Serial Story: अपने अपने शिखर (भाग-1)

पत्थरकोठी में नए साहब आ गए हैं, यह शहर के लिए नई खबर थी. डाक्टर साखी कांत को तो इस खबर का इंतजार था. यह जान कर उसे सुखद आश्चर्य हुआ था कि प्रशांत कुमार राय, आईएएस इस संभाग के नए कमिश्नर हो कर आ रहे हैं.

वह यहां के मिशनरी अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञा है. एमडी की डिगरी पाते ही अनुभव प्राप्त करने की इच्छा से उस ने यहां जौइन किया था. उस के पहले और बाद में इस अस्पताल में कई डाक्टर आएगए. कुछ ने सरकारी नौकरी कर ली, तो कुछ ने धनी बनने की लालसा में अपने नर्सिंग होम खोल लिए.

यहां के वातावरण और अस्पताल प्रशासन के सेवा मिशन से उस का निश्छल मन कुछ ऐसे मिला कि वह यहां ठहर गई या कहा जाए कि यहां रम गई. यहां के शांत और नैसर्गिक हरेभरे वातावरण ने उसे बांध लिया. दिन, महीने, साल बीतते चले गए और समयबद्ध व्यस्त दिनचर्या में उस के 15 वर्ष कैसे बीते पता नहीं चला. अब वह यहां की अनुभवी और सम्मानित डाक्टर है.

चौड़ेऊंचे पठार पर बने अस्पताल के बाहर उसे एक सुसज्जित छोटा सा कौटेज मिला है, जिस के 3 तरफ हराभरा बगीचा और आसपास गुलमोहर और अमलतास के वृक्ष हैं. सामने दूसरे पठार पर चर्च की ऊंची इमारत और चर्च से लगी हुई तलहटी में पत्थरों की चारदीवारी से घिरा कब्रिस्तान है. उस के आगे पहाड़ीनुमा सब से ऊंचे पठार पर दूर हट कर पत्थर कोठी है, जिसे सरकारी भाषा में कमिश्नर हाउस कहा जाता है. चर्च के बगल से लगा हुआ कौन्वैंट स्कूल है. इस ऊंचेनीचे बसे शहर की उतारचढ़ाव व कम आवागमन वाली सड़क घुमावदार है, जो एक छोटे से पुल पर से हो कर गहरी पथरीली नदी को पार करती है. उस की कौटेज से यह नयनाभिराम दृश्य एक प्राकृतिक दृश्य सा दिखाई देता है.

पत्थर कोठी, कब्रिस्तान की चारदीवारी, गिरजाघर और अस्पताल की बिल्डिंग स्लेटी रंग के स्थानीय पत्थरों से बनी है. तलहटी में फैले कब्रिस्तान के सन्नाटे में साखी संगमरमरी समाधियों के शिलालेख पढ़तेपढ़ते इतना खो जाती है कि वहां पूरा दिन गुजार सकती है. वहां से वनस्पतियों और मौसमी फूलों से घिरी उस की कौटेज खूबसूरत पेंटिंग सी लगती है.

डिनर के बाद जब वह फूलों की खुशबू से महकते लौन में चहलकदमी कर रही होती है तो मेहंदी की बाड़ के पार कच्ची पगडंडी पर पत्थर कोठी से लौटता हुआ दीना अकसर दिखाई दे जाता है. दीना पत्थर कोठी में कुक है और कौटेज के पीछे बने स्टाफ क्वार्टर्स में रहता है. वह उस के पास आने पर उसे नमस्ते करता है, जिसे वह मौन रहते हुए सिर हिला कर स्वीकार करती है.

आज उसे दीना का बेसब्री से इंतजार था क्योंकि कब अपने जन्मदिन के फंक्शन पर अच्छा खाना बनाने के अनुरोध के बहाने वह उसे रोक कर उस से बात करना चाहती थी, जिस से पत्थर कोठी का हालचाल जान सके.

दीना काम से छुट्टी पा कर थकावट भरी चाल में कोई अस्पष्ट सा गीत गुनगुनाते हुए लौट रहा था. उस के पास आने पर वह नमस्ते बोल कर ठिठक गया, जैसे कुछ कहना चाह रहा हो. उस के अकस्मात ठहराव को साखी ने अनदेखा नहीं किया. लैंप पोस्ट की रोशनी में ठहरे दीना से उस ने पूछा, ‘‘रुक क्यों गए? कुछ कहना चाहते हो?’’

‘‘जी डाक्टर साहब. आज हमारे नए साहब आ गए हैं. बीबीजी बहुत अच्छी हैं, आप जैसी. आप की बहन सी लगती हैं.’’

‘‘अच्छा, क्या नाम है उन का?’’ वह प्रश्न तो कर गई, परंतु मुसकरा उठी कि इस को कमिश्नर की पत्नी के नाम से क्या लेनादेना. इस के लिए तो बीबीजी नाम ही पर्याप्त है. वह चुप रहा. फिर सिर झुकाए थोड़ी देर खड़ा रह कर चल पड़ा. फिर दीना जब तक ओझल नहीं हो गया वह उसे जाते हुए देखते रही. उस के होंठों पर हंसी आई और ठहर गई. दीना की बात सच है. कौन उन्हें बहनें नहीं समझता था.

दोनों ने तीखे नैननक्श पाए थे और कदकाठी और रूपरंग भी एक से. सगी बहनों सा जुड़ाव था दोनों के बीच. बौद्धिक स्तर भी लगभग समान. कोई किसी से उन्नीस नहीं. संयोग ही था कि दोनों ने कालेज में उस वर्ष जीव विज्ञान वर्ग में 11वीं कक्षा में प्रवेश लिया था और पहले दिन दोनों क्लास में साथसाथ बैठी थीं.

टीचर ने हाजिरी लेते समय पुकारा, ‘‘सांची राय.’’

‘‘यस मैडम,’’ उस की साथी सांची ने हाजिरी दी.

‘‘साखी कांत.’’

‘‘यस मैडम.’’

‘‘टीचर ने मौन साधा और चश्मे को नाक पर नीचे खिसका कर उन की तरफ गौर से देखते हुए पूछा, ‘‘तुम दोनों जुड़वां हो क्या?’’

‘‘नहीं तो मैडम,’’ सांची ने उत्तर दिया.

‘‘तुम दोनों की डेट औफ बर्थ एक है और दोनों बहन लगती भी हो. नाम भी मिलतेजुलते पर सरनेम अलग,’’ टीचर ने बात वहीं खत्म कर हाजिरी लेना जारी रखा. टीचर की बात पर दोनों एकदूसरे को आश्चर्य से देख गहराई से मुसकराई थीं, जैसे 2 भेदिए एकदूसरे का कोई भेद जान गए हों. पीरियड पूरा होने तक वे जान गईं कि उन का जन्मस्थान भी एक है. लेकिन वे यह नहीं जानती थीं कि उन का जन्म एक ही अस्पताल में हुआ है, लगभग एक ही समय पर.

उन के जन्म पर 2 परिवार खुश थे. बहुत खुश. दोनों के मातापिता का प्रथम परिचय नर्सिंग होम में ही हुआ. उन्होंने एकदूसरे को मिठाइयां खिलाते हुए बताया कि लड़कियां शुभ घड़ी में आई हैं. दोनों के पापा की पदोन्नति की सूचनाएं आज ही मिली हैं और स्थानांतरण के आदेश आते ही होंगे. खुशियों से सराबोर दोनों के द्वारा एकदूसरे को बधाइयां दी गईं और भविष्य में न भूलने का वादा किया गया. तभी दोनों के नामकरण एक ही अक्षर से किए गए सांची और साखी.

