Hindi Story Online : ‘‘ए कदम गंवार, जाहिल और मूर्ख. सच पूछो तो तुम मेरे जैसे व्यक्ति के लिए हो ही नहीं. मैं ने क्या सोचा था और क्या हो गया? रघु क्या सोचता होगा? मैं भी कैसा मूर्ख था कि तुम्हारा बाहरी रंगरूप देख कर भावना में बह गया. सोचा था कि कच्ची मिट्टी को ढाल कर अपने मन के अनुरूप बना लूंगा. पर नहीं, तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया जा सकता. पूजा, सोशल ऐटिकेट तो घुट्टी में पिलाए जाते हैं. बाद में उन्हें ग्लूकोस के इंजैक्शन की तरह खून में नहीं मिलाया जा सकता,’’
मनीष ने क्रोध में चुनचुन कर कठोर विशेषण प्रयुक्त किए.
पूजा एक क्षण को हत्प्रभ बैठी रही. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उस से ऐसा क्या अपराध हो गया जो मनीष ने इतनी जलीकटी सुना डाली. इतना इंटैलिजैंट जना व्यक्ति और ऐसा गुस्सा. वह पढ़ीलिखी एक छोटे कसबे से नहीं थी, पर जो व्यक्ति इतना क्रोधी हो उस की इंटैलिजैंस का क्या लाभ? उस ने मन ही मन सोचा पर बोलने से कोई फल नहीं निकलने वाला था. अत: चुपचाप बैठी रही.
‘‘अब क्या मूर्खों की तरह शून्य में ताकती बैठी रहोगी? मेरी बात का रिप्लाई क्यों नहीं देती?’’
‘‘किस बात का रिप्लाई?’’ पूजा इतने धीमे स्वर में बोली कि मनीष उस के होंठों के हिलने से ही उस की बात समझ सका.
‘‘कल रघु आया था?’’
‘‘कौन रघु?’’
‘‘मेरा मित्र राघवेंद्र. कितना बड़ा स्कौलर है वह? तुम उसे क्या जानो? अपने विषय का सुपर मास्टर है. बड़ेबड़े व्यक्ति उस की राह में पलकें बिछाने को तैयार रहते हैं.’’
‘‘हां, कल एक व्यक्ति आया तो था पर वेशभूषा व चालढाल से वह सामान्य बुद्धि वाला भी नहीं प्रतीत हो रहा था. भड़कीले कपड़े पहने, गले में सोने की कई चेनें, सिर पर अजीब ढंग से फूले बाल और धूप का चश्मा, कुल मिला कर वह किसी होटल में नाचने वाला लगता था.’’
‘‘तुम ठहरी गंवार, फैशन के संबंध में क्या जानो. कसबे में तो कुरतापजामा पहन कर, सिर में ढेर सा तेल थोप कर बाल संवारना ही सब से बड़ा फैशन होता है.’’
‘‘जो भी होता हो पर जहां तक मैं सोचती हूं? हमारी बहस का विषय फैशन तो नहीं था.’’
‘‘पूजा, बहुत आरगू करने लगी हो तुम. पर ध्यान से सुन लो, ये सब बातें मुझे बिलकुल पसंद नहीं हैं.’’
‘‘तर्कवितर्क करना भी तो मुझे आप ने ही सिखाया है. नहीं तो मैं कसबे की सीधीसादी सरकारी स्कूल की लड़की. ठीक से बातें करना भी कहां आता था मुझे?’’
‘‘हां तो कल मेरा मित्र राघवेंद्र आया था?’’ मनीष ने प्राइमरी टीचर की भांति पूछा.
‘‘जी हां.’’
‘‘उस ने मेरे संबंध में पूछा था?’’
‘‘हां.’’
‘‘और तुम ने बैठने तक को नहीं कहा?’’
‘‘आप घर पर नहीं थे. अत: उसे बैठने के लिए कहने का प्रश्न ही कहां उठता था?’’
