त्योहारों की रौनक में खिल उठे जीवन

कोरोना के लंबे कहर से उत्पन्न बेरोजगारी के साथसाथ बीमारी के खौफ ने लोगों को अवसादग्रस्त और उदासीन भी बना दिया है. लोगों के दिलों में कुछ नया सोचने या करने का हौसला नहीं रहा. ऐसे में त्योहारों का मौसम उम्मीद और रोशनी की नई किरण ले कर आया है.

वैसे लोग इस बार फैस्टिवल्स मनाने से भी डर रहे है. दरअसल, फैस्टिवल्स का मतलब ही है लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना, रिश्तेदारों से मिलनामिलाना और शौपिंग के लिए बाजार जाना. लेकिन स्वाभाविक है कि कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच ये सब करने से बीमारी फैलने का डर और बढ़ जाता है. लेकिन डर कर हम अपने पुराने उत्सवों को मनाने का मौका नहीं छोड़ सकते. ये जहां एक तरफ हमें एकसूत्र में बांधते हैं, अपनों के बीच प्यार बढ़ाते हैं, वहीं जीवन में उत्साह और उमंग भी ले कर आते हैं.

ऐसे में जीवन में फिर से सकारात्मकता और खुशियां लाने के लिए त्योहार मनाने से डरें नहीं, बल्कि इन्हें एक नए अंदाज में मनाएं.

दूर रह कर भी अपनों के करीब आएं

समयसमय पर आने वाले फैस्टिवल्स ऐसे मौके होते हैं जब आप रिश्तों में गरमाहट वापस लाते. मगर इस बार बीमारी के डर से लोगों के

मन में आशंका है कि वे इन का मजा ले पाएंगे भी या नहीं. वैसे भी आनेजाने और मिलनेमिलाने से जुड़े कई तरह के प्रतिबंध लागू हैं. ऐसे में अपनों को करीब लाने का सब से सहज माध्यम है वर्चुअल मीटिंग. आप लैपटौप या मोबाइल पर अपनों के साथ वर्चुअल मीटिंग करें, गु्रप चैट करें, जूम मीटिंग और व्हाट्सऐप वीडियो कौल करें. फैस्टिवल्स का मजा लेते हुए रिश्तेदारों और दोस्तों से अपने वीडियो और फोटो शेयर करें. बच्चों की आपस में बातें कराएं. इस तरह आप अपनों के करीब हो सकेंगे और दूरी का एहसास नहीं होगा.

घर की कलात्मक सजावट

इस वक्त बाजार से सजावट का सामान लाने के बजाय अपने हाथों से बनी चीजों से घर की सजावट करें. लैंप्स, रंगोली, बंदनवार, रंगबिरंगी मोमबत्तियां, पेंट किए खूबसूरत दीए और भी बहुत कुछ बना सकते हैं. बच्चों को भी इस काम में शामिल कर सकते हैं. आजकल पत्रिकाओं में या फिर यूट्यूब और दूसरे चैनल्स में इस तरह की बहुत सामग्री या वीडियो मिल जाएंगे, जिन के जरीए आप कलात्मक चीजें बनाना सीख सकते हैं.

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साफसफाई और रंगरोगन

फैस्टिवल्स के पहले घर की साफसफाई और रंगरोगन कराने का रिवाज सदियों से चला आ रहा है. इस से घर भी साफ हो जाता है और हर साल घर को एक नया लुक भी मिलता है. कोरोना की वजह से यदि आप मजदूरों को घर पर बुलना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं. आप के पास मौका है कि घर के सभी सदस्य मिल कर यह काम खुद करें. घर की व्हाइट वाशिंग हो या दीवारों व दरवाजों को पेंट करना सब आप खुद बहुत अच्छे तरीके से और कम कीमत कर सकते हैं. इस के जरीए आप अपनी कला दिखा सकती हैं. एक तरफ जहां सब के साथ मिल कर ये सब करना ऐंजौय करेंगी वहीं जब आप की कला की तारीफ होगी तो आप का मन भी खिल उठेगा.

औनलाइन शौपिंग का मजा लें

कोरोना के कहर को देखते हुए भीड़भाड़ वाले बाजारों में जा कर शौपिंग करना उचित नहीं. ज्यादातर लोगों ने फिलहाल शौपिंग पर बंदिश लगा रखी है. मगर जब बात फैस्टिवल्स की हो तो भला शौपिंग से दूर कैसे रह सकते हैं. वैसे भी नएनए कपड़े, दूसरों के लिए गिफ्ट और घर के लिए नया सामान खरीद कर मन में सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है. नए कपड़े आप की ख्वाहिशों में नयापन लाते हैं. आप नए जोश से भर जाते हैं. ऐसे में शौपिंग करने का सब से सरल तरीका है औनलाइन शौपिंग. आप घर बैठे अपनी पसंद की चीजें सही कीमत पर खरीद सकते हैं. विकल्प भी बहुत से होते हैं और कुछ सेविंग भी हो जाती है.

दोस्तों के साथ मस्ती

कोरोना की वजह से आप दोस्तों के घर नहीं जा सकते तो क्या हुआ, दोस्तों के साथ मस्ती करने के दूसरे तरीके आजमाएं. फैस्टिवल का मजा तब तक अधूरा है जब तक कि आप उन के साथ बैठ कर हंसीठिठोली न कर लें. आप अपनी गाड़ी लें और यदि घर में गाड़ी न हो तो एक कैब हायर करें और अपने दोस्तों या सहेलियों के घर जा कर बाहर गाड़ी में ही बैठ कर गप्पें मारें. आसपास किसी दोस्त का घर है तो उसे भी बुला लें. पुरानी यादें ताजा करें. साथ मिल कर मनपसंद चीजें खाएं. ध्यान रखें कि खाना बांटें नहीं. इस मामले में अभी सावधानी जरूरी है. इसलिए आप अपना खाना खाएं और उन्हें अपना खाने दें.

बच्चों की पिकनिक

अपने घर के छोटे बच्चों को किसी बाग या खुले मैदान में ले जाएं और वहां दीए बगैरा जलाएं. रंगबिरंगी  झालरें और कैंडल्स लगाएं. आतिशबाजी के मजे लें. आसपास के मित्रों व रिश्तेदारों और उन के बच्चों को भी बुला सकते हैं. इस तरह एक छोटीमोटी पिकनिक पार्टी हो जाएगी, जिसे बच्चे बहुत ऐंजौय करेंगे. आप को भी अलग तरह का ऐंजौयमैंट मिल जाएगा. सब मिल कर त्योहार मना भी लेंगे और सोशल डिस्टैंसिंग का पालन भी हो सकेगा.

दोस्तों को किसी फूड जौइंट का खाना भेजें

वैसे तो आप अपने दोस्तों को कई तरह से सरप्राइज दे सकते हैं, पर फैस्टिवल के समय सब से प्यारा सरप्राइज होगा कि आप उन्हें किसी फूड जौइंट का उन की पसंद का खाना भिजवाएं. ऐसा करने से न केवल आप दोनों की दोस्ती गहरी होगी, बल्कि फैस्टिवल्स का फील भी आएगा.

जूम मीटिंग में सजधज कर बैठें

कोरोना में आप किसी के घर आजा नहीं सकते. इस का मतलब यह नहीं है कि आप लोग फैस्टिवल की रौनक का मजा न लें. फैस्टिवल्स का इंतजार महिलाओं को सब से अधिक इस बात के लिए रहता है कि उन्हें सजनेधजने का मौका मिलेगा. नएनए आभूषण और स्टाइलिश कपड़े पहनने और खूबसूरत दिखने का मौका मिलेगा. इस से मन में उमंगें पैदा होंगी कि दूसरे जब आप की तारीफ करते हैं तो मन खिल उठता है. जीवन में रौनक आती है. मगर आप जरूर सोच रही होंगी कि इस कोरोनाकाल में नए कपड़े और मेकअप करने का क्या मतलब जब घर में ही बैठे रहना है, दूसरों को दिखा कर ललचाना नहीं है तो फिर ये सब करने का फायदा ही क्या? पर रुकिए. इस का भी उपाय है. आप अच्छी तरह सजधज कर तैयार होएं और फिर रिश्तेदारों या सहेलियों के साथ जूम मीटिंग करें. एकदूसरे की फैस्टिवल की तैयारियां देखने के साथसाथ अपने नए लुक पर लोगों के कमैंट सुनने का मजा भी मिलेगा. तो फिर देर कैसी? पूरे उत्साह के साथ तैयार होइए और फैस्टिवल का  आनंद उठाएं.

गरीबों की मदद

कोरोना का सब से अधिक कहर गरीबों पर टूटा है. उन के रोजगार छूट गए, नौकरियां मिल नहीं रहीं, व्यवसाय ठीक से चल नहीं रहे, उस पर उन के पास सेविंग भी नहीं होती कि गुजारा चल जाए. इसलिए ऐसे समय में यदि अपना कुछ समय और थोड़े पैसे इन पर खर्च करें, इन के लिए कुछ मिठाई, कपड़े, पटाखे आदि खरीद कर ले जाएं तो इन के चेहरे पर आने वाली मुसकान आप के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा के रूप में रोशनी ले आएगी. इन के बच्चों के लिए हंसी खरीद कर आप अपने जीवन की खुशियां ढूंढ़ सकेंगी.

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बुजुर्गों का साथ

27 साल की नीना प्रसाद बताती हैं, ‘‘हमारी बगल में महिलाओं का एक वृद्धाश्रम है. उस में  200 से ज्यादा महिलाएं रहती हैं. हम अकसर शाम के समय उन के पास जाते थे. सारी बुजुर्ग महिलाएं अलगअलग अंदाज में हमारे साथ मस्ती करतीं. कोई बातें करती, कोई गाना सुनाती तो कोई किताबों की अच्छी बातें और अपनी पुरानी यादें ताजा करती. मु झ से सब की दोस्ती हो गई है. मैं दीवाली के दिन खासतौर पर बहुत सारे गिफ्ट्स, पटाखे, कैंडल्स और मिठाई ले कर उन से मिलने जाती. होस्टल के बीचोंबीच बहुत बड़ा आंगन था. सब वहां बैठ कर मस्ती करतीं, दीप जलातीं.

इस बार कोरोना की वजह से मैं अपने घर में हूं. मैं उन से मिलने नहीं जाऊंगी, मगर मैं ने इस का भी इंतजाम कर लिया है कि उन के लिए कुछ खास करूं. मैं ने उन के लिए बहुत सी चीजें कूरियर की हैं, साथ ही होस्टल के पास रहने वाली सहेली से कहा है कि वह मेरी तरफ से कैंडल्स और पटाखे ले कर दीवाली के दिन उन्हें दे आए. मैं ने यह भी सोचा है कि उस रात मैं वीडियो कौल कर के उन की खुशियों में शरीक होऊंगी. उन्हें हंसतामुसकराता देख कर मु झे बहुत सुकून और खुशी मिलती है.’’

इस तरह अनजान बुजुर्गों के साथ खुशियां बांट कर आप अपने जीवन में एक अलग तरह की सकारात्मकता महसूस कर सकते हैं. यही वह समय है जब आप उन को अपनेपन का एहसास दिला सकते हैं.

रिश्तों का मर्म समझें

लौकडाउन के दौरान हम ने अच्छी तरह सम झ लिया है कि जिंदगी केवल भौतिक चीजों से ही नहीं चलती, बल्कि जिंदगी में सहनशीलता, प्यार सद्भावना, भाईचारा, एकदूसरे को सम झना और सब का खयाल रखना भी जरूरी है. जब सब साथ मिल कर फैस्टिवल मनाते हैं तो अलग ही खुशी मिलती है.

हमें यह सोचना चाहिए कि हमें इतनी अच्छी जिंदगी मिली है. हम जिंदा हैं, हमें अपने परिवार के साथ मिल कर रहने का मौका मिला है और इस के लिए हमें इस समय को सैलिब्रेट करना चाहिए. आज हमारी सारी भौतिक चीजें अलमारियों में बंद हैं. जिंदगी में इतनी भागदौड़ कर के हम ने जो चीजें बड़े अरमानों से जुटाई थीं वे हमारे लिए बेकार हैं मगर परिस्थितिवश आज वे लोग हमारे साथ हैं, हमारे आसपास हैं, जिन्हें हम ने फोन में बंद कर रखा था और गाहेबगाहे हमें जिन की याद आती थी, जिन्हें देखने या जिन से मिलने की हमारे पास फुरसत नहीं थी आज वे और उन का प्यार सब से महत्त्वपूर्ण है. इस संकट के समय पूरा परिवार सही अर्थों में साथ है तो फिर क्यों न इस अपनेपन को खुशियों की डोर से बांध लें. क्यों न फैस्टिवल्स के इन लमहों को प्यार से सैलिब्रेट करें.

