Dilchasp Kahani 2025 : सान्निध्य

Dilchasp Kahani 2025 : अभी शाम के 4 ही बजे थे, लेकिन आसमान में घिर आए गहरे काले बादलों ने कुछ अंधेरा सा कर दिया था. तेज बारिश के साथ जोरों की आंधी भी चल रही थी. सामने के पार्क में पेड़ झूमतेलहराते अपनी प्रसन्नता का इजहार कर रहे थे. रमाकांत का मन हुआ कि कमरे के सामने की बालकनी में कुरसी लगा कर मौसम का आनंद उठाएं, लेकिन फिर उन्हें लगा कि रोहिणी का कमजोर शरीर तेज हवा सहन नहीं कर पाएगा.

उन्होंने रोहिणी की ओर देखा. वह पलंग पर आंखें मूंदे लेटी हुई थी. रमाकांत ने पूछा, ‘‘अदरक वाली चाय बनाऊं, पिओगी?’’

अदरक वाली चाय रोहिणी को बहुत पसंद थी. उस ने धीरे से आंखें खोलीं और मुसकराई, ‘‘मोहन से…कहिए… वह…बना देगा,’’ उखड़ती सांसों से वह बड़ी मुश्किल से इतना कह पाई.

‘‘अरे, मोहन से क्यों कहूं? वह क्या मुझ से ज्यादा अच्छी चाय बनाएगा? तुम्हारे लिए तो चाय मैं ही बनाऊंगा,’’ कह कर रमाकांत किचन में चले गए.

जब वह वापस आए तो टे्र में 2 कप चाय के साथ कुछ बिस्कुट भी रख लाए. उन्होंने सहारा दे कर रोहिणी को उठाया और हाथ में चाय का कप पकड़ा कर बिस्कुट आगे कर दिए.

‘‘नहीं जी…कुछ नहीं खाना,’’ कह कर रोहिणी ने बिस्कुट की प्लेट सरका दी.

‘‘बिस्कुट चाय में डुबो कर…’’ उन की बात पूरी होने से पहले ही रोहिणी ने सिर हिला कर मना कर दिया.

रोहिणी की हालत देख कर रमाकांत का दिल भर आया. उस का खानापीना लगभग न के बराबर ही हो गया था. आंखों के नीचे गहरे गड्ढे पड़ गए थे. वजन एकदम घट गया था. वह इतनी कमजोर हो गई थी कि देखा नहीं जाता था. स्वयं को अत्यंत विवश महसूस कर रहे थे रमाकांत. कैसी विडंबना थी कि डाक्टर हो कर उन्होंने कितने ही मरीजों को स्वस्थ किया था, किंतु खुद अपनी पत्नी के लिए कुछ नहीं कर सके. बस, धीरेधीरे रोहिणी को मौत की ओर अग्रसर होते देख रहे थे.

उन के जेहन में वह दिन उतर आया जब वह रोहिणी को ब्याह कर घर ले आए थे. अम्मा अपनी सारी जिम्मेदारियां उसे सौंप कर निश्ंिचत हो गई थीं. कोमल सी दिखने वाली रोहिणी ने भी खुले दिल से अपनी हर जिम्मेदारी को स्वीकारा और किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया. उस के सौम्य और सरल स्वभाव ने परिवार के हर सदस्य को उस का कायल बना दिया था.

रमाकांत उन दिनों मेडिकल कालेज में लेक्चरर के पद पर थे. साथ ही घर के अहाते में एक छोटा सा क्लिनिक भी खोल रखा था. स्वयं को एक स्थापित और नामी डाक्टर के रूप में देखने की उन की बड़ी तमन्ना थी. घर का मोरचा रोहिणी पर डाल वह सुबह से रात तक अपने काम में व्यस्त रहते. नईनवेली पत्नी के साथ प्यार के मीठे क्षण गुजारने की फुरसत उन्हें न थी…या फिर शायद जरूरत ही न समझी.

उन्हें लगता कि रोहिणी को तमाम सुखसुविधा मुहैया करा कर वह पति होने का अपना फर्ज बखूबी निभा रहे हैं, लेकिन उस की भावनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति से उन्हें कोई मतलब न था. रोहिणी का मन तो करता कि रमाकांत उस के साथ कुछ देर बैठें, बातें करें, लेकिन वह कभी उन से यह कह नहीं पाई. जब कहा भी, तब वे समझ नहीं पाए और जब समझे तब बहुत देर हो चुकी थी.

वक्त के साथसाथ रमाकांत की महत्त्वाकांक्षा भी बढ़ी. अपनी पुश्तैनी जायदाद बेच कर और सारी जमापूंजी लगा कर उन्होंने एक सर्वसुविधायुक्त नर्सिंगहोम खोल लिया. रोहिणी ने तब अपने सारे गहने उन के आगे रख दिए थे. हर कदम पर वह उन का मौन संबल बनी रही. उन के जीवन में एक घने वृक्ष सी शीतल छाया देती रही.

रमाकांत की मेहनत रंग लाई और सफलता उन के कदम चूमने लगी. कुछ ही समय में उन के नर्सिंगहोम का बड़ा नाम हो गया. वहां उन की मसरूफियत इतनी बढ़ गई कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी और सिर्फ नर्सिंगहोम पर ही ध्यान देने लगे.

इस बीच रोहिणी ने भी रवि और सुनयना को जन्म दिया और वह उन की परवरिश में ही अपनी खुशी तलाशने लगी. जीवन एक बंधेबंधाए ढर्रे पर चल रहा था. रमाकांत के लिए उन का काम था और रोहिणी के लिए बच्चे और सामाजिकता का निर्वाह.

अम्मांबाबूजी के देहांत और ननद के विवाह के बाद रोहिणी और भी अकेलापन महसूस करने लगी. बच्चे भी बड़े हो रहे थे और अपनी पढ़ाई में व्यस्त थे. रमाकांत के लिए पत्नी का अस्तित्व बस, इतना भर था कि वह समयसमय पर उसे गहनेकपड़े भेंट कर देते थे. उस का मन किस बात के लिए लालायित था, यह जानने की उन्होंने कभी कोशिश नहीं की.

जिंदगी ने रमाकांत को एक मौका दिया था. कभी कोई मांग न करने वाली उन की पत्नी रोहिणी ने एक बार उन्हें अपने दिल की गहराइयों से परिचित कराया था, लेकिन वे ही उस की बातों का दर्द और आंखों के सूनेपन को अनदेखा कर गए थे. उस दिन रोहिणी का जन्मदिन था. उन्होंने उसे कुछ प्यार दिखाते हुए पूछा था, ‘बताओ तो, मैं तुम्हारे लिए क्या तोहफा लाया हूं?’

तब रोहिणी के चेहरे पर फीकी सी मुसकान आ गई थी. उस ने धीमी आवाज में बस इतना ही कहा था, ‘तोहफे तो आप मुझे बहुत दे चुके हैं. अब तो बस आप का सान्निध्य मिल जाए…’

‘वह भी मिल जाएगा. बस, कुछ साल मेहनत से काम कर लें, अपनी और बच्चों की जिंदगी सेटल कर लें, फिर तो तुम्हारे साथ ही समय गुजारना है,’ कहते हुए उसे एक कीमती साड़ी का पैकेट थमा रमाकांत काम पर निकल गए थे. रोहिणी ने फिर कभी उन से कुछ नहीं कहा था.

रवि भी पिता के नक्शेकदम पर चल कर डाक्टर ही बना. उस ने अपनी सहपाठिन गीता से विवाह की इच्छा जाहिर की, जिस की उसे सहर्ष अनुमति भी मिल गई. अब रमाकांत को बेटेबहू का भी अच्छा साथ मिलने लगा. फिर सुनयना का विवाह भी हो गया. रमाकांत व रोहिणी अपनी जिम्मेदारियों से निवृत्त हो गए, लेकिन स्थिति अब भी पहले की तरह ही थी. रोहिणी अब भी उन के सान्निध्य को तरस रही थी और रमाकांत कुछ और वर्ष काम करना चाहते थे, अभी और सेटल होना चाहते थे.

शायद सबकुछ इसी तरह चलता रहता अगर रोहिणी बीमार न पड़ती. एक दिन जब सब लोग नर्सिंगहोम गए थे, तब वह चक्कर खा कर गिर पड़ी. घर के नौकर मोहन ने जब फोन पर बताया, तो सब भागे हुए आए. फिर शुरू हुआ टेस्ट कराने का सिलसिला. जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि रोहिणी को ओवेरियन कैंसर है.

रमाकांत सुन कर घबरा से गए. उन्होंने अपने मित्र कैंसर स्पेशलिस्ट डा. भागवत को रिपोर्ट दिखाई. उन्होंने देखते ही साफ कह दिया, ‘रमाकांत, तुम्हारी पत्नी को ओवेरियन कैंसर ही हुआ है. इस में कुछ तो बीमारी के लक्षणों का पता ही देर से चलता है और कुछ इन्होंने अपनी तकलीफ घर में छिपाई होगी. अब तो कैंसर चौथी स्टेज पर है. यह शरीर के दूसरे अंगों तक भी फैल चुका है. चाहो तो सर्जरी और कीमोथैरेपी कर सकते हैं, लेकिन कुछ खास फायदा नहीं होने वाला. अब तो जो शेष समय है उस में इन्हें खुश रखो.’

सुन कर रमाकांत को लगा कि जैसे उन के हाथपैरों से दम निकल गया है. उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि रोहिणी इस तरह उन्हें छोड़ कर चली जाएगी. वह तो हर वक्त एक खामोश साए की तरह उन के साथ रहती थी. उन की हर जरूरत को उन के कहने से पहले ही पूरा कर देती थी. फिर यों अचानक उस के बिना…

अब जा कर रमाकांत को लगा कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती कर दी थी. रोहिणी के अस्तित्व की कभी कोई कद्र नहीं की उन्होंने. उन के लिए तो वह बस उन की मूक सहचरी थी, जो उन की हर जरूरत के लिए हर वक्त उपलब्ध थी. इस से ज्यादा कोई अहमियत नहीं दी उन्होंने उसे. आज प्रकृति ने न्याय किया था. उन्हें इस गलती की कड़ी सजा दी थी. जिस महत्त्वाकांक्षा के पीछे भागते उन की जिंदगी बीती, जिस का उन्हें बड़ा दंभ था, आज वह सारा ज्ञान उन के किसी काम न आया.

अब जब उन्हें पता चला कि रोहिणी के जीवन का बस थोड़ा ही समय शेष रह गया था, तब उन्हें एहसास हुआ कि वह उन के जीवन का कितना बड़ा हिस्सा थी. उस के बिना जीने की कल्पना मात्र से वे सिहर उठे. महत्त्वाकांक्षाओं के पीछे भागने में वे हमेशा रोहिणी को उपेक्षित करते रहे, लेकिन अपनी सारी उपलब्धियां अब उन्हें बेमानी लगने लगी थीं.

‘पापा, आप चिंता मत कीजिए. मैं अब नर्सिंगहोम नहीं आऊंगी. घर पर ही रह कर मम्मी का ध्यान रखूंगी,’ उन की बहू गीता कह रही थी.

रमाकांत ने एक गहरी सांस ली और उस के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, ‘नहीं, बेटा, नर्सिंगहोम अब तुम्हीं लोग संभालो. तुम्हारी मम्मी को इस वक्त सब से ज्यादा मेरी ही जरूरत है. उस ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है. उस का ऋण तो मैं किसी भी हाल में नहीं चुका पाऊंगा, लेकिन कम से कम अब तो उस का साथ निभाऊं.’

उस के बाद से रमाकांत ने नर्सिंगहोम जाना छोड़ दिया. वे घर पर ही रह कर रोहिणी की देखभाल करते, उस से दुनियाजहान की बातें करते. कभी कोई किताब पढ़ कर सुनाते, तो कभी साथ टीवी देखते. वे किसी तरह रोहिणी के जाने से पहले बीते वक्त की भरपाई करना चाहते थे.

मगर वक्त उन के साथ नहीं था. धीरेधीरे रोहिणी की तबीयत और बिगड़ने लगी थी. रमाकांत उस के सामने तो संयत रहते, मगर अकेले में उन की पीड़ा आंसुओं की धारा बन कर बह निकलती. रोहिणी की कमजोर काया और सूनी आंखें उन के हृदय में शूल की तरह चुभती रहतीं. वे स्वयं को रोहिणी की इस हालत का दोषी मानने लगे थे. इस के साथसाथ उन के मन में हर वक्त रोहिणी को खो देने का डर होता. वे जानते थे कि यह दुर्भाग्य तो उन की नियति में लिखा जा चुका था, लेकिन उस क्षण की कल्पना करते हुए हमेशा भयभीत रहते.