‘‘उस ने बताया था न कि वह मेरा मित्र है. उसे बैठा कर कम से कम एक कोल्ड ड्रिंक के लिए तो तुम पूछ सकती थीं पर इतने दिनों का सिखायापढ़ाया सब बेकार कर दिया तुम ने? आज सेमिनार में जब रघु ने सब के सामने तुम्हारे संबंध में बताया तो मैं शर्म से सिकुड़ कर रह गया. सब लोग मुझे देख कर हंस रहे थे?’’
‘‘ऐसा क्या कर दिया मैं ने जो सब आप को ही देख कर हंस रहे थे? आप भी तो मुझे मैसेज कर सकते थे कि वह आने वाला है?’’
‘‘मौडर्न सोसायटी में तुम्हारे जैसे फूल्स ही ऐसे काम करते हैं,’’ तीखे स्वर में बोल कर मनीष अपने पढ़ने के कमरे में घुस गया.
पूजा देर तक बैठी आंसू बहाती रही. आंसुओं के साथ ही यादों की न जाने कितनी आकृतियां बनतीबिगड़ती रहीं…
मनीष से उस का विवाह पक्का कर उस के पिता ऐसे गदगद हो उठे थे मानो कोई खजाना पा लिया हो.
‘‘एक बहुत पढ़ेलिखे जने से पूजा का विवाह हो रहा है,’’ वे प्रसन्नता से मां से बोले थे.
‘‘वह तो ठीक है पर हमारी पूजा तो केवल कसबे के कालेज से हिंदी में एमए पास है और वह इतना एमबीए, एमटैक पढ़ालिखा. मैं ने चाहा था कोई हमारे स्तर का वर मिल जाता, जहां पूजा सुखी रहती,’’ मां ने उत्तर दिया.
‘‘क्या कहना चाह रही हो तुम? क्या मनीष पूजा को सुखी नहीं रखेगा?’’
सुन कर मां चुप रह गईं.
‘‘एमए हिंदी में है तो क्या? हमारी पूजा लाखों में एक है. दूरदूर तक रिश्तेदारी में क्या ऐसी लड़की देखी है तुम ने? बड़े शहरों में क्या लड़कियों की कमी है? पर यहां कसबे में आ कर उन्होंने हमारी पूजा को पसंद किया तो कुछ तो कारण रहा होगा.’’
मगर पूजा पिछले 1 वर्ष के वैवाहिक जीवन में समझ नहीं सकी थी कि वह सुखी है अथवा दुखी. यों उसे कोई दुख नहीं था. पर मनीष के मुख से जो भी निकलता था, उसे हर हालत में उसे मानना पड़ता था. ऊपर से दिन भर गंवार, जाहिल होने के ताने मिलते थे. वह हिंदी एमए थी जिस की इस समाज में कोई बड़ी कीमत नहीं थी. उसे कोई नौकरी नहीं मिल सकती थी क्योंकि हर नौकरी में अच्छी इंग्लिश आना जरूरी है चाहे काम सिर्फ रिसैप्शनिस्ट का क्यों न हो.
उस ने स्वयं को बदलने का कितना यत्न किया था? वह जिस दिन अपने लंबेलंबे बाल पार्लर कटवा कर आई थी तो देर तक रोती रही थी. कसबे भर में ऐसे सुंदर बाल किसी लड़की के नहीं थे. 3-4 दिन तक तो उसे बाहर निकलने में भी शर्म आती रही थी. इसी वेशभूषा के कारण तो मनीष ने उसे पसंद किया था जब वह एक पौलिटिकल रैली में एक कैंडीडेट के साथ उस के कसबे में आया था.
क्या यही आधुनिकता है? वह कड़वाकसैला पेय पीना, जिसे उस के परिवार में पीना तो दूर, कोई छूता भी नहीं है. यदि उस के पिता को पता चल जाए कि मनीष ने कई
बार उसे उस कसैलीनशीली शराब पीने के लिए फोर्स किया है तो वे क्या सोचेंगे? पर मनीष तो कहते हैं कि आधुनिक होने के लिए यह सब करना जरूरी है. ऊपर से बड़ी अदा से छल्ले बनाना, सोचते हुए उस के आंसू कब के सूख गए थे.
अपनी ओर से उस ने सभी प्रयत्न किए थे क्योंकि मां ने कहा था कि घर को बनाने का दायित्व पत्नी पर अधिक होता है. पर वह कहां तक समझौते करती रहे. कल की घटना में क्या उस का दोष इतना बड़ा था कि मनीष मुंह फुला कर बैठ जाए.