पौजिटिविटी का गहरा रिश्ता है मैंटल हैल्थ से

अच्छी हैल्थ का मतलब है कि हम बिना किसी शारीरिक तकलीफ के अपनी जिंदगी खुशी से बिता रहे हों. व्यवस्थित जीवनशैली अपना कर अपने शरीर को आने वाली तकलीफों से बचाते हैं. कोई परेशानी आने पर हम डाक्टर से मिलते हैं ताकि उन की दी गई दवा खा कर बीमारी दूर हो जाए. लेकिन जब दिमाग बीमार होता है तो हम डाक्टर के पास नहीं जाते, क्योंकि हमें डर लगता है कि लोग हमें पागल न सम झ लें. आजकल हम हमेशा स्ट्रेस में रहते हैं. वजह है दिनरात काम कर अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहते हैं ताकि सारी जरूरतें पूरी कर सकें, पर हम यह भूल जाते हैं कि शारीरिक जरूरतें पूरी करने के क्रम में हम मानसिक जरूरतों को भूल जाते हैं. काम का स्ट्रैस तो पूरा लेते हैं, मगर जीवन में सकारात्मकता लाना भूल जाते हैं. इस से डिप्रैशन तक हो जाता है. कई बार हमें लगता है कि जैसे हमें कोई प्यार नहीं करता. हम लो फील करने लगते हैं. दिल दुखी रहने लगता है.

फैस्टिवल का मतलब है रोशनी, संगीत, गानाबजाना, मिठाई खाना, हंसनागुनगुनाना, अपनों के साथ मगन हो जाना. यह एक ऐसा मौका है जब आप अपनी रंजिशें मिटा सकते हैं. एकदूसरे को प्यार से गले लगा सकते हैं. ये सब स्ट्रैस से नजात दिलाता है. अपनों के साथ मिल कर हम खुश होते हैं, बातें करते हैं, हंसीमजाक करते हैं.  इस से हमारे अंदर डोपामाइन नाम के गुड हारमोन का स्राव होता है और हमारे अंदर सकारात्मक सोच पैदा होती है. स्ट्रैस लैवल घटता है तो हम मानसिक रूप से मजबूत होते हैं. मैंटल हैल्थ पौजिटिविटी से डाइरैक्टली कनैक्टेड है जब हम अच्छा सोचेंगे, अच्छा महसूस करेंगे तो हमारी मानसिक सेहत बेहतर होती जाती है.

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याद रखें सकारात्मकता दिमाग को फिट रखने के लिए सब से जरूरी टौनिक है. दिमाग फिट रहेगा तभी शरीर फिट रह सकता है वरना स्ट्रैस से हजारों रोग होते हैं. फैस्टिवल्स के इस समय को ऐंजौय कर दिमाग में सकारात्मकता की तरंगें पैदा कीजिए, जो दिमाग को लंबे समय तक फिट रखेंगी.

ब्रेकअप के बारे में पेरेंट्स को अवश्य बताएं

4 साल के लंबे रिलेशनशिप के बाद आज तान्या और तनुज का ब्रेकअप हो गया था. तान्या बहुत उदास थी मगर उस ने घर में किसी को कुछ नहीं बताया. चुपचाप अपने कमरे में जा कर दरवाज़ा बंद कर लिया. वह देर तक पुरानी बातें याद करती रही. तनुज की फोटो देखती रही और मैसेजेस पढ़ती रही. दर्द से उस का सिर फट रहा था. न चाहते हुए भी उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. उसे अपने दिल में एक तरह का खालीपन, अपमान और धोखे का अहसास हो रहा था. यहां तक कि उस ने एकदो बार सुसाइड करने की बात भी सोच ली.

शाम तक वह कमरे से नहीं निकली और अगले दिन भी गुमसुम और उदास सी अपने कमरे में ही रही आई. मां को चिंता हुई. मां ने उस के कमरे का दरवाज़ा खुलवाया. बेटी की आंखें देख कर ही वे समझ रही थीं कि वह किसी बात पर बहुत अपसेट है.

“क्या हुआ बेटे? कोई बात है क्या?”

“नहीं मां, कुछ भी नही,” तान्या ने टालना चाहा.

मां ने उस का चेहरा अपनी तरफ करते हुए कहा,” मां से झूठ बोलेगी, बता क्या बात है?”

अब तान्या चुप नहीं रह सकी. फूटफूट कर रोती हुई बोली,” मां तनुज ने मुझे धोखा दिया. उस का किसी और लड़की के साथ भी अफेयर चल रहा है. मैं ने उस से ब्रेकअप कर लिया है.”

“तो इस में रोने की क्या बात है? यह तो अच्छा हुआ न कि तुझे उस की असलियत जल्दी पता चल गई. अगर वह किसी और के साथ भी रिश्ते में है और तुझे धोखा दे रहा है तो ऐसे इंसान को छोड़ देने में ही समझदारी है. कल को तुम दोनों ज्यादा आगे बढ़ जाते या शादी कर लेते और तब तुम्हें तनुज की असलियत पता चलती तब सोचो क्या होता. तुम्हारे पास तो लौटने का रास्ता भी नहीं होता. मगर अभी बात ज्यादा नहीं बढ़ी है. एक झटके में उसे दिल से निकाल और आगे बढ़ जा.”

“पर मां यह इतना आसान नहीं है. मैं उसे कैसे भूलूंगी? हम दोनों एकदूसरे से इतना प्यार करते थे. वह ऐसा कैसे कर सकता है?”

“कैसे कर सकता है यह सोचना फ़िजूल है. उस ने ऐसा किया तो अब तुझे क्या करना है यह सोच. दूसरी बात यह कि ऐसे शख्स को भूलना ही समझदारी है. जिस ने तेरी कदर नहीं की, तुझे धोखा दिया, विश्वास तोड़ा उसे याद करने में एक पल भी बर्बाद करना गलत है. उसे तेरे प्यार की परवाह नहीं तो तू क्यों परवाह करती है उस की?

“पर मां इतना पुराना रिश्ता तुरंत खत्म कैसे हो सकता है? दिल से उस की यादें जा ही नहीं रहीं. ”

“फोन दिखा जरा. यह देख तू उसी की फोटो देख रही थी. उसी के मैसेजेस पढ़ रही थी. ऐसे में उसे कैसे भूल पाएगी? चल उस की सारी फोटो डिलीट मार और मैसेज भी डिलीट कर दे. ब्रेकअप किया है तो पूरी तरह से उसे दिमाग से निकाल कर खुद को साबित करने का प्रयास कर. खुद को इतना ऊंचा उठा कि वह बहुत नीचे रह जाए. वह तुझे कहीं नजर ही न आए. यही सही जवाब होगा. अपने सपनों के पीछे भाग न कि तुझे धोखा देने वाले की याद में आंसू बहा.”

इस तरह मां तान्या को बहुत देर तक समझाती रहीं. हौसला बढ़ाती रहीं. अगले दिन तान्या उठी तो नए सपनों और नए उत्साह की आभा से उस का चेहरा चमक रहा था. मां ने न केवल उस का दर्द बांटा था बल्कि उसे इस दर्द से लड़ना भी सिखाया था.

सच है कि मांबाप अपने बच्चे को कभी भी दर्द में नहीं देख सकते. यदि जिंदगी में कभी आप के साथ कुछ गलत होता है, किसी खास के साथ लड़ाईझगड़ा या ब्रेकअप होता है और आप टूट जाते हैं तो ऐसे में सब से पहला शख्स जिसे आप हमराज बना सकते हैं वह हैं मां. आप उन्हें अपनी तकलीफ बताएं. वे न सिर्फ आप का दर्द बांटेंगी बल्कि आप को संभलने में और फिर से विश्वास के साथ खड़ा होने में सहयोग भी देंगी.

1. पेरेंट्स को बताने से दिल हल्का हो जाता है

आप अपना दर्द दिल में ही रखते है, किसी को कुछ नहीं बताते तो इस से दर्द बढ़ता ही जाएगा. आप के अंदर निराशा,क्षोभ और उदासी के भाव घनीभूत होते जाएंगे और मन में बुरेबुरे ख्याल आएंगे. युवाओं और टीनएज बच्चों द्वारा आत्महत्या कर लेने की प्रवृत्ति देखी जाती है. अक्सर ऐसी घटनाएं सुनने को मिल जाती हैं जब रिलेशनशिप टूटने के गम में वे आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं. 18 से 29 साल के उम्र के लड़कों के सुसाइड की खबर सब से ज्यादा आती है.
दरअसल इस की वजह उन का अकेले रहना ही है. जब तक आप अपनी समस्याएं पेरेंट्स से शेयर नहीं करेंगे, आप का दिल हल्का नहीं होगा और आप घुटन महसूस करते रहेंगे. याद रखिए गम बांटने से हल्का होता है और पेरेंट्स से ज्यादा भरोसेमंद आप के जीवन में कोई और रिश्ता नहीं है.

2. दिखाते हैं रास्ता

बचपन से जिन्होंने आप को पालपोस कर बड़ा किया और जीना सिखाया वे ब्रेकअप के बाद भी आप को नया रास्ता दिखाने में मदद कर सकते हैं. पेरेंट्स आप को समझते हैं, आप के जज्बातों से परिचित होते हैं. वे जानते हैं कि आप को क्या पसंद है और क्या नहीं. एक तरह से वे आप के हमदर्द होते हैं और आप को भटकने से बचाते हुए नए रास्ते दिखा सकते हैं. वे आप का सपोर्ट सिस्टम बनते हैं. जब आप दर्द से गुजर रहे होते हैं और आप को लगता है कि किसी ने आप को छोड़ दिया है, उस वक्त किसी का विश्वास भरा हाथ काफी मायने रखता है. पेरेंट्स आप को एहसास दिलाते हैं कि आप उन के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं. वे आप को दुनिया की हर परेशानी से बचा कर रखने का प्रयास करते हैं.

डिप्रेशन से निकालने में मददगार

आंकड़ों के अनुसार 13 से 15 साल के बीच का हर 4 में से 1 किशोर डिप्रेशन का शिकार होता है. डिप्रेशन के शिकार खुद को हमेशा अकेला पाते हैं.
वैसे भी भारत डिप्रेशन कंट्री के लिस्ट में टॉप पर आता है. यहां हर पांच मिनट में कोई न कोई एक व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार होता है.

पेरेंट्स का साथ आप को इस तरह के डिप्रेशन से बाहर निकलने में मददगार है. जब आप अंदर ही अंदर घुट रहे होते हैं, किसी को दिल का हाल नहीं बताते, न ही किसी के आगे रोते हैं. उस वक्त एक पेरेंट्स ही हैं जिन से आप दिल की हर बात कर पाते हैं, सारी गिरह खोल सकते हैं. वे पूरे धैर्य से आप की हर बात सुनते हैं. उन के आगे आप जी भर कर रो सकते हैं. इस से आप को थोड़ा सहज महसूस होता है और आप डिप्रेशन से निकलने में कामयाब हो जाते हैं.

ईमानदारी से बताएं

आप को पेरेंट्स से कोई भी बात छुपाने की जरूरत नहीं. जो है या जो हुआ उस का विवरण ईमानदारी से दें. हो सकता है ब्रेकअप की वजह कहीं न कहीं आप खुद ही हों. ऐसे में पेरेंट्स आप को बता सकेंगे कि आप कहां गलत हैं और एक खूबसूरत रिश्ते को खोने से बचा सकेंगे. जरूरी नहीं कि हमेशा पेरेंट्स अपने बेटे या बेटी को उस के प्रेमी/प्रेमिका से दूर ही करते हैं. वे आप से अधिक परिपक्व और समझदार हैं. उन्होंने आप से अधिक दुनिया देखी है. इसलिए कभी उन का विश्वास कर के देखिए. वे आप को जज नहीं करेंगे लेकिन यदि आप की गलती है तो उसे बताने में हिचकेंगे भी नहीं.

दर्द से उबारने में मदद

पेरेंट्स आप को ब्रेकअप के दर्द से उबरने में सहायक हो सकते हैं. उन के पास बहुत से रास्ते होते हैं जिन की मदद से वे आप के अंदर नए जज्बे भर सकते हैं. वे आप का दिल बदलने के लिए आप को किसी नई और अच्छी जगह घुमाने ले जा सकते हैं. आप को अपने नए प्रोजेक्ट्स या बिज़नेस से जोड़ सकते हैं. किसी मनोवैज्ञानिक के पास ले जा कर आप के डिप्रेशन का इलाज करवा सकते हैं. आप की परेशानी का हल ढूंढ सकते हैं या फिर एक नए जीवनसाथी की तलाश में आप की मदद कर सकते हैं.

वे हमेशा आप के साथ होते हैं इसलिए उन से कुछ भी छिपाना आप के लिए संभव नहीं होता. वे हमेशा आप पर पर नजर रखते हैं और आप को खुश रखने का प्रयास करते हैं. उन्हें पता होता है कि किन चीजों को देख कर आप का दर्द बढ़ सकता है. जैसे एक्स की फोटो, मैसेजेस, उस के द्वारा दिए गए फोटो, कार्ड्स और दूसरे सामान, एक्स के कपड़े आदि. पैरंट्स इन चीजों को आप से दूर करने में आप की मदद करेंगे. नए रिश्तों की नींव रखने में भी आप के सहायक होंगे.

