Love Story in Hindi: हर रोज की तरह सविता सुबहसवेरे स्कूल जाने के लिए उठ गई, क्योंकि उस की 12वीं कक्षा की परीक्षाएं चल रही थीं. उस का सैंटर दूसरे स्कूल में पड़ा था, जो काफी दूर था. वह टूंडला में एक राजकीय गर्ल्स इंटर कालेज में पढ़ती थी.
सुबह 7 बजे के आसपास कमरे में तैयार हो रही सविता चिल्लाई, ‘‘मां, मेरा लंच तैयार हो गया क्या?’’
मां ने भी किचन में से ही जवाब दिया, ‘‘नहीं, अभी तो तैयार नहीं हुआ है. थोड़ा रुक, मैं तैयार किए देती हूं.’’
‘‘मां, मैं लेट हो रही हूं. बस स्टैंड पर मेरी सहेलियां मेरा इंतजार कर रही होती हैं. लंच तैयार करने के चक्कर में और भी देरी हो जाएगी,’’ झल्लाहट में सविता कह रही थी.
मां भी गुस्सा होते हुए बोलीं, ‘‘एक तो समय पर उठती नहीं है, फिर जल्दीजल्दी तैयार होती है.’’
सविता अपने को शांत करते हुए बोली, ‘‘कोई बात नहीं मां, तुम परेशान न हो. मैं वहीं कुछ खा लूंगी. आप जल्दी से चायनाश्ता करा दो.’’
मां ने जल्दीजल्दी चाय बनाई और नाश्ते में 2-3 टोस्ट दे दिए. जल्दीजल्दी मां ने पर्स से पैसे निकाल कर सविता को दिए और कहा, ‘‘वहीं कुछ खापी लेना.’’
‘‘ठीक है मां,’’ सविता मम्मी की ओर देखते हुए बोली.
स्कूल जाते समय जल्दीजल्दी सविता मां के गले लगी और मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा मां, मैं चलती हूं.’’
मां भी गुस्सा छिपाते हुए बोलीं, ‘‘अरे रुक, मुंह तो मीठा करती जा. और सुन, पेपर अच्छे से करना.’’
‘‘जी,’’ कह कर सविता घर से दौड़ लगाती निकल गई और मां घर के कामों में बिजी हो गई.
17-18 साल की सविता अपनेआप को किसी परी से कम नहीं समझती. गोरा रंग, तीखे नैननक्श, चंचल स्वभाव सहज ही हर किसी को अपनी ओर लुभाता. जब भी वह बाहर निकलती, मनचले फब्तियां कसते. वह इन को सबक सिखाना चाहती, पर फिर कुछ सोच कर चुप हो जाती.
12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा देने के लिए उसे शहर के दूसरे स्कूल में जाना पड़ता था. दूसरे स्कूल में परीक्षा देना उसे थोड़ा अजीब लगा. फिर भी उसे अपने स्कूल से तो बेहतर ही लगा. टीचर का बरताव, स्कूल की मैंटेनेंस, बिल्डिंग की बनावट, गेट पर सुरक्षागार्ड का रहना वगैरह. गेट पर ही सभी छात्राओं की सघन चैकिंग होती. पर्स को गेट पर ही रखवा लिया जाता. यहां तक कि पैसों को भी अंदर ले जाने की मनाही थी.
टूंडला जैसे कसबे से फिरोजाबाद शहर जाना उसे ऐसा लगता कि जैसे वह आजाद हो गई हो. वह अपने बालों में क्लिप लगा कर, गले में सफेद रंग की माला, माथे पर छोटी सी बिंदी लगा कर स्कूल की ड्रेस में बहुत ही खूबसूरत लगती.
दौड़तीभागती वह बस स्टैंड पहुंची. वहां उस की सहेलियां उस का ही इंतजार कर रही थीं. उस के पहुंचते ही सभी सहेलियां उस पर गुस्सा करने लगीं.
‘‘आज फिर लेट हो गई तू. कल से हम तेरा इंतजार नहीं करेंगे, अभीअभी दूसरी बस भी निकल गई,’’ सहेली सुजाता गुस्से से बोल रही थी.
‘‘सौरी सुजाता… पर, तुम चिंता न करो. हम समय पर स्कूल पहुंचेंगे,’’ सविता ने बस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘लो, बस भी आ गई. जल्दी बैठो सभी.’’
