अगर जा रही हैं श्रीनगर घूमने, तो यहां जाना ना भूलें

सर्दियों में घूमने-फिरने का मजा ही कुछ और है. कश्मीर के दिल में बसा श्रीनगर दरिया झेलम के दोनों किनारों पर फैला हुआ है. नगीन और डल जैसी विश्व प्रसिद्ध झीलें श्रीनगर की जान कही जा सकती हैं, जबकि अपने लुभावने मौसम के कारण श्रीनगर पर्यटकों को सारा वर्ष आकर्षित करता रहता है.

आज कश्मीर का सबसे खूबसूरत शहर श्रीनगर विश्वभर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, जो 103.93 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला हुआ और समुद्र तल से 1730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. अगर आप भी श्रीनगर जा रही हैं, तो ये 5 जगह देखना न भूलें.

डल झील

डल झील अपने हाउसबोट और शिकारे के लिए सबसे अधिक लोकप्रिय है. यह झील लगभग 26 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुई है. यह पानी सर्फिंग, हाउसबोट और शिकारा सवारी, तैराकी, मछली पकड़ना, कैनोइंग के लिए सबसे बेहतरीन जगह है.

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इंदिरा गांधी ट्यूलिप गार्डन

श्रीनगर में स्थित इंदिरा गांधी ट्यूलिप गार्डन अपने वार्षिक ट्यूलिप महोत्सव के लिए बहुत मशहूर है. यह जाबारवन पर्वत की तलहटी में स्थित है. यहां देखने के लिए निशात गार्डन, शालीमार गार्डन, अचाबल बाग, चश्मा शाही गार्डन वर्ल्ड फेमस है.

निशात बाग

निशात बाग डल झील के किनारे पर स्थित है. इसका निर्माण 1633 में अब्दुल हसन आसफ खान ने किया था और यह सबसे बड़ा मुगल गार्डन है. यह पर्यटकों को अपने सौंदर्य की वजह से अपनी ओर खींचता है.

शंकराचार्य मंदिर

शंकराचार्य मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. यह श्रीनगर का एक अन्य पर्यटन स्थल है. यह मंदिर कई पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है. यह माना जाता है कि इसे 200 ईसा में सम्राट अशोक के बेटे जलुका द्वारा निर्माणित किया गया था. पहाड़ी से शीर्ष आगंतुकों पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला की बर्फ से ढकी पहाड़ों की एक शानदार दृश्य प्राप्त कर सकते हैं.

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कैसे पहुंचे

श्रीनगर आने के लिए जम्मू रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है, जो यहां से 290 किमी. की दूरी पर स्थित है. यह रेलवे स्टेशन देश के कई प्रमुख शहरों जैसे-बंगलौर, चेन्नई, त्रिवेंद्रम और अन्यं से भली-भांति जुड़ा हुआ है. पर्यटक रेलवे स्टेशन से श्रीनगर के लिए प्राईवेट टैक्सी भी हायर कर सकते हैं.

यहां का एयरपोर्ट शेख- उल- आलम एयरपोर्ट के नाम से जाना जाता है, जो शहर से 14 किमी. की दूरी पर स्थित है. यह एयरपोर्ट एक नेशनल एयरपोर्ट है जो देश के कई शहरों और राज्यों जैसे- मुम्बई, दिल्ली, शिमला और चंडीगढ़ आदि से जुड़ा हुआ है. एयरपोर्ट के बाहर खडी टैक्सी आपको वाजिब दाम में शहर की सैर या होटल तक पहुंचा देगी. विदेश से आने वाले पर्यटक दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर उतरें और वहां से 876 किमी. का सफर तय करके श्रीनगर पहुंचें.

घूमने का सबसे बेस्ट टाइम : आप पूरे साल श्रीनगर में घूम सकते हैं, लेकिन सर्दियों में मौसम ज्यादा खुशगवार रहता है.

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जब बच्चा हो घर पर अकेला

माता पिता की जगह और कोई नहीं ले सकता. किसी भी मातापिता के लिए उन के बच्चे ही उन की दुनिया होते हैं. बच्चों की उपस्थिति मात्र से ही उन की जिंदगी अर्थपूर्ण हो जाती है. मातापिता बच्चों की सभी इच्छाओं को पूरा करने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं और इस कोशिश में उन्हें न चाहते हुए भी बच्चों को घर पर अकेले छोड़ने का कठोर निर्णय तक लेना पड़ता है. माना कि बच्चों को घर पर अकेला छोड़ना 21वीं सदी की एक आवश्यकता और पेरैंट्स के लिए एक मजबूरी बन गई है, लेकिन यह मजबूरी आप के नौनिहालों के व्यक्तित्व और व्यवहार में क्या बदलाव ला सकती है, यह किसी भी पेरैंट्स के लिए जानना बेहद जरूरी है.

शेमरौक ऐंड शेमफोर्ड ग्रुप औफ स्कूल्स की डायरैक्टर मीनल अरोड़ा के अनुसार मातापिता की गैरमौजूदगी में अकेले रहने वाले बच्चों के व्यवहार में निम्न समस्याएं देखने में आती हैं:

डरने की प्रवृत्ति

घर पर अकेले रहने से बच्चों में खाली घर में सामान्य शोर से भी डरने की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है, क्योंकि उन्हें बाहरी दुनिया का बहुत कम अनुभव होता है. इस के अतिरिक्त अकेले रहने वाले बच्चे पेरैंट्स से अपना डर शेयर नहीं करते, क्योंकि वे नहीं चाहते कि उन्हें अभी भी बच्चा समझा जाए. कई बार बच्चे अपनी सुरक्षा को ले कर पेरैंट्स को चिंतित नहीं करना चाहते, इसलिए भी वे अपने मन की बात छिपा जाते हैं.

अकेलापन

घर पर अकेले रहने वाले बच्चों को उन के दोस्तों से मिलने, किसी भी ऐक्स्ट्रा क्यूरिकुलर ऐक्टिविटी में भाग लेने अथवा कोई सोशल स्किल विकसित करने की अनुमति नहीं होती. इस से उन की सोशल लाइफ प्रभावित होती है और वे अकेलेपन का शिकार होते हैं. ऐसे बच्चे अपनी चीजों को शेयर करना भी नहीं सीख पाते हैं. वे आत्मकेंद्रित हो जाते हैं. बाहर की दुनिया से कटे रहने के कारण वे स्वार्थी, दब्बू और चिड़चिड़े हो जाते हैं.

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सेहत के लिए खतरा

घर पर रहने वाले बच्चे शरीर को ऐक्टिव रखने वाली कोई भी आउटडोर ऐक्टिविटी नहीं करते, जिस से आलस बढ़ता है और अधिकांश बच्चे मोटे हो जाते हैं. ऐसे बच्चों में खानपान, सेहत व विकास संबंधी समस्याएं भी देखने को मिलती हैं. अकेले रहने के कारण ऐसे बच्चे डिप्रैशन का शिकार भी हो जाते हैं. उन की रोजमर्रा की जिंदगी अस्तव्यस्त हो जाती है. कई बार समय न होने की कमी के चलते अभिभावक बच्चों की हर जिद पूरी करते हैं, यह आदत उन्हें स्वार्थी बना देती है और वे अपनी हर जरूरी गैरजरूरी जिद, मांग पूरी करवाने लगते हैं.

जिद्दी व स्वार्थी

घर पर अकेले रहने वाले बच्चों के लिए मातापिता कुछ नियम तय करते हैं जैसेकि टीवी देखने से पहला अपना होमवर्क पूरा करना, अजनबियों से बात नहीं करना, उन की गैरमौजूदगी में किसी दूसरे व्यक्ति को घर में नहीं आने देना आदि. लेकिन ऐसे में अगर उन पर नजर रखने वाला कोई नहीं हो, तो उन्हें अपनी मनमरजी से कुछ भी करने की आजादी मिल सकती है. इस के खतरनाक परिणाम हो सकते हैं.

हालांकि कोई भी 2 बच्चे एकजैसे नहीं होते. वे भिन्न हालात में अलगअलग तरह से व्यवहार करते हैं. इसलिए यह जानना पेरैंट्स की ही अकेली जिम्मेदारी होती है कि क्या उन के बच्चे वास्तव में घर पर अकेले रहने के लिए तैयार हैं. अगर हां, तो बच्चों को घर पर अकेला छोड़ने से पहले कुछ खास बातों को ध्यान में रखना चाहिए जैसेकि बच्चे की उम्र एवं मैच्युरिटी.

उदाहरण के लिए घर पर छोड़े गए बच्चों की उम्र 7 साल से कम नहीं होनी चाहिए, उन के घर पर अकेले रहने का समय उदाहरण के लिए 11-12 साल के बच्चों को कुछ घंटों के लिए घर अकेले छोड़ा जा सकता है पर सिर्फ दिन के समय. बच्चों पर नजर रखने के लिए पड़ोसियों की उपलब्धता सब से महत्त्वपूर्ण यह कि जब बच्चों को घर पर छोड़ा जाए तो वे वहां सुरक्षित महसूस करें.

यदि आप ने निम्न बातों को ध्यान में रखते हुए अपने बच्चों को घर में छोड़ने का मन बना लिया है, तो उन की सुरक्षा के लिए निम्न उपाय जरूर अपनाएं:

– बच्चे से संपर्क का एक समय निर्धारित कर लें. इस से आप को यह पता रहेगा कि बच्चे सुरक्षित हैं या नहीं. घर से दूर रहते समय भी उन पर निगरानी रखें. दिन में बच्चों को फोन कर के उन की खैरियत पूछते रहें. उन्होंने लंच किया या नहीं, स्कूल में उन का दिन कैसा बीता, स्कूल या पढ़ाई से संबंधित उन की समस्याओं की जानकारी लें और उन का समाधान सुझाएं. आप का ऐसा करना आप को बच्चों से जोड़े रखेगा.