इसलिए बेहतर है कि खुद अपने ब्रेकअप के दर्द से लड़ते रहने की और हिम्मत हारने की बजाय आप एक बार खुले दिल से पेरेंट्स को अपनी तकलीफ बताएं है और दिल का हाल सुनाएं. फिर देखें उन का प्यार और साथ कैसे आप को इस से उबरने में मदद करता है.

घरेलू कामगार दर्द जो नासूर बन गया 

पूछा गया था कि लौकडाउन खत्म होने के बाद आप किस से मिलना चाहेंगी? तो अधिकतर महिलाओं ने कहा था कि कामवाली से. बेशक, क्योंकि वर्क फ्रौम होम से ले कर घर और बाई का काम भी महिलाओं के सिर पर आ पड़ा. सच कहें तो घरेलू कामगारों के बिना शहरी जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. पतिपत्नी दोनों बाहर जा कर आर्थिक गतिविधियों में संलग्न हो पाते हैं तो सिर्फ इसलिए क्योंकि उन के घर को संभालने का जिम्मा घरेलू कामगार के हाथ में होता है. लेकिन आज वही लोग यह शर्त रख रहे हैं कि जब तक बाई अपना कोविड-19 नैगेटिव सर्टिफिकेट नहीं दिखाती, वे उसे अपने घर काम पर नहीं रख सकते हैं.

कामगार संगठन इस तरह की सोच को गलत मानते हैं कि सिर्फ गरीब ही कोरोना फैला सकते हैं. राष्ट्रीय घरेलू कामगार संगठन की राष्ट्रीय संयोजक क्रिस्ट्री मैरी बताती हैं कि कुछ सोसाइटी में टैस्ट रिपोर्ट लाने के लिए बोला जा रहा है. उस के बाद तभी काम की अनुमति देंगे जब मेड उन के साथ घर में ही रहे. आनेजाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं. लेकिन 24 घंटे किसी के घर रहना मुश्किल है, क्योंकि उन का भी अपना परिवार है. एक से ज्यादा घरों में काम करने वाली मेड को भी मना कर रहे हैं. 60 साल से ज्यादा उम्र के घरेलू कामगारों को तो बिलकुल इजाजत नहीं दे रहे हैं.

संगठन का कहना है कि कोरोना से संक्रमित तो कोई भी हो सकता है. मेड, थर्मल स्क्रीनिंग, लगातार हाथ धोने, दूरी बनाए रखने जैसे सुरक्षा उपायों के लिए तैयार हैं. फिर भी उन्हें कोई काम पर रखने को तैयार नहीं है, क्योंकि उन्हें डर है कि मेड के घर आने से वे कोरोना संक्रमित हो सकते हैं, ऐसे में इस से अच्छा है खुद ही काम कर लिया जाए.

42 वर्षीय मंजू बेन, अहमदाबाद में सोसाइटी के कई घरों में झाड़ूपोंछा और बरतन धोने का काम करती थी. लेकिन कोरोना की वजह से उस का काम छूट गया. जब अनलौक हुआ तो उम्मीद जगी कि शायद उसे अब काम पर बुला लिया जाएगा. मगर किसी ने उस का फोन नहीं उठाया और न ही काम पर बुलाया. जब वह खुद बात करने गई तो वाचमैन ने बाहर ही रोक दिया. जब सोसाइटी के सैक्रेटरी से फोन पर बात की, तो उन्होंने साफ कह दिया कि अभी बाई का आना मना है. अगर उस की वजह से यहां किसी को कोरोना हो गया तो इस की जिम्मेदारी कौन लेगा? उस के कहने का मतलब था कि उस के यहां काम करने से कोरोना होने का खतरा बढ़ सकता है.

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ऐसा कब तक चलेगा

मंजू बेन का पति एक फैक्टरी में काम करता था, जो कोरोना की वजह से बंद पड़ी है. घर में खाने वाले 4-5 लोग हैं पर कमाने वाला कोई नहीं. किसी तरह उधार ले कर घर चल रहा है, पर ऐसा कब तक चलेगा, कहा नहीं जा सकता. लौकडाउन में काम बंद होने के कारण परिवार की स्थिति दयनीय हो चुकी है.

लोगों के घरों में काम करने वाली भारती कहती है कि मार्च के दूसरे हफ्ते से ही मुझे पैसों की तंगी शुरू हो गई. जिन के घर काम करती थी, उन्होंने सिर्फ आधे महीने का पैसा दे कर चलता कर दिया. कहा जब फिर से काम पर बुलाना होगा, फोन कर देंगे. लेकिन अभी तक कोई फोन नहीं आया. मतलब यही कि उन्हें हमें काम पर नहीं रखना है अब. मुझे पता नहीं कि सरकार हम जैसों के बारे में क्या सोच रही है या सोच भी रही या नहीं. ये सब कहते हुए भारती की आंखें गीली हो गईं.

डोमैस्टिक वर्कर्स सैक्टर स्किल काउंसिल के एक सर्वेक्षण में कहा गया कि जहां लगभग 85% घरेलू कामगारों को लौकडाउन अवधि के दौरान का वेतन या मजदूरी नहीं मिली वहीं 23.5% घरेलू कामगार काम छूट जाने के कारण अपने मूल स्थान यानी अपने गांव लौट गए, जबकि 38% घरेलू कामगारों ने बताया कि उन्हें भोजन का इंतजाम करने में गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा. लौकडाउन की अवधि में जिंदा रहने के लिए लगभग 30% लोगों के पास फूटी कौड़ी नहीं थी.

यह सर्वेक्षण आठ राज्यों में अप्रैल महीने में किया गया था. जिन में, दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु शामिल थे. पूरे भारत में केवल 14 राज्यों ने ही घरेलू श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी को अधिसूचित किया है. इन राज्यों में घरेलू या कामगार अपनी समस्याओं के निदान के लिए शिकायत दर्ज कर सकते हैं. लेकिन राष्ट्रीय राजधानी सहित बाकी राज्यों में उन के पास ऐसा कोई अधिकार या सहारा नहीं है. इसलिए उन के लिए कानूनों में एकरूपता की आवश्यकता है.

घरेलू मेड और इन लोगों को काम देने वाले परिवार एकदूसरे पर निर्भर हैं. आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए ये आजीविका का एक जरीया हैं. कुछ लोग तो चाहते हैं कि उन की मेड काम पर लौटे, पर सोसाइटी के प्रबंधक इस बात के लिए अब भी तैयार नहीं हैं, क्योंकि कोरोना के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं. लौकडाउन के बाद दीपा ने अपनी बाई को बुला तो लिया काम पर, पर कुछ दिन बाद फिर निकाल दिया यह बोल कर कि कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, अभी मत आओ.

एक सर्वे के अनुसार, 80% लोगों ने कहा कि घरेलू हैल्पर पर फिलहाल रोक रहे. सिर्फ 10% लोगों ने उन के आने का समर्थन किया.

एक अपार्टमैंट के मैनेजर का कहना है कि ज्यादातर घरेलू हैल्पर छोटी बस्तियों से आते हैं और वहां कोरोना के मामले ज्यादा पाए जाते हैं, इसलिए अभी इन्हें नहीं आने देना ही सही है. हालात सुधरेंगे तो फिर बुला लेंगे. लेकिन अगर हैल्पर 24 घंटे घर में ही रहने को तैयार हैं, तो उन्हें मनाही नहीं है.

भेदभाव की शिकार

मुंबई के चार बंगला इलाके की नीता कहती है कि जिन घरों में वह काम करने जाती है, कोरोना उन लोगों से नीता को भी तो हो सकता है. बाहर तो वे लोग भी जाते हैं. हमें भी डर है कि हमें उन से कोरोना हो जाएगा और यह सही है कि हमारी वजह  से उन को भी हो सकता है. यह तो किसी को किस से भी हो सकता है. फिर हमारे साथ ही भेदभाव क्यों?

नीता आगे कहती है कि मालिकों का कहना है कि अगर बाई काम करने आएगी, तो सब से पहले उसे बाथरूम में जाना होगा. वहीं साफ कपड़े रखने होंगे ताकि नहा कर उन्हें पहना जा सके. फिर गलव्स, मास्क लगा कर सेफ्टी से कामकाज शुरू करना होगा. कई घरों में हम सालों से काम कर रहे हैं. क्या उन्हें नहीं पता कि हम साफसुथरे हैं. रोज नहा कर उन के घर काम करने आते हैं और आते ही सब से पहले साबुन से हाथ धोते हैं.

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घरेलू कामगार संगठन की राष्ट्रीय संयोजक क्रिस्ट्री मैरी कहती हैं कि कई मेड को उन लोगों से कोरोना हुआ, जहां वे काम करने जाती थी. कुछ घरेलू कामगारों की ऐसे में जान भी गई है. फिर भी वे काम पर जाने को तैयार हैं. वे हर तरह के सुरक्षा उपाय करने को तैयार हैं, फिर भी हाउसिंग सोसाइटी के दरवाजे उन के लिए खोले नहीं जा रहे हैं. काम पर न लौट पाने की वजह से घरेलू कामगार मुश्किल आर्थिक स्थिति से गुजर रहे हैं. उन के पास किराया देने के पैसे नहीं हैं, घर में राशन नहीं है, बच्चों की फीस भरने के लिए पैसे नहीं हैं.

कौन सुनेगा दर्द

पश्चिमी मुंबई के जोगेश्वरी इलाके में रहने वाली अमीना कहती है कि वह 3 घरों में काम करती थी. कोरोना की वजह से उस का काम रुक गया. 2 महीने से पगार नहीं मिली. सिर्फ एक घर से पगार मिली. उसी से जैसेतैसे घर चला रही है. घर में 3 बच्चे हैं और पति का 3 साल पहले इंतकाल हो गया था. उस के साथ कई महिलाओं को कहीं से भी पगार नहीं मिली.

उस की एक सहेली अंधेरी का ही एक सोसाइटी में काम करती थी. काम बंद हुआ तो पगार रुक गई. बस्ती में बंटने वाला राशन भी उसे नहीं मिला. उस के बाद उस की सहेली ने अपने बच्चों के साथ फांसी लगा ली.

हालांकि, कई मेड को यह उम्मीद है कि उन्हें काम पर बुला लिया जाएगा. गाजियाबाद की एक सोसाइटी में काम करने वाली कमलेश कहती है कि 10-15 दिन और देखते हैं, नहीं तो वह अपने गांव लौट जाएगी, क्योंकि कब तक ऐसे चलता रहेगा.

बता दें कि देशभर में घरेलू कामगारों की संख्या 50 लाख से भी ज्यादा है. इस साल संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने लोकसभा में बताया था कि केंद्र सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है. हालांकि, उन्होंने एनएसएसओ (2011-12) के सर्वेक्षण के हवाले से बताया था कि निजी परिवारों में काम करने वाले घरेलू कामगारों की संख्या  39 लाख है, जिन में 26 लाख महिला कामगार हैं.

अधिकतर घरेलू कामगार, गांवदेहातों से या छोटे शहरों से यहां काम करने आते हैं, जो ज्यादातर अशिक्षित या कम पढ़ेलिखे होते हैं. ये 4-5 घरों में काम कर के महीने के 8-10 हजार रुपए कमा लेते हैं. इन घरेलू कामगारों की सब से बड़ी संख्या निजी घरों में काम करने वालों की है जो संगठित रूप से अच्छे वेतन की मांग नहीं कर पाई हैं और न ही श्रम कानून का उपयोग कर पाते हैं.

लौकडाउन की घोषणा के बाद केंद्र सरकार ने राहत पैकेज के तहत महिलाओं के जनधन खातों में 3 महीने तक 500 रुपए दिए जाने की घोषणा की थी. लेकिन यह पैसा कितनों को मिला नहीं पता, क्योंकि एक गरीब महिला का कहना है कि उसे भी सरकार की तरफ से कोई पैसा नहीं मिला है.

महाराष्ट्र के श्रम आयुक्त पंकज कुमार बताते हैं कि राज्य में करीब साढ़े चार लाख घरेलू कामगारों की संख्या रजिस्टर्ड की गई. लौकडाउन के कारण उन्हें आर्थिक तौर पर होने वाले नुकसान के बारे में सरकार सजग है. वित्तीय मदद देने के लिए राज्य सरकार ने एक समिति भी बनाई है. समिति की सिफारिश आने के बाद ही शासन स्तर पर कोई निर्णय लिया जा सकता है. घरेलू कामगारों की आर्थिक सहायता को ध्यान में रखते हुए सरकार जो निर्णय लेगी उसे अच्छी तरह से लागू कराया जाएगा. हालांकि , यह भी सच है कि राज्य में घरेलू कामगारों के कल्याण के लिए एक कानून के अस्तित्व में होने के बावजूद सरकार ने अभी तक उन्हें ऐसी आपात स्थितियों में कोई राहत नहीं दी है.