बस के रुकते ही सभी सहेलियां बस में चढ़ गईं. साथ में दूसरी सवारी भी चढ़ीं. बस में बैठी सविता अपनी सहेलियों से कह रही थी, ‘‘तुम सब परेशान न हों. हम आटो से स्कूल चलेंगे और समय पर पहुंचेंगे. भाड़े का खर्चा मेरी तरफ से…’’
यह सुन कर सभी सहेलियों के मुरझाए चेहरे खिल उठे. बस में बैठी उस की सहेलियां आपस में तेजतेज आवाज में बातें करती जा रही थीं. सभी सवारियों का ध्यान उन की ओर ही था.
बस फिरोजाबाद बस स्टैंड पर पहुंची. सभी यात्री उतरे. सविता ने अपनी एक सहेली मीता का हाथ खींचा, ‘‘चल, आटो ले कर आते हैं.’’
सविता आटो ले आई और सभी सहेलियां उस आटो में सवार हो समय पर स्कूल पहुंच गईं.
स्कूल पहुंच कर सब से पहले रूम नंबर पता किया, क्योंकि हर दिन रूम बदल जाते थे. वहीं सीटों की भी अदलाबदली होती थी. लिस्ट देखी तो रूम नंबर 4 में सविता को पेपर देना था और बाकी सहेलियों को रूम नंबर 5 और 7 में.
‘‘ओह, मेरा रोल नंबर तुम सब के साथ नहीं आया,’’ सविता निराश होते हुए बोली.
‘‘कोई बात नहीं. जब पेपर हो जाए तो गेट के पास हम सब मिलते हैं. वहीं से हम सब साथ चल कर बस पकड़ेंगे,’’ एक सहेली नेहा कह रही थी.
‘‘ठीक है, हम सब अब अपनेअपने रूम की तरफ चलते हैं,’’ सविता बोली.
सभी सहेलियां पेपर देने के लिए अपनेअपने रूम नंबर की तरफ गईं. सविता के आगे वाली सीट पर रोहित बैठा था, जो बारबार पीछे मुड़ कर उसे देख रहा था.
पेपर दे रही सविता का अचानक पैन रुक गया तो वह घबरा कर रोने लगी. परीक्षक ने सविता के रोने की वजह पूछी तो उस ने सच बताया.
सच जान कर आगे की सीट पर बैठे लड़के ने अपना पैन उसे दे दिया. पेपर के आखिर में जब सविता ने उसे उस का पैन लौटाया, तब बातचीत के दौरान पता चला कि वह तो उसी के महल्ले में रहता है और उस ने अपना नाम रोहित बताया.
अंतिम पेपर देने के लिए सविता स्कूल गई तो स्कूल के बाहर नोटिस लगा था कि बोर्ड की सभी परीक्षाएं कैंसिल हो गई हैं. वहां अफरातफरी का सा माहौल था. कोई कुछ भी बताने को राजी न था. गेट पर ताला लगा था. सुरक्षागार्ड भी नदारद था.
सविता हताश होते हुए बस पकड़ने के लिए कुछ ही कदम चली होगी, तभी उसे उस की एक सहेली निशा मिल गई. उस ने सहीसही बताया कि पूरे देश में कोरोना वायरस फैल जाने के चलते ऐसा हुआ है. इस वजह से लौकडाउन भी लगाया गया है. तू जल्दी से घर जा और अपना खयाल रख. इधरउधर मत घूमना.
ऐसा कह कर सहेली निशा तो अपने रास्ते चली गई, पर उस का मन अभी भी आशंकित था. वह बस पकड़ने के लिए पैदल ही जा रही थी, तभी रास्ते में रोहित मिल गया, जो पेपर देने जा रहा था.
सविता को देखते ही उस का चेहरा खिल उठा. सविता भी उसे देख मुसकराई. रोहित ने लौटने की वजह पूछी तो सविता बोली, ‘‘रोहित, तुम्हें पता नहीं कि सभी पेपर कैंसिल हो गए हैं. आज पेपर नहीं होगा.’’
