Big Boss: अंधविश्वास से ग्रस्त एकता कपूर ने तान्या मित्तल को ऑफर किया शो

Big Boss: टीवी और फिल्म की पौपुलर प्रोड्यूसर डाइरैक्टर, बालाजी टेली फिल्म की मालकिन एकता कपूर  हर साल ‘बिग बॉस’ में आ कर अपने नए शो के लिए कलाकार चुनती हैं.

उन्होंने पिछली बार ‘नागिन’ सीरियल के लिए ‘बिग बाॅस’ प्रतियोगी प्रियंका चाहर चौधरी को शो ‘नागिन’ का किरदार निभाने का मौका दिया.

यह डर क्यों

इसी तरह इस बार भी ‘बिग बॉस 19’ में एकता कपूर अपने सीरियल के लिए कलाकारों को साइन करने के लिए उपस्थित हुईं. लेकिन इस के साथ ही एकता कपूर, जो काफी सालों से ज्योतिष विद्या के अंधविश्वास में पड़ी हुई हैं, खुद ही पिछले कई सालों में डर और टैंशन के चक्कर में ज्योतिषों पर बहुत पैसा बरबाद किया है, जिस के बाद उन्होंने अपना खुद का ज्योतिष विद्या एप ऐस्ट्रोवाणी शुरू कर रही हैं.

अपने इस ज्योतिष ऐप के प्रचार के लिए एकता ‘बिग बॉस 19’ में बतौर गेस्ट आई थीं और इस दौरान ज्योतिष विद्या पर अंधविश्वास के चलते उन्होंने एक ऐसे प्रतियोगी को अपने सीरियल में लेने की बात उजागर की जिस का ज्योतिष के अनुसार 10वें स्थान में राहु है और ऐसे लोगों का भविष्य ज्योतिष के हिसाब से बहुत ऊंचा होता है.

ऐक्टिंग जरूरी या अंधविश्वास

इसी राहु-केतु के चक्कर में एकता कपूर ने ‘बिग बॉस 19’ शो की सब से झूठ बोलने वाली, जो अपनेआप को दुनिया की सब से अमीर इंसान कहने वाली सब से फेक प्रतियोगी, जिस के झूठ से सलमान खान से ले कर घर के सारे प्रतियोगी और बाहर ‘बिग बॉस’ देखने वाले सारे दर्शक परेशान हो चुके हैं, जिस का नाम तानिया मित्तल है, अपने सीरियल में काम करने का औफर सिर्फ इसलिए दिया क्योंकि उस का राहु 10वें स्थान पर है, जो एकता कपूर के अनुसार बहुत पावरफुल और भाग्यशाली तरक्की करने वाला इंसान होता है.

लिहाजा राहु-केतु के चक्कर में एकता कपूर ने मौके पर छक्का मारते हुए तान्या मित्तल को शो में लेने का फैसला कर लिया जो 3 महीने से सब को चूना लगा रही है.

समझाए कौन

अब एकता कपूर को कौन समझाए कि अगर ज्योतिषों के कहने पर तकदीर बदलनी होती तो वह सब से पहले खुद की तकदीर बदलते.

बहरहाल, एकता कपूर के अंधविश्वास के चलते ग्वालियर की तान्या मित्तल, जिस को ऐक्टिंग का एबीसीडी भी नहीं आता इतना बड़ा मौका हाथ लग गया.

अलबत्ता, एकता का नया ज्योतिष वाला ऐप ऐस्ट्रोवानी कहां तक हिट होगा या फ्लौप, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

Big Boss

Dharmendra Deol: अंतिम यात्रा का अनोखा और दुखदाई रहा सफर

Dharmendra Deol: 89 वर्षीय धर्मेंद्र जीतेजी सब के दिलों पर राज करते रहे, सिर्फ उन के लाखोंकरोड़ों प्रशंसक ही नहीं, बल्कि बौलीवुड की महान हस्तियां, जैसे अमिताभ बच्चन धरमजी को अपना सब से अच्छा दोस्त और शाहरुख खान, सलमान खान, कौमेडियन कपिल शर्मा, कृष्णा  धरमजी को अपना फादर फिगर मानते थे.

साल के होने के बावजूद हर कोई उन से इतना प्यार करता था कि उन की मौत की खबर पर कई बड़े स्टारों को फूटफूट कर रोते देखा गया.

आखिरी दिनों में हुआ कुछ ऐसा

लेकिन उन की मौत के आखिरी दिनों में कुछ ऐसा हुआ कि देओल परिवार मीडिया से खफाखफा नजर आया, जिस के चलते धरमजी की अंतिम यात्रा गुप्त रूप से की गई और देओल हाउस से श्मशान घाट तक उन की अंतिम यात्रा एक साधारण सी एंबुलेंस में की गई, जिस में न तो कोई फूल लगे थे और न ही धर्मेंद्रजी के पार्थिव शरीर को अन्य मृत कलाकारों की तरह फूलों से सजाया गया था.

चाहने वालों से दूरी क्यों

धर्मेंद्र की शवयात्रा में 15 से 20 लोग मौजूद थे बाकी किसी को पुलिस के कड़े बंदोबस्त की वजह से आखरी दर्शन तक नसीब नहीं हुए.

इस के पीछे एक खास वजह बताई जा रही है कि देओल फैमिली नाराज है और अपने दुख में किसी को शामिल नहीं करना चाहती थी.

दरअसल, धर्मेंद्रजी के जीवित होते हुए मीडिया द्वारा उन को मृत घोषित करने की खबर चला कर गैर जिम्मेदाराना कार्य पेश किया. नामीगिरामी अखबारों और न्यूज चैनलों ने इस खबर को साझा किया था. इस के बाद सनी देओल और उन का पूरा परिवार मीडिया और पेपराजी से उखड़ाउखड़ा नजर आया.

अपने भी रहे दूर

धरमजी की अंतिम यात्रा मीडिया और आम लोगों से दूर नजर आई. इतना ही नहीं उन की प्रार्थनासभा, जोकि मुंबई स्थित ताज लैंड होटल में रखी गई थी, वहां पर भी धर्मेंद्र की दूसरी पत्नी हेमा मालिनी और उन की बेटियां कहीं नजर नहीं आईं.

खबरों के अनुसार, देओल परिवार में धरमजी की मौत के किसी भी अंतिम दर्शन में हेमा मालिनी या उन की बेटियां नजर नहीं आई थीं. ऐसे में कहना गलत न होगा कि पूरी दुनिया को प्यार बांटने वाले धरमजी के अंतिम दर्शन के लिए उन के कई चाहने वाले वंचित रह गए.

Dharmendra Deol

Nigar Shaji: सैटेलाइट इमेजिंग तकनीकों को विकसित करने में अहम भूमिका

Nigar Shaji: (स्टेम आइकन अवार्ड) निगार शाजी एक प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इसरो में परियोजना निदेशक हैं, जिन्हें भारत के पहले सौर मिशन आदित्य-एल 1 का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है. 35 वर्षों से अधिक के अनुभव के साथ उन्होंने भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण यात्रा को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और अंतरिक्ष में एक सौर वेधशाला को स्थापित करने और जटिल वैज्ञानिक मिशनों को सफलतापूर्वक संचालित करने में अपने नेतृत्व के साथ लाखों लोगों को प्रेरित किया है.

शाजी ने भारतीय सुदूर संवेदन (रिमोट सैंसिंग), संचार और अंतरग्रहीय उपग्रह कार्यक्रमों में शानदार योगदान दिया है. वे तमिलनाडु के तेनकासी की रहने वाली हैं जो राज्य की राजधानी चेन्नई से करीब 550 किलोमीटर दूर है. निगार शाजी का बचपन प्रसिद्ध वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मैरी क्यूरी की कहानियां सुन कर बीता. विज्ञान और गणित में बेहद दिलचस्पी रखने वाले उन के पिता उन्हें ये कहानियां सुनाते थे. विज्ञान और गणित की दुनिया के बारे में उन के पिता के समझाने के अंदाज ने निगार शाजी को इस फील्ड से जोड़ दिया. उन्होंने मदुरै कामराज विश्वविद्यालय से इलैक्ट्रौनिक्स और संचार में बीई किया और बीआईटी रांची से इलैक्ट्रौनिक्स में मास्टर्स किया.

महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां

निगार शाजी ने 1987 में विशिष्ट अंतरिक्ष एजेंसी इसरो को जौइन किया था. उन्होंने इसरो में अपना कार्यकाल आंध्र तट के पास श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष बंदरगाह पर काम के साथ शुरू किया था. बाद में उन्हें बैंगलुरु के यू आर राव सैटेलाइट सैंटर में स्थानांतरित कर दिया गया जो उपग्रहों के विकास के लिए प्रमुख केंद्र है. इसरो के साथ कई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक पूरा किया. शाजी इसरो में भरोसे का प्रतीक बन गईं. इस के बाद उन्हें भारत के पहले सौर मिशन की परियोजना निदेशक बनाया गया. शाजी पहले रिसोर्ससैट-2ए की सहयोगी परियोजना निदेशक भी रह चुकी हैं. शाजी सभी निचली कक्षा और ग्रहीय मिशनों के लिए प्रोग्राम डाइरैक्टर भी हैं. उन्होंने इमेज कंप्रैशन, सिस्टम इंजीनियरिंग सहित अन्य विषयों पर कई पेपर लिखे हैं.

कार्य और मिशन नेतृत्व

निगार ने रिसोर्ससैट-2 ए सैटेलाइट के लिए ऐसोसिएट परियोजना निदेशक के रूप में और बाद में आदित्य-एल 1 सौर मिशन के लिए परियोजना निदेशक के रूप में कार्य किया जो सितंबर, 2023 में सफलतापूर्वक लौंच किया गया था. उन का नेतृत्व इसरो में सभी ग्रहीय और निम्न पृथ्वी कक्षा और ग्रहीय मिशनों के लिए कार्यक्रम दिशा में फैला हुआ है. उन्होंने सैटेलाइट इमेजिंग तकनीकों को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और नासा और ईएसए जैसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग किया है

पुरस्कार और सम्मान

– टाइम्स नाऊ अमेजिंग इंडियंस अवार्ड (2023).

– ईव औफ ऐक्सीलैंस अवार्ड, तिरुचिरापल्ली रीजनल इंजीनियरिंग कालेज (2023).

रेन्ड्राप्स वूमन अचीवर अवार्ड (‘सनी लेडी’ वैज्ञानिक).

– गणतंत्र दिवस परेड और मीडिया प्लेटफार्मों पर नारी शक्ति के रूप में भारत का चेहरा के रूप में मनाया गया.

Nigar Shaji

Parvathy Thiruvothu: सिर्फ अदाकारा ही नहीं आयरन लेडी भी हैं

Parvathy Thiruvothu: पार्वती थिरुवोथु (ऐंपावरमैंट थ्रू ऐंटरटेनमैंट अवार्ड (औनस्क्रीन) जिन की अदाकारी का लोहा आज पूरी सिनेमा इंडस्ट्री मानती है. उन्होंने किरण टीवी में टैलीविजन ऐंकरिंग से अपने कैरियर की शुरुआत की और किस्सेकहानी सुनने और सुनाने की कला से ऐसे प्रभावित हुईं कि उन के अंदर की अदाकारा साउथ के पूरे भारत की चहेती ऐक्ट्रैस बन गई.

पार्वती के पिता पी. विनोद कुमार और माता टी.के. उषा कुमारी दोनों ही पेशे से वकील हैं. लेकिन उर्वशी का हमेशा से साहित्य और कला के प्रति रुझान रहा. इसलिए उन्होंने आल सेंट्स कालेज, थिरुवनंतपुरम से इंग्लिश लिटरेचर में डिगरी प्राप्त की और फिर एक ऐंकर के रूप में टेलीविजन इंडस्ट्री से कैरियर की शुरुआत की. भरतनाट्यम के प्रति कठोर समर्पण ने भी उन की कला को निखारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन की कला को नया रूप दिया.

पार्वती ने अपने अभिनय की शुरुआत मलयालम फिल्म ‘आउट औफ सिलेबस’ (2006) से की और जल्द ही ‘नोटबुक’, ‘विनोद यात्रा’ और ‘मिलाना’ जैसी फिल्मों में भावनात्मक रूप से प्रदर्शित होने वाले अपने अभिनय के लिए जानी जाने लगीं. तमिल फिल्म ‘पू’ (2008) में अपनी भूमिका के लिए उन्होंने भाषा सीखी और पूर्ण शारीरिक बदलाव किए और उन की यह सारी मेहनत रंग लाई. उन्हें इस अभिनय के लिए बहुत प्रशंसा मिली फिर तारीफों का सफर चलता चला गया.

अपनी आगे की फिल्मों में भी जैसे ‘बैंगलुरु डेज,’ ‘एन्नु निंटे मोइदीन’ और ‘चार्ली’ में अपनी उत्कृष्ट भूमिकाओं के लिए वे तारीफ बटोर आगे चलती चली गईं. ‘टेक औफ’ (2017) में समीरा के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार स्पैशल मेंशन जीता. ‘उयारे,’ ‘वायरस,’ ‘पुझु’ और ‘करीबकरीब सिंगल’ में पार्वती का काम भारतीय सिनेमा में बैंचमार्क बनाए हुए है.

रिमार्केबल वर्क

– ‘पू’ (2008)- तमिल डेब्यू, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता.

– ‘बैंगलुरु डेज’ (2014)- आरजे सारा, पहनावा पंथ क्लासिक.

– ‘एन्नु निंटेमोइदीन’ (2015)- कंचनमाला, केरल राज्य फिल्म पुरस्कार.

– ‘चार्ली’ (2015)- टेसा, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार.

– ‘टेकऔफ’ (2017)- समीरा, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विशेष उल्लेख.

– ‘करीबकरीब सिंगल’ (2017)- इरफान खान के साथ हिंदी डेब्यू.

– ‘उयारे’ (2019)- ऐसिड अटैक सर्वाइवर के रूप में समीक्षकों द्वारा प्रशंसित.

– ‘वायरस’ (2019), ‘पुझु’ (2022), ‘थांगलान’ (2024)- बहुमुखी प्रतिभा और गहराई को दर्शाती भूमिकाएं.

सम्मान एवं पुरस्कार

– राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार- विशेष उल्लेख (टेक औफ).

– सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए केरल राज्य फिल्म पुरस्कार (एन्नु निंटे मोइदीन, चार्ली).

– दक्षिण इंडस्ट्री में 5 फिल्म फेयर पुरस्कार.

– भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ महिला अभिनेता.

– सर्वश्रेष्ठन वोदित अभिनेत्री के लिए विजय पुरस्कार (पू).

– एकाधिक SIIMAऔर एशियानेट फिल्म पुरस्कार.

– वूमन इन सिनेमा कलैक्टिव की माननीय संस्थापक के रूप में, लैंगिक समानता पर विशेष अभिवक्ता रहीं.

अदाकार के साथ आयरन लेडी भी

पार्वती थिरुवोथु सिर्फ एक अदाकार ही नहीं बल्कि एक आयरन लेडी भी हैं. पार्वती मलयालम, तमिल, कन्नड़ और हिंदी सिनेमा में प्रगतिशील बदलाव के लिए भी जानी जाती हैं, जिस का कारण है उन का फिल्म इंडस्ट्री में लैंगिक न्याय और संरचनात्मक सुधार के लिए अपनी आवाज उठाना.

इस के लिए उन्होंने इंडस्ट्री में लैंगिक न्याय और मुद्दों को महत्त्व और संबोधित करते हुए वूमन इन सिनेमा कलैक्टिव की सहस्थापना की. अपने किरदारों को ईमानदारी से पेश कर समाज के चुनौतीपूर्ण मानदंडों को पार कर उर्वशी आज कई महत्त्वाकांक्षी कलाकारों और मीडिया में प्रतिनिधित्व चाहने वाली महिलाओं के लिए एक आदर्श बना गई हैं. वे भारतीय सिनेमा में गंभीर मुद्दे चाहे वह औन स्क्रीन या औफ स्क्रीन, दोनों ही रूप में ही संस्कृति विषयों के महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर रोशनी डालने से पीछे नहीं हटतीं.

Parvathy Thiruvothu

Urvashi: सिनेमा जगत की बहुमुखी एवं प्रभावशाली अदाकारा

Urvashi: ’ ऐंपावरमैंट आइकन अवार्ड फिल्म ‘विदरुन्ना मोट्टुकल’ (1977) से एक बाल कलाकार के रूप में शुरुआत करने वाली कविता रंजिनी, आज उर्वशी नाम के साथ एक नैशनल अवार्ड विनर और मलयालम सिनेमा की मंझ कलाकार के रूप में पूरी दुनिया में जानी जाती हैं. उर्वशी एक ऐसी अदाकार हैं जो किसी भी रोल को बड़ी सरलता और सुंदरता से पेश कर हर किसी को अपनी कला से मोहित कर लेती हैं. एक लीड कलाकार की शुरुआत 1980 में लीड ऐक्ट्रैस के रूप में उभर कर आईं उर्वशी ने मलयालम फिल्मों में धूम मचा दी और फिर उन्होंने मलयालम, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ भाषाओं में 700 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया. अपने शानदार कैरियर को 4 दशकों से भी अधिक समय से निभाती आ रही हैं. अपनी बहुमुखी प्रतिभा के लिए जानी जाने वाली उर्वशी ने कौमेडी से ले कर गहन विषय के कई नाटक, फिल्मों में विभिन्न प्रकार के पात्रों को सहजता से प्रस्तुत किया है. दरअसल, उर्वशी का जन्म कला से समृद्ध परिवार में हुआ था, जो कला की जड़ों से जुड़ा था. इसलिए बचपन से ही उर्वशी में कला के प्रति एक समर्पणभाव हमेशा से रहा. थिएटर और सिनेमा में मातापिता को कला की प्रस्तुति देते हुए देख कर बड़ी हुईं और आज अपनी परफौर्मैंस से वे हर तरह की भूमिका बहुत ही सहज रूप से निभा लेती हैं. उन की यह सहजता आज उन्हें मलयालम सिनेमा की एक बहुमुखी कलाकार के रूप में दर्शाती है.