मुंबई और पुणे जैसे महानगरों में महिला कामगारों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो आवास परिसर में कपड़े व बरतन धोने और फ्लैट या बंगले आदि में साफसफाई कर के अपना तथा अपने परिवार का जीवनयापन करता है, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता वाल्मीकि निकालजे का कहना है कि लौकडाउन और आम जनता में व्याप्त कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे के कारण पिछले महीनों में इन कामगारों को बड़ी संख्या में रोजमर्रा के कामों से हाथ धोना पड़ा है. मगर सरकार की तरफ से इस तबके को ध्यान में रखते हुए अब तक राहत पैकेज को ले कर कोई घोषणा नहीं हुई.

16 जून को दुनियाभर में घरेलू कामगारों द्वारा मनाए जाने वाले ‘घरेलू कामगार दिवस’ के एक दिन बाद भारत के राष्ट्रीय नियंत्रण (एनसीडीसी) ने कोविड-19 के घरेलू कामगारों को नौकरी देने के मद्देनजर शहरी मलिन बस्तियों के लिए एक एडवाइजरी जारी की जो कहती है कि नियोक्ताओं को घरेलू कामगारों को दो हफ्ते की छुट्टी देनी चाहिए ताकि नियोक्ता और घरेलू कामगार दोनों कोरोना वायरस के संक्रमण से बचें. यह एडवाइजरी कोविड-19 के मद्देनजर झुग्गीझोपड़ी क्लस्टर/मलिन बस्तियों के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह के मद्देनजर जारी की गई थी.

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न वेतन न सुविधा

घरेलू कामगार एक्शन (मार्था फैरेल फाउंडेशन की एक पहल) के नेतृत्व में कोविड-19 के प्रभाव पर दिल्ली और हरियाणा में घरेलू कामगारों ने पाया कि बड़ी संख्या में घरेलू कामगारों को मार्च, अप्रैल और मई में उन का वेतन नहीं मिला. यह पाया गया कि कई घरेलू कामगारों ने अपनी नौकरी खो दी, लौकडाउन के शुरुआत में बहुतों को अपने परिवार को छोड़ कर नियोक्ता के घर में रहने को मजबूर किया जा रहा था और जो लोग घर छोड़ कर वापस जाना चाहते थे, वे पर्याप्त संसाधन न होने की वजह से मजबूर थे. दिल्ली और हरियाणा की घरेलू कामगार महिलाओं ने मिल कर एक घोषणा पत्र की रूपरेखा तैयार की, जिस में कोविड-19 की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए सुरक्षित और गरिमामय कार्य के लिए शर्तों को परिभाषित किया गया.

हैदराबाद से ज्योतिप्रिया, (बदला हुआ नाम) ने घरेलू कामगारों के लिए एक और दबाव वाले मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए बताया कि तेलंगाना जैसे कुछ राज्यों ने काम पर लौटने में सक्षम होने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) का देना अनिवार्य कर दिया है. लेकिन घरेलू कामगार कोविड-19 परीक्षण के लिए भुगतान कैसे कर सकते हैं? इस की कीमत करीब 2,500 रुपए है. अगर हमारे नियोक्ता इस की मांग कर सकते हैं, तो क्या उन्हें भी अपने ठीक होने का प्रमाण पत्र नहीं देना चाहिए?

अनलौक के बाद भी घरेलू कामगारों की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है. आज भी कई ऐसे परिवार हैं जो दानेदाने को मुहताज हैं, क्योंकि वे बेकार हैं, काम नहीं है उन के पास, तो रोटी कहां से आए. लोगों को यही लगता है कि अगर वे उन के घर काम करने आएंगे, तो साथ में कोरोना ले कर आएंगे, इसलिए उन्हें नहीं बुलाना ही बेहतर है.

सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि भारतीय घरेलू कामगार की हालत विदेशों में भी बहुत खराब है. वे सड़कों पर दरिद्र, परेशान और चिंतित घूम रहे हैं, क्योंकि उन्हें कोरोना की शुरुआत में ही अपने नियोक्ताओं का घर छोड़ने के लिए बोल दिया गया था मगर टिकट के पैसे न होने की वजह से वे भारत आने में असमर्थ हैं.

हाल ही में, कैंट वाटर प्यूरिफायर ब्रैंड ने अपने एक विज्ञापन में कहा कि क्या आप अपनी नौकरानी के हाथों को आटा गूंधने की अनुमति देंगे? उस के हाथ संक्रमित हो सकते हैं. कई लोग ऐसा ही सोचते हैं. क्योंकि जब उन के घरेलू कामगार काम पर आते हैं तो मालिक लोग खुद को एक कमरे के अंदर बंद कर देते हैं, जो अपनेआप में कितना असंवेदनशील और जलालत भरा कदम है. जिस तरह से घरेलू कामगारों के साथ व्यवहार होता है, उस से उन के प्रति जलालत और घृणा स्पष्ट दिखाई देती है. लेकिन लोग यह क्यों नहीं समझते कि यह वायरस विदेश से वापस आने वाली मैडम और साहब की देन है, न कि घरेलू कामगारों की. यह वायरस झुग्गीझोपडि़यों से नहीं, बल्कि हवाईजहाज से उड़ कर यहां आया है.

लौकडाउन की घोषणा के साथ ही प्रधानमंत्री ने कहा था कि कोई भी कंपनी या संस्था इस दौरान अपने कर्मचारियों को न निकाले, लेकिन सैकड़ों कंपनियों में लोगों की छटनी भी हुई और उन के वेतन में कटौती भी की गई. इस परिस्थिति में घरेलू कामगार अपनेआप को और अधिक असहाय समझने लगे, क्योंकि उन के पास सामाजिक सुरक्षा जैसी कोई चीज नहीं है. जिन लोगों ने दोबारा काम शुरू किया, वे पहले की कमाई की तुलना में 70 फीसदी से भी कम पर गुजारा करने को मजबूर हैं.

पिछले साल संसद में केंद्र सरकार ने बताया था कि घरेलू कामगारों के अधिकार की रक्षा करने के लिए कोई अलग कानून नहीं बनाया गया है. केंद्र सरकार ने पिछले साल उन के लिए न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा प्राप्त करने, दुर्व्यवहार रोकने, खुद की यूनियन का निर्माण करने, उत्पीड़न और हिंसा से संरक्षण का अधिकार सहित उन से जुड़े कई पहलुओं पर एक राष्ट्रीय नीति बनाने का मसौदा जरूर तैयार किया था, लेकिन अभी तक उस पर अमल नहीं हो पाया है.

इस से पहले भी घरेलू कामगारों को ले कर कई विधेयक संसद में आए, लेकिन कभी कानून नहीं बन पाया. 2010-11 में यूपीए सरकार ने भी घरेलू कामगारों के लिए राष्ट्रीय नीति का ड्राफ तैयार किया था, लेकिन वह भी कामयाब नहीं हो पाया.

फेल हो गई सरकार

घरेलू सहायिकाओं समेत असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के कल्याण के लिए देश में पिछले 48 सालों से काम कर रहे ‘सैल्फ इम्प्लायड वूमंस ऐसोसिएशन’ (सेवा) की दिल्ली इकाई की सहायक समन्वयक सुमन वर्मा ने बताया कि वर्तमान और भविष्य दोनों की चिंता इन महिलाओं को परेशान कर रही है. कमाई का जरीया नहीं होना, कई मामलों में पति की बेरोजगारी या शराब की लत और बच्चों के भविष्य की चिंता से ये मानसिक अवसाद से भी घिरती जा रही हैं लेकिन इन की परवाह करने वाला है कौन?

घरेलू सहायिकाओं के अधिकारों के लिए काम कर रहे संगठन ‘निर्माण’ के डाइरैक्टर औपरेशंस रिचर्ड सुंदरम ने कहा कि यह चिंतनीय है कि भारत ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के उस कन्वैंशन पर अभी तक सहमति नहीं जताई, जो ‘घरेलू कामगारों को सम्माननीय काम’ के उद्देश्य से आयोजित किया गया था.

Festive Special: इम्युनिटी वाली मिठाई

2020 में त्योहारों पर अपने सगेसंबंधियों के साथ बैठ कर तरहतरह के पकवान खाना अब उतना आसान नहीं रहा. कोविड-19 ने पूरी तरह से लोगों को डरा रखा है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप अपनी इम्युनिटी को स्ट्रौंग रखें. आइए, जानते हैं कि त्योहारों में किस तरह की मिठाई का उपयोग कर के आप अपनी इम्युनिटी को बूस्ट कर सकते हैं:

सौंठ: मिठाई बनाते हुए सौंठ का उपयोग करें. यह एक औषधि है और इस में थेरैपेटिक प्रौपर्टीज होती हैं. इस में ऐंटीऔक्सीडैंट और ऐंटीइनफ्लैमेटरी यौगिक जैसे बीटा कैरोटीन, कैप्सेसिन आदि की भरपूर मात्रा पाई जाती है. यह शुगर, माइग्रेन, दिल, जोड़ों के दर्द, गठिया रोग और मैटाबोलिज्म को बैलेंस रखने में लाभदायक है. सौंठ गरम होती है, इसलिए इसे रक्तस्राव विकारों, ऐनीमिया, अल्सर और गरमियों के मौसम में ज्यादा मात्रा में नहीं खाना चाहिए.

खजूर: खजूर का उपयोग चीनी की जगह कर सकते हैं. चीनी में ‘ओ’ न्यूट्रिशन होता है, जिस से मोटापा और बीमारियां ही बढ़ती हैं, जबकि खजूर में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स, फाइबर्स और विटामिन से भरपूर न्यूट्रिशन होते हैं. खजूर इम्युनिटी बढ़ाते हैं और कैंसर सैल्स से लड़ने की ताकत देते हैं.

तिल: ये कैल्सियम बढ़ाते हैं. महिलाओं को कैल्सियम की बहुत ज्यादा जरूरत होती है. तिल हड्डियों को तो मजबूत करते ही हैं, लिवर को भी हैल्दी रखते हैं. वजन को कंट्रोल कर स्किन को हैल्दी और मसल्स को स्ट्रौंग बनाते हैं. ये डायबिटीज को कंट्रोल करते हैं और इम्युनिटी को भी बूस्ट करते हैं. इन में जिंक, आयरन, विटामिन बी, ई और मैग्नीशियम भी भरपूर होता है.

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कोकोनट: यह पीसीओडी, पीरियड्स के दिनों में बहुत पेन रहना, यूरिन प्रौब्लम्स, हार्ट बर्न, मुंहासे, स्किन रैशेज, ओवेरियन सिस्ट जैसी प्रौब्लम को ठीक करने वाला फल है. खाने में इस की तासीर ठंडी होती है और यह पित्त दोष को कम करता है.

घी: इस का खाने में उपयोग करना बहुत ही लाभदायक है. यह शरीर से टौक्सिंस को बाहर कर बीमारियों से बचाता है. घी में विटामिन ई होने की वजह से यह स्किन और बालों के लिए बहुत अच्छा है. गठिया, वात दोष, वेट लौस में घी खाना बहुत ही ज्यादा जरूरी है. रिफाइंड औयल बैड कोलैस्ट्रौल को बढ़ाता है और घी गुड कोलैस्ट्रौल को बढ़ाता है. इसे खाने से इम्युनिटी भी बढ़ती है, याददाश्त बढ़ती है और शरीर भी मजबूत बनता है.

अखरोट: ये ब्रेन कन्फ्यूजन दूर कर एकाग्रता बढ़ाते हैं. मेटाबोलिज्म तेज कर वेट लौस करते हैं. ओमेगा 3 की वजह से ये बौडी के लिए ऐंटीऔक्सीडैंट का काम करते हैं.

गुड़: इस की मिठास नैचुरल है और चीनी के मुकाबले यह बहुत ही अच्छा और पोषक स्वीटनर है. इस में कैल्सियम, फाइबर, आयरन, विटामिन बी होता है. गुड़ का सेवन करने से ऐनीमिया की प्रौब्लम खत्म होती है और यह इनडाइजेशन में भी हैल्पफुल है. किशमिश या हनी का भी उपयोग कर सकते हैं.

मुलेठी: यह गैस्ट्रिक, अल्सर, हैडेक, स्ट्रेस, वीक इम्युनिटी, पेन, गठिया, मेनोपौज और कोलैस्ट्रौल कंट्रोल में काम लाई जाती है. कुकिंग में भी इस का इस्तेमाल करना बौडी को हर तरह से स्वस्थ रखने में मदद करती है.

आप इन सभी का उपयोग मिठाई जैसेकि लड्डू, बर्फी, पिन्नी बनाने में कर सकते हैं और त्योहारों पर अपने और अपने परिवार को वायरस से बचा सकते हैं.

इन सभी फूड्स को आप अपनी डेली डाइट में भी शामिल कर सकते हैं जैसे:

– तिल को पानी या दूध के साथ लेने से कभी कैल्सियम कम होने की समस्या नहीं होती खासकर महिलाओं को इस का सेवन जरूर करना चाहिए.

– खाने के पहले खजूर खाने से खाना कम खाया जाता है और पचता भी जल्दी है. मीठे में चौकलेट, कैंडी, केक, खाने की जगह खजूर खाना सेहत के लिए अच्छा है. इस से वेट भी मैनेज होता है.

– खाना खाने के बाद गुड़ खाने से पाचन अच्छा होता हैं. गरम पानी के साथ खाने से पेट से रिलेटेड प्रौब्लम्स दूर होती हैं और वेट लौस भी होता है.

– कोकोनट को घिस कर सलाद के साथ लिया जा सकता है. जिन्हें दूध से ऐलर्जी हो वे कोकोनट का दूध बना कर ले सकते हैं. कोकोनट का दूध नौर्मल दूध से बहुत ज्यादा न्यूट्रिशंस से भरा होता है.

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– घी खाने से कभी वेट नहीं बढ़ता. बहुत सी महिलाएं इसे नजरअंदाज करती हैं

और फिर गठिया की शिकार हो जाती हैं. रोज 1-2 चम्मच घी, दाल, सब्जी, चावल, पुलाव, रोटी,

मिठाई आदि में डाल कर खाएं.

खाने में गाय का घी उत्तम होता है.

– संकल्प शक्ति

लाइफस्टाइल गुरु एंड फाउंडर औफ गुडवेज फिटनैस –    

Serial Story: यक्ष प्रश्न (भाग-3)

अपनी स्थिति पर उसे रोना आ रहा था, परंतु वह रो नहीं सकती थी. आगे आने वाले दिनों के बारे में सोच कर उस का मन बैठा जा रहा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे?

‘‘मैं क्या करूं, वरुण?’’ वह लगभग रोंआसी हो गई थी, ‘‘नासमझी में मैं ने क्या कर डाला?’’

‘‘बहुत सारी लड़कियां जवानी में ऐसा कर गुजरती हैं और बाद में पछताती हैं.’’

‘‘तुम ने भी मुझे कभी नहीं समझाया, मैं तो तुम्हें सब से अच्छा दोस्त समझती थी.’’

वरुण हंसा, ‘‘कैसी बेवकूफी वाली बातें कर रही हो. तुम कभी एक लड़के के प्रति वफादार नहीं रही. तुम्हारी नशे की आदत और तुम्हारी सैक्स की भूख ने तुम्हारी अक्ल पर परदा डाल दिया था. तुम एक ही समय में कई लड़कों के साथ प्रेमव्यवहार करोगी, तो कौन तुम्हारे साथ निष्ठा से प्रेमसंबंध निभाएगा… सभी लड़के तुम्हारे तन के भूखे थे और तुम उन्हें बहुत आसान शिकार नजर आई. बिना किसी प्रतिरोध के तुम किसी के भी साथ सोने के लिए तैयार हो जाती थी. ऐसे में तुम किसी एक लड़के से सच्चे और अटूट प्रेम की कामना कैसे कर सकती हो?’’

वरुण की बातों में कड़वी सचाई थी. निमी ने कहा, ‘‘मैं ने जोश में आ कर अपना सब कुछ गवां दिया. दोस्त भी 1-1 कर चले गए. तुम तो मेरा साथ दे सकते हो.’’

वरुण ने हैरान भरी निगाहों से उसे देखा, ‘‘तुम्हारा साथ कैसे दे सकता हूं? मैं तो स्वयं तुम से दूर जाने वाला था. 1 साल मेरा बरबाद हो गया. इस बार प्री ऐग्जाम भी क्वालिफाई नहीं कर पाया. तुम्हारे चक्कर में पढ़ाईलिखाई हो ही नहीं पाई. घर में मम्मीपापा सभी नाराज हैं. ऐयाशी और मौजमस्ती छोड़ कर मैं ईमानदारी से तैयारी करना चाहता हूं. मैं तुम से कोई वास्ता नहीं रखना चाहता. वरना मेरा जीवन चौपट हो जाएगा.’’

निमी ने उस के दोनों हाथों को पकड़ कर अपने सीने पर रख लिया, ‘‘वरुण, मैं जानती हूं मैं ने गलती की है. मछली की तरह एक से दूसरे हाथ में फिसलती रही, परंतु सच मानो मैं ने तुम्हें सच्चे मन से प्यार किया है. जब कभी मन में अवसाद के बादल उमड़े मैं ने केवल तुम्हें याद किया. मुझे इस तरह छोड़ कर न जाओ.’’

‘‘निमी, तुम समझने का प्रयास करो, मैं ने अगर तुम्हारा साथ नहीं छोड़ा, तो मेरा भविष्य मेरे रास्ते से गायब हो जाएगा. मुझे कुछ बन जाने दो.’’

‘‘मैं तुम से प्यार की भीख नहीं मांगती. प्यार और सैक्स को पूरी तरह से भोग लिया है मैं ने परंतु पेट की भूख के आगे मनुष्य सदा लाचार रहता है. मेरे पास जीविका का कोई साधन नहीं है. जहां इतना सब कुछ किया, मेरे प्यार के बदले इतना सा उपकार और कर दो. रहने के लिए 1 कमरा और पेट की रोटी के लिए दो पैसे का इंतजाम कर दो. मैं वेश्यावृत्ति नहीं अपनाना चाहती,’’ निमी की आवाज दुनियाभर की बेचारगी और दीनता से भर गयी थी.

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वरुण अपने दोस्तों की तरह कठोर नहीं था. उस के अंदर सहज मानवीय भाव थे. वह काफी संवेदनशील था और निमी के प्रति दयाभाव भी रखता था, परंतु उस के लिए वह अपना भविष्य दांव पर नहीं लगा सकता था. अत. कुछ सोच कर बोला, ‘‘तुम प्राइवेट नौकरी कर सकती हो?’’

‘‘हां, मेरे पास और चारा भी क्या है?’’

‘‘तो फिर ठीक है, तुम इसी फ्लैट में रहो. इस का किराया मैं दे दिया करूंगा. मैं अपने पिता से बात कर के तुम्हें किसी कंपनी में काम दिलवा दूंगा, जिस से तुम्हारा गुजारा चल सके.’’

‘‘मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूंगी.’’

वरुण ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘या तुम अपने घर चली जाओ.’’

निमी ने आश्चर्य से उसे देखा. फिर बोली, ‘‘कौन सा मुंह ले कर जाऊं उन के पास? क्या बताऊंगी उन्हें कि मैं ने इतने दिन क्या किया है? नहीं वरुण, मैं उन के पास जा कर उन्हें और परेशान नहीं करना चाहती.’’

वरुण के पिता सरकारी विभाग में अच्छे पद थे. उस ने पिता से कह कर निमी को एक प्राइवेट कंपनी में लगवा दिया. 20 हजार महीने पर. निमी का जो लाइफस्टाइल था, उस के हिसाब से उस की यह सैलरी ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर थी, परंतु मुसीबत की घड़ी में मनुष्य को तिनके का सहारा भी बहुत होता है.

निमी ने उन्मुक्त यौन संबंधों से तो छुटकारा पा लिया, परंतु वह शराब और सिगरेट से छुटकारा नहीं पा सकी. एकांत उसे परेशान करता, पुरानी यादें उसे कचोटतीं, मांबाप की याद आती, तो वह पीने बैठ जाती.

वरुण जब भी उस से मिलने आता, वह उस की बांहों में गिर कर रोने लगती. वह समझाता, ‘‘मत पीया करो इतना, बीमार हो जाओगी.’’

‘‘वरुण, एकाकी जीवन मुझे बहुत डराता है,’’ वह उस से चिपक जाती.

‘‘मातापिता के पास वापस चली जाओ. वे तुम्हें माफ कर देंगे,’’

वह कई बार निमी से यह बात कह चुका था, पर हर बार निमी का यही जवाब होता, ‘‘कौन सा मुंह ले कर जाऊं उन के पास? वे मुझे क्या बनाना चाहते थे और मैं क्या बन बैठी… माफ तो कर देंगे, परंतु समाज को क्या जवाब देंगे.’’

‘‘वही, जो अभी दे रहे होंगे.’’

‘‘अभी वे मुझे मरा समझ कर माफ कर देंगे, परंतु उन के पास रह कर मैं उन्हें बहुत दुख दूंगी.’’

‘‘एक बार जा कर तो देखो.’’

‘‘नहीं वरुण, तुम मेरे मांबाप को नहीं जानते. वे मुझे माफ नहीं करेंगे. अगर उन्हें माफ करना होता, तो अब तक मुझे ढूंढ़ लिया होता. यह बहुत मुश्किल नहीं था. उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं की होगी,’’ वरुण के समझाने का उस पर कोई प्रभाव न पड़ता.

यथास्थिति बनी रही. बस वरुण सिविल सर्विसेज की तैयारी में निरंतर जुटा रहा. इस का परिणाम यह रहा कि वह यूपीएससी परीक्षा पास कर गया.

जब वरुण ट्रेनिंग के लिए जाने लगा तो निमी ने कहा, ‘‘अब तुम पूरी तरह से मुझ से दूर चले जाओगे.’’

‘‘वह तो जाना ही था,’’ वरुण ने उसे समझाते हुए कहा.

निमी के मन में बहुत कुछ टूट गया. वह जानती थी, वरुण उस का नहीं हो सकता है,

फिर भी उस के दिल में कसक सी उठी. वह खोईखोई आंखों से वरुण को देख रही थी. वरुण ने उस के सिर को सहलाते हुए कहा, ‘‘देखो, निमी, मेरा कहना मानो, अब भटकने से कोई फायदा नहीं. तुम ने अपने जीवन को जितना गिराना था, गिरा लिया. अब सावधानी से उठने की कोशिश करो. तुम्हारी तनख्वाह बढ़ गई है. कुछ बचा कर पैसे जोड़ लो और किसी लड़के से शादी कर के घर बसा लो. मेरी तरफ से जो हो सकेगा मैं मदद करूंगा.’’

निमी ने जवाब नहीं दिया. अगले कुछ दिनों में वरुण मसूरी चला गया. निमी पूरी तरह टूट गई. उस ने अपनी सोच पर ताले लगा लिए. जैसे वह सुधरना ही नहीं चाहती थी.

1 साल की ट्रेनिंग के दौरान वरुण उस से मिलने केवल एक बार आया और रातभर उस के साथ रुका. तब भी उस ने निमी को घर बसाने की सलाह दी. परंतु वह चुप ही रही.

कई साल बीत गए. वरुण की पोस्टिंग हो गई थी. वह एक जिले का कलैक्टर बन गया था. उसे छुट्टी नहीं मिलती थी या दिल्ली आ कर भी वह उस से मिलना नहीं चाहता था, परंतु हर माह वह एक अच्छी राशि निमी के खाते में जमा करा देता था.

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निमी ने तय कर लिया था कि वह शादी नहीं करेगी. वरुण उस का नहीं है, फिर भी उस का इंतजार करती थी. इंतजार जितना लंबा हो रहा था, उस के शराब पीने की मात्रा भी उतनी ही बढ़ती जा रही थी. फिर पता चला कि वरुण की शादी किसी चीफ सैक्रेटरी की आईएएस बेटी से हो गई है. निमी के अंदर जो थोड़ी सी आस बची थी, वह पूर्णरूप से टूट गई. उस की शराब की मात्रा इतनी ज्यादा हो गई कि अब वह दफ्तर भी नहीं जा पाती थी.

वरुण से उस का कोई सीधा संपर्क नहीं था. कभीकभी वरुण के पिता का नौकर उस के हालचाल पूछ जाता था. वही वरुण के बारे में बताता था और उस के बारे में वही वरुण को खबर करता होगा.

अत्यधिक शराब के सेवन से उस की तबीयत खराब रहने लगी. वरुण के पिता का नौकर लगभग रोज उस के पास आने लगा था. एक दिन उसी के सामने निमी को खून की उलटी हुई. उसे आननफानन में अस्पताल में भरती करवाया गया.

मैडिकल रिपोर्ट से यह साबित हो गया था कि अत्यधिक शराब के सेवन से उस के सारे अंदरूनी अंग खराब हो गए हैं. वरुण ने अपने नौकर के माध्यम से उसे सेमी प्राइवेट वार्ड में भरती करवा दिया था. इलाज का सारा खर्च वह भेज रहा था, परंतु कभी मिलने नहीं आया.

उस के इलाज में कोई कमी नहीं थी, परंतु उस का दुख उसे खाए जा रहा था जैसे वह किसी बीमारी से नहीं, अपने दुख से ही मरेगी, परंतु इसी बीच संयोग से अस्पताल में अनुभा प्रकट हुई और उस के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन आ गया. अब वह ठीक हो कर घर आ गई थी. घर तो आ गई थी, परंतु किस के  घर? उस का अपना घर, संसार कहां था?

यक्ष प्रश्न अभी भी उस के सामने खड़ा था. अब आगे क्या? 35 वर्ष की अवस्था में अब वह कोई युवती नहीं थी. बीमारी ने उस की सुंदरता को काफी हद तक क्षीण कर दिया था. नौकरी हाथ से जा चुकी थी, वरुण से भी व्यक्तिगत संपर्क टूट चुका था.

हिमांशु केंद्र सरकार में उच्च अधिकारी थे. उन्होंने अपने प्रयासों से निमी को एक संस्था से जोड़ दिया. यह संस्था अनाथ बच्चों की देखभाल और उन्हें शिक्षा प्रदान करती थी. कुछ दिन तक निमी अनुभा के घर पर रही. फिर उस की संस्था ने उसे एक घर लीज पर दिलवा दिया. साफसफाई के बाद जिस दिन निमी ने अपने घर में प्रवेश किया, तब अनुभा और उस के पति के कुछ दोस्त मौजूद थे. छोटी सी पार्टी रखी गई थी.

शाम को पार्टी के बाद जब अनुभा निमी को छोड़ कर जाने लगी, तो निमी ने कहा, ‘‘मैं फिर अकेली हो जाऊंगी.’’

‘‘नहीं, तुम अकेली नहीं हो. हम सब तुम्हारे साथ हैं. पहले जो लोग तुम से जुड़े थे, वे स्वार्थवश जुड़े थे. इसीलिए तुम पतन की राह पर चल पड़ी थी. अब तुम्हारे सामने एक लक्ष्य है, बच्चों का भविष्य सुधारने का. इस लक्ष्य को ध्यान में रखोगी और अपनी पिछली जिंदगी के बारे में विचार करोगी, तो तुम एकाकी जीवन जीते हुए भी कभी गलत रास्ते पर नहीं चलोगी.’’

निमी ने शरमा कर सिर झुका लिया. अनुभा ने उस का चेहरा ऊपर उठाया. उस की आंखों में आंसू थे. कई वर्षों बाद उस की आंखों में खुशी के आंसू आए थे.

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Serial Story: यक्ष प्रश्न (भाग-2)

खैर, हिमांशु और अनुभा ने यह किया कि रात में निमी के पास अपनी नौकरानी को देखभाल के लिए रख दिया. हिमांशु नियमित रूप से उस के इलाज की जानकारी लेते. उन के कारण ही अब डाक्टर विशेषरूप से निमी का ध्यान रखने लगे थे. वह बेहतर से बेहतर इलाज उसे मुहैया करा रहे थे.

इस सब का परिणाम यह हुआ कि निमी 1 महीने के अंदर ही इतनी ठीक हो गई कि अपने घर जा सकती थी. हालांकि दवा नियमित लेनी थी.

जिस दिन उसे अस्पताल से डिस्चार्ज होना था वह कुछ उदास थी. उस का सौंदर्य पूर्णरूप से तो नहीं, परंतु इतना अवश्य लौट आया था कि वह बीमार नहीं लगती थी.

अनुभा ने पूछा, ‘‘तुम खुश नहीं लग रही हो… क्या बात है? तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि ठीक हो कर घर जा रही हो?’’

निमी ने खाली आंखों से अनुभा को देखा और फिर फीकी आवाज में कहा, ‘‘कौन सा घर? मेरा कोई घर नहीं है.’’

‘‘अपने दोस्त के यहां, जो तुम्हारा इलाज करवा रहा था…’’

एक फीकी उदास हंसी निमी के होंठों पर तैर गई, ‘‘जो व्यक्ति मुझ से मिलने अस्पताल में कभी नहीं आया, जिसे पता है कि मेरे शरीर के महत्त्वपूर्ण अंग बेकार हो चुके हैं. वह मुझे अपने घर रखेगा?’’

‘‘फिर वह तुम्हारा इलाज क्यों करवा रहा था?’’

‘‘बस एक यही एहसान उस ने मेरे ऊपर किया है. मेरे प्यार का कुछ कर्ज उसे अदा करना ही था. वह बहुत पैसे वाला है, परंतु एक बीमार औरत को घर में रखने का फैसला उस के पास नहीं है. उसे रोज अनगिनत सुंदर और कुंआरी लड़कियां मिल सकती हैं, तो वह मेरी परवाह क्यों करेगा. वैसे मैं स्वयं उस के पास नहीं जाना चाहती हूं. मैं किसी भी मर्द के पास नहीं जाना चाहती. मर्दों ने ही मुझे प्यार की इंद्रधनुषी दुनिया में भरमा कर मेरी यह दुर्गति की है… मैं किसी महिला आश्रम में जाना चाहूंगी,’’ उस के स्वर में आत्मविश्वास सा आ गया था.

अनुभा सोच में पड़ गई. उस ने हिमांशु से सलाह ली. फिर निमी से बोली, ‘‘तुम कहीं और नहीं जाओगी, मेरे घर चलोगी.’’

‘‘तुम्हारे घर?’’ निमी का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘हां, और अब इस के बाद कोई सवाल नहीं, चलो.’’

अनुभा और हिमांशु को मोतीबाग में टाइप-5 का फ्लैट मिला था. उस में पर्याप्त कमरे थे. 1 कमरा उन्होंने निमी को दे दिया. निमी अनुभा और हिमांशु की दरियादिली, प्रेम और स्नेह से अभिभूत थी. उस के पास धन्यवाद करने के लिए शब्द नहीं थे.

निमी के पिता आर्मी औफिसर थे. मां भी उच्च शिक्षित थीं. आर्मी में रहने के कारण उन्हें तमाम सुविधाएं प्राप्त थीं. पिता रोज क्लब जाते थे और शराब पी कर लौटते थे. मां भी कभीकभार क्लब जातीं और शराब का सेवन करतीं. उन के घर में शराब की बोतलें रखी ही रहतीं. कभीकभार घर में भी महफिल जम जाती. निमी के पिता के यारदोस्त अपनी बीवियों के साथ आते या कोई रिश्तेदार आ जाता, तो महफिल कुछ ज्यादा ही रंगीन हो जाती.

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निमी बचपन से ही ये सब देखती आ रही थी. उस के कच्चे मन में वैसी ही संस्कृति और संस्कार घर कर गए. उसे यही वास्तविक जीवन लगता. 15 साल की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते उस ने शराब का स्वाद चोरीछिपे चख लिया था और सिगरेट के सूट्टे भी लगा लिए थे.

ग्रैजुएशन करने के बाद निमी ने मम्मीपापा से कहा, ‘‘मैं यूपीएसी का ऐग्जाम देना चाहती हूं.’’

‘‘तो तैयारी करो.’’

‘‘कोचिंग करनी पड़ेगी. अच्छे कोचिंग इंस्टिट्यूट डीयू के आसपास मुखर्जी नगर में हैं.’’

‘‘क्या दिक्कत है? जौइन कर लो.’’

‘‘परंतु इतनी दूर आनेजाने में बहुत समय बरबाद हो जाएगा. मैं चाहती हूं कि यहीं आसपास बतौर पीजी रह लूं और सीरियसली कंपीटिशन की तैयारी करूं… तभी कुछ हो पाएगा,’’ निमी ने कहा.

मम्मीपापा ने एकदूसरे की आंखों में एक पल के लिए देखा, फिर पापा ने उत्साह से कहा,  ‘‘ओके माई गर्ल. डू व्हाटएवर यू वांट.’’

‘‘किंतु यह अकेले कैसे रहेगी?’’ मम्मी ने शंका व्यक्त की.

‘‘क्या दकियानूसी बातें कर रही हो. शी इज ए बोल्ड गर्ल. आजकल लड़कियां विदेश जा रही हैं पढ़ने के लिए. यह तो दिल्ली शहर में ही रहेगी. जब मरजी हो जा कर मिल आया करना. यह भी आतीजाती रहेगी.’’

‘‘यस मौम,’’ निमी ने दुलार से कहा. जब बापबेटी राजी हों, तो मां की कहां चलती है. उसे परमीशन मिल गई. उस ने 1 साल का कन्सौलिडेटेड कोर्स जौइन कर लिया और मुखर्जी नगर में ही रहने लगी.

जैसाकि निमी का स्वभाव था, वह जल्दी लड़कों में लोकप्रिय हो गई. कोचिंग में पढ़ने वाले कई लड़के उस के दोस्त बन गए. सभी धनाढ्य घरों के थे. उन के पास अनापशनाप पैसे आते थे. आएदिन पार्टियां होतीं. निमी उन पार्टियों की शान समझी जाती थी.

लड़के उस के सामीप्य के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा देते. दिन, महीनों में नहीं बदले, उस के पहले ही निमी कई लड़कों के गले का हार बन गई. उस के बदन के फूल लड़कों के बिस्तर पर महकने लगे.

बहुत जल्दी उस के मम्मीपापा को उस की हरकतों के बारे में पता चल गया. मम्मी ने समझाया, ‘‘बेटा, यह क्या है? इस तरह का जीवन तुम्हें कहां ले जा कर छोड़ेगा, कुछ सोचा है? हम ने तुम्हें कुछ ज्यादा ही छूट दे दी थी. इतनी छूट तो विदेशों में भी मांबाप अपने बच्चों को नहीं देते. चलो, अब तुम पीजी में नहीं रहोगी… जो कुछ करना है हमारी निगाहों के सामने घर पर रह कर करोगी.’’

‘‘मम्मी, मेरी कोचिंग तो पूरी हो जाने दो,’’  निमी ने प्रतिरोध किया.

‘‘जो तुम्हारे आचरण हैं, उन से क्या तुम्हें लगता है कि तुम कोचिंग की पढ़ाई कर पाओगी… कोचिंग पूरी भी कर ली, तो कंपीटिशन की तैयारी कर पाओगी? पढ़ाई करने के लिए किताबें ले कर बैठना पड़ता है, लड़कों के हाथ में हाथ डाल कर पढ़ाई नहीं होती,’’ मां ने कड़ाई से कहा.

‘‘मम्मी, प्लीज. आप पापा को एक बार समझाओ न,’’ निमी ने फिर प्रतिरोध किया.

‘‘नहीं, निमी. तुम्हारे पापा बहुत दुखी और आहत हैं. मैं उन से कुछ नहीं कह सकती. तुम अपने मन की करोगी, तो हम तुम्हें रुपयापैसा देना बंद कर देंगे. फिर तुम्हें जो अच्छा लगे करना.’’

निमी अपने घर आ तो गई, परंतु अंदर से बहुत अशांत थी. घर पर ढेर सारे प्रतिबंध थे. अब हर क्षण मां की उस पर नजर रहती.

शराब, सिगरेट और लड़कों से वह भले ही दूर हो गई थी, परंतु मोबाइल फोन के माध्यम से उस के दोस्तों से उस का संपर्क बना हुआ था.

जब फोन करना संभव न होता, फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सऐप के माध्यम से संपर्क हो जाता. लड़के इतनी आसानी से सुंदर मछली को फिसल कर पानी में जाने देना नहीं चाहते.

लड़कों ने उसे तरहतरह से समझाया. वे सभी उस का खर्चा उठाने के लिए तैयार थे. रहनेखाने से ले कर कपड़ेलत्ते और शौक तक… सब कुछ… बस वह वापस आ जाए. प्रलोभन इतने सुंदर थे कि वह लोभ संवरण न कर सकी. मांबाप के प्यार, संरक्षण और सलाहों के बंधन टूटने लगे.

निमी ने बुद्धि के सारे द्वार बंद कर दिए. विवेक को तिलांजलि दे दी और एक दिन घर से कुछ रुपएपैसे और कपड़े ले कर फरार हो गई. दोस्तों ने उस के खाने व रहने के लिए एक फ्लैट का इंतजाम कर रखा था. काफी दिनों तक वह बाहरी दुनिया से दूर अपने घर में बंद रही.

पता नहीं उस के मांबाप ने उसे ढूंढ़ने का प्रयत्न किया था या नहीं. उस ने अपना फोन नंबर ही नहीं, फोन सैट भी बदल लिया था. मांबाप अगर पुलिस में रिपोर्ट लिखाते तो उस का पता चलना मुश्किल नहीं था. उस के पुराने फोन की काल डिटेल्स से उस के दोस्तों और फिर उस तक पुलिस पहुंच सकती थी, परंतु संभवतया उस के मांबाप ने पुलिस में उस के गुम होने की रिपोर्ट नहीं लिखाई थी.

निमी का जीवन एक दायरे में बंध कर रह गया था. खानापीना और ऐयाशी, जब तक वह नशे में रहती, उसे कुछ महसूस न होता, परंतु जबजब एकांत के साए घेरते उस के दिमाग में तमाम तरह के विचार उमड़ते, मांबाप की याद आती.

