Atta Chilla Recipe : नाश्ते में गर्मागर्म परोसें आटे का चीला, बनाना है बहुत आसान

Atta Chilla Recipe : दोस्तों कई बार ऐसा होता है कि नाश्ता बनाने के लिए जरूरी चीजें घर पर उप्बल्ब्ध नहीं होती और हमे फटाफट नाश्ता भी तैयार करना होता है. ऐसे में आपको समझ नहीं आता कि जल्दी से क्या तैयार करें, तो चलिए आपकी इस उलझन को दूर कर देते हैं . आज हम बनाते हैं आटे का चीला वो भी बहुत ही आसान तरीके से .

आटे का चीला बहुत सेहतमंद होता है और घर के बच्चों या बुजुर्गों के लिए एक अच्छा भोजन भी है क्योंकि इसे चबाना बहुत आसान है. अगर आप अक्सर बनने वाले नाश्ते से ऊब चुके हैं, तो आपको इस आटा चीला रेसिपी को जरूर आजमाना चाहिए क्योंकि इसका स्वाद बहुत ही अलग और स्वादिष्ट होता है. यह आटा चीला रेसिपी हेल्दी होने के साथसाथ नाश्ते या स्टार्टर के रूप में तैयार करने के लिए बहुत आसान और परफैक्ट है. इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसको बनाने में तेल भी कम लगता है और इसको बनाने वाली सारी सामग्री घर पर ही मिल जाती है. तो चलिए जानते है की कैसे बनाये आटे का चीला-

कितने लोगों के लिए-3 से 4
बनाने में लगा समय-10 से 15 मिनट
मील टाइप-वेज

हमें चाहिए-

गेहूं का आटा – 2 कप
प्याज़ -2 मध्यम साइज़ की (बारीक कटी हुई )
शिमला मिर्च-1 मध्यम साइज़ की (बारीक कटी हुई ) ऑप्शनल
टमाटर-1 मध्यम साइज़ का (बारीक कटा हुआ )
हरी मिर्च-स्वादानुसार
हरा-धानिया- 2 टेबलस्पून (बारीक कटी हुई )
अजवाइन -1/2 छोटी चम्मच
जीरा-1/2 छोटी चम्मच
नमक-स्वादानुसार
तेल सकने के लिए-आवश्यकतानुसार

बनाने का तरीका-

1-सबसे पहले एक बड़े बर्तन में गेहूं के आटे को निकाल ले.चीला का बैटर बनाने के लिए आटे में सभी कटी हुई सब्जियों को मिला ले.
2-अब उसमे अजवाइन,जीरा और नमक को भी मिलकर अच्छे से बैटर तैयार कर लें.याद रखें की बैटर ज्यादा गाढ़ा न हो.
3-बैटर तैयार हो जाने के बाद अब तवे को मध्यम आंच पर गर्म करें.
4-तवा गर्म होते ही उसपर थोडा सा तेल डालकर तवे को चिकना कर ले और तैयार बैटर को डालकर चम्मच से गोलाकार में फैला दें.
5-फिर कुछ सेकंड्स बाद किनारों पर थोडा सा तेल लगा दे और करीब 1 से 2 मिनट बाद चीले को सावधानी से पलटे.
6-फिर दूसरी तरफ भी चीले पर हल्का सा तेल लगाकर उसको अच्छे से सेंक लें.
7-जब दोनों तरफ अच्छे से हल्का लाल हो जाये तब उसे गैस से उतार ले.
8-तैयार है आटे का चीला .आप इसे चाय ,टोमेटो सॉस या टमाटर और हरे धनिये की चटनी के साथ खा सकते हैं.

Best Story Online : कुंआरे बदन का दर्द

लेखक- जैनुल आबेदीन खां      

Best Story Online : शबनम अकेले ही एक टेबल पर बैठ कर खाना खा रही थी और जावेद अलग टेबल पर. 5 सालों के बाद उन के चेहरों में कोई खास फर्क नहीं आया था.

शबनम को खातेखाते कुछ याद आया और वह खाना छोड़ कर जावेद के टेबल की तरफ बढ़ी. शायद उसे 5 साल पहले की कोई बात याद आई थी.

‘‘आप ने खाने से पहले इंसुलिन

का इंजैक्शन लिया है कि नहीं?’’ शबनम ने जावेद से पूछा.

‘‘इंजैक्शन लिया है. लेकिन 5 साल तक तलाकशुदा जिंदगी गुजारने के बाद तुम्हें कैसे याद है?’’ जावेद ने पूछा.

‘‘जावेद, मैं एक औरत हूं.’’

‘‘तुम्हारे जाने के बाद, इतना मेरा किसी ने खयाल नहीं रखा,’’ जावेद

ने कहा.

‘‘अगर ऐसी बात थी तो तुम ने मुझे तलाक क्यों दिया?’’

‘‘वह तो तुम जानती हो…

5 साल साथ रहने के बाद भी तुम मां नहीं बन पाई और बच्चा तो हर किसी को चाहिए.’’

‘‘अगर तुम बच्चा पैदा करने के लायक होते तो क्या मैं नहीं देती?’’ शबनम ने कहा और अपनी टेबल की तरफ बढ़ गई.

जब वे दोनों होटल से बाहर निकले तो फिर मेन गेट पर उन की मुलाकात

हो गई.

‘‘चलो, कुछ दूर साथ चलते हैं,’’ जावेद ने कहा.

‘‘जिंदगीभर साथ चलने का वादा था लेकिन तुम ने ही मुझे तलाक दे कर घर से निकाल दिया,’’ शबनम बोली.

‘‘जो होना था, हो गया. अब यह बताओ कि तुम यहां आई कैसे?’’

‘‘जब तुम ने तलाक दिया तो मैं अपने मांबाप के पास गई. वे इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर सके और 6 महीने के अंदर ही दोनों चल बसे. मैं तो उन की कब्र पर भी नहीं जा सकी क्योंकि औरतों का कब्रिस्तान में जाना सख्त मना है.

‘‘उस के बाद मैं भाई के पास रही थी. भाई तो कुछ नहीं बोलता था, लेकिन भाभी के लिए मैं बोझ बन गई थी. वह रातदिन मेरे भाई के पीछे पड़ी रहती और मुझे जलील करते हुए कहती थी कि इस की दूसरी शादी कराओ, नहीं तो किसी के साथ भाग जाएगी.

‘‘तुम नहीं जानते कि कोई मर्द तलाकशुदा औरत से शादी नहीं करता. सब को कुंआरी लड़की और कुंआरा बदन चाहिए.

‘‘भाई बहुत इधरउधर भागा, पर कहीं कोई मेरा हाथ थामने वाला नहीं मिला. आखिरकार उस ने एक बूढ़े आदमी से मेरी शादी करा दी. वह दिनभर बिस्तर पर पड़ा रहता और मैं उस की एक नर्स हूं. उसे समय से दवा देना, खाना खिलाना या बाथरूम ले जाना, यही मेरी ड्यूटी?थी.

‘‘मुझे यह भी मालूम है कि तुम ने दूसरी शादी कर ली और तुम को दोबारा एक कुंआरी लड़की मिल गई. लेकिन मेरी जिंदगी को तो तुम ने सीधे आग की लपटों में फेंक दिया. और मैं नामुराद दूसरी शादी के बाद भी जल रही हूं.

‘‘तुम ने मुझे तलाक दे दिया और मेरे कुंआरे बदन का सारा रस निचोड़ लिया. एक औरत की जिंदगी क्या होती?है, तुम्हें मालूम नहीं है,’’ शबनम ने अपना दर्द बताया. उस की आंखों में आंसू आ गए. वह रोतेरोते पत्थर की बनी एक कुरसी पर बैठ गई.

जावेद सबकुछ एक बुत की तरह सुनता रहा और फिर अपना वही सवाल दोहराया, ‘‘तुम इस शहर में कैसे आई?’’

‘‘मेरा बूढ़ा पति बहुत बीमार है. मैं ने उसे एक अस्पताल में भरती कराया है.’’

‘‘उस की उम्र क्या है?’’ जावेद

ने पूछा.

‘‘70 साल से भी ऊपर?है,’’ शबनम ने जवाब दिया.

‘‘फिर तो उम्र का बहुत फर्क है,’’ जावेद बोला.

जब शबनम वहां से उठ कर जाने लगी तो जावेद ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मुझे माफ कर दो.’’

‘‘तलाक माफी मांगने से नहीं खत्म होता है. तुम ने मुझे तलाक दे कर जैसे किसी ऊंची पहाड़ी से नीचे धकेल दिया और मैं नरक में चली गई,’’ और फिर शबनम अपना हाथ छुड़ा कर वहां से चली गई.

दूसरे दिन जावेद शाम को उसी होटल के सामने शबनम का इंतजार करता रहा. वह आई और बगैर कुछ बोले ही होटल के अंदर चली गई.

जावेद पीछेपीछे गया और उस के पास बैठ गया. दोनों ने एकदूसरे को

देखा और उन के बीच रस्मी बातचीत शुरू हो गई.

‘‘तुम्हारी मम्मी कैसी हैं?’’ शबनम ने पूछा.

‘‘ठीक हैं. अब वे भी काफी बूढ़ी हो चुकी हैं.’’

‘‘उन को मेरी याद तो नहीं आती होगी. मुझे 5 साल तक बच्चा नहीं हुआ तो उन्होंने मेरा तुम से तलाक करा दिया और तुम्हारी बहन जरीना को 7 साल से बच्चा नहीं हुआ तो कोई बात नहीं, क्योंकि जरीना उन की अपनी बेटी है, बहू नहीं.’’

‘‘चलो जो होना था हो गया. यह हम दोनों का नसीब था,’’ जावेद ने अफसोस जताते हुए कहा.

‘‘नसीब बनाया भी जाता है और बिगाड़ा भी जाता है. अगर औरतों की सोच गलत होती?है तो घर के मर्द एक लोहे की दीवार की तरह खड़े हो जाते हैं. वैसे, औरतें ही औरतों की दुश्मन होती हैं.’’

जावेद के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था. वह होटल की छत की तरफ देखने लगा. फिर उस ने बात को बदलते हुए कहा, ‘‘क्या मेरी मम्मी से बात करोगी?’’

‘‘हां, लगाओ फोन. मैं बात कर लेती हूं.’’

जावेद ने अपनी मां को फोन लगा कर कहा, ‘‘मम्मी, शबनम आप से बात करना चाहती है.’’

‘‘तोबातोबा, तुम अपनी तलाकशुदा औरत के साथ हो. यह हमारे मजहब के खिलाफ है. मैं उस से बात नहीं करूंगी,’’ उस की मां की आवाज स्पीकर पर शबनम को भी सुनाई दी.

‘‘जावेद, तुम उन का नंबर दो. मैं अपने मोबाइल फोन से बात करूंगी.’’

जावेद ने शबनम का मोबाइल फोन ले कर खुद ही नंबर लगा दिया. घंटी बजने लगी. उधर से आवाज आई, ‘कौन?’

‘‘मैं आप की बहू शबनम बोल रही हूं. आप ने अपने लड़के से मुझे तलाक दिलवाया, वह एकतरफा तलाक था. मेरे मांबाप को इस का इतना दुख हुआ कि वे मर गए. अब मैं तुम्हारे लड़के जावेद को ऐसा तलाक दूंगी कि वह भी तुम्हारी जिंदगी से चला जाएगा.’’

उधर से टैलीफोन कट गया, लेकिन जावेद के चेहरे पर सन्नाटा छा गया. उस ने कहा, ‘‘तुम मेरी मम्मी से क्या फालतू बात करने लगी थी…’’

शबनम ने जावेद की बात का कोई जवाब नहीं दिया.

अब भी वे दोनों कई दिनों तक रात का खाना खाने उस होटल में आए लेकिन अलगअलग टेबलों पर बैठ कर चले गए, क्योंकि रिश्ता तो टूट ही गया था और अब बातों में कड़वाहट भी आ गई थी.

एक दिन होटल में शबनम जल्दी आई, खाना खा कर बाहर पत्थर की बनी कुरसी पर बैठ गई और जावेद का इंतजार करने लगी. जावेद जब खाना खा कर निकला तो शबनम ने उसे आवाज दी, ‘‘आओ, कहीं दूर तक इन पहाड़ों में घूम कर आते हैं. मेरे बूढ़े पति की अस्पताल से छुट्टी हो गई है. मैं अब चली जाऊंगी. इस के बाद यहां नहीं मिलूंगी.’’

वे दोनों एकदूसरे के साथ गलबहियां करते हुए टाइगर हिल के पास चले आए जहां ऐसी ढलान थी कि अगर किसी का पैर फिसल जाए तो सीधे कई गहरे फुट नीचे नदी में जा गिरे.

शबनम ने साथ चलतेचलते जावेद से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा अपने मोबाइल फोन से फोटो लेना चाहती हूं क्योंकि अब हम नहीं मिलेंगे. तुम इस ढलान पर खड़े हो जाओ ताकि पीछे पहाड़ों का सीन फोटो में अच्छा लगे.’’

जावेद मुसकराया और फोटो खिंचवाने के लिए खड़ा हो गया. शबनम उस के पास आई, मानो वह सैल्फी लेगी. तभी उस ने जावेद को जोर से धक्का दिया और चिल्लाई, ‘‘तलाक… तलाक… तलाक…’’ जावेद ढलान से गिरा, फिर नीचे नदी में न जाने कहां गुम हो गया.

Best Hindi Story 2025 : रिलेशनशिप स्टेटस

राइटर- मधु शर्मा कटिहा

Best Hindi Story 2025 : ‘‘तुम ने अभी तक अपना फेसबुक स्टेटस अपडेट नहीं किया. मैं ने तो कब का सिंगल से बदल कर ‘इन ए रिलेशनशिप’ कर लिया. देख लो चाहे,’’ अपना मोबाइल सिमरन की ओर बढ़ाते हुए चेतन उसे छेड़ने के अंदाज में बोल खिलखिला कर हंस पडा. मोबाइल पर फेसबुक ऐप खुला था.

‘‘हां… हां… क्यों नहीं, कर लेती हूं मैं भी. जब मेरे मम्मीपापा आएंगे न हमें मारने सीधा शिमला से दिल्ली डंडा ले कर तब भूल जाओगे यह इश्कविश्क,’’ सिमरन भौंहें नचाते हुए होंठों पर टेढ़ी मुसकान लिए बोली.’’

‘‘विश्क का तो पता नहीं लेकिन इश्क करना कभी नहीं भूलूंगा. अरे, सच्चा आशिक  हूं तुम्हारा,’’ सिमरन को कमर से पकड़ कर चेतन ने अपने पास खींच लिया.

‘‘यह कैसी आशिकी कि शादी करने से डरते हो?’’ सिमरन मासूमियत से बोली.

‘‘डरता हूं कि मेरे मम्मीपापा की तरह तलाक न हो जाए हमारा. प्रेमीप्रेमिका बन कर रहेंगे तो बस प्यार ही प्यार होगा जीवन में. न कोई लड़ाईझगड़ा न मांग और जब कोई डिमांड नहीं तो उम्मीद के टूटने का सवाल ही नहीं. पता है तलाक तभी होता है जब रिश्ते में उम्मीदें तारतार हो जाती हैं.’’

‘‘अच्छा बहाना है शादी से बचने का,’’ आवाज में शिकायती लहजा लाने का प्रयास करते हुए सिमरन बोली.

‘‘नहीं सिमरन, सच यही है कि मैं नहीं चाहता इस रिश्ते का रूप बदले, मैं तो हमेशा ही प्यार में डूबे रहना चाहता हूं.’’

‘‘लेकिन…’’ सिमरन के मुंह से निकला ही था कि बस कहते हुए चेतन ने अपनी तरजनी उंगली सिमरन के होंठों पर रख दी, ‘‘इन नर्म, गुलाबी होंठों पर शिकायत नहीं, सिर्फ मेरा नाम अच्छा लगता है. अब कोई सवाल नहीं. ये होंठ तो सिर्फ प्यार करने और पाने के लिए बने हैं. भूल जाओ सबकुछ, ये शिकवे, ये शिकायतें. बस मैं, तुम और प्यार.’’

हिमाचल प्रदेश के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी सिमरन ने आईएचएम शिमला से होटल मैनेजमैंट में बैचलर्स किया था. कैंपस प्लेसमैंट के दौरान दिल्ली के एक फाइवस्टार होटल द्वारा बतौर डैस्क ऐग्जिक्यूटिव चुनी गई थी. शिमला

में मातापिता और एक छोटा भाई था. पिता एक दवा बनाने वाली कंपनी में कार्यरत थे, मां हाउसवाइफ थीं.

चेतन जयपुर अपने ननिहाल में रह कर पला था क्योंकि उस की मां पति से तलाक के बाद अपने मायके आ गई थीं. चेतन के मामा बड़े व्यापारी थे लेकिन वह नौकरी करना चाहता था. जयपुर से 12वीं पास कर बिट्स पिलानी से कंप्यूटर में बी. टैक कर अपने मित्र कुणाल के साथ वह दिल्ली आ गया था. वहां कुणाल के स्टार्टअप में काम करने के बाद इन दिनों एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर बड़ा प्रौजेक्ट लीड कर रहा था.

कुणाल की बहन प्रगति सिमरन के साथ काम करती थी. लगभग 1 वर्ष पूर्व प्रगति के विवाह में सिमरन और चेतन की भेंट हुई थी. दोनों उसी दिन से एकदूसरे के मोह धागे में बंधने लगे थे. मुलाकातों का दौर शुरू हुआ तो चाहत बढ़ने लगी. एकदूजे के बिना रहना मुश्किल सा लगने लगा. दोनों के बीच सहमति हुई और लिव इन में रहने का फैसला हो गया. सिमरन जानती थी कि उस के पेरैंट्स यह सहन नहीं कर पाएंगे कि बेटी किसी के साथ एक पत्नी की तरह बिना विवाह के रह रही है. मातापिता के कानों तक यह समाचार पहुंचा तो रिश्ता टूटने की नौबत आ जाएगी इस डर से सिमरन चेतन पर शादी के लिए दबाव बनाया करती थी, लेकिन चेतन साफ इनकार कर देता. उस का विचार था कि विवाह प्रेम का प्रारंभ नहीं अंत होता है.