सक्सैस, कमबैक और नैशनल अवार्ड

फिल्म ‘मझविल्कावडी’ (1989), ‘गौडफादर’ (1991), ‘अचुविंते अम्मा’ (2005) और ‘पार्वती परिणयम’ (1995) मेें उन्हें कुछ आलोचना का सामना करना पड़ा लेकिन व्यावसायिक सफलता भी पाई. एक छोटे ठहराव के बाद उन्होंने एक यादगार कमबैक किया. फिल्म ‘उल्लोझुक्कू’ (2024) में लीलाम्मा पात्र की भूमिका को उत्कृष्ट ढंग से पेश करने के लिए उन्हें 2025 में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. उर्वशी ने अपने अभिनय से मलयालम सिनेमा को काफी समृद्ध तो किया ही, साथ ही महिलाओं के चित्रण को एक मजबूत रूपरेखा भी प्रदान की.

उन के किरदार अकसर हास्य और सहानुभूति के साथसाथ नारी के जीवन की जटिलताओं को भी दिखाते हैं, जो उन्हें सब का एक प्रिय आइकन बनाता है. एक ऐक्ट्रैस के रूप में उर्वशी महिलाओं को प्रेरणा देना का काम तो करती ही हैं, साथ ही सिनेमा क्षेत्र के बाहर भी बतौर एक महिला वे कला और समाज में महिलाओं की आवाज को प्रोत्साहित करने में प्रभावशाली भूमिका निभाती आ रही हैं. उर्वशी के इन्ही प्रयासों से प्रभावित हो गृहशोभा ने उन्हें ऐंपावरमैंट आइकन का अवार्ड दिया.

उर्वशी इस अवार्ड की असली हकदार भी थीं क्योंकि वे उन कलाकारों में से हैं, जिन का उद्देश्य अपनी कला से केवल नाम कमाना ही नहीं होता बल्कि समाज में बदलाव लाना भी होता है. आज उर्वशी की सफलता को देख कई महिलाएं कुछ कर गुजरने को प्रभावित हो रही हैं और ऐसे कई परिवार भी जो कला को केवल एक फालतू का शौक समझ अपनी बच्चियों को इस में आगे बढ़ने नहीं देते थे. वे आज उर्वशी की सफलता और कला से प्रभावित हो अपनी बच्चियों को कला के क्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित कर रहे हैं.

उर्वशी की फिल्मों की सफलता इस बात का भी प्रमाण देती है कि महिला हर किरदार को चाहे वह हास्य विनोद का हो, ड्रामा हो, थ्रिलर या कुछ और उसे बखूबी से निभा सकती है क्योंकि अकसर सुनने को मिलता है कि कौमेडी रोल को करना औरतों के बस की बात नहीं, उन्हें तो सिर्फ रोतेधोते या रोमांटिक रोल ही सूट करते हैं. मगर उर्वशी की बेहतरीन परफौर्मैंस उन लोगों की छोटी सोच के विपरीत काम कर महिलाओं के लिए सिनेमा के हर रोल, हर अंदाज के अभिनय के द्वार खोलती है और उन्हें आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है.

अचीवमैंट्स राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार

* 2005- ‘अचुविंते अम्मा’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री.

* 2025- ‘उल्लोझुक्कू’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री.

केरल राज्य फिल्म पुरस्कार- कई फिल्मों में प्रदर्शन के लिए 1989-2001 तक सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (6 बार).

*अन्य पुरस्कार – सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए अनेक केरल फिल्म समीक्षक पुरस्कार.

* एशियानेट फिल्म पुरस्कार, वनिता फिल्म पुरस्कार और विभिन्न लोकप्रिय सम्मान.

Urvashi

Rough Hair: रोका सेरेमनी में दिखना है खूबसूरत तो ऐसे ठीक करें रूखे बाल

Beauty Tips

मेरे बाल रफ और डैमेज होने के कारण सुंदर नहीं दिखाई देते जबकि मैं अपनी रोके की रस्म में खुले बाल रखना चाहती हूं, मैं क्या करूं?

आज की इस फास्ट लाइफ में बालों का डैमेज हो जाना आम बात है, ऐसे में अगर आप के पास अभी समय है तो आप हर 15 दिन पर हेयर स्पा ले सकती हैं. इस से शादी तक आप के बालों में शाइन आ जाएगी. साथ ही स्पा में यूज होने वाले प्रोडक्ट्स से बालों को पोषण मिलेगा और वे स्वस्थ भी हो जाएंगे.

अगर आप के पास समय नहीं है तो आप अस्थाई हेयर ऐक्सटैंशन से अपने बालों को खूबसूरत दिखा सकती हैं. अगर आप केवल रोके वाले दिन के लिए अपना हेयरस्टाइल बदलवाना चाहती हैं तो आप स्ट्रेट बाल वाला क्लिप औन ऐक्सटैंशन ले सकती हैं. उस के बाद आप शादी तक हेयर स्पा करवाती रहें.

मैं अपनी सगाई में अपने नेल्स सुंदर और बड़े रखना चाहती हूं जबकि मेरे नेल्स बेहद छोटे हैं. मुझे बताइए कि मैं अपने नेल्स को खूबसूरत बनाने के लिए क्या करूं?

आप यदि नाखून छोटे हैं तो पहले नेल ऐक्सटैंशन करवा लें. ये कुछ ही घंटों में नाखूनों को बढ़ाने की प्रक्रिया है. ये उन सभी लोगों के लिए वरदान है जिन के नाखून बढ़ते नहीं या फिर जल्दीजल्दी टूट जाते हैं. इस तकनीक के तहत टूटे हुए नाखूनों को फिर नैचुरल शेप में लाया जा सकता है.

यदि आप के नाखून छोटे हैं तो नेल ऐक्सटैंशन करवा कर आप जितनी मरजी चाहे उतनी लंबाई पा सकती हैं. नेल ऐक्सटैंशन किए गए नाखून दिखने में और काम करने में बिलकुल नैचुरल नाखून की ही तरह नजर आते हैं. इन नाखूनों को एक्रिलिक पाउडर और कुछ तरल पदार्थों से बनाया जाता है. इस से आप के नेल्स को मनचाहा आकार व लंबाई मिल जाती है.

इस में सब से पहले स्क्रब को पूरे शरीर पर लगा कर हलके हाथों से हलकेहलके रगड़ा जाता है और 10 मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है. स्क्रबिंग की मदद से बौडी की डैड स्किन निकल जाती है और साथ ही साथ टैनिंग भी रिमूव होती है. नैचुरल तरीके से बनाया गया ये स्क्रब त्वचा की रंगत को निखारने में सहायक होता है.

इस के बाद बौडी को वाश कर के उस पर स्किन ग्लो पैक लगाते हैं और सूख जाने के बाद इसे वाश कर के हटाया जाता है. इस के बाद बौडी शाइनर लगा कर त्वचा की 5 से 10 मिनट तक मसाज की जाती है. बौडी पौलिशिंग द्वारा त्वचा की मृत कोशिकाएं हटती हैं साथ ही टैनिंग भी रिमूव होती है जिस से त्वचा में कोमलता व निखार आता है. मसाज से होने वाली दुलहन स्ट्रैसफ्री फील करती है व बौडी रीलैक्स होती है.

मैं अपनी आंखों में लैंस लगाती हूं, मुझे यह सोच कर टैंशन हो रही है कि मेरी शादी होने के बाद मैं अपनी आंखों को सुंदर बना रहने के लिए आंखों में बारबार काजल और लाइनर कैसे लगाती रहूंगी?

आप की समस्या का हल है परमानैंट आई मेकअप. आंखों में कशिश लाने के लिए ही काजल और लाइनर का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन जब हम लैंस लगाते हैं तो लैंस लगाने के बाद अगर हम काजल या लाइनर लगाते हैं. वह कभीकभी अंदर चला जाता है और पहले लगा कर लैंस लगाते हैं तो यह फैल जाते हैं.