– बच्चों को बताएं कि किसी अजनबी के लिए दरवाजा कतई न खोलें. इस के अलावा दरवाजे की घंटी कोई बजाए तो विंडो या डोरआई से देखें कौन है. अगर कोई जानकार, रिश्तेदार या पड़ोसी है तो तुरंत पेरैंट्स को सूचना दें. घर को चाइल्डप्रूफ रखें. घर में सिक्युरिटी लगवाएं ताकि आप के पीछे से बच्चों के साथ कोई दुर्घटना न घटे और बच्चे सुरक्षित रहें.

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– बच्चों को इस बात की भी जानकारी दें कि घरपरिवार के बारे में कौन सी बातें और कितनी बातें किसी को बतानी हैं. यही नहीं, उन्हें बड़ों की गैरमौजूदगी में गैस जलाने या किसी धारदार चीज से काम करने की कतई अनुमति न दें.

– घर में अलकोहल या अन्य किसी भी प्रकार का नशीला पदार्थ न रखें. कार या बाइक की चाबी छिपा कर रखें.

– आप की अनुमति के बिना किसी पड़ोस के घर में अकेले न जाने का निर्देश दें. लेकिन साथ ही इमरजैंसी की स्थिति में किसी पड़ोसी के बारे में जरूर बताएं ताकि इमरजैंसी की स्थिति में आप के घर पहुंचने तक वह उन के संपर्क में रहे.

– इमरजैंसी काल की स्थिति के लिए उन्हें स्थानीय अथवा दूर के रिश्तेदारों के फोन नंबर दें. अपने खास पड़ोसी को अपनी गैरमौजूदगी  के बारे में सूचित करें. उन से बच्चों की देखरेख के लिए कहें.

महिलाओं के लिए ही नहीं पुरुषों के लिए भी जरूरी है हाथों की देखभाल

अगर आपको लगता है कि केवल महिलाओं के लिए साफ और अच्छी तरह से स्वच्छ हाथ जरूरी होता है तो आप गलत हैं. दरअसल महिलाओं की तरह पुरुषों  को भी अपने हाथों पर समान रूप से ध्यान देना चाहिए. केएआई इंडिया इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर श्री राजेश यू पांड्या कहते हैं कि हमारे हाथ में स्किन के प्रत्येक वर्ग सेंटीमीटर पर 1,500 बैक्टीरिया रहते हैं.

इससे आप आसानी से अनुमान लगा सकते हैं कि यह हमारे शरीर को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं. वैसे भी भारत में हाथ से खाने की प्रथा है  और नाखूनों के नीचे की जगह में कीटाणु जम जाते हैं. इसलिए हाथ की साफ़-सफाई बहुत जरूरी हो जाती है. ताकि खाते समय ये कीटाणु आपके पेट के अंदर जाकर बीमार न करें.

इसके अलावा साफ और स्वच्छ  हाथ रोजमर्रा की जिंदगी की गतिविधियों में आत्मविश्वास बढ़ाते हैं. इसलिए भले ही आप स्त्री हो या पुरुष, हाथों को धोना महत्वपूर्ण या हाथों को नियमित अंतराल पर सेनेटाइज करना भी जरूरी है. अपने हाथों को साफ़-सुथरा रखने के लिए आपको सैलून जाने की जरुरत नहीं है. कुछ आसान और पूरी तरह से करने योग्य टिप्स मदद से आप अपने घर पर ही हाथों की बेहतर देखभाल कर सकते हैं. नीचे कुछ टिप्स बताये जा रहे हैं-

हार्श साबुन से हाथ न धोएं:

जिस साबुन से आप अपने हाथ धो रहे हो उसके बारे में जरूर जानकारी रखें. आपके साबुन में एलोवेरा या शिया बटर जैसे मॉइस्चराइजिंग तत्व हो सकते हैं. आप अपने हाथों को सामान्य पानी से धोएं क्योंकि गर्म पानी आपके हाथ की स्किन को ड्राई और पपड़ीदार बना सकता है.

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अपने नाखूनों को नियमित रूप से काटें:

अपने नाखूनों को काटने के लिए अपने पर्सनल नेल क्लिपर का इस्तेमाल करें. अपने नाखूनों को बराबर हिस्से से काटें. अपने नेल केयर क्लिपर को कभी भी किसी से शेयर न करें क्योंकि इससे नाख़ून के रोगाणु अन्य लोगों में फ़ैल सकते हैं.  कोनों और नाखून के नीचे छिपे कीटाणुओं को हटाने के लिए ग्रिम रिमूवर का उपयोग करें.

अच्छी क्वालिटी वाला नेल क्लिपर इस्तेमाल करें:

जंग लगे या क्रोमियम कोटेड नेल क्लिपर का उपयोग न करें क्योंकि यह स्किन के लिए हानिकारक हो सकता है और इससे खतरनाक जीवाणु संक्रमण हो सकता है.

नाखून न चबाएं:

कभी-कभी चिंता या बहुत ज्यादा ऊब जाने के कारण हम अपने नाखून चबाने लगते हैं. यह आदत बहुत ही गन्दी होती है, इससे आपके नाखून खुरदुरे और बदसूरत हो जाते है. कभी-कभी हमारे नाखूनों की अशुद्ध सिलवटें वायरल, बैक्टीरियल या फंगल संक्रमण को जन्म देती हैं, जिससे जब नाख़ून को चबाते हैं तो हम बीमार हो सकते हैं.

अपने हाथों को एक्सफोलिएट करें:

जिस तरह से आप अपने चेहरे को एक्सफोलिएट करते हैं, ठीक वही प्रक्रिया आपको अपने हाथो पर भी अपनानी चाहिए. यह रूखी स्किन को हटाने और हाथों को मुलायम रखने में मदद करता है. आप ब्राउन शुगर और जैतून के तेल का उपयोग करके स्क्रब कर सकते हैं या घर पर बना सकते हैं. स्क्रब करने के बाद आपको अपने हाथों पर मॉइस्चराइजर से मसाज करनी चाहिए.

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अपने नाखूनों को उपकरण न बनायें:

ऐसा देखा गया है कि हम लोग कभी-कभी अपने नाखूनों से ही कोई चीज खींचते या खोलते हैं इसलिए यह ध्यान रखें कि ऐसा बिल्कुल न करें अपने नाख़ूनो को अपना गहना समझें. कभी भी खुली चीजों जैसे कि पॉप कैन, रिंग से चाबियां निकालना, पत्र खोलना या लेबल को स्क्रैप करना आदि के लिए नाखून का इस्तेमाल  न करें. इससे नाखून टूट जाता हैं, जिससे आपके हाथ गंदे दिखने लगते हैं.

नाखून या क्यूटिकल्स इन्फ्लेमेशन (छल्ली की सूजन) या लाली होने पर सावधान हो जाएं:

अगर इन्फेक्शन का कोई लक्षण दिखता है तो जितनी जल्दी हो सके एक एंटीफंगल या एंटीबैक्टीरियल मरहम से स्किन को साफ़ करें. किसी अनुभवी स्किन विशेषज्ञ द्वारा नाखून में कोई भी बदलाव होने पर जांच कराएं.

आशा की नई किरण: भाग 3- कौनसा मानसिक कष्ट झेल रहा था पीयूष

इस बात से स्वाति भड़क गई, ‘‘आप क्या समझते हैं, घर संभालने, सास की सेवा करने और लेखन कार्य करने मात्र से एक पत्नी के जीवन में खुशियां आ सकती हैं? इस के अलावा उसे और कुछ नहीं चाहिए? आप समझते क्यों नहीं कि एक स्त्री को इस के अतिरिक्त और भी कुछ चाहिए, उसे अपने पति से एक बच्चा भी चाहिए. वह मां बनना चाहती है. मां बन कर ही एक स्त्री को पूर्णता प्राप्त होती है.

‘‘इस घर में क्या हो रहा है, आप को दिखाई नहीं पड़ता? सासूमां मेरे बारे में क्याक्या बोलती रहती हैं, वह भी आप के कानों में नहीं पड़ता, क्योंकि आप ने अपनी आंखें और कान बंद कर रखे हैं. मेरी समझ में नहीं आता कि मेरे जीवन में आग लगा कर आप इतने निरपेक्ष कैसे रह सकते हैं. आप को पता है कि आप का रोग लाइलाज है परंतु अपनी नामर्दगी की सजा आप मुझे क्यों दे रहे हैं? मैं ने क्या अपराध किया है?’’ बोलतेबोलते स्वाति की आवाज भर्रा गई. वह पलंग पर बैठ कर सुबकने लगी. पीयूष ने उसे चुप कराने का कोई प्रयास नहीं किया और चुपचाप बाहर निकल गया. स्वाति ने नम आंखों से उसे बाहर जाते हुए देखा और उस का हृदय शीशे की तरह चटक गया. पीयूष के प्रति मन घृणा से भर गया. स्वाति की प्रिय सहेली नम्रता उसी के शहर में ब्याही थी. 2 साल का बच्चा था उस का. उस से यदाकदा बात होती रहती थी. उस के बेटे के जन्मदिन पर पीयूष के साथ गई थी. इधर मानसिक परेशानी और उलझनों के कारण उस ने नम्रता को काफी दिनों से फोन नहीं किया था. कुछ सोच कर उस ने नम्रता को फोन किया. हायहैलो के बाद स्वाति ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘तो आ जाओ न यार, कितने दिन हो गए मिले हुए. मिल कर गपशप मारेंगे और पुरानी यादें ताजा करेंगे.’’

