Drama Story in Hindi: अस्तित्व- घर की चिकचिक से क्यों परेशान थी राधा

Drama Story in Hindi: घड़ी का अलार्म एक अजीब सी कर्कशता के साथ कानों में गूंजने लगा तो झल्लाहट के साथ मैं ने उसे बंद कर दिया. सोचा कि क्या करना है सुबह 5 बजे उठ कर. 9 बजे का दफ्तर है लेकिन 10 बजे से पहले कोई नहीं पहुंचता. करवट बदल कर मैं ने चादर को मुंह तक खींच लिया.

‘‘क्या करती हो ममा उठ जाओ. 7 बजे मुझे स्कूल जाना है. बस आ जाएगी,’’ साथ लेटे सोनू ने मुझे हिला कर कहा.

मैं झल्ला कर उठी, ‘‘जाना मुझे है कि तुझे चल तू भी उठ. रोज कहती हूं कि 5 बजे के बजाय 6 बजे का अलार्म लगाया कर, लेकिन तू मुझे 5 बजे ही उठाता है और खुद 6 बजे से पहले नहीं उठता.’’

‘‘सोनू…सोनू…स्कूल नहीं जाना क्या?’’ मैं ने उसे झिझोड़ दिया.

‘‘आप पागल हो मम्मा,’’ कह कर उस ने चादर चेहरे पर खींच लिया. फिर बोला, ‘‘मुझे 10 मिनट भी नहीं लगेंगे तैयार होने में. लेकिन आप ने सारा घर सिर पर उठा लिया.’’

‘‘तू ऐनी को देख. तुझ से छोटा है पर तुझ से पहले उठ चुका है. जबकि उस का स्कूल 8 बजे का है,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप बस नाश्ता तैयार कर लो. चाहे

7 बजे मुझे जाना हो और 8 बजे ऐनी को,’’ वह ?ाल्ला कर बोला.

मैं मन मार कर उठी और चाय बनाने लगी. फिर बालकनी में बैठ कर चाय की चुसकियां लेते हुए अखबार की सुर्खियों पर नजरें दौड़ा ही रही थी कि अंदर से आवाज आई, ‘‘मम्मी, पापा अखबार मांग रहे हैं.’’

मैं ने बुझे मन से अखबार के कुछ पन्ने पति को पकड़ाए और पेज थ्री पर छपी फिल्मी खबरें पढ़ने लगी. अभी खबरें पूरी पढ़ नहीं पाई थी कि पति ने आ कर ?ाटके से वे पेज भी मेरे सामने से उठा लिए. खबर पूरी न पढ़ पाने की वजह से मजा किरकिरा हो गया.

मैं ने चाय का अंतिम घूंट लिया और रसोई में आ गई. बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. जल्दीजल्दी 2 परांठे सेंके  और गिलास में दूध डाल बच्चों को नाश्ता दे उन का टिफिन तैयार करने लगी.

‘‘मम्मी, मेरी कमीज नहीं मिल रही,’’ ऐनी ने आवाज लगाई.

‘‘तुझे कभी कुछ मिलता भी है?’’ फिर कमरे में आ कर अलमारी से कमीज निकाल कर उसे दी.

‘‘मम्मी दूध ज्यादा गरम है. प्लीज ठंडा कर दो,’’ सोनू ने टाई की नौट बांधते हुए हुक्म फरमा दिया.

दूध ठंडा कर वापस जाने लगी तो सोनू मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया, ‘‘मम्मी

प्लीज 1 मिनट,’’ कह कर वह जल्दीजल्दी स्कूल बैग से कुछ निकालने लगा. फिर मिन्नतें करने लगा कि मम्मी, मेरा रिपोर्टकार्ड साइन कर दो…प्लीज मम्मी.’’

‘‘जरूर मार्क्स कम आए होंगे. इस बार तो मैं बिलकुल नहीं करूंगी. बेवकूफ समझ रखा है क्या तू ने मुझे जा, अपने पापा से करवा साइन. और तू ने मुझे कल क्यों नहीं दिखाया अपना रिपोर्टकार्ड?’’

‘‘मम्मा, प्लीज धीरे बोलो, पापा सुन लेंगे,’’ उस के चेहरे पर याचना के भाव उभर आए. हाथ पकड़ कर प्यार से मुझे पलंग पर बैठाते हुए

उस ने पेन और रिपोर्टकार्ड मुझे पकड़ा दिया.

‘‘जब भी मार्क्स कम आते हैं तो मुझे कहते हैं और जब ज्यादा आते हैं तो सीधे पापा के पास जाते हैं,’’ मैं बड़बड़ाती हुई रिपोर्टकार्ड खोल कर देखने लगी. साइंस में 100 में से 89, हिंदी में

85, मैथ्स में 92. मेरी आंखें चमकने लगीं. चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. उसे शाबासी देने के लिए मैं ने नजरें उठाई तो देखा कि आईने में बाल संवारता हुआ वह शरारत भरी निगाहों से मुझे ही देख रहा था. मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बोल उठा, ‘‘जल्दी से साइन कर दो न मम्मा, इतनी देर से मार्क्स ही देखे जा रही हो.’’

बेकाबू होती खुशी को नियंत्रित करते हुए मैं ने पेन का ढक्कन खोला. रिपोर्टकार्ड के दायीं ओर देखा तो ये पहले ही साइन कर चुके थे.

दोनों फिर मुझे देख कर हंसने लगे तो मैं खिसिया गई.

‘‘घर की चाबी रख ली है न? कहीं ऐसा न हो कि आज मुझे बाहर गमले के पीछे छिपा कर जाना पड़े,’’ मैं ने अपनी झेंप मिटाते हुए कहा.

बच्चों के काम से फारिग हुई ही थी कि पति ने दोबारा चाय की फरमाइश कर दी. ‘‘पत्ती जरा तेज डालना. सुबह जैसी चाय न बनाना. तुम्हें 16 सालों में चाय बनानी नहीं आई.’’

‘‘तुम अपनी चाय खुद क्यों नहीं बना लेते? कभी पत्ती कम तो कभी दूध ज्यादा. हमेशा मीनमेख निकालते रहते हो,’’ मैं ने भी अपना गुबार निकाल दिया.

आज दफ्तर को देर हो कर रहेगी. अभी सब्जी भी बनानी है और दूध भी उबालना है. क्याक्या करूं. मैं अपनेआप से झंझलाने लगी.

‘‘क्यों, तू समय पर  नहीं आ सकती? ये कौन सा वक्त है आने का? तेरी वजह से क्या मैं दफ्तर जाना छोड़ दूं?’’ मैं ने काम वाली पर सारा गुस्सा उतार दिया.

सारा काम निबटा कर नहाने गई तो देखा बाथरूम बंद.

‘‘तुम रोज जल्दी क्यों नहीं नहाते? जबकि तुम्हें पता है कि इस वक्त ही मेरा काम खत्म हो पाता है. अब जल्दी बाहर निकलो,’’ मैं बाथरूम का दरवाजा खटखटाते हुए लगभग चिल्ला दी.

‘‘जब तक मैं नहा कर निकलूं प्लीज मेरा रूमाल और मोजे पलंग पर रख दो,’’ शौवर के शोर को चीरती उन की मद्धिम पड़ गई आवाज सुनाई दी.

‘‘तुम मुझे 2 मिनट भी चैन से जीने मत देना,’’ मैं ने अपना तौलिया और गाउन वहीं पटका और रूमाल और मोजे ढूंढ़ने कमरे में चली गई.

यह इन का रोज का काम था. बापबेटे मुझ पर हुक्म चलाते.

‘चाय कड़क बनाना’

‘अखबार कहां है?’

‘मम्मी, दूध में मालटोवा नहीं डाला?’

‘आमलेट कच्चा है.’

‘मम्मी, ब्रैड में मक्खन नहीं लगाया?’

‘कभी बहुत गरम दूध दे देती हो तो कभी बिलकुल ठंडा. मम्मी, आप को हुआ क्या है?’

‘‘अब किस सोच में खड़ी हो? जाओ नहा लो,’’ पति बाथरूम से बाहर निकल कर बोले.

मैं पैर पटकती बाथरूम में घुस गई.

घर पर ही 10 बज गए. जल्दीजल्दी तैयार हो कर दफ्तर पहुंची. सोचा कि आज बौस से फिर डांट खानी पड़ेगी. लेकिन अपने सैक्शन में पहुंचने पर पता चला कि आज बौस छुट्टी पर हैं. दिमाग कुछ शांत हुआ.

‘रोज का काम यदि रोज न निबटाओ तो काम का ढेर लग जाता है,’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

कोर्ट केस की फाइल पूरी कर बौस की मेज पर पटकी और अपनी दिनचर्या का

विश्लेषण करने लगी. कभी अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं मिलती. घरदफ्तर, पतिबच्चों के बीच एक कठपुतली की तरह दिन भर नाचती रहती हूं. कभी सोचा भी नहीं था कि जिंदगी इतनी व्यस्त हो जाएगी. कल से सुबह ठीक 5 बजे उठा करूंगी. ऐनी को आमलेट पसंद नहीं है तो उसे नाश्ते में दूध ब्रैड या परांठा दूंगी. सोनू को आमलेट और फिर अखबार के साथ इन्हें दोबारा कड़क सी चाय.

‘‘किस सोच में बैठी हो मैडम? आज चाय पिलाने का इरादा नहीं है क्या?’’ साथ बैठी सहयोगी ने ताना मारा.

‘‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. चलो कैंटीन चलते हैं,’’ मैं थोड़ा सामान्य हुई.

‘‘आज बड़ी उखड़ीउखड़ी लग रही हो.

क्या बात है? सुबह से कोई बात भी नहीं की,’’ उस ने कैंटीन में इधरउधर नजरें दौड़ाते हुए कोने में एक खाली मेज की तरफ चलने का इशारा करते हुए कहा.

‘‘यार, बात तो कोई नहीं. लेकिन आजकल काम का बहुत बो?ा है. जिंदगी जैसे रेल सी बन गई है. बस भागते रहो, भागते रहो,’’ कह कर मैं ने चाय की चुसकी ली.

‘‘तुम ठीक कहती हो. कल मेरे बेटे के पैर में चोट लग गई तो डाक्टर के पास 2 घंटे लग गए. मेरे साहब के पास तो फुरसत ही नहीं है. सब काम मैं ही करूं,’’ झंझलाहट अब उस के चेहरे पर भी आ गई.

‘‘लगता है आज का दिन ही बोझिल है. चलो छोड़ो, कोई दूसरी बात करते हैं. ये भी क्या जिंदगी हुई कि बस सारा दिन बिसूरते रहो,’’ मैं हंस दी.

‘‘मैं ने एक नया सूट लिया है, लेटैस्ट डिजाइन का,’’ वह मुसकराते हुए बोली.

‘‘अच्छा, तुम ने पहले तो नहीं बताया?’’

‘‘दफ्तर के काम की वजह से भूल गई.’’

‘‘कितने का लिया?’’

‘‘700 का. उन्हें बड़ी मुश्किल से मनाया. मेरे नए कपड़े खरीदने से बड़ी परेशानी होती है उन्हें. बच्चे भी उन्हीं के साथ मिल जाते हैं.’’

मेरी हंसी निकल गई, ‘‘मेरे साथ भी तो यही होता है.’’

‘‘कब पहन कर आ रही हो?’’ मैं ने बातों में रस लेते हुए पूछा.

‘‘अभी तो दर्जी के पास है. शायद 3-4 दिन में सिल कर दे दे,’’ उस ने कहा.

‘‘अरे, अगले महीने 21 तारीख को तुम्हारा जन्मदिन भी तो है, तभी पहनना,’’ मैं ने जैसे अपनी याददाश्त पर गर्व करते हुए कहा.

‘‘तुम्हें कैसे याद रहा?’’

‘‘हर साल तुम्हें बताती हूं कि मेरे छोटे बेटे का बर्थडे भी उसी दिन पड़ता है, भुलक्कड़ कहीं की.’’

‘‘हां यार, मैं हमेशा भूल जाती हूं,’’ वह खिसिया गई.

कुछ देर इधरउधर की बातें होती रहीं. फिर, ‘‘चलो अब अंदर चलते हैं. बहुत गप्पें मार लीं. थोड़ाबहुत काम निबटा लें. आज शर्माजी की सेवानिवृत्ति पार्टी भी है,’’ मैं एक ही सांस में कह गई.

दिन भर फाइलों में सिर खपाती रही तो समय का पता ही नहीं चला.

ओह 5 बज गए… मैं ने घड़ी पर नजर डाली और दफ्तर के गेट के बाहर आ गई.

पति पहले ही मेरे इंतजार में स्कूटर ले कर खडे़ थे. उन्हें देख मैं मुसकरा दी.

रास्ते में इधरउधर की बातें होती रहीं.

‘‘आज बढि़या सा खाना बना लेना.’’

‘‘क्यों, आज कोई खास बात है?’’

‘‘नहीं, कई दिनों से तुम रोज ही दालचावल बना देती हो.’’

‘‘तो तुम सब्जी ला कर दिया करो न.

सब्जी मंडी जाने के नाम पर तुम्हें बुखार चढ़ जाता है.’’

‘‘रोज रेहड़ी वाले गली में घूमते हैं. उन से सब्जी क्यों नहीं लेतीं?’’

‘‘खरीद कर तो तुम्हीं लाओ. चाहे रेहड़ी वाले से, चाहे मंडी से. मुझे तो बस घर में सब्जी चाहिए वरना आज भी दालचावल…’’

‘‘अच्छा मैं तुम्हें घर के पास छोड़ कर सब्जी ले आता हूं. अब तो खुश?’’

‘‘हां, बड़ा एहसान कर रहे हो,’’ कहती हुई मैं घर की सीढि़यां चढ़ने लगी.

‘‘मेरे गुगलूबुगलू क्या कर रहे हैं?’’ मैं ने लाड़ जताते हुए बच्चों से पूछा.

‘‘मम्मी कैंटीन से खाने के लिए क्या लाई हो?’’ ऐनी ने मेरे गले में बांहें डाल दीं.

‘‘यहां सब्जी बड़ी मुश्किल से आती है, तुझे अपनी पड़ी है,’’ मैं ने पर्स खोलते हुए कहा.

‘‘सब के मम्मीपापा रोज कुछ न कुछ लाते हैं. जस्सी का फ्रिज तो तरहतरह की चीजों से भरा रहता है,’’ सोनू ने उलाहना दिया.

‘‘तो अपने पापा को बोला कर न बाजार से ले आया करें. मैं कहांकहां जाऊं. ये लो,’’ मैं ने एक पैकेट उन की तरफ उछाल दिया.

‘‘ये क्या है?’’

‘‘मिठाई है. औफिस में पार्टी हुई थी. मैं तुम्हारे लिए ले आई.’’

मैं ने पर्स अलमारी में रखा, जल्दीजल्दी कपड़े बदले और टीवी चालू कर दिया. थोड़ी देर में मेरा मनपसंद धारावाहिक आने वाला था.

‘‘आज चाय कौन बनाएगा?’’ मैं ने आवाज में रस घोलते हुए थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.

कोई उत्तर नहीं मिला तो मैं उठ कर उन के कमरे में गई. देखा दोनों बच्चे कंप्यूटर पर गेम खेलने में मस्त थे.

‘‘रोज खुद चाय बनाओ. इन लड़कों का कोई सुख नहीं. लड़की होती तो कम से कम मां को 1 कप चाय तो बना कर देती,’’ मैं बड़बड़ाती हुई रसोई में आ गई.

‘‘मम्मी, कुछ कह रही हो क्या?’’

‘‘नहीं,’’ मैं चिल्ला दी.

रोटी का डब्बा खोल कर देखा तो लंच के लिए बनाए परांठों में से 2 परांठे अभी भी उस में पड़े थे.

‘‘दोपहर का खाना किस ने नहीं खाया?’’ मैं ने कमरे में दोबारा आ कर पूछा.

‘‘मैं ने तो खा लिया था,’’ सोनू बोला.

मैं ने ऐनी की तरफ देखा.

‘‘मम्मी आप के बिना खाना अच्छा नहीं लगता…अपने हाथ से खिला दो न,’’ उस ने स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए ही लाड़ से कहा मेरा मन द्रवित हो उठा. खाना गरम कर अपने हाथों से उसे खिलाया और वापस रसोई में आ कर चाय बनाने लगी.

ट्रिंगट्रिंग…

शायद ये आ गए. बच्चों ने जल्दी से कंप्यूटर बंद कर किताबें खोल लीं. मेरी हंसी निकल गई.

‘‘कुंडी खोलने में बड़ी देर लगा दी. कितनी देर से वजन उठाए खड़ा हूं,’’ सब्जी और दूध के लिफाफे रसोई की तरफ लाते हुए ये भुनभुनाए.

‘‘अरे चाय बना रही थी इसीलिए.’’