सांची राय के परिचय में उस के पिता आनंद भूषण राय के नाम का उल्लेख हो ही जाता. वे महत्त्वपूर्ण सरकारी अधिकारी जो थे. साखी कांत के नाम को पूर्णता उस के पिता के नाम अमर कांत से मिली. उसे अपना नाम अच्छा लगता था और पूर्ण भी, परंतु बहुतों को उस का नाम अधूरा लगता था क्योंकि उस से किसी जाति विशेष का आभास नहीं मिल पाता था. नाम सुन कर लोगों की जिज्ञासा अशांत सी रह जाती. उन का आशय समझ वह बहुत तेज मुसकराती, अपनी बड़ीबड़ी पलकें कई बार झपकाती और हंसी बिखेरते हुए खनकती आवाज में बात को हंसी में उड़ा देती, ‘‘जी, कांत कोई सरनेम नहीं है. मेरे पापा के नाम का हिस्सा है.’’ जिज्ञासु लगभग धराशायी हो जाता.

आगे पढ़ें- छुट्टी होने पर छात्राओं की भीड़ में वे साथसाथ…

Serial Story: अपने अपने शिखर (भाग-3)

पिछला भाग- अपने अपने शिखर: भाग-2

‘‘देख साखी, मैं सीरियसली बात कर रही हूं और तू बात को हवा में उड़ा रही है. सचसच बोल, कोई है?’’

‘‘है तो पर बताऊंगी नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि तुम अपने बारे में तो कुछ बताओगी नहीं.’’

‘‘कोई हो तो बताऊं.’’

‘‘तो समझ मेरा भी कोई नहीं.’’ फिर थोड़ी सी चुप्पी के बाद बोली, ‘‘अच्छा बताती हूं.’’

‘‘सच?’’

‘‘हां सच. आनन वर्मा को जानती है?’’ साखी ने पूछा.

‘‘वही आनन, जो अपने साथ बायो की कोचिंग में था, जो तुम्हें चाहता था.’’

‘‘चाहता तो वह दोनों को था, लेकिन तुम से डरता था तुम्हारे पापा के पद के कारण. आजकल यहीं है. मैडिकल में हो नहीं पाया तो बी फार्मा कर रहा है. कभीकभी मिलने आता है. मैं भी एकाध बार गई हूं उस के घर. उस के मांबाप मुझे बहुत चाहते हैं. उस के लिए मेरे दिल में भी सौफ्ट कौर्नर है.’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘फिर क्या? मेरी लव स्टोरी यहीं खत्म. यहां पढ़ाई से फुरसत नहीं. तुम क्या समझती हो, यहां बौलीवुड की तर्ज पर मैं प्रेम कहानी तैयार कर रही हूं?’’

‘‘देखो साखी, तुम मेरी बात को हमेशा हवा में उड़ा देती हो.’’

‘‘देखो भई, मैं ने अपनी शादी का काम अपने मम्मीपापा पर छोड़ दिया है. जिस दिन वे मुझ से सुपर लड़का ढूंढ़ कर मुझे बता देंगे, मैं जा कर चुपचाप मंडप में बैठ जाऊंगी. लेकिन मैं जानती हूं कि वे अपनी बिरादरी में सुपर लड़का नहीं ढूंढ़ पाएंगे और इंटरकास्ट मैरिज तो मेरे परिवार में किसी के गले ही नहीं उतर सकती. वैसे एक बात बताऊं सांची, अब मेरी विवाह में कोई खास रुचि बची नहीं है. क्या मिलता है विवाह से? थोड़ी सी खुशी और बदले में झंझटों का झमेला. अगर सब ठीक हुआ तो जिंदगी ठीकठाक कट जाती है वरना पूरी जिंदगी ऐडजस्टमैंट करतेकरते गुजार दो, घुटते हुए. नहीं करो तो बस एक ही गम रहता है कि शादी नहीं हुई. अब तुम बताओ अपनी प्रेम कहानी, लेकिन कमरे में चल कर. यहां खड़ेखड़े थकान होने लगी है.’’

वे कमरे में आ गईं और अधलेटी हो कर बतियाने लगीं.

‘‘साखी, तुम तो जानती हो कि मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा जाता है. जिस चीज की जरूरत हो, हाजिर. अगर कभी बाजार से पेनपैंसिल, किताबकौपी खरीदने का मौका भी मिला तो एक चपरासी अंगरक्षक की तरह साथ में रहता है. अभी तक ऐसा कोई टकराया ही नहीं, जो मुझ से खुल कर कुछ कहे और मुझे भी अभी तक कुछकुछ हुआ नहीं.’’

‘‘तो फिर आज शादी की परिचर्चा क्यों की जा रही है?’’

‘‘इसलिए कि आजकल मेरी शादी के प्रस्ताव बहुत आ रहे हैं. एक से बढ़ कर एक. मेरी बिरादरी में अच्छे रिश्तों की कोई कमी नहीं. कोई बड़ा व्यवसायी है, तो कोई प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार का होनहार. कोई छोटा अधिकारी है, तो कोई बड़ा अधिकारी. मेरे पापा जब से दिल्ली ट्रांसफर हुए हैं, तब से चर्चे कुछ ज्यादा ही हैं. पापा प्रिफर करते हैं कि आईएएस मिले और शायद यह उन के लिए मुश्किल नहीं,’’ सांची ने बिना झिझक के बताया. साखी चुपचाप उस का मुंह देखती रही.

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कुछ महीने बाद साखी को एक भारीभरकम निमंत्रण पत्र मिला, जो सांची के पिता द्वारा भेजा गया था. उस की शादी प्रशांत राय, आईएएस से दिल्ली के एक पंचसितारा होटल में होने जा रही थी. लेकिन शादी की तारीख वाले दिन साखी का पोस्ट ग्रैजुएशन मैडिकल ऐंट्रैंस ऐग्जामिनेशन था, इसलिए चाह कर भी वह शादी में न जा सकी.

जन्मदिन जीवन का खास दिन लगता है. हर साल आता है और चला जाता है. उस के बाद जीवन फिर उसी ढर्रे पर चलने लगता है. लेकिन साखी का पिछला जन्मदिन ऐसा नहीं था. उस दिन वर्षों से पड़ी उस के मन की एक गांठ खुल गई थी. डाक्टर होने के नाते वह अकसर जिस बात को ले कर शंकित रहती थी, परेशान हो उठती थी, उस का समाधान हो गया था. उस के बाद वह सामान्य नहीं रह पाई. बहुत से विचार उस के मस्तिष्क में घुमड़ते रहते थे. पूरा साल ऐसे ही व्यतीत हुआ.

जन्मदिन के अवसर पर साखी सीमित  लोगों को आमंत्रित करती थी, जिस में उस के विभाग में काम करने वाले डाक्टर्स व अन्य काम करने वाले लोग होते थे. उस बार उस ने मेट्रेन मारिया को आमंत्रित कर लिया था. मेट्रेन मारिया उम्रदराज और अनुभवी थीं. मिशन के दूसरे अस्पताल से तरक्की पा कर आई थीं. दीना उन का ही इकलौता बेटा था. कोई स्थायी नौकरी न मिलने के कारण दीना अपनी मां के साथ आया था और छोटेमोटे फंक्शन में कुक का काम कर लेता था. अच्छा कुक होने की तारीफ सुन कर खानपान का जिम्मा दीना को दिया गया था.