इसलिए जो लोग लैंस लगाते हैं उन के लिए परमानैंट काजल और लाइनर बैस्ट है, क्योंकि वह सारी उम्र वैसा का वैसा ही बना रहता है. इस से आप के टाइम की भी बचत होती है. इस तकनीक से लगाया गया लाइनर और काजल आप की आंखों को बिना किसी विशेष देखभाल के सालों तक आकर्षक बनाए रखता है.

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Serum आप की त्वचा का नया दोस्त

Serum: अकसर हम अपनी स्किन की देखभाल में फेसवाश, टोनर और क्रीम तक ही सीमित रहते हैं. लेकिन आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां धूप, धूल और स्ट्रैस हर दिन त्वचा पर असर डालते हैं सिर्फ क्रीम काफी नहीं होती. यहीं पर आता है सीरम, आप की स्किन का वह दोस्त जो चुपचाप लेकिन गहराई से काम करता है.

सीरम आखिर होता क्या है

सीरम असल में बहुत हलका लेकिन ताकतवर फौर्मूला होता है, जिस में ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट्स की मात्रा क्रीम या लोशन से कहीं ज्यादा होती है. यह त्वचा की गहराई तक जा कर काम करता है यानी ऊपर से नहीं बल्कि अंदर से सुधार लाता है. इस की कुछ बूंदें ही पूरे चेहरे पर असर दिखाने के लिए काफी होती हैं.

सीरम क्यों लगाना चाहिए

हमारी स्किन हर दिन बहुत कुछ झेलती है जैसे सूर्य की किरणें, प्रदूषण, मेकअप और स्टाइलिंग प्रोडक्ट्स तक. ऐसे में सिर्फ मौइस्चराइजर लगाना कभीकभी सतही देखभाल रह जाती है, जबकि सीरम स्किन की असली जरूरतों को पहचान कर सीधे उन पर काम करता है. अगर किसी को पिगमैंटेशन हैं तो ब्राइटनिंग सीरम, रिंकल्स हैं तो ऐंटीएजिंग सीरम और अगर पिंल्स की समस्या है तो क्लैरिफाइंग सीरम यानी हर जरूरत के लिए एक अलग सीरम बना है.

सीरम के बड़े फायदे गहराई तक असर: सीरम के बहुत छोटे कण स्किन की अंदरूनी परतों तक पहुंच कर सैल्स को पोषण देते हैं.

कम में ज्यादा फायदा: बस कुछ बूंदें काफी होती हैं, जिस से स्किन पर कोई हैवीनैस भी महसूस नहीं होती.

स्किन रिपेयर: इस में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट और विटामिस स्किन को डलनेस से बचाकर उसे फ्रैश और यंग बनाए रखते हैं.

एजिंग पर कंट्रोल: नियमित इस्तेमाल से झुर्रियां, फाइन लाइन्स और अनइवन टोन धीरेधीरे कम दिखने लगती है.

नेचुरल ग्लो: कुछ हफ्तों में ही स्किन का टैक्स्चर निखर जाता है और एक हलकी सी नैचुरल चमक आने लगती है.

आप के लिए कौनसा सीरम सही है

– अगर आप की स्किन ड्राई है तो ह्यालूरानिक ऐसिड या विटामिन ई वाला सीरम लीजिए जो नमी बढ़ाए.

– औयली स्किन वालों के लिए नियासिनामाइड या टी ट्री सीरम अच्छा रहेगा जो ऐक्सैस औयल कंट्रोल करे.

– पिगमैंटेशन या डलनैस में विटामिन सी या लीकोरिस सीरम बहुत असरदार होता है.

– अगर ऐजिंग साइन दिखने लगे हैं तो पैप्टाइड या रैटिनोल सीरम से बेहतर कुछ नहीं.

सीरम कब लगाना चाहिए

सीरम हमेशा साफ त्वचा पर लगाना चाहिए. चेहरा धोने के बाद जब स्किन थोड़ी सी नम हो तब 2-3 बूंदें हथेलियों में ले कर हलके हाथों से चेहरे और गरदन पर लगाएं. उस के बाद मौइस्चराइजर लगाएं ताकि सीरम की नमी लौक हो जाए. रात का समय सीरम के लिए सब से अच्छा होता है क्योंकि रात में स्किन खुद को रिपेयर करती है. आजकल हर्बल और आयुर्वेदिक बेस वाले सीरम बहुत ट्रेंड में हैं. इन में सैफरन रोज ऐलोवेरा ग्रीन टी या सैंडलवुड जैसे इनग्रीडिऐंट्स होते हैं जो स्किन को बिना कैमिकल्स के स्वस्थ चमक देते हैं. अगर आप की स्किन सैंसिटिव है तो ऐसे सीरम ज्यादा जैंटल रहते हैं.

जरूरी टिप्स

सीरम को कभी रगड़ें नहीं, बस हलके हाथों से टैप करें.

Serum

Junk Food: सेहत खराब कर सकता है जंक फूड

Junk Food: आजकल बच्चों और युवा पीढ़ी में जंक फूड खाने का क्रेज कुछ  ज्यादा ही बढ़ रहा है और उन की रोज जंक फूड खाने की आदत एक लत का रूप ले रही है और वे चाह कर भी इस से दूरी नहीं बना पा रहे है, जिस की वजह से वे मोटापे का शिकार हो रहे हैं और कम उम्र में ही बीमारियों से घिर रहे हैं. यदि आप जंक  फूड खाने की आदत से दूरी बनाना चाहते हैं तो यह जानकारी आप ही के लिए है.

हम सभी अकसर एकदूसरे से यह कहते रहते हैं या एकदूसरे के मुंह से सुनते रहते हैं कि क्या करूं यार यह आदत तो छूटती ही नहीं. चूंकि आदत को छोड़ना है इसलिए हम अकसर आदतों को नकारात्मक रूप में ही लेते हैं पर वस्तुत: ऐसा नहीं है. किसी व्यक्ति की दिनचर्या कैसी होगी, यह उस व्यक्ति की आदतें ही तय करती हैं.

हम सभी अपने रोजमर्रा के बहुत सारे काम अपनी आदतों के अनुसार ही करते हैं. फिर चाहे वह सुबह उठने या रात का सोने का समय हो, हम क्या खाते हैं, कैसा व्यवहार करते हैं यह सब हमारी आदतें ही तय कराती हैं इसीलिए आदतें अच्छी भी हो सकती हैं और बुरी भी.

यदि आदत अच्छी हो तो उस का सकारात्मक प्रभाव हमारे साथसाथ हमारे परिवार और समाज सभी पर पड़ता है, वहीं दूसरी ओर यदि आदतें बुरी हों, उन्हें नकारात्मक छोड़ना मुश्किल होता है. जैसे किसी को सुबह उठते ही चाय या कौफी चाहिए, रोज कितना ही अच्छा खाना भर पैट खा लें लेकिन जब तक कुछ जंक न खा लें जैसे समोसा, कचौड़ी, बर्गर, मीठा आदि मन ही नहीं भरता. यदि यह नहीं मिला तो उन्हें मजा ही नहीं आता. आजकल जंक फूड खाने की आदत युवा पीढ़ी में बहुत तेजी से बढ़ रही है और यह उन्हें कम उम्र में ही बीमार बना रही है.

लेकिन हमारी बुरी आदतें जिन्हें हम बदलना या छोड़ना चाहते हैं थोड़ी मुश्किल से ही छूटती हैं. तब अकसर हम यह कहते हैं कि कोशिश तो कर रहा/रही हूं लेकिन यह आदत तो छूटती ही नहीं. इस के पीछे क्या कारण है? आखिर क्या होती हैं आदतें? कैसे पड़ती हैं अच्छी या बुरी आदतें? क्यों हम आदतों के अनुसार करते हैं अपनी दिनचर्या? क्यों हम चाह कर भी नहीं बदल या छोड़ पाते आदतें? किस तरह हमारी आदतें जीवन या लाइफ को प्रभावित करती हैं? क्यों हम आदतों को छोड़ने के बाद भी पुन: उन्हीं आदतों को अपना लेते हैं? आइए, जानते हैं विस्तार से:

आदत वास्तव में एक व्यवहार है कोई भी नियमित रूप से दोहराया जाने वाला व्यवहार, जिस के लिए अधिकांशत: किसी विचार की आवश्यकता नहीं होती है और जो जन्मजात होने के बजाय पुनरावृत्ति या बारबार दोहराने के माध्यम से विकसित होती है और फिर वह काम बिना सोचेविचारे अपनेआप या स्वत: ही होने लगता है जैसे जो बच्चे रोज जंक फूड खाते हैं उन्हें इस की लत लग जाती है. फिर जंक फूड एक लत के तौर पर उन की एक जरूरत बन जाती है, जिस का परिणाम यह होता है कि जब तक वे इसे खा नहीं लेते बेचैन बने रहते हैं और उन की यह बेचैनी गुस्से और चिड़चिडाहट के रूप में बाहर आती है.

