जरूरत : उस दिन कौनसी घटना घटी?

औफिस से लौट कर ऊर्जा की नजर लगातार घड़ी पर थी. उसे लग रहा था जैसे आज उस की गति बहुत धीमी है. वह चाहती थी समय जल्दी कट जाए लेकिन इस के विपरीत आज विचारों के घोड़े तेज गति से दौड़ रहे थे और घड़ी की सुइयां आगे सरकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. उस ने जल्दी से खाना बनाया और जय का इंतजार करने लगी. उस ने आज आने में देर कर दी थी. इंतजार का समय लंबा होता जा रहा था और उस के साथ ऊर्जा की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी.

9 बजे जय औफिस से आ कर सीधे बाथरूम में घुस गया. इतनी देर में उस ने खाना लगा दिया.

फ्रैश हो कर जय सीधे खाने की मेज पर आ गया और बोला, ‘‘खाने की बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है. लगता जल्दी घर आ कर मेरे लिए फुरसत से खाना बनाया है.’’

‘‘घर तो जल्दी आ गई थी लेकिन खाना बनाने के लिए नहीं किसी और परेशानी की वजह से आई थी.’’

‘‘क्या हुआ औफिस में सब ठीक तो है?’’

‘‘वहां ठीक है लेकिन यहां कुछ ठीक

नहीं है.’’

‘‘पहेलियां मत बु?ाओ. सीधे और साफ लफ्जों में बताओ बात क्या है ऊर्जा?’’

‘‘मैं प्रैगनैंट हूं जय.’’

ऊर्जा सोच रही थी यह सुनते ही उस के

हाथ खाना छोड़ कर रुक जाएंगे लेकिन ऐसा

कुछ भी नहीं हुआ और वह इत्मीनान से खाना खाता रहा.

‘‘कोई नई बात नहीं है ऊर्जा. डाक्टर से मिल कर इस मुसीबत से छुटकारा पा लेना.’’

जय की बात से ऊर्जा अंदर तक तिलमिला गई लेकिन इस समय कुछ कह कर माहौल खराब नहीं करना चाहते थी. वह सधे हुए शब्दों में बोली, ‘‘हम शादी कब कर रहे हैं जय?’’

यह सुन कर उस का हाथ मुंह तक जातेजाते रुक गया. उस ने एक गहरी नजर ऊर्जा पर डाली और बोला, ‘‘हमारे बीच में यह झंझट कहां से आ गया ऊर्जा?’’

‘‘सम?ाने की कोशिश करो जय. हम 3 साल से एकदूसरे के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. हम दोनों एकदूसरे को अच्छे से समझते  हैं. तो फिर शादी करने में क्या परेशानी है?’’

‘‘मुझे शादी का कोई शौक नहीं है. यह बात मैं ने तुम्हें साथ रहने से पहले भी बता दी थी.’’

‘‘शौक मुझे भी नहीं है लेकिन अब जरूरत बन गई है. मैं बारबार इस तरह अर्बोशन नहीं करा सकती. तकलीफ होती है मुझे अपने शरीर का एक हिस्सा काट कर फेंकने में. जो बीतती है उसे वही बता सकता है जो भुक्तभोगी होता है.’’

‘‘यह मेरी गलती से नहीं तुम्हारी लापरवाही से हुआ है.’’

‘‘अच्छा यह जिम्मेदारी भी केवल मेरी

ही है.’’

‘‘इस बार गलती तुम्हारी थी ऊर्जा. याद करो अपने जन्मदिन पर तुम इतनी खुश थीं कि सबकुछ भूल गईं.’’

जय तीखे लहजे में बोला तो अजय चुप हो गई. जय की बात अपनी जगह सही थी. बर्थडे वाले दिन उस ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी.

जय उसे किसी तरह होटल से घर ले आया. नशे की हालत में उसे कुछ होश नहीं रहा. उस का परिणाम आज उसे भुगतना पड़ रहा था.

‘‘जो हो गया उसे छोड़ो और आने वाली समस्या के बारे में सोचो. समझने की कोशिश करो मैं बारबार ऐसा नहीं कर सकती. सच पूछो मुझे बच्चा चाहिए. मैं उस की परवरिश करना चाहती हूं.’’

‘‘यह तुम कह रही हो ऊर्जा? जब हम ने एकसाथ रहना शुरू किया था तब हमारे बीच में शादी और बच्चा जैसे लफ्ज नहीं थे. बस हमतुम और हमारी जरूरत थी. यही सोच कर मैं ने तुम्हारे साथ रहना शुरू किया था.’’

‘‘बीती बातें भूल जाओ प्लीज. 3 साल का समय गुजर गया है. अब हम एकदूसरे को इतना समझने लगे हैं कि एकदूसरे के बगैर रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते.’’

‘‘यह तुम समझती होंगी ऊर्जा मैं नहीं. तुम अब दिल से काम ले रही हो और मैं दिमाग से. ऐसे रिश्तों में दिल को बहुत दूर रखना चाहिए वरना यह जी का जंजाल बन जाता है.’’

‘‘कभी न कभी तुम शादी का फैसला करोगे ही जय. मुझ में क्या कमी है जो तुम मुझे अपना लाइफपार्टनर नहीं बना सकते?’’

ऊर्जा ने तीखे शब्दों में पूछा.

‘‘एक कमी हो तो बताऊं. हमारे इस रिश्ते में जवानी की उमंग और इच्छाएं हैं जिन्हें हम मिल कर ऐंजौय करते हैं अपेक्षाएं नहीं कि दूसरा हमारे लिए क्या करेगा. हम दोनों ने साथ रहने का निर्णय सोचसम?ा कर लिया था. मैं शादी का फंदा जीवनभर के लिए अपने गले नहीं डाल सकता. यह तुम पहले दिन से जानती थीं और आज भी मेरा फैसला अटल है.’’

‘‘यह तुम्हारा आखिरी निर्णय है?’’

‘‘यही समझ लो. तुम मुझे अच्छी लगती हो लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन पर न तुम समझौता करती हो और न मैं.अच्छा होगा कि हम इसी तरह अपनी जिंदगी गुजारें और एकदूसरे से कोई अपेक्षा न रखें.’’

‘‘मेरा निर्णय भी सुन लो. इस बार में कोई गलत काम नहीं करूंगी और इस बच्चे को जन्म दूंगी.’’

‘‘यह तुम्हारा फैसला है मेरा नहीं. मेरी सलाह मानो और इस परेशानी से जल्दी छुटकारा पा लो. इस के कारण हमें अपना रिश्ता खराब नहीं करना चाहिए.’’

‘‘अगर तुम ठंडे दिमाग से सोचो तो यही बच्चा हमारे रिश्ते को और मजबूत बना सकता है जय,’’ ऊर्जा बोली.

ऊर्जा तर्क कर के थकने लगी थी और जय रुकने का नाम नहीं ले रहा था. ऊर्जा उसे किसी तरह मना नहीं पाई थी.बहस की समाप्ति ऊर्जा के आंसुओं पर हुई  लेकिन जय पर उस का भी कोई असर नहीं पड़ा. खाना खा कर वह चुपचाप बैड पर आ गया और लैपटौप खोल कर अपने काम पर लग गया. उस ने इस बारे में आगे उस से कोई बात नहीं की. ऊर्जा ने भी ठान लिया था कि इस बार वह कमजोर नहीं पड़ेगी और अपनी बात मनवा कर रहेगी.

जय शादी के लिए तैयार नहीं तो क्या हुआ? बहुत सी ऐसी औरतें हैं जिन्होंने अविवाहित रह कर बच्चे को जन्म दिया है.

वह भी ऐसा कर के दिखाएगी. आज आंखों से उस की नींद गायब थी. वह सोच रही थी शायद रात के अंधेरे में अपनी जरूरत पूरा करने के लिए जय उस की ओर रुख करेगा लेकिन

ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और सारी रात आंखों में कट गई.

सुबह ऊर्जा देर से उठी. जय बोला, ‘‘उठो ऊर्जा टाइम काफी हो गया है. तुम्हें औफिस के लिए देर हो जाएगी.’’

‘‘मैं आज औफिस नहीं जा रही हूं.’’

‘‘छोटी सी बात के लिए तुम इतनी सीरियस कैसे हो सकती हो? तुम एक आजाद ख्यालात महिला हो. इन सब बातों में तुम्हारा कभी

विश्वास नहीं था. अचानक तुम्हारा दिमाग कैसे पलट गया?’’

जय की बात का उस ने कोई उत्तर नहीं दिया. उस ने अपने लिए ब्रैड सेंकी और मक्खन के साथ खा कर निकल गया. उस के चेहरे पर उस की परेशानी का लेस मात्र भी असर नहीं था. वह सोचने लगी कि कोई व्यक्ति इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है?

हकीकत सामने थी उस से मुंह भी नहीं मोड़ा जा सकता था. वह जानती थी जय जो कुछ सोच रहा है वह अपनी जगह ठीक है.

उन दोनों की दोस्ती इसी वजह से हुई थी. ऊर्जा को दुनिया की कोई परवाह नहीं थी. जय को उस की यह बात बहुत अच्छी लगी थी. वह खुद भी रिश्तों में विश्वास नहीं करता था. वे दोनों साथ उठते, बैठते और इधरउधर घूमते. दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगता था.

एक दिन जय ने हंसीमजाक में यों ही कह दिया था, ‘‘सड़कों पर घूमने से अच्छा है ऊर्जा

हम दोनों एकसाथ एक ही छत के नीचे रहें. इस से खर्चे भी बचेंगे और अपने लिए अधिक समय भी मिलेगा.’’

जय की मजाक में कही बात ऊर्जा को जंच गई. वह झट से उस के साथ रहने के लिए तैयार हो गई और बोली, ‘‘मु?ा से कोई उम्मीद मत रखना जय. मैं तुम्हारे साथ एक ही घर में लिव इन रिलेशनशिप में रह सकती हूं. मु?ो पत्नी सम?ाने की भूल मत करना.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. ऐसे रिश्तों में

आपसी विश्वास ही सब से बड़ा होता है. अगर तुम्हें मु?ा पर विश्वास न रहे तो कभी भी छोड़ कर जा सकती हो और यही बात मुझ पर भी लागू होती है.’’

खुले विचारों के ऊर्जा और जय जल्द ही एकसाथ रहने लगे. ऊर्जा के इस निर्णय पर औफिस में बहुत कानाफूसी हुई लेकिन उस ने उन की बातों को हवा में उड़ा दिया. दोनों के औफिस अलगअलग थे इसीलिए उन के बीच का आकर्षण ज्यादा था. एक छत के नीचे दोनों की बहुत अच्छी निभ रही थी. 6 महीने की दोस्ती में ही वे एकदूसरे की पसंदनापसंद को अच्छी तरह समझने लगे. अब बाहर इधरउधर भटकने की ज्यादा जरूरत न थी. छुट्टी के दिन वे लौंग ड्राइव पर निकल जाते और सारा दिन बाहर बिता कर रात में घर लौट आते.

जिंदगी का मजा साथ रहने में था यह बात उन दोनों को अच्छे से सम?ा में आ गई थी. जब पहली बार ऊर्जा के प्रैगनैंट होने का जय को पता लगा तो बहुत चौंक गया था.

बात संभालते हुए ऊर्जा बोली, ‘‘पता नहीं कैसे यह सब हो गया? अगली बार से तुम भी इस बात का खयाल रखना.’’

ऊर्जा ने डाक्टर को अपनी समस्या बता कर उस से छुटकारा पा लिया. 2 दिन की परेशानी के बाद सबकुछ सामान्य हो गया. उन का जीवन पहले की तरह बंधनमुक्त हो कर बहुत अच्छे से कट रहा था. जय के साथ रहते हुए उसे कभी घर की याद तक न आती. वैसे भी ऊर्जा को अपने घर से कोई लगाव न था. होता भी कैसे उस की अपनी मम्मी छुटपन मैं गुजर गई थी जब वह 8 साल की थी. पापा ने घर की जरूरत को देखते हुए अपनी सहकर्मी वीरा से शादी कर ली थी. उस का पहले से घर में आनाजाना था.

ऊर्जा ने उसे मम्मी के रूप में कभी नहीं अपनाया. वीरा ने अपनी ओर से बहुत कोशिश लेकिन उसे देख कर ऊर्जा का खून खौल उठता. सबकुछ जान कर ओजस ने उसे होस्टल भेज दिया. घर पर पैसे की कमी नहीं थी. उसे भी होस्टल रास आने लगा था.

स्वभाव से उग्र होने के कारण उस के फ्रैंड्स की लिस्ट भी छोटी ही थी. देखते ही देखते उस ने इंटर पास कर लिया और इंजीनियरिंग कालेज में आ गई. छुट्टियों में घर आने के बजाय वह इधरउधर घूमना ज्यादा पसंद करती. उसे अकेले घूमने में भी कोई एतराज न था.

बीटैक करते ही उस ने एक कंपनी जौइन कर ली. औफिस के काम से उसे इधरउधर जाना पड़ता. उस के कई पुरुष मित्र थे लेकिन उस ने कभी किसी को अपने इतने नजदीक नहीं आने दिया कि वह उस के लिए अपने दिल में कुछ महसूस कर सके.

जय में कुछ बात थी. वह उस के व्यक्तित्व से ज्यादा बातों और खुलेपन से प्रभावित हो गई थी और उस के मजाक में दिए एक प्रस्ताव पर उस के साथ रहने लगी थी. ओजस यह बात जानते थे. ऊर्जा ने फोन पर पापा को यह बात बता दी थी. सुन कर उन्हें अच्छा नहीं लगा था. उन्होंने उसे समाज की दुहाइयां दीं और इस रिश्ते को शादी में बदलने के लिए दबाव डाला था लेकिन वह नहीं मानी.

पापा को दुखी देख कर दिल के किसी कोने में उसे सुकून मिल रहा था. जिस ने उस की परवाह नहीं की वह उन की भावनाओं की परवाह क्यों करे? यह बात उस का रोमरोम

चीख कर कह रहा था. पिछले साल पापा चले गए. उन के गुजरने पर वह घर आई थी. वीरा को विधवा के भेष में देख कर उसे जरा भी बुरा नहीं लगा. उसे मम्मी से पहले भी कोई उम्मीद नहीं थी. अब बीच का वह पुल भी टूट गया था जिस से वे दोनों जुड़े थे. तब से उस ने घर आना लगभग बंद ही कर दिया था. वीरा अकसर फोन करती लेकिन वह उसे उठाना तक भी जरूरी न समझती. कभी मन आया तो हैलोहाय कर देती वरना फोन पर वीरा का चेहरा देख कर उस की नफरत भड़क जाती.

आज जय के रूखे व्यवहार ने उसे अंदर तक हिला दिया था. उसे समझ नहीं आ रहा था ऐसी हालत में वह कहां जाए? खून के रिश्तों से उस ने पहले ही किनारा कर लिया था. अपना कहने के लिए उस के पास कोई भी नहीं था. दोस्त भी ऐसे थे जिन से यह बात शेयर कर वह उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती थी. बहुत सोच कर उस ने घर जाने का मन बना लिया. दोपहर में जय के नाम एक नोट छोड़ कर वह अपना सामान समेट  घर चली आई. औफिस में भी उस ने मेल से सिक लीव ले ली थी. सामान के साथ निकलते हुए उस ने एक नजर घर पर डाली और उसे अलविदा कह चली गई.

अचानक ऊर्जा को घर आया देख कर वीरा चौंक गई. उस की शक्ल से लग रहा था कुछ तो हुआ है जिस से ऊर्जा ने घर का रुख कर लिया वरना उस ने इस घर को कभी अपना समझ ही नहीं था. वीरा ने खुले दिल से उस का स्वागत किया. बदले में ऊर्जा ने भी एक फीकी मुसकान दे दी.

वीरा ने आते ही उस से कुछ पूछना ठीक नहीं सम?ा. बड़ी मुश्किल से वह लंबे अरसे बाद घर आई थी. कुछ पूछ कर वह उस का मूड खराब नहीं करना चाहती थी.

वीरा उस की हर जरूरत का खयाल रख रही थी. उस की अपनी कोई औलाद नहीं थी. लेदे कर उस के दिवंगत पति ओजस की एकमात्र निशानी ऊर्जा ही थी. 2 दिन तक उन के बीच मौन पसरा रहा. आखिर ऊर्जा की हालत देख कर वीरा ने चुप्पी तोड़ कर बात आगे बढ़ाई, ‘‘कितने दिन की छुट्टी ली है ऊर्जा?’’

‘‘अभी सोचा नहीं. जब तक मन लगेगा तब तक रहूंगी. उस के बाद चली जाऊंगी.’’

‘‘यह तुम्हारा अपना घर है. मैं कब से तुम्हारे आने का इंतजार कर रही थी ऊर्जा. मेरा भी तुम्हारे अलावा कोई नहीं है,’’ वीरा बोली तो ऊर्जा ने पलट कर कोई जवाब नहीं दिया. पहली बार उस की बात सुन कर वह ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में नहीं गई. वरना ओजस के रहते  मम्मीपापा के कुछ कहते ही वह उठ कर वहां से चली जाती थी.

इस से वीरा का हौसला कुछ और बढ़ गया. उसी ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘कोई परेशानी हो तो कह दो. बता देने से मन हलका हो जाता है.’’

‘‘मैं प्रैगनैंट हूं,’’ ऊर्जा निर्विकार भाव से बोली.

यह सुन कर वीरा के मन में कई सवाल उठ रहे थे लेकिन उस ने कुछ पूछना उचित नहीं सम?ा. उसे अच्छा लगा कि ऊर्जा ने उसे इस लायक तो सम?ा और अपनी स्थिति बता दी.

‘‘तुम्हें आराम करना चाहिए. तनाव बच्चे के लिए अच्छा नहीं होता.’’

‘‘इसी वजह से घर आई हूं.’’

‘‘मैं तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगी ऊर्जा. तुम्हें पता भी नहीं लगेगा यह समय कब बीत गया.’’

ऊर्जा को यह सुन कर तसल्ली हुई कि उस के यहां आने से वीरा को कोई परेशानी नहीं है. थोड़ा साहस कर वह बोली, ‘‘मैं ने अभी तक शादी नहीं की है.’’

यह सुन कर वीरा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. ओजस ने उसे बता दिया था कि ऊर्जा किसी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती है. वह सम?ा गई यह बच्चा उसी का होगा. वह बोली, ‘‘कोई बात नहीं है. जब मरजी हो तब शादी कर लेना. अभी अपना ध्यान सेहत पर दो. अब पहले वाले जमाने नहीं रह गए पहले शादी फिर बच्चा.’’

‘‘जानती हूं तभी इतना बड़ा फैसला ले सकी वरना…’’ कहतेकहते वह रुक गई.

वीरा ने उसे कुरेद कर कुछ नहीं पूछा. इतना वह सम?ा गई कि अपने मन की बात वह धीरेधीरे उसे बता देगी. उसे बस ऊर्जा का विश्वास जीतना था. वीरा के बरताव ने ऊर्जा का दिल काफी हद तक जीत लिया था और उस ने थोड़ाथोड़ा कर सारी बात उसे बता दी.

‘‘तुझे नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए थी.’’

‘‘मैं अभी छुट्टी पर हूं.’’

‘‘परिस्थितियों से भाग कर समस्या का समाधान नहीं निकलता ऊर्जा. 10 तरह की नकारात्मक बातें मन में आती हैं.’’

‘‘आप जानती हैं मैं ने कभी किसी के जज्बातों की परवाह नहीं की न ही मेरा रिश्तों

में कोई विश्वास रहा. मैं इतना ही सम?ा पाई हूं अपने  शरीर के किसी हिस्से को बारबार काट

कर फेंकना कहां की बुद्धिमानी है? विचारों की स्वतंत्रता और स्वच्छंदता तभी तक सुकून देती है जब तक वह दिल पर असर न डाले. एक ही घटना के बारबार होने से मुझे सोचने पर मजबूर होना पड़ा है. मैं अब यह काम नहीं करना चाहती.’’

‘‘तुम ने जो सोचा वह अपने हिसाब से बिलकुल ठीक है. इस समय ऐसी बातें सोचने से तुम्हारी सेहत पर बुरा असर पड़ेगा. तुम खुश रहो मैं इतना ही चाहती हूं,’’ वीरा ने उसे सांत्वना दी तो ऊर्जा को अच्छा लगा.

जब वह छोटी थी तब भी वीरा ने उस के पास आने की बहुत कोशिश की लेकिन उस ने उस की भावनाओं को कभी कोई महत्त्व नहीं दिया था. पापा के साथ किसी और औरत को देखने की वह कल्पना भी नहीं करना चाहती थी. वीरा को देख कर उसे बड़ा अटपटा लगता था. वह पापा की पत्नी जरूर थी लेकिन उस की मम्मी नहीं. उस ने अपने व्यवहार से कभी उसे मम्मी बनने का मौका ही नहीं दिया.

पापा के चले जाने के बाद ऊर्जा पहली बार वीरा के इतने नजदीक आई थी. उसे लगा वह एक भली औरत है. उसी की भूल थी जो वह उसे गलत सम?ाती रही. ऊर्जा के फैसले के खिलाफ उस ने एक शब्द भी नहीं कहा और उस की हर बात को जायज ठहराते हुए ऐसी हालत में उस का साथ दे रही थी.

घर पर ऊर्जा को पापा की बहुत याद आ रही थी. वह एक अच्छे इंसान थे. अपना अकेलापन दूर करने के लिए वीरा को उन्होंने अपना जीवनसाथी बनाया था. इस में कोई बुराई भी नहीं थी. वे चाहते तो किसी से भी अपनी शारीरिक जरूरत पूरी कर सकते थे. उन के मन में स्त्री

के लिए सम्मान था इसीलिए उन्होंने अपनी सहकर्मी वीरा को घर की इज्जत बना कर उसे अपनाया था. दोनों खुश थे. ऊर्जा को ही यह सब पसंद नहीं था और यहीं से उस के विचारों में बगावत शुरू हो गई. तब उसे लग रहा था शायद पापा को दुखी करने के लिए उस ने यह कदम उठाया था.

ऊर्जा बड़ी देर से पापा की तसवीर देख रही थी. वीरा उसे सम?ाते हुए बोली, ‘‘बीती बातें याद करने से कोई फायदा नहीं. आने वाले भविष्य की ओर देखो ऊर्जा. जो बीत गया उसे लौटाया नहीं जा सकता. ओजस तुम्हें बहुत याद करते थे. वे हर समय तुम्हारी चिंता करते थे और तुम्हें अपने पास रखना चाहते थे.’’

उस के पास कहने के लिए कुछ बचा भी नहीं था. वीरा उसे हर समय चिंता में डूबे देखती. एक दिन उस ने साहस कर के पूछ लिया, ‘‘तुम अपने इस फैसले से खुश तो हो ऊर्जा? अभी भी समय है तुम इस बारे में एक बार फिर सोच सकती हो.’’

‘‘मैं ने बहुत सोचसमझ कर ही यह फैसला लिया है. मैं सिंगल मदर बनूंगी और बच्चे को पालपोस कर बड़ा करूंगी.’’

‘‘तुम्हारे विचार बहुत अच्छे हैं लेकिन कभी उस बच्चे की नजरिए से भी सोचना जिस के मन में दुनिया देखने के बाद कई प्रश्न खड़े होंगे,’’ वीरा बोली.

उस की बात सुन कर ऊर्जा चौंक गई. उस ने अभी इस दृष्टिकोण से कुछ सोचा ही नहीं था. वीरा ने यह कह कर उसे ?ाक?ार दिया.

ऊर्जा सोचने लगी अपनी मम्मी के चले जाने के बाद वह पापा के साथ वीरा को देख तक न सकी थी. कितना बुरा लगता था पापा के साथ उन्हें हंसतेबोलते देख कर. भविष्य में अगर कभी उस ने शादी करने का फैसला लिया तो क्या आने वाला मेहमान उस के नए जीवनसाथी को स्वीकार कर पाएगा. यह यक्ष प्रश्न उस के सामने खड़ा था जिसे चाह कर भी अपने दिमाग से निकाल नहीं पा रही थी.

3 महीने पूरे होने में अभी 1 हफ्ता बाकी था और वह अपनेआप से लड़ रही थी कि अपने या बच्चे में से किस के दृष्टिकोण से जिंदगी को देखे.

ऊर्जा के इस तरह घर से चले जाने पर जय को घर में खालीपन लगने लगा था. वह मानसिक रूप से पहले से ही तैयार था कि एक न एक दिन ऊर्जा उसे छोड़ कर चली जाएगी. वह अपनेआप को ऊर्जा के बगैर रहने के लिए तैयार करने लगा. जीवन का जो सुख उसे चाहिए था वह उस ने ऊर्जा के साथ भरपूर भोगा था. वह किसी नए रिश्ते में बंध कर अपनी आजादी खत्म नहीं करना चाहता था. उस ने 1-2 बार ऊर्जा से बात करने की कोशिश की लेकिन उस ने उस का नंबर ब्लौक कर दिया था .वह स्क्रीन पर भी उस के संपर्क में नहीं आना चाहती थी.

