Serum आप की त्वचा का नया दोस्त

Serum: अकसर हम अपनी स्किन की देखभाल में फेसवाश, टोनर और क्रीम तक ही सीमित रहते हैं. लेकिन आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां धूप, धूल और स्ट्रैस हर दिन त्वचा पर असर डालते हैं सिर्फ क्रीम काफी नहीं होती. यहीं पर आता है सीरम, आप की स्किन का वह दोस्त जो चुपचाप लेकिन गहराई से काम करता है.

सीरम आखिर होता क्या है

सीरम असल में बहुत हलका लेकिन ताकतवर फौर्मूला होता है, जिस में ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट्स की मात्रा क्रीम या लोशन से कहीं ज्यादा होती है. यह त्वचा की गहराई तक जा कर काम करता है यानी ऊपर से नहीं बल्कि अंदर से सुधार लाता है. इस की कुछ बूंदें ही पूरे चेहरे पर असर दिखाने के लिए काफी होती हैं.

सीरम क्यों लगाना चाहिए

हमारी स्किन हर दिन बहुत कुछ झेलती है जैसे सूर्य की किरणें, प्रदूषण, मेकअप और स्टाइलिंग प्रोडक्ट्स तक. ऐसे में सिर्फ मौइस्चराइजर लगाना कभीकभी सतही देखभाल रह जाती है, जबकि सीरम स्किन की असली जरूरतों को पहचान कर सीधे उन पर काम करता है. अगर किसी को पिगमैंटेशन हैं तो ब्राइटनिंग सीरम, रिंकल्स हैं तो ऐंटीएजिंग सीरम और अगर पिंल्स की समस्या है तो क्लैरिफाइंग सीरम यानी हर जरूरत के लिए एक अलग सीरम बना है.

सीरम के बड़े फायदे गहराई तक असर: सीरम के बहुत छोटे कण स्किन की अंदरूनी परतों तक पहुंच कर सैल्स को पोषण देते हैं.

कम में ज्यादा फायदा: बस कुछ बूंदें काफी होती हैं, जिस से स्किन पर कोई हैवीनैस भी महसूस नहीं होती.

स्किन रिपेयर: इस में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट और विटामिस स्किन को डलनेस से बचाकर उसे फ्रैश और यंग बनाए रखते हैं.

एजिंग पर कंट्रोल: नियमित इस्तेमाल से झुर्रियां, फाइन लाइन्स और अनइवन टोन धीरेधीरे कम दिखने लगती है.

नेचुरल ग्लो: कुछ हफ्तों में ही स्किन का टैक्स्चर निखर जाता है और एक हलकी सी नैचुरल चमक आने लगती है.

आप के लिए कौनसा सीरम सही है

– अगर आप की स्किन ड्राई है तो ह्यालूरानिक ऐसिड या विटामिन ई वाला सीरम लीजिए जो नमी बढ़ाए.

– औयली स्किन वालों के लिए नियासिनामाइड या टी ट्री सीरम अच्छा रहेगा जो ऐक्सैस औयल कंट्रोल करे.

– पिगमैंटेशन या डलनैस में विटामिन सी या लीकोरिस सीरम बहुत असरदार होता है.

– अगर ऐजिंग साइन दिखने लगे हैं तो पैप्टाइड या रैटिनोल सीरम से बेहतर कुछ नहीं.

सीरम कब लगाना चाहिए

सीरम हमेशा साफ त्वचा पर लगाना चाहिए. चेहरा धोने के बाद जब स्किन थोड़ी सी नम हो तब 2-3 बूंदें हथेलियों में ले कर हलके हाथों से चेहरे और गरदन पर लगाएं. उस के बाद मौइस्चराइजर लगाएं ताकि सीरम की नमी लौक हो जाए. रात का समय सीरम के लिए सब से अच्छा होता है क्योंकि रात में स्किन खुद को रिपेयर करती है. आजकल हर्बल और आयुर्वेदिक बेस वाले सीरम बहुत ट्रेंड में हैं. इन में सैफरन रोज ऐलोवेरा ग्रीन टी या सैंडलवुड जैसे इनग्रीडिऐंट्स होते हैं जो स्किन को बिना कैमिकल्स के स्वस्थ चमक देते हैं. अगर आप की स्किन सैंसिटिव है तो ऐसे सीरम ज्यादा जैंटल रहते हैं.

जरूरी टिप्स

सीरम को कभी रगड़ें नहीं, बस हलके हाथों से टैप करें.

Serum

Junk Food: सेहत खराब कर सकता है जंक फूड

Junk Food: आजकल बच्चों और युवा पीढ़ी में जंक फूड खाने का क्रेज कुछ  ज्यादा ही बढ़ रहा है और उन की रोज जंक फूड खाने की आदत एक लत का रूप ले रही है और वे चाह कर भी इस से दूरी नहीं बना पा रहे है, जिस की वजह से वे मोटापे का शिकार हो रहे हैं और कम उम्र में ही बीमारियों से घिर रहे हैं. यदि आप जंक  फूड खाने की आदत से दूरी बनाना चाहते हैं तो यह जानकारी आप ही के लिए है.

हम सभी अकसर एकदूसरे से यह कहते रहते हैं या एकदूसरे के मुंह से सुनते रहते हैं कि क्या करूं यार यह आदत तो छूटती ही नहीं. चूंकि आदत को छोड़ना है इसलिए हम अकसर आदतों को नकारात्मक रूप में ही लेते हैं पर वस्तुत: ऐसा नहीं है. किसी व्यक्ति की दिनचर्या कैसी होगी, यह उस व्यक्ति की आदतें ही तय करती हैं.

हम सभी अपने रोजमर्रा के बहुत सारे काम अपनी आदतों के अनुसार ही करते हैं. फिर चाहे वह सुबह उठने या रात का सोने का समय हो, हम क्या खाते हैं, कैसा व्यवहार करते हैं यह सब हमारी आदतें ही तय कराती हैं इसीलिए आदतें अच्छी भी हो सकती हैं और बुरी भी.

यदि आदत अच्छी हो तो उस का सकारात्मक प्रभाव हमारे साथसाथ हमारे परिवार और समाज सभी पर पड़ता है, वहीं दूसरी ओर यदि आदतें बुरी हों, उन्हें नकारात्मक छोड़ना मुश्किल होता है. जैसे किसी को सुबह उठते ही चाय या कौफी चाहिए, रोज कितना ही अच्छा खाना भर पैट खा लें लेकिन जब तक कुछ जंक न खा लें जैसे समोसा, कचौड़ी, बर्गर, मीठा आदि मन ही नहीं भरता. यदि यह नहीं मिला तो उन्हें मजा ही नहीं आता. आजकल जंक फूड खाने की आदत युवा पीढ़ी में बहुत तेजी से बढ़ रही है और यह उन्हें कम उम्र में ही बीमार बना रही है.

लेकिन हमारी बुरी आदतें जिन्हें हम बदलना या छोड़ना चाहते हैं थोड़ी मुश्किल से ही छूटती हैं. तब अकसर हम यह कहते हैं कि कोशिश तो कर रहा/रही हूं लेकिन यह आदत तो छूटती ही नहीं. इस के पीछे क्या कारण है? आखिर क्या होती हैं आदतें? कैसे पड़ती हैं अच्छी या बुरी आदतें? क्यों हम आदतों के अनुसार करते हैं अपनी दिनचर्या? क्यों हम चाह कर भी नहीं बदल या छोड़ पाते आदतें? किस तरह हमारी आदतें जीवन या लाइफ को प्रभावित करती हैं? क्यों हम आदतों को छोड़ने के बाद भी पुन: उन्हीं आदतों को अपना लेते हैं? आइए, जानते हैं विस्तार से:

आदत वास्तव में एक व्यवहार है कोई भी नियमित रूप से दोहराया जाने वाला व्यवहार, जिस के लिए अधिकांशत: किसी विचार की आवश्यकता नहीं होती है और जो जन्मजात होने के बजाय पुनरावृत्ति या बारबार दोहराने के माध्यम से विकसित होती है और फिर वह काम बिना सोचेविचारे अपनेआप या स्वत: ही होने लगता है जैसे जो बच्चे रोज जंक फूड खाते हैं उन्हें इस की लत लग जाती है. फिर जंक फूड एक लत के तौर पर उन की एक जरूरत बन जाती है, जिस का परिणाम यह होता है कि जब तक वे इसे खा नहीं लेते बेचैन बने रहते हैं और उन की यह बेचैनी गुस्से और चिड़चिडाहट के रूप में बाहर आती है.

आखिर क्या होती हैं आदतें

यह तो हम सभी जानते हैं कि आदत अच्छी भी होती है और बुरी भी लेकिन जब हम व्यवहार के कारण भविष्य में होने वाले दुष्परिणामों की जानकारी होने के बाद भी उस व्यवहार की पुनरावृत्ति या बारबार दोहराते हैं तो हम उसे बुरी आदत या व्यसन कहते हैं. तब उस लत/व्यसन के व्यव्हार को दोहराना हमारी मजबूरी बन जाता है.

कोई भी आदत जन्म से नहीं आती. उसे हम धीरेधीरे ही सीखते हैं, साथ ही कोई भी चीज सीखने का सीधा संबंध हमारे दिमाग या मस्तिष्क से होता है. जो भी हम सीखते हैं वह मस्तिष्क में स्टोर होता रहता है. सीखने के विभिन्न तरीकों में से एक प्रमुख चीज जोकि हमारी आदतों के लिए जिम्मेदार होती है वह है प्रतिफल आधारित पद्धति (रिवार्ड बेस्ड लर्निंग). मनोवैज्ञानिक एडवर्ट थोर्नडायिक के प्रभाव के नियम पर आधारित यह रिवार्ड बेस्ड लर्निंग हमारी आदतों के लिए जिम्मेदार होती है.

क्या है रिवार्ड बेस्ड लर्निंग

जिस अनुभव या कार्य से हमें संतोष या प्रसन्नता का अनुभव होता है हम उस अनुभव को पाने के लिए उस कार्य को बारबार करने के लिए प्रेरित होते हैं और तब हम उस काम को बारबार करते हैं. बस यहीं से आदत का जन्म होता है और इस पूरी आदत का हमारा मस्तिष्क एक न्यूरल नैटवर्क बना देता है और यह समय के साथ और मजबूत होता जाता है. जैसे हमारी जंक  फूड खाने की आदत हम ने उसे पहली बार खाया या चखा यदि हमें मजा आ गया तो उसे बारबार खाने की इच्छा होगी. तब ऐसा संभव है कि आप उसे रोज खाने लगें. तब वह धीरेधीरे बारबार दोहराने से आप की आदत बन जाएगा क्योंकि उसे लेने के बाद तात्कालिक या थोड़ी देर के लिए संतोष या प्रसन्नता का अनुभव होता है पर यह स्थाई नहीं होता.

लेकिन उसी अनुभव को पाने के लिए रोज जंक  फूड सेवन करते हैं तब मस्तिष्क में उस के न्यूरौंस नैटवर्क मजबूत होते जाते हैं और तब रोज जंक फूड का सेवन करना उन की आदत बन जाता है उन्हें पता ही नहीं चलता है और जब इस बुरी लत या व्यसन को छोड़ने की बारी आती है तब वह काफी मुश्किल भरा हो सकता है या हो जाता है.

क्यों गुलाम हो जाते हैं हम बुरी आदतों के

हमारा मस्तिष्क एक बेहद जटिल कार्यप्रणाली से सक्रिय रहता है और हमारा शरीर मस्तिष्क के आदेशों के अनुसार ही कार्य करता है. मस्तिष्क में 86 अरब न्यूरौंस होते हैं और हम जो कुछ भी अनुभव करते हैं या देखते हैं अथवा सीखते हैं वह सब हमारा मस्तिष्क न्यूरौंस के नैटवर्क या पैटर्न बना कर स्टोर करता है और किसी कार्य की पुनरावृत्ति से उस कार्य का नैटवर्क हर पुनरावृत्ति के साथ और मजबूत होता जाता है.

जैसे जब हम कार या स्कूटर चलाना सीखते हैं तब हमारा पूरा ध्यान उस के हैंडल या कार के स्टीयरिंग पर होता है क्योंकि हमारे मस्तिष्क में उस की जानकारी का न्यूरौन नैटवर्क नहीं बना होता है लेकिन जब हम रोज कार या स्कूटर चलने का अभ्यास करते हैं तब हमारे मस्तिष्क में ड्राइविंग का एक न्यूरौंस पैटर्न बन जाता है जो ड्राइविंग की आवश्यक जानकारी एवं कौशल को स्टोर करता है. बारबार ड्राइविंग करने से यह नैटवर्क या न्यूरौन का पैटर्न मजबूत होने लगता है और लगातार ड्राइविंग का अभ्यास करने से हमारे मस्तिष्क में यह पैटर्न मजबूत हो कर लगभग स्थाई हो जाता है,

ऐसी स्थिति में फिर वह काम अपनेआप बिना सोचेविचारे ही होने लगता है. तब हम ड्राइविंग करने में ऐफीसिएंट हो जाते हैं और हमारा मस्तिष्क औटो मोड में पहुंच जाता है.

ठीक ऐसा ही नैटवर्क हमारी जंक खाने की आदतों का भी बनता है जो एक बार मस्तिष्क में मजबूत हो जाने के बाद हमें औटो मोड पर रखता है, जिस की वजह से हम जब भी खाना देखेंगे या खाएंगे तो सिर्फ जंक फूड ही खाने की इच्छा होगी या हमारा हाथ उस ओर कब बढ़ जाएगा, कब खा लेंगे पता भी नहीं चलेगा. तब हमारा मस्तिष्क औटो मोड में पहुंच जाता है. जैसे आप के सामने एक तरफ जंक फूड, चाटपकौड़ी रखी है और दूसरी ओर हैल्थी खाना तब हम यहां जंक फूड को ही चुनते हैं. ऐसा क्यों होता है? आखिर क्यों हम बुरी आदतों के गुलाम हो जाते हैं? आइए, जानते हैं:

कारण 1: मिलता है तात्कालिक आनंद

हमारा दिमाग विकासवादी तौर पर तात्कालिक आनंद या इंस्टैंट ग्रैटिफिकेशन की ओर अधिक आकर्षित होता है. इस कारण इंस्टैंट लाभ के लिए हम लौंग टर्म या दीर्घकालिक फायदों या दुष्परिणामों को नजरअंदाज कर देते हैं. चूंकि जंक फूड का असर तुरंत होता है खाने के बाद हमें बहुत अच्छा लगता है जोकि तात्कालिक आनंद या उत्तेजना के रूप में महसूस होता है. लेकिन इसे रोज खाने से हम मोटापे, ब्लड प्रैशर, शुगर जैसी बीमारियों से पीडि़त हो सकते हैं. उस के बाद भी हम उसे खाना पसंद करते हैं.

हम उस आदत के लौंग टर्म या दीर्घकालिक दुष्परिणामों को नजरअंदाज कर देते हैं. जैसे इंस्टैंट प्लेजर का हमारे रोजमर्रा जीवन में अकसर होने वाला एक उदाहरण बेहद आम है. आज रात आप ने निर्णय लिया कि कल सुबह मैं जल्दी उठूंगा/उठूंगी और सैर करने जाऊंगा/जाऊंगी लेकिन सुबह होते ही आप ने अपना निर्णय बदल लिया. आज और देर तक सो लेता हूं कल से जल्दी उठूंगा/उठूंगी. यहां हम ने इंस्टैंट प्लेजर के लिए सुबह सैर के लौंग टर्म फायदे को नजरअंदाज कर दिया और और इंस्टैंट प्लेजर के लिए देर तक सोने का आनंद लेना पसंद किया.

कारण 2 : हारमोंस और कैमिकल का बनना

जब हम स्वाभाविक रूप से खुश होते हैं या प्रसन्नता व संतोष का अनुभव करते हैं तो हमारे मस्तिष्क में कुछ विशेष हारमोंस और कैमिकल बनता है, जिस के कारण हमें खुशी महसूस होती है. ठीक ऐसा ही जंक फूड खाने के बाद होता है हम खुशी का अनुभव करते हैं और हैप्पी हारमोन निकलता है और यदि भूख लगने पर नहीं मिले तो मन बेचैन हो जाता है.

