Apps से करें पेरैंट्स की मदद

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले की रहने वाली पारुल नोएडा में रह कर एमबीए कर रही है. उस के पिता बस्ती जिले के एक सरकारी महकमे में मुलाजिम हैं. पारुल को जब भी पैसों की आवश्यकता पड़ती थी तो पारुल के पापा औफिस से छुट्टी ले कर बैंक की लंबी लाइनों में लग कर पैसे जमा करते थे, जिस के चलते उन्हें तमाम तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ता था.

इस बार पारुल जब घर आई तो उस ने अपने पापा से कहा कि वे अपने स्मार्टफोन में जिस बैंक का खाता है उस बैंक का ऐप डाउनलोड कर के इंस्टौल कर लें, जिस से उन्हें हर महीने पैसे भेजने के लिए बैंक जाने की जरूरत नहीं रहेगी.

ऐप से पैसे ट्रांसफर करना बहुत ही आसान है और इस से किसी भी बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर करना जहां पूरी तरह से सुरक्षित होता है वहीं कुछ ही मिनट में दूसरे के खाते में पैसा वहां पहुंच जाता है.

पापा को पारुल की बात समझ आ गई और उन्होंने बैंक का ऐप डाउनलोड करने को कहा. पारुल ने कुछ ही मिनट में उन के बैंक का ऐप डाउनलेड कर इंस्टौल कर दिया और निर्धारित प्रक्रिया के तहत मोबाइल बैंकिंग का रजिस्ट्रेशन कर पूरी प्रक्रिया समझा दी. अब पापा जहां बैंक जाने से बच गए वहीं वे ऐप के सहारे अपने मोबाइल का बिल, बिजली बिल, डीटीएच रिचार्ज, जैसी सुविधाओं का लाभ भी ले पा रहे हैं.

मोबाइल क्रांति ने सूचना और संचार को न केवल सस्ता सरल व सुलभ बनाया है बल्कि समय की बचत का एक बड़ा माध्यम भी है. आज तमाम उपयोगों में लाए जाने वाले एप्स न केवल घर बैठे खरीदारी की सुविधा उपलब्ध कराते हैं बल्कि होटल बुकिंग, रेल टिकट बुकिंग, हवाई टिकट बुकिंग, कपड़ों की खरीदारी, घर या जरूरी वस्तुओं की खरीदारी, सहित तमाम सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं.

बृजेश एक गारमैंट्स की दुकान चलाते हैं एक दिन वे सुबह परेशान थे, क्योंकि उन की दुकान का टैलीफोन बिल जमा करने की आज आखिरी तारीख थी, लेकिन वे दुकान से निकल नहीं पा रहे थे. ऐसे में जब वे घर लौटे तो बेहद परेशान दिख रहे थे. ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रहे उन के बेटे ने उन के परेशान होने का कारण पूछा और जान कर बोला, ‘‘पिताजी, इस में घबराने की क्या बात है अपना फोन दीजिए. आप को हर माह लाइन में लग कर बिल जमा करने की मुसीबत से छुटकारा दिला देता हूं. बृजेश के बेटे ने झट पापा का मोबाइल ले कर उस में ऐप डाउनलोड कर दिया और फिर कुछ ही क्षण में टैलीफोन का बकाया बिल जमा भी कर दिया. बेटे द्वारा डाउनलोड किए गए ऐप के माध्यम से अब वे हर माह समय से टैलीफोन का बिल जमा कर देते हैं.

जिम्मेदारी के बोझ तले दबे पेरैंट्स के लिए स्मार्टफोन ऐप बेहद कारगर साबित हो सकते हैं बस, आप रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़े एप्स डाउनलोड कर अपने मांबाप की मदद करें.

ये भी पढ़ें- बच्चों को सिखाएं इंटरनेट एटीकेट्स

जरूरी एप्स जो पेरैंट्स के काम आएं

डिजिटल इंपावरमैंट फाउंडेशन नई दिल्ली में बतौर आईटी विशेषज्ञ कार्यरत आनंद कुमार का कहना है कि आप रोजमर्रा के काम आने वाले एप्स को अपने पेरैंट्स के फोन में डाउनलोड कर उन की जिम्मदारियों को हलका करने में मदद कर सकते हैं, उदाहरणतया एप्स आधारित टैक्सियों के ऐप अपने स्मार्टफोन में इंस्टौल कर आप टैक्सी को बुक कर सकते हैं. ये टैक्सियां वाजिब दाम की होती हैं.

शौपिंग एप्स

आईटी विशेषज्ञ आनंद कुमार के अनुसार इन एप्स की मदद से आप पेरैंट्स के लिए घर बैठे जरूरत का सामान मंगा सकते हैं, जिस से बाजार जाने से छुटकारा मिल जाता है. फ्लिपकार्ड, अमेजान, ओएलऐक्स जैसी तमाम कंपनियां एप्स के सहारे हर जरूरत का सामान होम डिलीवरी के माध्यम से मुहैया करवा रही हैं.

पत्र पत्रिकाएं व समाचार आधारित एप्स

अगर आप के पेरैंट्स पत्रपत्रिकाएं पढ़ने के शौकीन हैं तो उन के लिए न्यूज एप्स बेहद कारगर साबित हो सकते हैं. इस के लिए न्यूज चैनल, अखबारों, पत्रपत्रिकाओं के एप्स लोड कर पेरैंट्स इन खबरों को पढ़ व देख सकते हैं.

लोकेशन आधारित एप्स

कभीकभी पेरैंट्स को किसी लौंग टूर पर जाना पड़े तो उन्हें पता होना चाहिए कि कौन से रास्ते का इस्तेमाल किया जाए, इस के लिए आप उन के फोन में लोकेशन आधारित एप्स लोड करें इन में से कई एप्स जीपीएस सिस्टम से जुड़े होते हैं, जो चलने वाले स्थान से ले कर पहुंचने वाले स्थान की डिटेल डालने के बाद लोकेशन बताते रहते हैं व वाइस व मैप के माध्यम से भी जानकारी देते हैं.

ऐंटरटेनमैंट व स्पोर्ट्स आधारित एप्स

अगर आप के पेरैंट्स क्लासिकल गाने देखने व सुनने के शौकीन हैं तो उन के लिए तमाम एप्स उपलब्ध हैं. इस के अलावा वीडियो, फिल्म, गाने या अन्य जरूरी डाक्यूमैंट्री देखने के लिए यू ट्यूब्स का ऐप चलाने में सब से आसान माना गया है. इस के अलावा एमएस प्लेयर, सावन, बिग फ्लिक्स इत्यादि भी मनोरंजन उपलब्ध कराने का काम करते हैं.

वहीं अगर पेरैंट्स खेल की दुनिया में ज्यादा रुचि रखते हैं तो इस के लिए द स्कोर्ट ऐप कारगर साबित होगा. इस ऐप के सहारे फुटबौल, बास्केटबौल या अन्य खेल प्रतियोगिताओं के लाइव स्कोर व समाचार की जानकारी ली जा सकती है. अगर वे क्रिकेट के शौकीन हैं तो क्रिकवज नाम का ऐप क्रिकेट से जुड़ी जानकारी देने में मददगार साबित हो सकता है.

चैट व वीडियो कौलिंग आधारित एप्स

अगर आप पेरैंट्स से दूर रह कर पढ़ाई या नौकरी कर रहे हैं तो अपने पेरैंट्स से जुड़ाव के लिए उन के चैट आधारित एप्स का सहारा ले सकते हैं. ये न केवल बातचीत को आसान बनाते हैं बल्कि आप के पेरैंट्स की गतिविधियों व लाइव वीडियो दिखाने में भी मददगार साबित होते हैं. लाइव चैटिंग के लिए कुछ प्रमुख एप्स में व्हाट्सऐप, लिंबज, वाइबर, लाइन, वी चैट गिने जाते हैं. इन एप्स के माध्यम से वीडियोचैटिंग के साथसाथ वीडियो कौलिंग की सुविधा भी निशुल्क मिलती है.

यात्रा टिकट के साथी एप्स

अगर आप के पेरैंट्स कहीं यात्रा का प्लान बना रहे हैं तो ये एप्स उन के लिए एक मार्गदर्शक का काम कर सकते हैं. यात्रा का प्रमुख साधन माना जाने वाला रेल ऐप डाउनलोड कर न केवल घर बैठे टिकट बुक किया जा सकता है बल्कि टे्रनों की स्थिति, गंतव्य इत्यादि की जानकारी भी ली जा सकती है. इस के अलावा हवाई यात्रा टिकट व अन्य तरह की सुविधाओं का लाभ भी लिया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- जानें रिटायरमेंट के लिए उम्र के किस पड़ाव पर करनी चाहिए सेविंग

स्मार्टफोन में ऐसे करे इंस्टौल

आईटी विशेषज्ञ आनंद कुमार के अनुसार अपने या अपने पेरैंट्स के स्मार्टफोन में जरूरी एप्स डाउनलोड करने के लिए गूगल प्ले स्टोर का सहारा ले सकते हैं. यहां से आप की जरूरत के ज्यादातर एप्स फ्री में डाउनलोड किए जा सकते हैं. प्लेस्टोर में जा कर एप्स से जुड़े कुछ शब्द टाइप करने होते हैं इस के बाद जिस चीज की जरूरत है उन से जुडे़ तमाम एप्स की लिस्ट आ जाती है. इन में से आप अपनी जरूरत के ऐप पर उंगली रख कर डाउनलोडिंग औप्शन चुन सकते हैं. बस, देर किस बात की, आप भी अपने पेरैंट्स की जरूरत के एप्स डाउनलोड कर उन का सहयोग कर सकते हैं.

डौलर का लालच : कैसे सेवकराम को ले डूबा मसाज पार्लर का लालच

लेखक- राजेंद्र शर्मा सूदन

सेवकराम फैक्टरी में मजदूर था. वह 12वीं जमात पास था. घर की खस्ता हालत के चलते वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सका था, लेकिन उस का सपना ज्यादा पैसा कमा कर बड़ा आदमी बनने का था.

फैक्टरी में लंच टाइम हो गया था. सेवकराम सड़क के किनारे बने ढाबे पर खाना खा रहा था. उस के सामने अखबार रखा था. उस के एक पन्ने पर छपे एक इश्तिहार पर उस की निगाह टिक गई.

