क्या Preity Zinta की वजह से टूट गई ऐक्ट्रैस सुचित्रा कृष्णमूर्ति की शादी

Preity Zinta : जिंदगी में मिले जख्म चाहे कितने भी पुराने हो, वह कभी भरते नहीं है. कभी ना कभी सामने वापस आ ही जाते हैं. ऐसा ही कुछ हाल शाहरुख खान के साथ फिल्म कभी हा कभी ना में काम कर चुकी ऐक्ट्रैस सुचित्रा कृष्णमूर्ति का है, जो कि ऐक्टर होने के अलावा सिंगर मौडल भी रह चुकी हैं. सुचित्रा ने अपने अभिनय करियर में हिंदी के अलावा तमिल मलयालम फिल्मों में भी काम किया है.

सफल करियर के दौरान सुचित्रा कृष्णमूर्ति ने अपने से 30 साल बड़े प्रसिद्ध डायरेक्टर शेखर कपूर के साथ शादी करके फिल्मो से लगभग संन्यास ले लिया था. क्योंकि सुचित्रा के अनुसार उनके पति शेखर कपूर को सुचित्रा का अभिनय करना पसंद नहीं था. बहरहाल सुचित्रा के अनुसार उनकी शादी शुदा जिंदगी में अभिनेत्री प्रीति जिंटा की वजह से दरार आ गई और शेखर कपूर के साथ सुचित्रा की शादी कुछ सालों बाद ही टूट गई.

सुचित्रा के अनुसार वह अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुश नहीं थी इसलिए एक साल के अंदर ही शादी तोड़ना चाहती थी लेकिन गर्भवती होने की वजह से उन्होंने अपनी शादी बचाने की कोशिश भी की. लेकिन प्रीति जिंटा ने उनके शादीशुदा जीवन में खटास पैदा कर दी, वह प्रीति जिंटा को कभी माफ नहीं करेंगी.

साल 2000 में इसी बात को लेकर दोनों के बीच भारी मनमुटाव भी हुआ था. उस दौरान प्रीति जिंटा ने सुचित्रा को मानसिक तौर पर असंतुलित बताया था. प्रीति जिंटा ने उस दौरान यही कहा था कि उनका इन सब बातों से कोई लेना देना नहीं है. लेकिन आज इतने साल बाद भी एक इंटरव्यू में सुचित्रा कृष्णमूर्ति ने फिर से इस बात को दोहराया है. फिलहाल प्रीति जिंटा शादीशुदा हैं और अपनी जिंदगी में व्यस्त हैं, बावजूद इसके वह अभी भी सुचित्रा कृष्णमूर्ति की नजरों में गुनहगार हैं.

सुचित्रा कृष्णमूर्ति के वर्क फ्रंट की बात करें तो वह फिल्म डंक में नजर आई थी. हाल ही में सुचित्रा कृष्णमूर्ति ने कुछ ही दिनों में 10 किलो वजन भी कम किया है , ताकि वह अपनी अभिनय यात्रा जारी कर सके.

Health Tips In Hindi : कबूतरों को दाना खिला कर पुण्य नहीं, घातक बीमारी को दे रहे हैं बुलावा

Health Tips In Hindi : मुंबई के रहने वाले 35 वर्षीय रमेश को हमेशा खांसी और अस्थमा की शिकायत रहती थी। जांच करने पर पता चला कि उन्हें लंग्स फाइब्रोसिस हुआ है, जो कबूतरों के बीट से हुआ, क्योंकि रोज वे अपने बाइक पर पड़े बीट को साफ करते थे, जिस से उन के लंग्स में इन्फैक्शन हुआ और उन्हें कई सालों तक इलाज कराना पड़ा, आज वे ठीक हैं.

ऐसी कई बीमारियां हैं जो पक्षियों और जानवरों के मलमूत्रों से संबंधित होती हैं और जिन का पता हमें नहीं चल पाता। कबूतरों की बीट और पंखों से होने वाली बीमारी पहले से बढ़ी है. इसे देखते हुए महाराष्ट्र के ठाणे में नगर निगम के अधिकारियों ने कबूतरों को दाना खिलाने के खिलाफ चेतावनी दी है क्योंकि इस से फेफड़ों की बीमारी हाइपरसेंसिटिव निमोनिया होती है. यह एक ऐसी बीमारी है जो पक्षी की बीट और पंखों से फैलती है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है.

अधिकारियों ने जगहजगह पोस्टर भी लगा दिए हैं और चेतावनी दी है कि कबूतरों को दाना डालने वालों पर ₹500 का जुर्माना लगाया जाएगा.

लंग्स को खतरा

यदि आप भी उन लोगों में से हैं जो मानते हैं कि कबूतर सब से प्यारे पक्षी हैं और कोई नुकसान नहीं पहुंचाते और उन्हें दाना खिला कर पुण्य कमा रहे हैं तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है. जानेअनजाने आप लंग्स की बड़ी बीमारी को बुला रहे हैं. आप को बता देते हैं कि कबूतर, विशेषरूप से उन के पंख और बीट बैक्टीरिया और वायरस के वाहक के रूप में काम करते हैं, जो आप के फेफड़ों को प्रभावित करते हैं और आप को बीमारी के खतरे में डाल सकते हैं.

इस बारे में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी के प्लमनरी मैडिसीन ऐंड स्लीप मैडिसन के डा. (Col) एसपी राय कहते हैं कि मुंबई के हाईराइज बिल्डिंग्स में कबूतरों का निवास बहुत अधिक है, क्योंकि लोग वहां इन्हें दाना खिलाते रहते हैं और ये उस जगह को छोड़ कर नहीं जाते. इस से कई बार लोगों को सीरीयस लंग्स डिजीज हो जाते हैं, जिसे ऐलर्जिक निमोनिया या हाइपरसैंसिटिव निमोनिया कहते हैं. यह काफी सीरियस टाइप की लंग्स डिजीज होती है, जो हर व्यक्ति को नहीं होती, लेकिन हजार में 2 से 3 लोगों को हो जाती है, जो लंग्स फाइब्रोसिस की एक प्रकार है.

यह बहुत ही गंभीर होता है और आगे चल कर रेसपिरेटरी फैल्योर हो जाता है, तब पीड़ित व्यक्ति को औक्सिजन या वैंटिलेशन की जरूरत होती है और यहां तक कि लंग्स ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है.

पंखों से एलर्जी

देखा जाए तो किसी भी पक्षी के पंखों से एलर्जी ही इस तरीके की बीमारी को बढ़ाती है. इस के अलावा कबूतर के बीट सूखने का बाद हवा में मिल कर इस बीमारी को फैलाती है. इतना ही नहीं अस्थमा, सीओपीडी, ब्रोंकाइटिस आदि के मरीज को यह बीमारी ट्रिगर करता है और शरीर की इम्यूनिटी को कम करता है.

जानवरों से होती है एलर्जी

असल में सभी तरह के पैट्स से लोगों को अलगअलग एलर्जी होती है. उन्हें लंग्स की बीमारी हो जाती है और अस्थमा, छींक की समस्या, शरीर में दाने का होना आदि बढ़ जाते हैं. डस्ट माइट्स के अलावा पैट्स के द्वारा ऐलर्जी को भी कौमन एलरजैंस में माना जाता है, जिस में डौग्स, बिल्ली, तोता, बर्ड्स आदि कई तरह के जानवरों के साथसाथ पंख या रोए वाले पक्षी होते हैं, जिन्हें पालना सही नहीं होता.

ये जानवर प्राकृतिक रूप से अपनी खुराक खुद ही ढूंढ़ लेते हैं, इन्हें खिलाने की जरूरत नहीं पड़ती.
इस के आगे डाक्टर कहते हैं कि हमारे देश में लंग्स फाइब्रोसिस का अधिकतर कारण कबूतर से होने वाली बीमारी ही है. इस के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भूसे की कन्नी से अधिकतर लंग्स फाइब्रोसिस होता है. मैं सभी से कहना चाहता हूं कि सोसाइटी में कबूतरों को दाना कभी न खिलाएं. लगातार उन के पंखों और बीट को इनहेल करने पर यह बीमारी हो सकती है. इस के इलाज में पहले लंग्स की कैपेसिटी की जांच करने के बाद उन्हें दवाइयां दी जाती हैं, क्योंकि यह रोगप्रतिरोधक क्षमता को कम करती है। अधिक बीमार होने पर स्टेरौइड का भी सहारा ले कर इसे कंट्रोल किया जाता है. इस का रिस्क सभी के लिए अधिक होता
है.

ध्यान रखने योग्य बातें

जहां कबूतर हों पीजन नेट लगाएं. जहां कबूतर बैठते हैं, उसे क्लीन रखें, आसपास खाना न दें. उन्हें भगाने की कोशिश करते रहें आदि.

चिड़ियों के अलावा मुंबई के छोटेछोटे घरों में लोग डौग्स और बिल्लियां भी पालते हैं। कम जगह में इन्हें पालना ठीक नहीं होता, उन्हें आसपास घूमने के लिए जगह जरूरी होता है. विदेशों में लोग डौग्स और कैट्स पालते हैं, लेकिन वहां जगह अधिक होती है और उन के रहने की अलग व्यवस्था होती है।
हमारे देश में ऐसी सुविधा नहीं है. डौग्स भी इंसान के साथ रहते हैं, जिस से घर पर रहने वालों को कई प्रकार की एलर्जी हो जाती है. इस से बचना जरूरी है. इतना ही नहीं, डौग्स के मलमूत्र भी कई बीमारियों को जन्म देते हैं.

जानवर हों या पक्षी, प्यारे अवश्य होते हैं, लेकिन इन्हें घरों में कैद करना ठीक नहीं. इन्हें अपने तरीके से आजाद रहने देने की जरूरत है. वे अपनी खुराक खुद ही खोज लेते हैं। इंसानों को उन्हें खिलाने की जरूरत नहीं होती. ये इंसानों से दूर रह कर काफी अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते हैं, फिर चाहे जानवर हों या पक्षी, इन्हें पाल कर घर पर बीमारी को बुलाना एक जोखिम से बढ़ कर और कुछ भी नहीं हो सकता.

Rasha Thadani से लेकर पश्मीना रोशन तक, स्क्रीन पर ये ऐक्ट्रैस ने अपने टेलैंट्स और लुक से बनाई पहचान

Rasha Thadani : साल 2024 में हम ने कुछ नए चेहरों को सिल्वर स्क्रीन पर चमकते हुए देखा. सिल्वर स्क्रीन पर चमकते इन नए चेहरों ने अपने टेलैंट्स और लुक्स से औडियंस के दिलों में अलग ही जगह बना ली और खूब चर्चा बटोरी.

आइए, जानते हैं उन डैब्यूटेंट्स के बारे में जो इस साल चर्चा में रहे :

राशा थडानी : फेमस ऐक्ट्रैस रवीना टंडन की खूबसूरत बेटी राशा अपनी खूबसूरती और स्टाइल से सभी का दिल जीत कर खूब सुर्खियों में रहीं. इस साल उन्हें ग्लोबल लेवल पर पहचान मिली. इस कार्यक्रम में राशा थडानी की पहनी हुई एक ऐक्स्ट्रा और्डिनरी ड्रैस और उन का बोल्ड और स्टाइलिश लुक सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना रहा. हालांकि इस साल राशा की कोई फिल्म थिएटर में रिलीज न हो पाई लेकिन अजय देवगन की फिल्म ‘सिंघम अगेन’ के साथ राशा की फिल्म ‘आजाद’ का ट्रेलर लौंच किया गया है.

लक्ष्य लालवानी : डैशिंग ऐक्टर लक्ष्य लालवानी ने अपने कैरियर की शुरुआत छोटे परदे की सीरीज ‘वारियर हाई’ से की थी. लेकिन उन का फिल्मी सफर करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शन के बैनर तले बनी हिंदी ऐक्शन थ्रिलर फिल्म ‘किल’ से हुआ था. इस फिल्म को निखिल नागेश भट ने निर्देशित किया था. 2024 में आई इस फिल्म में लक्ष्य लालवानी ने मेन रोल निभाया था.

उन के प्रभावशाली ऐक्शन रोल को औडियंस ने जबरदस्त रेस्पौंस दिया था. उन्होंने अपने ऐक्शन रोल और लुक से खूब चर्चा बटोरी.

पश्मीना रोशन : फेमस ऐक्टर ऋतिक रोशन की कजिन सिस्टर और म्यूजिक डाइरैक्टर राजेश रोशन की बेटी पश्मीना रोशन ने फिल्म ‘इश्क विश्क रिबाउंड’ से बौलीवुड इंडस्ट्री में फ्रेश ऐनर्जी के साथ ऐंट्री की. पश्मीना ने 2024 की सब से क्यूट डैब्यूटेंट ऐक्ट्रैस के रूप में अपनी पहचान बनाई और अपनी पहली ही फिल्म में सिंपल, सोबर लुक और जबरदस्त ऐक्टिंग से औडियंस की चहेती बन गई.

पश्मीना सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहती हैं. उन के सोशल मीडिया अकाउंट पर उन के बोल्ड ब्यूटीफुल, एलिगेंट और चार्मिंग हर लुक की फोटो फैंस को पसंद आती है. पश्मीना अपनी फिटनैस को ले कर भी काफी ऐक्टिव रहती हैं और अपने फिटनैस फोटो भी सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं.

जुनैद खान : अपने दम पर फिल्म इंडस्ट्री में पहचान बनाने वाले सुपरस्टार आमिर खान के बेटे जुनैद खान इंडस्ट्री में आने से पहले ही काफी चर्चा में छाए रहे. उन्होंने फिल्म ‘महाराज’ में अपने किरदार से खूब वाहवाही लूटी. उन्होंने ‘महाराज : हिस्टोरिकल ड्रामा’ में एक यंग पर्सन के रोल में औडियंस पर एक अनूठी छाप छोड़ी. एक डैब्यूटेंट ऐक्टर के रूप में उन की स्ट्रौंग स्क्रीन प्रेजेंस और इमोशनल रेंज ने साबित कर दिया कि वे अब फ्यूचर में और भी चैलेंजिंग रोल निभाने के लिए रेडी हैं.

फिल्म में जुनैद को देख कर ऐसा लग रहा था कि कोई मंझा हुआ कलाकार ऐक्टिंग कर रहा है. फिल्म में उन का लुक भी लोगों को खूब पसंद आया.

प्रतिभा रांटा : वैब सीरीज ‘कुर्बान’ से अपना बौलीवुड कैरियर शुरू करने वाली प्रतिभा रांटा ने 2024 में मिस्टर परफैक्शनिस्ट यानी आमिर खान द्वारा प्रोड्यूस और किरण राव निर्देशित फिल्म ‘लापता लेडीज’ में जया का रोल निभा कर काफी पौपुलर हो गईं और इस के बाद उन की फैन फौलोइंग भी काफी बढ़ गई है. उन की सीरियस ऐक्टिंग ने औडियंस के दिलों पर अलग ही जगह बनाई. इस फिल्म में जया का रोल दिल को छू लेने वाला था.

उन की यह फिल्म औस्कर के लिए चुनी गई है. इस फिल्म के अलावा जया ने ‘हीरामंडी’ में अपने ऐक्टिंग का हुनर दिखाया था. इस के अलावा प्रतिभा रांटा मेलबर्न के भारतीय फिल्म महोत्सव में भी वर्ष 2024 के लिए सर्वश्रेष्ठ ऐक्ट्रैस नौमिनेट की गई हैं. सीएम सुक्खू ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर प्रतिभा को बधाई देते हुए लिखा कि हिमाचल प्रदेश की बेटी प्रतिभा रांटा औस्कर 2025 के लिए चुनी गई.

जिब्रान खान : फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ में एक चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में स्पैशल रोल के लिए जाने जाने वाले जिब्रान खान ने फिल्म ‘इश्क विश्क रिबाउंड’ में पश्मीना रोशन के साथ डैब्यू किया और अपने रोल से सब का ध्यान अपनी ओर खींचा. उन्होंने फिल्म में साहिर के रोल को बखूबी निभाया। जिब्रान खान के पिता मशहूर अभिनेता फिरोज खान हैं, जिन्होंने 1988 में आई बीआर चोपड़ा की पौराणिक टैलीविजन सीरीज ‘महाभारत’ में अर्जुन की भूमिका निभाई थी. जिब्रान खान ने अपने दम पर कई फिल्मों और एड में काम किया और अपनी पहचान बनाई.

अंजिनी धवन : साल 2024 में प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘बिन्नी एंड फैमिली’ से जानी जाने वाली अंजिनी धवन ने अपनी पहली फिल्म से उल्लेखनीय क्षमता को प्रदर्शित किया. उन्होंने इंटरेस्टिंग रोल से शानदार शुरुआत की. इस के अलावा अंजिनी धवन सलमान खान अभिनीत फिल्म ‘सिकंदर’ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती नजर आएंगी. अंजिनी ऐक्टिंग के साथ डांसर और सोशल मीडिया स्टार भी हैं और अकसर अपने ग्लैमरस फोटोज इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर करती रहती हैं, जिन्हें फैंस काफी पसंद करते हैं.