‘‘इस बार माफ कर दो, आगे से कभी ऐसा नहीं होगा,’’ ट्रे मेज पर रख कर वह किसी प्रकार बोली थी. पर क्षोभ व अपमान से उस की आंखें भर आई थीं.
मनीष ने अपने नेत्र ऊपर उठाए थे. सदा की भांति अपनी सफलता पर वह मन ही मन मुसकराया था. आखिर पूजा कच्ची मिट्टी ही तो है, सोसायटी के लायक सांचे में ढालने में कुछ समय तो लगेगा ही.
‘‘आओ, इधर बैठो, पूजा. तुम नहीं जानती कि तुम ने कितने बड़े स्कौलर का अपमान किया है,’’ कौफी का कप उठाते हुए मनीष बोला.
‘‘क्या बहुत गुणवान है आप का मित्र?’’ अपना कम उठाते हुए पूजा ने प्रश्न किया.
‘‘स्कौलर तो वह है ही, पर लाइफ को सही ढंग से जीना भी जानता
है. खाओपीओ और मौज करो लिविंग ऐग्जैंपल. यह समझ लो कि वह मेरे जीवन का मौडल है. मालूम है उस ने अभी तक मैरिज नहीं की है.’’
‘‘अच्छा, क्या ऐज होगी आप के मित्र की?’’
‘‘30 साल होगी.’’
‘‘कब तक विवाह करने का इरादा है उस का?’’
‘‘मैरिज के नाम से ही उस का मूड खराब हो जाता है.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘कहता है कि यह भी कोई जीवन है, खूंटे से बंधी गाय जैसा. वह मानता है कि विवाह से पूर्व कितना भी लव क्यों न हो, विवाह के बाद सब छूमंतर हो जाता है. इसीलिए वह फ्री लव में विश्वास करता है.’’
‘‘आप का तो वह मौडल है. फिर आप ने विवाह क्यों किया?’’
‘‘मैरिज की है तो क्या? मैं भी उसी की तरह फ्री लव में विश्वास करता हूं.’’
‘‘यानी घर में पत्नी होते हुए भी दूसरों से प्रेम का नाटक करना?’’
‘‘नाटक नहीं, ऐक्चुअल लव करना. प्रेम तो एक जीतीजागती फीलिंग है, जिसे पत्नीरूपी पिंजरे में कैद नहीं किया जा सकता, डियर.’’
‘‘तो क्या उसे पतिरूपी पिंजरे में कैद किया जा सकता है?’’
मनीष हंस कर बोला, ‘‘अच्छा प्रश्न पूछा तुम ने. मेरी ओर से तुम भी किसी से भी लव करने के लिए फ्री हो. मैं तो सदा से फीमेल फ्रीडम में विश्वास करता हूं. जो बंधन में अपने लिए ऐक्सैप्ट नहीं कर सकता, तुम्हारे ऊपर कैसे लगा सकता हूं?’’
‘‘सचमुच बड़े ऊंचे विचार हैं आप के,’’ कौफी का आखिरी घूंट पी कर उस ने कप रखा. उस का मन अचानक बहुत अस्थिर हो गया था. बहुत सी भूलीबिसरी बातें मन के आकाश में बादलों की भांति उमड़घुमड़ रही थीं.
‘‘अरे कहां जा रही हो?’’ पूजा ट्रे उठा कर जाने लगी तो मनीष ने उसे बैठा लिया.
‘‘तुम्हें रघु के संबंध में बताऊंगा, तभी तुम्हें पता चलेगा कि वह कितना इंटरैस्टिंग पर्सनैलिटी है. जहां जाता है लोगों का मन मोह लेता है. न जाने कितनी लड़कियों से उस की फ्रैंडशिप है. वह जिसे भी अपनी फ्रैंड बनाना चाहता है, बना कर ही छोड़ता है.