सिमरन और चेतन ने मिल कर एक घर किराए पर ले लिया. प्रगति विवाह के बाद एक दिन उन दोनों से मिलने आई तो करीने से सजे ड्राइंगरूम को देख ठगी सी रह गई. खूबसूरत गुलाबी परदे, क्रीम रंग के सोफे जिन पर गुलाब के फूलों का आकार लिए रूबी कलर के कुशन लगे थे. सोफे के एक ओर चौड़े गमले में एशियाई लिली के गुलाबी फूल कमरे की शोभा में चार चांद लगा रहे थे.

‘‘वाऊ सिमरन, मुझे पता था तुम्हें पिंक कलर बहुत पसंद है. गुलाबी के साथ बाकी रंगों का मेल भी बहुत ही खूबसूरती से किया है तुम ने. गुलाबी रंग से रंगत निखार दी कमरे की,’’ प्रगति कमरे के सौंदर्य से प्रभावित हो कर बोली.

‘‘मैं ने नहीं, चेतन ने. उस ने पता लगा लिया था कि पिंक मेरा पसंदीदा रंग है. मेरे यहां आने से पहले ही इस कमरे को सजा कर बहुत क्यूट सरप्राइज दिया था मुझे उस ने,’’ कहते हुए सिमरन के चेहरे पर गुलाबी निखार आ गया.

चेतन हंसते हुए बोला, ‘‘और यहां आने के बाद सिमरन ने बैडरूम को मेरी पसंद से रंग दिया.’’

‘‘देखूं तो,’’ कहते हुए प्रगति उठ कर चल दी. बैडरूम में हलका नीला प्रकाश बिखराता स्मार्ट बल्ब लगा था, जिस की रोशनी मंद या तेज हो सकती थी. कमरे की सजावट समुद्रतट का आभास दे रही थी.

‘‘चेतन को समंदर का किनारा बहुत अच्छा लगता है. जब मुझे उस की सी बीच को ले कर दीवानगी का पता लगा तो मैं ने बैडरूम उसी थीम को ध्यान में रखते हुए सजाने की कोशिश की,’’ सिमरन प्रगति को बताने लगी.

दीवार पर समुद्र से उठती नीली लहरों और किनारे पर नारियल के लंबेलंबे पेड़ों वाला विशाल वालस्टीकर लगा था. भूरे रंग का मखमली कालीन समुद्र किनारे बिखरी रेत सा लग रहा था. सिमरन ने बल्ब जला कर प्रगति को कमरे की सीलिंग पर देखने को कहा. वहां लगे चांदसितारों के अंधेरे में चमकने वाले थ्रीडी स्टिकर्स को देख लग रहा था जैसे सी बीच पर कोई रोमैंटिक रात किसी जोड़े का स्वागत करने के लिए तैयार है. रिमोट से बल्ब का रंग सिमरन ने दूधिया किया तो कमरा चांदनी में नहाया हुआ समुद्री किनारे सा दिखने लगा.

बैड पर आसमानी रंग की चादर और उस पर गहरे नीले रंग से बनी मरमेड की लुभावनी आकृति देख प्रगति आराम से पैर फैला कर वहां ऐसे जा बैठी जैसे समुद्र किनारे आराम करने बैठ गई हो. बैड से कुछ दूरी पर फीरोजी रंग के नैट से बने झोले और उस पर 2 सफेद रंग के तकिए देख मंत्रमुग्ध प्रगति उन पलों की कल्पना कर सकती थी जब चेतन और सिमरन उस पर लेटे, दाएंबाएं झुलते हुए भविष्य के सपने बुनते होंगे.

‘‘बस अब दोनों शादी कर डालो. इस कमरे की शान दोगनी हो जाएगी,’’ प्रगति दोनों को प्रशंसापूर्ण दृष्टि से देखते हुए बोली.

इस से पहले कि सिमरन कुछ कहती चेतन बोल उठा, ‘‘क्यों हमें जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा कर मार डालना चाहती हो मैडम प्रगति?’’

‘‘कौन सी जिम्मेदारियां बढ़ जाएंगी शादी के बाद? फैमिली जब चाहे बढ़ाना. उलटा सोच रहे हो चेतन तुम. शादी के बाद सिक्योर महसूस करोगे रिश्ते में दोनों,’’ प्रगति अपनी बात पूरी होते ही सिमरन की ओर समर्थन की आशा से देखने लगी.

सिमरन ने भी सिर हिला कर सहमति जता दी.

चेतन मुंह बनाते हुए बोला, ‘‘पता है हम दोनों कितने टैंशन फ्री हैं. एकसाथ रहने से पहले ही डिसाइड कर लिया था कि कोई नियमबंधन नहीं होंगे हमारे रिश्ते में. जो जब चाहे रिश्ते से अलग हो सकता है. देखो न फिर भी पूरा 1 साल होने वाला है एकसाथ रहते हुए हमें.’’

सिमरन और प्रगति जब शौपिंग संबंधी बातें करने लगीं तो चेतन कौफी बना कर ले आया. कौफी का मग सिमरन के हाथ में देते हुए वह कान में बुदबुदाया, ‘‘तुम ने आज ‘वर्जिन आइलैंडवाटर’ परफ्यूम क्यों लगा लिया? अपने बैडरूम से बिलकुल मैच कर रहा है, सीबीच की सोंधीसोंधी गंध में डूब रहा हूं. बेसब्र कर रही हो जान. प्रगति को वापस भेजो न जल्दी से.’’

अपना मग हाथ में ले कर चेतन प्रगति के पास जा कर बैठ गया. सिमरन और उस का चेहरा आमनेसामने था. प्रगति चेतन का चेहरा सीधेसीधे नहीं देख पा रही थी. इस का पूरा लाभ उठाते हुए चेतन सिमरन को छेड़ रहा था. कभी फ्लाइंग किस कर तो कभी नाक से खुशबू सूंघ कर दीवाना होने का अभिनय करते हुए लगातार सिमरन को देख रहा था. सिमरन बहुत मुश्किल से हंसी दबाते हुए उसे आंखें तरेर कर देख लेती थी.

प्रगति को विदा कर दोनों जैसे ही घर में घुसे चेतन ने सिमरन को अपने अंक में भर लिया. अपनी नाक उस के गालों पर फिसलाते हुए गले तक पहुंच चेतन परफ्यूम और सिमरन की मिलीजुली सुगंध में डूबनेउतराने लगा. सिमरन पर भी इस प्रेम का भरपूर प्रभाव दिख रहा था. चेतन के गले में बाहें डाल उस के गालों से अपने गाल सटाकर कुछ देर वह पलकें मूंदे मुसकराती रही. लव यू चेतन कहते हुए उस ने अपना चेहरा चेतन के सीने में छिपाया तो चेतन की बलिष्ठ भुजाएं उसे जमीन से उठा कर बैड तक पहुंचाने को अधीर हो गईं. सिमरन को अपनी गोद में ले कर बैडरूम तक पहुंचते हुए चेतन उसे हौलेहौले चूम रहा था. सिमरन को चेतन का यह अंदाज मदहोश कर रहा था.

‘मेड फौर ईचअदर’ शायद ऐसे ही जोड़ों के लिए कहा जाता होगा. हुस्न और इश्क ने इस जहां में सिमरन और चेतन बन कर जन्म लिया था.

शाम को दोनों साथसाथ बैठे अपनेअपने लैपटौप में खोए थे. एक मेल खोलते ही सिमरन चहक उठी, ‘लीला पैलेस में पोस्ट निकली है, अच्छा पैकेज दे रहे हैं. मैं अप्लाई कर देती हूं. हां, लेकिन रोज की तरह 6 बजे घर नहीं आ सकूंगी. रात 10 बजे तक रुकना पड़ेगा. फिर सुबह देर तक सोती रहूंगी. कोई ऐतराज.’’

‘‘स्वीटहार्ट, मैं तुम्हारा पति तो हूं नहीं कि पत्नी को आगे बढ़ता देख लूं. मैं तो आशिक हूं, अपनी महबूबा को फूलताफलता देखूंगा तो और जी चाहेगा प्यार करने का. रात 10 बजे के बाद लौटोगी तो खाना तैयार रखूंगा, सोने से पहले पैर भी दबा दिया करूंगा, सुबह बैडटी दे कर जगाएगा तुम्हें यह गुलाम,’’ अपना एक हाथ दिल पर रख सिर झुकाते हुए चेतन बोला.

‘‘सच में ऐसा सोचते हो या मैं शादी करने को न कह दूं इसलिए मीठे से प्रेमी बने रहते हो?’’

‘‘एक बात कहूं सिमरन? हम तो लिव इन में रह कर पतिपत्नी भी हैं लेकिन पतिपत्नी कभी प्रेमीप्रेमिका बन कर नहीं रह सकते. पूछ लेना अपनी किसी शादीशुदा सहेली से उस का अनुभव.’’

सिमरन का इंटरव्यू हुआ और उसे चुन लिया गया. दोनों ने घर की बदली हुई दिनचर्या में अपने को जल्दी ही ढाल लिया.

उस रविवार की सुबह हमेशा की तरह सिमरन अपने मम्मीपापा के फोन का इंतजार कर रही थी. फोन नहीं आया तो सिमरन ने उन को कौल कर लिया. बात खत्म होते ही दौड़ती हुई चेतन के पास आ कर खड़ी हो गई.

उस का उड़ा रंग देख कर चेतन घबरा गया, ‘‘क्या हुआ? सब ठीक तो है न?’’

‘‘चेतन मम्मीपापा शाम को यहां आ रहे हैं. घर से निकल चुके हैं. मुझे सरप्राइज देना चाह रहे थे. अच्छा हुआ मैं ने फोन कर लिया. बस की खड़खड़ और कंडक्टर की आवाज मुझे सुनाई दी तो उन्हें बताना पड़ा.’’

‘‘क्या कहोगी मेरे बारे में? कह देना कि सहेली का भाई है, कुछ दिनों के लिए आया हुआ है.’’

‘‘बुद्धू हो क्या? ऐसा कहूंगी तो साफ हो जाएगा कि हमारा क्या रिश्ता है. तुम मेरा हाथ मांग लो तो मिलवा सकती हूं उन से.’’

‘‘मजाक मत करो यार. सोचो क्या करना है?’’

‘‘मुझे एक उपाय सूझ रहा है,’’ कुछ सोचती सी सिमरन बोली, ‘‘ऐसा करते हैं कि तुम कुछ दिनों के लिए कुणाल के घर चले जाओ. वह तो सब जानता है, समझ सकेगा हमारी मजबूरी.’’

‘‘हां यह ठीक रहेगा,’’ चेतन राहत का अनुभव कर रहा था.

‘‘हम आज शाम के बाद न फोन पर बात करेंगे और न कोई मैसेज भेजेंगे एकदूसरे को. मम्मी के पास अपना मोबाइल नहीं है, पापा का यूज करती हैं और जब मैं साथ होती हूं तब मेरा भी. किसी को शक हो गया तो हमारी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. उन के जाने के बाद मैं कौल कर लूंगी तुम को.’’

‘‘ओके. मैं अपना सारा सामान ले कर चला जाता हूं अभी. एक भी चीज रह गई तो पता नहीं क्या होगा.’’

कुणाल को फोन कर चेतन सामान पैक करने लगा. बैग तैयार हो गए तो पूरा घर देख लिया कि कोई निशानी छूट न जाए.

सिमरन ने नाश्ते में सैंडविच बना लिए. दोपहर हुई तो चेतन ने कुछ भी खाने से मना कर दिया. सिमरन से न जाने कितने दिन दूर रहना पड़े, सोच कर वह उदास हो रहा था. बैड पर बैठी सिमरन भी अन्यमनस्क सी हो रही थी. चेतन चुपचाप आ कर उस के पास बैठ गया. उस की रोनी सूरत देख सिमरन ने उस के बालों में अपनी उंगलियां फिराते हुए उस का सिर अपनी गोद में रख लिया. अपना मुख चेतन के चेहरे के समीप ला उस ने माथे पर चुंबन अंकित किया तो चेतन गुजारिश करते हुए बोला, ‘‘जाने से पहले एक बार…’’

‘‘हटो, बस एक ही बात,’’ चेतन का सिर गोद से हटा कर कृत्रिम क्रोध दिखाते हुए सिमरन बोली, ‘‘जुदाई के बारे में सोच कर मेरा कलेजा मुंह को आ रहा है और तुम्हें यह सब सूझ रहा है.’’

‘‘अरे मैं भी तो तुम से दूर होने की बात से परेशान हूं. कुछ देर रोमांस करेंगे तो टैंशन दूर होगी न.’’

‘‘तुम्हें टैंशन दूर करने का एक ही तरीका आता है. जब तक मम्मीपापा मेरे साथ रहेंगे क्या टैंशन में नहीं रहोगे? तब कहां जाओगे इस टैंशन को दूर करने?’’

सिमरन की बात सुन चेतन शरारती मूड में आ गया, ‘‘कहीं भी चला जाऊंगा. हम ने तो अपने रिश्ते को बंधनों से दूर रखने की शर्त रखी हुई है न.’’

‘‘यही होगा एक दिन. मैं जानती हूं,’’ सिमरन फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘अरेअरे, तुम मजाक का कब से बुरा मानने लगीं? न न आंसू नहीं,’’ सिमरन के आंसुओं को अपनी हाथ से पोंछ आंखों को चूमते हुए चेतन बोला.

चेतन से सटी, नम आंखें और लाल नाक लिए सिमरन की रुलाई रोके नहीं रुक रही थी. अपने स्वर को मार्मिक सा बनाते हुए चेतन ने राजेश खन्ना स्टाइल में ‘पुष्पा आई हेट टीयर्स’ कहा तो वह खिलखिला कर हंस दी.

शाम होने से पहले ही चेतन कुणाल के घर चला गया. वहां एक अन्य मित्र भी उपस्थित था. दोस्तों संग बतियाते हुए चेतन को पता ही नहीं लगा कि रात के 11 बज गए हैं. बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गए.

अगले दिन सुबह उठा तो सिमरन के खयाल ने घेर लिया. बिस्तर पर, कमरे में यहां तक कि चाय के कप में भी वही दिख रही थी. फोन पर आवाज सुनने को जी ललचा रहा था लेकिन सिमरन की सख्त हिदायत के कारण मन मार लिया.

‘‘उसे इतना प्यार करता है तो शादी क्यों नहीं कर लेता? देख रहा हूं मुंह लटकाएलटकाए घूम रहा है,’’ चेतन को गुमसुम देख कुणाल बोल उठा.

‘‘कैसा दोस्त है तू कि शादी करवा कर मेरी जिंदगी बरबाद करना चाहता है. एक किस्सा सुन. एक बार मैं और सिमरन एक फिल्म देखने गए थे. फिल्म के शुरू में ही हीरोहीरोइन की शादी हो जाती है. सिनेमाहौल में पीछे से लोगों की आवाजें आने लगी कि हम तो सोच कर आए थे रोमांटिक फिल्म देखने जा रहे हैं, लेकिन लगता है इस फिल्म में तो बस लड़ाई?ागड़ा ही होगा. अब बोल. शादी में रखा ही क्या है?’’

‘‘तो मत करना कभी भी शादी. मेरा अरमान अधूरा ही रहने दे, ‘आज मेरे यार की शादी है…’ ‘‘गाने पर नाचने का. बना रह लवर बौय,’’ हाथ जोड़ कर कुणाल बोला तो चेतन का जोरदार ठहाका कमरे में गूंज उठा.

चेतन का समय कुणाल के साथ यों तो हंसीखुशी बीत रहा था लेकिन सिमरन के लिए तड़पन बड़ी शिद्दत से महसूस हो रही थी. इंतजार था तो सिमरन के उस फोन का जब वह बताएगी कि मम्मीपापा जा चुके हैं.

उस दिन कुणाल घर का सामान लेने बाजार गया हुआ था. चेतन घर पर ही था क्योंकि उसे औफिस का एक जरूरी काम निबटाना था. लौटने पर घर में घुसते ही कुणाल चेतन के सामने आ खड़ा हुआ और भेदती नजरों से उसे घूरते हुए बोला, ‘‘यार, सचसच बता तू यहां क्यों आया है? तेरा और सिमरन का झगड़ा हुआ है न?’’

‘‘नहीं भाई, पर तुझे क्या हो गया अचानक?’’ चेतन भौचक्का सा कुणाल को देख रहा था.

‘‘सिमरन ने यही कहा था न तुझ से कि उस  के मम्मीपापा आने वाले हैं?’’

‘‘पहेलियां मत बुझ. साफसाफ बता बात क्या है?’’ कुणाल के साथ उस का स्वर भी व्याकुल हो रहा था.

‘‘अभीअभी मैं ने बाजार में सिमरन को एक लड़के के साथ देखा. दोनों मेरे सामने कैब से उतर कर एक रैस्टोरैंट में जा कर बैठ गए,’’ बोलतेबोलते कुणाल का मुंह कसैला हो रहा था.

एकबारगी चेतन को विश्वास ही नहीं हुआ. कुछ कहने के लिए उस ने मुंह खोला ही था कि कुणाल ने अपना मोबाइल निकाल लिया. एक तसवीर दिखाते हुए बोला, ‘‘देख, दूर से ली है, वही तो है. कहा था न मैं ने कि कर ले शादी. पर तेरा जुमला तो हमेशा यही होता था न कि आई वांट टु लिव ए स्ट्रैस फ्री लाइफ. देखा न हुआ सब उलटा. अब झेलना सिर्फ स्ट्रैस, केवल दबाव, तनाव. मुझे क्या.’’

चेतन का जी तो नहीं चाह रहा था कि वह सिमरन का किसी और के साथ देखा जाना स्वीकार कर ले, लेकिन धुंधली सही तसवीर तो यही बयां कर रही थी. शांत बैठ कर अपनी उंगलियां चटकाते हुए सोच में पड़ गया कि अब क्या किया जाए?

2-3 दिन बाद औफिस की एक सहकर्मी ने सिमरन की चर्चा शुरू करते हुए उस के किसी लड़के के साथ दिखने की बात कह दी. चेतन अंदर से टूट रहा था. कुछ सोचते हुए उस ने मोबाइल हाथ में लिया लेकिन सिमरन को कौल करने के स्थान पर फेसबुक खोल ली और अपना स्टेटस अपडेट कर दिया. गुस्से, अपमान और बेबसी से भरे चेतन का फेसबुक रिलेशनशिप स्टेटस अब ‘इट्स कंप्लिकेटेड’ हो गया.

