाफ कम होने से कई बार जच्चा व उस के संबंधियों को संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाता था.

अस्पताल बड़ा होने के चलते जच्चा के रिश्तेदारों को ज्यादा भागादौड़ी करनी पड़ती थी. इसी झल्लाहट को वे गुस्से के रूप में स्टाफ व डाक्टर पर निकालते थे.

मुझे एक तरह से इस सब की आदत सी हो गई थी, पर आज गुस्सा कुछ ज्यादा ही था. मैं एक औरत की जचगी कराते हुए काफी समय से सुन रहा था और समय के साथसाथ आवाजें भी बढ़ती ही जा रही थीं. मेरा काम पूरा हो गया था. थोड़ा मुश्किल केस था. केस पेपर पर लिखने के लिए मैं अपने डाक्टर रूम में गया.

मैं ने वार्ड बौय से पूछा, ‘‘क्या बात है, इतनी तेज आवाजें क्यों आ रही हैं?’’

‘‘साहब, एक शख्स 24-25 साल पुरानी जानकारी हासिल करना चाहते हैं. बस, उसी बात पर कहासुनी हो रही है.’’ वार्ड बौय ने ऐसे बताया, जैसे कोई बड़ी बात नहीं हो.

‘‘अच्छा, उन्हें मेरे पास भेजो,’’ मैं ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘जी साहब,’’ कहता हुआ वह रिसैप्शन रूम की ओर बढ़ गया.

कुछ देर बाद वह वार्ड बौय मेरे चैंबर में आया. उस के साथ तकरीबन 25 साल की उम्र का नौजवान था. वह शख्स थोड़ा पढ़ालिखा लग रहा था. शक्ल भी ठीकठाक थी. पैंटशर्ट में था. वह काफी परेशान व उलझन में दिख रहा था. शायद इसी बात का गुस्सा उस के चेहरे पर था.

‘‘बैठो, क्या बात है?’’ मैं ने केस पेपर पर लिखते हुए उसे सामने की कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

‘‘डाक्टर साहब, मैं कितने दिनों से अस्पताल के धक्के खा रहा हूं. जिस टेबल पर जाऊं, वह यही बोलता है कि यह मेरा काम नहीं है. उस जगह पर जाओ. एक जानकारी पाने के लिए मैं 5 दिन से धक्के खा रहा हूं,’’ उस शख्स ने अपनी परेशानी बताई.

‘‘कैसी जानकारी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जन्म के समय की जानकारी,’’ उस ने ऐसे बोला, जैसे कि कोई बड़ा राज खोला.

‘‘किस के जन्म की?’’ आमतौर पर लोग अपने छोटे बच्चे के जन्म की जानकारी लेने आते हैं, स्कूल में दाखिले के लिए.

‘‘मेरे खुद के जन्म की.’’

‘‘आप के जन्म की? यह जानकारी तो तकरीबन 24-25 साल पुरानी होगी. वह इस अस्पताल में कहां मिलेगी. यह नई बिल्डिंग तकरीबन 15 साल पुरानी है. तुम्हें हमारे पुराने अस्पताल के रिकौर्ड में जाना चाहिए.

‘‘इतना पुराना रिकौर्ड तो पुराने अस्पताल के ही रिकौर्ड रूम में होगा, सरकार के नियम के मुताबिक, जन्म समय का रिकौर्ड जिंदगीभर तक रखना पड़ता है.

‘‘डाक्टर साहब, आप भी एक और धक्का खिला रहे हो,’’ उस ने मुझ से शिकायती लहजे में कहा.

‘‘नहीं भाई, ऐसी बात नहीं है. यह अस्पताल यहां 15 साल से है. पुराना अस्पताल ज्यादा काम के चलते छोटा पड़ रहा था, इसलिए तकरीबन 15 साल पहले सरकार ने बड़ी बिल्डिंग बनाई.

‘‘भाई यह अस्पताल यहां शिफ्ट हुआ था, तब मेरी नौकरी का एक साल ही हुआ था. सरकार ने पुराना छोटा अस्पताल, जो सौ साल पहले अंगरेजों के समय बना था, पुराना रिकौर्ड वहीं रखने का फैसला किया था,’’ मैं ने उसे समझाया.

