Smoking की लत से हैं परेशान? तो इससे निजात पाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके

Smoking  : स्मोकिंग का शौक कब लत में बदल जाए और हमें अपने वश में कर ले, इस बात का हमें पता ही नहीं चलता. फिर चाहे हम लाख कोशिश कर लें पर हम उस से छुटकारा पाने में विफल हो जाते हैं क्योंकि स्मोकिंग की लत दिमाग को एक सिग्नल पहुंचाती है और दिमाग को उस सिग्नल की आदत सी लग जाती है.

कैसे करते हैं शुरुआत

बढ़ती उम्र में बच्चे घर के बड़ों, दोस्तों की देखादेखी व स्टाइल के चलते इसे भी फैशन का एक हिस्सा समझ स्मोकिंग लेना शुरू कर देते हैं और धीरेधीरे यह स्टाइल लत में तबदील हो जाती है.

विश्व संगठन के अनुसार, क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज में 80% व फफड़ों के कैंसर में 90% का कारण स्मोकिंग ही है. रिसर्च के अनुसार 69% सिगरेट में पाए जाने वाले कैमिकल कैंसर जैसे रोग का खतरा बढ़ाते हैं. जरूरी है कि समय रहते संभल जाएं अन्यथा जान तक गवानी पड़ सकती है.

अपनाएं ये तरीके

दृढ संकल्प है जरूरी : किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले हमें खुद को तैयार करना होता है. यदि आप स्मोकिंग के सेवन से छुटकारा पाना चाहते हैं तो खुद को मानसिक रूप से तैयार करना होगा और खुद को हमेशा अच्छे स्वास्थ्य, कुशल पारिवारिक जीवन के लिए प्रेरित करना होगा.

स्ट्रैस से रहें दूर : ज्यादा स्ट्रैस सेहत के लिए हानिकारक तो है ही साथ में यदि किसी को स्मोकिंग की आदत है तो स्ट्रैस के समय वह अधिक स्मोकिंग करता है. इसलिए स्ट्रैस से बचें व साथ ही ऐक्सरसाइज व रिलैक्सेशन तकनीक की आदत डालें.

ट्रिगर्स से बचें : ऐसे व्यक्तियों व परिस्थितियों से दूरी बनाएं जो आप को स्मोकिंग करने के लिए उकसाते हैं.

आदत बदलें : यदि स्मोकिंग की तलब बार बार लगती है तो इलायची, दालचीनी, च्विंगम जैसी चीजों से रिप्लैस करें.

खुद को रिवौर्ड देना न भूलें : जिस तरह बच्चों को छोटी सी कामयाबी मिलने पर भी बहुत खुशी मिलती है उसी तरह अपनी ललक को कम होने पर खुद को इनाम देना ना भूलें.

क्या आती है परेशानियां

शुरुआत में तलब लगने पर आप को बेचैनी महसूस होती है. ह्रदयगति और रक्तचाप बढ़ जाता है लेकिन कुछ घंटों बाद ही रक्त में कार्बन मोनोक्साइड नौर्मल स्थिती में आने लगती है और रक्तचाप व ह्रदयगति नौर्मल होने लगती है.

2-3 हफ्ते में फेफड़ों में सुधार होने लगता है व 5 साल में जानलेवा कैंसर का खतरा कम हो जाता है व कुछ ही समय में व्यक्ति का स्वास्थ्य तो अच्छा होता ही है, साथ ही उस के आसपास रहने वाले लोग भी स्वस्थ रहते हैं.

Marriage : जाति-बिरादरी के कारण हमारी शादी नही हो पा रही, मैं क्या करूं ?

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सवाल

मैं 22 वर्षीय युवती हूं. मेरी कहानी कुछ ऐसी है जिस की कोई मंजिल न हो. मैं बचपन से ही एक युवक से प्यार करती हूं. वह भी मुझे प्यार करता है परंतु मेरी कहानी जातिबिरादरी पर आ कर अटकी हुई है. आप बताएं हमारी शादी कैसे होगी?

जवाब

यह अच्छी बात है कि आप अपने बचपन के प्रेम को ताउम्र जीना चाहती हैं तभी तो आप ने उस युवक के साथ शादी के बारे में सोचा. लेकिन हमारे देश में जातिबिरादरी, धर्म आदि को कुछ ज्यादा ही अहमियत दी जाती है बनिस्पत प्यार के. आप के मामले में स्पष्ट नहीं है कि अटकाव किस पक्ष की ओर से है.

बहरहाल, आप खुद अपनी शादी की बात न कर के अपने किसी हितैषी द्वारा अपनी बात आगे पहुंचाएं, जिस की बात आप के पेरैंट्स भी मानते हों. उन्हें समझाएं कि जातिबिरादरी सब मनुष्य के बनाए हुए हैं. असली रिश्ता तो प्रेम का है, मानवता का है, जिस से सब बंधे हैं. जब दोनों ओर से पेरैंट्स यह समझ जाएंगे तो आप की शादी का अटकाव खुदबखुद दूर हो जाएगा.

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सैक्स फैंटेसीज : बदल रही है लोगों की सोच

कौमेडी सीरियल ‘भाभीजी घर पर हैं’ की कहानी कई बार सैक्स फैंटेसीज दिखाने की कोशिश करती है. इस सीरियल में अनिता और विभू मिश्रा नामक पतिपत्नी एक रोमांटिक कपल है. अनीता के करैक्टर में वह कई बार समाज की सैक्स फैंटेसीज को दिखाने की कोशिश भी करती है. अनीता जब बहुत रोमांटिक मूड में होती है, तो पति विभू से कहती है कि वह किसी दूसरे रूप में प्यार करना चाहती है. कभी वह उसे प्लंबर बनने को कहती है, कभी इलैक्ट्रीशियन तो कभीकभी गुंडामवाली तक बनने को कहती है. पति विभू उसी गैटअप में आता है. वह पत्नी से उसी अंदाज में बात करता है. इस से पत्नी अनीता को बहुत खुशी महसूस होती है. वह दोगुनी ऐनर्जी से प्यार करती है. यह कौमेडी सीरियल भले ही हो, पर इस में पतिपत्नी संबंधों को बहुत ही नाटकीय ढंग से दिखाया जा रहा है.

सैक्स को ले कर महिलाओं पर रूढिवादी सोच हमेशा हावी रही है. लेकिन अब समय के साथ यह टूटने लगी है. अब पुरुषों की ही तरह महिलाएं भी सैक्स को पूरी तरह ऐंजौय करना चाहती हैं. इसे ले कर उन के मन में कई तरह के सपने भी होते हैं. अब ये बातें भी पुरानी हो गई हैं कि कौमार्य पति की धरोहर है. अब शादी के पहले ही नहीं शादी के बाद भी सैक्स की वर्जनाएं टूटने लगी हैं. शादी के बाद पतिपत्नी खुद भी ऐसे अवसरों की तलाश में रहते हैं जहां वे खुल कर अपनी हसरतें पूरी कर सकें.

परेशानियों से बचाव

सैक्स के बाद आने वाली परेशानियों से बचाव के लिए भी महिलाएं तैयार रहती हैं. प्लास्टिक सर्जन डाक्टर रिचा सिंह बताती हैं, ‘‘शादी से कुछ समय पहले लड़कियां हमारे पास आती हैं, तो उन का एक ही सवाल होता है कि उन्होंने शादी के पहले सैक्स किया है. इस बात का पता उन के होने वाले पति को न चले, इस के लिए वे क्या करें? लड़कियों को जब इस बारे में सही राय दी जाती है तो भी वे मौका लगते ही सैक्स को ऐंजौय करने से नहीं चूकतीं. शादी के कई साल बाद महिलाएं हमारे पास इस इच्छा से आती हैं कि वे शारीरिक रूप से कुंआरी सी हो जाएं.’’

विदेशों में तो सैक्स को ले कर तमाम तरह के सर्वे होते रहते हैं पर अपने देश में ऐसे सर्वे कम ही होते हैं. कई बार ऐसे सैंपल सर्वों में महिलाएं अपने मन की पूरी बात सामने रखती हैं. इस से पता चलता है कि सैक्स को ले कर उन में नई सोच जन्म ले रही है. डाक्टर रिचा कहती हैं कि शादी से पहले आई एक लड़की की समस्या को एक बार सुलझाया गया तो कुछ दिनों बाद वह दोबारा आ गई और बोली कि मैडम एक बार फिर गलती हो गई.

सैक्स रोगों की डाक्टर प्रभा राय बताती हैं कि हमारे पास ऐसी कई महिलाएं आती हैं, जो जानना चाहती हैं कि इमरजैंसी पिल्स को कितनी बार खाया जा सकता है. कई महिलाएं तो बिना डाक्टर की सलाह के इस तरह की गोलियों का प्रयोग करती हैं. कुछ महिलाएं तो गर्भ ठहर जाने के बाद खुद ही मैडिकल स्टोर से गर्भपात की दवा ले कर खा लेती हैं. मैडिकल स्टोर वालों से बात करने पर पता चलता है कि बिना डाक्टर की सलाह के इस तरह की दवा का प्रयोग करने वाले पतिपत्नी नहीं होते हैं.

बदल रही सोच

सैक्स अब ऐंजौय का तरीका बन गया है. शादीशुदा जोड़े भी खुद को अलगअलग तरह की सैक्स क्रियाओं के साथ जोड़ना चाहते हैं. इंटरनैट के जरीए सैक्स की फैंटेसीज अब चुपचाप बैडरूम तक पहुंच गई है, जहां केवल दूसरे मर्दों के साथ ही नहीं पतिपत्नी भी आपस में तमाम तरह की सैक्स फैंटेसीज करने का प्रयास करते हैं. इंटरनैट के जरीए सैक्स की हसरतें चुपचाप पूरी होती रहती हैं. सोशल मीडिया ग्रुप फेसबुक और व्हाट्सऐप इस में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं. फेसबुक पर महिलाएं और पुरुष दोनों ही अपने निक नेम से फेसबुक अकाउंट खोलते हैं और मनचाही चैटिंग करते हैं. इस में कई बार महिलाएं अपना नाम पुरुषों का रखती हैं ताकि उन की पहचान न हो सके. वे चैटिंग करते समय इस बात का खास खयाल रखती हैं कि उन की सचाई किसी को पता न चल सके. यह बातचीत चैटिंग तक ही सीमित रहती है. बोर होने पर फ्रैंड को अनफ्रैंड कर नए फ्रैंड को जोड़ने का विकल्प हमेशा खुला रहता है.

इस तरह की सैक्स चैटिंग बिना किसी दबाव के होती है. ऐसी ही एक सैक्स चैटिंग से जुड़ी महिला ने बातचीत में बताया कि वह दिन में खाली रहती है. पहले बोर होती रहती थी. जब से फेसबुक के जरीए सैक्स की बातचीत शुरू की है तब से वह बहुत अच्छा महसूस करने लगी है. वह इस बातचीत के बाद खुद को सैक्स के लिए बहुत सहज अनुभव करती है. पत्रिकाओं में आने वाली सैक्स समस्याओं में इस तरह के बहुत सारे सवाल आते हैं, जिन्हें देख कर लगता है कि सैक्स की फैंटेसी अब फैंटेसी भी नहीं रह गई है. इसे लोग अपने जीवन का अंग बनाने लगे हैं.

समाजशास्त्री डाक्टर मधु राय कहती हैं, ‘‘पहले ऐसी बातचीत को मानसिक रोग माना जाता था. समाज भी इसे सही नहीं मानता था. अब इस तरह की घटनाओं को बदलती सोच के रूप में देखा जा रहा है. हमारे पास सैक्स समस्याओं पर चर्चा करने आए व्यक्ति ने बताया कि वह अपनी पत्नी के साथ सैक्स करने में असमर्थ था. उस ने कई डाक्टरों से अपना इलाज भी करवाया, लेकिन कोई लाभ न हुआ. ऐसे में उस की पत्नी ने घर के नौकर के साथ संबंध बना लिए. एक दिन पति ने पत्नी को नौकर के साथ संबंध बनाते देख लिया. मगर उसे गुस्सा आने के बजाय अपने में बदलाव महसूस हुआ. उस दिन उस ने अपनी पत्नी के साथ खुद भी सैक्स संबंध बनाने में सफलता पाई. अब वह खुद को सहज महसूस करने लगा था.’’

तरहतरह के लोग

फेसबुक को देखने, पसंद करने और चैटिंग करने वालों में हर वर्ग के लोग हैं. ज्यादातर लोग गलत जानकारी देते हैं. व्यक्तिगत जानकारी देना पसंद नहीं करते. छिबरामऊ की नेहा पाल की उम्र 20 साल है. वह पढ़ती है. वह लड़के और लड़कियों दोनों से दोस्ती करना चाहती है. 32 साल की गीता दिल्ली में रहती है. वह नौकरी करती है. उस की किसी लड़के के साथ रिलेशनशिप है. वह केवल लड़कियों से सैक्सी चैटिंग पसंद करती है. उस की सब से अच्छी दोस्त रीथा रमेश है, जो केरल की रहने वाली है. वह दुबई में अपने पति के साथ रहती है. अपने पति के साथ शारीरिक संबंधों पर वह खुल कर गीता से बात करती है. ऐसे ही तमाम नामों की लंबी लिस्ट है. इन में से कुछ लड़कियां अपने को खुल कर लैस्बियन मानती हैं और लड़कियों से दोस्ती और सैक्सी बातों की चैटिंग करती हैं. कुछ गृहिणियां भी इस में शामिल हैं, जो अपने खाली समय में चैटिंग कर के मन को बहलाती हैं. कुछ लड़केलड़कियां और मर्द व औरतें भी आपस में सैक्सी बातें और चैटिंग करते हैं.

कई लड़केलड़कियां तो अपने मनपसंद फोटो भी एकदूसरे को भेजते हैं. फेसबुक एकजैसी रुचियां रखने वाले लोगों को आपस में दोस्त बनाने का काम भी करता है. एक दोस्त दूसरे दोस्त को अपनी फ्रैंडशिप रिक्वैस्ट भेजता है. इस के बाद दूसरी ओर से फ्रैंडशिप कन्फर्म होते ही चैटिंग का यह खेल शुरू हो जाता है. हर कोई अपनीअपनी पसंद के अनुसार चैटिंग करता है. कुछ लड़कियां तो ऐसी चैटिंग करने के लिए पैसे तक वसूलने लगी हैं. वाराणसी के रहने वाले राजेश सिंह कहते हैं, ‘‘मुझ से चैटिंग करते समय एक लड़की ने अपना फोन नंबर दिया और कहा इस में क्व500 का रिचार्ज करा दो. मैं ने नहीं किया तो उस ने सैक्सी चैटिंग करना बंद कर दिया.’’