अंजिनी दिग्गत ऐक्टर अनिल धवन की पोती, सिद्धार्थ धवन की बेटी हैं और वरुण धवन की भतीजी हैं.

Hindi Short Story 2025 : सुख की पहचान

Hindi Short Story 2025 : “सुनते हो, आज एटीएम से ₹10 हजार निकाल कर ले आना. राशन नहीं है घर में,” किचन से चिल्ला कर बिंदु ने अपने पति सतीश से कहा.

सतीश बाथरूम से निकलते हुए झुंझलाए स्वर में बोला,” फिर से रुपए? अभी 10 दिन पहले ही तो ₹12 हजार निकाल कर लाए थे.”

“तुम क्या सोचते हो मैं ने सारे पैसे उड़ा दिए ? खर्चे कम हैं क्या तुम्हारे घर के? बेटे के ट्यूशन में ₹ 2 हजार चले गए. दूधवाले के ₹ 2 हजार, डाक्टर की फीस में ₹ 12 सौ. तुम ने भी तो ₹4 हजार लिए थे मुझ से, सेठ का उधार चुकाने को. इस तरह के दूसरे छोटेमोटे खर्च में ही ₹ 10 हजार तक खर्च हो गए. बाकी बचे रुपए फलसब्जी आदि में लग गए.”

“देखो बिंदु मैं हिसाब नहीं मांग रहा. मगर तुम्हें हाथ दबा कर खर्च करना होगा. मैं कोई हर महीने लाख दो लाख सैलरी पाने वाला बंदा तो हूं नहीं. मकान किराए पर चढ़ाने का व्यवसाय है मेरा जो आजकल मंदा चल रहा है. ”

“तुम बताओ कौन सा खर्च रोकूं? घर के खर्चे, राशन, दूध, बिजली, पानी, सब्जी, बच्चे की पढ़ाई… इन सब में तो खर्च होने जरूरी हैं न. फिर हर महीने कुछ न कुछ ऐक्स्ट्रा खर्च भी आते ही रहते हैं. उस पर तुम ₹3-4 हजार तक की शराब भी गटक जाते हो.”

“तो क्या शराब मैं अकेला पीता हूं? तुम भी पीती ही हो न,” सतीश ने चिढ़ कर कहा.

“मैं कभीकभार तुम्हारा साथ देने को पीती हूं. पर तुम पीने के लिए जीते हो. खाना नहीं बना तो चलेगा पर शराब जरूर होनी चाहिए. फ्रिज में दूध नहीं तो चलेगा मगर अलमीरा में दारू की बोतल न हो तो हंगामा कर दोगे.”

“तुम केवल दिमाग खराब करती रहती हो मेरा… मैं ले आऊंगा रुपए,” कह कर सतीश भुनभुनाते हुए बाहर निकल गया.

ऐसे झगड़े बिंदु और सतीश के जीवन में रोज की कहानी है. मध्यवर्गीय परिवार में वैसे भी पैसों की किचकिच हमेशा चलती ही रहती है.
सतीश शराब में भी काफी रुपए फेंकता है. हजारों रुपयों की शराब तो वह बिंदु की नजर में आए बिना ही गटक जाता है. वैसे और कोई ऐब नहीं है सतीश में. मेहनत से अपना काम करता है. यारदोस्तों के सुखदुख में शरीक होने की पूरी कोशिश करता है. कभी मन खुश हो या बिजनैस अच्छा चल निकले तो बीवीबच्चे के लिए नए कपड़े और तोहफे भी खरीद कर लाता है. बस शराब के आगे बेबस हो जाता है. शराब सामने हो तो फिर उसे कुछ भी नहीं दिखता.

इस बीच देश में कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह से लौकडाउन हो गया. सतीश को शराब खरीद कर जमा करने का मौका ही नहीं मिला. शराब की जो बोतलें अलमीरा में छिपा कर रखी थीं उन के सहारे 20- 25 दिन तो निकल गए. मगर फिर सतीश को शराब की तलब लगने लगी. शराब के बिना उस का कहीं मन नहीं लगता. वैसे भी रोजगार ठप्प पड़ गया था. प्रौपर्टी बिजनैस शून्य था. उस के पास मकान और औफिस तो था पर नकदी की कमी थी. पैसे आ नहीं रहे थे. बैंक से निकाल कर किसी तरह घर का खर्च चल रहा था. तीसरे लौकडाउन के दौरान शराब बिकने की शुरुआत हुई तो सतीश खुश हो उठा. पहले दिन तो 2-3 घंटे लाइन में लग कर उस ने अपने पास बचे रूपयों से 4-6 बोतल शराब खरीद ली. शराब के चक्कर में उसे पुलिस की लाठियां भी खानी पड़ीं. हजारों की भीड़ थी उस दिन.

अगले दिन भी वह शराब लेना चाहता था. सतीश के मन में खौफ था कि ठेके फिर से बंद न हो जाएं. इसलिए उस ने शराब स्टौक में रखने की सोची. रुपए पास में थे नहीं. बैंक अकाउंट में भी ₹ 10- 12 हजार से अधिक नहीं था. इतने रुपए तो घर के राशन के लिए जरूरी था.

सतीश अपनी बीवी के पास पहुंचा और प्यार से बोला, “यार बिंदु मुझे शराब खरीदनी है. तूने कुछ रुपए बचाए हैं तो दे दो या फिर अपने गहने…”

गहनों का नाम सुनते ही बिंदु फुफकार उठी,” खबरदार जो गहनों का नाम भी लिया. तुम ने नहीं बनवाए हैं. मेरी मां के दिए गहने हैं और इन्हें दारू खरीदने के लिए नहीं दे सकती. जाओ गटर में जा कर लोटो या शराबी दोस्तों से भीख मांगो. मगर मेरे गहनों की तरफ देखना भी मत.”

बिंदु की बात सुन कर सतीश को भी गुस्सा आ गया. उस ने बिंदु के बाल पकड़ कर खींचते हुए कहा,” कलमुंही मैं ने प्यार से बोला कि कुछ रुपए या जेवर दे दे, तो तुम्हारे भेजे में आग लग गई.”

“आग तो मैं तुम्हारे कलेजे में लगाती हूं. ठहरो… कहती हुई बिंदु गई और एक बड़ी लाठी उठा लाई,” खबरदार मेरे गहनों या पैसों को हाथ लगाया तो हाथ तोड़ दूंगी.”

“तू हाथ तोड़ेगी मेरा? ठहर अभी दिखाता हूं मैं,” सतीश ने लाठी छीन कर उसी को जमा दी.

वह अपना आपा खो चुका था. चीखता हुआ उल्टीसीधी बातें बोलने लगा,” तू नहीं दे सकती तो जा अपने यार से ले कर आ पैसे.”

“यार ? कौन सा यार पाल रखा है मैं ने? बददिमाग कहीं का. घिन नहीं आती तुझे ऐसी बातें बोलते हुए?”

“हां सतीसावित्री तो बनना मत. सारे कारनामे जानता हूं मैं. किस के लिए सजधज कर निकलती है. उसी की दुकान पर जाती है रोज मरने.”

बिंदु होश खो बैठी. दहाड़ती हुई उठी और सतीश की गरदन पकड़ कर चीखी,” एक शब्द भी तू ने मुंह से निकाला तो अभी टेंटुआ दबा दूंगी. फिर लगाते रहना इल्जाम मुझ पर.”

सतीश ने आव देखा न ताव और लाठी बिंदु के सिर पर दे मारी. वह दर्द से बिलबिलाती हुई गिर पड़ी तो सतीश ने जल्दी से अलमारी में से गहने निकाले. सामने 7 साल का पिंकू सहमा खड़ा मम्मीपापा की लड़ाई देख रहा था. सतीश ने दरवाजा भिड़ाया और तेजी से बाहर निकल आया.

10 मिनट सामने की पुलिया पर बैठा रहा. फिर सोचना शुरू किया कि अब गहने किस के पास गिरवी रखे जाएं. उसे अपने दोस्त श्यामलाल का ख्याल आया. मन में सोचा कि चलो आज उसी से रुपए मांगे जाएं.

सतीश श्यामलाल के घर के दरवाजे पर पहुंचा और दस्तक दी तो अंदर से उस की बीवी की आवाज आई,” हां जी भाईसाहब, बोलिए क्या काम है?”

“भाभी जरा श्याम को भेजना. उस से कुछ काम था.”
“माफ कीजिएगा. कोरोना के डर से वे आजकल कहीं नहीं निकलते. वैसे भी अभी तो वे सो रहे हैं. उन की तबीयत ठीक नहीं.”

“अच्छा”, कह कर सतीश ने कदम पीछे कर लिए. श्यामलाल के अलावा सुदेश से भी उस की अच्छी पटती थी. वह सुदेश के घर पहुंचा. सुदेश ने दरवाजे से ही उसे यह कह कर टरका दिया कि अभी खुद पैसों की तंगी है. कोविड-19 के इस बदहाल समय में जेवर ले कर पैसे नहीं दे सकता.

1-2 और लोगों के पास भी सतीश ने जा कर गुहार लगाई. मगर किसी ने उसे घर में घुसने भी नहीं दिया. सब ने अपनेअपने बहाने बना दिए. साथ ही सब ने उस पर यह तोहमत भी लगाई कि तू कैसा आदमी है जो ऐसे समय में पत्नी के जेवर बेचने निकला है?

सतीश के पास अब एक ही रास्ता था कि वह किसी ज्वैलर से ही संपर्क करे. उस ने ज्वैलरी की दुकान के आगे लिखे नंबर पर फोन किया. उसे उम्मीद थी कि अब काम बन जाएगा. सामने से किसी ने फोन उठाया तो सतीश ने कहा,” सर जी, मुझे गहने बेचने हैं.”

“क्यों ऐसी क्या समस्या है जो पत्नी के गहने बेच रहे हो? कौन हो तुम?”

“सर जी मुसीबत में हूं. रुपए चाहिए. इसलिए बेचना चाहता हूं.”

“सारी मुसीबतें जानता हूं मैं तुम लोगों के. जरूर दारू खरीदनी होगी तभी पैसे चाहिए. सरकार ने भी जाने क्यों ठेके खोल दिए. पैसे नहीं तो भी दारू पीनी इतनी जरूरी है.”

“हां जी जरूरी है और फ्री में रुपए देने नहीं कह रहा. गहने लो और पैसे दो,” सतीश भी भड़क उठा.

“समझा क्या है तू ने बेवकूफ? पूरा देश कोविड-19 से लड़ रहा है और तुझे अपनी तलब बुझानी है. जिंदगी में कुछ अच्छे काम भी करने चाहिए. कभी देख गरीबों के बच्चों को. 2 रोटी के लिए तरस रहे हैं. दूसरों का भला करने के लिए रुपए मांगता तो तुरंत दे देता पर तुझे तो…”

सतीश ने फोन काट दिया. इतना उपदेश सुनने के मूड में नहीं था वह. हताश हो कर वापस घर की तरफ लौट चला. कदम आगे नहीं बढ़ रहे थे. अपनी बेचारगी पर गुस्सा आ रहा था. इस महामारी ने जिंदगी बदल दी थी उस की.

वह घर पहुंचा तो देखा कि दरवाजा खुला हुआ है. अंदर बेटा एक कोने में बैठा रो रहा है और बिस्तर पर बिंदु बेसुध पड़ी है. उस के हाथों में नींद की गोलियों की डब्बी पड़ी थी. दोचार गोलियां इधरउधर बिखरी हुई थीं. बाकी गोलियां खा कर वह बेहोश हो गई थी.

सतीश की काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गई. उस ने जल्दी से ऐंबुलैंस वाले को फोन किया. बेटे को कमरे में बंद कर खुद बिंदु को गोद में उठा कर बाहर निकल आया. बिंदु को ऐंबुलेंस में बैठा कर पास वाले अस्पताल में पहुंचा तो उसे ऐंट्री करने से भी रोक दिया गया. बताया गया कि अस्पताल कोविड-19 के लिए बुक है. सतीश ने दूसरे अस्पताल का रुख किया. वहां भी उसे रिसैप्शन से ही टरका दिया गया. बिंदु की हालत खराब होती जा रही थी. इस डर से कि कहीं बिंदु को कुछ हो न जाए वह पसीने से तरबतर हो रहा था. 3-4 अस्पतालों के चक्कर लगाने पर भी जब कोई मदद नहीं मिली तो वह हार कर वापस घर लौट आया.

बिंदु को बेड पर लिटा कर वह खुद भी बगल में लुढ़क गया. रोता हुआ पिंकू भी आ कर उस से लिपट गया. सतीश को खयाल आया कि इतनी देर से पिंकू भूखा होगा. वह किचन में गया और ब्रैड गरम कर दूध के साथ पिंकू को दे दिया. खुद भी चाय पी कर सो गया.

अगले दिन उस की नींद देर से खुली. किसी तरह पिंकू को नहला कर उसे नाश्ता कराया और खुद चायब्रैड खा कर बिंदु के बगल में आ कर बैठ गया. अचेत पड़ी बिंदु पर उसे बहुत प्यार आ रहा था.

वह पुराने दिन याद करने लगा. 2- 3 महीने पहले तक उस की जिंदगी कितनी अच्छी थी. बिंदु ने कितने सलीके से घर संभाला हुआ था. बेटे और पत्नी के साथ वह एक खूबसूरत जिंदगी जी रहा था. मगर आज बिंदु को अपनी आंखों के आगे अचेत पड़ा देख मन में तड़प उठ रही थी.

बिंदु की इस हालत का जिम्मेदार वह खुद था. दारू की लत में पड़ कर उस ने अपने सुखी संसार में आग लगा ली थी. कितना बेबस था वह. कितनी कोशिश की कि बिंदु की जान बचाई जा सके. मगर हर जगह से निराश और बेइज्जत हो कर लौटना पड़ा.

कितनी दयनीय स्थिति हो गई थी उस की. बिंदु का हाथ पकड़े हुए वह उस के सीने पर सिर रख कर सिसकसिसक कर रोने लगा.

तभी उसे लगा जैसे बिंदु के शरीर में कोई हरकत हुई है. वह एकदम से उठ बैठा और बिंदु को आवाज देने लगा. बिंदु ने किसी तरह आंखें खोलीं और पानी कह कर फिर से आंखें बंद कर लीं. सतीश दौड़ कर पानी ले आया. 1-2 घूंट पी कर बिंदु फिर सो गई. शाम तक सतीश बिंदु के बगल में यह सोच कर बैठा रहा कि शायद वह फिर से आंखें खोलेगी.

शाम 5 बजे के करीब बिंदु ने फिर से आंखें खोलीं. सतीश ने उसे तुरंत पानी पिलाया. अब वह थोड़ी बेहतर लग रही थी. सतीश उस के लिए संतरे और अनार का जूस बना लाया. बिंदु की स्थिति में और भी सुधार हुआ. वह किसी तरह उठ कर बैठ गई. पिंकू को सीने से लगा कर रोने लगी.

सतीश ने अलमीरे से दारू की बची हुई बोतलें निकालीं और बिंदु के आगे ही उन बोतलों को बाहर फेंक दिया. फिर वह बिंदु को गले लगा कर रोता हुआ बोला,” बिंदु मुझे मेरा खुशहाल परिवार चाहिए दारू नहीं,” बिंदु हौले से मुसकरा उठी.

आज सतीश को असली सुख की पहचान हो गई थी.

True Crime Story : सुलझ गयी आत्महत्या की गुत्थी

True Crime Story : सुमन ने फांसी लगा ली, यह सुन कर मैं अवाक रह गया. अभी उस की उम्र ही क्या थी, महज 20 साल. यह उम्र तो पढ़नेलिखने और सुनहरे भविष्य के सपने बुनने की होती है. ऐसी कौन सी समस्या आ गई जिस के चलते सुमन ने इतना कठोर फैसला ले लिया. घर के सभी सदस्य जहां इस को ले कर तरहतरह की अटकलें लगाने लगे, वहीं मैं कुछ पल के लिए अतीत के पन्नों में उलझ गया. सुमन मेरी चचेरी बहन थी. सुमन के पिता यानी मेरे चाचा कलराज कचहरी में पेशकार थे. जाहिर है रुपएपैसों की उन के पास कोई कमी नहीं थी. ललिता चाची, चाचा की दूसरी पत्नी थीं. उन की पहली पत्नी उच्चकुलीन थीं लेकिन ललिता चाची अतिनिम्न परिवार से आई थीं. एकदम अनपढ़, गंवार. दिनभर महल्ले की मजदूर छाप औरतों के साथ मजमा लगा कर गपें हांकती रहती थीं. उन का रहनसहन भी उसी स्तर का था. बच्चे भी उन्हीं पर गए थे.

मां के संस्कारों का बच्चों पर गहरा असर पड़ता है. कहते हैं न कि पिता लाख व्यभिचारी, लंपट हो लेकिन अगर मां के संस्कार अच्छे हों तो बच्चे लायक बन जाते हैं. चाचा और चाची बच्चों से बेखबर सिर्फ रुपए कमाने में लगे रहते. चाचा शाम को कचहरी से घर आते तो उन के हाथ में विदेशी शराब की बोतल होती. आते ही घर पर मुरगा व शराब का दौर शुरू हो जाता. एक आदमी रखा था जो भोजन पकाने का काम करता था. खापी कर वे बेसुध बिस्तर पर पड़ जाते. ललिता चाची को उन की हरकतों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि चाचा पैसों से सब का मुंह बंद रखते थे. अगले दिन फिर वही चर्चा. हालत यह थी कि दिन चाची और बच्चों का, तो शाम चाचा की. उन को 6 संतानों में 3 बेटे व 3 बेटियों थीं, जिन में सुमन बड़ी थी.