इश्तिहार बड़ा मजेदार था. उस में नए नौजवानों को मौजमस्ती वाले काम करने के एवज में 20-25 हजार रुपए हर महीने की कमाई लिखी गई थी. सेवकराम मन ही मन हिसाब लगाने लगा. इस तरह तो वह 5 साल तक भी दिल लगा कर काम करेगा, तो 8-10 लाख रुपए आराम से कमा लेगा.

इश्तिहार में लिखा था कि भारत के मशहूर मसाज पार्लर को जवान लड़कों की जरूरत है, जो विदेशी व भारतीय रईस औरतों की मसाज कर सकें. अच्छा काम करने वाले को विदेशों के लिए भी बुक किया जा सकता है.

इतना पढ़ते ही सेवकराम की आंखों के सामने रेशमी जुल्फें लहराती गोरे गुलाबी तराशे बदन वाली गोरीगोरी विदेशी औरतें उभर आईं, जिन्हें कभी पत्रिकाओं में, फोटो में या फिल्मों में देखा था. अगर उसे काम मिल गया, तो ऐसी खूबसूरत हसीनाओं के तराशे गए बदन उस की बांहों में होंगे. ऐसे में तो उस की जिंदगी संवर जाएगी. फैक्टरी में सारा दिन जान खपाने के बाद उसे 3 हजार रुपए से ज्यादा नहीं मिल पाते. मिल मालिक हर समय काम कम होने का रोना रोता रहता है.

सेवकराम ने उसी समय इश्तिहार के नीचे लिखा मोबाइल नंबर नोट किया और तुरंत फैक्टरी की नौकरी छोड़ने का मन बना लिया.

सेवकराम सीधा दफ्तर गया और बुखार होने का बहाना बना कर 3 दिन की छुट्टी ले ली. इस के बाद वह बाजार गया. वहां पर उस ने 2 जोड़ी नए कपडे़ और जूते खरीदे. वह जब बड़े घरानों की औरतों के सामने जाएगा, तो उस के कपड़े भी अच्छे होने चाहिए.

सेवकराम शाम तक सपनों में डूबा बाजार में घूमता रहा. उस का कमरे पर जाने को मन नहीं हो रहा था. रात का खाना भी उस ने बाहर ढाबे पर ही खाया. वह देर रात कमरे पर गया.

कमरे में 4-5 आदमी एकसाथ रहते थे. उस के तमाम साथी सो गए थे. वह भी अपनी चारपाई पर लेट गया. उस ने अपने साथ वाले लोगों का जायजा लिया कि गहरी नींद में सो गए हैं या नहीं. जब उसे तसल्ली हो गई, तो उस ने इश्तिहार वाला फोन नंबर मिलाया और बात की.

दूसरी तरफ से किसी लड़की की उखड़े हुए लहजे में आवाज गूंजी, ‘इतनी रात गुजरे कौन बेवकूफ बोल रहा है? तुम्हें जरा भी अक्ल नहीं है क्या? सुबह तो होने दी होती… क्या परेशानी है?’

ये भी पढ़ें- Father’s day Special: अब तो जी लें

‘‘मैडमजी, माफ करना. मैं एक परदेशी हूं. हम एक कमरे में 4-5 लोग रहते हैं. मैं आप से चोरीछिपे बात करना चाहता था, इसलिए उन के सोने का इंतजार करता रहा. मैं ने आप का इश्तिहार अखबार में पढ़ा था. मैं आप के मसाज पार्लर में काम करना चाहता हूं. मुझे काम की सख्त जरूरत है.’’ सेवकराम ने बेहद नरम लहजे में कहा था. इस से दूसरी तरफ से बोल रही लड़की की आवाज में भी मिठास आ गई थी. ‘ठीक है, तुम ने हमारा इश्तिहार पढ़ा होगा. हमारे मसाज पार्लर की कई जवान औरतें, लड़कियां हमारी ग्राहक हैं, जिन की मसाज के लिए हमें जवान लड़कों की जरूरत रहती है. तुम बताओ कि मर्दों की मसाज करोगे या जवान औरतों की?’

यह सुनते ही सेवकराम रोमांचित हो उठा. उसे तो ऐसा महूसस हुआ, जैसे उसे नौकरी मिल गई है. उस की आवाज में जोश भर उठा. वह शरमाते हुए बोला, ‘‘मैडमजी, मेरी उम्र 30 साल है. मुझे जवान औरतों की मसाज करना अच्छा लगता है. मैं अपना काम मेहनत और ईमानदारी से करूंगा.’’

‘ठीक है, तुम्हें काम मिल जाएगा. बस, इतना ध्यान रखना होगा कि उस समय कोई शरारत नहीं होनी चाहिए, वरना नौकरी से निकाल दिए जाओगे,’ दूसरी तरफ से बेहद सैक्सी अंदाज में जानबूझ कर चेतावनी दी गई, तो सेवकराम रोमांटिक होते हुए बोला, ‘‘जी, मैं अपना काम समझ कर करूंगा. मेरे मन में उन के लिए कोई गलत भावना नहीं आएगी.’’

‘ठीक है, तुम्हारा नाम मैं रजिस्टर में लिख लेती हूं. कल दिन में तुम करिश्मा बैंक में 10 हजार रुपए हमारे खाते में जमा करा दो. रुपए जमा होते ही तुम्हारा एक पहचानपत्र भी बनाया जाएगा. जिसे दिखा कर तुम देश के किसी भी शहर में काम के लिए जा सकते हो,’ उधर से निर्देश दिया गया.

यह सुन कर सेवकराम कुछ परेशान हो गया और बोला, ‘‘मैडमजी, 10 हजार रुपए तो कुछ ज्यादा हैं.’’ ‘ठीक है, फिर हम तुम्हारा पहचानपत्र नहीं बनाएंगे. अगर तुम्हें पुलिस ने पकड़ लिया, तो क्या जेल जाना पसंद करोगे?’

‘‘क्या ऐसा भी हो जाता है मैडमजी?’’ सेवकराम ने थोड़ा घबराते हुए पूछा.

‘ऐसा हो जाता है सेवकरामजी. ये परदे में करने वाले काम हैं. पुलिस पकड़ लेती है. बोलो, क्या तुम पुलिस के चक्कर में फंसना चाहते हो?’

‘‘ठीक है मैडमजी, मैं कल ही 10 हजार रुपए जमा करा दूंगा. बस, आप मेरा पहचानपत्र बनवा कर तुरंत काम पर बुलाइए. मैं ज्यादा दिन बेरोजगार नहीं रह सकता,’’ सेवकराम ने कहा, तो फोन कट गया.

उस रात सेवकराम सो नहीं सका. उस के दिलोदिमाग में खूबसूरत, जवान औरतों के दिल घायल करते हुए जिस्मों के सपने छाए रहे. सारी रात ऐसे ही गुजर गई.

अगले दिन सेवकराम सीधे बैंक पहुंचा और अपनी पासबुक से 20 हजार रुपए निकाले. 10 हजार रुपए तो उस ने रात फोन पर बताए गए खाते में जमा करा दिए और बाकी के 10 हजार रुपए अपने खर्चे के लिए रख लिए. अब वह लाखों रुपए कमाएगा.

सेवकराम को तो अब मसाज पार्लर के दफ्तर से फोन आने का इंतजार था. इसी इंतजार में 4-5 दिन गुजर गए, मगर उस औरत का फोन नहीं आया.

सेवकराम को अब बेचैनी होना शुरू हो गई. उस ने 10 हजार नकद खाते में जमा कराए थे. इंतजार की घडि़यां काटनी मुश्किल होती हैं, फिर भीउस ने 7 दिनों तक इंतजार किया.

आखिर में सेवकराम ने ही फोन कर के पूछा, तो दूसरी तरफ से किसी औरत की आवाज गूंजी, मगर वह आवाज पहले वाली नहीं थी. उस के बात करने का लहजा जरा कड़क और गंभीर था.

‘‘क्या बात है मैडमजी, मुझे 10 हजार रुपए आप के खाते में जमा कराए 7-8 दिन गुजर गए हैं. अभी मेरा परिचयपत्र भी नहीं मिला है. मुझे काम की सख्त जरूरत है.’’

‘आप बेफिक्र रहें. आप का परिचयपत्र तैयार है. हमारी मसाज पार्लर कमेटी ने एक टीम बनाई है, जिस में आप का नाम भी शामिल है. इस टीम को विदेशों में भेजा जाएगा.’

सेवकराम खुशी से उछल पड़ा. वह चहकते हुए बोला, ‘मैडमजी, जल्दी से टीम को काम दिलाओ. विदेश में तो काम करने के डौलर मिलेंगे न?’’

‘हां, वहां से तो तुम लोगों की पेमेंट डौलरों में होगी,’ औरत ने बताया, तो थोड़ी देर के लिए सेवकराम सीने पर हाथ रख कर हिसाब लगाता रहा. आंखों के सामने नोटों के बंडल चमकते रहे. अपनी बेताबी जाहिर करते हुए उस ने पूछा, ‘‘अब देर क्यों की जा रही है? हम तो काम के लिए कहीं भी जाने को तैयार हैं.’’

‘आप सब के परिचयपत्र मंजूरी के लिए विदेश मंत्रालय भेजे जाने हैं. अगर भारत सरकार से मंजूरी मिल गई, तो तुम लोग किसी भी देश में बेधड़क हो कर काम कर सकते हो, मगर भारत सरकार की मंजूरी दिलाने के लिए 20 हजार रुपए का खर्चा आएगा. आप को 20 हजार रुपए उसी खाते में जमा कराने होंगे.’

‘‘मैडमजी, इतनी बड़ी रकम तो बहुत ज्यादा है. हम तो गरीब आदमी हैं,’’ सेवकराम की तो मानो हव  निकल गई थी. उस का जोश ढीला पड़ने लगा था.

ये भी पढ़ें- थोड़ा दूर थोड़ा पास : शादी के बाद क्या हुआ तन्वी के साथ

‘हम मानते हैं कि 20 हजार रुपए ज्यादा हैं, मगर यह सोचो कि जब तुम अलगअलग देशों में जाओगे, वहां से वापस आने पर लाखों रुपए ले कर आओगे. सोच लो, अगर विदेश नहीं जाना चाहते हो, तो रहने दो,’ औरत ने दूसरी तरफ से कहा, तो सेवकराम पलभर के लिए खामोश रहा, फिर जल्दी ही वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं 20 हजार रुपए आप के खाते में जमा करा दूंगा. बस, मेरा काम सही होना चाहिए.’’