‘‘अंधेरा…हो गया जी,’’ रोहिणी की आवाज से रमाकांत की तंद्रा टूटी. उन्होंने उठ कर लाइट जला दी. देखा, रोहिणी का चाय का कप आधा भरा हुआ रखा था और वह फिर से आंखें मूंदे टेक लगा कर बैठी थी. चाय ठंडी हो चुकी थी. रमाकांत ने चुपचाप कप उठाया और किचन में जा कर सिंक में चाय फैला दी. उन्होंने खिड़की से बाहर देखा, बाहर अभी भी तेज बारिश हो रही थी. हवा का ठंडा झोंका आ कर उन्हें छू गया, लेकिन अब उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. उन्होंने अपनी आंखों के कोरों को पोंछा और मोहन को आवाज लगा कर खिचड़ी बनाने के लिए कहा.

खिचड़ी बिलकुल पतली थी, फिर भी रोहिणी बमुश्किल 2 चम्मच ही खा पाई. आखिर रमाकांत उस की प्लेट उठा कर किचन में रख आए. तब तक रवि और गीता भी नर्सिंगहोम से वापस आ गए थे.

‘‘कैसी हो, मम्मा?’’ रवि लाड़ से रोहिणी की गोद में लेटते हुए बोला.

‘‘ठीक हूं, मेरे बच्चे,’’ रोहिणी मुसकराते हुए उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए धीमी आवाज में बोली.

रमाकांत ने देखा कि रोहिणी के चेहरे पर असीम संतोष था. अपने पूरे परिवार के साथ होने की खुशी थी उसे. वह अपनी बीमारी से अनभिज्ञ नहीं थी, परंतु फिर भी प्रसन्न ही रहती थी. जिस सान्निध्य की आस ले कर वह वर्षों से जी रही थी, वह अब उसे बिना मांगे ही मिल रहा था. अब वह तृप्त थी, इसलिए आने वाली मौत के लिए कोई डर या अफसोस उस के चेहरे पर दिखाई नहीं देता था.

बच्चे काफी देर तक मां का हालचाल पूछते रहे, उसे अपने दिन भर के काम के बारे में बताते रहे. फिर रोहिणी का रुख देख कर रमाकांत ने उन से कहा, ‘‘अब खाना खा कर आराम करो. दिनभर काम कर के थक गए होगे.’’

‘‘पापा, आप भी खाना खा लीजिए,’’ गीता ने कहा.

‘‘मुझे अभी भूख नहीं, बेटा. आप लोग खा लो. मैं बाद में खा लूंगा.’’

बच्चों के जाने के बाद रोहिणी फिर आंखें मूंद कर लेट गई. रमाकांत ने धीमी आवाज में टीवी चला दिया, लेकिन थोड़ी देर में ही उन का मन ऊब गया. अब उन्हें थोड़ी भूख लग आई थी, लेकिन खाना खाने का मन नहीं किया. उन्होंने सोचा रोहिणी और अपने लिए दूध ले आएं. किचन में जा कर उन्होंने 2 गिलास दूध गरम किया. तब तक रवि और गीता खाना खा कर अपने कमरे में सो चुके थे.

‘‘रोहिणी, दूध लाया हूं,’’ कमरे में आ कर रमाकांत ने धीरे से आवाज लगाई, लेकिन रोहिणी ने कोई जवाब नहीं दिया. उन्हें लगा कि वह सो रही है. उन्होंने उस के गिलास को ढंक कर रख दिया और खुद पलंग के दूसरी ओर बैठ कर दूध पीने लगे.

उन्होंने रोहिणी की तरफ देखा. सोते हुए उस के चेहरे पर कितनी शांति थी. उन का हाथ बरबस ही उस का माथा सहलाने के लिए आगे बढ़ा. फिर वह चौंक पड़े. दोबारा माथे और गालों पर हाथ लगाया. तब उन्हें एहसास हुआ कि रोहिणी का शरीर ठंडा था. वह सो नहीं रही थी बल्कि सदा के लिए चिरनिद्रा में विलीन हो चुकी थी.

उन्हें जो डर इतने महीनों से जकड़े था, आज वे उस के वास्तविक रूप का सामना कर रहे थे. कुछ समय के लिए एकदम सुन्न से हो गए. उन्हें समझ ही न आया कि क्या करें. फिर धीरेधीरे चेतना जागी. पहले सोचा कि जा कर बच्चों को खबर कर दें, लेकिन फिर कुछ सोच कर रुक गए.

सारी उम्र रोहिणी को उन के सान्निध्य की जरूरत थी, लेकिन आज उन्हें उस का साथ चाहिए था. वे उस की उपस्थिति को अपने पास महसूस करना चाहते थे, इस एहसास को अपने अंदर समेट लेना चाहते थे क्योंकि बाकी की एकाकी जिंदगी उन्हें अपने इसी एहसास के साथ गुजारनी थी. उन के पास केवल एक रात थी. अपने और अपनी पत्नी के सान्निध्य के इन आखिरी पलों में वे किसी और की उपस्थिति नहीं चाहते थे. उन्होंने लाइट बुझा दी और रोहिणी को धीरे से अपने हृदय से लगा लिया. पानी बरसना अब बंद हो गया था.

Short Story 2025 : वकील का नोटिस

Short Story 2025 :  हरीश पिछले कुछ दिनों से काफी परेशान था. वैसे तो उस की दुकान ठीक ही चल रही थी परंतु उस दुकान को खरीदने के लिए 3 साल पहले उस ने जो 40 हजार डालर का कर्ज लिया था, उस के भुगतान का समय आ गया था. उस ने एक कर्ज देने वाली कंपनी से 25 प्रतिशत सालाना ब्याज की दर से रुपया उधार लिया था. वे लोग उस को कर्जे की रकम अदा करने के लिए मुहलत देने को तैयार नहीं थे. उसे मालूम था कि अगर वह समय पर रकम अदा नहीं कर पाया तो वे उस की दुकान को हड़प कर लेंगे.

ऐसा तो नहीं था कि उस की दुकान अच्छी न चलती हो, परंतु 10 हजार डालर तो हर साल कर्जे के ब्याज के ही हो जाते थे. ऊपर से उस की परेशानियों को बढ़ाने के लिए 2 साल पहले एक बेटी भी पैदा हो गई थी जिस के कारण रमा ने भी दुकान पर काम करना बंद कर दिया था. उस के काम को करने के लिए अब उसे 2 लड़कियों को रखना पड़ रहा था. वे लड़कियां मौका मिलते ही दुकान से चोरी करने में तनिक भी नहीं चूकती थीं.

हरीश ने कई बैंकों और उधार देने वाली कंपनियों से बातचीत भी की पर कोई भी उसे उधार देने को तैयार नहीं हुआ. हार कर उसे अपने दोस्त सुधीर की शरण में ही जाना पड़ा.

सुधीर से उस ने 3 साल पहले भी उधार देने को कहा था परंतु उस ने साफ मना कर दिया था. सुधीर का दोटूक जवाब सुन कर ही वह उस उधार देने वाली कंपनी के पास गया था.

हरीश की कहानी सुन कर सुधीर यह तो जान गया कि वह ही हरीश का एकमात्र सहारा बन सकता है. उस ने हरीश से अपनी दुकान के हिसाबकिताब के कागजात अगले दिन लाने को कहा. हरीश अगले दिन ठीक समय पर सुधीर के घर हिसाबकिताब की फाइलें ले कर पहुंच गया. सुधीर लगभग 1 घंटे तक उन का अध्ययन करता रहा और हरीश से प्रश्न पूछता रहा.

‘‘भाई, तुम्हारी दुकान अच्छी हालत में नहीं है. कोई भी कर्ज देने वाला इस हिसाबकिताब के आधार पर कभी भी तुम को उधार नहीं देगा. मेरी राय में तुम्हारे पास एक ही रास्ता है, अपना मकान और जेवर गिरवी रख दो,’’ सुधीर ने सुझाव दिया.

‘‘मकान तो पहले से ही उधार पर खरीदा हुआ है. अभी उस पर 1 लाख डालर का कर्ज बाकी है,’’ हरीश धीरे से बोला.

‘‘तुम्हारे मकान की कीमत इस समय 1 लाख 30 हजार डालर होगी. अगर उस को एक बार फिर गिरवी रख दो तो तुम्हें 15 हजार और मिल सकते हैं. फिर भी 5 हजार कम पड़ेंगे. दुकान पर तो कोई मुश्किल से 20 हजार ही देगा. इन 5 हजार के लिए तुम्हारे पास जेवर गिरवी रखने के अलावा कोई चारा नहीं है,’’ सुधीर ने अपनी भेदती आंखों से हरीश को देखा. हरीश मन ही मन कांप रहा था. हरीश को सुधीर से ऐसी उम्मीद न थी.

‘‘मैं सोच रहा था कि घर को अपने पास गिरवी रख कर तुम 20 हजार दे दो. 20 हजार से मेरा काम चल जाएगा. रमा के जेवर गिरवी रखने की क्या जरूरत है? तुम्हारे पास भी तो बैंक के लौकर में रहेंगे. कम से कम रमा के सामने मेरी इज्जत तो बनी रहेगी,’’ हरीश गिड़गिड़ाया.

‘‘देखो भाई, मैं ने तुम से पहले भी कहा था, दोस्तों से मैं कारोबार इसीलिए नहीं करता. बीच में दोस्ती ले आते हैं. फिर न तो दोस्ती ही रहती है और न ही कारोबार हो पाता है. एक बात और मैं उधार की रकम का 20 प्रतिशत प्रशासन फीस के तौर पर पहले ही ले लेता हूं. तुम्हीं को कागज तैयार करने की फीस भी नोटरी को देनी होगी, जो लगभग 500 डालर तो होगी ही.’’

‘‘इस का मतलब 40 हजार की रकम पाने के लिए 41,300 उधार लेने होंगे, क्यों सुधीर?’’

‘‘हां, हरीश.’’

‘‘ठीक है, मैं तैयार हूं.’’

सुधीर ने अपनी डायरी से एक पता लिखा और हरीश को दिया, ‘‘यह मेरे नोटरी का पता है. सस्ते में ही काम कर देगा. मैं इस को फोन कर दूंगा. तुम अपने मकान और दुकान के सारे कागज उस के यहां छोड़ आना. साथ ही जो जेवर गिरवी रखने हों, उन की फोटो और कीमत का विवरण भी उस को दे आना. जेवरों की कीमत कम से कम 10 हजार डालर तो होनी ही चाहिए, उन पर 5 हजार उधार लेने के लिए,’’ सुधीर ने हरीश को साफ- साफ इस तरह कह दिया जैसे कि वह उस का मित्र नहीं कोई अजनबी हो.

‘‘ठीक है, मैं कल ही दे आऊंगा,’’ यह कह कर हरीश चला गया.

सारे रास्ते हरीश सोचता रहा कि सुधीर को उस की दोस्ती का तनिक भी लिहाज नहीं है. पिछले 12 साल से वे एकदूसरे को जानते हैं. लगभग एकसाथ ही टोरंटो आए थे. सुधीर ने खूब पैसा कमाया और बचाया. एक बड़ा घर बनवा कर ठाट से अपने परिवार के साथ रह रहा है. पैसा कमाने के मामले में हरीश बहुत सफल नहीं रहा. बड़ी मुश्किल से किसी तरह पैसे बचा कर और कर्जे में डूब कर यह दुकान खरीदी और वह भी ठीक से नहीं चल रही.

जेवरों को गिरवी रखने की बात उस ने रमा को नहीं बताई. यह तो अच्छा ही हुआ कि उस ने अपना बैंक का लौकर रमा के नाम नहीं करवाया. आराम से जेवर निकाल कर गिरवी रख देगा. रमा को पता भी नहीं चलेगा.

सुधीर के नोटरी ने हरीश से सब जरूरी कागजात पाने के बाद 2 दिन में ही कर्जे के कागज तैयार कर दिए. उन कागजों पर हस्ताक्षर करने के लिए शाम को 8 बजे नोटरी के दफ्तर में जाना था. हरीश तो साढ़े 7 बजे ही पहुंच गया. सुधीर ठीक समय पर ही पहुंचा, साहूकार जो ठहरा.

सुधीर हरीश से इस तरह मिला जैसे कि बरसों का बिछड़ा दोस्त हो, ‘कितना बहुरुपिया है यह. 4 दिन पहले अपने घर में किस तरह से पेश आ रहा था और अब ऐसे मिल रहा है जैसे कर्ज नहीं सौगात देने जा रहा हो,’ हरीश ने सोचा.

नोटरी ने उन दोनों को अपने दफ्तर में भीतर बुला लिया.

नोटरी के सामने सुधीर और हरीश बैठ गए. नोटरी कर्जे की सारी शर्तें पढ़ कर सुना रहा था. कर्जे की रकम पूरी 42 हजार डालर होगी. उस पर 27 प्रतिशत की दर से ब्याज लगेगा जो हर महीने की पहली तारीख को देना होगा.