‘‘साहब, मैं वहां भी गया था, पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. बोले, ‘प्रमाणपत्र में सिर्फ तारीख ही दे सकते हैं, समय नहीं,’’’ उस शख्स ने कहा.

आमतौर पर जन्म प्रमाणपत्र में तारीख व जन्मस्थान का ही जिक्र होता है, समय नहीं बताते हैं. पर हां, जच्चा के इंडोर केस पेपर में तारीख भी लिखी होती है और जन्म समय भी, जो घंटे व मिनट तक होता है यानी किसी का समय कितने घंटे व मिनट तक होता है, यानी किसी का समय कितने घंटे व मिनट पर हुआ.

तभी मेरे दिमाग में एक सवाल कौंधा कि जन्म प्रमाणपत्र में तो सिर्फ तारीख व साल मांगते हैं, इस को समय की जरूरत क्यों पड़ी?

‘‘भाई, तुम्हें अपने जन्म के समय की जरूरत क्यों पड़ी?’’ मैं ने उस से हैरान हो कर पूछा.

‘‘डाक्टर साहब, मैं 26 साल का हो गया हूं. मैं दुकान में से अच्छाखासा कमा लेता हूं. मैं ने कालेज तक पढ़ाई भी पूरी की है. मुझ में कोई ऐब भी नहीं है. फिर भी मेरी शादी कहीं तय नहीं हो पा रही है. मेरे सारे दोस्तों व हमउम्र रिश्तेदारों की भी शादी हो गई है.

‘‘थकहार कर घर वालों ने ज्योतिषी से शादी न होने की वजह पूछी. तो उस ने कहा, ‘तुम्हारी जन्मकुंडली देखनी पड़ेगी, तभी वजह पता चल सकेगी और कुंडली बनाने के लिए साल, तारीख व जन्म के समय की जरूरत पड़ेगी.’

‘‘मेरी मां को जन्म की तारीख तो याद है, पर सही समय का पता नहीं. उन्हें सिर्फ इतना पता है कि मेरा जन्म आधी रात को इसी सरकारी अस्पताल में हुआ था.

‘‘बस साहब, उसी जन्म के समय के लिए धक्के खा रहा हूं, ताकि मेरा बाकी जन्म सुधर जाए. शायद जन्म का सही समय अस्पताल के रिकौर्ड से मिल जाए.’’

‘‘मेरे साथ आओ,’’ अचानक मैं ने उठते हुए कहा. वह उम्मीद के साथ उठ खड़ा हुआ.

‘‘यह कागज व पैन अपने साथ रखो,’’ मैं ने क्लिप बोर्ड से एक पन्ना निकाल कर कहा.

‘‘वह किसलिए?’’ अब उस के चौंकने की बारी थी.

‘‘समय लिखने के लिए,’’ मैं ने उसे छोटा सा जवाब दिया.

‘‘मेरी दीवार घड़ी में जितना समय हुआ है, वह लिखो,’’ मैं ने दीवार घड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा.

उस ने हैरानी से लिखा. सामने ही डिलीवरी रूम था. उस समय डिलीवरी रूम खाली था. कोई जच्चा नहीं थी. डिलीवरी रूम में कभी भी मर्द को दाखिल होने की इजाजत नहीं होती है. मैं उसे वहां ले गया. वह भी हिचक के साथ अंदर घुसा.

मैं ने उस कमरे की घड़ी की ओर इशारा करते हुए उस का समय नोट करने को कहा, ‘‘अब तुम मेरी कलाई घड़ी और अपनी कलाई घड़ी का समय इस कागज में नोट करो.’’

उस ने मेरे कहे मुताबिक सारे समय नोट किए.

‘‘अच्छा, बताओ सारे समय?’’ मैं ने वापस चैंबर में आ कर कहा.

‘‘आप की घड़ी का समय दोपहर 2.05, मेरी घड़ी का समय दोपहर 2.09, डिलीवरी रूम का समय दोपहर 2.08 और आप के चैंबर का समय दोपहर 2.01 बजे,’’ जैसेजैसे वह बोलता गया, खुद उस के शब्दों में हैरानी बढ़ती जा रही थी.