3 साल में क्या कुछ नहीं किया था उसने जय के लिए. उस की हर इच्छा का मान किया लेकिन उस ने उसे एक मशीन समझ लिया था जिस में आधुनिकता और खुलेपन के नाम पर भावनाएं नहीं रह गई थीं. यह चौथी बार था जब जय उसे अबौर्शन कराने के लिए कह रहा था. ऐसी परिस्थिति आने पर हर बार वह उसे दोषी करार कर देता और खुद जिम्मेदारी लेने से बच जाता.

कुछ हफ्तों बाद जय को उस की कमी खलने लगी.

वह कई मामलों में जिद्दी थी लेकिन उस की हर इच्छा का बहुत खयाल रखती थी. वह अब उस के बारे में सोचने पर मजबूर हो गया था. उसे घर के हर हिस्से में ऊर्जा की उपस्थिति महसूस होती. उसे लगने लगा कि ऊर्जा ही नहीं वह भी दिल की गहराइयों से उसे चाहने लगा.

यह बात उस का दिमाग उस वक्त स्वीकार नहीं कर सका था. आंखों के आगे से भौतिकवाद और आधुनिकता का परदा हटते ही जय को बहुत कुछ दिखाई देने लगा. वह उस से मिलने के लिए बेचैन था.

एक दिन वह हिम्मत कर ऊर्जा से मिलने उस के घर आ गया. उस समय ऊर्जा डाक्टर के पास अपनी दुविधा ले कर गई हुई थी. अचानक जय को घर पर देख कर वीरा चौंक गई. ऊर्जा ने उसे काफी कुछ उस के बारे में बता दिया था.

‘‘ऊर्जा कहां है आंटी? मैं उस से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘वह घर पर नहीं है कुछ देर बाद आ जाएगी,’’ सही बात छिपा कर वीरा बोली.

‘‘मैं ने ऊर्जा को बहुत हर्ट किया है. उसी की माफी मांगने आया हूं.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो? आजकल के नौजवान इसी तरह के रिश्तों को तवज्जो दे रहे

हैं. इस में माफी जैसे शब्दों की कोई जगह नहीं होती.’’

‘‘मानता हूं हम ने नए रिश्ते की शुरुआत अपनी शारीरिक जरूरत को पूरा करने के लिए

की थी. ऊर्जा कब मु?ा से प्यार करने लगी कह नहीं सकता. वह अब इस जरूरत को एक पवित्र रिश्ते का नाम देना चाहती थी. मैं ही इस के लिए तैयार नहीं था.

‘‘मेरा मन इसे स्वीकार नहीं कर रहा था. रिश्ते में हम बड़ी उम्र में भी बंध सकते हैं. अगर हमें जवानी अपनी शर्तों पर खुशीखुशी

जीने के लिए मिलती है तो हम बेकार के पचड़े

में क्यों पड़े? यही सोच कर मैं ने उस की बात नहीं मानी.’’

‘‘नए जमाने की हवा ही कुछ ऐसी है. उस में जज्बातों के लिए जगह ही नहीं रही. तुम दोनों  अपनीअपनी जगह सही हो. जिसे जो ठीक लगे वही करो. इस में बड़ों की रजामंदी कोई माने नहीं रखती,’’ वीरा बोली.

तभी ऊर्जा घर लौट आई. जय को ड्राइंगरूम में देख कर उस से कुछ पूछते नहीं बना.

‘‘कैसी हो ऊर्जा?’’

‘‘अच्छीभली हूं. तुम कैसे हो जय?’’

‘‘तुम्हारे बिना कैसा हो सकता हूं?’’ जय बोला तो ऊर्जा चौंक गई. वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि शरीर के स्तर पर जीने वाला इंसान कभी दिल की बात भी सुन सकता है.

‘‘मैं ने तुम से कई बार बात करने की कोशिश की. तुम ने मुझे मोबाइल के साथसाथ अपनी जिंदगी से भी डिलीट कर दिया.’’

‘‘जब तुम्हें मेरी जरूरत ही नहीं रही तो फोन पर नंबर रख कर क्या करती. तुम्हारे लिए मैं एक औरत होने के अलावा और कोई माने नहीं रखती जो तुम्हारी शारीरिक जरूरत पूरी कर सके.’’

‘‘ऐसा कह कर मुझे शर्मिंदा मत करो.

मुझे अपनी गलती का एहसास है. जानता हूं हमारे रिश्ते की शुरुआत चाहे जैसे भी हुई लेकिन अब हम एकदूसरे को प्यार करते हैं और एकदूसरे के बगैर नहीं रह सकते,’’ जय बोला तो ऊर्जा की आंखों की कोरों पर आंसू की 2 बूंदें आ कर टिक गईं.

जय ने बड़ी सावधानी से अपनी उंगलियों की पोरों से उन्हें पोंछ कर उसे अपने आलिंगन में ले लिया. ऊर्जा ने भी उस का विरोध नहीं किया. उन्हें बातें करते देख वीरा रसोई में आ गई थी. आवाज की तीव्रता धीरेधीरे कम हो कर मौन में बदल गई थी. वह समझ गई दोनों के बीच समझौता हो गया है. वे बड़ी देर तक एकदूसरे के आगोश में खोए रहे. दिल की बात आंखों से बहते आंसू बयां कर रहे थे.

तभी वीरा के आने की आहट पा कर वे दोनों एकदूसरे से अलग हो गए.

जय बोला, ‘‘आंटी मैं ऊर्जा से शादी करना चाहता हूं. आप को कोई आपत्ति तो नहीं है?’’

‘‘यह कह कर तुम ने मु?ो जो खुशी दी है उसे मैं बयां नहीं कर सकती लेकिन इस के लिए तुम्हें ऊर्जा से अनुमति लेनी होगी.’’

‘‘ऊर्जा तुम मुझ से शादी के लिए तैयार हो?’’ घुटने के बल जमीन पर बैठ कर जय उसे प्रपोज करते हुए बोला.

उस ने सिर झुका कर अपनी सहमति दे दी.

‘‘मैं आज ही कोर्ट में शादी के लिए ऐप्लिकेशन दे दूंगा. तुम मेरे साथ चलने की तैयारी करो ऊर्जा.’’

ऊर्जा ने यह सुन कर वीरा की ओर देखा.

‘‘अब तो दुलहन की विदाई शादी के बाद ही होगी जय. तब तक तुम्हें इंतजार करना होगा.’’

यह सुन कर ऊर्जा के चेहरे पर मुसकान खिल गई और गाल शर्म से लाल हो गए.

खुशी के इस मौके पर आज पहली बार ऊर्जा अपनत्व से भर कर वीरा के गले लग गई. यह देख कर उस की आंखें भर आईं. वीरा को इतने वर्षों बाद आज बेटी के साथ दामाद भी मिल गया था.

चिराग : स्वप्निल के संदेश का क्या था राज?

लेखक-  डा. अखिलेश पालरिया

पोती ने दादी के लिए खाने की थाली लगाई तो दादी रोटी का एक टुकड़ा निकाल कर बोलीं, ‘‘पहले खाने के साथ ही गौरैया भी फुदक कर पास आ जाती थी और मेरे पास ही खापी कर उड़ जाती थी जैसे मेरा और उस का कोई पुराना नाता रहा हो.’’

पोती शालिनी ने पूछा, ‘‘दादी, आज अचानक आप को गौरैया कैसे याद आ गई?’’

‘‘अरी, आज सुबह ही तो मैं ने एक गौरैया को छत की मुंडेर पर फुदकते देखा था तो मैं तुरंत स्टोर से एक कटोरी बाजरे की ले आई लेकिन वह तो न जाने कहां उड़ गई.’’

‘‘दादी, अब तो गौरैया कम ही दिखाई देती है.’’

‘‘हां, रूठ गई है वह हम मनुष्यों से… अब वह हमें अपना नहीं मानती क्योंकि हम ने उसे अपने यहां शरण देना जो बंद कर दिया है. सारे मकान पैक कर दिए हैं न. शायद लुप्त होने की कगार पर हैं हमारी ये घरेलू चिडि़यां.’’

‘‘दादी, मु?ो ही अपनी गौरैया मान लो न.’’

दादी खिलखिलाईं फिर बोलीं, ‘‘हां, है तो तू मेरी गौरैया.’’

रागिनी भीतर रसोई में दादीपोती की बातें सुन रही थी. प्लेट में गरम फुलका ला कर सासूजी की थाली में परोसा फिर बड़े क्षोभ के साथ कहा, ‘‘मां, गौरैया तो बीती बातें हो गई, आजकल तो परिवार वाले भी टांग खिंचाई में लगे रहते हैं.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रही है बहू?’’

‘‘आज स्वप्निल जूते पहनते हुए शिकायती लहजे में कह रहा था कि मम्मी, मैं ने पारिवारिक वाट्सऐप गु्रप- ‘अपने लोग’ में अपने दोहरे शतक की जानकारी शेयर की तो कोई कुछ न बोला सिवा सुजाता मौसी के.’’

‘‘हां मम्मी,’’ शालिनी तपाक से बोली, ‘‘स्वप्निल का मजाक उड़ाने वालों को अब सांप सूंघ गया है. कोई प्रतिक्रिया तक नहीं देते मानो कुछ हुआ ही न हो.’’

‘‘वे भी तो सब अपने ही हैं बहू.’’

‘‘एक सुजाता ही है जो खुश हो कर हर बार बधाई व शुभकामनाएं देती है.’’

रागिनी के कथन पर दादी ने पूछा, ‘‘कौन सुजाता?’’

रागिनी ने कहा, ‘‘आप भूल गई मां, सुजाता को? मेरी छोटी बहन, जो सूरत में रहती है.’’

‘‘अरे हां, याद आया. बहुत अच्छी है वह. मैं तो नाम भूल जाती हूं बहू आजकल.’’

रागिनी कहती रही, ‘‘एक वह दौर था जब क्रिकेट का जनूनी स्वप्निल 10वीं में फेल हो गया था तो सब रिश्तेदार व्यंग्य करते कि देखो हमारे खानदान का चिराग, जिस ने हम सब का नाम रोशन कर दिया है. जहां परिवार के लोग इंजीनियर, डाक्टर, आईएएस बन गए हैं, वहीं एक यह स्वप्निल है जो 10वीं में ही लुढ़क गया. वह तो इस के पापा, दादी और मैं ने इस को संभाला नहीं तो यह आत्महत्या कर चुका होता,’’ स्वप्निल की बड़ी बहन शालिनी ने जोड़ा, ‘‘मेरी सुजाता मौसी ने तो ग्रुप में स्वप्निल का बचाव करते हुए कहा था कि देखना, एक दिन वह क्रिकेट का स्टार खिलाड़ी बन कर सब को पीछे छोड़ देगा और परिवार का चिराग बनेगा. मौसी की इस बात पर 1-2 ने तालियां बजाईं तो बाकी ने मजाक उड़ाया.’’

‘‘मां, ऐसे होते हैं परिवार वाले जो कुछ अच्छा करने पर आंखें मूंद लेते हैं और अच्छा न करने पर उंगलियां उठाने से भी बाज नहीं आते. अरे, तुम्हें किसी का टेलैंट नजर क्यों नहीं आता जो अपने भीतर की नकारात्मकता को दफन करना तो दूर, उसे दूसरों पर थोपते रहने का कोई अवसर नहीं गंवाते,’’ रागिनी के मन की भड़ास आज रहरह कर स्वर में घुलती जा रही थी.

‘‘बहू, स्वप्निल जैसे जनूनी विरले ही मिलते हैं जो काम को पूजा समझ कर किसी दिन अजूबा कर देते हैं. और रही बात परिवार वालों की तो वे सब एक दिन अपने कृत्य पर शर्मिंदा हो कर उस के गुणगान गाएंगे.’’

इधर इस लंबेचौड़े परिवार में एक हादसा हो गया. आईआईटी कोचिंग सैंटर कोटा में पढ़ने वाले बच्चे सुयोग्य ने चौथी मंजिल से कूद कर अपनी जान दे दी क्योंकि वह बहुत दबाव में था और मांबाप की इच्छानुसार वहां पढ़ने में अपना मन नहीं लगा पाया. वह आर्टिस्ट बनना चाहता था और घर वाले उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे.

परिवार में कुहराम मच गया था और मांबाप ने अपने इकलौते भावुक बेटे को खो दिया था जो नाम से तो सुयोग्य था ही, सद्गुणों में भी सब पर भारी पड़ता था.

मांबाप का रोरो कर बुरा हाल था पर अब पछताए होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत.

सुयोग्य के मम्मीपापा अब उस पल को कोस रहे थे जब वे उसे कोटा में कोचिंग के लिए जबरन भेजने पर आमादा थे. उस का कमरा जिस में एक से बढ़ कर एक सुंदर पेंटिंग्स थीं, जिन में से एक को तो राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था और स्कूल वाले भी उस की इस प्रतिभा के कायल थे. अब उन के पास हाथ मलने के अतिरिक्त कुछ न बचा था.

स्वप्निल दादी के पास आ कर बोला, ‘‘दादी, मैं तो शुरू से ही सुयोग्य के साथ था लेकिन इतने सुशिक्षित लोगों के बीच मेरी कौन सुनता? सुयोग्य ने कई बार पारिवारिक वाट्सऐप समूह- ‘अपने लोग’ में अपनी पेंटिंग्स पोस्ट की थीं लेकिन उस के कद्रदान वहां कौन थे उलटे मेरे द्वारा सुयोग्य की प्रशंसा पर वे मुझ पर ही हंसे थे.’’

दादी ने स्वप्निल का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मेरे बच्चे, कभी भी लोगों के व्यवहार व असफलता से घबराना नहीं, मैं और तुम्हारे मम्मीपापा तुम्हारी प्रगति की राह में तुम्हारे साथ खड़े हैं.’’

‘‘जानता हूं दादी लेकिन सुयोग्य को यह सपोर्ट नहीं थी’’

सुयोग्य चला गया और पीछे छोड़ गया अपने मम्मीपापा की अधूरी महत्त्वाकांक्षाएं जो अब पूर्ण न हो सकती थीं. वह उस टीस को भी छोड़ गया था जिस की पीड़ा उन्हें आजीवन ही भुगतनी थी, मरते दम तक.

इस बीच 1 साल पूरा होने को आया. स्वप्निल रणजी फर्स्ट क्लास मैचेज में शतक और दोहरे शतकों की बदौलत संपूर्ण वर्ष अपनी धाक जमाता रहा इसीलिए उसे आईपीएल मैचों के इस सीजन के लिए 5 करोड़ में खरीद लिया गया. इन मैचों में भी उस की उच्च स्तरीय तकनीक व मारक क्षमता के कारण सारे धुरंधर गेंदबाज भी बौने साबित हुए. अब वह क्रिकेट का तेजी से उभरता हुआ सितारा बन गया था.

स्वप्निल को अपने शानदार रिकौर्ड के कारण वर्ल्ड कप में भारतीय टीम में बतौर ओपनर शामिल कर लिया गया. यह उस के लिए सर्वाधिक खुशी के पल थे.

वर्ल्ड कप के प्रथम अंतर्राष्ट्रीय मैच में जो चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के विरुद्ध था. स्वप्निल पर सब की आंखें गड़ी हुई थीं. एक टीवी ऐंकर ने साक्षात्कार में उस से पूछा भी, ‘‘विश्व कप का पहला मैच और वह भी पाक के विरुद्ध… क्या नर्वस हैं आप?’’

स्वप्निल ने हंस कर उत्तर दिया, ‘‘क्या आप को मेरे चेहरे से ऐसा लगता है? मैं खेलने और गेंदबाजों के छक्के छुड़ाने को बेताब हूं.’’

जब भारत ने बल्लेबाजी शुरू की तो पहले ही ओवर में विकेट गिर गया था लेकिन स्वप्निल फिर भी दूसरे छोर पर निर्भीक खड़ा था. भारतीय फैंस जरूर नर्वस हो गए थे लेकिन उन की निराशा को शीघ्र ही स्वप्निल ने अपने चौकोंछक्कों से दूर कर दिया. यद्यपि विकेट भी निरंतर गिर रहे थे लेकिन स्वप्निल का बल्ला रनों की बारिश करता रहा.

हजारों की संख्या में प्रत्यक्ष मैच देख रहे दर्शकों के बीच आगे की लाइन में स्वप्निल की सुजाता मौसी भी बैठी थीं साथ में करोड़ों प्रशंसक अपने घरों में स्वप्निल की बल्लेबाजी का आनंद लेते हुए ?ाम रहे थे.

विजयश्री जब सामने खड़ी थी तो इस बार तो स्वप्निल ने छक्का अपनी मौसी की ओर ही उछाल दिया और यह एक तरह से उन के प्रति कृतज्ञता थी. इस खूबसूरत शौट के साथ ही भारत जीत गया.

चारों ओर विजय का उत्सव आरंभ हो गया. पैवेलियन की ओर लौटते हुए स्वप्निल का सभी खड़े हो कर अभिनंदन कर रहे थे और हाथों में उन के लहराता हुआ तिरंगा था. मौसी भी खड़े हो कर तालियां बजा रही थीं.

स्वप्निल अपनी मौसी की ओर बढ़ा. उन के पैर छुए तो उन्होंने उसे गले लगा लिया. मौसीभानजे के बीच कुछ पल खुशियों की फुल?ाडि़यां छूटती रहीं जो टीवी पर सीधे प्रसारित हो रही थीं.

अंतत: स्वप्निल ड्रैसिंगरूम में लौट आया. सोने से पहले स्वप्निल ने अपने लगभग 100 व्यक्तियों के पारिवारिक वाट्सऐप समूह- ‘अपने लोग’ पर एक नजर डाली जहां आज बधाइयों की होड़ मची थी. उस से रहा नहीं गया. अत: उस ने लिखा-

‘‘आज भाई सुयोग्य की पहली पुण्यतिथि है. मेरा आज का अंतर्राष्ट्रीस एकदिवसीय शतक जो मेरा डेब्यू मैच भी था, दिवंगत सुयोग्य को समर्पित करता हूं.

‘‘हां, वह एक शानदार आर्टिस्ट बनना चाहता था. उस में एक बेहतरीन आर्टिस्ट बनने की सब से बड़ी योग्यता थी, उस का जनून. बिना जनून के आदमी कुछ हासिल नहीं कर सकता.

‘‘मेरे अंदर पढ़ने की योग्यता न थी क्योंकि मेरा फोकस केवल और केवल क्रिकेट पर था. पापा ने मु?ा 3 साल के बच्चे को जब बर्थडे की खिलौनों की दुकान में कोई गिफ्ट चुनने के लिए कहा था तो मैं ने न जाने क्यों क्रिकेट का बल्ला और टेनिस की बौल को चुना. लेकिन बाद में यह मेरे हाथ से कभी छूट ही नहीं पाया और मैं सब कुछ छोड़ कर क्रिकेट का फैन बन गया. थोड़ा सा बड़ा होने पर आश्चर्यजनक रूप से टीवी पर क्रिकेट मैचेज को ध्यान से देखता और जब खुद बड़े शौट मारने लगा तो मेरे साथी खिलाड़ी दांतों तले अंगुली दबाने लगते. तब मु?ो इस खेल में पसीना बहाने में भी मजा आने लगा.

‘‘अधिकतर मांबाप अपने बच्चों को बहुत बड़ा लक्ष्य नहीं देते और उन्हें डाक्टर, विशेषज्ञ चिकित्सक, इंजीनियर, सीए, प्रोफैसर या अधिक से अधिक आईएएस बनाना चाहते हैं लेकिन मेरे पापा ने मेरी क्रिकेट के प्रति दीवानगी की हदें पार करते देख मु?ो अच्छा क्रिकेटर बनने की सारी सुविधाएं व प्रशिक्षण दिलाया हालांकि मैं 10वीं की परीक्षा में भी पास न हो सका जबकि मेरे सभी रिश्तेदारों की संतानें अपनी पढ़ाई में धाक जमाती रहीं.

‘‘मैं हंसी का पात्र भी खूब बना किंतु मैं ने हिम्मत नहीं हारी. मेरा लक्ष्य असाधारण व कठिन था अत: लोगों की कल्पना से परे था.

‘‘आज सोचता हूं कि मु?ो भारत की ओर से खेलने का अवसर मिला तो इस के पीछे मेरा जनून और पापा का समर्थन था.

‘‘मेरे परिवार में कोई डी.एम. कार्डियोलौजिस्ट था तो कोई इंजीनियर, कोई सीए तो कोई प्रोफैसर था या फिर आईएएस, ऐसे में एक 10वीं कक्षा में फेल हुए बालक पर हंसेंगे नहीं तो क्या गर्व करेंगे?

‘‘वे अपनी जगह सही थे लेकिन मेरी नजर में डाक्टर, इंजीनियर, प्रोफैसर और आईएएस कोई बड़े लक्ष्य नहीं थे क्योंकि मैं और भी बड़ा लक्ष्य अर्जित करना चाहता था और धीरेधीरे अपने लक्ष्य की ओर कड़ी मेहनत और धैर्य के साथ आगे बढ़ रहा था. मेरा और मेरे अपनों के पास चुप रहने के अलावा कोई चारा नहीं था.

‘‘यद्यपि कोई भी क्षेत्र हो, उस में वांछित सफलता के लिए जनून होना चाहिए किंतु मेरे अंदर क्रिकेट के लिए 100त्न जुनून था और शेष के लिए शून्य.

‘‘वैसे तो कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. जिस को करने में मन को सुकून मिले और वह पूरी शिद्दत से किया जाए तो बड़ा बन जाता है. हर काम को मन के संतोष की दृष्टि से देखा जाए तो जीवन को अच्छे से जीने की गारंटी मिल जाती है.

‘‘मैं मानता हूं कि बड़ा नाम कमाने के लिए पैसा नहीं, सम्मान ही बड़ा होता है. आज करोड़ों लोगों ने मु?ो खेलते हुए देखा लेकिन जब मैं ने अपने देश के लिए मुश्किल परिस्थितियों में शतक लगा कर हार को जीत में बदल दिया तो देश का सम्मान सब से बड़ा और पैसा गौण हो गया.

‘‘कुछ कामों में पैसा नहीं होता लेकिन नाम बड़ा माना जाता है जैसे लता मंगेशकर को देश का सर्वोच्च पुरस्कार- भारत रत्न मिला तो वहां पैसा नहीं, केवल सम्मान ही था. क्या प्रेमचंद और शैक्सपीयर के नाम छोटे हैं? हां, उन के पास मरते दम तक पैसा नहीं था पर नाम आसमान को छू गया. यही सच्ची दौलत होती है. क्या पैसा होने पर भी हम साथ ले जा सकते हैं?

‘‘मुझ से दूर निवास करने वाली सुजाता मौसी के प्रोत्साहन ने मुझे कभी टूटने नहीं दिया और आज के मैच में दर्शकदीर्घा में उन्हें देख कर मेरा हौसला आकाश जितना बड़ा हो गया. घर आ कर जब मैं ने उन के साथ के टीवी रिप्ले नैशनल न्यूज पर देखे तो ये मेरे लिए अमूल्य क्षण थे.

‘‘मेरा कजिन ब्रदर आर्टिस्ट बनना चाहता था जिस के लिए मैं उस की पेंटिंग्स व जनून देख चुका था और मैं सचमुच अचंभित होता था. लेकिन उस की इच्छा के विरुद्ध उसे आईआईटी कोचिंग सैंटर में भेज दिया गया तो निराश हो कर उसे आत्महत्या करनी पड़ी. यह हम सब के लिए बहुत दुखद घटना थी. मु?ो पक्का विश्वास है कि वह जिंदा रहता तो बहुत ऊंचाइयां छू कर दिखाता.

‘‘हवा के विपरीत दिशा में तो पतंग भी नहीं उड़ती फिर कोई मन के विरुद्ध कैरियर जैसा बड़ा काम कैसे करेगा? क्या इच्छाओं के विरुद्ध डाक्टर, इंजीनियर, आईएएस बनाना ही सबकुछ है? सच कहूं तो इन का फलक तो सीमित ही होता है. यह बन कर भी अधिक ऊंचा नहीं उड़ा जा सकता. बड़े सपनों के लिए साहित्य, अभिनय, खेल, राजनीति, गीतसंगीत जैसे क्षेत्र चुनने पड़ते हैं और ऊंची उड़ान भरनी पड़ती है. अत: असंभव से दिखने वाले लक्ष्य की शुरुआत में अपने निकट परिचितों, संबंधियों द्वारा हंसी उड़ती है, उस की टांग खींच कर उसे आगे बढ़ने से जबरन रोका जाता है या तो जगहंसाई के बाद भी वह बुलंदियों पर पहुंच जाता है या फिर हिम्मत हार जाता है. विस्तृत फलक वाली कठिन उपलब्धियों के साथ ही देशविदेश में नाम कमाया जा सकता है. यद्यपि बड़ा बनने के लिए अंगारों पर चलना और दीपक की तरह जलना पड़ता है.