फैजाबाद में मेरे एक चाचा विश्वभान का भी घर था. उन के 2 टीनएजर लड़के दीपक और संदीप थे, जो अकसर ललिता चाची के घर पर ही जमे रहते. वहां चाची की संतानें दीपक व संदीप और कुछ महल्ले के लड़के आ जाते, जो दिनभर खूब मस्ती करते. मेरे पिता की सरकारी नौकरी थी, संयोग से 3 साल फैजाबाद में हमें भी रहने का मौका मिला. सो कभीकभार मैं भी चाचा के घर चला जाता. हालांकि इस के लिए सख्त निर्देश था पापा का कि कोई भी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर वहां नहीं जाएगा, लेकिन मैं चोरीछिपे वहां चला जाता.

निरंकुश जिंदगी किसे अच्छी नहीं लगती? मेरा भी यही हाल था. वहां न कोई रोकटोक, न ही पढ़ाईलिखाई की चर्चा. बस, दिन भर ताश, लूडो, कैरम या फिर पतंगबाजी करना. यह सिलसिला कई साल चला. फिर एकाएक क्या हुआ जो सुमन ने खुदकुशी कर ली? मैं तो खैर पापा के तबादले के कारण लखनऊ आ गया. इसलिए कुछ अनुमान लगाना मेरे लिए संभव नहीं था. मैं पापा के साथ फैजाबाद आया. मेरा मन उदास था. मुझे सुमन से ऐसी अपेक्षा नहीं थी. वह एक चंचल और हंसमुख लड़की थी. उस का यों चले जाना मुझे अखर गया. सुमन एक ऐसा अनबुझा सवाल छोड़ गई, जो मेरे मन को बेचैन किए हुए था कि आखिर ऐसी कौन सी विपदा आ गई थी, जिस के कारण सुमन ने इतना बड़ा फैसला ले लिया.

जान देना कोई आसान काम नहीं होता? सुमन का चेहरा देखना मुझे नसीब नहीं हुआ, सिर्फ लाश को कफन में लिपटा देखा. मेरी आंखें भर आईं. शवयात्रा में मैं भी पापा के साथ गया. लाश श्मशान घाट पर जलाने के लिए रखी गई. तभी विश्वभान चाचा आए. उन्हें देखते ही कलराज चाचा आपे से बाहर हो गए, ‘‘खबरदार जो दोबारा यहां आने की हिम्मत की. हमारातुम्हारा रिश्ता खत्म.’’ कुछ लोगों ने चाचा को संभाला वरना लगा जैसे वे विश्वभान चाचा को खा जाएंगे. ऐसा उन्होंने क्यों किया? वहां उपस्थित लोगों को समझ नहीं आया. हो सकता है पट्टेदारी का झगड़ा हो? जमीनजायदाद को ले कर भाईभतीजों में खुन्नस आम बात है. मगर ऐसे दुख के वक्त लोग गुस्सा भूल जाते हैं.

यहां भी चाचा ने गुस्सा निकाला तो मुझे उन की हरकतें नागवार गुजरीं. कम से कम इस वक्त तो वे अपनी जबान बंद रखते. गम के मौके पर विश्वभान चाचा खानदान का खयाल कर के मातमपुरसी के लिए आए थे.पापा को भी कलराज चाचा की हरकतें अनुचित लगीं. चूंकि वे उम्र में बड़े थे इसलिए पापा भी खुल कर कुछ कह न सके. विश्वभान चाचा उलटेपांव लौट गए. पापा ने उन्हें रोकना चाहा मगर वे रुके नहीं. दाहसंस्कार के बाद घर में जब कुछ शांति हुई तो पापा ने सुमन का जिक्र किया. सुन कर कलराज चाचा कुछ देर के लिए कहीं खो गए. जब बाहर निकले तो उन की आंखों के दोनों कोर भीगे हुए थे. बेटी का गम हर बाप को होता है. एकाएक वे उबरे तो बमक पड़े, ‘‘सब इस कलमुंही का दोष है,’’ चाची की तरफ इशारा करते हुए बोले. यह सुन कर चाची का सुबकना और तेज हो गया.

‘‘इसे कुछ नहीं आता. न घर संभाल सकती है न ही बच्चे,’’ कलराज चाचा ने कहा. फिर किसी तरह पापा ने चाचा को शांत किया. मैं सोचने लगा, ’चाचा को घर और बच्चों की कब से इतनी चिंता होने लगी. अगर इतना ही था तो शुरू से ही नकेल कसी होती. जरूर कोई और बात है जो चाचा छिपा रहे थे, उन्होंने सफाई दी, ‘‘पढ़ाई के लिए डांटा था. अब क्या बाप हो कर इतना भी हक नहीं?’’ क्या इसी से नाराज हो कर सुमन ने आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाया? मेरा मन नहीं मान रहा था. चाचा ने बच्चों की पढ़ाई की कभी फिक्र नहीं की, क्योंकि उन के घर में पढ़ाई का माहौल ही नहीं था. स्कूल जाना सिर्फ नाम का था.

बहरहाल, इस घटना के 10 साल गुजर गए. इस बीच मैं ने मैडिकल की पढ़ाई पूरी की और संयोग से फैजाबाद के सरकारी अस्पताल में बतौर मैडिकल औफिसर नियुक्त हुआ. वहीं मेरी मुलाकात डाक्टर नलिनी से हुई. उन का नर्सिंगहोम था. उन्हें देखते ही मैं पहचान गया. एक बार ललिता चाची के साथ उन के यहां गया था. चाची की तबीयत ठीक नहीं थी. एक तरह से वे ललिता चाची की फैमिली डाक्टर थीं. चाची ने ही बताया कि तुम्हारे चाचा ने इन के कचहरी से जुड़े कई मामले निबटाने में मदद की थी. तभी से परिचय हुआ. मैं ने उन्हें अपना परिचय दिया. भले ही उन्हें मेरा चेहरा याद न आया हो मगर जब चाचा और चाची का जिक्र किया तो बोलीं, ‘‘कहीं तुम सुमन की मां की तो बात नहीं कर रहे?’’

‘‘हांहां, उन्हीं की बात कर रहा हूं,’’ मैं खुश हो कर बोला.

‘‘उन के साथ बहुत बुरा हुआ,’’ उन का चेहरा लटक गया.

‘‘कहीं आप सुमन की तो बात नहीं कर रहीं?’’

‘‘हां, उसी की बात कर रही हूं. सुमन को ले कर दोनों मेरे पास आए थे,’’

डा. नलिनी को कुछ नहीं भूला था. नहीं भूला तो निश्चय ही कुछ खास होगा?

‘‘क्यों आए थे?’’ जैसे ही मैं ने पूछा तो उन्होंने सजग हो कर बातों का रुख दूसरी तरफ मोड़ना चाहा.

‘‘मैडम, बताइए आप के पास वे सुमन को क्यों ले कर आए,’’ मैं ने मनुहार की.

‘‘आप से उन का रिश्ता क्या है?’’

‘‘वे मेरे चाचाचाची हैं. सुमन मेरी चचेरी बहन थी,’’ कुछ सोच कर डा. नलिनी बोलीं, ‘‘आप उन के बारे में क्या जानते हैं?’’

‘‘यही कि सुमन ने पापा से डांट खा कर खुदकुशी कर ली.’’

‘‘खबर तो मुझे भी अखबार से यही लगी,’’ उन्होंने उसांस ली. कुछ क्षण की चुप्पी के बाद बोलीं, ‘‘कुछ अच्छा नहीं हुआ.’’

‘‘क्या अच्छा नहीं हुआ?’’ मेरी उत्कंठा बढ़ती गई.

‘‘अब छोडि़ए भी गड़े मुरदे उखाड़ने से क्या फायदा?’’ उन्होंने टाला.

‘‘मैडम, बात तो सही है. फिर भी मेरे लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर सुमन ने खुदकुशी क्यों की?’’

‘‘जान कर क्या करोगे?’’

‘‘मैं उन हालातों को जानना चाहूंगा जिन की वजह से सुमन ने खुदकुशी की. मैं कोई खुफिया विभाग का अधिकारी नहीं फिर भी रिश्तों की गहराई के कारण मेरा मन हमेशा सुमन को ले कर उद्विग्न रहा.’’

‘‘आप को क्या बताया गया है?’’

‘‘यही कि पढ़ाई के लिए चाचा ने डांटा इसलिए उस ने खुदकुशी कर ली.’’

इस कथन पर मैं ने देखा कि डा. नलिनी के अधरों पर एक कुटिल मुसकान तैर गई. अब तो मेरा विश्वास पक्का हो गया कि हो न हो बात कुछ और है जिसे डा. नलिनी के अलावा कोई नहीं जानता. मैं उन का मुंह जोहता रहा कि अब वे राज से परदा हटाएंगी. मेरा प्रयास रंग लाया. वे कहने लगीं, ‘‘मेरा पेशा मुझे इस की इजाजत नहीं देता मगर सुमन आप की बहन थी इसलिए आप की जिज्ञासा शांत करने के लिए बता रही हूं. आप को मुझे भरोसा देना होगा कि यह बात यहीं तक सीमित रहेगी.’’

‘‘विश्वास रखिए मैडम, मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा जिस से आप को रुसवा होना पड़े.’’

‘‘सुमन गर्भवती थी.’’

सुन कर सहसा मुझे विश्वास नहीं हुआ. मैं सन्न रह गया.

‘‘सुमन के गार्जियन गर्भ गिरवाने के लिए मेरे पास आए थे. गर्भ 5 माह का था. इसलिए मैं ने कोई रिस्क नहीं लिया.’’

मैं भरे मन से वापस आ गया. यह मेरे लिए एक आघात से कम नहीं था. 20 वर्षीय सुमन गर्भवती हो गई? कितनी लज्जा की बात थी मेरे लिए. जो भी हो वह मेरी बहन थी. क्या बीती होगी चाचाचाची पर, जब उन्हें पता चला होगा कि सुमन पेट से है? चाचा ने पहले चाची को डांटा होगा फिर सुमन को. बच निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखा तो सुमन ने खुदकुशी कर ली.

मेरे सवाल का जवाब अब भी अधूरा रहा. मैं ने सोचा डा. नलिनी से खुदकुशी का कारण पता चल जाएगा तो मेरी जिज्ञासा खत्म हो जाएगी मगर नहीं, यहां तो एक पेंच और जुड़ गया. किस ने सुमन को गर्भवती बनाया? मैं ने दिमाग दौड़ाना शुरू किया. चाचा ने श्मशान घाट पर विश्वभान चाचा को देख कर क्यों आपा खोया? उन्होंने तो मर्यादा की सारी सीमा तोड़ डाली थी. वे उन्हें मारने तक दौड़ पड़े थे. मेरी विचार प्रक्रिया आगे बढ़ी. उस रोज वहां विश्वभान चाचा के परिवार का कोई सदस्य नहीं दिखा. यहां तक कि दिन भर डेरा डालने वाले उन के दोनों बेटे दीपक और संदीप भी नहीं दिखे. क्या रिश्तों में सेंध लगाने वाले विश्वभान चाचा के दोनों लड़कों में से कोई एक था? मेरी जिज्ञासा का समाधान मिल चुका था.

Emotional Story In Hindi : चौकलेट चाचा

Emotional Story In Hindi : रूपल के पति का तबादला दिल्ली हो गया था. बड़े शहर में जाने के नाम से ही वह तो खिल गई थी. नया शहर, नया घर, नए तरीके का रहनसहन. बड़ी अच्छी जगह के अपार्टमैंट में फ्लैट दिया था कंपनी ने. नीचे बहुत बड़ा एवं सुंदर पार्क था, जिस में शाम के समय ज्यादातर महिलाएं अपने बच्चों को ले कर आ जातीं. बच्चे वहीं खेल लेते और महिलाएं भी हवा व बातों का आनंद लेतीं. हरीभरी घास में रंगबिरंगे कपड़े पहने बच्चे बड़े ही अच्छे लगते. रूपल ने भी सोसाइटी के रहनसहन को जल्दी ही अपना लिया और शाम के समय अपनी डेढ़ वर्षीय बेटी को पार्क में ले कर जाने लगी. एक दिन उस ने देखा कि एक बुजुर्ग के पार्क में आते ही सभी बच्चे दौड़ कर उन के पास पहुंच गए और चौकलेट चाचा, चौकलेट चाचा कह कर उन से चौकलेट लेने लगे. सभी बच्चों को चौकलेट दे वे रूपल के पास भी आए और उस से भी बातें करने लगे. फिर रूपल व उस की बेटी को भी 1-1 चौकलेट दी. पहले तो रूपल ने झिझकते हुए चौकलेट लेने से इनकार कर दिया, किंतु जब चौकलेट चाचा ने कहा कि बच्चों के चेहरे पर खुशी देख उन्हें बहुत अच्छा लगता है, तो उस ने व उस की बेटी ने चौकलेट ले ली.

पूरे अपार्टमैंट के लोग उन्हें चौकलेट चाचा के नाम से पुकारते, इसलिए अब रूपल की बेटी भी उन्हें चौकलेट चाचा कहने लगी और उन से रोज चौकलेट लेने लगी. वह भी और बच्चों की तरह उन्हें देख कर दौड़ पड़ती. ऐसा करतेकरते 6 माह बीत गए. अब तो रूपल की अपार्टमैंट में सहेलियां भी बन गई थीं. एक दिन उस की एक सहेली ने जिस की 10 वर्षीय बेटी थी, उस से पूछा, ‘‘क्या तुम चौकलेट चाचा को जानती हो?’’

रूपल ने कहा, ‘‘हां बहुत अच्छे इंसान हैं. सारे बच्चों को बहुत प्यार करते हैं.’’ उस की सहेली ने कहा, ‘‘मैं ने सुना है कि चौकलेट के बदले लड़कियों को अपने गालों पर किस करने के लिए बोलते हैं.’’

रूपल बोली, ‘‘ऐसा तो नहीं देखा.’’

सहेली ने आगाह करते हुए कहा, ‘‘तुम थोड़ा ध्यान देना इस बार जब वे पार्क में आएं.’’

रूपल ने जवाब में ‘हां’ कह दिया. अगले ही दिन जब रूपल अपनी बेटी को ले कर पार्क गई तो उस ने देखा कि चौकलेट चाचा वहां बैठे थे. उस की बेटी दौड़ कर उन के पास गई और उन के गालों पर किस कर दिया. रूपल तो यह देखते ही सन्न रह गई. वह तो समझ ही न पाई कि कब व कैसे चौकलेट चाचा ने उस की बेटी को किस करने के लिए ट्रेंड कर दिया था. वह चौकलेट के लालच में उन्हें किस करने लगी थी. अब जब भी वह पार्क में जाती तो चौकलेट चाचा को देखते ही सतर्क हो जाती और हर बार उन्हें मना करती कि वे उस की बेटी को चौकलेट न दें. वह यह भी देखती कि चौकलेट चाचा अन्य लड़कियों को गले लगाते एवं कुछ की छाती व पीठ पर भी मौका पाते ही हाथ फिरा देते. यह सब देख उसे घबराहट होने लगी थी और वह स्तब्ध रह जाती थी कि चौकलेट चाचा कैसे सब लड़कियों को ट्रेनिंग दे रहे थे और उन की मासूमियत और अपने बुजुर्ग होने का फायदा उठा रहे थे.

उस ने अपने पति को भी यह बात बताई, तो जब कभी वह अपने पति व बेटी के साथ पार्क जाती और चौकलेट चाचा को देखती तो उस के पति यह कह देते कि उन की बेटी को डाक्टर ने चौकलेट खाने के लिए मना किया है, इसलिए वे उसे न दें. पर चौकलेट चाचा तो उसे चौकलेट दिए बिना मानते ही नहीं थे. दोनों पतिपत्नी ने उन्हें कई बार समझाया, पर वे किसी न किसी तरह उन की बेटी को चौकलेट दे ही देते. अब रूपल चौकलेट चाचा को देखते ही अपनी बेटी को उन के सामने से हटा ले जाती, लेकिन चौकलेट चाचा तो अपार्टमैंट में सब जगह घूमते और उस की बेटी को चौकलेट दे ही देते. बदले में उस की बेटी उन्हें बिना बोले ही किस कर देती. अब रूपल मन ही मन डरने लगी थी कि इस तरह तो उस की बेटी चौकलेट या किसी अन्य वस्तु के लिए किसी के भी पीछे चल देगी. और वह इतनी बड़ी भी न थी कि वह उसे समझा सके. इस तरह तो कोई भी उस की बेटी को बहलाफुसला सकता है. उस ने फैसला कर लिया कि अब वह चौकलेट चाचा को मनमानी नहीं करने देगी.

