Kusha Kapila ने शेयर किया वजन घटाने के जुनून का दर्दनाक अनुभव

Kusha Kapila : एक्ट्रेस और सोशल मीडिया में पौपुलर कुशा कपिला अक्सर सोशल मीडिया पर अपने बोल्ड अंदाज और अतरंगी वीडियोज को लेकर चर्चा में बनी रहती है. हाल ही में उनके वेट लॉस ट्रांसफॉरमेशन ने सभी को हैरान कर दिया लेकिन उन्होंने अपने वीडियो में अपने गलत ढंग से वजन कम करने की दर्दनाक जर्नी को लेकर कुछ खुलासे किए जिसने सबको चौका दिया.जो ऐसे लोगों के लिए सबक है जिन्हें लगता है कि भूखे रहकर ज्यादा से ज्यादा वजन कम किया जा सकता है. लेकिन उसके साइड इफेक्ट क्या हो सकते हैं, उसका बुरा अनुभव कपिला ने सबके सामने शेयर किया है.

कपिला के अनुसार मैं शुरू से ही अपने वजन को लेकर सचेत रहती थी इसलिए मैंने जबरदस्त डाइटिंग करके दसवीं क्लास में अपना 20 किलो वजन कम कर लिया था , उस वक्त मेरे ऊपर अच्छे से अच्छा दिखने का जुनून सवार था. लिहाजा जब मैं पतली हुई तो सब ने मेरी बहुत तारीफ की लेकिन खाने पीने में लापरवाही करते ही मैं फिर से मोटी होने लगी, इसके बाद मैंने दोबारा और कड़क डाइटिंग की जिसमें मैं पूरा-पूरा दिन कुछ भी नहीं खाती थी और ज्यादा से ज्यादा डाइट में 800 से 900 कैलोरी तक का ही खाना लेती थी.

इसका नतीजा यह हुआ की धीरे-धीरे मेरी इम्यूनिटी कमजोर होने लगी , पेट में ट्यूमर की समस्या हो गई. यहां तक की बहुत ज्यादा कमजोरी होने की वजह से मुझे टीबी की बीमारी ने भी घेर लिया. इसके बाद मुझे काफी लंबे समय तक बीमारी से गुजरना पड़ा. लेकिन मैंने बाद में सही इलाज करके अपने आप को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया. अब 33 की उम्र में मैंने फिर से एक बार वजन कम करने की प्रक्रिया शुरू की है लेकिन भूखे रहकर नहीं, बल्कि सही डाइट और सही फिटनेस ट्रेनिंग लेकर जिसका मुझे बहुत अच्छा रिजल्ट मिल रहा है. और कमजोरी का एहसास भी नहीं हो रहा. मैं अपनी दर्दनाक वेटलॉस जर्नी के जरिए यही कहना चाहती हूं कि वेटलॉस करना बुरा नहीं है अगर उसका तरीका सही हो ,जो मुझे बाद में समझ आया.

Tips For Handbag : ऐसे करें ब्रैंडेड हैंड बैग की साफसफाई

Tips For Handbag :  हैंड बैग का फैशन सालों से स्त्रियों में रहा है। किसी भी अवसर पर पोशाक से मैच करते हुए बैग कैरी करना एक स्टाइल स्टैट्मेंट हुआ करता है. आज ये केवल ऐक्सैसरीज ही नहीं, बल्कि पर्सनैलिटी को निखरने में भी अहम भूमिका निभाते हैं. इस में भी आजकल ब्रैंडेड बैग्स लेने का प्रचलन बढ़ा है। पहली नौकरी मिलते ही आज के यूथ एक अच्छी सी बैग खरीद लेते हैं, क्योंकि नियमित प्रयोग में लाई जाने वाली चीजों में खूबसूरत हैंगबैग या पर्स जरूरी बन चुका है, जिस में वे हर छोटीबड़ी चीजों को रखना पसंद करते हैं.

मगर कुछ दिनों बाद ये मैले हो कर गंदे दिखने लगते हैं. कई बार तो इन में बैक्टीरिया पनपने का भी डर बना रहता है.

इन स्टाइलिश बैग्स का दाम हजार से लाखों में होते हैं, जिसे बारबार खरीदना संभव नहीं होता. इसलिए सही रखरखाव करने पर सालों तक आप इस का प्रयोग कर सकते हैं.

अगर आप के पास लग्जरी बैग्स का अच्छाखासा कलैक्शन है, जिन्हें आप लंबे समय तक प्रयोग करना चाहते हैं और ये गंदे हो गए हैं, तो उन्हें साफ करने के कुछ खास टिप्स निम्न हैं :

फालतू कागज को हटाएं

समयसमय पर बैग्स की सफाई करना बहुत जरूरी होता है। सब से पहले बैग में रखे फालतू कागज के टुकङों को हटा दें। ये बैग को अंदर से काफी गंदा करते हैं, इतना ही नहीं इन की वजह से बैग में सामान रखने की जगह की भी कमी होती है.

समयसमय पर करें सफाई

कोशिश करें कि हफ्ता या 15 दिन में एक बार अपने हैंगबैग या पर्स की सफाई जरूर करें. इस के लिए एक बाउल में हलका गरम पानी लें और उस में 1 चम्मच माइल्ड सोप मिक्स कर दें. दोनों चीजों को अच्छी तरह मिक्स करने के बाद उस पानी में एक कपड़ा डालें और उसे अच्छी तरह निचोड़ लें.

अब इस कपड़े से पर्स के बाहरी हिस्से की अच्छी तरह सफाई करें. ध्यान रखें कि इस दौरान बैग को अधिक गीला नहीं करना है. लक्जरी बैग्स को वाशिंग मशीन में डाल कर साफ कभी न करें, इस से बैग की मैटेरियल खराब हो सकते हैं.

औयल के दाग को करें साफ

कई बार बैग में खानेपीने की चीजों को रख देते हैं जिस की वजह से बैग अंदर से औयली हो जाता है। इसे हटाने के लिए बैग में पेपर या फिर ब्लोटिंग पेपर का इस्तेमाल कर धीरेधीरे औयल को सोख लें, बाद में दागधब्बों को दूर करने के लिए टेलकम पाउडर छिड़क दें. 10 मिनट बाद उसे किसी साफ कपड़े से पोंछ दें. इस से तेल का निशान धीरेधीरे खत्म हो जाएगा.

सौफ्ट कपड़े का करें प्रयोग

बैग को समयसमय पर ड्राईक्लीन करते रहना चाहिए, इस से बैग क्लीन रहता है। ड्राईक्लीन आप खुद घर पर ही कर सकते हैं। इस के लिए बैग से सारा सामान निकाल लें, फिर सौफ्ट सूती कपड़े से इस की सफाई कर लें.

हार्ड ब्रश को करें अवौइड

हार्ड कैमिकल वाले डिटर्जेंट या साबुन का प्रयोग कभी न करें। माइल्ड साबुन या शैंपू से इसे साफ करना अच्छा होता है, क्योंकि हार्ड कैमिकल से बैग की सतह को नुकसान पहुंच सकता है. ब्रैंडेड बैग्स की सफाई करते समय हार्ड ब्रश का इस्तेमाल कभी न करें.

न रखें धूप में

हैंगबैग या फिर पर्स को पानी से धोने की गलती न करें. कई बार लड़कियां इसे धोने के बाद धूप में रख देती हैं, इस की वजह से कलर फेड हो जाता है. इसलिए अपने हैंडबैग को धूप से बचा कर रखें. इस के अलावा नमी वाले स्थानों से भी इसे बचा कर रखें ताकि फंगस और फफूंदी न लगें.

नौर्मल टैंपरेचर में रखना जरूरी

ब्रैंडेड बैग्स लंबे समय तक चलें, इस के लिए रखरखाव का खास ध्यान देने की जरूरत है. कई बार सही से इसे नहीं रखने से मौसम के बदलाव के साथसाथ, दागधब्बे लग जाते हैं. इसलिए बैग को हमेशा साफ और नौर्मल टैंपरेचर में रखें.

हैंड बैग के अंदर कपड़ा होता है, जिसे पानी और डिटर्जेंट से साफ किया जा सकता है, लेकिन सही तरीके से इसे न साफ करने पर पानी बैग के दूसरे भाग में जाने की संभावना रहती है. दागधब्बे को हटाने के लिए हेयर स्प्रे करें और उसे अच्छी तरह से रब कर तुरंत साफ कर दें। दागधब्बे अधिक पुराने होने पर उन्हें निकालना मुश्किल होता है.

बदबू का करें निवारण

अगर आप के पर्स से गंधी बदबू आ रही है, तो इस के लिए बेकिंग सोडा का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के लिए एक पैकेट में बेकिंग सोडा भर कर उसे हैंड बैग में रख दें और फिर 24 घंटे के लिए छोड़ दें. इस से बदबू चली जाएगी. इस के अलावा आप चाहें तो हैंड बैग के अंदर हलका परफ्यूम स्प्रे कर सकते हैं. ऐसा करने से हैंड बैग से अच्छी खुशबू भी आती रहेगी.

इस प्रकार इन सभी टिप्स को अपना कर आप अपने महंगे ब्रैंडेड हैंड बैग को काफी समय तक अपने पास सुरक्षित तरीके से रख सकते हैं.

Skin Care Tips : पाना चाहती हैं ग्लोइंग स्किन, तो अपनाएं ये आसान टिप्स

Skin Care Tips : अगर सुंदर और जवां दिखने की चाहत रखती हैं तो आपको कुछ सिंपल टिप्‍स अपनाने होंगे, जिससे आप साफ, अंदर से ग्‍लोइंग और खिली खिली त्वचा पा सकें. तो आइए जानते त्वचा की सफाई से संबंधित कुछ खास टिप्स के बारें में.

1. सफाई का तरीका

जैसा कि हम सभा जानते हैं शरीर में स्‍किन पोर के दा्रा पसीना निकलता है. इसलिये अपनी स्‍किन पोर को हमेशा खुला रखने के लिये ऐसे क्रीम और लोशन का प्रयोग करें जो पोर्स को बंद ना कर के बल्कि उन्‍हें खुला रखें. ऐसा करने के लिए रोजाना अपनी स्‍किन को क्‍लींजर से साफ करें और फिर फेस वाश से धो लें. कोशिश करें कि रात को सोते समय अपनी त्वचा पर किसी भी प्रकार की क्रीम ना लगाएं. कभी-कभी स्‍किन को सांस लेने के लिये भी छोड़ देना चाहिये.

2. ड्राय बौडी ब्रश

यह बेहतरीन तरीका स्‍किन से गंदगी को निकालने का अच्‍छा काम करता है. यह रक्त परिसंचरण और लसीका प्रणाली को बढ़ा देता है. इसके प्रयोग से आपको ग्‍लोइंग स्‍किन मिलेगी और शरीर से डेड स्‍किन भी हटेगी. इस तरह से आप साफ और चमकने लगेंगी और आपके स्‍किन पोर्स भी खुल जाएंगे.

3. बौडी स्‍क्रब

हफ्ते में एक बार अपने शरीर को स्‍क्रब करना बहुत ही जरुरी है. इससे रूखी और मृत्‍य त्‍वचा साफ हो जाती है, जिससे स्‍किन ग्‍लो करने लगती है. आप चाहें तो दाल के पाउडर को स्‍क्रब के रूप में प्रयोग कर सकती हैं. इससे स्‍किन पोर्स खुल जाएंगे.

4. क्‍ले पैक

त्‍वचा से गंदगी को साफ करने और उसे चमकदार बनाने में क्‍ले पैक बहुत फायदेमंद होता है. क्‍ले पाउडर लीजिये और उसमें थोड़ा सा ग्‍लीसरीन मिलाइये. इस पेस्‍ट को पूरे शरीर पर लगाइये और जब सूख जाए तब छुड़ा लीजिये. इस तरह से आप स्‍वस्‍थ्‍य और सुंदर त्‍वचा पा सकती हैं.

5. एप्‍पल साइडर वेनिगर

यह ना केवल हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के लिये ही अच्‍छा माना जाता है बल्कि त्‍वचा को सुंदर बनाने में भी लाभदायक है. नहाने के लिये एक बाल्‍टी गरम पानी में आधा कप वेनिगर मिलाइये और इससे नहाइये. अगर अच्‍छा रिजल्‍ट चाहिये तो इस विधि को हफ्ते में तीन बार कीजिये. यह आपको एक्‍ने से राहत दिलाएगा और खूबसूरत व जवां बनाएगा.

Paneer Chilla Recipe : नाश्ते में बनाएं टेस्टी पनीर का चीला, बस फौलो करें ये स्टेप्स

Paneer Chilla Recipe : पनीर का चीला स्‍वादिष्‍ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होता है. इसमें बेसन का भी इस्‍तेमाल होता है, इसलिए बेसन पनीर चीला भी कहते हैं. तो आज आपको पनीर चीला बनाने की विधि बताते हैं. इसे जरूर ट्राई कीजिए.

हमें चाहिए:

– बेसन (200 ग्राम)

– पनीर (75 ग्राम)

– प्याज 2 (बारीक कटा हुआ)

– लहसुन 6-7 कली (बारीक कटा हुआ)

– हरी मिर्च  04 (बारीक कटी हुई)

– हरा धनिया ( 01 छोटा चम्मच)

– लाल मिर्च (01 छोटा चम्मच)

– सौंफ ( 01 छोटा चम्मच)

– अजवायन ( 01 छोटा चम्मच)

– तेल ( सेंकने के लिये)

– नमक ( स्वादानुसार)

– अदरक ( 01 छोटा चम्मच)

बनाने का तरीका

– सबसे पहले पनीर को कद्दूकस कर लें और इसके बाद बेसन को छान लें.

– फिर उसमें पनीर के साथ सारी सामग्री मिला लें.

– अब मिश्रण में थोड़ा-थोड़ा पानी डालते हुए उसका घोल बना लें.

– यह घोल पकौड़ी के घोल जैसा होना चाहिए, न ज्यादा पतला, न ज्यादा गाढ़ा.

– घोल को अच्छी तरह से फेंट लें और फिर उसे 15 मिनट के लिए ढ़क कर रख दें.

– अब एक नौन स्टिक तवा गरम करें और तवा गरम होने पर 1/2 छोटा चम्मच तेल तवा पर डालें और उसे पूरी सतह पर फैला दें.

– ध्यान रहे तेल सिर्फ तवा को चिकना करने के लिये इस्तेमाल करना है. अगर तवा पर तेल ज्यादा लगे,   तो उसे तवा से पोंछ दें.

– तवा गरम होने पर आंच कम कर दें और 2-3 बड़े चम्मच घोल तवा पर डालें और गोलाई में बराबर से        फैला दें. चीला की नीचे की सतह सुनहरी होने पर उसे पलट दें और उसे सेंक लें.

– इसी तरह सारे चीले सेंक लें, अब  आपकी पनीर चीला बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

Marriage : मेरी शादी होने वाली है, ससुराल में मेरी लाइफ कैसी रहेगी इसको लेकर मुझे चिंता हो रही है

Marriage : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल

मैं 25 साल की हूं और जल्द ही मेरी शादी होने वाली है. शादी के बाद ससुराल में मेरी जिंदगी कैसी होगी, यह सवाल मुझे बहुत परेशान करता है. ऊपर से खुश हूं लेकिन अंदर ही अंदर यह डर खाए जा रहा है. इस तनाव को कैसे दूर करूं?

जवाब

शादी के बाद विशेषकर एक लड़की की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है. नई जिम्मेदारियों का खयाल अकसर तनाव का कारण बनता है. लेकिन यह आप को मानसिक रूप के साथसाथ शारीरिक रूप से भी बीमार कर सकता है. शादी जैसे माहौल में विशेषकर दूल्हादुलहन का पौजिटिव रहना बेहद जरूरी है. इस के लिए सब से पहले खुद को इन सब सवालों से मुक्त कर दें. रोज हैल्दी नाश्ता करें क्योंकि यह आप को पूरे दिन ऐक्टिव रहने में मदद करता है. फाइबर, हरी सब्जियां, फलों और ड्राई फ्रूट्स का सेवन अवश्य करें. दिनभर ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. दोस्तों के साथ समय बिताएं और हंसीमजाक में शामिल हों. इस से आप को तनाव से मुक्ति मिलेगी.

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जल्द ही मेरा निकाह होने वाला है. घर में तरहतरह के लोग आ कर मुझे तरहतरह की सीख दे कर जाते हैं. यह माहौल मेरे तनाव का कारण बन गया है. इस कारण मैं अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकलती हूं, तो मम्मी चिल्लाने लगती हैं. मैं ये सब बातें और बरदाश्त नहीं कर सकती. इस तनाव को कैसे दूर करूं?

आप का परेशान होना स्वभाविक है लेकिन यदि आप अपने परिवार वालों के सामने अपनी बात रखेंगी तो वे इसे जरूर समझेंगे. उन्हें बताएं कि कैसे लोगों की बातें आप को परेशान कर रही हैं. वे कोई न कोई हल जरूर निकालेंगे. इस के अलावा आप लोगों की बातों से बचने के लिए काम का बहाना बना सकती हैं. यदि कोई अच्छी सीख दे रहा है तो अवश्य लें लेकिन यदि आप को लगता है कि इस से आप सिर्फ तनावग्रस्त हो रही हैं तो उन्हें प्यार से यह बात समझएं. तनाव से बचने के लिए दिनभर अच्छी गतिविधियों में शामिल हों. अच्छा खाएं, अच्छा पीएं. सुबह उठ कर व्यायाम करें.

डाक्टर गौरव गुप्ता
साइकोलौजिस्ट, डाइरैक्टर,
तुलसी हैल्थकेयर

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Hindi Story Online : प्यार की चाह – क्या रोहन को मिला मां का प्यार

लेखिका- वीना टहिल्यानी

 Hindi Story Online :  झल्लाई हुई निशा ने जब गाड़ी गैरेज में खड़ी की तो रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी. ‘रवि का यह खेल पुराना है,’ वह काफी देर तक बड़बड़ाती रही, ‘जब भी घर में किसी सोशल गैदरिंग की बात होगी, वह बिजनैस ट्रिप पर भाग खड़ा होगा, अब भुगतो अकेले.’

‘तुम चिंता न करना, मेरा सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा.’

‘हूं,’ सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा. कार्ड बांटने और इनवाइट करने तो पर्सनली ही जाना पड़ता है न.’

‘न जाने पार्टी के नाम से उसे इतनी चिढ़ क्यों है? महेश ने विदेश जाने पर पार्टी दी थी तो अरविंद ने विदेश से लौटने की. राघव की बेटी रिंकी को फिल्मों में हीरोइन का चांस मिला तो पार्टी, भाटिया ने फिल्म का मुहूर्त किया तो पार्टी. अपनी सुधा तो कुत्तेबिल्लियों के जन्मदिन पर भी पार्टी देती है. इधर एकलौते बेटे का जन्मदिन मनाना भी खलता है. फिर इन्हीं पार्टियों की बदौलत सोशल स्टेटस बनता है. सोशल कौंटैक्ट्स बनते है,’ पर रवि के असहयोग से अपने किटी सर्किल में निशा पार्टीचोर के नाम से ही जानी जाती थी. इसी कारण वह तमतमा उठी.