‘‘जरा ढंग से बना लेना. मेरी चाय में अलग से चाय की पत्ती डाल कर कड़क कर देना. सुबह की चाय फीकीफीकी थी.’’

‘‘अरे सुबह तो मैं ने दोबारा कड़क चाय बनाई थी. किसी दिन पत्ती का सारा डब्बा उड़ेल दूंगी,’’ मैं ने नाराजगी दिखाते हुए कहा. फिर जल्दीजल्दी सुबह का बचा दूध गरम कर बच्चों को दे आई और ताजा दूध को गैस सिम कर उबलने के लिए रख दिया. चाय ले कर कमरे में आई तो मेरा पसंदीदा धारावाहिक शुरू हो चुका था.

Drama Story in Hindi

Hindi Love Story: बेवफा- सरिता ने दीपक से शादी के लिए इंकार क्यों किया

Hindi Love Story: दीपक और सरिता की शादी होना लगभग तय ही था कि सरिता ने अचानक किसी और से शादी कर ली. 20 साल बाद जब दीपक की बहन रागिनी को इस के पीछे की सचाई का पता चला तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. क्या पता चला था उसे…

‘‘मेरीतबीयत ठीक नहीं है रितु, मैं

घर जा रही हूं. जाते समय चाबी पहुंचा देना…’’

यह आवाज तो जैसे जानीपहचानी है. एक बार तो मेरे मन में आया कि आंखों से गीली रुई हटा कर उसे देखूं. मगर तब तक दूर जाती सैंडलों की आहट से मैं समझ गईर् कि बोलने वाली जा चुकी है. उस की आवाज अभी भी मेरे कानों में गूंज रही थी, इसलिए मैं अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाई.

‘‘यही तो हैं इस ब्यूटीपार्लर की मालकिन सरिता राजवंश… ऊपर ही अपने पति के साथ रहती हैं. रुपएपैसों की कोई कमी नहीं है. बस खालीपन से बचने के लिए यह पार्लर चलाती हैं,’’ जितना पूछा उस से कहीं ज्यादा बता दिया रितु ने.

नाम सुनते ही मेरा रोमरोम जैसे झनझना उठा. चेहरे पर फेस पैक लगा था वरना अब तक न जाने कितने रंग आते और जाते. पिछले ही हफ्ते मेरे पति का तबादला यहां हुआ था. मैं घर में सामान अरेंज करतेकरते काफी थक गई थी. चेहरे की थकान मिटाने के लिए यहां फेशियल कराने आई थी. आश्चर्य कि यह पार्लर मेरी सब से प्यारी सहेली सरिता का था. विश्वास नहीं होता… मैडिकल की तैयारी करने वाली सरिता एक मामूली सा पार्लर चला रही है. लेकिन उस ने मुझे पहचाना क्यों नहीं या पहचान गई इसलिए यहां से चली गई? और भी न जाने कितने सवाल जिन के जवाब मैं पिछले 20 सालों से खोज रही हूं.

1-1 कर के वे सब जेहन में गूंजने लगे और साथ ही गूंजने लगा एक मधुर संगीत जो हरदम सरिता के होंठों पर रहता था, ‘क्या करूं हाय… कुछकुछ होता है…’

वे स्कूलकालेज के दिन… मैं, दीपक भैया और सरिता सब एकसाथ एक ही स्कूल में पढ़ते थे. हम पड़ोसी थे. दीपक भैया मुझ से 2 साल बड़े थे, लेकिन पता नहीं क्यों मां ने हम दोनों का नामांकन एक ही क्लास में करवाया था. दोनों परिवारों की एकजैसी हैसियत के कारण ही शायद हमारी दोस्ती बहुत निभती थी. सरिता के पिताजी एक दफ्तर में क्लर्क थे और मेरी मां एक स्कूल में अध्यापिका. मैं छोटी थी तभी पापा चल बसे थे. दीपक भैया और सरिता की बचपन की दोस्ती धीरेधीरे प्यार का रूप लेने लगी थी. दोनों के जवां दिलों में प्यार का अंकुर फूटने लगा था. मुझे आज भी याद है, रविवार की वह शाम जब दोनों परिवारों के सभी सदस्य मिल कर ‘कुछकुछ होता है’ फिल्म देखने गए थे. दीपक भैया ने गुजारिश की और मैं ने अपनी सीट उन से बदल ली ताकि वे सरिता की हथेलियों को अपने हाथों में ले कर इस संगीतमय और रोमांटिक वातावरण में अपने प्यार का इजहार कर सकें.

फिल्म खत्म होने के बाद सरिता की आंखों की चमक देख कर ही मैं समझ गई थी कि मेरी प्यारी सखी अब हमेशा के लिए मेरे घर में आने वाली है.

पापा की मौत के बाद मैं ने अपने जिस भाईर् को एक पिता की तरह गंभीरतापूर्वक जिम्मेदारियों को निभाते हुए देखा था आज उस के मन में अपनी जिंदगी के प्रति उत्साह एवं आत्मविश्वास देख कर मेरा मन सरिता के प्रति अंदर से झुक जाता था. शायद सरिता के निश्छल प्यार की ही ताकत थी कि पहली बार में ही भैया ने एमबीबीएस की परीक्षा पास कर ली. उस दिन सरिता इतनी खुश थी कि उसे अपने फेल होने का भी कोई गम नहीं था.

सबकुछ इतना अच्छा चल रहा था फिर अचानक एक दिन जब हम दोनों भाईबहन मौसी के घर गए हुए थे और

1 हफ्ते बाद लौटे तो पता चला कि सरिता ने दिल्ली के किसी अमीर आदमी से शादी कर ली है. उस के मम्मीपापा ने भी साफसाफ कुछ बताने से इनकार कर दिया.

फिर तो जैसे दीपक भैया के सारे सपने रेत के घरौंदे की तरह सागर में एकसार हो गए. जिन लहरों से कभी उन्होंने बेपनाह मुहब्बत की थी उन्हीं लहरों ने आज उन्हें गम के सागर में डुबो दिया. उस समय कितनी मुश्किल से मैं ने खुद और भैया को संभाला था यह मैं ही जानती हूं.

‘‘सैवन हंड्रेड हुए मैम,’’ रितु की आवाज सुन कर मैं अतीत से वर्तमान में आ गई. 1 घंटे का फेशियल कब पूरा हो गया पता ही नहीं चला. मैं ने पर्स से रुपए निकाल कर उसे दिए और फिर बाहर आ गई. मैं ने देखा कि बगल में ही ऊपर जाने वाली सीढि़यां थीं.

‘तो सरिता यहीं रहती है,’ सोच मेरे कदम स्वत: ही ऊपर की ओर बढ़ने लगे.

सीढि़यों के खत्म होते ही दाहिनी ओर एक दरवाजा था. मैं ने कौलबैल बजाई. मेरे लिए 1-1 पल असहनीय हो रहा था. मैं अपने सारे सवालों के जवाब जानने के लिए उतावली हो रही थी. 20 वर्ष तो बीत गए, मगर ये

20 सैकंड नहीं कट रहे थे. अब तक मैं 4 बार बैल बजा चुकी थी. पुन: बैल बजाने के लिए हाथ उठाया ही था कि दरवाजा खुल गया. मेरे सामने एक अपाहिज, किंतु शानदार व्यक्तित्व का स्वामी व्हील चेयर पर बैठा था.

उस के चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक साफ झलक रही थी. मुझे देख कर एक क्षण के लिए वह अवाक रह गया. मगर अगले ही पल उस ने मुसकराते हुए मुझे अंदर आने को कहा. ऐसा लगा जैसे किसी पुराने मित्र ने मुझे पहचान लिया हो. मगर मेरी आंखें तो कुछ और ही खोज रही थीं.

‘‘सरिता तो अभी घर पर नहीं है. आप रागिनीजी हैं न?’’

उस व्यक्ति के मुंह से अपना नाम सुन कर मैं जैसे आसमान से गिरी… आवाज गले में ही अटक कर रह गई.

‘‘मेरा नाम सुमित है. मांजी और दीपक कैसे हैं? आप का इस शहर में कैसे आना हुआ? आप की शादी तो मुंबई में होने वाली थी न?’’

सवाल तो मैं पूछने आई थी, मगर मुझे

नहीं मालूम था कि मुझे ऐसे सवाल सुनने पड़ेंगे… तो क्या सरिता ने अपने पति को सबकुछ बता दिया है?

‘‘आप इतना सबकुछ मेरे बारे में…’’ मेरे हलक से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी और फिर मैं बिना कुछ और कहे वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई.

तभी सामने दिखी वह तसवीर, जो हम ने अपने फेयरवैल वाले दिन खिंचवाई थी. मैं दीपक

भैया और सरिता… एक क्षण में मैं समझ गई कि मैं इस घर के लिए अपरिचित नहीं हूं. मगर यह नहीं समझ में आया कि ‘प्यार दोस्ती है,’ कहने वाली सरिता ने अपने प्यार और दोस्ती दोनों के साथ विश्वासघात क्यों किया? वादे को क्यों तोड़ा उस ने?

‘‘अभी 1 घंटा पहले ही सरिता ने आ कर मुझे बताया कि तुम उस के पार्लर में आई हो… वह समझ गईर् थी कि तुम यहां आओगी जरूर. तभी वह यहां से चली गई है.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं. आखिर वह कौन सा मुंह ले कर मेरा सामना कर पाएगी,’’ मेरे मन की कड़वाहट शब्दों में स्पष्ट घुल गई थी.

‘‘सरिता ने जैसा बताया था आप बिलकुल वैसी ही हैं. इतने वर्षों में न तो आप बदलीं और न ही आप की सहेली,’’ सुमित ने कहा तो मैं ने अपनी नजरें उस पर टिका दीं. आखिर कौन सी खूबी है इस में जिस के लिए सरिता ने दीपक भैया के प्यार को ठुकरा दिया?

‘‘सरिता तो आज भी 20 साल पुरानी उन्हीं गलियों में भटक रही है, जहां दीपक की यादें बसती हैं. हर दिन, हर पल वह उन्हीं यादों के सहारे जीती है. दुनिया के लिए तो वह मेरी सरिता है, मगर सही माने में वह आज भी दीपक की ही सरिता है.

‘‘मैं एक दुर्घटना में अपाहिज हो गया था. तब एक केयर टेकर के लिए दिया गया मेरा इश्तिहार पढ़ कर सरिता मेरे पास आई और मुझ से शादी करने की विनती करने लगी. अंधा क्या चाहे दो आंखें… बस मैं ने हां कर दी… सच कहूं तो सरिता जैसी केयरटेकर पा कर मैं धन्य हो गया… मेरे जीवन की खुशियां उस की ही देन हैं.’’

‘‘हमारे घर की खुशियों में आग लगा कर उस ने आप के जीवन में रोशन की है… चमक तो होगी ही,’’ पता नहीं क्यों मैं सीधेसीधे सरिता को बेवफा नहीं कह पा रही थी.

‘‘आप थोड़ा रुकिए मैं अभी आप की गलतफहमी दूर किए देता हूं,’’ कह कर सुमित अंदर से एक डायरी ले आए.

‘‘यह डायरी तो सरिता की है. भैया ने ही उसे उस के जन्मदिन पर उपहारस्वरूप दी थी,’’ कह मैं ने जैसे ही डायरी खोली मेरी नजर एक पत्र पर पड़ी. उस की लिखावट बिलकुल मेरी मां की लिखावट से मिलती थी. अरे, यह तो सचमुच मेरी मां का ही लिखा पत्र है जो उन्होंने सरिता के लिए लिखा था आज से 20 साल पहले-

‘‘सरिता बेटी,

‘‘मैं जानती हूं कि तुम दीपक से बेहद प्यार करती हो और रागिनी तुम्हारी प्यारी सहेली है. मेरी बहन ने दीपक की शादी के लिए एक लड़की देखी है. उस के मातापिता दीपक को बहुत अधिक दहेज दे रहे हैं. तुम तो जानती हो कि दीपक की डाक्टरी की पढ़ाई में मेरे सारे जेवर बिक गए हैं. ऐसे में रागिनी की शादी और दीपक के अच्छे भविष्य के लिए मुझे उस लड़की को ही घर की बहू बनाना पड़ेगा. दीपक तो मेरी बात मानेगा नहीं. ऐसे में उस का भविष्य और रागिनी की जिंदगी अब तुम्हारे हाथों में है. मैं जिंदगी भर तुम्हारा एहसान मानूंगी.

‘‘तुम्हारी मजबूर आंटी.’’

पत्र पढ़ते ही मैं सुबक उठी… ‘‘यह तुम ने क्या कर दिया सरिता? हमारी खुशियों के लिए अपनी जिंदगी में आग लगा ली? आखिर क्यों सरिता? क्या कोई दूसरा रास्ता नहीं था? आज तुम से पूछे बिना मैं यहां से नहीं जाऊंगी. इतने वर्षों तक मैं और दीपक भैया तुम्हें बेवफा समझ कर तुम से नफरत करते रहे और तुम…’’

‘‘दीपक की नफरत ही तो उस के जीने का साधन है. एक ही क्षेत्र में रह कर शायद कहीं किसी मोड़ पर दीपक से मुलाकात न हो जाए, इसीलिए उस ने वह रास्ता ही छोड़ दिया. सरिता कभी नहीं चाहती थी कि तुम लोग उस की हकीकत जानो. इसलिए अगर तुम सच में सरिता को खुश देखना चाहती हो तो उस से बिना मिले ही चली जाओ वरना वह चैन से जी नहीं पाएगी…’’ सुमित ने कहा.

मुझे सुमित की बात सही लगी. मैं एक बार फिर दीपक भैया के प्रति सरिता के प्यार को देख कर नतमस्तक हो गई. सरिता ने तो प्यार और दोस्ती दोनों शब्दों को सार्थक कर दिया था. बस हम ही उसे नहीं समझ पाए.

Hindi Love Story

फेक ब्रैस्ट इंप्लांट हटवाने के बाद Sherlyn Chopra का इमोशनल वीडियो

Sherlyn Chopra: बौलीवुड की कई टौप ऐक्ट्रैस अपनी बौडी को खूबसूरत दिखाने के लिए काफी जतन करती हैं, जिस से वे अक्ट्रैक्टिव दिख सकें. इस के लिए वे प्लास्टिक सर्जरी की भी हैल्प लेती हैं. यहां तक कि कई ऐक्ट्रैस ने ब्रैस्ट इंप्लांट भी कराया है और इस लिस्ट में शिल्पा शेट्टी, कंगना रनौत, सुष्मिता सेन, बिपाशा बसु, मल्लिका शेरावत के अलावा शर्लिन चोपड़ा का नाम भी शामिल हैं.

हाल ही में बोल्ड ऐक्ट्रैस शर्लिन चोपड़ा ने फेक ब्रैस्ट को निकलवाने के लिए सर्जरी करवाई है और खुद ब्रैस्ट इंप्लांट के दर्द को एक वीडियो के जरीए शेयर किया है.

इंस्टाग्राम पर किया खुलासा

मौडल और बोल्ड ऐक्ट्रैस शर्लिन चोपड़ा अपने बेबाक अंदाज के लिए जानी जाती हैं, लेकिन इस बार उन्होंने एक ऐसा खुलासा किया है, जिस ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया है. उन्होंने यह खुलासा एक वीडियो के माध्यम से किया है. इस वीडियो में शर्लिन ने बताया कि उन्होंने अपने ब्रैस्ट इंप्लांट हटवा दिए हैं और उन का यह डिसीजन उन की जिंदगी का सब से मुश्किल लेकिन जरूरी कदम था.

असहनीय दर्द से रहीं पीड़ित

शर्लिन चोपड़ा का कहना है कि उन को बहुत दर्द सहना पड़ा. इस की वजह से कई और असहनीय दर्द को झेलना पड़ा जैसे- क्रोनिक बैक पेन, नैक पेन, चेस्ट पेन, शोल्डर पेन आदि. दर्द से परेशान हो कर उन्होंने मैडिकल जांच करवाई और पता चला की हैवी ब्रैस्ट इंप्लांट्स की वजह से ये सारी दिक्कतें हुई हैं. ऐसे में डाक्टरों की ऐडवाइस पर उन्होंने यह डिसीजन लिया है.

वे कहती हैं, “मैं चाहती हूं कि खुद को अपने नैचुरल रूप में अपनाऊं और हैल्दी लाइफस्टाइल जिऊं.”

क्या है ब्रैस्ट इंप्लांट

ब्रैस्ट इंप्लांट एक तरह की कौस्मेटिक सर्जरी होती है, जिस में सिलिकन या सलाइन जैल से बने फेक इंप्लांट को ब्रैस्ट के अंदर फिट किया जाता है ताकि उन का शेप बड़ा या परफैक्ट दिखे. लेकिन कई बार यह सर्जरी बौडी पर अपोजिट इफैक्ट डाल सकती है.

सर्जरी के बाद अगर सही तरीके से केयर न की जाए, तो बैक्टीरियल इन्फैक्शन का खतरा बढ़ जाता है. इस से स्वेलिंग, पेन और फीवर भी हो सकता है.