‘‘अच्छा… मुझे तो इस बारे में बिलकुल भी नहीं पता था. मैं तो पेपर देने जा रहा था. तुम्हें लौटते देखा तो सोचा कि आखिर क्या वजह हो गई कि तुम इस समय वापस लौट रही हो.’’
‘‘बस, यही बात हो गई है. अब पता नहीं, कब पेपर होगा?’’ सविता ने कहा.
‘‘जब होगा तब अखबारों में आ जाएगा. तुम चिंता मत करो,’’ रोहित उसे समझाते हुए बोला.
‘‘इस पेपर की मैं ने खास तैयारी की थी. और आज तो समय से पहले भी आ गई थी. अब क्या किया जा सकता है,’’ निराश होते हुए सविता बोली.
बातचीत के दौरान उस ने सविता को एक खत दिया. सविता पूछ बैठी, ‘‘क्या है यह?’’
‘‘घर जा कर देख लेना,’’ रोहित मुस्कान बिखेर कर बोला.
सविता ने नजर बचा कर वह खत बैग में डाला और चल पड़ी घर की ओर.
घर पहुंचते ही मां ने हैरान होते हुए सविता से पूछा, ‘‘अरे सविता, आज बड़ी जल्दी आ गई. क्या बात है… कुछ हुआ क्या…?
‘‘अच्छा, पहले यह बता कि तेरा पेपर कैसा हुआ?’’ मां ने उतावलेपन से पूछा.
‘‘मम्मी, आज का तो पेपर ही कैंसिल हो गया. कइयों के तो और भी पेपर छूट गए हैं. मेरा तो यह आखिरी था,’’ निराश भरे लहजे में सविता बोली.
‘‘क्यों… ऐसा कैसे?’’ मम्मी ने हैरान होते हुए पूछा.
‘‘क्योंकि मम्मी, कोरोना महामारी पूरे देश में फेल गई है. इस वजह से लौकडाउन लगा दिया गया है. आज तो मैं जैसेतैसे आ गई, पर अब आने वाले दिनों में और सख्ती बरती जाएगी. ऐसा मुझे एक सहेली ने बताया है,’’ सविता निराश भरे लहजे में मां को बता रही थी.
‘‘अच्छा…’’ यह सुन कर मां का मुंह खुला का खुला रह गया.
खाना खा कर सविता अपने कमरे में गई और रोहित का दिया खत पढ़ने लगी. खत के अंत में उस ने अपना रोल नंबर व मोबाइल नंबर लिखा था.
रोहित का खत पढ़ने के बाद सविता ने अपनी अलमारी में उसे रख दिया.
शाम को सविता ने टैलीविजन देखा तो उस की आंखें हैरानी से फटी रह गईं, क्योंकि सरकार ने पहले तो भारत बंद के नाम पर एक दिन का लौकडाउन किया और शाम को 5 बजे तालीथाली बजवाई, फिर अगले दिन से ही एक हफ्ते का और फिर 19 दिन का, फिर दीवाली जैसा उत्सव रात 9 बजे 9 दीए जला कर घर की चौखट या छत पर लगाने की गुहार के बाद 21 दिन का और लौकडाउन बढ़ा दिया. अभी तो पता नहीं कि कितने दिनों का और लौकडाउन चलेगा.
एक ओर लौकडाउन का सख्ती से पालन हो रहा था, वहीं कोरोना भी अस्पतालों में अपने पैर पसार रहा था. कोरोना मरीजों की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. कोरोना को ले कर लोग डरे हुए थे, वहीं मास्क पहन कर निकलना अब उन की मजबूरी हो गया था.
यहां तक कि कोरोना के चलते सभी को घरों में कैद कर दिया गया था. जो जहां था, वहीं का हो कर रह गया. कइयों की तो रोजीरोटी छिन गई. स्कूल बंद, औफिस बंद, कारखाने बंद. बसें बंद, रेलें बंद, सड़कें सूनी. हर चौकचौराहों पर पुलिस मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभा रही थी. बाहर काम पर जाने वालों से पुलिस सख्ती के साथ पूछताछ कर रही थी.
