Hindi Stories Online : कालगर्ल – क्यों पायल का दीवाना हो गया था वह

Hindi Stories Online : मैं दफ्तर के टूर पर मुंबई गया था. कंपनी का काम तो 2 दिन का ही था, पर मैं ने बौस से मुंबई में एक दिन की छुट्टी बिताने की इजाजत ले ली थी. तीसरे दिन शाम की फ्लाइट से मुझे कोलकाता लौटना था. कंपनी ने मेरे ठहरने के लिए एक चारसितारा होटल बुक कर दिया था. होटल काफी अच्छा था. मैं चैकइन कर 10वीं मंजिल पर अपने कमरे की ओर गया.

मेरा कमरा काफी बड़ा था. कमरे के दूसरे छोर पर शीशे के दरवाजे के उस पार लहरा रहा था अरब सागर. थोड़ी देर बाद ही मैं होटल की लौबी में सोफे पर जा बैठा. मैं ने वेटर से कौफी लाने को कहा और एक मैगजीन उठा कर उस के पन्ने यों ही तसवीरें देखने के लिए पलटने लगा. थोड़ी देर में कौफी आ गई, तो मैं ने चुसकी ली. तभी एक खूबसूरत लड़की मेरे बगल में आ कर बैठी. वह अपनेआप से कुछ बके जा रही थी. उसे देख कर कोई भी कह सकता था कि वह गुस्से में थी.

मैं ने थोड़ी हिम्मत जुटा कर उस से पूछा, ‘‘कोई दिक्कत?’’

‘‘आप को इस से क्या लेनादेना? आप अपना काम कीजिए,’’ उस ने रूखा सा जवाब दिया.

कुछ देर में उस का बड़बड़ाना बंद हो गया था. थोड़ी देर बाद मैं ने ही दोबारा कहा, ‘‘बगल में मैं कौफी पी रहा हूं और तुम ऐसे ही उदास बैठी हो, अच्छा नहीं लग रहा है. पर मैं ने ‘तुम’ कहा, तुम्हें बुरा लगा हो, तो माफ करना.’’

‘‘नहीं, मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा. माफी तो मुझे मांगनी चाहिए, मैं थोड़ा ज्यादा बोल गई आप से.’’ इस बार उस की बोली में थोड़ा अदब लगा, तो मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब कौफी पीने में तुम मेरा साथ दोगी.’’ और उस के कुछ बोलने के पहले ही मैं ने वेटर को इशारा कर के उस के लिए भी कौफी लाने को कहा. वह मेरी ओर देख कर मुसकराई. मुझे लगा कि मुझे शुक्रिया करने का उस का यही अंदाज था. वेटर उस के सामने कौफी रख कर चला गया. उस ने कौफी पीना भी शुरू कर दिया था.

लड़की बोली, ‘‘कौफी अच्छी है.’’

उस ने जल्दी से कप खाली करते हुए कहा, ‘‘मुझे चाय या कौफी गरम ही अच्छी लगती है.’’

मैं भी अपनी कौफी खत्म कर चुका था. मैं ने पूछा, ‘‘किसी का इंतजार कर रही हो?’’

उस ने कहा, ‘‘हां भी, न भी. बस समझ लीजिए कि आप ही का इंतजार है,’’ और बोल कर वह हंस पड़ी. मैं उस के जवाब पर थोड़ा चौंक गया. उसी समय वेटर कप लेने आया, तो मुसकरा कर कुछ इशारा किया, जो मैं नहीं समझ पाया था.

मैं ने लड़की से कहा, ‘‘तुम्हारा मतलब मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘सबकुछ यहीं जान लेंगे. क्यों न आराम से चल कर बातें करें,’’ बोल कर वह खड़ी हो गई.

फिर जब हम लिफ्ट में थे, तब मैं ने फिर पूछा, ‘‘तुम गुस्से में क्यों थीं?’’

‘‘पहले रूम में चलें, फिर बातें होंगी.’’ हम दोनों कमरे में आ गए थे. वह अपना बैग और मोबाइल फोन टेबल पर रख कर सोफे पर आराम से बैठ गई. मैं ने फिर उस से पूछा कि शुरू में वह गुस्से में क्यों थी, तो जवाब मिला, ‘‘इसी फ्लोर पर दूसरे छोर के रूम में एक बूढ़े ने मूड खराब कर दिया.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘बूढ़ा 50 के ऊपर का होगा. मुझ से अननैचुरल डिमांड कर रहा था. उस ने कहा कि इस के लिए मुझे ऐक्स्ट्रा पैसे देगा. यह मेरे लिए नामुमकिन बात थी और मैं ने उस के पैसे भी फेंक दिए.’’ मुझे तो उस की बातें सुन कर एक जोर का झटका लगा और मुझे लौबी में वेटर का इशारा समझ में आने लगा था. फिर भी उस से नाम पूछा, तो वह उलटे मुझ से ही पूछ बैठी, ‘‘आप मुंबई के तो नहीं लगते. आप यहां किसलिए आए हैं और मुझ से क्या चाहते हैं?’’

‘‘मैं तो बस टाइम पास करना चाहता हूं. कंपनी के काम से आया था. वह पूरा हो गया. अब जो मरजी वह करूं. मुझे कल शाम की फ्लाइट से लौटना है. पर अपना नाम तो बताओ?’’

‘‘मुझे कालगर्ल कहते हैं.’’

‘‘वह तो मैं समझ सकता हूं, फिर भी तुम्हारा नाम तो होगा. हर बार कालगर्ल कह कर तो नहीं पुकार सकता. लड़की दिलचस्प लगती हो. जी चाहता है कि तुम से ढेर सारी बातें करूं… रातभर.’’

‘‘आप मुझे प्रिया नाम से पुकार सकते हैं, पर आप रातभर बातें करें या जो भी, रेट तो वही होगा. पर बूढ़े वाली बात नहीं, पहले ही बोल देती हूं,’’ लड़की बोली. मैं भी अब उसे समझने लगा था. मुझे तो सिर्फ टाइम पास करना था और थोड़ा ऐसी लड़कियों के बारे में जानने की जिज्ञासा थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुछ कोल्डड्रिंक वगैरह मंगाऊं?’’

‘‘मंगा लो,’’ प्रिया बोली, ‘‘हां, कुछ सींक कबाब भी चलेगा. तब तक मैं नहा लेती हूं.’’

‘‘बाथरूम में गाउन भी है. यह तो और अच्छी बात है, क्योंकि हमाम से निकल कर लड़कियां अच्छी लगती हैं.’’

‘‘क्यों, अभी अच्छी नहीं लग रही क्या?’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बात नहीं है. नहाने के बाद और अच्छी लगोगी.’’ मैं ने रूम बौय को बुला कर कबाब लाने को कहा. प्रिया बाथरूम में थी. थोड़ी देर बाद ही रूम बौय कबाब ले कर आ गया था. मैं ने 2 लोगों के लिए डिनर भी और्डर कर दिया. इस के बाद मैं न्यूज देखने लगा, तभी बाथरूम से प्रिया निकली. दूधिया सफेद गाउन में वह सच में और अच्छी दिख रही थी. गाउन तो थोड़ा छोटा था ही, साथ में प्रिया ने उसे कुछ इस तरह ढीला बांधा था कि उस के उभार दिख रहे थे. प्रिया सोफे पर आ कर बैठ गई.

‘‘मैं ने कहा था न कि तुम नहाने के बाद और भी खूबसूरत लगोगी.’’

प्रिया और मैं ने कोल्डड्रिंक ली और बीचबीच में हम कबाब भी ले रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘कबाब है और शबाब है, तो समां भी लाजवाब है.’’

‘‘अगर आप की पत्नी को पता चले कि यहां क्या समां है, तो फिर क्या होगा?’’

‘‘सवाल तो डरावना है, पर इस के लिए मुझे काफी सफर तय करना होगा. हो सकता है ताउम्र.’’ ‘‘कल शाम की फ्लाइट से आप जा ही रहे हैं. मैं जानना चाहती हूं कि आखिर मर्दों के ऐसे चलन पर पत्नी की सोच क्या होती है.’’

‘‘पर, मेरे साथ ऐसी नौबत नहीं आएगी.’’

‘‘क्यों?’’

मैं ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं अपनी पत्नी को खो चुका हूं. 27 साल का था, जब मेरी शादी हुई थी और 5 साल बाद ही उस की मौत हो गई थी, पीलिया के कारण. उस को गए 2 साल हो गए हैं.’’

‘‘ओह, सो सौरी,’’ बोल कर अपनी प्लेट छोड़ कर वह मेरे ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी और आगे कहा, ‘‘तब तो मुझे आप का मूड ठीक करना ही होगा.’’ प्रिया ने अपने गाउन की डोरी की गांठ जैसे ही ढीला भर किया था कि जो कुछ मेरी आंखों के सामने था, देख कर मेरा मन कुछ पल के लिए बहुत विचलित हो गया था. मैं ने इस पल की कल्पना नहीं की थी, न ही मैं ऐसे हालात के लिए तैयार था. फिर भी अपनेआप पर काबू रखा. तभी डोर बैल बजी, तो प्रिया ने अपने को कंबल से ढक लिया था. डिनर आ गया था. रूम बौय डिनर टेबल पर रख कर चला गया. प्रिया ने कंबल हटाया, तो गाउन का अगला हिस्सा वैसे ही खुला था.

प्रिया ने कहा, ‘‘टेबल पर मेरे बैग में कुछ सामान पड़े हैं, आप को यहीं से दिखता होगा. आप जब चाहें इस का इस्तेमाल कर सकते हैं. आप का मूड भी तरोताजा हो जाएगा और आप के मन को शायद इस से थोड़ी राहत मिले.’’

‘‘जल्दी क्या है. सारी रात पड़ी है. हां, अगर कल दोपहर तक फ्री हो तो और अच्छा रहेगा.’’

इतना कह कर मैं भी खड़ा हो कर उस के गाउन की डोर बांधने लगा, तो वह बोली, ‘‘मेरा क्या, मुझे पैसे मिल गए. आप पहले आदमी हैं, जो शबाब को ठुकरा रहे हैं. वैसे, आप ने दोबारा शादी की? और आप का कोई बच्चा?’’

वह बहुत पर्सनल हो चली थी, पर मुझे बुरा नहीं लगा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘डिनर लोगी?’’

‘‘क्या अभी थोड़ा रुक सकते हैं? तब तक कुछ बातें करते हैं.’’

‘‘ओके. अब पहले तुम बताओ. तुम्हारी उम्र क्या है? और तुम यह सब क्यों करती हो?’’

‘‘पहली बात, लड़कियों से कभी उम्र नहीं पूछते हैं…’’

मैं थोड़ा हंस पड़ा, तभी उस ने कहना शुरू किया, ‘‘ठीक है, आप को मैं अपनी सही उम्र बता ही देती हूं. अभी मैं 21 साल की हूं. मैं सच बता रही हूं.’’

‘‘और कुछ लोगी?’’

‘‘अभी और नहीं. आप के दूसरे सवाल का जवाब थोड़ा लंबा होगा. वह भी बता दूंगी, पर पहले आप बताएं कि आप ने फिर शादी की? आप की उम्र भी ज्यादा नहीं लगती है.’’ मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और कहा, ‘‘मैं अभी 34 साल का हूं. मेरा कोई बच्चा नहीं है. डाक्टरों ने सारे टैस्ट ले कर के बता दिया है कि मुझ में पिता बनने की ताकत ही नहीं है. अब दूसरी शादी कर के मैं किसी औरत को मां बनने के सुख के लिए तरसता नहीं छोड़ सकता.’’ इस बार प्रिया मुझ से गले मिली और कहा, ‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ.’’

मैं ने उस की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘दुनिया में सब को सबकुछ नहीं मिलता. पर कोई बात नहीं, दफ्तर के बाद मैं कुछ समय एक एनजीओ को देता हूं. मन को थोड़ी शांति मिलती है. चलो, डिनर लेते हैं.’’ डिनर के बाद मुझे आराम करने का मन किया, तो मैं बैड पर लेट गया. प्रिया भी मेरे साथ ही बैड पर आ कर कंबल लपेट कर बैठ गई थी. वह मेरे बालों को सहलाने लगी.

‘‘तुम यह सब क्यों करती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कोई अपनी मरजी से यह सब नहीं करता. कोई न कोई मजबूरी या वजह इस के पीछे होती है. मेरे पापा एक प्राइवेट मिल में काम करते थे. एक एक्सीडैंट में उन का दायां हाथ कट गया था. कंपनी ने कुछ मुआवजा दे कर उन की छुट्टी कर दी. मां भी कुछ पढ़ीलिखी नहीं थीं. मैं और मेरी छोटी बहन स्कूल जाते थे. ‘‘मां 3-4 घरों में खाना बना कर कुछ कमा लेती थीं. किसी तरह गुजर हो जाती थी, पर पापा को घर बैठे शराब पीने की आदत पड़ गई थी. जमा पैसे खत्म हो चले थे…’’ इसी बीच रूम बौय डिनर के बरतन लेने आया और दिनभर के बिल के साथसाथ रूम के बिलों पर भी साइन करा कर ले गया.

प्रिया ने आगे कहा, ‘‘शराब के कारण मेरे पापा का लिवर खराब हुआ और वे चल बसे. मेरी मां की मौत भी एक साल के अंदर हो गई. मैं उस समय 10वीं जमात पास कर चुकी थी. छोटी बहन तब छठी जमात में थी. पर मैं ने पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स कर लिया था. ‘‘हम एक छोटी चाल में रहते थे. मेरे एक रिश्तेदार ने ही मुझे ब्यूटीपार्लर में नौकरी लगवा दी और शाम को एक घर में, जहां मां काम करती थी, खाना बनाती थी. पर उस पार्लर में मसाज के नाम पर जिस्मफरोशी भी होती थी. मैं भी उस की शिकार हुई और इस दुनिया में मैं ने पहला कदम रखा था,’’ बोलतेबोलते प्रिया की आंखों से आंसू बहने लगे थे.

मैं ने टिशू पेपर से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं ने तुम्हारी दुखती रगों को बेमतलब ही छेड़ दिया.’’

‘‘नहीं, आप ने मुझे कोई दुख नहीं पहुंचाया है. आंसू निकलने से कुछ दिल का दर्द कम हो गया,’’ बोल कर प्रिया ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘पर, यह सब मैं अपनी छोटी बहन को सैटल करने के लिए कर रही हूं. वह भी 10वीं जमात पास कर चुकी है और सिलाईकढ़ाई की ट्रेनिंग भी पूरी कर ली है. अभी तो एक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन दे रखी है. घर बैठेबैठे कुछ पैसे वह भी कमा लेती है.

‘‘मैं ने एक लेडीज टेलर की दुकान देखी है, पर सेठ बहुत पगड़ी मांग रहा है. उसी की जुगाड़ में लगी हूं. यह काम हो जाए, तो दोनों बहनें उसी बिजनेस में रहेंगी…’’ फिर एक अंगड़ाई ले कर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को बोर कर रही हूं न? आप ने तो मुझे छुआ भी नहीं. आप को मुझ से कुछ चाहिए तो कहें.’’ मैं ने कहा, ‘‘अभी सारी रात पड़ी है, मुझे अभी कोई जल्दी नहीं. जब कोई जरूरत होगी कहूंगा. पर पार्लर से होटल तक तुम कैसे पहुंचीं?’’

‘‘पार्लर वाले ने ही कहा था कि मैं औरों से थोड़ी अच्छी और स्मार्ट हूं, थोड़ी अंगरेजी भी बोल लेती हूं. उसी ने कहा था कि यहां ज्यादा पैसा कमा सकती हो. और पार्लरों में पुलिस की रेड का डर बना रहता है. फिर मैं होटलों में जाने लगी.’’ इस के बाद प्रिया ने ढेर सारी बातें बताईं. होटलों की रंगीन रातों के बारे में कुछ बातें तो मैं ने पहले भी सुनी थीं, पर एक जीतेजागते इनसान, जो खुद ऐसी जिंदगी जी रहा है, के मुंह से सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था. इसी तरह की बातों में ही आधी रात बीत गई, तब प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे अब जोरों की नींद आ रही है. आप को कुछ करना हो…’’ प्रिया अभी तक गाउन में ही थी. मैं ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम दूसरे बैड पर जा कर आराम करो. और हां, बाथरूम में जा कर पहले अपने कपड़े पहन लो. बाकी बातें जब तुम्हारी नींद खुले तब. तुम कल दिन में क्या कर रही हो?’’

‘‘मुझ से कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई. सर, आप ने मुझ पर इतना पैसा खर्च किया और…’’

‘‘नहींनहीं, मैं तो तुम से बहुत खुश हूं. अब जाओ अपने कपड़े बदल लो.’’ मैं ने देखा कि जिस लड़की में मेरे सामने बिना कुछ कहे गाउन खोलने में जरा भी संकोच नहीं था, वही अब कपड़े पहनने के लिए शर्मसार हो रही थी. प्रिया ने गाउन के ऊपर चादर में अपने पूरे शरीर को इतनी सावधानी से लपेटा कि उस का शरीर पूरी तरह ढक गया था और वह बाथरूम में कपड़े पहनने चली गई. थोड़ी देर बाद वह कपड़े बदल कर आई और मेरे माथे पर किस कर ‘गुडनाइट’ कह कर अपने बैड पर जा कर सो गई. सुबह जब तक मेरी नींद खुली, प्रिया फ्रैश हो कर सोफे पर बैठी अखबार पढ़ रही थी.

मुझे देखा, तो ‘गुड मौर्निंग’ कह कर बोली, ‘‘सर, आप फ्रैश हो जाएं या पहले चाय लाऊं?’’

‘‘हां, पहले चाय ही बना दो, मुझे बैड टी की आदत है. और क्या तुम शाम 5 बजे तक फ्री हो? तुम्हें इस के लिए मैं ऐक्स्ट्रा पैसे दूंगा.’’

‘‘सर, मुझे आप और ज्यादा शर्मिंदा न करें. मैं फ्री नहीं भी हुई तो भी पहले आप का साथ दूंगी. बस, मैं अपनी बहन को फोन कर के बता देती हूं कि मैं दिन में नहीं आ सकती.’’ प्रिया ने अपनी बहन को फोन किया और मैं बाथरूम में चला गया. जातेजाते प्रिया को बोल दिया कि फोन कर के नाश्ता भी रूम में ही मंगा ले. नाश्ता करने के बाद मैं ने प्रिया से कहा, ‘‘मैं ने ऐलीफैंटा की गुफाएं नहीं देखी हैं. क्या तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘बेशक दूंगी.’’

थोड़ी देर में हम ऐलीफैंटा में थे. वहां तकरीबन 2 घंटे हम साथ रहे थे. मैं ने उसे अपना कार्ड दिया और कहा, ‘‘तुम मुझ से संपर्क में रहना. मैं जिस एनजीओ से जुड़ा हूं, उस से तुम्हारी मदद के लिए कोशिश करूंगा. यह संस्था तुम जैसी लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होने में जरूर मदद करेगी. ‘‘मैं तो कोलकाता में हूं, पर हमारी ब्रांच का हैडक्वार्टर यहां पर है. थोड़ा समय लग सकता है, पर कुछ न कुछ अच्छा ही होगा.’’ प्रिया ने भरे गले से कहा, ‘‘मेरे पास आप को धन्यवाद देने के सिवा कुछ नहीं है. इसी दुनिया में रात वाले बूढ़े की तरह दोपाया जानवर भी हैं और आप जैसे दयावान भी.’’ प्रिया ने भी अपना कार्ड मुझे दिया. हम दोनों लौट कर होटल आए. मैं ने रूम में ही दोनों का लंच मंगा लिया. लंच के बाद मैं ने होटल से चैकआउट कर एयरपोर्ट के लिए टैक्सी बुलाई. सामान डिक्की में रखा जा चुका था. जब मैं चलने लगा, तो उस की ओर देख कर बोला, ‘‘प्रिया, मुझे तुम्हें और पैसे देने हैं.’’

मैं पर्स से पैसे निकाल रहा था कि इसी बीच टैक्सी का दूसरा दरवाजा खोल कर वह मुझ से पहले जा बैठी और कहा, ‘‘थोड़ी दूर तक मुझे लिफ्ट नहीं देंगे?’’

‘‘क्यों नहीं. चलो, कहां जाओगी?’’

‘‘एयरपोर्ट.’’

मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘एयरपोर्ट?’’

‘‘क्यों, क्या मैं एयर ट्रैवल नहीं कर सकती? और आगे से आप मुझे मेरे असली नाम से पुकारेंगे. मैं पायल हूं.’’ और कुछ देर बाद हम एयरपोर्ट पर थे. अभी फ्लाइट में कुछ वक्त था. उस से पूछा, ‘‘तुम्हें कहां जाना है?’’

‘‘बस यहीं तक आप को छोड़ने आई हूं,’’ पायल ने मुसकरा कर कहा.

मैं ने उसे और पैसे दिए, तो वह रोतेरोते बोली, ‘‘मैं तो आप के कुछ काम न आ सकी. यह पैसे आप रख लें.’’ ‘‘पायल, तुम ने मुझे बहुत खुशी दी है. सब का भला तो मेरे बस की बात नहीं है. अगर मैं एनजीओ की मदद से तुम्हारे कुछ काम आऊं, तो वह खुशी शानदार होगी. ये पैसे तुम मेरा आशीर्वाद समझ कर रख लो.’’ और मैं एयरपोर्ट के अंदर जाने लगा, तो उस ने झुक कर मेरे पैरों को छुआ. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन की 2 बूंदें मेरे पैरों पर भी गिरीं. मैं कोलकाता पहुंच कर मुंबई और कोलकाता दोनों जगह के एनजीओ से लगातार पायल के लिए कोशिश करता रहा. बीचबीच में पायल से भी बात होती थी. तकरीबन 6 महीने बाद मुझे पता चला कि एनजीओ से पायल को कुछ पैसे ग्रांट हुए हैं और कुछ उन्होंने बैंक से कम ब्याज पर कर्ज दिलवाया है. एक दिन पायल का फोन आया. वह भर्राई आवाज में बोली, ‘सर, आप के पैर फिर छूने का जी कर रहा है. परसों मेरी दुकान का उद्घाटन है. यह सब आप की वजह से हुआ है. आप आते तो दोनों बहनों को आप के पैर छूने का एक और मौका मिलता.’