हरीश ने नोटरी को बीच में ही रोक दिया, ‘‘27 प्रतिशत, आजकल बाजार की दर तो 24 प्रतिशत है.’’

‘‘तब बाजार से क्यों नहीं ले लिया. भई, इतनी बड़ी रकम का जोखिम भी तो मैं ही उठा रहा हूं,’’ सुधीर बोला.

‘‘मिस्टर हरीश, सुधीर ठीक ही कहते हैं. मैं ने आप के कारोबार के सारे कागजात देखे हैं. मैं खुद भी आप को अगर उधार देता तो 30 प्रतिशत से कम ब्याज नहीं लेता. सुधीर आप से दोस्ती के लिहाज में कम ब्याज ले रहे हैं,’’ नोटरी ने सुधीर की तरफदारी की. वह हरीश की ओर देखने लगा.

‘‘अच्छा, ठीक है,’’ हरीश बोला.

‘‘ब्याज की रकम ठीक 1 तारीख को न मिलने पर हरीश को कानूनी नोटिस दिया जा सकता है और उस की दुकान और मकान जब्त किए जा सकते हैं.’’

इस से पहले कि हरीश कुछ आना- कानी करे, नोटरी ने ही समझाया कि ये सब सामान्य शर्तें हैं.

हरीश को याद आया कि पहले कर्ज देने वाली कंपनी ने भी उस से कुछ इस तरह की शर्तों पर ही हस्ताक्षर करवाए थे. हरीश सिगरेट पर सिगरेट फूंके जा रहा था. उस की सिगरेट के धुएं से नोटरी के दफ्तर में धुआं ही धुआं भर गया.

‘‘अगर मिस्टर हरीश तुम कुछ देर और ठहरे तो सिगरेट के धुएं के कारण अंधेरा ही हो जाएगा. आप जैसे ग्राहक मुझ को कैंसर करवा कर ही छोड़ेंगे,’’ नोटरी ने पहले सुधीर से हस्ताक्षर करवाए. फिर हरीश से. इस के बाद खुद किए, ‘‘कल यह कागज रजिस्ट्रार के यहां ले जा कर इन की रजिस्ट्री करा दूंगा.’’

नोटरी ने एक चैक हरीश को दे दिया. हरीश ने नोटरी को उस की फीस के 500 डालर नकद दे दिए. चैक से फीस देने पर तो नोटरी 800 डालर मांग रहा था. चैक पा कर हरीश ने नोटरी से हाथ मिलाया. फिर सुधीर ने हरीश से हाथ मिलाया.

सुधीर ने महसूस किया कि हरीश पसीनेपसीने हो रहा था. उस का हाथ हरीश के पसीने से गीला हो गया. हरीश चैक ले कर तुरंत चला गया. सुधीर को नोटरी से कुछ जरूरी बातें करनी थीं इसलिए वह रुक गया. उस ने जेब से रूमाल निकाल कर अपनी गीली हथेली को पोंछा.

‘‘देखना कहीं पसीने की जगह हरीश का खून ही न हो,’’ नोटरी ने मजाक किया.

‘‘इस से पहले कि मैं भूल जाऊं, मेरी दलाली के 100 डालर निकालो, हरीश से ली गई फीस में से.’’

नोटरी ने 100 डालर का नोट सुधीर को देते हुए कहा, ‘‘मैं उम्मीद कर रहा था कि तुम शायद भूल जाओगे पर तुम हो पक्के साहूकार.’’

सुधीर ने नोटरी का दिया 100 डालर का नोट जेब में रख लिया, ‘‘इस तरह भूल जाऊं तो आज इतना फैला हुआ कारोबार कैसे चला पाऊंगा.’’

कुछ देर बात कर के सुधीर चला गया.

हरीश और सुधीर के बीच की दोस्ती लगभग समाप्त ही हो गई थी. हर महीने की पहली तारीख को हरीश ब्याज की किस्त सुधीर के यहां पहुंचा देता था. रमा भी अब दुकान पर आने लगी थी. बच्ची के कारण पहले की तरह तो नहीं आ पाती थी, इसी वजह से एक लड़की को अभी भी दुकान पर रखा हुआ था.

हरीश का जीवन काफी तनावपूर्ण था. रमा के लाख लड़नेझगड़ने पर भी वह अपनी सिगरेट पीना कम नहीं कर रहा था. शराब तो वह पहले से ही काफी पीता था. हर रात जब तक 2-3 पैग स्कौच के नहीं पी लेता था तब तक उसे नींद ही नहीं आती थी.

आखिर हरीश का शरीर कब तक अपने ऊपर की हुई ज्यादतियां बरदाश्त करता. उस के दिल ने बगावत कर दी थी. यह तो अच्छा हुआ कि उस को दिल का दौरा दुकान में रमा और नौकरानी के सामने ही पड़ा, इस कारण से उस को डाक्टरी सहायता जल्दी ही मिल गई. रमा के तो हाथपांव फूल गए थे. परंतु उस लड़की ने धैर्य से काम ले कर ऐंबुलेंस को बुलवा लिया था. अस्पताल में उस को इमरजैंसी वार्ड में तुरंत भरती करवा दिया गया. डाक्टरों के अनुसार अगर हरीश को अस्पताल आने में 15 मिनट की और देरी हो जाती तो वे कुछ भी नहीं कर पाते.

रमा के ऊपर हरीश की बीमारी से बहुत बोझ आ पड़ा. दुकान की जिम्मेदारी, बच्चे की देखरेख और अस्पताल के सुबहशाम के चक्कर. हरीश को बातचीत करने की सख्त मनाही थी. ऐसी हालत में जरा सी दिमागी परेशानी होने से जान को खतरा हो सकता था. दिल के दौरे ने हरीश की सिगरेट छुड़वा दी. अगर पहले ही सिगरेट छोड़ देता तो शायद दिल का दौरा पड़ता ही नहीं.

दिल का दौरा पड़ने से ठीक 1 महीने के बाद हरीश को अस्पताल से घर जाने की इजाजत मिल गई. रमा उस को अस्पताल से घर छोड़ गई. आज तक तो दुकान उस ने उस काम करने वाली लड़की की देखरेख में ही छोड़ रखी थी.

अचानक सुधीर का ध्यान आया, ‘‘अरे, आज 20 तारीख हो गई. रमा तुम ने सुधीर को उस की ब्याज की किस्त का चैक भिजवाया था पहली तारीख को?

रमा उस समय रसोई में थी. हरीश की आवाज सुन कर ऊपर शयनकक्ष में दौड़ी आई.

‘‘अरे, भूल गई मैं तो. उन को क्या मालूम नहीं कि आप को दिल का दौरा पड़ा है. कम से कम एक बार तो आ कर अस्पताल में देख जाते. बस, एक बार बीवी से फोन करवा दिया. हम कोई भागे थोड़े ही जाते हैं. मैं कल ही चैक खुद दे आऊंगी उन के घर,’’ इतना कह कर रमा चली गई.

हरीश से फिर भी रहा नहीं गया. उस ने सुधीर के घर का टैलीफोन नंबर घुमाया. फोन सुधीर के लड़के ने उठाया, ‘‘अरे चाचाजी, आप? कैसी तबीयत है? पिताजी आप के लिए बहुत चिंता करते हैं. इस समय तो पिताजी घर पर नहीं हैं. उन के आने पर उन से कह कर फोन करवा दूंगा.’’

‘इस का बेटा भी बिलकुल बाप पर गया है,’ हरीश ने मन ही मन सोचा.

सवेरे जब रमा दुकान पर जाने लगी तो हरीश ने अपनी गैरहाजिरी में आई हुई डाक लाने को कहा. रमा सारे पत्र ऊपर ले आई.

रमा जाने लगी तो हरीश ने उस को एक बार फिर से याद दिलाया कि सुधीर को चैक अवश्य भिजवाना है.

रमा चली गई. हरीश ने एक नजर उन पत्रों के ढेर पर डाली. फिर धीरेधीरे उन पत्रों को खोलने लगा.

रमा का कहना सच ही था. पहले 5 पत्र तो बिजली, गैस, टैलीफोन, अखबार और टैलीविजन के किराए के ही बिल थे. उन पत्रों के ढेर में एक बड़ा सा सफेद लंबा लिफाफा था. हरीश ने उसे खोला. उस को पढ़ते ही हरीश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. पत्र सुधीर के वकील की तरफ से था. सुधीर ने समय पर ब्याज की किस्त न अदा करने के कारण दुकान और मकान पर कब्जा करने की कानूनी कार्यवाही का नोटिस दिया था.

हरीश के पसीना छूटने लगा. उस को समझने में देर न लगी कि उसे क्या हो रहा है. उस ने बिस्तर से उठने की नाकामयाब कोशिश की. कुछ क्षणों पश्चात उस की आंखें मुंदने लगीं. उस की आंखें पथरा गईं और वकील का नोटिस उस की बेजान उंगलियों के बीच उलझ कर रह गया ताकि शाम को रमा उस को पढ़ ले.

Online Kahani : शादी के बाद

Online Kahani : रजनी को विकास जब देखने के लिए गया तो वह कमरे में मुश्किल से 15 मिनट भी नहीं बैठी. उस ने चाय का प्याला गटागट पिया और बाहर चली गई. रजनी के मातापिता उस के व्यवहार से अवाक् रह गए. मां उस के पीछेपीछे आईं और पिता विकास का ध्यान बंटाने के लिए कनाडा के बारे में बातें करने लगे. यह तो अच्छा ही हुआ कि विकास कानपुर से अकेला ही दिल्ली आया था. अगर उस के घर का कोई बड़ाबूढ़ा उस के साथ होता तो रजनी का अभद्र व्यवहार उस से छिपा नहीं रहता. विकास तो रजनी को देख कर ऐसा मुग्ध हो गया था कि उसे इस व्यवहार से कुछ भी अटपटा नहीं लगा.

रजनी की मां ने उसे फटकारा, ‘‘इस तरह क्यों चली आई? वह बुरा मान गया तो? लगता है, लड़के को तू बहुत पसंद आई है.’’ ‘‘मुझे नहीं करनी उस से शादी. बंदर सा चेहरा है. कितना साधारण व्यक्तित्व है. उस के साथ तो घूमनेफिरने में भी मुझे शर्म आएगी,’’ रजनी ने तुनक कर कहा.

‘‘मुझे तो उस में कोई खराबी नहीं दिखती. लड़कों का रूपरंग थोड़े ही देखा जाता है. उन की पढ़ाईलिखाई और नौकरी देखी जाती है. तुझे सारा जीवन कैनेडा में ऐश कराएगा. अच्छा खातापीता घरबार है,’’ मां ने समझाया, ‘‘चल, कुछ देर बैठ कर चली आना.’’ रजनी मान गई और वापस बैठक में आ गई.

‘‘इस की आंख में कीड़ा घुस गया था,’’ विकास की ओर रजनी की मां ने बरफी की प्लेट बढ़ाते हुए कहा. रजनी ने भी मां की बात रख ली. वह दाएं हाथ की उंगली से अपनी आंख सहलाने लगी.

विकास ने दोपहर का खाना नहीं खाया. शाम की गाड़ी से उसे कानपुर जाना था. स्टेशन पर उसे छोड़ने रजनी के पिताजी गए. विकास ने उन्हें बताया कि उसे रजनी बेहद पसंद आई है. उस की ओर से वे हां ही समझें. शादी 15 दिन के अंदर ही करनी पड़ेगी, क्योंकि उस की छुट्टी के बस 3 हफ्ते ही शेष रह गए थे और दहेज की तनिक भी मांग नहीं होगी. रजनी के पिता विकास को विदा कर के लौटे तो मन ही मन प्रसन्न तो बहुत थे परंतु उन्हें अपनी आजाद खयाल बेटी से डर भी लग रहा था कि पता नहीं वह मानेगी या नहीं.

पिछले 3 सालों में न जाने कितने लड़कों को उसे दिखाया. वह अत्यंत सुंदर थी, इसलिए पसंद तो वह हर लड़के को आई लेकिन बात हर जगह या तो दहेज के कारण नहीं बन पाई या फिर रजनी को ही लड़का पसंद नहीं आता था. उसे आकर्षक और अच्छी आय वाला पति चाहिए था. मातापिता समझा कर हार जाते थे, पर वह टस से मस न होती. उस रात वे काफी देर तक जागते रहे और रजनी के विषय में ही सोचते रहे कि अपनी जिद्दी बेटी को किस तरह सही रास्ते पर लाएं. अगले दिन रात को तार वाले ने जगा दिया. रजनी के पिता तार ले कर अंदर आए. तार विकास के पिताजी का था. वे रिश्ते के लिए राजी थे. 2 दिन बाद परिवार के साथ ‘रोकने’ की रस्म करने के लिए दिल्ली आ रहे थे. रजनी ने सुन कर मुंह बिचका दिया. छोटे बच्चों को हाथ के इशारे से कमरे से जाने को कहा गया. अब कमरे में केवल रजनी और उस के मातापिता ही थे.

