Healthy Cooking Oil : किचन में कौन सा तेल है असली, जानें ऐक्सपर्ट की राय

Healthy Cooking Oil : स्वास्थ्य को लेकर लोग जागरूक हो चुके हैं। स्त्रीपुरुष से ले कर आज के यूथ भी इस दिशा में काफी जागरूक हो चुके हैं, लेकिन बाजार में आएदिन नएनए खाना पकाने वाले तेलों की भरमार है, जिस में हरकोई अपने तरीके से तेल से जुड़े हैल्थ इशूज को कम करने का दावा करते रहते हैं, ऐसे में हर युवती के आगे एक ही प्रश्न होता है कि खाना पकाने के लिए तेल कौन सी चुनी जाए.

इस बारे में खार मुंबई की पीडी हिंदुजा अस्पताल एवं चिकित्सा अनुसंधान केंद्र के डाइटीशियन ऋतु धोड़पकर कहती हैं कि सुपरमार्केट की अलमारियों पर अनगिनत तेल के विकल्प हर व्यक्ति को पजल करते हैं, जिस में हर दिशा से उन्हें अलगअलग सलाह मिलते रहते हैं, ऐसे में स्वास्थ्य के लिए सही तेल को चुनने का निर्णय लेना चुनौतीपूर्ण बन चुका है. यह हर घर और परिवार की परेशानी है, जिसे समझना आज जरूरी हो चुका है.

तो आइए, जानते हैं खाना पकाने वाले तेलों की दुनिया में कौन सा तेल वास्तव में प्रयोग करना सही रहता है.

बौडी मास इंडैक्स से फैट मापना मुश्किल

ऋतु कहती है कि केवल बीएमआई (बौडी मास इंडैक्स) को जानने से शरीर में वसा प्रतिशत को सही तरीके से मापा नहीं जा सकता, क्योंकि इस में कई अलग चीजों पर भी ध्यान देना पड़ता है, जो निम्न हैं :

* मांसपेशियों में फैट का अनुपात अलगअलग होता है.

• शरीर की बनावट फैट के डिस्ट्रीब्यूशन को नहीं दर्शाती, जैसे कि कुछ मामलों में पेट की चरबी अधिक हो सकती है, जिसे हम देख कर अंदाजा लगा सकते हैं कि शरीर में फैट की मात्रा अधिक है.

• जैंडर के आधार पर भी शरीर में वसा की संरचना भिन्न होती है.
फैट प्रतिशत को अधिक सटीक रूप से अन्य तरीकों से मापा जा सकता है, मसलन डैक्सा स्कैन। यह सटीक होता है। यह वसा, हड्डियों और मांसपेशियों का भार मापता है.

* स्किन फोल्ड कैलिपर शरीर के विशिष्ट हिस्सों में संचित फैट को मापने में सहायक होता है. फैट के आधार पर तेल का चयन करने के तरीके अधिकतर न्यूट्रिशनिस्ट बताते हैं, जिस का दैनिक जीवन में प्रयोग करना सही रहता है.

ऋतु कहती हैं कि तेल अधिकतर ट्रैडिशन, साइंस और हैल्थ का तालमेल के साथ प्रयोग किया जाता है जिस में खाना पकाने की विधि, लोकल कल्चर और व्यक्तिगत स्वास्थ्य लक्ष्य के अनुसार अलगअलग प्रकार के तेलों का उपयोग करना उचित होता है, जैसे उत्तर भारत में सरसों का तेल परंपरागत रूप से इस्तेमाल होता है, जबकि दक्षिण भारत में नारियल तेल का अधिक प्रचलन है. यह सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि जलवायु और शरीर की जरूरतों पर आधारित वैज्ञानिक निर्णय के अनुसार प्रयोग होता आया है, लेकिन समय के साथसाथ रिसर्च से पता चला है कि हमें अपने आहार में कुछ अलग प्रकार के गुणवत्तापूर्ण तेलों को भी शामिल करना चाहिए. इन की प्रमुख चार श्रेणियां हैं :

सैचुरेटेड फैट्स (Saturated Fats) : घी और मक्खन का हमेशा सीमित मात्रा में सेवन करें। अधिक सेवन से खराब कोलेस्ट्रोल (LDL) बढ़ता है.

नारियल तेल का शरीर पर पौजिटिव इफैक्ट होता है, जो मीडीयम चैन्ड ट्राइग्लिसराइड्स से भरपूर होती है, जो तेजी से ऊर्जा देते हैं और ऐंटीमाइक्रोबायल प्रौपर्टी होती है और यह स्वास्थ्य के लिए गुणकारी होता है.

मोनोअनसैचुरेटेड फैट्स (MUFA) : सब से स्वास्थ्यप्रद तेल जिसे साइंस ने भी प्रूव किया है-
जैतून का तेल, जो सलाद ड्रैसिंग और अब खाना पकाने में भी प्रयोग किया जाता है.

कैनोला तेल, जो पकाने के लिए उत्तम है. एवोकाडो तेल, जो थोड़ा महंगा है लेकिन विटामिन ई और ऐंटीऔक्सीडेंट से भरपूर होता है.
मूंगफली तेल, जो उच्च तापमान पर स्थिर रहता है. तिल का तेल सीमित मात्रा में ही करें.

पौलीअनसैचुरेटेड फैट्स (PUFA) ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त तेल (Anti-inflammatory) : अलसी का तेल, जो चिया सीड्स का तेल होता है, अखरोट का तेल जो दिल, मस्तिष्क और जोड़ों के लिए लाभकारी माना जाता है.

ओमेगा-6 फैटी एसिड युक्त तेल : इस में मक्का का तेल, सोया तेल, सूरजमुखी और सनफ्लावर तेल, जो अधिकांश प्रोसेस्ड फूड्स में पाए जाते हैं.

औयल को ब्लैंड कर प्रयोग कितना सही

डाइटीशियन ऋतु का आगे कहना है कि कुछ लोग कई तेल एकसाथ मिला कर खाना पकाते हैं, ऐसे में वह स्वास्थ्य के लिए कितना फायदेमंद होता है, उसे भी समझना जरूरी है। आज न्यूट्रीशन साइंस परिष्कृत मिश्रणों (blends) और विटामिंस से युक्त तेलों के पक्ष में है, इसलिए कई बार इस का प्रयोग निम्न तरीके से भी किया जा सकता है.

• राइस ब्रान तेल के साथ सनफ्लावर और औलिव औयल को थोड़ीथोड़ी मात्रा में मिलाया जा सकता है.

• सरसों के साथ कैनोला, सूरजमुखी और अलसी के तेल को भी मिलाया जा सकता है.

औयल खरीदने से पहले

हमेशा लेबल पढ़ें और जानें आप कौन सा तेल का प्रयोग अपने भोजन में कर रहे हैं. वैसे तो घी को आंतों की सेहत के लिए लाभकारी बताया जाता है, लेकिन रोजाना 1-2 चम्मच से अधिक घी का सेवन करने से बचना चाहिए.

एवोकाडो तेल में MUFA और ऐंटीऔक्सीडेंट्स से भरपूर होता है, जो वजन घटाने में सहायक, शाकाहारियों के लिए उपयुक्त, हृदय स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है.

इस के अलावा केवल कोल्ड-प्रेस्ड सरसों तेल चुनें। प्रयोग से पहले त्वचा पर पैच टेस्ट करें। नारियल तेल में मिला कर उपयोग कर सकते हैं।

गरमियों में अधिक तेल के उपयोग से बचें। बादाम, नारियल या तिल के तेल को प्राथमिकता देना अच्छा होता है.

तेल और मिथक

तेल को ले कर कोलेस्ट्रोल के कई मिथक हैं, लेकिन इस की सचाई कुछ और है.

सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तेल में खुद कोलेस्ट्रोल नहीं होता. कोलेस्ट्रोल केवल पशु उत्पादों में पाया जाता है. जैतून, सूरजमुखी, एवोकाडो, कैनोला, अलसी और नारियल जैसे सभी वनस्पति तेल प्राकृतिक रूप से कोलेस्ट्रोल रहित होते हैं.

असल दोष सैचुरेटेड और ट्रांस फैट्स का होता है, जिस में अत्यधिक मात्रा में घी, मक्खन और पाम तेल हानिकारक होते हैं. हाइड्रोजैनेटेड और प्रोसेस्ड फूड्स में पाए जाने वाले ट्रांस फैट सब से खतरनाक होते हैं.

इसलिए तेल का एक आदर्श संतुलन को समझना आवश्यक है मसलन 1:1:1:1 यानि सैचुरेटेड, मोनोअनसैचुरेटेड, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैट्स किसी तेल में होना आवश्यक है.

तेल से नुकसान कब

तेल के बाहरी प्रतिक्रियाओं को समझना जरूरी है, क्योंकि हर तेल से खाना पकाने से नुकसान नहीं होता, लेकिन कई बार किसी तेल की वजह से कुछ लोगों में त्वचा पर ऐलर्जी या जलन भी हो सकती है, जिस में पाम औयल का नाम सब से पहले आता है। यह तेल कम गुणवत्ता वाले सौंदर्य प्रसाधनों और फ्राइड फूड्स में पाया जाता है। इस से खुजली, सूखापन और फंगल इन्फैक्शन हो सकते हैं. इसलिए इस तेल को पूरी तरह से अवौइड करना जरूरी है.

सरसों का तेल में ऐलिल

आइसोथायोसाइनेट नामक गरम तत्त्व होता है, जो ठंडी जगहों में उपयोगी है, लेकिन गरम जलवायु में त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है.

इस प्रकार किसी एक परफैक्ट तेल की तलाश में कभी न रहें, बल्कि विभिन्न तेलों के गुणों को समझ कर उन का संतुलित और सामंजस्यपूर्ण उपयोग करें, क्योंकि तेल का चयन जलवायु, भोजन की शैली, आप की सेहत और शोध पर आधारित होता है. इन सब में आप को याद रखना है कि कुछ लोगों को तेल के प्रयोग से कई प्रकार की समस्याएं हो जाती हैं, ऐसे में डाइटिशियन से सलाह लेना उचित रहता है.

Relationship : मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है, लेकिन मेरी फैमिली पुराने खयालों की है…

Relationship : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल-

मुझे एक युवती से प्यार हो गया है. वह भी मुझ से प्यार करती है पर वह बहुत बोल्ड है. हमारी फैमिली पुराने खयालों की है. मैं चाहता हूं कि वह शादी के बाद मेरे परिवार के अनुसार चले. क्या करें?

जवाब

आप की प्रेमिका बोल्ड है यह तो अच्छी बात है, लेकिन आप भौंदुओं वाली बात क्यों करते हैं. अपनी आजादी हरेक को प्यारी होती है क्या आप को नहीं? फिर पुराने खयालों में ही जीते रहने का क्या फायदा, रही बात संस्कार की तो बोल्ड होने का मतलब संस्कारहीन होना नहीं.

आजकल युवतियां समय अनुसार चलने, आगे बढ़ने पर जोर देती हैं, जो अच्छी बात है फिर आप तो उस से प्यार करते हैं. उस के लिए खुद को बदलिए, पेरैंट्स को पुराने खयालों से नए विचारों की ओर मोडि़ए. वह युवती आप के घर आ कर आप की व आप के परिवार की तरक्की की राह ही खोलेगी, हां, उस की रिस्पैक्ट जरूर कीजिए, क्योंकि वह जमाने के अनुसार ताल से ताल मिला कर चलने वाली है, तो तरक्की के रास्ते खोलेगी.

जब प्रेमिका हो बलात्कार की शिकार

फिल्म ‘काबिल’ में सुप्रिया यानी गौतम जब बलात्कार का शिकार होती है तब रोहन यानी रितिक रोशन फटाफट उसे पुलिस स्टेशन व जांच के लिए हौस्पिटल ले जाता है ताकि सुप्रिया के गुनहगारों को सजा मिल सके. लेकिन पुलिस के अजीबोगरीब सवालों से वह इतना परेशान हो जाता है कि सुप्रिया की शारीरिक व मानसिक स्थिति पर ध्यान नहीं दे पाता. वह सुप्रिया को संभालने के बजाय उस से बात ही नहीं करता. वह यह सोचसोच कर खुद को दोषी मानने लगता है कि वह इस काबिल भी नहीं है कि सुप्रिया की रक्षा कर पाए? रोहन को इस तरह शांत देख कर सुप्रिया को लगने लगता है कि रेप की घटना की वजह से रोहन उस के साथ ऐसा व्यवहार कर रहा है जिस का परिणाम यह होता है कि सुप्रिया रोहन मेरे कारण और परेशान न हो इसीलिए वह आत्महत्या कर लेती है.

यह तो कहानी है फिल्म की, लेकिन वास्तविक जीवन में भी जब प्रेमिका बलात्कार की शिकार होती है तो रिश्ते में कई तरह के बदलाव आने लगते हैं. कुछ प्रेमी सोचते हैं काश, मैं ने उसे अकेला न छोड़ा होता, काश, मैं ने डिं्रक करने से मना किया होता, मैं उस के साथ होता तो ऐसा कभी नहीं होता और खुद को दोषी मानने लगते हैं.

कुछ प्रेमी प्रेमिका को इस का दोषी मान कर ब्रेकअप तक कर लेते हैं, जबकि यह समय ऐसा होता है जिस में पार्टनर को एकदूसरे के साथ की जरूरत होती है इस गम से बाहर निकालने में.

प्रेमिका बलात्कार की शिकार हो तो क्या करें

– मोरली सपोर्ट करें :  इस वक्त प्यार व सपोर्ट की खास जरूरत होती है, इस से लगता है कि कोई है जिस के साथ जिंदगी गुजारी जा सकती है, क्योंकि इस तरह की घटना के बाद लड़की को ऐसा लगने लगता है कि कोई उस के साथ नहीं रहेगा. अब वह किसी काबिल नहीं है और वह खुद को दोषी मानने लगती है. इसलिए जब भी आप की प्रेमिका ऐसा कुछ कहे तो कुछ सकारात्मक बातें कहें ताकि उस का मनोबल बढ़े. इस वक्त परिवार को भी काफी सपोर्ट की जरूरत होती है, उन का भी साथ दें. जब जांचपड़ताल के मामले में उन्हें कहीं जाना हो तो साथ जाएं ताकि उन का हौसला बरकरार रहे.

– हर गम की दवा प्यार :  गम कितना भी गहरा क्यों न हो, लेकिन प्यार से निभाया जाए तो कुछ भी मुश्किल नहीं होता, इसलिए प्यार से इस स्थिति से प्रेमिका को बाहर निकालें. ऐसा भी हो सकता है कि प्रेमिका के घर वाले उस का साथ न दें उसे भलाबुरा सुनाएं, लेकिन यह आप की जिम्मेदारी है कि आप उस के परिवार वालों को समझाएं कि इस में किसी का दोष नहीं है. उन की बेटी ने ऐसा कुछ भी नहीं किया कि आप उस के साथ ऐसा व्यवहार करें बल्कि आप अपनी बेटी का साथ दें, ताकि वह इस गम से बाहर निकल सके.