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स्वाति जब नम्रता से मिलने गई तो वह उसे देख कर हैरान रह गई, ‘‘यह क्या स्वाति, इतनी कमजोर कैसे हो गई? बीमार थी क्या?’’ ‘‘सब बताऊंगी यार,’’ स्वाति ने फीकी मुसकराहट के साथ कहा. नम्रता का पति सरकारी नौकरी में उच्च पद पर था. उस वक्त वह घर पर ही था. स्वाति से अपने बेटे के जन्मदिन पर मिल चुका था. पहले वाली स्वाति और सामने बैठी स्वाति में जमीनआसमान का अंतर था. उस के चेहरे की चमक कहीं खो गई थी, आंखें कुछ ढूंढ़ती सी लगती थीं. होंठों में जैसे जमानेभर की प्यास भरी हुई थी, परंतु उन की प्यास मिटाने वाला कोई नहीं था. उस के होंठ सूखते जा रहे थे. स्वाति से बोला, ‘‘स्वातिजी, चांद में ग्रहण लगते तो देखा था, परंतु यह पतझड़ कहां से आ गया? आप का खूबसूरत चांद सा मुखड़ा कहीं खो गया है.’’ पीड़ा में भी स्वाति की हंसी फूट पड़ी. अमित की बात सुन कर उस का दर्द जैसे गायब हो गया. उस की तरफ प्यारभरी नजर से देखा और फिर शरमा कर बोली, ‘‘आप तो मेरे ऊपर कविता करने लगे.’’

‘‘अरे नहीं, ये तो तुम्हारे जीवन में बहार बन कर छाने की कोशिश कर रहे हैं. स्वाति, इन से बच कर रहना, ये बड़े दिलफेंक इंसान हैं. सुंदर लड़की देखते ही लाइन मारना चालू कर देते हैं.’’

‘‘ये तो खुद कह रहे हैं कि मैं पतझड़ की मारी हूं. मेरा चांद कहीं खो गया है. ऐसे में मेरे ऊपर क्या लाइन मारेंगे,’’ स्वाति ने दुखी हो कर कहा.

‘‘ऐसा न कहो, ये तो सूखे फूल में भी खुशबू भर देते हैं,’’ नम्रता जैसे अपने पति की पोल खोलने पर आमादा थी. स्वाति शर्म और संकोच में डूबती जा रही थी.

अमित ने पत्नी से कहा, ‘‘तुम इस बेचारी को क्यों परेशान कर रही हो. पहले इस के हालचाल तो पूछो कि इसे हुआ क्या है?’’ दोनों सहेलियां जब एकांत में बैठीं तो स्वाति ने अपने हृदय के सारे परदे उठा दिए, मन की सारी गुत्थियां खोल दीं. कुछ भी न रखा अपने पास. नम्रता की आंखों में आंसू छलक आए, उस की बातें सुन कर. कुछ सुनने के बाद बोली, ‘‘स्वाति, तुम सचमुच स्वाति नक्षत्र की तरह प्यासी हो. कौन जानता था कि एक सुंदर पढ़ीलिखी लड़की के जीवन में इस तरह की काली छाया भी पड़ सकती है. अब तुम क्या चाहती हो?’’

‘‘नम्रता, तुम मेरी सब से अच्छी सहेली हो, मैं तुम्हारी मदद चाहती हूं.’’

‘‘मैं तुम्हारे लिए हर संभव मदद करूंगी. बताओ, कैसी मदद चाहती हो?’’

‘‘मैं जानती हूं, जो मैं तुम से मांगने जा रही हूं वह सहज ही किसी पत्नी को मंजूर नहीं होगा, परंतु मैं इस के लिए किसी कोठे पर नहीं बैठ सकती, किसी परपुरुष से संबंध नहीं बना सकती.’’

‘‘तुम क्या चाहती हो?’’ नम्रता ने धड़कते दिल से पूछा. उसे कुछकुछ समझ में आने लगा था.

‘‘मैं अपनी कोख भरना चाहती हूं, मातृत्व प्राप्त करना चाहती हूं.’’

‘‘यह कैसे संभव हो सकता है? तुम्हारा पति…’’

‘‘सबकुछ हो सकता है, मुझे तुम्हारा साथ चाहिए,’’ स्वाति ने उस की बात काट कर कहा. उस के स्वर में उतावलापन था, जैसे अगर जल्दी से अपनी बात नहीं कहेगी तो कभी कह नहीं पाएगी.

‘‘क्या तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड है, जिस के साथ…’’ नम्रता ने जानना चाहा.

‘‘अरे नहीं, बौयफ्रैंड पालना मेरे बस का नहीं. किसी परपुरुष से शारीरिक संबंध बनाना हर हाल में खतरनाक होता है. वह जीवनभर के लिए गले की हड्डी बन जाता है. संबंध तोड़ने पर ब्लैकमेल करने लगता है. मैं इतना बड़ा जोखिम उठा कर अपने परिवार को नष्ट नहीं करना चाहती हूं.’’

‘‘तो फिर मैं किस प्रकार तुम्हारी मदद कर सकती हूं?’’ नम्रता ने बेबसी से पूछा.

‘‘बस, कुछ दिन के लिए तुम्हें अपने हृदय पर पत्थर रखना होगा, कुछ दिनों के लिए तुम अपने पति को मुझे उधार दे दो. मैं उन के साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहती हूं. जब मेरी कोख भर जाएगी तो मैं उन से अपना संबंध तोड़ लूंगी,’’ स्वाति ने साफसाफ कहा. यह सुन कर नम्रता को चक्कर सा आ गया. वह विस्फारित नेत्रों से स्वाति को देखती रही. मुंह से एक बोल भी न फूटा. स्वाति ने उस के दोनों हाथ पकड़ कर अपने धड़कते सीने पर रख लिए और विनती सी करती बोली, ‘‘तुम मेरी इतनी सी बात मान लो, मैं तुम्हारी जीवन भर एहसानमंद रहूंगी. तुम यह सोच लेना कि जैसे तुम इस बारे में कुछ नहीं जानती हो.’’

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नम्रता कुछ पल सोचती सी बैठी रही, फिर अपने हाथों से स्वाति के हाथों को थामते हुए कहा, ‘‘सुन कर बड़ा अजीब सा लग रहा है, बड़ा कठोर निर्णय है यह. एक पत्नी जानबूझ कर अपने पति को दूसरी स्त्री के बिस्तर पर लिटा दे, यह संभव नहीं होता परंतु मैं तुम्हारा दुख समझ रही हूं. उस की कसक अपने दिल में महसूस कर सकती हूं. अच्छा होता अगर तुम बिना बताए मेरे पति को अपने जाल में फंसा लेतीं. पीठपीछे पति क्या करता है, यह जब तक पत्नी को पता नहीं चलता, उसे दुख नहीं होता है.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ विश्वासघात नहीं करना चाहती थी. मैं पूरी सुरक्षा के साथ यह सब करना चाहती हूं. अगर सबकुछ तुम्हारी जानकारी में होगा तो बाद में अमितजी से पीछा छुड़ाना मेरे लिए आसान होगा, वरना कहीं वे भी जीवनभर के लिए पीछे पड़ गए तो…’’ स्वाति ने स्पष्ट किया. नम्रता कुछ पल तक सोचती रही. उस के चेहरे पर तरहतरह के भाव आ रहे थे. स्वाति ने अधीरता से उस के हाथों को कस कर दबा दिया, ‘‘देखो नम्रता, मना मत करना, वरना मेरे जीवन का सारा आधार ढह जाएगा. मैं कहीं की न रहूंगी.’’

‘‘खैर, जब तुम ने मुझे सबकुछ बता ही दिया तो मैं तुम्हारी बात मान कर कुछ दिन के लिए अपने हृदय पर पत्थर रख लेती हूं, परंतु स्वाति, तुम स्वयं अमित को पटाओगी. मैं उन से कुछ नहीं कहूंगी. उन्हें यह बताना भी मत कि मुझे सबकुछ मालूम है. तुम उन से कहां मिलोगी, यह भी तुम तय करना. मुझे मत बताना.’’

स्वाति ने उस का माथा चूम लिया, ‘‘नम्रता, मैं जीवनभर तुम्हें सगी बहन की तरह मानूंगी.’’

स्वाति के लिए अमित को पटाना बहुत आसान सिद्ध हुआ. नम्रता ने सही कहा था कि वह बहुत दिलफेंक इंसान था. स्वाति के 2-3 फोन पर ही अमित उस से मिलने के लिए व्याकुल हो गया. स्वाति स्वयं प्यासी थी, सो उस ने भी सारे बंधन ढीले कर दिए और कटी पतंग की तरह अमित की बांहों में जा गिरी. जिस योजना के तहत स्वाति इस अनैतिक कार्य को अंजाम दे रही थी, वह समयसीमा में बंधा हुआ था. उस कार्य के पूर्ण होने का आभास होते ही उस ने अमित से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. अंत में एक दिन उस ने अमित को अपनी मजबूरी बता कर उन से अपने संबंध तोड़ लिए. अमित समझदार पारिवारिक व्यक्ति ही नहीं एक जिम्मेदार अधिकारी भी था. उस ने स्वाति को आजाद कर दिया. गर्भधारण के बाद स्वाति के आचरण में स्वाभाविक परिवर्तन आने लगे थे. सासूमां को समझते देर न लगी कि स्वाति मां बनने वाली है. उन का मनमयूर नाच उठा. जो स्वाति अभी तक उन की आंखों में खटक रही थी, दुश्मन से बढ़ कर नजर आती थी, उस का परित्याग करने के मन ही मन मनसूबे बांध रही थीं. वही अचानक उन की आंखों का तारा बन गई. वह उन के लिए खुशियों का खजाना ले कर जो आने वाली थी. स्वाति की बलैयां लेते हुए सासूजी ने कहा, ‘‘नजर न लगे मेरी बेटी को. कितने दिन बाद तू खुशियां ले कर आई है. दिन गिनतेगिनते मेरी आंखें पथरा गईं. पर चलो, देर से ही सही, तू ने मेरी मुराद पूरी कर दी.’’

