Inspirational Hindi Stories : पानीपत शहर की मिडल क्लास परिवार की छोटी बेटी सुहानी (छोटी इसलिए कि भाई इस से बड़ा है) ने 1978 में एमबीए पास कर लिया था. लास्ट सैमेस्टर में ही दिल्ली की एक अच्छी कंपनी द्वारा नौकरी का औफर भी मिल गया. पढ़ीलिखी और अच्छी नौकरी के साथसाथ खूबसूरती ऐसी कि जो देखे वह पलक झपकना ही भूल जाए. गहरी नीली आंखें, पतले कमान से होंठ, सुराहीदार गरदन, तीखी नाक. उस पर कयामत ढा रहे गोरे रंग के गालों पर छोटा सा काला तिल, सीना कामदेव को आमंत्रण देता. उफ…
क्या कहने उस के हुस्न के. जो देखे बस दिल हार दे.
रिश्ते तो अनगिनत आए मगर अकसर कहीं न कहीं दहेज का लालच दिखता जो सुहानी के मातापिता दे नहीं सकते थे क्योंकि सुहानी के पिता की पोस्टऔफिस में पोस्ट मास्टर की नौकरी थी और जायदाद के नाम पर बस लेदे कर 2 कमरों का छोटा सा घर. मोटे दहेज की डिमांड कहां से पूरी करें? इस तरह से 2 साल बीत गए कहीं कोई बात जमती नजर न आई.
खैर, कुदरत भी कभीकभी कोई चमत्कार करती है. आखिर 2 साल के बाद 1980 में सुहानी की भाभी के किसी दूर के रिश्तेदार ने स्वयं इस रिश्ते की मांग की. दहेज लेना तो दूर की बात वे एक पैसा भी इन का खर्च न कराने को तैयार. भाई भी भाभी के कहने पर इस रिश्ते के लिए जोर देने लगा.
मांपापा ने हां कर दी. सुहानी चुप. जो मांपापा कहें सब ठीक, लड़के को बिन देखे शादी के लिए तैयार. भाईभाभी भी सिर से बोझ उतारना चाहते थे सो सुहानी को बताया, ‘‘सुहानी, हम ने लड़का देखा है, अच्छा है और उस पर देखो सरकारी नौकरी है और वह भी दिल्ली में ही है. उस पर दिल्ली जैसे शहर में अपना अच्छाखासा घर है, साथ में तेरी भी अच्छीखासी नौकरी दिल्ली में ही है. छोटा सा परिवार है अर्थात तुम दोनों और केवल मांबाप हैं. तुझे कोई कमी नहीं रहेगी वहां पर, सुखी रहेगी.’’
सुहानी ने बस हां में सिर हिला दिया. शादी के समय जब सुहानी ने नजर उठा कर दूल्हे अनीश को देखा तो काला रंग, पेट बाहर को निकला हुआ, सिर पर बालों के नाम पर चांद चमकता हुआ. बस चुप हो कर रह गई. क्या कहती आज के समय में बिना दहेज कोई बात ही नहीं करता और ये तो शादी का खर्च भी खुद के सिर ले रहे थे. मांपापा के बारे में सोच कर चुप रही. भाई तो पहले ही भाभी की भाषा बोलने लगा था.
शादी के बाद ससुराल में रिसैप्शन बहुत शानदार की गई. जो भी आता यही फुसफुसाता लंगूर को हूर मिल गई. लड़की तो परियों की रानी है, न जाने क्या मजबूरी रही होगी बेचारी की.
शादी के 2 महीने बाद ही सास को अचानक पैरालिसिस का अटैक आया. अब घर की देखभाल कौन करे. पति ने हुक्म सुनाया, ‘‘सुहानी, तुम नौकरी छोड़ दो, घर पर मां की देखभाल करो.’’
सुहानी सारा दिन घर का कामकाज करती. सास की सेवा में लगी रहती. 6 महीने बीते लेकिन सास की तबीयत में कोई सुधार नहीं लग रहा था ताकि कुछ उम्मीद हो उस के ठीक हो जाने की, उलटा तबीयत गिरती जा रही थी. उस पर ससुरजी बहुत परेशान करने लगे. थोड़ीबहुत पीने की आदत थी जो अब और बढ़ गई. वैसे भी ससुरजी खानेपीने के शौकीन होने के साथ कुछ रंगीन मिजाज के भी थे. जीवनसंगिनी तो चुप्पी लगा चुकी थी किस से मस्तीमजाक करते? बेटे ने कह दिया था कि जब भी कुछ खाने का मन करे आप सुहानी से कह दिया कीजिए.
अब तो ससुरजी,बहू से खुल चुके थे इसलिए जब भी कुछ खाने का मन हो ?ाट से बहू से बोल देते, ‘‘सुहानी, कल मेरे लंच में फलां चीज पैक कर देना या कभी सुहानी आज औफिस से आते हुए मैं चिकन लेता आऊंगा तुम मसाला वगैरा तैयार कर के रखना अर्थात नित नई डिमांड होने लगी. कभी सुहानी से कोई स्नैक्स, कभी चिकन, कभी कुछ, कभी कुछ डिमांड करते रहते. सुहानी इन सब में अनीश को समय न दे पाती.
आखिर एक दिन अनीश भड़क पड़ा, ‘‘सुहानी, तुम सारा दिन क्या करती हो?
जो काम इस समय हो रहा है वह दिन में क्यों नहीं कर लेती? मेरे लिए तुम्हारे पास समय ही नहीं है और
अपनी शक्ल तो देखो, तुम से तो कामवाली ही अच्छी लगती है. कभी ढंग से भी रहना सीखो.’’
सुहानी चुपचाप हां में सिर हिला देती. अगर कुछ कहती तो अनीश का पारा 7वें आसमान पर चढ़ जाता कि मेरे पापा के लिए तुम इतना सा काम भी नहीं कर सकती, मां ठीक थी तो सब मां ही करती थी न, अब तुम से इतना भी नहीं हो पाता कि इंसान घर में ढंग से खाना खा सके.
समय बीतता गया. शादी को 2 साल हो गए. अनीश औफिस के काम में व्यस्त और सुहानी घर के काम और सासससुर की तीमारदारी में. नतीजा यह कि सुहानी और अनीश में दूरियां बढ़ती गईं.
एक दिन तो हद ही हो गई. ससुरजी ने 2 पैग ज्यादा लगा लिए और चढ़ गई उन्हें. उन्होंने हाथ पकड़ कर सुहानी को खींच लिया अपनी तरफ. जैसेतैसे हाथ छुड़ा कर भागी. अनीश टूर पर गए हुए थे किस से कहे. अनीश के आने पर कुछ कहने की हिम्मत करने लगी मगर फिर चुप कि अनीश अपने पिता के बारे में नहीं मानेंगे ऐसी बात, उलटा उस पर ही दोष न लग जाए यह सोच कर चुप रह गई क्योंकि आजकल अनीश उसे बातबात पर ताने देता या कभी गुस्सा करता.
इस तरह सुहानी का अनीश को समय न देने से अनीश को स्त्री सुख की कमी खली तो वह स्त्री सुख की तलाश में बाहर भटकने लगा. इस से शराब की लत भी पड़ गई. अकसर पी कर आने लगा और सुहानी से गालीगलौच करता. कभीकभी तो हाथ भी उठा देता मगर सुहानी सब चुपचाप सहती.
सुहानी की शादी के 1 साल बाद ही उस के मांपापा तीर्थ यात्रा पर सुहानी की शादी के लिए मानी गई मन्नत देने जा रहे थे कि वापस आते समय बस गहरी खाई में पलटने की वजह से गुजर गए. अपना दुखड़ा वह किस से कहती, बस सब चुपचाप सहती रहती.
शादी को 5 साल बीत जाने पर भी कुदरत ने अभी तक गोद सूनी रखी थी वरना कोई तो सहारा बन जाता जीने का. गोद भरती भी तो कैसे? पति तो किसी और के साथ सो कर आता. जब बीज ही नहीं तो फल कहां से आएगा?
अधिक शराब के कारण पति को लंग कैंसर हो गया और शादी के केवल 5 साल बाद ही गुजर गया. भाईभाभी सार्वजनिक रूप में आ कर अफसोस कर के चले गए. बहन का एक बार भी हालचाल न पूछा. सुहानी चुपचाप सब अकेले ?ोलती रही.
मगर अब ससुर के लिए खुला रास्ता था. बेटा रहा नहीं, पत्नी बैड पर. किसी न किसी बहाने सुहानी को छूता रहता. बेचारी चुपचाप कन्नी काट लेती.
पति की सरकारी नौकरी थी, इसलिए उस के स्थान पर सुहानी को नौकरी मिल गई. अब सुहानी की जिम्मेदारी भी बढ़ गई. घर भी संभालना और नौकरी भी. सुहानी का औफिस ससुरजी के औफिस के रास्ते में था तो ससुर जाते हुए छोड़ देते और आते हुए ले लेते और रास्ते में कभीकभी सुहानी से गंदेगंदे मजाक करते सुहानी चुपचाप सहती रहती.
सुहानी सोचती कोई भी तो नहीं उस का अपना. न मायके में और न ही ससुराल में. हां लेकिन कभीकभी जब मन हद से ज्यादा भरा होता तो सासूमां के पास बैठ उन से बातें करती मानो वह इस की बातें सुन रही हो. जानती थी कि वे जवाब नहीं देंगी. मगर फिर भी वह बोल कर अपना दिल हनका कर लेती थी. लेकिन सुहानी यह नहीं जानती थी कि पैरालिसिस का मरीज बेशक बोल नहीं सकता, रिस्पौंस नहीं कर सकता लेकिन वह महसूस कर सकता है और यही हालात सुहानी की सास की थी. वह सब सुन कर महसूस करती थी लेकिन रिस्पौंस नहीं कर पाती थी. अंदर ही अंदर घुलती थी इस कारण जब उसे पता चला कि अनीश और उस का पति सुहानी के साथ कैसा बरताव करते हैं और उस के बाद अनीश की मृत्यु की खबर, तो वह पूरी तरह से टूट चुकी थी. हर पल मन में कुदरत से मृत्यु मांगती.
सुहानी की कोई सखीसहेली भी नहीं बनी थी यहां पर. सारा दिन पहले घर से फुरसत नहीं मिलती थी, अब घर के साथ नौकरी भी ही गई. उसे तो इतना तक पता न था कि महल्ले के तीसरे घर में कौन रहता है. लेकिन उसे लगा कि उस का बौस बहुत नेक इंसान है, कितने अपनेपन से बात करता है. घर से तो कम से कम औफिस का समय तो अच्छा निकलता है. इसी में वह संतुष्ट रहती.
सुहानी के बौस नीरज अकसर कोई भी इंपौर्टैंट काम होता तो सुहानी को ही सौंपते. कहते, ‘‘सुहानी, तुम्हारे सिवा मैं किसी पर भी इतना भरोसा नहीं कर सकता जितना तुम पर. इसलिए इस काम को तुम ही अंजाम दोगी.’’
वैसे भी सुहानी मेहनत और लगन से काम करती थी. कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दिया उस ने.
धीरेधीरे नीरज की मीठीमीठी बातों का असर सुहानी पर होने लगा. कभी जब नीरज पूरे स्टाफ की छुट्टी कर के उसे ऐक्स्ट्रा काम के लिए रोक लेते तो औफिस के बाहर ससुरजी पहरा दिए खड़े रहते.
सुहानी लाख कहती कि मुझे देर हो जाएगी, आप जाओ मैं बस से आ जाऊंगी लेकिन ससुरजी कहां मानने वाले, खड़े रहते वहीं अड़ कर.
उधर नीरज तो कुछ और ही मंशा रखते थे जिस से सुहानी अनजान थी. आखिर एक दिन नीरज बोले, ‘‘सुहानी, यहां तुम्हारे ससुरजी पहरेदार बने ऐसे खड़े रहते हैं जैसे हम कोई उन के कोहिनूर हीरे को चुरा कर कहीं ले जाएंगे. उन के इस तरह सिर पर खड़े रहने से काम में न तो मैं कंस्ट्रेट कर पाता हूं, न ही तुम. मुझे लगता है हमें कहीं और ठिकाना बनाना होगा, अपने काम की बेहतरी के लिए,’’ और फिर कुछ दिनों बाद नीरज ने सुहानी को प्रोजैक्ट फाइल ले कर अपने घर चलने को कहा ताकि उन के घर पर काम किया जा सके.
नीरज की उम्र को देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता था कि अगर उन के बच्चों की शादी नहीं हुई तो शादी लायक तो अवश्य हो गए होंगे. अब भला ऐसी उम्र और परिवार वाले आदमी पर कौन शक कर सकता है कि उस का इरादा गलत हो सकता है. वैसे भी सुहानी को वहां जौब किए लगभग डेढ़ साल बीत चुका था. नीरज सर पर उसे विश्वास हो चला था कि वे अच्छे इंसान हैं. पहले कभीकभी अनीश भी नीरज सर की बहुत तारीफ किया करता था.