– स्मार्ट माइंड से लें स्मार्ट ऐक्शन : जब आप की प्रेमिका के साथ रेप हो रहा है तब आप हाथ पर हाथ रखे न बैठे रहें बल्कि स्मार्ट माइंड से स्मार्ट ऐक्शन लें. जैसे तुरंत पुलिस को कौल करें, फोन से पुलिस की गाड़ी का हौर्न बजाएं, वीडियो बना लें ताकि अपराधियों के खिलाफ सुबूत मिल सके.

– प्रीकौशन पिल्स दें : रेप हो गया है अब क्या करें, कितनी बदनामी होगी, ऐसी बातें ही न सोचते रहें बल्कि थोड़ा स्मार्ट बनें ताकि आप की प्रेमिका के साथ और बड़ा हादसा न हो. इसलिए प्रेमिका को प्रीकौशन पिल्स दें ताकि गर्भ न ठहरे, क्योंकि पता चला आप दोनों रेप के गम में डूबे रहें और कोई बड़ा हादसा हो जाए.

– दोषी को मीडिया से करें हाईलाइट :  खुद से हीरो बनने की कोशिश न करें बल्कि दोषी को हाईलाइट करने के लिए मीडिया का सहारा लें. अगर मीडिया मामले को उजागर करता है तो पुलिस भी तुरंत ऐक्शन लेती है. आप चाहें तो किसी एनजीओ की मदद भी ले सकते हैं. ऐसे कई एनजीओ हैं जो इस तरह के मामलों में सहायता करते हैं.

– गम से उभरने का वक्त दें :  ऐसी उम्मीद न कर बैठ जाएं कि कुछ दिन बाद वह नौर्मल हो जाएगी. अगर वह नौर्मल नहीं होती तो आप उसे डांटने न लगें कि क्या ड्रामा कर रखा है, इतने दिन से समझा रहा हूं, लेकिन तुम्हें कुछ समझ नहीं आ रहा है, बल्कि उसे इस गम से उभरने का वक्त दें. बारबार न कहते रहें कि जो हुआ भूल जाओ, ऐसा कर के आप उसे और गम में धकेलते हैं.

– काउंसलिंग न करें मिस : इस दौरान मैंटल और इमोशनल कई तरह की समस्याएं होती हैं. इन्हें काउंसलिंग द्वारा कंट्रोल किया जा सकता है. काउंसलिंग से न केवल गम से उभरने में मदद मिलती है बल्कि जीने की एक नई राह भी मिलती है, इसलिए काउंसलिंग कभी मिस न करें. संभव हो तो आप भी साथ जाएं ताकि ऐसा न लगे कि आप जबरन भेज रहे हैं.

– दूसरों के लिए मिसाल बनें : ऐसा न करें कि दब्बू बन कर चुपचाप बैठ जाएं और प्रेमिका को भी भूल जाने को कहें बल्कि इस के खिलाफ कठोर कदम उठाएं ताकि आप को देख कर बाकी युवाओं को हिम्मत व प्रेरणा मिले.

क्या न करें

– रिश्ता तोड़ने की गलती न करें : आप की प्रेमिका का बलात्कार हुआ है, आप उस के साथ रहेंगे तो लोग आप के बारे में भी तरहतरह की बातें करेंगे, ऐसी बातें सोचसोच कर रिश्ता तोड़ने की गलती न करें. जरा सोचिए, अगर आप की बहन का बलात्कार हुआ होता, तो क्या आप अपनी बहन से रिश्ता तोड़ लेते नहीं न? तो फिर इस रिश्ते में ऐसा क्यों? इसलिए रिश्ता तोड़ने के बजाय अपनी सोच का दायरा बढ़ाएं और पार्टनर का साथ दें.

– प्रेमिका को दोषी न मानें : इस हादसे के लिए कभी भी अपनी प्रेमिका को दोष न दें कि रात में बाहर घूमने व छोटे कपड़े पहनने की वजह से ऐसा हुआ है बल्कि उस पर विश्वास करें, उस की बातें सुनें. हो सकता है आप की प्रेमिका उस वक्त कुछ अजीब तरह की बातें करे, लेकिन आप उन बातों पर गुस्सा करने के बजाय सुनें और प्यार से समझाएं कि इस में उस की कोई गलती नहीं है.

– मरजी के बिना न करें सैक्स : यह ठीक है कि आप अपना प्यार प्रदर्शित करने के लिए प्रेमिका के करीब जाना चाहते हैं ताकि उसे इस बात का एहसास करा सकें कि वह आप के लिए अब भी वैसी ही है जैसी पहले थी, लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि वह इस घटना से इतनी डिस्टर्ब हो कि आप की इस भावना को समझ ही न पाए और आप पर गुस्सा करने लगे, जोरजोर से चिल्लाने लगे कि आप उस का रेप कर रहे हैं. इसलिए कभी भी खुद से सैक्स का प्रयास न करें.

अगर प्रेमिका सहमति से संबंध बनाना चाहती है तो उस का साथ दें, मना न करें. आप के ऐसा करने से प्रेमिका को लग सकता है कि उस का रेप हुआ है. इसलिए आप मना कर रहे हैं.

कभी ऐसा भी हो सकता है कि वह खुद पहल कर संबंध बनाए, लेकिन बाद में सारा दोष आप पर डाल दे और चिल्लाने लगे. ऐसी स्थिति के लिए भी खुद को तैयार रखें. ऐसा न करें कि आप भी उलटा चिल्लाने लगें कि तुम ही आई थी संबंध बनाने, मैं तो नहीं चाहता था, बल्कि धैर्य से काम लें.

– गलत कदम न उठाएं और न उठाने दें : कई बार युवा जोशजोश में ऐसे कदम उठा लेते हैं जिस का खमियाजा बाद में भुगतना पड़ता है इसलिए न तो आप गलत कदम उठाएं और न ही प्रेमिका को उठाने दें.

Monsoon Special Food : बारिश के बेहतरीन जायके, जो स्वाद को बढ़ाएंगे दोगुना

Monsoon Special Food :  मिक्स्चर गुझिया

सामग्री

200 ग्राम मैदा, 50 ग्राम रवा, 65 ग्राम घी, 250 ग्राम नवरत्न मिक्स्चर

तलने के लिए तेल और नमक स्वादानुसार.

विधि

मैदा, रवा, घी व नमक को मिला कर अच्छी तरह मसलें. आवश्यकतानुसार पानी डाल कर कड़ा गूंध लें. आधा घंटे के लिए ढक कर रख दें. तैयार मैदे की छोटीछोटी लोइयां बनाएं. प्रत्येक लोई को पतला बेल लें. गुझिया के सांचे पर रख कर किनारों पर पानी लगाएं. नवरत्न मिक्स्चर भरते हुए गु?िया का आकार दें. कड़ाही में तेल गरम कर के मंदी आंच पर गुझिया तल लें.

‘कटलेट्स में थोड़ा सा ट्विस्ट दिया जाए तो ये सर्विंग में भी बेहतरीन दिखेंगे ’

तिरंगे कटलेट्स

सामग्री

11/2 कप आलू उबले व मैश किए, 1 कप मटर मैश किए, 1 टुकड़ा पनीर मैश किया

2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर,  1 छोटा चम्मच हरीमिर्च पेस्ट,  1 छोटा चम्मच अदरक पेस्ट

1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर,  1 छोटा चम्मच गरममसाला,  1 छोटा चम्मच जीरा

चुटकीभर हींग,  तलने के लिए तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि

पनीर में 1/2 छोटा चम्मच हलदी और नमक मिलाएं और 4 बौल्स बना कर रख लें. पैन में 1 चम्मच तेल गरम कर इस में जीरा, हींग, हरीमिर्च पेस्ट और अदरक पेस्ट डाल कर भूनें. मटर और बाकी मसाले मिला कर भूनें. इस मिश्रण के 4 पेड़े बना कर रख दें. मैश किए आलू में कौर्नफ्लोर और थोड़ा नमक मिला कर 4 पेड़े बना लें. अब मटर के पेड़ों को 1-1 कर हथेली में रख कर फैलाएं और पनीर की 1 बाल बीच में रख कर चारों ओर से बंद कर के कटलेट बना लें. इसी प्रकार आलू के पेड़ों को फैला कर मटर के कटलेट रखें और बंद कर दें. ऐसे ही बाकी कटलेट्स बना लें. फिर कड़ाही में तेल गरम करें और इन्हें सुनहरा होने तक तल लें. 4-4 टुकड़े कर के हरी चटनी के साथ सर्व करें.

‘पीनट पकौड़े और हरी चटनी शाम की चाय का स्वाद बढ़ा देंगे.’

पीनट पकौड़ा

सामग्री

1 कप मूंगफली के दाने,  1 बड़ा चम्मच बेसन,  1 छोटे चम्मच अदरक बारीक कटा,  1 छोटा चम्मच हरीमिर्च बारीक कटी,  1 छोटा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी, चुटकी भर हलदी,  1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर, 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर,  1/2 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर,  तेल आवश्यकतानुसार,  नमक स्वादानुसार.

विधि

मूंगफली के दाने व तेल छोड़ कर शेष सामग्री मिला लें. आवश्यकतानुसार पानी मिलाते हुए गाढ़ा घोल बना लें. कड़ाही में तेल गरम करें. मूंगफली के दानों को घोल में लपेट कर मध्यम आंच पर कुरकुरा होने तक तलें. हरी चटनी के साथ परोसें.

‘पनीर टिक्का मसाला घर पर कम समय में भी बनाया जा सकता है.’

पनीर टिक्का मसाला

सामग्री

11/2 कप पनीर मनचाहे आकार के टुकड़ों में कटा, 1/2 कप लाल व हरी शिमलामिर्च चौकोर टुकड़ों में कटी हुई, 1/2 कप प्याज कटा,  11/2 छोटे चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट,  1 कप हंग कर्ड, 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर, 1/4 छोटा चम्मच गरममसाला,  1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर, 1 छोटा चम्मच चाटमसाला, 2 बड़े चम्मच तेल,  1/2 छोटा चम्मच नीबू का रस ,  नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बड़े बाउल में दही को फेंट कर नमक व सभी मसाले मिलाएं. अब इस में पनीर, शिमलामिर्च व प्याज डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. इस मिश्रण को करने के लिए 4-5 घंटे फ्रिज में रख दें. अब तवे पर तेल डाल कर हलकी आंच पर भूरा होने तक सेंकें. ऊपर से नीबू निचोड़ दें. चटनी के साथ स्टार्टर के रूप में परोसें.

‘कुछ हैल्दी खाना हो तो अप्पे से बेहतर डिश और क्या होगी.’

वैजी अप्पे

सामग्री

1 कप सूजी द्य  1 कप दही,  1 बड़ा चम्मच प्याज बारीक कटा, 1 बड़ा चम्मच टमाटर बारीक कटा द्य  1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी द्य  1/2 छोटा चम्मच हरीमिर्च बारीक कटी,  1 छोटा चम्मच फ्रूट साल्ट,  नमक स्वादानुसार.

विधि

फ्रूट साल्ट को छोड़ कर सारी सामग्री मिलाएं. आवश्यकतानुसार पानी मिलाते हुए गाढ़ा घोल बनाएं. फू्रट साल्ट मिला कर अप्पम मेकर में मिश्रण डालें और मंदी आंच पर पकाएं. फूल जाने पर अप्पे अप्पम मेकर से निकाल कर हरी चटनी के साथ परोसें.

Toxic Friendship: बोझ बन चुकी है दोस्ती? अब वक्त है इलाज का

Toxic Friendship: अच्छी दोस्ती कब टौक्सिक हो जाए, पता नहीं चलता. उस पर मुसीबत यह कि यह दोस्ती न निगलते बने न उगलते. फ्रैंड की इतनी आदत हो चुकी है कि उस के बिना रहना भी नहीं आता और उस के साथ रहा भी नहीं जा रहा. ऐसे में क्या करें?

ये वही फ्रैंड होते हैं जो कल तक आप के सगे थे, आप की पौकेटमनी पर मौज करते थे, आप के नोट्स से पढ़ कर पास हुए लेकिन अब अचानक से ही उन के इंट्रैस्ट बदल गए, अब आप को वे चीट करने लगे. आप को मैंटली, इमोशनली और फाइनैंशियली नुकसान पहुंचाने लगे, आप के राज खोलने लगे, बुरे वक्त में मदद करने से मुकरने लगे, पीठपीछे बुराई करने लगे. यही होती है टौक्सिक फ्रैंडशिप जिस से बाहर आना बहुत जरूरी होता है, वरना डिप्रैशन का शिकार होते देर नहीं लगेगी.

टौक्सिक फ्रैंड की पहचान कैसे करें

-जब फ्रैंड बेवजह हर बात पर मुंह बनाए और आप का ज्यादातर वक्त उसे मनाने में बीतने लगे, तो वह हानिकारक है.

-आप महसूस करने लगें कि फ्रैंड आप को धोखा दे रहा है. आप के पीठ पीछे साजिश करने लगे.

-हर वक्त आप का इस्तेमाल अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए करे. दूसरे शब्दों में, आप सिर्फ उस के लिए एक बैंक बैलेंस का काम कर रहे हों.

-अपने मन की बातें फ्रैंड से कहने में जब कंफर्टेबल न लगे. और मन की बात मन में ही रह जाए.

-फ्रैंड सहभागी न हो कर मालिक बनने लगे. जिस के साथ होने पर आप का कौन्फिडैंस कम होने लगे.

कैसे पीछा छुड़ाएं ऐसे दोस्तों से

सब से पहले अपने मन को मनाएं : माना वह आप का सब से अच्छा फ्रैंड था. लेकिन अब नहीं है. आप ने खुद ही कहा (था) है नहीं. इस पर ध्यान दें. कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आप को आगे बढ़ने से रोकते हैं और पीछे खींचते हैं. अगर आप का फ्रैंड भी यही रोले प्ले कर रहा है तो उस से दूर हो जाएं. यही आप के लिए ठीक रहेगा.

 मूव औन करने की जगह नहीं होती : फ्रैंड को झेलने और न छोड़ने की सब से बड़ी वजह यही होती है कि किसी और के पास मूव औन करने की जगह नहीं होती. और शायद इतनी हिम्मत नहीं होती कि अकेले रहा जाए. लेकिन इस बात को समझें कि आप फ्रैंड की वह जगह खाली करेंगे, तभी तो किसी और फ्रैंड के लिए नई जगह बना पाएंगे.

अकेले रहना एक खराब दोस्ती में रहने से ज्यादा अच्छा : अकेले हैं तो क्या गम है, यह तो आप ने सुना ही होगा. यह सच भी है. अकेले रहने से क्या घबराना. अकेले रहना एक खराब दोस्ती में रहने से ज्यादा अच्छा है. कम से कम मैंटली टेंशन तो नहीं होगी. फ्रैंड की हरकतें देख रातदिन कुढ़ने और कुछ न कर पाने की बेबसी से तो अच्छा है अकेले रह लें. इस से दिमाग भी शांत रहेगा और आगे सोचसमझ कर दोस्ती करने की कुछ सहूलियत भी आएगी.

