वीकैंड मस्ती: अब कल की बात

मेघा और सचिन दोनों ही निजी कंपनी में काम करते हैं. दोनों ही रोज लगभग एक ही समय घर से निकलते थे. शाम को मेघा जल्दी आ जाती थी और सचिन 8 बजे तक आता था. दोनों अपने लिए समय नहीं निकाल पाते थे. ढंग से खाना भी नहीं हो पाता था. उन की किचन में खाना बनाने का सामान कम और औनलाइन खाना भेजने वाली साइटों के फोन नंबर अधिक लिखे होते थे. वे स्वाद को बदलने के लिए साइट बदलबदल कर खाना मंगाते थे. उन के लिए वीकैंड ही सब से खुशहाल भरा होता था. शनिवार और रविवार सब से बड़ी खुशी लाता था.

मेघा कहती है, ‘‘शनिवार की सुबह देर तक सोने का मौका मिलता था तो लगता था कि जीवन की सारी खुशियां मिल गई हों. वीकैंड में ही हम मनपसंद खाना बनाते थे.’’

शालिनी और रमेश दोनों ही मल्टीनैशल कंपनी में काम करते थे. दोनों की नई शादी हुई थी. 1 साल बीत गया. बढ़ती उम्र में शादी हुई थी तो घर वालों को लग रहा था कि बच्चा जल्दी हो जाना चाहिए नहीं तो आगे दिक्कत हो सकती है. घर वालों का दबाव पड़ रहा था. शालिनी और रमेश घर वालों के दबाव में डाक्टर को दिखाने गए. डाक्टर ने पतिपत्नी के वर्किंग स्टाइल को सम झा और देखा कि दोनों कितना समय साथ गुजारते हैं. डाक्टर ने दोनों को सलाह दी कि तनावमुक्त हो कर कुछ वीकैंड साथ बिताएं. कुछ दिनों में उन के घर खुशियां आ गईं.

कोरोना काल में ‘वर्क फ्रौम होम’ और ‘क्वारंटाइन’ शनिवार और रविवार की वीकैंड मस्ती को पूरी तरह से खत्म कर चुके हैं. इस वजह से घरों में तनाव बढ़ने लगा हैं. लोगों में मानसिक बीमारियां फैलने लगी हैं, जो लोग वीकैंड और छुट्टियों का इंतजार करते थे आज वे इन के खत्म होने और फिर से औफिस वर्किंग का इंतजार कर रहे हैं. अब घर में रहना उन को कैद सा लगने लगा है. परिवार में आपस में तनाव का माहौल बढ़ रहा है. संयुक्त परिवार होने से यह बात और भी बिगड़ रही है. अकेले परिवारों की भी परेशानियां कम नहीं हैं.

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वीकैंड का क्रेज

वीकैंड यानी शनिवार और रविवार की छुट्टी का क्रेज कुछ साल पहले तक बहुत होता था. शनिवार और रविवार की छुट्टी को वीकैंड बना कर एक पैकेज की तरह पेश किया गया था. मल्टीनैशनल कंपनियों के इस चलन को देशी कंपनियों के कर्मचारी बहुत ललचाई नजरों से देखते थे. उन को लगता था कि मल्टीनैशनल कंपनियां अपने कर्मचारियों का बहुत ध्यान रखती हैं. मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी वीकैंड के इस क्रेज को ऐसे प्रचारित किया था कि वेतन से अधिक इस का लालच कर्मचारियों को हो गया था. नए लोग जब मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करते थे तो अपने साथियों को फख्र के साथ बताते थे कि हमारे यहां ‘फाइव डे वीक’ होता है. 2 दिन की छुट्टी में वीकैंड आराम से कटता है.

नहीं रहा क्रेज

देशी कंपनियों में जहां केवल रविवार को छुट्टी मिलती थी वह ‘‘सौतिहा डाह’’ से वीकैंड मनाने वालों को देखते थे. वीकैंड का चलन धीरेधीरे तेज होने लगा. देशी कंपनियों ने भी खुद को मल्टीनैशनल बनाने के लिए वीकैंड का चलन शुरू किया. देशी कंपनियां वेतन में भले ही मल्टीनैशनल कंपनियों का मुकाबला नहीं करती थी पर वीकैंड में वे मल्टीनैशनल कंपनियों का मुकाबला करने लगीं. एक दिन की छुट्टी को ‘वर्किंग आवर’ यानी ‘काम के घंटे’ बढ़ा कर पूरा किया जाने लगा. पहले साढ़े 9 से साढ़े 5 की औफिस जौब में कर्मचारी को 8 घंटे काम करना पड़ता था. जिन जगहों में शिफ्ट में काम होता था वहां भी एक शिफ्ट 8 घंटे की होती थी.

वीकैंड देने वाली कंपनियों में ‘वर्किंग आवर’ शाम 7 बजे तक कर दिया. इस तरह से हर दिन डेढ़ घंटा कर्मचारी को ज्यादा काम करना पड़ने लगा. इस तरह से शनिवार को एक दिन छुट्टी देने के एवज में कर्मचारियों से रोज डेढ़ घंटे अधिक काम लेना शुरू हो गया. देशी कंपनियों ने एक दिन की अतिरिक्त छुट्टी के एवज में तमाम और बो झ भी कर्मचारियों पर लाद दिए. वीकैंड का यह क्रेज कुछ ही दिनों में सिर से उतरने लगा. तब तक सरकारी कर्मचारियों में भी यह सुविधा शुरू होने लगी. उत्तर प्रदेश में सब से पहले सचिवालय में काम करने वालों को ‘फाइव डे वीक’ शुरू किया गया. बैंकों में भी माह में 2 सप्ताह वीकैंड रहता है.

कोरोना ने खत्म किया क्रेज

जब भी कोई चीज जरूरत से ज्यादा मिलती है तो वह नुकसान ही करती है. यही हाल वीकैंड का भी हुआ. 2020 के मार्च माह से अगस्त माह के बीच पूरे देश में पहले 3 माह का लौकडाउन रहा. इस के बाद वीकैंड में लौकडाउन होने लगा. औफिस और दूसरे कार्यस्थल बंद हो गए. इस दौरान लोगों को घर से काम करना पड़ रहा है. आने वाले दिनों में भी जारी रहेगा. ऐसे में घर से ही ‘वर्क फ्रौम होम’ शुरू हो गया. यहां पर कामकाजी महिलाओं तक को दिक्कत आने लगी. दिक्कत की सब से बड़ी वजह यह रही कि पति का औफिस और बच्चों का स्कूल भी औनलाइन हो गया. ऐसे में एक ही घर और एक ही छत के नीचे रहते हुए भी आपस में बात करने का कोई मौका नहीं मिलता है.

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पहले जैसी बात कहां

आकांक्षा जैन बताती हैं, ‘‘औफिस से काम करने का यह लाभ था कि घर आ कर जो भी समय बचता था उस में केवल घरपरिवार की बातें होती थीं. अब वर्क फ्रौम होम में घर में रहते हुए भी घर वालों के लिए समय नहीं मिल पाता है. यहां औफिस के काम का कोई तय समय नहीं होता. 3-4 घंटे केवल जूम मीटिंग्स में निकल जाते हैं. छोटे घरों में यह दिक्कत होती है कि अगर 3 लोग वर्क फ्रौम होम करने लगे तो जगह कम पड़ने लगती है. मीटिंग के अलावा बहुत सारे काम करने पड़ते हैं. मल्टीनैशनल कंपनियों में रात के समय भी काम करने को कहा जाता है जो एक तरह से परेशानी का सबब बनने लगा है. औफिस में 7-8 घंटे काम करने के लिए जो माहौल और सुविधाएं मिलती थीं वे घर में नहीं मिल पाती हैं. ऐसे में वर्क फ्रौम होम केवल एक विकल्प है. यह औफिस का स्थान नहीं ले सकता, क्योंकि वर्क फ्रौम होम में औफिस के काम जैसी गुणवत्ता नहीं आती है.’’

शनिवाररविवार खत्म होने से नैगेटिव इंपैक्ट

औन लाइन प्रोफैशनल नैटवर्क लिंक्डइन  के एक सर्वे में यह पाया गया है कि करीब  50 फीसदी कामकाजी महिलाएं कोरोना के कारण अधिक दबाव महसूस कर रही है. वे केवल शारीरिक श्रम की वजह से ही नहीं भावनात्मक रूप से भी खुद को परेशान महसूस कर रही हैं. इस सर्वे में 47 फीसदी महिलाओं और 38 फीसदी पुरुषों ने यह बात स्वीकार की. 27 जुलाई से  23 अगस्त 2020 के बीच यह सर्वे किया गया था. इस में 25 सौ से अधिक प्रोफैशनल्स के साथ बात हुई थी. सर्वे में कामकाजी मांओं और कामकाजी महिलाओं दोनों को शामिल किया गया. कामकाजी मांओं ने कहा कि कोरोनाकाल में बच्चों की देखभाल को ले कर चुनौतियां सब से अधिक सामने आईं. वर्क फ्रौम होम में शनिवाररविवार की छुट्टी खत्म हो गई, जिस से उन के व्यवहार में नैगेटिव भाव देखने को मिलने लगे.

महिलाओं और पुरुषों के अलगअलग नजरिए से देखें तो पता चलता है कि 31 फीसदी महिलाओं को पूरे समय बच्चों की देखभाल करनी पड़ी. पहले स्कूल और औफिस खुलने से बच्चों का काफी समय उधर गुजर जाता था. केवल  17 फीसदी पुरुषों ने ही बच्चों को संभालने में पत्नी की मदद की. 44 फीसदी महिलाओं ने माना कि बच्चों की देखभाल करने में उन को वर्किंग आवर से अधिक काम करना पड़ा. 25 फीसदी पुरुषों ने माना कि बच्चों की देखभाल में उन को अपने वर्किंग आवर से अधिक काम करना पड़ा. 20 फीसदी महिलाओं ने माना कि बच्चों की देखभाल के लिए उन को परिवार के सदस्यों या मित्रों पर निर्भर रहना पड़ा. 32 फीसदी पुरुषों ने माना कि वे बच्चों की देखभाल के लिए दूसरों पर निर्भर रहे.