इसी तरह से लखनऊ के रहने वाले रामनाथ बताते हैं, ‘‘मेरी फ्रैंडलिस्ट में 4-5 लड़कियों का एक ग्रुप है, जो मुझे अपने सैक्सी फोटो भेजती हैं. मेरे फोटो देखना भी वे पसंद करती हैं. कभीकभी मैं उन का नैटपैक रिचार्ज करा देता हूं. इन से बात कर मैं बहुत राहत महसूस करता हूं. मुझे यह अच्छा लगता है, इसलिए मैं कुछ रुपए खर्च करने को भी तैयार रहता हूं.’’ फेसबुक के अलावा अब व्हाट्सऐप पर भी इस तरह की चैटिंग होने लगी है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

70 वर्षीय Rekha आज भी पूरी तरह डूबी हुई है अमिताभ बच्चन के प्यार में, शायराना अंदाज में कहीं दिल की बात

Rekha : बौलीवुड दीवा और आज भी बेहद खूबसूरत नजर आने वाली रेखा 70 साल की उम्र में भी उतनी ही हौट और करीजमाई अभिनेत्री हैं जिसका कोई मुकाबला नहीं है, हाल ही में रेखा कोरियोग्राफर गणेश आचार्य के साथ अच्छे रिश्तों के चलते उनकी फिल्म पिंटू की पप्पी के म्यूजिक लौन्च में बतौर मेहमान हौसला आफजाई करने पहुंची, जहां पर रेखा ने अपनी खूबसूरती का जादू तो बिखेरा ही लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी दर्शा दिया कि आज भी वह अमिताभ बच्चन साहब के प्यार में पूरी तरह से डूबी हुई है. स्टेज पर पहुंचते ही रेखा ने अपने दिलकश अंदाज में एक शायरी कही ‘किसी को इतना चाहो कि किसी और को चाहने की जरूरत ही ना पड़े.’

इससे पहले की मीडिया और वहां उपस्थित लोग रेखा के दिल की बात समझते उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा मैं एक्टिंग और काम की बात कर रही हूं, अपने काम से इतना प्यार करो कि लोग तुमको तुम्हारे काम से ही पहचाने, इससे पहले भी एक रोमांटिक शायरी रेखा ने अपने दिलकश अंदाज में कही, जिसने पूरी तरह साबित कर दिया की रेखा का अमिताभ के लिए प्यार कभी कम नहीं होगा. वैसे भी पौजिटिव सोच रखने वाली रेखा हमेशा प्यार दो प्यार को में ही विश्वास रखती है जो उनके स्वभाव में शालीनता नम्रता के तहत साफ झलकता है. बहरहाल रेखा जी की कुछ समय की उपस्थिति ने गणेश आचार्य की फिल्म पिंटू की पप्पी के सारे कलाकारों को और गणेश आचार्य को भाव विभोर कर दिया.

Aamir Khan को अपने 60 वें जन्मदिन पर मिला बड़ा तोहफा, ऐक्टर के स्पेशल Movies का होगा फिल्म फेस्टिवल

Aamir Khan : बौलीवुड के परफेक्शनिस्ट आमिर खान जो 14 मार्च को अपने जन्मदिन पर 60 साल के हो जाएंगे , लेकिन आज भी वह अपने काम के प्रति उनका उत्साह उतना हीं है जितना आज से 40 साल पहले था. आमिर खान ने अपनी बेहतरीन फिल्मों के जरिए भारतीय सिनेमा को उल्लेखनीय योगदान दिया है. जिस वजह से उनको एक स्पेशल फिल्म फेस्टिवल में जो उनकी ही स्पेशल फिल्मों का फिल्म फेस्टिवल होगा. जिसमें उन्हें सम्मानित किया जाएगा.

इस इस समारोह में उनकी लोकप्रिय और प्रतिष्ठित फिल्में सिनेमा घर में दिखाकर आमिर खान के सम्मान में भारतीय सिनेमा के लिए दिए गए योगदान का जश्न मनाने के लिए फिल्म फेस्टिवल “आमिर खान सिनेमा का जादूगर” पेश किया जाएगा. पीवीआर आइकौन लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अजय बिजली ने अपनी टीम के साथ मिलकर इस फेस्टिवल का आयोजन किया है.

अजय बिजली के अनुसार आमिर खान उन एक्टरों में से एक हैं जिन्होंने साहसी पटकथा से परहेज न करके फिल्म इंडस्ट्री को महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर सम्मानिय योगदान दिया है. आमिर खान की कई फिल्में जैसे 3 इडियट, लगान, दंगल तारे जमीन पर मजबूत मैसेज देती हैं और इन फिल्मों ने बौक्स औफिस पर अपार सफलता भी हासिल की है.

लिहाजा आमिर खान के बर्थडे 14 मार्च से 21 मार्च तक आमिर खान की लोकप्रिय फिल्मों का पीवीआर में फिल्म फेस्टिवल मनाया जाएगा.

Udit Narayan ने अपनी वायरल हुई पप्पी का खुद ही उड़ाया मजाक

Udit Narayan : हाल ही में प्रसिद्ध कोरियोग्राफर गणेश आचार्य की फिल्म पिंटू की पप्पी का म्यूजिक लौन्च हुआ, क्योंकि गणेश आचार्य जाने माने प्रसिद्ध कोरियोग्राफर है इसलिए उनके फिल्म इंडस्ट्री वालों से रिलेशन भी बहुत अच्छे हैं. जिसके चलते गणेश आचार्य की फिल्म पप्पू की पप्पी के प्रमोशन के लिए अक्षय कुमार से लेकर अजय देवगन, हिमेश रेशमिया तक कई सेलिब्रेटी शामिल हुए हैं. लिहाजा हाल ही में इसी फिल्म की म्यूजिक लौन्च में जो जुहू स्थित जे डब्लू मैरियट में था वहां पर फिल्म अभिनेत्री रेखा से लेकर हिमेश रेशमिया, उदित नारायण, अजय देवगन आदि कई फिल्मी हस्तियां भी शामिल हुई.

इसी शुभ अवसर पर जब उदित नारायण की एंट्री हुई तो वहां मौजूद सभी को उनका चुंबन वाला वायरल वीडियो याद आ गया जिसकी वजह से फिलहाल उदित नारायण काफी चर्चा में है, गौरतलब है हाल ही में उदित नारायण का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने अपनी एक फैन को लिप किस कर दिया था इस वीडियो को लेकर उदित नारायण का काफी मजाक उड़ रहा है और कई सारे मीम्स भी बन रहे हैं.

जिससे खुद उदित नारायण भी बेखबर नहीं है. ऐसे में जब उदित नारायण पिंटू की पप्पी फिल्म के म्यूजिक लौन्च में पहुंचे इसमें एक गाना उदित नारायण ने खुद भी गया है, तो मीडिया को हंसते मुस्कुराते देख उदित नारायण ने अपना ही मजाक उड़ाते हुए कहा कि पिंटू की पप्पी का पार्ट 2 बनना चाहिए जिसका नाम उदित की पप्पी होना चाहिए, हालांकि उन्होंने वायरल वीडियो को लेकर भी सफाई दी कि उनका वह चुंबन वाला वीडियो 6 महीना पुराना है, जो अभी वायरल हो रहा है. बहरहाल पिंटू की पप्पी हिट हो या ना हो उदित नारायण की पप्पी जरूर हिट और वायरल हो गई है.

Manushi Chhillar : नए कलाकारों के लिए मिस वर्ल्ड मानुषी छिल्लर ने दिया संदेश

Manushi Chhillar : मिस वर्ल्ड और अभिनेत्री मानुषी छिल्लर की मेडिकल फील्ड से फिल्मों तक की यात्रा प्रेरणादायक रही है. वह मानती हैं कि ग्लैमर की दुनिया एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें सच्चा जुनून और प्रतिबद्धता आवश्यक है. आपको इसे वास्तव में पूरे मन से चाहना होगा. मनोरंजन उद्योग में केवल प्रतिभा ही काफी नहीं होती, बल्कि इसके लिए अटूट समर्पण, धैर्य और मानसिक मजबूती भी जरूरी होती है, क्योंकि यहां रिजेक्शन बहुत होता है.

नए कलाकारों को दिया सलाह

बौलीवुड में बिना किसी फिल्मी कनेक्शन के कदम रखने वाली मानुषी नए कलाकारों को कैरियर के फैसले सोचसमझकर लेने की सलाह देती हैं. वह जल्दबाजी में कोई भी बड़ा फैसला लेने, मसलन बिना किसी योजना के नई जगह शिफ्ट होने या शून्य से शुरुआत करने से बचने की सलाह देती हैं. इसके बजाय, वह बैकअप प्लान रखने पर जोर देती हैं. खासकर उन लोगों के लिए जो मनोरंजन उद्योग में नए हैं.

रखें दूसरा औप्शन

मानुषी के अनुसार, फिल्मों में सफलता का सफर अनिश्चितताओं से भरा होता है और यहां प्रतिस्पर्धा बेहद कड़ी होती है. वह मानती हैं कि प्रतिभा और कड़ी मेहनत जितनी जरूरी है, उतनी ही महत्वपूर्ण वित्तीय और मानसिक स्थिरता भी होती है. यह स्थिरता कलाकारों को हड़बड़ी में जोखिम उठाने के बजाय सोचसमझकर फैसले लेने में मदद करती है. वह कहती है कि मैं कभी भी यह सलाह नहीं दूंगी कि बिना किसी योजना के सबकुछ छोड़कर फिल्म इंडस्ट्री में आ जाएं. अगर आप इस इंडस्ट्री से नहीं हैं और बिल्कुल नए हैं, तो मेरा सुझाव होगा कि पहले अपनी शिक्षा पूरी करें या अपने लिए एक मजबूत आधार तैयार करें, क्योंकि यह सफर आसान नहीं होने वाला नहीं होता, जितना बाहर से दिखता है.

मानुषी छिल्लर का आगे मानना है कि इंडस्ट्री में आने के लिए तैयारी और निरंतरता उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितना कि जुनून जरूरी है. सपनों का पीछा करना आवश्यक है, लेकिन एक मजबूत नींव होने से शोबिज़ की चुनौतियों का सामना करना आसान हो जाता है. मानुषी हमेशा कड़ी मेहनत और लगन से इसे साबित किया है और अब वह राजकुमार राव के साथ ‘मालिक’ और जौन अब्राहम के साथ ‘तेहरान’ जैसी फिल्मों में नजर आने के लिए तैयार हैं.

रिश्ता दोस्ती का

आपको बता दें कि मानुषी अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर बात करने में दिलचस्पी नहीं लेती, लेकिन इन दिनों वह अपने अफेयर को लेकर चर्चा में बनी हुई है. पिछले कुछ समय से उनका नाम वीर पहाड़िया के साथ जुड़ रहा है, उनके अफेयर को लेकर काफी अटकलें लगाई जा रही थी, ऐसे में मानुषी ने चुप्पी तोड़ी है और साफ कहा है कि मेरी पर्सनल लाइफ पर बहुत झूठी खबरें लिखी जा रही है. मेरे कई कई दोस्त है, जिनके साथ मैं घूमतीफिरती हूं. अगर मैँ किसी लड़की के साथ घूमती हूँ, तो लोग समझते है कि लड़कों में मेरी दिलचस्पी नहीं, लेकिन अगर मैं किसी लड़के के साथ घूमती हूं, तो लोग इसे डेटिंग समझते है. मेरा वीर पहाड़िया के साथ सिर्फ दोस्ताना रिश्ता है, एक शादी के दौरान उन्होंने मुझे कंपनी दी थी, जहां मैं किसी को जानती नहीं थी.

Hindi Love Stories : तलाक के बाद शादी – देव और साधना की प्रेम कहानी

Hindi Love Stories : न्यायाधीश ने चौथी पेशी में अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘आप दोनों का तलाक मंजूर किया जाता है.’’ देव और साधना अलग हो चुके थे. इस अलगाव में अहम भूमिका दोनों पक्षों के मातापिता, जीजा की थी.

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दोनों के मातापिता इस विवाह से खफा थे. दोनों अपने बच्चों को कोसते रहे विवाह की खबर मिलने से तलाक के पहले तक. दूसरी जाति में शादी. घरपरिवार, समाज, रिश्तेदारों में नाक कटा कर रख दी. कितने लाड़प्यार से पालपोस कर बड़ा किया था. कितने सपने संजोए थे. लेकिन प्रेम में पगलाए कहां सुनते हैं किसी की. देव और साधना दोनों बालिग थे और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करते थे साथसाथ. एकदूसरे से मिलते, एकदूसरे को देखते कब प्रेम हो गया, उन्हें पता ही न चला.

फिर दोनों छिपछिप कर मिलने लगे. प्रेम बढ़ा और बढ़ता ही गया. बात यहां तक आ गई कि एकदूसरे के बिना जीना मुश्किल होने लगा.

वे जानते थे कि मध्यवर्गीय परिवार में दूसरी जाति में विवाह निषेध है. बहुत सोचसमझ कर दोनों ने कोर्टमैरिज करने का फैसला किया और अपने कुछेक दोस्तों को बतौर गवाह ले कर रजिस्ट्रार औफिस पहुंच गए. शादीशुदा दोस्त तो बदला लेने के लिए सहायता करते हैं और कुंआरे दोस्त यह सोच कर मदद करते हैं मानो कोई भलाई का कार्य कर रहे हों. ठीक एक माह बाद विवाह हो गया. उन दोनों के वकील ने पतिपत्नी और गवाहों को अपना कार्ड देते हुए कहा, ‘यह मेरा कार्ड. कभी जरूरत पड़े तो याद कीजिए.’

‘क्यों?’ देव ने पूछा था.

वकील ने हंसते हुए कहा था, ‘नहीं, अकसर पड़ती है कुंआरों को भी और शादीशुदा को भी. मैं शादी और तलाक दोनों का स्पैशलिस्ट हूं.’

वकील की बात सुन कर खूब हंसे थे दोनों. लेकिन उन्हें क्या पता था कि वकील अनुभवी है. कुछ दिन हंसतेगाते बीते. फिर शुरू हुई असली शादी., जिस में एकदूसरे को एकदूसरे की जलीकटी बातें सुननी पड़ती हैं. सहना पड़ता है. एकदूसरे की कमियों की अनदेखी करनी पड़ती है. दुनिया भुला कर जैसे प्रेम किया जाता है वैसे ही विवाह को तपोभूमि मान कर पूरी निष्ठा के साथ एकदूसरे में एकाकार होना पड़ता है. प्रेम करना और बात है. लेकिन प्रेम निभाने को शादी कहते हैं. प्रेम तो कोई भी कर लेता है. लेकिन प्रेम निभाना जिम्मेदारीभरा काम है.