सेवकराम ने ठंडे दिमाग से सोचा, तो उसे यह काम फायदे का लगा. बेशक, 20 हजार रुपए उस के पास नहीं थे, फिर भी अगर उधार उठा कर लगा देगा, तो बाहर के पहले टूर में लाखों रुपए वारेन्यारे कर देगा, इसलिए 20 हजार रुपए उन के खाते में जमा कराना ही फायदे में रहेगा.

सेवकराम ने इधरउधर से रुपए उधार लिए और उसी खाते में जमा करा दिए. अब वह इंतजार करने लगा. उसे यकीन था कि उसे बुलाया जाएगा.

सेवकराम को इंतजार करतेकरते 10 दिन गुजर गए. सेवकराम के मन में तमाम तरह के खयाल आ रहे थे. वह इस मुगालते में था कि दफ्तर वाले खुद फोन करेंगे. वह महीने भर से काम छोड़ कर बैठा था. जमापूंजी खर्च हो चुकी थी. ऊपर से 20 हजार रुपए का कर्जदार और हो गया था.

काफी इंतजार करने के बाद सेवकराम ने उसी फोन नंबर पर फोन किया, तो मोबाइल बंद मिला. काफी कोशिश करने के बाद भी उस नंबर पर बात नहीं हुई. उस के पैरों तले जमीन खिसक गई.

वह उसी पल उस बैंक में गया, जहां अजनबी खाते में उस ने 30 हजार रुपए जमा कराए थे. वहां से पता चला कि वह खाता वहां से 5 सौ किलोमीटर दूर किसी शहर में किसी बैंक का था. अब उस खाते में महज 4 रुपए कुछ पैसे बाकी थे.

सेवकराम थाने में गया, लेकिन पुलिस ने उस की शिकायत लिखने की जरूरत नहीं समझी. थकहार कर वह कमरे पर लौट आया. विदेशों में जा कर खूबसूरत औरतों की मसाज करने के एवज में लाखों डौलर कमाने के चक्कर में सेवकराम ने अपनी जमापूंजी गंवा दी, साथ ही 20 हजार रुपए का कर्जदार भी हो गया. लालच में वह न तो घर का रहा और न घाट का.

Short Story: तोहफा अप्रैल फूल का

लेखक- नरेश कुमार पुष्करना

अप्रैल की पहली तारीख थी. चंदू सुबह से ही सब से मूर्ख बननेबनाने की बातें कर रहा था. इसी कशमकश में वह स्कूल पहुंचा, लेकिन स्मार्टफोन पर बिजी हो गया. हमेशा गैजेट्स की वर्चुअल दुनिया में खोया रहने वाला चंदू स्मार्टफोन से व्हाट्सऐप पर गुडमौर्निंग के मैसेजेस कौपीपेस्ट कर रहा था कि अचानक व्हाट्सऐप पर एक मैसेज आया. इस मैसेज को पढ़ने और इंप्लीमैंट करने के बाद जो नतीजा उस के सामने आया उस से वह ठगा सा रह गया. दरअसल, किसी ने उसे अप्रैल फूल बनाया था. वह खुद पर खिन्न था लेकिन तभी उसे खुराफात सूझी. अत: उस ने भी अपने सभी दोस्तों को अप्रैल फूल बनाने की सोची और अपने सभी कौंटैक्ट्स पर उस मैसेज को कौपी कर दिया.

उस के कौंटैक्ट्स में उस की क्लास टीचर अंजू मैडम का नंबर भी था, सो मैसेज उन के नंबर पर भी फौरवर्ड हो गया. मैसेज में लिखा था, ‘क्या आप किसी अमित कुमार को जानते हैं? वह कह रहा है कि वह आप को जानता है. उसे आप का फोन नंबर दूं या आप को उस का फोटो सैंड करूं. मेरे पास उस का फोटो है. आप बोलें तो दूं नहीं तो नहीं.’

संयोग से मैडम के वुडबी का नाम भी अमित था, सो उन्हें बड़ी हैरानी हुई. उन्होंने आननफानन में रिप्लाई किया कि फोटो भेज दो और उन्हें मेरा नंबर भी दे दो, लेकिन जवाब में चंदू ने उन्हें फोटो भेजा तो वे ठगी रह गईं. फिर नीचे लिखे मैसेज को पढ़ कर हैरान हुईं. लिखा था ‘अप्रैल फूल बनाया.’ उस फोटो में अंगरेजी फिल्म ‘द मम्मी’ के प्रेतात्मा वाले करैक्टर का भद्दा चित्र था. मैम को चंदू पर बहुत गुस्सा आया. सो उन्होंने उसे सबक सिखाने की सोची. ‘अपने से बड़ों से मजाक करता है. इसे सबक सिखाना ही होगा.’ लेकिन साथ ही वे संदेश भी देना चाहती थीं कि मजाक हमउम्र से ही करे.

चंदू, जिस का पूरा नाम चंद्रप्रकाश था, 11वीं कक्षा का छात्र था. पढ़ाई में निखद लेकिन बात बनाने में आगे. तिस पर उसे छोटेबड़े का भी लिहाज न था. हमेशा गैजेट्स की वर्चुअल दुनिया में ही खोया रहने वाला चंदू स्मार्टफोन मिलने के बाद तो और खो गया था. हर समय, चैटिंग, व्हाट्सऐप, यूट्यूब में लगा रहता. प्रार्थना के बाद जब सब क्लासरूम में आए तो क्लास टीचर अंजू क्लास में आते ही बोलीं, ‘‘आज सुबह से ही तुम सब एकदूसरे को अप्रैल फूल बना रहे हो. चलो, मैं भी तुम्हें खेलखेल में फन के रूप में पढ़ाती हूं. मैं इतिहास विषय से कुछ प्रश्न पूछूंगी, जो सब से ज्यादा सही उत्तर देगा उसे इनाम दिया जाएगा. शर्त यह है कि वह किसी तरह मुझे अप्रैल फूल भी बनाए.’’

ये भी पढ़ें- मौन प्रेम: जब भावना को पता चली प्रसून की सचाई

मैम ने पहला प्रश्न पूछा, ‘‘बाबर का जन्म कब हुआ था?’’ सभी छात्र शून्य में देखने लगे लेकिन पीछे बैठा चंदू झट से बोला, ‘‘14 फरवरी, 1483.’’

‘‘सही जवाब,’’ मैम ने कहा और अगला प्रश्न दागा, ‘‘क्रीमिया का युद्ध कब से कब तक चला?’’

इतिहास की तिथियां किसे याद रहती हैं. अत: सभी चुप थे. तभी चंदू फिर बोला, ‘‘जुलाई 1853 से सितंबर 1855 तक.’’

‘‘बिलकुल सही,’’ एक बार फिर तालियां बजीं. तभी प्रीति बोल पड़ी, ‘‘मैम आप के बालों पर चौक लगा है.’’

‘‘हां, मुझे पता है,’’ कह कर वे चुप हो गईं. दरअसल, प्रीति ने मैम को अप्रैल फूल बनाना चाहा था. फिर मैम ने अगला प्रश्न पूछा, ‘‘कुतुबमीनार किस ने बनवाई थी?’’ इस बार कईर् छात्रों के हाथ खड़े थे, लेकिन अंजू मैडम ने जानबूझ कर चंदू से ही पूछा तो उस ने भी सटीक उत्तर बता दिया, ‘‘गुलाम वंश के संस्थापक कुतबुद्दीन ऐबक ने.’’

‘‘सही उत्तर,’’ कह कर मैम ब्लैक बोर्ड की ओर मुड़ीं तो राहुल बोल पड़ा, ‘‘मैम, आप की साड़ी के पल्लू पर छिपकली है.’’

ये भी पढ़ें- मौन: एक नए रिश्ते की अनकही जबान

अंजू मैम जानती थीं कि अप्रैल फूल बनाया जा रहा है, सो बोलीं, ‘‘तुम हटा दो.’’ अब मैम जो भी प्रश्न पूछतीं पीछे डैस्क पर बैठा चंदू उस का सही जवाब बताता. 10 में से केवल एक सवाल का उत्तर अन्य छात्र ने दिया. बाकियों ने सिर्फ अप्रैल फूल बनाने की नाकाम कोशिश की. सभी छात्र इस बात से भी हैरान थे कि फिसड्डी चंदू आज इतनी आसानी से बिलकुल सटीक उत्तर कैसे दे रहा है? अंत में नतीजा सुनाती अंजू मैम बोलीं, ‘‘आज के इस चैलेंज में ज्यादा से ज्यादा सवालों के सही जवाब चंदू ने दिए और अप्रैल फूल भी उसी ने बनाया,’’ कहती हुई मैम चंदू की सीट पर गईं और उस के हाथ से मोबाइल छीनती हुई बोलीं, ‘‘देखो, यह सभी प्रश्नों के उत्तर नैट से गूगल सर्च कर के दे रहा था.’’

फिर वे चंदू की ओर मुखातिब होती हुई बोलीं, ‘‘चंदू, आखिरी पीरियड में आ कर मुझ से अपना मोबाइल और अप्रैल फूल का तोहफा ले जाना.’’ सभी बच्चे हैरान थे कि चंदू ने बैठेबैठे खेलखेल में इनाम जीत लिया. सभी को इस बात से चंदू से ईर्ष्या थी, लेकिन चंदू बहुत खुश था. आखिरी पीरियड में चंदू अंजू मैम के पास गया तो उन्होंने उसे एक बड़ा सा डब्बा थमा दिया, जिसे बहुत ही सुंदर पैकिंग से पैक किया हुआ था. ऊपर चिट लगी थी, ‘‘चंदू को अप्रैल फूल का तोहफा मुबारक.’’ चंदू ने खुशीखुशी तोहफा लिया और क्लासरूम में आ कर बड़े उत्साह से खोलने लगा. तोहफे का डब्बा खोलते समय वह फूला नहीं समा रहा था. चंदू ने पैकिंग पेपर हटाया औैर डब्बा खोला. वह तोहफा देखने को खासा उत्सुक था. उस के आसपास अन्य छात्र भी इकट्ठे हो तोहफा देखने को उत्सुक दिखे. डब्बे को खोलने पर उसे अंदर एक और छोटा डब्बा मिला. चंदू हैरान था. अब इस डब्बे को खोला तो अंदर एक और डब्बा था. चंदू नरवस हो गया. डब्बे में डब्बा खोलते उस के पसीने छूट गए. वह सोचने लगा, ‘मैम ने अच्छा तोहफा दिया है कि खोलते रहो.’