‘‘आज हम एक दीपक अपने होनहार सुयोग्य की स्मृति में भी जलाएं. भाई सुयोग्य, तुम अपने घर के चिराग थे. तुम ने नादानी की जो चले गए. क्या तुम नहीं जानते थे कि कोई भी मांबाप अपने बेटे को खोना नहीं चाहते, किसी भी परिस्थिति में नहीं. मरना किसी के लिए जरूरी नहीं होता, हरगिज नहीं. हर समस्या का कोई समाधान अवश्य होता है लेकिन मरना किसी समस्या का समाधान नहीं होता. तुम नहीं जानते, किसी भी मांबाप को यह बात सहन नहीं होती कि उस की संतान उन से पहले चली जाए.

‘‘तुम्हें वापस इस दुनिया में आना पड़ेगा दोस्त, एक आर्टिस्ट बनने के लिए, अपना रूप बदल कर ही सही. तो आओगे न तुम?

-स्वप्निल.’’

स्वप्निल के इस संदेश को पहली बार आज समूह में सब ने खूब सराहा. बाद में इसे किसी ने वायरल कर दिया तो यह देश के सभी समाचारपत्रों के मुखपृष्ठ पर छपा.

वास्तव में यह संदेश उन सब के लिए था जो बड़े लक्ष्य अर्जित करना चाहते थे और उन के लिए भी जो उन के मार्ग में रोड़ा अटका सकते थे.

पट्टेदार ननुआ : पटवारी ने कैसे बदल दी ननुआ और रनिया की जिंदगी

लेखक- डा. प्रमोद कुमार अग्रवाल

ननुआ और रनिया रामपुरा गांव में भीख मांग कर जिंदगी गुजारते थे. उन की दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त भी नहीं हो पाता था. ननुआ के पास हरिजन बस्ती में एक मड़ैया थी. मड़ैया एक कमरे की थी. उस में ही खाना पकाना और उस में ही सोना.

मड़ैया से लगे बरामदे में पत्तों और टहनियों का एक छप्पर था, जिस में वे उठनाबैठना करते थे. तरक्की ने ननुआ की मड़ैया तक पैर नहीं पसारे थे, पर पास में सरकारी नल से रनिया को पानी भरने की सहूलियत हो गई थी. गांव के कुएं, बावली या तो सूख चुके थे या उन में कूड़ाकचरा जमा हो गया था.

एक समय ननुआ के पिता के पास 2 बीघे का खेत हुआ करता था, पर उस के पिता ने उसे बेच कर ननुआ की जान बचाई थी. तब ननुआ को एक अजीबोगरीब बीमारी ने ऐसा जकड़ा था कि जिला, शहर में निजी अस्पतालों व डाक्टरों ने मिल कर उस के पिता को दिवालिया कर दिया था, पर मरते समय ननुआ के पिता खुश थे कि वे इस दुनिया में अपने वंश का नाम रखने के लिए ननुआ को छोड़ रहे थे, चाहे उसे भिखारी ही बना कर.

ननुआ की पत्नी रनिया उस पर लट्टू रहती थी. वह कहती थी कि ननुआ ने उसे क्याकुछ नहीं दिया? जवानी का मजा, औलाद का सुख और हर समय साथ रहना. जैसेतैसे कलुआ तो पल ही रहा है.

गांव में भीख मांगने का पेशा पूरी तरह भिखारी जैसा नहीं होता है, क्योंकि न तो गांव में अनेक भीख मांगने वाले होते हैं और न ही बहुत लोग भीख देने वाले. गांव में भीख में जो मिलता है, उस से पेटपूजा हो जाती है, यानी  गेहूं, चावल, आटा और खेत से ताजी सब्जियां. कभीकभी बासी खाना भी मिल जाता है.

त्योहारों पर तो मांगने वालों की चांदी हो जाती है, क्योंकि दान देने वाले उन्हें खुद ढूंढ़ने जाते हैं. गांव का भिखारी महीने में कम से कम 10 से 12 दिन तक दूसरों के खेतखलिहानों में काम करता है. गांव के जमींदार की बेगारी भी. कुछ भी नहीं मिला, तो वह पशुओं को चराने के लिए ले जाता है, जबकि उस की बीवी बड़े लोगों के घरों में चौकाबरतन, पशुघर की सफाई या अन्न भंडार की साफसफाई का काम करती है. आजकल घरों के सामने बहती नालियों की सफाई का काम भी कभीकभी मिल जाता है. ननुआ व रनिया का शरीर सुडौल था. उन्हें काम से फुरसत कहां? दिनभर या तो भीख मांगना या काम की तलाश में निकल जाना.

गांव में सभी लोग उन दोनों के साथ अच्छे बरताव के चलते उन से हमदर्दी रखते थे. सब कहते, ‘काश, ननुआ को अपना बेचा हुआ 2 बीघे का खेत वापस मिल जाए, तो उसे भीख मांगने का घटिया काम न करना पड़े.’

गांव में एक चतुर सेठ था, जो गांव वालों को उचित सलाह दे कर उन की समस्या का समाधान करता था. वह गांव वालों के बारबार कहने पर ननुआ की समस्या का समाधान करने की उधेड़बुन में लग गया.

इस बीच रामपुरा आते समय पटवारी मोटरसाइकिल समेत गड्ढे में गिर गया. उसे गंभीर हालत में जिला अस्पताल ले जाया गया. वहां से उसे तुरंत प्रदेश की राजधानी के सब से बड़े सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया. पटवारी की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई थी और डाक्टरों ने उसे 6 महीने तक बिस्तर पर आराम करने की सलाह दी थी. पटवारी की पत्नी मास्टरनी थी और घर में और कोई नहीं था.

पटवारी की पत्नी के पास घर के काम निबटाने का समय नहीं था और न ही उसे घर के काम में दिलचस्पी थी. फिर क्या था. सेठ को हल मिल गया. उस की सलाह पर गांव की ओर से रनिया को पटवारी के यहां बेगारी के लिए भेज दिया गया. वह चोरीछिपे ननुआ को भी पटवारी के घर से बचाखुचा खाना देती रही. अब तो दोनों के मजे हो रहे थे.

पटवारी रनिया की सेवा से बहुत खुश हुआ. उस ने एक दिन ननुआ को बुला कर पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी औरत की सेवा से खुश हूं. मैं नहीं जानता था कि घर का काम इतनी अच्छी तरह से हो सकता है. मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहता हूं. कहो, मैं तुम्हारे लिए क्या करूं?’’

सेठ के सिखाए ननुआ ने जवाब दिया, ‘‘साहब, हम तो भटकभटक कर अपना पेट पालते हैं. आप के यहां आने पर रनिया कम से कम छत के नीचे तो काम कर रही है, वरना हम तो आसमान तले रहते हैं. हम इसी बात से खुश हैं कि आप के यहां रनिया को काम करने का मौका मिला.’’

‘‘फिर भी तुम कुछ तो मांगो?’’

‘‘साहब, आप तो जानते ही हैं कि गांव के लोगों को अपनी जमीन सब से ज्यादा प्यारी होती है. पहले मेरे पिता के पास 2 बीघा जमीन थी, जो मेरी बीमारी में चली गई. अगर मुझे 2 बीघा जमीन मिल जाए, तो मैं आप का जिंदगीभर एहसान नहीं भूलूंगा.’’

‘‘तुम्हें तुम्हारी जमीन जरूर मिलेगी. तुम केवल मेरे ठीक होने का इंतजार करो,’’ पटवारी ने ननुआ को भरोसा दिलाया.

पटवारी ने बिस्तर पर पड़ेपड़े गांव की खतौनी को ध्यान से देखा, तो उस ने पाया कि ननुआ के पिता के नाम पर अभी भी वही 2 बीघा जमीन चढ़ी हुई है, क्योंकि खरीदार ने उसे अभी तक अपने नाम पर नहीं चढ़वाया था. पहले यह जमीन उस खरीदार के नाम पर चढ़ेगी, तभी सरकारी दस्तावेज में ननुआ सरकारी जमीन पाने के काबिल होगा. फिर सरकारी जमीन ननुआ के लिए ठीक करनी पड़ेगी. उस के बाद सरपंच से लिखवाना होगा. फिर ननुआ को नियमानुसार जमीन देनी होगी, जो एक लंबा रास्ता है.

पटवारी जल्दी ठीक हो गया. अपने इलाज में उस ने पानी की तरह पैसा बहाया. वह रनिया की सेवा व मेहनत को न भूल सका.

पूरी तरह ठीक होने के बाद पटवारी ने दफ्तर जाना शुरू किया व ननुआ को जमीन देने की प्रक्रिया शुरू की. बाधा देने वाले बाबुओं, पंच व अफसरों को पटवारी ने चेतावनी दी, ‘‘आप ने अगर यह निजी काम रोका, तो मैं आप के सभी कामों को रोक दूंगा. इन्हीं लोगों ने मेरी जान बचाई है.’’

पटवारी की इस धमकी से सभी चौंक गए. किसी ने भी पटवारी के काम में विरोध नहीं किया. नतीजतन, पटवारी ने ननुआ के लिए जमीन का पट्टा ठीक किया. आखिर में बड़े साहब के दस्तखत के बाद ही राज्यपाल द्वारा ननुआ को 2 बीघा जमीन का पट्टा दे दिया गया. नए सरकारी हुक्म के मुताबिक पट्टे में रनिया का नाम भी लिख दिया गया.

गांव वाले ननुआ को ले कर सेठ के पास गए. ननुआ ने उन के पैर छुए. सेठ ने कहा, ‘‘बेटा, अभी तो तुम्हारा सिर्फ आधा काम हुआ है. ऐसे तो गांव में कई लोगों के पास परती जमीनों के पट्टे हैं, पर उन के पास उन जमीनों के कब्जे नहीं हैं. बिना कब्जे की जमीन वैसी ही है, जैसे बिना गौने की बहू.

‘‘पटवारी सरकार का ऐसा आखिरी पुरजा है, जो सरकारी जमीनों का कब्जा दिला सकता है. वह जमींदारों की जमीनें सरकार में जाने के बाद भी इन सरकारी जमीनों को उन से ही जुतवा कर पैदावार में हर साल अंश लेता है.

‘‘पटवारी के पास सभी जमीन मालिकों व जमींदारों की काली करतूतों का पूरा लेखाजोखा रहता है. ऊपर के अफसर या तो दूसरे सरकारी कामों में लगे रहते हैं या पटवारी सुविधा शुल्क भेज कर उन्हें अपने पक्ष में रखता है.

‘‘पटवारी ही आज गांव का जमींदार है. और वह तुम्हारी मुट्ठी में है. समस्या हो, तो रनिया के साथ उस के पैर पड़ने चले  जाओ.’’ ननुआ को गांव वालों के सामने जमीन का कब्जा मिल गया. गांव में खुशी की लहर दौड़ गई.

पटवारी ने घोषणा की, ‘‘इस जमीन को और नहीं बेचा जा सकता है.’’ अब ननुआ के लिए पटवारी ही सबकुछ था. उस का 2 बीघा जमीन पाने का सपना पूरा हो चुका था.

ननुआ व रनिया ने मिल कर उस बंजर जमीन को अपने खूनपसीने से सींच कर उपजाऊ बना लिया, फिर पटवारी की मदद से उसे उस ऊबड़खाबड़ जमीन को बराबर करने के लिए सरकारी मदद मिल गई.

पटवारी ने स्थानीय पंचायत से मिल कर ननुआ के लिए इंदिरा आवास योजना के तहत घर बनाने के लिए सरकारी मदद भी मुहैया करा दी.

ननुआ व रनिया अपने 2 बीघा खेत में गेहूं, बाजरा, मक्का के साथसाथ दालें, तिलहन और सब्जियां भी उगाने लगे. किनारेकिनारे कुछ फलों के पेड़ भी लगा लिए. मेंड़ पर 10-12 सागौन के पेड़ लगा दिए. उन का बेटा कलुआ भी पढ़लिख गया. उन्होंने अपने घर में पटवारी की तसवीर लगाई और सोचा कि कलुआ भी पढ़लिख कर पटवारी बने.

आखिरी प्यादा: क्या थी मुग्धा की कहानी

लेखिका- कुसुम पारीक

सायरन बजाती हुई एक एम्बुलेंस अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी. वहां की औपचारिकताएं पूरी करने में दोतीन घंटे लग गए थे.

सारी कार्यवाही कर जब वे वापस आए तब घर में केवल राघव और मैं थे.

राघव और ‘मैं’ यानी पड़ोसी कह लीजिए या दोस्त, हम दोनों का व्यवसाय एक था और पारिवारिक रिश्ते भी काफी अच्छे थे.

हम सब मित्रों की संवेदनाएं राघव के साथ थीं कि इस उम्र में पत्नी मुग्धा जी मानसिक असंतुलन खो बैठी हैं और उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ा था.

हर कोई राघव की बेचारगी से परेशान था लेकिन ध्यान से देखने पर मैं ने पाया कि वहां असीम शांति थी.

मुझे आश्चर्य जरूर हुआ था लेकिन शक करने की कोई वज़ह मुझे नहीं मिली थी क्योंकि मैं क्या, लगभग हर जानपहचान वाले यही सोचते थे कि यह एक आदर्श जोड़ा है जो अपनी हर जिम्मेदारी बख़ूबी निभाता आया है.

हम सब जानते थे कि राघव की पत्नी बहुत पढ़ीलिखी थी जो घरबाहर के हर काम में निपुण थी.

हम दोस्त लोग बातें किया करते थे कि राघव समय का बलवान है जो इतनी आलराउंडर पत्नी मिली है. कई समस्याएं वह चुटकियों में सुलझा देती थी. राघव को केवल औफिस के काम के अलावा कुछ नहीं करना पड़ता था.

शाम को चाय की चुस्कियों के साथ कई बार हम शतरंज की बिसात बिछा लेते थे. कम बोलने वाला राघव अपनी हर चाल लापरवाही से चलता था. कई बार उस का वज़ीर तक उड़ जाता था लेकिन पता नहीं कैसे अंत में एक प्यादे को अंतिम स्थान पर पहुंचा कर अपने वज़ीर को ज़िंदा करवा लेता था.

यह घटना घटने के बाद मुझे लगने लगा था कि राघव की जीवननैया ठहर जाएगी लेकिन उस का रोज सुबह घूमना वगैरह सब अनवरत जारी था.

बेटी किसी प्रोजैक्ट के सिलसिले में विदेश में फंसी थी, इसलिए उसे आने में थोड़ा समय लगा.

बेटा जौब चेंज करवा कर पापा के पास ही आ गया था. बेटी सीधे अस्पताल गई और अपनी मां के बारे में पूछा. वहां की रिपोर्ट्स देख कर उस का माथा भन्ना गया. वह किसी भी परिस्थिति में मानने को तैयार नहीं थी कि उस की मम्मी अपना मानसिक संतुलन खो चुकी थी.

वह लगातार भागदौड़ में लगी हुई थी कि मम्मी को डिस्चार्ज करवाए व अपने साथ ले कर जाए जिस से यदि उन को मानसिक समस्या है तब भी उन को सहारा दे कर उस का समाधान किया जा सकता है.

मेरी निगाहें भी राघव की बेटी प्राची की गतिविधियों पर लगी रहती थी. मेरा मन मेरे उन अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर ढूंढने की कोशिश करने लगा जो इतने दिनों तक अनुत्तरित थे.

मैं ने हमेशा मुग्धा जी को ऊर्जा से भरपूर व्यक्तित्व के रूप में देखा था लेकिन जब कभी वे हम दोस्तों के समूह में कुछ बोलने के लिए मुंह खोलतीं, राघव फटाक से उन्हें चुप करा देता या कोई काम के बहाने अंदर भेज देता.

कई बार मुग्धा जी के चेहरे पर शिकायतों का बवंडर रहता लेकिन वे राघव की एक मिनट की विरह भी बरदाश्त न कर पाती थीं.

हम सब हमारी पत्नियों को कई बार कह भी देते, ‘तुम लोग करती क्या हो? फिर भी परेशानियां सिर उठाए तुम्हें नोंचती रहती है. एक मुग्धा जी को देखो, एक रुपए की दवाई तक नहीं खरीदी अभी तक उन्होंने.’

किताबी कीड़ा थीं वे, आध्यात्म में गहरी रुचि होने के कारण कभीकभी भजनकीर्तन की मंडली घर में होती रहती थी.

अब मेरे बेचैन मन को एक सूत्र मिल गया था प्राची के रूप में.

एक दिन वह अस्पताल जाने के लिए बाहर निकली ही थी कि मैं नीचे मिल गया. मैं ने उसे अपनी गाड़ी में लिफ्ट दे कर उस के साथ अस्पताल चलने की इच्छा जताई.

वह भी आत्मविश्वास में अपनी मां पर गई थी. फिर भी बोली, “अच्छा होगा अंकल, आप मेरे साथ रहेंगे तो मम्मी का केस सुलझाने में मुझे आसानी होगी.”

रास्ते में उस ने मुझे बताया कि मेरी मम्मी जीनियस पर्सन थीं अंकल. वे खुद मानसिक रूप से इतनी मजबूत थीं कि उन्हें ऐसा रोग हो भी नहीं सकता.

मैं बचपन से ही पापामम्मी की बहस देखती आई हूं जिस में मम्मी ने हमेशा तर्कसंगत बात की व पापा पीड़ित को शोषक के रूप में पेश कर देते थे. दोनों में शतरंज की सी बिसात बिछी रहती थी.

मम्मी, पापा से बहुत प्यार करती थीं, उस का पापा ने भरपूर फायदा उठाया.

मम्मी अपनी बात तर्को के साथ रखती थीं. पापा कभी उन से जीत न पाते थे तो उन्हीं के कहे शब्दों के उलटे अर्थ निकाल कर मम्मी को दोषी ठहराने की कवायद शुरू हो जाती थी.

मम्मी भावुक थीं लेकिन वर्चस्व की लड़ाई में वे भी पीछे न रहती थीं. इस लंबी बहस का परिणाम पापा का लंबे समय तक अबोलापन बन जाता था जो मम्मी को तोड़ देता था.

मम्मी बहुत ही धार्मिक महिला थीं जो हर समय पूजापाठ में लगी रहती थीं. इस के पीछे पापा की सलामती और उन का प्यार पाना मुख्य मुद्दा रहता था.

एक बार जब मैं छोटी थी, मैं ने मम्मी से बोल दिया था कि बिंदी गिर गई है तो गिरने दो, मत लगाओ. तब एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गालों पर पड़ा था जिस का मतलब मैं काफी वर्षों तक न समझ पाई थी.

मां ने एक भय का घेरा अपने आसपास बना लिया था जिस में से बाहर निकलना उन्हें कभी मंजूर न था.

वे बहुत प्रतिभाशाली और साहसी थीं लेकिन पापा उन की कमजोरी थे. पापा शायद इस बात को भांप चुके थे. उन्होंने इस बात का भरपूर दोहन किया था.

मम्मी को हर क्षेत्र में रुचि होने से जनरल नौलेज बहुत अच्छी थी. और किताबें पढ़ने के शौक के परिणामतया वे किसी भी टौपिक पर पांच-दस मिनट निर्द्वंद बोल सकती थीं.

पापा को उन के इसी बोलने से चिढ़ मचती थी.

वे हमेशा ऐसा रास्ता अपनाने की कोशिश करते कि मां को चुप होना पड़ता.

मां को भी गुस्सा आता था जब बेवज़ह उन को चुप करवाया जाता था.

जब कभी मम्मी इधरउधर होतीं, पापा उन के खिलाफ कुछ न कुछ बोलना शुरू कर देते. लेकिन मैं अपनी मां को अच्छी तरह जानती थी कि वे पापा के प्यार व विश्वास के लिए कितने आंसू बहाती हैं.

मैं उन की बात उसी समय काट देती जिस से मुझ से भी थोड़ेथोड़े खिंचे रहते थे.

मां की जब दूसरे लोग बड़ाई करते तब पापा को सहन न होता था. यह मेरे अलावा अर्णव जानता है, लेकिन वह कम ही बोलता था.

पिछले 6 सालों में मैं पढ़ाई व जौब के चक्कर में बाहर हूं. मैं ने मम्मी को कई बार अपने पास आ कर रहने के लिए कहा. लेकिन मम्मी हर बार मुझ से कहती थीं, ‘तेरे पापा को छोड़ कर कैसे आऊं?’

जब प्राची बोल कर चुप हो गई तब मैं सोचने लगा कि फिर क्या वजह रही होगी कि इतनी बीमार हो गई मुग्धा.

अगले दिन हम दोचार मित्र पार्क में मिले. संजय बोला, “अपनी ज़िंदगी से राघव परेशान तो नहीं दिखता था लेकिन एक बार मुझ से जरूर उस ने कहा था कि बोलने वाली औरतें अच्छी नहीं लगतीं उसे. तब मैं ने कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया था.”

कुछ देर बाद मैं और प्राची अस्पताल पहुंचे जहां नर्स ने बताया कि मुग्धा जी ने बहुत परेशान किया था जिस से उन्हें इंजैक्शन दे कर सुला दिया गया था.

हम लोग वहीं पड़ी बैंच पर बैठ गए थे. थोड़ी देर बाद वे उठीं, तब काफ़ी शांत लग रही थीं औऱ ऐसा लग रहा था जैसे हम से कुछ कहना चाह रही हों.

प्राची ने उन से पूछा, “मां, ऐसा क्या हो गया था कि आप को यहां ले कर आए पापा?”

वे पहले थोड़ा सकुचाईं लेकिन मेरी आंखों में आश्वस्ति देख कर बोलीं, “तुम जानती ही हो कि मैं उन के प्रति बहुत पजैसिव थी, इसलिए उन्होंने इस का फायदा उठाया औऱ हमेशा मौका ढूंढ़ते रहे जिस में मेरी बेइज्जती हो.

“तुम थीं वहां जब तक, थोड़ा आराम था. लेकिन जब तुम दोनों भाईबहन बाहर चले गए तब इन की जरूरत भी कम हो गई और इन्होंने अपनी इतने सालों की भड़ांस निकालनी शुरू कर दी.

मुझे हर समय वह दिखाने की कोशिश की जाती जो कभी मैं थी ही नहीं.

एक दिन का वाकेआ है, मैं ने तुम्हारे पापा को एक व्हाट्सऐप मैसेज दिखाया. तब वे बोले, “यह तुम मुझे कल दिखा चुकी हो.”

मैं ने कहा, “यह आज ही आया है मेरे पास.”

फिर बोले, “बस, यही समस्या है तुम्हारी, भूल जाती हो और फिर ज़िद करने लगती हो.”

मैं एकदम सन्न रह गई. मेरे सारे व्हाट्सऐप ग्रुप चैक किए कि कहीं आया हो तो, लेकिन वह मैसेज कहीं नहीं था.

उस के बाद ऐसी बातों की बहस कई बार हो जाती और हर बार मुझे गलत ठहराने की कोशिश की जाती थी.

मैं धीरेधीरे गुमसुम रहने लगी थी. बस, जब तुम लोग आते, तभी घर में रौनक आती. अन्यथा तेरे पापा अपने दोस्तों व औफिस में मस्त जबकि मैं अकेली इस घर में इस संकट से बाहर आने की कवायद करती रहती थी.

अचानक एक दिन तेरे पापा को सपने में बड़बड़ाते हुए देखा. कुछकुछ शब्द समझ भी आ रहे थे. उस समय मैं कुछ न बोली. लेकिन 2 दिनों बाद ऐसे ही मेरी याददाश्त को झूठा ठहराने की कोशिश में वही बहस हुई.

मैं ने बोला, “आप को सपना आया होगा जिस में आप ने कुछ देखा होगा क्योंकि ऐसे ही कुछ शब्द आप सपने में दोहरा रहे थे.” अचानक वे चुप हो गए और वहां से चले गए.

अब मुझे विश्वास हो गया था कि इन को ऐसे सपने आते हैं. लेकिन वे यह बात मानने को तैयार नहीं थे.

घर में हर समय तनातनी रहने लगी थी.

मैं ने कुछ साक्ष्य जुटाने की कोशिश भी की लेकिन उस से पहले यह सब हो गया.

अब मैं खुद को रोक न पाया और बोल उठा, “क्या हो गया था मुग्धा जी?”

तब प्राची बोली, “मां को एक दिन इतना परेशान किया कि वे चिढ़ गईं व चिल्लाने लगीं.

पापा ने उस का वीडियो बना लिया. उस बात पर मां और ज्यादा परेशान हो गई थीं.

वह वीडियो हम लोगों को भी भेजा था.”