‘‘सभी घडि़यों में अलगअलग समय है,’’ उस ने इस तरह से कहा कि जैसे दुनिया में उस ने नई खोज की हो.

‘‘देखा तुम ने अपनी आंखों से, सब का समय अलगअलग है. हो सकता है कि तुम्हारे ज्योतिषी की घड़ी का समय भी अलग हो. और जिस ने पंचांग बनाया हो, उस की घड़ी में उस समय क्या बजा होगा, किस को मालूम?

‘‘जब सभी घडि़यों में एक ही समय में इतना फर्क हो, तो जन्म का सही समय क्या होगा, किस को मालूम?

‘‘जिस केस पेपर को तुम ढूंढ़ रहे हो, जिस में डाक्टर या नर्स ने तुम्हारा जन्म समय लिखा होगा, वह समय सही होगा कि गलत, किस को पता?

‘‘मैं ने सुना है कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक पल का फर्क भी ग्रह व नक्षत्रों की जगह में हजारों किलोमीटर में हेरफेर कर देता है. तुम्हारे जन्म समय में तो मिनटों का फर्क हो सकता है.

‘‘सुनो भाई, तुम्हारी शादी न होने की वजह यह लाखों किलोमीटर दूर के बेचारे ग्रहनक्षत्र नहीं हैं. हो सकता है कि तुम्हारी शादी न होने की वजह कुछ और ही हो. शादियां सिर्फ कोशिशों से होती हैं, न कि ग्रहनक्षत्रों से,’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘डाक्टर साहब, आप ने घडि़यों के समय का फर्क बता कर मेरी आंखें खोल दीं. इतना पढ़नेलिखने के बावजूद भी मैं सिर्फ निराशा के चलते इन अंधविश्वासों के फेर में फंस गया. मैं फिर से कोशिश करूंगा कि मेरी शादी जल्दी से हो जाए.’’ अब उस शख्स के चेहरे पर निराशा की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की चमक थी.

Hindi Satire 2025 : अपनी खूबी ले डूबी

Hindi Satire 2025 : ‘‘तुम चिल्लाते क्यों हो जी. कुरतापाजामा वहीं खूंटी पर तो टंगा है. लेकिन ठहरो, अभी तुम कपड़े मत बदलना…’’ संतोष ने भीतर से आते हुए कहा.

‘‘क्यों…?’’ ताराचंद ने पूछा.

संतोष मुसकरा कर बोली, ‘‘क्योंकि तुम्हारी इच्छा चाय पीने की होगी. ऐसा करो तुम दुर्गा ताई के घर हो आओ. ताऊ को कल शाम से बुखार है. वहां चाय के साथ नमकीन भी मिल जाएगी…’’ थोड़ा रुक कर वह फिर बोली, ‘‘कल हम दोनों ही वहां जा कर सुबह की चाय पी लेंगे. आज दिनभर वहां बैठेबैठे मैं तो 2 बार की चाय पी आई थी. लौटते समय 6 संतरे भी साथ ले आई थी.’’

‘‘संतरे?’’ ताराचंद ने पूछा.

संतोष फिर मुसकरा कर बोली, ‘‘हां, ताऊ का हालचाल पूछने जो भी आ रहा था, ज्यादातर संतरे ही ला रहा था. मैं ने ताई के कान में फुसफुसा कर कह दिया था कि किसीकिसी बुखार में संतरा जहर का काम करता है. बस, ताई ने सारे संतरे आसपड़ोस में बांट दिए. मेरे हाथ भी 6 संतरे लग गए.’’

‘‘मिल ही रहे थे, तो पूरे दर्जनभर ले आती,’’ ताराचंद ने कहा.

‘‘ले तो आती, मगर सोचा कि शाम को 6 ही तो खा सकेंगे. बाकी रखेरखे सड़ गए तो फेंकने ही पड़ेंगे. अब कपड़े बदल लो. शाम के लिए कटोरा भर कर आलूपालक की सब्जी सुशीला दे गई है. भूख लग आए तो बता देना. मैं रोटियां सेंक दूंगी,’’ संतोष ने कहा.

‘‘सुशीला के घर की सब्जी में तो मिर्च बहुत होगी,’’ ताराचंद बोले.