ब्रैस्ट इंप्लांट कितनी बार बदलना चाहिए

ब्रैस्ट इंप्लांट हमेशा के लिए नहीं टिकते. अगर आप के ब्रैस्ट इंप्लांट हैं, तो आप को लाइफ में कभी न कभी उन्हें निकलवाना या बदलवाना पड़ेगा. ब्रैस्ट इंप्लांट औसतन 10 साल तक चलते हैं. लेकिन 10 साल बाद इन के फटने की दर बढ़ जाती है. कुछ ज्यादा समय तक चल सकते हैं, कुछ कम समय तक.

ब्रैस्ट इंप्लांट रिप्लेसमैंट के कारण

इस के 2 कारण होते हैं- एक कैप्सुलर संकुचन दूसरा कैप्सुलर संकुचन. यह तब होता है जब ब्रैस्ट के चारों ओर हार्ड स्कैर टिश्यू बन जाते हैं. इस की गंभीरता थोड़ी हार्ड और पेनफुल तक हो सकती है. हम सोचते हैं कि यह सामान्य से ज्यादा  स्वेलिंग के कारण होता है, जिस के परिणामस्वरूप शरीर में ज्यादा स्कैर टिश्यू बन जाते हैं. सर्जरी के बाद हेमटोमा होना ज्यादा आम है यानि इंप्लांट के आसपास रक्तस्राव जमा हो जाता है. यह बैक्टीरिया के इन्फैक्शन से भी जुड़ा हो सकता है, भले ही यह सबक्लीनिकल इन्फैक्शन हो यानि बिना किसी लक्षण वाला.

ब्रैस्ट इंप्लांट रिमूवल सर्जरी के बाद की प्रौब्लम्स

मैडिकल ऐक्सपर्ट्स का कहना है कि ब्रैस्ट इंप्लांट रिमूवल सर्जरी के बाद कुछ महिलाओं को स्किन लूज पड़ने, शेप बदलने और सैंसेशन लौस जैसी प्रौब्लम्स का सामना करना पड़ सकता है.

ब्यूटी से अधिक जरूरी हैल्थ

शर्लिन चोपड़ा का यह कदम महिलाओं में बौडी पौजिटिविटी और हैल्थ अवेयरनैस को बढ़ावा देने वाला माना जा रहा है. उन्होंने अपने अनुभव के जरीए यह संदेश दिया है कि ब्यूटी से अधिक जरूरी है हैल्थ और सैल्फ कौन्फिडेंस.

आमतौर पर ब्रैस्ट इंप्लांट का वेट उन के शेप पर निर्भर करता है. उदाहरण के लिए, 100 सीसी इंप्लांट का वेट लगभग 100 ग्राम होता है. शेप 100 सीसी से शुरू हो कर 800 सीसी या उस से भी ज्यादा हो सकते हैं.

सिलिकन का मैडिकल नाम

ब्रैस्ट इंप्लांट में इस्तेमाल होने वाले सिलिकन का कोई एक मैडिकल नाम नहीं है, लेकिन इस के मुख्य घटक का रासायनिक नाम डाईमिथाइलसिलोक्सेन है. यह एक मैडिकल ग्रेड सिलिकन इलास्टोमर है, जिसे विभिन्न रूपों में इस्तेमाल किया जाता है, जैसे सिलिकन जैल, सिलिकन तेल और विभिन्न प्रकार के अनाकार सिलिका पाउडर जैसे सिलिका एरोजेल, सिलिका स्मोक.

स्कैर टिशू क्या हैं

स्कैर टिशू  डैमेज्ड स्किन या अन्य टिश्यू पर बनने वाला रेशेदार टिश्यू  है, जो घाव भरने की नैचुरल हीलिंग प्रोसेस का हिस्सा है. यह नौर्मल टिश्यू की जगह लेता है, लेकिन यह कम लचीला और मोटा होता है और मुख्य रूप से कोलेजन से बना होता है. चोट, सर्जरी या बीमारी के बाद बौडी इस नए टिश्यू  का निर्माण कर के इंजर्ड एरिया को ठीक करता है.

स्कैर टिशू विशेषताएं

यह कोलेजन प्रोटीन से बना होता है, जो रेशेदार और मजबूत होता है. इस का टैक्स्चर नौर्मल स्किन की तरह लचीला या चिकना नहीं होता है, बल्कि यह अकसर मोटा और कठोर होता है. यह चोट को बंद करने और आसपास के टिश्यूज को ठीक करने में मदद करता है.

भविष्य में आने वाली प्रौब्लम्स

अगर स्कैर टिशू बहुत मोटा हो जाता है, तो यह दर्द, अकड़न और प्रभावित अंग की गतिशीलता को सीमित कर सकता है. कभीकभी, यह आसंजन बना सकता है, जो टिश्यू की एक पट्टी की तरह होता है और एक क्षेत्र को दूसरे से चिपका सकता है. इस की शुरुआत चोट लगने के 24 घंटे के भीतर स्कार टिशू बनना शुरू हो सकता है.

ब्रैस्ट इंप्लांट रिप्लेसमैंट के 2 मुख्य कारण हैं :

कैप्सूलर कौन्ट्रैक्चर : यह तब होता है जब इंप्लांट के चारों ओर का स्कैर टिश्यू हार्ड हो जाता है, जिस से ब्रैस्ट  सख्त और असहज महसूस हो सकते हैं.

इंप्लांट का फटना या लीक होना : इस में इंप्लांट का बाहरी आवरण फट सकता है, जिस से सीलेंट लीक हो सकता है या सलाइन इंप्लांट के मामले में यह हवा बाहर निकल सकती है. इंप्लांट का फटना/लीक होना और बौडी में बदलाव जैसे-

प्रैगनैंसी, वेटलौस या वेट गेन के कारण ब्रैस्ट के रूप में बदलाव.

अन्य जटिलताएं

इस में कई जटिलताएं भी हैं जैसे इन्फैक्शन, तरल पदार्थ का जमा होना या इंप्लांट का अपनी जगह से हिल जाना. इस से भी रिप्लेसमैंट की आवश्यकता हो सकती है.

Sherlyn Chopra

Best Family Story: कोई फर्क नहीं है- श्वेता के पति का क्या था फैसला

लेखिका- संध्या शर्मा

Best Family Story: मेरे सहयोगी नरेश ने अपनी प्रमोशन की खुशी में औफिस के सब लोगों को लंच पार्टी में बुलाया था. वहां से लौटते हुए मुझे एकाएक एहसास हुआ कि श्वेता का मूड खराब है.

‘‘तुम ने क्यों मुंह सुजाया हुआ है? क्या पार्टी में किसी से कुछ कहासुनी हो गई है?’’ मैं ने चिंतित लहजे में पूछा.

‘‘नहीं,’’ उस का इनकार करने का खिंचावभरा तरीका इस बात की पुष्टि कर गया कि जरूर पार्टी के दौरान कुछ ऐसा गलत घटा है जो उसे परेशान कर रहा है.

श्वेता की आदत है कि वह हमेशा अपने मन की बात देरसबेर मुझे बता देती है. इसलिए मैं उसी वक्त सबकुछ जानने के लिए उस के पीछे नहीं पड़ा है.

हुआ भी कुछ ऐसा ही. जब घर पहुंच कर मैं ने ड्राइंगरूम में उसे बांहों में भरने की कोशिश करी तो उस ने मेरे हाथ झटक दिए.

‘‘क्या आज मुझ से जोरजबरदस्ती कराने के मूड में हो?’’ मैं ने हंसते हुए पूछा पर वह रत्तीभर नहीं मुसकराई.

कुछ पलों तक उस ने मुझे नाराजगी से घूरा और फिर गुस्से से पूछा, ‘‘औफिस वाली बालकटी नीरजा के साथ आजकल तुम्हारा क्या चक्कर चल रहा है?’’

‘‘ओह, तो पार्र्टी में किसी ने नीरजा को ले कर तुम्हारे कान भरे हैं. भई, मेरा उस के साथ कोई चक्कर नहीं…’’

‘‘मुझ से झठ बोलने की कोशिश मत करिए,’’ वह शेरनी की तरह गुर्रा उठी.

‘‘तो फिर मैं तुम्हें कैसे विश्वास दिलाऊं कि हम दोनों सहयोगी होने के साथसाथ अच्छे दोस्त भी हैं और हमारे बीच कोई इश्क नहीं चल रहा है?’’ मेरे लिए अपनी हंसी रोकना मुश्किल हो रहा है, यह बात उसे बिलकुल समझ नहीं आ रही थी.

‘‘मैं आज तुम्हारी किसी झठी बात पर विश्वास नहीं करूंगी. हंसना बंद कर के आप मेरे सवालों के सीधेसीधे जवाब दो.’’

‘‘पूछो, मेरी झंसी की रानी,’’ मैं बड़े स्टाइल से उस के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया पर उस ने तो जैसे न मुसकराने का पक्का फैसला कर रखा था.

‘‘वह जिस फ्लैट में अकेली रहती है,

आप उस से मिलने वहां जाते रहते हो न?’’

‘‘कभीकभी.’’

‘‘उस के साथ होटल में खाना खाने

जाते हो?’’

‘‘बहुत बार गया हूं.’’

‘‘वह शराब पीती है न?’’

‘‘हां अकसर वाइन पीती है.’’

‘‘अब मुझे यह बताओ कि मैं कैसे विश्वास कर लूं कि इस शराब पीने वाली व होटलों में तुम्हारे साथ घूमने वाली चालू औरत के साथ तुम्हारा कोई चक्कर नहीं चल रहा है?’’ उस ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘तुम्हें विश्वास करना ही चाहिए क्योंकि तुम्हारे पतिपरमेश्वर ऐसा कह रहे हैं.’’

‘‘भाड़ में गए पतिपरमेश्वर. देखो या तो तुम इसी वक्त मेरे सिर पर हाथ रख कर

सच बताओ कि आज के बाद औफिस के अलावा उस चुड़ैल से कहीं नहीं मिलोगे या फिर मुझे इसी वक्त मायके छोड़ आओ.’’

‘‘अपनी जबान से किसी के लिए अपशब्द मत  निकालो.’’

‘‘तुम्हारी प्रेमिका को मैं ने चुड़ैल कहा तो तुम्हें बुरा लगा है?’’

‘‘हां.’’

‘‘आप उस से मिलना छोड़ दोगे तो मुझे उस के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करने की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी.’’

‘‘तुम ने इस बात पर ध्यान दिया कि ऐसी गलत फरमाइश कर के तुम एक तरह से यह जाहिर कर रही हो कि तुम्हें मेरे ऊपर विश्वास नहीं है,’’ मैं ने अपना चेहरा यों लटका लिया मानो मेरे दिल को गहरा धक्का लगा हो.

‘‘आप बेकार की बात कर के मुझे

उलझओ मत.’’

‘‘तो मैं बेकार की बातें करना खत्म करता हूं और तुम मेरा सीधासीधा जवाब सुन लो. मैं तुम्हारे दबाव में आ कर उस से मिलना नहीं छोड़ूंगा. अगर मैं ने ऐसा किया तो उस की व अपनी नजरों में गिर जाऊंगा,’’ मैं ने ये सख्त शब्द भी अपने मुंह से मुसकराते हुए निकाले थे.

मेरा जवाब सुन कर उस की आंखों में आंसू ?िलमिला उठे तो मैं जल्दी से आगे बोला, ‘‘पर मैं तुम्हारे मन का शक दूर करने को एक और काम कर सकता हूं?’’

‘‘कौन सा काम?’’ उस ने रुंधे गले से पूछा.

जवाब में मैं ने जेब से अपना मोबाइल निकाला और नीरजा से उसी वक्त बात करी.

‘‘हैलो नीरजा… इस वक्त तुम कहां हो… नहीं, अपने घर मत जाओ… तुम से मेरी वाइफ श्वेता अभी मिलने को बहुत उतावली हो रही है… पार्टी में मुलाकात नहीं हुई, इसीलिए ही तो मिलना चाह रही है… मिलने की ऐसी इमरजैंसी क्यों है, यह वे ही तुम्हें बताएगी… हां, तुम मेरा पता नोट करो…’’ उसे अपने घर का पता नोट कराने के बाद मैं ने फोन काट दिया.

मुझे शरारती अंदाज में मुसकराते देख श्वेता चिड़े लहजे में बोली, ‘‘उसे इस वक्त घर क्यों बुलाया? हमारे बीच सुलहसफाई कराने कोई दूसरा आए, यह मैं बिलकुल बरदाश्त नहीं करूंगी.’’

‘‘तुम अपनेआप को बहुत होशियार समझती हो, तो अब उस के हावभाव देख कर पहचानना कि वह मुझ से फंसी हुई है कि नहीं,’’ लापरवाही से मैं ने यह जवाब दिया और उसे परेशान हालत में छोड़ कर कपड़े बदलने बैडरूम की तरफ चल पड़ा.

श्वेता मुझ से नीरजा को यों घर बुलाने के लिए बहुत झगड़ी. जब मैं जवाब में सिर्फ मुसकराता रहा तो उस ने झगड़ना छोड़ा और टैंशन से भरी नीरजा के घर पहुंचने का इंतजार करने लगी.

करीब आधे घंटे बाद नीरजा हमारे घर आ पहुंची. श्वेता का आज पहली बार उस से आमनासामना हुआ. उन दोनों का परिचय कराने के बाद मैं तो आगे का तमाशा देखने के लिए आराम से सोफे पर बैठ गया.

उस के सामने श्वेता ने अपना आत्मविश्वास खो सा दिया था. सच ही उस के जैसे अजीबोगरीब व्यक्तित्व वाली युवती से पहले उस का सामना हुआ भी नहीं था.

नीरजा लंबे कद और आकर्षक फिगर वाली युवती थी. उस ने बदन से चिपकी नीली जींस और लाल रंग की छोटी कुरती पहनी हुई थी. देखने में बहुत मौडर्न नजर आने वाली नीरजा के चेहरे पर नाममात्र का मेकअप था. उस ने कोई ज्वैलरी भी नहीं पहन रखी थी. कलाई में पहनने के लिए उस ने घड़ी भी वैसी बड़े डायल वाली चुनी थी जैसी आमतौर पर आदमी पहनते हैं.

नीरजा ने खुद ही वार्त्तालाप शुरू करते हुए श्वेता से पूछा, ‘‘तुम मुझ से कोई खास बात करना चाह रही हो श्वेता?’’

‘‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है,’’ श्वेता की आवाज में बेचैनी साफ झलक रही थी.

‘‘फिर कैसी बात है?’’

‘‘आज पार्टी में मुझे कई लोगों से सुनने को मिला कि तुम्हारे और समीर के बीच चक्कर चल रहा है.’’

‘‘रियली?’’ नीरजा ठहाका मार कर हंसी तो श्वेता जबरदस्त उलझन का शिकार बन गईर्.

‘‘यह नादान समझती है कि हमारे बीच इश्क चल रहा है. व्हाट ए जोक,’’ मेरी बात सुन कर नीरजा पर हंसने का ऐसा दौरा पड़ा कि वह सोफे पर लुढ़क गई.

‘‘इस में इतना हंसने की क्या बात है?’’ श्वेता खीज उठी.

‘‘तुम्हारी नाराजगी मैं बाद में दूरकर दूंगी. पहले तुम मेरे साथ किचन में आओ. मैं ने पार्टी में ढंग से खाया नहीं है. मुझे पहले कुछ खिलाओ,’’ नीरजा ने श्वेता का हाथ बड़े अपनेपन से पकड़ा और उसे ले कर किचन की तरफ चल दी.

मैं भी उन के पीछेपीछे वहीं पहुंच गया. नीरजा ने फ्रिज में अंडे रखे देखे तो आमलेट खाने

की इच्छा प्रकट कर दी. मजे की बात यह थी कि उस ने आमलेट श्वेता को नहीं बनाने दिया और सारी तैयारी खुद शुरू कर दी.

आमलेट बनाते हुए उस ने बहुत सुरीली आवाज में एक लोकप्रिय गीत गुनगुनाना शुरू कर दिया तो रसोई का माहौल बहुत संगीतमय हो गया.

‘‘तुम तो बहुत अच्छा गाती हो,’’ जब उस का गाना रुका तो श्वेता उस की आवाज की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाई थी.

‘‘मैं तो गुणों की खान हूं,’’ नीरजा ने हंसते हुए खुद ही अपनी प्रशंसा करनी शुरू कर दी, ‘‘मैं नाचती भी बहुत अच्छा हूं. कुकिंग के भी कई कोर्स कर रखे हैं. मेरे फ्लैट में मेरी बनाई पेंटिंग्स देखोगी तो दांतों तले उंगली दवा लोगी.’’