‘‘इस बार तो मैं नहीं आ सकता, पर अगली बार जरूर मुंबई आऊंगा, तो सब से पहले तुम दोनों बहनों से मिलूंगा.’’ आज मुझे पायल से बात कर के बेशुमार खुशी का एहसास हो रहा है और मन थोड़ा संतुष्ट लग रहा है.

Famous Hindi Stories : तबादला – क्या सास के व्यवहार को समझ पाई माया

Famous Hindi Stories : टैक्सी दरवाजे पर आ खड़ी हुई. सारा सामान बंधा हुआ तैयार रखा था. निशांत अपने कमरे में खड़ा उस चिरपरिचित महक को अपने अंदर समेट रहा था जो उस के बचपन  की अनमोल निधि थी.

निशांत के 4 वर्षीय बेटे सौरभ ने इसी कमरे में घुटनों के बल चल कर खड़े होना और फिर अपनी दादी की उंगली पकड़ कर पूरे घर में घूमना सीखा. निशांत की पत्नी माया एक विदेशी कंपनी में काम करती थी. वह सुबह 9 बजे निकलती तो शाम को 6 बजे ही वापस लौटती. ऐसे में सौरभ अपनी दादी के हाथों ही पलाबढ़ा था.  नौकर टिक्कू के साथ उस की खूब पटती थी, जो उसे कभी कंधे पर बिठा कर तो कभी उस को 3 पहियों वाली साइकिल पर बिठा कर सैर कराता. अकसर शाम को जब माया लौटती तो सौरभ घर में ही न होता और माया बेचैनी से उस का इंतजार करती. किंतु जब टिक्कू के कंधे पर चढ़ा सौरभ घर लौटता तो नीचे कूद कर सीधे दादी की गोद में जा बैठता और तब माया का पारा चढ़ जाता. दादी के कहने पर सौरभ माया के पास जाता तो जरूर किंतु कुछ इस तरह मानो अपनी मां पर एहसान कर रहा हो. ऐसे में माया और भी चिढ़ जाती, मन ही मन इसे अपनी सास की एक चाल समझती.

लगभग 7 वर्ष पूर्व जब माया इस घर में बहू बन कर आई थी तो जगमगाते सपनों से उस का आंचल भरा था. पति के हृदय पर उस का एकछत्र साम्राज्य होगा, हर स्त्री की तरह उस का भी यही सपना था. किंतु उस के पति निशांत के हृदय के किसी कोने में उस की मां की मूर्ति भी विराजमान थी, जिसे लाख प्रयत्न करने पर भी माया वहां से निकाल कर फेंक न सकी. माया के हृदय की कुढ़न ने घर में छोटेमोटे झगड़ों को जन्म देना शुरू कर दिया, जिन्होंने बढ़तेबढ़ते लगभग गृहकलह का रूप ले लिया. इस सारे झगड़ेझंझटों के बीच में पिस रहा था निशांत, जो सीधासादा इंसान था. वह आपसी रिश्तों को शालीनता से निभाने में विश्वास रखता था. अकसर वह माया को समझाता कि ‘मां भावुक प्रकृति की हैं, केवल थोड़े मान, प्यार से ही संतुष्ट हो जाएंगी.’

किंतु माया ने सास को अपनी मां के रूप में नहीं, प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्वीकारा. इन 7 वर्षों ने निशांत की मां को एक हंसतेबोलते इंसान से एक मूर्ति में परिवर्तित कर दिया. अपने चारों ओर मौन का एक कवच सा लपेटे मां टिक्कू की मदद से सारे घर की साजसंभाल करतीं. उन के हृदय के किसी कोने में आशा का एक नन्हा दीप अभी भी जल रहा था कि शायद कभी माया के नारी हृदय में छिपी बेटी की ममता जाग उठे और वह उन के गले लग जाए.

किंतु माया की बेरुखी मां के हृदय पर नित्य कोई न कोई नया प्रहार कर जाती  और वे आंतरिक पीड़ा से तिलमिला कर अपने कमरे में चली जातीं. भरी आंखें छलकें और बेटा उन्हें देख ले, इस से पहले ही वे उन्हें पोंछ डालतीं और एक गंभीर मुखौटा चेहरे पर चढ़ा लेतीं. समय इसी तरह बीत रहा था कि एक दिन निशांत को स्थानांतरण का आदेश मिला. शाम को मां के पास बैठ उन के दोनों हाथ अपने हाथों में थाम उस ने खिले चेहरे से मां को बताया, ‘‘मां, मेरी तरक्की हुई है और तबादला भी हो गया है.’’

मां चौंक उठीं, ‘‘बदली भी हो गई है?’’

‘‘हां,’’ निशांत उत्साह से भर कर बोला,  ‘‘मुंबई जाना होगा. दफ्तर की तरफ से मकान भी मिलेगा और गाड़ी भी. तुम खुश हो न, मां?’’

‘‘हां, बहुत खुश हूं,’’ निशांत के सिर पर मां ने हाथ फेरा. आंखें मानो वात्सल्य से छलक उठीं और निशांत संतुष्ट हो कर उठ गया. किंतु शाम को जब माया लौटी तो यह खबर सुन कर झुंझला उठी, ‘‘क्या जरूरत थी यह प्रस्ताव स्वीकार करने की? हमें यहां क्या परेशानी है…मेरी नौकरी अच्छीभली चल रही है, वह  छोड़नी पड़ेगी. तुम्हारी तनख्वाह जितनी बढ़ेगी, उस से कहीं ज्यादा नुकसान मेरी नौकरी छूटने का होगा. फिर मुंबई नया शहर है, आसानी से वहां नौकर नहीं मिलेगा. टिक्कू हमारे साथ जा नहीं सकेगा क्योंकि दिल्ली में उस के मांबाप हैं. मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं, कैसे उलटेसीधे फैसले कर के बैठ जाते हैं आप.’’

पर्स वहीं मेज पर पटक परेशान सी माया सोफे पर ही पसर गई. थोड़ी देर बाद टिक्कू चाय ले आया.

‘‘मां को चाय दी?’’ निशांत के पूछने पर टिक्कू बोला, ‘‘जी, साहब. मांजी अपनी चाय कमरे में ले गईं.’’

‘‘सुन टिक्कू,’’ माया बोल उठी, ‘‘साहब की बदली मुंबई हो गई है, तू चलेगा न हमारे साथ? सौरभ तेरे बिना नहीं रहेगा.’’

‘‘साहब मुंबई जा रहे हैं?’’ टिक्कू का चेहरा उतर गया, ‘‘फिर मैं क्या करूंगा? मेरा बाप मुझे इतनी दूर नहीं भेजेगा.’’

‘‘तेरी पगार बढ़ा देंगे,’’ माया त्योरी चढ़ा कर बोली, ‘‘फिर तो भेजेगा न तेरा बाप?’’

‘‘नहीं बीबीजी, पगार की बात नहीं, मेरी मां भी बीमार रहती है.’’

‘‘तो ऐसा कह, कि तू ही जाना नहीं चाहता,’’ माया गुस्से से भरी वहां से उठ गई.

फिर अगले कुछ दिन बड़ी व्यस्तता के बीते. निशांत को 1 महीने बाद ही मुंबई पहुंचना था. सो, यह तय हुआ कि माया 1 महीने का जरूरी नोटिस दे कर नौकरी से इस्तीफा दे दे और निशांत के साथ ही चली जाए, जिस से दोबारा आनेजाने का चक्कर न रहे. निशांत ने पत्नी को समझाया, ‘‘सौरभ अभी छोटा ही है, वहां किसी स्कूल में दाखिला मिल जाएगा. मांजी तो साथ होंगी ही, जैसे यहां सबकुछ संभालती हैं, वहां भी संभाल लेंगी. बाद में कोई नौकर भी ढूंढ़ लेंगे, जिस से कि मां पर ही सारे काम का बोझ न पड़े.’’

इन्हीं सारे फैसलों के साथ दिन गुजरते गए. घर में सामान की पैकिंग का काम शुरू हो गया. निशांत के औफिस की ओर से एक पैकिंग कंपनी को आदेश दिया गया था कि वे लोग सारा सामान पैक कर के ट्रक द्वारा मुंबई भेजेंगे. घर की जरूरतों का लगभग सारा सामान पैक हो चुका था. फर्नीचर, डबलबैड, रसोई का सामान, फ्रिज, टीवी आदि बड़ेबड़े लकड़ी के बक्सों में बंद हो कर ट्रक में लादा जा रहा था. अब बचा था तो केवल अपनी निजी जरूरत कासामान, जैसे पहनने के कपड़े आदि, जो उन्हें अपने साथ ही ले जाने थे. कुछ ऐसा सामान भी था जो अब उन के काम का नहीं था, जैसे मिट्टी के तेल का स्टोव, लकड़ी का तख्त, कुछ पुराने बरतन आदि. इन्हें वे टिक्कू के लिए छोड़े जा रहे थे. गृहस्थी में चाहेअनचाहे न जाने ऐसा कितना सामान इकट्ठा हो जाता है, जो इस्तेमाल न किए जाने पर भी फेंकने योग्य नहीं होता. ऐसा सारा सामान वे टिक्कू को दे रहे थे. आखिर 6 साल से वह उन की सेवा कर रहा था, उस का इतना हक तो बनता ही था.

माया की इच्छा थी कि मकान किराए पर चढ़ा दिया जाए. किंतु निशांत ने मना कर दिया, ‘‘दिल्ली में मकान किराए पर चढ़ा कर किराएदार से वापस लेना कितना कठिन होता है, मैं अच्छी तरह समझता हूं. इसीलिए अपने एक मित्र के भतीजे को एक कमरा अस्थायी तौर पर रहने के लिए दे रहा हूं, जिस से मकान की देखभाल होती रहे.’’ उस लड़के का नाम विपिन था, भला सा लड़का था. 2 महीने पहले ही पढ़ाई के लिए दिल्ली आया था. बेचारा रहने की जगह ढूंढ़ रहा था, साफसुथरा कमरा पा कर खुश हो गया. इन सब झंझटों से छुट्टी पा कर निशांत मां के कमरे में गया और बोला, ‘‘लाओ मां, तुम्हारा सामान मैं पैक करता हूं.’’ किंतु मां किसी मूर्ति की तरह गंभीर बैठी थीं, शांत स्वर में बोलीं, ‘‘मैं नहीं जाऊंगी, बेटा.’’

‘‘क्या?’’ निशांत मानो आसमान से गिरा, ‘‘क्या कहती हो मां? हम तुम्हें यहां अकेला छोड़ कर जाएंगे भला?’’

‘‘अकेली कहां हूं बेटा,’’ मां भरेगले से बोलीं, ‘‘टिक्कू है, विपिन है.’’

‘‘लेकिन, वे सब तो गैर हैं. अपने तो हम हैं, जिन्हें तुम्हारी देखभाल करनी है. हम तुम्हें कैसे अकेला छोड़ दें?’’

‘‘अपना क्या और पराया क्या?’’ मां की आवाज मानो हृदय की गहराइयों से फूट रही थी, ‘‘जो प्यार करे, वही अपना, जो न करे, वह पराया.’’

‘‘नितांत सादगी से कहे गए मां के इस वाक्य की मार से निशांत मानो तिलमिला उठा. वह बोझिल हृदय से बोला, ‘‘माया के दोषों की सजा मुझे दे रही हो, मां?’’

‘‘नहीं रे, ऐसा क्यों सोचता है? मैं तो तेरे सुख की राह तलाश रही हूं.’’

‘‘तुम्हारे बिना कैसा सुख, मां?’’ और निशांत कमरे से बाहर निकल गया. माया को जब यह पता चला तो अपने चिरपरिचित व्यंग्यपूर्ण अंदाज में बोली, ‘‘अब यह आप का कौन सा नया नाटक शुरू हो गया?’’

‘‘किस बात का नाटक?’’ मां का स्वर दृढ़ था, ‘‘सीधी सी बात है, मैं नहीं जाना चाहती.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’

‘‘क्या मेरी इच्छा का कोई मूल्य नहीं?’’

‘‘यह इच्छा की बात नहीं है, मुझे परेशान करने की आप की एक और चाल है. आप खूब समझती हैं कि टिक्कू साथ जा नहीं रहा, सौरभ आप के बिना रहता नहीं. उस नई जगह में मुझे अकेले सब संभालने में कितनी परेशानी होगी, इसीलिए आप मुझ से बदला ले रही हैं.’’

‘‘बदला तो मैं गैरों से भी नहीं लेती माया, फिर तुम तो मेरी अपनी हो, बेटी हो मेरी. जिस दिन तुम्हारी समझ में यह बात आ जाए, मुझे लेने आना. तब चलूंगी तुम्हारे साथ,’’ इतना कह कर मां कमरे से बाहर चली गईं. रात को निशांत के कमरे से माया की ऊंची आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी, ‘‘सारी दुनिया को दिखाना है कि हम उन को साथ नहीं ले जा रहे…हमारी बदनामी होगी, इस का भी खयाल नहीं.’’ माया का व्यवहार अब निशांत की सहनशक्ति की सीमाएं तोड़ रहा था. आखिर उस ने साफ बात कह ही डाली, ‘‘दरअसल, तुम्हें चिंता मां की नहीं, बल्कि इस बात की है कि वहां नौकर भी नहीं होगा और मां भी नहीं. फिर घर का सारा काम तुम कैसे संभालोगी. तुम्हारी सारी परेशानी इसी एक बात को ले कर है.’’

अंत में तय यह हुआ कि अगले दिन सुबह जब सौरभ सो कर उठे तो उसे समझाया जाए कि दादी को साथ चलने के लिए राजी करे. उन की उड़ान का समय शाम 5 बज कर 40 मिनट का था और मां के सामान की पैकिंग के लिए इतना समय काफी था. दूसरे दिन सुबह होते ही अपनी उनींदी आंखें मलतामलता सौरभ दादी की गोद में जा बैठा, ‘‘दादीमां, जल्दी से तैयार हो जाओ.’’

‘‘तैयार हो जाऊं, भला क्यों?’’ सौरभ के दोनों गाल चूमचूम कर मां निहाल हुई जा रही थीं.

‘‘मैं तुम्हें मुंबई ले जाऊंगा.’’ मां की समझ में सारी बात आ गई. धीरे से सौरभ को गोद से नीचे उतार कर बोलीं, ‘‘पहले जा कर मंजन करो और दूध पियो.’’ सौरभ उछलताकूदता कमरे से बाहर भाग गया. थोड़ीथोड़ी देर में निशांत व माया किसी न किसी बहाने से मां के कमरे में यह देखने के लिए आतेजाते रहे कि वे अपना सामान पैक कर रही हैं या नहीं. किंतु मां के कमरे में सबकुछ शांत था. वे तो रसोई में मिट्टी के तेल वाले स्टोव पर उन लोगों के लिए दोपहर का खाना बनाने में व्यस्त थीं. वे निशांत और सौरभ की पसंद की चीजें टिक्कू की मदद से तैयार कर रही थीं. जो थोड़ेबहुत पुराने बरतन उन लोगों ने छोड़े थे, उन्हीं से वे अपना काम चला रही थीं. मां को पता भी न चला कि कितनी देर से निशांत रसोई के दरवाजे पर खड़ा उन्हें देख रहा है. माया भी उसी के पीछे खड़ी थी. सहसा मां की दृष्टि उन पर पड़ी और एक पल को मानो उन का उदास चेहरा खिल उठा.

‘‘ऐसे क्यों खड़े हो तुम दोनों?’’ मां पूछ बैठीं.

‘‘क्या आप माया को माफ नहीं कर सकतीं? ’’ बुझे स्वर में निशांत ने पूछा.

‘‘आज तक और किया ही क्या है, बेटा?’’ मां बोलीं, ‘‘लेकिन बिना किसी प्रयत्न के अनायास मिला प्यार मूल्यहीन हो जाता है. इस तथ्य को समझो बेटा. तुम्हारे और सौरभ के बिना रहना मेरे लिए भी आसान नहीं है, लेकिन इस समय शायद इसी में हम सब की भलाई है. अकेले घर संभालने में माया को परेशानी तो होगी, लेकिन धीरेधीरे सीख जाएगी.’’ टिक्कू के हाथ में खाने की प्लेटें दे कर मां रसोई से बाहर आईं. हाथ धो कर उन्होंने अपने कमरे में बिछे लकड़ी के तख्त पर खाना लगा दिया. आलू, पूरी देखते ही सौरभ खुश हो गया. मीठे में मां ने सेवइयां बनाई थीं, जो निशांत और माया दोनों को पसंद थीं. सब लोग एकसाथ खाना खाने बैठे. मां के हाथ का खाना अब न जाने कब मिले, यह ध्यान आते ही मानो निशांत के गले में पूरी का कौर अटकने लगा. किसी तरह 2-4 कौर खा कर वह पानी का गिलास ले कर उठ गया.

टैक्सी में सामान रखा जा रहा था. मां निर्विकार भाव से मूर्ति बनी बैठी थीं. उन के पैरों के पास टिक्कू बैठा हुआ था. कभी वह अपने साहब को देखता और कभी मांजी को, मानो समझना चाह रहा हो कि जो कुछ भी हो रहा है, वह अच्छा है या बुरा. मां के पांव छूते समय निशांत के हृदय की पीड़ा उस के चेहरे पर साफ उभर आई. वह भरे गले से बोला, ‘‘मैं हर महीने आऊंगा मां, चाहे एक ही दिन के लिए आऊं.’’ मां ने उस के सिर पर हाथ फेरा, ‘‘तुम्हारा घर है बेटा, जब जी चाहे आओ, लेकिन मेरी चिंता मत करना.’’

‘‘क्या आप सचमुच ऐसा सोचती हैं कि यह संभव है?’’ कहतेकहते निशांत का स्वर भर्रा उठा.

मां के पैरों के पास बैठा टिक्कू उठ कर निशांत के सामने आ गया और दोनों हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘आप मांजी की चिंता न करें साहब, मैं हूं न, सब संभाल लूंगा. आप हर महीने खुद ही आ कर देख लेना.’’ एक भरपूर नजर टिक्कू पर डाल सहसा निशांत ने उसे अपने से चिपटा लिया. उस पल, उस घड़ी माया उस की दृष्टि में नगण्य हो उठी.

लेखिका- प्रमिला बहादुर

Hindi Kahaniyan : खूबसूरत – क्यों दुल्हन का चेहरा देखकर हैरान था असलम

Hindi Kahaniyan : असलम ने धड़कते दिल के साथ दुलहन का घूंघट उठाया. घूंघट के उठते ही उस के अरमानों पर पानी फिर गया था. असलम ने फौरन घूंघट गिरा दिया. अपनी दुलहन को देख कर असलम का दिमाग भन्ना गया था. वह उसे अपने ख्वाबों की शहजादी के बजाय किसी भुतहा फिल्म की हीरोइन लग रही थी. असलम ने अपने दांत पीस लिए और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

बड़ी भाभी बरामदे में टहलते हुए अपने रोते हुए मुन्ने को चुप कराने की कोशिश कर रही थीं. असलम उन के पास चला गया.

‘‘मेरे साथ आइए भाभी,’’ असलम भाभी का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘हुआ क्या है?’’ भाभी उस के तेवर देख कर हैरान थीं.

‘‘पहले अंदर चलिए,’’ असलम उन का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने कमरे में ले गया.

‘‘यह दुलहन पसंद की है आप ने मेरे लिए,’’ असलम ने दुलहन का घूंघट झटके से उठा कर भाभी से पूछा.

‘‘मुझे क्या पता था कि तुम सूरत को अहमियत दोगे, मैं ने तो सीरत परखी थी,’’ भाभी बोलीं.

‘‘आप से किस ने कह दिया कि सूरत वालों के पास सीरत नहीं होती?’’ असलम ने जलभुन कर भाभी से पूछा.

‘‘अब जैसी भी है, इसी के साथ गुजारा कर लो. इसी में सारे खानदान की भलाई है,’’ बड़ी भाभी नसीहत दे कर चलती बनीं.

‘‘उठो यहां से और दफा हो जाओ,’’ असलम ने गुस्से में मुमताज से कहा.

‘‘मैं कहां जाऊं?’’ मुमताज ने सहम कर पूछा. उस की आंखें भर आई थीं.

‘‘भाड़ में,’’ असलम ने झल्ला कर कहा.

मुमताज चुपचाप बैड से उतर कर सोफे पर जा कर बैठ गई. असलम ने बैड पर लेट कर चादर ओढ़ ली और सो गया. सुबह असलम की आंख देर से खुली. उस ने घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 9 बज रहे थे. मुमताज सोफे पर गठरी बनी सो रही थी.

असलम बाथरूम में घुस गया और फ्रैश हो कर कमरे से बाहर आ गया.

‘‘सुबहसुबह छैला बन कर कहां चल दिए देवरजी?’’ कमरे से बाहर निकलते ही छोटी भाभी ने टोक दिया.

‘‘दफ्तर जा रहा हूं,’’ असलम ने होंठ सिकोड़ कर कहा.

‘‘मगर, तुम ने तो 15 दिन की छुट्टी ली थी.’’

‘‘अब मुझे छुट्टी की जरूरत महसूस नहीं हो रही.’’

दफ्तर में भी सभी असलम को देख कर हैरान थे. मगर उस के गुस्सैल मिजाज को देखते हुए किसी ने उस से कुछ नहीं पूछा. शाम को असलम थकाहारा दफ्तर से घर आया तो मुमताज सजीधजी हाथ में पानी का गिलास पकड़े उस के सामने खड़ी थी.