शाम को उन्होंने पीयूष से कहा, ‘‘तुझे कुछ पता भी है, बहू पेट से है. उस के लिए अच्छीअच्छी खानेपीने की चीजें ले कर आ. मेवाफल आदि.’’

पीयूष चौंका, ‘‘ऐं…’’ उसे सचमुच पता नहीं था. काफी दिनों से स्वाति और उस के बीच अबोला चल रहा था.

उस ने बड़ी मुश्किल से अपने मन को शांत किया. वह किसी को अपने मन की बात नहीं बता सकता था. कैसे बताता कि स्वाति के पेट में उस का बच्चा नहीं था? उसे यह दंश झेलना ही पड़ेगा. एक परिवार को बचाने और सुखी रखने के लिए यह अति आवश्यक था. वह अपनी मां की खुशियों को आग के हवाले नहीं कर सकता था. पिताजी नहीं थे. मां ही उस की सबकुछ थीं. जब तक जिंदा हैं, उन की खुशियों के लिए उसे भी खुश होने का दिखावा करना पड़ेगा. सासूजी रातदिन स्वाति की सेवा में लगी रहतीं. उस की हर चीज का खयाल करतीं, उसे कोई काम न करने देतीं. परंतु पीयूष उस से उखड़ाउखड़ा रहता, बात न करता. व्यवहार में इतना रूखापन था कि कई बार स्वाति का मन करता कि उस की पोल खोल दे, परंतु परिवार की प्रतिष्ठा और मर्यादा का खयाल कर वह चुप रह जाती. यह कैसी विडंबना थी कि जब तक स्वाति ने मर्यादा के अंदर रहते हुए अपने पति और सासू के लिए खुशियां बटोरनी चाहीं तो उसे दुखों के कतरों के सिवा कुछ न मिला. परंतु जब मर्यादा का उल्लंघन किया, सामाजिक मूल्यों को तोड़ दिया और एक अनैतिक कार्य को अंजाम दिया, तो सासूमां की झोली में खुशियों का अंबार लग गया. नियत समय आने पर स्वाति ने एक बच्ची को जन्म दिया. नर्स नवजात शिशु को तौलिए में लपेट कर लाई और दादी के हाथों में रख कर बोली, ‘‘मुबारक हो, पोती हुई है.’’

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सुन कर सासूजी का हृदय धक से रह गया. चेहरे पर स्याही पुत गई. वे बच्ची की तरफ नहीं, नर्स की तरफ अविश्वास भरी नजरों से देख रही थीं, जैसे उस ने बच्चा बदल दिया हो.

नर्स बोली, ‘‘क्या दादीमां, आप मेरा मुंह क्यों ताक रही हैं?’’

‘‘दादीमां शायद सोच रही होंगी, यह लड़की कहां से पैदा हो गई. इन को पोते की चाहत रही होगी,’’ दूसरी नर्स बोली.

पहली नर्स ने कहा, ‘‘दादीमां, आप एक औरत हैं, फिर भी समाज और परिवार के लिए लड़की की महत्ता नहीं समझतीं. इतना जान लीजिए, लड़कों से ज्यादा खुशियां एक लड़की परिवार के लिए ले कर आती है. जब बेटियां घर में रह कर मांबाप की सेवा करती हैं, तब लड़के बाहर जा कर मटरगश्ती करते हैं. आप को तो खुश होना चाहिए कि आप की बहू ने एक बेटी को जन्म दिया है.’’ तीसरे दिन स्वाति बच्चे के साथ घर आ गई. स्वाति के मम्मीपापा और बहन भी साथ ही आए थे. वे बच्ची की छठी होने तक स्वाति के साथ रहना चाहते थे. सभी चाहते थे बच्ची की छठी धूमधाम से मनाई जाए. इन 3 दिनों में पीयूष की मम्मी का मन भी बच्ची की तरफ से साफ हो गया था. नर्सों की बातें उन के हृदय को छू गई थीं. उन्होंने खुशी मन से छठी मनाने की स्वीकृति दे दी परंतु पीयूष ने साफ मना कर दिया कि वह कोई जश्न नहीं मनाएगा. सभी के मुंह लटक गए. कारण पूछा तो बिना कुछ बोले बाहर चला गया. उस के बाहर जाने के बाद पीयूष की मां ने कहा, ‘‘उस के मनाने  न मनाने से क्या होता है. मेरे घर में पोती हुई है, तो जश्न मैं मनाऊंगी. समधीजी, आप सारी तैयारियां करवाएं.’’

रात को पीयूष काफी देर से घर लौट कर आया. सभी लोग उस का इंतजार कर रहे थे. खाना वह बाहर से खा कर आया था. उस ने किसी से बात नहीं की. सब ने खाने के लिए पूछा तो मना कर दिया और चुपचाप ड्राइंगरूम में जा कर बैठ गया. सभी लोगों को उस के इस प्रकार के व्यवहार पर आश्चर्य हो रहा था. परंतु ऐसा वह क्यों कर रहा था, किसी को पता नहीं था. वह किसी को कुछ बता भी नहीं रहा था.

उस के मन की बात तो केवल स्वाति ही जानती थी. सभी लोग अपनेअपने कमरे में चले गए तो स्वाति बच्ची को सुला कर ड्राइंगरूम में आई. पीयूष एक सोफे में आंखें बंद कर के लेटा था. वह सोया नहीं था. विचारों के झोंके उसे सोने नहीं दे रहे थे. स्वाति उस के पैंताने बैठ गई और बोली, ‘‘मैं जानती हूं, आप दुखी हैं और मुझ से नाराज भी हैं, परंतु आप बताइए, इस के अलावा मेरे पास चारा क्या था?’’ आज उस ने अपनी चुप्पी तोड़ दी थी. काफी दिनों बाद वह पीयूष से बोली थी.

पीयूष थोड़ा कसमसाया परंतु बोला कुछ नहीं. स्वाति ने आगे कहा, ‘‘आप बताइए, अगर मैं ऐसा न करती तो क्या जिंदगी भर लांछनों के दाग ले कर घुटघुट कर जीती? मांजी के ताने आप ने नहीं सुने? मैं बांझ नहीं कहलाना चाहती थी और अगर आप से तलाक लेती तो आप की बदनामी होती. मुझे स्पष्ट कारण बताना पड़ता. तब बताइए, क्या आप इस समाज में एक प्रतिष्ठित जीवन जी पाते? आप कौन सा मुंह दुनिया को दिखाते और क्या मांजी पोतापोती का मुंह देखे बिना ही इस संसार से विदा न हो जातीं?’’

पीयूष ने हलके से सरक कर अपना सिर सोफे के पुट्ठे पर रख लिया. आंखें चौड़ी कर के स्वाति को देखा. वह गंभीर थी, परंतु उस की आंखों में एक अनोखी चमक थी.

वह कहती गई, ‘‘आप देख रहे हैं, मेरे एक अमर्यादित कदम से कितने लोगों के हृदय में खुशियों का सागर लहरा रहा है. सभी के चेहरों पर रौनक आ गई है. मांजी की खुशियों का आप अंदाज भी नहीं लगा सकते हैं.’’

पीयूष ने अचानक तड़प कर कहा, ‘‘परंतु एक बच्चे के लिए तुम ने अपनी इज्जत क्यों दांव पर लगाई? क्या हम निसंतान रह कर जीवन नहीं गुजार सकते थे?’’

‘‘गुजार सकते थे, परंतु तब मैं जीवनभर अपने माथे पर बांझ होने का कलंक ले कर जीती. उसे मिटा नहीं सकती थी. सासूजी जब तक जीतीं, उन के ताने झेलती. दुनियाभर की शक्की निगाहों के वार झेलती. आप को नहीं पता, वे तो मुझे तलाक दिलवा कर आप की दूसरी शादी तक करने की बात भी सोच रही थीं. क्या आप उन की खुशी के लिए दूसरी लड़की की जिंदगी बरबाद करते? आप शांत मन से सोचिए, यह बात केवल हम दोनों को मालूम है. ‘‘इस बच्ची को आप एक बार अपना मान कर देखिए, फिर उस के पालनेपोसने में जो खुशी आप को प्राप्त होगी वह किसी और चीज में नहीं प्राप्त हो सकती?’’

‘‘परंतु यह बच्ची मेरी नहीं है. इस में मेरा खून कहां है?’’ उस ने तर्क दिया.

‘‘इसे दत्तक पुत्री समझ कर ही अपनी मान लीजिए. इस बच्ची के शरीर में कम से कम मेरा खून तो है.’’

‘‘परंतु मैं अपने मन को कैसे समझाऊं?’’ पीयूष ने हताश स्वर में कहा.

स्वाति ने आगे सरक कर उस के सीने पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘आप को दुखी होने की आवश्यकता नहीं है. ऐसा करने में ही हम दोनों की भलाई थी. अब समाज में हम इज्जत के साथ जी तो सकते हैं.’’

