जब प्राण के साथ Aruna Irani को एक ही होटल में ठहरना पड़ा, तो एक्ट्रेस ने ऐसे किया रिएक्ट

Aruna Irani : पहले जमाने के विलेन अपने अभिनय के चलते इतने डरावने लगते थे कि सिर्फ आम लोग ही नहीं बल्कि हीरोइन भी उनसे डरती थी फिर चाहे वह प्राण हो अजीत हो, प्रेमनाथ हो, या अमरीश पूरी ही क्यों ना हो, यह सारे खलनायक असल जिंदगी में भले ही कितने ही शरीफ थे, लेकिन फिल्मों में उनकी खलनायकी देखकर सभी उनसे डरते थे.
ऐसा ही एक वाकया अरुणा ईरानी ने बताया जब कि वह विलन प्राण के साथ फिल्म जौहर महमूद इन गोवा में काम कर रही थी, अरुणा ईरानी के अनुसार उस वक्त उनकी उम्र 18-19 साल थी और नए होने की वजह से मैं थोड़ा डरी डरी भी रहती थी, इस दौरान एक बार जब हम हांगकांग में इसी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे, तो उस दौरान मेरा और प्राण साहब का काम एक साथ ही खत्म हुआ तो फिल्म के निर्माता ने हमें एक साथ वापस जाने के लिए कह दिया, उस वक्त प्राण साहब की इमेज विलेन के तौर पर थी इसलिए मुझे उनके साथ अकेले जाने में टेंशन हो रहा था.

लेकिन बाद में मैंने सोचा कि प्लेन में तो जाना है, इतने सारे लोगों के बीच क्या कोई कर सकता है यह सोचकर मैं बिंदास उनके साथ चली गई. लेकिन क्योंकि हमारी हांगकांग की फ्लाइट लेट हो गई थी, इस लिए मुंबई जाने वाली कोलकाता की फ्लाइट हमारी छूट गई और दूसरी फ्लाइट सुबह की थी. ऐसे में जब मुझे प्राण के साथ होटल में रुकना पड़ा तो मेरी डर के मारे हालत खराब थी. उन्होंने मुझे अच्छे से डिनर करवाया और जब हम कमरे की तरफ बढ़ रहे थे तो एक ही कमरे में रहने के विचार से भी मैं अंदर ही अंदर कांप रही थी. क्योंकि उस वक्त प्राण साहेब ने शराब भी पीती थी.

प्राण साहब ने होटल के कमरे का दरवाजा खोला और मुझे कहा कि मैं अंदर चली जाऊं और अंदर से अच्छे से लौक कर लू , मैं बगल के कमरे में ही हूं अगर कुछ चाहिए तो मुझे फोन करना , मुझे कमरे में भेज कर वह दूसरे कमरे में चले गए. उस वक्त अंदर जाकर में इतना रोई ये सोच कर कि मैं उनके बारे में क्या सोच रही थी और वह क्या निकले. उस वक्त मुझे एहसास हुआ कि मैं उनको लेकर कितनी गलत थी  और वह कितने जेंटलमैन आदमी है. प्राण साहब जो फिल्मों में विलेन थे लेकिन असल जिंदगी में वह रियल हीरो निकले.

49 की उम्र में Malaika Arora17 घंटे की फास्टिंग करके रखती हैं अपने फिगर को सेक्सी और जवां

Malaika Arora : मलाइका अरोड़ा आज भी 49 वर्ष की उम्र में खूबसूरती और सेक्सी फिगर के चलते कम उम्र की हीरोइन को टक्कर देती है. उनकी खूबसूरती और सेक्सी फिगर के चर्चे हमेशा बौलीवुड में होते रहते हैं.

सलमान खान की भाभी और अरबाज खान की बीवी मलाइका अरोड़ा खान अब पति से तलाक लेकर अपनी जिंदगी अच्छे से बिता रही है तलाक होने के मानसिक तनाव के बावजूद मलाइका ने अपनी फिगर को लेकर कभी भी कोई ढील नहीं दी , हाल ही में मलाइका ने खुद अपना रूटीन और डाइट प्लान उजागर किया और बताया कि मलाइका अनुसार सुबह 7:00 के बाद और दोपहर को 12:00 तक कुछ भी नहीं खाती है. वह सूरज ढलने के बाद मैं कुछ भी नहीं खाती. मलाइका के अनुसार सुबह उठने के बाद भी 12:00 बजे तक वह कुछ नहीं खाती सिर्फ सुबह में एक चम्मच घी खाती है.

12 बजे के बाद मैं पूरे परिवार के साथ खाना खाती हूं मैं एक साथ ही पूरा खाना खाती हूं जिससे दाल चावल रोटी सब्जी सलाद क्योंकि मेरा मानना है एक उम्र के बाद आपकी बॉडी को हर चीज की जरूरत होती है खाने में परहेज आपकी बौडी पर गलत परिणाम दे सकता है क्योंकि मैं पूरा दिन मेहनत करती हूं. इसलिए मुझे प्रौपर खाना खाने की भी जरूरत है. मुझे लगता है शरीर को पूरी डाइट मिलनी चाहिए ताकि बाहरी तकलीफों से जूझने की ताकत मिले. मैं इंटरमिटेंट फास्टिंग करती हूं जो मेरे लिए बहुत अच्छा काम करती है यह वाली फास्टिंग मुझे पूरी तरह तारों ताजा बना कर रखती है मैं ठीक से सो पाती हूं और फ्रेश होकर उठती हूं दिमाग पर शरीर पर कोई भारीपन नहीं लगता .

मुझे बहुत ज्यादा डाइटिंग करना पसंद नहीं है इसलिए पहले भी मैं एक दिन छोड़ एक दिन डाइटिंग या फास्टिंग करती थी लेकिन हमेशा से मैंने एक ही बार खाना खाने का नियम फौलो किया है. मैंने एक पोर्शन खाने का अपने लिए तय करके रखा है जिसमें ना तो मैं कम खाती हूं और ना ही ज्यादा खाती हूं इसके अलावा में योग पिलेटएस और जिम करके अपने आप को फिट और फाइन रखती हूं. 49 की उम्र में मेरी अच्छी सेहत का यही राज है सही डाइट और एक्सरसाइज.

Hindi Story Online : हाई सोसायटी

Hindi Story Online : ‘‘ए कदम गंवार, जाहिल और मूर्ख. सच पूछो तो तुम मेरे जैसे व्यक्ति के लिए हो ही नहीं. मैं ने क्या सोचा था और क्या हो गया? रघु क्या सोचता होगा? मैं भी कैसा मूर्ख था कि तुम्हारा बाहरी रंगरूप देख कर भावना में बह गया. सोचा था कि  कच्ची मिट्टी को ढाल कर अपने मन के अनुरूप बना लूंगा. पर नहीं, तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया जा सकता. पूजा, सोशल ऐटिकेट तो घुट्टी में पिलाए जाते हैं. बाद में उन्हें ग्लूकोस के इंजैक्शन की तरह खून में नहीं मिलाया जा सकता,’’

मनीष ने क्रोध में चुनचुन कर कठोर विशेषण प्रयुक्त किए.

पूजा एक क्षण को हत्प्रभ बैठी रही. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उस से ऐसा क्या अपराध हो गया जो मनीष ने इतनी जलीकटी सुना डाली. इतना इंटैलिजैंट जना व्यक्ति और ऐसा गुस्सा. वह पढ़ीलिखी एक  छोटे कसबे से नहीं थी, पर जो व्यक्ति इतना क्रोधी हो उस की इंटैलिजैंस का क्या लाभ? उस ने मन ही मन सोचा पर बोलने से कोई फल नहीं निकलने वाला था. अत: चुपचाप बैठी रही.

‘‘अब क्या मूर्खों की तरह शून्य में ताकती बैठी रहोगी? मेरी बात का रिप्लाई क्यों नहीं देती?’’

‘‘किस बात का रिप्लाई?’’ पूजा इतने धीमे स्वर में बोली कि मनीष उस के होंठों के हिलने से ही उस की बात समझ सका.

‘‘कल रघु आया था?’’

‘‘कौन रघु?’’

‘‘मेरा मित्र राघवेंद्र. कितना बड़ा स्कौलर है वह? तुम उसे क्या जानो? अपने विषय का सुपर मास्टर है. बड़ेबड़े व्यक्ति उस की राह में पलकें बिछाने को तैयार रहते हैं.’’

‘‘हां, कल एक व्यक्ति आया तो था पर वेशभूषा व चालढाल से वह सामान्य बुद्धि वाला भी नहीं प्रतीत हो रहा था. भड़कीले कपड़े पहने, गले में सोने की कई चेनें, सिर पर अजीब ढंग से फूले बाल और धूप का चश्मा, कुल मिला कर वह किसी होटल में नाचने वाला लगता था.’’

‘‘तुम ठहरी गंवार, फैशन के संबंध में क्या जानो. कसबे में तो कुरतापजामा पहन कर, सिर में ढेर सा तेल थोप कर बाल संवारना ही सब से बड़ा फैशन होता है.’’

‘‘जो भी होता हो पर जहां तक मैं सोचती हूं? हमारी बहस का विषय फैशन तो नहीं था.’’

‘‘पूजा, बहुत आरगू करने लगी हो तुम. पर ध्यान से सुन लो, ये सब बातें मुझे बिलकुल पसंद नहीं हैं.’’

‘‘तर्कवितर्क करना भी तो मुझे आप ने ही सिखाया है. नहीं तो मैं कसबे की सीधीसादी सरकारी स्कूल की लड़की. ठीक से बातें करना भी कहां आता था मुझे?’’

‘‘हां तो कल मेरा मित्र राघवेंद्र आया था?’’ मनीष ने प्राइमरी टीचर की भांति पूछा.

‘‘जी हां.’’

‘‘उस ने मेरे संबंध में पूछा था?’’

‘‘हां.’’

‘‘और तुम ने बैठने तक को नहीं कहा?’’

‘‘आप घर पर नहीं थे. अत: उसे बैठने के लिए कहने का प्रश्न ही कहां उठता था?’’

‘‘उस ने बताया था न कि वह मेरा मित्र है. उसे बैठा कर कम से कम एक कोल्ड ड्रिंक के लिए तो तुम पूछ सकती थीं पर इतने दिनों का सिखायापढ़ाया सब बेकार कर दिया तुम ने? आज सेमिनार में जब रघु ने सब के सामने तुम्हारे संबंध में बताया तो मैं शर्म से सिकुड़ कर रह गया. सब लोग मुझे देख कर हंस रहे थे?’’

‘‘ऐसा क्या कर दिया मैं ने जो सब आप को ही देख कर हंस रहे थे? आप भी तो मुझे मैसेज कर सकते थे कि वह आने वाला है?’’

‘‘मौडर्न सोसायटी में तुम्हारे जैसे फूल्स ही ऐसे काम करते हैं,’’ तीखे स्वर में बोल कर मनीष अपने पढ़ने के कमरे में घुस गया.

पूजा देर तक बैठी आंसू बहाती रही. आंसुओं के साथ ही यादों की न जाने कितनी आकृतियां बनतीबिगड़ती रहीं…

मनीष से उस का विवाह पक्का कर उस के पिता ऐसे गदगद हो उठे थे मानो कोई खजाना पा लिया हो.

‘‘एक बहुत पढ़ेलिखे जने से पूजा का विवाह हो रहा है,’’ वे प्रसन्नता से मां से बोले थे.

‘‘वह तो ठीक है पर हमारी पूजा तो केवल कसबे के कालेज से हिंदी में एमए पास है और वह इतना एमबीए, एमटैक पढ़ालिखा. मैं ने चाहा था कोई हमारे स्तर का वर मिल जाता, जहां पूजा सुखी रहती,’’ मां ने उत्तर दिया.

‘‘क्या कहना चाह रही हो तुम? क्या मनीष पूजा को सुखी नहीं रखेगा?’’

सुन कर मां चुप रह गईं.

‘‘एमए हिंदी में है तो क्या? हमारी पूजा लाखों में एक है. दूरदूर तक रिश्तेदारी में क्या ऐसी लड़की देखी है तुम ने? बड़े शहरों में क्या लड़कियों की कमी है? पर यहां कसबे में आ कर उन्होंने हमारी पूजा को पसंद किया तो कुछ तो कारण रहा होगा.’’

मगर पूजा पिछले 1 वर्ष के वैवाहिक जीवन में समझ नहीं सकी थी कि वह सुखी है अथवा दुखी. यों उसे कोई दुख नहीं था. पर मनीष के मुख से जो भी निकलता था, उसे हर हालत में उसे मानना पड़ता था. ऊपर से दिन भर गंवार, जाहिल होने के ताने मिलते थे. वह हिंदी एमए थी जिस की इस समाज में कोई बड़ी कीमत नहीं थी. उसे कोई नौकरी नहीं मिल सकती थी क्योंकि हर नौकरी में अच्छी इंग्लिश आना जरूरी है चाहे काम सिर्फ रिसैप्शनिस्ट का क्यों न हो.

उस ने स्वयं को बदलने का कितना यत्न किया था? वह जिस दिन अपने लंबेलंबे बाल पार्लर कटवा कर आई थी तो देर तक रोती रही थी. कसबे भर में ऐसे सुंदर बाल किसी लड़की के नहीं थे. 3-4 दिन तक तो उसे बाहर निकलने में भी शर्म आती रही थी. इसी वेशभूषा के कारण तो मनीष ने उसे पसंद किया था जब वह एक पौलिटिकल रैली में एक कैंडीडेट के साथ उस के कसबे में आया था.

क्या यही आधुनिकता है? वह कड़वाकसैला पेय पीना, जिसे उस के परिवार  में पीना तो दूर, कोई छूता भी नहीं है. यदि उस के पिता को पता चल जाए कि मनीष ने कई

बार उसे उस कसैलीनशीली शराब पीने के लिए फोर्स किया है तो वे क्या सोचेंगे? पर मनीष तो कहते हैं कि आधुनिक होने के लिए यह सब करना जरूरी है. ऊपर से बड़ी अदा से छल्ले बनाना, सोचते हुए उस के आंसू कब के सूख गए थे.

अपनी ओर से उस ने सभी प्रयत्न किए थे क्योंकि मां ने कहा था कि घर को बनाने का दायित्व पत्नी पर अधिक होता है. पर वह कहां तक समझौते करती रहे. कल की घटना में क्या उस का दोष इतना बड़ा था कि मनीष मुंह फुला कर बैठ जाए.

‘‘इस बार माफ कर दो, आगे से कभी ऐसा नहीं होगा,’’ ट्रे मेज पर रख कर वह किसी प्रकार बोली थी. पर क्षोभ व अपमान से उस की आंखें भर आई थीं.

मनीष ने अपने नेत्र ऊपर उठाए थे. सदा की भांति अपनी सफलता पर वह मन ही मन मुसकराया था. आखिर पूजा कच्ची मिट्टी ही तो है, सोसायटी के लायक सांचे में ढालने में कुछ समय तो लगेगा ही.

‘‘आओ, इधर बैठो, पूजा. तुम नहीं जानती कि तुम ने कितने बड़े स्कौलर का अपमान किया है,’’ कौफी का कप उठाते हुए मनीष बोला.

‘‘क्या बहुत गुणवान है आप का मित्र?’’ अपना कम उठाते हुए पूजा ने प्रश्न किया.

‘‘स्कौलर तो वह है ही, पर लाइफ को सही ढंग से जीना भी जानता

है. खाओपीओ और मौज करो लिविंग ऐग्जैंपल. यह समझ लो कि वह मेरे जीवन का मौडल है. मालूम है उस ने अभी तक मैरिज नहीं की है.’’

‘‘अच्छा, क्या ऐज होगी आप के मित्र की?’’

‘‘30 साल होगी.’’

‘‘कब तक विवाह करने का इरादा है उस का?’’

‘‘मैरिज के नाम से ही उस का मूड खराब हो जाता है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कहता है कि यह भी कोई जीवन है, खूंटे से बंधी गाय जैसा. वह मानता है कि विवाह से पूर्व कितना भी लव क्यों न हो, विवाह के बाद सब छूमंतर हो जाता है. इसीलिए वह फ्री लव में विश्वास करता है.’’

‘‘आप का तो वह मौडल है. फिर आप ने विवाह क्यों किया?’’

‘‘मैरिज की है तो क्या? मैं भी उसी की तरह फ्री लव में विश्वास करता हूं.’’

‘‘यानी घर में पत्नी होते हुए भी दूसरों से प्रेम का नाटक करना?’’

‘‘नाटक नहीं, ऐक्चुअल लव करना. प्रेम तो एक जीतीजागती फीलिंग है, जिसे पत्नीरूपी पिंजरे में कैद नहीं किया जा सकता, डियर.’’

‘‘तो क्या उसे पतिरूपी पिंजरे में कैद किया जा सकता है?’’