‘‘बेटी, मैं मानता हूं कि विकास बहुत सुंदर नहीं है पर देखो, कनाडा में कितनी अच्छी तरह बसा हुआ है. अच्छी नौकरी है. वहां उस का खुद का घर है. हम इतने सालों से परेशान हो रहे हैं, कहीं बात भी नहीं बन पाई अब तक. तू तो बहुत समझदार है. विकास के कपड़े देखे थे, कितने मामूली से थे. कनाडा में रह कर भी बिलकुल नहीं बदला. तू उस के लिए ढंग के कपड़े खरीदेगी तो आकर्षक लगने लगेगा,’’ पिता ने समझाया. ‘‘देख, आजकल के लड़के चाहते हैं सुंदर और कमाऊ लड़की. तेरे पास कोई ढंग की नौकरी होती तो शायद दहेज की मांग इतनी अधिक न होती. हम दहेज कहां से लाएं, तू अपने घर की माली हालत जानती ही है. लड़कों को मालूम है कि सुंदर लड़की की सुंदरता तो कुछ साल ही रहती है और कमाऊ लड़की तो सारा जीवन कमा कर घर भरती है,’’ मां ने भी बेटी को समझाने का भरसक प्रयास किया.

रजनी ने मातापिता की बात सुनी, पर कुछ बोली नहीं. 3 साल पहले उस ने एम.ए. तृतीय श्रेणी में पास किया था. कभी कोई ढंग की नौकरी ही नहीं मिल पाई थी. उस के साथ की 2-3 होशियार लड़कियां तो कालेजों में व्याख्याता के पद पर लगी हुई थीं. जिन आकर्षक युवकों को अपना जीवनसाथी बनाने का रजनी का विचार था वे नौकरीपेशा लड़कियों के साथ घर बसा चुके थे. शादी और नौकरी, दोनों ही दौड़ में वह पीछे रह गई थी.

‘‘देख, कनाडा में बसने की किस की इच्छा नहीं होती. सारे लोग तुझ को देख कर यहां ईर्ष्या करेंगे. तुम छोटे भाईबहनों के लिए भी कुछ कर पाओगी,’’ पिता ने कहा.

रजनी को अपने छोटे भाईबहनों से बहुत लगाव था. पिताजी अपनी सीमित आय में उन के लिए कुछ भी नहीं कर सकते थे. वह सोचने लगी, ‘अगर वह कनाडा चली गई तो उन के लिए बहुतकुछ कर सकती है, साथ ही विकास को भी बदल देगी. उस की वेशभूषा में तो परिवर्तन कर ही देगी.’ रजनी मां के गले लग गई, ‘‘मां, जैसी आप दोनों की इच्छा है, वैसा ही होगा.’’ रजनी के पिता तो खुशी से उछल ही पड़े. उन्होंने बेटी का माथा चूम लिया. आवाज दे कर छोटे बच्चों को बुला लिया. उस रात खुशी से कोई न सो पाया.

2 सप्ताह बाद रजनी और विकास की धूमधाम से शादी हो गई. 3-4 दिन बाद रजनी जब कानपुर से विकास के साथ दिल्ली वापस आई तब विकास उसे कनाडा के उच्चायोग ले गया और उस के कनाडा के आप्रवास की सारी काररवाई पूरी करवाई. कनाडा जाने के 2 हफ्ते बाद ही विकास ने रजनी के पास 1 हजार डालर का चेक भेज दिया. बैंक में जब रजनी चेक के भुगतान के लिए गई तो उस ने अपने नाम का खाता खोल लिया. बैंक के क्लर्क ने जब बताया कि उस के खाते में 10 हजार रुपए से अधिक धन जमा हो जाएगा तो रजनी की खुशी की सीमा न रही.

रजनी शादी के बाद भारत में 10 महीने रही. इस दौरान कई बार कानपुर गई. ससुराल वाले उसे बहुत अच्छे लगे. वे बहुत ही खुशहाल और अमीर थे. कभी भी उन्होंने रजनी को इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि उस के मातापिता साधारण स्थिति वाले हैं. रजनी का हवाई टिकट विकास ने भेज दिया था. उसे विदा करने के लिए मायके वाले भी कानपुर से दिल्ली आए थे.

लंदन हवाई अड्डे पर रजनी को हवाई जहाज बदलना था. उस ने विकास से फोन पर बात की. विकास तो उस के आने का हर पल गिन रहा था. मांट्रियल के हवाई अड्डे पर रजनी को विकास बहुत बदला हुआ लग रहा था. उस ने कीमती सूट पहना हुआ था. बाल भी ढंग से संवारे हुए थे. उस ने सामान की ट्राली रजनी के हाथ से ले ली. कारपार्किंग में लंबी सी सुंदर कार खड़ी थी. रजनी को पहली बार इस बात का एहसास हुआ कि यह कार उस की है. वह सोचने लगी कि जल्दी ही कार चलाना सीख लेगी तो शान से इसे चलाएगी. एक फोटो खिंचवा कर मातापिता को भेजेगी तो वे कितने खुश होंगे.

कार में रजनी विकास के साथ वाली सीट पर बैठे हुए अत्यंत गर्व का अनुभव कर रही थी. विकास ने कर्कलैंड में घर खरीद लिया था. वह जगह मांट्रियल हवाई अड्डे से 55 किलोमीटर की दूरी पर थी. कार बड़ी तेजी से चली जा रही थी. रजनी को सब चीजें सपने की तरह लग रही थीं. 40-45 मिनट बाद घर आ गया. विकास ने कार के अंदर से ही गैराज का दरवाजा खोल लिया. रजनी हैरानी से सबकुछ देखती रही. कार से उतर कर रजनी घर में आ गई. विकास सामान उतार कर भीतर ले आया. रजनी को तो विश्वास ही नहीं हुआ कि इतना आलीशान घर उसी का है. उस की कल्पना में तो घर बस 2 कमरों का ही होता था, जो वह बचपन से देखती आई थी. विकास ने घर को बहुत अच्छी तरह से सजा रखा था. सब तरह की आधुनिक सुखसुविधाएं वहां थीं. रजनी इधरउधर घूम कर घर का हर कोना देख रही थी और मन ही मन झूम रही थी.

विकास ने उस के पास आ कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज की शाम हम बाहर मनाएंगे परंतु इस से पहले तुम कुछ सुस्ता लो. कुछ ठंडा या गरम पीओगी?’’ विकास ने पूछा. रजनी विकास के करीब आ गई और उस के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘आज की शाम बाहर गंवाने के लिए नहीं है, विकास. मुझे शयनकक्ष में ले चलो.’’

विकास ने रजनी को बांहों के घेरे में ले लिया और ऊपरी मंजिल पर स्थित शयनकक्ष की ओर चल दिया.

Best Kahani 2025 : अवगुण चित न धरो

Best Kahani 2025 :  समुद्र के किनारे बैठ कर वह घंटों आकाश और सागर को निहारता रहता. मन के गलियारे में घुटन की आंधी सरसराती रहती. ऐसा बारबार क्यों होता है. वह चाहता तो नहीं है अपना नियंत्रण खोना पर जाने कौन से पल उस की यादों से बाहर निकल कर चुपके- चुपके मस्तिष्क की संकरी गली में मचलने लगते हैं. कदाचित इसीलिए उस से वह सब हो जाता है जो होना नहीं चाहिए. सुबह से 5 बार उसे फोन कर चुका है पर फौरन काट देती है. 2 बार गेट तक गया पर गेटकीपर ने कहा कि छोटी मेम साहिबा ने मना किया है गेट खोलने को.

वह हताश हो समुद्र के किनारे चल पड़ा था. अपनी मंगेतर का ऐसा व्यवहार उसे तोड़ रहा था. घर पहुंच कर बड़बड़ाने लगा, ‘क्या समझती है अपनेआप को. जरा सी सुंदर है और बैंक में आफिसर बन गई है तो हवा में उड़ी जा रही है.’ मयंक के कारण ही अब उन का ऊंचे घराने से नाता जुड़ा था. जब विवाह तय हुआ था तब तो साक्षी ऐसी न थी. सीधीसादी सी हंसमुख साक्षी एकाएक इतनी बदल क्यों गई है?

मां ने मयंक की बड़बड़ाहट पर कुछ देर तो चुप्पी साधे रखी फिर उस के सामने चाय का प्याला रख कर कहा, ‘‘तुम हर बात को गलत ढंग से समझते हो.’’ ‘‘आप क्या कहना चाह रही हैं,’’ वह झुंझला उठा था.

मम्मी उस के माथे पर प्यार से हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘पिछले हफ्ते चिरंजीव के विवाह में तुम्हारे बुलाने पर साक्षी भी आई थी. जब तक वह तुम से चिपकी रही तुम बहुत खुश थे पर जैसे ही उस ने अपने कुछ दूसरे मित्रों से बात करना शुरू किया तुम उस पर फालतू में बिगड़ उठे. वह छोटी बच्ची नहीं है. तुम्हारा यह शक्की स्वभाव उसे दुखी कर गया होगा तभी वह बात नहीं कर रही है.’’ मयंक सोच में पड़ गया. क्या मम्मी ठीक कह रही हैं? क्या सचमुच मैं शक्की स्वभाव का हूं?

दफ्तर से निकल कर साक्षी धीरेधीरे गाड़ी चला रही थी. फरवरी की शाम ठंडी हो चली थी. वह इधरउधर देखने लगी. उस का मन बहुत बेचैन था. शायद मयंक को याद कर रहा था. पापा ने कितने शौक से यह विवाह तय किया था. मयंक पढ़ालिखा नौजवान था. एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पद पर था. कंपनी ने उसे रहने के लिए बड़ा फ्लैट, गाड़ी आदि की सुविधा दे रखी थी. बहुत खुश थी साक्षी. पर घड़ीघड़ी उस का चिड़चिड़ापन, शक्की स्वभाव उस के मन को बहुत उद्वेलित कर रहा था. मयंक के अलगअलग स्वभाव के रंगों में कैसे घुलेमिले वह. लाल बत्ती पर कार रोकी तो इधरउधर देखती आंखें एक जगह जा कर ठहर गईं. ठंडी हवा से सिकुड़ते हुए एक वृद्ध को मयंक अपना कोट उतार कर पहना रहा था.

कुछ देर अपलक साक्षी उधर ही देखती रही. फिर अचानक ही मुसकरा उठी. अब इसे देख कर कौन कहेगा कि यह कितना चिड़चिड़ा और शक्की इनसान है. इस का क्रोध जाने किधर गायब हो गया. वह कार सड़क के किनारे पार्क कर के धीरेधीरे वहां जा पहुंची. मयंक जाने को मुड़ा तो उस ने अपने सामने साक्षी को खड़ा मुसकराता पाया. इस समय साक्षी को उस पर क्रोध नहीं बल्कि मीठा सा प्यार आ रहा था. मयंक का हाथ पकड़ कर साक्षी बोली, ‘‘मैं ने सोचा फोन पर क्यों मनाना- रूठना, आमनेसामने ही दोनों काम कर डालते हैं.’’

पहले मनाने का कार्य मयंक कर रहा था पर अब साक्षी को देखते ही उस ने रूठने की ओढ़नी ओढ़ ली और बोला, ‘‘अभी से बातबेबात नाराज होने का इतना शौक है तो आगे क्या करोगी?’’ साक्षी मन को शांत रखते हुए बोली, ‘‘चलो, कहां ले जाना चाहते थे. 2 घंटे आप के साथ ही बिताने वाली हूं.’’

मयंक अकड़ कर चलते हुए अपनी कार तक पहुंचा और अंदर बैठ कर दरवाजा खोल साक्षी के आने की प्रतीक्षा करने लगा. साक्षी बगल में बैठते हुए बोली, ‘‘वापसी में आप को मुझे यहीं छोड़ना होगा क्योंकि अपनी गाड़ी मैं ने यहीं पार्क की है. ’’ कार चलाते हुए मयंक ने पूछा, ‘‘साक्षी, क्या तुम्हें लगता है कि मैं अच्छा इनसान नहीं हूं?’’

‘‘ऐसा तो मैं ने कभी नहीं कहा.’’ ‘‘पर तुम्हारी बेरुखी से मुझे ऐसा ही लगता है.’’

‘‘देखो मयंक,’’ साक्षी बोली, ‘‘हमें गलतफहमियों से दूर रहना चाहिए.’’ मयंक एक अस्पताल के सामने रुका तो साक्षी अचरज से उस के साथ चल दी. कुछ दूर जा कर पूछ बैठी, ‘‘क्या कोई अस्वस्थ है?’’