‘‘मुझे प्यास नहीं है और तुम मेरे सामने मत आया करो,’’ असलम ने बेहद नफरत से कहा.

‘‘जी,’’ कह कर मुमताज चुपचाप सामने से हट गई.

‘‘और सुनो, तुम ने जो चेहरे पर रंगरोगन किया है, इसे फौरन धो दो. मैं पहले ही तुम से बहुत डरा हुआ हूं. मुझे और डराने की जरूरत नहीं है. हो सके तो अपना नाम भी बदल डालो. यह तुम पर सूट नहीं करता,’’ असलम ने मुमताज की बदसूरती पर ताना कसा.

मुमताज चुपचाप आंसू पीते हुए कमरे से बाहर निकल गई. इस के बाद मुमताज ने खुद को पूरी तरह से घर के कामों में मसरूफ कर लिया. वह यही कोशिश करती कि असलम और उस का सामना कम से कम हो.

दोनों भाभियों के मजे हो गए थे. उन्हें मुफ्त की नौकरानी मिल गई थी. एक दिन मुमताज किचन में बैठी सब्जी काट रही थी तभी असलम ने किचन में दाखिल हो कर कहा, ‘‘ऐ सुनो.’’

‘‘जी,’’ मुमताज उसे किचन में देख कर हैरान थी.

‘‘मैं दूसरी शादी कर रहा हूं. यह तलाकनामा है, इस पर साइन कर दो,’’ असलम ने हाथ में पकड़ा हुआ कागज उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘क्या…?’’ मुमताज ने हैरत से देखा और सब्जी काटने वाली छुरी से अपना हाथ काट लिया. उस के हाथ से खून बहने लगा.

‘‘जाहिल…,’’ असलम ने उसे घूर कर देखा, ‘‘शक्ल तो है ही नहीं, अक्ल भी नहीं है तुम में,’’ और उस ने मुमताज का हाथ पकड़ कर नल के नीचे कर दिया.

मुमताज आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी. असलम ने एक पल को उस की तरफ देखा. आंखों में उतर आए आंसुओं को रोकने के लिए जल्दीजल्दी पलकें झपकाती हुई वह बड़ी मासूम नजर आ रही थी.

असलम उसे गौर से देखने लगा. पहली बार वह उसे अच्छी लगी थी. वह उस का हाथ छोड़ कर अपने कमरे में चला गया. बैड पर लेट कर वह देर तक उसी के बारे में सोचता रहा, ‘आखिर इस लड़की का कुसूर क्या है? सिर्फ इतना कि यह खूबसूरत नहीं है. लेकिन इस का दिल तो खूबसूरत है.’

पहली बार असलम को अपनी गलती का एहसास हुआ था. उस ने तलाकनामा फाड़ कर डस्टबिन में डाल दिया.

असलम वापस किचन में चला आया. मुमताज किचन की सफाई कर रही थी.

‘‘छोड़ो यह सब और आओ मेरे साथ,’’ असलम पहली बार मुमताज से बेहद प्यार से बोला.

‘‘जी, बस जरा सा काम है,’’ मुमताज उस के बदले मिजाज को देख कर हैरान थी.

‘‘कोई जरूरत नहीं है तुम्हें नौकरों की तरह सारा दिन काम करने की,’’ असलम किचन में दाखिल होती छोटी भाभी को देख कर बोला.

असलम मुमताज की बांह पकड़ कर अपने कमरे में ले आया, ‘‘बैठो यहां,’’  उसे बैड पर बैठा कर असलम बोला और खुद उस के कदमों में बैठ गया.

‘‘मुमताज, मैं तुम्हारा अपराधी हूं. मुझे तुम जो चाहे सजा दे सकती हो. मैं खूबसूरत चेहरे का तलबगार था. मगर अब मैं ने जान लिया है कि जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए खूबसूरत चेहरे की नहीं, बल्कि खूबसूरत दिल की जरूरत होती है. प्लीज, मुझे माफ कर दो.’’

‘‘आप मेरे शौहर हैं. माफी मांग कर आप मुझे शर्मिंदा न करें. सुबह का भूला अगर शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते,’’ मुमताज बोली.

‘‘थैंक्स मुमताज, तुम बहुत अच्छी हो,’’ असलम प्यार से बोला.

‘‘अच्छे तो आप हैं, जो मुझ जैसी बदसूरत लड़की को भी अपना रहे हैं,’’ कह कर मुमताज ने हाथों में अपना चेहरा छिपा लिया और रोने लगी.

‘‘पगली, आज रोने का नहीं हंसने का दिन है. आंसुओं को अब हमेशा के लिए गुडबाय कह दो. अब मैं तुम्हें हमेशा हंसतेमुसकराते देखना चाहता हूं.

‘‘और खबरदार, जो अब कभी खुद को बदसूरत कहा. मेरी नजरों में तुम दुनिया की सब से हसीन लड़की हो,’’ ऐसा कह कर असलम ने मुमताज को अपने सीने से लगा लिया.

मुमताज सोचने लगी, ‘अंधेरी रात कितनी भी लंबी क्यों न हो, मगर उस के बाद सुबह जरूर होती है.’

लेखिका- सायरा बानो मलिक

Short Stories in Hindi : जातपात

Short Stories in Hindi : निर्मला अपने पति राजन के साथ जिद कर के अपनी दादी के श्राद्ध में मायके आई थी. हालांकि राजन ने उसे बारबार यही कहा था कि बिन बुलाए वहां जाना ठीक नहीं है, फिर भी वह नहीं मानी और अपना हक समझते हुए वहां पहुंच ही गई.

निर्मला ने सोचा था कि दुख की इस घड़ी में वहां पहुंचने पर परिवार के सभी लोग गिलेशिकवे भूल कर उसे अपना लेंगे और दादी की मौत का दुख जताएंगे. पर उस का ऐसा सोचना गलत साबित हुआ.

सभी ने निर्मला को देख कर भी नजरअंदाज कर दिया, मानो वह कोई अजनबी हो.

इस के बावजूद भी निर्मला को उम्मीद थी कि परिवार वाले भले ही उसे नजरअंदाज करें, मां ऐसा नहीं कर सकतीं.

तभी निर्मला ने राजन की तरफ इस तरह देखा, मानो वह मां के पास जाने की उस से इजाजत ले रही हो. फिर वह अकेली ही मां की तरफ बढ़ गई.

उस समय निर्मला की मां औरतों के हुजूम में आगे बैठी हुई थीं. जब मां ने निर्मला को अपने करीब आते देखा, तो वे उठ कर तेजी से दूसरे कमरे में चली गईं.

मां के पीछेपीछे निर्मला भी वहां पहुंच गई और प्यार से बोली, ‘‘मां, यह सब कैसे हुआ? क्या दादी बहुत दिनों से बीमार थीं?’’

‘‘तुम से मतलब? आखिर तुम पूछने वाली होती कौन हो? चली जाओ यहां से. फिर कभी भूल कर भी इस घर की तरफ मत देखना, नहीं तो तुम मेरा मरा हुआ मुंह देखोगी,’’ गुस्से से चीखते हुए उस की मां बोलीं.

‘‘ऐसा न कहो, मां. नहीं तो मैं अनाथ हो जाऊंगी. आखिर तुम्हारा ही तो सहारा है मुझे. मां हो कर भी तुम मेरे मन की भावना को नहीं समझोगी, तो और कौन समझेगा?’’ रोते हुए निर्मला बोली.

‘‘नहीं समझना है मुझे. कुछ नहीं समझना,’’ चीखते हुए उस की मां ने कहा.

‘‘क्यों नहीं समझना है, मां? तुम्हें समझना ही पड़ेगा. अपनी बेटी के दुख को महसूस करना ही पड़ेगा. आखिर मेरा इतना ही कुसूर था न कि मैं ने राजन से सच्चा प्यार किया? उस से शादी की, जो हमारी बिरादरी का नहीं है?

‘‘लेकिन मां, तुम मुझे गौर से देखो कि मैं राजन के साथ कितनी खुश हूं. मुझे किसी बात का दुख नहीं है,’’ खुशी जताते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘मुझे कुछ नहीं देखना है और न ही सुनना है, बस. तुम अभी और इसी समय उस राजन को ले कर यहां से चली जाओ, ताकि तुम्हारी दादी का श्राद्ध शांति से पूरा हो सके,’’ मां बोलीं.

‘‘हम यहां से चले जाएंगे, मां, रहने के लिए नहीं आए हैं. केवल दादी के श्राद्ध में आए हैं. बस, उसे पूरा हो जाने दो. क्योंकि दादी से मेरा और मुझ से उन का कितना गहरा लगाव था, यह तुम अच्छी तरह से जानती हो. मेरे बिना तो वे कुछ भी नहीं खातीपीती थीं,’’ सुबकते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘इसीलिए तो तुम उस कलमुंहे राजन के साथ भाग गई और कोर्ट में जा कर शादी कर ली. तब तुम्हें दादी का इतना खयाल नहीं था, जबकि उन्होंने तुम्हारी याद में अपनी जान दे दी?’’

‘‘मुझे दादी का बहुत खयाल था, मां. परंतु मैं क्या करती, आप सभी तो मुझ से खफा थे. डर के चलते मैं नहीं आ सकी,’’ रोते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘बड़ी आई डर वाली. जब इतना ही डर था, तो घर से कदम बाहर निकालते समय हजार बार सोचती? फिर भी कुछ नहीं सोचा.

‘‘अरे, क्या अपनी बिरादरी में लड़कों की कमी हो गई थी, जो उस नाशपीटे राजन के साथ भाग गई?’’ तीखी आवाज में उस की मां ने कहा.

मां के सवालों का जवाब देने के बजाय निर्मला ने कहा, ‘‘मां, मुझे जी भर कर कोस लो, लेकिन उन्हें कुछ न कहो, क्योंकि अब वे मेरे पति हैं.’’

‘‘तुम तो ऐसे कह रही हो, जैसे दुनिया में केवल एक तुम ही पति वाली हो, बाकी सब दिखावे वाली हैं,’’ खिल्ली उड़ाते हुए उस की मां बोलीं.

‘‘मां, मेरी अच्छी मां, तुम तो मुझे ऐसा न कहो. हर मांबाप का सपना होता है कि मेरी बेटी अच्छे घर में ब्याहे, सुखशांति से रहे. उन्हीं में से मैं एक हूं.

‘‘तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि मैं ने अपने जीवनसाथी का खुद ही चुनाव कर तुम लोगों की परेशानी को दूर किया है. इस के बावजूद भी सभी की तरह तुम भी मुझे नजरअंदाज कर रही हो?’’ दुखी हो कर निर्मला ने कहा.

‘‘हां, तुम इसी काबिल हो, इसीलिए नहीं मिलेगा अब तुम्हें वह लाड़प्यार और अपनापन, जो कभी यहां मिला करता था…’’

निर्मला की मां की बातें अभी पूरी भी नहीं हो पाई थीं कि पिता, भाई, बहन व भाभी सभी वहां आ गए और गुस्से से निर्मला को घूरने लगे.

तभी उस के पिता दयाशंकर ने गुस्से में कहा, ‘‘कलंकिनी, मुझे तो तेरा नाम लेते हुए भी नफरत हो रही है. आखिर तुम ने मेरे घर में कदम रखने की हिम्मत कैसे की?’’

‘‘ऐसा न कहिए, पापा. आखिर इस घर से मेरा भी तो कोई रिश्ता है? उसी रिश्ते के वास्ते तो मैं यहां आई हूं. मुझे और मेरे पति को अपना लीजिए, पापा,’’ रोतेगिड़गिड़ाते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘खबरदार, जो मुझे पापा कहा. तेरा पापा तो उसी दिन मर गया था, जिस दिन तू इस घर को छोड़ कर गई थी. रहा सवाल अपनाने का, तो यह हक अब तुम खो चुकी हो.’’

‘‘नहीं, पापा नहीं. ऐसा न कहो और ठंडे दिमाग से सोचो कि प्यार करना क्या कोई जुर्म है?

‘‘आखिर मैं भी तो बालिग हूं. जब मैं अपना भलाबुरा सोचसमझ सकती हूं, तो फिर मुझे फैसला लेने का हक क्यों नहीं है? और फिर चाहे बातें भविष्य की हों या जीवनसाथी चुनने की, लड़कियों को यह हक जरूर मिलना चाहिए,’’ थोड़ा खुश हो कर निर्मला ने कहा.

‘‘तू मुझे हक के बारे में समझा रही है? अगर तू इतनी ही समझदार होती, तो अपनी ही जाति के लड़के से शादी करती, न कि किसी दूसरी जाति के लड़के से,’’ निर्मला के पिता ने कहा.

‘‘दूसरी जाति के लड़के क्या इनसान नहीं होते? क्या उन में समझदारी नहीं होती? इस की मिसाल तो राजन ही हैं, जिन्होंने मुझे जिंदगी की सारी खुशियां दे रखी हैं, कोई कमी महसूस नहीं होने दी है उन्होंने. मैं इस तरह के जातपांत के भेदभाव को नहीं मानती, जो एक इनसान को दूसरे इनसान से अलग करता हो, आपस में दूरियां बढ़ाता हो…

‘‘मैं केवल इनसानियत की जात को जानती व मानती हूं,’’ निर्मला बोलती चली गई.

‘‘बस करो अपनी यह बकवास और उस राजन के साथ यहां से चलती बनो,’’ इस बार चीखते हुए निर्मला का भाई विशाल बोला.

‘‘भैया, मुझे जो चाहो कह लो, मैं सब बरदाश्त कर लूंगी. लेकिन उन के बारे में कुछ भी नहीं सुन सकती. क्योंकि एक पत्नी अपने सामने पति की बेइज्जती कभी बरदाश्त नहीं कर सकती.’’

‘‘अच्छा, तब तो मुझे तुम्हारे पति की बेइज्जती करनी ही होगी, वह भी तुम्हारे सामने,’’ नजरें तिरछी करते हुए विशाल बोला.

‘‘क्या…? यह तुम कह रहे हो? जबकि तुम भी किसी के पति हो और तुम्हारी पत्नी तुम्हारे सामने खड़ी है. महाभारत मचा दूंगी मैं यहां. तुम क्या समझते हो अपनेआप को कि वे तुम से कमजोर हैं?

‘‘वे जूडोकराटे में ब्लैकबैल्ट हैं और साथ ही पुलिस में भी हैं. उन से टकराना तुम्हें महंगा पड़ेगा, भैया.

‘‘हां, मैं यदि चाहूं, तो तुम्हारी पत्नी के सामने तुम्हारी बेइज्जती जरूर करवा सकती हूं, ताकि तुम बेइज्जती के दर्द को महसूस कर सको.

‘‘लेकिन, मैं इतनी बेवकूफ भी नहीं हूं कि तुम्हारी तरह कुछ करने से पहले कुछ सोचसमझ न सकूं. औरत हूं, इसलिए औरत का दर्द समझती हूं. लिहाजा, ऐसा कुछ नहीं करना चाहूंगी, जिस से कि भाभी के मन में दुख हो.’’

निर्मला की बातें सुन कर उस की भाभी सुबक पड़ी और उस ने आगे बढ़ कर निर्मला को गले लगा लिया.

‘‘माधुरी, यह तुम क्या कर रही हो? दूर हटो उस से. इस से हमारा कोई रिश्ता नहीं है,’’ चीखते हुए विशाल बोला.

‘‘रिश्ता है क्यों नहीं? खून का रिश्ता है हमारा, इसलिए अपनी बहन को अपना लीजिए. इस ने ठीक ही कहा है कि जातपांत कुछ नहीं होता. होती है तो केवल इनसानियत, और इनसानियत का रिश्ता,’’ निर्मला की तरफदारी लेते हुए उस की भाभी माधुरी ने कहा, मानो वह भी इनसानियत के रिश्ते को ही अहमियत दे रही हो.

लेकिन माधुरी की बातें सुन कर विशाल बौखला गया. वह गुस्से से बोला, ‘‘माधुरी, लगता है इस के साथसाथ तुम्हारा भी दिमाग खराब हो गया है, कहीं…’’

अभी विशाल अपनी बातें पूरी भी नहीं कर पाया था कि तभी वहां राजन आ गया और सूझबूझ का परिचय देते हुए गंभीरता से बोला, ‘‘निर्मला, अब चलो यहां से. बहुत हो चुकी तुम्हारी बेइज्जती. मैं अब और सहन नहीं कर सकता.

‘‘मैं ने सबकुछ सुन लिया है और जान लिया है कि ये लोग ऐसे पत्थरदिल इनसान हैं, जो जातपांत का ढोंग रच कर समाज को गंदा करते हैं.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कहते हैं. अब मुझे समझ में आया कि मैं ने यहां आ कर कितनी बड़ी भूल की है?

‘‘ले चलिए मुझे. अब एक पल भी मैं यहां रुकना नहीं चाहूंगी,’’ उठते हुए निर्मला बोली और अपने पति राजन का हाथ थाम कर घर से बाहर जाने लगी.

उस की छोटी बहन उर्मिला ने दौड़ कर निर्मला का हाथ थाम लिया और सिसकते हुए बोली, ‘‘दीदी, मत जाओ. मुझे छोड़ कर मत जाओ.’’

‘‘पगली, मैं कहां तुम्हें छोड़ कर जा रही हूं? हां, जातपांत और उन बुरे रिवाजों को छोड़ कर जा रही हूं, जिसे मां, पापा व भैया ने अपनी मुट्ठियों में जकड़ रखा है.

‘‘मैं यहां नहीं आऊंगी तो क्या हुआ, तुम तो अपनी दीदी के घर आ सकती हो?’’ निर्मला बोली.

‘‘जरूर आऊंगी दीदी,’’ उर्मिला ने खुश हो कर कहा.

‘‘मैं इंतजार करूंगी,’’प्यार से उस के सिर पर अपना हाथ फेरते हुए निर्मला ने कहा और अपने पति राजन के साथ घर से बाहर निकल गई.

लेखिका- कंचन कश्यप

Hindi Kahaniyan : मैं अहम हूं

Hindi Kahaniyan : शशि ने बबलू की ओर देखा. उस का चेहरा कितना भोला मालूम होता है. बहुत ही प्यारा बच्चा है. हर मांबाप को अपने बच्चे प्यारे ही लगते हैं. बबलू गोराचिट्टा बच्चा था, जिस को देख कर सभी का उसे प्यार करने को मन होता. फिर शशि तो उस की मां थी. सारे दिन उस की शरारतें देख कर खुश होती. बबलू को पा कर तो उसे ऐसा लगता कि बस, अब और कुछ नहीं चाहिए. बबलू से बड़ी 7-8 साल की बेटी नीलू भी कम प्यारी नहीं थी. दोनों बच्चों को जान से भी ज्यादा चाहने वाली शशि उन के प्रति लापरवाह कैसे हो गई?

आज तो हद हो गई. सुबह जब वह आटो पर बैठने लगी तो बबलू उस के पांवों से लिपट गया. प्यार से मनाने पर नहीं माना तो शशि ने उसे डांटा. देर तो हो ही रही थी, उस ने आव देखा न ताव, उस के गाल पर एक चांटा जड़ दिया. चांटा कुछ जोर से पड़ गया था, उंगलियों के निशान गाल पर उभर आए थे. उस के रोने की आवाज सुन कर उस के दादाजी बाहर आ गए और बबलू को गोद में ले कर मनाने लगे. सास ने जो आंखें तरेर कर शशि की ओर देखा तो वह सहम गई. आटो में बैठते हुए ससुरजी की आवाज सुनाई दी, ‘‘जब करते नहीं बनता तो क्यों करती है नौकरी. यहां क्या खाने के लाले पड़ रहे हैं?’’

स्कूल में उस दिन किसी काम में मन नहीं लगा. इच्छा तो हो रही थी छुट्टी ले कर घर जाए पर अभी नौकरी लगे दोढाई महीने ही हुए थे. प्रधान अध्यापिका वैसे भी कहती रहती थीं, ‘‘भई, नौकरी तो बच्चों वाली को करनी ही नहीं चाहिए. रहेंगी स्कूल में और ध्यान रहेगा पप्पू, लल्ली में,’’ यह कह कर वे एक तिरस्कारपूर्ण हंसी हंसतीं. वे खुद 45 वर्ष की आयु में भी कुंआरी थीं. स्कूल का समय समाप्त होते ही शशि आटो के लिए ऐसे दौड़ी कि सामने से आती हुई प्रधान अध्यापिका व अन्य 2 अध्यापिकाओं को अभिवादन करना तक भूल गई. आटो में आ कर बैठने के बाद उसे इस बात का खयाल आया. दोनों अध्यापिकाओं की प्रधान अध्यापिका के साथ बनती भी अच्छी थी, और वे उस से वरिष्ठ भी थीं. खैर, जो भी हुआ अब क्या हो सकता था.

आटो वाले से उतावलापन दिखाते हुए कहा, ‘‘जल्दी चलो.’’

कुछ दूर जा कर आटो वाले ने पूछा, ‘‘साहब क्या करते हैं?’’

‘‘बहुत बड़े वकील हैं,’’ शशि ने सगर्व कहा.

आटो वाले ने मुंह से कुछ नहीं कहा, सिर्फ एक हलकी सी मुसकान के साथ पीछे मुड़ कर उसे देख लिया. उस की इस मुसकान से उसे सुबह की घटना फिर याद आ गई. जैसेजैसे घर करीब आता गया, शशि का संकोच बढ़ता गया. सासससुर से कैसे आंख मिलाए. सुबह तो पति अजय घर पर नहीं थे, पर अब अजय को भी मालूम हो गया होगा. बच्चों को वे कितना चाहते हैं. जहां तक हो सके वे प्यार से ही उन्हें समझाते हैं. बच्चे भी अपने पिता से बहुत हिलेमिले थे. घर के आगे आटो रुका. बबलू रोज की तरह दौड़ कर नहीं आया. नीलू भी सिर्फ एक बार झांक कर भीतर चली गई. अंदर जा कर उस ने धीरे से बबलू को आवाज दी. वह दूर से ही बोला, ‘‘अम नहीं आते. आप मालती हैं. आप से अमाली कुट्टी हो गई.’’