यह सोच सुहानी उन के साथ चली गई और नीरज ने सुहानी के ससुर को पता न बताते हुए कौन्फिडैंशल प्रोजैक्ट का बहाना बना दिया और सुहानी को खुद उस के घर तक छुड़वाने की जिम्मेदारी दे ली.
मगर सुहानी नीरज के घर जैसे ही पहुंची, उस के होश उड़ गए क्योंकि घर पर परिवार का कोई सदस्य न होने पर भी आते ही नीरज ने नौकर को फिल्म देखने भेज दिया. सुहानी यह सब देख हैरानपरेशान कुछ न कह सकी, मगर दिल ही दिल घबरा अवश्य गई.
और वही हुआ नीरज ने आते ही उसे किचन में चाय बनाने के बहाने भेज कर घर को अंदर से लौक कर दिया और कपड़े बदल कर केवल नाइट गाऊन में उस के पास किचन में आ कर पीछे से उसे पकड़ कर उस की गरदन पर चुंबन लेने लगे.
सुहानी हड़बड़ा कर मुड़ी तो नीरज का यह रूप देख कर हैरान रह गई.
‘‘स… स… सर यह… आप क्या कर रहे हैं? आप होश में तो हैं?’’ डरतेडरते सुहानी के मुंह से ये लफ्ज निकले.
‘‘होश ही तो नहीं रहता जब तुम सामने आती हो. जब से तुम्हें देखा है सच दिल बेकाबू हो गया है. हर पल सिर्फ तुम्हें पाने को बेचैन रहता है. औफिस में तो मौका मिलता नहीं था. इतने दिनों बाद बड़ी मुश्किल से परिवार वालों को टूर पर भेज कर आज मन की इच्छा पूरी होने का वक्त आया है. बस डार्लिंग अब और न सताओ, जल्दी से इस दिल की प्यास बु?ा दो.’’
‘‘सर प्लीज मुझे यों जलील मत कीजिए, मैं कहीं की नहीं रहूंगी, मु?ो जाने दे सर, मैं आप के हाथ जोड़ती हूं, मैं आप की बेटी समान हूं.’’
‘‘छोड़ो न यार, क्या ऊलजलूल बातें करती हो, भला इस भरी जवानी में इस तरह अकेले उम्र कटती है क्या? फिर तुम्हारे हुस्न को देख कर तो न जाने कितनों के दिलों पर छुरियां चलती होंगी. देखो तुम चुपचाप मेरे पास आ जाया करो, मेरे मन की और तुम्हारे तन की, दोनों की आग को शांत करने का यही तरीका है. तुम बेकार में रातों में अकेले तड़पती होगी,’’ कहते हुए नीरज ने उसे बलपूर्वक गोद में उठा लिया और बैडरूम में ले गया.
उधर ससुरजी ने भी एक दिन तो हद ही कर दी. 28 दिसंबर, 1987. उस दिन उसका जन्मदिन होता है. शादी से पहले तो पापा हर साल इतने अच्छे से जन्मदिन मनाया करते थे, मगर शादी के बाद पहला जन्मदिन ही अनीश से सैलिब्रेट किया था. उस के बाद तो हर जन्मदिन साधारण सा ही बीतता, कोई चाव न रहता उसे.
उस दिन ससुरजी जब पीने बैठे तो 1 नहीं 2 पैग बनाए और सुहानी को पीने के लिए जबरदस्ती करने लगे और उस के मुंह से गिलास लगाते हुए बोले, ‘‘आज तो जश्न मनाने का दिन है, आज हमारी जान का जन्मदिन जो है. इसी बात पर आज तो 2 घूंट भर ही लो यार.’’
ऐसे लगा जैसे जहर का घूंट भर लिया हो. सिर चकराने लगा. कोई घटना घटती उस से पहले ही कुदरत ने खेल खेला. उस की सास की तबीयत अचानक बिगड़ गई. सुहानी को तो नशा हो गया, उसे कुछ पता नहीं. ससुरजी ने ही सास की रातभर देखभाल तो की मगर तबीयत ऐसी बिगड़ी कि अगले ही दिन वह सदा के लिए सो गई. 13वीं तक तो दोनों ससुरबहू ने छुट्टियां ले कर बड़ी शांति से सबकुछ करवाया. सब शांति से निबट गया और अगले दिन से फिर वही रूटीन सुहानी का. बहुत परेशान रहती थी हर समय.