आखिर क्या होती हैं आदतें

यह तो हम सभी जानते हैं कि आदत अच्छी भी होती है और बुरी भी लेकिन जब हम व्यवहार के कारण भविष्य में होने वाले दुष्परिणामों की जानकारी होने के बाद भी उस व्यवहार की पुनरावृत्ति या बारबार दोहराते हैं तो हम उसे बुरी आदत या व्यसन कहते हैं. तब उस लत/व्यसन के व्यव्हार को दोहराना हमारी मजबूरी बन जाता है.

कोई भी आदत जन्म से नहीं आती. उसे हम धीरेधीरे ही सीखते हैं, साथ ही कोई भी चीज सीखने का सीधा संबंध हमारे दिमाग या मस्तिष्क से होता है. जो भी हम सीखते हैं वह मस्तिष्क में स्टोर होता रहता है. सीखने के विभिन्न तरीकों में से एक प्रमुख चीज जोकि हमारी आदतों के लिए जिम्मेदार होती है वह है प्रतिफल आधारित पद्धति (रिवार्ड बेस्ड लर्निंग). मनोवैज्ञानिक एडवर्ट थोर्नडायिक के प्रभाव के नियम पर आधारित यह रिवार्ड बेस्ड लर्निंग हमारी आदतों के लिए जिम्मेदार होती है.

क्या है रिवार्ड बेस्ड लर्निंग

जिस अनुभव या कार्य से हमें संतोष या प्रसन्नता का अनुभव होता है हम उस अनुभव को पाने के लिए उस कार्य को बारबार करने के लिए प्रेरित होते हैं और तब हम उस काम को बारबार करते हैं. बस यहीं से आदत का जन्म होता है और इस पूरी आदत का हमारा मस्तिष्क एक न्यूरल नैटवर्क बना देता है और यह समय के साथ और मजबूत होता जाता है. जैसे हमारी जंक  फूड खाने की आदत हम ने उसे पहली बार खाया या चखा यदि हमें मजा आ गया तो उसे बारबार खाने की इच्छा होगी. तब ऐसा संभव है कि आप उसे रोज खाने लगें. तब वह धीरेधीरे बारबार दोहराने से आप की आदत बन जाएगा क्योंकि उसे लेने के बाद तात्कालिक या थोड़ी देर के लिए संतोष या प्रसन्नता का अनुभव होता है पर यह स्थाई नहीं होता.

लेकिन उसी अनुभव को पाने के लिए रोज जंक  फूड सेवन करते हैं तब मस्तिष्क में उस के न्यूरौंस नैटवर्क मजबूत होते जाते हैं और तब रोज जंक फूड का सेवन करना उन की आदत बन जाता है उन्हें पता ही नहीं चलता है और जब इस बुरी लत या व्यसन को छोड़ने की बारी आती है तब वह काफी मुश्किल भरा हो सकता है या हो जाता है.

क्यों गुलाम हो जाते हैं हम बुरी आदतों के

हमारा मस्तिष्क एक बेहद जटिल कार्यप्रणाली से सक्रिय रहता है और हमारा शरीर मस्तिष्क के आदेशों के अनुसार ही कार्य करता है. मस्तिष्क में 86 अरब न्यूरौंस होते हैं और हम जो कुछ भी अनुभव करते हैं या देखते हैं अथवा सीखते हैं वह सब हमारा मस्तिष्क न्यूरौंस के नैटवर्क या पैटर्न बना कर स्टोर करता है और किसी कार्य की पुनरावृत्ति से उस कार्य का नैटवर्क हर पुनरावृत्ति के साथ और मजबूत होता जाता है.

जैसे जब हम कार या स्कूटर चलाना सीखते हैं तब हमारा पूरा ध्यान उस के हैंडल या कार के स्टीयरिंग पर होता है क्योंकि हमारे मस्तिष्क में उस की जानकारी का न्यूरौन नैटवर्क नहीं बना होता है लेकिन जब हम रोज कार या स्कूटर चलने का अभ्यास करते हैं तब हमारे मस्तिष्क में ड्राइविंग का एक न्यूरौंस पैटर्न बन जाता है जो ड्राइविंग की आवश्यक जानकारी एवं कौशल को स्टोर करता है. बारबार ड्राइविंग करने से यह नैटवर्क या न्यूरौन का पैटर्न मजबूत होने लगता है और लगातार ड्राइविंग का अभ्यास करने से हमारे मस्तिष्क में यह पैटर्न मजबूत हो कर लगभग स्थाई हो जाता है,

ऐसी स्थिति में फिर वह काम अपनेआप बिना सोचेविचारे ही होने लगता है. तब हम ड्राइविंग करने में ऐफीसिएंट हो जाते हैं और हमारा मस्तिष्क औटो मोड में पहुंच जाता है.

ठीक ऐसा ही नैटवर्क हमारी जंक खाने की आदतों का भी बनता है जो एक बार मस्तिष्क में मजबूत हो जाने के बाद हमें औटो मोड पर रखता है, जिस की वजह से हम जब भी खाना देखेंगे या खाएंगे तो सिर्फ जंक फूड ही खाने की इच्छा होगी या हमारा हाथ उस ओर कब बढ़ जाएगा, कब खा लेंगे पता भी नहीं चलेगा. तब हमारा मस्तिष्क औटो मोड में पहुंच जाता है. जैसे आप के सामने एक तरफ जंक फूड, चाटपकौड़ी रखी है और दूसरी ओर हैल्थी खाना तब हम यहां जंक फूड को ही चुनते हैं. ऐसा क्यों होता है? आखिर क्यों हम बुरी आदतों के गुलाम हो जाते हैं? आइए, जानते हैं:

कारण 1: मिलता है तात्कालिक आनंद

हमारा दिमाग विकासवादी तौर पर तात्कालिक आनंद या इंस्टैंट ग्रैटिफिकेशन की ओर अधिक आकर्षित होता है. इस कारण इंस्टैंट लाभ के लिए हम लौंग टर्म या दीर्घकालिक फायदों या दुष्परिणामों को नजरअंदाज कर देते हैं. चूंकि जंक फूड का असर तुरंत होता है खाने के बाद हमें बहुत अच्छा लगता है जोकि तात्कालिक आनंद या उत्तेजना के रूप में महसूस होता है. लेकिन इसे रोज खाने से हम मोटापे, ब्लड प्रैशर, शुगर जैसी बीमारियों से पीडि़त हो सकते हैं. उस के बाद भी हम उसे खाना पसंद करते हैं.

हम उस आदत के लौंग टर्म या दीर्घकालिक दुष्परिणामों को नजरअंदाज कर देते हैं. जैसे इंस्टैंट प्लेजर का हमारे रोजमर्रा जीवन में अकसर होने वाला एक उदाहरण बेहद आम है. आज रात आप ने निर्णय लिया कि कल सुबह मैं जल्दी उठूंगा/उठूंगी और सैर करने जाऊंगा/जाऊंगी लेकिन सुबह होते ही आप ने अपना निर्णय बदल लिया. आज और देर तक सो लेता हूं कल से जल्दी उठूंगा/उठूंगी. यहां हम ने इंस्टैंट प्लेजर के लिए सुबह सैर के लौंग टर्म फायदे को नजरअंदाज कर दिया और और इंस्टैंट प्लेजर के लिए देर तक सोने का आनंद लेना पसंद किया.

कारण 2 : हारमोंस और कैमिकल का बनना

जब हम स्वाभाविक रूप से खुश होते हैं या प्रसन्नता व संतोष का अनुभव करते हैं तो हमारे मस्तिष्क में कुछ विशेष हारमोंस और कैमिकल बनता है, जिस के कारण हमें खुशी महसूस होती है. ठीक ऐसा ही जंक फूड खाने के बाद होता है हम खुशी का अनुभव करते हैं और हैप्पी हारमोन निकलता है और यदि भूख लगने पर नहीं मिले तो मन बेचैन हो जाता है.

इस बेचैनी से छुटकारा पाने के लिए इस न्यूरल नैटवर्क को दोहराना मजबूरी हो जाती है और इस तरह से जंक फूड खाने की आदत का एक अंतहीन लूप बन कर रह जाती है.

तो आखिर ऐसा अच्छी आदतों के साथ क्यों नहीं होता? इसलिए कि अच्छी आदतें कभी भी इंस्टैंट प्लेजर या तुरंत आनंद नहीं देतीं. वे सिर्फ लौंग टर्म फायदे ही देती हैं.