मनीष हंस कर बोला, ‘‘अच्छा प्रश्न पूछा तुम ने. मेरी ओर से तुम भी किसी से भी लव करने के लिए फ्री हो. मैं तो सदा से फीमेल फ्रीडम में विश्वास करता हूं. जो बंधन में अपने लिए ऐक्सैप्ट नहीं कर सकता, तुम्हारे ऊपर कैसे लगा सकता हूं?’’

‘‘सचमुच बड़े ऊंचे विचार हैं आप के,’’ कौफी का आखिरी घूंट पी कर उस ने कप रखा. उस का मन अचानक बहुत अस्थिर हो गया था. बहुत सी भूलीबिसरी बातें मन के आकाश में बादलों की भांति उमड़घुमड़ रही थीं.

‘‘अरे कहां जा रही हो?’’ पूजा ट्रे उठा कर जाने लगी तो मनीष ने उसे बैठा लिया.

‘‘तुम्हें रघु के संबंध में बताऊंगा, तभी तुम्हें पता चलेगा कि वह कितना इंटरैस्टिंग पर्सनैलिटी है. जहां जाता है लोगों का मन मोह लेता है. न जाने कितनी लड़कियों से उस की फ्रैंडशिप है. वह जिसे भी अपनी फ्रैंड बनाना चाहता है, बना कर ही छोड़ता है.

अपने देश की फेमस डांसर है अवंतिका देवी. कहते हैं कि  वह बेहद अच्छे कैरेक्टर वाली है. शास्त्रीय नृत्य के अतिरिक्त औरकोई नृत्य करना पसंद नहीं करती. एक बार हम दोनों एक समारोह में भाग लेने मुंबई गए थे. शाम को हम लोग उस का डांस देखने गए. पूरे कार्यक्रम के दौरान रघु मंत्रमुग्ध सा बैठा रहा. प्रोग्राम के बाद उस ने अवंतिका से मिलने का प्रयत्न किया तो पता चला कि वह तो किसी से मिलतीजुलती नहीं है.’’

‘‘अच्छा हुआ,’’ पूजा प्रसन्न हो कर ताली बजाने लगी.

‘‘चुप रहो, बीच में टोक दिया न. पूरी बात सुने बिना ही बकबक करने लगती

हो,’’ मनीष का कटु स्वर सुन कर पूजा का चेहरा पीला पड़ गया कि क्या उसे पूरा जीवन ऐसे ही सिरफिरे व्यक्ति के साथ बिताना होगा? ऐसी समझ से क्या फायदा? उस का मन हुआ कि उस का पति कोई सीधासादा व्यक्ति होता जो उस के आत्मसम्मान का भी उतना ही खयाल रखता, जितना अपने का.

‘‘हां, तो उस दिन रातभर रघु अवंतिका के डांस पर लेख लिखता रहा. दूसरे दिन वह समारोह छोड़ कर समाचारपत्रों के कार्यालयों में चक्कर लगाता रहा. अगले ही दिन अधिकांश समाचारपत्रों में अवंतिका के डांस की प्रेज में उस के लेख छप गए.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’ पूजा ऊबने लगी थी.

‘‘होना क्या था? अवंतिका ने इन लेखों में अपनी प्र्रेज पढ़ी तो गदगद हो उठी. कलाकार को अपनी प्रेज से अधिक अपनी कला की प्रेज की चाह होती है.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर क्या? दोनों मित्र बन गए और यह फ्रैंडशिप रिलेशन अब तक चली आ रही है.’’

‘‘एक बात पूछूं?’’

‘‘हां.’’

‘‘कब तक रघुजी अवंतिका देवी के मित्र बने रहेंगे?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘हो सकता है कि अवंतिका मैरिज करना चाहें तो क्या उन के होने वाले पति रघु की फ्रैंडशिप को स्वीकार कर लेंगे?’’

‘‘हाईक्लास वर्ग में ऐसी फ्रैंडशिप बुरी नहीं मानी जाती.’’

‘‘जब यह अवंतिका के इतने फैन हैं तो उन से विवाह क्यों नहीं कर लेते?’’

‘‘मैरिज नाम की इंस्टिट्यूशन में उस का विश्वास ही नहीं है. पर तुम्हारी अक्ल तो इन सड़ेगले रीतिरिवाजों से परे जा ही नहीं सकती.’’

‘‘हां, वह तो है, मेरी एक बात मानेंगे आप?’’

‘‘क्या?’’

‘‘मैं भी आगे पढ़ना चाहती हूं.’’

मनीष ठहाका मार कर हंसा, ‘‘यह अचानक पढ़ाईलिखाई में तुम्हारी रुचि कैसे जाग पड़ी? पहले तो तुम यही कहती थी कि और ज्यादा पढ़लिख कर तुम्हें कौन सी नौकरी करनी है. हिंदी में एमए हिंदी तो हू.’’

कुछ देर बाद उस ने कहा, ‘‘क्या बात है? इतनी सीरियसली बातें करते तो तुम्हें कभी देखा ही नहीं?’’

‘‘बात कुछ नहीं है, पर कल को मैरिज इंस्टिट्यूशन पर से आप का विश्वास भी उठ गया तो मैं किस के कंधे पर सिर टिका कर रोऊंगी.’’

‘‘कैसी फूल्स वाली बातें कर रही हो? जाओ, मुझे काम करने दो. आज ही यह लेख पूरा कर के एक ब्लौग में अपलोड करना है.’’

तभी घंटी की आवाज सुन कर पूजा डोर पर आई.

‘‘मैं हूं राघवेंद्र, मनीष घर पर है क्या?’’

‘‘अरे, राघवेंद्र. आइए, अंदर आइए, ड्राइंगरूम खोल देती हूं.’’

‘‘मैं तो मनीष के बारे में पूछने आया था. क्या वह घर पर नहीं है? मैं ने उसे मैसेज किया था पर उस ने रिप्लाई नहीं किया.’’

‘‘नहीं. ठीक है, फिर मैं चलता हूं. वह आए तो बता दीजिएगा कि राघवेंद्र आया था.’’

‘‘क्या कह रहे हैं आप? उस दिन आप इसी तरह बाहर के बाहर चले गए थे तो मनीष कितने नाराज हो गए थे. आज तो मैं आप को इस तरह नहीं जाने दूंगी.’’

‘‘मेरे पास समय कम है, पूजा. 4-5 दिनों

में ढेरों काम करने हैं. आज परमिशन दीजिए, अगली बार जब आऊंगा तो आप के घर पर ही डेरा लगाऊंगा.’’

‘‘न बाबा न, समय हो या न हो, आप यह तो नहीं चाहेंगे कि आप के कारण मेरी शादीशुदा जिंदगी खतरे में पड़ जाए.’’

‘‘पर मैं ने ऐसा क्या किया है जो आप की शादी खतरे में पड़ जाएगी?’’ राघवेंद्र आश्चर्यचकित हो उठा.

‘‘आप नहीं समझेंगे, राघवेंद्र. ठीक भी है, समझेंगे कैसे? हां, मेरे स्थान पर आप होते तो अवश्य समझ जाते. आइए न, प्लीज अंदर

आइए न?’’

राघवेंद्र कुछ देर हत्प्रभ खड़ा सोचने लगा कि अच्छा आया वह मनीष को बुलाने, इस से तो सीधा ही चला जाता.

पर पूजा की बातों से उस का कुतूहल जाग उठा था. फिर पूजा के आग्रह को टाल कर जाना क्या आसान कार्य था? उस ने मोबाइल निकाल कर मनीष को काल करना चाहा तो पूजा ने उसे रोक दिया कि अब क्या आप उस से परमिशन लोगे.

‘चलो, कुछ देर बैठ जाते हैं. शायद तब तक मनीष आ जाए,’ उस ने सोचा.

‘‘आप बैठिए, रघुजी. मैं तब तक चाय या कौफी बना लाती हूं,’’ कहती हुई पूजा रसोईघर में व्यस्त हो गई.

रघु पत्रिका के पृष्ठ पलट रहा था कि पूजा चाय की ट्रे थामे आ गई.

‘‘हां, तो क्या अपराध हो गया मु?ा से पूजा जो आप की गृहस्थी खतरे में पड़ जाएगी?’’

‘‘आप को सचमुच कुछ नहीं मालूम? आप ही ने तो मेरे मनीष से शिकायत की थी कि आप यहां आए और मैं ने पानी तक के लिए नहीं पूछा.’’

‘‘मैं ने तो ऐसा कुछ नहीं कहा, पूजाजी. मैं ने तो सिर्फ यह कहा था कि मैं तुम्हारे घर गया था. फिर उसी ने पूछा कि आप ने चायकौफी पिलाई या नहीं?’’

‘‘हां, मैं ठहरी सीधीसादी गंवार. किसी का स्वागत करना क्या जानूं?’’ न चाहते हुए भी पूजा के नेत्र छलछला आए.

‘‘क्या कह रही हैं आप? मैं ने तो बिलकुल बुरा नहीं माना. मनीष मेरा मित्र अवश्य है, पर आप ने तो मुझे कभी देखा ही नहीं था. अत: स्वागतसत्कार का प्रश्न ही कहां उठता था?’’

‘‘अच्छा छोडि़ए इन बातों को लीजिए चाय पीजिए,’’ कहते हुए पूजा ने चाय पकड़ा दी.

‘‘एक बात पूछूं पूजा?’’ उस ने अचानक पूछा.

‘‘आप मनीष के साथ खुश हैं न?’’

‘‘मुझे यहां क्या दुख है, रघु? पर क्या करूं मैं ही उन के योग्य नहीं हूं,’’ पूजा बोली.

‘‘यह आप क्या कह रही है पूजाजी. आप जैसी अनुपम सौंदर्य क्या आसानी से देखने को मिलता है? मुझे तो आप में कोई कमी नजर नहीं आती.’’

‘‘पर मनीष कहते हैं कि गुणों के बिना रूप का महत्त्व क्या है? मैं दिल्ली की मौडर्न सोसायटी समाज का रहनसहन, तौरतरीके कुछ भी तो नहीं जानती. अंगरेजी नहीं बोल सकती. आजकल मैं अंगरेजी लिखना व बोलना सीख रही हूं. इंग्लिश क्लासे ले रही हूं.’’

‘‘क्या अंगरेजी बोलना ही सब से बड़ा गुण होता है? इन सब आडंबरों में पड़ने की आप को कोई आवश्यकता है? किसी भी भाषा को सीखना बुरा नहीं है, पर हमें कोई विशेष भाषा नहीं आती इस को ले कर कुंठित होना अवश्य बुरा है.’’

‘‘हाय रघु, कितनी देर हुई तुम्हें आए?’’ तभी मनीष का चहकता स्वर सुन कर

रघु ने गरदन घुमाई.

‘‘आओ मनीष, कहां रह गए थे तुम?’’ मैं तो जा रहा था पर पूजा ने इतना आग्रह किया कि बैठना ही पड़ा.’’

‘‘मैं यूनिवर्सिटी से निकला ही था कि रीतेश मिल गया. छोड़ ही नहीं रहा था. बड़ी कठिनाई से जान छुड़ा कर आया हूं. तुम्हारी मिस्डकाल देखी थी पर फिर सोचा घर जा कर आराम से

बात करूंगा.’’

‘‘बैठिए, 1 कप कौफी और बना लाती हूं,’’ पूजा उठ कर अंदर चली गई.

‘‘मान गए, भई तुम्हारे विवाह में तो मैं आ नहीं सका था, अब बधाई स्वीकार करो. लाखों में एक है तुम्हारी पत्नी.’’

‘‘यों समझ लो कि अनगढ़ हीरा उठा लाया हूं. तराश कर नया ही रंगरूप निखारना है.’’

‘‘हीरा कितना ही मूल्यवान हो मित्र, जीतेजागते मनुष्य की बराबरी में कहीं नहीं ठहरता,’’ रघु हंस कर बोला.

तब तक पूजा चाय बना लाई थी. अत: बात वहीं समाप्त हो गई.

दूसरे दिन सुबहसुबह राघवेंद्र आ धमका, ‘‘मनीष व पूजा भाभी ध्यान से सुनिए, मैं क्या कहने जा रहा हूं,’’ वह नाटकीय स्वर में बोला.

‘‘कल मैं जा रहा हूं. आज का पूरा दिन आप लोगों के साथ बिताने का इरादा है. मेरा नाश्ता यहीं होगा. फिर चाइनीज रेस्तरां में मेरी ओर से खाना. उस के बाद घूमेफिरेंगे. कोई अच्छी फिल्म मौल में लगी होगी तो वह भी देख लेंगे,’’ रघु बेहद उत्साहित स्वर में बोला.

तभी मनीष का फोन घनघना उठा. फोन कालेज से था कि स्टाफ यूनियन को शिक्षा मंत्री से कुछ विषयों पर बात करने के लिए बुलाया है. अभी आना जरूरी है. मनीष स्टाफ यूनियन का अस्सिटैंट सैक्रेटरी था तो जाना जरूरी था. अत: उस ने कहा, ‘‘रघु चलो चाइनीज फिर खाएंगे. मुझे मंत्री के यहां जाना है.’’

पूजा उठने को हुई पर रघु ने पूजा का हाथ पकड़ कर बैठा दिया और बोला, ‘‘तुम्हारे मंत्रीजी ने तो सारे उत्साह पर पानी फेर दिया, पर हमारा कार्यक्रम नहीं बदलने वाला. पहले यहां नाश्ता करेंगे. फिर चाइनीज खाना खाएंगे. तुम जाओ विश्वविद्यालय, पूजा मेरा साथ देगी.’’

एक क्षण को मनीशा हत्प्रभ रह गया पर एकदम से मना करने का साहस भी नहीं हुआ.

‘‘ठीक है, पूजा चली जाएगी तुम्हारे साथ,’’  मनीष किसी प्रकार बुझे स्वर में बोला.

पूजा नाश्ता बनाने में व्यस्त हो गई और मनीष व रघु बात करने में. पर मनीष का मन बारबार उचट जाता, ‘इस मंत्री को भी आज

आना था,’ वह मन ही मन बड़बड़ाया और उसे जाना पड़ा.

मनीष घर 3 बजे लौट आया. डोर पर अब भी बड़ा सा ताला लटक रहा था. दूसरी चाबी से ताला खोल कर वह घर में घुसा और पूजा की वेट करने लगा. वह कुरसी पर बैठेबैठे ही सो गया. जब अचानक नींद खुली तो 6 बज रहे थे. हलका अंधकार छाने लगा था. पर पूजा और रघु का कहीं पता नहीं था.

लगभग आधे घंटे बाद दोनों ने घर में प्रवेश किया.

‘‘अरे मनीष, कितनी देर हुई तुम्हें आए? माफ करना भाई, थोड़ी देर हो गई. वहीं चाइनीज रेस्तरां में एक और मित्र कपल मिल गया. घूमतेफिरते कितना समय बीत गया, पता ही नहीं चला. अच्छा अब मुझे आज्ञा दो,’’ रघु ने विदा लेते हुए कहा.

‘‘एक अवसर क्या मिला घूमनेफिरने का कि पूरा दिन बाहर ही बिता दिया तुम ने,’’ रघु के जाते ही मनीष क्रोधित स्वर में बोला.

‘‘मैं तो आप की आज्ञा का पालन कर

रही थी. आप ही ने तो कहा था जाने को. अब क्यों लालपीले हो रहे हो?’’ पूजा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.

‘‘इस पैकेट में क्या है?’’

‘‘एक ड्रैस है. जारा के शोरूम से ली है. रघु ने उपहार में दी है. वे कर रहे थे कि आप के विवाह में आ नहीं सके थे, इसलिए अब उपहार दिया है.’’

‘‘और तुम ने स्वीकार कर ली? उस के मुंह पर दे मारनी चाहिए थी तुम्हें. मैं ने रघु की कितनी ही महिला मित्रों के संबंध में बताया था… अवंतिका की कहानी सुनाई थी, पर तुम्हारी आंखें नहीं खुलीं.’’

‘‘कितने उदार व आधुनिक विचार हैं आप के, पर एक बात ध्यान से सुन लीजिए, मैं अवंतिका देवी नहीं हूं. एक तो क्या सैकड़ों रघु भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते यह आप के मित्र का दिया उपहार सामने रखा है. कल जब आप उन्हें छोड़ने जाएंगे तो स्वयं ही उन के मुंह पर दे मारना,’’ जलती आंखों से मनीष को घूरती हुई पूजा दूसरे कमरे में चली गई.

‘‘मुझे क्षमा कर दो पूजा,’’ कुछ देर बाद मनीष भी वहीं पहुंच कर बुझे स्वर में बोला, ‘‘आगे से कभी तुम्हें परेशान नहीं करूंगा. हमारी दशा तो 2 नावों के सवार जैसी है.’’

