Moral Stories In Hindi : मां की बेबसी

Moral Stories In Hindi : बरसती बूंदें कजरी के पैरों से कदमताल कर रही थीं. अभी 6 ही तो बजे थे, पर तेज बारिश और काले बादलों ने वक्त से पहले ही जैसे अंधेरा करने की ठान ली थी. ठीक उस के जीवन की तरह, जिस में उस की खुशियों के उजाले को समय के स्याह बादलों ने हमेशा के लिए ढक लिया था. कजरी सोचती जा रही थी. झमाझम होती बारिश में उस की पुरानी छतरी ने भी आज उस का साथ छोड़ दिया था. बच्चों की चिंता ने उस के पैरों की गति को और बढ़ा दिया. उस का घर आने से पहले ही बाबूलाल किराने वाले की दुकान पड़ती थी, जहां से उसे कुछ किराना भी लेना था.

‘‘क्या चाहिए?’’ बाबूलाल ने कजरी की भीगी देह पर भरपूर नजर डालते हुए कहा.

‘‘2 किलो आटा, आधा लिटर तेल, पाव किलो शक्कर और हां, आधा लिटर दूध भी दे देना,’’ कजरी ने अपने आंचल को ठीक करते हुए कहा. बाबूलाल की ललचाई नजरों में उसे हमेशा ही एक मौन आमंत्रण दिखाई देता था. यह तो उस की मजबूरी थी कि वह यहां से वक्तबेवक्त कभी भी उधारी में सामान ले लिया करती थी, वरना उस की दुकान की ओर कभी वह मुड़ कर भी न देखती.

सोचतेसोचते कजरी घर पहुंच गई. बच्चे ‘‘मां, मां’’ कहते हुए उस से लिपट गए.

‘‘आई बहुत भूख लगी है, ताई ने कुछ खाने को नहीं दिया,’’ छोटे बेटे कमल ने दीदी की शिकायत की.

‘‘क्या करती आई, घर में आटा ही नहीं था,’’ सुमि ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘अच्छा मेरा राजा बेटा, मैं अभी गरमागरम रोटी बना कर अपने लाल को खिलाती हूं, मीठे दूध में मींज के खा लेना,’’ कजरी ने बेटे को पुचकारते हुए कहा.

‘‘आई, मैं भी खाऊंगी,’’ 9 साल की रीना ने मचलते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं मेरी गोलू, तू भी खाना.’’ गोलमटोल बड़ीबड़ी आंखों वाली रीना को सब गोलू ही कह कर बुलाते थे.

‘‘मैं ने टमाटर की मस्त चटनी भी बनाई है, आई,’’ सुमि ने उसे पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा.

जल्दी से आटा गूंध कर उस ने बच्चों को खाना खिलाया. उन को सुलाने के बाद कजरी सुमि के साथ वहीं नीचे जमीन पर लेट गई.

‘‘आई, आज फिर दीनू रीना को चौकलेट खिला रहा था. तब मैं ने रीना के हाथ से छीन कर वापस उस के मुंह पर फेंक दी, तो वह मेरे को देख लेने की धमकी दे कर चला गया. मुझे उस से बहुत डर लगता है, आई,’’ सुमि ने भयभीत स्वर में मां को बताते हुए कहा.

‘‘तुम घबराओ नहीं, सुमि, मैं उस की मां से बात करूंगी,’’ कजरी ने उसे तो समझा दिया, परंतु खुद सोच में पड़ गई.

जब से रमेश उसे छोड़ कर गया है, जीना कितना दूभर हो गया है. कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी इस कदर बोझ बन जाएगी. रमेश के रहते उसे कभी भी बाहर जा कर काम करने की जरूरत नहीं पड़ी. 17 साल की थी जब मांबाप ने रमेश के साथ उस का ब्याह कर दिया था. बहुत खुश थी वह रमेश के साथ. पेशे से पेंटर रमेश इंदौर के राजेंद्रनगर इलाके से कुछ दूर बुद्धनगर के स्लम एरिया में किराए के मकान में रहता था. मकान बहुत अच्छा नहीं, पर रहने लायक जरूर था. दोनों की जिंदगी मजे में कट रही थी.

समय के साथ कजरी 3 प्यारे बच्चों की मां बनी. सब से बड़ी सुमि, उस से छोटी रीना और सब से छोटा कमल. बच्चों के जन्म के बाद कजरी का भरा बदन और भी सुंदर लगने लगा था. शादी के 12 साल बीत जाने पर भी रमेश उसे जीजान से चाहता था. आसपड़ोस के लोग उन दोनों के प्यारभरे रिश्ते से अनजान नहीं थे. कजरी के घर के पास ही एक बढ़ई परिवार रहता था. इस परिवार की इकलौती लड़की माया रमेश को बहुत पसंद करती थी, पर रमेश उस पर कभी ध्यान नहीं देता था.

इधर, बच्चों की देखरेख और घर के कामों में व्यस्त कजरी चाहते हुए भी रमेश को ज्यादा वक्त न दे पाती थी जिस वजह से अकसर दोनों में झड़प हो जाया करती थी. वह रमेश को समझाती थी कि बच्चों के आने के बाद उस का काम बढ़ गया है. पर पुरुषवादी सोच का गुलाम रमेश उस की न को अपना अपमान समझने लगा था. धीरेधीरे उन के बीच में दूरियां बढ़ती चली गईं.

अब काम से लौट कर रमेश सीधे जो बाहर निकलता, तो रात 11-12 बजे ही वापस आता. बच्चों के पालनपोषण में व्यस्त कजरी ने पहले तो इस ओर ध्यान नहीं दिया, और जब ध्यान दिया तब तक बड़ी देर हो चुकी थी.

35 साल का रमेश अब 16 साल की लड़की माया का दीवाना बन चुका था. इस बात का पता लगते ही कजरी ने बहुत बवाल मचाया. रमेश से लड़ीझगड़ी, उस माया के घर जा कर उसे लताड़ा. फिर भी उन दोनों पर कोई असर न होता देख कजरी ने माया के सामने अपना आंचल फैलाते हुए अपने बच्चों के पिता को छोड़ देने के लिए बहुत अनुनयविनय की. पर माया टस से मस न हुई. माया के मातापिता भी उस की इस हरकत के आगे मजबूर थे.

फिर, एक दिन वह दिन भी आया जब काम पर गया रमेश कभी घर नहीं लौटा. इधर, माया भी घर से गायब थी. कजरी की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह फूटफूट कर रोई. पर अब हो भी क्या सकता था. भारी मन से उस ने इस सचाई को स्वीकार कर लिया कि अब वह एक परित्यक्ता है, जिसे उस का आदमी हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुका है.

पति द्वारा छोड़ी हुई औरत समाज के पुरुषों की बपौती बन जाती है, कुछ ही दिनों में यह बात उस की समझ में आ चुकी थी. यह वह समाज है, जहां पुरुषों द्वारा की गई गलती की सजा भी औरत को ही भुगतनी पड़ती है. घर के बाहर हर दूसरा आदमी उस के शरीर पर अपनी गिद्ध निगाह जमाए बैठा था. पर बच्चों के भरणपोषण के लिए उस का घर से निकलना बेहद जरूरी हो चुका था. ऐसे में रमेश के दोस्त लखन ने उस की बहुत सहायता की. उस ने अपने मालिक के घर पर कजरी को काम दिला दिया.

जल्द ही कजरी ने भी बेशर्मी की चादर ओढ़ कर जीना सीख लिया. लेकिन, अब भी काम पर जाने के बाद बच्चों की देखरेख की समस्या उस के आगे मुंहबाए खड़ी थी, जिस का जिम्मा उस की 11 साल की बेटी ने ले लिया. अपनी पढ़ाई छोड़ कर वह अपने छोटे भाईबहन को संभालने लगी. पापा के घर छोड़ कर चले जाने से वह अचानक ही अपनी उम्र से कुछ ज्यादा बड़ी हो गई थी. कुछ महीनों में कजरी को ऐसा लगने लगा कि जिंदगी फिर पटरी पर आने लगी है.

एक दिन वह काम पर से वापस आ रही थी कि रास्ते में लखन मिल गया. बातोंबातों में उस ने कजरी से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उस के एहसानों तले दबी कजरी उसे एकदम से इनकार न कर सकी. उस ने उस से सोचने के लिए कुछ समय मांगा. रातभर वह इसी ऊहापोह में रही कि अपने ही पति द्वारा वह एक बार ठगी जा चुकी है. क्या फिर से उसे किसी पर इतना विश्वास करना चाहिए? परंतु बिना मर्द के घर पर लोगों की चीलकौवे सी पड़ती निगाहों से बचने के लिए आखिरकार उसे यही रास्ता सब से उपयुक्त लगा.

उस के घर में ही लखन ने कुछ पासपड़ोसियों के सामने उसे मंगलसूत्र पहना कर उस की मांग में सिंदूर भर दिया. अब लखन उस के साथ ही आ कर रहने लगा. बच्चों ने भी कुछ समय बाद आखिर उसे अपना लिया.

शादी को 8 महीने हो चुके थे. पुराने जख्म भरने लगे थे कि अचानक एक दिन सुबहसुबह एक औरत उस के दरवाजे पर आ कर उसे भलाबुरा कहने लगी. पहले तो कजरी समझ ही न पाई कि यह चक्कर क्या है. बाद में उसे समझ आया, तो उस पर फिर से एक बार आसमान टूट पड़ा.

वह औरत लखन की पत्नी थी जो रात ही अपने गांव से आई थी, और लखन व उस के संबंध की जानकारी मिलते ही वह उस से लड़ने चली आई थी. कजरी ने इस बारे में लखन से कई सवाल किए, पर उस की खामोशी देख कर वह समझ गई कि समय ने फिर से उस के साथ बहुत ही गंदा मजाक किया है. लखन ने सिर्फ अपनी वासनापूर्ति की खातिर ही उस से संबंध जोड़ा था.

लखन जा चुका था, कजरी अंदर ही अंदर टूट कर फिर बिखर चुकी थी. पर इस बार वह पहले की तरह एक कमजोर औरत नहीं थी, जो अपनी बेबसी का रोना ले कर बैठे. सो, दूसरे दिन से ही उस ने सुमि पर भाईबहनों की जिम्मेदारी छोड़ कर काम पर जाना शुरू कर दिया.

इधर, पड़ोस में रहने वाला 22 साल का दीनू उस की छोटी बेटी रीना पर गलत निगाह रखता था. रीना 9 साल की एक अबोध बालिका थी, जिसे अकसर वह चौकलेट वगैरह का लालच दे कर अपने पास बुलाने की कोशिश करता था. एक दिन सुमि ने चौकलेट खाती रीना के शरीर पर उस के रेंगते हाथों को देख कर मां को तुरंत बताया था. कजरी ने भी इस वाकए को हलके रूप में न ले कर दीनू के मांबाप से जा कर तुरंत इस की शिकायत की थी. उस के बाद दीनू ने सब के सामने उस से माफी मांगी थी.

कुछ दिनों शांत बैठ कर दीनू फिर से वही काम दोहरा रहा था. कजरी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह क्या करे. कैसे बुरी नीयत व बुरी निगाह रखने वाले लोगों से अपनी बच्चियों को बचाए. खुद उस की देह भी तो उस के लिए बड़ी दुखदाई बन चुकी थी. मर्दों की पैनी निगाहें उस के शरीर पर यों फिसलती थीं मानो कपड़ों के अंदर तक झांक लेना चाहती हों.