‘‘अरे, मुफ्त की तो मिर्च में भी मजा ले लेना चाहिए. तुम्हें तो मुझे शाबाशी देनी चाहिए, जो मौका मिलते ही मुफ्त का जुगाड़ कर लेती हूं,’’ संतोष ने कहा.

ताराचंद हंस कर बोले, ‘‘तुम्हारी खूबी का तो मैं शुरू से ही कायल रहा हूं. कोई सोच भी नहीं सकता कि इस छोटी सी खोपड़ी के भीतर अक्ल का इतना बड़ा भंडार है.’’

तभी ताराचंद को अपनी बात याद आई, ‘‘तुम्हारी तो बात हो गई, लेकिन आज मैं ने भी कुछ कम अक्ल का काम नहीं किया है. मेज पर लिफाफे में

4 आम रखे हैं.’’

‘‘आम,’’ संतोष चौंकी.

‘‘तुम जरा इन की खुशबू तो लो,’’ ताराचंद बोले.

‘‘अब बता भी दो कि कहां से लाए हो…’’ इतराते हुए संतोष ने पूछा.

‘‘आज एक आदमी हमारे खन्ना साहब के लिए तोहफे में थैला भर कर आम ले आया था. साहब ने मुझ से ही कह दिया कि एकएक सब को बांट

दो. बस, मैं ने मौका देख कर उन में से 4 आम चुरा लिए,’’ उन्होंने बताया.

‘‘अरे, चुराने ही थे, तो कम से कम 6 तो चुराते,’’ संतोष ने मुंह बिचकाया.

ताराचंद कुछ कहने ही वाले थे कि आवाज सुन कर रुक गए.

‘‘संतोष बहन…’’

आवाज पहचान कर संतोष बोली, ‘‘अरी कमलेश बहन, बाहर से क्या आवाजें दे रही हो, अंदर आ जाओ.’’

‘‘नमस्ते भाई साहब. मैं कह रही थी कि तुम्हारे घर में थोड़ा सा गरम मसाला होगा. मैं तो आज मंगाना ही भूल गई और ये हैं कि बिना गरम मसाले के खाने में स्वाद ही नहीं मानते,’’ कमलेश ने अंदर आ कर कहा.

संतोष दुनियाभर का अफसोस अपने चेहरे पर लाते हुए बोली, ‘‘तुम भी कैसे समय पर आई हो बहन, गरम मसाला मेरे यहां भी सुबह ही खत्म हुआ है. इन से मंगाया तो था, लेकिन मर्दों की भूलने की आदत तुम जानती ही हो, सो ये भी भूल गए. लो, ये 2 आम तुम भी ले जाओ.’’

‘‘वह तो ठीक है… लौकी के कोफ्ते बना रही थी, मगर अब गरम मसाला…’’

कमलेश की बात पूरी होने से पहले ही संतोष बोल पड़ी, ‘‘लौकी के कोफ्ते तो एक दिन सरोज ने खिलाए थे हमें. कह रही थी कि उस के जैसे कोफ्ते पूरे महल्ले में कोई नहीं बना सकता.’’

कमलेश ने मुंह बनाया, ‘‘अपने मुंह से अपनी तारीफ करना मुझे तो नहीं आता. कल दोबारा बनाऊंगी, तो तुम्हारे यहां भी भिजवा दूंगी. फिर तुम खुद ही देख लेना कि कोफ्ता किसे कहते हैं.’’

कमलेश के बाहर जाते ही संतोष मुसकराई, ‘‘देखा, कल की सब्जी का भी इंतजाम हो गया.’’

‘‘वह तो देखा, लेकिन उसे इतने महंगे आम क्यों दे दिए? देने ही थे तो संतरे दे दिए होते,’’ ताराचंद बोले.

संतोष हंसी, ‘‘अक्ल से काम लेना सीखो. हो सकता है कि दुर्गा ताई ने उसे भी संतरे दे दिए हों.’’

अचानक ताराचंद के चेहरे पर आई उदासी देख कर संतोष को हैरानी हुई. उस ने वजह पूछी, तो ताराचंद परेशान हो कर बोले, ‘‘खन्ना साहब कल रात घर आ रहे हैं, वह भी पत्नी के साथ.’’