“लेकिन हम दोनों बहनभाइयों ने मम्मी को ही सही ठहराया था.” प्राची के रुकने के बाद मुग्धा जी बोलीं, “बस, वह शतरंज की आखिरी बिसात थी. मुझे लग रहा था कि तेरे पापा को शह दी जा चुकी है लेकिन मैं गलत थी और उन्होंने फिर वही अपने आखिरी प्यादे की चाल चल दी थी.”

वातावरण बहुत बोझिल हो चला था. मैं ने प्राची से कहा, “तुम जो भी कार्यवाही करो, मेरा साथ हमेशा रहेगा.” मुझ से आश्वस्ति पा कर उस ने हलकी सी मुसकान दी और थोड़ी संतुष्ट हो कर चली गई.

अस्पताल से मुग्धा बाहर निकलने को तैयार नहीं हो रही थीं. एकदो बार मैं भी प्राची के साथ उन से मिलने गया. लेकिन वे अधिकतर समय शून्य में ताकती रहती थीं. जबकि प्राची को इस अपराधी को दंड देना ही था. डाक्टर भी अपनी सारी कोशिशें कर चुके थे कि वे कुछ मुंह खोलें तो उन की चुप्पी का रहस्य खुले.

आखिर एक दिन वे डाक्टर को देख कर अचानक पास पड़े नैपकिन को उठा कर मुंह पर रख कर बोलीं, “डाक्टर, आप भी अपनी पत्नी को ऐसे ही पट्टी बांध कर रखते हैं क्या?”

“उस को पट्टी बांध कर क्यों रखूंगा? वह इंसान है और इंसानों की तरह ही रहेगी न.”

“नहीं डाक्टर, स्त्री इंसान नहीं होती, उसे विवेक को किसी कोने में दफना कर केवल कठपुतली बन कर रहना होता है.”

“आप ऐसी बातें क्यों कर रही हैं?” डाक्टर ने कुछ और जानने के उद्देश्य से पूछा.

“डाक्टर, जो स्त्री बोलती है उसे एक प्यादा भी कब घोड़े की तरह ढाई पांव चल कर मार दे, पता भी नहीं लगता.”

एहसानमंद: क्या विवेक अपने मरीज की जान बचा पाया?

लेखक- ब्रजेंद्र सिंह

घड़ी के अलार्म की घंटी बजी और डाक्टर विवेक जागा. साथ में सोती हुई उस की पत्नी सुधा भी उठ रही थी.

‘‘शादी की सालगिरह बहुतबहुत मुबारक हो, डार्लिंग,’’ विवेक ने उस का आलिंगन किया.

‘‘आप को भी बहुतबहुत मुबारक हो,’’ सुधा ने उत्तर दिया.

नहाधो कर जब विवेक नाश्ता खाने बैठा तो सुधा ने उस के सामने उस के मनपंसद गरमागरम बेसन के चीले और पुदीने की चटनी रखी. विवेक बहुत खुश हुआ.

‘‘पत्नी हो तो तुम्हारे जैसी,’’ उस ने सुधा से कहा, ‘‘बोलो, आज तुम्हारे लिए क्या उपहार लाऊं? जो जी चाहे मांग लो.’’

‘‘मुझे कोई उपहार नहीं चाहिए, बस, एक अनुरोध है,’’ सुधा ने कहा.

‘‘अनुरोध क्यों, आदेश दीजिए, डार्लिंग,’’ विवेक ने उदारतापूर्ण स्वर  में कहा.

‘‘मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि कम से कम आज जल्दी घर आने की कोशिश कीजिएगा. आज हमारी शादी की दूसरी सालगिरह है. मैं आप के साथ कहीं बाहर, किसी अच्छे से रैस्टोरैंट में खाना खाने जाना चाहती हूं.’’

‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगा,’’ विवेक ने उसे आश्वासन दिया, पर वह जानता था कि घर लौटने का समय उस के हाथ में नहीं था. और वह यह भी जानता था कि सुधा को भी इस बात का पूरी तरह पता था. आखिरकार, वह भी एक डाक्टर की बेटी थी और, पिछले 2 सालों से एक डाक्टर की पत्नी भी.

अस्पताल जाते हुए ट्रैफिक जाम में फंसा विवेक सोचने लगा कि डाक्टरों का जीवन भी कितना विचित्र होता है. अगर उन की जिम्मेदारी का कोई रोगी ठीक हो जाए तो वह और उस के संबंधी आमतौर से डाक्टर के एहसानमंद नहीं होते हैं.

वे सोचते हैं कि मेहनताना दे कर उन्होंने सारा कर्ज चुका दिया है. आखिरकार डाक्टर अपना काम ही तो कर रहा था. पर अगर किसी कारण से रोगी की हालत न सुधरे, उस का देहांत हो जाए, तो गलती हमेशा डाक्टर की ही होती है, चाहे कितनी ही बुरी हालत में रोगी को चिकित्सा के लिए लाया गया हो.

ऐसी स्थिति में मृतक के घर वाले और अन्य रिश्तेदार कई बार डाक्टर को दोष देते हुए मारामारी और तोड़फोड़ करना आरंभ कर देते हैं. और ऐसे हालात में कुछ लोग तो डाक्टर और अस्पताल पर रोगी की अवहेलना का मुकदमा भी ठोक देते हैं.

विवेक को उसी के अस्पताल में डेढ़ साल पहले हुए एक हादसे का खयाल आया. वह उस हादसे को भला कैसे भूल सकता था, जिस का बेहद गंभीर परिणाम निकला था.

एक अमीर घराने का नाबालिग लड़का अपनी 2 करोड़ रुपए की गाड़ी अंधाधुंध रफ्तार से चला रहा था. गाड़ी बेकाबू हो कर सड़क के बीच के डिवाइडर से टकराई. फिर पलट कर सड़क के दूसरी ओर जा गिरी.

उस तरफ एक युवक मोबाइल पर बात करते हुए अपने स्कूटर पर आ रहा था. कलाबाजी मारती हुई कार, उस के ऊपर गिरी. कार चलाने वाले लड़के की वहीं मौत हो गई. स्कूटर चालक बुरी तरह घायल था. जिस से वह बात कर रहा था, वह शायद कोई उस के घर वाला था, क्योंकि पुलिस के आने से पहले लड़के के रिश्तेदार उसे उठा कर विवेक के अस्पताल ले आए. इमरजैंसी वार्ड में विवेक उस समय ड्यूटी कर रहा था.

6-7 लोग घायल लड़के को ले कर अंदर घुस गए. कुछ विवेक को जल्दी करने को कह रहे थे, कुछ आपस में हादसे की बात कर रहे थे. विवेक ने लड़के की जांच की. वह मर चुका था. जब उस ने यह सच उस के रिश्तेदारों को बताना चाहा तो उन्होंने मानने से इनकार किया.

‘पर वह अभी तक तो जीवित था,’ एक ने बहस की, ‘वह एकदम मर कैसे सकता है, तुम उसे बचाने की कोशिश नहीं करना चाहते हो.’

बीच में एक और रिश्तेदार बोलने लगा, ‘आजकल के डाक्टर सब एकजैसे निकम्मे हैं. ये लोग भारी पगार चाहते हैं, पर पूरे कामचोर हैं.’ विवेक ने मुश्किल से अपने गुस्से को संभाला, ‘देखिए मिस्टर…’ तब तक एक नर्स उस के पास आई और बोली, ‘डाक्टर साहब, एक मरीज आया है, लगता है उसे दिल का दौरा पड़ा है. जरा जल्दी चलिए.’

विवेक उस के साथ जाने के लिए घूमा पर तभी लड़के के चाचा ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘पहले मेरे भतीजे की अच्छी तरह जांच करो, फिर तुम यहां से जा सकोगे. मुझे तो लगता है कि मेरा भतीजा अभी जिदा है.’

एक नर्सिंग अरदली ने विवेक का हाथ छुड़ाने की कोशिश की. एक और डाक्टर और कुछ रिश्तेदार बीच में घुसे. देखते ही देखते हाथापाई शुरू हो गई. कई लोगों को चोट लगी. अस्पताल का सामान भी तोड़ा गया. सिक्योरिटी गार्ड बुलाए गए और उन्होंने सब को शांत किया. विवेक के माथे पर, जहां किसी की अंगूठी से चोट लगी थी, 5 टांके लगाए गए.

इस घटना के बाद विवेक के अस्पताल ने एक सख्त नियम बनाया. किसी भी मरीज के साथ 2 से अधिक साथवाले, अस्पताल के अंदर नहीं आ सकते, चाहे वे जो हों. इस नियम को कुछ लोगों ने कानूनी चुनौती दी थी और मामला अब भी अदालत में था.

गाडि़यों के जाम के खुलने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी. विवेक की विचारधारा वर्तमान में लौट आई. रहा डाक्टरों का निजी जीवन, वह भी काफी अनिश्चित होता है. कुछ पता नहीं कब किस रोगी की तबीयत अचानक बिगड़ जाए, या किसी हादसे में घायल हुए व्यक्ति को डाक्टर की जरूरत पड़े. ऐसी हालत में डाक्टर होने के नाते, उन्हें सबकुछ छोड़ कर, अपना कर्तव्य निभाने जाना पड़ता है, चाहे पत्नी के साथ सिनेमा देख रहे हों, या बच्चों के साथ उन का जन्मदिन मना रहे हों. डाक्टर बनने से पहले उन को ऐसा व्यवहार करने की प्रतिज्ञा लेनी पड़ती है.

जाम आखिर खुलने लगा और विवेक ने गाड़ी बढ़ाई. अस्पताल पहुंच कर विवेक ने डाक्टरों के लौकर में जा कर अपना सफेद कोट निकाल कर पहन लिया. फिर उस ने, हमेशा की तरह, उन 3 वार्डों के चक्कर लगाने लगा, जिन के मरीजों के रोगों के बारे में रिकौर्ड रखने के लिए वह जिम्मेदार था.

हर वार्ड में 10-12 मरीज थे. उन में हर एक की अपनी ही एक खास कहानी थी. पहले वार्ड में उस की मरीज राधा नामक एक विधवा थी. वह पीलियाग्रस्त थी. तकरीबन 1 महीने से वह अस्पताल में पड़ी हुई थी. उस के साथ उस की 5 साल की बेटी भी भरती कराई गई थी क्योंकि घर पर उस की देखभाल करने वाला कोई नहीं था. लड़की का नाम मीनू था और वह डाक्टर विवेक की दोस्त बन गई थी.

मीनू रोज सुबह एक नर्स के साथ अस्पताल के बगीचे में घूमने जाती थी. और जब विवेक अपने राउंड पर आता, तो पहले मीनू उसे बताती थी कि उस ने बगीचे में क्या देखा, फिर उसे बाकी काम करने देती.

आज वह बहुत उत्तेजित लग रही थी, जैसे उस के पास कोई बड़ी खबर हो. विवेक को देखते ही वह बोलने लगी, ‘‘अंकल अंकल, आप कभी नहीं बता सकेंगे कि मैं ने आज क्या देखा. मैं ने तितली देखी. बड़ी सुंदर रंग वाली. वह इधरउधर उड़ रही थी जैसे कोई परी हो. मैं ने उस से बात करने की कोशिश की, पर वह चली गई. किसी दिन मैं एक तितली से दोस्ती करूंगी.’’

उस की मासूमियत देख कर विवेक ने सोचा, ‘काश, यह बच्ची जीवनभर ऐसी ही रह सकती. पर मतलबी दुनिया में यह संभव नहीं है.’

अगले वार्ड में, एक पलंग पर वृद्ध गेनू लेटा था. वह मौत के द्वार पर खड़ा था और वह यह जानता था कि वह अब केवल मशीनों के जरिए जी रहा है. उस के दोनों बेटे विदेश में बसे हुए थे. गेनू की पत्नी का देहांत कुछ साल पहले हो चुका था. 6 महीने पहले, गेनू को दिल का दौरा पड़ा.

उस का एक पड़ोसी उसे अस्पताल ले आया. जांच के बाद पता चला कि उस के दिल को भारी नुकसान पहुंचा है. उस की उम्र 70 वर्ष से ऊपर थी और वह बहुत कमजोर भी था. सो, डाक्टरों ने औपरेशन करना उचित नहीं समझा और उस के अधिक से अधिक एक साल और जीने की संभावना बताई. उस के बेटों को जब उस की हालत का पता चला और उस के अस्पताल में भरती होने का समाचार मिला, तो वे विदेश से भागेभागे आए. उन्हें यहां आ कर यह मालूम हुआ कि पिताजी के बचने की कोई उम्मीद नहीं है और वे इस दुनिया में अब कुछ ही दिनों के मेहमान हैं.

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दोनों ने आपस में बात की होगी कि पिताजी की मृत्यु तक वे रुकना नहीं चाहते. चूंकि अस्पताल का खर्चा बीमा कंपनी दे रही थी, उन्होंने साथ मिल कर सोचा कि पिताजी को अब पैसों की जरूरत नहीं होगी. सो, पिताजी को दोनों बेटों ने बताया कि उस के घर में काफी लंबीचौड़ी मरम्मत करवा कर उस को बिलकुल नया बनाना चाहते हैं.

काम के लिए काफी पैसे लगेंगे. इस बहाने उन्होंने कोरे कागज और कोरे चैक पर पिताजी के हस्ताक्षर ले लिए. फिर क्या कहना. चंद दिनों में उन्होंने घर भी बेच दिया और पिताजी का खाता भी खाली कर दिया. और तो और, उस के बाद पिताजी को बताए बिना वे विदेश लौट गए. उन की धांधली के बारे में पिताजी को तब पता चला, जब उस के पड़ोस में रहने वाला दोस्त उस से मिलने आया था.

अगले वार्ड में एक शराबी, मीनक पड़ा था. 2 हफ्ते पहले वह नशे की हालत में सीढि़यों से नीचे गिर कर बुरी तरह घायल हो गया था. अस्पताल में भरती होने के बाद वह रोज शाम को ऊंची आवाज में शराब मांगता था और शराब न मिलने पर काफी शोर मचाता था. पूरा स्टाफ उस से दुखी था. इसलिए सब बहुत खुश थे कि अब वह ठीक हो गया था और आज उसे अस्पताल से छुट्टी मिल रही थी.

पिछली शाम, जब यह खबर उस की पत्नी को दी गई, तो वह खुश होने के बजाय, घबरा गई. वह भागीभागी विवेक के पास गई. उस के सामने वह हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘डाक्टर साहब, मुझ पर दया कीजिए. मेरे पति कुछ काम नहीं करते हैं. घर को चलाने का और 2 बच्चों को पढ़ाने का पूरा खर्चा मैं संभालती हूं. मेरी अच्छी नौकरी है पर फिर भी हमें पैसों की कमी हमेशा महसूस होती है. अभी महीने की शुरुआत है. मुझे हाल में वेतन मिला है. अगर आप कल मेरे पति को डिस्चार्ज कर देंगे, तो वह घर आ कर मुझे पीटपाट कर, सारे पैसे बैंक से निकलवाएगा. फिर सब पैसा शराब में उड़ा देगा.

‘‘अभी मुझे पिछले महीने का कर्ज भी चुकाना है. इस महीने का खर्च चलाना है. बच्चों की स्कूल की फीस भी देनी है. मैं कैसे काम चलाऊंगी. मैं आप से हाथ जोड़ कर विनती करती हूं, मेरे पति को कम से कम 4-5 दिन और अस्पताल में रख लीजिए.’’

‘‘माफ करना बहनजी,’’ विवेक ने जवाब दिया, ‘‘पर आप के पति को अस्पताल में रखना या न रखना मेरे हाथ में नहीं. वैसे भी, हम किसी रोगी को ठीक होने के बाद यहां रखना नहीं चाहते हैं क्योंकि बहुत और बीमार लोग हैं जो यहां बैड के खाली होने का इंतजार कर रहे हैं.’’ रोगियों की और रिश्तेदारों की कोई कमी नहीं थी. कहीं बेटी मां के बारे में चिंतित थी, कहीं चाचा भतीजे के बारे में. हर रोगी की रिपोर्ट जांचना और उस की आगे की चिकित्सा का आदेश देना आवश्यक था और ऊपर से उस को आश्वासन भी देना होता था कि डाक्टर पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वह जल्द से जल्द पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएगा.

विवेक मैटरनिटी वार्ड के सामने से निकल रहा था कि वार्ड का दरवाजा अचानक खुला और वरिष्ठ डाक्टर प्रशांत बाहर आए. वे काफी चिंतित लग रहे थे पर विवेक को देख कर उन का चेहरा खिल उठा. ‘‘डाक्टर विवेक,’’ वे बोले, ‘‘अच्छा हुआ कि तुम मिल गए. हमारे वार्ड में इस समय कोईर् खाली नहीं है, और एक जरूरी संदेश वेटिंगरूम तक पहुंचाना था. कृपा कर के, क्या तुम यह काम कर दोगे?’’

‘‘कर दूंगा, सर’’ विवेक ने उत्तर दिया, ‘‘संदेश क्या है और किस को पहुंचाना है?’’

‘‘वेटिंगरूम में एक मिस्टर विनोद होंगे,’’ डाक्टर प्रशांत ने कहा, ‘‘उन को यह बताना है कि उन की पत्नी को एक प्रिमैच्योर यानी उचित समय से पहले बच्चा हुआ है और वह लड़का है. हम पूरी कोशिश कर रहे हैं पर उसे बचाना काफी कठिन लग रहा है. और उन को यह भी कहना कि इस समय वे अपनी पत्नी और बच्चे से नहीं मिल सकेंगे. पर शायद 3-4 घंटे के बाद यह संभव होगा.’’

वेटिंगरूम की ओर जाते हुए विवेक सोचने लगा कि यह क्यों होता है कि बुरा समाचार देने के लिए हमेशा जूनियर डाक्टर को ही जिम्मेदारी दी जाती है. डरतेडरते विवेक ने बच्चे के बाप को अपना परिचय दिया और फिर संदेश सुनाया. बाप कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘मैं जानता हूं कि आप लोग बच्चे को बचाने के लिए जीजान लगाएंगे.’’

विवेक ने वापस जा कर बच्चे की मां की फाइल निकाली और पढ़ कर उस को पता लगा कि उस औरत को इस से पहले 2 मिसकैरिज यानी गर्भपात हुए थे, और दोनों वक्त बच्चा मृतक पैदा हुआ था. यह उस औरत का तीसरा गर्भ था. डाक्टरों ने बच्चे को बचाने की जितनी कोशिश कर सकते थे, उतनी की. बच्चा 5 दिन जीवित रहा. इस दौरान उस के बाप ने उस का नाम विजय रख दिया. चंद गिनेचुने रिश्तेदार भी उस से मिल सके. विवेक भी दिन में 2-3 बार जा कर बच्चे की हालत पता करता था.

पर 5वें दिन विजय का छोटा सा दिल हमेशाहमेशा के लिए शांत हो गया. विवेक भी उन डाक्टरों में था जिन्होंने अस्पताल के दरवाजे के पास खामोश खड़ेखड़े उस के पिता को विजय का नन्हा मृतक शरीर अपनी छाती से लगा कर बाहर जाते देखा.

कुछ दिनों बाद डाक्टर विवेक के नाम अस्पताल में एक पत्र आया. उस ने लिफाफा खोला और पढ़ा, ‘डाक्टर विवेक, मैं यह पत्र आप को भेज रहा हूं, क्योंकि मुझे सिर्फ आप का नाम याद था, पर यह उन सब डाक्टरों के लिए है जिन्होंने मेरे बेटे विजय की देखभाल की थी.

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‘आप लोगों ने उस को इतनी देर जीवित रखा ताकि हम उस को नाम दे सकें, उस को हम अपना प्यार दे सकें, उस के दादादादी और नानानानी उस से मिल सकें. दवाइयों ने उसे जिंदा नहीं रखा, बल्कि आप लोगों के प्यार ने उसे चंद दिनों की सांसें दीं. धन्यवाद डाक्टर साहब. मैं आप सब का एहसानमंद हूं.’ नीचे हस्ताक्षर की जगह लिखा था, ‘विजय का पिता.’ विवेक की आंखें भर आईं और उस के गाल गीले हो गए. पर उस ने अपने आंसुओं को रोकने की कोई कोशिश नहीं की.

सिंगल वूमन: क्या सुमित अपनी पड़ोसिन का पा सका

सुमित औफिस से लौटा तो सुधा किचन में व्यस्त दिखी. उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है, आज तो बाहर तक खुशबू आ रही है?’’

सुधा मुसकराई, ‘‘जल्दी से फ्रैश हो जाओ, गैस्ट आ रहे हैं.’’

‘‘कौन?’’

‘‘बराबर वाले फ्लैट में जो किराएदार आए हैं, मैं ने उन्हें डिनर पर बुलाया है.’’

‘‘अच्छा, कौन हैं?’’

‘‘एक सिंगल वूमन है और उस की 10 साल की 1 बेटी

भी है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुमित फ्रैश होने लगा. दोनों की 20 वर्षीय बेटी तनु और 17 वर्षीय बेटा राहुल भी अपनी बुक्स समेट कर डिनर के लिए तैयार थे.

सुधा ने तनु के साथ मिल कर डिनर टेबल पर लगाया. तभी घंटी की आवाज सुनाई दी. सुधा ने दरवाजा खोला और फिर मुसकराते हुए बोली, ‘‘आओ अनीता, हैलो बेटा, अंदर आओ.’’

अनीता अपनी बेटी रिनी के साथ अंदर आई. सुधा ने अपने परिवार से उन का परिचय करवाया. सुमित उसे देखता ही रह गया. जींसटौप, कंधों तक लहराते बाल, सलीके से किया गया मेकअप… बहुत स्मार्ट थी अनीता. रिनी तनु और राहुल को हैलो दीदी, हैलो भैया कहती उन से बातें करने लगी. तनु और राहुल उस की बातों का आनंद उठाने लगे. सुमित अनीता के रूपसौंदर्य में घिर बैठा रहा. उस का अनीता के चेहरे से नजरें हटाने का मन नहीं कर रहा था. अनीता और सुधा बातों में व्यस्त थीं. सुमित कनखियों से अनीता को निहार रहा था. सुंदर गोरा चेहरा, खूबसूरत हाथपैर, उन पर लगी आकर्षक नेलपौलिश, हाथ में महंगा फोन, कान व गले में डायमंड सैट. वाह, क्या बात है, सुमित ने उसे मन ही मन खूब सराहा. फिर उन की बातों की तरफ कान लगा दिए. वह दवाओं की एक मल्टीनैशनल कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर थी. यहां मुंबई में इस फ्लैट में वह अपनी बेटी के साथ रहेगी. औफिस के कुछ सहकर्मियों ने उसे यह फ्लैट दिलवाया है. इस सोसाइटी में उस का अच्छा फ्रैंड सर्कल है.

खाने की तारीफ करते हुए अनीता और रिनी ने सब के साथ डिनर किया और फिर थैंक्स बोल कर चली गईं.

उन के जाने के बाद तनु ने कहा, ‘‘मम्मी, आंटी तो बहुत स्मार्ट हैं.’’

सुधा ने कहा, ‘‘मुझे भी यह अच्छी लगी. इस से आतेजाते जितनी भी बातचीत हुई वह मुझे अच्छी लगी. अकेली है इसलिए आज बुला लिया था. वैसे भी इस फ्लोर पर दोनों फ्लैट बंद पड़े थे. खालीखाली सा लगता था. अब कोई तो दिखेगा.’’

सुमित मन ही मन सोच रहा था कि सिंगल वूमन, वाह, अकेली औरत मतलब आसान शिकार. अकेली है सौ काम पड़ेंगे इसे हम लोगों से. चलो, खूब टाइमपास होगा. और फिर मन ही मन अपनी सोच पर मुसकराया. फिर सुधा से बोला, ‘‘चलो, अब तुम्हारा मन लगा रहा करेगा.’’

‘‘हां, यह तो है,’’ सुधा ने कहा.

कुछ दिन और बीत गए. अनीता का घर सैट हो गया था. इस बिल्डिंग में 2 टू बैडरूम फ्लैट थे, तो 2 वन बैडरूम फ्लैट थे. सुमित का टू बैडरूम फ्लैट था और अनीता का वन बैडरूम. सुधा बड़ी उत्सुकता से अनीता की दिनचर्या नोट कर रही थी. उस ने सुधा की मेड को ही रख लिया था. सुबह उस से काम करवा कर अनीता रिनी को अपनी कार से स्कूल छोड़ती, फिर लंचटाइम में स्कूल से ले कर सोसाइटी में ही स्थित डे केयर सैंटर में छोड़ देती. वहां से शाम को ले कर लौटती. रिनी बहुत ही प्यारी और सम?ादार बच्ची थी. अनीता ने उसे बहुत मैनर्स सिखा रखे थे. अनीता दिन में व्यस्त रहती थी. शाम को खाली होती तो सुधा से मिलती. कभी उसे अपने यहां कौफी के लिए बुला लेती तो कभी खुद सुधा के पास आ जाती. अनीता की आत्मनिर्भरता सुधा को काफी अच्छी लगती.