‘‘एक अजनबी व्यक्ति के साथ पूरा दिन मूर्खों की तरह भटकते रहना कितना ट्रैजिक होता है, आप क्या सम?ोंगे. मैं बचपन से लड़कों को अबौइड करती रही क्योंकि हमारे कसबे में तो एक कौपी या किताब उधार लेने या फेसबुक पर फ्रैंडशिप ऐक्सैप्ट करने पर हंगामा मच जाता है. यहां तुम ही बड़ीबड़ी बातें कर रहे हो. खैर, जो भी तुम समझे, आज का दिन गुजरा बड़ा अच्छा. रघु की कंपनी वाकई बहुत ऐंजौएबल है,’’ पूजा ने बड़ी शोखी से कहा. मनीष चुपचाप बैठा शून्य में देखे जा रहा था.

Best Hindi Story : दो टकिया दी नौकरी

Best Hindi Story : ‘‘हैलो,’’फोन पर विद्या की जानीपहचानी आवाज सुन कर स्नेहा चहक उठी.

‘‘क्या हालचाल हैं… और सुना सब कैसा चल रहा है…’’ कुछ औपचारिक बातचीत के बाद दोनों अपनेअपने पति की बुराई में लग गईं.

‘‘प्रखर को तो घर की कोई चिंता ही नहीं रहती. कल मैं ने बोला था कि शाम को जल्दी आ जाना. टिंकू के जूते खरीदने हैं. पर इतनी देर में आया कि क्या बताऊं,’’ विद्या बोली.

यह सुन कर स्नेहा भी बोल पड़ी, ‘‘यह रूपेश भी ऐसा ही करता है. जब जल्दी आने को बोलूं तो और भी देर से आता है. शुक्रवार की ही बात ले लो. नई फिल्म देखने का प्लान था हमारा… इतनी देर से आया कि आधी फिल्म छूट गई.’’

दोनों गृहिणियां थीं. दोनों के पति एक ही कंपनी में काम करते थे. बच्चे भी लगभग समान उम्र के थे. दोनों का अपने पति की औफिस की पार्टी के दौरान एकदूसरे से पहली बार मिलना हुआ था. दोनों के पति एक ही औफिस में काम करने के कारण लगभग एक ही तरह की समस्या से गुजरते थे. शुरुआत में दोनों अपनेअपने पति के औफिस के बारे में ही बातें किया करती थीं, लेकिन जल्दी ही उन की बातों का विषय अपनेअपने पति की बुराई करना बन गया.

तभी स्नेहा के घर की घंटी बजी तो वह बोली, ‘‘विद्या, शायद मेरी कामवाली आ गई है. चल, बाद में फोन करती हूं,’’ कह कर स्नेहा ने फोन काट दिया. दरवाजा खोलते ही रमाबाई अंदर आ गई और फिर जल्दीजल्दी काम निबटाने लगी.

‘‘क्या बात है रमा… आज बड़ी जल्दी में लग रही हो?’’ स्नेहा ने पूछा तो वह रो पड़ी.

‘‘क्या हुआ?’’ स्नेहा ने हैरान होते हुए पूछा.

तब रमा रोतेरोते बोली, ‘‘क्या बताएं बीबीजी, हमारा आदमी एक स्कूल बस के ड्राइवर की नौकरी करता था. कल गलती से स्कूल के एक बच्चे को स्कूल के लिए लेना भूल गया तो नाराज हो कर मालिक ने नौकरी से ही निकाल दिया.’’

‘‘उफ,’’ स्नेहा को सहानुभूति हुई.

फिर रमाबाई अपना काम कर के चली गई. तब स्नेहा को याद आया कि आज तो सब्जी भी नहीं है. लव और कुश भी स्कूल से आते ही होंगे. जल्दीजल्दी सब्जी की दुकान की तरफ चल दी. मन ही मन बड़बड़ा रही थी कि यह रूपेश सब्जी तक नहीं ले कर आता. सारा काम खुद ही करना पड़ता है.

स्नेहा घर आ कर खाना बनाने में जुट गई. बच्चों के स्कूल से आने के बाद उन्हें खाना खिलाना, पार्क ले जाना, होमवर्क करवाना आदि इन्हीं सब में शाम बीत जाती. रात के खाने की तैयारी के दौरान रूपेश भी घर आ जाता. बस खाना खा कर सो जाता. यही उस की दिनचर्या बन गई थी.

कभीकभी स्नेहा इस दिनचर्या से तंग आ जाती तो रूपेश के घर आते ही उस से झगड़ पड़ती, ‘‘तुम मेरे लिए तो छोड़ो, बच्चों तक के लिए समय नहीं देते.’’

जवाब में रूपेश भी गुस्सा करता, ‘‘तुम पूरा दिन घर में रहती हो. तुम्हें क्या पता मुझे दिन भर कितनी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. तुम विद्या से पूछना. प्रखर भी अभी तक रुका हुआ था… कंपनी की हालत ठीक नहीं चल रही है. जब से यह अशोका नामक नई कंपनी खुली है तब से हमारी कंपनी का बिजनैस काफी कम हो गया है.’’

‘‘बसबस, रहने दो. तुम्हारी कंपनी में रोज ही कोई न कोई समस्या होती है. अरे, इतनी ही बुरी हालत है तो कंपनी छोड़ ही क्यों नहीं देते?’’ स्नेहा गुस्से में बड़बड़ाती हुई अंदर चली गई.

अगले दिन फिर सुबह फोन पर रूपेश और प्रखर की बुराई का सिलसिला चल पड़ता.

विद्या और स्नेहा ने एक रविवार को साथ पिकनिक का प्लान बनाया. हंसीमजाक, मौजमस्ती के बीच में भी प्रखर और रूपेश कंपनी की बातें करते जा रहे थे.

आखिरकार स्नेहा खीज कर बोली, ‘‘तुम लोग यह कंपनी छोड़ कर कोई बिजनैस क्यों नहीं शुरू करते?’’

‘‘बिजनैस?’’ सभी एकसाथ बोल पड़े.

‘‘हां, थोड़ा लोन ले लेंगे, कुछ गहने आदि बेच कर हम शुरुआत के लिए तो रकम जुटा ही लेंगे,’’ स्नेहा बोली.

स्नेहा की बात अच्छी तो सब को लगी, लेकिन बिजनैस करना कोई बच्चों का खेल नहीं. प्रखर ने तो साफ मना कर दिया, ‘‘बिजनैस करना जोखिम से भरा होता है. चले या न चले इस की कोई गारंटी नहीं रहती. न बाबा न, मैं नहीं करने वाला बिजनैस.’’

लेकिन यह बात विद्या को बड़ी पसंद आई. बोली, ‘‘स्नेहा ठीक ही तो कह रही है, बिजनैस करो और मनचाही छुट्टियां कर लो, बौस की नाराजगी का कोई डर नहीं.’’

‘‘बिजनैस करना एक तरह से जुआ खेलने के समान है. सब कुछ दांव पर लगा कर भी जीत सुनिश्चित नहीं होती,’’ प्रखर के कहने पर बात आईगई हो गई.

रूपेश अपने परिवार को प्यार करता था. परिवार को अधिक समय दे पाने की ख्वाहिश उस की भी थी, लेकिन कई बार अपने बौस के गुस्से के डर से अपने घर की जिम्मेदारियां पूरी तरह से नहीं निभा पाता था. वह स्नेहा के सुझाव पर ध्यान से सोचने लगा.

अगले दिन जैसे ही स्नेहा ने विद्या से बात करने के लिए फोन हाथ में उठाया तभी दरवाजे की घंटी बज उठी. ‘लगता है रमाबाई आ गई,’ मन ही मन सोचते हुए स्नेहा ने दरवाजा खोला, तो सामने रूपेश को देख कर चौंक उठी. बोली, ‘‘आप अभीअभी तो औफिस गए थे. इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘अब मैं औफिस जाऊंगा ही नहीं, नौकरी जो छोड़ आया हूं,’’ रूपेश ने मुसकराते हुए कहा.

स्नेहा सुन कर परेशान हो गई, ‘‘बौस से कहासुनी हो गई क्या? ऐसे कैसे नौकरी छोड़ दी?’’

‘‘अरे बाबा बिजनैस जो करना है.’’

रूपेश के जवाब पर स्नेहा मुसकराई तो जरूर पर मन ही मन घबरा भी गई. उस ने तो यह सोच कर कह दिया था बिजनैस करने को कि प्रखर और रूपेश मिल कर बिजनैस करेंगे. फायदा या नुकसान जो भी हो दोनों मिल कर झेल लेंगे और फिर एक और एक ग्यारह होते हैं. लेकिन जब प्रखर ने मना कर दिया तो उस ने आगे सोचा भी नहीं, पर यह रूपेश तो अपनी जौब ही छोड़ आया. स्नेहा कुछ बोल न पाई. तभी रमाबाई आ गई और स्नेहा घर के काम में लग गई.

‘‘रूपेश, मैं सब्जी ले कर आती हूं,’’ कह स्नेहा जाने लगी तो रूपेश भी उस के साथ हो लिया.

‘‘अरे बाबूजी आप?’’ सब्जी वाला जो

रोज स्नेहा के सब्जी खरीदने की वजह से उस

से काफी परिचित हो चुका था, रूपेश से बोल उठा, ‘‘आइएआइए बाबूजी… आज काम पर नहीं गए क्या?’’

‘‘नहीं, मैं ने नौकरी छोड़ दी है.’’

‘‘क्यों?’’ पूछ सब्जी वाले ने यों देखा जैसे रमाबाई के पति की तरह रूपेश को भी नौकरी से निकाल दिया गया हो.

स्नेहा कुछ बोल न पाई. घर आ कर उस ने जल्दीजल्दी सब्जी बनाई. फिर रूपेश से बोली, ‘‘लवकुश के स्कूल से आने का समय हो गया है. मैं चावल चढ़ा कर जा रही हूं, तुम थोड़ी देर बाद आंच बंद कर देना.’’

‘‘ठहरो, मैं भी चलता हूं. चावल आ कर बना लेना,’’ कह रूपेश भी साथ चल दिया.

बसस्टौप पर बच्चे पापा को देख कर

हैरान थे.

‘‘पापा आज तो बारिश नहीं हुई. फिर आप के औफिस में रेनीडे की छुट्टी क्यों हो गई?’’ नन्हे कुश ने बोला तो सभी हंस पड़े.

घर आने पर जब तक स्नेहा से खाना नहीं बना तब तक बच्चों ने खानाखाना का राग अलाप कर दोनों की नाक में दम कर दिया.

खाना खा कर रूपेश ने स्नेहा से बोला, ‘‘आओ मिल कर बिजनैस की प्लानिंग करते हैं.’’

पर स्नेहा को फुरसत कहां?

‘‘रूपेश तुम बच्चों को होमवर्क करवा दो. तब तक मैं कपड़े धो लेती हूं. फिर आराम से बैठ कर बिजनैस की प्लानिंग करेंगे.’’

बच्चों को होमवर्क करवाना आसान नहीं था. लव ने जब पापा से पूछा कि कद्दू और बैगन में क्या फर्क है, तो रूपेश बोला, ‘‘लिख दो कि कद्दू हरा और बैगन बैगनी होता है,’’ पापा के जवाब पर लव जोरजोर से हंसने लगा तो कुश भी उस के साथ मिल कर तालियां बजाबजा कर हंसने लगा.

शोर सुन कर कपड़े धोना छोड़ कर स्नेहा भागीभागी आई, ‘‘क्या बात है, तुम दोनों पढ़ाई क्यों नहीं कर रहे? तब लव ने वही सवाल स्नेहा से भी पूछ लिया.

‘‘बैगन एक श्रब है और कद्दू क्रीपर.’’

स्नेहा के जवाब पर लव और कुश फिर से पापा को देख कर हंस दिए.

होमवर्क के लिए पापा को तंग न करने का निर्देश दे कर स्नेहा फिर से कपड़े धोने चली गई. रूपेश आंखें बंद कर के चुपचाप लेट गया. थोड़ी देर बाद बच्चों ने फिर से कुछ पूछने की कोशिश की तो रूपेश ने सोने की ऐक्टिंग करने में ही भलाई समझी. थोड़ी देर बाद पापा को सोया देख दोनों खेलने भाग गए. काफी देर बाद आंख खुली तो देखा शाम हो आई है.

स्नेहा लवकुश को डांट रही थी, ‘‘शाम हो गई है और तुम दोनों अपना होमवर्क छोड़ कर खेल में ही लगे हो.’’

तभी रूपेश को जागा देख कर स्नेहा शांत हो कर चाय बनाने चली गई. चाय पी कर स्नेहा बच्चों को होमवर्क कराने लगी.

रूपेश सोच में पड़ गया कि स्नेहा को तो पूरा दिन चैन से बैठने की भी फुरसत नहीं मिली. बिजनैस में मेरा हाथ बंटाने का वक्त कहां से निकालेगी.

‘‘खाने में क्या बनाऊं?’’ तभी स्नेहा की आवाज से रूपेश की तंद्रा टूटी.

अगले दिन रूपेश औफिस नहीं गया. रमाबाई आ कर अपना काम करते हुए आज फिर से रो पड़ी, ‘‘बीबीजी, साहब को बोलो कि मेरे आदमी को अपने लिए ड्राइवर रख लें. जब तक उस की कहीं नौकरी नहीं लग रही तब तक उसे काम पर रख लो. नहीं तो मेरे बच्चों का स्कूल छूट जाएगा.’’

स्नेहा के कहने पर ही रमाबाई ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल के बजाय

प्राइवेट स्कूल में डाला था. स्नेहा कैसे बताती कि खुद उस का पति ही नौकरी छोड़ आया है. वह उस के पति को काम पर कैसे रख सकता है?

स्नेहा अपने गहने निकालना. जरा देखूं तो बिजनैस के लिए कितने पैसों का इंतजाम हो जाएगा.

रूपेश के कहने पर स्नेहा ने अपने गहनों का डब्बा निकाला. कांपते हाथों से उसे रूपेश के हवाले कर के वह कुछ उदास सी हो गई.

तभी विद्या का फोन आ गया, ‘‘आज औफिस में पार्टी है. तू आ रही है न?’’

‘‘देखूंगी,’’ अनमने भाव से कह स्नेहा ने फोन काट दिया. फिर सोचने लगी कि बिना गहनों के अब वह पार्टी में कैसे जाएगी?

अत: रूपेश के पास जा कर बोली, ‘‘सुनो, क्या हम इन गहनों को 1-2 दिन के बाद नहीं बेच सकते?’’

‘‘ठीक है,’’ कह रूपेश ने गहनों का डब्बा वापस कर दिया.

स्नेहा को उन बेजान गहनों पर बेतहाशा प्यार उमड़ आया कि ये कंगन मेरी मां ने बनवाए थे. यह अंगूठी मेरी दीदी ने गिफ्ट की थी, यह सोने की चैन मेरी बूआ की आखिरी निशानी है और यह हार बड़े प्यार से रूपेश ने मेरे लिए बनवाया था. उस की आंखों भीगने लगीं.

1-1 कर वह गहनों को चूमने लगी.

तभी विद्या का फिर फोन आ गया. बोली, ‘‘तू ने बताया ही नहीं स्नेहा कि पार्टी में आ रही है या नहीं?’’

‘‘हांहां,’’ कह स्नेहा कुछ सामान्य हुई, ‘‘पर यह तो बता कि पार्टी है किस बात की?’’

‘‘बौस का जन्मदिन है न, तभी तो 2 दिन की छुट्टी है.’’

‘‘अच्छा ठीक है, मैं बाद में बात करती हूं,’’ कह स्नेहा ने फोन काट दिया. वह सीधे रूपेश के पास पहुंची, ‘‘मुझे बेवकूफ बनाया तुम ने, मुझ से कहा कि मैं नौकरी छोड़ आया हूं जबकि तुम्हारे औफिस में छुट्टी थी.’’

‘‘हां, औफिस में छुट्टी तो थी, लेकिन मैं सचमुच सोच रहा था कि नौकरी छोड़ दूं. आज बौस के जन्मदिन की पार्टी में ही मैं अपना त्यागपत्र देने वाला था. यह देखो मैं ने लिख भी रखा है.’’

2 दिन पहले का लिखा त्यागपत्र देख कर स्नेहा को विश्वास हो गया कि रूपेश सचमुच नौकरी छोड़ने वाला है.

शाम को पार्टी के लिए तैयार होते हुए स्नेहा की आंखें बारबार भीग रही थीं कि इन सारे गहनों को अब वह नहीं पहन पाएगी या फिर शायद 4-5 साल बाद जब उन का बिजनैस चल जाए तो फिर से खरीद लें… पर कम से कम 4-5 साल तो उसे इन के बिना ही रहना पड़ेगा.

पार्टी के लिए गाड़ी से जाते हुए स्नेहा सोच रही थी कि अगर रूपेश नौकरी न छोड़े तो वह रमाबाई के पति को ड्राइवर रख ले.

पूरा दिन स्नेहा कितना काम करती है, अगर वह बिजनैस में हाथ बंटाएगी तो घर और बच्चे कौन संभालेगा?’’ रूपेश भी चिंता में था.