यह सुन कर संतोष भी सोच में डूब गई. कुछ देर बाद थोड़ा खुश हो कर वह इतमीनान से बोली, ‘‘आसपड़ोस में मेरा दबदबा तो तुम ने देख ही लिया है. सब्जियों का जुगाड़ हो जाएगा. हमें केवल रोटियों और सलाद का इंतजाम करना पड़ेगा.’’

‘‘सुनो, खन्ना साहब की मिसेज को पिछली बार खीर बहुत पसंद आई थी. खन्ना साहब दफ्तर में भी बहुत दिनों तक उसी की चर्चा करते रहे थे,’’ ताराचंद ने याद दिलाया.

‘‘वह सुशीला के यहां से आई थी,’’ कहते हुए संतोष 2 समोसे और थोड़ी सी बरफी साथ ले कर सुशीला के घर निकल गई.

2 दिन बाद उन्होंने खन्ना साहब को बड़े आदर के साथ अपने घर आने की दावत दी, जिसे खन्ना साहब ने खुशीखुशी मंजूर कर लिया.

शाम को वे दोनों इतमीनान से घर पर खन्ना साहब के आने का इंतजार करने लगे. महल्लेभर से दाल, सब्जी, रायता का एकएक डोंगा शाम को साढ़े 7 बजे से पहले ही उन के घर पहुंच चुका था. बस, सुशीला के घर से खीर आने की कमी रह गई थी.

जब पौने 8 बजे तक खीर नहीं पहुंची तो ताराचंद को थोड़ी चिंता सताने लगी.

तभी बाहर खन्ना साहब की कार के रुकने की आवाज सुनाई दी. खन्ना साहब अपनी पत्नी के साथ उन्हीं के घर की ओर बढ़ रहे थे.

‘‘लो, ये लोग तो आ गए. लेकिन तुम्हारी सुशीला अभी तक नहीं आई,’’ ताराचंद फुसफुसाए.

संतोष भी उसी अंदाज में बोली, ‘‘तुम इन लोगों का स्वागत करो. मैं सुशीला के घर से हो कर आती हूं.’’

वह तेजी के साथ सुशीला के घर की ओर चल दी. सुशीला उसे घर में कहीं दिखाई नहीं दी.

संतोष सीधे उस के रसोईघर में पहुंच गई. यह देख कर उसे बड़ी राहत मिली कि सुशीला खीर तैयार करने के बाद ही कहीं गई थी. खीर भरी पतीली सामने ही रखी थी. उस ने फटाफट डोंगा भरा और अपने घर पहुंच गई.

डोंगा रसोईघर में रख संतोष भी उन के बीच चली आई. मिसेज खन्ना बोलीं, ‘‘मिसेज चंद, आप हैं कहां? हमारे पास बैठिए. खाना तो एक बहाना है. हम तो प्यार के भूखे हैं, इसीलिए तो मुंह उठाए किसी भी छोटेमोटे आदमी के यहां जा टपकते हैं.’’

‘जी,’ ताराचंद और संतोष के मुंह से एकसाथ निकल पड़ा.

खन्नाजी ने समझाने के अंदाज में कहा, ‘‘इन का मतलब है कि हम किसी को भी छोटा नहीं समझते.’’

संतोष ने कुछ ही देर में खाना मेज पर सजा दिया. ढेर सारी चीजें देख कर मिसेज खन्ना बोलीं, ‘‘अरे, इतना सबकुछ करने की क्या जरूरत थी…’’

‘‘यह तो कुछ भी नहीं है, आप शुरू करें,’’ संतोष ने एक डोंगा उन की तरफ बढ़ाया. वे सब खाने में जुट गए.

बीच में संतोष ने ताराचंद को इशारा किया कि वह खन्ना साहब से अपने प्रमोशन की बात छेड़ दें.

‘‘सर, आप बुरा न मानें तो…’’ ताराचंद हकलाने लगे.

‘‘अरे, अब कह भी डालिए,’’ खन्ना साहब ने कुछ तेजी के साथ कहा.

ताराचंद सकपका गए और बोले, ‘‘मेरा मतलब है सर, आप ने यह बैगन का भरता तो छुआ ही नहीं है. थोड़ा यह भी लीजिए न.’’