शनिवार को अनीता और रिनी की छुट्टी रहती थी. दोनों मांबेटी मार्केट जातीं. कभी रिनी की फ्रैंड्स आ जातीं तो कभी अनीता की अपनी फ्रैंड्स. कुछ महीनों की दोस्ती के बाद अनीता सुधा से काफी घुलमिल गई थी. एकदिन उस ने अपने बारे में सुधा को इतना ही बताया था, ‘‘सुधाजी, मैं ने अपने पति और ससुराल वालों से निभाने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन सब व्यर्थ गया. तलाक लेने के अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा था. अब मैं रिनी के साथ अपनी लाइफ से बहुत खुश हूं.’’

सुधा मन ही मन अनीता की हिम्मत की दाद देती रहती थी. दोनों के संबंध काफी

अच्छे हो गए थे. सुमित अनीता से बात करने का मौका ढूंढ़ता रहता था, लेकिन सुमित के औफिस से आने के बाद अनीता कभी सुधा के घर नहीं जाती थी. सुमित यहांवहां देखता रहता. अनीता से तो उस का आमनासामना ही नहीं हो पा रहा था. कहां वह अनीता के साथ टाइमपास के सपने देख रहा था और कहां अब अनीता की शक्ल ही नहीं दिखती थी. एक दिन सुमित ने घुमाफिरा कर बातोंबातों में सुधा से कहा, ‘‘और तुम्हारी पड़ोसिन का क्या हाल है?’’

‘‘ठीक है.’’

सुमित थोड़ा ?ाल्लाया, यह सुधा तो उस की कोई बात बताती ही नहीं, फिर दोबारा पूछा, ‘‘मिलती है या नाम की पड़ोसिन है?’’

‘‘जब उसे टाइम मिलता है, मिलती है?’’

सुमित मन ही मन झंझलाया कि कब अनीता से मिलना होगा, कुछ तो करना पड़ेगा. क्या करे वह और फिर पता नहीं क्याक्या सोचता रहा.

संडे को जैसे सुमित के मन की मुराद पूरी हो गई. अनीता ने सुबह ही घंटी बजा दी. सुधा ने दरवाजा खोला तो परेशान सी कहने लगी, ‘‘रिनी को बहुत तेज बुखार है, कोई डाक्टर है, जो घर आ जाए?’’

सुधा ने कहा, ‘‘हांहां, अंदर आ जाओ, मैं नंबर देती हूं.’’

सुमित ड्राइंगरूम में पेपर पढ़ रहा था. फौरन उठ कर खड़ा हो गया. अनीता को देख कर उस का चेहरा खिल उठा. नाइटसूट में अनीता उसे बहुत ही आकर्षक लगी फिर मन ही मन वह उस की सुंदरता की तारीफ करता रहा. प्रत्यक्षत: चिंतित स्वर में बोला, ‘‘मैं डाक्टर को फोन करता हूं.’’

‘‘नहीं, थैंक्स, आप मुझे नंबर दे दें, मैं कर लूंगी.’’

सुधा ने नंबर लिख कर दे दिया. अनीता चली गई तो सुधा ने सुमित से कहा, ‘‘मैं जरा रिनी को देख आती हूं.’’

सुमित ने फौरन कहा, ‘‘मैं भी चलता हूं.’’

सुधा के साथ सुमित पहली बार अनीता के फ्लैट में गया. अनीता के घर में चारों ओर नजर दौड़ाई. घर पूरी तरह से आधुनिक साजसज्जा से सुसज्जित था. वाह, घर भी सुंदर सजाया है अपनी तरह. सुमित मन ही मन अनीता की हर बात पर फिदा हो रहा था.

सुधा ने रिनी का माथा छुआ. बोली, ‘‘हां, तेज बुखार है.’’

अनीता डाक्टर को फोन कर रही थी. लेकिन उधर से फोन उठाया नहीं गया तो कहने लगी, ‘‘संडे है, शायद सो रहे हों. ऐसा करती हूं अस्पताल ही ले जाती हूं.’’

सुमित ने फौरन कहा, ‘‘मैं चलता हूं, आप रिनी को उठा लें. मैं कपड़े चेंज कर के गाड़ी निकालता हूं, आप नीचे आ जाओ.’’

‘‘ठीक है.’’

सुधा ने कहा, ‘‘मैं भी चलती हूं.’’

सुमित ने कहा, ‘‘नहीं, तुम क्या करोगी, बच्चों को क्लास के लिए उठाना है. मेड भी आने वाली होगी. मैं दिखा लाता हूं.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुधा अपने घर

आ गई.

सुमित कपड़े चेंज कर के बोला, ‘‘बेचारी सिंगल वूमन है, परेशानी तो होती ही है.’’

सुमित कार की चाबी उठा कर नीचे उतर गया. अनीता भी रिनी को उठा कर कार तक पहुंची. सुमित ने एक नजर उस पर डाली,

टीशर्ट और जींस में अनीता का फिगर देख

कर एक आह भरी और फिर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया.

अनीता ने कहा, ‘‘अगर आप को बुरा न लगे तो मैं रिनी के साथ पीछे बैठना चाहूंगी.’’

‘‘हांहां, ठीक है,’’ कह कर सुमित ने मन में सोचा, चलो फिर कभी आगे बैठेगी, फिर कोई काम तो पड़ेगा ही, साथ में तो है, पीछे ही सही. शीशे में सुमित उसे कई बार देखता रहा, वह पूरी तरह से रिनी में खोई थी. उसे बहुत तेज बुखार था. वह लगभग बेसुध थी.

डाक्टर ने चैकअप के बाद उसे तुरंत ऐडमिट कर लिया. अनीता ने एक फोन किया. आधे घंटे में उस की कई सहेलियां और दोस्त पहुंच गए. सब औफिस के लोग थे. लेकिन उस के शुभचिंतक हैं यह बात सुमित ने साफसाफ महसूस की. अनीता ने सुमित का परिचय पड़ोसी कह कर करवा दिया. सब के आने से सुमित असहज हो गया और फिर बोला, ‘‘मैं चलता हूं. कोई जरूरत हो तो फोन कर देना,’’ और सुमित घर आ गया और सुधा को सारी बात बता दी.

सुधा सारे काम निबटा कर और अनीता के लिए खाना बना कर अस्पताल जाने के लिए तैयार हुई तो सुमित ने कहा, ‘‘वहां उस के कई जानपहचान वाले हैं, मैं ही जा कर दे आता हूं खाना,’’ सुमित ने मन ही मन सोचा ऐसा करने से अनीता के दिल में मेरे लिए खास जगह बनेगी. कुछ नजदीकी बढ़ेगी, मजा आएगा.

सुधा ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं शाम को चली जाऊंगी.’’

सुमित अच्छी तरह तैयार हो कर अनीता के लिए खाना ले कर अस्पताल पहुंचा तो उसे अकेली देख कर खुश हुआ. वह रिनी के पास अकेली बैठी थी. सब दोस्त जा चुके थे. अनीता ने खाने के लिए कई बार थैंक्स कहा. सुमित अनीता के साथ कुछ समय रह कर खुश था. वह थोड़ी देर रिनी की तबीयत के बारे में बात करता रहा. वह अपनी तरफ से अनीता को प्रभावित करने

का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता था. तभी अनीता की एक सहेली भी खाना ले आई, तो अनीता हंस पड़ी. बोली, ‘‘मेरा ध्यान रखने वाले कितने लोग हैं.’’

थोड़ीबहुत बातों के बाद सुमित घर लौट आया. शाम को सुधा अनीता के लिए डिनर ले कर गई. अनीता ने प्यार से सुधा का हाथ पकड़ लिया, ‘‘आप मेरे लिए कितना कर रही हैं… थैंक्यू वैरी मच.’’

‘‘तो क्या हुआ अनीता, हम दोस्त हैं, पड़ोसी हैं, इतना तो हमारा फर्ज बनता ही है, तुम बेकार की औपचारिकता में न पड़ कर बस रिनी की देखभाल करो. और हां, सुबह तो तुम ऐसे ही उठ कर आ गई थीं, रात को रुकने के लिए तुम्हें कपड़े चाहिए होंगे न. ऐसा करो मैं यहां बैठी हूं, जो चाहिए जा कर ले आओ.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. मैं अपना कुछ सामान ले आती हूं.’’

सुमित फौरन खड़ा हो गया, ‘‘आइए, मैं ले चलता हूं.’’

अनीता ने हां में सिर हिलाया तो सुमित का मन खिल उठा कि कार में बस वह और अनीता, वाह.

बराबर की सीट पर बैठी अनीता को सुमित ने कनखियों से कितनी बार देखा, अपने मन के चोर को उस ने किसी भी हावभाव से बाहर नहीं आने दिया. बाहर से वह एकदम शिष्ट, सभ्य पुरुष बना हुआ था, लेकिन अंदर ही अंदर मन में कुटिलता लिए एक अकेली औरत को प्रभावित करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता था.

रास्ते भर दोनों की कोई खास बात नहीं हुई, लेकिन सुमित खुश था. अनीता के कई दोस्त आ गए तो सुधा और सुमित घर लौट आए. रात को बैड पर सुमित की आंखों के आगे अनीता का चेहरा आता रहा.

सुधा ने प्यार से कहा, ‘‘आज तो संडे को काफी व्यस्त रहे तुम, आराम नहीं कर पाए.’’

‘‘तो क्या हुआ? सिंगल वूमन है पड़ोस

में, इतना तो करना ही पड़ता है… बेचारी

अकेली औरत…’’

‘‘हां, यह तो है. लेकिन काफी हिम्मती है, घबराती नहीं है बिलकुल भी. मु?ो उस की यह बात बहुत अच्छी लगती है.’’

अगले दिन सोमवार को सुमित ने औफिस जाते हुए कार अस्पताल के बाहर रोकी, अनीता उसे सुबहसुबह देख कुछ हैरान हुई. रिनी ठीक थी. जब अनीता ने बताया कि शाम तक छुट्टी मिल जाएगी तो सुमित ने कहा, ‘‘ठीक है, औफिस से सीधा इधर ही आ जाऊंगा, साथ ही चलेंगे.’’

‘‘नहींनहीं, मेरी फ्रैंड आ जाएगी कार ले कर.’’

‘‘अरे, एक ही जगह जाना है, उन्हें क्यों परेशान करेंगी?’’

‘‘अच्छा ठीक है, मैं उन्हें फोन कर के मना कर दूंगी.’’

सुमित औफिस चला गया और दिन भर अनीता के खयालों में डूबा रहा. शाम को अनीता और रिनी को ले कर घर आ गया.

अनीता घर आ कर भी बारबार सुधा और सुमित को थैंक्स बोलती रही. सुधा ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारा खाना ले कर आती हूं, रिनी के लिए मैं ने सूप और खिचड़ी बना दी है.’’

‘‘आप मेरा कितना ध्यान रखती हैं सुधाजी.’’

सुधा ने अनीता का कंधा प्यार से थपथपा दिया. अगले दिन अनीता ने औफिस से छुट्टी ले ली थी. उस की फ्रैंड्स आतीजाती रहीं. फिर पुराना रूटीन शुरू हो गया. कुछ दिन और बीत गए. अब अनीता और रिनी सुधा से और खुल चुकी थीं. कभीकभी सुमित टूर पर होता तो तीनों मूवी देखने जातीं. बाहर खातीपीतीं. तनु और राहुल तो अनीता आंटी के फैन थे. कुल मिला कर सब सामान्य था. बस सुमित के मन में अनीता को ले कर क्या चलता रहता था, यह वही जानता था. अब उसे इस बात का विश्वास हो गया था कि अनीता भी उस से इंप्रैस्ड है और अगर वह कोई हरकत करता है तो वह पक्का आपत्ति नहीं करेगी. किसी पुरुष के साथ की उसे भी तो जरूरत होती होगी. सुधा के प्यार और विश्वास की एक बार भी चिंता न करते हुए वह अनीता से नजदीकी के सपनों में डूबा रहता.

एक दिन अचानक सुधा के मायके से फोन आया. दिल्ली में उस की मम्मी की तबीयत खराब थी.

सुमित ने फौरन दिल्ली के लिए उस की फ्लाइट बुक की. मेड को खाना बनाने के कई निर्देश दे कर सुधा दिल्ली के लिए फौरन तैयारी करने लगी. सुधा को एअरपोर्ट छोड़ कर आते हुए सुमित कई तरह की योजनाएं बनाता रहा. तनु और राहुल कालेज चले जाते, सुमित अनीता से बात करने के मौके ढूंढ़ता रहता. लेकिन सुधा के जाने के बाद अनीता बच्चों से तभी मिलती जब सुमित औफिस में होता. सुमित सोचता रहा और 6 दिन बीत गए थे. सुमित सोच रहा था आज तनु और राहुल को एक बर्थडे पार्टी में जाना है, सुधा कल सुबह आ जाएगी, उस की मम्मी अब ठीक है, रिनी 8 बजे तक सो ही जाती है. आज ही मौका है, आज ही वह अनीता के और करीब जाने की कोशिश करेगा. वह मन ही मन कई योजनाएं बनाता रहा.

शाम को तनु और राहुल पार्टी में चले गए. कह कर गए थे 11 तो बज ही जाएंगे. सुमित ने नहाधो कर बढि़या कुरतापाजामा पहना, परफ्यूम लगाया, घर में बढि़या रूमस्प्रे किया, बैडरूम ठीक किया. मेड जो खाना गरम कर के रख गई थी, गरम कर के खाया. समय देखा, 9 बज रहे थे. सुधा से भी फोन पर बात कर ली थी. तनु व राहुल से भी बात कर ली थी. उन्हें आने में अभी काफी समय था. रिनी सो ही चुकी होगी. सब मन ही मन हिसाब लगा कर सुमित ने अनीता के घर की घंटी बजाई. उस ने दरवाजा खोला तो सुमित ने कहा, ‘‘एक तकलीफ देनी है आप को.’’

‘‘जी, कहिए.’’

‘‘प्लीज, 1 कप कौफी बना देंगी? पता नहीं सुधा ने कहां रखी है, मिल नहीं रही है. सिर में बहुत दर्द हो रहा है, आप को कोई प्रौब्लम तो नहीं होगी न?’’

‘‘अरे नहीं, आप चलिए, मैं लाती हूं.’’

‘‘आप को भी इस समय कौफी पीने की आदत है न, अपनी भी ले आइए, साथ ही पी लेंगे,’’ कह कर सुमित अपने घर आ गया.

10 मिनट बाद घंटी बजी. अनीता ट्रे में 1 कप कौफी लिए आई. उस ने अनीता को हाथ से अंदर आने का इशारा किया. अनीता जैसे ही अंदर आई, सुमित ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. पूछा, ‘‘आप अपने लिए

नहीं लाईं?’’

ट्रे टेबल पर रख कर अनीता जैसे ही सीधी हुई, सुमित ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बैठो न, कब से तुम से कुछ कहना चाह रहा था,’’ फिर अचानक अनीता की बगल में दबे बैग को देखते हुए बोला, ‘‘इस में क्या है?’’

अनीता ने एक व्यंग्यभरी मुसकान उस पर डाली, बैग की चेन खोल कर स्प्रे निकाला. बोली, ‘‘यह खास स्प्रे है. क्या आप देखेंगे कि कैसे काम करता है?’’ सुमित ने सोचा कि कोई मादक स्प्रे होगा. वह और निकट खिसका तो अनीता ने उस पर स्पे्र कर दिया.

अनीता गुर्राई, ‘‘उन लंपट पुरुषों का इलाज हमेशा मेरे पास रहता है, जो सिंगल वूमन को आसान शिकार सम?ाते हैं,’’ फिर सुमित का चेहरा देख कर बोली, ‘‘उफ सौरी यह तो आप पर स्प्रे हो गया.’’

सुमित बुरी तरह कराह रहा था. अनीता बोली, ‘‘आप मुंह धो लो. शायद रात भर में उतर जाए और कोई गलतफहमी हो तो वह भी दूर हो जाएगी,’’ और फिर अनीता बड़े आराम से सुमित के घर से निकल कर चली गई.

सुमित छटपटाता हुआ जल्दी से बाथरूम में शौवर के नीचे खड़ा हो गया, आंखें बुरी तरह जल रही थीं, वह अनीता को गालियां दे रहा था. आंखों की जलन कम हुई तो जल्दी से गीले कपड़े मशीन में डाले, कपड़े बदले. तनु, राहुल आए तो सुमित की लाल आंखें देख कर परेशान हो उठे.

‘‘बस, आई इन्फैक्शन है, तबीयत कुछ ठीक नहीं है,’’ कह कर सुमित जल्दी सोने चला गया.

सुबह सुधा खुद ही टैक्सी ले कर आ गई थी. आ कर सब से बातें करती रही, फिर दिल्ली से लाई मिठाई अनीता को देने गई. फिर लौट कर बोली, ‘‘कितनी तेज बारिश हो रही है… देखो पहले रिनी को स्कूल छोड़ेगी, फिर औफिस जाएगी, बेचारी सिंगल वूमन, कितनी परेशानियां होती हैं इन की लाइफ में.’’

‘‘कोई बेचारीवेचारी नहीं होती हैं सिंगल वूमन,’’ सुमित ने कहा तो सुधा कुछ सम?ा तो नहीं, बस उस का मुंह देखती रह गई जो अभी तक लाल था.

जिस्म की सफेदी: सुषेन क्यों अंजान बन रहा था

इनसान की चमड़ी भी उस की जिंदगी में कितनी अहमियत रखती है… काली चमड़ी… गोरी चमड़ी… मोटी चमड़ी… महीन चमड़ी… खूबसूरत और बदसूरत चमड़ी…

खूबसूरत… हां… सुषेन भी तो खूबसूरत था… बांका और सजीला नौजवान… सुषेन 20 साल पहले की यादों में डूबने लगा था.

कालेज में बीएससी करते समय बहुत सी लड़कियां सुषेन की दीवानी थीं, क्योंकि वह दिखने में तो हैंडसम था ही, साथ ही साथ विज्ञान के प्रैक्टिकल करने में भी उसे महारत हासिल थी.

पर सुषेन के दिल में तो किसी और ही लड़की का राज था और वह लड़की थी एमएससी फाइनल में पढ़ने वाली सुरभि.

सुरभि और सुषेन दोनों अकसर लाइब्रेरी में मिलते थे और वहीं दोनों की आंखें मिलीं, बातें हुईं और 2 जवान दिलों में प्यार होते देर नहीं लगी. दोनों ने महसूस किया कि वे एकदूसरे को जाननेपहचानने लगे हैं और दोनों के विचार भी आपस में मिलते हैं. यकीनन वे एकदूसरे के लिए बने हैं, इसलिए सुषेन और सुरभि ने एकदूसरे से शादी का वादा भी कर डाला.

सुरभि के घर वालों को इस रिश्ते से कोई परेशानी नहीं थी और सुषेन ने भी बगैर यह सोचे ही हामी भर दी थी कि क्या उस के घर वाले उस से उम्र में 2 साल बड़ी लड़की से शादी करने की इजाजत देंगे?

और वही हुआ भी. सुषेन के घर वालों को उस की उम्र से बड़ी लड़की से शादी कर लेने पर घोर एतराज हुआ, पर शायद सुषेन मन ही मन ठान चुका था कि उसे अपने आगे की जिंदगी कैसे और किस के साथ गुजारनी है,
इसलिए उस ने पहले अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर नौकरी लगने के बाद सुरभि के साथ ब्याह भी रचा लिया.

सुषेन और सुरभि के ब्याह में सुषेन के घर से कोई नहीं आया था. मतलब साफ था कि उस ने घर वालों से बगावत कर के यह शादी की थी और इसी के साथ ही सुषेन के घर वालों ने उसे अपनी जायदाद से बेदखल कर दिया था.

सुरभि को पाने के लिए सुषेन ने अपना सबकुछ खो दिया था और इतनी पढ़ीलिखी और समझदार पत्नी पा कर वह मन ही मन बहुत खुश भी था. दोनों अपने जिंदगी मन भर कर जी लेना चाहते थे और इस के लिए उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी थी.

सुरभि खुश थी और सुषेन भी, पर अचानक उन की खुशियों को तब ग्रहण लग गया जब एक दिन शेव करते समय सुषेन को अपने होंठों के किनारे एक छोटा सा सफेद दाग दिखाई दिया.

सभी की तरह सुषेन ने भी यह सोच कर अनदेखा कर दिया कि शायद ज्यादा सिगरेट पीने की वजह से होंठ कुछ सफेद हो गया होगा, पर उस की चिंता कुछ महीनों बाद बढ़ गई, क्योंकि वह छोटा सा दाग अब न केवल बड़ा हो गया था, बल्कि उसी तरह के चकत्ते शरीर में और जगह भी हो गए थे.

“तो क्या मुझे सफेद दाग हो गया है?” सुषेन मन ही मन शक से बुदबुदा उठा था. ड़ाक्टर को दिखाया तो उस का डर सही निकला. सुषेन को सफेद दाग नामक बीमारी हो गई थी.

डाक्टर ने सुषेन से तनाव नहीं लेने को कहा और बताया कि यह बीमारी धीरेधीरे ही ठीक होती है, इसलिए बताए मुताबिक दवा खाते रहें. पर नियम से लगातार दवा खाने के बाद भी सुषेन के शरीर पर सफेद दाग फैलते ही गए.

‘आखिर मुझे सफेद दाग जैसी बीमारी कैसे हो गई, क्योंकि मैं तो बहुत साफसफाई से रहता हूं… जल्दी किसी से हाथ नहीं मिलाता और अगर मिलाना भी पड़ जाए तो तुरंत हाथों को सैनेटाइज़ करता हूं… फिर भी… मुझे… कैसे?… क्यों…’ वगैरह सवाल सुषेन के दिमाग में घूम रहे थे.

“लोग मुझे देख कर नजरें चुरा लेते हैं… मेरी सूरत की तरफ कोई देखना भी नहीं चाहता है… मैं क्या करूं?” एक दिन सुषेन ने अपने खास दोस्त राघव से कहा.

राघव ने उसे एक बाबा का पता बताया और कहा, “वे बाबा तुम्हारे बदन पर भभूत मलेंगे और कुछ तंत्रमंत्र… और बस तू भलाचंगा हो जाएगा.”

सुषेन बिना देर किए उस बाबा के पास पहुंचा. बाबा ने सुषेन को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, “यह सफेद दाग की बीमारी है जो पिछले जन्म के पाप कर्मों से ही पनपती है. तू ने जरूर किसी सफेद खाल वाले बेजबान जानवर को सताया होगा, इसीलिए तेरा खून खराब हो चुका है और तेरी खाल का रंग भी सफेद हो गया है.

“हमें तेरे खून को साफ करने के लिए सोनेचांदी की भस्म का लेप तेरे पूरे बदन पर लगाना होगा और सोने को गला कर उस का काढ़ा तुझे पिलाना होगा, तब कहीं जा कर यह बीमारी सही हो पाएगी, पर…”

“पर क्या बाबा?” सुषेन ने पूछा.

“क्या है कि इलाज थोड़ा महंगा होगा, इसलिए कुछ एडवांस भी जमा करना पड़ेगा तुझे,” बाबा ने कहा.

“कितना भी महंगा इलाज हो बाबा, आप बस मुझे ठीक कर दो. मैं तो समाज में बैठने लायक नहीं रह गया हूं. आप इलाज शुरू कीजिए, मैं पैसे का इंतजाम करता हूं,” यह कहते हुए सुषेन बहुत जोश में लग रहा था.

बाबा ने इलाज का खर्चा 50,000 रुपए बताया था और 25,000 रुपए पहले ही जमा करा लिए थे.

बाबा ने इलाज शुरू किया. सुषेन को कई तरह के काढ़े पिलाए गए, शरीर के ऊपर भभूत भी मली गई, पर उन सब चीजों से उसे फायदा मिलने के बजाय नुकसान ही होता गया.

धीरेधीरे सुषेन हर तरफ से इलाज करा कर हार गया था. पाखंडी तांत्रिकों, झोलाछाप डाक्टरों, मुल्लेमौलवियों सब ने सुषेन को बस लूटा ही था. अब कहीं न कहीं सुषेन भी यह मान चुका था कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है.

सुषेन एक तरफ तो इस बीमारी के चलते दिमागी तौर पर परेशान रहता था, दूसरी तरफ सामाजिक बहिष्कार ने उसे दुखी कर रखा था और तीसरी तरफ उसे यह भी लगने लगा था कि सुरभि की नजरों में अब उस के लिए प्यार की जगह तिरस्कार आता जा रहा है. अब वह पहले की तरह उस के पास नहीं बैठती थी और रात में उस के सोने के बाद वह अकसर सोफे पर चली जाती है और उसे शारीरिक संबंध भी नहीं बनाने देती है.

सुषेन को एहसास होने लगा था कि सुरभि अब उसे छोड़ देगी. सुरभि से इस बारे में पूछने पर उस का बड़ा सहज सा जवाब आया था, “हां.”