अकेले चाय पीने जाओ, ट्राय तो करो : यह किस किताब में लिखा है कि चाय हमेशा दो लोगों के साथ ही पी जाती है. आप अकेले भी चाय पीने जा सकते हैं. एक बार उस का स्वाद तो चखें, यकीनन खराब नहीं लगेगा. अकेले चाय पीने के बाद जब बिल पे करेंगे तो आप को एहसास होगा कि आप तो हमेशा से सिर्फ चाय ही पीते थे, उस के साथ पकौड़े और टोस्ट तो आप का फ्रैंड ही खाता था.

प्यार या इमोशनल फूल बन कर उस का बिल आप ही पे करते थे और आज जब आप इतना कम बिल पे करेंगे तो सुकून के साथ अपनी बेवकूफी पर हंसी आएगी कि क्या बेकार में आप अपने पेरैंट्स का इतना पैसा ऐसे फ्रैंड पर लुटा रहे थे.

न खेलें ब्लेमगेम : यकीनन जीवन में टौक्सिक फ्रैंड्स सिर्फ और सिर्फ परेशानी का कारण बनते हैं. लेकिन जब आप उन से दोस्ती खत्म करें तो ब्लेमगेम खेलने से बचें. मसलन, आप उन के कारण हुई परेशानियों की चर्चा न करें. इस से आप दोनों के बीच खटास काफी अधिक बढ़ जाएगी. हो सकता है कि दोस्ती खत्म होने के बाद वह आप को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे.

इसलिए दोस्ती का रिश्ता खत्म करते समय सिर्फ कहें कि आप उन से दोस्ती नहीं रखना चाहती हैं. हालांकि उन से यह जरूर कहें कि आप ने उन के साथ एक अच्छा समय बिताया, ताकि दोस्ती खत्म होने के बाद भी आप दोनों के मन में कोई मलाल न रहे.

खुल कर बता दें कि अब आप यह दोस्ती नहीं चाहते : माना ऐसा करना आप के लिए कठिन होगा लेकिन यह करना जरूरी है. उन के पास जाएं और उन्हें बताएं कि आप अपनी दोस्ती को खत्म करना चाहती हैं. लेकिन यह आप को सिर्फ तभी करना चाहिए जब आप दोनों आक्रामक न हो रहे हों. आराम से बैठें और उन्हें बताएं कि आप इसे जारी नहीं रखना चाहती हैं. यह एक कठिन विकल्प हो सकता है लेकिन यह सुनिश्चित करता है कि आप हमेशा के लिए सबकुछ खत्म कर चुके हैं. इस के बाद फ्रैंड की किसी बात में न आएं.

अपने मन में कोई गिल्ट न लाएं : टौक्सिक रिश्ते से बाहर आने के बाद अपने मन में कोई गिल्ट न लाएं. जीवन में आने वाला हर व्यक्ति कुछ न कुछ सीख कर ही जाता है और आप ने भी इस रिश्ते से अच्छाबुरा बहुतकुछ सीखा होगा, बस, वही याद करें और आगे बढ़ जाएं.

इसलिए अगर आप भी टौक्सिक दोस्ती से बाहर निकलना चाह रही हैं तो दिल को थोड़ा मजबूत रखना होगा क्योंकि हो सकता है कि सामने वाले को एक बार माफ कर के आप सब सामान्य करने की कोशिश करें, लेकिन जब यह बारबार हो तो फिर आप ऐसे में खुद को कंट्रोल करें. संपर्क के सारे रास्ते खुद ही बंद करें.

आप को दोस्ती खत्म करने के लिए बोलने और उस से बाहर निकलने में समय लग सकता है. याद रखें कि टौक्सिक फ्रैंडशिप को खत्म करना एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन की ओर एक कदम उठाना है. अकसर बुरे रिश्ते में होने के कारण हम खुद पर ध्यान देना बंद कर देते हैं. इसलिए अब खुद पर ध्यान दें.

अपने शरीर को फिट रखें. जिंदगी से जुड़े बाकी रिश्तों और बाकी दोस्तों के साथ खुश रहें और नई दोस्ती ढूंढ़ें. अपने जीवन में सकारात्मक रिश्ते और व्यक्तिगत विकास के लिए जगह बनाने पर ध्यान दें. इस अप्रोच के साथ आगे बढ़ेंगे तो टौक्सिस रिलेशन से बाहर निकल कर कुछ नया, अलग और प्रोडक्टिव कर पाएंगे.

जब Tejasswi Prakash ने लगाया ग्लैमर का तड़का, देखें Photo

Tejasswi Prakash : दिल्ली में गोदरेज प्रोफेशनल ने अपने नए हेयर कलर कलेक्शन “द सुररियल कलेक्शन” और आधुनिक स्ट्रेटनिंग तकनीक “स्ट्रेट स्मूथ” को लौन्च किया. इस मौके पर उन्नत हेयर कलरिंग तकनीकों पर ट्रेनिंग सेशन आयोजित किए गए जिसका समापन एक शानदार हेयर शो के साथ हुआ. इस शो में अभिनेत्री और बिग बौस विनर तेजस्वी प्रकाश ने रैम्प वाक कर ग्लैमर का तड़का लगाया. उन्होंने इस कलेक्शन के सिग्नेचर लुक में रैंप पर जलवा बिखेरा.

तेजस्वी प्रकाश के शब्दों में, “मेरे लिए बाल हमेशा आत्म-अभिव्यक्ति का एक कैनवास रहे हैं. सही हेयरकट या कलर केवल आपकी लुक्स नहीं बदलता बल्कि यह आपके एहसास को भी पूरी तरह से बदल देता है.”

Tejasswi Prakash
Tejasswi Prakash

तेजस्वी ने स्वरागिनी सीरियल से अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी. इस के बाद खतरों के खिलाड़ी में नजर आई. फिर बिग बौस की ट्रौफी के साथ नागिन 6 में लीड रोल हासिल किया. फिलहाल वह अपने एक नए प्रोजेक्ट में भी बिजी हैं. पेश है तेजस्वी से की गई बातचीत के मुख्य अंश ;

आपके खूबसूरत बालों का राज क्या है और आप किस तरह हेयर स्टाइलिंग करती हैं?

अपने हेयर को स्टाइल करने के लिए मैं पहले हमेशा ही हीट प्रोटेक्टर लगाती हूं. अगर मेरे बाल गीले होते हैं तो मैं पहले प्रौपर्ली उसे ब्लो ड्रायर करती हूं क्योंकि गीले बालों में अगर आप बाल स्टाइल करना शुरू करें तो आपके बाल बहुत आसानी से बर्न हो सकते हैं. मेरे लिए सबसे इंपोर्टेंट चीज़ है हेयर प्रोटेक्शन. खासतौर पर जब आप बाल कलर करते हैं तब लोग कहते हैं कि आपके बाल वीक हो जाते हैं. लेकिन  गोदरेज के पास इतने अच्छे कलर है. इनके पास कलर प्लेट है और डायमेंशन है उनमें नो अमोनिया है. इसलिए यह आपके बालों को ज्यादा इफेक्ट नहीं  कर पाते. मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि आजकल ऐसे कलर के ब्रांड भी आ रहे हैं जो आपके बालों को खराब नहीं करते. आप ने आजतक इतने सारे किरदार निभाए , रियलिटी शोज भी किए. आपका सबसे पसंदीदा किरदार कौन है? सबसे ज्यादा पसंदीदा किरदार अब आने वाला है जो मैं रोल अदा करूंगी और अभी मैं बताऊंगी नहीं. आप इंतजार कीजिए बहुत अच्छा लगेगा आप को.

 

अगर किसी मध्यवर्गीय लड़की को ग्लैमर वर्ल्ड में जाना हो तो उसे किन बातों का ख़याल रखना चाहिए ?

सबसे पहले तो यह जरूरी है कि आप पूरी तरह सब कुछ छोड़-छाड़ कर एक्टिंग के करियर में कंप्लीट रिस्क तब तक ना ले जब तक आप प्रॉपर्ली इंडिपेंडेंट ना हो. जब तक आप अपने पेरेंट्स पर या हसबैंड या किसी पर भी डिपेंडेंट है तब तक यह तरीका सही नहीं है. मैंने  एक्टिंग करियर शुरू करने के बाद भी अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की और कभी यह नहीं सोचा कि एक्टिंग का काम अच्छा चल रहा है तो इंजीनियरिंग की पढ़ाई का क्या करना है. मैंने हमेशा अपनी पढ़ाई को बहुत इंपॉर्टेंस दिया. अपनी पूरी पढ़ाई की. मध्यवर्गीय लड़कियों को मैं यही सजेशन देना चाहूंगी कि आप ग्लैमर वर्ल्ड में आने की तभी कोशिश करें जब आपके पास एक स्ट्रांग बेकिंग हो और आप इंडिपेंडेंट हो.

आज के समय में भी लड़कियों को आगे बढ़ाने के लिए किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

मुझे लगता है सबसे बड़ी चुनौती हमारा दिल ही होता है. हमारा दिमाग और हमारी काबिलियत कितनी ही अच्छी क्यों ना हो जाए पर हम अपने दिल में यह जरूरी मानते कि हमें अपने घर में ज्यादा समय बिताना है, अपने पेरेंट्स और अपने बच्चों को पूरा समय देना है और उनका ख्याल रखना है. यह सब एक अच्छी और पॉजिटिव चीज है मगर लोग ऐसा मानते हैं कि अगर शादी हो गई है तो यह बात उसे पीछे खींच रही है और उसे बांध कर रख रही है. हमारा दिल ही ऐसा होता है. हम मल्टी टास्किंग अच्छी कर सकते हैं इसलिए फैमिली के ऊपर भी ध्यान जाना चाहिए. हम कितने भी इमोशनल क्यों न हों मगर अपने करियर को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.

Hindi Love Stories : मिलन – क्या हिमालय और भावना की नई शुरुआत हो पाई

Hindi Love Stories : प्रांजल और हिमालय दोनों बचपन से ही दोस्त रहे. नौकरी व विवाह के बाद भी उन की निकटता बनी रही. प्रांजल की पत्नी भावना को हिमालय की पत्नी रचना का साथ भी अच्छा लगता. दोनों मित्रों की पत्नियां जबतब बतियाती रहतीं. प्रांजल की दोनों बेटियां मीता व गीता अपनी पढ़ाई लगभग पूरी कर चुकी थीं और बेटा उज्ज्वल अभी डाक्टरी के तीसरे वर्ष में पढ़ रहा था.

मीता की शादी में हिमालय अपने बेटे सौरभ व बेटी ऋचा के साथ मुंबई यथासमय पहुंच गए थे. दोनों परिवार के बच्चे जब एकदूसरे के साथ रहे तो संबंध और भी पक्के हो गए.

एक दिन अचानक प्रांजल को हिमालय से अत्यंत दुखद समाचार मिला. उस की पत्नी रचना रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर सीढि़यों से फिसल कर गिर जाने के कारण गंभीर रूप से घायल हो गई है. प्रांजल और भावना के मुंबई पहुंचने से पहले ही रचना की मृत्यु हो गई.

बचपन के मित्र के कष्ट को समझते हुए भी प्रांजल और भावना संवेदना के दो शब्द के अलावा कुछ भी समझा नहीं पाए. हिमालय दुखी व नितांत अकेले रह गए थे. उन की बेटी ऋचा ससुराल में थी और सौरभ की भी नौकरी दूसरे शहर में थी. लौटते हुए हिमालय से वे कह कर आए थे, ‘जब भी मन करे हमारे पास आ जाया करना…मन कुछ बदल जाएगा.’

प्रांजल के बेटे उज्ज्वल के विवाह पर हिमालय मित्र के आग्रह पर कुछ पहले आए थे. मीता और गीता के विवाह में वह पत्नी रचना के साथ आए थे…वे दिन आंखों के सामने बारबार आ जाते. प्रांजल और भावना उन के दुख को समझ रहे थे अत: उन्हें हर तरह से व्यस्त रखने का प्रयास करते ताकि मित्र अपनी पीड़ा को कुछ सीमा तक भुला सके.

बाद में हिमालय का मन अपने अकेलेपन से बहुत उचाट होता तो वह प्रांजल के पास ही आ जाते.

मुश्किल से 2 साल गुजरे होंगे कि प्रांजल भी गंभीर रूप से बीमार हो गए और केवल एक माह की बीमारी के बाद भावना अकेली रह गई.

बेटियां और उज्ज्वल भावना को बारीबारी से अपने साथ ले भी गए पर वह 3-4 महीने में घूमफिर कर दोबारा अपने घरौंदे में वापस आ गई…पति के साथ सुखदुख की यादों के बीच.

उसे घर में हर तरफ प्रांजल ही दिखाई पड़ते…कभी ऐसा आभास होता कि प्रांजल किचन में उस के पीछे आ कर खड़े हैं और दूसरे ही क्षण उसे लगता…जैसे प्रांजल उसे समझा रहे हैं कि मैं तुम से दूर नहीं हूं भावना बल्कि तुम्हारे बिलकुल पास हूं…और भावना चौंक पड़ती.

भावना का अपने बच्चों के पास मन नहीं लगा. जब हिमालय ने यह सुना तो हिम्मत कर के कुछ दिन का अवकाश ले कर भावना के पास आए. उन्हें देख कर भावना बिफर पड़ी…प्रांजल की यादें जो ताजा हो गईं…जब रचना नहीं रही…और हिमालय आते तो प्रांजल बारबार भावना से कहते, ‘मैं चाहता हूं जो चीजें नाश्ते व भोजन में हिमालय को पसंद हैं…वही बनें. जब तक वह हमारे साथ है हम उस की ही पसंद का खाना व नाश्ता करेंगे.’

भावना प्रांजल की बात इसलिए नहीं रखती कि हिमालय उस के पति के दोस्त हैं…बल्कि इस का दूसरा कारण भी था कि रचना की मृत्यु से हिमालय के प्रति उसे गहरी सहानुभूति हो गई थी. लेकिन अब? अब सबकुछ परिवर्तित रूप में था…अब भावना किचन में घुसती ही नहीं. हिमालय ही जो कुछ बना सकते थे, बना लेते पर खाते दोनों साथसाथ.

भावना ने काफी समय तक बातें भी न के बराबर कीं. हिमालय कहते तो वह तटस्थ सी सुनती. जवाब नपेतुले शब्दों में देती.

हिमालय स्वयं चोट खाए हुए थे इसलिए भावना की पीड़ा को समझते थे. वह उसे समझाने का प्रयास जरूर करते, ‘‘जीवन मृत्यु में किसी का दखल नहीं चलता. इनसान खुद परिस्थितियों के अनुसार जीवन व्यतीत करने को मजबूर है. घाव कुछ हलका होने पर इनसान स्वयं अपने आसपास छोटीमोटी खुशियां खोजने का प्रयास करे. हमें इस तथ्य को अपना कर ही चलना होगा, भावनाजी.’’

भावना की आंखों से बस, आंसू टपकते रहते…वह बोलती कुछ नहीं. हिमालय जाने लगे तो भावना से यह वादा जरूर लिया कि वह अपने खानेपीने का पूरा ध्यान रखेगी. मन ठीक नहीं है तो क्या तन को स्वस्थ रखना जरूरी है.