पति की छोड़ी औरत शायद हर मर्द की जागीर हो जाती है. जिस पर हर कोईर् हाथ साफ करना चाहता है. कजरी के अंदर की औरत बहुत अकेली व लाचार हो गई थी. क्या बिना आदमी के औरत का कोई वजूद नहीं है? आखिर औरत को इतना कमजोर क्यों बनाया है? उस की बेचैनी आंसू बन कर उस के गालोें पर ढुलकने लगी. रात को न जाने कब उस की आंख लगी.

सुबह उठी तो सिर भारी हो रहा था.

आंखें भी जल रही थीं. देररात तक जागने से ऐसा हुआ है, यह  सोच कर कजरी ने उठने की कोशिश की परंतु शरीर ने साथ न दिया.सुमि ने मां को सहारा देने के लिए हाथ बढ़ाया, तो चौंक पड़ी, ‘‘आई, तुझे तो तेज बुखार है.’’

‘‘हां रे, मुझ से तो उठा भी नहीं जा रहा,’’ कजरी पर बेहोशी छाती जा रही थी. शायद बारिश में भीगने से उसे बुखार ने जकड़ लिया था.

मां की हालत देख कर सुमि घबरा गई. मां को वैसे ही छोड़ कर वह दौड़ कर पड़ोस से विमला काकी को बुला लाई. विमला काकी के पति औटो चलाते थे. जल्दी से कजरी को अपने औटो में बैठा कर वे उसे पास के अस्पताल ले गए.

कजरी की बिगड़ती हालत देख कर डाक्टर ने उसे वहीं ऐडमिट कर ग्लूकोस की बोतल चढ़ाने की सलाह दी. जब तक वह हौस्पिटल में रही, विमला काकी ने उस की पूरी देखभाल की और हौस्पिटल का बिल भी उन्होंने ही भरा.

कजरी घर पर तो आ गई लेकिन कमजोरी के चलते उस से उठतेबैठते नहीं बन रहा था. कुछ पैसे जो उस ने बचा कर रखे थे, वे घर के खानेखर्च में खत्म हो गए. अभी विमला काकी का उधार पूरा बाकी था.

‘‘आई, आज आटा खत्म हो गया है, तेल भी नहीं बचा. खाना कैसे बनाऊं?’’ सुमि ने एक सुबह कुछ झिझकते हुए मां से कहा. काम पर गए उसे एक हफ्ता हो गया था.

‘‘आज कुछ अच्छा लग रहा है. आज जाती हूं काम पर. उधर से आते वक्त सब किराना लेती आऊंगी. तब तक तुम पास वाली दुकान से दूध और ब्रैड ले आना और चाय बना कर उस के साथ टोस्ट खा लेना,’’ अपने पास बचे 50 रुपए का आखिरी नोट सुमि को पकड़ाते हुए वह बोली.

काम पर जा कर उसे बहुत बड़ा झटका लगा. उस की मालकिन ने बगैर बताए इतने दिनों की छुट्टी करने पर उसे काम से हटा कर दूसरी बाई रख ली थी. उस ने लाख मिन्नतें कर उन्हें समझाने की भरपूर कोशिश की कि उस ने जानबूझ कर छुट्टी नहीं मारी. लेकिन उन का कलेजा न पसीजा. उन्होंने उसे दोबारा काम पर रखने से साफ मना कर दिया.

दुखी मन से कजरी वहां से चल पड़ी कि तभी बाहर से मालिक की गाड़ी आती दिखाई दी. मन में उम्मीद की एक किरन जागी. शायद मालिक को उस की परेशानी समझ दया आ जाए और वे मालकिन को समझा कर उसे फिर काम पर रख लें. कुछ हौसला कर के उस ने पास जा कर मालिक को अपनी मजबूरी की पूरी दास्तां सुना दी. ध्यान से उस की परेशानी सुन कर मालिक ने धीमे स्वर में उसे कुछ समझाया, जिसे सुन कर एक बार फिर उस के होश उड़ गए. तेज कदमों से चलते हुए वह उन के बंगले से बाहर निकल आई. पीछे से मालिक उसे आवाज लगाते रह गए.

मालिक के शब्द अभी भी उस के कानों में गूंज रहे थे, ‘देखो, तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें भरपूर पैसा दूंगा. बस, बदले में मैं तुम्हें जब बुलाऊं, चली आना.’ छि, उसे अब अपनेआप से भी घिन आने लगी थी. क्या औरत के शरीर में अब यही रह गया है? उस के काम, उस के हुनर की कोई कीमत ही नहीं है? वह मालिक की बात को अनसुनी कर चली तो आई थी, पर पेट की रोटी के लिए जुगाड़ करने का सवाल अब भी अपनी जगह मुंहबाए खड़ा था.

अब कोई रास्ता दिख नहीं रहा था कजरी को. ‘घर में खाने के लिए अन्न का दाना नहीं है,’ कजरी अपनेआप में ही बड़बड़ाती जा रही थी. आसपास के दोचार घरों के गेट खड़का कर उस ने उन से कोई काम देने की गुहार लगाई. एकदो लोगों ने उसे बाद में आने को कहा भी, पर फिलहाल तो उस के पास एक भी पैसा नहीं था. काम पर आते वक्त उस ने यही सोचा था कि मालकिन से कुछ एडवांस मांग लेगी. पर अब तो उस के पास काम भी नहीं था.

‘चल कर कुछ किराना ही उधार ले लेती हूं, बाद में चुका दूंगी,’ सोचते हुए कजरी बाबूलाल की दुकान की तरफ चल दी.

‘‘भैया, कुछ सामान लेना है,’’ कुछ झिझकते हुए उस ने बाबूलाल से कहा.

‘‘पहले पुराना हिसाब चुकता कर दो, 1,250 रुपए हो रहे हैं,’’ बाबूलाल ने उसे गहरी नजरों से देखते हुए कहा.

‘‘हमेशा ही चुका देती हूं, भैया. हां, इस बार जरूर कुछ देर हो गई. पर मैं जल्द ही आप के सारे रुपए चुका दूंगी,’’ कजरी ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘माफ करना, मैं ने यहां कोई धर्मखाता नहीं खोल रखा है, जो मुफ्त में ही सब को जलपान कराता जाऊं,’’ बाबूलाल ने उसे दुत्कारते हुए कहा.

‘‘आज मेरा काम छूट गया है, लेकिन मैं विश्वास दिलाती हूं कि जल्द ही कोई काम ढूंढ़ कर आप की पूरी उधारी चुका दूंगी,’’ कह कर कजरी ने बेबसी से अपने हाथ जोड़ दिए.

‘‘काम तो मैं भी तुम्हें दे सकता हूं, अगर तुम चाहो तो. इस से तुम्हारा आज तक का पूरा उधार चुक जाएगा और ऊपर से कुछ कमाई भी हो जाएगी.’’ बाबूलाल की आंखों से टपकती लार देख कर कजरी सहम गई.

जाने कैसे ये भेडि़ए एक औरत की मजबूरी को सूंघ कर अपना दांव गांठते हैं. कजरी ने गहरी सांस छोड़ी और दुकान के बाहर आ गई.

मोड़ तक आतेआते वह कुछ ठिठक कर खड़ी हो गई. घर जा कर बच्चों को क्या खिलाएगी? बच्चों के भूख से कलपते चेहरे उसे साफ दिखाई पड़ रहे थे. मकान का किराया कहां से आएगा? विमला काकी का पूरा उधार अभी बाकी है. उफ, कैसे होगा यह सब? कजरी के दिल और दिमाग में एक जंग सी छिड़ गई थी. दिल कहता था…यह गलत है जबकि दिमाग कुछ ज्यादा ही व्यावहारिक हो चला था, जो हालफिलहाल की स्थिति से कैसे निबटा जाए, यह सोच रहा था. आखिरकार, एक औरत के सतीत्व पर मां की ममता भारी पड़ गई. कजरी के दुकान में दोबारा प्रवेश करते ही बाबूलाल की आंखों में वासनाजनित चमक आ गई.

कुछ देर बाद ही कजरी दोनों हाथों में सामान लिए घर की तरफ तेजी से बढ़ी चली जा रही थी. सामान्यतया रोज खुला रहने वाला दरवाजा आज भीतर से बंद था. अंदर से आती घुटीघुटी सिसकारी की आवाज ने कजरी को तनिक संशय में डाल दिया. किसी अनिष्ट की आशंका से उस का मन कांप गया. जोरजोर से बच्चों को आवाज लगा कर उस ने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया. पर दरवाजा न खुला.

इतने में सुमि और कमल को बाहर से आता देख कजरी चीख पड़ी, ‘‘रीना कहां है सुमि?’’

‘‘अंदर ही होगी, आई. मैं कुछ देर पहले ही ब्रैड और दूध लेने गई थी और यह कमल मेरे पीछे लग लिया. बहुत समझाया, पर माना ही नहीं.’’

तब तक चिल्लाने की आवाज सुन कर आसपड़ोस से कई लोग निकल कर जमा हो गए. तुरंतफुरत ही दरवाजा तोड़ दिया गया. दरवाजा टूटते ही कजरी अंदर घुसी और कमरे के एक कोने में रीना को बेसुध पड़ा देख बदहवास सी हो गई. तभी भीतर से एक साया निकल कर बाहर की तरफ भागा. हां, वह दीनू ही था, जिस ने रीना के अकेले होने का फायदा आज उठा ही लिया था. यह सब इतना अचानक हुआ कि किसी को कुछ समझ ही नहीं आया.

शोरगुल की आवाज से विमला काकी भी आ चुकी थीं. कजरी ने रीना को उठानेहिलाने की बहुत कोशिश की, मगर सब बेकार था. रीना बेजान हो चुकी थी. एक नन्ही कली आज फिर किसी वहशी दरिंदे की बुरी नीयत का शिकार हो चुकी थी. कजरी सामने पड़ी सचाई स्वीकार नहीं कर पा रही थी. अपनी प्यारी गोलू का यह हाल देख कर वह कांप उठी थी. उस की पूरी दुनिया ही जैसे उजड़ गई थी. सुमि लगातार रोए जा रही थी और कमल सहमा हुआ एक तरफ खड़ा हुआ था.

लोगों की आपसी चर्चा चालू थी. कोई पुलिस को बुलाने की बात कर रहा था तो कोई रीना को डाक्टर के पास ले जाने को कह रहा था. कजरी अचानक उठी और पलंग के नीचे से हंसिया निकाल कर बिजली की फुरती से बाहर निकल गई. उधर, दीनू जल्दीजल्दी एक बैग में अपने कुछ कपड़े भर कर घर से निकलने ही वाला था कि कजरी ने उस का रास्ता रोक लिया.

‘‘मुझे माफ कर दो कजरी भाभी, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. पता नहीं मुझे क्या हो गया था. मैं उसे मारना नहीं चाहता था, वह चिल्ला न सके, इसलिए मैं ने उस का मुंह बंद किया. मुझे नहीं…’’ दीनू अपनी सफाई देता रह गया और कजरी ने उस पर हंसिये से प्रहार करना शुरू कर दिया.

‘‘नीच, तू ने मेरी गोलू को क्यों मारा, क्या बिगाड़ा था उस मासूम ने तेरा,’’ कजरी चीखती जा रही थी. तभी पीछे से विमला काकी ने आ कर कुछ लोगों की मदद से उसे रोका.

