Young Generation में धैर्य की कमी, क्या है इसका समाधान

Young Generation :आज सूचना संचार खासतौर से इंटरनैट ने युवावर्ग को और सशक्त बना दिया है. युवा आज इस विकसित तकनीक के माध्यम से हर क्षेत्र में ब्लौग लिख कर, सोशल नैटवर्किंग साइट विकसित करने, फोटो शेयर कर के लाखों लोगों के साथ संपर्क बना कर एकदूसरे के नजदीक आ रहे हैं. मगर क्या वे वाकई नजदीक आ रहे हैं या फिर रिश्तों और जिम्मेदारियों से दूर जा रहे हैं? केवल वर्चुअल रिश्तों या सपनों की दुनिया में व्यस्त रहना और हकीकत के रिश्तों से कटना कहां की समझदारी है…

ज्यादातर युवाओं के दिलोदिमाग में आगे बढ़ने का या अपने सपनों को पूरा करने का जज्बा तो है मगर वह जनून नहीं. वे स्थिर दिमाग नहीं रखते. आज कुछ सोचते तो कल कहीं और भटक जाते हैं. इस से उन के बढ़ने की स्पीड सही दिशा में न होने के कारण वे खुद में ही उल?ा कर रह जाते हैं. सपने बड़े हैं और शरीर में ताकत भी है. बेधड़क कुछ करने को निकल भी पड़ते हैं मगर विचारों में ठहराव न होने की वजह से कहीं पहुंच नहीं पाते. दिशाहीन भटकते रह जाते हैं…

अमित अपनी नईनई बनी गर्लफ्रैंड के साथ होटल युवराज में न्यू ईयर पार्टी सैलिब्रेशन में व्यस्त था. नाचगाने और शोरशराबे के बीच वह ऋचा को बांहों में ले कर झूम रहा था. उस के दोस्त पार्टी को फुल ऐंजौय कर रहे थे. तभी उस के फोन में किसी का मैसेज आया. पहले तो उस ने मैसेज पढ़ कर इग्नोर कर दिया मगर फिर फोन बज उठा. उस ने फोन साइलैंट पर कर दिया मगर कौल्स आनी बंद नहीं हुईं. तब थोड़ा चिढ़ कर उस ने फोन उठाया मगर बात करते समय आवाज में मधुरता बनाए रखी और बोला, ‘‘यार सुरभि मैं अभी बिजी हूं कहीं. बस मुझे 1 घंटे का समय दो मैं तुम्हारे पास पहुंचता हूं.’’

‘‘ओके मैं वेट कर रही हूं होटल अशोका में दोस्तों के साथ. बी पंक्चुअल. केवल 1 घंटे का समय है तुम्हारे पास,’’ उस ने कहा.

अमित जानता था होटल युवराज से होटल अशोका पहुंचने में उसे बाइक से महज आधे घंटे का समय लगेगा. वह बाइक हवा की रफ्तार से चलाता है. खुद पर ज्यादा ही कौन्फिडैंस है उसे. इसलिए उस ने अपना ध्यान फिर से अपनी नई गर्लफ्रैंड ऋचा पर लगा दिया.

सुरभि उस की 2 साल पुरानी गर्लफ्रैंड है जिस के साथ अब अकसर उस की लड़ाई होने लगी है. वह खूबसूरत होने के साथसाथ मुंहफट भी है सो कुछ भी कह देती है. अमित अब उस से ब्रेकअप करने वाला था. ऋचा से मिलने के बाद उसे अपने फैसले को ले कर कोई कन्फ्यूजन नहीं रह गई थी. ऋचा रिच फैमिली से थी और बिंदास भी थी. अतुल को यही चाहिए था. आने वाले इस नए साल में वह सुरभि से औफिशली ब्रेकअप ले कर ऋचा के साथ मस्त समय बिताने वाला था. मगर अभी न्यू ईयर सैलिब्रेशन के समय सुरभि से कुछ कह कर मुसीबत मोल लेना नहीं चाहता था.

आधापौना घंटा ऐंजौय करने के बाद उस ने ऋचा और दोस्तों से विदा ली और सुरभि और उस के दोस्तों के पास जाने के लिए निकल गया. रास्ते में वह फुल स्पीड में बाइक दौड़ा रहा था. तभी सामने से उसी तरह तेज स्पीड गाड़ी के अचानक आने से उस का बैलेंस बिगड़ा और वह बाइक समेत गिर पड़ा. गनीमत रही कि उसे ज्यादा चोट नहीं आई थी. केवल घुटने छिल गए थे वरना 2 साल पहले इसी बाइक से ऐक्सीडैंट के बाद उसे 1 सप्ताह अस्पताल में रहना पड़ा था. चोट की परवाह किए बिना वह फिर से बाइक स्टार्ट करने लगा क्योंकि सुरभि समय की बहुत पाबंद है. अगर वह समय पर नहीं पहुंचा तो दोस्तों के आगे उस की इज्जत की धज्जियां उड़ा देगी.

बिंदास और रफतारभरी जिंदगी

यह एक नजारा था हमारे युवाओं के बिंदास स्वभाव और रफ्तारभरी जिंदगी का. युवा लड़के हों या लड़कियां वे न सिर्फ रफ्तार में चलते हैं बल्कि रिश्तों के बंधनों को भी रफ्तार से खोलते और बांधते हैं. वे किसी एक रिश्ते का साथ उम्रभर साथ निभाने को ले कर सीरियस नहीं रहते. उन्हें अपनी आजादी और मनमरजी की जिंदगी में किसी का दखल नहीं चाहिए.

वैसे युवाओं को भविष्य का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है. उन्हें परिवर्तन का वाहक माना जाता है. वे उत्साह और जीवनशक्ति से पूर्ण होते हैं. युवा शब्द जीवंतता, आनंद, उत्साह और जनून से जुड़ा होता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि युवा पीढ़ी के लोग जीवन से भरपूर होते हैं. वे नई चीजें सीखने के लिए उत्सुक हैं और कुछ नया करने के लिए हमेशा तैयार होते हैं.

पूर्व निर्धारित रीतिरिवाजों और परंपराओं के बंधन से आजाद होना चाहते हैं. वे हर बात पर तर्क करने की कोशिश करते हैं और जो अच्छा लगे वही करना चाहते हैं.

आज की जिंदगी में रफ्तार के माने

इंटरनैट और स्मार्टफोन के इस्तेमाल ने लोगों को रफ्तार दी है. मगर सोशल मीडिया का आदी भी बना दिया है. आज के इस डिजिटल जमाने में कहीं जाना है खासकर महिलाओं को अकेले निकलना है तो उबेर और ओला के जरीए मिनटों में कैब हासिल हो जाती है. किसी दिन खाना बनाने का मन नहीं और फटाफट कुछ खाना है तो जोमैटो और स्विगी जैसे कई फूड डिलिवरी ऐप हैं जो आप का काम मिनटों में कर देते हैं. कोई रैसिपी सीखनी है, मेकअप या क्लीनिंग करानी है तो भी ऐप मिनटों में महिलाओं की मदद के लिए हाजिर हैं. कोई जानकारी चाहिए, कोई रूट समझना है, नई ड्रैसेज लेनी हैं, घर के लिए शौपिंग करनी तो भी मोबाइल आप की मदद करता है और वह भी बहुत स्पीड से.

मगर इस का गलत प्रभाव भी पड़ता है. युवा पीढ़ी इस पर घंटों समय बरबाद कर रही है, दोस्तों और परिवार से जुड़ने, जानकारी हासिल करने और मनोरंजन करने के लिए बढ़चढ़ कर इसका इस्तेमाल हो रहा है. आज युवा देर रात तक स्मार्टफोन का यूज करते हैं जिस से उन का रूटीन सिस्टम गड़बड़ा गया है. लेट नाइट सोने से नींद पूरी नहीं होती है जो उन्हें चिड़चिड़ा बना देती है.

रात को देर तक फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने से आंखों में नींद के लिए जिम्मेदार मैलोटोनियम हारमोन रिलीज नहीं हो पाता है. मानसिक सेहत भी प्रभावित होती है. सोशल साइट्स पर दूसरों को खुश देख कर अपनी जिंदगी से शिकायत रहने लगती है.

युवा पीढ़ी में धैर्य की कमी

वर्तमान समय में युवाओं में धैर्य व सहनशीलता की कमी काफी ज्यादा देखने में आती है. चाहे रिश्तें हों या नौकरी हर काम को करने की जल्दी या बेसब्री आज की पीढ़ी के व्यवहार में आमतौर पर देखने में आती है. आज की पीढ़ी के ज्यादातर युवाओं को हर चीज, हर सफलता या हर नतीजा जल्दी चाहिए.

वहीं आज के दौर में सुविधा का हर सामान, हर प्रकार का पसंदीदा खाना और यहां तक कि डेटिंग के लिए साथी भी एप के माध्यम से आसानी से मिल जाते हैं यानी जीवन में सुविधा और औप्शन दोनों ही बढ़ गए हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धैर्य रखने की आदत व जरूरत तथा चीजों, लोगों व परिस्थितियों को ले कर सहनशीलता को कम करते हैं.

इस प्रवत्ति का असर न सिर्फ उन की सोच , उन के कार्य बल्कि उन के रिश्तों पर भी पड़ता है. जीवन में धैर्य रखना व सहनशीलता न केवल मानसिक शांति के लिए आवश्यक है बल्कि यह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता पाने का मार्ग भी प्रशस्त करती है. आज के दौर में सोशल मीडिया और डिजिटल दुनिया के चलते तत्काल प्रतिक्रिया की बढ़ती आदत, तकनीकी प्रगति के चलते एक क्लिक पर चीजों व रिश्तों की उपलब्धता जैसे बहुत से कारक हैं जो न सिर्फ युवा पीढ़ी बल्कि लगभग हर जैनरेशन के लोगों को प्रभावित कर रहे हैं.

आज दुनिया में 25 वर्ष से कम आयु के लगभग 3 बिलियन युवा हैं जिन में 1.3 बिलियन युवा 12 से 24 वर्ष के बीच हैं. भारत एक युवा देश है जहां 50त्न जनसंख्या युवा है.

यह कहां की समझदारी

आज सूचना संचार खासतौर से इंटरनैट ने युवावर्ग को और सशक्त बना दिया है. युवा आज इस विकसित तकनीक के माध्यम से हर क्षेत्र में ब्लौग लिख कर, सोशल नैटवर्किंग साइट विकसित करने, फोटो शेयर कर के लाखों लोगों के साथ संपर्क बना कर एकदूसरे के नजदीक आ रहे हैं. मगर क्या वे वाकई नजदीक आ रहे हैं या फिर रिश्तों और जिम्मेदारियों से दूर जा रहे हैं? केवल वर्चुअल रिश्तों या सपनों की दुनिया में व्यस्त रहना और हकीकत के रिश्तों से कटना कहां की समझदारी है?

आज के रिश्तों की हकीकत

आज युवाओं के रिश्ते में गहराई नहीं है. बहुत जल्दी रिश्ते बनाते हैं और फिर टूट भी जाते हैं. कभी सिचुएशनशिप, कभी लिव इन रिलेशनशिप और कभी नैनो शिप यानी माइक्रो रिलेशनशिप. ये ऐसे रोमांटिक रिश्ते हैं जो कनवीनिऐंट के हिसाब से बहुत ही कम समय के लिए होते हैं. सिचुएशनशिप एक ऐसा रिश्ता है जो न तो पूरी तरह से दोस्ती है और न ही सीरियस प्यार. इसे एक टैंपरेरी सिचुएशन के तौर पर देखा जा सकता है जहां दोनों इंसान एकदूसरे की तरफ अट्रैक्ट तो होते हैं लेकिन किसी भी तरह के कमिटमैंट से बचते हैं.

सिचुएशनशिप में अकसर हैजिटेशन और अनसर्टेनिटी का माहौल होता है. इस में शामिल लोग एकदूसरे के साथ अच्छा वक्त बिताते हैं, अपनी इमोशन शेयर करते हैं लेकिन किसी तरह का नाम नहीं देना चाहते. यह स्थिति कई बार इंसान को टैंशन या डिप्रैशन में डाल सकती है क्योंकि एकतरफा प्यार या उम्मीदें रिश्ते की असलियत से मेल नहीं खा सकती हैं. माइक्रो रिलेशन और भी कम समय के लिए होने वाला रिश्ता है जिस में कोई कमिटमैंट नहीं. लिव इन रिलेशनशिप भी ऐसा ही कुछ है. इस में अट्रैक्शन होता है तो कपल साथ रहने लगते हैं. मगर अपने पार्टनर का साथ उम्रभर निभाने से कतराते हैं. जब तक अच्छा लगा साथ रहे और जब मन किया टाटा बायबाय.

यही वजह है कि युवाओं की जिंदगी में रिश्ते बहुत स्पीड में आतेजाते रहते हैं. हर दूसरे दिन ब्रेकअप और फिर बहुत स्पीड से मूव औन कर के नए रिलेशन में आ जाना आज के युवाओं की फितरत बनता जा रहा है. इस का नतीजा यह होता है कि वे डिप्रैशन, सुरक्षा और कौन्फिडैंस कमी एवं किसी पर विश्वास न कर पाने की मानसिक स्थिति में रहते हैं. उन के अंदर एक गहरा प्यार और विश्वास नहीं होता. जिंदगी की असली खुशियों से महरूम ही रह जाते हैं.

प्यार और ब्रेकअप आम हैं

आजकल युवाओं में फटाफट प्यार और फटाफट ब्रेकअप आम हैं क्योंकि इस जैनरेशन में सबकुछ फास्ट हो रहा है. थोड़ाबहुत विचारों का टकराव हुआ नहीं कि ब्रेकअप. लेकिन इस के बाद का दर्द बहुत लोग सहन नहीं कर पाते हैं और डिप्रैशन में चले जाते हैं या गलत कदम उठा लेते हैं.

रिश्तों में गति नहीं बल्कि ठहराव जरूरी है. हमेशा के लिए एकदूसरे का बन जाने में जो संतुष्टि है वह इन अनसर्टेन स्पीडी रिश्तों में बिलकुल नहीं. शामियाने की तरह उन की जिंदगी में सबकुछ परफैक्ट मिल जाता है. शानदार जिंदगी के सपने सच नजर आते हैं. दिल में उमंगों का तूफान मचा होता है. कोई कमी नहीं रहती. मगर बहुत जल्दी सारा मामला फिर से निबट जाता है और खाली सपाट होल सामने आ जाता है.

जौब में अपेक्षाएं

आज के दौर में युवा लड़का हो या लड़की अपनी जौब से भी बहुत ऊंची उम्मीदें रखते हैं. उन्हें जौब की शुरुआत में ही तरक्की और ज्यादा वेतन की चाहत होती है. जब उन की उम्मीदें पूरी नहीं होतीं तो वे जल्द ही निराश हो जाते हैं और जल्दीजल्दी जौब बदलने लगते हैं. जौब के मामलों में युवाओं में यह रफ्तार एक तरह से अच्छी भी है क्योंकि तभी वह एक जौब छोड़ कर दूसरी जौब को पकड़ते हैं और उन की सैलरी में इंक्रीमैंट होता है.

मगर यह आप की जरूरत पर है. आप को देखना होगा कि जिस तेजी से आप जौब बदल रहे हैं और नई जौब ले रहे हैं क्या आप को उस तरह से जौब सैटिस्फैक्शन हासिल हो रही है? अगर किसी जगह आप को जौब सैटिस्फैक्शन हासिल हो रही है और सैलरी कुछ कम है तो चेंज करने के बजाय कुछ दिन वहां ठहरिए. आप को महसूस होगा कि आप यही चाहते थे अपनी लाइफ में. रफ्तार शुरू में जरूरी है पर एक समय आता है जब रफ्तार की वजह ठहराव ज्यादा अहमियत रखता है.

युवा और तेज रफ्तार गाडि़यां

2021 में सड़क यातायात दुर्घटनाएं भारत में मृत्यु दर का 13वां प्रमुख कारण थीं. खराब सड़क डिजाइन, लचर पुलिसिया व्यवस्था, प्रशिक्षण की कमी, नाकाफी सुरक्षा इंतजामात और हादसे के वक्त इलाज की सुविधा के अभाव की वजह से भारत की सड़कें दुनिया में सब से ज्यादा जानलेवा हैं.

भारतीय राजमार्गों पर हर साल 1 लाख के करीब लोग हादसों में मारे जाते हैं यानी रोज 274 या हर घंटे 11 मौतें. राष्ट्रीय राजमार्ग हालांकि देशभर में बिछी 63 लाख किलोमीटर लंबी सड़कों का बमुश्किल 2.1 फीसद हैं पर वे सड़क हादसों में होने वाली 36 फीसद मौतों और औसतन 4 लाख 35 हजार में से एकतिहाई गंभीर घायलों के लिए जिम्मेदार हैं. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2021 और 2022 में सब से ज्यादा सड़क हादसों में जान गंवाने वालों की उम्र 25-35 साल को लोगों की रही. करीब 25 फीसदी लोगों इसी उम्र के सड़क हादसों में अपनी जान से हाथ धो बैठे.