दोनों ने प्रेम किया. शादी की. लेकिन शादी निभा नहीं पाए. छोटीछोटी बातों को ले कर दोनों में तकरार होने लगी. साधना गुस्से में कह रही थी, ‘शादी के पहले तो चांदसितारों की सैर कराने की बात करते थे, अब बाजार से जरूरी सामान लाना तक भूल जाते हो. शादी हुई या कैद. दिनभर औफिस में खटते रहो और औफिस के बाद घर के कामों में लगे रहो. यह नहीं कि कोई मदद ही कर दो. साहब घर आते ही बिस्तर पर फैल कर टीवी देखने बैठ जाते हैं और हुक्म देना शुरू पानी लाओ, चाय लाओ, भूख लगी है. जल्दी खाना बनाओ वगैरा.’

देव प्रतिउत्तर में कहता, ‘मैं भी तो औफिस से आ रहा हूं. घर का काम करना पत्नी की जिम्मेदारी है. तुम्हें तकलीफ हो तो नौकरी छोड़ दो.’

‘लोगों को मुश्किल से नौकरी मिलती है और मैं लगीलगाई नौकरी छोड़ दूं?’

‘तो फिर घर के कामों का रोना मुझे मत सुनाया करो.’

‘इतना भी नहीं होता कि छुट्टी के दिन कहीं घुमाने ले जाएं. सिनेमा, पार्टी, पिकनिक सब बंद हो गया है. ऐसी शादी से तो कुंआरे ही अच्छे थे.’

‘तो तलाक ले लो,’ देव के मुंह से आवेश में निकल तो गया लेकिन अपनी फिसलती जबान को कोस कर चुप हो गया.

तलाक का शब्द सुनते ही साधना को रोना आ गया. अचानक से मां का फोन और अपनी रुलाई रोकने की कोशिश करते हुए बात करने से मां भांप गईं कि बेटी सुखी नहीं है. साधना की मां दूसरे ही दिन बेटी के पास पहुंच गई. मां के आने से साधना ने अवकाश ले लिया. देव काम पर चला गया. मां ने कहा, ‘मैं तुम्हारी मां हूं. फोन पर आवाज से ही समझ गई थी. अपने हाथ से अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी है तुम ने. अगर दुखी है तो अपने घर चल. अभी मातापिता जिंदा हैं तुम्हारे. दिखने में सुंदर हो, खुद कमाती हो. लड़कों की कोई कमी नहीं है जातसमाज में. अपनी बड़ी बहन को देखो, कितनी सुखी है. पति साल में 4 बार मायके ले कर आता है और आगेपीछे घूमता है. एक तुम हो. तुम्हें परिवार से अलग कर के शादी के नाम पर सिवा दुख के क्या मिला.’

पति की बेरुखी और तलाक शब्द से दुखी पत्नी को जब मां की सांत्वना मिली तो वह फूटफूट कर रोने लगी. मां ने उसे सीने से लगा कर कहा, ‘2 वर्ष से अपना मायका नहीं देखा. अपने पिता और बहन से नहीं मिली. चलो, घर चलने की तैयारी करो.’

साधना ने कहा, ‘मां, लेकिन देव को बताए बिना कैसे आ सकती हूं. शाम को जब मैं घर पर नहीं मिलूंगी तो वे क्या सोचेंगे.’

मां ने गुस्से में कहा, ‘जिस आदमी ने कभी तुम्हारी खुशी के बारे में नहीं सोचा उस के बारे में अब भी इतना सोच रही हो. पत्नी हो, गुलाम नहीं. फोन कर के बता देना.’ साधना अपनी मां के साथ मायके आ गई.

शाम को जब देव औफिस से लौटा तो घर पर ताला लगा पाया. दूसरी चाबी उस के पास रहती थी. ताला खोल कर फोन लगाया तो पता चला कि साधना अपने मायके से बोल रही है.

देव ने गुस्से में कहा, ‘ तुम बिना बताए चली गई. तुम ने बताना भी जरूरी नहीं समझा.’

‘मां के कहने पर अचानक प्रोग्राम बन गया,’ साधना ने कहा.

देव ने गुस्से में न जाने क्याक्या कह दिया. उसे खुद ही समझ नहीं आया कहते वक्त. बस, क्रोध में बोलता गया. ‘ठीक है. वहीं रहना. अब यहां आने की जरूरत नहीं. मेरा तुम्हारा रिश्ता खत्म. आज से तुम मेरे लिए मर…’

उधर से रोते हुए साधना की आवाज आई, ‘अपने मायके ही तो आई हूं. वह भी मां के साथ. उस में…’ तभी साधना की मां ने उस से फोन झपटते हुए कहा, ‘बहुत रुला लिया मेरी लड़की को. यह मत समझना कि मेरी बेटी अकेली है. अभी उस के मातापिता जिंदा हैं. एक रिपोर्ट में सारी अकड़ भूल जाओगे.’

देव ने गुस्से में फोन पटक दिया और उदास हो कर सोचने लगा, ‘जिस लड़की के प्यार में अपने मातापिता, भाईबहन, समाज, रिश्तेदार सब छोड़ दिए, आज वही मुझे बिना बताए चली गई. उस पर उस की मां कोर्टकचहरी की धमकी दे रही है. अगर उस का परिवार है तो मैं भी तो कोई अकेला नहीं हूं.’

देव भी अपने घर चला गया. उस के परिवार के लोगों ने भी यही कहा, ‘तुम ने गैरजात की लड़की से शादी कर के जीवन की सब से बड़ी भूल की है. तलाक लो. फुरसत पाओ. हम समाज की किसी अच्छी लड़की से शादी करवा देंगे. शादी 2 परिवारों का मिलन है. जो गलती हो गई उसे भूल जाओ. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? अच्छे दिखते हो. अच्छी कमाई है. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. अच्छा हुआ कि कोई बालबच्चा नहीं हुआ वरना फंस गए थे बुरी तरह. पूरा जीवन बरबाद हो जाता. फिर तुम्हारे बच्चों की शादी किस जात में होती.’

प्रेम तभी सार्थक है जब वह निभ जाए. यदि बीच में टूट जाए तो उसे अपने पराए सब गलती कहते हैं. यदि यही शादी जाति में होती तो मातापिता समझाबुझा कर बच्चों को सलाह देते. विवाह कोई मजाक नहीं है. थोड़ाबहुत सुनना पड़ता है. स्त्री का धर्म है कि जहां से डोली उठे, वहीं से जनाजा. फिर दामादजी से क्षमायाचना की जाती है. बहू को भी प्रेम से समझाबुझा कर लाने की सलाह दी जाती है. लेकिन मातापिता की मरजी के विरुद्ध अंतरजातीय विवाह में तो जैसे दोनों पक्षों के परिवार वाले इस प्रयास में ही रहते हैं.

यह शादी ही नहीं थी, धोखा था. लड़केलड़की को बहलाफुसला कर प्रेम जाल में फंसा लिया गया था. उन की बेटाबेटी तो सीधासादा था. अब तलाक ही एकमात्र विकल्प है. यह शादी टूट जाए तो ही सब का भला है. ऐसे में जीजा नाम के प्राणी को घर का सम्मानित व्यक्ति समझ सलाह ली जाती है और जीजा वही कहता है जो सासससुर, समाज कहता है. इस गठबंधन के बंध तोड़ने का काम जीजा को आगे बढ़ा कर किया जाता है.

जब देव साधना से और साधना देव से बात करना चाहते तो दोनों तरफ से माता या पिता फोन उठा कर खरीखोटी सुना कर तलाक की बात पर अड़ जाते और बच्चों के कान में उलटेसीधे मंत्र फूंक कर एकदूसरे के खिलाफ घृणा भरते.

तलाक की पहली पेशी में भी पतिपत्नी आपस में बात न कर पाए इस उद्देश्य से घर से समझाबुझा कर लाया गया था कोर्ट में और साथ में मातापिता, जीजा हरदम बने रहते कि कहीं कोई बात न हो जाए. इस बीच साधना औफिस नहीं गई. उस ने भोपाल तबादला करवा लिया या कहें करवा दिया गया.

मजिस्ट्रेट के पूछने पर दोनों पक्षों ने तलाक के लिए रजामंदी दिखाई. फिर दूसरी पेशी में उन के वकीलों ने दलीलें दीं. तीसरी पेशी में पत्नी और पति को साथ में थोड़े समय के लिए छोड़ा गया. कुछ झिझक, कुछ गुस्सा, कुछ दबाव के चलते कोई निर्णय नहीं हो पाया. चौथी पेशी में तलाक मंजूर कर लिया गया.

इस बीच 3 वर्ष गुजर गए. जिस जोरशोर से परिवार के लोगों ने दोनों का तलाक करवाया था, उसी तरह विवाह की कोशिश भी की, लेकिन जो उत्तर उन्हें मिलते उन उत्तरों से खीज कर वे अपने बच्चों को ही दोषी ठहराते.

तलाकशुदा से कौन शादी करेगा? 30 साल बड़ा 2 बच्चों का पिता चलेगा जो विधुर है.

घर से भाग कर पराई जात के लड़के से शादी, फिर तलाक. एक व्यक्ति है तो लेकिन अपाहिज है. एक और है लेकिन सजायाफ्ता है लड़की से जबरदस्ती के केस में.

मां ने गुस्से में कह दिया, ‘‘बेटी, तुम भाग कर शादी करने की गलती न करती तो मजाल थी ऐसे रिश्ते लाने वालों की. समाज माफ नहीं करता.’’ फिर मां ने समझाते हुए कहा, ‘‘ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जो बिना शादी के ही परिवार की देखरेख में जीवन गुजार देती हैं. तुम भोपाल में भाईभाभी के साथ रहो. अपने भतीजेभतीजियों की बूआ बन कर उन की देखरेख करो.’’

साधना ने भाभी को भी धीरे से भैया से कहते सुन लिया था कि दीदी की अच्छी तनख्वाह है, हमारे बच्चों को सपोर्ट हो जाएगा. मन मार कर वह भाईभाभी के साथ रहने लगी. भाभी के हाथ में किचन था. भैया ड्राइंगरूम में अपने दोस्तों के साथ गपें लड़ाते, टीवी देखते रहते और वह दिनभर थकीहारी औफिस से आती तो दोनों भतीजे उसे पढ़ाने या उस के साथ खेलने की जिद करते उस के कमरे में आ कर.

कुछ ऐसा ही देव के साथ हुआ तलाक के बाद. शादी की जहां भी बात चलती तो लड़का तलाकशुदा है. कोई गरीब ही अपनी लड़की मजबूरी में दे सकता है. कौन जाने कोई बच्चा भी हो. फिर तलाश की गई लड़की की उम्र बहुत कम होती या उसे बिलकुल पसंद न आती.

पिता गुस्से में कहते, ‘‘दामन पर दाग लगा है, फिर भी पसंदनापसंद बता रहे हो. फिर भी तुम्हारे जीवन को सुखी बनाने के लिए कर रहे हैं तो दस कमियां निकाल रहे हैं जनाब. पढ़ीलिखी नहीं है. बहुत कम उम्र की है. दिखने में ठीकठाक नहीं है.’’

परिवार के व्यंग्य से तंग आ कर देव ने कई बार तबादला कराने की सोची. लेकिन सफलता नहीं मिली. इन 3 वर्षों में वह सब सुनता रहा और एक दिन उसे प्रमोशन मिल गया और उस का तबादला भोपाल हो गया. उसे मंगलवार तक औफिस जौइन करना था. रविवार को उस ने कंपनी से मिले नौकर की मदद से कंपनी के क्वार्टर में सारी सामग्री जुटा ली. सोमवार को उस ने बाकी छोटामोटा घरेलू उपयोग का समान लिया और मन बहलाने के लिए 6 बजे के शो का टिकट ले कर पिक्चर देखने चला गया. ठीक 9 बजे फिल्म छूटी. वह एमपी नगर से हो कर निकला जहां उस का औफिस था. सोचा, औफिस देख लूं ताकि कल आने में आसानी हो. एमपी नगर से औफिस पर नजर डालते हुए वह अंदर की गलियों से मुख्य रोड पर पहुंचने का रास्ता तलाश रहा था.

दिसंबर की ठंड भरी रात. गलियां सुनसान थीं. उसे अपने से थोड़ी दूर एक महिला आगे की ओर तेज कदमों से जाती हुई दिखाई पड़ी. देव को लगा, शायद यह किसी दफ्तर से काम कर के मुख्य रोड पर जा रही हो, जहां से आटो, टैक्सी या सिटीबस मिलती हैं. वह उस के पीछे हो लिया. तभी उस महिला के पीछे 3 मवाली जैसे लड़कों ने चल कर भद्दे इशारे, व्यंग्य करने शुरू कर दिए.

‘‘ओ मैडम, इतनी रात को कहां? घर छोड़ दें या कहीं और?’’

फिर तीनों ने उसे घेर कर उस का रास्ता रोक लिया. महिला चीखी. देव तब तक और नजदीक आ चुका था. एक मवाली ने उसे थप्पड़ मार कर चुप रहने को कहा. महिला फिर चीखी. उसे चीख जानीपहचानी लगी. उस के दिल में कुछ हुआ. पास आया तो वह उस महिला को देख कर आश्चर्य में पड़ गया. यह तो साधना है. वह चीखा, ‘‘क्या हो रहा है, शर्म नहीं आती?’’

एक मवाली हंस कर बोला, ‘‘लो, हीरो भी आ गया.’’ उस ने चाकू निकाल लिया. साधना भी देव को पहचान कर उन बदमाशों से छूट कर दौड़ कर देव से लिपट गई. वह डर के मारे कांप रही थी. देव उसे तसल्ली दे रहा था, ‘‘कुछ नहीं होगा, मैं हूं न.’’

इस से पहले मवाली आगे बढ़ता, तभी पुलिस की एक जीप रुकी सायरन के साथ. पुलिस ने तीनों को घेर लिया. पुलिस अधिकारी ने पूछा, ‘‘आप लोग इतनी रात यहां कैसे?’’

‘‘जी, औफिस में लेट हो गई थी.’’

‘‘और आप?’’

‘‘मैं भी इसी औफिस में हूं. थोड़ा आगेपीछे हो गए थे.’’

साधना जिस तरह देव के साथ सिमटी थी, उसे देख कर पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘आप पतिपत्नी को साथसाथ चलना चाहिए.’’

तभी 3 में से 1 मवाली ने कहा, ‘‘वही तो साब, अकेली औरत, सुनसान सड़क. हम ने सोचा कि…’’

इस से पहले कि उस की बात पूरी हो पाती, थानेदार ने एक थप्पड़ जड़ते हुए कहा, ‘‘कहां लिखा है कानून में कि अकेली औरत, सुनसान सड़क और रात में नहीं घूम सकती है. और घूमती दिखाई दे तो क्या तुम्हें जोरजबरदस्ती का अधिकार मिल जाता है.’’