वर्क फ्रौम होम में बढ़ गए काम के घंटे

शनिवार और रविवार सहित वर्क फ्रौम होम में काम करते समय वर्किंग आवर बढ़ गए. 46 फीसदी महिलाओं ने माना कि यहां उन्हें देर तक काम करने की जरूरत होती है. ज्यादा काम करने के बाद भी काम की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है. 42 फीसदी महिलाओं ने माना कि बच्चों के घर में होने के कारण वे काम पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दे पाती हैं. इन वजहों से शनिवार और रविवार की छुट्टी का अब कोई क्रेज नहीं रह गया है, बल्कि यह तनाव का कारण बन गई है. अब उन्हें इस बात का इंतजार रहता है कि कब छुट्टियां खत्म हों, वे औफिस जा सकें.

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आकांक्षा जैन कहती हैं कि सप्ताह में 2 दिन हमें औफिस जाने के लिए कहा गया है. अब  मु झे वही 2 दिन वीकैंड से लगने लगे हैं. शनिवार और रविवार का हमारे लिए कोई क्रेज नहीं रह गया है.

Diwali Special: घर लाएं ज़ीरो ट्रांसफैट वाली मिठास

लेखिका- मेघना नारायण और शौवरी मलिक (स्लर्प फार्म)

भारतीय त्योहारों की बात करें तो दीवाली के दौरान अक्सर हम ज़्यादा मिठाईयां खाते हैं. दीवाली के दौरान रिफाइन्ड चीनी से भरपूर लड्डू और ट्रांसफैट से युक्त भोजन भारतीय परिवारों में आमतौर पर देखा जाता है. अगर आप को लगता है कि त्योहारों के आहार में बदलाव लाना मुश्किल है तो आप गलत हैं.

आप सेहतमंद अवयवों के साथ दीवाली के व्यंजनों को स्वादिष्ट और पौष्टिक बना सकते हैं. आप की पसंद की मिठाई में ओर्गेनिक नट पाउडर जैसे दालचीनी, कालीमिर्च, इलायची और चीनी के बजाए ओर्गेनिक गुड़ का इस्तेमाल कर इसे ज़्यादा पौष्टिक बनाया जा सकता है.

इस दीवाली आप पोषण से भरपूर अंकुरित रागी पाउडर, रागी पैनकेक मिक्स, सेहतमंद जई पाउडर, बाजरा जई दलिया मिक्स, और आटा का इस्तेमाल कर 1000 तरह के व्यंजन बना सकते हैं जैसे वेफल्स, ब्राउनी, केक (आप इनके वेगन वर्ज़न भी बना सकते हैं), बर्फी, लड्डू, हलवा, पुडिंग, फ्रोयो, पाॅप्सिकल.

आइए जानें पारंपरिक अनाज मिलेट्स की ताकत

फाइबर, प्रोटीन, विटामिन बी एवं अन्य पोषक तत्वों से भरपूर मिलेट्स आज शहरी आहार में वापसी कर चुके हैं और लोग भोजन के सेहतमंद विकल्पों के लिए इन्हें को अपना रहे हैं. फिंगर मिलेट्स (रागी) के फायदेः

रागी में किसी भी अन्य अनाज की तुलना में कैल्शियम अधिक मात्रा में होता है. यहां तक कि दूध से भी ज़्यादा कैल्शियम इसमें पाया जाता है. यानि यह आप की हड्डियों का मजबूत बनाता है.

रागी में फाॅस्फोरस भी भरपूर मात्रा में होता है जा हड्डियों और दांतों के सेहत के लिए महत्वपूर्ण है. यह पाचन में मददगार है और शरीर में पीएच स्तर को संतुलित बनाए रखता है.

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रागी में मौजूद फाइबर से आप को लम्बे समय तक पेट भरा हुआ महसूस होता है, आप दिन भी सक्रिय रहते हैं, और आप का एनर्जी लैवल सक्रिय बना रहता है.

रागी में आयरन भी भरपूर मात्रा में होता है. यह उन लोगों के लिए फायदेमंद है जिनमें हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो.

बच्चों को अगर शुरूआत से इस तरह के सेहतमंद आहार की आदत डाली जाए तो उन्हें जीवनशैली से जुड़ी कई बीमारियों से सुरक्षित रखा जा सकता है. आम दिनों का आहार हो या त्योहारों के दिनों के व्यंजन, अगर उन्हें अच्छी तरह से पकाया जाए तो वे स्वादिष्ट होने के साथ पौष्टिक भी हो सकते हैं. तो क्या आप स्टोर से लड्डू खरीदना चाहेंगे या घर में सेहतमंद व्यंजन बना कर अपने बच्चे के विकास को सुनिश्चित करना चाहेंगे?

सेहतमंद आहार स्वादिष्ट भी हो सकता है!

मिलेट्स सदियों से हमारे दादादादी की रसोई का मुख्य हिस्सा रहे हैं. रागी डोसा, कोडो मिलेट खिचड़ी, बाजरे की रोटी, ज्वार का उपमा, ये व्यंजन दशकों से भारतीय रसोई में पकाए जाते हैं. लेकिन यह गलत अवधारणा है कि इन मिलेट्स का उपयोग सिर्फ पारंपरिक व्यंजनों में ही किया जा सकता है. ये पारम्परिक अनाज रिफाइन्ड सफेद चावल या आटे का बेहतरीन विकल्प हैं. यानि आमतौर पर हर वह व्यंजन जिसमें आप चावल, आटे या मैदा का उपयोग करते हैं, उन्हें मिलेट्स से बनाया जा सकता है.

ये मिलेट्स सेहतमंद विकल्प हैं क्योंकि इनमें फाइबर, प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स और एंटीआक्सीडेन्ट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. ऐसे में ये वज़न में कमी लाने, डायबिटीज़ से बचाव, दिल की बीमारियों से बचाव के लिए बेहद फ़ायदेमंद हैं.

तो इस दीवाली अपने प्रियजनों के पका कर खिलाएं ये स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजनः

ज़ीरो ट्रांस फैट वाली मिठास से भरपूर खास रागी के लड्डू

रागी के लड्डू

सामग्री

1. आधा कप रागी का आटा

2. आधा कप ओर्गेनिक गुड़ का पाउडर

3. एक कप खजूर बिना बीज के

4. एक बड़ा चम्मच घी

5. एक बड़ा चम्मच खसखस

6. आधा चम्मच तिल के बीज

7. दो बड़े चम्मच बादाम कटे/ पाउडर किए

8. दो बड़े चम्मच किशमिश कटी/ पाउडर की

9. सभी मेवे स्लर्प फार्म ओर्गेनिक नट पाउडर से लिए जा सकते हैं.

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विधि ;

एक गहरी कढ़ाई में एक बड़ा चम्मच घी गर्म करें, इसमें एक कप रागी का आटा भुनें. धीमी आंच पर 5-7 मिनट के लिए भुनें. लड्डु बनाते समय आप को एक बात ध्यान रखनी है कि रागी को अच्छी तरह भुना जाए. अगर थोड़ा भी कच्चा रह गया तो यह पेट दर्द का कारण बन सकता है.

एक साथ मिला कर पीस लें, मेवों को हल्का सा भुनें .

एक बाउल में भुना रागी, सूखे मेवे, आधा कप गुड़ पाउडर मिलाएं. दोचम्मच गर्म घी/ मक्खन मिला कर अच्छी तरह मिला लें.

अगर आ पको खुशबु पसंद है तो एक बड़ा चम्मच इलायची पाउडर मिलाएं.

अपने हाथों से बाॅल्स बनाएं. अगर बहुत सूखे हों और लड्डू न बंधे तो थोड़ा घी और मिलाएं.

रागी से बना सेहतमंद लड्डू तैयार है! सेहत की चिंता किए बिना इसका आनंद उठाइए!

कोरोना की वजह से कम से मिलें पर मेंटल हेल्थ के लिए मिलें जरुर

कोरोना आया और एक बार तो बहुत हद तक जिंदगी की रफ्तार थम गई. भय, चिंता, भविष्य से ज्यादा वर्तमान की फिक्र इंसान पर हावी हो गई. नौकरी, पढ़ाई, काम, घूमना, मौज-मस्ती, जब भी मन करे घर से निकल जाना और किसी मॉल में शॉपिंग करना या होटल में खाना खाना या कहीं यूं ही बिना योजना बनाए कार उठाकर निकल जाना. पार्टी, धमाल, दोस्तों के साथ गप्पबाजी या नाइट आउट, रिश्तेदारों व परिचितों के घर जमावाड़ा और सड़कों पर बेवजह की चहलकदमी—अचानक सब पर विराम लग गया. किसी के मिलने का मन है तो पहुंच गए उसके घर, कि चलो आज साथ मिलकर लंच या डिनर करते हैं. लॉकडाउन खुल गया, पर संक्रमण घूमता रहा और अब घर से बाहर निकलने से पहले कई बार सोचना पड़ता है, जरूरी है तभी कदम दरवाजा पार करते हैं. घबराहट, डर और घर में बैठे रहकर केवल आभासी दुनिया से जुड़े रहने से सबसे ज्यादा असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है.

मानसिक सेहत बिगड़ी

कोरोना वायरस के इस दौर में लोग मानसिक रूप से ज्यादा परेशान हुए हैं. जितना जरूरी शारीरिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना है, उतना ही जरूरी है मानसिक सेहत को दुरुस्त रखना. इससे इंसान के सोचने, महसूस करने और काम करने की ताकत प्रभावित होती है. तनाव और अवसाद जब घेर ले तो उसका सीधा असर रिश्ते और फैसले लेने की क्षमता पर पड़ता है. जो पहले से ही मानसिक रूप से बीमार थे, 

कोरोना वायरस के बढ़ते संकट के इस दौर में उन लोगों को अधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन जो मानसिक रूप से स्वस्थ थे, वे भी अपनी सेहत खोने लगे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है घर की चारदीवारी में कैद हो जाना और बाहर से सारे संपर्क टूट जाना, बेशक वीडियो कॉल पर आप जिससे चाहे बात कर सकते हैं, पर जो मजा साथ बैठकर बात कर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में आता है, वह मोबाइल या लैपटॉप पर अंगुली चलाकर कैसे मिल सकता है.

