Family Story in Hindi: तनु और नलिन के दांपत्य जीवन में सैकड़ों बार छोटीछोटी बातों को ले कर नोकझोंक हुई, लेकिन उस की एक सीमा थी. आज जब नलिन कुछ ज्यादा ही नाराज हो गया तो भी क्यों दोनों ने अपने इगो को छोड़ कर अपनीअपनी गलती मान ली? इस प्रकार उन दोनों के द्वारा उस बौर्डरलाइन को पार न करने पर क्या उन्हें सैटिस्फैक्शन मिली ही? ‘‘तुम हमेशा दूध का पाउच यों ही सिंक में छोड़ देती हो, बिना धोए.’’ ‘‘हमेशा?’’ ‘‘जी हां हमेशा.
धो कर वेस्ट बास्केट में डालने में तकलीफ होती है तुम्हें?’’ ‘‘सवेरे और भी ढेर सारे काम रहते हैं. अब गुडि़या 2-3 बजे दूध पीएगी. पाउच फाड़ कर दूध उबाला, उसे चुप कराया फिर ठंडा कर के पिलाया तो थोड़ी देर में धो कर फेंक दूंगी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? कभीकभी ही तो रखी रह जाती है, हमेशा नहीं.’’ ‘‘कभीकभी नहीं अकसर रखी रह जाती है.’’ ‘‘अकसर कहां रखी रह जाती है?’’ तनु की आवाज में तेजी आ गई थी.
‘‘एक तो पाउच धो कर नहीं रखा, ऊपर से बहस कर रही हो. सुबहसुबह पाउच स्मैल करने लगता है. तुम्हारी हमेशा की आदत है… चाय की छलनी भी पड़ी है. अभी तक वह भी नहीं धो कर रखी,’’ नलिन भी तमतमा गया. ‘‘आप रसोई में घुसते ही क्यों हैं? जब देखो तब मेरे क्षेत्र में दखल देते रहते हैं,’’ तनु तुनक कर बोली. नाश्ते के लिए भीगे चने बीनते हुए उस के हाथ रुक गए, ‘‘खाना बनाने को कह दूं तो कह देते हो कि तुम्हें लैपटौप पर काम करना है.’’ ‘‘यह देखने के लिए कि हमारी मेहनत की कमाई का कैसा दुरुपयोग हो रहा है. देवीजी, पाउच का बचा हुआ दूध वैसा ही बंद पड़ापड़ा सड़ जाएगा, जब तक आप को उसे धोने की फुरसत मिलेगी,’’ कहते हुए नलिन ने पाउच धो कर डस्टबिन में डाल दिया.
‘‘हांहां मुझो तो कोई काम करना नहीं आता. 10 साल से तो भाड़ झोंक रही हूं,’’ नलिन की बात पर तनु तिलमिला गई. बड़बड़ाना जारी ही था तनु का कि नलिन रसोई से बाहर निकल गया. चने कड़ाही में छौंक कर तनु ने लंच बौक्स में परांठे, सब्जी और अचार रख कर उसे बंद कर दिया. काफी देर हो रही थी. आज उसे उठने में भी देर हो गई थी. हड़बड़ाहट में उस ने कुछ कच्चे चने ही प्लेट में निकाल दिए.
जल्दीजल्दी उन के ऊपर कच्चा प्याज बुरका फिर जैसे ही दही का कटोरा उठाया कि चिकनाई की वजह से वह हाथ से फिसल गया. सारा दही जमीन पर बिखर गया. ‘‘उफ शिट,’’ उस के मुंह से निकला, ‘‘आज तो वे वैसे ही बहुत नाराज हैं. देर भी हो गई है ऊपर से दही भी फैल गया मेरी लापरवाही से.’’ तनु ने जल्दी से चनों में नीबू छिड़का और प्लेटें हाथ में उठा कर बाहर आ ही रही थी कि बाहर से बाइक स्टार्ट होने की आवाज आई. उस ने प्लेटें मेज पर रख दीं और जल्दीजल्दी बाहर दौड़ी. तब तक बाइक अगले मोड़ पर मुड़ गई और नलिन आंखों से ओझल हो गया.