अतिथियों के जाने के बाद दीना और उस के सहायक बचा हुआ खाना व सामान समेट रहे थे. मेट्रेन मारिया को दीना के साथ वापस जाना था, इसलिए वे रुकी थीं. गार्डन के एक कोने में पड़ी कुरसियों पर मेट्रेन मारिया और साखी बैठी थीं. समय बिताने के लिए औपचारिक बातचीत में साखी ने ऐसे ही पूछ लिया, ‘‘मेट्रेन आप कहांकहां रहीं?’’

मेट्रेन मारिया ने कई जगहों के नाम गिनाए. उन में रावनवाड़ा का नाम भी आया. साखी चौंकना पड़ी. साखी का चौंकना मेट्रेन मारिया नहीं देख पाईं. उन्होंने अपना चश्मा उतार लिया था और उंगलियों से अपनी पलकें बंद कर के सहला रही थीं.

‘‘रावनवाड़ा, कब?’’ साखी के मुंह से निकल गया था.

‘‘आप रावनवाड़ा जानती हैं? वह तो कोई मशहूर जगह नहीं.’’

‘‘हां, नाम सुना है, क्योंकि मेरी एक क्लासमेट वहीं की थी,’’ साखी ने सामान्य होते हुए कहा. मेट्रेन ने जो कालाखंड बताया उस में साखी के जन्म का वर्ष भी था. साखी ने शरीर में सनसनी सी महसूस की और सचेत हो कर पूछा, ‘‘मेट्रेन, आप को तो बहुत तजरबा है. नर्स की नौकरी में आप ने बहुतों के दुखसुख और बहुत से जन्म और मृत्यु देखे होंगे. बहुतों के दुखसुख भी बांटे होंगे. कोई ऐसा वाकेआ जरूर होगा, जो आप के जेहन में बस गया होगा.’’

मेट्रेन मारिया कुछ देर को चुप रहीं, जैसे कुछ सोच रही हों. फिर दोनों हाथ उठा कर धीमे स्वर में बोलीं, ‘‘डाक्टर, मेरे इन हाथों से ऐसा कुछ हुआ है, जिस से एक ऐसी मां की गोद भरी है, जो हमेशा खाली रहने वाली थी. लेकिन जो कुछ मैं ने किया, वह मेरे पेशे के खिलाफ था और मुझे वह बात किसी से कहनी नहीं चाहिए. कम से कम एक डाक्टर के सामने तो बिलकुल ही नहीं.’’ इतना कह कर वे चुप हो गईं. साखी उन के चेहरे के भाव अंधेरे में पढ़ नहीं पा रही थी.

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Serial Story: अपने अपने शिखर (भाग-2)

पिछला भाग- अपने अपने शिखर: भाग-1

छुट्टी होने पर छात्राओं की भीड़ में वे साथसाथ कालेज के गेट से बाहर आईं. गेट के बाहर चौड़ी सड़क पर नेवीब्लू रंग की यूनीफौर्म में छात्राओं के झुंड थे और उन के स्वरों का कलरव. सड़क के उस पार अपनी कार के पास खड़ी साखी की मम्मी अपनी बेटी को भीड़ में पहचानने की कोशिश कर रही थीं. उन के आने का उद्देश्य अपनी बेटी को घर वापस ले जाने का तो था ही, उस से भी जरूरी था बेटी के रोज आनेजाने की व्यवस्था करना. इस के लिए वे एक औटो वाले से बात भी कर चुकी थीं. बड़े शहर की भीड़भाड़ को ले कर वे चिंतित थीं. जहां उन का निवास था, वहां से कालेज की दूरी काफी थी और उस रूट पर कालेज की बस सेवा नहीं थी.

छात्राओं की भीड़ में उन का ध्यान साखी ने भंग किया, ‘‘मम्मी, मैं इधर. इस से मिलिए, यह है मेरी नई फ्रैंड, सांची…सांची राय.’’

सांची ने प्रणाम के लिए हाथ जोडे़ ही थे कि साखी ने परिचय की दूसरी कड़ी पूर्ण कर दी, ‘‘सांची, ये हैं मेरी मम्मी.. बहुत प्यारी मम्मी.’’

मम्मी ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘कहां रहती हो बेटी?’’

‘‘जी, सिविल लाइंस में.’’

‘‘अरे मम्मी छोडि़ए,’’ साखी ने बात काटते और रहस्योद्घाटन सा करते हुए कहा, ‘‘मम्मी, ये मेरी जुड़वां है. इस की और मेरी डेट औफ बर्थ एक ही है और यह भी रावनवाड़ा में पैदा हुई. है न को इंसीडैंट?’’

‘‘अच्छा, वहीं की रहने वाली हो?’’

‘‘नहीं आंटी, उस समय मेरे पापा की पोस्टिंग वहां थी.’’

पास में खड़ी सरकारी गाड़ी का ड्राइवर उन के करीब आ खड़ा हुआ. सांची ने अपना बैग उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आंटी, ये मेरे पापा के ड्राइवर हैं, मुझे लेने आए हैं.’’

मम्मी ने घूम कर ड्राइवर की ओर देखा और पास खड़ी सरकारी गाड़ी को देखते हुए चौंक कर पूछा, ‘‘तुम ए.बी. राय साहब की बेटी तो नहीं?’’

‘‘जी आंटी.’’

‘‘अरे, तब तो तुम सच में जुड़वां की तरह ही हो. कैसा संयोग है. इतने सालों बाद तुम दोनों एकसाथ खड़ी हो.’’ साखी और सांची के चेहरों पर प्रसन्नता के भाव आ गए थे.

‘‘तब तो तुम ने अपने पापा की गाड़ी से कालेज आयाजाया करोगी?’’

‘‘नहीं आंटी, शायद बस से… लेकिन बस में तो बहुत समय बरबाद होता है. बहुत घूमघूम कर आती है.’’

‘‘तो औटो से आओजाओ न और लड़कियों के साथ. साखी के लिए तो मैं ने एक औटो वाले से बात कर ली है. कहो तो तुम्हारे लिए भी कर लूं, सिविल लाइंस तो रास्ते में ही पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है आंटी, लेकिन पापा से पूछना पड़ेगा. अच्छा नमस्ते आंटी.’’

‘‘नमस्ते बेटा, अपनी मम्मी से मेरा नमस्ते बोलना. मैं उन से मिलने आऊंगी. मेरी उन से बहुत पुरानी पहचान है, उतनी पुरानी जितनी तुम्हारी उम्र है,’’ उन के स्वर में उत्साह आ गया था.

फिर दोनों ने साथ आना, साथ जाना शुरू कर दिया और एक ही कोचिंग में पढ़ते हुए 11वीं, फिर 12वीं की परीक्षाएं लगभग बराबर अंक पा कर पास कीं. दोनों का लक्ष्य था, प्री मैडिकल टैस्ट पास कर के एमबीबीएस करना. दोनों ने गंभीरता से पढ़ाई शुरू कर दी.