वहीं कोरोना ज्यादा न फेले, इसलिए बुजुर्गों को खासतौर से हिदायत दी गई थी कि घर से बाहर बिलकुल न जाएं. साथ ही, यह भी कहा जा रहा था कि यदि जरूरी काम से बाहर जाना ही हो, तो चेहरे पर मास्क लगाएं, लोगों से 2 मीटर की दूरी रखें. जब भी बाहर से आएं तो नहाएं भी. साफसफाई का खास ध्यान रखें वगैरह. यह वायरस खासा खतरनाक है. बचाव ही बेहतर इलाज है. जितना बच सकें, बचें.
ऐसा माहौल देख सविता सोच में पड़ गई. इधर लौकडाउन बढ़ता जा रहा था, उधर सविता की चिंता बढ़ती जा रही थी कि अंतिम पेपर कैसे देना है, तभी ऐलान हुआ कि अब पेपर ही नहीं होगा. पिछले दिए गए पेपरोें की योग्यता के आधार पर नंबर दे दिए जाएंगे.
यह खबर सविता को राहत देने वाली लगी. अब सविता रिजल्ट के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी.
जुलाई के दूसरे सप्ताह में सविता का रिजल्ट आया, तो वह काफी अच्छे नंबरों से पास हो गई, वहीं रोहित का खत अलमारी में से निकाल उस का रोल नंबर कंप्यूटर की स्क्रीन पर देखा तो वह भी पास हो गया था.
रोहित का रिजल्ट जान कर सविता खुश हो गई. उस की सहेलियों में केवल मीता और सुनीता ही फेल थीं, बाकी तो सभी पास हो गई थीं.
उस खत को फिर से सविता ने पढ़ा. पढ़ते समय उस के चेहरे पर मुसकराहट थी. वहीं सविता को अपने पर गुमान हुआ कि इतनी सारी लड़कियों में रोहित को वह पसंद आई.
उसी दिन शाम को सविता ने अपने पिता से फोन मांगा.
‘‘पापा, जरा अपना फोन देना. बात करनी है,’’ सविता ने कहा, तो पापा ने जेब से निकाल कर फोन पकड़ा दिया.
फोन ले कर सविता छत पर आ गई.
‘‘हैलो रोहित, पास होने की बधाई. मुबारक हो,’’ सविता धीरे से बोली.
‘‘हैल्लो सविता…’’ रोहित की आवाज में जोशीलापन था.
“थैंक्स सविता.”
‘‘तुम ने कैसे पहचाना कि मेरा फोन है?’’ सविता ने मुस्कराते हुए पूछा.
‘‘मैं तुम्हारी आवाज पहचान नहीं सकता क्या… मैं तो तभी से फोन का इंतजार कर रहा था, जब तुम्हें खत दिया था.’’
‘‘मुझे डर लग रहा था,’’ सविता बोली.
‘‘अरे, सिर्फ दोस्ती करनी है. और तुम्हें डर लग रहा है? बोलो भी अब.’’
‘‘ठीक है, मुझे दोस्ती मंजूर है,’’ इतना कहते ही सविता ने फोन काट दिया.
रोहित की आवाज सुन सविता को अपने बदन में कुछ अजीब सी सिहरन महसूस हुई. उधर रोहित का भी ऐसा ही हाल था.
रात ठीक 11 बजे रोहित ने सविता के उसी नंबर पर फोन किया, तो दूसरी तरफ से सविता के पापा ने फोन उठा लिया. रोबीली आवाज सुन रोहित ने हड़बड़ाहट में फोन काट दिया.
‘‘शायद किसी से गलत नंबर लग गया होगा,’’ कह कर सविता के पापा सोने के लिए अपने कमरे में चले गए.
दूसरे दिन सविता अपनी सहेली मीता के यहां गई. वहां जा कर उस ने रोहित को फोन लगाया.
‘‘हैलो रोहित,’’ सविता मुसकराते हुए बोली.
‘‘अरे यार, कहां हो तुम? हद है, एक फोन भी नहीं किया? कहां थीं अब तक?’’ रोहित अपनी रौ में बोलता गया.
‘‘रोहित, मैं ने अभी फोन किया न,’’ सविता मुसकराते हुए बोली.
‘‘क्या खाक किया? 2 दिन पहले मैं ने तुम्हारे नंबर पर फोन किया था, शायद तुम्हारे पापा ने फोन उठाया था.’’
‘‘क्या…’’ सविता के मुंह से चीख सी निकल पड़ी.