‘‘मेमसाब, खाना गरम करूं?’’  मरिअम्मा ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं खा कर आई हूं,’’ पर्स पलंग पर फेंक कर निशा बाथरूम में घुस गई.

‘इतना भी नहीं कि एक फोन ही कर दे. 1-1 बजे तक बैठे रहो इंतजार में,’ मन ही मन भुनभुनाते हुए रामआसरे ने टेबल पर रखा सामान हटाया, किचन साफ किया और पिछवाड़े अपने क्वार्टर में चला गया.

मरिअम्मा अपने कमरे में ऊंघ रही थी. रोहन का कमरा नाइटलैंप के नीले प्रकाश में नहाया था. दबेपांव जा कर निशा ने बड़ा सा चमकीला गुलाबी गिफ्टपैक रोहन की स्टडी टेबल पर रख दिया, फिर उस के ऊपर जन्मदिन का कार्ड भी लगा दिया, रोहन के बिस्तर के ठीक सामने.

‘उठते ही सामने उपहार देख कर वह कितना खुश होगा,’ उस ने सोचा.

एक बार तो निशा के दिल में आया कि सोते बेटे को सहलाए, पुचकारे, पर फिर कुछ सोच कर वह ठिठक गई. जाग गया, तो साथ सुलाने की जिद करेगा. साथ सोया तो सुबह मुझे भी उस के साथ जल्दी उठना पड़ेगा. नहीं, नहीं, कल रात तो पार्टी है. अभी नींद पूरी न की तो सिर भारी और चेहरा रूखारूखा सा लगेगा. देररात गए से ले कर सुबह सूरज उगने तक चलने वाली ये हाईफाई पार्टियां तो वैसे भी अघोषित सौंदर्र्य प्रतियोगिताओं सी होती हैं. निशा भला अकारण ही किसी से उन्नीस लगने का जोखिम क्यों उठाती. धीरे से बेटे के कमरे का दरवाजा बंद करती वह अपने कमरे में चली गई.

निशा थकान से चूर थी. पहले जागरूक महिला मंडल की मीटिंग, फिर क्लब में किटी, ऊपर से घरघर जा कर कार्ड बांटने का झमेला, सुबह से मुसकरातेमुसकराते उस के जबड़े दर्द करने लगे थे.

‘दरजी ने ब्लाउज आज भी नहीं दिया. कल बैंक से जड़ाऊ सैट भी निकालना था, ओह,’ तनाव से उस का सिर फटा जा रहा था. करवटें बदलतेबदलते वह उठ बैठी और एक सिगरेट सुलगा ली. फिर सोचने लगी.

‘यह रोहन भी दिनोंदिन कैसा घुन्ना होता जा रहा है. बिलकुल अपने बाप पर गया है, कार में स्कूल नहीं जाना, जिद कर के स्कूलबस लगवा ली है. खेलेगा तो कालोनी के बच्चों के साथ, साथ में मरिअम्मा को भी नहीं ले जाना. अब जन्मदिन पर भी न दोस्तों को बुलाना है न टीचरों को. कितना कहा, सब को एकएक कार्ड पकड़ा दो. अच्छीभली दावत, साथ में रिटर्न गिफ्ट्स भी. आने वाले तो उपकृत हो कर ही जाते. पर कहां, नहीं बुलाना तो नहीं बुलाया. किसी बात की ज्यादा जिद करो, तो बस, रोना शुरू.’

निशा ने सिगरेट का गहरा कश ले कर ढेर सारा धुआं उगला.

‘इस बार रवि पर भी नजर रखनी होगी. पीने की आदत नहीं, तो 2 पैग पी कर ही बहकने लगते हैं महाशय. पिछली बार कैसा तमाशा खड़ा किया था, उस के हाथ की सुलगी सिगरेट खींच कर बोला कि डार्लिंग, तुम्हारी गोलगोल बिंदी और लाल गुलाब जैसी साड़ी के साथ यह सिगरेट तो जरा भी मैच नहीं करती. हूं, मैच नहीं करती… मेहमानों के जाते ही मैं ने भी उस की वह खबर ली कि सारा नशा काफूर कर दिया. पर भरी सभा में उस की बेइज्जती को याद कर निशा आज भी तिलमिला जाती है. अंतिम लंबे कश के साथ उस ने अप्रिय यादों और तनावों को झटकने का प्रयास किया. सिगरेट को जोर से दबा कर बुझाया. नींद की गोली ली और चली सोने.

‘‘हैप्पी बर्थडे, सनी,’’ मरिअम्मा का स्वर सुनाई पड़ा. साथ ही ‘कुक्कू’ क्लाक के मधुर अलार्म का स्वर भी.

आंखें खुलते ही रोहन की नजर गिफ्टपैक पर रखे कार्ड पर पड़ी. नजरभर देखे बिना ही वह अलसा कर फिर से ऊंघने लगा.

‘‘उठो बाबा, उठो, स्कूल को देरी होगा,’’ आवाजें लगाती मरिअम्मा उस के कपड़े निकाल रही थी.

बाथरूम से निकल कर रोहन ने मां के कमरे में झांका ही था कि मरिअम्मा ने घेर लिया. दबी आवाज में समझाती बोली, ‘‘शशश, चलो बाबा, चलो, मम्मी जाग गया तो बहुत गुस्सा होगा. रात कितनी देर से सोया है. चलोचलो, तैयार हो, बस निकल जाएगा,’’ वह उस का हाथ पकड़ वापस अपने कमरे में ले आई.

कपड़े देख कर रोहन अड़ गया, ‘‘मैं ये नए कपड़े नहीं, स्कूल की यूनिफौर्म ही पहनूंगा.’’

‘‘क्यों बाबा, आज तो तुम्हारा हैप्पी बर्थडे है. स्कूल में भी नया कपड़ा पहन सकता है. मेमसाब बोला है. हम को भी 2 जोड़ा नया कपड़ा लाया है. एक, स्कूल में पहनने के वास्ते और दूसरा, रात की पार्टी के वास्ते,’’ प्यार से पुचकारती मरिअम्मा उसे मनाने लगी.

‘‘नहीं, नहीं, नहीं. बोला नहीं पहनूंगा. तो नहीं पहनूंगा,’’ नए कपड़ों को एक ओर पटक कर अलमारी से स्कूल की ड्रैस निकाल रोहन बाथरूम में घुस गया.

अब वह मरिअम्मा को कैसे समझाए कि नए कपड़े पहन कर स्कूल जाने से उस के सारे दोस्त समझ जाएंगे कि आज उस का बर्थडे है.

‘मैं ने तो उन्हें इनवाइट भी नहीं किया,’ रोहन ने सोचा.

पिछले साल की पार्टी की गड़बड़ रोहन को आज भी याद थी. पापा को नशा कुछ ज्यादा हो गया था. उन्होंने मम्मी के हाथ की सिगरेट छीनी तो रोहन का दिल धक से रह गया. ‘अब होगा झगड़ा,’ उस ने सोचा. लेकिन मम्मी मधु आंटी से बातें करती रही थीं. पर, पार्टी के बाद की वह जोरदार लड़ाई उफ…’

मां का सिगरेट पीना रोहन को भी असमंजस में डाल देता है.

वह सोचने लगता है, ‘विक्की की मम्मी तो सिगरेट नहीं पीतीं, रेनू की मां भी नहीं, शाहिद की अम्मी भी नहीं, फिर मम्मी ही क्यों. पापा मना करें तो लो, हो गया झगड़ा.’

‘आज तो मेरी बस निकल ही जाती, यह तो रेनू की मम्मी ने दूर से ही मुझे देख लिया और ड्राइवर को रोके रखा. आंटी कितनी अच्छी हैं, रोज रेनू का बैग उठा कर उसे बसस्टौप पर छोड़ने, फिर लेने भी आती हैं. कीर्ति के साथ उस के दादा आते हैं और निधि के साथ उस के पापा. लेकिन ये सब तो छोटे हैं. मैं, मैं तो कितना बड़ा हो गया हूं, फिर भी मम्मी मरिअम्मा को साथ भेज देती हैं.’

पहले तो रोहन का भी मन करता था कि मम्मी उस के साथ आएं बसस्टौप तक. बस, एक दिन के लिए ही सही. पर कहां? मम्मी को तो कितने काम होते हैं, कितनी सोशल सर्विस करनी पड़ती है. रेनू, छवि, पवन उन सब की मम्मियां तो सिर्फ हाउसवाइफ हैं, बस, घर का काम करो और आराम से रहो. सोशल क्लब जौइन करना पड़े तो पता चले. मम्मी ने ही सब समझाया था.

फिर भी रोहन सोचता, ‘काश, उस की मम्मी भी केवल हाउसवाइफ ही होतीं. या फिर उस के दादादादी ही उस के साथ रहते, जैसे कीर्ति और विक्की के रहते हैं. फिर तो मजा ही मजा होता. वे उस के साथ बाग में खेलते, बातें करते, बसस्टौप तक छोड़ने आते. पर दादादादी का आना मम्मी को जरा भी नहीं भाता. फिर वे हर समय गुस्से में रहती हैं. पापा से भी झगड़ती हैं, मुझे भी डांटती हैं.’

दादी तो उसे अपने साथ ही सुलाती थीं. सितारों और परियों की कहानियां भी सुनाती थीं, पर मम्मी कहती हैं, ‘बच्चों को अलग कमरे में सोना चाहिए. हर समय मां का आंचल पकड़े रहने वाले बच्चे कमजोर और दब्बू बन जाते हैं, जैसे तुम्हारे पापा हैं.’

रोहन को पापा का उदाहरण अखरता है, ‘पापा तो कितने स्मार्ट, कितने हैंडसम हैं, पर क्या वे सचमुच मम्मी से डरते हैं? क्या वे सच में दब्बू हैं?’

हर तरह की सोच से परे उस का मन फिर भी मचलता ही रहता है, मम्मीपापा के साथ उन के बीच सोने को. तकिया फेंकफेंक कर उन के साथ खेलने को, पर नहीं, अब तो वह कितना बड़ा हो गया है, पूरे 11 साल का. अब तो वह मम्मीपापा के साथ सोने की जिद भी नहीं करेगा, कभी नहीं.

रोहन स्कूल से लौटा तो लौन में शामियाना लग चुका था. पेड़पौधों पर बिजली के रंगबिरंगे छोटेछोटे बल्बों की कतारें झूल रही थीं. बरामदा और हौल रंगबिंरगे गुब्बारों व चमकतीदमकती झालरों से सजेधजे थे. रोहन ने दौड़ कर मम्मीपापा के कमरे में झांक कर कहा, ‘‘मरिअम्मा, पापा कहां हैं?’’

‘‘उन का फ्लाइट लेट है बाबा, अब वह तुम को सीधा पार्टी में ही मिलेगा,’’ मरिअम्मा ने कहा.

‘‘और मम्मी?’’ कहता हुआ रोहन रोने को हो उठा.

‘‘वह तो टेलर के पास गया है. वहां से फिर ब्यूटीपार्लर जाने का, देर से लौटेगा. अब तुम हाथमुंह धो कर खाना खाने का, फिर आराम कर के जल्दीजल्दी होमवर्क फिनिश करने का. फिर तुम्हारा हैप्पी बर्थडे होगा. बड़ाबड़ा केक कटेगा.’’

‘‘नहीं खाना मुझे खाना, नहीं करना होमवर्क,’’ मरिअम्मा को धकेलता रोहन धड़ाम से पलंग पर जा पड़ा. यह देख मरिअम्मा हैरान रह गई.

‘‘गुस्साता काहे रे. अरे, तू ने तो अपना गिफ्ट भी खोल कर नहीं देखा, खोलोखोलो. देखोदेखो, मम्मी रात तुम्हारे वास्ते क्या ले कर आया. अभी पापा भी अच्छाअच्छा खिलौना लाएगा,’’ मरिअम्मा ने राहुल को समझाया.

‘‘नहीं चाहिए मुझे खिलौने. मैं अब बड़ा हो गया हूं,’’ मरिअम्मा के हाथ से गिफ्टपैक छीन कर रोहन ने बाथरूम के दरवाजे पर दे मारा और सुबकने लगा.

डरी हुई मरिअम्मा पलभर तो शांत रही, फिर धीरेधीरे उस का सिर सहलाती उसे पुचकारनेमनाने लगी, ‘‘मेरा अच्छा बाबा. मेरा राजा बेटा. अब तो तू बड़ा हो गया रे, रोते नहीं. रोते नहीं बाबा. अपने जन्मदिन पर कोई रोता है क्या?’’ उसे समझातेमनाते मरिअम्मा की आवाज भी भर्रा गई, ‘‘उठ, उठ जा मुन्ना. मेरा अच्छा बच्चा, चल, खाना खाएं होमवर्क करें. देरी हुआ तो मेमसाब मेरे को गुस्सा करेगा कि हम तेरा ध्यान नहीं रखता.’’

रोहन का सुबकना थम गया. आंखें चुराता, मुंह छिपाता वह बाथरूम में चला गया.

एक मरिअम्मा ही है जो उसे प्यार करती है, उस का इतना ध्यान रखती है. फिर भी मम्मी उसे डांटती ही रहती हैं. पहले वाली वह रोजी, उफ, कितनी गंदी थी, चुपकेचुपके उसे चिकोटी काटती, उस का चौकलेट खा जाती. उस का दूध पी जाती और बसस्टौप पर रोज उस का बौयफ्रैंड भी उस से मिलने आता. मम्मी से शिकायत की, पापा को पता चला तो घर में कितना हंगामा हुआ था. पापा ने तो यहां तक कह दिया था, ‘तुम से एक बच्चा तो संभलता नहीं, करती हो समाजसेवा. रोहन को आज से तुम ही देखोगी, रोजी की छुट्टी है.’

मम्मी का क्लब, किटी आदि सब बंद हो गया. वे हर समय गुस्सातीझल्लाती रहतीं. घर में रोज लड़ाई होती. फिर एक दिन मरिअम्मा आ गईं.

मरिअम्मा सच में अच्छी हैं. उसे कहानियां सुनाती हैं, उस के साथ खेलती हैं, उसे प्यार भी करती हैं.

खाना खा कर रोहन लेटा तो जरूर, पर उस की सभी इंद्रियां मम्मीपापा के इंतजार में सचेत थीं.

‘पापा अभी तक नहीं आए. मम्मी अभी और कितनी देर लगाएंगी? मम्मीपापा हमेशा इतने बिजी क्यों रहते हैं?’

अचानक ही रोहन को बैग में रखी ‘जादू की पुडि़या’ की याद आई. उस दिन बस में 12वीं कक्षा के किशोर के दोस्तों की सभा जमी थी. झुरमुट में फुसफुसाते वे जोरजोर से ठहाके लगा रहे थे, ‘अरे, जादू है जादू, जबान पर रख लो तो मन की सभी मुरादें पूरी.’

‘एक पुडि़या मुझे भी दो न,’ बस में चढ़ते रोहन ने फुसफुसाते हुए फरमाइश की.

‘तू क्या करेगा रे, अभी तू मुन्ना है, मुन्ना, थोड़ा बड़ा हो ले, फिर मौज मारना,’ कह कर किशोर के दोस्तों ने ठहाका लगाया था.

‘अरे, दे दे न मुन्ना को, अपना क्या जाता है,’ राकेश ने आंख दबा कर रोहन की सिफारिश करते हुए कहा था.

‘चल, निकाल 25 रुपए, औरों के लिए 50-100 से कम नहीं, पर तू

तो अभी बच्चा है न, बिलकुल नयानवेला, नन्हामुन्ना. बच्चू, मजा न आए तो कहना.’

लेकिन रोहन न ही इतना नन्हामुन्ना था और न ही पूरा बेवकूफ.

किशोर उस के स्कूल का दादा था. उस ने किशोर और उस के साथियों को दरवाजे के पास खड़े आइसक्रीम वाले से बहुत सारी पुडि़याएं खरीदते देखा था. सफेद पाउडरभरी उन पुडि़याओं में कैसा जादू था, वह खूब जानता था. फिर भी उस ने वह पुडि़या खरीद ली. खरीदने के बाद लगा, वह उसे फेंक दे, पर नहीं फेंकी. संभाल कर बैग के अंदर वाली जिप में रख ली.

रोहन मम्मीपापा के बारे में सोच ही रहा था पर तभी उसे उस पुडि़या का ध्यान आया. उस ने उठ कर बैग खोल कर देखा. पुडि़या ज्यों की त्यों रखी थी. पुडि़या निकाल कर रोहन कुछ पल

उसे घूरता रहा, फिर उसे बैग में रख कर लेट गया.

‘‘बाबा, ओ बाबा, उठो. देखो शाम हो रही है,’’ मरिअम्मा ने रोहन को पुकारा.

रोहन ने आलस में आंखें खोलीं तो मरिअम्मा प्यार से मुसकरा उठी.

‘‘उठो बाबा, होमवर्क करना है. तैयार होना है. फिर मेहमान आना शुरू हो जाएगा.’’

रोहन तुरंत एक झटके में ही उठ बैठा और पूछा, ‘‘मम्मी आ गईं, मरिअम्मा?’’

‘‘आ गया, बाबा. वह तो सब से पहले तुम्हारे पास ही आया, पर तुम सोता था,’’ मरिअम्मा ने जवाब दिया.

रोहन ने दौड़ कर मां के कमरे में झांक कर कहा, ‘‘मम्मी तो नहीं हैं, मरिअम्मा.’’

‘‘वह नहाता होगा बाबा, पार्टी के लिए सजना है न. अब तुम भी जल्दी करो, देरी हुआ तो मेमसाब नाराज होगा.’’

होमवर्क खत्म कर रोहन फिर से मां के कमरे की ओर भागा, पर दरवाजा तो अंदर से बंद था. रोहन समझ गया मम्मी अब मेकअप कर रही होंगी और मेकअप करते समय कोई डिस्टर्ब करे, यह उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं. हारे कदमों से रोहन वापस आ गया.

‘‘अरे, रोहन बाबा, तुम अभी इधर ही बैठा है, चलोचलो, नहा लो, तैयार हो जाओ. देखो, तुम्हारा नया कपड़ा भी निकाल दिया,’’ मरिअम्मा ने कहा.

‘‘पापा अभी तक नहीं आए, मरिअम्मा?’’

‘‘आते ही होंगे बाबा,’’ मरिअम्मा ने बिलकुल सफेद रूमाल रोहन की जेब में रखते हुए कहा.

‘‘चलो बाबा, अब पार्टी का टाइम हो गया. मेमसाब वहीं मिलेगा.’’