अपने देश की फेमस डांसर है अवंतिका देवी. कहते हैं कि वह बेहद अच्छे कैरेक्टर वाली है. शास्त्रीय नृत्य के अतिरिक्त औरकोई नृत्य करना पसंद नहीं करती. एक बार हम दोनों एक समारोह में भाग लेने मुंबई गए थे. शाम को हम लोग उस का डांस देखने गए. पूरे कार्यक्रम के दौरान रघु मंत्रमुग्ध सा बैठा रहा. प्रोग्राम के बाद उस ने अवंतिका से मिलने का प्रयत्न किया तो पता चला कि वह तो किसी से मिलतीजुलती नहीं है.’’
‘‘अच्छा हुआ,’’ पूजा प्रसन्न हो कर ताली बजाने लगी.
‘‘चुप रहो, बीच में टोक दिया न. पूरी बात सुने बिना ही बकबक करने लगती
हो,’’ मनीष का कटु स्वर सुन कर पूजा का चेहरा पीला पड़ गया कि क्या उसे पूरा जीवन ऐसे ही सिरफिरे व्यक्ति के साथ बिताना होगा? ऐसी समझ से क्या फायदा? उस का मन हुआ कि उस का पति कोई सीधासादा व्यक्ति होता जो उस के आत्मसम्मान का भी उतना ही खयाल रखता, जितना अपने का.
‘‘हां, तो उस दिन रातभर रघु अवंतिका के डांस पर लेख लिखता रहा. दूसरे दिन वह समारोह छोड़ कर समाचारपत्रों के कार्यालयों में चक्कर लगाता रहा. अगले ही दिन अधिकांश समाचारपत्रों में अवंतिका के डांस की प्रेज में उस के लेख छप गए.’’
‘‘फिर क्या हुआ?’’ पूजा ऊबने लगी थी.
‘‘होना क्या था? अवंतिका ने इन लेखों में अपनी प्र्रेज पढ़ी तो गदगद हो उठी. कलाकार को अपनी प्रेज से अधिक अपनी कला की प्रेज की चाह होती है.’’
‘‘फिर?’’
‘‘फिर क्या? दोनों मित्र बन गए और यह फ्रैंडशिप रिलेशन अब तक चली आ रही है.’’
‘‘एक बात पूछूं?’’
‘‘हां.’’
‘‘कब तक रघुजी अवंतिका देवी के मित्र बने रहेंगे?’’
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘हो सकता है कि अवंतिका मैरिज करना चाहें तो क्या उन के होने वाले पति रघु की फ्रैंडशिप को स्वीकार कर लेंगे?’’
‘‘हाईक्लास वर्ग में ऐसी फ्रैंडशिप बुरी नहीं मानी जाती.’’
‘‘जब यह अवंतिका के इतने फैन हैं तो उन से विवाह क्यों नहीं कर लेते?’’
‘‘मैरिज नाम की इंस्टिट्यूशन में उस का विश्वास ही नहीं है. पर तुम्हारी अक्ल तो इन सड़ेगले रीतिरिवाजों से परे जा ही नहीं सकती.’’
‘‘हां, वह तो है, मेरी एक बात मानेंगे आप?’’
‘‘क्या?’’
‘‘मैं भी आगे पढ़ना चाहती हूं.’’
मनीष ठहाका मार कर हंसा, ‘‘यह अचानक पढ़ाईलिखाई में तुम्हारी रुचि कैसे जाग पड़ी? पहले तो तुम यही कहती थी कि और ज्यादा पढ़लिख कर तुम्हें कौन सी नौकरी करनी है. हिंदी में एमए हिंदी तो हू.’’
कुछ देर बाद उस ने कहा, ‘‘क्या बात है? इतनी सीरियसली बातें करते तो तुम्हें कभी देखा ही नहीं?’’
‘‘बात कुछ नहीं है, पर कल को मैरिज इंस्टिट्यूशन पर से आप का विश्वास भी उठ गया तो मैं किस के कंधे पर सिर टिका कर रोऊंगी.’’
‘‘कैसी फूल्स वाली बातें कर रही हो? जाओ, मुझे काम करने दो. आज ही यह लेख पूरा कर के एक ब्लौग में अपलोड करना है.’’
तभी घंटी की आवाज सुन कर पूजा डोर पर आई.