‘‘ओ… जरूर लेंगे, जरूर लेंगे. लेकिन इस में इतना हकलाने की क्या बात थी,’’ खन्ना साहब बोले.

‘‘भाई साहब, अब यह खीर तो लीजिए. आप लोगों के लिए खासतौर से बनवाई है,’’ कुछ देर बाद संतोष ने खन्ना साहब से कहा.

‘‘भई, खीर तो हमारी श्रीमतीजी की पसंद है. वे जी भर कर खा लें,’’ खन्ना साहब बोले.

‘‘आप लीजिए न, मैं तो 2 कटोरी ले चुकी हूं,’’ मिसेज खन्ना ने खीर का डोंगा खन्ना साहब के सामने सरका दिया.

वे बड़े चाव से खीर खा ही रहे थे कि अचानक सुशीला वहां चली आई और बोली, ‘‘संतोष बहन, जो खीर तुम मेरे घर से उठा लाई थीं, वह तुम ने खाई तो नहीं? उसे खाना मत. वह कौशल्या है न, उस का कुत्ता आज पता नहीं कैसे खुला रह गया और मेरी रसोई में घुस कर उस खीर में मुंह मार गया.

‘‘मैं ने तो खीर अलग रख दी थी कि रामकली की गाय को खिला दूंगी, मगर इस बीच तुम उसे उठा लाईं. मैं उस समय कौशल्या की खबर लेने चली

गई थी.’’

अचानक सुशीला की नजर खाने की मेज पर पड़ी और वह ठिठक गई.

मेहमानों को देख कर उस ने वहां रुकना ठीक नहीं समझा और उलटे पैर वापस चली गई.

उस के जाते ही वहां कुछ देर

के लिए सन्नाटा छा गया. फिर मिसेज खन्ना अचानक चीखीं, ‘‘खीर कुत्ते की जूठी थी.’’

इस के साथ ही उन्होंने एक उबकाई ली और सारा खायापीया वहीं मेज पर उगल दिया.

‘‘डार्लिंग… डार्लिंग…’’ खन्ना साहब ने घबरा कर कहा और अचानक ताराचंद की ओर देखते हुए दहाड़े, ‘‘यू… मिस्टर ताराचंद… तुम्हारी यह हिम्मत, हमें भिखारी समझते हो. भीख में मांगा हुआ खाना हमें खिलाते हो, वह भी कुत्ते का जूठा…

‘‘हम तुम्हें दरदर का भिखारी बना देंगे. ऐसा भिखारी जिसे कुत्ते का जूठा भी कभी नसीब नहीं होगा, समझे तुम.’’

‘‘सर… सर, माफ कर दीजिए सर, कुछ नहीं होगा सर. कुत्ते को इंजैक्शन लगे हुए हैं सर,’’ ताराचंद के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था.

तभी मिसेज खन्ना की उबकाइयां बढ़ती गईं.

‘‘अपनेआप को संभालो डार्लिंग,’’ कहते हुए खन्ना साहब फिर से उन्हें संभालने लगे.

ताराचंद के मुंह से खन्ना साहब के अंदाज में ही निकला, ‘‘हांहां, डार्लिंग, अपनेआप को संभालो.’’

‘‘मिस्टर ताराचंद, तुम्हारी यह मजाल कि तुम हमारी बीवी को डार्लिंग कह रहे हो, वह भी हमारे ही सामने…’’ खन्ना साहब चीखे.

वह शायद ताराचंद के कपड़े भी फाड़ देते, लेकिन मिसेज खन्ना फिर उबकाई लेने लगीं.

अपनी बातों के तीरों से ताराचंद को अच्छी तरह से छलनी करने के बाद वे लोग चले गए.

ताराचंद और संतोष काटो तो खून नहीं की हालत में खड़े रह गए. कुछ देर बाद ताराचंद संतोष पर बिफर पड़े, ‘‘भाड़ में गई तुम्हारी खूबी, तुम्हारे चलते डूब गई न नैया…’’

इतना सुनना था कि संतोष रोने लगी और भीतर जा कर ताराचंद नाक रगड़रगड़ कर माफी मांगने के अभ्यास में जुट गए.

लेखिका- शक्ति पैन्यूली

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