शशि वैसे ही बिस्तर पर पड़ गई. रोतेरोते उस के सिर में दर्द होने लगा. वह चुपचाप वैसे ही आंख बंद किए पड़ी रही. किसी ने बत्ती जलाई. सास ही थीं. उस के करीब आ कर बोलीं, ‘‘चलो बहू, हाथमुंह धो कर कुछ खापी लो.’’ सास की हमदर्दी अच्छी भी लगी और साथ ही शर्म भी आई. रात का खानपीना खत्म हुआ तो सब बिस्तर पर चले गए थे. अजय खाना खा कर दूसरे कमरे में चला गया, जरूरी केस देखने. शशि को उन का बाहर जाना भी उस दिन राहत ही दे रहा था. बबलू करवट बदलते हुए नींद  में कुछ बड़बड़ाया. शशि ने उस को चादर ओढ़ाई, फिर नीलू की ओर देखा. आज नीलू भी उस से घर आने के बाद ज्यादा बोली नहीं. और दिनों तो स्कूल की छोटी से छोटी बात बताती, तरहतरह के प्रश्न पूछती रहती. साथ में खाना खाने की जिद करती. फिर सोते समय जब तक एकाध कहानी न सुन ले, उसे नींद न आती. पर आज शशि को लग रहा था, मानो बच्चे पराए, उस से दूर हो रहे थे. ढाई साल के बच्चे  में अपनापराया की क्या समझ हो सकती है. वह तो मां को ही सबकुछ समझता है. मां भी तो उस से बिछुड़ कर कहां रहना चाहती है.

वह दिन भी कितना बुरा था जब वह पहली बार इंदु से मिली थी, शशि सोचने लगी…

कैसी सजीधजी थी इंदु, बातबात पर उस का हंसना. शशि को उस दिन वह जीवन से परिपूर्ण, एकदम जीवंत लगी. अजय और मनोज साथ ही पढ़े थे. आजकल मनोज उसी शहर में ला कालेज में लैक्चरार से तरक्की पा कर प्रोफैसर बन गया था. उस दिन रास्ते में जो मुलाकात हुई तो मनोज ने अजय व शशि को अपने घर आने का निमंत्रण दिया. वहां जाने पर शशि भौचक्की सी रह गई. ड्राइंगरूम था या कोई म्यूजियम. महंगी क्रौकरी में नाश्ता आया. अच्छी नईनई डिशेज. शशि तो नाश्ते के दौरान कुछ अधिक न बोली, पर इंदु चहकती रही. शायद भौतिक सुख से परिपूर्ण होने पर आदमी वाचाल हो जाता है. इंदु किसी काम से अंदर चली गई. अजय और मनोज बीते दिनों की यादों में खोए हुए थे. शशि सोचने लगी, उस का पति भी वकालत में इतना तो कमा ही लेता है जिस से आराम से रहा जा सके. खानेपहनने को है, बच्चों को घीदूध की कमी नहीं. बचत भी ठीक है. सुखशांति से भरापूरा परिवार है. पर मनोज के यहां की रौनक देख कर उसे अपना रहनसहन बड़ा तुच्छ लगा.

इंदु की आवाज से शशि इतनी बुरी तरह चौंकी कि अजय और मनोज दोनों उस की ओर देखने लगे. मनोज ने कहा, ‘शायद भाभी को घर में छोड़े हुए बच्चों की याद आ रही है. भाभी, इतना मोह भी ठीक नहीं. अब देखिए, हमारी श्रीमतीजी को, लेदे के एक तो लाल है, सो उस को भी छात्रावास में भेज दिया. मुश्किल से 8-10 साल का है. कहती हैं, ‘वहां शुरू से रहेगा तो तहजीब सीख लेगा.’ भाभी, आप ही बताइए, क्या घर पर बच्चे शिष्टाचार नहीं सीखते हैं?’ मनोज शायद आगे भी कुछ कहता पर इंदु शशि का हाथ पकड़ कर यह कहते हुए अंदर ले गई, ‘अजी, इन की तो यह आदत है. कोई भी आए तो शुरू हो जाते हैं. भई, हम को तो ऐसी भावुकता पसंद नहीं. आदमी को व्यावहारिक होना चाहिए.’

उस के व्यावहारिक होने का थोड़ा अंदाजा तो बाहर से ही मिल रहा था. जब अंदर जा कर देखा तो एलईडी टैलीविजन, कंप्यूटर, चमचमाता महंगा फर्नीचर ओह, क्याक्या गिनाए. शशि की हैरानी को इंदुशायद भांप गई थी. बड़े गर्व से, गर्व के बजाय घमंड कहना ही उचित होगा, बोली, ‘यह सब मेरी मेहनत का फल है. यदि विकी को छात्रावास में न रखती तो इतने आराम से नौकरी थोड़े ही की जा सकती थी. उस को देखने के लिए आया, नौकर रखो, फिर उन नौकरों की निगरानी करो, अच्छा सिरदर्द ही समझो. अब मुझे कोई फिक्र नहीं. हर महीने 70 हजार रुपए कमा लेती हूं. काम भी अच्छा ही है. एक मल्टीनैशनल कंपनी में कंसल्टैंट के तौर पर काम करती हूं. जरा ढंग से संवर के रहना, लोगों से मिलना और मुसकान बिखेरते रहना. संवर के रहना किस औरत को अच्छा नहीं लगेगा. अरे, मैं तो बोले ही जा रही हूं. आप भी कहेंगी, अच्छी मिली. आइए, मैं आप को पूरा घर दिखाऊं.’

शयनकक्ष तो बिलकुल फिल्मी था. बढि़या सुंदर डबलबैड और उस पर बिछी चादर इतनी सुंदर कि हाय, शशि कल्पना में अपनेआप को उस पर अजय के साथ देखने लगी. सिर को झटक कर उस विचार को तुरंत निकाल देने की कोशिश की. बाहर के कमरे में आने पर अजय बोला, ‘चलो शशि, क्या यहीं रहने का इरादा है?’

इंदु ने अजय से कहा, ‘आप इन्हें कभीकभी यहां ले आया करिए. इन का मन भी बहला करेगा. आप को समय न हो तो मनोज को फोन कर दिया कीजिए, हम खुद ही इन्हें ले आएंगे.’ शशि की इच्छा तो हुई कि कहे, जब आप लेने आएंगी तो वहीं, मेरे घर पर बातचीत हो सकती है. पर उस का मन इतना भारी हो रहा था कि लग रहा था कि अगर एक बोल भी मुंह से निकला तो वह रो देगी. वह समझ रही थी कि इंदु सिर्फ अपने धन का दिखावा भर दिखाना चाहती थी. घर लौटते हुए आधे रास्ते तक दोनों चुप रहे. फिर अजय एकदम बोला, ‘मनोज की पत्नी भी खूब है.’ वह आगे कुछ बोले, इस से पहले शशि ने टोक दिया, ‘हां, मुझ जैसी बेवकूफ थोड़ी है.’

उस की आवाज रोंआसी थी. अजय ने आश्चर्य से उस की ओर देखा और प्यार से बोला, ‘शशि, कैसी बेवकूफों सी बातें करती हो?’ फिर उस ने एकदम दांतों तले जीभ दबा ली. यह वह अनजाने में क्या बोल गया, मानो शशि की कही हुई बात का समर्थन कर दिया हो. एकदम बात बदलते हुए बोला, ‘बहुत देर हो गई, बच्चे शायद सो भी गए होंगे.’ पर शशि की आग्नेय दृष्टि देख कर फिर वह रास्ते भर चुप ही रहा.

घर पहुंचने पर शशि सिरदर्द का बहाना कर के बिना कुछ खाएपिए लेट गई. पर रातभर उसे इंदु के बैडरूम के ही सपने आते रहे. इंदु की अलमारी में सजी साडि़योें की इंद्रधनुषी छटा रहरह कर आंखों के सामने नाच रही थी. ओह, कितनी साडि़यां, रोज एकएक पहने तो साल में उसे 3 या 4 बार से अधिक पहनने का मौका न आए. अब तो उन की दूसरी कार भी आने को है. वैसे तो कई लोगों के अच्छे व बड़े घर, कार सब देख चुकी है. खुद उस के भाईसाहब के पास कार है पर वे बहुत बड़े इंजीनियर हैं. अपने पति की बराबरी में तो जो भी हैं, सब का रहनसहन करीबकरीब एकसा ही है. शशि ने यह नहीं सोचा था कि उस की बेचैनी एक दिन उसे नौकरी करने पर मजबूर कर देगी. आवेदन देने के पहले कई दिन तक ऊहापेह में पड़ी रही. ढाई साल का बबलू, उसे कौन संभालेगा? सासूमां बूढ़ी हैं. अजय से जब राय मांगी तो उन्होंने भी यही कहा, ‘भई, परिस्थितिवश नौकरी करना बुरी बात नहीं, पर तुम्हें नौकरी की क्या जरूरत पड़ गई? कम से कम बबलू ही कुछ बड़ा हो कर स्कूल जाने लगे तो ठीक है. फिर आगे तुम्हारी इच्छा.’

सासससुर ने भी कहा, ‘बहू, बबलू को तो हम संभाल लेंगे. हमारा और है ही कौन. पर तुम्हारा शरीर भी तो दोनों भार को सहन कर सके तब न. जो भी करो, सोचसमझ कर करो.’’ पर उस के सिर पर तो जैसे जनून सवार था. 6-7 दिन तक तो स्कूल में बबलू की खूब याद आती थी, फिर ठीक लगने लगा. पर रोज स्कूल से लौट कर जब घर में कदम रखती तो घर की कुछ अव्यवस्थता मन को खटकती. एक दिन जब वह स्कूल से लौटी तो घर में कोई मेहमान आए हुए थे. कामवाली घर पर नहीं थी तो नीलू उन को पानी दे रही थी. नीलू को देखते ही उस का गुस्सा सातवें आसमान पर आ पहुंचा. बाल बिखरे हुए, फ्रौक की तुरपन उधड़ी हुई, हाथ में पेंटिंग कलर लगे हुए थे, अजीब हाल बना रखा था. नीलू को बगल से पकड़ कर खींचते हुए वह अंदर ले गई. उस का तमतमाता चेहरा देख कर वहां का वातावरण एकदम बोझिल हो गया. नीलू सुबकती हुई एक कोने में खड़ी हो गई. उस समय शशि को अपनी गलती का खयाल नहीं आया, बल्कि उसे सब पर गुस्सा आया कि सब उस से खार खाए बैठे हैं और जानबूझ कर उस का अपमान करना चाहते हैं. पर आज लगता है, वास्तव में उस ने अपनी नौकरी के आगे बाकी हर बात को गौण समझ लिया. पहले वह अजय के मोजे, रूमाल देख कर रख दिया करती थी, उस के कपड़ों पर प्रैस, बटन आदि का भी ध्यान रखती थी. दोपहर के समय बच्चों के पुराने कपड़ों को बड़ा करना, मरम्मत करना आदि काफी कुछ काम कर लेती थी. अब तो अजय अपने हाथ से बटन लगाना आदि छोटीमोटी मरम्मत कर लेता है, पर मुंह से कुछ नहीं बोलता. बबलू भी इन 2 ही महीनों में कुछ दुबला हो गया है. दादी दूध दे सकती हैं, खिला सकती हैं, प्यार भी बहुत करती हैं, पर मां की ममता व आरंभिक शिक्षा और कोई थोड़े ही दे सकता है.

फिर उस के कमाने से क्या फायदा हुआ, सिवा इस के कि घर का खर्चा पहले से बढ़ गया. सब कपड़े धोबी को जाने लगे और कपड़ों का नुकसान भी ज्यादा होने लगा. अब महरी को भी काम बढ़ जाने से ज्यादा पैसे देने पड़ते थे. आटो का खर्च अलग, इस प्रकार मासिक खर्च बढ़ ही गया. इस के अलावा घर और बच्चे अव्यवस्थित हो गए सो अलग. सास बेचारी दिनभर काम में पिसती रहती. और जब  नहीं कर पाती तो बड़बड़ाती रहती. इन्हीं 2 महीनों में घर की शांति भंग हो गई. जिस पर उस ने जो कल्पना की थी कि अपनी तनख्वाह से घर की सजावट के लिए कुछ खरीदेगी, उसे कार्यरूप से परिणत करना कितना मुश्किल है, यह उसे तुरंत पता लग गया. उसे कुछ कहने में ही झिझक हो रही थी. कहीं अजय यह न समझ ले कि उस ने सिर्फ इन दिखावे की चीजों के लिए ही नौकरी की है. अजय के मन में हीनभावना भी आ सकती है. पर यह सब उसे पहले क्यों नहीं सूझा? खैर, अब तो सुध आई. ‘बाज आई ऐसी नौकरी से,’ उस ने मन ही मन सोचा, ‘बच्चे जरा बड़े हो जाएं तो देखा जाएगा.’

अगले दिन उस ने अजय के चपरासी के हाथों एक महीने का नोटिस देते हुए अपना त्यागपत्र तथा एक दिन के आकस्मिक अवकाश की अरजी भेज दी. अजय ने यही समझा कि शायद तबीयत खराब होने से 1-2 दिन की छुट्टी ले रखी है. बादल उमड़घुमड़ रहे थे और बारिश की हलकीहलकी बूंदें भी पड़नी शुरू हो चुकी थीं. बहुत दिनों बाद उस रात को दोनों चहलकदमी को निकले. अजय ने पूछा, ‘‘क्यों, अचानक तुम्हारी तबीयत को क्या हो गया, तुम ने कितने दिन की छुट्टी ले ली है?’’

शशि बोली, ‘‘हमेशा के लिए.’’ अजय परेशान सा उस की ओर देखने लगा, ‘‘सच, शशि, सच, अब तुम नहीं जाओगी स्कूल? चलो, अब कमीजपैंट में बटन नहीं टांकने पड़ेंगे. धोबी को डांटने का काम भी अब तुम संभाल लोगी. हां, अब रात को थके होने का बहाना भी नहीं कर सकतीं. पर यह तो बताओ, नौकरी छोड़ क्यों दी?’’

शशि उस के उतावलेपन को देख कर हंसते हुए मजा ले रही थी. उसे पति पर दया भी आई, बोली, ‘‘हां, मुझे नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए थी, जनाब दरजी तो बन ही जाते. अजीब आदमी हो, कम से कम एक बार तो मुंह से कहा होता कि शशि, तुम्हारे स्कूल जाने से मुझे कितनी परेशानी होती है.’’ डियर, हम तो शुरू से कहना चाहते थे, पर हमारी बात आप को तब जंचती थोडे़ ही. हम ने भी सोचा कर लेने दो थोड़े मन की, अपनेआप सब हाल सामने आएगा तो जान जाएगी. पर यह उम्मीद नहीं थी कि तुम इतनी जल्दी नौकरी छोड़ने को तैयार हो जाओगी. खैर, तुम ने अपनी परिस्थिति पहचान ली तो सब ठीक है,’’ फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘‘हां, शशि सद्गृहिणी बनना कितना कठिन है. तुम जब अपने इस दायित्व को अच्छे से निभाती हो तो मुझे कितना गर्व होता है, मालूम है? यह मत सोचो कि मैं तुम्हें घर से बांधने की कोशिश कर रहा हूं. मेरी ओर से पूरी छूट है, तुम पढ़ोलिखो, कुछ नया सीखो, पर अपने दायित्व को समझ कर.’’

फिर कुछ दूर दोनों मौन चलते रहे. अजय को लग रहा था कि शशि कुछ पूछना चाह रही है, पर हिचक रही है. 2-3 बार उस ने शशि की ओर देखा, मानोे हिम्मत बंधा रहा हो. ‘‘इंदु को देख कर आप को यह नहीं लगता कि वह कितनी लायक औरत है, उस ने अपना घर कैसे सजा लिया है. तब आप को मुझ में कमी नहीं लगती?’’ आखिर शशि ने पूछ ही लिया. अजय इतना खुल कर हंसे कि राह के इक्कादुक्का लोग भी मुड़ कर उन की ओर देखने लगे. आखिर हंसने का यह कैसा और कौन सा मौका है, शशि समझ न पाई. जब उन की हंसी रुकी तो बोले, ‘‘तुम को क्या लगता है कि मनोज बहुत खुश है. वह क्या कह रहा था मालूम है? ‘यार, जबान का स्वाद ही चला गया. मनपसंद चीजें खाए अरसा हो गया. श्रीमतीजी दफ्तर से आ कर परांठे सेंक देती हैं, बस. इतवार के दिन वे छुट्टी के मूड में रहती हैं. देर से उठना, आराम से नहानाधोना, फिर होटल में खाना, पिक्चर, बस. यार, तू बड़ा सुखी है. यहां तो हर महीने मांबाप को रुपए भेजने पर टोका जाता है. आखिर मांबाप के प्रति कुछ फर्ज भी तो है कि नहीं?

‘‘और सुनोगी? उस दिन हमारे बच्चों को देख कर बोला, ‘यार, तुम्हारे बच्चे कितने सलीके से रहते हैं. इच्छा तो होती है कि इंदु को बताऊं कि देखो, इन बच्चों को शिष्टचार की कोई सीख कौन्वैंट या पब्लिक स्कूल से नहीं, बल्कि मां के सिखाने से मिली है.’

‘‘मैं ने यह सुन कर कैसा अनुभव किया होगा, तुम अनुमान लगा सकती हो, यही तुम्हारी जीत थी, और तुम्हारी जीत यानी मेरी जीत. इंदु की आधी तनख्वाह तो अपनी साडि़यों, मेकअप, होटल और सैरसपाटे में खर्च हो जाती है. बेटे को छात्रावास में रखने का खर्च अलग. उस में अहं की भावना है, और ‘मेरे’ की भावना से ग्रस्त वह यही समझती है कि उस के नौकरी करने से ही घर में इतनी चीजें आई हैं. जहां यह ‘मेरे’ की भावना आई, घर की सुखशांति नष्ट समझो.’’ कुछ रुक कर अजय बोले, ‘‘चलो, शशि, अब घर चलें, काफी दूर निकल आए हैं,’’ फिर धीरे से बोले, ‘‘आज के बाद रात को थकान का बहाना न चलेगा.’’

शशि को गुदगुदी सी हुई और बहुत दिनों बाद उस के मन में बसी बेचैनी दूर जाती लगी.

लेखिका- मंगला रामचंद्रन

Short Stories in Hindi : गुड गर्ल : ससुराल में तान्या के साथ क्या हुआ

Short Stories in Hindi : कई पीढ़ियों के बाद माहेश्वरी खानदान में रवि और कंचन की सब से छोटी संतान के रूप में बेटी का जन्म हुआ था. वे दोनों फूले नहीं समा रहे थे, क्योंकि रवि और कंचन की बहुत इच्छा थी कि वे भी कन्यादान करें क्योंकि पिछले कई पीढ़ियों से उन का परिवार इस सुख से वंचित था.

आज 2 बेटों के जन्म के लगभग 7-8 सालों बाद फिर से उन के आंगन में किलकारियां गूंजी थीं और वह भी बिटिया की.

बिटिया का नाम तान्या रखा गया. तान्या यानी जो परिवार को जोड़ कर रखे. अव्वल तो कई पीढ़ियों के बाद घर में बेटी का आगमन हुआ था, दूसरे तान्या की बोली एवं व्यवहार में इतना मिठास एवं अपनापन घुला हुआ था कि वह घर के सभी सदस्यों को प्राणों से भी अधिक प्रिय थी.

सभी उसे हाथोहाथ उठाए रखते. यदि घर में कभी उस के दोनों बड़े भाई झूठमूठ ही सही जरा सी भी उसे आंख भी दिखा दें या सताएं तो फिर पूछो मत, उस के दादादादी और खासकर उस के प्यारे पापा रण क्षेत्र में तान्या के साथ तुरंत खड़े हो जाते.

दोनों भाई उस की चोटी खींच कर उसे प्यार से चिढ़ाते कि जब से तू आई है, हमें तो कोई पूछने वाला ही नहीं है.

जिस प्रकार एक नवजात पक्षी अपने घोंसले में निडरता से चहचहाते रहता है, उसे यह तनिक भी भय नहीं होता कि उस के कलरव को सुन कर कोई दुष्ट शिकारी पक्षी उन्हें अपना ग्रास बना लेगा. वह अपने मातापिता के सुरक्षित संसार में एक डाली से दूसरी डाली पर निश्चिंत हो कर उड़ता और फुदकता रहता है. तान्या भी इसी तरह अपने नन्हे पंख फैलाए पूरे घर में ही नहीं अड़ोसपड़ोस में भी तितली की तरह अपनी स्नेहिल मुसकान बिखेरती उड़ती रहती थी. सब को सम्मान देना और हरेक जरूरतमंद की मदद करना उस का स्वभाव था.

समय के पंखों पर सवार तान्या धीरेधीरे किशोरावस्था के शिखर पर पहुंच गई, लेकिन उस का स्वभाव अभी भी वैसा ही था बिलकुल  निश्छल, सहज और सरल. किसी अनजान से भी वह इतने प्यार से मिलती कि कुछ ही क्षणों में वह उन के दिलों में उतर जाती. भोलीभाली तान्या को किसी भी व्यक्ति में कोई बुराई नहीं दिखाई देती थी.

पूरे मोहल्ले में गुड गर्ल के नाम से मशहूर सब लोग उस की तारीफ करते नहीं थकते थे और अपनी बेटियों को भी उसी की तरह गुड गर्ल बनाना चाहते थे.