अगले दिन जब चौकलेट चाचा अपने अन्य बुजुर्ग मित्रों के साथ पार्क में आए और जैसे ही उस की बेटी को चौकलेट देने लगे, वह चीख कर बोली, ‘‘मैं आप को कितनी बार बोलूं कि आप मेरी बेटी को चौकलेट न दें.’’ इस बार चौकलेट चाचा रूपल का मूड समझ गए. उन के मित्र तो इतना सुन कर वहां से नदारद हो गए. चौकलेट चाचा भी बिना कुछ बोले वहां से खिसक लिए. किसी बुजुर्ग से इस तरह व्यवहार करना रूपल को अच्छा न लगा, इसलिए वह पार्क में अकेले ही चुपचाप बैठ गई. तभी वे सभी महिलाएं जो आसपास थीं और यह सब होते देख रही थीं, उस के पास आईं. उन में से एक बोली, ‘‘हां, तुम ने ठीक किया. हम सभी चौकलेट चाचा की इन हरकतों से बहुत परेशान हैं. ये तो लिफ्ट में आतीजाती महिलाओं को भी किसी न किसी बहाने स्पर्श करना चाहते हैं. मगर इन की उम्र का लिहाज करते हुए महिलाएं कुछ बोल नहीं पातीं.’’ उस के इतना कहने पर सब एकएक कर अपनेअपने किस्से बताने लगीं. अब रूपल को समझ में आ गया था कि चौकलेट चाचा की हरकतों को कोई भी पसंद नहीं कर रहा था, लेकिन कहते हैं न कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे, इसीलिए सभी चुप थीं.

उस दिन वह गहरी सोच में पड़ गई कि क्या यही है हमारा सभ्य समाज, जहां लोग अपनी उम्र की आड़ में या फिर लोगों द्वारा किए गए लिहाज का फायदा उठाते हुए मनमानी या यों कहिए कि बदतमीजी करते हैं? और तो और मासूम बच्चों को भी नहीं छोड़ते. अब उसे अपने किए पर कोई पछतावा न था और अपने उठाए कदम की वजह से वह अपार्टमैंट की सभी महिलाओं की अच्छी सहेली बन गई थी. उस के द्वारा की गई पहल पर सब उसे बधाइयां  दे रहे थे.

Best Kahani : अंतिम फैसला

Best Kahani : रमा सुबह जल्दी उठ जाया करती थी. गांव में थी तब भी दिन की शुरुआत सुबह 5 बजे से हो जाती थी. गांव में तो करने को ढेरों काम और बहुत सारी बातें थीं लेकिन यहां शहर आ कर तो उस की जिंदगी जैसे 2 कमरों में सिमट कर रह गई थी. गांव में अच्छीखासी खेतीबाड़ी होने के बावजूद सुकेश की जिद के आगे उस की एक न चल पाई और उस के पीछे उसे गांव का भरापूरा परिवार छोड़ कर अकेले शहर आना पड़ा.

सुकेश वैसे तो प्रकृति प्रेमी युवक था और अपने खेतों से बहुत प्यार करता था, लेकिन उस की जिंदगी में कुछ नया करने की महत्त्वाकांक्षा उसे गांव की धूलमिट्टी से सनी गलियों से निकाल कर शहर की चकाचौंध वाली दुनिया में ले आई थी.

एमएससी ऐग्रीकल्चर से करने के बाद शहर की एक नामी ऐग्रीकल्चर कंपनी में उस की नौकरी लगने पर वह अकेले ही शहर आ कर रहने लगा था. रमा से शादी तो उस के बीएससी कर लेने के बाद ही हो गई थी.

रमा सुकेश की तरह बहुत पढ़ीलिखी तो न थी लेकिन गांव के स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई उस ने पूरी की थी. सुकेश महत्त्वाकांक्षी जरूर था लेकिन गांव और अपने परिवार के संस्कार उस की नसनस में बसे हुए थे। इसी से रमा के कम पढ़ेलिखे होने की बात उस के वैवाहिक जीवन में बाधा न बन सकी.

शादी के बाद गांव में सासससुर,  ननद और काका ससुर के संयुक्त परिवार के संग रहते हुए उसे सुकेश से दूर रहते हुए बहुत ज्यादा परेशानी नहीं हुई. वैसे तो सुकेश किसी न किसी बहाने हर महीने गांव आता रहता था लेकिन फिर भी 2 साल तक दोनों पतिपत्नी इसी तरह परदेशी की तरह अपनी गृहस्थी की गाड़ी आगे बढ़ा रहे थे. एमएससी करने के बाद नौकरी मिलते ही सुकेश जिद कर उसे अपने साथ शहर ले आया था.

गांव से यहां आ कर पिछले 1 महीने में वह सुकेश की नौकरी के समय के अनुसार उस की जरूरतों को संभालने की अभ्यस्त हो चुकी थी. सुकेश रोज सुबह 7 बजे टिफिन लेकर नौकरी के लिए निकल पड़ता और शाम को 7 बजे तक ही वापस घर आ पाता.

रमा के लिए घर में सारा दिन करने के लिए कोई खास काम न था. दिनभर टीवी के सामने बैठ कर कभी समाचार तो कभी कोई फिल्म या कोई धारावाहिक देख कर जैसेतैसे वह शहर के इस एकांतवास को भोग रही थी. बहुत मन होता तो कभी अपने मायके और कभी अपनी ससुराल में अपनी हमउम्र ननद से बतिया लेती.

सुकेश ने उसे अपनी गैरहाजरी में घर से बाहर निकलने को मना किया हुआ था और जिस फ्लैट में वे लोग रहते थे उस में अभी गिन कर 5 परिवार ही रहने आए थे. रमा 1 महीने के इस समय में यहां किसी से ज्यादा जानपहचान नहीं कर पाई थी.

किराया सस्ता पड़ने की वजह से शहर की सीमारेखा से कुछ दूरी पर होने के बावजूद भी सुकेश ने नया बना यह फ्लैट 2 महीने पहले ही किराए पर लिया था.

रोज की आदत के मुताबिक आज भी रमा की नींद तो सुबह 5 बजे ही खुल गई थी. उस ने अपनी बगल में सोए हुए सुकेश पर नजर डाली. वह अपनी आदत अनुसार सिर से पैर तक चादर ओढ़ कर चैन से सो रहा था.

पिछले कुछ दिनों शहर में चल रहे लौकडाउन की वजह से जल्दी उठ कर नौकरी जाने की कोई झंझट न थी. रमा ने पिछले 1 महीने के समय में पिछले 2 दिनों से ही सुकेश को चैन की नींद ले कर सोते देखा वरना नौकरी के कामकाज और तनाव से गुजरते हुए वह आधीआधी रात तक जागता हुआ न जाने क्या करता रहता था. रमा कुछ देर यों ही बिस्तर पर करवट ले कर पड़ी रही लेकिन फिर कुछ सोच कर उठ कर कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर गैलरी में आकर खड़ी हो गई.

रात को हुई हलकी बारिश की वजह से सुबहसुबह चल रही ठंडी हवा का स्पर्श पा कर वह रोमांचित हो उठी.

उस पर पक्षियों का कलरव उस के मन को बरबस ही गांव की ओर खींच कर ले जाने लगा. वह इस सुंदर क्षणों को सुकेश के साथ महसूस करना चाह रही थी. उस ने खुले हुए दरवाजे से पीछे मुड़ कर देखा, सुकेश अभी भी गहरी नींद में था. एक पल को उस का मन हुआ कि सुकेश को नींद से जगाए और साथसाथ गरमगरम चाय पीते हुए दोनों गैलरी में बैठ कर खूब बातें करे लेकिन दूसरे ही पल उसे गहरी नींद में सोया पा कर उस ने अपने मन को समझा लिया. वह चुपचाप वहां खड़ी आंखें बंद कर गांव की पुरानी यादों को याद करने लगी.

काफी देर तक अपने में खोई वह वहां खड़ी रही. तभी उस के कानों में मोबाइल की रिंग की आवाज सुनाई दी.

सुकेश अपना मोबाइल अपने तकिए के नीचे ही रख कर सोया हुआ था लेकिन काफी देर तक रिंग बजने के बावजूद भी वह फोन नहीं उठा रहा था. रमा को सुकेश के इस आलसीपने पर गुस्सा आया और वह फुरती से अंदर आ गई. सुकेश के तकिए के नीचे से उस का मोबाइल उठाया तो मोबाइल स्क्रीन पर इस वक्त मि. रंजन ऐग्रीफार्मा प्राइवेट लिमिटेड नाम झलकता देख वह चौंक सी गई. सुकेश ने बातोंबातों में उसे बताया था कि मि. रंजन उस के बौस का नाम है. उस ने सुकेश को उठाने के लिए अपना हाथ आगे बढाया लेकिन तब तक रिंग आनी बंद हो गई.

रमा ने मोबाइल बिस्तर पर रखा और बड़े ही प्यार से सुकेश को उठाने के लिए चादर उस के सिर पर से खींची. सुकेश ने रमा की इस हरकत का कोई प्रतिकार नहीं किया तो रमा ने शरारत करते हुए उस के बालों को सहलाया. इस पर भी सुकेश ने अपनी कोई प्रतिक्रिया न दी. रमा ने इस दफा उसे जोर से हिलाया लेकिन सुकेश की तरफ से कोई भी हलचल न पा कर वह घबरा गई.

“सुकेश, यह क्या मजाक है. उठो न…” रमा ने कांपते हुए स्वर में एक बार फिर से उसे हिलाया. सुकेश इस बार भी न हिला और न ही अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया दी. उस के शरीर में कोई हलचल न न पाकर रमा की घबराहट और भी ज्यादा बढ़ गई.

सहसा उस ने अपने कान उस की छाती के पास ले जा कर उस की धड़कन को सुनने का प्रयास किया. उस ने महसूस किया उस की छाती में सांसों के चलने से होने वाली हलचल नदारत थी. उस ने एक बार फिर से सुकेश को पकड़ कर जोर से हिलाया.

सुकेश उतना ही हिला जितनी रमा ने उसे हिलाया. रमा ने घबराते हुए अपनी 2 उंगलियां सुकेश की नाक के पास ले जा कर रख दी. थोड़ी देर पहले अनहोनी को ले कर मन में समाई हुई घबराहट ने अब रुलाई का रूप ले लिया. रमा सुकेश से लिपट कर रोने लगी. काफी देर तक वह घबराहट की वजह से वह कुछ सोच न पाई. तभी कांपते हाथों से उस ने सुकेश का मोबाइल उठाया और काल लौग में से अपने ससुरजी से की गई बात वाले नंबर पर काल कर दी।

“सुकेश बेटा, आज इतने सवेरे कौन सा काम आ गया?”अपनी सास का स्वर सुन कर रमा की रुलाई फूट पड़ी.

“बहू, तू रो रही है? क्या बात हो हुई?” रमा की रुलाई सुन कर उस की सास ने घबराते हुए पूछा.

“मांजी, यह…यह…” रमा के मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे.

“क्या हुआ? सुकेश को फोन दो. तुम क्यों रो रही हो?” रमा की सास के स्वर में घबराहट और बढ़ गई.

“यह उठ ही नहीं रहे हैं,” एक ही सांस में बोलते हुए रमा रोने लगी.

“तो रोती क्यों है? उस की तो आदत है परेशान करने की. सुबह उठने के नाम पर मुझे भी बहुत परेशान करता था. एक लोटा पानी डाल दे उस के मुंह पर. गधे की तरह चिल्ला कर खड़ा हो जाएगा,” रमा की बात सुन कर उस की सास की घबराहट दूर हुई.

“नहीं, सच में नहीं उठ रहे हैं,” रमा आगे कुछ न बोल पाई और फोन बिस्तर पर रख कर वह अपना सिर पकड़ कर रोने लगी.

सुकेश के मोबाइल पर कुछ देर तक हैलोहैलो… का स्वर गूंजता रहा और फिर फोन बंद हो गया. तभी रमा के मोबाइल की रिंग बजने लगी. रमा ने अपना हाथ बढ़ा कर मोबाइल अपने हाथ में लिया. आंखों में उभर आए आंसुओं की वजह से उसे मोबाइल स्क्रीन पर झलकता हुआ ‘पापाजी’ नाम धुंधला सा नजर आया.

उस की हिम्मत ही नहीं हुई कि अपने ससुरजी से बात कर सके. थोड़ी देर रिंग बजने के बाद बंद हो गई लेकिन फिर अगले ही क्षण फिर से उस का फोन बजने लगा. इस बार उस के फोन की स्क्रीन पर उस की ननद का नंबर झलक रहा था. रमा ने हिम्मत कर बात शुरू की.

“हैलो…रानू… तेरे भैया…” रमा ने रोते हुए कहा.

“भाभी, क्या हुआ भैया को? मम्मी आप से बात कर बुरी तरह से घबरा गई हैं और भैया का मोबाइल स्विच्ड औफ क्यों आ रहा है? आप भी पापा का फोन नहीं उठा रही हैं? क्या हुआ भाभी?” रानू ने एकसाथ ढेर सारे सवाल कर डाले.

रानू की बात सुन कर रमा ने
सुकेश का मोबाइल हाथ में लिया. उस का मोबाइल सच में स्विच्ड औफ हो चुका था.

“तेरे भैया की सांस नहीं चल रही है रानू … मैं क्या करूं?” रमा ने हिम्मत जुटा कर आगे बात बढ़ाई.

“क्या? आप पागल तो नहीं हो गईं? भैया तो भैया… आप भी उन की संगत में ऐसा बेहूदा मजाक करने लगीं,” रानू अब भी रमा की बात पर विश्वास नहीं कर पा रही थी. वह सुकेश की हर समय मजाक करने की आदत से वाकिफ थी और सुकेश ने कई दफा खुद के मरने का नाटक कर सब को डराया भी था। इसी से रानू रमा द्वारा की गई हकीकत को समझ नहीं पा रही थी.

“नहीं रानू, मैं मजाक नहीं कर रही हूं,” कहते हुए रमा की रुलाई फूट पड़ी. तभी रमा को अपने ससुर का स्वर सुनाई दिया, “बहू, आसपास कोई डाक्टर रहता है?”

“मैं यहां किसी को नहीं जानती पापाजी और इन के मोबाइल की बैटरी भी खत्म हो गई है,” रमा अब तक कुछ हिम्मत जुटा पाई थी.

“आसपड़ोस में किसी को उठा कर बात करो,” उस के ससुर ने हिम्मत रखते हुए रमा को सुझाया.

“जाती हूं पापाजी,” कहते हुए रमा बदवहाश सी बाहर की तरफ दौड़ी. सहसा उसे याद आया कि उस के पड़ोस में रहने वाले अमितजी अपने परिवार को ले कर लौकडाउन की घोषणा होने के 1 दिन पहले ही अपने पैतृक शहर चले गए थे. बाकि के 2 फ्लैट खाली थे.

वह तेज कदमों से सीढ़ियां उतर कर तीसरी मंजिल पर आ गई. उस का यहां किसी से खास परिचय न था. वह सभी को केवल नाम से जानती थी और उन के व्यवहार से अपरिचित थी लेकिन फिर भी उस ने बारीबारी से घबराहट के मारे सभी 4 फ्लैटों की डोरबेल बजा दी. एकएक कर 3 दरवाजे खुले.

रमा बदवहाश सी सब के सामने खड़ी बारीबारी से सब के चेहरों को ताक रही थी. सभी लोग अपनेअपने घरों की दहलीज पर खड़े बाहर आने से कतरा रहे थे.

“क्या हुआ? आप इतनी परेशान सी क्यों है?”

“वो…वो… सुकेश… उठ नहीं रहे हैं… डाक्टर…” रमा समझ नहीं पा रही थी वह कैसे अपनी बात कहे. घबराहट के मारे उस का पूरा बदन कांप रहा था.

“मिसेस सुकेश, आप घबरा क्यों रही हैं? क्या हुआ सुकेशजी को?” तभी 301 में रहने वाले मि. शाह ने रमा से पूछा.

मि. शाह सुकेश को अकसर औफिस जाते हुए लिफ्ट देते थे। इसी से वह उस के बारे में थोड़ाबहुत जानते थे.

“भाई साहब, डाक्टर… डाक्टर… वे उठ नहीं रहे हैं,” कहते हुए रमा की आंखों से आंसू झरने लगे. उस ने अपनी साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछने का यत्न किया.

“चलिए….मैं चल कर देखता हूं. डाक्टर तो शायद इस वक्त यहां जल्दी से पहुंच न सकें,” कहते हुए मि. शाह ने बाहर निकलने के लिए जैसे ही अपना पैर उठाया तभी उन के पीछे खड़ी उन की पत्नी ने उन का हाथ पकड़ कर आंखों के इशारे से घर से बाहर जाने से मना किया.

इस मंजिल पर केवल 3 परिवार ही रहते थे। उन में से केवल मि. शाह का ही यह खुद का फ्लैट था बाकि के दोनों परिवार किराए पर रहते थे और रमा से उन का ज्यादा परिचय न था.

“बस 2 मिनट में जा कर आ जाऊंगा. कुछ नहीं होगा,” मि. शाह ने अपनी पत्नी से कहा और उस के उत्तर की परवाह किए बिना वे रमा के पीछे तेज कदमों से सीढियां चढ़ने लगे.