‘‘तुम जाओ मरिअम्मा, मैं आ जाऊंगा.’’

‘‘देखो, देरी नहीं करना, जल्दी से पहुंच जाना,’’ जातेजाते मरिअम्मा ने एक बार फिर रोहन के बाल संवारे और उसे प्यारभरी नजरों से देखती बाहर चली गई.

शाम होते ही बंगला रंगारंग रोशनी में नहा उठा. रात गहराते ही रौनक बढ़

गई. मेहमान आने शुरू हो गए. चहकतेमहकते, मुसकराते, सजेधजे मेहमान, आंखों ही आंखों में एकदूसरे को आंकते मेहमान, बातों ही बातों में एकदूसरे को नापते मेहमान.

‘‘रवि आज भी नदारद है, निशा,’’ हरीश ने कहा.

‘‘उस के वही बिजनैस ट्रिप्स, फिर हमारी यह बेटाइम चलने वाली एअरलाइंस, बस, आता ही होगा,’’ मनमोहनी मुसकान के साथ निशा ने सफाई दी.

‘‘रोजरोज के ये बिजनैस ट्रिप्स. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं, निशा?’’ हरीश ने आंख दबा कर शिगूफा छोड़ा तो वातावरण में हंसी की फुलझडि़यां फूट गईं. निशा भी पूरी तरह मुसकरा उठी.

‘‘बर्थडे बौय कहां है भाई?’’ माला ने बड़ी नजाकत से हाथ में पकड़े उपहार के डब्बे को साथ वाली कुरसी पर रखते हुए कहा.

‘‘अब साहबजादे को भी बुलाइए जरा,’’ रमेश ने अपने हाथ में पकड़ा गिफ्टपैक राधिका को देते हुए कहा.

‘‘रोहन, रोहन, माई सन,’’ निशा की धीमी मीठी आवाज गूंज उठी.

‘‘रोहन, सनी?’’ निशा ने इधरउधर देखा, ‘‘रोहन कहां है मरिअम्मा?’’

‘‘इधर ही था मेमसाब, बाथरूम में होगा, अभी देखता,’’ कह कर वह उसे ढूंढ़ने लगी.

‘‘रोहन बाबा, रोहन बाबा,’’ मरिअम्मा ने कमरे में झांका, बाथरूम देखा, लौन में ढूंढ़ा, पिछवाड़े भी देखा पर वह न मिला. मरिअम्मा रोंआसी हो उठी, ‘कहां गया रोहन?’ वह सोचने लगी. फिर बोली, ‘‘मेमसाब, बाबा नहीं मिल रहा.’’

निशा की भौंहें तन गईं, ‘‘तुम किस मर्ज की दवा हो फिर?’’ उस ने दबी आवाज में मरिअम्मा को लताड़ते हुए कहा.

‘रोहन नहीं मिल रहा,’ ‘रोहन खो गया है,’ मेहमानों में अफरातफरी मच गई. बंगले का कोनाकोना छन गया.

‘‘पुलिस को फोन करिए, निशा,’’ मेहमानों ने कहा.

‘‘किडनैपिंग का केस लगता है?’’ सुन कर निशा के हाथपैर सुन्न पड़ गए, सिर चकरा गया.

‘‘मेमसाब, मेमसाब,’’ खुली छत की रेलिंग पर झुकी मरिअम्मा की भयभीत चीखपुकार सुन कर सब ऊपर की

ओर दौड़े.

‘‘देखिए, देखिए तो मेमसाब, रोहन बाबा को क्या हो रहा है?’’

छत के एक कोने में निढाल, बेसुध पड़े रोहन के मुंह पर तो एक मीठी मुसकान बिखरी हुई थी. जादू की पुडि़या का जादू उस पर चल चुका था. उसे अपना मनचाहा सबकुछ मिल चुका था.

पुचकारते पापा, दुलारती मम्मी. खेल खिलाते पापा. साथ सुलाती मम्मी…

उछलताकूदता, खिलखिलाता, फुदकता रोहन तो सीधा उन की गोद में ही जा बैठा था. दृश्य खयालों में चल रहे थे…

‘हैप्पी बर्थडे सनी.’

‘हैप्पी बर्थडे रोहन.’

‘थैंक यू पापा,’ कहता रोहन पिता के सीने से चिपक गया.

‘थैंक यू मम्मी,’ रोहन मां से लिपट गया. जोरजोर से ठहाके लगाता रोहन अचानक सुबकने लगा तो मरिअम्मा परेशान हो उठी. उस ने चुप बैठ कर उस का सिर अपनी गोद में रख लिया.

‘‘देखो न मेमसाब, हमारे बाबा को क्या हो रहा है. बाबा, बाबा, रोहन बाबा,’’ मरिअम्मा जोरजोर से उस के गाल थपथपाने लगी.

मेहमानों के चेहरे पर भय, आश्चर्य और जिज्ञासा के मिलेजुले भाव तैरने लगे.

‘‘इतना छोटा बच्चा और ड्रग एडिक्ट?’’ एक आश्चर्यभरा स्वर उभरा, ‘‘ये आजकल के बच्चे? माई गौड.’’

निशा की मुट्ठियां भिंच गईं, भौंहें तन गईं. उस की सारी इज्जत, सारा का सारा सोशल स्टेटस धूल में जा मिला.

Short Story In Hindi : उसे कुछ करना है

Short Story In Hindi :  सर्दियों के दिन थे. शाम का समय था. श्वेता का कमरा गरम था. अपने एअरटाइट कमरे में उस ने रूम हीटर चला रखा था. 2 साल का भानू टीवी के आगे बैठा चित्रों का आनाजाना देख रहा था.  श्वेता अपने पसंदीदा धारावाहिक के खत्म होने का इंतजार कर रही थी.

‘‘पापा,’’ राजीव के आते ही भानू गोद में चढ़ गया.  श्वेता उठ कर रसोईघर में चाय के साथ कुछ नाश्ता लेने चली गई. क्योंकि शाम के समय राजीव को खाली चाय पीने की आदत नहीं थी.

‘‘आज तो कुछ गरमागरम पकौड़े हो जाते तो आनंद आ जाता,’’ श्वेता के चाय लाते ही राजीव ने कहा, ‘‘क्या गजब की ठंड पड़ रही है और इस चाय का आनंद तो पकौड़े से ही आएगा.’’

‘‘मेरे तो सिर में दर्द है,’’ श्वेता माथे पर उंगलियां फेर कर बोली.

‘‘तुम से कौन कह रहा है…चाय भी क्या तुम्हीं ने बनाई है, वह भी इतने दर्द में, रोली दी कहां हैं. वह मिनट में बना देंगी.’’

‘‘रोली दी,’’ श्वेता ने जोर से आवाज दी, ‘‘कहां हैं आप. थोड़े पकौड़े बना दीजिए, आप के भइया को चाहिए. इसी बहाने हम सब भी खा लेंगे.’’

रोली ने वहीं से आवाज लगाई, ‘‘श्वेता, तुम बना लो. मैं आशू को होमवर्क करा रही हूं. इस का बहुत सा काम पूरा नहीं है. मैं ने खाने की सारी तैयारी कर दी है.’’

राजीव ने रुखाई से कहा, ‘‘अभी तो 6 बजे हैं, रात तक तुम्हें करना क्या है?’’

‘‘करना क्यों नहीं है भइया, मां बीमार हैं तो रसोई भी देखनी है. साथ में उन लोगों को भी…फिर रात में एक तो आशू को जल्दी नींद आने लगती है, दूसरे, टीवी के चक्कर में पढ़ नहीं पाता है.’’

‘‘तो क्या उस के लिए सब लोग टीवी देखना बंद कर दें,’’ राजीव ने चिढ़ कर कहा क्योंकि उसे रोली से ऐसे उत्तर की आशा नहीं थी. उस की सरल ममतामयी दीदी तो सुबह से आधी रात तक भाई की सेवा में लगी रहती.

इंटर के बाद रोली ने प्राइवेट बी.ए. की परीक्षा दी थी. परीक्षा के समय घर मेहमानों से भरा था. क्योंकि उस की बड़ी बहन दिव्या का विवाह था और वह दिनरात मेहमानों की आवभगत में लगी रहती. कोई भी रोली से यह न कहता कि तुम अकेले कहीं बैठ कर पढ़ाई कर लो. जबकि उस से बड़ी 2 बहनें, 2 भाई भी थे. घर में आए मेहमानों की जरूरतों को पूरा करने के बाद रोली ज्यों ही हाथ में कागजकलम या पुस्तक उठाती तो आवाज आती, ‘अरे कहां हो रोली…जरा ब्याह निपटा दो तब अपनी पढ़ाई करना.’

दोनों बहनें अपने छोटे बच्चों के चोंचलों और ससुराल के लोगों की आवभगत में अधिक लगी रहतीं. सब के मुंह पर दौड़भाग करती रोली का नाम रहता.

मां को तो घर आए मेहमानों से बातचीत से ही समय न मिलता, कितनी मुश्किल से अच्छा घरवर मिला है वह इस की व्याख्या करती रहतीं. बूआ ने रोली की परेशानी भांप कर कहा भी कि इस की परीक्षा के बाद ब्याह की तिथि रखतीं तो निश्चिंत रहतीं…

‘‘अब रोली की परीक्षा के लिए ब्याह थोड़े ही रुका रहेगा…फिर दीदी, यह पढ़लिख के कौन सा कलक्टर बन जाएगी. बस, ग्रेजुएट का नाम हो जाए फिर इस को भी पार कर के गंगा नहा लें हम.’’

रिश्ते की बूआ कह उठीं, ‘‘भाभी, आजकल तो लड़की को भी बराबरी का पढ़ाना पड़ रहा है. हम तो यह कह रहे थे कि परीक्षा के बाद ब्याह होता तो रोली पर पढ़ाई का बोझ न रहता. अभी तो उसे न पढ़ने के लिए समय है और न मन ही होगा.’’

‘‘दीदी, आप भूल रही हैं, हमारे यहां लड़के वालों की इच्छा से ही तिथि रखनी पड़ती है. लड़की वालों की मरजी कहां चलती है. हम ज्यादा कहेंगे तो उत्तर मिलेगा, आप दूसरा घर देख लीजिए.’’

रोली की जैसेतैसे परीक्षा हो गई थी. 50 प्रतिशत नंबर आए थे. आगे पढ़ने का न उत्साह रहा न सुविधा ही मिली और न कहीं प्रवेश ही मिला.

रोली के 3 वर्ष घर के काम करते, भाइयों के मन लायक भोजननाश्ता बनाते बीत गए. फिर उस का भी विवाह हो गया. घर भले ही साधारण था पर पति सुंदर, रोबीले व्यक्तित्व का था. अपने काम में कुशल, परिश्रमी और मिलनसार था. एक प्राइवेट फर्म में काम कर रहा था जहां उस के काम को देख कर मालिक ने विश्वास दिलाया था कि शीघ्र ही उस की पदोन्नति कर दी जाएगी. परिवार के लोग भी समीर को प्यार करते और मान देते थे. रोली को वर्ष भर में बेटा भी हो गया.

रोली के ससुराल जाने पर उस की सब से अधिक कमी भाई को अखरती. मां बीमार रहने लगी थीं और बहनें चली गईं. मां न राजीव के मन का खाना बना पातीं न पहले जैसे काम ही कर पातीं. रोली तो भाई के कपड़े धो कर उन्हें प्रेस भी कर देती थी. उस की कापीकिताबें यथास्थान रखती और सब से बढ़ कर तो राजीव के पसंद का व्यंजन बनाती.

विवाह को अभी 3 साल भी न बीते थे कि रोली पर वज्र सा टूट पड़ा था. एक दुर्घटना में रोली के पति समीर की मृत्यु हो गई. समीर जिस फर्म में काम करता था उस के मालिक ने उस पर आरोप लगा कर कुछ भी आर्थिक सहायता देने से इनकार कर दिया. बेटी को मुसीबत में देख कर मातापिता उसे अपने घर ले आए.

रोली पहले तो दुख में डूबी रही. बड़ी मुश्किल से मां और बहनें उस के मुंह में 2-4 कौर डाल देतीं. उस का तो पूरा समय आंसू बहाने और साल भर के आशू को खिलानेपिलाने में ही बीत जाता था. कभी कुछ काम करने रोली उठती तो सभी उसे प्रेमवश, दयावश मना कर देते.

एक दिन ऐसे ही पगलाई हुई शून्य में ताकती मसली हुई बदरंग सी साड़ी पहने रोली बैठी थी कि मां की एक पुरानी सहेली मधु आ गई जो अब दूसरे शहर में रहती थी. मधु को देखते ही रोली दूसरे कमरे में चली गई क्योंकि किसी भी परिचित को देखते ही उस के आंसू बहने लगते थे.

मां ने कई बार आवाज दी, ‘‘बेटी रोली, देखो तो मधु मौसी आई हैं.’’

मां के बुलाने पर भी जब रोली नहीं आई तब मौसी स्वयं ही उसे पकड़ कर सब के बीच ले आईं और बहुत देर तक अपने से चिपटाए आंसू बहाती रहीं.

कुछ देर में उन्हें लगा, रोली से कुछ काम करने के लिए नहीं कहा जाता और न वह खुद काम में हाथ लगाती है. तब उन्होंने मां को और भाभी को समझाया कि इसे भी घर का कुछ काम करने दिया करो ताकि इस का मन लगा रहे. ऐसे तो यह अछूत की तरह अलग बैठीबैठी अपने अतीत को ही सोचती रहेगी और दुखी होगी.

‘‘हम तो इसे दुखी मान कर कुछ काम नहीं करने देते.’’

‘‘दीदी, आप उस पर भार भी न डालें पर व्यस्त जरूर रखें. आशू को भी उस के पास ही रहने दें क्योंकि दुख से उबरने के लिए अंधेरे में बैठे रहना कोई उपचार नहीं…और…’’

‘‘और क्या?’’ मां ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘यही कि आगे क्या सोचा है. आजकल तो लड़कियां बाहर का काम कर रही हैं. रोली भी कहीं कोई काम करेगी तो अपने पैरों पर खड़ी होगी… अभी उस की उम्र ही क्या है, कुछ आगे पढ़े, कोई ट्रेनिंग दिलवाइए…देखिए, कोई हाथ थामने वाला मिल जाए…’’

‘‘क्या कह रही हो, मधु…रोली तो इस तरह की बातें सुनना भी नहीं चाहती है. पहले भी किसी ने कहा था तो रोने बैठ गई कि क्या मैं आप को भारी हो रही हूं…ऐसा है तो मुझे मेरी ससुराल ही भेज दें, जैसेतैसे मेरा ठिकाना लग ही जाएगा…

‘‘मधु, इस के लिए 2-1 रिश्ते भी आए थे. एक 3 पुत्रियों का पिता था जो विधुर था. कहा, मेरे बेटा भी हो जाएगा और घर भी संवर जाएगा. जमीनजायदाद भी थी. लेकिन यह सोच कर हम ने अपने पांव पीछे खींच लिए कि सौतेली मां अपना कलेजा भी निकाल कर रख दे फिर भी कहने वाले बाज नहीं आते. वैसे यह तो सच है कि विधवा का हाथ थामने वाला हमारे समाज में जल्दी मिल नहीं सकता, फिर दूसरे के बच्चों को पिता का प्यार देना आसान नहीं.’’

‘‘गे्रजुएट तो है. किसी तरह की ट्रेनिंग कर ले. आजकल तरहतरह के काम हैं.’’

लेकिन लड़की के लिए सुरक्षित स्थान और इज्जतदार नौकरी हो तब न. फिर उस का मन भी नहीं है…भाई भी पक्ष में नहीं है.

एक के बाद एक कर 8 वर्ष बीत गए. रोली घर के काम में लगी रहती. गरम खाना, चायनाश्ता देना, घर की सफाई करना और सब के कपड़े धो कर उन्हें प्रेस करना उस का काम रहता. बीतते समय के साथ अब उस की सहेलियां भी अपनीअपनी ससुराल चली गईं जो कभी आ कर रोली के साथ कुछ समय बिता लिया करती थीं.

उस दिन उस की एक पुरानी सहेली मनजीत आई थी. वह उसे अपने घर ले गई जहां महराजिन को बातें करते रोली ने सुना, ‘‘बीबीजी, मैं तो पहले कभी दूसरे की रसोई में भी नहीं जाती थी. काम करना तो दूर की बात थी. पर जब मनुआ के बाबू 2 दिन के बुखार में चल बसे तब घर का खर्च पीतलतांबे के बरतन, चांदीसोने के गहने बेच कर मैं ने काम चलाया. उस समय मेरे भाइयों ने गांव में चल कर रहने को कहा. मैं ने अपनी चचिया सास के कहने पर जाने का मन भी बना लिया था लेकिन इसी बीच मेरी जानपहचान की एक बुजुर्ग महिला ने कहा कि बेटी, तुम यहीं रहो. मैं काम करती हूं तुम भी मेरे साथ खाना बनाने का काम करना. बेटी, काम कोई बुरा नहीं होता. काम को छोटाबड़ा तो हम लोग बनाते और समझते हैं. मैं जानती हूं कि गांव में तुम कोई काम नहीं कर पाओगी. कुछ दिन तो भाभी मान से रखेंगी पर बाद में छोटीछोटी बातें अखरने लगती हैं. उस के बाद से ही मैं ने कान पकड़ा और यहीं रहने लगी. अपनी कोठरी थी और अम्मां का साया था.’’

रोली दूर बैठी उन की बातें सुन रही थी और उसे अपने पर लागू कर सोच रही थी कि मातापिता जहां तक होता है उस के लिए करते हैं किंतु भाभी… अखरने वाली बातें सुना जाती हैं. अब कल ही तो भाभी अपने बच्चों के लिए 500 के कपड़े लाईं और उस के आशू के लिए 100 रुपए खर्चना भी उन्हें एहसान लगता है.

‘गे्रजुएट है, कोई काम करे, कुछ ट्रेनिंग ले ले,’ मधु मौसी ने पहले भी कहा था पर मां ने कह दिया कि लड़की के लिए सुरक्षित स्थान हो, इज्जतदार नौकरी हो तब ही न सोचें. सोचते हुए 8 वर्ष बीत गए थे.

उस की सहेली मनजीत कौर के पिता की कपड़ों की दुकान थी. पहले मनजीत भी अकसर वहां बैठती और हिसाबकिताब देखती थी. कई सालों से मनजीत उसे दुकान पर आने के लिए कह रही थी और एक बार उस ने दुकान पर ही मिलने को बुलाया था. रोली वहां पहुंची तो मनजीत बेहद खुश हुई थी और उसे अपने साथ अपनी दूसरी दुकान पर चलने को कहा.

रोली को बुनाई का अच्छा अनुभव था. किसी भी डिजाइन को देख कर, पढ़ कर वह बना लेने में कुशल थी. रोली ने वहां कुछ बताया भी और आर्डर भी लिए. मनजीत कौर ने उस से कहा, ‘‘रोली, एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी.’’