परीक्षाएं पूरी होने पर दोनों संतुष्ट थीं, परिणाम के प्रति आशान्वित भी. परिणाम घोषित हुआ तो वे अलगअलग शहरों में थीं क्योंकि अपनेअपने पिता के स्थानांतरण के कारण उन के शहर बदल गए थे. लेकिन समाचारपत्र में छपा अपना अनुक्रमांक व उच्च वरीयता क्रम देख कर साखी की आंखों से खुशियां नहीं आंसू छलके. कारण, सांची के अनुक्रमांक का कहीं अतापता नहीं था. उसे यह बहुत अविश्वसनीय सा लगा. साखी अपने वर्ग की मैरिट लिस्ट में बहुत ऊपर थी. उसे प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ मैडिकल कालेज में प्रवेश मिला.

एक दिन उस का सांची से सामना हो गया. वह अपने परिजनों के साथ किसी रिश्तेदार मरीज को देखने आई थी. उस से मिल कर साखी को अच्छा लगा. वह इतना हताशनिराश नहीं थी, जितना साखी ने सोच रखा था. उस ने बताया कि बी.एससी. के साथसाथ सीपीएमटी की तैयारी कर रही है. बड़ी आशा के साथ उस ने बताया कि वह इसी कालेज में आएगी, उस की जूनियर बन कर.

उस के बाद 2 वर्षों तक साखी को सीपीएमटी के परिणाम के समय इंतजार रहा कि शायद सांची के बारे में कोई अच्छी खबर मिले. लेकिन ऐसी कोई खबर न मिलने पर अपनी ओर से सीधे फोन कर के उस की असफलता का पता लगाना, उसे व्यावहारिक नहीं लगा. कुछ वर्ष बीतने के बाद उसे यहांवहां से पता चला था कि सांची एम.एससी. करने के बाद सिविल सर्विसेज के लिए कोशिश कर रही है. साखी फाइनल की लिखित परीक्षा से मुक्त हो कर वाइवा के तनावों से घिरी थी. पढ़ने का मन बना रही थी कि होस्टल के चौकीदार ने उस के नाम की पुकार दी. नीचे उतरी तो देखा कि सांची थी. उन्मुक्त भाव से दोनों एकदूसरे से लिपट गईं. उस का बैग लेते हुए साखी ने शिकायत की, ‘‘कोई खबर तो दी होती, इस तरह अचानक?’’

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‘‘एक सैमिनार में आई थी. वहां इतना व्यस्त हो गई कि सूचना नहीं दे पाई. फिर सोचा कि चलो आज अपनी पुरानी सखी को सरप्राइज देते हैं. आज रात रुकूंगी तुम्हारे साथ अगर तुम्हें कोई असुविधा न हो तो.’’

‘‘अरे, बिलकुल नहीं,’’ कहते हुए साखी सांची का हाथ पकड़ सीढि़यों की ओर बढ़ने लगी. कमरे में पहुंच कर एक गिलास पानी देते हुए वह सांची से बोली, ‘‘तुम फ्रैश हो लो, मैं मैस से टिफिन मंगवाने का प्रबंध करती हूं. आज यहीं रूम में खाएंगे और खूब बातें करेंगे. मेरा तो पढ़ाई से जी ऊब गया है.’’

खाना खा कर वे खुली हवा में होस्टल की छत पर आ गईं. चांदनी रात थी. मुंडेर पर कोने में टिकते हुए सांची ने छेड़ा, ‘‘ऐ, शादी के बारे में क्या विचार है?’’

‘‘शादी? किस की?’’

‘‘तुम्हारी और किस की?’’

‘‘अरे मम्मीपापा तो पूरी कोशिश में लगे हैं 2-3 साल से. न्यूजपेपर में उन्होंने एड भी दिया, लेकिन अभी तक मेरे योग्य मिला ही नहीं,’’ हंसते हुए साखी ने कहा.

‘‘ये तो कोई नई बात नहीं. मांबाप तो भरपूर कोशिश करते ही हैं इस के लिए. मेरा मतलब है कि तुम ने क्या किया? कोई भाया यहां कालेज में या बाहर?’’

‘‘अरे, यहां कोई कमी है क्या? कितने पीछे लगे रहते हैं. कुछ बैच मेट्स हैं तो कुछ सीनियर्स. कुछ मरीज हैं तो कुछ मरीजों के तीमारदार. एकाध सर भी हैं. बहुत लोग हैं यहां मुहब्बत लुटाने वाले. कितने गिनाऊं तुझे कोई लिस्ट बनानी है क्या?’’

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मां बनी शाहिद कपूर की ये को स्टार, घर आया Baby Boy

बीते दिनों बौलीवुड एक्ट्रेस अमृता राव की बेबी बंप की फोटोज ने सोशलमीडिया पर खलबली मचा दी थी, जिसके बाद वह सुर्खियों में आ गई थीं. लेकिन अब वह मां बन गई हैं.

बेटे की मां बनीं अमृता 

सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए अमृता की बहन प्रीतिका ने खुलासा किया है कि अमृता ने एक बेटे को, जन्म दिया है, जिसके बाद उनकी जिंदगी पूरी हो गई है.

सोशलमीडिया पर किया था खुलासा

अपने बेबी बंप की फोटो शेयर करते हुए अमृता राव ने खुलासा करते हुए लिखा है कि “आप लोगों के लिए यह 10वां महीना है और हमारे लिए यह नवां महीना है. सरप्राइज सरप्राइज, अनमोल और मैं प्रेग्नेंसी पीरियड के नौवें महीने में हैं. फैन्स संग इस न्यूज को शेयर करने के साथ मैं काफी एक्साइटेड हूं. दोस्तों का शुक्रिया करती हूं. माफी चाहती हूं कि इतने लंबे समय से मैंने इसे अपनी बेली में छिपाया हुआ था, लेकिन यह सच है बेबी जल्दी आने वाला है. मेरे और अनमोल के परिवार के लिए यह काफी एक्साइटिंग जर्नी है. यूनिवर्स का शुक्रिया, आप सभी का धन्यवाद. हमें इसी तरह अपनी दुआएं देते रहें.”

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पति संग फोटो हुई थी वायरल

 

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For YOU it’s the 10th month… But for Us, It’s THE 9th !!!💃🏻🕺 @amrita_rao_insta 😘

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पिछले दिनों एक्ट्रेस अमृता राव को पति अनमोल संग खार स्थित एक क्लिनिक के बाहर देखा गया, जिस दौरान अमृता बेबी बंप दिखाती नजर आईं थी. हालांकि कुछ लोगों का कहना था कि यह फोटो असली नही है.

बता दें, फिल्म ‘अब के बरस’ से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाली अमृता साउथ की कई फिल्मों में भी काम कर चुकी हैं. ‘इश्क-विश्क’ और ‘विवाह’ जैसी फिल्मों से वह घर घर में पौपुलर हैं. हालांकि पिछले एक साल से वह फिल्मी दुनिया से दूर रही हैं.

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BIGG BOSS 14: कविता और एजाज की लड़ाई पर सलमान को आया गुस्सा, औडियंस ने कही ये बात

कलर्स के रियलिटी शो ‘बिग बॉस 14’ इन दिनों टीआरपी रेस में पीछे हो रहा है, जिसके चलते मेकर्स शो में कई नए सदस्यों की एंट्री कर रहे हैं. वहीं शो में मौजूद कंटेस्टेंट की लड़ाई फैंस को स्क्रिप्ट का हिस्सा लग रही हैं, जिसके चलते शो सोशलमीडिया पर काफी ट्रोलिंग का शिकार हो रहा है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

वीकेंड पर बरसा सलमान का गुस्सा

इस वीकेंड के वार में सलमान खान के गुस्से का शिकार राहुल वैद्य, जैस्मिन भसीन और रुबीना दिलाइक के बाद कविता कौशिक को होना पड़ा. बीते एपिसोड में कविता कौशिक एजाज खान पर गंभीर आरोप लगाती दिखीं. दरअसल, कविता कौशिक कहती नजरआईं कि उन्होंने लॉकडाउन में एजाज खान के लिए खाना बनाया है लेकिन वह उनकी दोस्त नहीं हैं. वहीं आगे कविता कौशिक ने कहा कि एजाज खान से हुई दोस्ती की वजह से उनकी ‘बिग बॉस 14’ के घर में बहुत बेज्जती हो रही है. एजाज खान से हुई दोस्ती को कविता कौशिक ने अपनी जिंदगी सबसे बड़ी गलती बताया.