हालांकि तान्या की मां कंचनजी काफी प्रगतिशील महिला थीं, लेकिन थीं तो वे भी अन्य मांओं की तरह एक आम मां ही, जिन का हृदय अपने बच्चों के लिए सदा धड़कता रहता था. उन्हें पता था कि लडकियों के लिए घर की चारदीवारी के बाहर की दुनिया घर के सुरक्षित वातावरण की दुनिया से बिलकुल अलग होती है.

बड़ी हो रही तान्या के लिए वह अकसर चिंतित हो उठतीं कि उसे भी इस निर्मम समाज, जिस में स्त्री को दोयम दरजे की नागरिकता प्राप्त है, बेईमानी और भेदभाव के मूल्यों का सामना करना पड़ेगा.

एक दिन मौका निकाल कर बड़ी होती तान्या को बङे प्यार से समझाते हुए वे बोलीं,”बेटा, यह समाज लड़की को सिर्फ गुड गर्ल के रूप में जरूर देखना चाहता है लेकिन अकसर मौका मिलने पर उन्हें गुड गर्ल में सिर्फ केवल एक लङकी ही दिखाई देती है जो अनुचित को अनुचित जानते हुए भी उस का विरोध न करे और खुश रहने का मुखौटा ओढ़े रहे. यह समाज हम स्त्रियों से ऐसी ही अपेक्षा रखता है.”

तान्या बोलती,”ओह… इतने सारे अनरियलिस्टिक फीचर्स?”

तब कंचनजी फिर समझातीं, “हां, पर एक बात और, आज का समय पहले की तरह घर में बंद रहने का भी नहीं है. तुम्हें भी घर के बाहर अनेक जगह जाना पड़ेगा, लेकिन अपने आंखकान सदैव खुले रखना.”

तान्या आश्चर्य से बोली,”मगर क्यों?”

“बेटा, यह समाज लड़कियों को देवी की तरह पूजता तो है पर मौका पाने पर हाड़मांस की इन जीतीजागती देवियों की भावनाओं और इच्छाओं अथवा अनिच्छाओं को कुचलने से तनिक भी गुरेज नहीं करता.”

समाज के इस निर्मम चेहरे से अनजान तान्या ने कंचन जी से पूछा,”मां, लेकिन ऐसा क्यों? मैं भी तो भैया जैसी ही हूं. मैं भी एक इंसान हूं फिर मैं अलग कैसे हुई?”

“बेटा, पुरुष के विपरीत स्त्री को एक ही जीवनचक्र में कई जीवन जीना पड़ता है. पहले मांबाप के नीड़रूपी घर में पूर्णतया लाङप्यार और सुरक्षित जीवन और दूसरा घर के बाहर भेदती हुई हजारों नजरों वाले समाज के पावरफुल स्कैनर से गुजरने की चुभती हुई पीड़ा से रोज ही दोचार होते हुए सीता की तरह अग्नि परीक्षा देने को विवश.

“बेटा, एक बात और, विवाह के बाद अकसर यह स्कैनर एक नया स्वरूप धारण कर लेता है, जिस की फ्रीक्वैंसी कुछ अलग ही होती है.”

“लेकिन हम लड़कियां ही एकसाथ इतने जीवन क्यों जिएं?”

“बेटा, निश्चित तौर पर यह गलत है और हमें इस का पुरजोर विरोध जरूर करना चाहिए. लेकिन स्त्री के प्रति यह समाज कभी भी सहज या सामान्य नहीं रहा है. या तो हमें रहस्य अथवा अविश्वास से देखा जाता है या श्रद्धा से लेकिन प्रेम से कभी नहीं, क्योंकि हम स्त्रियों की जैंडर प्रौपर्टीज समाज को हमेशा से भयाक्रांत करती रही है. सभी को अपने लिए एक शीलवती, सच्चरित्र और समर्पित पत्नी चाहिए जो हर कीमत पर पतिपरायण बनी रहे लेकिन दूसरे की पत्नी में अधिकांश लोगों को एक इंसान नहीं बल्कि एक वस्तु ही दिखाई पड़ती है.”

“लेकिन मां, यह तो ठीक बात नहीं, ऐसा क्यों?”

“बेटा, हम स्त्रियों के मामले में पुरुष हमेशा से इस गुमान में जीता आया है कि यदि कोई स्त्री किसी पुरुष के साथ जरा सा भी हंसबोल ले तो कुछ न होते हुए भी वह इसे उस के प्रेम और शारीरिक समर्पण की सहमति मान लेता है.”

“तो क्या मैं किसी के साथ हंसबोल भी नहीं सकती?”

“नहीं बेटा, मेरे कहने का अभिप्राय यह बिलकुल भी नहीं है. मैं तो तुम्हें सिर्फ आगाह करना चाहती हूं कि समाज के ठेकेदारों ने हमारे चारो ओर नियमकानूनों का एक अजीब सा जाल फैला रखा है, जिस में काजल का गहरा लेप लगा हुआ है. लेकिन हमें भी अपनेआप को कभी कमजोर या कमतर नहीं आंकना चाहिए जबकि उन्हें यह एहसास करा देना चाहिए कि हम न केवल इस जाल को काट फेंकने का सामर्थ्य रखते हैं बल्कि हमारे इर्दगिर्द फैलाए गए इसी काजल को अपने व्यक्तित्व की खूबसूरती का माध्यम बना उसे आंखों में सजा लेना जानते हैं, ताकि हम सिर उठा कर खुले आकाश में उड़ सकें और अपनी खुली आंखों से अपने सपनों को पूरा होते देख सकें.”

“मां, यह हुई न झांसी की रानी लक्ष्मी बाई वाली बात.”

अपनी फूल सी बिटिया को सीने से लगाती हुईं कंचनजी बोलीं,”बेटा, मैं तुम्हें कतई डरा नहीं रही थी. बस समाज की सोच से तुम्हें परिचित करा रही थी ताकि तुम परिस्थितियों का मुकाबला कर सको. तुम वही करना जो तुम्हारा दिल कहे. तुम्हारे मम्मीपापा सदैव तुम्हारे साथ हैं और हमेशा रहेंगे.”

समय अपनी गति से पंख लगा कर उड़ता रहा और देखतेदेखते एक दिन छोटी सी तान्या विवाह योग्य हो गई. संयोग से रवि और कंचनजी को उस के लिए एक सुयोग्य वर ढूंढ़ने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.

एक पारिवारिक शादी समारोह में दिनकर का परिवार भी आया हुआ था. तान्या की निश्छल हंसी और मासूम व्यवहार पर मोहित हो कर दिनकर उसे वहीं अपना दिल दे बैठा. शादी की रस्मों के दौरान जब कभी तान्या और दिनकर की नजरें आपस में एक दूसरे से मिलतीं तो तान्या दिनकर को अपनी ओर एकटक देखता हुआ पाती. उस की आंखों में उसे एक अबोले पर पवित्र प्रस्ताव की झलक दिखाई पड़ रही थी. उस ने भी मन ही मन दिनकर को अपने दिल में जगह दे दिया.

दिनकर की मां को छोड़ कर और किसी को इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी. दरअसल, दिनकर की मां शांताजी अपने दूर के रिश्ते की एक लड़की को अपनी बहू बनाना चाहती थी जो कनाडा में रह रही थी और पैसे से काफी संपन्न परिवार की थी, दूसरे उन्हें तान्या का सब के साथ इतना खुलकर बातचीत करना पसंद नहीं था. लेकिन बेटे के प्यार के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा और कुछ ही समय के अंदर तान्या और दिनकर विवाह के बंधन से बंध गए.

सरल एवं बालसुलभ व्यवहार वाली तान्या ससुराल में भी सब के साथ खूब जी खोलकर बातें करती, हंसती और सब को हंसाती रहती.

पति दिनकर बहुत अच्छा इंसान था. उस ने तान्या को कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वह मायके में नहीं ससुराल में है. उस ने तान्या को अपने ढंग से अपनी जिंदगी जीने की पूरी आजादी दी.

दिनकर की मां शांताजी कभी तान्या को टोकतीं तो वह उन्हें बड़े प्यार से समझाता, “मां, तुम अपने बहू पर भरोसा रखो. वह इस घर का मानसम्मान कभी कम नहीं होने देगी. वह एक परफैक्ट गुड गर्ल ही नहीं एक परफैक्ट बहू भी है.”

लेकिन कुछ ही दिनों मे तान्या को यह एहसास हो गया कि उस के ससुराल में 2 लोगों का ही सिक्का चलता है, पहला उस की सास और दूसरा उस के ननदोई राजीव का.

दरअसल, उस के ननदोई राजीव काफी अमीर थे. जब तान्या के ससुर का बिजनैस खराब चल रहा था तो राजीव ने रूपएपैसे से उन की काफी मदद की थी. इसलिए राजीव का घर में दबदबा था और उस की सास तो अपने दामाद को जरूरत से ज्यादा सिरआंखों पर बैठाए रखती थी.

राजीव का ससुराल में अकसर आना होता रहता था. अपनी निश्छल प्रकृति के कारण तान्या राजीव के घर आने पर उस का यथोचित स्वागतसत्कार करती. जीजासलहज का रिश्ता होने के कारण उन से खूब बातचीत भी करती थी. लेकिन धीरेधीरे तान्या ने महसूस किया कि राजीव जरूरत से ज्यादा उस के नजदीक आने की कोशिश कर रहा है.

उस के सहज, निश्छल व्यवहार को वह कुछ और ही समझ रहा है. पहले तो उस ने संकेतों से उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन जब उस की बदतमीजियां मर्यादा की देहरी पार करने लगी तो उस ने एक दिन दिनकर को हिम्मत कर के सबकुछ बता दिया.

दिनकर यह सुन कर आपे से बाहर हो गया. वह राजीव को उसी समय फोन पर ही खरीखोटी सुनाने वाला था लेकिन तान्या ने उसे उस समय रोक दिया.

वह बोली,”दिनकर, यह उचित समय नहीं है. अभी हमारे पास अपनी बात को सही साबित करने का कोई प्रमाण भी नहीं है. मांजी इसे एक सिरे से नकार कर मुझे ही झूठा बना देंगी. तुम्हें मुझ पर विश्वास है, यही मेरे लिए बहुत है. मुझ पर भरोसा रखो, मैं सब ठीक कर दूंगी.”

दिनकर गुस्से में मुठ्ठियां भींच कर तकिए पर अपना गुस्सा निकालते हुए बोला, “मैं जीजाजी को छोङूंगा नहीं, उन्हें सबक सिखा कर रहूंगा.”

कुछ दिनों बाद राजीव फिर उस के घर आया और उस रात वहीं रूक गया. संयोग से दिन कर को उसी दिन बिजनैस के काम से शहर से बाहर जाना पड़ गया. राजीव के घर में मौजूद होने की वजह से उसे तान्या को छोड़ कर बाहर जाना कतई अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन बिजनैस की मजबूरियों की वजह से उसे जाना ही पड़ा. पर जातेजाते वह तान्या से बोला,”तुम अपना ध्यान रखना और कोई भी परेशानी वाली बात हो तो मुझे तुरंत बताना.”

“आप निश्चिंत रहिए. आप का प्यार और सपोर्ट मेरे लिए बहुत है.”

रात को डिनर करने के बाद सब लोग अपनेअपने कमरों में चले गए. तान्या भी अपने कमरे का दरवाजा बंद कर बिस्तर पर चली गई. दिनकर के बिना खाली बिस्तर उसे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था, खासकर रात में उस से अलग रहना उसे बहुत खलता था. जब दिनकर सोते समय उस के बालों में उंगलियां फिराता, तो उस की दिनभर की सारी थकान छूमंतर हो जाती. उस की यादों में खोईखोई कब आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला.

अचानक उसे दरवाजे पर खटखट की आवाज सुनाई पड़ी. पहले तो उसे लगा कि यह उस का वहम है पर जब खटखट की आवाज कई बार उस के कानों में पड़ी तो उसे थोड़ा डर लगने लगा कि इतनी रात को उस के कमरे का दरवाजा कौन खटखटा सकता है? कहीं राजीव तो नहीं. फिर यह सोच कर कि हो सकता है कि मांबाबूजी में से किसी की तबियत खराब हो गई होगी, उस ने दरवाजा खोल दिया तो देखा सामने राजीव खड़ा मुसकरा रहा है.

“अरे जीजाजी, आप इतनी रात को इस वक्त यहां? क्या बात है?”

“तान्या, मैं बहुत दिनों से तुम से एक बात कहना चाहता हूं.”

कुदरतन स्त्री सुलभ गुणों के कारण राजीव का हावभाव उस के दिल को कुछ गलत होने की चेतावनी दे रहा था. उस की बातें उसे इस आधी रात के अंधेरे में एक अज्ञात भय का बोध भी करा रही थी. लेकिन तभी उसे अपनी मां की दी हुई वह सीख याद आ गई कि हमें कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए बल्कि पूरी ताकत से कठिन से कठिन परिस्थितियों का पुरजोर मुकाबला करते हुए हौसले को कम नहीं होने देना चाहिए.”

उस ने हिम्मत कर के राजीव से पूछा, “बताइए क्या बात है?”

“तान्या, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. आई लव यू. आई कैन डू एनीथिंग फौर यू…”

“यह आप क्या अनापशनाप बके जा रहे हैं? अपने कमरे में जाइए.”

“तान्या, आज चाहे जो कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हे अपना बना कर ही रहूंगा,” इतना कहते हुए वह तान्या का हाथ पकड़ कर उसे बैडरूम में अंदर ले जाने लगा कि तान्या ने एक जोरदार थप्पड़ राजीव के मुंह पर मारा और चिल्ला पड़ी,”मिस्टर राजीव, आई एम ए गुड गर्ल बट नौट ए म्यूट ऐंड डंब गर्ल. शर्म नहीं आती, आप को ऐसी हरकत करते हुए?”

तान्या के इस चंडी रूप की कल्पना राजीव ने सपने में भी नहीं किया था. वह यह देख कर सहम उठा, पर स्थिति को संभालने की गरज से वह ढिठाई से बोला,”बी कूल तान्या. मैं तो बस मजाक कर रहा था.”

“जीजाजी, लड़कियां कोई मजाक की चीज नहीं होती हैं कि अपना टाइमपास करने के लिए उन से मन बहला लिया. आप के लिए बेशक यह एक मजाक होगा पर मेरे लिए यह इतनी छोटी बात नहीं है. मैं अभी मांपापा को बुलाती हूं.”

फिर अपनी पूरी ताकत लगा कर उस ने अपने सासससुर को आवाज लगाई, मांपापा…इधर आइए…”

रात में उस की पुकार पूरे घर में गूंज पङी. उस की चीख सुन कर उस के सासससुर फौरन वहां आ गए.

गहरी रात के समय अपने कमरे के दरवाजे पर डरीसहमी अपनी बहू तान्या और वहीं पास में नजरें चुराते अपने दामाद राजीव को देख कर वे दोनों भौंचक्के रह गए.

कुछ अनहोनी घटने की बात तो उन दोनों को समझ में आ रही थी लेकिन वास्तव में क्या हुआ यह अभी भी पहेली बनी हुई थी.

तभी राजीव बेशर्मी से बोला, “मां, तान्या ने मुझे अपने कमरे में बुलाया था.”

“नहीं मां, यह झूठ है. मैं तो अपने कमरे में सो रही थी कि अचानक कुंडी खड़कने पर दरवाजा खोला तो जीजाजी सामने खड़े थे और मुझे बैडरूम में जबरन अंदर ले जा रहे थे.”

“नहीं मां, यह झूठी है, इस ने ही…”

अभी वह अपना वाक्य भी पूरा नहीं कर पाया था कि अकसर खामोश रहने वाले तान्या के ससुर प्रवीणजी की आवाज गूंज उठी,”राजीव, अब खामोश हो जाओ, तुम ने क्या हम लोगों को मूर्ख समझ रखा है? माना हम तुम्हारे एहसानों के नीचे दबे हैं, लेकिन तुम्हारी नसनस से वाकिफ हैं. तुम ने आज जैसी हरकत किया है, उस के लिए मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा. तुम ने मेरी बहू पर बुरी नजर डाली और अब उलटा उसी पर लांछन लगा रहे हो…” इतना कह कर तान्या के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले,”बेटा, तुम्हारा बाप अभी जिंदा है. मैं तुम्हें  कुछ नहीं होने दूंगा. मैं अभी पुलिस को बुला कर इस को जेल भिजवाता हूं.”

अपने पिता समान ससुर का स्नेहिल स्पर्श पा कर तान्या उन से लिपट कर रो पड़ी जैसे उस के अपने बाबूजी उसे फिर से मिल गए हों. फिर थोड़ा संयत हो कर बोली, “पापा, आप का आर्शीवाद और विश्वास मेरे लिए सब कुछ है लेकिन पुलिस को मत बुलाइए. जीजाजी को सुधरने का एक मौका हमें देना चाहिए और फिर दीदी और बच्चों के बारे में सोचिए, इन के जेल जाने पर उन्हें कितना बुरा लगेगा.”

दिनकर के पिता प्रवीणजी कुछ देर सोचते रहे, फिर बोले,”बेटा, तुम्हारे मातापिता ने तुम्हारा नाम तान्या कुछ सोचसमझ कर ही रखा होगा. ये तुम जैसी बेटियां ही हैं, जो अपना मानसम्मान कायम रखते हुए भी परिवार को सदा जोड़े रखती हैं. जब तक तुम्हारी जैसी बहूबेटियां हमारे समाज में हैं, हमारी संस्कृति जीवित रहेगी.”

फिर अपनी पत्नी से बोले,”शांता, देखिए ऐसी होती हैं हमारे देश की गुड गर्ल. जो न अपना सम्मान खोए न घर की बात को देहरी से बाहर जाने दे.”

शांताजी के अंदर भी आज पहली बार तान्या के लिए कुछ गौरव महसूस हो रहा था. पति से मुखातिब होते हुए दामाद राजीव के विरूद्ध वे पहली बार बोलीं,”आप ठीक कहते हैं. घर की इज्जत बहूबेटियों से ही होती है. पता नहीं एक स्त्री होने के बावजूद मेरी आंखें यह सब क्यों नहीं देख पाईं…” फिर तान्या से बोलीं,”बेटा, मुझे माफ कर देना.”

“राजीव, तुम अब यहां से चले जाओ. मैं तुम्हारा पाईपाई चुका दूंगा पर अपने घर की इज्जत पर कभी हलकी सी भी आंच नहीं आने दूंगा. तान्या हमारी बहू ही नहीं, हमारी बेटी भी है और सब से बढ़ कर इस घर का सम्मान है,” प्रवीणजी बोल पङे.

सासससुर का स्नेहिल आर्शीवाद पा कर आज तान्या को उस का ससुराल उसे सचमुच अपना घर लग रहा था बिलकुल अपना जिस के द्वार पर एक सुहानी भोर मीठी दस्तक दे रही थी.

लेखक-चिरंजीव नाथ सिन्हा

Best Hindi Stories : बारिश – मां और नेहा दीदी के टेढ़े मामलों का क्या हल निकला

Best Hindi Stories :  कभी-कभी आदमी बहुत कुछ चाहता है, पर उसे वह नहीं मिलता जबकि वह जो नहीं चाहता, वह हो जाता है. नेहा दीदी द्वारा बारबार कही जाने वाली यह बात बरबस ही इस समय मृदु को याद आ गई. याद आने का कारण था, नेहा दीदी का मां से अकारण उलझ जाना. वैसे तो नेहा दीदी, उस से कहीं ज्यादा ही मां का सम्मान करती थीं, पर कभी जब मां गुस्से में कुछ कटु कह देतीं तो नेहा दीदी बरदाश्त भी न कर पातीं और न चाहने पर भी मां से उलझ ही जातीं. नेहा दीदी का यों उलझना मां को भी कब बरदाश्त था. आखिर वे इस घर की मुखिया थीं और उस से बड़ी बात, वे नेहा दीदी की सहेली या बहन नहीं, बल्कि मां थीं. इस नाते उन्हें अधिकार था कि जो चाहे, सो कहें, पलट कर जवाब नहीं मिलना चाहिए. पर नेहा दीदी जब पट से जवाब देतीं, तो मां का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचता.

उस दिन भी मां का पारा आसमान की बुलंदियों पर ही था. उन के एक हाथ में चाबियों का गुच्छा था. उन्होंने धमकाने के लिए उस गुच्छे को ही अस्त्र बना रखा था, ‘अब चुप हो जाओ, जरा भी आवाज निकाली तो यही गुच्छा मुंह में घुसेड़ दूंगी, समझी.’ मृदु को डर लगा कि कहीं सच में मां अपना कहा कर ही न दिखाएं. नेहा दीदी को भी शायद वैसा ही अंदेशा हुआ होगा. वह तुरंत चुप हो गईं, पर सुबकना जारी था. कोई और बात होती तो मां उस को चुप करा देतीं या पास जा कर खड़ी हो जातीं, पर मामला उस वक्त कुछ टेढ़ा सा था.

वैसे देखा जाए तो बात कुछ भी नहीं थी, पर एक छोटे से शक की वजह से बात तूल पकड़ गई थी. मां जब भी कभी नेहा दीदी को घर छोड़ कर मृदु के साथ खरीदारी पर चली जातीं तो दीदी का मुंह फूल जाता. वैसे भी समयअसमय वे मां पर आरोप लगाया करतीं, ‘मुझ से ज्यादा आप मृदु को प्यार करती हैं. वह जो कुछ भी चाहती है उसे देती हैं जो करना चाहती है, करती है, पर आप…’ ऐसे नाजुक वक्त पर मां अकसर हंस कर नेहा दीदी को मना लेतीं, ‘अरे, पगली है क्या  मेरे लिए तो तुम दोनों ही बराबर हो, इन 2 आंखों की तरह. मैं क्या तेरी इच्छाएं पूरी नहीं करती  मृदु तुझ से छोटी है, उसे कुछ ज्यादा मिलता है तो तुझे तो खुश होना चाहिए.’