‘‘इस की पेंटिंग्स देख कर चूंकि तुम्हें कुछ समझ में नहीं आएगा, इसलिए हैरान तो तुम हो ही जाओगी. यह मौडर्न पेंटिंग्स बनाती है, जिन्हें इस के अलावा शायद ही कोई दूसरा समझता हो,’’ मैं ने नीरजा को यों छेड़ा तो उस ने पास में रखा रसोई का कपड़ा मेरे ऊपर फेंक  मारा.

‘‘तुम इस की बकवास पर ध्यान मत दो और मेरे घर मेरी पेंटिंग्स देखने जरूर आना, श्वेता,’’ नीरजा ने मुसकराते हुए श्वेता को अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया.

‘‘मैं आऊंगी,’’ हमारी नोकझोंक देख कर श्वेता अपनी नाराजगी फिलहाल भूल गई.

‘‘अकेली मत जाना इस के घर,’’ मैं ने श्वेता को यह सलाह दी तो नीरजा ने मुझे नकली नारजगी से घूरा.

‘‘आप जा सकते हो तो क्या मैं नहीं जा सकती हूं?’’ श्वेता का यह जवाब सुन कर जब नीरजा और मैं फिर जोर से हंस पड़े तो वह बेचारी फिर से उलझ कर रह गई.

जब नीरजा फेंटे हुए अंडों को तवे पर डाल रही थी तब श्वेता ने अचानक उस से

पूछा, ‘‘तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं करी है?’’

‘‘कोई जीवनसाथी बनाने लायक उचित वंदा नहीं मिला,’’ नीरजा ने नाटकीय अंदाज में गहरी सांस छोड़ कर जवाब दिया.

‘‘ऐसे क्या गुण तुम उस में ढूंढ़ रही हो जो अब तक किसी में भी नहीं मिले?’’

‘‘वह इतना समझदार होना चाहिए कि मुझे अपने ढंग से जीने की आजादी दे, जिसे दुनिया के कुछ भी कहने की परवाह न हो, जो खुद को मेरे ऊपर थोपने की कोशिश न करे, जिस के सामने मुझे कभी बनावटी मुखौटा न ओढ़ना पड़े.’’

‘‘ऐसा पति मिलना तो सचमुच मुश्किल है.’’

‘‘मेरे मामले में तो नामुमकिन ही है. बहुत कम मर्द हैं, जिन्हें मैं अच्छा इंसान होने के नाते दिल से इज्जत देती हूं और तुम्हारे पति उन में से एक हैं. हमारे बीच जो बहुत अच्छी दोस्ती है, उसे मैं इस के साथ इश्क का चक्कर चलाने की मूर्खता कर के कभी नहीं खोना चाहूंगी, श्वेता.’’

‘‘समझदार लोग कहते हैं कि आग और घी को पासपास रखना मूर्खतापूर्ण और खतरनाक होता है,’’ श्वेता ने संजीदा हो कर अपने पक्ष में दलील दी.

‘‘श्वेता, यों शक कर के अपने पति का और मेरा दिमाग खराब मत करो. समीर के साथ मैं अपनी दोस्ती को बहुत खास मानती हूं. तुम ने इसे तोड़ने की जिद जारी रखी तो यह बहुत गलत होगा. अब मैं चलूंगी और इसे कार में खाने के लिए ले जा रही हूं,’’ कह नीरजा ने मुझे गले से लगाया और फुरती से आमलेट को 2 ब्रैडस्लाइस के बीच रख कर दरवाजे की तरफ  चल पड़ी.

उसे जाने की जल्दी क्यों थी, यह हमें बाहर आने के बाद समझ आया. हम ने बाहर आ कर देखा कि नीरजा की कार में एक बहुत सुंदर लड़की बैठी उस का इंतजार कर रही थी.

‘‘सौरी, स्वीटहार्ट,’’ नीरजा ने कार में घुंसते ही उस लड़की के गाल पर माफी मांगने वाले अंदाज में चुंबन अंकित किया और एक बार हम दोनों की तरफ हाथ हिलाने के बाद कार स्टार्ट कर के चली गई.

‘‘सुनोजी, नीरजा के साथ यह लड़की कौन थी?’’ श्वेता बहुत हैरानपरेशान सी नजर आ रही थी.

‘‘वह नीरजा की प्रेमिका है,’’ मैं ने शरारती अंदाज में मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या नीरजा उस टाइप की लड़की है जिन्हें लड़के नहीं बल्कि लड़कियां…’’ श्वेता अपना वाक्य शर्म के मारे पूरा नहीं कर सकी.

‘‘हां, और अब तुम समझ सकती हो कि हमारे बीच इश्क का चक्कर चलने की बात सुन कर नीरजा और मैं क्यों पागलों की तरह हंस रहे थे.’’

श्वेता ने खिसियानी सी हंसी हंस कर पूछा, ‘‘क्या आप को झेंप नहीं आती है उस से मिलनेजुलने में?’’

‘‘अरे, झेंप क्यों? वह दिल की अच्छी होने के साथसाथ अपने काम में बहुत निपुण और कला के क्षेत्र में भी बहुत टेलैंटेड है. हमारे काम की तारीफ सारे सीनियर औफिसर करते हैं. वह मेरी बहुत अच्छी दोस्त है पर जो उसे समझ नहीं सकते, उन लोगों के साथ बहुत रिजर्व रहती है. इस कारण किसी की हिम्मत नहीं होती उस के साथ फालतू की बात करने की.

‘‘इस मामले में मैं अपनी सोच तुम्हें बताता हूं. मुझे इस बात से क्या लेनादेना कि वह किसी लड़के के साथ अपना जीवन गुजारना पसंद करेगी या किसी लड़की के साथ. उसे इस बारे में फैसला करने का अधिकार तो अब कानून भी देता है,’’ मैं ने संजीदा लहजे में उसे अपने नजरिए से अवगत करा दिया.

‘‘आज का भटका हुआ एक युवावर्ग जो गुल खिला दे, सो कम है,’’ श्वेता की आवाज में उस खास तरह के युवावर्ग की आलोचना के भाव मौजूद थे.

मैं पिछले दिनों उस के घर ज्यादा जा रहा था क्योंकि दोनों कोविड-19 के दिनों कई दिन

अस्पताल रही थीं और लौटनेके बाद मैं उन्हें लौकडाउन खुलने के बाद खाना पहुंचाता रहा था. दोनों से पहले थोड़ी दोस्ती थी पर फिर कुछ ज्यादा हो गई. तुम्हें इसलिए बताया नहीं बताया क्योंकि मुझे मालूम था कि तुम समझेगी. मैं तो ऐसा ही मौका ढूंढ़ रहा था जब मामला गर्म हो तो उस पर पानी के छींटे मारे जा सकें. कोविड-19 के बाद औफिस की पहली ही पार्टी में तुम ने मुझे वह मौका दे दिया.

‘‘अब बदले वक्त के साथ चलते हुए तुम इस अंदाज से सोचना बंद कर दो, जानेमन. उस खास युवावर्ग और हम में कोई फर्क नहीं है. बात अपनीअपनी रुचि की है और हमें न्यायाधीश बन कर उन की तरफ उंगली उठाने का कोई अधिकार नहीं है. उन्हें भी खुश और सुखी रहने का उतना ही अधिकार है, जितना तुम्हें और मुझे.’’

‘‘यस सर,’’ श्वेता ने फौरन मुझे जोरदार सलाम किया, ‘‘आप नीरजा के साथ अपनी दोस्ती को खूब निभाइए… मुझ मूर्ख को माफ कर दो. मुझे आप के प्रेम पर शक करने के बीज को पनपने के लिए अपने मन में जगह देनी ही नहीं चाहिए थी.’’

‘‘जानेमन, इस जुर्म की माफी इतनी आसानी से नहीं मिलेगी.’’

‘‘तब मुझे माफी पाने के लिए क्या करना होगा?’’ उस ने आंखें मटकाते हुए पूछा.

‘‘तुम मुझे इतना प्यार करो कि… कि…’’

‘‘मैं समझ गई, मेरे सरताज,’’ कह उस ने आगे बढ़ कर मुझे अपनी बांहों में भरा और अपने रसीले होंठों को मेरे होंठों के साथ जोड़ दिया.

Best Family Story

Best Hindi Story: बदला व्यवहार- क्या हुआ था जूही के साथ

लेखक- विनय कुमार पाठक

Best Hindi Story: ‘‘मुझेयही एसयूवी लेने का मन है. आखिर गाड़ी लो तो एसयूवी. इस में रोड का बेहतर व्यू होता है. आदमी आराम से बैठ सकता है. सेडान में तो काफी नीचे बैठना पड़ता है. थोड़ा माइलेज भले ही कम रहता है पर ड्राइव करने का मजा इस में ही होता है,’’ संदीप ने शोरूम में लगी गाड़ी की ओर देखते हुए कहा.

‘‘बिलकुल सही कहा सर,’’ सेल्स ऐग्जीक्यूटिव ने दांत निपोरते हुए कहा. उस की आंखों में संदीप के प्रति परमभक्ति नजर आ रही थी. आती भी क्यों नहीं आखिर गाड़ी बिकेगी तो उसे कमीशन का लाभ होना ही है.

जूही को यह बात बिलकुल पसंद नहीं आई. वह अपने पति संदीप को सेडान लेने के लिए कह रही थी जबकि संदीप एसयूवी लेने की जिद पर अड़ा था. वहां उस ने कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा. वह कहना तो बहुत कुछ चाह रही थी पर सब के सामने तमाशा नहीं खड़ा करना चाह रही थी. अत: इतना ही कहा, ‘‘ठीक है, थोड़ा और विचार कर लेते हैं.’’

संदीप पूरा मन बना चुका था एसयूवी बुक करने का. टैस्ट ड्राइव करने के बाद तो उस का मन बिलकुल पक्का हो आया था. जूही के जवाब से उस का मन क्षुब्ध हो उठा. वह शोरूम से बाहर तो आ गया पर मन ही मन गुस्सा था जूही पर. उधर जूही भी गुस्से में थी कि उस की पसंद का खयाल रखे बिना संदीप अपनी ही रट लगाए हुए है. पर उसे यह अंदाज नहीं था कि अभी संदीप भी क्षुब्ध है.

‘‘क्यों बारबार एसयूवी की रट लगाए हुए हो. तुम्हें पता है कि मैं भी गाड़ी ड्राइव करना चाहती हूं. एसयूवी मुझे बड़ी गाड़ी लगती है और साड़ी पहन कर तो बहुत ही कठिन काम लगेगा मुझे एसयूवी ड्राइव करना,’’ बाहर आते ही वह बिफर पड़ी.

‘‘तुम्हें तो मेरी पसंद की हर चीज नापसंद होती है और कौन कहता है तुम्हें साड़ी पहन कर ड्राइव करने के लिए. और भी कपड़े होते हैं पहनने के लिए?’’

सामान्य तौर पर संदीप जूही पर नाराज नहीं होता था पर अभी उस का मूड बिलकुल औफ था. कहां वह मन बनाए हुए था कि एसयूवी से

ही बाहर निकलेगा कहां जूही उसे खरीखोटी सुना रही थी.

बात बढ़तेबढ़ते काफी बढ़ गई. कुछ इतनी कि आपस में बोलचाल बंद हो गई.

जूही को महसूस हुआ कि शायद मामला बिगड़ गया है. कैसे इसे सुधारा जाए वह सोच रही थी.

उस दिन रात को संदीप लैपटौप बंद कर बैडरूम में आया. कमरे में लाइट औन थी. जूही बिस्तर पर चुपचाप लेटी हुई थी.

‘‘हो गया काम?’’ उस ने सहमते हुए पूछा.

‘‘हां. वैसा भी कोई काम नहीं था. बस समय बिताने के लिए कुछकुछ कर रहा था,’’ संदीप ने अनमना हो जवाब दिया.

आदतन उस ने अपनी बनियान उतारी और तकिए के नीचे रख दी.

‘‘बत्ती बंद कर दूं या जलने दूं?’’ उस ने रूखे स्वर में पूछा.

‘‘बंद कर दो,’’ जूही ने उदास स्वर में कहा.

बत्ती बंद कर संदीप जूही की बगल में लेट गया. उस का बैडरूम सोसाइटी के पार्क के सामने पड़ता था. पार्क में रातभर बत्तियां जलती रहती थीं. अत: झीनीझीनी रोशनी आती रहती थी. उस रोशनी में उस ने बगल में लेटी जूही को देखा. हलकी रोशनी में उस का शरीर काफी आकर्षक लग रहा था. उस का शरीर आकर्षक तो था ही पर अभी कुछ ज्यादा ही आकर्षक लग रहा था और इस का कारण यह था कि विगत 1 सप्ताह से संदीप ने जूही के साथ सैक्स का आनंद नहीं लिया था और अभी वह इस की आवश्यकता महसूस कर रहा था. पर आज गाड़ी को ले कर जो विवाद हुआ था उस के कारण वह पहल करने के मूड में कतई नहीं था. पर जूही मतभेद को दूर करना चाहती थी. उसे लगा कि वह तो कभीकभार ही गाड़ी चलाती है. ज्यादातर संदीप ही गाड़ी चलाता है और जिस दिन गाड़ी चलाने की इच्छा होगी उस दिन साड़ी न पहन कोई और ड्रैस पहन लेगी और क्या. पहले 1-2 दिन अटपटा लगेगा धीरेधीरे अभ्यास हो जाने पर एसयूवी उसी सहजता से चला पाएगी जैसे अभी सेडान या अन्य छोटी गाड़ी चलाती है.

तिरछी निगाहों से संदीप ने जूही के पूरे शरीर का मुआयना किया. कल्पना में वह उस के साथ की सैक्स क्रियाओं को याद करने लगा. काफी सहयोग करती थी जूही इस मामले में. 12 वर्षों के दांपत्य जीवन में शायद ही कोई मौका हो जब उस ने उसे मना किया हो. पर एक बात उसे खटकती थी कि पहल हमेशा उसे ही करनी पड़ती है. ऐसा कभी नहीं हुआ कि जूही ने पहल कर के उसे कभी किस भी किया हो. हां, उस की पहल के बाद वह पूरा सहयोग करती थी.

संदीप की शारीरिक आवश्यकता ऐसी थी कि उसे प्राय: हर दूसरे दिन सैक्स की इच्छा होती थी. अगर 2-4 दिनों का अंतर हो भी जाए तो चल सकता था. पर आज 1 सप्ताह हो गए था. न जाने क्यों उस की इच्छा होती थी कि जूही पहल करे. वह उस के शरीर पर चुंबन अंकित करे, उस के शरीर से लिपटे. पर जूही ऐसा नहीं करती थी और आज तो वह बिलकुल भी पहल करने के मूड में नहीं था.

सैक्स के बारे में सोच कर संदीप के शरीर में रोमांच हो आया. उस ने अपने शरीर में तनाव महसूस किया. तनाव तो वह 2-3 दिनों से महसूस कर रहा था. पर वह चाह रहा था कि जूही पहल करे. बीचबीच में जूही गृहस्थी की बातें कर रही थी. उसे लगा इस तरह की बातों से शायद संदीप की नाराजगी दूर हो जाएगी. पर अभी संदीप को इन बातों से खीज ही हो रही थी. अत: वह लेटा हुआ चुपचाप हांहूं कर रहा था.

मगर आज संदीप को ज्यादा देर इंतजार नहीं करना पड़ा. जूही ने उस के करीब आ कर पूछा, ‘‘नाराज हो?’’

संदीप कुछ नहीं बोला. जूही ने करवट बदल उस के चेहरे पर चुंबन अंकित कर दिया और बोली, ‘‘अरे बाबा एसयूवी ही ले लेना, नाराज क्यों हो रहे हो?’’

संदीप पिघल गया और खुद को रोक नहीं पाया. जब खुद को रोक नहीं पाया तो उस ने अपना हाथ जूही के शरीर पर रख दिया. जूही उस के करीब आ गई. उस ने जूही के गाल पर चुंबन अंकित कर दिया और बोला, ‘‘जो तुम कहोगी वही गाड़ी आएगी.’’

जूही भी उस के शरीर पर हाथ फेरने लगी. इस तरह संदीप 1 सप्ताह के बाद सैक्स का

आनंद मिला. आज जूही संदीप की नाराजगी को दूर करना चाहती थी. अत: सैक्सी बातें भी कर रही थी.

क्रिया समाप्त होते ही वह निढाल हो कर

सो गया. आज उस के मन से यह मलाल जाता रहा कि जूही कभी पहल क्यों नहीं करती. इस से वह समझ नहीं पाता था कि जूही की क्या आवश्यकता है. क्या उस का हर दूसरे दिन सैक्स करना उसे अच्छा नहीं लगता? क्या वह उस

का साथ सिर्फ इसलिए देती है कि वह उस का पति है.

दूसरे दिन जब वह औफिस पहुंचा तो उस के सहकर्मी, बल्कि सहकर्मी से ज्यादा

दोस्त अनूप ने टोका, ‘‘आज तो बड़े फ्रैश लग रहे हो. क्या बात है?’’