दीनू घायल हो कर गिर पड़ा था. इलाके की पुलिस ने तुरंत ही दीनू को अस्पताल भेजा. और पूछताछ में लग गई. रीना की मृतदेह एम्बुलेंस में ले जाई जा रही थी. उपस्थित सभी लोगों की आंखें नम थीं. इतनी देर से मूकदर्शक बनी कजरी ने अचानक अट्टहास करना शुरू कर दिया. भीड़ में से किसी ने कहा, ‘वह पागल हो गई है.’ एक विमला काकी ही ऐसी थीं जिन्हें कजरी में एक परित्यक्त मां की बेबसी और हताशा दिखाई दे रही थी, जो अपना सबकुछ दांव पर लगा कर भी अपनी मासूम बच्ची को नहीं बचा पाई.

Extra Marital Affair : शादी को 5 साल होने के बावजूद मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है, क्या करूं?

Extra Marital Affair : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल
मैं 26 साल का हूं. मेरी शादी को 5 साल हो चुके हैं. 2 साल का लड़का भी है. इस बीच मुझे एक गरीब लड़की से प्यार हो गया है. मैं क्या करूं?

जवाब
आप अपने बच्चे व बीवी की अच्छी तरह देखभाल करें और प्यार का खयाल मन से निकाल दें. लड़की से दोस्ती रखना तो ठीक है, पर प्यार का कोई तुक नहीं है. वह गरीब है तो बेशक उस की मदद करें, मगर बगैर लालच के.

ये भी पढ़ें…

एक दिन का बौयफ्रैंड

‘‘क्या तुम मेरे एक दिन के बौयफ्रैंड बनोगे?’’ उस लड़की के कहे ये शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे. मैं हक्काबक्का सा उस की तरफ देखने लगा. काली, लंबी जुल्फों और मुसकराते चेहरे के बीच चमकती उस की 2 आंखें मेरे दिल को धड़का गईं. एक अजनबी लड़की के मुंह से इस तरह का प्रस्ताव सुन कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मुझ पर क्या बीत रही होगी.

मैं अच्छे घर का होनहार लड़का हूं. प्यार और शादी को ले कर मेरे विचार बिलकुल स्पष्ट हैं. बहुत पहले एक बार प्यार में पड़ा था पर हमारी लव स्टोरी अधिक दिनों तक नहीं चल सकी. लड़की बेवफा निकली. वह न सिर्फ मुझे, बल्कि दुनिया छोड़ कर गई और मैं अकेला रह गया.

लाख चाह कर भी मैं उसे भुला नहीं सका. सोच लिया था कि अब अरेंज्ड मैरिज करूंगा. घर वाले जिसे पसंद करेंगे, उसे ही अपना जीवनसाथी मान लूंगा.

अगले महीने मेरी सगाई है. लड़की को मैं ने देखा नहीं है पर घर वालों को वह बहुत पसंद आई है. फिलहाल मैं अपने मामा के घर छुट्टियां बिताने आया हूं. मेरे घर पहुंचते ही सगाई की तैयारियां शुरू हो जाएंगी.

‘‘बोलो न, क्या तुम मेरे साथ..,’’ उस ने फिर अपना सवाल दोहराया.

‘‘मैं तो आप को जानता भी नहीं, फिर कैसे…’’ में उलझन में था.

‘‘जानते नहीं तभी तो एक दिन के लिए बना रही हूं, हमेशा के लिए नहीं,’’ लड़की ने अपनी बड़ीबड़ी आंखों को नचाया. ‘‘दरअसल,

2-4 महीनों में मेरी शादी हो जाएगी. मेरे घर

वाले बहुत रूढि़वादी हैं. बौयफ्रैंड तो दूर कभी मुझे किसी लड़के से दोस्ती भी नहीं करने दी. मैं ने अपनी जिंदगी से समझौता कर लिया है. घर

वाले मेरे लिए जिसे ढूंढ़ेंगे उस से आंखें बंद कर शादी कर लूंगी. मगर मेरी सहेलियां कहती हैं कि शादी का मजा तो लव मैरिज में है, किसी को बौयफ्रैंड बना कर जिंदगी ऐंजौय करने में है. मेरी सभी सहेलियों के बौयफ्रैंड हैं. केवल मेरा ही कोई नहीं है.

‘‘यह भी सच है कि मैं बहुत संवेदनशील लड़की हूं. किसी से प्यार करूंगी तो बहुत गहराई से करूंगी. इसी वजह से इन मामलों में फंसने से डर लगता है. मैं जानती हूं कि मैं तुम्हें आजकल की लड़कियों जैसी बिलकुल नहीं लग रही होऊंगी. बट बिलीव मी, ऐसी ही हूं मैं. फिलहाल मुझे यह महसूस करना है कि बौयफ्रैंड के होने से जिंदगी कैसा रुख बदलती है, कैसा लगता है सब कुछ, बस यही देखना है मुझे. क्या तुम इस में मेरी मदद नहीं कर सकते?’’

‘‘ओके, पर कहीं मेरे मन में तुम्हारे लिए फीलिंग्स आ गईं तो?’’

‘‘तो क्या है, वन नाइट स्टैंड की तरह हमें एक दिन के इस अफेयर को भूल जाना है. यह सोच कर ही मेरे साथ आना. बस एक दिन खूब मस्ती करेंगे, घूमेंगेफिरेंगे. बोलो क्या कहते हो? वैसे भी मैं तुम से 5 साल बड़ी हूं. मैं ने तुम्हारे ड्राइविंग लाइसैंस में तुम्हारी उम्र देख ली है. यह लो. रास्ते में तुम से गिर गया था. यही लौटाने आई थी. तुम्हें देखा तो लगा कि तुम एक शरीफ लड़के हो. मेरा गलत फायदा नहीं उठाओगे, इसीलिए यह प्रस्ताव रखा है.’’

मैं मुसकराया. एक अजीब सा उत्साह था मेरे मन में. चेहरे पर मुसकराहट की रेखा गहरी होती गई. मैं इनकार नहीं कर सका. तुरंत हामी भरता हुआ बोला, ‘‘ठीक है, परसों सुबह 8 बजे इसी जगह आ जाना. उस दिन मैं पूरी तरह तुम्हारा बौयफ्रैंड हूं.’’

‘‘ओके थैंक्यू,’’ कह कर मुसकराती हुई वह चली गई.

घर आ कर भी मैं सारा समय उस के बारे में सोचता रहा.

2 दिन बाद तय समय पर उसी जगह पहुंचा तो देखा वह बेसब्री से मेरा इंतजार कर रही थी.

‘‘हाय डियर,’’ कहते हुए वह करीब आ गई.

‘‘हाय,’’ मैं थोड़ा सकुचाया.

मगर उस लड़की ने झट से मेरा हाथ थाम लिया और बोली, ‘‘चलो, अब से तुम मेरे बौयफ्रैंड हुए. कोई हिचकिचाहट नहीं, खुल कर मिलो यार.’’

मैं ने खुद को समझाया, बस एक दिन. फिर कहां मैं, कहां यह. फिर हम 2 अजनबियों ने हमसफर बन कर उस एक दिन के खूबसूरत सफर की शुरुआत की. प्रिया नाम था उस का. मैं गाड़ी ड्राइव कर रहा था और वह मेरी बगल में बैठी थी. उस की जुल्फें हौलेहौले उस के कंधों पर लहरा रही थीं. भीनीभीनी सी उस की खुशबू मुझे आगोश में लेने लगी थी. एक अजीब सा एहसास था, जो मेरे जिस्म को महका रहा था. मैं एक गीत गुनगुनाने लगा. वह एकटक मुझे निहारती हुई बोली, ‘‘तुम तो बहुत अच्छा गाते हो.’’

‘‘हां थोड़ाबहुत गा लेता हूं… जब दिल को कोई अच्छा लगता है तो गीत खुद ब खुद होंठों पर आ जाता है.’’

मैं ने डायलौग मारा तो वह खिलखिला कर हंस पड़ी. दूधिया चांदनी सी छिटक कर उस की हंसी मेरी सांसों को छूने लगी. यह क्या हो रहा है मुझे. मैं मन ही मन सोचने लगा.

तभी उस ने मेरे कंधे पर अपना सिर रख दिया, ‘‘माई प्रिंस चार्मिंग, हम जा कहां रहे हैं?’’

‘‘जहां तुम कहो. वैसे मैं यहां की सब से रोमांटिक जगह जानता हूं, शायद तुम भी जाना चाहोगी,’’ मेरी आवाज में भी शोखी उतर आई थी.

‘‘श्योर, जहां तुम चाहो ले चलो. मैं ने तुम पर शतप्रतिशत विश्वास किया है.’’

‘‘पर इतने विश्वास की वजह?’’

‘‘किसीकिसी की आंखों में लिखा होता है कि वह शतप्रतिशत विश्वास के योग्य है. तभी तो पूरी दुनिया में एक तुम्हें ही चुना मैं ने अपना बौयफ्रैंड बनाने को.’’

‘‘देखो तुम मुझ से इमोशनली जुड़ने की कोशिश मत करो. बाद में दर्द होगा.’’

‘‘किसे? तुम्हें या मुझे?’’

‘‘शायद दोनों को.’’

‘‘नहीं, मैं प्रैक्टिकल हूं. मैं बस 1 दिन के लिए ही तुम से जुड़ रही हूं, क्योंकि मैं जानती हूं हमारे रिश्ते को सिर्फ इतने समय की ही मंजूरी मिली है.’’

‘‘हां, वह तो है. मैं अपने घर वालों के खिलाफ नहीं जा सकता.’’

‘‘अरे यार, खिलाफ जाने को किस ने कहा? मैं तो खुद पापा के वचन में बंधी हूं. उन के दोस्त के बेटे से शादी करने वाली हूं. 6-7 महीनों में वह इंडिया आ जाएगा और फिर चट मंगनी पट विवाह. हो सकता है मैं हमेशा के लिए पैरिस चली जाऊं,’’ उस ने सहजता से कहा.

‘‘तो क्या तुम भी ‘कुछकुछ होता है’ मूवी की सिमरन की तरह किसी अजनबी से शादी करने वाली हो, जिसे तुम ने कभी देखा भी नहीं है?’’ कहते हुए मैं ने उस की आंखों में झांका. वह हंसती हुई बोली, ‘‘हां, ऐसा ही कुछ है. पर चिंता न करो. मैं तुम्हें शाहरुख यानी राज की तरह अपनी जिंदगी में नहीं आने दूंगी. शादी तो मैं उसी से करूंगी जिस से पापा चाहते हैं.’’

‘‘तो फिर यह सब क्यों? मेरे इमोशंस के साथ क्यों खेल रही हो?’’

‘‘अरे यार, मैं कहां खेल रही हूं? फर्स्ट मीटिंग में ही मैं ने साफ कह दिया था कि हम केवल 1 दिन के रिश्ते में हैं.’’

‘‘हां वह तो है. ओके बाबा, आई ऐम सौरी. चलो आ गई हमारी मंजिल.’’

‘‘वैरी नाइस. बहुत सुंदर व्यू है,’’ कहते हुए उस के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई.

थोड़ा घूमने के बाद वह मेरे पास आती हुई बोली, ‘‘लो अब मुझे अपनी बांहों में भरो जैसे फिल्मों में करते हैं.’’

वह मेरे और करीब आ गई. उस की जुल्फें मेरे कंधों पर लहराने लगीं. लग रहा था जैसे मेरी पुरानी गर्लफ्रैंड बिंदु ही मेरे पास खड़ी है. अजीब सा आकर्षण महसूस होने लगा. मैं अलग हो गया, ‘‘नहीं, यह नहीं होगा मुझ से. किसी गैर लड़की को मैं करीब क्यों आने दूं?’’