मयंक ने धीरे से कहा, ‘‘नहीं,’’ और वह सीधा अस्पताल के इंचार्ज डाक्टर के कमरे में पहुंच गया. उन्होंने देखते ही प्यार से उसे बैठने को कहा. लगा जैसे वह मयंक को भलीभांति पहचानते हैं. मयंक ने एक चेक जेब से निकाल कर डाक्टर के सामने रख दिया. ‘‘आप लोगों की यह सहृदयता हमारे मरीजों के बहुत से दुख दूर करती है,’’ डाक्टर ने मयंक से कहा, ‘‘आप को देख कर कुछ और लोग भी हमारी सहायता को आगे आए हैं. बहुत जल्द हम कैंसर पीडि़तों के लिए एक नया और सुविधाजनक वार्ड आरंभ करने जा रहे हैं.’’

मयंक ने चलने की आज्ञा ली और साक्षी को चलने का संकेत किया. कार में बैठ कर बोला, ‘‘तुम परेशान हो कि मैं यहां क्यों आता हूं.’’ ‘‘नहीं. एक नेक कार्य के लिए आते हो यह तुरंत समझ में आ गया,’’ साक्षी मुसकरा दी.

मयंक चुपचाप गाड़ी चलातेचलाते अचानक बोल पड़ा, ‘‘साक्षी, क्या तुम्हें मैं शक्की स्वभाव का लगता हूं?’’ साक्षी चौंक कर सोच में पड़ गई कि यह व्यक्ति एक ही समय में विचारों के कितने गलियारे पार कर लेता है. पर प्रत्यक्ष में बोली, ‘‘क्या मैं ने कभी कहा?’’

‘‘यही तो बुरी बात है. कहती नहीं हो…बस, नाराज हो कर बैठ जाती हो.’’ ‘‘ठीक है. अब नाराज होने से पहले तुम्हें बता दिया करूंगी.’’

‘‘मजाक कर रही हो.’’ ‘‘नहीं.’’

‘‘मुझे तुम्हारे रूठने से बहुत कष्ट होता है.’’ साक्षी को उस की गाड़ी तक छोड़ कर मयंक बोला, ‘‘क्लब जा रहा हूं, चलोगी?’’

‘‘आज नहीं, फिर कभी,’’ साक्षी बाय कर के चल दी. विवाह की तारीख तय हो चुकी थी. दोनों तरफ विवाह की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. एक दिन साक्षी की सास का फोन आया कि नलिनी यानी साक्षी की होने वाली ननद ने अपने घर पर पार्टी रखी है और उसे भी वहां आना है. यह भी कहा कि मयंक उसे लेने आ जाएगा. उस दिन नलिनी के पति विराट की वर्षगांठ थी.

साक्षी खूब जतन से तैयार हुई. ननद की ससुराल जाना था अत: सजधज कर तो जाना ही था. मयंक ने देखा तो खुश हो कर बोला, ‘‘आज तो बिजली गिरा रही हो जानम.’’ पार्टी आरंभ हुई तो साक्षी को नलिनी ने सब से मिलवाया. बहुत से लोग उस की शालीनता और सौंदर्य से प्रभावित थे. विराट के एक मित्र ने उस से कहा, ‘‘बहुत अच्छी बहू ला रहे हो अपने साले की.’’

‘‘मेरा साला भी तो कुछ कम नहीं है,’’ विराट ने हंस कर कहा. मयंक ने दूर से सुना और मुसकरा दिया. मां ने कहा था कि पार्टी में कोई तमाशा न करना और उन की यह नसीहत उसे याद थी. इसलिए भी मयंक की कोशिश थी कि अधिक से अधिक वह साक्षी के निकट रहे. डांस फ्लोर पर जैसे ही लोग थिरकने लगे तो मयंक ने झट से साक्षी को थाम लिया. साक्षी भी प्रसन्न थी. काफी समय से मयंक उसे खुश रखने के लिए कुछ न कुछ नया करता रहा था. कभी उपहार ला कर, कभी सिनेमा या क्लब ले जा कर. एक दिन साक्षी ने अपनी होने वाली सासू मां से कहा, ‘‘मम्मीजी, मयंक बचपन से ही ऐसे हैं क्या? एकदम मूडी?’’

मम्मी ने सुनते ही एक गहरी सांस भरी थी. कुछ पल अतीत में डूबतेउतराते व्यतीत कर दिए फिर बोलीं, ‘‘यह हमेशा से ऐसा नहीं था.’’ ‘‘फिर?’’

‘‘क्या बताऊं साक्षी…सब को अपना मानने व प्यार करने के स्वभाव ने इसे ऐसा बना दिया.’’ साक्षी ने उत्सुकता से सासू मां को देखा…वह धीरेधीरे अतीत में पूरी तरह डूब गईं.

पहले वे लोग इतने बड़े घर व इतनी हाई सोसायटी वाली कालोनी में नहीं रहते थे. मयंक को शानदार घर मिला तो वे यहां आए.

उस कालोनी में हर प्रकार के लोग थे और आपस में सभी का बहुत गहरा प्यार था. मयंक बंगाली बाबू मकरंद राय के यहां बहुत खेलता था. उन का बेटा पवन और बेटी वैदेही पढ़ते भी इस के साथ ही थे. वैदेही कत्थक सीखा करती थी. कभीकभी मयंक भी उस का नृत्य देखता और खुश होता रहता. उस दिन राय साहब ने वैदेही की वर्षगांठ की एक छोटी सी पार्टी रखी थी. आम घरेलू पार्टी जैसी थी. महल्ले की औरतों ने मिलजुल कर कुछ न कुछ बनाया था और बच्चों ने गुब्बारे टांग दिए थे. इतने में ही वहां खुशी की मधुर बयार फैल गई थी.

राय साहब बंगाली गीत गाने लगे तो माहौल बहुत मोहक हो गया. तभी किसी ने कहा, ‘वैदेही का डांस तो होना ही चाहिए. आज उस की वर्षगांठ है.’ सभी ने हां कही तो वैदेही भी तैयार हो गई. वह तुरंत चूड़ीदार पायजामा और फ्राक पहन कर आ गई. उसे देखते ही उस के चाचा के बच्चे मुंह पर हाथ रख कर हंसने लगे. मयंक बोला, ‘क्यों हंस रहे हो?’

‘कैसी दिख रही है बड़ी दीदी.’ ‘इतनी प्यारी तो लग रही है,’ मयंक ने खुश हो कर कहा.

नृत्य आरंभ हुआ तो उस के बालों में गुंथे गजरे से फूल टूट कर बिखरने लगे. वे दोनों बच्चे फिर ताली बजाने लगे. ‘अभी वैदेही दीदी भी गिरेंगी.’

मयंक को उन का मजाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा. इसीलिए वह दोनों बच्चों को बराबर चुप रहने को कह रहा था. अचानक वैदेही सचमुच फिसल कर गिर गई और उस के माथे पर चोट लग गई जिस में से खून बहने लगा था. मयंक को पता नहीं क्या सूझा कि उठ कर उन दोनों बच्चों को पीट दिया.

‘तुम्हारे हंसने से वह गिर गई और उसे चोट लग गई.’ मयंक का यह कोहराम शायद कुछ लोगों को पसंद नहीं आया… खासकर वैदेही को. वह संभल कर उठी और मयंक को चांटा मार दिया. साथ में यह भी बोली, ‘क्यों मारा हमारे भाई को.’

सबकुछ इतनी तीव्रता से हुआ था कि सभी अचंभित से थे. वातावरण को शीघ्र संभालना आवश्यक था. अत: मैं ने ही मयंक से कहा, ‘माफी मांगो.’ मेरे कई बार कहने पर उस ने बुझे मन से माफी मांग ली पर शीघ्र ही वह चुपके से घर चला गया. हम बड़ों ने स्थिति संभाली तो पार्टी पूरी हो गई. उस छोटी सी घटना ने मयंक को बहुत बदल दिया था पर वैदेही ने मित्रता को रिश्तेदारी के सामने नकार दिया था. शायद तब से ही मयंक का दृष्टिकोण भरोसे को ले कर टूट गया और वह शक्की…

‘‘मैं समझ गई, मम्मीजी,’’ साक्षी के बीच में बोलते ही मम्मी अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गईं. विराट हमेशा बहुत बड़े पैमाने पर पार्टी देता था. उस दिन भी उस की काकटेल पार्टी जोरशोर से चल रही थी. साक्षी उस दिन पूरी तरह से सतर्क थी कि मयंक का मन किसी भी कारण से न दुखे.

जैसे ही शराब का दौर चला वह पार्टी से हट कर एक कोने में चली गई ताकि कोई उसे मजबूर न करे एक पैग लेने को. मयंक वहीं पहुंच गया और बोला, ‘‘क्या हुआ? यहां क्यों आ गईं?’’ ‘‘कुछ नहीं, मयंक, शराब से मुझे घबराहट हो रही है.’’

‘‘ठीक है. कुछ देर आराम कर लो,’’ कह कर वह प्रसन्नचित्त पार्टी में सम्मिलित हो गया. विराट के आफिस की एक महिला कर्मचारी के साथ वह फ्लोर पर नृत्य करने लगा. उस कर्मचारी का पति शराब का गिलास थाम कर साक्षी की बगल में आ बैठा और बोला, ‘‘आप डांस नहीं करतीं?’’

‘‘मुझे इस का खास शौक नहीं है,’’ साक्षी ने जवाब में कहा. ‘‘मेरी पत्नी तो ऐसी पार्टीज की बहुत शौकीन है. देखिए, कैसे वह मयंकजी के साथ डांस कर रही है.’’

प्रतिउत्तर में साक्षी केवल मुसकरा दी. ‘‘आप ने कुछ लिया नहीं. यह गिलास मैं आप के लिए ही लाया हूं.’’

‘‘अगर यह सब मुझे पसंद होता तो मयंक सब से पहले मेरा गिलास ले आते,’’ साक्षी को कुछ गुस्सा सा आने लगा. ‘‘लेकिन भाभीजी, यह तो काकटेल पार्टी का चलन है. यहां आ कर आप इन चीजों से बच नहीं सकतीं,’’ वह जबरन साक्षी को शराब पिलाने की कोशिश करने लगा.

साक्षी निरंतर बच रही थी. मयंक ने दूर से देख लिया और पलक झपकते ही उस व्यक्ति के गाल पर एक झन्नाटेदार तमाचा जड़ दिया. ‘‘अरे, वाह, ऐसा क्या किया मैं ने. अकेली बैठी थीं आप की मंगेतर तो उन्हें कंपनी दे रहा था.’’

‘‘अगर उसे साथ चाहिए होगा तो वह स्वयं मेरे पास आ जाएगी,’’ मयंक क्रोध से बोला. ‘‘वाह साहब, खुद दूसरों की पत्नी के साथ डांस कर रहे हैं. मैं जरा पास में बैठ गया तो आप को इतना बुरा लग गया. कैसे दोगले इनसान हैं आप.’’

‘‘चुप रहिए श्रीमान,’’ अचानक साक्षी उठ कर चिल्ला पड़ी, ‘‘मेरे मयंक को मुसीबतों से मुझे बचाना अच्छी तरह आता है और अपनी पत्नी से मेरी तुलना करने की कोशिश भी मत करिएगा.’’ वह तुरंत हौल से बाहर निकल गई. पार्टी में सन्नाटा छा गया था.

मयंक भी स्तब्ध हो उठा था. धीरेधीरे उसे खोजते हुए बाहर गया तो साक्षी गाड़ी में बैठी उस की प्रतीक्षा कर रही थी. वह चुपचाप उस की बगल में बैठ गया तो साक्षी ने उस के कंधे पर सिर टिका दिया. उस की हिचकी ने अचानक मयंक को बहुत द्रवित कर दिया था. उस का सिर थपकते हुए बोला, ‘‘चलें.’’ साक्षी ने आंसू पोंछ अपनी गरदन हिला दी. कार स्टार्ट करते मयंक ने सोचा, ‘शुक्र है, साक्षी मुझे समझ गई है.’

जानें क्या है Pendulum Lifestyle, जिसके कारण हो सकती है डामाडोल आप की जिंदगी

Pendulum Lifestyle : ‘इधर चला मैं उधर चला जाने कहां मैं किधर चला…’ गीत की ये लाइनें आजकल के युवाओं के जीवन का हिस्सा बन गई हैं क्योंकि उन्होंने जीवन जीने का ऐसा स्टाइल अपना लिया है जो उन्हें कुछ वक्त के लिए तो ठीक लगता है, लेकिन लौंग टर्म में सेहत, व्यवहार, लाइफस्टाइल, कामकाज सब पर बुरा असर डालता है.