चाहे सड़क हो, रोजगार हो, अस्पताल हो या युवाओं के आगे बढ़ने का कोई औप्शन हो, हर जगह भीड़ है लेकिन भीड़ को मैनेज करने का सही तरीका नहीं है.

सामाजिक रीतिरिवाजों की जकड़न

जब बात सामाजिक परिपाटी की आती है तो जाहिर है रीतिरिवाजों और कुरीतियों के बंधन हमारे सामाजिक ढांचे को अपने शिकंजे में जकड़े हुए हैं. इस वजह से रिश्तों में समस्याएं आती हैं. हमारे युवा रिश्ते बनाने में स्पीड रखते हैं. तेजी से किसी के साथ जुड़ते हैं या बंधन को तोड़ देते हैं. कहीं न कहीं इस की वजह उन में समझ की कमी है. साथ ही अकसर समाज उन के रिश्तों को स्वीकार नहीं करता और जाति, धर्म, ऊंचनीच के भेदभाव के घेरे में बंधा रहता है. ऐसे में युवाओं को जो सही लगता है.

जल्दबाजी में किया काम कभीकभी गलत भी हो जाता है और वे उस रिश्ते को तेजी से तोड़ कर आगे भी बढ़ जाते हैं. मगर जो हमारे पुराने जमाने के लोग हैं वे युवाओं के फैसलों को स्वीकार नहीं कर पाते. कई बार गांव में या छोटे शहरों में इसी वजह से ओनर किलिंग की घटनाएं देखी जाती हैं. जगहजगह युवाओं को प्यार का नतीजा उन की मौत के रूप में दिया जाता है. इसी कारण युवा अब अपने फैसले खुद लेना चाहते हैं. इस के लिए वे परिवार से कट जाते हैं और अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने की कोशिश करते हैं. इस में कभी वे सक्सैसफुल होते हैं कभी नहीं भी होते हैं.

क्या है समाधान

जरूरी है फैसले सोचसमझ कर लीजिए. जो काम कर रहे हैं तेजी से कीजिए लेकिन उस काम और उस फैसले पर टिके रहिए. तुरंत काम को बदलना, तुरंत अपने फैसले को बदलना, बारबार अपनी जौब या फिर अपने जीवनसाथी को बदलना सही नहीं है. बदलाव से बेहतर है ठहराव. गति अच्छी है पर वह गति समझ के साथ आए तभी बेहतर है.

परिवार में बचपन से ही ऐसा माहौल रखा जाए जहां बच्चे मेहनत, काम या रिश्तों में स्थिरता, किसी भी कार्य के लिए मेहनत और धैर्य की जरूरत तथा आपसी सामंजस्य की जरूरत को सम?ों तथा उन्हें अपने व्यवहार व सोच में शामिल करें.

स्टैप बाई स्टैप मेहनत के फायदों को समझें व कार्य चाहे जो भी हो उस में मनमाफिक नतीजों के लिए शौर्टकट नहीं बल्कि सही रास्ते को चुनें. यह अनुभव व कार्य को ले कर समझ दोनों को बढ़ाएगा.

रिश्ते हों या काम, कन्फ्यूजन भरी स्थिति में तत्काल निर्णय लेने या स्थिति को ले कर कमैंट करने से बचें. किसी भी अवांछित परिस्थिति में किसी भी प्रकार का निर्णय लेने से पहले परिस्थिति को एनालाइज जरूर करें तथा सोचसमझ कर व हर निर्णय के सकारात्मक व नकारात्मक पहलुओं को जानने के बाद ही निर्णय लें.

बेहतर है कि स्पीड उतनी ही हो जितनी पर आप काबू रख सकें. अचानक कुछ बाधा रास्ते में आए तो सावधानी से रास्ता बदल सकें या ब्रेक लगा सकें. जिंदगी बेहतर बनाने के लिए यकीनन स्पीड चाहिए मगर उतनी ही जितनी आप संभाल सकें वरना सिर्फ स्पीड रह जाएगी और आप खुद नहीं रहेंगे. इसलिए नए साल के पहले दिन खुद से वादा करें कि आप जिंदगी में शौर्टकट नहीं अपनाएंगे. जिंदगी में रफ्तार के साथसाथ अपनी समझ और सावधानी पर भी फोकस करेंगे.

ऐक्टिव और हैप्पी रखती है Knitting Bunai, अन्य फायदों को जान कर हैरान रह जाएंगे आप…

Knitting Bunai : क्या आप जानते हैं कि आप बुनाई से अपना तनाव भी दूर कर सकते हैं? वर्षों पुरानी चली आ रही कढ़ाईबुनाई आप का तनाव भी दूर कर सकती है. आप ने अकसर देखा होगा कि पुराने जमाने में महिलाएं अपना खाली समय बुनाई कर के व्यतीत करती थीं. घर के काम निबटा कर वे कढ़ाईबुनाई में लग जाती थीं.

आइए, बुनाई करने के फायदों पर एक नजर डालते हैं:

रिलैक्स: बुनाई करने से हमारा दिमाग रिलैक्स करता है. बुनाई करते वक्त हम सीधाउल्टा फंदा बुनती हैं और यही प्रक्रिया दोहराते हैं और दोहराव की प्रक्रिया हमारे दिमाग को रिलैक्स करती है. जब हम रिलैक्स हो जाती हैं तो हम वैसा ही महसूस करती हैं जैसाकि मैडिटेशन या योगा से.

दवा: आप को जान कर हैरानी होगी कि बुनाई करना एक दवा का काम भी करती है. इस से हमारी कितनी बीमारियां ठीक होती हैं. बारबार एक ही तरीके को दोहराने से जब हमारा दिमाग रिलैक्स हो जाता है तो हमारा हार्ट रेट भी कम हो जाता है और परिणामस्वरूप हमारा ब्लड प्रैशर भी कम हो जाता है और स्ट्रैस हारमोन कोर्टिसोल भी घट जाता है.

प्रोडक्टिव: बुनाई की प्रक्रिया आप को प्रोडक्टिव बना देती है. जब आप लग कर फंदे बुनती हैं तो कुछ न कुछ तो जरूर बना लेती हैं और फिर अपने हाथों से बनाई चीज आप के काम भी आती है. आप न सिर्फ इस से स्वैटर वगैरह बना सकती हैं बल्कि घर को सजाने के लिए गुलदस्ता, फूल आदि भी बना सकती हैं. आजकल तो बहुत सी चीजें बुनाई कर के बनाने लगे हैं. फिर वे चाहे बच्चों के कपड़े हों या फिर घर का कोई सामान.

उकसाना: बुनाई करने से हमारा दिमाग ऐक्टिवेट होता है और जब हम फंदे बुनती हैं तो दिमाग का पूरा ध्यान उधर ही होता है और यह हमें उकसाता जिस से हमारा फोकस बढ़ता है और हमारी याददाश्त बढ़ती है.

अकेलेपन का साथी: आप जब भी अकेलापन महसूस करें अपनी सिलाइयां और ऊन ले कर बुनना शुरू कर दें. आप देखेंगी कि कुछ समय बाद ही आप की सारी बोरियत दूर हो जाएगी और आप अच्छा महसूस करने लगेंगी. बुनाई करने वाली महिलाएं दोस्ती करने में माहिर होती हैं. जहां भी किसी को बुनते देखती हैं झट से जा कर नमूना देखने लगती हैं और फिर बातों का सिलसिला शुरू हो जाता है. एक साथी मिल जाता है जिस से आप अपनी बुनाई की कला बांटने लगती हैं.

आगे बढ़ना: जब आप लगातार बुनती हैं तो न सिर्फ आप की स्पीड बढ़ती है, आप कुछ नया भी बनाती हैं. आप अपनी बुनकर सहेलियों से बहुत कुछ सीखतीसिखाती हैं, जिस से यह एक कला बन जाती है.

कमाई का साधन: खाली समय का किया गया सदुपयोग आप की कमाई का जरीया भी बन सकता है. अपने परिवार के लिए बुनकर न सिर्फ अपने पैसे बचाती हैं अपितु उन्हें बेच कर पैसे भी कमा सकती हैं. ग्लोबल वार्मिंग के तहत ठंड ज्यादा पड़ने लगी है और हाथ के बने स्वैटरों, दस्तानों, टोपियों ने अब फिर अलमारियों में जगह बना ली है. मशीन से बने स्वैटर में वह गरमाहट नहीं होती जो हाथ के बुने स्वैटरों में होती है. तो इस सर्दी बाजार से स्वैटर लाने से अच्छा आप घर पर ही स्वैटर बुनें, ख़ुद भी पहनें और औरों को भी पहनाएं.

बचत: बाजार के स्वैटर महंगे होते हैं. आप जब अपने हाथों से बुनती हैं तो कम पैसों में बढि़या स्वैटर तैयार कर लेती हैं. आप की कला न सिर्फ आप के पैसे बचाती है बल्कि आप को एक आत्मविश्वास भी दिलाती है कि आप कुछ कर सकती हैं वरना घर के काम तो कभी खत्म ही नहीं होते. समय निकाल कर कुछ बुनें. यकीन मानिए आप बहुत अच्छा महसूस करेंगी.

सोशल नैटवर्क: आजकल सोशल नैटवर्क पर जुड़े रहना एक बीमारी की तरह हो गया है जिस से चाह कर भी हम निकल नहीं पा रहे. बुनाई आप को इस आदत से बाहर निकाल सकती है. हाल ही में एक खबर आई थी कि आस्ट्रेलिया में अपने छोटे बच्चों की सोशल नैटवर्क की आदत छुड़ाने के लिए क्रोशिया को एक अच्छा माध्यम बताया है और वे इस का उपयोग भी करेंगे ताकि बच्चे नैट पर अपना कीमती समय बरबाद न करें और उन की शारीरिक व मानसिक ग्रोथ भलीभांति हो सके.

बुनकर साथी: आप चाहें तो आसपास की महिलाओं को एकत्रित कर के एक ग्रुप भी बना सकती हैं जिस में आप अपनी डिजाइंस एकदूसरे से बांट सकती हैं और आपस में ही एकदूसरे से सीख भी और सिखा भी सकती हैं.

तो आज ही निटिंग को अपने खाली समय का हिस्सा बनाएं. यकीन मानें आप नुकसान में नहीं रहेंगी बल्कि बहुत कुछ पा लेंगी.

Online Hindi Story 2025 : रहने के लिए एक मकान 

Online Hindi Story 2025 : मैं अपने गांव लौटने लगा तो मेरे आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे. मेरे दोहेते अपने घर के बालकनी से प्रेम से हाथ हिला रहे थे,”बाय ग्रैंड पा, सी यू नाना…”

धीरेधीरे मैं बस स्टैंड की ओर चल दिया.

मैं मन ही मन सोचने लगा,’बस मिले तो 5 घंटे में मैं अपने गांव पहुंच जाऊंगा. जातेजाते बहुत अंधेरा हो जाएगा, फिर बस स्टैंड पर उतर कर वहां एक होटल है. उस में कुछ खापी कर औटो से अपने घर चला जाऊंगा.’

2 साल पहले मेरी पत्नी बीमार हो कर गुजर गई. तब से मैं अकेला ही हूं. मेरे गांव का मकान पुस्तैनी है. उस की छत टिन की है. पहले घासपूस की छत थी.

जब एक बार बारिश में बहुत परेशानी हुई तब टिन डलवा दिया था. मेरा एक भाई था वह भी कुछ साल पहले ही चल बसा था. अब इस घर में आखिरी पीढ़ी का रहने वाला सिर्फ मैं ही हूं.

मेरी इकलौती बेटी बड़े शहर में है अत: वह यहां नहीं आएगी. जब बारिश होती है तो छत से यहांवहां पानी टपकता है. एक बार इतनी बारिश हुई कि दूर स्थित एक बांध टूट
गया और कमर भर पानी मकान के अंदर तक जा घुसा था. कई बार सोचा घर की मरम्मत करा दूं पर इस के लिए भी एकाध लाख रूपए तो चाहिए ही.

मैं सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हुआ हूं अत: मुझे पैंशन मिलती है. उम्र के साथ दवा भी खाने होते हैं मगर फिर भी इस खर्च के बाद थोड़ाबहुत बच जरूर जाता है.

2 महीने में एक बार मैं शुक्रवार को दोहेतो को देखने की उत्सुकता में बेटी के घर जा कर 2-3 दिन ठहर कर खुशीखुशी दिन बिता कर मैं वापस आ जाता हूं. इस से ज्यादा ठहरना मुझे ठीक नहीं लगता.

मेरे दामाद अपना प्रेम या विरोध कुछ भी नहीं दिखाते. मैं घर में प्रवेश करता तो एक मुसकान छोड़ अपने कमरे में चले जाते.

दामाद शादी के समय बिल्डिंग बनाने वाली बड़ी कंपनी में सीनियर सुपरवाइजर थे. जो मकान बने वे बिक न सके. बैंक से उधार लिए रुपए को न चुकाने के कारण कंपनी बंद हो गई थी. तब से वह रियल ऐस्टेट का ब्रोकर बन गया.

“कुदरत की मरजी से किसी तरह सब ठीकठाक चल रहा है पापा,” ऐसा मेरी बेटी कहती.

पति की नौकरी जब चली गई थी तब मेरी बेटी दोपहर के समय टीवी सीरियल न देख कर सिलाई मशीन से अड़ोसपड़ोस के बच्चों व महिलाओं के कपड़े सिल कर कुछ पैसे बना लेती.

“पापा, आप ने कहा था ना कि बीए कर लिया है तो अब बेकार मत बैठो, कुछ सीखना चाहिए. तब मैं सिलाई सीखी. वह अब मेरे काम आ रही है पापा,” भावविभोर हो कर वह कहती.

पिछली बार जब मैं गया था तो दोहेतो ने जिद्द की, “नानाजी, आप हमारे साथ ही रहो. क्यों जाते हो यहां से?”

बच्चे जब यह कह रहे थे तब मैं ने अपने दामाद के चेहरे को निहारा. उस में कोई बदलाव नहीं.

मेरी बेटी रेनू ही आंखों में आंसू ला कर कहती,”पापा… बच्चों का कहना सही है. अम्मां के जाने के बाद आप अकेले रहते हैं जो ठीक नहीं. आप बीमार भी रहते हो.”

वह कहती,”पापा, हमारे मन में आप के लिए जगह है पर घर में जगह की कमी है. आप को एक कमरा देना हो तो 3 रूम का घर चाहिए. रियल ऐस्टेट के बिजनैस में अभी मंदी है. तकलीफ का जीवन है. इस घर में बहुत दिनों से रहते आए हैं अत: इस का किराया भी कम है. अभी इस को खाली करें तो दोगुना किराया देने के लिए लोग तैयार हैं. क्या करें? इस के अलावा मेरा सिरदर्द जबतब आ कर परेशान करता है.”

मैं बेटी को समझाता,”बेटा रो मत. यह सब कुछ मुझे पता है. अब गांव में भी क्या है? मुझे तुम्हारे साथ ही रहना है ऐसा भी नहीं. पड़ोस में एक कमरे का घर मिल जाए तो भी मैं रह लूंगा. मैं अभी ₹21 हजार पैंशन पाता हूं. ₹6-7 हजार भी किराया दे कर रह लूंगा. अकेला तो हूं. तुम्हारे पड़ोस में रहूं तो मुझे बहुत हिम्मत रहेगी,” यह कह कर मैं ने बेटी का चेहरा देखा.

“अरे, जाओ पापा… अब सिंगलरूम कौन बनाता है? सब 2-3 कमरों का बनाते हैं. मिलें तो भी किराया ₹10 हजार. यह सब हो नहीं सकता पापा,” कह कर बेटी माथे को सहलाने लग जाती.

अगली बार जब मैं बेटी के घर गया, तब एक दिन सुबह सैर के लिए निकला. अगली 2 गलियों को पार कर चलते समय एक नई कई मंजिल मकान को मैं ने देखा जो कुछ ही दिनों में पूरा होने की शक्ल में था.

उस में एक बैनर लगा था,’सिंगल बैडरूम का फ्लैट किराए पर उपलब्ध है.’

मुझे प्रसन्नता हुई और उत्सुकता भी. वहां एक बैंच पर सिक्योरिटी गार्ड बैठा था. मैं ने उस से जा कर पूछताछ की.

“दादाजी, उसे सिंगल बैडरूम बोलते हैं. मतलब एक ही हौल में सब कुछ होता है. 1-2 से ज्यादा नहीं रह सकते. आप कितने लोग हैं?” वह बोला.

“मैं बस अकेला ही हूं. मेरी बेटी पड़ोस में ही रहती है. इसीलिए यहां लेना चाहता हूं.”

“अच्छा फिर तो ठीक है. घर को देखिएगा…” कह कर अंदर जा कर चाबी के गुच्छों के साथ बाहर आया.

दूसरे माले में 4 फ्लैट थे.

“इन चारों के एक ही मालिक हैं. 3 फ्लैटों के पहले ही ऐडवांस दे चुके हैं.”