एक छात्र बोला, ‘‘लगता है चंदू को मैम ने अप्रैल फूल बनाया है, डब्बे में डब्बा ही खुलता जा रहा है.’’ ‘हां, शायद अप्रैल फूल के तोहफे में अप्रैल फूल ही बनाया है मैम ने,’ सोचता हुआ चंदू डब्बे खोलता गया लेकिन अंत में जो डब्बा मिला उसे पा कर वह फूला न समाया. यह अत्यंत महंगे मोबाइल फोन का डब्बा था.  चंदू खुश हो गया. उसे लगा मैम ने इतना महंगा फोन गिफ्ट किया है, लेकिन ज्यों ही उस ने मोबाइल फोन का डब्बा खोला, उस में मोबाइल के बजाय एक पत्र पा कर हैरान हुआ. फिर पत्र निकाल कर पढ़ने लगा. लिखा था,‘चंदू तुम्हें अप्रैल फूल का तोहफा मुबारक हो. तुम ने सुबह मुझे मैसेज कर अप्रैल फूल बनाया, मुझे बहुत पिंच हुआ. संयोग से मेरे वुडबी का नाम भी अमित है सो मैसेज का संबंध उन से जुड़ा, लेकिन बाद में तुम्हारे द्वारा भेजा ‘ममी’ का फोटो देख दिल धक्क रह गया. तुम्हें मजाक करते समय यह भी खयाल नहीं रहा कि तुम मजाक किस से कर रहे हो. उस की उम्र क्या है. तुम से संबंध क्या है. तुम्हें इस तरह की हरकतें अपने हमउम्र के साथ ही करनी चाहिए, बड़ों के  साथ नहीं. ‘दूसरे, तुम ने स्कूल में मोबाइल लाने की गलती की, क्योंकि स्कूल में मोबाइल अलाउड नहीं होता. तुम जानते ही हो. तिस पर तुम ने गूगल सर्च कर कर के प्रश्नों के उत्तर दिए और मुझे फूल बनाया. इस तरह तुम सटीक उत्तर दे पाए परंतु क्या खुद को परख पाए? परीक्षा खुद को परखने का पैमाना है. स्कूल परीक्षा में मोबाइल भी नहीं होगा, तब क्या करोगे? ‘समय से चेत जाओ और गैजेट्स की वर्चुअल दुनिया से बाहर आ कर ऐक्चुअल में विचरण करो. गैजेट्स का सही इस्तेमाल सीखो. नैट से नकल के बजाय हैल्प लो और अपने नोट्स बनाओ. परीक्षा की तैयारी करो. मैं ने पहले भी जब क्लास टैस्ट लिए हैं तुम्हें मोबाइल सर्च करते पाया है, पर तुम्हारी बेइज्जती न हो इसलिए चुप थी. आज का नाटक भी तुम्हारे कारण किया. तभी मैं तुम से ही सब प्रश्न पूछ रही थी और तुम उत्साह में नैट से देख कर उत्तर देते रहे. मेरा फर्ज था समय रहते तुम्हें चेताऊं. आगे से मजाक हमउम्र लोगों से करना साथ ही पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करो इस से गैजेट्स का सही इस्तेमाल भी होगा और तुम्हारा भला भी. हैप्पी अप्रैल फूल.

ये भी पढ़ें- एक बेटी तीन मांएं: कैसे हो गई तूलिका और आशुतोष की जिंदगी बेहतर

‘तुम्हारी क्लास टीचर

‘अंजू.’

चंदू ने पत्र फोल्ड कर के जेब में रख लिया लेकिन उस में लिखी बातों ने उस के हृदय को झकझोर कर रख दिया. सभी साथी भी उसे हमदर्दी की नजरों से देख रहे थे. उसे सबक मिल गया था. ‘वाकई अगर वह डिजिटल दुनिया से निकल कर ऐक्चुअल तैयारी करे तो परीक्षा में अच्छे अंक ही नहीं लाएगा बल्कि टौप भी करेगा. अगली परीक्षा में वह इन बातों पर जरूर अमल करेगा और अप्रैल फूल के इस तोहफे को जीवन का टर्निंग पौइंट मान कर संभाल कर रखेगा.’ यह संकल्प लेते हुए चंदू ने पत्र जेब में डाला और नैट पर परीक्षा सामग्री सर्च कर डायरी में नोट्स बनाने बैठ गया.

मां की 33 साल पुरानी साड़ी पहनकर दुल्हन बनीं थीं Yami Gautam, फोटोज वायरल

 बीते दिनों कोरोनावायरस के कहर के बीच बौलीवुड एक्ट्रेस यामी गौतम ने उरी फिल्म के डायरेक्टर आदित्य धर से शादी की थी, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुए थे. फैंस ने जहां यामी को शादी की बधाई दी थी तो वहीं उनके सिंपल लुक की तारीफें भी की थीं. लेकिन क्या आपको पता है यामी का शादी का लुक बेहद खास था. यह कोई करोड़ों की साड़ी नहीं बल्कि यामी की मां की 33 साल पुरानी साड़ी थी. आइए आपको दिखाते हैं यामी के शादी के हर फंक्शन के खास लुक्स की झलक…

मां की साड़ी को बनाया शादी का लुक

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Yami Gautam (@yamigautam)

जहां एक्ट्रेसेस अपनी शादी के लिए महंगे-महंगे लहंगे पहने नजर आती हैं तो वहीं एक्ट्रेस यामी गौतम की शादी का हर लुक बेहद सिंपल लेकिन खास था. दरअसल, यामी ने अपने ब्राइडल लुक के लिए अपनी मां अंजलि की 33 साल पुरानी ट्रेडीशनल सिल्क साड़ी पहनी थी, जिसके साथ मैचिंग ज्वैलरी और उनकी नानी का तोहफे में दिया हुआ मैचिंग रेड दुपट्‌टा कैरी किया था.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Yami Gautam (@yamigautam)

ये भी पढ़ें- लहंगा पहनकर Rubina Dilaik ने दिखाईं अदाएं, फैंस हुए फिदा

शादी के बाद कुछ यूं था लुक

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Bells Bollywood (@bellsbollywood)

शादी के बाद भी यामी गौतम हरे रंग की सिल्क की साड़ी में नजर आईं, जिसके साथ चेन पैटर्न वाले इयरिंग्स और हाथों में लाल चूड़ा यामी के लुक को बेहद खूबसूरत बना रहा था.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Yami Gautam (@yamigautam)

हल्दी में भी था सिंपल लुक

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Yami Gautam (@yamigautam)

हल्दी के लिए यामी गौतम का लुक बेहद सिंपल था. पीले कलर के सूट में रेड कलर का प्रिंटेड दुपट्टा एक्ट्रेस यामी गौतम के लुक पर चार चांद लगा रहा था. वहीं इस लुक के साथ यामी ने फ्लोरल ज्वैलरी कैरी की थी.

मेहंदी में था डिफरेंट लुक

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Surilie Gautam (@s_u_r_i_l_i_e)

जहां दुल्हन मेहंदी में हरे कलर को पहनना पसंद करती हैं तो वहीं यामी गौतम ने औरेंज कलर का हल्की कढ़ाई वाला सूट चुना था. इसके साथ हैवी झुमके बेहद खूबसूरत लग रहे थे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Yami Gautam (@yamigautam)

ये भी पढ़ें- हौट अवतार में Asha Negi ने बिखेरे जलवे, वायरल हुईं फोटोज

ग्रैंड पेरैंट्स का साथ है जरूरी

एक शाम को सैर पर निकली तो पार्क के एक कोने में कुछ नन्हेंमुन्हे बच्चे आपस में बातें कर रहे थे. उन की नटखट हरकतें और मीठी आवाज ने बरबस ही मेरा ध्यान उस ओर आकर्षित कर लिया.

एक बच्चा कह रहा था, ‘फ्रैंड्स, मेरी दादी के मोबाइल में ढेर सारे गेम्स हैं. जब मैं बिना नखरे किए सारा दूध पी लेता हूं तो दादी मुझे अपने मोबाइल में गेम्स खेलने देती हैं.’

दूसरे ने कहा, ‘मेरी नानी मुझे जब तक 5-6 कहानियां नहीं सुनाती हैं, मैं तो सोता ही नहीं हूं.’

तभी एक प्यारी सी बच्ची इतराते हुए बोल पड़ी, ‘अरे, तेरी दादी के पास तो सिर्फ गेम्स हैं पर मेरी दादी के मोबाइल में  तो गेम्स के साथसाथ ढेर सारे गाने भी हैं. जब मैं बोर होने लगती हूं तो दादी गाने लगा देती हैं और मैं डांस करने लग जाती हूं. अगर उस समय दादाजी होते हैं तो वे अपने मोबाइल से मेरा डांसिंग पोज में फोटो ले कर पूरे घर को दिखाते हैं. तब बहुत मजा आता है.’

उन की भोलीभाली बातों ने सहसा मुझे मेरे बचपन की याद दिला दी जब हम चारों भाईबहन दादीनानी की कहानियां सुनते हुए मीठी नींद में सो जाया करते थे. उन कहानियों को सुनते समय हम उन से न जाने कितने ऊलजलूल तरह के प्रश्न किया करते थे तथा उन प्रश्नों के जवाब भी हमें बड़े प्यार से मिल जाया करते थे. उस जमाने में शायद बचपन में हर मर्ज की एक दवा नजर आती थी, अपनी समस्या को ग्रैंडपेरैंट्स के साथ शेयर करना. पर कभीकभी दादाजी से थोड़ा डर भी लगता था.