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मिलना-जुलना सपना हो गया

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. मानसिक तौर पर स्वस्थ रहने के लिए लोगों से मिलना-जुलना जरूरी होता है. लेकिन कोरोना ने जैसे इस पर प्रतिबंध लगा दिया है. सारी मस्ती और रौनक छीन ली है. आयोजन व समारोहों में, जहां जाकर कितने सारे लोगों से मिलने का मौका मिल जाता था और एक पारिवारिक या दोस्ताना माहौल निर्मित हो जाने के कारण ढेर सारी खुशियों के पल समेटे जब लोग घर लौटा करते थे तो कितने दिनों तक उन बातों की पोटलियां खेलकर बैठ जाया करते थे जो वहां उन्होंने साझा की थीं या जी थीं. अब तो गिनती कर लोगों को बुलाने की बाध्यता है, फिर मास्क और सेनेटाइज करते रहने के बीच सारा बिंदासपन एक कोने में दुबक कर बैठ जाता है. दूर-दूर बैठकर और हाथ हिलाकर ही कुछ कहा, कुछ सुना जाता है. अपनी सुरक्षा के कारण दूसरे लोगों से खुलकर न मिल पाने की पीड़ा हर किसी को त्रस्त कर रही है. 

कैसे हो रहा है असर

 ब्रिटिश जर्नल लैंसेट साइकेट्री में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, कोरोना वायरस न सिर्फ मनुष्य को शारीरिक रूप से कमजोर कर रहा है बल्कि मानसिक तौर पर भी इस महामारी के कई सारे नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहे हैं. एक अन्य शोध में यह पाया गया है कि कुछ लोगों की तंत्रिकाओं पर प्रभाव पड़ा है. मानसिक सेहत में जब लंबे समय तक सुधार नहीं हो पाता है तो वह मस्तिष्क को प्रभावित करती है. न केवल बुजुर्ग, बल्कि अकेले रहने वाले लोग, वयस्क, युगल, पुरुष, महिलाओं, बच्चों, यानी हर उम्र के लोगों को मानसिक सेहत से जूझना पड़ रहा है. 

दैनिक रूटीन से कट जाने और घर में बंद रहने की वजह से दिमाग को मिलने वाले संकेत बंद हो जाते हैं. यह संकेत घर के बाहर के वातावरण और बाहरी कारकों से मिलते हैं लेकिन लगातार घर में रहने से यह बंद हो जाता है. इन सब कारणों से अवसाद और चिंता के बढ़े मामले देखने को मिल रहे हैं. इसे सामूहिक तनाव भी कह सकते हैं. लोग अपने बच्चे के भविष्य को लेकर असमंजस में हैं,  किसी को नौकरी छूट जाने का तनाव है तो किसी को वित्तीय स्थिति ठीक करने का तनाव, घर पर बहुत समय रहने पर उकताहट होने वालों को बाहर निकलकर आजादी से न घूम पाने का तनाव है. 

 मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि इसे जीनोफोबिया‘ का शिकार होना कहा जा सकता है. इसमें लोग किसी व्यक्ति के सामने आने पर घबराने लगते हैं, बात करने से डरते हैं, आंख में आंख डालकर बात नहीं कर पाते. ऐसा कैमरे में देखने की आदत के कारण हो रहा है. डिजिटल दुनिया पर निर्भरता के कारण उपजी इस परेशानी को मनोवैज्ञानिक भाषा में जोनोफोबियायानी फीयर ऑफ ह्यूमन अथवा इंसानों से डर कहा जाता है. दिमाग चीजों को स्वीकार नहीं कर पा रहा और उसे लगने लगा है कि वीडियो पर बात करके वह सहज महसूस कर पाएगा, पर हो इसके विपरीत रहा है. 

मिलें लोगों से

सुरक्षा के सारे नियमों का ध्यान रखते हुए अपने मानसिक स्वास्थ्य को सही खुराक देने के लिए बेशक कम मिलें, पर लोगों से मिलें अवश्य. बेशक दूरी बनाकर मिलना पड़े, बेशक मास्क पहनना पड़े, पर मिलें अवश्य. घर बैठे-बैठे होने वाली ऊब कहीं मुसीबत न बन जाए. सोशल मीडिया या इंटरनेट आपको बोर नहीं करता बल्कि यह अकसर बोरियत या वास्तविक जिंदगी से पलायन का भाव होता है जो इंटरनेट की ओर धकेल देता है. इस समय बोरियत की शिकायत आम हो गई है. यदि आप भी खुशी की तलाश या जीवन के बे-अर्थ हो जाने के एहसास के कारण डिजिटल साधनों पर अंधाधुंध समय बिता रहे हैं तो यह मुसीबत बन सकता है. जब महज मनोरंजन या बोरियत भगाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं तो एक और परेशानी है. इस समय जरूरत है उन लोगों से मिलें जिन्हें आपकी परवाह है, जो आपसे प्यार करते हैं या जिनके साथ समय बिताने से आपको खुशी और राहत महसूस होती है. 

जरूरत है कि फिर से लोगों से जुड़ें, सामाजिक दायरा छोटा ही रखें, पर आभासी दुनिया से अलग स्वयं उनसे जाकर मिलें जरूर. आप खुद में बदलाव महसूस करेंगे, मानो बरसों का कोई बोझ उतर गया हो. खिलखिलाहटें और हंसी आपमें एक नई ऊर्जा भर जाएगी और तनाव जाता महसूस होगा. मानसिक तनाव से निकलने के लिए शराब और नशीली दवाओं का उपयोग या नींद की दवा लेने से कहीं बेहतर है कि उनसे मिलें जिनके साथ वक्त गुजारना आप में जीने की ललक पैदा करता है. 

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मानसिक स्वास्थ्य पूरी तरह से भावनात्मक आयाम पर टिका होता है. यदि हमारा सामाजिक जीवन दुरुस्त है तो हम मानसिक रूप से स्वस्थ होंगे ही और अपने संबंधों को आनंद से जी पाएंगे. तब जटिल स्थितियों का मुकाबला करने की भी शक्ति स्वतः आ जाती है. कोरोना है, रहेगा भी अभी लंबे समय तक, उसे लेकर अवसाद में जीने के बजाय खुद को फिर से तैयार करें ताकि सामाजिक जीवन जी सकें. अपने प्रियजनों, दोस्तों, रिश्तेदारों व परिचितों से मिलें, और अपने मानसिक स्वास्थ्य को दवाइयों का मोहताज बनाने के बजाय, मन की बातें शेयर कर, खुल कर हंस कर, अपने दुख-सुख बांटते हुए, कोरोना को चुनौती देने के लिए तत्पर हो जाएं. 

सुरक्षित शारीरिक संबंध बनाने के बाद भी दर्द का कारण क्या है?

सवाल

मैं 23 साल की युवती हूं. कुछ दिनों पहले अपने बौयफ्रैंड के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया. हालांकि इस दौरान बौयफ्रैंड ने कंडोम का प्रयोग कर सैक्स किया पर दूसरे दिन सुबह मेरे यूटरस में दर्द होने लगा और मु झे बुखार भी हो गया. अत: बताएं कि सुरक्षित संबंध बनाने के बाद भी दर्द क्यों हुआ?

जवाब-

सैक्स संबंध हमेशा सुरक्षित ही बनाना चाहिए. सैक्स क्रिया में कंडोम एक सरल व सहज गर्भनिरोधक है, जिस से अनचाहे गर्भधारण से बचा जा सकता है.

यूटरस में दर्द और बुखार होने का सुरक्षित सैक्स संबंध बनाने से कोई वास्ता नहीं है. संभव है कि आप के साथ कोई अंदरूनी वजह रही होगी. बेहतर होगा कि आप अपने डाक्टर से मिल कर सलाह लें.

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महान मनौवेज्ञानिक सिगमंड फ्रौयेड ने कहा था, ‘कोई महिला-पुरुष जब आपस में शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं, तो उन दोनों के दिमाग में 2 और व्यक्ति मौजूद रहते हैं. जो उसी लम्हे में हमबिस्तर हो रहे होते हैं.’ इस बात को पढ़ते हुए मैं अचरज में था कि क्या ऐसा सच में होता है? अगर होता है तो ऐसा क्यों होता है?

