Garlic Rice Recipe : रेस्टोरेंट की तरह घर पर बनाएं गार्लिक राइस

Garlic Rice Recipe : अगर आप चाइनीज फूड खाने के शौकीन हैं, लेकिन बाहर का खाना नही खाना चाहते हैं तो आज अपनी फैमिली के लिए गार्लिक राइस ट्राय करें. गार्लिक राइस एक आसान  डिश है, जिसे आप अपने बच्चों और फैमिली के लिए बना सकते हैं.

हमें चाहिए-

–   1 कप चावल

–   5-6 कलियां लहसुन

–   1/2 छोटा चम्मच अदरक

–   थोड़ा सा प्याज लंबाई में कटा

–   2 हरे प्याज

–   1/2 छोटा चम्मच सोया सौस

–   4 बूंदें विनेगर

–   1/4 छोटा चम्मच अजीनोमोटो

–   2 छोटे चम्च टोमैटो सौस

–   1/2 छोटा चम्मच ग्रीन चिली सौस

–   1 छोटा चम्मच देगी मिर्च

–   1 चम्मच तेल

–   3 छोटे चम्मच कौर्नफ्लोर

–   नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

चावलों को आधा घंटा पानी में भिगोए रखें. फिर  5 कप पानी पैन में डाल उबलने रखें. जब पानी उबलने लगे तो उस में चावल गलने तक पका लें. पानी छान कर चावल अलग कर लें. फ्राइंगपैन में तेल गरम कर अदरक व लहसुन का पेस्ट भूनें. इसी बीच 1 गिलास पानी में 1 चम्मच देगी मिर्च डाल कर मिला लें. जैसे ही अदरकलहसुन पेस्ट हलका सुनहारा हो तुरंत मिर्च वाला पानी डालें. जैसे ही उबाल आए उस में सौया सौस, विनेगर, अजीनोमोटो, टोमैटो सौस, ग्रीन चिली सौस व नमक डालें. थोड़े से पानी में कौर्नफ्लौर का घोल बना कर थोड़ाथोड़ा कर के डालें और बराबर चलाती रहें ताकि गांठें न पड़ें. सौस गाढ़ी हो जाए तो आंच बंद कर दें. सौस को चावल पर डाल हरे प्याज से सजा कर सर्व करें.

अगर बनने वाली हैं Twins Mom, तो इन बातों का रखें ख्याल

राइटर- दीक्षा मंगला 

Twins Mom: जुड़वां बच्चों को जन्म देना गर्भावस्था के पहले से ही बहुत ही बदलावकारी अनुभव को एक नए स्तर पर ले जाता है. जुड़वां बच्चे होना एक अनूठा अनुभव है जिसमें गर्भावस्था के शुरुआती चरणों से लेकर 2 नवजात शिशुओं के पालन-पोषण की खुशियों और चुनौतियों तक कई भावनाएं, शारीरिक परिवर्तन और तार्किक मुद्दे शामिल होते हैं. प्रसव के बाद के जीवन और जुड़वां बच्चों को जन्म देने के अनुभव पर एक नजर डालें.

प्रारंभिक चरण: यह पता लगाना कि आपके जुड़वां बच्चे होने वाले हैं, यह पता लगाना कि वे जुड़वां बच्चों की उम्मीद कर रहे हैं, कई लोगों के लिए चौंकाने वाली और डरावनी घटना हो सकती है. जब किसी महिला में ऐसे लक्षण दिखने लगते हैं जो एकल गर्भावस्था या शुरुआती अल्ट्रासाउंड की तुलना में अधिक गंभीर होते हैं, तो ऐसा अकसर होता है. अधिक गंभीर मॉर्निंग सिकनेस, तेजी से वजन बढ़ना और तेजी से बढ़ता पेट सभी जुड़वां गर्भावस्था के शुरुआती संकेत हैं. जुड़वां गर्भावस्था की पुष्टि होने पर भावनाएं खुशी और उत्साह से लेकर आश्चर्य और भय तक हो सकती हैं. यह जानना कि देखभाल करने के लिए 2 छोटे बच्चे होंगे, रोमांचक और नर्वस दोनों हो सकते हैं.

जुड़वां गर्भावस्था: भावनात्मक और शारीरिक कठिनाइयां: जुड़वां बच्चों को ले जाना शारीरिक रूप से थका देने वाला होता है. गर्भावस्था के दौरान एक महिला का शरीर तेजी से बदलता है क्योंकि वह 2 विकासशील शिशुओं को ले जा रही होती है.

सामान्य कठिनाइयों में ये शामिल हैं:

  1. थकान में वृद्धि: 2 भ्रूणों को बनाए रखने के लिए, शरीर को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है, जिससे थकान बढ़ जाती है. इसके अतिरिक्त, जुड़वां गर्भावस्था के परिणामस्वरूप आराम की आवश्यकता बढ़ सकती है.
  2. मौर्निंग सिकनेस: हालांकि जुड़वां बच्चों के लिए अद्वितीय नहीं है, लेकिन कई गर्भावस्था के दौरान प्रोजेस्टेरोन और एचसीजी जैसे हार्मोन के बढ़े हुए स्तर मतली और उल्टी को बदतर बना सकते हैं.
  3. जटिलता का बड़ा जोखिम: जुड़वां बच्चों के साथ गर्भावस्था को उच्च जोखिम वाला माना जाता है. समय से पहले प्रसव, गर्भावधि मधुमेह और प्रीक्लेम्पसिया कुछ संभावित दुष्प्रभाव हैं. यह अधिक संभावना है कि जुड़वां बच्चों की उम्मीद करने वाली महिलाओं को चिकित्सा विशेषज्ञों से अधिक बार जांच और अतिरिक्त अल्ट्रासाउंड की आवश्यकता होगी.
  4. वजन बढ़ना और शारीरिक असुविधा: जुड़वां गर्भावस्था के दौरान अतिरिक्त वजन बढ़ना आम बात है और इससे अतिरिक्त शारीरिक असुविधा हो सकती है, जैसे पैरों में सूजन, पैल्विक दबाव और पीठ दर्द. पेट के बढ़ने और 2 शिशुओं को सहारा देने की शरीर की जरूरत के कारण भी हरकत संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.
  1. भावनात्मक तनाव: जुड़वां बच्चों की उम्मीद करना उत्साह और भावनात्मक तनाव दोनों प्रदान कर सकता है. कई महिलाएं गर्भावस्था के दौरान अपने शरीर पर पड़ने वाले शारीरिक तनाव और गर्भावस्था के दौरान होने वाली भावनात्मक जिम्मेदारियों के बारे में चिंता करती हैं, जिसके लिए अकसर अतिरिक्त तैयारियां करनी पड़ती हैं.

6. भावनात्मक स्तर पर समर्थन: पार्टनर, जुड़वां बच्चों से भावनात्मक समर्थन प्राप्त करना. एक ठोस समर्थन नेटवर्क होने से एक साथ 2 बच्चे होने से होने वाले तनाव में कुछ कमी आती है. परिवार और दोस्त जुड़वां बच्चों के जन्म के लिए तैयार होने का एक महत्वपूर्ण घटक है.

7. जुड़वां बच्चों का जन्म: एक महत्वपूर्ण घटना माताओं और उनके परिवारों के लिए, जुड़वां बच्चों को जन्म देना एक बहुत ही भावनात्मक समय हो सकता है. अकसर यह सुनिश्चित करने के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों की एक टीम की आवश्यकता होती है कि मां और बच्चे का जन्म अन्य स्थितियों के अलावा ब्रीच या सिर के बल हो.

8. जुड़वां प्रसव, चाहे योनि से या सी-सेक्शन से: स्वास्थ्य और सुरक्षा. जुड़वां प्रसव अधिक अनिश्चित हो सकते हैं क्योंकि बच्चे पूरे प्रसव के दौरान दोनों शिशुओं पर नजर रखते हैं. जुड़वां बच्चों को जन्म के बाद एक साथ रहने की अनुमति दी जा सकती है, या उन्हें अलग-अलग इनक्यूबेटर में रखने की आवश्यकता हो सकती है.

प्रसवोत्तर जीवन में जुड़वां पालन-पोषण का प्रबंधन, प्रसवोत्तर जीवन: जुड़वां पालन-पोषण को संभालना असली यात्रा तब शुरू होती है जब जुड़वां बच्चे आते हैं. जुड़वां बच्चों की देखभाल करना रोमांचकारी और थका देने वाला दोनों हो सकता है. नए माता-पिता को अक्सर कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है:

  1. नींद की कमी: जब आपके 2 नवजात शिशु होते हैं तो नींद की कमी एक नियमित समस्या होती है. माता-पिता के लिए अकसर दो शिशुओं को एक साथ खिलाना, बदलना और शांत करना आवश्यक होता है, जिससे नींद बाधित होती है और 24 घंटे देखभाल की आवश्यकता होती है.
  2. दूध पिलाना: जुड़वां बच्चों को स्तनपान कराया जाए या फॉर्मूला, इसमें कुछ खास कठिनाइयां शामिल हैं. दोनों बच्चों को एक साथ स्तनपान कराना माताओं के बीच एक आम विकल्प है, जिसके लिए समन्वय और अभ्यास की आवश्यकता होती है.
  3. समय प्रबंधन: जुड़वां बच्चों की परवरिश करते समय, समय प्रबंधन महत्वपूर्ण होता है. 2 शिशुओं की देखभाल करते समय, नए माता-पिता को यह पता लगाना चाहिए कि खाना पकाने, सफाई और कपड़े धोने जैसे रोजमर्रा के काम कैसे करें.
  4. दुगुने प्यार का सुख: हालांकि जुड़वां माता-पिता बनना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह दोगुनी खुशी भी देता है. 2 शिशुओं को एक साथ बढ़ते और विकसित होते देखना एक अनूठा अनुभव है. शुरुआत में, जुड़वां बच्चे अक्सर एक-दूसरे के लिए एक विशेष संबंध विकसित करते हैं और खेल, हंसी और मुसकराहट के माध्यम से एक-दूसरे के लिए प्रशंसा दिखाते हैं.
  5. भावनात्मक रोलरकोस्टर: जुड़वां बच्चों की परवरिश कई तरह के भावनात्मक अनुभव हो सकते हैं. ऐसे दिन होते हैं जब आप बहुत थके हुए होते हैं, लेकिन ऐसे भी दिन होते हैं जब आप बहुत खुश होते हैं. जुड़वां बच्चों का बंधन जुड़वां बच्चों के बीच के रिश्ते को देखना उनके पालन-पोषण के सबसे प्यारे पहलुओं में से एक है. कई जुड़वां बच्चे कम उम्र से ही एक-दूसरे की संगति में सुकून पाते हैं. जैसे-जैसे वे बढ़े होते हैं, वे अकसर खेल, आपसी सीख और एक खास तरह के सौहार्द के जरिए एक अनोखा बंधन बनाते हैं. जुड़वां बच्चों का भाई-बहन का रिश्ता उनके जीवन के बाकी हिस्सों के लिए खुशी और सहारा प्रदान कर सकता है.

जुड़वां माता-पिता होने के विशेष अनुभव कभी-कभी थकान के समय के बावजूद संतुष्टि और खुशी की एक बेजोड़ भावना प्रदान करते हैं. गर्भवती होना और जुड़वां बच्चों का पालन-पोषण करना एक अविश्वसनीय अनुभव है जो प्यार, खुशी और स्थायी यादों से भरा होता है.

मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानती हूं कि मेरी 2 प्यारी बेटियां हैं, कीरत और कायरा, जिन्होंने मुझे एक व्यक्ति के रूप में बदल दिया और मुझे मातृत्व और नारीत्व का सही अर्थ दिखाया.

दो बच्चोंं की मां के साथ नजर आए सैफ के लाडले Ibrahim Ali Khan, सेंसेशन गर्ल श्रीलीला को लगाया गले

Ibrahim Ali Khan : फिल्मी सितारों के बच्चे किसी फिल्म में काम करने से पहले ही सेलिब्रिटी के बच्चे होने की वजह से चर्चा में बने रहते हैं, मीडिया से लेकर आम पब्लिक तक सभी की उन पर नजर होती है, उनकी बारीक से बारीक बात भी दर्शकों तक पहुंच जाती है. इसी के चलते सैफ अली खान के बेटे इब्राहिम अली खान जो सिर्फ हूबहू अपने पिता सैफ अली की तरह ही नहीं लगते बल्कि पिता की तरह आशिक मिजाज भी रखते हैं. इसी के चलते फिल्मों में आने से पहले ही इब्राहिम अपनी लव लाइफ को लेकर चर्चा में बने रहते हैं.

 

श्वेता तिवारी की बेटी पलक तिवारी और इब्राहिम के बीच में काफी समय से प्यार की खिचड़ी पक रही है, यह दोनों हर जगह एक साथ पाए जाते हैं. लेकिन हाल ही में इब्राहिम अली पलक तिवारी के बजाय पुष्पा 2 की आइटम डांसर थप्पड़ मार दूंगी फेम श्री लीला के साथ गले मिलते और किस करते नजर आए, इब्राहिम श्री लीला का यह मेलजोल आशिकाना नहीं बल्कि दोस्ताना था.

श्री लीला और इब्राहिम दोनों एक साथ मेंङोक के ऑफिस से बाहर निकले और एक दूसरे को गले मिलते और किस करते नजर आए . इतना ही नहीं दोनों एक दूसरे को प्यार भरी नजरों से भी देख रहे थे. दरअसल इब्राहिम और श्री लीला फिल्म दिलेर में एक साथ नजर आने वाले हैं. शायद इसी वजह से दोनों की नजदीकियां बढ़ गई हैं जो पलक तिवारी को टेंशन देने के लिए काफी है. हालांकि श्रीलीला 23 साल में दो बच्चों की मां है. लेकिन 23 साल में 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद वह खूबसूरत और हौट नजर आती है और बौलीवुड में एंट्री करने को तैयार है.

टीवी ऐक्ट्रैस Nyra Banerjee ने खुद को क्यों बताया लेस्बियन?

Nyra Banerjee: फिल्म इंडस्ट्री हो या टीवी इंडस्ट्री कास्टिंग काउच इस ग्लैमर भरी इंडस्ट्री की चकाचौंध का घिनौना सच है. जो हर उस लड़की को सामना करना पड़ता है जो या तो काम पाने के लिए संघर्ष कर रही है या आगे बढ़ाने के लिए समझौते के नाम पर कास्टिंग काउच का शिकार हो रही है. एक सच यह भी है काम देने वाले प्रोड्यूसर डायरेक्टर ज्यादातर लड़कियों को जबरदस्ती नहीं करते बल्कि एक शर्त रख देते हैं जिसमें या तो समझोता करो या दूसरे को साइन करने के लिए कोई देरी नहीं है.

काम पाने के चक्कर में या बड़ा प्रोजेक्ट पाने के चक्कर में कई लड़कियां कंप्रोमाइज कर लेती हैं, तो कोई लड़कियां कास्टिंग काउच का शिकार भी हो जाती है, लेकिन जो लड़की समझदार होती है वह इससे भी बच निकलना जानती है. ऐसा ही कुछ बिग बॉस में नजर आई नायरा बनर्जी को भी अनुभव हुआ.

हाल ही में बिग बौस में नजर आ चुकी नायरा बनर्जी कास्टिंग काउच से बचने वाले अनुभव को एक इंटरव्यू के दौरान साझा किया. नायर ने बताया अपने काम के दौरान उन्होंने कई बार कास्टिंग काउच के औफर को झेला. लेकिन हर बार वह इससे बच निकलती थी क्योंकि उनको समझौते के दम पर कामयाबी नहीं चाहिए थी. लिहाजा वह समझौते वाले औफर को हमेशा ठुकराती गई लेकिन एक बार जब वह साउथ में काम कर रही थी तब वहां कुछ लीचड़ लोग कास्टिंग काउच के नाम पर जबरदस्ती करने वाले भी थे जिनको मैंने यह बोलकर जान छुड़ाई कि मैं लेस्बियन हूं और यह बात लोग सच भी मानने लगे कि मैं लेस्बियन हूं.

उस वक्त मैंने यही सोचा कास्टिंग काउच का शिकार होने से अच्छा है मैं लेस्बियन ही कहलाऊं. कम से कम ऐसे ही सुरक्षित तो रहूंगी. नायरा के अनुसार फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच आम बात है. लेकिन एक सच यह भी है कि यहां सभी खराब भी नहीं है. अगर ऐसा होता तो कई लोग इस इंडस्ट्री से नहीं जुड़ते.

Couple Goals : क्या आप के पार्टनर को भी चीजें चुराने की आदत है ?

Couple Goals : राधा और राहुल की हाल ही में शादी हुई थी. एक दिन दोनों ने साथ घूमने का प्लान बनाया. लेकिन राधा की कुछ आदतें राहुल को बड़ी अटपटी लगीं. राहुल को पहले समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा था. दरअसल, एक दिन उस ने देखा कि राधा ने एक शौप से लिपस्टिक चोरी कर अपने बैग में डाल लिया. यह देख कर राहुल को अजीब लगा.

राहुल ने तुरंत पूछा, “तुम ने यह लिपस्टिक क्यों ली?” राधा घबरा गई, “नहीं, राहुल, मैं ने इसे नहीं लिया.”

फिर राहुल ने धीरेधीरे सुबूत जुटाए और पाया कि उस की आदत ही यही थी. वह बारबार चीजें चुराती थी, भले ही उसे उन की कोई जरूरत न हो.

राहुल ने एक दिन अपने दोस्तों से सुना था कि यह एक मानसिक समस्या हो सकती है, जिसे ‘क्लेपटोमेनिया’ कहते हैं. वह बहुत घबराया और इंटरनैट पर इस बारे में और जानकारी जुटाई. उसे समझ में आया कि यह एक मानसिक विकार है, जो लोगों को चीजें चुराने की अजीब इच्छा पैदा कर देता है और वे इसे अपनी इच्छा से नियंत्रित नहीं कर सकते.

राहुल ने राधा से इस के बारे में बात की और कहा, “राधा, मुझे लगता है कि तुम्हें एक डाक्टर से मिलना चाहिए. यह तुम्हारी गलती नहीं है, बल्कि एक समस्या है.”

डाक्टर ने राधा का इलाज शुरू किया और उसे बताया कि क्लेपटोमेनिया का इलाज किया जा सकता है, लेकिन इस के लिए उसे बहुत मेहनत करनी होगी. डाक्टर ने राहुल को कौग्निटिव बिहेवियरल थेरैपी (CBT) के बारे में बताया, जिस में राहुल को अपनी आदतों को पहचानने और उन्हें नियंत्रित करने की तकनीकें सीखनी पड़ीं. समय के साथ राधा ने अपनी आदतों पर काबू पा लिया. अब वह और राधा अपनी जिंदगी में खुश थे.

यह थी राधा और राहुल की कहानी लेकिन अगर आप के पार्टनर को कोई मानसिक स्वास्थ्य समस्या है, तो उसे समझदारी से सहारा देना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. मानसिक विकारों को समझने और उन से निबटने के लिए प्रोफैशनल मदद की आवश्यकता होती है और सब से जरूरी बात यह है कि प्यार और समर्थन ही किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाते हैं.

यहां कुछ तरीके दिए गए हैं, जिन से आप इस स्थिति को समझ सकते हैं और अपने पार्टनर को मदद कर सकते हैं :

समझदारी से समझें : क्लेपटोमेनिया एक मानसिक स्वास्थ्य विकार है और यह किसी की इच्छा से बाहर होता है. व्यक्ति जानबूझ कर या स्वेच्छा से चुराने का प्रयास नहीं करता, बल्कि यह एक मानसिक दबाव या भावना होती है जिसे वह नियंत्रित नहीं कर सकता. सब से पहले आप को इस स्थिति को पूरी तरह समझना होगा ताकि आप अपने पार्टनर को सहानुभूति और समर्थन दे सकें.

गोपनीयता और सम्मान बनाए रखें : यदि आप को लगता है कि आप का पार्टनर कोई चीज चुराता है, तो इसे व्यक्तिगत रूप से न लें और न ही उन्हें शर्मिंदा करें. यह आवश्यक है कि आप उस स्थिति को खुले तौर पर और बिना किसी निंदा के संभालें. अगर आप उन्हें अपमानित करेंगे, तो वे और अधिक शर्मिंदा महसूस करेंगे, जो उन के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.

प्रोफैशनल से मदद लें : क्लेपटोमेनिया का इलाज खुद से नहीं किया जा सकता है. इस का उपचार पेशेवर चिकित्सकों द्वारा किया जाता है. अगर आप के पार्टनर को इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है, तो उन्हें मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर जैसेकि मनोचिकित्सक या काउंसलर से संपर्क करने के लिए प्रेरित करें.

अपनेआप को भी समर्थन दें : अपने पार्टनर को इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए आप को भी मानसिक सहारा और समझ की जरूरत होगी. यह एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है और इसे झेलने में आप को भी तनाव हो सकता है. इसलिए, अपनी भावनाओं और मानसिक स्थिति का खयाल रखना भी जरूरी है. आप भी काउंसलिंग या सपोर्ट ग्रुप्स में भाग ले सकते हैं, जहां आप को इस प्रक्रिया के दौरान मदद मिल सकती है.

सीमाएं तय करें : आप के लिए यह जरूरी है कि आप अपने व्यक्तिगत सीमाएं तय करें ताकि आप खुद को सुरक्षित महसूस करें. यदि आपका पार्टनर बारबार चीजें चुराता है, तो आप को इस बारे में स्पष्ट रूप से बात करनी होगी. सीमाएं निर्धारित करना इस का हिस्सा है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना है कि आप उन के प्रति सम्मान और समझदारी बनाए रखें.

लक्ष्य और धैर्य बनाए रखें : क्लेपटोमेनिया का इलाज समय ले सकता है. यह एक प्रक्रिया है और आप का पार्टनर इसे नियंत्रित करने में धीरेधीरे सुधार कर सकता है. इस दौरान आप को धैर्य रखने की आवश्यकता होगी. हर सकारात्मक कदम को सराहें और अपने पार्टनर के लिए एक साकारात्मक वातावरण तैयार करें.

अगर कोई घटना हो, तो शांत और समझदारी से प्रतिक्रिया दें : अगर आप का पार्टनर फिर से कुछ चुरा लेता है, तो उस पर गुस्सा करने या उसे शर्मिंदा करने के बजाय शांति से और समझदारी से प्रतिक्रिया दें. आप उन्हें यह समझाने का प्रयास कर सकते हैं कि यह उन की गलती नहीं है, बल्कि एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या है. उन्हें यह बताएं कि आप उन्हें समर्थन देंगे और इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए मिल कर काम करेंगे.