पार्टी जोरशोर से चल रही थी. वहां पहुंचते ही प्रखर और विद्या उन्हें मिल गए. पार्टी के बाद बौस ने सब को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘आज की पार्टी मेरे औफिस में काम करने वाले सभी दोस्तों की बीवियों के नाम… अगर वे घर की जिम्मेदारियों से अपने पतियों को मुक्त न रखतीं तो सारे कर्मचारी औफिस में मन लगा कर काम न कर पाते.’’

स्नेहा का दिल जोरों से धड़क रहा था कि अब रूपेश त्यागपत्र दे देगा और ये पार्टियां वगैरह बंद हो जाएंगी.

घर लौटते वक्त रूपेश ने कहा, ‘‘स्नेहा, तुम मेरे और बच्चों के लिए बहुत मेहनत करती हो. बौस ने सच ही कहा कि अगर तुम पूरी जिम्मेदारी से घर संभालती हो तो मैं पूरी जिम्मेदारी से औफिस का काम कर पाता हूं. मैं बेकार में तुम पर गुस्सा करता हूं. सौरी…’’

‘‘रूपेश, तुम्हारा काम भी तो कम महत्त्वपूर्ण नहीं. हमारे पास आज जो कुछ भी है वह तुम्हारी मेहनत का ही तो फल है. दरअसल, मैं इस सब की आदी हो चुकी हूं, इसलिए मैं बेकार की शिकायत करती रहती हूं. लेकिन कभी यह सब खो गया तो पता नहीं मैं कैसे सह पाऊंगी? अच्छा ही हुआ जो तुम ने त्यागपत्र नहीं दिया.’’

Latest Hindi Stories : जोरू का गुलाम – मायके पहुंची ऋचा के साथ क्या हुआ?

Latest Hindi Stories : ‘‘अरे, ऋचा दीदी, यहां, इस समय?’’ सुदीप अचानक अपनी दीदी को देख हैरान रह गया. ‘‘सप्ताहभर की छुट्टी ले कर आई हूं. सोचा, घर बाद में जाऊंगी, पहले तुम से मिल लूं,’’ ऋचा ने गंभीर स्वर में कहा तो सुदीप को लगा, दीदी कुछ उखड़ीउखड़ी सी हैं.

‘‘कोई बात नहीं, दीदी, तुम कौन सा रोज यहां आती हो. जरा 5 मिनट बैठो, मैं आधे दिन की छुट्टी ले कर आता हूं. आज तुम्हें बढि़या चाइनीज भोजन कराऊंगा,’’ लाउंज में पड़े सोफों की तरफ संकेत कर सुदीप कार्यालय के अंदर चला गया. ऋचा अपने ही विचारों में डूबी हुई थी कि अचानक ही सुदीप ने उस की तंद्रा भंग की, ‘‘चलें?’’

ऋचा चुपचाप उठ कर चल दी. उस की यह चुप्पी सुदीप को बड़ी अजीब लग रही थी. यह तो उस के स्वभाव के विरुद्ध था. जिजीविषा से भरपूर ऋचा बातबात पर ठहाके लगाती, चुटकुले सुनाती और हर देखीसुनी घटना को नमकमिर्च लगा कर सुनाती. फिर ऐसा क्या हो गया था कि वह बिलकुल गुमसुम हो गई थी? ‘‘सुदीप, मैं यहां चाइनीज खाने नहीं आई,’’ ऋचा ने हौले से कहा.

‘‘वह तो मैं देख ही रहा हूं, पर बात क्या है, अक्षय से झगड़ा हुआ है क्या? या फिर और कोई गंभीर समस्या आ खड़ी हुई है?’’ सुदीप की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. ‘‘अक्षय और झगड़ा? क्या सभी को अपने जैसा समझ रखा है? पता है, अक्षय मेरा और अपनी मां का कितना खयाल रखता है, और मांजी, उन के व्यवहार से तो मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैं उन की बेटी नहीं हूं,’’ ऋचा बोली.

‘‘सब जानता हूं. सच पूछो तो तुम्हारी खुशहाल गृहस्थी देख कर कभीकभी बड़ी ईर्ष्या होती है,’’ सुदीप उदास भाव से मुसकराया. ‘‘सुदीप, जीवन को खुशियोंभरा या दुखभरा बनाना अपने ही हाथ में है. सच पूछो तो मैं इसीलिए यहां आई हूं. कम से कम तुम से व प्रेरणा से मुझे ऐसी आशा न थी. आज सुबह मां ने फोन किया था. फोन पर ही वे कितना रोईं, कह रही थीं कि तुम अब विवाहपूर्व वाले सुदीप नहीं रह गए हो. प्रेरणा तुम्हें उंगलियों पर नचाती है. सनी, सोनाली और मां की तो तुम्हें कोई चिंता ही नहीं है,’’ ऋचा ने शिकायत की.

‘‘और क्या कह रही थीं?’’ सुदीप ने पूछा.

‘‘क्या कहेंगी बेचारी, इस आयु में पिताजी उन्हें छोड़ गए. 3 वर्षों में ही उन का क्या हाल हो गया है. सनी और सोनाली का भार उन के कंधों पर है और तुम उन से अलग रहने की बात सोच रहे हो,’’ ऋचा के स्वर में इतनी कड़वाहट थी कि सुदीप को लगा, इस आरोपप्रत्यारोप लगाने वाली युवती को वह जानता तक नहीं. उसे उम्मीद थी कि घर का और कोई सदस्य उसे समझे या न समझे, ऋचा अवश्य समझेगी, पर यहां तो पासा ही उलटा पड़ रहा था. ‘‘अब कहां खो गए, किसी बात का जवाब क्यों नहीं देते?’’ ऋचा झुंझला गई.

‘‘तुम ने मुझे जवाब देने योग्य रखा ही कहां है. मेरे मुंह खोलने से पहले ही तुम ने तो एकतरफा फैसला भी सुना डाला कि सारा दोष मेरा व प्रेरणा का ही है,’’ सुदीप तनिक नाराजगी से बोला. ‘‘ठीक है, फिर कुछ बोलते क्यों नहीं? तुम्हारा पक्ष सुनने के लिए ही मैं यहां आई हूं, वरना तुम से घर पर भी मिल सकती थी.’’

‘‘मैं कोई सफाई नहीं देना चाहता, न ही तुम से बीचबचाव की आशा रखता हूं. मैं केवल तुम से तटस्थता की उम्मीद करता हूं. मैं चाहूंगा कि तुम एक सप्ताह का अवकाश ले कर हमारे साथ आ कर रहो.’’ ‘‘पता नहीं तुम मुझ से कैसी तटस्थता की आशा लगाए बैठे हो. मां, भाईबहन आंसू बहाएं तो मैं कैसे तटस्थ रहूंगी?’’ ऋचा झुंझला गई.

‘‘हमें अकेला छोड़ दो, ऋचा. हम अपनी समस्याएं खुद सुलझा सकते हैं,’’ सुदीप ने अनुनय की. ‘‘अब तुम्हारे लिए अपनी सगी बहन पराई हो गई? मां ठीक ही कर रही थीं कि तुम बहुत बदल गए हो. प्रेरणा सचमुच तुम्हें उंगलियों पर नचा रही है.’’

‘‘ऋचा दीदी, प्रेरणा तो तुम्हारी सहेली है, तुम्हीं ने उस से मेरे विवाह की वकालत की थी. पर आज तुम भी मां के सुर में सुर मिला रही हो.’’ ‘‘यही तो रोना है, मैं ने सोचा था, वह मां को खुश रखेगी, हमारा घर खुशियों से भर जाएगा, पर हुआ उस का उलटा…’’

‘‘मैं कोई सफाई नहीं दूंगा, केवल एक प्रार्थना करूंगा कि तुम कुछ दिन हमारे साथ रहो, तभी तुम्हें वस्तुस्थिति का पता चलेगा.’’ ‘‘ठीक है. यदि तुम जोर देते हो तो मैं अक्षय से बात करूंगी,’’ ऋचा उठ खड़ी हुई.

‘‘तो कब आ रही हो हमारे यहां रहने?’’ सुदीप ने बिल देते हुए प्रश्न किया. ‘‘तुम्हारे यहां?’’ ऋचा हंस दी, ‘‘तो अब वह घर मेरा नहीं रहा क्या?’’

‘‘मैं तुम्हें शब्दजाल में उलझा भी लूं तो क्या. सत्य तो यही है कि अब तुम्हारा घर, तुम्हारा नहीं है,’’ सुदीप भी हंस दिया.

लगभग सप्ताहभर बाद ऋचा को सूटकेस व बैग समेत आते देख छोटी बहन सोनाली दूर से ही चिल्लाई, ‘‘अरे दीदी, क्या जीजाजी से झगड़ा हो गया?’’ ‘‘क्यों, बिना झगड़ा किए मैं अपने घर रहने नहीं आ सकती क्या? ले, नीनू को पकड़,’’ उस ने गोद में उठाए हुए अपने पुत्र की ओर संकेत किया.

सोनाली ने ऋचा की गोद से नीनू को लिया और बाहर की ओर भागी. ‘‘रुको, सोनाली, कहां जा रही हो?’’

‘‘अभी आ जाएगी, अपनी सहेलियों से नीनू को मिलवाएगी. उसे छोटे बच्चों से कितना प्यार है, तू तो जानती ही है,’’ मां ने ऋचा को गले लगाते हुए कहा. ‘‘लेकिन मां, अब सोनाली इतनी छोटी भी नहीं है जो इस तरह का व्यवहार करे.’’

‘‘चल, अंदर चल. इन छोटीछोटी बातों के लिए अपना खून मत जलाया कर. माना अभी सोनाली में बचपना है, एक बार विवाह हो गया तो अपनेआप जिम्मेदारी समझने लगेगी,’’ मां हाथ पकड़ कर ऋचा को अंदर लिवा ले गईं. ‘‘हां, विवाह की बात से याद आया, सोनाली कब तक बच्ची बनी रहेगी. नौकरी क्यों नहीं ढूंढ़ती. इस तरह विवाह में भी सहायता मिलेगी,’’ ऋचा बोली.

‘‘बहन का विवाह करना भैयाभाभी का कर्तव्य होता है, उन्हें क्यों नहीं समझाती? मेरी फूल सी बच्ची नौकरी कर के अपने लिए दहेज जुटाएगी?’’ मां बिफर उठीं. ‘‘मेरा यह मतलब नहीं था. पर आजकल अधिकतर लड़कियां नौकरी करने लगी हैं. ससुराल वाले भी कमाऊ वधू चाहते हैं. इन की दूर के रिश्ते की मौसी का लड़का आशीष बैंक में काम करता है, पर उसे कमाऊ बीवी चाहिए. वैसे भी, इस में इतना नाराज होने की क्या बात है? सोनाली काम करेगी तो उसे ?इधरउधर घूमने का समय नहीं मिलेगा. फिर अपना भी कुछ पैसा जमा कर लेगी. तुम्हें याद है न मां, पिताजी ने पढ़ाई समाप्त करते ही मुझे नौकरी करने की सलाह दी थी. वे हमेशा लड़कियों के स्वावलंबी होने पर जोर देते थे,’’ ऋचा बोली.

‘‘अरे दीदी, कैसी बातें कर रही हो, जरा सी बच्ची के कंधों पर नौकरी का बोझ डालना चाहती हो?’’ तभी सुदीप का स्वर सुन कर ऋचा चौंक कर मुड़ी. प्रेरणा व सुदीप न जाने कितनी देर से पीछे खड़े थे. सुदीप के स्वर का व्यंग्य उस से छिपा न रह सका. ‘‘बड़ी देर कर दी तुम दोनों ने?’’ ऋचा बोली.

‘‘ये दोनों तो रोज ऐसे ही आते हैं, अंधेरा होने के बाद.’’ ‘‘क्या करें, 6 साढ़े 6 तो बस से यहां तक पहुंचने में ही बज जाते हैं. फिर शिशुगृह से तन्मय को लेते हुए आते हैं, तो और 10-15 मिनट लग जाते हैं.’’

‘‘क्या? तन्मय को शिशुगृह में छोड़ कर जाती हो? घर में मां व सोनाली दोनों ही रहती हैं, क्या तुम्हें उन पर विश्वास नहीं है? जरा से बच्चे को परायों के भरोसे छोड़ जाती हो?’’ प्रेरणा बिना कुछ कहे तन्मय को गोद में ले कर रसोईघर में जा घुसी.

‘‘मां, तुम इन लोगों से कुछ कहती क्यों नहीं, जरा से बच्चे को शिशुगृह में डाल रखा है.’’ ‘‘मैं ने कहा है बेटी, मेरी दशा तो तुझ से छिपी नहीं है, हमेशा जोड़ों का दर्द, ऐसे में मुझ से तो तन्मय संभलता नहीं. सोनाली को तो तू जानती ही है, घर में टिकती ही कब है. कभी इस सहेली के यहां, तो कभी उस सहेली के यहां.’’

ऋचा कुछ क्षणों के लिए स्तब्ध बैठी रही. उसे लगा, उस के सामने उस की मां नहीं, कोई और स्त्री बैठी है. उस की मां के हृदय में तो प्यार का अथाह समुद्र लहलहाता था. वह इतनी तंगदिल कैसे हो गई.

तभी प्रेरणा चाय बना लाई. तन्मय भी अपना दूध का गिलास ले कर वहीं आ गया. अचानक ही ऋचा को लगा कि उसे आए आधे घंटे से भी ऊपर हो गया है, पर किसी ने पानी को भी नहीं पूछा. शायद सब प्रेरणा की ही प्रतीक्षा कर रहे थे. सोनाली तो नीनू को ले कर ऐसी अदृश्य हुई कि अभी तक घर नहीं लौटी थी. झटपट चाय पी कर प्रेरणा फिर रसोईघर में जा जुटी थी. ऋचा अपना कप रखने गई तो देखा, सिंक बरतनों से भरी पड़ी है और प्रेरणा जल्दीजल्दी बरतन साफ करने में लगी है.

‘‘यह क्या, आज कामवाली नहीं आई?’’ अनायास ही ऋचा के मुंह से निकला. ‘‘आजकल बड़े शहरों में आसानी से कामवाली कहां मिलती हैं. ऊपर से मांजी को किसी का काम पसंद भी नहीं आता. सुबह तो समय रहता ही नहीं, इसलिए सबकुछ शाम को ही निबटाना पड़ता है.’’

‘‘अच्छा, यह बता कि आज क्या पकेगा? मैं भोजन का प्रबंध करती हूं,’’ ऋचा ने कहा. ‘‘फ्रिज में देख लो, सब्जियां रखी हैं, जो खाना है, बना लेंगे.’’

‘‘क्या कहूं प्रेरणा, लगता है, मेरे आने से तो तेरा काम और बढ़ गया है.’’ ‘‘कैसी बातें कर रही है? सुदीप की बहन होने के साथ ही तू मेरी सब से प्यारी सहेली भी है, यह कैसे भूल गई, पगली. इतने दिनों बाद तुझे मेरी याद आई है तो मुझे बुरा लगेगा?’’ अनजाने ही प्रेरणा की आंखें छलछला आईं.

फ्रिज से सब्जियां निकाल कर काटने के लिए ऋचा मां के पास जा बैठी. ‘‘अरे, यह क्या, 4 दिनों के लिए मेरी बेटी मायके क्या आ गई, तुरंत ही सब्जियां पकड़ा दीं,’’ मां का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

‘‘ओह मां, किसी ने पकड़ाई नहीं हैं, मैं खुद सब्जियां ले कर आई हूं. खाली ही तो बैठी हूं, बातें करते हुए कट जाएंगी,’’ ऋचा ने बात पूरी नहीं की थी कि सुदीप ने आ कर उस के हाथ से थाली ले ली और कुरसी खींच कर वहीं बैठ कर सब्जियां काटने लगा. ‘‘यह बैठा है न जोरू का गुलाम, यह सब्जी काट देगा, खाना बना लेगा, तन्मय को नहलाधुला भी देगा. दिनरात पत्नी के चारों तरफ चक्कर लगाता रहेगा,’’ मां का व्यंग्य सुन कर सुदीप का चेहरा कस गया.

वह कोई कड़वा उत्तर देता, इस से पहले ही ऋचा बोल पड़ी, ‘‘तो क्या हुआ, अपने घर का काम ही तो कर रहा है,’’ उस ने हंस कर वातावरण को हलका बनाने का प्रयत्न किया. ‘‘जो जिस काम का है, उसी को शोभा देता है. सुदीप को तो मैं ने उस के पैर तक दबाते देखा है.’’