समय के मरहम से भावना का घाव भरा तो हिमालय का जबतब आना उसे अच्छा लगने लगा…बातें भी करनी शुरू कर दीं. नाश्ताभोजन भी उन के पसंद का बनाने लगी. हिमालय को भी भावना के यहां आना अच्छा लगता.

मीता, गीता व उज्ज्वल भावना से मिलने आए हुए थे. तभी हिमालय भी आ गए थे. बेटियां चाह रही थीं कि मां उन के साथ या भाई के साथ चलें लेकिन भावना तैयार नहीं हुईं. उन का कहना था कि उन्हें अपने इसी घर में अच्छा लगता है.

बच्चे मां को समझ रहे थे…जहां उन्हें अच्छा लगे वहीं रहें. हां, उन्हें इस बात का अंदाजा जरूर लग गया था कि हिमालय अंकल के यहां रहने से मां के मन को कुछ ठीक लगता है. अंकल बरसों से उन के पारिवारिक मित्र रहे हैं और काफी समय उन लोगों ने साथसाथ गुजारा भी है. मीता और उज्ज्वल सोच रहे थे कि हिमालय अंकल जितना भी मां के साथ रह लेते हैं, कम से कम उतने समय तो वे लोग मां की तरफ से निश्चिंत से रहते हैं.

वैसे बच्चे चाहते कि उन में से कोई एक मां के पास अवश्य रहे लेकिन जब यह संभव नहीं था तो वे हिमालय अंकल पर ही निर्भर होने लगे और साग्रह उन से कहते भी, ‘‘अंकल, हम मां पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डालना चाहते पर आप से आग्रह करते हैं कि उन का हालचाल पूछते रहेंगे. हम लोग भी यथासंभव शीघ्र आने का प्रयास करते रहेंगे.’’

एक दिन हिमालय ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘भावना, मैं समझता हूं कि तुम्हारा कष्ट ऐसा है जिस का भागीदार कोई नहीं हो सकता. फिर भी हिम्मत कर के कह रहा हूं…यदि आप अपने जीवन में किसी हैसियत से मुझे शामिल करना चाहो तो मैं आप की शर्तों के साथ आप को स्वीकार करने को सहर्ष तैयार हूं. इस से न केवल एक को बल्कि दोनों को सहारा और बल मिलेगा.’’

थोड़ा विराम दे कर हिमालय ने पुन: कहा, ‘‘आप के हर निर्णय का मैं सम्मान करूंगा. आप इस बात से भी निश्चिंत रहिए कि हमारी दोस्ती के रिश्ते पर कोई आंच नहीं आएगी.’’

भावना ने पलक उठा कर हिमालय की तरफ देखा. वह मन से यही चाहती थी, हिमालय की बात अपनी जगह सही है. अब वह भी खुद को प्रांजल के अभाव में अकेली और बेसहारा अनुभव करती है. वह कोई गलत अथवा अनुचित कदम उठाना नहीं चाहती…उस के समक्ष उस का परिवार है, बच्चे हैं और सब से बड़ा समाज है. हिमालय की बात का कुछ जवाब दिए बिना वह किचन की तरफ बढ़ गई. हिमालय ने भी फिर कुछ कहा नहीं.

हिमालय के बेटे सौरभ व बेटी ऋचा को यह पता था कि जब से मां मरी हैं पिताजी बहुत दुखी, उदास व नितांत अकेले हैं. यह बात दोनों बच्चे अच्छी तरह जानते थे कि पापा को प्रांजल अंकल और भावना आंटी के यहां जाना हमेशा ही अच्छा लगता रहा, और आज जब आंटी नितांत अकेली व दुखी हो गई हैं, तब भी.

सौरभ ने ही ऋचा से कहा, ‘‘क्यों न हम भावना आंटी के मन का अंदाजा लगाने की कोशिश करें. यदि उन के मन में पापा के लिए कोई जगह होगी तो हम उन से जरूर कुछ कहना चाहेंगे. आंटी का साथ पा कर पापा के दिन भी अच्छे से गुजर सकेंगे.’’

सौरभ और ऋचा ने भावना के पास जाने का निश्चय किया. हिमालय, भावना के यहां ही थे. अचानक सौरभ को फोन से पता चला कि भावना आंटी को सीरियस बीमारी है फिर तो दोनों बहनभाई तुरंत ही वहां के लिए निकल पड़े. मीता, गीता तथा उज्ज्वल का परिवार सब पहुंच चुके थे.

दरअसल, कई दिनों से भावना का मन ठीक नहीं था. उलझन और अनिश्चय से भरा अंतर्मन समुद्र मंथन सा मथ रहा था…कभी हिमालय की बात और अपनत्वपूर्ण व्यवहार उसे अपनी तरफ खींचता तो कभी पति के साथ बिताए दिन यादों को झकझोर देते…तो कभी जीवन में आया अकेलापन भी अपना कोई साथी ढूंढ़ता…सब तरफ से घिरे मन को भावना ने अच्छी तरह से टटोला, परखा तो यही लगा कि पति के अभाव में वह कुछ सीमा तक अकेली और दुखी जरूर है पर उसे किसी और बात का अभाव नहीं है.

दूसरी बात, वह हर कदम अपने बच्चों और परिवार को साथ ले कर ही चलना चाहेगी…सोचती हुई भावना ने अपने मन में निश्चय किया कि हिमालय जैसे अब तक प्रांजल के दोस्त रहे बस, वही दोस्ती का रिश्ता अब भी बना रहेगा.

अपने फैसले से संतुष्ट भावना ने तय किया कि कल सुबह वह हिमालय को उन की उस दिन कही बात के बारे में अपना फैसला जरूर सुना देगी.

लेकिन मन में तनाव के चलते रात को भावना का रक्तचाप काफी बढ़ जाने से उसे जबरदस्त हार्ट अटैक पड़ गया. हिमालय ने फौरन उसे अस्पताल में भरती कराया. डाक्टरों ने 72 घंटे उसे आईसीयू में रखा था. एक सप्ताह अस्पताल में रहने के बाद ही भावना घर आ सकी.

15 दिनों तक मां के साथ रहने के बाद आफिस व बच्चों के स्कूल के चलते मीता, गीता और उज्ज्वल वापस जाने की तैयारी में लग गए थे. हिमालय के दोनों बच्चे सौरभ व ऋचा तो 2 दिन बाद ही चले गए थे. उज्ज्वल ने मां को ले जाना चाहा लेकिन भावना अभी इस स्थिति में नहीं थी कि सफर कर सके. बच्चे जानते थे कि मां की सेवा में हिमालय अंकल का अहम स्थान रहा, वह अभी भी भावना को अकेली छोड़ कर जाने के लिए तैयार नहीं थे.

हिमालय का भावना के प्रति आत्मीयभाव व सहृदयता से की गई सेवा ने सिर्फ भावना के ही नहीं बल्कि दोनों के बच्चों के अंतर्मन को गहराइयों से छू लिया था. और अपनी मां व पिता के प्रति एक सुखद फैसला लेने को प्रेरित किया. जाने से पहले मीता और उज्ज्वल ने सौरभ और ऋचा से फोन पर लंबी बातचीत की. इसी के साथ उन्होंने अपने सोचे फैसले के प्रति मन को पक्का भी कर लिया.

एक दिन भावना ने देखा कि अचानक उस के बच्चों के साथ हिमालय के भी दोनों बच्चे आए हैं. उस ने सब से बेहद अनुनय के साथ कहा, ‘‘तुम सब ने तथा हिमालय अंकल ने मेरी बहुत सेवा की. शायद उन के यहां होने से ही मुझे दूसरा जीवन मिला है. यदि उस दिन हिमालय अंकल यहां न होते तो…’’

मीता ने मां के होंठों पर हाथ रख कर आगे बोलने से रोक दिया. अचानक उसे याद आया जब 11 दिसंबर को उस की शादी में हिमालय अंकल सपरिवार आए थे तो पापा ने उन से मुसकरा कर कहा था, ‘जानते हो हिमालय, मैं ने मीता की शादी के लिए यह दिन चुन कर क्यों रखा? यह बड़ा शुभ दिन है…हमारी भावना का जन्मदिन जो है.’

‘तो यह बात तुम ने आज तक मुझ से छिपा कर क्यों रखी? और साथ में यह भी भूल गए कि 11 दिसंबर को मेरा भी जन्मदिन होता है.’ हिमालय अंकल के इतना कहने के बाद प्रांजल ने खुश हो कर उन को बांहों में भर लिया था. फिर तो हिमालय अंकल और मां को बधाई देने वालों का घर में तांता सा लग गया था.

मीता ने कहा, ‘‘मां, जब से मेरी शादी हुई है मैं अपने विवाह की वर्षगांठ पर कभी आप के पास नहीं रही. इस बार मेरी दिली इच्छा है कि इस शुभ दिन का जश्न मैं और यश आप के साथ मनाएं. और मैं ने तो अपनी शादी की इस सालगिरह के लिए होटल भी बुक करा लिया है. कुछ खासखास मेहमानों के साथ हिमालय अंकल, सौरभ भैया तथा ऋचा भी रहेगी. मां, उस दिन आप का भी तो जन्मदिन होता है…हम दोनों यह दिन सुंदरता से एकसाथ मनाया करेंगे.’’

भावना को बेटी की बात सुन कर अच्छा लगा, इसी बहाने घर में कुछ दिन तो रौनक रहेगी. उसे याद था कि इस दिन हिमालय का भी जन्मदिन होता है, लेकिन उस ने मीता से इस का कोई जिक्र नहीं किया.

निश्चित दिन से एक दिन पहले ही ज्यादातर लोग आ गए, इसीलिए अगले दिन सुबह से ही घर में चहलपहल का माहौल बना हुआ था. जहां मीता और यश को सब बधाई दे रहे थे वहीं भावना और हिमालय भी अपनेअपने जन्मदिन की बधाई स्वीकार कर रहे थे.

संध्या समय घर के सभी लोग होटल पहुंच गए. होटल में आकर्षक सजावट की गई थी. एक तरफ शहनाई वादन की व्यवस्था की गई थी. विवाह की वर्षगांठ के मौके पर मीता और यश की जयमाल होने के साथ ही तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी. तभी मुसकराती मीता हिमालय के पास आ कर आग्रह पूर्वक बोली, ‘‘प्लीज अंकल, एक मिनट के लिए उधर मंच पर चलिए.’’

हिमालय भी बिना कुछ सोचेसमझे उस के साथ हो लिए. दूसरी तरफ ऋचा भावना को साथ ले कर मंच पर आई.

मीता और ऋचा ने आमनेसामने खड़े भावना और हिमालय के हाथों में बड़ा सा फूलों का हार पकड़ाते हुए हंस कर कहा, ‘‘जानते हैं अंकल और आंटी, आप इस का क्या करेंगे?’’

‘‘हां, तुम को और यशजी को शादी की वर्षगांठ की खुशी में पहनाना है,’’ हिमालय ने मुसकरा कर कहा.

‘‘नहीं, आज मम्मी का जन्मदिन है. इस उपलक्ष्य में यह हार आप उन को पहनाएंगे,’’ मीता ने हंस कर कहा.

‘‘और आंटी, आज मेरे पापा का भी जन्मदिन है,’’ मीता के कहने के तुरंत बाद ऋचा ने कहा, ‘‘इस खुशी में आप को हार पापा को पहनाना है.’’

अपनेअपने हाथों में हार पकड़े हिमालय और भावना आश्चर्य से भर कर बच्चों की तरफ देखने लगे. अपने लिए बच्चों की इस खूबसूरत कोशिश पर दोनों का दिल भर आया और उन्होंने बच्चों का मन रखने के लिए एकदूसरे को जयमाला पहना कर रस्म अदा कर दी.

मीता और ऋचा ने तालियां बजाते हुए सब के सामने कहा, ‘‘अब आप दोनों दोस्त से आगे एकदूसरे को स्वीकार कर के एक दूसरे के हो कर रहेंगे. हमारा यह प्रयास बस, आप लोगों को अपनी स्थायी पीड़ा और अकेलेपन से कुछ सीमा तक निजात दिलाने के लिए किया गया है.’’

बच्चों के साहस और प्रयास की सब ने मुक्त कंठ से सराहना की. तालियोंकी गड़गड़ाहट से होटल का हाल गूंज उठा. हिमालय ने अनुग्रहीत नजरों से बच्चों की तरफ देखा…जिन्होंने अत्यंत खूबसूरती से सब को साक्षी बना कर उन के मिलन को स्वीकार किया था.

Family Story : माली – क्या अरुंधती को मिला मां बनने का सुख

Family Story : ‘‘औ… औ… औ…’’ अरुंधती की आंख खुली तो किसी के ओकने की आवाज सुन कर एकाएक विचार मस्तिष्क में कौंधा, ‘क्या श्यामली को उलटियां हो रही हैं.’ तत्काल ही बिस्तर छोड़ वह बाहर की ओर लपकी. बाहर जा कर देखा तो श्यामली पौधों को पानी दे रही थी. ‘‘क्यों रे श्यामली, अभी तू उलटी कर रही थी?’’ श्यामली चौंक कर, ‘‘जी मैडमजी.’’ अरुंधती श्यामली के कुछ और पास आ कर मुसकराई और भौंहें उठा कर शरारती अंदाज में बोली, ‘‘क्या बात है श्यामली, कोई खुशखबरी है क्या?’’ श्यामली कुछ न बोली. दोनों हाथों से मुंह छिपा कर ऐसे खड़ी हो गई मानो शर्म के मारे अभी जमीन में गड़ जाएगी.

अरुंधती को बात सम झते देर न लगी, ‘‘श्यामली, यह तो बहुत ही खुशी की बात है. अब तू सुन, आज से तू कोई भारी काम नहीं करेगी और अपने खानपान पर पूरा ध्यान देगी. और सुन, रमिया कहां है, सो रहा है क्या? बुला उस को. मैं आज उस की खबर लेती हूं. अब सारे काम वही करेगा, तू सिर्फ आराम करेगी, सम झी?’’ अरुंधती के चेहरे पर खुशी, चिंता और उतावलेपन का मिलाजुला भाव था. श्यामली शरमा कर वहां से दौड़ गई. अरुंधती ने हाथ को ऐसे उठाया मानो कह रही हो ‘आराम से, थोड़ा हौलेहौले चल श्यामली, जरा संभल कर.’ शादी के 12 साल बीत चुके थे. अरुंधती की ममता तृषित थी. उस की बगिया में कोई फूल नहीं खिल सका. रहरह कर अतृप्त मातृत्व सूनी कोख में टीस मारता था. सभी कोशिशें कर लीं,

सभी अच्छे से अच्छे डाक्टर, बड़ेबड़े पंडितवैद्य, तांत्रिक और ओ झा से संपर्क किया लेकिन प्रकृति उस की गोद में संतान डालना भूल गई थी. अरुंधती को पौधों से बहुत ही प्यार था. वह पौधों की देखभाल ऐसे करती थी मानो वे उस के अपने बच्चे हों या फिर कह सकते हैं कि, जो ममता, जो वात्सल्य उस में उबलउबल कर बाहर छलकता था वही स्नेह वह इन पौधों पर छिड़क कर अपनी ममता की प्यास शांत करती थी. रमिया उस के यहां माली का काम करता था, बहुत छुटपन से वह अरुंधती के पास था. अरुंधती को उस से बहुत लगाव था. उस ने रमिया के रहने के लिए घर के पीछे एक छोटा सा क्वार्टर बनवा दिया था. रमिया अरुंधती का बहुत ध्यान रखता था और खासकर उस की बगिया का. उसे मालूम था कि इन पौधों में मैडमजी की जान बसती है. सो, वह उन की देखभाल में कोई कसर न छोड़ता था.

