Broken Family Story : पतिहंत्री

लेखक- विनय कुमार पाठक

Broken Family Story : काश,जो बात अनामिका अब समझ रही है वह पहले ही समझ गई होती. काश, उस ने अपने पड़ोसी के बहकावे में आ कर अपने ही पति किशन की हत्या नहीं की होती. आज वह जेल के सलाखों के पीछे नहीं होती. यह ठीक है कि उस का पति साधारण व्यक्ति था. पर था तो पति ही और उसे रखता भी प्यार से ही था. उस का छोटा सा घर, छोटा सा संसार था. हां, अनावश्यक दिखावा नहीं करता था किशन.

अनावश्यक दिखावा करता था समीर, किशन का दोस्त, उसे भाभी कहने वाला व्यक्ति. वह उसे प्रभावित करने के लिए क्याक्या तिकड़म नहीं लगाता था. पर उस समय उसे यह तिकड़म न लग कर सचाई लगती थी. उस का पति किशन समीर का पड़ोसी होने के साथसाथ उस का मित्र भी था. अत: घर में आनाजाना लगा रहता था.

समीर बहुत ही सजीला और स्टाइलिश युवक था. अनामिका से वह दोस्त की पत्नी के नाते हंसीमजाक भी कर लिया करता था. धीरेधीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं. अनामिका को किशन की तुलना में समीर ज्यादा भाने लगा. समय निकाल कर समीर अनामिका से फोन पर बातें भी करने लगा. शुरू में साधारण बातें. फिर चुटकुलों का आदानप्रदान. फिर कुछकुछ ऐसे चुटकुले जो सिर्फ काफी करीबी लोगों के बीच ही होती हैं. फिर अंतरंग बातें. किशन को संदेह न हो इसलिए वह सारे कौल डिटेल्स को डिलीट भी कर देती थी. समीर का नंबर भी उस ने समीरा के नाम से सेव किया था ताकि कोई देखे तो समझे कि किसी सखी का नंबर है. समीर ने अपने डीपी भी किसी फूल का लगा रखा था. कोई देख कर नहीं समझ सकता था कि वह किस का नंबर है.

धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि अनामिका को समीर के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगने लगा. समीर भी उस से यही कहता था कि उसे अनामिका के अलावा कोई भी अच्छा नहीं लगता. कई बार जब वह घर में अकेली होती तो समीर को कौल कर बुला लेती और दोनों जम कर मस्ती करते थे. घर के अधिकांश सदस्य निचले माले पर रहते थे अत: सागर के छत के रास्ते से आने पर किसी को भनक भी नहीं लगती थी.

न जाने कैसे किशन को भनक लग गई.

उस ने अनामिका से कहा, ‘‘तुम जो खेल खेल रही हो उस से तुम्हें भी नुकसान है, मुझे भी

और समीर को भी. यह खेल अंत काल तक तो चल नहीं सकता. तुम चुपचाप अपना लक्षण सुधार लो.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो? समीर तुम्हारा

दोस्त है. इस नाते मैं उस से बातें कर लेती हूं

तो इस में तुम्हें खेल नजर आ रहा है? अगर तुम नहीं चाहते तो मैं उस से बातें नहीं करूंगी,’’ अनामिका ने प्रतिरोध किया पर उस की आवाज में खोखलापन था.

बात आईगई तो हो गई, लेकिन इतना तय था कि अब अनामिका और समीर का मिलनाजुलना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर हो गया था. पर अनामिका समीर के प्यार में अंधी हो चुकी थी. समीर को शायद अनामिका से प्यार तो न था पर वह उस की वासनापूर्ति का साधन थी. अत: वह अपने इस साधन को फिलहाल छोड़ना नहीं चाहता था.

एक दिन समीर ने मौका पा कर अनामिका को फोन किया.

‘‘हैलो’’

‘‘कहां हो डार्लिंग? और कब मिल रही हो?’’

‘‘अब मिलना कैसे संभव होगा? किशन को पता चल गया है.’’

‘‘किशन को अगर रास्ते से हटा दें तो?’’

‘‘इतना आसान काम है क्या? कोई फिल्मी कहानी नहीं है यह. वास्तविक जिंदगी है.’’

‘‘आसान है अगर तुम साथ दो. फिल्मी कहानी भी हकीकत के आधार पर ही बनती है. उसे रास्ते से हटा देंगे. यदि संभव हुआ तो लाश को ठिकाने लगा देंगे अन्यथा पुलिस को तुम खबर करोगी कि उस की हत्या किसी ने कर दी है. पुलिस अबला विधवा पर शक भी नहीं करेगी. फिर हम भाग चलेंगे कहीं दूर और नए सिरे से जिंदगी बिताएंगे.’’

अनामिका समीर के प्यार में इतनी अंधी हो चुकी थी कि उस के सोचनेसमझने की क्षमता जा चुकी थी. समीर ने जो प्लान बताया उसे सुन पहले तो वह सकपका गई पर बाद में वह इस पर अमल करने के लिए राजी हो गई.

प्लान के अनुसार उस रात अनामिका किशन को खाना खिलाने के बाद कुछ देर

उस के साथ बातें करती रही. फिर दोनों सोने चले गए. अनामिका किशन से काफी प्यार से बातें कर रही थी. दोनों बातें करतेकरते आलिंगनबद्ध हो गए. आज अनामिका काफी बढ़चढ़ कर सहयोग कर रही थी. किशन को भी यह बहुत ही अच्छा लग रहा था.

उसे महसूस हुआ कि अनामिका सुबह की भूली हुई शाम को घर आ गई है. वह भी काफी उत्साहित, उत्तेजित महसूस कर रहा था. देखतेदेखते उस के हाथ अनामिका के शरीर पर फिसलने लगे. वह उस के अंगप्रत्यंग को सहला रहा था, दबा रहा था. अनामिका भी कभी उस के बालों पर हाथ फेरती कभी उस पर चुंबन की बौछार कर देती. प्यार अपने उफान पर था. दोनों एकदूसरे में समा जाएंगे. थोड़ी देर तक दोनों एकदूसरे में समाते रहे फिर किशन निढाल हो कर हांफते हुए करवट बदल कर सो गया.

अनामिका जब निश्चिंत हो गई कि किशन सो गया है तो वह रूम से बाहर आ कर अपने मोबाइल से समीर को मैसेज किया. समीर इसी ताक में था. समीर के घर की छत किशन के घर की छत से मिला हुआ था. अत: उसे आने में कोई परेशानी नहीं होनी थी. जैसे ही उसे मैसेज मिला वह छत के रास्ते ही किशन के घर में चला आया. अनामिका उस की प्रतीक्षा कर ही रही थी. वह उसे उस रूम में ले कर गई जिस में किशन बेसुध सोया हुआ था.

सागर अपने साथ रस्सी ले कर आया था. उस ने धीरे से रस्सी को सागर के गरदन के नीचे से डाल कर फंदा बनाया और फिर जोर से दबा दिया. नींद में होने के कारण जब तक किशन समझ पाता स्थिति काबू से बाहर हो चुकी थी. तड़पते हुए किशन अपने हाथपैर फेंक रहा था. अनामिका ने उस के पैर को अपने हाथों से दबा दिया. उधर सागर ने रस्सी पर पूरी शक्ति लगा दी. मुश्किल से 5 मिनट के अंदर किशन का शरीर ढीला पड़ गया.

अब आगे क्या किया जाए यह एक मुश्किल थी. लाश को बाहर ले जाने से लोगों के जान जाने का खतरा था. सागर छत के रास्ते वापस अपने घर चला गया. अनामिका ने रोतेकलपते हुए निचले माले पर सोए घर के सदस्यों को जा कर बताया कि किसी ने किशन की हत्या कर दी है. पूरे घर में कोहराम मच गया. पुलिस को सूचना दी गई. योजना यही थी कि कुछ दिनों के बाद अनामिका सागर के साथ कहीं दूर जा कर रहने लगेगी.

पर पुलिस को एक बात नहीं पच रही थी कि पत्नी के बगल में सोए पति की कोई हत्या कर जाएगा और पत्नी को पता नहीं चलेगा. पुलिस अनामिका से तथा आसपास के अन्य लोगों से तहकीकात करती रही. किसी ने पुलिस को सागर और अनामिकाके प्रेम प्रसंग की बात बता दी. पुलिस ने सागर से भी पूछताछ की. उस का जवाब कुछ बेमेल सा लगा तो उस के मोबाइल कौल की डिटेल ली गई. स्पष्ट हो गया कि दोनों के बीच कई हफ्तों से बातें होती रही हैं. कड़ी पूछताछ हुई तो अनामिका टूट गई. उस ने सारी बातें पुलिस को बता दी. सागर और अनामिका दोनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. अब अनामिका को एहसास हुआ कि उस ने समीर के बहकावे में आ कर गलत कदम उठा लिया था.

अब उन के पास पछताने के सिवा कोई चारा नहीं था.

Family Hindi Story : फर्क पड़ता है

Family Hindi Story : अभी  सरला आंटी सीढि़यों से उतर कर नीचे आएंगी, आते ही पूछेंगी, ‘‘चिडि़यों को प्रसाद खिलाया?’’

कभीकभी नीलू का दिल करता कि झूठ कह दे हां खिला दिया… 2 घंटे के पूजापाठ एवं मंत्र जाप के बाद प्रसाद खिलाने के लिए चिडि़यों की प्रतीक्षा में उस का काफी समय नष्ट हो जाता था. अकसर वह काफी विलंब से औफिस पहुंचती. परंतु नीलू चाह कर भी सरला आंटी से झूठ नहीं कह सकती थी. आंटी तुरंत उस का झूठ ताड़ लेंगी. उन की तेज नजर फौरन उस के झूठ को पकड़ लेगी. सरला आंटी किसी सीबीआई के जांच अधिकारी की तरह उस से पूछताछ करेंगी और झूठ पकड़ने में उन्हें जरा सी भी देर नहीं लगेगी.

आते ही सरला आंटी पूछेंगी, ‘‘आज चिडि़यों की चहचहाट सुनाई क्यों नहीं पड़ी? चिडि़यों को प्रसाद में क्या खिलाया? आज कितनी चिडि़यां थीं?’’ अब भला, चिडि़यों की गिनती कौन करे. इतने सारे सवाल पूछ लेने के बाद भी वह सीधे पूजा के स्थान पर जाएंगी, आरती के थाल को छू कर देखेंगी, अगरबत्ती एवं कपूर की गंध को सूंघ कर ही वे सारी सचाई पता कर लेंगी.

चिडि़यों को प्रसाद खिलाने का सिलसिला पिछले कुछ महीनों से प्रतिदिन नियमपूर्वक चलता आ रहा है, जब से नीलू की प्रैगनैंसी की खबर सरला आंटी के कानों तक पहुंची थी तभी से.

आंटी को नीलू की प्रैगनैंसी की खबर जैसे ही मिली, उन्होंने अपने घरेलू पंडितजी को बुलाया. पंडितजी ने नीलू की जन्मपत्री मंगवाई और मन में ही कुछ गुणाभाग कर के नीलू एवं उस के गर्भ में पल रहे बच्चे के ऊपर राहु की बुरी दृष्टि के होने का पता लगा लिया एवं साथ के साथ ही इस से बचने का उपाय भी सुझा दिया.

पंडितजी के बताए गए उपाय के अनुसार, नीलू को प्रतिदिन सुबह अपने इष्ट देव की प्रतिमा के आगे दीप, अगरबत्ती, कपूर आदि जला कर बताए गए मंत्र का जाप करना था एवं चढ़ाए गए प्रसाद को कम से कम 5 या 7 चिडि़यों को खिलाना था. इतने सारे टोटके अथवा मंत्र जाप से राहु की बुरी दृष्टि का तो पता नहीं लेकिन इन सभी विधिविधान को नियम एवं निष्ठापूर्वक करने के बाद जब नीलू औफिस देरी से पहुंचती तो बौस की कोप दृष्टि का शिकार अवश्य होती.

जिस प्रैगनैंसी की खबर को पा कर उस का मन आह्लादित हो उठा था, उस हर्षोल्लास की जगह अब डर एवं चिंता ने ले ली थी. नीलू एवं उस के पति गौरव के पहली बार मांबाप बनने की खुशी पर राहु नाम के इस अज्ञात दुश्मन ने अपने खौफ एवं आतंक का चाबुक लगा दिया था.

बैंगलुरु के शोभा डुप्लैक्स अपार्टमैंट की निचली मंजिल पर नीलू अपने पति गौरव के साथ पिछले साल ही रहने आई थी. अपार्टमैंट की ऊपरी मंजिल पर अपार्टमैंट की अकेली मालकिन सरला आंटी अकेली रहती है.