‘‘क्यों, तुम्हें डर लग रहा है कि मैं यह वीडियो बना कर वायरल न कर दूं?’’ वह शरारत से खिलखिलाई. मैं ने मुंह बनाया, ‘‘बना लो. मुझे क्या करना है? वैसे भी मैं लड़का हूं. मेरी इज्जत थोड़े ही जा रही है.’’

‘‘वही तो मैं तुम्हें समझा रही हूं. तुम्हें क्या फर्क पड़ता है, तुम तो लड़के हो,’’ वह फिर से मुसकराई, ‘‘वैसे तुम आजकल के लड़कों जैसे बिलकुल नहीं.’’

‘‘आजकल के लड़कों से क्या मतलब है? सब एकजैसे नहीं होते.’’

‘‘वही तो बात है. इसीलिए तो तुम्हें चुना है मैं ने, क्योंकि मुझे पता था तुम मेरा गलत फायदा नहीं उठाओगे वरना किसी और लड़के को ऐसा मौका मिलता तो उसे लगता जैसे लौटरी लग गई हो.’’

‘‘तुम मेरे बारे में इतनी श्योर कैसे हो कि वाकई मैं शरीफ ही हूं? तुम कैसे जानती हो कि मैं कैसा हूं और कैसा नहीं हूं?’’

‘‘तुम्हारी आंखों ने सब बता दिया मेरी जान, शराफत आंखों पर लिखी होती है. तुम नहीं जानते?’’

इस लड़की की बातें पलपल मेरे दिल को धड़काने लगी थीं. बहुत अलग सी थी वह. काफी देर तक हम इधरउधर घूमते रहे. बातें करते रहे.

एक बार फिर वह मेरे करीब आती हुई बोली, ‘‘अपनी गर्लफ्रैंड को हग भी नहीं करोगे?’’ वह मेरे सीने से लग गई. लगा जैसे वह पल वहीं ठहर गया हो. कुछ देर तक हम ऐसे ही खड़े रहे. मेरी बढ़ी हुई धड़कनें शायद वह भी महसूस कर रही थी. मैं ने भी उसे आगोश में ले लिया. उस पल को ऐसा लगा जैसे आकाश और धरती एकदूसरे से मिल गए हों. कुछ पल बाद उस ने खुद को अलग किया और दूर जा कर खड़ी हो गई.

‘‘बस, कुछ और हुआ तो हमारे कदम बहक जाएंगे. चलो वापस चलते हैं,’’ वह बोली. मैं अपनेआप को संभालता हुआ बिना कुछ कहे उस के पीछेपीछे चलने लगा. मेरी सांसें रुक रही थीं. गला सूख रहा था. गाड़ी में बैठ कर मैं ने पानी की पूरी बोतल खाली कर दी.

सहसा वह हंस पड़ी, ‘‘जनाब, ऐसा लग रहा था जैसे शराब की बोतल एक बार में ही हलक के नीचे उतार रहे हो.’’

उस के बोलने का अंदाज कुछ ऐसा था कि मुझे हंसी आ गई. ‘‘सच, बहुत अच्छी हो तुम. मुझे डर है कहीं तुम से प्यार न हो जाए,’’ मैं ने कहा.

‘‘छोड़ो भी यार. मैं बड़ी हूं तुम से, इस तरह की बातें सोचना भी मत.’’

‘‘मगर मैं क्या करूं? मेरा दिल कुछ और कह रहा है और दिमाग कुछ और.’’

‘‘चलता है. तुम बस आज की सोचो और यह बताओ कि हम लंच कहां करने वाले हैं?’’

‘‘एक बेहतरीन जगह है मेरे दिमाग में. बिंदु के साथ आया था एक बार. चलो वहीं चलते हैं,’’ मैं ने वृंदावन रैस्टोरैंट की तरफ गाड़ी मोड़ते हुए कहा, ‘‘घर के खाने जैसा बढि़या स्वाद होता है यहां के खाने का और अरेंजमैंट देखो तो लगेगा ही नहीं कि रैस्टोरैंट आए हैं. गार्डन में बेंत की टेबलकुरसियां रखी हुई हैं.’’

रैस्टोरैंट पहुंच कर उत्साहित होती हुई प्रिया बोली, ‘‘सच कह रहे थे तुम. वाकई लग रहा है जैसे पार्क में बैठ कर खाना खाने वाले हैं हम… हर तरफ ग्रीनरी. सो नाइस. सजावटी पौधों के बीच बेंत की बनी डिजाइनर टेबलकुरसियों पर स्वादिष्ठ खाना, मन को बहुत सुकून देता होगा.

है न?’’

मैं खामोशी से उस का चेहरा निहारता रहा. लंच के बाद हम 2-1 जगह और गए. जी भर कर मस्ती की. अब तक हम दोनों एकदूसरे से खुल गए थे. बातें करने में भी मजा आ रहा था. दोनों ने ही एकदूसरे की कंपनी बहुत ऐंजौय की थी, एकदूसरे की पसंदनापसंद, घरपरिवार, स्कूलकालेज की कितनी ही बातें हुईं.

थोड़ीबहुत प्यार भरी बातें भी हुईं. धीरेधीरे शाम हो गई और उस के जाने का समय आ गया. मुझे लगा जैसे मेरी रूह मुझ से जुदा हो रही है, हमेशा के लिए.

‘‘कैसे रह पाऊंगा मैं तुम से मिले बिना? नहीं प्रिया, तुम्हें अपना नंबर देना होगा मुझे,’’ मैं ने व्यथित स्वर में कहा.

‘‘आर यू सीरियस?’’

‘‘यस आई ऐम सीरियस,’’ मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मुझे नहीं लगता कि अब मैं तुम्हें भूल सकूंगा. नो प्रिया, आई थिंक आई लाइक यू वैरी मच.’’

‘‘वह डील न भूलो मयंक,’’ प्रिया ने याद दिलाया.

‘‘मगर दोस्त बन कर तो रह सकते हैं न?’’

‘‘नो, मैं कमजोर पड़ गई तो? यह रिस्क मैं नहीं उठा सकती.’’

‘‘तो ठीक है. आई विल मैरी यू,’’ मैं ने जल्दी से कहा. उस से जुदा होने के खयाल से ही मेरी आंखें भर आई थीं. एक दिन में ही जाने कैसा बंधन जोड़ लिया था उस ने कि दिल कर रहा था हमेशा के लिए वह मेरी जिंदगी में आ जाए.

वह मुझ से दूर जाती हुई बोली, ‘‘गुडबाय मयंक, मैं शादी वहीं करूंगी जहां पापा चाहते हैं. तुम्हारा कोई चांस नहीं. भूल जाना मुझे.’’ वह चली गई और मैं पत्थर की मूर्त बना उसे जाते देखता रहा. दिल भर आया था मेरा. ड्राइविंग सीट पर अकेला बैठा अचानक फफकफफक कर रो पड़ा. लगा जैसे एक बार फिर से बिंदु मुझे अकेला छोड़ कर चली गई है. जाना ही था तो फिर जरूरत क्या थी मेरी जिंदगी में आने की. किसी तरह खुद को संभालता हुआ घर लौटा. दिन का चैन, रात की नींद सब लुट चुकी थी. जाने कहां से आई थी वह और कहां चली गई थी? पर एक दिन में मेरी दुनिया पूरी तरह बदल गई थी. देवदास बन गया था मैं. इधर घर वाले मेरी सगाई की तैयारियों में लगे थे. वे मुझे उस लड़की से मिलवाने ले जाना चाहते थे, जिसे उन्होंने पसंद किया था. पर मैं ने साफ इनकार कर दिया.

‘‘मैं शादी नहीं करूंगा,’’ मेरा इतना कहना था कि घर में कुहराम मच गया.

‘‘क्यों, कोई और पसंद आ गई?’’ मां ने अलग ले जा कर पूछा.

‘‘हां.’’ मैं ने सीधा जवाब दिया.

‘‘तो ठीक है, उसी से बात करते हैं. पता और फोन नंबर दो.’’

‘‘मेरे पास कुछ नहीं है.’’

‘‘कुछ नहीं, यह कैसा प्यार है?’’ मां ने कहा.

‘‘क्या पता मां, वह क्या चाहती थी? अपना दीवाना बना लिया और अपना कोई अतापता भी नहीं दिया.’’

फिर मैं ने उन्हें सारी कहानी सुनाई तो वे खामोश रह गईं. 6 माह बीत गए. आखिर घर वालों की जिद के आगे मुझे झुकना पड़ा. लड़की वाले हमारे घर आए. मुझे जबरन लड़की के पास भेजा गया. उस कमरे में कोई और नहीं था. लड़की दूसरी तरफ चेहरा किए बैठी थी. मैं बहुत अजीब महसूस कर रहा था.

लड़की की तरफ देखे बगैर मैं ने कहना शुरू किया, ‘‘मैं आप को किसी भ्रम में नहीं रखना चाहता. दरअसल मैं किसी और से प्यार करने लगा हूं और अब उस के अलावा किसी से शादी का खयाल भी मुझे रास नहीं आ रहा. आई एम सौरी. आप इस रिश्ते के लिए न कह दीजिए.’’

‘‘सच में न कह दूं?’’ लड़की के स्वर मेरे कानों से टकराए तो मैं हैरान रह गया. यह तो प्रिया के स्वर थे. मैं ने लड़की की तरफ देखा तो दिल खुशी से झूम उठा. यह वाकई प्रिया ही थी.

‘‘तुम?’’

‘‘हां मैं, कोई शक?’’ वह मुसकराई.

‘‘पर वह सब क्या था प्रिया?’’

‘‘दरअसल, मैं अरेंज्ड नहीं, लव मैरिज करना चाहती थी. अत: पहले तुम से प्यार का इजहार कराया, फिर इस शादी के लिए रजामंदी दी. बताओ कैसा लगा मेरा सरप्राइज.’’

‘‘बहुत खूबसूरत,’’ मैं ने पल भर भी देर नहीं की कहने में और फिर उसे बांहों में भर लिया.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Nushrratt Bharuccha का ड्रीम हुआ पूरा, कुमार सानू के साथ ऐक्ट्रैस का ‘फैनगर्ल’ मोमेंट

Nushrratt Bharuccha : बौलीवुड ऐक्ट्रैस नुशरत भरूचा ने हाल ही में एक ड्रीम को पूरा किया जब फेमस प्ले बैक सिंगर कुमार सानू ने एक इवेंट के दौरान उन्हें स्टेज पर बुलाया. यह मुवमेंट एक्ट्रेस के लिए एक अनफौर्गेटेबल मेमोरी में बदल गया!

आइकौनिक सिंगर की फैन

जो हमेशा आइकौनिक सिंगर कि फैन रही हैं. जैसे ही कुमार सानू ने उन्हें स्टेज पर बुलाया, नुशरत के चेहरे पर उत्साह और खुशी स्पष्ट थी, जिससे यह उनके लिए मोमेंट चेरिश बन गया. वेटेरन सिंगर ने उन्हें स्टेज पर बुलाया और दोनों ने कुमार सानू के आइकौनिक सांग्स पर एक साथ थिरकते हुए स्टेज को हिलाकर रख दिया.

सिंगर के लिए अप्प्रेसिएशन

सोनू के टीटू की स्वीटी और ड्रीम गर्ल जैसी फिल्मों में अपनी भूमिकाओं के लिए जानी जाने वाली नुशरत ने बारबार कुमार सानू के लिए अपनी प्रशंसा शेयर की है.