‘‘वही बात है और क्या. फुल सैटिसफैक्शन?’’ उस ने मुसकराते हुए अनूप

से कहा.

दोनों स्कूल और कालेज में साथ पढ़े थे, वर्षों की दोस्ती थी. अत: हर तरह की बातें

होती थीं.

‘‘आज पहली बार उधर से पहल हुई तो मजा आ गया,’’ संदीप की आवाज में बड़ा

उत्साह था.

‘‘क्या बात करते हो मेरे मामले में तो उधर से ही पहल होती है. मैं तो जल्दी सोने का अभ्यस्त हूं जबकि दीपा टीवी देख कर देर से सोती है. जब भी बिस्तर पर आती है मुझे जगाती है. अगर मैं जग गया तो गेम शुरू होता है. अगर नहीं जगा तो गेम कैंसल हो जाता है,’’ अनूप ने हंसते हुए कहा.

‘‘इस बारे में तो कल पहली बार खुल कर हम पतिपत्नी ने कल अपनी इच्छा और आवश्यकता के बारे में बातें कीं. इस के पहले ऐसा नहीं हुआ था. पहले तो मैं ही बोलता था,’’ संदीप ने कहा.

‘‘पर यह कमाल हुआ कैसे? तुम तो बताते थे कि भाभीजी इस मामले में बहुत शरमाती हैं?’’ अनूप ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘हां, इस बारे में कोई विशेष बात तो होती नहीं थी. कल गाड़ी लेने की बात को ले कर हम में अनबन हो गई थी. मैं बिलकुल एक ओर चुपचाप था. जूही ने शायद मुझे मनाने के लिए पहल की,’’ संदीप ने अनूप से एसयूवी और सेडान का चक्कर बताया.

‘‘यार, एसयूवी तो बड़ी यूजफुल निकाली तुम्हारे लिए,’’ अनूप ने ठहाका लगाते हुए कहा.

‘‘हां यार. पर अब घर आएगी सेडान ही,’’ संदीप ने कहा और अपने डैस्कटौप पर व्यस्त हो गया.

काम के बीचबीच में संदीप के मन में एक विचार कभीकभी कौंध जाता था कि घटनाएं भी अजीब मोड़ ले लेती हैं. एक घटना ने जूही के व्यवहार को बदल दिया जो उसे बड़ा अच्छा लगा.

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Fictional Story: एक इंच मुस्कान- कांति ने क्यों कहा दीपिका को शुक्रिया

Fictional Story: “अरे! कहाँ भागी जा रही हो?” दीपिका को तेज-तेज कदमों से जाते हुये देख पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेली सलोनी उसे आवाज लगाते हुये बोली.

“मरने जा रही हूँ.” दीपिका ने बड़बड़ाते हुए जवाब दिया.

“अरे, वाह! मरने और इतना सज-धज कर. चल अच्छा है, आज यमदूतों का भी दिन अच्छा गुजरेगा.”सलोनी चुटकी लेते हुये बोली.

“मैं परेशान हूँ और तुझे मजाक सूझ रहा है.” दीपिका सलोनी को घूरते हुये बोली, ” अभी मैं ऑफिस के लिए लेट हो रही हूँ,तुझसे शाम को निपटूंगी.”

“अरे हुस्नआरा! इस बेचारी को भी आज करोलबाग की ओर जाना है, यदि महारानी को कोई ऐतराज न हो तो यह नाचीज उनके साथ चलना चाहती हैं.” सलोनी ने दीन-हीन होने का अभिनय करते हुए मासूमियत से जवाब दिया.

“चल! बड़ी आई औपचारिकता निभाने वाली.” सलोनी की पीठ पर हल्का सा धौल जमाते हुए दीपिका बोली,” एक तू ही तो है जो मेरा दुख दर्द समझती है.”

बातों-बातों मे दोनो पड़ोसन-कम-सहेलियाँ बस-स्टैण्ड पहुँच गयीं.कुछ ही देर मे करोल बाग वाली बस आ गयी.

एक तो ऑफिस टाईम, ऊपर से सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती हुई दिल्ली की आबादी. जिधर देखो भीड़ ही भीड़. खैर, धक्का-मुक्की के बीच दोनो सहेलियां बस मे सवार हो गयी.संयोग अच्छा था कि दो सीटों वाली एक लेडीज बर्थ खाली थी.

“थैंक गॉड! कुछ तो अच्छा हुआ!” कहते हुये दीपिका सलोनी का हाथ पकड़कर झट से उस खाली बर्थ पर लपककर विराजमान हो गयी.

सलोनी, ”कुछ तो अच्छा हुआ!अरे! ऐसा क्यों बोल रही हो?चल अब साफ-साफ बता क्या हुआ? और यह चाँद सा चेहरा आज सूजा हुआ क्यों है?”

दीपिका, “अरे! क्या बताऊँ? घर मे किसी को मेरी तनिक भी परवाह नही है. मै सिर्फ पैसा कमाने की मशीन और सबकी सेवा करने वाली नौकरानी हूँ.”

“अरे! इतना गुस्सा! क्या हो गया?” सलोनी उसे प्यार से अपने से चिपकाते हुए बोली.

“आज सुबह मै थोड़ी ज्यादा देर तक क्या सो गयी, घर का पूरा माहौल ही बिगड़ गया. देर हो जाने के कारण भागम-भाग में ऑफिस जाने के लिये नहाने जाने के पहले मैं इनके लिए कपड़ा निकालना भूल गयी तो महाशय तौलिया लपेटे तब तक बैठे रहे,जब तक मैं बाथरूम से निकल नहीं आई और इस भाग-दौड़ के बीच इतनी मुश्किल से जो नाश्ता बनाया उसे भी बिना किये यह कहते हुए ऑफिस चले गये कि आज शर्ट-पैन्ट निकला न होने के कारण तैयार होने में देरी हो गयी.इधर साहबजादे तरुण को आलू-गोभी की सब्जी नाश्ते मे दिया तो मुँह फुलाकर बैठ गये कि रोज-रोज एक ही तरह की सब्जी खाते-खाते बोर हो गया हूँ, मशरुम क्यों नही बनाया? उधर बिटिया रानी की रोज यही शिकायत रहती है कि आप रोज एक ही तरह की बहन जी स्टाईल की चोटी करती हो. मेरी फ्रेन्ड्स की मम्मियाँ रोज नये-नये स्टाईल में उनकी हेयर डिजाईन करती हैं. बस सबको अपनी-अपनी पड़ी रहती है. कोई यह नहीं पूछता कि मैने नाश्ता किया या नहीं?टिफिन में क्या ले जा रही हूँ? मेरी ड्रेस कैसी है?  कहीं मुझे लेट तो नहीं हो रहा है? सबको बस अपनी अपनी चिंता है.”यह कहते-कहते उसकी आँखों मे आँसू भर गये.

“अरे परेशान मत हो, मेरी ब्यूटी क्वीन!अव्वल तू खुद इतनी सुन्दर है कि कुछ भी पहन ले तो भी हीरोइन ही लगेगी और घर के जो सारे लोग तुझसे फरमाइशें करते हैं, उसकी वजह उनका तुझसे लगाव है, वे तुझपर भरोसा करते हैं.” सलोनी उसे प्यार से समझाते हुए बोली.

“बस-बस रहने दो. मै सब समझती हूँ. यह सब कहने की बात है. यहाँ मेरी जान भी जा रही होगी न तो किसी न किसी को जरूर मुझसे कोई काम पड़ा होगा.” दीपिका का उबाल कम होने का नाम नहीं ले रहा था.

इसी बीच अगले स्टॉप पर बस के रूकते ही उसके ऑफिस मे डेली वेज पर काम करने वाली प्यून कांति किसी तरह जगह बनाते हुए भी उसमे दाखिल हो गयी. लेडीज सीट की ओर पहुँचकर बस के हैंगिंग हुक को पकड़कर वह खड़ी हो गयी. अभी वह आँचल से अपना पसीना पोंछ रही थी कि दीपिका ने पूछा, “अरे! कांति कैसी हो?”

दीपिका की आवाज सुनकर कांति चौंक कर उसकी ओर मुड़ते हुये बोली, “अरे मैडम! आप भी इसी बस मे! नमस्ते.” दीपिका को देखकर उसके चेहरे पर सदैव छाई रहने वाली मुस्कान कुछ और खिल आई थी.

दीपिका,” नमस्ते!तुम तो रोज नौ बजे दफ्तर पहुँच जाती हो, आज लेट कैसे?”

कांति,” मैडम! दरअसल आज से बेटे की दसवीं की बोर्ड परीक्षा शुरु हुयी है. वह जिद कर रहा था कि सबके मम्मी-पापा उन्हें छोड़ने एक्जाम सेन्टर पर आयेगें.आप भी मेरे साथ चलिए. वह इतने लाड़ से बोल रहा था कि मैं उसे मना नहीं कर पाई. उसे पहुंचाने चली गयी इसलिये थोड़ी देर हो गयी,सॉरी.”

दीपिका,” अरे! कोई बात नहीं. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी लेकिन एक बात बताओ,तुम्हारे पति भी तो बेटे के साथ जा सकते थे, न?” अभी कांति कोई जवाब दे पाती कि वह सलोनी की ओर मुड़ते हुए बोली, “देखो, हर घर की यही कहानी है, औरत घर का भी काम करे और बाहर भी मरे और पति एक भी काम एक्स्ट्रा नही कर सकते, क्योंकि वो मर्द है.”

“नहीं, मैडम!ऐसी बात नही है.” अभी कांति आगे कुछ और बोल पाती कि दीपिका ने कहा, ” अब पति की  तरफदारी करना छोड़ो. पति को हमेशा परमेश्वर, पूजनीय और उनकी ज्यादतियों पर पर्दा डालने का ही यह नतीजा है कि उनकी मनमानी बढ़ती जा रही है.” वह बिफरने सी लगी थी.

“नही. मैडम, मै उन्हें बचा नही रही हूँ. दरअसल पिछले साल ऑटो चलाते समय उनका बुरी तरह एक्सीडेन्ट हो गया था, जिसमे उनका दाहिना हिस्सा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया. इसलिये बाहर के काम मे उन्हें दिक्कत होती है. किन्तु, वे घरेलू कार्य मे मेरा पूरा सहयोग करते हैं और मुझे अपने परिवार के लिये कुछ भी करना बहुत अच्छा लगता है.”

कांति की बात से विस्मित दीपिका एकदम सन्नाटे मे आ गयी. दिव्यांग और बेरोजगार पति, छोटी सी तनख्वाह मे पूरे परिवार का गुजारा करने वाली कांति क्या उससे कम चुनौतियों का सामना कर रही है लेकिन एक इंच की मुस्कान लिये घर और बाहर दोनो जगह का काम कितनी हँसी-खुशी संभाल रही है.

इधर कांति बोले जा रही थी, “मैडम! बच्चे और पति जब अपनी इच्छा और परेशानी मेरे सामने रखते हैं, तो मुझे लगता है कि मै इस घर की धुरी हूँ.उनका मुझसे कुछ अपेक्षा रखना मुझे मेरे होने का अहसास कराता रहता है.”

कांति की सहज बातों ने अनजाने में ही दीपिका के अंदर धधक रही क्षोभ और गुस्से की अग्नि-ज्वालाओं को मीठी फुहार से बुझा दिया. सच में कांति ने कितनी आसानी से उसे समझा दिया था कि पति और बच्चों की फरमाईशें और उनका उस पर निर्भर होना उसे परेशान करना नही, बल्कि उनसे जुड़े रहने की निशानी है. एक क्षण के लिए उसने कल्पना कर यह देखा कि पति और बच्चे अपना-अपना काम करने में व्यस्त हैं. कोई अपनी डिमांड पूरी करने के लिए न तो उसकी चिरौरी कर रहा है और न ही कोई तुनक कर मुंह फुलाये बैठा है. अभी कुछ क्षण पहले तक इन्हीं फरमाइशों से बुरी तरह खीझी हुयी दीपिका का ने दिल इस कल्पना से ही घबरा उठा. वह स्वयं से दृढ़ता पूर्वक बोली,”लेट्स हैव ए न्यू बिगिनिंग.”

पश्चाताप की बूंदे गुस्से और खीझ से उपजे उसकी आँखों के सूखेपन को तर कर रही थी. तभी उसके मोबाईल फोन की रिंगटोन बजी. देखा, तो पति अश्विन की कॉल थी. उसके हलो कहते ही वे बोले, “दीपू! आज सुबह सोते समय तुम बिल्कुल इन्द्रलोक की परी लग रही थी. तुम्हे नींद से जगाकर मैं यह मौका खोना नही चाहता था.”

अश्विन की बातें सुनकर इस भीड़ भरी बस मे भी उसके गाल शर्म से गुलाबी हो उठे. वह धीरे से बोली, “बस-बस ठीक है. शाम को समय से घर आ जाना. आज मैं आपके पसन्द के केले के कोफ्ते और लच्छा पराठा बनाऊंगी और तरुण के लिये मशरुम. बाय.”

अश्विन,” बाय स्वीटहार्ट.” फोन रखते ही उसने सोनल के साथ मिलकर दो सीट वाली बर्थ पर थोड़ी सी जगह बनायी और कांति का हाथ पकड़ उसे सीट पर बैठाते हुए बोली, “आओ! कांति बैठो, तुम भी खड़े-खड़े थक गयी होगी. हम साथ-साथ चलेंगे.” कांति पहले थोड़ा हिचकी,लेकिन दीपिका के आत्मीय निमंत्रण से उसका संकोच भीगकर बह निकला.

कांति,”थैंक्स दी. आपका परिवार बहुत लकी है.”

दीपिका,”धन्यवाद,पर भला,वो क्यों?”

कांति,”जब आप बाहरी लोगों का इतना ध्यान रखती हैं तो आपके घरवालों को तो किसी बात की चिंता करने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती होगी.”

कांति की हथेली को धीमे से दबाकर उसे मौन धन्यवाद देते हुए वह खुद से बोली,” थैंक्स,कांति. मेरे संसार में मुझे अपने वजूद का अहसास कराने के लिए.” दीपिका के चेहरे पर भी अब कांति की तरह एक इंच की सच्ची वाली मुस्कान खिल आई थी. उसे मुस्कराते देख सलोनी बोली,” अब लग रही हो न सच्ची ब्यूटी क्वीन.” दुनिया से बेखबर बस की इस लेडीज बर्थ पर एक साथ तीन मुस्कान खिल आई. इधर अच्छी और चिकनी सड़क पाकर बस की रफ्तार भी तेज हो गयी थी.

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Love Stories in Hindi: नया खिलौना- श्रुति ने क्या किया था

Love Stories in Hindi: आज श्रुति की खुशी का ठिकाना न था. स्कूल से आते समय उस लड़के ने मुसकरा कर उसे फ्लाइंग किस जो दी थी. 16 साल की श्रुति के दिल की धड़कनें बेकाबू हो उठी थीं. वह पल ठहर सा गया था. वैसे उस लड़के के साथ श्रुति की नजरें काफी दिनों पहले ही चार हो चुकी थीं. आतेजाते वह उसे निहारा करता. श्रुति को भी ऊंचे और मजबूत कदकाठी का करीब 18 साल का वह लड़का पहली नजर में भा गया था. लड़का श्रुति के घर से कुछ दूर मेन रोड पर बाइक सर्विसिंग सैंटर में काम करता था.

श्रुति की एक सहेली उस लड़के को जानती थी. उसी सहेली ने बताया था कि जतिन नाम का एक लड़का अपने घर का इकलौता बेटा है और 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद कुछ घरेलू परेशानियों के कारण काम करने लग गया है.

घर में सब के होने के बावजूद श्रुति बारबार बरामदे में आ कर खड़ी हो जाती ताकि उस लड़के को एक नजर फिर से देख सके. श्रुति के दिल की यह हालत करीब 2 महीने से थी पर  आज इस प्रेम की गाड़ी को रफ्तार मिली जब उस लड़के ने उस से साफ तौर पर अपनी चाहत जाहिर की.

अब श्रुति का ध्यान पढ़ाई में जरा सा भी नहीं लग रहा था. उस की नजरों के आगे बारबार वही चेहरा घूम जाता. हाथ में मोबाइल थामे वह लगातार यही सोच रही थी कि उस लड़के का मोबाइल नंबर कैसे हासिल करे.

बहन की उलझन भाई ने तुरंत भांप ली. श्रुति को भी तो कोई राजदार चाहिए ही था. उस ने अपने मन की हर बात खुद से 2 साल छोटे भाई गुड्डू से कह दी. भाई ने भी अपना फर्ज अच्छी तरह निभाते हुए झट श्रुति का फोन नंबर एक कागज पर लिखा और उस लड़के के पास पहुंच गया.

‘यह क्या है?’ उस के सवाल पूछने पर गुड्डू ने बड़ी तेजी से जवाब दिया, ‘खुद समझ जाओ.’