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पीयूष ने तर्क दिया, ‘‘परंतु मुझे मानसिक कष्ट हुआ है.’’

‘‘सच है, परंतु आप का मानसिक कष्ट मेरे कष्ट से बढ़ कर नहीं है. अपनी कमजोरी के बारे में जानते हुए भी आप ने मेरे साथ शादी की और मुझे तानों, उलाहनों और लांछनों की आग में जलने के लिए छोड़ दिया. खैर, जो भी हुआ उसे भूल जाने में ही भलाई है. आप अपनी सापेक्ष सोच से अपने गमों को खुशियों में बदल सकते हैं.’’ पीयूष की सोच कुछकुछ बदलने लगी थी. स्वाति की नरम उंगलियां अब पीयूष के गालों को हौलेहौले सहला रही थी. काफी रात हो चुकी थी वह आंखें बंद कर के बोली, ‘‘मैं आप को विश्वास दिलाती हूं कि अब मेरे कदम कभी नहीं डगमगाएंगे. आप की उपेक्षा और मांजी के तानों से ऊब कर ही मैं ने बहुत कड़े मन से यह कदम उठाया था. अगर मैं ऐसा न करती तो आप की कमजोरी सभी को पता चल जाती या मैं जीवनभर बांझ औरत की लांछना ले कर जीने को मजबूर रहती. आप की इज्जत बची रहे और मेरे ऊपर लगे सारे लांछन मिट जाएं, इसलिए मुझे परपुरुष की बांहों का सहारा लेना पड़ा,’’ कहतेकहते स्वाति का स्वर भावुक हो गया. पीयूष ने अपने गालों पर उस की उंगलियों को थाम लिया और अगले ही क्षण स्वाति को खींच कर सीने से लगा लिया. आज की उजली भोर उस के लिए आशा की नई किरण ले कर आई थी.

संबंध : भाग 3- भैया-भाभी के लिए क्या रीना की सोच बदल पाई?

किस से कहें, क्या कहें? भोलीभाली मां छलप्रवंचनाओं के छद्मों को कदापि नहीं पहचान पाई थीं, तभी तो ‘हां’ कर बैठी थीं.

मेहमानों की खुसुरफुसुर सुन कर लग रहा था उन्हें अंजू के बारे में पता लग चुका था. अभी रात्रि के 10 बजे थे. सहसा देविका मौसी घर आई थीं. बोलीं, ‘‘दीदी, तुम सब से अंजू मिलना चाहती है. उस की जिद है कि जब तक विपिन से बात नहीं करेगी, यह विवाह संपन्न न होगा.’’

इस पल तक हर दिल में व्याप्त समुद्री शोर थम सा गया. एक लमहे के लिए मानो सन्नाटा छाया सा लगने लगा था वहां. मुझे कुछ आशा की किरण दमकती लगी. गाड़ी निकाल कर मैं, मां व भैया अंजू के पास गए थे. बाबूजी अपने उच्च रक्तचाप के कारण जा नहीं पाए थे. कमरे में अंजू व देविका मौसी ही थीं. उस ने आगे बढ़ कर मां के चरण स्पर्श किए. मां ने भी आशीर्वाद दिया था. अंजू ने ही मौन तोड़ा था :

‘‘मां, क्या आप मुझे बहू के रूप में स्वीकार कर पाएंगी?’’

मां इस प्रश्न के लिए तैयार न थीं.

वे भैया की ओर उन्मुख हो कर बोलीं, ‘‘कोई भी फैसला किसी भी प्रकार के दबाव में आ कर मत कीजिएगा. इस में देविका चाची का भी कोई दोष नहीं है. लगभग 3 वर्ष पूर्व मेरी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. बुरी तरह जख्मी हो गई थी मैं. डाक्टरों ने प्रयत्न कर के मुझे तो बचा लिया पर आज भी मुझे कई दिनों के अंतराल पर बेहोशी के दौरे पड़ते हैं. उस के 1-2 दिन बाद तक मेरे हाथ यों टेढ़े हो जाते हैं. सामान्य होने में कुछ वक्त लगता है. मांजी, मैं आप के घर की खुशियां बरबाद करना नहीं चाहती. देविका चाची भी इस दुर्घटना के बारे में अनभिज्ञ थीं. मैं पूर्णरूप से एक आदर्श बहू बनने का प्रयत्न करूंगी. विपिनजी, आप का निर्णय ही मेरा अंतिम निर्णय होगा.’’

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स्पष्ट रूप से उस ने बात समझाई थी. मैं ने सोचा, भैया का उत्तर अवश्य ही नकारात्मक होगा. उन्होंने तो एक पल भी हामी भरने में देर न की थी.

मां को भी यह संबंध शायद स्वीकार था. कहीं कोरी वचनबद्धता के तहत तो भैया व मां ने हामी नहीं भरी थी? या दहेज के लालच में आ कर मां अपने बेटे का जीवन बलिदान कर रही थीं? मैं ने भैया से पूछा भी था, ‘एक अपाहिज के साथ जीवन बिता सकेंगे आप?’

मां से भी कहा था, ‘धनदौलत तो हाथों का मैल है, मां. अपने बेटे को यों बेचो मत. भैया का जीवन अंधकारमय हो जाएगा. अब क्या तुम्हारे दिन हैं सेवाटहल करने के, थक जाओगी तुम?’

अपने भाई की खुशियों को आग में जलता देख भला किस बहन का दिल रुदन करने को न चाहेगा. भैया ने अपना स्नेहिल हाथ मेरे सिर पर रख कर कहा था, ‘रीना, यदि अंजू विवाह के बाद यों दुर्घटनाग्रस्त हुई होती तो क्या हम उसे स्वीकार न करते?’

‘तब की बात और थी, भैया.’

‘अच्छा एक बात बता, यदि हमारी कोई बहन अपाहिज होती तो क्या हम उस का घर बसाने का प्रयत्न न करते?’

‘अवश्य करते, पर छल से नहीं.’

‘तो इस पूरे घटनाक्रम में अंजू तो दोषी नहीं. मैं वादा करता हूं मैं अपनी तरफ से किसी को शिकायत का मौका नहीं दूंगा.’

हम सब चुप रह गए थे. सीधासरल व्यक्तित्व लिए भैया भविष्य की दुश्ंिचताओं से अनभिज्ञ से थे. मेरे प्रतिकार, विरोध, प्रतिवाद सब व्यर्थ हो गए थे. मैं मूकदर्शिका सी बनी अपने परिवार की खुशियां अग्नि के हवाले होते देख रही थी. जी चाहा, इस विवाह में सम्मिलित ही न होऊं, कहीं भाग जाऊं. पर सामाजिक बंधनों में जकड़े मनुष्य को मर्यादा के अंश सहेजने ही पड़ते हैं.

भैया का विवाह संपन्न हो गया.

विवाहोपरांत दिए जाने वाले प्रीतिभोज के अवसर पर मेहमानों की अगवानी व स्वागतसत्कार के लिए भैया के साथ खड़ी भाभी मेहमानों की भीड़ में गश खा कर गिर पड़ी थीं. मेहमानों के समक्ष बहाना बनाना पड़ा था, थकावट के कारण ऐसा हुआ है. एक टीस सी उभरी दिल में. यदि तब भाभी मृत्यु की गोद में समा गई होती तो मेरे भैया का जीवन यों बरबाद न होता.

मां व बाबूजी ने पूर्ण स्नेह व सम्मान दिया था बहू को. फूल की कोंपल के समान उस की रक्षा की जाती थी. मां किसी भी अभद्र व्यवहार को बरदाश्त नहीं करती थीं. कपोत की तरह अपने डैनों से ढक कर वे भाभी की रक्षा कर रही थीं. सभी के होंठ सी गए थे. मानवता की मूर्ति बनी थीं वे. यदि भाभी सामान्य होतीं तो मां पर अवश्य गर्व करती. पर एक बीमार स्त्री को अपने बेटे के साथ प्रणयसूत्र में बांध कर उन्होंने उस के प्रति जो अन्याय किया था, उसे मैं भूल नहीं पा रही थी.

दहेज में रंगीन टीवी, वीसीआर और एअरकंडीशनर से ले कर हीरे, माणिक, मोती सभी कुछ तो थे, पर इन चीजों की यहां कोई कमी न थी.

घर आ कर मैं फूटफूट कर इतना रोई कि शायद दीवारें भी पसीज गई होंगी. अश्विनी ने बहुत प्यार से समझाया था, ‘वैवाहिक संबंध संयोगवश बनते हैं. तुम्हारे भैया की शादी जिस से होनी थी, हो गई. इस संबंध में व्यर्थ चिंता करने से क्या लाभ है. और यह भी तो हो सकता है कि तुम्हारी भाभी का स्वभाव इतना मृदु हो कि तुम सब को वह स्नेहपाश में बांध ले.’

मैं चुप हो गई.

तभी सास, ननद आ धमकी थीं. सास बोलीं, ‘‘हां भई, अब तो एसी दहेज में मिलने लगे हैं. हमारे बेटे को तो कूलर भी नहीं मिला था. अब बहू टेढ़ीमेढ़ी हो तो क्या हुआ?’’

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जी चाहा प्रत्युत्तर में उन का मुंह नोच लूं. तुम्हारे हृदय में मानवता हो तो जानो मोल मानवता का, पर अश्विनी ने इशारे से चुप करवा दिया था. 3-4 दिन बाद मां को फोन किया. सोचा, अकेली होंगी. कुछ तो मन हलका कर लेंगी मेरे साथ. भैयाभाभी तो हनीमून पर गए थे. फोन अंजू ने उठाया, ‘‘हैलो, रीना तुम? इतनी जल्दी क्यों आ गईं अपने घर?’’