उधर औफिस में नीरज सर और इधर घर पर ससुरजी अकसर उस से छेड़छाड़ करते रहते. किस से कहे और क्या कहे कुछ समझ न आता. बस चुप रहती हर पल, औफिस में भी ज्यादा बात न करती किसी से, एक आलोक ही था जिस से वह कभीकभी अपने दिल की बात कह देती थी. मगर उस का भी तबादला हो गया.
दिनेश इंडिया की ब्रांच में आए तो उन का सब ने खुले दिल से स्वागत किया. उन को भी अच्छा लगा. वे अकेले ही थे क्योंकि पत्नी का तो देहांत हो गया था और बच्चा अभी कोई था नहीं. लेकिन उन्हें अपनी पत्नी से इतनी मुहब्बत थी कि उन्होंने दोबारा शादी नहीं की. लगभग 14-15 सालों बाद उन्हें इंडिया आ कर बहुत अच्छा लग रहा था खासकर सुहानी के मेहनती और मिलनसार स्वभाव के तो वे कायल हो गए.
रोजरोज बाजार का या नौकर के हाथ का खाना न खाएं इसलिए कभीकभी सुहानी अपने लंच के साथ बौस के अर्थात कंपनी के ओनर दिनेश का लंच भी ले आती. जब सुहानी उन्हें उन का लंच परोसती तो वे सुहानी को भी वहीं बैठ कर खाने को कहते. इस तरह धीरेधीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं. दिनेश की उम्र बेशक 40-42 की थी पर दिल तो अभी जवान है. उन्हें सुहानी का साथ अच्छा लगता. सुहानी को भी कुछ समय के लिए नीरज से छुटकारा मिल जाता. इधर ससुरजी से तो छुटकारा मिलना मुश्किल था लेकिन नीरज से तो कुछ राहत मिलने लगी क्योंकि अब सुहानी दिनेश साहब के साथ ही रहती और घर जाते भी कभीकभी वे छोड़ देते.
मगर एक दिन ससुर ने सारी हदें पार कर दी. पत्नी को मरे 6 महीने बीत चुके थे बेटा तो पहले ही गुजर चुका था. वैसे भी पत्नी कितने ही सालों से बैड पर थी. लगभग 7-8 साल से तन की विरह वेदना में तड़प रहे थे. उस रात तो ससुरजी ने ठान ही लिया कि आज अपनी पिपासा को शांत कर के ही दम लेंगे. इत्तफाक से 15 जून का दिन था. सुहानी की शादी का दिन. हां… आज से 8 साल पहले यानी 15 जून, 1980 रविवार को आज के ही दिन सुहानी की अनीश से शादी हुई थी.
सुहानी को आज उस समय की बहुत याद आ रही थी. वह बीते पलों में खोई सोच रही थी कि उस की जिंदगी क्या से क्या हो गई, किस तरह तिलतिल कर के उस की जिंदगी सुलगती रही अब तक. इन खयालों में खोई नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. तभी ससुरजी ने आधी रात को अचानक सुहानी को जगाया, ‘‘सुहानी मेरे सिर में बहुत दर्द है, थोड़ी सी मसाज कर दो.’’
सुहानी ने देखा तो वे केवल अंडरवियर में ही थे. उस ने शर्म से मुंह फेर लिया.
ससुरजी बोले, ‘‘अरे गरमी बहुत है न और उस पर दर्द की वजह से भी बेचैनी हो रही है इसलिए… तुम तो जानती हो मुझ से ज्यादा गरमी बरदाश्त नहीं होती,’’ कहते हुए उन के चेहरे पर कुटिल मुसकान आ गई.
तीसरे दिन ससुर ने रोब दिखा कर कहा, ‘‘औफिस जाना शुरू करो, सरकारी नौकरी है, छूट गई तो खाना भी नहीं मिलेगा, मैं ने तुम्हें पालने का ठेका नहीं ले रखा.’’
सुहानी चुपचाप उठी और औफिस के लिए तैयार हो कर चल दी.
कुछ दिनों बाद जब माहवारी का समय आया और वह नहीं आई तो सुहानी को घबराहट होने लगी. चैक कराने पर पता चला कि उम्मीद से है अर्थात प्रैगनैंट है. मरने की ठान ली. क्या करती? जिंदा रह कर कैसे दुनिया का सामना करती? 2-4 दिन परेशानी से बीते तो एक दिन न जाने सुहानी को क्या सू?ा कि औफिस से हाफ डे ले कर चल पड़ी अकेली अनजान राहों पर. दिनेश को 2-4 दिन से ही सुहानी कुछ अपसैट लग रही थी. कुछ पूछने पर भी नहीं बता रही थी. इसलिए वे चुपके से सुहानी के पीछे हो लिए.