‘‘मैं हूं राघवेंद्र, मनीष घर पर है क्या?’’
‘‘अरे, राघवेंद्र. आइए, अंदर आइए, ड्राइंगरूम खोल देती हूं.’’
‘‘मैं तो मनीष के बारे में पूछने आया था. क्या वह घर पर नहीं है? मैं ने उसे मैसेज किया था पर उस ने रिप्लाई नहीं किया.’’
‘‘नहीं. ठीक है, फिर मैं चलता हूं. वह आए तो बता दीजिएगा कि राघवेंद्र आया था.’’
‘‘क्या कह रहे हैं आप? उस दिन आप इसी तरह बाहर के बाहर चले गए थे तो मनीष कितने नाराज हो गए थे. आज तो मैं आप को इस तरह नहीं जाने दूंगी.’’
‘‘मेरे पास समय कम है, पूजा. 4-5 दिनों
में ढेरों काम करने हैं. आज परमिशन दीजिए, अगली बार जब आऊंगा तो आप के घर पर ही डेरा लगाऊंगा.’’
‘‘न बाबा न, समय हो या न हो, आप यह तो नहीं चाहेंगे कि आप के कारण मेरी शादीशुदा जिंदगी खतरे में पड़ जाए.’’
‘‘पर मैं ने ऐसा क्या किया है जो आप की शादी खतरे में पड़ जाएगी?’’ राघवेंद्र आश्चर्यचकित हो उठा.
‘‘आप नहीं समझेंगे, राघवेंद्र. ठीक भी है, समझेंगे कैसे? हां, मेरे स्थान पर आप होते तो अवश्य समझ जाते. आइए न, प्लीज अंदर
आइए न?’’
राघवेंद्र कुछ देर हत्प्रभ खड़ा सोचने लगा कि अच्छा आया वह मनीष को बुलाने, इस से तो सीधा ही चला जाता.
पर पूजा की बातों से उस का कुतूहल जाग उठा था. फिर पूजा के आग्रह को टाल कर जाना क्या आसान कार्य था? उस ने मोबाइल निकाल कर मनीष को काल करना चाहा तो पूजा ने उसे रोक दिया कि अब क्या आप उस से परमिशन लोगे.
‘चलो, कुछ देर बैठ जाते हैं. शायद तब तक मनीष आ जाए,’ उस ने सोचा.
‘‘आप बैठिए, रघुजी. मैं तब तक चाय या कौफी बना लाती हूं,’’ कहती हुई पूजा रसोईघर में व्यस्त हो गई.
रघु पत्रिका के पृष्ठ पलट रहा था कि पूजा चाय की ट्रे थामे आ गई.
‘‘हां, तो क्या अपराध हो गया मु?ा से पूजा जो आप की गृहस्थी खतरे में पड़ जाएगी?’’
‘‘आप को सचमुच कुछ नहीं मालूम? आप ही ने तो मेरे मनीष से शिकायत की थी कि आप यहां आए और मैं ने पानी तक के लिए नहीं पूछा.’’
‘‘मैं ने तो ऐसा कुछ नहीं कहा, पूजाजी. मैं ने तो सिर्फ यह कहा था कि मैं तुम्हारे घर गया था. फिर उसी ने पूछा कि आप ने चायकौफी पिलाई या नहीं?’’
‘‘हां, मैं ठहरी सीधीसादी गंवार. किसी का स्वागत करना क्या जानूं?’’ न चाहते हुए भी पूजा के नेत्र छलछला आए.
‘‘क्या कह रही हैं आप? मैं ने तो बिलकुल बुरा नहीं माना. मनीष मेरा मित्र अवश्य है, पर आप ने तो मुझे कभी देखा ही नहीं था. अत: स्वागतसत्कार का प्रश्न ही कहां उठता था?’’
‘‘अच्छा छोडि़ए इन बातों को लीजिए चाय पीजिए,’’ कहते हुए पूजा ने चाय पकड़ा दी.
‘‘एक बात पूछूं पूजा?’’ उस ने अचानक पूछा.
‘‘आप मनीष के साथ खुश हैं न?’’
‘‘मुझे यहां क्या दुख है, रघु? पर क्या करूं मैं ही उन के योग्य नहीं हूं,’’ पूजा बोली.