रमा हांफते हुए अंदर बैडरूम में दाखिल हुई और उन के पीछे मि. शाह झिझकते हुए अंदर आए. वह सुकेश के नजदीक गए और उस की कलाई अपने हाथ में ले कर उस की नब्ज देखने लगे. फिर उन्होंने उस की नाक के आगे अपनी उंगली रख कर उस की सांस की गति जानने की कोशिश की लेकिन फिर उस के शरीर में कोई हलचल न पा कर उन्होंने अपने मोबाइल से एक नंबर डायल किया. किसी से संक्षेप में बात कर वे रमा को सांत्वना देने लगे.

“भाभीजी, यहां और कोई रहता है आपका? सुकेश को शायद हार्ट अटैक आया हो. कोई उम्मीद तो जान नहीं पड़ रही, फिर भी मेरे एक परिचित डाक्टर आ रहे हैं।”

मि. शाह की बात सुन कर रमा बिस्तर पर सिर पकड़ कर बैठ गई. तभी उस का मोबाइल फिर से बजने लगा. रमा ने कोई सुध न ली तो मि. शाह ने मोबाइल लिया और बात करनी शुरू की…

“मैं सुकेश का पड़ोसी बोल रहा हूं. रमाजी इस वक्त बात करने की हालत में नहीं हैं।”

“मैं सुकेश का पिता बोल रहा हूं. कैसा है सुकेश अब?”

मि. शाह सुकेश के पिता की बात सुन कर दो पल को ठिठक गए फिर कुछ स्वस्थ हो कर वह बोले, “अंकल, डाक्टर को बुलाया है लेकिन कोई उम्मीद जान नहीं पड़ रही है. सुकेश की सांस नहीं चल रही है.”

“नहीं नहीं… डाक्टर के कहे बिना आप किसी नतीजे पर कैसे पहुंच सकते हैं? आप मेरी बहू को फोन दीजिए,” सुकेश के पिता का स्वर कांप रहा था.

“मैं इस वक्त सुकेश के घर पर ही हूं. भाभीजी कुछ भी बोल नहीं पा रही हैं,” मि. शाह ने रमा को फोन देने की कोशिश की लेकिन रमा अपने में ही खोई हुई थी.

“ओह, मैं अभी शहर आने के लिए निकलता हूं,” सुकेश के पिता बोले.

“अंकल, शहर में कोरोना की वजह से कल ही एक मौत हुई है. इसी से लौकडाउन की वजह से बहुत ही कठोरता से अमल किया जा रहा है. शहर से बाहर तो क्या हरएक कालोनी से बाहर निकलने नहीं दिया जा रहा है. न तो हम सुकेश को वहां ले कर आ सकते हैं और न ही आप यहां आ सकते हैं. हम सभी को खतरा है.”

तभी रमा अचानक से अपनी जगह से खड़ी हुई और मि. शाह के हाथ से मोबाइल ले लिया.

“पापाजी, आप जल्दी आ जाइए. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है क्या करूं,” कहते हुए रमा रोने लगी.

‘बहू, धीरज रखो। मैं कुछ करता हूं,” कह कर सुकेश के पिता ने फोन रख दिया.

अपने पति को काफी देर तक वापस आया न देख मिसेज शाह रमा के यहां आ गई. सारी परिस्थिति देख कर वे अपना भय दूर रख कर रमा के पास आकर बैठ गईं और उसे सांत्वना देने लगीं.

कुछ ही देर में डाक्टर ने आ कर हार्ट अटैक से सुकेश की मौत होने की पुष्टि कर दी. रमा अब तक कुछ संभल चुकी थी. वह बैडरूम से बाहर आ गई। तभी उस के मोबाइल की रिंग बजी. स्क्रीन पर झलकते नंबर को देख कर उस ने तेजी से फोन रिसीव किया, “भैया… भैया… आप जल्दी से यहां आ जाओ. मुझे समझ नहीं आ रहा क्या करूं. अब तो डाक्टर ने भी कह दिया,” अपने भाई से बात करते हुए रमा एक बार फिर से धीरज खो कर रोने लगी.

“रमा, धीरज रखो बहन, तुम्हारे ससुरजी का फोन आया था अभी. मैं कुछ करता हूं। हिम्मत रखो,” भाई का स्वर सुन कर रमा और जोरजोर से रोने लगी.

तभी उस ने जोर से छींक दी। उसे इस तरह छींकते देख मिसेज शाह घबरा गईं और अपने पति के कान में कुछ कहने लगी.

“इस हालत में कैसे अकेला छोड़ दें इन्हें. हमें ही कुछ करना होगा. यहां सुकेश का कोई नहीं है,” मि. शाह ने धीरे से अपनी पत्नी की बात का जवाब देते हुए कहा.

“आप सरकारी अस्पताल वालों को फोन कर दो. वे लाश को निकाल देंगे.”

“क्या बकवास कर रही हो तुम? मानवता भी कोई चीज होती है. रमा को एक सामान्य सी छींक आने से डर कर उसे इस कठिन परिस्थिति में अकेला नहीं छोड़ सकते. कुछ नहीं होगा,” मि. शाह का स्वर गुस्से से तेज हो गया.

अपने घर बात करते हुए रमा का ध्यान उन की तरफ गया लेकिन तभी फोन पर उस की मां आने पर उस की सिसकियां और ज्यादा बढ़ गईं.

“मम्मी…” रमा रोने लगी.

“रमा, हिम्मत से काम ले बेटी. इस वक्त तू हिम्मत खो कर बैठ गई तो क्या होगा… हम सब प्रयास कर रहे वहां आने के लिए,” रमा की मम्मी उसे सांत्वना देने लगी.

तभी मि. शाह अपने मोबाइल से किसी से बात करने लगे. बारीबारी से कुछ लोगों से बात कर जब उन्होंने अपना मोबाइल जेब में रखा तब तक रमा अपनी बात कर चुपचाप एक कोने में बैठ गई थी.

“भाभीजी, मैं ने पुलिस, डाक्टर और टैक्सी वालों से बात की है. पुलिस का कहना है कि वे श्मशान तक जाने की व्यवस्था करवा देंगे लेकिन शहर के बाहर से किसी का किसी भी वजह से आना और यहां से बाहर जाना नामुमकिन है,”  मि. शाह ने रमा के सामने खड़े हो कर अब तक अपनी हुई बातों का सार बताते हुए कहा.

“मेरे ससुर की काफी पहुंच है। वे कुछ न कुछ कर जरूर आ जाएंगे और मैं सुकेश को ले कर गांव जाऊंगी,” रमा की आंखों में विश्वास झलक रहा था.

मि. शाह कुछ कहने ही जा रहे थे कि तभी रमा का मोबाइल फिर से बजने लगा.

“पापाजी, सब हो गया न? आप कब तक आ रहे है?”

“बहू, बहुत प्रयास किए… पर…”

“नहीं, आप आ कर लेकर जाइए मुझे और सुकेश को,” अपने ससुर की बात सुन कर रमा दुखी हो गई.

“बहू, तू बहादुर है और देशभक्त भी. देखो, इस वक्त भावनाओं में बह कर कोई भी ऐसा फैसला लेने का नहीं है जिस से पूरा मानव समुदाय खतरे में पड़ जाए. हिम्मत से काम लो. वहां समय के हिसाब से फैसला ले कर सुकेश की अंतिम क्रिया करवा दो।”

रमा ने महसूस किया कि उसे हिम्मत बंधाते हुए उस के ससुर बड़ी ही मुश्किल से बात कर पा रहे थे.

‘पर पापाजी, उन के अंतिम दर्शन…” रमा ने मायूसी भरे शब्दों में पूछा.

“उस की चिंता मत करो तुम। रानू फोन से वीडियो पर बात करेगी. बस, फोन से देख कर ही अपना मन मना लेंगे. जाने वाला तो चला गया लेकिन उसे छोड़ने जाने के पीछे दूसरे लोगों की जान खतरे में नहीं डाल सकता मैं,” रमा के ससुर ने कहा और जानबूझ कर फोन बंद कर दिया.

रमा कुछ देर चुपचाप बैठी रही फिर मि. शाह की ओर देख कर हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई.

“भाई साहब, इस घड़ी आप ही मेरे सगे हैं. उन्हें श्मसान तक पहुंचाने की व्यवस्था करवा दीजिए. मेरा परिवार देश की सुरक्षा को ध्यान में रख कर नहीं पहुंच पाएगा,” रमा ने बड़ी मुश्किल से कहा और अपने मोबाइल से एक काल की।

“मम्मी, भैया से कहना कि अपनी और किसी और की जान जोखम में न डालें. मैं देशभक्त परिवार की बहू हूं और देश की सुरक्षा की खातिर आप से विनती करती हूं. मुझे इस वक्त अकेला ही रहने दो. उन के पापा से बात हो गई है. मैं अंतिम क्रिया की तैयारी करवा रही हूं. आप को वीडियो काल करूंगी, अपने जमाई के अंतिम दर्शन कर लेना,” रमा ने आगे किसी की बात सुने बिना फोन बंद कर दिया.

मि. शाह ने हाथ जोड़ कर रमा के निर्णय का सम्मान किया और फोन पर बात करते हुए सुकेश की अंतिम क्रिया की तैयारियों करने में जुट गए.

लेखक- आशीष दलाल

Best Hindi Kahaniyan : सुर्खाब के पंख टूटे तो

Best Hindi Kahaniyan : ‘‘आईमी, कितनी बार मैं तुम्हें आवाज लगा कर गया. कब उठोगी? संडे है, इस का मतलब यह नहीं कि दोपहर तक सोती रहो. 10 बजने को हैं, एयरपोर्ट जाने का वक्त हो गया, दादी का प्लेन जमीन पर उतर रहा होगा. सौरभ बेटी पर खीझ उठे थे.’’

रितिका बाथरूम से नहाधो कर निकल चुकी थी. 46 वर्ष की रितिका स्त्री लालित्य में अभी भी शोडशी बाला को टक्कर दे सकती थी. कम से कम यह एक कारण तो था कि सौरभ अपना 5वां दशक पार करने के बावजूद स्वयं को युवा और कामातुर समझने में लज्जित नहीं थे. रितिका अपनी झीनी सी स्किन कलर की नाइटी में गीले व उलझे बालों में हाथ फिराती मदमस्त सी सौरभ की ओर अग्रसर हुई, कामुक मुसकान बिखेरती उन के बदन से लिपटती रितिका ने कहा, ‘‘मेरे सैक्सी, (यह रितिका का सौरभ के लिए शौर्टफौर्म था) दादी को बच्चों के लिए हौआ मत बनाओ. आने दो न उन्हें. सबकुछ बदलना जरूरी नहीं है. जो जैसा है, वैसा चलने दो. वे अपने हिसाब से रहेंगी.’’

‘‘ठीक है, पर तुम साड़ी तो पहन लोगी न? इस में से तो सबकुछ दिख रहा है.’’

‘‘अच्छा, सबकुछ?’’

‘‘मेरा मतलब है, मां को बुरा लगेगा.’’

‘‘सैक्सी, जब उन के आने का वक्त होता है, तुम हमसब को इतना बदलने क्यों लग जाते हो? ऐसे तो हम उन से डरने लगेंगे. उन्हें हमें स्वीकार करना ही होगा, हम जैसे हैं, वैसे ही. वे विदेश में रहती हैं. दुनिया कितनी आगे बढ़ चुकी है, उन्हें पता है. उन्हें इन सब से फर्क नहीं पड़ना चाहिए. उन की दूसरी बहू एलिसा तो विदेशी है. क्या वह भी साड़ी में लिपटी रहती है? तुम जाओ, उन्हें ले आओ. वैसे भी, मैं यह ड्रैस बदलने वाली हूं.’’

रितिका ने 3 बैडरूम और एक हौल वाले फ्लैट को अत्याधुनिक संसाधनों से सजा रखा था. सौरभ का हीरों का व्यवसाय था. आयातनिर्यात तक लंबा फैला था व्यवसाय. रितिका बचपन से ही स्वच्छंद प्रकृति की थी और सौरभ भी खुले दिल के थे.

कार के दरवाजे को बंद करने की आवाज से रितिका को पता चल गया कि मां आ चुकी हैं. लिफ्ट में आती ही होंगी. घंटी बजने से पहले ही उस ने दरवाजा खोल दिया.

करुणा एक छोटे से सूटकेस और एक एयरबैग के साथ अपार्टमैंट में दाखिल हो गईं.

बड़े ही करीने से आसमानी साड़ी पहनी हुई, स्टेप कट बालों में 70 की उम्र की करुणा ऊर्जा और बौद्धिक व्यक्तित्व से भरी हुई थीं.

रितिका बुदबुदाई, ‘आ गई सलाह की पोटली.’

‘‘लिफ्ट नहीं चल रही क्या? ज्यादा देर लग गई?’’ रितिका ने पूछा.

सौरभ ने कहा, ‘‘कैसी लिफ्ट? मां सीढि़यों से चढ़तीउतरती हैं. मैं सामान ले कर लिफ्ट में आ गया. वे नहीं मानीं. देखो तो सही, अब भी वे कितनी फिट हैं.’’

रितिका कमाल की अभिनेत्री थी. उस ने कहा, ‘‘वाकई मम्मीजी, आप से हमें बहुतकुछ सीखना होगा.’’

‘‘अरे नहीं, थोड़ी थकावट हो गई है. चलो छोड़ो ये सब रितु, अब तुम्हारे हाथ की चाय पिऊं. अलबेली से अलग क्या बनाती हो, मैं भी देखूं?’’ मुसकराती हुई वे सोफे पर बैठ गईं.

रितिका को कुछ बुरा सा लगा, ‘‘एलिसा की मेड का नाम अलबेली है क्या?’’

‘‘नहींनहीं, मेरी छोटी बहू एलिसा आजकल मुझ से साड़ी पहनना सीख रही थी. उस ने कहा, ‘मौम 7 सालों से आप मेरे पास हो, कभी भी आप ने मुझे अपना कल्चर अपनाने पर जोर नहीं दिया. अब इंडिया जा रही हो तो साड़ी पहननी सिखा कर जाओ.’ फिर क्या था. घरभर में साड़ी पहन कर ऐसी अलबेली सी घूमती रहती कि बस तब से मैं ने उस का नया नाम अलबेली रख दिया.’’ करुणा ने हलकेफुलके मूड में कहा.

डाइनिंग टेबल पर रितिका हौंगकौंग से लाए टी सैट में चाय, चीज रोल और  सैंडविच आदि ले कर आ गई थी.

‘‘रितु, इतनी जल्दी तुम्हारी चाय भी बन गई?’’

‘‘नहीं मम्मीजी, ये सारी चीजें मेड ने बनाई हुई थीं, चाय भी. खाना, किचन सब दोनों मेड की जिम्मेदारियां हैं. आप विदेशी खाना पसंद करती होंगी, इसलिए इटैलियन, अमेरिकन आज यही सब बनवाया है.’’

करुणा 2 मिनट चुप रहीं, फिर बोलीं, ‘‘रितु बेटा, देश की मिट्टी की सोंधी सुगंध मेरे खून में रचीबसी है. विदेश और विदेशी भी अच्छे हैं, पर उन्हें अपनाने के फेर में मैं खुद को भुलाना पसंद नहीं करती. रही बात विदेशी खाने की, तो एलिसा नौकरी के साथसाथ खाना बनाने की भी शौकीन है. उसे मैं ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों की कई रैसिपीज बनानी सिखाई हैं.’’

‘‘मम्मीजी, अब वे दिन लदने को हैं जब माना जाता था कि लड़कियों को खाना बनाना आना ही चाहिए. आजकल पैसे से सबकुछ खरीदा जा सकता है.’’

करुणा ने स्थिति बदलते हुए कहा, ‘‘भई, बच्चों को तो बुलाओ. डलास से मुंबई और फिर इधर नागपुर तक का सफर काफी थका देने वाला था, जरा अपने सूदब्याज को देख कर दिल को ठंडक तो पहुंचाऊं.’’

सौरभ झेंपते हुए से बोले, ‘‘मम्मी, बच्चे देररात तक पढ़ते हैं न.’’ रितिका ने बीच में टोका, ‘‘सौरभ, कहो न, बच्चे सो रहे हैं, संडे को 12 बजे से पहले नहीं उठते. जब उठेंगे, मिल लेंगे. मम्मीजी, तब तक आप फ्रैश हो लीजिए.’’

करुणा ने फ्रैश होने के लिए उठते हुए पूछा, ‘‘रितु, मैं अपना सामान कहां रखूं?’’

‘‘फिलहाल स्टोर में रख लीजिए. अभी हौल के दीवान पर आराम करिए.’’

बेटे के लाचार से चेहरे पर नजर पड़ते ही करुणा खुद ही अपना सामान स्टोर की ओर ले जाने लगीं. रितिका अपने बैडरूम में गई तो पीछे से सौरभ भी वहां पहुंच गए.

‘‘रितु, कहा था न, आईमी के साथ मम्मी रूम शेयर करेंगी.’’