‘‘उस दिन बेचारी दर्द से तड़प रही थी, तेज बुखार था,’’ सुदीप ने धीरे से कहा. ‘‘फिर भी पति, पत्नी की सेवा करे, तोबातोबा,’’ मां ने कानों पर हाथ

रखते हुए आंखें मूंद कर अपने भाव प्रकट किए. ‘‘मां, अब वह जमाना नहीं रहा, पतिपत्नी एक ही गाड़ी के 2 पहियों की तरह मिल कर गृहस्थी चलाते हैं.’’

‘‘सब जानती हूं, हम ने भी खूब गृहस्थी चलाई है. तुम 4 भाईबहनों को पाला है और मेरी सास तिनका उठा कर इधर से उधर नहीं रखती थीं.’’ ‘‘इस में बुराई क्या है? अक्षय की मां तो घर व हमारा खूब खयाल रखती हैं.’’

‘‘ठीक है, रखती होंगी, पर मुझ से नहीं होता. पहले अपनी गृहस्थी में खटते रहे, अब बेटे की गृहस्थी में कोल्हू के बैल की तरह जुते रहें. हमें भी घूमनेफिरने, सैरसपाटे के लिए कुछ समय चाहिए कि नहीं? पर नहीं, बहूरानी का दिमाग सातवें आसमान पर रहता है, नौकरी जो करती हैं रानीजी,’’ मां ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा. ‘‘यदि नौकरी करने वाली लड़की पसंद नहीं थी तो विवाह से पहले आप ने पहली शर्त यही क्यों नहीं रखी थी?’’ ऋचा ने मां को समझाना चाहा.

‘‘इस में भी हमारा ही दोष है? अरे, एक क्या तेरी भाभी ही नौकरी करती है? आजकल तो सभी लड़कियां नौकरी करती हैं, साथ ही घर भी संभालती हैं,’’ मां भला कब हार मानने वाली थीं. ऋचा चुप रह गई. उसे लगा, मां को कुछ भी समझाना असंभव है.

दूसरे दिन सुबह ही ऋचा भी तैयार हो गई तो प्रेरणा के आश्चर्य की सीमा न रही, ‘‘यह क्या, आज ही जा रही हो?’’

‘‘सोचती हूं, तुम लोगों के साथ ही निकल जाऊंगी. फिर कल से औफिस चली जाऊंगी…क्यों व्यर्थ में छुट्टियां बरबाद करूं. सोनाली के विवाह में तो छुट्टियां लेनी ही पड़ेंगी,’’

वह बोली. ‘‘तुम कहो तो मैं भी 2 दिनों की छुट्टियां ले लूं? आई हो तो रुक जाओ.’’

‘‘नहीं, अगली बार जब 3-4 दिनों की छुट्टियां होंगी, तभी आऊंगी. इस तरह तुम्हें भी छुट्टियां नहीं

लेनी पड़ेंगी.’’ ‘‘बेचारी एक दिन के लिए आई, लेकिन मेरी बेटी काम में ही जुटी रही. रुक कर भी क्या करे, जब यहां भी स्वयं ही पका कर खाना है तो,’’ मां ऋचा को इतनी जल्दी जाते देख अपना ही रोना रो रही थीं.

‘अब जो होना है, सो हो. मैं आई थी सुदीप व प्रेरणा को समझाने, पर किस मुंह से समझाऊं. प्रेम व सद्भाव की ताली क्या भला एक हाथ से बजती है?’ ऋचा सोच रही थी. ‘‘अच्छा, दीदी,’’ सुदीप ने बस से उतर कर उस के पैर छुए. प्रेरणा पहले ही उतर गई थी.

‘‘सुदीप, मुझे नहीं लगता कि तुम्हें उपदेश देने का मुझे कोई हक है. फिर भी देखना, सनी की नौकरी व सोनाली के विवाह तक साथ निभा सको तो…’’ कहती हुई ऋचा मुड़ गई. पर उसे लगा, मन जैसे बहुत भारी हो आया है, कहीं थोड़ा एकांत मिल जाए तो फूटफूट कर रो ले.

Hindi Story : गंवार – देवरानी-जेठानी का तानों का रिश्ता

Hindi Story :  आज मोनिका 2 महीने की बीमारी की छुट्टी के बाद पहली बार औफिस जा रही थी. मोनिका की देवरानी वंदना ने अपने हाथों से मोनिका के लिए टिफिन तैयार किया था. वह किचन से बाहर आते हुए बोली –

“भाभी, आप का टिफिन,” और मोनिका के करीब पहुंची तो मोनिका उसे गले लगा लिया. मोनिका की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई. उस के मानस पटल पर अतीत की यादें किसी चलचित्र की भांति अंकित होने लगीं.

छोटे से गांव से मायानगरी मुंबई के पौश इलाके में बहू बन कर आने वाली वंदना के लिए अपननी ससुराल की राह पहले दिन से ही कठिन बन गई थी. शादी के बाद अपनी इकलौती जेठानी के पैर छूने के लिए झुकी तो मोनिका पीछे हटते हुए बोली –

“ओह, व्हाट इज़ दिस? यह किस जमाने में जी रही है, गंवार कहीं की, आजकल कोई पैर छूता है क्या? यह हाईटेक युग है, हाय-हैलो और हग करने का जमाना है. लगता है यह लड़की एजजुकेटेड भी नहीं है.”

“फिर तो भाभी से गले मिल लो वंदना,” अजित ने हंसते हुए कहा.

वंदना आगे बढ़ी तो मोनिका ने नाक सिकोड़ते हुए कहा, “बस, बस, दूर से ही नमस्कार कर दो, मैं मान लूंगी.”

वंदना दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार कर आगे बढ़ गई थी.

शादी के पहले दिन से ही जेठानी मोनिका का पारा सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ था. हाईटेक सिटी मुंबई की गलियों में बचपन बिताने वाली मोनिका को किसी ठेठ गांव की लड़की बतौर अपनी देवरानी कतई पसंद नहीं थी. मोनिका ने अपने देवर अजित की शादी अपने मामा की इकलौती बेटी लवलीना से करवाने के लिए बहुत हाथपैर मारे थे परंतु अजित ने उस की एक न सुनी थी.

लवलीना मौडलिंग करती थी और शहर के स्थानीय फैशन शोज में नियमित रूप से शरीक होती थी. फैशन शोज के लिए वह देश के अन्य शहरों में भी अकसर जाती थी. लवलीना का ताल्लुक हाईफाई सोसायटी से था. जुहू स्कीम इलाके में स्टार बेटेबेटियों के साथ स्वच्छन्द जीवन का लुत्फ उठाने वाली लवलीना फिल्मों में भी अपना नसीब आजमा रही थी. मोनिका किटी पार्टियों, शौपिंग व पिकनिक की जबरदस्त शौकीन थी. वह चाहती थी कि उस के परिवार में ऐसी ही कोई मौड लड़की आए ताकि जेठानीदेवरानी में बेहतर तालमेल बना रहे. परंतु जब अजित ने देहाती लड़की से विवाह कर लिया तो मोनिका के तमाम ख्वाब पत्थर से टकराए शीशे की भांति टूट कर चकनाचूर हो गए. वह जलभुन कर रह गई.

अजित मैडिकल का छात्र था. जब वह एमबीबीएस के अंतिम वर्ष में स्टडी कर रहा था तब अपने मित्र सुमित के विवाह में शरीक होने उस के गांव गया था. वह पहली बार किसी गांव में गया था. पर्वतों की तलहटी में बसे इस गांव के प्राकृतिक सौंदर्य को देख कर अभिजीत को पहली नजर में ही इस गांव से प्यार हो गया था. गांव के चारों ओर आच्छादित हरियाली, दूरदूर तक लहलहाते हरेभरे खेत, खेतों में फुदकती चिडियां, हरेभरेघने वृक्षों पर कलरव करते विहग और उन की छांव में नृत्य करते मोर, अमराइयों में कूकती कोयल आदि ने अजित को इतना प्रभावित किया कि वह शादी के बाद भी कई दिनों तक अपने दोस्त के घर पर ही रुक गया था.

अपने दोस्त के विवाह में ही अजित ने वंदना को देखा था. विवाह के 2 दिन पूर्व आयोजित संगीत संध्या में उस ने वंदना को गाते और नृत्य करते हुए पहली बार देखा था. संगीत संध्या की रात को नींद ने अजित की आंखों से किनारा कर लिया. रातभर उस की आंखों के सामने वंदना का चेहरा ही घूम रहा था. उसे लगा कि अब उस की तलाश पूरी हो गई है. उस के दिमाग में जीवनसाथी की जो तसवीर थी उसी के अनुरूप वंदना थी.

सुमित के विवाह के बाद अजीत ने वंदना के बारे में छानबीन शुरू कर दी थी. उस ने प्रवीण के पिता शिवशंकर प्रसाद से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, ‘बेटा, वंदना, पंडित रामप्रसाद की ज्येष्ठ कन्या है. वे सेवानिवृत्त अध्यापक हैं, जो 2 वर्ष पहले ही सेवानिवृत्त हुए हैं. घर की गरीबी के कारण वंदना ने कक्षा 10वीं उत्तीर्ण कर स्कूल को अलविदा कह दिया था. वंदना मेरी गोद में खेली है, लड़की बहुत ही संस्कारित, सुशील और बुद्धिमान है. वंदना की आवाज बहुत ही मीठी व सुरीली है. वह बहुत अच्छा गाती है. प्रवीण के विवाह में संगीत संध्या में तुम ने वंदना के गीत सुने होंगे. अजित, एक बात मैं तुम्हें यह भी बताना चाहूंगा कि वंदना के विवाह की चिंता ने रामप्रसाद की नींद हराम कर दी है. उन की बिरादरी के कई लोग वंदना को देखने आते हैं पर दहेज पर आ कर बात फिसल जाती है. वंदना से छोटी एक और बहन है. उस के हाथ भी पीले करने हैं. गत वर्ष पंडितजी की पत्नी का अल्पावधि बीमारी के बाद आकस्मिक निधन हो गया था. उन्होंने इलाज में पैसे पानी की तरह बहाया. पर उसे बचा न सके. पंडितजी की पत्नी का निधन क्या हुआ, इस परिवार की रीढ़ ही टूट गई.’

शिवशंकर प्रसाद ने अजित के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘बेटे अजित, पंडितजी मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं. उन की दोनों बेटियां सुंदर, सुशील और सुसंस्कारित हैं. अगर वंदना तुम्हें पसंद है और उसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहते हो तो मुझे पंडितजी से बात करने में प्रसन्नता होगी.’

शिवशंकर प्रसाद की बातों से अजित के मन में लड्डू फूट रहे थे. वह जल्दी से जल्दी मुंबई जा कर इस संबंध में अपने मातापिता से बात करना चाहता था.

शिवशंकर ने अल्पविराम के बाद कहा, ‘बेटा, कोई निर्णय लेने से पहले अपने मातापिता से एक बार बात जरूर कर लेना. हो सके तो उन्हें एक बार यहां ले कर आ जाना.’

‘जरूर अंकल, मैं कोई निर्णय लेने से पूर्व मातापिता से जरूर बात करूंगा और मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी पसंद ही मेरे मातापिता की पसंद होगी. अंकल, वंदना तो मुझे पहली नजर में ही पसंद आ गई है. मैं ऐसी ही लड़की को अपनी जीवनसंगिनी बनाना चाहता हूं, जिस का मन स्वच्छ कांच की तरह पारदर्शक हो, जिस के आरपार सहज देखा जा सकता है. वंदना का मन ताल के स्वच्छ जल की तरह निर्मल है, जिस के भीतर सहजता से झांक कर तल को देखा जा सकता है. अंकल, सुमित के विवाह के दौरान हमारी कई बार मुलाकातें हो चुकी हैं. मैं कल ही मुंबई जा रहा हूं. आप चाहे तो वंदना के पापा से बात कर सकते हैं,’ अजित उत्साहित हो कर बोल रहा था.

‘ठीक है, मैं कल ही पंडितजी से बात कर लेता हूं,’ शिवशंकर ने कहा.

अजित ने मुंबई पहुंच कर जब अपने मम्मीपापा और भैयाभाभी से इस बारे में बात की तो मोनका भाभी क्रोधित हो गईं. उन्होंने नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा, ‘अरे, अजीत, मैं ने तो लवलीना से तुम्हारे लिए बात कर रखी है. मुंबई जैसे शहर में गांव की अशिक्षित और गंवार लड़की ला कर समाज में हमारी नाक कटवाओगे क्या?’

‘अरे भाभी, मैं ने आप से पहले ही कह दिया था न कि मुझे लवलीना पसंद नहीं है. मेरी और उस की सोच में ज़मीनआसमान का अंतर है. भाभी, मैं सीधासादा लड़का हूं जबकि लवलीना हायफाय,’ अजित मुसकराते हुए और कुछ कहने जा रहा था मगर मोनिका ने अजित की बात काटते हुए कहा, ‘क्या बुराई है लवलीना में, दिखने में किसी हीरोईन से कम नहीं है, अच्छी पढ़ीलिखी है, ऊंचे खानदान की है, हाई सोसायटी से ताल्लुकात रखती है. भैया, तुम्हें ऐसी लड़की दिन में चिराग ले कर ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगी,’ कहते हुए मोनिका मुंह फुला कर बैठक से चली गई.

‘अरे भाई, उसे अपनी पसंद की लड़की से शादी करने दो न. तुम अपनी पसंद उस पर क्यों थोप रही हो?’ अजित के बड़े भाई रोहन ने मोनिका को समझाते हुए कहा. लेकिन तब तक मोनिका अपने कमरे में जा हो चुकी थी.

2 ही दिनों बाद अजित अपने मातापिता को ले कर वंदना के गांव पहुंच गया. वंदना सभी को पसंद आ गई. अजित की मम्मी ने तो वंदना के हाथ में शगुन भी दे दिया. चट मंगनी और पट विवाह हो गया. मोनिका की नाराजगी के बावजूद वंदना इस घर की बहू बन कर आ गई. वंदना को विवाह के पहले दिन से ही अपनी जेठानी मोनिका की नाराज़गी का शिकार होना पड़ा था. वह बातबात पर वंदना पर ताने कसती थी. लेकिन वंदना ने मानो विनम्रता का चोगा पहन लिया हो, वह मोनिका के तानों पर चूं तक न करती, चुपचाप सहन करती रही. वंदना जानती थी कि शब्द से शब्द बढ़ता है, सो, उस के लिए इस वक्त खामोश रहना ही उचित है. उसे विश्वास था कि समय सदैव एकसमान नहीं रहता है, यह परिवर्तनशील है, एक दिन उस का भी वक्त बदलेगा.

समय बीत रहा था. मोनिका एक सरकारी बैंक में नौकरी करती थी, सो, वह हमेशा अपना टिफिन खुद बना कर सुबह 9 बजे अपनी स्कूटी से बैंक चली जाती थी और शाम को 5 बजे के आसपास लौटती थी. वंदना से मोनिका इस कदर नाराज थी कि वह उस के हाथ की चाय तक नहीं पीती थी. मोनिका के बैंक जाने के बाद ही वंदना का किचन में प्रवेश होता था. वंदना के सासससुर मोनिका के तेजतर्रार स्वभाव से भलीभांति परिचित थे, सो, वे हमेशा खामोश ही रहते थे. सबकुछ ठीक चल रहा था. पर किसी को क्या पता था कि कोई अनहोनी उन के दरवाजे पर जल्दी ही दस्तक देने वाली है.

एक दिन शाम को बैंक से लौटते वक्त किसी टैम्पो ने मोनिका की स्कूटी को पीछे से जोर से टक्कर मार दी. मोनिका ने हेल्मेट पहना हुआ था, इसलिए उस के सिर पर चोट नहीं आई मगर उस के दाएं हाथ और बाएं पैर पर गहरी चोट आई थी. किसी भले व्यक्ति ने अपनी कार से मोनिका को नजदीक के अस्पताल में पहुंचाया था. अस्पताल से फोन आते ही अजित और वंदना तुरंत अस्पताल पहुंचे.

मोनिका के पति रोहन औफिस के काम से भोपाल गए हुए थे. अजित ने देखा कि मोनिका आईसीयू में है. डाक्टरों ने बताया कि वह अभी बेहोशी की अवस्था में है. कुछ देर में उन्हें होश आ जाएगा. हैल्मेट की वजह से उन के सिर में कोई चोट नहीं आई, मगर वह घबरा कर बेहोश हो गई है. उस के हाथ और पैर में गहरी चोट लगी है. फ्रैक्चर भी हो सकता है. एक्सरे रिपोर्ट आने के बाद पता चल जाएगा.

कुछ ही देर में मोनिका को होश आ गया. डाक्टर ने अजित को इशारे से अंदर बुलाया. अजित ने मोनिका को बताया कि वे बिलकुल न घबराएं. उन के हाथ और पैर में ही चोट लगी है, सिर में कहीं चोट नहीं आई है. एक्सरे से मालूम पड़ जाएगा कि फ्रैक्चर है या नहीं. कुछ ही देर बाद डाक्टर ने एक्सरे देख कर अजित को बताया कि मोनिका के दाएं हाथ और बाएं पैर में फ्रैक्चर है. उन्हें करीब एक सप्ताह अस्पताल में रहना पड़ेगा. अजित ने फोन द्वारा रोहन को घटना की जानकारी दे दी.