तनु निराश सी अंदर आ गई. घड़ी देखी 9.40 हो रहे थे. जरा सी ही तो देर हुई है, सिर्फ 10 मिनट. ऐसा भी क्या? कह कर तो जाते. लंचबौक्स भी नहीं ले गए, तनु ने मन ही मन सोचा. वह रसोई में जा कर सफाई करने लगी. मूड तो पहले ही उखड़ गया था. धीरेधीरे तनु को क्रोध आने लगा कि चले गए तो चले जाएं. अभी ऐसा क्या हो गया जो जनाब तुनक कर चले गए. कई बार कहा कि मेरे काम के बीच में न बोला करो पर नहीं. भुनभुनाते हुए उस ने आंच जला कर दूध की बोतल उबलने रख दी. इसी मुई के पीछे लड़ाई हुई आज. अब गुडि़या की बोतल से दूध पीने की आदत भी छुड़ानी है.
2 साल की होने को आई पर अभी भी दूध पीने के लिए बोतल ही चाहिए. अब उसे गुडि़या पर गुस्सा आने लगा. पर उस बेचारी की क्या गलती, वह तो नासमझ है अभी. फिर वह सोचने लगी कि मेरी ही गलती है. सोचती हमेशा हूं, पर छुड़ाने की कोशिश में कोई उपाय नहीं करती. आखिर ऐसा कब तक चलेगा. मोनू ने भी 3 साल तक बोतल से दूध पीया था. बड़ी परेशानी हुई थी. रसोई साफ कर के तनु जल्दी बाहर गई. आज उस का मन नहीं लग रहा था. गुडि़या पड़ोस में खेल रही थी. तनु ने गुडि़या को आवाज दी तो रीता उसे ले आई. ‘‘जा अपनी मां के पास, मुझे भी कालेज जाना है,’’
गुडि़या को प्यार से धौल जमाती हुई रीता ने गुडि़या को तनु के हवाले कर दिया. गुडि़या को ले कर वह जल्दी अंदर आ गई. उस का मन छटपटा रहा था कि रीता से कह दे आज गुडि़या के पापा बिना नाश्ता किए गुस्से में चले गए पर फिर मन काबू में कर लिया कि क्या बताना? अभी यह बताऊंगी फिर यदि वह कहीं बढ़ाचढ़ा कर अपनी भाभी या मां को बता देगी तो वे पूछने ही चली आएंगी. उन्हें पूरा विस्तार सहित वर्णन कर के सुनाओ. फिर फायदा ही क्या है? अपनी ही बदनामी होगी.
कल को महल्लेभर में हवा फैल जाएगी कि तनु की तो अपने पति से पटती ही नहीं है. जबतब नाराज हो कर भूखे ही चले जाते हैं बेचारे. यही तो होता है इस कालोनी में. हालांकि 10 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है. वैसे पड़ोसी अच्छे हैं. बच्चों के कारण उठनाबैठना हो जाता है. उन के घर में छोटे बच्चे नहीं हैं तो सब शौक से ले जाते हैं गुडि़या को खिलाने. वह भी सोचती है चलो अच्छा ही है काम आराम से हो जाता है थोड़ा, नहीं तो यह गुडि़या परेशान करती है. तनु ने गुडि़या को नहलाधुला कर तैयार किया.
फिर दोपहर बाद मोनू स्कूल से आ गया. मोनू के भी कपड़े बदलवा कर मुंहहाथ धुलाए. खाना खिला कर दोनों को सुला दिया. आज उस का मन बड़ा अनमना था. तनु को बीते दिनों की यादें सहलाने लगीं… जब उस की शादी हुई थी और नईनई आई थी तो नलिन कितनी तारीफ करता था उस की. तब नयानया चाव था. घर को खूब साफसुथरा और सजा कर रखती थी वह. उस की जौब अच्छी थी. दिनभर काम कर के भी वह घर सजाने में थकती नहीं थी. दिनरात कैसे इंद्रधनुष की तरह सतरंगे थे. फिर मोनू आ गया.
दोनों बहुत खुश हुए. वे दोनों मोनू की 1-1 हरकत को जिज्ञासु बन कर देखते, उस के साथ बच्चे बन कर खेलते. फिर मोनू हो गया. अब चाह कर मेड होने पर भी वह घर को उतना साफसुथरा नहीं रख पाती थी. मोनू में भी व्यस्त रहना पड़ता. मोनू के 5 साल के होतेहोते गुडि़या हो गई. तनु खुश हो गई कि उस का परिवार पूर्ण हो गया. वह सोचती अब और कुछ नहीं चाहिए. छोटीछोटी बातों को ले कर तो 10 वर्षों में सैकड़ों बार नोकझोंक हुई दोनों में पर ऐसा पहली बार हुआ कि नलिन नाश्ता और खाना छोड़ कर बिना बताए चला गया. इसीलिए तनु का बिलकुल मन नहीं लग रहा था किसी भी काम में.
उस ने भी खाना नहीं खाया. न नाश्ता ही किया. भूखी ही पड़ी रही. भूख के कारण रहरह कर क्रोध भी आ रहा था. मां के यहां रहने को कितना मन करता है, वह सोचने लगी पर रह नहीं पाती, इसीलिए कि इन्हें खानेपीने की तकलीफ होगी मेरे पीछे. उसे गए 10-12 दिन हुए नहीं कि नलिन के फोन आने लगेंगे, धड़ाधड़. फिर उस का मन ही नहीं लगता. पर मां से कहते हुए झिझक लगती है कि मैं अब जाऊंगी.
इसीलिए भाभी से कहलवाती है. पर भाभी भी कम थोड़े ही हैं, बहुत तेज हैं. बड़ी शरारत से मां से कहेंगी, ‘‘दीदी का अब मन नहीं लग रहा है मां आप के घर में. उन्हें भेज दीजिए.’’ तनु आंखें तरेरती है. तब चुटकी काट कर भाभी कहतीं, ‘‘अब आंखें क्यों दिखा रही हो? तुम्हीं ने तो कहा था कि मां से कह कर तुम्हें भिजवा दूं.’’ भाभी की शरारतें याद कर के तनु को मीठीमीठी गुदगुदी सी होने लगी कि बड़ी अच्छी हैं बेचारी, पर उन के पास अधिक दिन रह नहीं पाती. तनु फिर वर्तमान में लौट गई. पता नहीं क्या खाया होगा नलिन ने. 2 बार सोचा फोन करे पर फिर डर लगा कि कहीं वे गुस्सा न करें. कैंटीन का खाना नलिन को बिलकुल पसंद नहीं आता. मिर्च ज्यादा रहती है और वे मिर्च एकदम नहीं खा पाते, इसीलिए घर से खाना ले जाते हैं.
तनु का क्रोध बर्फ पर पड़ रही धूप की तरह धीरेधीरे पिघलने लगा. अब उसे स्वयं पर क्रोध आने लगा कि गलती मेरी है, ठीक ही तो कहते हैं नलिन, मैं छोटीछोटी बातों में बहुत लापरवाही करती हूं कई बार. सुबह से बहस में लग गई. बस यही कह देती कि भूल गई अभी रख दूंगी. बात वहीं खत्म हो जाती. तनु को मन ही मन ग्लानि होने लगी… कितना प्यार करते हैं नलिन उसे और एक वह है कि उन का जरा ध्यान नहीं रख पाती. बहुत देर से दबाया हुआ सैलाब उमड़ पड़ा. वह अभी रो ही रही थी कि मोनू जाग गया. उसे रोता देख कर वह सहम गया, ‘‘क्या हुआ मां?’’ मोनू ने पूछा. ‘‘कुछ नहीं,’’ तनु जल्दी से आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘तुम मुंह धो कर आओ मैं दूध ला रही हूं.’’
‘‘अच्छा,’’ मोनू ने आगे कुछ नहीं पूछा और मुंह धोने चला गया. तनु रसोई में दूध गरम कर ही रही थी कि मोनू वहीं पहुंच गया, ‘‘अरे आज पापा लंच बाक्स नहीं ले गए?’’ रसोई में रखे लंचबौक्स को देख कर मोनू ने पूछा. बिलकुल बाप पर गया है, तनु मन ही मनु बड़बड़ाई. हर बात की खबर रहती है इसे. ‘‘क्यों नहीं ले गए मां,’’ मोनू ने कोई जवाब न पा कर फिर पूछा. ‘‘जल्दी में भूल गए और सुन, तू रसोई में मत घुसा कर. अभी से हर बात में ऐसा क्यों, वैसा क्यों नहीं करते.’’ झिड़की सुन कर मोनू चुप हो गया. फिर जल्दीजल्दी दूध पी कर अपने मोबाइल में बिजी हो गया.
तनु फिर सोचने लगी कि नलिन कहता है छोटीछोटी तकरार और नोकझोंक जीवन का स्वाद बदलने के लिए जरूरी है तनु. इस से आपसी प्यार भी बढ़ता है, पर इस की भी एक सीमा होनी चाहिए. उस चरमसीमा को हम कभी पार नहीं करेंगे. आज वह सीमा पार कर गई है क्या? नहीं, बिलकुल नहीं. तनु ने सोचा कि नलिन के आते ही वह उस से माफी मांग लेगी. गलती उसी की है. वह सीमा तो तब पार होगी जब उस का झठा अहं आड़े आएगा. पतिपत्नी के बीच अहं कैसा? 10 वर्षों से सुखी दांपत्य जीवन में उन के अहं आपस में कभी नहीं टकराए.
गलती महसूस हुई तो स्वीकार भी कर ली, नहीं हुई तो बात को वहीं छोड़ कर भूल गए. यह नहीं कि बोलचाल बंद हुई हो या मनमुटाव बढ़ गया हो. आज यह पहली बार हुआ कि नलिन तनु से बिना कुछ कहे चला गया. शायद ज्यादा नाराज हैं. तनु ने सोचा कि मना लूंगी. 5 बजते ही मोनू अपना होमवर्क पूरा कर मोबाइल छोड़ कर बालकनी में खड़ा हो गया. कितना भी खेल में मस्त होगा, पर न जाने उसे समय का अंदाज कैसे पड़ जाता है. नलिन की बाइक दिखते ही दोनों बच्चे खुश हो जाते हैं. ‘‘पापा, पापा आज आप अपना लंचबौक्स नहीं ले गए थे, फिर खाया क्या?’’ मोनू ने नलिन के आते ही गले में लटक कर पूछा. ‘‘खा लिया था कैंटीन में ही.’’ ‘‘पापा, आज मां पता नहीं क्यों रो रही थीं?’’ ‘‘चलो भागो, अपना काम करो,’’ नलिन चुगली की आदत पर नाराज हो गया.
कनखियों से नलिन के चेहरे पर होने वाली प्रतिक्रिया पर तनु ने गौर किया. एक क्षण को उस के चेहरे पर ग्लानि के भाव उभरे. ‘‘आज मेरे कारण ही सब हुआ. मुझ से सचमुच गलती हो गई,’’ तनु की रोंआसी सी आवाज निकली. अपनी सफाई में वह अधिक नहीं बोल पाई. ‘‘अरे नहीं, गलती मेरी है. तुम्हें तुम्हारे ढंग से काम नहीं करने देता, अपनी टांग अड़ाता हूं हर काम में,’’ नलिन तनु को बांहों के घेरे में समेट कर बोला, ‘‘और सुबह तो मैं गुस्से में था ही. अचानक याद आया कि आज तो जल्दी जाना था तो बस फटाफट तैयार हो कर चल दिया. मैं ने बाहर से ही आवाज भी दी थी कि मैं जा रहा हूं. शायद तुम ने सुना न होगा.
अंदर आ कर कहता तो तुम्हें सब बताना पड़ता. कहां जाना है? क्यों जाना है? देर हो जाती. इसलिए बाद में बहुत पछताया. बिलकुल समय नहीं मिला, नहीं तो बीच में मैसेज कर देता. एक के पीछे एक काम लगा रहा.’’ ‘‘मेरा तो दिनभर किसी काम में मन ही नहीं लगा,’’ तनु बोली, ‘‘अब ऐसा मत करना. कुछ खाया भी नहीं गया. पर अब मैं बेमतलब की बहस नहीं करूंगी. वादा करती हूं.’’ ‘‘ऐसे वादे तो तुम पहले भी कई बार कर चुकी हो और मैं भी कई बार कह चुका हूं कि मैं भी तुम्हारे काम में दखल नहीं दूंगा.
अब घरगृहस्थी की जिम्मेदारी तुम्हारी है, तुम जानो,’’ नलिन ठहाका लगा कर बोला. ‘‘चलो इसी खुशी में आज चाय मैं बनाता हूं.’’ ‘‘लेकिन तुम तो अभी कह रहे थे…’’ ‘‘कि तुम्हारे काम में दखल नहीं दूंगा. चाय बनाते समय खबरदार तुम किचन में आई. पकौड़े भी बनाऊंगा. चायपकौड़े बनाने के लिए थोड़े ही मना किया है,’’ नलिन ने इस ढंग से कहा कि तनु भी जोर से हंस पड़ी. उस की दिनभर की उदासी और नलिन की थकान दूर हो गई और दोनों खो गए फिर अपने सुखमय संसार में, जहां एकदूसरे के सान्निध्य में उन्हें एक अलौकिक सुख की अनुभूति होती है, आत्मिक तृप्ति मिलती है. Family Story in Hindi