‘‘……’’

‘‘तुम लोग तो 15 दिन बाद आने वाले थे न?’’

‘‘हां, वहां जा कर मां से फोन पर बात की तो मालूम पड़ा, बाबूजी बीमार हैं, इसीलिए वापस आ गए.’’

उस के स्वर में मिसरी घुली थी. मैं ने सोचा, ‘तुम्हारे जैसी बीमार स्त्री कश्मीर की वादियों में भैया का क्या मन मोह पाई होगी?’

तभी मैं बाबूजी से मिलने चल पड़ी थी.

अंजू उन के सिरहाने बैठी थी. मां को जबरदस्ती सुला दिया था उस ने. बोली, ‘‘परेशान हो जाती हैं मां बाबूजी को देख कर. मैं तो हूं ही यहां.’’

और वह एक ट्रे में बाबूजी के लिए जूस व मेरे लिए चाय ले कर आ गई थी. दीनू को भेज कर समोसे भी मंगवाए थे उस ने. बोली, ‘‘खाओ न, तुम्हें बहुत पसंद हैं न ये.’’

उस के बाद वह हर एक घंटे बाद बाबूजी का बुखार देखती रही. अच्छा तो बहुत लगा यह सब, पर फिर सोचा, कहीं यह आडंबर तो नहीं. अपना दोष छिपाने के लिए नाटक कर रही हो? पर आत्ममंथन करने पर मैं ही ग्लानि से भर गई थी. बेटी होने का मैं ने कौन सा कर्तव्य निभाया.

शाम को उस ने अश्विनी को भी फोन कर बुला लिया. जबरदस्ती हमें रोक लिया था उस ने. पूरी मेज मेरी पसंद के भोजन से सजी थी, पर मेरे मुंह से प्रशंसा का एक भी शब्द नहीं निकल रहा था. भैया भी हाथोंहाथ ले रहे थे. सभी सामान्य थे.

वापस अपने घर आई तो यहां भी जी नहीं लग रहा था. तभी भैया मां को ले कर आए थे. मां बोली थीं, ‘‘कल अंजू फिर बेहोश हो गई थी. उस की तबीयत देख कर घबरा जाती हूं. कौन से अस्पताल में दाखिल करूं, समझ नहीं आता?’’

अगले भाग में पढ़ें- क्या औपचारिकतावश उन का हाल नहीं पूछना चाहिए तुम्हें?

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पार्किंसंस बीमारी का क्या कोई और इलाज संभव है?

सवाल-

मेरे पिताजी 63 साल के रिटायर बैंक मैनेजर हैं. उन्हें पहली बार पार्किंसंस बीमारी के लक्षण 59 साल की उम्र में महसूस होने लगे थे, जिस वजह से उन्होंने जल्दी रिटायरमैंट ले लिया. पहले उन की दाएं हाथ की उंगलियों में कंपकंपाहट थी और बीमारी का पता चलते ही उन की दवा शुरू हो गई थी, लेकिन अब समय के साथ उन की स्थिति ज्यादा ही खराब होती जा रही है. आजकल वे एकदम अकड़न की स्थिति में आ जाते हैं और उन्हें चलने में दिक्कत होने लगती है. दवाओं का उन पर कुछ असर नहीं हो रहा. क्या कोई और इलाज संभव है?

जवाब-

अगर आप के पिताजी पर दवाएं असर नहीं कर रहीं तो आप डीप बे्रन स्टिमुलेशन (डीबीएस) थेरैपी करवा सकते हैं. डीबीएस थेरैपी से पार्किंसंस बीमारी की परेशानियों जैसे कंपकंपाहट, अकड़न और चलने में दिक्कत वगैरह का इलाज किया जा सकता है, इसलिए डाक्टर से परामर्श ले कर आप अपने पिताजी का डीबीएस करवा सकते हैं.

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हमारे मस्तिष्क का अनगिनत तंत्रतंत्रिकाओं का विस्तृत नैटवर्क एक कंप्यूटर के समान है, जो हमें निर्देश देता है कि किस प्रकार विभिन्न संवेदों, जैसे गरम, ठंडा, दबाव, दर्द आदि के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए. इस के साथ ही यह बोनसस्वरूप हमें भावनाओं व विचारों को सोचनेसमझने की शक्ति भी देता है. हम जो चीज खाते हैं, उस का सीधा असर हमारे मस्तिष्क के कार्य पर पड़ता है. यह सिद्ध किया जा चुका है कि सही भोजन खाने से हमारा आई.क्यू. बेहतर होता है, मनोदशा (मूड) अच्छी रहती है, हम भावनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत बनते हैं, स्मरणशक्ति तेज होती है व हमारा मस्तिष्क जवान रहता है. यही नहीं, यदि मस्तिष्क को सही पोषक तत्त्व दिए जाएं तो हमारी चिंतन करने की क्षमता बढ़ती है, एकाग्रता बेहतर होती है व हम ज्यादा संतुलित व व्यवस्थित व्यवहार करते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- दिमागी शक्ति बढ़ाता आहार

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चिड़िया चुग गईं खेत: भाग 5- शादीशुदा मनोज के साथ थाईलैंड में क्या हुआ था

वह शाम भी उस ने जूली के साथ बिताई. पूरे समय जूली उस का आभार प्रकट करती रही. उस ने मनोज को कसम खिलाई कि वह भारत वापस जा कर उसे भूलेगा नहीं और हमेशा उसे फोन करेगा.

दूसरे दिन मनोज भारत के लिए वापस निकल आया. जूली ने आंखों में आंसू भर कर उसे भावभीनी विदाई दी. उस ने वादा किया कि वह जल्द से जल्द उसे पैसे वापस करेगी.

भारत वापस आने पर मनोज का हर रोज जूली से बात करने का सिलसिला जारी रहा. बातों से ही उसे पता चला कि जूली अपने घर लौट गई है और उस ने शौप खोल ली है. वह हर रोज अपने कार्य की प्रगति के बारे में उत्साह से उसे बताती, जैसे आज उस ने क्या खरीदा, उसे शौप में कैसे जमाया, लोग उस की दुकान पर आने लगे हैं, उसे उस के पैसे जल्द से जल्द चुकाने हैं इसलिए वह ज्यादा से ज्यादा मेहनत कर रही है.

इधर, दिन, हफ्ते, महीने बीत गए पर जूली ने मनोज का एक भी पैसा वापस नहीं किया. मनोज को तो भावेश, सुरेश और बाकी लोगों के पैसे वापस करने ही पड़े. दोनों अकसर उसे कहते कि उस ने धोखा खाया है. जूली ने उसे बेवकूफ बनाया है पर मनोज का मन यह मानने को तैयार नहीं होता. लेकिन आजकल वह जब भी जूली से पैसे लौटाने की बात करता, वह टालमटोल करने लगती, अपनी परेशानियां गिनाने लगती. फिर एक दिन अचानक जूली ने अपना फोन बंद कर दिया. मनोज महीनों उसे फोन लगाता रहा पर वह नंबर स्विच औफ ही आता. अब तो मनोज भी समझ गया कि उस ने धोखा खाया.

वह रातदिन जूली को गालियां देता और अपनी मूर्खता पर पछताता. ठगे जाने से वह बुरी तरह तिलमिला रहा था. उसे सब से ज्यादा जलन इस बात पर हो रही थी कि उस के दोस्त इस से बहुत कम पैसों में लड़कियों के साथ ऐश कर आए और वह इतना सारा पैसा खर्च कर के भी सूखा रह गया. बेकार की भावनात्मक सहानुभूति में पड़ कर अच्छाभला चूना लग गया.

2 साल बीत गए. जूली का अतापता नहीं था. मनोज भी उस कसक को जैसेतैसे कर के भूल गया था.

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एक दिन मुंबई में उस का एक दोस्त उस से मिलने आया. दोनों औफिस में मनोज के केबिन में बैठ कर बातें कर रहे थे. बातों ही बातों में उस के दोस्त अजय ने उसे बताया कि वह हाल ही में थाईलैंड के पटाया शहर गया था. और उस के बाद अजय की कहानी सुन कर मनोज सन्न रह गया. उसे लगा कि जैसे अजय उस की ही कहानी सुना रहा है. उस की कहानी का प्रत्येक शब्द और घटना वही थी जो

2 साल पहले मनोज के साथ घटी थी.

मनोज के घाव हरे हो गए. उस ने अजय को अपनी आपबीती सुनाई. सुन कर अजय भी बुरी तरह चौंक गया. उस ने तुरंत जूली को फोन लगाया क्योंकि उस के पास उस का नया नंबर था ही. उस ने स्पीकर औन कर के जूली से बात की. जूली की आवाज सुनते ही मनोज उसे पहचान गया. उस ने अजय को इशारे से बताया कि यह वही है. अब तो अजय भी बौखला गया और मनोज का तो गुस्से से बुरा हाल हो गया. उस के अंदर लावा उबलने लगा. वह जूली को अनापशनाप बोलने लगा. पहले तो वह अचकचा गई फिर मनोज को पहचान गई. मनोज उसे गालियां देने लगा तो जूली को भी गुस्सा आ गया.

‘‘देखिए, मिस्टर मनोज, जबान संभाल कर बात करिए. आप को कोई हक नहीं बनता मुझे बुराभला बोलने का,’’ जूली तीखे स्वर में बोली.

‘‘धोखेबाज, एक तो धोखा देती हो ऊपर से तेवर दिखाती हो. उलटा चोर कोतवाल को डांटे,’’ मनोज तिलमिला कर बोला.

‘‘धोखेबाज कौन है यह अपनेआप से पूछो,’’ जूली कड़वे स्वर में बोली, ‘‘तुम मर्द लोग विदेश जा कर कम उम्र की लड़कियों के साथ रंगरलियां मनाने और ऐश करने के लिए सदा लालायित रहते हो. दूसरी लड़कियों के साथ गुलछर्रे उड़ाने को आतुर रहते हो. लड़कियों के साथ घूमने और एंजौय करने, मौजमस्ती करते समय तुम्हें एक बार भी यह खयाल नहीं आता कि तुम अपनी पत्नियों के साथ धोखा कर रहे हो. लड़कियां तुम्हें हंस कर देख लें, तुम्हारे साथ मौजमस्ती कर लें तो तुम्हें अपना जीवन सार्थक और धन्य नजर आने लगता है. बोलो, तुम्हारा अंतर्मन एक बार भी तुम्हें कचोटता नहीं है?’’

फिर थोड़ा रुक कर –

‘‘मैं ने न तुम्हारी जेब काटी न बंदूक दिखा कर तुम्हें लूटा है. पैसे तुम ने अपनी मरजी से मुझे दिए थे.’’

‘‘लेकिन तुम ने पैसे वापस करने को तो कहा था न? उस का क्या?’’ मनोज गुस्से से बोला.

‘‘हां, कहा था. नहीं कहती तो क्या एक गरीब और असहाय लड़की की सहायता बिना किसी लालच के करते तुम लोग? नहीं, कभी नहीं करते. धोखा असल में मैं ने तुम्हें नहीं दिया, तुम्हारी गलत प्रवृत्ति ने तुम्हें दिया है. सचसच बताना, पैसा देने के बाद क्या तुम्हारे मन में मेरे साथ हमबिस्तर होने की तीव्र इच्छा नहीं हो रही थी? पैसे के एवज में क्या तुम लोग मेरा शरीर नहीं चाह रहे थे. वह तो मैं पूरे समय तुम्हें शराफत का वास्ता देती रही, इसलिए बच गई. और मैं तुम्हारी मर्यादा और चरित्र की झूठी तारीफें भी इसीलिए करती रहती थी कि तुम लोग अपनी हद में रहो.’’

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जूली की बातों की सचाई ने मानो उन्हें नंगा कर दिया. दोनों एकदूसरे से नजरें चुराते हुए सिर नीचा कर के बैठे रहे और जूली बोलती रही.

‘‘सच कहूं तो पुरुषों को उन की प्रवृत्ति ही धोखा देती है. नया रोमांच, नया अनुभव पाने की इच्छा ही उन्हें डुबोती है. तुम लोग अपनी पत्नियों के प्रति वफादार होते नहीं और हमें गालियां देते हो. क्या बुरा करती हूं जो तुम जैसे मर्दों से पैसा ऐंठ कर मैं आज तक अपनी इज्जत बचाती आई हूं. आज के बाद मुझे कभी फोन मत करना क्योंकि यह नंबर मैं आज ही बंद कर दूंगी. अच्छा हुआ, जो अजय को भी सच पता चल गया. गुडबाय,’’ और जूली ने फोन काट दिया.

अजय और मनोज सन्न हो कर चुप बैठे थे, जूली ने उन्हें आईना दिखा दिया था. चिडि़यां खेत चुग चुकी थीं.

चिड़िया चुग गईं खेत: भाग 4- शादीशुदा मनोज के साथ थाईलैंड में क्या हुआ था

बच्चों और सासससुर व घर की देखभाल में लीन एक आदर्श भारतीय नारी. उस की पत्नी, मां और बहू के रूप में आदर्श भारतीय नारी थी. लेकिन वह मनोज के स्वभाव के अनुकूल नहीं थी.

मनोज मस्तमौला, खिलंदड़ स्वभाव का था. वह चाहता था कि मीरा भी उस के साथ दोस्तों की महफिलों में जाए, हंसीमस्ती करे, पार्टियां मनाए, कैंडललाइट डिनर करे, परंतु मीरा को यह सब पसंद नहीं था. उस के पीछे हर समय घर या बच्चों का कोई न कोई काम लगा ही रहता था और मनोज मन मसोस कर रह जाता.

मनोज के दोस्त लड़कियों के साथ अपनी दोस्ती और मौजमस्ती के किस्से सुनाते तो मनोज का दिल भी बल्लियों उछलने लगता था. पर क्या करे, उस के तो औफिस के उस विभाग में, जहां वह काम करता था, एक भी लड़की नहीं थी.

मगर अब जूली से मिलने के बाद मनोज के मन की रंगीनियां जागने लगी थीं. आज का कैंडललाइट डिनर उस के दिल को छू गया था. पैसे को हमेशा किफायत और संभाल कर खर्च करने वाला मनोज अब दिल खोल कर पैसा खर्च कर रहा था ताकि दिल की वर्षों से अधूरी पड़ी तमन्नाएं पूरी हो जाएं.

सुबह मनोज की आंख जल्दी खुल गई. वह देर तक जूली के बारे में सोचता हुआ पलंग पर पड़ा रहा. 8 बजे भावेश और सुरेश फिर से आ धमके मसाज के लिए. आज मनोज सहर्ष तैयार हो गया. तीनों फिर पहुंचे पार्लर. जूली व्यग्रता से मनोज की राह देख रही थी. वह लपक कर उस के पास आई और हाथ पकड़ कर उसे केबिन में ले गई.

आज मसाज के समय मनोज के मन में इच्छाओं के सर्प फन उठा रहे थे. नसों का लहू बारबार आवेश से तेज हो रहा था. पर जूली मसाज करते हुए पूरे समय मनोज के सचरित्र और सभ्यता, संस्कारों के गुण गाती रही, इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाया. अपने मन को जबरदस्ती काबू में कर के रखा. आज उन लोगों को शहर से बाहर समुद्र के किनारे पेरासीलिंग के लिए जाना था. बे्रकफास्ट कर के वे लोग निकल जाएंगे और देर शाम को वापस आएंगे. सुनते ही जूली का चेहरा उतर गया तो मनोज ने उसे आश्वासन दिया कि वह डिनर उसी के साथ करेगा.

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दिनभर के कार्यकलापों में मनोज बहुत थक चुका था. वह पलंग पर पड़े रहना चाहता था लेकिन जूली से मिलने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा था. गरमागरम पानी से नहा कर वह तैयार हो कर नियत समय पर नियत स्थान पर पहुंच गया. जूली वहां पहले से ही प्रतिक्षारत खड़ी थी. आज उसे देखते ही भावातिरेक में जूली ने उसे गले से लगा लिया. मनोज फड़क उठा. उस की सारी थकान दूर हो गई. देर तक वे पटाया की रंगीन चकाचौंध और मस्ती से भरी हुई सड़कों पर घूमते रहे. फिर एक रैस्टोरेंट में आ कर बैठ गए. वहां का माहौल मदहोश कर देने वाला था. डांसफ्लोर पर जोड़े एकदूसरे की बांहों में खोए हुए झूम रहे थे.

जूली ने मनोज से डांस का प्रस्ताव रखा. उसे तो मुंहमांगी मुराद मिल गई. वह झट से उठ बैठा. जूली के जवान और मस्ती में चूर शरीर के सान्निध्य में मनोज अपनी सुधबुध खो बैठा. वह इस नए अनुभव में पूरी तरह मदहोश हो गया. जूली का नशा उस पर पूरी तरह चढ़ चुका था. वह उस के जादू में गिरफ्तार हो गया.

डिनर करते समय जूली ने आंखों में आंसू भर कर फिर अपनी व्यथा सुनाई कि मातापिता की वृद्धावस्था और दवाइयों के बढ़ते खर्च के दबाव के चलते उस की मां ने कल फिर से उसे रेड जोन में जाने का आग्रह किया. कल उस की मां ने उसे बहुतकुछ उलटासीधा सुनाया कि उसे उन की जरा सी भी चिंता नहीं है, वह तो बस अपनेआप में ही मस्त है.

‘‘मैं उस गंदे धंधे में नहीं पड़ना चाहती मनोज, पर मां लगातार मुझ पर दबाव बनाती जा रही हैं. हर दूसरे दिन मुझे बुराभला कहती रहती हैं. मैं क्या करूं, इस से तो अच्छा है मैं आत्महत्या कर लूं,’’ जूली सुबकते हुए बोली.

‘‘नहींनहीं, जूली.’’ उस के हाथ पर सहानुभूति से अपना हाथ रखते हुए मनोज ने उसे सांत्वना दी, ‘‘ऐसे निराश नहीं होते. मैं जाने के पहले ऐसा इंतजाम कर जाऊंगा कि तुम्हें इस कीचड़ में न धंसना पड़े.’’

‘‘ओह मनोज, सच में. मैं ने अपने जीवन में तुम्हारे जैसा सच्चे और भले हृदय का आदमी नहीं देखा,’’ भावनाओं के अतिरेक में जूली ने मनोज का हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़ कर चूम लिया.

उस रात होटल के कमरे में सोया मनोज सुबह होने तक इसी उधेड़बुन में पड़ा रहा कि क्या करे और क्या नहीं. एक क्षण उसे एहसास होता कि वह व्यर्थ ही जूली के चक्कर में पड़ गया है. 4 दिनों के लिए आया है, घूमेफिरे और लौट जाए. बेकार ही यह जंजाल उस ने अपने गले बांध लिया है. जिंदगी में दोबारा कभी उस से मुलाकात तो होगी नहीं, फिर इतना पैसा वह क्यों उस पर खर्च करने की सोच रहा है.