इस बेचैनी से छुटकारा पाने के लिए इस न्यूरल नैटवर्क को दोहराना मजबूरी हो जाती है और इस तरह से जंक फूड खाने की आदत का एक अंतहीन लूप बन कर रह जाती है.

तो आखिर ऐसा अच्छी आदतों के साथ क्यों नहीं होता? इसलिए कि अच्छी आदतें कभी भी इंस्टैंट प्लेजर या तुरंत आनंद नहीं देतीं. वे सिर्फ लौंग टर्म फायदे ही देती हैं.

कारण 3 : जब न हो समय या हों अकेले

आजकल की भागमभाग वाली लाइफ में कई बार हमें खाना बनाने का वक्त ही नहीं मिलता या हम अकेले रहते हैं तो खाना बनाने का मन नहीं करता. सोचते हैं जो आसानी से और अच्छा मिल रहा है वहीं खा लेते हैं. यह नहीं सोचते कि यह फूड नुकसान करेगा या फायदा. तब हम मजबूरी में जंक फूड से दोस्ती कर लेते हैं. किंतु लंबे समय इस का सेवन सेहत के लिए नुकसानदायक होता है. तब हम जंक  फूड खाने के दुष्परिणामों को नजरअंदाज कर देते हैं.

लेकिन यदि हम शरीर को लंबे समय तक स्वस्थ रखना चाहते हैं तो इस के लिए आप चाहे तो टिफिन सैंटर या अपने घर के आसपास किसी रैस्टोरैंट में जा कर सादा या हैल्दी फूड का मजा ले सकते हैं, साथ ही छुट्टी के दिन घर पर अपनी पसंद का हैल्दी खाना भी बना सकते हैं और उस का मजा ले सकते हैं.

‘द पावर औफ हैबिट’ बुक के लेखक चाल्स दुहीग्ग के अनुसार, न सिर्फ बुरी आदत को बदलना मुश्किल होता है बल्कि नई अच्छी आदतें बनाना भी मुश्किल होता है क्योंकि अच्छी आदतों का नया व्यवहार पुरानी आदत में हस्तक्षेप करता है और आप के मस्तिष्क को औटो मोड में जाने से रोकने का प्रयास करता है पर मस्तिष्क में पूर्व से विद्यमान या स्टोर आदत का मजबूत नैटवर्क नए व्यवहार को अपने प्रयास में कामयाब नहीं होने देता है.

अपनी बुरी आदतों को इन तरीकों से  बदला जा सकता है:

आत्मबल या विल पावर के बल पर किसी भी बुरी आदत को छोड़ने के लिए आत्मबल यानी विल पावर पर ही जोर दिया जाता रहा है. यह विल पावर मांसपेशियों की तरह होती है. एक तो इसे लगातार अभ्यास से मजबूत बनाना होता है दूसरा अत्यधिक प्रयोग से जिस तरह मांसपेशियों में थकान आ जाती है और वे कार्य नहीं कर पातीं ठीक उसी प्रकार आत्मबल भी एक पौइंट के बाद कमजोर हो जाता है. यही कारण है कि इच्छाशक्ति के दम पर छोड़ी गई आदत 90त्न से 95% मामलों में वापस आ जाती है. अत: इच्छाशक्ति से आदतें बदली तो जा सकती हैं पर पुनरावृत्ति की संभावना बनी रहती है.

रिवार्ड वैल्यू से मशहूर एडिकशन ऐक्सपर्ट डा. जड़सन ब्रेवर ने अपनी किताब ‘अनवाइंडिंग ऐंग्जायटी’ में आदतों को ले कर एक महत्त्वपूर्ण तथ्य पेश किया. उन के अनुसार, जब भी हम कोई अनुभव लेते हैं तो उस अनुभव से मिलने वाले आनंद एवं संतोष के आधार पर हमारा मस्तिष्क उस अनुभव की एक रिवार्ड वैल्यू अंकित करता है और बारबार के अनुभव के आधार पर यह वैल्यू और मजबूत होती जाती है. चूंकि सभी बुरी आदतें हमें इंस्टैंट या तात्कालिक/क्षणिक संतोष/सुख या प्रसन्नता देती हैं. अत: हमारा मस्तिष्क उन की रिवार्ड वैल्यू अधिक दर्ज करता है. यही कारण है कि हमें केक या ऐप्पल में से किसी एक को चुनना हो तो हम केक को चुनेंगे क्योंकि हम पहले भी कई बार केक और ऐप्पल खाने का अनुभव ले चुके हैं और उन अनुभवों के आधार पर हमारे मस्तिष्क में केक की रिवार्ड वैल्यू ऐप्पल के मुकाबले अधिक रिकौर्ड की गई है. चूंकि ऐप्पल के बैनिफिट हमें लौंग टर्म या दीर्घकाल के बाद मिलने की संभावना रहती है तो उस की रिवार्ड वैल्यू केक से तुलनात्मक रूप से कम रहती है,

यदि हम विल पावर यानी इच्छाशक्ति के दम पर अपनी आदत को नहीं बदल पा रहे हैं तो हमें उस आदत की रिवार्ड वैल्यू को कम करना होगा या उस के किसी अल्टरनेटिव की रिवार्ड वैल्यू को बढ़ाना होगा, साथ ही इमोशंस को पहचानना होगा जो हमें जंक फूड खाने के लिए आदत की पुनरावृत्ति हेतु उकसा रहे हैं.

आदत की रिवार्ड वैल्यू कम करने में वर्षों नहीं तो कम से कम कुछ महीने तो लगना स्वाभाविक है. इस दिशा या कार्य के लिए प्रत्यनशील रहें. आप को सफलता अवश्य मिलेगी और आप जंक फूड खाने की आदत से अवश्य दूरी बनाने में कामयाब होंगे.

Junk Food

Love or Career: किसे चुनें पहले लव या कैरियर

Love or Career: प्यार और शादी के माने बहुत ऊपर हैं. लेकिन क्या इतने ऊपर कि इन पर कैरियर की बलि चढ़ा दी जाए? नहीं न. पहले शादी करने को इतनी अधिक प्राथमिकता दी जाती थी कि लड़का हो या लड़की उन के कैरियर के बारे में ज्यादा सोचा नहीं जाता था और आज भी यह स्थिति इतनी सुधरी नहीं. वह इसलिए कि पहले परिवार शादी के नाम पर बच्चों के कैरियर को किनारे कर देते थे और अब बच्चे प्यारमुहब्बत के नाम पर खुद को फेल्योर बना लेते हैं.

आज जहां परिवार बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए हर अच्छे कोचिंग सैंटर, काउंसलिंग और स्कूलकालेज के दरवाजे खटका रहे हैं बच्चे उन्हीं दरवाजों से भीतर जा एक आशिक या दिलजला बन निकल रहे हैं. यंग ऐज में किसी दूसरे की तरफ आकर्षण और प्यार स्वाभाविक है और इस में कोई दोष भी नहीं. मगर उस रुझन को आप खुद पर इतना हावी भी न होने दें कि उस के गुलाम ही बन जाओ क्योंकि इस उम्र का प्रेम कितने दिन टिकेगा इस का कोई ठीक नहीं.

इसलिए अपने इश्क को अपने ही जीवन की रुकावट मत बनने दें. जो समय आप प्रेम प्रसंग और शादी के सपने लेने में गवां रहे है यह वही समय है जब एक कैरियर की नींव रखी जाती है. तो इस समय को यों प्रेम की मौसमी हवाओं में न उड़ाएं वरना आप भी गीता की तरह आगे बढ़ने के बजाय पीछे आ जाएंगी या समीर की तरह टौपर से फेलयोर. नौट सो स्मार्ट गीता और अर्जुन स्कूल टाइम से साथ थे. फिर कालेज और प्यार. जहां अर्जुन को कालेज से निकल बड़ी मुश्किल से जौब मिली वहीं गीता को एक यूएस कंपनी से औफर आया, जिस से गीता बहुत खुश थी. सब सैट था सिर्फ पासपोर्ट नहीं. गीता ने कंपनी से थोड़ा समय मांग. पासपोर्ट के लिए अप्लाई कर दिया. जल्द ही पासपोर्ट औफिस से डौक्यूमैंटेशन की डेट भी आ गई.

लेकिन गीता को नहीं पता था कि डेट के दिन अर्जुन एक नन्हे बच्चे की तरह उस का हाथ पकड़ रोने लगेगा. गीता के हाथ में डौक्यूमैंट थे और पासपोर्ट औफिस का गेट बस 10 कदम की दूरी पर. मगर 10 कदम के बीच अर्जुन उस का हाथ पकड़ सड़क पर बैठे रो रहा था. ‘‘प्रौब्लम क्या है अर्जुन?’’ ‘‘अगर तुम चली गई तो मैं अकेला क्या करूंगा या तुम ने वहां किसी और को पसंद कर लिया तो अथवा यहां मेरी शादी और किसी से हो गई तो? नहीं मुझे छोड़ कर मत जाओ. प्लीज, यहीं कोई नौकरी कर लो. तुम्हें बड़े आराम से नौकरी मिल जाएगी. तुम तो मुझ से कहीं ज्यादा स्मार्ट हो.’’ मगर गीता अर्जुन से स्मार्ट नहीं निकली. उस ने अपना फैसला बदल दिया और अर्जुन के पास रुक गई.

आज वही गीता अर्जुन से बहुत पीछे है. उसे अर्जुन से अच्छी नौकरी तो मिली लेकिन अर्जुन से शादी के बाद उसे 2 बार नौकरी चेंज करने पड़ी. एक तो अर्जुन की जौब पोस्टिंग की वजह से और दूसरी प्रैगनैंसी की वजह से. कैरियर में 2 बड़े बदलाव गीता को भारी पड़े और वह आज अर्जुन से बहुत पीछे हो गई. जो अर्जुन पहले उसे ज्यादा स्मार्ट होने की दुहाई देता था आज वही उसे कहता है, ‘‘गीता यह किचन इतनी फैली क्यों है? अरे बेबी का सामान ठीक से रखा करो. बिल्स पेमैंट तो बेबी के साथ घर बैठे कर ही सकती हो. पता है वह अपना सुनील था न, उस की वाइफ लंदन जा रही है. अच्छी जौब मिली है उसे. बहुत खुश था वह. उन की तो लाइफ सैट हो गई. और वह कालेज की श्वेता उसे तीसरी प्रोमोशन मिली है. ग्रोथ के लिए तुम भी थोड़ा स्मार्ट वर्क किया करो.’’

एक सैलरी काफी नहीं फाइनल ऐग्जाम हुए ही थे कि सुधा के मांबाप उस के लिए लड़का देखने लगे और रिजल्ट आने तक उस की शादी भी हो गई. शादी के कुछ दिन बाद ही सुधा ने दिनेश से कहा कि वह नौकरी करना चाहती है. उस की बात सुन दिनेश नाराज हुआ और उस को ताना मार कहा, ‘‘तुम्हारी ऐसी कौन सी जरूरत मेरी तनख्वाह पूरी नहीं कर रही कि तुम्हें नौकरी करने की सूझ?’’ और फिर यही ताना दिनेश के घर वालों ने भी मारा जब दिनेश ने उन्हें सुधा की नौकरी करने की बात बताई. परिवार का ताना खा सुधा ने अपनी चाह दबा ली. समय बीता और सुधा ने एक बच्ची को जन्म दिया. नाम रखा वर्षा. दिनेश की नौकरी अच्छी चल रही थी और ससुरजी की नौकरी भी.

मगर कुछ साल बाद कुछ ऐसा हुआ कि सबकुछ उलटपलट गया. ससुरजी की तबीयत ऐसी खराब हुई कि उन्हें नौकरी छोड़ घर पर बैठ आराम करना पड़ गया. एक लंबी छुट्टी पर होने की वजह से कुछ दिन बाद ही उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. अब घर का सारा खर्चा सिर्फ दिनेश के सिर आ गया. दिनेश जैसेतैसे सब संभाल लेता. लेकिन जैसेजैसे वर्षा बड़ी हो रही थी खर्चे भी बढ़ रहे थे.

वर्षा के प्ले स्कूल तक फीस तो निकल जाती थी लेकिन अब रैग्युलर स्कूल की एडमिशन फीस और डोनेशन तो उधार पर हो गया लेकिन हर महीने की फीस उस का क्या? घर की आर्थिक तंगी बढ़ती जा रही थी और सुधा का धैर्य घटता जा रहा था. एक सुबह सुधा को अच्छे से तैयार होता देख उस की सास ने पूछा, ‘‘कहां चल दी.’’ सुधा ने पर्स में पानी की बोतल और लंच रख कहा, ‘‘आज से नौकरी करने जा रही हूं. यहीं पास में ही मिल गई है. खाना बना दिया और कपडे़ भी धो कर सूखने डाल दिए हैं.’’ सुधा के सासससुर उस की बात सुन हैरान थे कि तभी दिनेश एकदम चिल्लाया, ‘‘ऐसी भी क्या जरूरत आ पड़ी जो नौकरी करनी है?’’ सुधा ने उसे एक लिस्ट पकड़ा दी और कहा, ‘‘घर का यह सामान पापा की दवाई और वर्षा की पिछले 2 महीने की फीस बाकी है. बस यहीं जरूरत आ पड़ी. लेकिन ठीक से देखो. इस में मेरी कोई जरूरत नहीं क्योंकि तुम्हारी सैलरी और कर्ज मेरी हर जरूरत तो पूरी कर देते हैं लेकिन इस पूरे परिवार की नहीं.’’ प्रिय से अप्रिय होना प्रिया समीर की जान थी.

समीर कालेज का टौपर लड़का जो हमेशा हर चीज में टौपर रहा. आज वह इंटरव्यू में सब से पीछे था. इंजीनियरिंग के फाइनल ऐग्जाम सिर पर थे. सब को यही उम्मीद थी कि समीर ही टौप करेगा और फिर एक बड़ी कंपनी में हाई पेड सैलरी उस का स्वागत करेगी. मगर हुआ कुछ उलटा ही. समीर का स्वागत तो हुआ लेकिन किसी कंपनी में नही बल्कि थाने में. प्रिया जो समीर की गर्लफ्रैंड थी की अचानक सगाई फिक्स हो गई. जब समीर को यह पता चला तो उस ने प्रिया से बहुत बहस की. प्रिया जो यह कहती थी कि वह समीर से प्यार करती है आज उस से खुद बोल रही थी कि वह सब एक अट्रैक्शन था जो खत्म हो गया.

इसलिए समीर को उसे भूल जाना चाहिए. लेकिन समीर यह सब नहीं समझ पा रहा था और न भूल. वह खुद को दिनरात शराब में डुबोए रहता. उस के दोस्तों ने, परिवार ने, यहां तक कि प्रोफैसर ने भी बहुत कोशिश की लेकिन वह अपने दर्द से बाहर नहीं निकल पाया और यही दर्द उसका फाइनल ईयर खा गया. न उस ने कोई पढ़ाई की और न कोई ऐग्जाम दे पाया. लाइफ में फेल्योर बनने का दर्द उसे नशे के साथ सड़क पर ले आया और फिर थाने. बड़ी मुश्किल से परिवार और दोस्तों ने थाने और कालेज वालों के हाथपांव जोड़ उसे दूसरा मौका देने को मनाया.

1 साल बरबाद होने के बाद समीर फिर से ऐग्जाम में बैठ तो पाया लेकिन अंकों में आगे नहीं निकल पाया. टौप करने वाला लड़का सिर्फ पास होने लायक ही अंक जुटा पाया. आज उन ही अंकों को लिए वह अपने 10वें इंटरव्यू में सब से पीछे बैठा है. गंभीरता को समझें इन छोटी कहानियों से हम कोई ज्ञान नहीं देना चाहते लेकिन हां जीवन की सचाई जरूर दिखाना चाहते हैं. आप में से बहुत से युवाओं ने यह सचाई अपने आसपास के लोगों या किसी करीबी को जीते देखी भी होगी.

इसलिए आप इस बात की गंभीरता को समझ और अपने कैरियर पर ध्यान दो. हम यह भी नहीं कहते कि प्रेम से आंखें ही मूंद लो लेकिन आंखें इतनी भी तो खुली रखो कि अपना अच्छाबुरा देख सको क्योंकि अब वह समय चल रहा है जहां प्रेम प्रसंगों, शादी के ख्वाबों की जगह कैरियर को प्राथमिकता दी जाए. वैसे भी असली प्रेम वही होता है जहां दोनों का हर रूप में विकास हो, भविष्य सुधरे और वे एकदूसरे को आगे बढ़ने में मदद करें. एक अच्छा कैरियर केवल अच्छे पैसे कमाने का जरीया ही नहीं बनता बल्कि खुद को स्वतंत्र, मजबूत और संतुष्ट भी बनाता है.