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सलमान ने छोड़ा स्टेज

एक बहस के दौरान कविता कौशिक ने कहा कि ‘बिग बॉस 14’ के घर में एजाज खान ने उनको अपना दोस्त बताकर इस्तेमाल किया है. कविता कौशिक की ये बात सुनकर सलमान खान उनको समझाने की कोशिश करेंगे कि एजाज खान इंडस्ट्री के लोगों से दोस्ती नहीं करता लेकिन उसने अदाकारा को अपना करीबी माना है. वहीं कविता कौशिक सलमान खान को अनसुना करके अपनी ही बात पर अड़ी रहीं. जिसके बाद सलमान खान को गुस्सा आया और वो ‘बिग बॉस 14’ का स्टेज छोड़कर चले गए.

फैंस ने कही ये बात

‘बिग बॉस 14’ के घर में एजाज खान की बेइज्जती देखकर जहां फैंस का गुस्सा भड़क गया. तो वहीं फैंस ने कविता कौशिक के दिमाग खराब होने की बात कही है और कहा है कि वह फुटेज पाने के लिए एजाज खान से लड़ाई कर रही है. हालांकि कुछ ट्रोलर्स ने पूरे शो को स्किप्टेड बताया. और कहा कि एजाज खान और कविता कौशिक की लड़ाई फेक है और मेकर्स एजाज खान की अच्छी इमेज बनाने के लिए ऐसा कर रहे हैं ताकि वह विनर बन सके.

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बता दें, शो में आज यानी 2 अक्टूबर को डबल एलिमनेशन होने वाले हैं. वहीं खबरें हैं कि निशांत मलकानी और कविता कौशिक एलिमनेट हो जाएंगे. हालांकि अभी ये कंफर्म नही किया गया है.

बा के लिए क्या वनराज को माफ कर देगी ‘अनुपमा’? जाने क्या होगा आने वाला ट्विस्ट

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) इन दिनों औडियंस को एंटरटेन करने में कोई कसर नही छोड़ रहा है. जहां सीरियल में अनुपमा का बदला हुआ रूप फैंस को पसंद आ रहा है तो वहीं वनराज और काव्या को साथ देखकर फैंस गुस्से में हैं. हालांकि शो में जल्द कई नए ट्विस्ट देखने को मिलने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे….

मां को नई शुरूआत के लिए कहता है समर

जहां बीते एपिसोड में आपने देखा कि वनराज के अफेयर का पता चलते ही जहां समर गुस्से में उससे पिता होने के सारे हक छीन लेता है. वहीं अपनी मां अनुपमा से समर सबकुछ भूलकर एक नयी शुरूआत करने के लिए कहता है. लेकिन अनुपमा उसे कहती है कि सबकुछ भूलने के लिए बहुत कुछ पीछे छोड़ना पड़ता है और मैं अपने परिवार को पीछे नहीं छोड़ सकती.

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अनुपमा से डरी काव्या

वनराज का सच जानने के बाद जहां अनुपमा गुस्से में है तो वहीं काव्या की तरफ उसका व्यवहार काव्या को डरा रहा है, जिसके कारण वह वनराज से अनुपमा को छोड़ने की बात कहती है.

बेटे को माफ करने के लिए कहेगी बा


अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि देविका, अनुपमा के साथ कुछ समय बिताने के लिए आएगी, क्योंकि वह बहुत अच्छी तरह से जानती है कि अनुपमा नरम दिल की है और वह कभी कोई कठोर कदम नहीं उठा सकती. इसीलिए वह वनराज को परेशान करना शुरू कर देती है. इसी बीच समर के कारण वह वनराज के अफेयर का सच भी जान जाएगी, हालांकि परिवार की खातिर वह अनुपमा के सामने वनराज को माफ करने की बात कहेंगी.

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बता दें, अब काव्या के ड्रामे के बाद ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या अनुपमा को वनराज अपनी जिंदगी से दूर कर देगा. वहीं इस मामले में अनुपमा का अगला कदम क्या होगा?

स्वास्थ्य व जिंदगी से खेलना खतरनाक

आयुष मंत्रालय द्वारा जारी सरकारी विज्ञप्ति जिसे  हुक्मनामा कहा जा सकता है, कोविड-19 के इलाज में अंधविश्वास और पाखंड से भरा प्रोटोकौल जारी किया है. जो आयुर्वेदाचार्य व योगाचार्य की डिगरी गले में लटकाए फिरते हैं. उन के कोविड-19 को रोकने में मंत्र, यंत्र, षड्यंत्र काम में नहीं आए और यज्ञों, हवनों, कीर्तनों पर लोगों ने सामूहिक रूप से भरोसा नहीं जताया, तो आयुष मंत्रालय ने कोविड-19 ग्रस्त रोगियों के ठीक होने पर वाहवाही लूटने के लिए यह हुक्म जारी किया है ताकि भगवा ब्रिगेड का पैसा बनता रहे. जैसा हमेशा होता है, 8 ठीकठाक बातें तो की जाती हैं पर उन में 4 अपने मतलब की जोड़ दी जाती हैं.

सितंबर में जारी उस हुक्मनामे के बचाव में पहले ही कह दिया कि कोविड-19 से ठीक हुए मरीजों का न कोविड-19 ठीक होगा न रुकेगा. फिर हैल्थ मंत्रालय के मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन इस हुक्मनामे का हल्ला क्यों मचा रहे हैं इसलिए इस सरकारी राय में कुछ के लिए आय के स्रोत हैं.

इस हुक्मनामे में कहा गया है कि ठीक हुए मरीजों को योगासान, प्राणायाम और मैडिटेशन करना चाहिए. उन के लिए स्वाभाविक है कि गुरु की जरूरत होगी जो भगवा रेशमी कपड़े पहने मिल जाएंगे. आजकल पैसे दे कर औनलाइन क्लास भी जौइन कर सकते हैं.

सांस लेने व व्यायाम के भी उपाय अपने डाक्टर से पूछ कर करें, यह भी हुक्म है. अगर प्राणायाम और मैडिटेशन काफी हैं तो डाक्टर की सलाह क्यों? ताकि बाद में कुछ गलत हो जाए तो ठीकरा डाक्टर के सिर पर फोड़ा जा सके.

आगे हुक्म है कि डाक्टर की दवाएं तो लें ही, जड़ीबूटियों के अर्क भी लें. इस बारे में आयुष विशेषज्ञ को पैसे दे कर पूछें साथ में डाक्टर को भी बता दें.