कारण 3 : जब न हो समय या हों अकेले

आजकल की भागमभाग वाली लाइफ में कई बार हमें खाना बनाने का वक्त ही नहीं मिलता या हम अकेले रहते हैं तो खाना बनाने का मन नहीं करता. सोचते हैं जो आसानी से और अच्छा मिल रहा है वहीं खा लेते हैं. यह नहीं सोचते कि यह फूड नुकसान करेगा या फायदा. तब हम मजबूरी में जंक फूड से दोस्ती कर लेते हैं. किंतु लंबे समय इस का सेवन सेहत के लिए नुकसानदायक होता है. तब हम जंक  फूड खाने के दुष्परिणामों को नजरअंदाज कर देते हैं.

लेकिन यदि हम शरीर को लंबे समय तक स्वस्थ रखना चाहते हैं तो इस के लिए आप चाहे तो टिफिन सैंटर या अपने घर के आसपास किसी रैस्टोरैंट में जा कर सादा या हैल्दी फूड का मजा ले सकते हैं, साथ ही छुट्टी के दिन घर पर अपनी पसंद का हैल्दी खाना भी बना सकते हैं और उस का मजा ले सकते हैं.

‘द पावर औफ हैबिट’ बुक के लेखक चाल्स दुहीग्ग के अनुसार, न सिर्फ बुरी आदत को बदलना मुश्किल होता है बल्कि नई अच्छी आदतें बनाना भी मुश्किल होता है क्योंकि अच्छी आदतों का नया व्यवहार पुरानी आदत में हस्तक्षेप करता है और आप के मस्तिष्क को औटो मोड में जाने से रोकने का प्रयास करता है पर मस्तिष्क में पूर्व से विद्यमान या स्टोर आदत का मजबूत नैटवर्क नए व्यवहार को अपने प्रयास में कामयाब नहीं होने देता है.

अपनी बुरी आदतों को इन तरीकों से  बदला जा सकता है:

आत्मबल या विल पावर के बल पर किसी भी बुरी आदत को छोड़ने के लिए आत्मबल यानी विल पावर पर ही जोर दिया जाता रहा है. यह विल पावर मांसपेशियों की तरह होती है. एक तो इसे लगातार अभ्यास से मजबूत बनाना होता है दूसरा अत्यधिक प्रयोग से जिस तरह मांसपेशियों में थकान आ जाती है और वे कार्य नहीं कर पातीं ठीक उसी प्रकार आत्मबल भी एक पौइंट के बाद कमजोर हो जाता है. यही कारण है कि इच्छाशक्ति के दम पर छोड़ी गई आदत 90त्न से 95% मामलों में वापस आ जाती है. अत: इच्छाशक्ति से आदतें बदली तो जा सकती हैं पर पुनरावृत्ति की संभावना बनी रहती है.

रिवार्ड वैल्यू से मशहूर एडिकशन ऐक्सपर्ट डा. जड़सन ब्रेवर ने अपनी किताब ‘अनवाइंडिंग ऐंग्जायटी’ में आदतों को ले कर एक महत्त्वपूर्ण तथ्य पेश किया. उन के अनुसार, जब भी हम कोई अनुभव लेते हैं तो उस अनुभव से मिलने वाले आनंद एवं संतोष के आधार पर हमारा मस्तिष्क उस अनुभव की एक रिवार्ड वैल्यू अंकित करता है और बारबार के अनुभव के आधार पर यह वैल्यू और मजबूत होती जाती है. चूंकि सभी बुरी आदतें हमें इंस्टैंट या तात्कालिक/क्षणिक संतोष/सुख या प्रसन्नता देती हैं. अत: हमारा मस्तिष्क उन की रिवार्ड वैल्यू अधिक दर्ज करता है. यही कारण है कि हमें केक या ऐप्पल में से किसी एक को चुनना हो तो हम केक को चुनेंगे क्योंकि हम पहले भी कई बार केक और ऐप्पल खाने का अनुभव ले चुके हैं और उन अनुभवों के आधार पर हमारे मस्तिष्क में केक की रिवार्ड वैल्यू ऐप्पल के मुकाबले अधिक रिकौर्ड की गई है. चूंकि ऐप्पल के बैनिफिट हमें लौंग टर्म या दीर्घकाल के बाद मिलने की संभावना रहती है तो उस की रिवार्ड वैल्यू केक से तुलनात्मक रूप से कम रहती है,

यदि हम विल पावर यानी इच्छाशक्ति के दम पर अपनी आदत को नहीं बदल पा रहे हैं तो हमें उस आदत की रिवार्ड वैल्यू को कम करना होगा या उस के किसी अल्टरनेटिव की रिवार्ड वैल्यू को बढ़ाना होगा, साथ ही इमोशंस को पहचानना होगा जो हमें जंक फूड खाने के लिए आदत की पुनरावृत्ति हेतु उकसा रहे हैं.

आदत की रिवार्ड वैल्यू कम करने में वर्षों नहीं तो कम से कम कुछ महीने तो लगना स्वाभाविक है. इस दिशा या कार्य के लिए प्रत्यनशील रहें. आप को सफलता अवश्य मिलेगी और आप जंक फूड खाने की आदत से अवश्य दूरी बनाने में कामयाब होंगे.

Junk Food

Love or Career: किसे चुनें पहले लव या कैरियर

Love or Career: प्यार और शादी के माने बहुत ऊपर हैं. लेकिन क्या इतने ऊपर कि इन पर कैरियर की बलि चढ़ा दी जाए? नहीं न. पहले शादी करने को इतनी अधिक प्राथमिकता दी जाती थी कि लड़का हो या लड़की उन के कैरियर के बारे में ज्यादा सोचा नहीं जाता था और आज भी यह स्थिति इतनी सुधरी नहीं. वह इसलिए कि पहले परिवार शादी के नाम पर बच्चों के कैरियर को किनारे कर देते थे और अब बच्चे प्यारमुहब्बत के नाम पर खुद को फेल्योर बना लेते हैं.

आज जहां परिवार बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए हर अच्छे कोचिंग सैंटर, काउंसलिंग और स्कूलकालेज के दरवाजे खटका रहे हैं बच्चे उन्हीं दरवाजों से भीतर जा एक आशिक या दिलजला बन निकल रहे हैं. यंग ऐज में किसी दूसरे की तरफ आकर्षण और प्यार स्वाभाविक है और इस में कोई दोष भी नहीं. मगर उस रुझन को आप खुद पर इतना हावी भी न होने दें कि उस के गुलाम ही बन जाओ क्योंकि इस उम्र का प्रेम कितने दिन टिकेगा इस का कोई ठीक नहीं.

इसलिए अपने इश्क को अपने ही जीवन की रुकावट मत बनने दें. जो समय आप प्रेम प्रसंग और शादी के सपने लेने में गवां रहे है यह वही समय है जब एक कैरियर की नींव रखी जाती है. तो इस समय को यों प्रेम की मौसमी हवाओं में न उड़ाएं वरना आप भी गीता की तरह आगे बढ़ने के बजाय पीछे आ जाएंगी या समीर की तरह टौपर से फेलयोर. नौट सो स्मार्ट गीता और अर्जुन स्कूल टाइम से साथ थे. फिर कालेज और प्यार. जहां अर्जुन को कालेज से निकल बड़ी मुश्किल से जौब मिली वहीं गीता को एक यूएस कंपनी से औफर आया, जिस से गीता बहुत खुश थी. सब सैट था सिर्फ पासपोर्ट नहीं. गीता ने कंपनी से थोड़ा समय मांग. पासपोर्ट के लिए अप्लाई कर दिया. जल्द ही पासपोर्ट औफिस से डौक्यूमैंटेशन की डेट भी आ गई.

लेकिन गीता को नहीं पता था कि डेट के दिन अर्जुन एक नन्हे बच्चे की तरह उस का हाथ पकड़ रोने लगेगा. गीता के हाथ में डौक्यूमैंट थे और पासपोर्ट औफिस का गेट बस 10 कदम की दूरी पर. मगर 10 कदम के बीच अर्जुन उस का हाथ पकड़ सड़क पर बैठे रो रहा था. ‘‘प्रौब्लम क्या है अर्जुन?’’ ‘‘अगर तुम चली गई तो मैं अकेला क्या करूंगा या तुम ने वहां किसी और को पसंद कर लिया तो अथवा यहां मेरी शादी और किसी से हो गई तो? नहीं मुझे छोड़ कर मत जाओ. प्लीज, यहीं कोई नौकरी कर लो. तुम्हें बड़े आराम से नौकरी मिल जाएगी. तुम तो मुझ से कहीं ज्यादा स्मार्ट हो.’’ मगर गीता अर्जुन से स्मार्ट नहीं निकली. उस ने अपना फैसला बदल दिया और अर्जुन के पास रुक गई.