‘‘आईमी मना कर चुकी है, सैक्सी.’’ समझा करो, उस की पर्सनललाइफ भी है. वह अब बच्ची नहीं रही कि दादीनानी की कहानी सुनते 10 बजे तक सो जाएगी. वह देररात में सोती है. मम्मीजी को दिक्कत होगी.’’

सौरभ का चेहरा गंभीर हो गया. वे बोले, ‘‘मां ने बहुत संघर्ष किया है. मैं जब 10वीं में था, पापा गुजर गए. संकेत 5वीं में था. मम्मी नौकरी करती थीं तो हम किसी तरह पढ़ेलिखे और व्यवसाय खड़ा किया. माना कि मम्मी को इसलिए हर परिस्थिति में रहने की आदत है, रितु, पर…’’ सौरभ कुछ और कहते कि रितु ने टोक दिया.

‘‘बच्चों पर तुम उन्हें थोप रहे हो, सौरभ. जबरदस्ती मत करो.’’

ज्यादा बहस किए बिना सौरभ वहां से उठ कर ड्राइंगरूम में आ गए.

बच्चे उठे और कुछ तरोताजा हुए तो करुणा मिलने उन के कमरे में गईं. पूरा कमरा अत्याधुनिक सामानों से लैस था. पलंग के पास मूविंग टेबल पर आईमी का आधा खाया खाना पड़ा था. पूरा बिस्तर अब भी फैला हुआ था, शायद पार्टटाइम मेड सुधा, जो अब तक पूरा घर सजा कर जा चुकी थी, आईमी के कमरे को समेट नहीं पाई थी क्योंकि उसे अपने सोने में किसी का खलल मंजूर नहीं था.

दादी के कमरे में आने से और उस के पलंग पर बैठने से आईमी को खास फर्क नहीं पड़ा. वह व्यस्त थी कुछ नटखटपन में मुसकराती, फोन पर फर्राटे से उंगलियां चलाते हुए.

करुणा को यह उपेक्षा बहुत बुरी लग रही थी. मगर परिस्थितियां संभालने की उन की पुरानी आदत थी. उन्होंने कहा, ‘‘आईमी, कितनी बड़ी हो गई तू. 7 साल से नहीं देखा, पूरी 24 की होने जा रही है. आजा, दादी के गले नहीं लगेगी?’’

ग्रैनी, प्लीज 1 मिनट, जरूरी बात कर रही हूं न.’’

‘‘बेटा, मुझ से तो मिल ले, कितनी दूर से आई हूं तुम सब से मिलने.’’

‘‘अरे, आई तो दूर से हो मगर कौन सा भागी जा रही हो. अभी तो यहां रहोगी ही न.’’

करुणा आहत थीं. बड़ों को थोड़ा मान देने, अपने हाथों से अपना काम करने, दूसरों से मधुर व्यवहार करने, कुछ अनुशासित रहने में भला कौन सा पिछड़ापन झलकता है, सोचती हुई वे लौट कर हौल में दीवान पर आ कर बैठ गईं.

इसी बीच, ईशान को अपने कमरे से बाहर आया देख करुणा अवाक रह गईं. सिर के बाल खड़ेखड़े, हिप्पी सी ड्रैस, कान में इयरफोन लगा हुआ.

करुणा इस से पहले कुछ कह पातीं, ईशान ने करुणा की ओर देख कर हाथ हिलाते हुए कहा, ‘‘हाय ग्रैनी, हाउ आर यू? सीइंग आफ्टर लौंग टाइम. हैव अ ग्रेट डे.’’ फिर ईशान मां से मुखातिब हुआ, ‘‘ममा, आज फ्रैंड्स के साथ मेरी कुछ प्लानिंग है, लंच बाहर ले लूंगा. डिनर के बाद ही आऊंगा. डौंट कौल मी.’’

‘‘रात को थोड़ा जल्दी आना, बेटा,’’ रितिका ने धीरे से कहा.

‘‘ऐज यूजुअल, चाबी है मेरे पास, डौंट वरी ममा.’’

लंच के समय आईमी को बुलाते वक्त करुणा ने देखा वह फोन पर व्यस्त थी. रितिका और करुणा आईमी का इंतजार कर रही थीं कि आईमी एक स्लीवलैस डीप कट ब्लाउज और मिनी स्कर्ट में उन के सामने आ खड़ी हुई. स्कूटी की चाबी घुमाते हुए उस ने कहा, ‘‘ममा, कालेज में अर्जैंट क्लास रखे गए हैं, मैं देर से आऊंगी.’’

करुणा के अब परेशान होने की बारी थी. व्याकुल हो, पूछ बैठीं, ‘‘बेटा, क्लासैज कब तक चलेंगी?’’

‘‘ग्रैनी, ये हमारे हाथ में नहीं,’’ गुस्से से कहती हुई आईमी निकल गई.

करुणा बिस्तर पर लेटे अनायास ही विचारों में डूबने लगीं. उन्होंने जिंदगीभर साड़ी ही पहनी लेकिन अमेरिका जा कर एलिसा के कहने पर पैंटशर्ट भी पहनी. वहां की संस्कृति से बहुतकुछ सीखा. मगर अपने व्यक्तित्व को यथावत बनाए रखा. भाषा को ज्ञान के लिहाज से लिया और दिया. अपनी शालीनतासभ्यता को कभी भी उन्होंने जाने नहीं दिया. देर रात हो चुकी थी लेकिन आईमी और ईशान का कोई अतापता न था. वे चिंतित थीं, मगर बहू के कारण कुछ खुल कर कह नहीं पा रही थीं. फिर भी जब रहा न गया तो डाइनिंग टेबल पर वे सौरभ से बोल पड़ीं, ‘‘रात के 10 बज चुके हैं, दोनों का ही पता नहीं. कम से कम आईमी के लिए तो पूछपरख करो?’’

रितिका कुछ उत्तेजित सी बोलीं, ‘‘मम्मीजी, आप जब से आई हैं, बस, दोनों बच्चों के पीछे पड़ी हैं.’’

बहू मेरी अनुभवी आंखें चैन नहीं रख पा रहीं. कहीं कुछ ठीक नहीं है. तुम लोग गहराई में नहीं देख रहे.’’

‘‘आप जब नहीं थीं, तब भी हमारी जिंदगी ऐसी ही चल रही थी, सब को अपनी जिंदगी जीने दें, आईमी की ही क्यों पूछपरख हो. वह लड़की है इसलिए? वह भी बेटे की तरह जिएगी. आप लोग अपनी दकियानूसी सोच बदलिए.’’

‘‘रितु, मैं ने बेटे की भी चिंता समानरूप से की, लेकिन बेटियों का खयाल ज्यादा रखना पड़ता है क्योंकि कुछ भी दुर्घटना हो जाए, भुगतना उसे ही पड़ता है. थोड़ा वास्तविकता को समझो.’’

सौरभ बेबस सा महसूस करने लगे थे. उन्होंने देखा, रितिका अब ऐसा कुछ कह सकती है जिस से मां ज्यादा आहत हो जाएंगी. उन्होंने टोका, ‘‘मम्मी, रहने दो, उन के लिए रात के 12 बजे तक घर लौटना आमबात है.’’

रितिका और सौरभ के अपने कमरे में चले जाने के बाद करुणा निढाल हो, अपने बिस्तर पर पड़ गईं. विदेश में 5 साल की कुक्कू यानी संकेत की बेटी उन्हें दादी कहती है. संकेत ने उसे ऐसा ही कहना सिखाया है. एलिसा और कुक्कू दोनों ही खूब प्यारी हैं, और एलिसा कितनी व्यवहारकुशल. और यहां ये लोग विदेशी सभ्यता की गलतियों को आधुनिक होने के नाम पर मैडल बना कर गले में लटकाए घूम रहे हैं.

अचानक फ्लैट के दरवाजे पर चाबी घूमने की आवाज आई. करुणा ने देखा, आईमी लड़खड़ाते कदमों से अपने कमरे में चली गई. करुणा निश्चिंत भी हुईं और परेशान भी. 11 बजे चुके थे. करुणा की नजर दरवाजे पर टिकी थी. इतने में ईशान भी आ गया और अपने कमरे में घुस कर दरवाजा बंद कर लिया.

करुणा सोचसोच कर परेशान थीं, आखिर कैसी विचित्र जिंदगी जीते हैं यहां लोग. न पारिवारिक सदस्यों के बीच कोई बैठक, न सुखदुख की बातें, न साथ खानापीना और न ही एकदूसरे के जीवन में कोई रुचि. सभी अपनेअपने गैजेट्स में व्यस्त हैं, और बाहरी दुनिया में रमे हैं.

करुणा उठ बैठीं. आईमी का जीवन उन्हें सामान्य नहीं लग रहा था. अकसर लड़कियां घरपरिवार में रचीबसी होती हैं. करुणा ने आईमी के कमरे में झांक कर देखा, वह औंधेमुंह बिस्तर पर पड़ी थी. उन्होंने उसे सीधा किया और उस के फोन को उठाया. उन्होंने सोचा, इस से काफी सुराग मिल सकते हैं. पर जैसी जिंदगी वह जीती है, जरूर फोन लौक रखती होगी. क्या करें, उन्हें एक उपाय सूझा, अगर काम कर जाए तो…आईमी के मुख से शराब की बू आ रही थी. उस के कान के पास मुंह ले जा कर उन्होंने धीरे से बुदबुदाया, ‘फोन लौक का पिन?’ नशे में बुझी आवाज से नींद में ही आईमी अचानक कह उठी, ‘‘7494.’’

करुणा जल्दी से फोन ले कर हौल में चली आईं. करुणा को एलिसा ने आधुनिक गैजेट्स की पूरी जानकारी दी हुई थी. उसी के बल पर आईमी के फोन में उन्होंने सेंध मारी. उन्होंने उस के ढेर सारी रेव पार्टियों के अश्लील वीडियो और कई लड़कों के सान्निध्य में खींची गई तसवीरों को अपने मोबाइल में फौरवर्ड किया. उन्हें आईमी के इतना स्वच्छंद होने की उम्मीद नहीं थी. कई अश्लील वीडियो में आईमी सारी सीमाएं लांघ गई थी. वे पसीनापसीना होने लगीं. तुरंत उन्होंने फोन आईमी के कमरे में छोड़ा और अपने बिस्तर पर आ कर लेट गईं.

सुबह रितिका करुणा को चाय देने के लिए हौल में गई और बोली,

‘‘मम्मीजी, आप की चाय.’’

‘‘नहीं बहू, मैं गरम पानी में नीबू और शहद लेती हूं.’’

करुणा को व्यायाम करते देख सौरभ भी सुबह की हलकी धूप का मजा लेने टैरेस पर आ गए और वहीं बैठ गए. करुणा को लगा अगर सौरभ से बात छिपाई जाए तो अब और कुछ भी नहीं बचेगा. कैरियर के आखिरी पड़ाव में बेटी का इस तरह मनमानी करना न सिर्फ उस के स्वास्थ्य और जीवन की खुशियों को प्रभावित करेगा बल्कि उस के महत्त्वपूर्ण समय को भी कभी न लौट कर आने के गर्त में ढकेल देगा.

करुणा ने अपने मन को कड़ा करते हुए सौरभ से कहा, ‘‘बेटा, पिता की जिम्मेदारी परिवार में कुछ कम नहीं होती. एक पति की हैसियत से ही उसे घर का मुख्य व्यक्ति नहीं माना जाता है बल्कि पिता की भूमिका उस से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. आज आईमी या ईशान जो भी हैं, तुम दोनों की मानसिकता की प्रतिकृति हैं. मेरा फोन तुम ले जाओ. अपने कार्यालय में बैठ कर उन फोटोग्राफ्स और वीडियो को देखना जो आईमी के हैं. फिर अपने मन में विचारना कि क्या आंखें मूंद लेने से सचाई छिप जाती है?’’

सौरभ अपने हृदय के तूफान को मौन की जेब में भर वहां से उठ गए. फोन जो आज उन के हाथ में था, वह क्या था, प्रलय या प्रलय से बचने की सूचना?

इधर, दोपहर तक आईमी उठ नहीं पाई. 2 दिनों बाद उस का तीसरा और आखिरी सैमेस्टर था.

कुछ चिंतित सी रितिका ने आईमी के कमरे का दरवाजा खोला था. अंदर उस ने बैड के नीचे उल्टी की हुई थी और अपने अटैच बाथरूम से बाहर निकल रही थी.

‘‘क्या हुआ, आईमी?’’

‘‘मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा, मौम. आज कालेज नहीं जा पाऊंगी,’’ आईमी ने रितिका के कंधे पर सिर टिका दिया.

थोड़ी देर के बाद रितिका आईमी के कमरे से बाहर आ गई लेकिन करुणा ने आईमी पर पूरी नजर रखी. 3-4 बार उलटियां कर चुकने के बाद आईमी पस्त हो चुकी थी. रितिका ने घरेलू डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने ऊपरी चैकअप के बाद कहा, ‘‘अच्छा होगा कि आप इसे गाइनी से चैक कराएं. मुझे शक है, तसल्ली कर लीजिए.’’ रितिका को डाक्टर की बातों में बड़ी मुसीबत के संकेत दिखे. उस ने फोन पर समय ले कर बेटी को कार में जैसेतैसे सहारा दे कर बैठाया. खुद ही कार ड्राइव कर निकल गई. वापस आने के बाद रितिका का उतरा चेहरा किसी से भी छिप न पाया.’’

वह अपने कमरे में चली गई. बेटा अपनी धुन में रमा रहा. बेटी अपने कमरे में बंद. नौकरचाकर सब अपना काम कर चलते बने.

करुणा महसूस कर रही थी कि सौरभ को शायद अकेलापन खलता हो इन के बीच, लेकिन काम और व्यवसाय में डूब कर वह भी किसी तरह अपने दिन निकाल रहा होगा. बहू को शौपिंग, पार्टी, पार्लर और सहेलियों से फुरसत मिले, तभी वह अपनी बेटी को कुछ मार्गदर्शन दे, और बेटे को संबल. आखिरकार करुणा ने रितिका के पास जा कर बात करना ही मुनासिब समझा.

बहू के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा,  ‘‘रितु, मैं तुम सब की मां हूं, अनुभव भी है, और कुछ जानकारी भी. मैं समझ रही हूं, आईमी किसी बड़ी मुसीबत में है. तुम ने भी शायद वह सब न देखा होगा जो मैं ने देखा है. बस, अब और क्या हुआ है, इतना बता दो ताकि हम दोनों मिल कर राह निकालें.’’

‘‘मम्मी, सारी गलती मेरी है. मेरे मायके में बेटाबेटी में बहुत फर्क हुआ. मैं ने सोचा, अब मेरी बारी है. मैं वे सारे सुख अपनी बेटी को उठाने दूंगी जो मुझे नहीं मिल पाए थे. मैं अपनी सारी इच्छाओं को अपनी बेटी में फलतेफूलते देखना चाहती थी. पर वह शर्मनाक हदें पार कर गई. मैं ने यह पूछा भी कि लड़का कौन है? तब किसी भी तरह उन दोनों की शादी करवाई जा सकती थी और गर्भ ठहरने की बात ढकी रह जाती. मगर वह कहती है, ‘आजकल वैसा कुछ भी नहीं होता, लड़के शादी करने के लिए संबंध नहीं बनाते और हम भी ऐसा नहीं सोचते कि प्रेम हो, तभी शरीर का सुख हो.

‘‘‘आजकल की रेव पार्टियां हर चीज की खुली छूट देती हैं. वहां सभी नशे में धुत लोग कौन, किस के साथ, कब संबंध बना रहे हैं, किसी को फर्क नहीं पड़ता. सब मजे लेते हैं जिंदगी के. आप ने मुझे कभी किसी बात पर रोकाटोका नहीं, आप जैसी और भी मांएं हैं जो मौडर्न विचार रखती हैं. ऐसा हो जाता है तो एबौर्शन करवा लेती हैं.’’’ इतना कह कर रितु फफक कर रो पड़ी, ‘‘मैं ने बेटी को बेटा बनाने के चक्कर में क्या कर डाला.’’

‘‘रितु बेटा,’’ करुणा की आवाज जैसे अंधी खाई से आ रही थी, ‘‘सोच अगर संतुलित हो तो इंसान पुराने अच्छे और नए अच्छे में सामंजस्य बैठा ही लेता है. हर नए दौर में कुछ पुरानी अच्छाई पीछे छूटती जाएगी, उन्हें साथ ले कर आगे बढ़ो तो आधुनिकता के साथसाथ वास्तविक खुशी भी बनी रहती है. खैर, अनुचित था लेकिन आईमी के फोन से उस के वीडियो ले कर मैं ने सौरभ को दिए हैं. मैं सौरभ को समझा लूंगी, मगर अभी हमें आईमी के बारे में सोचना है. आज डाक्टर से बात करो, गर्भपात करवा लेते हैं, फिर कुछ महीने उसे मेरे हाथ में छोड़ देना. मैं सारे घाव भर दूंगी.’’

रितिका छोटी बच्ची की तरह करुणा की गोद में अपना चेहरा छिपा कर रो पड़ी. महीनेभर बाद जैसे इस घर का कायापलट हो चुका था. आईमी और ईशान अब उठतेबैठते दादी के संग. व्यायाम, नाश्ता, पढ़ाई, कालेज, कोचिंग की पूरी तैयारी, सभी कुछ अनुशासन से. फिर वक्त मिलता तो दादी के साथ चेस, कैरम या बैडमिंटन खेलते.