इस लाइफस्टाइल को नाम दिया गया है ‘पैंडुलम लाइफस्टाइल’, जिस का मतलब है ऐसी जिंदगी, जो 2 विपरीत छोरों के बीच झूलती रहती है या कहें इस में व्यक्ति 2 चरम सीमाओं के बीच झूलता रहता है और स्थिरता या संतुलन नहीं बना पाता. इस में या तो हम किसी चीज को जरूरत से ज्यादा करते हैं या फिर उसे पूरी तरह से छोड़ देते हैं. यह लाइफस्टाइल हमारे काम, सेहत, रिश्ते और मानसिक शांति पर बुरा असर डाल सकती है. युवा तो इसे ‘गो विद द फ्लो’ का नाम दे रहे हैं. अब इस से उन के जीवन के फ्लो पर क्या असर पड़ता है यह समझते हैं :

क्या है पैंडुलम लाइफस्टाइल

अत्यधिक काम Vs अत्यधिक आराम : कभीकभी लोग हफ्तों तक बिना अपने खाने और सेहत का ध्यान रखे, बहुत ज्यादा काम करते हैं और फिर अचानक कुछ दिन पूरा दिन सोते हुए या बिलकुल सुस्त हो कर आराम करते हुए बिता देते हैं। उस दौरान काम को हाथ नहीं लगाते.

मूड का ऊपरनीचे होना : अत्यधिक खुशी या प्रेरणा महसूस करना और फिर उदासी या निष्क्रियता में गिर जाना यानी लोग कभी तो बहुत खुश और जोश में होते हैं, तो कभी अचानक उदास और निराश हो जाते हैं. जैसे किसी औफिस प्रोजैक्ट में व्यस्त हैं और उसे कंप्लीट करने के लिए न दिन में आराम न रात की नींद पूरी कर रहे हैं, दोस्तों के साथ वक्त बिताना और खुद को टाइम देना छोड़ दिया है, लेकिन जैसे ही वह काम पूरा होता है उस के बाद समझ नहीं पाते कि अब क्या करें, आप मूडी और चिड़चिड़े हो जाते हैं.

ऐसा स्टूडैंट लाइफ में होता है जब एक छात्र परीक्षा की तैयारी के दौरान दिनरात पढ़ाई करता है और जैसे ही परीक्षा खत्म होती है, वह दोस्तों और परिवार से दूर हो जाता है और अकेले समय बिताने लगता है.

सेहत और डाइट का उतारचढ़ाव : लोग एक समय हैल्दी डाइट और ऐक्सरसाइज का सख्ती से पालन करते हैं और कुछ ही दिनों बाद जंक फूड खाना शुरू कर देते हैं. जैसे कोई व्यक्ति जिम में 1 महीने तक रोज ऐक्सरसाइज करता है और फिर अगले 2 महीने बिलकुल वर्कआउट नहीं करता और न ही हैल्दी डाइट फोलो करता है. फिर दोबारा कुछ दिन अच्छी डाइट, वर्कआउट करता है और फिर सुस्त हो जाता है। पैंडुलम लाइफस्टाइल में यह साइकिल लगातार चलता रहता है.

रिश्तों में अस्थिरता : कभी तो लोग अपने दोस्तों और परिवार के साथ बहुत समय बिताते हैं, तो कभी अचानक दूरी बना लेते हैं. कोई व्यक्ति अपने पार्टनर के साथ समय बिताने के लिए अपने दोस्तों को नजरअंदाज करता है और बाद में अपने पार्टनर से दूरी बना लेता है. दोनों में कैसे बैलेंस बना कर दोनों को साथ कैसे लेकर चलें वे समझ नहीं पाते.

निर्णय लेने में झिझक : किसी एक निर्णय पर टिके रहने में दिक्कत होती है. एक व्यक्ति किसी नए काम को शुरू करता है, लेकिन थोड़े समय बाद उसे छोड़ कर कोई और काम शुरू कर देता है और इस चक्र में फंस जाता है.

यह लाइफस्टाइल क्यों होती है

संतुलन की कमी : लोग अपनी प्राथमिकताओं (priorities) को सही से तय नहीं कर पाते, जिस से जीवन में बैलेंस नहीं बन पाता. अपने टाइम को काम और परिवार के बीच कैसे बांटना चाहिए, यह मुश्किल हो जाता है.

दबाव और उम्मीदें : लोग दूसरों की उम्मीदों को पूरा करने के चक्कर में खुद को अनदेखा कर देते हैं, दूसरों से बेहतर बनने की होड़ लगी रहती है, लेकिन युवाओं को समझना होगा कि उन्हें अपना खुद का बैस्ट वर्जन बनना है न कि बेमतलब की दौड़ या भेड़चाल करनी है जिस से उन को भविष्य में कुछ हासिल नहीं होगा.

अगर आप का सहयोगी रात की नींद न ले कर, लंच छोड़ कर अपना काम पूरा कर रहा है तो जरूरी नहीं कि आप भी ऐसा ही करें। समय पर भोजन करें, पर्याप्त नींद लें. आप के संस्थान को आप के काम से मतलब है तो आप अपने काम टाइमलाइन के हिसाब से करें, खुद की सेहत का भी बराबर खयाल करें.

भावनाओं पर निर्भरता : अपने गोल को न समझ कर भावनाओं के अनुसार फैसले लिए जाते हैं, जैसे आप का काम करने का मूड या पढ़ाई का मूड नहीं तो उसे लगातार टाला जा रहा है. आखिरकार वह काम तो आप को करना है लेकिन इमोशनल फैसले करने से बाद में वह आप के लिए बर्डन बन जाता है.

पैंडुलम लाइफस्टाइल के नुकसान

फिजिकल ऐंड मैंटल बर्नआउट : लगातार ज्यादा काम करने या बेवजह सुस्ती की वजह से शरीर थक जाता है और मन परेशान रहता है.

रिश्तों में दूरी : आप के अनप्रिडिक्टेबल बिहेवियर के चलते आप के पार्टनर, दोस्तों या सहयोगी से रिश्ते खराब हो सकते हैं.

तनाव और चिंता : अस्थिरता के कारण जीवन में तनाव बढ़ता है.

इनकंसिस्टेंसी : आप के जीवन में इनकंसिस्टेंसी के चलते आप को लौंग टर्म गोल्स को अचीव करने और हैल्दी आदतों को अपनाने में दिक्कत होती है.

पैंडुलम लाइफस्टाइल से कैसे बचें

बैलेंस जरूरी है : काम और आराम के बीच सही तालमेल बनाएं. औफिस का काम खत्म करने के बाद रोज 1 घंटे का समय खुद के लिए रखें.

छोटे लक्ष्य बनाएं : बड़े बदलाव लाने के बजाय धीरेधीरे आदतें बदलें. गोल्स रियलिस्टिक हों अचीवेबल हों, ये आप का संतुलित जीवन का पहला कदम है. नई आदत या काम को शुरू करना है और आप का मन नहीं हो तो शुरू में 10 मिनट उस काम को करें, धीरेधीरे काम के टाइम को बढ़ाएं. अगर वजन कम करना है, तो शुरुआत में रोज 15 मिनट वर्कआउट करें.

रूटीन पर टिके रहें : रोजमर्रा की जिंदगी में एक रूटीन तैयार करें और उसे फौलो करें। हर दिन तय समय पर सोने और जागने की आदत डालें.

अपनों से बात करें : दोस्तों और परिवार के साथ अपनी समस्याओं को शेयर करें। अगर तनाव में हैं, तो किसी करीबी से सलाह लें या डाक्टर के पास जाएं.

ध्यान और रिलैक्सेशन तकनीक अपनाएं : मानसिक शांति के लिए ध्यान, योग या गहरी सांस लेने का अभ्यास करें। यह आप को बर्डन न लगें इस के लिए आप शुरू में 10 मिनट मैडिटेशन करें और फिर धीरेधीरे टाइम बढ़ाएं.

पैंडुलम लाइफस्टाइल सुनने में काफी फैंसी नजर आती है लेकिन इस से बचना जरूरी है, क्योंकि यह हमारी सेहत, काम और रिश्तों पर बुरा असर डालती है. एक संतुलित और स्थिर जिंदगी जीने के लिए हमें छोटेछोटे कदम उठाने चाहिए. इस से न केवल हमारा जीवन बेहतर होगा, बल्कि हमें मानसिक शांति और खुशहाली भी मिलेगी.

Cheating : मैं दोस्त की बीवी से शादी करना चाहता हूं…

Cheating : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 22 साल का हूं. मेरा 25 साल की दोस्त की बीवी से 9 सालों से पति पत्नी जैसा ही संबंध है. मैं उस से शादी करना चाहता हूं, पर वह अपने परिवार को धोखा नहीं देना चाहती. हमारा एक बेटा भी है. मैं क्या करूं?

जवाब

दोस्त की पत्नी को पत्नी की तरह इस्तेमाल कर के आप ने खूब दोस्ती निभाई है. वह औरत आप से शादी कर के पति को धोखा नहीं देना चाहती, तो आप के साथ सो कर वह क्या कर रही है? बेटा आप का ही है, यह आप कैसे कह सकते हैं? अब शादी का नाटक करने की क्या जरूरत है? जिस दिन पकड़े गए, तो शामत आ जाएगी.

ये भी पढ़ें…

सैक्स जानकार कैसोनोवा और क्लियोपेट्रा

29 वर्षीय प्रिया तंदुरुस्त शरीर की आकर्षक युवती है. उस की शादी हुए 3 साल हो चुके हैं, लेकिन 3 साल में उसे एक भी रात वह यौनसुख प्राप्त नहीं हो पाया, जिस की हर युवती को चाह होती है. दूसरी ओर 28 वर्षीय कामकाजी रत्ना सिंह है जिस की शादी को 2 वर्ष हुए हैं. वह अपने पति की कामुकता से परेशान है. रत्ना थकीहारी अपने काम से आती है तो रात को पति कामवर्धक औषधियों का सेवन कर उस के साथ भी नएनए प्रयोग करता है. दोनों ही स्थितियों में किसी को भी सच्चा सुख नहीं मिलता, इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने यौन जीवन में संतुलन बनाएं. अगर किसी में यौन उत्तेजना सामान्य है तो उसे अतिरिक्त दवाओं का सेवन नहीं करना चाहिए. यदि किसी व्यक्ति की यौन उत्तेजना में कमी है तो वह निम्न लवफूड्स का प्रयोग कर वैवाहिक सुख का आनंद ले सकता है.

एफ्रोडाइस संज्ञा एक ऐसा द्रव्य है जो समुद्र से निकली विशाल घोंघा मछली एफ्रौडाइट से प्राप्त होता है. एफ्रोडाइट को कामुकता का प्रतीक माना जाता है. इस के द्रव्य को एफ्रोडाइस कहते हैं.

एफ्रोडाइस, यौनशक्तिवर्द्धक द्रव्य है जिस से स्त्रीपुरुष में यौनशक्ति या यौन अभिरुचि उत्पन्न होती है.

प्राकृतिक रूप से हम ऐसे कुछ खाद्य पदार्थों से पहले ही परिचित हैं, जो यौन क्षमता बढ़ाते हैं, जिन में ऐसे फल व सब्जियां प्रमुख हैं जिन का आकार स्त्री व पुरुष के गुप्तांगों से मिलताजुलता है. इन फल व सब्जियों के अंदर कुछ ऐसे गुण छिपे होते हैं जो मानव की यौन क्षमता को बढ़ाने में कारगर हैं. ये सभी फल पुरुष की कामुकता से जुड़े हैं, जबकि स्त्री की कामुकता बढ़ाने के लिए चैरी, खजूर, अंजीर, खास प्रकार की मछली और सीप जैसे खाद्य पदार्थ प्रमुख हैं.

केला एक ऐसा फल है, जिस में खनिज द्रव्य और ब्रोमेलिन प्रचुर में उपलब्ध है, जो पुरुष क्षमता को बढ़ाता है और यह फल सर्वसुलभ और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. सस्ता होने के कारण इस का प्रयोग आम लोग भी आसानी से कर सकते हैं.

प्राचीन यूनान में जब अंजीर की फसल की कटाई शुरू होती थी तो रीतिरिवाज के अनुसार रतिक्रीड़ा की जाती थी. क्लियोपेट्रा को भी अंजीर बहुत पसंद थे जिन्हें वह चाव से खाती थी. सब फलों में प्राचीनतम माने गए फल द्राक्ष का संबंध भी कामोत्तेजक गतिविधि से जोड़ा जाता है. वैसे द्राक्ष का फल काफी उत्तेजक है और स्वादिष्ठ होता है.

19वीं शाताब्दी में फ्रांस में सुहागरात से पहले दूल्हे को जो भोजन दिया जाता था उस में शतावरी को विशेष स्थान दिया जाता था, जबकि काफी समय पहले एशिया के मध्यपूर्व देशों के सुलतान व अमीर उमरा गाजर को स्त्रियों की उत्तेजना बढ़ाने में सहायक मानते थे.