थानेदार ने कहा, ‘‘आप लोग जाइए. ये हवालात की हवा खाएंगे.’’

‘‘तुम यहां कैसे?’’ साधना ने पूछा.

‘‘प्रमोशन पर,’’ देव ने कहा.

‘‘और परिवार,’’ साधना ने पूछा.

‘‘अकेला हूं. तुम्हारा परिवार?’’

‘‘अकेली हूं. भाईभाभी के साथ रहती हूं.’’

‘‘शादी नहीं की?’’

‘‘हुई नहीं.’’

‘‘और तुम ने?’’

‘‘ऐसा ही मेरे साथ समझ लो.’’

‘‘औफिस में तो दिखे नहीं?’’

‘‘कल से जौइन करना है.’’

फिर थोड़ी चुप्पी छाई रही. देव ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘खुश हो तलाक ले कर?’’ वह चुप रही और फिर उस ने पूछा, ‘‘और तुम?’’

‘‘दूर रहने पर ही अपनों की जरूरत का एहसास होता है. उन की कमी खलती है. याद आती है.’’

‘‘लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है.’’

‘‘क्यों, क्या हम दोनों में से कोई मर गया है जो देर हो

चुकी है?’’

साधना ने देव के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मरें तुम्हारे दुश्मन.’’

उ न दोनों ने पास के एक शानदार  रैस्टोरैंट में खाना खाया. ‘‘घर चलोगी मेरे साथ? कंपनी का क्वार्टर है.’’

‘‘अब हम पतिपत्नी नहीं रहे कानून की दृष्टि में.’’

‘‘और दिल की नजर में? क्या कहता है तुम्हारा दिल.’’

‘‘शादी करोगे?’’

‘‘फिर से?’’

‘‘कानून, समाज के लिए.’’

‘‘शादी ही करनी थी तो छोड़ कर क्यों गई थी,’’ देव ने कहा.

‘‘औरत की यही कमजोरी है जहां स्नेह, प्यार मिलता है, खिंची चली जाती है. तुम्हारी बेरुखी और मां की प्रेमभरी बातों में चली गई थी.’’

‘‘कुछ मेरी भी गलती थी, मुझे तुम्हारा ध्यान रखना चाहिए था, लेकिन अब फिर कभी झगड़ा हुआ तो छोड़ कर तो नहीं चली जाओगी?’’ देव ने पूछा.

‘‘तोबातोबा, एक गलती एक बार. काफी सह लिया. बाहर वालों की सुनने से अच्छा है पतिपत्नी आपस में लड़ लें, सुन लें. एकदूसरे की.’’

अगले दिन औफिस के बाद वे दोनों एक वकील के पास बैठे थे. वकील दोस्त था देव का. वह अचरज में था,

‘‘यार, मैं ने कई शादियां करवाईं है और तलाक भी. लेकिन यह पहली शादी होगी जिस से तलाक हुआ उसी से फिर शादी. जल्दी हो तो आर्य समाज में शादी करवा देते हैं?’’

‘‘वैसे भी बहुत देर हो चुकी है, अब और देर क्या करनी. आर्य समाज से ही करवा दो.’’

‘‘कल ही करवा देता हूं,’’ वकील ने कहा.

शादी संपन्न हुई. इस बात की साधना ने अपनी मां को पहले खबर दी.

मां ने कहा, ‘‘हम लोग ध्यान नहीं रख रहे थे क्या?’’

साधना ने कहा, ‘‘मां, लड़की प्रेमविवाह करे या परिवार की मरजी से, पति का घर ही असली घर है स्त्री के लिए.’’

देव ने अपने पिता को सूचना दी. उन्होंने कहा, ‘‘शादी दिल तय करता है अन्यथा तलाक के बाद उसी लड़की से शादी कहां हो पाती है. सदा खुश रहो.’’

और इस तरह शादी, फिर तलाक और फिर शादी.

Hindi Moral Tales : ई. एम. आई – क्या लोन चुका पाए सोम और समिधा?

Hindi Moral Tales :  रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म की एक बेंच पर सोम और समिधा बैठे हुए अम्मां बाबूजी की गाड़ी के आने का इंतजार कर रहे थे. कुहरे के कारण गाड़ी 4 घंटे लेट थी. सोम गहरे सोच में था.

वह मन ही मन बढ़ने वाले खर्च को सोच कर गुणाभाग में लगा हुआ था.

‘‘समिधा, इस ई.एम.आई. के कारण हम लोगों के हाथ हमेशा बंधे रहते हैं.’’

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‘‘तुम भी सोम न जाने क्याक्या सोचते रहते हो. इसी के जरिए तो हम लोगों ने सुखसुविधा की चीजें जोड़ ली हैं, नहीं तो भला क्या मुमकिन था?’’

‘‘समिधा, अम्मांबाबूजी पहली बार अपने घर आ रहे हैं. ध्यान रखना, अम्मां नाराज न होने पाएं.’’

‘‘सोम, तुम यह बात कम से कम 15 बार कह चुके हो. तुम्हारी अम्मां तुनकमिजाज हैं, यह मुझे अच्छी तरह मालूम है.’’

सोम चुप हो कर बैठ गया.

उस के मन में डर था कि अम्मां और समिधा की कैसे निभेगी, क्योंकि अम्मां को उस के हर काम में मीनमेख निकालने की आदत है. समिधा भी बहुत जिद्दी है. सोम उसे 2 साल तक मां न बनने की बात कह रहा था, लेकिन उस ने चुपचाप अपनी मनमानी कर ली. यह राज तो तब खुला जब एक दिन उस ने समिधा से कहा कि उस का प्रमोशन हुआ है, उस की तनख्वाह भी बढ़ जाएगी. तभी हंस कर बोली थी वह, ‘‘आप का एक प्रमोशन और हुआ है.

‘‘वह क्या?’’ पूछने पर समिधा शरमाते हुए बोली थी, ‘‘आप पापा बनने वाले हैं.’’

सुन कर वह घबरा गया था, ‘‘नहींनहीं, अभी यह सब नहीं. अभी मेरे लिए तुम्हारी नौकरी बहुत जरूरी है. तुम औफिस जाओगी तो बच्चे को कौन रखेगा?’’

निश्चिंत हो कर वह बोली थी, ‘‘मैं ने अम्मां से बात कर ली है, वे अब यहीं रहेंगी. बच्चे को वे ही संभालेंगी.’’

दोनों में अच्छीखासी बहस हो गई थी. सोम का कहना था कि उस की और अम्मां की पटेगी नहीं.

समिधा का कहना था कि वह अम्मां को अच्छी तरह समझती है, वे उसे अकेला छोड़ कर गांव कभी नहीं जाएंगी.

सोम गंभीर हो कर अपनी और समिधा की मुलाकात और शादी के बारे में सोचने लगा. उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे कल की ही बात हो.

समिधा सोम के औफिस में ही काम करती थी. वह गोरे रंग एवं तीखे नैननक्श वाली लड़की थी. काम के सिलसिले में उसे सोम के पास बारबार जाना पड़ता था. दोनों ही साधारण परिवार से थे. मिलतेजुलते कब एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए, उन्हें पता ही नहीं लगा.

समिधा का पहले शरमाना, फिर मुसकराना, फिर साथ में कौफी पीना और फिर बाइक पर लिफ्ट… चूंकि दोनों की पृष्ठभूमि लगभग एक सी थी, अत: प्यार परवान चढ़ने लगा. औफिस में दोनों के बारे में चर्चा होने लगी थी. कुछ दिन बाद अचानक समिधा ने औफिस आना बंद कर दिया, तो सोम परेशान हो उठा. उस ने समिधा के घर का पता लगाया और बेचैन हालत में उस के घर पहुंच गया. वह एक कालोनी में अपनी बूआ के साथ रहती थी. उस के मांबाप बचपन में ही गुजर गए थे. बूआ ने ही उसे पढ़ाया लिखाया था. बूआ एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका थीं. समिधा और बूआ दोनों एकदूसरे का सहारा थीं. मेवा मिठाई, पकवान तो उन के पास नहीं था, परंतु दाल रोटी अच्छी तरह से चल रही थी.

सोम को देखते ही समिधा की बूआ सरिताजी की त्योरियां चढ़ गई थीं. छूटते ही उन्होंने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी कि कहां रहते हो? घर पर कौनकौन है? समिधा से क्यों मिलने आए हो? तुम्हारी तनख्वाह कितनी है? आदिआदि.

सोम के माथे पर पसीना आ गया था. वह उस घड़ी को कोसने लगा था, जब उस ने समिधा के घर की ओर रुख किया था. परंतु वह अपनी अम्मां के ऐसे तेवरों से वाकिफ था, इसलिए उस ने धैर्यपूर्वक उन्हें उत्तर दिए.

जब सरिताजी थोड़ी आश्वस्त हुईं तो बोलीं, ‘‘इसे तो 1 हफ्ते से बुखार आ रहा था. इसीलिए औफिस नहीं जा रही थी. अब बुखार ठीक हो गया है, इसलिए कल से यह औफिस जाएगी,’’ फिर चेतावनी भरे स्वर में बोलीं, ‘‘मुझे लड़के लड़कियों की दोस्ती पसंद नहीं है. लड़के कुछ दिन तो लड़कियों से प्यार का नाटक करते हैं, फिर जब दूसरी पर दिल आ जाता है तो पहले वाली की ओर मुड़ कर भी नहीं देखते.’’

सोम की तो स्पष्टवादी सरिताजी के सामने बोलती ही बंद हो गई थी. सरिताजी उठ कर अंदर चली गईं तब समिधा ने फुसफुसा कर उस से कहा, ‘‘आप को यहां आने की क्या जरूरत थी? बूआ ने इतनी बातें कह डालीं आप से, मैं उन की ओर से क्षमा मांगती हूं.’’

सोम ने दबे स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारा मोबाइल बंद था, इसलिए मैं घबरा गया था. अच्छा अब मैं चलता हूं.’’ वह खड़ा ही हुआ था कि तभी बूआ चायनाश्ता ले कर आ गईं. बोलीं, ‘‘क्यों बेटा, तुम मेरी बात का बुरा मान गए क्या? मेरी जवान बेटी है, सुंदर भी है इसलिए डरती हूं, कहीं किसी गलत लड़के के चक्कर में न पड़ जाए. लंबाचौड़ा दहेज देने की हैसियत तो मेरी है नहीं कि यह राजकुमार का ख्वाब देखे. कोई पढ़ालिखा, खाताकमाता लड़का मिल जाए, जो इस का ध्यान रखे, इस को इज्जत दे, बस यही चाहती हूं मैं. पढ़ालिखा कर काबिल बना दिया है मैं ने इसे, अपने पैरों पर खड़ी हो गई है यह.’’

सोम ने उन लोगों से विदा ली. सरिताजी की स्पष्टवादिता से वह उन का कायल हो गया. एक मां के दर्द को उस ने गहराई से अनुभव किया था. उसी क्षण उस ने मन ही मन समिधा से शादी का निर्णय कर लिया था. अम्मांबाबूजी से आज्ञा लेना तो मात्र औपचारिकता थी.

अगले दिन वह औफिस गई तो सोम से आंखें मिलाने में सकुचा रही थी, परंतु वह उस को देखते ही खुश हो गया. लंच के समय समिधा ने पुन: उस से बूआ की बातों के लिए माफी मांगी, परंतु सोम ने तो उस के समक्ष शादी का प्रस्ताव ही रख दिया. वह खुशी से झूम उठी, उसे अपने पर विश्वास नहीं हो रहा था.

एक हफ्ते बाद ही सोम छुट्टी ले कर अपने गांव गया. वहां उस ने अम्मांबाबूजी को उस का फोटो दिखा कर पूछा, ‘‘यह लड़की कैसी है?’’ दोनों ने फोटो देखा फिर एकसाथ बोल पड़े, ‘‘दहेज कितना मिलेगा?’’

वह बोला, ‘‘दहेज. लेकिन मैं तो बिना दहेज लिए ही शादी करूंगा.’’

बाबूजी भड़क उठे, ‘‘तुम्हारा तो दिमाग खराब हो गया है. मेरे पास क्या रकम गड़ी है, जो मैं शादी में खर्च करूंगा? अभी तक सुनंदा के विवाह का कर्ज चुका रहा हूं. ब्याज बढ़ता जा रहा है. मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा रुपया. तुम्हें जो नकद मिले उस से तुम शहर में अपने लिए घर ले लेना.’’

‘‘आप मेरे घर की चिंता न करें. किस्तों में फ्लैट मैं ले चुका हूं. आप दहेज की बात करते हैं, वह तो नौकरी कर रही है, सारी जिंदगी कमा कर दहेज देती रहेगी.’’

बाबूजी चीखते हुए बोले, ‘‘जब तुम ने सब तय कर लिया है, तो मुझ से हामी भरवाने की क्या जरूरत है. भाड़ में जाओ, जो चाहे वह करो.’’

सोम ने अगली सुबह की ट्रेन पकड़ी और दिल्ली लौट आया. उस के बाद 3-4 बार वह जल्दीजल्दी फिर गांव गया. अम्मां बाबूजी को तरहतरह से समझाने का प्रयास करता रहा, परंतु हठी बाबूजी का मन नहीं पसीजा.

बाबूजी और सोम में बोलचाल बंद हो गई थी. वह उन के सामने भी नहीं पड़ता था. धीरेधीरे लगभग 1 साल बीत गया. एक बार अम्मां की ममता जाग उठी. बोलीं, ‘‘लल्ला, तुम उस छोरी से चुपचाप कचहरी में लिखापढ़ी से ब्याह कर लो. तुम्हारे बाबूजी गांव भर में पंडिताई करते हैं, इसलिए अपनी बदनामी से डरते हैं. तुम बाद में बहू को ले कर आ जाना. हम सब संभाल लेंगे.’’

दिल्ली लौट कर सोम ने कोर्ट में शादी के लिए अर्जी दे दी और नियत तिथि को उदास मन से शादी कर ली. शादी में कोई धूमधाम न होने से दोनों के मन में बड़ा मलाल था.

समिधा ने सोम की उदासी परखते हुए कुछ दिन बाद उस के गांव चलने का प्रस्ताव रखा. सोम अम्मांबाबूजी के स्वभाव से परिचित था. उस ने उसे समझाया, ‘‘तुम उन के क्रोध को नहीं जानती हो. वे न जाने कैसी प्रतिक्रिया करेंगे.’’

वैसे वह भी समिधा को सब से मिलवाना चाहता था. नए जीवन की शुरुआत पर अम्मां बाबूजी का आशीर्वाद लेना चाहता था. उस ने अम्मां को फोन किया, ‘‘अम्मां, आप के कहे अनुसार हम ने कचहरी में शादी कर ली है, अब हम दोनों आप लोगों का आशीर्वाद चाहते हैं.’’