यह साल था 2007. मैं उस वक्त 15 साल का टीनेज था और 9वीं क्लास में पढ़ रहा था. मुझे आज भी याद है, पहली बार क्लास में मेराएक क्लासमैटएक ‘पीले साहित्य की किताब’ ले कर आया था. जिस के कवर पेज पर एक जवान नग्न महिला की तस्वीर थी. किसी महिला को इस तरह नग्न देखना शायद मेरा पहला अनुभव था. जिसे देख कर उत्तेजना के साथ घबराहट भी होने लगी थी. आज के नवयुवक पीला साहित्य से परिचित नहीं हों तो उन्हें बता दूं यह आज के विसुअल पोर्न का प्रिंटेड वर्जन था.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- आपकी पोर्न यात्रा में रुकावट के लिए खेद है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

REVIEW: युवा पीढ़ी की आवाज को गहराई से प्रतिध्वनित करती वेब सीरीज ‘एक झूठी लव स्टोरी’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताःप्रणव आदर्श,शैलजा केजरीवाल,अली ए रिजवी,श्रेयशी मुखर्जी,मिस वाह शफीक

निर्देशकःमेहरीन जब्बर

कलाकारःफुरकान कुरेशी,मोहम्मद अहमद,किरण हक,मोदिहा इमाम, बिलाल अब्बास खान,फवाद खान, अहमद जेब,किंजा रज्जाक, मरियम सलीम व अन्य

अवधिः 18 एपिसोड ,लगभग साढ़े नौ घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः 30 अक्टूबर से ‘‘जी 5’’पर

कुछ वर्ष पहले जीटीवी ने  एक मुहीम के तहत पाकिस्तानी टीवी सीरियलों को ‘जिंदगी’के तहत प्रसारित करना शुरू किया था,जिसे काफी पसंद किया गया था. अब ‘जिंदगी’ के ही तहत मौलिक पाकिस्तानी वेब सीरीज को ‘जी5’ प्रसारित किया जा रहा है. कुछ समय पहले ‘‘जी 5’’पर ‘‘चुड़ैल’’ को जबरदस्त सफलता मिली थी. अब ‘जिंदगी’ एक दूसरी मौलिक लंबी वेब सीरीज ‘‘एक झूठी लव स्टोरी’’ लेकर आया है,जिसका प्रसारण 30 अक्टूबर से ‘‘जी 5’’पर शुरू हुआ है.  26 से 47 मिनट की अवधि वाले  18 एपीसोड की यह वेब सीरीज लगभग साढ़े नौ घंटे की है. जिसका लेखन ‘जिंदगी गुलजार है’ फेम उमरा अहमद ने किया है और इसकी निर्देशक महरीन जब्बार हैं. इस दिल दहला लेने वाली खूबसूरत प्रेम कहानी को दो पाकिस्तानी कलाकारों बिलाल अब्बास खान और मदीहा इमाम ने जीवंतता प्रदान की है.

कहानीः

‘‘एक झूठी लव स्टोरी’’ प्यार और एक आदर्श साथी की तलाश में सलमा(मदीहा इमाम)और सोहेल(बिलाल अब्बास खान )  की कहानी है. कहानी पाकिस्तान में रह रहे शहजाद सिद्दिकी(मो. अहमद)के परिवार की है,जिसमें शहजाद की पत्नी नुसरत जहां के अलावा तीन बेटियां शबाना(किरण हक ) ,शाजिया(मरियम सलीम)व सलमा(मदीहा इमाम)तथा एक बेटा सलाउद्दीन (फुरकान कुरेशी)हैं. शहजाद एक कंपनी में नौकरी कर रहे हैं. घर के अंदर नुसरत जहां का ही लता है. उन्हे अपने परिवार के मयार की चिंता है. वह अपनी लड़कियों के लिए सी हिसाब से लड़के तलाश कर रही हैं. वह चाहती हैं कि उनकी बेटियों की शादी पाकिस्तान की बजाय पाकिस्तानी मूल के अमरीका या इंग्लैंड में बसे उच्च शिक्षित व लखपति लड़कों से हो. इसी के चलते एक कालेज में शिक्षक शबाना 34 वर्ष,स्कूल शिक्षक शाजिया 30 वर्ष,24 वर्ष की सलमा बी ए की पढ़ाई कर रही है. जबकि सलाउद्दीन एक बैंक में एकाउंटेंट है. कालेज के प्रोफेसर जहांगीर शायरी लिखते हैं और वह शबाना के साथ रिश्ते जोड़ना चाहते हैं,मगर शबाना अपनी मां की सोच के अनुरूप उन्हे महत्व नही देती. उधर रिश्ते का भाई तंजीम हर दिन शाजिया के घर फल लेकर आता है,उसे शाजिया से प्यार है, मगर शाजिया चुप हैं. सलाउद्दीन की बैंकसहकर्मी नसीम उस पर डोरा डाल रही हैं. इधर बिजली की समस्या से निपटने के लिए एक दिन सलाउद्दीन मोहल्ले के ही सोहेल( बिलाल अब्बास खान)को यूएसपी लगाने के लिए लेकर आता है. उसके बाद सोहेल के परिवार के साथ नुसरतजहां संबंध बना लेती है,जिससे सोहेल की मां से बेटियों के लिए रिश्ते खोजने में मदद मिल जाए. सोहेल व सलमा दोनो को आदर्श साथ की तलाश है.

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इधर सलमा ने फेसबुक पर अपनी दोस्त की कजिन नतालिया ( किंजा रज्जक) की फेक आई डी बना रखी है. जबकि सोहेल ने फेशबुक पर अब अमरीका में रह रहे अपने दोस्त नोफिल तबानी(अहमद जेब)की फेक आई डी बना रखी है. अब सलमा,नतालिया के नाम से और सोहेल,नोफिल के नाम से एक दूसरे के फेशबुक फ्रेंड बन जाते हैं. धीरे धीरे दोनों में प्रेम हो जाता है. अंततःयह झूठी प्रेम कहानी का अंत हो जाता है और परिवार की तरफ से मजबूर किए जाने पर सलमा व सोहेल की शादी हो जाती है. दोनों हनीमून मून जाते हैं. अचानक एक दिन नतालिया व नोफिल की शादी का निमंत्रण मिलता है. दोनों का पुराना प्यार जीवंत हो जाता है और दोनो अलग होने फैसला कर लेते हैं. एक माह बाद पता चलता है कि नतालिया व नोफिल में तलाक का मुकदमा शुरू हो गया. तब नोफिल व नतालिया के स्वभाव का सच सामने आता है. सलमा व सोहेल अपनी गलती स्वीकार एक हो जाते हैं. शाजिया की शादी तंजीम से ,सलाउद्दीन की शादी नसीम से हो जाती है. जबकि शबाना स्कॉलरशिप मिल जाने के कारण लंदन पीएचडी करने चली जाती है.

लेखन व निर्देशनः

निर्देशक मेहरीन जब्बार सम्मोहक व विचित्र चरित्रों के साथ एक हल्की-फुल्की पारिवारिक कहानी लेकर आयी हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के रिश्तों का आकर्षक अन्वेषण भी हैं. यूं भी भारत हो या पाकिस्तान दोनों ही देशो में मध्यमवर्गीय परिवारों की समस्याएं व उनकी सोच ज्यों की त्यों है. यही वजह है कि इस वेब सीरीज के साथ हर दर्शक दिल के साथ जुड़ जाता है. दर्शक इसके किरदारों के साथ दुखी होता है और खुश भी होता है. लेखक निर्देशक बधाई के पात्र हैं कि वह मध्यमवर्गीय परिवार के अंदर घटित होने वाली छोटी से छोटी बात,भावनाओं आदि का इसमें यथार्थ परक चित्रण किया है. मानवीय भावनाओं का जिस तरह से चित्रण किया गया है,उससे लगता है कि यह लेखक व निर्देशक का खुद का भोगा हुआ सच हो. फेसबुक सोशल मीडिया के चलते गढ़े जा रहे झूठ को भी बेपर्दा किया गया है. इतना ही नही सलमा व सोहेल की प्रेम कहानी को पूरी तरह से जीवंतता प्रदान की गयी है. यह वेब सीरीज उस युवा पीढ़ी की आवाज को गहराई से प्रतिध्वनित करने के साथ साथ उन्हे साफ साफ संदेश देती है,जो कि एक आइडियल साथी और एक आदर्श जीवन साथी के साथ जीना चाहते हैं. इसमें जीवन की सादगी, रोजमर्रा के परिवार, पारिवारिक बंधन आदि का सटीक चित्रण है. मगर इसकी लंबाई ज्यादा हो गयी है,इसे एडीटिंग टेबल पर कसा जा सकता था.

अभिनयः

सोहेल के किरदार में बिलाल अब्बास खान और सलमा के किरदार में मोदिहा इमाम ने जानदार अभिनय किया है. दोनों के बीच की केमिस्ट्री शानदार है. फुरकान कुरेशी,मोहम्मद अहमद, किरण हक, फवाद खान, अहमद जेब,किंजा रज्जाक, मरियम सलीम भी अपने अपने किरदार को जीवंतता प्रदान की है.

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दुल्हन बनीं सिंघम एक्ट्रेस काजल अग्रवाल, देखें पूरा Wedding Album

 बौलीवुड सिंगर नेहा कक्कड़ की शादी ने बीते दिनों सुर्खियों में रही थी, जिसके बाद अब साउथ से लेकर बौलीवुड में अपनी पहचान बनाने वाली एक्ट्रेस काजल अग्रवाल भी इन दिनों अपनी शादी को लेकर फैंस के बीच छाई हुई हैं. बीते दिन एक्ट्रेस काजल ने बिजनेसमैन गौतम किचलू के साथ सात फेरे लिए हैं, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं एक्ट्रेस काजल अग्रवाल की शादी की लेटेस्ट फोटोज…

ऐसा दिखा काजल अग्रवाल का अंदाज

शादी में दुल्हन बनीं काजल अग्रवाल रेड कलर के लहंगे में नजर आईं, जिसके साथ उन्होंने गोल्डन कलर की हैवी चुन्नी कैरी की थी. इसी के एक्ट्रेस के लुक में साउथ का टच भी नजर आया. वहीं दूल्हा बने गौतम किचलू क्रीम कलर की शेरवानी और मैचिंग कलर का साफा सिर पर बांधे दिखे.

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काजल अग्रवाल ने लिए सात फेरे

सोशलमीडिया पर वायरल फोटोज में काजल अग्रवाल, गौतम किचलू के साथ सात फेरे लेते हुए नजर आ रही हैं. तो वहीं शादी की बाकी रस्मों को निभाते हुए दोनों बेहद खुश नजर आ रहे हैं, जिसका अंदाजा वायरल फोटोज से लगाया जा सकता है.

 

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इस लुक में भी मचा चुकी हैं धमाल

 

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शादी की तस्वीरों के अलावा काजल अग्रवाल के प्री-वेडिंग सेलिब्रेशन्स के फोटोज भी सोशल मीडिया पर छाए हुई हैं, जिसमें मेहंदी से लेकर शादी से पहले दुल्हन बनने की तैयारियों की फोटोज भी शामिल हैं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही हैं. वहीं काजल अग्रवाल के लुक्स की तारीफ उनके फैंस करने में लग गए हैं.