कुछ व्यंजनों को भी उत्तेजना बढ़ाने में सहायक माना गया है. उदाहरणस्वरूप चौकलेट. चौकलेट को परंपरागत रूप से उत्तेजक माना गया है. इसलिए सदियों पहले ईसाई पादरियों और ननों को चौकलेट खाने की सख्त मनाही थी. कच्चे घोंघों में प्रचुर मात्रा में जस्ता होता है जिस के सेवन से लंबे समय तक संभोगरत रहने की शक्ति बढ़ सकती है. भूमिगत गुच्छी यानी ट्रफल भी ऐसा ही महंगा व सुगंधित पदार्थ है.

शैंपेन को भी लंबे अरसे से प्यार का पेय माना गया है, जो शादी के अवसर पर या विजयोत्सव मनाते समय भी ऐयाश लोगों में पानी की तरह बहाया जाता है. कहा जाता है कि व्हिस्की पिलाने से औरत बहस करना बंद करती है. बियर से उसे यौन आनंद मिलता है. रम से वह सहयोग करने लगती है. शैंपेन से होश खो बैठने पर कामुक हो उठती है. केवियर एक ऐसी मछली है जो मनुष्य के शरीर में उत्तेजना बढ़ाती है. यद्यपि निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि ऐसा क्यों माना जाता है.

साधारणातया हम कह सकते हैं कि अधिक शक्ति बढ़ाने वाले पदार्थ दुर्लभ हैं और इन का मूल्य भी काफी है, इसी कारण लोग अधिक आनंद लेने के लिए इन के दीवाने हैं. डामैना को चाय की तरह उबाल कर नियमित एक कप पीने से हारमोंस नियंत्रण में रहते हैं और इस से शारीरिक शक्ति भी प्राप्त होती है. एक प्रकार के लालमिर्च के मसाले से एंडोर्फोंस हारमोंस भी बढ़ाता है. गरम सूप या सौस पर मिर्च छिड़क कर प्रतिदिन खाने से भी लाभ होता है. अगर युवक जिनसेंग का प्रयोग करते हैं तो कामोत्तेजना अधिक होती है. अगर युवतियां इस का प्रयोग करती हैं तो उन की भी पिपासा बढ़ जाती है. जिनसेंग प्रसिद्ध चीनी द्रव्य है जो अश्वगंधा जैसा प्रतीत होता है.

भारत और मध्यपूर्व एशियाई देशों में लहसुन जोकि एक अच्छा विषाणुनाशक भी है, सदियों से युवकों की उत्तेजना बढ़ाने के लिए लोकप्रिय है. इस की अप्रिय दुर्गंध से बचाव के लिए खाने के बाद लौंग या छोटी इलायची का प्रयोग कर सकते हैं. प्याज और शहद का मिश्रण भी उपयोगी है. अदरक, लाल रास्फरी के पत्ते और गुड़हल या जाबा कुसुम कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए काफी प्रचलित रहे हैं.

शहद से भी यह प्रकट होता है कि इस में भी कामवर्धक गुण हैं, लेकिन ध्यान रहे कि शहद शुद्ध हो. कुछ समाज आज भी  नवविवाहितों को शहद का पान कराते हैं. फिर चांदनी रात हो आशा और अरमानों की अंगड़ाइयां लेती हुई नववधु हो, तत्पश्चात लज्जा और मर्यादा का आवरण धीरेधीरे हट रहा हो और फिर काम और रति का युद्ध शुरू हो, कैसी रोमांटिक कल्पना है? यह भी बता दें कि शहद में विटामिन  ‘बी’ और एमिनो एसिड प्रचुर मात्रा में होने के कारण यह प्राकृतिक रूप से कामोत्तेजक सिद्ध हुआ है.

मिस्र में हड्डियों का सूप यानी पाया का भी काफी चलन है. हलाल की गई भेड़ की टांग की हडिड्यों के साथ ताजा कटी प्याज, लहसुन, पुदीना, लालमिर्च आदि को एकसाथ डाल कर 2 घंटे तक मिश्रण कर जो लुगदी तैयार होती है उस का भक्षण कर न जाने कितने मध्य एशियाई तथा मिस्रवासियों ने महिलाओं पर जुल्म ढाए हैं.

कामसूत्र में नीले सूखे कमल का चूर्ण, घी और शहद एकसाथ मिला कर खाने को कहा गया है, जिस से पुरुषों में खोई हुई शक्ति दोबारा लौट आती है. इसी प्रकार भेड़ा या बकरे के अंडकोश को उबाल कर चीनी डाल कर जो पेय बनता है, इसे पीने से भी अधिक शक्ति मिलती है.

इसी तरह इत्र या सुंगधित तेल की मालिश भी सुख के लिए लाभदायक है. ग्रीष्मऋतु की एक गरम शाम को ठंडी हवा का झोंका और प्रिया का उन्मुक्त्त स्पर्श इस से अधिक उत्तेजक और क्या हो सकता है.

एक कथानुसार साम्राज्ञी नूरजहां को पानी में गुलाब की पंखडि़या मिला कर स्नान करना पसंद था. एक दिन नहाने में देर हो गई तो उस ने देखा कि पानी के ऊपर एक तरल पदार्थ तैर रहा है. वह समझ गई कि यह गुलाब की पंखडि़यों से निकला इत्र है जो दालचीनी, तेल की तरह कामोत्तेजक है. इसी तरह वनिला, चमेली, धनिया और चंदन का लेप या इत्र लगाने से भी स्त्रीपुरुष उन्मुक्त होते हैं.

शराब और नशीले द्रव्यों से कुछ हद तक कामोत्तेजना बढ़ती है, लेकिन इन का नुकसान अधिक है. ये कामोत्तेजना द्रव्य नहीं हैं. इन की छोटी खुराक शुरू की शर्म व संकोच दूर करने में सहायक होती है, लेकिन यदि कोई स्त्री या पुरुष इन का अधिक मात्रा में लंबे समय तक सेवन करता है तो आगे चल कर युवक ढीला हो जाता है तथा युवती में चरमोत्कर्ष के आनंद को ले कर कुछ समस्याएं पैदा हो सकती हैं, क्योंकि इन से मस्तिष्क प्रभावित होता है.

इसी प्रकार मारीलुआना व वियाग्रा जैसे पदार्थ भी अस्थायीरूप से यौनसुख की इच्छा या संभोग सुख थोड़ाबहुत बढ़ाते हैं. पर बेहोशी की सी हालत में. आप को  वार्निंग दी जाती है कि कृपया ड्रग्स से दूर रहें, क्योंकि अगर एक बार आप इन के आदी हो गए तो इन से पीछा छुड़ाना मुश्किल है. वियाग्रा जैसी दवाएं डाक्टर के परामर्श के बाद ही प्रयोग करें. युवतियों में भी हारमोंस की कमी को डाक्टर की सहायता से पूरी करें.

फिर आखिरी सवाल यही है कि क्या सचमुच ऐसी दवा यौनशक्ति में वृद्धि करती है. ऐसी दवा केवल तब ही लाभप्रद होती है, जब आदमी का मन भी कामवासना की तृप्ति करने में सहयोग करे.

औषधि निर्माता व विक्रेता केवल जरूरतमंदों का मात्र आर्थिक शोषण करते हैं. अगर इंसान अपने खानपान व व्यायाम पर विशेष ध्यान देते हुए प्रकृति के नियमों का पालन करे तो उस की यौन क्षमता स्वत: ही बनी रहेगी.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बिग बौस 18 फेम Shilpa Shirodkar को ‘खतरों के खिलाड़ी’ में नहीं है कोई दिलचस्पी

Shilpa Shirodkar : 90s के दशक की अभिनेत्री शिल्पा शिरोडकर जिन्होंने गोविंद से लेकर अमिताभ बच्चन सुनील शेट्टी आदि कई ऐक्टरों के साथ काम किया है. उन दिनों शिल्पा शिरोडकर ग्लैमरस और एक्सपोज करने में माहिर हीरोइन के रूप में जानी जाती थी. लेकिन बाद में शिल्पा शिरोडकर ने शादी कर ली और अमेरिका में सेटल हो गई थी. काफी अरसे बाद शिल्पा बिग बौस 18 में बतौर प्रतियोगी नजर आई, और बिग बौस पर आकर उन्होंने अपनी बड़ी उम्र का फायदा उठाते हुए मां वाला कार्ड खेला और शो के दो प्रतियोगी करण और विवियन को अपना मोहरा बना कर शो में टिके रहने का के जुगाड़ चलाया.

बहरहाल शो खत्म होने के बाद शिल्पा शिरोडकर सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं और मीडिया के सामने भी खुलकर बात करती हुई नजर आती है. इसी दौरान एक पत्रकार ने जब शिल्पा शिरोडकर से खतरों के खिलाड़ी में जाने की बात की तो शिल्पा शिरोडकर ने उस पत्रकार को घूरते हुए शैतानी मुस्कुराहट के साथ सवाल किया क्या मैं आपको खतरों के खिलाड़ी में जाने लायक लगती हूं?

शिल्पा शिरोडकर ने साफ लफ्जों में कहा मुझे खतरों के खिलाड़ी में जाने में कोई दिलचस्पी नहीं है. क्योंकि मैं ना तो स्टंट कर सकती हूं, और ना ही कीड़े मकोड़े को झेल सकती हूं. इसलिए मेरा खतरों के खिलाड़ी में जाने का सवाल ही नहीं उठता. गौरतलब है ज्यादातर बिग बौस के प्रतियोगी और ज्यादा पैसा और नाम, कमाने के चक्कर में बिग बौस के बाद खतरों के खिलाड़ी में भाग लेने चले जाते हैं. जब कि शिल्पा शिरोडकर ने खतरों के खिलाड़ी शो में जाने से साफ इनकार कर दिया है.

Kavita Kaushik करती थी मुस्लिम ऐक्टर से प्यार, पिता की वजह से हुआ ब्रेकअप

Kavita Kaushik : चंद्रमुखी चौटाला के किरदार में लोकप्रियता हासिल करने वाली कविता कौशिक अपने दबंग अंदाज के रूप में अच्छी खासी पहचान रखती हैं. सब टीवी चैनल के धारावाहिक एफआईआर में हरियाणवी पुलिस इंस्पेक्टर चंद्रमुखी चौटाला के किरदार में कविता कौशिक ने बहुत सारी लोकप्रियता बटोरी.

अपने अभी तक के अभिनय करियर में बालाजी टेली फिल्म के कुटुंब सीरियल से शुरुआत करने वाली कविता कौशिक ने घर घर की कहानी, कुमकुम, सीआईडी आदि प्रसिद्ध सीरियलों में काम करके टीवी की दुनिया में अपना एक अलग नाम बनाया. लेकिन अगर पर्सनल लाइफ की बात करें तो प्यार मोहब्बत के मामले में कविता कौशिक पूरी तरह असफल रही, कविता कौशिक ने एक इंटरव्यू में बताया कि वह 5 साल तक किसी के प्यार में थी जिनका नाम नवाब शाह था और वह धर्म से मुस्लिम थे, जो कि मेरे पिता को जरा भी पसंद नहीं था, मेरे पिता नहीं चाहते थे कि मैं मुस्लिम धर्म में शादी करूं.

मेरे पिता को शादी से सख्त ऐतराज था. गौरतलब है चंद्रमुखी चौटाला उर्फ कविता कौशिक ने पांच सालों तक नवाब शाह को डेट किया था. लेकिन 5 सालों बाद कविता का नवाब के साथ ब्रेकअप हो गया. ब्रेकअप की वजह कविता कौशिक के पिता थे जो इन दोनों की शादी नहीं चाहते थे. कविता के अनुसार क्योंकि मैं अपने पिता से बहुत प्यार करती हूं और मैं उनको दुखी नहीं कर सकती. इसलिए मैंने यह रिश्ता खत्म करना ही सही समझा.

पर्सनली कविता को मुस्लिम धर्म से कोई आपत्ति नहीं है मुझे एक इंसान से प्यार था जो मेरे दिल के करीब था वह कौनसी जाति का है इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था. लेकिन मैं अपने पिता के खिलाफ भी नहीं जा सकती थी इसलिए मैंने 2017 में रोहित विश्वास से शादी कर ली थी .

Baidyanath Mahabhringraj Tel : सर्दियों में आपके बालों का दोस्त

Baidyanath Mahabhringraj Tel : सर्दियां एक लाजवाब मौसम होने के साथ-साथ हमारे बालों के लिए कई समस्याएं भी लेकर आती हैं. बालों का झड़ना, dandruff, और बालों का कमजोर होना – ये सब सर्दियों में आम समस्या बन जाती हैं. और जब बात आती है बालों की देखभाल की, तो बैद्यनाथ महाभृंगराज तेल एक ऐतिहासिक आयुर्वेदिक उपचार है जो इन सभी समस्याओं का समाधान करता है.