कागज थमा कर वह घर चला आया और श्रुति मोबाइल हाथ में ले कर बड़ी बेचैनी से कौल का इंतजार करने लगी. मोबाइल की घंटी बजते ही वह दौड़ कर छत पर चली जाती ताकि अकेले में उस से बातें कर सके. मगर नंबर दिए हुए 3 घंटे बीत गए, पर उस लड़के की कोई कौल नहीं आई.

उदास सी श्रुति छत पर टहलती रही. उस की निगाहें लगातार उस लड़के पर टिकी थीं जो अपने काम में मशगूल था. थक कर वह किचन में मम्मी का हाथ बंटाने लगी कि मोबाइल पर छोटी सी रिंग हुई. श्रुति फोन के पास तक पहुंचती तब तक मोबाइल खामोश हो चुका था. गुस्से में  वह फोन पटकने ही वाली थी कि फिर उसी नंबर से कौल आई. पक्का वही होगा, सोचती हुई वह कूदती हुई छत पर पहुंच गई. अपनी बढ़ी धड़कनों पर काबू करते हुए हौले से ‘हैलो’ कहा तो उधर से ‘आई लव यू’ सुन कर उस का चेहरा एकदम से खिल उठा.

‘‘मैं भी आप को बहुत पसंद करती हूं. मुझे आप की हाइट बहुत अच्छी लगती है,’’ श्रुति ने चहक कर कहा.

‘‘बस हाइट और कुछ नहीं,’’ कह कर जतिन हंसने लगा. श्रुति शरमा गई फिर तुनक कर बोली, ‘‘फोन करने में इतनी देर क्यों लगाई?’’

‘‘अच्छा, इतना इंतजार था मेरी कौल का?’’ वह भी मजे ले कर बातें करने लगा.

श्रुति और जतिन देर तक बातें करते रहे. रात में श्रुति ने फिर से उसे कौल लगा दी. अब तो यह रोज की कहानी हो गई. श्रुति जब तक दिन में 10 बार उस से बातें नहीं कर लेती, उस का दिल नहीं भरता. एग्जाम आने वाले थे पर श्रुति का ध्यान पढ़ाई में कहां लग रहा था. वह तो खयालों की दुनिया में उड़ रही थी.

अकसर वह जतिन से मिलने जाती. जतिन श्रुति को चौकलेट्स और शृंगार का सामान ला कर देता तो वह फूली नहीं समाती. उस से बातें करते समय वह सबकुछ भूल जाती. ठीक उसी प्रकार जैसे बचपन में अपने खिलौने से खेलते हुए दुनिया भूल जाती थी.

उस लड़के का प्यार एक तरह से श्रुति के लिए खिलौने जैसा लुभावना था जिसे वह दुनिया से छिपा कर रखना चाहती थी. उसे डर था कि कहीं किसी को पता लग गया तो वह प्यार उस से छीन लिया जाएगा. पापा से वह खासतौर पर डरती थी. पापा ने एक बार गुस्से में उस का सब से पहला खिलौना तोड़ दिया था. तब से वह उन से खौफजदा रहने लगी थी. अपनी जिंदगी में जतिन की मौजूदगी की भनक तक नहीं लगने देना चाहती थी.

और फिर वही हुआ जिस का डर था. उस का 9वीं कक्षा का फाइनल रिजल्ट अच्छा नहीं आया. पापा ने रिजल्ट देखा तो बौखला गए. चिल्ला कर बोले, ‘‘बंद करो इस की पढ़ाईलिखाई. बहुत पढ़ लिया इस ने. अब शादी कर देंगे.’’

श्रुति सहम गई. कहीं यह खिलौना भी पापा छीन न लें. यह सोच कर रोने लगी. अब वह 10वीं कक्षा में आ गई थी. फाइनल एग्जाम में किसी भी तरह उसे अच्छे नंबर लाने थे. वह मन लगा कर पढ़ने लगी ताकि एग्जाम तक उस की परफौर्मैंस सुधर जाए. इधर जतिन भी दूसरी जौब करने लगा था. अब वह श्रुति को हर समय नजर नहीं आ सकता था. वह कभीकभार ही मिलने आ पाता. श्रुति भी उस से कम से कम बातें करती. एग्जाम में वह अच्छे नंबर ले कर पास हो गई. समय धीरेधीरे बीतता गया और अब श्रुति उस लड़के से बातचीत भी बंद कर चुकी थी. देखतेदेखते वह 12वीं की भी परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर गई. अच्छे अंकों से पास करने से उसे अच्छे कालेज में दाखिला भी मिल गया.

कालेज के पहले दिन वह बहुत अच्छे से तैयार हुई. कुछ दिनों पहले ही बालों में रिबौंडिंग भी करा चुकी थी. जींस और टीशर्ट के साथ डैनिम की जैकेट और खुले बालों में काफी स्मार्ट लग रही थी. उस ने खुद को मिरर में निहारा और इतराती हुई सहेली के साथ निकल पड़ी.

कालेज गेट के पास अचानक वह सामने से आते एक लड़के से टकरा गई. सौरी कहते हुए उस लड़के ने श्रुति के हाथ से गिरा हैंडबैग उसे थमाया और एकटक उसे निहारने लगा. श्रुति का दिल तेजी से धड़कने लगा. बेहद आकर्षक व्यक्तित्व वाला वह लड़का श्रुति को पहली नजर में भा गया था. वह दूर तक पलटपलट कर उस लड़के को देखती रही.

कालेज में पूरे दिन श्रुति की नजरें उसी लड़के को ढूंढ़ती रहीं. लंच में वह कैंटीन में दिखा तो श्रुति मुसकरा उठी. वह लड़का भी हैलो कहता हुआ उस के पास आ गया. दोनों ने देर तक बातें कीं और एकदूसरे का फोन नंबर भी ले लिया. घर जा कर भी उन के बीच बातें होती रहीं. कालेज के पहले दिन हुई दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई.

श्रुति के पास जब से आकाश नाम का यह नया खिलौना आया वह पुराना खिलौना यानी जतिन को भूल गई. अब कभी जतिन उसे फोन कर बात करने की कोशिश भी करता तो वह उसे इग्नोर कर देती, क्योंकि वह अपना सारा समय अब अपने बिलकुल नए और आकर्षक खिलौने यानी आकाश के साथ जो बिताना चाहती थी.

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Hindi Short Story: मेघनाद- कुछ ऐसा ही था उसका व्यक्त्तिव

Hindi Short Story: ‘मेघनाद…’ हमारे प्रोफैसर क्लासरूम में हाजिरी लेते हुए जैसे ही यह नाम पुकारते, ‘खीखी’ की दबीदबी आवाजें आने लगतीं. एक तो नाम भी मेघनाद, ऊपर से जनाब 6 फुट के लंबे कद के साथसाथ अच्छेखासे सांवले रंग के मालिक भी थे. उस पर घनीघनी मूंछें. कुलमिला कर मेघनाद को देख कर हम शहर वाले उसे किसी फिल्मी विलेन से कम नहीं समझते थे.

पास ही के गांव से आने वाला मेघनाद पढ़ाई में अव्वल तो नहीं था लेकिन औसत दर्जे के छात्रों से तो अच्छा ही था.

आमतौर पर क्लास में पीछे की तरफ बैठने वाला मेघनाद इत्तिफाक से एक दिन मेरे बराबर में ही बैठा था. जैसे ही प्रोफैसर ने उस का नाम पुकारा कि ‘खीखी’ की आवाजें आने लगीं.

मेरे लिए अपनी हंसी दबाना बड़ा ही मुश्किल हो रहा था. मुझे लगा कि मेघनाद को बुरा लग सकता है, लेकिन मैं ने देखा कि वह खुद भी मंदमंद मुसकरा रहा था.

कुछ दिनों से मैं नोट कर रहा था कि मेघनाद चुपकेचुपके श्वेता की तरफ देखता रहता था. कालेज में लड़कियों की तरफ खिंचना कोई नई बात नहीं थी लेकिन श्वेता अपने नाम की ही तरह खूब गोरी और बेहद खूबसूरत थी. क्लास के कई लड़के उस पर फिदा थे लेकिन श्वेता किसी को भी घास नहीं डालती थी.

मैं ने यह बात खूब मजे लेले कर अपने दोस्तों को बताई.

एक दिन जब प्रोफैसर महेश ने मेघनाद का नाम पुकारा तो कोई जवाब नहीं आया. उन्होंने फिर से नाम पुकारा लेकिन फिर भी कोई जवाब नहीं आया.

मेघनाद कभी गैरहाजिर नहीं होता था इसलिए प्रोफैसर महेश ने सिर उठा कर फिर से उस का नाम लिया. अब तक क्लास की ‘खीखी’ अच्छीखासी हंसी में बदल गई थी.

इतने में श्वेता ने मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘‘सर, वह शायद लक्ष्मणजी के साथ कहीं युद्ध कर रहा होगा.’’

यह सुन कर सभी हंसने लगे. यहां तक कि प्रोफैसर महेश भी अपनी हंसी न रोक पाए.

तभी सब की नजर दरवाजे पर पड़ी जहां मेघनाद खड़ा था. आज उस की ट्रेन लेट हो गई थी तो वह भी थोड़ा लेट हो गया था. उस ने श्वेता की बात सुन ली थी और उस का चेहरा उतर गया था.

मुझे मेघनाद का उदास सा चेहरा देख कर अच्छा नहीं लगा. शायद उस को लोगों की हंसी से ज्यादा श्वेता की बात बुरी लगी थी.

बीएससी पूरी कर के मैं दिल्ली आ गया और फिर अगले 10 सालों में एक बड़ी मैडिकल ट्रांसक्रिप्शन कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर बन गया.

कालेज के मेरे कुछ दोस्त सरकारी टीचर बन गए तो कुछ अपना कारोबार करने लगे.

कालेज के कुछ पुराने छात्रों ने 10 साल पूरे होने पर रीयूनियन का प्रोग्राम बनाया. अनुराग, अजहर, विनोद, इकबाल, पारुल वगैरह ने प्रोग्राम के लिए काफी मेहनत की.

प्रोग्राम में अपने पुराने साथियों से मिल कर मुझे बहुत अच्छा लगा.

यों तो प्रोग्राम में अपनी क्लास के करीब आधे ही लोग आ पाए, फिर भी उन सब से मिल कर काफी अच्छा लगा.

मेरे सहपाठी हेमेंद्र और दीप्ति शादी कर के मुंबई में रह रहे थे तो संजय एक बड़ी गारमैंट कंपनी में वाइस प्रैसीडैंट बन गया था. अतीक जरमनी में सीनियर साइंटिस्ट के पद पर था. वह प्रोग्राम में तो नहीं आ पाया लेकिन उस ने हम सब को अपनी शुभकामनाएं जरूर भेजी थीं.

वंदना एक कामयाब डाक्टर बन गई थी. हमारे टीचरों ने भी हम सब को अपनेअपने फील्ड में कामयाब देख कर अपना आशीर्वाद दिया. कुलमिला कर सब से मिल कर बहुत अच्छा लगा.

हमारे सीनियर मैनेजर मनीष सर 2 साल के लिए अमेरिका जा रहे थे. उन की जगह कोई नए सीनियर मैनेजर हैदराबाद से आ रहे थे. मेरे साथी असिस्टैंट मैनेजर ऋषि, जिन को औफिस में सब ‘पार्टी बाबू’ के नाम से बुलाते थे, ने नए सीनियर मैनेजर के स्वागत में एक छोटी सी पार्टी करने का सुझाव दिया. हम सभी को उन की बात जंच गई और सभी लोग पार्टी की तैयारियों में लग गए.

तय दिन पर नए सीनियर मैनेजर औफिस में पधारे और उन को देखते ही मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही. मेरे सामने मेघनाद खड़ा था. वह भी मुझे देख कर तुरंत पहचान गया और बड़ी गर्मजोशी से आ कर मिला.

मेघनाद बड़ा आकर्षक लग रहा था. सूटबूट में आत्मविश्वास से भरपूर फर्राटेदार अंगरेजी में बात करता एक अलग ही मेघनाद मेरे सामने था. अपने पहले ही भाषण में उस ने सभी औफिस वालों को प्रभावित कर लिया था.

थोड़ी देर बाद चपरासी ने आ कर मुझ से कहा कि सीनियर मैनेजर आप को बुला रहे हैं. मेघनाद ने मेरे और परिवार के बारे में पूछा. फिर वह अपने बारे में बताने लगा कि ग्रेजुएशन करने के बाद वह कुछ साल दिल्ली में रहा, फिर हैदराबाद चला गया. पिछले साल ही उस ने हमारी कंपनी की हैदराबाद ब्रांच जौइन की थी.

फिर उस ने मुझे रविवार को सपरिवार अपने घर आने की दावत दी.

रविवार को मैं अपनी श्रीमती के साथ मेघनाद के घर पहुंचा. घर पर मेघनाद के 2 प्यारेप्यारे बच्चे भी थे. लेकिन असली झटका मुझे उस की पत्नी को देख कर लगा. मेरे सामने श्वेता खड़ी थी. मेरे हैरानी को भांप कर मेघनाद भी हंसने लगा.

‘‘हैरान हो गए क्या…’’ मेघनाद ने हंसते हुए कहा, फिर खुद ही वह अपनी कहानी बताने लगा, ‘‘दिल्ली आने के बाद नौकरी के साथसाथ मैं एमबीए भी कर रहा था. वहां मेरी मुलाकात श्वेता से हुई थी. फिर हमारी दोस्ती हो गई और कुछ समय बाद शादी. वैसे, मुझ में इन्होंने क्या देखा यह आज तक मेरी समझ में नहीं आया.’’

श्वेता ने भी अपने दिल की बात बताई, ‘‘कालेज में तो मैं इन को सही से जानती भी नहीं थी, पता नहीं कहां पीछे बैठे रहते थे. दिल्ली आ कर मैं ने इन के अंदर के इनसान को देखा और समझा. मैं ने अपनी जिंदगी में इन से ज्यादा ईमानदार, मेहनती और प्यार करने वाला इनसान नहीं देखा.’’

मेघनाद और श्वेता के इस प्रेम संसार को देख कर मुझे वाकई बड़ी खुशी हुई. सच ही है कि आदमी की पहचान उस के नाम या रंगरूप से नहीं, बल्कि उस के गुणों से होती है. और हां, अब मुझे मेघनाद नाम सुन कर हंसी नहीं आती, बल्कि फख्र महसूस होता है.

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Hindi Crime Story: रत्नमाया:- क्या देह व्यापार से बच पाई वह

Hindi Crime Story: स्वर्ण रेखा नदी के तट पर स्थित एक मंदिर के द्वार पर एक असहाय तरुणी ने आश्रय की भीख मांगी. उसे आश्रय मिल गया, किंतु वह यह नहीं जानती थी कि मंदिर का वह द्वार नारी देह का व्यापार करने वालों का एक विशाल गृह है.

कल क्या होने वाला है कौन जानता है. तरुणी अपने को समय के हाल पर छोड़ चुकी थी. वह जहां थी जिस हाल में थी अपने को महफूज समझ रही थी.

तभी एक दिन गोधूली की बेला में, मंदिर में होने वाली आरती के समय एक युवक ने वहां प्रवेश किया. एकत्रित भक्त मंडली की भीड़ को चीरता हुआ वह अग्रिम पंक्ति में जा खड़ा हुआ.

आरती खत्म होने पर जब अपने पायलों की रुनझुन बजाती हुई, थाल को हाथों में लिए हुए, देव मंदिर की वह नवयुवती सीढि़यों से उतरी और स्वर्ण रेखा नदी के तट पर आ दीपों को एकएक कर के जल में प्रवाहित करने लगी, तभी पीछे से उस युवक ने पुकारा, ‘‘रत्नमाया.’’

युवती चौंक गई. पीछे मुड़ कर उस ने बलिष्ट कंधों वाले उस गौरांग सुंदर युवक को देखा तो उस के कपोल लाज की गरिमा से आरक्त हो उठे. साड़ी का आंचल धीरे से सिर पर खींच उस ने कहा, ‘‘रत्नसेन, तुम यहां कैसे?’’

‘‘होनी ले आई,’’ युवक ने उत्तर दिया.

‘‘किंतु मैं ने तो समझा था कि हूणों से मेरी रक्षा करने में उस दिन तुम ने अपने जीवन की इति ही कर दी,’’ तरुणी बोली.

युवक हंसा और बोला, ‘‘नहीं,  जीवन अभी शेष था, इसलिए बच गया. तुम कौन हो नहीं जानता, किंतु ऐसा लगता है कि युगोंयुगों से मैं तुम्हें पहचानता हूं. एक लहर ने हमें परिचय के बंधन में पुन: उस दिन बंधने का आयोजन किया था. क्या तुम मुझ पर विश्वास करोगी और मेरे साथ चल सकोगी?’’

युवती कटाक्ष करती हुई बोली, ‘‘मुझ पर इतना अखंडित विश्वास हो गया तुम्हें.’’

युवक बोला, ‘‘मन जो कहता है.’’