आज भागदौड़ की जिंदगी में अधिकांश बच्चे अपने मम्मीपापा के साथ दादादादी या नानानानी से दूर रहते हैं और पूरे साल में चंद दिनों के लिए ही उन से मिल पाते हैं. हमारी जीवनशैली और जमाना चाहे कितना भी बदल जाए पर हमारी तरह हमारे बच्चों को भी ग्रैंडपेरैंट्स की जरूरत है. आइए बात करते हैं कुछ बच्चों और बड़ों से कि उन की जिंदगी में ग्रैंडपेरैंट्स अहम क्यों हैं.

ये भी पढ़ें- बच्चों के आपसी झगड़े को कंट्रोल करने के 7 टिप्स

लाड़प्यार की अनुभूति

कुश्ती के शौकीन 50 वर्षीय दीपक शरण का कहना है, ‘‘सचमुच दादादादी या नानानानी शब्द के साथ एक लाड़प्यार और अपनेपन की अनुभूति जुड़ी होती है. ऐसी बात नहीं है कि मम्मीपापा बच्चों को प्यार नहीं करते पर दादादादी का लाड़प्यार कुछ खास ही होता है. मैं ने सुबहशाम ब्रश करना, सही ढंग से चप्पल पहनना और कसरत करना सब अपने दादाजी से ही सीखा है.’’

28 साल की मालविका अपने लंबे बालों को लहराते हुए कहती है, ‘‘मेरे इतने सुंदर और स्वस्थ बालों का राज मेरी दादी हैं, जिन्होंने न केवल मुझे अपने बालों की सही ढंग से देखभाल करना सिखाया बल्कि पत्रपत्रिकाओं से कई तरह के हेयरस्टाइल सीख कर मुझे सजाया भी है.’’

एक उच्च पुलिस अधिकारी मानते हैं कि उन्हें बचपन की कईर् ऐसी बातें याद हैं जो उन्होंने अपने ग्रैंडपेरैंट्स से सीखीं और जो आज उन की कामयाबी का  हिस्सा बन चुकी हैं. वे कहते हैं कि आज के एकल परिवार के जमाने में जिन बच्चों को अपने दादादादी, नानानानी के साथ रहने का मौका मिला हुआ है, वे कुछ बने या न बनें पर एक बेहतर इंसान अवश्य बनेंगे.

सुरक्षित होने का एहसास

हम में से शायद ही कोई ऐसा होगा जो बचपन में गलती करने पर पापामम्मी की डांटफटकार से बचने के लिए अपने ग्रैंडपेरैंट्स की गोद में न छिपा हो. कई बार मातापिता के कामकाजी होने से बच्चों के कोमल हृदय में इस तरह की गांठें भी पड़ जाती हैं कि मम्मीपापा इतने व्यस्त रहते हैं कि मेरे लिए उन के पास टाइम ही नहीं बचता है. पर घर में इन बुजुर्गों के रहने से बच्चों को अकेलापन महसूस नहीं होता और उन के मन में सहज ही सुरक्षा का भाव आ जाता है.

बच्चों के साथसाथ उन के मातापिता भी चिंतामुक्त रहते हैं कि बच्चे घर में किसी अपने के पास हैं. कई लोगों का मानना है कि बुजुर्ग वटवृक्ष के समान होते हैं जिन की छत्रछाया में रहना एक सुखद अनुभव कराता है.

एक प्रसिद्ध कहावत है, मूलधन से सूद ज्यादा प्यारा होता है. इस संबंध में रिटायर्ड जनरल चड्ढा का कहना है, ‘‘सचमुच ग्रैंडपेरैंट्स को अपने ग्रैंडचिल्ड्रेन से ज्यादा लगाव महसूस होता है. शायद इसलिए कि बुढ़ापा बचपन की पुनरावृत्ति माना जाता है.’’ अपने अनुभव के आधार पर वे कहते हैं, ‘‘अपने बच्चों के समय पर जब आप दादानाना बनने की उम के होते हैं तब तक रिटायरमैंट का समय आ जाता है. जिम्मेदारियां ज्यादा होती हैं तथा समय की कमी रहती है, चाहते हुए भी समय निकालना संभव नहीं होता. जिम्मेदारियां भी काफी हद तक कम हो जाती हैं. तब तक समय, अनुभव तथा धैर्य भी पर्याप्त मात्रा में हमारे अंदर आ जाता है. ऐसे में बच्चों की बातें सुनना, उन की मासूम परेशानियों को समझना और उन के साथ खेलना बहुत सुकून देता है.’’

निर्मला देवी, जो रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं, का मानना है कि आज के पेरैंट्स की दिनचर्या इतनी व्यस्त होती है कि उन्हें खुद भी समय में बंधना पड़ता है और वे बच्चों को भी रूटीन में बांधना चाहते हैं. ऐसे में ग्रैंडपेरैंट्स का साथ होना बच्चे के विकास में काफी लाभदायक सिद्ध होता है.

ब्रिटेन में हुए एक शोध ने प्रमाणित कर दिया है कि बच्चों के प्रारंभिक विकास के लिए परिवार के बड़ेबुजुर्गों का सान्निध्य बहुत जरूरी होता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि डिप्रैशन होने का खतरा उन बच्चों में ज्यादा होता है जो एकल परिवार में रहते हैं.

मनोवैज्ञानिकों का भी मानना है कि बड़े या संयुक्त परिवार का अर्थ होता है चौबीसों घंटे हर किसी का साथ. इस स्थिति में बच्चों के मन में अकेलेपन और असुरक्षा की भावना उत्पन्न नहीं होती है. टैंशन या परेशानी के समय भी किसी न किसी का साथ मिल जाता है, जो उन्हें डिप्रैशन में आने की विषम परिस्थिति से बचाता है. जिन बच्चों को अपने बुजुर्गों से ज्यादा लगाव होता है वे बच्चे अपेक्षाकृत अधिक लविंग, केयरिंग और आत्मविश्वास से भरे होते हैं.

तालमेल जरूरी

बाल संस्था से जुड़ी आशा किरण का मानना है कि बच्चे दादादादी या नानानानी के नजदीक रह कर उन के पास बैठ कर सहज रूप में पीठ पर, सिर पर प्यारदुलार से हाथ फेरते हुए किस्से कहानियों, अनुभवों और बतरस का मजा लेते हुए जानेअनजाने जितना सीख सकते हैं, उतना पुस्तकों, शिक्षकों, टीवी के कार्यक्रमों और अपने व्यस्त मातापिता से नहीं सीख सकते. ग्रैंडपेरैंट्स के पास अनुभव और ज्ञान का खजाना होता है. अपने अनुभवों के आधार पर ही कभी वे एक दोस्त की तरह बच्चों के साथ राजदार बनते हैं तो कभी उन की परेशानियों में काउंसलर की भूमिका निभाते हैं.

परिवार, मातापिता और बच्चों के खुद के बचपन से जुड़ी कई रोचक और ज्ञानभरी बातें बच्चों को बुजुर्गों से ही ज्ञात होती हैं. साथसाथ रहने से पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच एक सामंजस्य स्थापित होता है जो दोनों पीढि़यों के लिए आनंदायक, लाभदायक व सुखमय साबित होता है. बच्चे प्यारदुलार के साथ जो कुछ बड़ेबुजुर्गों से सीखतेसमझते हैं वे उन के भावी जीवन के संतुलित विकास में सहायक साबित होता है.

दूसरा पहलू भी

हर तथ्य  के 2 पहलू होते हैं. ऐसे में यहां भी स्थिति कभीकभी विपरीत भी हो जाती है. पुरानी परंपराओं के कट्टर समर्थक तथा सिर्फ अपने विचारों व आदर्शों को ही उचित मानने वाले ग्रैंडपेरैंट्स के साथ रहने पर पेरैंट्स तथा बच्चों को कई बार कई मुश्किल स्थितियों से भी गुजरना पड़ता है. सब से प्रमुख कारण है बच्चों के पालनपोषण को ले कर टकराव की स्थिति का होना.

ये भी पढ़ें- पत्नी या पति, रिश्तों में दरार पैदा करता है डोमिनेशन

बच्चों के पालनपोषण के तरीके में समयसमय पर या पीढ़ीदरपीढ़ी कुछ न कुछ बदलाव होते रहते हैं. जो तरीके कुछ समय पूर्व सही थे, वे गलत हो सकते हैं. या गलत तरीके, सही माने जा सकते हैं. ऐसे में बुजुर्गों और मातापिता के बीच इस विषय पर मतभेद भी उत्पन्न हो जाता है.

3 साल की बेटी की मां ज्योति को अपनी सास से इस बात पर अनबन हो जाती है कि बच्ची की मालिश बेबी औयल से हो या सरसों तेल से अथवा शाकाहारी खाना खिलाया जाए या मांसाहारी. आदर्श, परंपरा, संस्कार आदि बातों में बुजुर्गों को लगता है कि उन का अनुभव सही है. सो, बच्चों के मामले में वे सही हैं और पेरैंट्स को उन की बात माननी चाहिए. जबकि मातापिता बच्चों को बदलते समय की धारा व माहौल के अनुसार ढालने की छूट भी देना चाहते हैं. इस कारण कई बार कितने मातापिता बच्चों को ग्रैंडपेरैंट्स के पास छोड़ने के बजाय किसी हौबी क्लास में भेजना या आया अम्मा के पास रखना ज्यादा बेहतर समझते हैं.

होना यह चाहिए कि ग्रैंडपेरैंट्स और पेरैंट्स आपस में खुल कर बातचीत करें और ग्रैंडपेरैंट्स भी इसे अन्यथा न लें. कई बार बुजुर्गों के ज्यादा प्यारदुलार का बच्चे नाजायज फायदा भी उठाने लगते हैं. वे अपनी हर बात मनवाने के लिए दादादादी या नानानानी का सहारा लेना शुरू कर देते हैं. ऐसे में पेरैंट्स और ग्रैंडपेरैंट्स दोनों को आपसी अंडरस्टैंडिंग बना कर इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि बच्चे की जिद और मनमाने व्यवहार का नियंत्रण में रखा जा सके.

कई लोगों से बातचीत करने पर सब ने यह स्वीकार किया कि दुनिया कितनी भी बदल जाए, ग्रैंडपेरैंट्स के मन में बच्चों की खुशी ही सर्वोपरि होती है चाहे वह खुशी अपने बच्चों की हो या फिर बच्चों के बच्चों की. सो, अगर विचारों में थोड़ेबहुत मतभेद भी हों तो भी इस बात को नहीं भूलें कि बच्चे दूर हों या पास, ग्रैंडपेरैंट्स और ग्रैंडचिल्ड्रेन हमेशा एकदूसरे के लिए खास होते हैं.