अगर नेहा इस पर भी न मानती तो मां दोनों को ही बाजार ले जातीं. नेहा दीदी को मनपसंद कुछ खास दिलवातीं, चाटवाट खिलवातीं और फिर उन्हीं की पसंद की फिल्म का कोई कैसेट लेतीं व घर आ जातीं. मां की इस सूझ से घर का वातावरण फिर दमक उठता, पर यह चमकदमक ज्यादा दिन ठहर न पाती. नेहा दीदी उसे ले कर फिर कोई हंगामा खड़ा कर देतीं. बदले में मां थक कर उन्हें 2-4 चपत रसीद कर देतीं.मृदु को यह सब अच्छा नहीं लगता था. अपनी जिद्दी प्रवृत्ति और बचपने के कारण वह दीदी को नीचा दिखा कर खुश जरूर होती थी, पर वह उन्हें व मां को दुख नहीं देना चाहती थी.

पर उस दिन की बात, उस की समझ में न आई. यह बात जरूर थी कि मां उस दिन भी उसे अकेली ही बाजार ले कर गई थीं. सारे रास्ते वे उस की जरूरत की मनपसंद चीजें दिलाती और खिलाती रही थीं, पर हमेशा की तरह नेहा दीदी के लिए कुछ नहीं लिया था  मृदु को आश्चर्य भी हुआ था. उस ने मां से कहा तो उन्होंने झिड़क दिया, ‘तू क्यों मरी जा रही है. तुझे जो लेना है, ले, उसे लेना होगा तो खुद ले लेगी ’ ‘पर मां,’ मृदु ने कुछ कहना चाहा तो उन्होंने आंखें तरेर कर उस की ओर देखा. घबरा कर मृदु चुप हो गई. सारे रास्ते वह फिर कुछ न बोली. पर मां बुदबुदाती रहीं, ‘अब पर निकल आए हैं न, जो चाहे, सो करेगी. जब सबकुछ छिपाना ही है तो अपना साजोसामान भी अपनेआप खरीदे. अरे, मैं भी तो देखूं कि कितनी जवान ह गई है. हम तो अभी तक बच्ची समझ कर गलतियों को माफ करते रहे, पर अब… ’

मृदु को अब भी सारी बातें अनजानी सी लग रही थीं. यों रास्ते में अपने बच्चों से दुनियाजहान की बातें करते जाना मां की आदत थी पर इस तरह गुस्से में बुदबुदाना  उस ने उन्हें दोबारा छेड़ने की हिम्मत न की. यहां तक कि घर भी आ गई, तब भी खामोश रही. अपना लाया सामान भी हमेशा की तरह चहक कर न खोला. मां काफी देर तक सुस्ताने की मुद्रा में चुप बैठी रही थीं. फिर उस का सामान खोल कर ज्यों ही उस के आगे किया, नेहा दीदी का सब्र का बांध टूट ही गया, ‘मेरे लिए कुछ नहीं लाईं  सबकुछ इसी को दिला दिया ’

‘हां, दिला दिया, तेरा डर है क्या ’ रास्ते से ही न जाने क्यों गुस्से में भरी आई मां नेहा द्वारा उलाहना दिए जाने पर फूट पड़ीं, ‘क्या जरूरत है तुझे अब मुझ से सामान लेने की  अरे, अपने उस यार से ले न, जिस के साथ घूम रही थी.’ मां की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि अचानक जैसे बिजली सी कड़क उठी. मृदु ने नेहा दीदी की इतनी तेज आवाज कभी नहीं सुनी थी और मां को भी कभी इतने उग्र रूप में नहीं देखा था. मां की बात ने शायद नेहा दीदी को भीतर तक चोट पहुंचाई थी, तभी तो वे पूरी ताकत से चीख पड़ी थीं. ‘मां, जरा सोचसमझ कर बोलो.’ दीदी की इस अप्रत्याशित चीख से पहले तो मां भी हकबका गईं, फिर अचानक ‘चटाक’ की आवाज करता उन का भरपूर हाथ नेहा दीदी के गाल पर पड़ा. नेहा दीदी के साथसाथ मृदु भी सकपका गई थी. फिर माहौल में एक गमजदा सन्नाटा फैल गया. थोड़ी देर बाद वह सन्नाटा टूटा था, मां के अलमारी खोलने और नेहा दीदी की बुदबुदाहट से. मां अलमारी से साड़ी निकाल कर बदलने को मुड़ी ही थीं कि हिचकियों के बीच निकली नेहा दीदी की बुदबुदाहट ने उन के कदम फिर रोक लिए थे, ‘आप जितना चाहें मुझे मार लीजिए  पर आप की यह बेबुनियाद बात मैं बरदाश्त कभी नहीं करूंगी.’

‘नहीं करेगी तो क्या करेगी  मुझ से लड़ेगी  जबान लड़ाएगी  बोल, क्या करेगी ’

मां किसी कुशल योद्धा की तरह दीदी के सामने फिर जा खड़ी हुई थीं. मृदु कोे डर लगा कि इस बार अगर नेहा दीदी ने जवाब दिया तो मां जम कर उन की ठुकाई कर ही देंगी. फिर चाहे चोट भीतर लगे या बाहर, मां का गुस्सा अगर चढ़ गया तो उतरना मुश्किल है. पर उस समय ऐसा कुछ भी न हुआ. नेहा दीदी भी शायद डर के मारे बुदबुदाते हुए ही जवाब दे रही थीं. उधर, मां भी बस धमका कर रह गई थीं, वैसे भी नेहा दीदी जब होंठों में बुदबुदाती थीं तो उन की बात ही समझ में न आती थी. उस सारे गरम नजारे की गवाह वही तीनों थीं. पिताजी तो औफिस में थे. वैसे भी घर पर होते तो क्या कर लेते. अपने व दोनों बच्चों के बीच मां किसी तीसरे की दखलंदाजी पसंद नहीं करती थीं, फिर चाहे वे पिताजी ही क्यों न हों. वैसे भी उन दोनों की सारी जरूरतें, घर की देखभाल, मेहमानों की आवभगत से ले कर बीमारीहारी, सभी कुछ मां अकेली ही संभालती थीं. मृदु को आश्चर्य हुआ, शिकायत करने पर मां हमेशा मामला संभाल लेतीं या घूस के तौर पर दीदी को कुछ दे कर शांत कर देतीं. कभी बाजार जाते समय दीदी अगर मौजूद रहतीं तो उन्हें घर देखने की हिदायत दे जातीं, पर तब ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

नेहा दीदी को बाजार न ले जाने के बाद भी अकसर जब मां उस के साथ घर लौटतीं, थोड़ी देर बाहर वाले कमरे में सोफे पर बैठ कर सुस्ताती जरूर थीं. उस वक्त थोड़ा मुंह फुलाए रहने के बावजूद दीदी, मां को बिस्कुट और पानी ला कर जरूर देतीं. वे जानती थीं कि मां उच्च रक्तचाप की मरीज हैं, और बड़ी जल्दी थक जाती हैं. पर उस दिन तो मां ने बड़ी रुखाई से नेहा को मना कर दिया. आमतौर से मां, दीदी के इस व्यवहार से अपनी सारी थकान भूल जातीं और कभीकभी पछताती भी कि बेकार में नेहा को नहीं ले गईं. पर वह पछतावा बस थोड़ी ही देर का होता. घर को अकेला छोड़ने का भय मां को फिर बाध्य कर देता कि किसी न किसी को घर छोड़ कर जाएं. मृदु छोटी थी, इसी से बाजी अकसर वही मार लेती. फिर घर लौट कर नेहा दीदी को तरहतरह से मुंह बिगाड़ कर छेड़ती, ‘लेले, तुम्हें मां नहीं ले गईं. आज बाजार में खूब चाट खाई.’

उम्र में 4-5 साल बड़ी होने के बावजूद नेहा दीदी उस का मुंह चिढ़ाना बरदाश्त न कर पातीं. जबकि वे भी अच्छी तरह जानती थीं कि प्यार के समय मां दोनों को बराबर समझती हैं. मृदु और नेहा दोनों ही जानती थीं कि मां बहुत अच्छी हैं. उन का व्यवहार भी उन दोनों के साथ एक बहन जैसा ही होता और वह भी ऐसी बहन, जो एक अच्छी दोस्त भी हो. वे हमेशा कहतीं, ‘मां को हमेशा अपने बच्चों का दोस्त होना चाहिए, तभी तो बच्चे खुल कर अपने मन की बात कह सकते हैं.’ मृदु, नेहा और मां वीसीआर पर जब भी कोई फिल्म देखतीं तो एक दोस्त की तरह नजर आतीं. तीनों की पसंद का हीरो एक होता, हीरोइन एक होती, यहां तक कि कहानी की पसंद भी लगभग एकजैसी होती.लेकिन यह बात दूसरी थी कि जब कोई अश्लील सीन फिल्म में आता तो मां उसे रिमोट से आगे कर देतीं. यद्यपि भीतर से मृदु और नेहा दीदी का मन होता कि देखें, उस सीन में आखिर ऐसा क्या है.

एक बार नेहा दीदी ने मां को काफी खुश देख कर पूछ भी लिया था, ‘आप तो आधुनिका हैं और यह भी कहती हैं कि आप अपने बच्चों की अच्छी दोस्त हैं और दोस्त से कुछ छिपावदुराव नहीं होता. फिर आप ये सब दृश्य आगे क्यों कर देती हैं ’नेहा दीदी की बात सुन कर मां काफी देर असमंजस की स्थिति में बैठी रहीं. फिर बोलीं, ‘हां, मैं काफी उदार हूं. तुम दोनों की अच्छी दोस्त भी हूं पर यह मत भूलो कि तुम्हारी मां भी हूं. दोस्त बनने के समय भला ही चाहूंगी, पर मेरे भीतर की मां यह तय करेगी कि तुम्हारे लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा.’

‘पर इन दृश्यों में ऐसी क्या बुराई है, मां ’ नेहा दीदी की नकल मृदु ने भी की तो मां ने उस के गाल पर हलकी चपत लगाई पर संबोधित दीदी को किया, ‘देखो, वक्त से पहले कुछ बातें जानना ठीक नहीं होता. अभी तुम दोनों काफी छोटी हो, बड़ी हो जाओगी तो ये दृश्य भी आगे करने की जरूरत नहीं रहेगी.’ आगे नेहा दीदी ने कुछ नहीं पूछा था. जानती थीं कि मां को ज्यादा बहसबाजी पसंद नहीं. मजाक में बहस हो जाए, यह बात अलग थी पर किसी गंभीर मसले पर बहस हो तो बाप रे बाप, तुरंत उन के भीतर की ‘मां’ जाग जाती. फिर उन के उपदेश में कोई बाधा डालता तो उस को डांटफटकार सुननी पड़ती. मां के इस अजीब रूप की मृदु को ज्यादा समझ नहीं थी, पर नेहा दीदी अकसर हतप्रभ रहतीं. खूब जी खोल कर बातें करने वाली, बातबात पर खिलखिलाने वाली मां को यह अकसर क्या हो जाता है  पिताजी के अनुसार, उन दोनों के बिगड़ जाने का भय मां को सताता है, जबकि मां इस बात को साफ नकार जातीं, ‘इस तरह की बातें बच्चों के सामने मत किया करो. अभी इन की उम्र ही क्या है. मृदु अभी 12 की भी नहीं हुई और नेहा तो 16 ही पूरे कर रही है.’

‘तो क्या हुआ ’ पिताजी बीच में ही उन की बात काट देते, ‘इस उम्र में तो तुम्हारी शादी हो गई थी और तुम…’

पिताजी की बात पर मृदु और नेहा दीदी हंसने लगतीं और फिर मां के पीछे पड़ जातीं कि वे अपनी पुरानी बातें बताएं. मां भी सारी बहस भूल कर पुरानी बातों में खो जातीं और फिर धाराप्रवाह वह सब भी बता जातीं, जिसे न बताने की हिदायत थोड़ी ही देर पहले उन्होंने पति को ही दी होती थी. मां की कहानी पर वे दोनों भी खूब मजे लेतीं. मसलन, उन्होंने कैसे चुपके से साड़ी पहन कर अपनी सहेलियों के साथ एक बालिग फिल्म देखी, किसी लड़के को छेड़ा, कौन सा लड़का उन के पीछे पड़ा था, और भी बहुत सी मजेदार बातें…

मां के सुनाने का ढंग इतना मजेदार होता था कि वे दोनों तो एकदम ही भूल जाती थीं कि वे उन्हीं की बेटियां हैं. मां भी शायद उस वक्त भूल ही जातीं, पर थोड़ी देर बाद जब याद आता तो तुरंत चेहरे पर कठोरता का आवरण डाल देतीं, ‘अरे, मैं भी कैसी भुलक्कड़ हूं, तुम दोनों से तो बिलकुल सहेलियों की ही तरह बात करने लगी. चलो, भागो यहां से.’ वे शायद झेंप भी जातीं, ‘अरे, इस तरह तो तुम बिगड़ ही जाओगी ’ वे दोनों भी हंसती हुई भाग खड़ी होतीं और फिर समयसमय पर मां को छेड़तीं. एक बार मृदु ने अपनी मां के बारे में अपनी सहेलियों को बताते हुए कहा था, ‘मेरी मां तो बहुत अच्छी हैं, वे हम से दोस्तों जैसा व्यवहार करती हैं.’

‘अरे यार, फिर तो तू बहुत सुखी है. मेरी मां तो पूरी जेलर हैं,’ निशा ने निराश स्वर में कहा था. मृदु सोच रही थी कि वह जेलर वाला रूप मां के भीतर कैसे समा गया  वे नेहा दीदी से किसी जेलर की तरह ही तो जिरह कर रही थीं. हाथ में डंडे की जगह चाबियों का गुच्छा था, पर उस से कहीं खतरनाक अस्त्र, ‘‘बोल, कौन था वह मुस्टंडा  किस के साथ गई थी कल स्कूल से ’’ मां के अप्रत्याशित गुस्से की वजह अब शायद नेहा दीदी की समझ में आई थी. दरअसल, दीपा को एक समारोह के लिए सूट खरीदना था. उस ने नेहा दीदी से भी बाजार चलने को कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया. मां से पूछे बगैर नेहा दीदी कभी कहीं अकेली नहीं गई थीं, पर दीपा की जिद के कारण वे छुट्टी के बाद चलने को तैयार हो गईं, सोचा, उधर से ही घर चली जाएंगी और मां को सब बता देंगी तो वे कुछ नहीं कहेंगी.

सूट खरीद कर दीपा अपने घर चली गई तो नेहा दीदी रिकशा का इंतजार करने लगीं. पर चिलचिलाती धूप में कोई रिकशा नजर नहीं आ रहा था. नेहा को सड़क के किनारे खड़े करीब आधा घंटा हो गया था. आखिर निराश हो कर वे पैदल ही आगे बढ़ीं कि तभी स्कूटर पर शक्ति आता दिखा. वह नेहा दीदी से एक क्लास आगे था और पढ़ाई में तेज होने के कारण अकसर उन की मदद कर दिया करता था. बातोंबातों में नेहा दीदी ने मृदु और मां को एक बार शक्ति के बारे में बताया भी था. तब मां ने कहा था, ‘लड़कों से एक सीमा के भीतर बोलना बुरा नहीं है, पर उस से आगे…’

परंतु मां उस बात को कैसे भूल गईं, जबकि नेहा दीदी बारबार उन की ही बात को दोहरा रही थीं, ‘‘आप ही ने तो कहा था…’’

‘‘हां, कहा था,’’ गुस्से में मां का चेहरा एकदम लाल हो रहा था, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि तू मेरी ही बात को बड़ा कर के मेरे ही मुंह पर दे मारे.’’ ‘‘पर मैं ने ऐसा तो नहीं किया है,’’ नेहा दीदी किसी तरह मां को अपनी बात समझाना चाह रही थीं, ‘‘धूप में कहीं रिकशा नहीं मिल रहा था, सो उस के स्कूटर पर बैठ गई. मैं ने तो कल आप को बताना भी चाहा था, पर…’’

‘‘और उस की कमर में हाथ क्यों डाल रखा था ’’ मां दीदी की बात काट कर इतनी जोर से चीखीं कि मृदु की धड़कनें भी तेज हो गईं. मां की तेज आवाज से पलभर के लिए शायद नेहा दीदी भी सकपका गईं, पर जल्दी ही संभल भी गईं, ‘‘मैं गिरने लगी थी, इसीलिए उसे पकड़ लिया था. भूल हो गई, आइंदा ऐसा नहीं होगा.’’ दीदी ने कातर निगाहों से मां की ओर देखा पर वे तो उस वक्त बिलकुल पत्थर बन गई थीं. वही तो अकसर कहती थीं, ‘कभीकभी मुझे न जाने क्या हो जाता है. मेरे आधुनिक रूप पर अनजाने ही एक पारंपरिक मां ज्यादा हावी हो जाती है. शायद, अपने बच्चों का भविष्य बिगड़ने के भय से.’ मां अपने उस रूप के हाथों जैसे अवश हो गई थीं. तभी तो नेहा दीदी की दी गई सफाई भी उन्हें आश्वस्त नहीं कर पा रही थी. नेहा दीदी के बारबार माफी मांगने, रोने के बावजूद उन पर आरोप लगाए जा रही थीं.

‘‘तो ठीक है,’’ नेहा दीदी भी जैसे आखिर थक ही गईं, ‘‘आप जो चाहें, समझ लीजिए. मैं यही समझूंगी कि मैं ने कोई गलती नहीं की. हां, सच में, कुछ गलत नहीं किया मैं ने. मैं ने वही किया जो आप ने अपनी जवानी में किया.’’ मृदु एकदम सन्नाटे में आ गई. जैसे बरसों से दबी कोई चिनगारी सहसा भड़क कर बाहर निकले और सीधे सूखी घास पर जा गिरे, उसे कुछ ऐसा ही लगा. मां पथराई सी चुपचाप पलंग के एक कोने में बैठी बेमकसद एक दिशा में ताक रही थीं. मृदु ने मां के कंधों पर सांत्वना भरा हाथ रखना चाहा, पर उन्होंने आहिस्ता से उस का हाथ झटक दिया. दुविधाग्रस्त मृदु बिना कुछ कहे खिड़की के पास जा कर खड़ी हो गई. बाहर का आकाश अपना रंग बदल चुका था. धुंधलाई नजरों को देख कर कोई भी समझ सकता था, एक धूल भरी आंधी सबकुछ अपने भीतर छिपा लेने की फिराक में है. उस ने जल्दी से आगे बढ़ कर खिड़की बंद कर दी और शीशे से ही बाहर का मंजर देखने लगी. जल्दी ही तेज, धूलभरी आंधी ने सारा माहौल अपनी गिरफ्त में ले लिया. उस पार स्पष्ट देख पाने में असमर्थ मृदु को सबकुछ साफ करने के लिए बड़ी शिद्दत से बारिश की जरूरत महसूस हो रही थी.

Famous Hindi Stories : प्यार के फूल – धर्म के बीच जब पनपा प्यार

Famous Hindi Stories : हिंदुस्तान में कर्फ्यू की खबर टीवी पर देख कर मैं ने अपने मातापिता को फोन किया और उन की खैरियत पूछते हुए कहा, ‘‘पापा, आखिर हुआ क्या है, कर्फ्यू क्यों?’’

पापा बोले, ‘‘क्या होना है, वही हिंदूमुसलिम दंगे. हजारों लोग मारे गए, इसलिए घर से बाहर न निकलने की हिदायत दी गई है.’’

मैं मन ही मन सोचने लगी भारत व पाकिस्तान को अलग हुए कितने वर्ष हो गए लेकिन ये दंगे न जाने कब खत्म होंगे. क्यों धर्म की दीवार दोनों मुल्कों के बीच खड़ी है. और बस, यही सोचते हुए मैं 8 वर्ष पीछे चली गई. जब मैं पहली बार सिडनी आई थी और वहां लगे एक कर्फ्यू में फंसी थी. पापा अपने किसी सैमिनार के सिलसिले में सिडनी आने वाले थे और मेरे जिद करने पर उन्होंने 2 दिन की जगह 7 दिन का प्लान बनाया और मम्मी व मुझे भी साथ में सिडनी घुमाने ले कर आए. उस प्लान के मुताबिक, पापा के 2 दिन के सैमिनार से पहले हम 5 दिन पापा के साथ सिडनी घूमने वाले थे और बाकी के 2 दिन अकेले. मुझे अच्छी तरह याद है उस समय मैं कालेज में पढ़ रही थी और जब मैं ने सिडनी की जमीन पर कदम रखा तो हजारों सपने मेरी आंखों में समाए थे. मेरी मम्मी पूरी तरह से शाकाहारी हैं, यहां तक कि वे उन रैस्टोरैंट्स में भी नहीं जातीं जहां मांसाहारी खाना बनता है. जबकि वहां ज्यादातर रैस्टोरैंट्स मांसाहारी भोजन सर्व करते हैं.