सुषेन के कानों में बहुतकुछ सनसनाता सा चला गया. उस ने जो सुना था, उस पर उसे भरोसा नहीं हो रहा था.

“बुरा मत मानना पर अब तुम्हें यह लाइलाज बीमारी हो गई है. तुम्हें तो इसी के साथ जीना होगा, पर मैं अभी जवान और खूबसूरत हूं. अपने पिछले जन्म के कर्मों का कियाधरा तुम भुगतो… मैं भला उस में क्यों पिसूं? मेरी और तुम्हारी राह आज से अलग है. मैं ने वकील से बात कर ली है. आपसी रजामंदी रहेगी तो तलाक आसानी से हो जाएगा…” और सुरभि ने बड़ी आसानी से इतनी बड़ी बात कह दी.

दोनों में तलाक हो गया. सुरभि कहां गई, यह जानने में सुषेन को कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह अब मन ही मन घुटने लगा था. तनाव हमेशा उस के दिमाग और चेहरे को घेरे रहता. खुदकुशी तक करने का विचार आया, पर सुषेन को लगा कि यह तो सरासर बुजदिली होगी.

सुषेन ने अपनेआप को संभाला तो थोड़ा सहारा उसे रमोला ने भी दिया, जो उस के साथ ही काम करती थी. रमोला यह भी जानती थी कि अगर इस समय सुषेन को सहारा नहीं दिया गया तो वह कुछ भी कर सकता है.

“सुषेनजी, क्या आज आप मुझे मेरे घर तक छोड़ सकते हैं? अंधेरा ज्यादा हो गया है और आजकल शहर में अकेली औरत का निकलना सही नहीं है,” एक दिन रमोला ने सुषेन से कहा.

“क्यों नहीं… बिलकुल छोड़ दूंगा… बस, 15 मिनट और रुक जाइए, फिर साथ ही निकलते हैं,” सुषेन ने हामी भरते हुए कहा.

दरअसल, रमोला एक तलाकशुदा औरत थी. उस के पति ने सांवला रंग होने के चलते उस से तलाक ले लिया था और अब वह अकेली ही जिंदगी काट रही थी.

जब सुषेन अपनी मोटरसाइकिल पर रमोला को उस के घर छोड़ने जा रहा था, तब उस ने महसूस किया कि रमोला उस से कुछ ज्यादा ही सट कर बैठी है. पहले तो सुषेन को लगा कि यह अनजाने में भी हो सकता है, पर जब लगातार रमोला ने अपने गदराए जिस्म को सुषेन के बदन से सटाए रखा तो वह समझ गया कि रमोला को मर्दाना जिस्म की जरूरत है.

“अंदर आ कर एक कप चाय तो पी लीजिए,” रमोला ने कहा तो सुषेन भी मना नहीं कर सका.

वे दोनों अंदर आए ही थे कि बारिश शुरू हो गई. रमोला किचन में चाय बनाने चली गई. सुषेन को रमोला का यह लगाव बहुत सुहा रहा था.

“रमोलाजी, आप मुझे अपने घर के कप में चाय पिला रही हैं. क्या आप को मुझ से कोई परहेज नहीं है? मेरा मतलब है कि मेरे इन सफेद दाग की वजह से?”

“नहीं सुषेनजी, मैं ने आप को आज से पहले भी देखा है. आज भी आप इतने हैंडसम हैं, जितना पहले थे.”

यह सुन कर सुषेन को बहुत अच्छा लगा और वह रमोला की तरफ खिंचता चला गया. रमोला भी मन ही मन सुषेन को पसंद करती थी, जिस का नतीजा यह हुआ कि उन दोनों में जिस्मानी संबंध बन गए. जब एक बार दोनों ने एकदूसरे के जिस्म को भोगा तो फिर प्यार का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि दोनों के बीच अकसर संबंध बनने लगे.

बाद में उन दोनों ने इस रिश्ते को एक नाम देने की सोची और आपस में शादी कर ली. दोनों एक दूसरे के साथ जिंदगी बिता कर बहुत खुश थे, पर सुषेन के मन में कहीं न कहीं अपनी बीमारी को ले कर निराशा भी थी, क्योंकि समाज में उसे एक छूत की बीमारी माना जाता था और उस ने महसूस किया कि देश में ऐसे न जाने कितने लड़केलड़कियां हैं, जिन की शादी इस बीमारी के चलते नहीं हो पाती है.

लिहाजा, सुषेन और रमोला ने इस दिशा में कुछ ठोस काम करने की सोची और अपने खर्चे पर ऐसी 2 लड़कियों की शादी कराई, जिन की शादी में अड़चनें आ रही थीं. इस काम में कुछ समाजसेवी संस्थाओं ने भी उन की पैसे से मदद की थी.

आज जीतोड़ मेहनत कर के उन्होंने देश में अपनी एक पहचान बना ली है और इस काम को ढंग से करने के लिए उन के पास एक शानदार औफिस भी है.

आज सुरभि को सुषेन की जिंदगी से गए पूरे 25 साल हो गए थे. सुषेन अपने औफिस में बैठा हुआ काम में बिजी था कि उस के चपरासी ने बताया, “सर, कोई आप से मिलना चाहता है.”

सुषेन ने अंदर बुलवाने को कहा. थोड़ी देर में एक औरत एक आदमी के साथ अंदर आई. उन के साथ शायद उन की भी बेटी थी.

25 साल का समय लंबा जरूर होता है पर इतना लंबा भी नहीं कि आप उसे पहचान न सकें, जिस से शादी करने के लिए आप ने अपने घर वालों से बगावत कर दी थी. यह सुरभि थी. सुषेन उसे देखते ही पहचान गया था.

“जी, बात यह है कि मेरी बेटी को सफेद दाग की बीमारी है और इसी वजह से उस की शादी में अड़चन आ रही है,” वह आदमी बोला.

‘तो यह सुरभि का पति है. इस का मतलब है कि मुझे छोड़ते ही सुरभि ने इस आदमी से शादी कर ली थी और यह लड़की भी इसी आदमी की है, क्योंकि मुझे तो सुरभि ने अपने पास ही फटकने नहीं दिया था,’ सुषेन के मन में यह सब चल रहा था.

“जी, ठीक है. आप अपनी बेटी का नाम और उस के फोटो हमारे पास जमा करवा दीजिए. हमारी तरफ से जो भी मदद होगी, वह आप को दी जाएगी,” सुषेन ने सुरभि को देखते हुए कहा जो उस की घनी दाढ़ी के बीच छिपे चेहरे को पहचान लेने के बाद भी अनजान बनने की कोशिश कर रही थी.

मैं पवित्र हूं: राज कौर पर भरोसा किसने किया

‘‘साहब, लड़की बहुत ही खूबसूरत है. जिस्म की बनावट देखें. खिला हुआ ताजा गुलदाऊदी है जनाब. रंगरूप कितना चढ़ा हुआ है. जनाब, आप तो इस तरह की रसदार जिस्म वाली लड़कियां ही पसंद करते हो… जनाब उठा लें, फिर मौका नहीं मिलने वाला?’’

जीप से थोड़ी दूर ही हवलदार की नजर उस लड़की पर जा पड़ी थी. सूरज अंबर के घौंसले में जा छिपा था. रात खतरनाक रूप ले कर और गहरी होती जा रही थी.

एक नया शादीशुदा जोड़ा हाथ में एक छोटी सी अटैची उठाए, नाजुकनाजुक प्यारीप्यारी बातें करता पैदल ही अपने गांव जा रहा था. गांव की दूरी तकरीबन एक किलोमीटर ही होगी. वे दोनों बस से उतर कर थोड़ी ही दूर गए थे कि पुलिस की जीप आहिस्ता से उन के पास से गुजरी.

इंस्पैक्टर ने जोश में आ कर ड्राइवर को कहा, ‘‘जीप मोड़ ले…’’ और अपनी  बांहें ऊपर को खींच कर 2-3 अंगड़ाइयां तोड़ लीं.

ड्राइवर ने जीप उस जोड़े के आगे जा कर खड़ी कर दी. हवलदार और इंस्पैक्टर नीचे उतरे.

हवलदार ने उस लड़के से पूछा, ‘‘ओए, कहां जाना है तुझे?’’

‘‘अपनी ससुराल से आ रहा हूं जनाब और अपने गांव जा रहा हूं. जनाब, कुछ दिन पहले ही हमारी शादी हुई है?’’

‘‘ओए, तू तस्करी करता है… तू अफीम बेचता है… इतने अंधेरे में ससुराल से आ रहा है?’’

‘‘जनाब, इस अटैची में सिर्फ कपड़े हैं और कुछ भी नहीं है,’’ उस लड़के ने कहा.

‘‘ओए, तू थाने चल. वहां जा कर पता चलेगा कि इस में क्या है…’’

‘‘जनाब, मेरा कुसूर क्या है? मैं कोई अफीम नहीं बेचता, कोई तस्करी नहीं करता. जनाब, मेरी अटैची देख लें.’’

‘‘चुप कर. हमें अभीअभी वायरलैस से खबर आई है कि एक नया शादीशुदा जोड़ा आ रहा है. उस के पास अफीम है. उन्होंने सारा हुलिया तेरा बताया है कि तू अफीम बेचता है.’’

‘‘जनाब, ऐसी कोई बात नहीं है. आप को गलतफहमी हुई है. मेरे गांव से पूछ लें… मैं प्रीतम सिंह हूं जनाब. मैं रेहड़ा चलाता हूं जनाब. मेरे मातापिता, बहनभाई सब घर में हैं. आप गांव से पता कर लो.’’

‘‘यह तो थाने जा कर ही पता चलेगा. कैसे बकबक करता है. हम को गलत सूचना मिली है?’’ कहते हुए हवलदार ने 5-7 थप्पड़ प्रीतम सिंह के गाल पर जड़ दिए. उस की पगड़ी खुल कर नीचे गिर गई और वह खुद भी. उन्होंने लातोंबांहों से उस की खूब सेवा कर दी.

प्रीतम सिंह की पत्नी राज कौर ने बहुत गुजारिश की, पर इंस्पैक्टर पर तो हवस का भूत सवार हो चुका था. उस ने राज कौर पर 3-4 थप्पड़ जड़ दिए. वह भी नीचे गिर गई.

इंस्पैक्टर ने हवलदार और सिपाही को कहा, ‘‘उठा कर जीप में फेंक दो इन  दोनों को. थाने ले चलो, देखते हैं कैसे  नहीं मानता.’’

सिपाहियों ने उन दोनों को जीप में धकेल लिया.

राज कौर रोरो कर कह रही थी कि जनाब छोड़ दो हमें, हम बेकुसूर हैं, पर सिपाही उन को गंदीगंदी गालियां निकाले जा रहे थे.

थाने में ले जा कर इंस्पैक्टर ने दोनों को हवालात में बंद कर दिया. राज कौर का जूड़ा खुल चुका था, बाल बिखर चुके थे. उन दोनों का रोरो कर बुरा हाल हो गया था.

इंस्पैक्टर ने हवलदार को तेज आवाज लगा कर कहा, ‘‘बड़ा सा पैग बना कर ला.’’

तकरीबन 55 साल के उस इंस्पैक्टर ने अपने सारे कपड़े ढीले कर लिए और गरम लहू में उबलता हुआ टांगें पसार कर कुरसी पर बैठ गया.

हवलदार बड़ा पैग बना कर ले आया और बोला, ‘‘जनाब, माल बहुत बढि़या है. ताजा गुलकंद है जनाब. खींच दो जनाब. यह मौका बारबार नहीं मिलेगा जनाब. पहले माल से यह माल अलग ही है, ताजातरीन है जनाब.’’

इंस्पैक्टर ने अपनी मूंछें अकड़ा कर एक ही सांस में पैग हलक के नीचे उतार लिया. उस की आंखों के डोरे तंदूर की तरह तपने लगे.

हवलदार ने कहा, ‘‘जनाब, एक पैग और ले आएं?’’

‘‘अभी नहीं, पहले उन की तसल्ली तो करवा दूं.’’

इंस्पैक्टर ने जाते ही प्रीतम सिंह के बाल पकड़ लिए और चिल्लाया, ‘‘कहां है तेरी अटैची ओए?’’

‘‘जनाब, आप के पास ही है. उस में कोई अफीम नहीं है.’’

हवलदार ने अटैची में अफीम रख दी थी.

‘‘जनाब, मैं बेकुसूर हूं. जाने दो जनाब. हमारे घर वाले इंतजार करते होंगे,’’ राज कौर ने इंस्पैक्टर के पैर पकड़ लिए. उस ने राज कौर का सुंदर मुखड़ा ऊपर उठा कर कामुकता से निहारा, जिस्म की गोलाइयां उस का नशा और तेज कर गईं.

राज कौर समझ गई थी कि कोई बुरा समय आने वाला है.

इंस्पैक्टर ने प्रीतम सिंह को नंगधड़ंग कर के उलटा लिटा कर खूब पिटाई लगाई. वह बेहोश हो गया.

राज कौर रोरो कर मिन्नतें कर रही थी.

इंस्पैक्टर ने हवलदार को इशारा किया, तो वह एक बड़ा पैग और बना कर ले आया. उस ने एक सांस में ही गटागट पूरा अंदर उतार लिया.

होंठों पर लगे पैग को उलटे हाथ से साफ करते हुए हवलदार को इशारे से समझाया.

हवलदार प्रीतम सिंह को बेहोशी की हालत में खींच कर दूसरे कमरे में ले गया.

राज कौर इंस्पैक्टर के पैर पकड़ रही थी, पर उस पर हवस का भूत सवार था. उस को महकमे का कोई डर नहीं था. उस के हाथ बहुत लंबे थे मिनिस्ट्री तक. उस की लगामें खुली थीं और आंखों का फैलाव कानों को छू रहा था.

इंस्पैक्टर ने नशे में कहा, ‘‘तेरे जैसा मखमल सा माल तो कभीकभार ही मिलता है. तेरे ऊपर केस नहीं डालूंगा, चिंता मत कर. तू किसी से बात मत करना. अगर किसी से बात की तो तेरे पति को जान से मरवा दूंगा…’’

इंस्पैक्टर ने राज कौर के जबरदस्ती कपड़े उतार फेंके और अपनी हवस की आग बुझाने की कोशिश की, पर गुत्थमगुत्था से आगे न जा सका और शांत हो कर अपने कमरे में चला गया.

राज कौर अपनी इज्जत के टुकड़ेटुकड़े समेटते हुए प्रीतम सिंह के पास जा कर रोए जा रही थी.

प्रीतम सिंह को पता चल गया था, पर क्या किया जा सकता था.

अगले दिन प्रीतम सिंह हवालात में था. राज कौर को डराधमका कर छोड़ दिया गया.

इंस्पैक्टर ने राज कौर से कहा, ‘‘अगर कोई भी बात जबान से बाहर निकाली तो तेरे पति को जेल में ही मरवा दूंगा. उस पर केस बनवा कर मार दूंगा. गांव में, घरबाहर किसी से कोई बात मत करना, अगर इस की जिंदगी चाहती?है तो… गांव में जा कर कहना कि इस से अफीम पकड़ी गई थी और पुलिस ने केस डाल कर जेल भेज दिया है.’’

राज कौर पहले ही इंस्पैक्टर की गुंडागर्दी व दहशत को जानती थी. उस ने कई लड़कियों की इज्जत से खिलवाड़ किया था और कई जायजनाजायज कत्ल करवाए थे.

राज कौर ने गांव में जा कर प्रीतम सिंह के मातापिता और भाईबहनों को बताया कि प्रीतम सिंह से अफीम पकड़ी गई?है. वह जेल में बंद है.

प्रीतम सिंह के भाइयों ने उस की जमानत करवा ली. खैर, केस के दौरान उस को कुछ महीनों की सजा हो गई. वह सजा काट कर आ गया था.

प्रीतम सिंह और राज कौर दोनों घर के कमरे में बैठे चुपचाप उस दिन को सोच कर रो रहे थे.

राज कौर पढ़ाई में बहुत होशियार थी. खूबसूरत जवान भरे बदन वाली. गरीब घर की होने के चलते वह मुश्किल से 10वीं जमात तक ही पढ़ पाई थी. मैट्रिक उस ने फर्स्ट डिविजन में पास की थी.

प्रीतम सिंह ने भी बारहवीं फर्स्ट डिविजन से पास की थी. बहुत पढ़नेलिखने में होशियार था, पर घर की तंगहाली के चलते वह आगे की पढ़ाई नहीं कर पाया था.

प्रीतम सिंह अपने इलाके में घोड़े वाला रेहड़ा चलाता था. यह पुश्तैनी धंधा था उस का. वह सरल स्वभाव का लड़का था.

रात को सोते समय राज कौर ने मायूसी में प्रीतम सिंह को तसल्ली देते  हुए कहा, ‘‘मैं ने कहा जी, आप दिल छोटा मत करें. जो होना था हो गया, कौन हमारी सुनेगा?

‘‘मैं चाहती तो खुदकुशी कर सकती थी. केवल अंजू के लिए जिंदा हूं. देखो, मैं बिलकुल पवित्र हूं, पवित्र रहूंगी. पर मैं पवित्र तब ही हो सकती हूं. अगर आप मेरा एक काम करेंगे तो…’’

प्रीतम सिंह ने कहा, ‘‘राज कौर, तू बेकुसूर है. मेरे लिए तो तू पवित्र ही है. तेरा बड़ा जिगरा है, अगर और कोई लड़की होती तो कब की खुदकुशी कर गई होती, पर तेरा जिगरा देख कर मुझे और ताकत मिली है. तू मुझे बता, मैं तेरी हर एक बात मानूंगा.’’

‘‘सरदारजी, मुझे केवल मक्खन (इंस्पैक्टर) का सिर चाहिए. जैसे भी हो कैसे भी. कोई ऐसी जुगत बनाई जाए कि हींग लगे न फिटकरी… मक्खन हम से ज्यादा नहीं पढ़ालिखा, वह सिपाही से इंस्पैक्टर बना है, बेकुसूर लड़कों को मारमार कर.’’

मैं आप को एक तरकीब बताती हूं. आप जेल में रहें. सारे गांव को पता था कि आप बेकुसूर हैं, पर किया क्या जा सकता था? मक्खन सिंह से सारा इलाका डरता है. उस की ओर कोई मुंह नहीं कर सकता.’’

दिन बीतते गए. प्रीतम सिंह ने सारा भेद अपने दिल में ही रखा. किसी से जिक्र नहीं किया.

राज कौर और प्रीतम सिंह ने कई दिनों के बाद एक योजना बना ली. इस योजना को अंजाम देने के लिए रास्ते ढूंढ़ने शुरू कर दिए.

मक्खन सिंह उन के गांव से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर वाले गांव का रहने वाला था. वह हर शनिवार की शाम को गांव आता था और सुबह तड़के ही अकेला सैर करने जाता था. मक्खन सिंह के घरपरिवार के बारे में सारी जानकारी 1-2 महीने में जमा कर ली थी.

प्रीतम सिंह ने अब एक ईंटभट्ठे से ईंटें लाने का काम शुरू कर लिया था. वह भट्ठे के और्डर के मुताबिक ही ईंटें गांवगांव पहुंचाता था.

मक्खन सिंह के गांव की ओर भी ईंटें छोड़ने जाना शुरू कर दिया था. उस ने मक्खन सिंह के आनेजाने की पूरी जानकारी हासिल कर ली थी. उस ने देखा कि वह हर शनिवार की रात को घर आता है और रविवार को दोपहर को जाता है. सुबह 5 बजे के आसपास अकेला ही सैर करता?है.

इस तरह कुछ महीने बीत गए. एक दिन प्रीतम सिंह ने पूरी जानकारी रखी. उस ने पता किया कि आज शनिवार की शाम को मक्खन सिंह घर आ चुका है. वह सुबह सैर पर जाएगा.

प्रीतम सिंह रात को ही रेहड़े पर ईंटें लाद कर घर ले आया. रात में उन दोनों ने रेहड़े के ऊपर लादी हुई ईंटों के बीच में से ईंटें इधरउधर कर के खाली जगह बना ली. 1-2 खाली बोरे तह लगा कर रख दिए और एक लंबी तीखी तलवार नीचे छिपा कर रख ली.

यह तलवार प्रीतम सिंह ने स्पैशल बनवाई थी. तलवार इतनी तेज धार वाली थी कि पेड़ के तने में मारे, तो एक बार में पेड़ को काट दे.

वे दोनों सुबह 4 बजे रेहड़े पर बैठ कर घर से निकल पड़े. पौने 5 बजे के आसपास मक्खन सिंह की कोठी से थोड़ी दूर जा कर अंधेरे में रेहड़ा खड़ा कर दिया और प्रीतम सिंह घोड़े की लगाम कसने लगा.

पूरे 5 बजे मक्खन सिंह अकेला ही घर से बाहर निकला. चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था. हाथ में स्टिक व सफेद कुरतापाजामा पहने मक्खन सिंह अपनी मस्त चाल में आराम से चलता जा  रहा था.

प्रीतम सिंह और राज कौर ने हिम्मत समेट कर रेहड़ा चला लिया. मक्खन सिंह अपनी मस्त चाल में चलता जा रहा था. गांव के बाहर थोड़ी दूर जा कर प्रीतम सिंह ने तलवार अपने दाएं हाथ की मुट्ठी में मजबूती से पकड़ ली.

राज कौर हिम्मत के साथ रेहड़े में बैठी रही. आहिस्ता से रेहड़ा नजदीक करते हुए प्रीतम सिंह ने ललकारा, ‘‘ओए, पापी तेरी ऐसी की तैसी…’’

जब मक्खन सिंह ने उस की ओर देखा, तो प्रीतम सिंह ने पूरी जान लगा कर इतनी तेजी से तलवार उस की गरदन पर दे मारी कि उस का सिर कट कर दूर जा पड़ा. उस की चीख भी निकलने नहीं दी.

प्रीतम सिंह ने जल्दीजल्दी उस का सिर बोरी में लपेट कर उठा लिया और ईंटों के बीच खाली जगह पर रख लिया.

रेहड़ा आसमान से बातें करने लगा. किसी को कोई खबर तक नहीं लगी.  5-6 किलोमीटर दूर जा कर नहर के किनारे राज कौर ने मक्खन सिंह का सिर निकाला और तलवार से उस के सिर के छोटेछोटे टुकड़े कर के नहर में फेंक दिए. इस के बाद वे दोनों घर आ गए.

राज कौर घर के अंदर चली गई और प्रीतम सिंह ईंटों का रेहड़ा ले कर किसी के घर पहुंचाने चला गया.

इलाके में खबर फैल गई कि मक्खन सिंह का कोई सिर काट कर ले गया है. उस के सिर काटने की खबर सुन कर इलाके में दहशत हो गई.

खुद पुलिस ने कोई बड़ी कार्यवाही नहीं की. केवल कानूनी दिखावे के लिए ही सारी कार्यवाही की गई.

पुलिस ने बहुत भागदौड़ की, पर कोई खोजखबर हाथ नहीं लगी. लोगों ने चैन की सांस ली.

कई लोग कहते सुने गए कि किसी मां के बहादुर बेटे ने यह काम किया है. इलाके का कलंक खत्म कर दिया. एक महाराक्षस का खात्मा कर दिया है.

शाम को प्रीतम सिंह रोजमर्रा की तरह रेहड़ा ले कर घर आता है. राज कौर नईनवेली दुलहन सी सजीसंवरी सी काम कर रही थी. उस के दिल में कोई डर नहीं था. अब बेशक उस को मौत भी आ जाए, कोई परवाह नहीं. बेशक फांसी ही क्यों न हो जाए, अब उस के चेहरे पर अलग किस्म का नूर था.

प्रीतम सिंह नहाधो कर अच्छे कपड़े पहन कर कमरे में दाखिल हुआ, तो राज कौर ने शरमा कर प्रीतम सिंह के गले में अपनी बांहें डालते हुए कहा, ‘‘सरदारजी, मैं पवित्र हूं.’’

प्रीतम सिंह ने राज कौर को जोर से छाती से लगा लिया.

वह चमकता सितारा : मशहूर होने के बाद भी क्यों वह गुमनाम जिंदगी जीने लगा

 Writer- सबा नूरी

सोने और हीरों की चकाचौंध वाली लाइट्स, छत से ले कर दीवारों तक अनेक कैमरे और कांच जैसे फर्श वाला विशाल मंच. मंच के एक ओर अनेक वाद्ययंत्र संभाले हुए वादक मंडली. मंच के बिलकुल सामने विराजमान 4 जजेस और उन के पीछे मौजूद दर्शकों का हुजूम.