करीब 2 सप्ताह के बाद मोनिका को अस्पताल से छुट्टी मिली. अजित और वंदना के साथ मोनिका घर पर आई. घर के दरवाजे पर मोनिका को रोक कर वंदना ने कहा, ‘भाभी, अब तुम अपने लिए पानी का गिलास तक नहीं भरोगी. डाक्टर ने वैसे भी आप को पूरे 2 महीने आराम करने की सलाह दी है. फिर आप के एक हाथ और एक पैर पर प्लास्टर चढ़ा है. सो, आप को अब आराम की सख्त जरूरत है. आज से आप मुझे कोई भी और किसी प्रकार का काम करने के लिए कहने में कोई संकोच नहीं करोगी, ऐसा मुझ से वादा करो. तभी आप को मैं घर के अंदर आने दूंगी.’ यह कहने के साथ ही वंदना बीच दरवाजे पर खड़ी हो गई.

मोनिका की आंखों से आंसू छलक पड़े. उस ने वंदना को एक हाथ से अपनी ओर खींचते हुए उस का माथा चूम लिया और रुंधे कंठ से बोली, ‘वंदना, मुझे माफ कर देना, मैं ने तुम्हें न जाने क्याक्या कहा और तुम्हें बेवजह परेशान भी बहुत किया. तुम पिछले 2 सप्ताह से सबकुछ भुला कर मेरी सेवा में समर्पित हो गईं. इतनी सेवा तो अपना भी कोई नहीं करेगा. वंदना, तुम्हें इस घर में आए अभी 7 महीने ही हुए हैं, पर तुम ने अपनी मृदुलवाणी और विनयभाव से हम सब का दिल जीत लिया. मुझे अजित की पसंद पर गर्व है. वंदना, तुम्हारे बरताव से एक बात मेरी समझ में आ गई कि गांव की लड़की अशिक्षित हो सकती है मगर असंस्कारित नहीं. तुम पारिवारिक एटिकेट्स की जीतीजागती मूरत हो. वंदना, प्लीज, पहले तुम मुझे माफ कर दो, तो ही मैं घर में प्रवेश करूंगी.’

‘भाभी, आप बड़ी बहन के समान हैं, जिसे अपनी छोटी बहन को डांटने और फटकारने का हक तो होता है न, फिर भला, मुझे बुरा क्यों लगेगा. आप माफी की बात कर के मुझे शर्मिंदा न करें, यह तो आपका विनय है भाभी,’ कहते हुए वंदना ने अपनी जेठानी को बांहों में भर लिया.

‘अरे भाई, देवरानी और जेठानी की डायलौगबाजी खत्म हो गई हो, तो हम अंदर चलें क्या, मुझे और अजित को जोर से भूख लगी है,’ दरवाजे के बाहर खड़े रोहन ने अजित की ओर देख कर मुसकराते हुए कहा.

‘हां…हां भाईसाहब, खत्म हो गई है हमारी डायलौबाजी, आप सब भीतर आइए. मैं भाभी को अपने कमरे में बिठा कर आप सभी के लिए चायनाश्ता बनाती हूं,’ कहते हुए वंदना ने अपने दोनों हाथ मोनिका की तरफ बढ़ा दिए, जिन्हें उस ने कस कर पकड़ लिया और धीरेधीरे वंदना का सहारा लेते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ने लगी.

“अरे भाभी, आप कहां खो गई हो, अब तो मेरा हाथ छोड़ो न, आप ने कब से इसे कस कर पकड़ रखा है. आप को बैंक जाने में देर हो रही है,” वंदना ने कहा.

“ओह, सौरी वंदना, मैं तो अतीत में पहुंच गई थी,“ कहते हुए मोनिका ने वंदना के हाथ से टिफिन लिया और अपने पति रोहन के साथ धीरेधीरे सीढ़ियों से उतरने लगी.

Hindi Fiction Stories : मृगतृष्णा- मंजरी ने क्या किया जीजाजी की सच्चाई जानकर

Hindi Fiction Stories : आज वैसे भी मेरा मिजाज जरा उखड़ाउखड़ा था और जब मृदुला ने फोन पर बताया कि इस बार वह अपनी शादी की सालगिरह गोवा में सैलिब्रेट करेगी, तब तो मेरा मन और छोटा हो गया. लगा एक मैं हूं… बस इतना ही तो कहा था किशोर से कि ‘केसरी’ फिल्म देखने चलते हैं, क्योंकि मुझे अक्षय कुमार की फिल्में बहुत पसंद आती हैं. तब कहने लगे कि फालतू काम के लिए मेरे पास समय नहीं है. औफिस जाना पड़ेगा, क्लोजिंग चल रही है. और इधर देखो, छुट्टी ले कर राजन अपनी पत्नी को गोवा घुमाने ले जा रहे हैं. ईर्ष्या नहीं हो रही है.

बहन है वह मेरी, तो ईर्ष्या क्यों होगी? मगर मेरे हिस्से में यह सुख क्यों नहीं है? यह सोच कर मैं उदास हो गई, क्योंकि मैं भी तो उसी कोख से पैदा हुई थी, जिस से मृदुला. बस 1 मिनट की ही तो बड़ीछोटी हैं हम दोनों, फिर सुख में इतना अंतर क्यों?

‘‘क्या हुआ, कहां खो गई मंजरी?’’ जब मृदुला ने पूछा, तो मुझे ध्यान आया कि वह फोन पर ही है, ‘‘गोवा से क्या लाऊं तुम्हारे लिए बता? हां, वहां काजू बहुत अच्छे मिलते हैं. वही ले आऊंगी.’’

‘‘अरे, कुछ नहीं, बस तू घूम के आ अच्छी तरह… काजू तो यहां भी मिल जाते हैं. वहां से ढो कर क्यों लाएगी?’’ मैं ने कहा, पर वह जिद पर अड़ गई कि नहीं, मैं बताऊं कि मुझे क्या चाहिए.

‘‘अच्छा ठीक है, जो तुझे अच्छा लगे लेती आना,’’ कह कर मैं ने काम का बहाना बना कर फोन रख दिया, नहीं तो वह और न जाने क्याक्या बोल कर मेरा दिमाग खराब करती.

वह आएदिन मुझे फोन कर के कुछ न कुछ बताती रहती है. जैसेकि आज राजन उसे मौल में शौपिंग करवाने ले गया, आज अपने पति के साथ वह फिल्म देखने गई. मना करती रही, फिर भी राजन उसे होटल में खिलाने ले गया, आज राजन उस के लिए साड़ी ले कर आया, आज राजन उस के लिए झुमके ले कर आया. उफ, मेरे तो कान दुखने लगते हैं उस की बातें सुन कर. कभीकभी तो लगता है वह मुझे जलाने के लिए ऐसा करती है.

वैसे अपनी शादी की हर सालगिरह मृदुला ऐसे ही किसी अच्छी जगह सैलिब्रेट करती है. कभी शिमला, कभी दार्जिलिंग, कभी सिंगापुर और इस बार गोवा. पर किशोर को एक बार भी नहीं लगता है कि हमें भी कभी किसी अच्छी जगह अपनी सालगिरह सैलिब्रेट करनी चाहिए, बल्कि वे तो इन सब बातों को फुजूलखर्ची मानते हैं. कहते हैं कि ये सब ढकोसलेबाजी है. एकदम पुराने खयालात के इंसान हैं किशोर और वहीं मृदुला के पति राजन उतने ही नए और रोमांटिक विचारों वाले इंसान हैं एकदम मेरी तरह.

मैं भी तो जिंदगी जीने में विश्वास रखती हूं न कि झेलने में. अच्छेअच्छे कपड़े पहनना, होटलों में खाना, पार्टी करना, ढेर सारी शौपिंग करना मुझे कितना अच्छा लगता है. मगर मेरे कंजूस पति ये सब मुझे करने दें तब न. कभीकभी तो लगता है वही औरत सुखी है, जो कमाती है. अपने पर खुल कर खर्च तो कर सकती है. लेकिन मृदुला कौन सा कमाती है… फिर भी जिंदगी का पूरापूरा लुत्फ उठा रही है न. अब उस का पति ही इतना दिलदार…

मेरे पति तो बस साधा जीवन उच्च विचार वाले इंसान हैं. एकदम बोरिंग. सोचा नहीं था

कभी मेरा ऐसे इंसान से पाला पड़ेगा, जो एकदम नीरस होगा. बातबात पर पैसापैसा करते रहते हैं. अरे, पैसा ही सबकुछ है क्या? जीवन की खुशियां कुछ नहीं? लोग कमाते किसलिए हैं? खर्च करने के लिए ही न? मगर किशोर जैसे इंसान पैसे को अलमारी में सहेज कर उसे धूपदीप दिखाने में विश्वास रखते हैं ताकि वह और फूलताफलता रहे. मगर उन्हें नहीं पता कि रखेरखे पैसे में भी दीमक लग जाती है. इंसान को एक दिन मरना ही है, तो क्यों न सुखमौज कर के मरे? मगर यह बात उस मंदबुद्धि इंसान को कौन समझाए. अरे, सीखे कोई राजन जीजाजी से… कैसे वे खुद भी शान से जीते हैं और बीवीबच्चों को भी उसी प्रकार जिलाते हैं. कोई बात मृदुला के मुंह से निकली नहीं कि वह चीज ला कर रख देते हैं. यह बात मुझे मृदुला ने बताई थी कि जबतब राजन उस के लिए महंगीमहंगी साडि़यां, जेवर खरीद लाते हैं वह मना करती रह जाती है और एक मैं छोटीछोटी चीजों के लिए भी तरसती रहती हूं.

कितनी शान से कहती है मृदुला कि उस के पति का सारा वेतन उस के ही हाथों में आता है… और एक किशोर हैं गिनगिन कर मुझे घर चलाने के लिए पैसे देते हैं जैसे मैं उन के पैसे ले कर भाग जाऊंगी. आश्चर्य होता है… तड़कभड़क से दूर रहने वाली मृदुला की जिंदगी इतनी रंगीन बन गई और मुझे जो तड़कभड़क वाली जिंदगी अच्छी लगती थी, तो मेरा एक ऐसे इंसान से पाला पड़ा, जिसे ये सब ढकोसला लगता है. लगता है जोडि़यां ही गलत बन गईं हमारी.

आखिर क्यों, क्यों जो चीज जिसे मिलनी चाहिए उसे नहीं मिलती? इस

का उलटा ही होता है… हमें एक चीज दे दी जाती है और कहा जाता है इस के साथ तुम्हें जिंदगीभर निबाह करना होगा. चाहे हमें उस चीज से नफरत ही क्यों न हो. हां, कभीकभी मुझे किशोर के आचरण से नफरत होने लगती है. लगता है किस गंवार के पल्ले बांध दी गई मैं और वहां मृदुला रानी सा जीवन जी रही है.

सच, कभीकभी तो लगता है सबकुछ छोड़छाड़ कहीं भाग जाऊं, क्योंकि इस इंसान से निभाना मुश्किल लगने लगा है. लेकिन हम ऐसी जंजीरों में जकड़े हुए हैं कि उन से मरते दम तक आजाद नहीं हो सकते.

‘‘आज क्या बन रहा है खाने में? खुशबू तो बड़ी अच्छी आ रही है,’’ किचन में प्रवेश करते हुए किशोर ने पूछा.

मैं दूसरी तरफ ही मुंह किए बोली, ‘‘कुछ खास नहीं, रोटी व दाल,’’ मन हुआ किशोर को बताए कि देखो, कैसे राजन जीजाजी अपनी पत्नी को दुनिया की सैर करवा रहे हैं और एक तुम… बस चूल्हे में ही झोंकते रहो मुझे. पर क्या फायदा. मगर मुझ से रहा नहीं गया. बोल ही दिया.

किशोर कहने लगे, ‘‘तो तुम क्यों उदास हो रही हो? उन की जिंदगी है जैसे चाहें जीएं.’’

मुझे उन की बात पर बड़ा गुस्सा आया. बोली, ‘‘तो क्या हम उन की तरह नहीं जी सकते? क्या हम बूढे़ हो गए हैं? क्या कभी तुम्हारा मन नहीं करता कि हम भी ऐसे कहीं बाहर घूमने जाएं? अब कहोगे पैसे कहां हैं इतने, तो क्या मृदुला के पति से कम सैलरी मिलती है तुम्हें? कहो न कि मन ही नहीं करता तुम्हारा इन सब चीजों का. बोरिंग इंसान हो तुम बोरिंग.’’

गुस्से में आज मैं ने जम कर सब्जी में नमक डाल दिया. क्या करती? मेरी आदत है, जब तक मेरा गुस्सा नहीं उतरता, सिर भारीभारी सा लगता है. लेकिन सब्जी बिगाड़ देने के बाद भी मेरा पारा गरम ही था.

मगर स्वभाव से शांत किशोर कहने लगे, ‘‘बोरिंग इंसान नहीं हूं मैं मंजरी और न ही कंजूस. समझो तुम… बच्चे बड़े हो रहे हैं. उन की पढ़ाईलिखाई, शादीब्याह के बारे में भी तो सोचना होगा न अब हमें? दिनप्रतिदिन बच्चों की महंगी होती पढ़ाई ऊपर से घर, गाड़ी का लोन. ये सब मेरी कमाई से ही हो पा रहा है न? और तो कोई ऊपरी आमदनी है नहीं. समझो, अगर मैं आर्थिक रूप से कमजोर हो जाऊंगा, तो तुम भी हो जाओगी और मैं ऐसा नहीं चाहता. बताओ न, कौन है चार पैसे से हमारी मदद करने वाला? कहने को बड़ा परिवार है हमारा. मगर सब की अपनी डफली, अपना राग है. डेढ़दो लाख अगर घूमने में ही लगा देंगे, तो सारा बजट बिगड़ जाएगा. दूसरों को देख कर मत जीयो मंजरी, दुख ही होगा. हम जैसे हैं ठीक हैं. बस यह सोचो. खुश रहोगी,’’ किशोर ने अपनी तरफ से मुझे खूब समझाया

मगर मेरे दिमाग में किशोर की कही एक भी बात नहीं घुस रही थी. मैं तो बस इतना जान रही थी कि किशोर राजन की तरह नहीं हैं. इसलिए उन की हर छोटी बात पर भी मैं झल्ला उठती या उलाहने देने लगती और वे बेचारे चुपचाप मेरी झिड़की सुन लेते, क्योंकि वे जानते थे कि मैं लड़ाई के रास्ते ढूंढ़ रही हूं और वे घर में कलह नहीं चाहते थे. शाम को भी जब वे थकेहारे औफिस से घर आते, तो चुप ही रहते. जानबूझ कर खुद को किसी न किसी काम में उलझाए रखते ताकि किसी बात पर मुझ से बहस न हो जाए.

आज फिर मृदुला ने मुझे यह कह कर शौक दे दिया कि शादी की सालगिरह पर राजन ने उसे हीरे जड़ी अंगूठी दी. फिर बताने लगी कि वे कहांकहां घूमने गए, क्याक्या खरीदा, वगैरहवगैरह, जिसे सुनसुन कर किशोर के प्रति मेरा गुस्सा और बढ़ने लगा.

‘‘मैं तो मना कर रही थी पर ये हैं कि शौपिंग पर शौपिंग करवाए जा रहे हैं और जानती है मंजरी, राजन तो कह रहे थे कि अगर तुम और जीजाजी भी हमारे साथ गोवा आते तो और मजा आता. सच में, गोवा बहुत ही सुंदर जगह है. राजन ने तो मुझे जबरन छोटेछोटे कपड़े कैपरी, जींस, टीशर्ट आदि भी खरीदवा दिए और कहा कि यही पहनूं. जब तक गोवा में रहे पहनने पड़े. क्या करती.’’

मृदुला कहे जा रही थी और मेरे सीने में धुकधुक कर आग जल रही थी.

‘‘अच्छा ठीक है मृदुला अब मैं फोन रखती हूं. खाना बनाना है न. किशोर औफिस से आते ही होंगे,’’ और बात न करने के खयाल से मैं बोली, तो वह फिर कहने लगी, ‘‘अरे, सुन न मंजरी, मैं तो बताना ही भूल गई. वे तुम्हारे जीजाजी अपनी पसंद से तुम्हारे लिए साड़ी खरीद लाए हैं. कह रहे थे नीला रंग, गोरी मंजरी पर खूब फबेगा. सही कह रहे थे. वैसे उन्होंने मेरे लिए भी उसी रंग की साड़ी खरीदी. कहने लगे कि भले तुम सांवली हो, पर मेरे लिए दुनिया की सब से खूबसूरत औरत हो. अच्छा, चल मैं किसी रोज आती हूं तुम्हारा उपहार ले कर.’’