पिछले साल ही रमिया गांव से गौना करवा कर श्यामली को ले आया था. श्यामली थी तो सांवली पर उस के नैननक्श गजब के आकर्षक थे. वह बहुत ही कम बोलती थी, अधिकतर बातों का जवाब बस सिर हिला कर देती थी. काम में बहुत ही होशियार थी. सो, अरुंधती के घर के कामों में भी अब श्यामली हाथ बंटा देती थी. खाली समय में श्यामली अरुंधती से लिखना और पढ़ना भी सीखती थी. अरुंधती के स्नेह और अपनेपन की वजह से श्यामली जल्द ही उस से बहुत ही घुलमिल गई और धीरेधीरे दोनों बहुत करीब आ गईं, अपनी हर बात एकदूसरे से बांटने लगीं. तभी आज अचानक श्यामली की उलटियों की आवाज ने अरुंधती को चौंका दिया. श्यामली मां बनने वाली है, इस विचार से ही अरुंधती इतनी रोमांचित हो उठी कि उस के रोमरोम में सिहरन हो उठी मानो उस की स्वयं की कोख में से कोई नन्ही कोंपल प्रस्फुटित होने वाली है. ‘‘शेखर,’’ अरुंधती अपने पति से बोली. ‘‘हां अरु, कहो क्या बात है?’’ शेखर ने पूछा. ‘‘वो अपनी श्यामली है न, वो मां बनने वाली है.’’ ‘‘अरे वाह, यह तो बहुत ही खुशी की बात है,’’ शेखर अरुंधती की ओर देखते हुए बोला. ‘‘हां, बहुत ही खुशी की बात है. कितने वर्षों बाद हमारे आंगन में किलकारियां गूंजेंगी.

नन्हेमुन्हे बहुत ही कोमल रुई जैसे मुलायम प्यारेप्यारे छोटे से बच्चे को गोद में ले कर छाती से चिपकाने का अवसर आया है शेखर, है न? मैं ठीक कह रही हूं न?’’ अरुंधती शेखर से बोल रही थी और शेखर जैसे किसी सोच में पड़ा अरुंधती के इस उतावलेपन का आकलन कर रहा था. शेखर चिंतित था यह सोच कर कि अरुंधती की ममता उसे किस ओर ले जा रही है. इतना उतावलापन, इतना उस बच्चे के बारे में सोचना कहीं अरुंधती के लिए घातक सिद्ध न हो. पर अरुंधती तो बस बोले जा रही थी, ‘‘मैं ने तो श्यामली से कह दिया है कि वह कोई काम न करे, सिर्फ आराम करे और अच्छीअच्छी चीजें खाए. खूब जूस पिए. और हां, दूध बिना भूले दोनों समय पीना बहुत जरूरी है. आखिर पेट में एक नन्ही सी जान पल रही है.’’ वह बोलती जा रही थी और शेखर उस में वात्सल्य का बीज फूटते हुए साफसाफ देख रहा था. अरुंधती का अधिकतर समय अब श्यामली की तीमारदारी में ही निकलता था.

उस को समय से खाना खिलाना, जूस पिलाना, जबरदस्ती दूध पिलाना, समयसमय पर डाक्टर से चैकअप करवाना सब अरुंधती खुद करती थी. रमिया और श्यामली तो जैसे मैडमजी के युगोंयुगों के लिए आभारी हो गए थे. कौन किस के लिए इतना करता है, वह भी घर के एक मामूली से नौकर के लिए. उन्हें तो सम झ ही नहीं आता था कि वे मैडमजी के इन एहसानों का बदला कैसे चुकाएंगे. सौ जन्मों में भी इतने प्यार, विश्वास और अपनेपन का मूल्य नहीं चुकाया जा सकता. आखिर वह समय भी आ गया जिस की सब को प्रतीक्षा थी. श्यामली ने एक फूल से नन्हे पुत्र को जन्म दिया. सब से पहले अरुंधती ने उस को गोद में लिया. उस की आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे. बच्चे को उस ने अपनी छाती से चिपका रखा था. उसे महसूस हो रहा था कि उस की छाती से दूध की सहस्त्रों धाराएं फूट पड़ी हैं. ‘

‘लाइए मैडम, बच्चे को उस की मां को दें ताकि वह बच्चे को स्तनपान करवा सके,’’ अचानक नर्स की आवाज से अरुंधती की तंद्रा भंग हुई. ‘‘हां, हां,’’ कह कर अरुंधती ने बच्चे को श्यामली की बगल में लिटा दिया और जैसे किसी स्वप्न से जागने के एहसास ने उस को हिला कर रख दिया. वह बहुत ही भारी मन से लड़खड़ाती हुई कमरे से बाहर निकल आई. शेखर बाहर ही खड़ा था. उसे जिस बात का अंदेशा था वही घटित हुआ. शेखर ने अरुंधती को कमर से पकड़ कर गाड़ी में बैठाया और घर ले आया. अरुंधती शून्य में थी, कुछ बोली नहीं. शेखर ने भी कोई बात नहीं छेड़ी क्योंकि वह भलीभांति जानता था कि इस समय अरुंधती के मन में क्या चल रहा है. 3 दिन गुजर गए. अरुंधती ने स्वयं को संभाल लिया था. वह रोज श्यामली से मिलने अस्पताल जाती. कुछ देर बच्चे के साथ खेलती, प्यार करती और घर आ जाती. कल श्यामली अस्पताल से घर आने वाली थी. अरुंधती ने स्वयं रमिया के यहां सारी व्यवस्थाएं करवाईं ताकि श्यामली और बच्चे को कोई परेशानी न हो. ‘‘उआं…उआं…’’ आवाज कानों में पड़ते ही अरुंधती की नींद खुली. ‘अरे, यह क्या, श्यामली घर आ गई?’ अरुंधती बिस्तर से लगभग भागती हुई उठी और तीर की गति से बाहर निकली. लपक कर रमिया के घर की तरफ दौड़ी. ‘

अरे यहां तो ताला पड़ा है. फिर श्यामली कहां… कहीं घर में तो नहीं वह…’ अपने दरवाजे की ओर लपकी लेकिन उसे फिर बाहर से ही बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी. वह बाहर निकल कर बेचैनी से इधरउधर नजरें दौड़ाने लगी. तभी उसे बगिया में कुछ हरकत सी महसूस हुई. वह तुरंत उस ओर दौड़ी, जा कर देखा तो वहां फूलों के बीच श्यामली का बच्चा लेटा हुआ था. ऐसा लग रहा था मानो अभीअभी एक नन्हा सा नयानया फूल खिला है. अरुंधती ने उस को देखते ही गोद में उठा लिया और बोली, ‘ये रमिया और श्यामली क्या पागल हो गए हैं जो इस नन्ही सी जान को यों जमीन पर लिटा दिया. वह पलट कर आवाज देने ही वाली थी कि बच्चे के हाथ में एक कागज का टुकड़ा देख कर रुक गई और उस कागज के पुर्जे को पढ़ने लगी.’ ‘‘मैडम जी, ‘‘यह आप की बगिया का फूल है, हम तो माली थे. हम ने बीज लगाया था. परंतु इस बीज को प्यार और ममता से सींचा ‘‘आप ने. अब इस फूल पर सिर्फ और सिर्फ आप का अधिकार है. ‘‘आप की, श्यामली.’’ अरुंधती कांप रही थी. उस की आंखें अविरल बह रही थीं. बच्चे को छाती से कस कर चिपटा कर मानो वह पूरे वेग से चिल्लाई, ‘‘शेखर, देखो, मैं बंजर नहीं हूं. यह देखो, फूल खिला है, मेरी बगिया का फूल, श्यामली का फूल.’’

Famous Hindi Stories : एक भगोना केक – क्यों उसे देना पड़ा माफीनामा

Famous Hindi Stories : स्नेहा तिरेक में लेख के महानायक, मुख्य महापुरुष मित्र सोनुवाजी ने एक भगोना केक बनाने की ग्रीष्म प्रतिज्ञा की. पूरा विश्व यह प्रतिज्ञा सुन कर प्रलयानुमान लगाने लगा. उन की यह प्रतिज्ञा इतिहास में ‘सोनुवा की प्रतिज्ञा’ नाम से लिखी जाएगी. आखिर क्यों? योंतो पिछले जन्म के पापों के आधिक्य से जीवन में अनेक चोंगा मित्रों की रिसीविंग करनी पड़ी, किंतु दैत्यऋण (दैवयोग के विपरीत) से हमारी भेंट मित्रों के मित्र अर्थात मित्राधिराज के रूप में प्रत्यक्ष टैलीफोन महाराज से हुई, जिन की बुद्धि का ताररूपी यश चतुर्दिक प्रसारित हो रहा था. दशोंदिशा के दिक्पाल उस टैलीफोन महर्षि के नैटवर्क को न्यूनकोण अवस्था में झुक झुक कर प्रणाम कर रहे थे. हमारे जीवन के संचित पुण्यों का टौकटाइम वहीं धराशायी हो गया क्योंकि हम ने उन से मित्रता का लाइफटाइम रिचार्ज करवा लिया था.

कला क्षेत्र में आयु की दृष्टि से भीष्म भी घनिष्ठ बडी बन जाते हैं लेकिन हमारे महापुरुष मित्र, भीष्म नहीं ग्रीष्म, प्रतिज्ञा किया करते हैं. हकीकत में वे महान भारतवर्ष की आधुनिक शिक्षा पद्धति के सुमेरू संस्थान एवं गुरुकल (प्रतिष्ठा कारणों से नाम का उल्लेख नहीं किया गया है) द्वारा उत्पादित एवं उद्दंडता से दीक्षित थे पर दीक्षित नहीं, किंतु ज्ञान के अत्यधिक धनी हैं, इतने धनी कि उन के आधे ज्ञान को जन्म के साथ ही स्विस बैंक के लौकरों में बंद करवाया गया. अन्यथा वे दुनिया कब्जा लेते और डोनाल्ड ट्रंप व जो बाइडेन को लोकतांत्रिक कब्ज हो जाता. हम उन की चर्चा करेंगे तो यह लेख महाकाव्य हो जाएगा. सो, मैं लेख को उन की एक जीवनलीला पर ही केंद्रित रखूंगा. उन की मित्रता में इतना सामर्थ्य था कि जब वे निषादराज के समान भक्तिभाव प्रकट करते थे तो सामने वाला मित्र एक युग आगे का दरिद्र सुदामा बन जाता था. कालांतर में यह हुआ कि हमारे एक अन्य पारस्परिक मित्र की जयंती की कौल आई तो रात्रि के 12 बजे देव, नाग, यक्ष, किन्नर, गंधर्व और दैत्यों ने बिना मोदीजी के आदेश के थालियां बजाईं और दीप जलाया. कहीं दीप जले कहीं दिल.

यह विराट दृश्य देख कर हमारा दिल सुलग उठा. उसी दिवस, स्नेहातिरेक में, लेख के महानायक व मुख्य महापुरुष मित्र ने केक बनाने की ग्रीष्म प्रतिज्ञा की. पूरा विश्व यह प्रतिज्ञा सुन कर प्रलयानुमान लगाने लगा. उन की यह प्रतिज्ञा इतिहास में ‘सोनुवा की प्रतिज्ञा’ नाम से लिखी जाएगी. उन के संदर्भ में यह जनश्रुति भी प्रचारित है कि वे मिनिमम इनपुट से मैक्सिमम आउटपुट देने वाले ऋषि हैं. सो, वे अपनी बालकनी में ‘एक टब जमीन’ में ही ‘वांछित उत्प्रेरक वनस्पतियों’ की जैविक खेती भी करते थे. ‘एक टब जमीन’ की अपार सफलता के बाद देवाधिपति सोनुवा महाराज ने ‘एक भगोना केक’ के निर्माण की घोषणा की. इस महान कार्य के वे स्वयंभू, नलनील एवं विश्वकर्मा अर्थात ‘थ्री इन वन’ थे. वे तत्काल इस कार्य में मनोयोग से लगे, मानो इसी के लिए उन का जन्म हुआ हो. सर्वप्रथम उन्होंने अनावश्यक सामग्रियों के एकत्रीकरण में दूतों को भेज कर उन की अव्यवस्था की.

इस के बाद अपने ज्ञानचक्षुओं को खोल कर बैठ गए. वैसे तो वे स्वभाववश मनमोहन सिंह थे किंतु ग्रीष्म प्रतिज्ञाओं के बाद वे किम जोंग हो जाते थे. तब उन का विकट रूप देख कर मैं ने अनेक भूतों को मदिरा मांगते देखा क्योंकि वे पानी नहीं पीते. किसी अभागी भैंस के 2 लिटर दूध को एक भगोने में डाल कर उसे सासबहू सीरियल की कथा सुना कर पकाते रहे. तत्पश्चात उन्होंने मैनमेड ‘मिल्कमेड’ डाल कर उसे शेख चिल्ली की बुद्धि जैसा मोटा बना दिया. अब उसे अनवरत कई युगों तक फेंटते रहे. जब उन का कांग्रेस का चुनावचिह्न शक्तिहीन हुआ तब उन्होंने वह पेस्ट दूसरे बड़े भगोने के अंदर नीचे कंकड़पत्थर की भीष्म शैया बना कर रख दिया और उन भगोनों को भाग्य के भरोसे अग्निदेव को समर्पित कर के 2 घंटे की तीर्थयात्रा पर निकल गए. मैं उन की रक्षा में लक्षमण सा फील करता हुआ धनुषबाण ले कर बैठ गया. लगभग एक युग के अंतराल के बाद मैं ने उन से दूरभाष पर संपर्क स्थापित किया तो उन्होंने अग्नि को और प्रबल कर के कुछ क्षणों में आने को कह दिया. मैं उन के आशीष वचन सुन कर निश्ंिचत रहा. सोनुवा महाराज ने आते ही अपनी यज्ञ सामग्री का निरीक्षण किया तो अपने परिपक्व ज्ञानलोचनों से उसे अधपका पाया.

एक और देव पुरुष ने उसे ‘बीरबल का केक’ कहा. तब भी सोनुवाजी के आत्मविश्वास में रंच मात्र भी कमी न आई. वे चीन का विरोध करते हुए आधा किलो चीनी की समिधा ‘केकाकुंड’ में झोंक कर चल दिए और इधर सब स्वाहा होता रहा. 2 घंटे के एक और युग बीत जाने पर प्रलय के बाद जब सृष्टि जगी तो पाया गया कि उस यज्ञ की बेदी में समय के थपेड़ों के गहरे काले स्याह निशान पड़ गए, जिन्हें सोनुवा महाराज ने अपने विज्ञान की कार्बन डेटिंग से बताया कि अभागी काली भैंस के दूध के रंग के कारण से यह पदार्थ भी वही रंग ले कर कोयले में परिवर्तित हो गया है जो कि दूसरे देशों को निर्यात कर के हम लोग कई भगोने केक चीन से आयात करेंगे. हम उन की इस सफलता पर भूतपूर्व अदनान सामी की तरह फूल कर कुप्पा और भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह चुप्पा दोनों हो गए थे.