‘‘यह आप क्या कह रही है पूजाजी. आप जैसी अनुपम सौंदर्य क्या आसानी से देखने को मिलता है? मुझे तो आप में कोई कमी नजर नहीं आती.’’
‘‘पर मनीष कहते हैं कि गुणों के बिना रूप का महत्त्व क्या है? मैं दिल्ली की मौडर्न सोसायटी समाज का रहनसहन, तौरतरीके कुछ भी तो नहीं जानती. अंगरेजी नहीं बोल सकती. आजकल मैं अंगरेजी लिखना व बोलना सीख रही हूं. इंग्लिश क्लासे ले रही हूं.’’
‘‘क्या अंगरेजी बोलना ही सब से बड़ा गुण होता है? इन सब आडंबरों में पड़ने की आप को कोई आवश्यकता है? किसी भी भाषा को सीखना बुरा नहीं है, पर हमें कोई विशेष भाषा नहीं आती इस को ले कर कुंठित होना अवश्य बुरा है.’’
‘‘हाय रघु, कितनी देर हुई तुम्हें आए?’’ तभी मनीष का चहकता स्वर सुन कर
रघु ने गरदन घुमाई.
‘‘आओ मनीष, कहां रह गए थे तुम?’’ मैं तो जा रहा था पर पूजा ने इतना आग्रह किया कि बैठना ही पड़ा.’’
‘‘मैं यूनिवर्सिटी से निकला ही था कि रीतेश मिल गया. छोड़ ही नहीं रहा था. बड़ी कठिनाई से जान छुड़ा कर आया हूं. तुम्हारी मिस्डकाल देखी थी पर फिर सोचा घर जा कर आराम से
बात करूंगा.’’
‘‘बैठिए, 1 कप कौफी और बना लाती हूं,’’ पूजा उठ कर अंदर चली गई.
‘‘मान गए, भई तुम्हारे विवाह में तो मैं आ नहीं सका था, अब बधाई स्वीकार करो. लाखों में एक है तुम्हारी पत्नी.’’
‘‘यों समझ लो कि अनगढ़ हीरा उठा लाया हूं. तराश कर नया ही रंगरूप निखारना है.’’
‘‘हीरा कितना ही मूल्यवान हो मित्र, जीतेजागते मनुष्य की बराबरी में कहीं नहीं ठहरता,’’ रघु हंस कर बोला.
तब तक पूजा चाय बना लाई थी. अत: बात वहीं समाप्त हो गई.
दूसरे दिन सुबहसुबह राघवेंद्र आ धमका, ‘‘मनीष व पूजा भाभी ध्यान से सुनिए, मैं क्या कहने जा रहा हूं,’’ वह नाटकीय स्वर में बोला.
‘‘कल मैं जा रहा हूं. आज का पूरा दिन आप लोगों के साथ बिताने का इरादा है. मेरा नाश्ता यहीं होगा. फिर चाइनीज रेस्तरां में मेरी ओर से खाना. उस के बाद घूमेफिरेंगे. कोई अच्छी फिल्म मौल में लगी होगी तो वह भी देख लेंगे,’’ रघु बेहद उत्साहित स्वर में बोला.
तभी मनीष का फोन घनघना उठा. फोन कालेज से था कि स्टाफ यूनियन को शिक्षा मंत्री से कुछ विषयों पर बात करने के लिए बुलाया है. अभी आना जरूरी है. मनीष स्टाफ यूनियन का अस्सिटैंट सैक्रेटरी था तो जाना जरूरी था. अत: उस ने कहा, ‘‘रघु चलो चाइनीज फिर खाएंगे. मुझे मंत्री के यहां जाना है.’’
पूजा उठने को हुई पर रघु ने पूजा का हाथ पकड़ कर बैठा दिया और बोला, ‘‘तुम्हारे मंत्रीजी ने तो सारे उत्साह पर पानी फेर दिया, पर हमारा कार्यक्रम नहीं बदलने वाला. पहले यहां नाश्ता करेंगे. फिर चाइनीज खाना खाएंगे. तुम जाओ विश्वविद्यालय, पूजा मेरा साथ देगी.’’