अम्मां जैसे इंतजार ही कर रही थीं. तुरंत बोलीं, ‘‘आ जाओ, हम भी तो तुम्हारी परकटी परी को अपनी आंखों से देखें, जिस ने हमारे लल्ला को फंसा लिया है.’’

समिधा के बाल कटे हुए थे. आज्ञा पाते ही सोम खुशी से उछल पड़ा. वह बाजार जा कर बाबूजी के लिए सिल्क का कुरता, धोती और ऊनी दोशाला लाया. अम्मां के लिए सुंदर सी साड़ी और शाल लाया. सरिताजी ने भी अपनी ओर से उन के लिए उपहार दिए.

सोम के मन में रास्ते भर उमड़घुमड़ मची रही. वह घर रात के अंधेरे में पहुंचा. संयोगवश दरवाजा बाबूजी ने ही खोला. सोम को देखते ही वे मुंह फेर ही रहे थे कि समिधा उन के पैरों पर गिर पड़ी. बाबूजी थोड़ा सकपकाए, परंतु तुरंत ही सब समझ गए. फिर अप्रत्याशित रूप से आशीर्वाद देते हुए बोले, ‘‘सदा प्रसन्न रहो.’’

सोम का दिल बल्लियों उछल रहा था, परंतु यह क्या? बाबूजी ने अम्मां को आवाज दी, ‘‘उठो, तुम्हारा लाड़ला बहू ले कर आया है. न ढोल न नगाड़ा बस बेटे का ब्याह हो गया.’’ अम्मां ने आ कर दोनों को गले से लगा लिया. आंसुओं की धारा में सारा कलुष बह गया. बाबूजी भी चुपचाप अपने आंसू पोंछते रहे.

अगली सुबह ही अम्मां ने आदमी भेज कर अपनी बेटी सुनंदा को बुला लिया. वह सपरिवार आ गई. घर में खूब रौनक हो गई. बाबूजी ने कोई कसर न छोड़ी. गांव वालों को दावत दी. अम्मां ने समिधा को अपना हार पहना दिया.

सोम बहुत खुश था. उस ने स्वप्न में भी बाबूजी द्वारा ऐसे स्वागत के बारे में नहीं सोचा था. दोनों की गृहस्थी की गाड़ी रफ्तार से चल निकली थी. एक की पूरी तनख्वाह ई.एम.आई.  चुकाने में चली जाती थी, एक की तनख्वाह से घर चलता था. सोम अम्मांबाबूजी को हर महीने कुछ पैसा भेजता था, साथ ही सुनंदाजी की भी कुछ न कुछ मदद करता रहता था, इसलिए उस का हाथ हमेशा तंग रहता था.

‘‘सोम, कहां खो गए हो?’’

समिधा की आवाज से उस की विचार तंद्रा भंग हो गई. ट्रेन के आने की घोषणा हो गई थी. वह वर्तमान में लौट आया था. वह तेजी से अम्मांबाबूजी के डब्बे की ओर चल पड़ा.

‘‘प्लीज, अम्मां का ध्यान रखना,’’ सोम कहना नहीं भूला. उस ने लोन पर गाड़ी भी खरीद ली थी. उन लोगों को वह अपनी गाड़ी में दिल्ली घुमाने ले जाएगा, यह उस की चाहत थी.

सोम की अम्मां 65 वर्ष की बुजुर्ग महिला थीं. उन का पूरा जीवन गांव में गरीबी में बीता था. पहली बार वे दिल्ली आई थीं. प्लेटफार्म की भीड़ देख कर वे हैरान थीं. सड़कों पर लोगों की आवाजाही और गाडि़यों की कतार उन के लिए नई चीज थी. ऊंचीऊंची अट्टालिकाओं की भव्यता से वे हतप्रभ थीं. रोशनी की जगमग देख वे बोल उठीं, ‘‘का हो लल्ला, कोई मेला है क्या?’’

‘‘नहीं अम्मां, लोग काम से आतेजाते रहते हैं. यह देश की राजधानी दिल्ली है.’’

लिफ्ट से ऊपरी मंजिल पर चढ़ना भी उन के लिए अनोखा अनुभव था. सोम का फ्लैट छठी मंजिल पर था. सोम के ड्राइंगरूम में सोफासैट आदि सामान देख कर उन की आंखें फटी की फटी रह गईं.

‘‘सोम, इतने सामान में तो बहुत रुपया लगा होगा?’’

‘‘नहीं अम्मां, हम लोगों ने एकएक कर के पुरानी चीजें खरीद ली हैं.’’

सोम के 70 वर्षीय पिता दमा के मरीज थे. वे अकसर खांसते रहते थे. उस की दिली इच्छा थी कि वह बाबूजी का अच्छी तरह से इलाज कराए. वह उन्हें एक बड़े अस्पताल में दिखाने के लिए ले गया. उन की दवा और खानेपीने का पूरा खयाल रखा. बाबूजी उस से बहुत खुश थे. परंतु सोम का बजट थोड़ा गड़बड़ाने लगा था. फिर भी बाबूजी की सेवा कर के वह बहुत खुश था.

दवा के बड़े लिफाफे को देख कर अम्मां एक दिन बोलीं, ‘‘बुढ़ऊ की तो सारी उमर खांसत बीत गई, अब काहे को इन के लिए डाक्टरों की जेब में रुपया भर रहे हो. बहुत ज्यादा है तो बहन सुनंदा को कुछ भेज दो, उसे सहारा हो जाएगा.’’

उसे अच्छा नहीं लगा. ‘‘अम्मां, आप तो बस कुछ भी बोलती रहती हैं,’’ उस ने कहा, फिर बात बढ़ न जाए, यह सोच वह उठ कर अपने कमरे में चला गया. जब से अम्मां ने सोम का घर और रहनसहन देखा है, तब से उन्हें सुनंदा की याद बारबार आ रही थी.

समिधा समय से अम्मांबाबूजी को चायनाश्ता देती थी, खाना बना कर ही औफिस जाती थी, फिर भी अम्मां उसे पसंद नहीं करती थीं. हालांकि वह ज्यादा कुछ नहीं बोलती थीं, लेकिन उन के चेहरे के हावभाव व आंखें बहुत कुछ कह देती थीं.

एक दिन बोलीं, ‘‘बहू, अब औफिस जाना बंद करो. ऐसी हालत में घर से निकलना ठीक नहीं है. अगर कुछ उलटासीधा हो गया तो सब हाथ मलते रह जाएंगे.’’

उस ने धीरे से कहा, ‘‘अम्मां, बाद में भी छुट्टी लेनी है, इसलिए ज्यादा छुट्टी ले लेंगे तो तनख्वाह कट जाएगी.’’

एकदम बिगड़ कर वे बोलीं, ‘‘तुम तो ऐसे कह रही हो, जैसे मेरा सोम ढफली बजाता है, तुम्हीं रोटी चलाती हो.’’

इसी तरह कुछ न कुछ रोज होता रहता. समिधा तनाव से ग्रस्त हो जाती, परंतु उस ने मर्यादा का सदा ध्यान रखा. सोम व समिधा बच्चे को ले कर नित्य नई कल्पनाएं करते. समिधा ने पहले से ही छोटे बच्चे के लिए कपड़े, स्वैटर, मोजे आदि बना रखे थे. अम्मां भी दादी बनने की कल्पना से अत्यंत खुश थीं. वह मन से कोमल थीं, केवल जबान की तीखी थीं.

इंतजार की घडि़यां पूरी हुईं. समिधा ने प्यारे से बेटे को जन्म दिया. अम्मांबाबूजी तो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. पूरे वार्ड में घूमघूम कर उन्होंने लड्डू बांटे. प्यार से समिधा के सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया. अम्मां बच्चे के ऊपर रुपए निछावर कर के आया को दे आईं. समिधा और सोम भी प्यारे से गोलू को पा कर निहाल हो उठे थे.

वह घर आ गई थी. अम्मां अपने साथ गांव से घी लाई थीं. उन्होंने प्यार से उस के लिए हलवा, सोंठ के लड्डू और गोंद की बरफी बनाई. बचपन से मां के अभाव में पलीबढ़ी वह सास के लाड़प्यार से अभिभूत हो उठी थी. उन की प्यार भरी देखभाल से उस की सेहत और रूप निखर उठा था. इतना सब करने के बाद भी अम्मां की दिखावे की आदत ने घर में कलुषता घोल दी.

एक दिन वे बोलीं, ‘‘सोम, तुम्हारे बेटा हुआ है, बहन सुनंदा को क्या दोगे?’’

‘‘अम्मां अभी तो अस्पताल वगैरह में बहुत रुपए खर्च हो गए हैं, इसलिए बाद में आप जो कहिएगा वह दे देंगे.’’

अम्मां सुनते ही बिफर पड़ीं, ‘‘तुम दोनों का तो हिसाब ही नहीं समझ आता है. दोनों सुबह के गए रात में घर घुसते हो. दोनों हाथ से कमा रहे हो, फिर भी बहन को देने के नाम पर कुछ है ही नहीं.’’

अम्मां का पारा गरम हो गया था. उन की आदत थी कि जब उन के मन का काम नहीं होता था, वे मुंह फुला कर बैठ जाती थीं. उन की चुप्पी उन के गुस्से की द्योतक थी. चेहरे के हावभाव बिगड़ेबिगड़े थे. समिधा समझ रही थी कि स्थिति नाजुक है. उस ने समझदारी से गोलू को उन की गोद में दे दिया. गोलू को देख कर वे थोड़ी सामान्य हुईं.

एक दिन अम्मां कोने में खड़ी हो कर सुनंदा जीजी से फोन पर धीरेधीरे बातें कर रही थीं. समिधा वहां से गुजरी तो उसे सुनाई पड़ा कि सुनंदा तुम छोटी हो, तुम्हें भाईभाभी को कुछ भी देने की जरूरत नहीं है. वे तुम से बड़े हैं. तुम अपने पैसे मत खर्च करना. बस जब आना तो गोलू के लिए एक जोड़ी कपड़े ले आना. सोम के पास तो तुम्हें देने के लिए कुछ है ही नहीं. समिधा चुप्पी है, लेकिन है पूरी घाघ. वही सोम को भरती रहती है.

इन बातों को सुन कर समिधा का दिल टूट गया. वह अम्मां को कैसे समझाए कि वह किस तरह से ई.एम.आई. के शिकंजे में फंसी हुई है. अम्मां को तो इस घर की ऊपरी चमकदमक दिख रही है, परंतु इस के अंदर की कहानी का उन्हें क्या पता?

गोलू 3 महीने का होने वाला था. समिधा की छुट्टियां समाप्त होने वाली थीं. अभी तक तो वह घर में रह कर सब कुछ अच्छी तरह संभाल रही थी. कल से उसे औफिस जाना है. उस ने सुबह जल्दी उठ कर जल्दीजल्दी नाश्ता और खाना बना दिया, फिर अपना और सोम का टिफिन भी तैयार कर लिया, लेकिन गोलू को छोड़ कर जाते समय उस की आंखें भर आईं. सोम से बोली, ‘‘मुझ से गोलू को छोड़ कर नौकरी नहीं हो पाएगी.’’

वह नाराज हो उठा, ‘‘मैं समझता हूं कि तुम्हें परेशानी हो रही है, लेकिन क्या करूं. तुम्हारी नौकरी मेरी मजबूरी है. इसीलिए मैं अभी बच्चे के लिए मना कर रहा था.’’

औफिस में उस का बिलकुल भी मन नहीं लग रहा था. अम्मां के लिए भी दिन भर गोलू को रखना भारी पड़ रहा था. अत: अम्मां की परेशानी को समझ कर उन की सहायता के लिए आया सुशीला को रख दिया. 2-4 दिन तो अम्मां सुशीला के साथ खुश रहीं, फिर शुरू हो गईं उन की शिकायतें. वह औफिस से आती तो गोलू और सुशीला दोनों की शिकायतों का लंबा पुलिंदा अम्मां की जबान पर तैयार रहता.

सुशीला के लिए अम्मां का कहना था कि सारे काम तो वे खुद करती हैं, यह तो बैठे रहने का पैसा लेती है. समिधा ने उन्हें कई बार समझाया कि आप इस को लगाए रखें, नहीं तो आप परेशान हो जाएंगी.

सुशीला 15-16 वर्ष की लड़की थी. उस में बचपना था. वह फटाफट काम कर के टीवी देखने लग जाती, जो अम्मां को नागवार गुजरता था. समिधा ने अम्मां को खुश करने के लिहाज से कई बार सुशीला को जोरदार डांट पिलाई, परंतु अम्मां जिस से चिढ़ जाएं उन्हें उस की शक्ल से भी नफरत हो जाती थी.

आखिर एक दिन उन्होंने उसे भगा दिया. वह औफिस से आई तो उस से बोलीं, ‘‘समिधा तुम नौकरी छोड़ दो, तुम्हारी नौकरी के कारण मैं भी यहां परेशान रहती हूं और यह नन्हा गोलू भी. तुम घर में रहोगी तभी मैं यहां रह पाऊंगी, नहीं तो मैं गांव चली जाऊंगी.’’

समिधा सन्न रह गई. उस की सारी छुट्टियां समाप्त हो चुकी थीं. वह तो स्वयं गोलू के बिना औफिस में कैसे समय बिताती है वही जानती है, परंतु वह क्या करे? नौकरी तो उस की मजबूरी है. वह गोलू को अपने से चिपटा कर सिसक उठी. वह बारबार गोलू को चूमती जा रही थी. तभी सोम आ गया.

‘‘समिधा क्या बात है?’’

वह आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘अम्मां मुझ से नौकरी छोड़ने को कह रही हैं, नहीं तो वे गांव चली जाएंगी.’’

वह घबरा कर बोला, ‘‘मैं ने तुम से पहले ही कहा था, अभी बच्चे के चक्कर में मत पड़ो, लेकिन तुम ने माना नहीं. अब क्या होगा? मैं तो जानता था वे यहां नहीं टिक सकतीं.’’

अम्मां जल्दीजल्दी बड़बड़ाती हुए सामान समेटने में लगी थीं. ‘बच्चा रोए तो रोए, सुबहसुबह सजधज कर घर से निकल जाना. नौकरी तो बहाना है. हम सब समझते हैं. सोम सीधा है, इसलिए जो जी में आता है वह करती है. उसे तो उंगली पर नचाती है. क्या हमारा सोम कमाता नहीं है?’ अनापशनाप बोलती जा रही थीं वे.