सौरभ के चेहरे की रौनक देख अब करुणा भी खुशी महसूस कर रही थीं. अकेले में सौरभ ने मां से पूछा, ‘‘मां, कैसे कर दिया तुम ने इतना कुछ? ये बच्चे तो सुनते ही नहीं थे किसी की?’’

‘‘बेटा, मैं ने गरम लोहे पर तुरंत चोट की ताकि इन का आकार बदल सकूं. तुम्हें भी एक बात बताऊं, बेटीबेटे की बराबरी को तुम लोग बहुत छोटी सोच में बांध कर रखते हो. देर रात बाहर रहना, मर्दों के साथ शालीनता की तमाम सीमाएं लांघ जाना या मौर्डन ड्रैस पहन कर इतराना भर बराबरी नहीं है. स्त्रियों को उन सारे कामों में सबल बनना है जो कभी लड़कों के लिए ही सुरक्षित थे. स्त्री अपनी पहचान और काम की सीमा न बांधे, बराबरी का यह पूरा सच है. और बेटों को भी इतनी छूट क्यों दे दी जाए कि वे दूसरी लड़कियों के लिए खतरा बन जाएं.’’

सौरभ गर्वभरी दृष्टि मां की ओर डाल बोल उठे, ‘‘मम्मी, तुम ने सुनहरे से दिखने वाले कृत्रिम पंखों को तोड़ हमें वास्तविक उड़ान के पंख दे दिए.’’

करुणा आज कुछ सार्थक कर पाने की खुशी से संतुष्ट थीं, बहुत संतुष्ट.

Heart Touching Love Story : मन का बोझ

Heart Touching Love Story :  सिनेमाघर से निकल कर अम्लान व मानसी थोड़ी दूर ही गए थे कि मानसी के पड़ोसी शीतल मिल गए. उन्हें देखते ही मानसी ने अभिवादन में हाथ जोड़ दिए. शीतल कुछ विचित्र भाव से मुसकराए.

‘‘कहिए, कैसी हैं, मानसीजी?’’

‘‘ठीक हूं.’’

‘‘कब आ रहे हैं, सुदीप बाबू?’’

‘‘अभी 4 माह शेष हैं.’’

‘‘ओह, लगता है आप अकेली काफी बोर हो रही हैं?’’ शीतल कुछ अजीब से अंदाज में बोले.

न जाने क्यों मानसी को अच्छा न लगा. वह सोचने लगी, ‘पता नहीं क्यों व्यंग्य सा कर रहे थे? सुदीप के सामने तो कभी इस तरह नहीं बोलते थे.’

‘‘क्या हुआ? पड़ोसी की बात का बुरा मान गईं क्या? इतना भी नहीं समझतीं मनु दीदी, जलते हैं. पड़ोसी हैं न, इसलिए तुम्हारी हर गतिविधि पर नजर रखना अपना कर्तव्य समझते हैं,’’ अम्लान मुसकराया.

‘‘भाड़ में जाएं ऐसे पड़ोसी,’’ मानसी तीखे स्वर में बोली.

‘‘चलो, कहीं बैठ कर कुछ खाते हैं, बहुत भूख लगी है,’’ अम्लान ने सामने से जाते आटोरिकशा को रोक लिया.

‘‘नहीं, घर चलो, वहीं कुछ खा लेंगे. रेस्तरां में जाने का मन नहीं है, सिर में दर्द है.’’

‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी,’’ अम्लान ने आटोचालक से मानसी के घर की ओर चलने को कह दिया. घर पहुंचते ही सिर में बाम लगा कर मानसी ने सैंडविच व पकौड़े बनाए और फिर कौफी तैयार करने लगी.

‘‘लाओ, मैं कुछ मदद करता हूं,’’ तभी अम्लान ने रसोईघर में प्रवेश किया.

‘‘हां, अवश्य, ये प्लेटें खाने की मेज पर रखो और खाना प्रारंभ करो,’’ वह मुसकराई. पर दूसरे ही क्षण न जाने क्या हुआ कि अजीब सी नजरों से देखते हुए अम्लान आगे बढ़ा और उसे अपनी बांहों के घेरे में कस लिया.

‘‘यह क्या तमाशा है, छोड़ो मुझे,’’ मानसी ने स्वयं को मुक्त कराने का यत्न किया पर अम्लान की पकड़ कसती ही जा रही थी. अब मानसी सचमुच घबरा गई. पूरी शक्ति लगा कर अम्लान को धक्का देने के साथ ही उस ने अपने दांत उस के हाथ में गड़ा दिए. अम्लान एक झटके के साथ दूर जा गिरा. मानसी लड़खड़ाती हुई बैठक में जा बैठी. शीघ्र ही स्वयं को संभाल कर अम्लान भी बैठक में आ गया तनिक ऊंचे स्वर में बोला, ‘‘समझती क्या हो, तुम? घर आने का आमंत्रण दे कर इस तरह का व्यवहार?’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो? दीदी कहते हो, राखी बंधवाते हो मुझे से और ऐसा घटिया व्यवहार? अम्लान, मुझे  स्वप्न में भी तुम से ऐसी आशा न थी,’’ मानसी अब भी स्वयं को संभाल नहीं सकी थी.

‘‘हां, दीदी कहता हूं तुम्हें, मुंहबोली बहन हो तुम, क्योंकि किस भारतीय महिला में इतना साहस है कि किसी पुरुष को अपना मित्र कह कर लोगों को उस का परिचय दे सके? भाईबहन बनाने पर ही समाज स्त्रीपुरुष संबंधों को किसी तरह सह लेता है. याद है तुम ने अपने पति सुदीप तथा सभी पड़ोसियों से मेरा परिचय अपना मुंहबोला भाई कह कर करवाया था, मित्र कह कर नहीं,’’ अम्लान अब भी बहुत क्रोधित था.

‘‘मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे दिमाग में मुझे ले कर इतनी ऊलजलूल बातें भरी हैं. तुम ने यह भी नहीं सोचा कि मैं विवाहित हूं, सुदीप की अमानत हूं, जिसे ‘जीजाजी’ कहते तुम्हारी जबान थकती नहीं,’’ मानसी आंसुओं के बीच बोली.

‘‘विवाहिता? सुदीप की अमानत? उस से क्या अंतर पड़ता है? इसी से तो समाज में तुम्हें मनमानी करने की छूट मिल जाती है. मेरे मुंह से अपने रंगरूप की प्रशंसा सुन कर तुम कैसे पुलक हो उठती हो. अपनी प्रशंसा से प्रसन्न हो कर तुम्हारे चेहरे पर आने वाली लाली क्या मेरा भ्रममात्र थी, बोलो?’’

‘‘अम्लान, बहुत हो गया. तुम इसी समय मेरे घर से निकल जाओ. मैं भविष्य में तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहती,’’ मानसी स्वयं पर नियंत्रण खो कर चीख उठी. एक क्षण को तो अम्लान भी बौखला गया, ‘‘हूं, बहुत देखी हैं तुम्हारी जैसी सतीसावित्री,’’

वह मुख्यद्वार को जोर से बंद करता हुआ बाहर निकल गया. मानसी को लगा, उस की टांगों में इतनी शक्ति भी नहीं बची है कि वह खड़ी हो कर द्वार तक पहुंच कर उसे बंद कर सके. आंखों से अनवरत अश्रुधारा बहने लगी. धुंधलाई अश्रुपूरित आंखों में न जाने कितने चेहरे गड्डमड्ड होते जा रहे थे. मानसी एक छोटे से नगर में पलीबढ़ी थी, जहां लोग अब भी कसबाई मनोवृत्ति रखते थे. वहां विवाहिता या कुंआरी का किसी अन्य पुरुष के साथ घूमनाफिरना उस के चरित्र पर प्रश्नचिह्न लगा देता था. पर सुदीप से विवाह के पश्चात वह हैदराबाद चली आई थी. उसे भली प्रकार याद है कि प्रारंभ में जब सुदीप का कोई मित्र आता था तो वह दौड़ कर अंदर के कक्ष में चली जाती थी. ‘यह क्या तमाशा है, कोई घर आए तो उस का स्वागत करने के बजाय तुम दौड़ कर भीतर चली जाती हो,’ एक दिन सुदीप क्रोधित स्वर में बोला.

‘वे सब आप के मित्र हैं, आप से मिलने आते हैं. मुझे उन के सामने बैठना अच्छा नहीं लगता,’ मानसी ने नजरें झुका लीं. ‘तुम्हारे कारण मेरे सभी मित्र मेरा उपहास उड़ाते हैं. तुम पढ़ीलिखी हो, गूंगीबहरी भी नहीं हो, फिर क्या कारण है कि इस प्रकार का व्यवहार करती हो?’ सुदीप ऐसे अवसर पर बुरी तरह झुंझला जाता था. पति का सहयोग मिलने के कारण मानसी को अपना कसबाई आवरण उतार फेंकने में अधिक समय न लगा. उस ने चित्रकला में स्नातक की उपाधि ली थी. सो, सुदीप के कहने पर उस ने विज्ञापन के क्षेत्र में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करना प्रारंभ कर दिया. प्रशिक्षण समाप्त होने से पहले ही जब मानसी को एक विज्ञापन कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई तो सुदीप भी चकित रह गया. नई नौकरी ने कुछ ही माह में मानसी का कायापलट कर दिया. विवाहोपरांत मानसी का उपहास करने वाला सुदीप अब गर्वपूर्वक पत्नी की उपलब्धियों की चर्चा करता. अम्लान से मानसी की पहली भेंट विज्ञापन कंपनी के कार्यालय में हुई थी. न जाने अम्लान के व्यक्तित्व में कैसा आकर्षण था कि मानसी पहली ही भेंट में औपचारिकता भूल कर उस से घुलमिल गई. पहली बार मानसी को अपने व्यवहार पर आश्चर्य हुआ. मानसी का व्यक्तित्व बेहद अंतर्मुखी था. बचपन में उस के परिवार का वातावरण इतना रूढि़वादी था कि किसी भी परपुरुष से सहज भाव से मित्रता कर पाना उस के लिए संभव ही न था.

पर अम्लान की बात अलग ही थी. सहजता से उस ने मानसी को ‘दीदी’ संबोधन दिया तो वह पुलक उठी. वह परिवार में सब से छोटी थी, दीदी कहने वाला कोई नहीं था. यही नहीं, अम्लान ने शीघ्र ही सुदीप से भी घनिष्ठता स्थापित कर ली. ऐसे में स्वाभाविक ही था कि जब मानसी दीदी थी तो सुदीप जीजा बन गया. धीरेधीरे अम्लान घर का ही सदस्य बन गया. वह घंटों सुदीप व मानसी से बातें करता रहता. अम्लान अकसर डिनर भी उन्हीं के साथ ले लेता. मानसी को उस के आत्मीय व्यवहार में कहीं भी कोई खोट कभी नजर न आई थी. वह  दिन आज भी मानसी की स्मृति में ज्यों का त्यों ताजा था, जब सुदीप इतराता व पुलकित होता घर लौटा था.

‘क्या हुआ, बहुत प्रसन्न नजर आ रहे हो?’ मानसी अपनी उत्सुकता दबा न सकी थी.

‘सुनोगी तो फड़क उठोगी. लगभग सौ लोगों में से विदेश में प्रशिक्षण के लिए मुझे चुना गया है,’ सुदीप अपनी ही प्रसन्नता में इस प्रकार डूबा था कि मानसी के चेहरे के बदलते रंग की ओर उस का ध्यान ही न गया.

‘कितनी अवधि के लिए जाना होगा?’ मानसी ने डूबते स्वर में प्रश्न किया. ‘1 वर्ष के लिए, क्या बात है, तुम्हें प्रसन्नता नहीं हुई?’ सुदीप ने मानो मानसी के मनोभावों को पढ़ लिया.

‘मैं इतने लंबे समय तक अकेली नहीं रह पाऊंगी,’ मानसी ने अपने मनोभाव प्रकट किए थे.

‘क्या गंवारोें जैसी बातें कर रही हो, अब तुम छोटे से कसबे से आई अबोध मानसी नहीं हो, अब तो तुम आत्मविश्वास से भरपूर आधुनिका हो, जो स्वयं अपने पैरों पर खड़ी है.’

‘नहीं, मैं अकेली 1 वर्ष तक यहां नहीं रह सकूंगी,’ मानसी ने घोषणा कर दी तो सुदीप सोच में पड़ गया. उस के व मानसी के परिवार में कोई भी तो ऐसा नहीं था, जो आ कर 1 वर्ष के लिए उस के साथ रह सकता. पर अम्लान ने अपने अकाट्य तर्कों से न केवल सुदीप को आश्वस्त किया बल्कि मानसी को भी अपनी भावी योजना बदलने को प्रेरित किया, ‘मनु दीदी, तुम्हें डर किस बात का है? कितना अच्छा पड़ोस है. सुरक्षा की कोई समस्या ही नहीं. आवास योजना के अधिकारी काफी चुस्तदुरुस्त हैं और मैं हूं न तुम्हारी सहायता के लिए?’ अम्लान के स्वर ने उसे पूर्णतया आश्वस्त कर दिया था. सुदीप के जाने के बाद अम्लान ने उस की प्रतिदिन की जिम्मेदारियों को अपने कंधों पर ले लिया. सच तो यह था कि अम्लान ने एक दिन के लिए भी सुदीप की अनुपस्थिति या अकेलापन उसे महसूस न होने दिया. पर आज जो हुआ, उस के लिए मानसी तनिक भी तैयार नहीं थी, मानो किसी ने अचानक उसे उठा कर तेल की खौलती कड़ाही में फेंक दिया हो. न जाने कितनी देर तक उस के आंसू अनवरत बहते रहे, मानो मन का सारा गुबार आंखों की राह ही बह जाना चाहता हो. जब आंसू स्वत: ही सूख गए तो बहुत साहस कर के वह उठी. सैंडविच और पकौड़े खाने की मेज पर यों ही पड़े थे, पर उस की तो भूख ही उड़ चुकी थी. किसी तरह पानी के कुछ घूंट गले से उतार कर वह बिस्तर पर जा पड़ी पर नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी.

मानसी को बचपन में मां द्वारा दी गई हिदायतें याद आ रही थीं. मां ने उसे व उस की बहन को सदा यही समझाया था कि किसी पर भी आंख मूंद कर विश्वास मत करो. इस संसार में ज्यादातर लोग अवसर का अनुचित लाभ उठाने से नहीं चूकते. मां अकसर बातबात में कहती थीं कि यदि स्त्री के मन में खोट न हो तो किसी पुरुष का साहस नहीं कि उस पर बुरी नजर डाल सके. मानसी के मन में बारबार एक ही बात आ रही थी कि क्या अम्लान के ऐसे व्यवहार के लिए वह स्वयं ही उत्तरदायी है? वह जितना भी सोचती उतनी ही उस की अपने प्रति घृणा बढ़ती जाती. अम्लान भी तो उस पर लांछन लगा कर अपमानित कर गया था. यह सच था कि अम्लान अकसर ही उस के सौंदर्य की प्रशंसा किया करता था और वह सुन कर पुलक उठती थी. पर उस का अर्थ सदा उस ने यही समझा था कि सौंदर्य होता ही प्रशंसा के लिए है. सच तो यह है कि बचपन से ही उसे अपनी सुदंरता की प्रशंसा सुनने की आदत पड़ी हुई थी. सो, उसे अम्लान की प्रशंसा में कुछ भी खोट नजर न आई थी.

पर अब उसे लगा, शायद अम्लान बारबार उस के सौंदर्य की प्रशंसा कर के स्त्री की सब से बड़ी कमजोरी का लाभ उठाना चाहता था. सुदीप ने भी तो उस के सौंदर्य पर रीझ कर ही उसे अपनाया था. पर विवाह के बाद कभी उस की प्रशंसा के पुल न बांधे. शायद उस ने कभी उसे अनावश्यक रूप से प्रसन्न करने की आवश्यकता न समझी थी. वैसे भी सुदीप अंतर्मुखी प्रवृत्ति का व्यक्ति था. व्यर्थ का दिखावा करना उस की आदत में शुमार न था. क्या इसीलिए अनजाने ही अम्लान से उस की घनिष्ठता बढ़ती चली गई थी? मानसी को आश्चर्य हो रहा था कि सुदीप ने कभी इस घनिष्ठता पर आपत्ति नहीं की थी. करता भी क्यों? वह बेचारा कहां जान पाया होगा कि अम्लान का ‘दीदी’ संबोधन केवल दिखावा है. पर वह स्वयं इस छलावे से छली गई थी, यह तो उस से भी अधिक आश्चर्य की बात थी.

रातभर इन्हीं सब विचारोें के तूफान में डूबतेउतराते कब वह सो गई, उसे पता ही न चला. सुबह कामवाली बाई व दूध वाले ने द्वार की घंटी बजाई तो उसे लगा कि दिन काफी चढ़ आया है. किसी तरह पैर घसीटते हुए उस ने दरवाजा खोला.