विदेश में यह एक बड़ी समस्या है. इसलिए पापा ने एअर बीएनबी के मारफत वहां रहने के लिए न्यू टाउन में एक फ्लैट की व्यवस्था की थी. सिडनी में बहुत से मकानमालिक अपने घर का कुछ हिस्सा इसी तरह किराए पर दे देते हैं जिस में सुसज्जित रसोई, बाथरूम और कमरे होते हैं. ताकि लोग वहां अपने घर की तरह रह सकें. एअरपोर्ट से घर जाते समय रास्ते को देख मैं समझ गई थी कि सिडनी एक साफसुथरा और डैवलप्ड शहर है. एक दिन हम ने जेटलेग के बाद आराम करने में गुजारा और अगले दिन ही निकल पड़े डार्लिंग हार्बर के लिए, जो कि सिडनी का मुख्य आकर्षण केंद्र है. समुद्र के किनारेकिनारे और पास में वहां देखने लायक कई जगहें हैं. जनवरी का महीना था और उन दिनों वहां बड़े दिनों की छुट्टियां थीं. सो, डार्लिंग हार्बर पर घूमने वालों का हुजूम जमा था. फिर भी व्यवस्था बहुत अच्छी थी. हम ने वहां ‘सी लाइफ’ के टिकट लिए और अंदर गए. यह एक अंडरवाटर किंग्डम है, जिस में विभिन्न प्रकार के समुद्री जीवों का एक्वेरियम है. छोटीबड़ी विभिन्न प्रजातियों की मछलियां जैसे औक्टोपस, शार्क, वाइट रीफ, पोलर बेयर, सी लायन और पैंगुइन और न जाने क्याक्या हैं वहां. सभी को बड़ेबड़े हालनुमा टैंकों में कांच की दीवारों में बंद कर के रखा गया है. देखने वालों को आभास होता है जैसे समुद्र के अंदर बनी किसी सुरंग में भ्रमण कर रहे हों. खास बात यह कि दुलर्भ प्रजाति मैमल डगोंग भी वहां मौजूद थी जिसे ‘सी पिग’ के नाम से भी जाना जाता है.

पूरा दिन उसी में बीत गया और शाम को हम बाहर खुली हवा का लुत्फ उठाने के लिए पैदल ही रवाना हो गए. वहीं फ्लाईओवर के ऊपर पूरे दिन सैलानियों को सिडनी में घुमाती मोनोरेल आतीजाती रहती हैं जो देखने में बड़ी ही आकर्षक लगती हैं. शायद कोई विरला ही हो जो उस ट्रेन में बैठ कर सफर करने की ख्वाहिश न रखे. खैर, पहला दिन बड़ा शानदार बीता और हम शाम ढलते ही घर आ गए. बड़े दिनों का असली मतलब तो मुझे वहां जा कर ही समझ आया. वहां सुबह 5 बजे हो जाती और सांझ रात को 9 बजे ढलती. शाम 6 बजे पूरा बाजार बंद हो जाता. दूसरे दिन हम ने फिर डार्लिंग हार्बर के लिए कैब पकड़ ली. वहां पर ‘मैडम तुसाद’, जोकि एक ‘वैक्स म्यूजियम’ है, देखा. उस में विश्व के नामी लोगों के मोम के पुतले हैं जोकि हुबहू जीवित इंसानों जैसे प्रतीत होते हैं. उन में हमारे महानायक अमिताभ बच्चन, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भी पुतले हैं. वहां माइकल जैक्सन के साथ हाथ में सिल्वर रंग का दस्ताना पहन उसी की मुद्रा में मैं ने भी फोटो खिंचवाया. ‘कोई मिल गया’ फिल्म का ‘जादू’, जोकि एक साइकिल की टोकरी में बैठा था, बच्चों की भीड़ वहां जमा थी. खैर, पूरा दिन हम ने वेट वर्ल्ड कैप्टेन कुक का जहाज और समुद्री पनडुब्बी का म्यूजियम देखने में बिता दिया. मैं मन ही मन सोच रही थी कहां मिलती हैं ये सब जगहें हिंदुस्तान में देखने को. और सिर्फ मैं नहीं, मम्मी भी बहुत रोमांचित थीं इन सब को देख कर. वहीं डार्लिंग हार्बर से ही दूर देखने पर सिडनी हार्बर ब्रिज और ओपेरा हाउस भी नजर आते हैं.

तीसरे दिन हम ने स्काई टावर व टोरंगा जू देखने का प्लान बनाया. स्काई टावर से तो पूरा सिडनी नजर आता है. यह सिडनी का सब से ऊंचा टावर है जो 360 डिगरी में गोल घूमता है और उस के अंदर एक रैस्टोरैंट भी है. कांच की दीवारों से सिडनी देखने का अपना ही मजा है. उस के ऊपर स्काई वाक भी होता है यानी कि घूमते टावर के ऊपर चलना. वहां चलना मेरे बस की बात नहीं थी. सो, हम ने टोरंगा जू की तरफ रुख किया. यहां विश्व के बड़ेबड़े जीवजंतुओं के अलावा अनोखे पक्षी देखने को मिले और बर्ड शो तो अपनेआप में अनूठा था. मुझे अच्छी तरह याद है, वहां मुझे सनबर्न हो गया था. आस्ट्रेलिया के ऊपर ओजोन परत सब से पतली है. मैं वहां रोज सनस्क्रीन लगाती. लेकिन उसी दिन बादल छाए देख, न लगाया. और कहते हैं न कि सिर मुंडाते ही ओले पड़ना. बस, वही हुआ मेरे साथ. हौल्टर नैक ड्रैस पहनी थी मैं ने, तो मेरे कंधे बुरी तरह से झुलस गए थे. एक शाम हम ने बोंडाई बीच के लिए रखी थी. वहां जाने के लिए कैब ली और जैसे ही बीच नजदीक आया, आसपास के बाजार में बीच संबंधी सामान जैसे सर्फिंग बोर्ड, स्विमिंग कौस्ट्यूम, वाटर ट्यूब और कपड़े बिक रहे थे. बीच पर पहुंचते ही नीले समुद्र पर आतीजाती लहरों को देख कर मैं बहुत रोमांचित हो गई और वहां की साफसुथरी सुनहरी रेत, मन करता था उस में लोटपोट हो जाऊं. लहरों पर सर्फिंग करते लोग तो फिल्मों में ही देखे थे, यहां हकीकत में देखे.

विदेशों में थोड़ा खुलापन ज्यादा है. सो, रंगबिरंगी चटख बिकनी पहनी लड़कियां बीच पर अपने साथियों के कमर में हाथ डाले घूम रही थीं और मुझे पापा के साथ वह सब देख झिझक हो रही थी. अगले 2 दिन पापा का सैमिनार था, सो उन्होंने कहा, ‘अब 2 दिन मैं अपने काम में बिजी और तुम से फ्री, तुम दोनों मांबेटी आसपास का बाजार घूम लेना.’ सो, पापा के जाते ही मम्मी और मैं निकल पड़े आसपास की सैर को. न्यू टाउन की मार्केट बहुत अच्छी थी. स्टोर्स के शीशे से डिस्प्ले में नजर आते इवनिंग गाउन मन को बहुत लुभा रहे थे. 2 घंटे में बाजार देखा, सबकुछ डौलर में बिकता है वहां. सो, भारत से बहुत महंगा था. छोटीमोटी शौपिंग की और फिर मैं ने मम्मी से कहा, ‘चलिए न मम्मी, ओपेरा हाउस को नजदीक से देख कर आते हैं और टाउन साइड की मार्केट भी देखेंगे.’

मम्मी परदेस में अकेले जाने के नाम से ही डर गई थीं. पर मैं ने कहा, ‘मेरे पास सिडनी का नक्शा है, आप चिंता न कीजिए.’ मेरे ज्यादा जिद करने पर मम्मी मान गईं और मैं ने बोटैनिकल गार्डन के लिए टैक्सी ले ली. यह समुद्र के किनारे अपनेआप में एक बड़ा गार्डन है जिस में वर्षों पुराने कई तरह के पेड़ हैं और बस, उसी के अंदरअंदर चलते हुए ओपेरा हाउस आ जाता है. तकरीबन 20 मिनट में वहां पहुंच हम ने गार्डन की सैर की और पहुंच गए ओपेरा हाउस जहां शहर के बड़ेबडे़ शो होते हैं. नीले समुद्र में कमल की पत्तियों की आकृति लिए सफेद रंग का यह औडिटोरियम कई हिंदी फिल्मों में दर्शाया गया है. वहां मैं ने कुछ फोटो खींचे और पैदल चलने लगी. मुझे अपने पर गर्व महसूस हो रहा था. मैं वहीं थी जहां ‘दिल चाहता है’ फिल्म में आमिर खान और प्रीति जिंटा पर एक गाना फिल्माया गया है ‘जाने क्यूं लोग प्यार करते हैं…’ बस, उस के बाद हम आ गए गार्डन के बाहर और पैदल ही गए जौर्ज स्ट्रीट और पिटर्स स्ट्रीट. ऊंचीऊंची बिल्डिंगों के बीच इस बाजार में दुनिया की हर चीज मौजूद थी.

हलकीहलकी बारिश होने लगी थी और उस के साथ अंधेरा भी. मम्मी ने कहा, ‘अब हमें घर चलना चाहिए’. मैं ने ‘हां’ कहते हुए एक कैब को रुकने का इशारा किया और न्यू टाउन चलने को कहा. टैक्सी ड्राइवर 23-24 वर्ष का हिंदीभाषी लड़का था. मम्मी ने पूछ लिया, ‘आप भी भारतीय हैं?’ वह कहने लगा, ‘नहीं, मैं पाकिस्तानी मुसलिम हूं?’ और बस, अभी कुछ दूरी तक पहुंचे थे कि देखा आगे पुलिस ने ट्रैफिक डाइवर्ट किया हुआ था, पूछने पर मालूम हुआ शहर में दंगा हो गया है. सो, पूरे शहर में कर्फ्यू लगा है. सभी को अपनेअपने घरों में पहुंचने के लिए कहा जा रहा था. यह बात सुन कर मेरे और मम्मी के माथे पर चिंता की रेखाएं उभर आई थीं. मम्मी ने टैक्सी ड्राइवर से पूछा, ‘कोई और रास्ता नहीं है क्या न्यू टाउन पहुंचने का?’ उस ने कहा, ‘नहीं, पर आप चिंता मत कीजिए. मैं आप को अपने घर ले चलता हूं. यहीं पास में ही है मेरा घर. जैसे ही कर्फ्यू खुलेगा, मैं आप को न्यू टाउन पहुंचादूंगा.’

मम्मी और मैं दोनों एकदूसरे के चेहरे को देख रहे थे और टैक्सी ड्राइवर ने हमारे चेहरों को पढ़ते हुए कहा, ‘चिंता न कीजिए, आप वहां बिलकुल सुरक्षित रहेंगी, मेरे अब्बाअम्मी भी हैं वहां.’ खैर, परदेस में हमारे पास और कोई चारा भी न था. 5 मिनट में ही हम उस के घर पहुंच गए. वहां उस ने हमें अपने अब्बाअम्मी से मिलवाया और उन्हें हमारी परेशानी के बारे में बताया. उस की अम्मी ने हमें चाय देते हुए कहा, ‘इसे अपना ही घर समझिए, कोई जरूरत हो तो जरूर बताइए. और आप किसी तरह की फिक्र न कीजिए. यहां आप बिलकुल सुरक्षित हैं.’ मैं ने सोचा मैं पापा को फोन कर बता दूं कि हम कहां हैं लेकिन फोनलाइन भी ठप हो चुकी थी. सो, बता न सकी. बातबात में मालूम हुआ वह ड्राइवर वहां अपनी मास्टर्स डिगरी कर रहा है. उस के अब्बा टैक्सी ड्राइवर हैं और आज किसी निजी कारण से वह टैक्सी ले कर गया था और यह हादसा हो गया. खैर, 2 दिन उस की अम्मी ने हमारी बहुत खातिरदारी की. खास बात यह कि मुसलिम होते हुए भी उन्होंने 2 दिनों में कुछ भी मांसाहारी खाना नहीं बनाया क्योंकि हम शाकाहारी थे. जब उन्हें मालूम हुआ कि मुझे सनबर्न हुआ है तो वे मुझे दिन में 4 बार ठंडा दूध देतीं और कहतीं, ‘कंधों पर लगा लो, थोड़ी राहत मिलेगी.’ मैं उस परिवार से बहुत प्रभावित हुई और स्वयं उस से भी जो मास्टर्स करते हुए भी टैक्सी चलाने में कोई झिझक नहीं करता. जैसे ही फोनलाइन खुली, मैं ने पापा को फोन कर कहा, ‘पापा हम सुरक्षित हैं.’ और कर्फ्यू हटते ही वह टैक्सी ड्राइवर हमें न्यू टाउन छोड़ने आया.

पापा ने उस से कहा, ‘बेटा, परदेस में तुम ने जो मदद की है उस का मैं शुक्रगुजार हूं. तुम्हारे कारण ही आज मेरा परिवार सुरक्षित है. न जाने कभी मैं तुम्हारा यह कर्ज उतार पाऊंगा भी या नहीं.’ वह बोला, ‘मैं इमरान हूं और यह तो इंसानियत का तकाजा है, इस में कर्ज की क्या बात?’ और इतना कह वह टैक्सी की तरफ बढ़ गया. मैं पीछे से उसे देखती रह गई और अनायास ही मेरा मन बस इमरान और उस की बातों में ही खोया रहा. मुझ से रहा न गया और मैं ने उसे फेसबुक पर ढूंढ़ कर फ्रैंड बना लिया. अब हम कभीकभी चैट करते. उस से बातें कर मुझे बड़ा सुकून मिलता. शायद, मेरे मन में उस के लिए प्यार के फूल खिलने लगे थे. खैर, 3 वर्ष इसी तरह बीत गए. मैं इमरान से चैट के दौरान अपनी हर अच्छी और बुरी बात साझा करती. मैं समझ गई थी कि वह एक नेक और खुले विचारों का लड़का है. वक्त का तकाजा देखिए, 3 साल बाद मैं मास्टर्स करने सिडनी गई और एअरपोर्ट पर मुझे लेने इमरान आ गया. उसे देख मैं उस के गले लग गई. मुझ से रहा न गया और मैं ने कह दिया, ‘आई लव यू, इमरान’ वह कहने लगा, ‘आई नो डार्लिंग, ऐंड आई लव यू टू.’ इमरान ने मुझे बांहों में कसा हुआ था और वह कसाव धीरेधीरे बढ़ता जा रहा था.

मैं तो सदा के लिए उसी घेरे में कैद हो जाना चाहती थी. सो, मैं ने पापा को फोन कर कहा, ‘पापा, मैं सुरक्षित पहुंच गई हूं और इमरान लेने आया है मुझे और एक खास बात यह कि आप मेरे लिए शादी के लिए लड़का मत ढूंढि़ए. मेरा रिश्ता तय हो गया है इमरान के साथ.’ मेरी पसंद भी पापा की पसंद थी, इसलिए उन्होंने भी कहा, ‘हां, मैं इमरान के मातापिता से बात करता हूं.’ और बस कुछ महीनों में हमारी सगाई कर दी गई और फिर शादी. एक बार तो रिश्तेदारों को बहुत बुरा लगा कि मैं एक हिंदू और मुसलिम से विवाह? लेकिन पापा ने उन्हें अपना फैसला सुना दिया था कि वे अपनी बेटी का भलाबुरा खूब समझते हैं. आज मुझे इमरान से विवाह किए पूरे 5 वर्ष बीत गए हैं, मैं हिंदू और वह मुसलिम लेकिन आज तक धर्म की दीवार की एक भी ईंट हम दोनों के बीच नहीं आई. हम दोनों तो जियो और जीने दो की डोर से बंधे अपना जीवन जी रहे हैं. सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते हैं, रिश्तेदारों के साथ. दोनों परिवार एकदूसरे की भावनाओं का खयाल रखते हुए एक हो गए हैं. मुझे कभी एहसास ही नहीं हुआ कि मैं एक मुसलिम परिवार में रह रही हूं. अपनी बेटी को भी हम ने धर्म के नाम पर नहीं बांटा.

मैं ने तो अपना प्यार पा लिया था. हमारे भारत के जब से 2 हिस्से क्या हुए, धर्म के नाम पर लोग मारनेकाटने को तैयार हैं. आएदिन दंगे होते हैं. कितने प्रेमी इस धर्म की बलि चढ़ा दिए जाते हैं. लोगों को अपने बच्चों से ज्यादा शायद धर्म ही प्यारा है या शायद एक खौफ भरा है मन में कि गैरधर्म से रिश्ता रखा तो अपने धर्म के लोग उन से किनारा कर लेंगे. धर्म के नाम पर दंगों में लड़कियों और महिलाओं के साथ बलात्कार होते हैं, उन्हें घरों से उठा लिया जाता है. मैं सोच रही थी, कैसा धर्मयुद्ध है ये, जो इंसान को इंसान से नफरत करना सिखाता है या फिर धर्म के ठेकेदार इस युद्ध का अंत होने ही नहीं देना चाहते और धर्म की आड़ में नफरत के बीज बोए जाते हैं, जिन में सिर्फ नश्तर ही उगते हैं. न जाने कब रुकेगी यह धर्म की खेती और बोए जाएंगे भाईचारे के बीज और फिर खिलेंगे प्यार के फूल.

Hindi Kahaniyan : अहसास – क्या था प्रिया का रहस्य

Hindi Kahaniyan : सुबहसुबह मैं लौन में व्यायाम कर रहा था. इस वक्त दिमाग में बस एक ही बात चल रही थी कि प्रिया को अपना कैसे बनाऊं. 7 साल की प्रिया जब से हमारे घर में आई है हम दोनों पतिपत्नी की यही मनोस्थिति है. हमारे दिलोदिमाग में बस प्रिया ही रहती है. साथ ही डर भी रहता है कि कोई उसे हम से छीन कर न ले जाए.

आज से 2 महीने पहले तक प्रिया हमारी जिंदगी में नहीं थी. कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के शुरू होने के करीब 1 सप्ताह बाद की बात है. उस दिन रात में अचानक हमारे दरवाजे पर तेज दस्तक हुई. वैसे लॉकडाउन की वजह से लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना बंद था. रात के 11बजे थे. सड़कें सुनसान थीं. मोहल्ला वीरान था. ऐसे में तेज घंटी की आवाज सुन कर मेरी पत्नी निभा थोड़ी सहम गई. मैं ने उठ कर दरवाजा खोला. सामने 2 पुलिस वाले खड़े थे. उन में से एक ने एक बच्ची का हाथ थामा हुआ था.

मासूम सी वह बच्ची बड़ीबड़ी आंखों से एकटक मुझे देख रही थी. मैं ने सवालिया नजरों से पुलिस वाले की तरफ देखा,”जी कहिए?”

“कुछ दिनों के लिए इस बच्ची को अपने घर में पनाह दे दीजिए.  इस के मांबाप को कोरोना हो गया है. उन की हालत गंभीर है. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है. इस लड़की का कोई रिश्तेदार इधर नहीं रहता. अकेली है बिचारी.”

“पर हम क्यों रखें? मतलब मेरे बारे में किस ने बताया आप को ?””

“दरअसल इस के घर में एक डायरी थी. जिस में आप का पता लिखा हुआ था. जब किसी और परिचित का पता नहीं चला तो हम इसे आप के पास ले कर आ गए. इस मासूम की सूरत देखिए. इस की सुरक्षा का ख्याल रखना जरूरी है. इस के मांबाप कोरोना पौजिटिव हैं मगर इस की रिपोर्ट नेगेटिव आई है. इसलिए डरने की कोई बात नहीं. प्लीज रख लीजिए इसे.”

मैं ने निभा की तरफ देखा तो उस ने स्वीकृति में सिर हिलाया.

मैं ने कहा,” ओके रख लेता हूं. मुझे अपना नंबर दे दीजिए.”

“जरूर. यह मेरा कार्ड है और इस में नंबर है मेरा. कभी जरूरत पड़े तो मुझे फोन कर लीजिएगा.” पुलिस वाले ने कार्ड के साथ बच्ची का हाथ मेरे हाथों में दिया और चला गया.

निभा ने बच्ची को अंदर लाते हुए प्यार से पूछा,” बेटा आप का नाम क्या है?”

“प्रिया”

अच्छा घर कहां है आप का ?”

बच्ची ने इस सवाल सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप एक कोने में खड़ी हो गई. निभा उस के लिए पानी ले आई और अपना एक पुराना टौप दे कर उसे नहाने को भेज दिया. फिर मेरी तरफ देख कर बोली,” हमारी कोई संतान नहीं. चलो कुछ दिन इस बच्ची के ही पेरेंट्स बन जाते हैं.”

मैं भी मुस्कुरा उठा. इस तरह प्रिया हमारी जिंदगी में शामिल हो गई. वह काफी शांत और गुमसुम सी रहती. हमारे सवालों का संक्षेप में जवाब दे कर अपनी दुनिया में खोई रहती. मगर एक खूबी थी उस में कि इतनी कम उम्र में भी काफी समझदार और काम में एक्टिव थी. अपना सारा काम बिना नखरे किए आराम से कर लेती. यही नहीं घर के कामों में निभा की मदद करने का भी पूरा प्रयास करती. वह स्टूल पर चढ़ कर गैस जला लेती और चाय बना देती. सब्जियां काट देती. काफी चीजें बनानी भी आती थीं उसे.

प्रिया को आए करीब चारपांच दिन बीत चुके थे. इस बीच हम जब भी प्रिया से उस के मांबाप के बारे में या गांव के बारे में पूछते तो वह खामोश रह जाती. ऐसा नहीं था कि उसे बोलना नहीं आता था या समझ की कमी थी. वह हर बात बखूबी समझती थी और निभा के आगे कभीकभी ऐसी बात भी बोल जाती जो उस की उम्र के देखे अधिक समझदारी वाली बात होती. उस ने अपनी नानी के गांव का नाम लिया मगर जब भी उस के मांबाप के बारे में पूछा जाता तो वह खामोश हो जाती.

एक दिन वह मेरे करीब आ कर बैठ गई और धीमे से बोली,” अंकल पुलिस वाले अंकल से मेरी मम्मी के बारे में पूछो न.”

“हां बेटा, अभी पूछता हूं.” मैं ने पुलिस वाले द्वारा दिया गया कार्ड निकाला और नंबर लगाने लगा. मगर कई दफा कोशिश करने के बावजूद नंबर नहीं लग सका. हर बार नौट रीचेबल आता रहा. फिर प्रिया ने अपनी फ्राक की जेब से निकाल कर एक कागज दिया जिस में एक नंबर लिखा था. मैं ने उस नंबर को भी ट्राई किया. मगर वह भी नौट रीचेबल आ रहा था.