‘‘कब किया तुम ने? वह तो मेरे पापा का फोन है. दूसरी बार मत करना, तुम मुझे मरवाओगे क्या…?’’
‘‘सविता, तुम मुझे अपना नंबर दो,’’ रोहित बोला.
‘‘मेरा नंबर… मेरे पास तो फोन ही नहीं है.’’
‘‘ओह,’’ रोहित के मुंह से निकला. कुछ सोच कर रोहित बोला, ‘‘क्या तुम आज मिल सकती हो?’’
सविता सोचने लगी, फिर बोली, ‘‘आज नहीं, कल आ सकती हूं.’’
‘‘ओके.’’
‘‘मैं सुबह 10 बजे मिल सकती हूं.’’
‘‘ठीक है.’’
अगले दिन सुबह सविता मम्मी से बोली, ‘‘मुझे कुछ काम है. पैसे चाहिए.’’
‘‘पापा से मांग ले. और सुन, घर जल्दी आ जाना.’’
‘‘ठीक है.’’
सविता बड़ी देर तक आईने के सामने खुद को निहारती रही. उस ने नीले रंग का सूट पहना, बालों में 2 चोटियां कीं, पैसों को पर्स में डाला और चल दी रोहित से मिलने.
अचानक एक गोलगप्पे की रेहड़ी देख कर उस का मन चाट खाने का हो आया. जैसे ही उस ने चाट का आर्डर दिया, चाट वाले ने घूम कर उसे देखा. चाट वाले को देखते ही वह हैरान रह गई, वह तो रोहित था यानी रोहित ही गोलगप्पे की रेहड़ी लगाता था.
अगले दिन सविता को उस की सहेली मीता के साथ आया देख वह खुश हो गया. उस की सहेली और सविता को वहां लगी बैंच पर बैठने का इशारा किया.
सविता और उस की सहेली मीता बैंच पर बैठ गईं. रोहित ने मुसकराते हुए दोनों से पूछा, ‘‘कोल्ड ड्रिंक लेंगी या चाय…’’
‘‘हम तो गोलगप्पे ही खा लेंगे,’’ सविता की सहेली मीता मुसकराते हुए बोली.
रोहित ने सविता और उस की सहेली मीता को पहले चाट बना कर दी. चाट की तारीफ करते हुए उस की सहेली मीता रोहित से बोली, ‘‘चाट तो अच्छी बना लेते हो.’’
यह सुन रोहित मुसकरा कर रह गया.
पहले तो सविता को यह जान कर बहुत बुरा लगा कि रोहित एक गोलगप्पे बेचने वाला है. पर बाद में लगा कि क्या बुरा है, वह अपने पैरों पर तो खड़ा है. प्यार सच में अंधा होता है.
अब तो सविता हर दूसरे दिन अपनी अलगअलग सहेलियों के साथ रोहित के पास आ धमकती और गोलगप्पे व चाट खा कर ही जाती.
रोहित भी सविता और उस की सहेलियों को बिना संकोच चाट व गोलगप्पे खिलाता.
एक दिन सविता अकेले ही चाट खाने पहुंच गई. उसे अकेले आया देख रोहित हैरान था.
रोहित ने उसे बैंच पर बैठने का इशारा किया. सविता बैंच पर निःसंकोच बैठ गई. रोहित ने पूछा, ‘‘और कैसी हो? आज अकेले…’
‘‘मैं ठीक हूं, तुम कैसे हो? आज मेरा मन नहीं माना तो अकेले ही चाट खाने चली आई.’’
‘‘अरे वाह, मेरी चाट इतनी अच्छी लगी कि अकेले ही आ गए,’’ रोहित ने मुसकराते हुए कहा, तो सविता शरमा सी गई.
रोहित ने सविता को चाट बना कर दी. चाट खा कर सविता जाने को हुई तो रोहित बोला, ‘‘तुम्हारे लिए कुछ है. बैग उठाओ और खोलो.’’
‘‘क्या है…?’’ सविता हैरानी से बोली.
‘‘खुद ही खोलो और देख लो,’’ रोहित मुसकराते हुए बोला.
सविता ने बैग खोला. उस में मोबाइल था.
‘‘मोबाइल… पर, मैं इसे अपने साथ नहीं रख सकती, मम्मीपापा गुस्सा करेंगे.’’