आज वही गीता अर्जुन से बहुत पीछे है. उसे अर्जुन से अच्छी नौकरी तो मिली लेकिन अर्जुन से शादी के बाद उसे 2 बार नौकरी चेंज करने पड़ी. एक तो अर्जुन की जौब पोस्टिंग की वजह से और दूसरी प्रैगनैंसी की वजह से. कैरियर में 2 बड़े बदलाव गीता को भारी पड़े और वह आज अर्जुन से बहुत पीछे हो गई. जो अर्जुन पहले उसे ज्यादा स्मार्ट होने की दुहाई देता था आज वही उसे कहता है, ‘‘गीता यह किचन इतनी फैली क्यों है? अरे बेबी का सामान ठीक से रखा करो. बिल्स पेमैंट तो बेबी के साथ घर बैठे कर ही सकती हो. पता है वह अपना सुनील था न, उस की वाइफ लंदन जा रही है. अच्छी जौब मिली है उसे. बहुत खुश था वह. उन की तो लाइफ सैट हो गई. और वह कालेज की श्वेता उसे तीसरी प्रोमोशन मिली है. ग्रोथ के लिए तुम भी थोड़ा स्मार्ट वर्क किया करो.’’

एक सैलरी काफी नहीं फाइनल ऐग्जाम हुए ही थे कि सुधा के मांबाप उस के लिए लड़का देखने लगे और रिजल्ट आने तक उस की शादी भी हो गई. शादी के कुछ दिन बाद ही सुधा ने दिनेश से कहा कि वह नौकरी करना चाहती है. उस की बात सुन दिनेश नाराज हुआ और उस को ताना मार कहा, ‘‘तुम्हारी ऐसी कौन सी जरूरत मेरी तनख्वाह पूरी नहीं कर रही कि तुम्हें नौकरी करने की सूझ?’’ और फिर यही ताना दिनेश के घर वालों ने भी मारा जब दिनेश ने उन्हें सुधा की नौकरी करने की बात बताई. परिवार का ताना खा सुधा ने अपनी चाह दबा ली. समय बीता और सुधा ने एक बच्ची को जन्म दिया. नाम रखा वर्षा. दिनेश की नौकरी अच्छी चल रही थी और ससुरजी की नौकरी भी.

मगर कुछ साल बाद कुछ ऐसा हुआ कि सबकुछ उलटपलट गया. ससुरजी की तबीयत ऐसी खराब हुई कि उन्हें नौकरी छोड़ घर पर बैठ आराम करना पड़ गया. एक लंबी छुट्टी पर होने की वजह से कुछ दिन बाद ही उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. अब घर का सारा खर्चा सिर्फ दिनेश के सिर आ गया. दिनेश जैसेतैसे सब संभाल लेता. लेकिन जैसेजैसे वर्षा बड़ी हो रही थी खर्चे भी बढ़ रहे थे.

वर्षा के प्ले स्कूल तक फीस तो निकल जाती थी लेकिन अब रैग्युलर स्कूल की एडमिशन फीस और डोनेशन तो उधार पर हो गया लेकिन हर महीने की फीस उस का क्या? घर की आर्थिक तंगी बढ़ती जा रही थी और सुधा का धैर्य घटता जा रहा था. एक सुबह सुधा को अच्छे से तैयार होता देख उस की सास ने पूछा, ‘‘कहां चल दी.’’ सुधा ने पर्स में पानी की बोतल और लंच रख कहा, ‘‘आज से नौकरी करने जा रही हूं. यहीं पास में ही मिल गई है. खाना बना दिया और कपडे़ भी धो कर सूखने डाल दिए हैं.’’ सुधा के सासससुर उस की बात सुन हैरान थे कि तभी दिनेश एकदम चिल्लाया, ‘‘ऐसी भी क्या जरूरत आ पड़ी जो नौकरी करनी है?’’ सुधा ने उसे एक लिस्ट पकड़ा दी और कहा, ‘‘घर का यह सामान पापा की दवाई और वर्षा की पिछले 2 महीने की फीस बाकी है. बस यहीं जरूरत आ पड़ी. लेकिन ठीक से देखो. इस में मेरी कोई जरूरत नहीं क्योंकि तुम्हारी सैलरी और कर्ज मेरी हर जरूरत तो पूरी कर देते हैं लेकिन इस पूरे परिवार की नहीं.’’ प्रिय से अप्रिय होना प्रिया समीर की जान थी.

समीर कालेज का टौपर लड़का जो हमेशा हर चीज में टौपर रहा. आज वह इंटरव्यू में सब से पीछे था. इंजीनियरिंग के फाइनल ऐग्जाम सिर पर थे. सब को यही उम्मीद थी कि समीर ही टौप करेगा और फिर एक बड़ी कंपनी में हाई पेड सैलरी उस का स्वागत करेगी. मगर हुआ कुछ उलटा ही. समीर का स्वागत तो हुआ लेकिन किसी कंपनी में नही बल्कि थाने में. प्रिया जो समीर की गर्लफ्रैंड थी की अचानक सगाई फिक्स हो गई. जब समीर को यह पता चला तो उस ने प्रिया से बहुत बहस की. प्रिया जो यह कहती थी कि वह समीर से प्यार करती है आज उस से खुद बोल रही थी कि वह सब एक अट्रैक्शन था जो खत्म हो गया.

इसलिए समीर को उसे भूल जाना चाहिए. लेकिन समीर यह सब नहीं समझ पा रहा था और न भूल. वह खुद को दिनरात शराब में डुबोए रहता. उस के दोस्तों ने, परिवार ने, यहां तक कि प्रोफैसर ने भी बहुत कोशिश की लेकिन वह अपने दर्द से बाहर नहीं निकल पाया और यही दर्द उसका फाइनल ईयर खा गया. न उस ने कोई पढ़ाई की और न कोई ऐग्जाम दे पाया. लाइफ में फेल्योर बनने का दर्द उसे नशे के साथ सड़क पर ले आया और फिर थाने. बड़ी मुश्किल से परिवार और दोस्तों ने थाने और कालेज वालों के हाथपांव जोड़ उसे दूसरा मौका देने को मनाया.

1 साल बरबाद होने के बाद समीर फिर से ऐग्जाम में बैठ तो पाया लेकिन अंकों में आगे नहीं निकल पाया. टौप करने वाला लड़का सिर्फ पास होने लायक ही अंक जुटा पाया. आज उन ही अंकों को लिए वह अपने 10वें इंटरव्यू में सब से पीछे बैठा है. गंभीरता को समझें इन छोटी कहानियों से हम कोई ज्ञान नहीं देना चाहते लेकिन हां जीवन की सचाई जरूर दिखाना चाहते हैं. आप में से बहुत से युवाओं ने यह सचाई अपने आसपास के लोगों या किसी करीबी को जीते देखी भी होगी.

इसलिए आप इस बात की गंभीरता को समझ और अपने कैरियर पर ध्यान दो. हम यह भी नहीं कहते कि प्रेम से आंखें ही मूंद लो लेकिन आंखें इतनी भी तो खुली रखो कि अपना अच्छाबुरा देख सको क्योंकि अब वह समय चल रहा है जहां प्रेम प्रसंगों, शादी के ख्वाबों की जगह कैरियर को प्राथमिकता दी जाए. वैसे भी असली प्रेम वही होता है जहां दोनों का हर रूप में विकास हो, भविष्य सुधरे और वे एकदूसरे को आगे बढ़ने में मदद करें. एक अच्छा कैरियर केवल अच्छे पैसे कमाने का जरीया ही नहीं बनता बल्कि खुद को स्वतंत्र, मजबूत और संतुष्ट भी बनाता है.

साथ एक अच्छा कैरियर आप को दुनिया की बहुत सी खुशी ला सकता है और हां प्रेम भी क्योंकि अगर आप सफल होंगे तो आप को जीवन में बहुत से सुंदर लोग और रिश्ते मिलेंगे. दोनों ही एकदूसरे के बोझ से दबे रहेंगे और यह तर्क दोनों लड़का और लड़की के लिए है. आज लड़की का इंडिपैंडैंट होना उतना ही जरूरी है जितना लड़के का है क्योंकि आज की जीवनशैली और जरूरतें बहुत बदल और बढ़ चुकी हैं जो किसी एक के जिम्मे नहीं हैं.