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धर्म गुरुओं से विनती करें  कि वे अच्छीअच्छी बातें सुनाएं. अब वे मुफ्त में तो प्रवचन सुनाएंगे नहीं, चढ़ावा तो देना होगा ही. सरकारी आदेश भी अब तो उन का साथ देगा इसलिए भाव भी बढ़ जाएगा. उन से राय लेने की सलाह भी दी गई है. योगा और मैडिटेशन के बारे में कई बार दोहराया गया है, क्योंकि उन के खुद घोषित गुरु पिछले महीनों कुछ खाली थे और उन की आय बढ़ाना धार्मिक सरकार का कर्तव्य है न.

जिन दवाओं का उल्लेख है उन में आयुषवर्धा, वसामिनीबटी, गिलोय पाउडर, अश्वगंधा पाउडर, आंवला, च्यवनप्राश आदि वैद्य की सलाह के अनुसार लेने का आदेश है.

इन सब के बारे में क्या कोविड रोगियों पर कोई अनुसंधान हुआ है? कितनों के इन बातों को अपनाने से कोविड दोबारा नहीं हुआ? कितनों का डाटा तैयार नहीं हुआ? कितनों का डाटा जमा किया गया? रिपोर्ट कहां है? यह सब नहीं है तभी इस के बारे में इंडियन मैडिकल असोशिएशन ने गंभीर आपत्ति जताई है कि सरकार का आदेश गुमराह करने वाला है.

मैडिकल असोशिएशन के अनुसार मरीजों को केवल डाक्टरों की सलाह माननी चाहिए और सैल्फ मैडिकेशन नहीं करनी चाहिए.

हमारे देश में यह परंपरा है कि कोई बीमार हुआ नहीं 10 जने अपना चिकित्सा ज्ञान जो पंडोंपुजारियों और वैद्यों की देन ही होता है बघारने लगते हैं. कई बार तो वे जबरन काढ़ा, गोली, पत्ते, कंदमूल खिला जाते हैं. केंद्रीय मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन उसे सरकारी संरक्षण दे रहे हैं, वह भी पैसे ले कर.

केंद्र सरकार ने कोविड-19 के बाद कहीं भी सरकारी आयुर्वेद अस्पताल नहीं खोले, कहीं योगाचार्यों को मरीजों के कैंपों में नहीं भेजा, कहीं पंडितों, शास्त्रियों को हवनों से मरीजों को सामूहिक रूप से ठीक कराने के अखंड कीर्तन नहीं कराए, क्योंकि वे जानते हैं कि ये ढकोसले तो वोट बैंक बनाए रखने के लिए घरों में घुसपैठ करने के हैं. बेचारी असहाय मांएं और पत्नियां सही जानकारी न मिल पाने के कारण इन उपायों को मानने को मजबूर हो जाती हैं और फिर उन्हें भरोसा हो जाता है कि यही ठीक है.

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सरकारें गुमराह करती हैं, यह पुरानी बात है पर वे कोविड-19 के मामले में स्वास्थ्य व जिंदगी से खेलें, यह खतरनाक है.???

डायबिटीज में रहें इन 6 सब्जियों से दूर

डायबिटीज आजकल लोगों में होने वाली आम समस्या है, लेकिन कईं बार केवल दवाई खाने के बावजूद आपका डायबिटीज कंट्रोल नही होता. डायबिटीज कंट्रोल न होने के कई कारण है, जिनमें रोजाना खाने वाला फूड भी है. अक्सर हम डायबिटीज होने के बावजूद कई ऐसी सब्जियां खा लेते हैं, जो आपकी हेल्थ को ज्यादा खराब कर देती है. इसीलिए आज हम आपको डायबिटीज की प्रौब्लम में दूर रहने वाली सब्जियों के बारे में बताएंगे…

डायबिटीज में रहें चुकंदर से दूर

चुकंदर भले ही सलाद के रूप में एक बेहतरीन चीज मानी जाती है लेकिन डायबिटीज रोगी के लिए यह सही नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें मिठास ज्यादा होती है. ऐसा नहीं कि आप चुकंदर एकदम नहीं खा सकते लेकिन इसकी मात्रा बहुत कम या वीक में एक बार हो सकती है.

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बींस को बिना उबाले न खाएं

बींस भले ही मीठा न होता हो लेकिन ये स्टार्च से भरा होता है. डायबिटीज में मीठा ही नहीं स्टार्च भी खाना मना होता है. ऐसे में ये हरी सब्जी भले ही हो लेकिन स्टार्च ज्यादा होने के कारण इसे भी खाने से बचना चाहिए। अगर बहुत पसंद हो बीन्स तो आप इसे उबाल कर खा सकते हैं.

टमाटर और कौर्न से भी रहें दूर

टमाटर सिट्रिक एसिड सेभरा होता है लेकिन मीठा भी. ऐसे में इसे भी खाने से बचना बहुत जरूरी है. स्वीट कौर्न भी मीठास से भरा होता है साथ ही इसमें स्टार्च भी भरपूर होता है. ऐसे में ये किसी भी रूप में ये हेल्थ के लिए सही नहीं होता. खास कर डायबिटीज मरीजों के लिए तो बिलकुल नहीं.

सूरन और अरबी

आलू की प्रजाति का होने के कारण अरबी और सूरन भी स्टार्च युक्त सब्जी होती है. मीठा भी ये काफी होता है, इसलिए डायबिटीज रोगी को इससे दूर रहना चाहिए.

आलू या शकरकंदी

आलू और शंकरकंदी स्टार्च और मीठास से भरा होता है. इसे भी खाने से डायबिटीज रोगियों को परहेज करना चाहिए। उबाला हुआ कभी कभार खाया जा सकता है.

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कद्दू से बचना है जरूरी

कद्दू भी बेहद मीठास से भरा होता है ऐसे में पका कद्दू मो बिलकुल भी डायबिटीज रोगियों को नहीं खाना चाहिए. हरा कद्दू कभी कभार खाया जा सकता है. इन सब्जियों से दूर रहकर आप अपने आप को डायबिटीज से होने वाली खतरनाक बीमारियों से दूर रह पाएंगे. साथ ही एक हेल्दी लाइफ बिना किसी टेंशन के जी पाएंगे.

जब गपशप की लत लगे…

कभीकभी गपशप करने से बहुतकुछ सहज सा लगने लगता है. एक सुलझी हुई गपशप आपसी संबंधों को मजबूत करने में सहायक है. गपशप करना हमारे सामाजिक होने का सुबूत भी है. हलकीफुलकी गपशप हमें तरोताजा रखती है.

मनोवैज्ञानिक तो आजकल निराशा, अवसाद या उदासी के उपाय के रूप में गपशप की तकनीक आजमाने की सलाह देते हैं. कोई पराक्रम नहीं, बल्कि मीठी गपशप बहुत सारे गिलेशिकवे दूर कर देती है.

मगर एक कहावत है कि अति हर चीज की बुरी होती है. वीनू को यही लत लग गई थी. कालेज में हर समय हर किसी के साथ उस का बहुत सारा समय इसी तरह की गपशप में निकल रहा था. पहलेपहल तो सब को ही उस की गपशप अच्छी लगती थी, मगर बाकी कालेज मेट्स की पढ़ाई खराब हो रही थी. अब वे सब वीनू से कटेकटे से रहने लगे.

वीनू जब बहुत दिनों तक ऐसे ही अकेली रह गई, तो उस को अपना वही खराब बचपन याद आने लगा.

बड़ी बहन वीनू से 7 साल बड़ी थी और बहुत सुंदर थी. वह कभी भी वीनू को अपनी बात नहीं कहने देती थी.