ये भी पढ़ें- Father’s day Special: माता-पिता के सपनों को पूरा करती बेटियां

मेरे सिर में लगातार दर्द हो रहा है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 52 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. पिछले कुछ महीनों से मुझे लगातार सिरदर्द हो रहा है. थोड़े दिनों से रात में भी इतना तेज दर्द होता है कि नींद खुद जाती है. मैं क्या करूं?

जवाब-

कभीकभी सिरदर्द हो तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर आप को लगातार कई दिनों से सिरदर्द हो रहा हो, रात में तेज सिरदर्द होने से नींद खुल रही हो, चक्कर आ रहे हों, सिरदर्द के साथ जी मिचलाने और उलटियां होने की समस्या हो रही हो तो समझिए कि आप के मस्तिष्क में प्रैशर बढ़ रहा है. मस्तिष्क में प्रैशर बढ़ने का कारण ब्रेन ट्यूमर हो सकता है. अगर आप पिछले कुछ दिनों से इस तरह की स्थिति का सामना कर रही हैं तो सतर्क हो जाएं और तुरंत डायग्नोसिस कराएं.

ये भी पढ़ें

अगर आपको अक्सर ही सिरदर्द और सुस्ती की शिकायत रहती है या फिर देखने बोलने में भी समस्या होती है, तो सावधान हो जाइये क्योंकि हो सकता है कि आपके ऊपर ब्रेन ट्यूमर का खतरा मंडरा रहा हो. बता दें कि ट्यूमर दो तरह का होता है. एक जिसे ब्रेन कैंसर कहा जाता है और दूसरा सामान्य ट्यूमर. ब्रेन कैंसर स्वास्थ्य के लिए घातक होता है. हालांकि दोनों ही तरह के ट्यूमर में दिमाग की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती हैं.

दिमाग में किसी एक या अधिक कोशिकाओं के असामान्य रूप से बढ़ने की वजह से ब्रेन ट्यूमर होता है. ब्रेन ट्यूमर किसी भी उम्र में हो सकता है और जैसे जैसे आपकी उम्र बढ़ती है बढ़ती ट्यूमर का खतरा भी बढ़ता जाता है. ब्रेन ट्यूमर के लक्षणों को पहचानना बहुत मुश्किल है. ऐसे में कई बार मरीज को पता ही नहीं चलता कि उसे ब्रेन ट्यूमर है.

आज हम आपको ब्रेन ट्यूमर के कुछ सामान्य लक्षणों के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे आप समय रहते इसकी पहचान कर उपचार करा सकती हैं.

लगातार सिरदर्द का बने रहना

सिरदर्द के वैसे तो कई सारे कारण हो सकते हैं, लेकिन लगातार सिरदर्द होने का एक कारण ब्रेन ट्यूमर भी है. अन्य कारणों से सिरदर्द और ब्रेन ट्यूमर की वजह से होने वाले सिरदर्द में अंतर कर पाना डाक्टर्स के लिए भी काफी मुश्किल होता है. ऐसे में अगर आपको सर्दी, खांसी और छींक के साथ लगातार सिरदर्द हो रहा हो और उपचार करने के बावजूद ठीक नहीं हो रहा हो तो यह ब्रेन ट्यूमर का लक्षण हो सकता है. ऐसा होने पर जल्द ही डाक्टर के पास जाए और उसका परामर्श लें.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- सिरदर्द और सुस्ती की है शिकायत तो हो सकता है ब्रेन ट्यूमर

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

5 टिप्स: रात भर में पाएं ग्लो-अप

क्या आप भी चाहती हैं की रात भर में आप का फुल ग्लो अप हो जाए या फिर रात भर सोने के बाद सुबह उठकर आपकी सुंदरता और बढ़ जाए, चेहरा खिल उठे और आपके बाल मुलायम और रेशमी हो जाएं ? अगर आपका जवाब हां है तो चलिए बात करते हैं कुछ ऐसे टिप्स की जिनको फॉलो कर के आपका रात भर में ही ग्लो अप हो जायेगा. और आप अगली सुबह काफी खूबसूरत नज़र आएंगी.

1) बनाएं एक स्किन केयर रुटीन

एक अच्छी स्किन के लिए ज़रूरी है कि आपका एक फिक्स रुटीन हो. नाइट में स्किन केयर रूटीन के लिए आप रोज़ाना रात में अपने फेस की क्लींजिंग और टोनिंग करें और फिर मॉश्चराइजर या सीरम से फेस को हाइड्रेट रखें. ऐसा करने से जब आप सुबह उठेंगी तो आपकी स्किन ग्लोइंग और हाइड्रेटेड नज़र आयेगी.

2) नाइट हेयर मास्क

ग्लो अप के लिए स्किन का अच्छा होने के साथ साथ आपके बालों को भी हेल्थी होना चाहिए. बालों को हेल्थी रखने के लिए आप घर पर ही ऑयल मास्क लगा सकती हैं. इसके लिए २ चम्मच नारियल का तेल, २ चम्मच कैस्टर ऑयल और २ चम्मच आर्गन ऑयल मिक्स करके अपने बालों में अच्छे से लगा लें और फिर अगली सुबह बालों को शैंपू से धो कर कंडीशनर अप्लाई करें. ऐसा करने से आपके बाल काफी मुलायम और शाइनी नज़र आयेंगे.

ये भी पढ़ें- Rose Water में छिपा खूबसूरती का राज 

3) आईब्राउज को दें सही शेप

आपकी आईब्राउस ही आपके फेस को शेप करने में मदद करतीं हैं. अगर आपकी आइब्रोज के आस पास एक्स्ट्रा हेयर हैं तो इनको ट्वीजर की मदद से निकाल लें जिससे की आपकी ब्राउज परफेक्ट और फ्लीक पर लगेंगी. आप यह रात में सोने से पहले कर सकती हैं ताकि सुबह उठकर आपका फेस अट्रैक्टिव लगे.

4) मैनीक्योर एंड नेल पेंट

आप रात में सोने से पहले अपने हाथों पर मैनीक्योर कर सकते हैं. ऐसा करने से आपके फेस के साथ आपके हाथ भी खूबसूरत लगेंगे. आप चाहें तो मैनीक्योर के बाद नेल पेंट भी अप्लाई कर सकती हैं. क्योंकि नेल पेंट लगाने से नेल्स काफी अट्रैक्टिव लगते हैं.

5) ब्यूटी स्लीप

नींद पूरी होने से आप सुबह उठ कर खुद में हेल्थी और अच्छा फील करते हैं. आप जितना खुश रहेंगे आपकी स्किन उतनी ही ग्लो करेगी. इसलिए रात में कम से कम 8 घंटे की नींद ज़रूर लें. ब्यूटी स्लीप के लिए जल्दी सोने की आदत डालें. चाहें तो सिल्क नाइट सूट पहन कर सोएं. इससे आपको अच्छी नींद आयेगी. आप चाहें तो लाइट म्यूजिक भी बजा सकते हैं और स्लीप मास्क भी चेहरे पर लगा कर सो सकते हैं. ऐसा करने से आपको अगली सुबह काफी अच्छा महसूस होगा.

ये भी पढ़ें- Summer Special: बौडी स्किन की केयर भी है जरूरी

ब्रैस्ट में गांठ का मतलब कैंसर ही नहीं

हमारे देश में ब्रैस्ट में होने वाली गांठ को ले कर 2 तरह की प्रतिक्रियाएं आम हैं. पहली या तो लोग उसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर देते हैं और दूसरी या एकदम से दहशत में आ जाते हैं. दोनों ही स्थितियों में जागरूकता का अभाव है. भारत में महिलाओं की मौत के सब से बड़े कारणों में से ब्रैस्ट कैंसर एक है. हाल ही के एक अध्ययन से पता चलता है कि बीमारी के प्रसार का यह स्तर 1 लाख महिलाओं में से 25.8% में है और इस में मृत्यु दर प्रति 1 लाख पर 12.7% है, बावजूद इस के महिलाओं के बीच इस जानलेवा बीमारी के प्रति जागरूकता बेहद कम है.

जागरूकता की कमी

मेदांता द मैडिसिटी की रेडियोलौजी विभाग की ऐसोसिएट डाइरैक्टर, डा. ज्योति अरोड़ा कहती हैं, ‘‘जागरूकता की कमी की वजह से पीडि़त लाखों महिलाएं न तो वक्त पर जांच कराती हैं और न ही इलाज. ब्रैस्ट कैंसर के कुछ शुरुआती लक्षणों में से एक है गांठ बनना. लेकिन आज भी बहुत सी ऐसी महिलाएं हैं, जो पढ़ीलिखी और जागरूक वर्ग की नहीं हैं, इसलिए वे ब्रैस्ट में गांठ को नहीं पहचान पाती हैं. दूसरी तरफ जो महिलाएं इस बारे में जागरूक हैं उन में भी अधिकतर यह समझ नहीं पाती हैं कि ब्रैस्ट में गांठ के 10 में से 8 मामलों का संबंध कैंसर से नहीं होता है. उन के लिए तो ब्रैस्ट की गांठ कैंसर का ही दूसरा नाम है और अगर उन्हें अपनी ब्रैस्ट में कोई गांठ दिख जाए तो वे मान लेती हैं कि अब उन के जीवन का अंत करीब है. अब जांच करा के क्या फायदा.’’

डा. ज्योति अरोड़ा आगे कहती हैं, ‘‘कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जो सिर्फ इसलिए डाक्टर के पास जांच के लिए नहीं जातीं, क्योंकि उन्हें गांठ में दर्द महसूस होता है. कैंसर वाली गांठों को महसूस कर पाना अकसर कठिन होता है और इन का संबंध दर्द से नहीं होता. नौनकैंसर गांठ सिस्ट बनने का परिणाम हो सकती है. जिसे हम फाइब्रोएडीनोमा कहते हैं और यह नौनकैंसर ग्रोथ होती है.