पर वास्तविक समस्या अब थी. कोयले की खान बने भगोनेरूपी पात्र अब एक बूंद पानी रखने के भी पात्र नहीं बचे. हम ने उन्हें इतना रगड़ा कि हाथ रगड़ गए. शायद आदि मानव के चकमक पत्थर रगड़ने के बाद विश्व इतिहास में यह रगड़ने की ऐसी दूसरी घटना थी. हालांकि, इस में बौस द्वारा कर्मचारी को रगड़ना नहीं सम्मिलित किया गया है. उस दिवस, विम बार और उस के समकक्ष सभी उत्पादों के विज्ञापन में आने वाली सुंदर महिलाएं सूर्पणखा के बराबर लगने लगीं. यद्यपि हम ने वह केक 70 कोनों का मुंह बना कर खाया भी और जन्मदिन वाले मित्र से कहा भी कि तुम ने जन्म ले कर अच्छा नहीं किया, अगर जन्म न लेते तो यह केक अस्तित्व में न आता. इस घटना से सोनुवा महाराज को पाककला से विरक्ति हो गई.

उन्होंने तत्काल स्वयं को किचन के किचकिचीय जीवन से मुक्त रखने का निर्णय ले कर सृष्टि पर उपकार किया. उन का माफीनामा जल्द ही संग्रहालय में रखवाया जाएगा जो मानवजाति को भोजन पर किसी भी ऐसे प्रयोग से हतोत्साहित करने का प्रमाणपत्र सिद्ध होगा. क्या उन का क्षमापत्र पढ़ कर काला हुआ पात्र उन्हें क्षमा करेगा? हम उन्हें भगोना बरबाद होने से लगे सदमे से बचाने में प्रयत्नशील हैं. इस के लिए 7 मित्रों की संसद में यह निर्णय हुआ है कि अब वह भगोना भी एक टब जमीन के साथ रखा जाएगा और उस में भी उसी वांछित उत्प्रेरक वनस्पति की खेती होगी जिसे वायु में उड़ा कर वातावरण को संतुष्टि मिलती है और हमारे मन को वह शक्ति जिस से हम इस केक को न याद कर पाएं और गाएं ‘एक भगोना केक, जल्दीजल्दी फेंक.’

Hindi Satire : बीमार पड़ना घाटे का सौदा नहीं

Hindi Satire : 8 बजे के करीब नाश्ता खत्म कर सरला धोबी को प्रैस के लिए कपड़े देने नीचे उतरी तो लौबी में उमेशजी से मुलाकात हो गई. वे थोड़े चिंतित से लिफ्ट से निकल रहे थे. दोनों हाथों में कई थैले पकड़े थे. सरला को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि आज उमेश भाई साहब दफ्तर नहीं गए, जरूर कोई विशेष बात है.

उमेशजी ने सरला का अभिवादन किया तो उस ने अपना प्रश्न पूछ ही लिया.

वे ठिठके. फिर थोड़े परेशान से बोले, ‘‘क्या बताऊं भाभीजी, ज्योत्सना बीमार है. 3 दिन हो गए हैं.’’

‘‘एकदम ठीक हमारे सामन रहने वाली हमारी पड़ोसिन बीमार है और हमें पता तक नहीं?’’ सरला ने बड़े भोलेपन से कहा.

‘‘मैं तो परेशान हो गया हूं, भाभीजी. दफ्तर से छुट्टी ले कर ज्योत्सना की तीमारदारी में जुटा हूं. उस पर भी सारा घर अस्तव्यस्त हो गया है. सच, घर तो घरवाली से ही है. वह देखभाल न करे तो सब चौपट हो जाता है,’’ उमेशजी के स्वर में मन की गहन पीड़ा व्याप्त थी.

‘‘मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताइए?’’ सरला ने औपचारिकतावश कह दिया.

‘‘जरूर बताएंगे, भाभीजी, अरे, इस तरह के सुखदुख में पड़ोसी ही काम आते हैं,’’ कहते हुए उमेशजी अपने फ्लैट में घुस गए.

सरला प्रैस वाले को कपड़े दे कर ज्योत्सना को देखने चली गई. करीब घंटा वहां बैठ कर जब लौटी तो उस का मन उदास और अशांत था. अब उस के अंतर में केवल एक  ही महत्त्वाकांक्षा थी कि काश, वह भी बीमार पड़ जाती.

ज्योत्सना क्या शान से पलंग पर लेटी थी. हर समय फोन पर नोटिफिकेशन की घंटी बज रही थी. कितने ठाट से वह अपने पति से सेवा करा रही थी. उमेशजी मौसमी का जूस उसे अपने हाथ से पिला रहे थे. ज्योत्सना की 2 सहेलियां उस से मोबाइल पर चैट कर रही थीं. सिरहाने रखी मेज पर दवाइयां, ग्लूकोस और पीने का पानी रखा था.

बड़ी ठाटदार सैटिंग थी. ज्योत्सना सब की चिंता और सहानुभूति का केंद्र बनी हुई शान से पलंग पर गर्व से मुसकरा रही थी और बीमारी भी कोई खास नहीं, थोड़ा सा जुकाम और खांसी तथा हलकी हरारत. बस मोबाइल पर ‘टेक केयर,’ ‘गैट फैल सून’ के मैसेज भरे थे. सरला और ज्योत्सना किसी ग्रु्रप में नहीं थीं, दोनों का अलगअलग सर्कल था.

सरला का अंतर कसक गया. ज्योत्सना के परिपेक्ष्य में उस ने अपने खुद के जीवन का मूल्यांकन किया. क्या वह सचमुच एक हाड़मांस की जीवित नारी है अथवा एक मशीन जो दिन में चौबीसों घंटे और साल में बारहों महीने बस यंत्रवत अपने काम में जुटी रहती है?

सुबह 5 बजे उठना, घर की सफाई, दूध की थैली, अखबार लेना फिर दोनों बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजना. तैयार हो कर 8 बजे तक खुद और पति को नाश्ता करा और दोनोें के लंच पैक कर दफ्तरों को विदा होना, घर की साफसफाई पीछे से मेड कर जाती थी. शाम को औफिस से लौट कर मशीन में कपड़े धोना, शाम को बच्चों को कोचिंग में भेजना. रात को उन्हें खिला कर उन का स्कूल का काम कराना. फिर रात का खाना. इस दौरान बाजार के 1-2 चक्कर भी लग जाते.

रात जब 10 बजे के बाद सरल बैड पर लेटती है तो थकान से उस की नसनस चटकने लगती है. ऐसे में पति को भी रोमांच का दौरा पड़ता है. खैर, उसे तो खुशीखुशी अपने सारे दायित्व पूरे करने ही हैं.

आज ज्योत्सना के यहां से लौट कर सरला को सिर्फ अपने ऊपर ही नहीं, अपने पति पर भी खीज आ रही थी. आखिर उस की यह मशीन किस कंपनी की बनी है जो कभी रुकती ही नहीं, न ही उस में कोई टूटफूट होती है? 15 साल हो गए शादी को. सभी उसे गारंटेड लेने लगे थे.

उधर पति महोदय भी पक्के व्हाट्सऐप डाक्टर थे. पढ़ने का शौक है पर साहित्य नहीं, फिजिकल या डिजिटल पत्रपत्रिकाएं नहीं, आयुर्वेदिक और होमियोपैथी के मैसेज पढ़ेंगे. घर में दवाखाना बना रखा है. जरा उसे या बच्चों को कोई तकलीफ हुई नहीं कि उन की डाक्टरी शुरू. पेट दर्द हुआ तो नक्स वोमिका दे दी. सिरदर्द में डिस्प्रिन यानी हर परेशानी का दवा दे देंगे.

संयोग से उन की सारी दवाएं कारगर सिद्ध होतीं. 1 या 2 खुराक में ही वह और बच्चे चुस्तदुरुस्त हो जाते हैं. बीमारी सिर उठाती है और वे तत्काल उसे कुचल देते हैं. ऐसे में बीमार पड़ कर ऐशोआराम करने का अवसर ही कहां मिल पाता है?

सरला थोड़ा आराम करने लेट गई. ज्योत्सना ने आज उसे एकदम हिला कर रख दिया था. वह बेहद थकीथकी सी लग रही थी. काश, वह भी बीमार पड़ जाती. पर तभी उस का अंतर कांप गया. कहीं उसे कोई गंभीर बीमारी हो गई तो? कैंसर, किडनी फेल्योर या फिर हृदय रोग. इन जानलेवा बीमारियों का स्मरण करते ही उस ने अपनी महत्त्वाकांक्षा पर पानी फेर दिया. उस ने अपनी प्रार्थना को परिवर्तित कर दिया. वह गंभीर रूप से नहीं, साधारण रूप से बीमार पड़ना चाहती थी. वह एक ऐसी बीमारी चाहती थी जिस का इलाज उस के पति के पास न हो और जिस में उसे 8-10 दिन का विश्राम मिल जाए.

कैसा सुखद संयोग था वह. कितनी तत्परता से सरला की मनोकामना पूरी हो गई. दिल्ली में सीजनल वायरल फैला. कदाचित वायरल ने सरला के मन की अभिलाषा को सुन लिया था. कोविड का काला साया तो अब भुला दिया गया था पर इस वायरल का भी अपना मिजाज था.

एक दिन दोपहर बाद सरला के सारे बदन में दर्द शुरू हो गया. माथा तपने लगा. कमर टूटने लगी. आंखों में जलन, सर्दी के कारण बदन में झुरझुरी. वह छुट्टी ले कर घर आ गई. पति को मैसेज कर दिया. पति ने औनलाइन दवाइयों का और्डर कर दिया.

श्रीमानजी शाम 6 बजे दफ्तर से लौटे तो सरला को अक्तूबर की 20 तारीख को पलंग पर कंबल ओढ़े लेटा देख कर मुसकरा कर बोले, ‘‘वायरल को बुला लिया? चलो, कोई बात नहीं. एक खुराक में ही रफूचक्कर हो जाएगा,’’ कह उन्होंने आए पैकेट में से 2 टैबलेट दीं.’’

सरला ने श्रीमानजी की आत्मविश्वास से भरी यह गर्वोक्ति सुनी तो उस का दिल डूब गया. जैसेतैसे उस की मनचाही हुई और यहे महाशय सब गुड़गोबर कर देना चाहते हैं.

बहरहाल, श्रीमानजी ने सरला को आयुर्वेदिक दवा की 2 खुराक दीं. 2 घंटे बीत गए. कुछ नहीं हुआ. वह खुश, पर श्रीमानजी निराश. उन्होंने घंटेघंटे भर के अंतर से कई दवाइयां दीं पर सब बेकार.

बीमारी आ चुकी थी. करीब 9 बजे बुखार नापा. 104 डिगरी. सरला ने थर्मामीटर देखा तो कंपकंपी छूट गई और वह घबरा कर बोली, ‘‘डाक्टर को कंसल्ट कराएं. इतना तेज बुखार है.’’

‘‘वायरल है, इस में डाक्टर क्या करेगा?’’ श्रीमानजी ने तटस्थ स्वर में कहा, ‘‘रात के खाने का क्या होगा? सुबह का कुछ बचा है?’’

सुबह की थोड़ी सी दाल बची थी. बासी खाना उसे पसंद नहीं था. इसलिए मेड से उतना ही बनवाती थी जितनी जरूरत होती. अत: खाना नहीं था.

श्रीमानजी ने दूध उबाला और उन तीनों ने चाइनीज खाना और्डर किया और ठाट से खाया. सरला को 1 गिलास दूध दिया. उसे एकदम जहर जैसा कड़वा लगा.

श्रीमानजी और बच्चे आराम से सो गए. पर सरला रातभर बुखार में तपती रही. सिर दर्द से फटता रहा. पलभर भी वह सो नहीं पाई. सुबह के समय जरा आंख लगी. उस के व्हाट्सऐप गु्रप में कईयों के बीमार होने के मैसेज थे. सभी के लिए सब ने ‘टेक केयर’ का एक सा मैसेज कर टरका दिया.

सुबह सरला की आंख खुली तो उस ने देखा, दोनों बच्चे तैयार हो कर स्कूल जाने वाले हैं. श्रीमानजी बेहद बौखलाए हुए इधरउधर भागदौड़ कर रहे थे. वह उठ कर बैड पर बैठी तो लगा जैसे शरीर की सारी शक्ति को किसी ने निचोड़ लिया है. श्रीमानजी ने पास आ कर उस की तबीयत का न हाल पूछा, न माथे पर प्यार भरा हाथ रख बुखार देखा, न एक प्याला गरम चाय पेश की.

वहे आए और बेहद उखड़े स्वर में बोले, ‘‘तुम बीमार क्या हुईं, सब चौपट हो गया. 6 बजे नींद खुली. तब तक दूध की थैली डिलिवरी बौय बाहर रख गया था जो किसी के डौग ने फाड़ दी.’’

‘‘तो क्या दूध नहीं मिला? तो अब बच्चे क्या पीएंगे?’’ सरला का कलेजा कसक गया.

‘‘तुम दूध की बात कर रही हो मुझे तो लंच की फिक्र है. फिलहाल तो मैं ने उन्हें 100-100 रुपए दे दिए हैं. स्कूल की कैंटीन से कुछ खा लेंगे.’’

सरला का दिल टूट गया. वह एक लंबी सांस छोड़ कर बोली, ‘‘सैंडविच बना कर रख देते?’’

‘‘खाक रख देता. आज न ब्रैड है न खटर. डिलिवरी वाले 2 घंटे का समय मांग रहे हैं. ज्योत्सनाजी के यहां से 1 प्याला दूध मांग कर लाया तब जा कर हम तीनों ने चाय पी है.’’

‘‘पर रात को तो 1 गिलास दूध बचा था?’’ सरला ने डूबे स्वर में कहा.

‘‘शशि उसे फ्रिज में रखना भूल गई, गिलास बाहर ही रह गया. अंधेरे में मोबाइल उठाते हुए लुढ़क गया,’’ श्रीमानजी ने बड़ी शालीनता से कहा.

दूध प्रसंग अभी चल ही रहा था कि शशि और रजत चीखने लगे, ‘‘मां हमारी टाई कहां है?’’ ‘‘मां, मेरा पैन नहीं मिल रहा है,’’ सब तरफ मां… मां… की आवाजें लग रही थीं.

बड़ी मुश्किल से सरला पलंग के नीचे उतरी. उसे बड़े जोर का चक्कर आया और वह पलंग पर ही बैठ गई. चौबीस घंटे से कम में ही बुखार ने उसे चौपट कर के रख दिया था. उस से उठा नहीं जा रहा था. वह फिर से लेट गई.