‘‘उसे कभी बुद्धि की आधारतुला पर भी तौल कर तुम ने देखा है. एक असहाय नारी की जीवन रक्षा करने का प्रतिफल ही आज तुम मुझ से मांग रहे हो.’’

युवक यह सुन कर हतप्रभ रह गया. उसे लगा नारी के इस उत्तर ने उसे बहुत प्रताडि़त किया है. वह सहमा घूमा और सीढि़यों पर पग रखता हुआ, आगे चल दिया. तभी युवती ने फि र से पुकारा, किंतु उसे पीछे लौटते न देख वह स्वयं उस के निकट आ गई और बोली, ‘‘रत्नसेन, तुम तो बुरा मान गए. काश, तुम समझ सकते कि मैं एक दुर्बल नारी हूं, जो खुल कर अपनी बात नहीं कह सकती.

‘‘हृदय में क्या है और होंठों पर क्या शब्द आ जाते हैं, या मेरे चेहरे पर क्या भाव आते हैं? यह मैं स्वयं नहीं जानती,’’  यह कहतेकहते उस युवती की आंखों में आंसू आ गए, किंतु रत्नसेन पाषाण शिला सा खड़ा रहा. रत्नमाया ने अपने दोनों हाथ उस की भुजा पर रख दिए और बोली, ‘‘एक प्रार्थना है, मानोगे, कल गोधूलि की इसी बेला में आरती के समय तुम आ जाना और मैं नदी के तट पर तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी. तभी तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी दे दूंगी. अब मैं चलती हूं.’’

इतना कह कर रत्नमाया जाने लगी तो रत्नसेन ने कहा, ‘‘सुनो, रत्नमाया, मेरा कर्तव्य पथ कठिन है. मैं एक साधकमात्र हूं. आज जहां हूं, उस स्थान से मैं परिचित नहीं. अपने उद्देश्य पूर्ति के निमित्त मगध जाने के रास्ते में आज यहां रुका. मेरे भरोसे ने मुझ से कहा था कि तुम यहीं कहीं इसी नगरी में होगी और वही आस की प्रबल डोर मुझे बांधेबांधे यहां इसी नदी के तट तक तुम्हारे समीप ले आई.’’

उस ने आगे कहा, ‘‘किंतु तुम मुझे समझने में भूल कर गईं. तुम्हारी जीवन रक्षा कर के उस के प्रतिदान रूप में तुम्हें उपहारस्वरूप मांगने का मेरा कोई  विचार न था,’’ यह कहते हुए रत्नसेन तेजी से आगे बढ़ गया.

उस के जाने के बाद पीछे से रत्नमाया ने अपना सुंदर चेहरा उस पाषाण शिला पर वहीं रख दिया जहां अभीअभी रत्नसेन के चरण पडे़ थे. उसे अपने आंसुओं से धो कर रत्नमाया अपने कक्ष की ओर चल पड़ी.

वहां उन देवदासियों की भीड़ में देवबाला ही इकलौती उस की प्रिय थी. उस से ही रत्नमाया अपनी विरहव्यथा कहती थी. देवबाला उस के अतीत को जानती थी. इसीलिए जब उस दिन स्वर्णनदी में द्वीप प्रवाहित कर वह लौटी तो सहसा देवबाला बोली थी, ‘‘रत्नमाया, यह क्यों भूलती है कि तू एक देवदासी है? उस युवक की शब्द छलना में फंस कर अपनी सुंदर देह को मत गला. भला नारी की छविमाया के सामने पुरुष द्वारा दिए हुए विश्वासों का मूल्य ही क्या है? तू उसे भूल जा. तेरा यह जीवन चक्र तुझे जिस पथ पर ले आया है, उसे ही अब ग्रहण कर.’’

किंतु सब सुनते और समझते हुए भी रत्नमाया ने अपने चेहरे को न उठाया. वह पहले की तरह ही देवबाला के सामने सुबकती रही. बाहर मंदिर में घंटों के बजने का स्वर चारों ओर गूंजने लगा था.

तभी पुजारी ने आ कर पुकारा तो देवबाला ने उठ कर कक्ष के कपाट खोल दिए.

आगंतुक पुजारी ने कहा, ‘‘देवबाला, मंगल रात की इस बेला में रत्नमाया को अलंकृत कर दो. रसिक जनों के आगमन का समय हो गया है. शीघ्र ही उसे भीतर विलास कक्ष में भेजा जाएगा.’’

‘‘नहीं,’’  देवबाला बोली. उस के स्वर में दृढ़ता साफ झलक रही थी और आंखों से प्रतिशोध की भावना. उस ने कहा, ‘‘रत्नमाया तो अस्वस्थ है इसलिए विलास नृत्य में वह भाग नहीं ले सकेगी.’’

‘‘अस्वस्थता का कारण मैं खूब जानता हूं,’’ पुजारी बोला, ‘‘एक दिन जब तुम भी इस द्वार पर देवदासी बन कर आई थीं तब भी तुम ने ऐसा ही कुछ कहा था. किंतु मेरे दंड के विधान की कठोरता तुम्हें याद है न.’’

यह कहतेकहते पुजारी की पैशाचिक भंगिमा कठोर हो गई. देवबाला उन्हें देख कर सिहर उठी. खिन्न मन बिना कुछ उत्तर दिए हुए, वापस लौट आई.

‘‘रत्नमाया,’’ देवबाला आ कर बोली, ‘‘औरत की बेबसी ही उस का सब से बड़ा अभिशाप है. तू तो जानती ही है अत: अपने मन को स्वस्थ कर और देख तेरा वह अनोखा भक्त मंदिर में पुन: आया है, जिस ने एक दिन आरती की बेला में तुझे अपने प्रेम विश्वासों की सुरभि से मतवाला किया था.’’

‘‘सच, कौन रत्नसेन?’’ चकित सी वह पूछ बैठी.

‘‘हां, तेरा ही रत्नसेन,’’ देवबाला ने उत्तर दिया.

‘‘आह, बहन एक बार फिर कहो,’’ रत्नमाया कह उठी और तत्काल ही देवबाला को उस ने अपनी बांहों में कस कर बांध लिया. भावनाओं के उद्वेग में हाथ ढीले हुए तो सरकती हुई वह देवबाला के सहारे धरती पर बैठ गई.

कुछ क्षणों के लिए आत्मविभोर देवबाला ठिठकी खड़ी रह गई. फिर उस ने कहा, ‘‘रत्नमाया, तू अब जा और अपनी देह को अलंकृत कर…शीघ्र ही मंदिर में आ जा, आज देवनृत्य का आयोजन है.’’

रत्नमाया तुरंत उठी. उस दिन फिर उस ने अपने अद्भुत रूप को आभूषणों का पुट दे सजाया. गोरे रंग की अपनी देह पर लहराते हुए केशों की एक वेणी गूंथी. केतकी के सुवासित फूलों को उस में पिरो कर गले में देवबाला के दिए हुए हीरक हार को पहना.

रात्रि की उस बेला में ऊपर नीले आकाश में अनेक तारे टिमटिमा रहे थे. उन की छाया के तले अपने हाथों में आरती के थाल को सजाए वह पायलों को रुनझुन बजाती हुई चल दी.

‘‘ठहरो,’’ सहसा देवबाला ने उसे रोक कर कहा, ‘‘रत्नमाया, सुन दुर्भाग्य मुझे एक दिन देवदासी बना कर यहां लाया था किंतु रूप के इतने विपुल भार को लिए हुए अभागिन तेरा समय तुझे यहां क्यों लाया है?’’

रत्नमाया विस्मित रह गई. धीमे से उस ने उत्तर दिया, ‘‘बहन, रूप की बात तो मैं जानती नहीं, किंतु समय के चक्र को मैं अवश्य पहचानती हूं. बर्बर हूणों के आक्रमण में राज्य लुटा, वैभव और सम्मान गया. परिवार का अब कुछ पता नहीं. सबकुछ खो कर जिस प्रकार तुम्हारे द्वार तक आई हूं, वह तुम से छिपा है कुछ क्या?’’

देवबाला ने उत्तर नहीं दिया. किन्हीं विचारों में वह कहीं गहरे तक खो गई. फिर बोली, ‘‘रत्नमाया, क्या रत्नसेन का पता तू जानती है?’’

‘‘नहीं, केवल इतना कि वह एक दिन हठात कहीं से आया और अपने जीवन को दांव पर लगा कर मेरी रक्षा की थी.’’

‘‘और तू ने अपना हृदय इतनी सी बात पर न्योछावर कर दिया,’’ देवबाला बोली.

किंतु उत्तर में रत्नमाया का गोरा चेहरा बस, लाज से आरक्त हो उठा.

देवबाला बोली, ‘‘सुन, रत्नसेन यहां नहीं है और वह मंदिर भी भगवान का उपासना गृह नहीं बल्कि नारी के रूप का विक्रय घर है. आज की इस रात को तू विलास कक्ष में मत जा. यदि तुझे जीवन का मोह नहीं है तो वहां जा, जो इस रूप का मोल कर ले. हां, नहीं तो जीवन की सारी मोहममता त्याग कर तू जहां भी आज जा सकती है…वहां इसी पल इस द्वार को छोड़ कर चली जा.’’

उस समय सामने मंदिर की सीढि़यों से टकराती हुई बरसाती स्वर्णरेखा नदी बही चली जा रही थी. एक असहाय तरुणी के क्लांत हृदय सी चीत्कार करती हुई उस की लहरें वातावरण को क्षुब्ध कर रही थीं.

रत्नमाया ने देवबाला की बात को पूरी तरह सुना अथवा नहीं, किंतु उसी क्षण उस ने अपनी सुंदर देह से स्वर्ण आभूषणों को निकाल कर फेंक दिया. केशों की वेणी में गुथे हुए केतकी के फूलों को नोच कर चारों ओर छितरा दिया और सत की ज्वाला सी धधकती हुई वह रूपवती अद्भुत नारी देवबाला को देखतेदेखते ही क्षणों में वहां से विलीन हो गई. दिन बीतते गए…समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा.

…और फिर एक दिन रात्रि के आगमन पर एक छोटे से गांव के मंदिर में किसी सुंदरी ने दीप जलाया. बाहर आकाश में बादल घिरे थे और हवा के एक ही झोंके में सुंदरी के हाथों में टिमटिमाते हुए उस दीपक की लौ बुझ गई.

तभी मंदिर के बाहरी द्वार पर किसी अश्वारोही के रुकने का शब्द सुनाई पड़ा. एकएक कर बडे़ यत्न से वह अश्वारोही मंदिर की सीढि़यों से ऊपर चढ़ा. मानो शक्ति का उस की देह में सर्वथा अभाव हो. किसी प्रकार आगे बढ़ कर वह देवालय के उस द्वार पर आ कर खड़ा हो गया, जहां 2 क्षण पहले ही, उस ने एक छोटा दीपक जलते हुए देखा था.

लेकिन उस के पैरों की आहट सुन कर भी कक्ष की वह नारी मूर्ति हिली नहीं. मन और देह से ध्यान की तंद्रा में तल्लीन वह देव प्रतिमा के समक्ष पुन: दीप जला, पहले की तरह अचल बैठी रही.

युवक के धैर्य का बांध टूट गया. उस ने कहा, ‘‘हे विधाता, जीवन का अंत क्या आज यहीं होने को है?’’

इस बार युवती मुड़ी और पूछा, ‘‘बटोही, तुम कौन हो?’’

‘‘मैं एक सैनिक हूं,’’ उस ने उत्तर दिया और कहा, ‘‘हूणों द्वारा शिप्रा पार कर इस ओर आक्रमण करने के प्रयास को आज सर्वथा विफल किया है, किंतु लगता है कि देह में जीवन शक्ति अब शेष नहीं है. किंतु इस गहन रात्रि में मुझे आज यहां क्या अभय मिल सकेगा?’’

युवती उठ खड़ी हुई. वह द्वार तक आई तभी आकाश में बिजली चमकी और उस के क्षणिक प्रकाश में उस ने रक्त में भीगे युवक के काले केश, उस के गीले वस्त्र और खून में लिपटे चेहरे को देखा. वह चीख उठी अैर अचानक ही उस के मुख से निकला गया, ‘‘कौन? रत्नसेन?’’

हर्ष और विस्मय से रत्नसेन का हृदय स्पंदित होने लगा. सम्मुख ही गौरांगिनी रत्नमाया खड़ी थी.

उस दिन रत्नमाया फिर रत्नसेन को अपने कक्ष में ले गई और अपने मृदुल हाथों से उस बटोही के घावों को धोया, स्नेह के अमृत रस को ढुलका कर उसे स्वस्थ और चेतनयुक्त बनाया.

बाहर गहन अंधकार अभी भी व्याप्त था. कक्ष में जलते दीपक की धीमी रोशनी में रत्नसेन ने कहा, ‘‘रत्नमाया, वक्त की मुसकान और उस के आंसू विचित्र हैं. कब ये हंसाएगी और कब ये रुला जाएंगी, कोई नहीं जानता? एक दिन बर्बर हूणों से तुम्हारी रक्षा कर सकने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ और फिर अचानक ही उस दिन स्वर्णरेखा नदी के तट पर तुम से पुन: भेंट हो गई.’’

रत्नमाया शांत बैठी सुनती रही. उस ने…अपने कोमल हाथों को उठा कर रत्नसेन के उन्नत माथे पर मृदुलता के साथ रख दिया.

रत्नसेन ने फिर कहा, ‘‘रत्नमाया, तुम्हारी इस रूपशिखा के सतरंगी प्रकाश को अपने से दूर न हटने दूं, मेरा यह दिवास्वप्न अब तुम्हारी कृपा से पूरा होगा.’’

‘‘मन की इच्छापूर्ण कर सकने का सामर्थ्य आप में भला कब नहीं रहा,’’ यह कह रत्नमाया वहां से उठी और अंदर के प्रकोष्ठ में चली गई.

दूसरे दिन जब ऊषा अपने स्वर्णिम रथ पर बैठी सुनहरी चादर को खुले नीलाकाश में फहराती चली आ रही थी, तभी रत्नसेन की खोज में अनेक सैनिकों ने उस गांव में प्रवेश किया. रत्नसेन बाहर मंदिर के प्रांगण में आ कर खड़ा हो गया और एक वृद्ध सैनिक को संकेत से पुकारा, ‘‘सिंहरण, इधर इस ओर मंदिर के समीप.’’

अगले पल में वह देवालय सैनिकों की चहलपहल और कोलाहल से भर गया. वहां का आकाश भी वीर सामंत रत्नसेन की जयजयकार से निनादित हो उठा.

निकट के उद्यान से तभी संचित किए हुए पुष्पों को ले कर, रत्नमाया उस ओर आई. कनकछरी सी कमनीय काया युक्त शुभ्रवसना, उस सुंदरी को देखते ही सहसा सिंहरण विस्मित रह गया. उस ने पुकारा, ‘‘कौन राजकुमारी, रत्नमाया.’’

रत्नमाया ठिठकी. घूम कर उस ने सिंहरण की ओर देखा और बोली, ‘‘सेनापति सिंहरण, अरे, तुम यहां कैसे?’’ फिर जैसे उसे ध्यान हो आया. वह बोली, ‘‘तो बर्बर विदेशियों से आर्यावर्त को मुक्त करने का संकल्प लिए हुए तुम अभी जीवित हो?’’

‘‘हां, राजकुमारी,’’ सिंहरण ने कहा, ‘‘वृद्ध सिंहरण ही जीवित रह गया. तात तुल्य जिस राजा ने सदैव पाला और  मेरे कंधों पर राज्य की रक्षा का भार सौंपा था, यह अभागा तो न उन की ही रक्षा कर सका, न उस धरती की ही. आज भी यह जीवित है, इस दिन को देखने के लिए. आह, स्वर्ण पालने और फूलों की सेज पर जिस राजकुमारी को मैं ने कभी झुलाया था, उस की असहाय बनी इस दीन कुटिया में आज अपने दिन बिताते देखने को यह अभागा अभी जीवित ही है.’’

सिंहरण ने पुन: सामंत रत्नसेन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तात, शूरसेन प्रदेश के वीर राजा घुमत्सेन की पुत्री यही राजकुमारी रत्नमाया है.’’

मन की किसी रहस्यमयी अज्ञात प्रेरणावश उस ने रत्नमाया को प्रणाम किया. उत्तर में उस की प्रेमरस से अभिसिंचित शुक्रतारे सी उज्ज्वल मोहक मुसकान को पा, वह आत्मविभोर हो उठा.

किंतु उस दिन अति आग्रह पर भी रत्नमाया रत्नसेन के साथ नहीं गई. उस के अभावों और कष्टों के पीडि़त दिनों में ग्रामीणजनों ने निश्चल, निस्वार्थ भाव से एक दिन उसे आश्रय प्रदान किया था. वह उन्हीं की सेवा में पूर्ववत तनमन से ही संलग्न रही.