“वीनू, तुम अभी बच्ची हो. खामोश रहो,” ऐसा कह कर उस का मुंह बंद कर देती थी.

जब वीनू कालेज में आई, तो अपनी बात दोस्तों के सामने खुल कर रखने लगी थी, पर… आज तो वीनू के साथी भी ऐसे हो गए.

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मगर वीनू ने एक दिन अपनी आदतों पर गौर किया. उसे तुरंत ही समस्या का हल मिल गया. अब उस ने यह आदत सुधार ली और परिणाम सकारात्मक रहे. उस के मित्रों का सर्कल फिर से बढ़ गया.

यहां वीनू तो समय पर सतर्क हो गई, मगर दिमाग चाट देने वाली गपशप करने की समस्या ज्यादातर लोगों को होने वाली आम समस्याओं में से एक है. ज्यादा अकेलापन, तनाव, चिंता, कोई घुटन, किसी से नाराजगी, अपने को बढ़ाचढ़ा कर बारबार पेश करना आदि यह सब गपशप की लत पड़ने की खास वजहों में शामिल हैं.
हर समय बोलने की आदत न केवल नैतिक तौर पर आप का पतन करती है, बल्कि मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए भी नुकसानदायक हो सकती है.

अगर मनोवैज्ञानिकों की मानें तो जो लोग बहुत अधिक बोलते हैं, उन्हें तनाव और अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं के अलावा गला खराब होने या सिरदर्द जैसी शारीरिक समस्याएं भी हो सकती हैं. बहुत बोलने की प्रवृत्ति और इस से सेहत के संबंध के विषय पर सोचना जरूर चाहिए कि कहीं गपशप ऐसी न हो कि आप अपनी पसंद के विषय पर बिना रुके चपड़चपड़
बोलते ही चले जाएं और सामने वाला प्रताड़ित हो रहा हो. अगर गपशप हो तो ऐसी, जो सामने वाले को सुहाती हो. उस को अच्छा लग रहा हो, वो भी लगातार बोलने और सुनने में रुचि ले. हमें दोस्तों से बोलनाबतियाना जरूर चाहिए, मगर कब और किस तरह इस बात को भी गहराई से सोचनेसमझने की जरूरत है.

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि कई लोगों की आदत होती है कि वे मौका मिला और तपाक से बातों का सिलसिला शुरू कर देते हैं. कोई अगर एक छोटी सी जानकारी के लिए कुछ पूछ रहा है, तो इस पर ध्यान देना चाहिए कि संक्षिप्त बात की जरूरत है, मगर कुछ लोग यह गौर करने के बजाय उन के मन में जोजो किस्से तुरंत आते हैं, वो बस धारा प्रवाह बोल देते हैं. सब का साथ निभाना अच्छा है, मगर शिष्टता का प्रयोग भी जरूरी है. दोस्ताना या आत्मीय रिश्ते में किसी का प्यार से खूब सारा समय ले लेना अलग बात है, पर आप को अधिक कड़वा अनुभव हो सकता है. अगर लोग कन्नी काटने लगें.

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हम सब सामाजिक प्राणी हैं और बात करना यानी संवाद करना किसी से जुड़ने का प्रतीक है. इस में कोई दो राय नहीं.

कुछ लोग तो थोड़े समय बोल कर चुप हो जाते हैं, जबकि कुछ इतना बोलते और बतियाते हैं कि सुनने वाले को वहां से भागने पर मजबूर कर देते हैं.

हमें याद रखना चाहिए कि दूसरे का समय कितना उपयोगी है. समय का सम्मान करें, अपने शब्दों का भी.

वीकैंड मस्ती: अब कल की बात

मेघा और सचिन दोनों ही निजी कंपनी में काम करते हैं. दोनों ही रोज लगभग एक ही समय घर से निकलते थे. शाम को मेघा जल्दी आ जाती थी और सचिन 8 बजे तक आता था. दोनों अपने लिए समय नहीं निकाल पाते थे. ढंग से खाना भी नहीं हो पाता था. उन की किचन में खाना बनाने का सामान कम और औनलाइन खाना भेजने वाली साइटों के फोन नंबर अधिक लिखे होते थे. वे स्वाद को बदलने के लिए साइट बदलबदल कर खाना मंगाते थे. उन के लिए वीकैंड ही सब से खुशहाल भरा होता था. शनिवार और रविवार सब से बड़ी खुशी लाता था.

मेघा कहती है, ‘‘शनिवार की सुबह देर तक सोने का मौका मिलता था तो लगता था कि जीवन की सारी खुशियां मिल गई हों. वीकैंड में ही हम मनपसंद खाना बनाते थे.’’

शालिनी और रमेश दोनों ही मल्टीनैशल कंपनी में काम करते थे. दोनों की नई शादी हुई थी. 1 साल बीत गया. बढ़ती उम्र में शादी हुई थी तो घर वालों को लग रहा था कि बच्चा जल्दी हो जाना चाहिए नहीं तो आगे दिक्कत हो सकती है. घर वालों का दबाव पड़ रहा था. शालिनी और रमेश घर वालों के दबाव में डाक्टर को दिखाने गए. डाक्टर ने पतिपत्नी के वर्किंग स्टाइल को सम झा और देखा कि दोनों कितना समय साथ गुजारते हैं. डाक्टर ने दोनों को सलाह दी कि तनावमुक्त हो कर कुछ वीकैंड साथ बिताएं. कुछ दिनों में उन के घर खुशियां आ गईं.

कोरोना काल में ‘वर्क फ्रौम होम’ और ‘क्वारंटाइन’ शनिवार और रविवार की वीकैंड मस्ती को पूरी तरह से खत्म कर चुके हैं. इस वजह से घरों में तनाव बढ़ने लगा हैं. लोगों में मानसिक बीमारियां फैलने लगी हैं, जो लोग वीकैंड और छुट्टियों का इंतजार करते थे आज वे इन के खत्म होने और फिर से औफिस वर्किंग का इंतजार कर रहे हैं. अब घर में रहना उन को कैद सा लगने लगा है. परिवार में आपस में तनाव का माहौल बढ़ रहा है. संयुक्त परिवार होने से यह बात और भी बिगड़ रही है. अकेले परिवारों की भी परेशानियां कम नहीं हैं.

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वीकैंड का क्रेज

वीकैंड यानी शनिवार और रविवार की छुट्टी का क्रेज कुछ साल पहले तक बहुत होता था. शनिवार और रविवार की छुट्टी को वीकैंड बना कर एक पैकेज की तरह पेश किया गया था. मल्टीनैशनल कंपनियों के इस चलन को देशी कंपनियों के कर्मचारी बहुत ललचाई नजरों से देखते थे. उन को लगता था कि मल्टीनैशनल कंपनियां अपने कर्मचारियों का बहुत ध्यान रखती हैं. मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी वीकैंड के इस क्रेज को ऐसे प्रचारित किया था कि वेतन से अधिक इस का लालच कर्मचारियों को हो गया था. नए लोग जब मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करते थे तो अपने साथियों को फख्र के साथ बताते थे कि हमारे यहां ‘फाइव डे वीक’ होता है. 2 दिन की छुट्टी में वीकैंड आराम से कटता है.