ये भी पढ़ें- Health tips: Nails से जानिए सेहत का राज

‘‘कई मामलों में यह महिला की माहवारी से संबंधित अस्थाई गांठ हो सकती है. ऐसे में अगर किसी महिला को गांठ महसूस हो रही है तो उसे तुरंत डाक्टर के पास जाना चाहिए जहां उस की मैमोग्राफी और अल्ट्रासाउंड किया जाएगा. इस में अगर कोई गांठ दिखती है तो यह पता लगाने के लिए कि इस का संबंध कैंसर से है या नहीं, बायोप्सी की जाती है. बायोप्सी के दौरान रेडियोलौजिस्ट प्रभावित जगह से टिशू निकालता है ताकि लैब में उस की जांच कर पता लगाया जा सके कि यह कैंसर है या नहीं.’’

‘‘ऐसे मामलों में कई तरह की बायोप्सी की जाती है. अधिकतर मामलों में ट्रूकट नीडल बायोप्सी की जाती है, लेकिन अगर असामान्यता बेहद मामूली और संवेदी होती है अथवा मैमोग्राम में यह सिर्फ कैल्सिफिकेशन जैसी दिखती है अथवा सिर्फ ब्रैस्ट की एमआरआई में दिखती है तभी हम बीएबीबी को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि इस प्रक्रिया में प्रभावित जगह का ऐक्युरेट सैंपल हासिल करने की संभावना बढ़ जाती है. बीएबीबी के जरीए, ट्रूकट नीडल बायोप्सी की तुलना में अधिक टिशू निकाले जा सकते हैं और पैथोलौजिस्ट ज्यादा ऐक्युरेट रिपोर्ट तैयार कर सकता है.’’

महिलाएं रखें ध्यान

महिलाओं को अपनी ब्रैस्ट में आने वाले बदलावों पर भी गौर करना चाहिए. खासतौर से ब्रैस्ट की शेप और साइज पर. गांठ के अलावा यह भी देखना चाहिए कि उन की त्वचा के रंग में ज्यादा लाली या सूजन तो नहीं है, निप्पल अंदर की ओर धंसने तो नहीं लगी है और अगर दर्द है तो इरिटेशन, रंग में बदलाव और त्वचा से पपड़ी उतरने या निप्पल की त्वचा फटने जैसी समस्याएं तो नहीं हैं.

ये भी पढ़ें- Health tips: Nails से जानिए सेहत का राज

ब्रैस्ट में नौनकैंसर गांठ होना आम बात है और इस से जीवन को कोई खतरा नहीं होता, लेकिन सब से अहम बात है वक्त पर इस की जांच और इलाज कराना.

एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रैस्ट कैंसर के मामलों में मृत्यु दर काफी अधिक है. मौजूदा समय की सब से बड़ी चिंता यह है कि ब्रैस्ट में होने वाली अधिकतर गांठें कैंसर न होने के बावजूद यह बीमारी महिलाओं की मौत की सब से बड़ी वजह बनी हुई है. ऐसे में जांच को कतई दरकिनार न करें.

शरशय्या- भाग 3 : त्याग और धोखे के बीच फंसी एक अनाम रिश्ते की कहानी

लेखक- ज्योत्स्ना प्रवाह

‘‘दूसरा रिश्ता पति का था, वह भी सतही. जब अपना दिल खोल कर तुम्हारे सामने रखना चाहती तो तुम भी नहीं समझते थे क्योंकि शायद तुम गहरे में उतरने से डरते थे क्योंकि मेरे दिल के आईने में तुम्हें अपना ही अक्स नजर आता जो तुम देखना नहीं चाहते थे और मुझे समझने में भूल करते रहे…’’

‘‘देखो, तुम्हारी सांस फूल रही है. तुम आराम करो, इला.’’

‘‘वह नवंबर का महीना था शायद, रात को मेरी नींद खुली तो तुम बिस्तर पर नहीं थे, सारे घर में तुम्हें देखा. नीचे से धीमीधीमी बात करने की आवाज सुनाई दी. मैं ने आवाज भी दी मगर तब फुसफुसाहट बंद हो गई. मैं वापस बैडरूम में आई तो तुम बिस्तर पर थे. मेरे पूछने पर तुम ने बहाना बनाया कि नीचे लाइट बंद करने गया था.’’ ‘‘अच्छा अब बहुत हो गया. तुम इतनी बीमार हो, इसीलिए मैं तुम्हें कुछ कहना नहीं चाहता. वैसे, कह तो मैं पूरी जिंदगी कुछ नहीं पाया. लेकिन प्लीज, अब तो मुझे बख्श दो,’’ खीज और बेबसी से मेरा गला भर आया. उस के अंतिम दिनों को ले कर मैं दुखी हूं और यह है कि न जाने कहांकहां के गड़े मुर्दे उखाड़ रही है. उस घटना को ले कर भी उस ने कम जांचपड़ताल नहीं की थी. विभा ने भी सफाई दी थी कि वह अपने नन्हे शिशु को दुलार रही थी लेकिन उस की किसी दलील का इला पर कोई असर नहीं हुआ. उसे निकाल बाहर किया, पता नहीं वह कैसे सच सूंघ लेती थी.

‘‘उस दिन मैं कपड़े धो रही थी, तुम मेरे पीछे बैठे थे और वह मुझ से छिपा कर तुम्हें कोई इशारा कर रही थी. और जब मैं ने उसे ध्यान से देखा तो वह वहां से खिसक ली थी. मैं ने पहली नजर में ही समझ लिया था कि यह औरत खूब खेलीखाई है, पचास बार तो पल्ला ढलकता है इस का, तुम को तो खैर दुनिया की कोई भी औरत अपने पल्लू में बांध सकती है. याद है, मैं ने तुम से पूछा भी था पर तुम ने कोई जवाब नहीं दिया था, बल्कि मुझे यकीन दिलाना चाहते थे कि वह तुम से डरती है, तुम्हारी इज्जत करती है.’’

ये भी पढ़ें- कभी नहीं: क्या गायत्री को समझ आई मां की असलियत

तब शिखा ने टोका भी था, ‘मां, तुम्हारा ध्यान बस इन्हीं चीजों की तरफ जाता है, मुझे तो ऐसा कुछ भी नहीं दिखता.’

मां की इन ठेठ औरताना बातों से शिखा चिढ़ जाती थी, ‘कौन कहेगा कि मेरी मां इतने खुले विचारों वाली है, पढ़ीलिखी है?’ उन दिनों मेरे दफ्तर की सहकर्मी चित्रा को ले कर जब उस ने कोसना शुरू किया तो भी शिखा बहुत चिढ़ गई थी, ‘मेरे पापा हैं ही इतने डीसैंट और स्मार्ट कि कोई भी महिला उन से बात करना चाहेगी और कोई बात करेगा तो मुसकरा कर, चेहरे की तरफ देख कर ही करेगा न?’ बेटी ने मेरी तरफदारी तो की लेकिन उस के सामने इला की कोसने वाली बातें सुन कर मेरा खून खौलने लगा था. मुझे इला के सामने जाने से भी डर लगने लगा था. मन हुआ कि शिखा को एक बार फिर वापस बुला लूं, लेकिन उस की भी नौकरी, पति, बच्चे सब मैनेज करना कितना मुश्किल है. दोपहर में खाना खिला कर इला को लिटाया तो उस ने फिर मेरा हाथ थाम लिया, ‘‘तुम ने मुझे बताया नहीं. देखो, अब तो मेरा आखिरी समय आ गया है, अब तो मुझे धोखे में मत रखो, सचसच बता दो.’’

‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है, पूरी जिंदगी बीत गई है. अब तक तो तुम ने इतनी जिरह नहीं की, इतना दबाव नहीं डाला मुझ पर, अब क्यों?’’

‘‘इसलिए कि मैं स्वयं को धोखे में रखना चाहती थी. अगर तुम ने दबाव में आ कर कभी स्वीकार कर लिया होता तो मुझे तुम से नफरत हो जाती. लेकिन मैं तुम्हें प्रेम करना चाहती थी, तुम्हें खोना नहीं चाहती थी. मैं तुम्हारे बच्चों की मां थी, तुम्हारे साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहती थी. तुम्हारे गुस्से को, तुम्हारी अवहेलना को मैं ने अपने प्रेम का हिस्सा बना लिया था, इसीलिए मैं ने कभी सच जानने के लिए इतना दबाव नहीं डाला.

ये भी पढ़ें- एक नन्ही परी: क्यों विनीता ने दिया जज के पद से इस्तीफा

‘‘फिर यह भी समझ गई कि प्रेम यदि किसी से होता है तो सदा के लिए होता है, वरना नहीं होता. लेकिन अब तो मेरी सारी इच्छाएं पूरी हो गई हैं, कोई ख्वाहिश बाकी नहीं रही. फिर सीने पर धोखे का यह बोझ ले कर क्यों जाऊं? मरना है तो हलकी हो कर मरूं. तुम्हें मुक्त कर के जा रही हूं तो मुझे भी तो शांति मिलनी चाहिए न? अभी तो मैं तुम्हें माफ भी कर सकती हूं, जो शायद पहले बिलकुल न कर पाती.’’ ओफ्फ, राहत का एक लंबा गहरा उच्छ्वास…तो इन सब के लिए अब ये मुझे माफ कर सकती है. वह अकसर गर्व से कहती थी कि उस की छठी इंद्रिय बहुत शक्तिशाली है. खोजी कुत्ते की तरह वह अपराधी का पता लगा ही लेती है. लेकिन ढलती उम्र और बीमारी की वजह से उस ने अपनी छठी इंद्रिय को आस्था और विश्वास का एनेस्थिसिया दे कर बेहोश कर दिया था या कहीं बूढ़े शेर को घास खाते हुए देख लिया होगा. इसी से मैं आज बच गया

सच और विश्वास की रेशमी चादर में इत्मीनान से लिपटी जब वह अपने बच्चों की दुनिया में मां और नानी की भूमिका में आकंठ डूबी हुई थी, उन्हीं दिनों मेरी जिंदगी के कई राज ऐसे थे जिन के बारे में उसे कुछ भी पता नहीं. अब इस मुकाम पर मैं उस से कैसे कहता कि मुझे लगता है यह दुनिया 2 हिस्सों में बंटी हुई है. एक, त्याग की दुनिया है और दूसरी धोखे की. जितनी देर किसी में हिम्मत होती है वह धोखा दिए जाता है और धोखा खाए जाता है और जब हिम्मत चुक जाती है तो वह सबकुछ त्याग कर एक तरफ हट कर खड़ा हो जाता है. मिलता उस तरफ भी कुछ नहीं है, मिलता इस तरफ भी कुछ नहीं है. मेरी स्थिति ठीक उसी बरगद की तरह थी जो अपनी अनेक जड़ों से जमीन से जुड़ा रहता है, अपनी जगह अटल, अचल. कैसे कभीकभी एक अनाम रिश्ता इतना धारदार हो जाता है कि वह बरसों से पल रहे नामधारी रिश्ते को लहूलुहान कर जाता है. यह बात मेरी समझ से परे थी.