इन अनर्गल बातों को सुन कर सोम अपना आपा खो बैठा, ‘‘अम्मां सुनो, आप को जाना है तो जाइए, लेकिन जाने से पहले मेरी बात सुन लीजिए. आप को मेरे कमरे का सोफासैट, टीवी, फ्रिज दिखाई पड़ रहा है और मेरी गाड़ी भी दिख रही है. ये सब हम लोगों ने लोन से खरीदा है. इन चीजों के लिए हम लोग दिनरात मेहनत करते हैं. ओवरटाइम कर के आधीआधी रात में घर लौटते हैं ताकि ई.एम.आई. चुका सकें. जैसे आप लोग गांव में साहूकार से कर्ज ले कर अपना काम चलाते हैं, वैसे ही हम लोग यहां बैंक से कर्ज लेते हैं, उस का ब्याज और किस्त हमारी तनख्वाह से कटता रहता है. ब्याज चुकाने के बाद जो रुपए बचते हैं, हमें उन्हीं से गुजरबसर करना पड़ता है.

‘‘समिधा की तनख्वाह तो मुझ से ज्यादा है. यदि नौकरी छोड़नी है तो मैं छोड़ूं, क्योंकि मेरी कमाई कम है. पहले तो आप उस से कहती रहीं, तुम मां बन जाओ, हम लोग तुम्हारे पास रह कर बच्चे की देखभाल करेंगे. अब आप हमें मझधार में छोड़ कर गांव जाने को तैयार हैं. सब गड़बड़ समिधा की जिद के कारण हुआ है. हर समय आप सुनंदा को ले कर रोती रहती हैं, लेकिन सुनंदा की परेशानी का कारण आप हैं. जल्दबाजी में छोटी उम्र में उस का विवाह अनपढ़ लड़के से कर दिया. कच्ची उम्र और नासमझी में आज वह 4 बच्चों की मां है. जीजाजी को शराब की लत लग गई है. आमदनी अठन्नी है और खर्चा रुपया. हम से जितना बनता है हर महीने उन की मदद

कर देते हैं. आप क्या समझती हैं? समिधा नौकरी छोड़ देगी तो समझ लीजिए खाने के लाले पड़ जाएंगे.’’

‘‘बस करिए सोम,’’ समिधा बीच में आ गई और उसे पकड़ कर अपने कमरे में ले गई. घर में सन्नाटा छा गया था.

वह मन ही मन सोचने लगी, क्या जिंदगी है, हर क्षण संघर्ष, पलपल नई लड़ाई. किस तरह सोम से छल कर के इस प्यारे गोलू को मैं पाने में कामयाब हो पाई हूं, तो अब उस को पालने का संकट. क्या हम मध्यवर्गीय परिवार के जीवन की यही कहानी है.

आसू पोंछती हुई वह हिम्मत कर के अम्मां के पास आई और बोली, ‘‘अम्मां, मैं तो बचपन से ही अनाथ थी. बूआ ने पालपोस कर बड़ा किया, फिर वह भी इस दुनिया से चली गईं. मेरी झोली दोबारा खुशियों से भर गई, जो आप जैसे अम्मांबाबूजी मिल गए. पहले आप की एक बेटी थी, अब आप की 2 बेटियां हैं. नौकरी तो मेरी मजबूरी है. आप मेरे दर्द और मजबूरी को समझिए. मुझे भी गोलू को छोड़ कर जाने में तकलीफ होती है, लेकिन क्या करूं?’’ वह फूटफूट कर रो पड़ी.

अम्मां का दिल पिघल उठा. वे समिधा को गले से लगा कर बोलीं, ‘‘मत रो बेटी, मैं गांव की अनपढ़ यह सब क्या जानूं. तुम ने मेरी आंखें खोल दीं. सच, मुझे तो बहुत खुश होना चाहिए, जो मुझे तुम जैसी समझदार बेटी मिली. सुशीला को फोन कर दो, कहना अम्मां कह रही हैं चुपचाप कल से आ जाए और तुम निश्चिंत हो कर अपना कर्जा अमाई, क्या कहते हैं.

Best Hindi Stories : तितलियां – मौके की तलाश करती अनु ने जब सिखाया पति को सबक

Best Hindi Stories : अनु ने आखिरी बार सरसरी निगाहें अपने समान पर डालीं. एक सूटकेस में उस के और सुभाष के कपड़े थे. एक छोटी सी डलिया में खानेपीने का समान था. सब कुछ अनु ने अपने हाथों से बनाया था.

एक छोटा सा लाल रंग का बैग था, जिस में अनु ने अपने साटन के इनर वियर और नाईटी रखी हुई थी.

तभी सुभाष अंदर आया और बोला,”अनु, तैयार हो तुम?”

cookery

अनु ने जल्दीजल्दी अपने होंठों पर लिपस्टिक का टचअप किया और बालों में कंघी कर बाहर आ गई. सुभाष समान को बस के अंदर ठीक से रखवा रहा था.

अनु बस में बैठ कर बोली,”अब पहले कहां जाना है?”

सुभाष बोला,”पहले गाजियाबाद से पूर्णिमा और सिद्धार्थ को ले लेंगे फिर नोएडा से अपेक्षा और साकेत को, मेरठ से अजय और पल्लवी को लेते हुए बिनसर चले जाएंगे.”

अनु बोली,”देखो, किसी के घर बैठ कर गप्पें मत मारने लग जाना.”

सुभाष हंसते हुए बोला,”अनु, तुम्हारी तरह ही सब को जल्दी है उन वादियों में जाने की.”

सुभाष को अच्छे से मालूम था कि अनु न जाने क्यों पूर्णिमा से खार खाए रहती है.

अनु स्थानीय डिग्री कालेज में गणित की प्रोफैसर है और सुभाष सरकारी अस्पताल में सीनियर डाक्टर. उन का
एक बेटा भी है जो फिलहाल बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई कर रहा है.

अनु के भूरे घुंघराले बाल इधरउधर हवा में लहरा रहे थे. अपनी काली आंखों को उस ने काजल से बांध रखा
था. अनु खूबसूरत तो नहीं पर आकर्षक और बिंदास थी और अपने घर व कालेज में लेडी सिंघम के नाम
से मशहूर भी.

सड़क पर जाम को देख कर अनु का पारा चढ़ गया और वह उठ कर ड्राइवर को खरीखोटी सुनाने लगी. सुभाष ने बहुत मुश्किल से उसे चुप कराया. यह अनु की सब से बड़ी कमी थी जिस के कारण उस का अपना बेटा भी उस से दूर छिटकता था.

जैसे ही बस गाजियाबाद के कविनगर में रुकी तो पूर्णिमा को देख कर एकाएक अनु के मुंह से निकल
गया,”यह क्या? इतना सजधज कर यात्रा करेगी?”

सुभाष ने अनु की तरफ आंखें तरेरीं तो अनु चुप हो गई.

जैसे ही पूर्णिमा बस में चढ़ी, अनु बोल पड़ी,”पूर्णिमा शादी में से आ रही हो क्या?”

पूर्णिमा कट कर रह गई पर मुसकराते हुए बोली,”मैं टीशर्ट में अपने पेट के टायर दिखाने से बेहतर कुरता पहनना
पसंद करती हूं.”

यह कह कर वह बड़ी अदा के साथ अपने बालों को झटक कर पीछे की ओर कर ली.अनु ने कनखियों से देखा और मन ही मन सोचा कि गजब
की खूबसूरत लग रही है पूर्णिमा. दिनरात पार्लर में रहने का कुछ तो फायदा होगा.

पूर्णिमा मंझोले कद की नीली आंखों की खूबसूरत महिला थी जो स्थानीय इंजिनीरिंग कालेज में पढ़ाती थी. उस के पति सिद्धार्थ का हार्डवेयर का बिजनैस था.

कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि पूर्णिमा अपनी खूबसूरती के बल पर ही नौकरी पर टिकी हुई है और अपनी
खूबसूरती के बल पर ही वह इधरउधर बड़ेबड़े शोरूम से गहने, कपड़े ऐसे ही ले आती है.

वाहन तेजी से नोएडा की सड़कों पर दौड़ रहा था. बस सोसाइटी के सामने रुक गई. अपेक्षा और साकेत अपनेअपने सूटकेस के साथ तेजी से बस की तरफ चले आ रहे थे.

अपेक्षा का गेरुआ कुरता देख कर अनु फिर बोल पड़ी,”अपेक्षा कम से कम गुरुजी को आज तो छोड़ दिया होता.”

अपेक्षा बिना कुछ बोले कानों में हेडफोन लगा कर ध्यानमग्न हो गई थी.

अपेक्षा का पति साकेत ही अनु से
बोला,”यह उस के ध्यान का समय है, इसलिए 1 घंटे तक अपेक्षा किसी से बात नहीं करेगी.”

अपेक्षा को साकेत की इस मित्रमंडली से बेहद चिढ़ थी. अपेक्षा को डर था कि अगर साकेत ऐसे ही इन तितलियों के करीब रहेगा तो वह कभी भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाएगी. जब भी साकेत अपने दोस्तों के यहां जाता या वे लोग अपेक्षा के घर आते एक ही टौपिक होता था गुरुजी का मजाक. अपेक्षा खून के घूंट पी कर रह जाती थी. अपेक्षा हमेशा से इन लोगों के साथ असहज रहती थी. जो खुशी उसे अपने गुरुजी के आश्रम में मिलती है वह कोई भी दर्शनीय स्थल में नहीं मिल सकती है. पर इन दौलत और वासना के फूलों पर मंडराने वाली तितलियों से कैसे अपना पीछा छुङाए?

सुभाष साकेत और सिद्धार्थ जहां गपशप में मशगूल थे, वहीं पूर्णिमा धीरेधीरे किसी से मोबाइल पर बात कर रही थी. अनु भी अपने मोबाइल पर ही लगी हुई थी पर उस का सारा ध्यान पूर्णिमा पर ही लगा हुआ था.

मन ही मन अनु सोच रही थी कि सिद्धार्थ तो मिट्टी का माधो है. उसे तो पता भी नहीं कि पूर्णिमा किस राह पर चल रही है.

जैसे ही बस मेरठ के शास्त्रीनगर में घुसी तो सब दोस्तों ने तय कर लिया था कि अजय के घर चाय पी कर फिर
आगे बढ़ेंगे.

जब सारा लावालश्कर अजय के घर पहुंचा तो उस की पत्नी पल्लवी ने सारी तैयारी कर रखी थी. चाय क्या पूरा नाश्ते का प्रबंध था. ढोकला, घेवर, मटर समोसा, कालाजामुन, ब्रैडकटलैट से मेज सजी हुई थी.

सुभाष ने कहा,”भाभी आपने तो कमाल कर दिया है.”

पल्लवी मुसकराते हुए बोली,”अरे आप लोग क्या रोजरोज आते हो?”

पल्लवी का कद छोटा था और रंग बेहद गोरा. उस के आंख, नाक हर समय बातों के लिए फड़कते रहते
थे. पल्लवी घर के काम में जितनी तेज थी, अपने लिए उतनी ही ढीली थी. पांवो की फटी हुई बिवाई इस की गवाह थी.

अभी भी फूहड़ों की तरह पल्लवी ने ढीली सी जींस के ऊपर लबादे जैसा कुरता पहना हुआ था.

1 घंटा बीत गया तो अनु ने ही कहा,”बिनसर आज पहुंचना है या कल?”

बस में बैठेते ही सब लोग नींद के आगोश में चले गए. करीब शाम के 5 बजे नैनीताल में यह मंडली रुकी ताकि थोड़ाबहुत नाश्ता कर चला जाए. आगे की यात्रा में तीखी चढ़ाई थी. करीब साढ़े 7 बजे उन की
मिनी बस कसार जंगल के रिसोर्ट पहुंच गई थी.

इस में 4 छोटीछोटी कौटेज अजय ने बुक करा रखी थी. बैरों ने आ कर समान ले लिया और सब लोग अपनीअपनी कौटेज में दुबक गए. तय हुआ था रात 9 बजे सारे युगल डाइनिंग एरिया में मिलेंगे और फिर रात का कार्यक्रम तय करेंगे.

रात के 9 बजे सब से पहले साकेत और अपेक्षा पहुंचे. अपेक्षा सफेद कुरती और गेरुए स्कर्ट में बहुत सौम्य लग रही थी. उस के गले मे रुद्राक्ष की माला थी और कानों में भी रुद्राक्ष के ही टौप्स थे. माथे पर चंदन की बिंदी लगी हुई थी.

किसी को वहां न देख कर अपेक्षा बोली,”साकेत, गुरुजी से मेरी जूम मीटिंग है रात 10 बजे और मैं उस मीटिंग को टाल नहीं सकती हूं.”

साकेत कुछ तल्खी के साथ बोला,”अपेक्षा, कम से कम छुट्टियों में तो यह गुरुजी का राग मत अलापो.”

अपेक्षा बोली,”तुम्हें पता तो है न कि तुम्हारी नौकरी और हमारा पुश्तैनी व्यपार सब गुरुजी के कारण ही चल रहा है.”

इस से पहले कि साकेत कुछ बोलता, अनु और सुभाष भी वहां पहुंच गए. डैनिम शौर्ट्स और टीशर्ट में अनु एकदम बिंदास बाला लग रही थी. 38 की उम्र में भी वह 28 की लग रही थी.

तभी पूर्णिमा और सिद्धार्थ भी आ गए. पूर्णिमा ने एक लंबा गाउन पहना हुआ था जिस की एक तरफ स्लिट थी, गाउन का गला भी अपेक्षाकृत काफी खुला हुआ था. पूर्णिमा के डाइनिंग एरिया में प्रवेश करते ही सभी पुरूष उसी की ओर ही देख रहे थे.

पूर्णिमा का गुलाबी गाउन, गुलाबी लिपस्टिक जहां पुरुषों को लुभा रही थी, वहीं अनु जैसी महिलाओं को
आग की तरह जला भी रही थी.

पल्लवी और अजय सब से आखिर में करीब 9:30 बजे आए. पल्लवी ने एक सादा सा कौटन का सूट पहन रखा था. अजय जींस और व्हाइट शर्ट में बहुत ही स्मार्ट लग रहा था. पल्लवी का जहां अपनी ओर बिलकुल भी ध्यान नहीं था, वहीं अजय खुद को ले कर कुछ अधिक ही सजग था.

अगर सरल शब्दों में कहें तो जहां अजय इस मित्रमंडली का बेताज बादशाह था तो, वहीं पूर्णिमा भी इस समूह की महारानी थी.

खाने के पश्चात अपेक्षा अपनी कौटेज की तरफ चली गई, वहीं बाकी सभी जोड़े सुभाष के कौटेज में चले गए. इस मित्रमंडली में जहां सुभाष का बहुत अधिक सम्मान था, वहीं अनु से सभी कटते थे. पर सुभाष की बात को कोई भी नहीं काटता था.