नहीं रहा क्रेज

देशी कंपनियों में जहां केवल रविवार को छुट्टी मिलती थी वह ‘‘सौतिहा डाह’’ से वीकैंड मनाने वालों को देखते थे. वीकैंड का चलन धीरेधीरे तेज होने लगा. देशी कंपनियों ने भी खुद को मल्टीनैशनल बनाने के लिए वीकैंड का चलन शुरू किया. देशी कंपनियां वेतन में भले ही मल्टीनैशनल कंपनियों का मुकाबला नहीं करती थी पर वीकैंड में वे मल्टीनैशनल कंपनियों का मुकाबला करने लगीं. एक दिन की छुट्टी को ‘वर्किंग आवर’ यानी ‘काम के घंटे’ बढ़ा कर पूरा किया जाने लगा. पहले साढ़े 9 से साढ़े 5 की औफिस जौब में कर्मचारी को 8 घंटे काम करना पड़ता था. जिन जगहों में शिफ्ट में काम होता था वहां भी एक शिफ्ट 8 घंटे की होती थी.

वीकैंड देने वाली कंपनियों में ‘वर्किंग आवर’ शाम 7 बजे तक कर दिया. इस तरह से हर दिन डेढ़ घंटा कर्मचारी को ज्यादा काम करना पड़ने लगा. इस तरह से शनिवार को एक दिन छुट्टी देने के एवज में कर्मचारियों से रोज डेढ़ घंटे अधिक काम लेना शुरू हो गया. देशी कंपनियों ने एक दिन की अतिरिक्त छुट्टी के एवज में तमाम और बो झ भी कर्मचारियों पर लाद दिए. वीकैंड का यह क्रेज कुछ ही दिनों में सिर से उतरने लगा. तब तक सरकारी कर्मचारियों में भी यह सुविधा शुरू होने लगी. उत्तर प्रदेश में सब से पहले सचिवालय में काम करने वालों को ‘फाइव डे वीक’ शुरू किया गया. बैंकों में भी माह में 2 सप्ताह वीकैंड रहता है.

कोरोना ने खत्म किया क्रेज

जब भी कोई चीज जरूरत से ज्यादा मिलती है तो वह नुकसान ही करती है. यही हाल वीकैंड का भी हुआ. 2020 के मार्च माह से अगस्त माह के बीच पूरे देश में पहले 3 माह का लौकडाउन रहा. इस के बाद वीकैंड में लौकडाउन होने लगा. औफिस और दूसरे कार्यस्थल बंद हो गए. इस दौरान लोगों को घर से काम करना पड़ रहा है. आने वाले दिनों में भी जारी रहेगा. ऐसे में घर से ही ‘वर्क फ्रौम होम’ शुरू हो गया. यहां पर कामकाजी महिलाओं तक को दिक्कत आने लगी. दिक्कत की सब से बड़ी वजह यह रही कि पति का औफिस और बच्चों का स्कूल भी औनलाइन हो गया. ऐसे में एक ही घर और एक ही छत के नीचे रहते हुए भी आपस में बात करने का कोई मौका नहीं मिलता है.

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पहले जैसी बात कहां

आकांक्षा जैन बताती हैं, ‘‘औफिस से काम करने का यह लाभ था कि घर आ कर जो भी समय बचता था उस में केवल घरपरिवार की बातें होती थीं. अब वर्क फ्रौम होम में घर में रहते हुए भी घर वालों के लिए समय नहीं मिल पाता है. यहां औफिस के काम का कोई तय समय नहीं होता. 3-4 घंटे केवल जूम मीटिंग्स में निकल जाते हैं. छोटे घरों में यह दिक्कत होती है कि अगर 3 लोग वर्क फ्रौम होम करने लगे तो जगह कम पड़ने लगती है. मीटिंग के अलावा बहुत सारे काम करने पड़ते हैं. मल्टीनैशनल कंपनियों में रात के समय भी काम करने को कहा जाता है जो एक तरह से परेशानी का सबब बनने लगा है. औफिस में 7-8 घंटे काम करने के लिए जो माहौल और सुविधाएं मिलती थीं वे घर में नहीं मिल पाती हैं. ऐसे में वर्क फ्रौम होम केवल एक विकल्प है. यह औफिस का स्थान नहीं ले सकता, क्योंकि वर्क फ्रौम होम में औफिस के काम जैसी गुणवत्ता नहीं आती है.’’

शनिवाररविवार खत्म होने से नैगेटिव इंपैक्ट

औन लाइन प्रोफैशनल नैटवर्क लिंक्डइन  के एक सर्वे में यह पाया गया है कि करीब  50 फीसदी कामकाजी महिलाएं कोरोना के कारण अधिक दबाव महसूस कर रही है. वे केवल शारीरिक श्रम की वजह से ही नहीं भावनात्मक रूप से भी खुद को परेशान महसूस कर रही हैं. इस सर्वे में 47 फीसदी महिलाओं और 38 फीसदी पुरुषों ने यह बात स्वीकार की. 27 जुलाई से  23 अगस्त 2020 के बीच यह सर्वे किया गया था. इस में 25 सौ से अधिक प्रोफैशनल्स के साथ बात हुई थी. सर्वे में कामकाजी मांओं और कामकाजी महिलाओं दोनों को शामिल किया गया. कामकाजी मांओं ने कहा कि कोरोनाकाल में बच्चों की देखभाल को ले कर चुनौतियां सब से अधिक सामने आईं. वर्क फ्रौम होम में शनिवाररविवार की छुट्टी खत्म हो गई, जिस से उन के व्यवहार में नैगेटिव भाव देखने को मिलने लगे.

महिलाओं और पुरुषों के अलगअलग नजरिए से देखें तो पता चलता है कि 31 फीसदी महिलाओं को पूरे समय बच्चों की देखभाल करनी पड़ी. पहले स्कूल और औफिस खुलने से बच्चों का काफी समय उधर गुजर जाता था. केवल  17 फीसदी पुरुषों ने ही बच्चों को संभालने में पत्नी की मदद की. 44 फीसदी महिलाओं ने माना कि बच्चों की देखभाल करने में उन को वर्किंग आवर से अधिक काम करना पड़ा. 25 फीसदी पुरुषों ने माना कि बच्चों की देखभाल में उन को अपने वर्किंग आवर से अधिक काम करना पड़ा. 20 फीसदी महिलाओं ने माना कि बच्चों की देखभाल के लिए उन को परिवार के सदस्यों या मित्रों पर निर्भर रहना पड़ा. 32 फीसदी पुरुषों ने माना कि वे बच्चों की देखभाल के लिए दूसरों पर निर्भर रहे.

वर्क फ्रौम होम में बढ़ गए काम के घंटे

शनिवार और रविवार सहित वर्क फ्रौम होम में काम करते समय वर्किंग आवर बढ़ गए. 46 फीसदी महिलाओं ने माना कि यहां उन्हें देर तक काम करने की जरूरत होती है. ज्यादा काम करने के बाद भी काम की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है. 42 फीसदी महिलाओं ने माना कि बच्चों के घर में होने के कारण वे काम पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दे पाती हैं. इन वजहों से शनिवार और रविवार की छुट्टी का अब कोई क्रेज नहीं रह गया है, बल्कि यह तनाव का कारण बन गई है. अब उन्हें इस बात का इंतजार रहता है कि कब छुट्टियां खत्म हों, वे औफिस जा सकें.

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आकांक्षा जैन कहती हैं कि सप्ताह में 2 दिन हमें औफिस जाने के लिए कहा गया है. अब  मु झे वही 2 दिन वीकैंड से लगने लगे हैं. शनिवार और रविवार का हमारे लिए कोई क्रेज नहीं रह गया है.

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