‘‘नहीं, कहो न.’’

‘‘मैं चाहती हूं कि तुम दिन में किसी समय आ कर थोड़ी देर यहां का काम संभाल लिया करो. तुम्हारा मन भी बहल जाएगा और मेरी मदद भी हो जाएगी.’’

‘‘तुम मां से कहना,’’ रोली ने कहा, ‘‘मुझे तो मनजीत कोई आपत्ति नहीं है.’’

उसी दिन शाम को मनजीत ने रोली की मां से कहा, ‘‘आंटी, मैं चाहती हूं कि रोली मेरे साथ काम में हाथ बंटा दे.’’

रोली की मां को पहले तो अच्छा नहीं लगा. सोचा शायद इसे पैसे की कमी खटक रही है. अभी रोली की मां सोच रही थीं कि मनजीत बोल पड़ी, ‘‘आंटी, इस का मन भी घर से बाहर निकल कर थोड़ा बहल जाएगा और मुझे अपने भरोसे की एक साथी मिल जाएगी. यह केंद्र समाज सेवा के लिए है.’’

मां ने यह सोच कर इजाजत दे दी कि रोली घर के बाहर जाएगी तो ढंग से रहेगी.

महीने के अंत में मनजीत ने रोली को लिफाफा पकड़ा दिया.

‘‘यह क्या है?’’

‘‘कुछ खास नहीं. यह तो कम है. तुम्हारे काम से मुझे जो लाभ हुआ है उस का एक अंश है. हमें दूरदूर से आर्डर मिल रहे हैं तो मेरी सास और पति का कहना है कि हमारे पास खाने को बहुत है…तुम मेरी सहायता करती रहो और मेरे केंद्र को चलाने में हाथ बंटाओ. मेरी बहन की तरह हो तुम…’’

रोली की मां को खुशी थी कि अब उन की बेटी अपने मन से खर्च कर पाएगी. भाईबहन का स्नेह मिलता रहे पर उन की दया पर ही निर्भर न रहे. बाहर की दुनिया से जुड़ कर उस का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा साथ ही जीने का उत्साह भी.

Hindi Story : गहराइयां – बीवी से खफा विवान जब आयुषी के प्यार में पड़ा

Hindi Story :  विवान की बांहों से छूट कर शैली अभी किचन में घुसी ही थी कि हमेशा की तरह फिर से आ कर उस ने उसे पीछे से पकड़ लिया और फिर उस के गालों को चूम लिया. शैली ने खुद को विवान की बांहों से छुड़ाने की भरसक कोशिश की, लेकिन जब उस ने उसे और जोर से अपनी बांहों में भर लिया तो मन ही मन चिढ़ उठी. बोली, ‘‘छोड़ो न विवान… वैसे भी आज उठने में काफी देर हो गई और ऊपर से तुम हो कि… क्या आज औफिस नहीं जाना है?’’

‘‘हूं, जाना तो है पर रहने दो… मैं दोपहर में आ जाऊंगा खाना खाने और इसी बहाने…’’ बात अधूरी छोड़ एक और किस शैली के गाल पर जड़ दिया. किसी तरह खुद को विवान से छुड़ाते हुए बोली, ‘‘कोई जरूरत नहीं है घर आने की. मैं नाश्ता बना रही हूं. खा कर जाना और लंच भी ले जाना.’’

‘‘तो फिर ठीक है लाओ मैं सब्जी काट देता हूं. तब तक तुम चाय बनाओ,’’ कह कर विवान सब्जी काटने लगा. वह सोचता ऐसा क्या करे, जिस से उस की शैली हमेशा हंसतीखिलखिलाती रहे. वह अपनी शैली को दुनिया की हर खुशी देना चाहता, पर वह थी कि बातबात पर अपने पति को झिड़कते रहती. हर बात में उस की बुराई निकालना जैसे उस की आदत सी बन गई थी. उसे लगता सब के पतियों की तरह उस का पति क्यों नहीं है? क्यों हमेशा रोमांटिक बना फिरता है? अरे, जिंदगी क्या सिर्फ प्यार से चलती है? और भी तो कई जिम्मेदारियां हैं घरगृहस्थी की, पर यह सावन के अंधे को कौन समझाए.’’

मगर विवान कहता, ‘‘जिंदगी तो जिंदादिली का नाम है जानी, मुरदे क्या खाक जीया करते हैं और वैसे भी जिंदगी 4 दिनों की होती है तो फिर क्यों न जीएं मौज से?’’

उस की इसी बात पर शैली भड़क उठती, ‘‘मौज का मतलब यह नहीं होता कि हर वक्त पतिपत्नी चोंच से चोंच सटाए रखें और रोमांटिक गाने गुनगुनाते रहें… और भी बहुत सी जिम्मेदारियां होती हैं जीवन में समझे?’’

शैली की बात पर विवान हंस कर उसे चूम लेता और कहता, ‘‘तुम्हें जो सोचना है सोचो पर मैं तो ऐसा ही रहूंगा.’’

विवान बहुत ही रंगीन मिजाज का इंसान था. वह पत्नी को दिल की गहराइयों से प्यार करता था. लेकिन शैली को उस के प्यार की जरा भी कद्र नहीं थी. उसे लगता प्यार के नाम पर वह सिर्फ बकवास और दिखावा करता रहता है. उस की सारी सहेलियां इस बात को ले कर खूब चुटकी लेतीं. कहतीं, ‘‘अरे भई, हम भी तो शादीशुदा हैं. इस का यह मतलब थोड़े ही न है कि हर वक्त बस पति की बांहों में समाए रहो.’’

उन की बातें सुन कर वह खीसें निपोर लेती… मन ही मन यह सोच कर कुढ़ जाती कि अब ऐसा ही पति मिला है तो क्या करे?

गुस्से से हांफती और जबान से जहर उगलती शैली ने विवान के हाथ से चाकू छीन लिया और सारा गुस्सा सब्जी पर उतारने लगी. मन तो किया उस का कि सारी सब्जी उठा कर कचरे के डब्बे में फेंक दे और कहे कि कोई जरूरत नहीं बारबार घर आ कर मुझे परेशान करने की. उस का तो मन करता कि कैसे जल्दी विवान औफिस चला जाए और उस की जान छूटे.

विवान को औफिस भेजने के बाद घर के बाकी काम निबटा कर अभी शैली बैठी ही थी कि उस का फोन घनघना उठा. विवान का फोन था और यह सिलसिला भी सालों से चलता आ रहा था. मतलब, औफिस पहुंचते ही सब से पहले वह शैली को फोन लगा कर जब तक उस से बात न कर लेता उसे चैन नहीं पड़ता था और इस बात पर भी शैली को काफी चिढ़ होती थी. कभीकभी तो उस का मन करता कि फोन को बंद कर के रख दे ताकि विवान उसे फोन ही न कर पाए, पर यह सोच कर वह ऐसा नहीं करती कि पिछली बार की तरह फिर वह दौड़ताभागता घर पहुंच जाएगा और बेवजह महल्ले में उस का तमाशा बन जाएगा.

एक बार ऐसा ही हुआ था. किसी कारणवश गलती से शैली का फोन बंद हो गया

और उसे इस बात का पता नहीं चला. लेकिन विवान के कई फोन लगाने पर भी जब उस का फोन बंद ही आया तो उसे लगा कि शैली को कुछ हो गया है. दौड़ताहांफता घर पहुंच गया और जोरजोर से दरवाजा पीटने लगा. आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग इकट्ठे हो गए. बाहर लोगों का शोर सुन जब शैली की आंख खुली और उस ने दरवाजा खोला तो विवान उसे पकड़ कर कहने लगा, ‘‘शुक्र है शैली तुम ठीक हो… तुम्हारा फोन नहीं लग रहा था, इसलिए मैं घबरा गया था,’’ कह कर वह सब के सामने शैली को गले से लगा कर चूमने लगा था. देखा तो सच में फोन बंद था. बैटरी खत्म हो गई थी. शैली शर्मिंदा हो उठी कि उस के कारण… पर फिर यह सोच कर मन ही मन फूले नहीं समाई कि उस का पति उसे कितना प्यार करता है. दौड़ताभागता घर पहुंच गया.

मगर अब उसी विवान का प्यार उसे बंधन सा प्रतीत होने लगा था. उसे लगता जैसे वह एक सोने के पिंजरे में कैद है. जिस विवान के प्यार पर कभी वह इतराती थी अब उसी प्यार से वह ऊबने लगी थी. दम घुटने सा लगा था उस का. विवान का उसे हर पल निहारते रहना, जब मन आए उसे अपनी गोद में उठा कर चूमने लगना, उस की हर छोटीछोटी चीजों का भी खयाल रखना, कभी अपनेआप से दूर न होने देना अब उसे गले का फंदा लगने लगा था. प्यार वह भी करती थी अपने पति से पर एक हद में. उस का सोचना था कि पतिपत्नी हैं तो क्या हुआ, आखिर उन्हें भी तो अपने जीवन में थोड़ी स्पेस चाहिए, जो उसे मिल नहीं रही थी. मगर उस की सोच से अनजान विवान बस हर पल उसी के खयालों में खोया रहता था.

इसी बात को ले कर शैली की दोनों भाभियां उस का मजाक बनातीं. कहतीं कि उस का पति तो उस के बिना एक पल भी नहीं रह पाता. एक बच्चे की तरह उस के पीछेपीछे घूमता रहता है. उन की कही बातें शैली को अंदर तक भेद जातीं. उसे लगता उस की भाभियां उस पर तंज कस रही हैं, उस का मजाक उड़ा रही हैं. लेकिन उसे यह नहीं पता था कि वे उस से जलती हैं. उन्हें बरदाश्त नहीं होता कि शैली का पति उस पर अपनी जान छिड़के.

विवान को कोई लड़की पसंद न आने की वजह से उस के मातापिता काफी परेशान रहने लगे थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर विवान को कैसी लड़की चाहिए? आखिर एक दिन उसे अपनी पसंद की लड़की मिल ही गई. दरअसल, विवान अपने एक दोस्त की शादी में गया था वहीं उस ने शैली को देखा तो देखता ही रह गया. उस की खूबसूरती पर वह ऐसे मरमिटा जैसे चांद को देख कर चकोर. कब नेत्रों के रास्ते शैली उस के मन में समा गई उसे पता ही नहीं चला. उस से अपनी शादी के बारे में सोच कर ही उस का मनमयूर नाच उठा. जब उस के मातापिता को यह बात मालूम पड़ी तो उन्होंने जरा भी देर न कर अपने बेटे की शादी शैली के साथ तय कर दी.

एकदूसरे की बांहों में शादी का 1 साल कब बीत गया उन्हें पता ही नहीं चला.

लोगों का कहना है कि जैसेजैसे शादी पुरानी होती जाती है, पतिपत्नी के प्यार में भी गिरावट आने लगती है. मतलब उन के बीच पहले जैसा प्यार नहीं रह जाता. मगर विवान और शैली की शादी जैसेजैसे पुरानी होती जा रही थी उन का प्यार और भी गहराता जा रहा था. लेकिन जिस विवान का प्यार शैली को हरी दूब का कोमल स्पर्श सा प्रतीत होता था, अब वही प्यार उसे कांटों की चुभन जैसा लगने लगा था. उस का दीवानापन अब उसे पागलपन लगने लगा था. उसे लगता या तो कुछकुछ दिनों के अंतराल पर विवान औफिस के काम से कहीं बाहर चला जाया करे या फिर उसे अकेले मायके जाने दिया करे ताकि खुल कर अपने मनमुताबिक जी सके.

आखिर कुछ दिनों के लिए उसे विवान से अलग रहने का मौका मिल ही

गया. ऐसे जाना कोई जरूरी नहीं था, पर वह जाएगी ही, ऐसा उस ने अपने मन में निश्चय कर लिया.

‘‘शादी में… पर जानू,’’ विवान अपनी पत्नी को प्यार से कभीकभी जानू भी बुलाता था, ‘‘वे तो तुम्हारे दूर के रिश्तेदार हैं न और तुम ने ही तो कहा था कि तुम्हारा जाना कोई जरूरी नहीं?’

‘‘हांहां कहा था मैं ने, पर है तो वह मेरी बहन ही न और सोचो तो जरा कि अगर मैं नहीं आऊंगी तो चाचाजी को कितना बुरा लगेगा, क्योंकि कितनी बार फोन कर के वे मुझे आने

के लिए बोल चुके हैं… प्लीज विवान, जाने

दो न… वैसे भी यह मेरे परिवार की अंतिम

शादी है और मैं वादा करती हूं शादी खत्म होते

ही आ जाऊंगी.’’

अब शैली कुछ बोले और उस का विवान उसे न कह दे, यह हो ही नहीं सकता था. अत: बोला, ‘‘ठीक है तो फिर मैं कल ही छुट्टी

की अर्जी…’’

अचकचा कर शैली बोली, ‘‘अर्जी… प… पर क्यों? मेरा मतलब है तुम्हें वैसे भी छुट्टी की प्रौब्लम है और कहा न मैं ने मैं जल्दी आ जाऊंगी.’’

न चाहते हुए भी विवान ने शैली को जाने की अनुमति दे तो दी, पर सोचने लगा कि अब उस के इतने दिन शैली के बिना कैसे बीतेंगे? जाते वक्त बाय कते हुए शैली ने ऐसा दुखी सा मुंह बनाया जैसे उसे भी विवान से अलग होने का दुख हो रहा है पर जैसे ही ट्रेन सरकी वह खुशी से झूम उठी. लगा उसे कि जैसे वह आसमान में उड़ रही हो. उस के अकेले मायके पहुंचने पर नातेरिश्तेदार सब ने पूछा कि विवान क्यों नहीं आया? तो कहने लगी कि विवान को छुट्टी नहीं मिली. इसलिए अकेले ही आना पड़ा.

वैसे उस की भाभियां सब समझ रही थीं. चुटकी लेते हुए कहने लगीं, ‘‘ऐसे कैसे दामादजी ने आप को अकेले छोड़ दिया ननद रानी, क्योंकि वे तो आप के बिना रह ही नहीं सकते,’’ कह कर दोनों ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

उधर शैली के बिना न तो विवान का घर में मन लग रहा था और न ही औफिस में. हर वक्त बस उसी के खयालों में खोया रहता. उसे लगता या तो किसी तरह शैली उस के पास आ जाए या फिर वह खुद ही उस के पास चला जाए.

उस के मन की बात उस के दोस्त अमन से छिपी न रह पाई. पूछा, ‘‘क्या बात है, बड़े देवदास बने बैठे हो? लगता है भाभी के बिना मन नहीं लग रहा है? अरे, तो चले जाओ न वहीं.’’

अमन की बातें सुन वह अपनेआप को वहां जाने से रोक न पाया.

‘‘उफ, आ गए मजनू… क्यों रहा नहीं गया अपनी लैला के बिना?’’ विवान को आए देख शैली की छोटी भाभी ने चुटकी लेते हुए कहा.

अचानक विवान को अपने सामने देख पहले तो शैली का दिल धक्क रह गया, ऊपर से उस की भाभी का यह कहना उस के तनबदन को आग लगा गया.

उस ने विवान को घूर कर देखा. गुस्से से उस की आंखें धधक रही थीं. यह भी न सोचा कि मेहमानों का घर है तो कोई सुन लेगा. कर्कशा आवाज में कहने लगी, ‘‘जब मैं ने तुम से बोल दिया था कि आ जाऊंगी जल्दी, तो क्या जरूरत थी यहां आने की? क्या कुछ दिन चैन से अकेले जीने नहीं दे सकते?’’

विवान झेंपते हुए कहने लगा, ‘‘न…नहीं शैली ऐसी बात नहीं है. वह क्या है कि छुट्टी मिल गई तो सोचा… और वैसे भी तुम्हारे बिना घर में मन ही नहीं लग रहा था तो आ गया.’’

‘‘मन नहीं लगा रहा था… तो क्या मैं तुम्हारे मन लगाने का साधन हूं? अरे, कैसे इंसान हो तुम जो अपना कामकाज छोड़ कर मेरे पीछे पड़े रहते हो? मैं पूछती हूं तुम में स्वाभिमान नाम की कोई चीज है कि नहीं? जताते हो कि तुम मुझ से बहुत प्यार करते हो? अरे, नहीं चाहिए मुझे तुम्हारा प्यार. सच में, उकता गई हूं मैं तुम से और तुम्हारे प्यार से… जानते हो मैं यहां क्यों आई… ताकि कुछ दिनों के लिए तुम से छुटकारा मिले, पर नहीं… तुम्हारे इस छिछले व्यवहार के कारण मेरी सारी सहेलियां और भाभियां मुझ पर हंसती हैं… अब जाओ यहां से… मुझे जब आना होगा खुद आ जाऊंगी समझे?’’ अपने दोनों हाथ जोड़ कर शैली चीखते हुए बोली.

शैली का ऐसा रूप देख विवान हैरान रह गया. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उस की शैली उस के बारे में ऐसा सोचती है. जिस शैली को वह अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है और जिस की खातिर वह भागता हुआ यहां तक आ गया, वह इतने लोगों के सामने उस की बेइज्जती कर देगी, उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

फिर बोला, ‘‘ठीक है तो फिर अब मैं यहां कभी नहीं आऊंगा… बुलाओगी तो भी नहीं,’’ अचानक विवान का कोमल स्वर कठोर हो गया और फिर वह एक पल भी वहां न ठहरा. शैली की कड़वी बातों ने आज उस के दिल के टुकड़ेटुकड़े कर डाले थे.

इधर शैली की मांबहन, भाई सब ने उसे इस बात के लिए बहुत दुत्कारा पर उसे अपनी कही बातों का जरा भी पछतावा नहीं हुआ, बल्कि दिल को ठंडक पहुंची थी अपने मन की भड़ास निकाल कर. घमंड में चूर शैली को यह भी समझ नहीं आ रहा था कि उस ने एक ऐसे इंसान का दिल तोड़ा जो उस का पति है और उसे बेइंतहा प्यार करता है.

घर पहुंचने के बाद रात्रि के 2 पहर बीत जाने के बाद भी विवान के आंखों में नींद नहीं थी. अब भी शैली की कही बातें उस के कानों में गूंज रही थीं.

अपनी आदतानुसार औफिस पहुंच जैसे ही विवान शैली को फोन मिलाने लगा कि फिर उस की कही बातें उस के कानों में गूंजने लगी कि अरे, तुम में तो स्वाभिमान नाम की कोई चीज ही नहीं है वरना यों यहां न चले आते… जानते हो मैं यहां क्यों आई ताकि कुछ दिनों के लिए तुम से छुटकारा मिले. हथेलियों से अपने दोनों कान दबा कर विवान ने अपनी आंखें मूंद लीं और मन ही मन जैसे कोई निश्चय कर बैठा.

एक रोज, ‘‘सर, आ… आप और यहां?’’ विवान को मार्केट में देख कर आयुषी, जो कभी उस की पीए हुआ करती थी और अपनी पत्नी के कहने पर ही उस ने उसे काम से निकाला था. ‘‘सौरी सर, पर आप को इतने साल बाद देखा तो रहा नहीं गया और आवाज दे दी.’’

‘‘नो… नो… इट्स ओके. और बताओ?’’ विवान ने आयुषी को ताड़ते हुए पूछा.

‘‘बस सर सब ठीक ही है. आप सुनाएं?’’

‘‘सब ठीक ही है, बोल कर विवान

मुसकरा दिया.’’

आयुषी बोली, ‘‘मेरा घर यहीं पास में ही है. प्लीज, आप घर चलें.’’

‘‘फिर कभी,’’ कह विवान जाने को हुआ.

‘‘तभी आयुषी बोली, सर प्लीज, सिर्फ 5 मिनट के लिए चलिए.’’

आयुषी इतना आग्रह करने लगी कि विवान न नहीं कर पाया.

चाय पीतेपीते ही विवान ने उस के पूरे घर का मुआयना किया. बुरा लग रहा था उसे देख कर कि आयुषी इतने छोटे से घर में और अभावों में जी रही है.

‘‘अरे, सर आप ने तो कुछ लिया ही नहीं… यह टेस्ट कीजिए न,’’ आयुषी की आवाज से विवान चौंका, ‘‘बसबस बहुत हो गया… सच में चाय बहुत अच्छी बनी थी. वैसे अभी तुम कर क्या रही हो, मेरा मतलब कहां जौब कर रही हो?’’

‘‘कहीं नहीं सर… घर में ही बैठी हूं… अच्छा ये सब छोडि़ए, बताइए और क्या खाएंगे आप?’’

‘‘नहींनहीं कुछ नहीं, अब घर जाऊंगा,’’ विवान बोला और फिर घर चल दिया. रास्तेभर वह यही सोचता रहा कि आखिर क्या गलती थी आयुषी की? बस यही न कि वह मुझ से खुल कर हंसबोल लेती थी और काम के ही सिलसिले में कभी मुझे फोन कर लेती थी. हां, याद है मुझे उस रोज भी एक जरूरी फाइल पर आयुषी मेरे साइन लेने मेरे घर आ गई थी और उसी बात को ले कर शैली ने कितना हंगामा मचा दिया था. यह कह कर कि वह मुझ पर डोरे डाल रही है… जानबूझ कर मेरे करीब आने की कोशिश करती है. उस वक्त मैं उस के प्यार में पागल था, इसलिए सहीगलत का अनुमान नहीं लगा पाया और उस के जोर डालने पर आयुषी को नौकरी से निकाल दिया. क्यों कर उस वक्त मैं ने शैली की बात मानी थी? क्या मैं कोई दूध पीता बच्चा था? खैर, गलती तो सुधारी भी जा सकती है न और फिर उसी वक्त विवान ने आयुषी को फोन लगा कर कल सुबह 10 बजे अपने औफिस बुला लिया.

अपने हाथ में नियुक्ति पत्र देख आयुषी की आंखें छलक आईं. आभार प्रकट

करते हुए कहने लगी, ‘‘अब मैं पहले से भी ज्यादा सक्रिय हो कर काम करूंगी और कभी किसी शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

‘‘न पहले मुझे तुम से कोई शिकायत थी और न अब है… बस समझ लो एक गलतफहमी के कारण… खैर अब छोड़ो वे सब पुरानी बातें… जाओ अपना काम करो. और हां, मुझे तुम्हारे हाथ के वे मूली के परांठे खाने हैं… क्या मिलेंगे?’’ विवान ने हंसते हुए कहा.

सुन कर आयुषी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. यह जान कर कि शैली अभी यहां नहीं है तो रोज वह कोई न कोई व्यंजन बना कर विवान के लिए ले आती और खूब आग्रहपर्वूक उसे खिलाती… अब तो यह रोज का सिलसिला बन गया था.

एक रोज यह बोल कर आयुषी ने विवान को अपने घर खाने पर आमंत्रित किया कि आज उस का जन्मदिन है.

‘‘तो फिर पार्टी मेरी तरफ से,’’ विवान बोला.

आयुषी मना नहीं कर पाई.

तोहफे के तौर पर जब विवान ने आयुषी को स्मार्टफोन और एक सुंदर ड्रैस गिफ्ट की तो वह उस का आभार प्रकट किए बिना नहीं रह पाई.

‘‘इस में आभार कैसा? अरे, यह तो तुम्हारा हक है,’’ वह हमेशा की तरह उस रोज भी विवान उसे उस के घर तक छोड़ने गया और फिर आयुषी के आग्रह करने पर कौफी पीने बैठ गया. लेकिन उस रोज कौफी पीते ही उसे खुमारी सी आने लगी और वह वहीं सो गया. सुबह जब उस की आंखें खुलीं और अपनी बगल में आयुषी को देखा तो वह हैरान रह गया, ‘‘तुम यहां और मैं यहां कैसे?’’ अचकचाया सा विवान कहने लगा.

अपने कपड़े ठीक करते हुए रोनी सी सूरत बना कर आयुषी कहने लगी कि रात में उस ने उसे शैली समझ कर उस के साथ…

‘‘उफ, यह मुझ से क्या हो गया?’’ उस के मुंह से निकला. मगर फिर सोचने लगा कि गलत क्या किया मैं ने? कहा था उस ने कि मुझ में स्वाभिमान नाम की कोई चीज नहीं है और वह मेरे प्यार से उकता गई है… तो अब मैं बताऊंगा उसे. तरसेगी मेरे प्यार के लिए देखना… फिर उस ने आयुषी को अपने सीने से लगा लिया. कहा कि जो हुआ अच्छा हुआ. उस के बाद तो जैसे यह सिलसिला सा बन गया और इस बात का विवान को कोई मलाल भी नहीं था.

अब शैली अपने घर आने की सोचने लगी पर हैरानी उसे इस बात की हो रही थी कि उसे यहां आए महीना हो चला पर विवान ने न तो उसे एक बार भी फोन किया और न ही फिर पलट कर आया… लेकिन जाएगा कहां? क्या मेरे बिना रह पाएगा? अपने गुमान में फूलती शैली ने अपनेआप से कहा. लेकिन उसे यह नहीं पता कि उस का विवान अब पहले वाला विवान नहीं रहा… जो उस के आगेपीछे एक पागल प्रेमी की तरह मंडराता फिरता था.

इन्हीं खयालों में खोई शैली को भान नहीं रहा कि उस ने चूल्हे पर दूध चढ़ाया है. लेकिन चौंकी तो तब जब उस की बहन स्वीटी ने तेज स्वर में कहा, ‘‘अरे ध्यान कहां है तुम्हारा? देख तो दूध उफन रहा है,’’ कह कर उस ने झट से आंच बंद कर दी.

‘‘उफ, आप ने बचा लिया दीदी वरना आज तो सारा दूध बरबाद हो जाता,’’ स्वीटी का एहसान मानते हुए शैली बोली.

‘‘सही कहा तुम ने पर दूध तो दोबारा आ सकता है, लेकिन अगर जिंदगी बरबाद हो जाए तो? तो क्या उसे दोबारा संवारा जा सकता है?’’

स्वीटी की बात पर शैली ने उसे अचकचा कर देखा.

‘‘शायद इस बात का तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि तुम ने विवान को कितनी चोट पहुंचाई है… ऐसा क्या कर दिया उस ने जो तुम ने उस के साथ इतना खराब व्यवहार किया? यह भी नहीं सोचा कि घर में इतने सारे मेहमान हैं तो वे क्या सोचेंगे विवान के बारे में? अरे, इतना स्नेह करने वाला पति मुश्किल से ही मिलता है शैली… एक मेरा पति है जिसे दुनिया की हर औरत अच्छी लगती है सिवा मेरे और एक तेरा पति है जो तेरे सिवा किसी को नजर उठा कर भी नहीं देखता. जानती है शैली, अब मुझे पता चला कि मेरे पति का अपने ही औफिस की एक लड़की के साथ प्रेम संबंध चल रहा है तो मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई. सिसकते हुए जब मैं ने यह बात अपनी सास को बताई यह सोच कर कि एक औरत का दर्द एक औरत ही समझ सकती है तो पता है उन्होंने क्या कहा? कहने लगीं कि वह मर्द है जो चाहे कर सकता है और यह भी कहा कि अगर यह बात बाहर गई तो लोग मुझ पर ही ऊंगली उठाएंगे. कहेंगे कि मुझ में ही कोई कमी रही होगी, इसलिए मेरा पति किसी दूसरी औरत के पास चला गया. तो जैसे चल रहा है चलने दे.

‘‘जब मां को अपना दुखड़ा सुनाने गई तो वे कहने लगीं कि एक औरत का अकेले इस दुनिया में कोई वजूद नही होता. हर मर्द ऐसी औरत को लोलुपता भरी नजरों से देखता है. वह उसे पा लेने वाली वस्तु के रूप में देखने लगता है. क्या मैं चाहती हूं कि मेरी भी वही स्थिति हो? यह भी कहा मां ने कि मायके वाले कब तक मुझे अपने पास रख पाएंगे… अगर मैं वहां न भी जाऊं न, तो मेरे पित को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन मेरे और मेरे बच्चे के लिए उस घर के सिवा क्या और कोई ठौरठिकाना है?

‘‘बस मौका मिलना चाहिए मर्दों को, उन्हें फिसलते जरा भी देर नहीं लगती शैली. इसलिए छोड़ यह जिद और जा अपने घर. नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि तू भी मेरी तरह…’’

स्वीटी की बातें सुन शैली हक्कीबक्की रह गई. सोचने लगी कि उस की बहन के साथ इतना कुछ हो गया और उसे खबर तक नहीं? जो शैली अभी कुछ देर पहले तक गुमान में फूल रही थी उसी की अब हवा निकलती साफ उस के चेहरे पर दिख रही थी.

अचानक आधी रात को शैली की नींद टूट गई. बराबर में स्वीटी गहरी नींद में सो रही थी. वह भी फिर से सोने की कोशिश करने लगी पर नींद न जाने कहां रफूचक्कर हो गई थी. उठ कर उस ने एक गिलास पानी पीया और सोचा सो जाए, पर कहां… नींद तो जैसे कोसों दूर चली गई थी. आज अपनी ही कही बातें याद कर वह क्षुब्ध हो उठी. बेचैनी से कमरे के बाहर निकल आई. देखा तो दूर तक सन्नाटा पसरा था. घबरा कर फिर घर के अंदर आ गई. आज न तो उसे घर के अंदर और न घर के बाहर चैन पड़ रहा था. बारबार विवान का खयाल उस के जेहन में आ जा रहा था.

सोचने लगी जो विवान उस पर अपनी जान छिड़कता था उसी विवान को वह झिड़कती रही. और तो और अपने मायके वालों के सामने भी उस की बेइज्जती कर डाली… यह भी न सोचा कि उस के दिल पर क्या बीती होगी उस वक्त. आज वह मानसिक और शारीरिक दोनों स्तर पर खुद को अधूरा महसूस रही थी. जिस विवान के स्पर्श से उसे चिढ़ होने लगी थी आज उसी स्पर्श को पाने के लिए बेचैन हो उठी.

‘हां मुझ से बहुत बड़ी गलती हुई और शायद उस बात के लिए विवान मुझे माफ न करे या हो सकता है घर के अंदर भी न आने दे, पर मैं तब तक अपने पति के ड्योढ़ी नहीं छोड़ूंगी जब तक वह मुझे माफ नहीं कर देता,’ मन में ही विचार कर शैली सोने की कोशिश करने लगी और फिर जाने कब आंख लग गई. सुबह सब से विदा ले कर वह अपने घर चल दी.

अपने घर पहुंचने पर शैली को कुछ भी पहले जैसा नहीं लगा. लग रहा था जैसे उस के पीछे बहुत कुछ बदल गया है. जो विवान पहले टाइम से औफिस जाता था और घर भी वक्त पर आ जाता था अब ऐसा नहीं था. पूछने पर जवाब देना भी जरूरी नहीं समझता था. लेकिन शैली को लगता अभी गुस्से में है, इसलिए ऐसे बात कर रहा. जब गुस्सा उतर जाएगा, सब ठीक हो जाएगा.

जो विवान शैली को अपनी बांहों में भर कर ही सोता था वही अब उस से दूर रहने लगा. विवान का उसे पकड़ना, उसे चूम लेना, उसे गोद में उठा कर प्यार करने लगना, उसे याद आने लगा. उसे लगता जैसे घर का एकएक कोना उस का मुंह चिढ़ा कह रहा हो कि ठीक किया विवान ने तेरे साथ, बहुत घमंड था तुम्हें अपने रूप पर… तो ले अब तेरे उसी रूप को विवान देखना भी पसंद नहीं करता.

एक रोज यह कह कर विवान जल्दी घर से निकल गया कि आज उस की जरूरी मीटिंग है. वह उस का इंतजार न करे. लेकिन संयोग ही कहिए कि उसी रोज शैली भी अपनी एक सहेली के साथ उसी कौफी हाउस पहुंच गई जहां विवान आयुषी की आंखों में आंखें डाले उसे प्यार से निहार रहा था. दोनों को उस अवस्था में देख विस्मय से उस की पुतलियां चौड़ी हो गईं. दिल धड़क उठा और आंखें डबडबा गईं. छलकते नयनों का उलाहना विवान से भी छिपा न रह पाया, पर उस ने उसे देख कर भी अनदेखा कर दिया. यह बात भी शैली के दिल को तीर की तरह चुभी.

आखिर क्यों विवान ने फिर से उसे काम पर रख लिया और क्या दोनों… कई सवाल पूछने थे उसे विवान से पर पूछती किस मुंह से? क्या वह यह नहीं कहेगा कि उस ने ही तो कहा था कि हर इंसान को अपने जीवन में थोड़ी स्पेस चाहिए होती है… करवटें बदलते उस ने पूरी रात निकाल दी. सुबह भी फिर वही सबकुछ. कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसे कि करे तो क्या करे… अगर अपनी मां को अपना दर्द बताती तो वे उसे भी वही सलाह देतीं जो स्वीटी को दी और भाभियों से तो कुछ बोलना ही बेकार था.

शैली को बिना बताए ही विवान घर से निकल जाता और जब मन होता आता. उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उस के ऐसे आचरण से शैली के दिल पर क्या बीतती होगी, बल्कि उसे तो ऐसा सब कर के मजा आ रहा था जैसे… भले ही विवान उस से बात न करता, पर उस का फोन उठा लेता यही उस के लिए काफी था. लेकिन विवान की बेवफाई और अवहेलना अब शैली के दिलोदिमाग पर असर करने लगी. ठीक से न खानेपीने के कारण दिनप्रतिदिन उस का स्वास्थ्य गिरता जा रहा था और अब तो वह ज्यादा किसी से बात भी नहीं करती थी. कई दिनों से विवान को भी फोन करना छोड़ दिया था.

इधर कई दिनों से शैली का फोन न आया देख विवान को थोड़ी फिक्र तो होने लगी पर सोचता जाने दो. लेकिन जब एक दिन शैली की मां का फोन आया और उस ने पूछा कि शैली कहां है और वह अपना फोन क्यों नहीं उठा रही है तो विवान को सच में फिक्र होने लगी. फिर उस ने भी फोन लगाया, पर हर बार फोन बंद पा कर विवान बहुत घबरा गया.

‘‘अरे, कहां जा रहे हो?’’ विवान को अपने कपड़े समेटते देख हैरानी से आयुषी बोली.

‘‘घर.’’

‘‘पर विवान, हम तो यहां मीटिंग अटैंड करने आए हैं न और भी इंपौर्टैंट काम है…?’’

जल्दीजल्दी अपना जरूरी सामान बैग में रखते हुए विवान बोला, ‘‘तुम अटैंड कर लेना और मीटिंग से भी ज्यादा इंपौर्टैंट है वह मेरे लिए.’’

समझ गई आयुषी कि वह किस की बात कर रहा है. तैश में आते हुए बोली, ‘‘तुम ऐसा कैसे कर सकते हो विवान? क्या भूल गए कि मैं और तुम…’’

विवान ने आयुषी को घूर कर देखा और फिर कड़कती आवाज में बोला, ‘‘पहले तो तुम तमीज से बात करो. मैं तुम्हारा बौस हूं और रही बात हमारे संबंध की तो क्या मुझे नहीं पता कि उस रोज कौफी में तुम ने क्या मिलाया था और तुम्हारा इरादा क्या था?’’

सुन कर आयुषी की जबान उस के हलक में ही अटक गई.

‘‘तुम्हारी भलाई इसी में है कि चुप रहो,’’ अपने होंठों पर अपनी उंगली रख विवान बोला और फिर वहां से चलता बना.

घर आ कर जब उस ने देखा तो शैली अचेत पड़ी थी. जल्दी से डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने जांच कर बताया, ‘‘कोई ऐसी बात है जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही है और अगर यही हाल रहा तो उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ जाएगा. ध्यान रखिए इन का और हो सके तो कहीं बाहर ले जाएं,’’ दवा के साथ यह हिदायत दे कर डाक्टर चले गए. विवान खुद को कोसते हुए कहने लगा, ‘‘ये सब मेरी वजह से हुआ है. शैली सही कहा था तुम ने कि मैं प्यार का दिखावा करता हूं. हां, शैली तुम सही कहती थी मैं अच्छा इंसान नहीं हूं,’’ बोल वह रो पड़ा और फिर शैली को सीने से लगा कर चूमने लगा.

जिस शैली ने पलभर के लिए भी किसी के सामने आंसू न बहाए थे, आज विवान को अपने इतने पास देख कर उसी शैली की बड़ीबड़ी आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई. रोतेरोते ऐसी हिचकी बंधी कि बोल नहीं पा रही थी. लेकिन दोनों अपने किए पर पश्चात्ताप कर रहे थे और मन ही मन एकदूसरे से माफी भी मांग रहे थे. दोनों को देख कर लग रहा था कि भले ही कितने उतारचढ़ाव आए इन के जीवन में पर एकदूसरे को दिल की गहराइयों से प्यार करते हैं.

Famous Hindi Stories : नई रोशनी की एक किरण

Famous Hindi Stories :  बेटियां जिस घर में जाती हैं खुशी और सुकून की रोशनी फैला देती हैं. पर पता नहीं, बेटी के पैदा होने पर लोग गम क्यों मनाते हैं. सबा थकीहारी शाम को घर पहुंची. अम्मी नमाज पढ़ रही थीं. नमाज खत्म कर उन्होंने प्यार से बेटी के सलाम का जवाब दिया. उस ने थकान एक मुसकान में लपेट मां की खैरियत पूछी. फिर वह उठ कर किचन में गई जहां उस की भाभी रीमा खाना बना रही थीं. सबा अपने लिए चाय बनाने लगी. सुबह का पूरा काम कर के वह स्कूल जाती थी. बस, शाम के खाने की जिम्मेदारी भाभी की थी, वह भी उन्हें भारी पड़ती थी. जब सबा ने चाय का पहला घूंट लिया तो उसे सुकून सा महसूस हुआ.