उस ने दरवाजे को खोला. लगभग 250 फुट चौड़ा और लंबा एक हौल था. उस में एक तरफ खाना बनाने के लिए प्लेटफौर्म आधी दीवार खींची थी. दूसरी तरफ छोटा सा बाथरूम बड़ा अच्छा व कंपैक्ट था.

“किराया कितना है?” मैं ने पूछा.

“मुझे तो कहना नहीं चाहिए फिर भी ₹ 7 हजार होगा क्योंकि इसी रेट में दूसरे फ्लैट भी दिए हैं. ऐडवांस ₹50 हजार है. रखरखाव के लिए ₹500-600 से ज्यादा नहीं होगा. मतलब सबकुछ मिला कर ₹7-8 हजार के अंदर हो जाएगा दादाजी,” वह बोला.

“ठीक है भैया, इसे मुझे दिला दो. मालिक से कब बात करें?”

“अभी बात कर लो. एक फोन लगा कर बुलाता हूं. आप बैठिए,” वह बोला.”

वहां एक प्लास्टिक की कुरसी थी. मैं उस पर बैठ कर इंतजार करने लगा.

सिक्योरिटी गार्ड ने बताया,“वे खाना खा रही हैं. 10-15 मिनट में पहुंच जाएंगी. तब तक आप यह अखबार पढ़िए.”

मालिक से बात कर किराया थोड़ा कम करने के बारे में पूछ लूंगा. फिर एक औटो पकड़ कर घर जा कर लड़की को भी ला कर दिखा कर तय कर लेंगे. बेटी इस मकान को देख कर आश्चर्य करेगी.

ऐडवांस के बारे में कोई बड़ी समस्या नहीं है. मैं पास के एक बैंक में हर महीने जो पैसे जमा कराता हूं उस में ₹30 हजार के करीब तो होंगे ही.बाकी रुपयों के लिए पैंशन वाले बैंक से उधार ले लूंगा. फिर एक दिन शिफ्ट हो जाऊंगा.

यहां आने के बाद एक आदमी का खाना और चाय का क्या खर्चा होगा?

‘आप खाना बनाओगे क्या पापा,’ ऐसा डांट कर बेटी प्यार से खाना तो भिजवा ही देगी.

खाना बनाने का काम भी बच जाएगा. पास में लाइब्रैरी तो होगा ही. वहां जा कर दिन कट जाएगा.

सामने की तरफ थोड़ी दूर पर एक छोटा सा टी स्टौल था. मैं ने सोचा 1 कप चाय पी कर हो आते हैं. तब तक मकानमालकिन भी आ ही जाएगी.

वहां कौफी की खुशबू आ रही थी | मैं ने सोचा कि कौफी पी लूं. यहां रहने आ जाऊंगा तो नाश्ते और चाय की कोई फिकर नहीं रहेगी.

पैसे दे कर वापस आया तो सिक्योरिटी गार्ड बोला,“घर के औनर आ गए हैं. वे ऊपर गए हैं. आप वहीं चले जाइए.”

मैं धीरेधीरे सीढ़ियां चढ़ने लगा. ऊपर पहुंच कर औनर को नमस्कार बोला.

पीठ दिखा कर खड़ी वह महिला धीरे से मुड़ी तो वह मेरी बेटी रेणू थी.

लेखक- एस. भाग्यम शर्मा

Story In Hindi : दो पाटों के बीच

Story In Hindi : मैं लगभग दौड़तीभागती सड़क पार कर औफिस में दाखिल हुई और आधे खुले लिफ्ट के दरवाजे से अंदर घुस कर 5वें नंबर बटन को दबाया. लिफ्ट में और कोई नहीं था. नीचे की मंजिल से 5वीं मंजिल तक लिफ्ट में जाते समय मैं अकेले में खूब रोई.

औफिस के बाथरूम और कभीकभी लिफ्ट के अकेलेपन में ही मैं ने रोने की जगह को खोजा है. इस के अलावा रोने के लिए मुझे एकांत समय और जगह नहीं मिलता.

5वीं मंजिल पर पहुंच कर देखा तो औफिस के लोग काम में लगे हुए थे. मेरे ऊपर की अधिकारी कल्पना मैम ने मुझे खा जाने वाली निगाहों से देखा और कहने लगीं ,“हमेशा की तरह लेट?”

“सौरी कल्पना मैम,” बोल कर मैं अपनी जगह पर जा कर पर्स को रख तुरंत बाथरूम गई ताकि और थोड़ी देर रो कर चेहरे को पोंछ सकूं.

सुबह उठते समय ही मीनू का शरीर गरम था. मीनू ने अपनी 2 साल की उम्र में सिर्फ 2 ही जगह देखी हैं. एक घर, दूसरी बच्चों के डौक्टर सीतारामन का क्लीनिक. क्लीनिक के हरे पेंट हुए दरवाजे को वह पहचानती है. उस के पास जाते ही मीनू जो रोना शुरू करती तो पूरे 1 घंटे तक डाक्टर का इंतजार करते समय वह लगातार रोती रहती है.

डाक्टर जब उसे जांचते तो हाथों से उछलती और जोरजोर से रोती और वापस बाहर आने के बाद ही चुप होती.

डाक्टर ने बताया था कि बच्ची को थोड़ा सा प्राइमेरी कौंप्लैक्स है. इसलिए महीने में 1-2 बार उसे खांसी, जुखाम या बुखार आ जाता है.

आज भी मैं औटो पकङ कर डाक्टर के पास जा कर कर आई और सासूमां को मीनू को देने वाली दवाओं के बारे में बताया. फिर जल्दी से बाथरूम में घुस कर 2 मग पानी डाल, साड़ी पहन, चेहरे पर क्रीम लगा और जल्दीजल्दी नाश्ता निबटा कर रवाना होते समय एक नजर बच्ची को देखा.

तेज बुखार में बच्ची का चेहरा लाल था. मुझे साड़ी पहनते देख वह फिर से रोना शुरू कर दी. उस के हिसाब से मम्मी नाइटी पहने रहेगी तो घर में रहेगी, साड़ी पहनेगी तो बाहर जाएगी.

“मम्मी मत जाओ,” कह कर वह मेरे पैरों में लिपट गई. उसे किसी तरह मना कर औफिस जाने के लिए बस पकड़ी.

“क्यों, बच्ची की तबीयत ठीक नहीं है क्या?” ऐना बोली.

लंच के समय में घर फोन कर बच्ची के बारे में पूछा तो बोला अभी कुछ ठीक है. थोङी तसल्ली के साथ मैं ने खाना शुरू किया.

“ऐना, रोजाना औफिस जाने के लिए साड़ी पहनते समय जब ‘मत जाओ मम्मी’ कह कर मीनू रोती है तो उस की वह आवाज मेरे कानों में हमेशा आती रहती है.”

“दीपा, तुम्हारे पति तो अच्छी नौकरी में हैं. अब तुम चुपचाप घर में रहो. तुम को शांति नहीं है. बच्ची परेशान होती है. तुम्हारा पति इस के लिए राजी नहीं होगा क्या?” ऐना के आवाज में सच और स्नेह का भाव था.

“वह आदमी नाटककार है ऐना. नौकरी छोड़ने की बात करना शुरू करो तो बस यही कहता है कि तुम्हारा फैसला है तुम कुछ भी करो, मैं इस के बीच में नहीं आऊंगा. तुम्हें खुश रहना चाहिए बस. मैं इस सौफ्टवेयर कंपनी में हूं. कब नौकरी चली जाएगी नहीं कह सकते. बाजार ठीकठाक रहा तो सब ठीक, मंदी में कंपनी में कब तालाबंदी हो जाए कह नहीं सकते. तुम्हारी सैलरी से थोड़ी राहत मिलती है.”

“इस बार किसी से भी सलाह मत लो, अभी 2 दिन में बोनस मिलेगा. चुपचाप रुपयों को ले कर तुरंत इस्तीफा दे दो?” ऐना बोली.

मैं ने अपने कंप्यूटर पर ऐक्सैल शीट में जो भी रिकौर्ड भरना था भरा. सीधे व आड़े दोनों तरफ से टोटल सब सही है या नहीं मैं ने मिलान किया. फिर रिपोर्ट पर लेटर तैयार किया. सैक्शन चीफ कल्पना को और एक कल्पना के उच्च अधिकारी को एक प्रति भेज दिया.

इस बार मैं बिना रोए, बिना जल्दबाजी किए कार्यालय से बाहर आ गई. मुझे मेरा फैसला ठीक लगा.

घर आ कर देखा मीनू सो रही थी. सुबह जो पहना था वही कपड़े मीनू ने पहने थे.

‘बच्ची की तबीयत ठीक नहीं तो क्या उस के कपड़े भी नहीं बदलने चाहिए?’ मन ही मन सासूमां पर गुस्सा होते हुए भी मैं उन से बोली “बच्ची ने आप को परेशान तो नहीं किया अम्मां?”

वे बोलीं, “पहले ही से तेरी बेटी बदमाशियों की पुतली है. तबीयत ठीक न हो तो पूछो नहीं?”

मैं उन की बातों पर ध्यान न दे कर मीनू के पीठ को सहलाने लगी.

जब मैं छोटी थी तब मेरी अम्मां मेरे और मेरे छोटे भाई के साथ कितनी देर रहती थीं? हमारी अम्मां को साहित्य से बहुत प्रेम था.

हम कहते,”अम्मां बादल गरज रहे हैं, बिजली चमक रही है. डर लग रहा है.”

वे कहतीं कि वीर रस के कई कवि हैं उन की कविताएं बोलो जबकि दूसरे बच्चों के मांएं हनुमानजी को याद करने को कहतीं.

मेरी मां झांसी की रानी और मीरा की मिलीजुली अवतार थीं. वे अंधविश्वासी भी नहीं थीं. मेरा भाई रोता तो मेरी मां सीता बन जातीं और कहतीं कि चलो हम लवकुश बन कर राम से लड़ाई करें.

चांदनी रात में छत पर हमारी मम्मी मीठा चावल बना अपने हाथों से हम दोनों बच्चों को बिना चम्मच के खिलातीं जिस में केशर, इलायची और घी की वह खुशबू अभी तक ऐसा लगता है जैसे हाथों में आ रही हो.

जब कभी भी कहीं कोई उत्सव होता तो हमारी मम्मी हम दोनों बच्चों को रिकशा में साथ ले जातीं. हम दोनों भाईबहन उस रिकशे में एक सीट के लिए लङ बैठते थे.

हमेशा अम्मां हम दोनों को तेल से मालिश कर के नहलातीं. रात के समय चांदनी में हम अड़ोसपड़ोस के बच्चों के साथ मिल कर बरामदे में लुकाछिपी खेलते.

सोते समय नींद नहीं आ रही कह कर हम रोते तो वे हमें लोरी सुनातीं और तरहतरह के लोकगीत सुना कर सुला देतीं.

‘जब मेरी अम्मां हमारे साथ इस तरह रहीं तो रहीं तो क्या मुझे मीनू के साथ ऐसे नहीं रहना चाहिए क्या?’ यह सोच कर मैं एक योजना के साथ उठी. बच्ची को खाना खिलाने के लिए जगाया.

“मीनू, मम्मी अब औफिस नहीं जाएगी?” मैं धीरे से बोली.

“अब मम्मी तुम हमेशा ही नाइटी पहनोगी?” मीनू तुतला कर बोली.

अगले ही दिन औफिस जाते ही इस्तीफा तैयार कर के ऐना को दिखाया.

“आज तुम्हारे चेहरे पर नईनई शादी हुई लड़की जैसे रौनक दिख रही है,” ऐना बोली.

“अभी मत दे. बोनस का चेक दे दें तब देना. इस्तीफा दे दोगी तो फिर बोनस नहीं देंगे. जोजो लेना है सब को वसूल कर के फिर दे देना इस पत्र को डियर,” वह बोली.

दोपहर को 3 बजे कल्पना मैम मुझे एक अलग कमरे में ले कर गईं और बोलीं,”यह कंपनी तुम्हारी योग्यता का सम्मान करती है. इस कठिन समय में तुम्हारा योगदान बहुत ही सराहनीय रहा. सब को ठीक से समझ कर उन लोगों की योग्यता के अनुसार कंपनी ने तुम्हें भी प्रोमोशन दिया है. यह लो प्रोमोशन लेटर.”

उस लेटर को देख मैं ने एक बार फिर पढ़ा. ऐसा ही 2 प्रोमोशन और हो जाएं तो बस फिर वह भी कल्पना जैसे हो सकती है, सैक्शन की हैड.

डाक्टर ने बताया था,”मीनू को जो प्राइमेरी कौंप्लैक्स है उस के लिए 9 महीने लगातार दवा देने से वह ठीक हो जाएगी.”

मैं सोचने लगी,’3 महीने हो गए. 6 महीने ही तो बचे हैं. अगले साल स्कूल में भरती करने तक थोड़ी परेशानी सह ले तो सब ठीक हो जाएगा. अब तो सैलरी भी बढ़ गई है. सासूमां की मदद के लिए एक कामवाली को रख दें तो सब ठीक हो जाएगा. मेरे पति जो कहते हैं कि सौफ्टवेयर कंपनी का भविष्य का कुछ पता नहीं, तो फायदा इसी में है कि अभी कमाएं तो ही कल मीनू के भविष्य के लिए अच्छे दिन होंगे…’

मैं अचानक से वर्तमान में लौटी और बोली,”धन्यवाद कल्पना मैम. मैं ने इस की कल्पना नहीं की थी.”

वे बोलीं,”दीपा, कल तुम ने जो बढ़िया रिपोर्ट तैयार किया उसे और विस्तृत करना होगा. आज ही बौस को भेजना है. हो जाएगा?”

“हां ठीक है कल्पना मैम,” मैं बोली.

मैं ने घर पर फोन कर दिया कि लेट हो जाऊंगी. जो इस्तीफा मैं ने लिखा था उसे टुकड़ेटुकड़े कर डस्टबिन में डाल आई थी.

लेखक- एस. भाग्यम शर्मा

Sachi Kahani : दगाबाज

Sachi Kahani : सरन अपने बेटे विनय की दुलहन आयुषा का परिचय घर के बुजुर्गों और मेहमानों से करवा रही थीं. बरात को लौटे लगभग 2 घंटे बीत चुके थे. आयुषा सब के पैर छूती, बुजुर्ग उसे आशीर्वाद देते व आशीर्वाद स्वरूप कुछ भेंट देते. आयुषा भेंट लेती और आगे बढ़ जाती.

जीत का परिचय करवाते हुए सरन ने जब आयुषा से कहा, ‘‘ये मोहना के पति और तुम्हारे ननदोई हैं,’’ तो एकाएक उस की निगाह जीत पर उठ गई. जीत से निगाह मिलते ही उस के शरीर में झुरझुरी सी छूट गई. जीत उस का पहला प्यार था, लेकिन अब मोहना का पति. जिंदगी कभी उसे ऐसा खेल भी खिलाएगी, आयुषा सोचती ही रह गई. अंतर्द्वंद्व के भंवर में फंसी वह निश्चय नहीं कर पाई कि जीत के पैर छुए या नहीं? अपने मन के भावों को छिपाने का प्रयास करते हुए उस ने बड़े संकोच से उस के पैरों की तरफ अपने हाथ बढ़ाए.

जीत भी उसे अपने साले की पत्नी के रूप में देख कर हैरान था. वह भी नहीं चाहता था कि आयुषा उस के पैर छुए. आयुषा के हाथ अपने पैरों की ओर बढ़ते देख कर वह पीछे खिसक गया. खिसकते हुए उस ने आयुषा के समक्ष अपने हाथ जोड़ दिए. प्रत्युत्तर में आयुषा ने भी वही किया. दोनों के बीच उत्पन्न एक अनचाही स्थिति सहज ही टल गई.

जीत को देखते ही आयुषा के मन का चैन लुट गया था. जीवन में कुछ पल ऐसे भी होते हैं, जिन्हें भुलाने को जी चाहता है. वे पल यदि जीवित रहें तो ताजे घाव सा दर्द देते हैं. ठीक वही दर्द वह इस समय महसूस कर रही थी. सुहागशय्या पर अकेली बैठी वह अतीत में खो गई.

मामा की लड़की रंजना की शादी में पहली बार उस का साक्षात्कार जीत से हुआ था. मामा दिल्ली में रहते हैं. पेशे से वकील हैं. गली सीताराम में पुश्तैनी हवेली के मालिक हैं. तीनमंजिला हवेली की निचली मंजिल में बड़े हौल से सटे 4 कमरे हैं. मुख्य द्वार से सटे एक बड़े कमरे में उन का औफिस चलता है. बाकी कमरे खाली पड़े रहते हैं. बीच की मंजिल में 12 कमरे हैं, जिन में उन का 4 प्राणियों का परिवार रहता है. नानी, वे स्वयं, मामी और रंजना. बेटा प्रमोद भोपाल में सर्विस में है. ऊपरी मंजिल में 6 कमरे हैं, लेकिन सभी खाली हैं.

मैं अपनी मम्मी के साथ शादी अटैंड करने आई थी. पापा 2 दिन बाद आने वाले थे. मेहमानों को रिसीव करने के लिए मामा, मामी और उन के परिवार के कुछ सदस्य ड्योढ़ी पर खड़े थे. हवेली में घुसते हुए अचानक मेरे पैर लड़खड़ा गए थे. इस से पहले कि मैं गिरती, मामी के पास खड़े जीत ने मुझे संभाल लिया था. वह पहला क्षण था जब मेरी निगाहें जीत से टकराई थीं. प्रेम बरसात में उफनती नदियों की तरह पानी बड़े वेग से आता है, उस क्षण भी यही हुआ था. हम दोनों ने उस वेग का एहसास किया था.

उस के बाद शादी के दौरान ऐसा कोई क्षण नहीं आया जब हमारी नजरें एकदूसरे से हटी हों. जीत सा सुंदर और आकर्षक जवान मैं ने इस से पहले कभी नहीं देखा था. मैं मानूं या न मानूं पर सत्य कभी नहीं बदला जा सकता. कोई जब हमारी कल्पना से मिलनेजुलने लगता है, तो हम उसे चाहने लगते हैं. उस की समीपता पाने की कोशिश में लग जाते हैं. उस समय मेरा भी यही हाल था. मैं जीत की समीपता हर कीमत पर पा लेना चाहती थी.

मामा द्वारा रंजना की शादी हवेली से करने का फैसला हमारे लिए फायदेमंद सिद्ध हुआ था. इतनी विशाल हवेली में किसी को पुकार कर बुला लेना या ढूंढ़ पाना दूभर था. रंजना की सगाई वाले दिन सारी गहमागहमी निचली और पहली मंजिल तक ही सीमित थी. जीत ने सीढि़यां चढ़ते हुए जब मुझे आंख के इशारे से अपने पास बुलाया तो न जाने क्यों चाह कर भी मैं अपने कदमों को रोक नहीं पाई थी.

सम्मोहन में बंधी सब की नजरों से बचतीबचाती मैं भी सीढि़यों पर उस के पीछेपीछे चढ़ती चली गई थी. थोड़े समय में ही हम ऊपरी मंजिल की सीढि़यों पर थे. एकाएक उस ने मुझे अपनी बांहों में जकड़ कर अपने तपते होंठों को मेरे होंठों पर रख दिया था. अपने शरीर पर उस के हाथों का दबाव बढ़ते देख कर मैं ने न चाहते हुए भी उस से कहा था, ‘छोड़ो मुझे, कोई ऊपर आ गया तो?’

पर वह कहां सुनने वाला था और मैं भी कहां उस के बंधन से मुक्त होना चाह रही थी. मैं ने अपनी बांहों का दबाव उस के शरीर पर बढ़ा दिया था. न जाने कितनी देर हम दोनों उसी स्थिति में आनंदित होते रहे थे. लौट कर सारी रात मुझे नींद नहीं आई थी. जीत की बांहों का बंधन और तपते होंठों का चुंबन मेरे मनमस्तिष्क से हटाए भी नहीं हटा था.

अगली रात ऊपरी मंजिल का एक कमरा हमारे शारीरिक संगम का गवाह बना था. जीत और मैं एकदूसरे में समाते चले गए थे. दो शरीरों की दूरियां कैसे कम होती जाती हैं, यह मैं ने उसी रात जाना था. कितने सुखमय क्षण थे वे मेरी जवानी के, सिर्फ मैं ही जान सकती हूं. उन क्षणों ने मेरी जिंदगी ही बदल डाली थी.

शादी के बाद हम बिछुड़े जरूर थे पर इंटरनैटहमारे मिलन का एक माध्यम बना रहा था. हम घंटों चैट करते थे. एकदूसरे की समीपता पाने को तरसते रहते थे. हम निश्चय कर चुके थे कि हम शीघ्र ही शादी के बंधन में बंध जाएंगे.

तभी एक दिन मैं ने पापा को मम्मी से कहते हुए सुना था, ‘आयुषा के लिए मैं ने एक सुयोग्य वर तलाश लिया है. लड़का सफल व्यवसायी है. पिता का अलग व्यापार है. लड़के के पिता का कहना है कि वे अपनी लड़की की शादी पहले करना चाहते हैं. उस की शादी होते ही वे बेटे की शादी कर देंगे. तब तक हमारी आयुषा भी एमए कर चुकी होगी.’

मम्मी तो पापा की बात सुन कर प्रसन्न हुई थीं, पर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई थी. उसी शाम जीत से चैट करते हुए मैं ने उसे साफ शब्दों में कहा था, ‘जीत या तो तुम यहां आ कर पापा से मेरा हाथ मांग लो या फिर मैं पापा को स्थिति स्पष्ट कर के उन्हें तुम्हारे डैडी से मिलने के लिए भेज देती हूं.’

जीत ने कहा था, ‘तुम चिंता मत करो. यह सम अब तुम्हारी नहीं बल्कि मेरी है. मैं वादा करता हूं, तुम्हें मुझ से कोई नहीं छीन पाएगा. तुम सिर्फ मेरी हो. मुझे सिर्फ थोड़ा सा समय दो.’ उस ने मुझे आश्वस्त किया था.

उस के बाद जीत ने चैट करना कम कर दिया था. फिर धीरेधीरे मेरे और जीत के बीच दूरियों की खाई इतनी बढ़ती चली गई कि भरी नहीं जा सकी. जीत ने मुझ से अपना संपर्क ही तोड़ लिया. बरबस मुझे पापा की इच्छा के समक्ष झुकना पड़ा था.

सुहागकक्ष का दरवाजा बंद होने की आवाज के साथ मेरी तंद्रा टूट गई. विनय सुहागशय्या पर आ कर बैठ गए, ‘‘परेशान हो,’’ उन्होंने प्रश्न किया.

अपने मन के भावों को छिपाते हुए मैं ने सहज होने की कोशिश की, ‘‘नहीं तो,’’ मैं ने उत्तर दिया.

‘‘आयुष,’’ मुझे अपनी बांहों में भरते हुए विनय बोले, ‘‘मैं इस पल को समझता हूं. तुम्हें घर वालों की याद आ रही होगी, पर एक बात मेरी भी सच मानो कि मैं तुम्हारी जिंदगी में इतनी खुशियां भर दूंगा कि बीती जिंदगी की हर याद मिट जाएगी.’’

मेरे मन के कोने में हमसफर की एक छवि अंकित थी. विनय का व्यक्तित्व ठीक उस छवि से मिलता था. इसलिए मैं विनय को पा कर धन्य हो गई थी. ऐसे में हर पल मेरा मन यह कहने लगा था कि विनय जैसे सीधेसच्चे इंसान से कुछ भी छिपाना ठीक नहीं होगा. संभव है भविष्य में मेरे और जीत के रिश्तों का पता चलने पर विनय इन्हें किस प्रकार लें? तब पता नहीं हमारी विवाहित जिंदगी का क्या हश्र हो? मैं उस समय कोई भी कुठाराघात नहीं सह पाऊंगी. मुझे आत्मीयों की प्रताड़ना अधिक कष्टकर प्रतीत होती है, पर जबजब मैं ने विनय को सत्य बताने का साहस किया. मेरा अपना मन मुझे ही दगा दे गया. बात जबान पर नहीं आई. दिन बीतते गए. यहां तक कि हम महीने भर का हनीमून ट्रिप कर के यूरोप से लौट भी आए

हनीमून के दौरान विनय ने मेरी उदासी को कई बार नोटिस किया था. उदासी का कारण भी जानना चाहा, पर मैं द्वंद्व में फंसी विनय को कुछ भी नहीं बता पाई. उसे अपने प्यार में उलझा कर मैं ने हर बार बातों का रुख ही बदल दिया था.

हनीमून से लौटते ही विनय 2 महीने के बिजनैस टूर पर फ्रांस और जरमनी चले गए. सासूमां ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया पर वे नहीं रुके. जीत और मोहना को उन्होंने जरूर रोक लिया.

उन्होंने जीत से कहा, ‘‘मोहना को तो मैं अभी महीनेदोमहीने और आप के पास नहीं भेजूंगी. आयुषा घर में नई है. उस का मन बहलाने के लिए कोई तो उस का हमउम्र चाहिए. वैसे आप भी यहीं से अपना बिजनैस संभाल सकें, तो मुझे ज्यादा खुशी होगी. कम से कमआयुषा को 2 हमउम्र साथी तो मिल जाएंगे.’’

जीत थोड़ी नानुकर के बाद रुक गया. मैं समझ चुकी थी कि उस के रुकने का आशय क्या है? वह मुझे फिर से पाने का प्रयास करना चाहता है. मैं तभी से सतर्क हो गई थी. उस ने पहले कुछ दिन तो मुझ से दूरियां बनाए रखीं. फिर एक दिन जब सासूमां मोहना के साथ उस के लिए कपड़े और आभूषण खरीदने बाजार गईं तो जीत मेरे कमरे में चला आया. वह अतिप्रसन्न था. ठीक उस शिकारी की तरह जिस के हाथों एक बड़ा सा शिकार आ गया हो.

मेरे समीप आते हुए उस ने कहा, ‘‘हाय, आयुषा. व्हाट ए सरप्राइज? वी आर बैक अगेन. अब हम फिर से एक हो सकते हैं. कम औन बेबी,’’ जीत ने कहते हुए अपने हाथ मुझे बांहों में भरने के लिए बढ़ा दिए.

मेरे सामने अब मेरा संसार था. प्यारा सा पति था. उस का परिवार था. जीत के शब्द मुझे पीड़ा देने लगे. उस के दुस्साहस पर मुझे क्रोध आने लगा. न जाने उस ने मुझे क्या समझ लिया था? अपनी बपौती या बिकाऊ स्त्री? मैं उस पर चिंघाड़ पड़ी, ‘‘जीत, यहां से चले जाओ वरना,’’ गुस्से में मेरे शब्द ही टूट गए.

‘‘वरना क्या?’’

‘‘मैं तुम्हारी करतूत का भंडाफोड़ कर दूंगी.’’

‘‘उस से मेरा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, लेकिन तुम कहीं की नहीं रहोगी. आयुषा, तुम्हारा भला अब सिर्फ इसी में है कि मैं जैसा कहूं तुम करती जाओ.’’

‘‘यह कभी नहीं होगा,’’ क्रोध में मैं ने मेज पर रखा हुआ वास उठा लिया.

मेरे क्रोध की पराकाष्ठा का अंदाजा लगाते हुए उस ने मेरे समक्ष कुछ फोटो पटक दिए और बोला, ‘‘ये मेरे और तुम्हारे कुछ फोटो हैं, जो तुम्हारे विवाहित जीवन को नष्ट करने के लिए काफी हैं. यदि अपना विवाह बचाना चाहती हो तो कल शाम 7 बजे होटल सनराइज में चली आना. मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ जीत तेजी से मुझ पर एक विजयी मुसकान उछालते हुए कमरे से बाहर निकल गया.

अब मेरा क्रोध पस्त हो गया था. उस के जाते ही मैं फूटफूट कर रो पड़ी. मुझे अपना विवाहित जीवन तारतार होता हुआ लगा. जीत ने मेरी सारी खुशियां छीन ली थीं. बेशुमार आंसू दे डाले थे. मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूं? कैसे जीत से छुटकारा पाऊं? मेरी एक जरा सी नादानी ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था, पर मैं ने यह निश्चय अवश्य कर लिया था कि यह मेरी लड़ाई है, मुझे ही लड़नी है. मैं किसी और को बीच में नहीं लाऊंगी. कैसे लड़ूंगी? यही सोचसोच कर सारी रात मेरी आंखों से अविरल अश्रुधारा बहती रही थी.

सवेरे उठी तो लग रहा था कि तनाव से दिमाग किसी भी समय फट जाएगा. विपरीत परिस्थितियों में कई बार इंसान विचलित हो जाता है और घबरा कर कुछ उलटासीधा कर बैठता है. मुझे यही डर था कि मैं कहीं कुछ गलत न कर बैठूं. दिन यों ही गुजर गया. शाम के 5 बजते ही जीत घर से निकल गया. जाते हुए मुझे देख कर मुसकरा रहा था. अब तक मैं भी यह निश्चय कर चुकी थी कि आज जीत से मेरी आरपार की लड़ाई होगी. अंजाम चाहे जो भी हो.

मैं जब होटल पहुंची तो जीत बड़ी बेताबी से मेरे आने का इंतजार कर रहा था. मुझे देखते ही वह बड़ी अक्कड़ से बोला, ‘‘हाय डियर, आखिर जीता मैं ही, अगर सीधी तरह मेरी बात मान लेती तो मैं तुम्हें परेशान क्यों करता?’’

‘‘जीत,’’ मैं ने उस की बात अनसुनी करते हुए कहा, ‘‘मैं बड़ी मुश्किल से अपनों की इज्जत दांव पर लगा कर तुम्हारी इच्छा पूरी करने आई हूं. मेरे पास ज्यादा समय नहीं है. आओ और जैसे चाहो मेरे शरीर को नोच डालो. मैं उफ तक नहीं करूंगी,’’ कहते हुए मैं ने अपनी साड़ीब्लाउज उतारना शुरू कर दिया, उस के बाद पेटीकोट भी.

अचानक मेरे इस व्यवहार को देख कर जीत चकित रह गया. उस ने इस स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी. विचारों के बवंडर ने संभवत: उसे विवेकशून्य कर दिया. आयुषा से क्या कहे, कुछ नहीं सूझा. घबराते हुए उस ने मुझ से पूछा, ‘‘यह तुम्हारे हाथ में क्या है?’’

‘‘जहर की शीशी,’’ मैं ने उत्तर दिया, ‘‘तुम्हें तृप्त कर के इसे पी लूंगी. सारा किस्सा एक बार में खत्म हो जाएगा.’’

‘‘फिर मेरा क्या होगा?’’

‘‘चाहो तो तुम भी इसे पी सकते हो. हमारा प्यार भी अमर हो जाएगा और हम भी.’’

तभी मैं ने देखा उसे अपनी आशाओं पर पानी फिरता हुआ नजर आया था. उस के चेहरे से पसीना चूने लगा था. फिर उस के पैर मुझ से कुछ दूर हुए और दूर होतेहोते कमरे से बाहर हो गए.

सवेरे जब नींद टूटी तो मैं ने देखा कि जीत कहीं बाहर जा रहा था.

सासूमां और मोहना उस के पास दरवाजे पर खड़ी थीं. मुझ पर नजर पड़ते ही मोहना ने मुझे बताया कि आज जीत की एक जरूरी मीटिंग है, उसे 10 बजे की फ्लाइट पकड़नी है. सच क्या था. वह केवल जीत जानता था या मैं. जीत ने जाते समय मुझे देखा तक नहीं, पर मैं उसे जाते हुए देख कर मंदमंद मुसकरा रही थी. मैं अब विनय के प्रति पूरी तरह समर्पित थी.

Sad Story 2025 : पति की बेवफाई

Sad Story 2025 : पति की बेवफाईशादी का जब वह निमंत्रण आया था, पूरे घर में हंगामा मच गया था. मां बोली थीं, ‘‘अब यह नया खेल खेला है कम्बख्त ने. पता नहीं क्या गुल खिलाने जा रही है. जरूर इस के पीछे कोई राज है वरना 2 बेटों के रहते कोई इतना बड़ा बेटा गोद लेता है? अब उस की शादी रचाने जा रही है.’’

बड़े भैया राकेश बोले थे, ‘‘आप की और वीरेश की सहमति होगी तभी तो उस ने बाप की जगह वीरेश का नाम छपवाया है.’’

मां ने प्रतिवाद किया, ‘‘अरे कैसी सहमति? तुम्हारे पापा की तेरहवीं पर बताया था कि राहुल को बेटे जैसा मानने लगी है. हम तो उसे ड्राइवर समझते थे. बरामदे में ही चाय भिजवा दिया करते थे.’’

‘‘क्या बात करती हैं?’’ राकेश बोले, ‘‘राहुल हर वक्त साथसाथ रहता है नीरू के. सारा बिजनैस देखता है. बैंक अकाउंट तक उस के नाम है. आप ने ही तो बताया था.’’

‘‘अरे कहती थी कि भागदौड़ के लिए ही रखा है उसे. अकेली औरत क्याक्या करे. अब क्या पता था कि बाकायदा बेटा बना लेगी उसे.’’

‘‘तो नुकसान क्या है? आप समझ लीजिए 3 पोते हैं आप के,’’ बड़े भैया ने बात को हलका करना चाहा, ‘‘वीरेश आए तो उस से पूछिएगा.’’

महत्त्वाकांक्षी नीरू को घर से गए

8 साल हो गए थे. 14 और 10 साल के सुधांशु और हिमांशु को छोड़ कर जब उसे जाना पड़ा था तब घर का वातावरण काफी विषाक्त हो चुका था. लगने लगा था कि कभी भी कुछ अवांछनीय घट सकता है.

वीरेश शुरू से ही मस्तमौला किस्म का इंसान रहा है. घूमनाफिरना, सजनासंवरना, नाचनागाना यही शौक थे बचपन से. घर का लाड़ला, मां का दुलारा. मस्तीमस्ती में एमए कर के गाजियाबाद में ही नौकरी भी ढूंढ़ ली. जबकि बड़ा बेटा राकेश सरकारी नौकरी में गाजियाबाद से बाहर ही रहा.

इस से भी मां का लाड़ वीरेश पर कुछ ज्यादा बरसा. पैसे की कमी नहीं थी. पिताजी की पैंशन और पैतृक मकान के 2 हिस्सों का किराया नियमित आमदनी थी. वीरेश धीरेधीरे लापरवाह होने लगा. एक नौकरी छूटी, दूसरी ढूंढ़ी. कभी इस सिलसिले में घर भी बैठना पड़ता. पिताजी भुनभुनाते, ‘कहीं बाहर  क्यों नहीं एप्लाई करते हो?’

मां फौरन बोलतीं, ‘एक बेटा तो  बाहर ही रहता है. यह यहीं रहेगा. नौकरियों की कमी है क्या?’

पिताजी चिल्लाते, ‘घरघुस्सा होता जा रहा है. जाहिल भी हो गया है. 9 बजे से पहले सो कर नहीं उठता. 3-4 कप चाय पीता है, तब इस की सुबह होती है. 11 बजे नौकरी पर जाएगा तो कौन रखेगा इसे? कितनी अच्छीअच्छी नौकरियां छोड़ दीं. मैं कब तक खिलाऊंगा इसे?’

पर वीरेश पर असर नहीं होता. मां बचाव करतीं, ‘शादी हो जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा.’

‘कौन देगा इस निखट्टू को अपनी लड़की?’ पिताजी हथियार डाल देते.

लेकिन सुंदर चेहरेमोहरे वाला निखट्टू वीरेश प्रेम विवाह कर पत्नी ले आया. नीरू सुंदर थी. शादी के बाद वीरेश और लाटसाहब हो गया. अब शाम को कभीकभार डिं्रक्स भी लेने लगा. शुरूशुरू में तो नीरू को अच्छा लगा पर जब वीरेश घूमनेफिरने, पिक्चर वगैरह के लिए भी मां से रुपए मांगता तो उसे बुरा लगता. वीरेश नौकरी करता पर 6 महीने या साल भर से ज्यादा नहीं. कभी निकाल दिया जाता, कभी खुद छोड़ आता. कभी नौकरी जाने के गम में, कभी नौकरी मिलने की खुशी में, कभी किसी की सालगिरह पर, मतलब यह कि बेमतलब के बहानों से शराब पीना बढ़ता गया. 5 साल में 2 बेटे भी हो गए.

बड़े भैया होलीदीवाली आते भी तो मेहमान की तरह. कभी वीरेश को समझाने की कोशिश करते तो बीच में फौरन मां आ जातीं, ‘तुम सभी उस बेचारे के पीछे क्यों पड़े रहते हो? अब उस का समय ही खराब है तो कोई क्या करे? कोई ढंग की नौकरी मिलती ही नहीं उसे. तेरी तरह सरकारी नौकरी में होता तो यह सब क्यों सुनना पड़ता उसे?’

‘क्यों, सरकारी नौकरी में काम नहीं करना पड़ता है क्या? मेरा हर 3 साल में ट्रांसफर होता है. कितनी परेशानी होती है. मकान ढूंढ़ो, बच्चों का नए स्कूल में ऐडमिशन करवाओ. बदलता परिवेश, बदलते लोग. आसान नहीं है सरकारी नौकरी. इन का क्या है? ठाट से घर में रहते हैं. खिलाने को आप लोग हैं. जब बैठेबैठे खाने को मिले तो कोई क्यों करे नौकरी?’

‘बसबस, रहने दे. जब देखो तब जलीकटी सुनाता रहता है. कोई अच्छी सी नौकरी ढूंढ़ इस के लिए.’

‘अच्छी सी माने? जहां काम न हो? हुकम बजाने के लिए नौकर हो? घूमने के लिए गाड़ी हो? शाम के लिए दारू हो?’

‘देखा मां,’ अब वीरेश बोला, ‘इसीलिए मैं इन के साथ नहीं बैठता हूं.

4 दिन के लिए आते हैं और चिल्लाते रहते हैं.’

वीरेश गुस्से से बाहर चला जाता. मां बड़बड़ातीं. पिताजी कभी राकेश का साथ देते तो कभी मां का.

बच्चे बड़े हो रहे थे. खर्चे बढ़ रहे थे पर वीरेश में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. पिताजी अकसर बड़बड़ाते. खासकर जब राकेश आते छुट्टियों में, ‘मैं पैंशन से 2-2 परिवार कैसे पालूं? तुम्हीं कुछ भेजा करो. बच्चे स्कूल जाने लगे हैं. कम से कम उन की फीस तो दे ही सकते हो.’

राकेश झुंझलाते, ‘मेरे खर्चे नहीं हैं क्या? तनख्वाह से मेरा भी बस गुजारा ही हो रहा है. आप जानते हैं कि

कोई ऊपरी आमदनी भी नहीं है मेरी. चलाने दीजिए इस को अपनी गृहस्थी किराए से या कैसे भी. अपनेआप

ठीक हो जाएगा. आप लोग चलिए मेरे साथ इलाहाबाद.’

‘बेटे, भूखा मरते तू देख सकता है भाई को. मांबाप नहीं देख सकते. हम तो करेंगे जितना हो सकेगा. तुझे मदद नहीं करनी, मत कर. किराए से बेचारे वीरेश का खर्च कैसे चलेगा?’ मां आ जातीं बीच में.

‘बेचारा, बेचारा, क्यों है बेचारा वह? लूलालंगड़ा है? दिमाग से कमजोर है? क्या कमी है उस में? अच्छीखासी नौकरियां छोड़ीं उस ने. किस वजह से? अपनी काहिली की वजह से न? गाजियाबाद छोड़ कर कहीं बाहर नहीं जाएंगे, क्यों? घर बैठे हलुआपरांठा मिले तो कोई काम क्यों करे? आप लोगों ने ही बिगाड़ा है उसे. कभी सख्ती से नहीं कहा कि पालो अपना परिवार,’ राकेश के सब्र का बांध टूट गया.

‘कहा है बेटा, कई बार कहा,’ अब पिताजी ने सफाई दी, ‘पहले कहता था कि मैं कोशिश करता हूं पर अच्छी नौकरी नहीं मिलती. अब कहता है कि घर छोड़ दूंगा, साधु बन जाऊंगा, आत्महत्या कर लूंगा. एक बार चला भी गया था. 2 दिन तक नहीं आया. तुम्हारी मां का रोरो कर बुरा हाल हो गया था.’

‘इसे क्या? यह तो आराम से बाहर नौकरी करता है. वह तो मेरी ममता थी जो उसे खींच लाई वरना वह साधु बन गया था,’ मां ने कहा.

‘मां की ममता नहीं थी, भूख के थपेड़े थे. पैसे खत्म हो गए होंगे लाटसाहब के,’ राकेश चिल्लाए.

‘ठीक है, यह बहस, अब बंद करो,’ हमेशा की तरह मां बड़बड़ाती हुई चली गईं.

वीरेश और नीरू के झगड़े बढ़ने लगे. अकसर मारपीट तक नौबत आ जाती. बच्चों के कोमल मन पर असर पड़ने लगा था.

बड़ा बेटा सुधांशु गुमसुम हो गया था. छोटा बेटा हिमांशु जिद्दी और मनमौजी. नीरू ने खुद काम करना शुरू किया. कभी छोटी नौकरी की, कभी घर में अचारमुरब्बे बना कर बेचे. इस के लिए उसे घर से बाहर निकलना पड़ता तब भी वीरेश चिल्लाता, ‘देखो, कैसे नखरे दिखा रही है  कामकाजी बन कर, जैसे घर में भूखी मरती है. अरे, इस का मन ही नहीं लगता घर में. बाहर 10 लोगों से मिलती है, रंगरेलियां मनाती है. मां, जरा पूछो इस से, कितनी कमाई कर के लाती है?’

नीरू जवाब देती तो झगड़ा और बढ़ता. मां अकसर वीरेश का पक्ष लेतीं और बहस मारपीट तक पहुंच जाती. बच्चे सहमे हुए होमवर्क करने का नाटक करने लगते. यह झगड़ा तब जरूर होता जब वीरेश नशे में होता.

तभी वीरेश को एक अच्छी एडवरटाइजिंग कंपनी में स्थानीय प्रतिनिधि की नौकरी मिल गई. लगा अब सब ठीक हो जाएगा. वीरेश को अपनी कंपनी के लिए विज्ञापन लाने का काम करना था. पर उस के आलसी स्वभाव के कारण उसे विज्ञापन नहीं मिल पाते थे.

नीरू ने वीरेश की मदद की और विज्ञापन मिलने लगे. अब होता यह कि जाना वीरेश को होता पर वह नीरू को भेज देता. कभी नीरू को विज्ञापनों के सिलसिले में कंपनी के जीएम से सीधे बात करनी पड़ जाती. नतीजा यह हुआ कि कंपनी ने कुछ ही दिनों में वीरेश की जगह नीरू को प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया.

इस पर घर में महाभारत हो गया और नीरू ने नियुक्ति अस्वीकार कर दी, पर कंपनी ने वीरेश को फिर नियुक्त नहीं किया. मां ने वीरेश की नौकरी जाने का सारा दोष नीरू के सिर मढ़ दिया और वीरेश फिर शराब में डूब गया.

बच्चों के बढ़ते खर्चे और वीरेश के तानों से तंग आ कर नीरू ने एक बार फिर प्रयास किया और खुद ही भागदौड़ कर सरकार की महिला स्वरोजगार योजना के तहत बैंक से लोन लिया और फल संरक्षण केंद्र खोल लिया. पर उस के लिए भी उसे घर से बाहर जाना पड़ता.

कुछ दिनों बाद यह काम भी बंद हो गया. बैंक से ऋण वसूली का नोटिस आया. वीरेश ने जवाब भिजवाया कि यहां कोई नीरू नहीं रहती. पर बैंक के रिकौर्ड्स में नीरू के पति वीरेश और पारिवारिक मकान के सत्यापन प्रमाण थे. इसलिए रिकवरी नोटिस ले कर बैंक अधिकारी पुलिस के साथ पहुंच गए.

वीरेश के हाथपांव फूल गए और वह नीरू को उस के मायके छोड़ आया. पिताजी ने सरकारी नौकरी का वास्ता दिखा कर समय मांगा और बैंक की ऋण अदायगी की. इस में नीरू के और कुछ मां के भी जेवर बिक गए. राकेश ने भी काफी रुपए भिजवाए. मां ने ऐलान कर दिया कि वह कम्बख्त अब इस घर में दोबारा नहीं आएगी और भला वीरेश को इस में क्या ऐतराज हो सकता था?

बाद में नीरू ने एक पत्र राकेश को भी लिखा. उस का सारा आक्रोश मां के ऊपर था पर वीरेश को भी कभी माफ न करने की कसम खाई थी. इतना ही नहीं, उस ने आरोप लगाया था कि वीरेश ने एडवरटाइजिंग कंपनी में अपनी स्टैनो से अवैध संबंध भी बना लिए थे. सुबूत के तौर पर एक पत्र भी संलग्न था जो किसी किरन ने वीरेश को लिखा था.

राकेश सन्न रह गए थे. ऐसी स्थिति में मां को या वीरेश को समझाना व्यर्थ था. उन्होंने नीरू को ही समझाया कि इस स्थिति में समझौते से अच्छा है अपने पैरों पर खड़ा होना. बाद में पता चला कि नीरू ने दिल्ली जा कर पहले ऐडवरटाइजिंग एजेंसी में काम किया. फिर प्रौपर्टी डीलर बन गई. फ्लैट लिया, गाड़ी ली. घर तो कभी नहीं आई पर बच्चों से उन के स्कूलों में मिलती रही. जन्मदिन पर, त्योहारों पर बच्चों को तोहफे भी भिजवाती रही.

साल दर साल बीतते गए. मांपिताजी ने कोशिश की कि तलाक दिलवा कर वीरेश की दूसरी शादी करवाएं पर नीरू का संदेश आया कि भूल कर भी ऐसा नहीं करिएगा वरना शारीरिक प्रताड़ना के बाद घर से निकालने का केस बन जाएगा. वीरेश संन्यासी सा हो गया.

बढ़ती उम्र और शराब ने एक अजीब दयनीयता पोत दी थी उस के चेहरे पर. न किसी से मिलना न कहीं जाना. बस, शाम को किसी बहाने से मां से पैसे ले कर निकल जाता और देर रात झूमताझामता आता और सो जाता. तरस आने लगा उसे देख कर.

करीब 8 साल बाद नीरू घर आई जब पिताजी की मृत्यु हुई. शोक के अवसर पर किसी ने उस से कुछ नहीं कहा. तभी पहली बार सब ने राहुल को देखा था. 25-26 वर्ष का हट्टाकट्टा लड़का, चुपचाप बरामदे में बैठा था. सब ने उसे ड्राइवर ही समझा था. संवेदना व्यक्त कर के नीरू चली गई पर उस के बाद वह अकसर आने लगी. मां और वीरेश के व्यवहार से लगा कि उन्होंने उसे अपनाने का मन बना लिया.

एक बार जिद कर के अपनी कार से वह उन्हें नोएडा भी ले गई जहां उस ने शानदार फ्लैट लिया था. सुधांशु को नौकरी दिलवाने में मदद की और हिमांशु को इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला दिलवाया. वीरेश अकसर नोएडा जाने लगा. गाड़ी पटरी पर आ ही रही थी कि यह धमाका हो गया.

राहुल की शादी का कार्ड आया. मां की जगह नीरू, पिता की जगह वीरेश और दादी की जगह मां का नाम छपा था.

सुगबुगाहट थमी भी नहीं थी कि एक शाम नीरू आई, मिठाई के डब्बे और उपहारों के साथ. राहुल की सगाई में उस की ससुराल से मिले थे उपहार. कार्ड के बारे में पूछने पर नीरू ने कहा कि उस ने वीरेश को बता दिया था कि उस ने बाकायदा राहुल को गोद लिया है और वीरेश ने कोई आपत्ति नहीं की थी.

अब नीरू उस की मां हो गई तो वीरेश स्वत: ही पिता हो गया और मां दादी. वीरेश ने ही उस का बचाव किया, ‘अपने बेटों से इतने साल अलग रही तो राहुल को देख कर मातृत्व जागा और जब बेटा बना ही लिया तो शादी भी करनी थी.’ सब ने इस पर मौन सहमति दे दी.

राहुल की शादी में सब सम्मिलित हुए. सुधांशु और हिमांशु भी भैया की शादी में खूब नाचे. मां तो गद्गद थीं. नीरू ने उन्हें कई कीमती साडि़यों के साथ हीरे के टौप्स दिए थे. राहुल की ससुराल से भी दादीमां के लिए साड़ी मिली थी. शादी के बाद नीरू बहू को ले कर जब गाजियाबाद गई तब मां ने मुंहदिखाई में साड़ी दी बहू को. इसी हंसीखुशी के माहौल में मां ने नीरू से कहा कि अब वह भी लौट आए और अपनी गृहस्थी संभाले.

नीरू 1 मिनट तो चुप रही फिर जैसे फट पड़ी, ‘‘आप अपने लड़के की फिक्र कीजिए मांजी. मेरी गृहस्थी तो उजड़ी भी और बस भी गई. उजड़ी तब थी जब मुझे धोखे से मायके पहुंचा दिया गया था कि मामला ठंडा होने पर ले आएंगे. और ये शायद खुद सौत लाने की फिराक में थे. सब ने इन्हीं का साथ दिया था तब. जैसे सारी गलती मेरी ही हो. मेरा कसूर यही था न कि मैं आप के बेटे को उस के पैरों पर खड़ा देखना चाहती थी. तब उजड़ी थी मेरी गृहस्थी और बसी तब जब मैं अपने पैरों पर खड़ी हो गई. हां, तब मुझे भी गैर मर्दों का सहारा लेना पड़ा था. पर अब मुझे किसी सहारे की जरूरत नहीं.

‘‘पता नहीं मेरे बेटे मेरे रह पाते या नहीं इसलिए एक बेटा अपनाया. अब मैं भी सासू मां हूं. मेरा भरापूरा परिवार है. अब जिसे मेरा साथ चाहिए वह आए मेरे पास. इस घर से मैं ने अपना संबंध टूटने नहीं दिया. पर वह संबंध अब आप की शर्तों पर नहीं, मेरी शर्तों पर रहेगा. पूछिए अपने बेटे से, क्या वे रह सकते हैं मेरे साथ, मेरी शर्तों पर या यों ही मां की पैंशन पर जिंदगी गुजारने का इरादा रखते हैं?’’

सब हैरान थे पर वीरेश के मौन आंसू उस की सहमति बयान कर रहे थे.

लेखक- सतीश चंद्र माथुर

Love Story 2025 : तेरी मेरी कहानी

Love Story 2025 : नींद कोसों दूर थी. कुछ देर बिस्तर पर करवटें बदलने के बाद वह उठ खड़ा हुआ और अपने कमरे के आगे की छोटी सी बालकनी में जा खड़ा हुआ. पूरा चांद साफ आसमान में चुपड़ी रोटी की तरह दमक रहा था… कुछ फूला सा कुछ चकत्तों वाला, लेकिन बेहद खूबसूरत, दूरदूर तक चांदनी छिटकाता… धुले हुए से आसमान में तारे बिखरे हुए थे, बहुत चमकीले, हवा के संग झिलमिलाते. मंद बयार उस के कपोलों को सहला गई थी, आज हवा की उस छुअन में एक मादकता थी जो उसे कई बरस पीछे धकेल गई थी.

तब वह युवा था, बहुत से सपने लिए हुए… जिंदगी को दिशा न मिली थी पर मन में उत्साह था. आज जिंदा तो था पर जी कहां रहा था… एक आह के साथ वह वहां पड़ी कुरसी पर बैठ गया. सिगरेट बहुत दिन से छोड़ दी थी पर आज बेहद तलब महसूस हो रही थी, कमरे में गया और माचिस व सिगरेट की डिबिया उठा लाया, लौटते हुए दोनों बच्चों और पत्नी पर नजर पड़ी. वे अपनी स्वप्नों की दुनिया में गुम थे. अब वे ही उस की दुनिया थे पर आज जाने क्यों दिल हूक रहा था यह सोच कर कि उस की दुनिया कितनी अलग हो सकती थी…

ऐसी ही दूरदूर तक फैली चांदनी वाली रात तो थी, वह उन दिनों हारमोनियम सीखता था. सभी स्वर सधे हुए न थे पर कर्णप्रिय बजा लेता था. जाने चांदनी ने कुछ जादू किया था या फिर दबी हुई कामना ने पंख फैलाए थे. न जाने क्या सोच कर उस ने हारमोनियम उठाया था और बजाने लगा था… ‘एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है, जिंदगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है…’ गीत का दर्द सुरों में पिघल कर दूर तक फैलता रहा था… रात गहरा चुकी थी, चांदनी को चुनौती देती कोई बिजली कहीं नहीं टिमटिमा रही थी पर शब्द जहां भेजे थे वहां पहुंच गए थे.

उस ने क्यों मान लिया था कि गीत उस के लिए बजाया गया था. चार शब्द कानों में बस गए थे… तेरी मेरी कहानी है और तब से दुनिया उस के लिए अपनी और उस की कहानी हो गई थी. वे बचपन में साथ खेले थे, वह लड़का था हमेशा जीतता पर वह कभी अपनी हार न मानती. वह हंसता हुआ कहता, ‘‘कल देखेंगे…’’ तो वह भी, ‘‘हांहां, कल देखेंगे,’’ कह कर भाग जाती. उसे यकीन था एक दिन वह जीतेगी. लड़की थी लेकिन बड़ेबड़े सपने देखती थी. वह उन दिनों की कुछ फिल्मों की नायिका की तरह बनना चाहती थी जो सबला व आत्मनिर्भर थी, एक ऐसी स्त्री जिस पर उस के आसपास की दुनिया टिकी हो.

कसबे के उस महल्ले में ज्यादातर घर एकमंजिले थे. बड़ेबड़े आंगन, एक ओर लाइन से कुछ कमरे, एक कोने में रसोई व भंडार जिस का प्रयोग सामान रखने के लिए अधिक होता था और खाना रसोई के बाहर अंगीठी रख कर पकाया जाता था, वहीं पतलीपतली दरियां बिछा कर खाना खाया जाता था. कोई मेहमान आता तो आंगन में चारपाई के आगे मेज रख दी जाती, गरमगरम रोटियां सिंकतीं और सीधे थाली में पहुंचतीं.

आंगन के बाहर वाले कोने की ओर 2 छोटे दरवाजे थे, शौच व गुसलखाने के. लगभग सभी घरों का ढांचा एकसा था. उस महल्ले में बस एक एकलौता घर तीनमंजिला था उस का. तीसरी मंजिल पर एक ही कमरा था, जिसे उस की पढ़ाई के लिए सब से उपयुक्त माना गया. आनेजाने वालों के शोर से परे वहां एकांत था. मामा के निर्देश थे कि मन लगा कर पढ़ाई की जाए. उस के और पढ़ाई के बीच कुछ न आए. मामा पुलिस में थे. ड्यूटी के कारण हफ्तों घर न आते थे. मामी और उन के 2 बच्चे उन के साथ रहते थे. घर में कुल मिला कर वह, उस की मां, उस के दादाजी, जिन्हें वह बाबा पुकारता था और मामी व उन के बच्चे रहते थे. वह समझ न पाता था कि मामा ने उस की विधवा मां को अकेले न रहने दे कर उसे सहारा दिया या अपना घोंसला न होने के कारण कोयल का चरित्र अपनाया. खैर जो भी कारण रहा हो, मामा उसे बहुत प्यार करते थे. घर में पित्रात्मक सत्ता प्रदान करते थे पर मामी ऐसी न थीं. मामा न होते तो मां से खूब झगड़तीं, शायद उन के मन में कुछ ग्रंथियां थीं. तीनमंजिला घर के भूतल पर वे रहते थे, बाहर बैठक थी और उस के साथ में एक गलियारा आंगन में ला छोड़ता था जहां एक ओर रसोई, सामने एक कमरा और कमरे के भीतर एक और कमरा था. बैठक में बाबाजी रहते थे, अंदर के कमरों में वे सब. पहली और दूसरी मंजिल के कुल 4 कमरों में कभी 3 किराएदार रहते तो कभी 4. उन कमरों का किराया उस के परिवार के लिए पर्याप्त था.

जब से उसे ऊपर वाला कमरा मिला था वह वहीं पर पढ़ाई करने लगा था. कमरे के बाहर छोटी सी 4 ईंटों की मुंडेर वाले छज्जे पर छोटी मेजकुरसी लगा कर वह पढ़ता… जानता था उसे कोई देख रहा है, पर वह किताब से नजरें न हटाता. बहुत होशियार न था पर पढ़ाई तो पूरी करनी ही थी. वह भटक भी नहीं सकता था, मां को दुख नहीं देना चाहता था. मामा प्रेरणा देते थे पर पिता की कमी को कब कोई पूरा कर पाया है? उस का मन पढ़ने में बहुत न था, उसे डाक्टर इंजीनियर न बनना था. कोई बड़े ख्वाब भी न थे, मामा जैसी नौकरी न करनी थी जिस में महीने के 25 दिन शहर से बाहर काटने पड़ें और बाकी के 5 दिन आप के घर वाले छठे दिन का इंतजार करें. उसे पिता सी पुरोहिताई भी नहीं करनी थी. एक समय इंटर पास बड़े माने रखता था. पर अब ऐसा न था. उस पर घर के गुजारे का बोझ न था पर जिंदगी बिताने को कुछ करना जरूरी था… भविष्य के विषय में संशय ही संशय था.

वह बारबार चबूतरे तक चक्कर लगा आती. चबूतरे से छज्जा साफ दिखाई पड़ता था, लेकिन उसे शाम को 8 से 9 बजे तक का बिजली की कटौती वाला समय पसंद था, क्योंकि मिट्टी के तेल के लैंप की आभा में पढ़ने वाले का चेहरा चमक उठता था. वह स्वयं अनदेखा रह कर उसे देख पाती. अब वे बच्चे न रहे थे, किशोरवय को बड़ी निगरानी में रखा जाता था, कोई बंदिश तो न थी, लेकिन पहले की उन्मुक्तता समाप्त हो गई थी. तब वह 10वीं में थी और वह 12वीं में था. वह अकसर सोचती, ‘काश, दोनों एक ही कक्षा में होते तो वह पढ़ाई और किताबों के आदानप्रदान के बहाने ही एकदूसरे से बात कर पाते. यदाकदा मां के काम से ताईजी के पास जाने में सामना हो जाता, पर बात न हो पाती,’ शायद मन के भीतर जो था, वह सामान्य बातचीत करने से भी रोकता था. संस्कारों में बंधे वे 2 युवामन कभी खुल न पाए. उस दिन भी नहीं जब अम्मां ने उसे गला बुनने की सलाई लेने भेजा था लेकिन ताईजी घर पर नहीं थीं और वह बैठक में अकेला था. वह चाह कर भी कह नहीं पाया कि दो पल रुको और वह मन होते भी रुक नहीं पाई. शायद वह तब भी सोच रहा था, ‘कल देखेंगे.’

दादाजी के गुजर जाने के बाद बहुत दिन तक बैठक खाली रही, फिर मां के कहने पर उस ने उसे अपना कमरा बना लिया. दादाजी के कमरे में आते ही उसे लगा वह बड़ा हो गया है. दोस्त पहले ही बहुत न थे, जो थे वे भी धीरेधीरे छूटते गए. मन बहलाव को कुछ तो चाहिए सो उस ने तीसरी मंजिल के कमरे में कबूतरों के दड़बे रख दिए थे. सुबहशाम वह कबूतरों को दानापानी देने ऊपर चढ़ता, कबूतरों को पंख पसारने के लिए ऊपर छोड़ता… और जब उन्हें वापस बुलाने को पुकारता आ आ आ… तो उसे लगता वह पुकार उस के लिए है. वह किसी न किसी बहाने छत पर चढ़ती, कभी कपड़े सुखाने, कभी छत पर सूख रहे कपड़े इकट्ठे करने तो कभी छोटे भाईबहनों को खेल खिलाने.

वह जिस अंगरेजी स्कूल में पढ़ती थी वह कक्षा 12वीं से आगे न था. वह शुरू से अंगरेजी स्कूल में पढ़ी थी. सरकारी स्कूल में जाने का स्वभाव न था… मौसी दिल्ली रहती थीं, उसे वहीं भेज दिया गया. वह भारी मन से चली थी, जाने से पहले की रात चांद पूरा खिला था, उस के कान हारमोनियम की आवाज को तरसते रहे… काश, एक बार वह सुन पाती पर उस रात कहीं कोई संगीत न था.

रात आंखों में कटी और सुबह तैयार हो गई. मां मौसी के घर छोड़ने गई थी. वह पिता की बात गांठ बांध कर साथ ले गई थी. मन लगा कर पढ़ना और कुछ बन कर लौटना.

वह पढ़ती रही, बढ़ती रही, यह संकल्प लिए कि कुछ बन कर ही लौटेगी. आज 10 बरस बाद लौटी. पिता बहुत खुश, मां बारबार आंख के कोने पोंछतीं, उसे देखती निहाल हो रही हैं. लड़की पढ़लिख कर सरकारी अफसर बन गई, आला अधिकारी. मौका लगते ही वह छत पर जा पहुंची. सब बदल गया था… कहीं कोई न था. महल्ले के ज्यादातर घर दोमंजिले हो गए थे, दूर कुछ तीनचार मंजिले घर भी दिखाई दे रहे थे.

शाम को बाहर चबूतरे पर निकली ही थी कि देखा एक छोटा बालक तीनमंजिले घर की देहरी पार कर बाहर निकल आया था, घुटनों के बल चलते उस बालक को उठाने का लोभ वह संवरण न कर पाई, ‘कहीं यह?’

वह उसे पहुंचाने के बहाने घर के भीतर ले गई थी. तेल चुपड़े बालों की कसी चोटी, सिर पर पल्ला, गोरी, सपाट चेहरे वाली एक महिला सामने आई और अपने मुन्ना को उस की बांहों में झूलते देख सकपका गई.

एक अजब सा क्षण, जब आमनेसामने दोनों के प्रश्न चेहरे पर गढ़े होते हैं किंतु शब्द खो जाते हैं… और एक मसीहा की तरह ताईजी आ गई थीं… ‘अरे, बिट्टो तुम, अभी तो शन्नो की अम्मां से सुना कि तुम आई हो… कितने बरस बाहर रहीं, आंखें तरस गईं तुम्हें देखने को… बहुत बड़ा कलेजा है तुम्हारी मां का जो इत्ती दूर छोड़े रही… बहू, रजनी जीजी के पैर छू कर आशीर्वाद लो, जानो कौन हैं ये?’ हां अम्मां, मैं समझ गई थी. वह अचानक जिज्जी और बूआ बन गई.

तभी वह आया था, सामने के बाल उड़ चुके थे, सुना था किसी दुकान पर सहायक लगा था… खबरें तो कभीकभार मिलती रही थीं, उस के ब्याह की खबर भी मिली थी पर खबर मिलने और प्रत्यक्ष देखने में बड़ा अंतर होता है. इस सच से अब रूबरू हुई. 2 बच्चों का पिता 30-32 वर्ष का वह आदमी उस की कल्पना के पुरुष से बिलकुल अलग था.

पल भर के लिए वह वहां नहीं थी, मानो 10 सदी से लगने वाले 10 बरसों में उसे खोजने का प्रयास कर रही थी, देखना चाह रही थी कि उस के चेहरे की लकीरें इतना कैसे गहरा गईं.

उस ने नाम से संबोधित करते हुए कहा था… ‘‘रजनी, बैठो. खाना खा कर जाना…’’ उफ्फ, वह औपचारिकता भरी आवाज उस का कलेजा चीर गई थी. कसी चोटी वाली एक आत्मीयता भरी नजर भर तुरंत रसोई में चली गई थी, वह समझ नहीं पाई कि वह भोजन लगाने का निमंत्रण था या उस के लिए प्रस्थान करने का संकेत. वह क्षमा याचना सी करती, मां के इंतजार का बहाना कर ताईजी को प्रणाम कर लौट आई थी.

एक गहरी निश्वास के साथ उस के मुंह से निकला… ‘अब कल न होगी.’

वह समझ गया था कि कहीं कुछ चटका है, भीतर या बाहर, यह अंदाजा नहीं कर पा रहा था.

Hindi Kahaniyan 2025 : तेरे बिन

Hindi Kahaniyan 2025 : हर्षा जिस दिन से मायके से लौटी थी उल्लास उसे कुछ बदलाबदला पा रहा था. औफिस जाते समय पहले तो वह उस की हर जरूरत का ध्यान रखती. नाश्ता, टिफिन, घड़ी, मोबाइल, वालेट, पैन, रूमाल कहीं कुछ रह न जाए. वह नहा कर निकलता तो धुले व पै्रस किए कपड़े, पौलिश किए जूते उसे तैयार मिलते. रोज बढि़या डिनर, संडे को स्पैशल लंच, सुंदर सजासंवरा घर, मुसकान से खिलीखिली हर वक्त आंखों में प्यार का सागर लिए उस की सेवा में बिछी रहने वाली हर्षा के रंगढंग उस दिन से कुछ अलग ही नजर आ रहे थे.

अब उसे कोई चीज टाइम पर जगह पर नहीं मिलती. पूछता तो उलटे तुरंत जवाब मिल जाता कि कुछ खुद भी कर लिया करो. अकेली कितना करूं. उल्लास इधरउधर दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा था.

‘उस दिन औफिस की पुरानी सैक्रेटरी बीमार जान कर उसे देखने घर चली आई. कहीं इस कारण हर्षा को कुछ फील तो नहीं हो गया या  हर्षा की नई भाभी पारुल ने तो कहीं उसे पट्टी पढ़ा कर नहीं भेजा, बहुत तेज लगती है वह या फिर औफिस में बिजी रहने के कारण आजकल कम टाइम दे पाता हूं. घर में अकेले पड़ेपड़े बोर हो जाती होगी शायद. मायके में जौइंट फैमिली जो है… बच्चा भी तो नहीं अभी कोई, जो उसी से मन लग जाता. 2-3 साल बाद बच्चे का प्लान खुद ही तो मिल कर बनाया था. पूछने पर तो सही जवाब भी नहीं देती आजकल,’ उल्लास सोचे जा रहा था.

‘‘उल्लास खाना बना दिया है, निकाल कर खा लेना. बाकी फ्रिज में रख देना. मुझे शायद आने में देर हो जाए. फ्रैंड के घर किट्टी पार्टी है,’’ हर्षा का सपाट स्वर सुनाई दिया.

‘‘संडे को कौन किट्टी पार्टी रखता है? एक ही दिन तो सभी जैंट्स घर पर होते हैं?’’

‘‘और हम जो रोज घर में रहतीं हैं उन का क्या? कल से तुम्हारे कपड़े बैड पर फैले हैं. उन्हें समेट कर रख लेना. मेरी समझ नहीं आता मेरे लिए क्यों छोड़ कर जाते हो?’’ और धड़ाम से दरवाजा बंद कर वह चली गई.

उल्लास सोचने लगा कि वह पहले भी तो यों छोड़ जाता था… तब उस के काम खुशीखुशी कर देती थी, तो अब उस ने ऐसा क्या कर दिया जो हर्षा उस से रूठीरूठी सी रहने लगी है? वह उस पर और बर्डन नहीं डालेगा. अपने काम खुद कर लिया करेगा. उल्लास ने जैसेतैसे बेमन से खाना खा  लिया. हर्षा का खाना बेस्वाद तो कभी नहीं बना, भले ही खिचड़ी बनाए. इसी कारण उस का बाहर का खाना बिलकुल छूट गया था… पर अब तो कभी नमक ज्यादा तो कभी कम. कच्ची सब्जी, जलीजली रोटियां. हुआ क्या है उसे? वह हैरान था. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

फिर मन ही मन बुदबुदाया कि चल बेटा होस्टल डेज याद कर और आज कुछ बना डाल हर्षा को खुश करने के लिए. जब तक वह घर लौटे बढि़या सा डिनर तैयार कर ले उस के लिए… हमेशा वही बनाती है उसे भी तो कभी कुछ करना चाहिए. फिर सोचने लगा कि हर्षा को आमिर खान पसंद है. अत: पहले ‘दंगल’ मूवी के टिकट बुक करा लिए जाएं नाइट शो के. फिर औनलाइन टिकट बुक किए. दोनों की पसंद का खाना तैयार किया. हर्षा आई तो उस का प्रयास देख कर मन ही मन खुश हुई. करी को थोड़ा सा ठीक किया, पर बाहर जाहिर नहीं होने दिया. यही तो चाहने लगी थी कि उल्लास किसी भी बात के लिए उस पर निर्भर न रहे. डिनर भी चुपचाप हो गया. मूवी में भी हर्षा चुपचुप रही.

उस की चुप्पी उल्लास को अखरने लगी थी. अत: बोला, ‘‘कोई बात है हर्षा तो मुझे बताओ… मुझ से कुछ गलत हो गया या मेरा साथ तुम्हें अब अच्छा नहीं लगता?’’ ‘‘जब तुम हिंदी मूवी पसंद नहीं करते हो, तो मेरी पसंद के टिकट नहीं लाने चाहिए थे. प्रत्यूष और धनंजय को ले कर अच्छा होता कोई अपनी पसंद की इंग्लिश मूवी ऐंजौय करते… जबरदस्ती मेरे कारण देखने की क्या जरूरत है?’’ उल्लास देखता रह गया कि जो हर्षा रातदिन उसे दोस्तों के साथ न जाने और अपने साथ ही हिंदी मूवी देखने की जिद करती थी वही आज उलटी बात कर रही है… क्यों उस से कट रही है हर्षा? क्या किसी और के लिए दिल में जगह बना ली है? फिर उस ने सिर झटका कि वह ऐसा सोच भी कैसे सकता है? उसे दीवानों की तरह चाहने वाली हर्षा ऐसा कभी नहीं कर सकती. वह चाहती है न कि वह अपने सारे काम खुद करे तो करेगा. तब तो खुश होगी. उसे पहले वाली हर्षा मिल जाएगी.

2-3 महीने में उल्लास ने अपने को काफी बदल लिया. अपने कपड़े हर संडे धो डालता. कुछ खुद प्रैस करता कुछ को बाहर से करवा लेता. घड़ी, वालेट, मोबाइल, चार्जर वगैरह ध्यान से 1-1 चीज रख लेता. हर्षा को इस के लिए परेशान न करता. पेट भरने लायक खाना भी बनाना आ गया था. औफिस जाने से पहले अपना कमरा ठीक कर जाता. अब तो खुश हो हर्षा? वह पूछता तो हर्षा हौले से मुसकरा देती, पर अंदर से उसे अपने कामों को स्वयं करता देख बहुत दुखता, पर वह ऐसा करने के लिए मजबूर थी.

‘‘उल्लास इंगलिश की नईर् मूवी लगी है, जाओ अपने दोस्तों के साथ देख आओ.’’ ‘‘हर्षा तुम मुझे ऐसे अपने से दूर क्यों कर रही हो. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि यह कैसी खुशी है तुम्हारी? क्या मुझे अपने लायक नहीं समझती अब?’’

‘‘उल्लास तुम तो लायक हो और तुम्हारे लिए वह लाली मौसी ने सही लड़की चुनी थी उन की ननद की बेटी संजना. बिलकुल तुम्हारे लिए हर तरह से सही मैच… उस ने अभी तक शादी नहीं की. मेरी वजह से उस से रिश्ता होतेहोते रह गया था तुम्हारा… लाली मौसी इसी कारण अभी तक नाराज हैं. उन की नाराजगी तुम दूर कर सकते हो तो बताओ…’’

‘‘कहां इतनी पुरानी बात ले कर बैठ गई तुम… हम दोनों ने एकदूसरे को पसंद किया, प्यार किया, शादी की. अब यह बात कहां से आ गई… अच्छा औफिस को देर हो रही है. मैं निकलता हूं शाम को बात करते हैं रिलैक्स,’’ और फिर हमेशा की तरह बाहर निकलते हुए उस के माथे पर चुंबन जड़ दिया, ‘‘तुम कुछ भी कर लो, कह लो तुम्हें प्यार करता रहूंगा. सी यू हनी.’’

‘‘यही तो मैं अब नहीं चाहती उल्लास… तुम्हें कुछ कह भी तो नहीं सकती,’’ हर्षा देर तक रोती रही. कल ही उसे मुंबई के लिए निकलना था कभी न लौटने के लिए. उस ने अपनेआप को किसी तरह संभाला. छोटे से बैग में सामान पैक कर लिया. उल्लास आया तो उसे बताने की हिम्मत न हुई. रात बेचैनी से करवटें बदलते बीत गई. ‘‘तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही हर्षा,’’ उल्लास कभी पानी, कभी चाय तो कभी कौफी बना लाता. कभी माथा सहलाता.

‘‘डाक्टर को बुलाऊं क्या?’’

‘‘कुछ नहीं थोड़ा सिरदर्द है. सुबह तक ठीक हो जाएगा. तुम अब सो जाओ.’’

मगर उल्लास माना नहीं तेल की शीशी उठा लाया. ढक्कन खोला तो वह फिसल कर बैड के नीचे पहुंच गया. वह झुका तो पैक्ड बैग नजर आया.

‘‘अरे यह बैग कैसा है? कौन जा रहा है?’’

‘‘हां, उल्लास मुझे कल ही जाना पड़ रहा है मुंबई. अभि मुझे लेने कल सुबह यहां पहुंच जाएगा. वह मेरी सहेली रुचि की बहन की शादी है. उस का कोई है नहीं. घबरा रही है, डिप्रैशन में अस्पताल में दाखिल भी रही. सारी तैयारी करनी है. अत: मां से रिक्वैस्ट की कि अभि को भेज कर मुझे बुला लें. मेरे पास भी तुम से रिक्वैस्ट करने के लिए फोन आया था. मैं ने कह दिया उल्लास मुझे मना नहीं करेंगे… 1 महीना क्या 6 महीने रख लो. सारे काम खुद करने की आदत डाल ली है. अब उल्लास को कोई परेशानी नहीं होगी अकेले. सही है न?’’ वह हलके से मुसकराई. पर इतना प्यार करने वाले पति उल्लास से सब मनगढ़ंत कहने के लिए मजबूर वह अंदर तक हिल गई.

‘‘मगर… कितने दिन… मैं अकेले कैसे… कुछ बताया तो होता?’’

‘‘अकेले की आदत तो डाल ही लेनी चाहिए… आत्मनिर्भर होना चाहिए हर तरह से… अचानक कोई चल पड़े तो रोता ही फिरे दूसरा, कुछ कर ही न पाए,’’ वह हंसी थी.

‘‘चुप करो… कैसी बेसिरपैर की बातें कर रही हो… जा रही हो तो मैं तुम्हें रोक नहीं रहा… कब लौटोगी यह बताओ. शादी के लिए 10 दिन बहुत हैं, 1 महीना जा कर क्या करोगी पर ठीक है जाओ… हर दिन मुझे फोन करोगी. चलो अब सो जाओ.’’

8 बज चुके थे. तभी अभि आ गया, ‘‘कहां हो दीदी?’’

‘‘अभी उठी नहीं. कल तबीयत कुछ ठीक नहीं थी उस की… कुछ अजीब सी बातें कर रही थी, इसलिए अभी उठाया नहीं.’’

‘‘1 बजे की फ्लाइट है जीजू, देर न हो जाए.’’

‘‘हां, मैं उठाने ही जा रहा था. मुझे रात को ही मालूम हुआ… चाय बन गई, तुम उठा दो मैं चाय डाल कर लाता हूं.’’

‘‘दीदी उठो. मैं आ भी गया. चलना नहीं क्या? देर हो जाएगी,’’ अभि ने उसे उठाया.

‘‘जितनी देर होनी थी अभि हो चुकी अब और क्या होगी?’’ कहते हुए हर्षा उठ बैठी.

‘‘क्यों नहीं आप वहां रुकीं इलाज करवाने… कोशिश तो की ही जा सकती थी… क्यों नहीं बताने दिया जीजू को?’’ छोटा भाई अभि उस के कंधे पकड़ लाचारगी से बैठ गया. आंखों में बूंदें झलकने लगीं.

‘‘वक्त बहुत कम था मेरे पास, कितना इलाज हो पाता… तुझे तो पता ही है, तेरे जीजू को तैयार भी तो करना था मेरे बिना रहने के लिए… तू शांत हो जा बस,’’ हर्षा उस के आंसू पोंछने लगी जो रुक ही नहीं रहे थे. उल्लास के कदमों की आहट कमरे की ओर आने लगी, तो अभि ने झट अपने आंसू दोनों हाथों से पोंछ डाले और सामान्य दिखने की कोशिश करने लगा.

हर्षा जातेजाते उल्लास को ठीक से रहनेखाने की तमाम हिदायतें दिए जा रही थी. अधिक फोन मत करना… वहां सब मुझे छेड़ेंगे कि उल्लास तेरे बिना रह ही नहीं पा रहा. अब उदास, परेशान मत हो… तुम्हीं ने तो लंबा प्रोग्राम बनाया है. दोस्त के यहां शादी में जा रही हो. खुशीखुशी जाओ, मेरी चिंता बिलकुल छोड़ दो. मैं सब मैनेज कर लूंगा… ठाट से रहूंगा, देखना.’’

एअरपोर्ट से अंदर जाने के लिए हर्षा ने उल्लास का हाथ छोड़ा तो लगा उस की सारी दुनिया ही छूट गई. उल्लास को आखिरी बार जी भर कर देख लेना चाह रही थी. बड़ी मुश्किल से अपने को संभाला और हौले से बाय कहा. मुसकरा कर हाथ हिलाया और फिर झटके से चेहरा घुमा लिया. आंखों में उमड़ते बादलों को बरसने से रोक पाना उस के लिए असंभव था. 2 दिन ही बीते थे हर्षा को गए हुए औफिस में उल्लास को पता चला उस की अगले फ्राईडे को मुंबई में मीटिंग है. वह खुशी से उछल पड़ा. उस ने 2-3 बार ट्राई किया कि हर्षा को बता दे पर फोन नहीं मिला. फिर सोचा अचानक उसे सरप्राइज देगा.

‘‘फोन ही नहीं मिल रहा हर्षा का. यहां मेरी मीटिंग है आज 3 बजे. सोच रहा हूं हर्षा को सरप्राइज दूं. उस की सहेली रुचि का जल्दी पता बता अभि.’’

अभि उसे हैरानपरेशान सा देख रहा था.

‘‘जीजू आप…’’ उस ने पैर छुए, ‘‘मैं वहीं जा रहा हूं आइए. 1 मिनट रुको. अंदर अम्मांजी से तो मिल लूं.’’

‘‘सब वहीं हैं जीजू,’’ वह धीरे से बोला.

‘‘कहां खोया है तू… लगता है तेरी भी जल्दी शादी करनी पड़ेगी,’’ उल्लास अकेले ही बोले जा रहा था.

‘‘अरे कहां ले आया तू टाटा मैमोरियल… कौन है यहां कुछ तो बोल… अभि कहीं हर्षा…’’ वह आशंका से व्याकुल हो उठा.

अभि बिना कुछ बोले उस का हाथ पकड़ सीधे हर्षा के पास ले आया, ‘‘सौरी दी… मैं आप को दिया प्रौमिस पूरा नहीं कर पाया,’’ और फिर फूटफूट कर रो पड़ा. दिल से न चाहते हुए भी हर्षा की आंखें जैसे उल्लास का ही इंतजार कर रही थीं.

मानो कह रही हों तुम्हें देख अब तसल्ली से जा सकूंगी. उल्लास के हाथ को कस कर थामे उस की हथेलियों की पकड़ ढीली पड़ने लगी. वह बेसुध हो गई.

‘‘हर्षाहर्षा तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा. तुम ने मुझे क्यों नहीं पता लगने दिया? डाक्टर… सिस्टर…’’

‘‘आप बाहर आइए प्लीज, हिम्मत से काम लीजिए… मैं ने इन्हें 2-3 महीने पहले ही बता दिया था… बहुत लेट आए थे… कैंसर की लास्ट स्टेज थी. अब कुछ नहीं हो सकता…’’

‘‘ऐसे कैसे कह सकते हैं डाक्टर? आप लोग नहीं कर पा रहे यह बात और है… मैं अमेरिका ले जाऊंगा… फौरन डिस्चार्ज कर दीजिए. मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा हर्षा मैं अभी आया,’’ और वह बाहर भागा. जी जान लगा कर उल्लास ने आननफानन में अमेरिका जाने की व्यवस्था कर ली. 2 दिन बाद वह हर्षा को ले कर लुफ्थांसा विमान में इसी उम्मीद की उड़ान भर रहा था. ‘‘तेरे बिन नहीं जीना मुझे हर्षा,’’ उस ने उस के कानों में धीरे से कहा और हमेशा की तरह उस के माथे पर चुंबन अंकित कर दिया, परंतु इस बार वह आंसुओं में भीगा था.

टूटे बिखरे रिश्तों को समेटती मौडर्न जमाने की Destination Wedding, लेकिन इसके नुकसान भी जानें

Destination Wedding : जैसेजैसे हम शिक्षित हो रहे हैं, वैसेवैसे पुरानी प्रथाओं से किनारा करते जा रहे हैं। बाकी चीजों की तरह अब लोगों का शौर्टकट वाली शादी में ज्यादा दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। बढ़ती महंगाई और रुढ़िवादी प्रथाओं के चलते कई सारे लोगों को रीतिरिवाजों वाली शादी ढकोसलेबाजी लगती है. कई लोगों का मानना है कि शादी में बारातियों पर खर्च करने के बजाय चुपचाप कोर्ट मैरिज कर लो और सारा खर्चा अपनेआप पर और हनीमून पर करो, क्योंकि ऐसे लोगों को ऐंटरटेन करने से क्या फायदा जो शादी में आ कर खातेपीते हैं और पीछे से बुराई करते हैं.

लेकिन आज के मौडर्न युग में एक ऐसे तबके के भी लोग हैं जिन का मानना है कि शादी जिंदगी में एक ही बार होती है, तो वह यादगार और धूमधाम से होनी चाहिए. ऐसे सुविचारों को फौलो करने वाले कई लोग शादी के दौरान होने वाली रस्में जैसे हलदी, मेहंदी, दुलहन की डोली, दूल्हे की घुड़सवारी, प्री वैडिंग फोटोशूट आदि सभी का मजा लेना चाहते हैं. शादी के दौरान हुई ये सारी रस्में सिर्फ दूल्हादुलहन का ही नहीं, बल्कि शादी में आए बरातियों का भी दिल खुश कर देती हैं. लिहाजा, शादी के इस माहौल का मजा लेने के लिए डैस्टिनेशन वैडिंग की प्रथा शुरू हुई.

हालांकि एक समय में डैस्टिनेशन वैडिंग अमीरों के दिखावे का चोंचला माना जाता था क्योंकि डैस्टिनेशन वैडिंग के जरीए अमीर लोगों को शोबाजी करने का पूरा मौका मिलता है.

लेकिन अब यही डैस्टिनेशन वैडिंग आम लोगों के बीच भी प्रसिद्ध हो रही है क्योंकि डैस्टिनेशन वैडिंग के और भी कई सारे फायदे हैं। यह बजट में रह कर भी की जा सकती है और शादी की रस्मों का पूरा मजा लिया जा सकता है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आज की व्यस्त जिंदगी में जहां लोगों के पास समय की भारी कमी है, डैस्टिनेशन वेडिंग को क्यों पसंद करते हैं?

डैस्टिनेशन वैडिंग में ऐसी क्या खास बात है जो आज के समय में लोग अपनी शादी डैस्टिनेशन वैडिंग के जरीए कर के यादगार बनाना चाहते हैं :

डैस्टिनेशन वैडिंग के फायदे

डैस्टिनेशन वैडिंग का सब से बड़ा फायदा तो यही है कि शादी वाले दोनों परिवार के लोगों को मेहनतमशक्कत करने से छुटकारा मिल जाता है और शादी से जुड़े लोगों को शादी का पूरा मजा लूटने का मौका मिलता है क्योंकि डैस्टिनेशन वैडिंग में दूल्हा और दुलहन के परिवारजन और यारदोस्त अगर 2-3 दिनों के लिए जमा हो जाते हैं तो उन्हें नौर्मल शादी की तरह छोटीछोटी चीजों के लिए ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी पड़ती क्योंकि ऐसी शादियों में वैडिंग प्लानर ज्यादातर हर चीज का बंदोबस्त कर के रखते हैं या जिस होटल में शादी होती है उस होटल का स्टाफ पूरा अरेजमैंट करने की जिम्मेदारी लेता है. बारातियों को सिर्फ तैयार हो कर पहुंचना होता है और घरातीबारातियों का स्वागत करने के लिए पूरी तरह तैयार रहते हैं.

नुकसान

इस के नुकसान यह हैं कि कई बार करीबी लोग शादी में शामिल नहीं हो पाते क्योंकि वे 2-3 दिनों का टाइम ले कर डैस्टिनेशन वैडिंग में शामिल होने में असमर्थ होते हैं. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो खराब स्वास्थ्य के चलते यात्रा कर के डैस्टिनेशन वैडिंग का हिस्सा बनने में असमर्थ होते हैं. इसलिए ऐसे लोग चाह कर भी ऐसी मजेदार वैडिंग में उपस्थित होने से वंचित रह जाते हैं.

बजट और समय के हिसाब से चुनाव करें डैस्टिनेशन वैडिंग का वैन्यू

डैस्टिनेशन वैडिंग अब सिर्फ अमीरों के लिए नहीं बल्कि आम लोगों के लिए भी मौजमस्ती का एक जरीया बन गई है जो हरकोई अपने बजट में करने की कोशिश करता है, क्योंकि इस शादी में दोनों ही तरफ के लोगों का मकसद ऐंजौय करना और यादगार शादी करना होता है. लिहाजा, इस तरह की डैस्टिनेशन वैडिंग की प्लानिंग करते समय बजट और समय का चुनाव सब से ज्यादा अहमियत रखता है क्योंकि शादी में देशविदेश हर जगह से लोग आते हैं इसलिए एक कौमन जगह रखें, जहां हरकोई आसानी से पहुंच सकें. जैसे दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद आदि। फिर चाहे वह हिल स्टेशन का वैन्यू हो या समुद्र किनारे की जगह, बस ऐसी जगह हो जहां हर सुविधा उपलब्ध होने की तैयारी हो. पैसा बचाने के चक्कर में एकदम जंगल या ऐसे स्थान पर शादी न रखें जहां मोबाइल नेटवर्क से ले कर शादी में उपयोग में आने वाली चीजें खरीदने के लिए ही दिक्कत हो जाए.

डैस्टिनेशन वैडिंग टूटेबिखरे रिश्तों को समेटने का आसान जरीया

रिश्तेदार हों या दोस्त वे जब नजरों से जितना दूर हो जाते हैं उतना ही दिल से भी दूर होते जाते हैं. हमारे कई रिश्तेदार दोस्त जो काम और शादी के चलते दूसरे शहरों में या विदेश में जा बसते हैं जिन से हम एक समय में घंटों बात किया करते थे वही रिश्तेदारदोस्त जब कोसों दूर हो जाते हैं तो उन से बातचीत भी कम हो जाती है. सिर्फ फौर्मल बातें ही होती हैं.

यही सारे दूर वाले रिश्ते जब डैस्टिनेशन वैडिंग में एकसाथ जमा होते हैं तो पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं. एक बार फिर पुराना रिश्ता मजबूत हो जाता है. कई बार किन्हीं कारणों से करीबी रिश्तेदारों के साथ मनमुटाव हो जाता है तो ऐसे रिश्तेदारों का भव्य सम्मान आदरसत्कार उन रूठे हुए रिश्तों को फिर से करीब ले आता है.

कहने का मतलब यह है कि डैस्टिनेशन वैडिंग में सिर्फ मौजमस्ती ही नहीं होती, बल्कि टूटेबिखरे रिश्तों को समेटने की एक राह भी होती है. शायद यही वजह है कि डैस्टिनेशन वैडिंग की प्रथा आधुनिक होने के बावजूद हर तरह के लोगों में फलफूल रही है। ऐसी शादी के जरीए मजा तो दोगुना हो ही जाता है. साथ ही जो पुरानी प्रथाएं मेहंदी, हलदी, दूल्हे की घुड़सवारी, दुलहन की डोली आदि परंपराओं को नए तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है.

कई टौप ऐक्ट्रैस ने किए Item Dance, बौलीवुड फिल्मों में क्यों है इतना पौपुलर

Item Dance: बौलीवुड में दौर कोई भी रहा हो, आइटम गाने हमेशा ही चर्चा में रहे. फिल्म की कहानी से अलग किरदार पर फिल्माए गए इन डांस नंबर्स को सिर्फ दर्शकों के मनोरंजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है. वर्ष 1930 से 60 के दौर में भी इन का राज रहा है. 1940 और 50 के दौर में कुक्कू मोरे उस दौर की पहली आइटम डांसर थीं. कुक्कू मोरे ऐंग्लो इंडियन परिवार से ताल्लुक रखती थीं। उन्होंने 40 और 50 के दशक की फिल्मों पर खूब राज किया. उन की शोहरत इतनी थी कि उस जमाने में एक आइटम गाने के लिए ₹6 हजार लेती थीं.

करोड़ों का मेहनताना

यही वजह है कि आज की हीरोइनें भी आइटम डांस कर खूब पैसा बटोरती हैं. सब से अधिक मेहनताना लेने वाली हीरोइन की अगर बात करें, तो इस में करीना कपूर खान नंबर वन पर आती हैं। करीना अपने एक आइटम नंबर के लिए ₹5 करोड़ लेती हैं. इस के बाद अभिनेत्री सनी लियोनी का नंबर आता है, जो एक डांस नंबर के लिए करीब ₹2 करोड़ लेती हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक फिल्म ‘रागिनी एमएमएस’ का ‘बेबी डौल…’ सौंग के लिए उन्होंने और भी ज्यादा फीस चार्ज की थी. इस के अलावा नोरा, जैकलीन फर्नांडीस, चित्रांगदा सिंह, कैटरीना कैफ, मलाइका अरोड़ा, सामंथा रूथ प्रभु आदि कई हैं, जो आइटम डांस करना पसंद भी करती हैं.

इन दिनों अभिनेत्री तमन्ना भाटिया का आइटम डांस, जो फिल्म ‘स्त्री 2’ का गाना ‘आज की रात.. है, खूब सुर्खिया बटोरीं। इस के लिए उन्होंने ₹2 करोड़ लिए. वे मानती हैं कि उन के इस गाने की पौपुलैरिटी उन की चाबी फिगर की वजह से है, जिसे दर्शकों ने स्वीकार किया और आज की साइज प्लस लड़कियां भी उन से खूब प्रेरित हैं.

कैबरे क्वीन हेलन

हिंदी सिनेमा में यदि कोई सब से पौपुलर डांसर मानी जाती हैं तो वे निस्संदेह हेलन ही हैं. उन्हें कैबरे क्वीन कहा जाता है. वर्ष 1971 की फिल्म ‘कारवां’ का गाना ‘पिया तू…’ आज भी पौपुलर डांस आइटम है। इस के कई रीमिक्स भी बन चुके हैं. हेलन उस दौर की सब से अधिक पौपुलर आइटम डांसर रही हैं. वे वर्ष 1958 से वर्ष 1980 के बीच बड़ी फिल्मों का अनिवार्य हिस्सा थीं. उन के ऐसे आइटम डांस करने वाली कोई भी हीरोइन आज तक पौपुलर नहीं हो सकी हैं। उन के डांस मूव्स की तारीफ आज भी की जाती है, जिस में वैरायटी के अलावा ऐलीगैंस भी खूब होते थे.

वर्ष 1970 और 80 के दशक में कैबरे गानों में कबीलाई और बंजारा ड्रैसेज और लोकेशनों का इस्तेमाल किया जाने लगा था. इस में आसानी से भड़कीले गाने, ग्रुप डांसरों की गुंजाइश निकलने लगी. धीरेधीरे ग्लोबलाइजेशन से प्रभावित हो कर इस में मौडर्निटी दिखी और आज की हीरोइनें मौडर्न ड्रैस के साथ ही
आइटम सौंग करती हैं, जैसे अभिनेत्री शिल्पा शेट्‌टी ने शूल फिल्म का गाना ‘आई हूं यूपी बिहार लूटने…’ मलाइका अरोड़ा की ‘छैंयाछैंया…’, ‘मुन्नी बदनाम हुई…’ कैटरीना कैफ की ‘शीला की जवानी, चिकनी चमेली…’ प्रियंका चोपड़ा की ‘राम चाहे लीला…’ आदि कई प्रसिद्ध गानों पर इन हीरोइनों ने आइटम डांस किए.

टौप ऐक्ट्रैस ने भी किए आइटम नंबर्स

बौलीवुड की कई ऐक्ट्रैस ऐसी भी रहीं, जो अपने दौर में टौप ऐक्ट्रैस रह कर भी आइटम डांस करती रहीं. इस लिस्ट में पहला नाम वैजयंती माला का रहा. जब वे अपने दौर की टौप ऐक्ट्रैस थीं तब उन्होंने कई आइटम सौंग किए, जिन में 1954 में आई फिल्म ‘नागिन’ का ‘तन डोले मेरा मन डोले…’ और 1967 में आई उन की फिल्म ‘ज्वैल थीफ’ का गाना ‘होंठों में ऐसी बात…’ काफी हिट रहा.

इन गानों में खास बात यह होती कि इन गानों में ताकत अधिक होती है और बौलीवुड के कई डांसर्स ने इन के जरीए ही अपनी पहचान बनाई, जिस में हेलेन, आरडी बर्मन और आशा भोसले की तिकड़ी सब से ज्यादा सफल रही है. हालांकि गीता दत्त ने भी शुरुआती कैबरे गीतों में अपनी आवाज का बहुत बढ़िया
इस्तेमाल किया है.

इस के अलावा डिंपल कपाड़िया, माधुरी दीक्षित, शिल्पा शेट्टी, रवीना टंडन, कटरीना कैफ, प्रियंका चोपड़ा और करीना कपूर ने भी कई आइटम नंबर्स किए, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया.

क्या है आइटम डांस

फिल्म का वह गाना जो किसी ऐसे कलाकार पर फिल्माया जाए, जिस का फिल्म में कोई रोल नहीं है, उसे ही आइटम सौंग कहते हैं और जिस कलाकार पर गाना फिल्माया गया हो, उसे आइटम गर्ल कहा जाता है.

आइटम सौंग फिल्म में जबरदस्ती डाले गए गाने को कहते हैं, जिस का फिल्म से सीधा कोई संबंध नहीं होता है. हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर में आइटम सौंग कैबरे की शक्ल में आए, जिन का किसी हद तक स्टोरी को आगे बढ़ाने में योगदान होता था.

बाद में पूरी तरह इसे अतिरिक्त आकर्षण के रूप में जोड़ा जाने लगा. असल में आइटम सौंग सामान्यता चलताऊ शब्दावली में तेज बीट्स के साथ कुछ भड़काऊ डांस स्टेप्स, क्लब और बार की लोकेशन में शूट किया जाता है. कई बार दर्शक सिर्फ किसी आइटम नंबर को देखने के लिए ही बारबार फिल्म देखने पहुंचते हैं. यही वजह है कि आज भी इन गानों का क्रेज देखने को मिलता है.

बौलीवुड का पहला आइटम सौंग वर्ष 1936 में आई ‘सोनार संसार’ में अजूरी पर फिल्माया गया था.
आइटम सौंग की इतिहास के बारें में अगर बात करें, तो आइटम सौंग का क्लासिकल मीनिंग गाने के बोल और उस की सेनशुएलिटी से होता है. जब बौलीवुड में इस तरह के गानों की शुरुआत हुई, तब ऐसी धारणा थी कि ऐसे गानों में उसी को लिया जा सकता है, जो सुंदर हो और जिस का इस्तेमाल सिर्फ उस गाने के लिए ही हो, हालांकि, आज भी इसी तरह की सोच के साथ गाने के लिए किसी का चुनाव होता है, लेकिन अब यह जरूरी नहीं रह गया है कि वह फिल्म के सिर्फ उसी गाने में दिखे, बल्कि आजकल कुछ हीरोइनें फिल्म में भी होती है, मसलन माधुरी दीक्षित, शिल्पा शेट्टी, रवीना टंडन, करीना कपूर आदि.

डांस स्टाइल में बदलाव

35 साल से कोरियोग्राफी के क्षेत्र में काम कर रहे कोरियोग्राफर गनेश आचार्य कहते हैं कि आज के डांस मुव्स का एक जैसे होना दर्शकों की पसंद का होना होता है. इस के अलावा आज के डांस स्टाइल में भी बहुत बदलाव आया है. पहले के गाने आज की तुलना में काफी बड़े होते थे, जिस से कई मूव्स उन में करना पड़ता था. आज के गाने इतने बड़े नहीं होते. मेरे लिए चाहे लव सौंग हों या आइटम सौंग सब गाने एक जैसे ही होते हैं और मुझे उन्हें कोरियोग्राफ करना पड़ता है, क्योंकि कोई भी गाना दृश्य के हिसाब से निर्देशक की मांग को देखते हुए कोरियोग्राफी की जाती है. आजकल जो भी गाना हिट होता है, उसे आइटम कह कर संबोधन किया जाता है. मुझे पता नहीं इस आइटम शब्द को किस ने पौपुलर किया है.
यह सही है कि हेलेन की तरह डांस करने वाली ऐक्ट्रैस अब नहीं हैं, आज के डांस फौर्म में काफी बदलाव आया है. पहले केवल एक गाने में डांस होता था, जो ट्रेन या बस में गाते हुए दिखाया जाता था, जबकि अब हर गाने में डांस होता है। ऐसे में, कोरियोग्राफर के लिए अब काम करना अधिक कठिन हो गया है.जैसे अभी ‘पुष्पा 2′ के गाने ‘सूसेकी…,’ ‘किसिक…’ को मैं ने ही कोरियोग्राफी किया है.

आज की हीरोइनें डांस में पारंगत

वे आगे कहते हैं कि यह कहना गलत होगा कि आज की हीरोइनों को डांस नहीं आती। सचाई तो यही है कि आज की हीरोइनें अधिकतर डांस सीख कर आती हैं, ऐसे में कोई भी स्टेप वे आसानी से कर लेती हैं. पहले के डांसर भी बहुत अच्छे रहे हैं, लेकिन केवल इंडियन डांस वे अधिक करती थीं. आज की जैनरेशन इंडियन के साथ हिपहौप, जैज, सालसा आदि सब कर सकती हैं. उन्हे जो भी डांस मूव्स दिए जाते हैं, वे आसानी से कर लेती हैं. अभिनेत्री दीपिका पादुकोण, कृति सेनन आलिया भट्ट, श्रद्धा कपूर, तमन्ना भाटिया, जान्हवी कपूर आदि सारी लड़कियां हर तरीके की डांस मूव्स कर सकती हैं. इतना ही नहीं, वे किसी भी डांस के पीछे बहुत अधिक मेहनत और समय देती हैं, जिस में उन के कौस्टयूम से ले कर हर मूव्स की बारीकियों का बारबार रिहर्सल करती हैं, क्योंकि आज उन्हें पता है कि एक गाने के पीछे उन्हे लाखों फौलोवर्स और पैसे मिलने वाले हैं. उन का प्रोफैशनलिज्म पहले की ऐक्ट्रैस की तुलना में अधिक अच्छा है.

कैमरा भी बहुत अच्छी क्वालिटी के होते हैं, जो थोड़ी सी गलती को आसानी से पकड़ लेती है. इतने सालों के कोरियोग्राफी के क्षेत्र में आए परिवर्तन के बारे में गनेश हंसते हुए कहते हैं कि परिवर्तनशील जगत है और परिवर्तन आया है. पहले और आज के डांस में अंतर है और मैं उसी को फौलो और एडौप्ट करता हुआ यहां तक पहुंचा हूं. मेरे लिए हर गाना पहला गाना होता है, जो कठिन और मेरा बच्चा है, इसे करने में चुनौती होती है.

कम मेहनत

साल 2012 के डांस इंडिया डांस के विनर और अभिनेता फैसल खान कोरियोग्राफर भी हैं. वे कहते हैं कि अब आइटम सौंग में बौडी रिविल अधिक होता है. दर्शक उस में डांस को न देख कर उसे ही देखने आते हैं, जिस से फिल्म चलती है. सोशल मीडिया पर भी इस की झलक मिलती है.

वैसे तो सभी कलाकार डांस सीख कर आते हैं, लेकिन कुछ ऐसे हैं, जिन्हें डांस नहीं आती, उन्हे इजी स्टेप्स दिए जाते हैं, जिसे वे आसानी से कर सकें. नोरा फतेही जैसे हर तरह के डांस मूवमेंट करने वाले डांसर कम होते हैं, लेकिन कम डांस जानने वालों के साथ कोरियोग्राफर को भी अपना लेवल थोड़ा नीचे करना पड़ता है. इस के अलावा एक गाना हिट हुआ, तो फिल्म मेकर वैसे ही लुक और गानों को आगे भी बनाना चाहते हैं. मेरे हिसाब से आज कुछ लोग कम मेहनत कर पैसे कमाना चाहते हैं.

अंत में इतना कहना सही होगा कि डांस एक कला है फिर चाहे वह किसी भी फौर्म में हो, उस में वेरायटी का होना सब से अधिक आवश्यक होता है, ताकि दर्शकों का आकर्षण बना रहे और इस के लिए जरूरी है, मेहनत, लगन और रिहर्सल.

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