Family Story in Hindi: लिमिट लाइन

Family Story in Hindi: तनु और नलिन के दांपत्य जीवन में सैकड़ों बार छोटीछोटी बातों को ले कर नोकझोंक हुई, लेकिन उस की एक सीमा थी. आज जब नलिन कुछ ज्यादा ही नाराज हो गया तो भी क्यों दोनों ने अपने इगो को छोड़ कर अपनीअपनी गलती मान ली? इस प्रकार उन दोनों के द्वारा उस बौर्डरलाइन को पार न करने पर क्या उन्हें सैटिस्फैक्शन मिली ही? ‘‘तुम हमेशा दूध का पाउच यों ही सिंक में छोड़ देती हो, बिना धोए.’’ ‘‘हमेशा?’’ ‘‘जी हां हमेशा.

धो कर वेस्ट बास्केट में डालने में तकलीफ होती है तुम्हें?’’ ‘‘सवेरे और भी ढेर सारे काम रहते हैं. अब गुडि़या 2-3 बजे दूध पीएगी. पाउच फाड़ कर दूध उबाला, उसे चुप कराया फिर ठंडा कर के पिलाया तो थोड़ी देर में धो कर फेंक दूंगी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? कभीकभी ही तो रखी रह जाती है, हमेशा नहीं.’’ ‘‘कभीकभी नहीं अकसर रखी रह जाती है.’’ ‘‘अकसर कहां रखी रह जाती है?’’ तनु की आवाज में तेजी आ गई थी.

‘‘एक तो पाउच धो कर नहीं रखा, ऊपर से बहस कर रही हो. सुबहसुबह पाउच स्मैल करने लगता है. तुम्हारी हमेशा की आदत है… चाय की छलनी भी पड़ी है. अभी तक वह भी नहीं धो कर रखी,’’ नलिन भी तमतमा गया. ‘‘आप रसोई में घुसते ही क्यों हैं? जब देखो तब मेरे क्षेत्र में दखल देते रहते हैं,’’ तनु तुनक कर बोली. नाश्ते के लिए भीगे चने बीनते हुए उस के हाथ रुक गए, ‘‘खाना बनाने को कह दूं तो कह देते हो कि तुम्हें लैपटौप पर काम करना है.’’ ‘‘यह देखने के लिए कि हमारी मेहनत की कमाई का कैसा दुरुपयोग हो रहा है. देवीजी, पाउच का बचा हुआ दूध वैसा ही बंद पड़ापड़ा सड़ जाएगा, जब तक आप को उसे धोने की फुरसत मिलेगी,’’ कहते हुए नलिन ने पाउच धो कर डस्टबिन में डाल दिया.

‘‘हांहां मुझो तो कोई काम करना नहीं आता. 10 साल से तो भाड़ झोंक रही हूं,’’ नलिन की बात पर तनु तिलमिला गई. बड़बड़ाना जारी ही था तनु का कि नलिन रसोई से बाहर निकल गया. चने कड़ाही में छौंक कर तनु ने लंच बौक्स में परांठे, सब्जी और अचार रख कर उसे बंद कर दिया. काफी देर हो रही थी. आज उसे उठने में भी देर हो गई थी. हड़बड़ाहट में उस ने कुछ कच्चे चने ही प्लेट में निकाल दिए.

जल्दीजल्दी उन के ऊपर कच्चा प्याज बुरका फिर जैसे ही दही का कटोरा उठाया कि चिकनाई की वजह से वह हाथ से फिसल गया. सारा दही जमीन पर बिखर गया. ‘‘उफ शिट,’’ उस के मुंह से निकला, ‘‘आज तो वे वैसे ही बहुत नाराज हैं. देर भी हो गई है ऊपर से दही भी फैल गया मेरी लापरवाही से.’’ तनु ने जल्दी से चनों में नीबू छिड़का और प्लेटें हाथ में उठा कर बाहर आ ही रही थी कि बाहर से बाइक स्टार्ट होने की आवाज आई. उस ने प्लेटें मेज पर रख दीं और जल्दीजल्दी बाहर दौड़ी. तब तक बाइक अगले मोड़ पर मुड़ गई और नलिन आंखों से ओझल हो गया.

तनु निराश सी अंदर आ गई. घड़ी देखी 9.40 हो रहे थे. जरा सी ही तो देर हुई है, सिर्फ 10 मिनट. ऐसा भी क्या? कह कर तो जाते. लंचबौक्स भी नहीं ले गए, तनु ने मन ही मन सोचा. वह रसोई में जा कर सफाई करने लगी. मूड तो पहले ही उखड़ गया था. धीरेधीरे तनु को क्रोध आने लगा कि चले गए तो चले जाएं. अभी ऐसा क्या हो गया जो जनाब तुनक कर चले गए. कई बार कहा कि मेरे काम के बीच में न बोला करो पर नहीं. भुनभुनाते हुए उस ने आंच जला कर दूध की बोतल उबलने रख दी. इसी मुई के पीछे लड़ाई हुई आज. अब गुडि़या की बोतल से दूध पीने की आदत भी छुड़ानी है.

2 साल की होने को आई पर अभी भी दूध पीने के लिए बोतल ही चाहिए. अब उसे गुडि़या पर गुस्सा आने लगा. पर उस बेचारी की क्या गलती, वह तो नासमझ है अभी. फिर वह सोचने लगी कि मेरी ही गलती है. सोचती हमेशा हूं, पर छुड़ाने की कोशिश में कोई उपाय नहीं करती. आखिर ऐसा कब तक चलेगा. मोनू ने भी 3 साल तक बोतल से दूध पीया था. बड़ी परेशानी हुई थी. रसोई साफ कर के तनु जल्दी बाहर गई. आज उस का मन नहीं लग रहा था. गुडि़या पड़ोस में खेल रही थी. तनु ने गुडि़या को आवाज दी तो रीता उसे ले आई. ‘‘जा अपनी मां के पास, मुझे भी कालेज जाना है,’’

गुडि़या को प्यार से धौल जमाती हुई रीता ने गुडि़या को तनु के हवाले कर दिया. गुडि़या को ले कर वह जल्दी अंदर आ गई. उस का मन छटपटा रहा था कि रीता से कह दे आज गुडि़या के पापा बिना नाश्ता किए गुस्से में चले गए पर फिर मन काबू में कर लिया कि क्या बताना? अभी यह बताऊंगी फिर यदि वह कहीं बढ़ाचढ़ा कर अपनी भाभी या मां को बता देगी तो वे पूछने ही चली आएंगी. उन्हें पूरा विस्तार सहित वर्णन कर के सुनाओ. फिर फायदा ही क्या है? अपनी ही बदनामी होगी.

कल को महल्लेभर में हवा फैल जाएगी कि तनु की तो अपने पति से पटती ही नहीं है. जबतब नाराज हो कर भूखे ही चले जाते हैं बेचारे. यही तो होता है इस कालोनी में. हालांकि 10 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है. वैसे पड़ोसी अच्छे हैं. बच्चों के कारण उठनाबैठना हो जाता है. उन के घर में छोटे बच्चे नहीं हैं तो सब शौक से ले जाते हैं गुडि़या को खिलाने. वह भी सोचती है चलो अच्छा ही है काम आराम से हो जाता है थोड़ा, नहीं तो यह गुडि़या परेशान करती है. तनु ने गुडि़या को नहलाधुला कर तैयार किया.

फिर दोपहर बाद मोनू स्कूल से आ गया. मोनू के भी कपड़े बदलवा कर मुंहहाथ धुलाए. खाना खिला कर दोनों को सुला दिया. आज उस का मन बड़ा अनमना था. तनु को बीते दिनों की यादें सहलाने लगीं… जब उस की शादी हुई थी और नईनई आई थी तो नलिन कितनी तारीफ करता था उस की. तब नयानया चाव था. घर को खूब साफसुथरा और सजा कर रखती थी वह. उस की जौब अच्छी थी. दिनभर काम कर के भी वह घर सजाने में थकती नहीं थी. दिनरात कैसे इंद्रधनुष की तरह सतरंगे थे. फिर मोनू आ गया.

दोनों बहुत खुश हुए. वे दोनों मोनू की 1-1 हरकत को जिज्ञासु बन कर देखते, उस के साथ बच्चे बन कर खेलते. फिर मोनू हो गया. अब चाह कर मेड होने पर भी वह घर को उतना साफसुथरा नहीं रख पाती थी. मोनू में भी व्यस्त रहना पड़ता. मोनू के 5 साल के होतेहोते गुडि़या हो गई. तनु खुश हो गई कि उस का परिवार पूर्ण हो गया. वह सोचती अब और कुछ नहीं चाहिए. छोटीछोटी बातों को ले कर तो 10 वर्षों में सैकड़ों बार नोकझोंक हुई दोनों में पर ऐसा पहली बार हुआ कि नलिन नाश्ता और खाना छोड़ कर बिना बताए चला गया. इसीलिए तनु का बिलकुल मन नहीं लग रहा था किसी भी काम में.

उस ने भी खाना नहीं खाया. न नाश्ता ही किया. भूखी ही पड़ी रही. भूख के कारण रहरह कर क्रोध भी आ रहा था. मां के यहां रहने को कितना मन करता है, वह सोचने लगी पर रह नहीं पाती, इसीलिए कि इन्हें खानेपीने की तकलीफ होगी मेरे पीछे. उसे गए 10-12 दिन हुए नहीं कि नलिन के फोन आने लगेंगे, धड़ाधड़. फिर उस का मन ही नहीं लगता. पर मां से कहते हुए झिझक लगती है कि मैं अब जाऊंगी.

इसीलिए भाभी से कहलवाती है. पर भाभी भी कम थोड़े ही हैं, बहुत तेज हैं. बड़ी शरारत से मां से कहेंगी, ‘‘दीदी का अब मन नहीं लग रहा है मां आप के घर में. उन्हें भेज दीजिए.’’ तनु आंखें तरेरती है. तब चुटकी काट कर भाभी कहतीं, ‘‘अब आंखें क्यों दिखा रही हो? तुम्हीं ने तो कहा था कि मां से कह कर तुम्हें भिजवा दूं.’’ भाभी की शरारतें याद कर के तनु को मीठीमीठी गुदगुदी सी होने लगी कि बड़ी अच्छी हैं बेचारी, पर उन के पास अधिक दिन रह नहीं पाती. तनु फिर वर्तमान में लौट गई. पता नहीं क्या खाया होगा नलिन ने. 2 बार सोचा फोन करे पर फिर डर लगा कि कहीं वे गुस्सा न करें. कैंटीन का खाना नलिन को बिलकुल पसंद नहीं आता. मिर्च ज्यादा रहती है और वे मिर्च एकदम नहीं खा पाते, इसीलिए घर से खाना ले जाते हैं.

तनु का क्रोध बर्फ पर पड़ रही धूप की तरह धीरेधीरे पिघलने लगा. अब उसे स्वयं पर क्रोध आने लगा कि गलती मेरी है, ठीक ही तो कहते हैं नलिन, मैं छोटीछोटी बातों में बहुत लापरवाही करती हूं कई बार. सुबह से बहस में लग गई. बस यही कह देती कि भूल गई अभी रख दूंगी. बात वहीं खत्म हो जाती. तनु को मन ही मन ग्लानि होने लगी… कितना प्यार करते हैं नलिन उसे और एक वह है कि उन का जरा ध्यान नहीं रख पाती. बहुत देर से दबाया हुआ सैलाब उमड़ पड़ा. वह अभी रो ही रही थी कि मोनू जाग गया. उसे रोता देख कर वह सहम गया, ‘‘क्या हुआ मां?’’ मोनू ने पूछा. ‘‘कुछ नहीं,’’ तनु जल्दी से आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘तुम मुंह धो कर आओ मैं दूध ला रही हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ मोनू ने आगे कुछ नहीं पूछा और मुंह धोने चला गया. तनु रसोई में दूध गरम कर ही रही थी कि मोनू वहीं पहुंच गया, ‘‘अरे आज पापा लंच बाक्स नहीं ले गए?’’ रसोई में रखे लंचबौक्स को देख कर मोनू ने पूछा. बिलकुल बाप पर गया है, तनु मन ही मनु बड़बड़ाई. हर बात की खबर रहती है इसे. ‘‘क्यों नहीं ले गए मां,’’ मोनू ने कोई जवाब न पा कर फिर पूछा. ‘‘जल्दी में भूल गए और सुन, तू रसोई में मत घुसा कर. अभी से हर बात में ऐसा क्यों, वैसा क्यों नहीं करते.’’ झिड़की सुन कर मोनू चुप हो गया. फिर जल्दीजल्दी दूध पी कर अपने मोबाइल में बिजी हो गया.

तनु फिर सोचने लगी कि नलिन कहता है छोटीछोटी तकरार और नोकझोंक जीवन का स्वाद बदलने के लिए जरूरी है तनु. इस से आपसी प्यार भी बढ़ता है, पर इस की भी एक सीमा होनी चाहिए. उस चरमसीमा को हम कभी पार नहीं करेंगे. आज वह सीमा पार कर गई है क्या? नहीं, बिलकुल नहीं. तनु ने सोचा कि नलिन के आते ही वह उस से माफी मांग लेगी. गलती उसी की है. वह सीमा तो तब पार होगी जब उस का झठा अहं आड़े आएगा. पतिपत्नी के बीच अहं कैसा? 10 वर्षों से सुखी दांपत्य जीवन में उन के अहं आपस में कभी नहीं टकराए.

गलती महसूस हुई तो स्वीकार भी कर ली, नहीं हुई तो बात को वहीं छोड़ कर भूल गए. यह नहीं कि बोलचाल बंद हुई हो या मनमुटाव बढ़ गया हो. आज यह पहली बार हुआ कि नलिन तनु से बिना कुछ कहे चला गया. शायद ज्यादा नाराज हैं. तनु ने सोचा कि मना लूंगी. 5 बजते ही मोनू अपना होमवर्क पूरा कर मोबाइल छोड़ कर बालकनी में खड़ा हो गया. कितना भी खेल में मस्त होगा, पर न जाने उसे समय का अंदाज कैसे पड़ जाता है. नलिन की बाइक दिखते ही दोनों बच्चे खुश हो जाते हैं. ‘‘पापा, पापा आज आप अपना लंचबौक्स नहीं ले गए थे, फिर खाया क्या?’’ मोनू ने नलिन के आते ही गले में लटक कर पूछा. ‘‘खा लिया था कैंटीन में ही.’’ ‘‘पापा, आज मां पता नहीं क्यों रो रही थीं?’’ ‘‘चलो भागो, अपना काम करो,’’ नलिन चुगली की आदत पर नाराज हो गया.

कनखियों से नलिन के चेहरे पर होने वाली प्रतिक्रिया पर तनु ने गौर किया. एक क्षण को उस के चेहरे पर ग्लानि के भाव उभरे. ‘‘आज मेरे कारण ही सब हुआ. मुझ से सचमुच गलती हो गई,’’ तनु की रोंआसी सी आवाज निकली. अपनी सफाई में वह अधिक नहीं बोल पाई. ‘‘अरे नहीं, गलती मेरी है. तुम्हें तुम्हारे ढंग से काम नहीं करने देता, अपनी टांग अड़ाता हूं हर काम में,’’ नलिन तनु को बांहों के घेरे में समेट कर बोला, ‘‘और सुबह तो मैं गुस्से में था ही. अचानक याद आया कि आज तो जल्दी जाना था तो बस फटाफट तैयार हो कर चल दिया. मैं ने बाहर से ही आवाज भी दी थी कि मैं जा रहा हूं. शायद तुम ने सुना न होगा.

अंदर आ कर कहता तो तुम्हें सब बताना पड़ता. कहां जाना है? क्यों जाना है? देर हो जाती. इसलिए बाद में बहुत पछताया. बिलकुल समय नहीं मिला, नहीं तो बीच में मैसेज कर देता. एक के पीछे एक काम लगा रहा.’’ ‘‘मेरा तो दिनभर किसी काम में मन ही नहीं लगा,’’ तनु बोली, ‘‘अब ऐसा मत करना. कुछ खाया भी नहीं गया. पर अब मैं बेमतलब की बहस नहीं करूंगी. वादा करती हूं.’’ ‘‘ऐसे वादे तो तुम पहले भी कई बार कर चुकी हो और मैं भी कई बार कह चुका हूं कि मैं भी तुम्हारे काम में दखल नहीं दूंगा.

अब घरगृहस्थी की जिम्मेदारी तुम्हारी है, तुम जानो,’’ नलिन ठहाका लगा कर बोला. ‘‘चलो इसी खुशी में आज चाय मैं बनाता हूं.’’ ‘‘लेकिन तुम तो अभी कह रहे थे…’’ ‘‘कि तुम्हारे काम में दखल नहीं दूंगा. चाय बनाते समय खबरदार तुम किचन में आई. पकौड़े भी बनाऊंगा. चायपकौड़े बनाने के लिए थोड़े ही मना किया है,’’ नलिन ने इस ढंग से कहा कि तनु भी जोर से हंस पड़ी. उस की दिनभर की उदासी और नलिन की थकान दूर हो गई और दोनों खो गए फिर अपने सुखमय संसार में, जहां एकदूसरे के सान्निध्य में उन्हें एक अलौकिक सुख की अनुभूति होती है, आत्मिक तृप्ति मिलती है. Family Story in Hindi

Hindi Sad Story: सुख के सब साथी

Hindi Sad Story: ‘‘भैया, मैं… मैं जल्द ही आप के पैसे लौटा दूंगी, सच कहती हूं. लेकिन अभी मुझे पैसों की सख्त जरूरत है. प्लीज भैया,’’ घिघायाते हुए आरती अपने बड़े भाई से बोल रही थी कि इस संकट की घड़ी में मायके वालों के सिवा और कोई नहीं है जो उस की मदद कर सके. मगर आरती के भाई ने दोटूक शब्दों में यह बोल कर फोन रख दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं तो कहां से दे.

आरती ने जब अपने छोटे भाई मनोज से जोकि अपने परिवार के साथ बैंगलुरु में रहता है, मदद मांगी तो उस ने भी यह बोल कर फोन रख दिया कि इतने बड़े शहर में यहां अपना ही खर्चा चलाना मुश्किल है तो वह उसे पैसे कहां से दे पाएगा. फिर कई बार उस ने फोन मिलाया, पर उस के भाइयों ने फोन बंद कर दिया ताकि आरती फोन करकर के उन्हें परेशान न कर सके. दोस्त, नातेरिश्तेदारों ने भी इस आढ़े वक्त में आरती की मदद करने से इनकार कर दिया. जब अपनों ने ही मुंह मोड़ लिया तो परायों से क्या आस.

लेकिन आरती को अब समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करेगी? कहां से पैसे लाएगी? नरेश से तो कुछ बोल नहीं सकती है क्योंकि वह तो खुद ही अस्पताल में पड़ा है और बच्चे क्या समझेंगे उस की परेशानी? उन्हें तो यही पता है कि उस के पापा को चोट लगी है इसलिए अस्पताल में भरती हैं, जल्दी घर वापस आ जाएंगे. नरेश के ऐक्सीडैंट के बारे में बता कर वह बच्चों को टैंशन नहीं देना चाहती थी. इसलिए उन से इतना ही कहा कि उन के पापा को मामूली चोट लगी है, जल्दी ठीक हो कर घर आ जाएंगे. मगर बिट्टू अब कोई बच्चा नहीं रहा, सब समझता है वह.

दरअसल, उस रोज औफिस जाते समय नरेश की बाइक को पीछे से एक गाड़ी ने इतनी जोर का धक्का मारा कि वह सीधे खाई में जा गिरा. वह गाड़ी वाला तो वहां से भाग गया, लेकिन आसपास के लोगों ने दौड़ कर नरेश को वहां से बाहर निकाला वरना तो शायद वह वहां पड़ापड़ा मर ही जाता. उन लोगों ने ही पुलिस को खबर दी. नरेश को जल्दी अस्पताल पहुंचाया गया. आरती को जब नरेश के ऐक्सीडैंट की बात पता चली तो उस के तो हाथपांव ही थरथराने लगे थे.

दोनों बच्चे स्कूल में थे इसलिए पड़ोस में चाबी दे कर वह पागलों की तरह अस्पताल भागी. डाक्टर ने जब बताया कि उस ऐक्सीडैंट में नरेश के कमर और दोनों पैरों की हड्डियां टूट गई हैं तो आरती वहीं धम्म से जमीन पर बैठ कर बिलखबिलख कर रोने लगी. आरती की मनोस्थिति देख तभी नरेश के एक दोस्त ने अस्पताल में पैसे भर दिए थे ताकि जल्दी से जल्दी उस का औपरेशन शुरू हो सके.

औपरेशन के बाद डाक्टर ने बताया कि नरेश खतरे से बाहर हैं, लेकिन अभी उन्हें पूरी तरह से ठीक होने में कम से कम 6 महीने तो लग ही जाएंगे. ‘6 महीने’ सोच कर ही आरती का दिमाग घूम गया था क्योंकि अब घर का खर्चा, नरेश की दवाइयां, बच्चों की पढ़ाई वगैरह कैसे हो पाएगी. 6 महीने अकेले सबकुछ कैसे मैनेज करेगी वह? लेकिन जब इंसान पर दुख पड़ता है तो सहने की शक्ति भी आ जाती है. नरेश का एक दोस्त रात में उस के पास रुक जाता था. सुबह वह बच्चों को स्कूल भेज कर, घर के सारे काम निबटा कर अस्पताल चली आती थी.

इन दिनों वह जिन झंझवातों से गुजर रही थी वही जानती थी. पैसों की किल्लत, घरबच्चों की देखभाल और सुबहशाम अस्पताल के चक्कर लगातेलगाते वह थक चुकी थी तन और मन दोनों से. कभी मन होता नरेश को बताए. लेकिन वह तो खुद ही अभी बैड पर पड़ा कराह रहा है तो उस से क्या कहे. दर्द के मारे जब नरेश चिल्लाने लगता तो आरती दौड़ कर नर्स को बुला लाती ताकि वह उसे दर्द का इंजैक्शन लगा सके और नरेश चैन की नींद सो सके.

जब नरेश कभी यहां दर्द तो कभी वहां दर्द की शिकायतें करता तो मन ही मन आरती चिढ़ उठती कि खुद तो कष्ट में हैं ही, परिवार को भी कष्ट मे डाल दिया. क्या ठीक से बाइक नहीं चला सकते थे? कितनी बार समझया था आरती ने बाइक से नहीं कार से औफिस जाया करो. लेकिन वे कहते कि क्यों ज्यादा पैट्रोल खर्च करे जब बाइक से औफिस जाया जा सकता है. लेकिन कुछ पैसे बचाने के चक्कर में कैसे चक्कर में पड़ गए यह तो देखो. मगर क्या गारंटी थी कि कार से नरेश का ऐक्सीडैंट नहीं हो सकता था? होनी तो हो कर रहती है, चाहे जैसे हो. अपने मन में ही सोच आरती खुद को समझती. लेकिन ये सब जो समस्याएं आन पड़ी हैं उन से वह अकेले कैसे निबट रही है वही जानती है.

आज सोचती है पैसे बचा कर रखने की आदत डालती तो यों उस सब के सामने हाथ न फैलाना पड़ता. घर खर्च से जो भी पैसे बचते उन से वह शौपिंग कर आती थी. पैसे आते ही उस के हाथों में खुजली होने लगती थी. नरेश को पता था आरती बहुत खर्चालु औरत है. तभी तो वह उसे कोई कार्ड वगैरह हाथ में नहीं देता था. एक मायका ही था जिस से आरती को आस थी. लेकिन उन्होंने भी आरती की मदद करने से इनकार कर दिया. भाइयों का परायापन व्यवहार देख कर आरती के दिल को कितनी ठेश पहुंची थी वही जानती है.

लेकिन किस से कहे वह अपना दर्द? जिस भाई ने बचपन से उसे एक पिता की तरह प्यार किया, आज कैसे वह एकदम से पराया हो गया सोच कर ही आरती के आंसू नहीं रुक रहे थे. जिस छोटे भाई को आरती ने अपनी गोद में खेलाया, आज उसी भाई को बहन का दर्द दिखाई नहीं दिया. कैसे पलट कर बोल दिया कि यहां अपने ही खर्चे कम हैं क्या? यही आरती अपने भाइयों को राखी बांधती आई है. उन की लंबी उम्र की दुआ मांगती आई है. लेकिन आज जब उस के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है तो कैसे उन्हीं भाइयों ने उस से मुंह फेर लिया. कहावत है न, ‘हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और.’

समाज की नजरों में एक अच्छे भाई बनने का सिर्फ दिखावा किया उन्होंने. लेकिन आज जब सच में कुछ करने की बारी आई तो हाथ खड़े कर दिए. आरती के भाईभाभियों का कुछ महीनों से अजीब व्यवहार हो गया था क्योंकि जब भी आरती तीजत्योहार पर अपने मायके जाती, निश्चित तौर पर उन के बीच झगड़ा शुरू हो जाता था. हमेशा की तरह भावनाओं में बह कर आरती सब के लिए उपहार ले कर जाती ही थी.

लेकिन कैसे उस की भाभी उस के लाए उपहार कहीं कोने में रख देती और कहती कि अब ये सब लाने की क्या जरूरत थी. जितनी हंसीखुशी से आरती अपने मायके जाती थी उतनी ही दुखी हो कर वापस आती थी. फिर भी कभी आरती को यह नहीं लगा कि अब उस का मायका पहले जैसा नहीं रहा.उसे तो अब भी यही लगता था कि उस के भैयाभाभी उस से बहुत स्नेह रखते हैं. लेकिन आज आरती का भ्रम टूट चुका था.

अपनी ससुराल वालों से आरती किस मुंह से मदद मांगती क्योंकि उस ने ही तो उन से अपना सारा नातारिश्ता खत्म कर लिया था. नरेश के दिल में उन के प्रति इतनी नफरत भर दी कि नरेश अपने परिवार वालों को देखना भी नहीं चाहता कि वह उन की जिंदगी में कोई दखल दें या यहां आएं. नरेश के परिवार वाले उस की सुखसुविधाओं और संपन्नता से जलते हैं. उस के मातापिता नरेश से ज्यादा अपने बड़े बेटेबहू और उन के बच्चों को प्यार करते हैं. तभी तो हर वक्त उन्हें उन्हीं की चिंता लगी रहती है.

आरती यह कहकह कर नरेश के मन में उन के लिए जहर भरती रहती थी कि कहीं घर और जमीनजायदाद भी उस के मातापिता अपने बड़े बेटेबहू के नाम न कर दें. आरती की बातों में आ कर नरेश को भी लगने लगा था कि उस के मांपिताजी उस से ज्यादा उस के बड़े भाई विनोद को प्यार करते हैं. तभी तो जब देखो उन की ही फिक्र लगी रहती है उन्हें. लेकिन नरेश यह बात भूल गया कि पैसे की कमी के बावजूद उस के पिताजी ने उसे बाहर पढ़ने भेजा था ताकि वह एक बड़ा इंजीनियर बन सके.

तब विनोद भी तो बोल सकता था न कि उसे शहर पढ़ने क्यों नहीं भेजा गया? उसे क्यों नहीं इंजीनियर बनाया? क्यों उसे 12वीं तक पढ़ा कर खेतीबाड़ी में लगा दिया गया? लेकिन कभी उस ने अपने मुंह से ऐसी बात नहीं निकाली बल्कि वह तो खुश होता था अपने छोटे भाई को इतनी बड़ी पोस्ट पर देख कर. जब भी विनोद दिल्ली अपने भाई के घर आता उस के जीनेरहने के तौरतरीके देख कर खुश हो जाता था.

आरती के सासससुर जब भी दिल्ली आते, अपने साथ घर का बना घी, पेडे़, देशी चबाना ले कर आते थे. मगर खुश होने के बजाय आरती मुंह बनाते हुए कहती, ‘‘हुं. कौन खाता है ये सब चीजें. बेकार में माता लाया करो, बरबाद ही होते हैं,’’ कह कर वह अपनी सास के सामने ही उन के लाए सामान को घर के नौकर को दे देती थी. बेचारी उस की सास को कितना बुरा लगता होगा यह उस ने कभी नहीं सोचा. उन के आने से घर के काम बढ़ जाते थे, जगह छोटी पड़ जाती थी. इस बात की भी वह नरेश से शिकायत करती. आरती यह बोल कर नरेश के कान भरती, ‘‘जानते हो तुम्हारे मांबाबूजी क्या बोल रहे थे? कह रहे थे कि नरेश को तो इतनी अच्छी नौकरी है, अपने दोनों बेटों को बड़ेबड़े स्कूल में पढ़ालिखा सकता है. प

र बेचारा विनोद क्या करेगा. कैसे 3-3 बेटियों को पालेगा? सोच कर ही मुझे चिंता होती है. तुम्हारे मांबाबूजी के बोलने का मतलब है कि हम अपना हिस्सा छोड दें. अरे, हम क्यों छोड़ें अपना हिस्सा? देखो, मैं तो कहती हूं जितनी जल्दी हो सके अपना हिस्सा ले कर रामसलाम कर दो इन्हें. कल को क्या पाता अगर तुम्हारे मांबाबूजी नहीं रहें तो तुम्हारे भैयाभाभी तो सारी संपत्ति हड़प लेंगे. फिर समझ लो कुछ हाथ नहीं आएगा हमारे. कब से सोच रही हूं एक बड़ा 3 कमरे वाला घर हो हमारा.

बच्चे बड़े हो रहे हैं तो इन्हें भी तो अब अपना कमरा चाहिए कि नहीं.’’ आरती की कही 1-1 बात नरेश को सही लगने लगा था. उसे भी लगने था कि अगर उस के मांबाबूजी को कुछ हो गया तो कहीं उस के भैयाभाभी सारी संपत्ति अपने नाम न करा लें. इसलिए अपने मांबाबूजी से लड़झगड़ कर नरेश ने अपना हिस्सा अपने नाम करवा लिया और फिर उस संपत्ति को बेच कर उसने यहां दिल्ली में बड़ा घर खरीद लिया. नरेश और आरती के पराए व्यवहार से दुखी हो कर उन लोगों ने यहां आना ही छोड़ दिया फिर.

अब आरती यही तो चाहती थी कि उस की ससुराल वाले उन से दूर रहें ताकि वह अपने मायके वालों का खुल कर सत्कार कर सके. जब भी आरती के मायके वाले दिल्ली आते, आरती पागलों की तरह उन की खातिरदारी में लग जाती थी और सिर्फ आरती ही नहीं, नरेश भी उन के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे. उन की खातिरदारी में कोई कमी न रहे इसलिए वह छुट्टी ले कर तैनात रहता था.

कभीकभी तो महीनोंमहीनों वे आरती के घर रह जाते थे क्योंकि कहां बिहार का एक छोटा सा शहर और कहां दिल्ली जैसा बड़ा शहर. आते तो फिर जाने का मन ही नहीं होता उन का. क्या तब आरती के घर का बजट नहीं बिगड़ता था? उस के मायके वालों के आने से उस का घर छोटा नहीं पड़ता था? कैसे खुशीखुशी वह उन के लिए रोज नएनए पकवान बनाती और खिलाती थी. छुट्टी ले कर, पैट्रोल खर्च कर नरेश उन्हें दिल्ली की सैर कराता. बड़ेबड़े होटलों में पार्टी देता. लेकिन कभी उफ तक नहीं करता कि इतना खर्च क्यों करती हो, कहां से लाऊंगा मैं पैसे? जब वे लोग यहां से जाने लगते तो आरती सब के लिए महंगेमहंगे उपहार खरीदती.

उन के लिए प्लेन का टिकट भी वही कटवा कर देती थी यह बोल कर कि क्या बेटी का हक नहीं है अपने मायके वालों के लिए कुछ करने का? मगर आज उन्हीं मायके वालों ने कैसे उसे ठेंगा दिखा दिया. आरती को दुख तो इस बात का है कि भाभियां तो फिर भी दूसरे घर की हैं, लेकिन दोनों भाई तो उस के अपने थे न? फिर कैसे उन्हें उस का दुख नजर नहीं आया. मां के गुजरने के बाद जिन भाइयों को उस ने पिता का दर्जा दिया और भाभियों को मां का, उन्होंने ही इस संकट की घड़ी में उस से मुंह मोड़ लिया.

अभी भी आरती को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा है कि उस के भाइयों ने उस की मदद करने से इनकार कर दिया. सही कहते हैं लोग कि सुख के सब साथी, दुख में न कोई. जब आरती के पास पैसा था कैसे वही लोग लाड दिखादिखा कर यहां चले आते थे. लेकिन आज वही लोग मुसीबत पड़ने पर देखने तक नहीं आए. शायद यह सोच कर कि कहीं अस्पताल के सारे बिल उन्हें ही न चुकाने पड़ जाएं, इसलिए कोई भी बहाना बना दिया, सोचते हुए आरती ने एक गहरी सांस भरी कि तभी नर्स आ कर उसे दवाई का परचा पकड़ा गई और कहा कि इसे तुरंत लाना है. अब तक गिरवी रखी 2 सोने की चूडि़यों से खर्चे चल रहे थे. लेकिन अब आगे वह क्या करेगी समझ नहीं आ रहा था.

कभी इन्हीं भाईभतीजों पर आरती ने दोनों हाथों से पैसे लुटाए थे लेकिन आज वही 1-1 पैसे के लिए मुहताज हो रही है. उस के खर्चीले स्वभाव देख कर कभीकभी नरेश कहता भी कि आरती, घर खर्च से जो भी पैसे बचते हैं, उन्हें बचत खाते में डाल कर भूल जाया करो. देखना कभी काम आएंगे. मगर हंसते हुए आरती कहती कि जिंदगी 4 दिन की होती है नरेश. खाओपीयो, मौज करो. कभी उस ने नरेश की बातों को सीरियसली लिया ही नहीं. अगर कुछ पैसे जोड़े होते तो आज यह नौबत न आती.

नरेश के लिए सीमित आमदनी और बढ़ती महंगाई में घर चलना कितना मुश्किल हो जाता था यह आरती समझती ही नहीं थी. दिल्ली जैसे महानगर में एक इंजीनियर की तनख्वाह से क्या हो सकता था? केवल दोनों बच्चों की पढ़ाई में ही लाखों रुपए स्वाहा हो जाते थे. लेकिन आरती को कौन समझए यह सब. उसे तो बस होटलों में खाना, घूमना और मायके वालों को बुलाने से ही फुरसत नहीं थी. आरती के खर्चीले व्यवहार के कारण कभीकभी नरेश चिंचित हो उठता था.

कहता कि किसी पर खर्च करो, मना नहीं करता मैं, पर अपनी हैसियत के अनुसार खर्च करो. हम कोई अंबानी या टाटा, बिरला तो हैं नहीं कि खर्चे का हम पर कोई असर नहीं पड़ेगा.अगर मैं आर्थिक रूप से कमजोर हो जाऊंगा तो तुम भी हो जाओगी. मगर आरती को समझने का मतलब था पत्थर पर सिर पटकना और तो और वह नरेश को ही कंजूस बोल कर उस का मजाक उड़ाती थी. लेकिन आज उसे एहसास हो रहा है कि नरेश कितना सही कहते थे. खैर, अब जो भी जेवर बचे थे उन्हें ही बेच कर वह किसी तरह घर चलाएगी क्योंकि अभी नरेश को दवाइयां और पौष्टिक खाने की जरूरत है. बच्चों की पढ़ाई का खर्चा, सब कैसे हो पाएगा? इसलिए आरती अपने गहने ले कर सुनार के पास चली गई.

गहने देखनेपरखने के बाद सुनार ने उसे 1 लाख और कुछ हजार दिए. अभी वह पैसे ले कर दुकान से निकली ही थी कि एक आदमी ने पीछे से टोका कि बहनजी, आप का कुछ गिर गया है. वह देखने के लिए जैसे ही मुड़ी, दूसरा आदमी उस के हाथ से पर्स ले कर रफूचक्कर हो गया. वह भागी उस के पीछे, चिल्लाई. उस की मदद के लिए वहां खड़े लोग भी भागे भी पर न जाने वह आदमी कहां लापता हो गया. वहां खड़े लोग कहने लगे कि चोरों का एक गिरोह है यहां, इसलिए उसे संभल कर रहना चाहिए था. सही कहते हैं, जब मुसीबत आती है तो चारों तरफ से आती है.

अपने आंसू पोछते हुए किसी तरह लड़खड़ाते कदमों से आरती आगे बढ़ने लगी. समझ नहीं आ रहा था अब क्या करेगी ? कहां से पैसे लाएगी? मन तो कर रहा था ट्रेन के नीचे सिर दे दे ताकि सारी मुसीबतों से छुटकारा मिल जाए. लेकिन वह भी नहीं कर सकती थी वह क्योंकि वहां अस्पताल में पति पड़ा है और घर में बच्चे उस का इंतजार कर रहे हैं. इतने दिनों से कैसे उस ने अपने आंसू जब्त किए हुए हैं वही जानती है क्योंकि न तो वह बीमार पति के सामने रो सकती थी और न ही बच्चों के समाने. सारे दुख अपने अंदर समेटे तिलतिल कर मर रही थी. आरती कुछ देर पार्क की बैंच पर जा कर बैठ गई और सिसकसिसक कर रोने लगी. उसे आज पूरी दुनिया वीरान, सुनसान लग रही थी. वह अपनेआप को आज एकदम अकेला महसूस कर रही थी. उसे लग रहा था ये रिश्तेनाते सब झठे हैं. कोई किसी का नहीं है इस दुनिया में.

सब मतलबी और स्वार्थी हैं. जब सुख और अच्छा वक्त था, मायके वाले उस के साथ रहे. जब तक वह सब के मनमुताबिक चलती रही, उन के काम आती रही, अच्छी थी. लेकिन आज उस पर दुख की जरा सी छाया क्या पड़ गई, सब कैसे पराए हो गए. सपने में भी नहीं सोचा था कि उस के मायके वाले यों उस से मुंह फेर लेंगे. संपत्ति भाइयों के हाथ आते कैसे उन के तेवर भी बदल गए. आरती के पिता के मरते ही दोनों भाइयों ने सारी संपत्ति बराबर में बांट ली. दोनों बहनों को पूछा तक नहीं. लेकिन क्या यहां पापा की गलती नहीं थी? अगर वे जीतेजी अपने चारों बच्चों में संपत्ति का बंटवारा कर देते तो अच्छा नहीं होता. आरती की बड़ी बहन गीता गुस्से से उबल रही थी. उस का कहना था कि जब संपत्ति में वे दोनों भी बराबर की हकदार हैं, फिर क्यों छोड़ें अपना हक? उन के भी तो बच्चे हैं, उन्हें भी तो अपने बच्चों को ऊंची शिक्षा दिलानी है.

अगर आरती साथ दे तो वे अपना हक मांग सकती हैं. अगर देने से आनाकानी करेंगे तो फिर कानून तो है ही. गीता का कहना था कि वे अपना हक कानून के जरीए ले सकती हैं. लेकिन उस की बात पर आंखें बड़ी कर आरती बोली थी कि क्या अब अपने भाइयों को हम कोर्ट में घसीटेंगे? और कमी क्या है हमें जो कुछ पैसों के लिए हम भाइयों से अपना रिश्ता बिगाड़ें? नहीं चाहिए हमें कोई हकवक. मायका बना रहे, मानसम्मान मिलता रहे यही काफी है. अगर गीता को लेना है तो मांगे जा कर, पर उसे कुछ भी नहीं चाहिए और तब से ही दोनों बहनों में मतभेद हो गया था. दोनों ने एकदूसरे के घर आनाजाना और बातचीत करना भी बंद कर दिया था.

नहीं पता था आरती को कि जिन भाइयों के लिए उस के दिल में इतना प्यार और सम्मान था, जिन के लिए उस ने अपनी बड़ी बहन से रिश्ता बिगाड़ लिया, ससुराल वालों की भी परवाह नहीं की, उन्हीं भाइयों के दिल में उस के लिए इतना मैल भरा है. सही कहती थी गीता कि यह सब बस कुछ दिनों का दिखावा है. देखना एक दिन ये हमें पूछना तो दूर अपने घर में चढ़ने तक नहीं देंगे. मगर तब आरती ने उस की बातों को एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दिया था. उसे लगा था गीता पगला गई है, इसलिए कुछ भी बोल देती है. उसे अपनी बहन एक लालची औरत और भाइयों का दुश्मन नजर आई थी, लेकिन आज लगता है गीता कितनी सही थी. कितना समझती थी वह उन्हें. आरती ही पगली थी जो अपने पति की मेहनत की कमाई उन पर लुटाती रही. तभी फोन की घंटी से आरती वर्तमान में पहुंच गई. देखा तो बिट्टू का फोन था. वह बिट्टू को नरेश के पास छोड़ आई थी कि पता नहीं कब उसे किस चीज की जरूरत पड़ जाए. पिंकी छोटी है उसे अस्पताल में नहीं छोड़ सकती थी.

लेकिन बिट्टू जरा समझदार है इसलिए उसे ही नरेश के पास कुछ देर छोड़ देती है रोज ताकि घरबाहर के काम कर सके. फोन पर बिट्टू की घबराहट भरी आवाज सुन कर आरती के तो होश ही उ़ड़ गए. उसे लगा कहीं नरेश को कुछ हो तो नहीं गया ? ‘‘क्या हुआ बिट्टू… तुम्हारे पापा तो ठीक हैं न? बता न?’’ घबराते हुए आरती बोली. मगर बिट्टू ने यह बोल कर फोन रख दिया कि जल्दी आओ. किसी तरह दौड़तेहांफते आरती जब अस्पताल पहुंची तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो वह देख रही है सही है.

उस की ससुराल वाले नरेश को घेरे खड़े थे और नरेश मुसकरा रहा था, ‘‘मां…’’ कह कर आरती अपनी सास के गले लग कर फूटफूट कर रोने लगी. उस का रोना देख सास की भी रुलाई फूट पड़ी. ‘‘तो क्या हम इतने पराए हो गए कि छोटे बबुआ के ऐक्सीडैंट की खबर भी नहीं दे सकती थी? बिट्टू न बताता तो हमें पता भी नहीं चलता,’’ एक मीठे उलाहने के साथ आरती की जेठानी ने भींच कर उसे सीने से सटा लिया. अभी कुछ देर पहले जो आरती अपनेआप को बहुत अकेला और कमजोर समझ रही थी, इन्हें देख अपनेआप को ताकतवर महसूस करने लगी. लगा एकदम से दुख आधा हो गया उस का.

अपने परिवार से मिल कर नरेश कैसे अपना सारा दर्द भूल कर हंस रहा था और बच्चे भी अपने दादादादी, तायाताई को देख कितने खुश नजर आ रहे थे. मन ही मन आरती अपनेआप को कोस रही थी कि उस ने ही नरेश को उस के परिवार से तुड़वाया, सब के लिए उस के मन में जहर भरा. कितनी बेइज्जती की थी उस ने अपनी ससुराल वालों की, वह भी सिर्फ अपने मायके वालो के लिए. लेकिन आज इस दुख की घड़ी में इन्हीं लोगों ने उस का साथ दिया. डाक्टर को अंदर आते देख सब साइड में खड़े हो गए. जांच कर हंसते हुए डाक्टर ने कहा कि नरेश अच्छा इंपूर्व कर रहा है और अगर ऐसा ही रहा तो जल्द ही वह अपने घर जा सकता है. सुन कर सब हर्षित हो गए कि नरेश ठीक हो रहा है. तभी पीछे से किसी का स्पर्श पा कर जब आरती मुड़ी और सामने अपनी बड़ी बहन गीता को देखा तो भरभरा कर उस की आंखों से आंसू बहने लगे. गीता को भी बिट्टू ने ही फोन कर नरेश के एंक्सीडैंट की खबर दी थी.

‘‘दीदी, मुझे माफ कर दो मैं ने आप के साथ बहुत गलत…’’ मगर गीता ने बीच में ही उस के मुंह पर उंगली रख दी यह बोल कर कि जो हुआ उसे भूल जाओ. ‘‘नहीं दीदी, नहीं भूल सकती मैं. कैसे मैं ने आप का अपमान किया था. यहां तक कि मैं ने आप को लालची और भाइयों का दुश्मन भी बोल दिया था. लेकिन फिर भी आप सबकुछ भूल कर नरेश को देखने आईं. लेकिन हमारे स्वार्थी भाइयों ने जो मेरे साथ किया उसे मैं कभी भूल नहीं सकती दीदी. देख लिया मैं ने दीदी कि कौन मेरे सुख के साथी थे और कौन दुख के हैं. वादा करती हूं दीदी कि अब से आप जो कहोगी मैं वही करूंगी,’’ कह कर आरती बहन के गले लग गई. Hindi Sad Story

Hindi Fiction Story: अंतिम किस्त

Hindi Fiction Story: अब तक आप ने पढ़ा:

बेटी के गायब होने की बात उस के ससुराल वालों को बताना, रोमेश की समझ से बाहर की बात थी. वह एक ऐसे मामले को उजागर करना चाहता था जो न सिर्फ पेचीदा था, दिलचस्प भी था. एक दिन उसे कुछ अहम जानकारी मिली. वह उस मुख्य स्रोत तक पहुंचना चाहता था कि तभी एक अजीब घटना घट गई…

अब आगे पढ़ें:

अगले दिन शाम को प्रिया और एक बार फिर धीर रोमेश के घर पहुंच गए. इस बार दरवाजा एक लड़की ने खोला. 20-21 वर्ष की उम्र रही होगी. गोरीचिट्टी, नैननक्श बहुत ही सुंदर. रेशमी सलवार सूट पहन रखा था. ‘‘किस से मिलना है?’’ आश्चर्य से आंखें फाड़े उस ने दोनों को देखा. उस की आंखें भी सुंदर थीं. उस लड़की को देखते ही दोनों चौंके. दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. वह लड़की ईशा थी. ‘‘रोमेशजी और आप से भी.’’ उस लड़की ने जब यह सुना कि दोनों पत्रकार हैं तो लगभग दौड़ती हुई भीतर चली गई.

1 मिनट में रोमेश बाहर आए. रोमेश इस के पहले कुछ कहें, उलटासीधा बोलना शुरू करें उस से पहले ही धीर ने बोलना शुरू कर दिया, ‘‘हम दोनों सुरेश के यहां गए थे. उन से बात की है. वे तो जो कह रहे हैं वह अलग मामला है. आप ने जो बताया है उसे गलत जानकारी बता रहे हैं?’’ धीर को उम्मीद थी कि सुरेश का नाम चमत्कार करेगा. हुआ भी यही, रोमेश तुरंत उन दोनों को अंदर ले गए. ‘‘क्या कह रहे हैं वे?’’ ‘‘उन का कहना है कि वे आप से खुद मिलने यहां आए थे. आप ने ही उन्हें बुलाया था.

आप ने ही उन्हें बताया कि ईशा गायब है. उन का यह भी कहना है कि ईशा का हवाईटिकट शिकागो से भेज दिया गया था, आप को टिकट मिल गया था. टिकट मिलने के बाद आप ने यह बताया ईशा नहीं जा सकती. वह घर में नहीं है.’’ रोमेश एकबारगी सकपका गए. फिर तुरंत उन्होंने खुद को संभाला. बोले, ‘‘वे क्या कह रहे हैं यह मैं नहीं जानता. मैं अपनी बात पर कायम हूं. देखिए हम लोग वैसे ही इस घटना को ले कर काफी परेशान हैं. मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद की गई है. कृपया इस समय हम लोगों को हमारे हाल पर छोड़ दीजिए.’’ ‘‘हो सके तो एक बार ईशा से बात करा दीजिए. हमें संतोष हो जाएगा. वे सच बोलेंगी.

आप इजाजत देंगे तो केवल मेरी कलीग भीतर जा कर उन से अकेले में बात कर लेगी.’’ जैसी आशा थी, रोमेश इस पर तैयार होने की जगह भड़क गए, ‘‘वह सच बोलेगी यानी मैं आप से झठ बोल रहा हूं? देखिए मेहरबानी कर के चले जाइए वरना मुझे पुलिस को सूचित करना पड़ेगा.,’’ रोमेश ने धमकी दी. ‘‘अरे रहने दीजिए इतना कष्ट क्यों करेंगे. हम खुद जा रहे हैं.’’ हालांकि धीर को अच्छी तरह से मालूम था रोमेश इन परिस्थितियों में पुलिस को फोन कतई नहीं करेंगे. रोमेश को धन्यवाद कह कर दोनों वहां से निकल आए.

‘‘रोमेश अभी भी झठ बोल रहा है. मुझे लगता है कि ईशा के भागने की बात सही है. लेकिन क्यों? क्या कारण हो सकता है?’’ प्रिया ने गेट से बाहर आते ही तुरंत इतनी उत्सुकता जाहिर की. ‘‘एक बार सुरेश से फिर से बात की जाए. मुझे तो दूसरा ऐंगल लग रहा है.’’ ‘‘क्या?’’ ‘‘पतिपत्नी और वह का लफड़ा. कहीं ईशा का दूसरे लड़के से तो चक्कर नहीं है?’’ थोड़ा हिचकते हुए धीर ने अपनी राय प्रिया के सामने रखी. धीर की बात पर प्रिया ने कोई आश्चर्य व्यक्त नहीं किया. जैसे वह पहले से इस ऐंगल को ले कर सोच रही थी. ‘‘हो सकता है. ईशा ने उस लड़के के चक्कर में शिकागो जाने से मना किया हो.

जब उस पर दबाव पड़ा तो भाग गई. शर्म से रोमेश ने सुदीप के घर वालों को यह तो बताया वह घर पर नहीं है पर किसी लड़के साथ गुम हुई है इसे छिपा गए. यह बताना आसान भी नहीं था. मुझे लगता है कि अगर ऐसा है तो सुदीप के मांबाप को भले ही न मालूम हो पर सुरेश को इस बारे में जरूर कुछ मालूम होगा. उन्होंने भी तो छानबीन की होगी?’’ ‘‘एक बार सुरेश को फिर से फोन मिलाना. इस बार मुझ से बात कराना,’’ धीर ने प्रिया से कहा. सुरेश का फोन मिलते ही प्रिया ने धीर को मोबाइल दे दिया.

मोबाइल हाथ में लेते ही धीर ने सुरेश से सीधे पूछ लिया, ‘‘भाई साहब कहीं ऐसा तो नहीं ईशा का शादी के पहले किसी और लड़के से अफेयर चल रहा था? यहां आने के बाद फिर से उस से संबंध बन गए हों? उस लड़के की वजह से ही उस ने सुदीप से संबंध तोड़ लिया हो? उसी के साथ रहना चाहती हो?’’ कुछ सैकंड तक फोन पर चुप्पी बनी रही. फिर सुरेश बोले, ‘‘प्रिया की एक सहेली है निशा. वह भी पंजाबी है.

रोमेश साहब की बगल की ही कोठी में रहती है. उस से बात करें. ईशा से संबंधित उस के पास बहुत सी जानकारी होनी चाहिए. हमेशा दोनों साथ रहती थीं.’’ ‘‘उस से कैसे बात होगी सुरेशजी? आप की उस से बात हुई है क्या?’’ ‘‘देखिए इस में मुझे मत घसीटिए. हम सभी लोग एकदूसरे को जानते हैं. निशा के परिवार से भी मेरा परिचय है. हम सब को यहीं एकसाथ रहना है. मैं उस की कोठी का नंबर दे देता हूं. आप वहां जा कर उस से मिल लें. फोन नंबर मुझे नहीं मालूम,’’ सुरेश ने कहा.

सुरेश ने कुछ बताने से मना कर दिया, लेकिन जिस तरह उन्होंने सहेली का सूत्र पकड़ाया, उस से धीर समझ गया कि कुछ न कुछ मामला है. रोमेश से चिढ़े सुरेश चाहते हैं सारा कुछ बाहर आए. लेकिन रिश्ते की वजह से खुद सामने आने से बचना चाह रहे हैं. सुरेश ने निशा की कोठी का नंबर बता दिया. निशा से मिलना जरूरी था. जब तक यह पता नहीं चलेगा ईशा शिकागो वापस क्यों नहीं गई,कोई खबर नहीं बनेगी. 1 घंटे बाद दोनों ही ग्रेटर कैलाश में सुरेश के बताए पते पर पहुंच गए. दरवाजा संयोग से निशा ने ही खोला.

2 अपरिचितों से अपना नाम सुन कर थोड़ा सकपकाई. लेकिन ईशा का नाम सुनते उन से बात करने को तैयार हो गई. इस शर्त के साथ कि खबर में उस का कहीं भी नाम न आए. पूरी बातचीत में धीर ने प्रिया को आगे कर दिया. प्रिया ने पहले निशा को बताया कि वे दोनों किसकिस से मिल चुके हैं, क्या जानकारी अभी तक मिली है. बातचीत में निशा ईशा से काफी नाराज दिखी, ‘‘बहुत बड़ी बेवकूफी की उस ने. एक अच्छेखासे लड़के का जीवन बरबाद कर दिया.

अपने परिवार के साथ उस के परिवार की इज्जत दांव पर लगा दी. वह अमेरिका से आई तो उस से मिली थी. लेकिन जब यह सब पता चला उस के बाद उस से मिलने ही नहीं गई. न ही उस से मिलने की इच्छा है, जबकि बगल में ही रहती है.’’ ‘‘किस लड़के की वजह से यह सब उस ने किया? ईशा भाग कर उस दिन कहां गई थी?’’ प्रिया ने सीधे यह सवाल किया. ‘‘वह योगेश के यहां घर से भाग कर गई थी. उसी के यहां 2-3 दिन रही थी,’’ निशा ने बगैर संकोच बताना शुरू किया,’’ मैं उस के और योगेश के चक्कर को पहले से जानती थी. उस ने मुझे बता रखा था.

कालेज में हम तीनों अकसर साथ रहते थे. लेकिन जब शादी की बात चली और वह खुशीखुशी से शादी के लिए तैयार हो गई तो मुझे कुछ अजीब लगा. लगा बड़ा घर, पैसे, विदेश के नाते उस ने योगेश से अपना रिश्ता खत्म कर दिया. फिर सोचा व्यावहारिकता के नाते उस ने यह सही फैसला किया है. योगेश गरीब परिवार से है, नौकरी भी नहीं थी. शादी उस से करती तो दोनों की जिंदगी में दिक्कतें आतीं.

‘‘जब वह अमेरिका से आई तो मैं उस से मिलने गई. अकेले में मिलते ही योगेश के बारे में पूछना शुरू कर दिया. मुझे आश्चर्य हुआ. मुझे लगा कि अब शादी हो गई है, वहां इतने दिन रह कर आई है, सब भूल गई होगी. पर वह योगेश को संदेश देने और उस से मिलने की जिद करने लगी. मैं ने उसे डांटा और समझया भी कि यह सब बंद करो. आग से मत खेलो. पर वह पीछे पड़ी रही कि योगेश तक मैं उस का संदेश पहुंचा दूं.’’ ‘‘फिर?’’ ‘‘मैं ने योगेश को कोई संदेश नहीं पहुंचाया.

बाद में वह यूनिवर्सिटी जा कर योगेश से मिली. दोनों के बीच फिर क्या योजना बनी यह मुझे नहीं मालूम. पर इतना जानती हूं कि वह जब घर से भागी थी तो 3-4 दिन योगेश के यहां रुकी थी. उस के पिताजी खोजते हुए जब मेरे पास आए थे तो मैं ने उन्हें योगेश के घर का पता दे दिया था,’’ निशा ने बताया. ‘‘योगेश कहां रहता है?’’ ‘‘सरिता विहार में.’’ ‘‘आप को योगेश के घर का पता कैसे मालूम हुआ?’’ ‘‘शादी के पहले मैं ईशा के साथ 1-2 बार उस के घर जा चुकी थी. मुझे तो ईशा पर आश्चर्य है. सुदीप के मुकाबले किसी चीज में योगेश उस के बराबर नहीं है. पागल है यह लड़की.

अपना बसाबसाया घर उजाड़ लिया,’’ निशा का गुस्सा ईशा की करनी पर बहुत ज्यादा था, लेकिन इस गुस्से में अपनी सहेली के प्रति उस का प्यार भी झलक रहा था. ‘‘आप लोग इस मामले पर खबर दे रहे हैं क्या?’’ निशा ने पूछा ‘‘क्या तुम्हें नहीं लगता ईशा ने गलत किया है और ऐसा दूसरे के साथ न हो इसलिए यह खबर सामने आनी चाहिए?’’ प्रिया ने जवाब में उस से उलटा सवाल किया. निशा कुछ नहीं बोली. यह एक टेढ़ा सवाल था. इस पर हां या न में जवाब देना उस के लिए मुश्किल था. ‘‘मेरी तो अभी तक यह समझ में नहीं आया कि उसे योगेश के साथ रहना था तो उस ने दूसरी जगह शादी ही क्यों की? रोमेश अंकल काफी आजाद खयाल के हैं. ईशा को उन्होंने काफी आजादी दे रखी थी. अब शादी के बाद इतनी हिम्मत दिखा रही है तो क्या शादी के पहले यह साहस नहीं दिखा सकती थी? रोमेश अंकल मान भी जाते.’’

निशा का कहना सही था. सचमुच ईशा को योगेश से इतना प्यार था और इतनी हिम्मत थी तो उस ने यह लड़ाई शादी के पहले क्यों नहीं लड़ी? क्यों शादी के बाद 2 परिवारों को तबाह करने के लिए यह विद्रोह किया? प्रिया ने निशा से योगेश का पता पूछा. उस ने दे दिया. बाहर निकलने से पहले जैसे धीर को कुछ याद आया, उस ने पलट कर निशा से पूछा, ‘‘आप सुरेशजी को जानती हैं क्या?’’ ‘‘जी हां. वे यहां आए भी थे.’’ धीर को जो संदेह था वह सही साबित हुआ.

सुरेश ने निशा का पता बगैर किसी कारण के नहीं दिया था. जाहिर है उन्हें प्रियायोगेश के प्रेम का किस्सा पहले से पता था और वे चाहते थे कि यह जानकारी उन्हें भी मिले. निशा से मिलने के बाद धीर को और एक बात काफी परेशान कर रही थी. निशा के घर से बाहर निकलते ही उस ने प्रिया से इसे साझ किया, ‘‘प्रिया पता नहीं निशा से बात करते समय मुझे बारबार यह क्यों लग रहा था कि इस लड़की को मैं पहले से अच्छी तरह जानता हूं. कहीं करीब से देखा है, मिल चुका हूं इस से.’’

‘‘कहीं करीबवरीब से आप ने नहीं देखा है. न ही इसे पहले से जानते हैं आप. आप ने सुरेश के यहां जो ईशा की शादी का वीडियो देखा था, तस्वीरें देखी थीं उन में कई जगह यह लड़की निशा के साथ नजर आ रही थी. पता नहीं आप लड़कों को किसी लड़की को देखते ही यह क्यों लगने लगता है, पहले देखा है, मिल चुका हूं.’’ पहली बार प्रिया इस तरह से धीर से खुली, उस की खिंचाई की. धीर झेंप गया.

3-4 दिन की रिपोर्टिंग में खबर के साथ प्रिया की दिलचस्पी धीर में बढ़ने लगी थी. उसे यह भी लगता कि होशियार होने के बावजूद वह कुछ रूखा है. इतनी सुंदर लड़की साथ है 4 दिन बीत जाने के बाद भी उस ने कभी मजाक में भी अपनी दिलचस्पी नहीं जाहिर की. एकदम प्रोफैशनल बरताव. निशा के यहां से निकलतेनिकलते शाम हो गई थी, इसलिए तय हुआ कि सरिता विहार, ईशा के कथित प्रेमी से मिलने दूसरे दिन चलेंगे. निशा ने सरिता विहार में योगेश के जिस मकान का पता दिया था, वह एक साधारण एलआईजी फ्लैट था. योगेश की मां मिलीं, योगेश घर में नहीं था.

2 कमरे का मकान. 1 कमरे में एक तरफ पुराना सोफा पड़ा था. दूसरी तरफ दीवार से सटा एक दीवान. मां ने बाहर के ही कमरे में प्रिया और धीर को बैठाया. योगेश के पिता का 5 साल पहले एक ऐक्सीडैंट में निधन हो गया था और इस फ्लैट में केवल मां और बेटा रहते हैं. योगेश की मां ने यह भी बताया कि वे म्युनिसिपल कौरपोरेशन में काम करती हैं. योगेश की पढ़ाई से ले कर घर का खर्च कौरपोरेशन से मिलने वाले उन के वेतन से ही चल रहा है.

प्रिया की नजर कमरे के कोने में रखी मेज पर रखे फोटोफ्रेम पर पड़ी. उस में एक लड़के के साथ एक लड़की की तसवीर लगी थी. ‘‘यह तसवीर किस की है?’’ ‘‘मेरे बेटे योगेश की.’’ ‘‘और साथ में ईशा है?’’ स्याह पड़ गया था मां का चेहरा. दरअसल, अभी तक दोनों ने यह नहीं बताया था कि वे ईशा के सिलसिले में यहां आए हैं. उन्होंने योगेश की मां को इतना ही बताया था कि वे पत्रकार हैं और योगेश से कुछ बात करने आए हैं. योगेश चूंकि क्रिकेट का खिलाड़ी था, विश्वविद्यालय की टीम में था, इसलिए उस की मां ने यही सोचा था कि ये लोग बेटे के इंटरव्यू के लिए आए होंगे.

इस नए रहस्योद्घाटन के बाद उन्हें काटो तो खून नहीं. बात यहां तक बिगड़ जाएगी कि अखबार वाले आने लगेंगे, यह सोच कर उन की घबराहट बढ़ गई. ‘‘जी…’’ कुछ देर की चुप्पी के बाद उन के मुंह से आवाज निकली. ‘‘मांजी हम केवल यह जानना चाहते हैं कि ईशा यहां कितने दिन रुकी थी?’’ धीर ने पूछा. ‘‘3 दिन.’’ ‘‘उस के पिताजी लेने आए थे?’’ ‘‘हां, पर उन्होंने हम लोगों से कुछ कहा नहीं.’’ ‘‘आप को पता था कि आप के बेटे और ईशा का चक्कर चल रहा है?’’ ‘‘ठीक से जानकारी नहीं थी. पहले मुझे लगा था दोनों दोस्त हैं. एकसाथ पढ़ते हैं. जब ईशा यहां 3-4 बार आई तो मैं ने योगेश से पूछा था कि क्या मामला है, पर उस ने मुझे इधरउधर की बातें कह कर टाल दिया.

7 मई को जब ईशा यहां बैग ले कर आई तो मैं चौंकी. जिस तरह उस ने गहने पहन रखे थे, मांग में सिंदूर था उस से मैं घबरा गई. पहले लगा योगेश शादी कर के यहां ले आया है, फिर उन्होंने जब सारी बात बताई तो मैं योगेश के साथ ईशा पर भी बिगड़ी. मैं समझ रही थी कि उस के मांबाप पर क्या बीत रही होगी. पर योगेश और उस की जिद के आगे मैं कुछ नहीं कर पाई. 11 मई को प्रिया के पिता कार से आए और उसे ले गए.’’ ‘‘आप घबराइए नहीं.,’’ इस बार प्रिया बोली, ‘‘हम कुछ ऐसा नहीं लिखने जा रहे हैं जिस से आप की दिक्कतें बढ़ें. हम लोग योगेश का नाम भी नहीं लिखेंगे न ही आप के घर का कोई अतापता.’’ योगेश के घर से बाहर निकलते ही प्रिया बोल पड़ी, ‘‘सी इज जस्ट अ क्रेजी गर्ल.

पिता ने उसे जो आजाद छोड़ा था, उसी का नतीजा उन्हें भुगतना पड़ा. जब जो मन हुआ उस ने वह किया. प्यार क्या होता है वह जानती तक नहीं. ऐसे थोड़े ही होता है. विवाह में उस के साथ जबरदस्ती की गई होती तो माना भी जा सकता था.’’ प्रिया बोल रही थी, धीर हैरानी से उस का चेहरा देख रहा था. वह समझ गया प्रिया ईशा पर गुस्सा निकाल रही है. योगेश की मां से मिल कर वह कुछ ज्यादा भावुक हो गई है. उसे लगा प्रिया सुदंर होने के साथसाथ समझदार भी है. ‘‘और आप यह बारबार योगेश की मां से चक्कर की क्या बात कर रहे थे. चक्कर कोई शब्द होता है. प्यार करने और चक्कर चलाने में अंतर होता है. दोनों प्यार करते थे एकदूसरे से बस.’’ चलतेचलते धीर के कदम रुक गए.

उस ने प्रिया के चेहरे को गौर से देखा. उस के चेहरे पर कोई भाव नहीं था. बनावटी गुस्सा जरूर दिखाई दिया. ‘‘सारी मैम,’’ धीर ने मुसकराते हुए कहा. खबर पूरी हो चुकी थी. सारी जानकारी इक्ट्ठी हो गई थी. दोनों दोपहर में योगेश के घर से सीधे कनाट प्लेस पहुंचे. वहां एक रेस्तरां में चाय पी. ‘‘स्टोरी लिखने के बाद मैं तुम्हें दिखा दूंगा,’’ धीर ने रेस्तरां से बाहर निकलने के बाद प्रिया से कहा. ‘‘पढ़ने की उत्सुकता तो है. पर छपने के बाद इक्ट्ठे पढ़ेंगे. सस्पैंस बना रहेगा.’’ ‘‘तुम्हारा नाम भी होगा.

बाद में कहने लगे यह क्या लिखा है, मैं यह चाहती थी, मैं वह चाहती थी.,’’ धीर ने हंसते हुए कहा. ‘‘आप जो कुछ भी लिख कर संपादक को देंगे, उस में मेरी सहमति रहेगी, मुझे दिखाने की कोई जरूरत नहीं है.’’ ‘‘जो कुछ हो, पर तुम ने अपने को एक बढि़या इन्वैस्टिगेटिंग रिपोर्टर साबित किया है.’’ ‘‘अब खिंचाई न कीजिए,’’ प्रिया ने मुसकरा कर कहा. वैसे उसे धीर से अपनी प्रशंसा सुन अच्छा लगा था. धीर ने 2 दिन बाद पूरी खबर लिख कर संपादक की मेज पर रख दी. खबर पर दोनों की बाईलाइन थी. ‘‘कर लिया पूरा काम? क्या नतीजा आप ने निकाला है?’’ संपादक ने पूछा. धीर ने संक्षेप में पूरी खबर बताई. किस से मुलाकात हुई, क्या बात हुई, इस सब का ब्योरा संपादक को दे दिया.

‘‘ईशा के प्रेमी और उस की मां से की गई बातचीत का खुलासा जानबूझ कर खबर में नहीं किया है. वे लोग अच्छे हैं, गरीब भी हैं. मैं ने यह जरूर बताया है कि ईशा शिकागो वापस नहीं गई, उस की वजह उस का पुराना अफेयर था. इस बारे में घर के लोग कोई जवाब नहीं देते, उस के साथ पढ़ने वाले का हवाला दिया है और कहा है कि उन से इस बारे में पुख्ता जानकारी मिली. यह बताने की कोशिश की है कि विदेशों में बसे अप्रवासी भारतीय युवकों के साथ भारतीय लड़कियों की होने वाली शादियों में धोखाधड़ी का नतीजा भारत में रहने वाली लड़की को ही नहीं कुछ मामलों में धोखे का शिकार विदेश में बसे युवक और उन के परिवार भी हो जाते हैं. इस मामले में ऐसा ही हुआ है.’’ ‘‘ठीक है… ठीक है.

लेकिन इस बार तो यह छप नहीं सकती. मैगजीन क्लोज हो गई है. अगले इशू में लेंगे इसे.’’ धीर को कोई दिक्कत नहीं थी. ऐसी स्टोरी नहीं थी कि एक अंक के बाद पुरानी पड़ जाए. ‘‘सर परसों से मुझे 3 दिन की छुट्टी चाहिए. घर जाना है,’’ उस ने संपादक के सामने अपनी अर्जी बढ़ा दी. संपादक ने धीर को छुट्टी की मंजूरी दे दी. उस दिन शाम को दफ्तर से निकलने के बाद वह प्रिया से मिला. उसे बताया कि उस ने स्टोरी दे दी है. अगले इशू में आएगी. फिर तुरंत पूछा,’’ आधे घंटे का समय हो तो चाय पीने चलें?’’ प्रिया तैयार हो गई. धीर कुछ परेशान था. खबर पूरी हो चुकी थी. एक बड़ी चुनौती खत्म हो गई.

दिक्कत अब यह थी कि इस स्टोरी की वजह से प्रिया का जो हफ्ते से ज्यादा समय का साथ था, वह अब खत्म हो जाएगा. बातचीत की भी कम गुंजाइश रहेगी. प्रिया का साथ उसे अच्छा लगने लगा था. उस का हंसना, उस का हां कहना, न कहना, साथ चलना, हर चीज का विश्लेषण करना, उस की समझ, उस की तुनकमिजाजी सभी कुछ अलग था. इन सब का वह आदी बनता जा रहा था. उस ने अपनी छवि और खबर पर इतना जोर दे रखा था कि प्रिया के दिल में क्या है, इस की जानकारी उस के पास नहीं थी.

उसे यही लगता था कि वह उसे एक दोस्त समझने लगी है, इस नाते फ्री हो चुकी है, मजाक कर लेती है बस. फिर उस की शादी करीब तय थी. घर से लगातार दबाव पड़ रहा था. वह घर जा भी रहा था इसी सिलसिले में. इसलिए प्रिया को ले कर आगे की दिशा में सोचने की गुंजाइश भी नहीं थी. ‘‘चलो एक दिलचस्प असाइनमैंट पूरा हुआ. तुम नहीं रहतीं तो ये सब चीजें बाहर नहीं आतीं,’’ ढाबे से बाहर निकल कर विदा होने के पहले धीर ने बात शुरू की. ‘‘ऐसा भी कुछ नहीं था. आप जानबूझ कर मुझे बांस पर चढ़ा रहे हैं.’’ ‘‘पता नहीं क्यों तुम्हें यह लग रहा है.

सच पूछो तो तुम्हारी वजह से ही लोग मिलने को तैयार हुए, उन में विश्वास पैदा हुआ और उन्होंने खुल कर बात की खासकर उस लड़की की दोस्त निशा और योगेश की मां ने.’’ प्रिया कुछ बोली नहीं. ‘‘मैं परसों बाहर जा रहां हूं. 3 दिनों के लिए.’’ ‘‘कहां?’’ ‘‘ घर कई बार बुलावा आया है’’ ‘‘सब ठीक तो है न? कोई जरूरी काम?’’ ‘‘सब ठीक है. काम वगैरह भी जरूरी नहीं है. असल में मेरे घर वाले 1 साल से मेरी शादी के चक्कर में पड़े हैं.

किसी लड़की को देखने और रिश्ता फाइनल करने जाना है. मैं लगातार सालभर से टालमटोल कर रहा था,’’ पता नहीं कैसे धीर के मुंह से निकल गया. प्रिया से वह इस समय यह बात कहेगा, उस ने सोचा तक नहीं था. घर से आ कर शादी के बारे में उसे खबर देगा, ऐसी ही उस की योजना थी. शायद किसी अनजाने अपराधबोध के दवाब में उस के मुंह से यह निकल गया. प्रिया एकबारगी सन्नाटे में आ गई. उस के चेहरे पर अजीब तरह का तनाव आ गया जिसे धीर ने स्पष्ट महसूस किया. इस के पहले कि वह आगे किसी निष्कर्ष पर पहुंचे, प्रिया अचानक बोल पड़ी, ‘‘बहुत ही कमीने हैं आप.’’ सन्न रह गया धीर, एकदम से हड़बड़ा गया. लगा कानों के पास कोई तेज धमाके वाला बम फट गया हो.

जो लड़की अभी तक आप से तुम पर नहीं उतर पाई थी, इतने दिनों तक एक भी फालतू शब्द जिस से नहीं सुना था, उस ने अचानक बेतकल्लुफी की सारी हदों को कैसे पार कर लिया, वह समझ नहीं पाया. एक क्षण में सारी औपचारिकताएं, एकदूसरे के बीच कुछ हद तक अपनेपन की खड़ी दीवार गिर गई. प्रिया ने उसे कमीना कह दिया था, बगैर किसी संकोच के. चलतेचलते धीर रुक गया. प्रिया भी रुक गई. दोनों एकदूसरे को देख रहे थे. धीर ने पाया उस के चेहरे पर कोई पछतावा नहीं है, किसी तरह का कोई भाव नहीं है. बस तनाव है. उस की आंखों में झंझलाहट जरूर दिखाई दी.

धीर का दिमाग काम करने लगा. प्रिया की यह प्रतिक्रिया उस की शादी की खबर सुनने के बाद आई थी. उसे सारा कुछ समझ में आने लगा. सचमुच वह मूढ़ था इसीलिए तो उसे इतने दिनों तक यह सब समझ में आया नहीं. उसे अब यह समझ में आने लगा कि क्यों जब भी उस ने चाहा, जब भी कहा प्रिया साथ रुकने को तैयार हो जाती थी, कहीं भी बेधड़क साथ चलने के लिए हामी भर देती थी.

क्या यह स्टोरी के लिए ही था? 1 मिनट बीत गया. दोनों को इसी तरह खड़ेखड़े. धीर कुछ कहने की स्थिति में नहीं था. प्रिया ठंडी और उदासीन निगाहों से उसे अभी तक देख रही थी. फिर एक झटके में बोली, ‘‘चलती हूं.’’ ‘‘चलो घर छोड़ दूं.’’ ‘‘कोई बात नहीं. मैं चली जाऊंगी,’’ उस का लहजा जस का तस था. यह पहली बार नहीं था जब धीर ने घर छोड़ने की बात कही थी. 2-3 बार पहले उस ने पूछा था, घर तक छोड़ा भी था. एक बार तो प्रिया ने धीर को घर के भीतर बुलाया, चाय बना कर पिलाई, अपने मम्मीपापा से परिचय कराया. धीर उसे जाते देखता रहा.

प्रिया ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा. 4 दिन में ही धीर घर से लौट आया. दफ्तर पहुंचा, सुबह से इस अवसर की तलाश में था कि प्रिया से आमनासामना हो. वैसे प्रिया ने सुबह दफ्तर आने पर उसे देख लिया था. लेकिन उस के सामने नहीं आई, विश नहीं किया. धीर समझ गया प्रिया जानबूझ कर उस की उपेक्षा कर रही है. लंच ब्रेक हुआ, प्रिया हमेशा की तरह स्तंभ विभाग में ही अपनी उन्हीं महिला सहयोगियों के साथ लंच कर रही थी. धीर वहां पहुंच गया. उसे वहां अचानक देख प्रिया के साथ बैठी तीनों लड़कियां भी चौंक गईं. उस समय तो वे सभी हैरान रह गई जब धीर ने प्रिया से बड़ी बेशर्मी से पूछा, ‘‘एक परांठा फालतू है क्या?’’ प्रिया का लंच बौक्स खुला था, उस में परांठेसब्जी दिख रहे थे. हड़बड़ा प्रिया गई.

उस के साथ बैठी लड़कियों के दिमाग में एकसाथ एक ही बात आई, कितना बदतमीज लड़का है यह. वे प्रिया के गंभीर स्वभाव को 1 साल से देख रही थीं. उन्हें यह भी अजीब लगा कि प्रिया ने गुस्से में होने के बावजूद बिना कुछ कहे चुपचाप टिफिन से एक परांठा निकाल कर धीर की तरफ बढ़ा दिया. टिफिन में रखी सब्जी को भी आगे कर दिया. धीर ने खड़ेखड़े ढीठ बन कर परांठा खाया.

चलतेचलते उस ने प्रिया से यह भी कहा कि वह औफिस के बाद 2 मिनट बात करना चाहता है. प्रिया को धीर की यह हरकत बिलकुल पसंद नहीं आई. खून का घूंट पी कर रह गई. धीर उस के हफ्तेभर के संबंध का इस तरह फायदा उठाएगा, औफिस के 4 लोगों के सामने जलील करेगा, सपने में भी उस ने ऐसा नहीं सोचा था. धीर जा चुका था. मौके की नजाकत देख वह नहीं बोल पाई थी. लेकिन उस ने फैसला कर लिया कि वह शाम को धीर से जरूर मिलेगी. उसे उस की औकात बताएगी.

क्या समझ लिया उस ने अपनेआप को? कैसे सब के बीच औफिस में इस तरह की उस के साथ हरकत कर बैठा. अभी तक निकटता, साथ बिताए समय, अच्छी यादों का कोई दबाव काम कर रहा था जिसने उसे रोक लिया, नहीं तो. दिनभर गुस्से में प्रिया जलीभुनी बैठी रही. शाम को छुट्टी हुई तो गेट पर बाकायदा धीर के निकलने का उस ने इंतजार किया.

धीर के मिलते ही एकदम से फट पड़ी, ‘‘वह क्या मजाक था?’’ धीर समझ गया. उसे अंदाजा था इस का. ‘‘2 मिनट रुक जाओ. लोग औफिस से निकल रहे हैं. सब के सामने तमाशा बन जाएंगे हम दोनों. थोड़ी देर बाद जो चाहे कह लेना,’’ धीर ने विनती के अंदाज में फुसफुसाते हुए कहा. प्रिया मामले की नजाकत समझ कर चुप हो गई. जैसे ही दोनों औफिस से आगे बढ़े, प्रिया बोल पड़ी, ‘‘अब पहले यह बताइए कि लंच में वैसी हरकत क्यों की थी? आप को इस का अंदाजा है कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे? मैं तो आप को एक अच्छा और सोबर लड़का समझती थी.’’ ‘‘वह तो मैं हूं,’’ धीर ने मजाक किया. धीर की यह बात सुनते ही प्रिया एक बार फिर भड़क गई.

धीर ने तुरंत हाथ जोड़ लिए. प्रिया ने किसी तरह खुद को शांत किया. ‘‘मैं तुम्हें सुबह से यह बताने को परेशान था कि घर पर क्या हुआ?’’ ‘‘मुझे बताने के लिए आप क्यों परेशान थे?’’ ‘‘क्योंकि तुम मेरी दोस्त हो, तुम्हें मालूम था कि मैं अपनी शादी के सिलसिले में वहां गया था.’’ प्रिया कुछ नहीं बोली. उसे इस के बाद कुछ बोलना अच्छा नहीं लगा. न ही वह यह सुनने को उत्सुक थी कि धीर के घर में क्या हुआ. ‘‘यह बात आप कभी भी बता सकते थे, औफिस के बाहर बता सकते थे. कल बता सकते थे.’’ धीर ने कुछ नहीं कहा.

वह प्रिया के चेहरे पर उतरतेचढ़ते, बदलते रंगों को गौर से देख रहा था. ‘‘जल्दी बताइए क्या हुआ घर पर? लड़की पसंद आ गई न? कब शादी कर रहे हैं?’’ प्रिया ने ही इस चुप्पी को तोड़ा. हालांकि उस की बात में किसी तरह की उत्सुकता धीर को नहीं दिखाई दी. ‘‘शादी नहीं हो रही है यही तो बताना था. लड़की पसंद नहीं आई.’’ प्रिया ने चौंक कर धीर की तरफ देखा, ‘‘फिर?’’ ‘‘फिर क्या. मैं ने घर वालों को मना कर दिया. मैं ने उन से कहा मैं ने एक लड़की पसंद कर ली है. दिल्ली में रहती है.’’ ‘‘अरे आप हैं क्या? मांबाप से भी झठ बोल दिया?’’ ‘‘मैं ने एकदम झठ नहीं बोला.

मैं ने उन को यह भी बताया कि लड़की सुंदर है लेकिन दिक्कत यह है कि वह लड़की गाली दे कर बात करती है.’’ यह सुनते ही प्रिया एकदम शांत हो गया. दिमाग घूम गया, वह समझ गई धीर क्या कह रहा है. लेकिन वह यह नहीं समझ पा रही थी कि वह इस के बाद बोले क्या. आक्रोश की जगह गंभीरता ने ले ली. धीर का भी मजाक का मूड खत्म हो चुका था.

बात सीरियस थी और दोनों इसे समझ रहे थे. ‘‘क्या यह संभव है?’’ ‘‘क्या संभव है?’’ जान कर अनजान बनते हुए प्रिया ने पूछा. ‘‘मुझ से शादी करोगी?’’ अरे… जिसे वह खड़ूस समझती रही वह इतना साहसी निकला? कम से कम इस इंसान से इस तरह से सीधे सवाल पूछे जाने की उसे कोई उम्मीद नहीं थी. प्रिया ने धीर के सवाल का सीधे जवाब नहीं दिया. बोली, ‘‘मेरी शादी मम्मीपापा पर निर्भर है?’’ ‘‘क्यों मजाक करती हो? मम्मीपापा से पूछ कर बताएगी आज्ञाकारी बेटी?’’ धीर मुसकराता प्रिया भी मुसकरा दी. धीर प्रिया को उस के घर के बाहर तक छोड़ने गया.

रास्ते में उस ने प्रिया को बताया कि जाते समय पूरे रास्ते ट्रेन में उस के बारे में ही सोचसोच कर वह परेशान होता रहा. उस ने यह भी बताया कि वह भी उसे पसंद करने लगा था, लेकिन किसी फैसले पर नहीं पहुंच पा रहा था. घर का दबाव था, उन की तरफ से लड़की पसंद कर ली गई थी. प्रिया के मन में क्या है वह जानता नहीं था. ‘‘यह सच है कि तुम से मिलने के पहले उस लड़की के प्रति आकर्षण था, पर उस के लिए कभी प्यार नहीं महसूस कर पाया था. तुम से मिलने के बाद भी दुविधा यह थी कि पता नहीं तुम्हारे दिल में क्या है. लेकिन घर जाने के ऐन पहले जो कुछ हुआ, तुम जैसे गुस्सा हुईं उस से सब साफ हो गया.

घर पहुंचने के पहले मैं ने फैसला कर लिया था. उस लड़की को देखने गया ही नहीं क्योंकि देखने के बाद इनकार करता तो उस का अपमान होता. ये सारी बातें मां को विस्तार से समझईं तो वे मान गईं,’’ धीर ने कहा. ‘‘यह तो बहुत बड़ा रिस्क लिया था आप ने. मैं ने तो आप से कुछ कहा नहीं था. मना कर देती तो आप दोनों तरफ से गए होते,’’ प्रिया को खिंचाई का मौका मिला. ‘‘तुम ने तो जो कहा वह अल्टीमेट था. गाली दे कर किसी के सामने अपने प्यार का दोटूक इजहार दुनिया में इस के पहले किसी भी लड़की ने नहीं किया होगा. लेकिन तुम ने इतनी बड़ी गाली कैसे दे दी यार… उसे पचाने में कई दिन लग गए,’’ धीर हंसा तो प्रिया झेंप गई. ‘‘पता नहीं कैसे मुंह से निकल गया,’’ प्रिया ने हलके से कहा.

ईशा को ढूंढ़तेढूंढ़ते प्रिया और धीर ने एकदूसरे को खोज लिया था. दोनों की शादी हो गई. शादी के बाद प्रिया ने नौकरी छोड़ दी. दोनों इस बात से सहमत थे कि पतिपत्नी को एक जगह नौकरी नहीं करनी चाहिए. साथ रहते 2 महीने हो चुके थे. सुबह बिस्तर पर धीर के साथ चाय पीते हुए प्रिया को अचानक सबकुछ याद आने लगा. धीर कैसे पहली बार उस के पास आया था, 1 हफ्ते में ही वह उस से किस कदर प्यार करने लगी, फिर लगा सबकुछ खत्म हो गया. सबकुछ नाटकीय तरीके से हुआ. ‘‘उस खबर का क्या हुआ जो हम ने साथ की थी. संपादकजी ने तो एक अंक के लिए रोका था. तुम से शादी की व्यस्तता में यह सब भूल ही गई थी. और उस ईशा का क्या हुआ? योगेश के साथ है या शिकागो वापस गई? तुम को फौलोअप करना चाहिए था?’’ उस ने धीर से कहा.

‘‘मुख्य स्टोरी तो छपी ही नहीं, तुम फौलोअप की बात कर रही हो. पहले अंक में न छपने के कुछ दिन बाद संपादक ने बुला कर बताया कि उन के पास कई फोन आ चुके हैं, परिचित हैं सभी, नाम बदलने पर भी सभी को अंदाजा हो जाएगा, इसलिए अब मैगजीन में देना ठीक नहीं है. वह खबर भूल जाओ. मेरी इन खबरों में दिलचस्पी थी भी नहीं. बस एक अफसोस है.’’ ‘‘क्या?’’ हालांकि प्रिया जानती थी कि धीर किस बारे में कह रहा है. लेकिन वह यह बात उस से सुनना चाहती थी. ‘‘शादी के कार्ड में सभी जोड़ों के साथ नाम रहते हैं.

हजारों पाठकों के हाथ में जाने वाली मैगजीन में साथ हम दोनों का नाम रहता तो यह भी एक अनोखी चीज होती, उसी तरह जैसे एक गाली ने हमारी शादी तय की,’’ धीर हंसते हुए बोला. ‘‘ईशा का क्या हुआ?’’ प्रिया ने तुरंत बात पलट दी. ‘‘मैं ने पता लगाने की कोशिश नहीं की. वह तो 15 दिन पहले एक मंत्री के डिनर में सुरेश, सुदीप के फूफाजी से मुलाकात हो गई. उन्होंने ही मुझे पहचाना. ईशा की बात चली तो उन्होंने बताया 1 महीने पहले वह शिकागो चली गई है सुदीप के पास. उस के घर वालों ने ही शिकागो में संपर्क किया था. बताया ईशा अफसोस कर रही है, वहां जाने को तैयार है, बचपना हो गया था उस से. सुदीप अमेरिका में पैदा हुआ, वहीं बड़ा हुआ है.

वहां इन सब बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते. तलाक फिर विवाह, फिर तलाक यह सब आम बात है. चलो अंत भला तो सब भला, भारतीय फिल्म की तरह इस कहानी का अंत भी सुखद रहा.’’ ‘‘कैसे सुखद रहा?’’ प्रिया तुनक कर बोली, ‘‘उस लड़के पर क्या बीती, जिस ने प्रिया की वजह से इतना झेला. उस की मां का क्या? एक गरीब की मुहब्बत के साथ एक शहजादी ने जब चाहा तब खिलवाड़ किया. गरीबी एक बार फिर पैसे के आगे हार गई. उस गरीब लड़के के प्यार को ठुकरा कर ईशा ने दूसरे से शादी की, फिर उस के पास प्यार की दुहाई देते हुए आई और फिर उसे ठुकरा कर चली गई.

पति से प्यार होता तो शिकागो जाने से मना ही क्यों करती? फिर अपने प्रेमी को क्यों छोड़ा, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह अमीर नहीं था? यही न, फिर इस कहानी का अंत सुखद कैसे हुआ?’’ ‘‘तुम तो सही में फिल्म का डायलौग बोलने लगी. भाड़ में जाए ईशा और सुदीप. हम पर तो ईशा ने एहसान किया. उस की वजह से हमारी शादी हो गई,’’ कहते ही धीर ने प्रिया को खींच कर अपनी बांहों में भर लिया. hindi fiction story

Romantic Story: बेनाम रिश्ता

Romantic Story: हर रोज की तरह आज भी शाम की चाय पीने के बाद तृष्णा अपने कमरे की गैलरी में भावशून्य सी खड़ी बाहर की ओर टकटकी लगाए देख रही थी. अपने बंगले की सब से प्यारी जगह उसे अपनी गैलरी ही लगती थी, वहां से वह मसूरी की खूबसूरत वादियों, आकाश में उड़ते पंछियों, मुसकराते फूलों और उन पर मंडराते भौंरों व तितलियों को घंटों निहारती रहती हैं. एक ऐसी प्यास है तृष्णा की आंखों में जो उस के नाम को सार्थक करती है लेकिन आज तक इस बंगले का कोई भी व्यक्ति यह न जान पाया कि वह कौन सी तृष्णा है इस तृष्णा के भीतर.

अभी बारिश का महीना है और पहाड़ों में बारिश का अंदाज ही कुछ और होता है. यह वही समझ सकता है जिसे यहां की बारिश की बूंदों ने छुआ हो, बारिश की फुहार बेरंग होते हुए भी फिजाओं को खुशगवार और रंगीन बना देती है लेकिन आज की इस मूसलाधार बारिश में ऐसी कोई बात नजर नहीं आ रही है. ऐसा लग रहा है जैसे आज की यह तूफानी बारिश किसी की जीवनदशा को मोड़ने या फिर बिखेरने के लिए बरस रही हो. यह तूफानी बारिश न जाने क्या कहर बरसाने वाली है. इतनी घनघोर बारिश और तेज हवा में भी तृष्णा अपनी गैलरी में मसूरी के अडिग पहाड़ों की तरह तटस्थ खड़ी हुई है.

वैसे तो यहां पहाड़ियों में अंधेरा जल्दी घिर आता है लेकिन आज की इस तूफानी बारिश की वजह से समय से पहले ही अंधियारे ने दस्तक दे दी. स्ट्रीट लाइट और बंगले की लाइट जलने के बावजूद सबकुछ धुंधला दिखाई दे रहा है. तभी बंगले के गेट के करीब एक औटोरिकशा आ कर रुका. उस में से एक औरत उतरी और उस ने अपना छाता खोला और फिर बंगले की ओर बढ़ने लगी. तभी जोरदार बिजली कौंधी जिस से उस औरत का खूबसूरत चेहरा तृष्णा ने देखा और देखती रह गई.

साधारण सी साड़ी में लिपटी हुई वह प्रकृति की अनुपम कृति थी. तृष्णा सोचने लगी यह कौन है? इस से पहले तो उस ने कभी इसे इस बंगले में नहीं देखा. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सामने तृष्णा का सेक्रैटरी और बंगले का केयर टेकर प्रकाश उसी औरत के साथ खड़ा था. तृष्णा को देखते ही उस खूबसूरत औरत ने उसे धीरे से सिर झका कर नमस्ते कहा. तभी प्रकाश बोला, ‘‘मैडम, मैं ने आप को जिस नर्स के बारे में बताया था यह वही नर्स है तृप्ति. यदि आप की अनुमति हो तो कल से यह साहब की सेवा में हाजिर हो जाएगी.’’ तृष्णा ने घूर कर तृप्ति की ओर देखा और फिर बोली, ‘‘प्रकाश, तुम जाओ मैं इस से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’ ‘‘जी मैडम,’’ कह कर प्रकाश वहां से चला गया. तृष्णा बड़ी शान के साथ अपने कमरे में रखे काउच पर पैर के ऊपर पैर चढ़ा कर बैठ गई और फिर बोली, ‘‘तुम्हें पता है न. तुम्हें काम क्या करना है?’’ ‘‘जी मैडम इस बंगले के मालिक और आप के पति की देखभाल करनी है.’’

तृष्णा जोर से हंसी और फिर उस ने बड़े ही रोब से कहा, ‘‘नहीं, तुम्हें इस बंगले के मालिक की देखभाल नहीं करनी है क्योंकि इस बंगले की मालिक मैं हूं. तुम्हें केवल मेरे बीमार पति की देखभाल करनी है जो न बोल सकते, न सुन सकते और न ही बिस्तर से उठ सकते हैं क्योंकि पिछले 5 सालों से पैरालाइज्ड हैं. तुम्हें उन का सारा काम करना होगा, सारा काम….कर पाओगी?’’ ‘‘जी मैडम, मैं साहब का सारा काम कर लूंगी. मैं ट्रेंड नर्स हूं, मैं ने हौस्पिटल में काम किया है,’’ तृप्ति ने शांत भाव से कहा. ‘‘क्या तुम शादीशुदा हो?’’

तृष्णा ने एक और प्रश्न दागा. तृप्ति ने विनम्रता से जवाब दिया, ‘‘जी मैडम. मेरे 2 बच्चे भी हैं.’’ ‘‘ओह… तब तुम अपने काम पर फोकस कैसे कर पाओगी? तुम खूबसूरत हो, जवान हो और शादीशुदा भी… क्या तुम्हारा पति एक पराए मर्द की सेवा सुबह से रात तक करने की इजाजत दे देगा यह जानते हुए कि तुम्हें उस बीमार आदमी के कपड़े भी बदलने होंगे और जब कपड़े बदलोगी तो उसे निर्वस्त्र भी देखना होगा?’’ तृष्णा चहलकदमी करते हुए कहने लगी. ‘‘आप चिंता न करें मैडम एक बीमार व्यक्ति नर्स के लिए अपने बच्चे के समान होता है और एक मां जब भी अपने बच्चे को नहलाती या उस के कपड़े बदलती है तो बच्चा नग्न ही होता है. उस में कैसी शर्म और रही बात मेरे पति की तो वह आप मुझ पर छोड़ दीजिए,’’

तृप्ति ने पूरे आत्मविश्वास से कहा. ‘‘अच्छा तो ठीक है, कल से क्यों आज से ही अपना काम शुरू कर दो. जा कर प्रकाश से मिल लो, वह तुम्हें बता देगा इस वक्त कौन सा इंजैक्शन देना है और क्या करना है.’’ ‘‘जी अच्छा,’’ कह कर जब तृप्ति जाने लगी तो तृष्णा ने कहा, ‘‘तृप्ति… सुनो प्रकाश से यह भी कह देना कि सुबह तक कोई मेरे कमरे में न आए. मैं कोई डिस्टर्बैंस नहीं चाहती.’’ ‘‘जी,’’ कह कर तृप्ति वहां से चली गई. बारिश भी अब थम चुकी थी. कमरे की सारी लाइटें बंद कर तृष्णा सोफे पर टिक कर बैठ गई.

आज 5 वर्षों बाद उसे पहली बार वह आईना दिखा, जिस में उसे अपने स्वयं का अक्स नजर आया.वैसी ही खूबसूरती, वैसा ही आत्मविश्वास. तृप्ति से मिलने के बाद तृष्णा को अपने कालेज की वह काली रात याद आ गई जिस के बाद उस की सारी दुनिया ही बदल गई. तृष्णा आज भी नहीं भूली है वह रात जब वह ग्रैजुएशन के फाइनल ईयर में थी और हर बार की तरह इस बार भी वह ऐनुअल फंक्शन में सोलो डांस परफौर्म करने वाली थी. इस बार के फंक्शन में बतौर चीफ गैस्ट शहर के जानेमाने उद्योगपति राघवेंद्र प्रताप सिंह थे. पूरी मसूरी में इन की तूती बोलती थी. किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी उन के आगे अपनी जबान खोल सके.

अपनी परफौर्मैंस देने और फंक्शन बाद होने के पश्चात जब तृष्णा कालेज गेट से बाहर निकली तो एक आदमी बड़े अदब से उसके करीब आ कर बोला, ‘‘मैडम, मैं राघवेंद्र साहब का सैक्रेटरी प्रकाश हूं. साहब ने आप को अपनी गाड़ी में घर छोड़ने को कहा है.’’ ‘‘लेकिन क्यों? मैं औटोरिकशा से चली जाऊंगी. मेरा घर यहीं पास में ही है.’’ ‘‘नहीं मैडम, आप प्लीज हमारे साथ इस कार में चलिए वरना मेरी नौकरी चली जाएगी.’’ यह सुनने के बाद तृष्णा कार में बैठ गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि शहर की जानीमानी हस्ती ने उस के लिए कार क्यों भेजी है? प्रकाश ने बड़ी इज्जत के साथ उसे घर पर छोड़ा. तृष्णा इस बात से बेहद खुश थी कि इस बार भी उस की डांस परफौर्मैंस बैस्ट थी.

अभी तृष्णा की नींद खुली भी नही थी कि उसे कुछ आवाजें सुनाई पड़ीं. 2 कमरों का छोटा सा घर था सो वह अपने ही कमरे में परदे की ओट से सुनने लगी. उसे राघवेंद्र प्रताप सिंह की आवाज सुनाई पड़ी. वे कह रहे थे कि मैं आप की बड़ी बेटी तृष्णा से ब्याह करना चाहता हूं. कल रात उस की परफौर्मैंस और खूबसूरती ने मेरा दिल जीत लिया. यदि आप ने अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथों में दे दिया तो आप को फिर अपनी बाकी बेटियों और बुढ़ापे की चिंता करने की जरूरत नहीं,’’ कह कर राघवेंद्र प्रताप सिंह चले गए. मातापिता की गरीबी,बहनों का भविष्य और प्रतापजी की बेशुमार दौलत और दबंगता के आगे तृष्णा को अपने आत्मसम्मान और सपनों की बली चढ़ा कर घुटने टेकने ही पड़े.

न चाहते हुए भी उसे अपने से दोगुनी उम्र और तलाकशुदा आदमी से शादी करनी पड़ी. भव्य समारोह के साथ तृष्णा की शादी संपन्न हुई, साथ में हुई कई तरह की बातें, कोई उसे किस्मत वाली तो कोई बेचारी कह रह था.शादी की पहली रात गुलाब की पंखुडि़यों से सजी सेज और पूरे कमरे की खूबसूरत सजावट तृष्णा को ऐसा महसूस करा रही थी. जैसे वह किसी राज्य की रानी हो. मगर यह भ्रम उसी रात टूट गया. तृष्णा इस शहर के सब से आलीशान बंगले की उन तमाम महंगी और खूबसूरत सजावटी वस्तुओं में एक थी जो इस बंगले की शोभा बढ़ा रही थी.

बस फर्क इतना था कि वह सजीव थी, उस की सांसें चल रही थीं और उस के अंदर भावनाओं की लहर उफान पर थी लेकिन थी तो वह भी सजावट और उपभोग की ही वस्तु न. उस रात तृष्णा एक और बात जान गई थी और वह थी अपने पति के पहले तलाक की वजह. भले ही समाज और सारी दुनिया कुछ भी कहे लेकिन तलाक का कारण स्वयं राघवेंद्रजी ही थे. उन की पत्नी उन्हें वारिस नहीं दे पाई क्योंकि वे इस योग्य ही नहीं थे और आरोप लगा उन की निर्दोष पत्नी पर जिसे अपनी पवित्रता की वजह से बांझ होने का ताना सुनना पड़ा और फिर तलाक का दंश सहना पड़ा.

तृष्णा के भीतर की तपिश न उस रात शिथिल हो पाई थी और न आज तक हो पाई है. मैडममैडम की आवाज तृष्णा को अतीत से वर्तमान में लौटा लाई. स्वयं को सहज करती हुए उस ने कहा, ‘‘हां, अंदर आ जाओ.’’ तृप्ति चाय ले कर खड़ी थी. ‘‘अरे तृप्ति यह तुम क्यों ले आई कोई और ले आता,’’ तृष्णा ने आश्चर्य से कहा. ‘‘बस यों ही मैडम. मैं इस ओर आ ही रही थी. वैसे भी साहब की सारी दवाइयां देने और मैडिकल रिपोर्ट व्यवस्थित करने के बाद अभी थोड़ी देर के लिए मैं फ्री हूं इसलिए ले आई,’’ तृप्ति मुसकराती हुई बोली.

चाय दे कर जब तृप्ति जाने लगी तो तृष्णा ने उसे रोक लिया और चाय पीने के बाद तृष्णा आंखों में थोड़ी शरारत लिए बोली, ‘‘तुम ने चाय तो बड़ी अच्छी बनाई है सुबहसुबह तुम्हारे हाथों की चाय पी के तुम्हारे पति तो खुश हो जाते होंगे?’’ यह सुन तृप्ति बुझे स्वर में बोल पड़ी, ‘‘हां बहुत खुश होते हैं लेकिन केवल रात में, मुझे दर्द पहुंचा कर.’’ तृप्ति का इतना कहना था कि कुछ वक्त के लिए दोनों ने चुप्पी साध ली. फिर धीरे से तृष्णा ने कहा, ‘‘तुम विरोध क्यों नहीं करती?’’ ‘‘क्या फायदा? विरोध करने से भी आज तक भला कोई मर्द रुका है, जो यह रुक जाएगा और फिर विरोध कर के मैं जाऊंगी कहां? रहना तो उस के साथ ही है,’’ कहती हुई तृप्ति कप और ट्रे समेटने लगी.

‘‘वैसे तुम्हारा पति काम क्या करता है?’’ व्यंग्यात्मक मुसकान लबों पर लिए हुए तृप्ति बोली, ‘‘शादी के पहले तो कहीं काम करता था लेकिन शादी के बाद मैं काम करती हूं और मेरे पैसों पर वह ऐयाशी… बस यही काम है उस का.’’ अभी ये सब बातें चल ही रही थीं कि प्रकाश आ गया और उन्हें अपने बातों पर विराम लगाना पड़ा. प्रकाश को देख तृष्णा ने तृप्ति को जाने का इशारा किया.

तृप्ति के जाते ही प्रकाश आज पूरे दिन का शैड्यूल तृष्णा को बताने लगा. तय समय पर तृष्णा अपने औफिस पहुंची. पिछले 5 सालों से अपने पति के पैरालाइज्ड होने के बाद से वही सारा कारोबार संभाल रही है. लेकिन आज तृष्णा का मन औफिस में नहीं लग रहा था. वह अपनेआप में ही इस सवाल का हल ढूंढ़ने का प्रयास कर रही थी कि इस समाज में हर स्त्री को उपभोग की नजरों से क्यों देखा जाता है? रहरह कर तष्णा को तृप्ति की वेदना का आभाश पीड़ा का एहसास करा रहा था इसलिए वह अपने सारे काम स्थगित कर बंगले में लौट आई.

जब वह अपने पति के कमरे में पहुंची तो उस ने देखा तृप्ति उस के पति का डायपर बदल रही थी. यह देख वह अपने कमरे में लौट आई और अपने मेड से चाय लाने को कहा. धीरेधीरे तृष्णा और तृप्ति में नजदीकियां बढ़ रही थीं और ये नजदीकियां बंगले के अन्य लोगों को खटकने भी लगी थीं क्योंकि तृप्ति छोटी जाति की थी और छोटी जाति की औरत के साथ तृष्णा का इतना घुलनामिलना बाकी लोगों को बड़ा अजीब लग रहा था. जब भी तृष्णा के पास वक्त होता वह तृप्ति को अपने कमरे में बुला लेती और तृप्ति अब साहब के साथसाथ तृष्णा का भी खयाल रखने लगी थी. अब रोज सुबह और शाम की चाय तृष्णा के लिए तृप्ति ही बनाने लगी थी जो सभी की आंखों को चुभने लगा था.

जब तक राघवेंद्रजी ठीक थे मजाल है कोई छोटी जाति का व्यक्ति बंगले की चौखट पर भी पैर रखता लेकिन जब से उन की तबीयत खराब हुई और ऊंची जाति के सभी लोगों ने उन की गंदगी साफ करने से मना कर दिया तब जा कर तृप्ति इस बंगले में आई. आई भी तो ऐसे कि तृष्णा के सब से करीब जा पहुंची. गैलरी में बैठी तृष्णा के लिए तृप्ति चाय ले कर आई और उसे चाय देने के बाद उस के कंधों को दबाने लगी अकसर तृप्ति के ऐसा करने से तृष्णा खुद को रिलैक्स महसूस करती.

तृप्ति कंधों को दबाती हुई बोली, ‘‘मैडम. आप बुरा न माने तो एक बात पूछूं?’’ ‘‘हां पूछो.’’ ‘‘साहब की ऐसी हालत कैसे हुई?’’ तृप्ति हिचकिचाती हुई बोली तृष्णा गहरी सांस भरती हुई बोली, ‘‘हमारी शादी को अभी सालभर नहीं गुजरा था लेकिन मुझे एहसास हो चुका था कि मेरी इच्छा, मेरी संतुष्टि, मेरा आनंद इन के लिए कोई माने नहीं रखता लेकिन मैं उस सुख को पाना चाहती थी, उसे जीना चाहती थी और मेरे पति बस खुद को शांत करने के लिए ही मेरे पास आते. यह जानने के बाद मैं ने विरोध जताना शुरू कर दिया.

मैं उनके इशारे पर नाचने वाली कठपुतली नहीं थी. ‘‘इसी बात को ले कर एक रात हमारे बीच बहुत बहस हुई और वे गुस्से में रात को कार ले कर मूसलाधार हो रही बारिश में निकल पड़े और उन का ऐक्सिडैंट हो गया. बस तब से यह हाल है.’’ ‘‘उफ… मतलब आप भी उस आग में जल रही हैं जिस अंगारे पर मैं रोज बिछती हूं और जलती भी हूं.’’ उस दिन के बाद तृष्णा और तृप्ति के बीच जो मन की निकटता थी वह शारीरिक नजदीकियों में तब्दील हो गई. अब जब भी उन्हें वक्त मिलता दोनों एकदूसरे की बांहों में होती.

पूरे बंगले में कानाफूसी होने लगी थी लेकिन स्पष्ट रूप से कोई भी कुछ कहने में असमर्थ था क्योंकि दोनों औरतें थीं और तृप्ति के 2 बच्चे भी थे जो मसूरी के ही किसी होस्टल में रहते थे लेकिन दोनों की इतनी नजदीकियां लोगों की समझ से परे थी. उस पर तृप्ति का छोटी जाति का होना. दोनों का प्यार और एकदूसरे के लिए तड़प बढ़ती ही जा रही थी और इस दौरान एक दिन राघवेंद्रजी की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और उन की मृत्यु हो गई. अब इस बंगले को नर्स की जरूरत नहीं थी, फिर भी तृप्ति का आना बंद नहीं हुआ. लोग दबी जबान तरहतरह की बातें करने लगे.

मगर तृष्णा और तृप्ति को लोगों की परवाह नहीं थी. दोनों एकदूजे में डूबी हुई थी. एक दिन अचानक प्रकाश को लगा तृष्णा अपने कमरे में अकेली है, यह सोच वह अंदर चला गया और फिर उस ने जो देखा उस की आंखें खुली की खुली रह गईं. बिस्तर पर पड़ी सिलवटें, तृष्णा और तृप्ति के बिखरे बालों ने प्रकाश को यह इशारा कर दिया कि दोनों के बीच एक नए अध्याय का पदार्पण हो चुका.

दोनों को प्रकाश ने जिस अवस्था में देखा वह इस बात पर मुहर लगा रहा था कि उन के बीच वह संबंध है जिसे समाज कभी स्वीकृति नही देगा लेकिन वह मौन रहा और मैडम मैं बाद में आता हूं कह कर वहां से चला गया. अब दोनों के लिए अपने संबंध को ज्यादा दिनों तक लोगों से छिपा पाना संभव नही था और अलग हो जाना कोई समाधान भी नहीं था इसलिए प्रकाश के जाते ही तृष्णा तृप्ति के माथे को चूमती हुई बोली, ‘‘तृप्ति, अब जंग का समय आ गया है.

इस जंग में या तो हमारी हार होगी या फिर जीत, बीच का कोई रास्ता नहीं है. मैं जानती हूं हमारे इस बेनाम रिश्ते को शायद कोई समझ नहीं पाएगा, हो सकता है समाज भी हमारे इस रिश्ते को नहीं स्वीकारेगा. तुम चाहो तो मुझे छोड़ कर अपनी दुनिया में वापस जा सकती हो. ‘‘मैं तुम से कोई सवाल नही करूंगी या फिर सबकुछ छोड़ कर मेरे पास यहां आ जाओ. मरजी तुम्हारी अपनी है. बस यहां आने से पहले इस बात का खयाल रखना कि लड़ाई मुश्किल है और लंबी भी.’’ यह सब सुनने के बाद तृप्ति बिना कोई जवाब दिए वहां से चली गई और तृष्णा अपने गैलरी में जा खड़ी हुई.

आज भी मूसलाधार बारिश हो रही थी. तृष्णा बगैर पलकें झपकाए बंगले के गेट की ओर देखती रही. तभी एक औटोरिकशा आ कर रुका और तृप्ति अपने कुछ सामान के साथ उस रिकशा से उतरी. यह देख तृष्णा भागती हुई गेट की तरफ बढ़ी और हांफती हुई तृप्ति के सामने जा खड़ी हुई. तृप्ति तृष्णा से लिपट गई और कहने लगी, ‘‘मैं सबकुछ छोड़ तुम्हारे पास आ गई हूं और अब हर लड़ाई लड़ने को तैयार हूं.’’

Hindi Drama Story: अपना घर

Hindi Drama Story: मुंबई की वर्सोबा मार्केट में सुबहसुबह काफी भीड़ रहती है. मौर्निंग वाक कर के लौटते हुए मानव कुमार और उन की पत्नी नताशा सब्जी खरीदने लगे. ताजाताजा सब्जी देख कर नताशा अपने को नहीं रोक पाई. टमाटरों के मोलभाव में व्यस्त थीं. मानव इधरउधर का नजारा देख रहे थे. सामने से एक लंबी सी लड़की को आते देखा. चेहरा जानापहचाना सा लग रहा था. दीपिका जैसी लग रही थी, मगर इस के चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थीं. मिनी फ्रौक पहनी थी, मगर सिलवटें इतनी मानो यों ही उठ कर चली आई है. नजदीक आई तो उस के घुंघराले वालों ने पुष्टि की कि यह दीपिका ही है.

दीपिका रांची से आई है, बौलीवुड में स्ट्रगल कर रही है. मानव कुमार फिल्म डाइरैक्टर हैं. जब से फिल्मों का दौर बदला है, ओटीटी के लिए फिल्में बनने लगी हैं, उन में बोल्ड सीन और गालीगलौज ने मर्यादाओं की सारी सीमाएं लांघ डाली हैं. मानव ने ऐसी फिल्मों से अपनेआप को अलग कर लिया है. जाहिर है, मानव की आर्थिक स्थिति दिनबदिन खराब होने लग गई. पत्नी ने समझया भी कि आज का दौर ही ऐसा है, सभी कर ही रहे हैं, आप भी कर लीजिए न. मगर मानव टस से मस नहीं हुए.

उन का मानना था कि मन की गवाही के बिना, कला की ‘मुजस्सिमा’ का निर्माण कभी नहीं हो सकता है.’ मानव अपने इसी आदर्श पर डटे रहे. समाज का उत्थान नहीं कर सकते तो पतन में कदापि भागीदार नहीं बनना चाहिए. नताशा सब्जी चुनने में व्यस्त थीं. मानव भी मदद करने लगे.

वे दीपिका से नहीं मिलना चाहते थे. जब दीपिका उन के पीछे से कास कर के आगे बढ़ गई तो मानव ने चैन की सांस ली. 2 कारणों से वे दीपिका से नहीं मिलना चाह रहे थे. एक तो वे अपने से आधी उम्र की इस मौडर्न कपड़ों वाली लड़की से बातें करेंगे तो लोगों की नजरें बारबार उन पर उठेंगी और दूसरा कि साथ में पत्नी थीं. वैसे तो ये बहुत ही ‘ब्रौडमाइंडेड’ औरत हैं, मगर कहीं न कहीं शक की गुंजाइश तो मन में पैदा हो ही जाएगी. पति जवान हो या बूढ़ा, पत्नी उस के प्रति प्रोजेसिच होती ही है. मानव भी तो 50 के हो ही चले थे.

तो क्या, व्यक्ति तो आकर्षक है ही. ‘‘सर जी…’’ अचानक पीछे से आवाज आई तो मानव और नताशा दोनों चौक कर पीछे मुड़े. ‘‘पहचाना सर, आप ने… मैं दीपिका… आप से जमशेदपुर में मिली थी… वह शूटिंग में.’’ ‘‘हां… हां… कैसी हो… मीट माई वाइफ नताशा,’’ बड़ी मुश्किल से पहचान पाने का नाटक करते हुए मानव ने कहा. ‘‘कैसी हो? ठीक हो न?’’ ‘‘हैलो मैडम…’’ दीपिका ने सहजता से कहा. ‘‘ठीक हूं सर, स्ट्रगल कर रही हूं. 1-2 सीन के किरदार मिल जाते हैं. 2 हजार रुपए पर डे मिल जाते हैं, उन में से 1 तो वे कास्टिंग वाले रख लेते हैं. किसी तरह लाइफ खींच रही हूं.

मैं 4 महीनों में ही इतना जान गई हूं कि यह लाइन नौट मेड फौर मी,’’ मुंह बनाते हुए दीपिका ने कहा. मानव का मन चाह रहा था किसी तरह दीपिका की मदद कर दें. वे चाहते थे कि वह उन की पूरी कहानी सुने और कुछ उपयोगी टिप्स दे, मगर यह भी जानते थे कि अनायास ही नताशा की भृकुटियां तन जाएंगी कि मैं उस के लिए इतना जिज्ञासु क्यों हो रहा हूं और प्रश्नों की भरमार हो जाएगी. सच कहा जाता है पुरुष सुलभ मन बड़ा ही लोभी होता है, बारबार मन करता, उस का मोबाइल नंबर मांग लिया जाए. मगर पत्नी थीं. खामोश रहे. नताशा सब्जी ले चुकी थीं.

उन्होंने इशारा किया कि अब चलना चाहिए. दीपिका कुछ कहना चाह रही थी. सीधे पौइंट पर आई, ‘‘सर, मुझे कुछ पैसे दे सकते हैं? सर सौ रुपए.’’ ‘‘रुपए…’’ मानव की कशमकश साफ झलक रही थी. ‘‘सर, कल से कुछ खाया नहीं है. भूख लगी है… वह सिगनल के पास बड़ा पाउ बनाता है, वही खा लूंगी.’’ ‘‘हां… हां…’’ नताशा ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘दे दीजिए न…’’ धीरे से कहा. ‘‘ठीक है…’’ मानव ने अपने कुरते की जेब में हाथ डाला और तभी उन के दिमाग में एक आइडिया कौंधा. उन्होंने पौकेट से रुपए निकालने की जगह अपना मोबाइल निकाला, ‘‘ठीक है… अपना ‘जीपे’ नंबर दे दो. भेज दूंगा. आजकल कैश कहां कोई रखता है. तुम जब तक सिगनल पहुंचोगी पैसा तुम्हें मिल जाएंगे.’’ ‘‘थैंक्स सर… मेरे पास आप का नंबर है, उसी पर मैं आप को ‘रिक्वैस्ट’ भेज देती हूं. थैंक्स सर, बाय मैम…’’ और वह चली गई.

नताशा की आंखों में उभरे प्रश्नों का अंबार भांप कर मानव ने रुख क्लीयर किया कि कैश इसलिए नहीं दिया कि लोग देखेंगे तो तरहतरह की बातें करेंगे जो उन के लिए अच्छा नहीं था. मानव ने बताया कि जमशेदपुर में जिस शूटिंग में गए थे, वहीं यह मिली थी. ये फिल्मों में काम करना चाहती थी, मानव का एक असिस्टैंड डाइरैक्टर विकास बड़ा शातिर है, अपनी बातों के जाल में फंसा लिया.

हीरोइन बनाने का पूर्ण आश्वासन दे कर मुंबई ले आया. गौतम, जो दीपिका का बचपन का दोस्त था ने मना किया, पर नहीं मानी. हीरोइन बनने के सपने में अंधी हो कर दीपिका अपनी मां के गहनों की पोटली चुपके से उठा कर विकास के पास मुंबई आ पहुंची. उस के बाद मुझे कुछ पता नहीं. विकास का भी कोई अतापता नहीं था. आज काफी अरसे बाद मिली है. अगले ही दिन मानव की पुरुष सुलभ उत्सुकता ने उसे फोन घुमाने पर विवश कर दिया. उस के बाद मानव और दीपिका अकसर मिलने लगे. इन्हीं मुलकातों के दौरान दीपिका ने अपनी पूरी कहानी सुना दी. सचमुच करुण कहानी है. दीपिका जब मुंबई आई थी अपने वादे के अनुसार एडी विकास कुमार दादर स्टेशन पर प्रतीक्षा करता मिला. दौड़ कर हग किया, दीपिका के हाथों से बैग ले लिया.

टैक्सी की और अंधेरी के होटल ‘मिड टाउन डी लक्स’ पहुंचा. सजासजाया कमरा, मिठाई के डब्बे के साथ एक फूलों का वुके भी था, जिस में लिखा था, ‘दीपिका वैलकप टू बौलीवुड.’ दीपिका की खुशियों का ठिकाना नहीं था. वह मन ही मन आकाश में उड़ने लगी. उस का हीरोइन बनने का सपना उसे पूरा होता साफ नजर आ रहा था. विकास और उस के 2 दोस्त दीपिका को ऊंचेऊंचे सपने दिखा रहे थे. मगर हुआ वही जो होता आया है. दीपिका के साथ भी वही हुआ. धोखा जो हर ‘स्ट्रगलर’ के साथ होता आया है. रात में कोल्डड्रिंक में नशे की गोली मिला दी और रात में वही गलती जो किसी भी औरत के लिए मौत से भी बदतर हुआ करती है. तीनों वही करने की योजना बना चुके थे.

सुबह दीपिका को जब होश आया उस का सबकुछ लुट चुका था. सूटकेस पर नजर पड़ी तो वह खुला था. उस में रखे सारे पैसे गायब थे. दीपिका के पैरों तले की जमीन खिसक गई. अंगूठी, गले की सोने की चेन सभी गायब थे. मां की अलमारी से चुराए गहने सब गायब हो चुके थे. दीपिका को कुछ समझ नहीं आ रहा था. पहले तो खूब रोई फिर शांत हुई, तो पंखे से लटक कर खुदकुशी करनी चाही, मगर हिम्मत नहीं हुई. तीसरी मंजिल से कूदना चाहा, पर साहस नहीं जुटा पाई… न तो जीना चाहती थी, न मर ही पा रही थी. शाम होतेहोते जब दीपिका का मन थोड़ा शांत हुआ तो जमशेदपुर में गौतम को फोन लगाया गौतम को दीपिका के लिए शुरू से ‘क्रश’ था. मगर दीपिका उसे हमेशा इग्नोर करती रहती थी.

फोन मिलते ही गौतम रांची भागा और पहली फ्लाइट पकड़ कर सीधा मुंबई पहुंच गया. गौतम को देख कर दीपिका ने लौटने को कहा, मगर दीपिका किस मुंह से वापस जा सकती थी, मां के गहने चोरी कर के, बिना किसी को बताए चली आई था. किस मुंह से मां, पापा को फेस करेगी. गौतम जानता था, दीपिका को मनाना नामुमकिन है. अंतत: गौतम ने अपने हथियार डाल दिए और दीपिका के सैटल होने के बारे में सोचना शुरू कर दिया. गौतम के एक दोस्त का कजन रहमान अली मुंबई में डांस डाइरैक्टर था. फोन नंबर ले कर उस से बात की और संयोग से उसी के यहां पीजी मिल गया.

होटल की पेमैंट कर के, कुछ रुपए दीपिका के हाथ में दे कर गौतम वापस रांची लौट गया. एक ही दिन की छुट्टी मिली थी. दीपिका रहमान अली के यहां पीजी बन कर रहने लगी. वहीं से स्ट्रगल करना शुरू कर दी. ‘मेरी छोटी बहना’ की हमेशा रट लगाने वाले रहमान भाई की नजर इतनी गंदी थी कि उस के स्पर्श मात्र से ही घिन आ जाती थी. वह तो उस की बीवी शहनाज भाभी इतनी दबंग थीं कि रहमान भाई दीपिका से दूर ही रहता था. दीपिका घर में शहनाज भाभी के आसपास ही रहना चाहती थी. सेफ फील करती.

4 महीने तो दीपिका ने संभाल लिया, मगर अब शहनाज भाभी की मैटरनिटी लीव खत्म हो रही है और सोमवार से वह अपनी ड्यूटी जौइन करने वाली है और वह भी नाइट शिफ्ट है. शहनाज ने जब दीपिका को बताया तो वह कांप उठी. 2 दिन तो वह, आउट डोर शूटिंग का बहाना कर के स्टेशन पर रात बिताई. मगर कब तक ऐसा चल सकता था. एक सहेली के यहां एक लड़की की जरूरत भी थी, मगर वहां डिपौजिट के रूप में 10 हजार देने पड़ते. गौतम से मांगना नहीं चाहती थी. ‘‘तुम्हारे पास कितने हैं?’’ मानव ने पूरी कहानी सुन कर पूछा. ‘‘2 हजार हैं सर, क्राइम पैट्रोल का चैक आज ही आया है.’’

अगले ही मिनट मानव ने उसे 8 हजार जीपे कर दिया. दीपिका की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई. दौड़ीदौड़ी रहमान के घर जा पहुंची और अपना जरूरी सामान बैग में भर कर आउट डोर शूटिंग का बहाना कर के रहमान को हमेशाहमेशा के लिए अलविदा कह के चली आई. वहां दिए हुए डिपौजिट की भी चिंता नहीं की. अपनी सहेली के घर आ कर 10 हजार पकड़ाए और अपने बैड पर लेट गई. उसे लग रहा था सारी दुनिया जीत ली है. रहमान की गंदी छुअन और 24 घंटों के उस डर के माहौल से बाहर आ गई. लगा एक आजाद परिंदे की तरह आकाश में उड़ रही है. दीपिका ने फिल्मों के औफिसों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए. छोटेछोटे, 1-2 सीन के रोल मिलने लगे. थोड़े पैसे भी मिल जाते. कहीं काम मिलता तो कहीं पर अनुभव.

एक दिन दीपिका एक धार्मिक सीरियल ‘जय श्री गणेश’ में छोटा किरदार के लिए फोन आया. हीरोइन की सहेली का किरदार था, 10 हजार पर डे की राशि सुन कर दीपिका ने लपक लिया. शूटिंग के दिन समय से सैट पर पहुंच कर, मेकअप करवा कर रैडी बैठी थी. हीरोइन का नामोनिशान नहीं था. पूरी यूनिट रैडी बैठी थी. बारबार हीरोइन को फोन करने पर भी कोई फोन नहीं उठा रहा था. 2 घंटे बीत गए तो उस का फोन आया. मैनेजर ने पैसे बढ़ाने को कहा. प्रोड्यूसर के लिए संभव ही नहीं था.

मानमन्नौअल के बाद भी जब हीरोइन नहीं मानी तो प्रोड्यूसर सिर पकड़ कर बैठ गया. एक दिन का पूरा पैसा उसे बरबाद होता नजर आ रहा था. लाखों का नुकसान. तभी एक असिस्टैंड डाइरैक्टर दौड़ा हुआ प्रोड्यूसर के पास आया और धीरे से कहा, ‘‘सर… एक बात कहूं…’’ प्रोड्यूसर ने उस की ओर देखा तो उस की हिम्मत बढ़ी, ‘‘सर, ये दीपिका है न, वह जो वहां बैठी है. बहुत अच्छी ऐक्ट्रैस है. मैं ने ‘क्राइम पैट्रोल’ के एक ऐपिसोड में उसे देखा है,’’ थोड़ा रुक कर फिर बोला. ‘‘सर… और सर यह उसी रेट में मान भी जाएगी, सर…’’ प्रोड्यूसर की नजरें दीपिका पर टिकी हुई थीं. दूर से वह लगातार दीपिका को एकटक देखता जा रहा था और पार्वती के रूप में कल्पना कर रहा था, उसे वह पावर्ती के रूप में एकदम जंच रही थी. प्रोड्यूसर ने मन ही मन तय कर लिया कि दीपिका ही हीरोइन बनेगी. समय की पाबंद है और अपने वजट में भी है. यही दीपिका कीजिंदगी का पहला खूबसूरत मोड था. टीवी सीरियल ‘जय श्री गणेश’ सुपर हिट हो गया. लोगों ने सीरियल और दीपिका के अभिनय दोनों को खूब पसंद किया, खूब तारीफ बटोरी. टीआरपी हर सप्ताह छलांग लगाती जा रही थी. प्रोड्यूसर के पास पैसे बरसने लगे. दीपिका के पास धार्मिक सीरियल के औफर आने लगे. जल्द ही वह धार्मिक सीरियल की सुपर स्टार बन गई. कुदरत जब देती है तो छप्पर फाड़ कर देती है. दीपिका पर दोनों हाथों से आशीर्वाद बरसा रहा था.

दीपिका के समय ने ऐसी करवट ली कि फिर उस ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. दीपिका अपनी सुघड़ अभिनय क्षमता, विनम्रता और वक्त का सम्मान कर के जल्द ही टौप पर पहुंच गई. उस दिन तो मानो चमत्मकार ही हो गया, जब एक बड़े बैनर की तरफ से दीपिका को औफर आया, फिल्म ‘नया संसार’ के मेन लीड के लिए. 25 लाख साइनिंग अमाउंट देख दीपिका को यकीन नहीं हो रहा था. सैकड़ों दफा अपनेआप को चुटकी काटी कहीं कोई सपना तो नहीं देख रही है. फिर बैग उठा सीधे मानव के घर जा पहुंची. मानव सर को देखते ही वह दौड़ कर उन से लिपट गई.

नताशा के भी गले लगी और अपना पैसों से भरा बैग देते हुए कहा, ‘‘सर, आज मैं ने नीलकंठ प्रोडक्शन की फिल्म साइन की है, हिंदी फिल्म है, बड़े बजट की फिल्म है. यह 25 लाख मुझे साइनिंग अमाउंट भी मिला है. यह लीजिए मेरी पहली बड़ी फिल्म का साइनिंग अमाउंट सर, आप के लिए. प्लीज न मत बोलिएगा. प्लीज.’’ ‘‘अरे… यह तुम्हारी पहली फिल्म की पहली राशि है, तुम्हारे लिए है, न? इसे तुम्हें ही रखना होगा.’’ ‘‘नहीं सर. आप ने मेरे लिए कितना कुछ किया है, सर, आज मैं जो कुछ भी हूं, सब आप की वजह से ही तो हूं. आप ने अभी तक कुछ भी नहीं लिया है सर. आप को लेना ही होगा. ‘‘यह क्या बात हुई. ये 25 लाख हैं. मान जाओ.’’ ‘‘नहीं सर… मैं ने कहा न… अब आप इनकार नहीं कर सकते… लीजिए.’’ ‘‘ठीक है, तुम से भला बहस कर के कौन जीत सकता है…’’ मानव ने बैग उठा लिया तो दीपिका बच्चों की तरह उछलउछल कर तालियां बजाने लग गई. नताशा भी हैरान थीं, मानव ऐसे तो नहीं थे. नताशा की ओर देख कर बोले., ‘‘अरे, देखो न, इस ने दे दिए तो मैं क्या करता.’’ दीपिका उल्लासित थी, मगर नताशा कुछ भी नहीं समझ पा रही थीं. तभी मानव ने एक बम फोड़ दिया, ‘‘मैं ने तुम्हारी बात मान ली, अब खुश हो न…’’ ‘‘बहुत खुश सरजी,’’ दीपिका ने कहा. ‘‘अब यह बैग लो… अब तुम्हें मेरी बता माननी होगी,’’ मानव ने कहा तो दीपिका भौचक्क रह गई.

‘‘नहीं सर… नो यह चीटिंग है,’’ ठुनकती हुई दीपिका मुंह फुला कर कोने में जा बैठी. ‘‘तुम्हारे मानव सर ऐसे ही हैं. आओ मैं ने गरमगरम पकौडि़यां बनाई हैं. आओ… कौफी भी बना ली है. बारिश की रिमझिम में पकोडि़यां और गरम कौफी का मजा ही कुछ और होता है.’’ कौफी का सिप लेते हुए मानव ने कहा, ‘‘अब तुम्हें अपना नया नाम रखना होगा क्योंकि एक दीपिका आलरैडी बौलीवुड में है.’’ ‘‘हां… हां. दीपिका, इन्होंने भी अपना नाम मानव कुमार रख लिया था क्योंकि राकेश पहले से ही बौलीवुड से था.’’ ‘‘सर, आप ही कोई अच्छा सा नाम दीजिए न,’’ दीपिका ने कहा. तब मानव कागजपैन ले कर कैलकुलेशन करने लग गए, ‘‘5 अगस्त है न तुम्हारी जन्मतिथि?’’ ‘‘जी सर, आप को याद है?’’ दीपिका चौंक गई. ‘‘तुम्हारे अर्थ के हिसाब से ‘अ’ अक्षर आता है… अ से कोई नाम?’’ मानव ने कहा. ‘‘सर आप ही बताइए न?’’ दीपिका बोली.

‘‘अ से अनामिका.’’ उसी दिन से दीपिका ‘अनामिका’ बन गई. कौन सी पत्रिका या पत्र होगा, जिस में अनामिका की तसवीर या न्यूज न छपती. टीवी, यूट्यूब, सोशल मीडिया, हर जगह अनामिका की ही चर्चा होती रहती. तरहतरह की गौसिप और स्कैंडल भी अनामिका के बारे में सुनने को मिलते. शहर के मशहूर उद्योगपति केशव के युवा बेटे रोहित के साथ अनामिका के अफेयर के चर्चे अकसर हैडलाइन में छपने लगे. अनामिका का नाम आज टौप के 3 सुपर स्टार्स में गिना जाता है. अनामिका को जब भी वक्त मिलता मानव सर के पास आ धमकती. एक दिन अनामिका मानव के घर आई. सोफे पर पांव चढ़ा कर बैठ गई और नताशा से बोली, ‘‘मैमजी, मुझे आप के हाथ की बनी सेवइयां खानी हैं. खिलाइए न मैम.’’ नताशा मुसकरा कर श्योर बोलीं और रसोई में घुस गईं.

उस दिन बातोंबातों में ही नताशा ने पूछ लिया, ‘‘रोहित के साथ आर यू सीरियस?’’ ‘‘प्लीज मैम…’’ मुंह बनाते हुए अनामिका बोली. ‘‘अरे, मैगजीन में पढ़ा है कि तुम दोनों शादी करने जा रहे हो.’’ ‘‘अरे ये मैगजीन वाले एकदम पागल हैं, कुछ भी…’’ ‘‘उस में तो छपा है कि तुम उस के प्राइवेट जैट में घूमती है?’’ ‘‘उफ… मैम… एक बार, बस एक बार मम्मी की तबीयत सीरियस थी और उधर मेरी शूटिंग ‘डेनाइट’ चल रही थी तो रोहित ने अपना जैट दिया था, मैं शूटिंग कर के शाम को रांची गई थी, वहां से जमशेदपुर बाई रोड गई. मम्मी से मिल कर सुबह मुंबई आ गई थी. बस इसी बात का मीडिया बालों ने बतगंड़ बना दिया. मैम, स्टार बनने की कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी न.

शादी और रोहित से… नो… नो,’’ अनामिका ने मुंह बिचका कर कहा. नताशा बोलीं, ‘‘क्यों, रोहित युवा है, स्मार्ट है. करोड़पति नहीं बल्कि अरबपति है, खूबसूरत है,’’ नताशा ने सफाई दी. ‘‘मैम… अपने जीवनसाथी के लिए जो एक काल्पनिक इमेज है मेरे मन में उस में रोहित बिलकुल फिट नहीं बैठता,’’ अनामिका ने अपनी बात साफ कर दी. नताशा बोलीं, ‘‘अच्छा तो वह जमशेदपुर वाला, क्या नाम है उस का… गौतम है न?’’ ‘‘नो मैम… वह मेरा बैस्ट फ्रैंड है, बस, बैस्ट फ्रैंड,’’ अनामिका बोली. ‘‘अरे बाबा तो शादी के लिए तुम्हें कैसा पति चाहिए?’’ ‘‘मैम… वह…’’ अनामिका कुछ बोलना चाह रही थी. फिर मानव को देखा तो उस के शब्द उस के होंठों में ही उलझ कर रह गए. ‘‘पागल छोकरी… दिमाग खराब हो गया है इस का,’’ मानव बड़बडा़या. मानव के होंठों से निकले हर शब्द से खिन्नता झलक रही थी. ‘‘ठीक कह रहे हैं आप…’’ नताशा ने भी हां में हां मिलाई. ‘‘इतने अच्छेअच्छे औफर्स ठुकरा रही हो बेटा?’’ अनामिका के कंधे पर प्यार से हाथ रखती हुई नताशा बोली. ‘‘मैम… जीवनसाथी का मतलब सिर्फ पति नहीं होता है.

एक प्रेमी भी जो गुदगुदाए… एक दोस्त की तरह जो पारदर्शी हो. पिता की तरह प्रोटैक्ट भी करे और एक भाई की तरह हमेशा साथ खड़ा मिले. ‘आदर्श’ हो, ‘आइडल’ हो. ऐसा इंसान, जिस की आंखों से सम्मान छलकता हो, उस के माथे पर ईमानदारी का झिलमिलाता मुकुट चमकता हो, ऐसा इंसान मैम… ऐसी ‘पर्सनैलिटी’, जिसे बस निहारते रहने का मन करता हो. मगर…’’ ‘‘मगर क्या?’’ अनामिका की बात को बीच में ही काट कर नताशा बोलीं, ‘‘ऐसे इंसान तो सिर्फ किताबों के पन्नों या फिल्मों में ही दिखाई पड़ते हैं. फिर भी अगर तुम्हारी नजर में ऐसा कोई इंसान मिल जाए तो मुझे बताना, मैं चल कर उस से तेरा ब्याह करवा दूंगी, मेरी बच्ची.’’ ‘‘नहीं मैम, रीयल लाइफ में भी ऐसे इंसान होते हैं,’’ अनामिका बोली, ‘‘मैं जो चाहती हूं वह न मिले तो मैं वैसे ही रह लूंगी.’’

अनामिका के शब्द वेदना में गुंथे हुए थे और क्रोध से ओतप्रोत थे, जो अश्क बन कर आंखों के रास्ते बह जाना चाहते थे. अनामिका ने तिरछी नजर से मानव को देखा और फिर पर्स उठा कर पैर पटकती चली गई. नताशा कुछ भी समझ नहीं पा रही थीं. अनामिका तो चली गई, मगर मानव और नताशा बैठ कर घंटों शून्य, आकाश में इस का उत्तर तलाशते रहे. अंतत: मानव ने ही मौन तोड़ा, ‘‘पागल है यह छोकरी. दिमाग खराब हो गया है इस का….’’ नताशा शून्य में ताकती जा रही थी, मौन थीं.

अचानक उन की सिक्स्थ सैंस ने दस्तक दी, उन की आंखों में चमक आ गई. आंखों के सामने कई दृश्य किसी फिल्म के सीन की तरह आतेजाते रहे, वे उठ खड़ी हुईं. वे अनामिका की कई बातों को बातों से मिलाने लगीं. नताशा आ कर मानव की बगल में बैठ गईं. उन का चेहरा अपने दोनों हाथों के बीच ले कर गौर से, प्यार से निहारने लगीं. नताशा सोचने लगीं कि सच ही तो बोल रही थी अनामिका. कुदरत ने आजकल ऐसे सच्चे पीस बनाना बंद कर दिए हैं. मानव… मानव तुम कितने अच्छे हो, कितनी लड़कियों के आइडल हो. गौर से देखती रहीं वे मानवजी को. न

ताशा आगे सोचने लगी कि सच ही तो है, मानव ने उसे पगपग पर मदद की, वह भी निस्स्वार्थ भाव से. हमेशा महिलाओं को सम्मान दिया है. फिर चाहे स्ट्रगल हो या सैलिब्रिटी और हां, खुद गुरबत से रहते हुए भी 25 लाख से भरा बैग बिना कुछ सोचे लौटा दिया. अनामिका का शादी का प्रपोजल भी बड़ी विनम्रता से मानव ने लौटा दिया था. वह तो उस के लिए भी तैयार थी कि धर्म बदल कर धर्मेंद्र और हेमामालिनी की तरह शादी रचा ले, मगर मानव ने मुसकरा कर इनकार कर दिया था और कैसी होती है आइडल छवि और कैसा होता है आदर्श व्यक्तित्व. इतनी सारी खूबियां इंसान में कहां, देवपुरुषों में ही पाई जाती है और मैं रही मूर्ख की मूर्ख. घर की मुरगी दाल बराबर.

नताशा अपनी तिरछी नजरों से मानव को देखती जा रही थीं और मुसकरा रही थीं. ‘‘यार, आप तो इस 60+ में भी डिमांड में हैं,’’ मानव के लिए नताशा के दिल में इज्जत और बढ़ गई. 10 साल बीत गए. अनामिका ने नया बंगला खरीद लिया. हौल की पूरी अलमारी ट्रौफियों और शील्ड्स से भर गई थी. इधर मानव अपने घर में गरीबी के दिन गुजार रहे थे. मानव जान गए थे कि अनामिका उन से प्रेम करनेलगी है. वह अपने मन में मानव को बसा कर मन द्वारा की कुंडी बंद कर दी है.

प्यार न तो धर्म देखता है, न उम्र की चिंता करता है… बस भावनाओं के राडार में किसी के कुछ गुण पसंद आ जाने चाहिए. मन पर से अपना अंकुश खो देता है और प्रेम की डोर उसे अपने बाहूपाश से बांध लेती है. मानव भी अनामिका के इस सत्य से अवगत हो चुके थे. वे चाहते थे कि अनामिका अपने काम में ध्यान दे और किसी अच्छे लड़के के साथ शादी कर के अपना घर बसा ले. यही कारण था कि मानव अनामिका को अपने घर आनेजाने को मना कर चुके थे. अपने गानों की रौयल्टी से मिले पैसों से मियांवीबी का किसी तरह गुजारा हो रहा था. अनामिका स्टार बन चुकी थी. कईर् शहरों में उस ने मकान खरीद लिए थे.

आज अनामिका के पास मकान तो कई थे, मगर घर… जो उस का अपना था वह मानव का था जहां वह नताशा के बुलाने पर बिना गाड़ी के औटो में आती और पूरा दिन घर में रह कर तृप्त हो कर जाती. उस का यह घर अच्छेअच्छे फिल्मी पत्रकारों को भी नहीं मालूम था.

Snacks for Weekend: वीकेंड पर बच्चों के लिए बनाएं ये टेस्टी स्नैक्स

Snacks for Weekend

वैज अप्पम

सामग्री

– 200 ग्राम मसाला ओट्स

– 1 बड़ा चम्मच सूजी ड्राई रोस्ट

– 1 गाजर कद्दूकस की

– 8-10 बींस कटी

– थोड़े से करीपत्ते

– 1/2 कप दही

– 2-3 हरीमिर्चें कटी

– 1 छोटा प्याज बारीक कटा

– 1 छोटा चम्मच तेल

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बाउल में ओट्स, सूजी, नमक, हरी मिर्चें मिला कर मिश्रण तैयार करें. अब एक पैन में तेल गरम कर करीपत्ते प्याज, बींस व गाजर भून कर ओट्स के मिश्रण में मिला दें. इस में दही व जरूरतानुसार पानी मिला कर अप्पम का मिश्रण तैयार करें. अप्पम पैन में चिकनाई लगा कर अप्पम दोनों तरफ से सेंक कर तैयार करें और हरी चटनी के साथ सर्व करें.

चटपटा पनीर

सामग्री

– 250 ग्राम पनीर

– 2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर

– 2 बड़े चम्मच मैदा

1 चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट

– 2 बड़े चम्मच पानी निकला गाढ़ा दही

– 1 छोटा चम्मच चाटमसाला

– 1 छोटा चम्मच तंदूरी मसाला

-1/2 छोटा चम्मच हरीमिर्च का पेस्ट

– 1 छोटा चुकंदर

– 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– तलने के लिए तेल

– नमक स्वादानुसार.

विधि

चुकंदर को छील कर टुकड़ों में काट कर गलने तक पका लें. फिर पीस कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट में पनीर को छोड़ कर बाकी सारी सामग्री मिला दें. अच्छी तरह मिक्स करें. इस पेस्ट में पनीर के टुकड़े काट कर मिला दें. फिर इसे कुछ देर ऐसे ही रखा रहने दें. यदि पेस्ट ज्यादा गाढ़ा लगे तो उस में थोड़ा पानी मिला सकती हैं. पनीर के टुकड़ों को गरम तेल में तल कर चटनी के साथ परोसें.

Working Wife: वर्किंग वाइफ क्यों पसंद करते हैं पुरुष?

Working wife: दिलचस्प बात यह है कि जहां लोग पहले शादी के लिए कामकाज में दक्ष, संस्कारी और घरेलू लड़की पसंद करते थे वहीं आज इस ट्रेंड में बदलाव नजर आ रहा है. अब पुरुष शादी के लिए घर बैठी लड़की नहीं बल्कि वर्किंग वूमन पसंद करने लगे हैं. अपनी वर्किंग वाइफ का दूसरों से परिचय कराते हुए उन्हें गर्व महसूस होता है. आइये जानते हैं पुरुषों की इस बदलती सोच की वजह;

पति की परिस्थितियों को समझती है

अगर पत्नी खुद भी कामकाजी है तो वह पति की काम से जु़ड़ी हर परेशानी को बखूबी समझ जाती है. वह समयसमय पर न तो पति को घर जल्दी आने के लिए फोन करती रहेगी और न घर लौटने पर हजारों सवाल ही करेगी. इस तरह पतिपत्नी का रिश्ता स्मूथली चलता रहता है. दोनों हर संभव एक दूसरे की मदद को भी तैयार रहते हैं. यही वजह है कि पुरुष कामकाजी लड़कियां खोजने लगे हैं.

अपना खर्च खुद उठा सकती हैं

जो महिलाएं जौब नहीं करतीं वे अपने खर्चे के लिए पूरी तरह पति पर निर्भर होती हैं. छोटी सी छोटी चीज़ के लिए भी उन्हें पति और घरवालों के आगे हाथ पसारना पड़ता है. दूसरी तरफ वर्किंग वूमन खर्चों को पूरा करने के लिए पति पर डिपेंडेंट नहीं रहती हैं. वे न सिर्फ अपने खर्चे खुद उठाती हैं बल्कि समय पड़ने पर परिवार की भी मदद करती हैं.

पौजिटिव होती हैं

कामकाजी महिलाओं पर हुई एक रिसर्च के मुताबिक ज्यादातर वर्किंग वूमन सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहती हैं. उन के अंदर आत्मविश्वास और चीज़ों को हैंडल करने का अनूठा जज्बा होता है. उन्हें पता होता है कि किस परेशानी से किस तरह निपटना है.इस लिए वे छोटी छोटी बातों पर हाइपर नहीं होती न ही घबड़ाती हैं. उन्हें पता होता है कि प्रयास करने पर वे काफी आगे बढ़ सकती हैं.

खर्च कम बचत ज्यादा

आज की महंगाई में यदि पतिपत्नी दोनों कमाई करते हैं तो जिंदगी आसान हो जाती है. आप को कोई भी प्लान बनाते समय सोचना नहीं पड़ता. भविष्य के लिए बचत भी आसानी से कर पाते हैं. घर और वाहन खरीदने या फिर किसी और जरुरत के लिए लोन लेना हो तो वह भी दोनों मिल कर आसानी से ले लेते हैं और किश्तें भी चुका पाते हैं. आलम तो यह है कि आज महिलाएं लोन लेने और उसे चुकाने के मामले में पुरुषों से कहीं आगे हैं. वे न सिर्फ पारिवारिक और सामाजिक दृष्टि से बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी घर की धुरी बनती जा रही है.

बढ़ रही है लोन लेने वाली औरतों की संख्या

क्रेडिट इन्फौर्मेशन कंपनी ‘ट्रांसयूनियन सिबिल’ की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले 3 सालों में कर्ज लेने के मामले में महिला आवेदको की संख्या लगातार बढ़ रही हैं. देखा जाए तो औरतों ने मर्दों को पीछे छोड़ दिया है.

रिपोर्ट के अनुसार, ‘साल 2015 से 2018 के बीच कर्ज लेने के लिए सफल महिला आवेदकों की संख्या में 48 फीसदी की बढ़त हुई है. इस की तुलना में सफल पुरुष आवेदकों की संख्या में 35 फीसदी की बढ़त हुई है. हालांकि कुल कस्टमर बेस के हिसाब से अभी भी कर्ज लेने वाले पुरुषों की संख्या काफी ज्यादा है.

रिपोर्ट के अनुसार करीब 5.64 करोड़ के कुल लोन अकाउंट में अब भी ज्यादा हिस्सा गोल्ड लोन का है, हालांकि साल 2018 में इस में 13 फीसदी की गिरावट आई है. इस के बाद बिजनेस लोन का स्थान है. कंज्यूमर लोन, पर्सनल लोन और टू व्हीलर लोन के लिए महिलाओं की तरफ से मांग साल-दर-साल बढ़ती जा रही है.

आज हर 4 कर्जधारकों में से एक महिला है. यह अनुपात और भी बदलेगा क्यों कि कर्ज लेने लायक महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ रही है. बेहतर शिक्षा और श्रम बाजार में बेहतर हिस्सेदारी की वजह से अब ज्यादा से ज्यादा महिलाएं अपने वित्तीय फैसले खुद ले रही हैं.

Beauty Problems: मेकअप लगाने से चेहरा पैची हो जाता है. समाधान बताएं?

Beauty Problems

मेकअप लगाने के 1 घंटे में ही चेहरा पैची हो जाता है. परेशान हो गई हूं. कोई समाधान बताएं?

पैची मेकअप का मतलब है कि आप की स्किन में हाइड्रेशन की कमी है. कई बार मेकअप से पहले सही तरीके से मौइस्चराइज नहीं किया जाता या स्किन पर डैड स्किन की लेयर होती है. इस के लिए मेकअप से पहले स्किन को अच्छी तरह क्लीन करें, फिर 5 मिनट तक कोई हाइड्रेटिंग क्रीम या ऐलोवेरा लगाएं. स्किन को हफ्ते में 1 बार सौफ्ट स्क्रब करें. प्राइमर जरूर यूज करें. यह मेकअप को टिकाने में मदद करता है. स्पौंज या फिंगर्स से बहुत रगड़ कर लगाने से बचें.

चेहरे पर ग्लो तो है लेकिन अनइवन लगती है. कहीं गालों की स्किन डार्क है तो कहीं फोरहैड डल है. समझ में नहीं आता क्या करूं?

यह अनइवन स्किन टोन कहलाता है जो धूप, हारमोनल बदलाव या गलत प्रोडक्ट्स की वजह से होता है. कई बार एक ही फेस क्रीम पूरे चेहरे के लिए ठीक नहीं होती क्योंकि हर हिस्से की स्किन की थिकनैस अलग होती है. इस से बचने के लिए सुबहसुबह सनस्क्रीन लगाना बिलकुल न भूलें खासकर जब बाहर निकलना हो. रात को गुलाबजल+चंदन पाउडर या दूध+केसर लगा कर सोने से सुधार होता है. पिगमैंटेशन वाले एरिया पर नीबू+शहद (सप्ताह में 2 बार) भी लगा सकती हैं. मुलतानी मिट्टी+खीरे के रस का फेस पैक अनइवन स्किन को स्मूथ करता है.

मेरे फेस पर अचानक छोटेछोटे दाने हो जाते हैं जबकि स्किन ड्राई रहती है. कोई इलाज बताएं?

अकसर महिलाएं समझती हैं कि दाने सिर्फ औयली स्किन पर होते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. ड्राई स्किन पर भी अगर आप ज्यादा हार्श फेसवाश यूज कर रही हों या दिनभर में फेस बारबार धो रही हों तो स्किन का नैचुरल मौइस्चर चला जाता है. इस से स्किन बचाव के लिए खुद औयल बनाती है और पोर्स ब्लौक हो जाते हैं. रोज माइल्ड या क्रीम बेस्ड फेसवाश यूज करें. दिन में 2 बार गुलाबजल या ऐलोवेरा जैल लगाएं. हफ्ते में 1 बार जैंटल ऐक्सफौलिएशन जरूर करें जैसे ओटमील और मिल्क मिला कर उस में कुछ दाने खसखस के मिला लें और फेस को हलके हाथों से स्क्रब करें. Beauty Problems

Romantic Story: मिशन लव बर्ड्ज

Romantic Story: हम ने अपने दरवाजे के सामने खड़े अजनबी युवक और युवती की ओर देखा. दोनों के सुंदर चेहरों पर परेशानी नाच रही थी. होंठ सूखे और आंखों में वीरानी थी.

‘‘कहिए?’’ हम ने पूछा.

‘‘जी, आप के पास पेन और कागज मिलेगा?’’ लड़के ने थूक निगल कर हम से पूछा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. मगर आप कुछ परेशान से लग रहे हैं. जो कुछ लिखना है अंदर आ कर आराम से बैठ कर लिखो,’’ हम ने कहा.

दोनों कमरे में आ कर मेज के पास सोफे पर बैठ गए.

‘‘सर, हम आत्महत्या करने जा रहे हैं और हमें आखिरी पत्र लिखना है ताकि हमारी मौत के लिए किसी को जिम्मेदार न ठहराया जाए,’’ लड़की ने निराशा भरे स्वर में बताया.

‘‘बड़ी समझदारी की बात है,’’ हमारे मुंह से निकला…फिर हम चौंक पडे़, ‘‘तुम दोनों आत्महत्या करने जा रहे हो… पर क्यों?’’

‘‘सर, हम आपस में प्रेम करते हैं और एकदूसरे के बिना जी नहीं सकते. मगर हमारे मातापिता हमारी शादी कराने पर किसी तरह राजी नहीं हैं,’’ लड़के ने बताया.

‘‘और इसीलिए हम यह कदम उठाने पर मजबूर हैं,’’ लड़की निगाह झुका कर  फुसफुसाई.

‘‘तुम दोनों एकदूसरे को इतना चाहते हो तो फिर ब्याह क्यों नहीं कर लेते? कुछ समय बाद तुम्हारे मांबाप भी इस रिश्ते को स्वीकार कर  लेंगे.’’

‘‘नहीं, सर, हमारे मातापिता को आप नहीं जानते. वे हम दोनों का जीवन भर मुंह न देखेंगे और यह भी हो सकता है कि हमें जान से ही मार डालें,’’ लड़के ने आह भरी.

‘‘हम अपनी जान दे देंगे मगर अपने मातापिता के नाम पर, अपने परिवार की इज्जत पर कीचड़ न उछलने देंगे,’’ लड़की की आंखों में आंसू झिलमिला उठे थे.

‘‘अच्छा, ऐसा करते हैं…मैं तुम दोनों के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाऊंगा और मुझे भरोसा है कि इस मिशन में मैं जरूर कामयाब हो जाऊंगा. तुम मुझे अपनेअपने मांबाप का नामपता बताओ, मैं अभी आटो कर के उन के पास जाता हूं. तब तक तुम दोनों यहीं बैठो और वचन दो कि जब तक मैं लौट कर न आ जाऊं तुम दोनों आत्महत्या करने के विचार को पास न फटकने दोगे.’’

लड़के ने उस कागज पर अपने और अपनी प्रेमिका के पिता का नाम लिखा और पते नोट कर दिए.

हम ने कागज पर नाम पढ़े.

‘‘मेरे पिताजी का नाम ‘जी. प्रसाद’ यानी गंगा प्रसाद और इस के पिताजी ‘जे. प्रसाद’ यानी जमुना प्रसाद,’’ लड़के ने बताया.

‘‘और तुम्हारे नाम?’’ हम ने पूछा.

‘‘मैं राजेश और इस का नाम संगीता है.’’

राजेश ने अपनी जेब से पर्स निकाला और उस में से 500 का नोट निकाल कर हमारे हाथ पर रख दिया.

‘‘यह क्या है?’’ हम ने प्रश्न किया.

‘‘सर, यह आटो का भाड़ा.’’

‘‘नहींनहीं. रहने दो,’’ हम ने नोट लौटाते हुए कहा.

‘‘नहीं सर, यह नोट तो आप को लेना ही पड़ेगा. यही क्या कम है कि आप हमारे मम्मीडैडी से मिल कर उन्हें समझाबुझा कर राह पर लाएंगे,’’ लड़की यानी संगीता ने आशा भरी नजरों से हमारी आंखों में झांका.

हम ने नामपते वाला कागज व 500 रुपए का नोट जेब में रखा और घर के बाहर आ गए.

आटो में बैठेबैठे रास्ते भर हम राजेश और संगीता के मांबाप को समझाने का तानाबाना बुनते रहे थे.

उस कालोनी की एक गली में हमारा आटो धीरेधीरे बढ़ रहा था. सड़क के दोनों तरफ के मकानों पर लगी नेम प्लेटों और लेटर बाक्सों पर लिखे नाम हम पढ़ते जा रहे थे.

एक घर के दरवाजे पर ‘जी. प्रसाद’ की नेम प्लेट देख कर हम ने आटो रुकवाया.

‘‘जी. प्रसाद यानी गंगा प्रसाद… राजेश के डैडी का घर,’’ हम ने धीरे से कहा.

‘काल बैल’ के जवाब में एक 55-60 वर्ष के आदमी ने दरवाजा खोला. उन के पीछे रूखे बालों वाली एक स्त्री थी. दोनों काफी परेशान दिखाई दे रहे थे.

‘‘मैं आप लोगों से बहुत नाजुक मामले पर बात करने वाला हूं,’’ हम ने कहना शुरू किया, ‘‘क्या आप मुझे अंदर आने को नहीं कहेंगे?’’

दंपती ने एकदूसरे की ओर देखा, फिर हमें स्त्री ने अंदर आने का इशारा किया और मुड़ गई.

‘‘देखिए, श्रीमानजी, आप की सारी परेशानी की जड़ आप की हठधर्मी है,’’ हम ने कमरे में कदम रखते ही कहना शुरू किया, ‘‘अरे, अगर आप का बेटा राजेश अपनी इच्छा से किसी लड़की को जीवन साथी बनाना चाहता है तो आप उस के फटे में अपनी टांग क्यों अड़ा रहे हैं?’’

‘‘मगर मेरा बेटा…’’ अधेड़ व्यक्ति ने कहना चाहा.

‘‘आप यही कहेंगे न कि अगर आप का बेटा आप के कहे से बाहर गया तो आप उसे गोली मार देंगे,’’ हम ने बीच में उन्हें टोका, ‘‘आप को तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं. आप का बेटा और उस की प्रेमिका आत्महत्या कर के, खुद ही आप के मानसम्मान की पताका फहराने जा रहे हैं.’’

‘‘मगर भाई साहब, हमारा कोई बेटा नहीं है,’’ रूखे बालों वाली स्त्री ने रूखे स्वर में कहा.

‘‘मुझे मालूम है. आप गुस्से के कारण ऐसा बोल रही हैं,’’ हम ने महिला से कहा और फिर राजेश के डैडी की ओर मुखातिब हुए, ‘‘मगर जब आप अपने जवान बेटे की लाश को कंधा देंगे…’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा हरगिज न होगा… मुझे मेरे बेटे के पास ले चलो.. मैं उस की हर बात मानूंगा,’’ अधेड़ आदमी ने हमारा हाथ पकड़ा, ‘‘मैं उस की शादी उस की पसंद की लड़की से करा दूंगा.’’

‘‘जरा रुकिए, मैं भी आप के साथ चलूंगी,’’ रूखे बालों वाली स्त्री बिलख पड़ी, ‘‘आप अंदर अपने कमरे में जा कर कपड़े बदल आएं.’’

पति ने वीरान नजरों से अपनी पत्नी की ओर देखा फिर दूसरे कमरे में चला गया.

पतिपत्नी पर अपने शब्दों का जादू देख कर हम मन ही मन झूम पड़े.

‘‘सुनिए भैयाजी,’’ महिला ने हम से कहा, ‘‘सच ही हमारा कोई बेटीबेटा नहीं है. 30 वर्षों के ब्याहता जीवन में हम संतान के सुख को तरसते रहे. हम ने अपनेअपने सगेसंबंधियों में से किसी के बच्चे को गोद लेना चाहा मगर सभी ने कन्नी काट ली. सभी का एक ही खयाल था कि हमारे घर पर किसी डायन का साया है जो हमारे आंगन से उठने वाली बच्चे की किलकारियों का गला घोंट देगी.’’

‘‘आप सच कह रही हैं? हमें विश्वास नहीं हो रहा था.’’

महिला ने सौगंध खाते हुए अपने गले को छुआ और बोली, ‘‘इस  सब से मेरे पति का दिमागी संतुलन गड़बड़ा गया है. पता नहीं कब किस को मारने दौड़ पड़ें.’’

उधर दूसरे कमरे से चीजों के उलटनेपलटने की आवाजें आने लगीं.

‘‘अरे, तुम  ने मेरा रिवाल्वर कहां छिपा दिया?’’ मर्द की दहाड़ सुनाई दी, ‘‘मुझ से मजाक करने आया है…जाने न देना…मैं इस बदमाश की खोपड़ी उड़ा दूंगा.’’

हम ने सिर पर पांव रखने के बजाय सिर पर दोनों हाथ रख बाहर के दरवाजे की ओर दौड़ लगाई और सड़क पर खड़े आटो की सीट पर आ गिरे.

आटो एक झटके से आगे बढ़ा. यह भी अच्छा ही हुआ कि हम ने आटोरिकशा को वापस न किया था.

दूसरी सड़क पर आटो धीमी गति से बढ़ रहा था.

एक मकान पर जे. प्रसाद की पट्टी देख हम ने आटो रुकवाया.

‘‘जमुना प्रसादजी?’’ हम ने काल बैल के जवाब में द्वार खोलने वाले लंबेतगड़े मर्द से पूछा. उस के होंठ पर तलवार मार्का मूंछें और लंबीलंबी कलमें थीं.

‘‘जी,’’ उस ने कहा और हां में सिर हिलाया.

‘‘आप की बेटी का नाम संगीता है?’’

‘‘हां जी, मगर बात क्या है?’’ मर्द ने बेचैनी से तलवार मार्का मूंछों क ो लहराया.

‘‘क्या आप गली में अपनी बदनामी के डंके बजवाना चाहते हैं? मुझे अंदर आने दीजिए.’’

‘‘आओ,’’ लंबातगड़ा मर्द मुड़ा.

ड्राइंगरूम में एक सोफे पर एक दुबलीपतली सुंदर महिला बैठी टेलीविजन देख रही थी. हमें आया देख उस ने टीवी की आवाज कम कर दी.

‘‘कहो,’’ वह सज्जन बोले.

हमें संगीता के पिता पर क्रोध आ रहा था. अत: तमक कर बोले, ‘‘अपनी बेटी के सुखों को आग दिखा कर खुश हो रहे हो? अरे, जब बेटी ही न रहेगी तो खानदान की मानमर्यादा को क्या शहद लगा कर चाटोगे?’’

‘‘क्या अनापशनाप बोले जा रहे हो,’’ उस स्त्री ने टीवी बंद कर दिया.

‘‘आप दोनों पतिपत्नी अपनी बेटी संगीता और राजेश के आपसी विवाह के खिलाफ क्यों हैं. वे एकदूसरे से प्यार करते हैं, दोनों जवान हैं, समझदार हैं फिर वे आप की इज्जत को बचाने के लिए अपनी जान न्योछावर करने को भी तैयार हैं.’’

‘‘ए… जबान को लगाम दो. हमारी बेटी के बारे में क्या अनापशनाप बके जा रहे हो?’’ मर्द चिल्लाया.

‘‘सच्ची बात कड़वी लगती है. मेरे घर में तुम्हारी बेटी संगीता अपने प्रेमी के कांधे पर सिर रखे सिसकियां भर रही है. अगर मैं न रोकता तो अभी तक उन दोनों की लाशें किसी रेलवे लाइन पर कुचली मिलतीं.’’

‘‘ओ…यू फूल…शटअप,’’ मर्द ने हमारा कालर पकड़ लिया.

‘‘हमारी बेटी घर में सो रही है,’’ उस महिला ने कहा.

‘‘हर मां अपनी औलाद के कारनामों पर परदा डालने की कोशिश करती है और पिता की आंखों में धूल झोंकती है. लाइए अपनी बेटी संगीता को, मैं भी तो देखूं,’’ हम ने अपना कालर छुड़ाया.

सुंदर स्त्री सोफे से उठ कर दूसरे कमरे में चली गई और फिर थोड़ी देर बाद एक 8-9 साल की बच्ची की बांह पकड़े ड्राइंगरूम में लौटी. बच्ची की अधखुली आंखें नींद से बोझिल हो रही थीं.

‘‘यह आप की बेटी संगीता है?’’ हम ने फंसेफंसे स्वर में पूछा.

‘‘हां,’’ तलवार मार्का मूंछें हम पर टूट पड़ने को तैयार थीं.

‘‘और आप के घर का दरवाजा?’’ हमारे मुंह से निकला.

‘‘यह,’’ इतना कह कर लंबेतगडे़ मर्द ने हमें दरवाजे की ओर इस जोर से धकेला कि हम बाहर सड़क पर खड़े आटो की पिछली सीट पर उड़ते हुए जा गिरे.

कालोनी की बाकी गलियां हम खंगालते रहे. कालोनी की आखिरी गली के आखिरी मकान पर गंगा प्रसाद की नेम प्लेट देख हम ने आटो रुकवाया.

‘‘किस से मिलना है?’’ 10-12 वर्ष के लड़के ने थोड़ा सा दरवाजा खोल हम से पूछा.

‘‘राजेश के मम्मीपापा से,’’ हम ने छोटा सा उत्तर दिया.

‘‘आओ,’’ लड़के ने कहा.

ड्राइंगरूम में 60-65 वर्ष का मर्द पैंटकमीज पहने एक सोफे पर बैठा था. एक दूसरे सोफे पर सूट पहने, टाई बांधे एक और सज्जन विराजमान थे. उन के पास रखे बड़े सोफे पर 20-22 साल की सुंदर लड़की सजीधजी बैठी थी. उस के बगल में एक अधेड़ स्त्री और दूसरी ओर  एक ब्याहता युवती बैठी थी. इन सभी के चेहरों पर खुशी की किरणें जगमगा रही थीं. सभी खूब सजेसंवरे थे.

पैंटकमीज वाले सज्जन के चेहरे पर गिलहरी की दुम जैसी मूंछें थीं. सभी हंसहंस कर बातें कर रहे थे, केवल वह सजीधजी लड़की ही पलकें झुकाए बैठी थी.

‘‘पापा, यह आप से मिलने आए हैं,’’ लड़के ने गिलहरी की दुम जैसी मूंछों वाले से कहा.

सामने दरवाजे से 50-55 साल की भद्र महिला हाथों में चायमिठाई की टे्र ले कर आई और उस ने सेंटर टेबल पर टे्र टिका दी.

‘‘आप राजेश के पापा हैं?’’

‘‘हां, और यह राजेश के होने वाले सासससुर और उन की बेटी, यानी राजेश की होने वाली पत्नी…हमारी होने वाली बहू और साथ में…’’ गिलहरी की दुम जैसी मूंछों तले लंबी मुसकराहट नाच रही थी.

‘‘आप राजेश के पापा नहीं… जल्लाद हैं,’’ राजेश की मंगनी की बात सुन कर हमारा खून खौल उठा, ‘‘यह जानते हुए कि राजेश किसी और लड़की को दिल से चाहता है, आप उस की शादी किसी और से करना चाहते हैं? आप राजेश के सिर पर सेहरा देखने के सपने संजो रहे हैं और वह सिर पर कफन लपेटे अपनी प्रेमिका संगीता के गले में बांहें डाले किसी टे्रन के नीचे कट मरने या नदी में कूद कर आत्महत्या करने जा रहा है.’’

‘‘क्या बक रहे हो?’’ राजेश के पापा का चेहरा क्रोध से काला पड़ गया.

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो,’’ हम ने राजेश के पापा को कड़े शब्दों में जताया, ‘‘राजेश ने आप को सब बता रखा है कि वह संगीता से प्यार करता है और उस के सिवा किसी और लड़की को गले लगाने के बजाय मौत को गले लगा लेगा,’’ हम बिना रुके बोलते गए, ‘‘मगर आप की आंखों पर तो लाखों के दहेज की पट्टी बंधी हुई है.’’

हम थोड़ा दम लेने को रुके.

‘‘और आप,’’ हम राजेश के होने वाले ससुर की ओर पलटे, ‘‘धन का ढेर लगा कर क्या आप अपनी बेटी के लिए दूल्हा खरीदने आए हैं? आप की यह बेटी जिसे आप सुर्ख जोड़े और लाल चूड़े में देखने के सपने सजाए बैठे हैं, विधवा की सफेद साड़ी में लिपटी होगी.’’

‘‘भाई साहब, यह सब क्या है?’’ लड़की की मां ने राजेश के पापा से पूछा.

‘‘यह…यह…कोरी बकवास..कर रहा है,’’ राजेश के पापा ने होने वाली समधन से कहा.

‘‘हांहां… हमारा राजेश हरगिज ऐसा नहीं है…मैं अपने बेटे को अच्छी तरह जानती हूं,’’ चाय की टे्र लाने वाली महिला बोली, ‘‘यह आदमी झूठा है, मक्कार है.’’

‘‘आप लोग मेरे घर चल कर राजेश से स्वयं पूछ लें,’’ हम ने लड़की की मां से कहा फिर उस के पति की ओर देखा, ‘‘आप लोगों को पता चल जाएगा कि मैं झूठा हूं, मक्कार हूं या ये लोग रंगे सियार हैं.’’

‘‘राजेश तुम्हारे घर में है?’’ लड़की के डैडी ने पूछा.

‘‘जी हां,’’ हम ने गला साफ किया, ‘‘वह अपनी प्रेमिका संगीता के साथ आत्महत्या करने जा रहा था कि मैं ने उन्हें अपने घर में बिठा कर इन को समझाने चला आया.’’

‘‘मगर राजेश तो इस समय अपने कमरे में है,’’ राजेश के पिता ने अपने समधीसमधन को बताया.

‘‘बुलाइए…अभी दूध का दूध पानी का पानी हो जाता है,’’ हम ने राजेश के डैडी को चैलेंज किया.

‘‘राजेश,’’ राजेश के डैडी चिल्लाए.

‘‘और जोर से पुकारिए…आप की आवाज मेरे घर तक न पहुंच पाएगी,’’ हम ने व्यंग्य भरी आवाज में कहा.

‘‘क्या हुआ, डैडी?’’ पिछले दरवाजे की ओर से स्वर गूंजा.

एक 27-28 वर्ष का युवक, सूट पहने, एक जूता पांव में और दूसरा हाथ में ले कर भागता हुआ कमरे में आया.

‘‘आप इतने गुस्से में क्यों हैं, डैडी?’’ युवक ने पूछा.

‘‘राजेश, देखो यह बदमाश क्या बक रहा है?’’

‘‘क्या बात है?’’ नौजवान ने कड़े शब्दों में हम से पूछा.

‘‘त…तुम… राजेश?’’ हम ने हकला कर पूछा, ‘‘और यह तुम्हारे डैडी?’’

‘‘हां.’’

‘‘फिर उस राजेश के डैडी कौन हैं?’’  हमारे मुंह से निकला.

और फिर हम पलट कर बाहर वाले दरवाजे की ओर सरपट भागे.

‘‘पकड़ो इस बदमाश को,’’ राजेश के डैडी चिंघाड़े.

‘‘जाने न पाए,’’ राजेश के होने वाले ससुर ने अपने होने वाले दामाद को दुत्कारा.

राजेश एक पांव में जूता होने के कारण दुलकी चाल से हमारे पीछे लपका.

हम दरवाजे से सड़क पर कूदे और दूसरी छलांग में आटोरिकशा में थे.

आटो चालक शायद मामले को भांप गया था और दूसरे पल आटो धूल उड़ाता उस गली को पार कर रहा था.

अपने घर से कुछ दूर हम ने आटोरिकशा छोड़ दिया. हम ने 500 रुपए का नोट आटो ड्राइवर को दे दिया था. कुछ रुपए तो आटो के भाड़े में और बाकी की रकम 3 स्थानों पर जान पर आए खतरों से हमें बचाने का इनाम था.

हम भारी कदमों से अपने घर के दरवाजे पर पहुंचे. पूरा रास्ता हम राजेश और संगीता को अपने मिशन की नाकामी की दास्तान सुनाने के लिए उपयुक्त शब्द ढूंढ़ते आए थे. हमें डर था कि इतनी देर तक इंतजार की ताव न ला कर उन ‘लव बर्ड्ज’ ने आत्महत्या न कर ली हो.

धड़कते दिल से हम घर के बंद दरवाजे के सामने खड़े हो कर अंदर की आहट लेते रहे.

घर के अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही थी. मौत की सी खामोशी थी. जरूर उन प्रेम पंछियों को हमारी असफलता का भरोसा हो गया था और उन्होंने मौत को गले लगा लिया होगा.

धड़कते दिल से काल बेल का बटन पुश करने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो हम ने दरवाजे पर जोरदार टक्कर मारी और फिर औंधे मुंह हम कमरे में जा पड़े.

दरवाजा बंद न था.

हम ने उस प्रेमी जोड़े की तलाश में इधरउधर नजरें दौड़ाईं. मगर वे दोनों गायब थे. साथ ही गायब था हमारा नया टेलीविजन, वी.सी.आर. और म्यूजिक सिस्टम.

हम जल्दी से उठ खडे़ हुए और स्टील की अलमारी की ओर लपके. अलमारी का लाकर खुला हुआ था और उस में रखी हाउस लोन की पहली किस्त की पूरी रकम गायब थी…

हमारी आंखों तले अंधेरा छा गया. जरूर वह ठगठगनी जोड़ी बैंक से ही हमारे पीछे लग गई थी.

उस प्रेमी युगल की गृहस्थी बसातेबसाते हमें अपनी गृहस्थी उजड़ती नजर आ रही थी क्योंकि आज शाम की गाड़ी से हमारे नए मकान के निर्माण का सुपरविजन करवाने को लीना अपने बलदेव भैया को साथ ले कर आ रही थी.

Hindi Fiction Story: हाय रे पर्यटन

Hindi Fiction Story: आजकल पर्यटन पर खास जोर है. जिसे देखो वही कहीं न कहीं जा रहा है. कोई शिमला, कोई मनाली, कोई ऊटी. पत्नी भी कहां तक सब्र रखती, आखिर एक दिन कह ही दिया, ‘‘देखो, बहुत हो गया. इतने साल हो गए हमारी शादी को, आप कहीं नहीं ले जाते. ले दे कर पीहर और रिश्तेदारों के अलावा आप की डायरी में दूसरी कोई जगह ही नहीं है. अब तो किटी में भी लोग मुझ से पूछते हैं, ‘मिसेज शर्मा, आप कहां जा रही हो.’ अब मैं क्या जवाब दूं. मैं ने भी उन से कह दिया कि हम भी इस बार हिल स्टेशन जा रहे हैं.

‘‘इस बार आप पक्की तरह सुन ही लो. हमें इस बार किसी न किसी हिल स्टेशन पर जाना ही है, चाहे लोन ही क्यों न लेना पड़े. मेरी नाक का सवाल है,’’ यह कह कर वह कोपभवन में चली गईं.

हमारे जैसे शादीशुदा लोग पत्नी के कोप से अच्छी तरह परिचित हैं. वे जानते हैं कि एक बार निर्णय लेने के बाद पत्नियों को कोई नहीं समझा सकता, सो मैं ने समझौतावादी नीति अपनाई और उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित किया. एकतरफा बातचीत के बाद मैं ने मान लिया कि इस बार शिमला जाना ही हमारी नियति है.

रेलवे टाइमटेबिल में से कुछ गाडि़यां नोट कर मैं रिजर्वेशन कराने रेलवे के आरक्षण कार्यालय पहुंचा. कार्यालय बिलकुल खाली पड़ा था. मैं मन ही मन खुश हो उठा कि चलो अच्छा हुआ, अभी 5 मिनट में रिजर्वेशन हो जाएगा.

चंद मिनटों में मेरा नंबर भी आ गया.

‘‘लाइए,’’ यह कहते हुए आरक्षण क्लर्क ने मेरा फार्म पकड़ा और उस पर अपनी पैनी नजर फिरा कर मुझे वापस पकड़ा दिया.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘आप ने फार्म वापस क्यों दे दिया?’’

वह क्लर्क हंस कर बोला, ‘‘भाईसाहब, गाड़ी में नो रूम है यानी कि अब जगह नहीं है.’’

‘‘तो कोई बात नहीं, दूसरी गाड़ी में दे दीजिए.’’

‘‘इस समय इस ओर जाने वाली किसी भी गाड़ी में कोई जगह नहीं है.’’

‘‘कैसी बात करते हैं. सारे काउंटर खाली पड़े हैं और आप हैं कि…’’

‘‘ऐसा है, आप तैश मत खाइए. सारी गाडि़यां 2 महीने पहले ही बुक हो गई हैं. अब कहें तो जुलाई का दे दें.’’

एकाएक मुझे खयाल आया कि मैं भी कैसा बेवकूफ हूं. नहीं मिला तो अच्छा ही हुआ. अब कम से कम इस बहाने जाने से तो बचा जा सकता है.

मैं खुशीखुशी घर लौट आया और जैसे ही घर में प्रवेश किया तो यह देख कर हैरान रह गया कि वहां महल्ले की किटी कार्यकारिणी की सभी महिला पदाधिकारी अपने बच्चों सहित मौजूद थीं.

‘‘भाईसाहब, बधाई हो, आप ने शिमला का निर्णय ठीक ही लिया, पर लगे हाथ कुल्लूमनाली भी हो आइएगा,’’ मिसेज वर्मा बोलीं.

‘‘अरे, जब वहां जा रहे हैं तो कुल्लूमनाली को कैसे छोड़ देंगे,’’ श्रीमतीजी चहक कर बोलीं.

‘‘और भाईसाहब, रिजर्वेशन ए.सी. में ही करवाइएगा, नहीं तो आप पूरे रास्ते परेशान हो जाएंगे.’’

‘‘अरे भाभीजी, हमारे साहब के स्वभाव में तकलीफ उठाना तो बिलकुल नहीं है. हम ने तो ए.सी. में ही रिजर्वेशन करवाया है. इन्होंने तो होटल में भी ए.सी. रूम ही बुक करवाए हैं.’’

मुझे काटो तो खून नहीं. केवल स्टेटस सिंबल के लिए श्रीमतीजी झूठ पर झूठ बोलती जा रही थीं.

चायनाश्ते के दौर के बाद जब महिला ब्रिगेड विदा हुई तो मैं धम से सोफे पर पड़ गया.

उन्हें छोड़ कर वे अंदर आईं तो मेरा हाल देख कर घबरा गईं, ‘‘क्या हो गया, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न.’’

मैं ने श्रीमतीजी को रिजर्वेशन की असलियत बताई तो वह बिफर उठीं, ‘‘तुम कैसे आदमी हो, तुम से एक रिजर्वेशन नहीं हुआ. मैं नहीं जानती. मुझे इस बार शिमला जरूर जाना है. अब तो मेरी नाक का सवाल है,’’ कह कर वह अंदर चली गईं.

बेटी, मां की बात सुन कर मुसकराई, ‘‘देखो पापा, मम्मी की नाक का सवाल बहुत बड़ा होता है. इस सवाल में अच्छेअच्छों के कान भी कट जाते हैं. ऐसा करते हैं, गाड़ी कर के चलते हैं.’’

अब इस फैसले को मानने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था.

सीने पर पत्थर रख कर मैं गाड़ी की बात करने गया. गाड़ी का रेट सुन कर मेरे होश उड़ गए, पर क्या करता, श्रीमतीजी की नाक का सवाल सब से बड़ा था. मुझे लगा, जितने पैसे में घूम कर आ जाते, उतना तो गाड़ी ही खा जाएगी, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था.

देखतेदेखते वह दिन भी आ गया. सोसायटी की सभी महिलाएं विदा करने आईं. श्रीमतीजी फूली नहीं समा रही थीं. वह मेरी तरफ ऐसे देख रही थीं जैसे कह रही हों, देखो, मेरी इज्जत. हां, बात करतेकरते सभी महिलाएं अपने लिए शिमला से कुछ न कुछ लाने की फरमाइश कर रही थीं, जिसे श्रीमतीजी सहर्ष स्वीकार करती जा रही थीं. इन फरमाइशों की सूची सुन कर मेरा दिल घबराने लगा था.

अंतत: गाड़ी रवाना हुई तो श्रीमतीजी ने प्रधानमंत्री की तरह हाथ हिला कर सोसायटी वालों से विदा ली. थोड़ी देर में सूरज सिर पर आ गया. लू के थपेड़े चलने लगे. गाड़ी बुरी तरह तप रही थी. जहां हाथ लगाओ वहीं ऐसा लगता था जैसे गरम सलाख दाग दी गई हो. कुछ देर में पत्नी, फिर बेटी धराशायी हो गई.

बेटा मां से लड़ने लगा, ‘‘यह कौन सा हिल स्टेशन है? हम सहारा मरुस्थल में चल रहे हैं क्या?’’

श्रीमतीजी कराहती हुई बोलीं, ‘‘अरे बेटा, यह तेरे पापा की कंजूसी से ऐसा हुआ है. मैं ने तो ए.सी. गाड़ी लाने को कहा था.’’

जवाब में बेटा और बेटी अपने कलियुगी पिता को घूरने लगे. मैं क्या करता, मैं ने निगाहें नीचे कर लीं.

दवाइयां खाते, उलटियां करते जैसेतैसे कर के शिमला तक पहुंचे. शिमला तक का रास्ता आलोचनाओं में अच्छी तरह कटा. उन की आलोचनाओं का केंद्र मैं जो था.

शिमला पहुंच कर सब ने चैन की सांस ली. ड्राइवर ने सड़क के एक ओर गाड़ी लगा दी.

बेटा अचानक गाड़ी को रुकते देख बोला, ‘‘क्यों पापा, होटल आ गया?’’

‘‘हां, बेटा, तेरे पापा ने फाइव स्टार होटल बुक करा रखा है,’’ श्रीमतीजी व्यंग्य से बोलीं.

ड्राइवर भी हैरान रह गया, ‘‘क्या साहब, आप ने होटल भी बुक नहीं करवाया? सीजन का टाइम है. क्या पहली बार घूमने आए हो?’’

‘‘हां, भैया, पहली बार ही आए हैं. हमारी तकदीर में बारबार घूमने आना कहां लिखा है,’’ श्रीमतीजी लगातार वार पर वार कर रही थीं, ‘‘जा बेटा, उठ और होटल ढूंढ़, मेरे तो बस की नहीं है.’’

फिर बेटे और बेटी को ले कर गलीगली घूमने लगा. ज्यादातर होटल भरे हुए थे, हार कर एक बहुत महंगा होटल कर लिया. अब सब बहुत खुश थे.

उस दिन आराम किया. शाम को माल रोड घूमने निकले. मैं उन्हें बता रहा था, ‘‘देखो, रेलिंग के नीचे घाटी कितनी सुंदर लग रही है,’’ पर घाटी को निहारने के बाद अपना सिर घुमाया तो पाया मैं अकेला था. ये तीनों अलगअलग दुकानों में घुसे हुए थे.

थोड़ी देर बाद बेटी आई और हाथ पकड़ कर दुकान में ले गई, ‘‘देखो पापा, कितनी सुंदर ड्रेस है.’’

‘‘अच्छा भई, कितने की है?’’ लाचारी में मुझे पूछना पड़ा.

‘‘बस सर, सस्ती है. आप को डिस्काउंट में दे देंगे. मात्र 2 हजार रुपए.’’

मुझे मानो करंट लगा, ‘‘अरे भई, तुम तो दिन दहाड़े लूटते हो. यह डे्रस तो कोटा में 300-400 से ज्यादा की नहीं मिलती है.’’

दुकानदार ने डे्रस मेरे हाथ से छीन ली, ‘‘कोई दूसरी दुकान देखिए साहब, हमारा टाइम खराब मत कीजिए.’’

बेटी को भारी धक्का पहुंचा. बाहर निकलते ही वह रोने लगी, ‘‘आप भी बस पापा, कितना अपमान करवाते हैं.’’

तभी श्रीमतीजी भी बेटे के साथ आ गईं. बेटी को रोते देख उन्होंने मेरी जो क्लास ली कि मेरी जेब का अच्छाखासा पोस्टमार्टम हो गया.

दूसरे दिन कूफरी घूमने का प्रोग्राम बना. कूफरी में घोड़े वाले पीछे पड़ गए कि साहब, ऊपर पहाड़ी पर चलें. मुझे घुड़सवारी में कोई दिलचस्पी नहीं है और फिर रेट इतने कि मैं ने साफ मना कर दिया.

‘‘तुम ऊपर चले चलोगे तो बच्चों का मन बहल जाएगा. बच्चों का मन रखने के लिए क्या इतना भी नहीं कर सकते.’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं कर सकता,’’ मुझे पत्नी पर गुस्सा आ गया, ‘‘एक बार घर वालों का मन रखने के लिए घोड़ी पर चढ़ा था जिस का मजा आज तक भोग रहा हूं… अब और रिस्क नहीं ले सकता.’’

मेरे इस व्यंग्य को सुन कर श्रीमतीजी ने रौद्र रूप धारण कर लिया. फिर क्या था, मुझे सपरिवार घोड़े की सवारी करनी ही पड़ी. लेकिन जिस बात का डर था, वही हुआ. घोड़े पर से उतरते वक्त मैं संतुलन खो बैठा और धड़ाम से नीचे जा गिरा. मेरे पांव में मोच आ गई. मेरा उस दिन का सफर गाड़ी में बैठेबैठे ही पूरा हुआ. वे बाहर घूमतेफिरते, मजे करते रहे और मैं अंदर बैठाबैठा कुढ़ता रहा.

शाम को वहीं एक डाक्टर को दिखाया. उस ने कहा, ‘‘कोई चिंता की बात नहीं है. एकदो दिन आराम करोगे तो ठीक हो जाएगा.’’

दूसरे दिन सुबह मैं पलंग पर लेटा रहा. तीनों सदस्य अर्थात श्रीमतीजी, पुत्र व पुत्री तैयार होते रहे. थोड़ी देर बाद वे तीनों एकसाथ आ कर मेरे सामने बैठ गए.

मैं बोला, ‘‘कोई बात नहीं. चोट लग गई तो लग गई. तुम लोग परेशान मत हो. जा कर घूम आओ.’’

‘‘हम क्यों परेशान होंगे. हम तो पैसे के लिए बैठे हैं.’’

पैसे ले कर तीनों सुबह के निकले तो रात तक ही लौट कर आए. उन्होंने इतना सामान लाद रखा था कि बड़ी मुश्किल से उठा पा रहे थे.

धीरेधीरे उन्होंने एकएक सामान का रेट बताना शुरू किया तो मेरा दिल बैठ गया. मैं ने खर्च का हिसाब लगाया तो सिर्फ इतने ही रुपए बचे थे कि बस होटल का बिल चुका कर हम जैसेतैसे घर पहुंच सकें.

रात को बैठ कर सारी पैकिंग की गई. कुल्लूमनाली न जाने की बाबत अफसोस जाहिर किया गया और यह चिंता जतलाई गई कि अब श्रीमतीजी घर पहुंच कर कैसे मुंह दिखाएंगी.

दूसरे दिन उदासी भरे चेहरों को ले कर वे शिमला से रवाना हुए और साथ में मुझे लेना भी नहीं भूले.

कुछ घंटों बाद जब हमारी कार पहाड़ों को छोड़ कर मैदानों में पहुंची तो गरमी अपना विकराल रूप दिखाने लगी. लू के थपेड़े खाते हुए जब हम घर पहुंचे तो श्रीमतीजी के आगमन पर पूरा महल्ला इकट्ठा हो गया. श्रीमतीजी रास्ते की थकान भूल गईं.

वह बढ़ाचढ़ा कर शिमला का बखान सुनाने लगीं. सब लोग धैर्य से सुनते रहे. फिर समापन के समय वस्तुवितरण समारोह हुआ. श्रोताओं का धैर्य टूट गया. वे सामानों की आलोचना करने लगे.

‘‘अरे, मिसेज शर्मा, यह शाल थोड़ा आप हलका ले आई हैं.’’

‘‘हां, कपड़े भी ठीक नहीं आए. फुटपाथ से लेने में क्वालिटी हलकी आ ही जाती है.’’

‘‘मिसेज शर्मा, आप ने तो बस घूमने का नाम ही किया, कुल्लूमनाली हो कर आतीं तो कुछ बात भी थी.’’

थोड़ी देर बाद सब चले गए. घर की 3 सदस्यीय ज्यूरी के सामने मैं अपराधी बैठा था. अपराध सिद्ध करने के लिए महल्ले के सभी गवाह पर्याप्त थे.

मुझे दोषी माना गया और सजा दी गई कि अब क्रिसमस की छुट्टियों में गोवा घूमने चलेंगे, जिस का सब इंतजाम बेटा पहले से ही कर लेगा और मुझे सिर्फ एक काम करना होगा, एक भारी राशि का चेक साइन करना होगा ताकि सबकुछ अच्छी तरह से निबट सके.

लेखक- शरद उपाध्याय

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