दिनेश ने देखा सुहानी नदी की तरफ जा रही. जैसे ही सुहानी नदी में छलांग लगाने लगी दिनेश ने उस की बांह पकड़ ली, ‘‘सुहानी, यह क्या कर रही हो तुम? जिंदगी से हार कर हम जिंदगी को खत्म कर लें यह किसी समस्या का हल नहीं. हमें हर समस्या का डट कर मुकाबला करना है, तुम्हें जो भी परेशानी है मु?ा से कहो, मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं.’’
सुहानी दिनेश के गले लग कर फफकफफक कर रो पड़ी. काफी देर रोने के बाद उस ने अपने को संभाला और दिनेश साहब को शुरू से ले कर अब तक की सारी व्यथा सुना दी.
‘‘सुहानी यह दुनिया ऐसी ही है जो जितना झुकता है उसे उतना झुकाती है, जो जितना सहता है उस पर उतने ही ज़ुल्म करती है. यहां बिन मांगे या बिन छीने हक नहीं मिलता. आज के समय में जीने का हक भी छीनना पड़ता है. तुम्हें अपनी परेशानियों से खुद लड़ना होगा, अपना वजूद तुम्हें खुद ढूंढ़ना होगा,’’ दिनेश साहब ने सांत्वना देते हुए कहा
सुहानी दिनेश साहब की बातें ध्यान से सुन रही थी. वह एक दृढ़ निश्चय के साथ बोली, ‘‘सर, आप सही कह रहे हैं अब मैं चुप नहीं रहूंगी, यह चुप्पी तोड़नी होगी अब मुझे. अब मैं और सहन नहीं करूंगी, मुझे अपना वजूद ढूंढ़ना है.’’
‘‘सुहानी मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं और मैं तुम्हारे इस बच्चे को अपना नाम दूंगा. मैं कल ही तुम से शादी कर लूंगा.’’
‘‘नहीं सर अभी नहीं. अभी मुझे अपने ससुर नाम के दुश्मन का हिसाब चुकाना है.’’
‘‘ठीक है, जैसा तुम कहो. लेकिन नीरज को मैं बताऊंगा कि कैसे किसी मजलूम की इज्जत से खेला जाता है.’’
एक दिन रात को जब सुहानी का ससुर पैग बनाने लगा तो सुहानी सलाद, ड्राई फू्रट्स तथा फू्रट्स इत्यादि प्लेटों में डाल कर, बर्फ ले कर आई तो ससुरजी हैरानी से उसे देखने लगे.
‘‘अरे इस तरह क्या देख रहे हैं. अब जब इस जीवन को अपना ही लिया है तो खुशी से रहें. रोधो कर क्या करना है,’’ सुहानी हंसते हुए बोली.
‘‘अरे वाह. आज तो फिर खूब मजा आएगा. इसी खुशी में आज लार्ज पैग बनाते हैं,’’ कहते हुए ससुरजी ने अपने गिलास में थोड़ी और शराब डाल ली.
इस तरह बातोंबातों में सुहानी ने ससुर को अत्याधिक शराब पिला दी और नशे की हालत में उस से घर के कागजात पर हस्ताक्षर करवा कर अपने नाम करा लिया. इधर नीरज को औफिस से निकाल दिया गया.
1 सप्ताह के बाद सुहानी ने ससुरजी को साफ शब्दों में बता दिया कि वह दिनेश से शादी कर रही है. जब ससुर ने एतराज जताया तो उस ने घर के कागजात दिखा कर कहा कि वे अपना इंतजाम कहीं और कर लें क्योंकि घर सुहानी का है.
आखिर आज 8 सालों के दर्द के बाद सुहानी को सुकून मिला है. सुहानी और दिनेश साहब ने कोर्ट में शादी कर ली. दिनेश साहब के पिता अजीत भी बेटे का घर बसता देख प्रसन्न थे.
बेशक सुहानी कंपनी के मालिक की पत्नी है लेकिन उस ने जौब नहीं छोड़ी क्योंकि उसे अपने वजूद के साथ जीना है न कि किसी दूसरे की परछाईं के नाम पर.