न तो समय एकजैसा रहता है, न कोई वस्तु अक्षुण्ण रहती है. निमी ने धीरेधीरे महसूस किया, उस के जो मित्र पहले रोज उस के पास आते थे, अब हफ्ते में 2-3 बार ही आते थे. पूछने पर बताते व्यस्तता बढ़ रही है. दूसरे काम आ गए हैं. मगर सत्य तो यह था उन के जीवन में एकरसता आ गई थी. अनापशनाप पैसा खर्च हो रहा था. मांबाप सवाल उठाने लगे थे. निमी की तरह बेवकूफ तो थे नहीं, उन्हें अपना कैरियर बनाना था. कुछ की कोचिंग समाप्त हो गई, तो वे अपने घर चल गए. जो दिल्ली के थे, वे कभीकभार आते थे, परंतु अब उन के लिए भी निमी का खर्चा उठाना भारी पड़ने लगा था.

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निमी वरुण को अपना सर्वश्रेष्ठ हितैषी समझती थी. एक दिन उसी से पूछा, ‘‘वरुण, एक बात बताओ, मैं ने तुम लोगों की दोस्ती के लिए अपना घरपरिवार और मांबाप छोड़ दिए, अब तुम लोग मुझे 1-1 कर छोड़ कर जाने लगे हो. मैं तो कहीं की न रही… मेरा क्या होगा?’’

वरुण कुछ पल सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘निमी, मेरी बात तुम्हें कड़वी लगेगी, परंतु सचाई यही है कि तुम ने हमारी दोस्ती नहीं अपने स्वार्थ और सुख के लिए घर छोड़ा था. यहां कोई किसी के लिए कुछ नहीं करता, सब अपने लिए करते हैं. अपनी स्वार्थ सिद्धि के बाद सब अलग हो जाते हैं, जैसा अब तुम्हारे साथ हो रहा है.

यह कड़वी सचाई तुम्हें बहुत पहले समझ जानी चाहिए थी. हम सभी अभी बेरोजगार हैं, मांबाप के ऊपर निर्भर हैं, कैरियर बनाना है. ऐसे में रातदिन हम  भोगविलास में लिप्त रहेंगे, तो हमारा भविष्य चौपट हो जाएगा.’’

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Serial Story: यक्ष प्रश्न (भाग-1)

अनुभा ने अस्पताल की पार्किंग में बमुश्किल गाड़ी पार्क की. ‘उफ, इतनी सारी गाडि़यां… न सड़क में जगह, न पार्किंग स्पेस में. गाड़ी रखना भी एक मुसीबत हो गई है. कहीं भी जगह नहीं है. अब तो लोग फुटपाथों पर भी गाडि़यां पार्क करने लगे हैं. सरकारी परिसर हो या निजी आवासीय क्षेत्र, हर जगह एकजैसा हाल. इस के बावजूद लोग गाडि़यां खरीदना बंद नहीं कर रहे हैं,’ यही सब सोचती वह अस्पताल की सीढि़यां चढ़ रही थी.

दूसरी मंजिल पर सेमीप्राइवेट वार्ड में अनुभा की सहेली कम सहकर्मी भरती थी. उसे किडनी में पथरी थी. उसी के औपरेशन के लिए भरती थी. कल उस का औपरेशन हुआ था. अनुभा आज उसे देखने जा रही थी.

सहेली से मिलने और उस का हालचाल पूछने के बाद जब अनुभा उस के बिस्तर पर बैठी तो उस ने कमरे में इधरउधर निगाह डाली. सेमीप्राइवेट वार्ड होने के कारण उस में 2 मरीज थे. दूसरी मरीज भी महिला ही थी. उस ने गौर से दूसरी मरीज को देखा, तो उसे वह कुछ जानीपहचानी लगी. उस ने दिमाग पर जोर दे कर सोचा. वह मरीज भी उसे गौर से देख रही थी. उस की बुझी आंखों में एक चमक सी आ गई जैसे कई बरसों बाद वह अपने किसी आत्मीय को देख रही हो.

दोनों की आंखें एकदूसरे के मनोभावों को पढ़ रही थीं और फिर जैसे अचानक  एकसाथ दोनों के मन से दुविधा और संकोच की बेडि़यां टूट गई हों अनुभा चौंकती सी उस की तरफ लपकी, ‘‘निमी…’’

मरीज के सूखे होंठों पर फीकी सी मुसकराहट फैल गई, ‘‘तुम ने मुझे पहचान लिया?’’

निम्मी के स्वर से ऐसा लग रहा था जैसे इस दुनिया में उस का कोई जानपहचान वाला नहीं है. अनुभा अचानक आसमान से आ टपकी थी, वरना वह इस संसार में असहाय और अनाथ जीवन व्यतीत कर रही थी.

‘‘निमी, तुम यहां और इस हालत में?’’ अनुभा ने उस के हाथों को पकड़ कर कहा.

निमी का नाम निमीषा था, परंतु उस के दोस्त और सहेलियां उसे निमी कह कर बुलाते थे.

अनुभा एक पल को चुप रही, फिर बोली,  ‘‘तुम्हें क्या हुआ है? मैं ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन तुम्हें इस हालत में देखूंगी. तुम्हारी सुंदर काया को क्या हुआ… चेहरे की कांति कहां चली गई?  ऐसा कैसे हुआ?’’

निमी ने पलंग से उठ कर बैठने का प्रयास किया, परंतु उस की सांस फूलने लगी. अनुभा ने उसे सहारा दिया. पलंग को पीछे से उठा दिया, जिस से निमी अधलेटी सी हो गई.

‘‘तुम ने इतने सारे सवाल कर दिए… समझ में नहीं आता कैसे इन के जवाब दूं. एक दिन में सबकुछ बयां नहीं किया जा सकता… मैं ज्यादा नहीं बोल सकती… हांफ जाती हूं… फेफड़े कमजोर हैं न. ’’

‘‘तुम्हें हुआ क्या है?’’ अनुभा ने पूछा.

‘‘एक रोग हो तो बताऊं… अब तुम मिली हो, तो धीरेधीरे सब जान जाओगी. क्या तुम्हारे पास इतना समय है कि रोज आ कर मेरी बातें सुन सको.’’

‘‘हां, मैं रोज आऊंगी और सुनूंगी,’’ अनुभा को निमी की हालत देख कर तरस नहीं, रोना आ रहा था जैसे वह उस की जान हो, जो उसे छोड़ कर जा रही थी. उस ने कस कर निमी का हाथ पकड़ लिया.

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निमी के बदन में एक सुरसुरी सी दौड़ गई. उस के अंदर एक सुखद एहसास ने अंगड़ाई ली. वह तो जीने की आस ही छोड़ चुकी थी, परंतु अनुभा को देख कर उसे लगा कि उसे देखनेसमझने वाला कोई है अभी इस दुनिया में. फिर कोई जब चाहने वाला पास हो, तो जीने की लालसा स्वत: बढ़ जाती है.

‘‘तुम्हारे साथ कोई नहीं है?’’ अनुभा ने आंखें झपकाते हुए पूछा, ‘‘कोई देखभाल करने वाला… तुम्हारे घर का कोई?’’

निमी ने एक ठंडी सांस लेते हुए कहा,  ‘‘नहीं, कोई नहीं.’’

‘‘क्यों, घर में कोई नहीं है क्या?’’

‘‘जो मेरे अपने थे उन्हें मैं ने बहुत पहले छोड़ दिया था और जीवन के पथ पर चलते हुए जिन्हें मैं ने अपना बनाया वे बीच रास्ते छोड़ कर चलते बने. अब मैं नितांत अकेली हूं. कोई नहीं है मेरा अपना. आज वर्षों बाद तुम मिली हो, तो ऐसा लग रहा है जैसे मेरा पुराना जीवन फिर से लौट आया हो. मेरे जीवन में भी खुशी के 2 फूल खिल गए हैं, जिन की सुगंध से मैं महक रही हूं. काश, यह सपना न हो… तुम दोबारा आओगी न?’’

‘‘हांहां, निमी, मैं आऊंगी. तुम से मिलने ही नहीं, तुम्हारी देखभाल करने के लिए भी… तुम्हारा अस्पताल का खर्चा कौन उठा रहा है?’’

निमी ने फिर एक गहरी सांस ली, ‘‘है एक चाहने वाला, परंतु उस ने मेरी बीमारियों के कारण मुझ से इतनी दूरी बना ली है कि वह मुझे देखने भी नहीं आता. कभीकभी उस का नौकर आ जाता है और अस्पताल का पिछला बिल भर कर कुछ ऐडवांस दे जाता है ताकि मेरा इलाज चलता रहे. बस मेरे प्यार के बदले में इतनी मेहरबानी वह कर रहा है.’’

उस दिन अनुभा निमी के पास बहुत देर नहीं रुक पाई, क्योंकि वह औफिस से आई थी. शाम को आने का वादा कर के वह औफिस आ गई, परंतु वहां भी उस का मन नहीं लगा. निमी की दुर्दशा देख कर उसे अफसोस के साथसाथ दुख भी हो रहा था. उसे कालेज के दिन याद आने लगे जब वे दोनों साथसाथ पढ़ती थीं…

निमीषा और अनुभा दोनों ही शिक्षित परिवारों से थीं. अनुभा के पिता आईएएस अफसर थे, तो निमी के पिता वरिष्ठ आर्मी औफिसर. दोनों एक ही क्लास में थीं, दोस्त थीं, परंतु दोनों के विचारों में जमीनआसमान का अंतर था. अनुभा पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों व मान्यताओं को मानने वाली लड़की थी, तो निमी को स्थापित मूल्य तोड़ने में मजा आता था. परंपराओं का पालन करना उसे नहीं भाता था. नैतिकता उस के सामने पानी भरती थी, तो मूल्य धूल चाटते नजर आते थे. संभवतया सैनिक जीवन की अति स्वछंदता और खुलेपन के माहौल में जीने के कारण उस के स्वभाव में ऐसा परिवर्तन आया हो.

निमीषा बहुत बड़ी अफसर बनना चाहती थी, परंतु अनुभा को पता नहीं था

कि वह क्या बन गई? हां, वह शादी भी नहीं करना चाहती थी. उस का मानना था शादी का बंधन स्त्री के लिए एक लिखित आजीवन कारावास का अनुबंध होता है. तब युवाओं के बीच लिव इन रिलेशनशिप का चलन बढ़ने लगा था. निमी ऐसे संबंधों की हिमायती थी. कालेज के दौरान ही उस ने लड़कों के साथ शारीरिक संबंध बना लिए थे.

इस का पता चलने पर अनुभा ने उसे समझाया था, ‘‘ये सब ठीक नहीं है. दोस्ती तक तो ठीक है, परंतु शारीरिक संबंध बनाना और वह भी शादी के पहले व कई लड़कों के साथ को मैं उचित नहीं समझती.’’

निमी ने उस का उपहास उड़ाते हुए कहा,  ‘‘अनुभा, तुम कौन से युग में जी रही हो? यह मौडर्न जमाना है, स्वछंद जीवन जीने का. यहां व्यक्तिगत पसंद से रिश्ते बनतेबिगड़ते हैं, मांबाप की पसंद से नहीं. इट्स माई लाइफ… मैं जैसे चाहूंगी जीऊंगी.’’

अनुभा के पास तर्क थे, परंतु निमी के ऊपर उन का कोई असर न होता. कालेज के बाद दोनों सहेलियां अलग हो गईं. अनुभा के पिता केंद्र सरकार की प्रतिनियुक्ति से वापस लखनऊ चले गए. अनुभा ने वहां से सिविल सर्विसेज की तैयारी की और यूपीएससी की गु्रप बी सेवा में चुन ली गई. कई साल लखनऊ, इलाहाबाद और बनारस में पोस्टिंग के बाद अब उस का दिल्ली आना हुआ था. इस बीच उस की शादी भी हो गई. पति केंद्र सरकार में ग्रुप ए अफसर थे. दोनों ही दिल्ली में तैनात थे. उस की 10 वर्ष की 1 बेटी थी.

अनुभा को निमी के जीवन के पिछले 15 वर्षों के बारे में कुछ पता नहीं था. उसे उत्सुकता थी, जल्दी से जल्दी उस के बारे में जानने की. आखिर उस के साथ ऐसा क्या हुआ था कि उस ने अपने शरीर का सत्यानाश कर लिया… तमाम रोगों ने उस के शरीर को जकड़ लिया. वह शाम होने का इंतजार कर रही थी. प्रतीक्षा में समय भी लंबा लगने लगता है. वह बारबार घड़ी देखती, परंतु घड़ी की सूइयां जैसे आगे बढ़ ही नहीं रही थीं.

किसी तरह शाम के 5 बजे. अभी भी 1 घंटा बाकी था, परंतु वह अपने सीनियर को अस्पताल जाने की बात कह कर बाहर निकल आई. गाड़ी में बैठने से पहले उस ने अपने पति को फोन कर के बता दिया कि वह अस्पताल जा रही है. घर देर से लौटेगी.

अनुभा को देखते ही निमी के चेहरे पर खुशी फैल गई जैसे उस के अंदर असीम ऊर्जा और शक्ति का संचार होने लगा हो.

अनुभा उस के लिए फल लाई थी. उन्हें सिरहाने के पास रखी मेज पर रख कर वह निमी के पलंग पर बैठ गई. फिर उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘अब कैसा महसूस हो रहा है?’’