 

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बता दें, एक इंटरव्यू में काजल अग्रवाल ने खुलासा किया है कि शादी के बाद भी वह फिल्मों में काम करना पसंद करेंगी और बौलीवुड की फिल्मों में भी काम करती रहेंगी.

ये दुर्भाग्य है कि भाई-भतीजावाद हर जगह है – मीता वशिष्ट

फिल्म ‘चांदनी’ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री मीता वशिष्ठ थिएटर,फिल्म और टीवी एक्टर है. नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में स्नातक करने के बाद उन्होंने मणि कौल, गोविन्द निहलानी और कुमार साहनी जैसे बड़े फिल्म निर्माताओं के साथ काम कर अपनी एक अलग छवि बनाई.तीन दशकों से अधिक समय तक काम करने वाली मीता ने हमेशा अपनी शर्तों पर काम किया है, जिसकी वजह से वह खुश है. टीवी शो ‘स्वाभिमान, पचपन खम्भे लाल दिवार, कहानी घर-घरकी आदि कई धारावाहिकों में काम कर वह दर्शकों के बीच अपनी साख जमाई है. उनकी फिल्म ‘कसाई शेमारू मीज बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हो चुकी है, जिसे लेकर वह उत्साहित है. स्वभाव से हंसमुख और स्पष्टभाषी मीता से बात करना रोचक था. पेश है कुछ अंश,

सवाल- ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आपकी फिल्म रिलीज हो चुकी है, कितनी ख़ुश है?

बहुत अच्छा लगता है जब कोई फिल्म बनने के बाद वह काफी लोगों तक पहुंचे, शेमारू सालों से मनोरंजन की दुनिया में काम कर रहे है उनके साथ जुड़ना अच्छा लगा, क्योंकि कसाई जैसी फिल्में मल्टीप्लेक्स में नहीं चल सकती. थोड़ी अलग फिल्म है. कोरोना के समय इसे रिलीज किया जाना भी सही है.

सवाल- आपने एक लम्बी जर्नी तय की है, कितनी संतुष्ट है?

जर्नी जीने का एक सबक सिखाती चलती है. उसे कैरियर की तरह आप नहीं ले सकते. एक्टिंग सांसों, शक्ल और शरीर से जुड़ा हुआ काम है, फ़ाइलों वाला काम नहीं है. यहाँ खुद को पॉलिश करने और अंदर की तारों को ट्यूनिंग करने की जरुरत होती है. मैं जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो सोचती हूं कि ये जर्नी कैसे शुरू हुई, क्या-क्या मैंने सीखा, कैसे आगे बढ़ी आदि. ये एक लम्बा सफ़र है. मैंने कभी ये नहीं देखा कि पिछले 30 सालों में कितनी फिल्में सफल हुई, कितनी नहीं.

शुरुआत में मैं सोचती थी कि 40 साल होने के बाद सब चीजे अलग होगी, लेकिन मैंने पाया कि हर उम्र की एक खूबसूरती होती है और उस समय क्या-क्या गलतियाँ की, जो नहीं करनी चाहिए थी, उसके बारें में सोची. ये एक लम्बा रास्ता है, जिसे मैंने तय किया है. इसमें कोई गणित लाभ या हानि की नहीं है. इसमें आत्मा को मैंने देखा है, जो संतुष्ट है, पर जर्नी अभी कायम है.

सवाल- क्या कोई मलाल रह गया है?

रिग्रेट की अगर बात करें, तो मेरी बहुत पुरानीकॉस्टयूम डिज़ाइनर भानू अथैया कुछ दिनों पहले गुजर गई, जिन्हें गाँधी फिल्म की कॉस्टयूम के लिए आस्कर अवार्ड मिला था. उन्होंने मेरी पहली फिल्म से कॉस्टयूम की डिजाईन की थी. इसके अलावा फिल्म खिलाड़ियों के खिलाडी के लिए भी उन्होंने ड्रेसेस बनायीं थी,जिसे अभिनेत्री रेखा ने किया था. उसे पहले मैं करने वाली थी, जिसके सारे कॉस्टयूम भानू अथैया ने बनायीं थी.मैं रूस जाकर शूटिंग करने वाली थी, ऐसे में वहां कुछ गड़बड़ी होने की वजह से पूरी टीम  नहीं जा सकी और कनाडा जाने का निश्चय किया था. इस बीच केवल 10 दिन का गैप में उस फिल्म को किसी के कहने पर मेरी भूमिका अभिनेत्री रेखा के पास चली गई. उस फिल्म के कॉस्टयूम के साथ-साथ मैंने फोटो शूट भी किय थे. मैं उस ज्ञानी डिज़ाइनर से 10 सालों में एक बार भी नहीं मिली. इसका रिग्रेट मुझे आज है. इसके अलावा मेरा कोई गॉड फादर इंडस्ट्री में नहीं है, मैं अकेली हूं, ऐसे में अगर मुझे किसी बात का धक्का भी लगता था, तो मुझे समझाने वाला कोई नहीं था. आज मैं उन फोटो शूट को देखती हूं तो लगता है कि मुझमें थोडा और कॉन्फिडेंस होना चाहिए था. मैंने अपने आपको कभी अधिक सामने नहीं रखा. उस समय मैं पहली ऐसी अभिनेत्री थी, जिसने मनी कौल और कुमार साहनी की फिल्म में न्यूड सीन्स किये थे और मैंने धडल्ले से उसे किया था. कैमरे के आगे मैं एक कलाकार की तरह खुल जाती हूं, पर रियल लाइफ में मैं चुप रहती हूं. मुझे थोड़ी और चालाक होने की जरुरत थी, तब शायद और अधिक कमर्शियल फिल्म कर पाती. मुझे अपने टैलेंट पर अधिक विश्वास था.

सवाल- इंडस्ट्री में नेपोटिज्म और खेमेबाजी के बारें में आपकी सोच क्या है?

तब सोशल मीडिया नहीं थी. मुझे उस फिल्म में काम करने का मौका नहीं मिला, पर कुछ करना संभव नहीं था. मैंने खुद को समझाया कि मैं आर्ट फिल्में करती हूं, जबकि रेखा कमर्शियल फिल्म करती है. मैंने शोर नहीं मचाया. आज के दौर में लोग शोर-शराबा अधिक करते है. सीनियर जूनियर की जो एक सीमा रेखा है वह अब नहीं रही. अब वैसे सीनियर्स भी कम रह गए है. तब आर्ट, कॉस्टयूम में सब दिग्गज लोग थे. नेपोटिज्म सालों से चला आ रहा है. एक स्टार को बच्चे को 10 मौका मिलता है, जबकि दूसरों को मुश्किल से एक ही मौका मिलता है और उसी में खुद को प्रूव करना पड़ता है. ये कोई नई बात नहीं. हर फील्ड में ये है. पंडित रवि शंकर ने भी केवल अनुष्का शंकर को ही माना. मैं कहना चाहूंगी कि लोग पहले बच्चे की प्रतिभा देखें, फिर उसका रास्ता निर्धारित करें. ये दुर्भाग्य है कि भाई-भतीजावाद हर जगह है.

सवाल- क्या सोशल मीडिया का लोगों पर गलत प्रभाव पड़ रहा है?

आज सोशल मीडिया के पोपुलर व्यक्ति को अधिक मान मिलता है.जरुरी नहीं कि आप अपनी कला के लिए जानी जाय. सोशल मीडिया पर चर्चित है तो वही एचीवमेंट मानी जाती है, जबकि वह नहीं है. लोग आजकाल छोटे रास्ते से जाना चाहते है. पहले रास्ता कला का हुआ करता था. कुछ भी किसी ने किया, उसे ही सोशल मीडिया परडाल दिया. बहुत अधिक हो रहा है, जो ठीक नहीं.

सवाल- अभी क्या-क्या कर रही है? समय मिलने पर क्या करती है?

वेब सीरीज क्रिमिनल जस्टिस की शूटिंग ख़त्म हुई है, एक ब्रांड के लिए फिल्म शूट किया है. फिल्मों की बात चल रही है.

समय मिलने पर माँ के पास दिल्ली जाती हूं. यहाँ मेरे साथ दो बिल्ले लाड़ और कालू रहते है. इसके अलावा मैं एक कलाकार के तौर पर अपनी कहानी लिख रही हूं.

सवाल- क्या मेसेज देना चाहती है?

दुनिया में जितने भी लोग है, हम सब खास है. हर कोई खूबी को खुद में टटोले और उस मार्ग पर जाएँ. अभिनय ही एक अच्छा मार्ग है, ऐसा जरुरी नहीं. इसके लिए कुछ समय तक सोशल मीडिया से दूर रहकर खुद में रहने की कोशिश करें. खुद को पहचाने.

FESTIVE SPECIAL: कहां-कैसी साड़ियां

समय के साथ बदला स्वरूप साड़ी की उत्पत्ति करीब दो हजार साल पहले उत्तर भारत में हुई थी. शुरुआती दौर में यह सफेद रंग की एकदम प्लेन होती थी. उस दौरान इसे धोती कहा जाता था. तब पुरुष भी इसी वस्त्र को पहना करते थे. जनाने-मर्दाने का विभेद करने के लिए बाद में इसमें किनारे बनाई जाने लगी. पुरुषों की धोती में छोटी और महिलाओं की साड़ी में मोटी किनारी. शुभ कार्यो में साड़ी को रंग कर पहना जाने लगा. राजा-महाराजा जहां इसे केसर में रंगवाते थे तो आम प्रजा हल्दी में रंगकर पहनने लगी. इसके बाद रंगों का आविष्कार हुआ तो साड़ी का यौवन परवान चढ़ने लगा. कभी प्रिंटेड तो कभी प्लेन साड़ी का दौर आया. मौजूदा समय में नेट की साड़ियों की सबसे ज्यादा मांग है. इसके साथ-साथ ब्राोकेड, टिश्यू, जार्जट, क्रेपकॉटन की भी अच्छी मांग है.