अपकमिंग फिल्म

नुशरत, विशाल फुरिया द्वारा निर्देशित बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘छोरी 2’ की रिलीज के लिए तैयार हैं. समीक्षकों द्वारा प्रशंसित थ्रिलर ‘छोरी’ की अगली कड़ी, आगामी फिल्म पहली किस्त में बनाई गई फिल्म है. फिल्म को इस साल अमेज़न प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम किया जाएगा.

म्यूजिक औफ द स्फीयर्स वर्ल्ड टूर की शुरुआत करने वाली एकमात्र भारतीय अभिनेत्री Jasleen Royal ने क्रिस मार्टिन के साथ स्टेज किया शेयर

Jasleen Royal : भारत की प्रमुख पौप आइकन, जसलीन रायल ने भारत में कोल्डप्ले के समीक्षकों द्वारा प्रशंसित म्यूजिक औफ द स्फीयर्स वर्ल्ड टूर की शुरुआत करने वाली एकमात्र भारतीय अभिनेत्री के रूप में मंच संभाला,उन्होंने एक ऐसा परफौरमेंस दिया जो पावरफुल, सोलफुल और मैजिकल था! उन्होंने अपने ड्रीमी वोकल्स और बेजोड़ करिश्मे से भरे परफौरमेंस के साथ स्टेज की कमान संभाली. इसके अलावा, जसलीन रायल और क्रिस मार्टिन ने “वी प्रे” की प्रेजेंटेशन के लिए स्टेज शेयर किया, जिसमें पूरा स्टेडियम उनके साथ गा रहा था.

हर ट्युन पर चीयर 

जसलीन कि एंट्री मैग्नेटिक थी, जिसने अपनी सोलफुल वौइस्, एनर्जी और अपने स्टार्टिंग सांग-लव यू जिंदगी से, भीड़ को आकर्षित किया। उनका प्रेजेंटेशन केवल एक म्यूजिकल परफौरमेंस नहीं था -यह एक इमोशनल जर्नी थी जिसमें फैंस हर ट्युन पर गाते और चीयर करते थे. जसलीन के सेट में साहिबा, खो गए हम कहा, हीरिये, रांझा और कई अन्य चार्ट-टौपिंग हिट शामिल थे.

एक ट्रू पौप आइकन

कोल्डप्ले के प्रतिष्ठित म्यूजिक औफ द स्फीयर्स वर्ल्ड टूर में अपने परफौरमेंस के माध्यम से, जसलीन रायल ने एक ट्रू पौप आइकन होने का सार वापस लाया है. जसलीन की स्टेज पर उपस्थिति ने कौन्फिडेंस पैदा किया और जो उनके अपने फैंस और औडीयंस के साथ उनके जुड़ाव का एक प्रमाण था.

इंडियन पौप को किया डिफाइंड 

लुधियाना से एक लड़की के रूप में भारतीय पौप को फिर से परिभाषित करने वाले एक सेल्फ मेड आर्टिस्ट के रूप में जसलीन की जर्नी , और उनके विश्व स्तर पर प्रशंसित (globally acclaimed) म्यूजिक औफ द स्फीयर्स वर्ल्ड टूर के लिए कोल्डप्ले के लिए शुरुआत करने वाली पहली भारतीय पौप आइकन बनना असाधारण से कम नहीं है. अपने फैंस के साथ एक प्रामाणिक और संबंधित संबंध बनाए रखते हुए भारतीय पौप को फिर से परिभाषित करने की उनकी क्षमता ने उन्हें वैश्विक मंच पर एक ताकत के रूप में स्थापित किया है कल रात उनके प्रदर्शन ने संगीत उद्योग में एक गेमचेंजर के रूप में उनकी स्थिति को और मजबूत कर दिया.

करियर में न्यू चैप्टर

यह परफौरमेंस जसलीन के पहले से ही शानदार करियर में एक नया अध्याय है. म्यूजिक के प्रति उनके इनोवेटिव, ओरिजिनल एप्रोच और लिमिट्स को आगे बढ़ाने की उनकी क्षमता ने फैंस से उनका प्यार जीता है जो सीमाओं को पार करते हैं और उनके लिए दरवाजे खोलते हैं जो भारतीय पॉप म्यूजिक को नई ऊंचाइयों पर ले जाते हैं।

उनकी जर्नी अनगिनत फैंस को प्रेरित करती

जैसे ही भीड़ उनके समापन टिप्पणियों के दौरान जयकारों और तालियों से झूम उठी इससे एक बात स्थापित हो गई कि जसलीन रौयल सिर्फ एक कलाकार नहीं है; वह एक घटना है! उनकी जर्नी अनगिनत फैंस को प्रेरित करती है, और कोल्डप्ले के विश्व स्तर पर प्रशंसित म्यूजिक ऑफ द स्फेयर्स टूर में उनके प्रदर्शन को निस्संदेह सभी उपस्थित लोगों द्वारा याद किया जाएगा. 19 और 21 जनवरी को मुंबई में और 25 और 26 जनवरी को अहमदाबाद में उनके प्रदर्शन के लिए बने रहें.

भाग्यलक्ष्मी से लेकर परिणीति तक, Ekta Kapoor के ये सीरियल हो सकते हैं बंद

Ekta Kapoor :  छोटे पर्दे पर एक छत्र राज करने वाली, ओटीटी पर लौकअप और कई सारी हिट फिल्में बतौर निर्माता देने वाली एकता कपूर के लिए 2024 कुछ खास अच्छा नहीं रहा और उनकी करीना कपूर अभिनीत फिल्म बकिंगघम मर्डर, विक्की विद्या का वह वाला वीडियो, क्रू ,जैसी कई फिल्में फ्लौप रही वही कोई भी सीरियल ऐसा नहीं रहा जिसको टीआरपी के मामले में रिकौर्ड तोड़ सफलता मिली हो, अब खबर है 2025 भी उनके लिए थोड़ा भारी पड़ने वाला है.

क्योंकि एकता कपूर के तीन शोज बंद होने की अर्थात औफ एयर होने की खबर है. जिसमें से एक है भाग्यलक्ष्मी जो की कुंडली भाग्य का आगे वाला भाग था. इस शो की शुरुआत तो अच्छी हुई थी लेकिन बाद में इस सीरियल की कहानी कोई खास पकड़ नहीं रख पाई. इसी वजह से शो की टीआरपी लगातार नीचे जाने की वजह से मार्च के महीने में भाग्यलक्ष्मी के औफ एयर होने की खबर है.

उसके बाद दूसरा सीरियल परिणीति है जो काफी समय से चल रहा है और जिसकी कहानी जबरदस्ती में खींची जा रही है और क्योंकि अब इस सीरियल में दम नहीं रहा इसलिए ये शो भी जल्द ही बंद होने जा रहा है. तीसरा सीरियल कुमकुम भाग्य है जो कि साल की शुरुआत में ही बंद होने वाला था लेकिन बावजूद इसके इस शो को भी जबरदस्ती खींचा जा रहा था, यह शो भी फरवरी में बंद हो रहा है. ऐसे में कह सकते हैं कि 2025 की शुरुआत एकता कपूर के लिए कुछ खास नहीं रही है.

श्वेता तिवारी की बेटी Palak Tiwari सीरियल और टीवी शोज में नहीं करना चाहती हैं काम

Palak Tiwari : श्वेता तिवारी  (Shweta Tiwari) जो आज भी 44 की उम्र में बेहद यंग और खूबसूरत नजर आती हैं और छोटे पर्दे का जाना माना चेहरा है. कई सालों से टीवी इंडस्ट्री से जुड़ी हुई है. वही श्वेता तिवारी की बेटी पलक तिवारी ( Palak Tiwari) को टीवी पर काम करने से सख्त ऐतराज है. टीवी सीरियल और रियलिटी शोज में काम करने में पलक तिवारी की जरा सी भी दिलचस्पी नहीं है. इसकी वजह कहीं ना कहीं श्वेता तिवारी है.

हाल ही में पलक तिवारी ने एक इंटरव्यू में बताया की, क्यों उन्हें छोटे पर्दे पर काम करने से ऐतराज है. पलक के अनुसार श्वेता तिवारी कई सालों से टीवी इंडस्ट्री से जुड़ी हुई हैं और बचपन से श्वेता तिवारी को पलक तिवारी टीवी पर घंटों काम करते हुए देखती आई है. पलक के अनुसार टीवी सीरियल या शोज में काम करना बहुत ही मेहनत का काम है उन्होंने अपनी मां को बचपन से टीवी सीरियल में काम करते हुए और बहुत ज्यादा मेहनत करते हुए देखा है, लेकिन बावजूद इसके श्वेता तिवारी खूबसूरत और टैलेंटेड होने के बावजूद टीवी इंडस्ट्री से आगे नहीं बढ़ पाई. जबकि उनमें एक अच्छी हीरोइन बनने की भी काबिलियत थी. इसी वजह से मुझे टीवी पर काम करना पसंद नहीं है. क्योंकि टीवी पर भले ही पैसा मिलता है लेकिन पूरी जिंदगी सेट पर ही गुजर जाती है.

पलक के अनुसार उन्हें फिल्मों में काम करना शुरू से ही पसंद है, क्योंकि फिल्मों में एक एक्टर को अपनी काबिलियत दिखाने का बहुत मौका मिलता है और समय की भी लिमिटेशन होती है. पलक के अनुसार वह शुरू से ही फिल्म ऐक्ट्रेस ही बनना चाहती थी, क्योंकि मैंने अपनी मां को स्ट्रगल करते हुए देखा है. फिल्में पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. लेकिन अपनी काबिलियत दिखाने का पूरा मौका फिल्मों में यादगार रोल करके ही मिलता है. इसलिए मेरा पूरा ध्यान फिल्मों की तरफ ही है. गौरतलब है पलक तिवारी सलमान खान अभिनीत फिल्म किसी का भाई किसी की जान मे अहम भूमिका में नजर आई थी.

श्री श्री तत्त्व रोल ईजी हर्ब रब

श्री श्री तत्व के रोल ईजी हर्ब रब में कौन-कौन सी मुख्य सामग्री हैं और यह मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द को राहत देने में कैसे प्रभावी हैं?

श्री श्री तत्त्व रोल ईजी हर्ब रब रोल ऑन प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से बना एक अनूठा हर्बल ऑयल है जिसमें नीलगिरी तेल, मेन्थॉल और कपूर जैसी प्रमुख सामग्री शामिल हैं. नीलगिरी तेल अपने एंटी-इंफ्लेमेटरी और दर्द निवारक गुणों के लिए प्रसिद्ध है. मेंथॉल ठंडक का अनुभव देता है और मांसपेशियों की जकड़न को कम करता है जबकि कपूर रक्त परिसंचरण को बढ़ाने और मांसपेशियों के तनाव को कम करने में सहायक है.

रोल ईजी हर्ब रब क्यों है सब से अलग?

यह 100% आयुर्वेदिक फार्मूले पर आधारित है और इसमें कोई हानिकारक केमिकल नहीं है जिससे यह पूरी तरह सुरक्षित है. यह प्राकृतिक, उपयोग में आसान और सुविधाजनक है जो इसे हर किसी के लिए आदर्श बनाता है.

क्या यह सभी प्रकार की त्वचा के लिए उपयुक्त है और इसके उपयोग के लिए कोई सावधानियां हैं?

श्री श्री तत्त्व रोल ईजी हर्ब रब आयुर्वेदिक घटकों से बना एक त्वचा-अनुकूल उत्पाद है जिसे वर्षों से सुरक्षित रूप से उपयोग किया जा रहा है. हालांकि संवेदनशील त्वचा वालों   को इसे अपनाने से पहले पैच टेस्ट करना चाहिए. यह केवल बाहरी उपयोग के लिए है इसलिए इसे आँखों, कटे हुए हिस्सों, या खुले घावों पर लगाने से बचें.