मकानमालकिन सरला आंटी, नीलू एवं उस के पति गौरव पर अपनी सगी संतान की तरह प्यार और अधिकार रखती हैं क्योंकि सरला आंटी का अपनी कोई संतान नहीं है. नीलू एवं गौरव भी सरला आंटी को पूरी इज्जत और सम्मान देते हैं एवं बदले में सरला आंटी भी उन पर अपने बच्चों जैसा प्यार लुटाती हैं.

आज नीलू की थोड़ी सी भी इच्छा मंत्र जाप करने की नहीं थी, फिर भी जैसेतैसे उस ने मंत्र जाप तो कर लिए लेकिन नियम अनुसार उस ने जैसे ही आरती के लिए कपूर एवं अगरबत्ती जलाई, उस के गंध एवं धुएं से उस का जी मिचलाने लगा. वह कुछ देर के लिए कमरे से निकल कर बाहर बालकनी में आ गई है ताकि वहां की फ्रैश हवा में उसे कुछ बेहतर महसूस हो. बाहर आ कर उस ने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई. आज उसे एक भी चिडि़या नजर नहीं आ रही थी. कुछ देर तक उस की दृष्टि यहांवहां दौड़ती रही फिर वह आकाश की ओर देखने लगी. आकाश में  इस वक्त छोटेछोटे बादल के टुकड़े आपस में अठखेलियां कर रहे थे. बादल के ये टुकड़े कभी एक जगह एकत्रित हो जाते तो कभी अलगअलग हो कर नीले आकाश में कहीं गुम हो जाते. बादलों के इसी क्रीडा को देखती हुई नीलू कुछ पलों के लिए खो सी गई.

तभी उस के कानों में गौरव की आवाज गूंजी, ‘‘पूजा अधूरी ही छोड़ दी.’’

‘‘नहीं, वह बस. आरती करनी रह गई है. मु?ा से कपूर की गंध बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसीलिए बाहर आ गई,’’ नीलू ने बालकनी से ही उत्तर दिया.

‘‘इतने दिनों से तुम्हें  इस तरह की कोई समस्या नहीं थी. अब अचानक तुम्हें कपूर के गंध अच्छे नहीं लग रही.’’

‘‘कपूर ही नहीं अगरबत्ती की गंध से भी मेरा जी मिचल रहा है,’’ नीलू ने अपनी परेशानी सम?ाने की कोशिश की.

‘‘कपूर ही तो है, थोड़ी देर के लिए बरदाश्त कर लो, कुछ दिन की ही तो बात है. आंटी की बात मान कर अब तक जैसे करती आई हो, थोड़े दिन और कर लेने से क्या फर्क पड़ता है?’’

गौरव की जिद करने पर नीलू बालकनी से अंदर आ गई. बालकनी के खुलने के साथ ही हवा का एक तेज ?ांका पूजा के पास रखे दीपक से टकराया और वह बुझ गया.

‘‘अपशगुन, अमंगल,’’ पीछे से सरला  आंटी की तेज आवाज कमरे में गूंज गई.

नीलू विस्मित सी सरला आंटी की ओर देखने लगी.

एक पल के लिए नीलू की इच्छा हुई कि वह आंटी से कह दे, ‘‘अब उस से यह सब नहीं होता. ये सब टोनेटोटके कर पाना अब उस के वश  की बात नहीं… लेकिन वह कुछ भी न कह पाने की विवशता में खुद को जकड़ा हुआ महसूस करती रही. आने वाले बच्चे के शुभअशुभ का डर अब उस के दिमाग पर भी हावी हो गया था.

आंटी की बातें सुन कर गौरव का चेहरा भी सहमा सा दयनीय हो गया, ‘‘पूजा खंडित हो गई. दीए का इस तरह बुझ जाना अशुभ का संकेत है, पूजा खंडित हो गई. इस के काफी बुरे परिणाम हो सकते हैं,’’ सरला आंटी बारबार एक ही वाक्य दोहराए जा रही थी.

नीलू को कुछ भी सम?ा में नहीं आ रहा था. दिग्भ्रांत सी खड़ी नीलू सरला आंटी का चेहरा देखे जा रही थी.

घबराई हुई आंटी ने पंडितजी को फोन लगा दिया, ‘‘हूं. हां… हां… अच्छा ठीक है’’ आदि शब्दों के साथसाथ आंटी के चेहरे का भाव बनता और बिगड़ जाता, ‘‘जी.. हां ठीक… करने के लिए समझा देंगे. ठीक है, आज ही यह उपाय करवा देंगे… जी, धन्यवाद रखती हूं,’’ और आंटी ने एक ?ाटके में फोन कट कर दिया.

पंडितजी से बात हो जाने के बाद आंटी की आंखें जुगनू सी चमक उठी, ‘‘नीलू, तुम चिंता मत करो, जो कुछ भी तुम से भूलचूक हो गई है उस का प्रायश्चित्त एवं ग्रहों की दशा सुधारने के लिए पंडितजी ने बहुत ही अच्छा उपाय बता दिया है. यह उपाय तुम्हें आज ही करना होगा…’’ कहती हुई आंटी नीलू को अपने साथ ले कर अपार्टमैंट के बाहर आ खड़ी हुईं.

आंटी के साथ चलती हुई नीलू ने अपनी कलाई घड़ी पर नजर दौड़ाई.  सुबह के 8:30 बज चुके थे. कहां तो उस ने सोचा था आज औफिस जल्दी पहुंच कर इस महीने की रिपोर्ट तैयार करने का काम पूरा कर लेगी. ग्रहों को सुधारने के चक्कर में उस के औफिस के कामों में गड़बडि़यां होने लगी हैं. डाटा माइनिंग का कार्य भी वह ठीक से नहीं कर पा रही है.

अपार्टमैंट के बाहर सड़क की दूसरी ओर एक छोटा सा पार्क था, आंटी चारों तरफ नजरें घुमाघुमा कर कुछ ढूंढती रहीं. फिर अचानक बोल पड़ीं,’’ अरे वह रहा.’’

नीलू की दृष्टि भी आंटी के निगाहों का पीछा करती हुई एक पीपल के पेड़ पर जा टिकी.

यही वह पेड़ है, जहां तुम्हें यह उपाय करना है. सब से पहले बेलपत्र के पत्तों पर तुम्हें चंदन से कुछ मंत्र लिखने हैं और पंचमुखी दीपक इस पेड़ के नीचे जलाने हैं,’’ आंटी पंडितजी द्वारा बताई गई सारी विधि एकएक कर नीलू को समझती जा रही थीं और नीलू औफिस में होने वाली एक इंपौर्टैंट मीटिंग के लिए सोचसोच कर परेशान हो रहे थी कि आज अगर वह देर से पहुंची तो बौस की डांट तो लगेगी ही, समय पर मीटिंग में शामिल भी नहीं हो सकेगी.

‘‘अरे हां ,एक और बात, आज तुम्हें निर्जला रहना है 24 घंटे के लिए.’’

आंटी की बात पर नीलू जैसे सोते से जागी. अभी तक वह इसे जितना सरल समझ रही थी उतना था नहीं. बहुत ही कठीन पूजा करने के लिए आंटी उस से कह रही थीं. लेकिन सरला आंटी बड़ी ही सरलता से पंडितजी द्वारा बताए गए एकएक विधिविधान को समझ रही थीं.

‘‘बेटा, यह उपाय तुम्हें थोड़ा से कठीन लग रहा होगा. पर तुम्हें ही करना है, तभी इस का लाभ होगा. अपनी  संतान की रक्षा आखिर एक मां को ही  तो करनी होती है,’’ आंटी ने नीलू के माथे को प्यार से सहलाया.

निर्जला व्रत की बात को सुन कर गौरव भी थोड़ा परेशान हो उठा. उस ने नीलू से कहा, ‘‘यदि  मैं तुम्हारी जगह निर्जला रह लूं तो कोई दिक्कत तो नहीं होगी?’’

‘‘नहीं गौरव, तुम नहीं कर सकते. यह व्रत आंटी ने सिर्फ मुझे ही रखने के लिए कहा है. छोड़ो, जाने दो, तुम चिंता मत करो, एक दिन की ही तो बात है, क्या फर्क पड़ता है. थोड़ी सी भूख और प्यास ही तो बरदाश्त करनी है, मैं कर लूंगी,’’ नीलू ने जब दृढ़ता से कहा तो गौरव ने भी चैन की सांस ली.

‘‘फिर तुम औफिस से आज के लिए छुट्टी क्यों नहीं ले लेती?’’ गौरव ने सुझाव दिया.

‘‘छुट्टी नहीं ले सकती. आज ही रिपोर्ट सबमिट करनी है, एक इंपौर्टैंट मीटिंग भी है. नहीं,  मैं छुट्टी लेने का सोच भी नहीं सकती,’’ नीलू ने अपनी विवशता दिखाने की कोशिश की.

आंटी के द्वारा बताए गए विधिविधान को पूरा करने में नीलू को काफी समय लग गया. आज पहले से भी अधिक देर से औफिस पहुंची, रास्ते में उस ने अपने मोबाइल पर कौल्स चैक कीं. औफिस से बहुत सारी कौल्स आई थीं.

फोन साइलैंट मोड में होने के कारण उसे पता ही नहीं चला.

औफिस पहुंचते ही चपरासी ने उसे बौस का हुक्म सुना दिया. उसे तुरंत ही बौस ने अपने कैबिन में बुलाया था.

नीलू को आज बौस से काफी डांट खानी पड़ी. डाटा माइनिंग के कार्य में उस से काफी त्रुटियां हुई थीं, जिन के कारण पिछले कुछ महीनो में कंपनी का काफी नुकसान हुआ था. बौस ने उसे अगली मीटिंग में रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा. इस महीने की रिपोर्ट उस ने अभी तक तैयार नहीं की थी, इस के लिए भी उसे काफी डांट खानी पड़ी.

बौस के कैबिन से निकल कर नीलू वापस अपने सीट पर आ गई. एक तो काम का प्रैशर दूसरे उस ने पानी का एक घूंट भी नहीं पीया था. अत्यधिक तनाव एवं भूखप्यास के बीच नीलू रिपोर्ट तैयार करने में लग गई.

यह रिपोर्ट उसे आज ही होनी वाली मीटिंग से पहले तैयार करनी थी. जैसेतैसे उस ने रिपोर्ट तैयार की. मीटिंग के लिए हौल तक पहुंची ही थी कि उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. गश खा कर वह जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ी. उस की तबीयत बिगड़ने की खबर गौरव तक पहुंचा दी गई. घबराया हुआ गौरव अस्पताल पहुंचा. अस्पताल में नीलू को बैड पर लिटाया गया था. किंतु डाक्टर अभी तक नहीं पहुंची थी.

‘‘सर, प्लीज आप एक जगह बैठ जाइए,’’ बेचैनी में गौरव को यहां से वहां टहलते देख कर नर्स ने उसे एक जगह बैठे रहने का निर्देश दिया, ‘‘डाक्टर से फोन पर बात हो गई है, वे बस पहुंचने ही वाली हैं.’’

‘‘पिछले 1 घंटे से आप यही बात कह रही हैं, मजाक बना कर रखा हुआ है,’’ गौरव ने अपनी सारी बेचैनी, डर, घबराहट, सभी कुछ एकसाथ नर्स पर उतार फेंका, ‘‘आप मेरी बात डाक्टर से करवाओ इट्स इमरजैंसी.’’

‘‘प्लीज आप कोऔर्डिनेटर से बात कीजिए’’ नर्स ने एक बार फिर गौरव से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा, ‘‘डाक्टर अभी फोन नहीं उठा रही हैं. ड्राइव कर रही होंगी… शायद रास्ते में होगी.’’

कुछ ही देर में डाक्टर आ गईं. नीलू को ग्लूकोस चढ़ाया गया. कुछ समय के लिए औब्जर्वेशन में रखने के बाद डाक्टर की सख्त हिदायत एवं जरूरी दवाइयों के साथ उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. नीलू को कंप्लीट बैड रैस्ट लेने की सलाह दे कर डाक्टर ने उसे घर ले जाने की अनुमति दे दी.

घर पहुंचने के बाद नीलू को अपने मोबाइल पर एक मेल प्राप्त हुआ जोकि उस के औफिस से था.

बारबार औफिस की तरफ से दी जाने वाली चेतावनी के बाद भी अनियमितता एवं उस के काम में काफी त्रुटियां पाई गईं जिस से कंपनी को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. अत: उसे नौकरी से बरखास्त किया जाता है.

मेल पढ़ कर नीलू काफी तनावग्रस्त हो गई. दुखी मन से गौरव भी उस के पास बैठा हुआ था. तभी सरला आंटी भी उस का हाल जानने उस के पास पहुंचीं, ‘‘बेटा पंडितजी का तुम्हें धन्यवाद कहना चाहिए, उन के बताए हुए व्रत की वजह से ही आज जच्चा और बच्चा सहीसलामत घर वापस आ गया, बच्चा खतरे से बाहर है,’’ कह आंटी लाल रंग के धागे में बंधे एक ताबीज को नीलू को बांधने लगीं.

‘‘आंटी यह धागा मुझे मत बांधिए. प्लीज, मैं आप के आगे हाथ जोड़ती हूं, अब बस कीजिए,’’ नीलू ने आंटी को धागा बांधने से मना कर दिया. उस की आवाज में थोड़ी सख्ती थी.

‘‘आंटी ताबीज ही तो बांध रही हैं. एक धागा ही तो है, बांध लेने दो उन्हें, क्या फर्क पड़ता है?’’ गौरव ने नीलू को समझने की कोशिश की.

‘‘क्या सच में गौरव अब भी तुम यही कहोगे कि क्या फर्क पड़ता है. फर्क पड़ता है गौरव, हां, फर्क पड़ता है,’’ नीलू गुस्से से चीख पड़ी. अत्यंत गुस्से में नीलू ने धागे को तोड़ कर फेंक दिया. ताबीज हवा में उछाल खाता हुआ कमरे एवं बालकनी के बीच लगे कांच के पार्टीशन से जा टकराया. कांच के पार्टीशन के दूसरी तरफ कीटपतंगे कांच से टकराटकरा कर नीचे गिर रहे थे. कमरे के अंदर जल रहे बल्ब की रोशनी के प्रति आकर्षित ये कीटपतंगे अपने एवं रोशनी के बीच खड़ी उस कांच की दीवार को देख पाने में असमर्थ थे.

नीलू खामोशी से कांच की दीवार से टकरा कर जमीन पर गिरते उन कीटपतंगों को देखने लगी.

Beautiful Story : पीठ पीछे

Beautiful Story : दिनेश हर सुबह पैदल टहलने जाता था. कालोनी में इस समय एक पुलिस अफसर नएनए तबादले पर आए हुए थे. वे भी सुबह टहलते थे. एक ही कालोनी का होने के नाते वे एकदूसरे के चेहरे पहचानने लगे थे.

आज कालोनी के पार्क में उन से भेंट हो गई. उन्होंने अपना परिचय दिया और दिनेश ने अपना. उन का नाम हरपाल सिंह था. वे पुलिस में डीएसपी थे और दिनेश कालेज में प्रोफैसर.

वे दोनों इधरउधर की बात करते हुए आगे बढ़ रहे थे कि तभी सामने से आते एक शख्स को देख कर हरपाल सिंह रुक गए. दिनेश को भी रुकना पड़ा.

हरपाल सिंह ने उस आदमी के पैर छुए. उस आदमी ने उन्हें गले से लगा लिया.

हरपाल सिंह ने दिनेश से कहा,

‘‘मैं आप का परिचय करवाता हूं. ये हैं रामप्रसाद मिश्रा. बहुत ही नेक, ईमानदार और सज्जन इनसान हैं. ऐसे आदमी आज के जमाने में मिलना मुश्किल हैं.

‘‘ये मेरे गुरु हैं. ये मेरे साथ काम कर चुके हैं. इन्होंने अपनी जिंदगी ईमानदारी से जी है. रिश्वत का एक पैसा भी नहीं लिया. चाहते तो लाखोंकरोड़ों रुपए कमा सकते थे.’’

अपनी तारीफ सुन कर रामप्रसाद मिश्रा ने हाथ जोड़ लिए. वे गर्व से चौड़े नहीं हो रहे थे, बल्कि लज्जा से सिकुड़ रहे थे.

दिनेश ने देखा कि उन के पैरों में साधारण सी चप्पल और पैंटशर्ट भी सस्ते किस्म की थीं.

हरपाल सिंह काफी देर तक उन की तारीफ करते रहे और दिनेश सुनता रहा. उसे खुशी हुई कि आज के जमाने में भी ऐसे लोग हैं.

कुछ समय बाद रामप्रसाद मिश्रा ने कहा, ‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं.’’

उन के जाने के बाद दिनेश ने पूछा, ‘‘क्या काम करते हैं ये सज्जन?’’

‘‘एक समय इंस्पैक्टर थे. उस समय मैं सबइंस्पैक्टर था. इन के मातहत काम किया था मैं ने. लेकिन ऐसा बेवकूफ आदमी मैं ने आज तक नहीं देखा. चाहता तो आज बहुत बड़ा पुलिस अफसर होता लेकिन अपनी ईमानदारी के चलते इस ने एक पैसा न खाया और न किसी को खाने दिया.’’

‘‘लेकिन अभी तो आप उन के सामने उन की तारीफ कर रहे थे. आप ने उन के पैर भी छुए थे,’’ दिनेश ने हैरान हो कर कहा.

‘‘मेरे सीनियर थे. मुझे काम सिखाया था, सो गुरु हुए. इस वजह से पैर छूना तो बनता है. फिर सच बात सामने तो नहीं कही जा सकती. पीठ पीछे ही कहना पड़ता है.

‘‘मुझे क्या पता था कि इसी शहर में रहते हैं. अचानक मिल गए तो बात करनी पड़ी,’’ हरपाल सिंह ने बताया.

‘‘क्या अब ये पुलिस में नहीं हैं?’’ दिनेश ने पूछा.

‘‘ऐसे लोगों को महकमा कहां बरदाश्त कर पाता है. मैं ने बताया न कि न किसी को घूस खाने देते थे, न खुद खाते थे. पुलिस में आरक्षकों की भरती निकली थी. इन्होंने एक रुपया नहीं लिया और किसी को लेने भी नहीं दिया. ऊपर के सारे अफसर नाराज हो गए.

‘‘इस के बाद एक वाकिआ हुआ. इन्होंने एक मंत्रीजी की गाड़ी रोक कर तलाशी ली. मंत्रीजी ने पुलिस के सारे बड़े अफसरों को फोन कर दिया. सब के फोन आए कि मंत्रीजी की गाड़ी है, बिना तलाशी लिए जाने दिया जाए, पर इन पर तो फर्ज निभाने का भूत सवार था. ये नहीं माने. तलाशी ले ली.

‘‘गाड़ी में से कोकीन निकली, जो मंत्रीजी खुद इस्तेमाल करते थे. ये मंत्रीजी को थाने ले गए, केस बना दिया. मंत्रीजी की तो जमानत हो गई, लेकिन उस के बाद मंत्रीजी और पूरा पुलिस महकमा इन से चिढ़ गया.

‘‘मंत्री से टकराना कोई मामूली बात नहीं थी. महकमे के सारे अफसर भी बदला लेने की फिराक में थे कि इस आदमी को कैसे सबक सिखाया जाए? कैसे इस से छुटकारा पाया जाए?

‘‘कुछ समय बाद हवालात में एक आदमी की पूछताछ के दौरान मौत हो गई. सारा आरोप रामप्रसाद मिश्रा यानी इन पर लगा दिया गया. महकमे ने इन्हें सस्पैंड कर दिया.

‘‘केस तो खैर ये जीत गए. फिर अपनी शानदार नौकरी पर आ सकते थे, लेकिन इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी ये आदमी नहीं सुधरा. दूसरे दिन अपने बड़े अफसर से मिल कर कहा कि मैं आप की भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा नहीं बन सकता. न ही मैं यह चाहता हूं कि मुझे फंसाने के लिए महकमे को किसी की हत्या का पाप ढोना पड़े. सो मैं अपना इस्तीफा आप को सौंपता हूं.’’

हरपाल सिंह की बात सुन कर रामप्रसाद के प्रति दिनेश के मन में इज्जत बढ़ गई. उस ने पूछा, ‘‘आजकल क्या कर रहे हैं रामप्रसादजी?’’

हरपाल सिंह ने हंसते हुए कहा,

‘‘4 हजार रुपए महीने में एक प्राइवेट स्कूल में समाजशास्त्र के टीचर हैं. इतना नालायक, बेवकूफ आदमी मैं ने आज तक नहीं देखा. इस की इन बेवकूफाना हरकतों से एक बेटे को इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़ कर आना पड़ा. अब बेचारा आईटीआई में फिटर का कोर्स कर रहा है.

‘‘दहेज न दे पाने के चलते बेटी की शादी टूट गई. बीवी आएदिन झगड़ती रहती है. इन की ईमानदारी पर अकसर लानत बरसाती है. इस आदमी की वजह से पहले महकमा परेशान रहा और अब परिवार.’’

‘‘आप ने इन्हें समझाया नहीं. और हवालात में जिस आदमी की हत्या कर इन्हें फंसाया गया था, आप ने कोशिश नहीं की जानने की कि वह आदमी कौन था?’’

हरपाल सिंह ने कहा, ‘‘जिस आदमी की हत्या हुई थी, उस में मंत्रीजी समेत पूरा महकमा शामिल था. मैं भी था. रही बात समझाने की तो ऐसे आदमी में समझ होती कहां है दुनियादारी की? इन्हें तो बस अपने फर्ज और अपनी ईमानदारी का घमंड होता है.’’

‘‘आप क्या सोचते हैं इन के बारे में?’’

‘‘लानत बरसाता हूं. अक्ल का अंधा, बेवकूफ, नालायक, जिद्दी आदमी.’’

‘‘आप ने उन के सामने क्यों नहीं कहा यह सब? अब तो कह सकते थे जबकि इस समय वे एक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं और आप डीएसपी.’’

‘‘बुराई करो या सच कहो, एक ही बात है. और दोनों बातें पीठ पीछे ही कही जाती हैं. सब के सामने कहने वाला जाहिल कहलाता है, जो मैं नहीं हूं.

‘‘जैसे मुझे आप की बुराई करनी होगी तो आप के सामने कहूंगा तो आप नाराज हो सकते हैं. झगड़ा भी कर सकते हैं. मैं ऐसी बेवकूफी क्यों करूंगा? मैं रामप्रसाद की तरह पागल तो हूं नहीं.’’

दिनेश ने उसी दिन तय किया कि आज के बाद वह हरपाल सिंह जैसे आदमी से दूरी बना कर रखेगा. हां, कभी हरपाल सिंह दिख जाता तो वह अपना रास्ता इस तरह बदल लेता जैसे उसे देखा ही न हो.

Sad Hindi Story : स्वाद

Sad Hindi Story : हलकी-हलकी बरसात से मौसम ठंडा हो चला था. हवा तेज नहीं थी. शाम गहराती जा रही थी. दिल्ली से पंजाब जाने वाली बसें एकएक कर के रवाना हो रही थीं.

दिल्ली बसअड्डे पर आज भीड़ नहीं थी. दिल्ली से संगरूर जाने वाली बस आधी ही भरी थी. पौने 7 बज चुके थे. सूरज डूब चुका था. बस की रवानगी का समय हो चला था. 10 मिनट और इंतजार करने के बाद बस कंडक्टर ने सीटी बजाई. ड्राइवर ने इंजन स्टार्ट किया. गियर लगते ही बस लहरा कर भीड़ काटते हुए बसअड्डे का गेट पार कर बाहर आई और रिंग रोड की चौड़ी सड़क पर तेजी से दौड़ने लगी.

बस की रफ्तार बढ़ने के साथसाथ हलकीहलकी बरसात भी तेज बरसात में बदल गई. बस के सामने के शीशों पर लगे वाइपर भी तेजी से चलने लगे. पीरागढ़ी चौक तक आतेआते साढ़े 7 बज चुके थे. वहां पर आधा मिनट के लिए बस रुकी. 4-5 सवारियां भी चढ़ीं, पर बस अभी भी पूरी तरह से नहीं भरी थी.

बस आगे बढ़ी. नांगलोई, फिर बहादुरगढ़ और फिर रोहतक. बरसात बदस्तूर जारी थी. हवा भी तेज होती

जा रही थी. रोहतक बसस्टैंड पर बस

5 मिनट के लिए रुकी. भारी बरसात के चलते बसस्टैंड सुनसान था.

रोहतक पार होतेहोते बरसात भयंकर तूफान में बदल गई. 20 मिनट बाद बस लाखनमाजरा नामक गांव के पास पहुंची. वहां बड़ेबड़े ओले गिरने लगे थे. साथ ही, आंधी भी चलने लगी थी. सड़क के दोनों किनारे खड़े कमजोर पेड़ हवा के जोर से तड़तड़ कर टूटे और सड़क पर गिरने लगे.

बस का आगे बढ़ना मुमकिन नहीं था. सारा रास्ता जो बंद हो गया था. ड्राइवर ने बस रोक दी और इंजन भी बंद कर दिया.

जल्दी ही बस के पीछे तमाम दूसरी गाडि़यों की कतार भी लग गई.

अब भीषण बरसात तूफान में बदल गई. क्या करें? कहां जाएं? दिल्ली से संगरूर का महज 6 घंटे का सफर था. ज्यादातर मुसाफिर यही सोच कर चले थे कि रात के 12 बजे तक वे अपनेअपने घर पहुंच जाएंगे, इसलिए उन्होंने खाना भी नहीं खाया था. अब तो यहीं रात के 12 बज गए थे और उन के पेट भूख से बिलबिला रहे थे.

सब ने मोबाइल फोन से अपनेअपने परिवार वालों को कहा कि वे खराब मौसम के चलते रास्ते में फंसे हुए हैं.

मगर, बस के मुसाफिर कब तक सब्र करते. खाने का इंतजाम नहीं था. पानी

के लिए सब का गला सूख रहा था. लाखनमाजरा गांव था. खराब मौसम के चलते वहां रात को कोई दुकान नहीं खुली थी. कहीं कोई हैंडपंप, प्याऊ वगैरह भी नजर नहीं आ रहा था.

‘‘यहां एक गुरुद्वारा है. इस में कभी गुरु तेग बहादुर ठहरे थे. गुरुद्वारे में

हमें जगह मिल जाएगी,’’ एक मुसाफिर ने कहा.

बस की सवारियों का जत्था गुरुद्वारे के मेन फाटक पर पहुंचा. मगर फाटक खटकाने के बाद जब सेवादार बाहर आया तो उस ने टका सा जवाब देते हुए कहा, ‘‘रात के 11 बजे के बाद गुरुद्वारे का फाटक नहीं खुलता है. नियमों को मानने के लिए गुरुद्वारा कमेटी द्वारा सख्त हिदायत दी गई है.’’

सब मुसाफिर बस में आ कर बैठ गए. बस में सत्यानंद नामक संगरूर का एक कारोबारी भी मौजूद था. वह अपने 4-5 कारोबारी साथियों के साथ दिल्ली माल लेने के लिए आया था.

हर समस्या का समाधान होता है. इस बात पर यकीन रखते हुए सत्यानंद बस से उतरा और सुनसान पड़े गांव के बंद बाजार में घूमने लगा.

2 शराबी शराब पीने का लुत्फ उठाते हुए एक खाली तख्त पर बैठे उलटीसीधी बक रहे थे.

‘‘क्यों भाई, यहां कोई ढाबा या होटल है?’’ सत्यानंद ने थोड़ी हिम्मत कर के पूछा.

‘‘क्या कोई इमर्जैंसी है?’’ नशे में धुत्त एक शराबी ने सवाल किया.

‘‘तूफान में हमारी बस फंस गई है. हम शाम को दिल्ली से चले थे. अब यहीं आधी रात हो गई है. कुछ खाने को मिल जाता तो…’’ सत्यानंद ने अपनी मजबूरी बताई.

‘‘यह ढाबा है. इसे एक औरत चलाती है. मैं उसे जगाता हूं,’’ वह शराबी बोला.

‘‘साहब, इस समय रोटी, अचार और कच्चे प्याज के सिवा कुछ नहीं मिलेगा,’’ थोड़ी देर में एक जवान औरत ने बिजली का बल्ब जलाते हुए कहा.

‘‘ठीक है, आप रोटी और अचार

ही दे दें.’’

थोड़ी देर में बस के सभी मुसाफिरों ने रोटी, अचार और प्याज का

लुत्फ उठाया. अपने पैसे देने के बाद सत्यानंद ने पूछा, ‘‘चाय मिलेगी क्या?’’

‘‘जरूर मिलेगी,’’ उस औरत ने कहा.

तब तक दूसरे मुसाफिर बस में चले गए थे.

चाय सुड़कते हुए सत्यानंद ने उस औरत की तरफ देखा. वह कड़क जवान देहाती औरत थी.

‘‘साहब, कुछ और चाहिए क्या?’’ उस औरत ने अजीब सी नजरों से देखते हुए पूछा.

‘‘क्या मतलब…’’

‘‘आप आराम करना चाहो तो अंदर बिस्तर लगा है,’’ दुकान के पिछवाड़े की ओर इशारा करते हुए उस औरत ने कहा.

सत्यानंद अधेड़ उम्र का था. उसे अपनी पूरी जिंदगी में ऐसा ‘न्योता’ नहीं मिला था.

एक घंटा ‘आराम’ करने के बाद उन्होंने उस औरत से पूछा, ‘‘क्या दूं?’’

‘‘जो आप की मरजी,’’ उस औरत ने कपड़े पहनते हुए कहा.

100 रुपए का एक नोट उसे थमा कर सत्यानंद बस में आ बैठा. इतनी देर बाद लौटने पर दूसरे मुसाफिर उसे गौर से देखने लगे.

सुबह होने के बाद ही बस आगे बढ़ी. सत्यानंद ने संगरूर बसस्टैंड से घर के लिए रिकशा किया. भाड़ा चुकाने के लिए जब उस ने अपनी कमीज की जेब में हाथ डाला तो जेब में कुछ भी नहीं था. पैंट की जेब में से पर्स निकाला, पर वह भी खाली था. हाथ में बंधी घड़ी भी नदारद थी.

सत्यानंद ने पत्नी से पैसे ले कर रिकशे का भाड़ा चुकाया. उस भोलीभाली दिखती देहाती औरत ने पता नहीं कब सब पर हाथ साफ कर दिया था. जेब में 500 रुपए थे. पर्स में 7,000 रुपए और 5,000 रुपए की घड़ी थी.

कड़क रोटियों के साथसाथ उस कड़क औरत के जिस्म का स्वाद सत्यानंद जिंदगी में कभी भूल नहीं पाएगा.

Heart Touching Story : कोरा सपना

राइटर- डा. हेमराज निर्मम

Heart Touching Story : निशा ने बिस्तर पर लेटते ही पास लगे बिजली के बटन को दबा दिया. गहन अंधकार ने चारों ओर अपने पांव पसार लिए. निशा ने रजाई को कुछ अपनी ओर खींचा तो उसे लगा कि मुकेश सो रहा है.

निशा सोचने लगी, ‘मुकेश आज 3 दिन के बाद दौरे से लौटा है. उस ने आते ही खाना खाया और बिस्तर में दुबक गया. भला यह भी कोई बात हुई. उस ने न मेरा हालचाल पूछा और न अपना बताया. अभी लेटे 5-10 मिनट से अधिक नहीं हुए. गहरी नींद तो देर से ही आएगी. उठा दूं या नींद का सुख लेने दूं? कल बात कर लूंगी…नहीं, ऐसी बात कल तक मन में छिपाए नहीं रखी जा सकती. मेरे जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण घटने को है और उस में मुकेश का भी हिस्सा है. इसलिए उसे उस की जानकारी अवश्य होनी चाहिए.’

आखिर उस ने मुकेश को जगाने का निश्चय किया, ‘‘अजी, सो गए क्या… मुकेश साहब?’’ उस ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘हूं, क्या है?’’

‘‘कोई बुला रहा है.’’

मुकेश ने हाथ से रजाई परे हटाई और उठने की कोशिश करने लगा. तभी निशा को अपनी शरारत पर हंसी आ गई. मुकेश के कंधे को दबा कर बोली, ‘‘आराम से लेटे रहो.’’

‘‘क्या, कोई बुला रहा था?’’ मुकेश ने पूछा.

‘‘हां, मेरा मन बुला रहा था,’’ निशा ने मुसकरा कर कहा.

‘‘तुम्हारा…’’

‘‘हां, मेरा, क्या विश्वास नहीं होता कि मेरा मन तुम्हेें बुला सकता है? आज मुझे नींद नहीं आ रही और कुछ बातें करने का मन हो रहा है. सारे घर में हम दोनों के अलावा कोई नहीं है, इसलिए बात किस से करूं? फिर ऐसी बात सिर्फ तुम से की जा सकती है,’’ निशा ने प्यार भरे स्वर में कहा.

‘‘क्या?’’

‘‘मैं उम्मीद से हो गई हूं.’’

‘‘क्या… क्या… तुम उम्मीद से हो गई हो? तुम इस का मतलब समझती हो?’’

‘‘हर औरत इस का मतलब समझती है.’’

‘‘पर कैसे?… मेरा मतलब है कि तुम्हें कैसे मालूम हुआ?’’

‘‘शरीर मेरा, मन मेरा, अनुभूति मेरी. इसलिए जो अनुभव हुआ, उसे कह दिया. 4 दिन ऊपर हो गए हैं सम?ो? कितना अच्छा हुआ. मेरे जीवन में शुभ परिवर्तन आ रहा है. इस दिन की प्रतीक्षा पूरे 2 साल से कर रही थी. पर तुम खुश होने के बजाय कुछ चिंतित हो गए हो, क्या हुआ?’’

‘‘जो 2 साल में नहीं हुआ, अब अचानक कैसे हो सकता है?’’

‘‘ हो क्यों नहीं सकता?’’

मुकेश सोचने लगा कि निशा तो लड़कियों के कालेज से पढ़ती रही है. वहां कोई मर्द काम नहीं करता. इस का कोई दोस्त भी नहीं है. आज तक न कोई मिलने आया है और न कभी किसी का कोई मैसेज आया. उस ने कई बार उस का मोबाइल चैक किया. मैसेज या तो बहनों, भाइयों या फिर प्रमोशन के होते थे. विवाह से पहले इस के बारे में सारी छानबीन कर ली थी फिर यह कैसे संभव हुआ?’’

‘‘तुम चुप क्यों हो गए? कुछ सोच रहे हो क्या?’’

‘‘सोच रहा हूं कि विवाह से पहले किनकिन लोगों ने तुम्हारी तारीफ की थी.’’

‘‘बताओ, किसकिस ने क्याक्या कहा था?’’

‘‘तुम्हारे स्कूल की प्रिंसिपल ने कहा था कि निशा बड़ी शरीफ, मेहनती और सूझबूझ वाली अध्यापिका है. तुम्हारी सोसायटी के एक वृद्ध ने कहा था कि लड़की है तो बड़ी भली, पर पता नहीं 32-33 साल की होने पर भी शादी क्यों नहीं करवाती.’’

यह सुन कर निशा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अब मैं तुम्हारे बारे में बताती हूं. भैया को बताया गया था कि मुकेश बड़े शरीफ हैं. अच्छे अफसर हैं. इन की पत्नी पिछले कोविड में चल बसी. दोनों लड़के सनावर स्कूल में पढ़ने भेज दिए हैं. न सिगरेट का शौक है और न पीने का. तुम्हारे दफ्तर वालों ने बताया था कि अफसर जवान हो, पैसा खूब हो, फिर भी उस में कोई बुरी आदत न हो, तुम्हारे सिवा ऐसा कोई और अफसर नहीं देखा.’’

‘‘मेरी सारी आदतें अब भी वैसी हैं. खुद को संभाल कर रखता हूं और तुम?’’

‘‘क्या तुम्हें मेरे गुणों पर शक हो गया है?’’

‘‘नहीं, यों ही पूछ लिया. उस समय तक तुम ने शादी क्यों नहीं की थी?’’

‘‘यह सवाल पहले भी सुन चुकी हूं और जवाब भी दे चुकी हूं,’’ निशा ने कुछ उत्तेजित हो कर कहा, ‘‘फिर सुनना चाहते हो तो सुनो. पिता गुजर गए थे. बड़े भाई की छोटी सी नौकरी और पूरा परिवार था. बाकी भाईबहन छोटे थे. घर को चलाने के लिए पैसे की जरूरत थी, इसलिए नौकरी करती रही.’’

‘‘विवाह से पहले मैं सोचता था कि शायद तुम्हारा किसी से प्रेम हो और किसी खास लड़के से ही शादी करने के लिए रुकी हो.’’

‘‘किसी और से प्यार न पहले था, न अब होगा. गर्ल्स स्कूल और गर्ल्स कालेज में पढ़ी हूं. घूमनेफिरने तक के पैसे नहीं थे. ऐसी लड़कियां का पीछा लड़के भी नहीं करते थे. पर मुकेश तुम आज गड़े मुरदे क्यों उखाड़ने लगे हो? आज खुशी का दिन है. आनंद मनाओ? कोई गाना सुनाओ… मेरा मन गाने को करता है, नाचने को करता है. मीठीमीठी लोरियां सुनने को करता है, कोमलकोमल फूलों पर हाथ फेरने को करता है.’’

‘‘ओ हो, तभी तुम थोड़ी देर पहले अधलिखे गुलाब को हाथ में लिए घूम रही थीं. अब तुम फूलदान में सजे फूलों को उठा लो और अपनी इच्छा पूरी करो, पर मुझ सोने दो,’’ मुकेश ने अनमने ढंग से कहा.

‘‘यह नहीं हो सकता, तुम्हें खुशी में मेरे साथसाथ नाचना होगा, गाना होगा, मस्त होना होगा, झूमना होगा. इस बच्चे के जन्म में तुम्हारा भी उतना ही हाथ है जितना…’’

‘‘अब छोड़ो भी इस बात को. अभी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता. 4 दिन ऊपर होना कोई बड़ी बात नहीं है.’’

‘‘मेरे जीवन में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ, इसलिए मुझे यकीन है. उठो, मेरे कहने पर उठो. सुस्ती दूर करो. गरमगरम चाय पिलाऊं क्या?’’

‘‘नहीं, जरूरत नहीं.’’

निशा एकाएक उठी. उस ने जीरो बल्ब का बटन दबा दिया. म्यूजिक सिस्टम लगा दिया. वीणा की मधुर स्वरलहरी कमरे में तैरने लगी. फिर वह मुकेश का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘अब उठो, नाचो.’’

‘‘मन में न उमंग हो, न तरंग हो तो नाचना कैसे संभव है और फिर वीणा के स्वरों के साथ कैसा नाचना? दूसरा सौंग लगाओ, वैस्टर्न या रैंप, तुम नाचो, मैं देखूंगा.’’

‘‘पागल नहीं हूं जो अकेली नाचूं, तुम्हें साथ ले कर नाचूंगी.’’

‘‘बिना कारण नाचने की उमंग मुझ में नहीं है.’’

‘‘कारण कितनी बार बता चुकी हूं, फिर भी अनजान बनते हो.’’

‘‘कल लेडी डाक्टर को दिखा दूंगा. अब कुछ देर चुप रहो,’’ मुकेश ने खीज कर कहा.

निशा एकदम उस से परे हट गई. मुकेश सोच में डूब गया, ‘शायद डाक्टर अपने काम में असफल रहा? किसी भी डाक्टर को इतना लापरवा नहीं होना चाहिए. गलती डाक्टर की है, मेरी है या निशा की, यह सब कैसे जानूं? निशा तिल का ताड़ बनाए जा रही है. अब नहीं रुका जाता. बता दूं? पर सुन कर यह ऐसी हो जाएगी कि काटो तो खून नहीं.’

आखिर उस ने निशा से कहा, ‘‘सो गई क्या? निशा, मेरी निशा, क्या नाराज हो गई?’’

‘‘मैं नहीं बोलती,’’ निशा ने मान भरे स्वर में कहा.

‘‘नहींनहीं, अपनी बात पूरी करो. कल लेडी डाक्टर को दिखा दूंगा. तब दोनों में से किसी एक का भ्रम दूर हो जाएगा.’’

‘‘भ्रम नहीं हो सकता. तुम्हारे 2 बच्चे हैं न, इसलिए तुम्हें तनिक भी खुशी नहीं हो रही, मन में सौतों जैसी ईर्ष्या पाल रहे हो.’’

‘‘नसबंदी के बाद यह कैसे हो गया?’’ एकाएक मुकेश के मुंह से निकला.

‘‘नसबंदी…’’

मुकेश ने मद्धिम प्रकाश में देखा कि निशा की आंखों की पुतलियां एक क्षण के लिए घूमीं और वह धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ी. वह बिजली की सी गति से उठा और निशा को दोनों बांहों से उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया.

वह जल्दी से तौलिया और पानी लाया. उस ने तौलिए को उस के चेहरे के चारों ओर लपेटने के बाद उस की आंखों पर पानी के छींटे मारे.

थोड़ी देर में निशा ने आंखें खोल दीं. धीमी आवाज में बोली, ‘‘नसबंदी?’’

मुकेश ने झुक कर उस के चेहरे से पानी की बूंदों को साफ किया और बोला, ‘‘तीसरा बच्चा होने से कुछ दिन पहले ही नसबंदी करवा चुका था.’’

‘‘फिर विवाह क्यों किया?’’ निशा के स्वर में आवेश था.

‘‘कल बात कर लेंगे. अभी तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है…फोन कर डाक्टर शाह को बुला लेता हूं.’’

‘‘जरूरत नहीं है. अब मैं ठीक हूं. पर तुम्हें बताना होगा नसबंदी के बाद तुम ने शादी क्यों की? किसी का जीवन बरबाद कर के तुम्हें क्या मिला? ओह, मैं तो भूल ही गई. तुम्हें तो सबकुछ मिल गया, हंसताखेलता साथी, अच्छा रसोइया और भूख मिटाने के लिए जानदार शरीर… मुझे धोखा देते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई?’’

‘‘धोखा देने का इरादा नहीं था, न अब है. रिश्ता करवाने वाला जानता था. फिर भी मैं अपराधी हूं, माफ कर दो निशा.’’

मुकेश ने देखा कि निशा चुप है. वह सोचने लगा कि शायद निशा को नींद आ रही है. उसे याद आया, डाक्टर ने कहा था कि औपरेशन सफल रहा है. यदि वह औपरेशन सफल था तो निशा को यह सब कैसे हो गया? निशा जिस ढंग से चक्कर खा कर गिरी थी, उस से लगता था कि उस ने गर्भ धारण कर लिया है. क्या यह चरित्रहीन है? कल उठते ही, सब से पहले इसे डाक्टर के पास ले जाऊंगा. यदि निशा की बात ठीक निकली तब अपना चैकअप करवाऊंगा. तभी किसी नतीजे पर पहुंच सकता हूं.

दूसरे ही क्षण उस का विचार बदल गया. उस ने सोचा कि इस छोटे नगर के किसी डाक्टर के पास निशा को ले जाना ठीक नहीं है. शायद किसी को याद हो कि 5 साल पहले मैं ने नसबंदी करवाई थी. निशा की बात एक बार घर से बाहर निकलते ही ऐसी फैलेगी जैसे जंगल की आग और वह आग मेरा जीना दूभर कर देगी.

निशा की आंखों में नींद नहीं थी. गिरने से उस के दाएं कान के पास जो चोट लगी थी, उस में अभी तक हलकाहलका दर्द हो रहा था. वह  सोचने लगी कि मुकेश को दूसरा विवाह नहीं करना चाहिए था. यदि मुझे पहले पता लग जाता तो मैं मुकेश से विवाह करने से साफ इनकार कर देती. इस ने मुझे धोखा दिया है. यह इंनसान के रूप में शैतान है. मैं इस का बदला लूंगी. इस आधार पर मुझे तलाक मिल सकता है. एह बार इस की ऐसी बेइज्जती होगी कि नानी याद आ जाएगी.

उस के मन के किसी कोने से एक विचार उठा, ‘अब मैं लैक्चरर हूं. मुझे इस पद पर पहुंचाने का सेहरा मुकेश को है. उसी ने मुझे पीएचडी करवाई. थीसिस लिखने में मुझ से ज्यादा उस ने मेहनत की. उस के बाद भागदौड़ और मिलनेमिलाने आदि का भी सारा काम उसी ने किया. जिस दिन पीएचडी की डिगरी मिली थी, खुशी के मारे मेरे पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. फिर बधाइयों के फोनों का सिलसिला कितने ही दिन चलता रहा. मुझे बधाई देते हुए पुरानी सहेलियों के मन में कितनी ईर्ष्या हुई होगी.

‘इस के बाद नौकरी दिलाने में तो मुकेश ने कमाल ही कर दिया. इंटरव्यू लेने वालों में से कोई ऐसा नहीं था, जिस से मुकेश मिला न हो, जिसे उस ने खुश न कर दिया हो. इसीलिए मेरे मुकाबले में जाने वाली लड़कियां मेरे बराबर पढ़ीलिखी और अधिक अनुभवी होने पर भी हाथ मलती रह गईं. मानना पड़ेगा कि मुकेश ने मेरे लिए बहुत किया है. प्यार भी कितना करता है.

‘अब 37 साल की हो गई हूं. इस समय तलाक लेने का मतलब होगा जीवनभर एकाकी बने रहना फिर न घर होगा, न घरवाला और न कोई बच्चा. इसलिए मुझे इस स्थिति से समझौता करना पड़ेगा. अब तो लगता है कि किसी कोमल फूल पर हाथ फेरने का अवसर नहीं मिलेगा. पर ये 4 दिन ऊपर कैसे हो गए? पिछले कई सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ. मेरे शरीर को किसी ने छूने तक की हिम्मत नहीं की. फिर…’

थोड़ी देर बाद कमरे में बत्ती जली तो मुकेश की आंख खुल गई. उस ने देखा कि निशा पलंग से उतरी है. मुकेश ने सामने घड़ी की ओर दृष्टि चौड़ाई, 4 बजे थे.

अचानक मुकेश बोला, ‘‘निशा, मैं मुंबई जा कर उलटा औपरेशन करवा आऊंगा.’’

निशा कुछ नहीं बोली. वह तेजी से अलमारीकी ओर बढ़ गई. मुकेश ने देखा कि निशा ने अलमारी में से पीरियड्स के दौरान प्रयोग होने वाले पैड का डब्बा निकाला है और उसे ले कर गुसलखाने की ओर चली गई है.

Online Hindi Kahani : पुनर्जन्म

Online Hindi Kahani : ‘‘आप को मालूम है मां, दीदी का प्रोमोशन के बाद भी जन कल्याण मंत्रालय से स्थानांतरण क्यों नहीं किया जा रहा, क्योंकि दीदी को व्यक्ति की पहचान है. वे बड़ी आसानी से पहचान लेती हैं कि किस समाजसेवी संस्था के लोग समाज का भला करने वाले हैं और कौन अपना. फिर आप लोग इतनी पारखी नजर वाली दीदी की जिंदगी का फैसला बगैर उन्हें भावी वर से मिलवाए खुद कैसे कर सकती हैं?’’ ऋचा ने तल्ख स्वर से पूछा, ‘‘पहले दीदी के अनुरूप सुव्यवस्थित 2 लोगों को आप ने इसलिए नकार दिया कि वे दुहाजू हैं और अब जब एक कुंआरा मिल रहा है तो आप इसलिए मना कर रही हैं कि उस में जरूर कुछ कमी होगी जो अब तक कुंआरा है. आखिर आप चाहती क्या हैं?’’

‘‘शिखा की भलाई और क्या?’’ मां भी चिढ़े स्वर में बोलीं.

‘‘मगर यह कैसी भलाई है, मां कि बस, वर का विवरण देखते ही आप और यश भैया ऐलान कर दें कि यह शिखा के उपयुक्त नहीं है. आप ने हर तरह से उपयुक्त उस कुंआरे आदमी के बारे में यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि उस की अब तक शादी न करने की क्या वजह है?’’

‘‘शादी के बाद यह कुछ ज्यादा नहीं बोलने लगी है, मां?’’ यश ने व्यंग्य से पूछा.

‘‘कम तो खैर मैं कभी भी नहीं बोलती थी, भैया. बस, शादी के बाद सही बोलने की हिम्मत आ गई है,’’ ऋचा व्यंग्य से मुसकराई.

‘‘बोलने की ही हिम्मत आई है, सोचने की नहीं,’’ यश ने कटाक्ष किया, ‘‘सीधी सी बात है, 35 साल तक कुंआरा रहने वाला आदमी दिलजला होगा…’’

‘‘फिर तो वह दीदी के लिए सर्वथा उपयुक्त है,’’ ऋचा ने बात काटी, ‘‘क्योंकि दीदी भी अपने बैचमेट सूरज के साथ दिल जला कर मसूरी की सर्द वादियों में अपने प्रणय की आग लगा चुकी हैं.’’

‘‘तुम तो शादी के बाद बेशर्म भी हो गई हो ऋचा, कैसे अपने परिवार और कैरियर के प्रति संप्रीत दीदी पर इतना घिनौना आरोप लगा रही हो?’’ यश की पत्नी शशि ने पूछा.

‘‘यह आरोप नहीं हकीकत है, भाभी. दीदी की सगाई उन के बैचमेट सूरज से होने वाली थी लेकिन उस से एक सप्ताह पहले ही पापा को हार्ट अटैक पड़ गया. पापा जब आईसीयू में थे तो मैं ने दीदी को फोन पर कहते सुना था, ‘पापा अगर बच भी गए तो सामान्य जीवन नहीं जी पाएंगे, इसलिए बड़ी और कमाऊ होने के नाते परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी मेरी है. सो, जब तक यश आईएएस प्रतियोगिता में उत्तीर्ण न हो जाए और ऋचा डाक्टर न बन जाए, मैं शादी नहीं कर सकती, सूरज. इस सब में कई साल लग जाएंगे, सो बेहतर होगा कि तुम मुझे भूल जाओ.’

‘‘उस के बाद दीदी ने दृढ़ता से शादी करने से मना कर दिया, रिश्तेदारों ने भी उन का साथ दिया क्योंकि अपाहिज पापा की तीमारदारी का खर्च तो उन के परिवार का कमाऊ सदस्य ही उठा सकता था और वह सिर्फ दीदी थीं. पापा ने अंतिम सांस लेने से पहले दीदी से वचन लिया था कि यश भैया और मेरे व्यवस्थित होने के बाद वे अपनी शादी के लिए मना नहीं करेंगी. आप को पता ही है कि मैं ने डब्लूएचओ की स्कालरशिप छोड़ कर अरुण से शादी क्यों की, ताकि दीदी पापा की अंतिम इच्छा पूरी कर सकें.’’

‘‘हमारे लिए उस के पापा की अंतिम इच्छा से बढ़ कर शिखा की अपनी इच्छा और भलाई जरूरी है,’’ मां ने तटस्थता से कहा.

‘‘पापा की अंतिम इच्छा पूरी करना दीदी की इच्छाओं में से एक है,’’ ऋचा बोली, ‘‘रहा भलाई का सवाल तो आप लोग केवल उपयुक्त घरवर सुझाइए, उस के अपने अनुरूप या अनुकूल होने का फैसला दीदी को करने दीजिए.’’

‘‘और अगर हम ने ऐसा नहीं किया न मां तो यह दीदी की परम हितैषिणी स्वयं दीदी के लिए घरवर ढूंढ़ने निकल पड़ेगी,’’ यश व्यंग्य से हंसा.

‘बिलकुल सही समझा आप ने, भैया. इस से पहले कि मैं और अरुण अमेरिका जाएं मैं चाहूंगी कि दीदी का भी अपना घरसंसार हो. आज मैं जो हूं दीदी की मेहनत और त्याग के कारण. सच कहिए, अगर दीदी न होतीं तो आप लोग मेरी डाक्टरी की पढ़ाई का खर्च उठा सकते थे?’’ ऋचा ने तल्ख स्वर में पूछा, ‘‘आप के लिए तो पापा की मृत्यु मेहनत से बचने का बहाना बन गई भैया. बगैर यह परवा किए कि पापा का सपना आप को आईएएस अधिकारी बनाना था, आप ने उन की जगह अनुकंपा में मिल रही बैंक की नौकरी ले ली क्योंकि आप पढ़ना नहीं चाहते थे. मां भी आप से मेहनत करवाना नहीं चाहतीं. और फिर पापा के समय की आनबान बनाए रखने को आईएएस अफसर दीदी तो थीं ही. नहीं तो आप के बजाय यह नौकरी मां भी कर सकती थीं, आप पढ़ाई और दीदी शादी.’’

‘‘ये गड़े मुर्दे उखाड़ कर तू कहना क्या चाहती है?’’ मां ने झल्लाए स्वर में पूछा.

‘‘यही कि पुत्रमोह में दीदी के साथ अब और अन्याय मत कीजिए. भइया की गृहस्थी चलाने के बजाय उन्हें अब अपना घरसंसार बसाने दीजिए. फिलहाल उस डाक्टर का विवरण मुझे दे दीजिए. मैं उस के बारे में पता लगाती हूं,’’ ऋचा ने उठते हुए कहा.

‘‘वह हम लगा लेंगे मगर आप चली कहां, अभी बैठो न,’’ शशि ने आग्रह किया.

‘‘अस्पताल जाने का समय हो गया है, भाभी,’’ कह कर ऋचा चल पड़ी. मां और यश ने रोका भी नहीं जबकि मां को मालूम था कि आज उस की छुट्टी है.

ऋचा सीधे शिखा के आफिस गई.

‘‘आप से कुछ जरूरी बात करनी है, दीदी. अगर आप अभी व्यस्त हैं तो मैं इंतजार कर लेती हूं,’’ उस ने बगैर किसी भूमिका के कहा.

‘‘अभी मैं एक मीटिंग में जा रही हूं, घंटे भर तक तो वह चलेगी ही. तू ऐसा कर, घर चली जा. मैं मीटिंग खत्म होते ही आ आऊंगी.’’

‘‘घर से तो आ ही रही हूं. आप ऐसा करिए मेरे घर आ जाइए, अरुण की रात 10 बजे तक ड्यूटी है, वह जब तक आएंगे हमारी बात खत्म हो जाएगी.’’

‘‘ऐसी क्या बात है ऋचा, जो मां और अरुण के सामने नहीं हो सकती?’’

‘‘बहनों की बात बहनों में ही रहने दो न दीदी.’’

‘‘अच्छी बात है,’’ शिखा मुसकराई, ‘‘मीटिंग खत्म होते ही तेरे घर पहुंचती हूं.’’

उसे लगा कि ऋचा अमेरिका जाने से पहले कुछ खास खरीदने के लिए उस की सिफारिश चाहती होगी. मीटिंग खत्म होते ही वह ऋचा के घर आ गई.

‘‘अब बता, क्या बात है?’’ शिखा ने चाय पीने के बाद पूछा.

‘‘मैं चाहती हूं दीदी कि मेरे और अरुण के अमेरिका जाने से पहले आप पापा को दिया हुआ अपना वचन कि जिम्मेदारियां पूरी होते ही आप शादी कर लेंगी, पूरा कर लें,’’ ऋचा ने बगैर किसी भूमिका के कहा, ‘‘वैसे आप की जिम्मेदारी तो मेरे डाक्टर बनते ही पूरी हो गई थी फिर भी आप मेरी शादी करवाना चाहती थीं, सो मैं ने वह भी कर ली…’’

‘‘लेकिन मेरी जिम्मेदारियां तो खत्म नहीं हुईं, बहन,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘यश अपना परिवार ही नहीं संभाल पाता है तो मां को कैसे संभालेगा?’’

‘‘यानी न कभी जिम्मेदारियां पूरी होंगी और न पापा की अंतिम इच्छा. जीने वालों के लिए ही नहीं दिवंगत आत्मा के प्रति भी आप का कुछ कर्तव्य है, दीदी.’’ शिखा ने एक उसांस ली.

‘‘मैं ने यह वचन पापा को ही नहीं सूरज को भी दिया था ऋचा, और जो उस ने मेरे लिए किया है उस के बाद उसे दिया हुआ वचन पूरा करना भी मेरा फर्ज बनता है लेकिन महज वचन के कारण जिम्मेदारियों से मुंह तो नहीं मोड़ सकती.’’

‘‘मां के लिए पापा की पेंशन काफी है, दीदी, और जरूरत पड़ने पर पैसे से मैं और आप दोनों ही उन की मदद कर सकते हैं, उन्हें अपने पास रख सकते हैं. यश का परिवार उस की निजी समस्या है, मेहनत करें तो दोनों मियांबीवी अच्छाखासा कमा सकते हैं, उन के लिए आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है,’’ ऋचा ने आवेश से कहा और फिर हिचकते हुए पूछा, ‘‘माफ करना, दीदी, मगर मुझे याद नहीं आ रहा कि सूरज ने आप के लिए क्या किया?’’

‘‘मुझे रुसवाई से बचाने के लिए सूरज ने मेहनत से मिली आईएएस की नौकरी छोड़ दी क्योंकि हमारे सभी साथियों को हमारी प्रेमकहानी और होने वाली सगाई के बारे में मालूम था. एक ही विभाग में होने के कारण गाहेबगाहे मुलाकात होती और अफवाहें भी उड़तीं, सो मुझे इस सब से बचाने के लिए सूरज नौकरी छोड़ कर जाने कहां चला गया.’’

‘‘आप ने उसे तलाशने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘उस के किएकराए यानी त्याग पर पानी फेरने के लिए?’’

‘‘यह बात भी ठीक है. देखिए दीदी, जब आप वचनबद्ध हुई थीं तब आप की जिम्मेदारी केवल भैया और मेरी पढ़ाई पूरी करवाने तक सीमित थी, लेकिन आप ने हमारी शादियां भी करवा दीं. अब उस के बाद की जिम्मेदारियां आप के वचन की परिधि से बाहर हैं और अब आप का फर्ज केवल अपना वचन निभाना है. बहुत जी लीं दूसरों के लिए और यादों के सहारे, अब अपने लिए जी कर देखिए दीदी, कुछ नए यादगार क्षण संजोने की कोशिश करिए.’’

‘‘कहती तो तू ठीक है…’’

‘‘तो फिर आज से ही इंटरनेट पर अपने मनपसंद जीवनसाथी की तलाश शुरू कर दीजिए. मां तो पुत्रमोह में आप की शादी करवाएंगी नहीं.’’

‘‘यही सब सोच कर तो मैं शादी नहीं करना चाहती, लेकिन तेरा यह कहना भी ठीक है कि पैसे से तो उन लोगों की मदद हमेशा की जा सकती है.’’

‘‘मैं आप को इंटरनेट पर उपलब्ध…’’

‘‘थोड़ा सब्र कर, ऋचा,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘उस से पहले मुझे स्वयं को किसी नितांत अजनबी के साथ जीने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना होगा और मुझे यह भी मालूम नहीं है कि मेरी उस से क्या अपेक्षाएं होंगी या व्यक्तिगत जीवन में मेरी अपनी मान्यताएं क्या हैं? इन सब के लिए चिंतन की आवश्यकता है.’’

‘‘और उस के लिए एकांत की, जो आप को दफ्तर और घर की जिम्मेदारियों के चलते तो मिलने से रहा. आप लंबी छुट्टी ले कर या तो सुदूर पहाडि़यों में या समुद्रतट पर एकांतवास कीजिए.’’

‘‘सुझाव तो अच्छा है, सोचूंगी.’’

‘‘मगर आज ही रात को,’’ ऋचा ने जिद की.

शिखा ने सोचा जरूर लेकिन अपनी पिछली जिंदगी के बारे में. पापा बैंक अधिकारी थे लेकिन चाहते थे कि उन के बच्चे उन से बढ़ कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बनें. शिखा का तो प्रथम प्रयास में ही चयन हो गया. ऋचा ने हाईस्कूल में ही बता दिया था कि उस की रुचि जीव विज्ञान में है और वह डाक्टर बनेगी. पापा ने सहर्ष अनुमति दे दी थी. मां के लाड़ले यश का दिल पढ़ाई में नहीं लगता था फिर भी पापा के डर से पढ़ रहा था लेकिन पापा के जाते ही उस ने पढ़ाई छोड़ कर अनुकंपा में मिली बैंक की नौकरी कर ली.

मां ने भी उस का यह कह कर साथ दिया कि वह तेरा हाथ बटाना चाह रहा है शिखा, बैंक की प्रतियोगी परीक्षाएं दे कर तरक्की भी करता रहेगा, लेकिन हाथ बटाने के बजाय यश ने अपना भार भी उस पर डाल दिया था. जहां उस की नियुक्ति होती थी, वहीं यश भी अपना तबादला करवा लेता था आईएएस अफसर बहन का रोब डाल कर. तरक्की पाने की न तो लालसा थी और न ही जरूरत, क्योंकि शिखा को मिलने वाली सब सुविधाओं का उपभोग तो वही करता था.

यश और उस के परिवार की जरूरतों के लिए मां शिखा को उसी स्वर में याद दिलाया करती थीं जिस में वह कभी पापा से घर के बच्चों की जरूरतें पूरी करने को कहती थीं यानी मां के खयाल में यश का परिवार शिखा का उत्तरदायित्व था. शिखा को इस से कुछ एतराज भी नहीं था. उस की अपनी इच्छाएं तो सूरज से बिछुड़ने के साथ ही खत्म हो गई थीं. उसे यश या उस के परिवार से कोई शिकायत भी नहीं थी, बस, बीचबीच में पापा के अंतिम शब्द, ‘जब ये दोनों अपने घरपरिवार में व्यवस्थित हो जाएंगे तो तू अकेली क्या करेगी, बेटी? जिन सपनों की तू ने आज आहुति दी है उन्हें पुनर्जीवित कर के फिर जीएगी तो मेरी भटकती आत्मा को शांति मिल जाएगी. जिस तरह तू मेरी जिम्मेदारियां निभाने को कटिबद्ध है, उसी तरह मेरी अंतिम इच्छा पूरी करने को भी रहना,’ याद आ कर कचोट जाते थे.

ऐसा ही कुछ सूरज ने भी कहा था, ‘जिस तरह अपने परिवार के प्रति तुम्हारा फर्ज तुम्हें शादी करने से रोक रहा है उसी तरह अपने मातापिता की इच्छा के विरुद्ध कुछ साल तक तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी होने के इंतजार में शादी न करने के फैसले पर मैं चाह कर भी अडिग नहीं रह पा रहा. कैसे जी पाऊंगा किसी और के साथ, नहीं जानता, लेकिन फिलहाल दफ्तर और घर के दायित्व निभाने में मेरा और तुम्हारा समय कट ही जाया करेगा लेकिन जब तुम दायित्व मुक्त हो जाओगी तब क्या करोगी, शिखा? मैं यह सोचसोच कर विह्वल हो जाया करूंगा कि तुम अकेली क्या कर रही होगी.’

‘फुरसत से तुम्हारी यादों के सहारे जी रही हूंगी और क्या?’

‘जीने के लिए यादों के सहारे के अलावा किसी अपने के सहारे की भी जरूरत होती है. मैं तो खैर सहारे के लिए नहीं मांबाप की जिद से मजबूर हो कर शादी कर रहा हूं लेकिन तुम जीवन की सांध्यवेला में अकेली मत रहना. मेरे सुकून के लिए शादी कर लेना.’

यश के परिवार के रहते अकेली होने का तो सवाल ही नहीं था लेकिन घर में अपनेपन की ऊष्मा ऋचा के जाते ही खत्म हो गई थी और रह गया था फरमाइशों और शिकायतों का अंतहीन सिलसिला. शिकायत करते हुए यश और मां को अपनी फरमाइश की तारीख तो याद रहती थी लेकिन यह पूछना नहीं कि शिखा किस वजह से वह काम नहीं कर सकी.

वैसे भी लगातार काम करतेकरते वह काफी थक चुकी थी और छुट्टियां भी जमा थीं सो उस ने सोचा कि कुछ दिन को कहीं घूम ही आएं. उस की सचिव माधवी मेनन जबतब केरल की तारीफ करती रहती थी, ‘तनमन को शांति और स्फूर्ति से भरना हो तो कभी भी केरल जाने पर ऐसा लगेगा कि आप का पुनर्जन्म हो गया है.’

अगले रोज उस ने माधवी से पूछा कि वह काम की थकान उतारने को कुछ दिन शोरशराबे से दूर प्रकृति के किसी सुरम्य स्थान पर रहना चाहती है, सो कहां जाए?

‘‘वैसे तो केरल में ऐसी जगहों की भरमार है,’’ माधवी ने उत्साह से बताया, ‘‘लेकिन आप को त्रिचूर का अथरियापल्ली वाटरफाल बहुत पसंद आएगा. वहां वन विभाग का सभी सुखसुविधाओं से युक्त गेस्ट हाउस भी है. तिरुअनंतपुरम के अपने आफिस वाले त्रिचूर के जिलाध्यक्ष से कह कर आप के रहने का प्रबंध करवा देंगे.’’

‘‘लेकिन वहां तक जाना कैसे होगा?’’

‘‘तिरुअनंतपुरम तक प्लेन से, उस के बाद आप को एअरपोर्ट से अथरियापल्ली तक पहुंचाने की जिम्मेदारी अपने आफिस वालों की होगी. आप अपने जाने की तारीख तय करिए, बाकी सब व्यवस्था मुझ पर छोड़ दीजिए.’’

लंच ब्रेक में ऋचा का फोन आया.‘‘हां भई, छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया है केरल जाने को,’’ शिखा ने उसे सब बताया.

‘‘लेकिन घर वालों के लिए आप छुट्टी पर नहीं टूर पर जा रही हैं दीदी, वरना सभी आप के साथ केरल घूमने चल पड़ेंगे,’’ ऋचा ने आगाह किया.

ऋचा का कहना ठीक था. सब तैयारी हो जाने से एक रोज पहले उस ने सब को बताया कि वह केरल जा रही है.

‘‘केरल घूमने तो हम सब भी चलेंगे,’’ शशि ने कहा.

‘‘मैं केरल प्लेन से जा रही हूं सरकारी गाड़ी से नहीं, जिस में बैठ कर तुम सब मेरे साथ टूर पर चल पड़ते हो.’’

‘‘हम क्या प्लेन में नहीं बैठ सकते?’’ यश ने पूछा.

‘‘जरूर बैठ सकते हो मगर टिकट ले कर और फिलहाल मेरा तो कल सुबह 9 बजे का टिकट कट चुका है,’’ कह कर शिखा अपने कमरे में चली गई.

अगली सुबह सब के सामने ड्राइवर को कुछ फाइलें पकड़ाते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे एअरपोर्ट छोड़ कर, मेहरा साहब के घर चले जाना, ये 2 फाइलें उन्हें दे देना और ये 2 आफिस में माधवी मेनन को.’’

प्लेन में अपनी बराबर की सीट पर बैठी युवती से यह सुन कर कि वह एक प्रकाशन संस्थान में काम करती है और एक लेखक के पास एक किताब की प्रस्तावना पर विचारविमर्श करने जा रही है, शिखा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अपने यहां लेखकों को कब से इतना सम्मान मिलने लगा?’’

‘‘मैडम, आप शायद नहीं जानतीं,’’ युवती खिसिया कर बोली, ‘‘बेस्ट सेलर के लेखक के लिए कुछ भी करना पड़ता है. ये महानुभाव केरल से बाहर आने को तैयार नहीं होते, सो बात करने के लिए हमें ही यहां आना पड़ता है.’’

इस से पहले कि शिखा पूछती कि वे महानुभाव हैं कौन, युवती ने उस का परिचय पूछ लिया और यह जानने पर कि वह आईएएस अधिकारी है और एकांत- वास करने के लिए अथरियापल्ली जा रही है, बड़ी प्रभावित हुई और उस के बारे में अधिक से अधिक पूछने लगी. शिखा ने उसे अपना कार्ड दे दिया.

माधवी का कहना ठीक था. अथरियापल्ली वाटरफाल वैसी ही जगह थी जैसी वह चाहती थी. गेस्ट हाउस में भी हर तरह का आराम था. बगैर अपने बारे में सोचे वह अभी प्रकृति की छटा और निरंतर बदलते रंग निहारने का आनंद ले रही थी कि अगली सुबह ही सूरज को देख कर हैरान रह गई.

‘‘तुम…यहां?’’ वह इतना ही कह सकी.

‘‘हां, मैं,’’ सूरज हंसा, ‘‘वैसे तो कहीं आताजाता नहीं, लेकिन यह जान कर कि तुम यहां हो, तुम से मिलने का लोभ संवरण न कर सका.’’

‘‘लेकिन तुम्हें किस ने बताया कि मैं यहां हूं?’’

‘‘पल्लवी यानी उस युवती ने जो कल तुम्हारे साथ प्लेन में थी,’’ सूरज ने सामने पत्थर पर बैठते हुए कहा, ‘‘असल में मैं उस के प्रकाशन संस्थान के लिए आईएएस प्रतियोगिता के लिए उपयोगी किताबें लिखता हूं. पल्लवी चाहती है कि प्रतियोगिता में सफल होने के बाद सफलता बनाए रखने के लिए क्या करें, इस विषय पर मैं कुछ लिखूं तो मैं ने कहा कि मुझे नौकरी छोड़े कई साल हो चुके हैं और आज के प्रशासन के बारे में अधिक जानकारी नहीं है तो उस ने तुम्हारे बारे में बताया और कहा कि आप से मिल कर आजकल के हालात के बारे में जानकारी ले लूं. पल्लवी को तो तुम्हारे एकांतवास में खलल न डालने को मना कर दिया लेकिन खुद को आने से न रोक सका. ऐसे हैरानी से क्या देख रही हो, मैं सूरज ही हूं, शिखा.’’

‘‘उस में तो कोई शक नहीं है लेकिन तुम और लेखन. यकीन नहीं होता, सूरज.’’

‘‘यकीन न होने लायक ही तो अब तक मेरी जिंदगी में होता रहा है, शिखा,’’ सूरज उसांस ले कर बोला, ‘‘पुराने परिवेश से कटने के लिए मैं ने तिरुअनंतपुरम यूनिवर्सिटी में प्रवक्ता की नौकरी कर ली थी और वक्त काटने के लिए आईएएस प्रतियोगी परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों को पढ़ाया करता था. उन के सफल होने पर इतने विद्यार्थी आने लगे कि मुझे नौकरी छोड़ कर कोचिंग क्लास खोलनी पड़ी. मेरे एक शिष्य ने मेरे दिए क्लास नोट्स का संकलन कर प्रकाशन करवा दिया, वह बहुत ही लोकप्रिय हुआ और प्रकाशक इस विषय की और किताबों के लिए मेरे पीछे पड़ गए और इस तरह मैं सफल लेखक बन गया. अब तो पढ़ाना भी छोड़ दिया है. बस, लिखता हूं.’’

‘‘लिखने भर से घर का खर्च चल जाता है?’’

‘‘बड़े आराम से. अकेले आदमी का ज्यादा खर्च भी नहीं होता.’’

‘‘यानी तुम ने मातापिता की खुशी की खातिर शादी नहीं की?’’

‘‘शादी करने से मना भी नहीं किया,’’ सूरज हंसा, ‘‘जो लोग मुझे अपना दामाद बनाने के लिए हाथ बांधे पापा के आगेपीछे घूमते थे, वे तो मेरी नौकरी छोड़ते ही बरसात की धूप की तरह गायब हो गए, जो लोग प्रवक्ता को लड़की देने के लिए तैयार थे वे मांपापा की कसौटी पर खरे नहीं उतरे. उन की तलाश अभी भी जारी है लेकिन सुदूर केरल में बसे लेखक को कौन दिल्ली वाला लड़की देगा? और तुम बताओ यह एकांतवास किसलिए? संन्यासवन्यास लेने का इरादा है?’’

शिखा हंस पड़ी, ‘‘असलियत तो इस के विपरीत है, सूरज,’’ और उस ने ऋचा के सुझाव के बारे में विस्तार से बताया.

‘‘दूसरे शब्दों में कहें तो मांपापा की तलाश खत्म हो गई,’’ सूरज हंसा, ‘‘वैसे तो मैं यहां से वापस जाने वाला नहीं था लेकिन तुम्हारे साथ कहीं भी चल सकता हूं.’’

‘‘मैं भी यहां आ सकती हूं, सूरज, लेकिन क्या गुजरे कल को आज बनाना संभव होगा?’’

‘‘अगर तुम मुझे जिलाना और खुद जिंदा होना चाहो तो…’’

शिखा के मोबाइल की घंटी बजी. यश का फोन था.

‘‘दीदी, गुरमेल सिंह जब परसों दोपहर तक गाड़ी ले कर नहीं आया तो मैं ने उस के मोबाइल पर उसे आने के लिए फोन किया, लेकिन उस ने कहा कि वह मेहरा साहब की ड्यूटी में है और उन के कहने पर ही हमारे यहां आ सकता है, सो मैं ने उन से बात करनी चाही. परसों तो मेहरा साहब से बात नहीं हो सकी, वे मीटिंग में थे. कल बड़ी मुश्किल से शाम को मिले तो बोले कि वे इस विषय में कुछ नहीं कह सकते. बेहतर है कि मैं माधवी से बात करूं. माधवी कहती है कि छुट्टी पर गए किसी भी अधिकारी को गाड़ी उस के कार्यभार संभालने वाले अधिकारी को दी जाती है और परिवार के लिए गाड़ी भेजने का नियम तो नहीं है लेकिन शिखा मैडम कहेंगी तो भिजवा देंगे. आप तुरंत माधवी को फोन कीजिए गाड़ी भिजवाने को.’’

‘‘जब परिवार के लिए गाड़ी भेजने का नियम नहीं है तो मैं उस का उल्लंघन करने को कैसे कह सकती हूं?’’ शिखा ने रुखाई से कहा.

‘‘चाहे गाड़ी के बगैर परिवार को कितनी भी परेशानी हो रही हो?’’

‘‘इतनी ही परेशानी है तो खुद ही गाड़ी का इंतजाम कर ले न भाई मेरे…’’

‘‘यह आप को हो क्या गया है दीदी? आप मां से बात कीजिए…’’

मां एकदम बरस पड़ीं, ‘‘यह क्या लापरवाही है, शिखा? हमारे लिए बगैर गाड़ीड्राइवर का इंतजाम किए, टूर का बहाना बना कर तुम छुट्टी मनाने निकल गई हो, शर्म नहीं आती?’’ शिखा तड़प उठी.

‘‘मैं ने कब कहा था मां कि मैं टूर पर जा रही हूं और काम की थकान उतारने को छुट्टी मनाने में शर्म कैसी? अगर गाड़ी के बगैर आप को दिक्कत हो रही है तो यश से कहिए, इंतजाम करे, परिवार के प्रति उस का भी तो कुछ दायित्व है.’’

‘‘यह तुझे क्या हो गया है, शिखा? यश कह रहा है, तू एकदम बदल गई है…’’

‘‘यश ठीक कह रहा है, मां,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘मेरा पुनर्जन्म हो रहा है, उस में आप को कुछ तकलीफ तो झेलनी ही पड़ेगी.’’

और वह सूरज की फैली बांहों में सिमट गई.

#Metoo आरोप में फंसने के बाद, बुरे दौर से गुजर रहे फेमस डायरेक्टर Sajid Khan

Sajid Khan : हे बेबी, हाउसफुल, डरना जरूरी है, जैसी सफल फिल्मों के निर्देशक, एक्टर, एंकर साजिद खान इन दिनों डिप्रेशन और बुरे दौर से गुजर रहे है. जिसकी वजह से उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश भी की. खबरों के अनुसार फराह खान के भाई एंकर एक्टर डायरेक्टर एंकर साजिद खान पिछले 6 सालों से बेकार बैठे हैं उनके पास कोई काम नहीं है और आर्थिक रूप से उनकी हालत पूरी तरह खस्ता है.

जिसकी वजह से उनको जुहू का घर बेचकर किराए के फ्लैट में शिफ्ट होना पड़ा बल्कि आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा तंगी होने की वजह से उनके मन में कई बार आत्महत्या करने का ख्याल भी आया. इसके बाद उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश भी की. साजिद खान की खराब हालत की वजह उनका मी टू के आरोप में फंसना है.

2018 में कई हीरोइन द्वारा साजिद खान पर मी टू का आरोप लगने के बाद प्रोड्यूसर गिल्ट संस्था ने साजिद खान के ऊपर बैन लगा दिया था. इसके बाद उनको काम मिलना पूरी तरह बंद हो गया था. लेकिन बाद में साजिद खान की खराब हालत के चलते निर्माता संगठन ने साजिद के ऊपर से बैन हटा दिया, लेकिन बावजूद इसके साजिद खान को काम नहीं मिला और उनकी आर्थिक हालत दिन पर दिन खराब हो रही है.

अगर वह काम करना भी चाहते हैं तो कोई उनके साथ काम करना नहीं चाहता. जिसकी वजह से साजिद खान न सिर्फ डिप्रेशन में जा रहे हैं, बल्कि उन्होंने अपनी जान भी लेने की कोशिश की है. गौरतलब है साजिद खान 14 साल की उम्र से अपने पिता के देहांत के बाद काम करके अपना और अपने परिवार का खर्चा चला रहे हैं, लेकिन आज उनके ऊपर लगे एक इलजाम ने उनका बना बनाया करियर तबाह कर दिया.

तलाक की खबरों के बीच मिस्ट्री गर्ल संग दिखे Yuzvendra Chahal, क्या इसी वजह से टूट रहा रिश्ता

Yuzvendra Chahal Dhanashree : पिछले कुछ दिनों से इंडियन लेग स्पिनर युजवेंद्र चहल और कोरियोग्राफर और डांसर धनाश्री वर्मा (Dhanashree Verma) तलाक की खबरों को लेकर सुर्खियों में छाई हुई हैं. हाल ही दोनों ने सोशल मीडिया पर एक दूसरे को अनफौलो कर दिया है. इतना ही नहीं वेडिंग फोटोज भी डिलीट कर दी है. हालांकि इस जोड़े ने इस बारे में कोई भी औफिशियल अनाउंसमेंट नहीं की है.

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें क्रिकेटर को मुंबई में एक होटल के बाहर मिस्ट्री गर्ल के साथ स्पौट किया गया. वायरल वीडियो में युजवेंद्र संग मिस्ट्री गर्ल को अपना चेहरा छिपाते साफसाफ देखा जा सकता है. लोग इस वायरल Video को देखकर अंदाजा लगा रहे हैं कि कहीं मिस्ट्री गर्ल के साथ युजवेंद्र का अफेयर तो नहीं चल रहा… कई यूजर्स का ये कहना है कि इस लड़की की वजह से युजवेंद्र और धनाश्री के रिश्ते में दरार आई है.

आपको बता दें कि युजवेंद्र चहल और धनाश्री ने एकदूसरे को लंबे समय तक डेट किया था. साल 2020 में शादी की. हालांकि शादी के कुछ समय बाद ही दोनों के बीच अनबन की खबरें आने लगी. एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 में ही धनाश्री वर्मा ने अपनी इंस्टा प्रोफाइल से ‘चहल’ सरनेम हटा दिया था.

कुछ दिनों पहल युजवेंद्र चहल ने इंस्टाग्राम पर एक क्रिप्टिक पोस्ट शेयर किया, जिसे तलाक की खबरों से जोड़कर देखा जाने लगा. पोस्ट में लिखा था- ‘खामोशी सबसे गहरी आवाज है, उनके लिए जो सारे शोर-शराबे से उठकर सुन सकते हैं.’

इससे पहले भी युजवेंद्र चहल ने एक पोस्ट किया था जिसमें  उन्होंने अपने मातापिता के लिए लिखा था. ‘कड़ी मेहनत लोगों के कैरेक्टर को हाइलाइट करती है. आप अपनी जर्नी जानते हैं. आप अपना दर्द जानते हैं. आप जानते हैं कि यहां तक ​​पहुंचने के लिए आपने क्याक्या किया है. दुनिया जानती है. अपने पिता और अपनी मां को गर्व करने के लिए अपना पूरा पसीना बहाया है. हमेशा एक प्राउड बेटे की तरह सीना तानकर खड़े रहे.’

Masala Paratha Recipe : स्वाद से भरपूर है टेस्‍टी मसाला पराठा, दही के साथ लगते हैं बेहद स्वादिष्ट

Masala Paratha Recipe : मसाला पराठा, सादे पराठे का ही एक अलग रूप है, जो खाने में काफी टेस्‍टी लगता है. जिस दिन आपका मन पराठे खाने का करे, उस दिन आटा सानते वक्‍त उसमें कुछ मसाले मिक्‍स कर दें और मसाला पराठा बनाएं.

मसाला पराठा बनाने में बिल्‍कुल भी समय नहीं लगता और यह बाकी के अन्‍य भरवा पराठे से कहीं ज्‍यादा आसान है. आप इसे नाश्‍ते में चाय के साथ या फिर लंच में किसी सूखी सब्‍जी के साथ ले जा सकती हैं. तो देर किस बात की आइये देखते हैं मसाला पराठा बनाने की विधि क्‍या है.

कितने- 2 से 3 सदस्‍यों के लिये

तैयारी में समय- 20 मिनट

पकाने में समय- 10 मिनट

हमें चाहिए-

2 कप गेहूं का आटा

1 चम्मच तेल

¼ चम्मच जीरा

¼ चम्मच अजवाइन

¼ चम्मच कुटी हुई काली मिर्च

¼ चम्मच लाल मिर्च पाउडर

¼ चम्मच हल्दी पाउडर

आधा चम्मच गरम मसाला पाउडर

आधा चम्मच अमचूर पाउडर

¾ 1 कप पानी

घी या तेल परांठे बनाने के लिये

बनाने का तरीका

  • 2 कप आटा लें, उसमें सभी मसाले मिक्‍स करें. फिर उसमें 1 चम्‍मच तेल और आधा कप पानी डाल कर साने.
  • आटा सानते वक्‍त जितने पानी की जरुरत हो, उतना मिलाएं.
  • आटे को गीले कपड़े से ढंक कर 30 मिनट के लिये रख दें.
  • फिर इससे लोई ले कर पराठे बनाएं और तवे पर घी या तेल लगा कर दोंनो ओर सेंके.
  • जब पराठे गोल्‍डन हो जाएं तब गैस बंद कर दें. इसी तरह से सारे पराठे बना लें.
  • फिर इन्‍हें सब्‍जी या आम के अंचार के साथ सर्व करें. मसाला पराठा, सादे पराठे का ही एक अलग रूप है, जो खाने में काफी टेस्‍टी लगता है.

Liquor : खुलेआम बिकता है यह जहर

Liquor : देहरादून में रात को तेजी से दौड़ती एक एसयूवी की एक चौराहे पर धीमी स्पीड से आ रहे ट्रक से भिड़ंत में 5 की तुरंत मौत और छठे की बाद में डैथ ने एक बात साफ कर दी है कि शराब न केवल हाइपरटैंशन, डिप्रैशन, माइंड को सलो करने के लिए जिम्मेदार है, यह ऐक्सीडैंट्स का बड़ा कारण भी है. अफसोस यह है कि यह जहर खुलेआम बिकता है और पीने वाले को बंदूक की तरह का कोई लाइसैंस नहीं लेना पड़ता, किसी डाक्टर से कोई प्रिस्क्रिप्शन नहीं लेनी पड़ती.

अब दुनियाभर के डाक्टर एक राय दे रहे हैं कि किसी भी क्वांटिटी में शराब सेफ नहीं है.  वे सब इसे बेचने वालों ने फैलाई हैं.

अगर शराब फिर भी जम कर बिक रही है तो इस की वजह यह है कि इस के व्यापार से सदियों से राजाओं और धर्म को बड़ा लाभ होता रहा है. शराब पर टैक्स लगाना आसान है क्योंकि शराब बनाने पर इस की स्मैल फैलती है और आसानी से पता चल जाता हैशराब के गुणों के बारे में जो गलतफहमियां फैलाई गई हैं कि शराब कहां बन रही है जिस से टैक्स वसूला जा सकता है. उसी शराब को बेचने को मजबूर किया गया है जो छोटे से बड़े कारखानों में बनती है क्योंकि राज्य कइयों से टैक्स वसूलने की जगह 1-2 से टैक्स वसूलना चाहता रहा है.

टैक्स के अलावा शराब का फायदा यह भी रहा है कि इसे पिला कर राजाओं को मरनेमारने को तैयार सैनिक मिल जाते थे. हर युद्ध में राजा शराब खूब पिलाता था ताकि सैनिक एक तो घंटों तक लड़ते रहें और अगर उन को घाव हो जाए तो दर्द न हो. हर युद्ध में दोनों तरफ के सैनिक नशे में ही रहते थे और तभी लड़ पाते थे. शराब के आदी हो जाने के कारण राजाओं को शराब को वेतन का हिस्सा बना देने से आसानी से सैनिक मिलते रहते थे.

धर्मों ने भी कभी शराब पर जम कर रोक नहीं लगाई. शराबी मर्दों के हाथों पिटी या बलात्कार हुई औरतें धर्मों की सब से बड़ी ग्राहक रही हैं और आज भी हैं. ज्यादातर औरतों को शराब की वजह से खाली रसोईर् मिलती है, भूखे बच्चे दिखते हैं. जहरीली शराब से मरने पर बची विधवाएं धर्मगुरुओं की सेवाओं के लिए रैग्युलर सप्लाई रही हैं.

अब दिक्कत यह है कि शराब को हमारे महाधार्मिक देश में भी बड़ी मान्यता मिल गई है. अब कोई शादी तो छोडि़ए बच्चों का बर्थडे भी बिना ड्रिंक्स सर्व किए नहीं मनाया जाता. फिल्मों ने तो शराब को सोशल ऐक्सैप्टीबिलिटी दिलाने का महान काम किया है. कोई फिल्म ऐसी नहीं होगी जिस में हीरोहीरोइन शराब के जाम लिए न हों.

शराब को इतना ज्यादा पौपुलर कर दिया गया है कि जो लोग अपनी पार्टी में शराब न पिलाएं, सिविलाइज्ड लोग वहां न जाने के दसियों बहाने पहले से तैयार रखते हैं. डाक्टर चिल्ला रहे हैं कि शराब का एक घूंट भी खतरनाक है पर टै्रजिडी यह है कि मैडिकल कालेजों में और डाक्टरों के घरों में शराब पानी की तरह बहती है.?

लिवर, सिरोसिस, कैंसर, हार्ट, ओवैसिटी, रोड ऐक्सीडैंट्स, डोमैस्टिक वायलैंस, रोड रेज में ड्रिंक्स सब से ज्यादा जिम्मेदार है और अब यह नशा 15-16 साल की उम्र में शुरू होने लगा है, जम कर होने लगा है. शराब की दुकानों पर चाहे कितने बोर्ड लगे हों कि 18 साल से कम उम्र वाले को शराब नहीं दी जाएगी, असल में वे अब बड़े ग्राहक बन चुके हैं.

अब सलाह देना, पाबंदियां लगाना, डराना बेकार है. यह बीमारी छूत की बीमारी है, दुनियाभर में फैली हुई है और कोई आसार नहीं है कि इसे कोई छोड़ेगा. यह पौल्यूशन की तरह का जहर है जिसे सब को पीना पड़ेगा. जिस ने नहीं पीया उसे ऐंटीसोशल मान कर घरों में कैद कर डाला जाएगा. अब जीना है तो शराब पीयो का स्लोगन है: ड्रिंक्स लाइफ डैंजर नहीं है लाइफ थीम हैं.

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