भारत में जैसा देश, वैसा वेष की तर्ज पर विभिन्न इलाकों में भिन्न-भिन्न तरह की साड़ियां पहनी जाती है. इनका पहनावा भौगोलिक स्थिति, पारंपरिक मूल्यों और रुचियों पर निर्भर करता है. अलग-अलग शैलियों की साड़ियों में कांजीवरम, बनारसी, पटोला, हकोबा, चंदेरी, माहेश्वरी, मधुबनी, मूंगा, पैथानी, तांची, जामदानी, बालू व कांथाटैगेल साड़ियां प्रमुख है.

– उत्तर प्रदेश में बनारसी साड़ियों का कारोबार व्यापक पैमाने पर होता है. बनारस और इसके आसपास के क्षेत्र चंदौली, मिर्जापुर और भदोही में अरसे से साड़ियां तैयार की जा रही है जो प्योर सिल्क से बनाई जाती है. बनारसी साड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल चुकी है. इन साड़ियों का बड़े पैमाने पर दुनिया भर में निर्यात भी किया जाता है. इसके अलावा लखनऊ की चिकन एम्ब्राइडरी साड़ी प्रसिद्ध है.

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– राजस्थान में बंधेज और कोटा साड़ियों का निर्माण किया जाता है. कोटा साड़ी को कोटा डोरिया के नाम से भी जाना जाता है. पहले ये साड़ियां प्योरकॉटन से तैयार की जाती थीं लेकिन अब सिंथेटिक में भी बनाई जा रही है.

– गुजरात के पाटन में पटोला साड़ी बनाई जाती है. राज्य के सूरत, अहमदाबाद और बडोदरा में बड़े पैमाने पर सिंथेटिक और प्रिंटेड साड़ियां बनाई जाती है.

– महाराष्ट्र की पैथानी साड़ी खूब लोकप्रिय है. आंध््रा प्रदेश और कर्नाटक में पोचमपल्ली साड़ी गांव-गांव में पीढ़ियों से बनाई जा रही है. बाजार में इसकी कई रेंज मौजूद है. यहां विशेष साड़ियों पर जरी, मूंगा और सोने के धागे से वर्क किया जाता है.

– दक्षिण भारत की साउथ सिल्क, कांजीवरम की साड़ियां काफी प्रसिद्ध है.

– मध्य प्रदेश की बनी हुई चंदेरी और माहेश्वरी साड़ियों की दुनिया भर में अच्छी मांग है.

– कलकत्ता में बनने वाली हैडलूम की साड़ियां महिलाओं को खूब भाती है.

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स्किन: बेस्ट एक्सेसरी का रखें खास ख़याल

कहा जाता है कि स्किन हमारी हैल्थ का आइना होती है. क्योंकि जैसा हम खाते हैं उसी का असर हमारी स्किन पर पड़ता है. यानी जितनी हैल्दी डाइट हमारी होगी उतनी ही हमारी स्किन ग्लो करेगी. इसलिए आपको अपनी आउटर ब्यूटी को निखारने के साथ साथ अपनी हैल्थ का भी ध्यान रखना होगा. क्योंकि स्किन हमारी बेस्ट एक्सेसरी जो होती है, जिसे खास केयर करने की जरूरत होती है. फिर चाहे वो अंदर से हो या फिर बाहर से. तो जानते हैं इस बारे में कोस्मेटोलोजिस्ट भारती तनेजा से.

1. स्किन के टाइप को जानना जरूरी

जिस तरह कहां जाता है कि अगर आपको अच्छा दिखना है तो आपको अपनी फिजीक के हिसाब से कपड़ों का चयन करना चाहिए. ताकि आपका रूप निखर कर आए. ठीक उसी तरह अगर आप अपनी स्किन को ब्यूटीफुल बनाना चाहती हैं तो आपको सबसे पहले अपनी स्किन के टाइप का पता होना चाहिए. जैसे आपकी स्किन नोर्मल है, ऑयली है, ड्राई है या फिर कोम्बिनेशन स्किन. क्योंकि चेहरे पर क्लींजिंग, मोइस्चरिंग , टोनिंग और यहां तक की क्रीम्स का सलेक्शन भी उसी हिसाब से होता है. क्योंकि इससे रिजल्ट अच्छा मिलता है. वरना जानकारी के अभाव में रिजल्ट नहीं मिलने पर या तो आप अपनी स्किन को दोष देंगे या फिर आप ब्यूटी प्रोडक्ट को. इसलिए अपनी स्किन टाइप को जान लें.

जैसे अगर आपकी ऑयली स्किन है तो आपको क्लींजिंग मिल्क का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए बल्कि आप स्किन टोनर का इस्तेमाल करें. साथ ही आप ऐसे फेसवाश का इस्तेमाल करें जो खासकर के ऑयली स्किन वालों के लिए बनाया गया हो जैसे मिंट फेस वाश, टी ट्री फेस वाश . आपके लिए स्क्रब भी फायदेमंद साबित होगा. आप इसके लिए ऑरेंज पील पाउडर में बराबर मात्रा में मुल्तानी मिट्टी को डालकर उसमें आधा छोटा चम्मच चन्दन पाउडर व थोड़ी सी हलदी डालकर स्क्रब तैयार कर लें. फिर जब भी अप्लाई करना हो तो थोड़ा सा लेमन जूस या ऑरेंज जूस या फिर रोज वाटर की डालकर कुछ सेकंड तक हर रोज़ स्क्रब करें. इस स्क्रब से फेस को क्लीन करने से आपको काफी फ़ायदा होगा. बता दें कि इससे ब्लैकहेड्स की प्रोब्लम नहीं होगी.

– यदि आपकी स्किन बहुत ड्राई है तो आप हर रोज तैयार स्क्रब में थोड़ी सी मलाई डालकर पेस्ट तैयार कर लें. फिर हर सुबह इससे चेहरे की मसाज करने से स्किन की डॉयनेस दूर होने के साथ साथ आपकी स्किन ग्लो भी करेगी. या फिर आप इसमें थोड़ा सा आयल भी डाल सकते हैं. इससे भी काफी अच्छे रिजल्ट मिलते हैं.

– अगर आपकी कोम्बिनेशन स्किन है तो आप काफी माइल्ड जैल बेस्ड क्लीन्ज़र का यूज़ करें. इस बात का ध्यान रखें कि आप हार्श साबुन के प्रयोग से बचें. क्योंकि इससे स्किन को नुकसान हो सकता है. आप हमेशा कोम्बिनेशन स्किन के लिए बने फेस वाश , क्लीन्ज़र का ही इस्तेमाल करें.

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2. स्किन को मोइस्चर जरूर करें

स्किन पर मॉइस्चराइजर लगाना सिर्फ ड्राई स्किन वालों के लिए ही जरूरी नहीं है बल्कि हर तरह की स्किन टाइप वालों के लिए जरूरी होता है. क्योंकि मॉइस्चराइजर स्किन को हाइड्रेट करकर सोफ्ट व खूबसूरत बनाता है. वैसे तो शरीर में सीबम बनता रहता है, जो स्किन को मोइस्चर प्रदान करने के लिए जिम्मेदार माना जाता है. लेकिन जब शरीर में सीबम की कमी होने लगती है तो स्किन अपना मोइस्चर खोने लगती है. ऐसे में मॉइस्चराइजर स्किन को नमी प्रदान करता है. साथ ही ये एजिंग से भी बचाने का काम करता है.

बस इस बात का ध्यान रखें कि जब भी मॉइस्चराइजर का चयन करें तो अपनी स्किन टाइप को जरूर देख लें. आप हर्बल , एरोमेटिक आयल वाले मॉइस्चराइजर का इस्तेमाल करें. लेकिन अगर आपकी ऑयली स्किन है तो आप मॉइस्चराइजिंग क्रीम की जगह आप मॉइस्चराइजिंग लोशन का इस्तेमाल करें. इससे ऑयली स्किन की प्रोब्लम भी सोल्व होगी और स्किन पर चिपचिपाहट भी नहीं होगी . वैसे मार्केट में spf युक्त मॉइस्चराइजर भी आते हैं जिन्हें इस्तेमाल करके आप स्किन की सन से प्रोटेक्शन की कर सकती हैं और स्किन मॉइस्चरीज़ भी हो जाती है. लेकिन जब भी मॉइस्चराइजर लगाएं तो पहले अपनी स्किन को पानी से साफ जरूर कर लें. ताकि जमा गंदगी हट जाए. आप नहाने के बाद मॉइस्चराइजर को अप्लाई करना न भूलें.

3. स्किन टोनर से स्किन को करें क्लीन

फेस क्लीनिंग की बात हो और टोनिंग न की जाए , ऐसा हो नहीं सकता. क्योंकि जिस तरह स्किन पर मॉइस्चराइजर लगाना जरूरी होता है, उसी तरह स्किन को टोनर से क्लीन करना बहुत जरूरी होता है, ताकि स्किन पर जमा गंदगी रिमूव होकर स्किन सोफ्ट , स्मूद व हाइड्रेट हो सके. साथ ही टोनर स्किन के ph लेवल को बैलेंस करने का काम करता है. इसलिए हर रोज स्किन पर टोनर जरूर लगाएं. इसके लिए आप घर पर भी टोनर बना सकते हैं. जैसे अगर आपकी ऑयली स्किन है तो आप नीम और मिंट को बराबर मात्रा में लेकर पानी में उबालें, जब पानी एक चौथाई रह जाए तो इसका मतलब आपका टोनर तैयार है. आप इसे स्प्रे बोतल में स्टोर करके रख लें और रोज़ इसे अप्लाई करें. लेकिन अगर आपकी स्किन ड्राई है तो आप रोज व जैस्मीन की पत्तियों को बराबर मात्रा में लेकर पानी में उबालें , जब पानी एक चौथाई रह जाए तो इसे छान लें. आपका टोनर तैयार है. इसे रोजाना अप्लाई करें, आपको अपनी स्किन पर रिजल्ट खुद दिखने लगेगा.