Best Hindi Kahani : नया जमाना

Best Hindi Kahani :  डरबन की चमचमाती सड़कों पर सरपट दौड़ती इम्पाला तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी. कुलवंत गाड़ी ड्राइविंग करते हिंदी फिल्म का एक गीत गुनगुनाने में मस्त थे. सुरभि उन के पास वाली सीट पर चुपचाप बैठी कनखियों से उन्हें निहारे जा रही थी. इम्पाला जब शहर के भीड़भाड़ वाले बाजार से गुजरने लगी तो सुरभि ने एक चुभती नजर कुलवंत पर डाली और बोली, ‘‘अंकल, कहीं मैडिकल की शौप नजर आए तो गाड़ी साइड में कर के रोक देना, मुझे दवा लेनी है.’’

कुलवंत के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आए. सुरभि की तरफ देख कर बोले, ‘‘क्यों, क्या हुआ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, तबीयत तो ठीक है.’’

‘‘फिर दवा किस के लिए लेनी है?’’

‘‘आप के लिए.’’

‘‘मेरे लिए, क्यों? मुझे क्या हुआ है? एकदम भलाचंगा तो हूं.’’

‘‘आप बड़े नादान हैं. नहीं समझेंगे. अब आप अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाना बंद कीजिए. मैडिकल शौप नजर आए तो वहां गाड़ी रोक देना. मैं 1 मिनट में वापस आ जाऊंगी.’’

कुलवंत को बात समझ में नहीं आई तो चुप्पी साध ली. उन की नजरें स्क्रीन विंडो से हो कर बाजार के दोनों तरफ दौड़ने लगीं. कुछ देर बाद एक मैडिकल शौप नजर आई, तो गाड़ी को साइड में ले कर शौप के आगे रोक दी.

‘‘लो, दवाइयों की दुकान आ गई. जल्दी से दवा ले कर आओ.’’

सुरभि ने फुरती से दरवाजा खोला और मैडिकल शौप पर पहुंच गई. कुलवंत गाड़ी में बैठेबैठे ही सुरभि को देखते रहे. उस ने क्या दवा ली, वे चाह कर भी नहीं जान पाए. सुरभि ने दवा को पर्स में डाला और पैसे दे कर फौरन वापस आ कर गाड़ी में बैठ गई. वह कुलवंत की तरफ देख कर बोली, ‘‘हो गया काम, घर चलिए.’’

कुलवंत को कुछ भी समझ में न आया. उन्होंने गाड़ी को गियर में डाला और ऐक्सिलरेटर पर दबाव बढ़ा दिया. गाड़ी अगले ही पल हवा से बातें करने लगी. ड्राइविंग करतेकरते उन्होंने सुरभि पर एक नजर डाली. न जाने क्यों आज उन्हें सुरभि में एक बदलाव सा नजर आ रहा था.

1 महीने पहले जब वे डरबन आए थे, तब की सुरभि और आज की सुरभि में जमीनआसमान का फर्क था. पिछले 2 दिनों में तो उस का हावभाव एकदम बदल सा गया था. यह सब सोचतेसोचते वे विचारों में खो गए.

कल सुबह वे धड़धड़ाते हुए स्नानघर में घुसे तो उन के पांवों के नीचे की जमीन खिसक गई थी. वहां पर सुरभि पहले से ही स्नान कर रही थी. उस के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था. कुलवंत फौरन बाहर आ गए. सुरभि की पीठ दरवाजे की तरफ थी. शायद उस ने कुलवंत को नहीं देखा था. कुलवंत की सांसें धोंकनी की तरह चलने लगीं. वे सोफे पर गिर पड़े. सोचने लगे कि अच्छा हुआ जो सुरभि को कुछ भी मालूम नहीं चला. मगर इस में गलती तो सुरभि की ही थी. सुरभि को अंदर से दरवाजा बंद करना चाहिए था.

उस घटना को गुजरे 24 घंटे से ज्यादा का समय बीत चुका था, मगर कुलवंत की आंखों में स्नानघर वाला दृश्य बारबार घूम जाता था. यौवन की दहलीज पर खड़ी सुरभि के उस रूप ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था. उन्हें खुद से ज्यादा गुस्सा सुरभि पर आ रहा था. उस ने भीतर से दरवाजा बंद क्यों नहीं किया? यह लापरवाही थी या जानबूझ कर की गई कारस्तानी. नहीं, नहीं, यह लापरवाही नहीं हो सकती, यह सब सुरभि ने जानबूझ कर किया है. अच्छा होगा कि निशांत जल्दी से वापस आ जाए.

इन विचारों के साथ वे बचपन की यादों में खो गए. कुलवंत और निशांत बचपन के मित्र थे. दोनों के घर आसपास ही थे. साथ ही खेलतेकूदते बचपन गुजरा. एक ही स्कूल में शिक्षा पाई. यूनिवर्सिटी में साथ ही दाखिला लिया. बाद में निशांत ने सीए की परीक्षा उत्तीर्ण कर के चार्टर्ड अकाउंटैंट का कार्य शुरू कर दिया.

कुलवंत ने अपने पिता का खेतीबाड़ी का काम संभाल लिया. एक दिन अच्छा रिश्ता आया तो प्रभुदयालजी ने अपने बेटे निशांत का विवाह सृजना के साथ धूमधाम से कर दिया. कुलवंत ब्याह के कार्यों में 1 महीने तक जुटा रहा. निशांत के सभी सूट उस ने अपनी पसंद से सिलवाए. बरातियों की लिस्ट बनाने से ले कर प्रीतिभोज का मेन्यू तय करने तक में उस ने प्रभुदयालजी की मदद की. लोग भी कहने लगे कि निशांत और कुलवंत दोस्त नहीं, बल्कि भाई हैं.

कुछ समय बाद कुलवंत की भी शादी हो गई. उस की शादी में निशांत तो आया, मगर उस की पत्नी सृजना नहीं आई थी. कुलवंत को बुरा लगा. उस ने अपने दोस्त को खूब खरीखोटी सुनाईं. निशांत उस दिन कुछ भी नहीं बोला. कुलवंत की हर बात को उस ने सहजता से लिया. घरगृहस्थी में बंधने के बाद दोनों अपनीअपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गए. कभीकभार दोनों दोस्त मिलते तो एकदूसरे से शिकवाशिकायत करने में ही समय गंवा देते. कुलवंत को कई बार लगा कि निशांत की गृहस्थी में सबकुछ ठीक नहीं है. उन्हीं दिनों खबर लगी कि निशांत के लड़की हुई है. मिठाई और उपहार दे कर दोनों पतिपत्नी वापस आ गए.

कुछ दिनों बाद एक अन्य मित्र के द्वारा मालूम पड़ा कि निशांत और सृजना की आपस में नहीं बनती. दोनों में रोज ही झगड़े होते रहते हैं. पुत्र और बहू के झगड़ों से दुखी प्रभुदयालजी की एक दिन हार्ट अटैक से मौत हो गई. उन की मौत के बाद तो निशांत और सृजना का मामला बिगड़ता ही चला गया.

मित्र के घर के बुरे समाचारों के बाद कुलवंत भी चिंतित हो उठा. एक दिन वह अपनी निशा को ले कर निशांत के घर गया. वहां दोनों को खूब समझाया. यहां कुलवंत को पहली बार लगा कि सृजना बहुत ही आक्रामक स्वभाव की थी. निशांत ने तो उन की बात को धैर्य के साथ सुना, मगर सृजना ने उन्हें दोटूक शब्दों में कह दिया, ‘देखिए, कुलवंतजी, आप अपने घर को संभालें. हमारे घर के मामलों में आप को पंचायत करने की जरूरत नहीं है.’

उस दिन कुलवंत भारी मन से वापस घर आया तो रो पड़ा था. आज उस के मित्र का घर बिखराव पर है अैर वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था. कुछ समय बाद समाचार मिला कि निशांत और सृजना में तलाक हो गया. कोर्ट के आदेश से सुरभि निशांत को मिल गई थी. एक दिन निशांत ने कुलवंत और निशा को अपने घर बुलाया और बताया कि वह सुरभि को ले कर डरबन जा रहा है. वहां एक मल्टीनैशनल कंपनी में अकाउंटैंट की नौकरी मिल गई है. उस ने कुलवंत को अपने घर की चाबी देते हुए कहा कि मकान किराए पर उठा देना या जैसा तुम्हें उचित लगे, करना. समयसमय पर सफाई जरूर करवा देना. उस समय सुरभि मात्र 8 वर्ष की थी.

वक्त की रफ्तार धीरेधीरे आगे बढ़ती रही. कुलवंत की जिंदगी में सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. लेकिन एक दिन निशा ने स्तन में दर्द होने की बात बताई. डाक्टर को दिखाया तो उस ने जांच के बाद बताया कि उस को कैंसर है. बीमारी लास्ट स्टेज पर थी. कैंसर ने ऐसी जड़ें जमाईं कि निशा कभी ठीक ही नहीं हो पाई. कुलवंत को घर का चिराग दिए बिना ही निशा चल बसी. मातापिता का तो पहले ही देहांत हो गया था. वह दुनिया में अकेला हो गया. कभीकभी उस का मिलना सृजना भाभी से हो जाता था. वह अपने किए पर बहुत रोती थी. देखतेदेखते 12 वर्ष बीत गए. एक दिन निशांत ने वीजा व हवाई जहाज का टिकट भेज कर कुलवंत को डरबन बुला लिया.

मित्र के बुलावे पर वह 1 महीने पहले डरबन आया था. जब उस ने डरबन की धरती पर पांव रखा तो निशांत खुद गाड़ी ले कर एअरपोर्ट आया था. वर्षों बाद एकदूसरे को देख कर दोनों के आंसू निकल आए थे. घर पहुंचे तो सुरभि को देख कर कुलवंत का मुंह खुला का खुला रह गया. 12 वर्ष पूर्व जिस सुरभि को उस ने भारत से विदा किया था, उस में व इस सुरभि में जमीनआसमान का फर्क था. आज तो वह बिलकुल अपनी मां जैसी लग रही थी. उस के  नैननक्श बिलकुल सृजना के जैसे थे.

निशांत और सुरभि के साथ रहने से कुलवंत में जीने की तमन्ना जाग उठी थी. उन दोनों के साथ रहते 1 महीना कब बीता, पता ही नहीं चला.

2 दिन पहले निशांत को किसी जरूरी कार्य से दुबई जाना पड़ा. उस ने रवाना होते समय कुलवंत से कहा था, ‘मैं 1 हफ्ते के बाद ही आ पाऊंगा. तुम्हारी देखभाल

के लिए सुरभि को कह दिया है. कोई विशेष कार्य हो तो मोबाइल पर बता देना.’

अचानक विचारतंद्रा टूटी तो कुलवंत ने देखा कि बंगला आ गया है. उन्होंने गाड़ी पार्किंग में खड़ी की. दोनों दरवाजे के पास पहुंचे तो यह देख कर दंग रह गए कि दरवाजा खुला हुआ है. दोनों ने एकदूसरे की तरफ प्रश्नवाचक नजरों से देखा. सुरभि ने आश्चर्य से कहा, ‘‘मैं ने जाते वक्त ताला लगाया था. पीछे से यह दरवाजा किस ने खोला?’’