‘‘मम्मीपापा को बताने को कौन कह रहा है. छिपा कर रखना. मैं रात को फोन किया करूंगा.’’
सविता ने ज्यादा नानुकर नहीं की.
सविता बोली, ‘‘रोहित, मुझे अब घर जाना है.’’
‘‘जल्दी क्या है, थोड़ी देर बाद चली जाना.’’
‘‘नहीं, मम्मी गुस्सा करेंगी,’’ कह कर सविता जाने को उठी. रोहित उस का शरमाता चेहरा देखता रह गया. दोनों ने मुसकरा कर एकदूसरे से विदा ली.
अब दोनों के बीच हर रोज रात को फोन पर बात होती. घर में सविता के फोन की किसी को खबर नहीं हुई.
समय यों ही पंख लगा कर उड़ रहा था. लौकडाउन भी अब धीरेधीरे खुलने लगा था. बसें भी चलने लगी थीं. आटो भी चल रहे थे. मार्केट में लोगों की आवाजाही बढ़ गई थी. रोहित भी अब गोलगप्पे की रेहड़ी लगाने लगा था. उस ने सविता से बात कर एक दिन मिलने का प्लान बनाया.
सविता और रोहित दोनों एकदूसरे से गर्मजोशी से मिले. रोहित ने हिचकिचाते हुए सविता से पूछ लिया, ‘‘अगर मैं तुम से शादी करूं तो क्या तुम मुझे अपनाओगी?’’
यह सुन कर सविता रोहित के गले लग गई. यह भी कोई पूछने की बात है, मैं तो हूं ही तुम्हारी.
अब तो मेलमुलाकातों का सिलसिला चल निकला.
आखिर एक दिन रात में मौका देख सविता रोहित के साथ फरार हो गई.
सुबह जब घर वालों को इस घटना की जानकारी हुई तो उन्होंने सिर पीट लिया. एक अनजाने डर से खोजबीन करने लगे. साथ ही, एक तांत्रिक के पास भी गए तो तांत्रिक ने बताया कि रात में सविता को मुंह बांध कर 2 युवक अगवा कर उठा ले गए हैं.
इस के बाद सविता के पापा ने थाने में तहरीर दी. तहरीर मिलते ही पुलिस भी सक्रिय हो गई. वहीं दोपहर बाद सविता को भगा कर ले जाने वाले रोहित ने अपनी प्रेमिका सविता के घर फोन किया कि वह आगरा से झांसी जाने वाली ट्रेन पकड़ रहा है. आप जरा भी परेशान न हों.
इस पर घर वालों ने कहा कि जहां हो वहीं रुक जाओ. हम लोग तुम्हें लेने आ रहे हैं.
फोन पर ऐसा बोलते समय सविता के पापा के नथुने फड़फड़ाने लगे थे. वहीं उन की पूरे महल्ले में काफी बदनामी हो गई थी. इस बदनामी के चलते सविता के मम्मीपापा अंदर तक टूट गए थे. वे आगरा से सविता को ले तो आए, पर इस घटना को भूल नहीं पा रहे.
इधर काफी हिम्मत कर के रोहित ने सविता के मम्मीपापा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा.
फोन पर रोहित की आवाज सुनते ही सविता के पापा उस पर काफी बिगड़े, पर वह उन की जलीकटी बातें चुपचाप सुनता रहा.
अगले दिन फिर रोहित ने सविता से फोन पर बात की. सविता ने अपने घर वालों को काफी समझाया, बदनामी से बचने का एकमात्र उपाय सुझाया. तब बेमन से सविता के मम्मीपापा माने.
सविता के कहने पर रोहित वहां गया और माफी मांगते हुए अपनी बात रखी.
जब सविता और राहुल राजी थे ही, सविता के मम्मीपापा कुछ सोच कर राजी हो गए.
आखिर शादी की बात पक्की हो गई और तारीख भी तय हुई.
रोहित ने सविता से आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली, पर बदनामी के चलते अब वे कहीं आजा नहीं सकते थे. लोग उन पर ताने मारते, यारदोस्त फब्तियां कसते, फिर भी वे दोनों आपस में खुश थे और नई जिंदगी की शुरुआत कर चुके थे. आखिर उन्हें अपनी मंजिल जो मिल गई थी. Love Story in Hindi