4. सन प्रोटेक्शन जरूरी

चाहे सर्दी हो या गर्मी आप हर मौसम में सनस्क्रीन जरूर अप्लाई करें. ताकि आपकी स्किन सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणों से बच सके. वरना स्किन के डैमेज होने के साथ साथ एजिंग का भी डर बना रहता है. इसलिए जब भी आप घर से बाहर निकलें तो आप 10 मिनट पहले सनस्क्रीन जरूर अप्लाई कर लें. इससे आपको जो भी पसीना आना होगा आ जाएगा. जिसे आप कॉटन से या टिश्यू से क्लीन करके हलका डेब करके क्लीन कर लें. अगर आप मेकअप करना चाहती हैं तो इस पर ही मेकअप अप्लाई करें. इससे आपकी स्किन की प्रोपर केयर होगी.

अगर आपकी स्किन ऑयली है तो आप ऐसा सनस्क्रीन ख़रीदे, जो आपकी स्किन को प्रोटेक्शन देने के साथ चिपचिपा न बनाएं. साथ ही टैनिंग से भी स्किन की प्रोटेक्शन करे. वही अगर आपकी ड्राई स्किन है तो आप ऐसे सनस्क्रीन का चयन करें , जो आपकी स्किन पर मॉइस्चराइजर का भी काम करे, स्किन को लाइट भी फील करवाए. साथ ही सन से पूरी पूरी प्रोटेक्शन भी दे. और अगर आपकी कोम्बिनेशन स्किन है तो आप मॉइस्चराइजर युक्त सन स्क्रीन टाई करें. लेकिन सनस्क्रीन लगाना न भूलें. इस बात का भी ध्यान रखें कि जब भी सन स्क्रीन खरीदें तो वो अच्छे ब्रैंड का ही होना चाहिए. ताकि स्किन को किसी भी तरह का कोई नुकसान न पहुंचे.

4. सोने से पहले फेस को क्लीन करने की हैबिट

अगर आपकी आदत है कि आप सोने से पहले चेहरे को वाश नहीं करतीं या फिर आपको मेकअप को रिमूव करने की आदत नहीं है तो आपको बता दें कि इससे आपकी स्किन ख़राब हो सकती है. क्योंकि कोस्मेटिक प्रोडक्ट्स में केमिकल्स होते हैं , जो स्किन एलर्जी, एक्ने, एजिंग, स्किन को डैमेज करने का कारण बनते हैं. इसलिए सोने से पहले अपनी स्किन को क्लीन जरूर करें. इसके लिए आप क्लींजिंग मिल्क या फिर माइल्ड मेकअप रिमूवर का इस्तेमाल कर सकती हैं. इससे मेकअप भी रिमूव हो जाएगा और आपकी स्किन को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा. ध्यान रखें मेकअप को रिमूव करने के बाद स्किन को मॉइस्चरिजे या नौरिश जरूर करें. वरना स्किन पर डॉयनेस आ सकती है.

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5. बैलेंस्ड डाइट जो दे खूबसूरत त्वचा

ब्यूटी प्रोडक्ट्स से आप सिर्फ कुछ समय के लिए अपनी स्किन को खूबसूरत बना सकती हैं , लेकिन अगर आप चाहती हैं कि आपकी स्किन हमेशा ग्लो करे और हर तरह की स्किन प्रोब्लम से दूर रहे तो आपको बैलेंस्ड डाइट लेने की जरूरत होगी. बैलेंस्ड डाइट से हमारा मतलब जिसमें विटामिन्स, मिनरल्स , प्रोटीन, फाइबर, कार्ब्स सभी भरपूर मात्रा में हो. साथ ही खुद पानी पिएं , क्योंकि पानी से शरीर के सभी टोक्सिंस बाहर निकल जाते हैं , जिससे स्किन ग्लोइंग बनती है. आप अपनी डाइट में नट्स, हरी सब्जियों , दालों , फ्रूट्स , अंडा, ब्लैकबेर्रिज को जरूर शामिल करें. ये आपको अंदर से फिट रखकर आपकी बाहरी सुंदरता को बढ़ाने का काम करेगा.

त्योहारों की रौनक में खिल उठे जीवन

कोरोना के लंबे कहर से उत्पन्न बेरोजगारी के साथसाथ बीमारी के खौफ ने लोगों को अवसादग्रस्त और उदासीन भी बना दिया है. लोगों के दिलों में कुछ नया सोचने या करने का हौसला नहीं रहा. ऐसे में त्योहारों का मौसम उम्मीद और रोशनी की नई किरण ले कर आया है.

वैसे लोग इस बार फैस्टिवल्स मनाने से भी डर रहे है. दरअसल, फैस्टिवल्स का मतलब ही है लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना, रिश्तेदारों से मिलनामिलाना और शौपिंग के लिए बाजार जाना. लेकिन स्वाभाविक है कि कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच ये सब करने से बीमारी फैलने का डर और बढ़ जाता है. लेकिन डर कर हम अपने पुराने उत्सवों को मनाने का मौका नहीं छोड़ सकते. ये जहां एक तरफ हमें एकसूत्र में बांधते हैं, अपनों के बीच प्यार बढ़ाते हैं, वहीं जीवन में उत्साह और उमंग भी ले कर आते हैं.

ऐसे में जीवन में फिर से सकारात्मकता और खुशियां लाने के लिए त्योहार मनाने से डरें नहीं, बल्कि इन्हें एक नए अंदाज में मनाएं.

दूर रह कर भी अपनों के करीब आएं

समयसमय पर आने वाले फैस्टिवल्स ऐसे मौके होते हैं जब आप रिश्तों में गरमाहट वापस लाते. मगर इस बार बीमारी के डर से लोगों के

मन में आशंका है कि वे इन का मजा ले पाएंगे भी या नहीं. वैसे भी आनेजाने और मिलनेमिलाने से जुड़े कई तरह के प्रतिबंध लागू हैं. ऐसे में अपनों को करीब लाने का सब से सहज माध्यम है वर्चुअल मीटिंग. आप लैपटौप या मोबाइल पर अपनों के साथ वर्चुअल मीटिंग करें, गु्रप चैट करें, जूम मीटिंग और व्हाट्सऐप वीडियो कौल करें. फैस्टिवल्स का मजा लेते हुए रिश्तेदारों और दोस्तों से अपने वीडियो और फोटो शेयर करें. बच्चों की आपस में बातें कराएं. इस तरह आप अपनों के करीब हो सकेंगे और दूरी का एहसास नहीं होगा.

घर की कलात्मक सजावट

इस वक्त बाजार से सजावट का सामान लाने के बजाय अपने हाथों से बनी चीजों से घर की सजावट करें. लैंप्स, रंगोली, बंदनवार, रंगबिरंगी मोमबत्तियां, पेंट किए खूबसूरत दीए और भी बहुत कुछ बना सकते हैं. बच्चों को भी इस काम में शामिल कर सकते हैं. आजकल पत्रिकाओं में या फिर यूट्यूब और दूसरे चैनल्स में इस तरह की बहुत सामग्री या वीडियो मिल जाएंगे, जिन के जरीए आप कलात्मक चीजें बनाना सीख सकते हैं.

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साफसफाई और रंगरोगन

फैस्टिवल्स के पहले घर की साफसफाई और रंगरोगन कराने का रिवाज सदियों से चला आ रहा है. इस से घर भी साफ हो जाता है और हर साल घर को एक नया लुक भी मिलता है. कोरोना की वजह से यदि आप मजदूरों को घर पर बुलना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं. आप के पास मौका है कि घर के सभी सदस्य मिल कर यह काम खुद करें. घर की व्हाइट वाशिंग हो या दीवारों व दरवाजों को पेंट करना सब आप खुद बहुत अच्छे तरीके से और कम कीमत कर सकते हैं. इस के जरीए आप अपनी कला दिखा सकती हैं. एक तरफ जहां सब के साथ मिल कर ये सब करना ऐंजौय करेंगी वहीं जब आप की कला की तारीफ होगी तो आप का मन भी खिल उठेगा.

औनलाइन शौपिंग का मजा लें

कोरोना के कहर को देखते हुए भीड़भाड़ वाले बाजारों में जा कर शौपिंग करना उचित नहीं. ज्यादातर लोगों ने फिलहाल शौपिंग पर बंदिश लगा रखी है. मगर जब बात फैस्टिवल्स की हो तो भला शौपिंग से दूर कैसे रह सकते हैं. वैसे भी नएनए कपड़े, दूसरों के लिए गिफ्ट और घर के लिए नया सामान खरीद कर मन में सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है. नए कपड़े आप की ख्वाहिशों में नयापन लाते हैं. आप नए जोश से भर जाते हैं. ऐसे में शौपिंग करने का सब से सरल तरीका है औनलाइन शौपिंग. आप घर बैठे अपनी पसंद की चीजें सही कीमत पर खरीद सकते हैं. विकल्प भी बहुत से होते हैं और कुछ सेविंग भी हो जाती है.

दोस्तों के साथ मस्ती

कोरोना की वजह से आप दोस्तों के घर नहीं जा सकते तो क्या हुआ, दोस्तों के साथ मस्ती करने के दूसरे तरीके आजमाएं. फैस्टिवल का मजा तब तक अधूरा है जब तक कि आप उन के साथ बैठ कर हंसीठिठोली न कर लें. आप अपनी गाड़ी लें और यदि घर में गाड़ी न हो तो एक कैब हायर करें और अपने दोस्तों या सहेलियों के घर जा कर बाहर गाड़ी में ही बैठ कर गप्पें मारें. आसपास किसी दोस्त का घर है तो उसे भी बुला लें. पुरानी यादें ताजा करें. साथ मिल कर मनपसंद चीजें खाएं. ध्यान रखें कि खाना बांटें नहीं. इस मामले में अभी सावधानी जरूरी है. इसलिए आप अपना खाना खाएं और उन्हें अपना खाने दें.