‘‘सबा आपी, गुलशन खाला आई थीं, आप के लिए एक रिश्ता बताया है. अम्मी ने ‘हां’ कही है, परसों वे लोग आएंगे,’’ भाभी ने खनकते हुए लहजे में उसे बताया. सबा का गला अंदर तक कड़वा हो गया. आंखों में नमकीन पानी उतर आया. भाभी अपने अंदाज में बोले जा रही थीं, ‘‘लड़के का खुद का जनरल स्टोर है, देखने में ठीकठाक है पर ज्यादा पढ़ालिखा नहीं है. स्टोर से काफी अच्छी कमाई हो जाती है, आप के लिए बहुत अच्छा है.’’

सबा को लगा वह तनहा तपते रेगिस्तान में खड़ी है. दिल ने चाहा, अपनी डिगरी को पुरजेपुरजे कर के जला दे. भाभी ने मुड़ कर उस के धुआं हुए चेहरे को देखा और समझाने लगीं, ‘‘सबा आपी, देखें, आदमी का पढ़ालिखा होना ज्यादा जरूरी नहीं है. बस, कमाऊ और दुनियादारी को समझने वाला होना चाहिए.’’

सबा ने दुख से रीमा को देखा. रीमा एक कम पढ़ी, नासमझ लड़की थी. वह आटेसाटे की शादी (लड़की दे कर लड़की ब्याहना) में सबा की भाभी बन कर आ गई थी. सबा की छोटी बहन लुबना की शादी रीमा के भाई आजाद से हुई थी. आज वही रीमा कितनी आसानी से सबा की शादी के बारे में सबकुछ कह रही हैं.

अब्बा ने एक के बाद एक लड़कियां होने का इलजाम भी अम्मी पर लगाया, हफ्तों बेटियों की सूरत नहीं देखी. वह तो अच्छा हुआ तीसरी बार बेटा हो गया, तो अम्मी की हैसियत का ग्राफ कुछ ऊंचा हो गया और अब्बा भी कुछ नरम पड़े. बेटियों का भार कम करने की खातिर बचपन में ही भाई की शादी मामू की बेटी रीमा से और छोटी बहन लुबना की शादी रीमा के भाई आजाद से तय कर दी. आजाद सबा से उम्र में छोटा था इसलिए लुबना की बात तय कर दी. आज पहली बार उसे लड़की होने की बेबसी का एहसास हुआ.

‘‘रीमा, तुम क्या जानो इल्म कैसी दौलत है? कैसी रोशनी है, जो इंसान को जीने का सलीका सिखाती है? वहीं यह डिगरी मर्दऔरत के बीच ऐसे फासले भी पैदा कर देती है कि औरत की सारी उम्र इन फासलों को पाटने में कट जाती है.’’

सबा का कतई दिल न चाह रहा था कि एक बार फिर उसे शोपीस की तरह लड़के वालों को दिखाया जाए पर अम्मी की मिन्नत और बेबसी के आगे वह मजबूर हो गई. वे कहने लगीं, ‘‘सबा, मेरी खातिर मान जाओ. मुझे पूरी उम्मीद है कि वे लोग तुम्हें जरूर पसंद करेंगे.’’

उस ने दुखी हो सोचा, ‘उस की ख्वाहिश व पसंद का किसी को एहसास नहीं. वह एमएससी पास है और एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में नौकरी करती है फिर भी पसंद लड़का ही करेगा,’ उस ने उलझ कर कहा, ‘‘अम्मी, कितने लोग तो आ कर रिजैक्ट कर गए हैं, किसी को सांवले रंग पर एतराज, किसी को उम्र ज्यादा लगी, किसी को पढ़ालिखा होना और किसी को नौकरी करना नागवार गुजरा. अब फिर वही नाटक.’’

अम्मी रो पड़ीं, ‘‘बेटी, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. तुम्हारी शादी मुझे सब से पहले करनी थी पर तुम हमारी मजबूरी और हालात की भेंट चढ़ गईं.’’

सबा यह नौकरी करीब 8 साल से कर रही थी, जब वह बीएससी फाइनल में थी तो अब्बा की एक ऐक्सिडैंट में टांग टूट गई, नौकरी प्राइवेट कंपनी में थी. बहुत दिनों के इलाज के बाद लकड़ी के सहारे चलने लगे. इस अरसे में नौकरी खत्म हो गई.

कंपनी से मिला पैसा कुछ इलाज में खर्च हुआ, कुछ घर में. अब आमदनी का कोई जरिया न था. लुबना और छोटा भाई जोहेब अभी पढ़ रहे थे. उस ने बीएससी पास करते ही नौकरी की तलाश शुरू कर दी. अच्छी डिवीजन होने के कारण उसे इसी स्कूल में प्राइमरी सैक्शन में नौकरी मिल गई. उस ने नाइट क्लासेस से एमएससी और बीएड पूरा किया और फिर सेकेंडरी सैक्शन में प्रमोट हो गई. अब अब्बा उसे बेहद प्यार करते. वही तो घर की गाड़ी खींच रही थी.

शाम को गहरे रंगों के रेशमी कपड़ों में लड़के की अम्मी और 2 बहनें आईं. उन लोगों ने बताया कि लड़के, नईम की ख्वाहिश है कि लड़की पढ़ीलिखी हो, इसलिए वे लोग सबा को देखने आए हैं.

लड़के की अम्मी ने हाथों में ढेर सी चमकती चूडि़यां पहन रखी थीं. खनखनाते हुए वे बोलीं, ‘‘हमारे बेटे की डिमांड पढ़ीलिखी लड़की है, इसलिए हमें तो आप की बेटी पसंद है.’’

अम्मी ने शादी में देर न की क्योंकि जोहेब की बहुत अच्छी नौकरी लगे 2 साल हो चुके थे. काफी कुछ तो उन्होंने दहेज में देने को बना रखा था. कुछ और तैयारी हुई और सबा दुलहन बन कर नईम के घर पहुंच गई.

सबा उस मामूली से सजे कमरे में दुलहन बनी बैठी थी. उस की ननदें और उस की सहेलियां कुछ देर उस के पास बैठी बचकाने मजाक करती रहीं, फिर भाई को भेजने का कह कर उसे तनहा छोड़ गईं. काफी देर बाद उस की जिंदगी का वह लमहा आया जिस का लड़कियां बड़ी बेसब्री से इंतजार करती हैं. नईम हाथ में मोबाइल लिए अंदर दाखिल हुआ और उस के पास बैठ गया, उस का घूंघट उठा कर कोई खूबसूरत या नाजुक बात कहने के बजाय वह, उसे मोबाइल से अपने दोस्तों के बेहूदा मैसेज पढ़ कर सुनाने लगा जो खासतौर पर उस के दोस्तों ने उसे इस रात के लिए भेजे थे. सबा सिर झुकाए सुनती रही. उस का दिल भर आया. वह खूबसूरत रात बिना किसी अनोखे एहसास, प्यार के जज्बात के गुजर गई.

सुबह नाश्ते में पूरियां, हलवा, फ्राइड चिकन देख उस ने धीरे से कहा, ‘‘मैं सुबहसुबह इतना भारी नाश्ता नहीं कर सकती.’’

‘‘ठीक है, न खाओ,’’ नईम ने लापरवाही से कहा, फिर उस के लिए ब्रैडदूध मंगवा दिया, न कोई मनुहार न इसरार.

फिर जिंदगी एक इम्तिहान की तरह शुरू हो गई. सबा अभी अपनेआप को इस बदले माहौल में व्यवस्थित करती, उस से पहले ही सब के व्यवहार बदलने लगे. सास की तीखी बातें, ननदों के बातबात पर पढे़लिखे होने के ताने. जैसे उसे नीचा दिखाने की होड़ शुरू हो गई. उस का व्यवहारकुशल और पढ़ालिखा होना जैसे एक गुनाह बन गया. सबा इसे झेल नहीं पा रही थी इसलिए उस ने खामोशी ओढ़ ली. धीरेधीरे सब से कटने लगी. उन लोगों की बातों में भी या तो किसी की बुराई होती या मजाक उड़ाया जाता, वह अपने कमरे तक सीमित हो गई.

नईम का नरम और बचकाना रवैया उसे खड़े होने के लिए जमीन देता रहा. इतना भी काफी था. जब वह स्टोर से आता मांबहनों के पास एकडेढ़ घंटे बैठता, तीनों उस की शिकायतों के दफ्तर खोल देतीं. हर काम में बुराई का एक पहलू मिल जाता, खाने में कम तेल डालना, छोटी रोटियां बनाना कंजूसी गिना जाता, साफसफाई की बात पर मौडर्न होने का इलजाम, चमकदमक के रेशमी कपड़े न पहनने पर फैशन की दुहाई, ये सब सुन उस का मन कसैला हो जाता.

नईम पर कुछ देर इन शिकायतों का असर रहता फिर वह सबा से अच्छे से बात करता. क्योंकि यह उसी की ख्वाहिश थी कि उसे पढ़ीलिखी बीवी मिले और वह अपने दोस्तों पर उस की धाक जमा सके पर सबा को एक शोपीस बन कर नईम के दोस्तों के यहां जाना जरा भी अच्छा नहीं लगता था.

नौकरी तो वह छोड़ ही चुकी थी. एक तो स्कूल ससुराल से बहुत दूर था, दूसरे, शादी की एक शर्त नौकरी छोड़ना भी थी. अपना काम पूरा कर अपने कमरे में किताबें पढ़ती रहती. कानून की डिगरी लेना उस के सपनों में से एक था पर हालात ने इजाजत न दी, न ही वक्त मिला. अब वह अपने खाली टाइम में कानून की किताबें पढ़ अपना यह शौक पूरा करती. वह एक समझदार बेटी, एक परफैक्ट टीचर, एक संपूर्ण औरत तो थी पर मनचाही बहू नहीं बन पा रही थी.

कुछ दिनों से वह महसूस कर रही थी कि नईम कुछ उलझाउलझा और परेशान है. न पहले की तरह दिनभर के हालात उसे सुनाता है न बातबेबात कहकहे लगाता है. अम्मी व बहनों की बातों का भी बस हूंहां में जवाब देता है. पहले की शोखी, वह बचपना एकदम खत्म हो गया था. उस रात सबा की आंख खुली तो देखा नईम जाग रहा है, बेचैनी से करवटें बदल रहा है. सबा ने एक फैसला कर लिया, वह उठ कर बैठ गई और बहुत प्यार से पूछा, ‘‘नईम, मैं कई दिनों से देख रही हूं, आप परेशान हैं. बात भी ठीक से नहीं करते, क्या परेशानी है?’’

नईम ने टालते हुए कहा, ‘‘नहीं, ऐसा कुछ खास नहीं, स्टोर की कुछ उलझनें हैं.’’

सबा ने उस के बाल संवारते हुए कहा, ‘‘नईम, हम दोनों ‘शरीकेहयात’ हैं यानी जिंदगी के साथी. आप की परेशानी और दुख मेरे हैं, उन्हें बांटना और सुलझाना मेरा भी फर्ज है, हो सकता है कोई हल हमें, मिल कर सोचने से मिल जाए. आप खुल कर मुझे पूरी बात बताइए.’’

‘‘सबा, मैं एक मुश्किल में फंस गया हूं. एक दिन एक सेल्सटैक्स अफसर मेरे स्टोर पर आया. ढेर सारा सामान लिया. जब मैं ने पैसे लेने के लिए बिल बना कर दिया तो वह एकदम गुस्से में आ गया. कहने लगा, ‘तुम जानते हो मैं कौन हूं, क्या हूं? और तुम मुझ से पैसे मांग रहे हो?’

‘‘मैं ने विनम्र हो कर कहा, ‘साहब, काफी बड़ा बिल है, मैं खुद सामान खरीद कर लाता हूं.’

‘‘इतना सुनते ही वह बिफर उठा, ‘मैं देख लूंगा तुम्हें, स्टोर चलाने की अक्ल आ जाएगी. तुम मेरी ताकत से नावाकिफ हो. ऐसे तुम्हें फसाऊंगा कि तुम्हारी सारी अकड़ धरी की धरी रह जाएगी.’ और सामान पटक कर स्टोर से निकल गया. उस के बाद उस का एक जूनियर आ कर सारे खातों की पूछताछ कर के गया और धमकी दे गया कि जल्द ही पूरी तरह चैकिंग होगी और एक नोटिस भी पकड़ा गया. इतना लंबा नोटिस अंगरेजी में है, पता नहीं कौनकौन से नियम और धाराएं लिखी हैं. तुम तो जानती हो मेरी अंगरेजी बस कामचलाऊ है, हिसाबकिताब का ज्यादा काम तो मुंशी चाचा देखते हैं.’’

सबा ने सुकून से सारी बात सुनी और तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल परेशान न हों, जब आप कोई गलत काम नहीं करते हैं तो आप को घबराने की जरा भी जरूरत नहीं है. अगर खातों में कुछ कमियां या लेजर्स नौर्म्स के हिसाब से नहीं हैं तो वह सब हो जाएगा. आप सारे खाते और नोटिस, नौर्म्सरूल्स सब घर ले आइए, मैं इत्मीनान से बैठ कर सब चैक कर लूंगी या आप मुझे स्टोर पर ले चलिए, पीछे के कमरे में बैठ कर मैं और मुंशी चाचा एक बार पूरे खाते और हिसाब नियमानुसार चैक कर लेंगे. अगर कहीं कोई कमी है तो उस का भी हल निकाल लेंगे, आप हौसला रखें.’’

सबा की विश्वास से भरी बातें सुन कर नईम को राहत मिली. उस के होंठों की खोई मुसकराहट लौट आई.

दूसरे दिन एक अलग तरह की सुबह हुई. सबा भी नईम के साथ जाने को तैयार थी. यह देख अम्मी की त्योरियां चढ़ गईं, ‘‘हमारे यहां औरतें सुबहसवेरे शौहर के साथ सैर करने नहीं जाती हैं.’’

नईम अम्मी का हाथ पकड़ कर उन्हें उन के कमरे में ले गया और उस पर पड़ने वाली विपदा को इस अंदाज में समझाया कि अम्मी का दिल दहल गया. वे चुप थीं, कमरे में बैठी रहीं. सबा नईम के साथ चली गई. बात इतनी परेशान किए थी कि अम्मी का सारा तनतना झाग की तरह बैठ गया.

सबा के लिए यह कड़े इम्तिहान की घड़ी थी. यही एक मौका उसे मिला था कि अपनी तालीम का सही इस्तेमाल कर सकती थी. उस ने युद्धस्तर पर काम शुरू कर दिया. एक तो वह सहनशील थी दूसरे, बीएससी में उस के पास मैथ्स था, और जनरलनौलेज व कानूनी जानकारी भी अच्छीखासी थी.

पहले तो उस ने नोटिस ध्यान से पढ़ा, फिर एकएक एतराज और इलजाम का जवाब तैयार करना शुरू किया. मुंशीजी ईमानदार व मेहनती थे पर इतने ज्यादा पढ़े न थे लेकिन सबा के साथ मिल कर उन्होंने सारे सवालों के सटीक व नौर्म्स पर आधारित, सही उत्तर तैयार कर लिए. शाम तक यह काम पूरा कर उस ने नोटिस का टू द पौइंट जवाब भिजवा दिया.

एक बोझ तो सिर से उतरा. अब उन्हें बिलबुक के अनुसार सारे खाते चैक करने थे कि कहीं भी छोटी सी भूल या कमी न मिल सके. एक जगह बिलबुक में एंट्री थी पर लेजर में नहीं लिखा गया था. नईम ने उस बिल पर माल भेजने वाली पार्टी से बातचीत की तो खुलासा हुआ कि माल भेजा गया था पर मांग के मुताबिक न होने की वजह से वापस कर के दूसरे माल की डिमांड की गई थी जो जल्द ही आने वाला था. सबा ने उस के लिए जरूरी कागजात तैयार कर लिए. पार्टी कंसर्न से जरूरी कागजात पर साइन करवा के रख लिए.

3 दिन की जीतोड़ मेहनत के बाद नईम और सबा ने चैन की सांस ली. अब कभी भी चैकिंग हो जाए, कोई परेशानी की बात नहीं थी. शाम 4 बजे जब सबा घर वापस जाने की तैयारी कर रही थी उसी वक्त सेल्सटैक्स अफसर अपने 2 बंदों के साथ आ गया. आते ही उस ने नईम और मुंशीजी से बदतमीजी से बात शुरू कर दी.

दोनों जब तक जवाब देते, सबा उठ कर सामने आ गई और उस ने बहुत नरम और सही अंगरेजी में कहा, ‘‘सर, आप सरकारी नौकर हैं. जांच और पूछताछ करना आप का फर्ज है. आप तरीके से पूछें फिर भी आप को तसल्ली न हो तो आप लिखित में नोटिस दें, हम उस का जवाब देंगे. आप की पहली इन्क्वायरी का संतोषप्रद जवाब दिया जा चुका है. आप को जो भी मालूमात चाहिए, मुझ से पूछिए क्योंकि लेजर मैं मेंटेन करती हूं पर पूछताछ में अपने लहजे और भाषा पर कंट्रोल रखिएगा क्योंकि हम भी आप की तरह संभ्रांत नागरिक हैं.’’

इतनी सटीक और परफैक्ट अंगरेजी में जवाब सुन अफसर के रवैए में एकदम फर्क आ गया. काफी देर जांच चलती रही, सबा ने बड़े आत्मविश्वास से हर शंका का बड़े सही ढंग से समाधान किया क्योंकि पिछले 4 दिनों में वह हर बात को अच्छी तरह से समझ चुकी थी. सेल्सटैक्स अफसर कोई घपला न निकाल सका, इसलिए अपने साथियों के साथ वापस चला गया, पर धमकी देते गया कि उस की खास नजर इस स्टोर पर रहेगी. अकसर परेशान करने को नोटिस आते रहे जिन्हें सबा ने बड़ी सावधानी से संभाल लिया.

घर पहुंच कर नईम खुशी से पागल हो रहा था, अम्मी और बहनों को सबा की काबिलीयत विस्तार से जताते हुए बोला, ‘‘सबा का पढ़ालिखा होना, उस की गहरी जानकारी और अंगरेजी बोलना सारी मुसीबतों से टक्कर लेने में कामयाब रहे. पहले यही अफसर मुझ से ढंग से बात नहीं करता था. मेरा अंगरेजी मेें ज्यादा दखल न होने से और विषय की पकड़ कमजोर होने से मुझ पर हावी हो रहा था. अपनी जानकारी से सबा ने ऐसा मुंहतोड़ जवाब दिया है कि अब बेवजह मुझे परेशान न करेगा. मैं ने फैसला कर लिया है कि सबा हफ्ते में 2 बार आ कर हिसाबकिताब चैक करेगी ताकि आइंदा ऐसा कोई मसला न खड़ा हो.’’