यह दृश्य था एक सिंगिंग शो के सैट का. नाम की उद्घोषणा के साथ ही प्रियांश ने एक मीठी मुसकान लिए मंच पर प्रवेश किया. एक कर्णप्रिय धुन के साथ उस ने माइक के सामने खड़े हो कर अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेरना शुरू किया. उस की आवाज औडिटोरियम में खुशबू की तरह फैलने लगी थी. कुरसियों पर बैठे जज कानों में हैडफोन लगाए आंखे मूंदे ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो उस के गायन को अपनी रूह में  उतार लेना चाहते हों और दर्शक भी जैसे सांस रोक कर गीत को महसूस कर रहे थे.

गाना खत्म हुआ और हाल तालियों से गूंज उठा. ऐंकर्स ने दौड़ कर मंच संभाला और एक ने तो उसे कंधे पर उठा लिया. दर्शक ‘वंस मोर’ ‘वंस मोर’ के नारे लगाने लगे. जजेस ने स्कोर कार्ड से पूरेपूरे नंबर देने का इशारा किया. प्रियांश ने सभी का अभिवादन किया और फिर

अगले प्रतिभागी की बारी आई.

दरअसल, यहां ‘सिंगिंग स्टार’ की खोज कार्यक्रम में देशभर से चुनिंदा गायकों को अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए बुलाया गया था. अनेक युवकयुवतियां यहां मौजूद थीं.

प्रियांश भी अपने गांव से ‘सिंगिंग स्टार’ बनने का सपना लिए यहां मुंबई आया था. हां वह अलग बात थी कि कुछ समय पहले तक उस का लक्ष्य एक अच्छी सरकारी नौकरी पाना ही था और उस की जीतोड़ मेहनत और उस के पिता की कोशिश से उसे ग्राम पंचायत में सहायक के तौर पर चयन होने का चयनपत्र मिल चुका था.

इसी बीच सिंगिंग स्टार वाले टेलैंट की खोज में गांव आए और उन्हें प्रियांश की आवाज इतनी भा गई कि उन्होंने उसे मुंबई बुला लिया और बचपन से गाने के शौकीन रहे प्रियांश को जैसे सपनो का जहान मिल गया. अब उसे सहायक पद की सरकारी नौकरी में कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था.

प्रियांश एक मृदुभाषी, होनहार और आज्ञाकारी युवक था. लेकिन न जाने इस ग्लैमर की दुनिया में क्या आकर्षण था कि मातापिता के न चाहते हुए भी वह गायकी की दुनिया में नाम कमाने मुंबई आ गया.

फिल्मसिटी की चकाचौंध ने उसे आसमान में उड़ने के पंख दे दिए थे. अपने गांव में रहते हुए वह कभी इस ग्लैमरस दुनिया का हिस्सा नहीं बन सकता था. बड़ीबड़ी गाडि़यों से उतरती छोटेछोटे कपड़े पहने हाई हील्स पर चलती हसीनाएं. महंगे जूतोंकपड़ों में इठला कर चलते आदमी. सबकुछ इतने नजदीक से देख और महसूस कर पाना कोई मामूली बात न थी. उसे भी स्टेज पर गाना गाने का और टीवी पर आने का मौका मिलने वाला था. कुछ ही समय बाद ये ऐपिसोड्स टीवी पर आएंगे यह सोच कर ही वह रोमांचित हो उठता.

आयोजकों की ओर से सभी प्रतिभागियों को फाइवस्टार होटल में ठहरने का अच्छा प्रबंध किया गया था. सैपरेट कमरों में सभी को रहनेखाने की उच्च स्तरीय सुविधाएं दी गई थीं. ऐसी भव्य इमारतों में एक दिन भी रहने को मिल जाए तो लगता है कि कहीं स्वर्ग में आ गए हों. ऐसे में यह अनुभव तो दुनिया बदलने वाला था.

होटल से शूटिंग साइट पर प्रतिभागियों को लाने ले जाने के लिए शो की तरफ से गाडि़यां उपलब्ध थीं. इस के अलावा कहीं और आनेजाने की अनुमति इन लोगों को नहीं थी. बस सप्ताह में एक बार प्रबंधक से अनुमति ले कर ये प्रतिभागी कहीं बाहर जा सकते थे.

उस दिन प्रियांश ने अपने साथियों रेहान, कुणाल और अमन के साथ मुंबई घूमने की योजना बनाई. रेहान बीटैक प्रथम वर्ष का छात्र था, जोकि पुणे में रह कर पढ़ाई कर रहा था, वहीं कुणाल के पिता का रामपुर में कपड़े का व्यापार था. चौकलेटी लुक वाले कुणाल को उस का सिंगिंग का शौक यहां खींच लाया था तो अमन ने बीकौम अंतिम वर्ष की परीक्षा दी थी और अपने घर जयपुर से ही मैनेजमैंट के कोर्स की तैयारी करना चाह रहा था. संगीत के साथसाथ शौहरत, ग्लैमर और वाहवाही किसे नहीं अच्छी लगती. बस इसी आकर्षण ने इन सब को यहां पहुंचा दिया था.

मैनेजर से अनुमति ले कर ये लोग निकल पड़े. दिनभर घूमफिर कर शाम को डूबते सूरज को निहारने के इरादे से ये सब जुहू चौपाटी पहुंच गए. समुद्र की चंचल लहरों और ठंडी हवा के साथ शाम कब रात में तबदील हो गई पता ही न चला. रंगबिरंगी रोशनियों में जुहू बीच और सुंदर लग रहा था. थोड़ी भूख लग आई थी  तो इन्होंने ने बीच पर ही स्थित एक रैस्टोरैंट का रुख किया. समुद्र के रेत पर आकर्षक रंगीन छतरियों के नीचे कुरसीमेज, हलका पार्श्व म्यूजिक इस स्पौट को और अधिक लुभावना बना रहा था.

‘‘क्या और्डर किया जाए?’’ प्रियांश ने पूछा.

‘‘कुछ हलका ही लेंगे डिनर तो होटल में ही करना है,’’ अमन ने उत्तर दिया तो रेहान ने भी हां में सिर हिला कर उस का साथ दिया.

‘‘ओके. 1-1 वड़ा पाव और चाय?’’

‘‘ठीक है,’’ प्रियांश के प्रस्ताव पर तीनों ने अंगूठे के इशारे से सहमति दी.

प्रियांश ने वहां इशारे से एक युवक को पास बुलाया और और्डर बता दिया. कुछ ही देर में वह युवक ट्रे में चाय और नाश्ता ले कर आता हुआ नजर आया और बहुत धीमेधीमे चाय और नाश्ते की प्लेटो को मेज पर रखने लगा. प्रियांश ने देखा कि उस युवकों के हाथ कांप रहे हैं. कांपते हाथों को देख कर उस ने उस युवक की ओर ध्यान दिया और बड़े गौर से उस के चेहरे की ओर देखा और फिर तो उछल ही पड़ा प्रियांश और उस युवक का हाथ अपने दोनों हाथों में थाम लिया. इस हरकत से युवक घबरा गया और हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगा और प्रियांश उसे देखते हुए कहता जा रहा था कि तुम. तुम तो अभि हो. तुम तो अभि हो न…

इसी बीच किसी तरह अपना हाथ छुड़ा कर वह युवक तेजी से रैस्टोरैंट में अंदर की ओर भाग खड़ा हुआ. प्रियांश भी खुद को उस के पीछे भागने से रोक न पाया और अंदर काउंटर तक पहुंच गया.

‘‘क्या हुआ क्या चाहिए?’’ एक भारी आवाज सुन कर वह पलटा. सफेद मलमल का कुरता, सफेद पाजामा, वजनदार काया, बालों और दाढ़ी में बराबर की सफेदी और सिर पर टोपी रजा साहब उसे वहां देख कर पूछ रहे थे.

‘‘सर वह जो अभी अंदर गया है वह.’’

‘‘कोई नहीं है वह जाओ यहां से…

‘‘सर वह मेरे गांव का ही है और मैं…’’

‘‘अरे कहा न जाओ यहां से.’’

रैस्टोरैंट के मालिक रजा साहब बात के पक्के थे और बड़े भले आदमी थे. कैसे बता देते जब मना किया गया था तो. किसी का भरोसा तोड़ना उन की फितरत न थी.

प्रियांश भारी कदमों से वापस आ गया. इधर रेहान और कुणाल प्रियांश की इस हरकत पर हंस हंस कर लोटपोट हुए जा रहे थे.

‘‘यार कोई आशिक भी लड़की के पीछे ऐसे नहीं भागता जैसे तू उस लड़के के पीछे भागा है,’’ कुणाल जोरों से हंस रहा था.

‘‘हंस मत यार तू नहीं जानता वह कौन है.’’

‘‘होगा तेरे गांव का कोई लड़का और तू बेचारे की पोलपट्टी खोल देगा गांव में इसीलिए छिप रहा है तु?ा से,’’ अब रेहान की बात पर कुणाल ने भी हामी भरी.

‘‘ऐसा नहीं है,’’ प्रियांश ने जोर दे कर कहा.

‘‘ऐसा है हम लेट हो गए हैं, टाइम पर वापस होटल पहुंचना है,’’ अमन अपनी कुसी से उठ खड़ा हुआ और इन सब ने वापसी की राह पकड़ी.

 

रात के 2 बज गए थे मगर प्रियांश को नींद नहीं आ रही थी. उसे रहरह कर अभिलाष

का चेहरा याद आ जाता. हां अभिलाष ही था वह. कितना स्मार्ट दिखता था पहले वह और अब तो दुबला, शरीर सांवली पड़ चुकी रंगत, आंखों में सूनापन. कैसे सब गांव में मिसाल दिया करते थे अभिलाष की. फिर कहां गया वह कुछ पता न चला. रातोंरात मिली शोहरत तो नजर आती है लेकिन बाद में उस मशहूर शख्स के साथ क्या हुआ यह नहीं पता चलता.

अगली ही सुबह प्रियांश ने प्रबंधक से बाहर जाने देने का अनुरोध किया पर उसे अगले सप्ताह ही जाने की अनुमति मिल पाई. किसी तरह एक सप्ताह बीता और वह सीधा रैस्टोरैंट मालिक रजा साहब के पास जा पहुंचा. उसे भरोसा था कि वही उस की मदद कर सकते हैं. प्रियांश ने उन्हें अपने बारे में सबकुछ बताया. रजा साहब को अपनी नेक नीयत का यकीन दिलाना आसान नहीं था. प्रियांश ने अपने घर पर फोन कर के अपने पिता से उन की बात कराई और बताया कि वह उस युवक का भला चाहता है. तब वे प्रियांश को अंदर कमरे में ले गए और एक ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘हां, चला गया वह यहां से,’’ और फिर जो कुछ उन्होंने बताया उस के बाद तो प्रियांश के पैरों तले जमीन खिसक गई.

उन्होंने बताया, ‘‘ऐसे न जाने कितने लोग आते हैं मुंबई, वह भी आया था. अपनी पहचान छिपाए यहां काम कर रहा था. अब दिक्कत यह है कि कहीं छोटामोटा काम मिल जाता है तो तुम जैसे लोग पहचान लेते हो. फिर वही लोगों के सवालजवाब पिछली बातों को याद दिला देते हैं. पिछले 1 महीने से यहां काम कर रहा था वह, किसी तरह अवसाद से निकलने की कोशिश में. रीहैब सैंटर में कई माह बिताने के बाद इस लायक हुआ था कि अपने पैरों पर खड़ा हो सके.’’

प्रयांश ने अपना सिर पकड़ लिया. रजा साहब ने उस के कंधे थपथपाए और पानी पिलाया. फिर एक कपड़े का बैग उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह कुछ सामान उस का यहीं रह गया है. तुम कभी गांव जाओ तो उस के घर पर दे देना.’’

प्रियांश दुखी मन से होटल के कमरे पर वापस आ गया. वह रहरह कर अपराधी सा महसूस कर रहा था. उस ने उस थैले को दोनों हाथों में उठाया और सीने से लगा कर रो पड़ा. कुछ शांत हुआ तो उसे उस थैले में कुछ कागज जैसे रखे मालूम हुए. उस ने बैग को खोला कुछ पुराने कपड़े, दवाइयों के अतिरिक्त उस में एक लिफाफा भी था. लिफाफा खोलने पर मिली एक चिट्ठी आज के जमाने में चिट्ठी और उस पर भी कोई पता नहीं लिखा था. उस ने उस चिट्ठी को पढ़ना शुरू किया:

‘‘मेरे प्यारे साथियो,

‘‘यह चिट्ठी मैं तब लिख रहा हूं जब मेरे सभी चाहने वाले मु?ो भूल चुके हैं. नाम भी बता दूं तब भी शायद ही किसी को याद आऊं क्योंकि ऐसे न जाने कितने नाम रोशन हुए और खो गए. किसकिस को याद रखा जाए.

 

‘‘एक वक्त था जब मेरा सितारा बुलंदियों पर था. मैं था

‘सिंगिंग स्टार औफ इंडिया.’ चारों ओर मेरे सिंगिंग टेलैंट की धूम मची हुई थी. मु?ो चैनल्स से इंटरव्यू के लिए कौल आ रहे थे. सोशल मीडिया पर मैं ही छाया हुआ था. मु?ो जैसे रातोंरात किसी ने आसमान पर बिठा दिया था.

‘‘दरअसल, मैं बिहार के छोटे से गांव माधोपुर का आम सा लड़का. मु?ो बचपन से ही गाने का शौक था और लोकगीत मंडलियों में मैं गाया करता था. मेरे गांव में आए ‘सिंगिंग स्टार’ की खोज वालों को मेरी आवाज भा गई और उन्होंने मु?ो शो के लिए मुंबई आने का औफर टिकट के साथ दे दिया.

‘‘बस फिर क्या था? मैं मुंबई पहुंच गया. एक सुपरहिट सिंगिंग शो में कंटैस्टैंट के तौर पर मेरी ऐंट्री हुई. हर ऐपिसोड में अन्य प्रतिभागियों के साथ मेरा कंपीटिशन होता और मैं एक के बाद एक लैवल पार करता गया.

‘‘वहां कुरसी पर बैठे जजेस मेरे गाने और आवाज की भरपूर तारीफें करते, मेरी हरेक परफौर्मैंस पर फिदा हो जाते, अदाएं दिखाते और नएनए तरीकों से मेरे टेलैंट का बखान करते.

‘‘तब वहां ऐपिसोड की शूटिंग के दौरान मु?ो एक नई चीज पता चली जिसे ‘टीआरपी’ कहते हैं. चैनल को और अधिक टीआरपी चाहिए थी.

‘‘फिर एक दिन उन्होंने मु?ा से कहा कि मैं अपनी मां और बहन को मुंबई बुला लूं. वे मु?ो यहां स्टेज पर देख कर बहुत खुश होंगी. बस फिर तो मेरी मां और मेरी नेत्रहीन बहन भी अब शो के हर ऐपिसोड का हिस्सा बनने लगी. मेरी मां की गरीबी और बहन की नेत्रहीनता ने चैनल की ‘टीआरपी’ को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया. मैं बहुत खुश था. खुश तो मां भी बहुत थी.

‘‘अब जैसे ही मेरा गाना पूरा होता तो वहां बैठे दर्शक मेरी कहानी पर आंसू बहाते. मेरी मां और बहन की बेबसी टीवी पर हाथोंहाथ बिक रही थी. एक अच्छी बात यह थी कि उन में से कई जजेस ने मु?ा से शो के दौरान वादा किया कि वे मु?ो अपने आने वाले म्यूजिक अलबम्स में काम देंगे और मेरी आर्थिक मदद करेंगे.

‘‘दर्शकों के प्यार और जजेस की भरपूर प्रशंसा ने जैसे मु?ो पंख लगा दिए थे. लगभग हर ऐपिसोड में मेरी गरीबी और लाचारी की चर्चा होती. उन्होंने मेरे गांव के घर का वीडियो भी बनाया था, जिस में घर के परदों पर लगे पैबंदों को बड़ी बारीकी से दिखाया गया था. मेरे दोस्तों, रिश्तेदारों से बात भी कराई थी. सब ने भरभर कर मेरी तारीफें की थीं. सबकुछ किसी सपने जैसा लग रहा था. मु?ा जैसे आम से व्यक्ति को आज इन बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए मैं इन शो वालों का बेहद एहसानमंद था.

‘‘और फिर वह दिन भी आया जब शो का फाइनल ऐपिसोड हुआ और ये वह खूबसूरत दिन था जब मैं ‘सिंगिंग स्टार औफ द इंडिया’ चुन लिया गया.

‘‘मु?ो शो जीतने के एवज में आयोजकों की ओर से एक अच्छी रकम का चैक दिया गया. खिताब जीतने के बाद तो मेरी दुनिया ही बदल गई.

‘‘सोशल मीडिया चैनल्स पर मेरे फोटो, वीडियो फ्लैश होते रहते. मेरी गरीबी और कामयाबी की कहानियां सुनाई जातीं. मु?ा से टीवी ऐंकर मेरी सुरीली आवाज के राज पूछते. लगभग रोज ही किसी न किसी शो में शामिल होने के लिए मेरे पास फोन आते रहते. इसी बीच मु?ो मेरे गांव की ओर से स्वागत निमंत्रण मिला.

‘‘गांव पहुंचने पर मेरा जोरदार स्वागत हुआ. फूलमालाओं से लाद कर मु?ो खुली जीप में घुमाया गया. अपने पीछे भीड़ चलती देख मैं खुशी से गदगद हो जाता.

‘‘मैं बहुत खुश था. अब हमने गांव में अपना पक्का मकान बना लिया और नए परदे भी लगा लिए थे. दोस्त, रिश्तेदार सभी बहुत इज्जत दे रहे थे. लेकिन अब काम के सिलसिले में मु?ो मुंबई में ही रहना था तो हम ने एक फर्नीश्ड फ्लैट किराए पर ले लिया. किराया काफी ज्यादा तो था लेकिन यह फ्लैट जरूरी था हमारे लिए. कई महीने हंसीखुशी में बीत गए. लेकिन वह कहते हैं न कि रातोंरात मिली कामयाबी ज्यादा देर तक नहीं टिकती, तो वही हुआ.

‘‘इनाम की धनराशि अब खत्म होने लगी थी. मु?ो चिंता होने लगी थी क्योंकि अभी तक मेरे पास कोई काम नहीं था. मुंबई जैसे बड़े शहर में रहनसहन के लिए अच्छी आमदनी का होना बहुत जरूरी था.

‘‘मैं ने 1-1 कर उन सभी म्यूजिक डाइरैक्टर्स को कौंटैक्ट किया जिन्होंने शो के दौरान मु?ो अपने फोन नंबर दिए थे और काम देने का वादा किया था. मगर फिर जो हुआ उस की मु?ो उम्मीद नहीं थी क्योंकि कोई भी मेरा फोन नहीं उठा रहा था.

‘‘किसी प्रोड्यूसर की पीए से बात हुई भी तो उस ने ‘सर बिजी हैं’ कह कर फोन काट दिया और बाद में तो वे सभी नंबर बंद ही आने लगे. मु?ो काम देने के जो कौंट्रैक्ट कैमरे के सामने साइन किए गए थे वे कागज मेरे सामने पड़े मुंह चिढ़ा रहे थे.

 

‘‘धीरेधीरे मेरी ख्याति कम होने लगी और साल खत्म होतेहोते मेरा

क्रेज बिलकुल खत्म हो गया. मैं बहुत परेशान रहने लगा. थक कर मैं अपने गांव वापस आ गया और फिर से अपनी मंडलियों का रुख किया. लेकिन वहां तो पहले ही बड़ा कंपीटिशन था. जो लोग गाने के लिए चयनित हो चुके थे वो किसी और को अपनी जगह नहीं दे रहे थे. कुल मिला कर मेरे पास कोई काम नहीं था. मेरी मां को वापस अपना सिलाई का काम शुरू करना पड़ा.

‘‘मैं अवसाद का शिकार हो चुका था. एक दिन मैं ने नींद की गोलियां खा कर अपनी जान देने की कोशिश की. मगर बचा लिया गया. मेरे कुछ साथियों ने मु?ो शहर ले जा कर मानसिक चिकित्सक को दिखाया. यहां से मु?ो रिहैबिलिटेशन सैंटर भेज दिया गया. कई महीने रिहैब में गुजारने के बाद मेरी स्थिति पहले से बेहतर तो हो गई, मगर पिछली जिंदगी में लौटने के भी सारे दरवाजे बंद हो चुके थे.लोग मु?ो पहचान जाते और हंसते मु?ा से तरहतरह के सवाल पूछते और आगे बढ़ जाते.

‘‘यह दुनिया सिर्फ उगते सूरज को सलाम करती है. मु?ो किसी से कोई शिकायत नहीं. अब मु?ो सम?ा आ चुका था कि यह कामयाबी यह शोर मेरा नहीं था. यह तो बस चैनल वालों का था. शो खत्म मैं भी खत्म. फिर किसी अगले शो के अगले सीजन में किसी मु?ा जैसे गरीब छोटे गायक को शिकार बनाया जाएगा. हां. मैं एक दिन इस अंधेरे से बाहर जरूर निकल आऊंगा. इंतजार में एक गुमनाम गायक ‘‘अभिलाष.’’

पत्र पढ़ कर प्रियांश की आंखों से आंसू बह निकले. जैसे अपना ही आने वाला कल उस की आंखों के सामने आ गया. साल दर साल कितने ही गायक ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेते हैं मगर कुछेक के अलावा बाकी सब न जाने कहां गुम हो जाते हैं. क्या वह खुद भी कल ऐसे ही… नहीं. ऐसा नहीं होगा. अपने मातापिता का चेहरा उस की नजरों के सामने घूम गया. तो फिर किया क्या जाए? क्या हाथ आए अवसर को ऐसे ही ठुकरा दे? उस के माथे पर पसीने को बूंदें उभर आईं.

तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई. दरवाजा खोलने पर सामने अमन और रेहान तैयार खड़े थे, ‘‘क्या हुआ? रियाज करने नहीं चलना,’’ पूछते हुए अमन ने उस के हाथ से वह पत्र ?ाटक लिया और पढ़ने लगा. पत्र देख रेहान भी उस के साथ शामिल हो गया. तभी कुणाल भी वहीं आ गया और पत्र देख सारी बात सम?ाते उन्हें देर न लगी.

‘‘यार, तो उस दिन वह युवक अभिलाष था?’’ अमन ने पत्र रखते हुए अचरज से पूछा.

‘‘हां,’’ प्रियांश सोफे पर निढाल हो गया.

विशाल,कीर्ति, सिद्धार्थ… फिर तो कितने ही नाम याद आ गए जो किसी न किसी सीजन में विनर रहे थे मगर आज किसी को याद तक नहीं.

‘‘गाइज सब के साथ बुरा नहीं होता. आई एम श्योर वह और बाकी सब भी कहीं न कहीं सैटल हो ही गए होंगे लाइफ में,’’ अमन बोला.

‘‘औफकोर्स,’’ रेहान ने कहा.

‘‘लेकिन सवाल तो उन का है जो कहीं के नहीं रहे.’’

‘‘हां,’’ तीनों ने एक सुर में कहा, ‘‘और सवाल यह भी है कि हम क्या कर सकते हैं.’’

‘‘यार अभिलाष को अवसाद से निकालने की कोशिश तो हमें करनी चाहिए,’’ अमन ने कहा और फिर उन्होंने अगली शूटिंग के सैट पर आयोजकों से मिलने की योजना बनाई.

 

प्रोडक्शन टीम को लड़कों की कोशिश अच्छी लगी. इसीलिए उन्होंने

प्रोड्यूसर आदित्य सर के साथ मीटिंग कर के तय किया कि वे 2 ऐपिसोड्स इस शो के भूलेबिछड़े लेजैंड्स गायकों को केंद्र में रख कर प्लान कर लेंगे. लेकिन अभिलाष या उस जैसे और भी किसी लेजैंड को प्रोडक्शन टीम के पास लाने की जिम्मेदारी ये लोग लें तो. इन लड़कों ने इस के लिए हामी भर दी.

अगले ही दिन ये चारों रजा साहब के पास रैस्टोरैंट पहुंचे और पूरी बात बताई. उन्होंने यहां काम करने वाले सभी लड़कों को बुलाया और इन लोगों से मिलवाया उन में से एक ने उन्हें एक ‘एनजीओ’ का पता दिया. शहर के कोलाहल से कुछ दूर स्थित इस बिल्डिंग को खोजने में कोई खास दिक्कत न हुई. लेकिन असल दिक्कत तो अभी बाकी थी और वह थी और्गेनाइजेशन की निरीक्षक और डाक्टर माहिरा आलम जो किसी भी अपरिचित को अपने किसी पेशैंट से मिलने नहीं देती थीं. उन का कहना था कि अनजान लोग सिर्फ दिल्लगी के लिए ही इन अवसादग्रस्त लोगों के पास आते हैं और इन के जख्मों को छेड़ कर फिर से ताजा कर देते हैं.

कोई घंटे भर के इंतजार के बाद आखिरकार एक वार्ड बौय ने आ कर खबर दी कि डाक्टर अब फ्री हैं. अब वे उन से मिल सकते हैं. लंबे कद की उजली रंगत वाली डाक्टर माहिरा अपने सवालिया अंदाज में रूबरू थीं.