एक क्षण को मनीशा हत्प्रभ रह गया पर एकदम से मना करने का साहस भी नहीं हुआ.
‘‘ठीक है, पूजा चली जाएगी तुम्हारे साथ,’’ मनीष किसी प्रकार बुझे स्वर में बोला.
पूजा नाश्ता बनाने में व्यस्त हो गई और मनीष व रघु बात करने में. पर मनीष का मन बारबार उचट जाता, ‘इस मंत्री को भी आज
आना था,’ वह मन ही मन बड़बड़ाया और उसे जाना पड़ा.
मनीष घर 3 बजे लौट आया. डोर पर अब भी बड़ा सा ताला लटक रहा था. दूसरी चाबी से ताला खोल कर वह घर में घुसा और पूजा की वेट करने लगा. वह कुरसी पर बैठेबैठे ही सो गया. जब अचानक नींद खुली तो 6 बज रहे थे. हलका अंधकार छाने लगा था. पर पूजा और रघु का कहीं पता नहीं था.
लगभग आधे घंटे बाद दोनों ने घर में प्रवेश किया.
‘‘अरे मनीष, कितनी देर हुई तुम्हें आए? माफ करना भाई, थोड़ी देर हो गई. वहीं चाइनीज रेस्तरां में एक और मित्र कपल मिल गया. घूमतेफिरते कितना समय बीत गया, पता ही नहीं चला. अच्छा अब मुझे आज्ञा दो,’’ रघु ने विदा लेते हुए कहा.
‘‘एक अवसर क्या मिला घूमनेफिरने का कि पूरा दिन बाहर ही बिता दिया तुम ने,’’ रघु के जाते ही मनीष क्रोधित स्वर में बोला.
‘‘मैं तो आप की आज्ञा का पालन कर
रही थी. आप ही ने तो कहा था जाने को. अब क्यों लालपीले हो रहे हो?’’ पूजा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.
‘‘इस पैकेट में क्या है?’’
‘‘एक ड्रैस है. जारा के शोरूम से ली है. रघु ने उपहार में दी है. वे कर रहे थे कि आप के विवाह में आ नहीं सके थे, इसलिए अब उपहार दिया है.’’
‘‘और तुम ने स्वीकार कर ली? उस के मुंह पर दे मारनी चाहिए थी तुम्हें. मैं ने रघु की कितनी ही महिला मित्रों के संबंध में बताया था… अवंतिका की कहानी सुनाई थी, पर तुम्हारी आंखें नहीं खुलीं.’’
‘‘कितने उदार व आधुनिक विचार हैं आप के, पर एक बात ध्यान से सुन लीजिए, मैं अवंतिका देवी नहीं हूं. एक तो क्या सैकड़ों रघु भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते यह आप के मित्र का दिया उपहार सामने रखा है. कल जब आप उन्हें छोड़ने जाएंगे तो स्वयं ही उन के मुंह पर दे मारना,’’ जलती आंखों से मनीष को घूरती हुई पूजा दूसरे कमरे में चली गई.
‘‘मुझे क्षमा कर दो पूजा,’’ कुछ देर बाद मनीष भी वहीं पहुंच कर बुझे स्वर में बोला, ‘‘आगे से कभी तुम्हें परेशान नहीं करूंगा. हमारी दशा तो 2 नावों के सवार जैसी है.’’
‘‘एक अजनबी व्यक्ति के साथ पूरा दिन मूर्खों की तरह भटकते रहना कितना ट्रैजिक होता है, आप क्या सम?ोंगे. मैं बचपन से लड़कों को अबौइड करती रही क्योंकि हमारे कसबे में तो एक कौपी या किताब उधार लेने या फेसबुक पर फ्रैंडशिप ऐक्सैप्ट करने पर हंगामा मच जाता है. यहां तुम ही बड़ीबड़ी बातें कर रहे हो. खैर, जो भी तुम समझे, आज का दिन गुजरा बड़ा अच्छा. रघु की कंपनी वाकई बहुत ऐंजौएबल है,’’ पूजा ने बड़ी शोखी से कहा. मनीष चुपचाप बैठा शून्य में देखे जा रहा था.