साथ एक अच्छा कैरियर आप को दुनिया की बहुत सी खुशी ला सकता है और हां प्रेम भी क्योंकि अगर आप सफल होंगे तो आप को जीवन में बहुत से सुंदर लोग और रिश्ते मिलेंगे. दोनों ही एकदूसरे के बोझ से दबे रहेंगे और यह तर्क दोनों लड़का और लड़की के लिए है. आज लड़की का इंडिपैंडैंट होना उतना ही जरूरी है जितना लड़के का है क्योंकि आज की जीवनशैली और जरूरतें बहुत बदल और बढ़ चुकी हैं जो किसी एक के जिम्मे नहीं हैं.

एक व्यक्ति का अपना खर्च ही इतना है कि कभीकभी उस की आमदनी स्वयं की पूर्ति के लिए कम पड़ जाती है तो अन्य का भार कोई कैसे उठाएगा और अगर आप इतने काबिल हो. पढ़ीलिखी हों तो क्यों किसी पर आप को आश्रित होना है. आप स्वयं क्यों नहीं इंडिपैंडैंट बनतीं? एक सफल कैरियर न केवल आप का स्वयं का विश्वास बढ़ाएगा बल्कि आप के साथी और बाकी परिवार का भी आप पर विश्वास मजबूत करेगा.

Love or Career

Instant Food और वैंडिंग मशीनें, किचन से आजादी

Instant Food: आज का जमाना तेजी से बदल रहा है. पहले जहां रसोई का काम महिलाओं की सब से बड़ी जिम्मेदारी माना जाता था, वहीं अब वक्त और जरूरतें दोनों बदल चुके हैं. महिलाएं अब सिर्फ घर तक सीमित नहीं रहीं. वे नौकरी कर रही हैं, पढ़ाई कर रही हैं, बच्चों की देखभाल कर रही हैं और साथ ही खुद के लिए भी कुछ कर रही हैं. ऐसे में उन के लिए सब से बड़ा बोझ होता है रोजरोज का खाना बनाना. यही वजह है कि अब इंस्टैंट फूड और फूड वैंडिंग मशीनें एक नया विकल्प बन कर उभरी हैं जो न सिर्फ समय बचाती हैं बल्कि उन्हें रसोई के बंधन से कुछ हद तक फ्री भी करती हैं.

इंस्टैंट फूड का मतलब होता है ऐसा खाना जिसे बहुत जल्दी, कम मेहनत में तैयार किया जा सके. जैसे रैडीमेड उपमा मिक्स, नूडल्स, इंस्टैंट खिचड़ी, रैडी टू कुक परांठा जिसे सिर्फ गरम करना हो और उसी बरतन में खाना हो. ये सब चीजें अब हर मिडल क्लास घर में दिखने लगी हैं. पहले लोग इन्हें बाजारू और बिना पोषण वाला मानते थे लेकिन अब कंपनियां भी इन्हें हैल्दी, स्वादिष्ठ और घरेलू स्टाइल में बनाने लगी हैं ताकि महिलाओं को लगे कि ये भी घर के बने जैसे ही हैं. अब बात करें वैंडिंग मशीनों की तो ये मशीनें पहले सिर्फ चायकौफी या स्नैक्स देने के लिए जानी जाती थीं लेकिन अब इस में भी बड़ा बदलाव आ गया है.

आजकल ऐसी फूड वैंडिंग मशीनें तैयार हो चुकी हैं जो गरम खाना जैसे छोलेकुलचे, राजमाचावल, डोसा, यहां तक कि बिरयानी तक सर्व करती हैं. इन्हें इस्तेमाल करना भी बेहद आसान है. बस स्क्रीन पर और्डर सलैक्ट करो, पेमैंट करो और मिनटों में गरमगरम खाना सामने. इस से न तो बरतन गंदे होते हैं, न ही रसोई का झंझट होता है. औरतों के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं. घरों के लिए कारगर इस का एक अच्छा उदाहरण है दिल्ली का ‘चख दे छोले.’ इसे सागर मल्होत्रा नाम के युवक ने शुरू किया जो पहले एक बैंक में नौकरी करता था और बाद में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई भी की थी.

उस ने देखा कि लोगों को जल्दी में स्वादिष्ठ, साफ और हैल्दी खाना नहीं मिलता. इसी बात को ध्यान में रख कर उस ने छोलेकुलचे की वैंडिंग मशीन बनाई जो सिर्फ 60 सैकंड में गरमगरम छोलेकुलचे सर्व करती है. इस में औटोमैटिक सिस्टम है जो न तो खाने में हाथ लगाता है और न ही गंदगी करता है. आज दिल्ली के कई इलाकों में उस की मशीनें चल रही हैं और बहुत लोग इस से खाना खा कर संतुष्ट हैं. इसी तरह यूके की एक मां सारा बाल्स्डन ने लौकडाउन के दौरान अपने घर में एक छोटी वैंडिंग मशीन लगाई. उस ने अपने बच्चों को घर के छोटेछोटे काम करने के बदले पौइंट्स दिए और फिर उन्हीं पौइंट्स से बच्चे मशीन से चौकलेट या स्नैक्स खरीदते थे. इस से बच्चों में जिम्मेदारी आई और मां को बारबार उन के लिए नाश्ता बनाने की जरूरत नहीं रही.

इस से हम देख सकते हैं कि वैंडिंग मशीन सिर्फ औफिस या मार्केट के लिए नहीं बल्कि घरों के लिए भी कारगर साबित हो सकती हैं. खाने की सब से बड़ी खासीयत समय की बचत: आजकल की महिलाएं चाहे वर्किंग हों या हाउसवाइफ, सभी के पास समय की कमी है. सुबह बच्चों को स्कूल भेजना, खुद औफिस जाना या घर के दूसरे काम करना, सबकुछ एक समय में करना होता है. ऐसे में अगर रसोई का काम आसान हो जाए तो उन का बहुत बड़ा तनाव कम हो सकता है.

उदाहरण के लिए सुबह का नाश्ता तैयार करने में आमतौर पर 45 मिनट से 1 घंटा लग जाता है. लेकिन अगर इंस्टैंट उपमा मिक्स हो या मशीन से डोसा मिल जाए तो यही काम 10-15 मिनट में हो सकता है. ऊर्जा की बचत: रसोई का काम सिर्फ समय नहीं बल्कि शरीर की भी कड़ी मेहनत मांगता है. गरमी में चूल्हे के सामने खड़ा रहना, सब्जियां काटना, बरतन धोना ये सब बहुत थकाने वाले काम हैं. खासतौर पर बुजुर्ग महिलाएं या स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां झेल रहीं महिलाएं इन कामों से बहुत परेशान रहती हैं. ऐसे में अगर उन्हें झटपट खाना मिल जाए तो उन का शरीर भी आराम कर सकता है और मानसिक तनाव भी कम होता है. साफसफाई और स्वच्छता: आज के समय में लोग खाने की सफाई और हाइजीन को ले कर बहुत जागरूक हो गए हैं. वैंडिंग मशीनें पूरी तरह से सील्ड और औटोमैटिक होती हैं.

खाना किसी इंसान के हाथ से नहीं छूता और हर प्रक्रिया मशीन के अंदर होती है. कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि इंस्टैंट फूड या मशीन वाला खाना घर के ताजे खाने जैसा नहीं होता. यह बात कुछ हद तक सही भी है लेकिन अब तकनीक इतनी आगे बढ़ गई है कि मशीनों से निकला खाना भी घर जैसा स्वाद देने लगा है. साथ ही अब कंपनियां देसी खाने को भी मशीन में डालने लगी हैं जैसे छोलेकुलचे, राजमाचावल, खिचड़ी आदि. इस के अलावा आजकल बाजार में हैल्दी इंस्टैंट फूड भी आने लगे हैं जैसे मल्टीग्रेन डोसा, बाजरा उपमा, ओट्स इडली आदि. इंस्टैंट फूड का बाजार अब भारत में भी फैलता जा रहा है.

इन में एमटीआर फूड्स, टाटा संपन्न, हल्दीराम, आईटीसी किचन और बिकानो समेत कई ऐसे ब्रैंड्स हैं जो आएदिन नईनई फूड आइटम्स को एड करते हैं और लोग बड़े चाव से इन्हें खरीदते और खाते हैं. स्मार्ट जीवनशैली हालांकि अभी भी वैंडिंग मशीनें हर शहर या गांव में उपलब्ध नहीं हैं. यह सुविधा अभी शहरों तक ही सीमित है. इस के अलावा मशीन की लागत भी ज्यादा है, इसलिए हर कोई इसे खरीद नहीं सकता. कुछ मशीनें अगर खराब हो जाएं तो उन्हें ठीक कराने में समय और पैसा दोनों लगते हैं. फिर भी धीरेधीरे ये चीजें सुलभ होती जा रही हैं और आने वाले 5-10 सालों में ये आम घरों का हिस्सा बन सकती हैं. किचन में मशीनें लगाना या इंस्टैंट फूड खाना कोई शर्म की बात नहीं बल्कि यह एक समझदारी और स्मार्ट जीवनशैली की पहचान बन चुका है.

वैंडिंग मशीन और इंस्टैंट फूड ने औरतों को एक हद तक किचन से फ्री कर दिया है. अब वे चाहें तो अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती हैं, जौब पर ध्यान दे सकती हैं या सिर्फ अपने लिए थोड़ा वक्त निकाल सकती हैं बिना इस डर के कि गैस जल रही है या सब्जी जल गई. यह बदलाव धीरेधीरे ही सही लेकिन एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन लाने वाला है और इस परिवर्तन का सब से बड़ा फायदा मिल रहा है घर की महिलाओं को.

Instant Food

Financial Planning: विवाह करने वाले जोड़ों के लिए वित्तीय चेकलिस्ट

Financial Planning: शादी सिर्फ़ भावनात्मक साझेदारी ही नहीं है—यह एक वित्तीय साझेदारी भी है. इससे पहले, कपल्स को अपने वित्तीय मामलों पर ईमानदारी से बातचीत करनी चाहिए. शादी से पहले एक वित्तीय चेकलिस्ट तैयार करने से कपल का आपसी विश्वास मजबूत होता है, इसके साथ ही दोनों के बीच  लंबे समय तक फाइनेंस  को लेकर सुरक्षित महसूस करते हैं. यह उनके रिश्ते की नींव को और भी मजबूत बनाता है.

बचत और बजट से लेकर बीमा और सेवानिवृत्ति योजना तक, वित्तीय आदतों और लक्ष्यों पर खुली चर्चा यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि दोनों साथी एकमत हों. वैवाहिक जीवन की शुरुआत एक मज़बूत वित्तीय बुनियाद  तैयार करने में यह वास्तविक वित्तीय चेकलिस्ट कपल की मदद करेगा.

शादी से पहले जोड़ों के लिए वित्तीय चेकलिस्ट

सफल विवाह,  प्रभावी वित्तीय टीमवर्क पर आधारित होते हैं. इस चेकलिस्ट पर एक नजर डालें और सुनिश्चित करें कि आप अपने जीवन का नया अध्याय शुरू करने से पहले हर सुझाव को फॉलो करेंगे –

  1. ईमानदारी से पैसे के बारे में बातचीत शुरू करे

शादी से पहले, पैसों के बारे में खुलकर बात करें. ईमानदारी विश्वास का आधार है; दोनों साथियों को अपनी आय, संपत्ति, कर्ज और खर्च करने की आदतों के बारे में सच बोलना चाहिए. क्रेडिट कार्ड ऋण, छात्र ऋण और किसी भी मौजूदा वित्तीय प्रतिबद्धताओं पर चर्चा करें.

एक-दूसरे के आर्थिक दृष्टिकोण को समझने से यह समझने में मदद मिलती है कि कहां टकराव हो सकता है. वित्तीय ईमानदारी नवविवाहित जोड़ों के लिए सफल वित्तीय योजना की कुंजी है. यह विवाह की शुरुआत में ही दोनों पति-पत्नी को एक जानकार टीम के सदस्य के रूप में समान स्तर पर रखती है.

  1. अपना संयुक्त वित्तीय ढांचा तैयार करें

पूरी पारदर्शिता के साथ, अपने संयुक्त वित्तीय ढांचे का निर्माण शुरू करें. एक साझा बजट बनाएं जिसमें आय, बचत, निश्चित लागत और विवेकाधीन खर्च शामिल हों. संयुक्त या व्यक्तिगत बैंक खाते—या दोनों पर सहमति बनाएँ.

पूरी पारदर्शिता के साथ, अपना संयुक्त वित्तीय ढांचा बनाना शुरू करें. एक एकीकृत बजट बनाएं जिसमें आय, बचत, निश्चित लागत और विवेकाधीन खर्च शामिल हों. संयुक्त या व्यक्तिगत बैंक खातों पर—या दोनों पर—आपसी सहमति बनाएं.

जोड़ों को बिलों के भुगतान और वित्तीय निर्णयों पर भी सहमत होना चाहिए. अगर किसी भी साथी को पिछली शादी से संपत्ति या वित्तीय दायित्व विरासत में मिले हैं, तो किसी वित्तीय योजनाकार से सलाह लेना बुद्धिमानी होगी. इससे आप दोनों को अपने धन संबंधी व्यवहार में सामंजस्य बिठाने और समझदारी भरी उम्मीदें रखने में मदद मिलेगी.

  1. नई देनदारियां जोड़ने से पहले देनदारियों का प्रबंधन करें

अगर तुरंत समाधान न किया जाए, तो किसी भी तरह का कर्ज़ नवविवाहित जोड़ों पर बहुत ज्यादा दबाव डाल सकता है. छात्र ऋण, व्यावसायिक या व्यक्तिगत ऋण सहित सभी मौजूदा ऋणों की समीक्षा करें और उनका लिस्ट तैयार करें. पहले अधिक ब्याज वाले ऋणों का भुगतान करने की योजना बनाएं और यह तय करें कि भविष्य के ऋण, जैसे कार ऋण या बंधक, का प्रबंधन कैसे किया जाएगा.

अपने क्रेडिट स्कोर के बारे में पारदर्शी रहें और उन्हें बेहतर बनाने के लिए काम करें, क्योंकि ये आपके वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण हैं. देनदारियों का समय पर प्रबंधन करने से आप कर्ज के बोझ तले दबे रहने के बजाय बचत और निवेश पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं.

  1. अपनी वित्तीय सुरक्षा को मजबूत करें

शादी से पहले और बाद में एक आपातकालीन निधि ज़रूरी है. एक तरल बचत खाते में तीन से छह महीने के जीवन-यापन के खर्च के बराबर बचत करने का लक्ष्य रखें. यह निधि नौकरी छूटने, बीमारी या अप्रत्याशित बिलों से सुरक्षा प्रदान करती है. इसके अलावा, एक ऐसा सुरक्षा जाल बनाएँ जो चिकित्सा, कार और जीवन बीमा के माध्यम से आपके जीवन के हर पहलू (आपके स्वास्थ्य, वाहन और परिवार) की रक्षा करे.

जीवन बीमा खरीदना, विशेष रूप से, आपके परिवार के भविष्य को सुरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह आपके जीवनसाथी और बच्चों को किसी अप्रत्याशित घटना की स्थिति में गंभीर वित्तीय संकट से बचाता है। यह वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है, ऋणों का निपटान करने में मदद करता है, जीवन-यापन के खर्चों को कवर करता है, और किसी भी चिकित्सा या अंतिम खर्च को कवर करता है।

  1. एक जोड़े के रूप में टैक्स की योजना बनाएं

विवाह आपकी टैक्स स्थिति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है. चर्चा करें कि संयुक्त आय आपके टैक्स दायरे को कैसे प्रभावित करती है और क्या संयुक्त रूप से या अलग-अलग दाखिल करना बेहतर है. एक टैक्स सलाहकार जोड़ों के लिए कटौतियों, रोके गए करों और क्रेडिट की संभावनाओं का पता लगाने में सहायता कर सकता है.

अपनी टैक्स रणनीति की शुरुआती समीक्षा करने से शादी के पहले साल में निराशाओं से बचने में मदद मिलती है और नई साझा वित्तीय ज़िम्मेदारियों का पालन सुनिश्चित होता है. उचित टैक्स नियोजन नवविवाहितों के लिए दीर्घकालिक वित्तीय योजना को बेहतर बनाता है और बचत को अधिकतम करता है.

  1. संयुक्त निवेश जल्दी शुरू करें

अपने भविष्य के लिए धन जुटाने हेतु एक जोड़े के रूप में जल्दी निवेश करें. अपने साथी से इस बारे में बात करें कि आप म्यूचुअल फंड या रियल एस्टेट जैसे अन्य निवेशों के साथ-साथ सेवानिवृत्ति खातों में कितना योगदान देंगे. संयुक्त निवेश आपको दीर्घकालिक वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं—जैसे घर खरीदना, बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाना, या समय से पहले सेवानिवृत्ति लेना.

अगर आप दोनों में से कोई आर्थिक रूप से ज़्यादा स्थिर है, तो निवेश के फ़ैसले साथ मिलकर लें ताकि दोनों को अच्छी जानकारी हो. जल्दी शुरुआत करें ताकि चक्रवृद्धि रिटर्न आपके पक्ष में काम करे और एक इकाई के रूप में आपको आर्थिक आज़ादी हासिल करने में मदद मिले.

  1. भविष्य के लक्ष्यों और जिम्मेदारियों पर चर्चा करें

शादी में न सिर्फ़ साझा सपने होते हैं, बल्कि साझा ज़िम्मेदारियाँ भी होती हैं. तय करें कि इन्हें अपनी दीर्घकालिक वित्तीय योजना में कैसे शामिल किया जाए. जैसे-जैसे शादी आगे बढ़ती है और वित्तीय प्राथमिकताएँ बदलती हैं, यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि दोनों पार्टनर अच्छी तरह से सुरक्षित रहें.

जोड़े भविष्य में स्थिर आय सुनिश्चित करने के लिए गारंटीड रिटर्न बीमा योजना पर विचार कर सकते हैं. बाजार की स्थितियों के साथ उतार-चढ़ाव वाले अन्य निवेश विकल्पों के विपरीत, यह योजना एक स्थिर आय स्रोत प्रदान करती है, जो कम जोखिम वाले व्यावसायिक जोड़ों को आकर्षित करती है.

इसके अलावा, जोड़ों को वसीयत, लाभार्थियों और पावर ऑफ अटॉर्नी सहित संपत्ति नियोजन पर चर्चा करनी चाहिए. भविष्य की आकांक्षाओं के बारे में एकमत होने से यह सुनिश्चित होता है कि आपका विवाह धारणाओं के बजाय आपसी समझ पर आधारित हो.

  1. वित्तीय समीक्षा करें और खुला संचार बनाए रखें

वित्तीय स्थिति और अपेक्षाएँ समय के साथ बदलती रहती हैं, इसलिए समय-समय पर जाँच ज़रूरी है. प्रगति की समीक्षा करने, अपने बजट को दुरुस्त करने और लक्ष्यों का आकलन करने के लिए, मासिक या हर कुछ महीनों में, कुछ निश्चित तिथियाँ निर्धारित करें. शादी के बाद, सभी खातों, लाभार्थियों और पतों की समीक्षा करें.

जैसे-जैसे साझेदारी बढ़ती है, अपनी बीमा ज़रूरतों, निवेश रणनीतियों और सेवानिवृत्ति योजनाओं की समीक्षा करें. पारदर्शिता बनाए रखने से ग़लतफ़हमियाँ दूर रहती हैं और आपका रिश्ता आर्थिक रूप से मज़बूत रहता है. बातचीत को खुला और ईमानदार रखने से आपको एकजुट रहने और आर्थिक रूप से साथ-साथ आगे बढ़ने में मदद मिलती है.

एक जोड़े के रूप में वित्तीय संतुलन हासिल करना अपने आप नहीं होता—यह खुलेपन, सहयोग और सोची-समझी योजना से बनता है. जोड़ों के लिए इन वित्तीय लक्ष्यों का पालन करके, आप एक स्वस्थ वित्तीय साझेदारी की नींव रखेंगे.

अपने लक्ष्यों पर पुनर्विचार करते रहें, अपनी योजनाओं में बदलाव करते रहें और एक-दूसरे की आकांक्षाओं का समर्थन करते रहें. नवविवाहितों के लिए स्मार्ट वित्तीय योजना आपके वित्तीय भविष्य को मज़बूत बनाती है और साथ ही एक मज़बूत, अधिक मज़बूत रिश्ते के लिए आपसी विश्वास का निर्माण करती है.

Financial Planning

Motivational Story: तुम डरना मत राहुल- पिता ने बेटे को सिखाया सही रास्ता

Motivational Story: सारा ने कालेज जाने के लिए तैयार अपने बेटे राहुल को प्यारभरी नजरों से निहारते हुए कहा, ‘‘नर्वस क्यों हो बेटा. मेहनत तो की है न, एग्जाम अच्छा होगा, डोंट वरी.’’ राहुल ने मां से मायूसी से कहा, ‘‘पता नहीं मां, देखते हैं.’’

औफिस के लिए निकलते जय ने राहुल से कहा, ‘‘आओ बेटा, आज मैं तुम्हें कालेज छोड़ देता हूं.’’ ‘‘नहीं पापा, रहने दीजिए, मुझे अजय को भी उस के घर से लेना है, उस की स्कूटी खराब है, मैं अपनी स्कूटी ले जाऊंगा तो आने में भी हमें आसानी रहेगी.’’

‘‘ठीक है, औल द बैस्ट,’’ कह कर जय औफिस के लिए निकल गए. सारा ने भी स्नेहपूर्वक बेटे को विदा किया और उस के बाद वह घरेलू कामों में लग गई. वह घर के काम तो कर रही थी पर उस का मन राहुल में अटका था. सारा और जय के अंतर्जातीय प्रेमविवाह को 25 साल हो गए थे. दोनों के बीच न तो धर्म कभी मुद्दा बना, न ही दोनों ने कभी लोगों की परवा की. दोनों का मानना था कि प्रेम से अनजान लोग इंसान के दिलोदिमाग को धर्म के बंधन में बांधते रहते हैं. धर्म को एक किनारे रख दोनों ने कोर्टमैरिज कर वैवाहिक जीवन की मजबूत नींव रख ली थी. लेकिन 21 वर्षीय राहुल कुछ समय से धर्म के बारे में भ्रमित था, उस के सवाल कुछ ऐसे होते थे, ‘मां, कौन सी सुप्रीम पावर सच है? हर धर्म अपने को बड़ा मानता है, पर वास्तव में बड़ा कौन सा है?’

सारा और जय अभी तक तो हलकेफुलके ढंग उसे जवाब दे देते थे लेकिन अब सारा को बात कुछ गंभीर लग रही थी, राहुल इस विषय पर बहुत सोचने लगा था. धर्म से जुड़ी हर बात पर उस का एक तर्क होता था. न कभी सारा ने इसलाम धर्म की बात की थी और न ही जय ने कभी वेदपुराण व पंडितों की. दोनों, बस, जीवन की राह पर एकदूसरे के साथ प्यार से आगे बढ़ रहे थे. जय उच्च पद पर कार्यरत था जबकि सारा एक अच्छी हाउसवाइफ थी.

राहुल के बारे में यों ही सोचतेसोचते सारा का पूरा दिन निकल गया और राहुल शाम को परीक्षा दे कर घर भी आ गया. वह खुश था, उस का एग्जाम बहुत अच्छा हुआ था. दोनों मांबेटे ने साथ खाना खाया और राहुल फिर सारा के पास ही लेट गया. राहुल को गंभीर देख सारा ने पूछा, ‘‘क्या सोच रहे हो बेटे?’’ ‘‘वही सब मां.’’

सारा सचेत हुई, ‘‘क्या?’’ ‘‘बस, यही कि मैं जब अजय को लेने गया तो वह पूजा कर रहा था. उस की मम्मी ने उसे तिलक लगाया, उस का मीठा मुंह करवाया और उसे शुभकामनाएं दीं. लेकिन इतना कुछ करने के बाद भी अजय के अधिकांश सवाल तो छूट ही गए और काफी कुछ उसे आया भी नहीं. वह काफी उदास था, कह रहा था कि इतना पूजापाठ किया, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. पर आप ने तो यह सब नहीं किया, फिर भी मेरा एग्जाम अच्छा हुआ. मां, आखिर उस का इतना पूजापाठ करने का क्या फायदा हुआ. क्यों नहीं सुनी गई उस की. वैसे, मैं मन ही मन काफी डरा हुआ था, हमेशा की तरह आप मुझे ऐसे ही भेज रही थीं पर मेरा एग्जाम बहुत अच्छा हुआ, मां.’’

सारा आज बेटे के मन की सारी दुविधा दूर करने के लिए तैयार थी, ‘‘वह इसलिए बेटा, तुम ने बहुत मेहनत की और सफलता हमेशा मेहनत से ही मिलती है, इन सब ढोंगों

से नहीं.’’ ‘‘पर मां, हम लोग तो कभी कोई पूजापाठ नहीं करते, मेरे अन्य दोस्तों के यहां तो अलग ही माहौल होता है. आरिफ तो रातरात भर जाग कर इबादत करता है और कैरेन हर संडे चर्च जरूर जाती है चाहे कुछ हो जाए. अजय का हाल तो मैं ने अभी आप को बता ही दिया है. मां, आप को डर नहीं लगता कि हम लोगों के साथ कुछ बुरा न हो जाए? कहीं जो एक सुप्रीम पावर है, वह हम से नाराज न हो जाए.’’

‘‘कौन सी सुप्रीम पावर की बात कर रहे हो बेटा? यह सब, बस, धर्म का डर है जो पीढि़यों से हमारे परिवार वाले हमारे अंदर बिठाते चले गए. राहुल, यह हमारे अंदर बैठा धर्म का बस एक डर है जो हमें इन अंधविश्वासों को मानने के लिए मजबूर करता है. तुम कभी डरना मत. बस, सचाई और मेहनत से आगे बढ़ते चलो.’’ ‘‘पर मां, धर्म भी तो सच बोलने के लिए कहता है.’’

‘‘सचाई धर्म की नहीं, समाज की मांग है कि हम सच बोलें, अच्छे रास्ते पर चलें. बस, हमारा यही कर्तव्य है. धर्म के नाम पर नहीं, बल्कि समाज की बेहतरी के लिए सचाई, मेहनत और ईमानदारी के रास्ते पर चलना है?’’ ‘‘पर मां, डर नहीं लगता कि हमारे साथ कुछ बुरा न हो जाए, हमारे सामने कोई परेशानी आएगी तो फिर हम किस से मदद मांगेंगे, कौन सुनेगा हमारी?’’

‘‘कोई परेशानी आएगी तो हिम्मत रख कर उस का सामना कर लेना. जो लोग धार्मिक अंधविश्वासों में अपना समय बरबाद कर रहे हैं, क्या उन के साथ कुछ बुरा नहीं होता? उन्हें कभी कोई दुख नहीं होता? धर्म इंसान को कायर, डरपोक बना रहा है, उसे आगे बढ़ने के बजाय पीछे ढकेलता है. ‘‘तुम्हें याद है न, 5 साल पहले तुम्हारे पापा की तबीयत बहुत खराब हो गई थी. उन्हें हमें अस्पताल में ऐडमिट करना पड़ा था. मैं तो कहीं पूजा करने नहीं भागी. यही सोचा था कि जय शहर के एक अच्छे अस्पताल में भरती हैं और अच्छे डाक्टर्स उन का इलाज कर रहे हैं, वे जल्दी ठीक हो जाएंगे. और ठीक हुए भी. उस समय उन को अच्छे इलाज की ही जरूरत थी और वह उन्हें मिला तो जय कितनी जल्दी ठीक हो गए थे, याद है न तुम्हें राहुल?’’

‘‘हां मां, आप की फ्रैंड्स घर आ कर कहती थीं कि आप के ग्रह खराब हैं, आप को कुछ पूजा वगैरह करवानी चाहिए, लेकिन तब आप कितने आराम से कहती थीं, सब ठीक हो जाएगा, तुम लोग परेशान न हो.’’ और राहुल हंस पड़ा तो सारा भी मुसकरा दी. राहुल आगे बोला, ‘‘पता है मां, मेरे सारे दोस्त मुझ से पूछते रहते हैं कि तुम लोग किस धर्म को मानते हो, लेकिन मैं उन्हें हंस कर टाल देता हूं, बता ही नहीं पाता किसी धर्म के बारे में.’’

‘‘बेटा, बता देना अपने दोस्तों को कि हम लोग आधुनिक विचारधारा वाले हैं. हमारा एक ही धर्म है इंसानियत का. कर्म करते रहने का. मेरे मातापिता व्यावहारिक हैं और बिना किसी धर्म को माने भी हमें जीवन में सबकुछ मिल रहा है. हमारे जीवन में भी वही सुखदुख लगे रहते हैं जो आप लोगों के जीवन में आते हैं. उन्हें बता देना कि हम ने ऐसा कुछ नहीं खोया है जोकि किसी धर्म के अंधविश्वासों के बंधन में बंध कर उन्हें मिल गया या हमारा कोई भारी नुकसान हो गया.’’ सारा ने अब हंसते हुए राहुल से कहा, ‘‘उन के बच्चे धर्म के विश्वास का सहारा ले कर भी फेल होते हैं और तुम ने इन बेकार बातों पर आंख मूंद कर विश्वास किए बिना पिछले साल कालेज में टौप किया है. तुम्हें पता ही है, हमारे सारे रिश्तेदार भी हमें नास्तिक, बेकार कह कर ताने मारते हैं, पर हमारे किसी भी सवाल का जवाब उन के पास नहीं होता.’’

राहुल ने हंसते हुए मां के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘पर मेरी मां के पास हर सवाल का जवाब है. आई प्रौमिस, मां, मेरे मन में अब कोई डर नहीं रहेगा.’’

‘‘वैरी गुड, दैट्स लाइक आवर सन.’’ राहुल का मन हलका हो गया था. वह अगले एग्जाम की तैयारी के बारे में सोचने लगा था. सारा खुश थी कि उस ने अपने बेटे को वही सीधा, उचित रास्ता दिखाया है जिस पर वह और जय 25 सालोें से चल रहे हैं. अब उन का बेटा भी बिना किसी दुविधा के, बिना किसी शंका के उस रास्ते पर उन के साथ था, यह उन के लिए काफी खुशी की बात थी.

Motivational Story

Hindi Drama Story: समझौता ज़िन्दगी और मौत का

Hindi Drama Story: बात सन 1920 की है. कार्तिक का महीना था. गुलाबी सर्दी पड़ने लगी थी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसे छोटे से गांव गिराहू में, सभी किसान  दोपहर बाद खेतों से थके-हारे लौटे थे. बुवाई का समय निकला जा रहा था, सभी व्यस्त थे. पर सब लोग पंचों की पुकार पर पंचायत के दफ्तर में इकट्ठे हो गए थे. बस पंचों के आने का बेसब्री से इंतज़ार हो रहा था.

एक ओर  गाँव की औरतें होने वाली दुल्हन निम्मो को जबरन  पंचायत के दफ्तर में ले आयी थी और दूसरी तरफ कुछ आदमी होने वाले दूल्हे रामबिलास का हाथ  पकड़कर बाहर पेड़ के नीचे खड़े थे.  वह भी इस शादी के नाम पर हिचकिचा रहा था.

सारे गाँव वाले इस शादी के पक्ष में थे पर वर और वधू, दोनों ही इस शादी के लिए तैयार न थे. आखिरकार मामला पंचायत में पहुंचा दिया गया था. पंचायत का फैसला तो  सबको मानना ही पड़ेगा. बस पंचों के आने का इंतज़ार था पर पंच अभी तकआये नहीं थे.

अंदर के कमरे में बैठी निम्मो शादी के लिए तैयार ही नहीं हो रही थी.

“मुझे ये शादी नहीं करनी है,” कहते हुए निम्मो ने एक बार फिर हाथ छुड़ाने का असफल प्रयास किया तो पड़ोस की बुज़ुर्ग काकी बोली, “चुपकर, मरी. शादी नहीं करेगी तो भरी जवानी में कहाँ जायेगी?”

सभी उपस्थित औरतों ने काकी की बात से सहमति में सिर हिलाया.

“हाँ तो और क्या? मरद के सहारे के बगैर भी भला औरत को कोई पूछे है क्या?” दूसरी पड़ोसन बोली.

“काहे का सहारा देगा मुझे? अपनी सुध तो है नहीं उसे. अरे बच्चा है वो तो?” निम्मो ने खीजकर  पलटवार किया.

काकी ने एकबार फिर  ज्ञान बघारा, “कैसा बच्चा? अरे मरद तो है ना घर में ? मिटटी का ही हो, मरद तो मरद ही होता है. और क्या चाहिए औरत को?”

बाहर कुछ सरगर्मी हुई.  शायद पंच आ गए थे.  पंचायत बैठी तो फैसला सुनाने में दो मिनट भी न लगे. रामबिलास, अपने भाई हरबिलास की विधवा निम्मो को चूड़ी पहनायेगा और आज से वो मियां-बीवी कहलायेंगे. निम्मो ने आवाज़ उठाने की कोशिश की तो सबने उसे चुप करा दिया.

उधर सरपंच ने ऊंची आवाज़ में कहा, “अरे ओ रामबिलास! कहाँ  मर गया रे. चल, जल्दी कर. ये लाल चूड़ियाँ डाल दे अपनी भाभी  के हाथ में. चल आज से ये तेरी जोरू हुई. ख़याल रखना इसका और इसके लड़के का. वो भी आज से तेरा लड़का ही हुआ. ”

“चलो अच्छा ही  है. बिना शादी किये ही लड़का मिल गया,” किसी ने पीछे से चुटकी ली.

पंचायत के दो टूक फैसले से सहमा सा रामबिलास जब चूड़ियाँ लेकर निम्मो के पास पहुंचा तो निम्मो ने अपने हाथ पीछे खींच लिए. पर गाँव की औरतें कहाँ मानने वाली थी? साथ बैठी औरतों ने उसके हाथ ज़बरन पकडे और रामबिलास से उनमें लाल कांच की चूड़ियाँ डलवा दीं. कहीं से कोई एक चुटकी सिन्दूर भी ले आई और रामबिलास से निम्मो की मांग में डलवा दिया. निम्मो की नम आँखों को किसी ने नहीं देखा या शायद देखा तो अनदेखा कर दिया.  पास बैठी औरतों में से एक ढोलक उठा लाई और सबने शादी के गीत गाने शुरू कर दिये.

और इस तरह रामबिलास की शादी अपने बड़े भाई हरबिलास की विधवा निम्मो से हो गयी.

इसी तरह बन्ने-बन्नी गाते-गाते रात हो गयी और गांव की औरतें निम्मो को उसकी कोठरी में धकेल कर बाहर निकल गयीं. पड़ोस की काकी ने बाहर से आवाज़ दी, “अरी निम्मो, तेरा बेटा हरिया आज हमारे घर में रहेगा. फ़िक्र न करना.”

निम्मो का दिमाग तो बिलकुल सुन्न हो गया था. उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. कुछ देर सोचती रही, फिर थककर बिस्तर पर बैठी ही थी कि कोई रामबिलास को भी कमरे में धकेल गया और बाहर से कुंडी लगा दी. सहमासकुचाया सा रामबिलास कोठरी में आकर दो मिनट तो खड़ा रहा.  फिर जैसे ही लालटेन की बत्ती बुझाने बढ़ा, निम्मो ने खिन्न मन से कहा, “देवर जीये बत्ती-वत्ती बाद में बुझाना. यह दरी ले लोऔर उधर ज़मीन पर सो जाओ.”

रामबिलास ने चुपके से दरी उठाई और कोठरी के एक कोने में बिछाली. वह सुबह से परेशान था और थका हुआ था.  थोड़ी ही देर में उसके खुर्राटों की आवाज़ कोठरी में गूंजने लगी. पर निम्मो की आँखों में नींद कहाँ थी? यह वही कोठरी थी जहाँ उसके पति की मृत्यु  हुई थी.  वही चारपाई थी और वही लालटेन थी.

उसके पति को मरे अभी एक साल भी नहीं गुज़रा था और देवर से चूड़ी पहनवाकर जबरन उसकी शादी करवा दी गयी थी. ये पंच भी  कैसे पत्थर दिल हैं . इनके दिल में कोई भावनाएं नहीं हैं क्या? क्या कोई अपनों को इतनी जल्दी भुला देता है? क्या पति-पत्नी का रिश्ता सिर्फ जिस्मानी रिश्ता है? निम्मो  का  दिमाग पूर्णतः अशांत था. उसके दिमाग में पिछले सालभर की घटनाये फिल्म की तरह घूम रही थी.

****

करीब एक साल पहले की ही तो बात थी.  पूस का महीना था. कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी.  हवा के थपेड़े तो इतने तेज़ कि मानो झोंपड़ी पर पड़े छप्पर को ही उड़ाकर ले जायेंगे. टूटी हुई खिड़की पर ठंडी हवा को रोकने के लिए लगाया हुआ गत्ता  हिल-हिल कर मानो हवा को अंदर आने का बुलावा दे रहा था. कोठरी के अंदर दीवार के कोने पर लटकी हुई लालटेन की लौ लगातार भभक रही थी.  संभवतःउसमे तेल शीघ्र ही समाप्त होने वाला था.

कोने में एक टूटी सी चारपाई पर हरबिलास लेटा हुआ था. उसका बदन तीव्र ज्वर से तप रहा था. पुरानी मैली सी रज़ाई में उंकडूं होकर किसी तरह वहअपनी ठण्ड मिटाने का असफल प्रयास कर रहा था. पर उसका शरीर की कंपकंपाहट थी कि ख़त्म होने को नहीं आ रही थी. पास ही एक पीढ़े पर वह बैठी थी. तीन  वर्ष का हरिया उस की गोद में सो रहा था. चिंता के मारे उसका सुन्दर चेहरा स्याह पड़ गया था. पति के माथे पर ठन्डे पानी की पट्टी रख-रखकर उसके हाथ भी ठण्ड से सफ़ेद हो गए थे.  पर बुखार था कि उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था.पति के होठ कुछ बुदबुदाये तो उसने आगे झुककर सुनने की कोशिश की.

“राम बिलास कहाँ है?” वो पूछ रहा था.

“उसे भी तेज़ बुखार है. वो दूसरी कोठरी में लेटा है.” उसने धीरे से जवाब दिया था.

“निम्मो, कितने लोग और चल बसे?” हरबिलास की आवाज़ कमज़ोरी और डर के मारे और भी मंद  हो गयी  थी.

“आप फिकर नहीं करोजी, कोई  नहीं गया है. सब ठीक हो रहे हैं,” उसने अपने स्वर को संभालकर झूठ बोला था.
“मुझे नहीं लगता मैं ठीक हो पाऊँगा.  यह महामारी तो कितने प्राण ले चुकी है.  लगता है इसका कोई इलाज भी नहीं हैं,”  उसने फिर कहा था.

“नहीं नहीं.  रामू काका कह रहे थे कल सरकारी अस्पताल का डाक्टर गॉंव में आएगा,” उसने पति को उम्मीद दिलाने की कोशिश की थी.

“अरे डाक्टर ही क्या कर लेगा.  इस प्लेग का तो कहते हैं कोई इलाज ही नहीं हैं. मैंने सुना था बड़े-बड़े अँगरेज़ भी मर गए हैं इससे. फिर हम गरीबों का क्या?”

पास रखी अंगीठी की आंच तेजी से कम होती जा रही थी और लाल अंगारों पर राख की मोटी परतें जमने लगी थी. क्या यह मात्र संयोग था या फिर आने वाले काल का संकेत? तभी पास के मकान से ह्रदय-विदारक विलाप की चीखें सुनाई पड़ी.

“लगता है बाबूलाल भी गया. मुझे लगता है अब मेरी बारी है,” हरबिलास की आवाज़ कांप रही थी.

“शुभ- शुभ बोलो. तुम कहीं नहीं जाओगे मुझे और हरिया को छोड़के,” उसने प्यार भरी झिड़की दी थी.

“ना निम्मो. लगता है मेरा टाइम आ गया है. हरिया और रमिया का ख्याल …” कहते-कहते उसकी सांसें उखडने लगी थी.

घर्र …घर्र …घर्र ………… और फिर उसका सिर एक और लुढ़क गया था.

उसको कुछ समझ नहीं आया था.  वह पथराई आँखों से  कुछ क्षण उसे देखती रही.  फिर जोर से आवाज़ दी, “रमिया, जल्दी आ.  देख तो तेरे भाई को क्या हो गया,” कहते हुए उसने हरिया को गोद से धक्का दिया और अपने पति की छाती को झकझोरने लगी थी.

“क्या हुआ भैया को?” कहते हुए जब रामबिलास कोठरी में घुसा तो उसका चेहरा भी तेज़ बुखार से तप रहा था और आँखें गुडहल के फूल की तरह लाल थी. एक मिनट तो उसने भाई की नब्ज़ देखने की कोशिश की पर वो यह सदमा न सह पाया और बेहोश  होकर ज़मीन पर गिर पड़ा था .

यह घटना सन  1919 की थी. सारे देश में प्लेग की महामारी फैली हुई थी. गिराहू गाँव भी इससे अछूता न था. मौत का तांडव हर रोज़ आठ दस लोगों की बलि ले रहा था. बस एक यही घर बचा हुआ था जिसमे भी आज यमराज के पाँव पड़ गए थे. घर का इकलौता कमाऊ आदमी आज मौत के घाट उतर गया  था.

राम बिलास को होश आ गया था और अब  वह ज़मीन पर बैठा हुआ, रीती आँखों से फर्श की ओर घूर रहा था. आठ साल की उम्र में माँ-बाप दोनों भगवान को प्यारे हो गए थे. तब से आज तक बड़े भैया ने ही उसे बच्चे की तरह संभाला था.  पिछले तेरह साल कैसे निकल गये, उसे पता ही नहीं चला था.  बड़े  भैया ने उसे हर तकलीफ से दूर रखा था. उनके बगैर पता नहीं वह ज़िन्दगी कैसे जियेगा?

वह थोड़ी देर तो गुमसुम बैठी देखती रही, फिर दहाड़ें मारकर रोने लगी थी. उसे पता भी न चला की रामबिलास  कोठरी से कब बाहर निकल गया. कुछ देर बाद जब भोले-भाले हरिया ने उसका हाथ खींचना शुरू किया तो उसे होश आया. आसपास देखा तो रामबिलास कहीं न दिखा.  उसने मन पक्का किया और देवर को देखने बाहर निकली. उसका कहीं नामो-निशान  भी नहीं था. कहाँ चला गया? अभी-अभी तो यहीं था.

घनी काली रात थी और बर्फीली हवाएं अभी भी चल रही थी.  कहाँ जाए, किसको बुलाए? पास के घर में तो अभी कुछ मिनट पहले  ही बाबूलाल की मौत हो चुकी थी. वहां से रोने की आवाज़ें अभी भी आ रही थीं.  हरिया को कमर पर उठाये वह दरवाज़े पर खड़ी ही थी की अचानक चन्दन  काका दिख गये जो शायद बाबूलाल के घर जा रहे थे.

“काका,” उसने सिर पर पल्लू लिया और सिसकना शुरू कर दिया.

“क्या हुआ हरबिलास की बहू?” चन्दन काका की आवाज़ में चिंता थी.

“हरिया के बापू … …भी चले गये.” किसी तरह उसके मुंह से निकला था. उसकी सिसकियाँ  किसी तरह  भी रुक नहीं  रही थी.

“हे राम.हे राम.  रमिया कहाँ है?”

“पतानहींकाका.  अभीतोयहींथा.”

राम बिलास कहीं न दिखा तो चन्दन काका पड़ोस से कुछ और लोगों को ले आये थे और उसके पति के शव को चारपाई से उतारकर ज़मीन पर रख दिया था. गाँव के कुछ बड़े आकर वहां बैठ गए थे. वह लोग मरने वालों की गिनती कर रहे थे. इस रफ़्तार से तो पूरा गाँव ही ख़तम हो जायेगा. निम्मो उनकी बातें नहीं सुन रही थी. वह तो बस सूनी आँखों से ज़मीन को देख रही थी. यह व्यक्ति जो अभी तक उसका पति था, एक क्षण में लाश कहलाने लगा था. सुबह होते न होते उसे जला भी दिया जायेगा. यह कैसी रीत है? यह कैसी दुनिया है? निम्मो और उसका तीन साल का बच्चा हरिया, उनका क्या होगा? पर रमिया?  रमिया कहाँ है? वह तो अपने बड़े  भैया  के बिना रह भी नहीं सकता. उसे इतना बुखार भी है, पर वह है कहाँ? सोच सोचकर उसका दिमाग सुन्न  होने लगा था.

सुबह हुई और उसके पति का अंतिम संस्कार हो गया. साथ ही उसी रात प्लेग की चपेट में आये चार और लोगों का भी. औरतें श्मशान घाट नहीं जातीं है यह कहकर चन्दन काका बस अपने साथ तीन वर्ष के हरिया को लेगए थे.  उसने आपत्ति की तो चन्दन काका ने कहा था, “बाप के मुंह में अग्नि कौन देगा? यही तो देगा न!”

“लगता है किसी मरने वाले की  क्रिया या तेरहवीं भी नहीं हो पाएगी.  पंडित जी खुद भी प्लेग की चपेट में आ गए हैं.  शायद भगवान को यही मंज़ूर है.” श्मशान घाट से लौटने पर उन्होंने कहा था.

रामबिलास का कुछ पता ही नहीं चल रहा था. हफ्ते भर तक गाँव वाले उसे ढून्ढ-ढून्ढकर हार गये थे.  कहाँ चला गया? कोई शेर चीता उसे खा गया या कोई भूत-प्रेत उसे  उठाकर ले गया था ?

पंद्रह दिन कैसे कटे, यह तो अकेली निम्मो ही जानतीथी. कितनी अकेली हो गयी थी वह. दो हफ्ते बाद का वह दिन क्या वह भूल पायेगी? शाम का झुटपुटा हो चला था और घर में अँधेरा होता जा रहा था. कितने दिनों से घर में चूल्हा नहीं जला था. वह हरिया को गोद में सुलाने की कोशिश कर रही थी. अचानक पड़ोस का लड़का गूल्हा रामबिलास को हाथ से पकडे घर में घुसा, “लो भाभी, रमिया भैया आ गए.”

रामबिलास खड़ा-खड़ा सर झुकाए फर्श को घूर रहा था.

उसे देख वह अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाई थी और इतने दिन की सारी भड़ास उसपर निकाल दी थी, “अरे कहाँ मर गया था रे  तू ? मैं अकेली यहाँ परेशान हो रही हूँ. तुझे किसी की कोई फ़िकर-विकर है कि नहीं? सारी ज़िन्दगी निकम्मा ही रहेगा?”

कहते-कहते उस के आंसू बह निकले थे.शायद इतने दिनों का रुका  बांध टूट गया था.

गूल्हा पहले तो अकबकाकर कुछ क्षण उसे देखता रहा था, फिर बोला था, “अरे भाभी, इस बिचारे को ना डांट. ये तो पागल हो गया है. और तो और, इसकी तो ज़बान भी गयी. पहले ही  गऊ था, पर अब तो ….”

सुनकर वह सकते में आ गयी थी. अपना रोना-धोना छोड़कर बोली, “हाय राम! और इसका बुखार?  उतरा कि नहीं?”

भाग के उसने उसके मत्थे पर हाथ रखा और बोली, “चल बुखार तो ठीक हो गया. खाना-वाना खाया कि नहीं?  तेरा स्वेटर कहाँ गया रे? जा बिस्तर में लेट जा. मैं तेरे लिए चाय लाती हूँ.”

पिछले चार साल से उसने छोटे देवर को अपने बच्चे की तरह संभाला था. वही ममता आज फिर उमड़ आयी थी.

चाय बना के लौटी तो देखा हरिया चाचा की गोद में बैठा हुआ था.  रामबिलास  के आंसू बह रहे थे और हरिया उन्हें  पोंछ रहा था.

अगले छह महीनों में प्लेग की महामारी कुछ थम गयी थी औरज़िंदगी फिर से पुराने ढर्रे पर लौटने सी लगी थी. पर रामबिलास को न अपनी सुध थी और न ही वो बोल पा रहा था. बस जब हरिया उसके पास होता उसके चेहरे पर हल्की सी खुशी दिखती थी. जैसे जैसे परिस्थितियां सामान्य होने लगीं, निम्मो उसे लेकर इलाज कराने चली.  बेचारी कहाँ-कहाँ नहीं गयी थी और किस-किस वैद्य, हकीम और ओझाओं के चक्कर नहीं काटे थे. तब कहीं जाकर रामबिलास की जुबान वापिस आयी थी. पर एक उदासी सी उसके चेहरे पर हमेशा के लिए बस गयी थी जो जाने का नाम ही नहीं लेती थी. भाई की कमी उसे हर वक़्त खलती थी. हर वक़्त हँसने-हँसाने वाला रमिया अब गंभीर रामबिलास बन गया था. उसको पति के रूप में स्वीकारना तो किसी भी हालत में संभव नहीं होगा.  पर पंचायत के इकतरफा फैसले के बाद और चारा भी क्या है?

यूं ही सोचते-सोचते कब निम्मो की आँख लग गयी और कब सुबह हो गयी निम्मो को पता ही नहीं चला. आँख खुली तो दिन चढ़ आया था. खिड़की से सूरज की किरणे अंदर झाँक रहीं थी. दरवाज़ा खुला हुआ था और रामबिलास कमरे में नहीं था.

निम्मो धीरे से उठकर बाहर आयी तो देखा पड़ोसन हरिया को वापस छोड़ गयी थी. आँगन में रामबिलास दातुन कर रहा था.  साथ ही एक छोटी सी दातुन उसने हरिया को भी बनाकर दे दी थी.  दोनों मिलकर हंस रहे थे. दातुन हो गयी थी. अब रामबिलास हरिया को कुल्ला करना सिखा  रहा था. निम्मो खड़ी-खड़ी दोनों को देखती रही.  दोनों एकदूसरे के साथ कितने खुश लग रहे थे. दातुन कर के राम बिलास खड़ा हुआ तो हरिया मचल उठा, “काका गोदी .. काका गोदी …”

उसकी आवाज़  सुनकर निम्मो का ध्यान टूटा तो देखा हरिया अपने चाचा की पीठ पर  चढ़ने की कोशिश कर रहा था. रामबिलास ने दातुन ख़तम की और हरिया को गोद में उठा लिया.

” उठ गयी भाभी? अच्छा रोटी दे दे. खेत पर जा रहा हूँ. बुवाई का समय निकलता जा रहा  है, अभी खेती भी शुरू करनी है ना और हाँ, हरिया की रोटी भी बना देना. इसे भी साथ ले जा रहा हूँ.”

“हाँ, बस पांच मिनट में देती हूँ,” और  निम्मो जल्दी से आटा गून्दने लगी.

नाश्ता कर के रामबिलास हरिया को अपने कंधे पर बिठाकर खेत की ओर चल  पड़ा और निम्मो दरवाज़े पर खड़ी काफी देर तक दोनों को जाते हुए देखती रही. लगता था रामबिलास को अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास होने लगा था. कितनी आसानी से उसने घर का ज़िम्मा संभाल लिया था. अपने मृतक भाई की सारी ज़िम्मेदारियाँ, उसकीखेती, उसका बच्चा, उसकी बीबी,  सभीकुछ  मानो आज उसकी ज़िम्मेदारी बन गया था.

शायद ज़िंदगी को यही मंज़ूर था.

समय किसी के लिए नहीं रुकता और जीवन से समझौता करने में ही शायद सबकी भलाई है. उसे महसूस हुआ कि ज़िंदगी और मौत के बीच ज़िंदगी ही ज़्यादा बलवान है. दोनों के बीच आज शायद एक समझौता हो गया था .

Hindi Drama Story

Family Story: यही है मंजिल- सयुंक्त परिवार में क्या रह पाई नेहा

Family Story: कुछ पेचीदा काम में फंस गई थी नेहा. हो जाता है कभीकभी. जब से नौकरी में तरक्की हुई है तब से जिम्मेदारी के साथसाथ काम का बोझ भी बढ़ गया है. पहले की तरह 5 बजते ही हाथपैर झाड़, टेबल छोड़ उठना संभव नहीं होता. अब वेतन भी दोगुना हो गया है, काम तो करना ही पड़ेगा. इसलिए अब तो रोज ही शाम के 7 बज जाते हैं.

नवंबर के महीने में चारों ओर कोहरे की चादर बिछने लगती है और अंधेरा हो जाता है. इस से नेहा को अकेले घर जाने में थोड़ा डर सा लगने लगा था. आजकल रात के समय अकेली जवान लड़की के लिए दिल्ली की सड़कें बिलकुल भी सुरक्षित नहीं हैं, चाहे वह सुनसान इलाका हो या फिर भीड़भाड़ वाला, सभी एकजैसे हैं. इसलिए वह टैक्सी या औटोरिकशा लेने का साहस नहीं करती, बस ही पकड़ती है और बस उसे सोसाइटी के गेट पर ही छोड़ती है.

आज ताला खोल कर जब उस ने अपने फ्लैट में पैर रखा तब ठीक 8 बज रहे थे. फ्रैश हो कर एक कप चाय ले जब वह ड्राइंगरूम के सोफे पर बैठी तब साढ़े 8 बजे रहे थे.

आकाश में जाने कब बादल घिर आए थे. बिजली चमकने लगी थी. नेहा शंकित हुई. टीवी पर रात साढ़े 8 बजे के समाचार आ रहे थे. समाचार शुरू ही हुए थे कि एक के बाद एक दिलदहलाने वाली खबरों ने उसे अंदर तक हिला दिया.

पहली घटना में चोरों ने घर में अकेली रहने वाली एक 70 वर्षीय वृद्धा के फ्लैट में घुस कर लूटपाट करने के बाद उस की हत्या कर दी. दूसरी घटना में फ्लैट में रहने वाली अकेली युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई. तीसरी घटना में भी कुछ ऐसा ही किया गया था. छेड़छाड़ की घटना तूल पकड़ती कि इतने में लड़की का भाई आ गया, जिस से बदमाश भाग खड़े हुए. नेहा ने हड़बड़ा कर टीवी बंद कर दिया. आज 9 बजे का सीरियल देखने का भी उस का मन नहीं हुआ. तभी बादल गरजे और तेजी से बारिश शुरू हो गई. बारिश के साथ तेज हवा भी चल रही थी.

बचपन से ही आंधी से नेहा को बड़ा डर लगता है. जब भी आंधीतूफान आता था, वह मां से लिपट कर रोती थी. शादी के बाद 2 वर्षों तक पति दीपक के साथ ससुराल में रही. वैसे भी वह घर पूरी तरह कबाड़खाना है, उस घर में घुसेगा कौन? हर कदम पर कोई न कोई खड़ा मिलेगा. इतना बड़ा संयुक्त परिवार कि रोज 2 किलो आटे की रोटियां बनती हैं. महाराज भी रसोई संभालते परेशान हो जाते थे.

2 जेठ, उन के जवान 3-4 बेटाबेटी, जेठानियां, सास, विधवा बूआ, उन के 2 जवान बेटे और वे दोनों. बड़ी ननद का विवाह गांव में बहुत बड़े जमींदार परिवार में हुआ था. वे गाड़ी भरभर कर वहां से अनाज, घी, फल, सब्जी, खोया और सरसों का तेल भेजती रहती हैं. उन के दोनों बेटे कालेज में पढ़ते हैं, इसलिए वे नानी के पास ही रहते हैं.

उस घर में यदि भूल से भी कोई घुसा तो उस का उन लोगों के बीच से जीवित निकलना मुश्किल होगा. नेहा को संयुक्त परिवार में रहना बिलकुल भी पसंद नहीं था. विवाहित जीवन के नाम पर जो चित्र उस के मन में था वह था कि बस घर में वह और एक उसे चाहने वाला उस का पति हो. हां, आगे चल कर एकदो बच्चे, बस. पर मां को पता नहीं क्या सूझा.

पापा तो पहले ही गुजर गए थे. मां ने ही पाला था उस को. मां को पता था कि उसे संयुक्त परिवार पसंद नहीं, फिर भी इतने बड़े परिवार में उस की शादी कर दी. उस ने पूरी ताकत से इस का विरोध किया पर मां टस से मस नहीं हुईं. उन का बस एक ही तर्क था, ‘मैं आज हूं, कल नहीं.’ अकेले रहना खतरे से खाली नहीं, बड़े परिवार का मतलब बड़ी सुरक्षा भी है. नेहा के विरोध का कुछ फायदा नहीं हुआ. शादी हो गई, शादी के 3 महीने बाद ही मां चल बसीं. मां के फ्लैट में ताला लग गया. उस ने तब दीपक को फुसलाने की कोशिश की थी मां के फ्लैट में रहने के लिए, लेकिन दीपक ने दोटूक जवाब दिया था कि वह अपना घर छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा. वह जहां चाहे वहां रह सकती है.

नेहा गुस्से से पागल हो गई थी. इस परिवार में वही फालतू है क्या? इतना कमाती है, उस की तो बड़ी कद्र होनी चाहिए. पर नहीं, यहां तो सर्वेसर्वा सास हैं जो एक डंडे से सब को हांकती हैं. 3 भाइयों में दीपक सब से ज्यादा कमाता है. नेहा ठीक से नहीं जानती पर इतना जानती है कि मां के हाथ में वही सब से ज्यादा खर्चा देता है. कायदे से परिवार में उस के लिए खास व्यवस्था होनी चाहिए. पर नहीं, जो सब के लिए वही उस के लिए भी. बूआ तो एक तरह से आश्रित हैं बेटे के साथ, पर कौन कहेगा ये आश्रित हैं, उन के भी वही ठाटबाट जो सब के हैं.

इतना बड़ा परिवार नेहा को बिलकुल भी पसंद नहीं था पर मां के कहने पर कि ‘मेरा कोई भरोसा नहीं, पता नहीं कब चल दूं. तुझ में अक्ल नहीं. यह बड़ा परिवार है. जितना बड़ा परिवार उतनी बड़ी सुरक्षा.’ लेकिन उन का कुछ भी कहा नेहा को अच्छा नहीं लगता था. देखा जाए तो परिवार खुले विचारों का था, पुरानी परंपरा के साथसाथ आधुनिकता का भी तालमेल बना कर रखा जाता था.

अम्मा उस जमाने की ग्रेजुएट थीं लेकिन अब भी रोज समाचारपत्र पढ़तीं. हां, घर को बांध कर रखने के लिए कुछ नियम, बंधन, अनुशासन होता है, उन का पालन कठोरता से जरूर करना पड़ता है. उन की अनदेखी करने को माफ नहीं किया जा सकता. ऐसा ही कुछ अम्मा सोचती थीं. इसलिए नेहा अपनेआप को परिवार में फिट महसूस नहीं करती थी. उस का घर तो एकदम खुला था, एकल परिवार में भी उग्र, आधुनिक, एक अकेली संतान, सिरचढ़ी, जो मन में आता, करती. कभीकभी सहेली के साथ गपें मारतेमारते वहीं रुक जाती, घर पर एक फोन कर देती, बस.

अब नेहा की इन सब आदतों पर अंकुश लग गया था. औफिस में देर हुई तो भी जवाब दो. कहीं जाओ तो बता कर जाओ. शौपिंग करने जाओ तो कोई न कोई साथ लग जाता. परेशान हो उठी नेहा इस सब से. मां की मृत्यु के बाद उन का सजाधजा फ्लैट खाली पड़ा था, उस ने दीपक को फुसलाने की कोशिश की कि चलो, अपना घर अलग बसा लें, लेकिन वह तो टस से मस नहीं हुआ.

कुछ उपाय नहीं सूझा तो दोस्तों की सलाह पर नेहा ने घर में सब के साथ बुरा व्यवहार, कहासुनी करनी शुरू कर दी. परिवार के लोग थोड़ा विचलित तो हुए पर इस सब के बावजूद घर से अलग होने का रास्ता नहीं बना. तब एक दिन नेहा असभ्यों की तरह गंदी जबान से लड़ी. यह देख कर दीपक भी परेशान हो गया. दीपक खुद ही नेहा को उस की मां के फ्लैट में छोड़ आया. नेहा 2 महीने तक दीपक से बात करने का काफी प्रयास करती रही लेकिन उस ने फोन उठाना ही बंद कर दिया. नेहा के दोस्तों ने उसे तलाक के लिए उकसाया पर नेहा दीपक की तरफ से पहल की प्रतीक्षा करती रही. उस ने सोचा तलाक दीपक मांगे तो वह मोटी रकम वसूले. यह भी दोस्तों की सलाह थी.

टीवी औन किया. समाचार चल रहे थे. खबर थी कि एक फ्लैट में अकेली युवती पर हमला हो गया. यह सुन उस का दिल दहल गया. पर इस से भी भयानक समाचार था कि आज रात भयंकर तूफान के साथ मूसलाधार बारिश होने वाली है, सब को सावधान कर दिया गया था. नेहा ने बाहर झांका तो वास्तव में तेज हवा चल रही थी, आसमान में बिजली कौंध रही थी और घने बादल छाए हुए थे. ओह, यह मेरे लिए कितनी डरावनी रात होगी. कामवाली रात का खाना तैयार कर के रख गई थी. नेहा मेज पर आई और टिफिन खोल कर देखा तो पनीर व मखाने की सब्जी और परांठे रखे थे. लेकिन आज उस का खाने का मन नहीं हुआ. घड़ी देखी, 9 बज रहे थे. वहां ससुराल में इस समय सब लोग डिनर के लिए खाने की मेज पर आ गए होंगे. मेज क्या टेबल टैनिस का मैदान. इतने सारे लोग.

असल में दोपहर का खाना तो नाममात्र बनता था. सुबह सब अपनेअपने हिसाब से खा कर टाइम से निकल जाते. बड़ी जेठानी डाक्टर हैं. 8 बजे ही निकल जाती हैं. रात को ही सब लोग एकसाथ बैठ कर खाते, वही एक खुशी का समय होता. उस परिवार में फरमाइशी, मनपसंद खाना, छेड़छाड़, हंसीमजाक, कल रात के खाने की फरमाइश होती, यानी पूरा एकडेढ़ घंटा लगा देते खाना खाने में वे. और अच्छा व स्वादिष्ठ खाना तैयार करने में सास और बूआ दोनों पूरे दिन लगी रहतीं.

अचानक पूरा फ्लैट थरथरा उठा. बहुत पास ही कहीं बिजली गिरी. यह देख नेहा का तो दम ही निकल सा गया. यदि कोई खिड़की का शीशा तोड़ कर अंदर चला आया तो क्या होगा. उसे अपनी सहेली मधुरा की याद आई जो उसी के ब्लौक में छठी मंजिल पर रहती थी. साथ में उस की सास रहती है जिस से उस की बिलकुल भी नहीं बनती. दोनों में रोज झगड़ा होता है. आज नेहा काफी डर गई थी. पता नहीं क्यों उस का खून सूख रहा था. मन में न जाने कैसीकैसी बुरी घटनाएं उभर कर आ रही थीं.

झमाझम गरज के साथ बारिश हो रही थी. आखिरकार उस ने मधुरा को फोन किया.

‘‘नेहा, क्या बात है,’’ मधुरा ने कहा.

‘‘तू नीचे मेरे पास आजा मधुरा, मुझे आज बहुत डर लग रहा है. यहां सो जा आज,’’ नेहा बोली.

‘‘सौरी, आज तो मैं तेरे पास नहीं आ सकती. अगर ज्यादा परेशान है, तो तू ही ऊपर आ जा.’’

मधुरा से इस तरह के जवाब की आशा नहीं थी नेहा को, उसे यह जवाब सुन बड़ा धक्का लगा, ‘‘क्यों, क्यों नहीं आ सकती?’’

‘‘अरे यार, विनय चंडीगढ़ एक सैमिनार में गए हैं. मांजी को बुखार है. उन को छोड़ कर मैं कैसे आ सकती हूं.’’

गुस्सा आ गया नेहा को, कहां तो सास इसे फूटी आंख नहीं सुहाती,

रोज लड़ाई और आज उन को जरा बुखार क्या आया, छोड़ कर नहीं आएगी. ‘‘आज बड़ा दर्द आ रहा है सास पर,’’ नेहा थोड़ा तल्ख अंदाज में बोली.

‘‘नेहा, जबान संभाल कर बात कर. हम लड़ें या मरेकटें, लेकिन तेरी तरह रिश्ता तोड़ना नहीं सीखा हम ने. मुझे उन के पास रहना है देखभाल के लिए, बस.’’ उस ने फोन काट दिया.

फिर बिजली गिरी. अब तो नेहा कांपने लगी. हवा कम हो गई पर गरज के साथ बारिश और बिजली चमकी और वर्षा तेज हो गई.

एक मुसीबत और आ गई. अब बारबार बिजली जाने लगी. वैसे यहां सोसाइटी वालों ने जेनरेटर की व्यवस्था कर रखी है, पर आलसी गार्ड उसे चलाने में समय ले लेते हैं. उन्हीं 6-7 मिनटों में नेहा का दम निकल जाता है. नेहा 2 वर्षों से अकेली इस फ्लैट में रह रही है. ससुराल से उस ने एकदम नाता तोड़ लिया है. हजार कोशिशों के बाद भी वह दीपक को उस के परिवार से अलग कर अपने फ्लैट में नहीं ला पाई. ऐसे में उस परिवार पर उसे गुस्सा तो आएगा ही.

वह परिवार ही उस का एकमात्र दुश्मन है संसार में. उस से क्या रिश्ता रखना, पर आज इस डरावनी रात में उसे लगने लगा जिस घर को वह मछली बाजार कहती थी, वह कितना सुरक्षित गढ़ था. बड़ी जेठानी डाक्टर हैं. उस से दस गुना कमाती हैं. पर वे कितनी खुश थीं उस घर में. बस, उसे ही कभी अच्छा नहीं लगा, तो क्या उस के संस्कारों में कोई खोट है?

पास में ही फिर से बिजली गिरी और उसे लगा किसी ने उस के फ्लैट का दरवाजा ढकेला हो. होश उड़ गए उस के. घड़ी में मात्र सवा 9 बज रहे थे. जाड़े, वह भी इस महाप्रलय, की रात कैसे काटेगी वह. मधुरा भी आज दगा दे गई, सास की सेवा में लगी है, इसलिए उसे छोड़ कर नहीं आई. इतनी रात को भला कौन आएगा उस का साथ देने? अब तो बस एक ही सहारा है. जन्मजन्मांतर का रक्षक दीपक. लेकिन उसे फोन करेगी तो वह मोबाइल पर उस का नंबर देखते ही फोन काट देगा. उस ने ससुराल के लैंडलाइन पर फोन लगाया.

अम्मा ने फोन उठाया, बोलीं, ‘‘हैलो.’’

अचानक जाने क्यों अंदर से रुलाई फूटी, ‘‘अम्माजी.’’

‘‘अरे नेहा, क्या बात है बेटा?’’

इतना सुनते ही वह रो पड़ी. सोचने लगी कि कितना स्नेह है अम्मा के शब्दों में.

अम्मा ने आगे कहा, ‘‘अरे, नेहा, रो क्यों रही है? कोई परेशानी है? तू ठीक तो है न बेटा?’’

‘‘अम्माजी, मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘हां, रात बड़ी भयानक है और तू अकेली…’’ अम्मा तसल्लीभरे शब्दों में बोलीं.

‘‘इन को भेज देंगी आप,’’ नेहा का गला रुंध गया था बोलते हुए.

‘‘बेटा, दीपू तो बेंगलुरु गया है काम से. तू चिंता मत कर, घर को अच्छे से बंद कर, बैग में कपड़े डाल कर तैयार हो ले. यहां चली आ, मैं संजू को गाड़ी ले कर भेज रही हूं. 10 मिनट में पहुंच जाएगा. घबरा मत बेटा. सब हैं तो घर में.’’

अब नेहा की जान में जान आई. संजू बड़ी ननद का बेटा है, एमबीए कर रहा है. नेहा को ससुराल में अपना कमरा याद आ गया, कितना सुरक्षित है वह. नेहा को खुद पर ग्लानि हुई कि वह उस परिवार की अपराधिन है जिस ने उस परिवार के बच्चे को परिवार वालों से अलग करना चाहा. उस परिवार के टुकड़े करने पर वह उतारू हो गई थी. दूसरी तरफ वे सब लोग हैं जो इस मुसीबत में उस को माफ कर उस के साथ खड़े हैं.

‘‘अम्माजी…’’

‘‘अरे, संजू 10 मिनट में पहुंचता है, तू घबरा मत बेटा, जल्दी तैयार हो जा…’’ अम्मा ने उसे तसल्ली दी.

नेहा को आज लग रहा था कि वह कितनी गलत थी. सुरक्षा, स्नेह और प्यारभरी अपनों की छांव को छोड़ कर दुनिया के झंझावातों के बीच चली आई थी. नहीं…नहीं…अब ऐसी गलती दोबारा नहीं करेगी वह. आज अपने घर जा, अपनों से माफी मांग, सब गलतियां सुधार लेगी.

Family Story

Hindi Fictional Story: वास्तु और मेरा घर

Hindi Fictional Story: मकान बनाना कितनी बड़ी बला है यह तो वही जान सकता है जिस ने बनवाया हो. लोगों के जीवन में बड़ी मुश्किल से यह दिन आ पाता है. इतने सारे पापड़ बेलना हर किसी के बस की बात नहीं है. पर आदमी दूसरों को बनवाता देख कर हिम्मत कर बैठता है और एक दिन रोतेधोते मकान बनवा ही लेता है.

ऐसा ही मेरे साथ हुआ. एक दिन मेरी पत्नी ने सुबहसुबह एक गृहप्रवेश कार्ड मेरे सामने रख दिया. मेरे एक रिश्तेदार ने नया मकान बनवाया था. उसी खुशी में वह पार्टी दे रहा था. शाम को वहां जाना था.

‘‘देखिए, अब बहुत हो गया. मेरा शाम को कहीं जाने का मन नहीं है,’’ श्रीमतीजी तल्ख लहजे में बोलीं.

मैं ने उन के नहीं जाने के निर्णय को बहुत हलके से लिया, ‘‘हां, वैसे आजकल पक्का खाना नहीं खाना चाहिए. वाकई अब इस उम्र में इन चीजों का ध्यान भी रखना चाहिए.’’

पर यह क्या, मेरी इस बात पर तो वह बादल की तरह फट पड़ीं, ‘‘यह क्या, बस तुम्हें हर बात पर मजाक सूझता रहता है. मैं ने तो फैसला कर लिया है कि मैं अब किसी के गृहप्रवेश में तब तक नहीं जाऊंगी जब तक तुम मुझे एक प्यारा सा मकान नहीं बनवा कर दे दोगे.’’

मुझे बस चक्कर ही नहीं आया, ‘‘यह तुम कैसी बात कर रही हो. अरे, मूड खराब है तो शाम को चल कर एक साड़ी ले लेना. लेकिन कम से कम ऐसी बात तो मत करो जिसे सुन कर मुझे हार्टअटैक आ जाए.’’

श्रीमती के तेवर देख कर लगता था कि बात बहुत आगे बढ़ चुकी है. अब आसानी से केवल साड़ी पर सिमटने वाली नहीं थी. जब भी किसी का मकान बनता तो वह ऐसी फरमाइश कर बैठती थीं. उन्होंने थोड़ाबहुत इतिहास भी पढ़ा हुआ था अत: कह बैठती थीं, ‘‘देखो, शाहजहां ने अपनी बेगम के लिए ताजमहल बनवाया था. क्या तुम मेरे लिए एक अदद मकान नहीं बनवा सकते.’’

यहां मैं चुप रह जाता था. हालांकि चाहता तो मैं भी बता सकता था कि शाहजहां ने उस के जीतेजी कोई ताजमहल नहीं बनवाया था. जब मुमताज नहीं रही तब जा कर वह ऐसा कर पाया था. पर यह कहने पर एक युद्ध की संभावना और हो सकती थी इसलिए चुप रहने में ही भलाई थी.

बात जब इस स्तर पर पहुंच जाए तो कोई न कोई समाधान निकलना आवश्यक होता है. सो जल्दी ही यह बात मिलनेजुलने वालों तक पहुंच गई कि मैं मकान बनवाने वाला हूं.

मकान को ले कर लोगों ने अलगअलग सलाह दी. मुझे लगता है कि मुझे बनाबनाया मकान ले लेना चाहिए क्योंकि मकान बनवाने में उठाई जाने वाली मुसीबतों के नाम से ही मुझे बुखार आने लगता था. पर चूंकि मेरी बीवी के पिताजी यानी कि मेरे ससुर साहब का यही मानना था कि आदमी को जमीन खरीद कर ही मकान बनवाना चाहिए तो फिर भला मेरे तर्क कितनी देर चलते. अब प्लाट की खोज शुरू हुई और फिर जैसेतैसे एकमत हो कर एक प्लाट का चयन कर लिया गया.

प्लाट खरीदने वाला आदमी यही सोचता है कि वह आधी लड़ाई जीत चुका है, लेकिन यह मात्र उस का खयाली पुलाव ही होता है क्योंकि अभी तो उसे मकान बनाने की तकलीफदेह प्रक्रिया से गुजरना होता है और वही मेरे साथ भी हुआ. लेकिन बात यहीं तक सीमित होती तो कोई बात नहीं थी. असली परेशानी तो तब शुरू हुई जब मकान के निर्माण ने गति पकड़ी. मकान आधा बन चुका था. तभी एक दिन मेरी पत्नी ने मुझ से कहा, ‘‘आज तुम जरा आफिस से जल्दी घर आ जाना, मैं ने शर्माजी को बुलवाया है.’’

मैं चक्कर में पड़ गया, ‘‘यह शर्माजी कौन हैं. क्या कोई नए ठेकेदार हैं. तुम तो अभी इसी ठेकेदार को चलने दो.’’

वह नाराज हो गईं, ‘‘एक तो आप की आदत खराब है. पूरी कोई बात नहीं सुनते. वह कोई ठेकेदार नहीं हैं. वह तो बहुत पहुंचे हुए आदमी हैं. बहुत बड़े वास्तुकार हैं. मैं ने सोच लिया है, आजकल सभी लोग वास्तु के बिना कोई काम नहीं करते. मैं ने भी उन्हें बुलवाया है. उन के पास तो टाइम नहीं है. बड़ी मुश्किल से राजी हुए हैं.’’

मैं ने सोचा, चलो आज देख लेते हैं फिर टाल देंगे. मुझे तो पहले ही इन चीजों में कोई विश्वास नहीं है. आदमी कर्म करे, ईमानदारी से जीवन व्यतीत करे, समाज, परिवार व देश के प्रति जिम्मेदारी भलीभांति निभाए. बस, जीवन अपनेआप ठीकठाक निकल जाता है.

शाम को जल्दी घर आ गया. एक सज्जन मेरा इंतजार कर रहे थे. झूलती हुई दाढ़ी, माथे पर लंबा तिलक, गले में बड़ेबड़े मनकों की मालाएं, सभी उंगलियों में विभिन्न प्रकार की अंगूठियां पहनी हुईं. मुझे लगा किसी आश्रम से चंदा वगैरह लेने पधारे हैं.

मैं ने सोचा, इस से पहले कि श्रीमतीजी कुछ देनेलेने का वादा कर लें, इसे भगा दूं सो बोल पड़ा, ‘‘देखिए, हम लोग इन पाखंडों में विश्वास नहीं करते हैं. हमें जो भी देना होता है हम किसी सामाजिक संस्था को दे देते हैं. इसलिए आप हमें तो क्षमा कर ही दें.’’

मेरी इस बात से वह सज्जन नाराज हो गए. तभी मेरी आवाज सुन कर श्रीमतीजी बाहर निकल आईं, ‘‘क्या बकवास लगा रखी है. मैं ने इन्हें बुलवाया है.’’

वह सज्जन मुझे क्रोध भरी नजरों से देखने लगे. मैं ने नजर दूसरी ओर कर ली तो उधर श्रीमती की निगाहें अंगारे बरसा रही थीं, ‘‘माफ कीजिए, दरअसल यह आप को जानते नहीं हैं. पता है, शर्माजी बहुत बड़े वास्तु विशेषज्ञ हैं. इन्हें तो बिलकुल भी समय नहीं मिलता. बड़ेबड़े लोग इन से मकान के बारे में राय लेते हैं, तुम भी बस…’’ लानत उलाहना देते श्रीमतीजी बोलीं.

मैं निसहाय सा उन के पीछेपीछे चल दिया. थोड़ी ही देर में मकान पर पहुंचा. मैं अपने मकान पर बहुत मेहनत कर रहा था. मेरा आर्किटेक्ट बहुत अच्छा था. मैं ने स्वाभाविक रूप से अपनी निगाह प्रशंसा पाने के लिए उन के चेहरे पर जमा दी. पर यह क्या, उन का मुखमंडल तो मानो जड़ हो गया.

‘‘भई, यह क्या किया आप ने. एक तो दरवाजा ही गलत दे दिया. आप के दोनों ओर दरवाजे का विकल्प था, पर आप ने दरवाजा दक्षिण में क्यों दिया, उत्तर में क्यों नहीं.’’

‘‘देखिए, उत्तर की ओर दुकानें बनी हुई हैं. वहां भीड़भाड़ अधिक रहती है. उधर दरवाजा खोलने पर शोरशराबा अधिक रहता है.’’

‘‘पर भई, यह तो गजब हो गया. यह नहीं चल सकता. आप को इधर दरवाजा तुड़वाना पड़ेगा और यह क्या, आप ने रसोई उधर रख दी. यह तो 3 कोण पर निर्मित है, इसे तो बदलवाना ही पड़ेगा. बेडरूम इधर शिफ्ट करना पड़ेगा.’’

मैं धम से जमीन पर बैठ गया. अगर इतनी तोड़फोड़ हुई तो 50 हजार रुपए बेकार हो जाएंगे और समय भी अधिक लग जाएगा. जैसेतैसे उन्हें निबटा कर घर आया तो पत्नी ने 5 हजार रुपए मांगे. मैं तो आसमान से जमीन पर आ गिरा.

‘‘5 हजार…’’ मेरे मुंह से निकला.

शर्माजी को कुछ अच्छा नहीं लगा.

‘‘देखिए, यह तो डिस्काउंट रेट है, वरना मैं 15 हजार से एक पैसा कम नहीं लेता.’’

क्या करता, बुझे मन से 5 हजार दिए. शर्माजी के विदा होते ही श्रीमतीजी मुझ पर चढ़ बैठीं, ‘‘क्या है… बिलकुल भी तमीज नहीं है. कितनी मुश्किल से तैयार किया था. छोटीमोटी जगह तो शर्माजी जाते ही नहीं हैं. कितने नेताअभिनेता उन की एक विजिट के लिए चक्कर लगाते रहते हैं.’’

पर बात केवल लड़ने तक ही सीमित रहती तो चल जाती. वह तो शर्माजी की कही हुई बातों पर अड़ गईं.

‘‘देखो, तुम मुझे मत टोको. शर्माजी बहुत पहुंचे हुए हैं. उन की सारी बातें बिलकुल सच निकलती हैं. गर हम ने नहीं मानीं, तो अनिष्ट ही हो जाएगा.’’

मैं ने श्रीमतीजी की बातों का बहुत विरोध किया. बहुत लड़ाझगड़ा भी पर अनिष्ट का भूत उन के दिमाग पर इस कदर सवार था कि वह मानी ही नहीं, फिर घर वाले भी उन के साथ हो लिए.

मकान में टूटफूट होती रही. मैं भारी मन से सब देखता रहा. देखतेदेखते बजट से 60 हजार रुपए और निकल गए. जब सारा काम पूरा हुआ तो मैं ने चैन की सांस ली कि चलो, इतने में ही निबटे.

पर अभी थोड़े दिन ही निकले थे कि एक दिन मैं ने शर्माजी को फिर अपने घर में पाया. एक बार फिर वह सब के साथ मकान पर गए, मकान में 10 दोष गिना दिए. नतीजे में फिर टूटफूट हो गई और फिर हजारों रुपए का खर्चा हुआ और इन सब से बड़ी दुख की बात तो यह हुई कि 5 हजार रुपए फिर शर्माजी को देने पड़े.