‘‘आज अचानक कैसे याद आ गई आप सब को? अभिलाष करीब 1 साल से यहां हैं और इतने अरसे में मैं ने आप में से किसी को नहीं देखा न ही आप के बारे में कुछ सुना. तो फिर अब कैसे? और जब वह अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने बाहर की दुनिया में गया भी तो कुछ लोगों की मेहरबानी से वापस यहीं आ गया.’’

‘‘वे लोग हम ही थे,’’ प्रियांश, रेहान, अमन और कुणाल की चोर नजरों ने जैसे एकदूसरे से यही कहा.

डाक्टर का सवाल जायज था. लेकिन अब कैसे वे इन्हें सम?ाएं कि अभिलाष में खुद को देख रहे थे वे. इस आम से लड़के को जब शोहरत की बुलंदियों पर देखा था उस दिन के बाद वे और न जाने कितने लड़के उस जैसा बनने के सपने देखने लगे थे, जिसे आज तक टीवी पर गाते देखासुना उस की ऐसी दुर्दशा की कल्पना भी करना मुश्किल था और ऐसे में जब वह सामने आया तो उस की यह हालत देख कर यों ही छोड़ दें. यह इन से हो न सका और फिर यह कुदरत का करिश्मा है जो लोगों को एकदूसरे से मिला देती है.

मगर डाक्टर को इस से क्या. उन्हें थोड़े ही इस तरह तसल्ली हो जानी थी. उन के अनुसार तो लोग सिर्फ स्टोरी के लिए ही यहां आते हैं.

मगर ‘जहां चाह वहां राह’ तो लड़कों ने भी ठान ली थी कि ऐसे हार नहीं मानेंगे. उन्होंने सीधा प्रोडक्शन हाउस के ओनर आदित्य सर से संपर्क किया और डाक्टर माहिरा से उन की बात करा दी. बस फिर क्या था डाक्टर के पास इन की बात पर भरोसा करने के अलावा कोई चारा न था. इसीलिए कुछ जरूरी हिदायतें दे कर उन्होंने इन्हें मिलने की इजाजत दे दी.

थोड़ी औपचारिकताओं के बाद एक वार्ड बौय ने इन लोगों को एक हालनुमा कमरे पर पहुंचा दिया और वहां से चला गया. अंदर पहुंचने पर इन्होंने देखा कि वह दीवार की ओर मुंह किए बैठा था.

‘‘अभिलाष,’’ नाम पुकारने पर उस ने पलट कर देखा वही चेहरा, वही आंखें, वही अभिलाष.

‘‘हम तुम्हें लेने आए हैं. हमें पता है तुम इस अंधेरे से निकलना चाहते हो.’’

उस ने उन की बात को सुन कर भी अनसुना कर दिया. शायद ऐसी बातों से भरोसा टूट चुका था उस का.

‘‘अभिलाष मैं, मैं प्रियांश, पहचाना? मैं भी माधोपुर से हूं. हम जानते हैं तुम ने बहुत दुख देखे हैं लेकिन अब मुश्किल समय बीत चुका है और एक नई दुनिया तुम्हारा इंतजार कर रही है. हमारा विश्वास करो. कहो तो ‘सिंगिंग स्टार की खोज’ के प्रोडक्शन हाउस से बात करा दें?’’ अमन ने अभिलाष का हाथ पकड़ कर कहा.

 

वह अपनी जगह से उठा और बाहर की ओर जाने लगा. तभी रेहान ने अपना फोन उस

की तरफ घुमा दिया. दूसरी तरफ मां और बहन को देख कर यह टूटा दिल भी अपने जज्बात काबू में न रख सका और बिखर गया.

‘‘‘बेटा, ये लोग कई दिनों से मेरे से संपर्क में हैं. इन्होंने तेरे लिए अच्छा सोचा है. तू कोशिश कर और आगे बढ़ आगे सब अच्छा होगा. मेरा अच्छा बेटा,’’ मां ने विश्वास दिलाया.

उस के साथियों ने अभिलाष को उस का पत्र मिलने से ले कर प्रोडक्शन टीम से बात कर लेने तक की सारी कहानी सुनाई. उन्होंने बताया कि वे और पूरी टीम उसे गुमनामी के अंधेरे से निकालना चाहती है. सच्ची बात सच्चे दिल तक पहुंच ही जाती है और जब कोई खुद ही अंधेरे से निकलने की कोशिश में हो तो मदद के लिए मिला हाथ ठुकराने की हिम्मत नहीं होती.

उन्होंने अभिलाष का विश्वास जीत लिया था. उन की बातों से उस की आंखों में चमक नजर आई. साथ ही उन्होंने अभिलाष को खुशखबरी सुनाई कि डाइरैक्टर आदित्य सर ने एक स्कूल में भी संगीत शिक्षक के तौर पर तुम्हें काम दिलाने के लिए आवेदन करवा दिया है.

‘‘और तुम्हारा क्या? कहीं कल तुम भी मेरी तरह…’’ अभिलाष ने प्रियांश से सीधा सवाल किया.

‘‘दरअसल, हम चारों को ही सम?ा आ

गया है कि चाहे यहां से जीत के जाएं या बीच

में ही शो से बाहर हो जाएं हम अपनी जड़ों

को नहीं छोड़ेंगे. मैं यहां से जा कर अपनी

सहायक की नौकरी जौइन करूंगा और यह अपनी पढ़ाई पूरी करेगा और ये दोनों अपने पापा का बिजनैस देखेंगे.’’

‘‘मतलब लौट के बुद्धू …’’

‘‘न… न… लौट के सम?ादार अनुभव ले कर आए,’’ अमन के मुंह से निकले अनोखे मुहावरे पर वे सब हंस पड़े. यहां अब उम्मीद की एक नई किरण का उदय हो चुका था.

ढाई अक्षर प्रेम के : धर्म के नशे में चूर तरन्नुम के साथ क्या हुआ

मुंबई की मल्टीकल्चरल कही जाने वाली किनारा हाउसिंग सोसाइटी आज अचानक कुछ दबंग टाइप लड़कों के चीखनेचिल्लाने से दहल उठी थी. आमतौर पर एकदूसरे की निजी जिंदगी में न झांकने वाले यहां के लोग आज अपनेअपने घर की बालकनियों से ?ांकने पर मजबूर हो गए थे.

लगभग 10-15 लड़कों की भीड़ एक युवक को जिस की उम्र शायद 25 साल रही होगी, को जबरदस्ती उस के कमरे से खींचते हुए बाहर ले आए थे. उस युवक के पीछेपीछे दौड़ती हुई एक लड़की जिस की उम्र भी शायद उस युवक की उम्र जितनी ही रही होगी, भीड़ से उस लड़के को छोड़ देने की याचना कर रही थी.

लड़के को भीड़ से छुड़ाने की गुहार लगाती हुई लड़की की तरफ इशारा करते हुए भीड़ में से एक लड़का जिस का नाम प्रताप था चिल्लाते हुए कहता है, ‘‘यह लड़की तुम्हें मुसलमान बना देगी. अरे तुम्हारा खतना करवा देगी. हम यह नहीं होने देंगे. अरे इस लड़के की तो मति मारी गई है जो एक मुसलिम लड़की के बहकावे में आ कर अपना धर्म भ्रष्ट करने चला है.’’

‘‘बिल्कुल सही कह रहे हो. यह तो अच्छा हुआ कि हमें वक्त रहते मालूम हो गया और तुम लोगों को खबर कर दी वरना अनर्थ हो जाता,’’ पुनीत ने भी उन सबों की हां में हां मिलाई.

‘‘मैं किस के साथ रहता हूं. किस से शादी करता हूं, यह मेरी मरजी है, मेरी निजी जिंदगी है. धर्म के नाम पर तुम लोगों को दखल देने का हक किस ने दे दिया?’’ वह युवक जिस का नाम जीवन था, उन लड़कों की पकड़ से खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश करते हुए बोला.

‘‘कल को यह लड़की तुम्हें गाय का मांस खिलाएगी, तुम्हारा खतना कराएगी इस से क्या

हमें फर्क नहीं पड़ेगा? प्रताप ने एक जोरदार थप्पड़ जीवन के गाल पर लगाते हुए कहा, ‘‘इस से तो अच्छा है कि मैं तुम्हारी जीवनलीला ही खत्म कर दू,’’ कहते हुए प्रताप ने क्रोध में तलवार निकाल ली.

क्रोध ने इन लड़कों को पागल कर दिया था. क्रोध और आवेश में ये लड़के कुछ भी अनर्गल अपशब्द कहे जा रहे थे.

क्रोध और उन्माद में डूबी भीड़ से शांति की अपेक्षा करना व्यर्थ है. मगर क्रोध और उन्माद की यह अवस्था जब किसी धार्मिक अहंकार के वशीभूत हो तो व्यक्ति और भी विवेकहीन हो जाता है.

प्रताप के हाथ में तलवार देख कर तरन्नुम बुरी तरह से घबरा गई. वह जीवन की जिंदगी की भीख मांगते हुए उन के आगे विनती करने लगती है, ‘‘प्लीज. इसे छोड़ दो… अगर किसी की जान लेने से आप लोगों का सिर ऊंचा होता है तो इस की जगह मेरी जान ले लो, मु?ो मार दो लेकिन इसे छोड़ दो, प्लीज.’’

मगर धर्म के नशे में चूर उन्माद में डूबी भीड़ के पास हृदय कहां होता है जो तरन्नुम की इस करुण पुकार को सुन पाती.

‘‘ऐ लड़की, तुम बीच में मत आओ, मैं लड़कियों पर हाथ नहीं उठाता,’’ कहते हुए प्रताप ने उसे धक्का दे दिया. तरन्नुम कुछ दूर जा गिरी.

तरन्नुम को जमीन पर गिरता देख जीवन गुस्से से कांप उठा. वह भीड़ को धक्का देते हुए तरन्नुम की ओर जाने की कोशिश करता है. लेकिन जीवन को ऐसा करता देख प्रताप और भी गुस्से से लाल हो जाता है और वह अपनी तलवार जीवन की ओर लक्ष्य कर देता है. तभी दौड़ती हुई तरन्नुम अचानक वहां पहुंच जाती है. वह भीड़ को चीरती हुई जीवन से जा कर लिपट जाती है. जीवन को लक्ष्य कर के उठी तलवार तरन्नुम को लग जाती है और वह जख्मी हो जाती है. बेहोश हो कर जमीन पर गिर जाती है.

उन्मादी लड़कों की भीड़ तरन्नुम को घायल देख कर घबरा जाती है और 1-1 कर के वे लड़के वहां से खिसकने लगते हैं.

‘‘यह क्या अनर्थ हो गया मुझसे? मैं तो सिर्फ…’’ प्रताप जैसे खुद से ही बातें कर रहा था.

‘‘तरन्नुम को घायल देख कर जीवन अपना आपा खो देता है. वह क्रोध में चिल्लाते हुए कहता है, ‘‘जो भी कहना चाहते हैं स्पष्ट कहिए.’’

‘‘अ… अ… मेरा मतलब है हम बस तुम लोगों को ड… डरा…’’ पुनीत हकलाने लगा.

‘‘तुम तो चुप ही रहो पुनीत… यह मु?ो मुसलमान बनाती या नहीं या मेरा खतना करवाती या नहीं लेकिन फिर भी मैं इंसान ही रहता, इंसान ही कहलाता. मगर तुम दोनों खुद को देखो धर्म ने तुम्हें किस तरह जानवर बना दिया है. धिक्कार है तुम लोगों पर, धर्म के नशे ने तुम लोगों को जानवर बना दिया है.’’

जीवन और तरन्नुम मुंबई की एक मल्टीनैशनल कंपनी मे करीब 2 साल से साथ काम कर रहे थे. साथसाथ काम करते हुए दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी लेकिन इस सामान्य सी दिखने वाली जानपहचान और दोस्ती की मखमली जमीन पर प्रेमरूपी बीज कब अंकुरित हो गया इस का एहसास उन्हें बहुत बाद में हुआ. प्रेम की इस निर्मल धारा में बहते हुए उन दोनों को एक पल के लिए भी कभी यह एहसास न हुआ कि वे दोनों 2 अलगअलग धर्मों के जत्थेबंदी के कैदी हैं. यह धार्मिक जत्थेबंदी अलगअलग धर्मों में शादी करने की इजाजत नहीं देती लेकिन एकदूसरे के लिए प्रेम तो जीवन और तरन्नुम के रोमरोम में समा चुका था और उन के अगाड़  प्रेम के इस प्रवाह के सामने इन धार्मिक गुटबंदियों के कोई माने नहीं थे. उन दोनों के लिए प्रेम ही उन का सब से बड़ा धर्म था.

दोनों अकसर औफिस से छुट्टी के बाद मरीन ड्राइव पर पहुंच जाते, एकदूसरे के बांहों में बांहें डाले हुए घंटों समुद्र की लहरों को निहारा करते, भविष्य के लिए सुनहरे सपने बुनते हुए उन्हें वक्त का भी अंदाजा न होता. तरन्नुम को मरीन ड्राइव के क्वीन नैकलैस कही जाने वाली उस रंगबिरंगी आकृति को देर तक निहारना काफी अच्छा लगता था. रात के अंधेरे में ?िलमिलाती आकृति रंगबिरंगे प्रकाश में छोटेछोटे रंगीन मोतियों सी प्रतीत होती, जिसे देख न जाने क्यों उस के मन को एक सुखद सी अनुभूति होती. जीवन का साथ पा कर उस की जिंदगी भी तो इन्हीं रंगबिरंगे मोतियों सी चमक उठी थी.

 

जब 2 साल पहले जीवन पुणे से मुंबई आया था तो उसे मुंबई जैसे शहर में अपने लिए

फ्लैट ढूंढ़ने में काफी मुश्किलें हुई थीं. पुणे में तो उस ने अपने चाचा के घर रह कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली थी. जौब लगने के बाद वह मुंबई आ गया था. लेकिन मुंबई जैसी जगह पर अपने रहने के लिए फ्लैट ढूंढ़ पाना उस के लिए टेड़ी खीर साबित हो रहा था. अत: कुछ दिनों तक तो वह होटल के कमरे में रहा. लेकिन होटल में रहना जब उस की जेब पर भारी पड़ने लगा तब उसी के औफिस में साथ काम करने वाली तरन्नुम ने जब उस की इस समस्या को जाना तो फौरन अपनी फूफी का फ्लैट उसे किराए पर दिलवा दिया. तरन्नुम द्वारा उस के लिए की गई यह निस्वार्थ सहायता उन दोनों की दोस्ती की आधारशिला बनी थी. माहिम में तरन्नुम की फूफी का वह फ्लैट खाली पड़ा था.

‘‘जानते हो जीवन मेरी फूफी जान मु?ो अपनी सगी औलाद से भी बढ़ कर मानती हैं. शादी के कुछ ही साल बाद जब अब्बू मेरी अम्मी को छोड़ कर सऊदी अरब चले गए थे तो वह मेरी फूफी जान ही थीं, जिस ने मु?ो और मेरी अम्मी को सहारा दिया था,’’ बातोंबातों में ही एक दिन तरन्नुम ने जीवन को यह बात बताई, ‘‘अब्बू के जाने के बाद से ही अम्मी काफी बीमार रहने लगी थीं. उन की बीमारी की खबर सुन कर भी अब्बू एक बार भी उन्हें देखने नहीं आए और फिर एक दिन अम्मी हमें हमेशा के लिए अलविदा कह गईं. उन के इंतकाल के बाद मेरी फूफी जान ने ही मेरी परवरिश की, उन की अपनी कोई औलाद नहीं है. फूफी को तो मरे हुए कितने साल हो गए,  मु?ो तो उन का चेहरा भी याद नहीं. मैं और मेरी फूफी जान, यही मेरा छोटा सा संसार और मेरा छोटे से संसार में जीवन आप का स्वागत है,’’ यह कह कर तरन्नुम खिलखिला पड़ी और अपनी हंसी के पीछे अपने बड़े गम को भी छिपा लिया.

तब जीवन चुपचाप तरन्नुम के चेहरे को देखता रह गया और उस के मस्तिष्क में न जाने क्यों किसी शायर की ये पंक्तियां गूंज उठीं, ‘‘गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहां जिंदगी को उस मुकाम पर लाता चला गया. हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया.’’

ऐसी ही है उस की तरन्नुम बिंदास, जिंदादिल, बड़े से बड़े गम को भी हंसी में उड़ा देने वाली. उस की आवाज में तो ऐसी जादूगरी कि किसी भी सुनने वाले को सम्मोहित कर दे. तरन्नुम के इसी बिंदास अंदाज और जिंदादिली ने जीवन को उस का दीवाना बना दिया था. धीरेधीरे जीवन उस के प्रेम में गिरफ्तार होता चला गया. वह रातदिन, उठतेबैठते, सोतेजागते, बस तरन्नुम के खयालों में ही खोया रहता.

 

ठीक यही हाल तरन्नुम का भी था. तरन्नुम के

लिए जीवन उस के सपनों के राजकुमार से भी कहीं ज्यादा बढ़ कर था. एक जीवनसाथी को ले कर उस ने अपने दिलोदिमाग में जो रेखाएं खींची थीं जीवन बिलकुल उन के अनुकूल था. जीवन की स्पष्टवादिता उस की ईमानदारी तरन्नुम को अपनी ओर खींचने के लिए काफी थी और एक दिन दोनों ने अपने दिल की बात एकदूसरे से कह दी. एकदूसरे के प्रति प्यार का इजहार किया, साथ जीनेमरने के वादे किए.

‘‘तरन्नुम, महीनाभर पहले हम ने शादी के लिए कोर्ट में जो अर्जी दी थी, कोर्ट ने हमारी शादी की डेट दे दी है. हमें इसी हफ्ते बुधवार को मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस जाना है,’’ तरन्नुम को यह खबर सुनाते हुए जीवन की खुशी का कोई ठिकाना न था.

‘‘हमारे सपने जो हम दोनों ने साथ मिल

कर देखे थे वे सच होने जा रहे हैं. सच में मैं

बहुत खुश हूं. हमारी अपनी छोटी सी दुनिया

होगी. ऐसी दुनिया जहां इस ?ाठमूठ के धर्म, जातपात, रीतिरिवाजों के लिए कोई जगह नहीं होगी. कोई दीवाली नहीं, कोई ईद नहीं, कोई जातधर्म का दिखावा नहीं, हम खुशियां मनाएंगे लेकिन अपनी तरह से,’’ तरन्नुम ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा.

‘‘हां सही कह रही हो हम ईददीवाली की जगह सिर्फ राष्ट्रीय त्योहार मनाएंगे और अपने बच्चों के नाम भी कुछ ऐसे रखेंगे जिन में उन के हिंदू या मुसलिम होने की पहचान न छिपी हो, उन के नाम के साथ किसी भी धर्म की पहचान न जुड़ी हो,’’ जीवन ने भी खुश होते हुए तरन्नुम के इन खयालातों का समर्थन किया.

आज वे दोनों आने वाली इस मुसीबत से बेखबर अपनी शादी के सपने को साकार करने की तैयारी में सुबह से ही जुटे हुए थे. कोर्ट ने उन्हें आज का ही दिन दिया था. वे दोनों मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस जाने के लिए उत्साहित थे. खुशी ने तो जैसे उन के रोमरोम को पुलकित कर दिया था.

तरन्नुम ने तो अपनी दोनों सहेलियां रवीना और फिजा को सुबह से न जाने कितनी बार कौल कर के उन्हें रजिस्ट्रार के औफिस वक्त पर पहुंच जाने की याद दिलाई थी.

जीवन काफी देर से किसी को कौल करने की कोशिश कर रहा था लेकिन जिसे वह फोन लगा रहा था उस का मोबाइल शायद स्विच्ड औफ आ रहा था, जिस के कारण वह थोड़ा चिंतित हो उठा था, ‘‘पुनीत का डाउट है, कब से फोन ट्राई कर रहा हूं, स्विच्ड औफ बता रहा है, न जाने कल से कहां गायब है,’’ जीवन ने अपनी चिंता व्यक्त की, ‘‘अगर वह नहीं पहुंच सका तो विटनेस के लिए तीसरा व्यक्ति इतनी जल्दी कहां से लाएंगे?’’

‘‘तुम परेशान मत हो मैं अपनी फूफी जान को कह दूंगी विटनैस के लिए वे आ जाएंगी.’’

‘‘मगर हां तुम उन्हें हमारे यहां से निकलने के 1 घंटा पहले बुला लेना, उन्हें इतना वक्त तो लग ही जाएगा यहां आने में.’’

‘‘चिंता मत करो अभी तो सुबह के सिर्फ 9 ही बजे हैं, हमारे पास काफी वक्त है,’’ तरन्नुम अपनी ड्रैस की मैचिंग ज्वैलरी सैट करने में व्यस्त हो गई.

‘‘इतनी तेजतेज डोरबैल कौन बजा रहा है?’’

‘‘मैं देखती हूं,’’ तरन्नुम दरवाजा खोलने चली.

‘‘नहीं तुम रहने दो, मैं देखता हूं, न जाने कौन है जिसे सब्र नहीं.’’

जीवन के दरवाजा खोलते ही लड़कों का एक ?ांड दनदनाता हुआ घर के अंदर घुस आया.

‘‘पुनीत, प्रताप भाई आप दोनों?’’ भीड़ के साथ खड़े उन दोनों लड़कों को देख कर जीवन चौंक उठा.

‘‘हां हम दोनों, तुम जो करने जा रहे हो उसे रोकने आए है. यह तो अच्छा हुआ कि पुनीत ने हमें वक्त पर आ कर सब कुछ बता दिया. अगर सीधेसीधे हम लोगों के साथ नहीं चलोगे तो जबरदस्ती यहां से उठा कर ले जाएंगे भले तुम्हारी टांगें ही क्यों न तोड़नी पड़ें,’’ प्रताप ने क्रोध में फुफकारते हुए कहा.

‘‘किसी से शादी करना अपराध है क्या जो आप इसे रोकने के लिए अपने दलबल के साथ आ गए. आप अपने बजरंग दल की धौंस कहीं और दिखाइए. मैं आप लोगों से डरने वाला नहीं.’’

‘‘लगता है ऐसे नहीं मानेगा, चलो आ

जाओ सब,’’ और तभी अचानक जय श्रीराम के नारे से पूरी सोसाइटी गूंजने और देखते ही देखते लड़कों का वह ?ांड जीवन को जबरदस्ती उस के घर से खींचता हुआ बाहर ले गया. उन के पीछेपीछे बदहवास सी भागती हुई तरन्नुम भी बाहर आ गई.

धर्म के नशे में चूर, जो लड़के कुछ देर पहले दहाड़ रहे थे, तरन्नुम को जख्मी और

बेहोश हो कर जमीन पर गिरता देख उन की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. सारे लड़के वहां से धीरेधीरे खिसक लिए, रह गए सिर्फ पुनीत और प्रताप जो अब अपने कृत्य पर पश्चाताप कर रहे थे.

प्रताप के मन में जीवन द्वारा कही गई ये बाते कि धर्म के नशे ने उसे जानवर बना दिया है, रहरह कर उस के मन को झकझोर रही थीं. आज अगर तरन्नुम बीच में नहीं आई होती तो उस के हाथों कितना बड़ा अनर्थ हो जाता. तरन्नुम के बीच में आ जाने से उस के हाथों से तलवार की पकड़ ढीली पड़ गई. जख्म ज्यादा गहरा नहीं था, घबराहट के कारण तरन्नुम बेहोश हो गई थी. डाक्टर ने हलकी मरहमपट्टी करने के बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया.

प्रताप और पुनीत अपने किए पर बेहद शर्मिंदा थे. दोनों बारबार हाथ जोड़ कर जीवन और तरन्नुम से माफी मांग रहे थे.

कुछ घंटों बाद जब जीवन और तरन्नुम मैरिज रजिस्ट्रार औफिस जाने के लिए निकले तो रवीना और फिजा के साथसाथ प्रताप और पुनीत भी विटनैस के लिए वहां पहुंच गए और वापस आ कर नए जोड़े के स्वागत के लिए पूरे घर की सजावट फूलों से इन्हीं दोनों ने की.

यह बात सच है प्रेम से बढ़ कर कुछ भी नहीं. संसार में जितने भी धर्म हैं उन सब का उद्देश्य किसी न किसी स्वार्थसिद्धि के लिए होता है किंतु प्रेम कभी किसी स्वार्थ की सिद्धि के लिए नहीं होता. मात्र प्रेम ही एक ऐसी चीज है जहां स्वार्थ के लिए कोई स्थान नहीं. संसार में जब तक प्रेम कायम रहेगा, जब तक इस का विस्तार होता रहेगा और तब तक मानव का जीवन भी सुख और शांति से परिपूर्ण रहेगा.

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