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निमी के होंठों पर खुशी की मुसकान थी, तो आंखों में एक आत्मीय चमक… चेहरा थोड़ा सा खिल गया था. बोली, ‘‘लगता है अब मैं बच जाऊंगी.’’

रात में अनुभा ने अपने पति हिमांशु को निमी के बारे में सबकुछ बता दिया. सुन कर उन्हें भी दुख हुआ. अगले दिन सुबह औफिस जाते हुए वे दोनों ही निमी से मिलने गए. हिमांशु ने डाक्टर से मिल कर निमी की बीमारियों की जानकारी ली. डाक्टर ने जो कुछ बताया, वह बहुत दर्दनाक था. निमी के फेफड़े ही नहीं, लिवर और किडनियां भी खराब थीं. वह शराब और सिगरेट के अति सेवन से हुआ था. अनुभा को पता नहीं था कि वह इन सब का सेवन करती थी. हिमांशु ने जब उसे बताया, तो वह हैरान रह गई. पता नहीं किस दुष्चक्र में फंस गई थी वह?

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REVIEW: पंजाब की पृष्ठभूमि में लड़की के जन्मते ही हत्या पर सवाल करती फिल्म ‘काली खुही’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः रमन छिब,  संजीव कुमार नायर, अंकु पांडे, श्रीराम रामनाथन

निर्देशकः तेरी सॉन्मुद्रा

कलाकारः शबाना आजमी, संजीदा शेख, रीवा अरोड़ा, सत्यदीप मिश्रा, लीला सैम्सन,  हेतकी भानुशाली, रोज राठौड़, सैम्युअल जॉन, पूजा शर्मा, अमीना शर्मा व अन्य

अवधिः एक घंटा तीस मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स पर, तीस अक्टूबर, दोपहर बाद

पंजाब के गांवों में अब भी लड़कियों को जन्मते ही मार देने की सदियों से चली आ रही प्रथा है. लड़की के पैदा होते ही मां के हाथ से नवजात शिशु को लेकर उन्हें काला जहर चटाकर मार देने की घटनाएं सिर्फ कबीलों और गांवों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी खूब होती हैं. उसी को हॉरर फिल्म् का जामा पहनाकर निर्देशक टेरी समुंद्र ने कुछ कहने का प्रयास किया है. इस डेढ़ घंटे की फिल्म को ‘नेटफ्लिक्स’पर देखा जा सकता है.

कहानीः

पंजाब की पृष्ठभूमि पर यह कहानी दस वर्षीय लड़की शिवांगी (रीवा अरोड़ा)  के इर्द गिर्द घूमती है. शिवांगी के कंधे पर पूरे गांव को श्रापमुक्त करने की जिम्मेदारी है. और उसके लिए जीवन मरण की. फिल्म शुरू होती है शहर से, जहां शिवांगी के पिता दर्शन (सत्यदीप मिश्रा) को खबर मिलती है कि शिवांगी की दादी (लीला सैम्सन)  बीमार हैं. दर्शन रात में ही बेटी शिवांगी और पत्नी प्रिया (संजीदा शेख) को लेकर रवाना होते हैं. गांव मे दर्शन की मां के पास सत्या मौसी (शबाना आजमी)  बैठी हुई हैं. सत्या मौसी की नाती चांदनी (रोज राठौड़)व शिवांगी सहेली हैं. चंादनी, शिवांगी को बताने का प्रयास करती है कि गांव में भूत का साया है. लोगो की जान ले रहा है. हर इंसान बीमार होता है, फिर उसे काली उलटी होती है और वह मर जाता है. इसके पीछे एक अतीत भी है, जिसका गवाह कुंआ है, जिसके अंदर कई नवजात लड़कियों के साथ ही कई औरतें दफन हैं. इस गुप्त अतीत की जानकारी दर्शन की मौसी सत्या मौसी(शबाना आजमी) हैं, जिन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक में दर्ज किया है. अतीत यह है कि यह एक ऐसी फिल्म है, जिसमें पंजाब के गांवों में अब भी लड़कियों को जन्मते ही मार देने की सदियों से चली आ प्रथा है. लड़की के पैदा होते ही मांओं के हाथों से बच्चियां ले लेने और फिर उन्हें काला जहर चटा देने की घटना है. अतीत में दर्शन की छोटी बहन की भी जन्मते ही हत्या की गयी थी.  शिवांगी के माता-पिता दर्शन (सत्यदीप मिश्रा) और प्रिया (संजीदा शेख) के बीच का घनिष्ठ संबंध अतीत की भयावहता का एक और सुराग प्रदान करता है जो खुले में अपना रास्ता बना रहे हैं.

लेखन व निर्देशनः

लेखक द्वय टेरी समुद्र और छेविड वाल्टर तथा निर्देशक टेरी समुद्र ने शुरुआती दृश्यों में ही भूत की अवधारणा स्पष्ट कर दी है. इसलिए रहस्य तो रह नहीं जाता. फिर भी कुछ कमजोरियों के बावजूद फिल्म अपनी गतिशीलता को बरकरार रखती है. पर हॉरर के नाम पर ऐसा कुछ नही है कि लोगों को डर लगे. हां डराने का प्रभाव संगीत जरुर कुछ पैदा करता है. इसके अलावा शिवांगी के माता पिता के गांव पहुंचने,  शिवांगी का बचपन की सहेली चांदनी से मिलना,  गांव,  तालाब,  नदी,  नाले,  बरसात,  मेंढक,  भैंस,  कीचड़ और घना कोहरा, सब कुछ मिलाकर निर्देशक ने हॉरर का पूरा माहौल बनाने का प्रयास जरुर किया है. कुछ दृश्य अच्छे ढंग से फिल्माए गए हैं. निर्देशन प्रभावशाली है. जन्मते ही बेटियों की हत्या से लेकर  भ्रूण हत्या पर यह फिल्म बिना किसी भाषण के कई सवाल खड़े कर जाती है. सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इसका संगीत है. पंजाबी पृष्ठभूमि की इस फिल्म में पंजाब की लोकसंस्कृति और वहां के भूले बिसरे लोकगीत लाकर इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर दिया जा सकता था. संवाद प्रभाव पैदा नही करते. कई दृश्य स्पष्ट नही है.

कैमरामैन सेजल शाह की तारीफ करनी ही पड़ेगी.

अभिनयः

संजीदा शेख व सत्यदीप मिश्रा ने बेहतरीन अभिनय किया है. संजीदा शेख के हिस्से संवाद कम हैं, मगर वह अपनी आंखों से बहुत कुछ कह जाती है. कमाल का अभिनय है. वेब सीरीज‘तैश’की तरह यहां भी चुप रहकर वह अपने अभिनय को नया आयाम देते हुए नजर आती हैं. दस साल की लड़की शिवांगी के किरदार में बाल कलाकार रीवा अरोड़ा के साथ ही चांदनी के किरदार में बाल कलाकार रोज राठौड़ ने शानदार अभिनय किया है. लीला सैम्सन का किरदार काफी छोटा है, पर उसमें भी वह अपना प्रभाव डालने में सफल रही. भयानक बोझ वाली महिला सत्या मौसी के किरदार में प्रोस्थेटिक मेकअप का सहारा लेकर शबाना आजमी भयानक ही नजर आती हैं, मगर जब बात रिश्ते निभाने की हो, तो उनके चेहरे पर करूणा भी आ ही जाती है. अंततः वह एक शानदार अभिनेत्री हैं.

अनुपमा की खातिर बेटे समर ने छीना पिता वनराज से ये हक, शो में आएगा धमाकेदार ट्विस्ट

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamma) इन दिनों फैंस का दिल जीत रहा है, जिसके चलते ये सीरियल टीआरपी की रेस में पहले नंबर पर पहुंच गया है. इसी बीच मेकर्स ने भी फैंस को एंटरटेन करने में कोई कमी नही छोड़ी है. वहीं अब खबर है कि शो में जल्द ही बेटे और पिता के बीच लड़ाई भी देखने को मिलने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आने वाला ट्विस्ट…

अनुपमा ने लिया ये फैसला

अब तक आपने देखा कि अनुपमा को वनराज और काव्या के रिश्ते के बारे में सब पता चल गया है, जिसके बाद वह पूरी तरह से टूट चुकी है. लेकिन अपनी खास दोस्त वेदिका के कहने पर अनुपमा ने फिर से अपनी जिंदगी की नई शुरूआत करने की ठानी चुकी है, जिसके चलते उसने कड़े फैसले लेते हुए वनराज के नाम का मंगलसूत्र पहनने से साफ मना कर दिया है.

अनुपमा ने पूछा ये सवाल

आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि देविका अनुपमा को कहती है वो उसके पास आ जाए. लेकिन अनुपमा कहती है कि वो वनराज के जैसी नहीं है जो अपने घर और परिवार वालों के बारे में कुछ ना सोचे. वहीं, अनुपमा पारितोष से पूछती है कि, तूने अपने और किंजल की बात मुझसे छिपाई, लेकिन काव्या और अपने पापा की बात मुझसे क्यों छिपाई. क्या तुझे लगता है कि तेरी जिंदगी पर मेरा कोई हक नहीं है लेकिन क्या मुझे मेरी जिंदगी पर भी कोई हक नहीं है.

समर को पता चलता है पिता का सच

मां की हालत देखने के बाद समर को वनराज की सच्चाई पता चल जाती है और वो ये भी जान जाता है कि उसकी मां के सदमे में जाने की वजह उसके पिता का धोखा है. इसी के साथ आप आने वाले एपिसोड में देखेंगे कि समर अपने पिता वनराज से मिलकर कहता है कि मेरे दोनों माता- पिता में कितना अन्तर है ना. मां निस्वार्थ रूप से प्यार करती है तो पिता शेमलेस है. ये सुनकर वनराज गुस्सा हो जाता है और समर का कॉलर पकड़ लेता है. समर कहता है मैं कमाता नहीं हूं ना लेकिन आपने जो दर्द मेरी मां को दिया है वो मैं आपको सूद समेत लौटा दूंगा. आपने मेरी मां से हक छीना और आज मैं आपसे आपका हक छीन रहा हूं, मुझे बेटा कहने का हक.

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बता दें, शो में जल्द ही नए ट्विस्ट आने वाले हैं, जिसके चलते जहां अनुपमा के साथ उसका परिवार खड़ा नजर आएगा तो वहीं वनराज और काव्या एक साथ दिखेंगे. इसी बीच अनुपमा अपनी जिंदगी की एक नई शुरूआत करती हुई भी नजर आएगी.

क्या जल्द होगी कोकिला बेन की ‘साथ निभाना साथिया 2’ से छुट्टी! जानें पूरा सच

स्टार प्लस के पौपुलर फैमिली ड्रामा सीरियल ‘साथ निभाना साथिया का सीजन 2’ इन दिनों फैंस को काफी पसंद आ रहा है. जहां गोपी बहू और कोकिला बेन की जोड़ी फैंस का दिल जीत रही है तो वहीं गहना की सादगी दर्शकों को पसंद आ रही है. लेकिन अब मेकर्स ने शो में और भी नए ट्विस्ट लाने का फैसला किया है, जिसके चलते कोकिला बेन यानी रुपल पटेल की शो से छुट्टी होने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

कम समय के लिए थीं शो का हिस्सा

दरअसल, सीरियल ‘साथ निभाना साथिया का सीजन 2’ शुरू होने से पहले ही खबरें थीं कि कोकिला बेन और गोपी बहू यानी रुपल पटेल और देवोलीना भट्टाचार्जी कुछ समय के लिए ही सीरियल का हिस्सा बनेंगी. यानी शो की मेन कैरेक्टर गहना की कहानी फैंस को समझाने और सीरियल के प्लौट को मजेदार बनाने के लिए शो का हिस्सा बनी थीं. लेकिन अब जल्द ही कोकिला बेन यानी रुपल पटेल हमेशा के लिए सीरियल ‘साथ निभाना साथिया सीजन 2’ को अलविदा कहेंगी.

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इतने एपिसोड तक रहेंगी शो का हिस्सा

 

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खबरों की मानें तो रुपल पटेल सीरियल ‘साथ निभाना साथिया सीजन 2’ के 20 एपिसोड में नजर आने वाली हैं यानी नवंबर के बीच में कोकिला बेन का ट्रैक कहानी से खत्म कर दिया जाएगा. वहीं दूसरी तरफ कोकिला बेन की पौपुलैरिटी देखते हुए खबरें कि मेकर्स रुपल पटेल के किरदार की अवधि कुछ समय के लिए बढ़ा सकते हैं.

बता दें, शो की कहानी गहना और अनंत की है, जो कि गोपी और अहम की तरह फैंस को एंटरटेन कर रहा है. सीरियल की ट्रैक की बात करें तो गहना को घर में प्यार और सम्मान दिलाने के लिए अनंत घरवालों के भी खिलाफ जाने से नहीं हिचकिचाएगा और उसे नौकरानी से बहूरानी का दर्जा दिलाएगा.

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