सर्दियों में बालों की समस्या

सर्दियों के मौसम में ठंडी और सूखी हवा बालों को नमी से वंचित कर देती है, जिससे बालों में रूखापन आ जाता है. इस कारण बालों का झड़ना, dandruff, और split ends जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं. इसके अलावा, सर्दी के मौसम में शरीर का stress भी बढ़ जाता है, जो बालों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है. इन सभी कारणों से बालों को सही पोषण देना और उनकी सही देखभाल करना बहुत जरूरी हो जाता है.

बैद्यनाथ महाभृंगराज तेल क्यों खास है?

क्योंकि यह 15  आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का अद्भुत मिश्रण है जिसमें  मुख्यतः;

  1. तिलका तेल– बालों के विकास, रूसी, समय से पहले बालों के सफेद होने में मदद करता है
  2. भृंगराज– बालोंके स्वास्थ्य के साथसाथ यह सिरदर्द और मांसपेशियों की जकड़न को ठीक करने में भी मदद करता है.
  3. चंदनलाल (Red Sandalwood)– खोपड़ी को पोषण देने में मदद करता है, Hair follicles को मजबूत करता है, संक्रमण और झड़ने से रोकता है.
  4. हल्दी– Blood circulationमें सुधार करती है, रूसी में मदद करती है, खोपड़ी के स्वास्थ्य में सुधार करती है और इसमें antioxidants होते हैं.
  5. मुलेठी– चमकलाने, बालों का गिरना कम करने और रूसी कम करने में मदद करती है.
  6. कमलफूल– यह बालों की मजबूती में सुधार करने में मदद करता है, बालों को shiny और चमकदार बनाता है, खोपड़ी को पोषण देने में मदद करता है.

महाभृंगराज तेल के फायदे 

  1. बालों की वृद्धि को बढ़ावा देता है: यह तेल scalp पर blood flow को maintain करता है, जिससे बालों की growth को बढ़ावा मिलता है.
  2. बालों  का झड़ना कम करता है: महाभृंगराज तेल बालों की जड़ों को मजबूत करता है और सर्दी के मौसम में बढ़े हुए बालों के झड़ने को रोकता है.
  3. Dandruff से छुटकारा दिलाता है: इस तेल के moisturizing गुण dandruff की समस्या को कम करने में मदद करते हैं, जो सर्दियों में रूखी त्वचा और scalp के कारण बढ़ जाती है.
  4. बालों  को मजबूती और चमक देता है: नियमित उपयोग से महाभृंगराज तेल बालों को मजबूती और चमक देता है, जिससे बाल और भी स्वस्थ और खूबसूरत नजर आते हैं.
  5. तनावमुक्ति: इस तेल से सिर की हल्की मालिश तनाव को कम करने में मदद करती है, जिससे बालों की सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

बैद्यनाथ महाभृंगराज तेल का इस्तेमाल कैसे करें?

  1. तेल को हल्का गर्म करें: तेल को थोड़ा गरम करें ताकि यह scalp में अच्छी तरह से समा जाए और बालों के रोम को पोषण दे सके.
  2. सिर की हल्की मालिश करें: तेल को अपने scalp पर अच्छी तरह से मसाज करें. इससे blood flow बेहतर होगा और बालों की जड़ों को मजबूती मिलेगी.
  3. इसे कुछ समय के लिए छोड़ें: तेल को कम से कम 1-2 घंटे या रात भर के लिए छोड़ें, फिर हल्के shampoo से धो लें.

4.नियमित उपयोग करें: महाभृंगराज तेल का नियमित रूप से 2-3 बार उपयोग करने से बालों की सेहत में सुधार होगा और यह सर्दियों में भी स्वस्थ बने रहेंगे.

अंतिम विचार

महाभृंगराज तेल का उपयोग करके आप बालों का झड़ना, dandruff, और split ends से निजात पा सकते हैं, और अपने बालों को प्राकृतिक मजबूती और वृद्धि दे सकते हैं. यह आयुर्वेदिक तेल बालों की देखभाल के लिए एक बेहतरीन समाधान है, जो न केवल बालों को स्वस्थ बनाता है, बल्कि आपको मानसिक तनाव से भी राहत देता है. तो, इस सर्दी में महाभृंगराज तेल का उपयोग करें और अपने बालों को सुंदर और मजबूत बनाएं!

Short Social Story : विविध परंपरा

Short Social Story : नगरनिगम के विभिन्न विभागों में काम कर के रिटायर होने के बाद दीनदयाल आज 6 माह बाद आफिस में आए थे. उन के सिखाए सभी कर्मचारी अपनीअपनी जगहों पर थे. इसलिए सभी ने दीनदयाल का स्वागत किया. उन्होंने हर एक सीट पर 10-10 मिनट बैठ कर चायनाश्ता किया. सीट और काम का जायजा लिया और फिर घर आ कर निश्चिंत हो गए कि कभी उन का कोई काम नगरनिगम का होगा तो उस में कोई दिक्कत नहीं आएगी.

एक दिन दीनदयाल बैठे अखबार पढ़ रहे थे, तभी उन की पत्नी सावित्री ने कहा, ‘‘सुनते हो, अब जल्द बेटे रामदीन की शादी होने वाली है. नीचे तो बड़े बेटे का परिवार रह रहा है. ऐसा करो, छोटे के लिए ऊपर मकान बनवा दो.’’

दीनदयाल ने एक लंबी सांस ले कर सावित्री से कहा, ‘‘अरे, चिंता काहे को करती हो, अपने सिखाएपढ़ाए गुरगे नगर निगम में हैं…हमारे लिए परेशानी क्या आएगी. बस, हाथोंहाथ काम हो जाएगा. वे सब ठेकेदार, लेबर जिन के काम मैं ने किए हैं, जल्दी ही हमारा पूरा काम कर देंगे.’’

‘‘देखा, सोचने और काम होने में बहुत अंतर है,’’ सावित्री बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि आज ही आप नगर निवेशक शर्माजी से बात कर के नक्शा बनवा लीजिए और पास करवा लीजिए. इस बीच सामान भी खरीदते जाइए. देखिए, दिनोंदिन कीमतें बढ़ती ही जा रही हैं.’’

‘‘सावित्री, तुम्हारी जल्दबाजी करने की आदत अभी भी गई नहीं है,’’ दीनदयाल बोले, ‘‘अब देखो न, कल ही तो मैं आफिस गया था. सब ने कितना स्वागत किया, अब इस के बाद भी तुम शंका कर रही हो. अरे, सब हो जाएगा, मैं ने भी कोई कसर थोड़ी न छोड़ी थी. आयुक्त से ले कर चपरासी तक सब मुझ से खुश थे. अरे, उन सभी का हिस्सा जो मैं बंटवाता था. इस तरह सब को कस कर रखा था कि बिना लेनदेन के किसी का काम होता ही नहीं था और जब पैसा आता था तो बंटता भी था. उस में अपना हिस्सा रख कर मैं सब को बंटवाता था.’’

दीनदयाल की बातों से सावित्री खुश हो गई. उसे  लगा कि उस के पति सही कह रहे हैं. तभी तो दीनदयाल की रिटायरमेंट पार्टी में आयुक्त, इंजीनियर से ले कर चपरासी तक शामिल हुए थे और एक जुलूस के साथ फूलमालाओं से लाद कर उन्हें घर छोड़ कर गए थे.

दीनदयाल ने सोचा, एकदम ऊपर स्तर पर जाने के बजाय नीचे स्तर से काम करवा लेना चाहिए. इसलिए उन्होंने नक्शा बनवाने का काम बाहर से करवाया और उसे पास करवाने के लिए सीधे नक्शा विभाग में काम करने वाले हरीशंकर के पास गए.

हरीशंकर ने पहले तो दीनदयालजी के पैर छू कर उन का स्वागत किया, लेकिन जब उसे मालूम हुआ कि उन के गुरु अपना नक्शा पास करवाने आए हैं तब उस के व्यवहार में अंतर आ गया. एक निगाह हरीशंकर ने नक्शे पर डाली फिर उसे लापरवाही से दराज में डालते हुए बोला, ‘‘ठीक है सर, मैं समय मिलते ही देख लूंगा,. ऐसा है कि कल मैं छुट्टी पर रहूंगा. इस के बाद दशहरा और दीवाली त्योहार पर दूसरे लोग छुट्टी पर चले जाते हैं. आप ऐसा कीजिए, 2 माह बाद आइए.’’

दीनदयाल उस की मेज के पास खडे़ रहे और वह दूसरे लोगों से नक्शा पास करवाने पर पैसे के लेनदेन की बात करने लगा. 5 मिनट वहां खड़ा रहने के बाद दीनदयाल वापस लौट आए. उन्होंने सोचा नक्शा तो पास हो ही जाएगा. चलो, अब बाकी लोगों को टटोला जाए. इसलिए वह टेंडर विभाग में गए और उन ठेकेदारों के नाम लेने चाहे जो काम कर रहे थे या जिन्हें टेंडर मिलने वाले थे.

वहां काम करने वाले रमेश ने कहा, ‘‘सर, आजकल यहां बहुत सख्ती हो गई है और गोपनीयता बरती जा रही है, इसलिए उन के नाम तो नहीं मिल पाएंगे लेकिन यह जो ठेकेदार करीम मियां खडे़ हैं, इन से आप बात कर लीजिए.’’

रमेश ने करीम को आंख मार कर इशारा कर दिया और करीम मियां ने दीनदयाल के काम को सुन कर दोगुना एस्टीमेट बता दिया.

आखिर थकहार कर दीनदयालजी घर लौट आए और टेलीविजन देखने लगे. उन की पत्नी सावित्री ने जब काम के बारे में पूछा तो गिरे मन से बोले, ‘‘अरे, ऐसी जल्दी भी क्या है, सब हो जाएगा.’’

अब दीनदयाल का मुख्य उद्देश्य नक्शा पास कराना था. वह यह भी जानते थे कि यदि एक बार नीचे से बात बिगड़ जाए तो ऊपर वाले उसे और भी उलझा देते हैं. यही सब करतेकराते उन की पूरी नौकरी बीती थी. इसलिए 2 महीने इंतजार करने के बाद वह फिर हरीशंकर के पास गए. अब की बार थोडे़ रूखेपन से हरीशंकर बोला, ‘‘सर, काम बहुत ज्यादा था, इसलिए आप का नक्शा तो मैं देख ही नहीं पाया हूं. एकदो बार सहायक इंजीनियर शर्माजी के पास ले गया था, लेकिन उन्हें भी समय नहीं मिल पाया. अब आप ऐसा करना, 15 दिन बाद आना, तब तक मैं कुछ न कुछ तो कर ही लूंगा, वैसे सर आप तो जानते ही हैं, आप ले आना, काम कर दूंगा.’’

दीनदयाल ने सोचा कि बच्चे हैं. पहले भी अकसर वह इन्हें चायसमोसे खिलापिला दिया करते थे. इसलिए अगली बार जब आए तो एक पैकेट में गरमागरम समोसे ले कर आए और हरीशंकर के सामने रख दिए.

हरीशंकर ने बाकी लोगों को भी बुलाया और सब ने समोसे खाए. इस के बाद हरीशंकर बोला, ‘‘सर, मैं ने फाइल तो बना ली है लेकिन शर्माजी के पास अभी समय नहीं है. वह पहले आप के पुराने मकान का निरीक्षण भी करेंगे और जब रिपोर्ट देंगे तब मैं फाइल आगे बढ़ा दूंगा. ऐसा करिए, आप 1 माह बाद आना.’’

हारेथके दीनदयाल फिर घर आ कर लेट गए. सावित्री के पूछने पर वह उखड़ कर बोले, ‘‘देखो, इन की हिम्मत, मेरे से ही सीखा और मुझे ही सिखा रहे हैं, वह नक्शा विभाग का हरीशंकर, जिसे मैं ने उंगली पकड़ कर चलाया था, 4 महीने से मुझे झुला रहा है. अरे, जब विभाग में आया था तब उस के मुंह से मक्खी नहीं उड़ती थी और आज मेरी बदौलत वह लखपति हो गया है और मुझे ही…’’

सावित्री ने कहा, ‘‘देखोजी, आजकल ‘बाप बड़ा न भइया, सब से बड़ा रुपइया,’ और जो परंपराएं आप ने विभाग मेें डाली हैं, वही तो वे भी आगे बढ़ा रहे हैं.’’

परंपरा की याद आते ही दीनदयाल चिंता मुक्त हो गए. अगले दिन 5000 रुपए की एक गड्डी ले कर वह हरीशंकर के पास गए और उस की दराज में चुपचाप रख दी.

हरीशंकर ने खुश हो कर दीनदयाल की फाइल निकाली और चपरासी से कहा, ‘‘अरे, सर के लिए चायसमोसे ले आओ.’’

फिर दीनदयाल से वह बोला, ‘‘सर, कल आप को पास किया हुआ नक्शा मिल जाएगा.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें