Hindi Story : नासमझी की आंधी – दीपा से ऐसी क्या गलती हो गई थी

Hindi Story : सुबहसुबह रमेश की साली मीता का फोन आया. रमेश ने फोन पर जैसे ही  ‘हैलो’ कहा तो उस की आवाज सुनते ही मीता झट से बोली, ‘‘जीजाजी, आप फौरन घर आ जाइए. बहुत जरूरी बात करनी है.’’

रमेश ने कारण जानना चाहा पर तब तक फोन कट चुका था. मीता का घर उन के घर से 15-20 कदम की दूरी पर ही था. रमेश को आज अपनी साली की आवाज कुछ घबराई हुई सी लगी. अनहोनी की आशंका से वे किसी से बिना कुछ बोले फौरन उस के घर पहुंच गए. जब वे उस के घर पहुंचे, तो देखा उन दोनों पतिपत्नी के अलावा मीता का देवर भी बैठा हुआ था. रमेश के घर में दाखिल होते ही मीता ने घर का दरवाजा बंद कर दिया. यह स्थिति उन के लिए बड़ी अजीब सी थी. रमेश ने सवालिया नजरों से सब की तरफ देखा और बोले, ‘‘क्या बात है? ऐसी क्या बात हो गई जो इतनी सुबहसुबह बुलाया?’’

मीता कुछ कहती, उस से पहले ही उस के पति ने अपना मोबाइल रमेश के आगे रख दिया और बोला, ‘‘जरा यह तो देखिए.’’

इस पर चिढ़ते हुए रमेश ने कहा, ‘‘यह क्या बेहूदा मजाक है?  क्या वीडियो देखने के लिए बुलाया है?’’

मीता बोली, ‘‘नाराज न होएं. आप एक बार देखिए तो सही, आप को सब समझ आ जाएगा.’’

जैसे ही रमेश ने वह वीडियो देखा उस का पूरा जिस्म गुस्से से कांपने लगा और वह ज्यादा देर वहां रुक नहीं सका. बाहर आते ही रमेश ने दामिनी (सलेहज) को फोन लगाया.

दामिनी की आवाज सुनते ही रमेश की आवाज भर्रा गई, ‘‘तुम सही थी. मैं एक अच्छा पिता नहीं बन पाया. ननद तो तुम्हारी इस लायक थी ही नहीं. जिन बातों पर एक मां को गौर करना चाहिए था, पर तुम ने एक पल में ही गौर कर लिया. तुम ने तो मुझे होशियार भी किया और हम सबकुछ नहीं समझे. यहीं नहीं, दीपा पर अंधा विश्वास किया. मुझे अफसोस है कि मैं ने उस दिन तुम्हें इतने कड़वे शब्द कहे.’’

‘‘अरे जीजाजी, आप यह क्या बोले जा रहे हैं? मैं ने आप की किसी बात का बुरा नहीं माना था. अब आप बात बताएंगे या यों ही बेतुकी बातें करते रहेंगे. आखिर हुआ क्या है?’’

रमेश ने पूरी बात बताई और कहा, ‘‘अब आप ही बताओ मैं क्या करूं? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा.’’ और रमेश की आवाज भर्रा गई.

‘‘आप परेशान मत होइए. जो होना था हो गया. अब यह सोचने की जरूरत है कि आगे क्या करना है? ऐसा करिए आप सब से पहले घर पहुंचिए और दीपा को स्कूल जाने से रोकिए.’’

‘‘पर इस से क्या होगा?’’

‘‘क्यों नहीं होगा? आप ही बताओ, इस एकडेढ़ साल में आप ने क्या किसी भी दिन दीपा को कहते हुए सुना कि वह स्कूल नहीं जाना चाहती? चाहे घर में कितना ही जरूरी काम था या तबीयत खराब हुई, लेकिन वह स्कूल गई. मतलब कोई न कोई रहस्य तो है. स्कूल जाने का कुछ तो संबंध हैं इस बात से. वैसे भी यदि आप सीधासीदा सवाल करेंगे तो वह आप को कुछ नहीं बताएगी. देखना आप, स्कूल न जाने की बात से वह बिफर जाएगी और फिर आप से जाने की जिद करेगी. तब मौका होगा उस से सही सवाल करने का.’’

‘‘क्या आप मेरा साथ दोगी? आप आ सकती हो उस से बात करने के लिए?’’ रमेश ने पूछा.

‘‘नहीं, मेरे आने से कोई फायदा नहीं. दीदी को भी आप जानते हैं. उन्हें बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा. इस बात के लिए मेरा बीच में पड़ना सही नहीं होगा. आप मीता को ही बुला लीजिए.’’

घर जा कर रमेश ने मीता को फोन कर के घर बुला लिया और दीपा को स्कूल जाने से रोका,’’ आज तुम स्कूल नहीं जाओगी.’’

लेकिन उम्मीद के मुताबिक दीपा स्कूल जाने की जिद करने लगी,’’ आज मेरा प्रैक्टिकल है. आज तो जाना जरूरी है.’’

इस पर रमेश ने कहा,’’ वह मैं तुम्हारे स्कूल में जा कर बात कर लूंगा.’’

‘‘नहीं पापा, मैं रुक नहीं सकती आज, इट्स अर्जेंट.’’

‘‘एक बार में सुनाई नहीं देता क्या? कह दिया ना नहीं जाना.’’ पर दीपा बारबार जिद करती रही. इस बात पर रमेश को गुस्सा आ गया और उन्होंने दीपा के गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया. हालांकि? दीपा पर हाथ उठा कर वे मन ही मन दुखी हुए, क्योंकि उन्होंने आज तक दीपा पर हाथ नहीं उठाया था. वह उन की लाड़ली बेटी थी.

तब तक मीता अपने पति के साथ वहां पहुंच गई और स्थिति को संभालने के लिए दीपा को उस के कमरे में ले कर चली गई. वह दीपा से बोली, ‘‘यह सब क्या चल रहा है, दीपा? सचसच बता, क्या है यह सब फोटोज, यह एमएमएस?’’

दीपा उन फोटोज और एमएमएस को देख कर चौंक गई, ‘‘ये…य…यह सब क…क…ब  …कै…से?’’ शब्द उस के गले में ही अटकने लगे. उसे खुद नहीं पता था इस एमएमएस के बारे में, वह घबरा कर रोने लगी.

इस पर मीता उस की पीठ सहलाती हुई बोली, ‘‘देख, सब बात खुल कर बता. जो हो गया सो हो गया. अगर अब भी नहीं समझी तो बहुत देर हो जाएगी. हां, यह तू ने सही नहीं किया. एक बार भी नहीं खयाल आया तुझे अपने बूढ़े अम्माबाबा का? यह कदम उठाने से पहले एक बार तो सोचा होता कि तेरे पापा को तुझ से कितना प्यार है. उन के विश्वास का खून कर दिया तू ने. तेरी इस करतूत की सजा पता है तेरे भाईबहनों को भुगतनी पड़ेगी. तेरा क्या गया?’’

अब दीपा पूरी तरह से टूट चुकी थी. ‘‘मुझे माफ कर दो. मैं ने जो भी किया, अपने प्यार के लिए,  उस को पाने के लिए किया. मुझे नहीं मालूम यह एमएमएस कैसे बना? किस ने बनाया?’’

‘‘सारी बात शुरू से बता. कुछ छिपाने की जरूरत नहीं वरना हम कुछ नहीं कर पाएंगे. जिसे तू प्यार बोल रही है वह सिर्फ धोखा था तेरे साथ, तेरे शरीर के साथ, बेवकूफ लड़की.’’

दीपा सुबकते हुए बोली, ’’राहुल घर के सामने ही रहता है. मैं उस से प्यार करती हूं. हम लोग कई महीनों से मिल रहे थे पर राहुल मुझे भाव ही नहीं देता था. उस पर कई और लड़कियां मरती हैं और वे सब चटखारे लेले कर बताती थीं कि राहुल उन के लिए कैसे मरता है. बहुत जलन होती थी मुझे. मैं उस से अकेले में मिलने की जिद करती थी कि सिर्फ एक बार मिल लो.’’

‘‘लेकिन छोटा शहर होने की वजह से मैं उस से खुलेआम मिलने से बचती थी. वही, वह कहता था, ‘मिल तो लूं पर अकेले में. कैंटीन में मिलना कोई मिलना थोड़े ही होता है.’

‘‘एकदिन मम्मीपापा किसी काम से शहर से बाहर जा रहे थे तो मौके का फायदा उठा कर मैं ने राहुल को घर आ कर मिलने को कह दिया, क्योंकि मुझे मालूम था कि वे लोग रात तक ही वापस आ पाएंगे. घर में सिर्फ दादी थी और बाबा तो शाम तक अपने औफिस में रहेंगे. दादी घुटनों की वजह से सीढि़यां भी नहीं चढ़ सकतीं तो इस से अच्छा मौका नहीं मिलेगा.

‘‘आप को भी मालूम होगा कि हमारे घर के 2 दरवाजे हैं, बस, क्या था, मैं ने पीछे वाला दरवाजा खोल दिया. उस दरवाजे के खुलते ही छत पर बने कमरे में सीधा पहुंचा जा सकता है और ऐसा ही हुआ. मौके का फायदा उठा कर राहुल कमरे में था. और मैं ने दादी से कहा, ‘अम्मा मैं ऊपर कमरे में काम कर रही हूं. अगर मुझ से कोई काम हो तो आवाज लगा देना.’

‘‘इस पर उन्होंने कहा, ‘कैसा काम कर रही है, आज?’ तो मैं ने कहा, ‘अलमारी काफी उलटपुलट हो रही है. आज उसी को ठीक करूंगी.’

‘‘सबकुछ मेरी सोच के अनुसार चल रहा था. मुझे अच्छी तरह मालूम था कि अभी 3 घंटे तक कोई नौकर भी नहीं आने वाला. जब मैं कमरे में गई तो अंदर से कमरा बंद कर लिया और राहुल की तरफ देख कर मुसकराई.

‘‘मुझे यकीन था कि राहुल खुश होगा. फिर भी पूछ बैठी, ‘अब तो खुश हो न? चलो, आज तुम्हारी सारी शिकायत दूर हो गई होगी. हमेशा मेरे प्यार पर उंगली उठाते थे.’ अब खुद ही सोचो, क्या ऐसी कोई जगह है. यहां हम दोनों आराम से बैठ कर एकदो घंटे बात कर सकते हैं. खैर, आज इतनी मुश्किल से मौका मिला है तो आराम से जीभर कर बातें करते हैं.’’

‘‘नहीं, मैं खुश नहीं हूं. मैं क्या सिर्फ बात करने के लिए इतना जोखिम उठा कर आया हूं. बातें तो हम फोन पर भी कर लेते हैं. तुम तो अब भी मुझ से दूर हो.’’ मुझे बहुत कुठा…औरतों के साथ तो वह जम कर…था.

‘‘मैं ने कहा, ‘फिर क्या चाहते हो?’

‘‘राहुल बोला, ‘देखो, मैं तुम्हारे लिए एक उपहार लाया हूं, इसे अभी पहन कर दिखाओ.’

‘‘मैं ने चौंक कर वह पैकेट लिया और खोल कर देखा. उस में एक गाउन था. उस ने कहा, ‘इसे पहनो.’

‘पर…र…?’ मैं ने अचकचाते हुए कहा.

‘‘‘परवर कुछ नहीं. मना मत करना,’ उस ने मुझ पर जोर डाला. ‘अगर कोई आ गया तो…’ मैं ने डरते हुए कहा तो उस ने कहा, ‘तुम को मालूम है, ऐसा कुछ नहीं होने वाला. अगर मेरा मन नहीं रख सकती हो, तो मैं चला जाता हूं. लेकिन फिर कभी मुझ से कोई बात या मिलने की कोशिश मत करना,’ वह गुस्से में बोला.

‘‘मैं किसी भी हालत में उसे नाराज नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैं ने उस की बात मान ली. और जैसे ही मैं ने नाइटी पहनी.’’ बोलतेबोलते दीपा चुप हो गई और पैर के अंगूठे से जमीन कुरेदने लगी.

‘‘आगे बता क्या हुआ?  चुप क्यों हो गई?  बताते हुए शर्म आ रही है पर तब यह सब करते हुए शर्म नहीं आई?’’ मीता ने कहा.

पर दीपा नीची निगाह किए बैठी रही.

‘‘आगे बता रही है या तेरे पापा को बुलाऊं? अगर वे आए तो आज कुछ अनहोनी घट सकती है,’’ मीता ने डांटते हुए कहा.

पापा का नाम सुनते ही दीपा जोरजोर से रोने लगी. वह जानती थी कि आज उस के पापा के सिर पर खून सवार है. ‘‘बता रही हूं.’’ सुबकते हुए बोली, ‘‘जैसे ही मैं ने नाइटी पहनी, तो राहुल ने मुझे अपनी तरफ खींच लिया.

‘‘मैं ने घबरा कर  उस को धकेला और कहा, ‘यह क्या कर रहे हो? यह सही नहीं है.’ इस पर उस ने कहा, ‘सही नहीं है, तुम कह रही हो? क्या इस तरह से बुलाना सही है? देखो, आज मुझे मत रोको. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो.’

‘‘‘तो क्या?’

‘‘‘देखो, मैं यह जहर खा लूंगा’, और यह कहते हुए उस ने जेब से एक पुडि़या निकाल कर इशारा किया. मैं डर गई कि कहीं यहीं इसे कुछ हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे. और फिर उस ने वह सब किया, जो कहा था. उस की बातों में आ कर मैं अपनी सारी सीमाएं लांघ चुकी थी. पर कहीं न कहीं मन में तसल्ली थी कि अब राहुल को मुझ से कोई शिकायत नहीं रही. पहले की तरह फिर पूछा, ‘राहुल अब तो खुश हो न?’

‘‘‘नहीं, अभी मन नहीं भरा. यह एक सपना सा लग रहा है. कुछ यादें भी तो होनी चाहिए’, उस ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘यादें, कैसी यादें’, मैं ने सवालिया नजर डाली. ‘अरे, वही कि जब चाहूं तुम्हें देख सकूं,’ उस से राहुल ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘पता नही क्यों अपना सबकुछ लुट जाने के बाद भी, मैं मूर्ख उस की चालाकी को प्यार समझ रही थी. मैं ने उस की यह ख्वाहिश भी पूरी कर देनी चाही और पूछा, ‘वह कैसे?’

‘‘‘ऐसे,’ कहते हुए उस ने अपनी अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर झट से मेरी एक फोटो ले ली. फिर, ‘मजा नहीं आ रहा,’ कहते कहते, एकदम से मेरा गाउन उतार फेंका और कुछ तसवीरें जल्दजल्दी खींच लीं.

‘‘यह सब इतना अचानक से हुआ कि मैं उस की चाल नहीं समझ पाई. समय भी हो गया था और मम्मीपापा के आने से पहले सबकुछ पहले जैसा ठीक भी करना था. कुछ देर बाद राहुल वापस चला गया और मैं नीचे आ गई. किसी को कुछ नहीं पता लगा.

‘‘पर कुछ दिनों बाद एक दिन दामिनी मामी घर पर आई. उन की नजरें मेरे गाल पर पड़े निशान पर अटक गईं. वे पूछ बैठीं, ‘क्या हो गया तेरे गाल पर?’ मैं ने उन से कहा, ‘कुछ नहीं मामी, गिर गई थी.’

‘‘पर पता नहीं क्यों मामी की नजरें सच भांप चुकी थीं. उन्होंने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, ‘गिरने पर इस तरह का निशान कैसे हो गया? यह तो ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने जोर से चुंबन लिया हो. सब ठीक तो है न दीपा?’

‘‘मैं ने नजरें चुराते हुए थोड़े गुस्से के लहजे में कहा, ‘पागल हो गई हो क्या? कुछ सोच कर तो बोलो.’ और मैं गुस्से से वहां से उठ कर चली गई. ‘‘लंच के बाद सब लोग बैठे हुए हंसीमजाक कर रहे थे. मामी मुझे समझाने के मकसद से आईं तो उन्होंने मुझे खिड़की के पास खड़े हो कर, राहुल को इशारा करते हुए देख लिया. हालांकि मैं उन के कदमों की आहट से संभल चुकी थी पर अनुभवी नजरें सब भांप गई थीं. मामी ने मम्मी से कहा, ‘दीदी, अब आप की लड़की बड़ी हो गई है. कुछ तो ध्यान रखो. कैसी मां हो? आप को तो अपने घूमनेफिरने और किटीपार्टी से ही फुरसत नहीं है.’

‘‘पर मम्मी ने उलटा उन को ही डांट दिया. फिर मामी ने चुटकी लेते हुए मुझ से कहा, ‘क्या बात है दीपू? हम तो तुम से इतनी दूर मिलने आए हैं और तुम हो कि बात ही नहीं कर रहीं. अरे भई, कहीं इश्कविश्क का तो मामला नहीं है? बता दो, कुछ हैल्प कर दूंगी.’

‘‘‘आप भी न कुछ भी कहती रहती हो. ऐसा कुछ नहीं है,’ मैं ने अकड़ते हुए कहा. लेकिन मामी को दाल में कुछ काला महसूस हो रहा था. उन का दिल कह रहा था कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है और वे यह भी जानती थीं की ननद से कहने का कोई फायदा नहीं, वे बात की गहराई तो समझेंगी नहीं. इसलिए उन को पापा से ही कहना ठीक लगा, ‘बुरा मत मानिएगा जीजाजी, अब दीपा बच्ची नहीं रही. हो सकता है मैं गलत सोच रही हूं. पर मैं ने उसे इशारों से किसी से बात करते हुए देखा है.’

‘‘पापा ने इस बात को कोई खास तवज्जुह नहीं दी, सिर्फ ‘अच्छा’ कह कर  बात टाल दी. जब मामीजी ने दोबारा कहा तो पापा ने कहा, ‘मुझे विश्वास है उस पर. ऐसा कुछ नहीं. मैं अपनेआप देख लूंगा.’

‘‘मैं मन ही मन बहुत खुश थी, लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी. अब राहुल उन फोटोज को दिखा कर मुझे धमकाने लगा. रोज मिलने की जिद करता और मना करने पर मुझ से कहता, ‘अगर आज नहीं मिलीं तो ये फोटोज तेरे घर वालों को दिखा दूंगा.’

‘‘पहले तो समझ नहीं आया क्या करूं? कैसे मिलूं? पर बाद में रोज स्कूल से वापस आते हुए मैं राहुल से मिलने जाने लगी.’’

‘‘पर कहां पर? कहां मिलती थी तू उस से,’’ मीता ने जानना चाहा.

‘‘बसस्टैंड के पास उस का एक छोटा सा स्टूडियो है. वहीं मिलता था और मना करने के बाद भी मुझ से जबरदस्ती संबंध बनाता. एक बार तो गर्भ ठहर गया था.’’

‘‘क्या? तब भी घर में किसी को पता नहीं चला?’’ मीता चौंकी.

‘‘नहीं, राहुल ने एक दवा दे दी थी. जिस को खाते ही काफी तबीयत खराब हो गई थी और मैं बेहोश भी हो गई थी.’’

‘‘अच्छा, हां, याद आया. ऐसा कुछ हुआ तो था. और उस के बाद भी तू किसी को ले कर डाक्टर के पास नहीं गई. अकेले जा कर ही दिखा आई थी. दाद देनी पड़ेगी तेरी हिम्मत की. कहां से आ गई इतनी अक्ल सब को उल्लू बनाने की. वाकई तू ने सब को बहुत धोखा दिया. यह सही नहीं हुआ. वहां राहुल के अलावा और कौनकौन होता था?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम.’’ लेकिन मुझे इतनी बात समझ में आ गई थी कि राहुल मुझे ब्लैकमेल कर मेरी मजबूरी का फायदा उठा रहा है. और मैं तब से जो भी कर रही थी, अपने घर वालों से इस बात को छिपाने के लिए मजबूरी में कर रही थी. मुझे माफ कर दो. मुझे नहीं पता था कि उस ने मेरा एमएमएस बना लिया है. मैं नहीं जानती कि उस ने यह वीडियो कब बनाया. उस ने मुझे कभी एहसास नहीं होने दिया कि हम दोनों के अलावा वहां पर कोई तीसरा भी है, जो यह वीडियो बना रहा है…’’ और वह बोलतेबोलते  रोने लगी.

मीता को सारा माजरा समझ आ चुका था. वह बस, इतना ही कह पाई,’’ बेवकूफ लड़की अब कौन करेगा यकीन तुझ पर? कच्ची उम्र का प्यार तुझे बरबाद कर के चला गया. इस नासमझी की आंधी ने सब तहसनहस कर दिया.’’

उस ने रमेश को सब बताया. तो, एक बार को तो रमेश को लगा कि सबकुछ खत्म हो गया है. पर सब के समझाने पर उस ने सब से पहले थानेदार से मिल कर वायरल हुए वीडियो को डिलीट करवाया. अपने शहर के एक रसूखदार आदमी होने की वजह से, उन के एक इशारे पर पुलिस वालों ने राहुल को जेल में बंद कर दिया. उस के बाद पूरे परिवार को बदनामी से बचाने के लिए सभी लोकल अखबारों के रिपोर्टर्स को न छापने की शर्त पर रुपए खिलाए. दीपा को फौरन शहर से बहुत दूर पढ़ने भेज दिया, क्योंकि कहीं न कहीं रमेश के मन में उस लड़के से खतरा बना हुआ था. हालांकि, बाद में वह लड़का कहां गया, उस के साथ क्या हुआ?  यह किसी को पता नहीं चला.

Prem Kahani : अपने हिस्से का प्यार

Prem Kahani :  बात उन दिनों की है जब मेरी नियुक्ति एक अच्छी कंपनी में एक अच्छे ‘पे पैकेज’ के साथ हुई थी और मैं कंपनी के गैस्टहाउस में रह रहा था. दिल्ली में वैसे भी मकान ढूंढ़ने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है.

एक दिन शाम को लगभग 7 बजे मेरे पास एक लड़की का फोन आया, ‘सर, मैं आशा बोल रही हूं. मैं आप से आज ही मिलना चाहती हूं. आप थोड़ा समय दे सकते हैं? मैं अगर आज आप से नहीं मिली तो बहुत देर हो जाएगी.’

मैं ने हामी भर दी और उसे आधे घंटे बाद किसी समय आने के लिए कह दिया. 8 बजे आशा मेरे पास गैस्टहाउस के रूम में थी.

‘‘सर, मैं आप की कंपनी में एक जूनियर औफिसर के पद के लिए इंटरव्यू दे चुकी हूं. अभी इस विषय में निर्णय लिया नहीं गया है. मेरे घर के हालात अच्छे नहीं हैं. मेरे पिता का निधन मेरे बचपन में ही हो गया था. मां ने मुझे बड़ी कठिनाइयों के साथ पाला है और मैं ही उन का एकमात्र सहारा हूं,’’ कह कर वह भावुक हो गई और उस की आंखों से आंसू छलक गए.

मैं उस की भावना से भरी बातचीत से प्रभावित हो चुका था. उस की सुंदरता पर मैं मुग्ध हो गया था. मेरी उम्र उन दिनों लगभग 30 की रही होगी और मैं अविवाहित भी था.

दूसरे ही दिन आशा का बायोडाटा मैं ने अपने औफिस में मंगा लिया. लेकिन उस की प्रतिभा के आधार पर उस का चयन हो चुका था. आशा को तो यही लगा कि उस का चयन मेरी वजह से हुआ है.

आशा का प्लेसमैंट मेरे ही विभाग में हो गया. उस की नजदीकियां जैसेजैसे बढ़ती गईं मुझे वह और भी अच्छी लगने लगी. अब तो वह बगैर किसी पूर्व सूचना के साधिकार गैस्टहाउस में मेरे कमरे में आने लगी थी. कभी चाय पर तो कभी डिनर पर. उस का साथ मुझे भाने लगा था.

हम दोनों की नजदीकियां जगजाहिर न होते हुए भी औफिस के कर्मचारियों को मन ही मन खटकती थीं. हम दोनों ने दफ्तर में पूरी सतर्कता रखी थी, लेकिन जब वह गैस्टहाउस में मेरे रूम में होती थी, तो हमें पूरी स्वतंत्रता होती थी. लेकिन दैहिक संबंध की दिशा में न बढ़ कर हम लोग अपने प्यार का इजहार एकदूसरे की पीठ थपथपा कर अकसर कर लिया करते थे. कभी चुंबन और आलिंगन से हम दोनों ने एकदूसरे को प्यार नहीं किया था. हां, अपनी कल्पना में मैं उसे कई बार चूम चुका था.

अचानक आशा का ट्रांसफर इलाहाबाद हो गया. फिर हम दोनों  एकदूसरे के संपर्क में नहीं रहे. दूरी चाहत बढ़ा देती है, लेकिन मैं अपने मन को अकसर समझाता था कि इस के बारे में ज्यादा मत सोचो, फिर वक्त गुजरता गया और आशा की यादें धीरेधीरे धुंधली पड़ती गईं.

आशा से बिछड़े 10 साल गुजर चुके थे. मेरा विवाह हो चुका था. मेरी पत्नी मधु बहुत सुंदर और सुशील है और वह सही माने में एक सफल गृहिणी है. शादी हुए अभी कुछ ही समय हुआ था, इसलिए संतान के विषय में मैं ने और मेरी पत्नी ने कोई जल्दबाजी न करने का फैसला किया हुआ था. अभी तो हम एकदूसरे का साथ ऐंजौय करना चाहते थे. मेरी नौकरी दिल्ली में ही जारी थी.

एक दिन एक पेस्ट्री की दुकान पर मैं पेस्ट्री लेने के लिए रुका था. तभी पीछे से आई एक महिला के स्वर ने मुझे चौंका दिया.

‘‘सर, नमस्ते, आप ने मुझे पहचाना?’’

मैं मुड़ा तो देखा आशा खड़ी थी.

‘‘नमस्ते, तुम्हारी याददाश्त की प्रशंसा करनी होगी. इतने अरसे बाद मिली हो और मुझे तुरंत पहचान भी लिया,’’ मैं ने कहा.

उस के साथ बिताए दिनों की स्मृति मस्तिष्क में पुन: जाग्रत हो चुकी थी. इतने अरसे बाद भी उसे देख कर मुझे लगा कि अभी भी उस की सुंदरता बरकरार है.

‘‘इतने दिनों बाद.. दिल्ली कब आईं?’’

‘‘मैं यहीं आ गई हूं और यहीं जौब कर रही हूं. आज घर के लिए कुछ केकपेस्ट्री वगैरह लेने आई हूं. मेरे हसबैंड और सास दोनों को पेस्ट्री बहुत अच्छी लगती है.’’

‘‘जो कुछ तुम ने पैक कराया है उस का पेमैंट मैं अपने सामान के साथ कर दूंगा,’’ कहते हुए मैं ने काउंटर पर पैसे दे दिए. आशा नानुकर करती रही. मैं ने आशा की पीठ सहलाते हुए कहा, ‘‘तुम मेरे साथ ही चलो मैं तुम्हें ड्रौप भी कर दूंगा और तुम्हारे घर के लोगों से मिल भी लूंगा.’’

थोड़ी ही देर में मैं आशा के घर पहुंच गया. आशा ने रास्ते में बताया कि उस के पति का नाम जतिन है. उन का अपना बिजनैस है. विवाह 3 वर्ष पूर्व हुआ था. अभी उन की कोई संतान नहीं हुई है.

आशा की सास ने घर का मुख्य द्वार खोलते हुए मेरा स्वागत किया. आशा ने मेरा परिचय कराया, ‘‘मम्मीजी, ये श्रीकांत हैं. 10 साल पहले मैं इन के दफ्तर में ही काम करती थी. इन्होंने मेरी बहुत सहायता की थी. बहुत अपनापन दिया था.’’

खैर, हम लोगों ने साथसाथ चाय पी. जतिन अभी अपने कामकाज से वापस नहीं आया था. मैं ने आशा की प्रशंसा करते हुए मांजी से कहा, ‘‘आप के घर व ड्राइंगरूम का इंटीरियर बहुत अच्छा है.’’

मांजी ने कहा, ‘‘यह सब तो आशा का कमाल है. आशा को घर सजाने का बहुत शौक है.’’

एक दिन मैं आशा के घर पहुंचा तो मांजी तो घर पर ही थीं पर जतिन अभी वापस घर नहीं पहुंचा था. जतिन अकसर अपने बिजनैस में ही व्यस्त रहता था. आशा मुझे बैठा कर चाय बनाने चली गई. मैं ड्राइंगरूम में मांजी के साथ बातचीत करता रहा.

जब आशा चाय ले कर आई तो मैं ने मांजी से कहा, ‘‘आशा चाय बहुत अच्छी बनाती है.’’

‘‘तारीफ करना तो कोई श्रीकांतजी से सीखे. ये तो प्रशंसा करने में माहिर हैं. जतिन के पास तो इतना समय ही नहीं होता है कि वे कभी मेरी ओर गौर से देखें,’’ कहते हुए आशा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दूसरे कमरे की ओर ले कर चली, ‘‘आइए, मैं आप को जतिन का कंप्यूटर दिखाती हूं.’’

यह तो मात्र बहाना था मुझे एकांत में ले जाने का. मांजी रसोई में व्यस्त हो चुकी थीं. ‘‘मम्मीजी का बहुत सहारा है. वैसे तो अच्छाखासा समय औफिस में गुजर जाता है पर आप यह तो मानेंगे ही कि प्यार और स्नेह की भूख अपनी जगह होती है. बड़ा मन करता है कोई अपनापन जताए, अपना सा लगे, मुहब्बत से गले लगाए. पर ऐसा कुछ जतिन के साथ कभी हो ही नहीं पाता…’’ कहतेकहते वह मेरे निकट आ गई.

प्यार से उस की पीठ सहलाते हुए मैं ने धीमे स्वर में कहा, ‘‘मुझे तुम अपना ही समझो. अब जब एक अंतराल के बाद हम दोबारा मिले हैं तो मैं प्यार की कमी तुम्हें कभी महसूस नहीं होने दूंगा.’’

मांजी के आने की आहट से हम दोनों सतर्क हो गए. आशा की पीठ पर जो हलका सा स्पर्श हुआ था उस से मेरे मन में कई प्रश्न उठ खड़े हुए. शायद आशा को मुझ से कहीं अधिक अपेक्षा रही होगी. इन एकांत के क्षणों में, कुछ भी हो सकता था.

एक दिन मेरी पत्नी मधु किटी पार्टी से लौट कर घर आई. बातचीत के दौरान मधु ने मुझे बताया, ‘‘किटी पार्टी में मिसेज चोपड़ा तुम्हारे बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक रहती हैं. वे तुम से बहुत इंप्रैस्ड हैं. अकसर तुम्हारी तारीफ करती हैं.’’

मैं ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘मधु मुझे पता चला है तुम भी मेरी तारीफ में अपनी सहेलियों से बहुत बातें करती हो.’’

मधु ने प्रतिक्रिया में बस इतना कहा, ‘‘मैं झूठी तारीफ नहीं करती. आप हर तरह से तारीफ के काबिल हैं,’’ फिर मेरी पीठ सहलाते हुए बड़े प्यार से कहा, ‘‘यू आर रियली स्वीट हसबैंड.’’

मैं फूला नहीं समाया और आत्मविभोर हो गया. आशा अकसर अपने औफिस से मेरे कार्यालय में आ जाती थी और मैं उसे उस के घर ड्रौप कर दिया करता था. अपनी कंपनी में आशा अपने मधुर व्यवहार और कार्यशैली में गुणवत्ता के कारण, कई प्रमोशन प्राप्त कर चुकी थी. उसे उस के दफ्तर में सभी बहुत पसंद करते थे.

एक दिन जब वह कार में मेरे साथ अपने घर की ओर जा रही थी तो मैं उस के मांसल शरीर पर मुग्ध हो उठा. मेरे मन में बिताए दिनों की नजदीकियां तरोताजा हो उठीं.

तब मन में खयाल आता था कि काश आशा के साथ मेरी नजदीकी कुछ इस तरह बन सके कि मजा आ जाए. पर अकसर मुझे अपने इस विचार पर हंसी आती थी. आशा जैसी लड़की का निकट होना एक संयोग की ही बात थी.

कार में आशा को मेरा एकटक उसे देखना अच्छा भी लगता था, लेकिन मेरी नैतिकता इस वासना की चिनगारी को ठंडा कर देती थी. जब आशा खिलखिला कर हंसती थी तो मुझे बहुत अच्छी लगती थी. आशा के मन में मेरे लिए प्रेम पनप रहा है ऐसा मैं ने अकसर महसूस किया था. एक बार उस के घर गया तो उस के पति जतिन से मुलाकात हुई. वह एक सभ्य और सुलझा हुआ इंसान था.

मैं आशा के घर जाता रहता था. वह कभीकभी बच्चों जैसी मासूमियत के साथ हठ कर के मुझ से किसी चीज की मांग कर बैठती थी तो जतिन उसे समझाता था.

उत्तर में वह कहती थी, ‘‘तुम हम दोनों के बीच में मत पड़ो, जतिन. मैं सर से जो चाहती हूं साधिकार लूंगी. ये उम्र में हम से बड़े हैं और इन से हम लोग कुछ भी ले सकते हैं.’’

मैं ने आशा को उस की शादी की सालगिरह के मौके पर सोने का इयररिंग्स भेंट किया जिन्हें पहन कर उस ने कहा, ‘‘कैसी लग रही हूं इसे पहन कर?’’

मैं ने कहा, ‘‘बहुत सुंदर.’’

मेरे करीब आ कर उस ने मेरा एक हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया और बोली, ‘‘मुझे आप का आशीर्वाद चाहिए, सारी जिंदगी. बस ऐसे ही प्यार करते रहिएगा.’’

मैं ने कुछ नहीं कहा किंतु मन ही मन खुश था.

मेरी मर्यादा ने मुझे बांध रखा था. लेकिन अकसर आशा के मुख पर आतेजाते  हावभाव उस के दिल में छिपे तूफान को छिपाने में असमर्थ होते थे.

एक दिन किसी कार्यवश जतिन को लखनऊ जाना पड़ा. अपने औफिस से लौटते हुए आशा को ले कर मैं आशा के घर पहुंचा. रास्ते भर आशा बहुत प्रसन्न दिखाई दी. घर पहुंचने पर आशा ने अपने पर्स से घर की चाबी निकाली. मेरे पूछने पर आशा ने बताया, ‘‘2 दिन पहले मम्मीजी मेरे जेठ के यहां कानपुर गई हैं. वापसी में जतिन उन्हें कानपुर से ले आएंगे.’’

थोड़ी देर बाद जब मैं ने उस के घर से जाना चाहा तो आशा ने कहा, ‘‘आप रुक जाइए. ऐसी भी क्या जल्दी है? आज मैं घर पर आप को ट्रीट दूंगी. खाना हम साथ ही खाएंगे. अकेले रहने का मौका तो कभीकभी ही मिलता है,’’ कहते हुए उस ने मुझे बाहुपाश में लेने की चेष्टा की. मेरे समीप होने का वह पूरा लाभ उठाना चाहती थी. पहले तो मैं ने संकोचवश वहां से हटना चाहा किंतु उस का आकर्षण मेरी विवशता बन गया. ऐसे अंतरंग क्षणों में हम एकाकार हो गए. एक अलौकिक दुनिया में खोए रहे.

दूसरे दिन भी इसी आनंद की पुनरावृत्ति हुई. हम दोनों भोजन कर चुके थे. आशा ने कहा, ‘‘आप थोड़ी देर संगीत का आनंद लें. मैं बस थोड़ा फ्रैश हो कर आती हूं. वह आई तो हलके आसमानी रंग की साड़ी में थी और बहुत प्रसन्न थी, ‘‘अभी तो मैं आप को बिलकुल नहीं जाने दूंगी. बस थोड़ा समय ही तो लगेगा,’’ कह कर उस ने मेरा हाथ थाम लिया और दूसरे कमरे की ओर ले चली.

मंद स्वर में उस ने पूछा, ‘‘मैं दुलहन जैसी सुंदर लग रही हूं न?’’ फिर इतराते हुए कहा, ‘‘आज मैं ने शृंगार आप के लिए ही किया है. आप मुझे जी भर कर प्यार कर सकते हैं. मैं प्रेम की गहराई में डूब जाना चाहती हूं…’’ वह बोली.

बहकने लगी थी वह और मुझे बाहुपाश में लेने के लिए मचल रही थी. मैं कदम बढ़ा कर बहुत दूर तक जा सकता था. प्रलोभन चरम सीमा पर था. हालात विवश कर रहे थे देहसंबंध के लिए.

उसे बहुत आश्चर्य हुआ जब मैं एकाएक पलंग से उठ खड़ा हुआ, ‘‘जरा इधर आओ मेरे निकट,’’ मैं ने आशा से कहा, ‘‘मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूं, तुम्हारे व्यक्तित्व में कई अच्छी बातें हैं लेकिन जो प्रेम तुम मुझ में ढूंढ़ने का प्रयास कर रही हो वह जतिन के हृदय में भी हिलोरें मार रहा है. नदी को जानने के लिए गहराई में उतरना पड़ता है. किनारे पर खड़े हो कर नदी की गहराई पता नहीं चलती है. तुम्हारा समर्पण और सान्निध्य केवल जतिन के लिए है.’’

वह सब जो आसानी से उपलब्ध है उसे कोई इतनी आसानी से ठुकरा सकता है, ऐसा आशा ने कभी सोचा न था.

थोड़ी देर वह चुप रही फिर उस ने बहुत भावुक हो कर कहा, ‘‘आज की इस निकटता ने हमारे संबंधों को एक नया अर्थ दिया है. यह आप ने सिद्ध कर दिया है. आप ने मेरी नजदीकी से कोई लाभ नहीं उठाना चाहा. जो पवित्र प्रेम और सम्मान आप ने मुझे दिया है उसे मैं जिंदगी भर याद रखूंगी. आप हमारे घर आतेजाते अवश्य रहिएगा. आप को अभी भी रोकने की मेरी चाहत है लेकिन जाने का निश्चय आप कर चुके हैं.’’

लौटते वक्त मैं सोच रहा था कि एक सुंदर लड़की का रूप मेरी रूह में समा चुका है. वह भी मुझे पसंद करती है, लेकिन हमारी सोच के तरीके बदल चुके हैं.

सब से अधिक प्रसन्नता मुझे इस बात की थी कि मैं ने अपनी पत्नी के विश्वास को कोई चोट नहीं पहुंचाई थी. हमारा अपनेअपने हिस्से का जो प्यार होता है, हमें उसी पर गर्व महसूस करना चाहिए.

Best Hindi Story : झुनझुना – क्यों लोगों का गुस्सा सहती थी रीना?

Best Hindi Story : आत्मनिर्भर बनने के भाषण ने नेताओं जैसे गुणों वाले मेरे घर के 3 तेज बुद्धि वालों को और सयाना बना दिया. भाषण का असर किसी पर हुआ हो या न, इन 3 सयानों के चेहरों की चमक देखने वाली थी.

मैं चुप रही. कोरोना टाइम में चौबीसों घंटे सब को झेलझेल कर इन की नसनस पहचानने लगी हूं. रातदिन देख रही हूं सब को. सरकार सा हो गया है घर मेरा. करनाधरना कम, शोर ज्यादा.

मुझे अपना अस्तित्व किसी मूर्ख, गरीब जनता जैसा लगता है. एक जरूरी काम बताती हूं, तो ये दस जगह ध्यान भटकाने की कोशिश करते हैं. कोशिश रहती है कि कोई जिम्मेदारी इन के ऊपर न आए. कोरोनाकाल में आजकल हाउसहैल्प नहीं है, तो इन सयानों को घर के कामों में कम से कम ही हाथ बंटाना पड़े.

मयंक कहने लगे, “रीना, वैसे सब काम मैनेज हो ही रहा है न, तो अब तुम पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गई हो. अब तो तुम्हें आशाबाई की भी जरूरत नहीं लगती न, प्राउड औफ़ यू, डिअर.”

मैं फुंफकारी, ”उस के बिना हालत खराब है मेरी. चुपचाप काम किए जा रही हूं, तो इस का मतलब यह नहीं कि बहुत अच्छा लग रहा है. तुम तीनों तो किसी काम को हाथ तक नहीं लगाना चाहते. पता नहीं कैसे इतने सौलिड बहाने देते हो कि चुप ही हो जाती हूं.‘’

मलय को अचानक कुछ याद आया, ”मौम, आप को पता है कि विपिन की मौम घर पर ही पिज़्ज़ा बेस बना लेती हैं. कल इंस्टाग्राम पर विपिन ने पिक डाली, तो मैं ने उस से पूछा था कि सब शौप्स तो बंद हैं, तुम्हें पिज़्ज़ा बेस कहां से मिल गया? मौम, उस ने गर्व से बताया कि उस की मम्मी को पिज़्ज़ा बेस घर पर बनाना आता है.”

मैं ने उसे घूरा तो उस ने टौपिक बदलने में ही अपनी भलाई समझी. पर, उस ने मेरी दुखती रग तो छू ही दी थी. सो, मैं शुरू हो गई, ”तुम लोग हाथ मत बंटाना, बस, मुझे यह बता दिया करो कि और घरों में क्याक्या बन रहा है. मलय, उस से यह पूछा कि उन के घर में भी कोई घर के कामों में हैल्प कर रहा है या नहीं? बस, मां को ही आत्मनिर्भर बनाना है सब को?”

मौली कम सयानी थोड़े ही है, एक कुशल नेता की तरह मीठे स्वर में मौके की नजाकत देख कर कहा, ”मलय, मौम कितना काम कर रही हैं आजकल, देखते हो न. अब ऐसे में उन से पिज़्ज़ा बेस भी बनाने की ज़िद न करो. मेरे भाई, मौम जो बनाती हैं, ख़ुशीख़ुशी खा लो. उन के हाथ में तो इतना स्वाद है, जो भी बनाती हैं, अच्छा ही होता है. मौम, आप को जिस चीज में मेहनत कम लगे, वही बनाया करो. हम तो वर्क फ्रौम होम में फंस कर आप की हैल्प नहीं कर पाते. लव यू, मौम,” ‘कहतेकहते उस ने मेरे गाल चूम लिए. और मैं एक गरीब जनता की तरह फिर सब के झांसे में आ कर, सब भूल दुगने जोश से काम करने लगी.

मौली ने एक झुनझुना पकड़ा ही दिया था. लौकडाउन शुरू होने पर मेरे मूर्ख बनने की जो प्रक्रिया शुरू हुई, वह ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही. मैं बारबार इन सयानी बातों में फंसती हूं. तीनों ने मुझे काफी समझाया. एक भाषण काफी नहीं था आत्मनिर्भर बनने का, 3 और सुने.

मयंक उन में से हैं जो ऐसे भाषण को काफी गंभीरता से लेते हैं. जो कह दिया गया, बस, वही करेंगे. बुद्धि गई तेल लेने. कई बार सोचती हूं, इतना ध्यान अगर अपने पिताजी के भाषणों पर दिया होता, तो पता नहीं आज क्या बन गए होते. सेल्स की नौकरी में कमाखा तो अभी भी रहे हैं, पर पिताजी के भाषण तो बेकार गए न.

उन्हें तो मयंक को डाक्टर बनाना था. आज लगता है अगर टीवी पर भाषण में सुनते कि डाक्टर बनना है तो मेहनत शायद कर लेते, पर पिताजी की बात में टीवी के भाषण जैसा दम थोड़े ही था. मयंक अकसर कहते हैं, ‘मुझ पर ऐसे भाषणों का असर कहां होता है. मुझे तो रोज बढ़ती महंगाई में खींचतान कर घर का बजट देखना पड़ता है.’ मैं समझ गई कि मुझे आत्मनिर्भर बनाने के लिए तीनों एड़ीचोटी का जोर लगा देंगे.

मुझे कोई शौक नहीं आत्मनिर्भर बनने का. नहीं हो रहा है मुझ से अब अकेले घर का काम. मुझे आशाबाई भी चाहिए, इन लोगों की हैल्प भी चाहिए. घर में रहरह कर सब का हर समय कोई न कोई शौक जागा करता है जिसे पूरा मुझे करना होता है. एक दिन मलय ने कहा, मौम, चलो, घर की सैटिंग कुछ चेंज करते हैं, एक चीज एक तरह से देखदेख कर बोर हो गए.”

मैं ने कहा, ‘हां, क्यों नहीं. चलो, झाड़ू ले आओ. सामान इधरउधर हटेगा, तो नीचे की सफाई भी हो जाएगी, वरना सामान रोज तो हटता नहीं है.”

फौरन एक नेता की तरह पलटी मार दी महाशय ने, ”मौम, इस से तो आप का काम और बढ़ जाएगा. छोड़ो, फिर कभी करते हैं.”

”नहींनहीं, काम क्या बढ़ना, तुम हैल्प करवा रहे हो न!”

”मौम, कुछ काम याद आ गया अचानक, लैपटौप पर बैठना पड़ेगा, फिर कभी करते हैं. सैटिंग इतनी भी बुरी नहीं है.”

मौली को एक दिन कहा, ”आज तुम डिनर बना लेना. पता नहीं, मन नहीं हो रहा है कुकिंग का, बोर हो गई रातदिन खाना बनाबना कर.”

मौली ने अपनी मनमोहक मुसकान से कहा, “हां, मौम, बना लूंगी.” फिर उस ने मेरी कमर में बांहें डालीं और मेरे साथ ही लेट गई और बोली, ”लाओ मौम, आप की कमर दबा दूं?”

मैं झट से उलटी हो गई, ”हां, दबा दो.” यह मौका छोड़ दूं, इतनी भी मूर्ख नहीं हूं मैं. ऐसे दिन बारबार तो आते नहीं कि कोई कहे, आओ, कमर दबा दूं. कुछ ही सैकंड्स बीते होंगें, मैं सुखलोक में पहुंची ही थी कि मौली का मधुर स्वर सुनाई दिया, “मौम, जब आप को ठीक लगे, एक शार्ट कट मारोगी?”

”क्या, फिर से बोलो, बेटा?”

”किसी दिन सिर्फ मटर पुलाव बनाओगी? रायता मैं बना लूंगी. बहुत दिन हो गए, मलय तो आप को बनाने नहीं देता, पूरा खाना चाहिए होता है उसे तो.‘’

”हां, ठीक है, बना दूंगी”

बेटी इतने प्यार से अपना कामधाम छोड़ कर मेरे साथ लेटी थी, मैं तो वारीवारी जा रही थी उस पर मन ही मन. थोड़ी देर बाद वह अपने रूम में चली गई. उस की फ्रैंड का फोन था, जातेजाते बोली, “टेक रैस्ट, मौम.”

थोड़ी देर बाद मैं ने यों ही लेटेलेटे मौली को सरप्राइज देने का मन बना लिया, कि मैं आज ही मटरपुलाव बना लूंगी उस की पसंद का, खुश हो जाएगी वह. और मैं ने डिनर में सचमुच खुद ही सब बना लिया. बीचबीच में मौली आ कर हैल्प औफर करती रही, मैं मना करती रही थी.

डिनर टेबल पर सब को हंसतेमुसकराते देख मुझे अचानक याद आया कि अरे, आज तो मेरा कुकिंग का मूड ही नहीं था. मौली पर जिम्मेदारी सौंपी थी डिनर की. और मैं ही उस के लिए मटरपुलाव, रायता और मलय के लिए स्टफ्ड परांठे बनाने में जुट गई. ओह, मूर्ख जनता फिर ठगी गई. मुझे मीठीमीठी बातों में फिर फंसा लिया गया. मुझे गुस्सा आ गया, कहा, ”मैं तुम लोगों से बहुत नाराज हूं, कोई मेरी हैल्प नहीं करता. बस, सब से डायलौग मरवा लो. मर जाऊंगी काम करतेकरते, तुम लोग, बस, लाइफ एंजौय करो.”

मयंक ने मुझे रोमांटिक नजरों से देखते हुए कहा, ”मेरी रीनू, हम लोगों से गुस्सा हो ही नहीं सकती. अभी तो यह टैस्टी पुलाव खाने दो. एक बार औफिस में कपिल पुलाव लाया था, इतना बेकार था, सारे चावल के दाने चिपके हुए थे. और एक आज तुम्हारा बनाया हुआ पुलाव, देखो, कैसे खिलाखिला है एकएक दाना. वाह, खाना बनाना कोई तुम से सीखे. सच बताऊं, जो भी बनाती हो, शानदार होता है. वाह, ऐक्सीलैंट.”

मैं, हूं तो एक नारी ही न, तारीफ़ सुन कर सब भूल गई. दिल किया, अपनी जान निसार कर दूं सब पर. इतराते हुए पूछ बैठी, “कल क्या खाओगे, क्या बनाऊं?”

मलय ने मौका नहीं छोड़ा, फरमाइश सब से पहले की, ”मौम,छोलेभठूरे.”

”ओके, बनाऊंगी.”

फिर मौली कह बैठी, ”मौम, मेरी हैल्प तो नहीं चाहिए होगी न? कल मेरी कई वर्कशौप्स हैं दिनभर.”

मेरा मुंह उतरा, तो एक सयाने ने संभाल लिया, मलय ने कहा, ”मैँ करवा सकता हूं हैल्प, पर लंचटाइम में, तब तक आप मेरी हैल्प का वेट कर पाओगी, मौम?”

मैं ने थोड़ा झींकते हुए कहा, “मुझे किसी से कोई उम्मीद ही नहीं है कि मुझे हैल्प मिलेगी. यह कोरोना टाइम मेरी जान ले कर ही रहेगा. कोरोना से भले ही बच जाऊं, ये काम मुझे मार डालेंगे. बस, तुम लोग सुबह लैपटौप खोल लिया करो, बीचबीच में सोशल मीडिया पर घूम लिया करो, दोस्तों से बातें कर लिया करो. बस, यही करते हो और यही करते रहो तुम लोग.”

इतने में दूसरे सयाने ने माहौल में बातों की जादू की छड़ी घुमाने की कोशिश की. मयंक बोले, ”तुम बहुत दिन से नई वाशिंग मशीन लेने के लिए कह रही थीं न, आजकल सेल चल रही है. मैं ने देख ली है. चलो, तुम्हें दिखाता हूं. आओ, लैपटौप लाता हूं.” यह कह कर मयंक उठे. बच्चे भी नौटंकी करने लगे, बोले, मौम, देखो, पापा कितना ध्यान रखते हैं, आप के लिए नई वाशिंग मशीन आ रही है.”

मैँ क्या कहती, मुझे तो ऐसे ही घुमा दिया जाता है जैसे कि आजकल जनता किसी भी बात पर अपना हक़ जताने की कोशिश करे और उसे कोई झुनझुना हर बार पकड़ा दिया जाए. मैँ आजकल इन्हीं झुनझुनों में घूमती रहती हूं. वाशिंग मशीन का और्डर दे दिया गया.

आजकल कहीं बाहर तो निकल ही नहीं रहे हैं, तो सबकुछ औनलाइन ही तो आ रहा है. बस, काम करते रहो, कहीं आनाजाना नहीं. मेरे फ़्रस्ट्रेशन की कोई सीमा नहीं है आजकल. कब आशाबाई आएगी, कब मैँ चैन की सांस लूंगी. गुस्सा तब और बढ़ जाता है जब मैँ कहती हूं कि आशाबाई को बुला लेते हैं, तीनों एकसुर में कहते हैं, कि अरे, बिलकुल सेफ नहीं है उसे बुलाना. तुम हमें बताओ, किस काम में उस की हैल्प चाहिए.

मैँ जब हैल्प के लिए बताती हूं तो सब गायब हो जाते हैं. यह है आजकल मेरी हालत. तभी मैं खुद को मूर्ख जनता की तरह पाती हूं. जैसे ही आवाज उठाती हूं, झुनझुने पकड़ा दिए जाते हैं मुझे. तीनो ऐसे सयाने हैं कि घर के काम नहीं करने, बस, मौली तो मुंह बिसूर कर कहती है, “मौम, कहां आदत है, इतने काम…”

काम न करने पड़ें, इस के लिए सारे पैतरे आजमाए जा रहे हैं. वाशिंग मशीन आ गई. सब को लगा कि मैँ अब कुछ दिन तो उस में लगी रहूंगी, खुश रहूंगी. पर कितने दिन… काम थोड़े ही कम हो गए मेरे. एक रात को मैं ने अत्यंत गंभीर स्वर में कहा, ”कल सुबह उठते ही मुझे तुम तीनों से जरूरी बात करनी है.”

मेरे स्वर की गंभीरता पर तीनों चौंके, क्या हुआ? अभी बता दो.”

”परेशान हो चुकी हूं, सुबह ही बात करेंगे. मैँ कोई नौकर थोड़े ही हूं कि दिनरात, बस, काम ही करती रहूं,” कह कर मैँ पैर पटकते हुए सोने चली गई. अभी 10 ही बजे थे, पर आज मैँ बहुत थक गई थी.

मुझे आहट मिली कि तीनों एक रूम में ही बैठ गए हैं. मैं ने सोच लिया था कि कल मैँ तीनों को कोई काम न करने पर बुरी तरह डांटूंगी, लड़ूंगी, चिल्लाऊंगी. हद होती है कामचोरी की. और मैँ फिर जल्दी सो भी गई. सुबह उठी, तो भी मुझे रात का अपना गुस्सा और शिकायतें याद थीं. बैड पर लेटेलेटे सोचा कि आज बताती हूं सब को, कोई हैल्प नहीं करेगा तो मैं अकेले भी नहीं करने वाली सारे काम. हद होती है, सैल्फिश लोग.

तीनों अभी सोये हुए थे. मैं ने जैसे ही लिविंगरूम में पैर रखा, मेरी नजर कौर्नर की शैल्फ पर रखी अपनी मां की फोटो पर पड़ी. मेरी आंखें चमक उठीं. पास में जा कर फोटो को निहारती रह गई. ओह, किस ने रखी यह मेरी प्यारी मां की इतनी सुंदर फोटो यहां पर. मैं फोटो देखती रही. यह इन लोगों ने लगाई है रात में. लेकिन यह फोटो तो मेरी अलमारी में रहती है. ये बेचारे वहां से कैसे निकाल कर लाए होंगे कि आहट से मेरी आंख भी न खुली.

मैं ने फ्रेश हो कर अपनी मां को फोन मिला दिया और बताया कि रात को उन की फोटो कैसे तीनों ने मुझे सरप्राइज देने के लिए लगा दी है. मां को बहुत ख़ुशी हुई, तीनों को खूब प्यार व आशीर्वाद कहती रहीं. मैं सब भूल, अब, मां से इन तीनों की तारीफ़ क्यों किए जा रही थी, मुझे एहसास ही नहीं हुआ. मैं चाय पी ही रही थी कि तीनों उठे. मैं ने उन्हें थैंक्स कहा. वे मुसकराते हुए फ्रेश हो कर अपने काम में बिजी हो गए.

ब्रेकफास्ट मैं ने उन तीनों की पसंद का ही बनाया. जिस में मुझे एक्स्ट्रा टाइम लगा तो मुझे फिर अपने पर गुस्सा आने लगा. मेरा ध्यान फिर इस बात पर गया कि फिर मुझे रात में नाराज देख कर मां की फोटो का एक झुनझुना पकड़ा दिया गया है. अभी बताती हूं सब को, चालाक लोग…कैसे मेरा गुस्सा शांत किया, कितने तेज हैं सब. बताती हूं अभी. मैं ने सीरियस आवाज़ में कहा, ”आओ सब, जरा बात करनी है मुझे.”

तीनों ने आते हुए एकदूसरे को देख कर इशारे किए. मेरी आंखों से छिपा न रहा. फिर मौली और मलय को मैं ने मयंक को कुछ इशारा करते हुए देखा. मुझे पता है कि मेरे गुस्से से बचते हैं तीनों. वैसे तो मुझे जल्दी गुस्सा नहीं आता, पर, जब आता है तो मैं काफी मूड खराब करती हूं. हम चारों बैठ गए. मैं ने रूखी आवाज में कहा, “सब सामने ही रखा है, खुद ले लो. मेहमान तो हो नहीं कोई, कि परोसपरोस कर सब की प्लेट लगाऊं. और मुझे, तुम लोगों से यह कहना है कि अब से…”

मयंक ने मेरी बात पूरी नहीं होने दी, बहुत भावुक हो कर बोला, ”नहीं, पहले मुझे बोलने दो, रीनू. हम तीनों ने सोचा है कि हम हर बार कुछ भी खाने से पहले इतनी मेहनत कर के हमें खिलाने वाले को, तुम्हे, थैंक्स कहा करेंगे, थैंक्यू, रीनू, कितना करती हो तुम हम सबके लिए. बिना किसी की हैल्प के, इतने काम करना आसान नहीं है. वी लव यू, रीनू.”

”थैंक्यू मौम.”

बच्चों ने भी इतने प्यार से कहा कि मैं रोतेरोते रुकी. मन में आया, मैं ही ओवररिऐक्ट तो नहीं कर रही थी. बेचारे खाने से पहले मुझे थैंक्स बोल रहे हैं. किस के घर में यह सब होता है. ओह, कितने प्यारे हैं तीनों. देखते ही देखते मैं उन सब को प्यार से हर चीज सर्व कर रही थी. मेरी जबान से शहद टपक रही थी. मुझे फिर लच्छेदार बातों का एक झुनझुना पकड़ा दिया गया था, इस का एहसास मुझे बाद में फिर हुआ. मूर्ख जनता सी मैं एक बार फिर ठगी गई थी.

Storytelling : कायाकल्प

 Storytelling :  बेटे की शादी के कुछ महीने बाद ही सुमित्रा ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए. रोजरोज की कलह से परेशान बेटेबहू ने अलग घर ले लिया लेकिन 15 दिन के अंदर ही सुमित्रा को ऐसी खबर मिली जिस से उस के स्वभाव में अचानक परिवर्तन आ गया.

खिड़की से बाहर झांक रही सुमित्रा ने एक अनजान युवक को गेट के सामने मोटरसाइकिल रोकते देखा.

‘‘रवि, तू यहां क्या कर रहा है?’’ सामने के फ्लैट की बालकनी में खड़े अजय ने ऊंची आवाज में मोटर- साइकिल सवार से प्रश्न किया.

‘‘यार, एक बुरी खबर देने आया हूं.’’

‘‘क्या हुआ है?’’

‘‘शर्मा सर का ट्रक से एक्सीडेंट हुआ जिस में वह मर गए.’’

खिड़की में खड़ी सुमित्रा अपने पति राजेंद्र के बाजार से घर लौटने का ही इंतजार कर रही थीं. रवि के मुंह से यह सब सुन कर उन के दिमाग को जबरदस्त झटका लगा. विधवा हो जाने के एहसास से उन की चेतना को लकवा मार गया और वह धड़ाम से फर्श पर गिरीं और बेहोश हो गईं.

छोटे बेटे समीर और बेटी रितु के प्रयासों से कुछ देर बाद जब सुमित्रा को होश आया तो उन दोनों की आंखों से बहते आंसुओं को देख कर उन के मन की पीड़ा लौट आई और वह अपनी बेटी से लिपट कर जोर से रोने लगीं.

उसी समय राजेंद्रजी ने कमरे में प्रवेश किया. पति को सहीसलामत देख कर सुमित्रा ने मन ही मन तीव्र खुशी व हैरानी के मिलेजुले भाव महसूस किए. फिर पति को सवालिया नजरों से देखने लगीं.

‘‘सुमित्रा, हम लुट गए. कंगाल हो गए. आज संजीव…’’ और इतना कह पत्नी के कंधे पर हाथ रख वह किसी छोटे बच्चे की तरह बिलखने लगे थे.

सुमित्रा की समझ में आ गया कि रवि उन के बड़े बेटे संजीव की दुर्घटना में असामयिक मौत की खबर लाया था. इस नए सदमे ने उन्हें गूंगा बना दिया. वह न रोईं और न ही कुछ बोल पाईं. इस मानसिक आघात ने उन के सोचनेसमझने की शक्ति पूरी तरह से छीन ली थी.

करीब 15 दिन पहले ही संजीव अपनी पत्नी रीना और 3 साल की बेटी पल्लवी के साथ अलग किराए के मकान में रहने चला गया था.

पड़ोसी कपूर साहब, रीना व पल्लवी को अपनी कार से ले आए. कुछ दूसरे पड़ोसी, राजेंद्रजी और समीर के साथ उस अस्पताल में गए जहां संजीव की मौत हुई थी.

अपनी बहू रीना से गले लग कर रोते हुए सुमित्रा बारबार एक ही बात कह रही थीं, ‘‘मैं तुम दोनों को घर से जाने को मजबूर न करती तो आज मेरे संजीव के साथ यह हादसा न होता.’’

इस अपराधबोध ने सुमित्रा को तेरहवीं तक गहरी उदासी का शिकार बनाए रखा. इस कारण वह सांत्वना देने आ रहे लोगों से न ठीक से बोल पातीं, न ही अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारियों का उन्हें कोई ध्यान आता.

ज्यादातर वह अपनी विधवा बहू का मुर्झाया चेहरा निहारते हुए मौन आंसू बहाने लगतीं. कभीकभी पल्लवी को छाती से लगा कर खूब प्यार करतीं, पर आंसू तब भी उन की पलकों को भिगोए रखते.

तेरहवीं के अगले दिन वर्षों की बीमार नजर आ रही सुमित्रा क्रियाशील हो उठीं. सब से पहले समीर और उस के दोस्तों की मदद से टैंपू में भर कर संजीव का सारा सामान किराए के मकान से वापस मंगवा लिया.

उसी दिन शाम को सुमित्रा के निमंत्रण पर रीना के मातापिता और भैयाभाभी उन के घर आए.

सुमित्रा ने सब को संबोधित कर गंभीर लहजे में कहा, ‘‘पहले मेरी और रीना की बनती नहीं थी पर अब आप सब लोग निश्ंिचत रहें. हमारे बीच किसी भी तरह का टकराव अब आप लोगों को देखनेसुनने में नहीं आएगा.’’

‘‘आंटी, मेरी छोटी बहन पर दुख का भारी पहाड़ टूटा है. अपनी बहन और भांजी की कैसी भी सहायता करने से मैं कभी पीछे नहीं हटूंगा,’’ रीना के भाई रोहित ने भावुक हो कर अपने दिल की इच्छा जाहिर की.

‘‘आप सब को बुरा न लगे तो रीना और पल्लवी हमारे साथ भी आ कर रह सकती हैं,’’ रीना के पिता कौशिक साहब ने हिचकते हुए अपना प्रस्ताव रखा.

सुमित्रा उन की बातें खामोश हो कर सुनती रहीं. वह रीना के मायके वालों की आंखों में छाए चिंता के भावों को आसानी से पढ़ सकती थीं.

रीना के साथ पिछले 6 महीनों में सुमित्रा के संबंध बहुत ज्यादा बिगड़ गए थे. समीर की शादी करीब 3 महीने बाद होने वाली थी. नई बहू के आने की बात को देखते हुए सुमित्रा ने रीना को और ज्यादा दबा कर रखने के प्रयास तेज कर दिए थे.

‘इस घर में रहना है तो जो मैं चाहती हूं वही करना होगा, नहीं तो अलग हो जाओ,’ रोजरोज की उन की ऐसी धमकियों से तंग आ कर संजीव और रीना ने अलग मकान लिया था.

उन की बेटी सास के हाथों अब तो और भी दुख पाएगी, रीना के मातापिता के मन के इस डर को सुमित्रा भली प्रकार समझ रही थीं.

उन के इस डर को दूर करने के लिए ही सुमित्रा ने अपनी खामोशी को तोड़ते हुए भावुक लहजे में कहा, ‘‘मेरा बेटा हमें छोड़ कर चला गया है, तो अब अपनी बहू को मैं बेटी बना कर रखूंगी. मैं ने मन ही मन कुछ फैसला लिया है जिन्हें पहली बार मैं आप सभी के सामने उजागर करूंगी.’’

आंखों से बह आए आंसुओं को पोंछती हुई सुमित्रा सब की आंखों का केंद्र बन गईं. राजेंद्रजी, समीर और रितु के हावभाव से यह साफ पता लग रहा था कि जो सुमित्रा कहने जा रही थीं, उस का अंदाजा उन्हें भी न था.

‘‘समीर की शादी होने से पहले ही रीना के लिए हम छत पर 2 कमरों का सेट तैयार करवाएंगे ताकि वह देवरानी के आने से पहले या बाद में जब चाहे अपनी रसोई अलग कर ले. इस के लिए रीना आजाद रहेगी.

‘‘अतीत में मैं ने रीना के नौकरी करने का सदा विरोध किया, पर अब मैं चाहती हूं कि वह आत्मनिर्भर बने. मेरी दिली इच्छा है कि वह बी.एड. का फार्म भरे और अपनी काबिलीयत बढ़ाए.

‘‘आप सब के सामने मैं रीना से कहती हूं कि अब से वह मुझे अपनी मां समझे. जीवन की कठिन राहों पर मजबूत कदमों से आगे बढ़ने के लिए उसे मेरा सहयोग, सहारा और आशीर्वाद सदा उपलब्ध रहेगा.’’

सुमित्रा के स्वभाव में आया बदलाव सब को हैरान कर गया. उन के मुंह से निकले शब्दों में छिपी भावुकता व ईमानदारी सभी के दिलों को छू कर उन की पलकें नम कर गईं. एक तेजतर्रार, झगड़ालू व घमंडी स्त्री का इस कदर कायाकल्प हो जाना सभी को अविश्वसनीय लग रहा था.

रीना अचानक अपनी जगह से उठी और सुमित्रा के पास आ बैठी. सास ने बांहें फैलाईं और बहू उन की छाती से लग कर सुबकने लगी.

कमरे का माहौल बड़ा भावुक और संजीदा हो गया. रीना के मातापिता व भैयाभाभी के पास अब रीना व पल्लवी के हितों पर चर्चा करने के लिए कोई कारण नहीं बचा.

क्या सुमित्रा का सचमुच कायाकल्प हुआ है? इस सवाल को अपने दिलों में समेटे सभी लोग कुछ देर बाद विदा ले कर अपनेअपने घर चले गए.

अब सिर्फ अपने परिवारजनों की मौजूदगी में सुमित्रा ने अपने मनोभावों को शब्द देना जारी रखा, ‘‘समीर और रितु, तुम दोनों अपनी भाभी को इस पल से पूरा मानसम्मान दोगे. रीना के साथ तुम ने गलत व्यवहार किया तो उसे मैं अपना अपमान समझूंगी.’’

‘‘मम्मी, आप को मुझ से कोई शिकायत नहीं होगी,’’ रितु उठ कर रीना की बगल में आ बैठी और बड़े प्यार से भाभी का हाथ अपने हाथों में ले लिया.

‘‘मेरा दिमाग खराब नहीं है जो मैं किसी से बिना बात उलझूंगा,’’ समीर अचानक भड़क उठा.

‘‘बेटे, अगर तुम्हारा रवैया नहीं बदला तो रीना को साथ ले कर एक दिन मैं इस घर को छोड़ जाऊंगी.’’

सुमित्रा की इस धमकी का ऐसा प्रभाव हुआ कि समीर चुपचाप अपनी जगह सिर झुका कर बैठ गया.

‘‘सुमित्रा, तुम सब तरह की चिंताएं अपने मन से निकाल दो. रीना और पल्लवी के भविष्य को सुखद बनाने के लिए हम सब मिल कर सहयोग करेंगे,’’ राजेंद्रजी से ऐसा आश्वासन पा कर सुमित्रा धन्यवाद भाव से मुसकरा उठी थीं.

कमरे से जब सब चले गए तब सुमित्रा ने रीना से साफसाफ पूछा, ‘‘बहू, तुम्हें मेरे मुंह से निकली बातों पर क्या विश्वास नहीं हो रहा है?’’

‘‘आप ऐसा क्यों सोच रही हैं, मम्मी. आप लोगों के अलावा अब मेरा असली सहारा कौन बनेगा?’’ रीना का गला भर आया.

‘‘मैं तुम्हें कभी तंग नहीं करूंगी, बहू. बस, तुम यह घर छोड़ कर जाने का विचार अपने मन में कभी मत लाना, नहीं तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘नहीं, मम्मी. मैं आप के पास रहूंगी और आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘देख, पल्लवी के नाम से मैं ने 1 लाख रुपए फिक्स्ड डिपोजिट करने का फैसला कर लिया है. आने वाले समय में यह रकम बढ़ कर उस की पढ़ाई और शादी के काम आएगी.’’

‘‘जी,’’ रीना की आंखों में खुशी की चमक उभरी.

‘‘सुनो बहू, एक बात और कहती हूं मैं,’’ सुमित्रा की आंखों में फिर से आंसू चमके और गला रुंधने सा लगा, ‘‘करीब 4 साल पहले तुम ने इस घर में दुलहन बन कर कदम रखा था और मैं वादा करती हूं कि उचित समय और उचित लड़का मिलने पर तुम्हें डोली में बिठा कर यहां से विदा भी कर दूंगी. जरूरत पड़ी तो पल्लवी अपने दादादादी के पास रहेगी और तुम अपनी नई घरगृहस्थी…’’

‘‘बस, मम्मीजी, और कुछ मत कहिए आप,’’ रीना ने उन के मुंह पर अपना हाथ रख दिया, ‘‘मुझे विश्वास हो गया है कि पल्लवी और मैं आप दोनों की छत्रछाया में यहां बिलकुल सुरक्षित हैं. मुझ में दूसरी शादी करने में जरा भी दिलचस्पी कभी पैदा नहीं होगी.’’

रीना अपने सासससुर के लिए जब चाय बनाने चली गई तो राजेंद्रजी ने सुमित्रा का माथा चूम कर उन की प्रशंसा की, ‘‘सुमि, आज जो मैं ने देखासुना है उस पर मुझे आश्चर्य हो रहा है, साथ ही गर्व भी कर रहा हूं. एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछिए,’’ सुमित्रा ने पति के कंधे पर सिर टिकाते हुए कहा और आंखें मूंद लीं.

‘‘तुम्हारी सोच, तुम्हारा नजरिया… तुम्हारे दिल के भाव अचानक इस तरह कैसे बदल गए हैं?’’

‘‘आप मुझ में आए बदलाव का क्या कारण समझते हैं?’’ आंखें बंद किएकिए ही सुमित्रा बोलीं.

‘‘मुझे लगता है संजीव की असमय हुई मौत ने तुम्हें बदला है, पर फिर वैसा ही बदलाव मेरे अंदर क्यों नहीं आया?’’

‘‘संजीव इस दुनिया में नहीं रहा, ये जानने से पहले मुझे एक और जबरदस्त सदमा लगा था. क्या आप को उस की याद है?’’

‘‘हां, जो लड़का बुरी खबर लाया था वह संजीव का जूनियर था और तुम समझीं कि वह कोई मेरा छात्र है और मेरी न रहने की खबर लाया है.’’

‘‘दरअसल, गलत अंदाजा लगा कर मैं बेहोश हो गई थी. फिर मुझे धीरेधीरे होश आया तो मेरे मन ने काम करना शुरू किया.

‘‘सब से पहले असहाय और असुरक्षित हो जाने के भय ने मेरे दिलोदिमाग को जकड़ा था. मन में गहरी पीड़ा होने के बावजूद अपनी जिस जिम्मेदारी का मुझे ध्यान आया वह रितु की शादी का था.

‘‘कैसे पूरी करूंगी मैं यह जिम्मेदारी? मन में यह सवाल कौंधा तो जवाब में सब से पहले संजीव और रीना की शक्लें उभरी थीं. उन से मेरा लाख झगड़ा होता रहा हो पर मुसीबत के समय मन को उन्हीं दोनों की याद पहले आई थी,’’ अपने मन की बातों को सुमित्रा बड़े धीरेधीरे बोलते हुए पति के साथ बांट रही थीं.

राजेंद्रजी खामोश रह कर सुमित्रा के आगे बोलने का इंतजार करने लगे.

सुमित्रा ने पति की आंखों में देखते हुए भावुक लहजे में आगे कहा, ‘‘मेरे बहूबेटे मुसीबत में मेरा मजबूत सहारा बनेंगे, अगर मेरी यह उम्मीद भविष्य में पूरी न होती तो मेरा दिल उन दोनों को कितना कोसता.’’

एक पल रुक कर सुमित्रा फिर बोलीं, ‘‘असली विपदा का पहाड़ तो रीना के सिर पर टूटा था. मेरी ही तरह क्या उस ने भी उन लोगों का ध्यान नहीं किया होगा जो इस कठिन समय में उस के काम आएंगे?’’

‘‘जरूर आया होगा,’’ राजेंद्रजी बोले.

‘‘अगर उस ने हमें विश्वसनीय लोगों की सूची में नहीं रखा होगा तो यह हमारे लिए बड़े शर्म की बात है और अगर हमारे सहयोग और सहारे की उसे आशा है और हम उस की उम्मीदों पर खरे न उतरे तो क्या वह हमें नहीं कोसेगी?’’

‘‘तुम्हारे मनोभाव अब मेरी समझ में आ रहे हैं. तुम्हारे कायाकल्प का कारण मैं अब समझ सकता हूं,’’ राजेंद्रजी ने प्यार से पत्नी का माथा एक बार फिर चूमा.

‘‘हमारा बेटा संजीव अब बहू और पोती के रूप में अपना अस्तित्व बनाए हुए है और ये दोनों हमें कोसें ऐसा मैं कभी नहीं चाहूंगी. इन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए ही मैं ने अपने को बदल डाला है. कभी मैं राह से भटकूं तो आप मुझे टोक कर सही राह दिखा देना,’’ सुमित्रा ने अपने जीवनसाथी से हाथ जोड़ कर विनती की.

‘‘उस की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि तुम्हारा यह कायाकल्प दिल की गहराइयों से हुआ है.’’

अपने पति की आंखों में अपने लिए गहरे सम्मान, प्रशंसा व प्रेम के भावों को पढ़ कर सुमित्रा हौले से मुसकराईं.

Story In Hindi : टूटी चप्पल – क्या हुआ था अंजलि के साथ उस शादी में ?

Story In Hindi : खूबसूरत जौर्जेट की हलके वर्क की यलो साड़ी पर मैं ने मैचिंग ऐक्सैसरीज पहन खुद को आईने में देख गर्वीली मुसकान छोड़ी. फिर बालों से निकली लट को हलके से घुमाते हुए मन ही मन सब के चेहरे शिखा, नेहा, रूपा, आशा, अंजलि, प्रिया, लीना याद किए कि आज तो सब की सब जल मरेंगी.

मन ही मन सुकून, गर्व और संतुष्टि की सांस लेते हुए मैं आखिरी लुक ले रही थी कि तभी आवाज आई, ‘‘ओ ऐश्वर्या राय, अब बख्शो इस आईने को और चलो. हम रिसैप्शन में ही जा रहे हैं किसी फैशन परेड में नहीं.’’

‘‘उफ्फ,’’ गुस्से से मेरी मुट्ठियां भिंच गईं कि जरा सा सजनासंवरना नहीं सुहाता इन्हें. मेरे चुप रहने का तो सवाल ही नहीं था अत: बोली, ‘‘रिसैप्शन में भी जाएंगे तो ढंग से ही तो जाएंगे न… आप के जैसे फटीचरों की तरह तो नहीं… समाज में सहेलियों में इज्जत है मेरी… समझे?’’

इन्होंने भी क्यों चुप रहना था. अत: बोले, ‘‘इज्जत मेरी वजह से है तुम्हारे मेकअप की वजह से नहीं. कमाता हूं… 4 पैसे लाता हूं… समाज में 2 पैसे लगाता हूं, तो तुम्हारी इज्जत बढ़ती है… आई बड़ी इज्जत वाली.’’

मैं ने पलटवार किया, ‘‘हां तो यही समझ लो. आप की, अपने घर की इज्जत बनाए रखने, स्टेटस बचाए रखने के लिए ही तो तैयार हो कर जाती हूं.’’

‘‘तुम्हारे इस तरह बननेसंवरने के चक्कर में रिसैप्शन की पार्टी खत्म न हो जाए.’’

मैं भी तुनक कर बोली, ‘‘जब देखो तब जल्दीजल्दी… खुद को करना क्या पड़ता है… बस शर्ट डाली, पैंट चढ़ाई और हो गए तैयार… सिर पर इतने बाल भी नहीं हैं, जो उन्हीं को सैट करने में टाइम लगे.’’

ये चिढ़ गए. बोले, ‘‘तुम से तो बात करना ही बेकार है. चलना है तो चलो वरना रहने दो… ऐसे मूड में जाने से तो अच्छा है न ही जाएं.’’

मैं डर गई कि अगर नहीं गए तो सहेलियों के उतरे, जले मुंह कैसे देखूंगी. अपनी शान कैसे मारूंगी, ‘‘नहींनहीं, चलना तो है ही,’’ मैं ने फटाफट चप्पलें पहनते हुए कहा.

रिसैप्शन लौन के बाहर ही रूपा मिल गई. बोली, ‘‘हाय रिया, आ गई? मुझे तो लगा कहीं मैं ही तो लेट नहीं हो गई. पर अच्छा हुआ तू मिल गई… और सब आ गए?’’

मैं हंस दी, ‘‘अरे, मुझे क्या पता आए कि नहीं. मैं तो अभी तेरे सामने ही आई हूं.’’

वह मुसकराई पर कुछ बोली नहीं. इधरउधर नजरें घुमाते हुए उस ने मुझ पर तिरछी नजर डाली.

मैं मन ही मन इतराई, ‘‘देख ले बेटा, अच्छे से देख और जल… जल रही है तभी तो कुछ बोल नहीं रही और बोले भी तो क्या. अब यहीं खड़ी रहेगी या अंदर भी चलेगी. चल जरा देखें अंदर कौनकौन आया है.’’

‘‘हांहां चल.’’

हम गेट पर स्वागत के लिए खड़े मेजबानों का अभिवादन स्वीकार कर अंदर गए. मंच पर सजेधजे खड़े दूल्हादुलहन को लिफाफा दिया. फिर चले खानेपीने के स्टाल की तरफ. वहां सब दिखीं. देखते ही सब हमारे पास लपकी आईं. ये अपने दोस्तों में बिजी हो गए और मैं अपनी सहेलियों में.

शिखा देखते ही बोली, ‘‘हाय. नीलम सैट तो बड़ा प्यारा लग रहा है. असली है?’’

मैं दर्प से बोली, ‘‘अरे, और नहीं तो क्या? तुझे तो पता ही है नकली चीज मुझे पसंद ही नहीं.’’

आशा ने व्यंग्य किया, ‘‘तो इस साड़ी पर वर्क भी असली है क्या?’’

मैं ने भी करारा जवाब दिया, ‘‘नहीं पर जौर्जेट असली है.’’

नेहा ने चूडि़यों पर हाथ घुमाया, ‘‘ये बड़ी प्यारी लग रही हैं. ये भी असली हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘पूरे क्वढाई लाख की हैं. अब तू ही सोच ले असली हैं या नकली.’’

निशी बोली, ‘‘अरे, अभी मेरी मौसी ने ली हैं. पूरे क्व4 लाख की हीरे की चूडि़यां… इतनी खूबसूरत डिजाइन है कि बस देखो तो देखते ही रह जाओ.’’

मैं ने अपनी चिढ़ दबाई, ‘‘पर हीरे की चूडि़यों में वह बात नहीं जो इस महीन नक्काशी में होती है. फिर आजकल हीरा पहनो तो पता ही नहीं चलता कि असली है या नकली. बाजार में डायमंड के ऐसेऐसे आर्टिफिशियल सैट्स मिल रहे हैं कि खराखोटा सब एक जैसे दिखते हैं. इसीलिए मैं तो डायमंड की ज्वैलरी लेती ही नहीं.’’

लीना बोली, ‘‘पर जो भी हो डायमंड तो डायमंड ही है. भले किसी को पता चले न चले पर खुद को तो सैटिस्फैक्शन रहती ही है कि अपने पास हीरा है

मैं ने मुंह बनाया, ‘‘हुंह ऐसे हीरे का क्या फायदा जिस का बस खुद को ही पता हो. अरे चीज की असली कीमत तो तब वसूल होती है जब 4 लोग सराहें वरना क्या… खुद ही लाए, खुद ही पहना, खुद ही देखा और लौकर में रख दिया.’’

अंजली ने नेहा को देखा, ‘‘हां, सही तो है. चीज खरीदने का मजा तो तभी है जब 4 लोग उसे देखें वरना क्या मतलब चीज लेने का… अब अगर आज रिया ये सब नहीं पहनती तो हमें क्या पता चलता इस के पास हैं कि नहीं.’’

नेहा बोली, ‘‘छोड़ो न, चलो देखते हैं खानेपीने में क्या है. सोनेहीरे की बातों से तो पेट नहीं भरेगा न.’’

‘‘हांहां चलो. देखें क्याक्या है,’’ कहती हुई सब की सब स्टाल की तरफ लपकीं. तभी किसी का पैर मेरी चप्पल पर पड़ा. चप्पल खिंची तो पटा टूट गया. अब चलूं कैसे? मैं रोंआसी हो गई कि अब तो इन सब को मजा आ जाएगा. उफ, क्या करूं कैसे इन की नजरों से बचाऊं. फिर सोचा यहीं खड़ी रहूं. पर तभी शिखा ने मुझे खींचा, ‘‘चल न खड़ी क्यों है?’’

मैं चलने लगी पर लंगड़ा गई, ‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ कह कर मैं थोड़ा और आगे बढ़ी पर फिर लंगड़ा गई.

अब सभी मुझे घेर कर खड़ी हो गईं, ‘‘अरे, क्या हुआ? कैसे हुआ? क्या टूटा? पैर में लगी क्या? चक्कर आया क्या?’’

अब उन्हें क्या बताती कि मेरी चप्पल टूट गई. बड़ी अजीब सी हालत हो गई. शिखा बोली, ‘‘चप्पलें असली नहीं थीं क्या? ऐसे कैसे टूट गई?’’

मैं झल्ला कर बोली, ‘‘सोना नहीं मढ़वाया था इन में… चमड़े का ही सोल था निकल गया.’’

शिखा ने मंचूरियन मुंह में डाला, ‘‘अरे चिढ़ मत, मैं ने तो इसलिए पूछा कि तू कभी कोई चीज नकली पहनती जो नहीं.’’

अंजली ने हंसते हुए उस के हाथ पर ताली मारी, ‘‘अब तू एक काम कर, चप्पल कहीं कोने में उतार दे और ऐसे ही घूमफिर. कौन देखने वाला है कि तू ने पैर में चप्पलें पहनी हैं या नहीं.’’

सब हंसने लगीं. इच्छा तो हुई कि इन जलकुकडि़यों के मुंह पर 1-1 जमा दूं, पर मनमसोस कर रह गई. अब न खाने में मन था न रिसैप्शन में रुकने का. मैं इन्हें ढूंढ़ने लगी. मोबाइल कर इन्हें बुलाया. ये आए.

इन्हें एक तरफ ले जा कर मैं ऐसे फटी जैसे बादल, ‘‘देखा… देखा आप ने… आप के जल्दीजल्दी के चक्कर में मेरी कितनी बेइज्जती हो गई… जरा 2 मिनट और मुझे ढंग से देख लेने देते तो जरा अच्छी चप्पलें निकाल कर पहन लेती. पर नहीं, मेरी इज्जत का जनाजा निकले तो आप को तो मजा ही आएगा न… अब हो लो खुश… करो ऐंजौय मेरी बेइज्जती को.’’

इन्होंने देखा. चप्पल को मेरे पैर सहित रूमाल से बांधा तो मैं थोड़ा चलने लायक हुई. पर अब वहां रुकने का तो सवाल ही नहीं था. मैं ने इन की बांह पकड़ी और घर की राह ली. पर सहेलियों की हंसती, व्यंग्य करती खिलखिलाहट मेरा पीछा कर रही थी.

मैं इन पर बरस रही थी, ‘‘घर से निकलते समय टोकना या झगड़ा करना आप की हमेशा की आदत है. इसी वजह से आज मेरी इतनी बेइज्जती हुई. जरा शांति से काम लेते तो मैं भी ढंग की चप्पलें पहन लेती.’’

मेरी आंखें बरस रही थीं, ‘‘अब अगली बार इन सहेलियों को क्या मुंह दिखाऊंगी और दिखाऊंगी तो मुंहतोड़ जवाब देना भी जरूरी है. मगर यह तभी संभव होगा जब ढाईतीन हजार की चप्पलें मेरे पैरों में आएंगी. समझे?’’

इन का जवाब सुने बिना मैं ने जोर से दरवाजा बंद किया और सोचने लगी, ‘कल ही सब से महंगे शोरूम में जा कर चप्पलें खरीदूंगी, पर इन लोगों को कैसे बताऊंगी, यह सोचविचार भी जारी है…’

Bigg Boss 18 विनर करणवीर मेहरा को नहीं मिली प्राइज मनी, इस चैनल को लेकर कही ये बड़ी बात

Bigg Boss 18 :  बिग बौस 18 विनर करणवीर मेहरा इन दिनों सुर्खियों में छाए हुए हैं. कभी वह अपने लवलाइफ के चलते लाइमलाइट में बने रहते हैं, तो कभी वह अपने प्रोफेशनल लाइफ के कारण चर्चे में रहते हैं. हाल ही में करणवीर मेहरा भारती सिंह के पौडकास्ट में नजर आए. उन्होंने बिग बौस में जीतने वाले प्राइज मनी के बारे में ताजा अपडेट दिया.

खतरों के खिलाड़ी 14 के विनर थे करणवीर

करणवीर मेहरा ने कहा कि बिग बौस 18 से पहले मैंने खतरों के खिलाड़ी 14 जीता था. इस शो के लिए उन्हें पहले ही पुरस्करा राशि मिल चुकी थी. इसके अलावा उन्हें जो कार मिली थी, उसे पहले ही बुक करवा लिया गया था.

करणवीर मेहरा ने कहा,  ‘कलर्स चैनल आपको नाम देता है’

करणवीर ने आगे ये भी बताया कि ‘खतरों के खिलाड़ी 14’ कलर्स के साथ उनके लिए पहला शो था. अब मेरा इस चैनल को छोड़ने का कोई इरादा नहीं है. करणवीर ने कलर्स की तारिफ की और कहा कि यह आपको नाम देता है. लेकिन करणवीर ने ये भी कहा कि बिग बौस 18 के लिए मेरा 50 लाख रुपए विनिंग अमाउंट है पर यह अभी आना बाकी है.

मेरी जीत में हर किसी ने योगदान दिया है

पौडकास्ट में जब करणवीर से पूछा गया कि क्या उनकी ‘बिग बौस 18’ की जीत स्क्रिप्टेड थी? तो करणवीर ने हंसते हुए कहा कि ट्रौफी जीतने के लिए उन्हें अपनी कार और घर की कीमत चुकानी पड़ी.
हर किसी ने मेरी जीत में किसी न किसी तरह से योगदान दिया है.मैं अंदर ही अंदर मजे कर रहा था और जीतने के बारे मैं कुछ नहीं सोच रहा था.मेरा वीकली अलग-थलग सा रहा इसलिए जीतना या हारना ज्यादा मायने नहीं रखता था.

आपको बता दें कि करणवीर और चुम दरांग के अफेयर के चर्चे बिग बौस हाउस से शुरू हुआ. इनकी जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया. अक्सर दोनों को साथ में स्पौट किया जाता है. कुछ दिनों पहले ही करणवीर ने एक फोटो शेयर कर चुम के लिए अपने प्यार को इजहार किया था.

नुसरत भरूचा स्टारर ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ ने पूरे किए 7 साल

Nushrratt Bharuccha : सात साल पहले, कार्तिक आर्यन, नुसरत भरूचा और सनी सिंह की फिल्म ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ (2018) ने दोस्ती, प्यार और धोखे की अनोखी कहानी पेश करते हुए रोमांटिक कौमेडी को नया रूप दिया. इस ब्लौकबस्टर फिल्म में नुसरत भरूचा ने स्वीटी का किरदार निभाया, जो चालाक, आकर्षक और यादगार था.

करियर की शुरुआत 

नुसरत भरूचा ने अपने करियर की शुरुआत छोटे परदे यानि टीवी से की थी. एक्ट्रेस ने बहुत ही कम समय में एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में सुर्खियां बटोर ली थी. नुशरत साल 2022 में ‘किट्टी पार्टी’ सीरियल में नजर आईं थी और आज अपनी मेहनत और टैलेंट के दम पर बॉलीवुड स्टार बनी हैं. सीरियल ‘किट्टी पार्टी’ के बाद वह दूसरे शो ‘सेवन’ में नजर आईं. छोटे पर्दे से करियर की शुरुआत करने वाली नुसरत ‘लव सेक्स और धोखा’, ‘प्यार का पंचनामा’, ‘कल किसने देखा’, ‘आकाश वाणी’, ‘डर @द मौल ‘, ‘मेरुठिया गैंगस्टर’ और ‘प्यार का पंचनामा 2’ जैसे शानदार फिल्मों में बेस्ट अभिनय किया.

लोकप्रियता की नई ऊंचाई

नुसरत भरूचा ने टीवी दुनिया को छोड़ फिल्मी करियर की शुरुआत फिल्म ‘जय संतोषी मां’ से की जो साल 2006 में रिलीज हुई थी. शुरुआत में उनकी फिल्में बौक्स औफिस पर धूम नहीं मचा पाईं. साल 2011 में कार्तिक आर्यन के साथ लव रंजन की फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ में काम करने का मौका मिला और इस फिल्म से एक्ट्रेस की किस्मत बदल गई. उनका किरदार सिर्फ एक आम प्रेमिका नहीं था—वह स्मार्ट, समझदार और अपने फैसलों में मजबूत थी, जिससे दर्शकों को उनसे प्यार और नफरत दोनों हुई

गजब का ट्रांसफौर्मेशन

छोटे पर्दे पर अपनी शानदार एक्टिंग से लोगों का दिल जीतने वाली नुसरत भरूचा ने जैसे ही बॉलीवुड में एंट्री ली उनका लुक पूरी तरह से बदल गया। बॉलीवुड स्टार बनने के बाद एक्ट्रेस और भी ज्यादा ग्लैमरस दिखने लगी हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को नुसरत भरूचा का टीवी सीरियल के दौर का लुक याद होगा. सिंपल सी दिखने वाली ये एक्ट्रेस रियल लाइफ में बेहद खूबसूरत लगती हैं. सोशल मीडिया पर उनकी लेटेस्ट और पुरानी फोटोज देख आप भी दांतों तले उंगली दबा लेंगे. एक्ट्रेस का गजब का ट्रांसफॉर्मेशन आपको भी इंस्पॉयर करेंगा। कुछ ही सालों में एक्ट्रेस का लुक इतना बदल गया!

बौलीवुड में एक खास पहचान

फिल्म की जबरदस्त सफलता और दर्शकों की सराहना ने नुसरत को बौलीवुड में एक खास पहचान दिलाई. उनकी और कार्तिक आर्यन की औनस्क्रीन केमिस्ट्री, मजेदार तकरार और दोस्ती को खूब पसंद किया गया.

दमदार अवतार में दिखेंगी

वर्कफ्रंट की बात करें तो नुसरत भरूचा जल्द ही ‘छोरी 2’ में नजर आएंगी. यह बहुचर्चित हौरर-थ्रिलर फिल्म की अगली कड़ी होगी, जिसमें नुसरत एक दमदार अवतार में दिखेंगी. फिल्म इस साल अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज होगी.

Sandwich Generation : फैमिली को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए लौंग टर्म फाइनैंशियल संघर्ष

Sandwich Generation : भारत में सैंडविच जैनरेशन के लोग अपने पेरैंट्स और बच्चों की जिंदगी को हर संभव तरीके से सब से बेहतर बनाने पर ध्यान देते हैं, फिर भी उन्हें ऐसा लगता है कि वे अपने भविष्य के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हैं. ऐडलवाइज लाइफ इंश्योरैंस की एक स्टडी के अनुसार 60% उत्तरदाता इस बात से सहमत हैं कि चाहे वे कितनी भी सेविंग या इन्वैस्ट कर लें, पर ऐसा लगता है कि यह भविष्य के लिए काफी नहीं हैं.”

सैंडविच जैनरेशन

सामान्यतौर पर 35 से 54 साल की उम्र के लोगों को सैंडविच जैनरेशन कहा जाता है, जिन के कंधों पर 2 पीढ़ियों यानी अपने बुजुर्ग मातापिता और बढ़ते बच्चों की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी होती है. जीवन बीमा कंपनी ने YouGov के साथ मिल कर देश के 12 शहरों में इस जैनरेशन के 4,005 लोगों का एक सर्वे किया, ताकि उन के नजरिए, उन की धारणा और वित्तीय तैयारी के स्तर को समझा जा सके.

फंसे हैं अपनी फैमिली की देखभाल के बीच

ऐडलवाइज लाइफ इंश्योरैंस के एमडी एवं सीईओ, सुमित राय का कहना है, “पिछले कुछ सालों में अपने ग्राहकों के साथ बातचीत के आधार पर हम ने इस बात को करीब से जाना है कि सैंडविच जैनरेशन के लोग किस तरह अपने मांबाप और बच्चों की देखभाल के बीच फंसे हुए हैं. वे स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराना चाहते हैं, साथ ही वे अरमानों भरी जिंदगी भी देना चाहते हैं, जिस में ‘जरूरतों’ को पूरा करने के लिए ‘ख्वाहिशों’ की कुर्बानी नहीं देनी पड़े. यही सब से बड़ी वजह है, जो उन्हें वित्तीय फैसले लेने के लिए प्रेरित करती है. और इन सब के बीच वे अकसर अपने सपनों को पीछे छोड़ देते हैं, जिस से उन्हें यह महसूस होता है कि वे भविष्य के लिए तैयार नहीं हैं.”

मनी डिस्मौर्फिया

सरल शब्दों में कहें तो मनी डिस्मौर्फिया का मतलब है अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में दुखी महसूस करना है. स्टडी के नतीजे बताते हैं कि इस जैनरेशन के लोगों में आर्थिक रूप से तालमेल का अभाव या मनी डिस्मौर्फिया है. 50% से अधिक लोग अलगअलग बातों से अपनी सहमति जताते हैं, जिस में पैसे खत्म होने की चिंता, हमेशा पीछे रह जाने और जिंदगी में कुछ अच्छा नहीं कर पाने का एहसास शामिल है. उन के वित्तीय फैसले परिवार के लिए अपनी जिम्मेदारी और प्यार पर आधारित होते हैं.

सुमित राय ने आगे कहा, “इस जैनरेशन के लोग अपनी ख्वाहिशों के बारे में जानते हैं और मानते हैं कि अपनी पसंद की प्रोडक्ट कैटिगरी में निवेश कर के भविष्य की अच्छी तरह से योजना बनाना बेहद जरूरी है. लेकिन हमारी इस स्टडी से कुछ दिलचस्प बातें भी सामने आई हैं. उन में इस तरह के ऐक्टिव इन्वेस्टमैंट को अगले 1-2 सालों तक बरकरार रखने में काफी कम रुचि दिखाई देती है. इस के अलावा उन्हें पहले से तय किए गए लक्ष्यों के लिए इन्वेस्टमैंट का भी समय से पहले उपयोग करना पड़ा है. उन्हें लगता है कि वे कमजोर जमीन पर खड़े हैं, जिस में कोई हैरानी की बात नहीं है.”

पसंदीदा प्रोडक्ट कैटिगरी

अगर उन के 5 सब से पसंदीदा प्रोडक्ट कैटिगरी यानी लाइफ़ इंश्योरैंस, हैल्थ इंश्योरैंस, इक्विटी और बैंक एफडी की बात की जाए, तो इन सभी कैटिगरी में 60% से भी कम लोगों ने अपने इन्वेस्टमैंट को बरकरार रखा है और इस से भी कम लोग अगले 1-2 सालों तक इसे बरकरार रख पाने की उम्मीद करते हैं. इस स्टडी में आगे की जांच करने पर पता चला कि इन सभी प्रोडक्ट कैटिगरी को समय से पहले समाप्त कर दिया गया है, जिस का सीधा मतलब यह है कि उन्होंने पहले से तय किए गए लक्ष्यों को पूरा करने से पहले ही इन का उपयोग कर लिया था. पैसों की सख्त जरूरत की वजह से उन्हें समय से पहले अपने इन्वेस्टमैट का उपयोग करना पड़ा, जबकि छुट्टियां, त्यौहारों के दौरान खर्च जैसी गैर महत्त्वपूर्ण जरूरतें भी इस के गैर महत्त्वपूर्ण कारण के रूप में उभर कर सामने आईं.

फाइनैंशियल प्लानिंग पर भरोसा

इस जैनरेशन के लोगों की ख्वाहिशें मुख्य रूप से अपने बच्चों के भविष्य (उन की पढ़ाई और शादी के लिए पैसे जुटाना), अपने मातापिता की सेहत से जुड़ी जरूरतों और परिवार के जीवनस्तर को बेहतर बनाने पर केंद्रित हैं. उन्हें फाइनैंशियल प्लानिंग पर काफी भरोसा है. 94% लोग बताते हैं कि उन्होंने या तो हर पहलू को ध्यान में रख कर फाइनैंशियल प्लानिंग की है या कुछ हद तक इस की योजना बना रखी है. इन में से ज्यादातर, यानी 72% लोग यह भी मानते हैं कि उन्होंने कुछ खास अरमानों को पूरा करने के लिए इन्वेस्टमैंट किया है.

क्रैडिट की मदद से जरूरतों को पूरा

इस के बावजूद, 64% लोगों ने बताया कि वे अपनी कम समय की जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी न किसी तरह के क्रैडिट का उपयोग करते हैं, जबकि 49% लोग बचत का सहारा लेते हैं. इस स्टडी से पता चलता है कि वे नकद रकम/ इनकम के साथसाथ क्रैडिट की मदद से स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी महत्त्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करते हैं, साथ ही उन के लिए छुट्टियां बिताने, घर की मरम्मत जैसी गैर महत्त्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करना भी सुविधाजनक हो जाता है.

रिटायरमैंट सब से बड़े अरमानों में से एक

लंबे समय के अरमानों की बात की जाए, तो 79% लोगों को यह उम्मीद होती है कि वे वित्तीय साधनों से मिलने वाले रिटर्न या मुनाफे से इन्हें पूरा करेंगे, जबकि 71% भविष्य में मिलने वाले रैगुलर इनकम से इसे पूरा करना चाहते हैं. यह जानकारी भी बड़ी दिलचस्प है कि इस जैनरेशन के लोगों के लिए रिटायरमैंट भी लंबे समय के 3 सब से बड़े अरमानों में से एक है, क्योंकि सामान्यतौर पर इस उम्र तक व्यक्ति को रैगुलर इनकम मिलना बंद हो जाता है.

Health Tips : सेहत के लिए कितनी फायदेमंद है चाय ?

Health Tips :  भारत में चाय सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि एक संस्कार या कहें हमारे कल्चर का हिस्सा बन चुका है. बहुत से लोगों को तो जब तक सुबह बिस्तर पर हाथ में चाय की प्याली न थमाई जाए उन की सुबह नहीं होती. फिर काम की थकन उतारनी हो, शाम की हलकी भूख या मौसम सुहाना हो, तो सब को बस चाय की याद आती है. कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि चाय, चाय नहीं एक फीलिंग है जिस के बिना उन का गुजारा नहीं.

मजेदार बात तो यह भी है कि यह पेय हमारे पुरखों की देन नहीं है, बल्कि हमें अंगरेजों की दी गई एक लत है, जिसे हम ने खुद ही अमृत बना लिया है. आज समाज में चाय को ले कर हालात यस है कि अगर किसी मेहमान को चाय न दी जाए, तो इसे अपमान समझा जाता है. लेकिन क्या यह हमारी असली संस्कृति थी? क्या हमारे पूर्वज भी दिन में 5-6 कप चाय पीते थे? और अगर यह हमारे स्वास्थ्य के लिए इतनी ही अच्छी है तो डाक्टर कुछ भी बीमारी होने पर चाय पर लगाम क्यों लगाने की सलाह देते हैं?

चाय का आगमन और हमारी बदलती संस्कृति

चाय ने कैसे हमारे रसोई पर कब्जा किया उस से पहले बात करते हैं कि चाय का बीज हमारे अंदर आखिर आया कैसे? अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटें, तो पाएंगे कि चाय भारतीय संस्कृति का मूल हिस्सा नहीं थी. भारत में चाय की लोकप्रियता ब्रिटिश शासन के दौरान बढ़ी. अंगरेजों को अपने चाय के व्यापार को बढ़ावा देना था, इसलिए उन्होंने भारतीयों को इसे पीने के लिए प्रेरित किया.

1610 में डच व्यापारी चाय को चीन से यूरोप ले गए और धीरेधीरे यह पूरी दुनिया की प्रिय पेय पदार्थ बन गई. भारत के तत्कालिक गर्वनर जनरल लौर्ड बैंटिक ने भारत में चाय की परंपरा शुरू करने और उस के उत्पादन की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया और 1835 में अंगरेजों ने असम में पहली बार चाय के बागान लगाए और धीरेधीरे भारतीयों को चाय का स्वाद लगाने लगे.

लेकिन इस से पहले हमारा समाज मेहमानों का स्वागत कैसे करता था क्योंकि चाय तो थी नहीं तो क्या हमारे मेहमान पानी पी कर ही उलटे पांव हो लेते थे, नहीं. पारंपरिक रूप से हमारे पूर्वज दूध, लस्सी, छाछ, नीबू पानी और मसाला दूध जैसे प्राकृतिक और पोषक पेय पर जोर देते थे. घर आए मेहमानों को ताजगी देने के लिए दही से बनी ठंडी लस्सी या फिर औषधीय गुणों से भरपूर गरम दूध दिया जाता था. गरमी के दिनों में बेल का शरबत और सत्तू का शरबत भी आम था. लेकिन आज? अगर आप किसी को लस्सी औफर कर दें, तो वह आप को घूरने लगेंगे और कुछ लोग तो कह भी दें कि अरे भई, चाय नहीं है क्या?

हर मौके पर चाय

हमारी संस्कृति या कहें हमारे खून में चाय को इस हद तक घोल दिया गया है कि यह अब मात्र एक ड्रिंक नहीं, बल्कि हर स्थिति का हल बन चुकी है.

• सर्दी हो तो चाय, गरमी हो तो चाय.

• खांसी हो तो चाय, पेट दर्द हो तो चाय.

• थकान लगे तो चाय, गप्पे लड़ानी हों तो चाय.

• मेहमान आए तो चाय, किसी से दोस्ती करनी हो तो चाय.

कभी सोचा है कि जो चाय हम बिना सोचेसमझे पी रहे हैं, वह वास्तव में कितनी फायदेमंद है? या फिर यह सिर्फ हमारी आदत बन चुकी है, जिसे हम ने आवश्यकता का नाम दे दिया है?

मिठास से भरी चाय, शरीर के लिए है नुकसानदेह

आज के समय में अगर किसी घर में मेहमान आएं और उन्हें चाय न दी जाए, तो यह असभ्यता मानी जाती है. कई जगहों पर तो इसे अपमान तक समझ लिया जाता है. यह हमारे समाज की मानसिकता को दर्शाता है कि हम किस हद तक एक विदेशी पेय के गुलाम बन चुके हैं.

जरा सोचिए, अगर किसी के घर जा कर आप कहें, “भई, लस्सी पिलाओ,” तो शायद वह अजीब नजरों से देखने लगेंगे. लेकिन अगर कोई कहे, “भई, एक कप चाय मिलेगी?” तो मेजबान खुद को अपराधी महसूस करने लगेगा कि कहीं उस ने चाय औफर करने में देर तो नहीं कर दी.

यह मानसिकता हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर हम ने चाय को इतना महत्त्व क्यों दे दिया?

चाय के नुकसान जिन पर कोई ध्यान नहीं देता

चाय का अति सेवन सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है, लेकिन हम ने तो इस के नुकसान पर ध्यान देना कब का छोड़ दिया है.

कैफीन की लत : चाय में मौजूद कैफीन शरीर को धीरेधीरे इस का आदी बना देता है. अगर किसी दिन चाय न मिले तो सिरदर्द, चिड़चिड़ापन और सुस्ती होने लगती है. इस का अधिक सेवन करने से बेचैनी और नींद न आने जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

आयरन की कमी : चाय में मौजूद टैनिन आयरन को शरीर में अवशोषित होने से रोकता है, जिस से ऐनिमिया हो सकता है.

पाचन संबंधी दिक्कतें : खाली पेट चाय पीने से ऐसिडिटी, गैस और अपच जैसी समस्याएं हो सकती हैं. ज्यादा गरम चाय पीने से मुंह और पेट में छाले भी हो सकते हैं.

हड्डियों पर असर : चाय में मौजूद फ्लोराइड की अधिक मात्रा हड्डियों को कमजोर बना सकती है.

दांतों का पीलापन : ज्यादा चाय पीने से दांतों पर दाग पड़ सकते हैं और ओरल हैल्थ पर बुरा असर पड़ सकता है.

चाय का असल प्रभाव समझने के लिए जरूरी है कि हम इसे संतुलित मात्रा में पीएं, न कि हर समय चाय के बहाने ढूंढ़ें.

बहरहाल, चाय को ले कर लोगों में दीवानगी इस कदर है कि लोग छोटे बच्चों को ही चाय पिलाना शुरू कर देते हैं. अगर उन्हें खांसी, जुखाम हो जाए तो परिवार के बड़े सब से पहले थोड़ी से चाय पिलाने की सलाह देते हैं और अनजाने में मातापिता बच्चों को ही चाय की लत डाल देते हैं. बच्चों में चाय पीने के खतरनाक परिणाम हो सकते हैं.

गट लाइनिंग को नुकसान : चाय में मौजूद टैनिन और कैफीन बच्चे की नाजुक गट लाइनिंग को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिस से पेट में जलन और अल्सर हो सकता है.

आयरन की कमी : टैनिन शरीर में आयरन के अवशोषण को कम कर सकता है, जिस से एनिमिया और कमजोरी की समस्या हो सकती है.

पाचन तंत्र पर असर : छोटे बच्चों का पाचनतंत्र बहुत नाजुक होता है और चाय उन के पेट में ऐसिडिटी, अपच और गैस कर सकती है.

क्या हम चाय की लत छोड़ सकते हैं

अगर हम अपनी पुरानी परंपराओं की ओर लौटें, तो हमें चाय की जगह कई बेहतर विकल्प मिल सकते हैं. हमारे पूर्वज बिना चाय के भी स्वस्थ और ऊर्जावान रहते थे, क्योंकि वे प्राकृतिक और पोषण से भरपूर पेय का सेवन करते थे.

कुछ बेहतर विकल्पों पर ध्यान दें :

दूध या हलदी दूध : रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए

लस्सी या छाछ. गरमियों में ठंडक और पाचन के लिए नीबू पानी या बेल शरबत. डिटौक्स और हाइड्रेशन के लिए सौंफ और अदरक का काढ़ा. इम्यूनिटी और पाचन सुधारने के लिए.

अगर हम धीरेधीरे इन विकल्पों को अपनाएं और दिन में 5-6 बार चाय पीने की आदत छोड़ें, तो यह हमारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होगा. कई लोग चाय को पकापका कर कड़क चाय पीने का शौक भी रखते हैं या 1 कब चाय में 5 कब चाय जितनी चायपत्ती का इस्तेमाल करते हैं.

अब आप ही बताइए कि किसी भी चीज की अति तो आप को नुकसान ही देगी. तो अगर चाय पीनी ही है तो कम चाय पत्ती इस्तेमाल करें, जितनी जरूरत है उतना ही उबालें और बची हुई चाय को दोबारा गरम कर के न पीएं.

अब आप ही बताइए, क्या चाय जरूरी है

हम चाय को छोड़ने की बात नहीं कर रहे, बल्कि यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि हम ने इसे जरूरत से ज्यादा महत्त्व दे दिया है. यह सोच कर देखिए कि अगर अंगरेज हमें चाय न पिलाते, तो क्या आज हम इसे इतना पसंद करते? अगर हम ने इसे अपने कल्चर में जबरदस्ती शामिल कर लिया है, तो क्या हम इसे कम नहीं कर सकते?

यह समय है कि हम अपनी परंपराओं को फिर से अपनाएं और समझें कि चाय केवल एक पेय है, न कि अमृत. इसे सीमित मात्रा में लें और इस के स्वाद को अपनी सेहत पर हावी न होने दें. अगली बार जब मेहमान आएं, तो चाय के बजाय कुछ और परोसें और देखें कि क्या होता है.

इकलौती बेटियां और जिम्मेदारियों का बोझ

अकेली लड़कियां जहां अपने मांबाप की लाड़लियां होती हैं, वहीं उन का प्यार बांटने वाला उन का कोई सिबलिंग नहीं होता. मातापिता अपना सारा प्यार बेटी पर ही लुटाते हैं. लेकिन फिर भी इकलौती लड़कियां जिम्मेदारी के पहाड़ के नीचे दबने लगती हैं. जानें कैसे :

जन्म से ही इकलौती बेटी घर की दुलारी और मम्मीपापा की नन्ही राजकुमारी होती है. नतीजतन, उस के मातापिता ओवर प्रोटेक्टिव हो जाते हैं. वे उस की जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करते हैं और कोशिश करते हैं कि अपनी बेटी की हर मांग पूरी करें, क्योंकि वह उन के जीवन की सब से कीमती चीज होती है.

यह स्थिति बचपन तक तो ठीक है लेकिन जैसे जैसे वह लड़की बड़ी होती है तो भाई या बहनों के नहीं होने से, इकलौती बेटियां अपने कंधों पर एक बहुत बड़ा बोझ लिए होती हैं। एक बार जब वे बड़ी हो जाती हैं, तो उन्हें लगता है मातापिता ने पूरी जिंदगी मेरे लिए इतना किया है तो अब बढ़ती उम्र में उन का सहारा बनना मेरा ही फर्ज है.

लड़की के ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ काफी बढ़ जाती हैं जिस का उसे धीरेधीरे पता चलता है. हालांकि आजकल 1 बेटी वाले घर बहुत होने लगे हैं. लेकिन जहां लड़की 20 साल की होती है उस पर बहुत सारे बोझ आ जाते हैं. 15 साल तक तो उसे लड़की की तरह पाला जाता है. लेकिन 15 से 20 के बीच में उसे घर का बेटा बनाने की कोशिश की जाती है. इस उम्र तक आतेआते उसे बेटा बनना पड़ता है. क्योंकि मांबाप न चाहते हुए भी बेटी में अपना बेटा कहीं न कहीं तलाश करने लगते हैं जो उन्हें बढ़ती उम्र में से संभाल लें.

मां को कोई बीमारी हो गई हो, घर में सफाई आदि का काम करना है, चौकीदार, घर की बाई को हैंडल करना है, ग्रोसरी लेनी है इन सब में उस की जरूरत पड़ने लगती है। खासतौर पर जब वह स्कूटी चलने लगती है तो उस से बहुत सारी चीजे ऐक्सपैक्ट की जाने लगती हैं.

तुम मोबाइल का बिल भर दो, पानी बिजली का बिल भर दो, क्रैडिट कार्ड बना दो, इस वजह से लड़कियों को मैच्योरिटी आ जाती है. ये लड़कियां उन लड़कियों से कुछ अलग हो जाती हैं जिन के यहां कई सिबलिंग हैं या भाई हैं. सिबलिंग वाली लड़कियों और बिना सिबलिंग वाली लड़कियों में बहुत अंतर होता है. 2 बच्चे हों तो घर में भाईबहनों के साथ जिम्मेदारियां बंट जाती हैं लेकिन अकेली लड़की हो तो जिम्मेदारियों का पहाड़ आ जाता है. उसे कई लड़कियां हैंडल नहीं कर पाती हैं.

उन की पहरेदारी भी ज्यादा हो जाती है। अगर 4 बजे कालेज खत्म हुआ तो 5 बजे से मां के कौल आने शुरू हो जाते हैं कि अब तक घर क्यों नहीं आई? तू कितनी देर में आ रही है? वहीं लड़के 8 बजे तक भी बाहर रह सकते हैं लेकिन लड़कियां ज्यादा लंबे समय तक बाहर नहीं रह पातीं। मैट्रो में जाती हैं या खुद ड्राइव करती हैं तो मांबाप बारबार फोन करते हैं कि तुम अभी तक घर नहीं आईं जबकि लड़कों के साथ ऐसी दिक्कत नहीं आती.

मातापिता का पूरा फोकस उस एक लड़की पर ही हो जाता है. यहां भी लड़कियां परेशान हो जाती हैं.

दूसरा, अगर लड़की की शादी हो जाए तो अकेले बेटी का पति ध्यान रखेगा या नहीं कह नहीं सकते इसलिए लड़कियों की जिम्मेदारी 50-60 साल का होने तक बनी रहती है. अगर मांबाप की संपत्ति न हो या वे पैसे वाले न हों तो दामाद बिलकुल धयान नहीं रखता. बल्कि दामाद को लगता है कि बेकार की मुसीबत गले पङ गई. उसे लगता है कि हर समय ही तुम मायके में पड़ी रहती हो.

इकलौती बेटी के मांबाप को अकसर यह चिंता सताती है कि बेटी की शादी के बाद वे किसके सहारे रहेंगे. इसलिए अकेली लड़कियों पर क्याक्या जिम्मेदारियां आ जाती हैं और वे उनके साथ कैसे डील करें.

ग्रोसरी शौपिंग

ये लड़कियां घर का काम करने में इतनी सक्षम हो जाती हैं कि हर महीने किचन का सारा सामान लाने की जिम्मेदारी इन की हो जाती है क्योंकि मां को लगता है कि आजकल आने वाले नए नई कंपनी के सामानों को लड़की अच्छी तरह देख कर ले लेगी क्योंकि बच्चों को इस बारे में ज्यादा जानकारी होती है हमे इतनी समझ कहां.

बिल जमा करने की जिम्मेदारी

बेटियों को खुद भी लगता है कि पापा कहां इतनी लंबीलंबी लाइनों में लग कर बिल पे करेंगे. यह काम तो मैं कर ही सकती हूं. कई बार दोस्तों के जुगाड़ से बिल जल्दी जमा भी हो जाता है या फिर कोई दोस्त अपना बिल पे कर रहा हो तो साथ ही मेरा भी करा देगा. मैं तो कोई न कोई जुगाड़ निकाल ही लूंगी. ऐसे करते करते यह जिम्मेदारी भी बेटी ही संभालने लगती है.

रिश्तेदारों को जवाब देना

यह भी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. मातापिता जब शादी के लिए कहते हैं तो बेटी मना कर देती है लेकिन फिर वही सवाल रिश्तेदार पूछपूछ कर घर वालों को तंग करते हैं तो जवाब देने के लिए बेटी को सामने आना ही पड़ता है. घर वाले तो साइड हो जाते हैं कि आप खुद ही बात कर लो. तुनक कर बेटियां कहती हैं कि यह हमारा पर्सनल मामला है हम देख लेंगे. बस, इसी बात का बतंगङ बन जाता है और बेटी पर बद्ततमीज होने का तमगा भी लग जाता है.

अब कोई भाई या बड़ी बहन होती तो वह मामला संभाल लेते लेकिन यहां तो खुद ही मैदान में उतरना पड़ता है.

घर की साफसफाई और किचन के कामकाज में हाथ बंटाना

बड़ी होती बेटी को मां का हाथ भी बंटाना पड़ता है और बंटाना भी चाहिए यह कोई बुरी बात नहीं है. मां अगर बीमार हो तो भी किचन लड़की ही संभालने लग जाती है. छुट्टी वाले दिन या फिर 1 टाइम के खाने की जिम्मेदारी तो उस की होती ही है. इस के आलावा घर में जाले झाड़ना, ऊपर से कुछ सामान उतारना, सिलेंडर लगाना ये सब काम भी बेटी के जिम्मे आते हैं.

इंटरनैट बैंकिंग या औनलाइन शौपिंग बेटी ही करेगी

पापा इतने टैक्नोलौजी फ्रैंडली नहीं हैं कि वह यह सब काम करें. दूसरे, अब वे सीखना भी नहीं चाहते क्योंकि उन्हें पता है कि बेटी सब संभाल लेगी. इस तरह बैंक का पूरा हिसाबकिताब बेटी के हाथ में आ जाता है. किसी मेहमान के आने पर सेल आदि में डिस्काउंट में कुछ सामन लेना हो blinkit, jamato हो या अमेजौन से शौपिंग करना हो सब बेटी ही करेगी.

मातापिता की हैल्थ का खयाल रखना

मातापिता का हैल्थ चैकअप कब कराना है, कहां करना है, कौन सा पैकेज इस के लिए अच्छा रहेगा यह सब भी बेटी ही देखती है. उन की बीमारियों से संबंधित किस स्पैशलिस्ट डाक्टर को देखना है वह भी बेटी ही अपने फ्रैंड सर्कल में पूछ कर पता करती है.

शादी के बाद जिम्मेदारी की ओर बढ़ जाती है

शादी के बाद तो बेटी पर डबल जिम्मेदारी हो जाती है कि यह घर भी देखो और मायके का भी पूरा खयाल रखो. सिबलिंग होते तो जिम्मेदारी बंट जाती लेकिन अब तो सब खुद ही देखना है. उस पर अगर दामाद सपोर्टिव न हो तो उस से डील करना भी मुश्किल हो जाता है. उसे लगता है कि हर वक्त तुम्हारा दिमाग मायके में लगा रहता है. अब उसे कौन बताए कि जब वहां मेरे आलावा कोई और काम करने वाले नहीं हैं तो उसे कैसे मैनेज करना है, यह सोचना भी तो लड़की का ही काम है.

इन सब चीजों से कैसे डील करें

जरूरी नहीं है कि सब काम आप खुद ही करें. घर के काम अगर अब मां से नहीं होते तो एक अच्छी से मेड ढूंढ़ें और काम में मदद लें. हां, उस नजर रखना और ढंग से काम करना यह सब आप देख सकती हैं.

औनलाइन चीजों का यूज करें

आज के समय में बैंक का काम हो या बिल जमा करना हो या फिर ग्रोसरी शौपिंग करना हो सब काम फोन पर बैठेबैठे ही हो सकते हैं इसलिए औनलाइन सब करने की आदत डालें. इस से समय और मेहनत दोनों ही बचते हैं.

जीवनसाथी से पहले ही अपनी जिम्मेदारियों के बारे में डिस्कस कर लें

जिस से भी शादी करने जा रही हैं पहले उस से बात कर के तय कर लें कि अपने मायके की देखरेख करना आप की ही जिम्मेदारी है। अगर कोई प्रौब्लम है तो पहले ही बता दें। इस से सामने वाले बंदे का पहले ही माइंड मेकअप होगा कि यह तो सब करेगी ही. इस से रोजरोज की लङाईयां भी नहीं होंगी. उसे यह समझा दें कि मातापिता के बाद उन का घर आदि सब कुछ हमारा है तो जिम्मेदारी भी हमारी दोनों की ही होगी.

ड्राइवर रखें या कैब की सुविधा का लाभ लें

आप को गाड़ी चलानी आ गई है लाइसेंस भी मिल गया है, अच्छी बात है. लेकिन अगर आर्थिक स्तिथि अच्छी है तो सारा बोझ खुद पर क्यों लेना. घर के छोटे बड़े कामों के लिए ड्राइवर रख लें। जब जरूरत हो तब बुला लें जैसेकि मातापिता को कहीं जाना है और आप बिजी हों तो ड्राइवर के साथ भी भेज दें.

अपने कजिंस की मदद लेने में न हिचकिचाएं

अगर आप के कोई रिश्तेदार भाईबहन आप की कामों में मदद करना चाहें तो उन्हें मना न करें। अगर आप हर बार ऐसा करेंगी तो वे आप से पूछना ही बंद कर देंगे. आखिर सब रिश्तेदार एकदूसरे के काम आते ही हैं. आज वे आप की मदद कर रहें हैं तो कल उन्हें भी आप की मदद की जरूरत हो सकती है. इस बात को समझें. अपने रिलेशन लोगों से ऐसे बनाएं कि एक आवाज पर कई लोग आ कर खड़े हो जाएं.

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