मैं ने निभा की तरफ देखा. हम दोनों ही बहुत असमंजस की स्थिति में थे. अगले दिन फिर से प्रिया ने फोन करने को कहा. नंबर फिर से नौट रीचेबल आया. यह बात हमें बहुत अजीब सी लग रही थी. मैं ने सामने की पुलिस चौकी में जा कर पता करने का निश्चय किया.

मैं नजदीकी पुलिस चौकी पहुंच गया और थाना इंचार्ज से जा कर मिला. वह बिजी था. आधा घंटा इंतजार करने के बाद उस ने मुझे बुलाया. सारी कहानी सुनाई तो उस ने 2- 3 नंबर मिलाए, बात की. मगर कोई सही बात पता नहीं चल पाई. उस ने फिर आने को कह कर मुझे टरका दिया.

मैं ने घर जा कर प्रिया को समझाया,”देखो बेटा अभी आप के मम्मीपापा का पता नहीं चल रहा है. पर आप परेशान न हो. हम दोनों भी आप के मम्मीपापा की तरह ही हैं. हम आप का हमेशा ध्यान रखेंगे. हमें अपना मम्मीपापा समझो. ओके बेटा.”

प्रिया ने हां में सिर हिलाया और चली गई. इस के बाद उस ने कभी भी अपने मम्मीपापा के बारे में नहीं पूछा. अब वह हम दोनों से थोड़ाथोड़ा घुलनेमिलने लगी थी.

इधर मैं और निभा उसे पा कर काफी प्रसन्न थे. कुछ दिनों में ही वह हमें अपने घर की सदस्य लगने लगी. दरअसल हमें उस से प्यार हो गया था. उस की आदत सी हो गई थी. अब हम दिल से चाहने लगे थे कि उसे वापस लेने कोई न आए. उस के मांबाप भी नहीं.

एक दिन मैं सुबहसुबह एक्सरसाइज कर घर में घुसा तो प्रिया कहीं नजर नहीं आई. वरना वह रोज सुबह 5 बजे उठ जाती है और मेरे साथ एक्सरसाइज भी करती है. आज वह एक्सरसाइज के लिए भी नहीं आई थी.

मैं ने तीनों कमरों में देखा. वह कहीं नहीं थी. इस के बाद मैं ने किचन में झांका. वहां निभा नाश्ता बना रही थी. प्रिया वहां भी नहीं थी. मैं ने निभा से पूछा,”प्रिया को देखा है? कहीं दिख नहीं रही.”

“वह तो सुबह में आप के साथ ही होती है.”

“पर आज आई ही नहीं.” मैं घबड़ा गया था.

“देखो कहीं छत पर तो नहीं.” निभा ने कहा तो मैं दौड़ता हुआ छत पर पहुंचा.

प्रिया एक कोने में बैठी कागज पर चित्र उकेर रही थी. मैं दंग रह गया. उस ने बेहद खूबसूरत पेंटिंग बनाई थी. मैं ने उसे गोद में ले कर चूम लिया. आज उस की एक नई खूबी का पता चला था. मैं ने उसे अपने पास रखी पेंटिंग से जुड़ी चीजें जैसे कैनवस और कलर्स निकाल कर दिए तो वह हौले से मुस्कुरा उठी.

अब तो वह अक्सर ही पेंटिंग करने बैठ जाती. उस के चित्रों का विषय प्रकृति होती थी. साथ ही कई बार दर्द का चित्रांकन भी किया करती. उस की हर तस्वीर में एक अकेली लड़की भी जरूर होती.

एक दिन रात में 8 बजे के करीब फिर से घंटी बजी. हमारा दिल धड़क उठा. मुझे लगा कहीं पुलिस वाले तो नहीं आ गए प्रिया को लेने. निभा ने भी कस कर प्रिया का हाथ पकड़ लिया. हम दोनों ही अब प्रिया को वापस करने के पक्ष में नहीं थे. प्रिया जैसी बच्ची को पा कर हमें अपने जीवन का मकसद मिल गया था. मैं ने मन ही मन यह तय करते हुए दरवाजा खोला की पुलिस वालों को किसी भी तरह समझा-्बुझा कर वापस भेज दूंगा. दरवाजा खोला तो सामने पड़ोस के नीरज जी को देख कर मेरे दिमाग की सारी टेंशन काफूर हो गई. वह हमारे पास सिरका लेने आए थे. निभा ने एक छोटी शीशी में सिरका डाल कर उन्हें दे दिया और हम दोनों ने चैन की सांस ली.

वैसे जैसेजैसे हमारा प्यार प्रिया के लिए बढ़ रहा था हमारे दरवाजे पर होने वाली हर दस्तक हमें अंदर से हिला देती. हम सहम जाते. धड़कनें बढ़ जातीं. जब सायरन की आवाज आती तो भी हमारा दिल बैठ जाता. डर लगता की विदाई का समय तो नहीं आ गया है. पर शुक्र है कि इतने दिनों में प्रिया पर हक जताने कोई नहीं आया था.

कहीं न कहीं हम दिल ही दिल में यह तमन्ना भी करने लगे थे कि प्रिया के मांबाप न बचें ताकि प्रिया हमेशा के लिए हमारी हो जाए.

एक दिन निभा ने मुझ से कहा,” क्यों न हम प्रिया को प्रॉपर गोद ले लें. फिर हमारे मन का यह भय भी जाता रहेगा कि कोई उसे ले न जाए. हम प्रिया को एक बेहतर जिंदगी भी दे पाएंगे.”

निभा का यह सुझाव मुझे बेहद पसंद आया. अगले ही दिन मैं ने अपने एक वकील दोस्त अभिनव को फोन लगाया और उस से प्रिया के बारे में सब कुछ बताता हुआ बोला,” यार मैं प्रिया को गोद लेना चाहता हूं. तू बता, फॉर्मेलिटीज कैसे पूरी करें.”

मेरी बात सुन कर वह हंसता हुआ बोला,”यार यह सब इतना आसान नहीं. बहुत लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. बच्चा गोद लेने में दो-तीन साल तक लग जाते हैं.”

“पर यार प्रिया तो हमारे पास ही है. ”

“याद रखो वह तुम्हारे पास है पर तुम्हारी है नहीं. अभी तुम्हें यह भी नहीं पता कि उस के मांबाप कौन हैं, कहां हैं, जिंदा हैं या नहीं. उस के घर में और कौनकौन हैं, दादा, चाचा, मामा, बुआ आदि. वे लोग बच्ची को गोद देना चाहते भी हैं या नहीं. बिना किसी अप्रूवल तुम इस तरह किसी अनजान बच्ची को गोद नहीं ले सकते. तुम्हें पहले इस बच्ची को पुलिस वालों को सौंप देना चाहिए.”

“अच्छा सुन, निभा से बात कर के बताता हूं.” कह कर मैं ने फोन रख दिया.

अभिनव को सारी बात बता कर मैं पछता रहा था. उस ने मुझे और भी ज्यादा उलझन में डाल दिया था. मैं इस बात को ले कर कुछ सोचना नहीं चाहता था. बस प्रिया के साथ बीत रहे इस समय को महसूस करना चाहता था. यही हाल निभा का भी था.

भले ही प्रिया ने अपने चारों तरफ रहस्य का घेरा बना रखा था, भले ही प्रिया हमें मिलेगी या नहीं इस बात को ले कर अभी भी अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई थी मगर फिर भी उस का साथ हमें हर पल एक नए खूबसूरत और संतुष्ट जीवन का अहसास दे रहा था और हमें यह अहसास बहुत पसंद आ रहा था.

Latest Hindi Stories : प्यार चढ़ा परवान

Latest Hindi Stories : प्रमिला और शंकर के बीच अवैध संबंध हैं, यह बात रामनगर थाने के लगभग सभी कर्मचारियों को पता था. मगर इन सब से बेखबर प्रमिला और शंकर एकदूसरे के प्यार में इस कदर खो गए थे कि अपने बारे में होने वाली चर्चाओं की तरफ जरा भी ध्यान नहीं जा रहा था.

शंकर थाने के इंचार्ज थे तो प्रमिला एक महिला कौंस्टेबल थी. थाने के सर्वेसर्वा अर्थात इंचार्ज होने के कारण शंकर पर किसी इंस्पैक्टर, हवलदार या स्टाफ की उन के सामने चूं तक करने की हिम्मत नहीं होती थी.

थाने की सब से खूबसूरत महिला कौंस्टेबल प्रमिला थाने में शेरनी बनी हुई थी, क्योंकि थाने का प्रभारी उस पर लट्टू था और वह उसे अपनी उंगलियों पर नचाती थी.

जिन लोगों के काम शंकर करने से मना कर देते थे, वे लोग प्रमिला से मिल कर अपना काम करवाते थे.

प्रमिला और शंकर के अवैध रिश्तों से और कोई नहीं मगर उन के परिजन जरूर परेशान थे. प्रमिला 1 बच्चे की मां थी तो शंकर का बड़ा बेटा इस वर्ष कक्षा 10वीं की परीक्षा दे रहा था.

मगर कहते हैं न कि प्रेम जब परवान चढ़ता है तो वह खून के रिश्तों तक को नजरअंदाज कर देता है. प्रमिला के घर में अकसर इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच झगड़ा होता था मगर प्रमिला हर बार यही दलील देती थी कि लोग उन की दोस्ती का गलत अर्थ निकाल रहे हैं. थाना प्रभारी जटिल केस के मामलों में या जहां महिला कौंस्टेबल का होना बहुत जरूरी होता है तभी उसे दौरों पर अपने साथ ले जाते हैं. थाने की बाकी महिला कौंस्टेबलों को यह मौका नहीं मिलता है इसलिए वे लोग मेरी बदनामी कर रहे हैं. यही हाल शंकर के घर का था मगर वे भी बहाने और बातें बनाने में माहिर थे. उन की पत्नी रोधो कर चुपचाप बैठ जाती थीं.

शंकर किसी न किसी केस के बहाने शहर से बाहर चले जाते थे और अपने साथ प्रमिला को भी ले जाते थे. अपने शहर में वे दोनों बहुत कम बार साथसाथ दिखाई देते थे ताकि उनके अवैध प्रेम संबंधों को किसी को पता न चलें. लेकिन कहते हैं न कि खांसी और प्यार कभी छिपाए नहीं छिपता, इन के साथ भी यही हो रहा था.

एक दिन शाम को प्रमिला अपने प्रेमी शंकर के साथ एक फिल्म देख कर रात देर से घर पहुंची तो उस के पति ने हंगामा खड़ा कर दिया. दोनों में जम कर हंगामा हुआ.

प्रमिला के घर में घुसते ही अमित ने गुस्से से कहा,”प्रमिला, तुम्हारा चालचलन मुझे ठीक नहीं लग रहा है. पूरे मोहल्ले में तुम्हारे और डीएसपी शंकर के अवैध संबंधों के चर्चे हो रहे हैं. तुम्हें शर्म आनी चाहिए. 1 बच्चे की मां हो कर तुम किसी पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो…”

अमित की बात बीच में ही काटती हुई प्रमिला ने शेरनी की दहाड़ती हुई बोली,”अमित, बस करो, मैं अब और नहीं सुन सकती… तुम मेरे पति हो कर मुझ पर ऐसे घिनौने लांछन लगा रहे हो, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. मेरे और थाना प्रभारी के बीच दोस्ताने रिश्ते हैं. कई बार जटिल और महिलाओं से संबंधित मामलों में जब दूसरी जगह जाना पड़ता है तब वे मुझे अपने साथ ले जाते हैं, जिस के कारण बाकी के लोग मुझ से जलते हैं और मुझे बदनाम करते हैं.

“अमित, तुम्हें एक बात बता दूं कि तुम्हारी यह दो टके की मास्टर की नौकरी से हमारा घर नहीं चल रहा है. तुम्हारी तनख्खाह से तो राजू के दूध के 1 महीने का खर्च भी नहीं निकलता है…समझे. फिर तुम्हारे बूढ़े मांपिता भी तो हमारी छाती पर बैठे हुए हैं, उन की दवाओं का खर्च कहां सा आता है, यह भी सोचो.

“अमित, पैसे कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, कई पापड़ बेलने पड़ते हैं. थाना प्रभारी के साथ मेरे अच्छे संबंधों की बदौलत मुझे ऊपरी कमाई में ज्यादा हिस्सा मिलता है, फिर मैं उन के साथ अकसर दौरे पर जाती हूं तो तब टीएडीए आदि का मोटा बिल भी बन जाता है. यह सब मैं इस परिवार के लिए कर रही हूं. तुम कहो तो मैं नौकरी छोड़ कर घर पर बैठ जाती हूं, फिर देखती हूं तुम कैसे घर चलाते हो?“

अमित ने ज्यादा बात बढ़ाना उचित नहीं समझा. वह जानता था कि प्रमिला से बहस करना बेकार है. वह प्रमिला को जब तक रंगे हाथों नहीं पकड़ लेता तब तक वह उस पर हावी ही रहेगी. अमित के बुजुर्ग पिता ने भी उसे चुप रहने की सलाह दी. वे जानते थे कि घर में अगर रोजाना कलह होते रहेंगे तो घर का माहौल खराब हो जाता है और घर में सुखशांति भी नहीं रहती है.

उन्होंने अमित को समझाते हुए कहा,”बेटा अमित, बहू से झगड़ा मत करो, उस पर अगर इश्क का भूत सवार होगा तो वह तुम्हारी एक भी बात नहीं सुनेगी. इस समय उलटा चोर कोतवाल को डांटने वाली स्थिति बनी हुई है. जब उस की अक्ल ठिकाने आएगी तब सबकुछ ठीक हो जाएगा.

“बेटा, वक्त बड़ा बलवान होता है. आज उस का वक्त है तो कल हमारा भी वक्त आएगा.“

अपने उम्रदराज पिता की बात सुन कर अमित ने खामोश रहने का निर्णय ले लिया.

एक दिन जब प्रमिला अपने घर जाने के लिए रवाना हो रही थी, तभी उसे शंकर ने बुलाया.

“प्रमिला, हमारे हाथ एक बहुत बड़ा बकरा लगने वाला है. याद रखना किसी को खबर न हो पाए. कल सुबह 4 बजे हमारी टीम एबी ऐंड कंपनी के मालिक के घर पर छापा डालने वाली है. कंपनी के मालिक सुरेश का बंगला नैपियंसी रोड पर है. हम आज रात उस के बंगले के ठीक सामने स्थित होटल हिलटोन में ठहरेंगे. मैं ने हम दोनों के लिए वहां पर एक कमरा बुक कर दिया है. टीम के बाकी सदस्य सुबह हमारे होटल में पहुंचेंगे, इस के बाद हमारी टीम आगे की काररवाई के लिए रवाना हो जाएगी. तुम जल्दी से अपने घर चली जाओ और तैयारी कर के रात 9 बजे सीधे होटल पहुंच जाना, मैं तुम्हें वहीं पर मिलूंगा.“

“यस सर, मैं पहुँच जाऊंगी…” कहते हुए प्रमिला थाने से बाहर निकल गई.

सुबह ठीक 4 बजे सायरन की आवाज गूंज उठी. 2 जीपों में सवार पुलिसकर्मियों ने एबी कंपनी के बंगले को घेर लिया. गहरी नींद में सो रहे बंगले के चौकीदार हडबड़ा कर उठ गए. पुलिस को गेट पर देखते ही उनकी घिग्घी बंध गई. चौकीदारों ने गेट खोल दिया. कंपनी के मालिक सुरेश के घर वालों की समझ में कुछ आता इस से पहले पुलिस ने उन सब को एक कमरे में बंद कर के घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

प्रमिला को सुरेश के परिवार की महिला सदस्यों को संभालने का जिम्मा सौंपा गया था.

करीब 2 घंटे तक पूरे बंगले की तलाशी जारी रही. छापे के दौरान पुलिस ने बहुत सारा सामान जब्त कर लिया.

कंपनी का मालिक सुरेश बड़ी खामोशी से पुलिस की काररवाई को देख रहा था. वह भी पहुंचा हुआ खिलाड़ी था, उसे पता था कि शंकर एक नंबर का भ्रष्ट पुलिस अधिकारी है. उसे छापे में जो गैरकानूनी सामान मिला है उस का आधा तो शंकरऔर उस के साथी हड़प लेंगे, फिर बाद में शंकर की थोड़ी जेब गरम कर देगा तो वह मामले को रफादफा भी कर देगा.

बंगले पर छापे के दौरान मिले माल के बारे में सुन कर थाने के अन्य पुलिस वालों के मुंह से लार टपकने लगी. शंकर ने सभी के बीच माल का जल्दी से बंटवारा करना उचित समझा. बंटवारे को ले कर उन के अर्दली और कुछ कौंस्टबलों में झगड़ा भी शुरू हो गया. शंकर ने अपने अर्दली और अन्य कौंस्टबलों को समझाया मगर उन के बीच लड़ाई कम होने के बजाय बढ़ती ही गई.

शंकर ने छापे में मिला हुआ कुछ महंगा सामान उसी होटल के कमरे में छिपा कर रखा था. इधर बंटवारे से नाराज अर्दली और 2 कौंस्टेबल शंकर से बदला लेने की योजना बनाने लगे.

उन्होंने तुरंत अपने इलाके के एसपी आलोक प्रसाद को सारी घटना की जानकारी दी. उन्हें यह भी बताया कि शंकर और प्रमिला हिलटोन होटल में रूके हुए हैं.

उन्हें रंगे हाथ पकड़ने का यह सुनहरा मौका है. एसपी आलोक प्रसाद को यह भी सूचना दी गई कि कंपनी मालिक के घर पर पड़े छापे के दौरान बरामद माल का एक बड़ा हिस्सा शंकर और प्रमिला ने अपने कब्जे में रखा था, जो उसी होटल में रखा हुआ है.

एसपी आलोक प्रसाद अपनी टीम के साथ तुरंत होटल हिलटोन पर पहुंच गए. इस मौके पर कंपनी के मालिक के साथसाथ शंकर की पत्नी और प्रमिला के पति को भी होटल पर बुला लिया गया ताकि शंकर और प्रमिला के बीच के अवैध संबंधों का पर्दाफाश हो सके.

एसपी आलोक प्रसाद ने डुप्लीकैट चाबी से होटल के कमरे का दरवाजा खुलवाया, तो कमरे में शंकर और प्रमिला को बिस्तर पर नग्न अवस्था में सोए देख कर सभी हैरान रह गए.

एसपी को सामने देख कर शंकर की हालत पतली हो गई. वह बिस्तर से कूद कर अपनेआप को संभालते हुए उन्हें सैल्यूट करने लगा.

शंकर के सैल्यूट का जवाब देते हुए आलोक प्रसाद ने व्यंग्य से कहा,”शंकर पहले कपड़े पहन लो, फिर सैल्यूट करना. यह तुम्हारे साथ कौन है? इसे भी कपड़े पहनने के लिए कहो…”

प्रमिला की समझ में कुछ नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है. वह दौड़ कर बाथरूम में चली गई.

कुछ देर के बाद आलोक प्रसाद ने सभी को अंदर बुलाया. शंकर की पत्नी तो भूखी शेरनी की तरह शंकर पर झपटने लगी. वहां मौजूद लोगों ने किसी तरह बीचबचाव किया.

आलोक प्रसाद ने प्रमिला के पति की ओर मुखातिब होते हुए कहा,”अमित, अपनी पत्नी को बाथरूम से बाहर बुला दो, बहुत देर से अंदर बैठी है, पसीने से तरबतर हो गई होगी…”

“प्रमिला बाहर आ जाओ, अब अपना मुंह छिपाने से कोई फायदा नहीं है, तुम्हारा मुंह तो काला हो चुका है और तुम्हारी करतूतों का पर्दाफाश भी हो चुका है,“ अमित तैश में आ कर कहा.

प्रमिला नजरें और सिर झुकाते हुए बाथरूम से बाहर आई. उसे देखते ही अमित आगबबूला हो उठा और वह प्रमिला पर झपटने के लिए आगे बढ़ा, मगर उसे भी समझा कर रोक दिया गया.

“अमित, अब पुलिस अपना काम करेगी. इन दोनों को इन के अपराधों की सजा जरूर मिलेगी…” कहते हुए आलोक प्रसाद शंकर के करीब पहुंचे  और उन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,”शंकर, कंपनी मालिक के घर छापे के दौरान जब्त माल कहां है? जल्दी से बाहर निकालो. कोई भी सामान छिपाने की तुम्हारी कोशिश नाकाम होगी, क्योंकि इस वक्त हमारे बीच कंपनी का मालिक भी मौजूद है.”

शंकर ने प्रमिला को अंदर से बैग लाने को कहा. प्रमिला चुपचाप एक बड़ा सूटकेस ले कर आई.

भारीभरकम सूटकेस देख कर आलोक प्रसाद ने एक इंस्पैक्टर से कहा,”सूटकेस अपने कब्जे में ले लो और इन दोनों को पुलिस स्टैशन ले कर चलो. अब आगे की काररवाई वहीं होगी.“

सिर झुकाए हुए शंकर और प्रमिला एक कौंस्टेबल के साथ कमरे से बाहर निकल गए हैं.

एसपी आलोक प्रसाद शंकर और प्रमिला को रोक कर बोले,”आप दोनों एक बात याद रखना, जो आदमी अपने परिवार को धोखे में रख कर उस के साथ अन्याय करता है, अनैतिक संबंधों में लिप्त हो कर अपने परिवार की सुखशांति भंग करता है और जो अपनी नौकरी के साथ बेईमानी करता है, उसे एक न एक दिन बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है.”

वे दोनों सिर झुकाए चुपचाप खङे थे. उन्हें पता था कि अब आगे न सिर्फ उन की नौकरी छिन जाएगी, बल्कि जेल भी जाना होगा.

लालच और वासना ने दोनों को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था.

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