दोनों तेजी से दौड़ते हुए भीतर गए तो वहां के हालात देख कर भौचक्के रह गए. पूरे बंगले का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. सुरभि ने कुलवंत की तरफ देख कर कहा, ‘‘लगता है चोरों ने यहां अपना हाथ दिखा दिया है. मैं पुलिस को फोन करती हूं.’’

सूचना मिलते ही पुलिस की टीम वहां जा पहुंची. अधिकारी पूछताछ के बाद छानबीन में लग गए. लूट की रिपोर्ट लिखने के बाद पुलिस वापस लौट गई. सुरभि ने कुलवंत की तरफ देख कर कहा, ‘‘यार अंकल, यों मुंह लटकाए क्यों बैठे हो? यहां तो यह आम बात है. यह तो अच्छा हुआ हम दोनों घर पर नहीं थे, वरना लुटेरे हमें जान से मार भी सकते थे. मैं पापा को फोन कर के बता देती हूं. आप चाय तो बना कर पिला दीजिए.’’

कुलवंत सुरभि की बेतकल्लुफी पर हैरान था. वह चुपचाप उठा और रसोईघर की तरफ चल दिया. सुरभि ने मोबाइल फोन से घर में हुई लूट की बात अपने पापा को बता दी. उस ने यह भी बता दिया कि चिंता की बात नहीं है. कुलवंत अंकल और वह कुशलमंगल से हैं. कुलवंत ने तब तक चाय बना ली.

रात को दोनों ने मिल कर खाना बना लिया. खाना खाते समय दोनों चुपचुप रहे. खापी कर दोनों फ्री हुए तो कुलवंत अपने कमरे में आ कर पलंग पर लेट गए. उन्हें नींद नहीं आ रही थी. टीवी चालू कर के वे चैनल बदलने लगे. एक चैनल पर कोई संत कथा का वाचन कर रहे थे. उन्होंने मन में विचार किया कि चलो, आज कथा का ही आनंद ले लिया जाए.

इतने में सुरभि दूध का गिलास ले आई. कुलवंत को धार्मिक चैनल पर कथा सुनते देख आश्चर्यचकित हो उठी. उस ने दूध का गिलास टेबल पर रखते हुए कनखियों से कुलवंत की तरफ देखा और बोली, ‘‘वाह, आप को भी कथाओं का शौक है?’’

सुरभि की बात पर कुलवंत की  हंसी छूट गई. वे सुरभि की  तरफ देखे बगैर ही बोल पड़े, ‘‘सब अपनी रोजीरोटी के लिए दौड़ रहे हैं. अपने भारत में तो आजकल कथाकारों की बाढ़ आई हुई है. इन कथाओं में धन बरस रहा है. धर्म के नाम पर न तो लूटने वालों की कमी है और न ही लुटाने वालों की. मैं भी कभीकभी सोचता हूं कि सबकुछ छोड़ कर कथावाचक बन जाऊं. धन और शोहरत के साथ सुंदरसुंदर चेहरे वाली हसीनाओं के दर्शन का लाभ भी मिलता रहेगा.’’

‘‘अरे, रहने भी दो. हसीनाओं को देखना आप को आता ही कहां है? हां, साधु बन कर माला फेरनी हो तो बात दूसरी है.’’

कुलवंत सुरभि की बात सुन कर सन्न रह गए. वे समझ गए कि सुरभि का मूड आज बड़ा रोमांटिक है. उस की द्विअर्थी बातों में कुछ छिपा है. उन्होंने सुरभि की तरफ देख कर कहा, ‘‘ठीक है, तुम जाओ यहां से, रात काफी हो गई है, मैं सोना चाहता हूं. तुम भी अब अपने कमरे में जा कर सो जाओ.’’ सुरभि अपने कमरे में चली गई. उस के चेहरे पर मदमस्त कर देने वाली मुसकान थी. कुलवंत ने दूध के गिलास की तरफ देखा. आज दूध पीने की इच्छा नहीं हो रही थी. मन में विचार किया कि निशांत जल्दी से वापस आ जाए. वे टीवी का स्विच बंद कर के सो गए. कुछ देर बाद नींद ने डेरा डालना शुरू कर दिया. अभी पूरी आंख लगी भी नहीं थी कि अचानक चौंक कर उठ बैठे. आंखें खुलीं तो देखा पलंग के पास कोई खड़ा है.

‘‘कौन है?’’ घबराहट में मुंह से निकल गया.

‘‘मैं हूं.’’

‘‘मैं कौन?’’

‘‘सुरभि.’’

‘‘इस समय यहां क्या करने आई हो?’’

‘‘मुझे नींद नहीं आ रही. अपने कमरे में डर लग रहा है, मैं अकेली वहां नहीं सो सकती.’’

‘‘पागल मत बनो. जाओ, अपने कमरे में. अपनेआप नींद आ जाएगी.’’

‘‘नहीं, डर लगता है. मैं तो यहीं पर सोऊंगी.’’

‘‘समझा करो. तुम अब छोटी बच्ची नहीं रहीं.’’

‘‘इसीलिए तो यहां सोने आई हूं.’’

इतना कहते ही सुरभि कुलवंत के पास लेट गई. कुलवंत की सांसें एकाएक फूलने लगीं. वे पलंग पर एक कोने पर सरक गए. घबराहट के मारे बुरा हाल हो रहा था. उन्होंने सुरभि की तरफ देख कर कहा, ‘‘प्लीज, यह गलत है. हमारी संस्कृति इस की इजाजत नहीं देती. कम से कम हम दोनों की उम्र का फर्क तो देखो. मैं तुम्हारे पापा की उम्र का हूं.’’

सुरभि ने भी करवट बदली और कुलवंत से एकदम सट कर बोली, ‘‘मुझे बेकार की बातें मत समझाइए. आप को समझ में नहीं आता तो मैं बता देती हूं. अब जमाना बदल गया है. जो भूख लगने पर भोजन नहीं करता वह पागल है.’’

‘‘प्लीज, कहना मानो. कल तुम्हारे पापा को मालूम होगा तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगा.’’

‘‘डरिए मत, किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा. हो जाने दीजिए, जो कुछ होता है. जहां प्यार पनपता है वहां उम्र का हिसाब गौण हो जाता है. आजकल जमाना बदल गया है. प्यासी तृप्त होगी तो उस का परिणाम मिलेगा. यह व्यभिचार नहीं, उपकार होगा.’’

अचानक उस ने अपनी बंद मुट्ठी कुलवंत की तरफ बढ़ा दी.

‘‘क्या है?’’

‘‘तुम्हारी दवा. आज सुबह मैडिकल शौप से खरीदी थी.’’

इतना कहते हुए उस ने अपनी बंद मुट्ठी खोली. उस में एक ‘पैकेट’ था. यह देख कुलवंत की आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गईं. वह समझ गया कि वास्तव में जमाना बदल गया है. नए जमाने के सामने उस ने घुटने टेक दिए. अगले ही पल उस ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.

लेखक- मिश्रीलाल पंवार

True Love Story : प्यार की खातिर

True Love Story :  प्यार कभी भी और कहीं भी हो सकता है. प्यार एक ऐसा अहसास है, जो बिन कहे भी सबकुछ कह जाता है. जब किसी को प्यार होता है तो वह यह नहीं सोचता कि इस का अंजाम क्या होगा और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह इनसान किसी के प्यार में इतना खो जाता है कि बस प्यार के अलावा उसे कुछ दिखाई नहीं देता है. तभी तो कहते हैं कि प्यार अंधा होता है. सबकुछ लुटा कर बरबाद हो कर भी नहीं चेतता और गलती पर गलती करता चला जाता है.

मोहन हाईस्कूल में पढ़ने वाला एक 16 साल का लड़का था. वह एक लड़की गीता से बहुत प्यार करने लगा. वह उस के लिए कुछ भी कर सकता था, लेकिन परेशानी की बात यह थी कि वह उसे पा नहीं सकता था, क्योंकि मोहन के पापा गीता के पापा की कंपनी में एक मामूली सी नौकरी करते थे. मोहन बहुत ज्यादा गरीब घर से था, जबकि गीता बहुत ज्यादा अमीर थी. वह सरकारी स्कूल में पढ़ता था और गीता शहर के नामी स्कूल में पढ़ती थी.

लेकिन उन में प्यार होना था और प्यार हो गया. मोहन गीता से कहता, ‘‘तुम मुझ से कभी दूर मत जाना क्योंकि मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह पाऊंगा.’’ ‘‘हां नहीं जाऊंगी, लेकिन मेरे घर वाले कभी हमें एक नहीं होने देंगे,’’ गीता ने कहा.

‘‘क्यों?’’ मोहन ने पूछा. ‘‘क्योंकि तुम सब जानते हो. हमारा समाज हमें कभी एक नहीं होने देगा,’’ गीता बोली.

‘‘हम इस दुनिया, समाज सब को छोड़ कर दूर चले जाएंगे,’’ मोहन ने कहा. ‘‘नहींनहीं, मैं यह कदम नहीं उठा सकती. मैं अपने परिवार को समाज के सामने शर्मिंदा होते नहीं देख सकती,’’ गीता ने अपने मन की बात कही.

‘‘ठीक है, तो तुम मेरा तब तक इंतजार करना, जब तक मैं इस लायक न हो जाऊं और तुम्हारे पापा के सामने जा कर उन से तुम्हारा हाथ मांग सकूं. बोलो मंजूर है?’’ मोहन ने कहा. गीता हंसी और बोली, ‘‘क्या होगा, अगर मैं तुम से शादी कर के एकसाथ न रह सकी? हम चाहें दूर रहें या पास, मेरे दिल में तुम्हारा प्यार कभी कम नहीं होगा. तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगे.’’

यह सुन कर मोहन दिल ही दिल में रो पड़ा और सोच में पड़ गया. ‘‘क्या तुम मुझे छोड़ कर किसी और से शादी कर लोगी? मुझे भूल जाओगी? मुझ से दूर चली जाओगी?’’ मोहन ने पूछा.

‘‘ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकती कि तुम्हें भूल जाऊं. मैं मरते दम तक तुम्हें नहीं भूल पाऊंगी,’’ गीता बोली. ‘‘फिर मेरा दिल दुखाने वाली बात क्यों करती हो? कह दो कि तुम मेरी हो कर ही रहोगी?’’ मोहन ने कहा.समय अपनी रफ्तार से चल रहा था. मोहन दिनरात मेहनत कर के खुद को गीता के काबिल बनाने में लगा था, ताकि एक दिन उस के पिता के पास जा कर गीता का हाथ मांग सके. इधर गीता यह सोचने लगी, ‘मोहन मेरी अमीरी की खातिर मुझ से दूर जा रहा है. वह मुझे पा नहीं सकता इसलिए दूरी बना रहा है.’

इधर गीता के घर वाले उस के लिए लड़का देखने लगे और उधर मोहन जीजान से पढ़ाई में लगा हुआ था. उसे पता भी नहीं चला और गीता की शादी तय हो गई. जब यह बात मोहन को पता चली तो वह गीता की खुशी की खातिर चुप लगा गया, क्योंकि उस की शादी शहर के बहुत बड़े खानदान में हो रही थी. उस का होने वाला पति एक बड़ी कंपनी का मालिक था.

यह सब जानने और सुनने के बाद मोहन अपने प्यार की खुशी की खातिर उस से दूर जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन यह तो नामुमकिन था. वह किसी भी कीमत पर जीतेजी उस से दूर नहीं हो सकता था. सचाई जाने बगैर ही उस ने एक गलत कदम उठाने की सोच ली. गीता अंदर ही अंदर बहुत दुखी थी और परेशान थी क्योंकि वह भी तो मोहन को बहुत प्यार करती थी.