‘‘क्या हुआ मेमसाहब, अभी तक सो रही हैं? तबीयत खराब है क्या?’’

‘‘हां, सिर दर्द से फटा जा रहा है. आज दफ्तर से छुट्टी ले लूंगी. जाने का मन नहीं है,’’ मानसी धीरे से बोली.

‘‘सिर दबा दूं क्या?’’ राधा ने पूछा.

‘‘नहीं, तुम दूध गरम कर के मेरे लिए कुछ नाश्ता बना दो. कल रात को भी कुछ नहीं खाया था. शायद इसीलिए तबीयत खराब हो गई,’’ उस ने राधा को हिदायत दी. मानसी जब तक तरोताजा हो कर लौटी, राधा ने नाश्ता मेज पर सजा दिया था. राधा दोपहर में आ कर भी हालचाल पूछ गई थी. यों शारीरिक रूप से मानसी स्वस्थ ही थी, पर मानसिक रूप से अम्लान के व्यवहार ने उसे पंगु बना कर रख दिया था. तीसरे दिन भी मानसी की वही दशा थी. दिन ढलने तक वह बिस्तर पर ही पड़ी थी. अचानक द्वार की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सामने उस की सहयोगी विभा खड़ी थी.

‘‘विभा दीदी,’’ उसे देखते ही मानसी उस से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘क्या हुआ, मानसी? खैरियत तो है? मैं ने सोचा तुम 3 दिनों से कार्यालय नहीं आईं, इसलिए मिलने चली आई,’’ विभा आश्चर्यचकित सी बोली. जरा सी सहानुभूति पाते ही मानसी के अंदर जमा लावा बह चला. आंसुओं के बीच सिसकते हुए उस ने अम्लान और उस के बीच घटी पूरी घटना कह सुनाई.

‘‘बड़ी मूर्ख है, तू भी, इतनी सी बात के लिए आंसू बहा रही है. जिस तरह तुम्हारी व अम्लान की घनिष्ठता बढ़ रही थी, ऐसा कुछ होना कोई आश्चर्य की बात तो नहीं थी,’’ विभा ने अपनी राय दी.

‘‘क्या कह रही हैं, विभा दीदी?’’ मानसी चौंकी थी.

‘‘चाहे तुम्हें बुरा भी लगे, पर मैं सच ही कहूंगी. जब सारे कार्यालय में तुम्हारे व अम्लान के घनिष्ठ संबंधों की चर्चा हो रही थी, तब तुम उस से अनजान कैसे बनी रहीं?’’

‘‘आप ने पहले मुझ से कभी भी कुछ नहीं कहा?’’ मानसी आश्चर्यचकित थी.

‘‘ऐसे अवसरों पर कहनेसुनने का कोई विशेष प्रभाव नहीं होता. हर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत अनुभवों से ही सबक लेता है. मुझे लगा कि यदि मैं कुछ कहने का प्रयत्न करूं भी तो शायद तुम उस का गलत अर्थ निकालो. फिर मैं ने सोचा कि सुदीप के आने पर खुद ही अम्लान से तुम्हारी घनिष्ठता कम हो जाएगी.’’

‘‘क्या कहूं, मुझे तो स्वयं पर ही शर्म आ रही है. मैं सुदीप को क्या मुंह दिखाऊंगी,’’ मानसी ने इतने धीमे स्वर में अपने विचार प्रकट किए, मानो स्वयं से ही बात कर रही हो.

‘‘अम्लान की भूल के लिए स्वयं को दोषी ठहराने की कोई आवश्यकता नहीं है. मैं तो तुम्हें केवल यह समझाने का यत्न कर रही हूं कि हम महिलाओं को पुरुषों से मित्रता की सीमारेखा अवश्य रखनी चाहिए, अवसर मिलने पर अपने संबंधी तक अवसर का लाभ उठाने से नहीं चूकते.’’

‘‘आप ठीक कह रही हैं, दीदी. मेरा अनुभव मुझे भविष्य में अवश्य ही सतर्क रहने की प्रेरणा देगा, पर अभी मैं क्या करूं? सुदीप भी यहां नहीं हैं?’’

‘‘वाह, यह खूब रही, तुम से दुर्व्यवहार कर के भी अम्लान प्रतिदिन कार्यालय आता है, सब से सामान्य व्यवहार करता है. क्या पता तुम से अपने घनिष्ठ संबंधों की चर्चा वह अपने साथियों से भी करता हो. फिर तुम क्यों मुंह छिपाए घर में पड़ी हो? कल से कार्यालय और घर में सामान्य कामकाज प्रारंभ करो. सुदीप से छिपाने जैसा भी इस में कुछ नहीं है, बल्कि उसे तो गर्व ही होगा कि थोड़े से साहस से काम ले कर तुम एक दुर्घटना से बच गईं,’’ विभा ने मानसी को समझाया. कुछ जलपान कर के व मानसी को समझाबुझा कर विभा चली गई. जातेजाते यह भी कह गई कि उस के होते हुए उसे घबराने या चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. रातभर उधेड़बुन में खोए रहने के बाद मानसी ने निर्णय ले ही लिया कि निर्दोष होते हुए भी भला वह अपराधबोध को क्यों ढोए? उस ने तो अम्लान को केवल भाई समझा था. यदि वह एक भाई की गरिमा को नहीं समझ सका तो इस में उसी का दोष है. कार्यालय पहुंच कर एक क्षण को तो उसे ऐसा लगा, मानो सभी की निगाहें उसी पर टिकी हैं. पर शीघ्र ही सबकुछ सामान्य हो गया.

शाम को कार्यालय से छुट्टी होने के बाद वह बस स्टौप पर खड़ी थी कि अम्लान का स्कूटर आ कर रुका, ‘‘आइए मनु दीदी, मैं आप को छोड़ दूं,’’ वह बोला तो मानसी का मन हुआ उस का मुंह नोच ले

‘‘यह संबोधन तुम्हारे मुंह से शोभा नहीं देता. मैं तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहती,’’ मानसी तीखे स्वर में बोली.

‘‘ओह, तो आप अभी तक नाराज हैं? हमारी मित्रता क्या ऐसी छोटीमोटी बातों से समाप्त हो जाएगी?’’ अम्लान धृष्टता से बोला.

‘‘छोटीमोटी बात कहते हो तुम उस घटना को?’’ उत्तर में अम्लान पर मानसी ने ऐसी आग्नेय दृष्टि डाली कि वह एक क्षण के लिए भी वहां न रुक सका. मानसी घर पहुंची तो द्वार खोलते ही सामने सुदीप का पत्र दिखाई दिया. उस ने शीघ्रता से लिफाफा खोला. पत्र में सुदीप के मोती जैसे अक्षर चमक रहे थे.

‘‘प्रिय मानसी,

तुम्हारा पत्र पढ़ कर आज मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो गया है. मेरी अनुपस्थिति में संभवतया तुम्हें एक त्रासदी से गुजरना पड़ा. पर इस के लिए अकेली तुम ही उत्तरदायी नहीं हो. मैं भी तुम्हारा अपराधी हूं. मैं हर परिस्थिति में तुम्हारे साथ हूं.

‘‘तुम ने 6 महीनों का लंबा समय कितनी कठिनाई से गुजारा होगा, मैं समझ सकता हूं. अब तो केवल 6 मास शेष हैं. मैं तो चाहता हूं कि उड़ कर तुम्हारे पास पहुंच जाऊं या तुम्हें यहां बुला लूं, पर ऐसा संभव नहीं है. तुम चाहो तो छुट्टी ले कर मायके जा सकती हो. मेरे मातापिता तो हैं नहीं, वरना मैं तुम्हें वहीं जाने की सलाह देता. तुम अपना निर्णय लेने को स्वतंत्र हो. मैं हर परिस्थति में तुम्हारे साथ हूं.

‘‘तुम्हारा, सुदीप.’’

पत्र पढ़ कर मानसी देर तक रोती रही. उसे ऐसा महसूस हुआ, मानो मन का बोझ आंखों की राह बह जाना चाहता हो और पत्र के माध्यम से सुदीप स्वयं उसे सांत्वना देने चला आया हो. सुदीप का विचार मन में आते ही उस ने आंसू पोंछ डाले और मन को दृढ़ किया. उसे ऐसा लगा, जैसे शरीर में नए उत्साह का संचार हो रहा हो. वह सोचने लगी, उस का सुदीप उस के साथ है तो वह किसी भी परिस्थिति का साहस से सामना कर सकती है. क्यों डरे वह किसी से? क्यों जाए कहीं. इसी घर में सुदीप के इसी प्यार के साथ वह 6 महीने भी काट लेगी.

क्या है Sleep Divorce, जानें कपल्स के लिए इसके फायदे

Sleep Divorce : आजकल स्लीप डिवोर्स का चलन तेजी से बढ़ रहा है. इस का मतलब है कि पार्टनर्स नींद में खलल से बचने के लिए अलगअलग बिस्तरों या कमरों में सोना पसंद कर रहे हैं. इस फैसले के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे पार्टनर का खर्राटे लेना, बारबार करवटें बदलना, वौशरूम जाना या सोने की अलगअलग आदतें. हालांकि सवाल यह है कि क्या यह ट्रैंड कपल्स में दूरी बढ़ा रही है या इस से वे ज्यादा एकदूसरे को समझ पा रहे हैं?

क्यों बढ़ रहा है स्लीप डिवोर्स का चलन

नींद का महत्त्व : नींद हमारे स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए बहुत जरूरी है. जब पार्टनर की आदतें नींद में खलल डालती हैं, तो यह थकावट, चिड़चिड़ापन और तनाव का कारण बन सकती हैं जिस से अगले दिन आप का पार्टनर ऐनर्जी से भरपूर न रह कर सुस्त पड़ा रहता है और अपने डेली टास्क कंप्लीट नहीं कर पाता.

स्वास्थ्य समस्याएं : खर्राटे जैसी समस्याएं कई बार स्लीप एपनिया जैसी गंभीर बीमारियों का संकेत होती हैं या आप की सांस की नली में रुकावट भी खर्राटों का कारण हो सकती है. खर्राटों को नियंत्रित करने के लिए आप अलगअलग पोजिशन में सोने की कोशिश करें। अगर करवट बदलने पर भी आप के खर्राटे लगातार आ रहे हैं तो आप को डाक्टर से संपर्क करना चाहिए.

कामकाजी जीवन : आजकल कपल्स के बीच काम के घंटे और शैड्यूल अलगअलग होते हैं, जिस से एक ही समय पर सोना मुश्किल हो जाता है.

स्पेस की जरूरत : कुछ लोग खुद को ज्यादा स्पेस देना पसंद करते हैं ताकि वे अपनी नींद पूरी कर सकें क्योंकि कई बार पार्टनर को बारबार करवटें बदलने, ज्यादा ठंड या गरम कमरे में सोने की आदत होती है जिस से आप के पार्टनर की नींद डिस्टर्ब होती है, इसलिए वह अलग कमरे में ही सोना ज्यादा पसंद करते हैं.

क्या स्लीप डिवोर्स रिश्तों पर असर डालता है

भावनात्मक दूरी : एकसाथ सोने से सिर्फ शारीरिक ही नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव भी बढ़ता है. अलग सोने से यह जुड़ाव कमजोर हो सकता है. जब आप रात को एकदूसरे से स्पर्श कर सोते हैं तो आप के शरीर में गुड हारमोंस का भी स्राव होता है जो आप को खुशी और सुकून का एहसास कराता है.

संचार में कमी : रात को साथ सोते समय पार्टनर दिनभर की बातें शेयर करते हैं. अलग सोने से यह समय खत्म हो सकता है और क्योंकि कपल्स दिनभर अपनेअपने काम में व्यस्त रहते हैं और ऐसे में रात में भी वे एकदूसरे वो वक्त न दें तो उन में अपनेआप ही दूरी आने लगती है और एकदूसरे से लगाव कम होता है.

प्यार की आदतें : साथ सोना प्यार का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है. जब साथ सोते हैं तो पतिपत्नी के बहुत से झगड़े बिना सुलझाए खुद ही सुलझ जाते हैं. अलग सोने से यह सहजता और निकटता कम हो सकती है और पार्टनर को मनाने और प्यार करने के अवसर कम होते हैं.

बहरहाल, कभीकभी स्लीप डिवोर्स के फायदे भी होते हैं :

बेहतर नींद : अलग सोने से पार्टनर्स की नींद में सुधार हो सकता है, जिस से उन का मूड और कामकाज बेहतर होता है. महीने में कुछ दिन जब आप काम में व्यस्तता के चलते या ट्रैवलिंग के चलते थकें हों तो आप अलग कमरों में सो सकते हैं. क्योंकि कई बार साथ में जब बच्चे सो रहे हैं तो आप की नींद पूरी नहीं हो पाती, ऐसे में कुछ दिन जरूर इस ट्रैंड को फौलो किया जा सकता है, लेकिन यह कोई स्थाई समाधान नहीं है.

फ्रीडम : कुछ कपल्स के लिए यह अपने पर्सनल स्पेस का आनंद लेने का तरीका हो सकता है. कई बार कप्लस शादी तो कर लेते हैं लेकिन अपनी बैचलर जिंदगी को नहीं छोड़ना चाहते. या कई बार काम की अलग शिफ्ट के चलते भी अलग सोना जरूरी हो जाता है.

साथ सोने के फायदे : रिश्तों को मजबूत करता है

शारीरिक स्पर्श का महत्त्व : साथ सोने पर शारीरिक संपर्क, जैसे गले लगाना या हाथ पकड़ना, औक्सिटोसिन (प्यार का हारमोन) बढ़ाता है.

भावनात्मक जुड़ाव : एकसाथ सोने से आपसी विश्वास और जुड़ाव बढ़ता है.

संचार का समय : सोने से पहले का समय कपल्स के लिए आपस में बात करने और एकदूसरे की भावनाओं को समझने का बेहतरीन मौका होता है. दिनभर जब आप औफिस या बच्चों में उलझे हों तो उस के बाद कप्लस को यही वक्त मिलता है जब वे अपनी भावनाएं अपने पार्टनर के साथ शेयर करें.

आपसी एडजस्टमैंट : साथ सोने से कपल्स को एकदूसरे की आदतों के साथ ऐडजस्ट करना सीखने का मौका मिलता है.

नींद में खलल होने पर क्या करें

अगर पार्टनर की आदतें आप की नींद में खलल डाल रही हैं, तो स्लीप डिवोर्स का विकल्प चुनने से पहले इन उपायों को अपनाएं :

खर्राटों का इलाज : डाक्टर से परामर्श लें. स्लीप एपनिया जैसी समस्याओं का इलाज जरूरी है.

सोने का रूटीन बनाएं : अगर संभव है तो एक ही समय पर सोने और उठने की आदत डालें. महीने में कुछ दिन जरूरी हो तो ठीक है वरना कोशिश करें कि साथ ही सोएं.

ईयर प्लग्स या व्हाइट नौइज मशीन : अगर शोर से परेशानी हो रही है तो ये मददगार हो सकते हैं. इस से आप को खर्राटों की ज्यादा आवाज नहीं आएगी और आप बेहतर सो पाएंगे.

बेहतर बिस्तर : सही गद्दे और तकिए का चुनाव करें. अगर आप को स्पेस की कमी लग रही है तो आप कम जगह में ज्यादा स्लीपिंग स्पेस बनाने के लिए बंकर बैड का औप्शन चुन सकते हैं. इस से आप को सोने के लिए ज्यादा जगह मिल जाएगी और आप को आप के पार्टनर से अलग भी नहीं सोना पड़ेगा.

संचार करें : पार्टनर से अपनी परेशानियों के बारे में खुल कर बात करें. उन को बताएं कि उन की किस आदत से आप परेशान हैं.

छोटीछोटी आदतें सुधारें

• रात को मोबाइल का कम इस्तेमाल करें.
• हलकेफुलके, नर्म और कंफर्टेबल कपड़े पहनें ताकि नींद में आराम मिले.
• सोने से पहले रिलैक्सिंग ऐक्टिविटी करें, जैसे किताब पढ़ना या बातचीत करना.

स्पेस और ऐडजस्टमैंट के बीच संतुलन

रिश्तों में थोड़ा पर्सनल स्पेस देना जरूरी है. यह हर व्यक्ति को खुद के लिए समय और शांति प्रदान करता है. लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि रिश्ते में दूरियां बढ़ा ली जाएं.

ऐडजस्टमैंट क्यों है जरूरी

रिश्ते में ऐडजस्टमैंट और समझदारी का होना बेहद जरूरी है. साथ सोने से आप एकदूसरे की आदतों को बेहतर तरीके से समझते हैं और एक मजबूत रिश्ता बना सकते हैं.

स्लीप डिवोर्स एक अस्थायी समाधान हो सकता है, लेकिन इसे स्थायी आदत बनाने से बचना चाहिए. बेहतर होगा कि कपल्स आपस में संवाद करें और नींद से जुड़ी समस्याओं का समाधान निकालें. एकसाथ सोना सिर्फ सोने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह रिश्ते को गहराई और मजबूती देने का जरीया भी है. इसलिए, प्यार और नींद के बीच संतुलन बनाएं, ताकि आप का रिश्ता और भी खूबसूरत बन सके.

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