समझ में नहीं आया कि मंजरी क्या बके जा रही है. लगा, बोलना कुछ और चाह रही थी, बोल कुछ और रही है.

‘‘ठीक है मृदुला,’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया और बेमन से खाना बनाने लगी. न तो आज मेरा खाना बनाने का मन था और न ही कोई और काम करने का. मूड एकदम औफ हो गया था.

तभी किशोर का फोन आया. कहने लगे कि आज उन का औफिस में ही खाना है, तो मैं खा लूं उन की राह न देखूं. अच्छा है, वैसे भी मेरा खाना बनाने का मन नहीं था. अत: बच्चों को मैगी बना कर खिला दी और खुद टीवी खोल कर बैठ गई. लेकिन आज मुझे वह भी अच्छा नहीं लग रहा था. लगा, आज मृदुला की जगह मैं हो सकती थी. मगर मां ने ऐसा नहीं होने दिया.

याद है जब लड़के वाले मृदुला को देखने आने वाले थे तब मां ने मुझे पड़ोसी के घर भेज दिया ताकि पिछली बार की तरह इस बार भी लड़के वाले मुझे ही न पसंद कर लें. चूंकि मृदुला मुझ से 1 मिनट बड़ी है, इसलिए ब्याह भी पहले उस का ही हुआ था. मगर एक साधारण नैननक्श और सांवली लड़की को इतना अच्छा पति मिल सकता है, यह किसी ने नहीं सोचा था.

मुझे लगा था, जब मृदुला को इतना सुंदर राजकुमार जैसा पति मिल सकता है, तो

फिर मुझे क्यों नहीं, क्योंकि मैं तो उस से लाख गुना सुंदर हूं. लेकिन मेरा सपना तब ताश के पत्ते की तरह भरभरा कर बिखर गया, जब पहली बार मैं ने किशोर को देखा. जैसा नाम वैसा रूप. एकदम कालाकलूटा. लेकिन अब तो शादी हो चुकी थी.

याद है मुझे, मृदुला को देख कर महल्ले की औरतें कहती थीं कि मंजरी के ब्याह में तो कोई दिक्कत नहीं होगी, पर इस कलूटी को कौन पसंद करेगा? खान से निकले, हीरे और कोयले से लोग हमारी तुलना करते थे, जाहिर था मैं हीरा थी और वह कोयला.

जैसेजैसे हम बड़ी होती गईं, यह भावना भी मेरे अंदर पनपती गई कि मैं मृदुला से सुंदर हूं. मेरी बातों से वह आहत भी हो जाती कभीकभी, पर फिर सबकुछ भुला कर एक बड़ी बहन की तरह मुझे प्यार करने लगती.

एक बात थी, छलप्रपंच और ईर्ष्या नाम की चीज नहीं थी उस में. एकदम दिल की साफ थी वह. जहां मैं छोटीछोटी बातों का बतंगड़ बना कर मां को सुनाती, वहीं वह बड़ी बात भी मां से छिपा जाती ताकि उन्हें दुख न हो. शायद इसीलिए उसे इतना कुछ मिला जीवन में. शादी के बाद जहां वह जीवन के सब रस चख रही थी, वहीं मैं हर चीज के लिए तरस रही थी.

शुरूशुरू में तो किशोर का व्यवहार मुझे समझ नहीं आता, लेकिन धीरेधीरे समझ में आने लगा कि सिर्फ रूपरंग से ही नहीं, बल्कि चालव्यवहार से भी उदासीन इंसान हैं ये.

क्या यही मेरे हिस्से में लिखा था? कभी तो मन होता, मां से खूब लड़ूं. पूछूं कि क्यों, क्यों उन्होंने मेरे साथ ऐसा किया? क्या जांचपरख कर शादी नहीं कर सकते थे मेरी? जो मिला पकड़ा दिया? मांबाप हैं या दुश्मन? एक बार लड़ भी ली थी, उस बात पर. लेकिन मुझे समझाते हुए मां कहने लगीं कि लड़के का रूप नहीं गुण देखा जाता है मंजरी. जाने कौन सा बढि़या गुण दिख गया उन्हें किशोर में, जो मेरा हाथ पकड़ा दिया. यही सब बातें कहकह कर, सोचसोच कर कब तक और कितना कुढ़तीमरती मैं. सो उसी को अपना हिस्सा मान कर संतोष कर लिया.

हम मध्यवर्गीय समाज में एक बार जिस का हाथ पकड़ लिया, मरते दम तक निभाना पड़ता है, सो कोई चारा नहीं था, इसलिए मैं ने अपने ढीले मन को खूब कस कर बांध लिया

और बंद कर लिया उस संकीर्ण चारदीवारी में खुद को, क्योंकि अब बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था. लेकिन बारबार मृदुला का सुखी वैवाहिक जीवन देख कर कुढ़न तो होती ही थी न. न चाहते हुए भी फिर वही सब बातें दिमाग में शोर मचाने लगतीं कि वह मुझ से ज्यादा सुखी क्यों है?

उस रोज सुबहसुबह ही मां का फोन आया. घबराते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हारी मृदुला से कोई बात हुई है? फोन आया था उस का क्या?’’

‘‘नहीं तो मां, पर क्या हुआ, सब ठीक तो है?’’ मैं ने पूछा तो मां भर्राए कंठ से कहने लगीं, ‘‘कल से मैं मृदुला को फोन लगा रहीं, पर बंद ही आ रहा है.’’

‘‘अरे, तो जीजाजी को लगा लो.’’

‘‘वे भी फोन नहीं उठा रहे हैं.’’

‘‘हो सकता है फिर दोनों कहीं घूमने निकल गए होंगे. जाते तो रहते हैं हमेशा,’’ यह बात मैं ने ईर्ष्या से भर कर कही, ‘‘अच्छा आप चिंता मत करो, मैं देखती हूं फोन लगा कर.’’

सच में मृदुला का फोन बंद आ रहा था और राजन का भी. कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं? मां की घबराहट देख कर मैं ने उस के घर जाने का मन बना लिया, ‘‘मां, मैं उस के घर जा कर देखती हूं, आप चिंता मत करो.’’

लेकिन अब मुझे भी घबराहट होने लगी थी, क्योंकि फिर मैं ने उसे कई बार फोन लगाया, पर बंद ही मिलता. किशोर को जब मैं ने सारी बात बताई, तो कहने लगे कि मैं चिंता न करूं. चल कर देखते हैं.

‘‘पर आप का औफिस?’’ जब मैं ने पूछा, तो किशोर बोले कि वे मुझे मृदुला के घर छोड़ कर उधर से ही औफिस निकल जाएंगे और आते वक्त लेते आएंगे.

‘‘हां, यह सही रहेगा,’’ मैं बोली.

वहां पहुंचने पर जो मैं ने देखा, उसे देख स्तब्ध रह गई. मृदुला बिस्तर पर पड़ी कराह रही थी और उस के शरीर पर जगहजगह चोट के निशान थे. चेहरा भी नीला पड़ गया था.

बहन को इस हालत में देख कर मेरी आंखें भर आईं, ‘‘मृदुला, ये सब क्या हुआ? ये चोटें कैसे और राजन जीजाजी कहां हैं?’’ मैं ने पूछा.

वह रो पड़ी. फिर जो बताया उसे सुन कर मुझे अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था.

उस ने रोतेरोते बताया, ‘‘अगर मेरा पति बदसूरत होता, गरीब होता, लेकिन अगर वह मुझे प्यार करता, तो मैं खुद को दुनिया की सब से खुशहाल औरत समझती. मगर राजन का सुंदर होना मेरे लिए अभिशाप बन गया…

‘‘रोज नईनई लड़कियों के साथ रातें बीतती हैं. उन पर दिल खोल कर पैसे लुटाते

हैं. कभीकभी तो लड़की को घर भी ले आते हैं और जब मैं कुछ बोलती हूं तो उस के सामने ही मुझ पर थप्पड़ बरसाने लगते हैं. वह तो अच्छा है कि बच्चे होस्टल में रहते हैं, नहीं तो उन पर क्या असर पड़ता राजन की हरकतों का? जब से ब्याह हुआ है, एक दिन भी ऐसा नहीं गया, जब राजन ने मेरे रूपरंग को ले कर ताने न कसे हों.

‘‘कहते हैं कि उन्हें तो गोरी लड़की चाहिए थी… कैसे कालीकलूटी उन के मत्थे मढ़ दी गई… जानती है मंजरी, हमारा फोटो देख कर राजन को लगा था, उन की शादी तुम्हारे साथ होने वाली है, इसलिए उन्होंने शादी के लिए हां बोल दी थी. लेकिन जब पत्नी के रूप में मुझे देखा, तो आगबबूला हो गए. पतिपत्नी के बीच की बात है, यह सोच कर अब परिवार वालों ने भी मेरा पक्ष लेना छोड़ दिया. लेकिन समाज में अपनी इज्जत के डर के कारण वे मुझे ढो रहे हैं. कहने को तो मैं उन के साथ गोवा, मलयेशिया घूमती हूं, पर वहां होती तो उन के साथ उन की मासूका ही. मैं तो बस पिछली सीट पर बैठे तमाशा देखती हूं.’’

राजन के जो सारे दोष आज तक दबेढके थे उन सभी को मृदुला 1-1 कर मेरे सामने खोलने लगी. आज तक मैं किशोर को संकीर्ण विचारों वाला और खराब इंसान समझती थी, लेकिन आज मुझे पता चला कि किशोर कितने अच्छे और सच्चे इंसान हैं.

एक लंबी सांस छोड़ते हुए फिर मृदुला कहने लगी, ‘‘जरा भी चिंता नहीं है उन्हें अपने बच्चों के भविष्य की. मौजमस्ती में सारे पैसे लुटा रहे हैं. 2 महीनों से मकान का किराया बाकी है. मकानमालिक झिड़क जाता है. कहता है कि आप का मुंह देख कर चुप रह जाता हूं. बहन मानता है वह मुझे. लेकिन घोड़ा कब तक घास से दोस्ती कर सकता है मंजरी? अगर मकानमालिक ने निकाल दिया तो हम कहां जाएंगे? सही कहती हूं, तुम्हारे पति के पैर के धोवन भी नहीं हैं राजन. वे तुम सब के लिए कितना सोचते हैं, देखती नहीं क्या मैं. एकदम सीधेसच्चे इंसान.’’

विश्वास नहीं हो रहा था कि मृदुला जो कह रही है वह सच है. जिस इंसान के लिए मेरे दिल में ढेरों सम्मान था, वह एक पल में खत्म हो गया. कितना अच्छा इंसान समझती थी मैं राजन को. सोचने लगी थी कि काश, इस से मेरा ब्याह हो गया होता तो मैं कितनी सुखी होती. लेकिन मैं कितनी गलत थी. खुद को कोसती रहती थी यह कह कर कि क्यों मेरा किशोर जैसे इंसान से पाला पड़ा. मगर आज उसी किशोर पर मुझे नाज हो रहा है. दिखाते नहीं, पर मुझे प्यार बहुत करते हैं. यह मुझे अब समझ आया.

‘‘लेकिन तुम ये सब क्यों सहती रही अकेली? बताया क्यों नहीं हमें?’’ मैं ने पूछा.

‘‘तो क्या करती और क्या बताती तुम सब से? क्या हालत बदल देते तुम सब? तुम्हें हमेशा लगता था न मंजरी कि मैं बहुत सुखी हूं, तेरे इसी भ्रम को मैं जिंदा रखना चाहती थी. दिखाना चाहती थी उन लोगों को, जो कहते थे, इस कलूटी को कौन पूछेगा. झूठा ही सही, पर लोग तो सही मान रहे हैं न कि मैं बहुत सुखी हूं और मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते हैं. मांपापा भी खुश हैं, तो रहने दो. मैं अपना दुख सुन कर उन्हें जीतेजी मौत के मुंह में नहीं धकेलना चाहती. इसलिए जो जैसा चल रहा चलने दे… तू यह बात कभी अपने मुंह से मत निकालना वरना तू मेरा मरा मुंह देखेगी.’’

अब जब उस ने इतनी बड़ी धमकी दे दी, तो फिर कैसे किसी से मैं कुछ कहती. लेकिन लगा, क्या सोचती रही थी मैं मृदुला के बारे में और क्या निकला. शाम को किशोर आ कर मुझे ले गए. रातभर मैं मृदुला के बारे में ही सोचसोच कर रोती रही. मेरा सूजा चेहरा देख कर किशोर को यही लगा कि मैं मृदुला की तबीयत को ले कर परेशान हूं, पर बात तो उस से भी बढ़ कर थी, पर बता नहीं सकती थी किसी को.

सुबह उठ कर रोज की तरह मैं ने एक तरफ चाय और दूसरी तरफ सब्जी बनाने

को कड़ाही चढ़ाई ही था कि पीछे से किशोर ने मुझे अपनी बांहों में घेर लिया और पूछा, ‘‘क्या बना रही हो?’’

‘‘नाश्ता और क्या,’’ मैं ने कहा.

‘‘मत बनाओ.’’

‘‘पर क्यों, मैं ने प्रश्नवाचक नजरों से देखा.’’

ये कहने लगे, ‘‘आज छुट्टी ली है ‘केसरी’ फिल्म देखने चलेंगे.’’

‘‘ज्यादा बातें न बनाओ. कल तक तो तुम्हें फिल्में अच्छी नहीं लगती थीं, फिर आज कैसे…’’

वे मेरे मुंह पर हाथ रख कर बोले, ‘‘तुम्हें अच्छी लगती हैं न अक्षय कुमार की फिल्में? और मुझे तुम,’’ मुसकराते हुए किशोर बोले.

मगर मैं मुंह बनाते हुए बोली, ‘‘अगर छुट्टी ले रखी थी, तो पहले बता देते, जरा देर और सो लेती. बेकार में जल्दी उठना पड़ा.’’

‘‘अच्छा, छोड़ो ये सब. यह बताओ, हमारी शादी की सालगिरह आने वाली है. कहां चलना है सैलिब्रेट करने? किशोर ने पूछा.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब कि गोवा चलें?’’ मेरे गाल पर चुंबन देते हुए किशोर बोले, तो मेरा मन गुदगुदा गया, ‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं फुजूलखर्ची करने की. गांव चलेंगे मांपिता का आशीर्वाद भी मिल जाएगा,’’ कह कर मैं अपनी भी चाय ले कर बालकनी में आ गई और चुसकियां लेने लगी.

पहले कभी सुबह इतनी सुहानी नहीं लगी थी जितनी आज लग रही थी. सोचने लगी, सबकुछ तो है मेरे पास. प्यार करने वाला पति, 2 प्यारेप्यारे बच्चे, अपना घर, जरूरत के सारे सुख. तो फिर किस मृगतृष्णा के पीछे भाग रही थी मैं? देखा, तो किशोर मुझे ही निहार रहे थे. जब मेरी नजरें उन से मिलीं, तो वे मुसकरा पड़े और मैं भी.

Social Story : रेप के बाद – क्या हुआ था मानसी के साथ?

Social Story : मानसीकी घनिष्ठ सहेली तनवी की इकलौती बेटी रिया का पुणे में विवाह था. तनवी ने सब दोस्तों को इकट्ठा करने के लिए सब के फोन नंबर ढूंढ़ कर व्हाट्सऐप गु्रप बनाया था. सालों बाद सब एकदूसरे का अतापता जान कर चहक उठे थे. सब अब व्यस्त गृहस्थ थे पर सब कालेज के दिनों की मस्ती को याद कर जैसे युवा बन गए थे. अब दिनभर व्हाट्सऐप गु्रप, जिस का नाम तनवी ने ‘हैप्पीनैस’ रख दिया था, पर मौका मिलते ही सब हंसीमजाक करते रहते थे.

तनवी का मैसेज था, ‘अब सब रिया के विवाह में आने की तैयारी करो, विवाह को रियूनियन समझ कर मस्ती करने सब आ जाओ. अभी इतने ही दोस्तों का पता चल पाया है, बाकी को भी फेसबुक पर ढूंढ़ ही लेंगे. मैं सब का इंतजार करूंगी.’

हमेशा से हंसमुख, मेधावी तनवी ने सब को जोड़ कर एक बड़ा काम कर दिया था.

मुंबई में बसी मानसी तनवी से कई बार फोन पर बातें भी कर चुकी थी. पर मानसी अब पसोपेश में थी. रिया के विवाह में जा कर सब दोस्तों से मिलने की इच्छा भी थी. उस के

पति रजत और बेटी वन्या ने खुशीखुशी कह दिया था, ‘जाओ, एंजौय करो. दोस्तों के साथ खूब मस्ती कर के आओ. हम गए तो मस्ती में कमी न आ जाए.’