बच्चे जैसेतैसे तैयार हो गए. श्रीमानजी उन्हें छोड़ने बस स्टैंड चले गए. पलंग पर लेटेलेटे ही सरला ने देखा पूरा घर कुरुक्षेत्र का मैदान बना हुआ था. चारों तरफ सामान बिखरा हुआ था.

करीब आधे घंटे बाद श्रीमानजी लौटे. साथ में थे फल, डबलरोटी और मक्खन जो डिलिवरी बौय दरवाजे पर रख गया था. उन्हें एक  तरफ रख कर उन्होंने दाढ़ी बनाई और नहाने के लिए स्नानघर में घुस गए. अगले क्षण ही सरला को स्नानघर से उन की चीख सुनाई दी, ‘‘सरला, यह क्या नल में तो गरम पानी की एक बूंद भी नहीं है?’’

8 बज रहे थे. गर्म में पानी कहां से आता? सुबह गीजर औन करना रह गया था. यह मेरा ही काम था न.

श्रीमानजी तौलिया लपेटे बाहर आए और बिगड़ कर बोले, ‘‘गरम पानी के बिना तो मुझ से नहाया नहीं जाएगा.’’

‘‘सुबह गीजर नहीं खोला था?’’ सरला ने पूछा.

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर दफ्तर बिना नहाए ही जाना होगा.’’

श्रीमानजी बड़बड़ाते चल गए. बिना नहाए कपड़े बदल तैयार हो गए. नाश्ते में कौर्नफ्लैक्स, रात की सब्जी और ब्रैड.’’

सरला ने बुखार नापा, 102 था. जैसे ही श्रीमानजी ने अपना ब्रीफकेस उठाया, उस ने घोर निराशा से पूछा, ‘‘आप दफ्तर जा रहे हैं?’’

‘‘और आप क्या सोचती हैं मैं ससुराल जा रहा हूं?’’

‘‘मुझे 102 बुखार है. क्या आप दफ्तर से छुट्टी नहीं ले सकते?’’

‘‘आज क्या, मैं तो अगले हफ्ते तक छुट्टी नहीं ले सकता. औडिट पार्टी आई हुई है. दफ्तर के हिसाबकिताब की जांच चल रही है. रहा बुखार तो इस ने दिल्ली की आधी से ज्यादा जनता को जकड़ रखा है. आज अखबार में यह समाचार छपा है कि इस बुखार पर कोई दवा असर नहीं करती. वायरल महोदय बिना बुलाए आते हैं और बिना भगाए अपनेआप तशरीफ ले जाते हैं. यह कोरोना वायरस नहीं है.’’

बाप रे बाप. इतना लंबा भाषण. सरला ने अपने कान बंद कर लिए. श्रीमानजी के चले जाने के बाद वह सिर्फ यही सोच रही थी, यदि यह बुखार उसे नहीं, श्रीमानजी को आया होता तो क्या तब भी वहे दफ्तर जाते?

पलंग पर पड़ी रही सरला. एकदम पस्त और निर्जीव सी. 2-3 बार उस ने औफिस से पूछा भी कोई काम तो नहीं अटक रहा पर किसी ने भी ‘गैट वैल सून’ के अलावा कुछ नहीं बोला. कोई प्यार के 2 बोल नहीं. शाम को बच्चे आए. बच्चों ने औनलाइन छोलेभठूरे और्डर कर मजे से खाए. फल, नमकीन और डबलरोटी से काम चला लिया. सरला के मुंह में कड़वाहट घुली हुई थी. कुछ भी खाने को जी नहीं कर रहा था.

हां, सरला की एक प्याला चाय की इच्छा हो रही थी. उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि  वह उठे और चाय बनाए. उस ने शशि से कहा तो वह बोली, ‘‘मां, दूध कहां है चाय बनाने के लिए? अब सिर्फ दूध के लिए तो औनलाइन और्डर करूंगी तो वे क्व50 डिलिवरी चार्ज ले लेंगे.’’

रात हुई. श्रीमानजी तशरीफ लाए. कुछ थके, कुछ परेशान से. आते ही बच्चों से गप्पें मारने लगे. एक बार भी उस के पास आ कर नहीं पूछा कि तबीयत कैसी है.

दिनभर तो कोई आया नहीं, श्रीमानजी के पीछेपीछे ज्योत्सना और 120 नंबर वाली ममता भी आ धमकीं.

श्रीमानजी ने दोनों पड़ोसिनों को देखा तो उन की बांछें खिल गईं. उस से तो कुछ पूछा नहीं पर उन दोनों हट्टीकट्टी महिलाओं से उन की तबीयत के बारे में पूछताछ करने लगे. फिर दौड़ेदौड़े रसोईघर में गए. तब तक डिलिवरी वाले स्नैक्स व फल दे गए. वे 6 प्याले चाय बना लाए. हंसहंस कर वे उन दोनों से बातें करते रहे और कीमती नमकीन काजू खिलाते रहे.

सरला के दिल पर सांप लोटते रहे. पर वह क्या करती? बेबस सी पड़ी रही.

मिजाजपुरसी करने वाली महिलाएं 2 मिनट के लिए टेक केयर कह कर चली गईं. चली गईं तो समस्या उठी रात के खाने की. श्रीमानजी ने बड़ा कड़वा सा मुंह बना कर कहा, ‘‘यार सरला, तुम बीमार क्या हुईं, चौबीस घंटों में एक बार भी ढंग का खाना नहीं मिला? बाहर का खाना खा कर पेट खराब हो गया है. मेड भी कुछ नहीं बनाना जानती.’’

‘‘पिताजी, रूपक रेस्तरां चलते हैं. उन के डोसे और इडली बहुत बढि़या होते हैं, औनलाइन मंगाएंगे तो ठंडे हो जाएंगे,’’ शशि बोली.

‘‘हां, पिताजी चलते हैं. बहुत दिन हो गए बाहर खाए हुए,’’ रजत बोला.

‘‘ठीक है. आप के लिए कुछ पैक करा लाएं?’’ श्रीमानजी ने ऐसी बेरुखी से पूछा मानो औपचारिकता निभा रहे हों.

सरला ने मना कर दिया तो वे बड़े शायराना अंदाज में बोले, ‘‘ठीक है, बुखार में भूख मर जाती है. फिर बुखार में न खाना ही ठीक रहता है. चलो, तुम्हें मौसमी का जूस दे देते हैं. कह रहे हैं इस बुखार में मौसमी का जूस दवा का काम कर रहा है,’’ और फिर जूस दे दिया.

मुझे मौसमी का जूस दे कर तीनों रूपक रेस्तरां चले गए. करीब डेढ़ घंटे बाद अपनेअपने पेट पर हाथ फेरते हुए मीठा पान चबाते हुए लौट आए.

श्रीमानजी कह रहे थे, ‘‘अगर जरा होथियारी से और्डर दिया होता तो क्व200 बच जाते और एक डोसा तथा 3 इडलियां यों बरबाद न जातीं. ऐसे मौकों पर तुम्हारी मां की सख्त जरूरत होती है.’’

‘‘मैं ने तो आप से पहले ही कहा था कि मैं इडली नहीं खाऊंगी और सादा डोसा लूंगी,’’ शशि बोली.

सरला का अंतर कसक गया. जरूर क्व500-700 पर ये लोग पानी फेर आए होंगे. उसे फिर झुरझुरी सी होने लगी थी. तो क्या फिर से बुखार बढ़ने लगा? उस ने अपने हाथपांव टटोले. बर्फ जैसे ठंडे, बुखार बढ़ने लगा था.

वे तीनों कपड़े बदल कर अपनेअपने काम में मस्त हो गए. शशि और रजत स्कूल का काम कर रहे थे. उन के पिता दफ्तर से लाई हुई फाइल पढ़ रहे थे.

सरला ने शशि से थर्मामीटर लाने को कहा तो वह तुनक कर बोली, ‘‘मां, मैं हिंदी का लेख लिख रही हूं. कल नहीं दिया तो सजा मिलेगी.’’

श्रीमानजी ने सबकुछ सुना अनसुना कर दिया. वे पलंग पर पड़े हुए किताब पढ़ते रहे. सरला का दिल डूब गया. उसे अपने पारिवारिक जीवन के चिरंतन सत्य के दर्शन हो चुके थे.

अगले 3 दिन तक बिस्तर पर पड़े रहने के बाद सरला ने अपने कान पकड़ लिए. उस ने अपनी महत्त्वाकांक्षा के दुष्परिणामों को खुली आंखों से देख लिया था. उस की बीमारी से श्रीमानजी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा था. वे रोज दफ्तर जाते रहे.

हां, घर जरूर कूड़ेदान बन गया था. 3 दिन तक  घर की सफाई न हो तो उस के फलस्वरूप उत्पन्न गंदगी की सहज कल्पना की जा सकती है. मेड ने भी एक दिन नागा कर लिया था० बीच में कि उसे भी वायरल ने पकड़ लिया है.

मैले कपड़ों से स्नानघर भर गया था. जब और कपड़े खत्म हो गए तो श्रीमानजी ने नीचे प्रैस करने वाले धोबी को बुला कर सारे कपड़े धुलवा लिए रूमाल और बनियान तक. धोबी ने साबुन का पूरा पैकेट खत्म कर दिया. धुलाई और प्रैस का जब क्व1000 का बिल उस ने पेश किया तो सरला की आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

घर में बढ़ती गंदगी और बिगड़ते बजट से अधिक आतंकित करने वाली बात थी उसे देखने आने वाली पड़ोसिनों की संख्या और श्रीमानजी का उन के प्रति नदीदेपन का व्यवहार.

सरला की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ये औरतें दिन में क्यों नहीं आतीं जबकि वह उस समय अकेली होती है? तब आएं तो उन से कुछ मदद भी मिले. चाय या कौफी बना दें तो अच्छा रहे. पर नहीं, वे तो जानबूझ कर शाम को इन के सामने ही आएंगी और एक ये हैं कि उन्हें देख कर ट्यूबलाइट की तरह चमक जाएंगे.

नहीं, इस तरह बीमार पड़ना घाटे का सौदा ही नहीं, खतरनाक भी है. सरला ने फैसला कर लिया कि अब वह ठीक हो कर ही रहेगी. एक दिन शाम को वह डाक्टर के पास जा कर दवा ले आई. उस ने 6-6 घंटे के अंतराल से दवा शुरू की. चौबीस घंटों में उस का बुखार उतर गया.

इस बुखार के साथ ही बीमार पड़ आराम करने का बुखार भी उतर गया. बीमार पड़ने पर बजाय आराम मिलने के शारीरिक, मानसिक तथा आर्थिक कष्टों की जो अनुभूति हुई. उस का स्मरण करते ही सरला के पूरे शरीर में फिर से झरझरी फैलने लगी.

Story In Hindi : तोहफा

Story In Hindi : सारे काम निबटा कर नीता ने एक बार फिर घर पर नजर डाली. पूरा घर भीनीभीनी खुशबू से महक रहा था. विशेषरूप से उस का एवं उस के पति राजन का कमरा तो फूलों की अनगिनत लडि़यों से महक रहा था. उस ने घड़ी की तरफ देखा, अभी शाम के 5 भी नहीं बजे थे.

राजन की प्रतीक्षा में नीता ऊपर बरामदे में आ कर खड़ी हो गई. आज उस की शादी की दूसरी वर्षगांठ थी. इस खुशी के अवसर पर वह राजन को एक तोहफा देना चाहती थी. उस कृति के शीघ्र निर्माण का तोहफा, जिसे प्राप्त कर हर नारी पूर्ण हो जाती है.

आज सुबह ही तो उसे पता चला था. कपड़े धो कर ज्यों ही वह उठी थी, चकरा कर गिरने लगी थी. वह तो कामवाली ने उसे संभाल लिया. पूरा घर उसे घूमता हुआ सा लग रहा था.

कामवाली ने ही बताया, ‘‘मैडमजी, तुम्हें बच्चा होने वाला है. अपनी सासूमां को बुला लो अब.’’

नीता चुप रह गई. क्या कहती? उस के जीवन में तो सासससुर का प्यार ही नहीं था, अम्मां और बाबूजी भी तीर्थ पर जा चुके थे.

कुहनियों को बालकनी की रेलिंग पर टिका कर ऊपर आकाश की तरफ नीता ने बड़ीबड़ी आंखें टिका दीं. डूबते सूरज के चारों तरफ कितने ही छोटेबड़े बादल के टुकड़े तैर रहे थे. सूरज की लालिमा उसे पीछे अतीत में लौटा ले गई…

उन दिनों नीता 12वीं कक्षा में पढ़ती थी. यह संयोग ही था कि उस के पड़ोस की कोई लड़की उस स्कूल में नहीं पढ़ती थी. वह स्कूटी से अकेली ही जाती थी. उस के पिता मातादीन बाबू की पासपड़ोस में काफी प्रतिष्ठा थी. नीता गंभीर स्वभाव की कही जाती थी, मांबाप की इकलौती संतान होने के बावजूद उस के स्वभाव में जिद्दीपन नहीं था.

एक दिन स्कूल जाते समय रास्ते में 2 गुंडे किस्म के युवकों ने उसे रोक लिया. वह अपनी स्कूटी बचा कर किनारे से निकल जाना चाहा. तभी बाइक पर सवार 2 में से एक लड़के ने उस की स्कूटी का हैंडल पकड़ कर उसे रोक दिया.

‘‘कहां जाती हो, रानी, जरा ठहरो न,’’ बड़ी ही भद्दी मुसकराहट से एक ने कहा तो अचानक नीता में जाने कहां की ताकत आ गई. उस ने अपने दाहिने पांव की ठोकर युवक की कमर के नीचे खींच कर मारी. बाइक का बैलेंस बिगड़ गया और उस पर सवार ज्यों ही बिलबिला कर पीछे हटा, दूसरा उसे संभालने के लिए बढ़ गया. इतना अवसर नीता के लिए बढ़ गया. वह तेजी से स्कूटी भगा कर ले गई.

स्कूल पहुंचने पर एक और जो घटना उसे सुनाई दी वह अचंभित कर देने वाली थी. एक लड़की अपनी 2 सहेलियों के साथ एक सिंगल स्क्रीन पिक्चर देखने गई थी. इंटरवल से पूर्व उसे पेशाब आया. दूसरी सहेली पिक्चर छोड़ कर जाने को तैयार नहीं हुई. अंत में उसे अकेले ही जाना पड़ा. वहां पहले से 2 लड़के छिपे हुए थे, जिन्होंने उसे घुसते ही दबोच लिया. जब उस लड़की को होश आया तो सारी बातें सामने आईं, पर बयान देने के बाद ही वह लड़की दिए गए घावों के कारण मर गई. इसी शोक में उस दिन स्कूल बंद कर दिया था. लड़कियों में बड़े रोश की लहर थी. उस घटना को जान कर उस ने अपने साथ घटी घटना का वर्णन किसी से नहीं किया. नीता की मां कमजोर दिल की थीं.

नीता ने सोचा कि मां को पता चलेगा तो उस का स्कूल जाना भी छूट जाएगा. सावधानी के तौर पर वह कुछ लड़कियों का साथ पाने के लिए दूसरे रास्ते से आने लगी.