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पर दूसरे ही क्षण उस का पुरुषत्व उसे धिक्कारता कि वह एक बेबस की मदद करने से कतरा रहा है. वह भी चंद पैसों के लिए. सच तो यह था कि वह गले तक जूली के आकर्षण में डूब चुका था. उस में पता नहीं ऐसा क्या था कि वह अपनेआप को जूली से तटस्थ नहीं रख पा रहा था. आखिर में उस ने यही तय किया कि वह जूली की मदद अवश्य करेगा. तब जा कर उसे नींद आई.

2 हजार डौलर मामूली रकम नहीं थी. दूसरे दिन भावेश, सुरेश और दोएक और दोस्तों के पास से इकट्ठा कर के मनोज ने ठीक 2 हजार डौलर जूली को दिए. क्षणभर को जूली हतप्रभ सी खड़ी डौलर्स को देखती रही, फिर मनोज के गले लग कर रोने लगी. उस की आंखों में खुशी के आंसू बह रहे थे. उस का स्पर्श पा कर मनोज के दिल में तरंगें उठने लगीं. मन में यह लालसा होने लगी कि काश, अब तो जूली खुश हो कर बस एक बार समर्पण कर दे. पर ऊपर से मर्यादावश वह कुछ बोल नहीं सका. अफसोस, जूली ने भी ऐसी कोई इच्छा नहीं जताई.

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‘‘लेकिन यहां पार्लरों में जिस तरह के लोग आते हैं तुम कब तक अपनेआप को बचा कर रख पाओगी?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘हां, कभीकभी बहुत परेशानी में पड़ जाती हूं, बहुत डर लगता है. पर अब तक बची हुई हूं. इसीलिए जल्द से जल्द यहां से वापस जाना चाहती हूं क्योंकि आप जैसे शरीफ और सच्चे लोग हर रोज नहीं मिलते,’’ जूली ने एक बार फिर से मनोज की तारीफ की तो वह और अधिक खिल उठा.

‘‘पर तुम वापस जा कर करोगी क्या?’’ मनोज ने सवाल किया.

‘‘मैं एक गिफ्ट शौप खोलना चाहती हूं. मेरे छोटे से शहर में ज्यादा दुकानें नहीं हैं. अगर मैं शौप खोल पाई तो अपने परिवार का पालनपोषण करने के लायक अच्छा काम कर सकूंगी और फिर मुझे रेड जोन की जिल्लतभरी जिंदगी जीने की कोई जरूरत नहीं रहेगी,’’ जूली आशाभरी आवाज में बोली.

‘‘कितनी रकम की जरूरत है तुम्हें शौप खोलने के लिए?’’ मनोज के मुंह से न चाहते हुए भी जाने कैसे यह सवाल निकल गया.

‘‘2 हजार डौलर में एक अच्छी शौप गांव में खुल सकेगी,’’ जूली ने उत्साहित स्वर में जवाब दिया.

मनोज के गले में जैसे अचानक ही कुछ अटक गया. जूली उस की मनोदशा समझ कर गंभीर मगर रोंआसे स्वर में बोली, ‘‘मैं जानती हूं, यह बहुत बड़ी रकम है. और आज के युग में इतना बड़ा दिल किसी का नहीं होता कि बिना लड़की का इस्तेमाल कर के उसे एक तिनका भी दे दे. आजकल तो सब मर्द शरीर के लोलुप होते हैं. लड़की का जीभर कर इस्तेमाल किया और फिर उस के हाथ में चंद नोट पकड़ा दिए. बिना स्वार्थपूर्ति के महज इंसानियत के नाते लड़की की मदद करने वाले बड़े दिल के स्वार्थरहित सच्चे मर्द आजकल बचे ही कहां हैं.’’

जूली ने एक तीखी चुभती हुई नजर से मनोज को देखा. जूली के आक्षेप से मनोज के अंदर का मर्द तिलमिला गया. उसी क्षण उस के अहं ने सिर उठाया, ‘क्या तुम सच्चे और शरीफ मर्द नहीं हो?’

‘‘नहींनहीं, जूली, मर्दों के बारे में तुम्हारी यह धारणा सही नहीं है. सारे मर्द ऐसे शरीर लोलुप नहीं होते,’’ मनोज ने हड़बड़ा कर उत्तर दिया.

‘‘अरे जाने दीजिए, मनोजजी, मेरा तो रातदिन मर्दों से ही वास्ता पड़ता रहता है. मैं अच्छे से समझ चुकी हूं मर्दों की फितरत और नियत को,’’ जूली कड़वे स्वर में बोली.

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‘‘नहीं जूली, तुम्हें मर्दों के बारे में गलत धारणा बना कर नहीं रखनी चाहिए. सारे मर्द एक जैसे नहीं होते,’’ मनोज गंभीर स्वर में बोला.

‘‘मेरा पाला तो आज तक कामुक पुरुषों से ही पड़ा है. मसाज करवाते समय ऐसीऐसी हरकतें करते हैं कि अपनेआप से ही घृणा होने लगती है,’’ जूली की आंखें छलछला आईं.

क्षणभर को मनोज को उस अनजान विदेशी लड़की से सच्ची सहानुभूति हो आई पर उस ने जल्द ही अपनेआप को संभाल लिया. कहीं सहानुभूति जताते ही यह पैसा न मांगने लगे. पर तभी मन के एक कोने में एक धिक्कार सी उठी कि उस से मसाज करवाने में बातें करने में उस के साथ रैस्टोरेंट में मिलने आने में उसे कोई एतराज नहीं है पर उस की मदद के नाम से वह कतरा रहा है. आखिर कहीं न कहीं वह एक कम उम्र खूबसूरत जवान लड़की के प्रति किसी प्रकार का तीव्र आकर्षण अपने मन में महसूस तो कर ही रहा है न.

शाम ढलने लगी थी.

‘‘अब आप कहां जाएंगे?’’ जूली उस से पूछ रही थी.

‘‘मैं सोच रहा हूं कि आज फ्री हूं तो पत्नी और बेटों के लिए कुछ शौपिंग कर लूं,’’ मनोज ने कहा, ‘‘यहां आसपास कोई मौल है क्या?’’

‘‘मौल में तो आप को सबकुछ बहुत महंगा मिलेगा. यहां से पास में ही एक लोकल मार्केट है. वहां क्वालिटी भी अच्छी मिलेगी और कीमतें भी मौल की अपेक्षा काफी कम हैं. यदि आप चाहें तो मैं आप को वहां ले जा सकती हूं. शाम को मैं फ्री हूं,’’ जूली ने प्रस्ताव रखा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. चलो, चलते हैं. अच्छा है मुझे एक खूबसूरत और अनुभवी गाइड मिल जाएगी,’’ अब की बार जूली का मन हलका करने के लिए मनोज ने उस की तारीफ कर दी. जूली का चेहरा खिल गया.

दोनों मार्केट की ओर निकल गए. मार्केट जाने वाली स्ट्रीट पर चारों ओर का वातावरण बड़ा ही उन्मुक्त था. हर ओर लड़केलड़कियां, औरतआदमी छोटेछोटे कपड़ों में एकदूसरे की कमर में हाथ डाले मस्ती में चूर दीनदुनिया से बेखबर अपने ही रंग में झूमते हुए घूम रहे थे. मनोज ने अपने जीवन में पहली बार ऐसी उन्मुक्तता देखी थी. उस का दिल यह सब रंगीनियां देख कर फड़कने लगा.

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जूली उस के दिल की हालत समझ गई. उस ने मनोज की कमर में हाथ डाला और उस का हाथ अपने कंधे पर रख लिया और हंस पड़ी. फिर वह भी मनोज के साथ मस्त हो कर घूमने लगी. जूली के स्पर्श से मनोज का रोमरोम सुलगने लगा पर उस ने अपनेआप पर नियंत्रण रखा. हां, उस पर एक मीठी रूमानियत छाने लगी थी. एक लड़की के साथ इस तरह से घूमने का उस का पहला अनुभव था.

जूली ने सही कहा था. यहां पर सुंदर विदेशी वस्तुओं की भरमार थी और काफी सस्ती भी थीं. मनोज ने पत्नी और बच्चों के लिए ढेर सारी शौपिंग कर ली. जूली की आंखों में भी कुछ वस्तुओं को देख कर चमक उभर आई थी जिसे मनोज ने भांप लिया. उस ने जूली को भी वे चीजें खरीद दीं जिन्हें जूली ने बड़े उत्साह और खुशी से स्वीकार कर लिया.

उस रात मनोज ने एक रैस्टोरेंट में जूली के साथ कैंडललाइट डिनर किया. देर रात वह अपने होटल में वापस आया तब तक सब सो चुके थे. उस ने राहत की सांस ली. वरना भावेश और सुरेश व्यर्थ ही प्रश्नों की झड़ी लगा देते.

पलंग पर लेट कर भी मनोज की आंखों में नींद नहीं थी. बचपन से ही वह बौयज स्कूल और कालेज में पढ़ा था, इसलिए कभी लड़कियों से उस का संपर्क और दोस्ती नहीं रही. पढ़ाई के बाद नौकरी और फिर घर की जिम्मेदारियों के चलते मातापिता की मरजी की लड़की से शादी. यही घिसीपिटी कहानी रही उस के जीवन की. विवाह के बाद की जिंदगी भी बहुत ही आम और साधारण रही उस की. कोई नयापन नहीं, कोई रोमांच नहीं.

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