एक अरसे के बाद अम्मी ने प्यार से सबा को गले लगाया. बहनें भी प्यार से लिपट गईं. सबा को लगा उस की मुश्किलों का खत्म होने का वक्त आ गया है. उन्हें हंसता देख कर नईम बोला, ‘‘अम्मी, मैं ने शादी के वक्त शर्त रखी थी कि लड़की पढ़ीलिखी होनी चाहिए तो आप सब खूब नाराज हो रहे थे पर उस वक्त पढ़ीलिखी बीवी की ख्वाहिश इसलिए थी कि मैं कम पढ़ालिखा था. उस कमी को मैं अपनी पढ़ीलिखी बीवी से पूरी करना चाहता था और मैं गर्व से अपने दोस्तों से कह सकूं कि मेरी बीवी एमएससी है.

‘‘यह हकीकत तो अब खुली है कि इल्म सिर्फ दिखाने या नाज करने के लिए नहीं होता. इस मुश्किल घड़ी में जब मैं बेहद निराश और डिप्रैस्ड था, उस वक्त सबा ने अपनी तालीम, समझदारी व जानकारी से मामला संभाला. आज मैं अपनी ख्वाहिश की जिंदगी और कारोबार में इल्म की अहमियत को समझ गया हूं. इल्म कोई शोपीस नहीं है बल्कि हर समस्या, हर मुश्किल से जूझने का सफल हथियार है.’’

सबा ने खुशी से चमकती आंखों से नईम को शुक्रिया कहा.

सबा के स्टोर में मदद करने से एक एहसान के बोझ से दबी अम्मी उस से कुछ हद तक नरम हो गईं पर दिल में जमी ईर्ष्या और कम होने के एहसास की धूल अभी भी अपनी जगह पर थी. बहनें भी रूखीरूखी सी मिलतीं. सबा सोचने लगी, उस से कहीं गलती हो रही है. एकाएक उस के दिमाग में धमाका हुआ. उसे एहसास हुआ, कोताही उस की तरफ से भी हो रही है. अभी लोहा गरम है, बस एक वार की जरूरत है. वह पढ़ीलिखी है यह एहसास उस पर भी तो हावी रहा था. अनजाने में वह उन से दूर होती गई.

अगर वे लोग अपनी जहालत और नासमझी से उसे अपना नहीं रहे थे तो उस ने भी कहां आगे बढ़ कर कोशिश की. वह तो समझदार थी. उसे ही उन लोगों का  साथ निभाना था. उस ने अपनी बेहतरी को एक खोल की तरह अपने ऊपर चढ़ा लिया था. अब उसे इस खोल को तोड़ कर उन लोगों के लेवल पर उतर कर उन के दिलों में धीरेधीरे जगह बनानी होगी. यही तो उस की कसौटी है कि उसे अपनी तालीम को इस तरह इस्तेमाल करना है कि वे सब दिल से उस के चाहने वाले हो जाएं. उन की नफरत मुहब्बत में बदल जाए. पहल उसे ही करनी होगी. अपने गंभीर और आर्टिस्टिक मिजाज को छोड़ कर अपने घमंड के पीछे डाल कर उसे यह रिश्तों की जंग जीतनी होगी.

दूसरे दिन सबा ने गहरे रंग का रेशमी सूट पहना. झिलमिल करता दुपट्टा ओढ़ नीचे आ गई. उस की सास तख्त पर बैठी सिर में तेल डाल रही थीं. वह उन के करीब जा कर बैठ गई. उन्होंने मुसकरा कर उस के खूबसूरत जोड़े को देखा, उस ने उन के हाथ से कंघा ले कर कंघी करते हुए कहा, ‘‘अम्मी, अगर नासमझी में मुझ से कोई भूल हुई है तो माफ करें, अपनेआप को मैं आप की ख्वाहिश के मुताबिक बदल लूंगी.’’

अम्मी हैरान सी उसे देख रही थीं. आज इस चमकीले सूट में वह उन्हें बड़ी अपनी सी लग रही थी. वह उस के संजीदा व्यवहार से बदगुमान हो गई थीं. उन्हें लगा था कि तालीमयाफ्ता, होशियार बहू उन से उन का बेटा छीन लेगी, क्योंकि नईम वैसे भी उसे खूब चाहता था. कहीं बहू बेटे पर हावी न हो जाए, इसलिए उन्होंने उस के नुक्स निकाल कर उस की अहमियत कम करना शुरू कर दिया. बेटियों ने भी साथ दिया क्योंकि सबा ने भी अपने आसपास एक नफरत की दीवार खड़ी कर दी थी.

आज वही दीवार, अपनेपन और मुहब्बत की गरमी से पिघल रही थी. उस ने अम्मी की चोटी गूंथते हुए कहा, ‘‘अम्मी, आप मुझे रिश्तों का मान दीजिए, मुझे अपनी बेटी समझें, मुझे भी रिश्ते निभाने आते हैं. मैं आप के बेटे को कभी आप से दूर नहीं करूंगी बल्कि मैं भी आप की बन जाऊंगी. मैं मुहब्बत की प्यासी हूं. रमशा और छोटी मेरी बहनें हैं. आप उन्हीं की तरह मुझे अपनी बेटी समझें. तालीम और काबिलीयत ऐसी चीज नहीं है जो दिलों के ताल्लुक और मुहब्बत में सेंध लगाए.’’

अम्मी को लग रहा था जैसे उन के कानों में मीठा रस टपक रहा है. वे ठगी सी काबिल बहू की बातें सुन रही थीं जो सीधे उन के दिल में उतर रही थीं. उसी ने उन के बेटे को कितनी बड़ी मुश्किल से निकाला है पर जरा सा गुरूर नहीं है. सबा ने रमशा और छोटी को दुलारते हुए कहा, ‘‘आप इन के लिए परेशान न हों, मैं इन दोनों को भी जमाने के साथ चलना सिखाऊंगी. मेरी कुछ, बहुत अच्छे घरों में पहचान है. वहां इन दोनों के लिए रिश्ते भी देखूंगी,’’ यह बात सुन कर दोनों ननदों की आंखों में नई जिंदगी के ख्वाब तैरने लगे.

शाम को नईम जब स्टोर से आया तो घर में खाने की खुशगवार खुशबू के साथ प्यार की महक भी थी. सब ने हंसतेमुसकराते खाना खाया. सबा की एक छोटी सी पहल ने सारा माहौल खुशियों से भर दिया. उस ने अपनी समझदारी से अपना अहं छोड़ कर अपना घर बचा लिया, क्योंकि कुछ पाने के लिए झुकना जरूरी है. उसे यह बात समझ में आ गई कि नीचे झुकने से कद छोटा नहीं होता बल्कि ऊंचा हो जाता है. उन सब में इल्म की कमी से एक एहसासेकमतरी था, उसे छिपाने के लिए वे सबा में कमियां ढूंढ़ते थे. आज उस ने उन के साथ कदम से कदम मिला कर उन के खयालात बदल दिए.

दरअसल, एक रंग पर दूसरा रंग मुश्किल से चढ़ता है. नया रंग चढ़ाने को पुराने रंग को धीरेधीरे हलका करना पड़ता है. दूसरी शाम नईम की पसंद के मुताबिक तैयार हो कर वह उस के दोस्त के यहां खुशीखुशी मिलने जा रही थी. यह नई जिंदगी का खुशगवार आगाज था जिस का उजाला उस के ख्वाबों में नए रंग भरने वाला था.

Best Hindi Story : हो जाने दो

Best Hindi Story : “सुनो, तुम वापस आ जाओ, जलज. मुझे तुम्हारी जरूरत है. और हमारे बच्चे को भी. तुम लौट आओ, प्लीज.” विलाप करती कनिका पति जलज के पार्थिव शरीर से लिपट गई. बड़ी ननद राखी ने उसे खींच कर अलग करने की कोशिश की, लेकिन कनिका ने जलज का हाथ नहीं छोड़ा.

राखी ने लाचारी से अपनी मां माधवी की तरफ देखा. माधवी शोक संतप्त महिलाओं की भीड़ में से उठ कर आई और पति को अंतिम पलों में निहारती कनिका को झटके से खींच कर उस से अलग कर दिया. कनिका को लगभग घसीटती हुई माधवी भीतर ले आई.

हमेशा चहकने वाला जलज आज कितना शांत लेटा हुआ है मानो उसे किसी से कोई मतलब ही नहीं. कनिका और उस के गर्भ में पल रहे 2 माह के अपने बच्चे से भी कैसे उस का मोह एक झटके में ही भंग हो गया. अभी 5 साल भी नहीं हुए थे उस की शादी को और ये वज्रपात…

30 वर्ष की उम्र में तो कनिका की कई सहेलियों की शादी तक नहीं हुई थी और उस ने इसी उम्र में इश्क के लाल से ले कर वैधव्य के सफ़ेद रंग तक, सबकुछ देख लिया. कनिका कैसे स्वीकार कर ले नियति के इस कठोर फैसले को. लेकिन स्वीकार करने के अलावा दूसरा चारा भी तो नहीं है.

जलज की पार्थिव देह की अंतिमयात्रा की तैयारी हो चुकी थी. पंडित जी अपना काम कर चुके थे. उन के कहे अनुसार, चचेरे छोटे भाई पंकज ने अपना सिर मुंडवा कर बड़े भाई को आखिरी भेंट दी. माधवी और राखी बारबार बेसुध होती कनिका को पकड़ कर पति के अंतिम दर्शनों के लिए लाईं, तो कनिका का दारुण क्रंदन सुन कर उपस्थित जनसमुदाय भी अपने आंसू नहीं रोक पाया.

बिंदी तो आंसुओं के साथ पहले ही बह कर जा चुकी थी. राखी ने निर्ममता से भाभी के हाथ की चूड़ियां भाई के सिरहाने फोड़ दीं. माधवी ने पांव की बिछिया निकाल कर फेंक दी. कनिका चाह कर भी विरोध नहीं कर पाई. नहीं कह पाई कि जलज को बहुत शौक था उसे भरभर हाथ चूड़ियां पहने देखने का, कोई जा कर देखे तो सही कि उस की ड्रैसिंग टेबल कैसे अटी पड़ी है रंगबिरंगी चूड़ियों से. लेकिन, शब्द भी निशब्द हो चुके थे.

अंतिमयात्रा के लिए जैसे ही घर के आंगन ने अपने जवान लाडले को विदा दी, हर आंख नम हो आई. कनिका दहाड़ मार कर नीम बेहोशी की हालत में गिर पड़ी.

लगभग 2 घंटे बाद कनिका को होश आया तो उस ने खुद को महिलाओं से घिरा पाया. उस ने घबरा कर अपनी आंखें फिर से बंद कर लीं. वह इस भयावह हकीकत का सामना करने से कतरा रही थी.

“ओके, बाय, अपना खयाल रखना और हमारे बच्चे का भी,” जलज ने हमेशा की तरह मुसकरा कर कहा था.

“हां बाबा. और हां, तुम भी पहुंचते ही फोन कर देना,” जवाब में कनिका भी मुसकराई और जलज ने अपनी बाइक आगे बढ़ा दी. कनिका अपनी सीट पर आ कर बैठ गई.

बरसों से चला आ रहा यह संवाद आज भी दोनों के बीच रिपीट हुआ था. लेकिन तब कनिका कहां जानती थी कि यह उन का आखिरी संवाद होगा. इस से पहले कि रोज की तरह जलज का औफिस पहुंचने का फोन आता, कनिका के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से फोन आया.

“हेलो, जी, मैं मयंक बोल रहा हूं. क्या आप जलज जी को जानती हैं?” उधर से आई आवाज की गंभीरता से कनिका सहम गई.

“जी, वे मेरे पति हैं. आप कौन हैं और क्यों पूछ रहे हैं?” कनिका की छठी इंद्रिय उसे अशुभ संकेत दे रही थी.

“उन का ऐक्सिडैंट हो गया है. मैं उन्हें ले कर संजीवनी हौस्पिटल आया हूं. आप तुरंत यहां आ जाइए. कुछ फौरमैलिटी करनी हैं,” मयंक ने एक सांस में सब कह डाला.

कनिका तुरंत हौस्पिटल की तरफ भागी. औटो में बैठते ही उस ने पंकज को फोन कर दिया और तुरंत आने को कहा. भागतेदौड़ते वह हौस्पिटल पहुंची, पता चला कि सबकुछ ख़त्म हो चुका है. कनिका पथराई सी हौस्पिटल की फौरमैलिटी करती रही.

अब तक बात सब जगह फ़ैल गई थी. जलज के कुछ स्टाफ मैम्बर्स भी हौस्पिटल पहुंच गए और उन की मदद से जलज की बौडी को एम्बुलैंस से घर लाने की कवायद हुई. कुछ महिलाएं कनिका को घर ले आईं और फिर जो कुछ हुआ वह तो अब तक कनिका की आंखों से रिस ही रहा है.

“वो लोग आ गए, चलो. पहले कनिका नहा ले, फिर एकएक कर बाकी तुम लोग भी नहा लो,” माधवी ने राखी को इशारा कर के कनिका को बाथरूम में ले जाने को कहा.

कनिका अपनी अलमारी में से कपड़े निकालने लगी.“पक्के रंग की साड़ी पहनना. कोई लेसवेस या गोटाकिनारी न लगी हो, यह जरूर देख लेना,” माधवी का यह स्वर सुन कर कनिका सोच में डूब गई. कच्चापक्का तो कभी सोचा ही नहीं. जलज तो उसे हर रंग के कपड़े ला कर देता था. काले से ले कर सफ़ेद तक. किसी रंग से उसे कोई परहेज नहीं था. माधवी ने आ कर एक बैगनी रंग की प्लेन साड़ी निकाल कर उस के हाथ में थमा दी. कनिका बाथरूम की तरफ चल दी.

शीशे में अपना चेहरा देख कर कनिका डर गई. सूनी मांग-माथे का चेहरा कितना डरावना लग रहा था. उस ने घबरा कर अपनी आंखें बंद कर लीं और शीशे पर तोलिया डाल कर उसे ढक दिया.

किसी तरह रात हुई. आसपड़ोस के लोग जा चुके थे. माधवी और राखी किसी खास मंत्रणा में मशगूल थीं. कनिका किसी मूर्ति सी लौबी में जड़ हुई बैठी थी. वह रोतेरोते थक चुकी थी. उस का शरीर अब आराम करना चाहता था. लेकिन माधवी ने कहा था- “बिना मुझ से पूछे कोई काम न करना. ऐसा न हो कि किसी की नासमझी के कारण दिवंगत आत्मा को कष्ट हो.” इसलिए कनिका सास की आज्ञा की प्रतीक्षा कर रही थी.

“सो जाओ तुम लोग भी.” माधवी की आवाज सुन कर कनिका अपने कमरे की तरफ चली.“बैड पर नहीं, तुम यहीं लौबी में बिछी दरी पर सोना. यही रिवाज है,” माधवी ने कहा.

कनिका की कुछ भी कहनेसुनने या विरोध करने की शक्ति चुक चुकी थी. उस ने सूनीसूनी आंखों से सास की तरफ देखा और बिना तकिया ही दरी पर लुढ़क गई.

सुबह आंख खुलते ही कनिका का जी मिचलाने लगा. ‘मौर्निंग सिकनैस है. कुछ दिन रहेगी, फिर अपनेआप ठीक हो जाएगी. बस, आप सुबह उठते ही 2 बिस्कुट चाय के साथ खा लेना, इस से आप को बेहतर लगेगा,’ लेडी डाक्टर की कही हिदायत याद आते ही कनिका रसोई की तरफ चली.

“अरे, रुको, हाथ मत लगाना किसी भी चीज को. गऊ ग्रास से पहले कोई कुछ नहीं खाएगा,” सास की कड़कती आवाज सुनते ही बिस्कुट का डब्बा उठाती कनिका के हाथ कांप गए.

“क्या ये वही मां जी हैं जो कल तक खुद अपने हाथ से उसे मनुहार कर के चायबिस्कुट खिलाती थीं.” सास का यह रूप देख कर कनिका विस्मित थी. वह चुपचाप रसोई से बाहर आ गई और लौबी में बिछी दरी पर बैठ गई. रसोई धोई गई. फिर खाना बना. पहले गऊ ग्रास, फिर पिंडदान, फिर पंडित जी को भोजन. ये सब करतेकरते दोपहर हो गई.

उलटियां करती कनिका बेहाल हो रही थी. लेकिन अभी तक पेट में अन्न का एक दाना तक नहीं गया था. दोपहर बाद राखी उस के लिए एक प्लेट उबली हुई बेस्वाद सी सब्जी और बिना घी लगी 2 रोटी ले कर आई. मन हो न हो, लेकिन शरीर को तो भूख लगती ही है. तब और भी ज्यादा जब शरीर में एक और शरीर पल रहा हो. कनिका ने लपक कर एक निवाला मुंह की तरफ किया. खाते ही उसे उबकाई सी आ गई.

जलज कितना खयाल रखता था उस के खानेपीने का. उस के आंखें फेरते ही सब का नजरिया एक ही दिन में कितना बदल गया. जो मां जी उसे ‘खा ले, खा ले’ कहती नहीं अघाती थीं, वे आज देख भी नहीं रहीं कि वह खा भी रही है या नहीं. दो बूंद आंसुओं और दो घूंट पानी के साथ कनिका ने 2 कौर किसी तरह निगल कर प्लेट एक तरफ सरका दी.

“कनिका, 12 दिन घर में सूतक रहेगा. इसी तरह का खाना बनेगा. वैसे भी, अब सादगी की आदत डाल लो. हमारे यहां पति की चिता के साथ ही सब रागरंग भस्म हो जाता है, समझी?” माधवी ने उस की जूठी प्लेट की तरफ नजर डाली और राखी को प्लेट उठाने का इशारा किया.

‘फिर पंडित जी को क्यों छप्पन भोग खिलाए जा रहे हैं?’ कनिका ने अपने मन में उठे सवाल को वहीं का वहीं दफन कर दिया. सोच में सिर्फ एक ही बात थी, ‘कहीं जलज की आत्मा को कोई तकलीफ न हो.’

पहाड़ से दिन काटे नहीं कट रहे थे. कनिका को हिदायत थी कि सुबह सब से पहले उठ कर नहानाधोना कर ले और पक्के रंग के कपड़े पहन कर बैठक के लिए बैठ जाए. उसे ध्यान रखना होता था कि उस के चेहरे को कोई सुहागन स्त्री न देख ले या कोई पुरुष उसे छू न जाए. उस के इस्तेमाल किए गए कंघेतोलिए तक को सब से अलग रखा जाता था.