घटना के काफी दिन बाद की बात है. एक शाम नीता घर में अकेली थी. बाबूजी दुकान पर थे और मां कहीं गई थीं.

जातेजाते मां उसे दरवाजा बंद करने के लिए कई गई थीं. वह उस समय रोटी बना रही थी. तभी पड़ोस की एक लड़की दूध मांगने आ गई. उस ने उस से कहा कि वह जातेजाते दरवाजा बंद कर दे.

लड़की के जाने के थोड़ी देर बाद बाहर दस्तक हुई, ‘‘नीताजी… नीताजी…’’

नीता बाहर गई तो उस ने देखा, दरवाजे पर एक युवक खड़ा है, ‘‘कहिए?’’ उस ने पूछा.

‘‘उधर बाबूजी खड़े हैं, देखिए.’’

नीता ने एक पल के लिए अपना चेहरा दाहिनी तरफ घुमाया ही था कि उस लड़के ने उस की नाक पर न जाने क्या रखा दिया कि वह अचेत हो गई.

जब नीता को होश आया तो उस ने अपनेआप को एक खंडहर में पाया. नजरें घुमा कर उस ने अपने आसपास देखा, 2 युवक थोड़ी दूर पर बैठे उस के होश में आने की प्रतीक्षा कर रहे थे. युवकों के चेहरे पर नजर पड़ते ही वह चीख पड़ी. ये दोनों वही युवक थे, जिन्होंने रास्ते में उसे रोका था. तो ये अपने अपमान का बदला लेने लाए हैं उस से. उस ने उठ कर ज्यों ही भागना चाहा, उस ने महसूस किया कि उस के पांव बंधे हुए हैं. अपनी बेबसी पर वह रो पड़ी. दोनों युवक उस की तरफ बढ़ रहे थे, पर वह अपनी अस्मत बचा सकने में असमर्थ थी. उस की चीखपुकार उस खंडहर में सुनने वाला कोई न था.

जब नीता को पुन: होश आया तो सुबह का धुंधलका फैलने लगा था. एक खंडहर में वह अस्तव्यस्त अवस्था में पड़ी थी. उस ने अपने बदन को टटोला तो पाया कुछ खरोंचों के अलावा उस के साथ कुछ बुरा नहीं हुआ है. शायद दोनों ने ज्यादा पी रखी थी और इसीलिए वे उस के कपड़े उतार कर आगे नहीं बढ़ पाए. वहां पड़ी 4-5 बोतलें गवाह थीं कि उसे उठा लाने के जश्न में उन्होंने ज्यादा पी ली थी. अपनी स्थिति पर वह बिलखबिलख कर रो पड़ी. उन दोनों युवकों का कहीं पता न था. उस समय उस के मन में आया, वह आत्महत्या कर ले. अपवित्र शरीर ले कर वह क्या करेगी. मांबाप को कौन सा मुंह दिखाएगी? सहेलियों का सामना कैसे करेगी. पड़ोसियों को क्या जवाब देगी कि  वह रात भर कहां थी?

आत्महत्या… उस की मौत के बाद क्या यह बात छिपी रह सकेगी? लाश की चीरफाड़ होगी, तब खुल कर यह बात सामने आ जाएगी कि मृत्यु से पूर्व उस के साथ बलात्कार किया गया है. तब बाबूजी एवं मां क्या आत्महत्या नहीं कर लेंगे?

अंत में विवेक की जीत हुई. शाम के ?ारमुट में नीता घर लौट आई. मां और बाबूजी इज्जत बचाने के चक्कर में किसी के घर पूछने भी नहीं गए थे. सारी घटना सुन कर मां बेहोश हो गईं. मातादीन बाबू ने पुलिस में रिपोर्ट करनी चाही, पर फिर रुक गए. उन दोनों की शनाख्त कैसे होगी? फिर कौन सी अदालत उन्हें फांसी पर चढ़ा देगी? ऐसे गुंडे किस्म के युवक इसी से तो शह पाते हैं. लड़की के घर वाले इज्जत बचाने के चक्कर में पुलिस में नहीं जाते और ये उन की इज्जत से खेलते हैं.

नीता उन दोनों को पहचानने लगी थी. उस ने ध्यान से चलना शुरू कर दिया. अपना हुलिया थोड़ा बदल लिया था, उस के पर्स में अब 1 बिग, एक चुनरी, चाकू और पैपर स्प्रे हमेशा रहता था. एक दिन उसे एक कोने में उन 2 में से एक लड़का खड़ा दिखाई दिया. शायद नशे में था. स्कूटी रोक कर वह उस के आसपास की भीड़ कम होने का इंतजार करने लगी. जैसे ही भीड़ कुछ कम हुई, वह उस के पास बिग लगा कर पहुंची और पता पूछने के बहाने एक कागज उसे दिखाने का नाटक करने लगी. फिर मौका पा कर उस का काम तमाम कर दिया.

मातादीन ने गुंडों द्वारा बेटी को उठा ले जाने की बात को बहुत छिपाने की कोशिश की पर धीरेधीरे यह बात फैल ही गई. नीता रातदिन सोचती रहती. मां ने बाहर निकलना बंद कर दिया. तब मातादीन ने यही सोचा कि नीता का विवाह कर दिया जाए.

नीता के लिए वर की खोज शुरू हुई तो कोई न कोई भेद खोल आता. अंत में राजन से विवाह तय हुआ. राजन स्टेट बैंक में क्लर्क था. जब तक बरात नहीं आ गई, मातादीन का दिल घबराता रहता कि कहीं किसी ने कुछ कह दिया तब? यही हाल नीता का था. कैसे छिपाएगी वह यह बात राजन से? क्या देगी उसे पहली रात को? पर कुछ भी हो इस बात को छिपाना ही होगा.

मंडप में राजन एवं नीता बैठ चुके थे. पंडितजी के श्लोक गूंज रहे थे. फेरे होने ही वाले थे कि अचानक बरातियों में भगदड़ मच गई. किसी ने राजन के पिता को नीता के साथ घटी घटना की सूचना दे दी. वे क्रोध में गरजते हुए आए, ‘‘बंद करो यह शादी, पंडितजी. उठिए, यह शादी नहीं होगी.’’

सभी आश्चर्य से एकदूसरे का मुंह देखने लगे. नीता का दिल धड़क उठा.

‘‘क्या कह रहे हैं समधीजी? आखिर हम से कौन सी भूल हो गई है?’’ मातादीन का स्वर कांपने लगा. मन में वे समझ गए कि क्या होने वाला है.

‘‘कैसा समधी? किस का समधी? हम किसी भागी हुई लड़की को बहू नहीं बना सकते.’’

सारे बराती अचंभित रह गए. जो जानते थे वे खामोश रहे, बाकी में खुसुरफुसुर शुरू हो गई.

‘‘नीता भागी नहीं थी समधीजी… यह बेचारी तो निर्दोष है.’’

‘‘तो इस निर्दोष को अपने ही घर रखे रहो. हमें नहीं ले जानी यह गंदगी अपने घर.’’

‘‘बात क्या हो गई है बाबूजी?’’ राजन हैरान था.

‘‘इस समय कुछ मत पूछ. बस खड़ा हो जा. बरात वापस जाएगी.’’

‘‘नहीं बाबूजी, पहले आप बताइए तो सही.’’

‘‘मैं बताता हूं, बेटा,’’ मातादीन रोते हुए बोले, ‘‘2 साल पूर्व इस बेचारी को कुछ गुंडे उठा ले गए थे पर वे इस का कुछ कर नहीं पाए थे,’’ फिर उन्होंने रोतेरोते सबकुछ बता दिया.

उधर नीता एवं उस की मां दोनों ही बेहोश हो गईं. नीता को औरतों ने संभाल लिया. नीता का निर्दोष चेहर आंसुओं में डूबा हुआ था.

‘‘सुन लिया? उन गुंडोें ने क्या इसे अछूती छोड़ दिया होगा? हमें धोखा दिया गया है. चल उठ,’’ रामधारी बाबू गरजते जा रहे थे.

‘‘नहीं, समधीजी नहीं,’’ अपनी पगड़ी रामधारी बाबू के पैरों पर रखते हुए मातादीन बाबू बोले, ‘‘यदि बरात लौट गई तो हम तीनों मर जाएंगे. नीता आप की बहू है. हमारी इज्जत आप के हाथ में है समधीजी.’’

रामधारी बाबू ने पैर की एक ठोकर मारी और पगड़ी लुढ़कती हुई मंडप के बीच जल रही आग में जा गिरी. पगड़ी धूधू कर जल उठी.

‘‘बस करिए बाबूजी किसी की इज्जत यों नीलाम मत करिए,’’  राजन ने अपना क्रोध जब्त करते हुए कहा.

‘‘क्या बकता है तू? चलता है या नहीं?’’

‘‘जाऊंगा, बाबूजी पर नीता को ब्याह कर,’’ राजन के दृढ़ स्वर पर लोगों में हर्ष की लहर दौड़ गई.

‘‘कमबख्त, क्या इसीलिए तुझे पढ़ाया था कि मेरी इज्जत यों सरेआम नीलाम कर दे? तू जाएगा और बरात भी जाएगी.’’

‘‘बाबूजी हम पढ़ते हैं इसलिए कि ज्ञान प्राप्त करें. दूसरों की जिंदगी में उजाला भर दें, न कि अंधेरा. सोचिए, यदि आज बरात लौट गई तो क्या फिर कोई इस दरवाजे पर बरात ले कर आने का साहस कर सकेगा? आप क्या चाहते हैं कि यह परिवार आत्महत्या कर ले या नीता किसी कोठे पर जा कर बैठ जाए?’’

इसी मध्य नीता को होश आ गया था. वह रोती हुई पितापुत्र का वार्त्तालाप सुन रही थी.

‘‘तो इस गंदगी के ढेर से तू शादी करेगा कमीने?’’ रामधारी बाबू गला फाड़ कर चीखे.

‘‘गंदगी का ढेर नीता नहीं है बाबूजी, वे गुंडे हैं जिन्होंने अपने इस कृत्य से कोठों को जन्म दिया है.’’

‘‘तो तू नहीं मानेगा?’’

राजन मौन रहा. उस के मौन ने आग में घी का काम किया. रामधारी का क्रोध आसमान छूने लगा, ‘‘ठीक है, आज से तू मेरा बेटा नहीं रहा. इस गंदगी के साथ ब्याह कर और जीवनभर मेरे सामने मत पड़ना.’’

पिता के साथ ही काफी लोग चले गए पर राजन के मित्र वहीं रह गए. पिता का अपमान करने का राजन का उद्देश्य न था. पर एक लड़की ही नहीं, पूरे परिवार की जान एवं इज्जत का प्रश्न था.

शादी हो गई. उस के मित्रों ने उन के लिए

2 कमरों के मकान का प्रबंध कर दिया.

पहली रात को ज्यों ही राजन ने नीता का घूंघट उठाया, वह उस के कंधे से लग कर बिलख उठी.

‘‘मत रो, नीता,’’ राजन उस के बाल सहलाते हुए बोला, ‘‘आज से तुम्हारा नया जन्म हुआ है. अतीत को भूल जाओ, मैं तुम्हारे साथ हूं.’’

नीता ने राजन को पूरी बात बताई. उस ने यह भी बताया कि वह गाइनोक्लौजिस्ट के पास भी चैक कराने गई थी जिस ने पुष्टि की थी कि रेप तो नहीं हुआ पर उस जगह छेड़छाड़ के निशान थे. यह बात उस ने किसी को नहीं बताईं क्योंकि कोई मानता नहीं. नीता ने एक गुंडे की हत्या करने की कहानी भी बता दी.

राजन ने भी कहा कि कोई नहीं मानेगा कि नीता जैसी लड़की किसी की हत्या कर सकती है.

छोटे से घर को नीता ने स्वर्ग बना कर रख दिया. राजन नीता के बिना स्वयं को अधूरा महसूस करता. एक  ही बात नीता को खटकती कि उस के कारण राजन बेघर हो गया है. उस के पिता ने भी कई बार रामधारी बाबू को मनाने की कोशिश की पर उन्हें अपमानित होना पड़ा. नीता ने अपनी सास को भी कई पत्र भेजे पर उधर से मौन बना रहा.

स्कूटर की आवाज पर नीता की तंद्रा भंग हुई. घर के बाहर राजन अपना स्कूटर खड़ा कर रहा था. नीता को देख कर वह मुसकरा दिया.

नीता के दरवाजा खोलते ही राजन ने नीता को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘अरे…रे…क्या करते हो? छोड़ो भी…’’ नीता बोली.

‘‘नहीं छोडूंगा. पता है, आज मैं बहुत खुश हूं,’’ राजन ने उसे बांहों में लिए अंदर आते हुए कहा.

‘‘ऐसी क्या बात हो गई? अभी तो मैं ने वह खुशखबरी भी नहीं सुनाई है,’’ होंठों को हलके से दबा कर नीता ने कहा.

‘‘अच्छा, क्या आज दोनों के पास खुशखबरी है? चलो, पहले तुम ही बता दो. अरे, वाह,’’ कमरे में चारों तरफ देखते हुए राजन ने कहा, ‘‘बड़ी सजावट है, क्या खूब तैयारी की है?’’

‘‘चलो हटो. पहले अपनी खुशखबरी सुनाओ,’’ उस के बंधन से निकल कर पलंग पर बैठते हुए नीता ने कहा.

‘‘पहले तुम, बाद में मैं अपना तोहफा तुम्हें दूंगा खुशखबरी के रूप में.’’

‘‘तो सुनो, तुम शीघ्र ही बाप…’’ आगे की बात अधूरी छोड़ शरमा कर नीता ने अपना चेहरा हथेलियों में छिपा लिया.

‘‘सच कह रही हो, नीता? आज हम एकदूसरे को जीवन का सब से बड़ा तोहफा दे रहे हैं,’’ नीता का हाथ प्यार से हटाते हुए राजन ने कहा, ‘‘आज का मेरा तोहफा भी खुशी से सराबोर है.’’

नीता ने अपनी प्रश्नसूचक नजर ऊपर उठाई.

‘‘आज डैडमौम आए थे. उन्होंने हमें अपना लिया है, नीता.’’

‘‘सच कह रहे हो?’’ नीता का स्वर भीग गया.

‘‘हां नीता, उन्होंने हमें माफ कर दिया है,’’ राजन का स्वर खुशी में कांपने लगा, ‘‘उठो, तैयारी करो. आज अपनी दूसरी सुहागरात हम अपने वास्तविक घर में मनाएंगे. मैं ने उन्हें सारी बात बताई. तब उन्होंने कहा कि उन्हें बेटे के लिए आज सुघड़ साथी चाहिए और उस के पिछले हाल से उन्हें कोई मतलब नहीं. उस समय 2-4 रिश्तेदारों के कहने पर वे आपा खो बैठे थे.’’

नीता ने बाहर नजर डाली, दूर चांद निकल आया था. आज की रात कितना सुंदर तोहफा ले कर आई थी उन दोनों के लिए.

राइटर-   साधना सर्वप्रिय

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