एक व्यक्ति का अपना खर्च ही इतना है कि कभीकभी उस की आमदनी स्वयं की पूर्ति के लिए कम पड़ जाती है तो अन्य का भार कोई कैसे उठाएगा और अगर आप इतने काबिल हो. पढ़ीलिखी हों तो क्यों किसी पर आप को आश्रित होना है. आप स्वयं क्यों नहीं इंडिपैंडैंट बनतीं? एक सफल कैरियर न केवल आप का स्वयं का विश्वास बढ़ाएगा बल्कि आप के साथी और बाकी परिवार का भी आप पर विश्वास मजबूत करेगा.

Love or Career

Instant Food और वैंडिंग मशीनें, किचन से आजादी

Instant Food: आज का जमाना तेजी से बदल रहा है. पहले जहां रसोई का काम महिलाओं की सब से बड़ी जिम्मेदारी माना जाता था, वहीं अब वक्त और जरूरतें दोनों बदल चुके हैं. महिलाएं अब सिर्फ घर तक सीमित नहीं रहीं. वे नौकरी कर रही हैं, पढ़ाई कर रही हैं, बच्चों की देखभाल कर रही हैं और साथ ही खुद के लिए भी कुछ कर रही हैं. ऐसे में उन के लिए सब से बड़ा बोझ होता है रोजरोज का खाना बनाना. यही वजह है कि अब इंस्टैंट फूड और फूड वैंडिंग मशीनें एक नया विकल्प बन कर उभरी हैं जो न सिर्फ समय बचाती हैं बल्कि उन्हें रसोई के बंधन से कुछ हद तक फ्री भी करती हैं.

इंस्टैंट फूड का मतलब होता है ऐसा खाना जिसे बहुत जल्दी, कम मेहनत में तैयार किया जा सके. जैसे रैडीमेड उपमा मिक्स, नूडल्स, इंस्टैंट खिचड़ी, रैडी टू कुक परांठा जिसे सिर्फ गरम करना हो और उसी बरतन में खाना हो. ये सब चीजें अब हर मिडल क्लास घर में दिखने लगी हैं. पहले लोग इन्हें बाजारू और बिना पोषण वाला मानते थे लेकिन अब कंपनियां भी इन्हें हैल्दी, स्वादिष्ठ और घरेलू स्टाइल में बनाने लगी हैं ताकि महिलाओं को लगे कि ये भी घर के बने जैसे ही हैं. अब बात करें वैंडिंग मशीनों की तो ये मशीनें पहले सिर्फ चायकौफी या स्नैक्स देने के लिए जानी जाती थीं लेकिन अब इस में भी बड़ा बदलाव आ गया है.

आजकल ऐसी फूड वैंडिंग मशीनें तैयार हो चुकी हैं जो गरम खाना जैसे छोलेकुलचे, राजमाचावल, डोसा, यहां तक कि बिरयानी तक सर्व करती हैं. इन्हें इस्तेमाल करना भी बेहद आसान है. बस स्क्रीन पर और्डर सलैक्ट करो, पेमैंट करो और मिनटों में गरमगरम खाना सामने. इस से न तो बरतन गंदे होते हैं, न ही रसोई का झंझट होता है. औरतों के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं. घरों के लिए कारगर इस का एक अच्छा उदाहरण है दिल्ली का ‘चख दे छोले.’ इसे सागर मल्होत्रा नाम के युवक ने शुरू किया जो पहले एक बैंक में नौकरी करता था और बाद में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई भी की थी.

उस ने देखा कि लोगों को जल्दी में स्वादिष्ठ, साफ और हैल्दी खाना नहीं मिलता. इसी बात को ध्यान में रख कर उस ने छोलेकुलचे की वैंडिंग मशीन बनाई जो सिर्फ 60 सैकंड में गरमगरम छोलेकुलचे सर्व करती है. इस में औटोमैटिक सिस्टम है जो न तो खाने में हाथ लगाता है और न ही गंदगी करता है. आज दिल्ली के कई इलाकों में उस की मशीनें चल रही हैं और बहुत लोग इस से खाना खा कर संतुष्ट हैं. इसी तरह यूके की एक मां सारा बाल्स्डन ने लौकडाउन के दौरान अपने घर में एक छोटी वैंडिंग मशीन लगाई. उस ने अपने बच्चों को घर के छोटेछोटे काम करने के बदले पौइंट्स दिए और फिर उन्हीं पौइंट्स से बच्चे मशीन से चौकलेट या स्नैक्स खरीदते थे. इस से बच्चों में जिम्मेदारी आई और मां को बारबार उन के लिए नाश्ता बनाने की जरूरत नहीं रही.

इस से हम देख सकते हैं कि वैंडिंग मशीन सिर्फ औफिस या मार्केट के लिए नहीं बल्कि घरों के लिए भी कारगर साबित हो सकती हैं. खाने की सब से बड़ी खासीयत समय की बचत: आजकल की महिलाएं चाहे वर्किंग हों या हाउसवाइफ, सभी के पास समय की कमी है. सुबह बच्चों को स्कूल भेजना, खुद औफिस जाना या घर के दूसरे काम करना, सबकुछ एक समय में करना होता है. ऐसे में अगर रसोई का काम आसान हो जाए तो उन का बहुत बड़ा तनाव कम हो सकता है.

उदाहरण के लिए सुबह का नाश्ता तैयार करने में आमतौर पर 45 मिनट से 1 घंटा लग जाता है. लेकिन अगर इंस्टैंट उपमा मिक्स हो या मशीन से डोसा मिल जाए तो यही काम 10-15 मिनट में हो सकता है. ऊर्जा की बचत: रसोई का काम सिर्फ समय नहीं बल्कि शरीर की भी कड़ी मेहनत मांगता है. गरमी में चूल्हे के सामने खड़ा रहना, सब्जियां काटना, बरतन धोना ये सब बहुत थकाने वाले काम हैं. खासतौर पर बुजुर्ग महिलाएं या स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां झेल रहीं महिलाएं इन कामों से बहुत परेशान रहती हैं. ऐसे में अगर उन्हें झटपट खाना मिल जाए तो उन का शरीर भी आराम कर सकता है और मानसिक तनाव भी कम होता है. साफसफाई और स्वच्छता: आज के समय में लोग खाने की सफाई और हाइजीन को ले कर बहुत जागरूक हो गए हैं. वैंडिंग मशीनें पूरी तरह से सील्ड और औटोमैटिक होती हैं.

खाना किसी इंसान के हाथ से नहीं छूता और हर प्रक्रिया मशीन के अंदर होती है. कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि इंस्टैंट फूड या मशीन वाला खाना घर के ताजे खाने जैसा नहीं होता. यह बात कुछ हद तक सही भी है लेकिन अब तकनीक इतनी आगे बढ़ गई है कि मशीनों से निकला खाना भी घर जैसा स्वाद देने लगा है. साथ ही अब कंपनियां देसी खाने को भी मशीन में डालने लगी हैं जैसे छोलेकुलचे, राजमाचावल, खिचड़ी आदि. इस के अलावा आजकल बाजार में हैल्दी इंस्टैंट फूड भी आने लगे हैं जैसे मल्टीग्रेन डोसा, बाजरा उपमा, ओट्स इडली आदि. इंस्टैंट फूड का बाजार अब भारत में भी फैलता जा रहा है.

इन में एमटीआर फूड्स, टाटा संपन्न, हल्दीराम, आईटीसी किचन और बिकानो समेत कई ऐसे ब्रैंड्स हैं जो आएदिन नईनई फूड आइटम्स को एड करते हैं और लोग बड़े चाव से इन्हें खरीदते और खाते हैं. स्मार्ट जीवनशैली हालांकि अभी भी वैंडिंग मशीनें हर शहर या गांव में उपलब्ध नहीं हैं. यह सुविधा अभी शहरों तक ही सीमित है. इस के अलावा मशीन की लागत भी ज्यादा है, इसलिए हर कोई इसे खरीद नहीं सकता. कुछ मशीनें अगर खराब हो जाएं तो उन्हें ठीक कराने में समय और पैसा दोनों लगते हैं. फिर भी धीरेधीरे ये चीजें सुलभ होती जा रही हैं और आने वाले 5-10 सालों में ये आम घरों का हिस्सा बन सकती हैं. किचन में मशीनें लगाना या इंस्टैंट फूड खाना कोई शर्म की बात नहीं बल्कि यह एक समझदारी और स्मार्ट जीवनशैली की पहचान बन चुका है.

वैंडिंग मशीन और इंस्टैंट फूड ने औरतों को एक हद तक किचन से फ्री कर दिया है. अब वे चाहें तो अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती हैं, जौब पर ध्यान दे सकती हैं या सिर्फ अपने लिए थोड़ा वक्त निकाल सकती हैं बिना इस डर के कि गैस जल रही है या सब्जी जल गई. यह बदलाव धीरेधीरे ही सही लेकिन एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन लाने वाला है और इस परिवर्तन का सब से बड़ा फायदा मिल रहा है घर की महिलाओं को.

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