ये भी पढ़ें- सपना: कौनसे सपने में खो गई थी नेहा

बंदिनी- भाग 1 : रेखा ने कौनसी चुकाई थी कीमत

जेल की एक कोठरी में बंद रेखा रोशनदान से आती सुबह की पहली किरण की छुअन से मूक हो जाया करती थी. अपनी जिन यादों को उस ने अमानवीय दुस्साहस से दबा रखा था, वे सब इसी घड़ी जीवंत हो उठती थीं.

पहली बार जब रेखा ने सुना था कि उसे जेल की सजा हुई है, तो उस ने बहुत चाहा था कि जेलखाने में घुसते ही उस के गले में फांसी लगा दी जाए. उसे कहां मालूम था कि सरकारी जेल में महिला कैदियों की कोई कमी नहीं है, और कोर्ट में अपनी सुनवाई के इंतजार में ही वे कितनी बूढ़ी हो गई हैं. फीमेल वार्ड में घुसते ही रेखा आश्चर्यचकित हो गई थी. अनगिनत स्त्रियां थीं वहां. बूढ़ी से ले कर बच्चियां तक.

देखसुन कर रेखा ने साड़ी से फांसी लगा कर मरने का विचार भी त्याग दिया था. सोचा, बड़ी अदालत को उस के लिए समय निकालतेनिकालते ही कितने साल पार हो जाएंगे. और वही हुआ था. देखते ही देखते दिनरात, महीने गुजरते चले गए और 4 वर्ष बीत गए थे. बीच में एकदो बार जमानत का प्रयास हुआ था, परंतु विफल ही रहा था. एनजीओ कार्यकर्ता आरती दीदी ने अभी भी प्रयास जारी रखा था, परंतु रिहाई की आशा धूमिल ही थी.

‘‘रेखा, रोज सुबह तुझे इस रोशनदान में क्या दिख जाता है?’’

शीला के इस प्रश्न पर रेखा थोड़ी सहज हो गई थी. पिछले 2 वर्षों से दोनों एकसाथ जेल की इस कोठरी में कैद थीं. शीला ने अपने शराबी पति के अत्याचारों से तंग आ कर उस की हत्या कर दी थी. उस ने अपना अपराध न्यायाधीश के सामने स्वीकार कर लिया था. किंतु किसी ने उसे छुड़ाने का प्रयास नहीं किया था. उसे उम्रकैद हुई थी.

तभी से वह और अधिक चिड़चिड़ी हो गई थी. वह रेखा की इस नित्यक्रिया से अवगत थी और इस क्रिया का प्रभाव भी देख चुकी थी. आज वह खुद को रोक नहीं पाई थी और रेखा से वह प्रश्न पूछ बैठी थी. शीला के प्रश्न पर रेखा ने एक हलकी मुसकान के साथ उत्तर दिया था.

ये भी पढ़ें- लड़की: क्या परिवार की मर्जी ने बर्बाद कर दी बेटी वीणा की जिंदगी

‘‘रोज एक नई सुबह.’’

‘‘हमारे जीवन में क्या बदलाव लाएगी सुबह, हमारे लिए तो हर सुबह एकसमान है,’’ शीला ने ठंडी आह भरी.

‘‘यहां तुम गलत हो, स्वतंत्र मनुष्य रोज एक नई सृजन के बारे में सोच सकता है,’’ रेखा के चेहरे पर हलकी सी लुनाई छा गई थी.

शीला का चेहरा और आंखें सख्त हो आईं, बोली, ‘‘तुम एक बंदिनी हो, याद है या भूल गईं, तुम क्या स्वतंत्र हो?’’

रेखा इस सवाल का जवाब ठीक से न दे सकी, ‘‘शायद अभी पूरी तरह से नहीं, परंतु उम्मीद है…’’

‘‘यह हत्यारिनों का वार्ड है. यहां से रिहाई तो बस मृत्यु दिला सकती है. चिरबंदिनियां यहां निवास करती हैं,’’ रेखा की बात को बीच में काट कर ही शीला लगभग चिल्लाते हुए बोली थी.

रेखा बोली, ‘‘स्वतंत्र प्रतीत होता मनुष्य भी बंदी हो सकता है, उस यंत्रणा की तुम कल्पना भी नहीं कर सकतीं.’’

दोनों के बीच बातचीत चल ही रही थी कि घंटी की तेज आवाज सुनाई पड़ी थी. बंदिनियों के लिए तय काम का समय हो चुका था. सभी कैदी वार्ड से बाहर निकलने लगी थीं. रेखा और शीला भी बाहर की तरफ चल दी थीं.

आज जिस अपराध की दोषी बन रेखा इस जेल की चारदीवारों में कैद थी उस अपराध की नींव वर्षों पूर्व ही रख दी गई थी. उस के बंदीगृह तक का यह सफर उसी दिन शुरू हो गया था जब वह सपरिवार ओडिशा से शिवपुरी आई थी.

शिवपुरी, मध्य प्रदेश का एक शहर है. यह एक पर्यटन नगरी है. यहां का सौंदर्य अनुपम है. यहीं के एक छोटे से गांव में रेखा अपने परिवार के साथ आई थी.

ओडिशा के एक छोटे से गांव मल्कुपुरु में रेखा का गरीब परिवार रहा करता था. पिछले कई सालों से उस के मामा अपने परिवार समेत शिवपुरी के इसी गांव में आ कर बस गए थे. उन की आर्थिक स्थिति में आए प्रत्याशित बदलाव ने रेखा के पिता को इस गांव में आने के लिए प्रोत्साहित किया था.

4 भाईबहनों में रमेश सब से बड़ा था और विवाहित भी. सतीश उस से छोेटा था परंतु अधिक चतुर था. वह अभी अविवाहित ही था. उन के बाद कल्पना और रेखा थीं. सब से छोटी होने के कारण रेखा थोड़ी चंचल थी. आरंभ में रेखा और उस की बड़ी बहन कल्पना इस बदलाव से खुश नहीं थीं, परंतु मामा के घर की अच्छी स्थिति ने उन के भीतर भी आशा की लौ रोशन कर दी थी. यह उन्हें मालूम नहीं था कि यह लौ ही उन्हें और उन के सपनों को जला कर भस्म कर देगी.

गांव में आने के कुछ दिनों बाद ही कल्पना के विवाह की झूठी खबर उस के पिता और मामा ने उड़ा दी थी. मां का विरोध सिक्कों की झनकार में दब गया था. कल्पना अपने सुखद भविष्य की कल्पना में खो गई थी और रेखा इस खुशी का आनंद लेने में. परन्तु दोनों ही बहनें सचाई से अनजान थीं. जब तक दोनों को हकीकत का पता चला तब तक देर हो चुकी थी.

ये भी पढ़ें- मेरा वसंत: क्या निधि को समझ पाया वसंत

प्रथा के नाम पर स्त्री के साथ अत्याचारों की तो एक लंबी सूची तैयार की जा सकती है. इस गांव में भी कई सालों से एक विषैली प्रथा ने अपनी जड़ें फैला ली थीं. स्थानीय भाषा में इस प्रथा का नाम ‘धड़ीचा’ था, जिस के तहत लड़कियों को एक साल या ज्यादा के लिए कोई भी पुरुष अपने साथ रख सकता था, अपनी बीवी बना कर. इस के एवज में वह लड़की की एक कीमत उस के घर वालों  या संबंधित व्यक्ति को देता था. लड़की को बीवी बना कर एक साल के लिए ले जाने वाला पुरुष कोई गड़बड़ी न करे, अनुबंध में रहे, इस के लिए 10 रुपए से ले कर 100 रुपए के स्टांपपेपर पर लिखापढ़ी होती थी. एक बार अनुबंध से निकली लड़की को दोबारा अनुबंधित कर के बेच दिया जाता था.

इस दौरान जन्म लिए गए संतानों की भी एक अलग कहानी थी. उन्हें यदि पिता का परिवार नहीं अपनाता था तो वे मां के साथ ही लौट आते थे. अगला खरीदार यदि उन्हें साथ ले जाने को तैयार नहीं होता तो लड़की को उसे अपने परिवार के पास छोड़ना पड़ता था.

पुत्रमोह के लालच में कन्याभू्रण की हत्या करते गए, और जब स्त्रियों का अनुपात कम होता गया तो उन का ही क्रयविक्रय करने लगे. परंतु बात इतनी भी आसान नहीं थी. हकीकत में पैसे वाले पुरुषों को अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए रोज एक नया खिलौना प्राप्त करना ही इस प्रथा का प्रयोजन मात्र था.

भारत में इन दिनों नारीवाद और नारी सशक्तीकरण का झंडा बुलंद है. परंतु महानगरों में बैठे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है कि देश के गांवकूचों में महिलाओं की हालत किस कदर बदतर हो चुकी है.

कल्पना को भी 10 रुपए के स्टांपपेपर पर एक साल के लिए 65 साल के एक बुजुर्ग के हवाले कर दिया गया था. हालांकि उस की पहली पत्नी जीवित थी, परंतु वह वृद्ध थी. और पुरुष कहां वृद्ध होते हैं. कल्पना के दूसरे खरीदार का भी चयन हो रखा था. वह उसी बुजुर्ग का भतीजा था और उस की पत्नी का देहांत पिछले वर्ष ही हुआ था. कल्पना का पट्टा देना तय करने के बाद वे रेखा को ले कर अपने महत्त्वाकांक्षी विचार बुनने लगे थे.

आगे पढ़ें- अशोक एक व्यापारी मोहनलाल के घर में…

ये भी पढ़ें- भरमजाल : रानी के जाल में कैसे फंस गया रमेश

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें