Hindi Story : एक नीली चिट

Hindi Story : दोनों ने सबेरे का ढेर सारा काम निबटाया, समीर और शांता ने औफिस के टिफिन लगाए और दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद शांता का कुछ देर आराम से पलंग पर लेटने का मन हुआ. उस की मैट्रो थोड़ी देर से थी. समीर का औफिस दूर था. वह जल्दी वाली पकड़ता था.

सुबह काम भी इतना होता है कि नाम में दम आ जाता है. सुबह 5 बजे उठ कर दोनों चाय, दूध, नाश्ता, खाना बनाते खिला 8 बज ही जाते हैं. फिर जब सब के खाने के डब्बे तैयार होते तब कहीं जा कर शांता आराम कर पाती. वह भी मुश्किल से 10 मिनट.

उस के बाद भी शांता हर जगह बिखरे जूते, मोजे, चप्पलें, गंदी बनियानें, जांघिए, पजामेकुरते और तौलिए समेट वाशिंग मशीन में डालती.

घर को सुव्यवस्थित करने का काम, झाड़ूपोंछा, बरतनों की सफाई और कपड़ों की धुलाई पार्टटाइम मेड ही करती थी. जैसा भी करती थी दोनों को मंजूर ही था. शाम को बच्चों को क्रेच से ले कर आती और फिर शुरू हो जाता है अंतहीन काम… बच्चों को खाना दो, कपड़े बदलवाओ, उन के झगड़े निबटाओ और फिर उन का होमवर्क कराओ.

देखते ही रात आ जाती. बच्चों को खाना खिला कर दोनों सोफे पर टीवी के सामने बैठ कर कुछ बतियाते. फिर चाय और खाना बनाने का काम.

मगर कमाल यह है कि इतना अधिक घर और औफिस का काम करने के बावजूद शांता बच्चों के जन्म के बाद काफी मोटी हो गई. थोड़ा काम निबटाने के बाद शांता का मन चाहता कि वह 15 मिनट के लिए लेट जाए. उसे सीढि़यां चढ़ने पर तकलीफ होने लगी थी. उस से कोई व्यायाम नहीं होता.

लाख बार चाहा कि डाइटिंग की जाए पर जब कभी भी खाना छोड़ कर केवल फल, दूध और सलाद खाने का निश्चय करती है तो बजट असंतुलित हो जाता है और उस फिर अपने टिफिन के दालचावल और रोटी पर उतर आती है. शांता की दलील है कि इतना काम भी करो और भरपेट खाना भी न खाओ.

अपने रोज के काम के बासी कार्यक्रम से शांता कभीकभी खीज उठती है. दफ्तर में उस की डैस्क भी बड़ी उबाऊ, एक सा काम लगता. सामने रखे कंप्यूटर में डाटा फीड करते रहो. कभी लंबीचौड़ी किसी से बात नहीं. कब से चाहती है कि कुछ दिनों के लिए कहीं हो आए या फिर समीर ही उसे औफिस से ले कर शाम को कहीं घुमा लाया करे. मगर एक तो कमर तोड़ महंगाई फिर 2-2 बच्चों को कहां लाद कर ले जाए? छुट्टी वाले दिन ही जब मौल या लोकल बाजार जाते ही इन की फरमाइशें शुरू हो जाती हैं, जिन से बचने का एक ही रास्ता है कि शाम भी घर पर गुजारी जाए और छुट्टी भी. शांता वही करती है. सोचती है बच्चे पल गए तो सम?ो जीवन संवर गया. बढ़ते बच्चों के खर्चें कितने होते हैं, इस का एहसास शांता और समीर दोनों को होने लगा था.

मगर कभीकभी शांता को समीर के उदास होने या चुपचाप औफिस से लौट कर मोबाइल, टीवी या लैपटौप में खो जाने पर अथवा अपने मोटे होते शरीर की चिंता सताती है तो वह पूछ बैठती है, ‘‘सच कहना समीर अब मैं पहले जैसी नहीं रही? काफी मोटी हो गई हूं? तुम्हारे दिल में कहीं फर्क तो नहीं आया? गजब हो जाएगा यदि तुम ने कभी ऐसा किया. मैं तुम से बेहद प्यार करती हूं. कभी मु?ा से मुंह मत मोड़ना नहीं तो मैं मर जाऊंगी. आजकल तो औफिस में भी कहीं कोई फ्लर्टिंग नहीं करता. पता नहीं इसलिए कि मैं मोटी हो गई हूं या केस न कर दूं.’’

समीर का उत्तर होता, ‘‘पागल हो? शादी के इतने साल हो गए क्या मैं पहले जैसा रहा हूं? मेरे भी तो बाल उड़ गए हैं और बीचबीच में कितने सफेद भी हो गए हैं… फिर अब बच्चे बड़े हो रहे हैं. उन के इश्क फरमाने के दिन आ रहे हैं. हम तो बुड्ढे हो गए. फुजूल के सवाल न किया करो. तुम हमेशा मेरी रहोगी, चाहे जैसी भी हो..’’

और शांता खुश हो कर मन ही मन समीर के बड़े दिल की दाद देती हुई नए जोश से गृहस्थी की गाड़ी सुव्यवस्थित रूप से चलाने में जुट जाती.

मगर आज शांता ने सोचा कि रोज थोड़ी देर लेटने से उस के काम में देर हो जाती है इसलिए जल्दी से काम निबटाने की सोच उस ने गंदे कपड़े समेट कर सर्फ में भिगो दिए. धोने के लिए बैठते ही उसे याद आया कि समीर के कपड़े तो बैड पर ही पड़े रह गए.

शांता समीर के कपड़े लेने कमरे में आई तो आदतन उस ने जेबें टटोल लीं. पिछली जेब में एक 10 रुपए का सिक्का तथा एक मुड़ी हुई नीली सी चिट पड़ी थी.

उस नीले कागज से आ रही सुगंध से शांता को हैरानी हुई. उस ने सिक्का निकाल कर एक ओर रख दिया और चिट पढ़ने लगी. लिखा था, माई ड्रीम गर्ल अनु… जब से तुम हमारे औफिस में आई हो, मैं अपने दिल का चैन खो बैठा हूं. न घर में चैन पड़ता है और न बाहर. जी चाहता है बस तुम्हें ही देखता रहूं. इतनी कोमलांगी को देखने भर से थकान दूर हो जाती है. मैं जानता हूं शायद इस से मेरे घर की शांति भंग हो जाए, पर मैं मजबूर हूं.

‘शांता में अब वह बात नहीं. कामकाज में उलझ कर वह बिलकुल बहनजी बन गई है. इसलिए मैं उस के साथ कहीं आताजाता भी नहीं.

‘मैं चाहता हूं कि तुम कुछ दिनों तक रोज शाम को कुछ समय मेरे साथ गुजार कर ब्रिंग जौय इन माई लाइफ. देखो, मना मत करना. मैं तुम से और कुछ नहीं चाहता. केवल अपने जीवन के बासीपन को दूर कर के ताजगी चाहता हूं. आई विल वेट फौर रिप्लाई. मैं यह मैसेज व्हाट्सऐप पर नहीं भेज रहा कि कहीं कोई न देख ले.

‘-तुम्हारा प्रेमी.’

चिट पढ़ कर शांता की हिम्मत जाती रही. कौन हो सकती है यह अनु? शायद

औफिस में पास ही बैठती हो? न जाने कितने दिनों से यह नाटक चल रहा है? अब मैं क्या करूं? कैसी मीठीमीठी बातें बनाते थे? अब तो बच्चों के इश्क करने का समय है. हम तो बुड्ढे हो गए हैं और स्वयं ही उलझ गए? जीवन में ताजगी लाना चाहते हैं. आने दो आज… अच्छी खबर लूंगी. पर शांता का यह गुस्सा मिनटों में ही काफूर हो गया.

शांता निढाल हो कर पलंग पर जा लेटी. औफिस फोन कर दिया कि आज शांता नहीं आ पाएगी. शादी के 15 साल बाद यह कैसी समस्या आ खड़ी हुई है? अब तो बच्चे भी बड़े हो रहे हैं. क्या समीर को अपनी उम्र और हैसियत का जरा भी ध्यान न आया?

शांता ने वह पत्र उलटपलट कर कईर् बार देखा और पढ़ा. कहीं गलतफहमी की शिकायत नहीं थी. उस लड़की का पता भी नहीं लिखा था. ख्वाबों में बसी है. न जाने कैसी है? घर का पता लिखा होता तो उस से मिल कर अपनी बसीबसाई गृहस्थी को न उजाड़ने की भीख मांगती. पर अब क्या करे?

शांता को लगा कि वह इतने बड़े संसार में आज अकेली रह गई है अंधेरे से घिरी हुई मानो किसी ने किश्ती में बैठा कर अंधेरे में ही समुद्र के बीच छोड़ दिया है और वह दिशाहीन भटक रही है. समीर ने उस के ट्रस्ट को आज तोड़ दिया था.

शांता का दिल चीखचीख कर रोने को कर रहा था. वह कटी शाख की तरह पलंग पर बिखर कर रोने लगी. आहिस्ता से, जोर से रो भी न सकी.

रोतेरोते शांता को 3-4 दिन पहले की बात अचानक  याद हो आई. उस रात शायद समीर को नींद नहीं आ रही थी. सब काम निबटा कर, बच्चों को सुला कर शांता कमरे में आई तो देखा समीर सिर पर हाथ रखे न जाने क्या सोच रहे थे.

सिर पर हाथ रख कर पूछा तो बोले, ‘‘सिर में दर्द है, पर तुम्हें क्या, रात के 11 बजे मेरी सुध आती है? जाओ अपने बच्चों के कमरे में जा कर सो जाओ.’’

समीर की बात सुन कर शांता को गुस्सा आ गया, ‘‘11 बजे न आऊं तो क्या करूं? सुबह से काम में लगती हूं औफिस जाती हूं, लौट कर किचन संभालती हूं. तब कहीं जा कर धीरेधीरे इस वक्त तक काम निबट पाता है और फिर एक मेड ही तो है वह होमवर्क तो नहीं करा सकती. यह सब भी तो मेरा ही सिरदर्द है. बच्चों के स्कूल के जूते, मोजे, टाई, कपड़े सब तैयार कर के रखने होते हैं. न तैयार करूं तो सुबह आफत हो जाए. मैं पत्नी न हो गई मशीन हो गई. उधर काम भी करूं और व्यंग्य भी सुनूं… हुंह.’’

और भर्राए गले पर काबू पा कर शांता दूसरी तरफ पलंग पर लेट गई. शायद वह सो भी जाती, पर कुछ देर बाद समीर बोला, ‘‘और कुछ नया काम नहीं है… तुम भी वही हो और काम भी वही है पर तुम से अपना भार ही नहीं ढोया जाता तो काम तो देर से होगा ही…’’

सुन कर शांता को बहुत चोट लगी. इस करारे व्यंग्य के लिए वह तैयार न थी. आखिर मन की बात जबान पर आ ही गई है.

छिटक कर बगैर बोले चादर बिछा कर शांता जमीन पर लेट गई और चुपचाप आंसू बहाते हुए न जाने कब सो गई.

दूसरे दिन से फिर वही क्रम चला. आंच जला कर चाय बनाई और फिर समीरको चाय का कप दे कर उठाया. चाय की चुसकियों के साथ मोबाइल पर गुडमौर्निंग कर रहे समीर को दे कर आई. शांता ने दालसब्जी तैयार कर ली थी. टिफिन बौक्स के लिए परांठे सेंके थे. बच्चों को तैयार किया था. उन्हें भेज कर समीर के जाने की भी सारी तैयारी की थी, पर न समीर ही शांता से कुछ बोला और न शांता समीर से. समीर के जिम्मे थोड़े से काम थे. वह फुरती से उन्हें कर देता और फिर मोबाइल पर लग जाता. कभीकभार कोई मैगजीन या पुस्तक भी पढ़ लेता.

दोपहर को 2 बजे तक शांता का गुस्सा शांत हो गया था. उस ने समीर से 2-3 बार मोबाइल चैट भी की. छोटीछोटी सिर्फ काम की. शाम को जब उस ने समीर हंस कर चाय दी तो बात आईगई हो गई. शांता ने सोचा कि समीर ने यों ही बात मजाक में कही है और उसे भी

मजाक की तरह ही लेनी चाहिए. फिर वह पहले से काफी मोटी तो हो ही गई है. पर वह भी क्या करे?

न जाने कब सुबह होती, कब शाम रात में बदल जाती. भारी शरीर से दिनभर घिसटघिसट कर काम करती. बच्चों पर भी ?ाल्लाती, पर काम निबटते ही न थे. बच्चे बड़े हुए, वे स्कूल जाने लगे तो उन को पढ़ाने का काम और बढ़ गया. दोनों बच्चों में से एक का भी जिम्मा समीर ने न लिया था पर वह आराम से उन्हें पढ़ा दिया करता था. रोज दिन की परेशानियों से शांता काफी झल्ला जाया करती थी, पर फिर भी जैसेतैसे गृहस्थी की गाड़ी खींचती जा रही थी. वह भूल गई कि बच्चों को पालने के अलावा उस के जीवन का और भी कोई उद्देश्य है.

मगर आज यह मुई नीली चिट… अच्छा हुआ समीर की असलियत सामने गई. शादी के शुरू के दिनों में दोनों में कितना प्यार था. रोज शाम को घूमने जाते थे, पर बच्चों के बाद न उसे ही वक्त मिल पाता था कि वह सजसंवर कर बच्चों को अच्छे कपड़े पहना कर बाहर घूमने ले जाए और कभी चली भी जाती तो लौटने पर उस का मन ठीक न रहता था.

एक तो थक कर लौटने पर बढ़ गए काम उसे ही समेटने पड़ते थे, दूसरे बच्चों की फरमाइशें कि खास रेस्तरां का ही खाना मंगाया जाए. शांता की सीमित बजट होने के कारण कभी पार्लर जाने की हिम्मत नहीं होती. साल 2 साल में किसी शादी से पहले ही वह जा पाती थी. पर शांता को इस कुरबानी से क्या मिला? चिड़चिड़ा स्वभाव, घर पर अनसंवरे बाल, बेडौल शरीर और प्यार के बजाय नफरत? किसी और लड़की में उल?ा कर समीर भी दूर हो गया. कईकई हफ्ते तो वह बाल डाई भी नहीं करती थी क्योंकि वीकैंड पर ढेरों काम पड़े दिखते थे.

आखिर मन का क्रोध आंखों की राह बह निकला. फूटफूट कर रोने के बाद मन कुछ हलका हुआ तो शांता उठी. किसी तरह सब कपड़े समेटे. नीली चिट को पैंट की उसी जेब में रख कर पैंट बैड पर रख दी और नहा कर बिस्तर पर आ लेटी. किसी काम में मन लग ही न रहा था. कल के धुले कपड़ों में प्रैस करनी थी, कुछ उधड़े कपड़ों को सीने को भेजना था, टूटे बटन लगाने थे, पर मन न जाने कैसा हो रहा था.

शांता एक बार फिर उठी. उस मुई नीली

चिट ने उसे विक्षिप्त सा कर दिया था. सोचा

शायद कहीं किसी कोने में कुछ और न लिखा

हो. उस ने पत्र पढ़ा, दोबारा, तिबारा, चौथी और 5वीं बार.

दोपहर के 2 बज रहे थे. औफिस के रूटीन से हट कर शांता ने अकेले शायद ही कभी टाइम घर पर बिताया हो यानी कोईर् मेहमान आता तो छुट्टी लेती या कोई बीमार पड़ता तब शांता ने सुबह से कुछ खाया न था और अभी भी उसे बिलकुल भूख न थी. पलभर में ही शांता का जीवन उलटपुलट गया था.

शाम को समय से बच्चे स्कूल से आए तो शांता उठी. बच्चों को खाना खिलाया

और उन का होमवर्क कराया. यह सब न जाने कब और कैसे हुआ शांता को कुछ पता न चला. उस का दिमाग तो न जाने कहांकहां जा रहा था. शादी के 15 साल बाद सफर के इस मोड पर आ कर किस से सलाह लेती, फिर लेती भी तो लोग उसी पर हंसते. कोई ऐसा जादू न था जो एक फूंक के मंत्र से पहले जैसी पतली, सुकोमल बना देता? शांता मन ही मन घुटती रही.

पहले शांता ने सोचा आने दो आज समीर को, खूब आड़े हाथों लूंगी. पर मन के किसी

कोने में दबी भावनाओं ने यह सब करने के

लिए मना कर दिया. शायद उसे लगा इस से

उड़ते हुए समीर को बांधना असंभव हो जाएगा. फिर सोचा, समीर के किसी दोस्त से ही विस्तारपूर्वक सब पूछ लेगी, पर यह भी उसे अपना अपमान लगा.

सोचने लगी क्या वह अपने बीते हुए सुखद दिन फिर न लौटा सकेगी? वह तो समीर को बेहद प्यार करती है. उस के बगैर अपने जीवन की कल्पना भी कितनी भयावक है. फिर शांता ने तो अपनी हर सांस में प्यार की सुगंध घोलनी चाही थी. समीर ने भी इस के प्रतिवाद में सिर्फ उसी के रहने के वादे किए थे पर सब चकनाचूर हो गया. एक लंबी आह भर कर आंखों के गीलेपन को समेट कर शांता उठी.

बच्चे अपने कमरों में खुद बिजी हो गए थे. उस ने कपड़े बदले और समीर का इंतजार करने लगी. समीर जब आया तो बगैर कुछ कहे शांता ने चाय बनाई और दोनों ने मिल कर पी. लाख चाहने पर भी आज शांता के मुंह से बोल न फूट रहे थे.

चाय पीने के बाद शांता रात के खाने में जुट गई और खाना खिलाने तथा काम निबटाने के बाद स्वयं अपने कमरे में आ गई. इतनी जल्दी शांता को काम निबटा कर आता देख समीर हैरान हुआ, फिर एक नजर उस पर डाल कर पढ़ने में व्यस्त हो गया और कुछ देर बाद बिना कोई बात किए सो गया.

मगर शांता की आंखों में नींद कहां? थकान के बावजूद अपनी फटती आंखों पर अनचाहा बो?ा समेटे सोने का यत्न करती रही. पर उन आंखों में तो उसे केवल अनिश्चित भविष्य दिखाई दे रहा था. नींद का प्रश्न ही नहीं था. शांता को लगा कि वह ऐसे कगार पर आ खड़ी हुई है, जहां शायद आत्महत्या के सिवा कोई और चारा नहीं है.

मन की आग ने शांता को पूरी तरह जला डाला था. लेटीलेटी वह समीर के साथ बिताए अच्छे और बुरे क्षणों के बारे में सोचती रही. जब उस की आंख लगी तो रात लगभग बीत चुकी थी.

दिन चढ़ आया था. बच्चों की खटरपटर ने उसे जगा दिया. भागदौड़ कर जैसेतैसे सब काम निबटाए. सब के जाने पर वह टूटी हुई सी एक प्याला चाय पी कर औफिस जाने की मैट्रो पकड़ने रास्ता भर आंखें बंद कर के न जाने क्याक्या सोचती रही.

उस शाम आई तो पैंट वहीं एक कुरसी पर पड़ी. बेतरतीब, धुलने का इंतजार करती हुई सोच कर समीर की पैंट फिर टटोलने पहुंच गई कि देखे वह चिट अभी पड़ी है या नहीं? परंतु वह चिट वहां नहीं थी. तो क्या समीर ने निकाल ली? यानी अपने सपनों की रानी तक पहुंचा दी.

सोचसोच कर शांता का मन इतना व्यथित हुआ कि वह फूटफूट कर रोने लगी. बच्चों के आने का समय हो गया तो उस ने जल्दी से खाना बनाना शुरू कर दिया और बच्चों को वही खिलापिला कर कमरों में भेज दिया.

मां को इतना चुप बच्चों ने कभी न देखा था. उल?ो बालों, पपड़ाए होंठों और बेचैन आंखों को देख कर मुकेश बोला, ‘‘मां, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? आज कैसी हो रही हो?’’

शांता का दिल किया कि इस सहानुभूति पर रो दे, पर मन पक्का कर के बोली, ‘‘ऐसे ही कुछ सिर में दर्द है. मेरा खाने को भी मन नहीं है. तुम लोग अपनेअपने कमरे में जाओ.’’

बच्चे चले गए तो शांता कुछ सोच कर शीशे के आगे जा खड़ी हुई. अपनी सूरत देख

कर वह स्वयं ही चौंक गई. उसे लगा वह वास्तव में बुढ़ा गई है. आंखों के नीचे काले गड्ढे, खिचड़ी बाल, थुलथुल बदन, कैसी निश्चिंत थी वह अब तक.

अचानक शांता उठी. रसोई में से एक नीबू काट कर अपने सारे मुंह, हाथों और बांहों को रगड़ा. फिर बेसन और दही से मुंह धोया और उबलते पानी से मुंह पर भाप दे कर फेस पैक लगा कर खाने की तैयारी में जुट गई. एक औनलाइन डिलिवरी वाले से 300-400 रुपए की क्रीम, सैंट, सीरम, फेस पैक मंगाया और लगाया.

आधे घंटे के बाद नहाई, अच्छी तरह मुंह साफ कर के क्रीम मली, बिंदी लगाई, अच्छे ढंग से बाल संवारे और प्रैस की हुई सलवारकमीज पहन कर वह समीर का इंतजार करने लगी जो अब देर से ही आ रहा था.

उस शाम भी समीर देर से आया. शांता का दिल इतना समय छलनी होता रहा. इस का अर्थ था कि वह कलमुंही शाम के समय समीर को ताजगी देने के लिए सहमत हो गई है. अजीब बेचैनी में शांता ने 2 घंटे गुजारे.

शांता की भूख को न जाने क्या हो गया था. जब से उस ने वह नीली चिट पढ़ी थी, सिर्फ 2 कप कौपी ही पी थी. एक भी दाना अन्न का वह नहीं खा पाईर् थी.

शाम को 7 बजे समीर लौटा. बिलकुल ताजा दम, थकावट रहित. शांता देख कर कुढ़ गई, पर सिर्फ यही बोली, ‘‘आज बड़ी देर कर दी?’’

समीर कुछ देर उसे मुसकरा कर देखता रहा, फिर बोला, ‘‘औफिस में इन दिनों काम कुछ ज्यादा है. रोज 1-2 घंटे अधिक लगेंगे, पर हमें चायनाश्ता वहीं से मिल जाया करेगा. आज भी मिला. तभी ज्यादा काम के बावजूद थकावट महसूस नहीं हो रही. एकदम तरोताजा हूं…’’ और वह बैठ कर गुनगुनाते हुए जूतों के फीते खोलने लगा. ?ाकने पर समीर की पीछे की जेब से बालों की छोटी कंघी दिखाईर् पड़ी तो शांता का दिल न जाने कैसा हो गया.

शुरू में शादी के बाद समीर वक्तबेवक्त कंघी करने के लिए जेब में कंघी जरूर रखता था. शांता तब हंस कर कहा करती, ‘‘इतने सजेधजे न रहा करो. कहीं किसी ने तुम पर डोरे डाल दिए तो मैं कहां जाऊंगी?’’

और तब समीर हंसता हुआ कहता, ‘‘नहीं भई, इस जीवन में तो मेरे पर डोरे डालने वाली आ गई. अब और गुंजाइश नहीं. हां, तुम्हें मेरे कंघी रखने से चिढ़ है तो लो आज से मैं जेब में कंघी नहीं रखूंगा,’’ और समीर ने जेब में कंघी रखना बंद कर दिया था. पर अब फिर…

शांता का मन किया कि अभी सारी पोल खोल दे कि वह इतनी भोली नहीं. वह उस के तरोताजा होने का राज जानती है, पर अपना सारा गुस्सा दबा कर बोली, ‘‘चाय लाऊं?’’

समीर गुनगुनाना बंद कर बोला, ‘‘चाय तो मैं पी कर आया हूं. तुम इंतजार न किया करो. अब तो सीधे खाना ही खाऊंगा,’’ कह समीर गुसलखाने में घुस गया.

शांता के मन में आया कि वह समीर को गुसलखाने से बाहर खींच लाए और कहे कि उन के संबंधों के धागे इतने कच्चे नहीं कि इतनी आसानी से टूट जाएं या फिर रोरो कर कहे कि तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी का कोई अर्थ नहीं है और मु?ो तुम्हारे नाम के साथ जुड़े रहने का पूरा हक है. पर वह ऐसा कुछ कह न सकी और आंखो में आए आंसुओं को बांह से पोंछ कर रसोई में चली गई. वह जानती भी थी कि न तो वह मानसिक रूप से समीर से अलग रह सकती है, न आर्थिक या सामाजिक रूप से.

रात का खाना निबटा कर स्वयं बगैर खाए शांता बिस्तर पर पड़ कर करवटें बदलती रही. फिर सुबह हुई फिर शाम, सुबह और शाम. अपना क्रम बदलते रहे और शांता घुटती रही. पलपल मरती रही पर समीर से कुछ कह न सकी.

हर शाम समीर ने 2 घंटे देर से आने का नियम सा बना लिया और उन 2 घंटों के 1-1 मिनट में शांता शारीरिक और मानसिक रूप से घुलती रही. इस घुटन में उस की भूखप्यास ही मर गई. दिन में औफिस में वह और ज्यादा उदास रहती जबकि पहले से ज्यादा स्मार्ट दिखने लगी थी, उस का वजन घटने लगा था.

शांता ने निश्चय कर लिया था कि  वह अपने शरीर का खूब ध्यान रखेगी. शायद समीर की उस पर नजर पड़े और शायद वह उसे कुछ ताजगी देने में समर्थ हो सके. इसलिए खाली होते ही वह अपने हाथ, पैर, मुंह, गरदन और पैरों की क्रीमों से देखभाल में व्यस्त हो जाती.

सुबह उठते ही गरम पानी में एक नीबू निचोड़ कर पीती और सब से पहले व्यायाम करती. अन्य काम निबटाने के बाद 1 प्याला चाय पी कर हाथ, पैरों और मुंह की मालिश में व्यस्त हो जाती. नीबू, क्रीम, फेसपैक, सीरम, ग्लिसरीन से हाथपैर काफी सुंदर हो गए थे. मुंह पर भी पुराना सलोनापन लौटने लगा था.

शांता को अब भूख तो लगती ही न थी. कभी बेचैनी होती तो वह नीबू पानी ही लेती. शाम को केवल 1 कप दूध ही पीती. अपना टिफिन आधा ही खाया जाता.

इसी तरह 10 दिन बीत गए. इस बीच शांता समीर से बहुत कम बोली थी. उस दिन हिम्मत जुटा कर बोली, ‘‘रोज दिन के एकजैसे ढर्रे से ऊब होने लगती है. आजकल बच्चों के ऐग्जाम तो हैं नहीं, अपने दोस्तों के घर कभी हमें ले चलो या उन्हें ही घर पर डिनर को इनवाइट कर लो. जब कहोगे मैं घर पर ही पूरी तैयारी कर दूंगी. इस तरह मिलतेजुलते रहने से जीवन में ताजगी बनी रहती है.’’

शांता ने सोचा कि  इसी बहाने वह किसी एक मित्र से अनु के बारे में सारी जानकारी ले लेगी. मगर समीर बोला, ‘‘क्यों फालतू में पैसे खराब करती हो? हमारे घर में ऐसी कोई खास बात तो है नहीं जो सब को निमंत्रण देता फिरूं. न बाबा… इस फुजूलखर्ची से तो बेहर है कि तुम्हें एक साड़ी ही ला दूं.’’

सुन कर शांता को खीज भी हुई और खुशी भी. खीज इसलिए कि समीर की पोल न खुल जाए. इसलिए वह दोस्तों के नियंत्रणको टाल

गया और खुशी इसलिए कि अभी भी वह उसे प्यार तो करता ही है. कम से कम पैसे बरबाद करने के स्थान पर उस के लिए साड़ी होने को तैयार हो गया.

8वें दिन शाम को समीर आशा के अनुरूप 8 बजे की जगह ठीक 7 बजे घर पहुंच गया तो शांता कभी उसे देखती कभी स्वयं के चेंज पर लग जाती. औफिस में भी उस के चारों और मंडराने वाले बढ़ने लगे थे.

पर तभी समीर उसे देख कर हैरान होता हुआ बोला, ‘‘भई, कमाल हो गया. आजकल देख रहा हूं दिनबदिन जवान होती जा रही हो. क्या चक्कर है? आज तो तुम गजब ढा रही हो. चलो, आज इसी खुशी में रात का खाना कहीं बाहर खाएंगे.’’

शांता खुश तो हुई, पर उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. बोली, ‘‘अरे तुम्हारा तो पेट भरा होगा औफिस के चाय नाश्ते से और तुम्हें तो लैपटौप पर काम भी करना होगा, उस का क्या?’’

समीर ठठा कर बोला, ‘‘आज से बंद… अब कल से ठीक इसी समय पर आया करूंगा और तुम्हारी आंखों के आगे बैठ कर अपने पुराने दिन दोहराया करूंगा.’’

शांता को यह ठिठोली अच्छी न लगी. चिढ़ कर बोली, ‘‘रहने दो. तुम्हारी सारी पोल मैं जानती हूं. अब मैं किस काबिल हूं. तुम तो बाहर साथी ढूंढ़ने लगे. न जाने किस कलमुंही अनु को खत…’’ और आगे कुछ न कह सकी. शांता के आंसू बहने लगे. समीर हंसतेहंसते लोटपोट हो गया.

फिर बोला, ‘‘सच शांता, क्या कहूं तुम्हें? मैं तो इन 8 दिनों में बोर हो गया. 2 घंटे रोज मोहन के घर गुजारता था यह बहाना कर कि तुम मायके गई हुई हो.

‘‘तुम अपने मोटे होते शरीर को देखते हुए भी कुछ करती न थी. सोचा एक ?ाटका हूं,

शायद तुम इधर ध्यान दो. सो यह सब करना पड़ा. वह नीली चिट इसी कारण रखी थी. जब तुम ने जेब से 10 रुपए का सिक्का निकाल लिया और चिट वहीं रख दी तो मैं सम?ा गया कि तुम ने चिट पढ़ ली है. बस मैं ने यह चिट गायब कर दी और रोज ?ाक मार कर मोहन के यहां चाय पी कर आता रहा.

‘‘पर लौट कर तुम्हारा उदास चेहरा देखता तो जी होता कि सब ?ाठ उगल कर तुम्हें बांहों में भर लूं और तुम्हारा सारा तनाव दूर कर दूं.

‘जब एक रात मेरे मुंह से निकल गया कि तुम से तुम्हारा भार ही नहीं ढोया

जाता और तुम जमीन पर रोतेरोते सो गई तो मुझे बहुत दुख हुआ. मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था.

‘‘उसी रात तुम्हें झटका देने का विचार मेरे मन में आया था. चूंकि तुम मुझे बहुत प्यार करती हो इसलिए मुझे कहीं और उलझ समझ कर तुम झटका खा जाओगी, इसीलिए वह नीली चिट लिख कर रखनी पड़ी. जरा शीशे में जा कर तो देखो कितनी बढि़या फिगर निकल आई है.

शायद इन 8 दिनों में 10 किलोग्राम वजन तो कम हो ही गया होगा. और फिर तुम्हारी सजधज…वाह क्या कहने…’’

समीर ने आगे बढ़ कर शांता को बांहों में भरना चाहा तो वह बोली, ‘‘यदि तुम सच बोल रहे हो तो वह चिट तुम्हारे पास होगी.’’

‘‘यह लो,’’ कह कर समीर ने पर्स से वह नीली चिट निकाल कर शांता के हाथ में थमा दी. शांता भी इस योजना पर हंसे बगैर न रह सकी.

अपने काले बालों को संवारती हुई उठी और समीर के कंधे से झुल गई. भारहीन, तनावरहित और खुश होती हुई बोली, ‘‘इसी खुशी में जरा मेरा वजन ले लेना पहले,’’ और फिर हंसती हुई तैयार होने चल दी. आज उसे लग रहा था कि इस संसार में उस जैसा खुश कोई नहीं.

Latest Hindi Stories : नागदंश – आखिर क्यों उसे अपनी जिंदगी बोझ लगती थी?

Latest Hindi Stories : पता नहीं कि तुम ही नए आए थे उस लाल तिकोनिया बंगले में या मुझे ही हर पुरानी चीज के नए अर्थ तभी समझ में आने शुरू हुए थे. पिछले 12 सालों से नित्य नियम से सुबहशाम मेरी वैन उसी रास्ते से, उन्हीं पेड़ों के झुरमुट के बीच से होती हुई तुम्हारे तिकोनिया बंगले के सामने से स्कूल जाती थी. मगर तब मुझे वह कभी महज किसी सड़क, दुकान या बेरौनक वीरान मकानों से ज्यादा कुछ नहीं लगा था. उस घुसी हुई वैन में मैं हमेशा

उस तरफ बैठती थी जहां से तिवोनिया बाग दिखता था. कुछ वक्त से मुझे वह लाल रंग का छिली ईंटों वाला बंगला व उस के तीनों ओर आम, अमरूद व बेरिया के हरे झाड़ कुछ ज्यादा ही खुशगवार लगने लगे थे. वहां आड़ू के पेड़ पर उस की नंगी शाखाओं पर हजारों नन्हे मोतियों से जुड़े बैगनी रंगत के गुलाबी फूलों पर आंखें अटक कर रह जाती थीं. मेरे लिए हर चीज का अर्थ बदलता जा रहा था? यह हैरानी मेरी छोटी उम्र

में बड़ीबड़ी आंखों में छोटी उम्र में जैसे समाती नहीं थी.

फिर एक दिन मेहंदी की महीन झाड़ के पीछे परशियन गुलाब की छतनार शाखाओं के साए में सफेद टीशर्ट और शौर्ट्स में मेज पर लैपटौप खोले किताबों के गट्ठर के बीच सिर झुकाए तुम भी मेरे उस फोटो फ्रेम में शामिल हो गए थे.

अभी मैं ने तुम्हारा चेहरामुहरा कुछ नहीं देखा था. पर तुम… तुम… ही थे जिस का वहां बैठे दिखना मुझे जरूरी सा लगने लगा था. जिस दिन तुम नहीं दिखते थे, हर वक्त एक खाली बेचारगी सी मेरे दिमाग में घूमती रहती थी. तुम ने मुझे व हमारी वैन को शैतान स्कूली लड़कियों की कही निकलती टोलियों में से एक समझ कर कभी देखने या झांकने की जरूरत नहीं समझ थी. वैसे भी वैन को गुजरने में लगते ही कितने सैकंड्स थे पर आमतौर पर तुम्हारे घर के सामने जाम रहता या और वैन खड़ी रहती थी. हां, तुम्हारी चाची जरूर फाटक पर खड़े हो अकसर हम लोगों की वैन को आतेजाते देखा करती थीं. घर में शायद और कोई नहीं था. बच्चे के नाम पर एक तुम ही थे जो संजीदगी में बुजुर्गों से भी बढ़ कर रहे होगे.

ऐक्सरसाइज करने के लिए दिन तुम आम के पेड़ पर चढ़े हुए थे. एक तुम्हारे लड़कियों जैसे सुडौल लंबे पंजे व फिर धूप से तपा चेहरा पहली बार दिखाई दिया था. क्या था उस में जो मेरे दिल और दिमाग में नक्ष हो कर रह गया था. मैं मूर्त्त सी चोर निगाहों से कभी तुम्हें और कभी तुम्हारी चाची को देख रही थी.

उस दिन के बाद तुम कतई दिखना बंद हो गए थे. तुम्हारे पासपड़ोस की मेरी सहेलियां

हंसती थीं, ‘‘राजा बेटा आईआईटी में इंजीनियर बनने गए हैं.’’

तुम्हारा घर हमारे घर से कुछ ही दूरी पर था इसलिए उड़तीउड़ती खबरें मिल ही जाती थीं.

कुछ बनने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है और फिर खोना ही तो पाने की पहली शर्त है. मैं क्यों अपने को सम?ासम?ा कर परेशान हो रही थी. अपने एक पागलपन पर परेशान हो रही थी. अपने एक पागलपन पर अकेले ही हंस पड़ती थी. मेरी उम्र वह हो चुकी थी जब मन के किसी जानेअनजाने कोने में कोई बैठ जाता है. कई बार मैं बाजार जाने के बहाने तुम्हारे घर के सामने से पैदल भी जाती थी. वहां लगे सफेद गुलाबी गुच्छों में जैसे हर जगह मुझे तुम्हारी छुअन का रेशमी सा एहसास सहला जाता था. सच तो यह था कि मेरी उम्र का वह गुलाबी टुकड़ा एहसासों में ही जी रहा था.

कई साल बीत गए तुम कभी दिखते कभी नहीं. मैं नौकरी करने लगी थी. एक दिन दफ्तर से लौटी तो मेरी पढ़ने की मेज पर तुम्हारा छोटा सा फोटो रखा था. कैसे एकदम से पहचान गई थी मैं, ‘‘अरे, यह तो तिकोनिया बंगले वाले…’’

सोनाली चहकने लगी, ‘‘हाय जीजी, तू इन्हें जानती है क्या? यही तो हैं जिन से तेरी शादी की बात चल रही है.’’

मेरे सिर से पैर तक लाज के लाल गुलमोहर दहक उठे थे.

‘‘जीजी, उन की चाची ने तुम्हें कई बार घर के सामने से गुजरते देखा है और तुम पसंद आ गई हो. बगल वाली सुशीला आंटी से उन की जानपहचान है इसलिए यह फोटो आया है.

बाकी तुम फेसबुक पर देख लो. अगर प्रोफाइल खुला है तो.’’

‘‘धत्,’’ मैं ने सोनाली को एक धौल जमाई.

सोनाली उम्र में मुझ से सालभर छोटी थी. पर अकल में शायद सौ साल सयानी. कहने लगी, ‘‘दीदी, ठाट करेगी तू अब उस बंगले में. इंजीनियर साहब हैं ये जनाब. चाची ने गोद ले रखा है. अकेले ही हैं. कोई ननददेवरों को झमेला नहीं है. मुझे भी आराम रहेगा भरभर झेली आड़ू, अमिया और झरबेरी खाने को मिला करेंगे.’’

मेरे लाख छिपाने पर भी खुशी जैसे रोमरोम से फूट पड़ रही थी. क्या कभी इतनी आसानी से किसी के सपने पूरे हो जाते हैं? अभी तो खुमार से पलकें ही ?ापी थीं. अभी तो मैं ने सपने देखने भी शुरू नहीं किए थे कि यह सुनहरा संसार मुझ तक स्वयं ही चल कर आ गया था. दफ्तर में मुझे अभी तक कोई मनचाहा नहीं मिल था. शायद इसलिए कि मन के किसी कोने में तुम्हारी तसवीर बैठी थी.

अब तो हालत यह थी कि खुली आंखों में ही मुझे  सपने आने लगे थे. कभी बंगले की मखमली दूब पर चांदनी रात में हौलेहौले आंखों ही आंखों में बतियाते हमतुम, फूलों से लदी

डाली झलाते तुम और उस के नीचे फूलों के अंबार में लालगुलाबी होती मैं. कभी आम

तोड़ते तुम और कुहनी तक भरी चूडि़यों से खनकते हाथों से टोकरी में आम उलटती मैं. कभी टै्रक पैंट में क्यारी गुड़ाती मैं और अंजली भर मेहंदी की महीन पत्तियां मुझ पर उड़ेल कर खिलखिलाते तुम.

बंगले के अंदर का भी एक मनभावना नक्शा मेरे मन में बन कर तैयार हो गया था. कभी गुलाबी, कभी प्याजी परदे बदलती, अबीरी सलवारकमीज से सिर से पांव तक ढकी, बड़ी सी लाल बिंदी और डायमंड के इयररिंग्स, हाई हील्स में मैं अपनी ही खींची छवि के पीछे पागल हो उठती थी.

प्रतीक्षा के इस लंबे लगते अंतराल के बाद सोनाली ने मुजे पाजेबों सी खनकती खबर दी थी, ‘‘अगले सोमवार को तेरी सास और ये मोशाय तुझे देखने और बात करने के लिए आ रहे हैं.’’

सारे घर में हबड़दबड़ मच गई थी. मांबाबूजी को इतना अच्छा रिश्ता पाने की उम्मीद नहीं थी. फिर तुम्हारे चाचाचाची ने एक पैसे का भी लेनदेन नहीं ठहराया था. इसी से मांबाबूजी भी खातिरदारी में कोई कोरकसर नहीं छोड़ना चाहते थे. सो बड़े धूमधड़ाके से तैयारियां शुरू हो गई थीं.

यह देखनादिखाना तो औपचारिक ही था. बातों में पता चला, ‘‘मिताली, मैं तो तुम्हें अरसे से देख रहा था. तुम ऐसे ही घर के सामने से कहीं गुजरती थीं. छमछम करती तुम्हारी सहेली की आवाज मुझे भी यह देखने को मजबूर कर देती थीं.’’

कुछ मिनटों में सब तय हो गया. इंगेजमैंट की डेट भी पक्की हो गई.

बिजनौर से छोटी मामी और नानी भी इतवार को आ गई थीं. गत रात तक मां और नानी ने दहीबड़े, सौंठ और भरभर छबड़े मिठाई तैयार की थी. कैटरर का भी इंतजाम कर लिया गया. मामी मेरी सजावट को ले कर परेशान हो रही थीं. कभी लाल साड़ी खोलतीं, कभी धानी. कौन सी साड़ी फबेगी? ब्लाउज किस रंग का हो? कौन सी लिपस्टिक लगेगी? मसकारे के बिना तो कुछ अच्छा ही नहीं लगेगा. सुबह से मैं 2 बार पार्लर हो आई थी. मामी सुबह से मुझे सजानेसंवारने में जुट  गई थीं. मामी ने जब सच्चे मोतियों का नाजुक सा हीरों का हार व झुमके पहनाए तो मैं सच कहीं की रानी लगने लगी थी.

हारसिंगार के बाद अपने को शीशे में देख मैं खुद ठगी सी रह गई थी. कालेज की सीधीसादी सफेद पोशाक और दफ्तर की फौर्मल ड्रैस में इतना रूप कहां कैसे छिपा हुआ, मैं अवाक थी.

‘‘मिताली, तेरी ये भोली, हैरानी भरी आंखें बहुत आकर्षक हैं. इन का पूरा इस्तेमाल करना,’’ मामी खिलखिला कर बोलीं तो अपनी बड़ीबड़ी आंखों में तुम्हारी छवि समेटे मैं लाजवंती सी लरज उठी.

तुम्हारी ताइयां, भाभियां, दादी और नानी आईर् हुई थीं. कुछ लड़केलड़कियां दोस्त भी थे. पर मेरे रूप की यह दपदप दहकती ज्योति देखने तुम आए और कुछ मिनट देखते रह गए. इतने रूप की तुम ने कल्पना नहीं की थी. पर जल्द ही गोदभराई की रस्म के बीच अपनी शहदीली चितवनों, लाल, कटावदार होंठों, दूधिया गुलाबी रंग और सलोनी मूर्त की तरह गढ़े जिस्म के बारे में मीठीमीठी बातें सुन कर एक अजनबी से

लगते अछूते नशे से मैं सिर से पांव तक सराबोर हो उठी थी.

सब से अंत में तुम्हारी दादी व चाची मां ने बड़े चाव से मेरी गोद में नारियल, मेवा, मिठाई रखी फिर सहसा मांग में रोली लगाते हुए दादी चौंक गईं, ‘‘अरी बेटी, जरा देख तो नजदीक से,’’ उन्होंने बड़ी बेदर्दी से मेरा आंचल हटा कर मांग पर हाथ फिराया, ‘‘यह… यह तो मांग में नागिन है.’’

चाची सन्न सी खड़ी रह गईं. मेरे सारे जिस्म का खून खिंच कर जैसे आंखों में भर आया था. आवाक, हैरान आंखें फाड़े देख रही थी मैं. क्या हुआ? फौरन दादी व चाची रोली का थाल जमीन पर रख उठ गईं. मेरी सांस रुकने सी लगी. दिमाग फटने सा लगा जैसे किसी ने सिर के बीचोंबीच आरी चला दी हो.

मां बारबार कह रही थीं, ‘‘ये सब पुरानी बातें हैं… बहनजी अब इन्हें कौन मानता है? कोई सचाई नहीं है इन में.’’

पर चाची पर्स उठा कर खड़ी हो गईं, ‘‘बहनजी, कोई माने या न माने, हम तो मानते हैं. हमारे दोचार तो हैं नहीं, यही एक इकलौता लड़का है. जानतेबूझते कैसे गला फंसा दें? मांग की नागिन तो सुहाग का साक्षात काल है.’’

तुम चुपचाप खड़े अपनी चाची की बेबकूफी को सहते रहे. फिर चाची के साथ हट गए. मैं दहशत से जड़ बनी बैठी थी. मामी ने हलके से मुझे उठाया था. बिजली का ?ाटका खाए से तन से चलती मैं कैसे ऊपर कमरे तक आई थी, मालूम नहीं. बहस फिरकब नीचे की थमी, कब मेरी जगह तुम ने सोनाली को अपना लिया

और पन्ने का हारझुमका पहना कर वे सब कब चले गए, मुझे कुछ पता नहीं चला.

यह ऐसा झटका था जिस ने फिर से मेरी जिंदगी में हर चीज के अर्थ बदल दिए थे.

2025 में भी कोई इतना अंधविश्वासी हो सकता है दिल नहीं मान रहा था. पता चला कि उन के यहां तो पूजापाठ, पंडितों का रेला लगा रहता है. चाची घोर दकियानूसी थीं. मैं हिल कर रह गईर् थी. इस से संभलना मेरे लिए दुश्वार था. हर पल गिलहरी सी उछलतीकूदती सोनाली अलग अनजाने अपराध के भार से पाला पड़े बिरवे सी मुर?ा गई थी. मैं उस से और वह मु?ा से आंख चुरा रही थी. मां भी अच्छा लड़का हाथ से न निकलने देने के लालच में जो निर्णय जल्दी में कर बैठी थीं, वह खुद उन्हें खाए जा रहा था.

सुलग रहा था मेरा सारा संसार. उस से उठते धुएं में मेरा दम घुट रहा था. मैं उस जहरीली आग में जिंदा जल रही थी, पर तुम? तुम तो बिलकुल बेखबर थे. काश, तुम ने मुझ बेगुनाह पर ढाए गए इस कहर के खिलाफ कुछ कहा होता. एक शब्द भी तो सांत्वना का तुम नहीं दे सके थे मेरे बुझाते हुए दिल को. कैसे पढ़ेलिखे थे तुम? दकियानूस, कायर, दब्बू. नफरत होने लगी थी मुझे तुम से और सच कहूं

तो धीरेधीरे सोनाली से भी. क्या वह नहीं जानती थी कि मेरे मनमंडप में तुम ही तुम थे. बस

केवल तुम. क्या यों ही सगी बहन से ही छिन जाने के लिए. पर उस का भी क्या दोष था? था ही क्या मेरी प्रेम कथा में कहने को? मेरा गूंगा प्रेम तो मेरे सामने भी अभी पूरा मुंह नहीं खोल पाया था, फिर तुम या सोनाली क्या समझते?

तुम तो दादीचाची के कदमों पर चलने वाले कठपुतली निकले. बहुत सोचने के बाद मैं ने दूसरे शहरों में नौकरी के लिए आवेदन भेजने शुरू कर दिए थे. किसी भी हालत में सनोली की शादी की रात को मैं उस घर में नहीं रहना चाहती थी, जहां गाजेबाजे के साथ मेरा प्राप्य मुझ से छीन मेरी ही सगी बहन की ?ोली में डाला जाना था. मेरी यह इच्छा पूरी हो गई थी और कंटीली यादों का बोझ समेटे बहेलिए के जाल से छूटी आकुल हिरनी सी मैं अपने और तुम्हारे शहर से बहुत दूर निकल आई थी.

तुम सोनाली की मांग में सिंदूर भर कर उसे डोली में बैठा कर अपनी छिली ईंटों के लाल बंगले में ले गए थे और मैं अपने अपमान के

डंक को कलेजे से निकालने के प्रयत्न में लहूलुहान होती रही थी. 2 साल तक गरमी की छुट्टियों में भी जानबू?ा कर मैं घर नहीं आई थी. टूर पर जाती लड़कियों के साथ निकल जाती थी. पर तुम ने जैसे मेरे लहू रिसते जख्मों को सूखने न देने का प्रण कर रखा था. तुम्हारे घर में साल बीतते संगम जन्मा था और अगले बरस तबादले के बाद तुम वहीं आ गए थे जहां मैं अपने बनाए बंधनों में अपने जख्मी वजूद को कसे किस तरह जी रही थी, मैं ही जानती थी. तुम्हें वहीं नौकरी मिल गई थी.

तुम्हारा सामान तुम्हारे घर में उतर रहा था और तुम एक पुराने रिवाज और जर्जर रिश्ते को निभाने के लिए सोनाली और गोलमटोल संगम को संभाले मेरे यहां लंच पर आए थे. आखिर चाह कर भी मैं छोटी बहन और भतीजे को देखने का मोह नहीं छोड़ सकी. तब तुम ने एक भरपूर निगाह मुझ पर डाली थी. उस में कितना अपराधबोध था और कितना एक रहस्य से जुड़ी कमजोर शख्सियत को देख कर उपजी करुणा मिश्रित प्रशंसा का भाव, मैं आंक भी न पाई थी कि तुम फिर तुरंत ही संभल कर फिर सोनाली और संगम की ओर देखने लगे थे. सोनाली से पता चला था कि चाचाजी नहीं रहे और तुम्हारी चाची साथ ही हैं पर वह सामान लगवा रही थीं, इसलिए नहीं आईं.

मैं इस बेबात के बहाने पर खिसियाई सी मुसकराई थी. मकान में बिजली, पानी का प्रबंध होने में कुछ समय लगा था और सोनाली की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. अत: सोनाली और संगम मेरे ही पास रुके थे. तुम उन्हें लेने आखिरी दिन आए थे. इन 4 दिनों में ही संगम मुझ से बेहद हिल गया था. जाते समय वह बहुत हिलकहिलक कर रोया था. मैं ने दफ्तर में 4 दिन की छुट्टी ली थी. मेरा भी रहरह कर संगम को प्यार करने और तुम्हारी सजीसंवरी दुनिया देखने का मन होता था. पर हिम्मत नहीं जुटा पाईर् थी. इतना बड़ा कलेजा मैं कहां से लाती?

रास्ते में, बाजार में, रिश्तेदारी में कभीकभी तुम और सोनाली मिल जाते थे. बातों के बीच वह अपनत्व व बेबाकी कभी नहीं आ पाई जो ऐसे रिश्ते में रहती है. हम तीनों ही जरूरत से ज्यादा सावधान रहते थे कि कहीं मुंह से कोई बेजरूरत अमर्यादित बात न निकल जाए. तब बहुत शिद्दत से यह सचाई महसूस हुई थी कि दर्द का हद से गुजर जाना है दबा हो जाना. अब मेरे अंदर एक हिमानी संयम सा भर गया था. तुम्हारे लिए नफरत और प्यार दोनों बराबर हो कर शायद खुद ही एकदूसरे के वार से खत्म हो अब सुलहसफाई कर चुके थे. सोनाली, मां और मेरे सहकर्मियों ने सहमतेसहमते हुए कई बार कहा, पर मुझे शादी के नाम से नफरत हो गईर् थी.

मैं अडिग, अविचल तापसी सी अपने अंधेरों और वीरानों में संतुष्ट थी. पर एक चाह चोर सी जरूर मेरे दिल के किसी कोने में हर वक्त बैठी रही थी कि काश, कभी, कहीं, कैसे ही तुम मु?ा से कहते, शिद्दत से अपना अपराध महसूसते हुए कि मीताली, मैं तुम्हारा अपराधी हूं. मैं कमजोर था. मजबूर था. इतना बड़ा दंड तुम निर्दोष को ?ोलना पड़ा मेरी कमजोरी की वजह से… पर कितने कंजूस निकलते तुम… कितने मायावी. मेरी यह चाह चाह ही रह गई.

कितनी बार अवसर आया जब तुम मुझ से यह कह सकते थे, पर तुम वीतरागी ही बने रहे जैसे तुम्हें कुछ मालूम ही नहीं था. मेरा सोने का संसार तुम्हारे पांवों तले जल कर खाक हो गया और तुम्हें सेंक भी नहीं पहुंचा, यह कैसे संभव था? मेरा मन हाहाकार कर उठता था. कितना चाहती थी कि मैं तुम्हें अपनी जिंदगी से काट कर सोचूं पर सोचने की कोशिश में तुम्हारे बारे में उलटा कुछ ज्यादा ही सोच जाती थी. ऊपर की शांत सतह के नीचे एक अजीब चूहादौड़ सी मची रहती थी मेरे मन में. सोनाली से कुछ छीन लेने की न तो इच्छा थी न हिम्मत. असल पूछो तो अंदर तुम्हारे खिलाफ नफरत का समंदर भी लहरा रहा था.

सिर उस दिन भी बहुत भारी हो रहा था. काफी देर ठंडे पानी के फुहारे के नीचे खड़ी हो कर नहाई. बाल शैंपू कर हलकी सी मूंगिया कोटा की प्याजी साड़ी पहनी तो कुछ हलकापन महसूस हुआ. शाम की चाय रंभा से लौन में ही लगवा कर 1-1 चुसकी ले रही थी कि  तुम्हारी जीप की धड़धड़ाहट मेरे कानों में पड़ी.

रंभा टिकोजी हटाते हुए बोली, ‘‘शायद आप की छोटी बहन और बहनोई आए हैं.’’ ‘‘हां, दो प्याले और ले आ. चाय भी और चढ़ा देना. क्रिड से नाश्ता भी ले आना.’’

मगर आश्चर्य, जीप से तुम नहीं तुम्हारे कोई साथी उतरे थे. उन की गोद में संगम को देख कर मैं चौंक गई. सोनाली हमेशा उसे खूब सजासंवार कर रखती थी, पर आज मैली कमीज और चेहरे पर रोतेरोते खिंचीं आंसू और मैलकी लकीरें कुछ और ही कह रही थीं. तब उन्होंने ही वह विस्फोटक खबर दी तुम्हारे व सोनाली के एक दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो जाने की.

संगम को कलेजे से चिपटाए मैं कांपते कदमों से वैसे ही गीले बालों में उन के साथ अस्पताल पहुंची थी. तुम विशेष देखभाल वाले कक्ष में थे और सोनाली औपरेशन थिएटर में. तुम्हारे सिर में गंभीर चोट आई थी. तुम बेहोश थे और सोनाली के पेडू से पैर तक का सारा भाग कुचल गया था. हुआ वही जिस का हर पल मु?ो डर था. सोनाली को सारे डाक्टर एकजुट चौबीस घंटे लगे रह कर भी नहीं बचा पाए. रात तक बेहाल मांबाबूजी के साथ तुम्हारी चाची भी आ गई थीं. अगले दिन सोनाली का दाहसंस्कार चुपचाप कर दिया गया था.

सब ने अपने होंठ सी रखे थे क्योंकि तुम अभी तक बेहोश थे. एक अनकहा आतंक हम सब पर छाया हुआ था. 3 दिन के जानलेवा अंतराल के बाद तुम ने आंखें खोली थीं. आंख खोलते ही जो सब से पहला लड़खड़ाता वाक्य तुम्हारे होंठों पर आया था वह था, ‘‘सोनाली और संगम कहां हैं?’’

पूरे संयम के बावजूद यह कहते हुए मेरा वजूद कांप गया था, ‘‘सोनाली लेडीज वार्ड में है और संगम यह रहा.’’

तुम्हारे घबराए चेहरे पर ढेर सा सुकून उभर आया था. तुम पूरे 7 दिन अस्पताल में रहे थे.

पर फिर मैं साहस नहीं जुटा पाई थी, दोबारा उस ?ाठ को सच ठहराने का. चाची, अम्मां व बाबूजी ने ही साधा था तुम्हें 7 दिन. 8वें दिन तुम्हारे घर जाने पर संगम को ले कर मैं आईर् थी. तुम बिल्ली को देख सहमे किसी परिंदे की तरह खामोश आंखों में खून के आंसू रोते पड़े थे. संगम को चिपटा कर तुम जोरजोर से रो उठे थे. मेरा भी सब्र का बांध टूट गया था. घुटनों में सिर दे मैं वहीं बिलख पड़ी थी. संगम घबरा कर तुम से अपने को छुड़ा कर मेरी साड़ी खींचने लगा था, ‘‘अपने घर चलो. अपने घर चलो.’’ यह रट लगाने लगा था. चाची, अम्मां और तुम कितना बहलाते रहे, ललचाते रहे, पर वह नन्ही सी जान मु?ा से ही चिपका रहा.

आखिरकार मां के कहने से 15 दिन की छुट्टी ले कर मैं तुम्हारे ही घर पर रही थी. कैसे संगम को संभालने के साथसाथ तुम्हारी दवा, पानी, पथ्य की भी पूरी व्यवस्था मैं ने संभाल ली है, देख कर चाची कुछ आश्वस्त सी लगी थीं.

इन 15 दिनों में तुम्हारी सुबह की नीबू चाय,

फिर उबले अंडे, परांठे का विचित्र नाश्ता, लंच में 2 बेसनी पराठों के साथ ढेर सी हरी सब्जी और साथ में जीरा पड़ा मट्ठा, शाम को गरम मलाईदार कौफी और रात को दही, दालभात, सलाद, चटनी से भरपूर पक्का हिंदुस्तानी भोजन. खाने के बाद कुछ मीठा, नहीं तो चम्मच भर चीनीमिश्री ही. मु?ो 1-1 चीज रट गईर् थी. जिस दिन से तुम ने दफ्तर जाना शुरू किया था, उस के तीसरे ही दिन मैं भी अपने घर लौट आई थी.

कमरतोड़ व्यस्तता के बाद थकान से मेरा अंगअंग टूट रहा था. पर साथ ही सुबह से रात तक खत्म न होने वाले हजारों छोटेमोटे कामों के बिना बड़ा विकट सूनापन भी भास रहा था. एक प्याला कौफी पी कर मैं सो गई थी. बहुत गहरी नींद में थी. कोशिश करने पर भी आंखें खुल नहीं पा रही थीं. अखनक संगम के छोटेछोटे हाथों की छुअन मु?ो अपने माथे पर लगी. मैं लगभग उछलते हुए उठ कर बैठ गई, ‘‘हाय मेरा सोनू…’’ उसे कस कर अंक में भरने के बाद ही मैं देख पाई कि तुम भी वहीं खड़े थे.

कुछ सकुचा कर उठ खड़ी हुई मैं.

‘‘यह तो आप के जाने के बाद से न सोया है, न दूध पी रहा है. बस यहां आने की रट लगाए हुए है,’’ तुम ?झिझक कर बोले.

‘‘इसे अब कुछ दिन यहीं रहने दीजिए. सहम गया है,’’ कहने को तो मैं कह गई थी पर ऐसे कब तक चलेगा? फिर तो बिलकुल ही भूल जाएगा इन सब को. मैं ने घबरा कर सोचा था. तुम भी उसी भूलभुलैया में भटक रहे थे. मैं ने एक कुछ टाइम मेड रख ली थी. संगम का अबोध मन समझ चुका था कि कुछ हुआ है कि मां साथ नहीं है. उस ने मेड को सहज स्वीकार कर लिया.

पूरे 6 महीने इसी भटकन में गुजर गए. संगम बारबार आता, मुझे लगा था कि तुम भी संगम जितने ही नन्हे थे. न अपने कपड़े, न चप्पल, न दवा कुछ भी तुम खुद नहीं ले सकते थे. इतने लापरवाह और बेखबर कि फटे, बिना बटन की कमीज में ही तुम अपने से छोटे अधिकारियों के साथ मीटिंग करते थे. संगम अब अपने घर जा कर रहने लगा था. चाची देखभाल कर रही थीं और हर दिन में 4 बार मुझ से पूछतीं कि क्या करना है. अब उन्हें मेरे में नागिन नहीं दिखती थी.

एक दिन जब घर पर संगम से मिलने आए तो मुझे टोकना ही पड़ गया, तुम 3 दिनों से मैले कपड़े पहन कर दफ्तर जा रहे थे आज ये धुलेंगे. आज दूसरे कपड़े पहन कर दफ्तर जाइए.

तुम्हारे घर से कपड़े ले आई थी. पलंग पर कर रख दिए हैं.’’

तुम ने जिस भोले विस्मय से मुझे और कपड़ों को देखा था उस से मैं शर्म से गड़ सी गई थी. मैं ने अपनी जीभ काट ली थी. यह आज्ञा जैसा आग्रह किस अधिकार से कर बैठी थी मैं?

मगर बावजूद सावधान रहने के अनजाने में ही मैं ये अनाधिकार चेष्टाएं अकसर करने लगी थी. जवाब में तुम एक भोली पर बेधने वाली निगाह से देखते रह जाते थे. तब मुझे अपनी सीमा रेखा के अतिक्रमण का एहसास होता था.

उस दिन औफिस में एक विशेष कार्यक्रम था. 2-3 दिन पहले से बहुत काम था. इधर चाची को मियादी बुखार हो गया था. संगम की शायद दाढ़ें निकल रही थीं, इसलिए वह बहुत चिड़चिड़ा हो गया था. ऊपर से तुम्हें अचानक दौरे पर जाना पड़ा. मैं सब तरह की जिम्मेदारी संभालतेसंभालते परेशान सी हो गई थी. कार्यक्रम वाले दिन मैं चाची को नौकर के हवाले कर संगम को औफिस साथ ही ले गई थी. मेड ने 4 दिन की छुट्टी ले रखी थी.

शाम को हाल में संगम को साथ लिए मैं काम संभाल रही थी कि तुम सीधे दौरे से दूल भरे कपड़ों में थकान से निस्तेज चेहरों के साथ आ खड़े हुए. संगम को लेने हाथ आगे बढ़ाते समय तुम्हारी भीगी लाल आंखें तुम्हारे बिना होंठ खोले ही सबकुछ कह गई थीं.

अगली सुबह तुम मेरे उठने से पहले ही आ गए थे. पता नहीं कि सारी रात तुम सो भी पाए थे या नहीं. मैं ने तुम्हारी मनपसंद नीबू चाय बनाई तो मुरझाई मुसकान होंठों पर खींचते हुए तुम ने बहुत दर्द के साथ कहा, ‘‘संगम और मेरी वजह से आप को बहुत तकलीफ उठानी पड़ रही है. दरअसल, मेरी कहने की हिम्मत तो नहीं हो रही, पर…’’

मैं ने आंखों में प्रश्नचिह्न भर कर तुम्हें देखा. तुम ने बड़े जोर से मु?ो देखते हुए रुकरुक कर कहा, ‘‘मैं… मैं तुम्हें हमेशा के लिए ले जाने आया हूं.’’

‘‘मनु,’’ मेरे होंठ कांप रहे थे.

‘‘हां, मिताली, मैं तुम से शादी करना

चाहता हूं.’’

‘‘पर तुम्हारी चाची…’’ लरजते कंठ से फंसेफंसे शब्द निकले थे.

तुम मुसकराए, ‘‘नहीं, वे मेरा दिल नहीं तोड़ेंगी.’’

‘‘पर पहले भी तो…’’ मैं ने जान कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया था.

‘‘तब मजबूरी थी. चाची का पहला हठ था,’’ तुम गड़बड़ा गए थे.

‘‘अब भी वे फिर यही हठ कर सकती हैं,’’ गहरे दरिया में डूबतीतिरती मैं अचानक सतर्क हो कर सिर उठा कर बोली.

‘‘नहीं, अब संगम की वजह से वे मजबूर हैं. तुम्हारे सिवा उसे संभालने वाला कोई और…’’

मेरे कानों के पास बजते शहनाई के मीठे स्वर सहसा गरम औंटते लावे की तरह सारे जिस्म के खून में मिल कर सुलग उठे थे. मेरा सर्वस्व कांप उठा था जैसे किसी ने सरेआम मेरी खुली पीठ पर चाबुक मार दिया हो. तड़प कर दोनों हथेलियों से मुंह ढांपे मैं फफक उठी, ‘‘पहले तुम चाची की वजह से मजबूर थे मु?ो त्यागने के लिए और आज… आज तुम संगम की वजह से मजबूर हो मुझे अपनाने को. मेरे अपने वजूद से तुम्हें कोई मतलब नहीं, कोई रिश्ता नहीं?’’

एक लंबी सिसकी से कांप उठी थी मैं, ‘‘ऐसी किसी मजबूरी को किसी पवित्र रिश्ते का ऊंचा नाम देना गलत है, ?ाठ है… सैनियशनेस है.’’

एक ?ाटके में तमाम अरमानों के बंदनवार तोड़ विक्षिप्त सी मैं अंदर दौड़ी चली गई अपना मुंह अंधेरे और वीरान में छिपाने के लिए, जहां कहीं दूर से आते भटकेभटके स्वर रो रहे थे.

उस दुख भरे उन्माद के उतरने से पहले ही मैं ने निर्णय ले लिया था- अपनी घुटघुट कर मरती जिंदगी को एक मुक्म्मल जहान देने का, उमेश को अपना जीवनसाथी बनाने का, मेरा

बौस उमेश जिस तरह मेरे पीछे पागल था, उसे मैं कम और दफ्तर के लोग ज्यादा जानते थे. मेरी ‘हां’ सुन कर वह खुशी से हत्प्रभ हो उठा था.

और आज मेरे सफल वैवाहिक जीवन की 12वीं वर्षगांठ है. सिर से पांव तक सितारों जड़ी अबीरी साड़ी में लिपटी बड़ी सी लाल बिंदी और चांदी के घुंघरू जड़े रुपहले बिछुए पहने, बड़ा सा चांदी का ?ाब्बेदार गुच्छा झलाती मैं अपने आंगन में सरसराती फिर रही हूं.

प्याजी परदों की आड़ में मेरे राजा बेटे मनु तथा विभु लुकाछिपी खेल रहे हैं और पुराने सड़ेगले अंधविश्वास को जड़ से उखाड़ अरमानों के सतरंगे बंदनवारों की सरसराहट मेरे मनप्राणों में भर देने वाला मेरा प्रियतम उमेश मेरी ओर चाहतभरी नजरों से देख रहा है. उस ने मुझे चाहा है, केवल मुझे, मेरे अपने वजूद को… किसी मजबूरी को नहीं.

विचित्र संयोग है कि 12 साल बाद तुम्हारे बंगले की बगल में ही मुझे यह छोटा सा बंगला मिला है. अपनी सर्पिला मांग को संवराती मैं अयाचित एक नए निर्णय से रोमांचित हो उमेश को बुलाने दौड़ पड़ी.

आज तुम्हारी चाची को घर पर आमंत्रित करूंगी. उन की आंखों में पड़े अंधविश्वास के काले जाले को हटा कर प्रेम की शांत, शीतल ज्योति दिखाने को ताकि आगे किसी की कच्ची उम्र की मिठास को यह सर्पिला नागदंश असमय ही न निगल सके.

Harbhajan Singh इस एक्टर को अपनी बायोपिक में देखने की रखते हैं ख्वाहिश

Harbhajan Singh : पूर्व क्रिकेटर और राज्यसभा सांसद हरभजन सिंह अपनी पत्नी गीता बसरा के साथ हाल ही में मीडिया के साथ रूबरू हुए जिसका मकसद हरभजन सिंह का पत्नी गीता बसरा के साथ आने वाला टॉक शो है जिसका नाम हूं इज द बॉस है. इस शो को होस्ट कर रहे हैं हरभजन सिंह और गीता बसरा. इस शो में क्रिकेटर और उनकी पत्नियों को लेकर चर्चाएं होंगी.

इसी शो की प्रेस कॉफ्रेंस के दौरान जब हरभजन सिंह से उनकी बायोपिक को लेकर सवाल किया गया और उनकी बायोपिक में कौन सा हीरो होना चाहिए इस बारे में पूछा गया. तो हरभजन सिंह और उनकी पत्नी दोनों ने ही आपसी सहमति के साथ एक स्टार का नाम लिया जो आज कल अपने अभिनय के चलते काफी चर्चा में है, जिनकी फिल्म ने हाल ही में 800 करोड़ का बिजनेस किया . यह एक्टर रणबीर कपूर क्या कार्तिक आर्यन नहीं बल्कि हाल ही में फिल्म छावा में अपनी दमदार परफौर्मेंस दिखाने वाले एक्टर विक्की कौशल है.

हरभजन सिंह के अनुसार एक्टर विक्की कौशल ही एक ऐसे एक्टर हैं जो हरभजन सिंह की बायोपिक में हरभजन सिंह का किरदार पूरी शिद्दत से निभा सकते हैं. हरभजन सिंह ने विक्की कौशल की तारीफ करते हुए कहा कोई शानदार है, पंजाबी है, बोलचाल में एकदम मेरी तरह है हरभजन सिंह ने साथ में यह भी कहा कि उनकी बायोपिक जरूर बनेगी लेकिन फिलहाल उसके बारे में कोई जानकारी नहीं दे पाएंगे. लेकिन जब भी हरभजन सिंह की बायोपिक बनेगी तो वह अपने किरदार में विकी कौशल को देखना चाहेंगे. इस दौरान हरभजन सिंह की पत्नी गीता बसरा ने भी हरभजन सिंह की पसंद को सही कहा . इससे पहले भी कपिल देव, मोहम्मद अजहरूद्दीन, और एमएस धोनी की बायोपिक पर फिल्में बन चुकी है. खबरों के अनुसार अब हरभजन सिंह पर फिल्म बनने की तैयारी चल रही है.

‘गृहशोभिका एंपॉवर हर’ इवेंट ठाणे

एक बार फिर झीलों के शहर ठाणे में 31 मई को क्रांति विसारिया हॉल, ठाणे में ‘गृहशोभिका एंपॉवर हर’ कार्यक्रम बड़े उत्साह और महिलाओं की मौजूदगी में आयोजित किया गया.

इस कार्यक्रम के लिए पहले से पंजीकरण कराना ज़रूरी था और कई महिलाओं ने दिए गए नंबर पर पंजीकरण करके अपनी प्रतिक्रिया दर्ज कराई.

कार्यक्रम के दिन सुबह 9 बजे से ही महिलाएं मौजूद थीं. नाश्ते के बाद कार्यक्रम की शुरुआत प्रस्तुतकर्ता रूपाली सकपाल के धमाकेदार सूत्र संचलन से हुई. उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद सभी सुपरवुमन का स्वागत किया. उन्होंने यह भी बताया कि ‘गृहशोभिका एंपॉवर हर’ जैसे कार्यक्रम मुंबई के साथ-साथ बैंगलुरू, नोएडा, अहमदाबाद, लखनऊ, भोपाल और चंडीगढ़ में भी आयोजित किए जा रहे हैं.

कार्यक्रम की शुरुआत में कार्यक्रम के प्रायोजक – फाइनैंशियल एजुकेशन पार्टनर : एचडीएफसी म्यूचुअल फंड * एसोसिएट स्पांसर : हायर * एसोसिएट स्पांसर स्वा * ब्यूटी पार्टनर : ब्रिहंस नैचुरल प्रोडक्ट्स द्वारा ग्रीन लीफ ऐलोवेरा जेल और * दिल्ली प्रेस के एवी प्रस्तुत किए गए.

विशेष अनाऊसंमेन्ट

‘गृहशोभिका एंपॉवर हर’ कार्यक्रम में भाग लेने वाली महिलाओं से अपील की गई कि वे ‘गृहशोभिका’ के इंस्टाग्राम पेज और फेसबुक पर कार्यक्रम का आनंद कैसे लिया और अपनी सेल्फी, फोटोज और कहानियाँ टैग करें. यह भी घोषणा की गई कि टॉप फाइव्ह धमाकेदार प्रविष्टियों को ‘गृहशोभिका’ द्वारा उपहार हैंपर दिए जाएंगे.

कार्यक्रम की शुरुआत मंच पर मौजूद 5 महिलाओं को आमंत्रित करके बॉलीवुड डांस से हुई. मौजूद मेहमानों के साथ-साथ सभी महिलाओं ने इस डांस का आनंद लिया.

इस नृत्यकी थीम थी – हाथ से कपड़े धोते हुए दिखाकर नृत्य करना.

एसोसिएट स्पॉन्सर : हायर का एक एवी दिखाया गया. इस दौरान एआई संचालित डीबीटी सीरीज वॉशिंग मशीन दिखाई गई, जो सफाई में रिवॉल्यूशन है. इस स्मार्ट तकनीक की एक झलक दिखाई गई और विशेष छूट की भी घोषणा की गई.

महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण

कार्यक्रम की शुरुआत ‘महिलाओं कामानसिक स्वास्थ्य और कल्याण’ विषय पर एक सत्र से हुई.

इस सत्र में कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के सलाहकार और नवी मुंबई स्थित मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के सलाहकार डॉ. पार्थ नागदाने महिलाओं को मानसिक स्वास्थ्य, स्ट्रेस मॅनेजमेंट और इसके उपायों के बारे में बताया.

डॉ. पार्थ द्वारा बताए गए सुझावों से सभी महिलाओं ने बहुत कुछ सीखा. दिल्ली प्रेस के नेशनल सेल्स हेड दीपक सरकारजी ने डॉ. पार्थ को उपहार देकर सम्मानित किया.

इसके बाद एसोसिएट स्पॉन्सर स्वा वूमन की एवी को एक बार फिर दिखाया गया और उससे जुड़ा एक अच्छा सा गेम खेला गया. इस क्विज में स्वा के शेपवियर, उसके स्ट्रेचेबल मॉइश्चर विकिंग फैब्रिक, स्टाइल, सॉफ्टनेस से जुड़े सवाल पूछे गए.

इस खेल में जीतने वाली महिलाओं को (स्वा)द्वारा आकर्षक डिस्काउंट कूपन दिए गए.

फाइनैंशियल प्लॅनिंग सेशन

वित्त में 16 वर्षों से अधिक के अनुभव रखने वाली मुनीरा चुनिया (एसआईपी सहेली) ने वित्तीय नियोजन सत्र में एसआईपी और म्यूचुअल फंड के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बचत और निवेश के बीच का अंतर भी उदाहरण देकर समझाया.

लंबे समय के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश करने से आप को काफी फायदा मिलता है. म्यूचुअल फंड के फायदे और इसकी कितनी कैटेगरी है, इसकी जानकारी दी गई. म्यूचुअल फंड में आपका पैसा एक कंपनी मैनेज करती है और उसके एक्सपर्ट आपके बाद आपके पैसे को मैनेज करते हैं और आपको उससे जो भी फायदा होता है, वो देते हैं. आप म्यूचुअल फंड में 250 रुपये से भी निवेश शुरू कर सकते हैं. सबसे खास बात ये है कि आपको इस पर एक दिन में ही रिटर्न मिल जाता है. बच्चों की पढ़ाई, शादी, परिवार, रेगुलर इनकम के लिए आप म्यूचुअल फंड में पैसा लगा सकते हैं. अगर आप एसआईपी में निवेश करना चाहते हैं तो आपको कैसे शुरुआत करनी चाहिए. साथ ही अगर आप बिना जल्दबाजी के धैर्य रखते हैं तो लंबे समय में आपको अच्छा फायदा मिल सकता है. ये सारी जानकारी महिलाओं को सरल, आसान शब्दों में बताई गई.

दिल्ली प्रेस के नेशनल सेल्स हेड दीपक सरकार ने मुनीरा चुनिया को उपहार देकर सम्मानित किया.

इसके बाद एक बार फिर क्विज खेलना और ढेर सारे पुरस्कार जीतना शुरू हुआ.

खेलों और पुरस्कारों को ब्रिहांस नैचुरल प्रोडक्ट्स द्वारा ग्रीन लीफ एलो वेरा जेल द्वारा प्रायोजित किया गया था.

ग्रीन लीफ एलोवेरा जेल से संबंधित उत्पादों, त्वचा और बालों के लिए इसके लाभों के बारे में जानकारी प्रदान की गई.

सौंदर्य और त्वचा की देखभाल के टिप्स

कल्याण की प्रसिद्ध कॉस्मेटोलॉजिस्ट और स्किन शाइन स्किन क्लिनिक की ट्राइकोलॉजिस्ट डॉ. प्रीति माहिरे ने उपस्थित महिलाओं को सौंदर्य और त्वचा की देखभाल के टिप्स, दैनिक देखभाल, ग्लो हैक्स और स्वस्थ त्वचा के बारे में जानकारी दी.

दिल्ली प्रेस के पवन माथुर जी ने डॉ. प्रीति माहिरे को उपहार देकर धन्यवाद दिया.

कार्यक्रम के अंतिम सत्र में प्रसिद्ध पत्रकार, एंकर और इनफ्लूएंझार ऐश्वर्या पेवाल-नेमाड़े जी ने महिलाओं को यूट्यूब वीडियो के माध्यम से अपने ग्राहकों की संख्या बढ़ाने और अपने उत्पादों को बेचने के तरीके बताए. साथ ही उन्होंने महिलाओं के साथ अपनी यात्रा की यादें भी साझ कीं. मौजूद कुछ महिलाओं ने उनसे कुछ बेहतरीन सवाल पूछकर अपनी शंकाओं का समाधान किया.

दिल्ली प्रेस के प्रशांत जी ने ऐश्वर्या पेवाल-नेमाड़े को उपहार भेंट कर उनका आभार व्यक्त किया.कार्यक्रम के अंत में उपस्थित महिलाओं ने भोजन का आनंद लिया तथा महिलाओं को उपहार बैग दिए गए.

Kusha Kapila ने शेयर किया वजन घटाने के जुनून का दर्दनाक अनुभव

Kusha Kapila : एक्ट्रेस और सोशल मीडिया में पौपुलर कुशा कपिला अक्सर सोशल मीडिया पर अपने बोल्ड अंदाज और अतरंगी वीडियोज को लेकर चर्चा में बनी रहती है. हाल ही में उनके वेट लॉस ट्रांसफॉरमेशन ने सभी को हैरान कर दिया लेकिन उन्होंने अपने वीडियो में अपने गलत ढंग से वजन कम करने की दर्दनाक जर्नी को लेकर कुछ खुलासे किए जिसने सबको चौका दिया.जो ऐसे लोगों के लिए सबक है जिन्हें लगता है कि भूखे रहकर ज्यादा से ज्यादा वजन कम किया जा सकता है. लेकिन उसके साइड इफेक्ट क्या हो सकते हैं, उसका बुरा अनुभव कपिला ने सबके सामने शेयर किया है.

कपिला के अनुसार मैं शुरू से ही अपने वजन को लेकर सचेत रहती थी इसलिए मैंने जबरदस्त डाइटिंग करके दसवीं क्लास में अपना 20 किलो वजन कम कर लिया था , उस वक्त मेरे ऊपर अच्छे से अच्छा दिखने का जुनून सवार था. लिहाजा जब मैं पतली हुई तो सब ने मेरी बहुत तारीफ की लेकिन खाने पीने में लापरवाही करते ही मैं फिर से मोटी होने लगी, इसके बाद मैंने दोबारा और कड़क डाइटिंग की जिसमें मैं पूरा-पूरा दिन कुछ भी नहीं खाती थी और ज्यादा से ज्यादा डाइट में 800 से 900 कैलोरी तक का ही खाना लेती थी.

इसका नतीजा यह हुआ की धीरे-धीरे मेरी इम्यूनिटी कमजोर होने लगी , पेट में ट्यूमर की समस्या हो गई. यहां तक की बहुत ज्यादा कमजोरी होने की वजह से मुझे टीबी की बीमारी ने भी घेर लिया. इसके बाद मुझे काफी लंबे समय तक बीमारी से गुजरना पड़ा. लेकिन मैंने बाद में सही इलाज करके अपने आप को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया. अब 33 की उम्र में मैंने फिर से एक बार वजन कम करने की प्रक्रिया शुरू की है लेकिन भूखे रहकर नहीं, बल्कि सही डाइट और सही फिटनेस ट्रेनिंग लेकर जिसका मुझे बहुत अच्छा रिजल्ट मिल रहा है. और कमजोरी का एहसास भी नहीं हो रहा. मैं अपनी दर्दनाक वेटलॉस जर्नी के जरिए यही कहना चाहती हूं कि वेटलॉस करना बुरा नहीं है अगर उसका तरीका सही हो ,जो मुझे बाद में समझ आया.

Tips For Handbag : ऐसे करें ब्रैंडेड हैंड बैग की साफसफाई

Tips For Handbag :  हैंड बैग का फैशन सालों से स्त्रियों में रहा है। किसी भी अवसर पर पोशाक से मैच करते हुए बैग कैरी करना एक स्टाइल स्टैट्मेंट हुआ करता है. आज ये केवल ऐक्सैसरीज ही नहीं, बल्कि पर्सनैलिटी को निखरने में भी अहम भूमिका निभाते हैं. इस में भी आजकल ब्रैंडेड बैग्स लेने का प्रचलन बढ़ा है। पहली नौकरी मिलते ही आज के यूथ एक अच्छी सी बैग खरीद लेते हैं, क्योंकि नियमित प्रयोग में लाई जाने वाली चीजों में खूबसूरत हैंगबैग या पर्स जरूरी बन चुका है, जिस में वे हर छोटीबड़ी चीजों को रखना पसंद करते हैं.

मगर कुछ दिनों बाद ये मैले हो कर गंदे दिखने लगते हैं. कई बार तो इन में बैक्टीरिया पनपने का भी डर बना रहता है.

इन स्टाइलिश बैग्स का दाम हजार से लाखों में होते हैं, जिसे बारबार खरीदना संभव नहीं होता. इसलिए सही रखरखाव करने पर सालों तक आप इस का प्रयोग कर सकते हैं.

अगर आप के पास लग्जरी बैग्स का अच्छाखासा कलैक्शन है, जिन्हें आप लंबे समय तक प्रयोग करना चाहते हैं और ये गंदे हो गए हैं, तो उन्हें साफ करने के कुछ खास टिप्स निम्न हैं :

फालतू कागज को हटाएं

समयसमय पर बैग्स की सफाई करना बहुत जरूरी होता है। सब से पहले बैग में रखे फालतू कागज के टुकङों को हटा दें। ये बैग को अंदर से काफी गंदा करते हैं, इतना ही नहीं इन की वजह से बैग में सामान रखने की जगह की भी कमी होती है.

समयसमय पर करें सफाई

कोशिश करें कि हफ्ता या 15 दिन में एक बार अपने हैंगबैग या पर्स की सफाई जरूर करें. इस के लिए एक बाउल में हलका गरम पानी लें और उस में 1 चम्मच माइल्ड सोप मिक्स कर दें. दोनों चीजों को अच्छी तरह मिक्स करने के बाद उस पानी में एक कपड़ा डालें और उसे अच्छी तरह निचोड़ लें.

अब इस कपड़े से पर्स के बाहरी हिस्से की अच्छी तरह सफाई करें. ध्यान रखें कि इस दौरान बैग को अधिक गीला नहीं करना है. लक्जरी बैग्स को वाशिंग मशीन में डाल कर साफ कभी न करें, इस से बैग की मैटेरियल खराब हो सकते हैं.

औयल के दाग को करें साफ

कई बार बैग में खानेपीने की चीजों को रख देते हैं जिस की वजह से बैग अंदर से औयली हो जाता है। इसे हटाने के लिए बैग में पेपर या फिर ब्लोटिंग पेपर का इस्तेमाल कर धीरेधीरे औयल को सोख लें, बाद में दागधब्बों को दूर करने के लिए टेलकम पाउडर छिड़क दें. 10 मिनट बाद उसे किसी साफ कपड़े से पोंछ दें. इस से तेल का निशान धीरेधीरे खत्म हो जाएगा.

सौफ्ट कपड़े का करें प्रयोग

बैग को समयसमय पर ड्राईक्लीन करते रहना चाहिए, इस से बैग क्लीन रहता है। ड्राईक्लीन आप खुद घर पर ही कर सकते हैं। इस के लिए बैग से सारा सामान निकाल लें, फिर सौफ्ट सूती कपड़े से इस की सफाई कर लें.

हार्ड ब्रश को करें अवौइड

हार्ड कैमिकल वाले डिटर्जेंट या साबुन का प्रयोग कभी न करें। माइल्ड साबुन या शैंपू से इसे साफ करना अच्छा होता है, क्योंकि हार्ड कैमिकल से बैग की सतह को नुकसान पहुंच सकता है. ब्रैंडेड बैग्स की सफाई करते समय हार्ड ब्रश का इस्तेमाल कभी न करें.

न रखें धूप में

हैंगबैग या फिर पर्स को पानी से धोने की गलती न करें. कई बार लड़कियां इसे धोने के बाद धूप में रख देती हैं, इस की वजह से कलर फेड हो जाता है. इसलिए अपने हैंडबैग को धूप से बचा कर रखें. इस के अलावा नमी वाले स्थानों से भी इसे बचा कर रखें ताकि फंगस और फफूंदी न लगें.

नौर्मल टैंपरेचर में रखना जरूरी

ब्रैंडेड बैग्स लंबे समय तक चलें, इस के लिए रखरखाव का खास ध्यान देने की जरूरत है. कई बार सही से इसे नहीं रखने से मौसम के बदलाव के साथसाथ, दागधब्बे लग जाते हैं. इसलिए बैग को हमेशा साफ और नौर्मल टैंपरेचर में रखें.

हैंड बैग के अंदर कपड़ा होता है, जिसे पानी और डिटर्जेंट से साफ किया जा सकता है, लेकिन सही तरीके से इसे न साफ करने पर पानी बैग के दूसरे भाग में जाने की संभावना रहती है. दागधब्बे को हटाने के लिए हेयर स्प्रे करें और उसे अच्छी तरह से रब कर तुरंत साफ कर दें। दागधब्बे अधिक पुराने होने पर उन्हें निकालना मुश्किल होता है.

बदबू का करें निवारण

अगर आप के पर्स से गंधी बदबू आ रही है, तो इस के लिए बेकिंग सोडा का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के लिए एक पैकेट में बेकिंग सोडा भर कर उसे हैंड बैग में रख दें और फिर 24 घंटे के लिए छोड़ दें. इस से बदबू चली जाएगी. इस के अलावा आप चाहें तो हैंड बैग के अंदर हलका परफ्यूम स्प्रे कर सकते हैं. ऐसा करने से हैंड बैग से अच्छी खुशबू भी आती रहेगी.

इस प्रकार इन सभी टिप्स को अपना कर आप अपने महंगे ब्रैंडेड हैंड बैग को काफी समय तक अपने पास सुरक्षित तरीके से रख सकते हैं.

Skin Care Tips : पाना चाहती हैं ग्लोइंग स्किन, तो अपनाएं ये आसान टिप्स

Skin Care Tips : अगर सुंदर और जवां दिखने की चाहत रखती हैं तो आपको कुछ सिंपल टिप्‍स अपनाने होंगे, जिससे आप साफ, अंदर से ग्‍लोइंग और खिली खिली त्वचा पा सकें. तो आइए जानते त्वचा की सफाई से संबंधित कुछ खास टिप्स के बारें में.

1. सफाई का तरीका

जैसा कि हम सभा जानते हैं शरीर में स्‍किन पोर के दा्रा पसीना निकलता है. इसलिये अपनी स्‍किन पोर को हमेशा खुला रखने के लिये ऐसे क्रीम और लोशन का प्रयोग करें जो पोर्स को बंद ना कर के बल्कि उन्‍हें खुला रखें. ऐसा करने के लिए रोजाना अपनी स्‍किन को क्‍लींजर से साफ करें और फिर फेस वाश से धो लें. कोशिश करें कि रात को सोते समय अपनी त्वचा पर किसी भी प्रकार की क्रीम ना लगाएं. कभी-कभी स्‍किन को सांस लेने के लिये भी छोड़ देना चाहिये.

2. ड्राय बौडी ब्रश

यह बेहतरीन तरीका स्‍किन से गंदगी को निकालने का अच्‍छा काम करता है. यह रक्त परिसंचरण और लसीका प्रणाली को बढ़ा देता है. इसके प्रयोग से आपको ग्‍लोइंग स्‍किन मिलेगी और शरीर से डेड स्‍किन भी हटेगी. इस तरह से आप साफ और चमकने लगेंगी और आपके स्‍किन पोर्स भी खुल जाएंगे.

3. बौडी स्‍क्रब

हफ्ते में एक बार अपने शरीर को स्‍क्रब करना बहुत ही जरुरी है. इससे रूखी और मृत्‍य त्‍वचा साफ हो जाती है, जिससे स्‍किन ग्‍लो करने लगती है. आप चाहें तो दाल के पाउडर को स्‍क्रब के रूप में प्रयोग कर सकती हैं. इससे स्‍किन पोर्स खुल जाएंगे.

4. क्‍ले पैक

त्‍वचा से गंदगी को साफ करने और उसे चमकदार बनाने में क्‍ले पैक बहुत फायदेमंद होता है. क्‍ले पाउडर लीजिये और उसमें थोड़ा सा ग्‍लीसरीन मिलाइये. इस पेस्‍ट को पूरे शरीर पर लगाइये और जब सूख जाए तब छुड़ा लीजिये. इस तरह से आप स्‍वस्‍थ्‍य और सुंदर त्‍वचा पा सकती हैं.

5. एप्‍पल साइडर वेनिगर

यह ना केवल हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के लिये ही अच्‍छा माना जाता है बल्कि त्‍वचा को सुंदर बनाने में भी लाभदायक है. नहाने के लिये एक बाल्‍टी गरम पानी में आधा कप वेनिगर मिलाइये और इससे नहाइये. अगर अच्‍छा रिजल्‍ट चाहिये तो इस विधि को हफ्ते में तीन बार कीजिये. यह आपको एक्‍ने से राहत दिलाएगा और खूबसूरत व जवां बनाएगा.

Paneer Chilla Recipe : नाश्ते में बनाएं टेस्टी पनीर का चीला, बस फौलो करें ये स्टेप्स

Paneer Chilla Recipe : पनीर का चीला स्‍वादिष्‍ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होता है. इसमें बेसन का भी इस्‍तेमाल होता है, इसलिए बेसन पनीर चीला भी कहते हैं. तो आज आपको पनीर चीला बनाने की विधि बताते हैं. इसे जरूर ट्राई कीजिए.

हमें चाहिए:

– बेसन (200 ग्राम)

– पनीर (75 ग्राम)

– प्याज 2 (बारीक कटा हुआ)

– लहसुन 6-7 कली (बारीक कटा हुआ)

– हरी मिर्च  04 (बारीक कटी हुई)

– हरा धनिया ( 01 छोटा चम्मच)

– लाल मिर्च (01 छोटा चम्मच)

– सौंफ ( 01 छोटा चम्मच)

– अजवायन ( 01 छोटा चम्मच)

– तेल ( सेंकने के लिये)

– नमक ( स्वादानुसार)

– अदरक ( 01 छोटा चम्मच)

बनाने का तरीका

– सबसे पहले पनीर को कद्दूकस कर लें और इसके बाद बेसन को छान लें.

– फिर उसमें पनीर के साथ सारी सामग्री मिला लें.

– अब मिश्रण में थोड़ा-थोड़ा पानी डालते हुए उसका घोल बना लें.

– यह घोल पकौड़ी के घोल जैसा होना चाहिए, न ज्यादा पतला, न ज्यादा गाढ़ा.

– घोल को अच्छी तरह से फेंट लें और फिर उसे 15 मिनट के लिए ढ़क कर रख दें.

– अब एक नौन स्टिक तवा गरम करें और तवा गरम होने पर 1/2 छोटा चम्मच तेल तवा पर डालें और उसे पूरी सतह पर फैला दें.

– ध्यान रहे तेल सिर्फ तवा को चिकना करने के लिये इस्तेमाल करना है. अगर तवा पर तेल ज्यादा लगे,   तो उसे तवा से पोंछ दें.

– तवा गरम होने पर आंच कम कर दें और 2-3 बड़े चम्मच घोल तवा पर डालें और गोलाई में बराबर से        फैला दें. चीला की नीचे की सतह सुनहरी होने पर उसे पलट दें और उसे सेंक लें.

– इसी तरह सारे चीले सेंक लें, अब  आपकी पनीर चीला बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

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सवाल

मैं 25 साल की हूं और जल्द ही मेरी शादी होने वाली है. शादी के बाद ससुराल में मेरी जिंदगी कैसी होगी, यह सवाल मुझे बहुत परेशान करता है. ऊपर से खुश हूं लेकिन अंदर ही अंदर यह डर खाए जा रहा है. इस तनाव को कैसे दूर करूं?

जवाब

शादी के बाद विशेषकर एक लड़की की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है. नई जिम्मेदारियों का खयाल अकसर तनाव का कारण बनता है. लेकिन यह आप को मानसिक रूप के साथसाथ शारीरिक रूप से भी बीमार कर सकता है. शादी जैसे माहौल में विशेषकर दूल्हादुलहन का पौजिटिव रहना बेहद जरूरी है. इस के लिए सब से पहले खुद को इन सब सवालों से मुक्त कर दें. रोज हैल्दी नाश्ता करें क्योंकि यह आप को पूरे दिन ऐक्टिव रहने में मदद करता है. फाइबर, हरी सब्जियां, फलों और ड्राई फ्रूट्स का सेवन अवश्य करें. दिनभर ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. दोस्तों के साथ समय बिताएं और हंसीमजाक में शामिल हों. इस से आप को तनाव से मुक्ति मिलेगी.

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जल्द ही मेरा निकाह होने वाला है. घर में तरहतरह के लोग आ कर मुझे तरहतरह की सीख दे कर जाते हैं. यह माहौल मेरे तनाव का कारण बन गया है. इस कारण मैं अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकलती हूं, तो मम्मी चिल्लाने लगती हैं. मैं ये सब बातें और बरदाश्त नहीं कर सकती. इस तनाव को कैसे दूर करूं?

आप का परेशान होना स्वभाविक है लेकिन यदि आप अपने परिवार वालों के सामने अपनी बात रखेंगी तो वे इसे जरूर समझेंगे. उन्हें बताएं कि कैसे लोगों की बातें आप को परेशान कर रही हैं. वे कोई न कोई हल जरूर निकालेंगे. इस के अलावा आप लोगों की बातों से बचने के लिए काम का बहाना बना सकती हैं. यदि कोई अच्छी सीख दे रहा है तो अवश्य लें लेकिन यदि आप को लगता है कि इस से आप सिर्फ तनावग्रस्त हो रही हैं तो उन्हें प्यार से यह बात समझएं. तनाव से बचने के लिए दिनभर अच्छी गतिविधियों में शामिल हों. अच्छा खाएं, अच्छा पीएं. सुबह उठ कर व्यायाम करें.

डाक्टर गौरव गुप्ता
साइकोलौजिस्ट, डाइरैक्टर,
तुलसी हैल्थकेयर

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Hindi Story Online : प्यार की चाह – क्या रोहन को मिला मां का प्यार

लेखिका- वीना टहिल्यानी

 Hindi Story Online :  झल्लाई हुई निशा ने जब गाड़ी गैरेज में खड़ी की तो रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी. ‘रवि का यह खेल पुराना है,’ वह काफी देर तक बड़बड़ाती रही, ‘जब भी घर में किसी सोशल गैदरिंग की बात होगी, वह बिजनैस ट्रिप पर भाग खड़ा होगा, अब भुगतो अकेले.’

‘तुम चिंता न करना, मेरा सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा.’

‘हूं,’ सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा. कार्ड बांटने और इनवाइट करने तो पर्सनली ही जाना पड़ता है न.’

‘न जाने पार्टी के नाम से उसे इतनी चिढ़ क्यों है? महेश ने विदेश जाने पर पार्टी दी थी तो अरविंद ने विदेश से लौटने की. राघव की बेटी रिंकी को फिल्मों में हीरोइन का चांस मिला तो पार्टी, भाटिया ने फिल्म का मुहूर्त किया तो पार्टी. अपनी सुधा तो कुत्तेबिल्लियों के जन्मदिन पर भी पार्टी देती है. इधर एकलौते बेटे का जन्मदिन मनाना भी खलता है. फिर इन्हीं पार्टियों की बदौलत सोशल स्टेटस बनता है. सोशल कौंटैक्ट्स बनते है,’ पर रवि के असहयोग से अपने किटी सर्किल में निशा पार्टीचोर के नाम से ही जानी जाती थी. इसी कारण वह तमतमा उठी.

‘‘मेमसाब, खाना गरम करूं?’’  मरिअम्मा ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं खा कर आई हूं,’’ पर्स पलंग पर फेंक कर निशा बाथरूम में घुस गई.

‘इतना भी नहीं कि एक फोन ही कर दे. 1-1 बजे तक बैठे रहो इंतजार में,’ मन ही मन भुनभुनाते हुए रामआसरे ने टेबल पर रखा सामान हटाया, किचन साफ किया और पिछवाड़े अपने क्वार्टर में चला गया.

मरिअम्मा अपने कमरे में ऊंघ रही थी. रोहन का कमरा नाइटलैंप के नीले प्रकाश में नहाया था. दबेपांव जा कर निशा ने बड़ा सा चमकीला गुलाबी गिफ्टपैक रोहन की स्टडी टेबल पर रख दिया, फिर उस के ऊपर जन्मदिन का कार्ड भी लगा दिया, रोहन के बिस्तर के ठीक सामने.

‘उठते ही सामने उपहार देख कर वह कितना खुश होगा,’ उस ने सोचा.

एक बार तो निशा के दिल में आया कि सोते बेटे को सहलाए, पुचकारे, पर फिर कुछ सोच कर वह ठिठक गई. जाग गया, तो साथ सुलाने की जिद करेगा. साथ सोया तो सुबह मुझे भी उस के साथ जल्दी उठना पड़ेगा. नहीं, नहीं, कल रात तो पार्टी है. अभी नींद पूरी न की तो सिर भारी और चेहरा रूखारूखा सा लगेगा. देररात गए से ले कर सुबह सूरज उगने तक चलने वाली ये हाईफाई पार्टियां तो वैसे भी अघोषित सौंदर्र्य प्रतियोगिताओं सी होती हैं. निशा भला अकारण ही किसी से उन्नीस लगने का जोखिम क्यों उठाती. धीरे से बेटे के कमरे का दरवाजा बंद करती वह अपने कमरे में चली गई.

निशा थकान से चूर थी. पहले जागरूक महिला मंडल की मीटिंग, फिर क्लब में किटी, ऊपर से घरघर जा कर कार्ड बांटने का झमेला, सुबह से मुसकरातेमुसकराते उस के जबड़े दर्द करने लगे थे.

‘दरजी ने ब्लाउज आज भी नहीं दिया. कल बैंक से जड़ाऊ सैट भी निकालना था, ओह,’ तनाव से उस का सिर फटा जा रहा था. करवटें बदलतेबदलते वह उठ बैठी और एक सिगरेट सुलगा ली. फिर सोचने लगी.

‘यह रोहन भी दिनोंदिन कैसा घुन्ना होता जा रहा है. बिलकुल अपने बाप पर गया है, कार में स्कूल नहीं जाना, जिद कर के स्कूलबस लगवा ली है. खेलेगा तो कालोनी के बच्चों के साथ, साथ में मरिअम्मा को भी नहीं ले जाना. अब जन्मदिन पर भी न दोस्तों को बुलाना है न टीचरों को. कितना कहा, सब को एकएक कार्ड पकड़ा दो. अच्छीभली दावत, साथ में रिटर्न गिफ्ट्स भी. आने वाले तो उपकृत हो कर ही जाते. पर कहां, नहीं बुलाना तो नहीं बुलाया. किसी बात की ज्यादा जिद करो, तो बस, रोना शुरू.’

निशा ने सिगरेट का गहरा कश ले कर ढेर सारा धुआं उगला.

‘इस बार रवि पर भी नजर रखनी होगी. पीने की आदत नहीं, तो 2 पैग पी कर ही बहकने लगते हैं महाशय. पिछली बार कैसा तमाशा खड़ा किया था, उस के हाथ की सुलगी सिगरेट खींच कर बोला कि डार्लिंग, तुम्हारी गोलगोल बिंदी और लाल गुलाब जैसी साड़ी के साथ यह सिगरेट तो जरा भी मैच नहीं करती. हूं, मैच नहीं करती… मेहमानों के जाते ही मैं ने भी उस की वह खबर ली कि सारा नशा काफूर कर दिया. पर भरी सभा में उस की बेइज्जती को याद कर निशा आज भी तिलमिला जाती है. अंतिम लंबे कश के साथ उस ने अप्रिय यादों और तनावों को झटकने का प्रयास किया. सिगरेट को जोर से दबा कर बुझाया. नींद की गोली ली और चली सोने.

‘‘हैप्पी बर्थडे, सनी,’’ मरिअम्मा का स्वर सुनाई पड़ा. साथ ही ‘कुक्कू’ क्लाक के मधुर अलार्म का स्वर भी.

आंखें खुलते ही रोहन की नजर गिफ्टपैक पर रखे कार्ड पर पड़ी. नजरभर देखे बिना ही वह अलसा कर फिर से ऊंघने लगा.

‘‘उठो बाबा, उठो, स्कूल को देरी होगा,’’ आवाजें लगाती मरिअम्मा उस के कपड़े निकाल रही थी.

बाथरूम से निकल कर रोहन ने मां के कमरे में झांका ही था कि मरिअम्मा ने घेर लिया. दबी आवाज में समझाती बोली, ‘‘शशश, चलो बाबा, चलो, मम्मी जाग गया तो बहुत गुस्सा होगा. रात कितनी देर से सोया है. चलोचलो, तैयार हो, बस निकल जाएगा,’’ वह उस का हाथ पकड़ वापस अपने कमरे में ले आई.

कपड़े देख कर रोहन अड़ गया, ‘‘मैं ये नए कपड़े नहीं, स्कूल की यूनिफौर्म ही पहनूंगा.’’

‘‘क्यों बाबा, आज तो तुम्हारा हैप्पी बर्थडे है. स्कूल में भी नया कपड़ा पहन सकता है. मेमसाब बोला है. हम को भी 2 जोड़ा नया कपड़ा लाया है. एक, स्कूल में पहनने के वास्ते और दूसरा, रात की पार्टी के वास्ते,’’ प्यार से पुचकारती मरिअम्मा उसे मनाने लगी.

‘‘नहीं, नहीं, नहीं. बोला नहीं पहनूंगा. तो नहीं पहनूंगा,’’ नए कपड़ों को एक ओर पटक कर अलमारी से स्कूल की ड्रैस निकाल रोहन बाथरूम में घुस गया.

अब वह मरिअम्मा को कैसे समझाए कि नए कपड़े पहन कर स्कूल जाने से उस के सारे दोस्त समझ जाएंगे कि आज उस का बर्थडे है.

‘मैं ने तो उन्हें इनवाइट भी नहीं किया,’ रोहन ने सोचा.

पिछले साल की पार्टी की गड़बड़ रोहन को आज भी याद थी. पापा को नशा कुछ ज्यादा हो गया था. उन्होंने मम्मी के हाथ की सिगरेट छीनी तो रोहन का दिल धक से रह गया. ‘अब होगा झगड़ा,’ उस ने सोचा. लेकिन मम्मी मधु आंटी से बातें करती रही थीं. पर, पार्टी के बाद की वह जोरदार लड़ाई उफ…’

मां का सिगरेट पीना रोहन को भी असमंजस में डाल देता है.

वह सोचने लगता है, ‘विक्की की मम्मी तो सिगरेट नहीं पीतीं, रेनू की मां भी नहीं, शाहिद की अम्मी भी नहीं, फिर मम्मी ही क्यों. पापा मना करें तो लो, हो गया झगड़ा.’

‘आज तो मेरी बस निकल ही जाती, यह तो रेनू की मम्मी ने दूर से ही मुझे देख लिया और ड्राइवर को रोके रखा. आंटी कितनी अच्छी हैं, रोज रेनू का बैग उठा कर उसे बसस्टौप पर छोड़ने, फिर लेने भी आती हैं. कीर्ति के साथ उस के दादा आते हैं और निधि के साथ उस के पापा. लेकिन ये सब तो छोटे हैं. मैं, मैं तो कितना बड़ा हो गया हूं, फिर भी मम्मी मरिअम्मा को साथ भेज देती हैं.’

पहले तो रोहन का भी मन करता था कि मम्मी उस के साथ आएं बसस्टौप तक. बस, एक दिन के लिए ही सही. पर कहां? मम्मी को तो कितने काम होते हैं, कितनी सोशल सर्विस करनी पड़ती है. रेनू, छवि, पवन उन सब की मम्मियां तो सिर्फ हाउसवाइफ हैं, बस, घर का काम करो और आराम से रहो. सोशल क्लब जौइन करना पड़े तो पता चले. मम्मी ने ही सब समझाया था.