ऐसे ही 15 दिन बीत गए. न सिमरन का फोन आया और न ही चेतन को कुछ और पता लग सका. चेतन को परेशान देख कुणाल ने एक दिन कहा, ‘‘मैं जाऊं सिमरन के घर, देखूं क्या हो रहा है?’’

‘‘नहीं, अब कोई फायदा नहीं. शायद मैं ही गलत था. सिमरन जब रिश्ते में बंधना चाह रही थी तो मुझे मान लेना चाहिए था. जब से सिमरन की नई जौब लगी थी वह अपने मैनेजर का अकसर जिक्र करती थी. सिमरन ने बताया था कि वह बातोंबातों में उसे शादी के लिए इशारा कर चुका है. शायद सिमरन को ऐसे साथी की जरूरत थी जो प्यार के साथसाथ ऐसा रिश्ता भी दे पाए जिसे दुनिया के सामने छिपाना न पड़े. मम्मीपापा के आने का बहाना बना कर सिमरन ने सामान समेत मुझ से घर खाली करवा लिया शायद. अब मैं कहीं और रहने की जगह तलाश लूंगा,’’ चेतन के स्वर में हताशा और निराशा स्पष्ट झलक रही थी.

‘‘जगह क्यों?  नया रिश्ता भी तलाश लेना. तुम ने तो एकदूसरे को छूट दी थी न कि जो जब चाहे रिश्ते से अलग हो सकता है,’’ कुणाल के शब्दों में व्यंग्य कम लाचारी अधिक दिख रही थी.

कुछ देर दोनों के बीच मौन पसरा रहा. कुणाल के मोबाइल की रिंगटोन से चुप्पी टूट गई. मोबाइल पर प्रगति का नंबर चमक रहा था. कुणाल के हैलो कहते ही प्रगति रोष भरी आवाज में बोली, ‘‘भैया यह तुम्हारा दोस्त चेतन किस किस्म का प्राणी है? मेरे पास अभी सिमरन का फोन आया था. पता है कितना रो रही थी बेचारी. कुछ दिनों पहले उस के पेरैंट्स आए थे तो उस ने चेतन को तुम्हारे पास आने को कह दिया था. जनाब ऐसे आजाद हुए कि फेसबुक स्टेटस ही बदल डाला. 10-15 दिन दूर क्या रहा रिश्ते से कि इसे उल?ानें दिखने लगीं उस में. 1 साल से तो सब ठीक चल रहा था. है कहां है वह? आप के पास है अभी या कहीं और मौजमस्ती करने भाग गया?’’

जब कुणाल ने प्रगति को सिमरन और लड़के वाली बात बताई तो प्रगति झल्लाते हुए बोली, ‘‘उफ, तुम भी न भैया…क्या कहूं अब? पता तो कर लिया होता सिमरन से. भैया, उस के पेरैंट्स ही ले कर आए थे अपने साथ सुशील,  संस्कारी, जेठालाल टाइप के एक लड़के को. उस लड़के से रिश्ता पक्का करने के लिए वे सिमरन के पीछे पड़े थे. दोनों को एकसाथ घूमने के लिए भी वे ही कहते थे. न जाने कैसेकैसे बहाने बना कर बहुत मुश्किल से पीछा छुड़ाया है सिमरन ने उन सब से. अब जल्दी से चेतन को भेजो सिमरन के पास. वह तो सोच रही है कि चेतन ने उस से मुंह मोड़ लिया है. मैं अभी उसे कौल करती हूं.’’

कुणाल ने चेतन को प्रगति से हुई बातचीत के विषय में बता कर उसे फौरन सिमरन के पास जाने को कहा. चेतन बिना देरी किए चल दिया.

सिमरन के दरवाजा खोलते ही चेतन ने शिकायती लहजे में पूछा, ‘‘मम्मीपापा के वापस जाने पर मुझे इन्फौर्म क्यों नहीं किया?’’

‘‘कैसे करती? तुम ने तो अपना फेसबुक स्टेटस ही चेंज कर दिया था.’’

‘‘कुणाल ने तुम्हारे बारे में बताया तो मैं…’’ अपनी बात बीच में ही छोड़ चेतन सिर पकड़ कर बैठ गया.

‘‘मैं प्रगति को अपना दर्द न सुनाती तो जाने क्या होता?’’ कहते हुए सिमरन उस से सट कर बैठ गई.

दोनों के मन शांत हुए तो चेतन ने सिमरन को कस कर पकड़ लिया, ‘‘अब तुम से दूर नहीं जाऊंगा एक दिन के लिए भी नहीं, कभी भी नहीं, तुम कहोगी तो भी नहीं,’’ शब्दशब्द के साथ चेतन अपने अधरों से सिमरन के तन पर प्रेम की मुहर लगा रहा था.

सिमरन छुईमुई सी उस के बाहुपाश में सिमटी इस प्रेम को आत्मसात कर पिघली जा रही थी. कुछ देर एकदूसरे की निकटता को भरपूर जी लेने के बाद चेतन झट से उठ कर चल दिया.

‘‘कहां जा रहे हो? यहीं रहो न मेरे पास,’’ चेतन का हाथ खींचते हुए मादक स्वर में सिमरन बोली.

‘‘एक मिनट,’’ पास रखे अपने बैग से एक लाल, वैलवेट की डब्बी निकालते हुए चेतन बोला.

डिब्बी खुली तो उस में से एक चमचमती डायमंड रिंग झांक रही थी.

‘‘यह मैं ने अगले महीने तुम्हारे बर्थडे पर गिफ्ट देने के लिए बनवाई थी. आज ही पहनाना चाहता हूं तुम्हें इंगेजमैंट रिंग के तौर पर,’’ चेतन का स्वर चाहत से भरा हुआ था.

हौले से अंगूठी पहना कर चेतन ने सिमरन का गोरा नाजुक हाथ प्यार से अपने हाथ में ले कर चूम लिया और फिर नमकीन आंखों से उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘आई प्रौमिस टू लव यू फौरएवर, सिमरन. विल यू मैरी मी?’’

‘‘ओह चेतन,’’ कहते हुए सिमरन उस के गले लग गई.

चेतन उस के बालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘सिमरन, यह सच है कि लिव इन में रहते हुए कभी तलाक नहीं हो सकता लेकिन तुम्हें कोई मुझ से छीन सकता है. तुम्हारे पेरैंट्स तुम पर शादी के लिए दबाव डालने लगे हैं. कब तक बहाने बनाती रहोगी तुम? मैं नहीं रह सकता तुम्हारे बिना. एकदूसरे से वादा करते हैं कि मैरिज के बाद हम पतिपत्नी नहीं लिव इन पार्टनर्स बन कर रहेंगे. मैं मिलना चाहता हूं अब तुम्हारे मम्मीपापा से,’’ चेतन ने बात पूरी होते ही फेसबुक खोल कर अपना रिलेशनशिप स्टेटस बदल दिया. अब उस का स्टेटस था, ‘इंगेज्ड.’ जल्द ही वह उसे अपडेट कर ‘मैरिड’ में बदल देना चाहता था.

Hindi Kahaniya 2025 : वह प्यारा सा लड़का

राइटर- पूर्ति खरे

Hindi Kahaniya 2025 : मैं अपने शोरूम की डमीज के लिए कुछ नई ड्रैसेज निकाल ही रही थी कि उन दोनों ने मेरे शोरूम में दस्तक दी. मैं आश्चर्य और उत्साह के साथ उन के वैलकम के लिए भागी. अंदर आते ही उन्होंने किसी कपड़े की कटिंग करते हुए राजीव को ठहरी हुई निगाहों से देखते हुए कहा, ‘‘यह वही लड़का है?’’

मैं ने राजीव की तरफ उसी पहली निगाह से देखते हुए हां में सिर हिलाया तो राजीव मेरी तरफ देखते हुए बिलकुल वैसे ही मुसकराया जैसे वह उस दिन पहली दफा मुसकराया था.

जाहिर चच्चा की दुकान में वह मुसकराता हुआ बोला था, ‘‘आप, परदा लगा कर अच्छे से पहन कर देख लीजिए, चिंता मत कीजिए अंदर कोई नहीं आएगा. मैं भी बाहर खड़ा हूं, आप ठीक से पहन कर देख लें. जो भी ढीला या चुस्त होगा मैं ठीक कर दूंगा.’’

कितनी मासूमियत थी उस की उस बात में. एकदम भोला सा चेहरा, सौम्य सी छवि और कदकाठी ऐसी कि अच्छेअच्छे बौलीवुड के हीरो भी उस के आगे पानी भरते नजर आएं. उस रोज उस की पर्सनैलिटी देख कर मन में यह सवाल आया कि इतना स्मार्ट लड़का जाहिर चच्चा की दुकान में काम क्यों करता है? खैर, मुझे तो अपनी 12वीं कक्षा की फेयरवैल पार्टी के लिए अपने लिए एक डिजाइनर शूट बनवाना था. इसीलिए मैं ने फटाफट परदा डाल कर कुरता पहन कर देखा और फिर बाहर जा कर उस लड़के से कहा, ‘‘नए हो फिर भी शूट एकदम सही सिला है. चच्चा से सीखा होगा. चच्चा तो हैं ही सिलाईकढ़ाई में एकदम उस्ताद.’’

वह मेरी बात पर मुसकराया तो जाहिर चच्चा बोले, ‘‘बिटिया, मैं ने इसे जो सिखाया सो सिखाया पर इस लड़के में खुद भी बहुत काबिलीयत है, बहुत मेहनती है हमारा राजीव.’’

‘राजीव, वाह नाम भी कितना मोहक है…’ मैं ने मन ही मन बुदबुदाया और पेमैंट कर अपना शूट ले कर वहां से चलती बनी. फेयरवैल पार्टी में सब से ज्यादा मैं और मुझ से ज्यादा मेरा डिजाइनर शूट जंच रहा था.

‘‘वाऊ, ऋचा, कितना प्यारा शूट है. कहां से बनवाया है यह डिजाइनर शूट?’’ लड़कियों के इतने अच्छेअच्छे कमैंट सुन कर राजीव को शुक्रिया कहने का मन कर रहा था.

तभी मैं ने मन ही मन सोचा कि जब भी जाहिर चच्चा की दुकान पर जाऊंगी उसे बड़ा सा शुक्रिया बोल कर आऊंगी.

समय अपनी गति से चलता रहा. एक दिन मैं अपने शहर के मशहूर कैफे ‘कैफे विद किताब’ में गई तो किसी किताब को बड़ी तन्मयता से पड़ता हुआ राजीव दिखा, यह कैफे ललितपुर शहर से दूर एकांत में स्पैशली बुक लवर्स के लिए बनाया गया था. हर तरह की किताबें और शानदार कौफी, स्नैक्स आदि यहां पर उपलब्ध थे.

राजीव और यहां… खुद से यह कहते हुए मैं तेज कदमों से उस के पास तक गई और फिर उसे किताब में डूबा देख कर रुक गई. वह ‘लियो टौल्स्टौय’ के उपन्यास ‘वार ऐंड पीस’ को पढ़ने में ऐसा मगन था कि उसे मेरे पास होने का आभास ही न हुआ.

कुछ देर तक जब राजीव का ध्यान मुझ पर नहीं गया तो मैं ने धीरे से गला साफ करते हुए उस का ध्यान अपनी ओर खींचने को धीमे से गला साफ किया, ‘‘ऊहूं… ऊहूं…’’

राजीव ने मेरी तरफ देखते हुए स्माइल करते कहा, ‘‘आप, यहां?’’

‘‘मैं तो अकसर सैटरडे की फुरसत भरी शाम यहां आती हूं, तुम बताओ कि तुम यहां पर कैसे?’’

‘‘जी ऐसे ही,’’ वह यह कहता हुआ लियो टौल्स्टौय का नौवेल वापस किताबों की कतार में लगा कर जल्दबाजी में वहां से चला गया.

मेरा शुक्रिया मेरे पास ही रह गया. मैं कौन सी बुक पढ़ने यहां आई थी मैं सब भूल गई.

बिना कुछ सोचे मैं ने लियो टौल्स्टौय की वही नौवेल ‘वार ऐंड पीस’ निकाल लिया जिसे राजीव अभीअभी वापस रख कर गया था.

एक कप कौफी का और्डर दे कर मैं ने नौवेल खोला तो एक कागज मिला जिस पर खूबसूरत सी लिखावट में लियो टौलस्टौय के लिए एक प्यारा सा नोट लिखा था, ‘‘आप की किताब आज तीसरी दफा उठा कर पूरी कर पाया. आप बहुत अच्छा लिखते थे. आप जहां कहीं भी, जिस भी दुनिया में हों मेरा यह संदेश आप तक पहुंचे, शुभकामनाओं सहित राजीव.’’

मैं मुसकराती हुई उस नोट पर ठहरी ही थी कि कोई मेरी और्डर की हुई कौफी ले कर आ गया. किताब से ध्यान हटा कर दिखा वह कोई और नहीं बल्कि राजीव था. राजीव यहां पर भी काम करता है? मन ही मन मैं ने खुद से सवाल किया. कुछ देर वहां पर रुकी और मन की उथलपुथल के चलते वहां से निकलते ही मैं ने अपनी स्कूटी सीधे जाहिर चच्चा की दुकान में जा कर रोकी.

उन से राजीव के बारे में पूछा तो वे बोले, ‘‘बिटिया, उस का इस दुनिया में कोई नहीं है,  वह जब 3 माह का था तब कटरा बाजार के पुराने बरगद के पेड़ के नीचे पड़ा हुआ किसी दुकानदार को मिला था, उस के बाद वह कटरा बाजार के दुकानदारों के बीच बड़ा होता गया. 7 साल का ही हुआ था कि मेरे काम में हाथ बंटाने लगा. अब वह एक होनहार युवक है जो कई तरह के काम करना जानता है, पढ़नालिखना खूब जानता है पर स्कूली पढ़ाई के नाम पर बस सरकारी स्कूल से 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई की है. हां, पर उस में वह अव्वल आया था.’’

मेरी आंखें भर आईं तो चच्चा आगे बोले, ‘‘तुम तो फैशन डिजाइनर का कोर्स कर रही हो न? तुम्हारी मां कल दुकान में आई थीं तो बता रही थीं. राजीव का भी फैशन डिजाइनर बन कर खुद का कोई काम शुरू करने का मन है पर वह ठहरा गरीब बच्चा, बिटिया कितना पैसा लगता है इस कोर्स में? वह क्या है न, अगर कम पैसा लगता हो तो हम सब कटरा बाजार के दुकानदार पैसा इकट्ठा कर के उसे यह कोर्स करा दें.’’

उन की इस बात पर मैं बोली, ‘‘कोई जरूरत नहीं चच्चा हुनर किसी कोर्सवोर्स का मुहताज नहीं होता. वह तो अच्छे पढ़ेलिखे लोगों से भी ज्यादा होशियार है… लाइफ में पक्का वह कुछ न कुछ कर ही लेगा.’’

सच में हुनर की खान ही तो था वह प्यारा सा लड़का. तभी तो पहली ही झलक में वह मेरे दिल में घर कर गया था. ऊपर से जाहिर चच्चा की बातों ने मेरी उस में और दिलचस्पी बढ़ा दी. अब मैं अपने ही क्या, अपनी मौम के पासपड़ोस की आंटियों के सब के सिलाई के काम ले कर जाहिर चच्चा की दुकान में जाने के बहाने खोजने लगी. राजीव सिर्फ अपने काम से काम रखता और मैं सिर्फ राजीव के काम से काम रखती. ‘कौफी विद किताब’ में भी अकसर हमारी मुलाकात होती.

राजीव जब सम?ाने लगा कि शायद मैं उसे पसंद करने लगी हूं तो वह एक दिन कैफे के बाहर मु?ो रोक कर बोला, ‘‘आप बेहद अच्छी लड़की हैं. आप का इस तरह से मेरे पीछेपीछे आना अच्छा नहीं है.’’

‘‘और तुम से प्यार करना?’’ मैं ने सीधे अपने दिल की बात उस से कही तो वह झिझकता हुआ बिना कुछ कहे कैफे में वापस चला गया. उस का मानना था कि उस का और मेरा कोई मेल नहीं है. मैं एक खानदानी लड़की हूं और उसे तो अपना धर्म, अपनी जति तक के बारे में कुछ भी नहीं पाता. पर प्यार थोड़ा न यह सब देख कर होता है. वह तो बस हो जाता है. राजीव के मन में भी मेरे प्रति प्यार था पर उसे इस बात को मानने में बहुत वक्त लगा. धीरेधीरे हम दोनों का प्यार बढ़ा और कुछ ही समय में मैं ने मन ही मन राजीव को अपना जीवनसाथी बना लेने का भी फैसला कर लिया.

जब यह बात मेरे मौमडैड तक पहुंची तो वही हुआ जिस का मुझे अनुमान था,

‘‘न धर्म का पता है न जात का फिर भी महारानी को उस दो कौड़ी के लड़के से प्यार हो गया और अब इन को उस लड़के से शादी भी करनी है,’’ मौम जोरजोर से मुझ पर चिल्ला रही थीं और डैड ‘‘शादी और प्यार तो दूर की बात है ऋचा, तुम उस लड़के से दोस्ती भी नहीं करोगी, समझी?’’

मौमडैड ने बिना राजीव से मिले ही अपना फरमान सुना दिया था. ये सारी बातें जरूर होंगी, राजीव ने मुझ से पहले ही यह सब कह दिया था. वह जानता था कि हमारे समाज में अच्छे इंसान होने से ज्यादा जरूरी होता है खानदानी होना.

कुछ सालों तक बिना कोई अपनी जानकारी दिए गुस्से में मैं मौमडैड से दूर ललितपुर से झांसी चली गई.

मगर उन सालों में राजीव मेरे साथ था. सालों तक मेहनत कर के राजीव और मैं ने अपने शहर ललितपुर में वापस आ कर अपनी मेहनत और लगन से एक शोरूम खोल लिया. राजीव की काबिलीयत और हम दोनों की मेहनत वह रंग लाई कि सिर्फ 6 महीनों में हमारे शोरूम का पूरे शहर में नाम हो गया. हमारे शोरूम के डिजाइनर कपड़े पूरे ललितपुर में मशहूर हो गए. हम दोनों खुद ही 1-1 कपड़े को तैयार कर के सेल किया करते. हमारा काम बहुत अलग और आकर्षित था इसलिए शायद आज वे दोनों यानी मेरे मौमडैड यहां आए थे. वे अभी भी राजीव की तरफ ही देख रहे थे. लेकिन राजीव अपने काम में तन्मयता से लगा हुआ था.

‘‘कब की तुम दोनों ने शादी?’’ मौम ने मुझ से सीधा सवाल पूछा तो मैं मुसकरा कर बोली, ‘‘मौम, राजीव ने आप दोनों की मरजी के बिना मुझ से शादी करने के लिए माना कर दिया, साथ ही वह मेरे साथ अब तक सिर्फ एक बिजनैस पार्टनर और एक अच्छे दोस्त की तरह काम करता रहा है, दोस्ती के सिवा हमारे बीच अभी तक कुछ भी नहीं.’’

मौम राजीव की तरफ देख कर बोलीं, ‘‘बड़ा प्यारा सा लड़का है.’’

सच राजीव ऐसा ही है उसे जो भी देखता है बस देखता ही रह जाता है. काश,

मौमडैड ने भी उसे मेरे कहने पर पहले ही देख लिया होता, उस से पहले ही मिल लिए होते. डैड ने राजीव की तरफ ध्यान से देखा और कुछ देर बाद डैड राजीव के पास जा कर बोले, ‘‘हम ऋचा के मौमडैड हैं, क्या तुम हमारे दामाद बनोगे?’’

राजीव आश्चर्य से उठा और झट से डैड और मौम के पैर छू कर बोला, ‘‘अगर आप की मरजी होगी तो जरूर.’’

‘‘अरे, मरजी है तभी तो पूछ रहे हैं,’’ डैड ने मजकिया अंदाज में कहा तो सब जोर से हंस पड़े.

डैड ने जाहिर चच्चा से राजीव के बारे में जांचपड़ताल कर ली थी और उस के बारे में जाहिर चच्चा ही क्या ललितपुर का पूरा कटरा बाजार अच्छाअच्छा ही बोला था. इसीलिए तो आज मौमडैड ने भी उस प्यारे से लड़के को अपना दामाद स्वीकार लिया.

Inspiring Story : शिकवा तो नहीं

राइटर- रिमझिम

Inspiring Story : कोलकाता की हर बात निराली है, जहां की सुबह रविंद्रा संगीत है तो शाम नजरुल संगीत, सुर संस्कृति में लिपटा अपनेआप में अनोखा शहर. देश के हरेक कोने से आए हुए व्यक्ति को ठौर मिल जाता है. ऐसी जगह में ही सुखद ठिकाना मिल गया था सिक्किम बौर्डर पर तैनात सूबेदार शेखर श्रीकांतरंगनाथन की पत्नी विभा और बेटी नैन्सी को. सुबह के करीब 9 बजे थे. धर्मतल्ला के ठीक सामने वाली गली में जो बड़ी बिल्डिंग है उसी के 8वें माले पर रहने वाली सूबेदार शेखर श्रीकांतरंगनाथन की पत्नी विभा ने अपनी 4 वर्षीय बेटी नैन्सी को पास के ही मोंटेसरी स्कूल भेजने के लिए स्कूल वैन में बैठा कर प्यार से गालों को चूमा, लव यू टू बोल कर विदा किया. वापस आ कर चाय बनाई और टीवी चला कर बैठ गई. यही उस की रोजमर्रा की जिंदगी थी. शुरूशुरू में श्रीकांत के अपने से दूर होने का गम परेशान करता था लेकिन अब उस ने स्थिति से सम?ाता कर लिया था. बाएं हाथ में चाय का कप और दाहिने हाथ में रिमोट ले कर चैनल बदलती जा रही थी. तभी पड़ोसिन लिपिका का फोन आया, ‘‘हैलो विभा.’’

‘‘हां. हैलो.’’

‘‘न्यूज देखी?’’

‘‘नहीं. पर क्यों?’’

‘‘देख न जल्दी,’’ लिपिका ने रुंधे गले से कहा.

‘‘क्या न्यूज… कौन सा न्यूज अच्छा रुक देखती हूं,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया और न्यूज चैनल तलाशने लगी.

न्यूज में फ्लैश हो रहा था, ‘‘कल देर रात सिक्किम बौर्डर पर कुछ अज्ञात घुसपैठियों को रोकने में सूबेदार शेखर श्रीकांतरंगनाथन गंभीर रूप से जख्मी हो गए हैं, लेकिन संतोषजनक बात यह है कि उन की जांबाजी ने स्वतंत्रता दिवस पर छाए हुए खतरे को टाल दिया. देश ऐसे जांबाज को सलाम करता है.’’

यह खबर सुनते ही विभा सुन्न पड़ गई.

तभी सिक्किम से कर्नल गिरीश शर्मा का फोन आया तो सचेतन हुई. उन्होंने श्रीकांत के विषय में विस्तृत जानकारी दी. उन की बात पूरी होते ही विभा ने आत्मविश्वास से भर कर कहा, ‘‘उन्हें कुछ नहीं होगा, मैं अभी आ रही हूं.’’

‘‘नहीं, आप मत आइए. हम श्रीकांत को ले कर कोलकाता आर्मी हौस्पिटल आ रहे हैं,’’ कहतेकहते कर्नल गिरीश ने ठंडी सांस ली.

दरअसल, वहां के डाक्टरों ने श्रीकांत को अनिश्चितकाल के लिए कोमा पेशैंट मान लिया था क्योंकि शरीर से सारा खून निकल जाने की वजह से केवल दिमाग काम कर रहा था बाकी सारा शरीर शिथिल हो चुका था. अब इस बात को विभा को फोन पर बताना मुश्किल था इसलिए वहां से जवानों की एक टुकड़ी श्रीकांत के साथ कोलकाता भेजी जा रही थी.

‘‘अच्छा ठीक है. वैसे आप लोग कब तक पहुंच रहे हैं?’’

‘‘कल शाम…कल शाम तक हम पहुंच जाएंगे,’’ कर्नल ने माथे पर बल डालते हुए कहा क्योंकि श्रीकांत की हालत विभा को न बताने लायक थी न छिपाने लायक.

जिस पति के साथ हंसतेमुसकराते सप्ताह भर पहले ही फोन पर बात हुई थी आज उस के बारे में यह सुन रही थी.

कल शाम… उफ इतना लंबा इंतजार, उड़ सकती तो उड़ कर चली जाती लेकिन अभी क्या करे.

नैन्सी स्कूल से आ चुकी थी. उसे किसी तरह खिलापिला कर सुला दिया. खुद खाने बैठी तो निवाला गले से नीचे न उतरा. आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. बारबार यही सोचती कि कोई कह दे कि सब ठीक है कुछ नहीं हुआ श्रीकांत को. यही सब सोचतेसोचते न जाने कब नींद आ गई.

सपने में श्रीकांत सामने खड़ा था. आंख खुल गई. फिर से सारी बातें जेहन में घूमने लगीं. क्या कहता था, कैसे हंसता था सबकुछ. रात भर यादों का चलचित्र दिमाग में चलता रहा.

शेखर श्रीकांतरंगनाथन दक्षिण भारतीय युवक था. वहीं विभा बंगाली परिवार की एकलौती कन्या थी. नागपुर के इंजीनियरिंग कालेज के वैलकम जश्न में श्रीकांत ने विभा को ही अपना डांसिंग पार्टनर क्यों चुना यह तो श्रीकांत ही जाने, जबकि उसे घर से सख्त हिदायत थी कि किसी अन्य जाति, धर्म के लोगों से न मिले, न बात करे और मांसमछली खाने वालों से तो कोसों दूर रहे. ऐसे में बड़ीबड़ी हिरणी जैसी आंखों वाली सोख, चंचल, हर बात में आंखें मटकाने वाली विभा उसे कब अच्छी लगने लगी पता ही नहीं चला.

श्रीकांत देखने में तो काफी आकर्षक था बस रंग के मामले में मार खा गया था और ठीक उस के विपरीत विभा मां दुर्गा का स्वरूप लगती थी. दोनों की जोड़ी का अंतर दिख जाता था. ऐसे में शेखर तिरुपतिबालाजी को अपने पूर्वजों के रिश्तेदार जैसी अजीबोगरीब बात कह कर सभी को बहला देता था.

जब श्रीकांत देश, उस की सुरक्षा और उस के लिए अपनी जान देने की बात करता था तो विभा उसे अपलक देखती रहती थी. उस के सारे साथी भी बिना कुछ बोले बस उसे ही सुनते रहते थे. अंतर इतना था कि सुनने के बाद, ‘‘कहना आसान है करना मुश्किल,’’ कह कर चले जाते थे लेकिन विभा उस पर भरोसा कर के कहती, ‘‘वह और को न हो मु?ो तुम पर पूरा विश्वास है जो कह रहे हो वह कर के दिखाओगे.

यही वह क्षण था जब श्रीकांत ने विभा के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे साथ अग्नि के 7 फेरे लेना चाहता हूं, हमेशा के लिए तुम्हारा होना चाहता हूं और तुम विभा?’’ आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

बदले में विभा ने उसे अपनी जूठी चौकलेट खिला दी और वहां से शरमा कर चली गई.

‘‘जवाब तो देती जाओ,’’ जाती हुई विभा को जोर से आवाज लगा कर श्रीकांत ने पूछा.

‘‘बुद्धू’’ बोल कर विभा तेजी से अपने होस्टल की ओर चली गई.

श्रीकांत परेशान हो गया, विभा ने ‘हां’ क्यों नहीं बोला.

शाम को होस्टल के फोन से श्रीकांत की मां बात से हुई. बहुत सारी नसीहतों के साथ किसी लड़की का जूठा न खाने की हिदायत मिली, ‘‘वैसे क्यों मां?’’ विभा द्वारा चाकलेट खिलाने वाली बात को याद करते हुए पूछा.

‘‘ऐसा कर के लड़कियां लड़के को अपना पति स्वीकार लेती हैं,’’ मां ने गुड जानकारी दी.

श्रीकांत का चेहरा खिल उठा.

‘‘थैंक्यू, थैंक्यू मां. मैं आप से बाद में बात करता हूं.’’

श्रीकांत विभा के होस्टल पहुंचा. उस के सामने आते ही गले से लगा लिया, ‘‘आई लव यू.’’

विभा ने धीरे से, ‘‘मीटू,’’ कह दिया.

कालेज खत्म होते ही दोनों ने शादी कर ली. श्रीकांत विभा को ले कर तिरुपति पहुंचा जहां उस के मातापिता रहते थे. दक्षिण भारतीय शुद्ध शाकाहारी मां ने बंगाली बहू को स्वीकार करने से साफ मना कर दिया. लिहाजा, दोनों कोलकाता आ गए.

समय अपनी गति से चलता रहा. दोनों ने अलगअलग प्राइवेट फर्म में नौकरी भी कर ली पर श्रीकांत का इंडियन आर्मी जौइन करने का जनून जैसे का तैसा था. इसी बीच विभा ने नैन्सी को जन्म दिया. आखिर  कठिन परिश्रम से श्रीकांत ने उस मुकाम को पा लिया जिस की उसे ख्वाहिश थी. वह बेहद खुश था. आर्मी की ट्रेनिंग साधारण नहीं होती. श्रीकांत ने हर चुनौती को पार किया. उस की पहली पोस्टिंग सिक्किम बौर्डर पर हुई थी. सिक्किम पहाड़ों वाला शहर, पहाड़ काट कर ऊपर जाने के लिए रास्ता बना था. वैसे पहाड़ों पर व्यवस्था तो हर चीज की होती है पर अपने हिसाब से. वहां की खूबसूरती ने शुरूशुरू में श्रीकांत को बहलाए रखा लेकिन समय के साथ वह सब बेजान लगने लगा. कभी नैटवर्क मिलता कभी नहीं मिलता. विभा से दिल खोल कर बात करने को तरस गया था. बताने को बहुत कुछ होता पर सुनने वाला कोई नहीं होता. आपस में जब जवानों के बीच बात होती तो सभी का दर्द एक जैसा ही होता था. महीनों बीत गए वहां रहते हुए.

फौज में छुट्टी मिलना ठीक वैसा ही है जैसे रेगिस्तान में पानी ढूंढ़ना या फिर अमावस की रात में चांद को तलासने जैसा होता है. श्रीकांत जिस विभा के बगैर एक पल भी नहीं रह सकता था लगभग 6 महीने हो गए थे उस की सूरत तक नहीं देख पाया था. बेटी नैन्सी से बात करने का मन करता, उस की छोटीछोटी नादानियों पर समझने का मन करता पर अपने कर्र्तव्य पर अडिग रहने वाला श्रीकांत मन मसोसा कर रह जाता. यही वजह थी कि समय मिलते ही श्रीकांत अपने जज्बातों को शब्दों में पिरोने लगा था.

विभा को श्रीकांत की पहली चिट्ठी अक्षरसह याद है. उस ने लिखा था…

‘‘डियर विभू,

‘‘मेरी प्यारी विभा,

‘‘मेरी सब से प्यारी विभा,

‘‘यहां सब ठीक है. विभा, एक बात बताऊं. तुम्हें खुद भी नहीं पता तुम कितनी सुंदर हो. सब से ज्यादा तो तब जब तुम भीगे बालों में टौवेल लपेट कर, माथे पर बिंदी के नीचे लाल चंदन लगा कर आरती की थाली लिए पूरे घर में घूमती हो न तो मु?ो अपना घर मंदिर जैसा लगता है. उसी बीच मेरी किसी हरकत पर तुम्हारे मुंह के मंत्रोचारण का तेज हो जाना, अपनी बड़ीबड़ी आंखों से मु?ो धमकाना बहुत याद आता है. विभा मैं यहां जी तो रहा हूं पर मेरी सांसें, मेरी धड़कन तुम हो विभा.

‘‘सिर्फ तुम्हारा श्रीकांत.’’

श्रीकांत की दूसरी चिट्ठी को खोल कर पढ़ने लगी. उस में लिखा था…

‘‘नाजुक सी विभू,

‘‘तुम्हारी परेशानियों का एहसास है मु?ो. अकेली नैन्सी को पालना उस की जिद, उस के नखरों को बरदाश्त करना बहुत मुश्किल होता होगा. मेरा भी मन करता है उस के टिफिन बौक्स को पैक करूं, उस के रूटीन को सजा कर तुम्हारे कामों में थोड़ा हाथ बटाऊं, उसे उस की गलती पर डांटूं पर तुम तो जानती हो न मेरी मजबूरियां.

‘‘तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा श्रीकांत.’’

पिछली वाली चिट्ठी तो श्रीकांत ने व्हाट्सऐप पर ही लिखी थी.

‘‘प्रिय संगिनी विभा,

‘‘आज तुम्हारा जन्मदिन है. बहुतबहुत शुभकामनाएं. मैं ने कोशिश की थी तुम से बात करने की पर पहाड़ी इलाका है नैटवर्क थोड़ा कम ही रहता है. तुम अपना जन्मदिन अच्छे से मनाना. तुम्हें मेरी भी उम्र लग जाए. बस इतनी सी ख्वाहिश है तुम हंसती रहो, मुसकराती रहो. तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा श्रीकांत.’’

विभा ने गुस्से से कोई रिप्लाई नहीं दिया तो अगली चिट्ठी जल्दी आ गई…

‘‘विभा,

‘‘मेरी मां थोड़ी धार्मिक हैं पर दिल की बेहद अच्छी हैं. तुम्हें अपना लेंगी पर थोड़ा वक्त लगेगा. पापा कोशिश में लगे हुए हैं. सुबहशाम गरमगरम कौफी खुद से बना कर पिलाते हैं और हर गरम कौफी का नाम ‘विभा स्पैशल’ होता है जिस पर मां कभी मुसकरा देती हैं तो कभी नकली गुस्सा करती हैं. पापा अपनी कोशिश में कभी नाकामयाब नहीं हुए, इस बार भी नहीं होंगे देख लेना.

‘‘तुम्हारा श्रीकांत.’’

सुबह कामवाली ने कौलिंग बैल बजाई तो विभा वर्तमान में लौट आई. शाम को सेना की गाड़ी उसे लेने आई थी. रास्तेभर किसी से कोई बात नहीं हुई. गाड़ी हौस्पिटल के मुख्यद्वार के सामने रुकी.

श्रीकांत को आईसीयू में रखा गया था. विभा अंदर गई, श्रीकांत का पूरा शरीर पट्टियों में लिपटा था. केवल बंद आंखें दिख रही थीं.

‘‘श्रीकांत तुम्हें कुछ नहीं होगा मेरा अटल विश्वास है,’’ विभा ने श्रीकांत के पास बैठते हुए कहा.

‘‘जी बिलकुल, इन्हें कुछ नहीं होगा.’’

विभा ने मुड़ कर देखा. लंबी कदकाठी का नौजवान, चेहरे पर मुसकान लिए खड़ा था.

‘‘जी मैं डा. हर्षवर्धन,’’ नौजवान ने हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया.

प्रतिउत्तर में विभा ने हाथ जोड़ लिए.

‘‘प्लीज, आप रोना बंद कीजिए. मैं हूं न. मु?ा पर भरोसा कीजिए.’’

‘‘कब तक ठीक हो जाएंगे?’’ विभा ने आंसू पोंछते हुए पूछा.

‘‘आप मेरे कैबिन में आइए. समझता हूं.’’

‘‘जी, बताइए?’’

‘‘विभाजी, आप केवल श्रीकांतजी की पत्नी नहीं नैन्सी की मां भी हैं. पहले आप अपना खयाल रखिए.’’

‘‘उन्हें हुआ क्या है? वे कब तक ठीक होंगे?’’ बेचैन विभा की जबान पर एक ही रट लगी थी. बोलतेबोलते विभा बेहोश हो गई.

हर्षवर्धन की मजबूत बाजुओं ने कस कर थामा न होता तो विभा वहीं गिर जाती.

विभा रातभर बेहोश रही.

हर्षवर्धन ने उस का और नैन्सी का पूरा खयाल रखा. विभा को जब होश आया तो नैन्सी सामने बैठी चौकलेट खा रही थी. वह काफी खुश थी. हर्षवर्धन से काफी घुलमिल गई थी. नैन्सी आईसीयू से जब बाहर निकल कर आई. तो देखा सामने सेना के 2 जवान खड़े थे. उन से वह पूछ बैठी, ‘‘अंकल, मेरे पापा कितने बहादुर है?’’

‘‘बेटा आप के पापा बहुत बहादुर हैं,’’ जवान ने नैन्सी को गोदी में उठाते हुए जवाब दिया.

‘‘अंकल उस रात क्या हुआ था?’’ नैन्सी ने अपने स्वभाव के मुताबिक दूसरा प्रश्न पूछा. नैन्सी के साथ विभा ने भी उत्सुकता दिखाई.

‘‘उस रात, उस रात हम सभी गस्त पर थे. सीमा पर कुछ नकाबपोश बिना किसी पहचानपत्र के गलत तरीके से घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे थे. जैसे ही हमें जानकारी मिली, हम सभी ने अपनीअपनी स्थिति मजबूत कर ली. हमें मुस्तैद देख घुसपैठियों ने दिशा बदल ली, जिस की जानकारी श्रीकांत सर को कुछ ही समय पहले मिली. वह हमें बताना चाहते थे. उन्होंने वायरलैस पर मैसेज भी दिया पर हम देर से पहुंचे. अकेले श्रीकांत सर ने 10 घुसपैठियों को मार डाला था.

आखिरी घुसपैठिए ने पहले तो सफेद रूमाल दिखाया लेकिन पूरे शरीर में उस ने बम छिपा रखा था और जैसे ही श्रीकांत सर उस के पास गए उस ने करीब से वार किया और लगातार वार करता रहा, लेकिन सर ने हार नहीं मानी उसे भी मार गिराया. लेकिन तब तक बहुत सारा खून बह चुका था,’’ जवान ने आंखों देखा हाल सुना दिया.

‘‘मेरे पापा ठीक तो हो जाएंगे न डाक्टर अंकल?’’ नैन्सी ने डाक्टर हर्षवर्धन से पूछा.

‘‘बहादुर बेटी के बहादुर पापा को तो ठीक होना ही पड़ेगा,’’ डा. ने नैन्सी के गालों को थपाते हुए कहा.

देखतेदेखते 2 महीने बीत गए. श्रीकांत के शरीर में कोई सुधार नहीं दिखाई दे रहा था.

इसी बीच हर्षवर्धन को राजस्थान बौर्डर पर मरीजों की देखभाल करने के लिए भेजा गया.

विभा नैन्सी के साथ रोज शाम को हौस्पिटल आती श्रीकांत को देखती और चली जाती. अब श्रीकांत की देखभाल डा. जाकिर कर रहे थे. एक शाम जब विभा श्रीकांत को देख कर नम आंखों को पोंछती निकल रही थी तो डाक्टर जाकिर ने उसे अपने कैबिन में बुलाया.

‘‘विभाजी. आप रोज शाम को आती हैं और नम आंखें लिए चली जाती हैं आखिर क्यों?’’

‘‘और क्या करूं,’’ विभा ने आंचल से चेहरा ढक लिया और फफकफफक कर रोने लगी.

‘‘न न रोइए मत. हमारे होते हुए आप रो रही हैं,’’ कहते हुए डा. जाकिर ने उस का हाथ थाम लिया.

घर पहुंची तो लिपिका का मैसेज मिला, ‘‘नैन्सी को मैं अपने साथ ले आई हूं तुम भी आ जाओ, खाना हम सभी साथ में खाएंगे.’’

लिपिका सचमुच बहुत स्नेहिल थी लेकिन उस के पति की अजीब सी घूरती निगाहें और बात बे बात शरीर को छूने की हर कोशिश उसे लिपिका के घर जाने से रोकती थी.

उस ने एक बार कहा भी था, ‘‘विभाजी. शरीर की अपनी कुछ जरूरतें होती हैं, हमें उन का खयाल रखना चाहिए.’’

‘‘औरतों को सचमुच शारीरिक इच्छाएं परेशान करती हैं लेकिन उन्हें किस से क्या चाहिए इस पर तो औरतों के खुद का मालिकाना हक होना चाहिए. मन का जवाब मन में ही रख वहां से चली आई थी.

कमरे के अंदर दाखिल हुई. सोफे पर बैठने ही वाली थी कि हर्षवर्धन का फोन आया. तपती जमीं पर जैसे बारिश की बूंदें पड़ने जैसा एहसास हुआ. हर्षवर्धन के बारे में कभी कुछ सोचा नहीं था पर आज डा. जाकिर के दुर्व्यवहार ने शायद किसी अपने को तलाशने के लिए झकझोर दिया.

‘‘कैसी हैं आप?’’ हर्षवर्धन पूछना चाहता था. लेकिन श्रीकांत और नैन्सी के बारे में पूछ कर रह गया.

‘‘हां सब ठीक है,’’ अकसर यही जवाब देती रहती थी सभी को.

‘‘आज हौस्पिटल नहीं गई थीं?’’

‘‘गई थी. डाक्टर जाकिर…’’ बोलतेबोलते विभा रुक गई.

हर्षवर्धन ने उस के आगे न कुछ पूछा और न बोला. दरअसल, डा. जाकिर के बारे सभी जानते थे. थोड़ी देर चुप्पी छाई रही. थोड़ी देर बाद हर्ष का मैसेज आया, ‘‘अपना खयाल रखिएगा.’’

थोड़ी देर बाद विभा ने खिन्न मन से लिखा, ‘‘किस के लिए?’’

हर्षवर्धन का मन किया लिख दे मेरे लिए लेकिन दूरियां अब तक नजदीकियों में तबदील नहीं हुई थीं.

‘‘नैन्सी के लिए.’’

‘‘कोशिश कर रही हूं.’’

उत्तर में लव वाली इमोजी आई जिसे तुरंत हटा कर अंगूठे वाली भेजी गई.

विभा के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आई. तभी लिपिका नैन्सी के साथ उस के लिए खाना ले कर आ गई.

‘‘कहते हैं इश्कमुस्क, खांसी, खुशी छिपाए नहीं छिपती. बहुत दिनों के बाद इस चेहरे पर मुसकान दिखी, बताने लायक सम?ा तो बता देना,’’ लिपिका ने विभा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘नहीं ऐसा कुछ नहीं है,’’ विभा बात टाल गई.

विभा अपने निर्धारित समय से हौस्पिटल जाती रही. कोशिश करती कि डाक्टर जाकिर से सामना न हो लेकिन फिर एक दिन, ‘‘विभाजी, आप तो मुझ से नाराज हो गई हैं.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ विभा ने पीछा छुड़ाते हुए कहा.

‘‘मेरे पास आप की समस्या का हल है. डा. जाकिर ने इधरउधर देख फुसफुसाते हुए कहा.

‘‘हल? कैसा हल?’’

‘‘श्रीकांत का शरीर शिथिल हो चुका है… अब वे आप के किसी लायक नहीं रहे… कहें तो दिमाग भी… शांत कर दूं. फिर आप भी आजाद, वैसे भी आप यंग हैं, मासाअल्लाह खूबसूरत हैं… आप के सामने आप की पूरी जिंदगी है, ‘‘डा. जाकिर लगातार बोलता जा रहा था.

‘‘तड़ाक,’’ जोरदार चांटा जड़ दिया विभा ने. इतना जोरदार कि आसपास के डाक्टर, नर्स सामने आ गए.

‘‘श्रीकांत केवल मेरा पति नहीं,मेरा पहला प्यारी है… वह जिस भी हाल में है मुझे स्वीकार है.’’

डाक्टर जाकिर ने भीड़ इकट्ठा होते देख जल्दी से घुटने टेक दिए और माफी मांगने लगा. विभा उसे उस के हाल पर छोड़ कर वहां से निकल आई.

हर्षवर्धन को विभा के घर पहुंचने का समय पता था. अकसर उसी वक्त फोन पर बात या मैसेज कर लेता था. आज न जाने क्यों विभा उस के फोन का इंतजार बेसब्री से कर रही थी. तभी रिंगटोन बजी, ‘‘तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं…’’

Best Story : उतरन

लेखिका- कात्यायनी सिंह

Best Story : रहरहकर उस का दिल धड़क रहा था. मन में उठते कई सवाल उस के सिर पर हथौड़े की तरह चोट कर रहे थे. यह क्या हो गया? भूल किस से हुई? या भूल हुई भी तो क्यों हुई? मन में उभरते इन सवालों का दंश झेल पाना मुश्किल हो रहा था. अभी बेटी के होस्टल में पहुंचने में तकरीबन 3 घंटे का समय था. बस का झेलाऊ सफर और उस पर होस्टल से किया गया फोन कि आप की बेटी ने आत्महत्या करने की कोशिश की है…

अपने अंदर झांकने की हिम्मत नहीं हुई. स्मृति पटल पर जमी कई परतें, परत दर परत सामने आने और ओझल होने लगीं. दिल बैठा जा रहा था. अवसाद गहरा होता जा रहा था. तन का बोझ भी सहना मुश्किल और आंखों से बहती अविरल धारा…

वह खिड़की के सहारे आंखें मूंदे, दिल

और दिमाग को शांत करने की कोशिश करने लगी. पर एकएक स्मृति आंखों में चहलकदमी करती हुई सजीव होने लगी. वह घबरा कर खिड़की से बाहर देखने लगी. आंखों की कोरों पर बांधा गया बांध एकाएक टूट कर प्रचंड धारा बन गया. यों तो जिंदगी करवट लेती है, पर इस तरह की उस का पूरा वजूद दूसरी शादी के नाम पर स्वाह हो जाए. क्योंकि उस ने दूसरी शादी? क्या मिला उसे? स्वतंत्र वजूद की चाहत भी तो अस्तित्वहीन हो गई?

पर समाज का तो एक अलग ही नजरिया होता है. तलाकशुदा स्त्री को देख लोगों की

आंखों में हिकारत का कांटा चुभ सा जाता है. और उस कांटे को निकालने के लिए ही तो रूपा ने दूसरी शादी की.

पहली शादी और तलाक को याद कर मन कसैला नहीं करना चाहती

अब. पर न चाहने से क्या होता है. तलाक के 10 साल पहले ही बेटी उस की गोद में आ चुकी थी. शादी के 2 दिन बाद ही सपने बिखरने की आहट सुनाई देने लगी थी. सुनहरे दिन और सपनों में नहाई रात, सब इतनी भयावह कैसे हो गई? वह आज तक समझ नहीं पाई.

हर रोज की मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना उसे जिंदगी से बेजार करने लगी थी और उस के नीचे कराहता उमंगों भरा मन. पहलेपहल भरपूर विरोध किया रूपा ने. पर दिन, महीने और 7 साल बीतते चले गए और उस का धैर्य क्षीण होता रहा. पर एक दिन… उसी विरोध के महीन परतों के नीचे ज्वालामुखी के असंख्य कण फूट पड़े. और अंतत: उसे तलाक की पहल भी करनी पड़ गई…

2 साल लगे इस अनचाही पीड़ादायी परिस्थिति से नजात पाने में. तलाक के बाद बेटी को साथ ले कर वो एक अनजान सफर पर निकल गई. मंजिल उस को पता नहीं थी. इस असमंजस की स्थिति के बावजूद वह तनावमुक्त महसूस कर रही थी खुद को. आखिर

2 सालों के संघर्ष ने नारकीय जीवन से मुक्ति जो दिलाई थी. कुदरत ने मेहरबानी दिखाई और 1 हफ्ते में ही रेडियो स्टेशन में नौकरी लग जाने के कारण

उसे कोई आर्थिक तंगी का एहसास नहीं हुआ. और फिर मायके का सहारा भी संबल बना.

उगते सूरज की लालिमा उस के गालों पर उतरने लगती थी, जब रेडियो स्टेशन में उसे एक पुरुष प्यार से देखता था. अच्छा लगता था उसे यों किसी का देखना. 2 वर्ष का अकेलापन ही था, जो अनजान पुरुष को देख कर पिघलने लगा.

पिछली यादों में तड़पता उस का मन कहता कि मुझे इस सुख की आशा नहीं करनी चाहिए अब. मेरे हिस्से में कहां है सुख… और अजीब सी उदासी मन को उद्वेलित करने लगती.

उफ्फ, यह अचानक आज मुझे क्या हो रहा है? 2 सालों के अकेलेपन में कभी भी इस तरह का खयाल नहीं आया. अकेलापन, उदासी, सबकुछ अपनी बेटी की मुसकान तले दब चुकी थी. फिर आज क्यों? जबकि उस ने तलाक के बाद किसी भी पुरुष को अपने दायरे के बाहर ही रखा. अंदर आने की इजाजत नहीं दी किसी को. पर आज इस पुरुष को देख कर क्यों तपते रेगिस्तान में बारिश की बूंदों जैसा महसूस हो रहा है.

‘क्या ये कोई स्वप्न है या फिर पिछले जन्म का साथ. क्यों मेरी नजरें बारबार उस की ओर उठ रही हैं? क्यों वह उसे अनदेखा नहीं कर पा रही है? मन में एक सवाल- क्या कुदरत को कुछ और खेल खेलना है? इसी उधेड़बुन में शाम हो गई,’ उस ने अपने बैग को कंधे पर लटकाया और बाहर निकल आई.

पूस की सर्दी में भी उस के माथे पर पसीने की बूंदें झिलमिला रही थीं. चेहरे पर शर्म भरी मुसकराहट खिल उठी. तो क्या उसे प्यार हो गया है? एकाएक उस की मुद्रा ने गंभीरता का आवरण ओढ़ लिया. सोचने लगी, ‘उस का मकसद तो सिर्फ और सिर्फ अपनी बेटी का भविष्य बनाना है. नहींनहीं, वह इन फालतू के बातों में नहीं पड़ेगी.’

तभी उसे एक आवाज ने चौंका दिया, ‘‘चलिए मैं आप को घर छोड़ देता हूं. कब तक यहां खड़ी रह कर रिकशे का इंतजार करेंगी. अंधेरा भी तो गहरा रहा है.’’

पलट कर देखा तो वही पुरुष था, जो उस के दिलोदिमाग पर छाया हुआ था. वैसे अंधेरे की आशंका तो उस के मन में भी थी. वह बिना कुछ जवाब दिए उस की कार में बैठ गई. मध्यम स्वर में गाना बज रहा था-

धीरेधीरे से मेरी जिंदगी में आना

धीरेधीरे से दिल को चुराना…

वह चुपचाप बैठ बाहर के अंधेरे में झांकने की असफल कोशिश रही थी. तभी उस ने हंस कर पूछा, ‘‘अंधेरे से लड़ रही हैं या मुझे अनदेखा कर रही हैं?’’

वह भी मुसकरा दी, ‘‘अपने वजूद को तलाश रही हूं. आप घुसपैठिए की तरह

जबरदस्ती घुस आए हैं, इसी समस्या के निवारण में जुटी हूं.’’

खिलखिला कर हंस पड़ा वह. लगा जैसे चारों तरफ हरियाली बिखर गई हो. इन्हीं बातों के दरमियान घर आ गया और वह बिना कुछ कहे गाड़ी से उतर कर जाने लगी. तभी उस ने विनती भरे स्वर में उस का मोबाइल नंबर मांगा. पहले तो वह झिझकी, लेकिन फिर कुछ सोच कर नंबर दे दिया.

दिन बीतने के साथ बातों का और फिर मिलने का सिलसिला शुरू हो गया. वह नहीं चाहती थी कि रचित हर शाम उस से मिलने आए. क्योंकि एक तो बदनामी का डर और दूसरी तरफ बेटी जिस की नजरों का सामना करना मुश्किल होता. मन की आशंकाएं उसे परेशान करती कि उस के जानने के बाद, क्या वह बेझिझक उस के सामने जा पाएगी? पर दफ्तर के बाद का खाली समय उसे काटने दौड़ता. झिझक और असमंजस के बीच वह मिलने का समय होते ही उस के आने की राह भी देखती.

तेरे वादों पर हम एतबार कर बैठे

ये क्या कर बैठे, हाय क्या कर बैठे

एक बार मुसकरा कर देख क्या लिए

सारी जिंदगी हम तेरे नाम कर बैठे…

सपनों के साये तले रात और दिन बीतते रहे. समय पंख लगा कर उड़ रहा

था. पर उस के दिमाग में रहरह कर यही सवाल कौंधता कि कौनकौन होगा उस के घर में… सोचती… पूछूं या नहीं?

परएक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘रचित, हम एकदूसरे के इतने करीब आ गए हैं, पर अभी तक मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानती. अपने परिवार के बारे में कुछ बताओ न?’’

‘‘क्या जानना चाहती हो? यही न कि मैं शादीशुदा हूं या नहीं, बच्चे हैं या नहीं…? हां बच्चे हैं. पर शादीशुदा होते हुए भी मैं अकेला हूं, क्योंकि पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. मेरे साथ मेरी मां और मेरा बेटा रहता है.’’

रूपा ने आंखें बंद कर लीं. यह सुख का क्षण था. सपने अभी जिंदा हैं… कुछ देर की मौन के बाद रचित ने पूछा, ‘‘क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि मेरी भी एक बेटी है? मैं एक तलाकशुदा हूं. क्या तुम्हारी फैमिली मुझे और मेरी बेटी को स्वीकार करेगी? सपनों की दुनिया बहुत कोमल होती है रचित. पर वास्तविकता का धरातल बहुत कठोर. अच्छी तरह सोच लो. फिर कोई निर्णय लेना,’’ इतना कहती गई, पर मन के किसी कोने में कुछ नया जन्म लेती महसूस कर रही थी रूपा.

कुछ तेरी कहानी है, कुछ मेरी कहानी है

हर बात खयाली है, हर बात रूहानी है

मिल जाए कभी जो हम, तो हर बात सुहानी है…

रूपा के गोरे से मुखड़े पर अठखेलियां करती लटों को हाथों हटाते हुए रचित ने उस के गालों को अपनी हथेलियों में समेट लिया और उस की मदभरी आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मैं अब तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता रूपा. मैं सब ठीक कर दूंगा. बस तुम हां कर दो.’’

महीनों से चल रही मुलाकातों की फुहारें रूपा को आश्वासन की मधुर चासनी में सराबोर कर चुकी थीं. वह अपनेआप से अजनबी होती जा रही थी. कभी तो मन मचलता कि बारिश की बूंदों को अपनी हथेली में समेट ले. और कभी समंदर की लहरों के साथ विलीन हो जाने की विकलता. भावनाएं तूफान की तरह प्रचंड, उद्वेलित अंतर्मन की छटपटाहट ने आंखों में पानी का उबाल ला दिया. सामान्य गति से बीतते वक्त की चाल बहुत धीमी लग रही थी रूपा को, और सांसें धौंकनी की तरह तेज.

सांसों में बसे हो तुम

आंखों में बसे हो तुम

छूओ तो मुझे एकबार

धड़कन में बसे हो तुम…

समय गुजरते देर नहीं लगती. दोनों ने शादी कर ली. हालांकि रचित की मां बहुत मानमनुहार के बाद राजी हुई थीं और इस शर्त पर कि रूपा की बेटी कभी इस घर में नहीं आएगी. रूपा को बहुत बड़ा झटका लगा था. एक बार फिर से पुराने घावों का दर्द हरा हो गया था.

अचानक ही आए इस झंझावात ने रूपा के सपनों को चकनाचूर कर दिया. विचलित सी वह सन्न रह गई. पर रचित ने यह समझा कर शांत कर दिया कि वक्त के साथ सब बदल जाते हैं. मां को हम दोनों मिल कर मना लेंगे. रूपा ने गहरी सांस ली. उस ने बड़ी मुश्किल से दिल को समझाया, होस्टल से तो बच्ची महफूज है ही. जब मन करेगा जा कर उस से मिल लूंगी. सुखद भविष्य की कामना लिए रूपा को क्या पता था कि नियति क्याक्या रंग दिखाने वाली है.

डूबता हुआ सुर्ख लाल सूरज उसे माथे की बिंदिया सी लग रही थी. एक बार फिर से सब भूल कर उस ने रचित के प्यार भरोसा कर लिया. सुख की अनुभूतियां वक्त का पता ही नहीं चलने देती. सपनों के हिंडोले में झूलते 10 दिन कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला.

‘‘कल घर लौटने का दिन है रूपा,’’ रचित ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘प्यार ने हम दोनों को बांध रखा है, वरना हम तो नदी के दो किनारे थे.’’

रूपा आसमान की ओर देखती हुई बुदबुदाई.

रचित उस की आंखों में देखता कुछ पढ़ने की कोशिश करता रहा. फिर उस ने मन में अंदर चल रहे द्वंद्व को परे झटक कर रूपा की खूबसूरती को निहारने लगा. पलभर के लिए तो लगा कि काश, यह वक्त यही ठहर जाता. पर वक्त भी कभी ठहरता है भला.

साथ तुम्हारे चल कर यह अहसास हुआ

दरमियां हमारे सिर्फ प्यार, और कुछ नहीं…

अंधेरा चढ़ता गया और दोनों महकते एहसास के साथ सपनों सरीखे पलों की नशीली मादकता में विलीन. थकान से चूर कब दोनों की आगोश में समा गए, महसूस भी न हुआ. सुबह का सूरज नया दिन ले कर हाजिर हो गया. जल्दीजल्दी तैयार हो कर दोनों गाड़ी में बैठ गए और चल दिए घर की ओर.

घर पहुंचते ही सब से पहला सामना रचित के बेटे प्रथम से हुआ. उस की नजरें क्रोध और हिकारत से भरी हुई थीं. दोनों को देखते ही वह अंदर के कमरे में चला गया. रूपा के चेहरे पर सोच की लकीरें उभर आईं. तो क्या प्रथम की रजामंदी के बगैर शादी हुई है? जबकि मैं ने तो अपनी बेटी को बताया था कि रचित की मम्मी शादी के लिए तैयार हैं, पर शर्त रखी है कि तुम मेरे साथ उन लोगों के साथ नहीं रहोगी. ये सुन कर भी मेरी बेटी ने तो नाराजगी नहीं जताई. बल्कि उम्मीद से कहीं आगे बढ़ कर बोली, ‘‘मां, अभी भी तो हम साथ नहीं रहते. तुम मुझ से मिलने होस्टल तो वैसे भी आती रहती हो.’’

बच्ची को याद कर के रूपा की आंखें भर आईं. धीरेधीरे खुद को सामान्य कर सास के पास गई. लेकिन सास की बेरुखी ने तो दिल ही बैठा दिया. एक बार फिर से रूपा ने दिल को बहलाया. कोई बात नहीं. रचित तो समझता है न मुझे. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.

रूपा एक सपना देख रही है. वह है, उस की बच्ची है, रचित और प्रथम है. एक बहुत ही प्यारा सा, रंगीन सा प्रथम और बच्ची गोद में सोई है. रचित और मां उस के बगल में बैठे हैं. सभी बहुत खुश हैं.

अचानक नींद से जग जाती है रूपा. चारों तरफ देखती है…

ऐसा सपना, जिस का जाग्रत अवस्था से कोई संबंध नहीं. लेकिन सपने की खुशी उस के चेहरे पर झलक आती है. कभी न कभी यह सपना भी सच होगा, जरूर होगा.

देखती है पलट कर रचित को. नींद में बच्चों सा मासूम, प्यार से अपने गुलाबी होंठ उस के माथे पर टिका देती है. रचित के माथे पर भावनाओं का गुलाबी अंकन देख कर खुद शरमा भी जाती है रूपा. फिर उठ कर चल देती है किचन की ओर. नजदीक पहुंचते ही बरतनों की आवाज सुन कर चौंक गई. अंदर घुसते ही देखती है कि रचित की मां नाश्ता बना रही हैं.

‘‘मां, मैं बना देती हूं न…’’ सुनते ही सास किचन से बाहर निकल गई. सब समझते हुए भी रूपा ने खुद को संयत रख कर बाकी काम निबटाया और नाश्ता ले कर प्रथम के कमरे में दाखिल हुई. बेखबर सो रहे प्रथम को कुछ देर अपलक देखती रही. फिर बड़े प्यार से धीरेधीरे बाल सहलाते हुए बोली, ‘‘उठो प्रथम बेटा, स्कूल नहीं जाना क्या आज?’’ रूपा की आवाज कानों में पड़ते ही वह घबरा कर जाग गया और अजीब सी नजरों से घूरने लगा. पता नहीं क्यों इतना असहज कर रहा था उस का इस तरह घूरना? नफरत ऐसी कि आंखों में अंगारे दहक रहे हों.

‘‘आप फिर से मेरे कमरे में आ गईं? एक बात हमेशा याद रखिए कि आप सिर्फ पापा की पत्नी हैं, मेरी मम्मी नहीं. मेरी मम्मी की जगह कोई नहीं ले सकता. कोई भी नहीं.’’

स्तब्ध रह गई थी रूपा. रात का सुनहरा सपना ताश के पत्तों की तरह बिखरता नजर आ रहा था उसे. लगभग दौड़ती हुई वह कमरे से बाहर निकल गई.

ऊपर से सब कुछ सामान्य दिख रहा था, पर समय के साथ रचित में भी बदलाव आने लगा. दिनभर औफिस और घर के काम से थक कर चूर हो जाने के बावजूद रात में बिस्तर पर नींद का नामोनिशान तक नहीं. रचित से भी वो अब कुछ नहीं कहती. बस अपनी एक बात उसे अचंभित कर जाती थी. जिस घुटन और प्रताड़ना के विरुद्ध वह महीनों लड़ी, वह घुटन और प्रताड़ना अब उसे उतना विचलित नहीं करती थी. समय और उम्र समझौता करना सिखा देता है शायद.

आज सुबह से मन उद्विग्न हो रहा था बारबार. रहरह कर दिल में एक अजीब सी टीस महसूस हो रही थी. जैसेतैसे काम खत्म कर के चाय पीने बैठी ही थी कि दीया के होस्टल से फोन आ गया. चकोर को चांद मिल जाने खुशी मिल गई हो जैसे.

लेकिन यह क्या, मोबाइल से बात करते हुए उस के चेहरे पर दर्द का प्रहार महसूस कर सकता था कोई भी. कुछ देर के लिए तो वह मोबाइल लिए हतप्रभ सी बैठी रही. फिर अचानक बदहवास सी उठी और निकल गई बस स्टैंड की ओर.

होस्टल के गेट पर पहुंची तो काफी भीड़ दिखी. अनहोनी की आशंका उस के दिलोदिमाग को आतंकित करने लगी. अंदर जा कर देखा तो बेटी को जमीन पर लिटाया गया था. बेसब्री के साथ पास में बैठ गई और बड़े प्यार से पुकारी,

‘‘दीया बेटे.’’

कोई जवाब नहीं…

शरीर पकड़ कर हिलाया.

रूपा को तो जैसे करंट लग गया हो. इतना ठंडा और अकड़ा हुआ क्यों लग रहा है दीया का बदन. तो क्या?

नहीं…

ऐसा कैसे हो सकता है?

क्यों…?

किंतु अशांत धड़कता दिल आश्वस्त नहीं हो पा रहा था. वह निर्निमेष भाव से अपनी प्यारी परी को देखे जा रही थी. वही मोहक चेहरा…

तभी किसी ने उस के हाथों में एक कागज का टुकड़ा थमा दिया. यह कह कर कि आप की बेटी ने आप के नाम पत्र लिखा है.

डबडबाई आंखों से पत्र पढ़ने लगी-

‘दुनिया की सब से प्यारी ममा…’

आप को खूब सारा प्यार

आप को खूब सारी खुशियां मिले. सौरी ममा, मैं आप से मिले बगैर जा रही हूं. ये दुनिया बहुत खराब है ममा. तुम्हारे तलाक और शादी को ले कर बहुत गंदीगंदी बातें करते थे स्कूल के स्टूडैंट्स. कहते थे तेरी मां… छोड़ न मां.

मैं जानती हूं तुम्हारे बारे में.

लेकिन मां, मैं तंग आ गई थी उन के तानों से.

तुझ से नहीं बताया कि तू इतनी खुश है, परेशान हो जाओगी ये सब जान कर. मां, अब मुझे कोई परेशान नहीं करेगा. और तुम भी शांति से रह पाओगी.

हमेशा खुश रहना मां.

‘-तुम्हारी परी दीया.’

वह अपनेआप को रोक नहीं पाई. अचेत हो कर लुढ़क गई रूपा. पर उस अर्ध चेतनावस्था में भी वह मंदमंद मुसकरा रही थी.

वह अचानक उठ कर बैठ गई और खूब जोर से हंस पड़ी. उसे लगा वह तो न नए पति और उस के बच्चे की बन पाई न ही अपनी वाली को संभाल पाई. मां बनने की इतनी बड़ी कीमत देनी होगी इस का अंदाजा नहीं था.

दिल चिथड़े कर डालने वाली हंसी…

अगला दिन…

दुनिया के लिए एक सामान्य दिन जैसा ही सवेरा था.

सिवाय रूपा के…

Stories 2025 : मेरी मां का नया प्रेमी

Stories 2025 : श्वेता ने मां को फोन लगाया तो फोन पर किसी पुरुष की आवाज सुन कर वह चौंक गई…कौन हो सकता है? एक क्षण को उस के दिमाग में सवाल कौंधा. अमन अंकल तो होने से रहे. मां ने ही एक दिन बताया था, ‘तुम्हारे अमन अंकल को बे्रन स्ट्रोक हुआ था. अचानक ब्लडप्रेशर बहुत बढ़ गया था. आधे धड़ को लकवा मार गया. उन के लड़के आए थे, अपने साथ उन्हें हैदराबाद लिवा ले गए.’

‘‘हैलो…बोलिए, किस से बात करनी है आप को?’’ सहसा वह अपनी चेतना में वापस लौटी. संयत आवाज में पूछा, ‘‘आप…आप कौन? मां से बात करनी है. मैं उन की बेटी श्वेता बोल रही हूं.’’ स्थिति स्पष्ट कर दी.

‘‘पास के जनरल स्टोर तक गई हैं. कुछ जरूरी सामान लाना होगा. रोका था मैं ने…कहा भी कि लिख कर हमें दे दो, ले आएंगे. पर वह कोई स्पेशल डिश बनाना चाहती हैं शाम को. तुम्हें तो पता होगा, पास में ही सब्जी की दुकान है. वहां वह अपनी स्पेशल डिश के लिए कुछ सब्जियां लेने गई हैं…पर यह सब मैं तुम से बेकार कह रहा हूं. तुम मुझे जानती नहीं होगी. इस बीच कभी आई नहीं तुम जो मुझे देखतीं और हमारा परिचय होता… बस, इतना जान लो…मेरा नाम प्रभुनाथ है और तुम्हारी मां मुझे प्रभु कहती हैं. तुम चाहो तो प्रभु अंकल कह सकती हो.’’

‘‘प्रभु अंकल…जब मां आ जाएं, बता दीजिएगा…श्वेता का फोन था.’’ और इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. न स्वयं कुछ और कहा, न उन्हें कहने का अवसर दिया.

श्वेता की बेचैनी उस फोन के बाद बहुत बढ़ गई. कौन हो सकते हैं यह महाशय? क्या अमन अंकल की तरह मां ने किसी नए…आगे सोचने से खुद हिचक गई श्वेता. कैसे सोचे? मां आखिर मां होती है. उन के बारे में हमेशा, हर बार, हर पुरुष को ले कर हर ऐसीवैसी बात कैसे सोची जा सकती है?

फिर भी यह सवाल तो है ही कि प्रभुनाथ अंकल कौन हैं? कैसे होंगे? कितनी उम्र होगी? मां से कब, कहां, कैसे, किन हालात में मिले होंगे और उन का संबंध मां से इतना गहरा कैसे बन गया कि मां अपना पूरा घर उन के भरोसे छोड़ कर पास के जनरल स्टोर तक चली गईं… सामान और स्पेशल डिश के लिए सब्जियां लेने…

इस का मतलब हुआ प्रभु अंकल मां के लिए कोई स्पेशल व्यक्ति हैं…लेकिन यह नाम पहले तो कभी मां से सुना नहीं. अचानक कहां से प्रकट हो गए यह अंकल? और इन का मां से क्या संबंध होगा…जिन के लिए मां स्पेशल डिश बनाती हैं…कह रहे थे कि जब वह आते हैं तो मां जरूर कोई न कोई स्पेशल डिश बनाती हैं…इस का मतलब हुआ यह महाशय वहां नहीं, कहीं और रहते हैं और कभीकभार ही मां के पास आते हैं.

अड़ोसपड़ोस के लोग अगर देखते होंगे तो मां के बारे में क्या सोचते होंगे? कसबाई शहर में इस तरह की बातें पड़ोसियों से कहां छिपती हैं? मां ने क्या कह कर उन का परिचय पड़ोसियों को दिया होगा? और उस परिचय पर क्या सब ने यकीन कर लिया होगा?

स्थिति पर श्वेता जितना सोचती जाती, उतने ही सवालों के घेरे में उलझती जाती. पिछली बार जब वह मां से मिलने गई थी तो उन की लिखनेपढ़ने की मेज पर एक नई डायरी रखी देखी थी. मां को डायरी लिखने का शौक है और महिला होने के नाते उन की वह डायरी अकसर पत्रपत्रिकाओं में छपती भी रहती है, अखबारों के साहित्य संस्करणों से ले कर साहित्यिक पत्रिकाओं तक में उन के अंश छपते हैं. चर्चा भी होती है. शहर में सब इसलिए भी उन्हें जानते हैं कि वहां के महाविद्यालय में हिंदी की प्रवक्ता थीं. लंबी नौकरी के बाद वहीं से रिटायर हुईं. मकान पिता ही बना गए थे. अवकाश प्राप्त जिंदगी आराम से वहीं गुजार रही हैं. भाई विदेश में है. श्वेता के पास आ कर वह रहना नहीं चाहतीं. बेटीदामाद के पास आ कर रहना उन्हें अपनी स्वतंत्रता में बाधक ही नहीं लगता बल्कि अनुचित भी लगता है.

इंतजार करती रही श्वेता कि मां अपनी तरफ से फोन करेंगी पर उन का फोन नहीं आया. मां की डायरी में एक अंगरेजी कवि का वाक्य शुरू में ही लिखा हुआ पढ़ा था ‘इन यू ऐट एव्री मोमेंट, लाइफ इज अबाउट टू हैपन.’ यानी आप के भीतर हर क्षण, जीवन का कुछ न कुछ घटता ही है…जीवन घटनाविहीन नहीं होता.

महाविद्यालय में पढ़ते समय भी श्वेता अपनी सहेलियों से मां की प्रशंसा सुनती थी. बहुत अच्छा बोलती हैं. उन की स्मृति गजब की है. ढेरों कविताओं के उदाहरण वह पढ़ाते समय देती चली जाती हैं. भाषा पर जबरदस्त अधिकार है. कालिज में शायद ही कोई उन जैसे शब्दों का चयन अपने व्याख्यान में करता है. पुरुष अध्यापक प्रशंसा में कह जाते हैं कि प्रो. कुमुदजी पता नहीं कहां से इतना वक्त निकाल लेती हैं यह सब पढ़नेलिखने का?

कुछ मुंहफट जड़ देते कि पति रेलवे में स्टेशन मास्टर हैं. अकसर इस स्टेशन से उस स्टेशन पर फेंके जाते रहते हैं. बाहर रहते हैं और महीने में दोचार दिन के लिए ही आते हैं. इसलिए पति को ले कर उन्हें कोई व्यस्तता नहीं है. रहे बच्चे तो वे अब बड़े हो गए हैं. बेटा आई.आई.टी. में पढ़ने बाहर चला गया है. कल को वहां से निकलेगा तो विदेश के दरवाजे उसे खुले मिलेंगे. लड़की पढ़ रही है. योग्य वर मिलते ही उस की शादी कर देंगी. फुरसत ही फुरसत है उन्हें…पढ़ेंगीलिखेंगी नहीं तो क्या करेंगी?

श्वेता एम.ए. के बाद शोधकार्य करना चाहती थी पर पिता को अपने एक मित्र का उपयुक्त लड़का जंच गया. रिश्ता तय कर दिया और श्वेता की शादी कर दी. बी.एड. उस ने शादी के बाद किया और पति की कोशिशों से उसे दिल्ली में एक अच्छे पब्लिक स्कूल में नौकरी मिल गई. पति एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर थे. व्यस्तता के बावजूद श्वेता अपने संबंध और कार्य से खुश थी. छुट्टियों में जबतब मां के पास हो आती, कभी अकेली, कभी बच्चों के साथ, तो कभी पति भी साथ होते.

आई.आई.टी. के तुरंत बाद भाई अमेरिका चला गया था. इधर मंदी के चलते अमेरिका से भारत आना उस के लिए अब संभव न था. कहता है अगर नौकरी से महीने भर बाहर रहा तो कंपनी समझ लेगी कि बिना इस आदमी के काम चल सकता है तो क्यों व्यर्थ में एक आदमी की तनख्वाह दी जाए. वैसे भी अमेरिका में जौब की बहुत मारामारी चल रही है.

फिर भी भाई को पिता की एक हादसे में हुई मृत्यु के बाद आना पड़ा था और बहुत जल्दी क्रियाकर्म कर के वापस चला गया था. पिता उस दिन अपने नियुक्ति वाले स्टेशन से घर आ रहे थे लेकिन टे्रन को एक छोटे स्टेशन पर भीड़ ने आंदोलन के चलते रोक लिया था. टे्रन पर पत्थर फेंके गए तो कुछ दंगाइयों ने टे्रन में आग लगा दी. जिस डब्बे में पिताजी थे उस डब्बे को लोगों ने आग लगा दी थी. सवारियां उतर कर भागीं तो उन पर दंगाइयों ने ईंटपत्थर बरसाए.

पत्थर का एक बड़ा टुकड़ा पिता के सिर में आ कर लगा तो वह वहीं गिर पड़े. साथ चल रहे अमन अंकल ने उन्हें उठाया. सिर से खून बहुत तेजी से बह रहा था. लोगों ने उन्हें ले कर अस्पताल तक नहीं जाने दिया. रास्ता रोके रहे. हाथपांव जोड़ कर अमन अंकल ने किसी तरह पिताजी को कहीं सुरक्षित जगह ले जाने का प्रयास किया पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उन की मृत्यु हो गई थी.

भाई ने पिता के फंड, पेंशन आदि की सारी जिम्मेदारी अमन अंकल को ही सौंप दी थी, ‘‘अंकल आप ही निबटाइए ये सरकारी झमेले. आप तो जानते हैं, इन कामों को निबटाने में महीनों लगेंगे, अगर मैं यहां रुक कर यह सब करता रहा तो मेरी नौकरी चली जाएगी.’’

‘‘तुम चिंता न करो. अपनी नौकरी पर जाओ. यहां मैं सब संभाल लूंगा. इसी रेलवे विभाग में हूं. जानता हूं. ऊपर से नीचे तक लेटलतीफी का राज कायम है.’’

अमन अंकल ने ही फिर सब संभाला था. बाद में उन का ट्रांसफर वहीं हो गया तो काम को निबटाने में और अधिक सुविधा रही. तब से अमन अंकल का हमारे परिवार से संबंध जुड़ा. वह अरसे तक जारी रहा. उन का एक ही लड़का था जो आई.टी. इंजीनियर था. पहले बंगलौर में नौकरी पर लगा था. बाद में ऊंचे वेतन पर हैदराबाद चला गया.

अमन अंकल की पत्नी की मृत्यु कैंसर से हो गई थी. नौकरी शेष थी तो अमन अंकल वहीं रह कर नौकरी निभाते रहे. इस बीच उन का हमारे परिवार में आनाजाना जारी रहा. मां की उन्होंने बहुत देखरेख की. पिता की मृत्यु का सदमा वह उन्हीं के कारण सह सकीं. यह उन का हमारे परिवार पर उपकार ही रहा. बाकी मां से उन के क्या और कैसे संबंध रहे, वह अधिक नहीं जानती.

कुछकुछ आभास श्वेता को उन की डायरी से ही हुआ था. एक बार उन की डायरी में कुछ कविताओं के अंश नोट किए हुए मिले थे.

‘तुम चले जाओगे पर थोड़ा सा यहां भी रह जाओगे, जैसे रह जाती है पहली बारिश के बाद हवा में धरती की सोंधी सी गंध.’

एक पृष्ठ पर लिखी ये पंक्तियां पढ़ कर तो श्वेता भौचक ही रह गई थी…सब कुछ बीत जाने के बाद भी बचा रह गया है प्रेम, प्रेम करने की भूख, केलि के बाद शैया में पड़ गई सलवटों सा… सबकुछ नष्ट हो जाने के बाद भी बचा रहेगा प्रेम, …दीपशिखा ही नहीं, उस की तो पूरी देह ही बन गई है दीपक, प्रेम में जलती हुई अविराम…

मम्मी अचानक ही आ गई थीं और डायरी पढ़ते देख एक क्षण को सिटपिटा गई थीं. बात को टालने और स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए श्वेता खिसियायी सी हंस दी थी, ‘‘यह कवि आप को बहुत पसंद आने लगे हैं क्या, मम्मी?’’

‘‘नहीं, तुम गलत समझ रही हो,’’ मम्मी ने व्यर्थ हंसने का प्रयत्न किया था, ‘‘एक छात्रा को शोध करा रही हूं नए कवियों पर…उन में इस कवि की कविताएं भी हैं. उन की कुछ अच्छी पंक्तियां नोट कर ली हैं डायरी में. कभी कहीं भाषण देने या क्लास में पढ़ाने में काम आती हैं ऐसी उजली और दो टूक बात कहने वाली पंक्तियां.’’ फिर मां ने स्वयं एक पृष्ठ खोल कर दिखा दिया था, ‘‘यह देखो, एक और कवि की पंक्तियां भी नोट की हैं मैं ने…’’ वह बोली थीं.

उस पृष्ठ को वह एक सांस में पढ़ गई थी, ‘‘धीरेधीरे जाना प्यार की बहुत सी भाषाएं होती हैं दुनिया में, देश में और विदेश में भी लेकिन कितनी विचित्र बात है प्यार की भाषा सब जगह एक ही है और यह भी जाना कि वर्जनाओं की भी भाषा एक ही होती है…प्यार की भाषा में शब्द नहीं होते सिर्फ अक्षर होते हैं और होती हैं कुछ अस्फुट ध्वनियां और उन्हीं को जोड़ कर बनती है प्यार की भाषा…’’

मां के उत्तर से वह न सहमत हुई थी, न संतुष्ट पर वह व्यर्थ उन से और इस मसले पर उलझना नहीं चाहती थी. शायद यह सोच कर चुप लगा गई थी कि मां भी आखिर हैं तो एक स्त्री ही और स्त्री में प्रेम पाने की भूख और आकांक्षा अगर आजीवन बनी रह जाए तो इस में आश्चर्य क्या है?

पिता के साथ मां ने एक लंबा वैवाहिक जीवन जिया था. उस दुर्घटना में वह अचानक मां को अकेला छोड़ कर चले गए थे. शरीर की कामनाएंइच्छाएं तो अतृप्त रह ही गई होंगी…55-56 साल की उम्र थी तब मम्मी की. इस उम्र में शरीर पूरी तरह मुरझाता नहीं है. फिर पिता महीने 2 महीने में ही घर आ पाते थे. पूरा जीवन तो मां ने एक अतृप्ति के साथ बियाबान रेगिस्तान में प्यासी हिरणी की तरह मृगतृष्णा में काटा होगा…आगे और आगे जल की तलाश में भटकी होंगी…और वह जल उन्हें मिला होगा अमन अंकल में या हो सकता है मिल रहा हो प्रभु अंकल में.

एक शहर के महाविद्यालय में किसी व्याख्यान माला में भाषण देने गई थीं मम्मी. उन के परिचय में जब वहां बताया गया कि साहित्य में उन का दखल एक डायरी लेखिका के रूप में भी है तो उन के भाषण के बाद एक सज्जन उन से मिलने उन के निकट आ गए, ‘‘आप ही

डा. कुमुदजी हैं जिन की डायरियों के कई अंश…’’ मम्मी उठ कर खड़ी हो गई थीं, ‘‘आप का परिचय?’’

‘‘यहां निकट ही एक नेशनल पार्क है… मैं उस में एक छोटामोटा अधिकारी हूं.’’ इसी बीच महाविद्यालय के एक प्राध्यापकजी टपक पड़े थे, ‘‘हां, कुमुदजी यह छोटे नहीं मोटे अधिकारी हैं. वन्य जीवों पर इन्होंने अनेक शोध कार्य किए हैं. हमारे जंतु विज्ञान विभाग में यह व्याख्यान देने आते रहते हैं. यह विद्यार्थियों को जानवरों से संबंधित बड़ी रोचक जानकारियां देते हैं. अगर आप के पास समय हो तो आप इन का नेशनल पार्क अवश्य देखने जाएं… आप को वहां कई नए अनुभव होंगे.’’

श्वेता को मां ने बताया था, ‘‘यह महाशय ही प्रभुनाथ हैं.’’

मां की डायरी में बाद में श्वेता ने पढ़ा था.

‘किसीकिसी आदमी का साथ कितना अपनत्व भरा होता है और उस के साथ कैसे एक औरत अपने को भीतर बाहर से भरीभरी अनुभव करती है. क्या सचमुच आदमी की उपस्थिति जीवन में इतनी जरूरी होती है? क्या इसी जरूरीपन के कारण ही औरत आदमी को आजीवन दुखों, परेशानियों के बावजूद सहती नहीं रहती?’

खालीपन और अकेलेपन, भीतर के रीतेपन को भरने के लिए जीवन में क्या सचमुच किसी पुरुष का होना नितांत आवश्यक नहीं है…कहीं कोई आदमी आप के जीवन में होता है तो आप को लगता रहता है कि कहीं कोई है जिसे आप की जरूरत है, जो आप की प्रतीक्षा करता है, जो आप को प्यार करता है…चाहता है, तन से भी, मन से भी और शायद आत्मा से भी…

प्रभुनाथ के साथ पूरे 7 दिन तक नेशनल पार्क के भीतर जंगल के बीच में बने आरामदेय शानदार हट में रही… तरहतरह के जंगली जंतु तो प्रभुनाथ ने अपनी जीप में बैठा कर दिखाए ही, थारू जनजाति के गांवों में भी ले गए और उन के बारे में अनेक रोचक और विचित्र जानकारियां दीं, जिन से अब तक मैं परिचित नहीं थी.

‘दुनिया में कितना कुछ है जिसे हम नहीं जानते. दुनिया तो बहुत बड़ी है, हम अपने देश को ही ठीक से नहीं जानते. इस से पहले हम ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि यह नेशनल पार्क…यह मनोरम जंगल, जंगल में जानवरों, पेड़पौधों की एक भरीपूरी विचित्र और अद्भुत आनंद देने वाली एक दुनिया भी होती है, जिसे हर आदमी को जीवन में जरूर देखना और समझना चाहिए.’

प्रभुनाथ ने चपरासी को मोटर- साइकिल से भेज कर भोजन वहीं उसी आलीशान हट में मंगा लिया था. साथ बैठ कर खाया. खाने के बाद प्रभुनाथ उठे और बोले, ‘‘तो ठीक है मैडम…आप यहां रातभर आराम करें. हम अपने क्वार्टर में जा कर रहेंगे.’’

‘‘नहीं. मैं अकेली हरगिज इस जंगल में नहीं रहूंगी,’’ मैं हड़बड़ा गई थी, ‘‘रात हो आई है और जानवरों की कैसी डरावनीभयावह आवाजें रहरह कर आ रही हैं. कहीं कोई आदमखोर यहां आ गया और उस ने इस हट के दरवाजे को तोड़ कर मुझ पर हमला कर दिया तो?’’

‘‘क्या आप को इस हट का कोई दरवाजा टूटा या कमजोर नजर आता है? हर तरह से इसे सुरक्षित बनाया गया है. इस में देश और प्रदेश के मंत्री, सचिव और आला अफसर, उन के परिवार आ कर रहते हैं. मैडम, आप चिंता न करें. बस रात को कोई जानवर या आदमी दरवाजे को धक्का दे, पंजों से खरोंचे तो आप दरवाजा न खोलें. यहां आप को पीने के लिए पानी बाथरूम में मिलेगा. चाय-कौफी बनाना चाहेंगी तो उस के लिए गैसस्टोव और सारी जरूरी क्राकरी व सामग्री किचन में मिलेगी. बिस्तर आरामदेय है. हां, रात में सर्दी जरूर लगेगी तो उस के लिए 2 कंबल रखे हुए हैं.’’

‘‘वह सब ठीक है प्रभु…पर मैं यहां अकेली नहीं रहूंगी या तो आप साथ रहें या फिर हमें भी अपने क्वार्टर की तरफ के किसी क्वार्टर में रखें.’’

‘‘नहीं मैडम,’’ वह मुसकराए, ‘‘आप डायरी लेखिका हैं. हिंदी की अच्छी वक्ता और प्रवक्ता हैं. हम चाहते हैं कि आप यहां के वातावरण को अपने भीतर तक अनुभव करें. देखें कि कैसा लगता है. बिलकुल नया सुख, नया थ्रिल, नया अनुभव होगा…और वह नया थ्रिल आप अकेले ही महसूस कर पाएंगी…किसी के साथ होने पर नहीं.

‘‘आप देखेंगी, जीवन जब खतरों से घिरा होता है…तो कैसाकैसा अनुभव होता है…जान बचे, इस के लिए ऐसेऐसे देवता आप को मनाने पड़ते हैं जिन की याद भी शायद आप को अब तक कभी न आई हो…बहुत से लेखक इस अनुभव के लिए ही यहां इस हट में आ कर रहना पसंद करते हैं.’’

‘‘वह तो सब ठीक है…पर आप को मैं यहां से जाने नहीं दूंगी.’’ फिर कुछ सोच कर पूछ बैठीं, ‘‘बाहर गेट के क्वार्टरों में आप की प्रतीक्षा पत्नीबच्चे भी तो कर रहे होंगे? अगर ऐसा है तो आप जाएं पर हमें भी वहीं किसी क्वार्टर में रखें.’’

गंभीर बने रहे काफी देर तक प्रभुनाथ. फिर एक लंबी सांस छोड़ते हुए बोले, ‘‘अपने बारे में किसी को मैं कम ही बताता हूं. यहां बाईं तरफ जो छोटा कक्ष है उस में एक अलमारी में जहां वन्य जीवजंतुओं से संबंधित पुस्तकें हैं वहीं मेरे द्वारा लिखी गई और शोध के रूप में तैयार पुस्तक भी है. अकसर यहां मंत्री लोग और अफसर अपनी किसी न किसी महिला मित्र को ले कर आते हैं और 2-3 दिन तक उस का जम कर देह सुख लेते हैं. उन के लिए हम लोग यहां हर सुविधा जुटा कर रखते हैं. क्या करें, नौकरी करनी है तो यह सब भी इंतजाम करने पड़ते हैं…’’

झेंप गईं डा. कुमुद, ‘‘खैर, वह सब छोडि़ए. आप अपने परिवार के बारे में बताइए.’’

‘‘एक बार हम पिकनिक मनाने यहां इसी हट पर अपने परिवार के साथ आए हुए थे. अधिक रात होने पर पता नहीं पत्नी को क्या महसूस हुआ कि बोली, ‘यहां से चलिए, बाहर के क्वार्टरों में ही रहेंगे. यहां न जाने क्यों आज अजीब सा भय लग रहा है.’ हम जीप में बैठ कर वापस बाहर की तरफ चल दिए. पत्नी, लड़की और लड़का. हमारे 2 ही बच्चे थे. अभी कुछ ही दूर चले होंगे कि खतरे का आभास हो गया. एक शेर बेतहाशा घबराया हुआ भागता हमारे सामने से गुजरा. पीछे कुछ बदमाश, जिन्हें हम लोग पोचर्स कहते हैं. जंगली जानवरों का चोरीछिपे शिकार करने वाले उन पोचरों से हमारा सामना हो गया.’’

‘‘निहत्थे नहीं थे हम. एक बंदूक साथ थी और साहसी तो मैं शुरू से रहा हूं इसीलिए यह नौकरी कर रहा हूं. बदमाशों को ललकारा कि अगर किसी जानवर को तुम लोगों ने गोली मारी तो हम आप को गोली मार देंगे. जीप को चारों ओर घुमा कर हम ने उस की रोशनी में बदमाशों की पोजीशन जाननी चाही कि तभी उन्होंने हम पर अपने आधुनिक हथियारों से हमला बोल दिया. हम संभल तक नहीं पाए… पत्नी और बेटी की मौत गोली लगने से हो गई. लड़का बच गया क्योंकि वह जीप के नीचे घुस गया था.

‘‘मैं उन्हें ललकारता हुआ अपनी बंदूक से फायर करने लगा. गोलियों की आवाज ने गार्डों को सावधान कर दिया और वे बड़ीबड़ी टार्चों और दूसरी गाडि़यों को ले कर तेजी से इधर की तरफ हल्ला बोलते आए तो बदमाश नदी में उतर कर अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गए.’’

‘‘फिर दूसरी शादी नहीं की,’’ उन्होंने पूछा.

‘‘लड़के को हमारी ससुराल वालों ने इस खतरे से दूर अपने पास रख कर पाला…साली से मेरी शादी उन लोगों ने तय की पर एकांत में साली ने मुझ से कहा कि वह किसी और को चाहती है और उसी से शादी भी करना चाहती है. मैं बीच में न आऊं तो ही अच्छा है. मैं ने शादी से इनकार कर दिया…’’

‘‘लड़का कहां है आजकल?’’

डा. कुमुद ने पूछा.

‘‘बस्तर के जंगलों में अफसर है. उस की शादी कर दी है. अपनी पत्नी के साथ वहीं रहता है.’’

‘‘मैं ने तो सुना है कि बस्तर में अफसर अपनी पत्नी को ले कर नहीं जाते. एक तो नक्सलियों का खतरा, दूसरे आदिवासियों की तीरंदाजी का डर… तीसरे वहां आदमी को बहुत कम पैसों में औरत रात भर के लिए मिल जाती है.’’ इतना कह कर डा. कुमुद मुसकरा दीं.

‘‘जेब में पैसा हो तो औरत सब जगह उपलब्ध है…यहां भी और कहीं भी… इसलिए मैं ने शादी नहीं की. जरूरत पड़ने पर कहीं भी चला जाता हूं.’’ प्रभु मुसकराए.

‘‘हां, पुरुष होने के ये फायदे तो हैं ही कि आप लोग बेखटके, बिना किसी शर्म के, बिना लोकलाज की परवा किए, कहीं भी देहसुख के लिए जा सकते हैं…पैसों की कमी होती नहीं है आप जैसे बड़े अफसरों को…अच्छी से अच्छी देह आप प्राप्त कर सकते हैं. मुश्किल तो हम संकोचशील औरतों की है. हमें अगर देह- सुख की जरूरत पड़े तो हम बेशर्मी लाद कर कहां जाएं? किस से कहें?’’

‘‘वक्त बहुत बदल गया है कुमुदजी…अब औरतें भी कम नहीं हैं. वह बशीर बद्र का शेर है न… ‘जी तो बहुत चाहता है कि सच बोलें पर क्या करें हौसला नहीं होता, रात का इंतजार कौन करे आजकल दिन में क्या नहीं होता.’’’

मुसकराती रहीं कुमुद देर तक, ‘‘बड़े दिलचस्प इनसान हैं आप भी, प्रभुनाथजी.’’

श्वेता डायरी के अगले पृष्ठ को पढ़ कर अपने धड़कते दिल को मुश्किल से काबू में कर पाई थी…

मां ने लिख रखा था… ‘7 दिन रही उस नेशनल पार्क में और जो देहसुख उन 7 दिनों में प्राप्त किया शायद अगले 7 जन्मों में प्राप्त न हो सके. आदमी का सुख वास्तव में अवर्णनीय, अव्याख्य और अव्यक्त होता है…इस सुख को सिर्फ देह ही महसूस कर सकती है…उम्र और पदप्रतिष्ठा से बहुत दूर और बहुत अलग…’.

Divya Dutta कई लोगों को कर चुकी हैं डेटिंग, लेकिन शादी का नहीं है इरादा

Divya Dutta : बौलीवुड अभिनेत्री दिव्या दत्ता अभिनय क्षेत्र में एक अलग पहचान रखती हैं. हंसमुख चुलबुली दिव्या दत्ता पंजाब के लुधियाना शहर से आई है और बचपन में ही पिता का साया सर से उठने की वजह से पिता के प्यार से हमेशा वंचित रही. दिव्या दत्ता और उनके भाई राहुल दत्ता की परवरिश उनकी मां ने अकेले की है. दिव्या दत्ता फिलहाल 47 साल की है, अभी तक कुंवारी है. दिव्या दत्ता के अनुसार वह कई मर्दों के साथ डेटिंग कर चुकी हैं लेकिन उनका शादी का इरादा नहीं है.

इनफैक्ट दिव्या दत्ता 47 की उम्र में भी कुंवारी रहना ही पसंद करती हैं. क्योंकि उनका शादी पर विश्वास नहीं है. खबरों के मुताबिक दिव्या दत्ता की सगाई 2005 में लेफ्टिनेंट कमांडर संदीप शेरगिल से हुई थी, लेकिन किन्हीं वजह से वह सगाई टूट गई इसके बाद दिव्या दत्ता ने शादी नहीं की.

एक इंटरव्यू के दौरान दिव्या दत्ता ने अपनी शादी को लेकर दिलचस्प बात कहीं, दिव्या के अनुसार शादी दो दिलों का बंधन है, सिर्फ लेवल लगाने के लिए शादी करना बेवकूफी है. दिव्या ने बताया उनकी जिंदगी में कई पुरुष हैं, और वह डेट पर भी जाती हैं लेकिन शादी को लेकर उनकी कोई प्लानिंग नहीं है दिव्या के अनुसार वह शादी के बारे में नहीं सोचती. लेकिन एक साथी जरूर चाहती हैं जो दिव्या के साथ हमेशा हो, फिर चाहे वह दोस्त के रूप में हो यह शुभचिंतक के.

उनकी जिंदगी में कई दिलचस्प मर्द आए हैं, जिनसे मिलकर और बात करके मुझे अच्छा लगता है. लेकिन उनमें से कोई ऐसा भी मुझे नहीं लगा जिससे मिलकर मैं शादी के बारे में सोचूं. दिव्या का कहना है कि मैं ऐसे इंसान से शादी करना चाहती हूं जो मुझे खुशी महसूस करा सके उसके साथ मुझे पौजिटिव फीलिंग आए जब मुझे ऐसा लाइफ पार्टनर मिलेगा तो मैं जरूर शादी कर लूंगी. लेकिन फिलहाल मेरी दिलचस्प पुरुषों के साथ डेटिंग करने में ही है. मै डेटिंग में ज्यादा खुश हूं.

ऐक्ट्रैस Rekha ने एक समय में साइन कीं 40 फिल्में…

Rekha : बौलीवुड की लेडी शहंशाह उमराव जान, खूबसूरत कहलाई जाने वाली प्रसिद्ध ऐक्ट्रेस रेखा ने अपने समय में नाम शौहरत और पैसा इतना कमाया है कि उसकी कोई तुलना ही नहीं है. जिसके चलते हाल ही में एक इंटरव्यू में रेखा ने बताया कि अपने ऐक्टिंग करियर के दौरान रेखा ने एक समय में 40 फिल्में साइन करके रखी थी.

14 फिल्मों की शूटिंग एक साथ कर रही थी. रेखा की आखिरी फिल्म 2014 में सुपर नानी आई थी. पिछले 10 सालों से रेखा ने एक भी फिल्म नहीं की लेकिन बावजूद इसके रेखा अपनी खूबसूरती और टैलेंट को लेकर हमेशा चर्चा में बनी रहती हैं.

यही वजह है की रेखा को बौलीवुड की एवरग्रीन स्टार कहा जाता है. वह सिर्फ अपनी एक्टिंग को लेकर ही नहीं बल्कि अपनी खूबसूरती को लेकर भी चर्चा में बनी रहती है. उनका अपना ड्रेसिंग स्टाइल है जो उन्होंने कभी भी नहीं बदला. आज 70 पार चुकी रेखा आज भी उतनी ही ऐक्टिव और टैलेंटेड है. जितनी की आज से 40 साल पहले थी.

Sanitary Pads और डायपर्स के डिस्पोजल पर सरकार का ध्यान देना कितना जरूरी, जानें ऐक्सपर्ट की राय

Sanitary Pads : आज के आधुनिक काल में सैनिटेरी पैड और डायपर्स हमारे जीवन का एक जरूरी प्रोडक्ट बन चुका है, जो पर्सनल हाइजीन और सुविधा को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है, हालांकि ये प्रोडक्ट हमें आराम और सुविधा मुहैया करवाती है, लेकिन इसके लिए पर्यावरण को एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. इनकी प्रोडक्शन, कन्सम्शन और डिस्पोजल जैसे कई इकोलोजीकल इश्यू से गुजरना पड़ता है, जैसे डिफोरेस्टेशन, प्रदूषण और लैंडफिल की भरमार होती जा रही है. वाटरएड इंडिया और मेंस्ट्रुअल हाइजीन एलायंस औफ इंडिया (2018) के अनुसार भारत में तकरीबन 33.6 करोड़ महिलाओं को पीरियड्स होते हैं, जिसमें हर साल 1200 करोड़ सैनिटरी पैड्स का कूड़ा निकलता है, जो लगभग 1,13,000 टन है.

क्या कहते हैं आंकड़े  

पूरी दुनिया के लिए सैनिटरी पैड्स का कचरा एक समस्या बन चुका है, न केवल सैनिटरी पैड्स बल्कि बच्चों के डायपर्स भी सेहत और पर्यावरण, दोनों के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं.

सेंट्रल पौल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की 2018 – 19 की रिपोर्ट के अनुसार सैनिटरी पैड में 90 प्रतिशत प्लास्टिक होता है, जिससे भारत में हर साल 33 लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा निकलता है. यहां पर जारी ‘मेंस्ट्रुअल वेस्ट 2022’ की रिपोर्ट के अनुसार सैनिटरी नैपकिन में Phthalates नाम का केमिकल इस्तेमाल होता है.  यह केमिकल कैंसर का कारण बन सकता है. साथ ही इनफर्टिलिटी, पीसीओडी और एंडोमेट्रियोसिस की दिक्कत भी कर सकता है. इससे लकवा मार सकता है और याद्दाश्त भी जा सकती है.

टौक्सिक लिंक की रिसर्च के अनुसार सैनिटरी पैड में वोलेटाइल और्गेनिक कंपाउंड्स (VOCs) नाम का केमिकल भी इस्तेमाल होता है. यह केमिकल पेंट, डियोड्रेंट, एयर फ्रेशनर, नेल पॉलिश जैसी चीजों में डाला जाता है. सैनिटरी पैड में इस केमिकल की मदद से फ्रेंगरेंस यानि खुशबू जोड़ी जाती है. इनकी एनवायरनमेंट  ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2021 में 1230 करोड़ सैनिटरी पैड्स कूड़ेदान में फेंके गए. एक सैनिटरी पैड पर्यावरण को 4 प्लास्टिक बैग के बराबर नुकसान पहुंचाता है.

आइए जानते है, इन डाइपर्स और सैनिटेरी पैड्स का प्रभाव हमारे दैनिक जीवन पर क्या पड़ रहा है और सरकार का इस दिशा में ध्यान देना कितना जरूरी है,

ऐक्सपर्ट की राय  

इस बारें में एनवायरन्मेंटलिस्ट डा. भारती चतुर्वेदी कहती है कि अभी सरकार का ध्यान भी इस ओर थोड़ा गया है, इसमें जो लोग अब तक सैनिटेरी पैड या डायपर्स बना रहे थे, उन्हें ही इको फ्रेंडली सैनिटेरी पैड बनाने का सुझाव दिया जा रहा है और सही डिस्पोजल की जिम्मेदारी भी उन्हें ही दी जा रही है, जो बहुत पहले करना आवश्यक था.

असल में अब तक के सैनिटेरी पैड और डाइपर को बड़ी – बड़ी कंपनिया बेचती आ रही है, इसमें माइक्रो प्लास्टिक है, जो फिजिकल और केमिकल दोनों तरीके से पर्यावरण को दूषित करती है, इस वजह से सरकार ने सेनीटेरी पैड और डायपर की सही डिस्पोजल की जिम्मेदारी उन्हें ही लेने की बात कही है, देखना है, इसपर कितना काम हो पाता है.

प्लास्टिक का डिस्पोजल जमीन में संभव नहीं  

डा. भारती का आगे कहना है कि प्लास्टिक के 500 साल या 700 साल में डिसौल्व होने की बात जो कही जाती है, वैज्ञानिक दृष्टि से वह बिल्कुल गलत है, ऐसा कभी नहीं होता है. यही वजह है कि आज प्लास्टिक ह्यूमन ब्लड में पाया जा रहा है, लंग्स में भी निकला है. असल में प्लास्टिक छोटा होकर माइक्रो पार्टिकल बन जाता है, ऐसे में हवा में सांस के द्वारा लंग्स में चला जाता है, जबकि खून में भोजन के द्वारा जाता है, मसलन आपने अगर मछली खाई हो और मछली ने अगर माइक्रो प्लास्टिक खाई हो, तो मछली के जरिए आप प्लास्टिक ही खा रहे है. माइक्रो प्लास्टिक इतना छोटा होता है कि आप दूरबीन के बिना आंख से नहीं देख सकते. इस तरह से हम सभी अब प्लास्टिक के पुतले बन रहे है, जिसका असर हमारे शरीर पर हो रहा है.

मेन्स्ट्रुअल हेल्थ प्रोडक्ट को फ्री देना जरूरी

इसके आगे वह कहती है कि यहां सबसे पहले हर कामकाजी लड़कियों को मेन्स्ट्रुअल हेल्थ प्रोडक्ट फ्री में मिलना जरूरी है. अभी भी हमारे देश में बहुत सारी लड़कियां गंदे कपड़े प्रयोग करती है, इसलिए इन्हें बायोडिग्रेडेबल और अच्छी क्वालिटी के कपड़ों के बने सैनिटेरी पैड या मेन्स्ट्रुअल कप्स मिलने चाहिए. इनमें भी तीन से चार कैटिगरी के चौइस होने चाहिए, ताकि स्कूल जाने वाली लड़कियों को इसकी सुविधा मिले. इसमें ध्यान रखने योग्य बात यह है कि सैनिटेरी पैड बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से नहीं, बल्कि बायोडिग्रेडेबल मटेरियल से बने होने चाहिए. आजकल रियूज करने वाली काफी मटेरियल मार्केट में आ चुके है. अगर स्कूल दूर है, तो गांव में बायोडिग्रेडेबल मटेरियल चलेगा. ग्रोनअप लड़कियां है, तो मेन्स्ट्रुअल कप्स का भी प्रयोग कर सकती है और इससे किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती.

ऐक्सपर्ट सुझाव

डा. भारती कहती है कि इस प्रकार अब तक जो गलत चीजें हुई है, उससे इको फ़्रेंडली बनाना है, इसके लिए जो कम्पनियाँ इको फ्रेंडली चीजें बनाती है, उन्हें फन्डिंग के साथसाथ इंसेन्टीव्स देने पड़ेंगे, ताकि वे इससे अच्छी तरह से अधिक मात्रा में बना सकें,

तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन लड़कियों के पास पैसे की कमी है, उन्हे बायोडिग्रेडेबल मटेरियल फ्री में देना है, इससे उन्हे खरीदने की समस्या कम होगी.

जननेताओं के लिए संदेश  

यहां यह भी कहना जरूरी है कि महिलाओं को नेताओं द्वारा, फ्री बस सर्विस, इलेक्ट्रिसिटी या उनके अकाउंट में पैसे न डालकर उन्हें फ्री में इको फ़्रेंडली सैनिटेरी पैड और डायपर्स दें, जो उनके हेल्थ और हायजिन के लिए बहुत जरूरी है. मैंने अपने एक ट्वीट में भी इसका जिक्र किया है कि 12 साल की लड़कियों से लेकर 55 साल की महिलाओं को आप ग्रीन मेन्स्ट्रूअल हेल्थ प्रोडक्ट दें, क्योंकि किसी गरीब महिला को पैसे देने पर उसका पति ही सबसे पहले उसे ले लेगा या फिर वह महिला घर के लिए खर्च करेगी. अपने पर खर्च नहीं कर सकती. इसलिए महिलाओं की हेल्थ को आप देखें, न कि अपनी सुविधा को.

सरकार दें ध्यान

डायपर्स के बारें में डा. भारती कहती है कि कपड़े की डायपर्स बहुत अच्छे होते है, इसे एक बार प्रयोग में लाने पर, उसे बाद में स्टरलाइज कर वापस रियूज किया जा सकता है. वैसी सर्विस एक जमाने में धोबी किया करता था, जो हर परिवार से कपड़े ले जाकर उस पर एक निशान बना देता था, जो हर घर के लिए अलग होता था, उस निशान के आधार पर वह उन कपड़ों को घर पर डिलीवरी करता था. वैसी सर्विस को फिर से एक बार शुरू करने की जरूरत है, लेकिन ये नए तरीके से होना है, मसलन वाशिंग मशीन के साथ स्टरलाइज करने वाली मशीन होनी चाहिए, जिससे डायपर्स रोज धोकर प्रयोग में लाई जा सकें. कई लोग अभी भी डायपर्स का रियूज करते है, उनके बच्चे कभी बीमार नहीं होते. इसे रोकने के लिए इन चीजों पर टैक्स बढ़ाना है और इकोफ्रेंडली डायपर्स बनाने वालों को टैक्स फ्री के साथ इंसेन्टीव्स देना पड़ेगा. ऐसी कम्पनियां हर थोड़ी दूरी और हर वार्ड में, सेंटर्स के साथ होने चाहिए. इसके लिए सरकार को आशा वर्कर्स जैसे कई संस्थाओं को पूंजी देने की जरूरत है, क्योंकि कोई गरीब सरकार की सहयोग के बिना ऐसी मशीन नहीं लगा सकता. इसे EPR यानि एक्स्टेंडेड प्रोड्यूसर रेस्पान्सबिलटी के तहत इसे फ्री कराए और रियूजेबल मौडल बनवाएं. आजकल की माएं कामकाजी है, इसलिए उन्हे जागरूकता के साथ – साथ, एफोरडेबल और सरल औप्शन देना है, ताकि वे इस प्रोसेस को फौलो कर सकें, क्योंकि कचरे के ढेर में भी डायपर्स फेंकना खतरा है. हालांकि कुछ लोगों ने सैनिटेरी पैड से पेपर बनाये है, जो बहुत ही महंगा होता है. सरकार अगर सब्सिडाइज कर देती है, तो काम आसान होता है.

इस प्रकार सेनीटरी पैड्स और डायपर्स आज के जमाने में वाकई एक सहूलियत वाला प्रोडक्ट है, जिसमें पर्सनल हाईजीन के साथसाथ प्रयोग करना आसान होता है, लेकिन इसके द्वारा पर्यावरण के प्रदूषण को नकारा नहीं जा सकता. इसके खतरनाक प्रभाव फौरेस्ट एरिया में कमी, बढ़ते प्रदूषण और कचरे का ढेर दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है, जिसके बारें में जल्दी ऐक्शन लेना बहुत जरूरी है. आज यह आवश्यक हो चुका है कि इसे बनाने वाले से लेकर, कोनज्यूमर्स और पौलिसी मेकर्स सभी को इस दिशा में आल्टर्नेट खोजने की जरूरत है और इको फ्रेंडली मेटेरियल से बने सैनिटेरी पैड और डायपर्स के यूज को बढ़ाना है, ताकि पर्यावरण के लिए ऐसी प्रोडक्ट हार्मफुल न हो और हमारा फ्यूचर जेनरेशन भी इस खूबसूरत Planet के इन नैचुरल रिसोर्स का आनंद अपने जीवन में उठा सकें.

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