दिनभर शोक जताने वालों का आनाजाना लगा रहता था. कनिका को हरेक के सामने अपना कलेजा चीर कर दिखाना होता था कि उस पर कितना बड़ा पहाड़ टूट पड़ा है. आनेजाने वालों की संख्या से कनिका को अंदाजा हो गया था कि समाज में जलज का कद कितना बड़ा था. दूरदूर से उस के फेसबुक फ्रैंड्स भी अपनी संवेदनाएं प्रकट करने आ रहे थे. कुछ कनिका तक पहुंच पाते थे, तो कुछ बाहर पुरुषों की बैठक से ही लौट जाते थे.

“भाभी, ये जलज भैया के फेसबुक फ्रैंड हैं महेश. हरिद्वार से आए हैं,” राखी के यह कहने पर घुटनों में सिर दिए बैठी कनिका ने मुंह उठा कर देखा. जलज के ही हमउम्र 2 युवक नम आंखें लिए हाथ जोड़े खड़े थे. एक युवक विदेशी लग रहा था. कनिका ने भी हाथ जोड़ कर अपना सिर फिर से नीचे कर लिया.

“भाभी जी, जो कुछ हुआ, उस के लिए तो कुछ नहीं किया जा सकता लेकिन जो बचा है उसे सहेजने की जिम्मेदारी अब आप की है. जलज मेरा बहुत अच्छा दोस्त था. बेशक हमारी दोस्ती फेसबुक के माध्यम से ही हुई थी लेकिन हम एकदूसरे के बहुत करीब थे,” महेश कनिका के पास बैठ गया.

“ये मेरा दोस्त सैम है, यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कौलर है. भारतीय दर्शन पर शोध कर रहा है. असल भारत की परम्पराएं और रीतिरिवाज जानने की जिज्ञासा लिए गांवगांव, शहरशहर भटकता रहता है. इसे भी मैं अपने साथ ले आया,” महेश ने आगे कहा तो कनिका ने सैम की तरफ हाथ जोड़ कर उस का अभिवादन किया.

कनिका ने देखा भूरे बालों वाले सैम ने अपने कान पर पीर्सिंग करवा कर सोने की बाली सी पहन रखी है. दाहिने हाथ की कलाई और बाएं हाथ की भुजा पर विदेशी भाषा में लिखे कुछ शब्दों के टैटू बनवा रखे थे जिन के अर्थ कनिका की समझ से परे थे. होजरी की पतली सी सफ़ेद टीशर्ट और फुल्ली रुग्गड जींस में वह सचमुच सब से अलग दिख रहा था. माधवी की चुभती दृष्टि महसूस कर कनिका ने सैम पर से अपनी निगाहें हटा लीं और फिर से अपना मुंह घुटनों में छिपा लिया.

तभी कनिका को उबकाई सी आई और वह भाग कर वाशबेसिन की तरफ गई. उलटी कर के पलटी, तो देखा कि सैम पानी का गिलास लिए खड़ा था. कनिका को सैम की ये

ह हरकत अजीब लगी, लेकिन उसे सैम के कोमल हृदयी होने का आभास अवश्य हो गया था. उस ने चुपचाप पानी के 2 घूंट लिए और अपनी जगह आ कर बैठ गई.

“महेश जी, आप लोग खाना खा लीजिए,” राखी महेश और सैम को खाने के लिए ले गई. सैम ने कनिका की तरफ देखा. उस की आंखों में एक प्रश्न था- “आप ने खाया?” कनिका से उसे कोई प्रत्युतर का भाव नहीं मिला.

महेश की ट्रेन दूसरे दिन सुबह की थी. पूरे 20 घंटे सैम को कनिका के घर ही रहना था. उस की आंखें हर गतिविधि का भरपूर अवलोकन कर रही थीं, लेकिन भाषाई समस्या के कारण वह अधिक कहसुन नहीं पा रहा था. बारबार कनिका की तरफ उठती उस की आंखों में कनिका के प्रति सहज संवेदना झलक रही थी. एहसासों को अभिव्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता भी कहां होती है.

रात को खाना खाने के बाद शिष्टाचारवश जब सैम अपनी जूठी प्लेट सिंक में रखने गया तो उसे माधवी और राखी की फुसफुसाहट सुनाई दी. हिंदी की समझ न होने के कारण उसे समझ में तो कुछ नहीं आया लेकिन कुछ शब्द जैसे- “एबौर्शन… कनिका…” आदि से उस ने अनुमान लगाया कि ये बातें या फिर पारिवारिक फैसले शायद कनिका को ले कर हो रहे हैं. कनिका के प्रति उस की सहानुभूति और भी अधिक गहरी हो गई.

“भाभी, हम चलते हैं. आप अपना और हमारे भाई की निशानी का खयाल रखिएगा. कोई भी परेशानी हो, तो छोटा भाई समझ कर बेहिचक याद कर लेना,” महेश अगली सुबह कनिका से विदा लेने आया. उस के पीछे हाथ जोड़े सैम भी खड़ा था. कनिका मुंह से कुछ नहीं बोली, बस, अंगूठे से जमीन कुरेदती रही.

‘भाई की निशानी, पता नहीं बचेगी भी या नहीं,’ सैम मन ही मन सोच रहा था.जलज की तेरहवीं में कनिका के औफिस से भी कुछ लोग आए थे.“औपचारिकता वाली बातें सुनसुन कर आप थक चुकी होंगी. मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं. आप कब तक औफिस जौइन करेंगी,” कनिका के बौसस असद ने पूछा.

“इस बारे में हम लोगों ने अभी विचार नहीं किया है. फिलहाल 6 महीने तो भाभी कहीं आनाजाना नहीं करेंगी. उस के बाद तय किया जाएगा कि क्या करना है,” कनिका के मुंह खोलने से पहले ही राखी बोली.

“कनिका जी, जो भी फैसला करना हो, सोचसमझ कर कीजिएगा. आप का एक निर्णय आप की आने वाली पूरी जिंदगी के लिए जवाबदेह हो सकता है,” असद ने उसे सचेत किया.

लेकिन कनिका तो अपने दुख में इतना डूब चुकी थी कि उसे न तो कुछ सुनाई दे रहा था और न ही कुछ दिखाई. बस, मशीन की तरह जो भी आदेश उसे दिया जा रहा था, वह किए जा रही थी. अवचेतन मन में कहीं न कहीं यह बात भी थी कि उस के हठ या नादानी के कारण उस के जलज की आत्मा को कोई कष्ट न पहुंचे.

“कनिका, आज शोक उतारने की रस्म होगी. तुम्हें अपने मायके जा कर वापस आना है. वहां नहाधो कर नए कपड़े पहनने हैं. और हां, याद रखना, तुम्हारा मुंह कोई सुहागन स्त्री न देखे. तुम्हारी मां भी नहीं. वरना, अपशगुन होगा,” माधवी ने एक रोज उसे कहा.

“जिस बेटी को जन्म दिया, पालापोसा, उस का मुंह भला मां के लिए अशुभ कैसे हो सकता है? कनिका विस्मित थी. लेकिन तर्कवितर्क करना तो जैसे वह भूल ही चुकी थी.

जलज को गए महीना हो चला था. कनिका के भीतर इतना कुछ उमड़ताघुमड़ता रहता था कि जबतब आंखों के रास्ते बरस पड़ता था. कनिका किस से अपने दिल का हाल कहे, किस से जलज की यादों को साझा करे, उसे कुछ भी समझ में नहीं आता था. आसपास की दुनिया के लोग भी उस से कटेकटे जैसे रहते थे. माधवी तो सुबह-सुबह उस का चेहरा तक देखना पसंद नहीं करती थी. लोगों की आंखों में दिखाई देने वाली दया, बेचारगी, सहानुभूति उसे असहज कर देती थी. वह सारा दिन अकेली अपने कमरे में बैठी मोबाइल हाथ में लिए, बस, सर्फिंग करती रहती.

एक दिन फेसबुक पर सैम की फ्रैंड रिक्वैस्ट देख कर कनिका को बहुत आश्चर्य हुआ. कुछ सोच कर उस ने उसे स्वीकार कर लिया.“थैंक्स फौर ऐक्सेप्टिंग मी ऐज फ्रैंड.” तुरंत ही मैसेंजर पर सैम का मैसेज उभरा. कनिका बिना कोई रिप्लाई दिए औफलाइन हो गई.

“हेलो.”“हाउ आर यू?”“हैव यू स्टार्टेड औफिस?”“कैन वी चैट औन फोन?”“प्लीज, गिव योर मोबाइल नंबर.”दूसरे दिन सुबह सैम के इतने सारे मैसेज देख कर कनिका मुसकराए बिना न रह सकी. उस ने अपना मोबाइल नंबर उसे मैसेज कर दिया.

रात 11 बजे जब सब सो गए, तब कनिका औनलाइन थी.“मे आई कौल यू?” सैम का मैसेज दिखाई दिया.

“ओके,” कनिका ने रिप्लाई करने से पहले मोबाइल को साइलैंट मोड पर कर दिया. मोबाइल घरघराया. अनजान नंबर था. कनिका ने कौल रिसीव की. यह सैम ही था. थोड़ी देर औपचारिक बातें हुई. कनिका को सैम से बात कर के अच्छा लगा. आगे भी टच में रहने की अनुमति लेने के बाद सैम ने फोन रख दिया.

अब हर रोज देररात सैम के फोन आने लगे. कनिका को भी उस के कौल्स का इंतज़ार रहने लगा था. सैम टूटीफूटी हिंदी में उस से पूरे दिन का ब्योरा पूछता और कनिका टूटीफूटी इंग्लिश में उसे बताती. हो सकता है यह बातचीत सैम के लिए उस के शोध का एक हिस्सा मात्र हो, लेकिन कनिका उस से बात कर के बेहद तनावमुक्त महसूस करती थी. अनजान व्यक्ति के सामने खुलना वैसे भी काफी राहत भरा होता है क्योंकि यहां राज के जगजाहिर होने का भय नहीं होता.

“जलज तो अब रहे नहीं. कनिका का यहां अकेले दम घुटता होगा. आप कहें तो हम इसे अपने साथ ले जाएं,” एक दिन बेटी से मिलने आए कनिका के मांपापा ने माधवी से इजाजत मांगी. कनिका भी इस बोझिल माहौल से निकलना चाहती थी.

“अभी तो सबकुछ बिखरा पड़ा है. कुछ दिनों बाद पंकज इसे आप के पास छोड़ आएगा,” माधवी ने कुछ सोचते हुए कहा. कनिका के मांपापा खाली हाथ लौट गए.

“क्यों न कनिका को जलज के नाम की चुनरी ओढ़ा दी जाए… बात घर की घर में ही रह जाएगी,” एक रात माधवी ने पति रमेश से जिक्र किया. रमेश को भी पत्नी की बात में दम लगा.

“लेकिन क्या पंकज और भाईसाहब इस बात के लिए राजी हो जाएंगे? उन के भी तो अपने बेटे की शादी को ले कर कुछ अरमान होंगे. कौन जाने पंकज ने किसी को पसंद ही कर रखा हो,” रमेश ने आशंका जताई.

“मैं कल पंकज से बात कर के देखती हीन,” माधवी ने पति को आश्वस्त किया.“चाची, मैं भाभी को अपनाने के लिए सोच तो सकता हूं लेकिन यह बच्चा? मुझे लगता है कि बच्चे को ले कर आज भावनात्मक आवेश में लिया गया फैसला मेरी आने वाली पूरी जिंदगी के लिए नासूर बन सकता है. यह किसी के भी हित में नहीं होगा, न मेरे न कनिका और ना ही बच्चे के,” पंकज ने व्यावहारिकता भरा अपना मत स्पष्ट किया.

“तो ठीक है न, अभी तो ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, मैं किसी डाक्टर से बात कर के इसे अबौर्ट करवाने की व्यवस्था करती हूं,.” माधवी ने कहा. सुनते ही कनिका के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई. अनजाने ही फैमिली मीटिंग में उठे इस मुद्दे पर हो रही बहस उस के कानों में पड़ गई थी.

“सैम, आय एम इन ट्रबल. माय फैमिली हैज डिसाइडेड टू अबौर्ट माय बेबी,” रात में कनिका ने सिसकते हुए सैम को फोन पर बताया.

“ओ माय गौड़, हाउ कैन दे डू दिस? कनिका, माय डियर, आय एम फीलिंग सो हैल्पलैस. बट लिसन, यू शुड गो टू योर मौम. शी मस्ट हैल्प यू,” सैम ने कनिका को अपनी मजबूरी तो बताई लेकिन साथ ही उसे रास्ता भी सुझा दिया. दूसरे दिन कनिका ने अपनी मां को फोन कर के मायके जाने की इच्छा जताई और 2 दिनों बाद ही उस के पापा उसे ससुराल से ले गए.

“वैसे कनिका, तुम्हारी सास और पंकज का फैसला मुझे व्यावहारिक लगता है. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है. तुम्हें अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए. बच्चे तो और हो जाएंगे. तुम्हें पंकज के फैसले में सहयोग करना चाहिए,” मां ने भी जब कनिका को दुनियादारी समझाने की कोशिश की, तो वह टूट गई.

“प्लीज सैम, जस्ट गाइड मी. व्हाट शुड आई डू नाऊ? आय वांट टू कीप माय चाइल्ड,” रात को कनिका सैम से बातें करते हुए फफक पड़ी.

“वुड यू लाइक टू मैरी मी. आय विल ऐक्सेप्ट दिस बेबी,” सैम ने बिना किसी लागलपेट के कहा तो कनिका चौंक गई.

“आर यू ओके? यू नो व्हाट यू से?” कनिका ने पूछा.“येस, आय नो व्हाट आय सेड,” सैम ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा.“ओके, दैन कम टू मीट माय फैमिली,” कनिका ने उस का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए उसे आमंत्रित किया. अगले ही सप्ताह सैम और महेश कनिका के घर आए.

“तुम पागल हुई हो कनिका, तुम जानती भी हो कि इस फैसले के दूरगामी परिणाम क्या हो सकते हैं. सैम तो आज यहां है, कल अपने देश चला जाएगा. क्या तुम हम से दूर पराए देश में रह पाओगी? कहीं तुम्हारे प्रति सैम का मन बदल गया तो हम तुम्हारी मदद करने की स्थिति में भी नहीं होंगे,” पापा ने उसे समझाया.

“कल किस ने देखा है पापा. क्या हम ने जलज को ले कर कभी यह कल्पना की थी कि हमें यह दिन देखना पड़ेगा. नहीं ना. तो फिर जो हो रहा है उसे हो जाने दीजिए. मुझे अपना बच्चा चाहिए पापा. यह जलज की आखिरी निशानी है,’ कनिका लगभग रो ही पड़ी थी.

पापा निशब्द थे. कमरे में सिर्फ कनिका की सिसकियां गूंज रही थीं. “हम तुम्हारी बेवकूफी में साथ नहीं दे सकते कनिका. जान न पहचान, ऐसे ही कैसे किसी परदेसी के साथ शादी के तुम्हारे फैसले को मान लें? तुम खुद भी सैम को कितना जानती हो? एक बार तो उजड़ चुकी हो, तुम्हें दोबारा उजड़ता हुआ नहीं देख पाएंगे. बेहतर है, तुम पंकज के बारे में ही सोचो. बच्चों का क्या है, और हो जाएंगे,” मां ने भी शब्दों को कठोर करते हुए पापा की हां में हां मिलाई.

बात नहीं बनी. न तो कनिका मम्मीपापा के सामने अपना पक्ष ठीक से रख पाई और न ही भाषा की समस्या के कारण सैम उन का भरोसा जीत सका. महेश की मध्यस्थता भी काम न आई. दोष किसी का भी नहीं कहा जा सकता. बेटी के मांबाप थे, फिक्रमंद होना लाजिमी था. सभी मांबाप शायद ऐसे ही होते होंगे. सैम को निराश ही वापस लौटना पड़ा.

बातें के पांव भले ही न हों लेकिन उन की गति बहुत तीव्र होती है. कनिका और सैम के बारे में जब उस की ससुराल वालों को पता चला तो बहुत बवाल मचा. सास ने तो कुलच्छनी कहते हुए उस के लिए घर के दरवाजे ही बंद कर दिए. कनिका अकेली जरूर हो गई थी लेकिन कमजोर नहीं. उस ने अपनी नौकरी वापस जौइन कर ली. हालांकि, मां अब भी चाहती थीं कि कनिका पंकज से शादी कर के उसी घर में वापस चली जाए. आखिर देखाभाला परिवार है. अनहोनी तो किसी के भी साथ हो सकती है.

इधर कनिका के गर्भ का आकार बढ़ता जा रहा था और उधर उस पर मां का दबाव भी. दबाव था पंकज से शादी करने और बच्चा गिराने का, लेकिन कनिका किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकी. तनाव अधिक बढ़ने लगा, तो उस ने घर छोड़ दिया और वर्किंग वीमेन होस्टल में रहने लगी. सैम का शोधकार्य लगभग पूरा होने को ही था. इस के बाद यदि वह चाहे तो उसे स्थायी तो फिलहाल नहीं पर गेस्ट फैकल्टी के रूप में वहीं यूनिवर्सिटी में ही जौब मिल जाएगी. किसी और को भरोसा हो न हो, कनिका को उस पर पूरा भरोसा था.

प्रसव का समय नजदीक आ रहा था. बच्चे की दादी ने तो उस से नाता तोड़ ही लिया था, नानी भी कनिका के पास नहीं थीं. सैम और महेश ने ही आ कर सारा काम संभाला. कनिका ने बेटी को जन्म दिया. उस नर्म सी बच्ची को गोद में ले कर सैम आश्चर्य से अपनी भूरी आंखें चौड़ी कर रहा था.

‘इज दिस रियली माइन?” सैम ने बच्ची को चूमते हुए कहा.“किस के साथ किस का रिश्ता कब और कैसे बंध जाता है, कोई नहीं जानता. बीज किस ने डाला और फल किस के हाथ लगा. सब संयोग की बातें हैं,” यह सोच कर कनिका मुसकरा दी.

“सैम, कनिका और यह बच्चा, मेरे दोस्त की निशानी हैं. इन्हें हिफाजत से रखना मेरे दोस्त,” महेश ने सैम को गले लगा कर नई जिंदगी की शुभकामनाएं दीं.सैम कुछ समझा, कुछ नहीं समझा लेकिन इतना तो समझ ही गया था कि अब कनिका उस की हो चुकी है. उस ने कनिका को बांहों के घेरे में ले लिया. कनिका ने मुसकरा कर अपना हाथ एक तरफ सैम और दूसरी तरफ बच्ची के इर्दगिर्द लिपटा लिया.

बंद आंखों से खुशी की बूंदें छलकने लगीं.

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