Extra Marital Affair : मैं अब पति के साथसाथ प्रेमी को भी नहीं खोना चाहती हूं…

Extra Marital Affair : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल- 

मैं 28 साल की महिला हूं. मैं और मेरे पति एकदूसरे का बहुत खयाल रखते हैं, मगर इधर कुछ दिनों से मैं किसी दूसरे के प्रेम में पड़ गई हूं. हमारे बीच कई बार शारीरिक संबंध भी बन चुके हैं. मुझे इस में बेहद आनंद आता है. मैं अब पति के साथसाथ प्रेमी को भी नहीं खोना चाहती हूं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप के बारे में यही कहा जा सकता है कि दूसरे के बगीचे का फूल तभी अच्छा लगता है जब हम अपने बगीचे के फूल पर ध्यान नहीं देते. आप के लिए बेहतर यही होगा कि आप अपने ही बगीचे के फूल तक सीमित रहें. फिर सचाई यह भी है कि यदि पति बेहतर प्रेमी साबित नहीं हो पाता तो प्रेमी भी पति के रहते दूसरा पति नहीं बन सकता. विवाहेतर संबंध आग में खेलने जैसा है जो कभी भी आप के दांपत्य को झुलस सकता है.

ऐसे में बेहतर यही होगा कि आग से न खेल कर इस संबंध को जितनी जल्दी हो सके खत्म कर लें.

अपने साथी के प्रति वफादार रहें. अगर आप अपनी खुशियां अपने पति के साथ बांटेंगी तो इस से विवाह संबंध और मजबूत होगा.

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लगभग एक साल पहले भंवरताल गार्डन जबलपुर में रहने वाली आयशा ने स्वास्थ्य महकमे में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर तैनात अपने पति डा. शफातउल्लाह खान की हत्या इसलिए करवा दी थी, क्योंकि उस का पति अपने विभाग की कई महिला कर्मचारियों से अवैध संबंध रखता था. अपनी अय्याशी की वजह से पत्नी के साथ संबंध भी नहीं बनाता था और पत्नी को प्रताडि़त करता था. हद तो तब हो गई जब पति ने पत्नी की नाबालिग भतीजी को अपनी हवस का शिकार बना लिया और इस से नाबालिग को गर्भ ठहर गया. तंग आ कर पत्नी ने सुपारी दे कर उस की हत्या करवा दी. इसी तरह दिसंबर 2019 में नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव थाना क्षेत्र में एक युवक आशीष की हत्या उस के दोस्त पंकज ने इसलिए कर दी थी, क्योंकि आशीष ने पंकज की पत्नी से सैक्स संबंध बना रखे थे.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Pyaar Ki Kahani : बेइंतहा मोहब्बत की कहानी

Pyaar Ki Kahani : दिसंबर का पहला पखवाड़ा चल रहा था. शीतऋतु दस्तक दे चुकी थी. सूरज भी धीरेधीरे अस्ताचल की ओर प्रस्थान कर रहा था और उस की किरणें आसमान में लालिमा फैलाए हुए थीं. ऐसा लग रहा था मानो ठंड के कारण सभी घर जा कर रजाई में घुस कर सोना चाहते हों. पार्क लगभग खाली हो चुका था, लेकिन हम दोनों अभी तक उसी बैंच पर बैठे बातें कर रहे थे. हम एकदूसरे की बातों में इतने खो गए थे कि हमें रात्रि की आहट का भी पता नहीं चला. मैं तो बस, एकाग्रचित्त हो अखिलेश की दीवानगी भरी बातें सुन रही थी.

‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं रीमा, मुझे कभी तनहा मत छोड़ना. मैं तुम्हारे बगैर बिलकुल नहीं जी पाऊंगा,’’ अखिलेश ने मेरी उंगलियों को सहलाते हुए कहा.

‘‘कैसी बातें कर रहे हो अखिलेश, मैं तो हमेशा तुम्हारी बांहों में ही रहूंगी, जिऊंगी भी तुम्हारी बांहों में और मरूंगी भी तुम्हारी ही गोद में सिर रख कर.’’

मेरी बातें सुनते ही अखिलेश बौखला गया, ‘‘यह कैसा प्यार है रीमा, एक तरफ तो तुम मेरे साथ जीने की कसमें खाती हो और अब मेरी गोद में सिर रख कर मरना चाहती हो? तुम ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मैं तुम्हारे बिना जी कर क्या करूंगा? बोलो रीमा, बोलो न.’’ अखिलेश बच्चों की तरह बिलखने लगा.

‘‘और तुम… क्या तुम उस दूसरी दुनिया में मेरे बगैर रह पाओगी? जानती हो रीमा, अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो क्या कहता,’’ अखिलेश ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘यदि तुम इस दुनिया से पहले चली जाओगी तो मैं तुम्हारे पास आने में बिलकुल भी देर नहीं करूंगा और यदि मैं पहले चला गया तो फिर तुम्हें अपने पास बुलाने में देर नहीं करूंगा, क्योंकि मैं तुम्हारे बिना कहीं भी नहीं रह सकता.’’

अखिलेश का यह रूप देख कर पहले तो मैं सहम गई, लेकिन अपने प्रति अखिलेश का यह पागलपन मुझे अच्छा लगा. हमारे प्यार की कलियां अब खिलने लगी थीं. किसी को भी हमारे प्यार से कोई एतराज नहीं था. दोनों ही घरों में हमारे रिश्ते की बातें होने लगी थीं. मारे खुशी के मेरे कदम जमीन पर ही नहीं पड़ते थे, लेकिन अखिलेश को न जाने आजकल क्या हो गया था. हर वक्त वह खोयाखोया सा रहता था. उस का चेहरा पीला पड़ता जा रहा था. शरीर भी काफी कमजोर हो गया था.

मैं ने कई बार उस से पूछा, लेकिन हर बार वह टाल जाता था. मुझे न जाने क्यों ऐसा लगता था, जैसे वह मुझ से कुछ छिपा रहा है. इधर कुछ दिनों से वह जल्दी शादी करने की जिद कर रहा था. उस की जिद में छिपे प्यार को मैं तो समझ रही थी, मगर मेरे पापा मेरी शादी अगले साल करना चाहते थे ताकि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर लूं. इसलिए चाह कर भी मैं अखिलेश की जिद न मान सकी.

अखिलेश मुझे दीवानों की तरह प्यार करता था और मुझे पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. यह बात मुझे उस दिन समझ में आ गई जब शाम को अखिलेश ने फोन कर के मुझे अपने घर बुलाया. जब मैं वहां पहुंची तो घर में कोई भी नहीं था. अखिलेश अकेला था. उस के मम्मीपापा कहीं गए हुए थे. अखिलेश ने मुझे बताया कि उसे घबराहट हो रही थी और उस की तबीयत भी ठीक नहीं थी इसलिए उस ने मुझे बुलाया है.

थोड़ी देर बाद जब मैं उस के लिए कौफी बनाने रसोई में गई, तभी अखिलेश ने पीछे से आ कर मुझे आलिंगनबद्ध कर लिया, मैं ने घबरा कर पीछे हटना चाहा, लेकिन उस की बांहों की जंजीर न तोड़ सकी. वह बेतहाशा मुझे चूमने लगा, ‘‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता रीमा, जीना तो दूर तुम्हारे बिना तो मैं मर भी नहीं पाऊंगा. आज मुझे मत रोको रीमा, मैं अकेला नहीं रह पाऊंगा.’’

मेरे मुंह से तो आवाज तक नहीं निकल सकी और एक बेजान लता की तरह मैं उस से लिपटती चली गई. उस की आंखों में बिछुड़ने का भय साफ झलक रहा था और मैं उन आंखों में समा कर इस भय को समाप्त कर देना चाहती थी तभी तो बंद पलकों से मैं ने अपनी सहमति जाहिर कर दी. फिर हम दोनों प्यार के उफनते सागर में डूबते चले गए और जब हमें होश आया तब तक सारी सीमाएं टूट चुकी थीं. मैं अखिलेश से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी और उस के लाख रोकने के बावजूद बिना कुछ कहे वापस आ गई.

इन 15 दिन में न जाने कितनी बार वह फोन और एसएमएस कर चुका था. मगर न तो मैं ने उस के एसएमएस का कोई जवाब दिया और न ही उस का फोन रिसीव किया. 16वें दिन अखिलेश की मम्मी ने ही फोन कर के मुझे बताया कि अखिलेश पिछले 15 दिन से अस्पताल में भरती है और उस की अंतिम सांसें चल रही हैं. अखिलेश ने उसे बताने से मना किया था, इसलिए वे अब तक उसे नहीं बता पा रही थीं.

इतना सुनते ही मैं एकपल भी न रुक सकी. अस्पताल पहुंचने पर मुझे पता चला कि अब उस की जिंदगी के बस कुछ ही क्षण बाकी हैं. परिवार के सभी लोग आंसुओं के सैलाब को रोके हुए थे. मैं बदहवास सी दौड़ती हुई अखिलेश के पास चली गई. आहट पा कर उस ने अपनी आंखें खोलीं. उस की आंखों में खुशी की चमक आ गई थी. मैं दौड़ कर उस के कृशकाय शरीर से लिपट गई.

‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं अखिलेश, सिर्फ ‘कौल मी’ लिख कर सैकड़ों बार मैसेज करते थे. क्या एक बार भी तुम अपनी बीमारी के बारे में मुझे नहीं बता सकते थे? क्या मैं इस काबिल भी नहीं कि तुम्हारा गम बांट सकूं?‘‘

‘‘मैं हर दिन तुम्हें फोन करता था रीमा, पर तुम ने एक बार भी क्या मुझ से बात की?’’

‘‘नहीं अखिलेश, ऐसी कोई बात नहीं थी, लेकिन उस दिन की घटना की वजह से मैं तुम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.’’

‘‘लेकिन गलती तो मेरी भी थी न रीमा, फिर तुम क्यों नजरें चुरा रही थीं. वह तो मेरा प्यार था रीमा ताकि तुम जब तक जीवित रहोगी मेरे प्यार को याद रख सकोगी.’’

‘‘नहीं अखिलेश, हम ने साथ जीनेमरने का वादा किया था. आज तुम मुझे मंझधार में अकेला छोड़ कर नहीं जा सकते,’’ उस के मौत के एहसास से मैं कांप उठी.

‘‘अभी नहीं रीमा, अभी तो मैं अकेला ही जा रहा हूं, मगर तुम मेरे पास जरूर आओगी रीमा, तुम्हें आना ही पड़ेगा. बोलो रीमा, आओगी न अपने अखिलेश के पास’’,

अभी अखिलेश और कुछ कहता कि उस की सांसें उखड़ने लगीं और डाक्टर ने मुझे बाहर जाने के लिए कह दिया.

डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद अखिलेश को नहीं बचाया जा सका. मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई थी. मेरा तो सुहागन बनने का रंगीन ख्वाब ही चकनाचूर हो गया. सब से बड़ा धक्का तो मुझे उस समय लगा जब पापा ने एक भयानक सच उजागर किया. यह कालेज के दिनों की कुछ गलतियों का नतीजा था, जो पिछले एक साल से वह एड्स जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहा था. उस ने यह बात अपने परिवार में किसी से नहीं बताई थी. यहां तक कि डाक्टर से भी किसी को न बताने की गुजारिश की थी.

मेरे कदमों तले जमीन खिसक गई. मुझे अपने पागलपन की वह रात याद आ गई जब मैं ने अपना सर्वस्व अखिलेश को समर्पित कर दिया था.

आज उस की 5वीं बरसी है और मैं मौत के कगार पर खड़ी अपनी बारी का इंतजार कर रही हूं. मुझे अखिलेश से कोई शिकायत नहीं है और न ही अपने मरने का कोई गम है, क्योंकि मैं जानती हूं कि जिंदगी के उस पार मौत नहीं, बल्कि अखिलेश मेरा बेसब्री से इंतजार कर रहा होगा.

मैं ने अखिलेश का साथ देने का वादा किया था, इसलिए मेरा जाना तो निश्चित है परंतु आज तक मैं यह नहीं समझ पाई कि मैं ने और अखिलेश ने जो किया वह सही था या गलत?

अखिलेश का वादा पक्का था, मेरे समर्पण में प्यार था या हम दोनों को प्यार की मंजिल के रूप में मौत मिली, यह प्यार था. क्या यही प्यार है? क्या पता मेरी डायरी में लिखा यह वाक्य मेरा अंतिम वाक्य हो. कल का सूरज मैं देख भी पाऊंगी या नहीं, मुझे पता नहीं.

Short Stories In Hindi 2025 : अर्धांगिनी होने का एहसास

Short Stories In Hindi 2025 : आज सुधीर की तेरहवीं है. मेरा चित्त अशांत है. बारबार नजर सुधीर की तसवीर की तरफ चली जाती. पति कितना भी दुराचारी क्यों न हो पत्नी के लिए उस की अहमियत कम नहीं होती. तमाम उपेक्षा, तिरस्कार के बावजूद ताउम्र मुझे सुधीर का इंतजार रहा. हो न हो उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हो और मेरे पास चले आएं. पर यह मेरे लिए एक दिवास्वप्न ही रहा. आज जबकि वह सचमुच में नहीं रहे तो मन मानने को तैयार ही नहीं. बेटाबहू इंतजाम में लगे हैं और मैं अतीत के जख्मों को कुरेदने में लग गई.

सुधीर एक स्कूल में अध्यापक थे. साथ ही वह एक अच्छे कथाकार भी थे. कल्पनाशील, बौद्धिक. वह अकसर मुझे बड़ेबड़े साहित्यकारों के सारगर्भित तत्त्वों से अवगत कराते तो लगता अपना ज्ञान शून्य है. मुझ में कोई साहित्यिक सरोकार न था फिर भी उन की बातें ध्यानपूर्वक सुनती. उसी का असर था कि मैं भी कभीकभी उन से तर्कवितर्क कर बैठती. वह बुरा न मानते बल्कि प्रोत्साहित ही करते.

उस दिन सुधीर कोई कथा लिख रहे थे. कथा में दूसरी स्त्री का जिक्र था. मैं ने कहा, ‘यह सरासर अन्याय है उस पुरुष का जो पत्नी के होते हुए दूसरी औरत से संबंध बनाए,’ सुधीर हंस पड़े तो मैं बोली, ‘व्यवहार में ऐसा होता नहीं.’

सुधीर बोले, ‘खूबसूरत स्त्री हमेशा पुरुष की कमजोरी रही. मुझे नहीं लगता अगर सहज में किसी को ऐसी औरत मिले तो अछूता रहे. पुरुष को फिसलते देर नहीं लगती.’

‘मैं ऐसी स्त्री का मुंह नोंच लूंगी,’ कृत्रिम क्रोधित होते हुए मैं बोली.

‘पुरुष का नहीं?’ सुधीर ने टोका तो मैं ने कोई जवाब नहीं दिया.

कई साल गुजर गए उस वार्त्तालाप को. पर आज सोचती हूं कि मैं ने बड़ी गलती की. मुझे सुधीर के सवाल का जवाब देना चाहिए था. औरत का मौन खुद के लिए आत्मघाती होता है. पुरुष इसे स्त्री की कमजोरी मान लेता है और कमजोर को सताना हमारे समाज का दस्तूर है. इसी दस्तूर ने ही तो मुझे 30 साल सुधीर से दूर रखा.

सुधीर पर मैं ने आंख मूंद कर भरोसा किया. 2 बच्चों के पिता सुधीर ने जब इंटर की छात्रा नम्रता को घर पर ट्यूशन देना शुरू किया तो मुझे कल्पना में भी भान नहीं था कि दोनों के बीच प्रेमांकुर पनप रहे हैं. मैं भी कितनी मूर्ख थी कि बगल के कमरे में अपने छोटेछोटे बच्चों के साथ लेटी रहती पर एक बार भी नहीं देखती कि अंदर क्या हो रहा है. कभी गलत विचार मन में पनपे ही नहीं. पता तब चला जब नम्रता गर्भवती हो गई और एक दिन सुधीर अपनी नौकरी छोड़ कर रांची चले गए.

मेरे सिर पर तब दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. 2 बच्चों को ले कर मेरा भविष्य अंधकारमय हो गया. कहां जाऊं, कैसे कटेगी जिंदगी? बच्चों की परवरिश कैसे होगी? लोग तरहतरह के सवाल करेंगे तो उन का जवाब क्या दूंगी? कहेंगे कि इस का पति लड़की ले कर भाग गया.

पुरुष पर जल्दी कोई दोष नहीं मढ़ता. उन्हें मुझ में ही खोट नजर आएंगे. कहेंगे कि कैसी औरत है जो अपने पति को संभाल न सकी. अब मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि मैं ने स्त्री धर्म का पालन किया.

बनारस रहना मेरे लिए मुश्किल हो गया. लोगों की सशंकित नजरों ने जीना मुहाल कर दिया. असुरक्षा की भावना के चलते रात में नींद नहीं आती. दोनों बच्चे पापा को पूछते. इस बीच भैया आ गए. उन्हें मैं ने ही सूचित किया था. आते ही हमदोनों को खरीखोटी सुनाने लगे. मुझे जहां लापरवाह कहा, वहीं सुधीर को लंपट. मैं लाख कहूं कि मैं ने उन पर भरोसा किया, अब कोई विश्वासघात पर उतारू हो जाए तो क्या किया जा सकता है. क्या मैं उठउठ कर उन के कमरे में झांकती कि वह क्या कर रहे हैं? क्या यह उचित होता? उन्होंने मेरे पीठ में छुरा भोंका. यह उन का चरित्र था पर मेरा नहीं जो उन पर निगरानी करूं.

‘तो भुगतो,’ भैया गुस्साए.

भैया ने भी मुझे नहीं समझा. उन्हें लगा मैं ने गैरजिम्मेदारी का परिचय दिया. पति को ऐसे छोड़ देना मूर्ख स्त्री का काम है. मैं रोने लगी. भैया का दिल पसीज गया. जब उन का गुस्सा शांत हुआ तो उन्होंने रांची चलने के लिए कहा.

‘देखता हूं कहां जाता है,’ भैया बोले.

हम रांची आए. यहां शहर में मेरे एक चचेरे भाई रहते थे. मैं वहीं रहने लगी. उन्हें मुझ से सहानुभूति थी. भरसक उन्होंने मेरी मदद की. अंतत: एक दिन सुधीर का पता चल गया. उन्होंने नम्रता से विवाह कर लिया था. सहसा मुझे विश्वास नहीं हुआ. सुधीर इतने नीचे तक गिर सकते हैं.

उस रोज भैया भी मेरे साथ जाना चाहते थे. पर मैं ने मना कर दिया. बेवजह बहसाबहसी, हाथापाई का रूप ले सकता था. घर पर नम्रता मिली. देख कर मेरा खून खौल गया. मैं बिना इजाजत घर में घुस गई. उस में आंख मिलाने की भी हिम्मत न थी. वह नजरें चुराने लगी. मैं बरस पड़ी, ‘मेरा घर उजाड़ते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई?’

उस की निगाहें झुकी हुई थीं.

‘चुप क्यों हो? तुम ने तो सारी हदें तोड़ दीं. रिश्तों का भी खयाल नहीं रहा.’

‘यह आप मुझ से क्यों पूछ रही हैं? उन्होंने मुझे बरगलाया. आज मैं न इधर की रही न उधर की,’ उस की आंखें भर आईं. एकाएक मेरा हृदय परिवर्तित हो गया.

मैं विचार करने लगी. इस में नम्रता का क्या दोष? जब 2 बच्चों का पिता अपनी मर्यादा भूल गया तो वह बेचारी तो अभी नादान है. गुरु मार्गदर्शक होता है. अच्छे बुरे का ज्ञान कराता है. पर यहां गुरु ही शिष्या का शोषण करने पर तुला है. सुधीर से मुझे घिन आने लगी और खुद पर शर्म भी. कितना फर्क था दोनों की उम्र में. सुधीर को इस का भी खयाल नहीं आया. इस कदर कामोन्मत्त हो गया था कि लाज, शर्म, मानसम्मान सब को लात मार कर भाग गया. कायर, बुजदिल…मैं ने मन ही मन उसे लताड़ा.

‘तुम्हारी उम्र ही क्या है,’ कुछ सोच कर मैं बोली, ‘बेहतर होगा तुम अपने घर चली जाओ और नए सिरे से जिंदगी शुरू करो.’

‘अब संभव नहीं.’

‘क्यों?’ मुझे आश्चर्य हुआ.

‘मैं उन के बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

‘तो क्या हुआ. गर्भ गिराया भी तो जा सकता है. सोचो, तुम्हें सुधीर से मिलेगा क्या? उम्र का इतना बड़ा फासला. उस पर रखैल की संज्ञा.’

‘मुझे सब मंजूर है क्योंकि मैं उन से प्यार करती हूं.’

यह सुन कर मैं तिलमिला कर रह गई पर संयत रही.

‘अभीअभी तुम ने कहा कि सुधीर ने तुम्हें बरगलाया है. फिर यह प्यारमोहब्बत की बात कहां से आ गई. जिसे तुम प्यार कहती हो वह महज शारीरिक आकर्षण है. एक दिन सुधीर का मन तुम से भी भर जाएगा तो किसी और को ले आएगा. अरे, जिसे 2 अबोध बच्चों का खयाल नहीं आया वह भला तुम्हारा क्या होगा,’ मैं ने नम्रता को भरसक समझाने का प्रयास किया. तभी सुधीर आ गया. मुझे देख कर सकपकाया. बोला, ‘तुम, यहां?’

‘हां मैं यहां. तुम जहन्नुम में भी होते तो खोज लेती. इतनी आसानी से नहीं छोड़ूंगी.’

‘मैं ने तुम्हें अपने से अलग ही कब किया था,’ सुधीर ने ढिठाई की.

‘बेशर्मी कोई तुम से सीखे,’ मैं बोली.

‘इन सब के लिए तुम जिम्मेदार हो.’

‘मैं…’ मैं चीखी, ‘मैं ने कहा था इसे लाने के लिए,’ नम्रता की तरफ इशारा करते हुए बोली.

‘मेरे प्रति तुम्हारी बेरुखी का नतीजा है.’

‘चौबीस घंटे क्या सारी औरतें अपने मर्दों की आरती उतारती रहती हैं? साफसाफ क्यों नहीं कहते कि तुम्हारा मन मुझ से भर गया.’

‘जो समझो पर मेरे लिए तुम अब भी वैसी ही हो.’

‘पत्नी.’

‘हां.’

‘तो यह कौन है?’

‘पत्नी.’

‘पत्नी नहीं, रखैल.’

‘जबान को लगाम दो,’ सुधीर तनिक ऊंचे स्वर में बोले. यह सब उन का नम्रता के लिए नाटक था.

‘मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतने बड़े पाखंडी हो. तुम्हारी सोच, बौद्धिकता सिर्फ दिखावा है. असल में तुम नाली के कीड़े हो,’ मैं उठने लगी, ‘याद रखना, तुम ने मेरे विश्वास को तोड़ा है. तुम इस के साथ कभी सुखी नहीं रहोगे,’ भर्राए गले से कहते हुए मैं ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा और भरे कदमों से घर आ गई.

इस बीच मैं ने परिस्थितियों से मुकाबला करने का मन बना लिया था. सुधीर मेरे चित्त से उतर चुका था. रोनेगिड़गिड़ाने या फिर किसी पर आश्रित रहने से अच्छा है मैं खुद अपने पैरों पर खड़ी हूं. बेशक भैया ने मेरी मदद की. मगर मैं ने भी अपने बच्चों के भविष्य के लिए भरपूर मेहनत की. इस का मुझे नतीजा भी मिला. बेटा प्रशांत सरकारी नौकरी में आ गया और मेरी बेटी सुमेधा का ब्याह हो गया.

बेटी के ब्याह में शुरुआती दिक्कतें आईं. लोग मेरे पति के बारे में ऊलजलूल सवाल करते. पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. एक जगह बात बन गई. उन्हें हमारे परिवार से रिश्ता करने में कोई खोट नहीं नजर आई. अब मैं पूरी तरह बेटेबहू में रम गई. सुधीर नहीं रहे तो क्या सारे रास्ते बंद हो गए. एक बंद होगा तो सौ खुलेंगे. इस तरह कब 60 की हो गई पता ही न चला.

एक रोज भैया ने खबर दी कि सुधीर आया है. वह मुझ से मिलना चाहता है. मुझे आश्चर्य हुआ. भला सुधीर को मुझ से क्या काम. मैं ने ज्यादा सोचविचार करना मुनासिब नहीं समझा. वर्षों बाद सुधीर का आगमन मुझे भावविभोर कर गया. अब मेरे दिल में सुधीर के लिए कोई रंज न था. मैं जल्दीजल्दी तैयार हुई. बाल संवार कर जैसे ही मांग भरने के लिए हाथ ऊपर किया कि प्रशांत ने रोक लिया.

‘मम्मी, पापा हमारे लिए मर चुके हैं.’

‘नहीं,’ मैं चिल्लाई, ‘वह आज भी मेरे लिए जिंदा हैं. वह जब तक जीवित रहेंगे मैं सिं?दूर लगाना नहीं छोड़ूंगी. तू कौन होता है मुझे यह सब समझाने वाला.’

‘मम्मी, उन्होंने क्या दिया है हमें, आप को. एक जिल्लत भरी जिंदगी. दरदर की ठोकरें खाई हैं हम ने तब कहीं जा कर यह मुकाम पाया है,’ प्रशांत भावुक हो उठा.

‘वह तेरे पिता हैं.’

‘सिर्फ नाम के.’

‘हमारे संस्कारों की जड़ें अभी इतनी कमजोर नहीं हैं बेटा कि मांबाप को मांबाप का दर्जा लेखाजोखा कर के दिया जाए. उन्होंने तुझे अपनी बांहों में खिलाया है. तुझे कहानी सुना कर वही सुलाते थे, इसे तू भूल गया होगा पर मैं नहीं. कितनी ही रात तेरी बीमारी के चलते वह सोए नहीं. आज तू कहता है कि वह सिर्फ नाम के पिता हैं,’ मैं कहती रही, ‘अगर तुझे उन्हें पिता नहीं मानना है तो मत मान पर मैं उन्हें अपना पति आज भी मानती हूं,’ प्रशांत निरुत्तर था.

मैं भरे मन से सुधीर से मिलने चल पड़ी.

सुधीर का हुलिया काफी बदल चुका था. वह काफी कमजोर लग रहे थे. मानो लंबी बीमारी से उठे हों. मुझे देखते ही उन की आंखें नम हो गईं.

‘मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम सब को बहुत दुख दिए.’

जी में आया कि उन के बगैर गुजारे एकएक पल का उन से हिसाब लूं पर खामोश रही. उम्र के इस पड़ाव पर हिसाबकिताब निरर्थक लगे.

सुधीर मेरे सामने हाथ जोड़े खड़े थे. इतनी सजा काफी थी. गुजरा वक्त लौट कर आता नहीं पर सुधीर अब भी मेरे पति थे. मैं अपने पति को और जलील नहीं देख सकती. बातोंबातों में भैया ने बताया कि सुधीर के दोनों गुरदे खराब हो गए हैं. सुन कर मेरे कानों को विश्वास नहीं हुआ.

वर्षों बाद सुधीर आए भी तो इस स्थिति में. कोई औरत विधवा होना नहीं चाहती. पर मेरा वैधव्य आसन्न था. मुझ से रहा न गया. उठ कर कमरे में चली आई. पीछे से भैया भी चले आए. शायद उन्हें आभास हो गया था. मेरे सिर पर हाथ रख कर बोले, ‘इन आंसुओं को रोको.’

‘मेरे वश में नहीं…’

‘नम्रता दवा के पैसे नहीं देती. वह और उस के बच्चे उसे मारतेपीटते हैं.’

‘बाप पर हाथ छोड़ते हैं?’

‘क्या करोगी. ऐसे रिश्तों की यही परिणति होती है.’

भैया के कथन पर मैं सुबकने लगी.

‘भैया, सुधीर से कहो, वह मेरे साथ ही रहें. मैं उन की पत्नी हूं…भले ही हमारा शरीर अलग हुआ हो पर आत्मा तो एक है. मैं उन की सेवा करूंगी. मेरे सामने दम निकलेगा तो मुझे तसल्ली होगी.’

भैया कुछ सोचविचार कर बोले, ‘प्रशांत तैयार होगा?’

‘वह कौन होता है हम पतिपत्नी के बीच में एतराज जताने वाला.’

‘ठीक है, मैं बात करता हूं…’

सुधीर ने साफ मना कर दिया, ‘मैं अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करना चाहता हूं. मुझे जितना तिरस्कार मिलेगा मुझे उतना ही सुकून मिलेगा. मैं इसी का हकदार हूं,’ इतना बोल कर सुधीर चले गए. मैं बेबस कुछ भी न कर सकी.

आज भी वह मेरे न हो सके. शांत जल में कंकड़ मार कर सुधीर ने टीस, दर्द ही दिया. पर आज और कल में एक फर्क था? वर्षों इस आस से मांग भरती रही कि अगर मेरे सतीत्व में बल होगा तो सुधीर जरूर आएंगे. वह लौटे. देर से ही सही. उन्होंने मुझे अपनी अर्धांगिनी होने का एहसास कराया तो. पति पत्नी का संबल होता है. आज वह एहसास भी चला गया.

Sachi Kahaniyan : कारीगरी

Sachi Kahaniyan : ‘‘नहीं अम्मी, बिलकुल नहीं. अपने निकाह में मैं तुम्हें साउथहौल की दुकान के कपड़े नहीं पहनने दूंगी’’, नाहिद काफी तल्ख आवाज में बोली, ‘‘जानती भी हो ज्योफ के घर वाले कितने अमीर हैं? उन का महल जितना बड़ा तो घर है.’’

‘‘हांहां, मैं समझती हूं. जैसा तू चाहेगी,

वैसा ही होगा,’’ जोया ने दबी आवाज में जवाब दिया.

‘‘और हां, प्लीज उन लोगों से यह मत कह डालना कि तुम उस फटीचर दुकान को चलाती हो. मैं ने उन से कहा है कि तुम फैशन डिजाइनिंग की दुनिया से सरोकार रखती हो.’’

नाहिद के कथन पर जोया ने सिर्फ एक आह भरी. 20 बरस पहले जिस दुकान ने उन की लड़खड़ाती गृहस्थी को संभाला था, वही आज उस के बच्चों के लिए शर्मिंदगी का कारण बन गई थी. आज भी वे उन दिनों को भुला नहीं पातीं जब उन की शादी इरफान से हुई थी. सहारनपुर की लड़की का निकाह लंदन में कार्यरत लड़के के साथ होना सभी के लिए फख्र की बात थी. बड़े धूमधाम से निकाह होने के बाद इरफान 15 दिन जोया के पास रह कर लंदन चला गया था और जोया के पिता उस का पासपोर्ट, वीजा बनवाने में जुट गए थे. पड़ोस की लड़कियां जोया से रश्क करने लगी थीं.

लंदन आ कर जोया को वहां की भाषा और संस्कृति को अपनाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा था. एबरडीन में एक छोटे से घर से उन्होंने अपनी गृहस्थी की शुरुआत की थी. इरफान की तनख्वाह लंदन की महंगी जिंदगी में गुजारा करने लायक नहीं थी, किंतु जोया की कुशलता से इरफान की गृहस्थी ठीकठाक चलने लगी थी.

2  लोगों का गुजारा तो हो जाता था लेकिन तीसरे से तंगी बढ़ सकती थी. नाहिद के जन्म के बाद जब ऐसा ही हुआ तो इरफान कुछ उदास रहने लगा. उस की अपनी तनख्वाह पूरी नहीं पड़ती थी और जोया दूसरे मर्दों के साथ काम करे, यह उसे बरदाश्त न था.

नाहिद जब 3 वर्ष की थी और ओमर 8 महीने का, तभी इरफान यह कह कर चला गया कि घरगृहस्थी का झंझट उस के बस की बात नहीं. कुल 5 वर्ष ही तो हुए थे जोया को वहां बसे और फिर इरफान कहां गया, इस की उन्हें आज तक खबर नहीं हुई. उन दिनों घर का सामान बेचबेच कर जोया ने काम चलाया था. पर ऐसा कब तक चलता? यदि नौकरी करने की सोचतीं तो दोनों बच्चों को किस के सहारे छोड़तीं?

‘‘ज्योफ की मां एक कंप्यूटर कंपनी में काम करती हैं, डैरीफोर्ड रोड पर’’, नाहिद बोली, ‘‘और उस के पिता सहकारी दफ्तर में अधीक्षक हैं.’’

जोया ने कोई उत्तर न दिया. ‘यदि उन की साउथहौल वाली दुकान न होती तो नाहिद ज्योफ से कहां टकराती? 6 महीने पहले नाहिद दुकान आई थी तो वहीं उसे ज्योफ मिला था. वह पास की दुकान में पड़े ताले की पूछताछ करने आया था.’

‘‘यह दुकान आप की है?’’ उस ने काफी अदब से नाहिद से पूछा था.

‘‘नहींनहीं, मैं तो यहां बस यों ही…’’, नाहिद फौरन बात टाल गई थी.

दुकान से जाते वक्त ज्योफ ने नाहिद से अपनी गाड़ी में चलने का प्रस्ताव रखा था, जिसे नाहिद ने स्वीकार कर लिया था.

‘‘उस के दादा पुरानी चीजों की दुकान चलाते हैं,’’ नाहिद ने कहा.

‘‘पुरानी चीजों की दुकान तो मैं भी चलाती हूं,’’ नाहिद की बात पर जोया बोल पड़ी, ‘‘पुराने कपड़े…’’

‘‘बेवकूफी की बात मत करो, अम्मी.’’

बरसों पहले जब गृहस्थी खींचने के जोया के सभी तरीके खत्म हो चुके थे और वे इसी उधेड़बुन में रहती थीं कि क्या करें, तभी एक दिन एक पड़ोसिन के साथ वे यों ही फैगन बाजार चली गई थीं अपनी पड़ोसिन के लिए ईवनिंग ड्रैस लेने. वहां पहुंच कर वे तो जैसे हतप्रभ रह गई थीं. इस कबाड़ी बाजार में क्याक्या नहीं बिकता. बिना इस्तेमाल किए हुए तोहफे, पहने जूते, कपड़े, स्वैटर वगैरह. इस के अलावा और भी बहुत कुछ.

बस फिर क्या था जोया ने साउथहौल में एक दुकान किराए पर ले ली. हर शाम वे फैगन बाजार से कपड़े खरीद लातीं, फिर उन कपड़ों को घर ला कर धोतीं, सुखातीं और प्रैस कर के नया बना देतीं. जोया की इस कारीगरी का अंजाम यह होता कि कौडि़यों के दाम की चीजें कई पौंड की हो जातीं.

‘‘और हां, तुम्हें उन का घर देखना चाहिए. हमारा पूरा घर उन की बैठक में समा जाएगा,’’ नाहिद बोली.

उस के स्वर के उतारचढ़ाव ने जोया को यह सोचने पर विवश कर दिया कि आज तक उन्होंने हजारों कपड़े सिर्फ इसलिए खरीदे बेचे थे कि नाहिद और ओमर को अपने दोस्तों को घर लाने में शर्मिंदगी न महसूस हो. और सिर्फ अपनी बेटी की खुशी के लिए जोया ने उस के एक ईसाई से शादी करने के फैसले पर कोई आपत्ति नहीं की थी. शादी भी ईसाई ढंग से हो रही थी और शादी की दावत ज्योफ के घर ही निश्चित हुई थी. ज्योफ की मां ने एक पत्र द्वारा जोया से यह पूछा था कि इस पर उन्हें कोई एतराज तो नहीं? इस पर जोया का उत्तर था कि दावत भले ही वहां हो, भोजन का खर्च वे उठाएंगी.

‘‘अब इस छोटे से घर में तुम्हें अधिक दिन तो रहना नहीं है,’’ जोया ने नाहिद से कहा.

‘‘नहीं अम्मी, यह बात नहीं है. आप ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है. वह तो बस…’’

‘‘बस मुझे अपनी मां कहने में तुम्हें शर्म आती है,’’ जोया बीच में ही बोल पड़ीं.

‘‘अम्मी, ऐसी बात नहीं है,’’ कह कर नाहिद ने जोया के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘तुम तो सब से अच्छी अम्मी हो, ज्योफ की मां से कहीं ज्यादा खूबसूरत. बस वह दुकान…’’

‘‘दुकान क्या घटिया है?’’

‘‘हां,’’ कह कर नाहिद हंसने लगी.

‘‘जोया की दुकान से बहुत सी मध्यवर्गीय परिवार की स्त्रियां कपड़े खरीदती थीं. मैडम ग्रांच तो वहां जब भी किसी धारियों वाली ड्रैस को देखतीं, फौरन खरीद लेतीं. इतने वर्षों में अपनी ग्राहकों की नाप, चहेते रंग और पसंद जानने के बाद जोया ऐसी ही पोशाकें लातीं जिन्हें वे पसंद करतीं. उन में से कुछ किसी जलसे या पार्टी से पहले जोया को अपने लिए अच्छी डै्रस लाने को कह जातीं. एक बार तो अखबार में शहर के मेयर के घर हुए जलसे की तसवीर में उन की एक ग्राहक का चित्र भी था, जिस ने उन्हीं की दुकान की डै्रस पहनी हुई थी. वह ड्रैस जोया केवल 15 पैन्स में लाई थीं और उस पर थोड़ी मेहनत के बाद वही पोशाक 10 पौंड की थी.’’

सहारनपुर में जब भी कोई निकाह होता तो सभी सहेलियों के कपड़ों पर सजावट जोया ही तो करतीं. फिर चाहे वह तल्हा का शरारा हो या समीना की कुरती, सभी को जरीगोटे से सुंदर बनाने की कला सिर्फ जोया ही दिखातीं. और इतनी मेहनत के बाद भी जो कारीगरी जोया के कपड़ों पर होती, वही नायाब होती.

‘‘वे लोग ईसाई हैं और शादी भी ईसाई ढंग से होगी. यह तुम जानती ही हो. इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम कोई बढि़या सा ईवनिंग गाउन खरीद लो अपने लिए. सभी औरतें अच्छी से अच्छी पोशाकों में होंगी. आखिर इतने अमीर लोग हैं वे. ऐसे में तुम्हारा सूट या शरारा पहनना कितना खराब लगेगा.’’

नाहिद की हिदायत पर जोया ने अपने लिए एक विदेशी गाउन तैयार करने की सोची. नाहिद को बताए बिना ही जोया ने अपनी दुकान की एक पोशाक चुनी. वे जानती थीं कि नाहिद कभी उन्हें अपनी दुकान की पोशाक नहीं पहनने देगी. लेकिन सिर्फ एक शाम के लिए पैसे बरबाद करने के लिए जोया कतई तैयार न थीं. और फिर जब उन जैसे अमीर घरों की औरतें उन की दुकान से पोशाकें खरीदती हैं, तो यह कहां की अक्लमंदी होगी कि वे खुद दूसरी दुकान से पोशाक खरीदें.

काफी सोचविचार के बाद उन्होंने अपने लिए एक नीली ड्रैस चुनी, जो कुछ महीने पहले फैगन बाजार से ली थी. पर वह इतनी घेरदार थी कि तंग कपड़ों का फैशन की वजह से उसे किसी ने हाथ तक न लगाया था. जोया ने उसे काट कर काफी छोटा और अपने नाप का बनाया. फिर बचे हुए कपड़े की दूधिया सफेदी हैट के चारों तरफ छोटी झालर लगा दी.

शादी के बाद जोया दावत के लिए ज्योफ के घर पहुंचीं. वहां की चमकदमक देख वे काफी प्रभावित हुईं. भव्य, आलीशान बंगले के चारों तरफ खूबसूरती व करीने से पेड़ लगे हुए थे. उन पर बल्बों की झालर यों पड़ी थी मानो नाहिद के साथसाथ आज उन की भी शादी हो.

जोया अपनी बेटी की पसंद पर खुश हो ही रही थीं कि ज्योफ की मां मौरीन वहां आ पहुंचीं, ‘‘जोया, क्या खूब शादी थी न. नाहिद कितनी खूबसूरत लग रही है. आप को गर्व होता होगा अपने बच्चों पर. बच्चों को अकेले ही पालपोस लेना कोई छोटी बात नहीं. नाहिद से पता चला कि आप के पति सालों पहले ही… मुझे खेद है.’’

मौरीन बातचीत और हावभाव से एक बड़े घराने की सभ्य स्त्री मालूम पड़ती थीं, ‘‘मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती विदेश में अपने पति की गैरमौजूदगी में बच्चों को अकेले पालने की. मैं वाकई आप से बहुत प्रभावित हूं. कैसे संभाल लिया आप ने सब कुछ? आप के बच्चे आप की कुशलता के तमगे हैं.’’

‘‘शुक्रिया मौरीन’’, जोया खुश अवश्य थीं किंतु कुछ असंतुष्ट भी. कहीं न कहीं उन का मन यह मना रहा था कि उन की कोई ग्राहक ज्योफ की रिश्तेदार निकल आए. ऐसे में वे अपने कार्य के प्रति नाहिद के दृष्टिकोण को बदल पातीं. किंतु ऐसा हुआ नहीं.

तभी मौरीन जोया की बांह में बांह डालते हुए कहने लगीं, ‘‘नाहिद ने मुझे बताया था कि आप फैशन की दुनिया से सरोकार रखती हैं. कितना आकर्षक लगता है यह सब. यह ड्रैस जो आप ने पहनी है ‘हिलेयर बैली’ से ली है न?’’

जोया ने खामोशी से सिर हिला हामी भर दी.

‘‘क्या खूब फब रही है आप पर. मुझे नहीं पता था कि वे घेरदार के अलावा तंग नाप की भी ड्रैसेज बेचते हैं या इस के साथ हैट भी मिलती है. कितने आश्चर्य की बात है कि मेरे पास भी ऐसी एक घेरदार ड्रैस थी, रंग भी बिलकुल यही. लेकिन वह इतनी घेरदार थी कि आजकल उसे पहनना मुमकिन नहीं था. आप से क्या कहना, आजकल का फैशन आप से बेहतर भला कौन जानेगा,’’ फिर कुछ सोचते हुए मौरीन बोलीं, ‘‘पता नहीं मैं ने उस ड्रैस के साथ क्या किया.’’

‘‘हां, पता नहीं…’’ जोया ने अपनी भोलीभाली आंखों को मटकाते हुए कहा

और इतना कह कर अपनी कारीगरी पर मुसकरा उठीं.

New Hindi Kahani : सौंदर्य बोध

New Hindi Kahani : रौयल मिशन स्कूल के वार्षिकोत्सव काआज अंतिम दिन था. छात्राओं का उत्साह अपनी चरम सीमा पर था, क्योंकि पुरस्कार समारोह की सब को बेचैनी से प्रतीक्षा थी. खेलकूद, वादविवाद, सामान्य ज्ञान के अतिरिक्त गायन, वादन, नृत्य, अभिनय जैसी अनेक प्रतियोगिताएं थीं. पर सब से अधिक उत्सुकता ‘कालेज रत्न‘ पुरस्कार को ले कर थी, क्योंकि जिस छात्रा को यह पुरस्कार मिलता, उसे अदलाबदली कार्यक्रम के अंतर्गत विदेश जाने का अवसर मिलने वाला था.

कालेज में कई मेधावी छात्राएं थीं और सभी स्वयं को इस पुरस्कार के योग्य समझती थीं पर जब कालेज रत्न के लिए सुजाता के नाम की घोषणा हुईर् तो तालियों की गड़गड़ाहट के साथ ही एक ओर से आक्रोश के स्वर भी गूंज उठे.

सब को धन्यवाद दे कर सुजाता स्टेज से नीचे उतरी तो उस की परम मित्र रोमा उसे मुबारकबाद देती हुई, उस के गले से लिपटती हुई बोली, ‘‘आज मैं तेरे लिए बहुत खुश हूं. तू ने असंभव को भी संभव कर दिखाया.‘‘

‘‘इस में तेरा योगदान भी कम नहीं है. तेरा सहयोग न होता तो यह कभी संभव न होता,‘‘ सुजाता कृतज्ञ स्वर में बोली. तभी सुजाता को उस के अन्य प्रशंसकों ने घेर लिया. उस के मातापिता भी व्याकुलता से उस की प्रतीक्षा कर रहे थे पर रोमा के मनमस्तिष्क पर तो पिछले कुछ दिनों की यादें दस्तक दे रही थीं.

‘सुजाता नहीं आई अभी तक?‘ रोमा ने उस दिन सत्या के घर पहुंचते ही पूछा.

‘नहीं, तुम्हारी प्रिय सखी नहीं आई अभी तक,‘ सत्या बड़े ही नाटकीय अंदाज में बोली और वहां उपस्थित सभी युवतियों ने जोरदार ठहाका लगाया.

‘सौरी, तेरी हंसी उड़ाने का हमारा कोई इरादा नहीं था,‘ सत्या क्षमा मांगती हुई बोली.

‘तो किस की हंसी उड़ाने का इरादा था, सुजाता की?‘

‘तू तो जानती है. हमें सुजाता का नाम सुनते ही हंसी आ जाती है. एक तो उस का रूपरंग ही ऐसा है. काला रंग, स्थूल शरीर, चेहरा ऐसा कि कोई दूसरी नजर डालना भी पसंद न करे. ऊपर से सिर में ढेर सारा तेल डाल कर 2 चोटियां बना लेती है. उस पर आंखों पर मोटा चश्मा. क्या हाल बना रखा है उस ने,‘ सत्या ने आंखें मटकाते हुए कहा.

‘मुझे तो वह बहुत सुंदर लगती है, उस की आंखों में अनोखी चमक है. तुम्हें तो उस की 2 चोटियों से भी शिकायत है. पर हम में से कितनों के उस के जैसे घने, लंबे बाल हैं. मोटा चश्मा तो बेचारी की मजबूरी है. आंखें कमजोर हैं उस की, तो चश्मा तो पहनेगी ही.‘

‘कौंटैक्ट लैंस भी तो लगा सकती है. अपने रखरखाव पर थोड़ा ध्यान दे सकती है,‘ सत्या ने सुझाव दिया था.

‘हम होते कौन हैं, यह सुझाव देने वाले. वह जैसी है, अच्छी है. मुझे तो उस में कोई बुराई नजर नहीं आती.‘

‘बुराई तो कोईर् नहीं है पर इस हाल में शायद ही उस का कोई मित्र बने. हम सब के बौयफ्रैंड हैं पर उस की तो तुझे छोड़ कर किसी लड़की से भी मित्रता नहीं है.‘

‘वह इसलिए कि वह हमारी तरह नहीं है. कितनी व्यस्त रहती है वह. खेलकूद, पढ़ाईलिखाई और हर तरह की प्रतियोगिता में क्या हम में से कोई उस की बराबरी कर सकता है. मेरी बचपन की सहेली है वह और मैं उस के गुणों के लिए उस का बहुत सम्मान करती हूं. बस एक विनती है कि उस के सामने ऐसा कुछ मत करना या कहना कि उसे दुख पहुंचे. ऐसा कुछ हुआ तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.‘

‘तुम्हारी इतनी घनिष्ठ मित्र है, तो कुछ समझाओ उसे,‘ सत्या ने सलाह दी. ‘हम होते कौन हैं, उसे समझाने वाले. सुजाता बुद्धिमान और समझदार लड़की है. अपना भलाबुरा खूब समझती है,‘ रोमा ने समझाना चाहा.

‘अपनीअपनी सोच है. मेरी मम्मी तो कहती हैं कि लड़कियों को सब से अधिक ध्यान अपने रूपरंग पर देना चाहिए, पता है क्यों?‘ आभा भेद भरे स्वर में बोली.

‘क्यों?‘ सब ने समवेत स्वर में प्रश्न किया, मानो वह कोई राज की बात बताने जा रही हो.

‘क्योंकि लड़कों की बुद्धि से अधिक उन की आंखें तेज होती हैं,‘ आभा की भावभंगिमा और बात पर समवेत स्वर में जोरदार ठहाका लगा. ‘ऐसी बुद्धि वाले युवकों से दूर रहने में ही भलाई है, यह नहीं बताया तेरी मम्मी ने, रोमा ने आभा के उपहास का उत्तर उसी स्वर में दिया.

‘पता है, हमें सब पता है. अब छोड़ो यह सब और कल की पिकनिक की तैयारी करो,‘ सत्या ने मानो आदेश देते हुए कहा. सभी सखियां अपने विचार प्रकट करने को उत्सुक थीं कि तभी द्वार पर दस्तक हुई. सुजाता को सामने खड़े देख कर सत्या सकपका गई. लगा, जैसे सुजाता दरवाजे के बाहर ही खड़ी उन की बातें सुन रही थी. पर दूसरे ही क्षण उस ने वह विचार झटक दिया. सुजाता ने उन की बातें सुनी होतीं, तो क्या उस के चेहरे पर इतनी प्यारी मुसकान हो सकती थी. रोमा तो उसे देखते ही खिल उठी.

‘मिलो मेरे बचपन की सहेली सुजाता से. कुछ दिनों पहले ही हमारे कालेज में दाखिला लिया है,‘ रोमा ने सब से सुजाता का औपचारिक परिचय कराया.

‘हमें पता है,‘ वे बोलीं. हैलो, हाय और गर्मजोशी से हाथ मिला कर सब ने उस का स्वागत किया और पुन: पिकनिक की बातों में खो गईं. किस को क्या लाना है. यह निर्णय लिया गया. सुबह 5 बजे सब को मंदिर वाले चौराहे पर एकत्रित होना था.

‘सुजाता, तुम क्या लाओगी?‘ तभी सत्या ने प्रश्न किया.

‘पता नहीं, मैं आऊंगी भी या नहीं. मेरी मम्मी ने अभी अनुमति नहीं दी है. यदि आई तो तुम लोग जो कहोगी मैं ले आऊंगी.‘ सुजाता ने अपनी बात स्पष्ट की.

‘लो तुम आओगी ही नहीं तो लाओगी कैसे,‘ आभा ने प्रश्न किया.

‘उस की चिंता मत करो. सुजाता नहीं आई तो मैं ले आऊंगी,‘ रोमा ने आश्वासन दिया.

‘ठीक है, तुम दोनों मिल कर पूरियां ले आओ. सुजाता नहीं आ रही हो, तो थोड़ी अधिक ले आना. पर तुम्हारी मम्मी ने अभी तक अनुमति क्यों नहीं दी.‘

‘मेरी मम्मी बड़ी जांचपरख के बाद ही अनुमति देती हैं. वे कुछ जानकारी चाहती हैं, तभी अनुमति देंगी,‘ सुजाता ने स्पष्ट किया.

‘कैसी जानकारी?‘

‘यही कि पिकनिक में लड़के तो नहीं आ रहे हैं. हम पर नजर रखने के लिए कोई बड़ा हमारे साथ जा रहा है या नहीं.‘

‘तो सुनो, मम्मी को तुरंत सूचित कर दो कि हमारी पिकनिक में छात्रों को आने की अनुमति नहीं है. हमारे कालेज में छात्र हैं ही नहीं. हम पर नजर रखने के लिए आभा की बूआजी आ रही हैं. आभा के घर में भी तेरे घर की तरह शेरनी है यानी कि उस की मां‘.

‘क्या कह रही हो तुम, मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा,‘ सुजाता बोली.

‘हमारे साथ रहेगी तो धीरेधीरे सब समझ जाएगी,‘ आभा सयानों की तरह बोली और वहां उपस्थित सभी छात्राओं ने ऐसा ठहाका लगाया जैसे आभा ने कोई चुटकुला सुना दिया हो. सुजाता रोमा के बुलाने पर पहली बार इस समूह में शामिल हुई थी. अत: उस ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी.

सुजाता और रोमा एकसाथ ही सत्या के घर से निकली थीं. ‘तूने तो कहा था कि आंटी ने अनुमति दे दी है,‘ बाहर निकलते ही रोमा ने प्रश्न किया.

‘वह तो मैं उन सब को टालने के लिए कह रही थी. सच तो यह है कि मैं स्वयं ही सोच रही थी कि पिकनिक पर जाऊं या नहीं.‘ कहीं मुझ जैसी साधारण रंगरूप वाली लड़की के साथ जाने से अत्याधुनिक सुंदरियों की नाक ही न कट जाए,‘ सुजाता मुसकराई.

‘समझी, तो तूने छिप कर सब सुन लिया.‘

‘मैं न तो छिप कर सुनने में विश्वास करती हूं न ही छिप कर कुछ कहने में, पर क्या करूं, मैं वहां पहुंची तो वहां मेरी ही प्रशंसा के पुल बांधे जा रहे थे. अत: मैं वह वार्त्तालाप सुनने का लोभ संवरण नहीं कर पाई. तू जिस तरह मेरा बचाव कर रही थी, वह भी सुना.‘

‘बहुत बुरा लगा होगा न.‘ रोमा ने सुजाता का हाथ थामते हुए भीगे स्वर में कहा.

‘उतना बुरा भी नहीं लगा. बहुत साधारण रूपरंग है मेरा, यह तो मैं बचपन से जानती हूं. पर जिस ढंग से पीठ पीछे ये बातें कही जा रही थीं, वह थोड़ा अखर गया. पर हर घने, काले बादल के पीछे चमकीली श्वेत किरण भी छिपी होती है, यह भी आज पता  चल गया.‘

‘कौन सी श्वेत किरण दिख गई तुझे.‘

‘है एक रोमा नाम की मेरी प्यारी सी दोस्त, जो अकेली ही मेरी वकालत कर रही थी. तेरे जैसी एक दोस्त ही काफी है.‘

‘तो तू आ रही है न. रोमा घूमफिर कर वहीं आ गई. कम से कम मेरे लिए.‘

‘मम्मी के सवालों की बौछारों का सामना तो कर लूं फिर तुझे फोन करूंगी,‘ सुजाता ने चतुराई से बात टाल दी थी.

‘कहां गई थी सुजी, इतनी देर हो गई,‘ घर पहुंचते ही उस की मम्मी मीना ने उस की खबर ली. ‘आप को बता कर तो गई थी,‘ सुजाता हंसी थी. ‘कल रोमा और उस के दोस्त पिकनिक पर जा रहे हैं. रोमा चाहती है कि मैं भी उन के साथ जाऊं.‘

‘दोस्त या सहेलियां?‘

‘सब लड़कियां हैं मां. लड़के जा भी रहे हों, तो क्या फर्क पड़ता है.‘

‘फर्क पड़ता है. जब तक तू घर से बाहर रहती है, मन घबराता रहता है. जमाना बहुत खराब आ गया है.‘

‘मम्मी, आप की बेटी कराटे में ब्लैक बैल्ट है, इसलिए डरना छोड़ दो. फिर आप ही तो कहती हैं कि व्यक्तित्व को सजानेसंवारने के लिए घर से बाहर निकलना और नए दोस्त बनाना बहुत आवश्यक है.‘

‘क्या सचमुच वह इतनी बदसूरत है,‘ वह देर तक सोचती रही. ‘कौन कहता है वह तो स्वयं को संसार की सब से सुंदर लड़की समझती है‘, सोचते हुए वह उदासी में भी मुसकरा दी.

‘ठीक है सुजाता, बहस में तो मैं तुम से कभी जीत ही नहीं सकती. मैं सारी तैयारी कर दूंगी. चली जाओ पिकनिक पर, पर सावधान रहना,‘ मीना ने हथियार डाल दिए. पर सुजाता देर तक स्वयं को दर्पण में निहारती रही.

पिकनिक में सुजाता का व्यवहार देख कर सब से अधिक आश्चर्य रोमा को ही हुआ. सब कुछ जानते हुए भी वह सब से सामान्य व्यवहार कैसे कर पा रही थी.

एक लोकप्रिय गीत की धुन पर सुजाता को थिरकते देख कर तो सभी हैरान रह गए. उस का रंगरूप देख कर तो वे सोच भी नहीं सकते थे कि सुजाता इतना अच्छा नृत्य करती है, लगता था मानो वह हवा की लहरों पर तैर रही हो. सुजाता के प्रति अन्य छात्राओं का व्यवहार धीरेधीरे बदलने लगा. कुछ छात्राएं तो जैसे उस की दीवानी हो गई थीं. अन्य सभी का ध्यान भी अब रूपरंग से अधिक सुजाता के गुणों पर था. पर सुजाता के पीठपीछे उस की आलोचना अब भी चल रही थी.

‘क्या नाचती है, तुम्हारी सहेली?‘ आभा रोमा से बोली. ‘मेरी ही क्यों, तुम्हारी भी तो सहेली है वह,‘ रोमा हंसते हुई बोली.

‘नो, थैंक्स. पिकनिक के लिए साथ आने से कोईर् किसी का दोस्त नहीं हो जाता. मैं अपने दोस्त और सहेलियां बहुत ध्यान से चुनती हूं और मेरे दोस्त देखनेसुनने में अच्छे हों यह बेहद जरूरी है. तुम्हें एक राज की बात बताऊं, मुझे बदसूरती बिलकुल पसंद नहीं है. मैं तो अपने आसपास केवल वृक्ष, फूल और सौंदर्य देखना चहती हूं,‘ आभा अपने मन की बात बताते हुए नृत्य की मुद्रा में लहराने लगी और रोमा मुसकरा कर रह गई.

पिकनिक तो समाप्त हो गई पर सुजाता की त्रासदी चलती रही. पहले तो सुजाता ने सोचा कि रैगिंग की इस प्रक्रिया से हर छात्र या छात्रा को गुजरना पड़ता है पर शीघ्र ही वह समझ गई कि सारा उलाहना केवल उस के लिए ही था. बाहर से वह दिखाने का प्रयत्न करती, मानो इन सब बातों का उस पर कोई असर नहीं पड़ता पर एक दिन जब स्वयं को रोक नहीं पाई, तो रोमा के कंधे पर सिर रख कर सिसकने लगी थी.

‘बहुत हो गया, अब मैं तुझे और नहीं सहने दूंगी. हम दोनों कल ही प्राचार्या के पास चलेंगे. इन लोगों की अक्ल तभी ठिकाने आएगी, जब हमारी शिकायत पर इन के विरुद्ध कार्यवाही होगी,‘ रोमा क्रोधित स्वर में बोली.

‘रहने दे रोमा. उन्हें सजा मिल भी गई तो क्या फर्क पड़ जाएगा, उन की नजर में तो मैं वही कुरूप, भद्दी सी लड़की रहूंगी न, जिस का केवल मजाक बनाया जा सकता है,‘ सुजाता सिसकियों के बीच बोली.

‘क्या हो गया है तुझे?‘ कैसे तेरे मुंह से ऐसी बातें निकल सकती हैं. उन्होंने कह दिया कि तू बदसूरत है और तू ने मान लिया. इस से अधिक विडंबना और क्या होगी. क्या हो गया है, तेरे आत्मविश्वास को? हम में से किसी को ऐसे सिरफिरे लोगों से प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है. इन के अहंकार की तो कोई सीमा ही नहीं है. पर तुम उन की बातों से इस तरह आहत हो जाओगी तो कैसे चलेगा. यही तो वे चाहती हैं कि तुम उन की बातों से आहत हो कर स्वयं पर ही तरस खाने लगो. यदि ऐसा हुआ तो सब से अधिक निराशा मुझे ही होगी. इसलिए नहीं कि तुम्हारी मित्रता ने मेरी आंखों पर परदा डाल दिया है बल्कि इसलिए कि तुम्हारे गुण ही हमारी मित्रता की आधारशिला हैं.‘ रोमा भीगे स्वर में बोली.

सुजाता कुछ क्षणों तक रोमा को अपलक निहारती रही, फिर मुसकरा दी.

‘अब क्या हुआ?‘ रोमा ने प्रश्न किया.

‘कुछ नहीं, मैं तो बस सोच रही थी कि मैं भी कितनी बड़ी मूर्ख हूं, तेरी जैसी सहेली मेरा साथ दे तो मैं तो सारी दुनिया से भिड़ सकती हूं.‘

‘यह हुई न बात. तो वादा कर कि इन की बातों पर न ही ध्यान देगी और न ही इन्हें स्वयं पर हावी होने देगी.‘

‘ठीक है, मैं वादा करती हूं कि मैं ईंट का जवाब पत्थर से दूंगी.‘

सत्या, आभा और उन के दल की अन्य छात्राओं का व्यवहार तो नहीं बदला पर सुजाता बदल गई. उस ने हर ओर से स्वयं को समेट कर खुद को पढ़ाई में झोंक दिया. सुजाता प्रथम आई तो सौंदर्य की पुजारिनों को कोई अंतर नहीं पड़ा बल्कि उन्होंने अपने अमूल्य विचार प्रकट करने में देरी नहीं की. ‘हम यहां किताबी कीड़े बनने नहीं आए हैं. हम तो यहां जीवन का आनंद उठाने आए हैं. डिग्री मिल जाए, वही बहुत है,‘ सत्या बोली.

‘और नहीं तो क्या हमें इस छोटी सी उम्र में मोटा चश्मा चढ़वाने का कोई शौक नहीं है,‘ आभा ने उस की हां में हां मिलाई.

सुजाता ने उन की बात सुन कर भी अनसुनी कर दी. ‘तुम लोगों ने शायद अंगूर खट्टे हैं वाली कहावत नहीं सुनी,‘ रोमा मुसकरा दी.

‘सुनी है पर हमें अंगूर पसंद ही नहीं हैं न खट्टे और न ही मीठे,‘ आभा तीखे स्वर में बोली. पर जैसे ही यह सूचना मिली कि वार्षिकोत्सव में विभिन्न प्रतियोगिताओं के आधार पर ‘कालेज रत्न‘ छात्रा का चुनाव होगा और उसी छात्रा को अदलाबदली कार्यक्रम के अंतर्गत जरमनी और फ्रांस के कुछ कालेजों में रहने और वहां के छात्रछात्राओं से अपने विचारों के आदानप्रदान के साथ ही उन के तौरतरीकों को जाननेसमझने का अवसर भी प्राप्त होगा, कालेज में भूचाल सा आ गया. छात्राओं में इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने और ‘कालेज रत्न‘ बनने की होड़ लग गई. हलचल तो तब मची जब सुजाता ने भी सभी प्रतियोगिताओं में भाग ले कर ‘कालेज रत्न‘ बनने की दौड़ में कूदने की घोषणा कर दी.

‘लोग कैसेकैसे भ्रम पाल लेते हैं,‘ कक्षा में स्वयं को स्मार्ट समझने वाली छात्राएं ताने देतीं. रोमा तुम अपनी दोस्त को समझाती क्यों नहीं. ‘कालेज रत्न‘ बनने का सपना देखना अच्छा है पर वास्तविकता के धरातल से कोसों दूर है. सुजाता से कहो कि अपनी किताबों में खोई रहे और ‘कालेज रत्न‘ जैसी पदवी हमारे लिए छोड़ दे. सत्या की समवेत हंसी से पूरी कक्षा गूंज उठी. रोमा मूर्ति बनी बैठी रह गई.

‘हाथियों को देख कर जब कुत्ते भौंकते हैं, तो हाथी उन की अवहेलना कर आगे बढ़ जाते हैं,‘ रोमा ने सुजाता को समझाते हुए कहा.

‘कुत्ता किसे कहा तू ने, समझ क्या रखा है. हम इस अपमान कोचुपचाप सह लेंगे? हम प्राचार्या महोदया से तुम दोनों की शिकायत करेंगे,‘ आभा भड़क उठी.

‘चलो न यहां कौन डरता है. उन्हें भी तो पता चले कि कौन किस का अपमान कर रहा है,‘ रोमा भी उठ खड़ी हुई. पहली बार सुजाता सब के सामने फूटफूट कर रो पड़ी थी. पर इस से पहले कि कोई कहीं जा पाता अंगरेजी की व्याख्याता ऋचा मैडम कक्षा में आ पहुंचीं.

‘क्या बात है, कहां जा रही हो तुम लोग और सुजाता तुम क्यों रो रही हो?‘ व्याख्याता ऋचा मैडम ने प्रश्न किया था. उत्तर में रोमा ने सारी बात कह सुनाई. सुन कर ऋचा मैडम के आश्चर्य की सीमा न रही. उन्होंने दोनों पक्षों को समझाबुझा कर शांत किया. सुजाता को चुप कराया और बात आईगई हो गई. पर आज ‘कालेज रत्न‘ पुरस्कार की घोषणा होते ही दोनों पक्षों में तलवारें खिंच गईं.

आभा, नीरू, मुक्ता अपनी अन्य सहेलियों के साथ सत्या के घर पर मिलीं और आगे की रणनीति तैयार की. सब ने अपनी शिकायत ले कर प्राचार्या महोदया के पास जाने का निर्णय लिया.

प्राचार्या महोदया ने अगले दिन केवल 2 छात्राओं को मिलने का समय दिया तो सत्या व आभा एक शिकायती पत्र ले कर उन के पास जा पहुंचीं.

प्राचार्याजी ने उन की बातें ध्यान से सुनीं, शिकायती पत्र पढ़ा और आंखें मूंद कर सोचनेविचारने की मुद्रा में आ गईं. सत्या और आभा उन के नेत्र खुलने की प्रतीक्षा करती रहीं. धीरेधीरे उन्होंने नेत्र खोले.

‘तो तुम दोनों को शिकायत है कि सुजाता को ‘कालेज रत्न‘ की उपाधि दे कर न केवल अन्य छात्राओं के साथ अन्याय हुआ है बल्कि कालेज का नाम भी मिट्टी में मिल गया है.‘

‘जी देखिए, न तो सुजाता का व्यक्तित्व प्रभावशाली है, न ही रूपरंग,‘ आभा डरते हुए बोली.

‘आज पहली बार स्वयं पर शर्म आ रही है मुझे. तुम्हें सही संस्कार तक नहीं दे सके हम. दूसरों के रूपरंग पर छींटाकशी करने का अधिकार किस ने दिया तुम्हें? शिक्षा मनुष्य को संस्कार देती है, उसे अहंकारी नहीं बनाती. शिक्षा की सार्थकता केवल डिग्री प्राप्त करना ही नहीं है बल्कि सहीगलत का ज्ञान होना भी है. हो सके तो सच्चा इंसान बनने का प्रयत्न करो, तभी तुम्हारी शिक्षा सार्थक होगी.‘

‘हमारे मन में सुजाता के लिए कोई दुर्भावना नहीं है, मैम. पर उसे यह पुरस्कार दिए जाने से सभी को निराशा हुई है,‘ आभा ने फिर अपना पक्ष रखा.

‘इस प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल के सभी सदस्य कालेज के बाहर के हैं और वे सभी समाज के सम्मानित सदस्य हैं. उन के निर्णय पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता. मेरी मानो तो सुजाता का विरोध करने के स्थान पर तुम सब भी उस के जैसी बनने का प्रयत्न करो.‘

‘निर्णायक मंडल ने हर क्षेत्र में सुजाता को जितने अंक दिए हैं कोई दूसरी छात्रा उस के आसपास भी नहीं ठहरती और हां मैं तो यह कहूंगी कि बाहर जा कर सुजाता को मुबारकबाद देना मत भूलना, हम सब को अच्छा लगेगा,‘ प्राचार्या ने समझाया.

‘जी मैम,‘ दोनों किसी प्रकार बोलीं और प्राचार्याजी के कक्ष से बाहर निकल आईं.

बाहर तो सारा दृश्य ही बदला हुआ था, सभी छात्राएं सुजाता को घेर कर खड़ी उसे बधाई दे रही थीं. उस के चेहरे पर अनोखी चमक थी. पहली बार उन्हें सुजाता बहुत सुंदर लगी.

‘‘रोमा ठीक कहती थी, सौंदर्य तो देखने वाले की आंखों में होता है,‘‘ आभा बोली और सत्या के साथ उसे बधाई देने चल पड़ी.

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