यह प्रक्रिया यहीं रुक जाती तो ठीक था, पर अफसोस, ऐसा नहीं हो पाया. शर्माजी का अनवरत आनाजाना लगा रहा. मकान के निर्माण में कई तरह के दोष हो जाते, फिर टूटफूट हो जाती और शर्माजी की जेब में एक मोटी रकम चली जाती.

इन सब बातों का फर्क यही पड़ा कि एक दिन मकान का निर्माण कार्य ओवरबजट होने के कारण बंद हो गया. जितने भी लोन मैं ले सकता था, मैं ने ले लिए थे. अब कोई जगह बाकी नहीं रह गई थी.

मकान मालिक, जो मेरे जल्दी मकान खाली करने के वादे को पूरा होते देख खुश था, वह हकीकत जान कर नाराज रहने लगा.

लगातार होती टूटफूट ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. जिस बजट में मकान पूरा हो सकता था वह बजट पहले ही पूरा हो गया. मैं श्रीमतीजी पर भी नाराज होता था लेकिन वह भी चुपचाप रह जाती थीं.

ऐसे ही एक रविवार को घर पर बैठे हुए थे कि शर्माजी घर आ गए. उन्हें देखते ही मेरा पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, ‘‘शर्माजी, अब हमें किसी वास्तुशास्त्र की जरूरत नहीं है. वास्तु के चक्कर में पड़ कर मेरा तो मकान ही अधूरा रह गया.’’

शर्माजी हंसने लगे, ‘‘चिंता मत कीजिए, भाई साहब. मैं यहां वास्तुदोष बताने नहीं आया. मैं अपने गृहप्रवेश का न्योता देने आया हूं. शाम को पधारिएगा. खाना भी वहीं है,’’ कह कर वह चले गए.

मन तो नहीं था पर फिर शाम को यही सोच कर चले गए कि शाम को खाना तो नहीं बनाना पड़ेगा.

वहां जा कर देखा तो श्रीमतीजी की आंखें फटी की फटी रह गईं. शर्माजी ने बहुत भव्य मकान बनवाया था. पूरे मकान को देख कर यही लग रहा था कि उस में बहुत पैसा खर्च हुआ है.

श्रीमतीजी ने दबे स्वर में पूछ ही लिया, ‘‘शर्माजी, इस में तो बहुत खर्चा आया होगा.’’

शर्माजी हंसने लगे, ‘‘हां, बहनजी, प्लाट के अलावा 20 लाख रुपए खर्च हुए हैं. मेरी तो बिसात ही क्या थी, आप जैसे भक्त लोगों के सहयोग से यह कार्य पूरा हो पाया. हां, आप के मकान का काम कैसा चल रहा है. आप लोग कब शिफ्ट हो रहे हैं. मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताइएगा.’’

उन की बात सुन कर पत्नी का चेहरा उतर गया, लेकिन फिर धीरेधीरे चेहरे की रंगत बढ़ी और फिर जो उस ने कहा, वह मेरे लिए अप्रत्याशित था.

‘‘हां, आप बिलकुल सही कह रहे हैं. हमारे जैसे बेवकूफों के सहयोग से ही यह कार्य संपन्न हुआ है. आप ने अंधविश्वास के जाल में फंसा कर हमारा घर तो बनने नहीं दिया, पर अपनी झोली भर कर अपना उल्लू सीधा कर लिया. सेवा बस इतनी सी है कि आप भूल कर भी हमारे घर की ओर रुख मत करिएगा. आज आप की बातों में नहीं आते तो हम अपने घर में रह रहे होते.’’

इतना कह कर श्रीमतीजी ने मेरी ओर देखा. मुझे भी लगा कि उन के कहने से मेरे दिल पर छाया एक बड़ा बोझ उतर गया था.

हम दोनों बाहर निकल आए. हालांकि मुझे इतना बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था पर इस बात की खुशी थी कि अंतत: मेरी श्रीमतीजी इन सब चीजों से बाहर तो निकल आई थीं.

Hindi Fictional Story

लघु कहानी: पोलपट्टी- क्या हुआ था गौरी के साथ

लघु कहानी: आज अस्पताल में भरती नमन से मिलने जब भैयाभाभी आए तो अश्रुधारा ने तीनों की आंखों में चुपके से रास्ता बना लिया. कोई कुछ बोल नहीं रहा था. बस, सभी धीरे से अपनी आंखों के पोर पोंछते जा रहे थे. तभी नमन की पत्नी गौरी आ गई. सामने जेठजेठानी को अचानक खड़ा देख वह हैरान रह गई. झुक कर नमस्ते किया और बैठने का इशारा किया. फिर खुद को संभालते हुए पूछा, ‘‘आप कब आए? किस ने बताया कि ये…’’

‘‘तुम नहीं बताओगे तो क्या खून के रिश्ते खत्म हो जाएंगे?’’ जेठानी मिताली ने शिकायती सुर में कहा, ‘‘कब से तबीयत खराब है नमन भैया की?’’

‘‘क्या बताऊं, भाभी, ये तो कुछ महीनों से… इन्हें जो भी परहेज बताओ, ये किसी की सुनते ही नहीं,’’ कहते हुए गौरी की आंखें भीग गईं. इतने महीनों का दर्द उमड़ने लगा. देवरानीजेठानी कुछ देर साथ बैठ कर रो लीं. फिर गौरी के आंसू पोंछते हुए मिताली बोली, ‘‘अब हम आ गए हैं न, कोई बदपरहेजी नहीं करने देंगे भैया को. तुम बिलकुल चिंता मत करो. अभी कोई उम्र है अस्पताल में भरती होने की.’’

मिताली और रोहन की जिद पर नमन को अस्पताल से छुट्टी मिलने पर उन्हीं के घर ले जाया गया. बीमारी के कारण नमन ने दफ्तर से लंबी छुट्टी ले रखी थी. हिचकिचाहटभरे कदमों में नमनगौरी ने भैयाभाभी के घर में प्रवेश किया. जब से वे दोनों इस घर से अलग हुए थे, तब से आज पहली बार आए थे. मिताली ने उन के लिए कमरा तैयार कर रखा था. उस में जरूरत की सभी वस्तुओं का इंतजाम पहले से ही था.

‘‘आराम से बैठो,’’ कहते हुए मिताली उन्हें कमरे में छोड़ कर रसोई में चली गई.

रात का खाना सब ने एकसाथ खाया. सभी चुप थे. रिश्तों में लंबा गैप आ जाए तो कोई विषय ही नहीं मिलता बात करने को. खाने के बाद डाक्टर के अनुसार नमन को दवाइयां देने के बाद गौरी कुछ पल बालकनी में खड़ी हो गई. यह वही कमरा था जहां वह ब्याह कर आई थी. इसी कमरे के परदे की रौड पर उस ने अपने कलीरे टांगी थीं. नवविवाहिता गौरी इसी कमरे की डै्रसिंगटेबल के शीशे पर बिंदियों से अपना और नमन का नाम सजाती थी.

मिताली ने उस का पूरे प्यारमनुहार से अपने घर में स्वागत किया था. शुरू में वह उस से कोई काम नहीं करवाती, ‘यही दिन हैं, मौज करो,’ कहती रहती. शादीशुदा जीवन का आनंद गौरी को इसी घर में मिला. जब से अलग हुए, तब से नमन की तबीयत खराब रहने लगी. और आज हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि नमन ठीक से चलफिर भी नहीं पाता है. यह सब सोचते हुए गौरी की आंखों से फिर एक धारा बह निकली. तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई.

दरवाजे पर मिताली थी, ‘‘लो, दूध पी लो. तुम्हें सोने से पहले दूध पीने की आदत है न.’’

‘‘आप को याद है, भाभी?’’

‘‘मुझे सब याद है, गौरी,’’ मिताली की आंखों में एक शिकायत उभरी जिसे उस ने जल्दी से काबू कर लिया. आखिर गौरी कई वर्षों बाद इस घर में लौटी थी और उस की मेहमान थी. वह कतई उसे शर्मिंदा नहीं करना चाहती थी.

अगले दिन से रोहन दफ्तर जाने लगे और मिताली घर संभालने लगी. गौरी अकसर नमन की देखरेख में लगी रहती. कुछ ही दिनों में नमन की हालत में आश्चर्यजनक सुधार होने लगा. शुरू से ही नमन इसी घर में रहा था. शादी के बाद दुखद कारणों से उसे अलग होना पड़ा था और इस का सीधा असर उस की सेहत पर पड़ने लगा था. अब फिर इसी घर में लौट कर वह खुश रहने लगा था. जब हम प्रसन्नचित्त रहते हैं तो बीमारी भी हम से दूर ही रहती है.

‘‘प्रणाम करती हूं बूआजी, कैसी हैं आप? कई दिनों में याद किया अब की बार कैसी रही आप की यात्रा?’’ मिताली फोन पर रोहन की बूआ से बात कर रही थी. बूआजी इस घर की सब से बड़ी थीं. उन का आनाजाना अकसर लगा रहता था. तभी गौरी का वहां आना हुआ और उस ने मिताली से कुछ पूछा.

‘‘पीछे यह गौरी की आवाज है न?’’ गौरी की आवाज बूआजी ने सुन ली.

‘‘जी, बूआजी, वह नमन की तबीयत ठीक नहीं है, तो यहां ले आए हैं.’’

‘‘मिताली बेटा, ऐसा काम तू ही कर सकती है, तेरा ही दिल इतना बड़ा हो सकता है. मुझे तो अब भी गौरी की बात याद आती है तो दिल मुंह को आने लगता है. छी, मैं तुझ से बस इतना ही कहूंगी कि थोड़ा सावधान रहना,’’ बूआजी की बात सुन मिताली ने हामी भरी. उन की बात सुन कर पुरानी कड़वी बातें याद आते ही मिताली का मुंह कसैला हो गया. वह अपने कक्ष में चली गई और दरवाजा भिड़ा कर, आंखें मूंदे आरामकुरसी पर झूलने लगी.

गौरी को भी पता था कि बूआजी का फोन आया है. उस ने मिताली के चेहरे की उड़ती रंगत को भांप लिया था. वह पीछेपीछे मिताली के कमरे तक गई.

‘‘अंदर आ जाऊं, भाभी?’’ कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए गौरी ने पूछा.

‘‘हां,’’ संक्षिप्त सा उत्तर दिया मिताली ने. उस का मन अब भी पुराने गलियारों के अंधेरे कोनों से टकरा रहा था. जब कोई हमारा मन दुखाता है तो वह पीड़ा समय बीतने के साथ भी नहीं जाती. जब भी मन बीते दिन याद करता है, तो वही पीड़ा उतनी ही तीव्रता से सिर उठाती है.

‘‘भाभी, आज हम यहां हैं तो क्यों न अपने दिलों से बीते दिनों का मलाल साफ कर लें?’’ हिम्मत कर गौरी ने कह डाला. वह इस मौके को गंवाना नहीं चाहती थी.

‘‘जो बीत गई, सो बात गई. छोड़ो उन बातों को, गौरी,’’ पर शायद मिताली गिलेशिकवे दूर करने के पक्ष में नहीं थी. अपनी धारणा पर वह अडिग थी.

‘‘भाभी, प्लीज, बहुत हिम्मत कर आज मैं ने यह बात छेड़ी है. मुझे नहीं पता आप तक मेरी क्या बात, किस रूप में पहुंचाई गई. पर जो मैं ने आप के बारे में सुना, वह तो सुन लीजिए. आखिर हम एक ही परिवार की डोर से बंधे हैं. यदि हम एकदूसरे के हैं, तो इस संसार में कोईर् हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता. किंतु यदि हमारे रिश्ते में दरार रही तो इस से केवल दूसरों को फायदा होगा.’’

‘‘भाभी, मेरी डोली इसी घर में उतरी थी. सारे रिश्तेदार यहीं थे. शादी के तुरंत बाद से ही जब कभी मैं अकेली होती. बूआजी मुझे इशारों में सावधान करतीं कि मैं अपने पति का ध्यान रखूं. उन के पूरे काम करूं, और उन की आप पर निर्भरता कम करूं. आप समझ रही हैं न? मतलब, बूआजी का कहना था कि नमन को आप ने अपने मोहपाश में जकड़ रखा है ताकि… समझ रही हैं न आप मेरी बात?’’

गौरी के मुंह से अपने लिए चरित्रसंबंधी लांछन सुन मिताली की आंखें फटी रह गईं, ‘‘यह क्या कह रही हो तुम? बूआजी ऐसा नहीं कह सकतीं मेरे बारे में.’’

‘‘भाभी, हम चारों साथ होंगे तो हमारा परिवार पूरी रिश्तेदारी में अव्वल नंबर होगा, यह बात किसी से छिपी नहीं है. शादी के तुरंत बाद मैं इस परिवार के बारे में कुछ नहीं जानती थी. जब बूआजी जैसी बुजुर्ग महिला के मुंह से मैं ने ऐसी बातें सुनीं, तो मैं उन पर विश्वास करती चली गई. और इसीलिए मैं ने आप की तरफ शुष्क व्यवहार करना आरंभ कर दिया.

‘‘परंतु मेरी आंखें तब खुलीं जब चाचीजी की बेटी रानू दीदी की शादी में चाचीजी ने मुझे बताया कि इन बातों के पीछे बूआजी की मंशा क्या थी. बूआजी चाहती हैं कि जैसे पहले उनका इस घर में आनाजाना बना हुआ था जिस में आप छोटी बहू थीं और उन का एकाधिकार था, वैसे ही मेरी शादी के बाद भी रहे. यदि आप जेठानी की भूमिका अपना लेतीं तो आप में बड़प्पन की भावना घर करने लगती और यदि हमारा रिश्ता मजबूत होता तो हम एकदूसरे की पूरक बन जातीं. ऐसे में बूआजी की भूमिका धुंधली पड़ सकती थी. बूआजी ने मुझे इतना बरगलाया कि मैं ने नमन पर इस घर से अलग होने के लिए बेहद जोर डाला जिस के कारण वे बीमार रहने लगे. आज उन की यह स्थिति मेरे क्लेश का परिणाम है,’’ गौरी की आंखें पश्चात्ताप के आंसुओं से नम थीं.

गौरी की बातें सुन मिताली को नेपथ्य में बूआजी द्वारा कही बातें याद आ रही थीं, ‘क्या हो गया है आजकल की लड़कियों को. सोने जैसी जेठानी को छोड़ गौरी को अकेले गृहस्थी बसाने का शौक चर्राया है, तो जाने दे उसे. जब अकेले सारी गृहस्थी का बोझा पड़ेगा सिर पे, तो अक्ल ठिकाने आ जाएगी. चार दिन ठोकर खाएगी, तो खुद आएगी तुझ से माफी मांगने. इस वक्त जाने दे उसे. और सुन, तू बड़ी है, तो अपना बड़प्पन भी रखना, कोई जरूरत नहीं है गौरी से उस के अलग होने की वजह पूछने की.’

‘‘भाभी, मुझे माफ कर दीजिए, मेरी गलती थी कि मैं ने बूआजी की कही बातों पर विश्वास कर लिया और तब आप को कुछ भी नहीं बताया.’’

‘‘नहीं, गौरी, गलती मेरी भी थी. मैं भी तो बूआजी की बातों पर उतना ही भरोसा कर बैठी. पर अब मैं तुम्हारा धन्यवाद करना चाहती हूं कि तुम ने आगे बढ़ कर इस गलतफहमी को दूर करने की पहल की,’’ यह कहते हुए मिताली ने अपनी बांहें खोल दीं और गौरी को आलिंगनबद्ध करते हुए सारी गलतफहमी समाप्त कर दी.

कुछ देर बाद मिताली के गले लगी गौरी बुदबुदाई, ‘‘भाभी, जी करता है कि बूआजी के मुंह पर बताऊं कि उन की पोलपट्टी खुल चुकी है. पर कैसे? घर की बड़ीबूढ़ी महिला को आईना दिखाएं तो कैसे, हमारे संस्कार आड़े आ जाते हैं.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो, गौरी. परंतु बूआजी को सचाई ज्ञात कराने से भी महत्त्वपूर्ण एक और बात है. वह यह है कि हम आइंदा कभी भी गलतफहमियों का शिकार बन अपने अनमोल रिश्तों का मोल न भुला बैठें.’’

देवरानीजेठानी का आपसी सौहार्द न केवल उस घर की नींव ठोस कर रहा था बल्कि उस परिवार के लिए सुख व प्रगति की राह प्रशस्त भी कर रहा था.

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