मानसी मुसकरा दी थी. वन्या ने कहा था, ‘मुझे वैसे भी छुट्टी नहीं मिलेगी, नई जौब है. पर आप जरूर जाओ, मौम.’ रजत की सेल्स क्लोजिंग थी. पर मानसी अपना दुख, परेशानी किसी को बता भी तो नहीं सकती थी.

‘हैप्पीनैस’ पर अखिल का नाम भी तो था. इस नाम पर नजर पड़ते ही मानसी के तनमन में कड़वाहट भरती चली जाती थी, क्रोध का लावा सा फूट पड़ता था. मानसी ने रजत और वन्या

को जब ‘हैप्पीनैस’ के बारे में बताया था तो

वन्या ने तो कह भी दिया था, ‘मौम, ‘हैप्पीनैस’

से आप जरा भी हैप्पी नहीं लगतीं. यह गु्रप

बनने के बाद तो आप मुझे और भी उदास, दुखी लगती हैं.’

मानसी ने झूठी हंसी हंस कर उस का वहम कह कर बात टाल दी थी. पर सच यही था. बाकी दोस्तों के कारण वह गु्रप छोड़ भी नहीं सकती थी और अखिल का अस्तित्व उस की बरदाश्त के बाहर था. अतीत में घटी घटना मानसी के तनमन के घावों को कुरेद जाती थी, जिस से वह आज तक अपराधबोध से ग्रसित थी. यह अपराधबोध कि उस ने रजत जैसे प्यार करने वाले पति को धोखा दिया है, उसे कभी यह बताया ही नहीं कि विवाह से कुछ महीने पहले ही अखिल ने उस का रेप किया था.

अखिल, उस का सहपाठी, उस का अच्छा दोस्त, बचपन का दोस्त जिस पर वह आंख बंद कर यकीन करती थी. मानसी का विवाह रजत से तय हुआ तो सब दोस्तों ने उस की सगाई में जम कर मस्ती की थी. रजत बनारस का था. सब दोस्तों ने इलाहाबाद की सभी मशहूर जगहें रजत को दिखाई थीं.

अखिल इलाहाबाद के नैनी इलाके में ही मानसी के घर से कुछ दूर ही

रहता था. विवाह कुछ महीने बाद होना तय

हुआ था. अखिल की बड़ी बहन मीनल भी मानसी की बहुत अच्छी दोस्त थी. मानसी

अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. उसे

जब भी विवाह की कोई शौपिंग या काम होता, मीनल उस का साथ देती थी. सगाई के थोड़े

दिनों बाद ही मानसी किसी काम से मीनल से मिलने गई थी. तब मोबाइल तो होता नहीं था,

तो वह अखिल के घर गई. वह हमेशा की

तरह अंदर चली गई और जा कर ड्राइंगरूम में बैठ भी गई.

उस ने पूछा, ‘अखिल, दीदी कहां हैं?’

‘तुम बैठो, थोड़ी देर में आ जाएंगी.’

‘आंटी, अंकल?’

‘बाहर गए हैं.’

‘ठीक है, मैं बाद में आती हूं,’ कह कर मानसी उठने लगी थी तो अखिल ने उसे जबरदस्ती बैठा लिया था, ‘बैठो न, मैं हूं न.’

मानसी फिर बैठी तो अखिल उस के पास ही बैठ गया था, ‘जब से तुम्हारी सगाई हुई है, सुंदर लगने लगी हो.’

वह हंस पड़ी थी, ‘थैंक्स.’ पता नहीं उस दिन क्या हुआ था, मानसी आज तक समझ नहीं पाई कि इतनी साफसुथरी दोस्ती पर यह जीवनभर का कलंक अखिल ने क्यों लगा दिया.

अखिल ने घर का दरवाजा अंदर से बंद किया और मानसी पर टूट पड़ा. मानसी रोती, चीखती, चिल्लाती रह गई थी. होश में आने के बाद अखिल सिर पकड़ कर बैठ गया था. मानसी उस पर थप्पड़ों की बरसात कर रोती हुई घर आ गई थी.

घर आ कर मम्मी और पापा को सब बताया तो घर में मातम छा गया था. वह रजत को सब बताना चाहती थी पर मातापिता का सख्त आदेश था कि इस बारे में कभी किसी के सामने मुंह नहीं खोलना है. मम्मीपापा ने उसे हर तरह से संभाला था. पर मानसी के घाव आज भी ताजा थे. वह आज तक इस अपराधबोध से उबर नहीं पाई थी कि उस ने अपने पति से अपने साथ हुई इतनी बड़ी घटना छिपा रखी है. उस ने रजत के साथ अंतरंग पलों में मानसिक कष्ट भोगा है, उस रेप की काली छाया उस के सामने आ कर उसे जबतब तड़पाती रही है. तन के घाव तो दिख भी जाते हैं लेकिन उस के मन पर लगा यह घाव कहां कोई देख पाया है.

फिर तनवी का फोन आ गया, ‘‘मानसी, विवाह में 2 दिन रह गए हैं, इतने पास हो कर भी पहले नहीं आ रही है?’’

‘‘तनवी, मेरा आना थोड़ा मुश्किल…’’

उस की बात पूरी होने से पहले ही तनवी ने साधिकार डपटा, ‘‘मैं कुछ नहीं सुनूंगी. अपने ग्रुप के कुछ लोग कल आ रहे हैं. चुपचाप तू भी जल्दी पहुंच.’’

‘‘अच्छा, कोशिश करूंगी.’’

‘‘कोशिश नहीं, जल्दी आ.’’

‘‘ठीक है, कल आती हूं.’’ मानसी ने ठंडी सांस ले कर ‘हैप्पीनैस’ के मैसेज पढ़े. चैक किया, कल कौनकौन आ रहा है. लखनऊ से कोमल, दिल्ली से शीतल, रीमा, विनीत, सुभाष, इलाहाबाद से अंजलि, कोलकाता से विपिन. अखिल का नाम नहीं था. उस ने चैन की सांस ली.

सब के हंसतेमुसकराते चेहरे मानसी की आंखों के आगे घूम गए. वह सब को याद कर मुसकराई. अखिल का तो चेहरा भी वह नहीं देखना चाहती थी, इसलिए वह गु्रप पर ऐक्टिव भी नहीं रहती. उस ने नोट किया है अखिल भी बस बहुत जरूरी बात का ही जवाब देता है. वह किसी जोक, हंसीमजाक में भाग नहीं लेता.

रजत और वन्या ने उस की तैयारियों में पूरा सहयोग दिया था. वह 2 दिनों के लिए

पुणे रवाना हो गई. सब दोस्त आ चुके थे. वही सब से लेट आई थी. अचानक अखिल पर नजर पड़ गई तो उस के अंदर क्रोध की एक तेज लहर दौड़ी चली गई, मन कसैला हो गया. एक बार नफरतभरी नजर उस पर डालने के बाद मानसी ने उस की तरफ मुंह भी नहीं किया.

मुंबई से पुणे सब से बाद में आने पर उस की खूब खिंचाईर् हुई. सब दोस्त एकदूसरे के गले लग गए थे. समय ने अपना प्रभाव सब पर छोड़ा था. पर दृश्य इस समय कालेज के

दिनों में मस्त, निश्ंिचत

दोस्तों की मंडली का सा था. बस, अखिल सब से ज्यादा शांत, अकेला सा अलगअलग ही था.

तनवी के पति विकास और रिया ने सब का भरपूर स्वागत किया था. सब दोस्तों के रहने का इंतजाम होटल में था. सब रूम शेयर कर रहे थे. अखिल को छोड़ सब एक के रूम में डेरा जमा कर बैठे थे. कितनी बातें थीं, कितने किस्से थे. अखिल नहीं दिखा तो विनीत ने पूछा, ‘‘कहां गया यह अखिल, बड़ा सीरियस रहने लगा यह तो.’’

मीना ने कहा, ‘‘हां, काफी चेंज हो गया है. बहुत चुप, गंभीर है. अखिल आसपास नहीं था तो मानसी सब के साथ सहज व खुश थी. डिनर से थोड़ा पहले पवन अखिल को पकड़ कर लाया, ‘‘कहां घूम रहा था, चल, बैठ सब के साथ यहां.’’ अखिल फीकी सी हंसी हंसता हुआ सब के साथ आ कर बैठ तो गया पर उस की गंभीरता देख सब उस से कई तरह के सवाल करने लगे तो मानसी वहां से उठ कर ‘अभी आई,’ कहते हुए बाहर निकल गई.

वह सीधे टैरेस पर जा कर खुली हवा में गहरीगहरी सांसें लेने लगी. आज फिर आंखों से आंसू बहते गए. इतने में अपने पीछे कुछ आहट सुन कर वह चौंकी, देखा, अखिल था. गुस्से और नफरत की एक तेज लहर मानसी के दिल में उभरती चली गई. वह वहां से जाने लगी तो अखिल ने हाथ जोड़ कर उस का रास्ता रोक लिया, ‘‘मानसी, प्लीज मुझे माफ कर दो.’’

अखिल के रुंधे गले से निकली इस कांपती आवाज से मानसी ठिठक गई. अखिल ने बहुत ही गंभीर, उदास आवाज में कहा, ‘‘तुम से माफी मांगने के लिए सालों से तरस रहा हूं. मेरा गुनाह मुझे चैन से जीने नहीं देता. ‘हैप्पीनैस’ पर भी पहले अपने आने के बारे में सूचना नहीं दी कि कहीं तुम मेरे कारण यहां न आओ. आज मेरी बात सुन लो, प्लीज,’’

मानसी रेलिंग से टेक लगाए हैरान सी खड़ी थी. इक्कादुक्का लोग फोन पर बातें करते इधरउधर घूम रहे थे. अखिल के चेहरे पर पश्चात्ताप और दुख था. उस की आंखें कभी भी बरसने के लिए तैयार थीं.

अखिल ने आगे कहा, ‘‘बहुत बड़ा गुनाह किया था मैं ने. पता नहीं क्यों मैं बहका. एक पल में मैं कितना गिर गया. तुम्हारे जैसी दोस्त खो दी. मैं कभी खुश नहीं रह पाया मानसी. आज तक तुम्हारी चीख, तुम्हारे आंसू, तुम्हारी वेदना मुझे हर पल जलाती रही है. जब मेरा पहला विवाह हुआ तब यह अपराधबोध मेरे मन पर इतना हावी था कि मैं सामान्य जीवन बिता ही नहीं पाया और मेरा तलाक हो गया.

‘‘घरवालों के जोर देने पर मैं ने दूसरा विवाह किया. दूसरी पत्नी के साथ भी यह अपराधबोध हावी रहा. हर समय तुम्हारे साथ की गई हरकत मुझे बेचैन रखती. इस गुनाह की बड़ी सजा भुगती मैं ने, मानसी. इस अपराधबोध ने दूसरी बार भी मेरा घर नहीं बसने दिया. उस से भी मेरा तलाक हो गया.

‘‘मातापिता रहे नहीं, दीदी विदेश में हैं. बिलकुल अकेला हूं. मैं ने गुनाह किया था, काफी सजा भुगत चुका हूं. अब तुम मुझे माफ कर दो. सालों से पश्चात्ताप की आग में जल रहा हूं.’’ झरझर आंसू बहते चले गए अखिल की आंखों से, उस ने नजर उठा कर हैरान खड़ी मानसी को देखा, फिर जाने के लिए मुड़ गया.

थके हुए, सुस्त कदमों से अखिल को जाते देख मानसी को बड़ा झटका लगा था,

क्या पुरुष को भी इतना अपराधबोध हो सकता है? क्या कोई पुरुष भी यह अपराध कर सालोंसाल पलपल सुलगता है? पलभर का बहकना क्या पुरुष को भी जीवनभर इस तरह कचोट सकता है? रेप करने के बाद यह अपराधबोध क्या पुरुष के जीवन पर भी प्रभाव डाल उस का जीवन नष्ट कर सकता है? वह अवाक थी, हतप्रभ भी, कुछ समझ नहीं आ रहा था.

शादी के सवाल पर Nia Sharma का हैरान करने वाला बयान, ‘खुद ही मरी रहूंगी…’

Nia Sharma : टीवी एक्ट्रेस और मॉडल निया शर्मा अपने एक्टिंग के करियर के लिए पूरी तरह पागल है, हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान निया शर्मा ने अपने बेबाक अंदाज में बताया कि वह सब कुछ छोड़ सकती हैं लेकिन एक्टिंग कभी नहीं छोड़ेंगी. क्योंकि एक्टिंग उनका बचपन का प्यार है. निया के अनुसार एक्टिंग करियर में अपनी जगह बनाने के लिए मैं 14 साल से स्ट्रगल कर रही हूं काफी सारी मेहनत के बाद मैंने अपना ये मुकाम हासिल किया है और पति के कहने पर 1 मिनट में सब कुछ कैसे छोड़ सकती हूं. 1 मिनट के लिए अगर मुझे अमीर पति भी मिल जाता है और वह एक्टिंग करने के लिए मना करता है, तो पूरा समय उसकी शक्ल देखकर ना खुश रहकर जिंदगी कैसे बिता सकती हूं.

मैं खुद ही मरी रहूंगी ना खुश रहूंगी तो शादीशुदा जिंदगी कैसे खुशहाल कर सकती हूं. अब तो मेरी मां ने भी मुझे बोलना छोड़ दिया है. पहले मुझे लगता था शादी एंजॉय है, लहंगा चोली पहनो मेकअप करो नाच गाना करो, शादी मजेदार होती है. लेकिन अब पता चला कि शादी कितना बड़ा बवाल है. गंजा करके छोड़ता है, बहुत कम लोगों को नसीब होता है और अगर गलत पार्टनर मिल गया तो करियर के साथ लाइफ भी खत्म. मैं शादी को लेकर बहुत सख्त हूं. क्योंकि मैं सब कुछ छोड़ सकती हूं लेकिन एक्टिंग नहीं छोड़ सकती क्योंकि उसी से मुझे सबसे ज्यादा खुशी मिलती है.

77 की उम्र में मुमताज की फिटनेस का राज, फौलो करती हैं अक्षय कुमार की ये टिप्स

Mumtaz Fitness Secret : बौलीवुड एक्टर अक्षय कुमार उन स्टार हीरो में हैं जो मसल्स वाली बौडी सिक्स पैक को साइड में रखकर सिर्फ अच्छी सेहत और परफेक्ट फिजिक पर ज्यादा अपना ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसके चलते अक्षय कुमार जिम में घंटो वेटलिफ्टिंग या सिक्स पैक वाली बॉडी बनाने के बजाय खुले मैदान में दौड़ना , सीड़िया चढ़ना, सुबह जल्दी उठना, और रात को जल्दी सोना सही डाइट लेकर अपने आप को फिट एंड फाइन रखते हैं.

इसी वजह से अक्षय कुमार कभी भी बॉडी बनाने को लेकर चर्चा में नहीं रहते. अक्षय कुमार ने यही सलाह अभिनेत्री मुमताज को भी दी जो अपनी हेल्थ को लेकर थोड़ी चिंतित रहा करती थी. एक जमाने की हॉट एंड सेक्सी मुमताज 77 साल की उम्र में आज भी पूरी तरह से स्वस्थ और परफेक्ट है. इसका श्रेय मुमताज ने एक इंटरव्यू के दौरान एक्टर अक्षय कुमार को दिया, मुमताज के अनुसार कुछ समय पहले एक्टर अक्षय कुमार ने उनको एक डाइट सलाह दी थी, जिसका पालन वह पूरी शिद्दत से करती है.

मुमताज के अनुसार एक बार अक्षय से बातचीत के दौरान उन्होंने मुझे बताया कि वह खुद सूरज ढलने से पहले खाना खा लेते है. उन्होंने मुझे भी हिदायत कि मैं रात का खाना स्किप करूं और शाम को 5:00 से 6:00 के बजे बीच में जो खाना है खा लूं . उसके बाद पूरी रात खाने से दूरी बना के रखूं. मुमताज में इंटरव्यू में बताया कि वह खास तौर पर डिनर को लेकर बहुत सख्त है. डिनर करने के बजाय शाम को मैं फल खा लेती हूं,और सूप पी लेती हूं. वैसे भी मेरा खाना बहुत ज्यादा नहीं है मैं गलत चीज बिल्कुल नहीं खाती और व्यायाम अभी भी करती हूं.

सुबह 7 बजे व्यायाम करने के बाद ब्लैक टी पीती हूं , अपने चेहरे का ध्यान वह खुद का मास्क लगाकर करती है मुमताज के अनुसार एक्टर मनोज बाजपेई भी काफी सालों से रात का डिनर नहीं करते , मुमताज के अनुसार जब से मैने अक्षय की डाइट सलाह मानी है तब से मैं अपने आप को और भी ज्यादा फिट और फुर्तीली महसूस करती हूं. गौरतलब है 77 की उम्र में भी फिल्मों में मुमताज मां का किरदार निभाना पसंद नहीं करती, खासकर के शाहरुख सलमान की मां बनना तो उनको बिलकुल गवारा नहीं है.

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