बच्चों की पिकनिक

अपने घर के छोटे बच्चों को किसी बाग या खुले मैदान में ले जाएं और वहां दीए बगैरा जलाएं. रंगबिरंगी  झालरें और कैंडल्स लगाएं. आतिशबाजी के मजे लें. आसपास के मित्रों व रिश्तेदारों और उन के बच्चों को भी बुला सकते हैं. इस तरह एक छोटीमोटी पिकनिक पार्टी हो जाएगी, जिसे बच्चे बहुत ऐंजौय करेंगे. आप को भी अलग तरह का ऐंजौयमैंट मिल जाएगा. सब मिल कर त्योहार मना भी लेंगे और सोशल डिस्टैंसिंग का पालन भी हो सकेगा.

दोस्तों को किसी फूड जौइंट का खाना भेजें

वैसे तो आप अपने दोस्तों को कई तरह से सरप्राइज दे सकते हैं, पर फैस्टिवल के समय सब से प्यारा सरप्राइज होगा कि आप उन्हें किसी फूड जौइंट का उन की पसंद का खाना भिजवाएं. ऐसा करने से न केवल आप दोनों की दोस्ती गहरी होगी, बल्कि फैस्टिवल्स का फील भी आएगा.

जूम मीटिंग में सजधज कर बैठें

कोरोना में आप किसी के घर आजा नहीं सकते. इस का मतलब यह नहीं है कि आप लोग फैस्टिवल की रौनक का मजा न लें. फैस्टिवल्स का इंतजार महिलाओं को सब से अधिक इस बात के लिए रहता है कि उन्हें सजनेधजने का मौका मिलेगा. नएनए आभूषण और स्टाइलिश कपड़े पहनने और खूबसूरत दिखने का मौका मिलेगा. इस से मन में उमंगें पैदा होंगी कि दूसरे जब आप की तारीफ करते हैं तो मन खिल उठता है. जीवन में रौनक आती है. मगर आप जरूर सोच रही होंगी कि इस कोरोनाकाल में नए कपड़े और मेकअप करने का क्या मतलब जब घर में ही बैठे रहना है, दूसरों को दिखा कर ललचाना नहीं है तो फिर ये सब करने का फायदा ही क्या? पर रुकिए. इस का भी उपाय है. आप अच्छी तरह सजधज कर तैयार होएं और फिर रिश्तेदारों या सहेलियों के साथ जूम मीटिंग करें. एकदूसरे की फैस्टिवल की तैयारियां देखने के साथसाथ अपने नए लुक पर लोगों के कमैंट सुनने का मजा भी मिलेगा. तो फिर देर कैसी? पूरे उत्साह के साथ तैयार होइए और फैस्टिवल का  आनंद उठाएं.

गरीबों की मदद

कोरोना का सब से अधिक कहर गरीबों पर टूटा है. उन के रोजगार छूट गए, नौकरियां मिल नहीं रहीं, व्यवसाय ठीक से चल नहीं रहे, उस पर उन के पास सेविंग भी नहीं होती कि गुजारा चल जाए. इसलिए ऐसे समय में यदि अपना कुछ समय और थोड़े पैसे इन पर खर्च करें, इन के लिए कुछ मिठाई, कपड़े, पटाखे आदि खरीद कर ले जाएं तो इन के चेहरे पर आने वाली मुसकान आप के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा के रूप में रोशनी ले आएगी. इन के बच्चों के लिए हंसी खरीद कर आप अपने जीवन की खुशियां ढूंढ़ सकेंगी.

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बुजुर्गों का साथ

27 साल की नीना प्रसाद बताती हैं, ‘‘हमारी बगल में महिलाओं का एक वृद्धाश्रम है. उस में  200 से ज्यादा महिलाएं रहती हैं. हम अकसर शाम के समय उन के पास जाते थे. सारी बुजुर्ग महिलाएं अलगअलग अंदाज में हमारे साथ मस्ती करतीं. कोई बातें करती, कोई गाना सुनाती तो कोई किताबों की अच्छी बातें और अपनी पुरानी यादें ताजा करती. मु झ से सब की दोस्ती हो गई है. मैं दीवाली के दिन खासतौर पर बहुत सारे गिफ्ट्स, पटाखे, कैंडल्स और मिठाई ले कर उन से मिलने जाती. होस्टल के बीचोंबीच बहुत बड़ा आंगन था. सब वहां बैठ कर मस्ती करतीं, दीप जलातीं.

इस बार कोरोना की वजह से मैं अपने घर में हूं. मैं उन से मिलने नहीं जाऊंगी, मगर मैं ने इस का भी इंतजाम कर लिया है कि उन के लिए कुछ खास करूं. मैं ने उन के लिए बहुत सी चीजें कूरियर की हैं, साथ ही होस्टल के पास रहने वाली सहेली से कहा है कि वह मेरी तरफ से कैंडल्स और पटाखे ले कर दीवाली के दिन उन्हें दे आए. मैं ने यह भी सोचा है कि उस रात मैं वीडियो कौल कर के उन की खुशियों में शरीक होऊंगी. उन्हें हंसतामुसकराता देख कर मु झे बहुत सुकून और खुशी मिलती है.’’

इस तरह अनजान बुजुर्गों के साथ खुशियां बांट कर आप अपने जीवन में एक अलग तरह की सकारात्मकता महसूस कर सकते हैं. यही वह समय है जब आप उन को अपनेपन का एहसास दिला सकते हैं.

रिश्तों का मर्म समझें

लौकडाउन के दौरान हम ने अच्छी तरह सम झ लिया है कि जिंदगी केवल भौतिक चीजों से ही नहीं चलती, बल्कि जिंदगी में सहनशीलता, प्यार सद्भावना, भाईचारा, एकदूसरे को सम झना और सब का खयाल रखना भी जरूरी है. जब सब साथ मिल कर फैस्टिवल मनाते हैं तो अलग ही खुशी मिलती है.

हमें यह सोचना चाहिए कि हमें इतनी अच्छी जिंदगी मिली है. हम जिंदा हैं, हमें अपने परिवार के साथ मिल कर रहने का मौका मिला है और इस के लिए हमें इस समय को सैलिब्रेट करना चाहिए. आज हमारी सारी भौतिक चीजें अलमारियों में बंद हैं. जिंदगी में इतनी भागदौड़ कर के हम ने जो चीजें बड़े अरमानों से जुटाई थीं वे हमारे लिए बेकार हैं मगर परिस्थितिवश आज वे लोग हमारे साथ हैं, हमारे आसपास हैं, जिन्हें हम ने फोन में बंद कर रखा था और गाहेबगाहे हमें जिन की याद आती थी, जिन्हें देखने या जिन से मिलने की हमारे पास फुरसत नहीं थी आज वे और उन का प्यार सब से महत्त्वपूर्ण है. इस संकट के समय पूरा परिवार सही अर्थों में साथ है तो फिर क्यों न इस अपनेपन को खुशियों की डोर से बांध लें. क्यों न फैस्टिवल्स के इन लमहों को प्यार से सैलिब्रेट करें.

पौजिटिविटी का गहरा रिश्ता है मैंटल हैल्थ से

अच्छी हैल्थ का मतलब है कि हम बिना किसी शारीरिक तकलीफ के अपनी जिंदगी खुशी से बिता रहे हों. व्यवस्थित जीवनशैली अपना कर अपने शरीर को आने वाली तकलीफों से बचाते हैं. कोई परेशानी आने पर हम डाक्टर से मिलते हैं ताकि उन की दी गई दवा खा कर बीमारी दूर हो जाए. लेकिन जब दिमाग बीमार होता है तो हम डाक्टर के पास नहीं जाते, क्योंकि हमें डर लगता है कि लोग हमें पागल न सम झ लें. आजकल हम हमेशा स्ट्रेस में रहते हैं. वजह है दिनरात काम कर अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहते हैं ताकि सारी जरूरतें पूरी कर सकें, पर हम यह भूल जाते हैं कि शारीरिक जरूरतें पूरी करने के क्रम में हम मानसिक जरूरतों को भूल जाते हैं. काम का स्ट्रैस तो पूरा लेते हैं, मगर जीवन में सकारात्मकता लाना भूल जाते हैं. इस से डिप्रैशन तक हो जाता है. कई बार हमें लगता है कि जैसे हमें कोई प्यार नहीं करता. हम लो फील करने लगते हैं. दिल दुखी रहने लगता है.

फैस्टिवल का मतलब है रोशनी, संगीत, गानाबजाना, मिठाई खाना, हंसनागुनगुनाना, अपनों के साथ मगन हो जाना. यह एक ऐसा मौका है जब आप अपनी रंजिशें मिटा सकते हैं. एकदूसरे को प्यार से गले लगा सकते हैं. ये सब स्ट्रैस से नजात दिलाता है. अपनों के साथ मिल कर हम खुश होते हैं, बातें करते हैं, हंसीमजाक करते हैं.  इस से हमारे अंदर डोपामाइन नाम के गुड हारमोन का स्राव होता है और हमारे अंदर सकारात्मक सोच पैदा होती है. स्ट्रैस लैवल घटता है तो हम मानसिक रूप से मजबूत होते हैं. मैंटल हैल्थ पौजिटिविटी से डाइरैक्टली कनैक्टेड है जब हम अच्छा सोचेंगे, अच्छा महसूस करेंगे तो हमारी मानसिक सेहत बेहतर होती जाती है.

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याद रखें सकारात्मकता दिमाग को फिट रखने के लिए सब से जरूरी टौनिक है. दिमाग फिट रहेगा तभी शरीर फिट रह सकता है वरना स्ट्रैस से हजारों रोग होते हैं. फैस्टिवल्स के इस समय को ऐंजौय कर दिमाग में सकारात्मकता की तरंगें पैदा कीजिए, जो दिमाग को लंबे समय तक फिट रखेंगी.

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