जिस दिन गीता की शादी थी उसी दिन मोहन ने एक सुसाइड नोट लिखा और फांसी लगा ली. ठीक उसी समय गीता ने भी एक सुसाइड नोट लिखा और जब सब लोग बरात का स्वागत करने में लगे थे उस ने खुद को फांसी लगा कर खत्म कर लिया.

प्यार की खातिर 2 परिवार दुख के समंदर में डूब गए. बस उन दोनों की जरा सी गलतफहमी की खातिर. हम मिटा देंगे खुद को प्यार की खातिर जी नहीं पाएंगे पलभर तुम से दूर रह कर. कर के सबकुछ समर्पित प्यार के लिए बिखरते हैं कितना हम टूटटूट कर. विश्वास बहुत बड़ी चीज होती है. हमें अपनों पर और खुद पर भरोसा करना चाहिए, ताकि जो उन दोनों के साथ हुआ वैसा किसी के साथ न हो. अगर प्यार करो तो निभाना भी चाहिए और बात कर के गलतफहमियों को मिटाना भी चाहिए, क्योंकि प्यार वह अहसास है जो हमें जीने की वजह देता है.

अगर इस दुनिया में प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं. प्यार अमीरीगरीबी, ऊंचनीच, धर्म, जातपांत कुछ भी नहीं देखता. अगर किसी को एक बार प्यार हो जाए तो वह उस की खुशी की खातिर अपनी जिंदगी की भी परवाह नहीं करता. प्यार तो कभी भी कहीं भी किसी से भी हो सकता है, पर सच्चा प्यार होना और मिलना बहुत मुश्किल होता है. खुद पर और अपने प्यार पर हमेशा भरोसा बनाए रखना चाहिए, क्योंकि इस फरेबी दुनिया में सच्चा प्यार बहुत मुश्किल से मिलता है.

लेखिका- सीमा असीम सक्सेना

Story Of Life : अधूरी कहानी

Story Of Life : बात उन दिनों की है, जब राघव 12वीं जमात पास कर के कालेज में पढ़ने गया था. माली हालत अच्छी न होने की वजह से उसे पापा के पास बेंगलुरु जाना पड़ा और इसी बीच वह वहीं काम भी करने लगा. समय मिलते ही राघव अपने सारे दोस्तों को मैसेज करता था. वह शायरी का तो शौकीन था ही, हर रोज नईनई शायरी दोस्तों को भेजता और बदले में वे तारीफ भेजते. वे ज्यादातर बातें मैसेज के जरीए ही करते थे. दोस्तों के अलावा राघव अपनी चचेरी भाभी सोनी को भी मैसेज करता था. वे खड़गपुर में राघव के भाई के साथ रहती थीं. राघव और सोनी दोनों जब भी बातें करते तो ऐसा नहीं लगता था कि कोई देवरभाभी बातें कर रहे हैं. ऐसा लगता था, मानो 2 जिगरी दोस्त बातें कर रहे हों.

एक दिन अचानक राघव के फोन पर एक नंबर से एक प्यारा सा मैसेज आया. वह पढ़ कर बहुत खुश हो गया. लेकिन अगले ही पल वह हैरान रह गया, क्योंकि जब उस नए नंबर पर उस ने फोन किया, तो फोन का जवाब नहीं मिल सका.

राघव ने उसी नंबर पर मैसेज किया, ‘कौन हो तुम?’

उधर से जवाब आया, ‘आप की अपनी दोस्त.’

राघव ने नाम पूछा, तो उस ने बताया नहीं. ‘फिर कभी…’ का मैसेज लिख दिया.

राघव ने सोचा, ‘शायद मेरा ही कोई दोस्त मुझे नए फोन नंबर से परेशान कर रहा है.’

रात को राघव ने उस नंबर पर फोन किया. एक लड़की ने फोन उठाया… और जैसे ही वह ‘हैलो’ बोली, राघव के रोंगटे खड़े हो गए.

राघव ने हकलाते हुए पूछा, ‘‘कौन हो तुम? मेरा नंबर तुम्हें किस ने दिया? तुम कहां से बोल रही हो?’’

उस लड़की ने बताया, ‘मेरा नाम पूजा है?’

इस के बाद उस ने राघव से कहा कि वह उसे पहले से जानती है. उस के बारे में बहुत सारी बातें भी बताईं. वह देखने में कैसा है, उस का कद कितना है वगैरह.

राघव ने पूछा, ‘‘मुझे कहां देखा आप ने?’’

उस लड़की ने कहा, ‘4 महीने पहले मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर देखा था, तभी से नंबर ढूंढ़ रही हूं.’

राघव चौंक गया, क्योंकि ठीक 4 महीने पहले वह अपनी मौसी को छोड़ने वहां गया था. वह खयालीपुलाव पकाते हुए सोचने लगा कि एक अनजान लड़की ने अनजान जगह पर उसे देखा और तब से उस का फोन नंबर ढूंढ़ रही है.

पहले तो वह अनजान था, पर अब राघव दोस्ती के नाते उस से बातें करने लगा. कुछ ही दिन हुए थे राघव और उस लड़की की दोस्ती को कि इसी बीच उस का एक मैसेज आया, जिस में लिखा था, ‘मुझे माफ कर देना. मैं नहीं चाहती कि हमारी दोस्ती की शुरुआत झूठ से हो. सच तो यह है कि मैं ने आप को कभी देखा ही नहीं. बस, सोनी भाभी के फोन पर आप का मैसेज पढ़ा, जो मुझे बहुत पसंद आया. इस के बाद भाभी से आप का नंबर ले कर मैसेज कर दिया.

‘मैं ने सोचा कि अगर आप को पहले ही सब बता देती, तो आप के बारे में इतना कुछ जानने का मौका न मिलता. इस झूठ के लिए मुझे माफ कर देना और मेरी दोस्ती को स्वीकार करना.’

यह मैसेज पढ़ कर राघव को थोड़ा गुस्सा तो आया, पर दोस्तों से इस बारे में जब उस ने बात की, तो वे भी उस की तारीफ के पुल बांधने लगे. उसे सलाह दी कि लड़की अच्छी है, तभी तो उस ने सब सचसच बता दिया. और तो और वह दोस्ती भी करना चाहती है. ऐसे सच्चे दोस्त कम ही मिलते हैं. उसे फोन कर और दोस्ती की नई शुरुआत कर. फिर क्या था, राघव का दिल बागबाग हो उठा.

अगली सुबह राघव ने मैसेज किया, ‘गुड मौर्निंग दोस्त.’

उधर से भी मैसेज आया, जिस में पूछा गया था, ‘मुझे माफ तो कर दिया न? फिर से सौरी ऐंड थैंक्यू… दोस्ती को आगे बढ़ाने के लिए.’

राघव ने भी फिल्मी अंदाज में लिख भेजा, ‘दोस्ती में नो थैंक्स, नो सौरी.’

उन दोनों की दोस्ती परवान चढ़ती गई. पहली बार घर जाते समय राघव उस से खड़गपुर रेलवे स्टेशन पर मिला. ट्रेन वहां ज्यादा देर नहीं रुकी, इसलिए बातें भी न हो सकीं. सिर्फ ‘हायहैलो’ ही हो पाई.

उस समय छठ पूजा की तैयारियां चल रही थीं. राघव घर पर ही था. सोनी भाभी हर साल छठ पूजा के समय गांव आ जातीं. इस बार भी वे आईं, पर अकेली नहीं, पूजा भी साथ थी.

राघव इतना खुश था कि बयां नहीं कर सकता था. उस ने पूजा को अपनी मां और बहनों से मिलवाया. वह पूरा दिन उसी के साथ रहा.

सोनी भाभी कहां चूकने वाली थीं. वे भी ताने कसतीं, ‘‘क्यों देवरजी, क्या इसे यहीं छोड़ दूं हमेशा के लिए?’’

भाभी की ऐसी बातें सुन कर राघव के मन में लड्डू फूटने लगते. काश, ऐसा ही होता.

पूजा थी ही ऐसी. गोरा रंग, लंबी नाक, लंबा कद, पतली कमर, मानो कोई अप्सरा हो. राघव मन ही मन उसे चाहने लगा था. उस के फोन की बैटरी और पैसे खत्म हो जाते, पर बातें नहीं. हर साल छठ पूजा पर पूजा भी सोनी भाभी के साथ उस से मिलने चली आती, लेकिन राघव की कभी हिम्मत नहीं हुई कि वह भी कभी उस के घर जाए. राघव जब भी गांव आता, उस से स्टेशन पर ही मिल कर चला जाता. प्यार वह भी उस से करती थी, पर बोलती नहीं थी. राघव उस से प्यार का इजहार करवा कर ही रहा. अब दोस्ती भूल कर प्यारमुहब्बत की बातें होने लगीं. बात शादी तक पहुंच गई. राघव ने हिम्मत कर के पड़ोसियों के जरीए अपने प्यार और शादी की बात मां तक पहुंचा दी. मां ने इस रिश्ते को एक बार में ही खारिज कर दिया. इस की वजह यह थी कि लड़की उन की बिरादरी की नहीं थी. पढ़ीलिखी है. शहर की रहने वाली है. गांव के बारे में क्या जानती है  मां के खयाल से शायद पूजा घरपरिवार न संभाल सके. उन को ऐसी लड़की चाहिए थी, जो घर को संभाल सके. घर तो पूजा संभाल ही लेती, पर मां को कौन समझाए. पुराने खयालों वाली मां जो एक बार बोल देती हैं, वही राघव के लिए पत्थर की लकीर हो जाता था. समय का पहिया अपनी रफ्तार से चलता रहा. राघव के दोस्तों, पड़ोसियों सभी ने उसे सलाह दी कि वह पूजा को भगा ले जाए. मां कुछ दिन नाराज रहेंगी, पर समय के साथ सब ठीक हो जाएगा.

राघव आगेपीछे की सोचने लगा, ‘जैसे हर मां के सपने होते हैं, वैसे ही मेरी मां के भी सपने होंगे. वे सोचती होंगी कि उन के बेटे की शादी होगी. बैंडबाजा बजेगा, वे खुशी के मारे नाचेंगी…’

राघव ने भी सोच लिया था कि पूरे परिवार के सामने उस की शादी होगी. वह अपनी मां के सपनों को नहीं तोड़ सकता. एक दिन राघव ने पूजा को अपने मन की बात बता दी. वह सुन कर रोने लगी. रोया तो वह भी था.

कुछ सोच कर पूजा ने कहा, ‘‘आप की शादी किसी से भी हो, पर आप हमेशा खुश रहना. मां का दिल कभी मत तोड़ना. आप वहीं शादी कीजिएगा, जहां आप की मां चाहती हैं. जब तक हम दोनों में से किसी एक की शादी नहीं होती, तब तक हम दोस्ती के नाते बातें तो कर ही सकते हैं.’’ फिर पूजा छठ पूजा पर गांव नहीं आई. राघव भी उदास रहने लगा. उन दोनों ने क्याक्या सपने देखे थे कि शादी होगी, शादी के बाद घर पर ही वह कोई काम करेगा, पूजा बच्चों को ट्यूशन पढ़ाएगी और वह दुकान चलाएगा. कहते हैं न कि आदमी जो सोचता है, वह हमेशा पूरा होता है, बल्कि सच में सोचा हुआ काम कभी पूरा नहीं होता. जो राघव ने सोचा था, वह सब तो अधूरा ही रह गया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें