सफलता के लिए जरुरी है दृढ़ संकल्पी होना

इस दुनिया में अनेको  ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प के बल पर मनचाही सफलता प्राप्त  की है . बिना विचलित हुए दृढ़ संकल्प और कर्म कर अनगिनत लोगों ने आश्चर्यजनक सुपरिणाम हासिल किये हैं. किसी परेशानी, मुसीबत और बाधा से उनके कदम रुके नहीं. वे अपने संकल्प को ध्यान में रख जुटे रहे और सफल हुए. सफल होने वाले व्यक्ति किसी और ग्रह के वासी या हाड़-मांस के अलावा किसी और चीज के बने नहीं होते.

वे सिर्फ यह जानते थे कि दृढ़ संकल्प के बल पर ही अपना लक्ष्य पाप्त किया जा सकता हैं. यह भी महत्वपूर्ण है कि केवल दृढ़ संकल्प से काम चलने वाला नहीं है. लक्ष्य पाप्ति के लिए निराशा से मुक्ति पाकर हर अनुकूल-पतिकूल स्थिति में अपना उत्साह बनाए रखना, समय का एक पल भी नष्ट न करना, परिश्रम से न घबराना, धैर्य बनाए रखना, समुचित कार्ययोजना बनाकर अमल में लाना आदि पर ध्यान केन्दित करना आवश्यक है.यदि आप किसी व्यक्ति की सफलता का रहस्य पूछें तो वह यही बताएगा कि उसने “ान लिया था कि वह ऐसा कर के या बन के रहेगा, चाहे कुछ भी हो जाए और इसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े. दुनिया की कोई शक्ति उसे विचलित नहीं कर सकती. किसी व्यक्ति को हो सकता है सफलता आसानी से या संयोगवश मिल गयी हो. ऐसा अपवाद स्वरूप ही हो सकता है. इस पकार के किसी संयोग का इन्तजार में भाग्य के भरोसे  सफलता पाने की सोचना मूर्खता के सिवा कुछ और नहीं. हां, उपयुक्त अवसर को कभी छोड़ना नहीं चाहिए. इसकी पहचान अपने विवेक और दूरदृष्टि से की जा सकती है.

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इच्छाशक्ति संकल्प जैसे बहुमूल्य सिक्के का दूसरा पहलू है. यह हमारे संकल्प को दृढ़ता पदान करती है. इसलिए अपनी इच्छाशक्ति को कभी कमजोर नहीं होने देना चाहिए. इससे हमें निराशा जैसी नकारात्मक स्थिति से भी छुटकारा मिलता है. ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि और अनेकानेक संसाधनों के अलावा संकल्प करने की क्षमता भी पदान की है. संकल्प कर लेने के बाद अपने पिछले कार्यों, व्यवहार, अभ्यास, आदतों आदि पर स्वयं अपने आलोचक बनकर दृष्टि डालनी चाहिए. संकल्प कर्म के बिना व्यर्थ है. गलत ढंग से और बिना कार्य योजना के कर्म करते जाना भी व्यर्थ है. स्वयं अपने पति, अपने संकल्प के पति और अपने पयासों के पति ईमानदार रहना बेहद जरूरी है.

शिक्षा और कॅरियर ही नहीं व्यवहार व आदतों के मामले में भी संकल्प महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. संकल्प तथा कर्म से मिली सफलता किसी पैमाने से नापना व्यर्थ है. कोई सफलता छोटी या बड़ी नहीं.

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Winter Special: सूप खाएं भी और पिएं भी

दाल, चावल, रोटी, सब्जी, सलाद आदि मैनकोर्स के साथ ही स्टार्टर में गिना जाने वाला सूप संतुलित भोजन का अहम हिस्सा है. स्टैनफोर्ड स्पोर्ट साइंस इंस्टीट्यूट के डायटीशियन कारा हरबरस्ट्रीट के अनुसार सर्दियों में सूप शरीर में कम तरल पदार्थ के सेवन से होने वाली कमी को पूरा करके शरीर को हाइड्रेट रखता है, क्योंकि आमतौर पर गर्मियों की अपेक्षा सर्दियों में पानी का सेवन कम किया जाता है.

इसके अतिरिक्त यह शरीर को गर्म रखने का भी काम करता है. उनके अनुसार विभिन्न सब्जियों को उबालकर नाममात्र के मिर्च मसाले से बनाये जाने के कारण शरीर को तो भरपूर पोषण प्रदान करता ही है साथ ही वजन भी कम करता है.

आमतौर पर सब्जियों, दालों, हर्ब्स, और नानवेज से विभिन्न सूप बनाये जातें हैं. सूप को शाम को डिनर से पूर्व पीना ठीक रहता है. रेडीमेड सूप की अपेक्षा ताजा सूप पीना स्वास्थ्यप्रद होता है. हम आपको कुछ ऐसी सूप की रेसिपी बता रहे हैं जिनमें आपको पीने और खाने दोनों का ही स्वाद मिलेगा. यदि आप वजन कम करने के लिए प्रयासरत हैं तो ये सूप आपके लिए अत्यधिक लाभकारी हैं क्योंकि इनका सेवन करने के बाद आपका पेट ही भर जाएगा.

-टोमेटो मैगी सूप

कितने लोंगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

मध्यम आकार के टमाटर 6
पालक 4 पत्ते
मैगी स्लाइस 1
गाजर 1 छोटी
पानी 6 कप
काली मिर्च पाउडर 1/4 टीस्पून
काला नमक 1/2 टीस्पून
मैगी मसाला 1/2 टीस्पून

विधि

मैगी को 1 कप उबलते पानी में डालकर नरम होने तक उबालकर छलनी से पानी निकालकर अलग रख लें. पालक के पत्तो, टमाटर और गाजर को 2 कप पानी डालकर प्रेशर कुकर में मंदी आंच पर 2 सीटियां लेलें. जब ये ठंडे हो जाएं तो पीस लें. अब पिसे मिश्रण को छलनी से छानकर गैस पर एक पैन में चढ़ाएं. काला नमक, काली मिर्च उबली मैगी और मैगी मसाला डालकर अच्छी तरह उबालें और सर्विंग डिश में डालकर सर्व करें.

नोट-पालक के पत्ते और गाजर डाले जाने से सामान्य टोमेटो सूप की अपेक्षा यह आयरन रिच होता है. यह बच्चों को बहुत पसंद आता है.

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-मंचाऊ सूप

कितने लोंगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 25 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

तेल 2 टीस्पून
अदरक बारीक कटा 1 इंच
लहसुन कटी 2 कली
हरी मिर्च 1
प्याज बारीक कटा 1
सूखी लाल मिर्च 1
बारीक कटी गाजर 1
कटा पत्तागोभी 1/2कप
चौकोर कटे मशरूम 3
सोया सॉस 2 टेबलस्पून
नमक स्वादानुसार
काली मिर्च पाउडर 1 टीस्पून
शकर 1 टेबलस्पून
सिरका 1 टेबलस्पून
बारीक कटी फ्रेंच बीन्स 6
स्प्रिंग अनियन कटा 2 टेबलस्पून
कटा धनिया 1 टेबलस्पून
उबले नूडल्स 1 कप
कॉर्नफ्लोर 3 टेबलस्पून
तलने के लिए तेल पर्याप्त मात्रा में

विधि

उबले नूडल्स में 1 टेबलस्पून कॉर्नफ्लोर अच्छी तरह मिलाएं और गर्म तेल में सुनहरा तलकर टिश्यू पेपर पर निकाल लें. अब एक नॉनस्टिक पैन में 2 टीस्पून तेल गरम करके अदरक, लहसुन, हरी मिर्च, और प्याज को 1 मिनट तक सॉते करें. अब सूखी लाल मिर्च भूनकर सभी सब्जियां 3 से 4 मिनट तक तेज आंच पर भूनें. इसमें सोया सॉस, नमक, काली मिर्च पाउडर, शकर,वेनेगर और पानी डालकर 5 मिनट तक पकाएं. बचे 2 टेबलस्पून कोर्नफ्लोर में 1 कप पानी मिलाएं और तैयार मिश्रण में डालकर चलाते हुए उबालें. बढ़िया गाढ़ा सूप तैयार है. तले नूडल्स और कटा धनिया डालकर सर्व करें.

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हर महिला के मेकअप बैग में होने चाहिए ये 5 ब्यूटी प्रोडक्ट्स

चाहे आप कॉलेज गोइंग हो या फिर जौब करती हो, आपको खुद को सजाने व सवारने का तो शौक होगा ही, क्योंकि समय की डिमांड भी यही है कि जो जितना बन ठन कर रहता है लोग उसकी और उतने अट्रैक्ट होते हैं. यहां तक कि आप भी जब खुद को टिप टॉप रखेंगी तो आपका कोन्फिडेन्स भी बढ़ेगा. ऐसे में आपको किसी भी समय खुद को स्मार्ट और फ्रेश लुक देने के लिए अपने मेकअप बैग में पांच चीजों को जरूर शामिल करना होगा. ताकि जब मन करे आप खुद के रूप को निखार सकें.

जानते हैं उन 5 जरूरी चीजों के बारे में-

1. सीसी क्रीम

क्या आप ऑफिस में काम करते करते थक गई हैं , जिसकी झलक आपके चेहरे पर भी साफ दिखाई दे रही है. ऐसे में अगर आप अपने चेहरे को मिनटों में फ्रेश लुक देने के साथसाथ अपनी डल स्किन को इम्प्रूव करना चाहती हैं तो आप अपने मेकअप किट में सीसी क्रीम जरूर रखें. ये आपकी स्किन पर मॉइस्चराइजर व ब्राइटनिंग इफ़ेक्ट देकर आपकी स्किन पर मिनटों में मैजिक का काम करेगी.

क्या देखें – अगर आप अपनी स्किन को सीसी क्रीम से नेचुरल कवरेज देना चाहती हैं और आपकी स्किन भी सेंसिटिव है तो आप मार्केट से ऐसी सीसी क्रीम खरीदें, जो ग्रेपसीड, विटामिन सी व फ्रूट्स से मिलकर बनी हो, क्योंकि ये नेचुरल व एंटीओक्सीडैंट्स से भरपूर होने के कारण आपकी स्किन को फ्री रेडिकल्स से बचाने का काम करती है.

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2. काजल

कहते हैं न कि आंखें आपके व्यक्तित्व की पहचान होती है. इसलिए इनकी खूबसूरती को बरक़रार रखना बहुत जरूरी होता है. ऐसे में जब भी ऑफिस में या कॉलेज या फिर घर में आपको अपनी आंखें थकी हुई लगे तो आप अपने मेकअप बैग से काजल निकाल लें और उसे अपनी आंखों के नीचे व पलकों के ऊपर लगाकर तुरंत ही पा सकती हैं फ्रैश और खूबसूरत आंखें.

क्या देखें – काजल जो हर लड़की व महिला की चोइज होती है, लेकिन मार्केट में मिलने वाले अधिकांश काजल में पैराबिन्स, मिनरल ऑयल्स और प्रीजरवेटिवस डाले हुए होते हैं , जो आंखों में जलन पैदा करने का काम करते हैं. ऐसी में जरूरी है कि आप जो भी काजल खरीदें , एक तो वो लौंग लास्टिंग हो और साथ ही उसमें आर्गेनिक घी, आलमंड आयल हो , जो आंखों को मोइस्चर प्रदान करने का काम करता है. वहीं अगर उसमें केम्फर हो, तो वो आंखों की वाटरलाइन को ठंडक रखकर उसे जलन होने से बचाता है.

3. फिनिशिंग पाउडर

अकसर दिन बीतते बीतते स्किन पर आयल नजर आने लगता है, जिससे निजात पाने के लिए आप बार बार पानी से फेस को धोती होंगी, जो आपकी स्किन के नेचुरल मोइस्चर को खत्म करने का काम करता है. ऐसे में जरूरी है कि आप हमेशा अपने मेकअप बैग में फिनिशिंग पाउडर रखें. क्योंकि ये चेहरे पर से आयल को बिना ड्राई किए बिना हटाने का काम करता है. जिससे आपको अपनी स्किन पर तेल नजर नहीं आता और आपको चेहरे पर अलग ही ग्लो दिखाई देने लगता है, जिसे देख कर हर कोई आपसे पूछे बिना नहीं रह पाएगा कि क्या राज है चेहरे पर इस ग्लो और ब्राइट कम्प्लेक्सीओं का.

क्या देखें – अगर आपको हाइपर पिगमेंटेशन या ड्राई स्किन की प्रोब्लम है तो आप व्हिटेनिंग रोज पाउडर विद सनस्क्रीन का चयन कर सकती हैं , क्योंकि इसे लगाने के बाद आपको जल्दी पसीना नहीं आएगा और आपका स्किन टोन भी इम्प्रूव होगा. जब भी पाउडर खरीदें तो देखें कि उसमें केमिकल्स न हो और नेचुरल इंग्रीडिएंट्स ही मिले हुए हो, जो स्किन को हाइड्रेट भी रखे और नेचुरल रूप से फिनिशिंग देने का भी काम करें.

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4. फेस मिस्ट

फेस मिस्ट एक तरह का स्प्रे होता है, जिसे आप अपने मेकअप रूटीन में शामिल करके अपनी स्किन को हाइड्रेट व मोइस्चर प्रदान कर सकती हैं. साथ ही ये स्किन को मिनटों में फ्रेश लुक देने का काम करता है. बता दें कि फेस मिस्ट की खास बात यह है कि यह हर तरह की स्किन पर सूट करता है. यकीन मानिएं कि अगर आपको अचानक से कहीं जाना पड़ रहा है, लेकिन स्ट्रेस व पूरे दिन की भागदौड़ के कारण आपका चेहरा काफी डल नजर आ रहा है, तो आप मेकअप से पहले फेस पर फेस मिस्ट अप्लाई करें, फिर देखें अपने चेहरे के ग्लो को. आपके चेहरे के ग्लो को देखकर कोई यकीन ही नहीं मानेगा कि आप आफिस से या फिर कॉलेज से सीधे यहां आई हैं. क्योंकि आपका चेहरा एकदम फ्रेश जो नजर आएगा.

क्या देखें – जब भी फेस मिस्ट खरीदें, तो देखेँ कि उसमें नेचुरल इंग्रीडिएंट्स का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया गया हो. आपको मार्केट में ग्रीन टी , एलोवीरा जैसी इंग्रीडिएंट्स से बने फेस मिस्ट मिल जाएंगे, जो एन्टिओक्सीडैंट्स से भरपूर होने के कारण चेहरे पर ग्लो लाने का काम तो करते ही हैं , साथ ही झुरियों की समस्या से भी निजात दिलवाते हैं.

5. लिपस्टिक या लिपबाम

लिपस्टिक ऐसी कोस्मेटिक है, जो हर तरह के फेस व कम्प्लेक्शन पर सूट करती है. जिसे आप लगाकर अपने पूरे लुक को बदल सकती हैं. अगर आपका पूरे फेस पर मेकअप अप्लाई करने का मन नहीं कर रहा है, तो आप के पास जो भी लिपस्टिक है , उसे अपने लिप्स पर अप्लाई करके तुरंत नया व फ्रेश लुक पा सकती हैं. हो सके तो अपनी मेकअप किट में रेड या फिर पिंक लिपस्टिक जरूर कैरी करें, क्योंकि ये हर किसी पर जचती है. साथ ही ब्लशर, आईशैडो का भी काम करती है. और अगर आपको लिपस्टिक लगाने का शौक नहीं है तो आप लिप बाम का भी इस्तेमाल करके आपने चेहरे की रंगत को बड़ा सकती हैं.

क्या देखें – जब भी लिपस्टिक खरीदें तो देखेँ कि उसमें जोजोबा आयल, ओलिव आयल, कोको बटर , विटामिन इ जैसे इंग्रीडिएंट्स जरूर होने चाहिए. क्योंकि ये लिप्स को सोफ्ट , स्मूद बनाने के साथसाथ उन्हें रिपेयर करने का भी काम करते हैं. इस बात का भी ध्यान रखें कि उसमें पेट्रोलियम व मिनरल ऑयल्स न मिले हो. साथ ही उसमें बुटीलेटेड हयड्रोक्सयनिसोल व बुटीलेटेड हयड्रोक्सयतोलुइने जैसे केमिकल्स न हो, क्योंकि ये सिंथेटिक एन्टिओक्सीडैंट्स और प्रीजरवेटिवस के रूप में काम करके स्किन को खराब करने का काम करते हैं.

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मेरी मां का व्यवहार मेरे साथ ठीक नही है, क्या कोई ऐसी संस्था है, जो मेरी मदद कर सकती है?

सवाल
मैं 19 वर्षीय युवती हूं. अपने घर से भाग आई हूं और अपनी एक सहेली जो पीजी में रहती है के साथ रह रही हूं. दरअसल, मैं 2 सालों से अपने घर में अपनी मां का व्यभिचार देख कर कुढ़ती रही हूं. पहले नाराजगी दिखा कर और फिर साफसाफ विरोध करने पर वे मुझे बरबाद करने या किसी के भी साथ शादी कर के घर से दफा करने की धमकी देने लगीं. इसलिए मुझे मजबूरन घर छोड़ना पड़ा.

मेरी मां बहुत ही बदचलन हैं. उन का एक नहीं 2-2 आदमियों के साथ चक्कर चल रहा है. मेरे पिता अकसर दौरे पर रहते हैं. उन्हें अपनी पत्नी पर अंधविश्वास है. देरसवेर वे मुझे ढूंढ़ लेंगी. मैं दिल्ली में रहती हूं. क्या कोई ऐसी संस्था है, जो मेरी मदद कर सकती है?

जवाब
आप बालिग हैं, इसलिए आप की मां आप के साथ कोई जबरदस्ती नहीं कर सकतीं. आप को अपनी मां के दुश्चरित्र की बात अपने पिता से करनी चाहिए थी या अपने किसी नजदीकी रिश्तेदार से. पर ऐसा न कर के आप घर छोड़ आई हैं. यदि आप को अपनी मां से खतरा है, तो आप स्थानीय पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराएं. सहेली का पता न दें वरना उसे परेशानी होगी.

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अवैद्य संबंधों के चक्कर में न बहकें कदम

पिछले दिनों एक समाचारपत्र में खबर आई थी कि एक विवाहित महिला का एक युवक से प्रेमसंबंध चल रहा था. दुनिया की आंखों में धूल झोंक कर दोनों अपने इस संबंध का पूरी तरह से आनंद उठा रहे थे. महिला के घर में सासससुर, पति और उस के 2 बच्चे थे. पति जब टूअर पर जाता था, तो सब के सो जाने पर युवक रात में महिला के पास आता था. दोनों खूब रंगरलियां मना रहे थे.

एक रात महिला अपने प्रेमी के साथ हमबिस्तर थी, तभी उस का पति उसे सरप्राइज देने के लिए रात में लौट आया. आहट सुन कर महिला और युवक के होश उड़ गए. महिला ने फौरन युवक को वहां पड़े एक खाली ट्रंक में लिटा कर उसे बंद कर दिया. पति आ गया. वह उस से सामान्य बातें करती रही. काफी देर हो गई. पति को नींद नहीं आ रही थी. महिला को युवक को ट्रंक से बाहर निकालने का मौका ही नहीं मिला. बहुत घंटों बाद उस ने ट्रंक खोला. ट्रंक में दम घुटने से युवक की मृत्यु हो चुकी थी.

उस के बाद जो हुआ, उस का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. चरित्रहीनता का प्रत्यक्ष प्रमाण, तानेउलाहने, पुलिस, कोर्टकचहरी, परिवार, समाज की नजरों में जीवन भर के लिए गिरना. क्या कुछ नहीं सहा उस महिला ने. बहके कदमों का दुष्परिणाम उस ने तो सहा ही, युवक का परिवार भी बरबाद हो गया. बहके कदमों ने 2 परिवार पूरी तरह बरबाद कर दिए.

कभी न भरने वाले घाव

ऐसा ही कुछ मेरठ में हुआ. 2 पक्की सहेलियां कविता और रेखा आमनेसामने ही रहती थीं. दोनों की दोस्ती इतनी पक्की थी कि कालोनी में मिसाल दी जाती थी. दोनों के 2-2 युवा बच्चे भी थे. पता नहीं कब कविता और रेखा के पति विनोद एकदूसरे की आंखों में खोते हुए सब सीमाएं पार कर गए. कविता के पति अनिल और रेखा को जरा भी शक नहीं हुआ. पहले तो विनोद रेखा के साथ ही कविता के घर जाता था. फिर अकेले भी आने लगा.

कालोनी में सुगबुगाहट शुरू हुई तो दोनों ने बाहर मिलना शुरू कर दिया. बाहर भी लोगों के देखे जाने का डर रहता ही था. दोनों हर तरह से सीमा पार कर एक तरह से बेशर्मी पर उतर आए थे. अपने अच्छेभले जीवनसाथी को धोखा देते हुए दोनों जरा भी नहीं हिचकिचाए और एक दिन कविता और विनोद अपनाअपना परिवार छोड़ घर से ही भाग गए.

रेखा तो जैसे पत्थर की हो गई. अनिल ने भी अपनेआप को जैसे घर में बंद कर लिया. दोनों परिवार शर्म से एकदूसरे से नजरें बचा रहे थे. हैरत तो तब हुई जब 10 दिन बाद दोनों बेशर्मी से अपनेअपने घर लौट कर माफी मांगने का अभिनय करने लगे.

रेखा सब के समझाने पर बिना कोई प्रतिक्रिया दिए भावशून्य बनी चुप रह गई. बच्चों का मुंह देख कर होंठ सी लिए. विनोद को उस के अपने मातापिता और रेखा के परिवार ने बहुत जलील किया पर अंत में दिखावे के लिए ही माफ किया. सब के दिलों पर चोट इतनी गहरी थी कि जीवन भर ठीक नहीं हो सकती थी.

कविता को अनिल ने घर में नहीं घुसने दिया. उसे तलाक दे दिया. बाद में अनिल अपना घर बेच कर बच्चों को ले कर दूसरे शहर चला गया. लोगों की बातों से बचने के लिए, बच्चों के भविष्य का ध्यान रखते हुए रेखा का परिवार भी किसी दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया. रेखा को विनोद पर फिर कभी विश्वास नहीं हुआ. दोस्ती से उस का मन हमेशा के लिए खट्टा हो गया. उस ने फिर किसी से कभी दोस्ती नहीं की. बस बच्चों को देखती और घर में रहती. विनोद हमेशा एक अपराधबोध से भरा रहता.

क्षणिक सुख

दोनों घटनाओं में अगर अपने भटकते मन पर नियंत्रण रख लिया जाता, तो कई घर बिखरने से बच जाते. कदम न बहकें, किसी का विश्वास न टूटे, इस तरह के विवाहेत्तर संबंधों में तनमन को जो खुशी मिलती है वह हर स्थिति में क्षणिक ही होती है. इन रिश्तों का कोई वजूद नहीं होता. ये जितनी जल्दी बनते हैं उतनी ही जल्दी टूट भी जाते हैं.

अपनी बेमानी खुशियों के लिए किसी के पति, किसी की पत्नी की तरफ अगर मन आकर्षित हो तो अपने मन को आगे बढ़ने से पहले ही रोक लें. इस रास्ते पर सिर्फ तबाही है, जीवन भर का दुख है, अपमान है. परपुरुष या परस्त्री से संबंध रख कर थोड़े दिन की ही खुशी मिल सकती है. ऐसे संबंध कभी छिपते नहीं.

यदि आप के वैवाहिक रिश्ते में कोई कमी, कुछ अधूरापन है तो अपने जीवनसाथी से ही इस बारे में बात करें, उसे ही अपने दिल का हाल बताएं. पति और पत्नी दोनों का ही कर्तव्य है कि अपना प्यार, शिकायतें, गुस्सा, तानेउलाहने एकदूसरे तक ही रखें.

स्थाई साथ पतिपत्नी का ही होता है. पतिपत्नी के साथ एकदूसरे के दोस्त भी बन कर रहें तो जीने का मजा ही और होता है. अपने चंचल होते मन पर पूरी तरह काबू रखें वरना किसी भी समय पोल खुलने पर अपनी और अपने परिवार की तबाही देखने के लिए तैयार रहें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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बंद कमरे में रहने लगे हैं तो कहीं आप भी तो नहीं है मानसिक बीमारी का शिकार

मानसिक बीमारी की चपेट में कमोवेश कभी न कभी हरकोई आ जाता है. अवसाद, अनिद्रा, तनाव, चिंता, भय, ये कुछ ऐसी मानसिक स्थितियां हैं, जिन्हें बीमारी कहना किसी को नागवार भी गुजर सकता है. हालांकि मनोचिकित्सकों का मानना है कि एक हद तक तो ये स्थितियां ठीक हैं, लेकिन जब ये सीमा के बाहर चली जाएं तो किसी को मानसिक तौर पर बीमार घोषित करने के लिए पर्याप्त होती हैं.

रोजमर्रा के जीवन में हम सब तनाव, भय, नाराजगी, नफरत जैसी मानसिक स्थितियों से अच्छी तरह परिचित हैं. किसी परिजन की मौत के दुख से भी हम सब कभी न कभी गुजरते ही हैं, लेकिन ये मानसिक स्थितियां बहुत ज्यादा देर या दिनों तक नहीं टिकतीं. एक समय के बाद हम स्वाभाविक जीवन में लौट आते हैं, लेकिन अगर कोई ऐसी मानसिक स्थिति से लंबे समय से गुजर रहा हो तो यह खतरे की घंटी है.

कुछ समय पहले तक समाज में किसी भी तरह की मानसिक समस्या का हल ओ झा, बाबा, तांत्रिक और  झाड़फूंक में ढूंढ़ा जाता था. अंधविश्वास और कुसंस्कार के चलते किसी भी तरह की मानसिक समस्या के लिए किसी ‘दूषित’ हवा भूतप्रेत के साए को जिम्मेदार मान कर लोग बाबाओं और तांत्रिकों की शरण में चले जाया करते थे.

गनीमत है कि कोविड-19 के कहर के दौरान किसी ने ज्यादा बात इन लोगों ने नहीं की. भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं, मंत्रियों और समर्थक मंत्रियों ने आयुर्वेद और गौमूत्र आदि की बात की पर इस बीमारी का भय इतना भयंकर था कि वे बातें जल्द ही घुल गईं. तालियों और थालियों से बात नहीं बनी तो लोगों को वैंटिलेटरों के पीछे ही भागना पड़ा.

क्या कहते हैं ऐक्सपर्ट

कोलकाता की मनोचिकित्सक का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हमारी आबादी में मोटेतौर पर महज 1% लोग जटिल और गंभीर मानसिक बीमारी के शिकार होते हैं और इस का इलाज करने में वक्त लग सकता है. बाकी 10% कुछ सामान्य मानसिक बीमारी से ग्रस्त होते हैं, जो गंभीर नहीं होती है. काउंसलिंग से ठीक हो सकते हैं. वहीं 30% लोग ऐसे हैं जो कभी भी ऐसी किसी बीमारी के चपेट में आ सकते हैं, अगर समय रहते सचेत नहीं हो जाते. इस के अलावा जो लोग किसी शारीरिक तकलीफ को ले कर चिकित्सा के लिए अस्पताल जाते हैं, उन में से 50% लोग दरअसल छिटपुट मानसिक समस्या के शिकार होते हैं.

ऐसे मामले में होता यह है कि ये लोग वाकई मानसिक तौर पर बीमार होते हैं या मानसिक बीमारी के कारण इन में तरहतरह के शारीरिक लक्षण उभर आते हैं, यह कोई ठीकठाक सम झ भी नहीं पाता है और सम झने की कोशिश भी नहीं करता है. इन में भी लगभग 4-5% लोग  झाड़फूंक और तंत्रमंत्र जैसे अवैज्ञानिक तरीके अपनाते हैं.

शरीर के आंखकान, हाथपैर, किडनियां, दिल, लिवर, आदि में अगर कोई बीमारी हो तो इस के लक्षण सामने आते हैं. उसी प्रकार एहसास, आवेग, चिंता, दुख, क्रोध आदि मन के भाव हैं और अगर मन में कोई बीमारी घर कर रही हो तो इस के भी लक्षण सामने आएंगे. मानसिक बीमारी के शारीरिक लक्षण भी दिखाई देते हैं. हफ्तों तक कमरों में बंद रहने और उन्हीं लोगों को 24 घंटों  झेलने के कारण भी अवसाद हो सकता है.

वजह मानसिक है

मानसिक बीमारी के 2 हिस्से हैं- न्यूरोसिस और साइकोसिस. न्यूरोसिस संबंधित मानसिक बीमारी में मन की भावना व आवेग एक स्वाभाविक सीमा से परे चले जाते हैं. जब किसी व्यक्ति के आवेग के कारण उस का अपना जीवन दुरूह बन जाता है बल्कि परिवार, शिक्षा, पेशेवर जीवन यहां तक कि समाज को भी जब प्रभावित करने लगता है, तभी यह मानसिक बीमारी का रूप ले लेता है.

इस के उलट कभीकभी मानसिक तनाव के लक्षण शारीरिक तौर पर नजर आते हैं. ऐसे मामलों में लक्षण शारीरिक होने के बावजूद इस के पीछे वजह मानसिक है, इस का प्रमाण शारीरिक जांच (लैबोरेटरी टैस्ट) में नहीं मिल पाता है.

न्यूरोसिस बीमारी के मामले में पीडि़त आमतौर पर वास्तविकता से अपना संबंधविच्छेद नहीं करता है. यहां तक कि पीडि़त के व्यक्तित्व में ऊपरी तौर पर भी कोई बदलाव नजर नहीं आता है. न्यूरोसिस संबंधित मानसिक बीमारी डिप्रैसिव डिसऔर्डर, ऐंग्जाइटी डिसऔर्डर, फोबिक डिसऔर्डर, अवसैसिव कंप्लसिव डिसऔर्डर हैं.

अब अगर केवल ऐंग्जाइटी डिसऔर्डर की ही बात करें तो यह 3 तरह का होता है.

जनरलाइज्ड ऐंग्जाइटी

इस से व्यक्ति हमेशा किसी न किसी बात को ले कर बेचैन व चिंतित रहता है.

फोबिक ऐंग्जाइटी:

इस ऐंग्जाइटी से पीडि़त व्यक्ति किसी स्थान या माहौल में जाने पर आशंकित हो जाता है या असुरक्षा महसूस करता है. ऐसा व्यक्ति नए माहौल और व्यक्तियों का सामना करने से कतराता है. ऐसी स्थिति ऐंगोराफोबिया कहलाती है, अनजान लोगों के बीच बलात्कार का भय होता है. यह स्थिति एग्राफोबिया कहलाती है.

पैनिक डिसऔर्डर

किसी विशेष व्यक्ति, माहौल या परिस्थिति के सामने न पड़ने के बावजूद कल्पना के वशीभूत हो कर पीडि़त उत्कंठा, बेचैनी या व्याकुल हो उठता है. मसलन, आज रात दिल का दौरा पड़ सकता है, इसी डर से रात आंखों ही आंखों में कट जाती है.

साइकोसिस से पीडि़त हरेक को अपना दुश्मन मान लेता है. उस के दिमाग में यह बात घर कर जाती है कि हरकोई उसे नुकसान पहुंचाने वाला है. हर तरफ उसे अपने खिलाफ षड्यंत्र की आशंका सताती रहती है. कुल मिला कर शक के वशीभूत हो जाता है. पीडि़त अजीबअजीब सी आवाजें सुनाई पड़ने या भूतप्रेत दिखने का दावा करता है.

ऐसे लोगों में आने वाले बदलाव से मानसिक डिसऔर्डर का पता चल जाता है. कई बार देखने में आता है कि पीडि़त अपनेआप से बातें करता है. एक ही बात को बारबार कहता है या घुमाफिरा कर वही सारी बातें करता है. हावभाव में अजीब सी बेचैनी होती है. कुल मिला कर व्यक्तित्व व हावभाव में कोई तारताम्य नजर नहीं आता है.

कुछ केस हिस्टरी

हम यहां ऐसे ही कुछ मामलों का हवाला दे रहे हैं:

एमबीए करने के बाद पल्लवी को एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में अच्छे पद पर काम करने का मौका मिला. 10वीं मंजिल तक लिफ्ट से चढ़नेउतरने में उसे डर लगता. यह डर एक तरह से आतंक का रूप लेने लगा. जाहिर है, काम पर जाना ही उस के लिए मुश्किल हो गया. दफ्तर न जाने के बहाने ढूंढ़ने में काफी समय लगाने लगी. खोईखोई सी रहती. मन ही मन बड़बड़ती रहती. हर वक्त सिरदर्द की शिकायत रहती. जाहिर है, इस सब से उस के काम और कैरियर पर असर पड़ने लगा. सिरदर्द की शिकायत ले कर वह डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने दवा दे कर मन में किसी तरह के डर की बात कह कर काउंसलिंग के लिए कहा.

डाक्टर के यहां से निकल कर पल्लवी सोचने लगी कि वह किसी भी तरह से डरपोक लड़की तो नहीं है. फिर डाक्टर ने डर की बात क्यों कहीं. लेकिन इस बात को उस ने ज्यादा तूल नहीं दिया और दी गई दवा लेने लगी.

बेरुखी का सामना

कुछ दिन बाद सिरदर्द की शिकायत में कमी आई, लेकिन फिर जस का तस. इस बीच दफ्तर में सबकुछ गड़गड़ नजर आने लगा. अकसर बौस की  िझड़कियां, सहयोगियों की बेरुखी का सामना होने लगा.

तब पल्लवी ने काउंसलिंग को अजमाने का फैसला किया. काउंसलिंग के दौरान जो तथ्य निकल कर आया वह कुछ इस प्रकार था- पल्लवी बचपन में बहुत ही चंचल स्वभाव की थी. अकसर ‘एडवैंचरस’ किस्म की बदमाशियां किया करती थीं. तब मां उसे भूत का डर दिखा कर शांत किया करती थी.

यही भूत का डर बचपन से उस के भीतर घर कर गया था और यह डर लिफ्ट से उतरतेचढ़ते समय पैदा हो गया. एलीवेटर से चढ़नेउतरने के दौरान अगर कभी भूल से पल्लवी की नजर नीचे की ओर जाती तो उसे यही एहसास होता है कि वह अब गिरी कि तब या फिर लिफ्ट अब टूट कर गिरी. काउंसलिंग के दौरान साफ हुआ कि पल्लवी एक्रोफोबिया की शिकार है. दरअसल, यह एक्रोफोबिया ऊंचाई का भय है. इस का इलाज कुछ मैडिसिन के साथ काउंसलिंग है.

एक अन्य मामले को लें. विवाहित और 3 बच्चों की मां लावणी की उम्र 35 साल है. पति का अपना कारोबार है. घर पर किसी चीज की कोई कमी नहीं है. न तो पति के परिवार का कोई करीबी है और न ही उस के मां के परिवार का. दोनों अपनेअपने परिवार में इकलौते हैं.

जाहिर है घर पर किसी तरह का कोई पारिवारिक मामला भी नहीं है. बावजूद इस के जब से कोविड-19 के कारण मौतों के समाचार देखनेसुनने को मिलने लगे तो रात को वह सो नहीं पाती है. अगर आंख लगी भी तो महज घंटे या 2 घंटे के लिए. इस के बाद नींद एकदम से जाने कहां हवा हो जाती है और फिर सारी रात बिस्तर पर करवट बदलते बीत जाती है.

छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा

नतीजा सुबह से चिड़चिड़ापन उसे घेर लेता है. छोटीमोटी बातों पर गुस्सा और फिर सुबह से ही घर का माहौल बिगड़ जाता. किसी भी काम में मन नहीं लगता. भूख भी नहीं लगती. हर वक्त मन में एक अजीब सी छटपटाहट रहती है. काउंसलिंग से पता चला कि लावणी फोबिया ऐंग्जाइटी डिसऔर्डर से पीडि़त है. उस के मन में अचानक यह डर बैठ गया कि हो सकता है किसी दिन उसे दिल का दौरा पड़ जाए, तब उस के बच्चों का क्या होगा.

हमारी आजकल की जीवनशैली कोविड-19 के बाद भी एक हद तक मानसिक बीमारी के लिए जिम्मेदार है. समाज के लिए यह बड़ी चुनौती बन गई है. लोग सिमट गए हैं, समाज सिमट गया है. लोग अपनीअपनी कोठरियों में बंद हैं. एक पड़ोसी को दूसरे की खबर नहीं होती. टीवी की संस्कृति ने लोगों को अपने में जीने की आदत डाल दी है.

यही सब स्थितियां मानसिक बीमारी का कारण बन रही हैं. व्हाट्सऐप पर जम कर बकवास बंट रही है और लोगों ने किताबें, पत्रिकाएं और समाचारपत्र पढ़ने बंद कर दिए हैं जिन से प्रामाणिक जानकारी मिलती थी. अभी भी हर समय खौफ सा छाया रहता है कि न जाने कब कोरोना का नया वैरिएंट निकल आए.

सजा किसे मिली: पाबंदियों से घिरी नन्ही अल्पना की कहानी

Serial Story: सजा किसे मिली (भाग-3)

प्रमाण की बात सुनते ही अल्पना गुस्से से थरथराती हुई राहुल को मारने के लिए झपटी. वह तेजी से हटा तो सामने रखी टेबल से अल्पना टकराई और जमीन पर गिर गई. असहनीय दर्द से पेट पकड़ कर वह वहीं बैठ गई.

राहुल ने उसे उठाना चाहा तो उस ने चिल्ला कर कहा, ‘मुझे छूना मत…तुम ने मुझे धोखा दिया…तुम मेरी जिंदगी में न कभी थे, न हो और न ही रहोगे…चले जाओ मेरे घर से.’

राहुल अपना सामान समेट कर चला गया…पूरी रात वह रोती रही. पेट दर्द सहा नहीं गया तो उठ कर उस ने पेन किलर खा लिया. अल्पना को बारबार यही लगता रहा कि क्यों उसे किसी का प्यार और विश्वास नहीं मिलता. पहले मातापिता और अब राहुल…खैर सुबह तक पेटदर्द तो ठीक हो गया था पर मन अभी भी ठीक नहीं हुआ था.

क्या करे इस बच्चे का…माना कि यह बच्चा उस की जिंदगी में जबरदस्ती आ गया है पर है तो उस का अपना अंश ही न, वह अकेली कैसे इस बच्चे की परवरिश कर पाएगी…क्या अपने बच्चे को वह प्यारदुलार और अपनत्व दे पाएगी जिस के लिए वह अपने मातापिता को दोष देती रही थी.

मन में अजीब सी कशमकश चल रही थी. अपने कैरियर के लिए जहां वह बच्चे का बलिदान देना चाहती थी वहीं उस के प्रति स्नेह भी जागने लगा था. वह जानती थी कि बिना विवाह के मां बनना समाज सह नहीं पाएगा…उस के मातापिता सुनेंगे तो जीतेजी ही मर जाएंगे. आज न जाने क्यों मां के शब्द उस के कानों में गूंज रहे थे, जो उन्होंने उसे राहुल के साथ रहते देख कहे थे, ‘बेटा, माना कि मैं तुझे उतना प्यार, दुलार नहीं दे पाई जिस की तू आकांक्षी थी. मैं अपराधिनी हूं तेरी…पर मेरे किए की सजा तू खुद को तो न दे. आज भी हमारा समाज विवाहपूर्व संबंधों को मान्यता नहीं देता है, ऐसे संबंध अवैध ही कहलाएंगे.’

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उस समय तो वह सिर्फ वही करना चाहती थी जिस से उस के मातापिता को चोट पहुंचे…राहुल, जिस पर उस ने विश्वास किया उस से ऐसी उम्मीद नहीं थी. बारबार राहुल के शब्द उस के दिलोदिमाग में गूंज कर उस के अस्तित्व को नकारने लगते कि मैं तुम्हारी जैसी लड़की के साथ संबंध कैसे बना सकता हूं जो विवाह जैसी संस्था में विश्वास ही न करती हो.

कभी मन करता कि आत्महत्या कर ले पर तभी मन उसे धिक्कारने लगता…उसे अपनी वार्डन के शब्द याद आते कि जीवन से भागना बेहद आसान है बेटा, लेकिन कुछ सार्थक करना बेहद ही कठिन, पर तुम ने तो आसान राह ढूंढ़ ली है.

वह कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी. आफिस में छुट्टी की अर्जी भिजवा दी थी. कशमकश इतनी ज्यादा थी कि उस का न बाहर निकलने का मन कर रहा था और न ही किसी से मिलने का. पेट में दर्द उठता पर वह डाक्टर को दिखाने के बजाय दर्दनाशक दवा खा कर दबाने की कोशिश करती रही.

एक दिन जब वह ऐसे ही दर्द से तड़प रही थी तभी बीना मिलने आ पहुंची, उस की ऐसी दशा देख कर वह अचंभित रह गई तथा उसे जबरन अपनी गाड़ी में बिठा कर डाक्टर के पास ले गई…

डाक्टर ने उसे चेकअप करवाने के लिए कहा.

सोनोग्राफी की रिपोर्ट देख कर डाक्टर उस पर बहुत गुस्सा हुई तथा बोली, ‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया कि तुम गर्भवती हो.’

उस को कोई उत्तर न देते देख वह फिर बोली, ‘तुम लड़कियों की यही तो समस्या है…जरा भी सावधानी नहीं बरततीं…क्या पेट में तुम्हें कोई चोट लगी थी…अपने पति को बुलवा लो, क्योंकि तुम्हारा शीघ्र आपरेशन करना पड़ेगा. लगता है किसी चोट के कारण तुम्हारा बच्चा मर गया है और उसी के इन्फेक्शन से पेट में दर्द हो रहा है.’

डाक्टर की बात सुन कर वह दोनों चौंक गईं. बीना ने बात बनाते हुए कहा, ‘डाक्टर, आपरेशन कब करना पडे़गा. दरअसल इन के पति कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं. उन का इतनी जल्दी आना संभव नहीं है.’

‘आपरेशन कल ही करना पड़ेगा. कोई तो रिश्तेदार होंगे…उन्हें जल्द बुलवा लो…हम इन्हें आज ही एडमिट कर लेते हैं.’

बीना ने अल्पना को देखा फिर डाक्टर की ओर मुखातिब होती हुई बोली, ‘डाक्टर, मैं ही इन की जिम्मेदारी लेती हूं क्योंकि इन का कोई भी रिश्तेदार इतनी जल्दी नहीं आ सकता.’

अल्पना के मना करने पर भी बीना ने उस के मातापिता को फोन कर दिया था. उन्होंने तुरंत आने की बात कही. उन के आने से पहले ही वह आपरेशन थिएटर में जा चुकी थी. बेहोशी की हालत में भी डाक्टर के शब्द उस के कानों में पड़ ही गए, ‘इस के यूट्रस में इन्फेक्शन इतना फैल गया है कि अगर निकाला नहीं तो जान जाने का खतरा है. बाहर जा कर इन के रिश्तेदारों से इजाजत ले लो.’

उस के बाद क्या हुआ पता नहीं. सुबह जब आंख खुली तो मम्मीपापा को अपने पास बैठा पाया. उन को देखते ही उस की नफरत फिर से भड़क उठी थी, अगर उसे उन का प्यार और अपनत्व मिलता तो उस के साथ ऐसे हादसे ही क्यों होते? अगर उस समय नर्स नहीं आती तो वह पता नहीं क्याक्या कह बैठती.

‘‘बेटा, कुछ खा ले वरना ताकत कैसे आएगी?’’ आवाज सुनते ही अल्पना अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गई. नर्स पता नहीं कब चली गई थी. मां हाथ में फलों की प्लेट लिए खाने का इसरार कर रही थीं तथा उन के पास ही बैठे पापा आशा भरी नजरों से उसे देख रहे थे. उस ने बिना कुछ कहे ही मुंह फेर लिया क्योंकि वह जानती थी कि मां की आंखों से आंसू बह रहे होंगे पर वह अपने दिल के हाथों विवश थी.

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बारबार एक ही विचार उस के मन में आ रहा था कि माना मातापिता उस की उचित परवरिश न कर पाने के लिए दोषी थे पर हर सुविधा मिलने के बावजूद उस ने भी कौन सा अच्छा काम किया. दूसरों को दोष देना तो बहुत आसान है पर जिंदगी बनानाबिगाड़ना तो इनसान के अपने हाथ में है.

अल्पना समझ नहीं पा रही थी कि कुदरत ने औरत को इतना कमजोर क्यों बनाया है कि एक छोटा सा आंधी का झोंका उस के सारे वजूद को हिला कर रख देता है. सब से ज्यादा दुख तो उसे इस बात का था कि हादसे में उस के गर्भाशय को निकाल देना पड़ा…अपूर्ण औरत बन कर वह कैसे जीएगी?

मां ने तो अपने कैरियर के लिए उस की तरफ ध्यान नहीं दिया पर उस ने तो उन्हें दुख देने के लिए ही यह सब किया…उस का तो यही हश्र होना था. पर वह अभी भी नहीं समझ पा रही थी कि सजा किसे मिली?

Serial Story: सजा किसे मिली (भाग-2)

पूर्व कथा

अस्पताल में पड़ी अल्पना की आंखों में अतीत चलचित्र की भांति घूमने लगा.

अल्पना संपन्न परिवार के कामकाजी मातापिता की इकलौती बेटी थी. मातापिता की व्यस्तता के कारण अल्पना ने बोलनाचलना दादी और आया की गोद में सीखा था.

10 वर्ष की होने पर उसे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया. वह छुट्टियों में घर आती थी. लेकिन व्यस्तता के कारण उस के मातापिता के पास उस के लिए समय नहीं था. धीरेधीरे अल्पना के मन में अपने मातापिता के प्रति नफरत पनपने लगी.

एक बार वह छुट्टियों में अपनी सहेली स्नेहा के घर जाती है. वहां जा कर उसे घर और मां के स्नेह का एहसास होता है.

अपने घर आने पर वही सूनापन उस पर हावी होने लगता है और वह वापस होस्टल लौट जाती है.

दोबारा छुट्टियां पड़ने पर वह वार्डन को घर जाने से मना कर देती है. सभी लोग उसे समझाते हैं पर अल्पना साफ इनकार कर देती है. होस्टल में सभी लोग उस के मातापिता के बारे में पूछते हैं लेकिन अल्पना कारण पूछने पर चुप्पी साध लेती है. नतीजा यह होता है कि फर्स्ट टर्म में वह फेल हो जाती है. अब आगे…

गतांक से आगे…

अल्पना की यह दशा देख कर एक दिन मिस सुजाता ने उसे बुला कर कहा था, ‘बेटा, तुम्हें देख कर मुझे अपना बचपन याद आता है…यही अकेलापन, यही सूनापन…मैं ने भी सबकुछ भोगा है…अपने मातापिता के मरने के बाद चाचाचाची के ताने, चचेरे भाईबहनों की नफरत…सब झेली है मैं ने. पर मैं कभी जीवन से निराश नहीं हुई बल्कि जितनी भी मन में चोटें पड़ती गईं, उतनी ही विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का साहस मन में पैदा होता गया.

‘जीवन से भागना बेहद आसान है बेटा, लेकिन कुछ सार्थक करना बेहद कठिन…पर तुम ने तो आसान राह ढूंढ़ ली है…न जाने तुम ने यह कैसी ग्रंथि पाल ली है कि तुम्हारे मातापिता तुम्हें प्यार नहीं करते हैं…हो सकता है उन की कुछ मजबूरी रही हो जिसे तुम अभी समझ नहीं पा रही हो.

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‘तुम्हारे मातापिता तो हैं पर जरा उन बच्चों के बारे में सोचो जो अनाथ हैं, बेसहारा हैं या दूसरों की दया पर पल रहे हैं…फिर ऐसा कर के तुम किसे कष्ट दे रही हो, अपने मातापिता को या खुद को…जीवन तो तुम्हारा ही बरबाद होगा…जीवन बहुत बहुमूल्य है बेटा, इसे व्यर्थ न होने दो.’

दूसरों की तरह वार्डन का समझाना भी उसे बेहद नागवार गुजरा था…पर उन की एक बात उस के दिमाग में रहरह कर गूंज रही थी…जीवन से भागना बेहद आसान है बेटा, पर कुछ सार्थक करना बेहद कठिन…उस ने सोच लिया था कि अब से वह दूसरों के बारे में न कुछ कहेगी और न ही कुछ सोचेगी…जीएगी तो सिर्फ अपने लिए…आखिर जिंदगी उस की है.

सब तरफ से ध्यान हटा कर उस ने पढ़ने में मन लगा लिया…पहले जहां वह ऐसे ही पास होती रही थी अब मेरिट में आने लगी. सभी उस में परिवर्तन देख कर चकित थे. हायर सेकंडरी में उस ने अपने स्कूल में द्वितीय स्थान प्राप्त किया. इस के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली आई. कंप्यूटर साइंस में बी.एससी. करने के बाद वहीं से एम.एससी. करने लगी पर तब भी वह अपने घर नहीं गई. इस दौरान उस के मातापिता ही मिलने आते रहे पर वह निर्विकार ही रही.

एक बार उस की मां ने कहा, ‘बेटा, 1-2 अच्छे लड़के मेरी निगाह में हैं, अगर तू देख कर पसंद कर ले तो हमारी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी.’

‘किस जिम्मेदारी की बात कर रही हैं आप? अब तक आप ने कौन सी जिम्मेदारी निभाई है? जब बच्चे को मां का आंचल चाहिए तब आप ने मुझे क्रेच में डाल दिया, जब एक बेटी को मां के प्यार और अपनेपन की जरूरत थी तब होस्टल में डाल दिया…यह भी नहीं सोचा कि आप की मासूम बेटी अपने नन्हेनन्हे हाथों से खाना कैसे खाती होगी, कैसे स्कूल के लिए तैयार होती होगी…

‘आप को मुझ से नहीं, अपने कैरियर से ही प्यार था…बारबार आप क्यों आ कर मेरे दंश को और गहरा कर देती हैं…मैं ने तो मान लिया कि मेरा कोई नहीं है…आप भी यही मान लीजिए…जहां तक विवाह का प्रश्न है, मुझे विवाह के नाम से नफरत है…ऐसे बंधन से क्या लाभ जिस में 2 इनसान जकड़े तो रहें पर प्यार का नामोनिशान ही न हो…दैहिक सुख से उत्पन्न संतान के प्रति जिम्मेदारी का एहसास तक न हो.’

मां चली गई थीं. उन की आंखों से निकलते आंसू उसे सुकून दे रहे थे, मानो उस में दिल नाम की चीज ही नहीं रह गई थी…तभी तो उन्हें देखते ही न जाने उसे क्या हो जाता था कि वह जहर उगलने लगती थी…पर यह भी सच है कि उन के जाने के बाद वह घंटों अपने ही अंतर्कवच में कैद बैठी रह जाती थी.

एक ऐसे ही क्षण जब वह अपने कमरे में अकेली बैठी थी तब राहुल ने अंदर आते हुए उस से कहा, ‘अंधेरे में क्यों बैठी हो, अल्पना…याद नहीं है प्रोजेक्ट के लिए डाटा कलेक्ट करने जाना है.’

‘बस, एक मिनट रुको…ड्रेस चेंज कर लूं,’ अंतर्कवच से बाहर निकल कर उस ने कहा था.

राहुल उस का क्लासमेट था…पढ़ाई में जबतब उस की मदद किया करता था, प्रोजेक्ट भी उन्हें एक ही मिला था अत: साथसाथ आनेजाने के कारण उन में मित्रता हो गई थी.

एक दिन वे प्रोजेक्ट कर के लौट रहे थे. राहुल को परेशान देख कर उस ने परेशानी का कारण पूछा तो राहुल ने कहा, ‘मेरा मकान मालिक घर खाली करने को कह रहा है, समझ में नहीं आता कि क्या करूं, कहां जाऊं. 1-2 जगह पता किया तो किराया बहुत मांगते हैं और उतना दे पाने की मेरी हैसियत नहीं है.’

‘तुम मेरा रूम शेयर कर लो. हम दोनों साथ पढ़ते हैं, साथसाथ जाते हैं…एक जगह रहने से सुविधा हो जाएगी.’

‘पर….’

‘पर क्या? मैं किसी की परवा नहीं करती…जो मुझे अच्छा लगता है वही करती हूं.’

दूसरे दिन ही राहुल शिफ्ट हो गया था. उस की मित्र बीना ने उस के इस फैसले पर विरोध करते हुए उसे चेतावनी भी दी थी पर उस का यही कहना था कि उसे किसी की परवा नहीं है, उस की जिंदगी है, जैसे चाहे जीए. किसी को कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है.

बीना ने यह सब कुछ अल्पना की मां को बता दिया तो वह उसे समझाने आईं, फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ी रही तो मां ने पैसा न भेजने का निर्णय सुना दिया. इस पर उस ने भी क्रोध में कह दिया था, ‘आज तक आप ने दिया ही क्या है…सिर्फ पैसा ही न, अगर वह भी नहीं देना चाहतीं तो मत दीजिए, मुझे उस की भी कोई परवा नहीं है.’

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मां रोते हुए और पापा क्रोधित हो कर चले गए थे. उस दिन उसे बेहद सुकून मिला था. पता नहीं क्यों जबजब वह मां को रोते हुए देखती, उसे लगता जैसे उस के दुखते घावों में किसी ने मरहम लगा दिया हो.

उसी दिन न जाने उसे क्या हुआ कि उस ने राहुल के सामने समर्पण कर दिया. राहुल ने आनाकानी भी की तो वह बोली, ‘जब मुझे कोई परेशानी नहीं है तो तुम्हें क्यों है? फिर मैं विवाह के लिए तो कह नहीं रही हूं. हम जब चाहेंगे अलग हो जाएंगे.’

पढ़ाई पूरी होते ही उन की नौकरी लग गई. किंतु एक ही शहर में होने के कारण उन का संबंध कायम रहा.

पूरी सावधानी बरतने के बाबजूद एक दिन अल्पना को लगा जैसे उस के शरीर में कुछ ऐसा हो रहा है जो वह पहली बार महसूस कर रही है. वह राहुल को इस बारे में बताना चाहती ही थी कि उस ने कहा, ‘अल्पना, मांपिताजी विवाह के लिए जोर डाल रहे हैं, अब मुझे दूसरा घर ढूंढ़ना होगा.’

राहुल की बात सुन कर अल्पना चौंक गई और बोली, ‘तुम ऐसा कैसे कर सकते हो. और मुझे ऐसी हालत में छोड़ कर तुम कैसे जा सकते हो?’

‘कैसी हालत?’ राहुल बोला.

‘मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

‘यह तुम्हारी प्रोब्लम है, इस में मैं क्या कर सकता हूं?’

‘सहयोगी तो तुम भी रहे हो.’

‘वह तो तुम्हारी वजह से…तुम्हीं ने कहा था कि जब मुझे एतराज नहीं है तो तुम्हें क्यों है…अब तुम भुगतो?’

‘ऐसा तुम कैसे कह सकते हो…तुम तो मेरे मित्र, हमदर्द रहे हो.’

‘देखो अल्पना, पिताजी मेरा विवाह तय कर चुके हैं और उन्हें मना करना मेरे लिए संभव नहीं है. फिर मैं तुम्हारी जैसी लड़की के साथ संबंध कैसे बना सकता हूं जो विवाह जैसी संस्था में विश्वास ही न करती हो और विवाह से पहले ही अपना शरीर किसी को दे देने में उसे कुछ आपत्तिजनक नहीं लगता हो.’

‘परंपराओं की दुहाई मत दो, राहुल. तुम भी विवाह से पहले संबंध बना चुके हो. क्या तुम उस लड़की के साथ अन्याय नहीं करोगे जिस के साथ तुम विवाह कर रहे हो?’

‘मेरी बात और है, मैं पुरुष हूं… फिर तुम्हारे पास प्रमाण क्या है?’

आगे पढ़ें- प्रमाण की बात सुनते ही अल्पना गुस्से से…

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Serial Story: सजा किसे मिली (भाग-1)

नन्ही अल्पना के मातापिता के पास अपनी मासूम बेटी के लिए समय नहीं था. ऊपर से उन के द्वारा लगाई गई पाबंदियां थीं, सो अलग. अकेलेपन की शिकार अल्पना के बालमन में धीरेधीरे अपने मातापिता के प्रति नफरत के बीज अंकुरित होने लगे.

अल्पना की आंखें खुलीं तो खुद को अस्पताल के बेड पर पाया. मां फौरन उस के पास आ कर बोलीं, ‘‘कैसी है, बेटी. इतनी बड़ी बात तू ने मुझ से छिपाई… मैं मानती हूं कि अच्छी परवरिश न कर पाने के कारण तू अपने मातापिता को दोषी मानती है पर हैं तो हम तेरे मांबाप ही न…तुझे दुखी देख कर भला हम खुश कैसे रह सकते हैं…’’

‘‘प्लीज, आप इन से ज्यादा बातें मत कीजिए…इन्हें आराम की सख्त जरूरत है,’’ उसी समय राउंड पर आई डाक्टर ने मरीज से बातें करते देख कर कहा तथा नर्स को कुछ जरूरी हिदायत देती हुई चली गई.

अल्पना कुछ कह पाती उस से पहले ही नर्स आ गई तथा उस ने उस के मम्मीपापा से कहा, ‘‘इन की क्लीनिंग करनी है, कृपया थोड़ी देर के लिए आप लोग बाहर चले जाएं.’’

नर्स साफसफाई कर रही थी पर अल्पना के मन में उथलपुथल मची हुई थी. वह समझ नहीं पा रही कि उस से कब और कहां गलती हुई…उसे लगा कि मातापिता को दुख पहुंचाने के लिए ऐसा करतेकरते उस ने खुद के जीवन को दांव पर लगा दिया…अतीत की घटनाओं के खौफनाक मंजर उस की आंखों के सामने से किताब के एकएक पन्ने की तरह आ- जा रहे थे.

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वह एक संपन्न परिवार से थी. मातापिता दोनों के नौकरी करने के कारण उसे उन का सुख नहीं मिल पाया था. जब उसे मां के हाथों का पालना चाहिए था तब दादी की गोद में उस ने आंखें खोलीं, बोलना और चलना सीखा. वह डेढ़ साल की थी कि दादी का साया उस के ऊपर से उठ गया. अब उसे ले कर मम्मीपापा में खींचतान चलने लगी, तब एक आया का प्रबंध किया गया.

एक दिन ममा ने आया को दूध में पानी मिला कर उसे पिलाते तथा बचा दूध स्वयं पीते देख लिया. उस की गलती पर उसे डांटा तो उस ने दूसरे दिन से आना ही बंद कर दिया…अब उस की समस्या उन के सामने फिर मुंहबाए खड़ी थी. दूसरी आया मिली तो वह पहली से भी ज्यादा तेज और चालाक निकली. उसे अकेला छोड़ कर वह अपने प्रेमी के साथ गप लड़ाती रहती…पता लगने पर ममा ने उसे भी निकाल दिया…

वह 2 साल की थी, फिर भी उस के जेहन में आज भी क्रेच की आया का बरताव अंकित है. उस के स्वयं खाना न खा पाने पर डांटना, झल्लाना, यहां तक कि मारना…पता नहीं और भी क्याक्या… दहशत इतनी थी कि जब भी मां उसे क्रेच में छोड़ने के लिए जातीं तो वह पहले से ही रोने लगती थी पर ममा को समय से आफिस पहुंचना होता था अत: उस के रोने की परवा न कर वह उसे आया को सौंप कर चली जाती थीं.

जब वह पढ़ने लायक हुई तब स्कूल में उस का नाम लिखवा दिया गया. स्कूल की छुट्टी होती तो कभी ममा तो कभी पापा उसे स्कूल से ला कर घर छोड़ देते तथा उस से कहते कि उन के अलावा कोई भी आए तो दरवाजा मत खोलना और न ही बाहर निकलना. देखने के लिए दरवाजे में आई पीस लगवा दिया था.

एक दिन वह पड़ोस में रहने वाले सोनू की आवाज सुन कर बाहर चली गई तथा खेलने लगी तभी ममा आ गईं. खुला घर तथा उसे बाहर खेलते देख वह क्रोधित हो गईं…दूसरे दिन से वह उसे बाहर से बंद कर के जाने लगीं…एक दिन उसे न जाने क्या सूझा कि घर की पूरी चीजें जो उस के दायरे में थीं, उस ने नीचे फेंक दीं…उस दिन उस की खूब पिटाई हुई और मम्मीपापा में भी जम कर झगड़ा हुआ.

ममा की परेशानी देख कर सोनू की मम्मी ने स्कूल के बाद उसे अपने घर छोड़ कर जाने के लिए कहा तो वह बहुत खुश हुई…साथ ही मम्मीपापा की समस्या भी हल हो गई. 4 साल ऐसे ही निकल गए. पर तभी सोनू के पापा का तबादला हो गया. फिर वही समस्या.

बड़ी होने के कारण अब उस के स्कूल का समय बढ़ गया था तथा अब वह पहले से भी ज्यादा समझदार हो गई थी. उस ने अपनी स्थिति से समझौता कर लिया था, ममा के आदेशानुसार वह उन के या पापा के आफिस से आने पर उन की आवाज सुन कर ही दरवाजा खोलती, किसी अन्य की आवाज पर नहीं. एकांत की विभीषिका उसे तब भी परेशान करती पर जैसेजैसे बड़ी होती गई उसे पढ़ाने और होमवर्क कराने को ले कर मम्मीपापा में तकरार होने लगी.

अभी वह 10 वर्ष की ही थी कि उसे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया. वहां मम्मीपापा हर महीने उस से मिलने जाते, उस के लिए अच्छीअच्छी गिफ्ट लाते, पूरा दिन उस के साथ गुजारते पर शाम को उसे जब होस्टल छोड़ कर जाने लगते तो वह रो पड़ती थी. तब ममा आंखों में आंसू भर कर कहतीं, ‘बेटा, मजबूरी है. जो मैं कर रही हूं वह तेरे भविष्य के लिए ही तो कर रही हूं.’

वह उस समय समझ नहीं पाती थी कि यह कैसी मजबूरी है. सब के बच्चे अपने मम्मीपापा के पास रहते हैं फिर वह क्यों नहीं…पर धीरेधीरे वह अपनी हमउम्र साथियों के साथ घुलनेमिलने लगी क्योंकि सब की

एक सी ही

कहानी थी…वहां अधिकांशत: बच्चों को इसलिए होस्टल में डाला गया था क्योंकि किसी की मां नहीं थी तो किसी के घर का माहौल अच्छा नहीं था, किसी के मातापिता उस के मातापिता की तरह ही कामकाजी थे तो कोई अपने बच्चों के उन्नत भविष्य के लिए उन्हें वहां दाखिल करवा गए थे.

छुट्टी में घर जाती तो मम्मीपापा की व्यस्तता देख उसे लगता था कि इस से तो वह होस्टल में ही अच्छी थी. कम से कम वहां बात करने वाला कोई तो रहता है. धीरेधीरे उस के मन में विद्रोह पैदा होता गया. उसे मम्मीपापा स्वार्थी लगने लगे. जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए उसे पैदा तो कर दिया पर उस की जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहते.

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आखिर एक बच्चे को अच्छे कपड़ों, अच्छे खिलौनों के साथसाथ और भी तो कुछ चाहिए, यह साधारण सी बात वह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं या जानतेबूझते हुए भी समझना नहीं चाहते हैं. एक बार उस ने पूछ ही लिया, ‘मैं आप की ही बेटी हूं या आप कहीं से मुझे उठा तो नहीं लाए हैं.’

उस की मनोस्थिति समझे बिना ही ममा भड़क कर बोलीं, ‘कैसी बातें कर रही है…कौन तेरे मन में जहर घोल रहा है?’

मम्मा आशंकित मन से पापा की ओर देखने लगीं. पापा भी चुप कहां रहने वाले थे. बोल उठे, ‘शक क्यों नहीं करेगी. कभी प्यार के दो बोल बोले हैं. कभी उस के पास बैठ कर उस की समस्याएं जानने की कोशिश की है…तुम्हें तो बस, हर समय काम ही काम सूझता रहता है.’

‘तो तुम क्यों नहीं उस से समस्याएं पूछते…तुम भी तो उस के पिता हो. क्या बच्चे को पालने की सारी जिम्मेदारी मां को ही निभानी पड़ती है.’

दोनों में तकरार इतनी बढ़ी कि उस दिन घर में खाना ही नहीं बना. ममा गुस्से में चली गईं. लगभग 10 बजे पापा हाथ में दूध तथा ब्रैड ले कर आए और आग्रह से खाने के लिए कहने लगे पर उसे भूख कहां थी. मन की बात जबान पर आ ही गई, ‘पापा, अगर किसी को मेरी आवश्यकता नहीं थी तो मुझे इस दुनिया में ले कर ही क्यों आए? मेरी वजह से आप और ममा में झगड़ा होता है…मुझे कल ही होस्टल छोड़ दीजिए. मेरा यहां मन नहीं लगता.’

पापा ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘ऐसा नहीं कहते बेटा, यह तेरा घर है.’

‘घर, कैसा घर, पापा…मैं पूरे दिन अकेली रहती हूं. आप और ममा आते भी हैं तो सिर्फ अपनीअपनी समस्याएं ले कर. मेरे लिए आप दोनों के पास समय ही नहीं है.’

पापा उदास मन से आफिस चले गए थे पर उस दिन उसे अपने मन में बारबार उमड़ती बात कहने पर बहुत संतोष मिला था…

इस अकेलेपन के बावजूद उस के पास कुछ खुशनुमा पल थे…गरमियों की छुट्टियों में जब वे 15 दिन किसी हिल स्टेशन पर घूमने जाते…उस के जन्मदिन पर उस की मनपसंद ड्रेस के साथ उस को उपहार भी खरीदवाया जाता…यहां तक कि होस्टल में वार्डन से इजाजत ले कर उस के जन्मदिन पर एक छोटी सी पार्टी आयोजित की जाती तथा उस के सभी दोस्तों को गिफ्ट भी दी जाती.

फिर जैसेजैसे वह बड़ी होती गई अपनों के प्यार से तरसते मन में विद्रोह का अंकुर पनपने लगा…यही कारण था कि पहले जहां वह चुप रहा करती थी, अब अपने मन की भड़ास निकालने लगी थी तथा उन की इच्छा के खिलाफ काम करने लगी थी.

ऐसा कर के वह न केवल सहज हो जाया करती थी वरन मम्मीपापा के लटके चेहरे देख कर उसे असीम आनंद मिलने लगा था. जाने क्यों उसे लगने लगा था, जब इन्हें ही मेरी परवा नहीं है तो मैं ही इन की परवा क्यों करूं.

इसी मनोस्थिति के चलते एक बार वह छुट्टियों में अपने घर न आ कर अपनी मित्र स्नेहा के घर चली गई. वहां उस की मम्मी के प्यार और अपनत्व ने उस के सूने मन में उत्साह का संचार कर दिया…वहीं उस ने जाना कि घर ऊंचीऊंची दीवारों से नहीं, उस में रहने वाले लोगों के प्यार और विश्वास से बनता है. उस का घर तो इन के घर से भी बड़ा था, सुखसुविधाएं भी ज्यादा थीं पर नहीं थे तो प्यार के दो मीठे बोल, एकदूसरे के लिए समय…प्यार और विश्वास का सुरक्षित कवच…वास्तव में प्यार से बनाए मां के हाथ के खाने का स्वाद कैसा होता है, उस ने वहीं जाना.

उन को स्नेहा की एकएक फरमाइश पूरी करते देख, एक बार उस ने पूछा था, ‘आंटी, आप ने स्नेहा को खुद से दूर क्यों किया?’

उन्होंने तब सहज उत्तर दिया था, ‘बेटा, यहां कोई अच्छा स्कूल नहीं है…स्नेहा के भविष्य के लिए हमें यह निर्णय करना पड़ा. स्नेहा इस बात को जानती है अत: इस ने इसे सहजता से लिया.’

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घर न आने के लिए मां का फोन आने पर उस ने रूखे स्वर में उत्तर दिया, ‘मैं यहीं अच्छी हूं. आप और पापा ही घूम आओ…मैं नहीं जाऊंगी क्योंकि लौट कर आने के बाद तो आप और पापा फिर नौकरी पर जाने लगोगे और मुझे अकेले ही घर में रहना पडे़गा. मैं यहां स्नेहा के पास ही अच्छी हूं. कम से कम यहां मुझे घर होने का एहसास तो हो रहा है.’

अल्पना का ऐसा व्यवहार देख कर स्नेहा की मां ने अवसर पा कर उसे समझाते हुए कहा, ‘बेटा, तुम मेरी बेटी जैसी हो, मेरी बात का गलत अर्थ मत लगाना…एक बात मैं तुम से कहना चाहती हूं, अपने मातापिता को तुम कभी गलत मत समझना…शायद उन की भी कोई मजबूरी रही होगी जिसे तुम समझ नहीं पा रही हो.’

‘आंटी, अपने बच्चे की परवरिश से ज्यादा एक मातापिता के लिए और भी कुछ जरूरी है?’

‘बेटा, सब की प्राथमिकताएं अलगअलग होती हैं…कोई घरपरिवार के लिए सबकुछ त्याग देता है तो कोई अपने कैरियर को भी जीवन का ध्येय मानते हुए घरपरिवार को सहेजना चाहता है. तुम्हारी मां कैरियर वुमन हैं, उन्हें अपने कैरियर से प्यार है पर इस का यह अर्थ कदापि नहीं कि वह तुम से प्यार नहीं करतीं. मैं जानती हूं कि वह तुम्हें ज्यादा समय नहीं दे पातीं पर क्या उन्होंने तुम्हें किसी बात की कमी होने दी?’

आंटी की बात मान कर अल्पना घर आई तो मां उसे अपने सीने से लगा कर रो पड़ीं. पापा का भी यही हाल था. हफ्ते भर मां छुट्टी ले कर उस के पास ही रहीं…उस से पूछपूछ कर खाना बनाती और खिलाती रहीं.

तब अचानक उस का सारा क्रोध आंखों के रास्ते बह निकला था. तब उसे एहसास हुआ था कि मां की बराबरी कोई नहीं कर सकता…पर जैसे ही उन्होंने आफिस जाना शुरू किया, घर का सूनापन उस के दिलोदिमाग पर फिर से हावी होता गया. अभी छुट्टी के 15 दिन बाकी थे पर लग रहा था जैसे उसे आए हुए वर्षों हो गए हैं.

शाम को मम्मीपापा के आने पर उन के पास बैठ कर वह ढेरों बातें करना चाहती थी पर कभी फोन की घंटी बज उठती तो कभी कोई आ जाता…कभी मम्मीपापा ही उस की उपस्थिति से बेखबर किसी बात पर झल्ला उठते जिस से घर का माहौल तनावपूर्ण हो उठता. यह सब देख कर मन में विद्रोह फिर पनपने लगा.

वह होस्टल जाने लगी तो ममा ने उस के लिए नई डे्रस खरीदी, जरूरत का अन्य सामान खरीदवाया, यहां तक कि उस की पसंद की खाने की कई तरह की चीजें खरीद कर रखीं, फिर भी न जाने क्यों इन चीजों में उसे मां का प्यार नजर नहीं आया. उस ने सोच लिया जब उन्हें उस से प्यार ही नहीं है, तो वही उन की परवा क्यों करे.

अब फोन आने पर वह ममा से ढंग से बातें नहीं करना चाहती थी…वह कुछ पूछतीं तो बस, हां या हूं में उत्तर देती. उस का रुख देख कर एक बार उस की ममा उस से मिलने भी आईं तो भी पता नहीं क्यों उन से बात करने का मन ही नहीं किया…मानो वह अपने मन के बंद दरवाजे से बाहर निकलना ही नहीं चाह रही हो.

छुट्टियां पड़ीं तो उस ने अपनी वार्डन से वहीं रहने का आग्रह किया. पहले तो वह मानी नहीं पर जब उस ने उन्हें अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने उस के मम्मीपापा को सूचना दे कर रहने की इजाजत दे दी.

उस का यह रुख देख कर मम्मीपापा ने आ कर उसे समझाना चाहा तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘घर से तो मुझे यहीं अच्छा लगता है…कम से कम यहां मुझे अपनापन तो मिलता है…मैं यहीं रह कर कोचिंग करना चाहती हूं.’

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बुझे मन से वह दोनों वार्डन को उस का खयाल रखने के लिए कह कर चले गए.

कुछ दिन तो वह होस्टल में रही किंतु सूना होस्टल उस के मन के सूनेपन को और बढ़ाने लगा…अब उसे न जाने क्यों किसी से मिलना भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि वह जिस से भी मिलती वही उस के घर के बारे में पूछता और वह अपने घर के बारे में किसी को क्या बताती? अब न उस का पढ़ने में मन लगता और न ही किसी अन्य काम में…यहां तक कि वह क्लास भी मिस करने लगी…नतीजा यह हुआ कि वह फर्स्ट टर्म में फेल हो गई.

 

BBB 3: शहनाज गिल को छोड़ इस एक्ट्रेस के साथ रोमांस करेंगे सिद्धार्थ शुक्ला

बिग बौस 13 के विनर रह चुके एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला इन दिनों सुर्खियों में हैं. जहां बीते दिनों वह शहनाज गिल के साथ एक म्यूजिक वीडियो में रोमांस करते नजर आए थे तो वहीं अब एक नई हसीना के साथ कैमेस्ट्री दिखाते नजर आएंगे. दरअसल, एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला जल्द एक्ट्रेस सोनिया राठी जल्द ब्रोकन बट ब्यूटीफुल के तीसरे सीजन में दिखेंगे, जिसका टीजर आउट हो चुका है. आइए आपको बताते हैं क्या है वेब सीरीज में खास…

एकता कपूर के साथ काम करेंगे सिद्धार्थ

वेब सीरीज ब्रोकन बट ब्यूटीफुल सीजन 3 में सिद्धार्थ शुक्ला और सोनिया राठी बतौर लीड एक्टर नजर आएंगे. मेकर्स ने एक नया म्यूजिकल टीजर जारी किया है, जिसमें दोनों की कैमेस्ट्री देखने लायक है. शो में सिद्धार्थ शुक्ला, अगस्तस्य की भूमिका निभाने के लिए काफी एक्साइटेड हैं, जिसे शेयर करते हुए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा. ‘मैं ब्रोकन बट ब्यूटीफुल के अगले सींजन के साथ अपने जुड़ाव को लेकर एक्साइटेड हूं. यह शो काफी पसंद किया गया था. मैंने इस शो के बारे में बहुत अच्छी बातें सुनी है. मैं एकता कपूर के साथ इस शो में काम करने को लेकर उत्साहित हूं. मैं उनका सम्मान करता हूं और मैं काम करने के लिए आतुर हूं.’

 

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शूटिंग होगी जल्द शुरू

सिद्धार्थ के साथ स्क्रीन शेयर करने वाली एक्ट्रेस सोनिया एक उभरती हुईं एक्ट्रेस है और वह शो में रूही की भूमिका में नजर आने वाली हैं, जिसे लेकर उनका कहना है कि ‘मुझे रूमी की भूमिका बहुत पसंद आई, वह जिन चीजों के लिए अपना स्टैंड लेती है या अपनी बात रखती है, वह बहुत अच्छी बात है. इस शो में भावनाओं का उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा.’ ब्रोकन बट ब्यूटीफुल सीजन 3 की शूटिंग जल्द शुरू होगी.

 

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बता दें, फैंस के बीच शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला की जोड़ी काफी पसंद की जाती है, जिसके चलते दोनों बीते दिनों टोनी और नेहा कक्कड़ के न्यू सौंग शोना शोना की म्यूजिक वीडियो में काम करते नजर आए थे, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. अब देखना होगा कि इस फिल्म पर शहनाज का क्या रिएक्शन देखने को मिलता है.

 

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