गुप्तकाल के यशस्वी मानध्वज के नीचे सामूहिक रूप से संगठित हो एक दिन आर्य वीरों ने जब भारत भूमि को हूणों की पैशाचिक सत्ता से मुक्त कर लिया, तभी प्रभात की एक बेला में एक स्वर्णमंडित रथ रत्नमाया के उस छोटे से गांव में आया. उस पर से पराक्रमी मालव सामंत वीर रत्नसेन उतरे. उन के साथ ही फूल सी कोमल कुंदकली सुंदर राजवधू रत्नमाया को ग्रामीण जनों ने स्नेह के आंसू दे विदा कर दिया.

उस दिन ग्रामवधुओं ने रथ को घेर लिया था और उस के पथ को अपने मोहक प्रेमफूलों से पूरी तरह सजा दिया. उस रास्ते पर से जाते समय अपने दुख के दिनों में भी जिस रत्नमाया के नयन आंसुओं से कभी इतने आर्द न हो सके थे, जितने आज हुए.

Hindi Crime Story

Moral Story: तितली- सियाली के चेहरे पर क्यों थी मुस्कान

Moral Story: रविवार के दिन की शुरुआत भी मम्मीपापा के  झगड़े की कड़वी आवाजों से हुई. सियाली अभी अपने कमरे में सो ही रही थी कि चिकचिक सुन कर उस ने चादर सिर तक ओढ़ ली, इस से आवाज पहले से कम तो हुई, पर अब भी उस के कानों से टकरा रही थी.

सियाली मन ही मन कुढ़ कर रह गई. पास पड़े मोबाइल को टटोल कर उस में ईयरफोन लगा कर उन्हें कानों में कस कर ठूंस लिया और आवाज को बहुत तेज कर दिया.

18 साल की सियाली के लिए यह कोई नई बात नहीं थी. उस के मांबाप आएदिन ही  झगड़ते रहते थे, जिस की सीधी वजह थी उन दोनों के संबंधों में खटास का होना… ऐसी खटास, जो एक बार जिंदगी में आ जाए, तो आपसी रिश्तों का खात्मा ही कर देती है.

सियाली के मांबाप प्रकाश और निहारिका के संबंधों में यह खटास कोई एक दिन में नहीं आई, बल्कि यह तो  एक मिडिल क्लास परिवार के कामकाजी जोड़े के आपसी तालमेल बिगड़ने के चलते धीरेधीरे आई एक आम समस्या थी.

सियाली के पिता प्रकाश अपनी पत्नी निहारिका पर शक करते थे. उन का शक करना भी एकदम जायज था, क्योंकि निहारिका का अपने औफिस के एक साथी के साथ संबंध चल रहा था. जितना शक गहरा हुआ, उतना ही प्रकाश की नाराजगी बढ़ती गई और निहारिका का नाजायज रिश्ता भी उसी हिसाब से  बढ़ता गया.

‘‘जब दोनों साथ नहीं रह सकते, तो तलाक क्यों नहीं दे देते… एकदूसरे को,’’ सियाली बिस्तर से उठते हुए  झुं झलाते  हुए बोली.

सियाली जब तक अपने कमरे से बाहर आई, तब तक वे दोनों काफी हद तक शांत हो चुके थे. शायद वे किसी फैसले तक पहुंच गए थे.

‘‘तो ठीक है, मैं कल ही वकील से बात कर लेता हूं, पर सियाली को अपने साथ कौन रखेगा?’’ प्रकाश ने निहारिका की ओर घूरते हुए पूछा.

‘‘मैं सम झती हूं… सियाली को तुम मु झ से बेहतर संभाल सकते हो,’’ निहारिका ने कहा, तो उस की इस बात पर प्रकाश भड़क सा गया, ‘‘हां, तुम तो सियाली को मेरे पल्ले बांधना ही चाहती हो, ताकि तुम अपने उस औफिस वाले के साथ गुलछर्रे उड़ा सको और मैं एक जवान लड़की के चारों तरफ एक गार्ड बन कर घूमता रहूं.’’

प्रकाश की इस बात पर निहारिका ने भी तेवर दिखाते हुए कहा, ‘‘मर्दों के समाज में क्या सारी जिम्मेदारी एक मां की ही होती है?’’

निहारिका ने गहरी सांस ली और कुछ देर रुक कर बोली, ‘‘हां, वैसे सियाली कभीकभी मेरे पास भी आ सकती है…  1-2 दिन मेरे साथ रहेगी तो मु झे भी एतराज नहीं होगा,’’ निहारिका ने मानो फैसला सुना दिया था.

सियाली कभी मां की तरफ देख रही थी, तो कभी पिता की तरफ, उस से कुछ कहते न बना, पर वह इतना सम झ गई थी कि मांबाप ने अपनाअपना रास्ता अलग कर लिया है और उस का वजूद एक पैंडुलम से ज्यादा नहीं है जो उन दोनों के बीच एक सिरे से दूसरे सिरे तक डोल रही है.

शाम को जब सियाली कालेज से लौटी, तो घर में एक अलग सी शांति थी. पापा सोफे में धंसे हुए चाय पी रहे थे, जो उन्होंने खुद ही बनाई थी. उन के चेहरे पर कई महीनों से बनी रहने वाली तनाव की शिकन गायब थी.

सियाली को देख कर उन्होंने मुसकराने की कोशिश की और बोले, ‘‘देख ले… तेरे लिए चाय बची होगी… लेले और मेरे पास बैठ कर पी.’’

सियाली पापा के पास आ कर बैठी, तो पापा ने अपनी सफाई में काफीकुछ कहना शुरू किया, ‘‘मैं बुरा आदमी नहीं हूं, पर तेरी मम्मी ने भी तो गलत किया था. उस के काम ही ऐसे थे कि मु झे उसे देख कर गुस्सा आ ही जाता था और फिर तेरी मां ने भी तो रिश्तों को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.’’

पापा की बातें सुन कर सियाली से भी नहीं रहा गया और वह बोली, ‘‘मैं नहीं जानती कि आप दोनों में से कौन सही है और कौन गलत है, पर इतना जरूर जानती हूं कि शरीर में अगर नासूर हो जाए, तो आपरेशन ही सही रास्ता और ठीक इलाज होता है.’’

बापबेटी ने कई दिनों के बाद आज खुल कर बात की थी. पापा की बातों में मां के प्रति नफरत और गुस्सा ही छलक रहा था, जिसे सियाली चुपचाप सुनती रही थी.

अगले दिन ही सियाली के मोबाइल पर मां का फोन आया और उन्होंने सियाली को अपना पता देते हुए शाम को उसे अपने फ्लैट पर आने को कहा, जिसे सियाली ने खुशीखुशी मान भी लिया था और शाम को मां के पास जाने की सूचना भी उस ने अपने पापा को दे दी, जिस पर पापा को भी कोई एतराज नहीं हुआ.

शाम को सियाली मां के दिए पते पर पहुंच गई. पता नहीं क्या सोच कर उस ने लाल गुलाब का एक बुके खरीद लिया था और वह फ्लैट नंबर 111 में पहुंच गई.

सियाली ने डोरबैल बजाई. दरवाजा मां ने ही खोला था. अब चौंकने की बारी सियाली की थी. मां गहरे लाल रंग की साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थीं. उन की मांग में भरा हुआ सिंदूर और माथे पर बिंदी… सियाली को याद नहीं कि उस ने मां को कब इतनी अच्छी तरह से सिंगार किए हुए देखा था. हमेशा सादा वेश में ही रहती थीं मां और टोकने पर दलील देती थीं, ‘अरे, हम कोई ब्राह्मणठाकुर तो हैं नहीं, जो हमेशा सिंगार ओढ़े रहें… हम पिछड़ी जाति वालों के लिए साधारण रहना ही अच्छा है.’

तो फिर आज मां को ये क्या हो गया? बहरहाल, सियाली ने मां को बुके दे दिया. मां ने बड़े प्यार से कोने में रखी एक मेज पर उसे सजा दिया.

‘‘अरे, अंदर आने को नहीं कहोगी सियाली से,’’ मां के पीछे से आवाज आई.

सियाली ने आवाज की दिशा में नजर उठाई, तो देखा कि सफेद कुरतापाजामा पहने हुए एक आदमी खड़ा हुआ मुसकरा रहा था.

सियाली उसे पहचान गई. वह मां का औफिस का साथी देशवीर था. मां उसे पहले भी घर ला चुकी थीं.

मां ने बहुत खुशीखुशी देशवीर से सियाली का परिचय कराया, जिस  पर सियाली ने कहा, ‘‘जानती हूं मां… पहले भी आप इन से मु झ को मिलवा चुकी हो.’’

‘‘पर, पहले जब मिलवाया था तब ये सिर्फ मेरे अच्छे दोस्त थे, लेकिन आज मेरे सबकुछ हैं. हम लोग फिलहाल तो लिवइन में रह रहे हैं और तलाक का फैसला होते ही शादी भी कर लेंगे.’’

सियाली मुसकरा कर रह गई थी. सब ने एकसाथ खाना खाया. डाइनिंग टेबल पर भी माहौल सुखद ही था. मां के चेहरे की चमक देखते ही बनती थी.

सियाली रात को मां के साथ ही सो गई और सुबह वहीं से कालेज के लिए निकल गई. चलते समय मां ने उसे 2,000 रुपए देते हुए कहा, ‘‘रख ले, घर जा कर पिज्जा और्डर कर देना.’’

कल से ले कर आज तक मां ने सियाली के सामने एक आदर्श मां होने के कई उदाहरण पेश किए थे, पर सियाली को यह सब नहीं भा रहा था. फिलहाल तो वह अपनी जिंदगी खुल कर जीना चाहती थी, इसलिए मां के दिए गए पैसों से वह उसी दिन अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने चली गई.

‘‘सियाली, आज तू यह किस खुशी में पार्टी दे रही है?’’ महक ने पूछा.

‘‘बस यों सम झो कि आजादी की पार्टी है,’’ कह कर सियाली मुसकरा दी थी.

सच तो यह था कि मांबाप के अलगाव के बाद सियाली भी बहुत रिलैक्स महसूस कर रही थी. रोजरोज की टोकाटाकी से अब उसे छुटकारा मिल चुका था और वह अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती थी, इसीलिए उस ने अपने दोस्तों से अपनी एक इच्छा बताई, ‘‘यार, मैं एक डांस ग्रुप जौइन करना चाहती हूं, ताकि मैं अपने

जज्बातों को डांस द्वारा दुनिया के सामने पेश कर सकूं.’’

इस पर उस के दोस्तों ने उसे और भी कई रास्ते बताए, जिन से वह अपनेआप को दुनिया के सामने पेश कर सकती थी, जैसे ड्राइंग, सिंगिंग, मिट्टी के बरतन बनाना, पर सियाली तो मौजमस्ती के लिए डांस ग्रुप जौइन करना चाहती थी, इसलिए उसे बाकी के औप्शन अच्छे  नहीं लगे.

सियाली ने अपने शहर के डांस ग्रुप इंटरनैट पर खंगाले, तो ‘डिवाइन डांसर’ नामक एक डांस ग्रुप ठीक लगा, जिस में 4 मैंबर लड़के थे और एक लड़की थी.

सियाली ने तुरंत ही वह ग्रुप जौइन कर लिया और अगले दिन से ही डांस प्रैक्टिस के लिए जाने लगी और इस नई चीज का मजा भी लेने लगी.

इस समय सियाली से ज्यादा खुश कोई नहीं था. वह तानाशाह हो चुकी थी. न मांबाप का डर और न ही कोई टोकने वाला. वह जब चाहती घर जाती और अगर नहीं भी जाती तो भी कोई पूछने वाला नहीं था. उस के मांबाप का तलाक क्या हुआ, सियाली तो एक ऐसी चिडि़या हो गई, जो कहीं भी उड़ान भरने के लिए आजाद थी.

एक दिन सियाली का फोन बज उठा. यह पापा का फोन था, ‘सियाली, तुम कई दिन से घर नहीं आई, क्या बात है? कहां हो तुम?’

‘‘पापा, मैं ठीक हूं और डांस सीख रही हूं.’’

‘पर तुम ने बताया नहीं कि तुम डांस सीख रही हो…’

‘‘जरूरी नहीं कि मैं आप लोगों को सब बातें बताऊं… आप लोग अपनी जिंदगी अपने ढंग से जी रहे हैं, इसलिए मैं भी अब अपने हिसाब से ही  जिऊंगी,’’ इतना कह कर सियाली ने फोन काट दिया था, पर उस का मन एक अजीब सी खटास से भर गया था.

डांस ग्रुप के सभी सदस्यों से सियाली की अच्छी दोस्ती हो गई थी, पर पराग नाम के लड़के से उस की कुछ ज्यादा ही पटने लगी थी.

पराग स्मार्ट था और पैसे वाला भी. वह सियाली को गाड़ी में घुमाता और खिलातापिलाता. उस की संगत में सियाली को भी सिक्योरिटी का अहसास होता था.

एक दिन पराग और सियाली एक रैस्टोरैंट में गए. पराग ने अपने लिए एक बीयर मंगवाई और सियाली से पूछा, ‘‘तुम तो कोल्ड ड्रिंक लोगी न सियाली?’’

‘‘खुद तो बीयर पीओगे और मु झे बच्चों वाली ड्रिंक… मैं भी बीयर पीऊंगी,’’ कहते हुए सियाली के चेहरे पर  एक अजीब सी शोखी उतर आई थी.

सियाली की इस अदा पर पराग भी मुसकराए बिना न रह सका और उस ने एक और बीयर और्डर कर दी.

सियाली ने बीयर से शुरुआत जरूर की थी, पर उस का यह शौक धीरेधीरे ह्विस्की तक पहुंच गया था.

अगले दिन डांस क्लास में जब वे दोनों मिले, तो पराग ने एक सुर्ख गुलाब सियाली की ओर बढ़ा दिया और बोला, ‘‘सियाली, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

यह सुन कर ग्रुप के सभी लड़केलड़कियां तालियां बजाने लगे.

सियाली ने भी मुसकरा कर पराग के हाथ से गुलाब ले लिया और कुछ सोचने के बाद बोली, ‘‘लेकिन, मैं शादी जैसी किसी बेहूदा चीज के बंधन में नहीं बंधना चाहती. शादी एक सामाजिक तरीका है 2 लोगों को एकदूसरे के प्रति ईमानदारी दिखाते हुए जिंदगी बिताने का, पर क्या हम ईमानदार रह पाते हैं?’’ सियाली के मुंह से ऐसी बड़ीबड़ी बातें सुन कर डांस ग्रुप के लड़केलड़कियां शांत से हो गए थे.

सियाली ने थोड़ा रुक कर कहना शुरू किया, ‘‘मैं ने अपने मांबाप को उन की शादीशुदा जिंदगी में हमेशा लड़ते ही देखा है, जिस का खात्मा तलाक के रूप में हुआ और अब मेरी मां अपने प्रेमी के साथ लिवइन में रह रही हैं और पहले से कहीं ज्यादा खुश हैं.’’

पराग यह बात सुन कर तपाक से बोला, ‘‘मैं भी तुम्हारे साथ लिवइन में रहने को तैयार हूं,’’ तो सियाली ने इसे  झट से स्वीकार कर लिया.

कुछ दिन बाद ही पराग और सियाली लिवइन में रहने लगे, जहां वे जी भर कर जिंदगी का मजा ले रहे थे. पराग के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी.

कुछ दिनों के बाद उन के डांस ग्रुप की गायत्री नाम की एक लड़की ने सियाली से एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘सियाली, तुम्हारी तो अभी उम्र बहुत कम है… और इतनी जल्दी किसी के साथ लिवइन में रहना… कुछ अजीब सा नहीं लगता तुम्हें…’’

सियाली के चेहरे पर एक मीठी सी मुसकराहट आई और चेहरे पर कई रंग आतेजाते गए, फिर उस ने अपनेआप को संभालते हुए कहा, ‘‘जब मेरे मांबाप ने सिर्फ अपनी जिंदगी के बारे में सोचा और मेरी परवाह नहीं की, तो मैं अपने बारे में क्यों न सोचूं… और गायत्री, जिंदगी मस्ती करने के लिए बनी है, इसे न किसी रिश्ते में बांधने की जरूरत है और न ही रोरो कर गुजारने की…

‘‘मैं आज पराग के साथ लिवइन में हूं, और कल मन भरने के बाद किसी और के साथ रहूंगी और परसों किसी और के साथ, उम्र का तो सोचो ही मत… बस मस्ती करो.’’

सियाली यह कहते हुए वहां से  चली गई, जबकि गायत्री अवाक सी खड़ी रह गई.

तितली कभी किसी एक फूल पर नहीं बैठती… वह कभी एक फूल पर, तो कभी दूसरे फूल पर, और तभी तो  इतनी चंचल होती है और इतनी खुश रहती है… रंगबिरंगी तितली, जिंदगी से भरपूर तितली.

Moral Story

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