फिर भी रोहन सोचता, ‘काश, उस की मम्मी भी केवल हाउसवाइफ ही होतीं. या फिर उस के दादादादी ही उस के साथ रहते, जैसे कीर्ति और विक्की के रहते हैं. फिर तो मजा ही मजा होता. वे उस के साथ बाग में खेलते, बातें करते, बसस्टौप तक छोड़ने आते. पर दादादादी का आना मम्मी को जरा भी नहीं भाता. फिर वे हर समय गुस्से में रहती हैं. पापा से भी झगड़ती हैं, मुझे भी डांटती हैं.’

दादी तो उसे अपने साथ ही सुलाती थीं. सितारों और परियों की कहानियां भी सुनाती थीं, पर मम्मी कहती हैं, ‘बच्चों को अलग कमरे में सोना चाहिए. हर समय मां का आंचल पकड़े रहने वाले बच्चे कमजोर और दब्बू बन जाते हैं, जैसे तुम्हारे पापा हैं.’

रोहन को पापा का उदाहरण अखरता है, ‘पापा तो कितने स्मार्ट, कितने हैंडसम हैं, पर क्या वे सचमुच मम्मी से डरते हैं? क्या वे सच में दब्बू हैं?’

हर तरह की सोच से परे उस का मन फिर भी मचलता ही रहता है, मम्मीपापा के साथ उन के बीच सोने को. तकिया फेंकफेंक कर उन के साथ खेलने को, पर नहीं, अब तो वह कितना बड़ा हो गया है, पूरे 11 साल का. अब तो वह मम्मीपापा के साथ सोने की जिद भी नहीं करेगा, कभी नहीं.

रोहन स्कूल से लौटा तो लौन में शामियाना लग चुका था. पेड़पौधों पर बिजली के रंगबिरंगे छोटेछोटे बल्बों की कतारें झूल रही थीं. बरामदा और हौल रंगबिंरगे गुब्बारों व चमकतीदमकती झालरों से सजेधजे थे. रोहन ने दौड़ कर मम्मीपापा के कमरे में झांक कर कहा, ‘‘मरिअम्मा, पापा कहां हैं?’’

‘‘उन का फ्लाइट लेट है बाबा, अब वह तुम को सीधा पार्टी में ही मिलेगा,’’ मरिअम्मा ने कहा.

‘‘और मम्मी?’’ कहता हुआ रोहन रोने को हो उठा.

‘‘वह तो टेलर के पास गया है. वहां से फिर ब्यूटीपार्लर जाने का, देर से लौटेगा. अब तुम हाथमुंह धो कर खाना खाने का, फिर आराम कर के जल्दीजल्दी होमवर्क फिनिश करने का. फिर तुम्हारा हैप्पी बर्थडे होगा. बड़ाबड़ा केक कटेगा.’’

‘‘नहीं खाना मुझे खाना, नहीं करना होमवर्क,’’ मरिअम्मा को धकेलता रोहन धड़ाम से पलंग पर जा पड़ा. यह देख मरिअम्मा हैरान रह गई.

‘‘गुस्साता काहे रे. अरे, तू ने तो अपना गिफ्ट भी खोल कर नहीं देखा, खोलोखोलो. देखोदेखो, मम्मी रात तुम्हारे वास्ते क्या ले कर आया. अभी पापा भी अच्छाअच्छा खिलौना लाएगा,’’ मरिअम्मा ने राहुल को समझाया.

‘‘नहीं चाहिए मुझे खिलौने. मैं अब बड़ा हो गया हूं,’’ मरिअम्मा के हाथ से गिफ्टपैक छीन कर रोहन ने बाथरूम के दरवाजे पर दे मारा और सुबकने लगा.

डरी हुई मरिअम्मा पलभर तो शांत रही, फिर धीरेधीरे उस का सिर सहलाती उसे पुचकारनेमनाने लगी, ‘‘मेरा अच्छा बाबा. मेरा राजा बेटा. अब तो तू बड़ा हो गया रे, रोते नहीं. रोते नहीं बाबा. अपने जन्मदिन पर कोई रोता है क्या?’’ उसे समझातेमनाते मरिअम्मा की आवाज भी भर्रा गई, ‘‘उठ, उठ जा मुन्ना. मेरा अच्छा बच्चा, चल, खाना खाएं होमवर्क करें. देरी हुआ तो मेमसाब मेरे को गुस्सा करेगा कि हम तेरा ध्यान नहीं रखता.’’

रोहन का सुबकना थम गया. आंखें चुराता, मुंह छिपाता वह बाथरूम में चला गया.

एक मरिअम्मा ही है जो उसे प्यार करती है, उस का इतना ध्यान रखती है. फिर भी मम्मी उसे डांटती ही रहती हैं. पहले वाली वह रोजी, उफ, कितनी गंदी थी, चुपकेचुपके उसे चिकोटी काटती, उस का चौकलेट खा जाती. उस का दूध पी जाती और बसस्टौप पर रोज उस का बौयफ्रैंड भी उस से मिलने आता. मम्मी से शिकायत की, पापा को पता चला तो घर में कितना हंगामा हुआ था. पापा ने तो यहां तक कह दिया था, ‘तुम से एक बच्चा तो संभलता नहीं, करती हो समाजसेवा. रोहन को आज से तुम ही देखोगी, रोजी की छुट्टी है.’

मम्मी का क्लब, किटी आदि सब बंद हो गया. वे हर समय गुस्सातीझल्लाती रहतीं. घर में रोज लड़ाई होती. फिर एक दिन मरिअम्मा आ गईं.

मरिअम्मा सच में अच्छी हैं. उसे कहानियां सुनाती हैं, उस के साथ खेलती हैं, उसे प्यार भी करती हैं.

खाना खा कर रोहन लेटा तो जरूर, पर उस की सभी इंद्रियां मम्मीपापा के इंतजार में सचेत थीं.

‘पापा अभी तक नहीं आए. मम्मी अभी और कितनी देर लगाएंगी? मम्मीपापा हमेशा इतने बिजी क्यों रहते हैं?’

अचानक ही रोहन को बैग में रखी ‘जादू की पुडि़या’ की याद आई. उस दिन बस में 12वीं कक्षा के किशोर के दोस्तों की सभा जमी थी. झुरमुट में फुसफुसाते वे जोरजोर से ठहाके लगा रहे थे, ‘अरे, जादू है जादू, जबान पर रख लो तो मन की सभी मुरादें पूरी.’

‘एक पुडि़या मुझे भी दो न,’ बस में चढ़ते रोहन ने फुसफुसाते हुए फरमाइश की.

‘तू क्या करेगा रे, अभी तू मुन्ना है, मुन्ना, थोड़ा बड़ा हो ले, फिर मौज मारना,’ कह कर किशोर के दोस्तों ने ठहाका लगाया था.

‘अरे, दे दे न मुन्ना को, अपना क्या जाता है,’ राकेश ने आंख दबा कर रोहन की सिफारिश करते हुए कहा था.

‘चल, निकाल 25 रुपए, औरों के लिए 50-100 से कम नहीं, पर तू

तो अभी बच्चा है न, बिलकुल नयानवेला, नन्हामुन्ना. बच्चू, मजा न आए तो कहना.’

लेकिन रोहन न ही इतना नन्हामुन्ना था और न ही पूरा बेवकूफ.

किशोर उस के स्कूल का दादा था. उस ने किशोर और उस के साथियों को दरवाजे के पास खड़े आइसक्रीम वाले से बहुत सारी पुडि़याएं खरीदते देखा था. सफेद पाउडरभरी उन पुडि़याओं में कैसा जादू था, वह खूब जानता था. फिर भी उस ने वह पुडि़या खरीद ली. खरीदने के बाद लगा, वह उसे फेंक दे, पर नहीं फेंकी. संभाल कर बैग के अंदर वाली जिप में रख ली.

रोहन मम्मीपापा के बारे में सोच ही रहा था पर तभी उसे उस पुडि़या का ध्यान आया. उस ने उठ कर बैग खोल कर देखा. पुडि़या ज्यों की त्यों रखी थी. पुडि़या निकाल कर रोहन कुछ पल

उसे घूरता रहा, फिर उसे बैग में रख कर लेट गया.

‘‘बाबा, ओ बाबा, उठो. देखो शाम हो रही है,’’ मरिअम्मा ने रोहन को पुकारा.

रोहन ने आलस में आंखें खोलीं तो मरिअम्मा प्यार से मुसकरा उठी.

‘‘उठो बाबा, होमवर्क करना है. तैयार होना है. फिर मेहमान आना शुरू हो जाएगा.’’

रोहन तुरंत एक झटके में ही उठ बैठा और पूछा, ‘‘मम्मी आ गईं, मरिअम्मा?’’

‘‘आ गया, बाबा. वह तो सब से पहले तुम्हारे पास ही आया, पर तुम सोता था,’’ मरिअम्मा ने जवाब दिया.

रोहन ने दौड़ कर मां के कमरे में झांक कर कहा, ‘‘मम्मी तो नहीं हैं, मरिअम्मा.’’

‘‘वह नहाता होगा बाबा, पार्टी के लिए सजना है न. अब तुम भी जल्दी करो, देरी हुआ तो मेमसाब नाराज होगा.’’

होमवर्क खत्म कर रोहन फिर से मां के कमरे की ओर भागा, पर दरवाजा तो अंदर से बंद था. रोहन समझ गया मम्मी अब मेकअप कर रही होंगी और मेकअप करते समय कोई डिस्टर्ब करे, यह उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं. हारे कदमों से रोहन वापस आ गया.

‘‘अरे, रोहन बाबा, तुम अभी इधर ही बैठा है, चलोचलो, नहा लो, तैयार हो जाओ. देखो, तुम्हारा नया कपड़ा भी निकाल दिया,’’ मरिअम्मा ने कहा.

‘‘पापा अभी तक नहीं आए, मरिअम्मा?’’

‘‘आते ही होंगे बाबा,’’ मरिअम्मा ने बिलकुल सफेद रूमाल रोहन की जेब में रखते हुए कहा.

‘‘चलो बाबा, अब पार्टी का टाइम हो गया. मेमसाब वहीं मिलेगा.’’

‘‘तुम जाओ मरिअम्मा, मैं आ जाऊंगा.’’

‘‘देखो, देरी नहीं करना, जल्दी से पहुंच जाना,’’ जातेजाते मरिअम्मा ने एक बार फिर रोहन के बाल संवारे और उसे प्यारभरी नजरों से देखती बाहर चली गई.

शाम होते ही बंगला रंगारंग रोशनी में नहा उठा. रात गहराते ही रौनक बढ़

गई. मेहमान आने शुरू हो गए. चहकतेमहकते, मुसकराते, सजेधजे मेहमान, आंखों ही आंखों में एकदूसरे को आंकते मेहमान, बातों ही बातों में एकदूसरे को नापते मेहमान.

‘‘रवि आज भी नदारद है, निशा,’’ हरीश ने कहा.

‘‘उस के वही बिजनैस ट्रिप्स, फिर हमारी यह बेटाइम चलने वाली एअरलाइंस, बस, आता ही होगा,’’ मनमोहनी मुसकान के साथ निशा ने सफाई दी.

‘‘रोजरोज के ये बिजनैस ट्रिप्स. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं, निशा?’’ हरीश ने आंख दबा कर शिगूफा छोड़ा तो वातावरण में हंसी की फुलझडि़यां फूट गईं. निशा भी पूरी तरह मुसकरा उठी.

‘‘बर्थडे बौय कहां है भाई?’’ माला ने बड़ी नजाकत से हाथ में पकड़े उपहार के डब्बे को साथ वाली कुरसी पर रखते हुए कहा.

‘‘अब साहबजादे को भी बुलाइए जरा,’’ रमेश ने अपने हाथ में पकड़ा गिफ्टपैक राधिका को देते हुए कहा.

‘‘रोहन, रोहन, माई सन,’’ निशा की धीमी मीठी आवाज गूंज उठी.

‘‘रोहन, सनी?’’ निशा ने इधरउधर देखा, ‘‘रोहन कहां है मरिअम्मा?’’

‘‘इधर ही था मेमसाब, बाथरूम में होगा, अभी देखता,’’ कह कर वह उसे ढूंढ़ने लगी.

‘‘रोहन बाबा, रोहन बाबा,’’ मरिअम्मा ने कमरे में झांका, बाथरूम देखा, लौन में ढूंढ़ा, पिछवाड़े भी देखा पर वह न मिला. मरिअम्मा रोंआसी हो उठी, ‘कहां गया रोहन?’ वह सोचने लगी. फिर बोली, ‘‘मेमसाब, बाबा नहीं मिल रहा.’’

निशा की भौंहें तन गईं, ‘‘तुम किस मर्ज की दवा हो फिर?’’ उस ने दबी आवाज में मरिअम्मा को लताड़ते हुए कहा.

‘रोहन नहीं मिल रहा,’ ‘रोहन खो गया है,’ मेहमानों में अफरातफरी मच गई. बंगले का कोनाकोना छन गया.

‘‘पुलिस को फोन करिए, निशा,’’ मेहमानों ने कहा.

‘‘किडनैपिंग का केस लगता है?’’ सुन कर निशा के हाथपैर सुन्न पड़ गए, सिर चकरा गया.

‘‘मेमसाब, मेमसाब,’’ खुली छत की रेलिंग पर झुकी मरिअम्मा की भयभीत चीखपुकार सुन कर सब ऊपर की

ओर दौड़े.

‘‘देखिए, देखिए तो मेमसाब, रोहन बाबा को क्या हो रहा है?’’

छत के एक कोने में निढाल, बेसुध पड़े रोहन के मुंह पर तो एक मीठी मुसकान बिखरी हुई थी. जादू की पुडि़या का जादू उस पर चल चुका था. उसे अपना मनचाहा सबकुछ मिल चुका था.

पुचकारते पापा, दुलारती मम्मी. खेल खिलाते पापा. साथ सुलाती मम्मी…

उछलताकूदता, खिलखिलाता, फुदकता रोहन तो सीधा उन की गोद में ही जा बैठा था. दृश्य खयालों में चल रहे थे…

‘हैप्पी बर्थडे सनी.’

‘हैप्पी बर्थडे रोहन.’

‘थैंक यू पापा,’ कहता रोहन पिता के सीने से चिपक गया.

‘थैंक यू मम्मी,’ रोहन मां से लिपट गया. जोरजोर से ठहाके लगाता रोहन अचानक सुबकने लगा तो मरिअम्मा परेशान हो उठी. उस ने चुप बैठ कर उस का सिर अपनी गोद में रख लिया.

‘‘देखो न मेमसाब, हमारे बाबा को क्या हो रहा है. बाबा, बाबा, रोहन बाबा,’’ मरिअम्मा जोरजोर से उस के गाल थपथपाने लगी.

मेहमानों के चेहरे पर भय, आश्चर्य और जिज्ञासा के मिलेजुले भाव तैरने लगे.

‘‘इतना छोटा बच्चा और ड्रग एडिक्ट?’’ एक आश्चर्यभरा स्वर उभरा, ‘‘ये आजकल के बच्चे? माई गौड.’’

निशा की मुट्ठियां भिंच गईं, भौंहें तन गईं. उस की सारी इज्जत, सारा का सारा सोशल स्टेटस धूल में जा मिला.

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