1 घंटे तक सिनेमा, राजनीति और क्रिकेट की हलकीफुलकी बातें होती रहीं. फिर बातचीत की दिशा बच्चों की ओर मुड़ गई.

तभी खटाक से दरवाजा खुला और अपेक्षा ने प्रवेशा किया. अनु अपनी आदत अनुसार बोल पड़ी,”अपेक्षा,
तुम्हारे गुरुजी ने आखिर तुम्हें छोड़ ही दिया. अब यह बोलो कि वे तुम्हें मां कब बनाएंगे?”

यह वाक्य सुनते ही वहां सन्नाटा छा गया.

सुभाष गुस्से में बोला,”अनु, होश में तो हो न?”

अपेक्षा बोली,”नहीं सुभाषजी, अनुजी को सारे लोग अपने कालेज के विद्यार्थी लगते हैं. इसलिए यह घटिया जोक्स मारती रहती हैं.”

अनु बोली,”अरे, अपेक्षा मेरा मतलब आशीर्वाद से था. अब तुम्हारा दिमाग ही उस दिशा में दौड़ रहा है तो मैं क्या कर सकती हूं डार्लिंग.”

यह सुनते ही पूर्णिमा और पल्लवी के चेहरों पर एक अजीब सी मुसकान थिरक उठी जो अपेक्षा से छिपी न रही.

अपेक्षा किसी भी तरह से साकेत का इस मित्रमंडली से पीछा छुङाना चाहती थी. सारा दिन वे लोग साकेत के कान गुरुजी के खिलाफ भरते रहते थे. पर इस बार अपेक्षा निर्णय ले कर आई थी कि वह इस बार उन्हें सटीक
जवाब जरूर देगी.

अपेक्षा भी बोली,”हां अनु, हरकोई तो तुम्हारी तरह भाग्यशाली नहीं होता कि साम, दाम, ढंड, भेद से दौलत को
हथिया ले.”

यह सुनते ही अनु का चेहरा सफेद पड़ गया क्योंकि यह हरकोई जानता था कि किस तरह चालाकी से अनु ने अपनी मां के ₹40 लाख अपने नाम करवा लिए थे और फिर उन्हें अपने बड़े भाई के पास चलता कर दिया था.

तभी अजय ने म्यूजिक चला दिया.अचानक से अजय ने पूर्णिमा को डांस के लिए उठा दिया और दोनों धीरेधीरे एक युगल की तरह डांस करने लगे.

1 बजे तक माहौल बेहद हलका और रूमानी हो गया था. किशोरावस्था के प्रेम प्रकरण, शादी के रूमानी पल सब छनछन कर बाहर निकल रहे थे. कड़वाहट एक भाप की तरह वहां से उड़ गई थी. रात के लगभग 1:30 बजे महफिल खत्म हुई और सुबह 10 बजे मिलने का कार्यक्रम तय हो गया था.

पूरा दिन बिनसर के दर्शनीय स्थल देखने में बीत गया था. मौसम इतना अच्छा था कि पूरा दिन घूमने के बाद
भी ताजगी बरकरार थी.

आज फिर सुभाष की काटेज में महफिल जमने का कार्यक्रम तय हो गया था. सब लोग समय से पहले ही आ गए. अजय ताश के पत्ते फेंटने लगा और साकेत पैग बनाने लगा. पूर्णिमा कनखियों से अजय की ओर देख रही थी और अजय रहरह कर आखों में इशारे कर रहा था.

ताश की बाजी के साथ सब लोगों का जोश ऊपरनीचे हो रहा था. रमी की पहली ही बाजी में पूर्णिमा आउट हो
गई थी. फिर अजय भी बाहर निकल गया था.

थोड़ी देर बाद पूर्णिमा सिद्धार्थ के कानों में फुसफुसा कर चली गई थी. कुछ देर बाद अजय बोला,”मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है. कुछ देर बाहर टहल कर आता हूं.”

बाकी सभी लोग ताश में मशगूल थे इसलिए किसी ने अधिक ध्यान नहीं दिया था.

करीब 45 मिनट बाद अजय गुनगुनाते हुए वापस आ गया था और पल्लवी से लाड़ लड़ाने लगा था.

अनु बोली,”यार, तुम सब लोग भी कुछ सीखो अपने दोस्त से. कितने रोमांटिक हैं अभी भी.”

सुभाष , सिद्धार्थ और साकेत हंसने लगे और बोले,”यार, अजय क्यों हम लोगों की सुखी गृहस्थी में आग लगा रहा है?”

अपेक्षा अचानक से ध्यान को बीच में छोड़ कर बोली,”या ऐसा भी हो सकता है कि अपने घर मे लगी आग को अजय औरों के घर में भी लगाना चाह रहा हो?”

अजय बोला,”क्या मतलब?”

साकेत व्यंग्य करते हुए बोला,”कुछ नहीं, अपेक्षा ने आज अधिक ध्यान लगा लिया है.”

चारों युगल अपनेअपने कमरों में जा कर बहुत देर तक एकदूसरे की बखिया उधेड़ते रहे और फिर न जाने किस पहर सब की आंखें लग गई थीं.

अचानक से साकेत को दरवाजे पर धङधङ की आवाज सुनाई दी. आंखे मलते हुए साकेत उठा तो देखा सुभाष बदहवास सा वहां खड़ा था.

“साकेत… यार, गजब हो गया हैं. पूर्णिमा के गहने गायब हो गए हैं.”

तभी अपेक्षा भी उठ कर आ गई और बोली,”क्याक्या खोया है? जरूर किसी स्टाफ का ही काम होगा. पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए. फिर सब मिल जाएगा.”

तीनों सिद्धार्थ की काटेज में पहुंचे. वहां जा कर देखा कि रिसोर्ट का मैनेजर और अन्य स्टाफ खड़ा हुआ था.

पूर्णिमा का रोरो कर बुरा हाल था,”कानों की बालियां और सौलिटेयर रिंग गायब हैं. दोनों की कीमत लगभग ₹30 लाख हैं.”

तबतक अजय और अनु भी आ गए थे. अजय बोला,”मेरी कोई न कोई जानपहचान निकल जाएगी. पुलिस में रिपोर्ट करनी है क्या?”

अनु फट से बोली,”क्या बेवकूफों वाली बात कर रहे हो? रिपोर्ट तो करनी ही होगी.”

सिद्धार्थ बोला,”नहीं, इन का बिल भी नही है. ये मैं ने कैश में लिए थे. और फिर मेरी सालाना इनकम कागजों में ₹5 लाख हैं, तो मैं कैसे रिपोर्ट करूं?”

अनु को पता था यह जरूर पूर्णिमा के किसी दोस्त की सौगात रही होगी. तभी न बिल है और न ही कुछ
और प्रूफ.

अजय बोला,”मैं स्टाफ की खबर लेता हूं.”

रिसोर्ट में करीब 10 कौटेज थी. 3 खाली थी और 4 में ये लोग ही रह रहे थे. बैरों से पूछताछ की जाने
लगी. सब ने एक ही जवाब दिया कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता है.

अजय का दोस्त मैनेजर की जानपहचान का था. उस के कहने पर मैनेजर ने सुपरवाइजर से कह कर पूरे
स्टाफ के कमरों और समान की तलाशी करवाई थी. लेकिन कहीं कुछ भी नहीं निकला.

अचानक से गुस्से में एक बैरा बोल पड़ा,”साहबजी हम गरीबों की ही तलाशी क्यों करवाई हैं? खोट तो किसी की नीयत में भी हो सकता है?”

अनु बोली,”बात तो तुम्हारी सही है भैया. अजय, हम सब के कमरों की भी तलाशी करवा लो. जब तक तलाशी चलेगी हम सब बाहर ही रहेंगे.”

अपेक्षा गुस्से में बोली,”मैं कोई चोर नही हूं जो तलाशी करवाऊंगी.”

पूर्णिमा चुप बैठी थी. पल्लवी बोली,”अरे, अपेक्षा इस में चोर की कोई बात नही है, क्या पता गलती से किसी की कौटेज में रह गए हों.”

अपेक्षा बोली,”फिर तो अनु की कौटेज से शुरुआत करते हैं, क्योंकि वहीं पर ही तो हम सब का जमावड़ा रहता था और ऐसा हो सकता है कि यहां से जा कर फिर से अनु
एकाएक ₹30 लाख की मालकिन बन जाए…”

अनु बोली,”अरे, अपेक्षा तुम्हारे गुरुजी जितनी सिद्धि मेरे पास कहां है? वे तो तुम्हारी हर तरह से सहायता करते हैं.
क्या मैं जानती नही हूं कि तुम्हारी और गुरुजी के बीच क्या रासलीला चलती रहती है.”

साकेत एकाएक अपनी पत्नी पर यह आरोप सुन कर आप खो बैठा और बोल उठा,”अनु जबान संभाल कर बात करो…”

इस से पहले कि बात और बढ़ती अजय बीच में आ गया और बोला,”क्यों बात को बढ़ा रहे हो?”

सुभाष और अनु के कमरे में कुछ नहीं मिला.

जब साकेत और पूर्णिमा के कमरे से भी कुछ न मिला तो सिद्धार्थ
बोला,”यार यह तमाशा बंद करो. ऐसा भी तो हो सकता है कि बाहर गिर गए हों.”

अपेक्षा फट पड़ी,”यह क्या बात हुई?”

अजय बोला,”अरे भई सिद्धार्थ चुप करो.”

अचानक से अजय के कमरे से शोर की आवाज सुनाई दी. पता चला कि पूर्णिमा के दोनों गहने अजय के कुरते और तकिए के नीचे पाए गए हैं.
अजय हक्काबक्का रहा गया तो पूर्णिमा का चेहरा सफेद पड़ गया.बात संभालते हुए पूर्णिमा बोली,”अरे यह वेटर झूठ बोल रहा है. जरूर इस ने ही चुराया होगा और अब जब पता चला दाल नहीं गलेगी तो यह कहानी गढ़ रहा है.”

अजय भी एकाएक आगबबूला हो उठा,”मुझे बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि यहां पर ऐसे चोर काम करते हैं.”

वेटर ने लाख बोला पर किसी ने उस की बात नहीं सुनी थी.
सब को पता था कि वेटर सच बोल रहा था पर अपनी इज्जत बचाने के लिए एक गरीब की बलि दे दी गई थी.

किसी के भी गले यह बात नहीं उतर रही थी कि अगर वेटर को झूठ ही बोलना था तो गहने अजय के कुरते और तकिए के नीचे ही उस ने क्यों बताए?

सुभाष तो बस इस बात पर चैन की सांस ले रहा था कि अनु का मुंह बंद था.

अजय के पास पल्लवी के सवालों का कोई जवाब नहीं था. उधर सिद्धार्थ भी पूरी रात करवटें बदलता रहा
था. उसे पता था कि उस की तितलीनुमा बीबी बस एक डाल पर नहीं रह सकती है. पर उस ने यह कतई नहीं सोचा था कि उस के जिगरी दोस्त के साथ भी उस की बीबी के संबंध हो सकते हैं.

उधर पूर्णिमा को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह इतनी बड़ी बेवकूफी कर गई थी. अब पल्लवी से वह कैसे
नजरें मिला पाएगी?

सुबह नाश्ता कर के सब को वापस निकलना था. आज यह मंडली पूरी तरह से शांत थी. हर सदस्य अपनेअपने प्रश्नों में उलझा हुआ था.

जहां अजय और पूर्णिमा आगे की कहानी का तानाबाना बुन रहे थे, वहीं पल्लवी और सिद्धार्थ फिर से अपने
जख्मों पर झूठ का मलहम लगाने में व्यस्त थे.

अनु को रहरह कर वेटर के लिए बुरा लग रहा था. सुभाष और साकेत को समझ नहीं आ रहा था कि आगे
भी यह दोस्ती बरकरार रह पाएगी या नहीं?

उधर अपेक्षा मन ही मन बेहद खुश थी. इन सब लोगों ने बहुत बार उस की भक्ति का, उस के ध्यान का मजाक उड़ाया है. अब सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी.

अब कोई भी उस के और उस की गुरुभक्ति के बीच नहीं आ पाएगा. उसे कुछ करना भी नहीं पड़ा और अपनेआप ही ये सभी कांटे उस के रास्ते से हट गए.

Moral Stories in Hindi : कफन – अपने पर लगा ठप्पा क्या हटा पाए रफीक मियां

Moral Stories in Hindi : ‘‘आजकल कितने कफन सी लेते हो?’’ रहमत अली ने रफीक मियां से पूछा. ‘‘आजकल धंधा काफी मंदा है,’’ रफीक मियां ने ठहरे स्वर में कहा.

‘‘क्यों, लोग मरते नहीं हैं क्या?’’ इस बेवकूफाना सवाल का जवाब वह भला रहमत अली को क्या दे सकता था. मौतें तो आमतौर पर होती ही रहती हैं. मगर सब लोग अपनी आई मौत ही मर रहे थे. आतंकवादियों द्वारा कत्लेआम का सिलसिला पिछले कई महीनों से कम सा हो गया था.

कश्मीर घाटी में अमनचैन की हवा फिर से बहने लगी थी. हर समय दहशत, गोलीबारी, बम विस्फोट भला कौन चाहता है. बीच में भारी भूकंप आ गया था. हजारों आदमी एकदम से मुर्दों में बदल गए थे. सरकारी सप्लाई के महकमे में रफीक का नाम भी बतौर सप्लायर रजिस्टर्ड था. एकदम से बड़ा आर्डर आ गया था. दर्जनों अस्थायी दर्जियों का इंतजाम कर उसे आर्डर पूरा करना पड़ा था.

आर्डर से कहीं ज्यादा बड़े बिल और वाउचर पर उस को अपनी फर्म की नामपते वाली मुहर लगा कर दस्तखत करने पड़े थे. खुशी का मौका हो या गम का, सरकारी अमला सरकार को चूना लगाने से नहीं चूकता. रफीक पुश्तैनी दर्जी था. उस के पिता, दादा, परदादा सभी दर्जी थे. कफन सीना दोयम दर्जे का काम था. कभी सिलाई मशीन का चलन नहीं था. हाथ से कपड़े सीए जाते थे. दर्जी का काम कपड़े सीना मात्र था. कफन कपड़े में नहीं गिना जाता था. कपड़े जिंदा आदमी या औरतें पहनती हैं न कि मुर्दे.

घर में मौत हो जाने पर संस्कार या जनाजे के समय ही कफन सीआ जाता था. कोई भी दुकानदार या व्यापारी सिलासिलाया कफन नहीं बेचता था और न ही तैयार कफन बेचने के लिए रखता था. मगर बदलते जमाने के साथ आदमी ज्यादा पैदा होने लगे और ज्यादा मरने भी लगे. लिहाजा, तैयारशुदा कफनों की जरूरत भी पड़ने लगी थी. मगर अभी तक कफन सीने का काम बहुत बड़े व्यवसाय का रूप धारण नहीं कर पाया था.

फिर आतंकवाद का काला साया घाटी और आसपास के इलाकों पर छा गया तो अमनचैन की फिजा मौत की फिजा में बदल गई थी. कामधंधा और व्यापार सब चौपट हो गया था. सैलानियों के आने के सीजन में भी बाजार, गलियां, चौक सब में सन्नाटा छा गया था. कभी कश्मीरी फैंसी डे्रसें, चोंगे, चूड़ीदार पायजामा, अचकन, लहंगा चोली, फैंसी जाकेट, शेरवानी, कुरतापायजामा, गरम कोट सीने वाले दर्जी व कारीगर सभी खाली हो भुखमरी का शिकार हो गए थे.

फिर जिस कफन को हिकारत या मजबूरी की वस्तु समझा जाता था वही सब से ज्यादा मांग वाली चीज बन गई थी. यानी थोक में कफनों की मांग बढ़ने लगी थी. ढेरों आतंकी या दहशतगर्द मारे जाने लगे थे. उतने ही फौजी भी. आम आदमियों की कितनी तादाद थी कोई अंदाजा नहीं था. बस, इतना अंदाजा था कि कफन सिलाई का धंधा एक कमाई का धंधा बन गया था.

सफेद कपड़े से पायजामाकुरता भी बनता था. रजाइयों के खोल भी बनते थे और कभीकभार कफन भी बनता था. कपड़े की मांग तो बराबर पहले जैसी थी. मगर कपड़ा अब जिंदों के बजाय मुर्दों के काम ज्यादा आने लगा था. आखिर खुदा के घर भेजने से पहले मुर्दे को कपड़े से ढांकना भी जरूरी था. नंगा होने का लिहाज हर जगह करना ही पड़ता है…चाहे लोक हो या परलोक. विडंबना की बात थी, आदमी नंगा ही पैदा होता है. दुनिया में कदम रखते ही उस को चंद मिनटों में ही कपड़े से ढांप दिया जाता और मरने के बाद भी कपड़े से ही ढका जाता है.

जिंदों के बजाय मुर्दों के कपड़ों का काम करना या सीना हिकारत का काम था. मगर रोजीरोटी के लिए सब करना पड़ता है. वक्त का क्या पता, कैसे हालात से सामना करा दे? अलगअलग तरह के कपड़ों के लिए अलगअलग माप लेना पड़ता था. डिजाइन बनाने पड़ते थे. मोटा और बारीक दोनों तरह का काम करना पड़ता था. मगर, कफन का कपड़ा काटना और सीना बिना झंझट का काम था. लट््ठे के कपड़ों की तह तरतीब से जमा कर उस पर गत्ते का बना पैटर्न रख निशान लगा वह बड़ी कैंची से कपड़ा काट लेता था. फिर वह खुद और उस के लड़के सिलाई कर के सैकड़ों कफन एक दिन में सी डालते थे.

आतंकवाद के जनून के दौरान मरने वाले काफी होते थे. लिहाजा, धंधा अच्छा चल निकला था. दहशतगर्दी ने जहां साफसुथरा सिलाई का धंधा चौपट कर दिया था वहीं कफन सीने का काम दिला उस जैसे पुश्तैनी कारीगरों को काम से मालामाल भी कर दिया था.

जैसेजैसे काम बढ़ता गया वैसेवैसे मशीनों की और कारीगरों की तादाद भी बढ़ती गई. मगर जैसा काम होता है वैसा ही मानसिक संतुलन बनता है. सिलाई का बारीक और डिजाइनदार काम करने वाले कारीगरों का दिमाग जहां नएनए डिजाइनों, खूबसूरत नक्काशियों और अन्य कल्पनाओं में विचरता था वहां सारा दिन कफन सीने वाले कारीगरों का दिमाग और मिजाज हर समय उदासीन और बुझाबुझा सा रहता था. उन्हें ऐसा महसूस होता था मानो वे भी मौत के सौदागरों के साथी हों और हर मुर्दा उन के सीए कफन में लपेटे जाते समय कोई मूक सवाल कर रहा हो.

दर्जीखाने का माहौल भी सारा दिन गमजदा और अनजाने अपराध से भरा रहता था. सभी कारीगरों को लगता था कि इतनी ज्यादा तादाद में रोजाना कफन सी कर क्या वे सब मौत के सौदागरों का साथ नहीं दे रहे. क्या वे सब भी गुनाहगार नहीं हैं? दर्जीखाने में कोई भी खातापीता नहीं था. दोपहर का खाना हो या जलपान, सब बाहर ही जाते थे. रफीक के पास रुपया तो काफी आ गया था मगर वह भी खोयाखोया सा ही रहता था. कफन आखिर कफन ही था.

जैसे बुरे वक्त का दौर शुरू हुआ था वैसे ही अच्छे वक्त का दौर भी आने लगा. हुकूमत और आवाम ने दहशतगर्दी के खिलाफ कमर कस ली थी. हालात काबू में आने लगे थे. फिर मौत का सिलसिला थम सा गया तो कफन की मांग कम हो गई. एक मशीन बंद हुई, एक कारीगर चला गया, फिर दूसरी, तीसरी और अगली मशीन बंद हो गई, फिर पहले के समान दुकान में 2 ही मशीनें चालू रह पाईं. बाकी सब बंद हो गईं.

उन बंद पड़ी मशीनों को कोई औनेपौने में भी खरीदने को तैयार नहीं था क्योंकि हर किसी को लगता था, कफन सीने में इस्तेमाल हुई मशीनों से मुर्दों की झलक आती है. तंग आ कर रफीक ने सभी मशीनों को कबाड़ी को बेच दिया. कफन सीना कम हो गया या कहें लगभग बंद हो गया मगर थोड़े समय तक किया गया हिकारत वाला काम रफीक के माथे पर ठप्पा सा लगा गया. उस को सभी ‘कफन सीने वाला दर्जी’ कहने लगे.

धरती का स्वर्ग कही जाने वाली घाटी में दहशतगर्दी खत्म होते ही सैलानियों का आना फिर से शुरू हो गया था. ‘मौत की घाटी’ फिर से ‘धरती का स्वर्ग’ कहलाने लगी थी. मगर रफीक फिर से आम कपड़े का दर्जी या आम कपड़े सीने वाला दर्जी न कहला कर ‘कफन सीने वाला दर्जी’ ही कहलाया जा रहा था.

इस ‘ठप्पे’ का दंश अब रफीक को ‘चुभ’ रहा था. सारा रुपया जो उस ने दहशतगर्दी के दौरान कमाया था बेकार, बेमानी लगने लगा था. उस का मकान कभी पुराने ढंग का साधारण सा था मगर किसी को चुभता न था. आम आदमी के आम मकान जैसा दिखता था. मगर अंधाधुंध कमाई से बना कोठी जैसा मकान अब एक ऐसे आलीशान ‘मकबरे’ के समान नजर आता था जिस के आधे हिस्से में कब्रिस्तान होता है. मगर जिस में कोई भी संजीदा इनसान रहने को राजी नहीं हो सकता.

रफीक मियां और उस के कुनबे को इस हालात में आने से पहले हर पड़ोसी, जानपहचान वाला, ग्राहक सभी अपने जैसा ही समझते थे. सभी उस से बतियाते थे. मिलतेजुलते थे. मगर एक दफा कफन सीने वाला दर्जी मशहूर हो जाने के बाद सभी उस से ऐसे कतराते थे मानो वह अछूत हो. पिछली कई पीढि़यों से दर्जी चले आ रहे खानदानी दर्जी के कई पीढि़यों के खानदानी ग्राहक भी थे. कफन सीने का काम थोक में करने के कारण या मोटी रकम आने के कारण रफीक उन की तरफ कम देखने या कम ध्यान देने लगा था. धीरेधीरे वे भी उस को छोड़ गए थे.

दहशतगर्दी खत्म हो जाने के बाद हालात आम हो चले थे. मगर रफीक के पुराने और पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे ग्राहक वापस नहीं लौटे थे. कफन सीना बंद हो चला था, लिहाजा, कमाई बंद हो गई थी. सैलानियों से काम ले कर देने वाले या सैलानियों को आम कश्मीरी पोशाकें, कढ़ाईदार कपड़े बेचने वाले दुकानदारों ने उस पर लगे ठप्पे की वजह से उसे काम नहीं दिया था.

जिस तरह झंझावात, अंधड़, आंधी या मूसलाधार बरसात में कुछ नहीं सूझता उसी तरह दहशतगर्दी की आंधी में बहते आ रहे आवाम को वास्तविक जिंदगी का एहसास माहौल शांत होने पर ही होता था. यही हालात अब रफीक के थे. आतंकवाद से पहले इलाके में दोनों समुदाय के लोग थे. एक समुदाय थोड़ा बड़ा था दूसरा थोड़ा छोटा. जान की खैर के लिए एक समुदाय बड़ी तादाद में पलायन कर गया था.

अब घाटी में मुसलमान ही थे. हिंदू बराबर मात्रा में होते और वे भी काम न देते तो रफीक को मलाल न होता मगर अब जब सारी घाटी में मुसलमान ही मुसलमान थे और जब उसी के भाईबंदों ने उसे काम नहीं दिया तो महसूस होना ही था. कफन सिर्फ कफन होता है. उस को हिंदू, मुसलमान, सिख या अन्य श्रेणी में नहीं रखा जा सकता मगर उस को आम हालात में कौन छूना पसंद करता है?

एक कारीगर दर्जी से कफन सीने वाला दर्जी कहलाने पर रफीक को महसूस होना स्वाभाविक था. उसी तरह क्या उस की कौम भी दुनिया की नजरों में आने वाले समय या इतिहास में दहशतगर्दी फैलाने या मौत की सौदागरी करने वाली कहलाएगी?

रफीक से भी ज्यादा मलाल उस के परिवार की महिला सदस्यों को होता था कि उन का अपना ही मुसलिम समाज उन को अछूत मानने लगा था. रफीक को खानापीना नहीं सुहाता. शरीर सूखने लगा था. हरदम चेहरे पर शर्मिंदगी छाई रहती थी.

शुक्रवार की नमाज का दिन था. जुम्मा होने की वजह से आज छुट्टी भी थी. नमाज पढ़ी जा चुकी थी. वह मसजिद के दालान में अभी तक बैठा था तभी वहां बड़े मौलवी साहब आ पहुंचे. दुआसलाम हुई. ‘‘क्या हाल है, रफीक मियां? क्या तबीयत नासाज है?’’

‘‘नहीं जनाब, तबीयत तो ठीक है मगर…’’ रफीक से आगे बोला न गया. ‘‘क्या कोई परेशानी है?’’ मौलवी साहब उस के समीप आ कर बैठ गए.

‘‘आजकल काम ही नहीं आता.’’ ‘‘क्यों…अब तो माहौल ठीक हो चुका है. सैलानी तफरीह करने खूब आ रहे हैं. बाजारों में रश है.’’

‘‘मगर मुझ पर हकीर काम करने वाले का ठप्पा लग गया है.’’ ‘‘तो क्या?’’

रफीक की समस्या सुन कर मौलवी साहब भी सोच में पड़ गए. क्या कल की तारीख या इतिहास में उन की कौम भी आतंकवादियों का समुदाय कहलाएगी? रफीक की परेशानी तो फौरी ही थी. काम आ ही जाएगा, नहीं आया तो पेशा बदल लेगा. मगर जिस पर उस का अपना समुदाय चलता आ रहा था उस का नतीजा क्या होगा?

‘‘अब्बाजान, हमारा धंधा अब नहीं जम सकता. क्यों न कोई और काम कर लें?’’ बड़े लड़के अहमद मियां ने कहा. रफीक खामोश था. पीढि़यों से सिलाई की थी. अब क्या नया धंधा करें?

‘‘क्या काम करें?’’ ‘‘अब्बाजान, दर्जी के काम के सिवा क्या कोई और काम नहीं है?’’

‘‘वह तो ठीक है, मगर कुछ तो तजवीज करो कि क्या नया काम करें?’’ रफीक के इस सीधे सवाल का जवाब बेटे के पास नहीं था. वह खामोश हो गया. रफीक दुकान पर काम हो न हो बदस्तूर बैठता था. दुकान की सफाई भी नियमित होती थी. बेटा अपने दोस्तों में चला गया था. पेट भरा हो तो भला काम करने की क्या जरूरत थी? बाप की कमाई काफी थी. खाली बातें करने या बोलने में क्या जाता था?

हुक्के का कश लगा कर रफीक कुनकुनी धूप में सुस्ता रहा था कि उस की दुकान के बाहर पुलिस की जीप आ कर रुकी. पुलिस? पुलिस क्या करने आई थी? रफीक हुक्का छोड़ उठ खड़ा हुआ. तभी उस का चेहरा अपने पुराने ग्राहक सिन्हा साहब को देख कर चमक उठा.

एक दशक पहले 3 सितारे वाले सदर थाने में एस.एच.ओ. होते थे. अब शायद बड़े अफसर बन गए थे.

‘‘आदाब अर्ज है, साहब,’’ रफीक ने तनिक झुक कर सलाम किया. ‘‘क्या हाल है, रफीक मियां?’’ पुलिस कप्तान सिन्हा साहब ने पूछा.

‘‘सब खैरियत है, साहब.’’ ‘‘क्या बात है, बाहर बैठे हो…क्या आजकल काम मंदा है?’’

‘‘बस हुजूर, थोड़ा हालात का असर है.’’ ‘‘ओह, समझा, जरा हमारी नई वरदी सी दोगे?’’

‘‘क्यों नहीं, हुजूर, हमारा काम ही सिलाई करना है.’’ एस.एच.ओ. साहब एस.पी. बन गए थे. कई साल वहां रहे थे. ट्रांसफर हो कर कई जगह रहे थे. अब यहां बड़े अफसर बन कर आए थे.

रफीक मियां की उदासी, निरुत्साह सब काफूर हो गया था. वह आग्रहपूर्वक कप्तान साहब को पिस्तेबादाम वाली बरफी खिला रहा था, साथ ही मसाले वाली चाय लाने का आर्डर दे रहा था. आखिर उस के माथे से कफन सीने वाले दर्जी का लेबल हट रहा था. कप्तान साहब नाप और कपड़ा दे कर चले गए थे. रफीक मियां जवानी के जोश के समान उन की वरदी तैयार करने में जुट गए थे.

कप्तान साहब की भी वही हालत थी जो रफीक की थी. 2 परेशान जने हाथ मिला कर चलें तो सफर आसान हो जाता है.

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